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पंचतं क

ेरक कहानया
पंचतं क कहानय क रचना का इतहास भी बडा ह रोचक
ह। लगभग 2000 वष पूव" भारत वष" के द$%णी 'ह(से म*
म'हलारो+य नामक नगर म* राजा अमरशि0त का शासन था।
उसके तीन प
ु बहुशि0त, उ4शि0त और अनंतशि0त थे। राजा
अमरशि0त िजतने उदार शासक और कुशल नीत6 थे, उनके
प
ु उतने ह मख
ू " और अहं कार थे। राजा ने उ8ह* 9यवहा:रक
;श%ा दे ने 9यवहा:रक ;श%ा दे ने क बहुत को;शश क परं तु
<कसी भी कार से बात नहं बनी। हारकर एक 'दन राजा ने
अपने मं>य से मंणा क। राजा अमरशि0त के मं>मंडल म*
कई कुशल, दरू दश@ और योAय मंी थे, उ8हं म* से एक मंी
सुमत ने राजा को परामश" 'दया <क पंBडत CवDणु शमा"
सव"शा( के 6ाता और एक कुशल EाFमण ह, य'द राजकुमार
को ;श%ा दे ने और 9यवहा:रक Gप से $%त करने का
उHतरदायHव पंBडत पंBडत CवDणु शमा" को सIपा जाए तो उJचत
होगा, वे अKप समय म* ह राजकुमार को ;श$%त करने क
सामथ" रखते ह।

राजा अमरशि0त ने पंBडत CवDणु शमा" से अनुरोध <कया और


पा:रतोCषक के Mप म* उ8ह* सौ गांव दे ने का वचन 'दया। पंBडत
CवDणु शमा" ने पा:रतोCषक को तो अ(वीकार कर 'दया, परं तु
राजकुमार को ;श$%त करने के काय" को एक चुनौती के Gप
म* (वीकार <कया। इस (वीकॄत के साथ ह उ8हने घोषणा क
<क म यह असंभव काय" मा छः म'हन म* पूण" कGं गा, य'द
म ऐसा न कर सका तो महाराज मझ
ु े मॄHयद
ु ं ड दे सकते
ह।पंBडत CवDणु शमा" क यह भीDम ती6ा सुनकर महाराज
अमरशि0त निUचंत होकर अपने शासन-काय" म* 9य(त हो गए
और पंBडत CवDनु शमा" तीन राजकुमार को अपने आXम म* ले
आए।

पंBडत CवDणु शमा" ने राजकुमार को CवCवध कार क


नीतशा( से संबंJधत कथाएं सुनाई। उ8हने इन कथाओं म*
पा के Gप म* पश-ु प$%य का वण"न <कया और अपने Cवचार
को उनके मुख से 9य0त <कया। पशु-प$%य को ह आधार
बनाकर उ8हने राजकुमार को उJचत-अनुJचत आ'द का 6ान
'दया व 9यवहा:रक Gप से ;श$%त करना आंरZभ <कया ।
राजकुमार क ;श%ा समा+त होने के बाद पंBडत CवDणु शमा" ने
इन कहानय को पंचतं क ेरक कहानयां के सं4ह के Gप
म* संक;लत <कया।

पंचतं क ेरक कहानयां

अ0लमंद हं स

आपस क फूट

एक और एक Aयारह

एकता का बल

कौए और उKलू

खरगोश क चतुराई

गजराज व मूषकराज
गधा रहा गधा ह

गोलू-मोलू और भालू

घंटधार ऊंट

चापलूस मंडल

झगडालू मेढक

झठ
ू ` शान

ढगी ;सयार

ढोल क पोल

तीन मछ;लयां

दUु मन का (वाथ"

दDु ट सप"

नकल करना बुरा है

बंदर का कलेजा
बगुला भगत

पंचतं क ेरक कहानयां

बडे नाम का चमHकार

बहGCपया गधा

>बKल का 8याय

बुCbमान ;सयार

म0खीचूस गीदड

;म क सलाह

मुcतखोर मेहमान

मूख" गधा

मूख" को सीख

मूख" बातूनी कछुआ

रं ग म* भंग

रं गा ;सयार
शु क सलाह

शरारती बंदर

संगठन क शि0त

सdचा शासक

सdचे ;म

सांड और गीदड

;संह और ;सयार

(वजात ेम

रं ग->बरं गी ;मठाइयॉ
अ0लमंद हं स
एक बहुत बडा Cवशाल पेड था। उस पर बीसीय हं स रहते थे।
उनम* एक बहुत (याना हं स था,बुCbमान और बहुत दरू दश@।
सब उसका आदर करते ‘ताऊ’ कहकर बुलाते थे। एक 'दन
उसने एक न8ह-सी बेल को पेड के तने पर बहुत नीचे ;लपटते

ू रे हं स को बुलाकर कहा “दे खो,इस बेल को


पाया। ताऊ ने दस
नDट कर दो। एक 'दन यह बेल हम सबको मौत के मुंह म* ले
जाएगी।”

एक यव
ु ा हं स हं सते हुए बोला “ताऊ, यह छोट-सी बेल हम* कैसे
मौत के मुंह म* ले जाएगी?”

(याने हं स ने समझाया “आज यह तुZह* छोट-सी लग रह ह।


धीरे -धीरे यह पेड के सारे तने को लपेटा मारकर ऊपर तक
आएगी। <फर बेल का तना मोटा होने लगेगा और पेड से
Jचपक जाएगा, तब नीचे से ऊपर तक पेड पर चढने के ;लए
सीढ बन जाएगी। कोई भी ;शकार सीढ के सहारे चढकर हम
तक पहुंच जाएगा और हम मारे जाएंगे।”

दस
ू रे हं स को यकन न आया “एक छोट सी बेल कैसे सीढ
बनेगी?”

तीसरा हं स बोला “ताऊ, तु तो एक छोट-सी बेल को खींचकर


fयादा ह लZबा कर रहा है ।”

एक हं स बडबडाया “यह ताऊ अपनी अ0ल का रौब डालने के


;लए अंट-शंट कहानी बना रहा ह।”

इस कार <कसी दस
ू रे हं स ने ताऊ क बात को गंभीरता से
नहं ;लया। इतनी दरू तक दे ख पाने क उनम* अ0ल कहां थी?

समय बीतता रहा। बेल ;लपटते-;लपटFटे ऊपर शाख तक पहुंच


गई। बेल का तना मोटा होना शG
ु हुआ और सचमच
ु ह पेड के
तने पर सीढ बन गई। िजस पर आसानी से चढा जा सकता
था। सबको ताऊ क बात क सdचाई सामने नजर आने लगी।
पर अब कुछ नहं <कया जा सकता था 0य<क बेल इतनी
मजबूत हो गई थी <क उसे नDट करना हं स के बस क बात
नहं थी। एक 'दन जब सब हं स दाना चुगने बाहर गए हुए थे
तब एक बहे ;लआ उधर आ नकला। पेड पर बनी सीढ को
दे खते ह उसने पेड पर चढकर जाल >बछाया और चला गया।
सांझ को सारे हं स लौट आए पेड पर उतरे तो बहे ;लए के जाल
म* बरु  तरह फंस गए। जब वे जाल म* फंस गए और फडफडाने
लगे, तब उ8ह* ताऊ क बुCbमानी और दरू द;श"ता का पता लगा।
सब ताऊ क बात न मानने के ;लए लिfजत थे और अपने
आपको कोस रहे थे। ताऊ सबसे GDट था और चुप बैठा था।

एक हं स ने 'हZमत करके कहा “ताऊ, हम मख


ू " ह, ले<कन अब
हमसे मुंह मत फेरो।’

दस
ू रा हं स बोला “इस संकट से नकालने क तरकब तू ह हम*
बता सकता ह। आगे हम तेर कोई बात नहं टाल* गे।” सभी
हं स ने हामी भर तब ताऊ ने उ8ह* बताया “मेर बात gयान से
सुनो। सुबह जब बहे ;लया आएगा, तब मुदा" होने का नाटक
करना। बहे ;लया तुZह* मद
ु ा" समझकर जाल से नकाल कर
जमीन पर रखता जाएगा। वहां भी मरे समान पडे रहना। जैसे
ह वह अि8तम हं स को नीचे रखेगा, म सीट बजाऊंगा। मेर
सीट सुनते ह सब उड जाना।”

सब
ु ह बहे ;लया आया। हं सो ने वैसा ह <कया, जैसा ताऊ ने
समझाया था। सचमुच बहे ;लया हं स को मुदा" समझकर जमीन
पर पटकता गया। सीट क आवाज के साथ ह सारे हं स उड
गए। बहे ;लया अवाक होकर दे खता रह गया।

सीखः बCु bमान क सलाह गंभीरता से लेनी चा'हए।

आपस क फूट
ाचीन समय म* एक CवJच प%ी रहता था। उसका धड एक
ह था, पर8तु ;सर दो थे नाम था उसका भाGं ड। एक शरर होने
के बावजद
ू उसके ;सर म* एकता नहं थी और न ह था
तालमेल। वे एक दस
ू रे से बैर रखते थे। हर जीव सोचने
समझने का काम 'दमाग से करता ह और 'दमाग होता ह ;सर
म* दो ;सर होने के कारण भाGं ड के 'दमाग भी दो थे। िजनम*
से एक पूरब जाने क सोचता तो दस
ू रा पिUचम फल यह होता
था <क टांग* एक कदम पूरब क ओर चलती तो अगला कदम
पिUचम क ओर और भाMंड (वयं को वहं खडा पाता ता।
भाGं ड का जीवन बस दो ;सर के बीच र(साकसी बनकर रह
गया था।

एक 'दन भाGं ड भोजन क तलाश म* नद तट पर धूम रहा था


<क एक ;सर को नीचे Jगरा एक फल नजर आया। उसने चच
मारकर उसे चखकर दे खा तो जीभ चटकाने लगा “वाह! ऐसा
(वा'दDट फल तो मने आज तक कभी नहं खाया। भगवान ने
दु नया म* 0या-0या चीज* बनाई ह।”

“अdछा! जरा म भी चखकर दे खं।ू ” कहकर दस


ू रे ने अपनी चच
उस फल क ओर बढाई ह थी <क पहले ;सर ने झटककर
दस
ू रे ;सर को दरू फ*का और बोला “अपनी गंद चच इस फल
से दरू ह रख। यह फल मने पाया ह और इसे म ह खाऊंगा।”
“अरे ! हम ् दोन एक ह शरर के भाग ह। खाने-पीने क चीज*

तो हम* बांटकर खानी चा'हए।” दस


ू रे ;सर ने दलल द। पहला
;सर कहने लगा “ठ`क! हम एक शरर के भाग ह। पेट हमार
एक ह ह। म इस फल को खाऊंगा तो वह पेट म* ह तो
जाएगा और पेट तेरा भी ह।”

दस
ू रा ;सर बोला “खाने का मतलब केवल पेट भरना ह नहं
होता भाई। जीभ का (वाद भी तो कोई चीज ह। तबीयत को
संतुिDट तो जीभ से ह ;मलती ह। खाने का असल मजा तो
मंह
ु म* ह ह।”

पहला ;सर तुनकर Jचढाने वाले (वर म* बोला “मने तेर जीभ
और खाने के मजे का ठे का थोडे ह ले रखा ह। फल खाने के
बाद पेट से डकार आएगी। वह डकार तेरे मुंह से भी नकलेगी।
उसी से गज
ु ारा चला लेना। अब fयादा बकवास न कर और
ु े शांत से फल खाने दे ।” ऐसा कहकर पहला ;सर चटकारे
मझ
ले-लेकर फल खाने लगा।
इस घटना के बाद दस
ू रे ;सर ने बदला लेने क ठान ल और
मौके क तलाश म* रहने लगा। कुछ 'दन बाद <फर भाGं ड
भोजन क तलाश म* घूम रहा था <क दस
ू रे ;सर क नजर एक
फल पर पडी। उसे िजस चीज क तलाश थी, उसे वह ;मल गई
थी। दस
ू रा ;सर उस फल पर चच मारने ह जा रहा था <क <क
पहले ;सर ने चीखकर चेतावनी द “अरे , अरे ! इस फल को मत
खाना। 0या तुझे पता नहं <क यह Cवषैला फल ह? इसे खाने
पर मॄHयु भी हो सकती है ।”

दस
ू रा ;सर हं सा “हे हे हे ! तु चप
ु चाप अपना काम दे ख। तझ
ु े
0या लेना ह <क म 0या खा रहा हूं? भल
ू गया उस 'दन क
बात?”

पहले ;सर ने समझाने <क को;शश क “तुने यह फल खा ;लया


तो हम दोन मर जाएंगे।”

दस
ू रा ;सर तो बदला लेने पर उताG था। बोला “मैने तेरे मरने-
जीने का ठे का थोडे ह ले रखा ह? म जो खाना चाहता हूं, वह
खाऊंगा चाहे उसका नतीजा कुछ भी हो। अब मुझे शांत से
Cवषैला फल खाने दे ।”

दस
ू रे ;सर ने सारा Cवषैला फल खा ;लया और भाGं ड तडप-
तडपकर मर गया।

सीखः आपस क फूट सदा ले डूबती ह।


एक और एक Aयारह
एक बार क बात ह <क बनJगर के घने जंगल म* एक उ8मुHत
हाथी ने भार उHपात मचा रखा था। वह अपनी ताकत के नशे
म* चूर होने के कारण <कसी को कुछ नेहं समझता था।

बनJगर म* ह एक पेड पर एक JचBडया व Jचडे का छोटा-सा


सुखी संसार था। JचBडया अंडो पर बैठ` न8ह* -न8ह* +यारे बdच
के नकलने के सुनहरे सपने दे खती रहती। एक 'दन jूर हाथी
गरजता, Jचंघाडता पेड को तोडता-मरोडता उसी ओर आया।
दे खते ह दे खते उसने JचBडया के घसले वाला पेड भी तोड
डाला। घसला नीचे आ Jगरा। अंडे टूट गए और ऊपर से हाथी
का पैर उस पर पडा।

JचBडया और Jचडा चीखने JचKलाने के ;सवा और कुछ न कर


सके। हाथी के जाने के बाद JचBडया छाती पीट-पीटकर रोने
लगी। तभी वहां कठफोठवी आई। वह JचBडया क अdछ` ;म
थी। कठफोडवी ने उनके रोने का कारण पूछा तो JचBडया ने
अपनी सार कहानी कह डाल। कठफोडवी बोल “इस कार
गम म* डूबे रहने से कुछ नहं होगा। उस हाथी को सबक
;सखाने के ;लए हमे कुछ करना होगा।”

JचBडया ने नराशा 'दखाई “हम* छोटे -मोटे जीव उस बलशाल


हाथी से कैसे ट0कर ले सकते ह?”

कठफोडवी ने समझाया “एक और एक ;मलकर Aयारह बनते


ह। हम अपनी शि0तयां जोड*गे।”

“कैसे?” JचBडया ने पछ
ू ा।
“मेरा एक ;म वींआख नामक भंवरा ह। हम* उससे सलाह लेना

चा'हए।” JचBडया और कठफोडवी भंवरे से ;मल। भंवरा


गुनगुनाया “यह तो बहुत बरु ा हुआ। मेरा एक म* ढक ;म ह
आओ, उससे सहायता मांगे।”

अब तीन उस सरोवर के <कनारे पहुंचे, जहां वह मेढक रहता


था। भंवरे ने सार सम(या बताई। म* ढक भरा"ये (वर म* बोला
“आप लोग धैय" से जरा यहं मेर ती%ा कर* । म गहरे पाने म*

बैठकर सोचता हूं।”

ऐसा कहकर म* ढक जल म* कूद गया। आधे घंटे बाद वह पानी


से बाहर आया तो उसक आंखे चमक रह थी। वह बोला
“दो(तो! उस हHयारे हाथी को नDट करने क मेरे 'दमाग म*

एक बडी अdछ` योजना आई ह। उसम* सभी का योगदान


होगा।”
म* ढक ने जैसे ह अपनी योजना बताई,सब खुशी से उछल पडे।
योजना सचमुच ह अदभुत थी। म* ढक ने दोबारा बार-बार
सबको अपना-अपना रोल समझाया।

कुछ ह दरू वह उ8मHत हाथी तोडफोड मचाकर व पेट भरकर


कपल वाल शाखाएं खाकर म(ती म* खडा झूम रहा था।
पहला काम भंवरे का था। वह हाथी के कान के पास जाकर
मधरु राग गज
ंु ाने लगा। राग सुनकर हाथी म(त होकर आंख*
बंद करके झूमने लगा।

तभी कठफोडवी ने अपना काम कर 'दखाया। वk आई और


अपनी सुई जैसी नुकल चच से उसने तेजी से हाथी क दोन
आंख* बींध डाल। हाथी क आंखे फूट गl। वह तडपता हुआ
अंधा होकर इधर-उधर भागने लगा।

जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था, हाथी का jोध बढता जा


रहा था। आंख से नजर न आने के कारण ठोकर और ट0कर
से शरर जmमी होता जा रहा था। जmम उसे और JचKलाने पर
मजबूर कर रहे थे।

JचBडया कॄत6 (वर म* मेढक से बोल “ब'हया, म आजीवन


तुZहार आभार रहूंगी। तुमने मेर इतनी सहायता कर द।”

मेढक ने कहा “आभार मानने क जGरत नहं। ;म ह ;म


के काम आते ह।”

एक तो आंख म* जलन और ऊपर से JचKलाते-Jचंघाडते हाथी


का गला सूख गया। उसे तेज +यास लगने लगी। अब उसे एक
ह चीज क तलाश थी, पानी।

मेढक ने अपने बहुत से बंधु-बांधव को इकnा <कया और उ8ह*


ले जाकर दरू बहुत बडे गoढे के <कनारे बैठकर टरा"ने के ;लए
कहा। सारे मेढक टरा"ने लगे।

मेढक क टरा"हट सुनकर हाथी के कान खडे हो गए। वह यह


जानता ता <क मेढक जल (ोत के नकट ह वास करते ह।
वह उसी 'दशा म* चल पडा।
टरा"हट और तेज होती जा रह थी। +यासा हाथी और तेज
भागने लगा।

जैसे ह हाथी गoढे के नकट पहुंचा, मेढक ने पूरा जोर लगाकर


टरा"ना शG
ु <कया। हाथी आगे बढा और Cवशाल पHथर क तरह
गoढे म* Jगर पडा, जहां उसके ाण पखेG उडते दे र न लगे इस
कार उस अहं कार म* डूबे हाथी का अंत हुआ।

सीखः 1.एकता म* बल ह।


2.अहं कार का दे र या सबेर अंत होता ह ह।

एकता का बल
एक समय क बात ह <क कबूतर का एक दल आसमान म*
भोजन क तलाश म* उडता हुआ जा रहा था। गलती से वह
दल भटककर ऐसे दे श के ऊपर से गुजरा, जहां भयंकर अकाल
पडा था। कबत
ू र का सरदार Jचंतत था। कबत
ू र के शरर क
शि0त समा+त होती जा रह थी। शीp ह कुछ दाना ;मलना
जGर था। दल का युवा कबूतर सबसे नीचे उड रहा था। भोजन
नजर आने पर उसे ह बाक दल को सJु चत करना था। बहुत
समय उडने के बाद कहं वह सूखा4(त %े से बाहर आया।
नीचे ह:रयाल नजर आने लगी तो भोजन ;मलने क उZमीद
बनी। यव
ु ा कबत
ू र और नीचे उडान भरने लगा। तभी उसे नीचे
खेत म* बहुत सारा अ8न >बखरा नजर आया “चाचा, नीचे एक
खेत म* बहुत सारा दाना >बखरा पडा ह। हम सबका पेट भर
जाएगा।’

सरदार ने सच
ू ना पाते ह कबत
ू र को नीचे उतरकर खेत म*
>बखरा दाना चुनने का आदे श 'दया। सारा दल नीचे उतरा और
दाना चुनने लगा। वा(तव म* वह दाना प%ी पकडने वाले एक
बह;लए ने >बखेर रखा था। ऊपर पेड पर तना था उसका जाल।
जैसे ह कबूतर दल दाना चुगने लगा, जाल उन पर आ Jगरा।
सारे कबत
ू र फंस गए।

कबत
ू र के सरदार ने माथा पीटा “ओह! यह तो हम* फंसाने के
;लए फैलाया गया जाल था। भख
ू ने मेर अ0ल पर पदा" डाल
'दया था। मुझे सोचना चा'हए था <क इतना अ8न >बखरा होने
का कोई मतलब ह। अब पछताए होत 0या, जब JचBडया चुग
गई खेत?”

एक कबूतर रोने लगा “हम सब मारे जाएंगे।”

बाक कबूतर तो 'हZमत हार बैठे थे, पर सरदार गहर सोच म*


डूबा था। एकाएक उसने कहा “सुनो, जाल मजबूत ह यह ठ`क
ह, पर इसम* इतनी भी शि0त नहं <क एकता क शि0त को
हरा सके। हम अपनी सार शि0त को जोडे तो मौत के मुंह म*
जाने से बच सकते ह।”

युवा कबूतर फडफडाया “चाचा! साफ-साफ बताओ तुम 0या


कहना चाहते हो। जाल ने हम* तोड रखा ह, शि0त कैसे जोडे?”

सरदार बोला “तुम सब चच से जाल को पकडो, <फर जब म


फुर" कहूं तो एक साथ जोर लगाकर उडना।”

सबने ऐसा ह <कया। तभी जाल >बछाने वाला बहे ;लयां आता
नजर आया। जाल म* कबूतर को फंसा दे ख उसक आंख*
चमक। हाथ म* पकडा डंडा उसने मजबूती से पकडा व जाल
क ओर दौडा।

बहे ;लया जाल से कुछ ह दरू था <क कबूतर का सरदार बोला


“फुर" र"र"!”

सारे कबूतर एक साथ जोर लगाकर उडे तो पूरा जाल हवा म*


ऊपर उठा और सारे कबत
ू र जाल को लेकर ह उडने लगे।
कबूतर को जाल स'हत उडते दे खकर बहे ;लया अवाक रह गया।
कुछ संभला तो जाल के पीछे दौडने लगा। कबत
ू र सरदार ने
बहे ;लए को नीचे जाल के पीछे दौडते पाया तो उसका इरादा
समझ गया। सरदार भी जानता था <क अJधक दे र तक कबूतर
दल के ;लए जाल स'हत उडते रहना संभव न होगा। पर
सरदार के पास इसका उपाय था। नकट ह एक पहाडी पर
>बल बनाकर उसका एक चूहा ;म रहता था। सरदार ने
कबत
ू र को तेजी से उस पहाडी क ओर उडने का आदे श 'दया।
पहाडी पर पहुंचते ह सरदार का संकेत पाकर जाल समेत
कबत
ू र चूहे के >बल के नकट उतरे ।
सरदार ने ;म चूहे को आवाज द। सरदार ने सं%ेप म* चूहे को
सार घटना बताई और जाल काटकर उ8ह* आजाद करने के
;लए कहा। कुछ ह दे र म* चूहे ने वह जाल काट 'दया। सरदार
ने अपने ;म चूहे को ध8यवाद 'दया और सारा कबूतर दल
आकाश क ओर आजाद क उडान भरने लगा।

सीखः एकजुट होकर बडी से बडी CवपिHत का सामना <कया जा


सकता ह।
कौए और उKलू
बहुत समय पहले क बात ह <क एक वन म* एक Cवशाल
बरगद का पेड कौओं क राजधानी था। हजार कौए उस पर
वास करते थे। उसी पेड पर कौओं का राजा मेघवण" भी रहता
था।

बरगद के पेड के पास ह एक पहाडी थी, िजसम* असंmय गफ


ु ाएं
थीं। उन गफ
ु ाओं म* उKलू नवास करते थे, उनका राजा
अ:रमद" न था। अ:रमद" न बहुत पराjमी राजा था। कौओं को तो
उसने उKलुओं का दUु मन नZबर एक घोCषत कर" रखा था। उसे
कौओं से इतनी नफरत थी <क <कसी कौए को मारे >बना वह
भोजन नहं करता था।

जब बहुत अJधक कौए मारे जाने लगे तो उनके राजा मेघवण"


को बहुत Jच8ता हुई। उसने कौओं क एक सभा इस सम(या
पर Cवचार करने के ;लए बुलाई। मेघवण" बोला “मेरे +यारे
कौओ, आपको तो पता ह ह <क उKलुओं के आjमण के
कारण हमारा जीवन असरु $%त हो गया ह। हमारा शु
शि0तशाल ह और अहं कार भी। हम पर रात को हमले <कए
जाते ह। हम रात को दे ख नहं पाते। हम 'दन म* जवाबी
हमला नहं कर पाते, 0य<क वे गफ
ु ाओं के अंधेर म* सरु $%त
बैठे रहते ह।”

<फर मेघवण" ने (याने और बुCbमान कौओं से अपने सुझाव


दे ने के ;लए कहा।
एक डरपोक कौआ बोला “हम* उKलूं से समझौता कर लेना
चा'हए। वह जो शतq रख* , हम (वीकार कर* । अपने से तकतवर
दUु मन से Cपटते रहने म* 0या तक
ु है ?”

बहुत-से कौओं ने कां कां करके Cवरोध कट <कया। एक गम"


'दमाग का कौआ चीखा “हम* उन दDु ट से बात नहं करनी
चा'हए। सब उठो और उन पर आjमण कर दो।”

एक नराशावाद कौआ बोला “शु बलवान ह। हम* यह (थान


छोडकर चले जाना चा'हए।”

(याने कौए ने सलाह द “अपना घर छोडना ठ`क नहं होगा।


हम यहां से गए तो >बKकुल ह टूट जाएंगे। हमे यहं रहकर
और प$%य से सहायता लेनी चा'हए।”

कौओं म* सबसे चतुर व बुCbमान ि(थरजीवी नामक कौआ था,


जो चुपचाप बैठा सबक दलल* सुन रहा था। राजा मेघवण"
उसक ओर मुडा “महाशय, आप चप
ु ह। म आपक राय जानना
चाहता हूं।”
ि(थरजीवी बोला “महाराज, शु अJधक शि0तशाल हो तो
छलनीत से काम लेना चा'हए।”

“कैसी छलनीत? जरा साफ-साफ बताइए, ि(थरजीवी।” राजा ने

कहा।

ि(थरजीवी बोला “आप मुझे भला-बुरा क'हए और मुझ पर


जानलेवा हमला किजए।’

मेघवण" चIका “यह आप 0या कह रहे ह ि(थरजीवी?”

ि(थरजीवी राजा मेघवण" वाल डाल पर जाकर कान मे बोला


“छलनीत के ;लए हम* यह नाटक करना पडेगा। हमारे

आसपास के पेड पर उKलू जासूस हमार इस सभा क सार


काय"वाह दे ख रहे ह। उ8हे 'दखाकर हम* फूट और झगडे का
नाटक करना होगा। इसके बाद आप सारे कौओं को लेकर
ॠDयमूक पव"त पर जाकर मेर ती%ा कर* । म उKलुओं के दल
म* शा;मल होकर उनके Cवनाश का सामान जट
ु ाऊंगा। घर का
भेद बनकर उनक लंका ढाऊंगा।”
<फर नाटक शG
ु हुआ। ि(थरजीवी JचKलाकर बोला “म जैसा
कहता हूं, वैसा कर राजा कर राजा के बdचे। 0य हम* मरवाने
पर तल
ु ा ह?”

मेघावण" चीख उठा “गsार, राजा से ऐसी बदतमीजी से बोलने


क तेर 'हZमत कैसे हुई?”कई कौए एक साथ JचKला उठे “इस
गsार को मार दो।”

राजा मेघवण" ने अपने पंख से ि(थरजीवी को जोरदार झापड


मारकर तनी से Jगरा 'दया और घोषणा क “म गsार
ि(थरजीवी को कौआ समाज से नकाल रहा हूं। अब से कोई
कौआ इस नीच से कोई संबध नेहं रखेगा।”

आसपास के पेड पर छपे बैठे उKलू जासूस क आंखे चमक


उठ`। उKलुओं के राजा को जासस
ू  ने सच
ू ना द <क कौओं म*
फूट पड गई ह। मार-पीट और गाल-गलौच हो रह ह। इतना
सुनते ह उKलुओं के सेनापत ने राजा से कहा “महाराज, यह
मौका ह कौओं पर आjमण करने का। इस समय हम उ8ह*
आसानी से हरा द* गे।”

उKलुओं के राजा अ:रमद" न को सेनापत क बता सह लगी।


उसने तरु ं त आjमण का आदे श दे 'दया। बस <फर 0या था
हजार उKलुओं क सेना बरगद के पेड पर आjमण करने चल
द। पर8तु वहां एक भी कौआ नहं ;मला।

;मलता भी कैसे? योजना के अनुसार मेघवण" सारे कौओं को


लेकर ॠDयमूक पव"त क ओर कूच कर गया था। पेड खाल
पाकर उKलुओं के राजा ने थूका “कौए हमारा सामना करने क
बजाए भाग गए। ऐसे कायर पर हजार थू।” सारे उKलू ‘हू हू’
क आवाज नकालकर अपनी जीत क घोषणा करने लगे। नीचे
झाBडय म* Jगरा पडा ि(थरजीवी कौआ यह सब दे ख रहा था।
ि(थरजीवी ने कां-कां क आवाज नकाल। उसे दे खकर जासस

उKलू बोला “अरे , यह तो वह कौआ ह, िजसे इनका राजा ध0का
दे कर Jगरा रहा था और अपमानत कर रहा था।’
उKलुओं का राजा भी आया। उसने पूछा “तुZहार यह दद
ु " शा
कैसे हुई?” ि(थरजीवी बोला “म राजा मेघवण" का नीतमंी था।
मने उनको नेक सलाह द <क उKलुओं का नेतॄHव इस समय
एक पराjमी राजा कर रहे ह। हम* उKलुओं क अधीनता
(वीकार कर लेनी चा'हए। मेर बात सुनकर मेघवण" jोJधत हो
गया और मझ
ु े फटकार कर कौओं क जात से बाहर कर
'दया। मुझे अपनी शरण म* ले लिजए।”

उKलुओं का राजा अ:रमद" न सोच म* पड गया। उसके (याने


नीत सलाहकार ने कान म* कहा “राजन, शु क बात का
CवUवास नहं करना चा'हए। यह हमारा शु ह। इसे मार दो।”
एक चापलूस मंी बोला “नहं महाराज! इस कौए को अपने
साथ ;मलाने म* बडा लाभ रहे गा। यह कौओं के घर के भेद हम*
बताएगा।”

राजा को भी ि(थरजीवी को अपने साथ ;मलाने म* लाभ नजर


आया अओ उKलू ि(थरजीवी कौए को अपने साथ ले गए। वहां
अ:रमद" न ने उKलू सेवक से कहा “ि(थरजीवी को गफ
ु ा के
शाह मेहमान क%म* ठहराओ। इ8ह* कोई कDट नहं होना
चा'हए।”

ि(थरजीवी हाथ जोडकर बोला “महाराज, आपने मुझे शरण द,


यह बहुत ह। मझ
ु े अपनी शाह गफ
ु ा के बाहर एक पHथर पर
सेवक क तरह ह रहने दिजए। वहां बैठकर आपके गुण गाते
रहने क ह मेर इdछा ह।” इस कार ि(थरजीवी शाह गुफा के
बाहर डेरा जमाकर बैठ गया।

गफ
ु ा म* नीत सलाहकार ने राजा से <फर से कहा “महाराज!
शु पर CवUवास मत करो। उसे अपने घर म* (थान दे ना तो
आHमहHया करने समान ह।” अ:रमद" न ने उसे jोध से दे खा
“तुम मझ
ु े fयादा नीत समझाने क को;शश मत करो। चाहो
तो तुम यहां से जा सकते हो।” नीत सलाहकार उKलू अपने दो-
तीन ;म के साथ वहां से सदा के ;लए यह कहता हुआ
“Cवनाशकाले Cवपरत बCु b।”
कुछ 'दन बाद ि(थरजीवी लकBडयां लाकर गुफा के tवार के
पास रखने लगा “सरकार, स'द" यां आने वाल ह। म लकBडय
क झोपडी बनाना चाहता हूं ता<क ठं ड से बचाव हो।’ धीरे -धीरे
लकBडय का काफ ढे र जमा हो गया। एक 'दन जब सारे उKलू
सो रहे थे तो ि(थरजीवी वहां से उडकर सीधे ॠDयमूक पव"त
पर पहुंचा, जहां मेघवण" और कौओं स'हत उसी क ती%ा कर
रहे थे। ि(थरजीवी ने कहा “अब आप सब नकट के जंगल से
जहां आग लगी ह एक-एक जलती लकडी चच म* उठाकर मेरे
पीछे आइए।”

कौओं क सेना चच म* जलती लकBडयां पकड ि(थरजीवी के


साथ उKलुओं क गुफाओं म* आ पहुंचा। ि(थरजीवी tवारा ढे र
लगाई लकBडय म* आग लगा द गई। सभी उKलू जलने या
दम घुटने से मर गए। राजा मेघवण" ने ि(थरजीवी को कौआ
रHन क उपाJध द।

सीखः शु को अपने घर म* पनाह दे ना अपने ह Cवनाश का


सामान जट
ु ाना ह।
खरगोश क चतुराई
<कसी घने वन म* एक बहुत बड़ा शेर रहता था। वह रोज
;शकार पर नकलता और एक ह नहं, दो नहं कई-कई
जानवर का काम तमाम दे ता। जंगल के जानवर डरने लगे <क
अगर शेर इसी तरह ;शकार करता रहा तो एक 'दन ऐसा
आयेगा <क जंगल म* कोई भी जानवर नहं बचेगा।

सारे जंगल म* सनसनी फैल गई। शेर को रोकने के ;लये कोई


न कोई उपाय करना ज़Mर था। एक 'दन जंगल के सारे
जानवर इकnा हुए और इस Uन पर Cवचार करने लगे। अ8त
म* उ8हने तय <कया <क वे सब शेर के पास जाकर उनसे इस
बारे म* बात कर* । दस
ू रे 'दन जानवर के एकदल शेर के पास
पहुंचा। उनके अपनी ओर आते दे ख शेर घबरा गया और उसने
गरजकर पूछा, ‘‘0या बात है ? तुम सब यहां 0य आ रहे हो ?’’

जानवर दल के नेता ने कहा, ‘‘महाराज, हम आपके पास नवेदन


करने आये ह। आप राजा ह और हम आपक जा। जब आप
;शकार करने नकलते ह तो बहुत जानवर मार डालते ह। आप
सबको खा भी नहं पाते। इस तरह से हमार संmया कम होती
जा रह है । अगर ऐसा ह होता रहा तो कुछ ह 'दन म* जंगल
म* आपके ;सवाय और कोई भी नहं बचेगा। जा के >बना
राजा भी कैसे रह सकता है ? य'द हम सभी मर जाय*गे तो
आप भी राजा नहं रह* गे। हम चाहते ह <क आप सदा हमारे
राजा बने रह* । आपसे हमार Cवनती है <क आप अपने घर पर
ह रहा कर* । हर रोज (वयं आपके खाने के ;लए एक जानवर
भेज 'दया कर* गे। इस तरह से राजा और जा दोन ह चैन से
रह सक*गे।’’ शेर को लगा <क जानवर क बात म* सdचाई है ।
उसने पलभर सोचा, <फर बोला अdछ` बात नहं है । म तुZहारे

ु ाव को मान लेता हूं। ले<कन याद रखना, अगर <कसी भी


सझ
'दन तुमने मेरे खाने के ;लये पूरा भोजन नहं भेजा तो म
िजतने जानवर चाहूंगा, मार डालूंगा।’’ जानवर के पास तो और
कोई चारा नहं। इस;लये उ8हने शेर क शत" मान ल और
अपने-अपने घर चले गये।
उस 'दन से हर रोज शेर के खाने के ;लये एक जानवर भेजा
जाने लगा। इसके ;लये जंगल म* रहने वाले सब जानवर म* से
एक-एक जानवर, बार-बार से चुना जाता था। कुछ 'दन बाद
खरगोश क बार भी आ गई। शेर के भोजन के ;लये एक
न8ह* से खरगोश को चुना गया। वह खरगोश िजतना छोटा था,
उतना ह चतरु भी था। उसने सोचा, बेकार म* शेर के हाथ
मरना मूखत
" ा है अपनी जान बचाने का कोई न कोई उपाय
अवUय करना चा'हये, और हो सके तो कोई ऐसी तरकब ढूंढ़नी
चा'हये िजसे सभी को इस मुसीबत से सदा के ;लए छुटकारा
;मल जाये। आxखर उसने एक तरकब सोच ह नकाल।

खरगोश धीरे -धीरे आराम से शेर के घर क ओर चल पड़ा। जब


वह शेर के पास पहुंचा तो बहुत दे र हो चक
ु  थी।

भख
ू के मारे शेर का बरु ा हाल हो रहा था। जब उसने ;सफ"
एक छोटे से खरगोश को अपनी ओर आते दे खा तो ग(
ु से से
बौखला उठा और गरजकर बोला, ‘‘<कसने तुZह* भेजा है ? एक
तो Cपsी जैसे हो, दस
ू रे इतनी दे र से आ रहे हो। िजन बेवकूफ
ने तुZह* भेजा है म उन सबको ठ`क कMंगा। एक-एक का काम
तमाम न <कया तो मेरा नाम भी शेर नहं।’’

न8हे खरोगश ने आदर से ज़मीन तक झुककर, ‘‘महाराज, अगर


आप कृपा करके मेर बात सुन ल* तो मझ
ु े या और जानवर
को दोष नहं द* गे। वे तो जानते थे <क एक छोटा सा खरगोश
आपके भोजन के ;लए पूरा नहं पड़ेगा, ‘इस;लए उ8हने छह
खरगोश भेजे थे। ले<कन रा(ते म* हम* एक और शेर ;मल
गया। उसने पांच खरगोश को मारकर खा ;लया।’’

यह सुनते ह शेर दहाड़कर बोला, ‘‘0या कहा ? दस


ू रा शेर ? कौन
है वह ? तुमने उसे कहां दे खा ?’’

‘‘महाराज, वह तो बहुत ह बड़ा शेर है ’’, खरगोश ने कहा, ‘‘वह

ज़मीन के अ8दर बनी एक बड़ी गफ


ु ा म* से नकला था। वह तो
मुझे ह मारने जा रहा था। पर मने उससे कहा, ‘सरकार, आपको
पता नहं <क आपने 0या अ8धेर कर 'दया है । हम सब अपने
महाराज के भोजन के ;लये जा रहे थे, ले<कन आपने उनका
सारा खाना खा ;लया है । हमारे महाराज ऐसी बात* सहन नहं
कर* गे। वे ज़Mर ह यहाँ आकर आपको मार डाल* गे।’

‘‘इस पर उसने पूछा, ‘कौन है तुZहारा राजा ?’ मने जवाब 'दया,

‘हमारा राजा जंगल का सबसे बड़ा शेर है ।’

‘‘महाराज, ‘मेरे ऐसा कहते ह वह गु(से से लाल-पीला होकर

बोला बेवकूफ इस जंगल का राजा ;सफ" म हूं। यहां सब


जानवर मेर जा ह। म उनके साथ जैसा चाहूं वैसा कर सकता
हूं। िजस मख
ू " को तुम अपना राजा कहते हो उस चोर को मेरे
सामने हािजर करो। म उसे बताऊंगा <क असल राजा कौन है ।’
महाराज इतना कहकर उस शेर ने आपको ;लवाने के ;लए मुझे
यहां भेज 'दया।’’

खरगोश क बात सुनकर शेर को बड़ा ग(


ु सा आया और वह
बार-बार गरजने लगा। उसक भयानक गरज से सारा जंगल
दहलने लगा। ‘‘मुझे फौरन उस मूख" का पता बताओ’’, शेर ने
दहाड़कर कहा, ‘‘जब तक म उसे जान से न मार दँ ग
ू ा मझ
ु े चैन
नहं ;मलेगा।’’ ‘‘बहुत अdछा महाराज,’’ खरगोश ने कहा ‘‘मौत
ह उस दDु ट क सजा है । अगर म और बड़ा और मजबूत होता
तो म खद
ु ह उसके टुकड़े-टुकड़े कर दे ता।’’

‘‘चलो, ‘रा(ता 'दखाओ,’’ शेर ने कहा, ‘‘फौरन बताओ <कधर

चलना है ?’’

‘‘इधर आइये महाराज, इधर, ‘‘खगगोश रा(ता 'दखाते हुआ शेर

को एक कुएँ के पास ले गया और बोला, ‘‘महाराज, वह दDु ट शेर


ज़मीन के नीचे <कले म* रहता है । जरा सावधान र'हयेगा। <कले
म* छुपा दUु मन खतरनाक होता है ।’’ ‘‘म उससे नपट लँ ूगा,’’ शेर
ने कहा, ‘‘तुम यह बताओ <क वह है कहाँ ?’’

‘‘पहले जब मने उसे दे खा था तब तो वह यहं बाहर खड़ा था।

लगता है आपको आता दे खकर वह <कले म* घस


ु गया। आइये
म आपको 'दखाता हूँ।’’
खरगोश ने कुएं के नजदक आकर शेर से अ8दर झांकने के
;लये कहा। शेर ने कुएं के अ8दर झांका तो उसे कुएं के पानी
म* अपनी परछाl 'दखाई द।

परछाl को दे खकर शेर ज़ोर से दहाड़ा। कुएं के अ8दर से आती


हुई अपने ह दहाड़ने क गूंज सुनकर उसने समझा <क दस
ू रा
शेर भी दहाड़ रहा है । दUु मन को तुरंत मार डालने के इरादे से
वह फौरन कुएं म* कूद पड़ा।

कूदते ह पहले तो वह कुएं क दवार से टकराया <फर धड़ाम


से पानी म* Jगरा और डूबकर मर गया। इस तरह चतुराई से
शेर से छु{ी पाकर न8हा खरगोश घर लौटा। उसने जंगल के
जानवर को शेर के मारे जाने क कहानी सुनाई। दUु मन के
मारे जाने क खबर से सारे जंगल म* खुशी फैल गई। जंगल के
सभी जानवर खरगोश क जय-जयकार करने लगे।
गजराज व मष
ू कराज
ाचीन काल म* एक नद के <कनारे बसा नगर 9यापार का
के8| था। <फर आए उस नगर के बुरे 'दन, जब एक वष" भार
वषा" हुई। नद ने अपना रा(ता बदल 'दया।

लोग के ;लए पीने का पानी न रहा और दे खते ह दे खते नगर


वीरान हो गया अब वह जगह केवल चूह के लायक रह गई।
चार ओर चूहे ह चूहे नजर आने लगे। चूहो का पूरा सा}ाfय
ह (थाCपत हो गया। चूह के उस सा}ाfय का राजा बना

ू कराज चूहा। चूह का भाAय दे खो, उनके बसने के बाद नगर


मष
के बाहर जमीन से एक पानी का (ोत फूट पडा और वह एक
बडा जलाशय बन गया।

नगर से कुछ ह दरू एक घना जंगल था। जंगल म* अनJगनत


हाथी रहते थे। उनका राजा गजराज नामक एक Cवशाल हाथी
था। उस जंगल %े म* भयानक सूखा पडा। जीव-ज8तु पानी
क तलाश म* इधर-उधर मारे -मारे <फरने लगे। भार भरकम
शरर वाले हाJथय क तो दद
ु " शा हो गई।
हाJथय के बdचे +यास से 9याकुल होकर JचKलाने व दम
तोडने लगे। गजराज खुद सूखे क सम(या से Jचंतत था और
हाJथय का कDट जानता था। एक 'दन गजराज क ;म चील
ने आकर खबर द <क खंडहर बने नगर के दस
ू र ओर एक
जलाशय ह। गजराज ने सबको तुरंत उस जलाशय क ओर
चलने का आदे श 'दया। सैकड हाथी +यास बझ
ु ाने डोलते हुए
चल पडे। जलाशय तक पहुंचने के ;लए उ8ह* खंडहर बने नगर
के बीच से गज
ु रना पडा।

हाJथय के हजार पैर चूह को रIदते हुए नकल गए। हजार


चूहे मारे गए। खंडहर नगर क सडक* चूह के खून-मांस के
कचड से लथपथ हो गई। मुसीबत यहं खHम नहं हुई।
हाJथय का दल <फर उसी रा(ते से लौटा। हाथी रोज उसी माग"
से पानी पीने जाने लगे।

काफ सोचने-Cवचारने के बाद मष


ू कराज के मं>य ने कहा
“महाराज, आपको ह जाकर गजराज से बात करनी चा'हए। वह
दयालु हाथी ह।” मूषकराज हाJथय के वन म* गया। एक बडे
पेड के नीचे गजराज खडा था।

मूषकराज उसके सामने के बडे पHथर के ऊपर चढा और


गजराज को नम(कार करके बोला “गजराज को मष
ू कराज का
नम(कार। हे महान हाथी, म एक नवेदन करना चाहता हूं।”

आवाज गजराज के कान तक नहं पहुंच रह थी। दयालु


गजराज उसक बात सुनने के ;लए नीचे बैठ गया और अपना
एक कान पHथर पर चढे मष
ू कराज के नकट ले जाकर बोला
“न8ह* ;मयां, आप कुछ कह रहे थे। कॄपया <फर से क'हए।”

मष
ू कराज बोला “हे गजराज, मझ
ु े चूहा कहते ह। हम बडी संmया
म* खंडहर बनी नगर म* रहते ह। म उनका मूषकराज हूं।
आपके हाथी रोज जलाशय तक जाने के ;लए नगर के बीच से
गुजरते ह। हर बार उनके पैर तले कुचले जाकर हजार चूहे
मरते ह। यह मूषक संहार बंद न हुआ तो हम नDट हो
जाएंगे।”
गजराज ने दख
ु भरे (वर म* कहा “मूषकराज, आपक बात सुन
मुझे बहुत शोक हुआ। हम* 6ान ह नहं था <क हम इतना
अनथ" कर रहे ह। हम नया रा(ता ढूढ ल* गे।”

मष
ू कराज कॄत6ता भरे (वर म* बोला “गजराज, आपने मझ
ु जैसे
छोटे जीव क बात gयान से सुनी। आपका ध8यवाद। गजराज,
कभी हमार जGरत पडे तो याद जGर किजएगा।”

गजराज ने सोचा <क यह न8हा जीव हमारे <कसी काम 0या


आएगा। सो उसने केवल म(
ु कुराकर मष
ू कराज को Cवदा <कया।
कुछ 'दन बाद पडौसी दे श के राजा ने सेना को मजबूत बनाने
के ;लए उसम* हाथी शा;मल करने का नण"य ;लया। राजा के
लोग हाथी पकडने आए। जंगल म* आकर वे चप
ु चाप कई कार
के जाल >बछाकर चले जाते ह। सैकड हाथी पकड ;लए गए।
एक रात हाJथय के पकडे जाने से Jचंतत गजराज जंगल म*
घूम रहे थे <क उनका पैर सख
ू ी पिHतय के नीचे छल से
दबाकर रखे र(सी के फंदे म* फंस जाता ह। जैसे ह गजराज ने
पैर आगे बढाया र(सा कस गया। र(से का दस
ू रा ;सरा एक पेड
के मोटे तने से मजबूती से बंधा था। गजराज Jचंघाडने लगा।
उसने अपने सेवक को पुकारा, ले<कन कोई नहं आया।कौन फंदे
म* फंसे हाथी के नकट आएगा? एक यव
ु ा जंगल भसा गजराज
का बहुत आदर करता था। जब वह भसा छोटा था तो एक बार
वह एक गoढे म* जा Jगरा था। उसक JचKलाहट सुनकर
गजराज ने उसक जाअन बचाई थी। Jचंघाड सुनकर वह दौडा
और फंदे म* फंसे गजराज के पास पहुंचा। गजराज क हालत
दे ख उसे बहुत ध0का लगा। वह चीखा “यह कैसा अ8याय ह?
गजराज, बताइए 0या कGं ? म आपको छुडाने के ;लए अपनी
जान भी दे सकता हूं।”

गजराज बोले “बेटा, तुम बस दौडकर खंडहर नगर जाओ और


चूह के राजा मष
ू कराजा को सारा हाल बताना। उससे कहना
<क मेर सार आस टूट चुक ह।

भसा अपनी परू  शि0त से दौडा-दौडा मष


ू कराज के पास गया
और सार बात बताई। मूषकराज तुरंत अपने बीस-तीस सैनक
के साथ भसे क पीठ पर बैठा और वो शीp ह गजराज के
पास पहुंचे। चूहे भसे क पीठ पर से कूदकर फंदे क र(सी
कुतरने लगे। कुछ ह दे र म* फंदे क र(सी कट गई व गजराज
आजाद हो गए।

सीखः आपसी सदभाव व ेम सदा एक दस


ू रे के कDट को हर
लेते ह।

गधा रहा गधा ह


एक जंगल म* एक शेर रहता था। गीदड उसका सेवक था।
जोडी अdछ` थी। शेर के समाज म* तो उस शेर क कोई
इfजत नहं थी, 0य<क वह जवानी म* सभी दस
ू रे शेर से युb
हार चुका था, इस;लए वह अलग-थलग रहता था। उसे गीदड
जैसे चमचे क सmत जGरत थी जो चौबीस घंटे उसक
चमचाJगर करता रहे । गीदड को बस खाने का जुगाड चा'हए
था। पेट भर जाने पर गीदड उस शेर क वीरता के ऐसे गण

गाता <क शेर का सीना फूलकर दग
ु ना चौडा हो जाता।
एक 'दन शेर ने एक >बगडैल जंगल सांड का ;शकार करने का
साहस कर डाला। सांड बहुत शि0तशाल था। उसने लात
मारकर शेर को दरू फ*क 'दया, जब वह उठने को हुआ तो सांड
ने फां-फां करते हुए शेर को सीग से एक पेड के साथ रगड
'दया।

<कसी तरह शेर जान बचाकर भागा। शेर सींगो क मार से


काफ जmमी हो गया था। कई 'दन बीते, पर8तु शेर के जmम
टक होने का नाम नहं ले रहे थे। ऐसी हालत म* वह ;शकार
नहं कर सकता था। (वयं ;शकार करना गीदड के बस का नहं
था। दोन के भख
ू  मरने क नौबत आ गई। शेर को यह भी
भय था <क खाने का जुगाड समा+त होने के कारण गीदड
उसका साथ न छोड जाए।

शेर ने एक 'दन उसे सझ


ु ाया “दे ख, जmम के कारण म दौड
नहं सकता। ;शकार कैसे कGं ? तु जाकर <कसी बेवकूफ-से
जानवर को बात म* फंसाकर यहां ला। म उस झाडी म* छपा
रहूंगा।”
गीदड को भी शेर क बात जंच गई। वह <कसी मूख" जानवर
क तलाश म* घूमता-घूमता एक क(बे के बाहर नद-घाट पर
पहुंचा। वहां उसे एक म:रयल-सा गधा घास पर मंह
ु मारता
नजर आया। वह श0ल से ह बेवकूफ लग रहा था।

गीदड गधे के नकट जाकर बोला “पांय लागूं चाचा। बहुत


कमजोर हो अए हो, 0या बात ह?”

गधे ने अपना दख
ु डा रोया “0या बताऊं भाई, िजस धोबी का म
गधा हूं, वह बहुत jूर ह। 'दन भर ढुलाई करवाता ह और चारा
कुछ दे ता नहं।”

गीदड ने उसे 8यौता 'दया “चाचा, मेरे साथ जंगल चलो न, वहां
बहुत हर-हर घास ह। खूब चरना तुZहार सेहत बन जाएगी।”

गधे ने कान फडफडाए “राम राम। म जंगल म* कैसे रहूंगा?


जंगल जानवर मुझे खा जाएंगे।”

“चाचा, तुZह* शायद पता नहं <क जंगल म* एक बगल


ु ा भगतजी
का सHसंग हुआ था। उसके बाद सारे जानवर शाकाहार बन
गए ह। अब कोई <कसी को नहं खाता।” गीदड बोला और कान
के पास मुंह ले जाकर दाना फ*का “चाचू, पास के क(बे से
बेचार गधी भी अपने धोबी मा;लक के अHयाचार से तंग
आकर जंगल म* आ गई थी। वहां हर=हर घास खाकर वह
खूब लहरा गई ह तुम उसके साथ घर बसा लेना।”

गधे के 'दमाग पर हर-हर घास और घर बसाने के सुनहरे


सपने छाने लगे। वह गीदड के साथ जंगल क ओर चल 'दया।
जंगल म* गीदड गधे को उसी झाडी के पास ले गया, िजसम* शेर
छपा बैठा था।इससे पहले <क शेर पंजा मारता, गधे को झाडी
म* शेर क नील बिHतय क टरह चमकती आंखे नजर आ
गl। वह डरकर उछला गधा भागा और भागताह गया। शेर
बझ
ु े (वर म* गीदड से बोला “भई, इस बार म तैयार नहं था।
तुम उसे दोबारा लाओ इस बार गलती नहं होगी।”

गीदड दोबारा उस गधे क तलाश म* क(बे म* पहुंचा। उसे


दे खते ह बोला “चाचा, तुमने तो मेर नाक कटवा द। तुम
अपनी दK
ु हन से डरकर भाग गए?”
“उस झाडी म* मुझे दो चमकती आंखे 'दखाई द थी, जैसे शेर

क होती ह। म भागता न तो 0या करता?” गधे ने ;शकायत


क।

गीदड झठ
ू मठ
ू माथा पीटकर बोला “चाचा ओ चाचा! तुम भी
नरे मूख" हो। उस झाडी म* तुZहार दK
ु हन थी। जाने <कतने
ज8म से वह तुZहार राह दे ख रह थी। तुZह* दे खकर उसक
आंखे चमक उठ` तो तुमने उसे शेर समझ ;लया?”

गधा बहुत लिfजत हुआ, गीदड क चाल-भर बात* ह ऐसी थी।


गधा <फर उसके साथ चल पडा। जंगल म* झाडी के पास
पहुंचते ह शेर ने नुकले पंजो से उसे मार Jगराया। इस कार
शेर व गीदड का भोजन जट
ु ा।
सीखः दस
ू र क Jचकनी-चुपडी बात म* आने क मूखत
" ा कभी
नहं करनी चा'हए।
गोलू-मोलू और भालू
गोलू-मोलू और प0के दो(त थे। गोलू जहां दब
ु ला-पतला था, वहं
मोलू मोटा गोल-मटोल। दोन एक-दस
ू रे पर जान दे ने का दम
भरते थे, ले<कन उनक जोड़ी दे खकर लोग क हं सी छूट जाती।
एक बार उ8ह* <कसी दस
ू रे गांव म* रहने वाले ;म का नमंण
;मला। उसने उ8ह* अपनी बहन के Cववाह के अवसर पर बल
ु ाया
था।

उनके ;म का गांव कोई बहुत दरू तो नहं था ले<कन वहां तक


पहुंचने के ;लए जंगल से होकर गुजरना पड़ता था। और उस
जंगल म* जंगल जानवर क भरमार थी।

दोन चल 'दए…जब वे जंगल से होकर गज


ु र रहे थे तो उ8ह*
सामने से एक भालू आता 'दखा। उसे दे खकर दोन भय से
थर-थर कांपने लगे। तभी दब
ु ला-पतला गोलू तेजी से दौड़कर
एक पेड़ पर जा चढ़ा, ले<कन मोटा होने के कारण मोलू उतना
तेज नहं दौड़ सकता था। उधर भालू भी नकट आ चुका था,
<फर भी मोलू ने साहस नहं खोया। उसने सुन रखा था <क
भालू मत
ृ शरर को नहं खाते। वह तरु ं त जमीन पर लेट गये
और सांस रोक ल। ऐसा अ;भनय <कया <क मानो शरर म*
ाण ह ह नहं। भालू घुरघुराता हुआ मोलू के पास आया, उसके
चेहरे व शरर को सूंघा और उसे मत
ृ समझकर आगे बढ़ गया।

जब भालू काफ दरू नकल गया तो गोलू पेड़ से उतरकर मोलू


के नकट आया और बोला, ‘‘;म, मने दे खा था….भालू तुमसे
कुछ कह रहा था। 0या कहा उसने ?’’

मोलू ने ग(
ु से म* भरकर जवाब 'दया, ‘‘मझ
ु े ;म कहकर न
बुलाओ…और ऐसा ह कुछ भालू ने भी मुझसे कहा। उसने
कहा, गोलू पर CवUवास न करना, वह तुZहारा ;म नहं है ।’’

सुनकर गोलू श;म"8दा हो गया। उसे अयास हो गया था <क


उससे <कतनी भार भल
ू हो गई थी। उसक ;मता भी सदै व के
;लए समा+त हो गई। ;श%ा—सdचा ;म वह है जो संकट के
काम आए।

घंटधार ऊंट
एक बार क बात ह <क एक गांव म* एक जल
ु ाहा रहता था।
वह बहुत गरब था। उसक शाद बचपन म* ह हो गई ती।
बीवी आने के बाद घर का खचा" बढना था। यह Jच8ता उसे
खाए जाती। <फर गांव म* अकाल भी पडा। लोग कंगाल हो
गए। जल
ु ाहे क आय एकदम खHम हो गई। उसके पास शहर
जाने के ;सवा और कोई चारा न रहा।

शहर म* उसने कुछ महने छोटे -मोटे काम <कए। थोडा-सा पैसा
अंट म* आ गया और गांव से खबर आने पर <क अकाल
समा+त हो गया ह, वह गांव क ओर चल पडा। रा(ते म* उसे
एक जगह सडक <कनारे एक ऊंटनी नजर आई। ऊटं नी बीमार
नजर आ रह थी और वह गभ"वती थी। उसे ऊंटनी पर दया आ
गई। वह उसे अपने साथ अपने घर ले आया।

घर म* ऊंटनी को ठ`क चारा व घास ;मलने लगी तो वह परू 


तरह (व(थ हो गई और समय आने पर उसने एक (व(थ ऊंट
अdचे को ज8म 'दया। ऊंट बdचा उसके ;लए बहुत भाAयशाल
सा>बत हुआ। कुछ 'दन बाद ह एक कलाकार गांव के जीवन
पर Jच बनाने उसी गांव म* आया। प* 'टंग के Eुश बनाने के
;लए वह जल
ु ाहे के घर आकर ऊंट के बdचे क दम
ु के बाल ले
जाता। लगभग दो स+ताह गांव म* रहने के बाद Jच बनाकर
कलाकार चला गया।

इधर ऊंटनी खूब दध


ू दे ने लगी तो जुलाहा उसे बेचने लगा। एक
'दन वहा कलाकार गांव लौटा और जल
ु ाहे को काफ सारे पैसे
दे गया, 0य<क कलाकार ने उन Jच से बहुत पुर(कार जीते
थे और उसके Jच अdछ` कमत म* >बके थे। जुलाहा उस ऊंट
बdचे को अपना भाAय का ;सतारा मानने लगा। कलाकार से
;मल राशी के कुछ पैस से उसने ऊंट के गले के ;लए सुंदर-
सी घंट खरद और पहना द। इस कार जल
ु ाहे के 'दन <फर
गए। वह अपनी दK
ु हन को भी एक 'दन गौना करके ले आया।

ऊंट के जीवन म* आने से जल


ु ाहे के जीवन म* जो सख
ु आया,
उससे जुलाहे के 'दल म* इdछा हुई <क जुलाहे का धंधा छोड
0य न वह ऊंट का 9यापार ह बन जाए। उसक पHनी भी
उससे परू  तरह सहमत हुई। अब तक वह भी गभ"वती हो गई
थी और अपने सुख के ;लए ऊंटनी व ऊंट बdचे क आभार
थी।
जुलाहे ने कुछ ऊंट खरद ;लए। उसका ऊंट का 9यापार चल
नकला।अब उस जुलाहे के पास ऊंट क एक बडी टोल हर
समय रहती। उ8ह* चरने के ;लए 'दन को छोड 'दया जाता।
ऊंट बdचा जो अब जवान हो चुका था उनके साथ घंट बजाता
जाटा।

एक 'दन घंटधार क तरह ह के एक युवा ऊंट ने उससे कहा


“भैया! तुम हमसे दरू -दरू 0य रहते हो?”

घंटधार गव" से बोला “वाह तुम एक साधारण ऊंट हो। म


घंटधार मा;लक का दल
ु ारा हूं। म अपने से ओछे ऊंट म*
शा;मल होकर अपना मान नहं खोना चाहता।”

उसी %े म* वन म* एक शेर रहता था। शेर एक ऊंचे पHथर पर


चढकर ऊंट को दे खता रहता था। उसे एक ऊंट और ऊंट से
अलग-थलग रहता नजर आया। जब शेर <कसी जानवर के झुंड
पर आjमण करता ह तो <कसी अलग-थलग पडे को ह चुनता
ह। घंटधार क आवाज के कारण यह काम भी सरल हो गया
था। >बना आंख दे खे वह घंट क आवाज पर घात लगा
सकता था।

दस
ू रे 'दन जब ऊंट का दल चरकर लौट रहा था तब घंटधार
बाक ऊंट से बीस कदम पीछे चल रहा था। शेर तो घात
लगाए बैठा ह था। घंट क आवाज को नशाना बनाकर वह
दौडा और उसे मारकर जंगल म* खींच ले गया। ऐसे घंटधार
के अहं कार ने उसके जीवन क घंट बजा द।

सीखः जो (वयं को ह सबसे XेDठ समझता ह उसका अहं कार


शीp ह उसे ले डूबता ह।
चापलूस मंडल
जंगल म* एक शेर रहता था। उसके चार सेवक थे चील, भेBडया,
लोमडी और चीता। चील दरू -दरू तक उडकर समाचार लाती।
चीता राजा का अंगर%क था। सदा उसके पीछे चलता। लोमडी
शेर क सैjेटर थी। भेBडया गॄहमंी था। उनका असल काम
तो शेर क चापलूसी करना था। इस काम म* चार मा'हर थे।
इस;लए जंगल के दस
ू रे जानवर उ8ह*
चापलूस मंडल कहकर पुकारते थे। शेर ;शकार करता। िजतना
खा सकता वह खाकर बाक अपने सेवक के ;लए छोड जाया
करता था। उससे मजे म* चार का पेट भर जाता। एक 'दन
चील ने आकर चापलूस मंडल को सूचना द “भाईयो! सडक के
<कनारे एक ऊंट बैठा ह।”

भेBडया चIका “ऊंट! <कसी का<फले से >बछुड गया होगा।”

चीते ने जीभ चटकाई “हम शेर को उसका ;शकार करने को


राजी कर ल* तो कई 'दन दावत उडा सकते ह।”

लोमडी ने घोषणा क “यह मेरा काम रहा।”

लोमडी शेर राजा के पास गई और अपनी जुबान म* ;मठास


घोलकर बोल “महाराज, दत
ू ने खबर द ह <क एक ऊंट सडक
<कनारे बैठा ह। मने सुना ह <क मनुDय के पाले जानवर का
मांस का (वाद ह कुछ और होता ह। >बKकुल राजा-महाराजाओं
के का>बल। आप आ6ा द* तो आपके ;शकार का ऐलान कर
दं ?ू ”
शेर लोमडी क मीठ` बात म* आ गया और चापलूस मंडल के
साथ चील tवारा बताई जगह जा पहुंचा। वहां एक कमजोर-सा
ऊंट सडक <कनारे नढाल बैठा था। उसक आंख* पील पड चक
ु 
थीं। उसक हालत दे खकर शेर ने पूछा “0य भाई तुZहार यह
हालात कैसे हुई?”

ऊंट कराहता हुआ बोला “जंगल के राजा! आपको नहं पता


इंसान <कतना नद" यी होता ह। म एक ऊंटो के का<फले म* एक
9यापार माल ढो रहा था। रा(ते म* म बीमार पड गया। माल
ढोने लायक नहं उसने मझ
ु े यहां मरने के ;लए छोड 'दया।
आप ह मेरा ;शकार कर मुझे मिु 0त दिजए।”

ऊंट क कहानी सुनकर शेर को दख


ु हुआ। अचानक उसके 'दल
म* राजाओं जैसी उदारता 'दखाने क जोरदार इdछा हुई। शेर ने
कहा “ऊंट, तुZह* कोई जंगल जानवर नहं मारे गा। म तुZह*
अभय दे ता हूं। तुम हमारे साथ चलोगे और उसके बाद हमारे
साथ ह रहोगे।”
चापलूस मंडल के चेहरे लटक गए। भेBडया फुसफुसाया “ठ`क
ह। हम बाद म* इसे मरवाने क कोई तरकब नकाल ल* गे।
<फलहाल शेर का आदे श मानने म* ह भलाई ह।”

इस कार ऊंट उनके साथ जंगल म* आया। कुछ ह 'दन म*


हर घास खाने व आरम करने से वह (व(थ हो गया। शेर
राजा के त वह ऊंट बहुत कॄत6 हुआ। शेर को भी ऊंट का
न(वाथ" ेम और भोलापन भाने लगा। ऊंट के तगडा होने पर
शेर क शाह सवार ऊंट के ह आ4ह पर उसक पीठ पर
नकलने लगी लगी वह चार को पीठ पर >बठाकर चलता।

एक 'दन चापलूस मंडल के आ4ह पर शेर ने हाथी पर हमला


कर 'दया। दभ
ु ा"Aय से हाथी पागल नकला। शेर को उसने संड

से उठाकर पटक 'दया। शेर उठकर बच नकलने म* सफल तो
हो गया, पर उसे चट* बहुत लगीं।

शेर लाचार होकर बैठ गया। ;शकार कौन करता? कई 'दन न


शेर ने ने कुछ खाया और न सेवक ने। <कतने 'दन भख
ू े रहा
जा सकता ह? लोमडी बोल “हद हो गई। हमारे पास एक मोटा
ताजा ऊंट ह और हम भूखे मर रहे ह।”

चीते ने ठं डी सांस भर “0या कर* ? शेर ने उसे अभयदान जो दे


रखा ह। दे खो तो ऊंट क पीठ का कूबड <कतना बडा हो गया
ह। चब@ ह चब@ भर ह इसम* ।”

भेBडए के मंह
ु से लार टपकने लगी “ऊंट को मरवाने का यह
मौका ह 'दमाग लडाकर कोई तरकब सोचो।”

लोमडी ने धूत" (वर म* सूचना द “तरकब तो मने सोच रखी


ह। हम* एक नाटक करना पडेगा।”

सब लोमडी क तरकब सुनने लगे। योजना के अनुसार


चापलस
ू मंडल शेर के पास गई। सबसे पहले चील बोल
“महाराज, आपको भूखे पेट रहकर मरना मुझसे नहं दे खा

जाता। आप मुझे खाकर भूख ;मटाइए।”

लोमडी ने उसे ध0का 'दया “चल हट! तेरा मांस तो महाराज के


दांत म* फंसकर रह जाएगाअ। महाराज, आप मझ
ु े खाइए।”
भेBडया बीच म* कूदा “तेरे शरर म* बाल के ;सवा ह ह 0या?
महाराज! मुझे अपना भोजन बनाएंगे।”

अब चीता बोला “नहं! भेBडए का मांस खाने लायक नहं होता।


मा;लक, आप मझ
ु े खाकर अपनी भख
ू शांत किजए।”

चापलूस मंडल का नाटक अdछा था। अब ऊंट को तो कहना


ह पडा “नहं महाराज, आप मझ
ु े मारकर खा जाइए। मेरा तो
जीवन ह आपका दान 'दया हुआ ह। मेरे रहते आप भूख मर* ,
यह नहं होगा।”

चापलूस मंडल तो यहं चाहती थी। सभी एक (वर म* बोले


“यह ठ`क रहे गा, महाराज! अब तो ऊंट खद
ु ह कह रहा ह।”

चीता बोला “महाराज! आपको संकोच हो तो हम इसे मार द* ?”

चीता व भेBडया एक साथ ऊंट पर टूट पडे और ऊंट मारा गया।

सीखः चापलूस क दो(ती हमेशा खतरनाक होती ह।


झगडालू मेढक
एक कुएं म* बहुत से मेढक रहते थे। उनके राजा का नाम था
गंगदHत। गंगदHत बहुत झगडालू (वभाव का था। आसपास दो
तीन और भी कुएं थे। उनम* भी मेढक रहते थे। हर कुएं के
मेढक का अपना राजा था। हर राजा से <कसी न <कसी बात
पर गंगदHत का झगडा चलता ह रहता था। वह अपनी मूखत
" ा
से कोई गलत काम करने लगता और बCु bमान मेढक रोकने
क को;शश करता तो मौका ;मलते ह अपने पाले गंड
ु े मेढक
से Cपटवा दे ता। कुएं के मेढक म* भीतर गंगदHत के त रोष
बढता जा रहा था। घर म* भी झगड से चैन न था। अपनी हर
मुसीबत के ;लए दोष दे ता।

एक 'दन गंगदHत पडौसी मेढक राजा से खब


ू झगडा। खब
ू तू-तू
म-म हुई। गंगदHत ने अपने कुएं आकर बताया <क पडौसी
राजा ने उसका अपमान <कया ह। अपमान का बदला लेने के
;लए उसने अपने मेढक को आदे श 'दया <क पडौसी कुएं पर
हमला कर* सब जानते थे <क झगडा गंगदHत ने ह शुG <कया
होगा।
कुछ (याने मेढक तथा बुCbमान ने एकजुट होकर एक (वर
म* कहा “राजन, पडौसी कुएं म* हमसे दग
ु ने मेढक ह। वे (व(थ
व हमसे अJधक ताकतवर ह। हम यह लडाई नहं लड*गे।”

गंगदHत स8न रह गया और बरु  तरह तल;मला गया। मन ह


मन म* उसने ठान ल <क इन गsार को भी सबक ;सखाना
होगा। गंगदHत ने अपने बेट को बुलाकर भडकाया “बेटा, पडौसी
राजा ने तुZहारे CपताXी का घोर अपमान <कया ह। जाओ,
पडौसी राजा के बेट क ऐसी Cपटाई करो <क वे पानी मांगने
लग जाएं।”

गंगदHत के बेटे एक दस
ू रे का मुंह दे खने लगे। आxखर बडे बेटे
ने कहा “CपताXी, आपने कभी हम* टरा"ने क इजाजत नहं द।
टरा"ने से ह मेढक म* बल आता ह, हौसला आता ह और जोश
आता ह। आप ह बताइए <क >बना हौसले और जोश के हम
<कसी क 0या Cपटाई कर पाएंगे?”
अब गंगदHत सबसे Jचढ गया। एक 'दन वह कुढता और
बडबडाता कुएं से बाहर नकल इधर-उधर घूमने लगा। उसे एक
भयंकर नाग पास ह बने अपने >बल म* घस
ु ता नजर आया।
उसक आंख* चमक। जब अपने दUु मन बन गए हो तो दUु मन
को अपना बनाना चा'हए। यह सोच वह >बल के पास जाकर
बोला “नागदे व, मेरा णाम।”

नागदे व फुफकारा “अरे मेढक म तुZहारा बैर हूं। तZ


ु ह* खा
जाता हूं और तू मेरे >बल के आगे आकर मुझे आवाज दे रहा
ह।

गंगदHत टरा"या “हे नाग, कभी-कभी शुओं से fयादा अपने दख



दे ने लगते ह। मेरा अपनी जात वाल और सग ने इतना घोर
अपमान <कया ह <क उ8ह* सबक ;सखाने के ;लए मुझे तुम
जैसे शु के पास सहायता मांगने आना पडा ह। तुम मेर
दो(ती (वीकार करो और मजे करो।”
नाग ने >बल से अपना ;सर बाहर नकाला और बोला “मजे,
कैसे मजे?”

गंगदHत ने कहा “म तुZह* इतने मेढक xखलाऊंगा <क तुम


मट
ु ाते-मट
ु ाते अजगर बन जाओगे।”

नाग ने शंका 9य0त क “पानी म* म जा नहं सकता। कैसे


पकडूग
ं ा मेडक?”

गंगदHत ने ताल बजाई “नाग भाई, यहं तो मेर दो(ती तुZहारे


काम आएगी। मैने पडौसी राजाओं के कुओं पर नजर रखने के
;लए अपने जासूस मेडक से गु+त सुरंग* खुदवा रखी ह। हर
कुएं तक उनका रा(ता जाता ह। सरु ं ग* जहां ;मलती ह। वहां
एक क% ह। तुम वहां रहना और िजस-िजस मेढक को खाने के
;लए कहूं, उ8ह* खाते जाना।”

नाग गंगदHत से दो(ती के ;लए तैयार हो गया। 0य<क उसम*


उसका लाभ ह लाभ था। एक मख
ू " बदले क भावना म* अंधे
होकर अपन को दश
ु मन के पेट के हवाले करने को तैयार हो
तो दUु मन 0य न इसका लाभ उठाए?

नाग गंगदHत के साथ सुरंग क% म* जाकर बैठ गया। गंगदHत


ने पहले सारे पडौसी मेढक राजाओं और उनक जाओं को
खाने के ;लए कहा। नाग कुछ स+ताह म* सारे दस
ू रे कुओं के
मेढक सुरंग के रा(ते जा-जाकर खा गया। जब सब समा+त हो
गए तो नाग गंगदHत से बोला “अब <कसे खाऊं? जKद बता।
चौबीस घंटे पेट फुल रखने क आदत पड गई ह।”

गंगदHत ने कहा “अब मेरे कुए के सभी (यान और बुCbमान


मेढक को खाओ।”

वह खाए जा चुके तो जा क बार आई। गंगदHत ने सोचा


“ जा क ऐसी तैसी। हर समय कुछ न कुछ ;शकायत करती

रहती ह। उनको खाने के बाद नाग ने खाना मांगा तो गंगदHत


बोला “नाग;म, अब केवल मेरा कुनबा और मेरे ;म बचे ह।
खेल खHम और मेढक हजम।”
नाग ने फन फैलाया और फुफकारने लगा “मेढक, म अब कहं
नह जाने का। तू अब खाने का इंतजाम कर वना" 'ह(स।”

गंगदHत क बोलती बंद हो गई। उसने नाग को अपने ;म


xखलाए <फर उसके बेटे नाग के पेट म* गए। गंगदHत ने सोचा
<क म और मेढक िज8दा रहे तो बेटे और पैदा कर ल*गे। बेटे
खाने के बाद नाग फुफकारा “और खाना कहां ह? गंगदHत ने
डरकर मेढक क ओर इशार <कया। गंगदHत ने (वयं के मन
को समझाया “चलो बूढ मेढक से छुटकारा ;मला। नई जवान
मेढक से Cववाह कर नया संसार बसाऊंगा।”

मेढक को खाने के बाद नाग ने मुंह फाडा “खाना।”

गंगदHत ने हाथ जोडे “अब तो केवल म बचा हूं। तुZहारा दो(त


गंगदHत । अब लौट जाओ।”

नाग बोला “तू कौन-सा मेरा मामा लगता ह और उसे हडप


गया।
सीखः अपनो से बदला लेने के ;लए जो शु का साथ लेता ह
उसका अंत निUचत ह।
झठ
ू ` शान
एक जंगल म* पहाड क चोट पर एक <कला बना था। <कले के
एक कोने के साथ बाहर क ओर एक ऊंचा Cवशाल दे वदार का
पेड था। <कले म* उस राfय क सेना क एक टुकडी तैनात थी।
दे वदार के पेड पर एक उKलू रहता था। वह भोजन क तलाश
म* नीचे घाट म* फैले ढलवां चरागाह म* आता। चरागाह क
लZबी घास व झाBडय म* कई छोटे -मोटे जीव व कट-पतंगे
;मलते, िज8ह* उKलू भोजन बनाता। नकट ह एक बडी झील
थी, िजसम* हं सो का नवास था। उKलू पेड पर बैठा झील को
नहारा करता। उसे हं स का तैरना व उडना मंमुAध करता।
वह सोचा करता <क <कतना शानदार प%ी ह हं स। एकदम दध
ू -
सा सफेद, गल
ु गल
ु ा शरर, सरु ाहदार गद" न, संद
ु र मख
ु व तेज(वी
आंखे। उसक बडी इdछा होती <कसी हं स से उसक दो(ती हो
जाए।
एक 'दन उKलू पानी पीने के बहाने झील के <कनारे उगी एक
झाडी पर उतरा। नकट ह एक बहुत शालन व सौZय हं स
पानी म* तैर रहा था। हं स तैरता हुआ झाडी के नकट आया।

उKलू ने बात करने का बहाना ढूंढा “हं स जी, आपक आ6ा हो


तो पानी पी लूं। बडी +यास लगी ह।”

हं स ने चIककर उसे दे खा और बोला “;म! पानी कॄत tवारा


सबको 'दया गया वरदान ह। एस पर <कसी एक का अJधकार
नहं।”

उKलू ने पानी पीया। <फर ;सर 'हलाया जैसे उसे नराशा हुई
हो। हं स ने पछ
ू ा “;म! असंतDु टनजर आते हो। 0या +यास नहं
बुझी?”

उKलू ने कहा “हे हं स! पानी क +यास तो बुझ गई पर आपक


बतो से मुझे ऐसा लगा <क आप नीत व 6ान के सागर ह।
मझ
ु म* उसक +यास जग गई ह। वह कैसे बझ
ु ग
े ी?”
हं स मु(कुराया “;म, आप कभी भी यहां आ सकते ह। हम बात*
कर* गे। इस कार म जो जानता हूं, वह आपका हो जाएगा और
म भी आपसे कुछ सीखंग
ू ा।”

इसके पUचात हं स व उKलू रोज ;मलने लगे। एक 'दन हं स ने


उKलू को बता 'दया <क वह वा(तव म* हं स का राजा हं सराज
ह। अपना असल प:रचय दे ने के बाद। हं स अपने ;म को
नम8ण दे कर अपने घर ले गया। शाह ठाठ थे। खाने के
;लए कमल व नरJगस के फूल के 9यंजन परोसे गए और जाने
0या-0या दल " खाtय थे, उKलू को पता ह नहं लगा। बाद म*
ु भ
सIफ-इलाइची क जगह मोती पेश <कए गए। उKलू दं ग रह
गया।

अब हं सराज उKलू को महल म* ले जाकर xखलाने-Cपलाने लगा।


रोज दावत उडती। उसे डर लगने लगा <क <कसी 'दन साधारण
उKलू समझकर हं सराज दो(ती न तोड ले।
इस;लए (वयं को कंसराज क बराबर का बनाए रखने के ;लए
उसने झूठमूठ कह 'दया <क वह भी उKलूओं का राजा उKलूक
राज ह। झठ
ू कहने के बाअद उKलू को लगा <क उसका भी
फज" बनता ह <क हं सराज को अपने घर बुलाए।

एक 'दन उKलू ने दग
ु " के भीतर होने वाल गतCवJधय को
गौर से दे खा और उसके 'दमाग म* एक युि0त आई। उसने दग
ु "
क बात को खब
ू gयान से समझा। सैनक के काय"jम नोट
<कए। <फर वह चला हं स के पास। जब वह झील पर पहुंचा, तब
हं सराज कुछ हं सनय के साथ जल म* तैर रहा था। उKलू को
दे खते ह हं स बोला “;म, आप इस समय?”

उKलू ने उHतर 'दया “हां ;म! म आपको आज अपना घर


'दखाने व अपना मेहमान बनाने के ;लए ले जाने आया हूं। म
कई बार आपका मेहमान बना हूं। मझ
ु े भी सेवा का मौका दो।”

हं स ने टालना चाहा “;म, इतनी जKद 0या ह? <फर कभी


चल* गे।”
उKलू ने कहा “आज तो आपको ;लए >बना नहं जाऊंगा।”

हं सराज को उKलू के साथ जाना ह पडा।

पहाड क चोट पर बने <कले क ओर इशारा कर उKलू उडते-


उडते बोला “वह मेरा <कला ह।” हं स बडा भाCवत हुआ। वे
दोन जब उKलू के आवास वाले पेड पर उतरे तो <कले के
सैनक क परे ड शG
ु होने वाल थी। दो सैनक बज
ु " पर >बगल

बजाने लगे। उKलू दग
ु " के सैनक के :रज के काय"jम को याद
कर चक
ु ा था इस;लए ठ`क समय पर हं सराज को ले आया
था।उKलू बोला “दे खो ;म, आपके (वागत म* मेरे सैनक >बगुल
बजा रहे ह। उसके बाद मेर सेना परे ड और सलामी दे कर
आपको सZमानत करे गी।”

नHय क तरह परे ड हुई और झंडे को सलामी द गयी। हं स


समझा सचमुच उसी के ;लए यह सब हो रहा ह। अतः हं स ने
गदगद होकर कहा “ध8य हो ;म। आप तो एक शरू वीर राजा
क भांत ह राज कर रहे हो।”
उKलू ने हं सराज पर रौब डाला “मने अपने सैनक को आदे श
'दया ह <क जब तक मेरे परम ;म राजा हं सराज मेरे अतJथ
ह, तब तक इसी कार रोज >बगल
ु बजे व सैनक क परे ड
नकले।”

उKलू को पता था <क सैनक का यह रोज का काम ह। दै नक


नयम ह। हं स को उKलू ने फल, अखरोट व बनफशा के फूल
xखलाए। उनको वह पहले ह जमा कर चक
ु ा था। भोजन का
महHव नहं रह गया। सैनक क परे ड का जाद ू अपना काम
कर चक
ु ा था। हं सराज के 'दल म* उKलू ;म के ;लए बहुत
सZमान पैदा हो चक
ु ा था।

उधर सैनक टुकडी को वहां से कूच करने के आदे श ;मल चक


ु े
थे। दस
ू रे 'दन सैनक अपना सामान समेटकर जाने लगे तो
हं स ने कहा “;म, दे खो आपके सैनक आपक आ6ा ;लए >बना
कहं जा रहे ह।
उKलू हडबडाकर बोला ” <कसी ने उ8ह* गलत आदे श 'दया होगा।
म अभी रोकता हूं उ8ह* ।” ऐसा कह वह ‘हूं हूं’ करने लगा।

सैनक ने उKलू का घुघुआना सुना व अपशकुन समझकर


जाना (थJगत कर 'दया। दस
ू रे 'दन <फर वह हुआ। सैनक
जाने लगे तो उKलू घुघुआया। सैनक के नायक ने jोJधत
होकर सैनक को मनहूस उKलू को तीर मारने का आदे श
'दया। एक सैनक ने तीर छोडा। तीर उKलू क बगल म* बैठे
हं स को लगा। वह तीर खाकर नीचे Jगरा व फडफडाकर मर
गया। उKलू उसक लाश के पास शोकाकुल हो Cवलाप करने
लगा “हाय, मने अपनी झठ
ू ` शान के च0कर म* अपना परम
;म खो 'दया। Jध0कार ह मुझ।े ”

उKलू को आसपास क खबर से बेसुध होकर रोते दे खकर एक


;सयार उस पर झपटा और उसका काम तमाम कर 'दया।

सीखः झूठ` शान बहुत महं गी पडती ह। कभी भी झूठ` शान के
च0कर म* मत पडो।
ढगी ;सयार
;मJथला के जंगल म* बहुत समय पहले एक ;सयार रहता था।
वह बहुत आलसी था। पेट भरने के ;लए खरगोश व चूह का
पीछा करना व उनका ;शकार करना उसे बडा भार लगता था।
;शकार करने म* प:रXम तो करना ह पडता ह न। 'दमाग
उसका शैतानी था। यह तकडम लगाता रहता <क कैसे ऐसी
जुगत लडाई जाए िजससे >बना हाथ-पैर 'हलाए भोजन ;मलता
रहे । खाया और सो गए। एक 'दन उसी सोच म* डूबा वह
;सयार एक झाडी म* दब
ु का बैठा था।

बाहर चूह क टोल उछल-कूद व भाग-दौड करने म* लगी थी।


उनम* एक मोटा-सा चूह था, िजसे दस
ू रे चूहे ‘सरदार’ कहकर
बल
ु ा रहे थे और उसका आदे श मान रहे थे। ;सयार उ8ह* दे खता
रहा। उसके मुंह से लार टपकती रह। <फर उसके 'दमाग म*
एक तरकब आई।

जब चूहे वहां से गए तो उसने दबे पांव उनका पीछा <कया।


कुछ ह दरू उन चूह के >बल थे। ;सयार वापस लौटा। दस
ू रे
'दन ातः ह वह उन चूह के >बल के पास जाकर एक टांग
पर mडा हो गया। उसका मुंह उगते सूरज क ओर था। आंखे
बंद थी।

चूहे बोल से नकले तो ;सयार को उस अनोखी म|


ु ा म* खडे
दे खकर वे बहुत च<कत हुए। एक चूहे ने जरा ;सयार के नकट
जाकर पूछा “;सयार मामा, तुम इस कार एक टांग पर 0य
खडे हो?”

;सयार ने एक आंख खोलकर बोला “मख


ू ," तुने मेरे बारे म* नहं
सुना कभी? म चार टांग* नीचे 'टका दं ग
ू ा तो धरती मेरा बोझ
नहं सZभाल पाएगी। यह डोल जाएगी। साथ ह तुम सब नDट
हो जाओगे। तुमहारे ह कKयाण के ;लए मझ
ु े एक टांग पर खडे
रहना पडता ह।”

चूह म* खुसर-पुसर हुई। वे ;सयार के नकट आकर खडे हो


गए। चूह के सरदार ने कहा “हे महान ;सयार, हम* अपने बारे
म* कुछ बताइए।”
;सयार ने ढग रचा “मैने सैकड वष" 'हमालय पव"त पर एक
टांग पर खडे होकर तप(या क। मेर तप(या समा+त होने पर
एक टांग पर खडे होकर तप(या क। मेर तप(या समा+त होने
पर सभी दे वताओं ने मुझ पर फूल क वषा" क। भगवान ने
कट होकर कहा <क मेरे तप से मेरा भार इतना हो गया ह
<क म चार पैर धरती पर रखंू तो धरती Jगरती हुई EFमांड को
फोडकर दस
ू र ओर नकल जाएगी। धरती मेर कॄपा पार ह
'टक रहे गी। तबसे म एक टांग पर ह खडा हूं। म नहं चाहता
<क मेरे कारण दस
ू रे जीव को कDट हो।”

सारे चूह का समूह महातप(वी ;सयार के सामने हाथ जोडकर


खडा हो गया। एक चूहे ने पूछा “तप(वी मामा, आपने अपना
मंह
ु सरू ज क ओर 0य कर रखा ह?”

;सयार ने उHतर 'दया “सय


ू " क पज
ू ा के ;लए।”

“और आपका मुंह 0य खल


ु ा ह?” दस
ू रे चूहे ने कहा।
“हवा खाने के ;लए! म केवल हवा खाकर िजंदा रहता हूं। मुझे

खाना खाने क जGरत नहं पडती। मेरे तप का बल हवा को ह


पेट म* भांत-भांत के पकवान म* बदल दे ता ह।” ;सयार बोला।

उसक इस बात को सुनकर चूह पर जबरद(त भाव पडा।


अब ;सयार क ओर से उनका सारा भय जाता रहा। वे उसके
और नकट आ गए। अपनी बात का असर चूह पर होता दे ख
म0कार ;सयार 'दल ह 'दल म* खब
ू हं सा। अब चूहे महातप(वी
;सयार के भ0त बन गए। ;सयार एक टांग पर खडा रहता और
चूहे उसके चार ओर बैठकर ढोलक, मजीरे , खडताल और Jचमटे
लेकर उसके भजन गाते।

;सयार ;सयारम ् भजनम ् भजनम।

भजन <कत"न समा+त होने के बाद चूह क टो;लयां भि0त रस


म* डूबकर अपने >बल म* घस
ु ने लगती तो ;सयार सबसे बाद के
तीन-चार चूह को दबोचकर खा जाता। <फर रात भर आराम
करता, सोता और डकार* लेता।
सुबह होते ह <फर वह चूह के >बल के पास आकर एक टांग
पर खडा हो जाता और अपना नाटक चालू रखता। धी चूह क
संmया कम होने लगी। चूह के सरदार क नजर से यह बात
छपी नहं रह। एक 'दन सरदार ने ;सयार से पूछ ह ;लया
“हे महाHमा ;सयार, मेर टोल के चूहे मुझे कम होते नजर आ

रहे ह। ऐसा 0य हो रहा ह?”

;सयार ने आश@वाद क म|
ु ा म* हाथ उठाया “हे चतरु मष
ू क, यह
तो होना ह था। जो सdचे मन से मेर भि0त लरे गा, वह
सशरर बैकु€ठ को जाएगा। बहुत से चूहे भि0त का फल पा रहे
ह।”

चूहो के सरदार ने दे खा <क ;सयार मोटा हो गया ह। कहं


उसका पेट ह तो वह बैकु€ठ लोक नहं ह, जहां चूहे जा रहे ह?

चूह के सरदार ने बाक बचे चूह को चेताया और (वयं उसने


दस
ू रे 'दन सबसे बाद म* >बल म* घुसने का नUचय <कया।
भजन समा+त होने के बाद चूहे >बल म* घुसे। ;सयार ने सबसे
अंत के चूहे को दबोचना चाहा।

चूह का सरदार पहले ह चौक8ना था। वह दांव मारकर ;सयार


का पंजा बचा गया। अस;लयत का पता चलते ह वह उछलकर
;सयार क गद" न पर चढ गया और उसने बाक चूह को हमला
करने के ;लए कहा। साथ ह उसने अपने दांत ;सयार क गद" न
म* गढा 'दए। बाक चूहे भी ;सयार पर झपटे और सबने कुछ
ह दे र म* महाHमा ;सयार को कंकाल ;सयार बना 'दया। केवल
उसक हoBडय का Cपंजर बचा रह गया।

सीखः ढग कुछ ह 'दन चलता ह, <फर ढगी को अपनी करनी
का फल ;मलता ह ह।
ढोल क पोल
एक बार एक जंगल के नकटदो राजाओं के बीच घोर यb

हुआ। एक जीता दस
ू रा हारा। सेनाएं अपने नगर को लौट गई।
बस, सेना का एक ढोल पीछे रह गया। उस ढोल को बजा-
बजाकर सेना के साथ गए भांड व चारण रात को वीरता क
कहानयां सुनाते थे।

युb के बाद एक 'दन आंधी आई। आंधी के जोर म* वह ढोल


लढ
ु कता-पढ
ु कता एक सख
ू े पेड के पास जाकर 'टक गया। उस
पेड क सूखी टहनयां ढोल से इस तरह से सट गई थी <क
तेज हवा चलते ह ढोल पर टकरा जाती थी और ढमाढम
ढमाढम क गंज
ु ायमान आवाज होती।

एक ;सयार उस %े म* घम
ू ता था। उसने ढोल क आवाज
सुनी। वह बडा भयभीत हुआ। ऐसी अजीब आवाज बोलते पहले
उसने <कसी जानवर को नहं सुना था। वह सोचने लगा <क
यह कैसा जानवर ह, जो ऐसी जोरदार बोल बोलता ह’ढमाढम’।
;सयार छपकर ढोल को दे खता रहता, यह जानने के ;लए <क
यह जीव उडने वाला ह या चार टांगो पर दौडने वाला।

एक 'दन ;सयार झाडी के पीछे छुप कर ढोल पर नजर रखे


था। तभी पेड से नीचे उतरती हुई एक Jगलहर कूदकर ढोल पर
उतर। हलक-सी ढम क आवाज भी हुई। Jगलहर ढोल पर
बैठ` दाना कुतरती रह।

;सयार बडबडाया “ओह! तो यह कोई 'हंसक जीव नहं ह। मुझे


भी डरना नहं चा'हए।”

;सयार फूंक-फूंककर कदम रखता ढोल के नकट गया। उसे


संघ
ू ा। ढोल का उसे न कहं ;सर नजर आया और न पैर। तभी
हवा के झुंके से टहनयां ढोल से टकराl। ढम क आवाज हुई
और ;सयार उछलकर पीछे जा Jगरा।

“अब समझ आया।” ;सयार उढने क को;शश करता हुआ बोला

“यह तो बाहर का खोल ह।जीव इस खोल के अंदर ह। आवाज

बता रह ह <क जो कोई जीव इस खोल के भीतर रहता ह, वह


मोटा-ताजा होना चा'हए। चब@ से भरा शरर। तभी ये ढम=ढम
क जोरदार बोल बोलता ह।”
अपनी मांद म* घुसते ह ;सयार बोला “ओ ;सयार! दावत खाने
के ;लए तैयार हो जा। एक मोटे -ताजे ;शकार का पता लगाकर
आया हूं।”

;सयार पछ
ू ने लगी “तुम उसे मारकर 0य नहं लाए?”

;सयार ने उसे xझडक द “0य<क म तेर तरह मूख" नहं हूं।


वह एक खोल के भीतर छपा बैठा ह। खोल ऐसा ह <क उसम*
दो तरफ सूखी चमडी के दरवाजे ह।म एक तरफ से हाथ डाल
उसे पकडने क को;शश करता तो वह दस
ू रे दरवाजे से न भाग
जाता?”

चांद नकलने पर दोन ढोल क ओर गए। जब वk नकट


पहुंच ह रहे थे <क <फर हवा से टहनयां ढोल पर टकराl और
ढम-ढम क आवाज नकल। ;सयार ;सयार के कान म* बोला
“सुनी उसक आवाज?् जरा सोच िजसक आवाज ऐसी गहर ह,

वह खुद <कतना मोटा ताजा होगा।”


दोन ढोल को सीधा कर उसके दोन ओर बैठे और लगे दांतो
से ढोल के दोन चमडी वाले भाग के <कनारे फाडने। जैसे ह
चमBडयां कटने लगी, ;सयार बोला “हो;शयार रहना। एक साथ
हाथ अंदर डाल ;शकार को दबोचना ह।” दोन ने ‘हूं’ क आवाज
के साथ हाथ ढोल के भीतर डाले और अंदर टटोलने लगे। अदं र
कुछ नहं था। एक दस
ू रे के हाथ ह पकड म* आए। दनो
JचKलाए “ह! यहां तो कुछ नहं ह।” और वे माथा पीटकर रह
गए।

सीखः शेखी मारने वाले ढोल क तरह ह अंदर से खोखले होते


ह।

तीन मछ;लयां
एक नद के <कनारे उसी नद से जुडा एक बडा जलाशय था।
जलाशय म* पानी गहरा होता ह, इस;लए उसम* काई तथा
मछ;लय का C य भोजन जलय सूम पौधे उगते ह। ऐसे
(थान मछ;लय को बहुत रास आते ह। उस जलाशय म* भी
नद से बहुत-सी मछ;लयां आकर रहती थी। अंडे दे ने के ;लए
तो सभी मछ;लयां उस जलाशय म* आती थी। वह जलाशय
लZबी घास व झाBडय tवारा घरा होने के कारण आसानी से
नजर नहं आता था।

उसी मे तीन मछ;लय का झंड


ु रहता था। उनके (वभाव ;भ8न
थे। अ8ना संकट आने के ल%ण ;मलते ह संकट टालने का
उपाय करने म* CवUवास रखती थी। Hयु कहती थी <क संकट
आने पर ह उससे बचने का यHन करो। यsी का सोचना था
<क संकट को टालने या उससे बचने क बात बेकार ह करने
कराने से कुछ नहं होता जो <क(मत म* ;लखा है , वह होकर
रहे गा।

एक 'दन शाम को मछुआरे नद म* मछ;लयां पकडकर घर जा


रहे थे। बहुत कम मछ;लयां उनके जाल म* फंसी थी। अतः
उनके चेहरे उदास थे। तभी उ8ह* झाBडय के ऊपर मछलखोर
प$%य का झंड
ु जाता 'दकाई 'दया। सबक चच म* मछ;लयां
दबी थी। वे चIके ।
एक ने अनुमान लगाया “दो(तो! लगता ह झाBडय के पीछे
नद से जुडा जलाशय ह, जहां इतनी सार मछ;लयां पल रह
ह।”

मछुआरे पल
ु <कत होकर झाBडय म* से होकर जलाशय के तट
पर आ नकले और ललचाई नजर से मछ;लय को दे खने लगे।

एक मछुआरा बोला “अहा! इस जलाशय म* तो मछ;लयां भर


पडी ह। आज तक हम* इसका पता ह नहं लगा।” “यहां हम*
ढे र सार मछ;लयां ;मल* गी।” दस
ू रा बोला।

तीसरे ने कहा “आज तो शाम घरने वाल ह। कल सुबह ह


आकर यहां जाल डाल* गे।”

इस कार मछुआरे दस
ू रे 'दन का काय"jम तय करके चले
गए। तीन मि‚लय ने मछुआरे क बात सुन ला थी।

अ8ना मछल ने कहा “साJथयो! तुमने मछुआरे क बात सुन


ल। अब हमारा यहां रहना खतरे से खाल नहं ह। खतरे क
सच
ू ना हम* ;मल गई ह। समय रहते अपनी जान बचाने का
उपाय करना चा'हए। म तो अभी ह इस जलाशय को छोडकर
नहर के रा(ते नद म* जा रह हूं। उसके बाद मछुआरे सुबह
आएं, जाल फ*के, मेर बला से। तब तक म तो बहुत दरू
अटखे;लयां कर रह हो-ऊंगी।’

Hयु मछल बोल “तुZह* जाना ह तो जाओ, म तो नहं आ


रह। अभी खतरा आया कहां ह, जो इतना घबराने क जGरत ह
हो सकता है संकट आए ह न। उन मछुआर का यहां आने का
काय"jम रs हो सकता है , हो सकता ह रात को उनके जाल चूहे
कुतर जाएं, हो सकता है । उनक ब(ती म* आग लग जाए।
भच
ू ाल आकर उनके गांव को नDट कर सकता ह या रात को
मूसलाधार वषा" आ सकती ह और बाढ म* उनका गांव बह
सकता ह। इस;लए उनका आना निUचत नहं ह। जब वह
आएंगे, तब क तब सोच* गे। हो सकता ह म उनके जाल म* ह
न फंसूं।”

यsी ने अपनी भाAयवाद बात कह “भागने से कुछ नहं होने


का। मछुआर को आना ह तो वह आएंगे। हम* जाल म* फंसना
ह तो हम फंस*गे। <क(मत म* मरना ह ;लखा ह तो 0या <कया
जा सकता ह?”

इस कार अ8ना तो उसी समय वहां से चल गई। Hयु और


यsी जलाशय म* ह रह। भोर हुई तो मछुआरे अपने जाल को
लेकर आए और लगे जलाशय म* जाल फ*कने और मछ;लयां
पकडने । Hयु ने संकट को आए दे खा तो लगी जान बचाने के
उपाय सोचने । उसका 'दमाग तेजी से काम करने लगा। आस-
पास छपने के ;लए कोई खोखल जगह भी नहं थी। तभी उसे
याद आया <क उस जलाशय म* काफ 'दन से एक मरे हुए
ऊद>बलाव क लाश तैरती रह ह। वह उसके बचाव के काम आ
सकती ह।

जKद ह उसे वह लाश ;मल गई। लाश सडने लगी थी। Hयु
लाश के पेट म* घस
ु गई और सडती लाश क सडांध अपने
ऊपर लपेटकर बाहर नकल। कुछ ह दे र म* मछुआरे के जाल
म* Hयु फंस गई। मछुआरे ने अपना जाल खींचा और
मछ;लय को <कनारे पर जाल से उलट 'दया। बाक मछ;लयां
तो तडपने लगीं, पर8तु Hयु दम साधकर मर हुई मछल क
तरह पडी रह। मचुआरे को सडांध का भभका लगा तो
मछ;लय को दे खने लगा। उसने नUचल पडी Hयु को उठाया
और सूंघा “आक! यह तो कई 'दन क मर मछल ह। सड
चुक ह।” ऐसे बडबडाकर बुरा-सा मुंह बनाकर उस मछुआरे ने
Hयु को जलाशय म* फ*क 'दया।

Hयु अपनी बCु b का योग कर संकट से बच नकलने म*


सफल हो गई थी। पानी म* Jगरते ह उसने गोता लगाया और
सरु $%त गहराई म* पहुंचकर जान क खैर मनाई।

यsी भी दस
ू रे मछुआरे के जाल म* फंस गई थी और एक टोकरे
म* डाल द गई थी। भाAय के भरोसे बैठ` रहने वाल यsी ने
उसी टोकर म* अ8य मछ;लय क तरह तडप-तडपकर ाण
Hयाग 'दए।

सीखः भाAय के भरोसे हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहने वाले का


Cवनाश निUचत ह।
दUु मन का (वाथ"
एक पव"त के समीप >बल म* मंदCवष नामक एक बूढा सांप
रहता था। अपनी जवानी म* वह बडा रौबीला सांप था। जब वह
लहराकर चलता तो >बजल-सी कIध जाती थी पर बढ
ु ापा तो
बडे-बड का तेज हर लेता ह।बुढापे क मार से मंदCवष का
शरर कमजोर पड गया था। उसके Cवषदं त 'हलने लगेथे और
फुफकारते हुए दम फूल जाता था। जो चह
ू े उसके साए से भी
दरू भागते थे, वे अब उसके शरर को फांदकर उसे Jचढाते हुए
नकल जाते। पेट भरने के ;लए चूह के भी लाले पड गए थे।
मंदCवष इसी उधेडबुन म* लगा रहता <क <कस कार आराम से
भोजन का (थाई बंध <कया जाए। एक 'दन उसे एक उपाय
सूझा और उसे आजमाने के ;लए वह दादरु सरोवर के <कनारे
जा पहुंचा। दादरु सरोवर म* मेढक क भरमार थी। वहां उ8हं
का राज था। मंदCवष वहां इधर-उधर घूमने लगा। तभी उसे
एक पHथर पर मेढक का राजा बैठा नजर आया। मंदCवष ने
उसे नम(कार <कया “महाराज क जय हो।”
मेढकराज चIका “तुम! तुम तो हमारे बैर हो। मेर जय का
नारा 0य लगा रहे हो?”

मंदCवष Cवन} (वर म* बोला “राजन, वे पुरानी बात* ह। अब तो


म आप मेढक क सेवा करके पाप को धोना चाहता हूं। Xाप
से मुि0त चाहता हूं। ऐसा ह मेरे नागगुG का आदे श ह।”

मेढकराज ने पछ
ू ा “उ8हने ऐसा CवJच आदे श 0य 'दया?”

मंदCवष ने मनगढं त कहानी सुनाई “राजन,् एक 'दन म एक


उtयान म* घूम रहा था। वहां कुछ मानव बdचे खेल रहे थे।
गलती से एक बdचे का पैर मुझ पर पड गया और बचाव
(वाभववश मने उसे काटा और वह बdचा मर गया। मझ
ु े सपने
म* भगवान XीकॄDण नजर आए और Xाप 'दया <क म वष"
समा+त होते ह पHथर का हो जाऊंगा। मेरे गG
ु दे व ने कहा <क
बालक क मॄHयु का कारण बन मने कॄDणजी को GDट कर
'दया ह,0य<क बालक कॄDण का ह Gप होते ह। बहुत
JगडJगडाने पर गG
ु जी ने Xाप मिु 0त का उपाय बताया। उपाय
यह ह <क म वष" के अंत तक मेढक को पीठ पर बैठाकर सैर
कराऊं।”

मंदCवष <क बात सुनकर मेढकराज च<कत रह गया। सांप क


पीठ पर सवार करने का आज तक <कस मेढक को Xैय ा+त
हुआ? उसने सोचा <क यह तो एक अनोखा काम होगा।
मेढकराज सरोवर म* कूद गया और सारे मेढक को इकnा कर
मंदCवष क बात सुनाई। सभी मेढक भIच0के रह गए।

एक बढ
ू ा मेढक बोला “मेढक एक सप" क सवारे कर* । यह एक
अदभुत बात होगी। हम लोग संसार म* सबसे XेDठ मेढक माने
जाएंगे।”

एक सांप क पीठ पर बैठकर सैर करने के लालच ने सभी


मेढक क अ0ल पर पदा" डाल 'दया था। सभी ने ‘हां’ म* ‘हां’
;मलाई। मेढकराज ने बाहर आकर मंदCवष से कहा “सप", हम
तुZहार सहायता करने के ;लए तैयार ह।”
बस <फर 0या था। आठ-दस मेढक मंदCवष क पीठ पर सवार
हो गए और नकल सवार। सबसे आगे राजा बैठा था। मंदCवष
ने इधर-उधर सैर कराकर उ8हे ण ् सरोवर तट पर उतार 'दया।
मेढक मंदCवष के कहने पर उसके ;सर पर से होते हुए आगे
उतरे । मंदCवष सबसे पीछे वाले मेढक को ग+प खा गया। अब
तो रोज यह jम चलने लगा। रोज मंदCवष क पीठ पर मेढक
क सवार नकलती और सबसे पीछे उतरने वाले को वह खा
जाता।

एक 'दन एक दस
ू रे सप" ने मंदCवष को मेढक को ढोते tख
;लया। बाद म* उसने मंदCवष को बहुत Jध0कारा “अरे !0य सप"
जात क नाक कटवा रहा ह?”

मंदCवष ने उHतर 'दया “समय पडने पर नीत से काम लेना


पडता ह। अdछे -बरु े का मेरे सामने सवाल नहं ह। कहते ह <क
मस
ु ीबत के समय गधे को भी बाप बनाना पडे तो बनाओ।”
मंदCवष के 'दन मजे से कटने लगे। वह पीछे वाले वाले मेढक
को इस सफाईसे खा जाता <क <कसी को पता न लगता। मेढक
अपनी Jगनती करना तो जानते नहं थे, जो Jगनती tवारा
माजरा समझ लेते।

एक 'दन मेढकराज बोला “मुझे ऐसा लग हा" ह <क सरोवर म*


मेढक पहले से कम हो गए ह। पता नहं 0या बात ह?”

मंदCवष ने कहा “हे राजन, सप" क सवार करने वाले महान


मेढक राजा के Gप म* आपक mयात दरू -दरू तक पहुंच रह ह।
यहां के बहुत से मेढक आपका यश फैलाने दस
ू रे सरोवर, तल
व झील म* जा रहे ह।”

मेढकराज क गव" से छाती फूल गई। अब उसे सरोवर म*


मेढक के कम होने का भी गम नहं था। िजतने मेढक कम
होते जाते, वह यह सोचकर उतना ह स8न होता <क सारे
संसार म* उसका झंडा गड रहा ह।
आxखर वह 'दन भी आया, जब सारे मेढक समा+त हो गए।
केवल मेढकराज अकेला रह गया। उसने (वयं को अकेले
मंदCवष क पीठ पर बैठा पाया तो उसने मंदCवष से पछ
ू ा
“लगता ह सरोवर म* म अकेला रह गया हूं। म अकेला कैसे

रहूंगा?”

मंदCवष मु(कुराया “राजन, आप Jच8ता न कर* । म आपका


अकेलापन भी दरू कर दं ग
ू ा।”

ऐसा कहते हुए मंदCवष ने मेढकराज को भी ग+प से नगल


;लया और वहं भेजा जहां सरोवर के सारे मेढक पहुंचा 'दए
गए थे।

सीखः शु क बात पर CवUवास करना अपनी मौत को दावत


दे ना ह।
दDु ट सप"
एक जंगल म* एक बहुत पुराना बरगद का पेड था। उस पेड पर
घसला बनाकर एक कौआ-क9वी का जोडा रहता था। उसी पेड
के खोखले तने म* कहं से आकर एक दDु ट सप" रहना लगा।
हर वष" मौसल आने पर क9वी घसले म* अंडे दे ती और दDु ट
सप" मौका पाकर उनके घसले म* जाकर अंडे खा जाता। एक
बार जब कौआ व क9वी जKद भोजन पाकर शीp ह लौट आए
तो उ8हने उस दDु ट सप" को अपने घसले म* रखे अंड पर
झपƒते दे खा।

अंडे खाकर सप" चला गया कौए ने क9वी को ढाडस बंधाया


“C ये, 'हZमत रखो। अब हम* शु का पता चल गया ह। कुछ

उपाय भी सोच ल* गे।”

कौए ने काफ सोचा Cवचारा और पहले वाले घसले को छोड


उससे काफ ऊपर टहनी पर घसला बनाया और क9वी से कहा
“यहां हमारे अंडे सुर$%त रह* गे। हमारा घसला पेड क चोट के

<कनारे नकट ह और ऊपर आसमान म* चील मंडराती रहती ह।


चील सांप क बैर ह। दDु ट सप" यहां तक आने का साहस नहं
कर पाएगा।”
कौवे क बात मानकर क9वी ने नए घसले म* अंडे सुर$%त रहे
और उनम* से बdचे भी नकल आए।

उधर सप" उनका घसला खाल दे खकर यह समझा <क <क


उसके डर से कौआ क9वी शायद वहां से चले गए ह पर दDु ट
सप" टोह लेता रहता था। उसने दे खा <क कौआ-क9वी उसी पेड
से उडते ह और लौटते भी वहं ह। उसे यह समझते दे र नहं
लगी <क उ8हने नया घसला उसी पेड पर ऊपर बना रखा ह।
एक 'दन सप" खोह से नकला और उसने कौओं का नया
घसला खोज ;लया।

घसले म* कौआ दं पती के तीन नवजात ;शशु थे। दDु ट सप"


उ8ह* एक-एक करके घपाघप नगल गया और अपने खोह म*
लौटकर डकार* लेने लगा।

कौआ व क9वी लौटे तो घसला खाल पाकर स8न रह गए।


घसले म* हुई टूट-फूट व न8ह* कौओं के कोमल पंख >बखरे
दे खकर वह सारा माजरा समझ गए। क9वी क छाती तो दख

से फटने लगी। क9वी >बलख उठ` “तो 0या हर वष" मेरे बdचे
सांप का भोजन बनते रह* गे?”

कौआ बोला “नहं! यह माना <क हमारे सामने Cवकट सम(या


ह पर यहां से भागना ह उसका हल नहं ह। CवपिHत के समय
ह ;म काम आते ह। हम* लोमडी ;म से सलाह लेनी
चा'हए।”

दोन तुरंत ह लोमडी के पास गए। लोमडी ने अपने ;म क


दख
ु भर कहानी सुनी। उसने कौआ तथा क9वी के आंसू पछे ।
लोमडी ने काफ सोचने के बाद कहा “;मो! तुZह* वह पेड
छोडकर जाने क जGरत नहं ह। मेरे 'दमाग म* एक तरकब
आ रह ह, िजससे उस दDु टसप" से छुटकारा पाया जा सकता
ह।”

लोमडी ने अपने चतुर 'दमाग म* आई तरकब बताई। लोमडी


क तरकब सुनकर कौआ-क9वी खुशी से उछल पड*। उ8हने
लोमडी को ध8यवाद 'दया और अपने घर लौट आए। अगले ह
'दन योजना अमल म* लानी थी। उसी वन म* बहुत बडा सरोवर
था। उसम* कमल और नरJगस के फूल xखले रहते थे। हर
मंगलवार को उस दे श क राजकुमार अपनी सहे ;लय के साथ
वहां जल-jडा करने आती थी। उनके साथ अंगर%क तथा
सैनक भी आते थे।

इस बार राजकुमार आई और सरोवर म* (नान करने जल म*


उतर तो योजना के अनुसार कौआ उडता हुआ वहां आया।
उसने सरोवर तट पर राजकुमार तथा उसक सहे ;लय tवारा
उतारकर रखे गए कपड व आभष
ू ण पर नजर डाल। कपडे से
सबसे ऊपर था राजकुमार का C य हरे व मोतय का
Cवल%ण हार।

कौए ने राजकुमार तथा सहे ;लय का gयान अपनी और


आकCष"त करने के ;लए ‘कांव-कांव’ का शोर मचाया। जब
सबक नजर उसक ओर घूमी तो कौआ राजकुमार का हार
चच म* दबाकर ऊपर उड गया। सभी सहे ;लयां चीखी “दे खो,
दे खो! वह राजकुमार का हार उठाकर ले जा रहा ह।”
सैनक ने ऊपर दे खा तो सचमुच एक कौआ हार लेकर धीरे -
धीरे उडता जा रहा था। सैनक उसी 'दशा म* दौडनेलगे। कौआ
सैनक को अपने पीचे लगाकर धीरे -धीरे उडता हुआ उसी पेड
क ओर ले आया। जब सैनक कुच ह दरू रह गए तो कौए ने
राजकुमार का हार इस कार Jगराया <क वह सांप वाले खोह
के भीतर जा Jगरा।

सैनक दौडकर खोह के पास पहुंचे। उनके सरदार ने खोह के


भीतर झांका। उसने वहां हार और उसके पास म* ह एक काले
सप" को कुडंल मारे दे खा। वह JचKलाया “पीछे हटो! अंदर एक
नाग ह।” सरदार ने खोह के भीतर भाला मारा। सप" घायल हुआ
और फुफकारता हुआ बाहर नकला। जैसे ह वह बाहर आया,
सैनक ने भाल से उसके टुकडे-टुकडे कर डाले।

सीखः बCु b का योग करके हर संकट का हल नकाला जा


सकता ह।
नकल करना बुरा है
एक पहाड़ क ऊंची चोट पर एक बाज रहता था। पहाड़ क
तराई म* बरगद के पेड़ पर एक कौआ अपना घसला बनाकर
रहता था। वह बड़ा चालाक और धूत" था। उसक को;शश सदा
यह रहती थी <क >बना मेहनत <कए खाने को ;मल जाए। पेड़
के आसपास खोह म* खरगोश रहते थे। जब भी खरगोश बाहर
आते तो बाज ऊंची उड़ान भरते और एकाध खरगोश को
उठाकर ले जाते।

एक 'दन कौए ने सोचा, ‘वैसे तो ये चालाक खरगोश मेरे हाथ


आएंगे नहं, अगर इनका नम" मांस खाना है तो मझ
ु े भी बाज
क तरह करना होगा। एकाएक झप{ा मारकर पकड़ लूंगा।’

दस
ू रे 'दन कौए ने भी एक खरगोश को दबोचने क बात
सोचकर ऊंची उड़ान भर। <फर उसने खरगोश को पकड़ने के
;लए बाज क तरह जोर से झप{ा मारा। अब भला कौआ बाज
का 0या मुकाबला करता। खरगोश ने उसे दे ख ;लया और झट
वहां से भागकर च{ान के पीछे छप गया। कौआ अपनी हं
झक म* उस च{ान से जा टकराया। नतीजा, उसक चच और
गरदन टूट गl और उसने वहं तड़प कर दम तोड़ 'दया।
शा—नकल करने के ;लए भी अकल चा'हए।
बंदर का कलेजा
एक नद <कनारे हरा-भरा Cवशाल पेड था। उस पर खब

(वा'दDट फल उगे रहते। उसी पेड पर एक बदं र रहता था। बडा
म(त कलंदर। जी भरकर फल खाता, डा;लय पर झूलता और
कूदता-फांदता रहता। उस बंदर के जीवन म* एक ह कमी थी
<क उसका अपना कोई नहं था। मां-बाप के बारे म* उसे कुछ
याद नहं था न उसके कोई भाई थाऔर न कोई बहन, िजनके
साथ वह खेलता। उस %े म* कोई और बंदर भी नहं था
िजससे वह दो(ती गांठ पाता। एक 'दन वह एक डाल पर बैठा
नद का नजारा दे ख रहा था <क उसे एक लंबा Cवशाल जीव
उसी पेड क ओर तैरकर आता नजर आया। बंदर ने ऐसा जीव
पहले कभी नहं दे खा था। उसने उस CवJच जीव से पूछा “अरे
भाई, तुम 0या चीज हो?”
Cवशाल जीव ने उHतर 'दया “म एक मगरमdछ हूं। नद म* इस
वष" मि‚लय का अकाल पड गया ह। बस, भोजन क तलाश म*
घूमता-घूमता इधर आ नकला हूं।”

बंदर 'दल का अdछा था। उसने सोचा <क पेड पर इतने फल


ह, इस बेचारे को भी उनका (वाद चखना चा'हए। उसने एक
फल तोडकर मगर क ओर फ*का। मगर ने फल खाया बहुत
रसीला और (वा'दDट वह फटाफट फल खा गया और आशा से
<फर बंदर क ओर दे खने लगा।

बंदर ने मु(कराकर और फल फेक*। मगर सारे फल खा गया


और अंत म* उसने संतोष-भर डकार ल और पेट थपथपाकर
बोला “ध8यवाद, बंदर भाई। खब
ू छक गया, अब चलता हूं।” बंदर
ने उसे दस
ू रे 'दन भी आने का 8यौता दे 'दया।

मगर दस
ू रे 'दन आया। बंदर ने उसे <फर फल xखलाए। इसी
कार बंदर और मगर म* दो(ती जमने लगी। मगर रोज आता
दोन फल खाते-xखलाते, गपशप मारते। बंदर तो वैसे भी अकेला
रहता था। उसे मगर से दो(ती करके बहुत स8नता हुई।
उसका अकेलापन दरू हुआ। एक साथी ;मला। दो ;मलकर
मौज-म(ती कर* तो दग
ु ना आन8द आता ह। एक 'दन बात-
बात म* पता लगा <क मगर का घर नद के शस
ू रे तट पर ह,
जहां उसक पHनी भी रहती ह। यह जानते ह बंदर ने उलाहन
'दया “मगर भाई, तुमने इतने 'दन मझ
ु े भाभीजी के बारे म*
नहं बताया म अपनी भाभीजी के ;लए रसीले फल दे ता। तुम
भी अजीब नक{ू हो अपना पेट भरते रहे और मेर भाभी के
;लए कभी फल लेकर नहं गए।

उस शाम बंदर ने मगर को जाते समय ढे र सारे फल चुन-


चुनकर 'दए। अपने घर पहुंचकर मगरमdछ ने वह फल अपनी
पHनी मगरमdछनी को 'दए। मगरमdछनी ने वह (वाद भरे
फल खाए और बहुत संतुDट हुई। मगर ने उसे अपने ;म के
बारे म* बताया। पHनी को CवUवास न हुआ। वह बोल “जाओ,
मझ
ु े बना रहे हो। बंदर क कभी <कसी मगर से दो(ती हुई ह?”
मगर ने यकन 'दलाया “यकन करो भाAयवान! वना" सोचो यह
फल मुझे कहां से ;मले? म तो पेड पर चढने से रहा।”

मगरनी को यकन करना पडा। उस 'दन के बाद मगरनी को


रोज बंदर tवारा भेजे फल खाने को ;मलने लगे। उसे फल
खाने को ;मलते यह तो ठ`क था, पर मगर का बंदर से दो(ती
के च0कर म* 'दन भर दरू रहना उसे खलना लगा। खाल बैठे-
बैठे ऊंच-नीच सोचने लगी।

वह (वभाव से दDु टा थी। एक 'दन उसका 'दल मचल उठा “जो


बंदर इतने रसीले फल खाता ह,उसका कलेजा <कतना (वा'दDट
होगा?” अब वह चाल* सोचने लगी। एक 'दन मगर शाम को घर
आया तो उसने मगरनी को कराहते पाया। पछ
ू ने पर मगरनी
बोल “मुझे एक खतरनाक बीमार हो गई है । वैtयजी ने कहा
ह <क यह केवल बंदर का कलेजा खाने से ह ठ`क होगी। तुम
अपने उस ;म बंदर का कलेजा ला दो।”
मगर स8न रह गया। वह अपने ;म को कैसे मार सकाता ह?
न-न, यह नहं हो सकता। मगर को इनकार म* ;सर 'हलाते
दे खकर मगरनी जोर से हाय-हाय करने लगी “तो <फर म मर
जाऊंगी। तुZहार बला से और मेरे पेट म* तुZहारे बdचे ह। वे
भी मर* गे। हम सब मर जाएंगे। तुम अपने बंदर दो(त के साथ
खब
ू फल खाते रहना। हाय रे , मर गई… म मर गई।”

पHनी क बात सुनकर मगर ;सहर उठा। बीवी-बdच के मोह ने


उसक अ0ल पर पदा" डाल 'दया। वह अपने दो(त से
CवUवासघात करने, उसक जान लेने चल पडा।

मगरमdछ को सुबह-सुबह आते दे खकर बंदर च<कत हुआ।

ू ने पर मगर बोला “बंदर भाई, तुZहार भाभी बहुत


कारण पछ
नाराज ह। कह रह ह <क दे वरजी रोज मेरे ;लए रसीले फल
भेजते ह, पर कभी दश"न नहं 'दए। सेवा का मौका नहं 'दया।
आज तुम न आए तो दे वर-भाभी का :रUता खHम। तुZहार
भाभी ने मुझे भी सुबह ह भगा 'दया। अगर तुZह* साथ न ले
जा पाया तो वह मझ
ु े भी घर म* नहं घस
ु ने दे गी।”
बंदर खुश भी हुआ और चकराया भी “मगर म आऊं कैसे? ;म,
तुम तो जानते हो <क मुझे तैरना नह* आता।” मगर बोला
“उसक Jच8ता मत करो, मेर पीठ पर बैठो। म ले चलंग
ू ा न
तुZह* ।”

बंदर मगर क पीठ पर बैठ गया। कुच दरू नद म* जाने पर ह


मगर पानी के अंदर गोता लगाने लगा। बंदर JचKलाया “यह
0या कर रहे हो? म डूब जाऊंगा।”

मगर हं सा “तZ
ु ह* तो मरना ह ह।”

उसक बात सुनकर बंदर का माथा ठनका, उसने पूछा “0या


मतलब?”

मगर ने बंदर को कलेजे वाल सार बात बता द। बंदर ह0का-
ब0का रह गया। उसे अपने ;म से ऐसी बेइमानी क आशा
नहं थी।

बंदर चतुर था। तुरंत अपने आप को संभालकर बोला “वाह,


तुमने मझ
ु े पहले 0य नहं बताया? म अपनी भाभी के ;लए
एक तो 0या सौकलेजे दे दं ।ू पर बात यह ह <क म अपना
कलेजा पेड पर ह छोड आया हूं। तुमने पहले ह सार बात
मझ
ु े न बताकर बहुत गलती कर द ह। अब जKद से वाCपस
चलो ता<क हम पेड पर से कलेजा लेते चल* । दे र हो गई तो
भाभी मर जाएगी। <फर म अपने आपको कभी माफ नहं कर
पाऊंगा।”

अ0ल का मोटा मगरमdछ उसक बात सच मानकर बंदर को


लेकर वापस लौट चला। जैसे ह वे पेड के पास पहुंचे, बंदर
लपककर पेड क डाल पर चढ गया और बोला “मख
ू ," कभी कोई
अपना कलेजा बाहर छोडता ह? दस
ू रे का कलेजा लेने के ;लए
अपनी खोपडी म* भी भेजा होना चा'हए। अब जा और अपनी
दDु ट बीवी के साथ बैठकर अपने कम को रो।” ऐसा कहकर
बंदर तो पेड क टहनय म* लु+त हो गया और अ0ल का
दUु मन मगरमdछ अपना माथा पीटता हुआ लौट गया।

सीखः 1. दस
ू र को धोखा दे ने वाला (वयं धोखा खा जाता ह।
2. संकट के समय बCु b से काम लेना चा'हए।
बगुला भगत
एक वन दे श म* एक बहुत बडा तालाब था। हर कार के
जीव के ;लए उसम* भोजन साम4ी होने के कारण वहां नाना
कार के जीव, प%ी, मछ;लयां, कछुए और केकडे आ'द वास
करते थे। पास म* ह बगल
ु ा रहता था, िजसे प:रXम करना
>बKकुल अdछा नहं लगता था। उसक आंखे भी कुछ कमजोर
थीं। मछ;लयां पकडने के ;लए तो मेहनत करनी पडती ह, जो
उसे खलती थी। इस;लए आल(य के मारे वह ायः भख
ू ा ह
रहता। एक टांग पर खडा यह सोचता रहता <क 0या उपाय
<कया जाए <क >बना हाथ-पैर 'हलाए रोज भोजन ;मले। एक
'दन उसे एक उपाय सझ
ू ा तो वह उसे आजमाने बैठ गया।

बगल
ु ा तालाब के <कनारे खडा हो गया और लगा आंख से
आंसू बहाने। एक केकडे ने उसे आंसू बहाते दे खा तो वह उसके
नकट आया और पूछने लगा “मामा, 0या बात ह भोजन के
;लए मछ;लय का ;शकार करने क बजाय खडे आंसू बहा रहे
हो?”
बगुले ने जोर क 'हचक ल और भरा"ए गले से बोला “बेटे,
बहुत कर ;लया मछ;लय का ;शकार। अब म यह पाप काय"
और नहं कGं गा। मेर आHमा जाग उठ` ह। इस;लए म नकट
आई मछ;लय को भी नहं पकड रहा हूं। तुम तो दे ख ह रहे
हो।”

केकडा बोला “मामा, ;शकार नहं करोगे, कुछ खाओगे नह तो


मर नहं जाओगे?”

बगल
ु े ने एक और 'हचक ल “ऐसे जीवन का नDट होना ह
अdछा ह बेटे, वैसे भी हम सबको जKद मरना ह ह। मुझे 6ात
हुआ ह <क शीp ह यहां बारह वष" लंबा सूखा पडेगा।”

बगुले ने केकडे को बताया <क यह बात उसे एक >कालदश@


महाHमा ने बताई ह, िजसक भCवDयवाणी कभी गलत नहं
होती। केकडे ने जाकर सबको बताया <क कैसे बगुले ने
ब;लदान व भि0त का माग" अपना ;लया ह और सूखा पडने
वाला ह।
उस तालाब के सारे जीव मछ;लयां, कछुए, केकडे, बHतख* व
सारस आ'द दौसे-दौडे बगुले के पास आए और बोले “भगत
मामा, अब तुम ह हम* कोई बचाव का रा(ता बताओ। अपनी
अ0ल लडाओ तुम तो महा6ानी बन ह गए ह गए हो।”

बगुले ने कुछ सोचकर बताया <क वहां से कुछ कोस दरू एक


जलाशय ह िजसम* पहाडी झरना बहकर Jगरता ह। वह कभी
नहं सख
ू ता । य'द जलाशय के सब जीव वहां चले जाएं तो
बचाव हो सकता ह। अब सम(या यह थी <क वहां तक जाया
कैसे जाएं? बगल
ु े भगत ने यह सम(या भी सल
ु झा द “म तुZह*
एक-एक करके अपनी पीठ पर >बठाकर वहां तक पहुंचाऊंगा
0य<क अब मेरा सारा शेष जीवन दस
ू र क सेवा करने म*
गज
ु रे गा।”

सभी जीव ने गt-गt होकर ‘बगल


ु ा भगतजी क जै’ के नारे
लगाए।
अब बगुला भगत के पौ-बारह हो गई। वह रोज एक जीव को
अपनी पीठ पर >बठाकर ले जाता और कुछ दरू ले जाकर एक
च{ान के पास जाकर उसे उस पर पटककर मार डालता और
खा जाता। कभी मूड हुआ तो भगतजी दो फेरे भी लगाते और
दो जीव को चट कर जाते तालाब म* जानवर क संmया घटने
लगी। च{ान के पास मरे जीव क हoBडय का ढे र बढने लगा
और भगतजी क सेहत बनने लगी। खा-खाकर वह खूब मोटे हो
गए। मख
ु पर लाल आ गई और पंख चब@ के तेज से चमकने
ू रे जीव कहते “दे खो, दस
लगे। उ8ह* दे खकर दस ू र क सेवा का
फल और पु€य भगतजी के शरर को लग रहा ह।”

बगुला भगत मन ह मन खूब हं सता। वह सोचता <क दे खो


दु नया म* कैसे-कैसे मख
ू " जीव भरे पडे ह, जो सबका CवUवास
कर लेते ह। ऐसे मूख क दु नया म* थोडी चालाक से काम
;लया जाए तो मजे ह मजे ह। >बना हाथ-पैर 'हलाए खूब
दावत उडाई जा सकती ह संसार से मख
ू " ाणी कम करने का
मौका ;मलता ह बैठे->बठाए पेट भरने का जुगाड हो जाए तो
सोचने का बहुत समय ;मल जाता ह।

बहुत 'दन यह jम चला। एक 'दन केकडे ने बगुले से कहा


“मामा, तुमने इतने सारे जानवर यहां से वहां पहुंचा 'दए, ले<कन

मेर बार अभी तक नहं आई।”

भगतजी बोले “बेटा, आज तेरा ह नंबर लगाते ह, आजा मेर


पीठ पर बैठ जा।”

केकेडा खुश होकर बगुले क पीठ पर बैठ गया। जब वह च{ान


के नकट पहुंचा तो वहां हoBडय का पहाड दे खकर केकडे का
माथा ठनका। वह हकलाया “यह हoBडय का ढे र कैसा ह? वह
जलाशय <कतनी दरू ह, मामा?”

बगुला भगत ठां-ठां करके खुब हं सा और बोला “मूख," वहां कोई


जलाशय नहं ह। म एक- एक को पीठ पर >बठाकर यहां लाकर
खाता रहता हूं। आज तु मरे गा।”
केकडा सार बात समझ गया। वह ;सहर उठा पर8तु उसने
'हZमत न हार और तुरंत अपने जंबूर जैसे पंजो को आगे
बढाकर उनसे दDु ट बगल
ु े क गद" न दबा द और तब तक दबाए
रखी, जब तक उसके ाण पखेG न उड गए।

<फर केकेडा बगुले भगत का कटा ;सर लेकर तालाब पर लौटा


और सारे जीव को सdचाई बता द <क कैसे दDु ट बगुला भगत
उ8ह* धोखा दे ता रहा।

सीखः 1. दस
ू रो क बात पर आंखे मंद
ू कर CवUवास नहं करना
चा'हए।
[संपा'दत कर* ] 2. मुसीबत म* धीरज व बुCbमानी से काय" करना

चा'हए।
बडे नाम का चमHकार
एक समय क बात है एक वन म* हाJथय का एक झंड
ु रहता
था। उस झंड
ु का सरदार चतद
ु … त नामक एक Cवशाल, पराjमी,
गंभीर व समझदार हाथी था। सब उसी क छ-छाया म* शख

से रहते थे। वह सबक सम(याएं सुनता। उनका हल नकालता,
छोटे -बडे सबका बराबर mयाल रखता था। एक बार उस %े म*
भयंकर सूखा पडा। वष पानी नहं बरसा। सारे ताल-तलैया

ू ने लगे। पेड-पौधे कुZहला गए धरती फट गई, चार और


सख
हाहाकार मच गई। हर ाणी बूंद-बूंद के ;लए तरसता गया।
हाJथय ने अपने सरदार से कहा “सरदार, कोई उपाय सोJचए।
हम सब +यासे मर रहे ह। हमारे बdचे तडप रहे ह।”

चतद
ु … त पहले ह सार सम(या जानता था। सबके दख
ु समझता
था पर उसक समझ म* नहं आ रहा था <क 0या उपाय करे ।
सोचते-सोचते उसे बचपन क एक बात याद आई और चतद
ु …त
ने कहा “मझ
ु े ऐसा याद आता ह <क मेरे दादाजी कहते थे, यहां
से पूव" 'दशा म* एक ताल ह, जो भू;मगत जल से जुडे होने के
कारण कभी नहं सख
ू ता। हम* वहां चलना चा'हए।” सभी को
आशा क <करण नजर आई।

हाJथय का झंड
ु चतद
ु … त tवारा बताई गई 'दशा क ओर चल
पडा। >बना पानी के 'दन क गम@ म* सफर करना क'ठन था,
अतः हाथी रात को सफर करते। पांच रा> के बाद वे उस
अनोखे ताल तक पहुंच गए। सचमुच ताल पानी से भरा था
सारे हातय ने खूब पानी Cपया जी भरकर ताल म* नहाए व
डुब<कयां लगाl।

उसी %े म* खरगोश क घनी आबाद थी। उनक शामत आ


गई। सैकड खरगोश हाJथय के पैर-तले कुचले गए। उनके
>बल रIदे गए। उनम* हाहाकार मच गया। बचे-कुचे खरगोश ने
एक आपातकालन सभा क। एक खरगोश बोला “हम* यहां से
भागना चा'हए।”

एक तेज (वभाव वाला खरगोश भागने के हक म* नहं था।


उसने कहा “हम* अ0ल से काम लेना चा'हए। हाथी अंधCवUवासी
होते ह। हम उ8ह* कह* गे <क हम चं|वंशी ह। तुZहारे tवारा
<कए खरगोश संहार से हमारे दे व चं|मा GDट ह। य'द तुम यहां
से नहं गए तो चं|दे व तुZह* Cवनाश का Xाप द* गे।”

एक अ8य खरगोश ने उसका समथ"न <कया “चतुर ठ`क कहता


ह। उसक बात हम* माननी चा'हए। लंबकण" खरगोश को हम
अपना दत
ू बनाकर चतुद…त के पास भ* जग
े े।” इस (ताव पर सब
सहमत हो गए। लंबकण" एक बहुत चतुर खरगोश था। सारे
खरगोश समाज म* उसक चतरु ाई क धाक थी। बात* बनाना भी
उसे खूब आता था। बात से बात नकालते जाने म* उसका
जवाब नहं था। जब खरगोश ने उसे दत
ू बनकर जाने के ;लए
कहा तो वह तरु ं त तैयार हो गया। खरगोश पर आए संकट को
दरू करके उसे स8नता ह होगी। लंबकण" खरगोश चतुद…त के
पास पहुंचा और दरू से ह एक च{ान पर चढकर बोला
“गजनायक चतुद…त, म लंबकण" च8|मा का दत
ू उनका संदेश
लेकर आया हूं। च8|मा हमारे (वामी ह।”

चतुद…त ने पूछा ” भई,0या संदेश लाए हो तुम ?”

लंबकण" बोला “तुमने खरगोश समाज को बहुत हान पहुंचाई


ह। च8|दे व तुमसे बहुत GDट ह। इससे पहले <क वह तुZह* Xाप
दे द*, तुम यहां से अपना झंड
ु लेकर चले जाओ।”
चतुद…त को CवUवास न हुआ। उसने कहा “चं|दे व कहां ह? म
खुद उनके दश"न करना चाहता हूं।”

लंबकण" बोला “उJचत ह। चं|दे व असंmय मॄत खरगोश को


Xbांज;ल दे ने (वयं ताल म* पधारकर बैठे ह, आईए, उनसे
सा%ाHकार किजए और (वयं दे ख लिजए <क वे <कतने GDट
ह।” चालाक लंबकण" चतुद…त को रात म* ताल पर ले आया। उस
रात पण
ू म
" ासी थी। ताल म* पण
ू " चं|मा का >बZब ऐसे पड रहा
था जैसे शीशे म* त>बZब 'दखाई पडता ह। चतुद…त घबरा गया
चालाक खरगोश हाथी क घबराहट ताड गया और CवUवास के
साथ बोला “गजनायक, जरा नजदक से चं|दे व का सा%ाHकार
कर* तो आपको पता लगेगा <क आपके झुंड के इधर आने से
हम खरगोश पर 0या बीती ह। अपने भ0त का दख
ु दे खकर
हमारे चं|दे वजी के 'दल पर 0या गुजर रह है |”

लंबकण" क बात का गजराज पर जाद-ू सा असर हुआ। चतद


ु …त
डरते-डरते पानी के नकट गया और सूंड च|ं मा के त>बZब
के नकट ले जाकर जांच करने लगा। संड
ू पानी के नकट
पहुंचने पर सूंड से नकल हवा से पानी म* हलचल हुई और
च|ं मा ला त>बZब कई भाग म* बंट गया और Cवकॄत हो
गया। यह दे खते ह चतद
ु … त के होश उड गए। वह हडबडाकर
कई कदम पीछे हट गया। लंबकण" तो इसी बात क ताक म*
था। वह चीखा “दे खा, आपको दे खते ह चं|दे व <कतने GDट हो
गए! वह jोध से कांप रहे ह और ग(
ु से से फट रहे ह। आप
अपनी खैर चाहते ह तो अपने झुंड के समेत यहां से
शीpातशीp (थान कर* वना" चं|दे व पता नहं 0या Xाप दे द*।”

चतद
ु … त तरु ं त अपने झंड
ु के पास लौट गया और सबको सलाह
द <क उनका यहां से तरु ं त (थान करना ह उJचत होगा।
अपने सरदार के आदे श को मानकर हाJथय का झुंड लौट
गया। खरगोश म* खुशी क लहर दौड गई। हाJथय के जाने के
कुछ ह 'दन पUचात आकाश म* बादल आए, वषा" हुई और सारा
जल संकट समा+त हो गया। हाJथय को <फर कभी उस ओर
आने क जMरत ह नहं पडी।
सीखः चतुराई से शार:रक Gप से बलशाल शु को भी मात द
जा सकती ह।
बहGCपया गधा
एक नगर म* धोबी था। उसके पास एक गधा था, िजस पर वह
कपडे लादकर नद तट पर ले जाता और धुले कपडे लादकर
लौटता। धोबी का प:रवार बडा था। सार कमाई आटे -दाल व
चावल म* खप जाती। गधे के ;लए चार खरदने के ;लए कुछ
न बचता। गांव क चरागाह पर गाय-भस* चरती। अगर गधा
उधर जाता तो चरवाहे डंड से पीटकर उसे भगा दे ते। ठ`क से
चारा न ;मलने के कारण गधा बहुत दब
ु ल
" होने लगा। धोबी को
भी Jच8ता होने लगी, 0य<क कमजोर के कारण उसक चाल
इतनी धीमी हो गई थी <क नद तक पहुंचने म* पहले से दग
ु ना
समय लगने लगा था।

एक 'दन नद <कनारे जब धोबी ने कपडे सूखने के ;लए >बछा


रखे थे तो आंधी आई। कपडे इधर-उधर हवा म* उड गए। आंधी
थमने पर उसे दरू -दरू तक जाकर कपडे उठाकर लाने पडे।
अपने कपडे ढूंढता हुआ वह सरकंडो के बीच घुसा। सरकंडो के
बीच उसे एक मरा बाघ नजर आया।

धोबी कपडे लेकर लौटा और गnर ब8धे पर लादने लगा गधा


लडखडाया। धोबी ने दे खा <क उसका गधा इतना कमजोर हो
गया ह <क एक दो 'दन बाद >बKकुल ह बैठ जाएगा। तभी
धोबी को एक उपाय सूझा। वह सोचने लगा “अगर म उस बाघ
क खाल उतारकर ले आऊं और रात को इस गधे को वह खाल
ओढाकर खेत क ओर भेजूं तो लोग इसे बाघ समझकर डर* गे।
कोई नकट नहं फटकेगा। गधा खेत चर ;लया करे गा।”

धोबी ने ऐसा ह <कया। दस


ू रे 'दन नद तट पर कपडे जKद
धोकर सख
ू ने डाल 'दए और <फर वह सरकंडो के बीच जाकर
बाघ क खाल उतारने लगा। शाम को लौटते समय वह खाल
को कपड के बीच छपाकर घर ले आया।

रात को जब सब सो गए तो उसने बाघ क खाल गधे को


ओढाई। गधा दरू से दे खने पर बाघ जैसा ह नजर आने लगा।
धोबी संतुDट हुआ। <फर उसने गधे को खेत क ओर खदे ड
'दया। गधे ने एक खेत म* जाकर फसल खाना शG
ु <कया। रात
को खेत क रखवाल करने वाल ने खेत म* बाघ दे खा तो वे
डरकर भाग खडे हुए। गधे ने भरपेट फसल खाई और रात
अंधेरे म* ह घर लौट आया। धोबी ने तरु ं त खाल उतारकर छपा
ल। अब गधे के मजे आ गए।

हर रात धोबी उसे खाल ओढाकर छोड दे ता। गधा सीधे खेत म*
पहुंच जाता और मनपस8द फसल खाने लगता। गधे को बाघ
समझकर सब अपने घर म* दब
ु ककर बैठे रहते। फसल* चर-
चरकर गधा मोटा होने लगा। अब वह दग
ु ना भार लेकर
चलता। धोबी भी खुश हो गया।

मोटा-ताजा होने के साथ-साथ गधे के 'दल का भय भी ;मटने


लगाउसका ज8मजात (वभाव जोर मारने लगा। एक 'दन
भरपेट खाने के बाद गधे क तबीयत म(त होने लगी। वह भी
लगा लोट लगाने। खूब लोटा वह गधा। बाघ क खाल तो एक
ओर Jगर गई। वह अब खा;लस गधा बनकर उठ खडा हुआ
और डोलता हुआ खेटk से बाहर नकला। गधे के लोट लगाने
के समय पौध के रIदे जाने और चटकने क आवाज फैल।
एक रखवाला चप
ु चाप बाहर नकला। खेत म* झांका तो उसे एक
ओर Jगर बाघ क खाल नजर आई और 'दखाई 'दया खेत से
बाहर आता एक गधा। वह JचKलाया “अरे , यह तो गधा ह।”

उसक आवाज और ने भी सुनी। सब डंसे लेकर दौसे। गधे का


काय"jम खेत से बाहर आकर र* कने का था। उसने मंह
ु खोला
ह था <क उस पर डंडे बरसने लगे। jोध से भरे रखवाल ने
उसे वहं ढे र कर 'दया। उसक सार पोल खल
ु चक
ु  थी। धोबी
को भी वह नगर छोडकर कहं और जाना पडा।

सीखः पहनावा बदलकर दस


ू र को कुछ ह 'दन धोखा 'दया जा
सकता ह। अंत म* असल Gप सामने आ ह जाता ह।
>बKल का 8याय
एक वन म* एक पेड क खोह म* एक चकोर रहता था। उसी
पेड के आस-पास कई पेड और थे, िजन पर फल व बीज उगते
थे। उन फल और बीज से पेट भरकर चकोर म(त पडा रहता।
इसी कार कई वष" बीत गए। एक 'दन उडते-उडते एक और
चकोर सांस लेने के ;लए उस पेड क टहनी पर बैठा। दोन म*
बात* हुl। दस
ू रे चकोर को यह जानकर आUचय" हुआ <क वह
केवल वह केवल पेड के फल व बीज चुगकर जीवन गुजार रहा

ू रे ने उसे बताया- “भई, दु नया म* खाने के ;लए केवल


था । दस
फल और बीज ह नहं होते और भी कई (वा'दDट चीज* ह ।
उ8ह* भी खाना चा'हए। खेत म* उगने वाले अनाज तो बेजोड
होते ह। कभी अपने खाने का (वाद बदलकर तो दे खो।”

दस
ू रे चकोर के उडने के बाद वह चकोर सोच म* पड गया।
उसने फैसला <कया <क कल ह वह दरू नजर आने वाले खेत
क ओर जाएगा और उस अनाज नाम क चीज का (वाद
चखकर दे खेग।

दस
ू रे 'दन चकोर उडकर एक खेत के पास उतरा। खेत म* धान
क फसल उगी थी। चकोर ने कपल* खाई। उसे वह अत
(वा'दDट लगीं। उस 'दन के भोजन म* उसे इतना आनंद आया
<क खाकर तॄ+त होकर वहं आख* मंद
ू कर सो गया। इसके बाद
भी वह वहं पडा रहा। रोज खाता-पीता और सो जाता। छः –
सात 'दन बाद उसे सुध आई <क घर लौटना चा'हए।

इस बीच एक खरगोश घर क तलाश म* घूम रहा था। उस


इलाके म* जमीन के नीचे पानी भरने के कारण उसका >बल
नDट हो गया था। वह उसी चकोर वाले पेड के पास आया और
उसे खाल पाकर उसने उस पर अJधकार जमा ;लया और वहां
रहने लगा। जब चकोर वापस लौटा तो उसने पाया <क उसके
घर पर तो <कसी और का क†जा हो गया ह। चकोर jोJधत
होकर बोला – “ऐ भाई, तू कौन ह और मेरे घर म* 0या कर रहा
ह?”

खरगोश ने दांत 'दखाकर कहा – “म इस घर का मा;लक हूं। म


सात 'दन से यहां रह रहा हूं, यह घर मेरा ह।”

चकोर गु(से से फट पडा – “सात 'दन! भाई, म इस खोह म* कई


वष‡ से रह रहा हूं। <कसी भी आस-पास के पंछ` या चौपाए से
पछ
ू ले।”
खरगोश चकोर क बाटk काटता हुआ बोला- “सीधी-सी बात ह।
म यहां आया। यह खोह खाल पडी थी और म यहां बस गय
म 0य अब पडो;सय से पछ
ू ता <फGं ?”

चकोर ग(
ु से म* बोला- “वाह! कोई घर खाल ;मले तो इसका
यह मतलब हुआ <क उसम* कोई नहं रहता? म आxखर बार
कह रहा हूं <क शराफत से मेरा घर खाल कर दे वना"…।”

खरगोश ने भी उसे ललकारा- “वना" तू 0या कर लेगा? यह घर


मेरा ह। तझ
ु े जो करना ह, कर ले।”

चकोर सहम गया। वह मदद और 8याय क फरयाद लेकर


पडोसी जानवर के पास गया सबने 'दखावे क हूं-हूं क, पर8तु
ठोस Gप से कोई सहायता करने सामने नहं आया।

एक बूढे पडोसी ने कहा – “fयादा झगडा बढाना ठ`क नहं होगा


। तुम दोन आपस म* कोई समझौता कर लो।” पर समझौते क
कोई सरू त नजर नहं आ रह थी, 0य<क खरगोश <कसी शत"
पर खोह छोडने को तैयार नहं था। अंत म* लोमडी ने उ8ह*
सलाह द – “तुम दोन <कसी 6ानी-gयानी को पंच बनाकर
अपने झगडे का फैसला उससे करवाओ।”

दोन को यह सुझाव पसंद आया। अब दोन पंच क तलाश म*


इधर-उधर घूमने लगे। इसी कार घूमते-घूमते वे दोन एक
'दन गंगा <कनारे आ नकले। वहां उ8ह* जप तप म* मAन एक
>बKल नजर आई। >बKल के माथे पर तलक था। गले म*
जनेऊ और हाथ म* माला ;लए मॄगछाल पर बैठ` वह परू 
तपि(वनी लग रह ती। उसे दे खकर चकोर व खरगोश खुशी से
उछल पडे। उ8ह* भला इससे अdछा 6ानी-gयानी कहां ;मलेगा।
खरगोश ने कहा – “चकोर जी, 0य न हम इससे अपने झगडे
का फैसला करवाएं?”

चकोर पर भी >बKल का अdछा भाव पडा था। पर वह जरा


घबराया हुआ था। चकोर बोला -”मझ
ु े कोई आपिHत नह है पर
हम* जरा सावधान रहना चा'हए।” खरगोश पर तो >बKल का
जाद ू चल गया था। उसने कहा-”अरे नहं! दे खते नहं हो, यह
>बKल सांसा:रक मोह-माया Hयागकर तपि(वनी बन गई ह।”
सdचाई तो यह थी <क >बKल उन जैसे मूख" जीव को फांसने
के ;लए ह भि0त का नाटक कर रह थी। <फर चकोर और
खरगोश पर और भाव डालने के ;लए वह जोर-जोर से मं
पडने लगी। खरगोश और चकोर ने उसके नकट आकर हाथ
जोडकर जयकारा लगाया -”जय माता द। माता को णाम।”

>बKल ने मु(कुराते हुए धीरे से अपनी आंखे खोल और


आश@वाद 'दया -”आयDु मान भव, तुम दोन के चहर पर Jचंता
क लकेर* ह। 0या कDट ह तुZह* , बdचो?”

चकोर ने Cवनती क -”माता हम दोन के बीच एक झगडा ह।


हम चाहते ह <क आप उसका फैसला कर* ।”

>बKल ने पलक* झपकाl -”हरे राम, हरे राम! तुZह* झगडना


नहं चा'हए। ेम और शांत से रहो।” उसने उपदे श 'दया और
बोल -”खैर, बताओ, तुZहारा झगडा 0या है ?”

चकोर ने मामला बताया। खरगोश ने अपनी बात कहने के ;लए


मुंह खोला ह था <क >बKल ने पंजा उठाकर रोका और बोल
“बdचो, म काफ बूढ हूं ठ`क से सुनाई नहं दे ता। आंखे भी

कमजोर ह इस;लए तुम दोन मेरे नकट आकर मेरे कान म*


जोर से अपनी-अपनी बात कहो ता<क म झगडे का कारण जान
सकंू और तुम दोन को 8याय दे सकंू । जय ;सयाराम।”

वे दोन भगतन >बKल के >बलकुल नकट आ गए ता<क


उसके कान म* अपनी-अपनी बात कह सक*। >बKल को इसी
अवसर क तलाश थी उसने ‘Zयाऊं’ क आवाज लगाई और एक
ह झप{े म* खरगोश और चकोर का काम तमाम कर 'दया।
<फर वह आराम से उ8ह* खाने लगी।

वे दोन भगतन >बKल के >बलकुल नकट आ गए ता<क


उसके कान म* अपनी-अपनी बात कह सक*। >बKल को इसी
अवसर क तलाश थी उसने ‘Zयाऊं’ क आवाज लगाई और एक
ह झप{े म* खरगोश और चकोर का काम तमाम कर 'दया।
<फर वह आराम से उ8ह* खाने लगी।
सीखः दो के झगडे म* तीसरे का ह फायदा होता ह, इस;लए
झगड से दरू रहो।
बCु bमान ;सयार
एक समय क बात ह <क जंगल म* एक शेर के पैर म* कांटा
चुभ गया। पंजे म* जmम हो गया और शेर के ;लए दौडना
असंभव हो गया। वह लंगडाकर मिु Uकल से चलता। शेर के
;लए तो ;शकार न करने के ;लए दौडना जGर होता है ।
इस;लए वह कई 'दन कोई ;शकार न कर पाया और भख
ू 
मरने लगा। कहते ह <क शेर मरा हुआ जानवर नहं खाता,
पर8तु मजबूर म* सब कुछ करना पडता ह। लंगडा शेर <कसी
घायल अथवा मरे हुए जानवर क तलाश म* जंगल म* भटकने
लगा। यहां भी <क(मत ने उसका साथ नहं 'दया। कहं कुछ
हाथ नहं लगा।

धीरे -धीरे पैर घसीटता हुआ वह एक गुफा के पास आ पहुंचा।


गफ
ु ा गहर और संकर थी, ठ`क वैसी जैसे जंगल जानवर के
मांद के Gप म* काम आती ह। उसने उसके अंदर झांका मांद
खाल थी पर चारो ओर उसे इस बात के माण नजर आए <क
उसम* जानवर का बसेरा ह। उस समय वह जानवर शायद
भोजन क तलाश म* बाहर गया हुआ था। शेर चप
ु चाप दब
ु ककर
बैठ गया ता<क उसम* रहने वाला जानवर लौट आए तो वह
दबोच ले।

सचमुच उस गुफा म* ;सयार रहता था, जो 'दन को बाहर घूमता


रहता और रात को लौट आता था। उस 'दन भी सरू ज डूबने के
बाद वह लौट आया। ;सयार काफ चालाक था। हर समय
चौक8ना रहता था। उसने अपनी गफ
ु ा के बाहर <कसी बडे
जानवर के पैर के नशान दे खे तो चIका उसे शक हुआ <क
कोई ;शकार जीव मांद म* उसके ;शकार क आस म* घात
लगाए न बठा हो। उसने अपने शक क पिु Dट के ;लए सोच
Cवचार कर एक चाल चल। गुफा के मुहाने से दरू जाकर उसने
आवाज द “गुफा! ओ गुफा।”

गुफा म* चु+पी छायी रह उसने <फर पुकारा “अर ओ गुफा, तु


बोलती 0य नहं?”
भीतर शेर दम साधे बैठा था। भूख के मारे पेट कुलबुला रहा
था। उसे यह इंतजार था <क कब ;सयार अंदर आए और वह
उसे पेट म* पहुंचाए। इस;लए वह उतावला भी हो रहा था।
;सयार एक बार <फर जोर से बोला “ओ गुफा! रोज तु मेर
पुकार का के जवाब म* मुझे अंदर बुलाती ह। आज चुप 0य ह?
मने पहले ह कह रखा ह <क िजस 'दन तु मझ
ु े नहं बल
ु ाएगी,
उस 'दन म <कसी दस
ू र गफ
ु ा म* चला जाऊंगा। अdछा तो म
चला।”

यह सुनकर शेर हडबडा गया। उसने सोचा शायद गफ


ु ा सचमच

;सयार को अंदर बल
ु ाती होगी। यह सोचकर <क कहं ;सयार
सचमुच न चला जाए, उसने अपनी आवाज बदलकर कहा
“;सयार राजा, मत जाओ अंदर आओ न। म कब से तZ
ु हार राह
दे ख रह थी।”

;सयार शेर क आवाज पहचान गया और उसक मख


ू त
" ा पर
हं सता हुआ वहां से चला गया और <फर लौटकर नहं आया।
मख
ू " शेर उसी गफ
ु ा म* भख
ू ा-+यासा मर गया।
सीखः सतक" 9यि0त जीवन म* कभी मार नहं खाता।
म0खीचूस गीदड
जंगल मे एक गीदड रहता था था। वह बडा क कंजस

था,0य<क वह एक जंगल जीव था इस;लए हम Gपये-पैस क
कंजूसी क बात नझीं कर रहे । वह कंजूसी अपने ;शकार को
खाने म* <कया करता था। िजतने ;शकार से दस
ू रा गीदड दो
'दन काम चलाता, वह उतने ह ;शकार को सात 'दन तक
खींचता। जैसे उसने एक खरगोश का ;शकार <कया। पहले 'दन
वह एक ह कान खाता। बाक बचाकर रखता। दस
ू रे 'दन दस
ू रा
कान खाता। ठ`क वैसे जैसे कंजूस 9यि0त पैसा घस घसकर
खच" करता ह। गीदड अपने पेट क कंजस
ू ी करता। इस च0कर
म* ायः भूखा रह जाता। इस;लए दब
ु ल
" भी बहुत हो गया था।

एक बार उसे एक मरा हुआ बारह;संघा 'हरण ;मला। वह उसे


खींचकर अपनी मांद म* ले गया। उसने पहले 'हरण के सींग
खाने का फैसला <कया ता<क मांस बचा रहे । कई 'दन वह बस
सींग चबाता रहा। इस बीच 'हरण का मांस सड गया और वह
केवल Jगb के खाने लायक रह गया। इस कार म0खीचूस
गीदड ायः हं सी का पा बनता। जब वह बाहर नकलता तो

ू रे जीव उसका म:रयल-सा शरर दे खते और कहते “वह दे खो,


दस
म0खीचूस जा रहा ह।

पर वह परवाह न करता। कंजूस म* यह आदत होती ह ह।


कंजूस क अपने घर म* भी xखKल उडती ह, पर वह इसे
अनसुना कर दे ते ह।

उसी वन म* एक ;शकार ;शकार क तलाश म* एक 'दन आया।


उसने एक सुअर को दे खा और नशाना लगाकर तीर छोडा।
तीर जंगल सुअर क कमर को बींधता हुआ शरर म* घुसा।
jोJधत सुअर ;शकार क ओर दौडा और उसने खच से अपने
नुकले दं त ;शकार के प* ट म* घप 'दए। ;शकार ओर ;शकार
दोन मर गए।
तभी वहां म0खीचूस गीदड आ नकला। वk खुशी से उछल
पडा। ;शकार व सुअर के मांस को कम से कम दो महने
चलाना ह। उसने 'हसाब लगाया।

“रोज थोडा-थोडा खाऊंगा।’ वह बोला।

तभी उसक नजर पास ह पडे धनुष पर पडी। उसने धनुष को


संघ
ू ा। धनष
ु क डोर कोन पर चमडी क प{ी से लकडी से
बंधी थी। उसने सोचा “आज तो इस चमडी क प{ी को खाकर
ह काम चलाऊंगा। मांस खच" नहं कMंगा। परू ा बचा लंग
ू ा।’

ऐसा सोचकर वह धनुष का कोना मुंह म* डाल प{ी काटने


लगा। fय ह प{ी कट, डोर छूट और धनष
ु क लकडी पट से
सीधी हो गई। धनुष का कोना चटाक से गीदड के तालू म* लगा
और उसे चीरता हुआ। उसक नाक तोडकर बाहर नकला।
मmखीचूस गीदड वहं मर गया।

सीखः अJधक कंजस


ू ी का प:रणाम अdछा नहं होता।
;म क सलाह
एक धोबी का गधा था। वह 'दन भर कपड के गnर इधर से
उधर ढोने म* लगा रहता। धोबी (वयं कंजस
ू और नद" यी था।
अपने गधे के ;लए चारे का बंध नहं करता था। बस रात को
चरने के ;लए खुला छोड दे ता । नकट म* कोई चरागाह भी
नहं थी। शरर से गधा बहुत दब
ु ल
" हो गया था।

एक रात उस गधे क मल
ु ाकात एक गीदड से हुई। गीदड ने
उससे पूछा “xखए महाशय, आप इतने कमजोर 0य ह?”

गधे ने दख
ु ी (वर म* बताया <क कैसे उसे 'दन भर काम करना
पडता ह। खाने को कुछ नहं 'दया जाता। रात को अंधेरे म*
इधर-उधर मह
ंु मारना पडता ह।

गीदड बोला “तो समझो अब आपक भख


ु मर के 'दन गए। यहां
पास म* ह एक बडा सि†जय का बाग ह। वहां तरह-तरह क
सि†जयां उगी हुई ह। खीरे , ककBडयां, तोर, गाजर, मूल, शलजम
और बैगन क बहार ह। मने बाड तोडकर एक जगह अंदर
घुसने का गु+त माग" बना रखा ह। बस वहां से हर रात अंदर
घुसकर छककर खाता हूं और सेहत बना रहा हूं। तुम भी मेरे
साथ आया करो।” लार टपकाता गधा गीदड के साथ हो गया।

बाग म* घस
ु कर गधे ने महन के बाद पहल बार भरपेट खाना
खाया। दोन रात भर बाग म* ह रहे और पौ फटने से पहले
गीदड जंगल क ओर चला गया और गधा अपने धोबी के पास
आ गया।

उसके बाद वे रोज रात को एक जगह ;मलते। बाग म* घस


ु ते
और जी भरकर खाते। धीरे -धीरे गधे का शरर भरने लगा।
उसके बाल म* चमक आने लगी और चाल म* म(ती आ गई।
वह भख
ु मर के 'दन >बKकुल भल
ू गया। एक रात खब
ू खाने के
बाद गधे क तबीयत अdछ` तरह हर हो गई। वह झूमने लगा
और अपना मंह
ु ऊपर उठाकर कान फडफडाने लगा। गीदड ने
Jचंतत होकर पछ
ू ा “;म, यह 0या कर रहे हो? तुZहार तबीयत
तो ठ`क ह?”
गधा आंखे बंद करके म(त (वर म* बोला “मेरा 'दल गाने का
कर रहा ह। अdछा भोजन करने के बाद गाना चा'हए। सोच
रहा हूं <क ढ चू राग गाऊं।”

गीदड ने तरु ं त चेतावनी द “न-न, ऐसा न करना गधे भाई।


गाने-वाने का च0कर मत चलाओ। यह मत भूलो <क हम दोन
यहां चोर कर रहे ह। मुसीबत को 8यौता मत दो।”

गधे ने टे ढ नजर से गीदड को दे खा और बोला “गीदड भाई,


तुम जंगल के जंगल रहे । संगीत के बारे म* तुम 0या जानो?”

गीदड ने हाथ जोडे “म संगीत के बारे म* कुछ नहं जानता।


केवल अपनी जान बचाना जानता हूं। तुम अपना बेसरु ा राग
अलापने क िजद छोडो, उसी म* हम दोन क भलाई ह।”

गधे ने गीदड क बात का बुरा मानकर हवा म* दल


ु Hती चलाई
और ;शकायत करने लगा “तुमने मेरे राग को बेसुरा कहकर
मेर बेइfजती क ह। हम गधे शb
ु शा(ीय लय म* र* कते ह।
वह मूख क समझ म* नहं आ सकता।”
गीदड बोला “गधे भाई, म मूख" जंगल सह, पर एक ;म के
नाते मेर सलाह मानो। अपना मुंह मत खोलो। बाग के
चौकदार जाग जाएंगे।”

गधा हं सा “अरे मख
ू " गीदड! मेरा राग सन
ु कर बाग के चौकदार
तो 0या, बाग का मा;लक भी फूल का हार लेकर आएगा और
मेरे गले म* डालेगा।”

गीदड ने चतुराई से काम ;लया और हाथ जोडकर बोला “गधे


भाई, मझ
ु े अपनी गलती का अहसास हो गया ह। तुम महान
गायक हो। म मूख" गीदड भी तुमहारे गले म* डालने के ;लए
फूल क माला लाना चाहता हूं।मेरे जाने के दस ;मनट बाद ह
तुम गाना शG
ु करना ता<क म गायन समा+त होने तक फूल
मालाएं लेकर लौट सकंू ।”

गधे ने गव" से सहमत म* ;सर 'हलाया। गीदड वहां से सीधा


जंगल क ओर भाग गया। गधे ने उसके जाने के कुछ समय
बाद म(त होकर र* कना शG
ु <कया। उसके र* कने क आवाज
सुनते ह बाग के चौकदार जाग गए और उसी ओर लn लेकर
दौडे, िजधर से र* कने क आवाज आ रह थी। वहां पहुंचते ह
गधे को दे खकर चौकदार बोला “यह ह वह दDु ट गधा, जो
हमारा बाग चर रहा था।’

बस सारे चौकदार डंड के साथ गधे पर Cपल पडे। कुछ ह दे र


म* गधा Cपट-Cपटकर अधमरा Jगर पडा।

सीखः अपने शुभJच8तक और 'हतैCषय क नेक सलाह न मानने


का प:रणाम बरु ा होता ह।

मुcतखोर मेहमान
एक राजा के शयनक% म* मंदरसCप"णी नाम क जंू ने डेरा
डाल रखा था। रोज रात को जब राजा जाता तो वह चप
ु के से
बाहर नकलती और राजा का खून चस
ू कर <फर अपने (थान
पर जा छपती।

संयोग से एक 'दन अिAनमुख नाम का एक खटमल भी राजा


के शयनक% म* आ पहुंचा। जूं ने जब उसे दे खा तो वहां से
चले जाने को कहा। उसने अपने अJधकार-%े म* <कसी अ8य
का दखल सहन नहं था।

ले<कन खटमल भी कम चतुर न था, बोलो, ‘‘दे खो, मेहमान से


इसी तरह बता"व नहं <कया जाता, म आज रात तुZहारा मेहमान
हूं।’’ जूं अततः खटमल क Jचकनी-चुपड़ी बात म* आ गई और
उसे शरण दे ते हुए बोल,

‘‘ठ`क है , तुम यहां रातभर Gक सकते हो, ले<कन राजा को

काटोगे तो नहं उसका खून चस


ू ने के ;लए।’’

खटमल बोला, ‘‘ले<कन म तुZहारा मेहमान है , मुझे कुछ तो


दोगी खाने के ;लए। और राजा के खून से ब'ढ़या भोजन और
0या हो सकता है ।’’

‘‘ठ`क है ।’’ जूं बोल, ‘‘तुम चुपचाप राजा का खून चूस लेना, उसे

पीड़ा का आभास नहं होना चा'हए।’’

‘‘जैसा तुम कहोगी, >बलकुल वैसा ह होगा।’’ कहकर खटमल

शयनक% म* राजा के आने क ती%ा करने लगा।


रात ढलने पर राजा वहां आया और >ब(तर पर पड़कर सो
गया। उसे दे ख खटमल सबकुछ भूलकर राजा को काटने लगा,
ख ून च स
ू ने के ;लए। ऐसा (वा'दDट खून उसने पहल बार चखा
था, इस;लए वह राजा को जोर-जोर से काटकर उसका खून
चूसने लगा। इससे राजा के शरर म* तेज खुजल होने लगी
और उसक नींद उचट गई। उसने jोध म* भरकर अपने सेवक
से खटमल को ढूंढकर मारने को कहा।

यह सुनकर चतुर खटमल तो पंलग के पाए के नीचे छप गया


ले<कन चादर के कोने पर बैठ` जंू राजा के सेवक क नजर म*
आ गई। उ8हने उसे पकड़ा और मार डाला।
शा—अजन>बय पर कभी CवUवास न करो।
मख
ु " गधा
<कसी जंगल म* एक शेर रहता था। एक ;सयार उसका सेवक
था। एक बार एक हाथी से शेर क लड़ाई हो गई। शेर बुर
तरह घायल हो गया। वह चलने-<फरने म* भी असमथ" हो गया।
आहार न ;मलने से ;सयार भी भूखा था।
शेर ने ;सयार से कहा-‘तुम जाओ और <कसी पशु को खोजकर
लाओ, िजसे मारकर हम अपने पेट भर सक*।’ ;सयार <कसी
जानवर क खोज करता हुआ एक गाँव म* पहुँच गया। वहाँ
उसने एक गधे को घास चरते हुए दे खा। ;सयार गधे के पास
गया और बोला-‘मामा, णाम! बहुत 'दन बाद आपके दश"न हुए
ह। आप इतने दब
ु ले कैसे हो गए?’ गधा बोला-‘भाई, कुछ मत
पूछो। मेरा (वामी बड़ा कठोर है । वह पेटभर कर घास नहं
दे ता। इस धल
ू से सनी हुई घास खाकर पेट भरना पड़ता है ।’
;सयार ने कहा-‘मामा, उधर नद के <कनारे एक बहुत बड़ा घास
का मैदान है । आप वहं चल* और मेरे साथ आनंद से रह* ।’गधे
ने कहा-‘भाई, म तो गाँव का गधा हूँ। वहाँ जंगल जानवर के
साथ म कैसे रह सकँू गा?’ ;सयार बोला- ‘मामा, वह बड़ी सुर$%त
जगह है । वहाँ <कसी का कोई डर नहं है । तीन गJधयाँ भी वहं
रहती ह। वे भी एक धोबी के अHयाचार से तंग होकर भाग
आई ह। उनका कोई पत भी नहं है । आप उनके योAय हो!’
चाहो तो उन तीन के पत भी बन सकते हो। चलो तो
सह।’;सयार क बात सुनकर गधा लालच म* आ गया। गधे को
लेकर धूत" ;सयार वहाँ पहुँचा, जहाँ शेर छपा हुआ बैठा था। शेर
ने पंजे से गधे पर हार <कया ले<कन गधे को चोट नहं लगी
और वह डरकर भाग खड़ा हुआ।

तब ;सयार ने नाराज होकर शेर से कहा-‘तुम एकदम नकZमे


हो गए! जब तुम एक गधे को नहं मार सकते, तो हाथी से
कैसे लड़ोगे?’ शेर झ*पता हुआ बोला-‘म उस समय तैयार नहं
था, इसी;लए चूक हो गई।’ ;सयार ने कहा-‘अdछा, अब तुम पूर
तरह तैयार होकर बैठो, म उसे <फर से लेकर आता हूँ।’ वह <फर
गधे के पास पहुँचा। गधे ने ;सयार को दे खते ह कहा-‘तुम तो
मुझे मौत के मँुह म* ह ले गए थे। न जाने वह कौन-सा
जानवर था। म बड़ी मिु Uकल से जान बचाकर भागा!’;सयार ने
हँसते हुए कहा-‘अरे मामा, तुम उसे पहचान नहं पाए। वह तो
गधी थी। उसने तो ेम से तुZहारा (वागत करने के ;लए हाथ
बढ़ाया था। तुम तो >बKकुल कायर नकले! और वह बेचार
तुZहारे Cवयोग म* खाना-पीना छोड़कर बैठ` है । तुZह* तो उसने
अपना पत मान ;लया है । अगर तुम नहं चलोगे तो वह ाण
Hयाग दे गी।’गधा एक बार <फर ;सयार क बात म* आ गया
और उसके साथ चल पड़ा। इस बार शेर नहं चक
ू ा। उसने गधे
को एक ह झप{े म* मार 'दया। भोजन करने से पहले शेर
(नान करने के ;लए चला गया। इस बीच ;सयार ने उस गधे
का 'दल और 'दमाग खा ;लया।

शेर (नान करके लौटा तो नाराज होकर बोला-‘ओ ;सयार के


बdचे! तूने मेरे भोजन को जूठा 0य <कया? तूने इसके ˆदय
और सर 0य खा ;लए ?’

धूत" ;सयार Jगड़Jगड़ाता हुआ बोला-”महाराज, मने तो कुछ भी


नहं खाया है । इस गधे का 'दल और 'दमाग था ह नहं, य'द
इसके होते तो यह दोबारा मेरे साथ कैसे आ सकता था। शेर
को ;सयार क बात पर CवUवास आ गया। वह शांत होकर
भोजन करने म* जट
ु गया।”
सबक: जो 'दल और 'दमाग से काम नहं लेते है , वो हमेशा <कसी
का ;शकार हो जाते है चाहे वो जानवर हो या <फर इंसान ।
मूख" को सीख
एक जंगल म* एक पेड पर गौरै या का घसला था। एक 'दन
कडाके क ठं ड पड रह थी। ठं ड से कांपते हुए तीन चार बंदरो
ने उसी पेड के नीचे आXय ;लया। एक बंदर बोला “कहं से
आग तापने को ;मले तो ठं ड दरू हो सकती ह।”

दस
ू रे बंदर ने सुझाया “दे खो, यहां <कतनी सूखी पिHतयां Jगर
पडी ह। इ8ह* इकnा कर हम ढे र लगाते ह और <फर उसे
सुलगाने का उपाय सोचते ह।”

बंदर ने सूखी पिHतय का ढे र बनाया और <फर गोल दायरे म*


बैठकर सोचने लगे <क ढे र को कैसे सुलगाया जाए। तभी एक
बंदर क नजर दरू हवा म* उडते एक जुगनू पर पडी और वह
उछल पडा। उधर ह दौडता हुआ JचKलाने लगा “दे खो, हवा म*
Jचंगार उड रह ह। इसे पकडकर ढे र के नीचे रखकर फंू क
मारने से आग सल
ु ग जाएगी।”
“हां हां!” कहते हुए बाक बंदर भी उधर दौडने लगे। पेड पर

अपने घसले म* बैठ` गौरै या यह सब दे ख रह थे। उससे चुप


नहं रहा गया। वह बोल ” बंदर भाइयो, यह Jचंगार नहं ह यह
तो जुगनू ह।”

एक बंदर jोध से गौरै या क दे खकर गुरा"या “मूख" JचBडया,


चुपचाप घसले म* दब
ु क रह।हम* ;सखाने चल ह।”

इस बीच एक बंदर उछलकर जुगनू को अपनी हथे;लय के बीच


कटोरा बनाकर कैद करने म* सफल हो गया। जुगनू को ढे र के
नीचे रख 'दया गया और सारे बंदर लगे चार ओर से ढे र म*
फूंक मारने।

गौरै या ने सलाह द “भाइयो! आप लोग गलती कर रह* ह।


जुगनू से आग नहं सल
ु गेगी। दो पHथर को टकराकर उससे
Jचंगार पैदा करके आग सुलगाइए।”
बंदर ने गौरै या को घूरा। आग नहं सुलगी तो गौरै या <फर बोल
उठ` “भाइयो! आप मेर सलाह मानए, कम से कम दो सूखी
लकBडय को आपस म* रगडकर दे xखए।”

सारे बंदर आग न सल
ु गा पाने के कारण खीजे हुए थे। एक
बंदर jोध से भरकर आगे बढा और उसने गौरै या पकडकर जोर
से पेड के तने पर मारा। गौरै या फडफडाती हुई नीचे Jगर और
मर गई।

सीखः मख
ू को सीख दे ने का कोई लाभ नहं होता। उKटे सीख
दे ने वाला को ह पछताना पडता ह।
मूख" बातूनी कछुआ
एक तालाब म* एक कछुआ रहता था। उसी तलाब म* दो हं स
तैरने के ;लए उतरते थे। हं स बहुत हं समुख और ;मलनसार थे।
कछुए और उनम* दो(ती हते दे र न लगी। हं सो को कछुए का
धीमे-धीमे चलना और उसका भोलापन बहुत अdछा लगा। हं स
बहुत 6ानी भी थे। वे कछुए को अदभुत बात* बताते। ॠCष-
मु नय क कहानयां सुनाते। हं स तो दरू -दरू तक घूमकर आते
थे, इस;लए दस
ू र जगह क अनोखी बात* कछुए को बताते।
कछुआ मंमुAध होकर उनक बात* सुनता। बाक तो सब ठ`क
था, पर कछुए को बीच म* टोका-टाक करने क बहुत आदत
थी। अपने सfजन (वभाव के कारण हं स उसक इस आदत का
बुरा नहं मानते थे। उन तीन क घनDटता बढती गई। 'दन
गज
ु रते गए।

एक बार बडे जोर का सख


ु ा पडा। बरसात के मौसम म* भी एक
बूंद पानी नहं बरसा। उस तालाब का पानी सूखने लगा। ाणी
मरने लगे, मछ;लयां तो तडप-तडपकर मर गl। तालाब का
पानी और तेजी से सख
ू ने लगा। एक समय ऐसा भी आया <क
तालाब म* खाल कचड रह गया। कछुआ बडे संकट म* पड
गया। जीवन-मरण का Uन खडा हो गया। वहं पडा रहता तो
कछुए का अंत निUचत था। हं स अपने ;म पर आए संकट
को दरू करने का उपाय सोचने लगे। वे अपने ;म कछुए को
ढाडस बंधाने का यHन करते और 'हZZत न हारने क सलाह
दे ते। हं स केवल झूठा 'दलासा नहं दे रहे थे। वे दरू -दरू तक
उडकर सम(या का हल ढूढते। एक 'दन लौटकर हं सो ने कहा
“;म, यहां से पचास कोस दरू एक झील ह।उसम* काफ पानी ह

तुम वहां मजे से रहोगे।” कछुआ रोनी आवाज म* बोला “पचास


कोस? इतनी दरू जाने म* मुझे महन लग* गे। तब तक तो म
मर जाऊंगा।”

कछुए क बात भी ठ`क थी। हं सो ने अ0ल लडाई और एक


तरका सोच नकाला।

वे एक लकडी उठाकर लाए और बोले “;म, हम दोन अपनी


चच म* इस लकडी के ;सरे पकडकर एक साथ उड*गे। तुम इस
लकडी को बीच म* से मुंह से थामे रहना। इस कार हम उस
झील तक तुZह* पहुंचा द* गे उसके बाद तुZह* कोई Jच8ता नहं
रहे गी।”

उ8हने चेतावनी द “पर याद रखना, उडान के दौरान अपना मुंह


न खोलना। वरना Jगर पडोगे।”
कछुए ने हामी म* ;सर 'हलाया। बस, लकडी पकडकर हं स उड
चले। उनके बीच म* लकडी मुंह दाबे कछुआ। वे एक क(बे के
ऊपर से उड रहे थे <क नीचे खडे लोग ने आकाश म* अदभत

नजारा दे खा। सब एक दस
ू रे को ऊपर आकाश का दUॄ य 'दखाने
लगे। लोग दौड-दौडकर अपने चfज पर नकल आए। कुछ
अपने मकान क छत क ओर दौडे। बdचे बूड,े औरत* व जवान
सब ऊपर दे खने लगे। खूब शोर मचा। कछुए क नजर नीचे
उन लोग पर पडी।

उसे आUचय" हुआ <क उ8ह* इतने लोग दे ख रहे ह। वह अपने
;म क चेतावनी भल
ू गया और JचKलाया “दे खो, <कतने लोग
हम* दे ख रहे है !” मुंह के खुलते ह वह नीचे Jगर पडा। नीचे
उसक हoडी-पसल का भी पता नहं लगा।

सीखः बेमौके मह
ंु खोलना बहुत महं गा पडता ह।
रं ग म* भंग
एक बार जंगल म* प$%य क आम सभा हुई। प$%य के राजा
गGड थे। सभी गGड से असंतDु ट थे। मोर क अgय%ता म*
सभा हुई। मोर ने भाषण 'दया “साJथयो, गGडजी हमारे राजा ह
पर मुझे यह कहते हुए बहुत दख
ु होता ह <क उनके राज म*
हम प$%य क दशा बहुत खराब हो गई ह। उसका यह कारण
ह <क गGडजी तो यहां से दरू CवDणु लोक म* CवDणुजी क सेवा
म* लगे रहते ह। हमार ओर gयान दे ने का उ8ह* समय ह नहं
;मलता। हम* अओअनी सम(याएं लेकर फ:रयाद करने जंगल
चौपाय के राजा ;संह के पास जाना पडता ह। हमार Jगनती न
तीन म* रह गई ह और न तेरह म* । अब हम* 0या करना
चा'हए, यह Cवचारने के ;लए यह सभा बुलाई गई ह।

हुदहुद ने (ताव रखा “हम* नया राजा चुनना चा'हए, जो हमार


सम(याएं हल करे और दस
ू रे राजाओं के बीच बैठकर हम
प$%य को जीव जगत म* सZमान 'दलाए।”

मुगq ने बांग द “कुकडूं कंू । म हुदहुदजी के (ताव का समथ"न


करता हूं”

चील ने जोर क सीट मार “म भी सहमत हूं।”


मोर ने पंख फैलाए और घोषणा क “तो सव"सZमत से तय
हुआ <क हम नए राजा का चुनाव कर* , पर <कसे बनाएं हम
राजा?”।

सभी प%ी एक दस
ू रे से सलाह करने लगे। काफ दे र के बाद
सारस ने अपना मुंह खोला “म राजा पद के ;लए उKलूजी का
नाम पेश करता हूं। वे बुCbमान ह। उनक आंख* तेज(वी ह।
(वभाव अत गंभीर ह, ठ`क जैसे राजा को शोभा दे ता ह।”

हान">बल ने सहमत म* ;सर 'हलाते हुए कहा “सारसजी का


सुझाव बहुत दरू द;श"तापूण" ह। यह तो सब जानते ह <क
उKलूजी लमी दे वी क सवार है । उKलू हमारे राजा बन गए
तो हमारा दा:र|य दरू हो जाएगा।”

लमीजी का नाम सुनते ह सब पर जाद ू सा भाव हुआ। सभी


प%ी उKलू को राजा बनाने पर राजी हो गए।

मोर बोला “ठ`क ह, म उKलज


ू ी से ाथ"ना करता हूं <क वे कुछ
श†द बोल* ।”
उKलू ने घुघुआते कहा “भाइयो, आपने राजा पद पर मुझे >बठाने
का नण"य जो <कया ह उससे म गदगद हो गया हूं। आपको
CवUवास 'दलाता हूं <क मझ
ु े आपक सेवा करने का जो मौका
;मला ह, म उसका सदप
ु योग करते हुए आपक सार सम(याएं
हल करने का भरसक यHन कGं गा। ध8यवाद।”

प$% जन ने एक (वर म* ‘उKलू महाराज क जय’ का नारा


लगाया।

कोयल* गाने लगी। चील जाकर कहं से मनमोहक Bडजाइन


वाला रे शम का शाल उठाकर ले आई। उसे एक डाल पर
लटकाया गया और उKलू उस पर Cवराजमान हुए। कबूतर
जाकर कपड क रं ग>बरं गी लर* उठाकर लाए और उ8ह* पेड क
टहनय पर लटकाकर सजाने लगे। मओर क टो;लयां पेड के
चार ओर नाचने लगी।

मुग व शतुरमुग ने पेड के नकट पंजो से ;म{ी खोद-खोदकर


एक बडा हवन तैयार <कया। दस
ू रे प%ी लाल रं ग के फूल ला-
लाकर कंु ड म* ढे र लगाने लगे। कंु ड के चार ओर आठ-दस
तोते बैठकर मं पढने लगे।

बया JचBडय ने सोने व चा€द के तार से मुकुट बुन डाला


तथा हं स मोती लाकर मक
ु ु ट म* <फट करने लगे। दो मm
ु य तोते
पुजा:रय ने उKलू से ाथ"ना क “हे प%ी XेDठ, च;लए लमी
मं'दर चलकर लमीजी का पूजन कर* ।”

नवा"Jचत राजा उKलू तोते पंBडत के साथ लमी मं'दर के ओर


उड चले उनके जाने के कुछ %ण पUचात ह वहां कौआ आया।
चार ओर जUन सा माहोल दे खकर वह चIका। उसने पूछा
“भाई, यहां <कस उHसव क तैयार हो रह ह?

प$%य ने उKलू के राजा बनने क बात बताई। कौआ चीखा


“मझ
ु े सभा म* 0य नहं बल
ु ाया गया? 0या म प%ी नहं?”

मोर ने उHतर 'दया “यह जंगल प$%य क सभा ह। तुम तो


अब जाकर अJधकतर क(ब व शहर म* रहने लगे हो। तुZहारा
हमसे 0या वा(ता?”
कौआ उKलू के राजा बनने क बात सुनकर जल-भुन गया था।
वह ;सर पटकने लगा और कां-कां करने लगा “अरे , तुZहारा
'दमाग खराब हो गया ह, जो उKलू को राजा बनाने लगे? वह
चूहे खाकर जीता ह और यह मत भूलो <क उKलू केवल रात
को बाहर नकलता ह। अपनी सम(याएं और फ:रयाद लेकर
<कसके पास जाओगे? 'दन को तो वह ;मलेगा नहं।”

कौए क बात का प$%य पर असर होने लगा। वे आपस म*


कानाफूसी करने लगे <क शायद उKलू को राजा बनाने का
नण"य कर उ8हने गलती क ह। धीरे -धीरे सारे प%ी वहां से
xखसकने लगे। जब उKलू लमी पज
ू न कार तोत के साथ
लौटा तो सारा राfया;भषेक (थल सूना पडा था। उKलू घुघुआया
“सब कहां गए?”

उKलू क सेCवका खंड:रच पेड पर से बोल “कौआ आकर सबको


उKट प{ी पढा गया। सब चले गए। अब कोई राfया;भषेक
नहं होगा।”
उKलू चच पीसकर रह गया। राजा बनने का सपना चरू -चूर हो
गया तब से उKलू कौओं का बैर बन गया और दे खते ह उस
पर झपटता ह।

सीखः कई म* दस
ू र के रं ग म* भंग डालने क आदत होती ह और
वे उ}-भर क दUु मनी मोल ले बैठते ह।
रं गा ;सयार
एक बार क बात ह <क एक ;सयार जंगल म* एक परु ाने पेड
के नीचे खडा था। पूरा पेड हवा के तेज झके से Jगर पडा।
;सयार उसक चपेट म* आ गया और बरु  तरह घायल हो गया।
वह <कसी तरह घसटता-घसटता अपनी मांद तक पहुंचा। कई
'दन बाद वह मांद से बाहर आया। उसे भूख लग रह थी।
शरर कमजोर हो गया था तभी उसे एक खरगोश नजर आया।
उसे दबोचने के ;लए वह झपटा। ;सयार खुछ दरू भागकर
हांफने लगा। उसके शरर म* जान ह कहां रह गई थी? <फर
उसने एक बटे र का पीछा करने क को;शश क। यहां भी वह
असफल रहा। 'हरण का पीछा करने क तो उसक 'हZमत भी
न हुई। वह खडा सोचने लगा। ;शकार वह कर नहं पा रहा था।
भूख मरने क नौबत आई ह समझो। 0या <कया जाए? वह
इधर उधर घूमने लगा पर कहं कोई मरा जानवर नहं िZमला।
घूमता-घूमता वह एक ब(ती म* आ गया। उसने सोचा शायद
कोई मुग@ या उसका बdचा हाथ लग जाए। सो वह इधर-उधर
ग;लय म* घूमने लगा।

तभी कुHते भI-भI करते उसके पीछे पड गए। ;सयार को जान


बचाने के ;लए भागना पडा। ग;लय म* घुसकर उनको छकाने
क को;शश करने लगा पर कुHते तो क(बे क गल-गल से
प:रJचत थे। ;सयार के पीछे पडे कुHत क टोल बढती जा रह
थी और ;सयार के कमजोर शरर का बल समा+त होता जा रहा
था। ;सयार भागता हुआ रं गरे ज क ब(ती म* आ पहुंचा था।
वहां उसे एक घर के सामने एक बडा ‰म नजर आया। वह
जान बचाने के ;लए उसी ‰म म* कूद पडा। ‰म म* रं गरे ज ने
कपडे रं गने के ;लए रं ग घोल रखा था।
कुHत का टोला भIकता चला गया। ;सयार सांस रोककर रं ग म*
डूबा रहा। वह केवल सांस लेने के ;लए अपनी थूथनी बाहर
नकालता। जब उसे परू ा यकन हो गया <क अब कोई खतरा
नहं ह तो वह बाहर नकला। वह रं ग म* भीग चुका था। जंगल
म* पहुंचकर उसने दे खा <क उसके शरर का सारा रं ग हरा हो
गया ह। उस ‰म म* रं गरे ज ने हरा रं ग घोल रखा था। उसके
हरे रं ग को जो भी जंगल जीव दे खता, वह भयभीत हो जाता।
उनको खौफ से कांपते दे खकर रं गे ;सयार के दDु ट ;शमाग म*
एक योजना आई।

रं गे ;सयार ने डरकर भागते जीव को आवाज द “भाइओ, भागो


मत मेर बात सुनो।”

उसक बात सुनकर सभी जानवर भागते जानवर 'ठठके।

उनके 'ठठकने का रं गे ;सयार ने फायदा उठाया और बोला


“दे खो, दे खो मेरा रं ग। ऐसा रं ग<कसी जानवर का धरती पर ह?

नहं न। मतलब समझो। भगवान ने मझ


ु े यह खास रं ग तुZहारे
पास भेजा ह। तुम सब जानवर को बुला लाओ तो म भगवान
का संदेश सुनाऊं।”

उसक बात का सब पर गहरा भाव पडा। वे जाकर जंगल के


दस
ू रे सभी जानवर को बल
ु ाकर लाए। जब सब आ गए तो रं गा
;सयार एक ऊंचे पHथर पर चढकर बोला “व8य ाxणयो,
जापत EFमा ने मुझे खद
ु अपने हाथ से इस अलौ<कक रं ग
का ाणी बनाकर कहा <क संसार म* जानवर का कोई शासक
नहं ह। तुZह* जाकर जानवर का राजा बनकर उनका कKयाण
करना ह। तुZहार नाम स}ाट ककुदम
ु होगा। तीन लोक के
व8य जीव तुZहार जा हगे। अब तुम लोग अनाथ नहं रहे ।
मेर छ-छाया म* नभ"य होकर रहो।”

सभी जानवर वैसे ह ;सयार के अजीब रं ग से चकराए हुए ते।


उसक बात ने तो जाद ू का काम <कया। शेर, बाघ व चीते क
भी ऊपर क सांस ऊपर और नीचे क सांस नीचे रह गई।
उसक बात काटने क <कसी म* 'हZमत न हूई। दे खते ह
दे खते सारे जानवर उसके चरण म* लोटने लगे और एक (वर
म* बोले “हे बFमा के दत
ू , ाxणय म* XेDठ ककुदम
ु , हम आपको
अपना स}ाट (वीकार करते ह। भगवान क इdछा का पालन
करके हम* बडी स8नता होगी।”

एक बढ
ू े हाथी ने कहा “हे स}ाट, अब हम* बताइए <क हमार
0या कत"9य ह?”

रं गा ;सयार स}ाट क तरह पंजा उठाकर बोला “तुZह* अपने


स}ाट क खब
ू सेवा और आदर करना चा'हए। उसे कोई
तकलफ नहं होनी चा'हए। हमारे खाने-पीने का शाह बंध
होना चा'हए।”

शेर ने ;सर झक
ु ाकर कहा “महाराज, ऐसा ह होगा। आपक सेवा
करके हमारा जीवन ध8य हो जाएगा।”

बस, स}ाट ककुदम


ु बने रं गे ;सयार के शाह टाठ हो गए। वह
राजसी शान से रहने लगा।
कई लोमBडयां उसक सेवा म* लगी रहतीं भालू पंखा झुलाता।
;सयार िजस जीव का मांस खाने क इdछा जा'हर करता,
उसक ब;ल द जाती।

जब ;सयार घूमने नकलता तो हाथी आगे-आगे संड


ू उठाकर
>बगुल क तरह Jचंघाडता चलता। दो शेर उसके दोन ओर
कमांडो बाडी गाड" क तरह होते।

रोज ककुदम
ु का दरबार भी लगता। रं गे ;सयार ने एक चालाक
यह कर द थी <क स}ाट बनते ह ;सयार को शाह आदे श
जार कर उस जंगल से भगा 'दया था। उसे अपनी जात के
जाव tवारा पहचान ;लए जाने का खतरा था।

एक 'दन स}ाट ककुदम


ु खूब खा-पीकर अपने शाह मांद म*
आराम कर रहा था <क बाहर उजाला दे खकर उठा। बाहर आया
चांदनी रात xखल थी। पास के जंगल म* ;सयार क टो;लयां
‘हू हू SSS’ क बोल बोल रह थी। उस आवाज को सुनते ह

ककुदम
ु अपना आपा खो बैठा। उसके अदं र के ज8मजात
(वभाव ने जोर मारा और वह भी मुंह चांद क ओर उठाकर
और ;सयार के (वर म* ;मलाकर ‘हू हू SSS’ करने लगा।

शेर और बाघ ने उसे’हू हू SSS’ करते दे ख ;लया। वे चIके, बाघ


बोला “अर्, यह तो ;सयार ह। हम* धोखा दे कर स}ाट बना रहा।
मारो नीच को।”

शेर और बाघ उसक ओर लपके और दे खते ह दे खते उसका


तया-पांचा कर डाला।

सीखः नकल पन क पोल दे र या सबेर जMर खुलती है ।

शु क सलाह
नद <कनारे एक Cवशाल पेड था। उस पेड पर बगुल का बहुत
बडा झंड
ु रहता था। उसी पेड के कोटर म* काला नाग रहता था।
जब अंड से बdचे नकल आते और जब वह कुछ बडे होकर
मां-बाप से दरू रहने लगते, तभी वह नाग उ8ह* खा जाता था।
इस कार वष‡ से काला नाग बगल
ु  के बdचे हडपता आ रहा
था। बगुले भी वहां से जाने का नाम नहं लेते थे, 0य<क वहां
नदम* कछुओं क भरमार थी। कछुओं का नरम मांस बगुल
को बहुत अdछा लगता था।

इस बार नाग जब एक बdचे को हडपने लगा तो Cपता बगुले


क नजर उस पर पड गई। बगल
ु े को पता लग गया <क उसके
पहले बdच को भी वह नाग खाता रहा होगा। उसे बहुत शोक
हुआ। उसे आंसू बहाते एक कछुए ने दे खा और पूछा “मामा,
0य रो रहे हो?”

गम म* जीव हर <कसी के आगे अपना दख


ु डा रोने लगता ह।
उसने नाग और अपने मॄत बdच के बारे म* बताकर कहा “म
उससे बदला लेना चाहता हूं।”

कछुए ने सोचा “अdछा तो इस गम म* मामा रो रहा ह। जब


यह हमारे बdचे खा जाते ह तब तो कुछ mयाल नहं आता <क
हम* <कतना गम होता होगा। तुम सांप से बदला लेना चाहते हो
तो हम भी तो तुमसे बदला लेना चाह* गे।”
बगुला अपने शु को अपना दख
ु बताकर गलती कर बैटा था।
चतुर कछुआ एक तीर से दो ;शकार मारने क योजना सोच

ु ा था। वह बोला “मामा! म तुZह* बदला लेने का बहुत


चक
अdछा उपाय सुझाता हूं।”

बगुले ने अदर (वर म* पछ


ू ा “जKद बताओ वह उपाय 0या ह।
ूं ा।’ कछुआ मन ह
म तुZहारा एहसान जीवन भरा नहं भूलग
मन म(
ु कुराया और उपाय बताने लगा “यहां से कुछ दरू एक
नेवले का >बल ह। नेवला सांप का घोर शु ह। नेवलेको
मछ;लया बहुत C य होती ह। तुम छोट-छोटा मछ;लयां
पकडकर नेवले के >बल से सांप के कोटर तक >बछा दोनेवला
मछ;लयां खाता-खाता सांप तक पहुंच जाएगा और उसे समा+त
कर दे गा।’ बगल
ु ा बोला “तुम जरा मझ
ु े उस नेवले का >बल
'दखा दो।’

कचुए ने बगल
ु े को नेवले का >बल 'दखा 'दया। बगल
ु े ने वैसे
ह <कया जैसे कचुए ने समझाया ता। नेवला सचमुच मछ;लयां
खाता हुआ कोटर तक पहुंचा। नेवले को दे खते ह नाग ने
फुंकार छोडी। कुछ ह दे र क लडाई म* नेवले ने सांप के टुकडे-
टुकडे कर 'दए। बगुला खश
ु ी से उछल पडा। कछुए ने मन ह
मन म* कहा “यह तो शG
ु आत ह मख
ू " बगल
ु े। अब मेरा बदला
शG
ु होगा और तुम सब बगुल का नाश होगा।”

कछुए का सोचना सह नकला। नेवला नाग को मारने के बाद


वहां से नहं गया। उसे अपने चार ओर बगुले नजर आए,उसके
;लए म'हन के ;लए (वा'दDट खाना। नेवला उसी कोटर म* बस
गया, िजसम* नाग रहता था और रोज एक बगुले को अपना
;शकार बनाने लगा। इस कार एक-एक करके सारे बगल
ु े मारे
गए।

सीखः शु क सलाह म* उसका (वाथ" छपा होता है ।


शरारती बंदर
एक समय शहर से कुछ ह दरू  पर एक मं'दर का नमा"ण
कैया जा रहा था। मं'दर म* लकडी का काम बहुत थ इस;लए
लकडी चीरने वाले बहुत से मजदरू काम पर लगे हुए थे। यहां-
वहां लकडी के लŠटे पडे हुए थे और लŠटे व शहतीर चीरने का
काम चल रहा था। सारे मजदरू  को दोपहर का भोजन करने के
;लए शहर जाना पडता था, इस;लए दोपहर के समय एक घंटे
तक वहां कोई नहं होता था। एक 'दन खाने का समय हुआ
तो सारे मजदरू काम छोडकर चल 'दए। एक लŠटा आधा Jचरा
रह गया था। आधे Jचरे लŠटे म* मजदरू लकडी का कला
फंसाकर चले गए। ऐसा करने से दोबारा आर घस
ु ाने म*
आसानी रहती ह।

तभी वहां बंदर का एक दल उछलता-कूदता आया। उनम* एक


शरारती बंदर भी था, जो >बना मतलब चीज से छे डछाड करता
रहता था। पंगे लेना उसक आदत थी। बंदर के सरदार ने
सबको वहां पडी चीज से छे डछाड न करने का आदे श 'दया।
सारे बंदर पेड क ओर चल 'दए, पर वह शैतान बंदर सबक
नजर बचाकर पीछे रह गया और लगा अडंगेबाजी करने।

उसक नजर अधJचरे लŠटे पर पडी। बस, वह उसी पर Cपल


पडा और बीच म* अडाए गए कले को दे खने लगा। <फर उसने
पास पडी आर को दे खा। उसे उठाकर लकडी पर रगडने लगा।
उससे <कर" र"-<कर" र" क आवाज नकलने लगी तो उसने गु(से से
आर पटक द। उन बंदरो क भाषा म* <कर" र"-<कर" र" का अथ"
‘नख{ू’ था। वह दोबारा लŠटे के बीच फंसे कले को दे खने

लगा।

उसके 'दमाग म* कौतुहल होने लगा <क इस कले को लŠटे के


बीच म* से नकाल 'दया जाए तो 0या होगा? अब वह कले को
पकडकर उसे बाहर नकालने के ;लए जोर आजमाईश करने
लगा। लŠटे के बीच फंसाया गया कला तो दो पाट के बीच
बहुत मजबत
ू ी से जकडा गया होता ह, 0य<क लŠटे के दो पाट
बहुत मजबत
ू ि( ंग वाले ि0लप क तरह उसे दबाए रहते ह।

बंदर खब
ू जोर लगाकर उसे 'हलाने क को;शश करने लगा।
कला जो‹ लगाने पर 'हलने व xखसकने लगा तो बंदर अपनी
शि0त पर खुश हो गया।
वह और जोर से खI-खI करता कला सरकाने लगा। इस
धींगामुUती के बीच बंदर क पूंछ दो पाट के बीच आ गई थी,
िजसका उसे पता ह नहं लगा।

उसने उHसा'हत होकर एक जोरदार झटका मारा और जैसे ह


कला बाहर xखंचा, लŠटे के दो Jचरे भाग फटाक से ि0लप क
तरह जुड गए और बीच म* फंस गई बंदर क पूंछ। बंदर
JचKला उठा।

तभी मजदरू वहां लौटे । उ8ह* दे खते ह बंदर नी भागने के ;लए


जोर लगाया तो उसक पछ
ूं टूट गई। वह चीखता हुआ टूट पूंछ
लेकर भागा।

सीखः >बना सोचे-समझे कोई काम न करो।


संगठन क शि0तट
एक वन म* बहुत बडा अजगर रहता था। वह बहुत अ;भमानी
और अHयंत jूर था। जब वह अपने >बल से नकलता तो सब
जीव उससे डरकर भाग खडे होते। उसका मंह
ु इतनाCवकराल था
<क खरगोश तक को नगल जाता था। एक बार अजगर ;शकार
क तलाश म* घूम रहा था। सारे जीव तो उसे >बल से नकलते
दे खकर ह भाग चक
ु े थे। उसे कुछ न ;मला तो वह jोJधत
होकर फुफकारने लगा और इधर-उधर खाक छानने लगा। वहं
नकट म* एक 'हरणी अपने नवजात ;शशु को पिHतय के ढे र
के नीचे छपाकर (वयं भोजन क तलाश म* दरू नकल गई
थी।

अजगर क फुफकार से सूखी पिHतयां उडने लगी और 'हरणी


का बdचा नजर आने लगा। अजगर क नजर उस पर पडी
'हरणी का बdचा उस भयानक जीव को दे खकर इतना डर गया
<क उसके मुंह से चीख तक न नकल पाई। अजगर ने दे खते-
ह-दे खते नवजात 'हरण के बdचे को नगल ;लया। तब तक
'हरणी भी लौट आई थी, पर वह 0या करती? आंख म* आंसू भर
जड होकर दरू से अपने बdचे को काल का 4ास बनते दे खती
रह।
'हरणी के शोक का 'ठकाना न रहा। उसने <कसी-न <कसी तरह
अजगर से बदला लेने क ठान ल। 'हरणी क एक नेवले से
दो(ती ती। शोक म* डूबी 'हरणी अपने ;म नेवले के पास
गईऔर रो-रोकर उसे अपनी दख
ु भर कथा सुनाई। नेवले को भी
बहुत दख
ु हुआ। वह दख
ु -भरे (वर म* बोला “;म, मेरे बस म*
होता तो म उअस नीच अजगर के सौ टुकडे कर डालता। पर
0या कर* , वह छोटा-मोटा सांप नहं ह,िजसे म मार सकंू वह तो
एक अजगर ह। अपनी पंूछ क फटकार से ह मझ
ु े अधमरा
कर दे गा। ले<कन यहां पास म* ह ची'टंय क एक बांबी ह।
वहां क रानी मेर ;म ह। उससे सहायता मांगनी चा'हए।”

'हरणी नराश (वर म* Cवलाप <कया “पर जब तुZहारे िजतना


बडा जीव उस अजगर का कुछ >बगाडने म* समथ" नहं ह तो
वह छोट-सी चींट 0या कर लेगी?”

नेवले ने कहा “ऐसा मत सोचो। उसके पास चीं'टय क बहुत


बडी सेना ह। संगठन म* बडी शि0त होती ह।”
'हरणी को कुछ आशा क <करण नजर आई। नेवला 'हरणी को
लेकर चींट रानी के पास गया और उसे सार कहानी सुनाई।
चींट रानी ने सोच-Cवचारकर कहा “हम तुZहार सहायता कर* गे
। हमार बांबी के पास एक संकरला नक
ु ले पHथर भरा रा(ता
ह। तुम <कसी तरह उस अजगर को उस रा(ते से आने पर
मजबरू करो। बाक काम मेर सेना पर छोड दो।”

नेवले को अपनी ;म चींट रानी पर परू ा CवUवास था इस;लए


वह अपनी जान जोxखम म* डालने पर तैयार हो गया। दस
ू रे
'दन नेवला जाकरसांप के >बल के पास अपनी बोल बोलने
लगा। अपने शु क बोल सुनते ह अजगर jोध म* भरकर
अपने >बल से बाहर आया। नेवला उसी संकरे रा(ते वाल 'दशा
म* दौडा। अजगर ने पीछा <कया। अजगर Gकता तो नेवला
मुडकर फुफकारता और अजगर को गु(सा 'दलाकर <फर पीछा
करने पर मजबूर करता। इसी कार नेवले ने उसे संकरले
रा(ते से गज
ु रने पर मजबरू कर 'दया। नक
ु ले पHथर से
उसका शरर छ`लने लगा। जब तक अजगर उस रा(ते से बाहर
आया तब तक उसका काफ शरर छल गया था और जगह-
जगह से खून टपक रहा था।

उसी समय चीं'टय क सेना ने उस पर हमला कर 'दया।


चीं'टयां उसके शरर पर चढकर छले (थान के नंगे मांस को
काटने लगीं। अजगर तडप उठा। अपना शरर पटकने लगा
िजससे और मांस छलने लगा और चीं'टय को आjमण के
;लए नए-नए (थान ;मलने लगे। अजगर चीं'टय का 0या
>बगाडता? वे हजार क Jगनती म* उस पर टूट पड रह थी।
कुछ ह दे र म* jूर अजगर ने तडप-तडपकर दम तोड 'दया।

सीखः संगठन शि0त बडे-बड को धूल चटा दे ती ह।


सdचा शासक
कंचन वन म* शेर;संह का राज समा+त हो चुका था पर वहां
>बना राजा के ि(थत ऐसी हो गई थी जैसे जंगलराज हो
िजसक जो मज@ वह कर रहा था। वन म* अशांत, मारकाट,
गंदगी, इतनी फैल गई <क वहां जानवर का रहना मुिUकल हो
गया। कुछ जानवर शेर;संह को याद कर रहे थे <क “जब तक
शेर;संह ने राजपाट संभाला हुआ था सारे वन म* <कतनी शांत
और एकता थी। ऐसे ह चलता रहा तो एक 'दन यह वन ह
समा+त हो जाएगा और हम सब जानवर बेघर होकर मारे
जाएंगे।”

गोलू भालू बोला- “कोई न कोई उपाय तो करना ह होगा- 0य


न सभी कहं सहमत से हम अपना कोई राजा चुन ल* जो
शेर;संह क तरह हम* पुन: एक जंजीर म* बांधे और वन म* एक
बार <फर से अमन शांत के (वर गूंज उठे ।” सभी गोलू भालू
क बात से संतDु ट हो गए। पर सम(या यह थी <क राजा <कसे
बनाया जाए? सभी जानवर (वयं को दस
ू रे से बड़ा बता रहे थे।

सोनू मोर बोल- “0य न एक पखवाड़े तक सभी को कुछ न


कुछ काम दे 'दया जाए तो अपने काम को सबसे अdछे ढं ग से
करे गा उसे ह यहां का राजा बना 'दया जाएगा।” सोनू (वीट
क बात से सहमत हो गए और <फर सभी जानवर को उनक
योAयता के आधार पर काम दे 'दया गया। >बZपी लोमड़ी को
;म{ी हटाने का काम 'दया गया तो भोलू बंदर को पेड़ पर
लगे जाले हटाने का, सोनी हाथी को पHथर उठाकर एक गढे म*
डालने का काम सIपा गया था और मोनू खरगोश को घास क
सफाई क।

जब एक पखवाड़ा बीत गया तो सभी जानवर अपने-अपने काय


का †यौरा लेकर एक मैदान म* एक>त हो गए। सभी जानवर
ने अपना काम बड़ी सफाई और मेहनत से पूरा <कया था। ;सफ"
सोनू हाथी था िजसने एक भी पHथर गढे म* नहं डाला था।

अब एक सम(या <फर खड़ी हो गई <क आxखर <कसके काम


को सबसे अdछा माना जाए। बुिgदमान मोनू खरगोश ने युि0त
सुझाई “0य न मतदान करा लया जाए, िजसे सबसे fयादा
मत ;मल* गे उसे ह हम राजा चुन ल* गे।”

अगले 'दन सब
ु ह-सब
ु ह चुनाव रख ;लया गया और एक बड़े
मैदान म* सभी पश-ु प%ी मत दे ने के ;लए उपि(थत हो गए।
मतदान समा+त होने के एक घंटे पUचात मत को Jगनने का
काम शG
ु हुआ। यह 0या! सोनू हाथी Jगनती म* सबसे आगे
चल रहा था और जब मत क Jगनती समा+त हुई तो सोनू
हाथी सबसे fयादा मत से Cवजयी हो गया। सभी जानवर एक
दस
ू रे का मंह
ु ताक रहे थे।

तभी प%ीराज गMण वहां उपि(थत हुए और उपि(थत सभी


जानवर को सZबोJधत करते हुए बोले- ‘सोनू हाथी त'दन
पHथर लेकर गढे तक जाता था <कंतु जब उसने दे खा <क उस
गढे म* मेरे अंडे रखे हुए ह तो वह पHथर को उसम* न
डालकर पास ह जमीन पर एक>त करता रहा। सोनू ने अपने
राजा बनने के लालच को छोड़ एक जीव को बचाना fयादा
उपयोगी समझा। उसक इस परोपकार क भावना को दे खकर
हम प$%य क भावना को दे खकर हम प$%य ने तय <कया
<क जो अपने लालच को छोड़कर दस
ू र के सख
ु -द:ु ख का gयान
रख* वह सdचे तौर पर शासक बनने का अJधकार है और
चूं<क वन म* प$%य क संmया पशओ
ु ं से अJधक थी इस;लए
सोनू हाथी चुनाव जीत गया।’
सबक: सdचा शासक वह होता ह जो परोपकार क भावना को
सव‡dच (थान द* ।
सdचे ;म
बहुत समय पहले क बात ह। एक सद
ु ं र हरे -भरे वन म* चार
;म रहते थे। उनम* से एक था चूहा, दस
ू रा कौआ, तीसरा 'हरण
और चौथा कछुआ। अलग-अलगजात के होने के बावजूद उनम*
बहुत घनDटता थी। चार एक-दस
ू रे पर जान छडकते थे। चार
घुल-;मलकर रहते, खूब बात* करते और खेलते। वन म* एक
नम"ल जल का सरोवर था, िजसम* वह कछुआ रहता था।
सरोवर के तट के पास ह एक जामुन का बडा पेड था। उसी
पर बने अपने घसले म* कौवा रहता था। पेड के नीचे जमीन
म* >बल बनाकर चूहा रहता था और नकट ह घनी झाBडय म*
ह 'हरण का बसेरा था।'दन को कछुआ तट के रे त म* धूप
सेकता रहता पानी म* डुब<कयां लगाता। बाक तन ;म भोजन
क तलाश म* नकल पडते और दरू तक घूमकर सय
ू ा"(त के
समय लौट आते। चार ;म इकŽे होते एक दस
ू रे के गले
लगते, खेलते और धमा-चौकडी मचाते।
एक 'दन शाम को चूहा और कौवा तो लौट आए, पर8तु 'हरण
नहं लौटा। तीनो ;म बैठकर उसक राह दे खने लगे। उनका
मन खेलने को भी नहं हुआ। कछुआ भरा"ए गले से बोला “वह
तो रोज तुम दोन से भी पहले लौट आता था। आज पता नहं,
0या बात हो गई, जो अब तक नहं आया। मेरा तो 'दल डूबा
जा रहा ह।

चूहे ने Jचंतत (वर म* कहा “हां, बात बहुत गंभीर ह। जMर वह
<कसी मुसीबत म* पड गया ह। अब हम 0या करे ?” कौवे ने
ऊपर दे खते हुए अपनी चच खोल “;मो, वह िजधर चरने ायः
जाता ह, उधर म उडकर दे ख आता, पर अंधेरा घरने लगा ह।
नीचे कुछ नजर नहं आएगा। हम* सुबह तक ती%ा करनी
होगी। सब
ु ह होते ह म उडकर जाऊंगा और उसक कुछ खबर
लाकर तुZह* दं ग
ू ा।”

कछुए ने ;सर 'हलाया “अपने ;म क कुशलता जाने >बना रात


को नींद कैसे आएगी? 'दल को चैन कैसे पडेगा? म तो उस ओर
अभी चल पडता हूं मेर चाल भी बहुत धीमी हम ् तम
ु दोन
सुबह आ जाना ।” चूहा बोला “मुझसे भी हाथ पर हाथ धरकर
नहं बैठा जाएगा। म भी कछुए भाई के साथ चल पड सकता
हूं, कौए भाई, तुम पौ फटते ह चल पडना।”

कछुआ और चूहा तो चल 'दए। कौवे ने रात आंखो-आंखो म*


काट। जैसे ह पौ फट, कौआ उड चला उडते-उडते चार ओर
नजर डालता जा रहा था। आगे एक (थान पर कछुआ और
चूहा जाते उसे नजर आए कौवे ने कां कां करके उ8ह* सच
ू ना द
<क उ8ह* दे ख ;लया ह और वह खोज म* आगे जा रहा ह। अब
कौवे ने 'हरण को पक ु <कया “;म 'हरण , तुम
ु ारना भी शG
कहां हो? आवाज दो ;म।”

तभी उसे <कसी के रोने क आवाज सुनाई द। (वर उसके ;म
'हरण का-सा था। उस आवाज क 'दशा म* उडकर वह सीधा
उस जगह पहुंचा, जहां 'हरण एक ;शकार के जाल म* फंसा
चटपटा रहा था। 'हरण ने रोते हुए बताया <क कैसे एक नद" यी
;शकार ने वहां जाल >बछा रखा था। दभ
ु ा"Aयवश वह जाल न
ु का “;शकार आता ह
दे ख पाया और फंस गया। 'हरण सब
होगा वह मुझे पकडकर ले जाएगा और मेर कहानी खHम
समझो। ;म कौवे! तुम चह
ू े और कछुए को भी मेरा अंतम
नम(कार कहना।”

कौआ बोला “;म, हम जान क बाजी लगाकर भी तुZह* छुडा


ल* गे।” 'हरण ने नराशा 9य0त क “ले<कन तुम ऐसा कैसे कर
पाओगे?” कौवे ने पंख फडफडाए “सुनो, म अपने ;म चूहे को
पीठ पर >बठाकर ले आता हूं। वह अपने पैने दांतो से जाल
कुतर दे गा।” 'हरण को आशा क <करण 'दखाई द। उसक
आंखे चमक उठ`ं “तो ;म, चूहे भाई को शीp ले आओ।”

कौआ उडा और तेजी से वहां पहुंचा, जहां कछुआ तथा चूहा आ


पहुंचे थे। कौवे ने समय नDट <कए >बना बताया “;मो, हमारा
;म 'हरण एक दDु ट ;शकार के जाल म* कैद ह। जान क
बाजी लगी ह ;शकार के आने से पहले हमने उसे न छुडाया
तो वह मारा जायेगा।” कछुआ हकलाया ” उसके ;लए हम* 0या
करना होगा? जKद बताओ?” चूहे के तेज 'दमाग ने कौवे का
इशारा समझ ;लया था “घबराओ मत। कौवे भाई, मुझे अपनी
पीठ पर बैठाकर 'हरण के पास ले चलो।”

चूहे को जाल कुतरकर 'हरण को मु0त करने म* अJधक दे र


नहं लगी। म0
ु त होते ह 'हरण ने अपने ;म को गले लगा
;लया और Gं धे गले से उ8ह* ध8यवाद 'दया। तभी कछुआ भी
वहां आ पहुचा और खुशी के आलम म* शा;मल हो गया। 'हरण
बोला “;म, आप भी आ गए। म भाAयशाल हूं, िजसे ऐसे सdचे
;म ;मले ह।”।

चार ;म भाव Cवभोर होकर खुशी म* नाचने लगे। एकाएक,


'हरण चIका और उसने ;म को चेतावनी द “भाइयो, दे खो वह
जा;लम ;शकार आ रहा ह। तरु ं त छप जाओ।” चूहा फौरन पास
के एक >बल म* घुस गया। कौआ उडकर पेड क ऊंची डाल पर
जा बैठा। 'हरण एक ह छलांग म* पास क झाडी म* जा घस
ु ा
व ओझल हो गया। परं तु मंद गत का कछुआ दो कदम भी न
जा पाया था <क ;शकार आ धमका। उसने जाल को कटा
दे खकर अपना माथा पीटा “0या फंसा था और <कसने काटा?”
यह जानने के ;लए वह पैर के नशान के सुराग ढूंढने के ;लए
इधर-उधर दे ख ह रहा था <क उसक नजर र* गकर जाते कछुए
पर पडी। उसक आंख* चमक उठ` “वाह! भागते चोर क लंगोट
ह सह। अब यह कछुआ मेरे प:रवार के आज के भोजन के
काम आएगा।”

बस उसने कछुए को उठाकर अपने थैले म* डाला और जाल


समेटकर चलने लगा। कौवे ने तरु ं त 'हरण व चूहे को बल
ु ाकर
कहा “;मो, हमारे ;म कछुए को ;शकार थैले म* डालकर ले
जा रहा ह।” चूहा बोला “हम* अपने ;म को छुडाना चा'हए।
ले<कन कैसे?”

इस बार 'हरण ने सम(या का हल सझ


ु ाया “;मो, हम* चाल
चलनी होगी। म लंगडाता हुआ ;शकार के आगे से नकलूंगा।
मझ
ु े लंगडा जान वह मझ
ु े पकडने के ;लए कछुए वाला थैला
छोड मेरे पीछे दौडेगा। म उसे दरू ले जाकर चकमा दं ग
ू ा। इस
बीच चूहा भाई थैले को कुतरकर कछुए को आजाद कर दे ग*।
बस।”
योजना अdछ` थी लंगडाकर चलते 'हरण को दे ख ;शकार क
बांछे xखल उठ`। वह थैला पटककर 'हरण के पीछे भागा।
'हरण उसे लंगडाने का नाटक कर घने वन क ओर ले गया
और <फर चौकडी भरता ‘यह जा वह जा’ हो गया। ;शकार दांत
पीसता रह गया। अब कछुए से ह काम चलाने का इरादा
बनाकर लौटा तो उसे थैला खाल ;मला। उसम* छे द बना हुआ
था। ;शकार मुंह लटकाकर खाल हाथ घर लौट गया।

सीखः सdचे ;म ह तो जीवन म* मुसीबत का आसानी से


सामना <कया जा सकता ह।
सांड और गीदड
एक <कसान के पास एक >बगडैल सांड था। उसने कई पशु
सींग मारकर घायल कर 'दए। आxखर तंग आकर उसने सांड
को जंगल क ओर खदे ड 'दया।

सांड िजस जंगल म* पहुंचा, वहां खब


ू हर घास उगी थी। आजाद
होने के बाद सांड के पास दो ह काम रह गए। खूब खाना,
हुंकारना तथा पेड के तन म* सींग फंसाकर जोर लगाना। सांड
पहले से भी अJधक मोटा हो गया। सारे शरर म* ऐसी
मांसपे;शयां उभर जैसे चमडी से बाहर छलक ह पड*गी। पीठ
पर कंधो के ऊपर क गांठ बढती-बढती धोबी के कपड के गnर
िजतनी बडी हो गई। गले म* चमडी व मांस क तह क तह*
लटकने लगीं।

उसी वन म* एक गीदड व गीदडी का जोडा रहता था, जो बडे


जानवर tवारा छोडे ;शकार को खाकर गज
ु ारा चलाते थे। (वयं
वह केवल जंगल चूह आ'द का ह ;शकार कर पाते थे।

संयोग से एक 'दन वह मतवाला सांड झूमता हुआ उधर ह आ


नकला िजदर गीदड-गीदडी रहते थे। गीदडी ने उस सांड को
दे खा तो उसक आंखे फट क फट रह गl। उसने आवाज
दे कर गीदड को बाहर बुलाया और बोल “दे खो तो इसक मांस-
पे;शयां। इसका मांस खाने म* <कतना (वा'दDट होगा। आह,
भगवान ने हम* 0या (वा'दDट तोहफा भेजा ह।
गीदड ने गीदडी को समझाया “सपने दे खना छोडो। उसका मांस
<कतना ह चब@ला और (वा'दDट हो, हम* 0या लेना।”

गीदडी भडक उठ` “तुम तो भIद ू हो। दे खते नहं उसक पीठ पर
जो चब@ क गांठ ह, वह <कसी भी समय Jगर जाएगी। हम*
उठाना भर होगा और इसके गले म* जो मांस क तह* नीचे
लटक रह ह, वे <कसी भी समय टूटकर नीचे Jगर सकती ह।
बस हम* इसके पीछे -पीछे चलते रहना होगा।”

गीदड बोला “भाAयवान! यह लालच छोडो।”

गीदडी िजद करने लगी “तुम हाथ म* आया मौका अपनी


कायरता से गंवाना चाहते हो। तुZह* मेरे साथ चलना होगा। म
अकेल <कतना खा पाऊंगी?”

गीदडी क हठ के सामने गीदड क कुछ भी न चल। दोन ने


सांड के पीछे -पीछे चलना शG
ु <कया। सांड के पीछे चलते-चKते
उ8ह* कई 'दन हो गए, पर सांड के शरएर से कुछ नहं Jगरा।
गीदड ने बार-बार गीदडी को समझाने क को;शश क “गीदडी!
घर चलते ह एक-दो चूहे मारकर पेट क आग बुझाते ह।

गीदडी क अ0ल पर तो पदा" पड गया था। वह न मानी “नहं,


हम खाएंगे तो इसी का मोटा-तजा (वा'दDट मांस। कभी न
कभी तो यह Jगरे गा ह।”

बस दोन सांड के पीछे लगे रहे ।भख


ू े +यासे एक 'दन दोन Jगर
पडे और <फर न उठ सके।

सीखः अJधक लालच का फल सदा बुरा होता ह।


;संह और ;सयार
वष पहले 'हमालय क <कसी क8दरा म* एक ब;लDठ शेर रहा
करता था। एक 'दन वह एक भसे का ;शकार और भ%ण कर
अपनी गफ
ु ा को लौट रहा था। तभी रा(ते म* उसे एक म:रयल-
सा ;सयार ;मला िजसने उसे लेटकर द€डवत ् णाम <कया।
जब शेर ने उससे ऐसा करने का कारण पूछा तो उसने कहा,
“सरकार म आपका सेवक बनना चाहता हूँ। कुपया मझ
ु े आप
अपनी शरण म* ले ल* । म आपक सेवा कGँ गा और आपके
tवारा छोड़े गये ;शकार से अपना गुजर-बसर कर लूंगा।” शेर ने
उसक बात मान ल और उसे ;मवत अपनी शरण म* रखा।

कुछ ह 'दन म* शेर tवारा छोड़े गये ;शकार को खा-खा कर


वह ;सयार बहुत मोटा हो गया। त'दन ;संह के पराjम को
दे ख-दे ख उसने भी (वयं को ;संह का तGप मान ;लया। एक
'दन उसने ;संह से कहा, “अरे ;संह ! म भी अब तुZहार तरह
शि0तशाल हो गया हूँ। आज म एक हाथी का ;शकार कGँ गा
और उसका भ%ण कGँ गा और उसके बचे-खच
ु े माँस को तुZहारे
;लए छोड़ दँ ग
ू ा।” चँ <ू क ;संह उस ;सयार को ;मवत ् दे खता था,
इस;लए उसने उसक बात का बुरा न मान उसे ऐसा करने से
रोका। म-जाल म* फँसा वह दZभी ;सयार ;संह के परामश" को
अ(वीकार करता हुआ पहाड़ क चोट पर जा खड़ा हुआ। वहाँ
से उसने चार और नज़र* दौड़ाई तो पहाड़ के नीचे हाJथय के
एक छोटे से समूह को दे खा। <फर ;संह-नाद क तरह तीन बार
;सयार क आवाज* लगा कर एक बड़े हाथी के ऊपर कूद पड़ा।
<क8तु हाथी के ;सर के ऊपर न Jगर वह उसके पैर पर जा
Jगरा। और हाथी अपनी म(तानी चाल से अपना अगला पैर
उसके ;सर के ऊपर रख आगे बढ़ गया। %ण भर म* ;सयार
का ;सर चकनाचूर हो गया और उसके ाण पखेG उड़ गये।

पहाड़ के ऊपर से ;सयार क सार हरकत* दे खता हुआ ;संह ने


तब यह गाथा कह – ” होते ह जो मूख" और घम€डी होती है
उनक ऐसी ह गत।”

सीखः कभी भी िजंदगी म* <कसी भी समय घम€ड नहं करना


चा'हए।
(वजात ेम
एक वन म* एक तप(वी रहते थे। वे बहुत पहुंचे हुए ॠCष थे।
उनका तप(या बल बहुत ऊंचा था। रोज वह ातः आकर नद
म* (नान करते और नद <कनारे के एक पHथर के ऊपर आसन
जमाकर तप(या करते थे। नकट ह उनक कु'टया थी, जहां
उनक पHनी भी रहती थी।
एक 'दन एक CवJच घटना घट। अपनी तप(या समा+त करने
के बाद ईUवर को णाम करके उ8हने अपने हाथ खोले ह थे
<क उनके हाथ म* एक न8ह-सी चुहया आ Jगर। वा(तव म*
आकाश म* एक चील पंज म* उस चु'हया को दबाए उडी जा
रह थी और संयोगवश चु'हया पंजो से छुटकर Jगर पडी थी।
ॠCष ने मौत के भय से थर-थर कांपती च'ु हया को दे खा।

Cष और उनक पHनी के कोई संतान नहं थी। कई बार पHनी


संतान क इdछा 9य0त कर चुक थी। ॠCष 'दलासा दे ते रहते
थे। ॠCष को पता था <क उनक पHनी के भागय म* अपनी
कोख से संतान को ज8म दे कर मां बनने का सख
ु नहं ;लखा
ह। <क(मत का ;लखा तो बदला नहं जा सकता पर8तु अपने
मंह
ु से यह सdचाई बताकर वे पHनी का 'दल नहं दख
ु ाना
चाहते थे। यह भी सोचते रहते <क <कस उपाय से पHनी के
जीवन का यह अभाव दरू <कया जाए।

ॠCष को न8हं चु'हया पर दया आ गई। उ8हने अपनी आंख*


बंदकर एक मं पढा और अपनी तप(या क शि0त से च'ु हया
को मानव बdची बना 'दया। वह उस बdची को हाथ म* उठाए
घर पहुंचे और अपनी पHनी से बोले “सुभागे, तुम सदा संतान
क कामना <कया करती थी। समझ लो <क ईUवर ने तुZहार
ाथ"ना सुन ल और यह बdची भेज द। इसे अपनी पुी
समझकर इसका लालन-पालन करो।”

ॠCष पHनी बdची को दे खकर बहुत स8न हुउई। बdची को


अपने हाथ म* लेकर चूमने लगी “<कतनी +यार बdची है । मेर
बdची ह तो ह यह। इसे म पुी क तरह ह पालूंगी।”

इस कार वह चु'हया मानव बdची बनकर ॠCष के प:रवार म*


पलने लगी। ॠCष पHनी सdची मां क भांत ह उसक दे खभाल
करने लगी। उसने बdची का नाम कांता रखा। ॠCष भी कांता
से Cपतावत (नेह करने लगे। धीरे -धीरे वे यह भूल गए क
उनक प
ु ी कभी च'ु हया थी।

मां तो बdची के +यार म* खो गई। वह 'दन-रात उसे xखलाने


और उससे खेलने म* लगी रहती। ॠCष अपनी पHनी को ममता
लुटाते दे ख स8न होते <क आxखर संतान न होने का उसे दख

नहं रहा। ॠCष ने (वयं भी उJचत समय आने पर कांताअ को
;श%ा द और सार 6ान-Cव6ान क बात* ;सखाई। समय पंख
लगाकर उडने लगा। दे खते ह दे खते मां का ेम तथा ॠCष का
(नेह व ;श%ा ा+त करती कांता बढते-बढते सोलह वष" क
संद
ु र, सुशील व योAय यव
ु ती बन गई। माता को बेट के Cववाह
क Jचंता सताने लगी। एक 'दन उसने ॠCष से कह डाला
“सुनो, अब हमार कांता Cववाह योAय हो गई ह। हम* उसके हाथ

पीले कर दे ने चा'हए।”

तभी कांता वहां आ पहुंची। उसने अपने केश म* फूल गंथ


ू रखे
थे। चेहरे पर यौवन दमक रहा था। ॠCष को लगा <क उनक
पHनी ठ`क कह रह ह। उ8हने धीरे से अपनी पHनी के कान
म* कहा “म हमार >ब'टया के ;लए अdछे से अdछा वर ढूंढ
नकालूंगा।”
उ8हने अपने तपोबल से सूयद
" े व का आवाहन <कया। सूय" ॠCष
के सामने कट हुए और बोले “ णाम मु नXी, क'हए आपने
मझ
ु े 0य (मरण <कया? 0या आ6ा ह?”

ॠCष ने कांता क ओर इशारा करके कहा “यह मेर बेट ह।


सव"गुण सुशील ह। म चाहता हूं <क तुम इससे Cववाह कर लो।”

तभी कांता बोल “तात, यह बहुत गम" ह। मेर तो आंख* चंJु धया
रह ह। म इनसे Cववाह कैसे कMं? न कभी इनके नकट जा
पाऊंगी, न दे ख पाऊंगी।”

ॠCष ने कांता क पीठ थपथपाई और बोले “ठ`क ह। दस


ू रे और
XेDठ वर दे खते ह।”

सय
ू द
" े व बोले “ॠCषवर, बादल मझ
ु से XेDठ ह। वह मझ
ु े भी ढक
लेता ह। उससे बात किजए।”

ॠCष के बुलाने पर बादल गरजते-लरजते और >बज;लयां


चमकाते कट हुए। बादल को दे खते ह कांता ने Cवरोध <कया
“तात, यह तो बहुत काले रं ग का ह। मेरा रं ग गोरा ह। हमार

जोडी नहं जमेगी।”

ॠCष ने बादल से पूछा “तुZह बताओ <क तुमसे XेDठ कौन


ह?”

बादल ने उHतर 'दया “पवन। वह मुझे भी उडाकर ले जाता ह।


म तो उसी के इशारे पर चलता रहता हूं।”

ॠCष ने पवन का आवाहन <कया। पवन दे व कट हुए तो ॠCष


ने कांता से ह पूछा “पुी, तुZहे यह वर पसंद ह?”

कांता ने अपना ;सर 'हलाया “नहं तात! यह बहुत चंचल ह।


एक जगह 'टकेगा ह नहं। इसके साथ गॄह(थी कैसे जमेगी?”

ॠCष क पHनी भी बोल “हम अपनी बेट पवन दे व को नहं


द* गे। दामाद कम से कम ऐसा तो होना चा'हए, िजसे हम अपनी
आंख से दे ख सक*।”

ॠCष ने पवन दे व से पछ
ू ा “तुZह बताओ <क तुमसे XेDठ कौन
ह?”
पवन दे व बोले “ॠCषवर, पव"त मुझसे भी XेDठ ह। वह मेरा
रा(ता रोक लेता ह।”

ॠCष के बुलावे पर पव"तराज कट हुए और बोले “ॠCषवर,


आपने मझ
ु े 0य याद <कया?”

ॠCष ने सार बात बताई। पव"तराज ने कहा “पूछ लिजए <क


आपक क8या को म पसंद हूं 0या?”

कांता बोल “ओह! यह तो पHथर ह पHथर ह। इसका 'दल भी


पHथर का होगा।”

ॠCष ने पव"तराज से उससे भी XेDठ वर बताने को कहा तो


पव"तराज बोले “चूहा मुझसे भी XेDठ ह। वह मुझे भी छे दकर
>बल बनाकर उसम* रहता ह।”

पव"तराज के ऐसा कहते ह एक चूहा उनके कान से नकलकर


सामने आ कूदा। चूहे को दे खते ह कांता खुशी से उछल पडी
“तात, तात! मझ
ु े यह चूहा बहुत पसंद ह। मेरा Cववाह इसी से
कर दिजए। मुझे इसके कान और पूंछ बहुत +यारे लग रहे
ह।मुझे यह वर चा'हए।”

ॠCष ने मं बल से एक चु'हया को तो मानवी बना 'दया, पर


उसका 'दल तो च'ु हया का ह रहा। ॠCष ने कांता को <फर
चु'हया बनाकर उसका Cववाह चूहे से कर 'दया और दोन को
Cवदा <कया।

सीखः जीव िजस योनी म* ज8म लेता ह, उसी के सं(कार बने
रहते ह। (वभाव नकल उपाय से नहं बदले जा सकते।

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