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हरिवं श िाय बच्चन

डॉ. हरिवंश िाय बच्चन एक उच्च कोटि के कटव थे । उनकी अनुपम काव्यशै ली
वर्तमान समय में भी हि आयु के लोगों को प्रभाटवर् किर्ी है । टहन्दी टित्रजगर्
के महानायक अटमर्ाभ बच्चन उन्ही के सुपुत्र हैं । साटहत्य जगर् में अटवस्मर्णीय
योगदान दे ने के अटर्रिक्त वह दे श की आज़ादी की लड़ाई में भी शाटमल हुए थे ।

कुशल साटहत्यकाि बच्चन जी का जन्म 27 नवंबि 1907 के टदन बापूपट्टी गााँ व,


टजला प्रर्ापगढ़ में हुआ था। उनकी प्रटसद्ध ििना “मधुशाला” आज भी श्रोर्ाओं
का मन मोह लेर्ी है । अपने टपर्ा की स्मृ टर् में अटमर्ाभ बच्चन जी अलग-अलग
मंि पि कई बाि उनकी यह मनमोहक कटवर्ा दोहिार्े हैं । अपने दौि के
श्रेष्ठर्म कटव बच्चन जी कटवर्ा औि ले खन योगदान के टलए पद्म भूषर्ण टवजेर्ा
भी बने। आइये आज हम उनके जीवन के बािे में टवस्ताि से जानर्े हैं ।
संक्षिप्त परिचय

जन्म हरिवंश िाय बच्चन


27 नवम्बि 1907
इलाहाबाद, आगिा, टिर्ानी भािर्
(अब उत्ति प्रदे श, भािर्)

मृत्यु 18 जनविी 2003 (उम्र 96)


मुम्बई, महािाष्ट्र, भािर्

व्यवसाय कटव, लेखक, प्राध्यापक

भाषा अवधी, टहन्दी

िाष्ट्रीयता भािर्ीय

उच्च क्षशिा इलाहाबाद टवश्वटवद्यालय


सेन्ट कैथेिाइन कॉलेज, कैम्ब्रिज

उल्लेखनीय सम्मान पद्मभूषर्ण (1976 में )

जीवनसाथी श्यामा (1926–1936)


र्ेजी बच्चन (1941–2007)

सन्तान अटमर्ाभ बच्चन, अटजर्ाभ बच्चन


सम्बन्धी बच्चन परिवाि
हस्तािि

बालपन व क्षशिा
छायावादी कटव हरिवंश िाय बच्चन का शुरूआर्ी जीवन इलाहबाद शहि से
सिे प्रर्ापगढ़ टजले के छोिे से गााँ व बापू पट्टी में बीर्ा था। वह एक कायस्थ
परिवाि से थे । उनके मार्ा-टपर्ा का नाम प्रर्ाप नािायर्ण श्रीवास्तव औि
सिस्वर्ी दे वी था। छोिी आयु में उन्हे बच्चन नाम से पुकािा जार्ा था। टजसका
अथत “बच्चा” होर्ा है । टजस कािर्ण आगे िल कि उनका सिनेम “बच्चन” हुआ।
हकीकर् में उनका सिनेम श्रीवास्तव है ।

उन्होने अपनी प्राथटमक टशक्षा टजला परिषद प्राथटमक स्कूल से सम्पन्न की थी।
उसके बाद वह कायस्थ पाठशाला से आगे का अध्ययन किने के टलए जुड़े, जहां
उन्होने अपनी खानदानी पिं पिा आगे बढ़ार्े हुए उदू त का अभ्यास टकया। उसके
बाद उन्होंने प्रयाग टवश्वटवद्यालय में एमए की पढाई की। आगे िल कि टिि
उन्होने “डबल्यू बी यीि् स” नाम के प्रटसद्ध अंग्रेज़ी कटव की ििनाओं पि शोध
किर्े हुए अपना पी॰एि॰डी॰ का अभ्यास कैम्ब्रिज टवश्वटवद्यालय से पूर्णत
टकया। W.B. Yeats पि एपीआई थीटसस पूिी किने के दौिान ही उन्होंने पहली
बाि “श्रीवास्तव” की जगह “बच्चन” सिने म का प्रयोग टकया।
हरिवं श िाय औि श्यामा दे वी (प्रथम पत्नी)
बच्चन जी की पहली शादी श्यामा दे वी से हुई थी। इस टववाह के वक्त वह टसित
19 वषत के थे। औि उनकी पत्नी 14 वषत की थीं। बड़े दु भात ग्य की बार् है की
उनका लग्न सं बद्ध दीर्त काल र्क जीवंर् नहीं िह सका िूाँटक श्यामा दे वी को 24
वषत की आयु में िीबी िोग नें र्ेि टलया। टजस कािर्ण, वषत 1936 में उनकी
अकाल मृत्यु हो गयी।

हरिवं श िाय औि ते ज ी बच्चन (क्षितीय


पत्नी)
समय की धािा आगे बढ़ी। पााँ ि साल यूाँही बीर् गए। वषत 1941 में बच्चन जी का
दू सिा टववाह र्ेजी बच्चन से हुआ। औि उन दोनों की दो संर्ान हुईं। इन दोनों
के दो पु त्रों में एक बॉलीवुड सु पि स्टाि अटमर्ाभ बच्चन अदाकाि हैं । औि दू सिे
पुत्र अटजर्ाभ (छोिे बेिे) एक टबजनेस मैन बने । र्ेजी बच्चन भािर् की पू वत
प्रधान मं त्री श्री इम्ब्रन्दिा गां धी के बेहद किीबी दोस्त मानी जार्ी थीं। हरिवं श िाय
औि र्ेजी बच्चन के बड़े पु त्र अटमर्ाभ जब कुली टिल्म की शूटिं ग में र्ायल हुए
र्ब िाजीव गां धी अमिीका से औि इम्ब्रन्दिा गां धी टदल्ली से उन्हे दे खने आ पहुं िे
थे। इसी बार् से बच्चन परिवाि औि गां धी परिवाि के गहिे रिश्ते का कयास
लगाया जा सकर्ा है ।
पटर् की मृत्यु के महज़ पााँ ि वषत बाद ही वषत 2007 में र्ेजी बच्चन का भी
स्वगतवास हो गया। मृ त्यु के समय उनकी आयु 93 वषत थी।
हरिवं श िाय की प्रक्षसद्ध िचना–
“कोक्षशश किने वालो ं की कभी हाि नही होती”

लहिों से डि कि नौका पाि नहीं होर्ी


कोटशश किने वालों की हाि नहीं होर्ी

नन्हीं िींिी जब दाना लेकि िलर्ी है


िढ़र्ी दीवािों पि, सौ बाि टिसलर्ी है
मन का टवश्वास िगों में साहस भिर्ा है
िढ़कि टगिना, टगिकि िढ़ना न अखिर्ा है
आट़िि उसकी मेहनर् बेकाि नहीं होर्ी
कोटशश किने वालों की हाि नहीं होर्ी

डु बटकयां टसंधु में गोर्ाखोि लगार्ा है


जा जा कि खाली हाथ लौिकि आर्ा है
टमलर्े नहीं सहज ही मोर्ी गहिे पानी में
बढ़र्ा दु गना उत्साह इसी है िानी में
मुट्ठी उसकी खाली हि बाि नहीं होर्ी
कोटशश किने वालों की हाि नहीं होर्ी

असिलर्ा एक िुनौर्ी है , स्वीकाि किो


क्या कमी िह गई, दे खो औि सुधाि किो
जब र्क न सिल हो, नींद िैन को त्यागो र्ुम
संर्षत का मैदान छोड़ मर् भागो र्ुम
कुछ टकये टबना ही जय जय काि नहीं होर्ी
कोटशश किने वालों की हाि नहीं होर्ी
हरिवं श िाय, ते ज ी बच्चन औि उनके पु त्र
अक्षमताभ के सं ब द्ध
बच्चन अपने बड़े बेिे के टिल्मजगर् में जाने पि ज़्यादा खुश नहीं थे। वह िाहर्े
थे की अटमर् जी नौकिी किें । लेटकन र्ेजी बच्चन को टथएिि में बहुर् रुटि थी।
उन्हे र्ो टिल्म के टलए प्रस्ताव भी आए थे । लेटकन उन्होने गृटहर्णी जीवन को
अटधक महत्व टदया था।
अपने बे िे का टिल्मलाइन की औि झुकाव दे खर्े हुए र्ेजी बच्चन िाहर्ी थीं की
उनका पुत्र उसी क्षेत्र में अपना भटवष्य बनाए। इसटलए अटमर्ाभ बच्चन के
करियि िुनाव में उनका भी आं टशक हाथ िहा था। बेिे अटमर्ाभ के टिल्मी
करियि की गाड़ी पििी पि िढ़र्े ही उनका नाम उस वक्त की प्रटसद्ध अटभने त्री
जया भादु ड़ी से जुडने लगा। र्ब टपर्ा हरिवंश िाय बच्चन नें र्ुिंर् हस्तक्षेप टकया
औि अटमर् जी औि जया को टववाह कि लेने की सलाह दी। आज बच्चन जी के
स्वगतवास को किीब पंद्रह वषत बीर् िुके हैं टिि भी अटमर् जी कहर्े हैं टक –

काश बाबूजी के साथ कुछ औि वक्त क्षबताने को क्षमल जाता।


कायय िे त्र
 बच्चन जी सवतथा टहन्दी भाषा को टवशे ष महत्व औि सम्मान दे र्े थे ।
औि अपनी मार्ृ भाषा का प्रसाि भी किर्े थे। उन्हे प्रटसद्ध ले ख
ओथेलो, श्रीमदभगवद गीर्ा, मैकबेथ औि शेकम्ब्रियि के सिीक टहन्दी
अनुवाद के टलए याद टकया जार्ा है ।
 आपको बीसवीं सदी के नवीनर्म औि सु प्रटसद्ध कटव होने का म्ब्रखर्ाब
भी टदया गया था। इनके अलावा वह एक ज्ञानवान टविािक औि ले खक
भी थे।
 1935 में उनकी टलखी कटवर्ा “मधुशाला” ने उन्हें प्रटसद्द बना टदया।
यह कटवर्ा आज भी लोगों का मन मोह लेर्ी है . मधुशाला की कड़ी में
उन्होंने दो औि कटवर्ाएाँ टलखीं थीं – मधुबाला औि मधुकलश
 इलाहबाद टवश्वटवद्यालय से उन्हे कुल 42 सभ्यो की टलस्ट में “भूर् काल
का गटवतर् छात्र” सम्मान टमला था। इलाहाबाद टवद्यापीठ में वषत 1941
से वषत 1952 र्क अं ग्रेज़ी भाषा का ज्ञान ग्रहर्ण कि लेने के उपिां र् वह
सैंि केथरिन कॉलेज, कैम्ब्रिज िले गए। जहां उन्होने पी॰ एि॰ डी॰ की।
 कैम्ब्रिज से English literature में डॉक्टिे ि किने वाल वे दु सिे
भािर्ीय हैं ।
 1955 में हिवं श िाय जी टदल्ली िले गए औि वहां उन्होंने टवदे श
मंत्रालय के एक टवशे ष अटधकािी के रूप में 10 साल र्क काम टकया।
 वह कुछ समय के टलए आल इं टडया िे टडयो में भी सेवा दे िुके हैं ।
इसके अलावा उन्होने टशक्षा प्रदान किने का काम भी अल्पकाल र्क
टकया था।
 बच्चन जी नें नवंबि 1984 में इम्ब्रन्दिा गां धी की हत्या पि आधारिर्
अपनी अंटर्म कृटर् (कटवर्ा) टलखी।
प्रमुख िचनाओं की सूक्षच

कक्षवता संग्रह क्षवक्षवध

तेिा हाि (1929) बच्चन के साथ िण भि (1934)

मधुशाला (1935) खय्याम की मधुशाला (1938)

मधुबाला (1936) सोपान (1953)

मधु कलश (1937) मैकबे थ (1957)

आत्म परिचय (1937) जनगीता (1958)

क्षनशा क्षनमंत्रण (1938) ओथेलो (1959)

एकांत संगीत (1939) उमि खय्याम की रुबाइयााँ


(1959)
आकुल अंति (1943) कक्षवयों में सौम्य संत: पंत
(1960)
सतिं क्षगनी (1945) आज के लोकक्षप्रय क्षहन्दी कक्षव:
सुक्षमत्रानंदन पंत (1960)
हलाहल (1946) आधुक्षनक कक्षव (1961)

बंगाल का काल (1946) नेहरू: िाजनैक्षतक जीवनचरित


(1961)
खादी के फूल (1948) नये पुिाने झिोखे (1962)

सूत की माला (1948) अक्षभनव सोपान (1964)

क्षमलन याक्षमनी (1950) चौंसठ रूसी कक्षवताएाँ (1964)

प्रणय पक्षत्रका (1955) नागि गीता (1966),

धाि के इधि-उधि (1957) बच्चन के लोकक्षप्रय गीत


(1967)
आिती औि अंगािे (1958) डब्लू बी यीट् स एं ड अकल्टिज़म
(1968)
बुद्ध औि नाचघि (1958) मिकत िीप का स्वि (1968)

क्षत्रभंक्षगमा (1961), हैमले ट (1969)

चाि खेमे चौंसठ खूं टे (1962) भाषा अपनी भाव पिाये (1970)

दो चट्टानें (1965) पंत के सौ पत्र (1970)

बहुत क्षदन बीते (1967) प्रवास की डायिी (1971)

कटती प्रक्षतमाओं की आवाज़ क्षकंग क्षलयि (1972)


(1968)
उभिते प्रक्षतमानों के रूप टू टी छूटी कक्ष़ियााँ (1973)
(1969)
आत्मकथा जाल समटा (1973)

क्या भूलूाँ क्या याद करू


ाँ (1969)

नी़ि का क्षनमायण क्षफि (1970)

बसेिे से दू ि (1977),

नई से नई-पुिानी से पुिानी
(1985)
दशिाि से सोपान तक (1985)

क्षफल्ो ं में बच्चन जी की िचनाओं का प्रयोग


 टसलटसला मूवी का अटमर्ाभ बच्चन पि टिल्माया प्रटसद्द
गाना “िं ग बिसे” हरिवंशिाय जी द्वािा ही टलखा गया था।
 अटग्नपथ मूवी में बाि-बाि बोली गयी पंम्ब्रक्त
“अटग्नपथ…अटग्नपथ…अटग्नपथ” भी उन्ही की ििना है ।
 “अलाप” मूवी का प्रटसद्द गाना, ‘ कोई गार्ा मैं सो जार्ा” भी
उन्ही की कृटर् है ।
पु ि स्काि
 “दो िट्टाने” कटवर्ा को 1968 का साटहत्य अकादमी
पुिस्काि
 सोटवयर् लैंड नेहरू पुिस्काि
 एफ्रो एटशयाई सम्मेलन का कमल पुिस्काि
 टबड़ला िाउण्डे शन द्वािा सिस्वर्ी सम्मान
 1976 में पद्म भूषर्ण सम्मान

मृ त्यु
अपनी उत्कृष्ट् ििनाओं से लोगों के टदल में अमित्व प्राप्त कि
लेने वाले इस महान कटव नें 18 जनविी, 2003 पि इस संसाि
को अलटवदा कहा। उनकी मौर् शिीि के महत्वपूर्णत अंग खिाब
हो जाने के कािर्ण हुई थी। मृत्यु के वक्त उनकी आयु 95 वषत
थी। जीवन का अंटर्म सत्य मृत्यु ही होर्ा है , पि कुछ लोग अपने
सत्कमत औि सद् गुर्णों की ऐसी छाप छोड़ जार्े हैं टजस कािर्ण
समाज उन्हे आने वाले लंबे समय र्क याद किर्ा है । स्वगीय
ििनाकि हरिवंश िाय बच्चन जी को हमािा शर्-शर् नमन.

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