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वो पशेमान नह ीं हैं मुल्के सियाित करके,

और एक हम है के सििने हया रख्ख है!

कूचा-कूचा-ए-शहर िे उठ रहा है धुआीं,


आग अरमानोीं क ये सकिने िला रख्ख है !

उन दरख्ोीं क उम्र लम्ब कैिे होग ,


हवाओीं ने िड़ें सिनक सहला रख्ख हैं!

- इमरान िूरत

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