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5 6303054606427488314
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** क्तया भगवान शिव को अवपूत ककया गया नैवेद्य (प्रसाद) ग्रहर्ण करना िाहहए?
सजृ टि के आरम्भ से ही समस्त दे वता, ऋर्ि-मनु न, असरु , मनटु य र्वभभन्न ज्योनतभलिंगों,
स्वयम्भभू लंगों, मणिमय, रत्नमय, धातम
ु य और पार्थतव आदद भलंगों की उपासना करते आए हैं।
अन्य दे वताओं की तरह भशवपज
ू ा में भी नैवेद्य ननवेददत ककया जाता है । पर भशवभलंग पर चढे
हुए प्रसाद पर *िण्ड* का अर्धकार होता है ।
** भगवान शिव के मख
ु से ननकले हैं िण्ड
गिों के स्वामी *चण्ड* भगवान भशवजी के मख ु से प्रकि हुए हैं। ये सदै व भशवजी की आराधना
में लीन रहते हैं और *भत
ू -प्रेत, र्पशाच* आदद के स्वामी हैं। *चण्ड* का भाग ग्रहि करना यानी
*भत
ू -प्रेतों का अंश खाना* माना जाता है ।
"जहााँ चण्ड का अर्धकार हो, वहााँ भशवभलंग के भलए अर्पतत नैवेद्य मनटु यों को ग्रहि नहीं करना
चादहए। जहााँ चण्ड का अर्धकार नहीं है , वहााँ का भशव-नैवेद्य मनुटयों को ग्रहि करना चादहए।"
** ककन शिवशलंगों के नैवेद्य में िण्ड का अचधकार नह ं है ? अत: ग्रहि करने योग्य है —
स्वयम्भूशलंग — जो भलंग भक्तों के कल्याि के भलए स्वयं ही प्रकि हुए हैं, उनका नैवेद्य ग्रहि
करने में कोई दोि नहीं है ।
बार्णशलंग (नमूदेश्वर) — बािभलंग पर चढाया गया सभी कुछ जल, बेलपत्र, फूल, नैवेद्य, प्रसाद
समझकर ग्रहि करना चादहए।
*जजस स्थान पर (गण्डकी नदी) शालग्राम की उत्पर्ि होती है , वहााँ के उत्पन्न भशवभलंग,
पारदभलंग, पािािभलंग, रजतभलंग, स्वितभलंग, केसर के बने भलंग, स्फदिकभलंग और रत्नभलंग* — इन
सब भशवभलंगों के भलए समर्पतत नैवेद्य को ग्रहि करने से चान्रायि व्रत के समान फल प्राप्त
होता है ।
*भशवपुराि* के अनुसार *भगवान भशव की मूनततयों में चण्ड का अर्धकार नहीं है , अत: इनका
प्रसाद भलया जा सकता है ।
*जजन भशवभलंगों का नैवेद्य ग्रहि करने की मनाही है वे भी शालग्राम भशला के स्पशत से ग्रहि
करने योग्य हो जाते हैं।*
** शिव-नैवेद्य की महहमा
जजस घर में भगवान भशव को नैवेद्य लगाया जाता है या कहीं और से भशव-नैवेद्य प्रसाद रूप में
आ जाता है वह घर पर्वत्र हो जाता है । आए हुए भशव-नैवेद्य को प्रसन्नता के साथ भगवान
भशव का स्मरि करते हुए मस्तक झुका कर ग्रहि करना चादहए।
— आए हुए नैवेद्य को ‘दस ू रे समय में ग्रहि करूाँगा’, ऐसा सोचकर व्यजक्त उसे ग्रहि नहीं करता
है , वह पाप का भागी होता है ।
— जजसे भशव-नैवेद्य को दे खकर खाने की इच्छा नहीं होती, वह भी पाप का भागी होता है ।
— भशवभक्तों को भशव-नैवेद्य अवश्य ग्रहि करना चादहए क्योंकक भशव-नैवेद्य को दे खने मात्र से
ही सभी पाप दरू हो जाते है , ग्रहि करने से करो़िों पुण्य मनुटय को अपने-आप प्राप्त हो जाते हैं।
— भशव-नैवेद्य को श्रद्धापूवक
त ग्रहि करने व स्नानजल को तीन बार पीने से मनुटय ब्रह्महत्या
के पाप से मुक्त हो जाता है ।
सुमंगलं तस्य गह
ृ े र्वराजते। भशवेनत विैभर्ुत व यो दह भािते॥