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विश्वविद्यालयी लोकतंत्र में जातिगत राजनीतिक समीकरण

उच्च शिक्षा तक पहुचँ ना यंू तो बड़ी बात है लेकिन किसी दलित छात्र के लिए तो ये और भी बड़ी बात हो जाती
है क्योंकि एक तो उसके लिए शिक्षा में जाना ही दरू की कौड़ी होता है और अगर पहुचँ भी जाए तो जातीय तंज
और शोषण उसे परे शान करने के लिए तैयार रहते हैं और वो किसी भी रूप में हो सकते हैं। चकि ंू भारत में हर
समाज का एक स्थान है और किसी पिछड़े समाज को आगे लाने की व्यवस्था मौजदू है जिसके कारण
विश्वविद्यालय सीधे तौर पर दलितों को नज़र अंदाज़ नहीं कर पाते लेकिन कहीं न कहीं आज भी दलित छात्र को
बहुत ही घृणित दृष्टि से देखते हैं और उसी तरह व्यवहार भी करते हैं। सवर्ण समाज हमेशा से दलितों पर शासन
और अत्याचार करता आया है जिसका असर शिक्षण सस्ं थानों में भी बदस्तरू मिलता है। सवर्ण , हर छात्र और
अध्यापक को उसकी जाति के आधार पर नियंत्रित करते है। सवर्णों (अध्यापकों और छात्रों) की राजनीति का
पहला पक्ष ही जाति होती है और इसके आधार पर ही वो तय करते हैं कि उसके साथ कै सा व्यवहार करना है।
हालांकि बहुत बार ये सामने से ऐसा करने से बचते नज़र आते हैं लेकिन छात्र राजनीतिक दलों जैसे एबीवीपी
और बजरंग दल की वजह से वे खल ु कर भी ऐसा करने से डरते नहीं हैं। किसी भी विश्वविद्यालय की ज़िम्मेदारी
उसके छात्र और उनसे जड़ु ी हर गतिविधि होती है लेकिन विश्वविद्यालय इसको भी वर्गों में बाँट कर अपनी
स्वायत्तता का गलत प्रयोग करते हैं। दलित छात्रों और सवर्णों या फिर उपरोक्त दलों से जड़ु े छात्रों को अलग
अलग तरीके से बर्ताव करते है। चकि ंू दलित छात्र हमेशा से ही सॉफ्ट टार्गेट रहे हैं तो उनका शोषण बहुत ही
आसानी से किया जाता है। जेनयू, बीएचयू से लेकर हैदराबाद तक हर जगह छात्रों पर आक्रामक वार किए जा
रहे हैं लेकिन उसमें नक ु सान उन छात्रों का हो रहा है जो या तो दलित हैं या फिर किसी अन्य संगठन से जड़ु े हैं
और वो छात्र भी शामिल हैं जो एबीवीपी या बजरंग दल जैसे संगठनों में शामिल नहीं हुए हैं। ये भी एक तरह की
विचारधारा का संयोजन ही है, जहां आप यदि उनके साथ नहीं जड़ु ते हैं तो ये आप पर किसी भी प्रकार के
आरोप लगाने, आपको सजा दिलाने और आपके बहिष्कार तक करने से पीछे नहीं हटते। इनके मद्दु े कभी भी
छात्रों के साथ हुए अन्याय की निष्पक्ष जांच के नहीं होते और ये कभी भी सम्पर्णू छात्र हितों की बात नहीं करते।
चंकिू छात्रों को टार्गेट करना आजकल बहुत ही आसान हो गया है तो तो इसमें भी अपनी जाति और वर्ण छांट
ही लेते हैं या फिर किसी दलित के साथ खड़े होकर उसकी पीछे अपना काम सिद्ध करते हैं। आजकल जिस
प्रकार छात्रों पर अटैक किया जा रहा है वो दर्शाता है कि विश्वविद्यालय में पढ़ाई से ज्यादा राजनीतिक हितों को
साधा जाता है जिसमे वो ही छात्र फंसाए जा रहे हैं जिनके साथ इन दलों की ताकत नहीं है। बीएचय ू और
हैदराबाद विश्वविद्यालय इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं जहां एक दलित छात्र को अत्महत्या करनी पड़ती है और
बीएचयू जैसे हिदं त्ु ववादी सस्ं थाओ ं में छात्रों विशेषकर महिलाओ ं को अपनी हक़ के लिए लठियाँ खानी पड़ती
हैं। विश्वविद्यालय इस प्रकार की गंदी और घटिया राजनीति के पैरोकार बन गए हैं, जहां कोई छात्र शोषण के
खिलाफ अपनी जाति के आधार पर ही आवाज़ उठा सकता है और यदि आवाज़ उठा भी रहा है तो ऐसे संगठन
उसके खिलाफ मोर्चा खोलकर उसे दोषी साबित कर ही देते हैं। ऐसे में किस प्रकार से इन दलों , इन छात्रों और
इस वहशी सोच को व्याख्यायित किया जाए यह बड़ी विडम्बना है। यंू तो ये दल परस्त और प्रभत्ु व सम्पन्न लोग
बड़ी-बड़ी बातें करते नज़र आते है, दलितों के विकास, उनके सहयोग कि बात करते है लेकिन जैसे ही ग्राउंड
पर आते हैं तो बस अपना लाभ देखते हैं और इस लाभ के लिए कुछ भी कर देने को तत्पर होते हैं। समय - समय
पर इनको आरक्षण से भी खतरे होने लगते हैं, ये धनवान दलितों की बात भी दलित हित के लिए करने से नहीं
चक ू ते और आरक्षण के पैमाने भी तय करने लगते हैं। अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर सोशल मीडिया में
दश्ु मन बनकर वार करते हैं और आरोप भी तय कर देते हैं। अब इनसे क्या उम्मीद की जाये ? ये कभी भी किसी
छात्र हित में उनके साथ खड़े रहकर किसी भी सत्ता के खिलाफ आवाज़ भी उठायेंगे? बल्कि ये तो उसी सत्ता के
तलवे चाटने के लिए निर्दोषों को दोषी और दलित छात्रों को नक्सली बनाकर उनपर भी देशद्रोह का मक ु दमा भी
चला देंगे।

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