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दोस्तों, सफलता हमारा परिचय दुनिया को करवाती है और असफलता हमें दुनिया का


परिचय करवाती है । आज मैं ऐसे एक इं सान के बारे में बात करूँगा जिन्होंने असफलता को
अपना दोस्त म I नके आगे बड़ा. 30 से भी ज्यादा नौकरियों के लिए कोशिश किया पर
उन्हें हर जगह से बस असफलता ही मिली। उन्होंने एक बार पु लिस की नौकरी के लिए
कोशिश किया पर उन्हें दे खते ही मना कर दिया गया।जब पहली बार KFC का Restaurant
उनके शहर में खु ला तो उन्होंने KFC में भी नौकरी के लिए Try किया पर वहां जिन 24 लोग
नौकरी के लिए गए थे उनमें से 23 लोगों को नौकरी मिल गयी ले किन एक मात्र उन्हें नहीं
मिली। इससे यह पता चलता है की उनका जीवन कितना सं गर्ष पूर्ण था।

जी हैं वो और कोई नहीं Alibaba Groups के founder जै क मा के बारे में बात कर रहा
हँ , जिन्होंने पु रे विश्व में अपना नाम बना लिया और 240 दे शों से भी ज्यादा दे शों में
इसका कारोबार शु रू हो गया। एक Report   के अनु सार आज इस कंपनी में 50000+ लोग
काम कर रहे हैं ।

जै क मा का जन्म 10 सितम्बर, 1964 को चीन के एक छोटे से गाँ व हन्ग्ज़्हौ (Hangzhou)


में हुआ था। जै क मा के माता पिता पारं परिक गाने गा और बजा कर काम किया करते था।
जै क मा को बचपन से ही अं गर् े जी सिखने की बहुत इच्छा थी इसलिए वो Hangzhou
International Hotel एक साइकिल से जाते थे जहाँ बड़े -बड़े विदे शी नागरिक आते थे ।
जै क मा अं गर् े जी सिखने के लिए उन लोगों से पहले अपनी टू टी-फू टी अं गर् े जी में बात
किया करते थे । चीन में अं गर् े जी भाषा को उतना ज़रूरी नहीं माना जाता था। परन्तु जब
जै क मा ने कुछ अच्छी अं गर् े जी बोलना सिख लिया तो उन्होने  दुसरे दे शों से आने वाले
विदे शी लोगों के लिए एक टूरिस्ट गाइड के रूप में काम किया।
ऐसा करते -करते उनका अं गर् े जी बहुत अच्छा हो गया। उन्होंने यह काम लगभग 9 वर्ष
तक किया। टूरिस्ट गाइड का काम करते -करते उनका एक अच्छा विदे शी मित्र बना। जै क
मा का असली नाम मा यू ँ था पर चीनी भाषा में इसे बोलना बहुत ही मु श्किल था इसलिए
उस विदे शी मित्र ने उनका नाम जै क मा रख दिया, तब से उनको जै क मा के नाम से जाना
आने लगा। उसके बाद जै क माँ ने नौकरी ढूँढना शु रू किया।

जै क मा ने 1994 में पहली बार इन्टरने ट के विषय में सु ना। जै क मा 1995 में अपने दोस्तों
की मदद से इन्टरने ट के विषय में जानकारी ले ने के लिए अमरीका गए। अमरीका में उन्होंने
पहली बार इन्टरने ट दे खा और चलाया। उन्होंने इन्टरने ट पर सबसे पहले Bear शब्द को
Search किया, वहां उन्हें Bear शब्द के बारे में अन्य-अन्य websites से कई प्रकार की
जानकारी मिली। उन्होंने जब अच्छे से ध्यान दिया तो दे खा की इन्टरने ट पर चीनी भाषा में
इसके विषय में कोई जानकरी नहीं है और इस प्रकार उनके दिमागे में एक आईडिया सु झा।
यहाँ  तक की उन्होंने चीन दे श के विषय में भी इन्टरने ट पर search किया जिसके विषय में
भी internet पर उनको search करने पर ज्यादा कुछ नहीं मिला। अपने दे श की जानकारी
इन्टरने ट पर न पा कर जै क बहुत दुखी हुए क्योंकि उन्हें  लगा की अन्य दे शों के मु काबले
टे क्नोलॉजी क्षे तर् में चीन बहुत पीछे है ।

जै क मा और उनके अमरीकी मित्र ने मिलकर चीन की जानकारी से भरा हुआ अपना एक


पहला वे बसाइट बनाया। बनाने के कुछ ही घं टों के अन्दर जै क मा को कुछ चीनी लोगों के
ईमे ल आने लगे । यह दे ख कर जै क मा को इन्टरने ट की ताकत का पता चला।

उसी वर्ष 1995 में जै क मा उनकी पत्नी और क्कुह दोस्तों ने मिलकर कुछ पै से जमा किये
और एक वे बसाइट बनाने की कंपनी शु रू की थी जिसका नाम उन्होंने रखा China Yellow
Pages. इस कंपनी को शु रू करने के लिए सभी दोस्तों ने मिल कर लगभग 20000$ जमा
ू री कंपनियों के लिए वे बसाइट बनाना। 3 साल के
किये थे । इस कंपनी का मु ख्य काम था दस
अन्दर उसी कंपनी को 3 लाख $ का मु नाफा हुआ. जै क और उनकी टीम ने उसके बाद चीन
की कंपनियों के लिए भी वे बसाइट बनाना शु रू किया। जै क मा का कहना था की जब वे
अपने दोस्तों के साथ वे बसाइट का काम करते थे तो उन्हें टीवी और ताश खे लना पड़ता
था। ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय का इन्टरने ट स्पीड इतना स्लो हुआ करता था की
अधा पे ज बनाने में 3.5 घं टे लग जाते थे । जै क मा ने अपने 33 वर्ष की आयु में  अपना
पहला कंप्यूटर ख़रीदा था।
1998-1999 में China International Electronic Commerce Center द्वारा स्थापित
एक IT कंपनी में भी काम किया पर उसके बाद वे वहां से काम छोड़ कर अपने 17 दोस्तों की
टीम के साथ दोबारा अपने जन्म स्थान Hangzhou लौट आये । उसके बाद जै क मा अपने
घर बै ठे अपने 17 दोस्तों के साथ मिलकर अपना पहला B to B eCommerce वे बसाइट की
शु रुवात की थी। वै से तो अपनी वे बसाइट का नाम वो Alibaba रखने का उनका मन पहले
से ही था पर उन्होंने शॉप के एक Waitress से पु छा – क्या तु म अलीबाबा के विषय में
जानते हो? तो जवाब आया खु ल जा सिम-सिम। उसके बाद उन्होंने कई भारतीय, अमरीकी
और अन्य दे शों के लोगों से भी वही सवाल पु छा तो उन्होंने अपया कि सभी लोगों को
Alibaba के विषय में पता था। बस उसके बाद उन्होंने अपनी कंपनी को Alibaba Groups
के नाम से शु रू किया।
विश्व सुं दरी मानु षी छिल्लर Manushi Chhillar

रोना पड़ता है कभी मु स्कुराने के लिए… खोना पड़ता है कुछ, कुछ पाने के लिए….
दोस्तों, आज मैं ऐसे एक इंसान के बारे में बात करूँगा जिन्होंने मिस वर्ल्ड प्रतियोगता में
हिस्सा लेने के लिए अपने M.B.B.S. की एक साल की पढाई को छोड़ दिया था. जी हैं वो
और कोई नहीं विश्व सुं दरी मानु षी छिल्लर Manushi Chhillar के बारे में बात कर रहा
हँ. इन्होने सिर्फ 20 साल की उम्र में ही भारत का नाम पूरे विश्व में रोशन किया है । मिस
वर्ल्ड प्रतियोगिता 2017 में 118 दे शो की सुदं रियों ने हिस्सा लिया था, और जिसमे भारत
की मानु षी चिल्लर भी थी।
मानु षी की मानसिक योग्यताओ को दे खते हुए इनको Beauty With Purpose का ख़िताब
और Miss – World का ख़िताब दिया गया। मानु षी के द्वारा ये ख़िताब जीतने के बाद भारत
ने वे नेजुएला की बराबरी करा ली। जोकि पूरे विश्व में सबसे ज्यादा बार मिस वर्ल्ड का
ख़िताब जीतने वाला दे श है । मानु षी हरियाणा जै से पिछड़े हुए राज्य से होकर भी अपने
राज्य के साथ साथ पूरे भारत का नाम दुनिया भर में रोशन किया है ।
मिस वर्ल्ड मानु षी छिल्लर का जन्म 14 मई, 1997 में हरियाणा के झज्जर जिले के
बामनोली गावं में एक जाट परिवार में हुआ था। इनके पिता डॉ. मित्रबासु छिल्लर जोकि
पे शे से एक साइं टिस्ट or माँ नीलम छिल्लर बायोकेमिस्ट् री की Associate Professor है ।
मानु षी का एक भाई भी है जिसका नाम दलमित्र छिल्लर और एक बहन जिनका नाम
दे वां गना है । माता और पिता दोनों के की पोस्टिं ग दिल्ली में होने के कारण ये लोग दिल्ली
में ही रहते है ।
शिक्षा और करियर (Education and Career)
मिस वर्ल्ड मानु षी जी की प्राथमिक शिक्षा नई दिल्ली के सें ट थॉमस स्कू ल में हुई। वहां से
इन्होने हाईस्कू ल और इं टर की परिक्षा को पास किया और फिर इसके बाद इन्होने भगत फू ल
सिं ह मे डिकल कॉले ज से मे डिकल की शिक्षा प्राप्त की।
मानु षी जी मे डिकल की पढाई करके स्त्री रोग विशे षज्ञ बनाना चाहती थी ले किन इसके
साथ साथ इनका इं टरे स्ट मॉडलिं ग में भी था जिसकी वजह से इन्होने मॉडलिं ग में भी
अपना हाथ सु न्दरता सम्बं धित कुछ प्रतियोगताओ में अजमाया और उन्होने मिस इण्डिया
और मिस वर्ल्ड का ख़िताब जीता। मानु षी जी मॉडल होने के साथ साथ कुचीपु ड़ी नृ त्य के
साथ साथ चित्रकला, गायन, अभिनय में भी रूचि रखती है ।
मानु षी जी इस दुनिया में सबसे ज्यादा अपने माँ को पसं द करती है उनका मानना है उनकी
माँ ने ही उनको हर कदम पर हर कठिनाई से लड़ने की हिम्मत दी है ।
मानु षी जी के विचार (Thoughts of Manushi) –
1. जब आप सपने दे खने बं द कर दे ते है तो आप जिन्दगी जीना बं द कर दे ते है
2. अपने सपनो को उडान दे ने की हिम्मत और खु द पर विश्वास की योग्यता ही जिन्दगी
को जीने लायक बनाती है ।

मिस इं डिया और मिस वर्ल्ड बनने का सफ़र (Journey of  miss india & miss world) –
मिस वर्ल्ड मानु षी छिल्लर का मॉडलिं ग में ज्यादा रूचि होने के कारण इन्होने अपने मे डिकल
कॉले ज में दिसं बर 2016 को मिस कैंपस प्रिं सेज के प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और
इन्होने मिस कैंपस प्रिं सेज का ख़िताब जीत लिया। उसके बाद इन्होने अप्रैल 2017 में
हरियाणा में ‘मिस हरियाणा’ में हिस्सा लिया जिसमे इनको फिर से विजय प्राप्त हुई।
दो महीने के बाद इन्होने जून 2017 में फेमिना मिस इं डिया के प्रतियोगिता में भाग लिया
और हर बार की तरह इस बार भी इनको जीत ही मिली। इस ख़िताब को जीत कर इनका
रास्ता मिस वर्ल्ड की तरफ खु ल गया।
इतने ख़िताब जितने के बाद मानु षी जी को लगने लगा था कि वो मिस वर्ल्ड का ख़िताब भी
जीत सकती है । इन सभी के साथ साथ इनको Miss Photogenic का ख़िताब भी मिला।
मिस वर्ल्ड मानु षी छिल्लर ने OP MODEL, People’S Choice और Multimedia
Competitions को पार करके से मिफिनल तक पहुंच गई। और अं त में उन्होंने सारे स्टे ज को
पार करके 18 नवम्बर 2017 को मिस वर्ल्ड का ख़िताब भी जीत लिया।
इस खिताबी को जितने के लिए इन्होने Beauty With a Purpose Project जिसका नाम
Project Shakti था। जिसमे Menstrual hygiene की जागरूकता फैलाना था। मानु षी जी
ने 20 गावों में जाकर 5000 से भी अधिक महिलाओं को इसके बारे में जागरूक किया।
मिस वर्ल्ड में मानु षी चिल्लर से पूछा गया आखिरी सवाल
सवाल – संसार में किस प्रोफेशन को सबसे ज्यादा वे तन दिया जाना चाहिए?
उत्तर –उन्होंने कहा – “मैं हमे शा से ही अपनी माँ के ज्यादा करीब रही हँ ू और मु झे लगता है
सबसे ज्यादा सम्मान माँ को ही मिलाना चाहिए, ले किन अगर वे तन की बात करे तो इसे
कैश नही बल्कि मिलने वाले प्यार और सम्मान से जोडती हँ ।ू
मे री माँ  ही मे रे लिए प्रेरणा रही है और मु झे लगता है दुनिया की सभी माएं अपने बच्चे के
लिए त्याग करती है इसीलिए अगर किसी भी प्रोफेशन को अधिक वे तन और प्यार और
सम्मान मिलना चाहिए तो वो माँ होनी चाहिए।
इसी सवाल के जवाब से मानु षी छिल्लर जी को मिस वर्ल्ड का ख़िताब मिला और उन्होंने ये
ख़िताब ले कर भारत के नाम को एक बार फिर से रोशन कर दिया है ।

Source: www.1hindi.com

कैसे 21 वर्ष के यु वा ने बनाई 360 करोड़ की कं पनी – Startup Story of Ritesh


Agarwal : Founder Oyo Rooms

क्या आप यह विश्वास कर सकते हैं कि ऐसी उम्र जब हम और आप खु द को पूरी जिं दगी


के लिए तै यार करते है या जब हम सब कड़ाके की ठं ड में रजाई में दुबके रहते हैं और जब
बरसात के दिनों में नम हवा अलसाकर हमारे दिमाग पर नशे की तरह छा रही होती हैं ,
जीवन के ऐसे नाजु क पड़ाव पर किसी यु वा ने आँ खों में स्वयं कुछ बड़ा करने के सपने लिए
रोज 16 घं टे काम कर 360 करोड़ से भी ज्यादा की कंपनी की नींव रख दी हो?

ऐसा कर दिखाया है उड़ीसा के रीतेश अग्रवाल (Ritesh Agarwal) ने ; जिन्होंने 20 वर्ष


की कम उम्र में  Oyo Rooms नाम की कंपनी की शु रूआत कर बड़े -बड़े अनु भवी
उद्यमियों और निवे शकों को भी आश्चर्यचकित कर दिया। ओयो रूम्स का मु ख्य उद्दे श्य
ट् रैवलर्स को सस्ते दामों पर बे हतरीन मूलभूत सु विधाओं के साथ दे श के बड़े शहरों के
होटलों में कमरा उपलब्ध कराना हैं ।

व्यक्तिगत तौर पर, रीते श सामान्य बु द्धी वाले यु वा हैं । दिखने में पतले , लं बे और बिखरे
बालों वाले बिल्कुल किसी कॉले ज के आम विद्यार्थी की तरह। ले किन कभी-कभी सामान्य
से दिखने वाले लोग भी ऐसे काम कर जाते है जिसकी आपको उम्मीद नहीं होती। रीते श भी
एक ऐसे ही यु वा उद्यमी है । जिन्होंने मात्र 21 साल कि छोटी सी उम्र में अपने अनु भव,
सही अवसर को पहचानने की क्षमता और मे हनत के बल पर अपने विचारों को वास्तविकता
का रूप दे दिया।

रीते श अग्रवाल ने बिजने स के बारे में सोचने और समझने का काम कम उम्र में ही शु रू
कर दिया था| इसमें सबसे बड़ी भूमिका उनके पारिवारीक पृ ष्ठभूमि की थी। उनका जन्म 16
नवम्बर 1993 को उड़ीसा राज्य के जिले कटक बीसाम के एक व्यवसायिक परिवार में हुआ
है । बारहवीं तक कि पढ़ाई उन्होंने जिले के ही – Scared Heart School में की। इसके बाद
उनकी इच्छा IIT में दाखिले की हुई। जिसकी तै यारी के लिए वे राजस्थान के कोटा आ गए।
कोटा में उनके बस दो ही काम थे - एक पढ़ना और दस ू रा, जब भी अवकाश मिले खूब ट् रैवल
करना। यही से उनकी रूची ट् रैवलिं ग में बढ़ने लगी। कोटा में ही उन्होंने एक किताब लिखी
– Indian Engineering Collages: A complete Encyclopedia of Top 100
Engineering Collages और जै सा कि पु स्तक के नाम से ही लग रहा है , यह पु स्तक दे श
के 100 सबसे प्रतिष्ठीत इं जनीयरिं ग कॉले जों के बारे में थी। इस किताब को दे श की सबसे
प्रसिद्ध ई-कमर्स साईट् Flipkart पर बहुत पसं द किया गया।

16 वर्ष की उम्र में उनका चु नाव मुं बई स्थित Tata Institute of Fundamental
Research (TIRF) में आयोजित, Asian Science Camp के लिए किया गया। यह कैम्प
एक वार्षिक सं वाद मं च है जहां ऐशियाई मूल के छात्र शामिल किसी क्षे तर् विशे ष की
समस्याओं पर विचार-विमर्श कर विज्ञान और तकनीक की मदद से उसका हल ढूढ़ा करते हैं ।
यहां भी वे छुट् टी के दिनों में खूब ट् रैवल किया करते और ठहरने के लिए सस्तें दामों पर
उपलब्ध होटल्स (Budget Hotels) का प्रयोग करते । पहले से ही रीते श की रूची बिज़ने स
में बहुत थी और इस क्षे तर् में वे कुछ करना चाहते थे । ले किन बिज़ने स किस चीज का किया
जाए, इस बात को ले कर वे स्पष्ट नहीं थे ।

कई बार वे कोटा से ट् रेन पकड़ दिल्ली आ जाया करते और मुं बई की ही तरह सस्तें होटल्स
में रूकते ताकि दिल्ली में होने वाले यु वा-उद्यमियों के आयोजनों और सम्मे लनों में शामिल
होकर नए यु वा उद्यमियों और स्टार्ट-अप फाउं डर्स से मिल सके। कई बार इन इवे न्टस में
शामिल होने का रजिस्ट् रेशन शु ल्क इतना ज्यादा होता कि उनके लिए उसे दे पाना मु श्किल
हो जाता। इसलिए कभी-कभी वो इन आयोजनों में चोरी-चु पके जा बै ठते ! यही वो वक्त था,
जब उन्होंने ट् रैवलिं ग के दौरान ठहरने के लिए प्रयोग किए गए सस्तें होटल्स के बु रे
अनु भवों को अपने बिज़ने स का रूप दे ने की सोची।
वर्ष 2012 में उन्होंने अपने पहले स्टार्ट-अप – Oravel Stays की शु रूआत की। इस कंपनी
का उद्दे श्य ट् रैवलर्स को छोटी या मध्य अवधि के लिए कम दामों पर कमरों को उपलब्ध
करवाना था। जिसे कोई भी आसानी से ऑनलाइन आरक्षित कर सकता था। कंपनी के शु रू
होने के कुछ ही महीनों के अं दर उन्हें नए स्टार्टपस में निवे श करने वाली कंपनी
VentureNursery से 30 लाख का फंड भी प्राप्त हो गया। अब रिते श के पास अपनी
कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए प्रर्याप्त पै से थे । उसी समय-अं तराल में उन्होंने अपने इस
बिजने स आईडिया को Theil Fellowship, जो कि पे पल कंपनी के सह-सं स्थापक – पीटर
थे ल के “थे ल फाउनडे शन” द्वारा आयोजित एक वै श्विक प्रतियोगिता है के समक्ष रखा।
सौभाग्यवश वे इस प्रतियोगिता में दसवां स्थान प्राप्त करने में सफल रहे और उन्हें
फेलोशिप के रूप में लगभग 66 लाख की धनराशि प्राप्त हुई।

बहुत ही कम समय में उनके नये स्टार्टप को मिली इन सफलताओं से वे काफी उत्साहित
हुए और वे अपने स्टार्ट-अप पर और बारीकी व सावधानी से काम करने लगे । ले किन पता
नहीं क्यों उनका ये बिजने स मॉडल आपे क्षित लाभ दे ने में असफल रहा और “ओरावे ल स्टे ”
धीरे -धीरे घाटे में चला गया। वे परिस्थिति को जितना सु धारने का प्रयास करते , स्थिती और
खराब होती जाती और अं त में उन्हें इस कंपनी को अस्थायी रूप से बं द करना पड़ा।

जब Oravel Stays बन गया Oyo Rooms

रीते श अपने स्टार्ट-अप के असफल होने से निराश नहीं हुए और उन्होंने दुबारा स्वयं द्वारा
अपनाई गई योजना पर विचार करने कि सोची ताकि इसकी कमियों को दरू किया जा सके।

इससे उन्हें यह अनु भव हुआ कि भारत में सस्ते होटल्स में कमरे मिलना या न मिलना कोई
समस्या नहीं हैं , दरअसल कमी है होटल्स का कम पै से में बे हतरीन मूलभूल सु विधाओं को
प्रदान न कर पाना। विचार करते हुए उन्हें अपनी यात्राओं के दौरान बज़ट होटल्स में
ठहरने के उन अनु भवों को भी याद किया जब उन्हें कभी-कभी बहुत ज्यादा पै से दे ने के बाद
भी गं दे और बदबूदार कमरें मिलते और कभी-कभी कम पै सों में ही आरामदायक और
सु विधापूर्ण कमरे मिल जाते ।

इन्हीं बातों ने उन्हें फिर प्रेरित किया कि वे पु नः Oravel Stays में नये बदलाव करे एवं
ट् रैवलर्स की सु विधाओं को ध्यान में रख उसे नये रूप में प्रस्तु त करें और फिर क्या था वर्ष
2013 में फिर ओरावे ल लॉन्च हुआ ले किन इस बार बिल्कुल नये नाम और मकसद के साथ।
अब ओरावे ल का नया नाम Oyo Rooms (ओयो रूम्स) था। जिसका मतलब होता है
“आपके अपने कमरे ”। ओयो रूम्स का उद्दे श्य अब सिर्फ ट् रैवलर्स को किसी होटल में कमरा
मु हैया कराना भर नहीं रह गया। अब वह होटल के कमरों की और वहां मिलने वाली
मूलभूत सु विधाओं की गु णवता का भी ख्याल रखने लगे और इसके लिए कंपनी ने कुछ
मानकों को भी निर्धारित किया। अब जो भी होटल ओयो रूम्स के साथ जु ड़ अपनी से वाएं
दे ना चाहता है । उसे सबसे पहले कंपनी से सं पर्क करना होता है । इसके पश्चात कंपनी के
कर्मचारी उस होटल में जा वहां के कमरों और अन्य सु विधाओं का निरीक्षण करते है । अगर
वह होटल ओयो के सभी मानकों पर खरा उतरता है तभी वह ओयो के साथ जु ड़ सकता है ,
अन्यथा नहीं।

सफलता के कदम – Success of Ritesh Agarwal

इस बार रीते श पहले की गलतियों को दुहराना नहीं चाहते थे । इसलिए उन्होंने एक बिजने स
फर्म – SeventyMM के सीईओ भावना अग्रवाल से मिल बिजने स की बारिकियों को
बे हतरीन ढ़ं ग से जानने का प्रयास किया। इन सलाहों ने आगे चलकर उन्हें कंपनी के लिए
अच्छे निर्णय ले ने में काफी मदद की। प्रारम्भ में ओयो रूम्स को लगातार ग्राहक मिलते
रहे इसलिए उन्होंने लगभग दर्जन भर होटलों के साथ समझौता कर लिया।

इस बार रीते श की मे हनत रं ग लाई और सबकुछ वै सा ही हुआ जै सा वे चाहते थे ।


किफायती दामों पर बे हतरीन सु विधाओं के साथ ट् रैवलर्स को यह से वा बहुत पसं द आने
लगी। धीरे -धीरे ग्राहकों कि मां गो को पूरा करने के लिए कंपनी में कर्मचारियों की सं ख्या 2
से 15, 15 से 25 कर दी गई। वर्तमान में ओयो में कर्मचारियों की सं ख्या 1500 से भी
ज्यादा हैं ।

कंपनी के स्थापित होने के एक वर्ष बाद, 2014 में ही दो बड़ी कंपनियों Lightspeed
Venture Partners (LSVP) एवं DSG Consumer Partners ने Oyo Rooms में 4
करोड़ रूपये का निवे श किया। वर्तमान वर्ष 2016 में , जापान की बहुराष्ट् रीय कंपनी
Softbank ने भी 7 अरब रूपयें का निवे श किया है । जो कि एक नई कंपनी के लिए बहुत
बड़ी उपलब्धी है ।

वह बात जिसने रीते श अग्रवाल को कंपनी को और आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है ,
वह है - हर महीने ग्राहकों द्वारा 1 करोड़ रूपये से भी ज्यादा की जाने वाली बु किंग।

आज मात्र 2 वर्षों में Oyo Rooms 15000 से भी ज्यादा होटलो की श्रख ृं ला (1000000
कमरों) के साथ दे श की सबसे बड़ी आरामदे ह एवं सस्ते दामों पर लागों को कमरा उपलब्ध
कराने वाली कंपनी बन चु की है । रीते श अग्रवाल की यह कंपनी भारत के शीर्ष स्टार्ट-अप
कंपनियों में से एक हैं । इसी वर्ष कंपनी ने मले शिया में भी अपनी से वाएं दे ना प्रारम्भ कर
दिया है और आने वाले समय में अन्य दे शों में भी अपनी पहुँच बनाने जा रही है ।

इसी माह (2 July, 2016), प्रतिष्ठीत अं तराष्ट् रीय मै गज़ीन GQ  (Gentlemen’s


Quarterly) ने रिते श अग्रवाल को 50 Most Influential Young Indians: Innovators
की सूची में शामिल किया है । इस सूची में उन यु वा इनोवे टर्स को शामिल किया जाता है जो
अपनी नई सोच व विचारों से लोगों की जिं दगी को आसान बनाते है ।

Source: https://happyhindi.com/
कैसे एक भिखारी ने खड़ी की करोड़ों की कं पनी – Renuka Aradhya Rags to Riches
Story In Hindi

यह एक ऐसे इंसान की कहानी है , जो अपनी मे हनत और लगन के बलबूते एक भिखारी से


करोड़पति बन गया| जहाँ कभी वह घर-घर जाकर भीख माँगा करता था, आज न केवल
उसकी कं पनी का टर्नओवर 30 करोड़ रुपए है  बल्कि उसकी कं पनी की वजह से 150 अन्य
घरों में भी चूल्हा जलता है |

हम बात कर रहे हैं रे णु का अराध्य की, जिनकी उम्र अब 50 वर्ष की हो गयी है | उनकी
जिं दगी की शु रुआत हुई बें गालु रू के निकट अने काल तालु क के गोपासन्द्र  गाँ व से | उनके
पिता एक छोटे से स्थानीय मं दिर के पु जारी थे , जो अपने परिवार की जीविका के लिए दान-
पूण्य से मिले पै सों पर से चलाते थे | दान-पु ण्य के पै सों से उनका घर नहीं चल पाता था
इसलिए वे आस-पास गाँ वों में जा-जाकर भिक्षा में अनाज माँ ग कर लाते | फिर उसी अनाज
को बाज़ार में बे चकर जो पै से मिलते उससे जै से-तै से अपने परिवार का पालन-पोषण करते |

रे णु का भी भिक्षा माँ गने में अपने पिता की मदद करते | पर परिवार की हालात यहाँ तक
खराब हो गई कि छठी कक्षा के बाद एक पु जारी होने के नाते रोज पूजा-पाठ करने के बाद
भी उन्हें कई घरों में जाकर नौकर का भी काम करना पड़ता|

जल्दी ही उनके पिता ने उन्हें चिकपे ट के एक आश्रम में डाल दिया, जहाँ उन्हें वे द और
सं स्कृत की पढ़ाई करनी पड़ती थी और सिर्फ दो वक्त ही भोजन मिलता था – एक सु बह 8
बजे और एक रात को 8 बजे | इससे वो भूखे ही रह जाते और पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते |
पे ट भरने के लिए वो पूजा, शादी और समाराहों में जाना चाहते थे , जिसके लिए उन्हें अपने
सीनियर्स के व्यतिगत कामों को भी करना पड़ता| परिणामस्वरूप, वो दसवीं की परीक्षा में
फ़ैल हो गए।
फिर उनके पिता के दे हांत और बड़े भाई के घर छोड़ दे ने से , अपनी माँ और बहन की
जिम्मे दारी उनके कन्धों पर आ गई| पर उन्होंने यह दिखा दिया कि मु सीबत की घडी में भी
वे अपनी जिम्मे दारियों से मु ह नहीं मोड़ते |

और इसी के साथ वे निकल पड़े आजीविका कमाने की एक बहुत लंबी लड़ाई पर| जिसमें
उन्हें कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा,  अपनी निराशाओं से जूझना पड़ा और धक्के पर
धक्के खाने पड़े |

इस राह पर न जाने उन्हें कैसे -कैसे काम करने पड़े जै से, प्लास्टिक बनाने के कारखाने में और
श्याम सु न्दर ट् रेडिंग कंपनी में एक मजदरू की है सियत से , सिर्फ 600 रु के लिए एक
सिक्योरिटी गार्ड के रूप में , सिर्फ 15 रूपये प्रति पे ड़ के लिए नारियल के पे ड़ पर चढ़ने
वाले एक माली के रूप में |

पर उनकी कुछ बे हतर कर गु जरने की ललक ने कभी उनका साथ नहीं छोड़ा और इसलिए
उन्होंने कई बार कुछ खु द का करने का भी सोचा| एक बार उन्होंने घर-घर जाकर बै गों और
सूटकेसों के कवर सिलने का काम शु रू किया, जिसमें उन्हें 30,000 रुपयों का घाटा हुआ|

उनके जीवन ने तब जाकर एक करवट ली जब उन्होंने सब कुछ छोड़कर एक ड्राइवर बनने


का फैसला लिया| पर उनके पास ड्राइवरी सिखने के भी पैसे नहीं थे , इसलिए उन्होंने कुछ
उधार ले कर और अपने शादी को अंगठू ी को गिरवी रखकर ड्राइविंग लाइसें स प्राप्त किया|

इसके बाद उन्हें लगा की अब सब ठीक हो जाएगा, पर किस्मत ने उन्हें एक और झटका


दिया जब गाड़ी में धक्का लगा दे ने की वजह से उन्हें अपनी पहली ड्राइवर की नौकरी से
कुछ ही घं टों में हाथ धोना पड़ा|

पर एक सज्जन टै क्सी ऑपरे टर ने उन्हें एक मौक़ा दिया और बदले में रे णु का ने बिना पै से के


ही उनके लिए गाड़ी चलाई, ताकि वो खु द को साबित कर सके| वे दिन भर काम करते और
रात-रात भर जागकर गाड़ी को चलाने का अभ्यास करते | उन्होंने ठान लिया कि,

“चाहे जो हो जाए, मैं इस बार वापस सिक्योरिटी गार्ड का काम नहीं करूँगा और एक


अच्छा ड्राइवर बन कर रहूग
ँ ा”

वो अपने यात्रियों का हमे शा ही ध्यान रखते , जिससे उन पर लोगों का विश्वास जमता


गया और ड्राइवर के रूप में उनकी माँ ग बढ़ती ही गई| वे यात्रियों के अलावा हॉस्पिटल
से लाशों को उनके घरों तक भी पहुँचाते थे | वे कहते हैं ,

“लाशों को घर तक पहुच
ँ ाने और उसके तुरंत बाद यात्रियों को तीर्थ ले जाने से मु झे एक
बहुत बड़ी सीख मिली की जीवन और मौत एक बहुत लंबी यात्रा के दो छोर ही तो हैं और
यदि आपको जीवन में सफल होना है तो किसी भी मौके को जाने न दें ”
पहले तो वे 4 वर्षों तक एक ट् रेवल कंपनी में काम करते रहे उसके बाद वे उस ट् रेवल
कमपनी को छोड़कर वे एक दस ू री ट् रेवल कंपनी में गए, जहाँ उन्हें विदे शी यात्रियों को
घु माने का मौक़ा मिला। विदे शी यात्रियों से उन्हें डॉलर में टिप मिलती थी| लगातार 4
वर्षों तक यूँ ही टिप अर्जित करते -करते और अपनी पत्नी के पीएफ की मदद से उन्होंने कुछ
अन्य लोगों के साथ मिलकर ‘सिटी सफारी’ नाम की एक कंपनी खोली| इसी कंपनी में आगे
जाकर वे मै नेजर बने |

उनकी जगह कोई और होता तो शायद इतने पर ही सं तुष्ट हो जाता, पर उन्हें अपनी
सीमाओं को परखने को परखने की ठान रखी थी| इसलिए उन्होनें लोन पर एक ‘इं डिका” कार
ली, जिसके सिर्फ डे ढ़ वर्ष बाद एक और कार ली|

रे णु का और उनकी पत्नी, जब आराध्य ने अपनी पहली कार खरीदी

इन कारों की मदद से उन्होंने 2 वर्षों तक ‘स्पॉट सिटी टै क्सी’ में काम किया| पर उन्होंने
सोचा

“अभी मेरी मंजिल दूर है और मु झे खुद की एक ट्रेवल/ट्रांसपोर्ट कं पनी बनानी है ”

कहते हैं न की किस्मत भी हिम्मतवालों का ही साथ दे ती है | ऐसा ही कुछ रे णु का साथ हुआ


जब उन्हें यह पता चला कि ‘इं डियन सिटी टै क्सी’ नाम की एक कंपनी बिकने वाली है | सन
2006 में उन्होंने उस कंपनी को 6,50,000 रुपयों में खरीद ली, जिसके लिए उन्हें अपने
सभी कारों को बे चना पड़ा| उन्हीं के शब्दों में ,

“मैं ने अपने जीवन का सबसे बड़ा जोखिम लिया, पर वही जोखिम आज मु झे कहाँ से कहाँ
ले कर आ गया”

 उन्होंने अपनी उस कंपनी का नाम बदलकर ‘प्रवासी कैब्स’ रख दिया| उनके बाद वे
सफलता की और आगे बढ़ते गए| सबसे पहले  ‘अमे ज़न इं डिया’ ने प्रमोशन के लिए रे णु का
की कंपनी को चु ना| उसके बाद रे णु का ने अपनी  कंपनी को आगे बढ़ाने में जी-जान लगा
दिया| धीरे -धीरे उनके कई और नामी-गिरामी ग्राहक बन गए, जै से वालमार्ट, अकामाई,
जनरल मोटर्स, आदि|

इसके बाद उन्होंने कभी पीछे पलट कर नहीं दे खा और सफलता की ओर उनके कदम बढ़ते
ही गए| पर उन्होंने कभी भी सीखना बं द नहीं किया| उनकी कंपनी इतनी मजबूत हो गई कि
जहाँ कई और टै क्सी कंपनियाँ ‘ओला’ और ‘उबे र’ के आने से बं द हो गई, उनकी कंपनी फिर
भी सफलता की ओर आगे बढ़ रही है | आज उनकी कंपनी की 1000 से ज्यादा कारें चलती
है |

आज वे तीन स्टार्टअप के डायरे क्टर हैं और तीन वर्षों में उनका 100 करोड़ के आँ कड़े को
छनू े की उम्मीद है , जिसके बाद वो आईपीओ की ओर आगे बढ़ें गे |
कौन सोच सकता था कि बचपन में घर-घर जाकर अनाज मांगने वाला लड़का जो 10 वीं
कक्षा में फ़ैल हो गया था और जिसके पास खुद का एक रूपया नहीं था वह आज 30 करोड़
की कं पनी का मालिक है | 

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