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हमारा शरीर अनन्त रहस्यों से भरा हुआ है । शरीर को स्वस्थ बनाए रखने की शक्ति शरीर में निहित है । बस

जरूरत है उसे जानकर अभ्यास करने की। शरीर पंचतत्वों-पृ थ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर बना
है । जब तक शरीर में ये तत्व संतुलित रहते हैं , तब तक शरीर निरोगी रहता है । यदि इन तत्वों में असंतुलन हो
जाए तो नानाप्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं । इन तत्वों को हम यदि पुन: संतुलित कर दें तो शरीर निरोगी हो
जाता है ।
(टे क्स्ट योगाचार्य डॉ. सुरक्षित गोस्वामी)हस्तमुद ्रा चिकित्सा के अनुसार हाथ की पांचों अंगुलियां पांचों तत्वों
का प्रतिनिधित्व करती है और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के माध्यम से इन तत्वों को बल दे ती रहती है । अंगठ ू े में अग्नि
तत्व, तर्जनी में वायु तत्व, मध्यमा में आकाश तत्व, अनामिका में पृ थ्वी तत्व व कनिष्ठा में जल तत्व की ऊर्जा
का केन्द्र है । इस प्रकार अंगुलियों को आपस में मिलाकर मुद ्राओं को बनाया जाता है । हमारे ऋषियों ने इस
रहस्य को साधना के द्वारा जाना और इसका प्रचार-प्रसार किया जिसके प्रतिदिन अभ्यास से व्यक्ति रोगमु क्त
होकर स्वस्थ रह सके।ये अद्भुत मुद ्राएं करते ही अपना असर दिखाना शु रू कर दे ती हैं । पद्मासन,
स्वस्तिकासन, सुखासन, वज्रासन में करने से जिस रोग के लिए जो मुद ्रा वर्णित है उसको इस भाव से करें कि
मेरा रोग ठीक हो रहा है , तब ये मु द ्राएं शीघ्रता से रोग को दूर करने में लग जाती हैं । बिना भाव के लाभ
अधिक नहीं मिल पाता। दिन में 20-30 मिनट तक एक मु द ्रा को किया जाए तो पूरा लाभ प्राप्त हो जाता है ।
एक बार में न हो सके तो दो-तीन बार में कर लें । किसी भी मु द ्रा में जिन अंगुलियों का प्रयोग नहीं करते उन्हें
सीधा करके रख ले ते हैं और हथे ली को थोड़ा टाइट रखते हैं । यों तो मु द ्राओं की संख्या अने क है , किन्तु यहां
हम आपको कुछ उपयोगी मु द ्राओं के बारे में बता रहे हैं -
Ling

विधि: दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में फं साकर बांधकर बाएं हाथ के अंगठ
ू े को खड़ा रखें । 
लाभ: सर्दी, जु काम, खांसी, साइनुसाइटिस, अस्थमा, निमन् रक्तचाप को दूर कर शरीर की गर्मी को बढ़ा दे ती
है , कफ को सुखाने का कार्य करती है ।
नोटः आवश्यकता होने पर ही करें , अनावश्यक न करें ।

Hraday
विधि: यह मुद ्रा तर्जनी अंगुली को अंगठू े के मूल में लगाकर मध्यमा व अनामिका अंगुलियों को अंगठ
ू े के
अग्रभाग पर लगाकर छोटी अंगुली को सीधा करके बनती है ।
लाभ: हृदय रोगों में विशे ष रूप से लाभकारी है । प्रतिदिन 10-15 मिनट इसके अभ्यास से हृदय मजबूत होता
है , दिल का दौरा पड़ते ही इसको करने से आराम मिलता है , गैस बनना, सिरदर्द, अस्थमा व उच्च रक्तचाप में
लाभकारी है । सीढि़यों पर चढ़ने से पहले ही अगर इसको लगाकर चढ़ा जाए तो सांस नहीं फू लती।

Apan
विधि: मध्यमा तथा अनामिका अंगुलियों को अंगठ ू े के अग्रभाग से लगाकर बाकी अंगुलियों को सीधी रखें ।
लाभ: कब्ज, मधुमेह, किडनी विकार, वायु विकार, बवासीर को दूर करती है , शरीर को शु द्ध कर नाड़ी दोषों को
दूर कर दे ती है , मूतर् का अवरोध दूर कर दांतों को मजबूत करती है , पसीना भी लाती है ।
नोट: यह मुद ्रा मूतर् अधिक लाती है ।

Pran
विधि: अनामिका तथा कनिष्ठा अंगुलियों को अंगठ ू े के अग्रभाग पर लगाकर बाकी दोनों अंगुलियों को सीधा
रखें ।
लाभ: मन को शान्त कर शरीर की दुर्बलता को दूर करती है , रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ा दे ती है , ने तर्
ज्योति बढ़ाती है , थकान दूर कर शरीर में तरोताजगी दे ती है , त्वचा व आंखों को निर्मल बना दे ती है , विटामिन
की कमी को दूर करती है ।

Surya
Surya

विधि: अनामिका अंगुली को अंगठ ू े के मूल में लगाकर अंगठ


ू े से दबाकर बाकी अगु लियों को सीधा करके रखें ।
लाभ: मोटापा कम करती है , वजन को घटाने वाली है , शरीर में उष्णता बढ़ाती है , शक्ति का विकास करती है ,
कोले स्ट्राल का बढ़ना, मधुमेह व लीवर के रोग में लाभ पहुच ं ाती है , शरीर को संतुलित बना दे ती है ।
नोट: कमजोर व्यक्ति इसका अभ्यास न करें । गर्मी में भी ज्यादा न करें ।

Sunya
विधि: मध्यमा अंगुली को मोड़कर अंगठ
ू े के मूल में लगाकर अंगठ
ू े से दबाएं व बाकी अंगुलियां सीधी रखें ।
लाभ: गले के रोग व थाइराइड में लाभकारी है , दांत मजबूत होते हैं , कर्ण रोगों में लाभकारी है ।

Vayu
विधि: तर्जनी अंगुली को मोड़कर अंगठ ू े के मूल में लगाकर हल्का सा दबाएं। बाकी अंगुलियां सीधी रहें गी।
लाभ: वात रोगों में विशे ष लाभकारी है । प्रकुपित वायु को शान्त कर दे ती है , साइटिका, कमर दर्द, गर्दन दर्द,
पारकिं सन, गठिया, लकवा, जोड़ों का दर्द, घु टने का दर्द दूर करती है ।

Varun
विधि: कनिष्ठा अंगुली को अंगठ ू े के अग्रभाग पर लगाकर बाकी अंगुलियों को सीधा रखने से बनती है ।
लाभ: चर्मरोग, रक्त विकार दूर करती है , शरीर में रूखापन दूर कर त्वचा को चमकीली व मुलायम बनाती है ,
चे हरे की सु न्दरता को बढ़ा दे ती है ।
नोट: कफ प्रकृति वाले व्यक्ति इसका अभ्यास ज्यादा न करें ।

Prithvi
विधि: अनामिका अंगुली को अंगठ ू े के अग्रभाग से लगाकर बाकी अंगुलियां सीधी रखें ।
लाभ: दुबर्लता को दूर कर वजन को बढ़ाती है , शरीर में स्फू र्ति, कान्ति एवं तेज बढ़ाकर जीवनी शक्ति का विकास
करती है , पाचन तन्त्र स्वस्थ बनाती है ।

Gyan
विधि: अंगठ ू े को तर्जनी अंगुली के सिरे पर लगाएं व बाकी तीनों अंगुलियाँ सीधी रहें गी।

लाभ: मस्तिष्क के स्नायु को बल दे कर यह स्मरण शक्ति, एकाग्रता शक्ति, संकल्प शक्ति को बढ़ाती है , बुदधि
का विकास करती है , पढ़ाई में मन लगने लगता है , सिर दर्द व नींद न आना दूर होता है , मन की चंचलता दूर
होकर क् रोध, चिड़चिड़ापन, तनाव, चिंता को दूर कर व्यक्ति को आध्यात्मिक बना दे ती है ।
नोट: सात्विक भोजन करने से शीघ्रता से लाभ दे ती है ।

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