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लेखक य - िज दगी और िज दगी से परे के अनेक रह यमय पहलू अपने आप म समेटे

हये ये ल बी कहानी (लघु उप यास) दरअसल अपने रह यमय कथानक क भांित ही,
अपने पीछे भी कह अ ात म, कहानी के अित र , एक और ऐसा सच िलये हये है ।
जो इसी कहानी क भािं त ही अ य त रह यमय है ?
य िक यह कहानी िसफ़ एक कहानी न होकर उन सभी घटनाकृम का एक माकूल
जबाब था । नाटक का अ त था और पटा ेप था । िजसके बारे म िसफ़ िगने चनु े लोग
जानते थे । और वो भी य का य नह जानते थे ।
खैर..कहानी क शैली थोङी अलग, िविच सी, िदमाग घमु ाने वाली, उलझा कर रख
देने वाली है, और सबसे बङी खास बात ये है िक भले ही आप घोर उ सक ु ता वश
ज दी से कहानी का अ त पहले पढ़ ल । म य, या बीच बीच म कह भी पढ़ ल । जब
तक आप परू ी कहानी को गहराई से समझ कर शु से अ त तक नही पढ़ लेते ।
कहानी समझ ही नह सकते ।
और जैसा िक मेरे सभी लेखन म होता है िक वे सामा य दिु नयावी लेखन क तरह न
होकर िविश िवषय और िवशेष साम ी िलये होते ह ।
- राजीव कुल े ।
आगरा
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कामवासना
(एक अजीब और रह यमय कथानक)

उस िदन मौसम अपे ाकृत शा त था ।


आकाश म घने काले बादल छाये हये थे । िजनक वजह से सरु मई अधं ेरा सा फ़ै ल
चक ु ा था और दोपहर चार बजे से ही गहराती शाम का आभास हो रहा था । उस
एका त वीराने थान पर एक अजीब सी डरावनी खामोशी छायी हयी थी । िकसी सोच
िवचार म मगन चपु चाप खङे वृ भी िकसी रह यमय ेत क भािं त मालमू होते थे ।
िनितन ने एक िसगरे ट सल ु गाई और वह वृ क जङ के पास मोटे तने से िटक कर
बैठ गया ।
िसगरे ट ! एक अजीब चीज, अके लेपन क बेहतर साथी, िदलोिदमाग को सक ु ू न देने
वाली ।
एक सु दर समिपत ेिमका सी, जो अ त तक सल ु गती हयी ेमी को उसके होठ से
िचपक सख ु देती है ।
उसने ह का सा कश लगाया और उदास िनगाह से सामने देखा । जहाँ टेङी मेङी
अजीब से बलखाती हयी नदी उससे कुछ ही दरू ी पर बह रही थी ।
- कभी कभी िकतना अजीब लगता है सब कुछ । उसने सोचा - िज दगी भी या ठीक
ऐसी ही नह है, जैसा य अभी है । टेङी मेङी होकर बहती, उ े य रिहत िज दगी ।
दिु नयाँ के कोलाहल म भी छुपा अजीब सा स नाटा, ेत जैसा जीवन । इसं ान का
जीवन और ेत का जीवन समान ही है । दोन ही अतृ , बस तलाश है वासना तिृ
क।
- उ फ़ोह ! ये लङका भी अजीब ही है । उसके कान म दरू माँ क आवाज गँजू ी -
िफ़र से अके ले म बैठा बैठा या सोच रहा है ? इतना बङा हो गया पर समझ म नह
आता, ये िकस समझ का है । आिखर या सोचता रहता है इस तरह ।
- या सोचता है इस तरह ? उसने िफ़र से सोचा - उसे खदु ही समझ म नह आता, वह
या सोचता है, य सोचता है, या कुछ भी नह सोचता है । िजसे लोग सोचना कहते
ह, वह शायद उसके अ दर है ही नह , वह तो जैसा भी है, है ।
उसने एक नजर पास ही खङे कूटर पर डाली और छोटा सा कंकर उठाकर नदी क
ओर उछाल िदया ।
िनितन बी.ए. का छा था और म य देश के एक छोटे से शहर का रहने वाला था ।
उसके िपता शहर म ही म य तर के सरकारी अफ़सर और माँ साधारण सी घरे लू
मिहला थी । उसक एक बडी बहन थी, िजसक म य देश म ही दरू िकसी अ छे
गाँव म शादी हो चकु थी ।
िनितन का कद पाँच फ़ुट नौ इचं था और वह साधारण श ल सरू त वाला, सामा य से
पै ट शट पहनने वाला एक कसरती यवु ा था । उसके बाल का टायल साधारण और
वाहन के प म उसका अपना कूटर ही था ।
वह शु से ही अके ला और तनहाई पस द था । शायद इसीिलये उसक कभी कोई
ेिमका न रही, और न ही उसका कोई खास दो त ही था । दिु नयाँ के लोग क भीङ म
भी वह खदु को बेहद अके ला महससू करता, और हमेशा चपु और खोया खोया रहता
। यहाँ तक िक कामभाव भी उसे पश नही करता ।
तब इसी अके लेपन और ऐसी आदत ने उसे सोलह साल क उ म ही गु प से
त , म और योग क रह यमयी दिु नयाँ क तरफ़ धके ल िदया । लेिकन उसके
जीवन के इस पहलू को कोई नही जानता था । अतं मखी
ु वभाव का ये लङका
वभाव से िश और बेहद सरल था ।
उसे बस एक ही शौक था, कसरत करना ।
कसरत ! वह उठकर खङा हो गया । उसने ख म होती िसगरे ट म आिखरी कश लगाया
और िसगरे ट को दरू उछाल िदया ।
कूटर क तरफ़ बढ़ते ही उसक िनगाह साइड म कुछ दरू खङे बङे पीपल पर गयी
और वह हैरानी से उस तरफ़ देखने लगा ।
कोई नवयवु क पीपल क जङ से दीपक जला रहा था ।
उसने घङी पर िनगाह डाली । ठीक छह बज चक ु े थे ।
अधं ेरा तेजी से बढ़ता जा रहा था ।
उसने एक पल के िलये कुछ सोचा िफ़र तेजी से उधर ही जाने लगा ।
- या बताऊँ दो त ? वह ग भीरता से दरू तक देखता हआ बोला - शायद तमु कुछ न
समझोगे, ये बङी अजीब कहानी ही है । भतू ेत जैसी कोई चीज या होती है ? तमु
कहोगे, िबलकुल नह । म भी कहता हँ, िबलकुल नह । लेिकन कहने से या हो
जाता है, िफ़र या भतू ेत नह ही होते ।
- ये दीपक ? िनितन हैरानी से बोला - ये दीपक, आप यहाँ य ..मतलब ?
- मेरा नाम मनोज है । लङके ने एक िनगाह दीपक पर डाली - मनोज पालीवाल । ये
दीपक य ? दरअसल मझु े खदु पता नह , ये दीपक य ? इस पीपल के नीचे ये
दीपक जलाने से या हो सकता है । मेरी समझ के बाहर है, लेिकन िफ़र भी जलाता हँ

- पर कोई तो वजह ..वजह ? िनितन िहचकता हआ सा बोला - जब आप ही..आप ही
तो जलाते ह ।
- बङे भाई ! वह गहरी सांस लेकर बोला - मझु े एक बात बताओ । घङे म ऊँट घसु
सकता है, नह ना । मगर कहावत है । जब अपना ऊँट खो जाता है, तो वह घङे म भी
खोजा जाता है । शायद इसका मतलब यही है िक सम या का जब कोई हल नजर नह
आता । तब हम वह काम भी करते ह, जो देखने सनु ने म हा या पद लगते ह । िजनका
कोई सरु ताल ही नह होता ।
उसने बङे अजीब भाव से एक उपेि त िनगाह दीपक पर डाली और यँू ही चपु चाप सनू े
मैदानी रा ते को देखने लगा । उस बढ़ू े परु ाने पीपल के प क अजीब सी रह यमय
सरसराहट उ ह सनु ाई दे रही थी । अधं रे ा फ़ै ल चक ु ा था और वे दोन एक दसू रे को
साये क तरह देख पा रहे थे । मरघट के पास का मैदान । उसके पास ेत थान यु ये
पीपल, और ये त दीप ।
िनितन के र गटे खङे होने लगे ।
तभी अचानक उसके बदन म एक तेज झरु झरु ी सी दौङ गयी । उसक सम त इि याँ
सजग हो उठी ।
वह मनोज के पीछे भािसत उस आकृित को देखने लगा । जो उस कािलमा म काली
छाया सी ही उसके पीछे खङी थी और मान उस त दीप का उपहास उङा रही थी ।
- मनसा जोगी ! वह मन म बोला - र ा कर । या मामला है, या होने वाला है ?
- कुछ..िसगरे ट वगैरह..। मनोज िहचिकचाता हआ सा बोला - रखते हो । वैसे अब
तक कब का चला जाता, पर तु हारी वजह से क गया । तमु ने दख ु ती रग को छे ङ
िदया । इसिलये कभी सोचता हँ, तु ह सब बता डालँू । िदल का बोझ कम होगा । पर
तरु त ही सोचता हँ । उसका या फ़ायदा, कुछ होने वाला नह है ।
- िकतना शा त होता है, ये मरघट । मनोज एक गहरा कश लगाकर िफ़र बोला - ओशो
कहते ह, दरअसल मरघट ठीक ब ती के बीच होना चािहये । िजससे आदमी अपने
अि तम प रणाम को हमेशा याद रख ।
मनोज को देने के बाद उसने भी एक िसगरे ट सल
ु गा ली और जमीन पर ही बैठ गया ।
लेिकन मनोज ने िसगरे ट को सादा नह िपया । उसने एक पिु ङया म से चरस िनकाला ।
उसने वह नशा िनितन को भी आफ़र िकया, लेिकन उसने शालीनता से मना कर िदया

तेल से लबालब भरे उस बङे िदये क पीली रोशनी म वे दोन शा त बैठे थे ।
िनितन ने एक िनगाह ऊपर पीपल क तरफ़ डाली और उ सक ु ता से उसके अगले
कदम क ती ा करने लगा ।
उसे हैरानी हो रही थी । वह काली अशरीरी छाया उन दोन से थोङा दरू ही शाि त से
बैठी थी और कभी कभी एक उङती िनगाह मरघट क तरफ़ डाल लेती थी । िनितन
क िज दगी म यह पहला वा ता था । जब उसे ऐसी कोई छाया नजर आ रही थी । रह
रहकर उसके शरीर म ेत क मौजदू गी के ल ण बन रहे थे । उसे वायु ह का पणू
अहसास हो रहा था और एकबारगी तो वह वहाँ से चला जाना ही चाहता था पर
िक ह अ य जजं ीर ने जैसे उसके पैर जकङ िदये थे ।
- मनसा जोगी ! वह ह का सा भयभीत हआ - र ा कर ।
मनोज पर चरसी िसगरे ट का नशा चढ़ने लगा । उसक आँख सख ु हो उठी ।
- ये िज दगी बङी अजीब है मेरे दो त । वह िकसी कथावाचक क तरह ग भीरता से
बोला - कब िकसको बना दे । कब िकसको उजाङ दे । कब िकसको मार दे । कब
िकसको िजला दे ।
- आपको । िनितन सरल वर म बोला - घर नह जाना, रात बढ़ती जा रही है । मेरे
पास कूटर है । म आपको छोङ देता हँ ।
- एक िसगरे ट.. और दोगे । वह ाथना सी करता हआ बोला - लीज बङे भाई ।
उसने बङे अजीब ढंग से िफ़र उस काली छाया को देखा और पैकेट ही उसे थमा िदया
। थोङी थोङी हवा चलने लगी थी और उससे िदये क लौ लपलपा उठती थी । मनोज
ने उसे जङ क आङ म कर िदया और दोबारा पिु ङया िनकाल ली ।
- बताऊँ । वह िफ़र से उसक तरफ़ देखता हआ बोला - या न बताऊँ ?
वह उसे िफ़र से िसगरे ट म चरस भरते हये देखता रहा । उसे इस बात पर हैरानी हो रही
थी िक जो ेतक उपि थित के अनभु व उसे हो रहे ह । या उसे नह हो रहे या िफ़र नशे
क वजह से वह उ ह महससू नह कर पा रहा या िफ़र अपने िकसी गम क वजह से
वह उसे महससू नह कर पा रहा ।
या.. उसके िदमाग म यकायक िव फ़ोट सा हआ । या वह ऐसे अनभु व का अ य त
तो नह है ।
उसक िनगाह तरु त त दीप पर गयी और वयं ही उस काली छाया पर गयी । छाया
जो िकसी औरत क थी और पीली मदु ार आँख से उन दोन को ही देख रही थी ।
एकाएक जैसे उसके िदमाग म सब त वीर साफ़ हो गयी । वह िनि त ही ेत वायु का
ल बा अ य त था । साधारण इसं ान िकसी हालत म इतनी देर ेत के पास नह ठहर
सकता था ।
- मेरा बस चले तो साली क माँ...। उसने भरपरू सु ा लगाया और घोर नफ़रत से
बोला -पर.. पर कोई सामने तो हो, कोई नजर तो आये । अ य को कै से या क ँ ।
बोलो, तमु बोलो । गलत कह रहा हँ म ।
- लेिकन मनोज जी ?
- बताता हँ सब बताता हँ, बङे भाई । जाने य अ दर से आवाज आ रही है तु ह सब
बताऊँ, जाने य । मेरे गाली बकने को गलत मत समझना । आदमी जब बेवश हो
जाता है तो िफ़र उसे और कुछ नह सझू ता, िसवाय गाली देने के ।
पदमा ने धल ु े कपङ से भरी बा टी उठाई और बाथ म से बाहर आ गयी । उसके बङे
से आंगन म धपू िखली हयी थी । वह फ़टकारते हये एक एक कपङे को तार पर डालने
लगी । उसक लट बार बार उसके चेहरे पर झल ू जाती थी िज ह वह नजाकत से पीछे
झटक देती थी ।
िववाह के चार साल म ही उसके यौवन म भरपरू िनखार आया था और उसका अगं
अगं िखल सा उठा था । अपने ही सौ दय को देखकर वह मु ध हो जाती और तब
उसक छाितय म एक अजीब सा रोमांच भर जाता ।
वाकई पु ष के हाथ म कोई जादू होता है, उसक समीपता म एक िविच उजा होती है
जो लङक क जवानी को फ़ूल क तरह से महका देती है ।
िववाह के बाद उसका शरीर तेजी से भरा था । उसके एकदम गोल उ नत तन और
अिधक िवकिसत हो गये और जैसे तंग अिं गया म कसमसाते रहते । ये सोचते ही
उसके चेहरे पर शम क लाली दौङ गयी । िकतने बेशम और लालची होते ह पु ष,
सब यह ताकते ह ।
बढ़ू ी हो या जवान, इ ह एक ही काम । इसके िलये शायद औरत कह भी सरु ि त नह
। शायद अपने ही घर म भी नह ।
मनोज ने एक गहरी सांस ली और उदास नजर से िनितन को देखा । उसक आँख
ह क ह क नम हो चली थी ।
- िनितन जी ! वह िफ़र से बोला - कै सा अजीब बनाया है ये दिु नयाँ का सामािजक
ढांचा, और कै सा अजीब बनाया है देवर भाभी का स ब ध । दरअसल..मेरे दो त, ये
समाज समाज नह , पाख डी लोग का समहू मा है । हम ऊपर से कुछ और बरताव
करते ह, हमारे अ दर कुछ और ही मचल रहा होता है ।
हम सब पाख डी ह, तमु , म और सब ।
मेरी भाभी ने मझु े माँ के समान यार िदया । म पु वत ही उसके सीने से िलपट जाता,
उसके ऊपर तक लेट जाता और कह भी छू लेता, य िक तब उस पश म
कामवासना नह थी । इसिलये मझु े कह भी छूने म िझझक नह थी और िफ़र वही
भाभी कुछ समय बाद मझु े एक ी नजर आने लगी, िसफ़ एक भरपरू जवान ी ।
तब मेरे अ दर का पु लगभग मर गया और उसक जगह िसफ़ पु ष बचा रह गया ।
अपनी भाभी के तन मझु े अ छे लगने लगे । चपु के चपु के उ ह देखना और िझझकते
हये छूने को जी ललचाने लगा । िजस भाभी को म कभी गोद म ऊँचा उठा लेता था ।
भाभी म नह , म नह .. कहते कहते उनके सीने से लग जाता, अब उसी भाभी को छूने
म एक अजीब सी िझझक होने लगी । इस कामवासना ने हमारे पिव माँ, बेटे जैसे
यार को ग दगी का क चङ सा लपेट िदया । लेिकन शायद ये बात िसफ़ मेरे अ दर ही
थी, भाभी के अ दर नह । उसे पता भी नह था िक मेरी िनगाह म या रस पैदा हो
गया ? तब तक तो म यही सोचता था ।
बा टी से कपङे िनकाल कर िनचोङती हयी पदमा क िनगाह अचानक सामने बैठे
मनोज पर गयी । िफ़र अपने लाउज पर गयी, उसका व आँचल रिहत था और
साङी का आँचल उसने कमर म ख स िलया था । अतः वह चोर नजर से उसके
लाउज से बाहर अध खल ु े गोरे सडु ौल उरोज को देख रहा था ।
- या गलती है इसक ? उसने सोचा - कुछ भी तो नह , ये होने जा रहा मद है । कौन
ऐसा साधु है जो यवु ा ी क नोक ली छाितय का दीवाना नह होता । बढ़ू ा, जवान,
ब चा, अधेङ, शादीशदु ा या िफ़र कंु वारा, भतू , ेत या देवता भी ।
सच तो ये है एक ी भी ी के तन को देखती है । वयं से तल ु ना मक या िफ़र
वासना मक भी । शायद ई र क कुछ खास रचना ह नारी तन । और एक पणू नारी
का सौ दय भी ह नारी तन ।
अतः उसने आँचल ठीक करने का कोई उपकृम नह िकया और सीधे तपाक से पछ ू ा-
सच बता, या देख रहा था ?
मनोज एकदम हङबङा गया, उसने झप कर मँहु फ़े र िलया । उसके चेहरे पर लािन के
भाव थे ।
पदमा ने आिखरी कपङा तार पर डाला और उसके पास ही चारपाई पर बैठ गयी ।
लेिकन उसने अपना आँचल य का य ही रखा ।
उसके मन म एक अजीब सा भाव था, शायद एक शा त जैसा ।
औरत ! पु ष क कामना, औरत । औरत..पु ष क वासना, औरत । औरत..पु ष क
भावना, औरत ।
िफ़र वह उसके ाकृितक भाव को कौन से नज रये से गलत समझे । उसक जगह
उसका कोई दरू दराज का चाचा, ताऊ भी िनि त ही उसके िलये यही आंत रक भाव
रखता । य िक वह एक स पणू लौिकक औरत थी ।
भांित भांित के कुदरती सु दर फ़ूल क तरह ही सिृ कता ने औरत को भी िवशेष सांचे
म ढालकर बनाया । जहाँ उसके अगं म मधरु रस भरा, वह उसके सौ दय म फ़ूल क
महक डाल दी । जहाँ उसके अगं म मादक सरु ा के पैमाने भर िदये । वह उसक
सादगी म एक शा त, धीर, ग भीर देवी नजर आयी ।
पदमा भी कुछ ऐसी ही थी । उसक बङी बङी काली आँख म एक अजीब सा
स मोहन था जो साधारण ि से देखने पर भी यौन आम ण सा मालमू होता था ।
पदिमनी ी कार क ये नाियका मान धरा के फ़लक पर कयामत बनकर उतरी थी ।
उसके लहराते ल बे रे शमी बाल उसके क ध पर फ़ै ले रहते थे । वह नये नये टायल
का जङू ा बनाने और इ लगाने क बेहद शौक न थी ।
उसक ल बाई पाँच फ़ ट आठ इचं थी । इसके बाद भी वह दो इचं ऊँची हील क
सडल पहनती और अपनी मदम त गजगािमनी चाल से पु ष के िदल म उथल पथु ल
मचा देती थी । उसके लचकते, मचकते मासं ल िनत ब क िथरकन क म पैर
लटकाये बढ़ू म जोश क तरंग पैदा करती थी ।
- मनोज ! वह स मोहनी आँख से देखती हयी बोली - तमु चोरी चोरी अभी या देख
रहे थे । डरो मत सच बताओ, म िकसी को बोलँगू ी नह , शायद मेरे तु हारे मन म एक
ही बात हो ।
- भाभी ! वह किठनता से बोला - आपने कभी िकसी से यार िकया है ?
- यार..हाँ िकया है । वह सहजता से सरल वर म बोली - हर लङका लङक
िकशोराव था म िकसी न िकसी िवपरीत िलंगी से यार करते ही ह । भले ही वो यार
एकतरफ़ा हो, दोतरफ़ा हो । सफ़ल हो, असफ़ल हो । मने भी अपने गाँव के एक लङके
जितन से यार िकया । पर वो ऐसा पागल िनकला । मझु प क रानी के यार क
परवाह न कर साधु हो गया ।
हाँ मनोज, उसका मानना था ई र से यार ही स चा यार है । बाक मेरी जैसी सु दर
रसीली रसभरी औरत तो जीती जागती माया है ।
माया ! उसने एक गहरी सासं ली ।
वह चपु ही रहा पर रह रहकर भाभी के सीने का आकषण उसे वह देखने को िववश
कर देता और पदमा उसे इसका भरपरू मौका दे रही थी । इसीिलये वह अपनी नजर
उससे िमलाने के बजाये इधर उधर कर लेती ।
- बस । कुछ देर बाद वह िफ़र से बोली - एक बार तमु िबलकुल सच बताओ, तमु
चोरी चोरी या देख रहे थे । िफ़र म भी तु ह कुछ बताऊँगी । शायद िजस सौ दय क
झलक मा से तमु बैचेन हो । वह स पणू सौ दय खल ु कर तु हारे सामने हो
य िक..कहते कहते वह क - म भी एक औरत हँ, और म अपने सौ दय ेमी को
अतृ नह रहने दे सकती, कभी नह ।
- नह । वह तेजी से बोला - ऐसा कुछ नह , ऐसा कुछ नह है भाभी माँ । म ऐसा कुछ
नह चाहता । पर म सच कहँगा ये..ये लाउज के अ दर जो ह । न जाने य इ ह देखने
को िदल करता है ।..भाभी वो गाना है न, तेरे दो अनमोल रतन, एक है राम और एक
लखन । जाने य मझु े ये गाना आपके इनके िलये गाना अ छा लगता है । जब मझु े
आपक बाहर कह याद आती है । म इ ह को याद कर लेता हँ, तेरे दो अनमोल रतन,
एक है राम और एक लखन ।
उसक साफ़, सरल, सीधी, स ची, प बात और मासिू मयत पर पदमा हँसते हँसते
पागल हो उठी । यकायक उसके मोितय जैसे चमकते दाँत क िबजली सी क धती
और उसके हँसने क मधरु मादक वर लहरी वातावरण म कामरस घोल देती ।
वह भी मख ू क भांित उसके साथ हँसने लगा ।
- एक िमनट, एक िमनट यार । वह अपने को सयं िमत करती हयी बोली - या बात
कही । मनोज मझु े तेरी बात पर अपनी एक सहेली क याद आ गयी, उसक नयी नयी
शादी हयी थी । पहली िवदाई म जब वह पीहर आने लगी तो उसका पित बहत उदास
हो गया ।
वह बोली, ऐसे य मँहु लटका िलया, म मर थोङे न गयी । िसफ़ आठ िदन को जा
रही हँ ।
तब उसका पित बोला, मझु े तेरे जाने का दख
ु नह । तू जाती हो तो जा, पर मझु े इन
दोन क बहत याद आयेगी, ऐसा कर इ ह मझु े दे जा ।
अचानक अब तक ग भीर बैठे िनितन ने जोरदार ठहाका लगाया । ऐसी अजीब बात
उसने पहली बार ही सनु ी थी । माहौल क मनहिसयत एकाएक छँ ट सी गयी ।
मनोज ह के नशे म था पर वह भी उसके साथ हँसा ।
- तेरे दो अनमोल रतन..एक है राम और एक लखन । िफ़र वह धीमे धीमे सबु कने
लगा ।
अजीब स पस फ़ै लाया था इस लङके ने । वह िसफ़ इस िज ासा के चलते उसके पास
आया था िक वो ये त दीप य जला रहा था, कौन सी ेतबाधा का िशकार हआ था
?
और अभी इस साधारण से का उ र िमल पाता िक वह काली अशरीरी छाया एक
बङे अनसल ु झे रह य क तरह वहाँ कट हयी और इस रह य म एक और जङु
गया था ।
- मनसा जोगी ! वह मन म बोला - र ा कर ।
वह काली छाया अभी भी बढ़ू े पीपल के आसपास ही टहल रही थी । वह शहर से
बाहर थानीय उजाङ और खल ु ा शमशान था सो अशरीरी ह के आसपास होने का
अहसास उसे बारबार हो रहा था पर मनोज इस सबसे िबलकुल बेपरवाह बैठा था ।
दरअसल िनितन ने य अशरीरी भािसत ह को पहली बार ही देखा था पर वह
त ि याओ ं से जङु ा होने के कारण ऐसे अनभु व का कुछ हद अ य त था । लेिकन
वह यवु क तो उपचार के िलये आया था िफ़र वह कै से ये सब महससू नह कर रहा था
?
और उसके याल म कारण दो ही हो सकते थे । उसका भी ेत के सामी य का
अ य त होना या िफ़र नशे म होना या उसक िनडरता अजानता का कारण वह भी हो
सकता था या िफ़र वह अपने याली गम म इस तरह डूबा था िक उसे माहौल क
भयंकरता पता ही नह चल रही थी ।
बरबस ही िनितन क िनगाह िफ़र एक बार काली छाया पर गयी ।
- म सोचता हँ । िफ़र वह कुछ अजीब से वर म बोला - अब हम घर चलना चािहये ।
- अरे बैठो दो त ! मनोज िफ़र से गहरी सांस भरता हआ बोला - कै सा घर, कहाँ का
घर, सब मायाजाल है साला, िचङा िचङी के घ सले । िचङा िचङी..अरे हाँ ..मझु े एक
बात बताओ, तमु ने औरत को कभी वैसे देखा है, िबना व म । एक खबू सरू त जवान
औरत, पदिमनी नाियका, पसी, प क रानी जैसी एक न न औरत ।
- सनु ो ! वह हङबङा कर बोला - तमु बहकने लगे हो, हम अब चलना चािहये ।
- ठ ठहरो भाई ! तमु गलत समझे । वह उदास हँसी हँसता हआ बोला - शायद िफ़र
तमु ने ओशो को नह पढ़ा । म आतं रक भाव से न न औरत क बात कर रहा हँ, और
इस तरह औरत को कोई न न नह कर पाता, शायद उसका पित भी नह । शायद
उसका पित यानी मेरा सगा भाई ।
भाई !.. भाई मझु े समझ म नह आता म कसरू वार हँ या नह , याद रखो ।.. वह
दाशिनकता िदखाता हआ बोला - औरत को न न करना आसान नह , और व रिहत
न नता न नता नह है ।
- ठीक है मनोज । पदमा जबरद त मादक अगं ङाई लेकर अपनी बङी बङी आँख से
सीधी उसक आँख म झांकती हयी बोली - तमु ने िबलकुल सही, और सच बोला ।
हाँ, ये सच है, िकसी भी लङक म जैसे ही यौवन सु दरता के ये पु प िखलना शु होते
ह, वह सबके आकषण का के बन जाती है । एक सादा सी लङक मोहक मोिहनी म
पांत रत होने लगती है, तमु ने कभी इस तरह सोचा ।.. म जानती हँ, तमु मझु े परू ी तरह
खल ु ी देखना चाहते हो, छूना चाहते हो, मझु से खेलना चाहते हो । य िक ये सब
सोचते समय तु हारे अ दर म तु हारी भाभी नह , िसफ़ एक खबू सरू त औरत होती हँ ।
उस समय भाभी मर जाती है िसफ़ औरत रह जाती है, बताओ मने सच कहा न ?
- गलत । वह किठन वर म बोला - एकदम गलत, ऐसा तो मने कभी नह सोचा । सच
बस इतना ही है िक जब भी इस घर म तु ह चलते िफ़रते देखता हँ, तो म तु ह पहले
परू ा ही देखता हँ । लेिकन िफ़र न जाने य मेरी िनगाह इधर हो जाती है । यहाँ देखना
य आकिषत करता है, म समझ नह पाता ।
- या । वह बेहद हैरत से बोली - तु ह मझु े परू ी तरह से नंगी देखने क इ छा नह
करते ?
- कभी नह । वह झटके से स त वर म बोला - य िक साथ ही मझु े ये भी पता है िक
तमु मेरी भाभी हो, भाभी माँ ! और एक ब चा भी अपने माँ के आँचल से यार करता
है, स मोिहत होता है । उसे भी उन तन से लगाव होता है, िजनसे वह पोषण पाता है
। वह ठीक एक पित क तरह माँ के शरीर को कह भी पश करता है । उसके पणू
शरीर पर जननी भिू म क तरह खेलता है । पर आप बताओ, उसक ऐसी इ छा कभी
हो सकती है िक म अपनी माँ को नगं ा देखँू ।
पदमा क बङी बङी काली आँख आ य से फ़ै ल गयी । उसका सौ दय अिभमान पल
म चरू चरू हो गया ।
मनोज िजतना बोल रहा था एकदम सच बोल रहा था ।
या अजीब झमेला सा था ।
िनितन बङी हैरत म था । वह कोई िनणय नह ले पा रहा था, यहाँ के या घर चला
जाये । इसको साथ ले जाये या इसे इसके हाल पर छोङ जाये । कौन था ये लङका ?
कै सी अजीब सी थी इसक कहानी और वह काली ी छाया ।
उसने िफ़र से उधर देखा । वह छाया भी जैसे थक कर जमीन पर बैठ गयी थी ।
अचानक वह च का । मनोज ने जेब से देशी तमंचा िनकाला और उसक ओर बढ़ाया ।
- मेरे अजनबी दो त । वह डूबे वर म बोला - आज तमु मेरी कहानी सनु लो । मझु े
कसरू वार पाओ तो बेिझझक मझु े शटू कर देना और यिद तमु मेरी कहानी नह सनु ते ।
बीच म ही चले जाते हो, िफ़र म ही अपने आपको शटू कर लँगू ा । और इसके
िज मेदार तमु होगे, िसफ़ तमु ।
उसने उँगली िनितन क तरफ़ उठाई ।
वह कुछ न बोला और चपु बैठा हआ उसके अगले कदम क ती ा करने लगा ।
म य देश ।
यानी म य भारत का एक रा य । राजधानी भोपाल ।
यह देश े फल के आधार पर भारत का सबसे बडा रा य था लेिकन इस रा य के
कई नगर उससे हटा कर छ ीसगढ़ बना िदया गया ।
इस देश क सीमाय - महारा , गजु रात, उ र देश, छ ीसगढ़ और राज थान से
िमलती है ।
म य देश के तंगु उतंगु पवत िशखर, िव य सतपड़ु ा, मैकल कै मरू क उपि यकाओ ं
के अ तर से गँजू ती अनेक पौरािणक कथाय नमदा, सोन, िस ध, च बल, बेतवा, के न,
धसान, तवा, ता ी आिद निदय के उदगम और िमलन क कथाओ ं से फूटती हजार
धाराय यहाँ के जीवन को हरा भरा कर तृ करती ह ।
िनमाड़ म य देश के पि मी अचं ल म आता है । इसक भौगोिलक सीमाओ ं म एक
तरफ़ िव य क उतंगु पवत ख ंृ ला और दसू री तरफ़ सतपड़ु ा क सात उपि यकाएँ ह
और म य म बहती है नमदा क जलधार ।
पौरािणक काल म िनमाड़ अनपू जनपद कहलाता था, बाद म इसे िनमाड़ कहा गया ।
इसी िनमाङ क अमराइय म तब कोयल क कूक गंजू ने लगी थी । पलाश के फूल
क लाली फ़ै ल रही थी । होली का खमु ार िसर चढ़कर बोल रहा था, और मधरु गीत
क गँजू से िनमाङ चहक रहा था ।
िदल म ढेर रंग िबरंगे अरमान िलये, रंग िबरंगे ही व म सजी सु दर यवु ितय के ह ठ
गनु गनु ा रहे थे - हारा ह रया वारा हो िक, गहआ लहलहे मोठा हीरा भाई वर बोया
जाग ।
और इसी रंग िबरंगी धरती पर वह प क रंगीली रानी, आँख म रंग िबरंगे ही सपने
सजाये, जैसे सब ब धन तोङ देने को मचल रही थी । उसक छाितय म मीठी मीठी
कसक थी, और उसके िदल म एक अजीब अनजान सी हक थी ।
हाय वो कौन होगा, जो उसे बाँह म भ च कर रख देगा, और इस कसक को िमटायेगा

- आज क रात । िनितन ने सोचा - इसी वीराने म बीतने वाली थी । कहाँ का फ़ालतू
लफ़ङा उसे आ लगा था । साँप के मँहु म छछूँदर, न िनगलते बने न उगलते ।
- पर मेरे दो त । मनोज िफ़र से बोला - िज दगी िकसी हसीन वाब जैसी नह होती,
कभी नह होती । िज दगी क ठोस हक कत कुछ और ही होती है ? कुछ और ही ।
यकायक िनितन उकताने सा लगा ।
वह उठ खङा हआ और िफ़र िबना बोले ही चलने को हआ ।
मनोज ने उसे कुछ नह कहा और तमच ं ा कनपटी से लगा िलया - ओके मेरे अजनबी
दो त, अलिवदा ।
आ बैल मझु े मार, जबरद ती गले लग जा । शायद इसी के िलये कहा गया है ।
हारे हये जआ ु री क तरह वह िफ़र से बैठ गया ।
मनोज ने एक िसगरे ट िनकाल कर सल ु गा ली लेिकन िनितन खामोशी से उस छाया को
ही देखता रहा ।
- लेिकन म शिम दा नह हँ । पदमा सहजता से बोली - अभी भी नह हँ । अभी अभी
तमु ने कहा, तु ह मझु े यहाँ देखना भाता है, िफ़र बताओ.. य ? बोलो बोलो ।
ऐसे ही म भी तमु को बहत िनगाह से देखती हँ । अगर तु हारे िदल म कुछ कामरस सा
जागता है, तो िफ़र मेरे िदल म य नह ? और वैसे भी देवर भाभी का स ब ध
अनैितक नह है । देवर को ‘ य वर’ कहा गया है, दसू रा वर । यह एक तरह से समाज
का अिलिखत काननू है, देवर भाभी के शरीर का िमलन हो सकता है ।
मनोज शायद तु ह मालमू न हो, य िक तमु दिु नयादारी के मामले म अभी ब चे हो ।
अगर िकसी ी को उसके पित से औलाद न होती हो तो उसक िनब ज जमीन म
थम देवर ही बीज डालता है । उसके बाद कुछ प रि थितय म जेठ भी । और जानते
हो, ऐसा हमेशा घर वाल क मज से उनक जानकारी म होता है । वे कँु वारे और
शादीशदु ा देवर को े रत करते ह िक वह भाभी क उजाङ जमीन पर खिु शय क
फ़सल लहलहा दे ।
िनितन के िदमाग म िव फ़ोट सा हआ, कै सा अजीब संसार है यह । शायद यहाँ बहत
कुछ ऐसा िविच है, िजसको उस जैसे लोग कभी नह जान पाते । त दीप से शु
हयी उसक मामल ू ी ेतक िज ासा इस लङके के िदल म घमु ङते कै से तफ़
ू ान को
सामने ला रही थी ।
उसने सोचा तक न था । सोच भी न सकता था ।
- श द । वह तमच ं ा जमीन पर रखता हआ बोला - श द और श द का कमाल ।
हैरानी क बात थी िक भाभी के श द आज मझु े जहर से लग रहे थे । उसके चल ु बल
ु े
पन म मझु े एक नािगन नजर आ रही थी । उसके बेिमसाल सौ दय म मझु े डायन नजर
आ रही थी, एक खतरनाक चङु ै ल । मझु े..अचानक बीच म जैसे उसे कुछ याद सा
आया - एक बात बताओ तमु भतू ेत म िव ास करते हो । मेरा मतलब भतू होते ह,
या नह होते ह ?
िनितन ने एक िसहरती सी िनगाह काली छाया पर डाली । उसका यान सरसराते
पीपल के प पर गया ।
िफ़र िनर तर कभी कभी आसपास महससू होती अ य ह पर गया ।
उसने गौर से मनोज को देखा और बोला - पता नह , कह नह सकता, शायद होते ह ,
शायद न होते ह ।
अब वह बङी उलझन म था ।
उसने सोचा - ये अपने िदल का गम ह का करना चाहता है । या वह वयं इससे
पछू े और ज दी ज दी ये बताता चला जाये और बात ख म हो । पर तरु त ही उसका
िदमाग रये ट करता, इसके अ दर कोई बहत बङा रह य, कोई बहत बङी आग जल
रही है । िजसका िनकल जाना ज री है, वरना शायद ये खदु को गोली भी मार ले, मार
सकता था । इसिलये एक िज दगी क खाितर, उसम वयं जो ि या हो रही थी वही
तरीका अिधक उिचत था और तब उसे िसफ़ सनु ना था, देखना था ।
- मनसा जोगी । वह भाव से बे वर बोला - र ा कर ।
- लेिकन म जानता हँ । मनोज िफ़र से बोला - मने उ ह कभी देखा तो नह , पर मझु े
प का पता है, होते ह, और तमु जानते हो इनके भतू - ेत होने का जो मु य कारण है,
बस एक ही है कामवासना । यि म िनर तर सल ु गती कामवासना ।
कामवासना से पीिङत, कामवासना से अतृ रहा इसं ान िन य ही भतू - ेत के अजं ाम
को ा होता है ।
ये अचानक या हो गया था ।
पदिमनी पदमा भावहीन चेहरे से आगं न के गमल म िखले फ़ूल को देख रही थी ।
उसे लग रहा था कुछ असामा य सा था, जो एकदम घिटत हआ था ।
वह इतना अनभु वी भी नह था िक इन बात का कोई ठीक अथ िनकाल सके । बस
यार दो त के अनभु व के चलते उसे कुछ जानकारी थी ।
- भाभी ! तब अचानक वह उसक ओर देखता हआ बोला - एक बात बोलँू सच सच
बताना । या तमु भैया से खश
ु नह हो, या तु ह तिृ नह होती ?
तब दसू री तरफ़ देखती पदमा ने यकायक झटके से मँहु घमु ाया ।
िफ़र उसने तेजी से लाउज के ऊपरी तीन हक खोल िदये और नािगन सी चमकती
आँख से उसक तरफ़ देखा ।
- देख इधर । वह स त वर म बोली - ये दो बङे बङे माँस के गोले, िसफ़ चब माँस
के गोले, अगर एक जवान सु दर मरी औरत का शरीर लावा रस फ़क िदया जाये तो
िफ़र इस शरीर को कौवे कु े ही खायगे । मेरी ये मगृ नयनी आँख िकसी यासी चङु ै ल
के समान भयानक हो जायगी । मेरे इस सु दर शरीर से बदबू और िघन आयेगी, िफ़र
बताओ इसम ऐसा या है ? जो िकसी ी को नह पता, जो िकसी पु ष को नह पता,
िफ़र भी कोई तृ हआ आज तक । अि तम अजं ाम जानते हये भी ।
- िनितन जी ! वह ठहरे वर म बोला - बङे ही अजीब पल थे वो, व जैसे थम गया
था । उस पर कामदेवी सवार थी, और मझु े ये भी नह पता उस व उसक मझु से या
वािहश थी । सच ये है िक म िकसी स मोहन जैसी ि थित म था । लेिकन उसका
सौ दय, उसके अगं सभी मझु े िवषैले लग रहे थे और जैसे कोई अ ात शि मेरी र ा
कर रही थी । मझु े सही गलत का बोध करा रही थी, श द जैसे अपने आप मेरे मँहु से
िनकल रहे थे । जैसे शायद अभी भी िनकल रहे ह, श द ।
- लेिकन भाभी ! मेरा ये मतलब नह था । मने सावधानी से कहा - औरत क
कामवासना को यिद उसके िलये िनयु पु ष मौजदू हो, तब ऐसी बात कुछ अजीब
सी लगती है न । इसीिलये मने कहा, शायद आप अतृ तो नह हो ।
- अतृ ऽ अतृ ऽ.. अतृ । मनोज का यह श द रह रहकर उसके िदमाग म हथौङे सी
चोट करने लगा । एकाएक उसक मख ु ाकृित िबगङने लगी, उसका बदन ऐठं ने लगा ।
उसका सु दर चेहरा बेहद कु प हो उठा और उसके चेहरे पर राख सी पतु ी नजर आने
लगी ।
वह बङी जोर से हँसी और..
- हाँ..! उसने लाउज का प ला पकङ कर झटका मारा, लाउज दरू जा िगरा - हाँ म
अतृ ही हँ । सिदय से यासी, एक अतृ औरत । एक यासी आ मा, िजसक यास
आज तक कोई दरू न कर सका, कोई भी ।
अब तक उकताहट महससू कर रहा िनितन एकाएक सजग हो गया । उसक िनगाह
वतः ही काली छाया पर गयी, जो बैचेनी से पहलू बदलने लगी थी । पर मनोज उन
दोन क अपे ा शा त था ।
- िफ़र या हआ ? बेहद उ सक ु ता म िनितन के मँहु से िनकला ।
- कुछ नह । उसने भावहीन वर म उ र िदया - कुछ नह हआ, वह बेहोश हो गयी ।
रात के दस बजने वाले थे ।
बादल से फ़ै ला अधं रे ा कब का छँ ट चकु ा था, नीले आसमान म चाँद िनकल आया
था ।
उस शमशान म दरू दरू तक कोई भी राि चर जीव नजर नह आ रहा था । िसफ़ िसर के
ऊपर उङते चमगादङ क सर सर कभी कभी उ ह सनु ाई दे जाती थी । बाक भयानक
स नाटा ही सांय सांय कर रहा था ।
मनोज अब काफ़ सामा य हो चक ु ा था और िबलकुल शा त था ।
लेिकन अब िनितन के मन म भयंकर तफ़ ू ान उठ रहा था ।
या बात को यँू ही छोङ िदया जाये । इसके घर या अपने घर चला जाये, या घर चला
ही नह जाये । यह या िफ़र और कह वह सब जाना जाये, जो इस लङके के िदल म
दफ़न था । यिद वह मनोज को यँू ही छोङ देता, तो िफ़र पता नह वह कहाँ िमलता,
िमलता भी या नह िमलता । आगे या कुछ होने वाला था, ऐसे ढेर सवाल उसके
िदलोिदमाग म हलचल कर रहे थे ।
- बस हम तीन लोग ही ह घर म । वह िबलकुल सामा य होकर बोला - म, मेरा भाई
और मेरी भाभी ।
वे दोन वापस पल ु पर आ गये थे, और पल ु क रे िलंग से िटके बैठे थे ।
यह वही थान था, जहाँ नीचे बहती नदी से िनितन उठकर उसके पास गया था और
जहाँ उसका वे पा कूटर भी खङा था ।
आज या ही अजीब सी बात हयी थी । उ ह यहाँ आये कुछ ही देर हयी थी और ये
बहत अ छा था । वह काली छाया यहाँ उनके साथ नह आयी थी । बस कुछ दरू पीछे
चलकर अंधरे े म चली गयी थी । यहाँ बारबार आसपास ही महससू होती अ य ह
भी नह थी और सबसे बङी बात जो उसे राहत पहँचा रही थी ।
मनोज यहाँ एकदम सामा य यवहार कर रहा था ।
उसके बोलने का लहजा श द आिद भी सामा य थे, िफ़र वहाँ या बात थी ? या वह
िकसी अ य भाव म था ।
िकसी जादू टोने, िकसी स मोहन या ऐसा ही और कुछ अलग सा ।
- िफ़र या हआ ? अचानक जब देर तक िनितन अपनी उ सक ु ता रोक न सका तो
वतः ही उसके मँहु से िनकला - उसके बाद या हआ ?
- कब ? मनोज हैरानी से बोला - कब या हआ, मतलब ?
िनितन के छ के छूट गये ।
या वह िकसी स का आदी था, या कोई ेत ह, या कोई शाितर इसं ान ।
अब उसके इस ‘कब’ का वह या उ र देता सो चपु ही रह गया ।
- मझु े अब चलना चािहये । अचानक मनोज उठता हआ बोला - रात बहत हो रही है,
तु ह भी घर जाना होगा ।
कहकर वह तेजी से एक तरफ़ बढ़ गया ।
- अरे सनु ो सनु ो । िनितन हङबङा कर ज दी से बोला - कहाँ रहते हो आप, म छोङ
देता हँ । सनु ो भाई एक िमनट.. मनोज, तु हारा ए ेस या है ?
- ब द गली । उसे दरू से आते मनोज के श द सनु ाई िदये - ब द घर, जमीन के नीचे,
अधं ेरा ब द कमरा ।
- हा हा हा । मनसा जोगी ने भरपरू ठहाका लगाया - ब द गली, ब द घर, जमीन के
नीचे, अधं ेरा ब द कमरा । हा हा हा..एकदम सही पता ।
िनितन एकदम हैरान रह गया ।
अ सर ग भीर सा रहने वाला उसका तांि क गु खल ु कर हँस रहा था उसके चेहरे पर
रह यमय मु कान खेल रही थी ।
मनसा जोगी कुछ कुछ काले से रंग का िवशालकाय काले पहाङ जैसा भारी भरकम
इसं ान था, और कोई भी उसको देखने सनु ने वाला धोखे से गोगा कपरू समझ सकता
था । बस उसक एक आँख छोटी और िसकुङी हयी थी, जो उसक भयानकता म
विृ करती थी ।
मनसा बहत समय तक अघो रय के स पक म उनक िश यता म रहा था और मदु ा
शरीर पर शवसाधना करता था । पहले उसका झक ु ाव परू ी तरह तामिसक शि य के
ित था, लेिकन भा यवश उसके जीवन म यकायक बदलाव आया, और वह उसके
साथ साथ तै क छोटी िसि य म हाथ आजमाने लगा ।
अघोर के उस अनभु वी को उ मीद से पहले सफ़लता िमलने लगी, और उसके अ दर
का सोया इसं ान जागने लगा ।
तब ऐसे ही िक ही ण म िनितन से उसक मल ु ाकात हयी, जो एका त थान पर
घमू ने क आदत से हआ महज संयोग भर था ।
मनसा जोगी शहर से बाहर थाने के पीछे टयबू वैल के पास घने पेङ के झरु मटु म एक
क चे से बङे कमरे म रहता था ।
कमरे के आगे पङा बङा सा छ पर उसके दालान का काम करता था । िजसम अ सर
दसू रे साधु बैठे रहते थे ।
िनितन को रात भर ठीक से न द नह आयी थी ।
तब वह सबु ह इसी आशा म चला आया था िक मनसा शायद कुिटया पर ही हो, और
संयोग से वह उसे िमल भी गया था ।
वह भी िबलकुल अके ला ।
इससे िनितन के उलझे िदमाग को बङी राहत िमली थी ।
परू ा िववरण सनु ने के बाद जब मनसा ए ेस को लेकर बेतहाशा हँसा, तो वह िसफ़
भ च का सा उसे देखता ही रह गया ।
- भाग जा ब चे । मनसा रह यमय अ दाज म उसको देखता हआ बोला - ये
साधना, िसि , त , म ब च के खेल नह , इनम िदन रात ऐसे ही झमेले ह ।
इसिलये अभी भी समय है । दरअसल ये वो माग है िजस पर जाना तो आसान है पर
लौटने का कोई िवक प नह है ।
- मेरी ऐसी कोई खास वािहश भी नह । वह साधारण वर म बोला - पर इस दिु नयाँ
म कुछ चीज लोग को इस तरह भी भािवत कर सकती ह या, िक जीवन उनके
िलये एक उलझी हयी पहेली बनकर रह जाये, उनका जीना ही दु ार हो जाये ।
म उसे बल ु ाने नह गया था, उससे िमलना एक सयं ोग भर था । िजस मसु ीबत म
वो आज था, उसम कल म भी हो सकता हँ । अ य भी हो सकते ह, तब या हम हाथ
पर हाथ रखकर ऐसे ही बैठे देखते रह ।
शायद यही होता है एक पढ़े िलखे इसं ान और लगभग अनपढ़ साधओ ु ं म फ़क ।
मनसा इन थोङे ही श द से बेहद भािवत हआ । उसे इस सरल मासमू लङके म
जगमगाते हीरे सी चमक नजर आयी ।
शायद वह एक स चा इसं ान था, यागी था और उसके हौसल म शि का उ साह
था सो वह तुर त ही खदु भी सरल हो गया ।
वही उस िदन वाला थान आज भी था ।
नदी के पलु से नीचे उतरकर बहती नदी के पास ही बङा सा पेङ ।
िपछले तीन िदन से वह यह मनोज का इतं जार कर रहा था पर वह नह आया था ।
मनसा ने उसे ब द गली, ब द घर, जमीन के नीचे, अधं ेरा ब द कमरा का मतलब भी
समझा िदया था । और भी बहत कुछ समझा िदया था । बस रही बात मनोज को िफ़र
से तलाशने क , तो मनसा ने जो उपाय बताया, वो कोई गु ान जैसा नह था बि क
एक साधारण बात ही थी । जो अपनी हािलया उलझन के चलते यकायक उसे नह
सझू ी थी िक वो िनि त ही उपचार के िलये त दीप जलाने उसी थान पर आयेगा ।
सो वह िपछले तीन िदन से उसे देख रहा था पर वह नह आया था ।
उसने एक िसगरे ट सल ु गायी और यँू ही कंकङ उठाकर नदी क तरफ़ उछालने लगा ।
- कमाल के आदमी हो भाई । मनोज उसे हैरानी से देखता हआ बोला - या करने
आते हो इस मनहस शमशान म, जहाँ कोई मरने के बाद भी आना पस द न करे , पर
आना उसक मजबरू ी है । य िक आगे जाने के िलये गाङी यह से िमलेगी ।
- यही बात । अबक वह सतकता से बोला - म आपसे भी पछ ू सकता हँ । या करने
आते हो इस मनहस शमशान म, जहाँ कोई मरने के बाद भी आना पस द न करे ।
ये चोट मान सीधी उसके िदल पर लगी ।
वह बैचेन सा हो गया और कसमसाता हआ पहलू बदलने लगा ।
- दरअसल मेरी समझ म नह आता । आिखर वह सोचता हआ सा बोला - या
बताऊँ और कै से बताऊँ । मेरे प रवार म म, मेरी भाभी और मेरा भाई ह । हमने कुछ
साल पहले एक नया घर खरीदा है । सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था िक अचानक
कुछ अजीब सा घटने लगा और उसी के िलये मझु े समझ नह आता िक म िकस तरह
के श द का योग क ँ । जो अपनी बात ठीक उसी तरह कह सकँू , जैसे वह होती है,
पर म कह नह पाता ।
ये दीपक..उसने दीप क तरफ़ इशारा िकया - एक उपचार जैसा बताया गया है । मझु े
नह पता िक इसका स य या है ? यहाँ शमशान म, खास इस पीपल के वृ के नीचे
कोई दीपक जला देने से भला या हो सकता है, मेरी समझ से बाहर है । पर आ ासन
यही िदया है, इससे हमारे घर का अजीब सा माहौल ख म हो जायेगा ।
- या अजीब सा ? वह यँू ही सामने दरू तक देखता हआ बोला ।
- कुछ िसगरे ट वगैरह पीते हो ? वह बैचेनी से बोला ।
उसने आज एक बात अलग क थी । वह अपना कूटर ही यह ले आया था और उसी
क सीट पर आराम से बैठा था ।
शायद कोई रात उसे परू ी तरह वह िबतानी पङ जाये । इस हेतु उसने बैटरी से छोटा
ब ब जलाने का खास इतं जाम अपने पास कर रखा था और िसगरे ट के ए ा पैकेट
का भी ।
सबु ह के यारह बजने वाले थे ।
पदमा काम से फ़ा रग हो चक ु थी । वह अपने पित अनरु ाग के आिफ़स चले जाने के
बाद सारा काम िनबटा कर नहाती थी ।
उतने समय तक मनोज पढ़ता रहता और उसके घरे लू काय म भी हाथ बँटा देता ।
उसके नहाने के बाद दोन साथ खाना खाते ।
दोन के बीच एक अजीब सा र ता था, अजीब सी सहमित थी, अजीब सा यार था,
अजीब सी भावना थी ।
जो कामवासना भी थी और िबलकुल भी नह थी ।
पदमा ने बाथ म म घसु ते हये कनिखय से मनोज को देखा । एक चच ं ल, शोख,
रह यमय मु कान उसके होठ पर तैर उठी ।
उसने बाथ म का दरवाजा ब द नह िकया और िसफ़ ह का सा पदा ही डाल िदया ।
पदा, जो मामल ू ी हवा के झ के से उङने लगता था ।
तभी आंगन म कुस पर बैठकर पढ़ते हये मनोज का यान अचानक भाभी क मधरु
गनु गनु ाहट ह ह हँ हँ आऽ आऽऽ पर गया ।
वह िकताब म इस कदर खोया हआ था िक उसे पता ही नह था िक भाभी कहाँ है
और या कर रही है ?
तब उसक ि ने आवाज का तार पकङा और उसका िदल ध क से रह गया ।
उसके कंु वारे शरीर म एक अजीब गमाहट सी दौङ गयी ।
बाथ म का पदा रह रहकर हवा से उङ जाता ।
पदमा ऊपरी िह से से िनव थी ।
उसके पु , नोक ले िवशाल उरोज एकदम तने हये से उठे थे और वह आँख ब द िकये
अपने ऊपर पानी उङे ल रही थी ।
- मेरे दो अनमोल रतन । वह मादक वर म गनु गनु ा रही थी - एक है..ह ह हँ हँ
नैितकता, अनैितकता के िमले जल ु े सं कार उस िकशोर लङके के अतं मन को बारबार
थ पङ से मारने लगे ।
नैितकता बारबार उसका मँहु िवपरीत ले जाती और अनैितकता का बल वासना
सं कार उसक िनगाह सीधा वह ले जाता था ।
लेिकन ये अ छा था िक भाभी क आँख ब द थी और वह उसे देखते हये नह देख
रही थी ।
िफ़र अ ाहास सा करती हयी अनैितकता ही िवजयी हयी और न चाहते हये भी वह
कामक ु भाव से लगातार पदमा को देखने लगा ।
- औरत.. एक न न औरत । वह चरस के नशे म झमू ता हआ सा बोला - मने सनु ा है,
शा म ऐसा िलखा है, औरत को उसका बनाने वाला भगवान भी नह समझ पाया
िक आिखर ये या चीज बन गयी, िफ़र म तो एक सीधा सादा सामा य लङका था
मगर ..?
उस िदन से िवपरीत आज िनितन के चेहरे पर एक अ य आतं रक खश ु ी सी दौङ गयी

ठीक आज भी वही ि थित बन गयी थी जो उस िदन खदु ब खदु थी और बकौल
मनोज के हक कत य क य उसी ि थित म उसके मँहु से िनकलती थी ।
- और उसी के िलये । उसे मनोज के श द याद आये - मझु े समझ नह आता िक म
िकस तरह के श द का योग क ँ , जो अपनी बात ठीक उसी तरह कह सकँू । जैसे
वह होती है, पर म कह नह पाता ।
िफ़र अभी तो बहत समय था ।
रात के नौ बजने म भी अभी बीस िमनट बाक थे ।
- मनोज भाई । पदमा उसके सामने चारपाई पर बैठते हये बोली - तु ह कै सी लङिकयाँ
अ छी लगती ह ? दबु ली, मोटी, ल बी, नाटी, गोरी, काली ।
- य पछ ू ा ? वह हैरानी से बोला - ऐसा आपने ।
- यँू पछ
ू ा, या मतलब ? वह आँख िनकाल कर बोली - म तेरी भाभी हँ, सबु ह जब
उठती हँ, मझु े तेरा पौ षी तनाव िदखाई नह देता या । देख मेरी आँख िकतनी बङी
बङी ह, ये अ दर तक देख सकती ह । पर तनू े पछ ू ा है तो बता देती हँ । उसम कौन सी
चोरी वाली बात है । बता तेरे िलये लङक कौन तलाश करे गा ?
- लगता है न सब कुछ अ ील सा । वह िफ़र से बोला - मगर सोचो तो वा तव म है
नह । ये िसफ़ पढ़ने सनु ने म अ ील लगता है, िकसी पोन चीप टोरी जैसा । पर ठीक
से सोचो, भािभय को इससे भी गहरे खल ु े मजाक करने का सामािजक अिधकार
हािसल है । ायः ऐसे खल ु े श द , वा य का योग उस समय होता है, िजनको कह
िलखा नह जा सकता, और म तमु से कह भी नह सकता । बताओ इसम कुछ गलत है
या ?
िनितन ने पहली बार सहमित म िसर िहलाया ।
वह स चाई के धरातल पर िबलकुल स य बोल रहा था ।
यकायक िफ़र उसक िनगाह पीछे से चलकर आती उसी काली छाया पर गयी शायद
आज वह देर से आयी थी ।
उसने एक नजर शमशान के उस िह से पर डाली जहाँ िचता सजायी जाती थी ।
वह गौर से उधर देखती रही िफ़र चपु चाप उनसे कुछ दरू बैठ गयी ।
कहते ह सौ दय और कु पता, न नता और व आिद आवरण देखने वाले क आँख
म होते ह, िदमाग म होते ह न िक उस यि म, िजसम ये िदखाई दे रहा है । हम िकसी
को जब बेहद यार करते ह तो साधारण श ल सरू त वाला वह यि भी हम खास
नजर आता है । बहत सु दर नजर आता है और लाख म एक नजर आता है । य िक
हम अपने भाव क गहनता के आधार पर उसका िच ण कर रहे होते ह ।
- िनितन जी ! वह िफ़र से बोला - ये ठीक है िक मेरी भाभी एक आम ी के चलते
वाकई सु दर थी और सवाग सु दर थी । इतनी सु दर, इतनी मादक, इतनी नशीली िक
खदु शराब क बोतल अपने अ दर भरी सरु ा से मदहोश होकर झमू ने लगे ।
पर मेरे िलये वह एक साधारण ी थी, एक मातवृ त औरत । जो पणू ममता से मेरे
भोजन आिद का याल रखती थी ।
वह हमारे छोटे से घर क शोभा थी । म उसक सु दरता पर गिवत तो था पर मोिहत
नह । उसक सु दरता उस ि कोण से मेरे िलये आकषणहीन थी िक म उसे अपनी
बाँह म मचलने वाली प अ सरा क ही क पनाय करने लगता ।
मझु े ठीक समझने क कोिशश करना भाई । म उसके तन, िनत ब आिद काम अगं
को कभी कभी सख ु पहँचाने वाले भाव से अव य देख लेता था, पर इससे आगे मेरा
भाव कभी न बढ़ा था, और ये भाव शायद मेरा नह सबका होता है । एक सामा य ी
पु ष आकषण भाव । य िक म अ छी तरह जानता था िक वह मेरी भाभी है, और
भाभी माँ समान भी होती है । होती या है , वो थी ।
मेरी माँ..भाभी माँ । बोलो कुछ गलत कहा मने ?
िनितन एक अजीब से मनोवै ािनक झमेले म फ़ँ स गया ।
उसका झान िसफ़ इस बात म था िक उसके घर म ऐसी या परे शानी है िजसके चलते
वह शमशान म तं दीप जलाता है ।
ये काली औरत क अशरीरी छाया से इस लङके का या स ब ध है ?
और वो उसको मनु य के काम स ब ध कामभावनाओ ं का मनोिव ान परू ी
दाशिनकता से समझा रहा था ।
शायद, उसने सोचा, अपनी बात परू ी करते करते ये गलत को सही िस कर दे, और
कर या दे, बराबर करे ही जा रहा था ।
- लेिकन । उसने उकता कर बात का ख मोङने क कोिशश क ।
- हाँ लेिकन । वह िफ़र से दरू से आते वर म बोला - ठीक यही कहा था मने, लेिकन
भाभी िकसी और लङक क ज रत ही या है ? तमु मेरे िलये खाना बना देती हो,
कपङे धो देती हो, िफ़र दसू री और लङक य ?
पदमा वाकई पदिमनी नाियका थी ।
अगं अगं से छलकती मिदरा सा बंधन तोङने को मचलता भरपरू उ मु यौवन ।
नहाने के बाद उसने आरज कलर क ा रिहत मै सी पहनी थी और लगभग पारदश
उस िझगं ोले म आरज लेवर सी ही गमक रही थी ।
प क रानी, वग से वी पर उतर आयी अ सरा ।
उसने मै सी के ब द ऊपर नीचे, अजीब आङे टेङे अ दाज म लगाये थे िक उसे चोरी
चोरी देखने क इ छा का सख ु ही समा हो गया । उसका अगं अगं िखङक से
झांकती सु दरी क तरह नजर आ रहा था और अब उसके सामने भाभी नह िसफ़ एक
कािमनी औरत थी ।
- मनोज ! उसने भेदती िनगाह से उसे देखा - अभी शायद तमु उतना न समझो, पर हर
आदमी म दो आदमी होते ह, और हर औरत म दो औरत । एक जो बाहर से नजर
आता है, और एक जो अ दर होता है । अ दर..उसने एक खास िनगाह उसके शरीर पर
डाली - इस अ दर के आदमी क हर औरत दीवानी है और य िक अ दर से तमु पणू
पु ष हो, पणू पु ष !
िनितन हैरान रह गया ।
यकायक तो उसक समझ म नह आया िक ये या कह रहा है िफ़र वह ठहाका लगा
उठा ।
नशे मे हआ बेहद ग भीर मनोज भी सब कुछ भल ू कर उसके साथ हँसने लगा ।
- हाँ बङे भाई ! वह िफ़र से बोला - उस व ठीक यही भाव मेरे मन म आया, जो
सामा यतः इस व तु हारे मन म आया । पहले तो म समझा ही नह िक भाभी या
बोल रही है, और कहाँ बोल रही है ?
श द ! इसिलये कमाल के होते है न श द भी । पिव , अपिव , षे , कामक ु ,
अ ील, राग, वैराग सब श द ही तो ह ।..सोचो मेरे भाई, कोई भी हमारे बारे म जाने
या या सोच रहा है, या देख रहा है हम कभी जान सकते ह या, बोलो कभी जान
सकते ह या ?
- अरे पगले ! पदमा इठला कर बोली - इन सब बात को इतना सी रयस भी मत ले, ये
देवर भाभी क कहानी है । एक ऐसा रोमांस है, िजसको रोमांस नह कह सकते, िफ़र
भी होता रोमासं जैसा ही है । देख म बताती हँ मेरी सोच या है ? म पकला, प क
रानी, पसी, प व पा, िफ़र यिद लोग मझु े देख कर आह ना भर तब इस प के
प का या मतलब ? हर पवती चाहती है िक लोग पर उसके प का यही असर
हो । प का पजाल, और िनसदं हे तब म भी ऐसा ही चाहती हँ य िक मेरा प
अ छी अ छ का प फ़ का कर देता है ।
िफ़र एक बात और, अभी तमु आयु के िजस दौर से गजु र रहे हो, तु ह औरत को िसफ़
इसी प म देखना अ छा लगेगा । न कोई माँ, न कोई बहन, न भाभी, बआ ु , मौसी
आिद । िसफ़ औरत..।
औरत जो पहले कभी लङक होती है, िफ़र औरत । तब हम दोन क ये नयनसख ु
वासना पिू त घर म ही हो जायेगी । य मझु े कोई और ताके , और य तमु बाहर
ललचाओ ।
- काफ़ ए सपट लगती है आपक भाभी । िनितन भी थोङा रस सा लेता हआ बोला
- मेरे याल म ऐसी गणु वान, पवती, ी का कोई िववरण न मने आज तक सनु ा, न
कभी पढ़ा ।
- एक बात बताओ । अचानक मनोज उसे गौर से देखता हआ बोला - तमु ने कभी
िकसी लङक िकसी औरत से यार िकया है ?
उसने न म िसर िहलाया और बोला - इस तरफ़ कभी यान ही नह गया । शायद मेरे
वभाव म एक खापन है और इससे उ प न चेहरे क रजवनेस से िकसी लङक क
िह मत नह पङी होगी ।
मनोज जैसे सब कुछ समझ गया ।
- एक बात बताओ भाभी ! मनोज हैरानी से बोला - ऐसी जबरद त लङक , मतलब
तमु , मनचले लफ़ंग से िकस तरह बची रही और खदु तमु कभी िकसी से यार नह
कर पाय । ऐसा कै से स भव हो सका ?
पदमा ने एक गहरी सांस ली, जैसे उसक दख ु ती रग को िकसी ने छे ङ िदया हो ।
- या बोलँू म । वह माथे पर हाथ रख कर बोली - पहले बताया तो था । उसक वजह
से तो ये परू ा झमेला बना है, वरना आज कहानी कुछ और ही होती िफ़र उसे या मझु े
रोज नयी नयी कहानी य िलखनी होती ? अजीब पागल था, मझु सा ात प क
रानी म उसक कोई िदलच पी ही न थी, अ य के च कर म ही पङा रहता ।
..जितन ! तमु ने ऐसा य िकया ? मेरा प जवानी एक बार तो देखा होता ।..अब म
या करती । वो िफ़र साधु हो गया ।
- ले लेिकन । वह बोला - िकसी एक के न होने से या होता है । बहत से सु दर
त दु त छोरे आपके आगे पीछे घमू ते ।
- मनोज ! वह सामा य वर म बोली - तमु िकसी लङक का िदल नह समझ सकते ।
कोई भी लङक अपने पहले यार को कभी नह भल ू ती । उसका ितर कार कर, उपे ा
करने वाले ेमी के िलये िफ़र उसक एक िजद सी बन जाती है । तब मेरी भी ये िजद
बन गयी िक म उसे अपना यार मानने पर मजबरू कर दगँू ी । पर करती तो तब न जब
वह सामा य आदमी रहता । वह तो साधु ही बन गया । तब बताओ म या करती
साधओ ु ं के आगे पीछे घमू ती या ? िफ़र भी वो मेरे िदल से आज तक नह िनकला ।
कै सी अजीब उलझन थी ।
अगर वह इसको कोई के स मानता, कोई अशरीरी ह योग मानता तो िफ़र उसक
शु आत भी नह हयी थी ।
देवर भाभी स ब ध पर मनोवै ािनक मामला मानता तो भी बात ठीक ठीक समझ म
नह आ रही थी । उसे अब तक यही लगा था िक एक भरपरू सु दर और जवान यवु ती
देवर म अपने वांिछत ेमी को खोज रही है । अब कोई आम देवर होता तो उसने देवर
दसू रा वर का िस ातं स य कर िदया होता ।
लेिकन मामला कुछ ऐसा था, भाभी डाल डाल तो देवर पात पात ।
एक बात और भी थी ।
ये भाभी देवर क ‘लोिलता’ जैसी कामकथा होती तो भी वह उसे उसके हाल पर
छोङकर कब का चला गया होता । पर उसका अजीबोगरीब यवहार, उसके पास
रहती काली छाया, उसका ए ेस बताने का अजीब टायल । वह इनम आपस म कोई
िमलान नह कर पा रहा था और सबसे बङी सम या ये थी िक वह शायद िकसी
सहायता का इ छुक ही न था । वह िकसी ेतबाधा को लेकर परे शान था भी या नह ,
तय करना मिु कल था । उससे सीधे सीधे कुछ पछ
ू ा नह जा सकता था और जब वह
बोलता था तो भाभीपरु ाण शु कर देता ।
यहाँ तक िक िनितन क इ छा अपने बाल नोचने क होने लगी । या तो ये लङका खदु
पागल था या उसे पागल करने वाला था ।
उसने एक नजर िफ़र उस काली छाया पर डाली । वो भी बङी शाि त से िकसी जाससू
क तरह बस उनक बात ही सनु रही थी ।
अचानक ही उसे याल आया, कह ऐसा तो नह िक वह िकसी च यहू म फ़ँ सा जा
रहा हो । वह खदु को होिशयार समझ रहा हो जबिक ये दोन उसे पागल बनाकर कोई
मोहरा आिद बना रहे ह ।
वह तेजी से समचू े घटना म पर िवचार करने लगा तब एकाएक उसके िदमाग म
िबजली सी क धी और िफ़र ?
- देिखये मनोज जी ! वह सामा य वर म बोला - एक बात होती है, जैसे हर यवु ा होती
लङक को वयँ म ही खास सु दरता नजर आती है । उसे लगता है वह कुछ खास है,
और सबक िनगाह बस उसी पर रहती है, पर ये सच नह होता । लोग को वह लङक
नह उसम पैदा हो चक ु ा काम आकषण भािवत करता है । एक तरह से इसको
मानिसक स भोग भी कह सकते ह और सामा यतयाः ये हरे क ी पु ष करता है िफ़र
वह िववािहत हो या शादीशदु ा, वृ , अधेङ, जवान हो या िकशोर । कामभावना वह
ज म के साथ लेकर ही आता है ।
इसिलये मझु े नह लगता आप जो भी बता रहे ह, उसम कुछ खास बताने जैसा है । ये
बस एका त के वे अतं रंग ण ह िजनम हम िवपरीत िलंगी से अपनी कुछ खास
भावनाय जािहर करते ह । आपक भाभी सु दर थी उ ह खदु का सौ दय बोध था और
इसिलये वह वाभािवक ही चाहती थी िक उनके प का जादू हरे क के सर चढकर
बोले । अतः इसम कुछ अजीब नह कुछ खास नह ।
- हाँ ! वह कुछ ठहर कर उसका चेहरा पढ़ता हआ सा बोला - एक बात है, जो अलग
हो सकती है । आपक भाभी म कामभावना सामा य से बेहद अिधक हो और वह
आपके भाई से पणू स तिु न पाती ह या उ ह अलग अलग पु ष को भोगना अ छा
लगता हो और इस तर पर वह अपने आपको अतृ महससू करती हो । यस
अतृ ..अतृ ।
मनोज के चेहरे पर जैसे भचू ाल नजर आने लगा ।
वह एक झटके से उठकर खङा हया ।
उसने िनितन का िगरहबान पकङ िलया और दांत पीसता हआ बोला - हरामजादे !
या बोला तू..अतृ ।
िनितन के मान छ के ही छूट गये उसे ऐसी कतई उ मीद ही न थी । वह एकदम से
हङबङा कर रह गया ।
मनोज ने तमंचा िनकाला और उसक तरफ़ तानता हआ बोला - म तझु े बल ु ाने गया
था िक सनु मेरी बात, िफ़र तनू े मेरी भाभी को अतृ कै से बोला । यासी.. यासी
औरत..वासना क भख ू ी । हरामजादे ! म तेरा खनू कर दगँू ा ।
वह चाहता तो एक भरपरू मु के म ही इस नशेङी को धराशायी कर देता । उसक सब
दादागीरी िनकाल देता पर इसके ठीक उलट उसने अपना कालर छुङाने तक क
कोिशश नह क ।
मनोज कुछ देर उसे खँखू ार नजर से देखता रहा ।
िफ़र बोला - बता कौन ऐसा है जो अतृ नह है । तू मझु े कामवासना से तृ हआ, एक
भी आदमी औरत बता । तू मझु े धन से तृ हआ एक भी आदमी औरत बता । तू मझु े
सभी इ छाओ ं से हआ एक भी ब दा बता, िफ़र तू ही कौन सा तृ है ? कौन सी
यास तझु े यहाँ मेरे पास रोके हये है । साले मने कोई तझु से िम नते क या ? बोल ?
अब बोल..अतृ ।
- मनोज ! यिद तमु ऐसा सोचते हो । पदमा िहरनी जैसी बङी बङी काली आँख से
उसक आँख म झांक कर बोली - िक म तु हारे भाई से तृ नह होती तो तमु गलत
सोचते हो । दरअसल वहाँ तृ अतृ का ही नह है, वहाँ िसफ़ टीन है । पित को
यिद प नी शरीर क भख ू है तो प नी उसका िसफ़ भोजन है । वह जब चाहते ह, मझु े
नंगा कर देते ह और जो जैसा चाहते ह, करते ह ।
म एक खरीदी हयी वै या क तरह मोल चक ु ाये पु ष क इ छानसु ार बस आङी
ितरछी होती हँ ।
तमु यक न करो, उ ह मेरे अपवू सौ दय म कोई रस नह । मेरे अ सरा बदन म उ ह कोई
खािसयत नजर नह आती, उनके िलये म िसफ़ एक शरीर मा हँ । घर क मगु , जो
िकसी खरीदी गयी व तु क तरह उनके िलये मौजदू रहती है ।
अगर समझ सको तो, मेरे जगह साधारण श ल सरू त वाली, साधारण देहयि वाली
औरत भी उस समय हो, तो भी उ ह बस उतना ही मतलब है । उ ह इस बात से कोई
फ़क नह वह सु दर है, या िफ़र कु प । उस समय बस एक ी शरीर, यही हर पित क
ज रत भर है । और म उनक भी गलती नह मानती । उनके काम यवहार के समय म
खदु रोमािं चत होने क कोिशश क ँ तो मेरे अ दर भी कोई तरंग ही नह उठती जबिक
हमारी शादी को अभी िसफ़ चार साल ही हये ह ।
- एक िसगरे ट..। मनोज नदी क तरफ़ देखता हआ बोला - दे सकते हो ।
खामोश से खङे उस बढ़ू े पीपल के प े रह यमय ढगं से सरसरा रहे थे ।
काली छाया औरत जाने िकस उ े य से शा त बैठी थी और रह रहकर बीच बीच म
शमशान के उस आयताकार काले थान को देख लेती थी । जहाँ आदमी िज दगी के
सारे झझं ट को याग कर एक शाि त क मीठी गहरी न द म सोने के िलये हमेशा को
लेट जाता था ।
- तमु ने कभी सोचा मनोज ! पदमा जैसे बैठे बैठे थक कर उसके पास ही लेटती हयी
बोली - एक सु दर जवान औरत िकतनी आकषक लगती है । रंग िबरंगे लचकते
मचकते फ़ूल क डाली जैसी । तमु यान दो तो औरत के हर अगं से रस टपकता है ।
वह रस से लबालब भरी रसभरी होती है । होठ म रस, गाल म रस, आँख म रस,
छाितय म रस, जंघाओ ं म रस, नािभ म रस, िनत ब म रस, अदाओ ं म रस, वाणी म
रस, िचतवन म रस, सवाग रस ही रस । सोचो कोई एक थान बता सकते हो, जहाँ रस
ना हो ? पणू रसमय औरत, कृित का मधरु संगीत औरत, देव क अनठू ी कलाकृित
और वो जितन कहता था - माया, नारी सा ात माया । बताओ मझु म अिखर माया
वाली या बात है ?
- सनु ो बङे भाई ! मनोज उसक तरफ़ देखता हआ बोला - मने अब तक जो भी कहा ।
उसम तमु ऐसा एक भी श द बता सकते हो । जो झठू ा हो, अस य हो, िजसक
बिु नयाद न हो । इसीिलये म कहता हँ, ये दिु नयाँ साली एक पाख ड है । एक झठू पी,
बदबू मारते हये कूङे का ढेर जैसी । ये िजस जीने को जीना कहती है, वह जीना जीना
नह एक गटर लाइफ़ है । िजसम िबजिबजाते क ङे भी अपने को े समझते ह ।
जैसे ठीक उ टा हो रहा था, खरबजू ा छुरी को काटने पर आमादा था ।
वह उसका इलाज करना चाहता था । यह लङका खदु उसका इलाज िकये दे रहा था ।
उसक सोच झटका सा खाने लगी थी और उसक िवचारधारा जैसे चज ही हो जाना
चाहती थी ।
आज िज दगी म वह खदु को िकतना बेवश महससू कर रहा था ।
वह इस कहानी को अधरू ा भी नह छोङ सकता था, और परू ी कब होगी उसे कोई पता
न था । होगी भी या नह होगी, ये भी नह पता । उसक कोई भाभी है, नह है । कहाँ
है, कै सी है, कुछ पता नह । देखना नसीब होगा, नह होगा । आगे या होगा, कुछ भी
पता नह । या कमाल का लेखक था इसका । कहानी न पढ़ते बनती थी न छोङते
बनती थी । बस िसफ़ जो आगे हो, उसको जानते जाओ ।
- लेिकन तमु एक औरत को कभी नह जान सकते मनोज । पदमा उसका हाथ अपने
हाथ म लेकर सहलाती हयी बोली - जब तक िक वह खदु न चाहे िक तमु उसे जानो,
और िकतना जानो । िकसी औरत को ऐसा नंगा करना असंभव है, उसके पित के िलये
भी । वह िजसको पणू समिपत होती है, बस उसी के िलये नगं ी होती है, दसू रा कोई उसे
कभी नंगी कर ही नह सकता ।
उसका हाथ सहलाते हये पदमा ने अपने लगभग अधन न तन पर सटा िलया और
घटु ना उठाकर मोङा ।
उसक िस क मै सी घटु ने से नीचे सरक गयी, बस िफ़र वह मदु ा सी होकर रह गयी ।
अपनी हथेली से सटे उसके दिू धया गोल नोक ले तन से िनकलती उजा तरंग मनोज
के िज म म एक नयी अनभु िू त का सच ं ार करने लगी । वह अनभु िू त िजसक उसने
आज तक क पना भी नह क थी । मा एक िनि य रखा हाथ ी उरोज के िसफ़
पश से ऐसी सख ु ानभु िू त करा सकता है, शायद िबना अनभु व के वह कभी सोच तक
नह पाता ।
- भल ू जाओ.. भल ू जाओ, अपने आपको । उसे आँख ब द िकये पदमा क बेहद
मादक बदु बदु ाती सी धीमी आवाज सनु ाई दी - भल ू जाओ िक तमु या हो, भल ू
जाओ िक म या हँ, जो होता है, उसे होने दो । उसे रोकना मत ।
एक िव तु वाह सा िनर तर उसके शरीर म दौङ रहा था ।
उस पदिमनी के अ फ़ुट श द म एक जादू सा समाया था । वह वा तव म ही खदु को
भल ू ने लगा ।
उसे भाभी भी नजर नह आ रही थी । पदमा भी नजर नही आ रही थी, पदिमनी
नाियका भी नह ।
कोई औरत भी नह , बस एक ाकृितक मादक सा सगं ीत उसे कह दरू से आता सा
तीत हो रहा था - यास ..अतृ ..अतृ ।
वतः ही उसके हाथ, उंगिलयाँ, शरीर सब कुछ हलचल म आ गये ।
उसके हाथ ने मै सी को व से हटा िदया और आिह ता आिह ता वह उन साज पर
सरु ताल क सरगम सी छे ङने लगा ।
- आऽ..आऽ ! उस जीते जागते मयखाने बदन से उस अगं रू ी के मादक वर उठे -आऽ
.. यास .. अतृ ..।
- सोचो बङे भाई । वह ऊपर पीपल को देखता हआ बोला - इसम या गलत था ?
कोई जबरद ती नह । यिद अ छा न लग रहा हो, तो कहानी पढ़ना सनु ना ब द कर
सकते हो । पढ़ना मने इसिलये कहा, य िक ये कहानी तु हारे अ दर उतरती जा रही है
। इसिलये तमु मेरे बोले को िलखे क तरह सनु ने ारा पढ़ ही तो रहे हो ।
- छोङो मझु े । अचानक तभी पदमा उसे च काती हयी तेजी से उठी । उसने झटके से
उसका हाथ अपने तन से हटाया और मै सी के ब द सही से लगाती हयी बोली - ये
सब गलत है, म तु हारी भाभी हँ । ये अनैितक है, पाप है, हम नरक होगा ।
िनितन भ च का रह गया ।
अजीब औरत थी, ये लङका पागल होने से कै से बचा रहा ।
जबिक वह सनु कर ही पागल सा हो रहा था ।
वा तव म वह सही कह रहा था - कोई जबरद ती नह । यिद अ छा न लग रहा हो,
तो कहानी पढना सनु ना ब द कर सकते हो । और उसे समझ म ही नह आ रहा था िक
कहानी अ छी है या बरु ी । वह सनु े, या न सनु े ।
- च को मत राजा ! वह कजरारे नयन से उसे देखकर बोली - अब ये म हँ तु हारी
भाभी, पदिमनी पदमा । िफ़र वह कौन थी जो मादक आहं भर रही थी, और सोचो मेरे
िदलवर, ये तमु हो, लेिकन मेरे यौवन फ़ल का रस लेने वाला वह कौन था ? दरअसल
ये सब हो रहा है । जो अभी हआ, वो खदु हआ न । न मने िकया न तमु ने िकया, खदु
हआ, बोलो हआ िक नह ?
लेिकन अब हमारे सामािजक, नैितक बोध िफ़र से जागतृ हो उठे । िसफ़ इतनी ही बात
के िलये मझु े घोर नक होगा, तु ह भी होगा । िफ़र वहाँ हम दोन को त जलती
िवपरीत िलगं ी मिू तय से सैकङ साल िलपटाया जायेगा । य िक मने परपु ष का
सेवन िकया है और तुमने माँ समान भाभी का, और ये धािमक काननू के तहत घोर
अपराध है । लेिकन म तमु से पछ ू ती हँ, जब तुम मेरी छाितय का रस पी रहे थे और म
आन द म डूबी िससिकयाँ भर रही थी । तब या वहाँ कोई पदमा मौजदू थी, या कोई
भाभी थी । तब या वहाँ कोई मनोज मौजदू था, या कोई देवर था । वहाँ थे िसफ़ एक
ी और एक पु ष । एक दसू रे म समा जाने को आतरु । यासे.. यास ....अतृ । िफ़र
हम सजा िकस बात क , हम नरक य ?
उसे बहत बरु ा लग रहा था । ये अचानक उस बेरहम औरत ने या कर िदया । वह
बेखदु सा म ती क रसधार म बहा जा रहा था । वह सोचने लगा था िक वो उसको पणू
समिपत है पर यकायक ही उसने कै सा ितिल मी रंग बदला था ।
- बोलो जबाब दो मझु े, मनोज तमु जबाब दो मझु े । वह उसक आँख म आँख
डालकर बोली - अब कै सा लग रहा है तु ह, मने तो तु ह कुछ िदया ही, तु हारा कुछ
िलया या, िफ़र य बैचेन हो, य ऐसा लग रहा है, जैसे तमु से यकायक कुछ छीन
िलया गया । तु हारी चाह भटक कर रह गयी, तृ नह हयी, य अपने को अतृ
महससू कर रहे हो ?
- बोलो बङे भाई । मनोज बोला - है कोई जबाब ? उसने एक करारा तमाचा सा मारा
था । इस दिु नयाँ के काननू को, ये काननू जो मचलते जवान अरमान का िसफ़ गला
घ टना ही जानता है ।
िनितन को एक तेज झटका सा लगा ।
कमाल क कहानी है जो िनयम अनसु ार परू ी गलत है पर स चाई के धरातल पर परू ी
सही ।
या कहता वह । ये लङका और उसक अनदेखी अपरिचत नाियका भाभी मान
उसक परू ी िफ़लासफ़ ही बदल देना चाहते थे ।
उसे पर परागत धारणा से उपजे अपने ही तक म कोई दम नजर न आया ।
िफ़र भी वह िजद भरे खोखले वर म बोला - िकसी भी बात को अपने भाव अनसु ार
अ छे या बरु े म बदला जा सकता है । ज मदायी माँ को बाप क लगु ाई, िपता क
जो भी कह सकते ह और आदरणीय माँ भी कह सकते ह । माँ तनू े मझु े ज म िदया,
ऐसा भी कह सकते है और तेरे और िपता क वासनामयी भख ू का प रणाम हँ म, ऐसा
भी कह सकते ह । ये सब अपनी अपनी जगह ठोस स य ह, पर तमु कौन सा स य
पस द करोगे ? एक ही बात ि थित से बने भाव अनसु ार मधरु और त ख दोन हो
सकती है ।
- हँऽ ! मनोज ने एक गहरी सांस ली और वह ग भीर होकर िवचारम न सा हो गया ।
िफ़र उसने एक गहरा कश लगाया और ढेर सा धआ ँु ं बाहर िनकाला ।
सबु ह छह बजे से कुछ पहले ही पदमा उठी ।
अनरु ाग अभी भी सोया पङा था, मनोज हमेशा क तरह खल ु ी छत पर िनकल गया था
और क छा पहने कसरत कर रहा था ।
िन य िनवतृ होकर उसने अपने हर समय ही िखले िखले मँहु पर अजं ल ु ी से पानी के
छ टे मारे तो वे खबू सरू त गल
ु ाब पर ओस क बँदू से बने मोितय के समान चमक उठे
। वह अभी भी रात वाला िझंगोला ही पहने थी जो तन के पास से अधखल ु ा था ।
उसने चाय तैयार क और कमरे म अनरु ाग के पास आ गयी, पर उसक सबु ह अभी
भी नह हयी थी ।
उसक सबु ह शायद कभी होती ही न थी ।
एक भरपरू मीठी ल बी न द के बाद उ प न वतः उजा और नव फ़ूित का उसम
अभाव सा ही था ।
वह एक थका हआ इसं ान था । जो गधे घोङे क तरह िज दगी का बोझा ढो रहा था ।
वे दोन एक ही िब तर पर पास पास लेटते थे पर इस पास होने से शायद दरू होना बहत
अ छा था तब िदल को सबर तो हो सकता था ।
कल रात वह बेकल हो रही थी ।
घङी िटक िटक करती हयी यारह अक ं को पश करने वाली थी ।
यारह ! यानी एक और एक । एक पदमा, एक अनरु ाग, पर या इसम कोई अनरु ाग था
?
वह एक उमगती ी, और वह एक अलसाया बझु ा बझु ा पु ष ।
वह ह का ह का सा न द म था ।
घङी क छोटी सईु 54 िब दु पर थी बङी सईु 45 िब दु पर थी, सेके ड क सईु बैचेन
सी च कर लगा रही थी ।
हर सेके ड के साथ उसक बैचेनी भी बढ़ती जा रही थी ।
उसने अपनी ढीली ढाली मै सी को ऊपर से खोल िलया और उससे सटती हयी उसके
सीने पर हाथ फ़े रने लगी ।
- शऽ शी ऐऽ..सनु ो । वह फ़ुसफ़ुसाई ।
उसने हँ हाँ करते हये करवट बदला और पलट कर सो गया - बहत थका हँ.. पद..मा
सोने.. दे ।
वह तङप कर रह गयी । उसने उदास नजर से घङी को देखा ।
छोटी सईु ह का सा और सरक गयी थी और बङी सईु उसके ऊपर आने लगी थी ।
िफ़र बङी सईु ने छोटी को दबा िलया और छोटी सईु िमट सी गयी । सेके ड क सईु
खश ु ी से गोल गोल घमू ने लगी ।
िटकिटक .. यास ....अतृ ।
िकतना मधरु ता आन द से भरा जीवन है, बारह घ टे म बारह बार मधरु िमलन ।
िटकिटक .. यास .. तृ ....अतृ ..अतृ
- अब उठो न । वह उसे िझंझोङती हयी पणू मधरु ता से बोली - जागो मोहन यारे , कब
तु हारी सबु ह होगी, कब तमु जागोगे । देखो िचिङयाँ चहकने लगी, किलयाँ िखलने
लगी ।
वह हङबङाकर उठ गया । उसक आँख के सामने सौ दय क सा ात देवी थी ।
उसक बङी बङी काली आँख अनोखी आभा से चमक रही थी, उसके अधखल ु े
उरोज पि य के समान घोसल से बाहर िनकलने को य थे । पतली पतली काली
लट उसके सु दर चेहरे को चमू रही थी, खन खन बजती हयी चिू ङयाँ संगीत के सरु
छे ङ रही थी । उसके पतले पतले सखु रसीले होठ म एक यास सी मचल रही थी ।
- इस तरह.. या देख रहे हो ? वह फ़ुसफ़ुसा कर उसको चाय देती हयी बोली - म
पदमा हँ, तु हारी बीबी ।
वह जैसे मोिहनी स मोहन से बाहर आया और एक औपचा रक पित क भािं त उसके
िझगं ोले म तन को यँू ही इधर उधर दबाता हआ बोला - सारी यार ! बङा थक जाता
हँ । कभी कभी..म महससू करता हँ, तु ह समय नह दे पाता ।
- म.. जानती.. हँ । वह घंघु ओ ं क झंकार जैसे मधरु वर म बोली - लेिकन मझु े
िशकायत नह । बाद म ..ऐसा हो ही जाता है..सभी पु ष..ऐसा ही तो करते ह..िफ़र
उसको सोचना कै सा, है न ।
- बङे भाई ! मनोज उसको सपाट नजर से देखता हआ बोला - उस िदन मने हारा
हआ पु ष देखा । म नीचे उतर आया था । मेरा भाई परािजत यो ा, हारे हये जआु री के
समान लि जत सा नजर झक ु ाये उसके सौ दय क चमक से चकाच ध हो रहा था ।
प नी क जगमग जगमग आभा के सम आभाहीन पित । जबिक वह िबना िकसी
िशकायत के , िबना िकसी यं य के पणू ेमभाव से ही उसे देख रही थी । उसे जो
उसका पित था वामी..पितदेव ।
- बोलो । अचानक वह जोर से िच लाया - इसम या माया थी, िफ़र कोई जितन,
कोई साध,ु कोई धमशा इस देवी समान गणु यु ी को माया य कहते ह ? बोलो
जबाब दो ।
या देवी सवभतू े नम तु ये नम तु ये नम तु य ।
- िफ़र या हआ ? अचानक हैरतअगं ेज ढगं से िनितन के मँहु से वतः िनकल गया,
इतना िक अपनी उ सक ु ता पर उसे वयं आ य हआ ।
मनोज ने एक नजर आसमान पर चमकते तार पर डाली ।
आसमान म भी जैसे उदासी सी फ़ै ली हयी थी ।
अनरु ाग आिफ़स चला गया था । पदमा रसोई का सारा काम िनबटा चक ु थी ।
यारह बजने वाले थे लेिकन रोज क भांित आज वह बाथ म म नह गयी थी बि क
उसने एक परु ानी झीनी मै सी पहन ली थी और हाथ म ड डा लगा बङा सा झाङू
उठाये दीवाल परद आिद को साफ़ कर रही थी ।
- िनितन जी ! मने एक अजीब सी कहानी सनु ी है । वह िफ़र बोला - पता नह य ,
मझु े तो वह बङा अजीब सी ही लगती है । एक आदमी ने एक शेर का ब चा पाल
िलया, लेिकन वह उसे कभी माँस नह िखलाता था । खनू का नमक न नमक न वाद
उसके मँहु को न लगा था । वह सादा रोटी दधू ही खाता था । िफ़र एक िदन शेर को
अपने ही पैर म चोट लग गयी और उसने घाव से बहते खनू को चाटा । खनू , नमक न
खनू । उसका वाद, अदभतु वाद । उसके अ दर का असली शेर जाग उठा । शेर के
मँहु को खनू लग गया । उसने एक शेर दहाङ मारी और...।
पदमा बङी त लीनता से धल ू झाङ रही थी । वह झाङू को रगङती, फ़ट फ़ट करती
और धल ू उङने लगती, िकतनी कुशल गहृ णी थी वो ।
वह उस िदन का नमक न वाद भल ू ा न था ।
उसके सीने क गमाहट अभी भी उसके शरीर म रह रहकर दौङ जाती । वह उन
अनमोल र न को देखने के िलये िफ़र से यासा होने लगा पर वह उसक तरफ़ पीठ
िकये थी । उसके लहराते ल बे रे शमी बाल उसके िवशाल िनत ब को पश कर रहे थे

- तमु ने कभी सोचा मनोज ! पदमा क झंकार जैसी आवाज िफ़र से उसके कान म
गँजू ी - एक सु दर जवान औरत िकतनी आकषक लगती है । रंग िबरंगे लचकते
मचकते फ़ूल क डाली जैसी । तमु यान दो तो औरत के हर अंग से रस टपकता है ।
वह रस से लबालब भरी रसभरी होती है । होठ म रस, गाल म रस, आँख म रस,
छाितय म रस, जघं ाओ ं म रस, नािभ म रस, िनत ब म रस ।
िकतना सच कहा था उसने, इस लकते रस को उसने जाना ही न था । वह
िच िलिखत सा खङा रह गया ।
एक आवरण रिहत सु दरता क मिू त जैसे उस नाममा क मै सी के झीने पद के पार
थी और तबसे बराबर उसक उपे ा सी कर रही थी, उसे अनदेखा कर रही थी । वह
चाह रहा था वह िफ़र से नान करे । िफ़र से उसे अगं क झलक िदखाये, िफ़र से
उसक आँख म आँखे डाले पर वह तो जैसे यह सब जानती ही न थी ।
बारबार पारदश पद क तरह िहलती ऊपर नीचे होती मै सी । और उसके पार खङी
वो वीनस, सु दरता क मिू त ।
उससे ये उपे ा सहन नह हो रही थी । उसके कदम खदु ब खदु बढ़ते गये ।
वह उसके पास गया और पीछे से एकदम सटकर खङा हो गया । उसके नथनु से
िनकलती गम भाप पदमा क गदन को छूने लगी ।
- या हआऽ । वह फ़ुसफ़ुसाई और िबना मङु े ही क ककर बोली - बैचेन हो या,
तु हारे अगं का नकु ला कठोर पश.. मझु े पीछे महससू हो रहा है ।..पणू पु ष, या
तमु एक ी को आनि दत करने वाले हो ।
- ह हाँ । उसका गला सा सखू ने लगा - समझ म नह आता कै सा लग रहा है । शरीर म
अ ात धाराय सी दौङ रही है, और ये खदु तमु से आकर आिलंिगत हआ है..कािमनी ।
- भल ू जाओ.. भल ू जाओ.. अपने आपको । वह बेहद कामक ु झंकृत वर म बोली -
भल ू जाओ िक तमु या हो, भल ू जाओ िक म या हँ । जो वयं होता है होने दो, उसे
रोकना मत ।
वयं ! वयं उसके हाथ पदमा के इद िगद िलपट गये ।
वह अपने शरीर म एक तफ़ ू ान सा उठता हआ महससू कर रहा था । उसे कोई सधु बधु
न रही, बस तेजी से चलती सासं ही वह सनु समझ पा रहा था । उसके हाथ वयं पदमा
क नािभ से नीचे िफ़सलने लगे । एक मखमली दबू जैसे रे शमी मल ु ायम अहसास से
झंकृत होता हआ वह बारबार उस िचकनी ढलान पर िफ़सलने लगा ।
- आऽ ..! उसक खनकती आवाज म जैसे कामगीत बजा - आऽ.. यास..अतृ ,
..मत..आऽ ।
- औरत के हर अगं से रस टपकता है । पदमा के श द िफ़र उसके िदमाग म गँजू े - वह
रस से लबालब भरी रसभरी होती है..होठ म रस, गाल म रस, आँख म रस, छाितय
म रस ।
उसके हाथ मै सी के ब द पर गये और मै सी क ध से नीचे सरक गयी । झीने परदे के
पार खङी वीनस सा ात हो उठी ।
उसम एक अजीब सी िहसं कता वतः जाग उठी । शेर के मँहु को खनू लग गया और
उसने अपने मजबतू पंज म उसके तन को दबोच िलया । एक ताकतवर भख ू ा शेर
और उसके खँख ू ार पंज म कसमसाती नाजक ु िहरनी ।
आऽ..मा.. यास..तृ ..अतृ ।
पदमा का व तेजी से ऊपर नीचे हो रहा था । वह यासी नािगन क भांित कसकर
उससे िचपक गयी ।
- य पढ़ रहे हो ये घिटया, व गर, चीप, अ ील, पोन, से सी, कामक ु , स ती सी
वािहयात कहानी । वह सीधे उसक आँख म भावहीनता से देखता हआ बोला - यही
श द देते हो ना तमु , ऐसे वणन को । पाख डी पु ष, तमु भी तो उसी समाज का िह सा
हो, जहाँ इसे घिटया, अनैितक, विजत, ितबिं धत, हेय मानते ह । िफ़र या रस आ
रहा है तु ह इस कहानी म ।..गौर से सोचो तुम उसी ईिडयट सोसाइटी का अटूट िह सा
हो । उसी मख ू दोगले समाज का अगं हो, जहाँ िदमाग म तो यही सब भरा है । हर छोटे
बङे सभी क चाहत यही है, पर बात उ च िस ातं , आदश और नैितकता क है ।
बङे भाई ! िकसी मेमोरी िचप क तरह यिद ने िचप को भी पढा जा सकता तो हर
पु ष नंगा हो जाता और हर ी नंगी । हर ी क िचप म नंगे पु ष क फ़ाइल ओपन
होती और हर पु ष क िचप म खल ु ती, बस नगं ी औरत । यास ..अतृ ।
िनितन हैरान रह गया ।
उसक इस मानिसकता को या श द दे ।
ने वािशगं या ने फ़ िडंग या कोई स मोहन या उस कयामत ी का जादू या प का
वशीकरण या ी पु ष के रोम रोम म समायी ी पु ष क अतृ चाहत या िफ़र एक
महान सच ।
- म..नोज..कै सा लग ..रहा है । वह थरथराती आवाज म बोली - तु ह..आऽ..तमु मारे
दे रहे हो । उऽ आन द है ।
- अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः । उसके िदमाग म भतू काल क पदमा आकृित
उभरी । साङी का प लू कमर म ख से हये वह नजाकत से खङी हो गयी और बोली -
इनको वर कहते ह । हर ब चे को शु से यही िसखाया जाता है । पढ़ाई का पहला
वा ता इ ही से है, पर तमु इनका असली रह य जानते हो ?
वर यानी आवाज । विन, काम विन, सी कार, अतृ श द..अतृ ।
नह समझे । िफ़र से उसक पतली पतली भ हरे ख िकसी तीर का ल य साधते हये
कमान क तरह ऊपर नीचे हय - एक सु दर, इठलाती, मदमदाती औरत के मख ु से इन
वर अ र क संगीतमय अ दाज म क पना करो । जैसे वह आन द म िससिकयाँ भर
रही हो । अऽ आऽ इऽ ईऽ उऽ ऊऽ ओऽ देखोऽ..वह महीन मधरु झनकार सी झनझन
होती हयी बोली - हर अ र को मीठे कामरस से सराबोर कर िदया गया है न । सोचो
य ?.. काम ।.. काम ही तो हमारे शरीर म िबजली सा दौङता है । हाँ, ज म से ही, पर
हम समझ नह पाते । इन वर विनय म वही उमगता काम ही तो गँजू रहा है ।
काम िसफ़ काम..अतृ ।
िफ़र इ ही श द के आधार पर यंजन प विन बनती है । क, ख म अ और वासना
वायु क गजंू है या नह । बस थोङा सा यान से देखो िफ़र इन काम वर और यंजन
के मधरु िमलन से इस सु दर संसार क रचना होती है । गौर से देखो तो ये परू ा रंगीन
मोहक संसार इसी छोटी सी वणमाला म समािहत है न ।
यास .. यास .. अतृ ।
- कमाल क ह, मनोज जी आपक भाभी भी । िनितन हँसते हँसते मान पागल हआ
जा रहा था - आय िथंक, िकसी भाषाशा ी, िकसी महािव ान ने भी वर रह य को
इस कोण से कभी न जाना होगा । लेिकन अब मझु े उ सक ु ता है, िफ़र या हआ ?
आज रात यादा हो गयी थी ।
आसमान िबलकुल साफ़ था और रात का शीतल शा त काश बङी सख ु द अनभु िू त
का अहसास करा रहा था ।
काली छाया औरत बढ़ू े पीपल के तने से िटक कर वैसे ही शा त खङी थी ।
िनितन के ी रिहत बृ चय शरीर, मन मि त क म ी तेजी से घल ु ती सी जा रही थी ।
एक िदलच प रोचक आकषक िकताब क तरह । िकताब, िजसे बहत कम लोग ही
सही पढ़ पाते ह । िकताब, िजसे बहत कम लोग ही सही पढ़ना जानते ह । बहत कम ।
- लेिकन पढ़ना बहत किठन भी नह । पदमा अपना हाथ उसके शरीर पर घमु ाती हयी
बोली - एक व थ िदमाग, व थ अगं वाली, खबू सरू त औरत खल ु ी िकताब जैसी
ही होती है । एक नाजक ु और प ना प ना रंग िबरंगी अ पना क पना से सजी सु दर
सजीली िकताब । िजसके हर पेज पर उसके सौ दय और जवानी क मादक किवता
िलखी है । बस पढ़ना होगा, िफ़र पढ़ो ।
पर उसक हालत बङी अजीब थी । वह इस नैसिगक सगं ीत का सा रे गा मा भी न
जानता था ।
उसे तो बस ऐसा लग रहा था जैसे एकदम अनाङी इसं ान को उङते घोङे पर सवार करा
िदया हो । लगाम कब ख चनी है कहाँ ख चनी है, घोङा कहाँ मोङना है, कहाँ सीधा
करना है, कहाँ उतारना है, कै से चढ़ाना है । उसे कुछ भी पता न था, कुछ भी ।
अचानक वह मादकता से चलती हयी िब तर पर चढ़ गयी और आँखे ब द कर ऐसी
मदु ा पङ गयी । जैसे थकन से बेदम हो गयी हो ।
वह ह का ब का सा इस तरह उसके पास िखंचता चला गया जैसे घोङे क लगाम
उसी के हाथ हो ।
- भल ू जाओ..अपने आपको । वह जैसे बेहोशी म बदु बदु ाई - भल ू जाओ िक तमु या
हो । भलू जाओ िक म या हँ । जो होता है होने दो, उसे रोकना मत ।
वयं ! वह हैरान था ।
वह िकतनी ही देर से उसके सामने आवरण रिहत थी । लेिकन िफ़र भी वह उसको
ठीक से देख न सका था । वह उसके अधखल ु े तन को प देखता था तब उनक
एकदम साफ़ त वीर उसके िदमाग म बनती थी । वह उसके लहराते बाल को प
देखता था तब उसे िघरती घटाय साफ़ िदखाई देती थी । वह उसके रसीले होठ को
प देखता था तब स तरे क ख ी मीठी िमठास उसके अ दर वतः महससू होती थी
। जब वह उसको टुकङा टुकङा देखता था । तब वह पणू ता के साथ नजर आती थी ।
और आज जब वह िकताब क तरह खदु ही खल ु गयी थी तब उसे कुछ भी िदखाई
नह दे रहा था । कुछ भी तो नह ।
उसने िफ़र से भतू काल के िबखरे श द को जोङने क कोिशश क - तमु यान दो तो
औरत के हर अगं से रस टपकता है । वह रस से लबालब भरी रसभरी होती है । होठ
म रस, गाल म रस, आँख म रस, छाितय म रस, जघं ाओ ं म रस, नािभ म रस,
िनत ब म रस ।
पर कहाँ था कोई रस । िजनम रस था, अब वो अगं ही न थे । बि क कोई अगं ही न
था, अगं हीन ।
बस हवा म फ़ङफ़ङाते खल ु े प न क िकताब, और वहाँ बस वासना क हवा ही बह
रही थी । कृित म समाई सु दर िखले नारी फ़ूल क मनमोहक खश ु बू िजसको वह
मतवाले भवं रे के समान अपने अ दर ख च रहा था ।
िफ़र कब वह उ टी हयी, कब वह सीधा हआ । कब वह ितरछी हयी, कब वह टेङा
हआ । कब वह उसको मसल देता, कब वह चीख उठती । कब वह उसको दबा
डालता, कब वह कलाबािजयाँ सी पलटती । कब वह उसको काट लेता, कब वे खङे
होते, कब लेट जाते । कब वह उसम चला जाता । कब वह उसम आ जाती ।
कब..कब, ये सब कब हआ, कौन कह सकता है ? वहाँ इसको जानने वाला कोई था
ही नह । थी तो बस वासना क गँजू ।
आऽ ..आऽ! आऽइ .. यास .. अतृ ..अतृ ।.... मत..आऽ।
- बङे भाई ! वह िसगरे ट का कश लेता हआ बोला - म अब अ दर कह स तु था, म
उसके काम आया था । म अब स तु था, भाई क पराजय को भाई ने दरू कर िदया था
। नैितक अनैितक का गिणत म भल ू चक
ु ा था । खश
ु ी बस इस बात क थी िक सवाल
हल हो गया था । सवाल, उलझा हआ सवाल ।
मने देखा । वह अधलेटी सी न न ही शू य िनगाह से दीवाल पर िचपक िछपकली को
देखे जा रही थी । जो बङी सावधानी सतकता से पतंगे पर घात लगाये जहरीली जीभ
को लपलपा रही थी । उसक आँख म खौफ़नाक चमक लहरा रही थी और उसक
आँखे अपलक थी । एकदम ि थर, मदु ा..सफ़े द.. याह..शू य आँख ।
म उसके पास बैठ गया और बेमन से उसके तन का कठोर मदन करता हआ बोला -
अब यास तो नह । य हो कोई अतृ । ख म, कहानी ख म ।
यकायक उसके मँहु से तेज फ़ुफ़कार सी िनकली । उसक आँख दोगनु ी हो गयी ।
उसका चेहरा काला, बाल खे और उलझे हो गये । उसक सम त पेिशयाँ िखच ं उठी
और वह िकसी बदसरू त िघनौनी चङु ै ल क तरह दांत पीसने लगी ।
- मख ू ! वह गरु ाकर बोली - औरत कभी तृ नह होती, िफ़र तू या उसक वासना
को तृ करे गा । तू या कहानी ख म करे गा ।
- बङे भाई ! वह अजीब से वर म बोला - म हैरान रह गया ।
वह कह रही थी ।.. कमाल क कहानी िलखी है इस कहानी के लेखक ने । जितन..
कहानी जो उसने शु क , उसे कोई और कै से ख म कर सकता है । ये कहानी है
सौ दय के ितर कार क । चाहत के अपमान क , यार के िनरादर क । जजबात पर
कुठाराघात क । वह कहता है म माया हँ, ी माया है, उसका सौ दय मायाजाल है,
और ये कहानी बस यही तो है ।
पर..पर म उसको सािबत करना चाहती हँ - म माया नह हँ, म अभी यही तो सािबत
कर रही थी तेरे ारा, पर तू फ़े ल हो गया और तनू े मझु े भी फ़े ल करवा िदया । जितन
िफ़र जीत गया, य िक .. वह भयानक वर म बोली - य िक त.ू .तू फ़ँ स गया न मेरे
मायाजाल म ।
अब गौर से याद कर कहानी । मने कहा था, म जितन से यार करती थी, पर वह कहता
था, ी माया है । ये मने तझु े कहानी के शु म बताया, म य म बताया । इशारा िकया,
िफ़र मने तझु पर जाल फ़का, दाना डाला और तझु से अलग हट गयी । िफ़र भी तू
िखच ं ा चला आया और खदु जाल म फ़ँ स गया । मेरा जाल, मायाजाल ।.. वह फ़ूट फ़ूट
कर रो पङी - जितन तमु िफ़र जीत गये, म िफ़र हार गयी । ये मख ू लङका मझु से
भािवत न हआ होता, तो म जीत..गयी होती ।
िनितन ह का ब का रह गया ।
देवर भाभी ेमकथा के इस अ त क तो कोई क पना ही न हो सकती थी ।
- सोचो बङे भाई । वह उदास वर म बोला - म हार गया इसका अफ़सोस नह , पर
तमु भी हार गये, इसका है । मने कई बार कहा, य पढ़ रहे हो इस कामक ु कथा को ।
िफ़र भी तमु पढ़ते गये, पढ़ते गये । उसने जो सबक मझु े पढ़ाया था, वही तो मने तमु पर
आजमाया । पर तमु हार गये, और ऐसे ही सब एक िदन हार जाते ह, और जीवन क ये
वासना कथा अित भयानकता के साथ ख म हो जाती है ।
िनितन को तेज झटका सा लगा ।
वह जो कह रहा था । उसका ग भीर दाश भाव अब उसके सामने एकदम प हो गया
था ।
वह उसे रोक सकता था, कहानी का ख मोङ सकता था और तब वह जीत जाता ।
और कम से कम तब मनोज उदास न होता, पर वह तो कहानी के बहाव म बह गया ।
ये िकतना बङा स य था ।
मनोज क आँख से आँसू बह रहे थे ।
अब जैसे उसे कुछ भी सनु ाने का उ साह न बचा था ।
िनितन असमंजस म उसे देखता रहा । उसने मोबायल म समय देखा, रात का एक बज
चकु ा था ।
चाँद ऊपर आसमान से जैसे इन दोन को ही देख रहा था । काली छाया भी जैसे उदास
सी थी और अब जमीन पर बैठ गयी थी ।
चलो हार जीत कुछ भी हआ । इसका भाभी परु ाण तो समा हो गया । िनितन ने सोचा
और बोला - ये शमशान म तं दीप ..मेरा मतलब ।
- तु ह िफ़र गलतफ़हमी हो गयी । वह रह यमय आँख से उसे देखता हआ बीच म ही
बोला - कहानी अभी ख म नह हयी । कमाल क कहानी िलखी है इस कहानी के
लेखक ने । कहानी जो उसने शु क , उसे कोई और कै से ख म कर सकता है ?
िजसक कहानी वही इसे ख म करे गा ।
लेिकन अबक बार वह सतक था ।
एक बार िकसी बात पर कोई पागल बन जाये । कोई बात नह । सबके साथ ही हो
जाता है ।
दोबारा िफ़र उसी बात पर पागल बन जाये । चलो जानते हये भी ठोकर लग गयी ।
मजबतू ी आ गयी, यही जीवन है ।
लेिकन तीसरी बार िफ़र उसी बात पर पागल बन जाये । उसे पागल ही कहा जायेगा
और अब वह पागल हरिगज नह बनना चाहता था ।
- मनसा जोगी । वह मन ही मन बोला - र ा कर ।
- इसीिलये मने कहा था न, तु ह िफ़र गलतफ़हमी हो गयी । वह एक नयी िसगरे ट
सलु गाता हआ बोला - कहानी अभी ख म नह हयी बि क इसे यँू कहो, कहानी अब
शु हयी । रात आधे से यादा हो रही है । परू ा शहर सो रहा है और िसफ़ हम तीन
जाग रहे ह, तो या िकसी लू िफ़ म सी इस कामक ु कथा का रस लेने के िलये ।
अभी वह ‘हम तीन’ क बात पर च का ही था िक मनोज बोला - ये बढ़ू ा पीपल, ये
पीपल भी तो हमारे साथ है ।
िनितन ने चैन क सासं ली ।
एक और सं पस ि येट होते होते बचा था ।
लेिकन हम तीन सनु ते ही उसक िनगाह सीधी उस काली छाया औरत पर गयी जो
अब भी वैसी ही शाि त से बैठी थी ।
कौन थी यह रह यमय अशरीरी ह ?
या इसका इस सबसे कोई स ब ध था या ये महज उनके यहाँ य होने क उ सक ु ता
वश ही थी ।
कुछ भी हो एक अशरीरी छाया को उसने पहली बार बहत िनकट से देर तक देखा था,
और देखे जा रहा था ।
लेिकन िकतना बेवश भी था वो । अगर मनोज वहाँ न होता तो वह उससे बात करने
क कोई कोिशश करता ।
एक वायु शरीर से पहली बार स पक का अनभु व करता जो िक इस लङके और
उसक ऊँटपटागं कहानी के चलते न हो पा रहा था । एक मामल ू ी िज ासा से बढ़ गयी
कहानी िकतनी नाटक य हो चली थी । समझना किठन हो रहा था और कभी कभी तो
उसे लग रहा था िक वा तव म कोई कहानी है ही नह । ये लङका मनोज िसफ़ चरस
के नशे का आदी भर है ।
- िनितन जी ! अचानक वह सामा य वर म बोला - अगर आप सोच रहे ह िक म
आपको उलझाना चाहता हँ और मझु े इसम कोई मजा आता है, या म कोई नशा वशा
करता हँ तो सारी, आप िफ़र गलत ह । तब आपने मेरे श द पर यान नह िदया
- और उसी के िलये मझु े समझ म नह आता िक म िकस तरह के श द का योग
क ँ , जो अपनी बात ठीक उसी तरह से कह सकँू । जैसे वह होती है । पर म कह ही
नह पाता । ..हाँ, यही सच है । अचानक ही सामा य या खास श द अपने आप मेरे
मँहु से िनकलते ह । यिद सामा यतया म इ ह कहना चाहँ तो नह कह सकता ।
ब द गली, ब द घर, जमीन के नीचे, अधं रे ा ब द कमरा ।
िनितन वाकई ह का ब का रह गया ।
या वी पर कोई यवु ती इतनी सु दर भी हो सकती है ? अक पनीय, अवणनीय !
या हआ होगा । जब यौवन िवकास काल म यह लहराती पतंग क तरह उङी होगी ।
गलु ाबी किलय सी चटक होगी । अधिखले फ़ूल सी महक होगी । गदराये फ़ल
जैसी फ़ूली होगी, या हआ होगा ? या हआ होगा जब इसक मादक अदाओ ं ने
िबजिलयाँ िगरायी ह गी । ितरछी िचतवन ने छु रयाँ चलायी ह गी । इसक लचक
मचक चाल से मोरिनयाँ घबरायी ह गी । इसके इठलाते बलखाते बल से नाजक ु
लताय भी आभाहीन हयी ह गी । लगता ही नह ये कोई ी है, ये तो अ सरा ही है ।
र भा या मेनका या लोचना या उवशी । जो वग से म य देश क धरती पर उतर
आयी, िफ़र य न इस पर गं ार गीत िलखे गये । य न इस पर ेम कहािनयाँ गढी
गय , य न िकसी िच कार ने इसे के नवास पर उतारा, य न िकसी मिू तकार ने इसे
िश प म ढाला, य य ?
य िक ये किव के गं ार श द , ेम कथा के रसमय सवं ाद , िच तिू लका के रंग
और संगेमरमर के मिू त िश प म समाने वाला सौ दय ही न था । ये उ मु , रसीला,
नशीला, मधरु , तीखा, ख ा, चटपटा, अनपु म असीम सौ दय था ।
वाकई, वाकई वह जङवत होकर रह गया ।
पहले वह सोच रहा था । िकशोराव था के नाजक ु रंगीन भाव के क पना दौर से ये
लङका गजु र रहा है और इसक कामवासना ही इसे इसक भाभी म बेपनाह सौ दय
िदखा रही है, पर अब वह खदु के िलये या कहता ? य िक पदमा काम से बनी
क पना नह , सौ दय क अनपु म छटा िबखेरती हक कत थी । एक स मोिहत कर देने
वाली जीती जागती हक कत, और वो हक कत अब उसके सामने थी ।
- िनितन जी ! अचानक उसक बेहद सरु ीली मधरु आवाज क खनखन पर वह च का
- कहाँ खो गये आप, चाय लीिजये न ।
- प, सु दर प, प क देवी, पमती, पमाला, पसी, पशीला, प कुमारी,
पच ा, पवती, पा, प ही प, हर अंग रंगीली, हर रंग रंगीली, हर संग रंगीली,
प छटा, प आभा, चार और प ही प िकन श द का चयन करे वो, ख चता
प, बाँधता प ।
कै से बच पाये वो । वह खोकर रह गया ।
यकायक..यकायक उसे झटका लगा - कमाल क कहानी िलखी है इस कहानी के
लेखक ने । जितन.. कहानी जो उसने शु क उसे कै से कोई और ख म कर सकता है ।
ये कहानी है सौ दय के ितर कार क । चाहत के अपमान क , यार के िनरादर क ।
जजबात पर कुठाराघात क । वह कहता है म माया हँ, ी माया है, उसका सौ दय
बस माया जाल है । और ये कहानी बस यही तो है । पर..पर म उसको सािबत करना
चाहती हँ - म माया नह हँ । म अभी यही तो सािबत कर रही थी, तेरे ारा । पर तू फ़े ल
हो गया, और तनू े मझु े भी फ़े ल करवा िदया । जितन िफ़र जीत गया । य िक .. य िक
तू .. तू फ़ँ स गया ना, मेरे मायाजाल म ।
- मनसा जोगी ! वह मन ही मन सहम कर बोला - र ा कर ।
- अब गौर से याद कर कहानी । उसके कान म िफ़र से भतू काल बोला - मने कहा था
। म जितन से यार करती थी । पर वह कहता था, ी माया है । ये मने तझु े कहानी के
शु म बताया, म य म बताया, इशारा िकया । िफ़र मने तझु पर जाल फ़का, दाना
डाला । और तझु से अलग हट गयी । िफ़र भी तू िखच ं ा चला आया, और खदु जाल म
फ़ँ स गया । मेरा जाल, मायाजाल ।.. जितन तुम िफ़र जीत गये । म िफ़र हार गयी । ये
मखू लङका मझु से भािवत न हआ होता, तो म जीत..गयी होती ।
उसे िफ़र झटका सा लगा । अब ठीक यही तो उसके साथ भी हआ जा रहा है ।
उसका भी हाल वैसा ही हो रहा है ।
शमशान म जलते तं दीप से बनी सामा य िज ासा से कहानी शु तो हो गयी । पर
अभी म य को भी नह पहँची, और अ त का तो दरू दरू तक पता नह । कमाल क
कहानी िलखी है, इस कहानी के लेखक ने ।
उसने अपनी समचू ी एका ता को के ि त िकया और बङी मिु कल से उस पसी से
यान हटाया ।
कल रात वे दोन चार बजे लौटे थे । मनोज सामा य हो चक ु ा था । वह उसे उसके घर
छोङ आया था और िफ़र अपने घर न जाकर सीधा मनसा क कुिटया पर जाकर सो
गया था ।
सबु ह वह कोई दस बजे उठा ।
- इसम कोई हैरानी वाली बात नह मेरे ब चे । उसक बात सनु कर मनसा कतई
अ भािवत वर म बोला - ये जीवन का असली गिणत है । गिणत ! िजसके सही सू
पता होने पर िज दगी का हर सवाल हल करना आसान हो जाता है । एक सामा य
मनु य दरअसल त ण उपि थित चीज से हर ि थित का आंकलन करता है । जैसे
कोई झगङा हआ, तो वह उसी समय क घटना और ि या पर िवचार िवमश करे गा ।
पर य य खोजेगा, झगङे क जङ भतू काल म दबी होगी । जैसे कोई यकायक रोगी
हआ तो वह सोचेगा । अभी क इस गलती से हआ पर ऐसा नह । रोग क जङ कह
भतू काल म पनप रही होगी । धीरे धीरे ।
- म कुछ समझा नह । वह उलझकर बोला - आपका आशय या है ?
- हँऽ । जोगी िवचार यु भाव से गहरी सासं लेकर बोला - मेरे कहने का मतलब है ।
आज जो तु हारे सामने है । उसक जङ, बीज कह दरू भतू काल म ह, और तु हारे
िलये अ य भिू म म अक ं ु रत हो रहे ह । धीरे धीरे बढ़ रहे ह । म सीधा तु हारे के स पर
बात करता हँ । पदमा के रह य क हक कत जानने के िलये तु ह भतू काल को देखना
होगा । उसक िज दगी के िपछले प ने पलटने ह गे । अब उनम कुछ भी िलखा हो
सकता है । मगर उस इबारत को पढ़कर ही तुम कुछ या सब कुछ जान पाओगे । अब
ये तमु पर िनभर है िक तमु या कै से और िकतना पढ़ पाते हो ?
- पर । उसने िजद सी क - इसम पढ़ने को अब बाक या है ? पदमा तीस साल क है
। िववािहत अित सु दर । उसका एक देवर है, पित है । बस । वह अपने पित से न
स तु है, न अस तु ।
लेिकन अपनी त णाई म वह िकसी जितन से यार करती थी । मगर वह साधु हो गया ।
बस अपने उसी पहले यार को वह िदल से िनकाल नह पाती । य िक कोई भी
लङक नह िनकाल पाती ।
.. और शायद उसी यार को हर लङके म खोजती है । य िक पित म ऐसा ेमी वाला
यार खोजने का सवाल ही नह उठता । पित और ेमी म जमीन आसमान का अतं र
होता है ।..इसके िलये वह िकसी लङके को आकिषत करती है । उसे अपने साथ
खेलने देती है । यहाँ तक िक काम धारा भी बहने लगती है । यकायक वह िवकराल हो
उठती है । और तब सब सौ दय से रिहत होकर वह िघनौनी और कु प हो उठती है ।
उसक मधरु सरु ीली आवाज भी चङु ै ल जैसी भयानक िवकृत हो उठती है ।
अब रहा उस तं दीप का सवाल ।
कोई साधारण आदमी भी जान सकता है । वह कोई ेतक उपचार है । कोई हानी
बाधा ।
बस एक रह य और बनता है । वह काली छाया औरत ।
लेिकन मझु े वह भी कोई रह य नह लगती ।
वह वह शमशान म रहने वाली कोई साधारण ी ह हो सकती है । जो उस वीराने म
हम दोन को देखकर महज िज ासावश आ जाती होगी । य िक उसने इसके अलावा
कभी कोई और रये शन नह िकया, या शायद इसं ानी जीवन से दरू हो जाने पर उसे दो
मनु य के पास बैठना सख ु द लगता हो ।
- िशव िशव । मनसा आसमान क ओर दआ ु के अ दाज म हाथ उठाकर बोला - वाह
रे भु ! तू कै सी कै सी कहानी िलखता है । मेरे ब चे क र ा करना, उसे सही राह
िदखाना ।
- सही राह । उसने सोचा और बहत देर बाद एक िसगरे ट सल ु गायी - कहाँ हो सकती है
सही राह । इस घर म, पदमा के पीहर म, या अनरु ाग म, या उस जितन म, या िफ़र कह
और ?
एकाएक िफ़र उसे झटका लगा ।
उसे िसगरे ट पीते हये पदमा बङे मोहक भाव से देख रही थी । जैसे उसम डूबती जा रही
हो ।
िसगरे ट का कश लगाने के बाद जब वह धयँु े के छ ले छोङता तो उसके सु दर चेहरे
पर मिृ त िवरह के ऐसे आकषक भाव बनते । मान उन छ ल म िलपटी हयी ही वह
गोल गोल घमू ती उनके साथ ही आसमान म जा रही हो ।
वह घबरा गया । उसक एक ि मा से घबरा गया । ऐसे या देख रही थी वह, और
य देख रही थी वह ?
- जितन जी भी ! वह दरू अतीत म कह खोयी सी बोली - िसगरे ट पीते थे । मझु े उ ह
िसगरे ट पीते देखना बहत अ छा लगता था, तब म महससू करती थी िक िसगरे ट क
जगह म उनके ह ठ से िचपक हयी हँ, और हर कश के साथ उनके अ दर उतर रही हँ
। उतरती ही जा रही हँ । मेरा अि त व धआ ँु धआ ँु हो रहा है, और म धआ
ँु के छ ले
सी ही गोल गोल आकाश म जा रही हँ ।
िनितन के िदमाग म एक भयक ं र िव फ़ोट सा हआ । उसके अि त व के मान परख चे
से उङ गये ।
कमाल क औरत थी ।
उसने मामल ू ी िसगरे ट पीने म ही इतना कामभाव डाल िदया िक उसे तीवृ उ ेजना सी
महससू होने लगी ।
वह उसका के स जानने आया था, पर अब उसे लग रहा था । वह खदु के स होने वाला
है ।
इसका तो बङे से बङा डा टर भी इलाज नह कर सकता, ये िवकट भोगी औरत तो
उ टा उसे ही मरीज बना देगी ।
भाङ म गयी ये देवर भाभी रह य कथा, और भाङ म गयी ये सी आई डी िक तं दीप
या, छाया औरत या ? यहाँ उसे अपने वजदू बचाने के लाले थे । उसने तय िकया,
अब इस च कर म कोई िदलच पी नह लेगा, य िक ये उसके बस का है भी नह ।
- वैसे कुछ भी बोलो । तब वह जान छुङाने के उ े य से जाने का िन य करता हआ
अि तम औपचा रकता से बोला - जितन जी ने आपका िदल तोङकर अ छा नह
िकया ।
- डांट माइडं ! बट शटअप िम. िनितन । वह शटअप भी ऐसी िदलकश अदा से बोली
िक वह िफ़र िवचिलत होने लगा - मझु े जितन क बरु ाई सनु ना कतई बदा त नह ।
अगेन डांट माइडं । िबकाज यू आर फ़ु ली फ़ूल । सोचो, अगर वो ऐसा न करते, तो
िफ़र इतनी िदलच प कहानी बन सकती थी ? या कमाल क कहानी िलखी उ ह ने ।
और ये खल ु ा चैलज था उसके िलये, जैसे वह उसका मतलब समझ गयी थी, और कह
रही थी, इस कहानी के तारत य को आगे बढ़ाना, और उसके सू जोङना, तमु जैसे
ब च का खेल नह ।
उसने एक नजर खामोश बैठे मनोज पर डाली । या अजीब सी रह यमय फ़ै िमली थी ।
उनके घर म उसे सब कुछ अजीब सा लगा था । और वे एक अजीब से ढंग से शा त
भी थे और अ भािवत भी ।
कोई बैचेनी लगता ही नह िक उ ह थी । जबिक उनसे यादा बैचेनी उसे हो रही थी ।
या करना चािहये उसे ? उसने सोचा ।
यिद वह ऐसे मामल ू ी से च यहू से घबरा जाता तो िफ़र उसका तं ससं ार म जाना ही
बेकार था । बि क उसका संसार म जीना ही बेकार था, िफ़र उससे अ छे और साहसी
तो ये पदमा और मनोज थे जो िक उस कहानी के पा थे ।
कहानी ! जो साथ के साथ जैसे हक कत म बदल रही थी ।
उसने िफ़र से पदमा के श द पर गौर िकया - सोचो अगर वो ऐसा न करते, तो िफ़र
इतनी िदलच प कहानी बन सकती थी ? या कमाल क कहानी िलखी उ ह ने ।
वह सही ही तो कह रही थी ।
िकसी जितन ने सु दरता क देवी समान पदमा के यार का ितर कार करके ही तो इस
कहानी क शु आत कर दी थी ।
अगर उन दोन का आपस म सामा यतः ेम संयोग हो जाता तो िफ़र कोई कहानी बन
ही नह सकती थी । िफ़र न मनोज जीवन का वह अजीब देवर भाभी ेम रंग देखता,
और न शायद वह िकसी वजह से तं दीप जलाता, न उनक मल ु ाकात होती, और न
आज वह इस घर म बैठा होता । या मजे क बात थी िक इस कहानी का दरू दरू तक
कोई रयल लाट नह था, और कहानी िनरंतर िलखी जा रही थी, ठीक उसी तरह,
जैसे िबना िकसी बिु नयाद के कोई भवन महज हवा म बन रहा हो, वो भी बाकयदा परू ी
मजबतू ी से । बङा और आलीशान भी ।
- िज दगी को करीब से देख चक ु े अनभु वी जानकार कहते ह, बङा कौर खा लेना
चािहये । उसने सोचा - लेिकन बङी बात कभी नह कहनी चािहये । य िक हो सकता
है, िफ़र वह बात परू ी ही न हो, कभी न हो । इसिलये उसने मन ही मन म तय िकया ।
इस खोज का प रणाम या हो, ऐसा कोई दावा, ऐसी कोई आशा वह नह करे गा ।
लेिकन जब यह कहानी उसके सामने आयी है । वह उसका िनिम बना है, तब वह
उसक तह म जाने क परू ी परू ी कोिशश करे गा ।
और िफ़र उसने यही िन य िकया ।
- सोचो तमु दोन । वह जैसे उ ह जीवन के रह य सू बहत यार से समझाती हयी सी
बोली - एक िहसाब से यह कहानी बङी उलझी हयी सी है, और दसू रे नज रये से परू ी
तरह सल ु झी हयी भी । शायद तमु च को इस बात पर । पर मेरे इस अ ितम अदभतु
सौ दय और इस ठहरे हये से उ मु यौवन का ‘कारण राज’ िसफ़ मेरा ेमी ही तो है ।
न तमु , न तमु , न खदु म, न मेरा पित, न भगवान, न कोई और, िसफ़ मेरा ेमी ।
वो दोन वाकई ही च क गये, बि क बरु ी तरह च क गये ।
- हाँ जी । वह अपने चेहरे से लट को पीछे करती हयी बोली - सोचो एक सु दर यवु ा
लङक एक लङके से यार करती है, लेिकन उसका ये यार परू ा नह होता, और वो
इस यार को करना छोङ भी नह पाती । िनितन यही बहत बङा रह यमय सच है ।
चाहे लाख ज म य न हो जाये, जब तक वह उस यार को पा न लेगी, तब तक वह
ेमी उसके िदल से न िनकलेगा । वह िदन रात उसी क आग म जलती रहेगी । ेम
अगन । कौन जलती रहेगी ? एक टीन एज यंग गल ।
यान से समझने क कोिशश करो । यार के अतृ अरमान म िनर तर सल ु गती वो
हसीन लङक , वो ेिमका उसके अ दर कभी न मरे गी । चाहे ज म दर ज म होते जाय ।
कौन नह मरे गी ? वो हसीन लङक , वो ेिमका ।
िजसके अ दर प ह-सोलह क उ से एक अतृ यास पैदा हो गयी ।
इसीिलये वो हसीन लङक , वो ेिमका मेरे अ दर सदा जीिवत रहती है और वही मेरी
मोहक सु दरता और सदा यौवन का राज है ।
अब दसू री बात सोचो, उस लङक पदमा क शादी हो जाती है और िकसी हद तक
उसक कामवासना और अ य शरीर वासनाय तृ होने लगती है लेिकन उसक खदु
क मचलती यार, ेम, वासना तृ नही होती । जो चाह उसके िदल म ेमी और
अपने ेम के िलये सल ु ग चक ु है । वो ेमी क बाह म झल ू ना, वो चु बन, वो
आिलगं न, वो िचढ़ाना, सताना, ठना, मनाना, वो उसके सीने पर सर रखना ये सब
एक ेिमका को उसक िकसी से शादी हो जाना नह दे सकते, कभी नह । तब ये तय
है, उसके अ दर एक ेिमका सदा मचलती ही रहेगी । ेिमका, िजसे िसफ़ अपने ेमी
क ही तलाश है ।
इसीिलये तो म कहती हँ - कमाल क कहानी िलखी है इस कहानी के लेखक ने ।..
कहानी जो उसने शु क , उसे कोई और कै से ख म कर सकता है ?
कहानी ! वह मादकता से होठ काटती हयी बोली - कहानी जो सिदय तक ख म न
हो, बोलो िलख सकोगे, तमु इस कहानी का अ त । अ त ? पर अभी तो इसका म य
ही नह हआ ।
िनितन को लगा, जैसे वह पागल ही हो जायेगा, पर मनोज इस तरह शाि त से उसक
बात सनु रहा था, जैसे मह वपणू गढ़ू धािमक वचन सनु रहा हो ।
उसने सोचा, कम से कम उसने तो अपनी िज दगी म ऐसी कोई औरत न देखी थी ।
कह ऐसा तो नह िक वह एक सामा य औरत हो ही नह ?
िफ़र कौन हो सकती है वह ?
कल उसने एक बङा अजीब सा िनणय िलया था ।
वह अ छी तरह जान गया था । वह चाहे साल लगा रहे, इस बेहद रह यमय फ़ै िमली
क , इस देवर भाभी रह य कथा, या िफ़र देवर भाभी ेत रह य कथा को िकसी तरह
नह जान पायेगा । तब उसने कुछ अजीब सा अलग हटकर सोचा, और उ ह के घर म
कमरा लेकर बतौर िकरायेदार रहने लगा ।
और अभी वे सब छत पर बैठे थे ।
उसे ये भी बङा रह य लगा िक उन दोन ने उसके बारे म जानने क कोई कोिशश नह
क।
वह कहाँ रहता है ? उसके प रवार म कौन है ?
उसने कहा, वह टूडट है और उनके यहाँ रहना चाहता है, और वे मान गये ।
वह कुछ िकताब, कपङे और कूटर के साथ वहाँ आ गया । अ य छोटे मोटे सामान
उन देवर भाभी ने उसे घर से ही दे िदये थे ।
गौर से देखा जाये तो हर आदमी क िज दगी िसफ़ एक ा मक िज ासा से बना
फ़ल मा है ।
आगे या, ये या, वो या, ये अ छा, ये बरु ा जैसे उ र म उलझता हआ वह
ज म दर ज म या ा करता ही जाता है । और कभी ये नह सोच पाता िक - हर वह
वयं ही पैदा कर रहा है, और िफ़र वयं ही हल कर रहा है । उसका वयं ही उ र भी
दे रहा है ।
बस उसे ये भमृ हो जाता है िक उसका है और उ र िकसी और का ।
उ र, शायद इसी का नाम जीवन है ।
उ र, िसफ़ उसक एक िज ासा ही आज उसे इस घर म ले आयी थी ।
यकायक एक बङी सोच बन गयी थी उसक । अगर वह ये हल कर सका तो
शायद िज दगी के को ही हल कर लेगा । बात देखने म छोटी सी लग रही थी, पर
बात उसक नजर म बहत बढ़ी थी । इसका हल हो जाना । उसक आगे क िज दगी
को सरल पढ़ाई म बदल सकता है । िजसके हर इ तहान म िफ़र वह अित र यो यता
के साथ पास होने वाला था, और यही तो सब चाहते ह ।
िफ़र उसने या गलत िकया था ?
अब बस उसक सोच इतनी ही थी िक अब तक जो वह मनोज के मँहु से सनु ता रहा
था । उसका च मदीद गवाह वह खदु होगा ।
आिखर इस घर म या खेल चल रहा है ?
रात के आठ बज चक ु े थे ।
मनोज कह बाहर िनकल गया था, पर वह कुछ घटु न सी महससू करता खल ु ी छत पर
आ गया था ।
पदमा नीचे काम म य त थी ।
अपने घर म एक नये अप रिचत यवु क म वाभािवक िदलच पी लेते हये अनरु ाग भी
ऊपर चला आया और उसी के पास कुस पर बैठ गया ।
- मनोज जी से मेरी मल ु ाकात । वह उसक िज ासा का साफ़ साफ़ उ र देता हआ
बोला - नदी के पास शमशान म हयी थी, जहाँ म नदी के पलु पर अ सर घमू ने चला
जाता हँ । मनोज को शमशान म खङे बढ़ू े पीपल के नीचे एक दीपक जलाते देखकर
मेरी िज ासा बनी । ये या है ? यानी इस दीपक को जलाने का या मतलब है ?
लेिकन उसने अपनी तं मं िदलच पी आिद के बारे म कुछ न बताया ।
- ओह । अनरु ाग जैसे सब कुछ समझ गया - कुछ नह जी, कुछ नह , िनितन जी आप
पढ़े िलखे इसं ान हो, ये सब फ़ालतू क बात ह, कुछ नह होता इनसे । पहली बात
भतू - ेत जैसा कुछ होता है, म नह मानता, और यिद होता भी है, तो वो इन दीपक से
भला कै से ख म हो जायेगा ?
िफ़र आप सोच रहे ह गे । हमारी कथनी और करनी म िवरोधाभास य ? य िक
दीपक तो मेरा भाई मनोज ही जलाने जाता है ।
बात ये है िक लगभग चार साल पहले ही पदमा से मेरी शादी हयी है और लगभग उसी
समय ये बना बनाया घर मने खरीदा था, और हम िकराये के मकान से अपने घर म
रहने लगे थे । सब कुछ ठीक चल रहा था, और अभी भी ठीक ही है । पर कभी कभी ।
अ डर टड..कभी कभी मेरी वाइफ़ कुछ अजीब सी हो जाती है.. एज ए िह टी रया
पेशट, यू नो िह टी रया ?
वह से स के समय या िफ़र िकसी काम को करते करते या सोते सोते ही अचानक
अजीब सा यवहार करने लगती है ।
जैसे उसका चेहरा िवकृत हो जाना, उसक आवाज बदल जाना, आँख म भयानक
िब लौरी इफ़े ट सा पैदा हो जाना, कुछ अजीब श द वा य बोलना जैसे ल ण कुछ
देर को नजर आते ह, िफ़र कुछ देर बाद वह अपने आप सामा य हो जाती है ।
बताईये इसम या अजीब बात है ?
आज दिु नयाँ म एडस जैसी हजार खतरनाक जानलेवा बीमा रयाँ िकतन को ह ?
आदमी या ा से से स जन ाइव करता है, पाचन टेबलेट से खाना पचाता है, न द
क गोिलयाँ खाकर सोता है ...हो हो हो..है न हँसने क बात ।
भाई आज साइसं ने बेहद तर क क है । हर रोग का इलाज हमारे पास है, िफ़र इसका
भी है । डा टर ने पता नह या, अ नामल ने आडर िडस लेमटरी जैसा कुछ ..हो हो
हो...अजीब सा नाम िलखकर पचा बना िदया । उसक मेडीससं वह खाती है । अभी
मझु े देखो, वैसे चीनी..िकतनी महगं ी है, और आदमी के अ दर शगु र बढ़ी हयी है,
हो..हो..हो.. है न हँसने क बात । मेरी खदु बढ़ी हयी है । अभी चैकअप कराऊँ, डा टर
पचास रोग और भी िनकाल दगे .. हो..हो..हो.. आप यगं हो । व थ लगते हो, बट
िबलीव मी िम. माडन मेिडकल साइसं आप म भी हजार कमी बता देगी .. हो .. हो
..हो ..है न हँसने क बात ।
- है न हँसने क बात, परू ा अजायब घर ही है । उसके नीचे जाने के बाद िनितन ने
सोचा - साले इसं ान ह, या िकसी काटून िफ़ म के करे टर, इनका कोई एगं ल ही समझ
म नह आता । एक तो वो दो ही नह झेले जा रहे थे, ये तीसरा और आ गया । ये तो
ऐसा लगता है । वह उनक हे प के उ े य से नह आया । वे उ टा उस पर अहसान
कर रहे ह ।
कमाल क कहानी िलखी है इस कहानी के लेखक ने । उसके कान म पदमा जैसे िफ़र
बोली - जितन.. कहानी जो उसने शु क , उसे कोई और कै से ख म कर सकता है । ये
कहानी है..?
कहानी ! कहानी उससे छोङी भी न जा रही थी और पढ़ना भी मिु कल लग रहा था ।
एक बार तो उसे लगा, कहाँ वह फ़ालतू के झमेले म फ़ँ स गया । भाङ म गयी कहानी
और उसका िलखने वाला ।
पर तभी उसे चनु ौती सी देती आकषक पदमा नजर आती और कहती - इस कहानी के
तारत य को आगे बढ़ाना, और उसके सू जोङना तमु जैसे ब च का खेल नह ।..
सोचो, अगर वो ऐसा न करते, तो िफ़र इतनी िदलच प कहानी बन सकती थी ?
या कमाल क कहानी िलखी उ ह ने ।
और तभी उसे मनसा का भी चैलज सा गँजू ता - भाग जा ब चे, ये साधना, िसि ,
त , म ब च के खेल नह , इनम िदन रात ऐसे ही झमेले ह । इसिलये अभी भी
समय है । दरअसल ये वो माग है । िजस पर जाना तो आसान है, पर लौटने का कोई
िवक प ही नह है ।
हद हो गयी । जैसे उ टा हो गया ।
जाससू िकसी रह य को खोजने चला, और खदु रह य म फ़ँ स गया ।
लेखक कहानी िलखने चला और खदु कहानी हो गया ।
वह तो अपने मन म हीरोगीरी जैसा याल करते हये इसका एक-एक तार जोङकर
शान से इस उलझी गु थी को हल करने वाला था, और उसे लगता था । सब चिकत से
होकर उसको परू ा परू ा सहयोग करगे, पर यहाँ वह उ टा जैसे भल
ू भल
ु ैया म फ़ँ स गया
था ।
कहावत ही उलट गयी ।
खरबजू ा छुरी पर िगरे या छुरी खरबजू े पर, कटेगा खरबजू ा ही ।
लेिकन यहाँ तो जैसे खरबजू ा ही छुरी को काटने पर आमादा था ।
उसने मोबायल म समय देखा, रात के दस बजना चाहते थे ।
नीचे घर म शाि त थी, पर ह क ह क टीवी चलने क आवाज आ रही थी, कुछ
सोचता हआ वह नीचे उतर आया ।
रात लगभग आधी होने वाली थी, पर वह अभी तक छत पर ही था ।
इस घर म उसका आज दसू रा िदन था और वह कुछ कुछ तार िमलाने म कामयाब सा
हआ था ।
कल िदन म वह अिधकतर पदमा को वाच करता रहा था । लेिकन कोई खास
कामयाबी हािसल न हयी थी ।
िसवाय इसके िक वह एक बेहद सु दर सलीके दार कुशल गहृ णी थी ।
बस उसम एक बात वाकई अलग थी ।
उ मु सौ दय यु उ मु यौवन ।
वह आम औरत क तरह िकसी जवान लङके , पु ष के सामने होने पर बार बार अपने
सीने को ढांकने का फ़ालतू िदखावा नह करती थी, या इसके उलट उसम अनरु ाग
िदखाते हये बगल को खजु ाना, तन को उभारना, जाघं , िनत ब को खजु ाना, योिन
के समीप खजु ाना जैसी ि याय भी नह करती थी । जो काम से अतृ औरत के खास
ल ण होते ह । और ठीक इसके िवपरीत िकसी के ित कोई चाहत दशन करते हये
अधन न तन क झलक िदखाकर काम संकेत देना भी उसका आम लङिकय , ि य
जैसा वभाव नह था ।
वह जैसी ि थित म होती थी, बस होती थी ।
वह न कभी कुछ अलग से िदखाती थी न कुछ िछपाती थी । सहज सामा य, जैसी है,
है ।
लचकती मचकती हरी भरी फ़ूल क डाली, अनछुआ सा नैसिगक सौ दय ।
उसको इस तरह जानना, देखने म ये सामा य अनाव यक सी बात लगती है । पर िकसी
का वभाव, च र ात हो जाने पर उसे आगे जानना आसान हो जाता है, और वह
यही तो जानने आया था ।
इसके साथ साथ आज िदन म उसक एक पहेली और भी हल हयी थी । जब वह गली
के आगे चौराहे से िसगरे ट खरीदने गया था ।
उसने एक िसगरे ट सल ु गायी थी और मनोज के घर के ठीक सामने खङा था ।
तब उसक िनगाह गली के अि तम छोर तक गयी । अि तम छोर पर गली ब द थी ।
यह देखते ही उसके िदमाग को एक झटका सा लगा ।
वतः ही उसक िनगाह मनोज के घर पर ऊपर से नीचे तक गयी ।
उस घर क बनावट आम घर क अपे ा िकसी गोदाम जैसी थी और वह हर तरफ़ से
ब द सा मालमू होता था ।
- ब द गली । उसे भतू काल से आते मनोज के श द सनु ाई िदये - ब द घर, जमीन के
नीचे, अधं ेरा ब द कमरा ।
- हा हा हा । तभी उसके िदमाग म भतू काल म जोगी बोला - ब द गली, ब द घर,
जमीन के नीचे, अधं रे ा ब द कमरा..हा हा हा, एकदम सही पता ।
- ब द गली, ब द घर तो हआ । उसने सोचा - अब जमीन के नीचे, अधं ेरा ब द कमरा
। लेिकन कहाँ है वो कमरा ?
अधं ेरा ब द कमरा, जमीन के नीचे । इसका सीधा सा मतलब था, मनोज के घर म कोई
तलघर होना चािहये ।
अब ये एक और नयी मसु ीबत थी ।
ये रह यमय पता सीधा उसी अ डर ाउ ड म क ओर इशारा कर रहा था ।
लेिकन वह नया आदमी सीधा सीधा िकसी से उसके घर के तलघर के बारे म कै से
पछू ता । उस पर साले ये सब आदमी कम काटून यादा थे और वह रह यमय औरत ?
साली यही नह समझ म आता, औरत है िक कोई िज दा चङु ै ल, भतू नी है । अ सरा है,
यि णी है, या कोई देवी वेवी है, या है ?
लगता है ये रह यमय प रवार छत पर अ सर बैठने का खास शौक न था ।
छत पर एक बङा त त कुछ कुिसयाँ और ल बी ल बी दो बचे पङी हयी थी । वह
एक बच पर साइड के ह थे से कोहनी िटकाये अधलेटा सा यही सब सोच रहा था ।
उसक उँगिलय म जलती हयी िसगरे ट फ़ँ सी हयी थी । िजससे िनकलकर धयँु क
लक र ऊपर को जा रही थी । ीट लाइट के पोल पर जलती मरकरी टयबू का ह का
सा काश छत पर फ़ै ला हआ था ।
उसक कलाई घङी क दोन सईु याँ बारह न बर पर आकर ठहर गयी थी । छोटी सईु
बङी से कसकर िचपक हयी थी, और बङी ने उसे ताकत से नीचे दबाकर भ च िलया
था । सेकड क सईु छटपटाती सी बैचेन च कर लगा रही थी ।
एक अजीब सी बैचेन टशन महससू करते हये उसने िसगरे ट को मँहु से लगाकर कश
लेना ही चाहा था िक अचानक वह च क गया ।
पदमा ऊपर आ रही थी, जीने पर उसके पैर क आहट तो नह थी लेिकन उसके पैर
म बजती पायल क मधरु छनछन वह आराम से सनु रहा था ।
उसका िदल अजीब से भय से तेजी से धकधक करने लगा, या माजरा था ?
और अगले कुछ ही पल म उसके छ के ही छूट गये ।
वह अके ली ही ऊपर आयी थी, और बङी शालीनता सलीके से उसके सामने दसू री
बच पर बैठ गयी ।
बङी अजीब और खास औरत थी, या खाम खां ही मरवायेगी उसे ।
रात के बारह बजे यँू उसके पास आने का दसू रा कोई प रणाम हो ही नह सकता था ।
- वा तव म जवानी ऐसी ही होती है । वह मादक अगं ङाई लेकर बोली - रात को न द
न आये, करवट बदलो, तिकया दबाओ, आप ही आप उलट पल ु ट कर िब तर
िसकोङ डालो ।..तु हारे साथ भी ऐसा होता होगा..न । अके ले म न न लेटना, न न
घमू ना, होता है न ।
वह जवानी के ल ण बता रही थी, और उसे अपनी िज दगानी ही खतरे म महससू हो
रही थी ।
ये औरत वा तव म खतरनाक थी ।
उसका पित देवर कोई आ जाये िफ़र या होगा, कोई भी सोच सकता है ।
- लेिकन..। वह िफ़र से सामा य वर म बोली - ऐसा सबके साथ हो, ऐसा भी नह ।
वो दोन भाई िकसी थके घोङे के समान घोङे बेचकर सो रहे ह । ेिमय क िनशा
नशीली हो उठी है । रजनी खल ु कर बाँह फ़ै लाये खङी है । चाँदनी चाँद को िनहार रही
है । सब कुछ कै सा मदहोश करने वाला नशीला नशीला है..है न ।
अब या समझता वह इसको, सौभा य या दभु ा य ? शायद दोन ।
योग परी ण के िलये जैसे समय, िजस माहौल और िजस योग व तु क
आव यकता थी । वह खदु उसके पास चलकर आयी थी और उसका ख भी पणू
सकारा मक था ।
या था इस रह यमय औरत के मन म ? वह कै से जान पाता ।
- काऽम..से सऽ । वह ऐसे धीमे मगर झंकृत कि पत वर म बोली िक उसे दि ण क
िदवंगत से स िस बल अिभने ी िस क ि मता के बोलने क टायल याद हो आयी
- िसफ़ से स, हाँ िनितन..बस तमु गौर से देखो, तो इस सिृ म काम..ही नजर आयेगा
। हर ी पु ष के मन, िदलोिदमाग म बस हर ण कामतरंग ही दौङती रहती ह ।
वो देखो, उसने दरू ि ितज क ओर नाजक ु उंगली से इशारा िकया, ये जमीन आसमान
से िमलने को सदैव आतरु रहती है, हमेशा अतृ । य िक ये कभी उससे पणू तयाः
िमल नह पाती । इसका पणू स भोग कभी हो नह पाता । जबिक यहाँ से ऐसा लग
रहा है िक ये दोन हमेशा कामरत ह । लेिकन इसक िनकटतम स चाई यही है िक इन
दोन म उतनी ही दरू ी है, िजतनी दरू ी इनम है । यहाँ से एक दसू रे म समाये आिलगं नब
नजर आते ह । पर य य पास जाओ, इनका फ़ासला पता लगता है । लेिकन वहाँ
से आगे िफ़र देखने पर यही लगता है िक वह आगे पणू स भोगरत है । िकसी मगृ
मरीिचका जैसा, िदखता कुछ और, स चाई कुछ और, है न ।
अचानक उसने अपने सीने के पास मै सी को इस तरह िहलाया, जैसे कोई क ङा
उसके अ दर घसु गया हो । और िफ़र दोन तन को थामकर िहलाते हये जैसे मै सी
को एडज ट िकया, और िफ़र बेहद शालीनता से ऐसे बैठ गयी, जैसे बेहद सं कारी
और सश ु ील औरत हो, और वह बेवश था ।
मजबरू सा इसको देखने सनु ने के िसवाय वह शायद कुछ नह कर सकता था ।
- लेिकन यह बस नह । वह िकसी ए सपट कामिशि का क भांित मधरु ता से ेम
पणू वर म बोली - ऐसे ही निदय को देखो, वे समु से िमलने को िनरंतर दौङ रही है ।
उनक ये यासी दौङ कभी ख म होती है या ? हमेशा अतृ । वी को देखो, ये
िकतने ही बीज का िनरंतर गभाधान कराती है, ये कभी तृ हयी या ? चकोर कभी
चाँद से तृ हआ या ? ये बेले, लताय हमेशा वृ से िलपटी रहती ह, कभी तृ हयी
या ? ये भवं रे हमेशा किलय का रस लेते ह । य नह , कभी तृ हो जाते । पशु कु े
अपनी मादा को संघू ते हये उसके पीछे घमू ते ह । सांड, गाय के पीछे घमू ते ह । ब दर
काम के इतने भख ू े ह, कभी भी कह भी, सबके सामने ही से स कर लेते ह । वे कभी
तृ हो जाते ह या ?
- माय गाड ! लीज..पदमा जी लीज..इनफ़ । वह घबराकर बोला - आप क जाईये
लीज, हम िकसी और िवषय पर बात नह कर सकते या ?
- इसीिलये तो म कहती हँ । वह मधरु घि टय के समान धीमे वर म हँसती हयी बोली
- कमाल क कहानी िलखी है इस कहानी के लेखक ने ।.. कहानी जो उसने शु क ,
उसे कै से कोई और ख म कर सकता है ? न कहानी तमु से पढ़ते बन रही है, और न
छोङते ।
चलो िवषय बदलती हँ । िफ़र वह जलती मरकरी टयबू को देखती हयी बोली -
तनहाईय से िघर गयी हँ म ।
वो जो कभी हसरत बन कर जागी थी मेरे िदल म ।
आज मेरे पैर क जजं ीर बन गयी है ।
दिु नयाँ से िबलकुल अलग हो गयी हँ म ।
जब थम भट हयी उनसे तो ।
मेरे तन मन म यारी सी अनभु िू त हयी ।
उनक आँख म देखने क िह मत नह थी मझु म ।
िफ़र भी उ ह जी भर के देखना चाहती थी ।
वो म द म द मु कराते हये बात करते ।
और लगातार देखते रहे मझु े ।
पर म सक ं ोच वश उ ह कोई जबाब न दे पाती ।
उस पल मझु े लगा ऐसे िक वो मझु े बहत पस द करते ह ।
उस िदन के बाद उनसे रोज होने लगी बात ।
इन बात को सनु कर उनके ित लगाव बहत गहरा हो गया है ।
लेिकन व ने सब कुछ उलट कर रख िदया है ।
अब िघर गयी हँ म एक अजीब सी उदासी से ।
शायद वो भी िघर गये ह त हाईय से ।
और भर गयी हो रोम रोम म उनके उदासी ।
िफ़र भी मन म ये आस है िक ।
कभी दख ु के बादल छटगे और होगा खश ु हाल सवेरा ।
कभी दख ु के बादल छटगे, और होगा खश ु हाल सवेरा, खशु हाल सवेरा ? अचानक
उसक मगृ नयनी आँख म आँसओ ु ं के मोती से िझलिमला उठे - मझु े किवता वगैरह
िलखना नह आता, बस ये जितन के ित मेरे िदली भाव भर थे । जो वतः मेरे दय
से िनकले थे । लेिकन अब म तमु से एक सरल सा पछ ू ती हँ । ये सब जानने के बाद
बताओ िक या म वाकई जितन से बहत यार करती थी, या हँ ?
- िनसदं हे । वह िबना कुछ सोचे झटके से बोला - बहत यार, गहरा यार, अमर यार ।
- गलत, टोटल गलत । वह भावहीन वर म बोली - मझु े लगता है, तमु िबलकुल ही
मख ू हो । सच तो ये है िक म जितन को कोई यार ही नह करती । दरअसल म तो म
यार का मतलब तक नह जानती । यार िकस िचिङया का नाम होता है ? ये भी मझु े
दरू दरू तक नह पता । य िक.. य िक ..वह सबु कने लगी ।
िनितन के िदमाग म जैसे िव फ़ोट हआ और उसका सम त वजदू िहलकर रह गया ।
- इसीिलये म िफ़र कहती हँ । वह संभल कर दोबारा बोली - तमु मेरा यक न करो,
कमाल क कहानी िलखी है इस कहानी के लेखक ने ।.. कहानी जो उसने शु क उसे
कै से कोई और ख म कर सकता है ? इसीिलये न कहानी तमु से पढते बन रही है, और
न ही छोङते ।
िकसी सु दरी के नीले आच
ं ल पर टंके चमकते िझलिमलाते तार से भरा आसमान भी
जैसे यकायक उदास हो चला था । रात म सफ़र करने वाले बगल ु ा पि य क कतार
आकाश म उङती हयी दरू िकसी अनजान या ा पर जा रही थी । उन दोन के बीच एक
अजीब सी खामोशी छा गयी थी ।
और वह चपु चपु सी जैसे शू य म देख रही थी ।
- या है ये औरत ? आिखर उसने सोचा - कोई माया, कोई अनसल ु झा रह य ? कोई
ितिल म ।
पर अभी वह अपने ही इस िवचार को बल देता िक तभी उसके कान म भतू काल
भयकं र अ ाहास करता हआ बोला - ये कहानी है सौ दय के ितर कार क । चाहत के
अपमान क , यार के िनरादर क । जजबात पर कुठाराघात क । वह कहता है म
माया हँ, ी माया है, उसका सौ दय मायाजाल है, और ये कहानी बस यही तो है ।
पर..पर म उसको सािबत करना चाहती हँ, म माया नह हँ । म अभी यही तो सािबत
कर रही थी तेरे ारा, पर तू फ़े ल हो गया, और तनू े मझु े भी फ़े ल करवा िदया । जितन
िफ़र जीत गया य िक .. वह भयानक वर म बोली - य िक त.ू .तू फ़ँ स गया न । मेरे
मायाजाल म । य िक त.ू .तू फ़ँ स गया न मेरे मायाजाल म ।
वह कहता है, म माया हँ । ी माया है ।.. म माया हँ । ी माया है । उसका सौ दय
मायाजाल है । पर..पर म उसको सािबत करना चाहती हँ - म माया नह हँ । पर तू फ़े ल
हो गया । तू फ़े ल हो गया । य िक .. य िक त.ू .तू फ़ँ स गया ना । मेरे मायाजाल म ।..
म जितन जी को यार करती थी ।.. गलत, टोटल गलत । मझु े लगता है तमु िबलकुल
मख
ू हो । ..तमु िबलकुल मख ू हो ।.. गलत । टोटल गलत । सच तो ये है िक म जितन
को कोई यार ही नह करती । ..तमु िबलकुल मख ू हो । .. म जितन जी को यार करती
थी ।.. सच तो ये है िक म जितन को कोई यार ही नह करती ।.. दरअसल म तो म
यार का मतलब तक नह जानती ।.. दरअसल म तो म यार का मतलब तक
नह जानती । यार िकस िचिङया का नाम होता है ? यार िकस िचिङया का नाम
होता है ? ये भी मझु े दरू दरू तक नह पता । य िक.. य िक.. ?
यकायक िनितन को तेज च कर से आने लगे । उसका िसर तेजी से घमू रहा था ।
ये पर पर िवरोधाभासी वा य उसके िदमाग म गँजू ते हये रह रहकर भयानक रा सी
अ ाहास कर रहे थे । बार बार उसके िदमाग म िव फ़ोट हो रहे थे और उसके िदमाग म
सैकङ नगं धङंग ेत ेतिनयाँ समहू के समहू कट हो गये थे । एक भयक ं र ेतक
कोलाहल से उसका िदमाग फ़टा जा रहा था ।
और िफ़र अगले कुछ ही ण म उसे अपनी िज दगी क भयानक भल ू का पहली बार
अहसास हआ ।
वह भल
ू जो उसने इस घर म रहकर क थी ।
- हा हा हा । तभी उसके िदमाग म भतू काल का जोगी अ ाहास करता हआ बोला
- ब द गली, ब द घर, जमीन के नीचे, अधं ेरा ब द कमरा । हा हा हा..एकदम सही
पता ।
वह िकसी भयंकर मायाजाल म फ़ँ स चकु ा था ।
अचानक उसक सु दर आँख म भख ू ी खंख
ू ार िब ली जैसी भयानक चमक पैदा हयी ।
उसके रे शमी बाल उलझे और खे हो उठे । उसका मोिहनी चेहरा िकसी िघनौनी
चङु ै ल के समान बदसरू त हो उठा ।
वह हँऽ..हँऽ करती हयी मँहु से फ़ुफ़कारने लगी । उसका सीना तेजी से ऊपर नीचे हो
रहा था ।
- इसीिलयेऽ तोऽ म कहतीऽ हँ । वह दाँत पीसकर िकटिकटाते हये क ककर बोली -
कमाल क .. कहानी िलखी है इस कहानी के .. लेखक ने ।.. कहानीऽऽ जो उसने शु
क ऽऽ । उसे कै से.. कोई और कै से ख म कर सकता है ? कहानीऽ जो न तझु से पढते
बन रही है । और न छोङते ।
िफ़र यकायक उसके िदमाग ने काम करना ब द कर िदया । उसे पदमा के श द सनु ाई
नह दे रहे थे । उसका िदमाग फ़टने सा लगा िफ़र वह लहरा कर बच से नीचे िगरा और
अचेत हो गया । उसक चेतना गहन अधं कार म खोती चली गयी । एक गाढ बेहोशी
उस पर छाती चली गयी ।
- आओ मेरे साथ । तभी वह यार से उसका हाथ पकङ कर बोली - चलो, म तु ह
वहाँ ले चलती हँ । जहाँ जाने के िलये तमु बैचेन हो, बेकरार हो, और िजसक खोज म
तमु आये हो ।
मं मु ध सा वह उसके साथ ही चलने लगा ।
पदमा ने उसके गले म हाथ डाल िदया और िबलकुल उससे सटी हयी चल रही थी ।
उसके उ नत कसे ठोस उरोज और मादक बदन उसके शरीर का पश कर रहे थे ।
उसके बृ चय शरीर म कामतरंग का तेज करट सा दौङ रहा था । शीत वर जैसी
भयानक ठंडक महससू करते हये उसका समचू ा बदन थरथर कापं रहा था । वह नशे म
धतु िकसी शराबी के समान डगमगाते हये उसके सहारे चला जा रहा था ।
- ये व का चलन । वह काली अलंका रक िडजायन वाली पारदश मै सी नीचे
िखसकाती हयी बोली - अ वल दज के मख ू ने चलाया है । सोचो, सोचो यिद
सभी..सभी लोग.. ी, पु ष, ब चे िबना व होते, तो ये संसार कै सा सु दर तीत
होता । सभी एक से कोई भेदभाव नह । सभी खल ु े खल
ु े, कोई िछपाव नह । हर ी
पु ष का शरीर ही खदु सबसे बेहतरीन व है । ई र क े तम रचना, िफ़र इसको
व से आव रत करना उसका अपमान नह या ? इसीिलये तो मनु य दख ु म ह, वह
सदा ही दख ु ी रहता है । उसने तरह तरह क इ छाओ ं के रंग िबरंगे सु दर, असु दर,
ह के , भारी हजार लाख व का बोझा सा लाद रखा है । धन का व , शि का
व , यश का व , ित ा का व , लोभ का, लालच का, मोह का, मान का,
अपमान का, वग का, नरक का,ज म का, मरण का व ही व । ये मेरा व , ये तेरा
व ।
- ह हाँ..पदमा जी । वह भािवत होकर बोला - तमु ठीक कहती हो, पदमा तमु ठीक
कहती हो । हर आदमी बनाबटी झठू म जीता है, िसफ़ तमु सच हो, तमु सच का पणू
सौ दय हो ।
- तो िफ़र । उसने मादकता से ह ठ काटा और झंकृत कि पत बहत ही धीमे वर म
मधरु घघंु से छनकाती हयी बोली - उतार य नह देते ये झठू े व । झठू को उतार
फ़को, और सच को कट होने दो । सच जो हमेशा नंगा होता है । िबना व , िबना
आवरण य का य ।
िकसी आ ाकारी बालक क भािं त वह स मोिहत सा व उतारने लगा । एक, एक,
एक करके ।
िकसी याज को छीलने क भांित । य य िनितन के व उतर रहे थे । उसक
चमकती लाल िब लौरी आँख म चमक तेज हो रही थी । उसके शरीर म रोमांच सा
भर उठा, उसक सडु ौल छाितयाँ भर उठी और चचु कू तन कर खङे हो गये । उसके
अ दर एक वाला सी जल उठी ।
िफ़र वह एक एक श द को काटती भ चती हयी सी बोली - हाँ िनितन..िकसी याज
को छीलने क भांित.. देखो, पहले उसका अनपु योगी िछलका उतर जाता है । िफ़र
एक मोटी परत, िफ़र एक बहत झीनी परत, िफ़र पहले से कम मोटी, िफ़र एक झीनी,
िफ़र थलू परत, िफ़र सू म परत । परत दर परत, और अ त म कुछ नह ।
हाँ कुछ भी तो नह ।
शू य िसफ़ शू य ।
और तब बचते ह, िसफ़ एक ी और िसफ़ एक पु ष ।
एक दसू रे को यासे अतृ देखते हये । सिदय से, यगु से, आिद सिृ से ।
कामातरु , ेमातरु , एक दसू रे म समाने को त पर, चेतन और कृित ।
- तमु । वह उसके किट भाग से यासी िनगाह डालती हयी बोली - तमु चेतन प एक
हो, और म कृित पा शू य ।
शू य, उसने मादकता से बहत धीमे वर म उँगली से नीचे इशारा करते हये कहा - तमु
देख रहे हो ना शू य । एक और शू य, बस ये दो ही ह, इसके िसवा और कुछ भी नह
है ।
दो तीन चार पाँच छह सात आठ, इनका अपना कोई अि त व नह । ये तो उसी एक
का योग होना मा है । एक जो तमु हो, और शू य जो म हँ । बोलो..िनितन बोलो, म
गलत कह रही हँ ?
- नह ..कभी नह । वह उसको बेहद यासी िनगाह से देखता हआ बोला - तमु सच
ही कहती हो, तु हारी येक बात नंगा सच है, तमु सच क सु दर मरू त हो ।
- आऽह..। वह तङपती हयी सी दोन तन को थाम कर बोली - म यासी हँ..और
और शायद तमु भी । लेिकन नह , नह आदम, मेरे सदा ि यतम, तमु ये विजत
कामफ़ल मत खाना । य िक.. य िक ये पाप है, वासना है, कामवासना है, ये पतन का
ार है, आर भ है । ी नरक का ार है ।..गाड ने..हम मना िकया है न ।
हाँ आदम । भगवान ने मझु े भी कहा - ह वा ! तू ये फ़ल मत खाना, कभी मत खाना ।
- पर य .. य ? वह एक अनजानी आग म जलता हआ सा वासना यु थरथराते
वर म बोला - य है ये सु दर िमलन पाप ? ये पाप है पदमा, तो िफ़र इस पाप को
करने क इतनी तीवृ इ छा य ? ये पाप पु य से अ छा य लगता है ? ये पाप.. पाप
नह पु य है । दो यगु से तरसती यासी ह का मधरु िमलन.. कभी पाप नह
हो सकता । भगवान झठू बोलता है, वह हम बहकाना चाहता है । वह नह चाहता
आदम ह वा का मधरु िमलन, मधरु िमलन ।
- आऽह ! वह चेहरे को मसलने लगी - म यासी हँ ।
- मझु े परवाह नह । िनितन उसके सु दर यासे अगं को यास से देखता हआ बोला -
मझु े िच ता नह पाप क , पु य क , द ड क , परु कार क , वग क नरक
क ..और..और िकसी भगवान क भी ।
- तो..िफ़र भल ू जाओ । वह बाँह फ़ै लाकर बोली - िक म कौन हँ, तमु कौन हो । जो
होता है, होने दो । वह वयं होगा । उसको रोकना मत, और और उसको करना भी मत
। ये सरु सगं ीत खदु बनता है, िफ़र खदु बजता है । इसके गीत राग खदु पैदा होते ह ।
मधरु वर से सजे आन द गीत । य िक.. य िक वही तो सच है । .. यास.. तृ ..
अतृ .. तृ ..अतृ ।
ये श द िकसी वयं होती ित विन के समान उस जगह गँजू रहे थे ।
वह शू य हो चला था । अब उसे बस शू य नजर आ रहा था, शू य । गोल गोल शू य ।
खाली िवशाल शू य ।
वह इसी शू य म खो जाना चाहता था, डूब जाना चाहता था ।
शू य िसफ़ शू य ।
वह पणू प से होशहवास खो बैठा ।
िफ़र वह उस पर भख ू े शेर क भािं त झपटा । वह भयभीत िहरनी सी भागी । वह बकरी
क भांित मंऽऽमंअं एऽं ऽ िच लाई । वह बकरे सा मोटे वर म मंऽु अऽं आंऽ आँऽऽ
िमिमयाया । वह घोङी क भािं त उछली । वह घोङे क भािं त उठा । वह सहमी
िचिङया सी उङी । वह बाज क भांित लपका । वह डरी गाय सी र भाई । वह बेकाबू
सांड सा दौङा ।
आिखर वह हार गयी, भय से थरथर कापं ने लगी, लेिकन उसने पणू ू रता से उसे
दबोच िलया ।
- आऽह..नह ..। उसने िवनती क -आदम मर जाऊँगी म, छोङ दो मझु े । दया करो
आदम, कुछ तो दया करो ।
शू य । गोल गोल शू य । खाली िवशाल शू य ।
वह इसी शू य म खो जाना चाहता था, डूब जाना चाहता था ।
शू य िसफ़ शू य ।
- आऽइ..उऽमा..ऐसे बेसबर न हो ।..म नाजक ु कांच क हँ कली हँ ।..उईऽ..न
आदम..ये या कर रहे होऽ तमु ।..धीरे ..धीरे ..छे ङो इन सरु तार को..आउ आऽ..मझु े
दद.. नह आदम..रहने दो ।..मै ह वा हँ तु हारी यारी ह वा, सु दर ह वा ।
िनदयी..आऽ....मर गई उफ़.. अब रहने दो ओऽमा..न ।..स च आदम ..मर जाऊँगी म
..। आऽ इऽ ऽइ
अचानक हङबङा कर उसने आँख खोल दी ।
धपू क तेज तिपश से उसे गम सी लग रही थी । वह पसीने म नहाया हआ था और
बैचेन हो रहा था ।
उसने घङी म समय देखा ।
सबु ह के दस बजने वाले थे और वह उसी तरह उस आदमकद बच पर लेटा हआ था
और अब होश म आया था ।
इसका साफ़ मतलब था वह रात भर यह पङा रहा था ।
लेिकन य ?
रात म या हआ था ?
उसने अपनी मिृ त को एक करते हये िफ़र से पीछे क या ा क ।
रात बारह बजे जब वह नीचे जाने का िवचार कर रहा था । अचानक पदमा छत पर आ
गयी थी ।
वह उससे बात करती रही थी तभी अचानक उसे च कर आ गया था और वह नीचे
िगर पङा था । इसके बाद उसे कुछ याद नह , िफ़र तबसे वह अभी उठा था, अभी ?
रात के बारह बजे से अभी दस बजे ।
तब इस बीच म या हआ था ?
उसने अपनी याद पर जोर डाला, िफ़र बहत कोिशश करने पर धीरे धीरे उसे वह सब
याद आने लगा ।
पदमा उसे सहारा देती हयी छत से नीचे उतार ले गयी थी । उसने प अपने को उसी
घर के जीने से उतरते हये देखा था ।
लेिकन उसके बाद यकायक उसक आँख के आगे अंधेरा सा हो गया । उसे महससू
हो रहा था, वह जैसे िकसी अधं ेरी सरु ं ग म उतरता जा रहा है । काला याह, घोर
घनघोर अधं ेरा, उसे सहारा देती हयी पदमा उसके साथ सीिढयाँ उतरती जा रही थी ।
कोई अ ात सीिढयाँ ।
िफ़र सीिढयाँ भी ख म हो गय और वे समतल जमीन पर आ गये । तब यकायक वहाँ
ह का सा काश हो गया ।
उसने देखा मादकता से मु कराती हयी पदमा ि वच के पास खङी थी । उसने ही वह
ब ब जलाया था, िजसका मटमैला काश कमरे म फ़ै ल गया था ।
कमरा ! उसके िदमाग म अचानक िव फ़ोट हआ - जमीन के नीचे, अधं रे ा ब द कमरा,
हाँ वही तो था वह ।
एक बङे हाल जैसा भिू मगत क , लगभग खाली सा साफ़ कमरा िजसम बाकायदा दो
अलग अलग बेड थे और कुछ अजीब सी धधंु ली त वीर दीवाल पर ।
- यारे आदम । स भोग के बाद िनढाल सी पङी वह अधमँदु ी आख से बोली - कै सा
था यह विजत फ़ल ? अ छा न ।
पर अब वह जाने य ठगा सा महससू कर रहा था, जैसे कुछ सही सा नह हआ था ।
उसे वह सु दर औरत, सौ दय क देवी जाने य ठिगनी नजर आ रही थी ।
ठिगनी ! िजसने उसका सब कुछ लटू िलया था ।
उसका वह बेिमसाल सौ दय अब उसे फ़ का लग रहा था । उसके सब अगं , रंगहीन
लग रहे थे ।
रस टपकाता यौवन अब एकदम नीरस लग रहा था ।
- ऐसा ही होता है । वह कोहनी के सहारे िटकती हयी पवू वत ही अपने िवशेष अ दाज
म धीरे से बोली - म तु हारे िदल क आवाज सनु सकती हँ । तमु सब मद एक जैसे ही
होते हो । वाथ भवं रे । िसफ़ रस चसू ने से मतलब रखने वाले । तब म सौ दय क देवी
नजर आ रही थी और तमु मेरे पजु ारी थे । य िक तमु मेरा रसा वादन करना चाहते थे
। अब रस चसू चक ु े तब म फ़ क लगने लगी ।
तमु खदु को ठगा महससू कर रहे हो । मझु े बताओ आदम तमु लटु े, या म लटु ी ? मने
तो अपना सव व समपण कर िदया । मने तु हारे पु ष हार क कठोरता सही । ेम
ू रता सही, म दया, दया करती रही । क तमु ने कोई दया ? िफ़र तमु ऐसा य सोचते
हो । जो हआ सो अ छा नह हआ । और उसक दोषी म हँ, िसफ़ म ।
हर पु ष जीवन क यही कहानी है । पहले तुम ी के िलये लालाियत होते हो । उसे
भोगते हो, चसू ते हो । िफ़र उसे लात मार देना चाहते हो । य िक भोगी हयी ी तु हारे
िलये रसहीन हो जाती है । बे वाद, मदु ा, िनज व ।
- कमाल क औरत थी । उसने सोचा ।
शायद दरू से ख चने क शि थी इसके पास ।
धपू और तेज हो उठी थी ।
वह टहलता हआ सा उठा और नीचे आगं न म झाक ं ने लगा पर अभी वहाँ कोई नह
था । ह क सी खटपट कह अ दर से आ रही थी ।
हाँ, दरू से ही ख च लेने वाली मायावी औरत ही थी ये, तभी तो ये शमशान से यहाँ
तक ख च लायी थी । ख चा ही तो था इसने, वरना कहाँ थी ये वहाँ ?
वह इसको हल करने आया था । उसने हल को ही सवाल बना िदया ।
उसने झटके से िसर को तीन चार बार िहलाया और आगे के बारे म सोचा ।
उसे इस मायावी औरत के च कर म नह पङना चािहये और फ़ौरन यहाँ से चला जाना
चािहये, लेिकन य , य ?
यिद वह एक औरत से हार जाता है, उसक माया से डर जाता है ।
िफ़र उसका तं , मं झान तो यथ है ही । उसका सामा य मनु य होना भी िध कार है

दसू रे वह कुछ िवचिलत होता था, थोङा भी डगमाता था ।
तभी वह उसके अ दर बोलने लगती - या कमाल क कहानी िलखी इस कहानी के
लेखक ने । कहानी जो उसने शु क , उसे कोई और कै से ख म कर सकता है ।
इसीिलये..इसीिलये ये कहानी न तमु से पढते बन रही है, न छोङते । ये ब च का खेल
नह िनितन ।
- बोलो । वह िफ़र बोली - मझु े जबाब दो, या गलती है औरत क , या यासी िसफ़
औरत है, पु ष नह ?
पर वह कुछ न बोल सका । इस औरत के श द म वह जादू था, िजसके िलये कोई
श द ही न थे ।
िफ़र या बोलता वह । ऐसा लग रहा था कुछ गलत भी न थी वह ।
- रहने दो । वह जैसे उसे मु करती हयी बोली - शायद कुछ के उ र ही नह
होते । अगर उ र होते, तो औरत पु ष के बराबर न होती, िफ़र उसक दासी य होती
? चलो म तु ह कुछ अलग िदखाती हँ ।
वह एकदम हैरान सा रह गया । अब ये या िदखाने वाली है ?
वह उसी मादकता िमि त शालीनता से उठी और उसके पास आ गयी ।
उसने अपनी ल बी पतली गोरी बाँह उसके गले म डाल दी और बेतहाशा उसके होठ
चमू ने लगी ।
जैसे नािगन बदन से िलपटी हो और जैसे िवषक या होठ से िचपक हो ।
नशे से उसका िसर तेजी से घमू ने लगा । िदमाग के अ दर गोल पिहया सा तेजी से
च कर काटने लगा ।
िफ़र वह दोन िचपक हयी अव था म ही ऊपर उठने लगे ।
उनके पैर जमीन से उखङ चक ु े थे । और वह िकसी मामल ू े ितनके के समान तफ़
ू ान म
उसके साथ ही उङता हआ दरू जगं ल म जा िगरा ।
वाकई उसने िफ़र सच कहा था - चलो, म तु ह कुछ अलग िदखाती हँ ।
यह एक अजीब जंगल था । बहत ही ऊँचे ऊँचे िवशाल घने पेङ क भरमार थी उसम
। चमकते सयू क रोशनी का कह नामोिनशान नह था । धधंु ला मटमैला पीला म द
काश ही फ़ै ला था वहाँ । उस जंगल म भीङ क भीङ असं य पणू न न ी पु ष मौन
िवचरण कर रहे थे । िसफ़ तीस आयु के लगभग ी पु ष । न वहाँ कोई ब चा था, न
कोई बढू ा था, न कोई सु दर था, न कोई बदसरू त था, न वहाँ कोई रोगी था, न वहाँ
कोई व थ भी था । जो भी था, सामा य था और सब तरह से आवरण हीन, खल ु ा
खल ु ा।
वह हैरत से उ ह देखता रहा ।
वे आपस म िबलकुल न बोल रहे थे और धीमे धीमे कदम से इधर उधर चल रहे थे ।
कुछ जोङे आपस म एक दसू रे को चमू रहे थे । कुछ स भोग रत थे । कुछ िनढाल से
पङे थे । कुछ हताश से खङे थे । वे मदु ा आँख से िबना उ े य सामने देखते थे । उनम
से कोई भी उनक तरफ़ आकिषत नह हआ ।
वह वे दोन भी एक ऊँची पहाङी पर बैठे थे और उसी थान अनसु ार पणू तः न न थे ।
- ये एक िवशेष म डल है । वह जैसे मौन क भाषा म उसके िदमाग म बोली - िजसे
अं ेजी म जोन कहते ह । ये न वी है, न कोई और ह न , न ही कोई अ य वी,
और न ही अ य सिृ । यहाँ जो य तमु देख रहे हो । मेरी बात पर गौर करो, य । ये
शरीर नजर आ रहे ह, पर वा तव म ये य है । खास बात ये है िक ये एक कवड
ए रया है । यहाँ अतं र ीय श द से उ प न वाय ेशन वी क तरह सीधा नह आता
। बि क पा तरण होकर िबलकुल ीण बहत मामल ू ी सा आता है
और इसी वै ािनक िनयम क वजह से ये या हम लोग यहाँ वाणी से बोल नह सकते ।
यहाँ िसफ़ मौन के श द ही बनते ह । वी क तरह तेज चल भाग भी नह सकते ।
संि म थल ू शरीर क बहत सी ि याय नह कर सकते । ये सयू आिद तार का
काश यहाँ कम होने क वजह भी यही है ।
िफ़र तमु सोच रहे होगे ये लोग ह कौन ?
ये हमारी आंत रक और यांि क कामवासना का प है या आकार है । बङा जिटल है
इसको समझना, पर म समझाने क कोिशश करती हँ, शायद तमु समझ जाओ ।
अब नीचे आगं न म हलचल कुछ तेज होने लगी थी ।
पर वह तो जैसे पागल हो गया था । िमथक कथाय, एिलयन टोरीज सभी क तरह
उसने भी सनु ी पढ़ी भर थ ।
पर वे यह जीवन म भी हो सकती थ । ये क पना ही किठन थी ।
एक मामल ू ी भतू ेत िज ासा ऐसी भयंकर या िदलच प या ा का कारण हो सकती है
। िबना अनभु वी, वयंभवी हये वह सोच भी नह सकता था । शायद कोई भी िव ास
न करे । एक साधारण गहृ थ इसं ान के घर म इतना रह य िछपा हो सकता है । उसक
सु दर ी इतनी मायावी हो सकती है । अ छे से अ छा बिु जीवी भी शायद नह
सोच सकता ।
इ पािसबल, असभं व ।
अभी वह िफ़र से िपछली घटना के तार जोङने क और उसका तारत य समझने क
कोिशश कर रहा था । तभी उसे जीने पर आते कदम क आहट सनु ाई दी और
वाभािवक ही उसका समचू ा यान उधर ही के ि त हो गया ।
अब या होने वाला था । या कुछ और नया, अफ़लातनू ी, अगङम बगङम सा ।
- िनितन जी ! अनरु ाग ऊपर आकर उसके सामने बैठता हआ बोला - आप शादी के
बारे म अपने िवचार बताईये । आय मीन इसं ान को शादी करनी चािहये, या नह ?
..हो हो हो..है न हँसने क बात । या पागलपन का है ।
- देिखये । वह सामा य वर म बोला - म इस बारे म कोई सटीक राय कै से दे सकता हँ,
जबिक म वयं ही अिववािहत हँ और मझु े ऐसा कोई अनभु व भी नह है । िफ़र भी
मनु य के अब तक के इितहास म शादी करने वाल के उदाहरण अनिगनत है । जबिक
शादी न करने वाल के बहत कम । और मझु े नह लगता िक शादी न करने वाल ने
कुछ ऐसे झ डे गाढ़े ह । जो अभी तक शान से फ़हरा रहे ह , और िजससे दसू रे ी
पु ष िववाह न करने को े रत ह । लेिकन ये बात म िसफ़ कह सकता हँ । आप वयं
अनभु वी हो, इसिलये आप कुछ अिधक बेहतर बता सकते हो ।
वह बगलोल सा गोल गोल आँख से उसे देखता हआ इस बेबाक िवचार को
ग भीरता से सनु ता रहा, और कुछ कुछ हैरान सा हआ ।
सही कहा जाये तो लङके क प शैली ने उसे बेहद भािवत िकया ।
- काफ़ सल ु झे हये इसं ान हो दो त । वह शसं ा करता हआ बोला - बात या कहते
हो, चाँटा सा मारते हो । हो हो हो..है ना हँसने क बात, पर मझु े ये चाँटा खाना अ छा
लगा । खैर..म अपनी ही बात बताता हँ । मझु े देखो, वह अपनी कुछ कुछ बढ़ी हयी
त द पर हाथ िफ़राता हआ बोला - कोई भी इसं ान मझु े देखकर मेरे भा य से ई या ही
करे गा । सरकारी नौकरी, िनजी मकान, ह ा क ा ेम करने वाला भाई, और
अ सराओ ं को मात करने वाली अित सु दर प नी, और इससे यादा या चािहये । हो
हो हो.. है ना हँसने क बात । बोलो कुछ गलत कहा मने ?
िनितन ने उसके समथन म िसर िहलाया । िजससे वह काफ़ खश ु हआ ।
- लेिकन । वह जैसे जोरदार श द म बोला - ये सब ऊपर से नजर आता है । हम
सबको ऐसे ही ऊपर से देखने पर दसू र का जीवन सख ु मय नजर आता है । जबिक
ठोस हक कत ऐसी नह होती । मझु े देखो, मेरी अित सु दर प नी है, पर उसक सु दरता
को रोज रोज चाटूँ या ? उसक रोज रोज आरती उता ँ या ? हो हो हो..है ना हँसने
क बात । जबिक एक सु दर औरत यही चाहती है । अपने पित या ेमी से, और अ य
सभी से भी । पर उसे नह मालमू , मेरी िज दगी और एक धोबी के गधे क िज दगी
िबलकुल एक जैसी है । यू नो डंक आफ़ धोबी ..सारी श द भल ू गया । याद आया,
वाशरमेन..हो हो हो..।
धोबी गधे क पीठ, पु े , कमर आिद बे ट से कस देता है । उस पर झोली डालता है ।
ईटें लादता है । और गधा बेचारा चपु चाप िबना चँू चाँ उसक चाकरी करता है । िफ़र
भी वो िबना बात उसके चतू ङ म कोङा मारता है, गािलयाँ देता है । हो हो हो.. है
ना..हँसने क बात । िफ़र भी, िफ़र भी उस गधे से गधा कह दो, तो बहत बरु ा मान
जायेगा, आप म उछल कर दल ु ी मारे गा । हो हो हो.. है ना हँसने क बात ।
िनितन एकदम सब कुछ भल ू कर ठहाका लगा उठा ।
या कहना चाहता था ये इसं ान, और उसने अपनी ही ऐसी अजीब तल ु ना य क ?
उसे उसक बात म रस आने लगा ।
- देखो । वह बात को आगे बढ़ाता हआ बोला - मेरी नौकरी, बीबी, मकान इ फ़ाकन
थोङा ही आगे पीछे सभी साथ साथ िमले । तीन ज री सख ु आसानी से िमले । इसके
बावजदू म गधा बन गया । िनितन जी, इस ससं ार म नौकरी, िबजनेस कोई अ य
रोजगार िवषय हो । हर आदमी एक दसू रे क ....मारने म लगा हआ है । उस सबसे कै से
िनबटना होता है, ये म ही जानता हँ । उस पर द तर के काम का ज री िज मेदाराना
बोझ भु भोगी के िलये ये गधे का बोझा ढोने के समान ही है । लेिकन मेरी सु दर
बीबी को इस सबसे मतलब नह । वह हर आम बीबी क तरह शाम को पाउडर
िलिपि टक लगाकर छ ले म ले िनकाल कर तैयार हो जाती है िक अब म उसक
नाइट डयटू ी बजाने को तैयार हो जाऊँ । हो हो हो..है ना हँसने क बात । िदन म पेट के
िलये डयटू ी, रात म पेट से नीचे क डयटू ी, और इस डयटू ी पर खरा न उतरे , तो वह
िबना बोले िसफ़ आँख से, यं य भाव से चतू ङ म कोङा लगाती है, पित को नपसंु क
नामद समझती है ।
इसिलये मेरे भाई । वह अपने मोटे पेट पर हाथ िफ़राता हआ बोला - सख ु ी िदखाई देता
जीवन ढोल क पोल है बस । ढोल म कै सी मधरु आवाज िनकलती है । लगता है
इसके अ दर जाने या पेशल चीज रखी है । लेिकन उसका परु ा उतार कर देखो, तो
वहाँ एक शू य, खाली स नाटा, र ता ही होती है । हो हो हो .. इसिलये कहा है न,
असल म जो िदखता है वो होता नह है । और जो होता है वो िदखता नह है ।
- हाँ िनितन । पदमा िफ़र से मौन वर ही उसके िदमाग म बोली - जो िदखता है वो
होता नह है और जो होता है वो िदखता नह है । यह जीवन का बहत बङा सच है । ये
जो तमु यहाँ मनु य शरीर जैसे य आकार देख रहे हो, ये इसी वी के ी पु ष क
कामे छा के साकार क पना िच ह । अतृ , दिमत कामवासना के क पना िच ,
कामवासना का स भोग िसफ़ शरीर का िमलन या िलगं , योिन इि य का सयं ोग भर
नह है । इसं ान कई तरह से से स करता है, समझना । रा ते से िनकलती हयी िसफ़
िकसी एक जवान लङक या औरत से उसके घर पहँचने तक पचास लोग मानिसक
स भोग कर चक ु े होते ह । कोई उसके तन के ित अपनी क पना करता है । कोई
गाल के ित, कोई होठ के , कोई िनत ब से, कोई योिन का रिसक होता है ।
सोचो, िसफ़ एक लङक मामल ू ी रा ते से घर तक, िकतने लोग ारा अ य
बला कार क गयी, और ये िसफ़ एक लङक क बात क मने । तब सोचो, ससं ार म
ित ण िकतना मानिसक बला कार होता होगा ?
िनितन वाकई ह का ब का रह गया ।
एक साधारण सी लगने वाली बात का जो रह य उसने बताया था । शायद बढ़े से बढ़ा
बिु जीवी भी इसक इस तरह क पना न कर सके । उसे तो ऐसा ही लगा । कम से
कम उसने तो कभी इस कोण से न सोचा था, इस तरह से न सोचा था, याल ही न
होता था ।
- लेिकन । वह िफ़र बोली - यहाँ नजर आते य ऐसे लोग के नह है । वह िसफ़
िणक वासना होती है, अतः उसका िच आकार प नह ले पाता । ये य
दरअसल उन लोग के ह । जो तनहाई म पङे अपने ेमी ेिमका आिद से का पिनक
स भोग कर रहे होते ह । कोई दसू रे क ी या पढ़ोसन से का पिनक स भोग कर रहा
होता है । थल ू शरीर का िमलन सयं ोग सल ु भ न हो पाने से कोई ेिमका अपने ेमी के
नीचे क पना म िबछी होती है । कोई ेमी अपनी ेिमका को याल म उलट पलट
कर रहा होता है ।
लेिकन ये तो ऐसे लोग के उदाहरण हये, जो पर पर एक दसू रे को जानते ह । कई बार
स भोग साथी एकतरफ़ा यार जैसा होता है । कोई िकसी को चाहता है, जबिक उसक
चाहत का दसू रे को दरू दरू तक पता नह । वह कोई भी ी पु ष अपने क पना साथी
को का पिनक संभोग करता है । ये हयी एकतरफ़ा चाहत क बात ।
और भी देखो, कोई चाहत भी नह । कोई ेमी ेिमका अपने साथी के साथ मधरु
िमलन के ण के बारे म िकसी प रिचत से बात कर रहा है और तमु यक न करो ।
सनु ने वाला िनि त ही तरु त लालाियत होकर उससे दरू थ स भोग करने लगेगा ।
उसी ण ।
काम..से स.. से स..िसफ़ से स.. !
इस सिृ के कण कण म काम समाया हआ है । ये य ऐसे ही लोग के ह, जो अपनी
क पना का कामिच गहन भाव से देर तक बनाते रहते ह, और उसम िविभ न रंग
भरते ह । य िक ऐसे से स पर कोई रोक नह लगा सकता । िजसके साथ कोई दसू रा
से स कर रहा है, वह भी नह । चाहे वह उसे पस द करे , या न करे । इस तरह ये इसं ान
िकसी न िकसी के ित पर पर कामभाव म हमेशा डूबा रहता है ।
अब तमु गहराई से समझना । तमु योग के िलये एक सु दर लङक क क पना करो ।
िजसे वपन म हयी कामवासना क भांित तुमने न न कर िलया है, और वह वपन के
से स साथी क ही भांित कोई ना नक ु र नह कर रही । वहाँ कोई सामािजक डर भय भी
नह । तब तमु कै से प रिचत भाव म से स करते हो । जबिक तमु उसे दरू दरू तक नह
जानते, और न ही वो तु ह । िफ़र बताओ ऐसा कै से हआ ?
तो जो िब तर पर त हा लेटी ेिमका अपने ेमी के साथ का पिनक अिभसार कर रही
है ।
अब जरा बारीक से समझना, उसके अतं मन म एक िच आकार बन रहा है । उस
समय वह मँहु से थल ू वाणी श द भी नह बोल रही, पर उसका मौन वर आऽह
आऽई नह .. आिद कर रहा है । अब उसके अगं म रोमाच ं है, शरीर म उ ेजना है,
तन भरने लगे, योिन क आंत रक पेिशय म फ़ङकन है । उसके खदु के हाथ ेमी के
हाथ बन जाते ह । उसक खदु क उँगली ेमी का अगं बन जाती है । वह आधी खदु ,
आधी अपना ेमी वयं हो जाती है, और अंततः पणू उ ेजना को ा होकर खिलत
भी हो जाती है ।
अब गौर से सोचो, अगर उसको कोई उस दशा म देखे, तो यही सोचेगा िक एक यवु ा
लङका या लङक अके ली ह तमैथनु कर रही है । लेिकन वह यह कभी नह देख
पायेगा िक इसक कामवासना चेतना यु होकर ेमी के साथ िविभ न मु ाय िच
आकार वर का भी िनमाण कर रही है ।
और भले ही यह यहाँ अके ली नजर आ रही है, पर वा तव म िकसी अ ात थल,
अ ात भिू म पर ‘िवचार आका रत’ पणू सभं ोग कर रही है । िबलकुल असली थल ू
शरीर संभोग के जैसा, और य िक वह भी वाणी रिहत मौन होता है । ये सब भी मौन
वर ह । बस उसक क पना का ेमी और वयं उसके साथ स भोगरत वह, तब जो
वहाँ य प नजर नह आता, वह यहाँ िदखाई देता है । य िक कोई तो वह थान
होगा ही, जहाँ वह वैचा रक स भोग कर रही है ।
िनितन जी, ये य उ ह लोग के का पिनक िच आकार है । यह इसके िलये एक
िनि त भिू म है ।
उसके िदमाग का यजू मान भक से उङ गया ।
कौन थी ये औरत कौन ? सोचना भी किठन है ।
और अभी वह नीचे उतरने क सोच ही रहा था िक नहाकर ऊपर आती हयी पदमा
गीले बाल को झटकती हयी छत पर आ गयी ।
वह इस अनोखी ी क ाकृितक सु दरता देखकर एक बार िफ़र दगं रह गया ।
- कमाल के इसं ान हो । वह साधारण वर म शालीन ी क भािं त बोली - रात से
अभी तक छत पर या कर रहे हो ? या तमु नान आिद कुछ नह करते । मँहु भी नह
धोया, चाय पानी कुछ भी नह । ऐसे तो भाई लगता है िक तमु कोई बङे रह यमय
इसं ान हो ।
िकसी अजीब सी कहानी जैसे । ऐसी अजीब और उलझी कहानी िक यही समझ म न
आये िक इस कहानी को पढा जाये या रहने िदया जाये ।
- इस औरत ने सिदय से थािपत कहावत ही फ़े ल कर दी । उसने सोचा - पता नह
िकस बेवकूफ़ ने कहा था । खरबजू ा छुरी पर िगरे या छुरी खरबजू े पर, कटेगा खरबजू ा
ही । यहाँ तो खरबजू ा ही छुरी को काट रहा था ।
पदमा अपनी बङी बङी कजरारी आँख से उसी क ओर देख रही थी, और जैसे वह
सधः नाता उसे चैलज सा करते हये कह रही थी - या कमाल क कहानी िलखी ।
इस कहानी के लेखक ने । कहानी जो उसने शु क , उसे कोई और कै से ख म कर
सकता है । इसीिलये..इसीिलये ये कहानी न तमु से पढ़ते बन रही है, न छोङते । ये
ब च का खेल नह िनितन ।
अपवाद क बात छोङ दी जाये, तो सामा यतः िज दगी म कई चीज एक ही बार होती
है ज म, मृ य,ु शादी, ेम आिद । िफ़र या हो सकता है, यादा से यादा उसक मौत
ही न । मौत जो एक ही बार होनी है, और कोई तय नह िक िकसक कब और कै से
होगी ? िलिखत प म ऐसी कोई गारंटी भी नह होती िक इसं ान फ़ालतू के झमेल म
ना पङे तो वह परू े सौ वष िनिव न िजयेगा । और िफ़र उसे इस बात का भगवान से
कोई परु कार भी िमलेगा । एक आतं रक गभ ि थित म पहली सांस िलये बालक से
लेकर िकसी भी आयु का कोई भी इसं ान कभी भी, कह भी, कै से ही हालात म मर
सकता है । अनभु वी लोग कहते ह, जीवा मा का ज म होते ही मौत क छाया उसके
पीछे पीछे चलने लगती है, मौत क छाया । य सोच रहा है वह, ऐसे दाशिनक िवचार
? उसने खदु ही मन म सोचा ।
दरअसल कल रात उस तलघर, और उस अ ात कामवासना भिू म, और उस रह यमय
औरत का और भी िवल ण प जानकर उसने दोपहर म अपने गु मनसा जोगी के
पास इस रह य का भेद जानने हेतु जाने का िन य िकया । शायद वह कोई मदद कर
सक, शायद ?
िफ़र अपने ही इस िवचार को उसने िदमाग से िनकाल फ़का ।
य िनकाल फ़का ?
कल जो ि थितयाँ उसके साथ अचानक घिटत हय । उसम वह एकदम बेवश था । तब
वह चाहती तो उसको मार भी सकती थी, पर उसने ऐसा कुछ नह िकया, बि क वह
तो कदम कदम पर ऐसा लगता था िक अपनी उसक खदु क गु थी वह वयं उसके
िलये सल ु झा रही थी । लेिकन साथ ही साथ िनितन के िलये अ ात, अपने िकसी ेमी
क कमाल क कहानी जैसा चैलज भी कर देती थी । अब खास यही कटा , यही
चैलज, उसे इस झमेले क तह म जाने को े रत कर रहा था । वो भी गु आिद िकसी
दसू रे क सहायता के िबना । यिद वह इसम कोई भी बाहरी सहायता लेता, तो उस
रह यमय औरत क नजर म यह उसक हार थी । िजसे वह जैसे िबना कहे हये ही
कहती थी, और बारबार कहती थी ।
दोपहर के दो बजने म अभी कुछ समय बाक था ।
वह अपने िकराये के कमरे म लेटा हआ िवचारम न था, और मजे क बात थी िक
आगे या करे ? इस पर कई पहलओ ू ं से सोचने के बाद भी तय नह कर पा रहा था ।
िफ़र िकसी सफ़ल जाससू क भांित उसने अपनी अब तक क उपलि धय पर
पनु िवचार िकया । उन उपलि धय म वह ब द गली, ब द घर ही खास जान सका था,
िजसम िक वह खदु मौजदू भी था ।
लेिकन जमीन के नीचे वह अंधरे ा ब द कमरा कहाँ था ? यह उसे अब भी पता नह था

जबिक वह उसम हो आया था, और बहत देर रहा था । और वा तव म उसके िचतं न
क क ल यह अटक हयी थी, और सबसे बढ़ा रह य खदु उसके िलये यही था िक
रात म बच से िगरने के बाद वह बेहोश हो गया था, और इसके बाद वह उन दो
रह यमय थान पर गया । देर तक रहा ।
लेिकन सबु ह वह बाकायदा उसी बच पर लेटा था ।
वह कै से और कब गया, यह उसे ठीक याद था । लेिकन उसी थान पर कै से और य
लौटा, उसे दरू दरू तक न पता था ।
बहत कोिशश करने के बाद भी वह उस कामवासना भिू म से आगे क बात याद न कर
सका ।
रात बारह बजे से अगली सबु ह के दस बजे तक के बीच म उसे बस इतना ही याद था ।
िफ़र जब वह कोई िन कष न िनकाल सका । तब उसक परू ी सोच उसी तलघर पर
अटक गयी ।
तलघर इसी घर म होना चािहये, और वहाँ कुछ न कुछ रह य है, आिखर वह उसे
तलघर म ही य ले गयी ?
लेिकन उसके िलये लगभग एकदम नये से इस घर म तलघर को तलाश करना आसान
न था । और तलघर के बारे म सामा य भाव से पछ ू ना भी िकसी ि से उिचत न था ।
िफ़र वह टहलता हआ सा कमरे से बाहर आ गया ।
उस रह यमय घर म एकदम खामोशी छायी हयी थी । दोपहर क कङी धपू खल ु े
आंगन म फ़ै ली हयी थी, और शायद अके ली पदमा अपने कमरे म आराम कर रही थी
। घर के दोन आदमी शायद बाहर गये हये थे । दोन म से एक तो िन य ही गया था,
उसका पित ।
वह सावधानी से टहलता हआ घर के खल ु े थान का िकसी सफ़ल जाससू क भांित
िनरी ण करने लगा । पर उसे ऐसा कोई थान नजर न आया । जहाँ से तलघर का
रा ता जाता हो, या ार हो । िफ़र हो सकता है, वह रा ता, ार िकसी कमरे के अ दर
से गया हो, जैसा िक अ सर होता ही है, और इस अप रिचत मकान म वह दसू रे के
कमरे क खोजबीन भला कै से कर सकता है ।
ये काफ़ बङा और परु ाना घर था । िजसका आधा िह सा लगभग ब द था, अनपु योगी
सा था ।
और इसक एक ही वजह थी िक उस फ़ै िमली के िगने चनु े सद य के िहसाब से वह
मकान काफ़ बङा था ।
जो िन य ही अनरु ाग ए ड फ़ै िमली ने बना बनाया खरीदा था ।
कब खरीदा था ?
लगभग चार साल पहले ।
यकायक..यकायक उसके िदमाग म िव फ़ोट हआ, चार साल पहले ।
अभी वह आगे कुछ सोच पाता िक उसे ‘खट’ से कमरे का दरवाजा खल ु ने क
आवाज आयी, और िफ़र वतः ही उसक िनगाह उस तरफ़ चली गयी ।
पदमा जैसे अलसायी सी न द से उठी एक सु ती भरे अदभतु सौ दय के साथ उसके
सामने खङी थी ।
उसक लट बेतरतीब होकर उसके सु दर चेहरे पर आ गयी थी । साङी लाउज आिद
कुछ िसकुङे िसमटे से थे, और वह तरु त न द से उठने के बाद क िशिथल सी अव था
म खङी थी ।
या अदभतु सु दरी है !
वह वतः ही िदल से उसक तारीफ़ कर उठा ।
हर रंग म सु दर िदखती है, वो भी एक से एक नये िदलकश अ दाज म । ये भीगी भी
सु दर लगेगी, और सख ू ी भी सु दर लगेगी । ये व छ भी सु दर लगेगी, और ग दी भी
। ये परु ाने बदरंग व पहने, तो भी सु दर लगेगी, और नये चमचमाते, तो भी । ये
सु दरता क मोहताज नह , सु दरता वयं इसक मोहताज है । वाकई, वाकई वह
नैसिगक सौ दय यु सु दरता क देवी ही थी ।
- िनितन जी । वह वह से मधरु वर म पणू शालीनता से बोली - अभी आई ।
उसने स मोिहत सी अव था म परू े आदर से समथन म िसर िहलाया, और आंगन म
फ़ूल क यारी के पास िबछी कुिसय म से एक पर बैठ गया । उसके िफ़र से कट
होते ही वह जैसे सम त सोच से रिहत हो गया ।
िफ़र भी असफ़ल अ दाज म जबरन कुछ सोचने क कोिशश करते हये उसने िसगरे ट
सल ु गायी, और ग भीरता से कश लगाने लगा ।
- कोई भी सोच या इ छा ही । वह चाय का गम कप उसे थमाती हयी बोली - हमारी
आगे क िज दगी का कारण होती है । जैसे ही इसं ान क सभी इ छाय मरी, वह तेजी
से मरने लगता है । यिद वह शरीर से जीता भी रहे, तो वह चलते िफ़रते िकसी कमजोर
मदु के समान ही होता है, िफ़र वह जीवन मदु ा जीवन ही होता है । अतः वह जीवन है,
या मृ यु ? इससे कोई खास अ तर नह पङता, य िक है तो वा तव म वह मृ यु ही ।
मृ यु जो एक िदन सभी क होती है ।
उसने गम चाय के कप से उठती धयंु क लक र पर एक भरपरू मोहक िनगाह डाली,
और बङे ही मोहक अ दाज म मु कराई ।
इतना िक उस सादगी यु सरल मु कान से भी वह िवचिलत होने लगा, और अ दर
तक िहल कर रह गया ।
ये औरत थी, या जीती जागती कयामत ?
- से स.. िसफ़ से स । वह अपने पतले रसीले होठ से चाय िसप करती हयी बोली -
देखो इस टी कप को । इसके अ दर गम तरल भरा हआ है, और तब इसके अ दर ये
धआंु ं वयं उठ रहा है । सोचो, ठंडी चाय म धआ ंु उठ सकता है या ? ठंडी चाय, ठंडी
औरत । ..दरअसल म कहना चाहती हँ, हमारी सभी ि याय वतः वाभािवक और
ाकृितक ह । अगर अ दर आग होगी, तो धआ ंु उठे गा ही, और यान रहे, ये आग खदु
ब खदु होती ही है, हरे क म नह होती, पैदा नह क जा सकती, और इसी उ णता, इसी
गमाहट, इसी उजा म जीवन का असल संगीत गँजू रहा है ।
कसे तार से ही । वह अपने लाउज क िनचली िकनारी नीचे को ख चती हयी बोली
- िकसी साज म मधरु वर िनकलते ह । ढीले तार से कभी कोई सरगम नह छे ङी जा
सकती । उससे कोई सरु ताल कभी बन ही नह सकता ।
कसे तार ! उसने एक गिवत िनगाह अपने सडु ौल तन पर वयं ही डाली, और उसी
के साथ साथ िनितन क िनगाह भी वाभािवक ही उधर गयी ।
वह िफ़र घबरा गया ।
उसका स मोहन िफ़र छाने लगा था ।
वह जैसे उसके अि त व को ही वशीभतू कर लेना चाहती थी ।
अब तक यह तो वह िनि त ही समझ गया था िक ये िवल ण औरत सिृ क िकसी
भी चीज, िकसी भी ि या म िनि त ही िसफ़ से स को िस कर देगी, और िफ़र आगे
सोचने का मौका ही न देगी ।
अतः बङी मिु कल से खदु को संभालते हये उसने बात का ख दसू री तरफ़ मोङा
और बोला - पदमा जी ! लीज आप गलत न समझ, तो म एक बात पछ ू ना चाहता हँ
। मनोज शमशान म एक तेल से भरा बङा दीपक जलाने जाता है । मेरी मल ु ाकात
उससे वह नदी के पास हयी थी । मझु े नह पता वह या है और उसका मतलब या
होता है ? पर मझु े थोङी वाभािवक िज ासा अव य है िक िकसी िवशेष थान पर
ऐसे दीपक को जलाने का मतलब या ? शायद आपको मालमू हो ।
- हाँ । वह साधारण वर म बोली - मालमू है, वह दीपक मेरे िलये ही जलाया जाता है
। दरअसल इन लोग को यानी मेरे पित और देवर को लगता है िक कभी कभी म
अजीब सी ि थित म हो जाती हँ । तब मेरे जो ल ण बनते ह । वह िकसी ेत आवेश
जैसे होते ह । हालांिक मेरे पित भतू ेत को मानते ही नह , वह इसे कोई िदमागी
बीमारी मानते ह । लेिकन एक बार जब म अपने पित के साथ मायके गयी हयी थी ।
वहाँ भी ऐसा ही हो गया, तब मेरी माँ ने थानीय तािं क को िदखाया, और उसी ने
ऐसा करने को बताया । लेिकन मेरे पित ने उसक हँसी उङायी, तब मेरी माँ ने उ ह
कसम िखला दी िक भले ही तमु िव ास करो या न करो, पर ये दीपक कुछ खास िदन
म जलवाते रहना । बाक उपचार हम अपने तर पर कर लगे, लेिकन ये दीप तु हारे
शहर म ही जलेगा ।
अब य िक मेरे पित को उस दीपक म कोई दम ही नजर नह आता, तो वह जले तो
या, न जले तो या । बस वह अपनी सास क कसम क खाितर ऐसा करते ह । इससे
यादा और कोई वजह नह , और बस इतना ही म भी जानती हँ ।
बेहद रह यमय, या एकदम सरल, या कोई पिव देवी, या िफ़र खल ु ी िकताब ।
वह दगं रह गया ।
िजस सामा य अ दाज म िबना लाग लपेट उसने वह बात बतायी । एक बार तो उसका
मन हआ िक इसके चरण पश ही कर ले ।
- बताईये । उसने िफ़र सोचा - तं दीप का रह य भी िकसी फ़ु स पठाखे जैसा ख म,
ब द गली, ब द घर का भी ख म । अब रह गया जमीन के नीचे, अधं ेरे ब द कमरे का ।
शायद वही बढ़ा रह य है । उसी म सारा खेल छुपा हो । पर वह उसके बारे म पछ ू े भी,
तो कै से पछ
ू े , कै से ?
- िनितन जी ! अचानक ही उसी समय जब वह यह सोच ही रहा था, उस पठाखा
औरत ने मान धमाके दार पटाखा फ़ोङा - वैसे आप भी कमाल वभाव के हो, कल
रात बारह के करीब जब म घर के सभी गेट वगैरह ब द कर रही थी । मने देखा,
आपका कमरा खल ु ा है, पर आप कमरे म नह हो । तब म चिकत होकर आपको देखने
छत पर आयी, और कुछ देर बात करती रही । अचानक ही आपको न द का झ का सा
आया, और आप बच से नीचे िगर गये । मने आपको बहत िहलाया डुलाया, पर आप
पर कोई असर नह हआ । तब मने आपको िफ़र से बच पर ही िलटा िदया, और नीचे
से तिकया चादरा लाकर आपको लगा गयी, आप बङी गहरी न द सोते हो ?
उसे िफ़र तेज झटका सा लगा ।
अब तक इस औरत के ित बनी उसक ा कपरू के धयँु क भािं त उङ गयी ।
सौ दय क देवी अब उसे जीभ लपलपाती डसने को तैयार नािगन नजर आने लगी ।
एक बार िफ़र उसके चनु ौती देते श द बार बार उसके कान म गँजू ने लगे - वह कहता
है, म माया हँ, ी माया है, उसका सौ दय बस माया जाल है, और ये कहानी बस यही
तो है । पर..पर म उसको सािबत करना चाहती हँ - म माया नह हँ, म अभी यही तो
सािबत कर रही थी ।..कमाल क कहानी िलखी है इस कहानी के लेखक ने ।.. कहानी
जो उसने शु क , उसे कोई और कै से ख म कर सकता है ?
यकायक उसने च क कर उसक तरफ़ देखा ।
वह बङे रह यमय ढगं से मोहक अ दाज म उसी क तरफ़ देखती हयी मु करा रही थी

और जैसे मौन वाणी से कटा कर रही थी - िनितन ये ब च का खेल नह ।
..और ये कहानी बस यही तो है, और ये कहानी बस यही तो है.. और ये कहानी बस..।
रह रहकर उसके िदमाग म यह वा य रह यमय अ दाज म गँजू ने लगा ।
कह ऐसा तो नह िक - कोई कहानी ही न हो ।
पर वह ऐसा कह भी कै से सकता था । कहानी थी, न िसफ़ कहानी थी, बि क अब वह
भी इसी कमाल क कहानी का पा बन गया था । कहानी पढ़ने चला इसं ान खदु
कहानी का िह सा बन गया, पा बन गया ।
कहानी के श द मान चैलज कर रहे थे ।
रह य खोजने क ज रत नह । रह य कहानी के िलखे इ ह श द म है । खोज सको
तो खोज लो ।
तब उसने स ती से एक िन य िकया । अब और कुछ भी हो, इस मायावी औरत के
जाल म हरिगज नह फ़ँ सेगा, और कहानी से अलग रहकर सावधानी सतकता से
कहानी पढ़ेगा । दसू रे , उसने अभी तक जो अपने तं ान का कोई उपयोग नह िकया,
उसका उपयोग करे गा, और वशीकरण जैसे उपाय का सहारा भी लेगा । इस चालाक
नािगन का वशीकरण । हाँ.. हाँ वशीकरण, य िक इसने ऐसा करने को उसे मजबरू कर
िदया है ।
- िनितन जी । अचानक वह हाथ बढ़ाकर फ़ूल क यारी से एक फ़ूल प यु
नाजक ु टहनी तोङकर अपने नाजक ु गाल पर िफ़राती हयी बोली - मने एक बङा
मजेदार काटून देखा था, काटून । उसने सीधे सीधे उसक आँख म देखा - यू नो काटून
?..काटून म एक पा को अपनी बीमार भस को दवा िखलानी थी । िकसी ने उसे
सझु ाव िदया, एक खोखली नली म दबा रखकर भस के मँहु म डालकर फ़ँू क मार दो,
बस काम ख म । सझु ाव एकदम फ़टाि टक था, उसने ऐसा ही िकया ।
लेिकन..लेिकन.. । अचानक वह आगे बोलने से पहले ही जोर से िखलिखलाकर हँसने
लगी, और हँसते हँसते हये ही बोली - लेिकन जानते हो, िनितन जी या हआ ? वह
आदमी फ़ँू क मारता, इससे पहले भस ने ही उ टा फ़ंू क मार दी, और परू ी दबा उस
आदमी के पेट म । ह..ह..ह िनितन जी, भस ने ही उ टा फ़ंू क मार दी ।
- या है ये ? वह अचानक अ दर तक सहम गया - कोई जादगू रनी ?
वह मधरु वर म दतं पंि को िबजली सा चमकाती हयी बङे आकषक अ दाज म हँसे
जा रही थी ।
सीधी सी बात थी । जो बात उसने अभी अभी बस सोच ही पायी थी । उसका उसने
भरपरू मजाक बनाया था, और एक बार िफ़र से उसे चैलज िकया था ।
और वह िसफ़ उसे देख ही पा रहा था, उसे ।
जो अब ऊपर के होठ से िनचला होठ दबाकर गदन के नीचे सीने पर फ़ंू क मार रही थी

- चिलये । अचानक वह िफ़र से उसे देखती हयी बोली - जो स क बात िछङ ही
गयी, तो एक और जोक सनु ो । अरे सनु लो भाई, शायद ऐसी कहानी िफ़र कभी न
िलखी जाये ? शायद ।
..एक आदमी अपनी बेहद सु दर, चच ं ल, िदलफ़क और मनचली बीबी से बहत
परे शान था । वह हर तरह से उसके आउट आफ़ कं ोल थी । तब िकसी के सझु ाव पर
वह उसको वश म रखने हेतु एक पहँचे हये वशीकरण साधु के पास गया, और ाथना
क िक वह कुछ ऐसा उपाय कर दे । िजससे उसक ी उसके वश म हो जाये । उसक
बात सनु कर साधु के चेहरे पर पहले बङे दख
ु ी भाव आये । जैसे उसका ही घाव हरा हो
गया हो, िफ़र अचानक उसको बहत ोध आया । उसने उस आदमी को एक चाँटा
मारा, और बोला - मख ू ! यिद औरत को वशीकरण करने का कोई उपाय होता, तो
िफ़र तमाम लोग साधु ही य बनते ?
िफ़र ये परवाह िकये िबना िक िनितन पर उसके जोक का या असर हआ । वह िफ़र से
हँसती हयी लोटपोट सी होने लगी, और ऐसे आकषक अ दाज म हँस रही थी िक
हँसने से कि पत हआ उसका आंचल रिहत व एक शि शाली चु बक क तरह उसे
िफ़र से ख चने लगा ।
- अरे िफ़र य पढ़े जा रहे हो ? ये घिटया, व गर, चीप, अ ील, पोन, से सी,
कामक ु , स ती सी वािहयात कहानी । वह जैसे सीधे उसक आँख म झांकते हये मौन
वर म बोली - यही श द देते हो न तमु ऐसे वणन को । पाख डी यवु क, तमु भी तो
उसी समाज का िह सा हो, जहाँ इसे घिटया, अनैितक, विजत, ितबंिधत, हेय मानते
ह, िफ़र य रस आ रहा है, तु ह इस कहानी म ?..गौर से सोचो, तमु उसी ईिडयट
सोसाइटी का अटूट िह सा हो । उसी मख ू दोगले समाज का अगं हो, जहाँ िदमाग म तो
यही सब भरा है । हर छोटे बङे सभी क चाहत यही है, पर बात कपट यु उ च
िस ातं , खोखले आदश, और झठू ी नैितकता क ह ।
भाङ म गयी कहानी, और भाङ म गया रह य ।
वह तो पागल सा हआ जा रहा है ।
वह अपना सब ान भल ू गया, वभाव भल ू गया, िदनचया भल ू गया ।
उसका जैसे अि त व ही ख म कर िदया इस मायावी औरत ने ।
ये एकदम उस पर छा सी जाती है, उसे सोचने का कोई मौका तक नह देती ।
उसने घङी पर िनगाह डाली ।
सवा तीन बजने वाले थे ।
वह फ़ौरन ही इस भल ू भल
ु ैया से जाने क सोचने लगा, और उठने को तैयार हो गया ।
- से स..िसफ़ से स । वह बङे आकषक ढगं से एक घटु ना मोढ़ कर दसू रे पर रखती
हयी अपने उसी िवशेष धीमे थरथराते अ दाज म बोली - काम..िनितन जी ! काम,
आप देखो, तो परू े िव के लोग से स के दीवाने होते ह । लेिकन रय टी म वे रयल
से स को जानते तक नह । से स िबजली है, पावर, उजा, लेिकन या सच म लोग
िबजली को भी ठीक से जानते ह ?
वह िबजली िजसका जाने िकतना और जाने कब से यजू कर रहे ह, पर या जानते ह
उसे ?
म कहती हँ नो, हं ेड परसट नो । यस..नो िनितन जी.. नो ।
देखो िबजली म दो तार होते ह । िजसको अथ, फ़े स, िनगेिटव, पािजिटव, ठंडा, गम,
ऋणा मक, धना मक नाम से जाना जाता है ।
ये दोन तार इस अदभतु अ य ऊजा के उपयोग के िलये बहत आव यक होते ह ना ।
िजस य म लगकर ये दोन तार जङु जाते ह ।
तमु समझ रहे हो न, जङु ना मतलब संभोग । तब वह य उजावान हो जाता है ।
जीव त, जीवन उजा से भरपरू ।
पर है ना कमाल, एक दसू रे के अित परू क ये तार आपस म कभी नह िमलते ।
लेिकन जब भी, गलती से भी, ये आपस म िमलते ह, तो पैदा होती है, एक अदभतु
ऊजा । य होती है, एक अ य ऊजा ।
िचटऽ िचटऽ फ़टाऽक । तमु ने कभी देखा, कै सी अदभतु िद य चमक होती है, तब ।
पर कब ?
जब दो नगं े तार आपस म िलपट जाये ।
दो नंगे तार, दो नंगे बदन, दो नंगे शरीर, एक पािजिटव, एक िनगेिटव ।
और यही है असली से स, उसका असली प ।
जब ी पु ष िसफ़ कपङ से ही नह , आतं रक प से भी नगं े होकर एक दसू रे से
िलपटे जायं । उनक सम त भावनाय नंगी हो जायं । आपस म एक दसू रे से कोई
िछपाव नह , कोई दरु ाव नह ।
से स ..िसफ़ से स । िजसम आन द ही आन द क िचगं ा रयाँ उठने लगे ।
- आऽ ! वह अचानक तङपते से बैचेन वर म बोली - म यासी हँ ।
िफ़र यकायक वह बेहद याकुल सी िदखने लगी ।
उसक बङी बङी आँख अपने गोलक म तेजी से ऊपर नीचे हो रही थी । उसक सु दर
लट चेहरे पर झल ू आयी थ , और वह असमंजस म यासी िनगाह से उसे देखती, िफ़र
तेज तेज सासं े लेने लगती ।
हर सासं के साथ उसका सीना तेजी से ऊपर नीचे हो रहा था ।
िनितन ने बेहद किठनाई से अपने को संयिमत िकया ।
पर वह जैसे िनय ण से बाहर हो रही थी ।
उसने कामताप क तपन से याकुल होकर लाउज खोल िदया और आँख ब द कर
गहरी सांस लेने लगी ।
उसके मँहु से बार बार ..िनितन जी..िनितन जी के धीमे श द िनकल रहे थे ।
अब या करता वह ?
उसके खल ु े उ नत, पु दिू धया उरोज उसके सामने थे ।
उसका अब और भी काम आ छािदत हो चक ु ा अक पनीय सौ दय उसे शू यता म
ख च रहा था, और वह लगभग शू य ही हो चला था ।
िफ़र जैसे उसके िदमाग ने काम करना ब द कर िदया ।
वह आदेिशत य सा उठा, और पदमा क कुस के पास ही नीचे जमीन पर बैठ गया ।
उसने उसक गोरी कलाई थामी, और यार से उसक हथेली सहलाता हआ बोला -
पदमा जी लीज..आप होश म आईये ।
उसका वही हाथ उठाकर पदमा ने अपने भारी कुच से सटाकर दबा िलया, और िफ़र
जैसे दरू गहरी घाटी से उसक आवाज आयी - भल ू जाओ िक तमु या हो, भल

जाओ िक म या हँ, जो होता है..।
तब बेसधु सा िनितन उसके उरोज को सहलाते हये स ती से मसलने लगा ।
वह वाकई भल ू गया िक वह कब नीचे उतर कर उसक गोद म आ गयी । उसे बोध ही
न हआ िक वह उसे िगराकर उसके ऊपर आ गयी, और उसके दोन सडु ौल तन
उसके चेहरे को छू रहे थे ।
वह िकसी मजबतू पेङ के इद िगद िलपटी अमरबेल क तरह उससे िलपटी हयी थी,
और िनितन को िकसी जहरीली नािगन के बदन से िलपटे होने का प अहसास हो
रहा था । उसके जहर से वह नशे से मिू छत सा हो रहा था ।
िफ़र वह कामवासना का अनोखा खेल खेलते हये उसका मनमाना उपयोग करने लगी

कामवासना ! पर या वाकई वह कामवासना से भािवत हो रहा था ?
उसने जानबझू कर खदु को िनि य कर रखा था, और बेहद गौर से उसक हर
गितिविध और शरीर म होते प रवतन देख रहा था ।
खासकर उसके चेहरे पर आते प रवतन का वह बेहद सू मता से िनरी ण कर रहा था

- िनितन । उसके िदमाग म भतू काल का मनसा जोगी बोला - इसको समझना बहत
किठन भी नह है । तमु एक कप गम चाय, या िफ़र एक िगलास ठंडा पानी, धीरे धीरे
पीने के समान यवहार से, िकसी ेत आवेश को सगु मता से जान सकते हो । िजस
कार चाय के कप से घँटू घँटू भरते हये, तु हारे शरीर म गमाहट का समावेश धीरे धीरे
ही होता है, और परू ा कप चाय पी लेने के बाद तमु एक उजा और भरपरू गमाहट अपने
अ दर पाते हो । इसी तरह, इस तरह का कोई भी ेत आवेश भी धीरे धीरे ि याि वत
होता है ।
उदाहरण के िलये ऐसे ेत आवेश म, जबिक वह शु भी होने लगा हो । तु ह लग
सकता है िक वह सामा य से थोङा ही अलग हट कर यवहार कर रही हो । जैसे िकसी
िवशेष िक म क आदत क वजह से, िफ़र अगर वह आवेश वह क जाये । उससे
आगे न बढ़े, तो एक आम आदमी यही सोचेगा िक ये इसं ान थोङा िचङिचङा गया,
ोध म है, कुछ परे शान सा है आिद, बहत सामा य से थोङा अलग ल ण । लेिकन
यिद उस आवेश को ो सािहत करते हये उसका दर बङाते चले जाओ । तब वे
असामा य ल ण, तु ह प महससू ह गे । साफ़ साफ़ िदखाई दगे ।
और तब उसने पदमा के चेहरे को गौर से देखा, और रह यमय अ दाज म मु कराया ।
पहली बार उसे लगा ।
काश ये अभी कहती - या कमाल क कहानी िलखी । इस कहानी के लेखक ने ।
कहानी जो उसने शु क , उसे कोई और कै से ख म कर सकता है ।
इसीिलये..इसीिलये ये कहानी न तमु से पढ़ते बन रही है, न छोङते । ये ब च का खेल
नह िनितन ।
लेिकन अभी वह कुछ कै से कहती ।
अभी तो वह खदु कहानी िलख रही थी । शायद एक बेहद रह यमय कहानी ।
रात के आठ से ऊपर हो चले थे ।
वह शाि त से अपने कमरे म ब द था, और उसने दरवाजा अ दर से लगाया हआ था ।
वा तव म यही समय था उसके पास, जब उनम से कोई उसे िड टब न करता ।
वे लोग इस समय टीवी के सामने बैठे हये भोजन आिद म लगे होते थे । पदमा खाना
तैयार करने जैसे काम म य त हो जाती ।
वह जमीन पर बैठा था, और एक छोटी कटोरी का दीपक जैसा इ तेमाल करते हये
उसम जलती मोटी बाती को अनवरत अपलक देख रहा था, ेत दीपक । आज ही उसे
ऐसा समय भी िमला था, और आज ही वह इस घर को और इसके घर वाल को कुछ
कुछ समझ भी पाया था ।
उस मोटी बाती क रह यमय सी चौङी लौ िकसी कमल पु प क पंखरु ी के समान
ऊपर को उठती हयी जल रही थी, और वह उसी बाती क लौ के बीच म गौर से देख
रहा था । जहाँ काली काली छाया आकृितयाँ कुछ सेकड म बनती, और िफ़र लु हो
जाती ।
वह िकसी िव ान के छा क भािं त सावधानी सतकता से उसका अ ययन करता रहा,
और अ त म स तु हो गया ।
उसने एक कागज पर म जैसा कुछ िलखा ।
उस कागज को पानी म डुबोया, और िफ़र उसी पानी म उँगली डुबोकर ह के ह के
छ टे उस लौ म मारने लगा ।
तभी अचानक उसके दरवाजे पर द तक हयी ।
वह हौले से मु कराया, दरवाजे पर पदमा खङी थी ।
- अब और या चाहते हो ? वह याकुल वर म बोली - िकसी क शाि त म खलल
डालना अ छा नह ।
उसने बाहर क तरफ़ देखा, दोन भाई शायद अ दर ही थे ।
िफ़र उसने कमरा ब द कर िदया और टहलता हआ छत पर आ गया ।
उसने घङी देखी नौ बजने वाले थे ।
कुछ सोचता हआ सा वह िवचार म न िफ़र बच पर लेट गया ।
- एक औरत । आंगन म फ़ूल क यारी के पास उससे अिभसार करती हयी पदमा
अपने चेहरे पर लटक आये बाल को पीछे झटकती हयी बोली - के अ दर या या
भरा है, या या मचल रहा है ? उसके या या अरमान है, इसको जानने समझने क
कोिशश कोई कभी नह करता । इस तरह उसक तमाम उ मु इ छाय दिमत होती
रहती ह । तब इसक हद पार हो जाने पर, मधरु मनोहर इ छाओ ं क लताय िवषबेल म
बदल जाती है, और िफ़र बाहर से अगं अगं से मीठा शहद सा टपकाती वह सु दर
माधरु ी औरत, अ दर से जहरीली नािगन सी बन जाती है, जहरीली नािगन ! पु ष को
डसने को आतरु , एक कामी जहरीली नािगन ।
लेिकन उसक दिमत इ छाओ ं से हये पा तरण का यही अ त नह है । य िक वह
जहर पहले तो खदु उसको ही जलाता है, और तब उस आग म जलती हयी वो हो
जाती है..चङु ै ल .. यासी चङु ै ल .. अतृ ..।
- लेिकन । भतू काल का मनसा िफ़र बोला - यिद उस आवेश को ो सािहत करते हये
उसका दर बङाते चले जाओ । तब वे असामा य ल ण तु ह प महससू ह गे । साफ़
साफ़ िदखाई दगे ।
हँऽ ..हँऽ.. क तेज फ़ुफ़कार सी मारती हयी वह िवकृत मख ु होने लगी ।
िफ़र एक अजीब सी तेज मदु ानी बदबू िनितन के आसपास फ़ै ल गयी । जैसे कोई मदु ा
सङ रहा हो ।
उसक आँख म एक खौफ़नाक िब लौरी चमक क िचंगारी सी फ़ूट रही थी ।
पहले सु दर िदखाई देते लेिकन अब उसके भयानक हो चक ु े मख
ु से बदबू के तेज
भभक ू े छूट रहे थे ।
वह इतनी िघनौनी हो उठी थी िक देखना मिु कल था ।
- हँऽ..। वह खौफ़नाक वर म दाँत भ चते हये बोली - यासी चङु ै ल ।
यह बङा ही नाजक ु ण था, एक सफ़ल पणू आवेश ।
उसे ऐसी ि थित का कोई पवू अनभु व नह था, और आगे अचानक या ि थित बन
सकती है । यह भी वह नह जानता था ।
पर एक बात जो साधारण इसं ान भी ऐसी ि थित म ठीक से समझ सकता था, वही
तरु त उसके िदमाग म आयी ।
नयी ि थित को सहयोग करना, आग तक ु क इ छा अनसु ार ।
उसने चङु ै ल के मँहु और शरीर से छूटते बदबदू ार भभक
ू क कोई परवाह न क , और
यकायक उसे बाह म िलये ही खङा हो गया ।
उसे के वल एक ही डर था िक अचानक कोई आ न जाये ।
पर वह उसक परवाह करता, तो िफ़र वह ि थित कभी भी हो सकती थी ।
तब इस आपरे शन को करना आसान न था ।
िनितन का यान िफ़र से उसके श द पर गया - इस तरह उसक तमाम उ मु इ छाय
दिमत होती रहती ह । तब इसक हद पार हो जाने पर मधरु मनोहर इ छाओ ं क लताय
िवष बेल म बदल जाती है । और िफ़र बाहर से अगं अगं से मीठा शहद टपकाती वह
सु दर माधरु ी औरत, अ दर से एक जहरीली नािगन सी बन जाती है, जहरीली नािगन ।
.. लेिकन उसक दिमत इ छाओ ं से हये पा तरण का यही अ त नह है । य िक वह
जहर पहले तो खदु उसको ही जलाता है, और तब उस आग म जलती हयी वो हो
जाती है..चङु ै ल .. यासी चङु ै ल .. अतृ .. अतृ ।
दिमत काम इ छाय !
उसने उस अजनबी ी को कसकर अपने साथ लगा िलया और उसके सम त बरु े
पा तरण को नजरअ दाज सा करता हआ वह उसके फ़ै ले िनत ब पर हाथ िफ़राने
लगा । वह नािगन के समान भयक ं र प से फ़ँू फ़ँू कर रही थी, और अब खरु दरी हो
चक ु जीभ को लपलपाती हयी उसको जगह जगह चाट रही थी ।
तब वह िकसी अनभु वी के समान उसके राख से पतु े से िहलते झल ू ते झरु झरु े तन से
खेलने लगा ।
- ठीक है । आिखर कुछ देर बाद वह स तु होकर बोली - या चाहते हो तमु ?
या चाहता था वह ? उसने सोचा - शायद कुछ भी नह ।
जीवन के इस रंगमच ं पर कै से कै से अजीब खेल घिटत हो रहे ह । इसको शायद तमाम
लोग कभी नह जान पाते ।
एक आम आदमी शायद इससे यादा कभी नह सोच पाता ।
पहले ज म हआ, िफ़र बालपन, िफ़र लङकपन, यवु ाव था, जवानी, अधेङ, बढु ापा
और अ त म मृ यु ।
और िफ़र शायद यही च , शायद ?
िकसी िव ान क िकताब म दशाये जीवन च के गोलाकार िच सा ।
इसके साथ ही आयु क इ ह अव थाओ ं के अव था अनसु ार ही जीवन यवहार और
तेरा मेरा का यापार ।
बस हर इसं ान को लगता है, जैसे िसफ़ यही सच है, इतना ही । जैसे िसफ़ इतनी ही बात
है ।
ऐसी ही यव था क गयी है । ऊपर आसमान पर बैठे िकसी अ ात से ई र ारा ।
लेिकन तब, तब िफ़र इस जीवन का मतलब या है ?
और अगर जीवन का यही िनि त िच , िनि त कृम िनधा रत है ।
िफ़र तमाम मनु य के जीवन म ऊँच, नीच, सख ु , दख
ु , अमी,र गरीब, व थ, रोगी
आिद जैसी भारी असमानताय, िवषमताय य ?
- बस यही । िफ़र वह पणू सरलता से साधारण वर म ही बोला - कौन हो तमु ?
- दो बदन । उसने एक झटके से कहा ।
- दो बदन । उसने बच पर लेटे लेटे ही अधलेटा होकर एक िसगरे ट सल ु गायी - एक
और नयी बात ।
वह उसके आगे बोलने क तेजी से ती ा कर रहा था िक अचानक वह वािपस
पा त रत होकर सामा य होने लगी ।
वह एकदम हङबङा गया और तेजी से उसके गाल थपथपाने लगा । पर वह जैसे न द
म बेहोश सी होती हयी उसक बाँह म झल ू गयी ।
जैसे परू ा बना बनाया खेल चौपट हो गया ।
एक और मसु ीबत । उसने तेजी से उसे कपङे पहनाये और खदु को यवि थत कर उसे
पलंग पर िलटा आया ।
दो बदन ! रह रहकर यह श द उसके िदमाग म गँजू रहा था ।
या मतलब हो सकता है इसका ?
वह बहत देर सोचता रहा । पर उसक समझ म कुछ न आया ।
तब वह पेट के बल लेट कर सङक पर जलती मरकरी को फ़ालतू म ही देखने लगा ।
उसे एक बात म खासी िदलच पी थी । जमीन के नीचे, अंधरे ा ब द कमरा ।
पर ये कमरा कहाँ था ?
ये पता करने का कोई तरीका उसे समझ म न आ रहा था ।
जाने य उसे लग रहा था, इस परू े झमेले के तार उसी कमरे से जङु े हये ह, या हो
सकते ह ।
उस कमरे का एक प िच उसके िदमाग म था, परू ी तरह याद था ।
कमरा सामा य बङे भिू मगत क जैसा ही था । पर जाने य उसे रह यमय लगा था ।
जाने य , जैसी रह यमय वह औरत थी । पदमा ।
सोचते सोचते उसका िदमाग झनझनाने लगा ।
तब वह उठकर छत पर ही टहलने लगा ।
समय दस से ऊपर हो रहा था । उसने एक िनगाह बङे त त पर रखे तिकया चादर पर
डाली । िज ह वह साथ ही लाया था ।
या अजीब बात थी । जो वाकया कल यकायक उसके साथ घटा था । आज वह
उसके िफ़र से होने के वाब देख रहा था ।
बि क कहो, उस ि थित को खदु ि येट कर रहा था, और उसके िलये उसे पदमा के
ऊपर आने क स त आव यकता थी ।
पर या वो आयेगी ?
शायद आये, शायद न आये ।
लेिकन जाने य बार बार उसका िदल कह रहा था । वह आयेगी, और ज र आयेगी,
और वह इसी बात का तो इतं जार कर रहा था ।
तभी अचानक घपु अंधरे ा हो गया ।
यकायक उसक समझ म नह आया िक ये अ समात या हो गया । लेिकन अगले ही
ण वह समझ गया, िबजली चली गयी थी और मरकरी बझु गयी थी । शायद अधं ेरा
प शु हो गया था और रात बेहद काली काली सी हो रही थी ।
शायद ये सच है, इसं ान जो सोचता है, वैसा कभी होता नह है, और जो वह नह
सोचता, वह अ सर ही हो जाता है ।
यिद सोचा हआ ही होने लगे, तब िज दगी शायद इतनी रह यमय न लगे ।
सोची सोच न होवई, जे सोची लख बार ।
उसने एक गहरी सांस ली और िफ़र कब उसे न द आ गयी । उसे पता ही न चला ।
यकायक अपने बदन पर रगते नाजक ु मल ु ायम ी हाथ से उसक चेतना लौटी ।
वह उसके पैर के आसपास हाथ िफ़रा रही थी । वह सोये रहने का बहाना िकये रहा
िफ़र वह हाथ को उसके पट के अ दर ले गयी ।
- ऐऽ जागोऽ ना । वह उसके कान म फ़ुसफ़ुसाई - िफ़र मेरा इतं जार य कर रहे थे, लो
म आ गयी । म जानती थी तु हारे मन क बात, िक तमु भी बहत बैचेन हो, मेरे िलये ।
- तु ह । वह कुछ घबराये से वर म बोला - िबलकुल भी डर नह लगता, उनम से
कोई आ जाये तब ?
- जलती जवानी क एक एक रात । वह उसके ऊपर होती हयी थरथराते वर म बोली
- बेहद क मती होती है । इसे ये, वो, िक त,ु पर तु म न नह करना चािहये । तमु
उनक िफ़ न करो । य िक तमु नह जानते, वे कमजोर थके घोङे से घोङे बेच कर
सोते ह । मनोज चरस का नशा कर लेता है, और अनरु ाग भी थकान दरू करने को ि ंक
करता है । इसिलये वे अ सर जागते हये भी सोये से रहते ह ।
- अिधकतर ेतबाधाओ ं का कारण । भतू काल का मनसा कट सा हआ - या इसं ान
का ेतयोिन म चले जाने का कारण, उसक अतृ या दिमत इ छाय ही अिधक होती
ह । अतृ काम वासना, बदले क आग, िकसी कमजोर पर ताकतवर का जबरद ती
का जु म, दसू रे के धन पर िनगाह, जानबझू कर िकये िकसी गलत कम का बाद म घोर
प ाताप होना आिद कारण ऐसे ह । जो ा आयु को भी वाभािवक ही तेजी से ीण
करते ह, घटा देते ह । और इसं ान अपने उसी नीच कम के संजाल म िलपटता चला
जाता है । ये ि थितयाँ ेत व को आमंि त करती ह और वा तव म इसं ान मरने से पवू
ही जीिवत शरीर म ही ेत होना शु हो जाता है । ेत के िलये भतू श द का खास
इसीिलये चलन है िक उसके भतू काल क कहानी, भतू काल का प रणाम ।
- उसके भतू काल क कहानी । िनितन जैसे अचानक सचेत हआ ।
- यिद तमु इस रह य को वाकई जानना चाहते हो । उसके कान म अपने गु क
सलाह िफ़र गँजू ी - तो पहले तु ह उसके भतू काल को जानना होगा ।
- पदमा जी ! उसे खश ु रखने के उ े य से वह उसक नंगी पीठ सहलाता हआ बोला -
आपने कई बार अपने ेम या ेमी का िज िकया है । मेरी बङी उ सक ु ता है, िक वह
कहानी या थी, जो उस पागल इसं ान ने आप जैसी अित पसी क उपे ा क ।
- भतू काल । वह धीमे से उसी िवशेष वर म बोली - भतू काल को.. छोङो, जो बीत
गया, उसे छोङो । से स ..िसफ़ से स । एक भरपरू जवान और अित सु दर औरत, इस
त हा काली रात म खदु चलकर तु हारे पहलू म आयी है, और तुम बासी कहािनय
को पढ़ना चाहते हो । कोई नयी कहानी िलखो न, कोई नया मधरु गीत मेरे रसीले
होठ पर, इन पवत िशखर से कुच पर, गहरी झील सी मेरी नािभ पर, नािगन सी
बलखाती कमर पर, िफ़सलन भरी योिन घािटय पर, काली घटाओ ं सी जु फ़ पर ।
देखो..मेरा हर अगं एक सु दर रंगीली नशीली किवता जैसा ही तो है ।
जैसे िफ़र एक नया चैलज ।
जैसे उसके िदमाग से उसका िदमाग ही जङु ा हो ।
कह ये कण िपशाचनी तो नह ?
‘भतू काल’ श द को िजस तरह उसने एकाएक िजस यगं ा मक अ दाज म बोला, और
कई बार उसक सोची बात को तरु त कट िकया था, उससे यही सािबत होता था ।
तब िफ़र उसे या हािसल हो सकता था ? जब वह उसक हर बात को पहले ही जान
जाती थी ।
तब, तब तो वह उसके हाथ म उलट पलट होता, एक से स टाय जैसा भर ही था,
से स टाय । िजससे वह मनमाने तरीके से खेल रही थी ।
खदु को बेहद असहाय सा महससू करते हये िनितन ने एक ल बी गहरी सांस भरी ।
या इस अनोखी औरत को खोलने क कोई चाबी कह थी, या िफ़र चाबी बनाने
वाला इसक चाबी बनाना ही भल ू गया था, या वो चाबी िक ह ितिल मी कहािनय
जैसे अजीब से गु थान पर छुपी रखी थी, चाबी ।
और तब घोर िनराशा म आशा क िकरण खोजते हये उसे रामायण याद आयी ।
कामी रावण क काम चाहत के चलते सोने क लंका िवनाश के कगार पर पहँच गयी
थी । तमाम महाबली यो ा मौत के मँहु म जा चक ु े थे । मगर इस सबसे बेखबर
कु भकरण गहरी िन ा म सोया पङा था । अब उसको जगाना आव यक हो गया था ।
तब रावण ने वयं जाकर उसे जगाया ।
एक ल बी व थ भरपरू न द के बाद उसका तामिसक रा सी मन भी भोर जैसी
साि वकता से प रपणू हो रहा था । ान जैसे उसम वतः ि थित ही था, और सम त
वासनाय अभी सांसा रक भख ू से रिहत थी । तब वह रावण क सहयोगी आशा के
िवपरीत उ टा उसे ही सीख देने लगा । और पर ी से कामवासना क चाहत रखने से
होने वाले िवनाश पर धमनीित बताने लगा । हर तरह से उसक गलती दोष बताने लगा
। सीता के प म जगद बा को वह साफ़ साफ़ पहचान रहा था ।
साम, दाम, द ड, भेद का चतरु िखलाङी रावण तरु त उसक ि थित को समझ गया
और िफ़लहाल िवषया तर करते हये उसने उसके िलये मासं , मिदरा के साथ सु दर
अ सराओ ं के नृ य जैसे भोग िवलास क भरपरू यव था क ।
और तब कु भकरण के ‘मन पट’ पर वही कहानी िलखने लगी । जो रावण चाहता था

जो रावण चाहता था, जो िनितन चाहता था ।
- से स..िसफ़ से स..। पदमा क सरु ीली आवाज जैसे िफ़र गँजू ी ।
अगर उसक ये िजद बन गयी थी िक वह इस रह य क तह म जाकर ही रहेगा । तो
िफ़र उसे उसक इ छानसु ार उसके रंग म रंगना ही होगा, और खास तब जब वह
असल उसी तरह कट होगी ।
- ओके । वह उसके लाउज म हाथ डालता हआ बोला - तमु ठीक कहती हो,
भतू काल को छोङो । िज दगी बहत छोटी है, हम इसे भरपरू जीना चािहये ।
- ह हाँऽ । वह उसे अपने ऊपर ख चती हयी बोली - यहाँ हर इसं ान क िज दगी
रे िग तान म भटके मसु ािफ़र के समान है । सनु सान, वीरान, रे तीला, सख
ू ा, उजाङ
रे िग तान । िजसम पानी बहत कम, यास बहत यादा है । इसीिलये तो हम सब यासे
ही भटक रहे ह, िफ़र यकायक आगे कह दरू पानी नजर आता है । िझलिमलाता
व छ पारदश , कांच क लहर के समान मनमोहक जल..आऽ ..पानी ! यासा त
इसं ान उसक तरफ़ तेजी से दौङता है । मगर पास जाकर अचानक हताश हो जाता है ।
य िक वह िजसे शीतल मधरु मीठा जल समझ रहा था । वह िसफ़ मगृ मरीिचका ही
थी । मगृ मरीिचका, झठू ा जल, मायावी ।
िनितन ने अचानक उसके हमेशा रहने वाले िवशेष महीन और कामक ु वर के बजाय
उसक आवाज म एक भरायापन महससू िकया ।
लेिकन घपु अधं ेरा होने से वह उसके चेहरे के भाव देखने म नाकाम ही रहा ।
- इसीिलये । जैसे अचानक वह सभं ल कर बोली - सिदय सिदय से भटकती हम सब
यासी ह, उसी मधरु शीतल जल क तलाश म बैचेन घमू रही ह । जल, मीठा मधरु
जल, जो रे िग तान म भी कभी कभी कह िमल जाता है, और तब उसको पीकर, उस
बेहद त जलती सल ु गती भिू म म कोई मामल ू ी छायादार कंटीला छोटा वृ भी अित
सख ु दाई मालमू होता है । जैसे ज म ज म से यासी ह को, अब कुछ चैन आया हो ।
- आऽ । वह एकदम मचलने लगी - म यासी हँ ।
वह समझ गया । वह जो खेल म िकसी बा सहयोगी क भांित बेमन से खेलता हआ
अपना काम िनकालना चाहता था । उससे काम नह चलने वाला था । उसे फ़ुल फ़ाम
म आना ही होगा । और उसका वा तिवक कामना पु ष बनना ही होगा । जैसा वह
चाहती थी, वैसा ।
तब उसने उस रह य आिद झमेले को कुछ समय के िलये िदमाग से दरू िनकाल फ़का,
और उसका लाउज ऊपर िखसका िदया ।
िफ़र उसके मजबतू पंज म दबते उसके तन भी मान दद से चीख उठे । तेज दद से वह
एकदम बल खाकर ऊपर से नीचे तक लहरा गयी । उसने िकसी ह क रजाई क तरह
उसे अपने ऊपर ख चा, और उसके होठ को िकसी लालची ब चे क भािं त
लालीपाप सा चसू ा । अनमनापन याग कर जब पु ष अपनी पणू भिू मका म आता है ।
तब वह होता है, एक कुशल कामयाब िखलाङी, चिपयन ।
अब यिद वह कला थी, तो वह नट था । वह उमङती नदी थी, तो वह सफ़ल तैराक था

वह जहरीली नािगन थी, तो वह िखलाङी नेवला था, नेवला ।
वा तव म वह बारबार िचकनी नािगन सी बलखाती हयी ही उसक पकङ से िफ़सल
रही थी । उसे उ ेिजत कर रही थी । जैसे मछली हाथ से िफ़सल रही हो । और वह
भख ू े बाज सा उस पर झपट रहा था ।
- आऽ । वह बदु बदु ाकर बोली - म यासी हँ ।
एक तरफ़ वह उसक उ ेजना को चरम पर पहँचा रही थी । दसू री ओर वह उसको हर
कदम पीछे भी धके ल देती थी ।
िफ़र नयी उ ेजना, िफ़र नया कदम ।
- दो नंगे तार । उसके कान म उसक नशीली आवाज िफ़र से गँजू ी - आपस म कभी
नह िमलते । लेिकन जब कभी िमलते ह, तो पैदा होती है, एक अदभतु िचगं ारी, एक
िद य चमक, और उसको कहते ह.. रयल से स । से स..िसफ़ से स ।
और तब मान उसक चाल को भांपकर उसके अ दर वतः ही एक पणू पु ष जागतृ
हआ । और उसने अपने मजबतू हाथ म कपङे क ह क सी गिु ङया क भािं त उसे
हवा म उठा िलया । और सरकस के कुशल कलावाज क तरह ऊपर नीचे झल ु ाने लगा

और तब जादगू रनी जैसे अपना सब जादू भल ू ी । नटनी सारे करतब भलू गयी ।
फ़ंु कारती नािगन जैसे वश म होकर बीन के इशारे पर नाचने लगी । खँख ू ार शेरनी जैसे
िपजं ङे म फ़ँ स गयी । लकङी के इशारे पर ब द रया नाचने लगी । घायल चिु हया िब ले
के जबङे म आयी । उङते लहराते शि शाली बाज के नक ु ले पंजो म घायल िचिङया
फ़ङफ़ङाई ।
उसक बेतहाशा चीख िनकलने लगी ।
चीख ! िजनक अब उस ू र िशकारी को कोई परवाह न थी । और अपने िशकार के
िलये उसके मन म कोई दया भी न थी ।
- बस..बस..। वह आकुल याकुल होकर िच लाई - क जाओ, क जाओ, और
नह , अब और नह ।.. म तु हारी गल ु ाम हयी, जो बोलोगे, क ँ गी, ये मेरा वादा है ।
और तभी अचानक िबजली आ गयी । घपु अधं ेरे म डूबी छत पर ह का सा उजाला
फ़ै ल गया ।
वे दोन उठकर टहलने लगे, और टहलते टहलते छत के िकनारे आ गये ।
- कोई भी ी । िफ़र वह एक जगह क कर बोली - सदैव बहत दयालु और कोमल
वभाव क होती है । और िनितन जी ! वह िजसके ित िदल से, भावना से समिपत
होती है, उसके िलये जान भी दे देती है । लेिकन िनितन, ऐसा बहत ही कम होता है,
िक कोई एक भी, आय रपीट, कोई एक भी पु ष ऐसा हो, जो ी म ऐसी पणू समपण
क भावना को जगा सके । वतः फ़ूत ेम भावना को जगा सके । ऐसा अिभ न, दो
िज म एक ह, ेम जगा सके । तब अिधकतर पित प नी, ेमी ेिमका, ी पु ष , नर
मादा, अ डर टड आय रपीट अगेन, नर मादा का ेम, ेम नह , वाथ ेम क
दैिहक वासना ही होती है । एक सौदा, यापार, िज दगी क ज रत परू ी करने भर का
सौदा । िफ़र..िफ़र बोलो आप, इसम यार कहाँ ? समपण कहाँ ।
- आऽ । उसके कलेजे म अचानक जैसे अनजान हक उठी - म यासी हँ ।
- हाँ िनितन ! दरअसल रह य श द एक ही बात कहता है िक हम िकसी चीज को
अ दर तक नह देखना चाहते । िसफ़ थल ू सतही यवहार को बरतने क हम आदत
सी बन गयी है । इसीिलये हर साधारण बात भी रह यमय मालमू होती है । इसिलये
िनितन जी, ी को सदा अपने अनक ु ू ल रखने के िलये िकसी झठू े वशीकरण क नह ,
शु , पिव , पावन, िन छल, िदली, आि मक ेम क आव यकता होती है, आि मक
ेम ।
- आऽ । अचानक आतरु सी वह दौङकर उससे िलपट गयी - म यासी हँ ।
वतः ही िनितन ने उसे बाँह म भर िलया और अपने मजबतू आगोश म कसते हये
दीवाना सा चमू ने लगा ।
जैसे सिदय से िबछुङे ेमी ज म ज म के बाद िमले ह । उनके ह ठ आपस म िचपके
हये थे, और वे लगातार एक दसू रे को चु बन िकये जा रहे थे । लगातार अनवरत, और
िफ़र वे एक दसू रे म उतरने लगे । पदमा िनितन के शरीर म समा गयी, और वह पदमा
के शरीर म समा गया ।
उसका शरीर बहत ही ह का हो रहा था, बि क शरीर अब था ही नह ।
वे शरीर रिहत होकर खदु को अि त व मा महससू कर रहे थे ।
हवा, वाय,ु और िफ़र उसी अव था म उनके पैर जमीन से उखङे , और वे आकाश म
उङते चले गये ।
अ ात अन त नीले आकाश म, िकसी छोटे प ी के समान ।
- िमतवाऽ.. भल ू नऽ जानाऽ । िनमाङ क हरी भरी वािदय म अचानक ये क ण पक ु ार
दरू दरू तक गँजू गयी - िमतवाऽऽ ।
छत पर खङी उदास रोमा के िदल म ध क सी हयी ।
आसमान जैसे वह श द उसके पास ले आया था - िमतवाऽ ..भल ू ऽ न जानाऽ ।
िकसी स चे ेमी के िदल से उठती आसमान का भी कलेजा चीर देने वाली पक ु ार ।
उसके कलेजे म एक तेज हक उठी, उसक िनगाह िनमाङ क उ ह वािदय क तरफ़
ही थी ।
घबराकर उसने मँडु ेर पर िसर िटका िलया और बेतरह दोन हाथ से कलेजा मसलने
लगी । ये अजीब सा दद उसे चैन न लेने दे रहा था । वािदय म गँजू ती उस स चे ेमी
क िवरह पक ु ार वािदय से आती हवाय उस तक िनर तर पहँचा रही थी - िमतवाऽ .. ।
- ये तमु या करते हो.. िवशाल । वह रो पङी - कै से.. भल
ू जाऊँगी तु ह, पर कुछ तो
मेरा.. भी याल करो, म िकतनी.. मजबरू हँ ।
ऐसा मत करो भु हमारे साथ । वह मर जायेगा । उस पर कुछ तो दया करो ।
कहती कहती वह जमीन पर िगरकर रोने लगी ।
- खदु कोऽ संभालो िवशाल । वह सबु क कर बोली - िह मत से काम लो, यिद तमु ही
यँू टूट गये, तो िफ़र मझु े िह मत कै से बंधगे ी । ..तु हारे िबना िफ़र म भी न जी पाऊँगी ।
और िफ़र वह उसके बरदा त के बाहर हो गया ।
वह िच लाई - िवऽशालऽ और िगर कर बेहोश हो गयी ।
- रोमा.. मेरी जान.. तू आ गयी । वह पागल दीवाना दौङकर उससे िलपट गया - रोमा
.. मझु े मालमू था, तू ज र आयेगी ।
- ह हाँ.. िवशाल । वह कसकर उसके सीने से िलपटती हयी बोली - म आ गयी, अब
हम कोई जदु ा न कर पायेगा ।
वे दोन कसकर िलपटे हये थे और एक दसू रे क तेजी से चलती धङकन को सनु रहे थे

ये दो अिभ न ेिमय का मधरु िमलन था । पर िफ़जा िकसी अ ात भय से सहमी हयी
थी ।
वािदयाँ भी जैसे िकसी बात से डरी हयी थ । पेङ पौधे उदास से शा त खङे थे । प ी
चहकना भल ू कर गमु समु से गरदन झक ु ाये बैठे थे । हवा मान बहना भल ू कर एक जगह
ही ठहर गयी थी । आसमान म छाये बादल सशिं कत से जैसे उनक रखवाली म लगे थे
। पर वे दोन ेमी इससे बेपरवाह एक दसू रे म खोये हये थे । और िलपटे हये एक दसू रे
के िदल को अपने सीने म धङकता महससू कर रहे थे ।
ये मधरु आिलगं न उ ह अदभतु आन द दे रहा था ।
- व िवशाल । अचानक सहमी सी रोमा कांपते वर म बोली - ये दिु नयाँ हमारे यार
क दु मन य हो गयी, हमने इनका या िबगाङा है ?
- पता नह रोमा । वह दीवाना सा उसको यहाँ वहाँ चमू ता हआ मासिू मयत से बोला -
म भला या जानँू । मने तो बस तु ह यार ही िकया है, और तो कुछ नह िकया ।
- हाँ िवशाल । वह उसके क धे पर सर रखकर बोली - शायद .. ये दिु नयाँ यार करने
वाल से जलती है । ये दो ेिमय को यार करते नह देख सकती ।
- नह जानता । वह उसक सु दर आँख म झांक कर बोला - पर ये जानता हँ िक म
तु हारे िबना नह जी पाऊँगा । अगर ये लोग हम िमलने नह दगे । िफ़र हम यहाँ से दरू
चले जायगे । दरू , बहत दरू , बहत दरू ।
- िकतनी दरू ? अचानक वह उदास हँसी हँसती हयी बोली - िवशाल..िकतनी दरू ?
- शायद । वह कह खोया खोया सा बोला - शायद..इस धरती के पार भी, िकसी नयी
दिु नयाँ म, जहाँ दो ेिमय के िमलने पर कोई रोक न होती हो ।
- चल पागल । वह िखलिखला कर बोली - वहाँ कै से जायगे भला, तमु सचमचु
दीवाने हो ।
- मेरा यक न कर यारी । वह उसका चेहरा हाथ म भरकर बोला - म सच कह रहा हँ,
एकदम सच ।
वह तो भ च क ही रह गयी ।
लेिकन वह जैसे परू े िव ास से कह रहा था । भला ऐसी भी कोई जगह है ?
उसने कुछ देर सोचा । पर उसे कुछ समझ म न आया ।
तब वह उसक गोद म सर रखकर लेट गयी । िवशाल उसके बाल म उँगिलयाँ िफ़राने
लगा ।
- रोमा । अचानक वह बोला - तू ठीक से जानती है, मेरे अ दर ऐसी कोई इ छा नह ।
पर कहते ह, दो ेमी तब तक अधरू े ह, जब तक उनके शरीर का भी िमलन नह हो
जाता । तब तू बार बार मझु े य रोक देती है । या तझु े मझु से यार नह है ?
वह उठकर बैठ गयी ।
उसके चेहरे पर ग भीरता छायी हयी थी और वह जैसे दरू शू य म कह देख रही थी ।
िफ़र उसने उसका हाथ पकङा और हथेली अपने गाल से सटाकर बोली - ऐसा नह है
िवशाल । मेरा ये तन मन अब तु हारा ही है । म अपना सव व तु ह स प चक ु हँ िफ़र
म मना य क ँ गी । सच तो ये है िक खदु मेरा िदल ऐसा करता है । हम दोन यार म
डूबे रह ।
पर हमेशा से मेरे िदल म एक अरमान था । जो शायद हर कँु वारी लङक का ही होता है
। उसक सहु ागरात का ।
यादगार सहु ागरात ! मने देवी से म नत मानी थी िक अपना कौमाय सदैव बचाकर
रखँगू ी, और सहु ागरात को उसे पित को भट क ँ गी ।
देवी ! मझु े मेरी इ छा का ही पित देना, और माँ ने मेरी बात सनु ली, मेरी मरु ाद पणू हो
गयी, और तमु मझु े िमल गये । तब ये म नत तु हारे िलये ही तो है, बस हमारी शादी हो
जाये ।
लेिकन..यिद तमु इस बात पर उदास हो, और मझु े पाना ही चाहते हो, तो िफ़र मझु े
कोई ऐतराज भी नह , य िक म तो तु हारी ही हँ । आज या कल मझु े खदु को तु ह ही
स पना है, और म मन से तु हारी हो ही चक ु हँ, िसफ़ चार म क ही तो बात है
।..मेरे ि यतम ! तमु अभी यह अपनी इ छा परू ी कर सकते हो ।
वह जैसे िबलकुल ठीक कह रही थी । वह यार ही या, जो शरीर का भख ू ा हो,
वासना का भख ू ा हो । जब उसने अपनी अनमोल अमानत उसी के िलये बचा कर रखी
थी । तब उसे ज दी य हो । उसका यान ही इस बात से हट गया ।
तभी यकायक जैसे िफ़जा म अजीब सी बैचेनी घल ु ने लगी । भयभीत प ी सहमे से
अ दाज म चहचहाये ।
िवशाल बेखदु सा बैठा था ।
पर रोमा क छठी इि य खतरा सा महससू करते हये सजग हो गयी ।
उसक िनगाह पहाङी से नीचे दरू वादी म गयी, और..
- िवशाऽल । अचानक वह जोर से चीखी - भागो.. िवशाल..भागो ।
शायद दोन इस ि थित के पवू अ य त थे । िवशाल हङबङा कर उठा । और दोन
तेजी से अलग अलग भागने लगे ।
भागा भाग, भागा भाग, िजतना तेज भाग सकते थे ।
रोमा तेजी से घाटी म उतर गयी और एक झाङी क आङ म खङी होकर हाँफ़ने लगी ।
उसका सीना जोर जोर से धङक रहा था ।
िफ़र वह छुपती छुपाती दसू री पहाङी पर िसर नीचा िकये थोङा ऊपर चढ़ी, और उधर
ही देखने लगी ।
उन चार ने उसके पीछे आने क कोई कोिशश नह क । उनका ल य िसफ़ िवशाल
था ।
वे चार अलग अलग िदशाओ ं से उसको घेरते हये तेजी से उसी क तरफ़ बढ रहे थे
और काफ़ करीब पहँच गये थे ।
रोमा का कलेजा मँहु को आने लगा । वह एकदम िघर चक ु ा था ।
जब वे उससे कुछ ही दरू रह गये । तब िवशाल ने तेजी से घमू कर चार तरफ़ देखा ।
पर भागने के िलये कोई जगह ही न बची थी ।
वह बहत घबरा गया और िबना सोचे समझे ही एक तरफ़ भागा ।
जोरावर के हाथ म दबी कु हाङी उसके मजबतू हाथ से िनकल कर हवा म िकसी
च क भांित तेजी से घमू ती चली गयी । और सनसनाती हयी िवशाल क पीठ से
जाकर टकराई ।
रोमा क िदल दहलाती चीख से मान आसमान भी थरा गया ।
िवशाल दोहरा होकर वह िगर गया ।
भागना तो दरू , यकायक उठ सके , ऐसी भी िह मत उसम नह बची थी ।
भयानक पीङा से उसक आँख उबली पङ रही थी ।
- म मना िकयो तेरे कू । जोरावर जहर भरे वर म नफ़रत से बोला - ठाकुरन क इ जत
से कभी न खेिलयो, पर तू नई मािनयो ।
रोमा ने घबराकर देखा । िवशाल दद से बरु ी तरह तङप रहा था और कुछ भी नह बोल
सकता था ।
पर उन हैवान पर इस बात का कोई असर न था ।
वह अभी यादा दरू न भागी थी ।
िवशाल को यँू िघरा देखकर उसके चेहरे पर एक अजीब सी ढ़ता आ गयी और वह
वािपस भागकर वह जा पहँची ।
वहाँ, जहाँ िवशाल उन रा स से िघरा हआ था ।
उन चार ने बेहद नफ़रत से एक िनगाह उसे देखा, और िफ़र वािपस िवशाल को देखने
लगे ।
- जोरावर । अचानक उन तीन म से एक पंछी ऊबता हआ सा बोला - के सोच रहा,
अब के क ँ हरामजादे का ?
- और के करे गा । जोरावर घणृ ा से बोला - ख म कर साले को ।
पंछी ने कु हाङी उठा ली और सधे कदम से उसक ओर बढ़ा ।
रोमा को एकदम तेज च कर सा आया । वह िगरने को हयी ।
िफ़र परू ी ताकत से उसने अपने आपको संभाला और दौङकर जोरावर के पैर से िलपट
गयी ।
- पापा नह । वह िगङिगङा कर बोली - नह , मत मारो उसे, छोङ दो ।
- ऐ छोरी । जोरावर उसे लाल लाल आँख से घरू ता हआ बोला - ब द कर ये
बेहयापन ।
- िमतवाऽ ..भल ू ऽ न जानाऽ । हवा के झ के उसे छूकर बोले ।
वह हङबङा कर उठ बैठी ।
धपू क तिपश से उसको पसीना आ रहा था ।
आँसू उसक आँख के कोर से बहकर गाल पर आ रहे थे ।
वह िफ़र ऊँची मँडु ेर के सहारे खङी हो गयी और याकुल भाव से वािदय क ओर
देखने लगी ।
यँू ही बेवजह, य िक वहाँ से कुछ भी नजर न आ रहा था ।
तभी जीने का दरवाजा खल ु ने क आवाज आयी और ऊपर आते कदम क आहट
आने लगी ।
- बीबी । उसक भाभी बेहद दख ु से उसे देखते हये बोली - मेरी जान के बदले भी यिद
तु हारा ेम िमल जाये, तो म अपनी िज दगी तु ह िनछावर करती हँ । तमु जैसा बोलो,
म क ँ गी । मझु से तु हारा दख
ु नह देखा जाता ।
उसने बङी उदास नजर से भाभी को देखा ।
वह उसके िलये खाना लेकर आयी थी और िसफ़ यही वो समय था, िजसम वह उससे
बात कर सकती थी । उसका हालचाल जान सकती थी । वह नजरब द थी और जीने
पर हमेशा भारी ताला लगा रहता था । उसक ज रत िदनचया का सभी सामान उसे
ऊपर ही उपल ध होता था, छत पर ।
उसने घोर नफ़रत और उपे ा से खाने क थाली को देखा, खाना ।
उसक आँख से आँसू बह िनकले ।
उसे मालमू था, वह खाना तो दरू , पानी भी नह पीता होगा, पानी भी ।
िफ़र वह खाना कै से खा सकती है ?
- ये लो । भाभी एक कौर बनाकर उसको वयं िखलाती हयी बोली - बीबी ! तु ह मेरी
कसम, मझु े मालमू है, तमु सारा खाना नीचे कूढ़े पर फ़क देती हो ।..ऐसे तो तमु मर ही
जाओगी, लेिकन इससे या फ़ायदा ?
ेम और िज दगी, िज दगी और ेम !
शायद दोन एकदम अलग चीज ह, दोन के िनयम अलग ह । दोन क कहानी अलग
है, दोन के रा ते अलग ह ।
ेिमय को दिु नयाँ कभी रास नह आती, और दिु नयाँ को कभी ेमी रास नह आते,
इनका सिदय परु ाना वैर चला आ रहा है ।
रोमा क दिु नयाँ भी जैसे उजङ चक ु थी, उसके जीवन म अब कुछ न बचा था ।
वह छत पर खङी खङी सनू ी आँख से वािदय क ओर ताकती थी, और अनायास ही
उसके आँसू बहने लगते ।
ेिमय के आँस,ू ेम के अनमोल मोती, िजनका दिु नयाँ वाल क नजर म कोई मोल
नह होता ।
- म वचन देती हँ पापा । वह आँसओ ु ं से भरा चेहरा उठाकर रोते हये बोली - म आज
के बाद इससे कभी न िमलँगू ी, लेिकन भगवान के िलये इस पर दया करो, इसे छोङ
दो..लेिकन । िफ़र अचानक वह आँसू रोक कर उसक आँख म आँख डालकर ढ़
वर म बोली - यिद इसे कुछ हो गया, तो िफ़र म खदु को भी गोली मार लँगू ी ।
जोरावर के बेहद स त चेहरे पर ू रता के भाव आये ।
उसने पछ ं ी को इशारा िकया । वह जीत क मु कान िलये क गया ।
िफ़र जोरावर ने झटके से उसका हाथ थामा और लगभग घसीटता हआ वहाँ से ले
जाने लगा ।
उसका चेहरा िफ़र आँसओ ु ं से भर उठा और उनके साथ िघसटती हयी वह बारबार मढ़ु
कर िवशाल को देखने लगी ।
जो लगभग बेहोशी क हालत म पङा दद से कराह रहा था ।
- तू पागल हो गयी है छोरी । उसक माँ भावहीनता से कठोर वर म बोली - मरवायेगी
लङके को, ठाकुर उसे जीता न छोङे गा ।..मेरी बात समझ । ठाकुर क लङिकयाँ ेम
ेम नह करती । वे खँटू े से गाय क तरह बाँध दी जाती ह । िजसके हाथ म उनक
र सी थमा दी जाती है । वही उसक िज दगी का मािलक होता है । इसके अलावा
िकसी दसू रे के बारे म वे सोच भी नह सकती । िफ़र य , तू उस छोरे क जान क
दु मन बनी है । भल ू जा उसे, और नया जीवन शु कर ।
- िमतवाऽ ..भल ू ऽ न जाना । आसमान म चमकते तारे भी जैसे उसको देखकर बोले ।
- तमु सच कहते हो । वह उदासी से हँसकर बोली - नह भल ू ँगू ी, नह भल
ू सकती,
कभी नह ।
िकतने बजे ह गे ? यकायक उसने सोचा ।
िकतने भी बजे ह , उसे न द ही कहाँ आती है ।
वह छत पर अके ली टहलती हयी सु दर शा त नीले आकाश म िझलिमलाते चमकते
तार को देखने लगी ।
जाने य आज उसे आसमान पर चमकते तार को देखना बहत अ छा लग रहा था,
बहत अ छा ।
- नह जानता । अचानक तार के बीच से झांकता हआ िवशाल बोला - पर म ये
जानता हँ िक म तु हारे िबना नह जी पाऊँगा । अगर ये लोग हम िमलने नह दगे, िफ़र
हम यहाँ से दरू चले जायगे । दरू , बहत दरू , बहत दरू , बहत दरू ।
- िकतनी दरू ? वह उदास हँसी हँसती हयी आसमान म उसक ओर देखकर बोली -
िवशाल..िकतनी दरू ?
- शायद । वह बेहद ेम से उसको देखता हआ बोला - शायद..इस धरती के पार,
िकसी नयी दिु नयाँ म । वहाँ, जहाँ दो ेिमय के िमलने पर कोई रोक न हो ।
- चल पागल । अचानक वह जोर से िखलिखलाई - वहाँ कै से जायगे भला, तमु
सचमचु दीवाने हो ।
यकायक वह जोर जोर से पागल क भािं त हँसने लगी ।
िफ़र वह लहरायी और च कर खाती हयी छत पर िगर गयी ।
- िमतवाऽ ..भल ू ऽ न जानाऽ । चाँद जैसे उसको देखकर रो पङा ।
- हा..। अचानक वह च ककर उठ बैठी ।
उसके सीने पर हाथ रखकर िकसी ने िहलाया था ।
उसके मँहु से चीख िनकलने को हयी । पर तभी उसने उसके मँहु पर हाथ रख िदया ।
रोमा का कलेजा जोर से धकधक कर रहा था ।
रात को टहलते टहलते उसक याद म रोते, हँसते हये वह अचानक च कर खाकर िगर
गयी थी, और पता नह िकतनी देर बेहोश रही थी ।
कई िदन से उसने ठीक से खाना भी न खाया था, और बेहद कमजोर हो चक ु थी ।
- तमु ऽ । वह हैरत से फ़ुसफ़ुसा कर बोली - ऊपर कै से आ गये ? भाग जाओ िवशाल,
वरना ये लोग तु ह मार डालगे ।
- परवाह नह । वह दीवाना सा उसको चमू ता हआ बोला - वैसे ही तेरे िबना कौन सा
जीिवत हँ म । ऐसे जीने से मर जाना ही अ छा ।
वह िबलकुल ठीक कह रहा था ।
वह ही कहाँ इस तरह जीना चाहती है । उनका जीना एक दसू रे के िलये हो चक ु ा था ।
उसके मदु ा िज म म वह अचानक ाण बनकर आया था, और खिु शयाँ जैसे अचानक
उस रात उसक झोली म आ िगरी थी ।
जैसे भा य क देवी मेहरबान हयी हो ।
- खाना । वह कमजोर वर म बोला - मझु से खाना भी न खाया गया, म भख ू ा हँ ।
रोमा के आँसू िनकल आये ।
अब खाना कहाँ से लाये वो, खाना तो उसने शाम को ही फ़क िदया था और जीने म
ताला लगा था । खाने का कोई उपाय ही न था । बेवशी म वह रोने को हो आयी और
अभी कुछ कहना ही चाहती थी ।
- चल । तभी वह कुछ खोलता हआ सा बोला - दोन खाना खाते ह, माँ ने पराठ
बनाये ह ।
दाने दाने पर िलखा है खाने वाले का नाम ।
वो भख ू ा उठाता अव य है, पर भख ू ा सल
ु ाता नह ।
कह भी कै सी भी किठन से किठन ि थित हो, वो भख ू े को भोजन देता है ।
वो अपने ब च को भख ू ा नह देख सकता, भख ू ा नह रहने देता, िफ़र दो ेिमय को
कै से रहने देता ?
नीबू के अचार से माँ क ममता के वािद पराठ वे एक दसू रे को अपने हाथ से
िखलाने लगे । वो खा रहे थे और िनश द रो रहे थे । आँसू जैसे उनके िदल का सारा
गम धोने म लगे थे ।
- िवशाल । वह िनराशा से बोली - हमारा या होगा, हम कै से िमल पायगे ।
- तू िच ता न कर । वह उसको थपथपा कर बोला - हम यहाँ से भाग जायगे, बहत दरू ।
िफ़र हम कोई जदु ा न कर पायेगा ।
- िमतवाऽ ..भल ू ऽ न जानाऽ । रात क रानी उसको अके ला देखकर बात करती हयी
बोली ।
- कभी नह । वह चच ं ल मु कान से बोली - कै से भल
ू सकती हँ ।
अभी कहाँ और िकस हाल म होगा वह ? उसने टहलते हये सोचा ।
उस रात तब उसक जान म जान आयी । जब दो घ टे बाद वह सकुशल वािपस उतर
कर चला गया और कह कै सी भी गङबङ नह हयी । पर अभी आगे का कुछ पता न
था । या होगा, कै से होगा ? कोई उपाय भी न था, िजससे वह कुछ खोज खबर रख
सकती थी ।
उसक रात ऐसे ही टहलते हये बीतती थी । उसक माँ, भाभी, घर के और लोग उसक
हालत जानते थे ।
लेिकन शायद कोई कुछ न कर सकता था । सब जैसे अपने अपने दायर म कै द थे ।
दायरे ! सामािजक दायरे ! जैसे वह छत के दायरे म कै द थी ।
यार उसे आज कै से मोङ पर ले आया था ।
यार से पैदा हयी तनहाई, जदु ाई से पैदा हयी तङप, िवरह से पैदा हयी कसक, शायद
आज उसे वा तिवक यार से ब करा रही थी । वा तिवक यार, िजसम लङके को
सु दर लङक का िखंचाव नह होता । लङक को उसके पौ षेय गणु के ित
आकषण नह होता ।
यह सब तो वह देख ही नह पाते, सोच ही नह पाते । वह तो िमलते ही एक दसू रे क
बाह म समा जाते और एक दसू रे क धङकन सनु ते, बस इससे यादा यार का
मतलब ही उ ह न पता था ।
दैिहक वासना ने जैसे उनके यार को छुआ भी न था । उस तरफ़ उनक भावना तक न
जाती थी । कभी कोई याल तक न आता ।
उसने उसके व पर कभी वासना यु पश तक न िकया था । उसने कभी वासना से
उसके ह ठ भी न चमू े थे । उसने कभी जी भरकर उसका चेहरा न देखा था, उसक
आँख म आँख न डाली थी । और खदु उसे कभी ऐसी चाहत न हयी िक वह ऐसा करे ,
िफ़र उनके बीच िकस कार के आकषण का चु बक व था ? जो वे घ ट एक दसू रे के
पास बैठे एक अजीब सा सख ु महससू करते थे । बस एक दसू रे को देखते हये एक दसू रे
क समीपता का अनभु व करते ।
- या अजीब होता है ये यार भी, या कोई जान पाया । उसने टहलते हये सोचा -
शायद यही होता है यार, जो आज उसने इस नजरब दी म महससू िकया । यार पे जब
पहरा हआ, तो यार और गहरा हआ । ये दिु नयावी जु म उसे यार से दरू करने के
िलये िकया गया था । पर या ये पागल दिु नयाँ वाले नह जानते थे, इससे उसका यार
और गहरा हआ था । अब तो उसक सम त सोच ही िसफ़ िवशाल पर ही जाकर ठहर
गयी थी, िसफ़ िवशाल पर ।
यार दो शरीर का नह , दो ह का िमलन होता है । ज म ज म से एक दसू रे के िलये
यासे दो इसं ान, सिदय से एक दसू री क तलाश म भटकते हये, िफ़र कभी िकसी ज म
म जब िमलते ह । एक दसू रे को पहचान लेते ह, और एक दसू रे क ओर िखंचने लगते
ह, और एक दसू रे के आकषण म जैसे िकसी अ य डोर से बँध जाते ह ।
- बेटी । उसक माँ बोली - आिखर तनू े या सोचा, ऐसा कब तक चलेगा ।
- माँ ! वह उस उदास रात म छत पर टहलती हयी भावहीन सी कह खोयी खोयी
उसको देखते हये बोली - शायद तमु यार को नह जानती । यार या अजीब शै है,
इसे िसफ़ ेमी ही जान सकते ह । यार क क मत िसफ़ ेमी ही जान सकते ह ।
िजसके िदल म यार ही नह , वो इसे कभी नह समझ सकते । हाँ माँ, कभी नह समझ
सकते ।
यार के िलये तो । वह मँडु ेर पर हाथ रख कर बोली - अगर जान भी देनी पङे , तो भी
ेमी खशु ी खशु ी सल
ू ी चढ जाते ह । यार क ये शमा अपने परवाने के िलये जीवन भर
जलती ही रहती है । पर..पर तमु दख ु ी न हो माँ, मझु े तझु से और अपने बाबल
ु से कोई
िशकायत नह । शायद िवरहा क जलन म सल ु गना, हम ेिमय क िक मत म ही
िलखा होता है ।
तब जैसे हार कर वह मजबरू ठकुराइन यकायक रो पङी ।
उसने अपनी नाज पली बेटी को कसकर सीने से लगा िलया और फ़ूट फ़ूट कर रोने
लगी । वह दीवानी सी इस ‘पगली मोह बत’ को चमू रही थी । उसक फ़ूल सी बेटी के
साथ अचानक या हआ था । उसक िक मत ने एकाएक कै सा पलटा खाया था ।
- हे भु ! उसने दआ ु के हाथ उठाये - मेरी बेटी पर दया करना । इसके जीवन क गाङी
कै से चलेगी ।
छुक..छुक.. का मधरु सगं ीत सनु ाती रे ल मान यार क पटरी पर दौङते हये मिं जल क
ओर जाने लगी । उसक तीवृ गित के साथ ही जैसे रोमा का दख ु द अतीत िकसी बरु े
वाब क तरह पीछे छूट रहा था ।
उसने िखङक से बाहर झाँका ।
िज दगी का सफ़र भी जैसे रे ल क तरह उमृ क पटरी पर दौङ रहा है ।
गाङी दौङने लगी थी, िकसी समाज समहू क तरह अलग अलग मिं जल के मसु ािफ़र
अपनी जगह पर बोगी म बैठ गये थे ।
रोमा के सामने ही एक यवु ा ेमी लङका िखङक से बाहर झांकता हआ अपने
मोबायल पर बजते गीत भाव म बहता हआ अपनी ेिमका क याद म खोया हआ था
- तमु ताना तमु , तमु ताना तमु ।
- बेटी । िफ़र उसक माँ बोली - ठाकुर ने फ़ै सला िकया है, तझु े शहर के मकान म रखगे
। तू वह रहकर अपनी पढ़ाई करे गी । आिखर तझु े कब तक यँू कै द म रख । मझु े दखु
है, भगवान ने जाने या तेरी िक मत म िलखा है ।
- माँ । वह भावहीन वर म बोली - ेिमय क िक मत भगवान नह िलखते । ेमी
वयं अपनी िक मत िलखते ह । ेिमय क िज दगी के ेमगृ थ के हर प ने पर िसफ़
ेम िलखा होता है । एक दसू रे के िलये मर िमटने का ेम ।
वह ठाकुर क प नी थी लेिकन उससे यादा उसक माँ थी । अपनी पगली दीवानी
लङक के िलये वह या करे ।
िजससे उसे सख ु हो, शायद वह िकसी तरह भी न सोच पा रही थी ।
- िमतवाऽ ..भल ू ऽ न जानाऽ । िखङक से नजर आते गाँव बोले ।
- तमु ठीक कहते हो । वह बोली - नह भल ू ँगू ी ।
न चाहते हये भी उस िवरह गीत के मधरु बोल िफ़र उसे ख चने लगे । िकस ेमी के
िदल क तङप थी यह - तमु ताना तमु , तमु ताना तमु ।
जदु ाई म याद क तङप से और भी तङपाते मधरु गीत ने िड बे म एक स नाटा सा कर
िदया था । हरे क को जैसे अपना ेमी याद आ रहा था । लङके के चेहरे पर ेम उदासी
फ़ै ली हयी थी । ठीक सामने बैठी सु दर जवान लङक रोमा तक म उसक कोई
िदलच पी न थी । उसने उसे एक िनगाह तक न देखा था और अपनी ेिमका क िवरह
याद म खोया वह लगातार िखङक से बाहर ही देख रहा था ।
- पता नह , इसक ेिमका कहाँ थी ? उसने सोचा - और पता नह , उसका ेमी कहाँ
था ?
- िमतवाऽ ..भल ू ऽ न जानाऽ । गीत के बोल म ेिमय क ह बोली ।
- नह । वह बोली - नह भल ू सकती ।
दीन दिु नयाँ से बेखबर वह ेमी सनू ी आँख से जैसे रे ल के सहारे दौङती अधीर ेिमका
को ही देख रहा था । दोन क एक ही बात थी । उसक क पना म ेमी था, और
उसक क पना म उसक ेिमका - तमु ताना तमु , तमु ताना तमु ।
ेिमय को ये दिु नयाँ शायद कभी नह समझ सकती ।
िड बे म आते जाते लोग अपनी अपनी धनु म खोये हये थे । जैसे सबको अपनी
मंिजल पर पहँचने का इतं जार हो । शायद उनम से बहत क मंिजल कुछ ही आगे
आनी वाली थी । लेिकन उस मंिजल तक पहँचने के िलये गाङी कै से टेङे मेङे रा त
पर और जायेगी । उसे पता न था, कुछ पता न था । वो अभी भी िकसी कै दी क भािं त
एक जेल से दसू री जेल म जा रही थी ।
लेिकन या सारे ेिमय क कहानी एक ही होती है ?
िफ़र य उन दोन को ये ेम गीत अपना ही गीत लग रहा था, िबलकुल अपना - तमु
ताना तमु , तमु ताना तमु ।
- िमतवाऽ ..भल ू न जानाऽ । गाङी म चढ़ती हयी छा लङिकयाँ बोली ।
- ना । वह बोली - कै से भल ू ँगू ी ।
- समय । उसक माँ बोली - ये ू र समय, इसं ान को बङी से बङी अ छी बरु ी बात
भल ु ा देता है । मझु े उ मीद है बेटी, समय के साथ साथ तू अपना अ छा बरु ा खदु सोच
पायेगी । देख बेटी, िकसी भी इसं ान को उसका मनचाहा हमेशा नह िमलता । िज दगी
के रा ते बङे टेङे मेङे ह, उतार चढ़ाव वाले ह । तू अभी कमिसन है, नादान है, तझु े
िज दगी क समझ नह । उसक हक कत से तेरा अभी कोई वा ता नह ।
िज दगी क हक कत, या है िज दगी क हक कत ?
वह नह जानती थी, बस उसे यार क हक कत पता थी । इस यार के रोग क वह
अके ली रोगी नह थी । ये लङका भी था, िजसे उसी क तरह दीन दिु नयाँ से कोई
मतलब न था । मतलब था तो, याल म मचलती अपनी ेिमका से - तमु ताना तमु ,
तमु ताना तमु ।
- िमतवाऽ ..भल ू ऽ न जाना । रा ते म आये शहर बोले ।
- ओ.. नह । वह उस उदास ेमी को देखती हयी बोली - नह भल ू ँगू ी ।
- माँ । वह बोली - म कोिशश क ँ गी िक सबका साथ िनभा सकँू । तेरा, बाबल ु का,
अपने राँझे का । देख माँ, अगर म बेवफ़ाई क ँ गी, तो स चे ेमी बदनाम हो जायगे ।
ेिमय के अमर िक से झठू े हो जायगे । िफ़र एक लङका लङक आपस म ेम करना
ही छोङ दगे । सबका ेम से िव ास उठ जायेगा । तमु बताओ माँ या गलत कह रही
हँ म ? माँ इस दिु नयाँ म ेम ही स य है, बाक र ते झठू े ह ।
- अगर ये स य न होता । वयं िफ़र उसके िदल ने ही उससे कहा - तो िफ़र इस दिु नयाँ
म इतने ेमगीत भला य गँजू ते । सिृ के कण कण म गँजू ते ेम गीत - तमु ताना तमु ,
तमु ताना तमु ।
- िमतवाऽ ..भल ू ऽ न जानाऽ । उदास खामोश सनू ा सनू ा घर उससे बोला ।
- अरे नह । वह ेिमय क मनपस द तनहाई म िवचरती हयी बोली - नह भल ू
पाऊँगी ।
िवरह आग ने उस ेिमका को जलाते हये आिखरकार उसक मोह बत को दीवानगी
म बदल िदया था ।
वह पगली हो गयी थी, दीवानी हो गयी थी । सम त ेिमय क आ मा जैसे उसम समा
गयी थी ।
अब वह रोमा न रही थी, लैला हो गयी, हीर हो गयी, शीरी, जिु लयट हो गयी ।
ये जदु ाई, ये त हाई, ये सनू ापन अब उसका साथी था । बङा ही यारा साथी ।
य िक यहाँ उसक क पना म बेरोक टोक उसका ेमी उसके साथ था । शायद यही
ेम है, शायद यही ेम है ।
उसने एक बार घमू िफ़रकर पहले से ही देखे हये अपने उस बाप दादा के घर को देखा,
और नल से मँहु धोने बङी ।
तभी मु य दरवाजे पर द तक हयी ।
आ य से उसने दरवाजा खोला, और िफ़र उसका मँहु खल ु ा का खल ु ा रह गया ।
दरवाजे पर िवशाल खङा था, सनू ी सनू ी आँख से उसे ताकता हआ ।
- तमु । वह भ च का होकर बोली ।
- िज दा रहने के िलये । वह बेहद कमजोर वर म बोला - तेरी कसम, एक मल ु ाकात
ज री है सनम । हाँ रोमा, म तेरे साथ ही आया हँ, उसी ेन से । पर तू अके ली नह थी,
इसिलये तेरे पास नह आया । मझु े पता चल गया, ठाकुर साहब तुझे शहर भेज रहे ह,
जहाँ तेरा पु तैनी मकान है, िफ़र म यहाँ आ गया ।
और िफ़र वाभािवक ही वे एक दसू रे से िलपट गये ।
उ ह ने अब तक जो नह िकया था । वो खदु हआ । उनके ह ठ आपस म िचपक गये
और वे एक दसू रे को सहलाते हये पागल क भािं त चमू ने लगे ।
- ये घर । रोमा िब तर ठीक करती हयी उसे आराम से बैठाकर बोली - हमारी परु ानी
जायदाद है, िजसका इ तेमाल अब हमारे कारोबार के सामान आिद रखने के िलये
गोदाम के प म िकया जाता है । इसक ब द घर जैसी बनावट भी िकसी गोदाम के
समान ही है, और इसम सबसे अ छी बात है । वह कमरे म एक िनगाह डालकर बोली
- यह तलघर, इसम तमु आराम से छुपकर रह सकते हो । भले ही हमारे घर के लोग
कभी कभी आते जाते बने रह ।
पर दीवान को ये सब कहाँ सनु ायी देता है ।
वह तो अपलक उसे ही देखा जा रहा था, अपनी माशक ू ा को । िजसे आज बहत िदन
बाद देखने का मौका िमला था । बहत िदन बाद छूने का मौका िमला था । रोमा को
छोङने आये लोग उनके ांसपोट कारोबार आिफ़स चले गये थे, और शायद ही आज
लौटते, रात को कोई नौकर भले ही आ जाता ।
शाम के चार बज चक ु े थे ।
उसने परू ी तरह से सहु ािगन का गं ार िकया, और दरवाजा ठीक से लाक करके आराम
से उसके पास तलघर म बैठी थी ।
आज उसने एक फ़ै सला िकया था, परू ी सहु ािगन होने का । आज वह अपना सव व
उसे अिपत कर देना चाहती थी ।
िजसक िवशाल को कोई वािहश न थी, पर उसको थी, और जाने कब से थी, या
पता कल या हो जाये ?
िफ़र उसके पास उन दोन के मधरु िमलन क याद तो थी । उसके मांग म सजी िस दरू
क मोटी रे खा, माथे पर दमकती िबि दयाँ, ह ठ पर चमकती लाली, और हाथ म
खनकते कंगन उस एकदम नयी नवेली दल ु हन के िलये जैसे िववाह गीत गा रहे थे ।
वह खामोश तलघर उनके मधरु िमलन के इन ण को यादगार बनाने के िलये जैसे
बैचेन हो रहा था ।
उफ़ ! िकतने मु त के बाद यह समय आया था ।
जब वह अपने राँझे के सीने पर सर रखकर लेटी थी, और समय जैसे ठहर गया था ।
काफ़ देर हो चक ु थी, और वह िवशाल क तरफ़ से िकसी पहल का इतं जार कर रही
थी । पर वह उसक पीठ सहलाता हआ खामोश छत को देख रहा था । जैसे शू य म
देख रहा हो । आिखरकार उसक सांकेितक चे ाओ ं से वह भािवत होने लगा, और
उसने रोमा के व पर हाथ रखा ।
तभी खट क आवाज से दोन च क गये ।
उ ह ने घमू कर आवाज क िदशा म देखा ।
तलघर क सीिङय पर उसका बाप ठाकुर जोरावर िसंह एक आदमी के साथ खङा था

उसक प थर सी स त आँख म ू रता क पराका ा झलक रही थी और उसके हाथ
म रवा वर चमक रहा था ।
एक पल को रोमा के होश उङ गये, पर दसू रे ही पल उसके चेहरे पर ढ़ता चमक उठी

- तनू े वचन भगं िकया बेटी । वह भावहीन खरु दरु े वर म बोला - अब म मजबरू हआ,
अब दोष न िदयो मझु े ।
वह िब तर से उठकर खङी हो गयी और सनू ी सनू ी आँख से उस यार के दु मन
ज लाद को देखने लगी । िजसके साथी के चेहरे पर हैरत नाच रही थी ।
यकायक उसे कुछ न सझू ा, या करे या न करे । रहम क भीख माँगे, या बेटी बाबल ु
से यार माँगे, कै से और या माँगे ।
य िक उस प थरिदल इसं ान म कह कोई गजंु ाइश ही नजर न आती थी ।
- पापा । िफ़र वतः ही उसके मँहु से िनकला - वचन भगं हआ । उसके िलये माफ़
चाहती हँ आपसे । पर ये मेरा यार है.. म या क ँ । हम दोन एक दजू े के िबना नह
रह सकते.. नह रह सकते बाबल ु । अगर मारना ही है, तो उसको मारने से पहले मझु े
मारना होगा । हम साथ जीयगे, साथ मरगे, और ये उस लङक क आवाज है, िजसक
रग म आपके ही खानदानी ठाकुर घराने का खनू दौङ रहा है । हमारे िज म मर जायगे,
पर मोह बत कभी नह मरे गी ..पापा म तो आपक बेटी ही हँ । वह भरायी आवाज म
बोली - आपने मझु े ज म िदया बाबल ु । आपक गोद म खेलकर बङी हयी, और आप
ही मार भी दोगे, तो या दखु , कै सा दखु ।
वाकई, आज ये एक कमजोर लङक क आवाज नह थी, ये मोह बत क बल ु द
आवाज थी ।
आज उसक आवाज उस जािलम क आवाज को भी कमजोर कर रही थी, उसम एक
च ानी मजबतू ी थी । उसम ठाकुर के खनू क गम थी । जोरावर का रवा वर वाला
हाथ कांपकर रह गया ।
इतना स ता भी नह होता, दो इसं ान का जीवन । मारने का याल करना अलग बात
है, और मारना अलग बात ।
- ोध म अँधा होकर या करने जा रहा था वह ? उसने सोचा - आिखर या गलती
क उसक मासमू बेटी ने ? जोरावर ये या अनथ करने जा रहा है तू ।
उसका कलेजा कांप कर रह गया । अ दर ही अ दर वह कमजोर पङने लगा ।
खदु ब खदु उसके िदमाग म उसके न ह बचपन क रील चलने लगी । जब वह अपनी
फ़ूल सी बेटी को एक कंकङ चभु ना भी बरदा त नह कर सकता था । वह अपनी ही
गलती से िगर जाती थी और वह आगबबल ू ा होकर तमाम नौकर को कोङे मारता था

आिखर मेरी बेटी िगरी, तो िगरी य , य ?
उसके मँहु से िनकली बात आधी रात को भी परू ी क जाती । उसक एक मु कान के
िलये वह हीरे मोती लटु ा डालता । िकतने वाव थे उसके , उसको अपने हाथ डोली म
िवदा करने के मधरु याल म वह िकतनी बार रोया था ।
और आज, आज या हो गया था उसे ?
अगर उसक बेटी ने अपने सपन का राजकुमार खदु चनु ा था तो इसम कौन सा
आसमान टूट गया था ।
नह वह ऐसा कभी नह कर सकता िक अपनी ही राजकुमारी को अपने ही हाथ से
मार डाले ।
- हा ..हा..हा ठाकुर जोरावर िसंह । उसके िदमाग म ठाकुर के स त चेहरे अ ाहास
कर उठे - तेरी बेटी ने खानदान क नाक कटवा दी, एक गङ रया िमला तझु े दामाद
बनाने को ।
हा ..हा..हा ठाकुर जोरावर िसंह, एक पाल लङका, हा ..हा.. ठाकुर ! तु हारी औरत
बाँझ हो गयी । अब ठाकुर क बेिटयाँ ऐसी जाितय म शािदयाँ करे गी । हा ..हा..हा
ठाकुर जोरावर िसहं तेरी गदन नीची कर दी, इस नीच वै या लङक ने ।
हा ..हा..हा ठाकुर जोरावर िसंह ।..अरे नह नह , ठाकुर जोरावर िसंह नह ।.. जोरावर
गङ रया, जोरावर पाल, हा ..हा..हा ठाकुर जोरावर िसहं . जोरावर पाल हा ....हा
ठाकुर जोरावर िसहं ।
वह पागल हो उठा, और न सनु सका । एक ू रता िफ़र से उसके कठोर चेहरे पर छा
गयी ।
उसने उन दोन क तरफ़ से नजर फ़े र ली और रवा वर वाला हाथ सीधा िकया ।
एक, दो, तीन !
एक के बाद एक तीन गोिलयाँ दनदनाती हयी उसके रवा वर से िनकली और िवशाल
के सामने तनकर खङी हो गयी रोमा म समा गयी । खामोश शा त तलघर उन ेिमय
क हाहाकारी चीख से गँजू उठा ।
यकायक, यकायक जैसे जोरावर होश म आया, ये तो रोमा क चीख थी । उसक
यारी बेटी क चीख, उसक मासमू फ़ूल सी ब ची क चीख । उसने च ककर िनगाह
सीधी क , रोमा क आँखे पथरा सी गयी थी, िवशाल उससे िलपट कर रो रहा था ।
उसने िफ़र से हाथ सीधा िकया और दीवानगी म घोङा दबाता चला गया ।
िवशाल का सर िकसी फ़टे तरबजू क भांित ऐसे िबखर गया, जैसे िसर कभी था ही
नह , िसफ़ धङ ही था ।
उसने घोर नफ़रत से रवा वर को फ़का, और दोन लाश से िलपटकर फ़ूट फ़ूटकर रोने
लगा ।
- मझु े माफ़ करना बेटी । वह जार जार रोता हआ उसे चमू ता बोला -. मझु े माफ़ कर
देना, तझु े तेरे बाबलु ने नह मारा.. तझु े ठाकुर ने मारा.. ठाकुर जोरावर ने । ह यारे
जोरावर ने ।..सब ठाकुर ने िमलकर.. मेरी यारी बेटी को मार डाला ..उठ बेटी
..उठ..म तेरा बाबल ु । एक बार ..बस एक बार..एक बार..अपने बाबल ु को गले लगकर
बोल - पापा मने तु ह माफ़ िकया ।
िमतवाऽ.. भल ू नऽऽ जानाऽऽ । िनमाङ क हरी भरी वािदय म उस स चे ेमी क
आवाज जैसे अभी भी गँजू रही थी - नह जानता रोमा ..पर म ये जानता हँ िक म
तु हारे िबना नह जी पाऊँगा । अगर ये लोग हम िमलने नह दगे, िफ़र हम यहाँ से दरू
चले जायगे । दरू , बहत दरू , बहत दरू , बहत दरू ।
- िकतनी दरू ? वह उदास हँसी हँसती हयी बोली - िवशाल..िकतनी दरू ?
- शायद । वह ेम से उसको देखता हआ बोला - शायद..इस धरती के पार िकसी नयी
दिु नयाँ म । वहाँ, जहाँ दो ेिमय के िमलने पर कोई रोक न हो ।
- चल पागल । अचानक वह जोर से िखलिखलाई - वहाँ कै से जायगे भला, तमु
सचमचु दीवाने हो ।
- िनितन जी ! पहाङी पर चहलकदमी सी करती हयी पदमा बोली - हम जहाँ खङे ह,
ये वही वािदयाँ ह, जहाँ कभी हमारे यार के गीत गँजू े थे । िवशाल ने एकदम सच ही
कहा था, हम एक नयी दिु नयाँ म..उस दिु नयाँ से.. बहत दरू आ गये थे । मझु े दो गोली
छाती म एक पेट म लगी थी, पर मेरे ाण नह िनकल रहे थे, वे तो जैसे िवशाल का
इतं जार कर रहे थे । वह मझु से िलपट कर रो रहा था, तभी कुछ ण बाद मझु े उसक
ददनाक चीख सनु ायी दी, और इसके साथ ही मेरी ह ने मेरे शरीर को छोङ िदया ।
मौत ! या होती है मौत ?
हम पता ही न चला, य िक हम तो मरे ही न थे ।
गोिलयाँ हमारा कुछ न िबगाङ सक थी । हम तो य के य जीिवत थे और एकदम
ठीक थे ।
मौत हयी थी, पर हमारी नह शरीर क । हम तो जैसे के तैसे जमीन से उठकर जैसे
वािपस िब तर पर आ गये थे ।
मेरा बाप हम दोन के शरीर से िलपट कर रो रहा था । बार बार हमारे पैर पकङ कर
माफ़ माँग रहा था ।
तु ह हैरानी होगी िनितन, मझु े उस पर सचमचु दया आ रही थी ।
य िक वा तव म उसने मझु े नह मारा था । एक बाबल ु अपनी बेटी को कभी मार भी
नह सकता । हम क र ठाकुर जाित ने मारा था, एक झठू ी शान क िहसं क खनू ी
पर परा पर, उसने अपनी नाज पली बेटी क बिल चढ़ा दी, िफ़र मझु े अपने बाप से
या िशकायत होती ।
मझु े मारने वाला ठाकुर था, और अब फ़ूट फ़ूट कर रो रहा मेरा बाप था । तब मझु े भी
रोना आ रहा था, म उसको तस ली देना चाहती थी ।
पर कै से, िनितन जी कै से ?
य िक अब हम उस दिु नयाँ म थे ही नह ।
- िफ़र आपने । अचानक िनितन बोला - पदमा जी के प म ज म िलया, और िवशाल
जी ने ?
वह यकायक िखलिखला कर हँसने लगी ।
अतीत के उस दख ु द उदास कथानक क धधँु जैसे िनितन के उस मासमू से सवाल पर
उस िदलकश औरत क मधरु हँसी के साथ खील खील होकर िबखर गयी ।
- अरे कहाँ िनितन जी । वह शोख मु कान के साथ उसको देखती हयी बोली - आप
भी कै सी बात करते हो । मने पदमा या िकसी भी प म कोई ज म ही नह िलया,
अभी तक नह िलया । पदमा अलग है, म अलग हँ, आप भी कमाल के हो ।
उसके िदमाग म मान भयंकर िव फ़ोट हआ ।
पदमा अलग है, म अलग हँ, िफ़र ये कौन है ?
उसने एकदम च ककर उसक ओर देखा, उसे.. जो बेहद शरारत से उसी को देखती
हयी हँस रही थी और जैसे आँख ही आँख म मौन खल ु ा चैलज कर रही थी - या
कमाल क कहानी िलखी है, इस कहानी के लेखक ने, जितन .. कहानी जो उसने शु
क , उसे कै से कोई और ख म कर सकता है, ये कहानी है ।..
िफ़र अचानक वह सब कुछ भल ू कर उससे िलपट गयी और दीवानी सी उसके ह ठ
चमू ने लगी ।
िनितन का बदन िफ़र फ़ूल सा ह का होने लगा, और उन दोन के पैर वािदय क
सरजम से उखङ गये ।
- िनितन जी ! यार कुछ अलग होता है । पदमा छत पर िकनारे क ओर बढ़ती हयी
बोली - शायद यार को समझ पाना हरे क के बस क बात नह । दरअसल हम िजसे
यार मान लेते ह, वह हमारे अतं र म कह गहरे छुपी दैिहक वासना ही होती है । यार
क सही अनभु िू त के िलये इसं ानी शरीर का होना बहत आव यक है ।..और ये स य
िजसे म जीते जी न जान सक । मरने के बाद िबना िकसी यास के मेरी समझ म आ
गया, अनभु व म आ गया ।
कहते भी ह, दो ेिमय को जब ये बेरहम दिु नयाँ जीते जी नह िमलने देती । तब वे
मरकर एक हो जाते ह । कम से कम ये बात हमारे ऊपर तो स य हयी थी, हम एक हो
चक ु े थे । अब कोई कै सी भी रोक टोक नह थी । हम म एक दसू रे के िलये यार भी था

पर यार क वह तङप जाने य ख म हो गयी थी । जो मजा उस व जदु ाई म था,
िमलन म न रहा । हमारे सीने म िदल तो था, पर उस िदल म ेम क सल ु गती हक न थी
। वह अनजानी जजबाती आग जैसे बझु ही गयी ।
तब मने कई बार इस बात पर सोचा और यही िन कष िनकाला िक मनु य शरीर म
कोई खास बात ऐसी है, जो यार क अलग ही अनभु िू त कराती है । पर अब या हो
सकता था, हम बाजी हार चक ु े थे । कुछ भी हो, म स य कहती हँ, जो यार क आग
तब म जलती हयी महससू करती थी, वो बाद म न रही । िवशाल क भी वो तङप, वो
बेकरारी ख म सी हो गयी ।
हम इसी ब द घर म रहने लगे ।
ेमी िमल गये, पर ेम खो गया ।
ठाकुर जोरावर िसहं को जैसे इस घर से नफ़रत ही हो गयी ।
घर, जो उसक बेटी का ह यारा था, क गाह था । उसने इस घर म ताला डाल िदया ।
पर शायद..शायद उसको भी मालमू न था िक उसक बेटी अपने ेमी के साथ इसी घर
म रहती है, और िफ़र धीरे धीरे समय गजु रने लगा ।
समय ! जो एक छोटी बािलका को लङक म बदल देता है । लङक को जवान
लङक म, और जवान लङक को जवान औरत म, और जवान औरत को प रप व
औरत म ।
प रप व औरत, से स क भख ू ी और अ य त औरत ।
भख ू से स..िसफ़ से स ।
- आऽ । वह कराही - म यासी हँ ।
- िनितन जी ! मौत के बाद पाँच त व का थल ू शरीर छूट जाने पर इस अजीब शरीर
म इसं ानी शरीर जैसे बदलाव नह होते । वह वैसा का वैसा ही ठहर जाता है, जैसा मौत
के समय था । ब चा मरे तो ब चा, बढ़ू ा मरे तो बढ़ू ा, पर कामनाय जवान हो जाती ह ।
तब एक बढू ा अशरीरी भी वासना का ऐसा ही भख ू ा हो जायेगा । य िक उसके इस
शरीर म बढु ापे क िनबलता नह होती । और आप जानते ही ह, इसं ान हमेशा शरीर से
बढ़ू ा होता है, िदल से जवान ही रहता है ।
रात धीरे धीरे अपना सफ़र परू ा कर रही थी ।
वह बङे कृमब ढंग से बाकायदा कहानी को सनु ा रही थी । पर उसक समझ म जैसे
कुछ भी नह आ रहा था ।
या अजीब घनच कर कहानी थी ।
ये ही नह पता लग रहा था, शु हो रही है, ख म हो रही है, या बीच म ही अटक
गयी, या िफ़र कोई कहानी है भी, या नह ?
वह िजतना आगे कहानी सनु ाती जा रही थी । कहानी सल ु झने के बजाय और उलझती
ही जा रही थी ।
आिखर या ए ड है इस कहानी का ?
उसका िदमाग जैसे घमू कर रह गया ।
- आऽ । अचानक वह तङप उठी - म यासी हँ ।
- तब िनितन जी ! वह झक ु कर नीचे आँगन म झांकती हयी बोली - मेरे अ दर भी
भयक ं र कामवासना जाग उठी । मेरा सम त िच तन िसफ़ दैिहक वासना को तृ करने
पर के ि त हो गया, योिन वासना । और इसीिलये िफ़र धीरे धीरे मझु े मनु य से नफ़रत
होने लगी, घोर नफ़रत । य िक इसी मनु य के सामािजक िनयम ने हमारा वह शरीर
हमसे छीन िलया था । जो सही अथ म कामवासना को स तु कर सकता है । तृ कर
सकता है, और मने जाना मेरे अ दर कामवासना क अि न च ड प से दहक रही
थी ।
च ड कामवासना !
से स.. िसफ़ से स.. और िफ़र म आसपास के लोग को अपनी वासना का िशकार
बनाने लगी ।
वह िसफ़ तं , मं जानता था । कुछ हद तक ऐसी बात क िकताबी जानकारी भी उसे
थी । पर ेत से सीधा स पक और उनक असल ि थित से उसका वा ता पहली बार
ही पङा था । इसिलये जब वह कोई बात बताती थी । तब बीच बीच म उसके िदमाग
म सवाल पैदा हो जाते थे । लेिकन रोका टोक करने से उसके बहाव म बाधा आ
सकती थी । उसका ख कह ओर भी मङु सकता था । हो सकता था, वह आवेश ही
ख म हो जाये, और तब वह प रणाम होना, िसफ़ समय क बरबादी और खदु क गयी
मखू ता ही होती, इसिलये कसमसाता हआ भी वह चपु ही रह जाता ।
वे दोन जैसे खङे खङे थक गये थे । तब वह जाकर बच पर बैठ गयी ।
- एक बात बताईये िनितन जी । अचानक वह मधरु वर म अदा से बोली - क पना
क रये एक ी पु ष ह, उनका कोई प रवार नह , कोई ब चे आिद नह । िज दगी क
कोई िज मेदारी, कोई तनाव नह , यहाँ तक िक कपङे भी न पहन, और पणू तः न न रह
। आप इस तरह समिझये, दो न न ी पु ष जंगल म ह, पेट क भख ू के िलये फ़ल खा
लेते ह, और न द आने पर प पर सो जाते ह, तब बाक समय उनके िदमाग म या
घमू ेगा ?
वह कुछ न बोला और चपु ही रहा । य िक उसे पता था िक आगे वह या कहने
वाली है ।
- से स..िसफ़ से स..आऽ । वह ह ठ काटती हयी बोली - म यासी हँ ।
यकायक वह कुछ देर के िलये शा त हो गयी और दरू शू य म घरू ती रही, िफ़र उसने
एक गहरी सासं सी ली और बङी अजीब नजर से उसे देखा ।
- िफ़र या हआ ? वह उ सक ु ता से बोला ।
- िफ़र । उसने नजर झक ु ाकर उंगिलयाँ चटकाते हये कहा - िफ़र कहानी क नाियका
को बहत जोर से यास लगी, और वह कहानी ही भल ू गयी । य िक.. यास .. बहत
जोर से लगी ।..िफ़र िफ़र बहत जोर से यास लगी.. यास ।
अगर वह उससे कुछ चाहता था तो िफ़र वह भी उससे कुछ चाहती थी ।
जीवन शायद इसी सौदे का ही नाम है । अपनी अपनी चाहत का मनु ाफ़े यु सौदा
िफ़र कौन नह करता ।
पित प नी, बाप बेटा, माँ बेटा, भाई भाई, ेमी ेिमका सभी र ते स ब ध के अनसु ार
अपने अपने वाथ से ही जङु े ह ।
सभी जैसे कुछ देकर कुछ खरीदते ह, कुछ लेकर कुछ बेचते ह । तब वह अपनी क मत
चाहती थी तो उसम गलत या था ?
कुछ भी नह , कुछ भी तो नह ।
वह िकसी मोल चक ु ायी महारानी ारा खरीदे दास क तरह उसक ओर बढ़ा और उसे
अपनी गोद म उठाकर त त पर डाल िदया । एक सधे मशीनी अ दाज म उसने उसका
लाउज ऊपर िकया और उसके तन मसलने लगा ।
वह जल िबन मछली सी तङपने लगी ।
- आऽ । वह उसके बिल चगं ल ु म फ़ङफ़ङाई - म यासी हँ ।
नौकर ! मोल लेकर सेवाय देने वाला सेवक । शायद िकये जा रहे िकसी भी काय म
उसक िनजी अपन व भावना कभी नह होती, कम से कम अभी तो वह वही था ।
तब उसने उसक छाितय पर वही कठोरता िदखाई, जैसी उसक चाहत थी । अगर वह
परू ी क मत दे रही थी, तो िफ़र उसे भी स चा सौदा ही करना चािहये था । भरपरू
क मत तो खरा माल । उसने उसके गदगदे तन को इतनी स ती से दबाया िक वह
उसक स त पकङ से छूटने के िलये छटपटाने लगी । जैसे उसके बदन म िव तु के
झटके से लग रहे ह । स ती के इस मीठे दद से बेतरह तङपती भख ू ी औरत आिखर
उस समय और चाहती भी या है ।
स ती, भरपरू स ती, जैसे उसे महीन महीन पीस िदया जाये, जैसे उसे कतरा कतरा
काट िदया जाये । उसक धि जयाँ उङा दी जाय । उसको ई सा धनु िदया जाये, और
जैसे उसके बिखये उधेङ िदये जाय ।
इसिलये उसे उसक चाहत से भरपरू तङप से, दद से, चीख से जैसे कोई सहानभु िू त
नह थी ।
वह तो िकसी िनदयी कसाई क भािं त ल बा, पैना, धारदार, चमकता, लपलपाता छुरा
लेकर उसको िसफ़ हलाल करना चाहता था । उस घबरायी, सहमी, डरी बकरी क
िमिमयाहट उसम उ टा जोश भर रही थी । उसके बदन म जैसे जोश का लावा सा फ़ूट
रहा था ।
- म.म..मऽ म ऽ मंयऽ । वह तेजी से उलटी पलटी - छोङ मझु े..िनदयी.. मऽ मंऽु आं
आऽं आऽ मर गयी ।
उसने िकसी माँस से लबालब भरी मोटी बकरी क तरह उसे पकङ कर ख चा और
उसको कमर से घमु ाकर उ टा िकया । खनू पीने को आतरु गम छुरा सा महससू करते
ही वह िच लाई । पर कसाई अपनी परू ी कारीगरी िदखाता हआ उसे बङी शाि त से
हलाल कर रहा था, और िफ़र तङपते तङपते वह शा त हो गयी ।
कभी कभी जीवन क कोई रात बङी ल बी बङी रह यमय हो जाती है । जैसे कयामत
क ही रात हो ।
ये रात उसके िलये ऐसी ही थी, कयामत क रात । उसे लग रहा था, जैसे सैकङ वष
गजु र गये ह । और दसू रे ही ऐसा भी लग रहा था, जैसे व ही ठहर गया हो । हाँ
शायद, कभी कभी िनर तर गितमान समय ठहर भी तो जाता है, जैसे आज ठहर गया
था ।
- पदमा जी । अचानक वह कुछ सोचता हआ बोला ।
- अरे पागल हो या । वह िकसी मनचली औरत क भािं त तेजी से बात काटती हयी
बोली - कहा न, म पदमा नह हँ । पदमा अलग है, म अलग हँ । िनितन जी, आप भी
परू े वो मालमू होते हो, एकदम बु ू ।
वह िफ़र चपु रह गया । अब कहता भी तो या कहता ?
बस उसके बोलने का इतं जार ही करता रहा ।
- मझु े हँसी आती है । अचानक वह कुछ ग भीर होकर बोली - ससं ार के मनु य क
ेत को लेकर कै सी अजीब अजीब सी सोच ह । जैसे ेत िकसी मायावी रा स जैसे
खतरनाक होते ह । वह उनको मार डालगे, उनका बङा नक ु सान कर दगे और िनितन
जी, आ य इस बात का है जबिक उ ह अ छी तरह मालमू है, कोई भी मरा हआ
इसं ान ही ेत बनता है । है न कमाल क बात, िज दा इसं ान मरे इसं ान से डरता है ।
िजस जीव क वासना िनयम अनसु ार उन जिटल कम गु छ म उलझ जाती है, अटक
जाती है, िजनसे ेत व का िनमाण होता है, तब सीधी सी बात है, वह मरकर ेत ही
बनेगा है न । और इन वासनाओ ं म सबसे मख ु वासना होती है, कामवासना, से स
..िसफ़ से स ।
और मझु े हैरानी थी िक मझु लैला, मझु हीर, मझु शीर , मझु जिू लय़ट जैसी ेिमका म
िजस वासना का उसके मनु य जीवन म नामोिनशान भी नह था । वह मरने के बाद
िकसी वालामख ु ी सी फ़टी । िनितन जी यही है शायद, सिदय सिदय से यासी
औरत, भख ू ी औरत ! पर सबके साथ ही ऐसा होता हो, ऐसा भी शायद म िन य से
नह कह सकती, य िक मरने के बाद िवशाल म ऐसी कोई उ ेजना नह थी । वह
यादातर शा त ठ डे तलघर म पङा रहता, और रात होते ही वीरान म िनकल जाता,
पर म कह नह जाती थी । म यहाँ आसपास क ब ती क सोयी ि य म वेश कर
जाती, और उनके मा यम से उनके पितय का रस चसू ती, कामरस । इससे मझु े एक
अजीब सी तिृ हािसल होती ।
िफ़र कुछ साल और गजु र गये, और अचानक इस मनहस ब द घर म जीवन क नयी
चहल पहल शु हो गयी ।
उजाङ पङा ये घ सला जैसे आबाद हो गया । इसम ेम प र दे एक बार िफ़र से
चहचहाने लगे ।
एक बार तो म आ यचिकत ही रह गयी । ठाकुर जोरावर ने ये घर बेच िदया था, और
एक पित प नी एक जवान लङके के साथ इस घर के नये मािलक बनकर आये थे ।
उस बेहद सु दर, सरल, अ सरा सी औरत का नाम पदमा था । उसके सीधे साधे पित
का नाम अनरु ाग था, और पदमा के गठीले जवान देवर का नाम मनोज था ।
िफ़र यकायक जैसे उस पर उदासी सी छा गयी, एक गहन अपराध बोध, जैसे उसके
भाव म घल ु ने लगा ।
एक ायि त क पीङा सी बार बार उसके चेहरे पर आने जाने लगी ।
कुछ कहने से पहले ही उसका क ठ भरा गया, िफ़र जैसे तैसे करके उसने अपने
आपको संभाला ।
- नफ़रत, जलन । वह कुछ कुछ भराये वर म बोली - इसं ान से गहरे पाप करा कर उसे
पतन के अथाह गत म िगरा देती है । िवशाल को इस प रवार के अचानक आ जाने से
बहत खश ु ी हयी । वह इनक खिु शयाँ देखकर ही जैसे खशु हो जाता था । िचिङया सी
चहकती, कोयल सी कूकती, िततली सी उङती, मोरनी सी चलती, िहरनी सी
उछलती, फ़ूल सी महकती पदमा ..पदमा, जैसे कोई औरत न होकर, जीती जागती
बहार थी । बहार जो िफ़जा म रंग भर देती है, बहार जो हर िदल को मचलने पर मजबरू
कर देती है ।
खदु मझु े भी उसे देखना बहत अ छा लगता था । उस ी म जो सबसे खास बात थी,
उसे िकसी से भी कोई िशकायत ही न थी, वह तो जैसे हर रंग अपनी म ती म म त
रहती थी ।
कई महीने गजु र गये ।
हम दोन इन नये ेम पिं छय को देखकर मान खदु को ही भल ू गये ।
कभी कभी म सोचती थी । पदमा पर सवार हो जाऊँ और उसके ारा अपनी हवस परू ी
क ँ । पर उसके अि त व म जो एक अजीब सा देव व था । उससे मझु े एक अनजाना
सा भय होता है । वह इतनी यारी लगती थी िक उसके ित कोई बरु ा सोचना भी नह
अ छा लगता था ।
और िफ़र मने पदमा का एक नया प देखा । उ मु यौवन क मु बहार लटु ाने
वाला प, उसक नजर म ससं ार के सारे स ब ध बनावटी थे, बेमानी थे । िसफ़ जीवन
यापार को सचु ार प से चलाने के िलये तमाम स ब ध गढ़े गये थे, वरना संसार म
िसफ़ दो ही स ब ध असली थे, ी और पु ष, जो एक दसू रे क इ छाओ ं के परू क थे

उसका मानना था िक वह अपने यासे देवर को यौनि या स तिु से स तु कर दे, तो
इसम कुछ भी गलत नह था । वह अपने देवर से खदु क यौन भावनाओ ं को स तु
करे , इसम भी कुछ गलत नह था । य िक अगर यास है, तो यासा कह न कह
यास बझु ायेगा ही । उसका देवर बाहर िकसी कँु वारी याही औरत से यही तिृ पाता
है, तब भी यही बात है । वह खदु के िलये बाहर उपाय तलाशती है, तब भी यही बात
है । िफ़र इस तरह का ी पु ष प रचय, इस तरह का ी पु ष िमलन, घर म या
गलत था । इसिलये देवर भाभी भी अपनी जगह, और ी पु ष भी अपनी जगह ।
हाँ, लेिकन कुछ खास र स ब ध के ित उसका ऐसा नज रया नह था । जैसे बाप
बेटी, माँ बेटा, भाई बहन, य िक उनक कोई आव यकता भी नह थी, लेिकन बाक
सभी स ब ध, उसक नजर म ी पु ष स ब ध ही थे ।
और िनितन जी, तब शायद मझु े पदमा ने ेम क एक नयी प रभाषा िसखाई । एक नया
पाठ पढ़ाया । वह खल ु े अधखल
ु े अगं से अ सर मनोज के सामने भी आ जाती, और
वे एक दसू रे से आकिषत होकर मधरु काम ङाय करने लगे, और म, म मन मसोस
कर रह जाती । दसू रे ी पु ष के पास जाने क मेरी इ छा ही ख म हो गयी, अब म
िसफ़ पदमा को चाहती थी । पदमा होना चाहती थी, िसफ़ पदमा ।
मेरे अ दर एक अतृ आग सी लगातार जलने लगी । म अपने ही दाह से जल जलकर
कोयला राख होने लगी ।
उनके ेम म कुछ अलग सा था, कुछ अलग सा ? शायद उस अलग से ही क यास
हर ी पु ष म है । उनक वासना कामवासना भी थी, और पिव ेम भी । वे पित
प नी का भोग भी करते थे, और बङे यासे भाव से एक दसू रे क तरफ़ िखंचते भी थे,
जैसे ज म ज म के ेमी ेिमका ह । म पदमा का यह िवशेष गणु देखकर अित हैरान
थी । भोग के समय वह एक पणू प रप व ी होती थी । कामवासना के चरम पर
पहँचने और पहँचाने वाली, और ेम िक लोल करते हये वह एक अनछुयी कंु वारी
लङक सी सहमी, सकुचाती, शरमाती नयी नयी ेिमका सी नजर आती । वह एक पणू
प नी भी थी, और एक आदश भाभी भी । वह एक कुशल गहृ णी भी थी, और उन
दोन इसं ान के िलये ममतामयी माँ भी ।
हाँ िनितन, ममतामयी माँ, अपने पित और देवर क माँ । इस औरत को पढ़ना बहत
मिु कल था, जानना असंभव था ।
तब मझु े उस सख ु ी औरत के अित सख ु ी जीवन से जलन होने लगी, बेहद जलन ।
इसं ान से मझु े वैसे भी नफ़रत हो चली थी, तब खास ेम म सफ़ल इसं ान के ित वह
और भी यादा थी, और वह वही थी । ेमरस म नहायी हयी, अगं अगं सराबोर ेम
माधरु ी पदमा, इसिलये अब हर हालत म म उसका वह सख ु खदु ा करना चाहती
थी ।
और िफ़र हर रोज शाम ढले इस घर म होने वाली िदया बाती एक िदन ब द हो गयी ।
ये घर िफ़र मनहस, वीरान, शमशान सा ेतवासा हो गया, और इसम यार के पछ ं ी
चहकने ब द हो गये ।
- रोमा ! िवशाल बेहद नफ़रत से मझु से बोला - ह या रन, नीच तनू े ये या िकया ?
िकसी क खिु शयाँ तझु से बरदा त नह हयी, और कमीनी तनू े उन सबको मार डाला ।
- ह हाँ । मने नफ़रत यु मगर अपराध बोध भाव से कहा - शायद इस संसार म ऐसा
ही होता है । इसका यही िनयम है, हम िकसी दसू रे को खशु होता नह देख सकते ।
हमारे तन बदन म आग लग जाती ह, तब हम हरसभं व उपाय कर उसक खिु शयाँ छीन
ही लेते ह । सब यही तो करते ह, िफ़र मने या गलत िकया, िवशाल ?
- ये अपने िदल से पछू ह या रन । वह बेहद घणृ ा से बोला - तनू े या गलत िकया,
या सही िकया । तेरा िदल खदु तझु े इसक स ची गवाही देगा..अरे तू कै सी ेिमका है
? तेरे अ दर तो जहरीली नािगन बैठी हयी है ।
िनितन भी एकदम ह का ब का सा रह गया ।
उसके िदल पर जैसे िकसी ने जबरद त चोट मारी हो ।
लेिकन वह जो कह रही थी । उसे सनु कर तो उसका िदमाग न िसफ़ आसमान म उङ
रहा था । बि क उसे भयक ं र घमू ा आ रहा था ।
य िक जो कह रही थी । जो सामने बैठी थी ।
वह उसके िहसाब से पदमा ही थी, हं ेड परसट पदमा ।
अब या करे वह, कै से ये गु थी सल ु झे ?
अगर बीच म रोका तो कहानी िबना ए ड के समा हो सकती है ।
- िवशाल को मझु से घोर नफ़रत हो गयी थी । वह आगे बोली - वह मझु े मेरे हाल पर
छोङकर उसी समय कह चला गया, और मने भी उसके पीछे जाने क कोिशश नह
क , य िक अब मझु े उसम कोई िदलच पी भी नह थी ।
- लेिकन िनितन जी ! वह भराये वर म बोली - मेरे ेमी ने ठीक ही कहा था, मने
उनके खश ु हाल जीवन को जला डाला था, उसम आग लगा दी थी । पर..पर या म
ऐसा जीवन िकसी का बना भी सकती थी ?
हाँ िनितन जी ! जब एक िदन वह प रवार छु य म कार से घमू ने गया था । पता नह
मेरी जलन के चलते मझु े या सनक सवार हो गयी, मने उनक गाङी का स तल ु न
िबगाङ िदया, और वह गहरी खाई म जा िगरी । वही तो वो िदन था, जब इस घर म
साझं का दीपक जलना ब द हो गया । य िक वो दीपक जलाने वाली तीन िज दिगय
के ही दीपक बझु चक ु े थे ।
इस रह यमय कहानी क तरह आज क रात भी बेहद रह यमय थी और जैसे इसका
रह य खल ु ने के इतं जार म ही क हयी थी ।
- िज दगी ने उसे कै से घनच कर म लाकर फ़ँ साया । उसने सोचा ।
- िनितन जी ! वह आगे बोली - यह बात एक अटल सच क तरह है िक - जो होता है
वह िदखाई नह देता, और जो िदखाई देता है वह होता नह है । यिद तमु इसी बात पर
यान देते, तो इस कहानी म कोई रह य था ही नह ।
इस कहानी के तलघर का दरवाजा इसी जीने के नीचे बने टोर के अ दर से गया है ।
पर मझु े नह लगता िक उस तलघर म अब आपक कोई िदलच पी होगी । उस
शमशान म जो काली छाया औरत तु ह िदखाई देती थी । वह रोमा थी, एक
शि शाली ेतनी । मगर इस प रवार क ह या के ायि त, और घोर अपराध बोध से
िघरी ।
रोमा ही तु ह यहाँ इस घर तक लायी थी । जब उसने तु ह अ सर शमशान म बैठे देखा
। वहाँ जो लङका मनोज दीपक जलाने जाता था । वह दरअसल कोई इसं ान नह , ेत
का भािसत छाया प था । जो रोमा के कमाल से तु ह जीव त दीख रहा था । वैसे ेत
असल ि थित म उसी तरह िदखते ह, जैसा तमु ने उस काली छाया औरत को देखा ।
दरअसल िनितन, तमु ने गौर भी नह िकया, और तमु तबसे लेकर अब तक मेरे एक
खास कार के ेतक स मोहन म बँधे हये हो । इसिलये तु हारा उधर यान भी नह
गया, जब मनोज तु ह यहाँ लाया था । तब वह घर के मु य ार से न लाकर पीछे के
ार से लाया था । इस घर के मु य ार पर तो साल से ताला लटक रहा है । य िक ये
घर खाली पङा रहता है । इसका िपछला ार खल ु ा हआ है ।
जब तमु गली से आगे चौराहे पर िसगरे ट लेने गये । तब भी तमु अपनी उधेङबनु म
ठीक से यह न देख पाये िक वह गली एकदम सनू ी और इसं ानी जीवन से रिहत है । इस
घर के िपछवाङे जो िगने चनु े मकान ह, वह इसी क तरह ब द रहते ह, और बरस से
खाली पङे ह । य िक इस मकान म रहने वाली ेतनी क वजह से लोग धीरे धीरे
अपना घर छोङ गये ।
जैसा िक मने कहा, तु ह शमशान से यहाँ तक लाने वाली, म एक शि शाली ेतनी हँ
। इसिलये यहाँ आने से लेकर, अब तक के समय म जो तमु ने पदमा आिद के अतीत
के रंगीन िच देखे, वह मेरी वजह से संभव हये । मने तु ह इस घर म गजु रा अतीत
वतमान क तरह िदखाया । जो िक तमु ने खास स मोिहत अव था म एक रंगीन सपने
क तरह देखा ।
पर वा तव म उसके पा िसफ़ छाया थे । जो तु ह िबलकुल असली जैसे महससू हो
रहे थे । जैसे अभी म हो रही हँ ।
तु ह याद होगा, तु हारे प रचय पछ ू ने पर मने ‘दो बदन’ कहा था । पदमा और उसके
घर वाल के मर जाने पर हमारी आपस म िम ता हो गयी । हम सब यह एक साथ
अब भी रहते ह । जो सु दर शरीर तमु देखते थे । वह पदमा का था । जो मधरु ,
मनचली, लभु ावनी हरकत तमु ने देखी, वह भी पदमा क थी । लेिकन जब वह िवकृत
प हो उठती थी । वह रोमा थी, और रोमा क अतृ कामवासना । इस तरह तमु ने
अ सर िमली जल ु ी पदमा, रोमा को साथ साथ देखा ।
रोमा के सू म शरीर म कुछ िवशेष गणु थे, जो मेरे शरीर म नह ह । इसिलये वह मेरी
ताकत से असली जैसा शरीर कट कर लेती है । पर वह असली िदखता ही है, होता
नह । हम दोन अलग अलग भी रहते ह, और कभी एक ही शरीर म भी हो जाते ह ।
जैसे िकसी इसं ान म ेत आवेश होता है । तब उसके िज म म दो ह होती ह िक नह
। वा तव म तो एक इसं ानी शरीर म आठ ह हो जाना भी कोई बङी बात नह ।
अब वह सनु ो, खास िजसके िलये मने यह सब िकया, और तु ह यहाँ तक लायी ।
तु हारे गु से मेरी पहले ही बात हो चकु है ।
दरअसल म पदमा और उसके प रवार को लेकर बहत अपराध बोध महससू करती हँ,
और ायि त करना चाहती हँ । इस प रवार के लोग का शायद ऐसा कोई नह है, जो
इनका सही ेतक सं कार कर सके । और जो ह, उ ह सही बात मालमू नह होगी िक
ये ेत बन चक ु े ह, और इनका या सं कार होना चािहये ?
य िक तमु इस िवधा के पि डत हो, और योग भी करना चाहते थे । इसिलये मने
तु ह चनु ा, िजसम तु हारे गु क परू ी सहमित है । ये सं कार परू ा होते ही कुछ समय
बाद ये तीन ह ेत योिन से मु होकर, िफ़र नया मनु य जीवन ा कर लेग ।
जबिक म ऐसा नह कर सकती । य िक मने अपराध भी िकया, और अपनी च ड
कामवासना के चलते मेरा ेत व और भी मजबतू और थायी हो गया ।
अब । अचानक वह उसके पैर से िलपट कर िवनती करती हयी बोली - मेरी आपसे
िवनती है िक पदमा, अनरु ाग और मनोज का सं कार करा कर उसे ेतयोिन से मु
कराने म मेरी सहायता कर । तािक मेरे िदल से यह बोझ हमेशा के िलये उतर जाये ।
िनितन को एकाएक कोई बात नह सझू ी ।
एक अजीब सा स नाटा उसके िदमाग म सांय सांय कर रहा था, और िफ़र जैसे धीरे
धीरे वह होश म आने लगा ।
तब सामने बैठी पदमा के रंग धधंु ले होने लगे ।
- पर । वह बेहद असमंजस से बोला - अब तो ये बता दो, अभी तमु पदमा हो, या रोमा
?
शायद, अि तम बार उसने एक िदलकश शोख मु कराहट से उसे देखा, और बेहद
शरारत से आँख मारती हयी बोली - या कमाल क कहानी िलखी है इस कहानी के
लेखक ने । .. कहानी जो उसने शु क , उसे कोई और कै से ख म कर सकता है, ये
कहानी थी ।..
अचानक उसक भािसत आकृित बहत ही धधंु ली हो गयी, और िफ़र वह उसक
िनगाह से अ य हो गयी ।
अब वह नह का, भोर का ह का ह का सा धधंु लका फ़ै लने लगा था ।
वह तेजी से जीना उतर कर नीचे आया । जाने से पहले एक िनगाह उसने घर म चार
तरफ़ डाली ।
वह मनहस ब द घर हर तरह के जीवन से शू य था, और बेहद खामोश था । उसम
चार तरफ़ बस धल ू उङ रही थी ।
उसने अपना कूटर बाहर िनकाल कर टाट िकया, और िसगरे ट सल ु गाते हये आिखरी
बार बङे गौर से उस ब द घर को देखा ।
िफ़र उसक िनगाह ब द गली पर गयी, ब द मकान पर गयी ।
उसके ह ठो पर अजीब सी मु कराहट तैर गयी, और िफ़र वह तेजी से अपने घर क
तरफ़ जाने लगा ।
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समा ।

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