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परिचय111 PDF
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महा मा गाँधी का ज म 2 अ टूबर, 1869 को गुजरात रा य के पोरबंदर म हुआ था। इनके डेसमंड टूटू जैसे नेता शा मल ह। इसके अलावा ने सन मंडेला, आन सान सू क और अमे रक
पता का नाम करमच द गाँधी था जो पोरबंदर के ‘द वान’ थे। इनक माता पत ु ल बाई एक रा प त बराक ओबामा भी उनसे भा वत हुए बना नह ं रह सके ह।
धा मक म हला थीं। गाँधी जी के जीवन पर उनक माता का बहुत अ धक भाव था। गाँधी जी
का ववाह 13 वष क उ म ह हो गया था और इनक प नी का नाम क तरू बा था। गाँधी जी सामािजक े म: समाज म या त घण
ृ ा, आतंक, तरोध के वातावरण म गाँधी के वचार का
ने नव बर, 1887 म मै क क पर ा उ तीण क और जनवर , 1888 म उ ह ने भावनगर के मह व और अ धक बढ़ जाता है । आज पूरा व व शरणा थय क सम या, धा मक टकराव,
सामलदास कॉलेज म दा खला लया। इसके बाद उ ह ने लंदन से बै र टर क ड ी हा सल क । सां दा यकता, क रता जैसे- ISIS वारा फैलाया गया हंसा आ द से सत हो गया है । एक
भीड़ को धा मक उ माद का प दे दे ना अ यंत सरल हो गया है िजसके चलते मॉब ल चंग
वतमान समय म गाँधी क ासं गकता जैसी घटनाएँ बढ़ ह। इसके अ त रक् त मानव संवेदना तथा भावना शू य होते जा रहे ह िजसके
महा मा गाँधी के वचार केवल गाँधी युग तक ह ासं गक नह ं थे अ पतु उनके वचार क कारण एक वग को दस
ू रे के त भड़काना आसान हो गया है । इन सार सम याओं का कारगर
ासं गकता वतमान प र े य म और बढ़ जाती है । आज समाज म हंसा, लूट-पाट, ह या, इलाज गाँधीवाद स ांत से ह संभव हो सकता है ।
बला कार जैसी आपरा धक विृ तयाँ बढ़ रह ह। मानव इतना वाथ हो गया है क वह पराए
तो या अपने संबं धय क भावनाओं को भी ठे स पहुँचाने म संकोच नह ं कर रहा है । ऐसे म गाँधी जी के अनुसार सां दा यक स ावना कायम करने के लये सभी धम , वचारधाराओं को
गाँधीजी के वचार का आलोक ह हम उ चत माग-दशन और ेरणा दे सकता है , िजसे न न साथ लेकर चलने क ज रत है । गाँधी जी ने कहा था क ‘म ऐसे भारत के नमाण के लए
शीषक के अंतगत समझा जा सकता है - सतत ् य नशील रहूँगा िजसम सभी सं दाय का मेल-जोल होगा।य ् वतमान म भारतीय
सं वधान और भारत सरकार क नी तयाँ वयं ह गाँधी जी के वचार क मा णकता को स
राजनी त के े म: वतमान राजनी त म टाचार, अपराध और अनै तकता का सा ा य चार करती है क वे कतने ासं गक ह। आव यकता उनके इस स ांत को यि तगत तर पर
ओर या त है । इसके अलावा नेताओं क छ व धू मल हुई है और सामा य जनता का राजनी त अपनाने क है ।
एवं राजनी तक यि त व से मोह भंग हुआ है । आज नेता केवल स ता और वोट क राजनी त
करते ह। इसके लये वे साम, दाम, द ड, भेद सभी का योग करते ह। आज के प र े य म म हलाओं के साथ असमानता और हंसा क घटनाएँ कम होने क जगह
बढ़ गई ह। नेशनल ाइम रकॉड यूरो के आंकड़ के मुता बक बला कार के मामल म वष
गौरतलब है क द ु नया क राजनी त म संभवतः महा मा गाँधी ह एक ऐसे अपवाद रहे ह, जो 2012 के मुकाबले वष 2016 म बढ़ो तर हुई है । साल 2012 म जहां बि चय के साथ
आजाद के क ता-ध ता होकर भी आजाद के बाद भी स ता से दरू रहे । भारत के साथ-साथ बला कार के 8,541 मामले सामने आए वह ं 2016 म 19,765 मामले आए। ये आंकड़े पहले के
द ु नया के िजन रा
म वतं ता का आगाज हुआ वहाँ सबसे मह वप ूण बात यह रह क मुकाबले दोग ुने हो गए ह।
आजाद क लड़ाई का नेत ृ व करने वाले बाद म स ता म भी शा मल हुए। कुछ तो जी वत रहने
तक स ता के मुख बने रहे। स म ले नन, तुक म मु तफा कमालपाशा, पा क तान के वह ं दस
ू र तरफ उनके साथ ल गक भेदभाव भी समाज म बढ़ा है । महा मा गाँधी नार वतं ता
नमाता मुह मद अल िज ना, म म अ दल
ु ना सर, चीन म माओ तथा चाऊ एन लाई, बमा के समथक थे। संभवतः इसी लए उ ह वतं ता सं ाम म नार सहभा गता को मह वपूण माना
म जनरल यांग सन, ीलंका म भंडार नायके और बां लादे श म मुजीबुरहमान जैसे कई उदाहरण और उ ह घर क चार द वार से नकालकर उपयु त वातावरण दान कया। उ ह ने दे श क
ह। नार शि त को वतं ता आंदोलन क शि त बनाया और उस शि त का उपयोग सामािजक
सुधार को या वयन करने म कया। परं तु अभी तक मान सक प से गाँधी जी के वचार को
हम अपने जीवन म लागू नह ं कर पाये ह िजसको अपनाने क ज रत है ।
व छता के े म: जन सरोकार से जुड़े लगभग हर संबोधन म गाँधी जी व छता के मामले ऐसा दे श है जहाँ जनसं या अ धक है और काय के अवसर कम ह। वतमान प र े य म दे खा
को उठाते थे। उनका मानना था क नगरपा लका का सबसे मह वपूण काय सफाई क यव था जाए तो वे आज के आ ट फ शयल इंटे लजस का वरोध करते हुए इसे रोजगार के लए घातक
करना है । वे व छता को ई वर क भि त के बराबर मानते थे। वे चाहते थे क भारत के सभी मानते थे। इसके अ त र त उ ह ने एक मजबूत यव था के लए छोटे उ योग को बढ़ावा दे ने
नाग रक एक साथ मलकर दे श को व छ बनाने के लए काय कर। उ ले खनीय है क वतमान और वदे शी व तुओं क मांग को ो साहन दे ने पर बल दया चँ ू क जब तक छोटे व मझोले
सरकार गाँधीवाद दशन से भा वत होकर व छ भारत अ भयान चला रह है । इस अ भयान के उ योग मजबूत नह ं ह गे तब तक दे श का वकास संभव नह ं हो सकता है ।
अंतगत 2 अ टूबर 2019 तक ‘ व छ भारत’ क प रक पना को साकार करने का ल य
नधा रत कया गया। उ लेखनीय है क इस मशन के अंतगत अब तक दे श म कर ब 9 करोड़ श ा े ः आधु नक भारत के नमाण म महा मा गाँधी का बहुआयामी योगदान रहा है।
शौचालय बनाए गए ह। आंकड़ के अनुसार 36 रा य और संघ शा सत दे श म अब तक 27 गाँधीजी क श ा संबंधी वचारधारा उनके नै तकता तथा वावलंबन संबंधी स ांत पर
रा य खुले म शौच से मु त हो चक
ु े ह। समय आ गया है क दे श का येक नाग रक गाँधी के आधा रत थी। ‘ह रजन’ प का तथा ‘वधा श ा’ योजना म न हत उनके वचार के मा यम से
व छ भारत के सपने को साकार करने के लये कदम से कदम मलाकर चले । इसे दे खा जा सकता है।
म य- नषेधः आज म य- नषेद के े म आं दे श, गुजरात, बहार, राज थान व दे श के अ य वतमान म श ा का मु य उ े य रोजगार ा त करना हो गया है । हम केवल यावसा यक
े म जो अ भयान चलाया जा रहा है , वह गाँधी दशन क ासं गकता को स कर रहा है , श ा को ह मह व दे रहे ह िजसका प रणाम यह हुआ क नै तक मू य म गरावट आयी है
आज घर क ि याँ वयं इस अ भयान म स य भू मका नभाकर न केवल अपने प रवार व और आज का युवा वग नै तक प से कमजोर होता जा रहा है । प रवार बखरने लगे ह, रा
समाज का हत कर रह ह अ पत ु दे श के वकास म भी योगदान दे रह ह। के त तथा उसक सं थाओं के त स मान म कमी आने लगी है ।
आ थक े म: गाँधी जी आ थक वके करण के प धर थे। दरअसल इससे संसाधन का ऐसे म यावसा यक श ा के साथ-साथ नै तक श ा भी द जानी चा हए, िजससे क आज का
के करण होने क संभावना कम होती है । हाल ह म ‘व ड इ न वे लट लैब- 2018 वारा युवा वग रा , समाज एवं प रवार म अपना मह वपूण योगदान दे सके। अतः आज गाँधी के
जार रपोट के अनस
ु ार व व के 0.1% लोग के पास द ु नया क कुल दौलत का 13% ह सा वचार पर चलने क नतांत आव यकता है ।
है । इसके अलावा पछले 36 वष म जो नई संपि तयाँ सिृ जत क ग , उनम से भी 27% पर
सफ 1% अमीर का ह अ धकार है । आधु नकता को लेकरः गाँधीजी क नजर म आधु नकता का मतलब गलाकाट पधा से नह ं था।
एक बार एक टश प कार ने महा मा गाँधी से पूछा था क आधु नक स यता पर आपक
संपण
ू व व म या त असमानता क गंभीरता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है सोच या है ? गाँधी का जवाब था, मेर नजर म यह एक अ छा वचार है। इस सोच के साथ
क आय क सव च ेणी म गने जाने वाले शीष 1% लोग क कुल सं या महज 7.5 करोड़ गाँधीजी ने पि चमी दे श के त कभी वेष भाव नह ं रखा। उ ह ने अपने आदश के प म
है , जब क सबसे नीचे के 50% लोग क कुल सं या 3.7 अरब है। उपयु त हालात को दे खते हे नर सॉ ट, जॉन रि कन और लओ टा सटॉय का कई बार िज भी कया।
हुए गाँधीवाद अथ यव था को आगे बढ़ाने क ज रत है अथात ् धन का संचय न हो एवं उसका
लाभ आम जन तक पहुँचे। इस तरह के आ थक समानता वाले दशन को अपनाने क ज रत है । गाँधीवाद क एक अ य वशेषता है क वह वरोधाभास को भी अपने म समेट लेते ह िजससे
व दत हो क भारतीय सं वधान म इस दशन को अनु छे द 39(ख), व 39(ग) म अपनाया गया अनेकता म एकता को बल मलता है। गाँधी दशन के मूल म स य, अ हंसा, अ तेय, अप र ह,
है । म और नै तकता मलेगी। आज के प र े य म इन स ांत को अपनाकर वावलंबन, वदे शी,
वक करण, ट शप, सहअि त व, शोषणमु त यव था और सहयोग, सहभाव एवं समानता
गाँधी के वचार इस ि ट से भी ासं गक हो जाते ह क उ ह ने मशीन क जगह मानवीय म पर आधा रत आधु नक जाग ृ त समाज का ढाँचा तैयार कया जा सकता है ।
पर बल दया। उनके अनुसार मशीन वहाँ उपयु त है जहाँ काम अ धक होता है परं तु भारत एक
युवाओं का मागदशनः आज के युवा को अपने नजी और सामािजक जीवन म तरह-तरह क
चन
ु ौ तय का सामना करना पड़ता है । चौतरफा अवसरवाद और टाचार को दे खकर युवाओं को अपने शु आती दन म अंतर-जातीय ववाह का वरोध करने वाले गाँधी ने बाद म इतना तक
लगता है क स य और कठोर प र म अपने आप म सफलता के लए अपया त ह। ऐसे म ण कर लया था क वह ऐसी कसी शाद म शा मल नह ं ह गे िजनम लड़का या लड़क म से
गाँधी अपने कत य के त वमुख ऐसी युवा पीढ़ को सजगता और भोग क बजाय सादगी म कोई एक द लत न हो। वह ऐसी शा दय का आयोजन अपने आ म तक म करवाते थे। 8 माच,
संतोष और आनंद का रा ता दखाते ह। युवक को यह समझना और जानना चा हए क वाथ 1942 के ‘ह रजन’ म गाँधी लखते ह, जैस-े जैसे समय बीतता जाएगा, इस तरह के ववाह बढ़गे,
और भोग को मह ता दे ने वाला जीवन समाज से ह नह ं, बि क हम अपने तक से दरू कर दे ता और उनसे समाज को फायदा ह होगा। फलहाल तो हमलोग म आपसी स ह णुता का
है । दस
ू र तरफ, य द हम अपने क त य के त सजग रह और सादगी को जीवन-या का अपे ाकृत अभाव ह है ले कन जब स ह णुता बढ़कर सव धम-समभाव म बदल जाएगी, तो ऐसे
आधार बनाएं, तो च र ह नता, वाथ और टाचार जैसे खतरे अपने आप हमारा पीछा छोड ववाह का वागत कया जाएगा और इससे गाँधी जी के वचार को आज भी ासं गक माना
दगे। जाएगा। गाँधी जी ये सब अपने लंबे यावहा रक अनुभव से जानते थे, उ ह ने जीवन-भर इ ह ं
सबके खलाफ तो संघष कया था। गाँधीजी को याद करने का मतलब है उनके इन वचार क
व व शां त के े म: आज जब क व व के लगभग सभी दे श अशां त से जूझ रहे ह। साथ ह , रोशनी म समाज और राजनी त को दे खना और बदलना।
परमाणु तथा जै वक ह थयार का संभा वत योग मानवता के लए खतरा बन गया है । व ान
के योग ने हमारे जीवन को सुखमय अव य बनाया है परं तु इसके ऋणा मक भाव को भी न कष
़
नकारा नह ं जा सकता है । मानव समाज भौ तक सुख के पीछे भाग रहा है और आि मक सुख न कषतः कहा जा सकता है क महा मा गाँधी 20वीं शता द के द ु नया के बडे राजनी तक
क अनदे खी कर रहा है । यह कारण है क उ न त व ग त के कारण भी समाज म तथा मानव नेताओं म से एक थे। वे पूर द ु नया म शां त, ेम, अ हंसा, स य, ईमानदार , मौ लक शु ता
जीवन म र तता का अनुभव हो रहा है । यह र तता तभी पूण हो सकती है , जब मानव वयं जैसे ह थयार के सफल योगक ता के प म याद कये जाते ह। इ ह ं ह थयार के बल पर
इस पर चंतन मनन कर और यह चंतन आशावाद आि मक सुख क दशा म होना चा हए। उ ह ने भारत को आजाद कराने म मु य भू मका नभाई। आज द ु नया के कसी भी दे श म जब
इस संदभ म गाँधी जी के नै तक स ांत काफ कारगर हो सकते ह। गाँधी जी का मानना था कोई शां त माच नकालता है या अ याचार व हंसा का वरोध कया जाता है , तो ऐसे सभी
क केवल मान सक, शार रक और भौ तक ि ट से ह वकास करना पया त नह ं, बि क इसके अवसर पर परू द ु नया को गाँधी याद आते ह। गाँधी जी ने वयं कहा था क ‘‘गाँधी मर
थान पर दया, ेम, सेवा और जीवन के नै तक मू य को मह व दे ना चा हए ता क यि त का सकता है पर गाँधीवाद कभी नह ं मर सकता’’, जो वतमान प र े य म सह सा बत होता दख
सवागीण वकास हो सके और व व म शां त और स ाव बढ़ सके। उनका अटल व वास था क रहा है ।
िजस रा का आधार शां त होता है उसी के पास व व म शां त था पत करने क शि त भी
हो सकती है । गाँधी जी वारा संचा लत आंदोलन वयं ह व व शां त के े म एक बड़ा
अभूतपूव कदम था। उ ह ने अपने जीवन काल म कभी भी टश सा ा य के लए हंसा के गांधी जी के वचार म या पयावरणवाद क भी झलक मलती है ? व लेषण कर।
योग को उ चत नह ं माना और दय प रवतन पर बल दया।
उ तर :
अंतर-धा मक और अंतर-जातीय ववाहः भारत का समाज आज भी अंतर-जातीय और अंतर-
गांधी जी ने कहा था -“मुझे कृ त के अ त र त कसी ेरणा क आव यकता नह ं है । उसने
धा मक ववाह करने वाल को वीकार नह ं कर पाता है। दरअसल जा त और सं दाय के
कभी मुझे वफल नह ं कया। वह मुझे च कत करती है , भरमाती है , आनंद क ओर ले जाती
अलग-अलग बाड़े म बंद होकर जीने वाला समाज मानवता के एक होने के आदश और न छल
है ।”
ेम को भी एक संक ण, सां दा यक और जा तवाद नज रए से दे खने का अ य त हो चुका है ।
इस संदभ म गाँधी जी जानते थे क जा त और सं दाय क ये मनो ं थयां भारत के एकजट
ु
वतमान संदभ म हम पयावरण और गांधी जी क तकनीक श दावल को सीधे तौर पर नह ं
और स य होने म सबसे अ धक बाधक ह।
जोड़ सकते , परं तु पयावरण क सम या आज िजस प म हमारे सामने उभर है , उसे गांधी जी ासं गकता सदै व बनी रहती है । गांधी जी के वचार का अ ययन करने पर हम पाते ह क
के नयम पर चलकर ह सुलझाया जा सकता है। पयावरण और गांधी जी के वचार व यवहार उनके चंतन पर व भ न धम , धम- ंथ , वचारक एवं दाश नक का भाव रहा है ।
के बीच संबंध को हम न न ल खत बंदओ
ु ं के मा यम से समझ सकते ह-
गांधी जी ने ीमदभगव गीता से नै तक और नरपे कमयोग क सीख ल । वे ‘गीता’ को माता
पयावरण दष कहते थे तथा गीता के लोक को अपना मागदशक। गांधी जी अ हंसा को मनु य-मा का
o ू ण, कृ त के साथ क जाने वाल हंसा का ह एक प है । गाँधी जी जब अ हंसा
क बात कर रहे थे , तब वे सफ इंसान क नह ,ं बि क पूरे जैव समुदाय क बात कर रहे थे। सव च नै तक क त य मानते थे। उ ह ने अ हंसा के इस त व को जैन व बौ धम से हण
कया।
o एक व म ह आधा जीवन गज़
ु ार दे ने वाले गांधी जी यह संदेश दे ते ह क कम उपभोग क
नी त पर चलकर, अपने लालच को कम करके तथा कृ त के यूनतम दोहन वारा ह गांधी जी ने अपने जीवनकाल म अनेक वचारक एवं दाश नक के लेख एवं पु तक का
पयावरण को बचाया जा सकता है । अ ययन कर, उनके उपयोगी त व का अपने दशन म समावेश कया। समाज-क याण क
o गांधी जी का चरखा आधु नकता का वरोधी नह ं है , बि क वह उस अ नयं त औ योगीकरण भावना, म क मह ता, साधारण जीवन प त जैसे वचार को उ ह ने ‘जॉन रि कन’ से सीखा।
का वरोधी है , िजसने आज पयावरण क हालत दयनीय कर द है । हे नर डे वड थॉरो के नबंध 'On Civil Disobedience' से उ ह ने ‘स या ह’ क तकनीक का
o खाद का योग न केवल सादगी का तीक है , बि क खाद के व कृ त के कर ब भी ह। वचार हण कया।
य द हम खाद के हमायती ह, तो हम पयावरण के भी हमायती ह। गांधी जी टॉल टॉय क पु तक 'The Kingdom of God' से भी काफ भा वत थे। उ ह ने
o हम कसी भी गांधीवाद मु हम को दे ख तो उसे पयावरण के कर ब ह पाएंगे। चाहे वह अनुपम टॉल टॉय के अं हसा संबंधी वचार , शि त और शोषण पर आधा रत आधु नक समाज क नंदा
म जैसे गांधीवाद वारा जल के सी मत उपभोग और उसके संर ण क श ा दे ने क बात के स ांत तथा साधन क शु ता के वचार का समथन कया। टॉल टॉय क वचारधारा से
हो, पेड़ को बचाने चंडी
साद भ और सुंदरलाल बहुगुणा वारा पेड़ से चपककर अनूठा प र चत होने के प चात ् गांधी जी सभी ा णय म ‘ई वर के वास’ के स ांत पर ‘अ तरा मा
आंदोलन चलाने क बात हो या मेधा पाटकर के नमदा बचाओ आं दोलन क बात हो, िजसम क आवाज’ जैसे वचार को अपने दशन म समा हत कर पाए। गांधी जी ने जब उपयो गतावाद
जीवनयापन के संसाधन को बचाने के संघष ने समय के साथ पयावरणवाद का प ले लया। क ‘बहुसं यक’ वचारधारा तथा जॉन रि कन क ‘अ पसं यक’ वचारधारा म अंत वरोध दे खा
तो उन दोन को मलाकर ‘सव दय’ को अि त व म ला दया।
गांधी जी कहते थे क “जो यि त अपनी दै नक आव यकताओं को कई गुना बढ़ा ले ता है वह
सादा जीवन उ च वचार के ल य को ा त नह ं कर सकता।” मनु य-जीवन क सादगी म ह इन सबके अलावा भी गांधी जी अ वैत वेदांत, लॉक, ले टो, कांट, सो एवं मै कयावेल के दशन
पयावरण संर ण का रह य छुपा हुआ है । उनका स व त य “ कृ त हमार आव यकताओं से भा वत रहे । इसी लये उनका दशन व भ न वचार एवं दशन का एक भावी सं लेषण बन
क पू त कर सकती है , परं तु हमारे लालच क नह ं ”, आज समकाल न पयावरणीय आंदोलन के पाया।
लये नारा बन गया है ।
गांधी के नै तक वचार वतमान म भी उतने ह ासं गक ह िजतने गांधी युग म थे। ट पणी
सामा य अ ययन पेपर 1 सामा य अ ययन पेपर 2 सामा य अ ययन पेपर 3 सामा य क िजये।
अ ययन पेपर 4 वैकि पक वषय नबंध लेखन
उ तर : उ तर :
गांधीवाद को एक सनातन दशन (Perennial Philosophy) कहा जा सकता है य क उनके महा मा गांधी न य वेदांत दशन क परं परा म आने वाले मुख वचारक ह। उ ह ने सभी
दशन क मुख अवधारणाओं जैस-े अ हंसा, स या ह, सव दय, स य और ई वर, साधन क वचारधाराओं, दशन को परखा और उनका सार हण कया, इस लये उनके दशन पर अनेक
प व ता इ या द क उपि थ त दु नया क सभी धा मक परं पराओं म पाई जाती है तथा इनक वचारधाराओं का भाव दखाई दे ता है ।
महा मा गांधी पर सवा धक भाव उप नष तथा गीता का है । उप नषद से उ ह ने करना यथ है । भूमंडल करण के दौर म वावलंबी ामीण यव था का रा ता अ यावहा रक
‘ईशावा य मदं सव’ मं हण कया तो गीता से वधम क अवधारणा ल । बौ तथा योग तीत होता है ।
दशन के भाव के साथ ह उन पर जैन धम के पंच त का भी गहरा भाव दखाई दे ता है ।
न कषतः कहा जा सकता है क गांधी के नै तक वचार वतमान समय म न तो पूणतः
गांधी ने जैन धम के पंच त पर अपने वचार के साथ-साथ अ य नै तक वचार का भी
ासं गक ह, न ह पूणतः अ ासं गक। उनके कुछ वचार म प रवतन बदलते समय क मांग है ।
तपादन कया िजनम—
उपयु त सकारा मक प होने के बावजद टॉल टॉय क पु तक 'द कं गडम ऑफ गॉड इज व दन यू' का महा मा गांधी पर
ू भी गां धी के वचार वतमान म अ ासं गक हो चले ह
o
अथ यव था के वचार का पालन कया जाए तो वकास क दौड़ म पीछे रह जाएंगे। गांधी ने o गांधीजी ने रि कन क पु तक 'अंटू दस ला ट' से 'सव दय' के स ांत को हण
वण यव था को गु वाकषण के नयम क तरह ाकृ तक और सावभौ मक माना, जब क सच कया और उसे जीवन म उतारा।
यह है क आज कसी भी प म वण यव था का समथन तक के आधार पर नह ं कया जा § इन वचार को बाद म "गांधीवा दय " वारा वक सत कया गया है , वशेष प से,
सकता। गांधी का दय प रवतन का वाचर पया त नह ं माना जा सकता, य क जब गांधी भारत म वनोबा भावे और जय काश नारायण तथा भारत के बाहर मा टन लूथर कं ग
वराज
धम
गांधी का कहना था क वरा य एक प व श द है , यह एक वै दक श द है , िजसका अथ
गांधी को समझने के लये यह प टतः समझ लेना होगा क गांधीवाद के नीचे धम क एक
आ मशासन और आ मसंयम है। अं ेजी श द ‘इं डपडस’ सब कार क मयादाओं से मु त
ठोस बु नयाद है , िजसके बारे म उनका मानना था क इसके सं कार उ ह अपनी माता से मले।
नरं कुश आज़ाद या व छं दता का अथ दे ता है , ले कन वरा य श द के अथ म ऐसा नह ं है ।
गांधी ने अपने अखबार ‘यंग इं डया’ म लखा था क सावज नक जीवन के आरं भ से ह उ ह ने
गांधी का वराज गाँव म बसता था और वे गाँव म गह
ृ उ योग क दद
ु शा से चं तत थे। खाद जो कुछ कहा और कया है , उसके पीछे एक धा मक चेतना और धा मक उ े य रहा है।
को ो साहन और वदे शी व तुओं का ब ह कार उनके जीवन के आदश थे, िजनको आधार
राजनी तक जीवन म भी उनके धा मक वचार उनके राजनी तक आचरण के लये पथ- दशक
बनाकर उ ह ने दे शभर के करोड़ लोग को आज़ाद क लड़ाई के साथ जोड़ा। उनका कहना था
बने रहे । वे वधम के साथ अ य सभी धम का समान आदर करते थे। उनका कहना था क
क खाद का मूल उ े य ये क गाँव को अपने भोजन एवं कपड़े के मामले म वावलंबी बनाना
मेरा धम तो वह है जो मनु य के वभाव को ह बदल दे ता है...जो मनु य को उसके आंत रक
है ।
स य के अटूट संबंध म बाँध दे ता है ...और जो सदै व पाक-साफ करता है । गांधी के अनुसार धम
सबसे ेम करना सखाता है ... याय तथा शां त क थापना के लये खुद के ब लदान क ेरणा
आ थक-सामािजक यव था
दे ता है । उनक नगाह म धम नबल का बल तथा सबल का मागदशक है ।
गांधी यह मानते थे क आ थक यव था का यि त और समाज पर सबसे अ धक भाव पड़ता
है और उससे उ प न हुई आ थक और सामािजक मा यताएँ राजनी तक यव था को ज म दे ती
व छता
ह। उ पादन क क त णाल से क भत ू पंज
ू ी उ प न होती है िजसके फल व प समाज के व छता एवं अ प ृ यता गांधी दशन के क म ह और इन पर उनके वचार प ट एवं पूण प
कुछ ह लोग के हाथ म आ थक और सामािजक यव था क त हो जाती है । ऐसे म गांधी के
से क त थे। जनसरोकार से जुड़े अपने लगभग हर संबोधन म गांधी व छता के मामले को
समाज क रचना वक करण पर आधा रत मानी जा सकती है । गांधी के आ थक-सामािजक
उठाते थे। उनका मानना था क नगरपा लका का सबसे मह वपूण काय सफाई रखना है । जो
दशन म व त उ पादन णाल , उ पादन के साधन का वक त होना और पूंजी वक त
कोई भी उनके आ म म रहने आता था, तो गांधी जी क पहल शत यह होती थी क उसे
होने क बात कह गई है , ता क समाज जीवन के लये आव यक पदाथ क उपलि ध म
आ म क सफाई का काम करना होगा, िजसम शौच का वै ा नक ढं ग से न तारण करना भी
वावलंबी हो और उसे कसी का मुखापे ी न बनना पड़े।
शा मल था। गांधी का मानना था क व छता ई वर भि त के बराबर है , इस लये वे लोग से
व छता बनाए रखने को कहते थे। वे चाहते थे क भारत के सभी नाग रक एक साथ मलकर
पंचायत और ामीण अथ यव था
दे श को व छ बनाने के लये काय कर।
इस मु े पर गांधी के वचार बहुत प ट थे। उनका कहना था क य द हंदु तान के येक गाँव
म कभी पंचायती राज कायम हुआ, तो म अपनी इस त वीर क स चाई सा बत कर सकूंगा,
व व अ हंसा दवस
िजसम सबसे पहला और सबसे आ खर दोन बराबर ह गे , अथात ् न कोई पहला होगा और न
गांधी ने सव थम स य, अ हंसा और श ु के त ेम के आ याि मक और नै तक स ांत का
आ खर । इस बारे म उनका मानना था क जब पंचायती राज था पत हो जाएगा तब लोकतं
राजनी त के े म बड़े पैमाने पर योग कया और सफलता ा त क । उ ह ने जहाँ एक ओर
ऐसे भी अनेक काम कर दखाएगा, जो हंसा कभी नह ं कर सकती।
भारत को अं ेज़ क गुलामी से मुि त दलाई, वह ं दस
ू र ओर संसार को अ हंसा का ऐसा माग
गांधी भल भाँ त जानते थे क भारत क वा त वक आ मा दे श के गाँव म बसती है । अत: जब दखाया, िजस पर यक न करना क ठन तो नह ं पर अ व वसनीय ज़ र था। गांधी ने राजनी त,
तक गाँव वक सत नह ं ह गे, तब तक दे श के वा त वक वकास क क पना करना बेमानी है । समाज, अथ एवं धम के े म नए आदश था पत कये व उसी के अनु प ल य ाि त के
अ नवाय था। इसी के वरोध म गां धी ने अ हंसा मक तरोध या स या ह या स वनय अव ा
लये वयं को सम पत ह नह ं कया, बि क देश क जनता को भी े रत कया और आशानु प
(स या ह) का माग चन
ु ा और सरकार को झुकने पर ववश कया।
प रणाम भी ा त कये।
अ हंसा
उनक जीवन- ि ट भारत ह नह ं संपूण व व के क याण का माग श त करती है । आज गांधी
गांधी के अन ुसार अ हंसा नै तक जीवन जीने का मूलभूत तर का है । यह सफ आदश नह ,ं बि क
हमारे बीच नह ं ह कं तु एक ेरणा और काश के प म लगभग उन सभी मु पर उनके
यह मानव जा त का ाकृ तक नयम है । हंसा से कसी सम या का ता का लक और एकप ीय
वचार और स ांत आज भी ासं गक ह, िजनका सामना कसी यि त, समाज या रा को
समाधान हो सकता है , कं तु थायी और सव वीकृत समाधान सफ अ हंसा से ह संभव है ।
करना पड़ता है । इस 21वीं सद म गांधी क साथकता येक े म है , इसी लये इस
गांधी के चंतन म हंसक पशुओ,ं रोग के क टाणुओं, फसल के क ट , असहनीय दद झेल रहे
अ हंसावाद के स ांत के मह व को समझकर संयु त रा 2 अ तूबर को व व अ हंसा
जीव को मारने के लये अ हंसा के नयम का उ लंघन करने को उ चत बताया गया है। गांधी
दवस के प म मनाता है ।
का कहना था क य द हंसा और कायरता म से एक को चन
ु ना हो तो हंसा को चन
ु ना उ चत
(ट म ि ट इनपुट) है । अ हंसा को साधन बनाने वाले पहले यि त बेशक गांधी नह ं थे, ले कन इसे आंदोलन का
प दे ने वाले पहले यि त अव य थे, य क उ ह ने हंसा का मनो व ान समझ लया था।
अ प ृ यता
गांधी अ प ृ यता या छुआछूत के व संघष को सा ा यवाद के खलाफ संघष से भी कह ं
श ा
अ धक वकराल मानते थे। इसक वजह यह थी क सा ा यवाद के व संघष म तो उ ह
गांधी ान आधा रत श ा के थान पर आचरण आधा रत श ा के समथक थे। उनका कहना
बाहर ताकत से लड़ना था, ले कन अ पृ यता से संघष म उनक लड़ाई अपन से थी। वे कहते था क श ा णाल ऐसी होनी चा हये जो यि त को अ छे -बुरे का ान दान कर उसे नै तक
थे क मेरा जीवन अ प ृ यता उ मूलन के लये उसी कार सम पत है , जैसे अ य बहुत सी बात
प से सबल बनाए। यि त के सवागीण वकास के लये उ ह ने वधा योजना म थम सात
के लये है । गांधी ने अ पृ यता को समाज का कलंक तथा घातक रोग माना, जो न केवल वयं
वष क श ा को नःशु क एवं अ नवाय करने क बात कह थी। गांधी का यह भी मानना था
को अ पतु स पूण समाज को न ट कर दे ता है । गांधी का कहना था क इसी अ प ृ यता के
क यि त अपनी मातभ
ृ ाषा म ारं भक श ा को अ धक च तथा सहजता के साथ हण कर
कारण हंद ू समाज पर कई संकट आए। वे कुछ हंदओ
ु ं के इस तक से भी सहमत नह ं थे क सकता है । अ खल भारतीय तर पर भाषायी एक करण के लये वे क ा सात तक हंद भाषा म
अ प ृ यता हंदू धम का एक अंग है , िजसे समा त करना संभव नह ं है ।
ह श ा दान करने के प धर थे।
(ट म ि ट इनपट
ु ) महा मा गांधी - प रचय
न कष: महा मा गांधी 20वीं शता द के दु नया के सबसे बड़े राजनी तक और आ याि मक
गांधी जी का ज म पोरबंदर क रयासत म 2 अ तूबर, 1869 म हुआ था। उनके पता
नेताओं म से एक माने जाते ह। वे पूर दु नया म शां त, ेम, अ हंसा, स य, ईमानदार , मौ लक
करमचंद गांधी, पोरबंदर रयासत के द वान थे और उनक माँ का नाम पत
ु ल बाई था। गांधी जी
शु ता और क णा तथा इन उपकरण के सफल योगक ता के प म याद कये जाते ह, अपने माता- पता क चौथी संतान थे। मा 13 वष क उ म गांधी जी का ववाह क तूरबा
िजसके बल पर उ ह ने उप नवेशवाद सरकार के खलाफ प ूरे दे श को एकजुट कर आज़ाद क
कपा ड़या से कर दया गया। गांधी जी ने अपनी ारं भक श ा राजकोट से ा त क और बाद
अलख जगाई। गांधी ने अपने जीवन के सम त अनुभव का योग भारत को आज़ाद कराने म
म वे वकालत क पढ़ाई करने के लये लंदन चले गए। उ लेखनीय है क लंदन म ह उनके एक
कया। उनका कहना था क भारत क हर चीज़ मुझे आक षत करती है । सव च आकां ाएँ
दो त ने उ ह भगव गीता से प र चत कराया और इसका भाव गांधी जी क अ य
रखने वाले कसी यि त को अपने वकास के लये जो कुछ चा हये , वह सब उसे भारत म मल
ग त व धय पर प ट प से दे खने को मलता है । वकालत क पढ़ाई के बाद जब गांधी भारत
सकता है ।
वापस लौटे तो उ ह वक ल के प म नौकर ा त करने म काफ मुि कल का सामना करना
पड़ा। वष 1893 म दादा अ द ु ला (एक यापार िजनका द ण अ का म श पंग का यापार
इसे वडंबना ह कहा जाएगा क गांधी ने लगभग 32 वष तक आज़ाद क लड़ाई लड़ी, ले कन
था) ने गांधी जी को द ण अ का म मुकदमा लड़ने के लये आमं त कया, िजसे गांधी जी
आज़ाद भारत म वे केवल 168 दन ह जी वत रह पाए। आज द ु नया के कसी भी दे श म जब
ने वीकार कर लया और गांधी जी द ण अ का के लये रवाना हो गए। व दत है क गांधी
कोई शां त माच नकलता है या अ याचार व हंसा का वरोध कया जाता है या हंसा का जवाब
जी के इस नणय ने उनके राजनी तक जीवन को काफ भा वत कया।
अ हंसा से दया जाना हो, तो ऐसे सभी अवसर पर पूर द ु नया को गांधी याद आते ह। अत:
यह कहने म अ तशयोि त नह ं क गांधी के वचार, दशन तथा स ांत कल भी ासं गक थे,
द ण अ का म महा मा गांधी
आज भी ह तथा आने वाले समय म भी रहगे ।
द ण अ का म गांधी ने अ वेत और भारतीय के त न ल य भेदभाव को महसूस कया।
जो बदलाव तम
ु द ु नया म दे खना चाहते हो, उ ह कई अवसर पर अपमान का सामना करना पड़ा िजसके कारण उ ह ने न ल य भेदभाव से
लड़ने का नणय लया। उस समय द ण अ का म भारतीय और अ वेत को वोट दे ने तथा
वह खुद म लेकर आओ
फुटपाथ पर चलने तक का अ धकार नह ं था, गांधी ने इसका कड़ा वरोध कया और अंततः वष
-महा मा गांधी
1894 म 'नटाल इं डयन कां ेस' नामक एक संगठन था पत करने म सफल रहे । द ण गांधी जी एक महान श ा वद थे, उनका मानना था क कसी दे श क सामािजक, नै तक और
अ का म 21 वष तक रहने के बाद वे वष 1915 म वापस भारत लौट आए। आ थक ग त अंततः श ा पर नभर करती है । उनक राय म श ा का सव च उ े य आ म-
मू यांकन है । उनके अनुसार, छा के लये च र नमाण सबसे मह वपूण है और यह उ चत
भारत म गांधी जी का आगमन
श ा के अभाव म संभव नह ं है ।
जानकर मानते ह क गांधी के वचार ऐसे समय म सबसे अ धक ासं गक ह जब लोग लालच,
यापक हंसा और भागदौड़ भर जीवन-शैल के समाधान खोजने क को शश कर रहे ह । गांधी
जी क अ हंसा और स या ह क अवधारणा क आज सबसे अ धक आव यकता है , य क यह
वह समय है जब मा तशोध के नाम पर कसी क भी ह या कर द जाती है और अपने
आलोचक को दु मन से अ धक कुछ नह ं समझा जाता। संयु त रा य अमे रका म मा टन लूथर
कं ग, द ण अ का म ने सन मंडेला और अब याँमार म आंग सान सू क जैसे लोग के
नेत ृ व म दु नया भर म कई उ पी ड़त समाज वारा लोग को जुटाने क गांधीवाद तकनीक को
सफलतापूवक नयोिजत कया गया है , जो क इस बात क गवाह दे ता है क गांधी और उनके
वचार आज भी ासं गक ह।
न कष