You are on page 1of 2

दोष टाटा की कहानी शुरू होती है अंग्रेजों के राज के ज़माने से जमशेदजी टाटा एक एक्सपोर्टर बिजनेसमैन के बेटे थे जिन्होंने टीन

फिफ्टी शेड में ग्रैजुएट होने के बाद अंग्रेजों के


राज में बने नए इकॉनमिक रिफॉर्म्स का फायदा उठाया । एडविन फिफ्टी नाइन में अपने फादर की बिजनेस की सब्सिडरी ढाल ने जमशेदजी हांगकांग चले गए । वहां जाकर
उन्होंने रिवाइज करा कि एक्सपोर्ट के काम में कितना पोटेंशियल छु पा हुआ है इस रियलाइजेशन के बाद उन्होंने अपने अगले दस साल जापान चाइना और ग्रेट ब्रिटेन कं ट्रीज में
ट्रैवल करके डिस्ट्रिब्यूशन नेटवर्क बनाने में लगा दिए । फिर एट्रोसिटी एक्ट में उन्होंने अपने फादर से अलग खुद की कं पनी स्टार्ट कर दी और पिछले 10 साल में कमाए हुए
सारे पैसे उन्होंने टेक्सटाइल मिल सेटअप करने में लगाए । जमशेदजी की फिलॉसफी थी कि दुनिया भर से धंधे की सही नॉलेज लेना और फिर अपने देश इंडिया के उसे
इम्प्लीमेंट करना अपनी टेक्सटाइल मिल में उन्होंने पहली बार ऐसी पॉलिसी से इम्प्लीमेंट करी जो कोई और कं पनी इम्प्लीमेंट करने का दम नहीं रखती थी । जैसे कि अपने
कारीगरों को 8 घंटे की फिक्स शिप देना उन्हें बीमार पड़ने पर सिकनेस बेनेफिट्स देना ऐड अगर वो जिंदगीभर उनकी मिल के लिए काम करते हैं तो उन्हें पेन्शन भी ऑफर
करना ये सब हो जाने के बाद जमशेदजी बस अपनी टेक्सटाइल इंडस्ट्री के काम में खुश नहीं थे । उन्होंने यूरोप देश में इंडस्ट्रियल रिवॉल्यूशन देखा था जिससे वो काफी इम्प्रेस
थे पर स्टीम चीज वो इंडिया में भी करना चाहते थे इसलिए उन्नीस सौ एक में आते आते उन्होंने अपने स्टील प्रोडक्शन प्लांट पर काम करना शुरू कर दिया जिसका मॉडल
उन्होंने जर्मनी से लिया था । ये तो कु छ नहीं । इससे भी ज्यादा एमबीबीएस तो उनका हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट था जो उन्होंने उन्नीस सौ तीन में नागरा फॉल्स पावर

प्लांट विजिट करने के बाद ठान लिया था । जमशेदजी को टूरिजम में भी अच्छा काम दिखा तो उन्होंने अपने होटल्स की चेन स्टार्ट कर दी जिसकी शुरुआत उन्होंने ताज महल
पैलेस होटल जो कि मुम्बई में है उससे कि जमशेदजी असल मायने में डेडिके टेड बिजनेस मैन थे जिनके बिजनेस के ज़रिये काफी लोगों को रोजगार और मदद मिली । वे
एजुके शन को भी इस हद तक वैल्यू करते थे कि उन्होंने कई एकड़ जमीन और इमारत इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साईंस बनाने के लिए दान में दे दी । 19 वीं एचआर में फिर
एक दिन अचानक जर्मनी जाते हुए फ्लाइट में उनका देहांत हो गया । पर अपनी आगे की जनरेशन के लिए वो एक बहुत सॉलिड बिजनेस एम्पायर छोड़ गए । जमशेदजी के बेटे
दोराबजी टाटा ने उनके पीछे छू टे सपनों को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । दोराबजी टाटा ने उन्नीस सौ सात में इंडिया की पहली स्टील कं पनी लगाई । फिर 19
सोपारा में दुनिया का पहला सीमेंट प्लांट और 19 वीं 19 में भारत की पहली इंश्योरेंस कं पनी राइडिंग थर्टी एट तक आते आते जब दोराबजी टाटा की लीडरशिप आगे की
जनरेशन को पास हुई तब टाटा संस के अंडर टोटल 14 सॉलिड कं पनीज आ चुकी थी । बट शॉकिं ग ली जमशेदजी टाटा के एम्पायर को चलाने की लीडरशिप उनके पोतों के
पास जाने के बजाए उनके दूर के कजन के हाथों में सौंप दी गई । इस नजरिए से कि वॉइस लेगेसी को आगे मेहनत से कं टीन्यू रखेंगे । उन्नीस सौ पच्चीस में लीडरशिप कई
जांगिड़ टाटा के हाथ में जिन्हें हम जेआरडी टाटा के नाम से भी जानते हैं । जेआरडी टाटा फ्रांस में पले बढे । उनका वहां एक काफी क्लोज फ्रें ड था लुईस मैरियट जिन्होंने
उन्नीस सौ नौ में अपना एयरक्राफ्ट बना के उस देश की पहली फ्लाइट उड़ान भरी । एयरक्राफ्ट

उड़ाने का पैशन जेआरडी टाटा के अंदर भी था जिसके चलते उन्नीस सौ 29 में उन्होंने इंडिया का पहला पायलट लाइसेंस हासिल कर लिया था । उनके इस पैशन के चलते
उन्होंने टाटा ग्रुप ज्वाइन करने के बाद अपना पहला प्रोजेक्ट इंडिया की एयरलाइन डेवलप करने का चुना । सात साल के अंदर अंदर माउंटेन थर्टी टू में उन्होंने टाटा एयर
सर्विस लॉन्च कर दी । चूंकि स्टार्टिंग में सिर्फ मेल्स डिलीवर करती थी बडी़ राइडिंग थर्टी एट तक आते आते उन्होंने पैसेंजर फ्लाइट्स लेना स्टार्ट कर दिया और यहां तक कि
उनकी एयरलाइन ने ब्रिटिश सरकार को वर्ल्ड वॉर टू में एलपी करा फिर राइडिंग फोर्टिफाइड में जेआरडी टाटा ने टाटा मोटर्स लॉन्च करी और माउंटेन फोर्टी सेवन में अंग्रेजों के
राज से देश को आजादी मिलने के बाद इंडिया के पहले प्राइम मिनिस्टर जवाहरलाल नेहरू जी ने डिसीजन लिया कि टाटा एयर सर्विस को एयर इंडिया के नाम से नैशनल
वाइस कर दिया जाएगा और मैंने इसमें फोर्टिफाइड पर्सेंट स्टेक ले लिया और सेफ्टी सेवन तक जेआरडी टाटा को इस सम्मान का चेयरमैन बनाए रखा । बस फिर कु छ ही
सालों के अंदर अंदर एयरइंडिया लॉस में जाने लगी और पॉलिटिकल प्रेशर अवॉयड करने के लिए जेआरडी टाटा ने दोबारा टाटा ग्रुप की कं पनीज की ओर ध्यान देना स्टार्ट कर
दिया । जेआरडी टाटा ने अपनी फिफ्टी टू ईयर्स की लीडरशिप के दौरान टाटा ग्रुप को 14 कं पनियों से नाइटी फाइव कं पनीज तक एक्सपेंड कर दिया । बट ये करने के चक्कर
में उन्होंने टाटा संस में अपनी ओनरशिप बहुत कम कर ली थी जिसके कारण वो धीरे धीरे कं पनी का कं ट्रोल लूज करते जा रहे थे । ज्यादा कं पनीज होने के बावजूद । काफी
कं पनीज अच्छे रिजल्ट्स डिलिवर नहीं कर रही थी बल्कि फिर इन सब चीजों को फिक्स करने के लिए जेआरडी टाटा ने आखिर में अपनी

लाइफ का सबसे बेस्ट डिसीजन लिया । बिखर रहे टाटा ग्रुप को दोबारा जोड़ने के लिए उन्होंने जमशेदजी टाटा के ग्रेट ग्रैंड चिल्ड्र न रतन टाटा जी की कं पनी में एंट्री करवाई ।
रतन टाटा जी ने टाटा ग्रुप ज्वाइन करा और अपने शुरुआती साल कं पनी का काम सीखने और समझने में झोंक दिया । उन्होंने लोअर लेवल से लेके अपर लेवल तक के हर
बंदे से ड्राफ्ट करा लैंडिंग सेवंती वान में रतन टाटा जी ने टाटा ग्रुप में अपनी लाइफ का सबसे डिफिकल्ट एंड सबसे रिवॉल्विंग प्रोजेक्ट पकड़ लिया । उन्होंने टाटा ग्रुप की एक
लॉस में चल रही कं पनी नालको को दुबारा खड़ा करने का ठान लिया था जो कि नानजिंग फिफ्टी में इंडिया के रेडियस प्रोड्यूस करने की सबसे बड़ी कं पनी हुआ करती थी वह
पिछले 20 सालों में नालको का नाम सेवेन परसेंट मार्के ट शेयर टूट गया था । यूं कह लें नोएल को डिस्ट्रॉय हो चुकी थी रतन टाटा जी का फोकस फ्यूचर और टेक्नोलॉजी पर
था जिसके चलते उन्होंने नालको में सैटलाइट कम्युनिके शन के प्रोजेक्ट को इंट्रोड्यूस कर उसमें पैसा लगाया और उसे सक्सेसफु ल बिजनेस मॉडल भी बना दिया । नाइटी
निफ्टी में नालको की सफलता को देखते हुए रतन टाटा जी को जेआरडी टाटा का सक्सेसर घोषित कर दिया गया और एनआईआईटी वन में जेआरडी टाटा को रिप्लेस कर
उन्होंने टाटा ग्रुप का एटूजेड बिजनेस संभालना शुरू कर दिया । रतन टाटा जी की लीडरशिप में आते ही इंडिया में इकोनॉमिक लिबरल रिसेशन आ गया जिसके चलते टाटा ग्रुप
को इंडिया में फॉरेन कं पनी से कं पटीशन मिलने लगा । जेआरडी टाटा की लीडरशिप के अंडर कं पनी अपना काफी शेयर बेच चुकी थी । जिसके चलते कं पनी में बड़े डिसीजन
लेना रतन टाटा जी के लिए मुश्किल हो रहा था । इस समस्या से निकलने के लिए रतन टाटा ने डिसीजन लिया कि वो टाटा

की जितनी सब्सिडरी कं पनीज हैं उसमें अपनी ओनरशिप दुबारा हासिल करेंगे । उन्होंने टाटा संस जमशेदजी टाटा की चलती आ रही कं पनी का 20 परसेंट पूरा का पूरा बेच
दिया और उससे आए पैसों से टाटा की बाकी कं पनियां जैसे टाटा स्टील टाटा मोटर्स के शेयर मार्के ट से दोबारा खरीद लिए । फिर रतन टाटा जी ने टाटा की सौ से ज्यादा
कं पनियों को सात सेक्टर में दोबारा ऑर्गनाइज करा और उनके बीच एक ऐसा गठजोड़ तैयार करा जिससे कि वो दुबारा उन कं पनियों को अपने हिसाब से कं ट्रोल कर पाएं । इन
सबके बावजूद टाटा ग्रुप इंडिया से प्रॉफिट नहीं कमा पा रही थी और फौरन कं पनी टाटा को मुंह तोड़ टक्कर दे रही थी । रतन टाटा जी ने बहुत ही स्मार्टली धीरे धीरे अपने
फौरन कॉम्पिटिटर्स की कं पनियां खरीदना चालू कर दिया और उन्हें टाटा ग्रुप में जोड़ने लगे । एक लॉन्ग टर्म विजन के साथ वो बहार की ताकत इंडिया में लाने लगे । एक बार
की बात है जब रतन टाटा फोर्ड मोटर्स के चेयरमैन बिल फोर्ड से मिलने दूसरे देश डेट्रॉयट गए और उनसे कहा कि मेरी टाटा मोटर्स का पैसेंजर व्हीकल डिविज़न चल नहीं
रायन मैं चाहता हूं आप इसे खरीद लो तो खरीदना तो दूर की बात बिल फोर्ड ने उस दिन रतन टाटा जी की सबके सामने बहुत बेइज्जती करी बिल फोर्ड ने रतन टाटा जी को
कहा हम 13 ये टाटा मोटर्स का पैसेंजर व्हीकल डिवीज़न खरीद के तुझ पर एहसान कर रहे हैं अगर गाड़ी बेचनी नहीं आती तो धंधा शुरू ही क्यों किया था । बिल फोर्ड की ये
बात रतन टाटा को बहुत बुरी तरीके से चुभ गई । वो रातों रात अपनी टीम को लेके डेट्रॉयट से इंडिया वापस आ गए और उन्होंने टाटा मोटर्स के पैसेंजर व्हीकल डिविज़न को
एक्स्ट्रा टाइम देना शुरु कर दिया ।

रतन टाटा जी ने अपनी इंसल्ट से मिले गुस्से को अपने काम में झोंक दिया । उसी का नतीजा निकला कि कु छ ही सालों में टाटा मोटर्स ग्रो करने लगी और दूसरी तरफ बिल
फोर्ड की फोर्ड मोटर्स टाटा के कं पैरिजन में गिरने लगी । फोर्ड को लॉस में देख रतन टाटा ने बिल फोर्ड को प्रपोजल भेजा कि तुम्हारा फे ल डिविजन हम खरीद लेते हैं लेकिन
इस बार बिल फोर्ड रूस की पूरी टीम डेट्रॉयट से मुम्बई आई और आकर बिल फोर्ड ने रतन टाटा जी से कहा हमारी जैगुआर लैंड रोवर खरीद के आप हम पर अहसान कर रहे
हैं । रतन टाटा जी ने बहुत प्यार से उनका ये डिविजन 9 हजार 600 करोड़ में खरीद लिया और फिर अपनी लीडरशिप में जैगुआर लैंड रोवर को पूरी दुनिया में सक्सेसफु ल
भी बना दिया । दोस्त ऐसा काम तो सच में कोई जमशेदजी टाटा की पीढ़ी का इंसान ही कर सकता था । उनके बिजनेस आक्शन में जमशेदजी टाटा की छवि झलकती थी ।
आज रतन टाटा जी की वजह से टाटा ग्रुप का ज्यादातर प्रॉफिट फॉरन कं ट्रीज से उनकी इंडियन कं पनीज में आता है जिसके शेयर्स आप और हम सब इंडिया में खरीद बेच
सकते हैं । जमशेदजी टाटा की तरह रतन टाटा जी भी बहुत ही हंबल और सोसाइटी को कं ट्रीब्यूट करने वाले पर्सन हैं पर उन्हीं की बदौलत आज टाटा ग्रुप अपना ज्यादातर
प्रॉफिट इंडियन चैरिटीज को डोनेट भी करती है । इंडिया में टाटा के अलावा और कोई भी कं पनी सोसाइटी में अपना इतना कॉन्ट्रिब्यूशन । देतीं और ये रतन टाटा जी की वैल्यू
सिस्टम ही है जिसने आज कं पनी को ये अकाउंट दिया ।

You might also like