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वन प तत म्

व ष य वेश
त और आयु वद का आपसी स ब ध बड़ा गहन है
।वैसे
आयु वद होने केलए ता क होना आव यक नह , क तु ता क
होनेकेलए आयु वद होना ज री सा है
। वशेष नह तो कम से
कम आयु व दक क स यक्पहचान और तत् गु ण का
क चत ान । ,गु ण,कम, भाव, वपाक,और आम यक य ग का
भी ान हो जाय, फर या कहना।आयु वद केपदाथ- व ान और
इसके गू
ढ़ रह य को भी य द आ मसात कर
लया जाय,तो सोने
म सु
ग ध आ जाय।
कृ त म ा त ये क पदाथ का गुण वै
श है
। यात है क
गुणा मक सृ म य-अ शय जो भी है - सब पं
चभूता मक है
,भले
ही मा ा वै
श य हो। य क ये मा ा-वै
श य ही पदाथ के प-गु

वै
श य का मूल कारण है।
आ ध वा ा ध(मान सक और शारी रक) यानी उभय कार क
वकृ त का मूल कारण है
- नधा रत पं
चभू
त म य कं चत कारण से
वधान वा वपयय क उप थ त; और इससे मु का एक मा
उपाय है
- वधान वा वपयय का वपरी तकरण।सीधे तौर पर कह,
तो कह सकते ह क त व केअसं तु
लन को ये
न-के
न- कारेण पूव प
म ला दे
ना ही नवारण,अथवा रोग-मु है

आयु
वद म व थ क प रभाषा है
- समदोषः समा न ,
समधातुमल यः। स ा मे य मनाः व थ इ य भधीयते
।।
.सू
(सू .१/२/४४)
( दोष,पं
चमा न,स तधातु
,मला द उ सजन का सं
तु
लन तथा
आ मा,इ य और मन क स ता ही पू ण वा य का ल ण है
।)
मा शरीर केव थ रहनेसेही हमारा काम नह चल
सकता।जैसा क कहा गया है
- आ द सु ख नरोगी काया, जा सु

घर होवे
माया,तीजा सु
ख सु
शीला नारी,चौथा सु
ख सु
त आ ाकारी...।
उ सु ख क ा त और मनोनु कूलता केलए हमारे
शुभेछुरदश मनी षय ने अनेक क याणकारी उपाय सु झाय
ह।उ ह म एक है- आयुवद य ( थावर-जांगम) का त ा मक
योग। व तु
तः येचम का रक योग ह। क तु सदा इस बात का यान
रखना है क संत केइस कृपा- साद का हम सफ लोक
क याणकारी योग ही कर। लोभ,मोह, काम, ोध, वाथ से अ धे
होकर अक याणकारी योग न कर बै ठ। य क अ ततः यह त
है
,जो अ तशय श शाली है ।सु
प रणाम ह, तो प रणाम भी पीछे
छपा आ है । अपने इस लघु संह म कुछ ऐसे ही व श लोक-
क याणकारी योग क चचा करे ग। इनम कु छ वानुभूत ह,कु
छ गु
साद,कुछ परानु
भूत- व य मा ।
इनका योग आपकेलए उपयोगी और क याणकारी हो तो म
अपना सौभा य समझू ।ँयोग व ध यथास भव प करने का यास
कया गया है।शा क मयादा का वचार रखतेए कु छ बात इशारे
म कही गयी ह।हमारेव ान ब धुसहजता सेउन गुथय को खोल
लग- ऐसा मेरा पू
ण व ास है।मे
री कु
छ बात उ ह बचकानी भी
लगगी। क तुवलकु ल नयेलोग को इससे थोड़ी आप और
परे
शानी भी हो सकती है
।वेचाह तो नसंकोच मुझसेस पक कर
सकते ह। क चत पा ता का वचार तो करना ही पड़े
गा। वै
सेभी ब चे
केहाथ तोपखाने क चाभी स पना न बु -स मत हैऔर न याय-
सं
गत।
संगवश,यह भी प कर ँक म त –गु होने क मता
नह रखता। गु बनने क लालसा भी नह है
।आदर और ने हवश
लोग ने गुजी कहना ार भ कर दया, और अब तो यह उपनाम सा
हो गया है
। फर भी एक व र म के नातेनेहा स होकर
ज ासु का यथो चत मागदशन करने को अह नश तु त और
त पर ।ँ
और अ त म- औषधीश सुधा शु
सेाथना करता ँ क वेहम पर,
और इस संह के योग कता पर अपनी कृ पा सदा बनाये
रख।माँ
वागी री और व नेर गणप त सेाथ ँ क वे सदा स बु दान
कर।

थम प र छे
द--आव यक नदश
त के योगकता को कु
छ अ याव यक बात का यान रखना
चा हए-
१.त परा बा क बभू
त है
,अतः परम े
य है

२. ा, व ास और लगन ही कसी भी साधना के
अथ और इ त ह।
३.त का योग आ मक याण और लोकक याण क भावना से
ही
कया जाय।
४.उतावले
पन म,आवे
श म,और " योग करने
केलए" योग न कर।
५.साधना और योग म स यक्
यम, नयम,शौचाचार का यान रखा
जाय।
६.सभी औष धय पर औषधीश यानी च मा का आ धप य
है
।च मा मानव मन केनयामक भी ह।न को च मा क प नी
कहा गया है
।प त को अनु कू
ल करनेकेलए प नी का अनुकू
ल होना
बड़ा मह वपूण है। अतः यथा न द न का स यक् पालन होना
अ नवाय शत है।
७.त अपने आप म वत अ त व रखता है ,यानी प रपू
ण है
, फर
भी म और य से अं गागीभाव स ब ध है
।ता पय यह क त -
योग म यथो चत म और य का योग होता है ।इसे यू
ँकहा जा
सकता है कत पी प ी को स यक् उड़ान भरने केलए म
और य पी पं
ख क आव यकता पड़ती है ।वैसेयह सवथा
नरंकु
श है। वयं सहाय भी।
८.यहाँ न द योग क स के प ात्
उनका ावसा यक
उपयोग कदा प न कर। य क इससे य आ थक लाभ भले ही
नजर आए,परो म आपका अ हत ही अ हत है । ा- े
म वश कोई
इसके बदले य द कुछ देही दे
,तो कम से
कम तीसरा ह सा(३३%)
दान अव य कर द।इससे आपक स म जरा भी श हीनता नह
आये गी।परा बा क कृपा सदा बरसती रहे
गी। ----)()(----
तीय प र छे
द- योग पू
व क तै
यारी
वतमान समय म भागदौड़ के ज टल जीवन म मनु यक
लालसाय और ज रत तो दनानु दन वकराल होती जा रही ह; क तु
सरी ओर उन लालसा और ज रत को पू रा करनेहे
तुसमु चत
समय, यास और म के त उदासीनता,लापरवाही और ज दवाजी
भी दे
खी जा रही है
। व ाथ टेटबुक के वजाय,गेसपे
पर का शॉटकट
पस द करता है। धनाथ रात रात लखप त-करोड़प त बनना चाहता
है
।"कम मेहनत, यादा आमदनी"या कह बना म कए धन बरसने
का वाब देखना आम बात है ।धमाथ -मो ाथ -साधक भी वैसेही
शॉटकट क तलाश म रहता है । द घका लक अनुान- या-जप-
पु
र रण,योग-याग आ द से यथास भव कतराता है।एक तरफ
ई र, वग और मो जै सी अनमोल न ध चा हए और सरी ओर ु
"वैय" जै
सा वहार- बात-बात म हा न-लाभ का हसाब- कताब।
साधना ापार नह है ।यहाँ
वैय बु से काम नह चलनेको
है
।साधना करने केलए " ा ण" होना सवा धक अ नवाय शत
है
।मे
री बात पर यान दगे
।यहाँा ण पु ा ण क बात म नह
कर रहा ।ँमेरे
कहने का ता पय यह है क एक डोम का बे टा भी
ा ण हो सकता है ,और इसकेवपरीत ा ण का बे टा भी चा डाल
हो सकता है।बात यहाँ " ण व" क हो रही है ,जा त क नह ।
"ज मना जायते शू ः, सं कार ज उ यते । " वचन है- शा
का।हम सभी शूही पै दा होतेह।या और प कह क ई र का अं श
ई र ही पै
दा होता है।मनु य या रा स तो वह ज म के बाद बनता
है
।कोई ह , ईसाई, मु सलमान,बौ ,जै न,पारसी पैदा नह होता।एक
बालक सवदा-सवथा नमल- न वकार ही इस पावन धरती पर आता
है
।ये धम,जा त,स दाय,सं क णता और,कू पम डू कता के प रणाम ह।
सारी लड़ाई प र ध पर है ।सारी रयाँप र ध पर ही ह।के न वकार
और अ ु ण है।
साधक को सवभव तु सुखनः,सवस तुनरामयाः।सव भ ा ण
प य तु,मा क त्ःखभा भवे त्।। - क भावना से
ओत ोत होना
चा हए। य क उसका ल य के है । उसका हर कदम नर तर के
क ओर अ सर है ।वह प र ध पर भटकता प थक नह ,
ब क के क ओर सरकता बु या ी है ।नीचेकेच म इसी
त य को दशानेका यास है मे
रा।हम पाते
ह क य - य प र ध से
के क ओर बढ़ते ह,आसपास के अ ास के बीच क रयाँ
समटती जाती ह;और एक समय ऐसा आता है क सबकुछ वलीन
हो जाता है
।भे
द क सम त भ याँ ढह जाती ह,और एक मा
क स ा ही शेष रहती है
,और फर कु छ काल बाद वह भी नगु
ण-
नराकार हो जाता है

व भ धम (स दाय ) और (ई र) क ा या

कहने का यह अथ नह क योग से पू
व योग-कता क यह थ त
अ नवाय है। सं गवश त के प रपाकफल को मन ल त कया है
यहाँ
।त –माग से पुषाथ चतुय (धम,अथ,काम,मो )को पाया
जासकता है - इशारा इस ओर है
।सां
सा रक जीवन का सही प म
उपयोग(उपभोग नह ) करतेए,लोकक याण क भावना-कामना
स हत"आ मलाभ" क ओर अ सर होना है ।
त म चम कार तो पग-पग पर है
।यहाँ
बताये
जा रहेवभ
योग कसी न कसी चम कार को ही गत करतेह। क तुएक
साधक को इन पगडं
डय म भटक नह जाना चा हए। यु त अपने
मू
ल ल य क ओर अ सर होना चा हए।
अब सीधेयोगा धकार क बात करते
ह-
भवन- नमाण से पूव भवन-योजना बनायी जाती है
।भवन क
ऊँ
चाई को यान म रखतेए,उसक नीव क थापना होती है ।य द
कोई चाहेक जमीन के भीतर दब जानेवालेट को खपाये वगै
र ही
सपाट जमीन पर द वार खड़ी कर ली जाए तो उस द वार क या
थ त होगी? उसी कार साधना क सफलता केलए,साधना से पूव
कु
छ याय अ नवाय ह।इसे अ य उदाहरण से भी प कर- हम
आ मर ा केलए ब क खरीदना चाहते ह।ऐसा नह क बाजार गए
और ब क ले कर आ गये ।उ चत हैक लाइसे स ा त कर।और फर
ब क चलाने क कला भी सीखनी होगी कसी यो य
से
,अ यथा इन दोन शत के पालन केवगैर हम अपना भारी अ हत
कर लगे
।एक ओर कानू न हम द डत करे गा,और सरी ओर चलाने
क कला न मालूम होने
से गोली खु
द भी लगनेका खतरा है।
त साधना और योग से पू
व अपने कुल-पर परानुसार इ
साधना करनी चा हए। ज म य ोपवीत सं कार क पर परा
है
।व तुतः यह जमीनी तैयारी का सूपात है। यात है क जनेऊ
दे
नेके साथ ही संया-गाय ी क द ा दे द जाती है।य द समय पर
यह सं कार हो गया है
,और उसके बाद नय मत सं या-गाय ी जारी है
,
तो सम झये क आपका जमीन काफ हद तक त है।अ यथा
कसी काय स म क ठनाई होगी। आपका ब त समय और म तो
असं क रता के दाग-ध ब को मटाने म ही खप जाये गा; और आप
उबनेलगगे । नराश और हताश होने लगगे ।यह सब कह-बतलाकर
आपको हताश- नराश करना,या सवथा अयो य ठहराना मे रा उ े

नह है,ब क आपको सचे त करना है।
माग-दशन और दशा- नदश व प यहाँ कुछ बात बतलायी जा रही
ह।इनका पालन अव य कर।ई र क कृ पा सेयशलाभाजन होगा।यह
म बलकु ल अनुभू
त बात कह रहा ।ँ(क) उ रायण सू य( चौदह
जनवरी सेलगभग चौदह जु लाई) केमहीन म- गु-शुा द शुभ ह
क शु,पं चां
ग शु के साथ सवाथ स योग का वचार करतेए
कायगत शु हे तु
मु डन,नवीन य ोपवीत,व ा द धारण करके
माता- पता का आशीष हण कर।उनसे
आदे श ल अपने मत योग हे
तु।माता- पता वग य ह तो
भावा मक आशीष-आदे श ले
ना चा हए।यो य गु क सम या हर यु ग
म रही है
।वतमान आड बरी प रवेश म तो यह और भी क ठन हो गया
है
। क तु इसका यह अथ नह क गु का सवथा अभाव हो गया
है
।और अभाव क बात करते ह तो, सच पूछ तो सदगु के साथ
सम पत श य का भी अभाव है ।खै र,इसकेलए ब त च तत होने
क बात नह है ।मे
रे
इन संके
त का पालन क जये ।अपनी जमीन
बनाइये। श पी वयमेव उप थत होकर भवन नमाण कर दे गा- ऐसा
अटूट व ास रख। माता- पता ही ार भक गु होते ह।अतः न
होकर ीगणे श यह से कर।
(ख) अपनेकु ल दे
वता क यथो चत जानकारी कर।आजकल ायः
इसका लोप हो गया है
। आधुनक जीवन शै
ली हम अपनेमू
ल थान
सेवमुख कर द है ।अ य कई कारण सेभी इस मामले
म अ ानता
का बा य है।
(ग) नये व के साथ नवीन आसन भी अ नवाय है ।सव म होगा
सफे द क बल का आसन,जो ायः सु लभ है ,और सवकाय ाही
भी। यान रहे– असनं वसनंचै
व,दारा प नी कम डलु ...शा का
संकेत है- आसन,व ा द वलकुल गत होना चा हए। ाचीन धम
नह , तो कम सेकम आधु नक व ान क सेही इसे अ नवाय
समझ।
(घ) अपने
कुल दे
वता के
समीप आसन लगा कर पू
व न द शु

समय म एका चत होकर कम से कम तीन दन( त दन कम से कम
२४ मनट) बै
ठ। सफ बै ठ,और कुछ नह ।।आज केयु
ग म म समझता
ँ" सफ बै
ठना" ब त क ठन काय है।तीन दन के
इन चौवीस मनट
म बस एक ही वचार आपके मन म आए- हम अपने कु
लदेवता का
कृपा- साद ा त हो।यह काय तीन दन न त समय पर ातः-सायं
कर।
(ङ) सं गवश पहले भी कह चु
का ,ँ
पु
नः मरण दया ँ - आहार-
वहार का बड़ा मह व है
। सा वक आहार सदा स व क ओर अ सर
करेगा।म यहाँ
वामाचार और कौलाचार क बात नह कर रहा ।ँआगे
आप पायगेक मुय प सेशव और श क आराधना का
संकेत है
, क तु
म जस श -उपासना क बात कर रहा ँ इसम
तामसी आहार- वहार सवथा व जत ही समझ।राजसी आहार से
भी
यथास भव बचने का यास कर, फर भी अपेाकृत य है।आहार
क ा या ीम गव ता के स हव अ याय के ोक संया
८,९,१० के अनु
सार तय कर तो अ छा है

(च) तीन दन केबाद आसपास केकसी शव म दर(पु राना
त त थान,न क जमीन दखलाने केलए सड़क कनारे वनाया
गया गंजेड़य का अ ा)म जाकर पं
चोपचार पूजन केसाथ
दही,ह द ,और वा सम पत कर पू
री न ा से
, ा और समपण के
साथ गु बनने का आ ह कर। यात है क त -साधना के
परमगु शव ही ह। ायः सम त ता क थ शव- शवा सं वाद म
ही ह।(इस दन सफ पूजन और नवे दन कर चले आय)।उस दन
अकेले ही रा शयन कर।रात सोते समय, दन म कये गयेनवेदन
का मरण बनाये रख।पचह र तशत मामल म दे खा गया हैक
व म कु छ न कु
छ शुभ सं
केत अव य मल जाता है।शु
भ व का
अथ है- भूत भावन भोले
नाथ आशु तोष सहज ही नवे
दन वीकार कर
लए।य द ऐसा नह होता है तो भी नराश होने
क बात नह है।सभी
तयोगी आई.ए.एस. क तयो गता एक ही बार म उतीण नह
होजाते। ऐसी थ त म आगामी यारह दन तक पू व नद या-
शव-पू जन,एकल शयना द जारी रख।
(छ) अब,बारहव दन से (सामा य थ त म सरे ही दन से) ी शव
पंचा र मं-जप का सं क प ल।सं क प वा य म " शव ी यथ" का
भाव रहे,कोई अ य काम नह । य क इस अनुान का मू लउ े य है
-
आ म शु स हत अ धकार ा त।सं क प सवा लाख का हो तो
अ त उ म।कम से कम चौआ लस हजार तो होना ही चा हए।घंटेम
चार हजार क ग त से आसानी से जप कया जा सकता है । घर या
मंदर म बैठ कर,सु वधानु
सार नधा रत संया त दन, तबै ठक के
हसाब से जप पूरा कर।संक प पू
रा होजाने
के बाद दशां
श या कम से
कम यारह सौ मंा त सफ धी अथवा शाक य(सवा कलो काला
तल, तदध चावल,तदध जौ,तदध गू ड़,तदध घी,धू
ना,गू
गल आ द
सुग धत अ पां श)से
दान कर।( नयम है
- जप का दशां
श हवन,तत्
दशां
श तपण,तत्
दशां
श माजन,तत्दशांश ा ण और द र नारायण
भोजन(यथाश द णा स हत)।
(ज) अब,अगले दन से ,या सु
वधानु
सार थोड़े
अ तराल के
बाद(अ धक समय बाद नह ) अगले अनुान क तै
यारी करनी
है
।अगला काय म है - श -आराधना।इस म म पु नः उसी भां

सवालाख अथवा कम से कम छतीश हजार स तशती के नवाण म
का जप करना चा हए। यात है क ी गास तशती म दए गये
वधान सेजप का यास अव य कर।जप समा त के प ात् तदभांत
ही हवन सेद णा तक क याय स प कर।
अब तक इतना कु छ जो करना पड़ा वह सब भावी साधना क
न व व प य आ। न व क येट ही भावी महल क मजबू ती क
सा ी ह गी।ये याय बारबार करनेक आव यकता नह है ।इसेय
समझ क आपका सामा य अ तै यार हो गया।या कह- कलम क
व था आपने कर ली।अब इससेजस रं ग म लखना हो- वै सी
याही डालनेक आव यकता होगी। वशे ष बात ये है
क अलग-
अलग रं ग केलए सफ याही बदलनी है ,ले
खनी तो वही
रहे
गी।हाँ
,एक बात का यान रखना है- समय-समय पर या वशे ष
अवसर (नवरा , हण,आमाव या,पू णमा,आ द) पर दोन म का
एक-एक हजार जप कर ले ना चा हए ता क भाव क ती ता बनी
रहे
।आप चाह तो थायी तौर पर अपनी न य या म इसे शा मल
कर ल- ये सवा धक अनुकू
ल होगा।अ यास के बाद इतनी या- एक
-एक हजार दोन मंो का जप- मा आधे घं
टे
का काम है।
एक आव यक जानकारीः- शव पंचा र मंका पू ण
पु
र रण पांच लाख एवं
नवाण मंका नौ लाख होता है
।धै
य पू
वक
इतना कर ल तो फर या कहना।वै
से
साधना म अ भ च रखने
वाल को अव य कर ले
ना चा हए।यह काय कसी वषय म मा टर
ड ी हा सल करने
जैसा है

इस कार अब आपक साधना भू
म पू
रे
तौर पर तै
यार हो गयी।

तृ
तीय प र छे
द - वन प त योग
ताक(म दार)

म दार एक ब प र चत पौधा है ।संकृत म इसे अक भी कहते
ह।अक सू य क सं वधा है
।यह शव का अ त य पु प है।इसक कई
जा तयाँ ह।मुय प से नीले और सफे द फूल के भेद सेपहचाना
जाता है।एक और खास बात ये है क बनावट केवचार से छोटे
और
बड़े आकार म मलने वाले दो पौधेह,जो व तुतः दो वलकु ल भ
जा त के है
। एक को अकवन के नाम सेजाना जाता है ।इसका
वकास म मदार सेक चत भ है । ायः लोग दोन को एक ही
समझ ले ते ह,जब क जा त एक और जा त भे द है।गुण-धम म भी
भेद वाभा वक है ।अकवन(अक)जड़ से ही ब शाखा वाला होता
है
,जव क मदार म शाखाय अपेाकृ त कम होती ह।अकवन साल दो-
साल म ायः सू ख जाता है, क तु मदार ब बषायु पौधा है।अकवन म
सफ शाखाय ही शाखाय होती ह,जब क मदार तना यु होता
है
।पुराना पड़ने पर काफ मोटा और 10-15 फ ट ऊँ चा हो जाता है

गो वामी जी ने
वषाऋतु
वणन म म कहा है
-
अक,जवास पात वनु
भयऊ। ज म सु
राज खल उ म गयऊ।।
ता पय यह क वरसात म सभी पड़-पौधे लहलहाने लगतेह,जब क
अक और जवास ायः सू ख जाते ह।इनक प याँ झड़ जाती
ह।आमतौर पर रेलवे लाईन केकनारे ,या जहाँ
-तहाँकसी पु
राने
मकान के ढू
ह पर पाया जाता है।इसके प े वरगद केप े जै
से
आकार के होतेह।रं
ग म थोड़ा फक होता है ।बगनी फूल वाला मदार
तो ब तायत सेपाया जाता है
, क तु सफेद फूल क जा त जरा
लभ है।
यहाँ
मे
रा ववेय वन प त ेताक(मदार) ही है
। ु
प जा तय
अकवन या नीले
फूल वाला मदार नह ।
मदार पुप शव को अ तशय य है - इसकेपीछे एक कारण यह
भी है क इस पौधेम पावती न दन गणेश का वास है
।गीता
( वभूतयोग)म ीकृण नेवयं को अ थ(पीपल) कहा है ।
तदभां त म दार गणे
श क सा ात्वभू त है
।लोकक याण केलए
व नेर वनायक म दार के प म अवत रत ए ह- ऐसा त - थ
म व णत है। अ त चम का रक बात यह है क म दार मू
ल को आप
न व नता पू
वक( वना कटे-टू
टे
) य द जमीन सेऊखाड़ कर गौर कर
तो पायगेक सा ात् मं
गल मू त क तरह नजर आएगा।
यहाँहम म दार केव भ योग क चचा करगे , जनम यादातर
ताक मू
े ल का ही योग है।इसकेलए पौधे का ब त
पु
राना(मोटा)होना ज री नह है
।हाँ
,ये
बात अलग है क पौधा जतना
ही पु
राना होगा- उसका मू
ल उतना ही सुढ़-सुव थत-सु
दर
आकृ त वाला होगा।
ताक गणप त और वण- नमाण

एक सवा धक रोचक और चम कारी योग है - वण- नमाण
का।इसम वृको न करने क बात नह है । यु त वृ जतना ही
पु
राना और मोटा होगा या म आसानी होगी। सरी और सबसे
मह वपूण बात यह है क इस या क ावहा रक क ठनाई है -यह
एक द घका लक अनुान है ।साधक केनज साधना बल के अनुसार
पां
च,सात,दश,या बारह वष लग सकते ह।सीधे कह क इस साधना म
तै
यारी से
लेकर पूणता तक प च ंने
म जीवन ही खप जाने जै
सी बात
है
।ब त धैय क आव यकता है ।साथ ही यह ब त गु त और
रह यमयी साधना है।आपक थोड़ी असावधानी( या- ु ट और
गोपनीयता भं
ग) आपके द घका लक म पर पानी फे र सकता है
।म
वयंइसका भुभोगी ।ँ मे
रेगुजन ने भी इसेसाधा है

इस या केलए थम अ नवायता है क कह से इसका बीज या
गाछ उप बध कर,और अपनी गृ
ह-वा टका म था पत कर- इस बात
का यान रखतेए क इसके पास
बै
ठ कर ल बी साधना करनी है
।अतः भ व य- वचार पू
वक पौधा
लगाने का थान चयन कर।पांच-सात वष म या-यो य पौधा तै यार
हो जाये
गा।व तु
तः इस योग म मोटेतनेक आव यकता है ।तना
जतना मोटा होगा,साधक केलए उतना ही उपयोगी और लाभ द
होगा।
उ चत होगा क योजनाव प सेपौधेक थापना कर दे खभाल
करते रह,और इस बीच अपने का यक शु के साथ अ या य साधना
करते रह,या सामा य जीवन- या-कलाप म गु जार।पुज म से
ले
कर कमाऊ बनने तक क ती ा हर कोई करता है - और बड़े शौक
और लगन से करता है
। फर इस चम कारी या केलए ती ा म
या हज ? वैसेसच पूछा जाय तो इस ल बी साधना का प रणाम
सां
सा रक भोग साधना ब ल ही है । अतः इसके त साधक को
वशेष आक षत नह होना चा हए।अ य अ पका लक साधना- योग
सेही सं
तोष करना चा हए।
अ तु
।पौधा काय-यो य हो जानेपर र वपुय/गुपुय योग म
ाण- त ा- व ध से त त कर यथा स भव
पं
चोपचार/षोडशोपचार पूजन कर।भगवान गणप त के बारह स
मंो म वेछा सेकसी मंका चु नाव कर ल।उस चय नत मंसे ही
पू
जन करना है
। पू
जा के बाद एका चत होकर मा याचना कर,और
अपना अ भ उ ह प कर।
पू
जन साम ी म अ य सामान के अ त र - शुपारद एक
पाव,लाल कपड़ा चौथाई मीटर,क चा गो ध एक पाव,वरगद का एक
सुदर प ा,सौ ाम शुमोम(मधु म खी वाला- ये आपको जड़ी-बूट
क कान म मल जाये गा),वृम छे द करने के औजार- मोटा
बरमा,तेज चाकू, खानी आ द साथ रखना आव यक है ।मोटेतने

सव थम मोटा बरमा से छेद कर- छेद इतना ही हो क तनेम आर-
पार न हो जाय(मोटाई का तीन ह सा ही छेदा जाय)।बरमा सेनकल
रहेकुी (बुरादा) को ेम पू
वक कसी पा म एक कर ल, य क
आगे इसका उपयोग करना है । अब कए गये छ को कसी सरे
औजार से थोड़ा और बड़ा कर।छे द वलकु ल सुडौल हो- इसका यान
रख।अब कए गये छ म सावधानी पू वक,साथ लाये गयेपारद को
भर द। यान रहे- पारद अ त चंचल है।इसे हाथ से पकड़ना
क ठन है।अतः वरगद के प े को कुपीनु मा बनाकर, छ म पारद
भरने का काम कर। छ थोड़ा(एक च) खाली रहे ,तभी पारद डालना
ब द कर द।य द पारद बचा रह जाय तो कोई हज नह ।अब, छे द करते
समय नकले बु
रादेम मधुम खी वाला मोम मलाकर उस शे ष छेदम
सावधानी पूवक भर द।उपर से लाल कपड़े को चार-पां
च बार लपेट
कर प नु मा ब धन कर द।हाँ ,पौधेके थल म छः च गोल घे रा बना
द, जसम आसानी सेन य जल डाला जा सके ।अब,पुनः आसन
लगाकर पू व सा धत- गणप त म का यारह माला जप कर।जप के
लए ा माला सव म है ।जप पू रा हो जाने पर कए गये जप-
पू
जन या द को ऊँ ी गणप यपण म तु - कह कर पु पा ली दे
दे
।त प ात गो ध का अ य अ पच करे । इस कार थम दन क
या स पू
ण यी।
अब, न य पं
चोपचार पू
जन, यारह माला पू
व सा धत गणप त म -
जप, धा य, पुपा ली,और समपण क या करतेरहना है
- ल बे
समय तक।
यान रहे
- यह एक द घका लक अनुान है
।आपके भा यानु
सार और
कम क सघननतानु सार फल म समय लगेगा।एक बष सेबारह बष-
कुछ भी लग सकता है। योग शतानु
भूत है,इसम जरा भी सं शय नह ।
आप नय मत प से अपनी या जारी रख। या द घका लक
है
।सां
सा रक जीवन म कई तरह के वधान आयग।प रवार-गो ा द
म जनना शौच,मरणाशौच भी ह गेही।रोग-बीमारी भी सताये गी
ही।ऐसी प र थ त म अनुान या क चत बा धत होगी।जननाशौच
म नौ दन,एवंमरणाशौच म बारह दन तक या ब द रहे गी।रोग-
बीमारी क वशेष थ त म भी बा धत हो सकता है ,जो सवथा य
है
। वस इतना ही यान रहेक आल य,लापरवाही और नै रा य का
शकार न ह ।
योग स का सं के
त- या करते -करतेआप देखगेक म दार-वृ
क प याँ जो वाभा वक प से थोड़ा भू
रापन लए हरे
रं
गक
थी,अव धीरे
-धीरे
अपना रं
ग बदलने
लगी ह।प याँ पहले बीमार प य क तरह पीली लगगी। फर उनके
झड़ जाने पर,नयी प याँ नयेकले वर म ह गी- पीतल या सोने जैसी
अ त ुचमक वाली।वस,इसी क ती ा थी आपको।आपका काय
स हो गया।अब,पु नः र वपुय/गुपु य योग का वचार करके
अनुान समा त का सं क प कर।पू व म से पूजन,जपा द न य
या स प करके ,वृको सादर द डवत कर।लपे ट यी लाल प
को खोल द। कसी औजार सेछ म भरे गयेबुरादेको आ ह ते से
अलग कर,और उसके अ दर पूवकाल म भरे गये पारद को बाहर
नकाल।आप दे ख कर चम कृ त हो जायगे- यह पारद नह ,शत तशत
शुसु वण है। ा पू
वक उसे माथेसेलगाय,और सामने रखेगये
कसी पा म( ट ल नह ) रख कर व धवत षोडषोपचार पूजन
कर।उसम से (कम से
कम सवा तोला) कसी गरीव को दान कर
द।और शेष को आदर स हत अपने खजानेम रख द। एक काम और
करना अ त आव क है- कम से कम पां
च ा ण और पां च भ ुको
भोजन कराय,और ानसार उ ह द णा द।
नोटः- (१) इस या का वैा नक आधार- इस योग म पारद को
ता क व ध सेवण म प रव तत कर रहे ह।लौह आ द अ या य
धातु को भी ता क व ध से प रव तत कया जा सकता है । क तु
पारद का प रवतन अपेाकृ त आसान है।वैा नक ववे चन कर तो
कहा जा सकता है क पदाथ के प रवतन केलए उसके इले ोन-
ोटोन ही ज मे वार होतेह।पदाथ और ऊजा का ही खे ल हैयह
ब आयामी ां
ड। ाकृ तक प से यह
प रवतन(Transmutation) न य- नरं तर जारी है
। सामा य जन के
लए यह महद् आ य क बात हो सकती है , क तुएक वैा नक
जानता है क वृ(लकड़ी) ही भू गभ म दब कर कोयला बनता है ,
और फर कोयला ही हीरे म बदलता है
।कोयले और हीरे म वैा नक
सेब त सा य है - दोन काबन ही ह। पारद और सोना भी एक
सरेके ब त करीब ह।इनके इले ोन- ोटोन काफ करीब ह।सोने
का अ वां क ७९,और पारद का ८० है ।यानी कसी व ध से पारद का
अ वांक घटा दया जाय ,तो वह सोना हो जाय।यही
कारण है
क प रवतन आसान है ।वैा नक- योगशाला म इन
या को जाँचा-परखा गया है
।इस तरह के
रासाय नक और
भौ तक प रवतन म जरा भी सं
शय नह है

त -म भी कु छ ऐसा ही कर रहा है,जो काय कृ त अपनी
नयत ग त सेनरं तर करती आरही है।त -म कै सेकाय करता है-
इन स ा त का ववे चन आप हमारी पुतका-
पु याकत द पका म दे ख सकते ह।यहाँ सफ इतना ही कह द क
ऑ सीजन और हाई ोजन के अणु आपस म मल कर जल का
नमाण करते ह,उसी भांत पारद म दार- ध से ल बे समय तक सं योग
करते-करतेवण म बदल जाता है । योगशाला का व श प रवे श
और उपकरण जै सेकाय संयोग करते ह, वैसे ही यहाँम या और
नरं
तर मंपू रत गो ध का सचन पारद म रासाय नक प रवतन ला
दे
ता है
। यात है क वैा नक स है क गाय केध म
वणश भी मौजू द है
।गाय के मेद ड से कु छ व श रसायन
नरं
तर वत होते रहतेह,जो सोनेकेगुण वाले ह।ओज-वृ के
लए आयु वद वण-भ म खाने का सलाह दे ता है।सामा य जन जो
इस मंहगी दवा का सेवन नह कर सकते ,वेनय मत प से गो ध
सेवन करके लाभ पा सकते ह। क तु यहाँ भी एक बड़ा शत है - दे
शी
न ल क गाय, य क उसके मेद ड म ही यह गु ण है;आजकल क
जस (Crossbride)गाय म नह ।अ तु ।
(२) त - थ म वण नमाण क कई व धयाँ द गयी ह।योग
साधना से भी येसब चम का रक स याँ सहज ही ा त हो सकती
ह। क तु साधक को सदा इनसेपरहे
ज करना चा हए।सामा य जीवन
यापन हेतुकुछ ह के-फुके योग भले
ही कर ले।
(३) यह योग पूणतया गणप त का है ।गणेश सा ात्कृण ही
ह।कृण यानी व णु। मू
लतः यह वै णवी या है ।इसक मयादा का
यान रखतेए,मांसाहारी लोग इस साधना- योग को कदा प न
कर।उ ह इसक स कदा प नह मल सकती।उनका म और
समय थ जाये गा।कुछ अ य बाधाय झेलनी पड़गी सो अलग।

पु
याकवन प तत म्
4
(क) ताक(म दार)मू
े ल का व भ योगः-
सव थम म दार के पौधेका पता लगा ल।अब र वपु य/गुपु य
योग म उसके मू
ल को घर लाने क योजना बनाय। जस दन व हत
योग मल रहा हो,उसके पू
व संया को पूजन साम ी-
जल,अ त,मौली,रोली, स र,च दन,सु पारी,पु
प,कपूर,धू
प,द प,कु

नै
वेले कर पौधेके समीप जाकर पू व/उ र मु ख खड़े होकर
व धवत पू जन कर।(यहाँ बै
ठ कर पूजा करना आव यक नह
है
)। यात है क े ताक म सा ात् गणप त का वास है ।अतः पूजन
गणप त-मंसे ही होगा- चयन कए गये कसी गणप त मंसे -
जसक आप पहले भी साधना कर चु के ह। पू
जन के प ात् अ त-
पुप-सुपारी ले
कर(जल नह ) ाथना करे ः- "हे
गणप त! हेे ताक दे
व!
म अपने काय क स केलए कल ातः आपको अपने साथ अपने
घर लेचलू ग
ँा।आप कृ पापूवक मेरेसाथ चल कर मे रेअभी क स
कर।" ाथना म श द का हे र-फेर हो सकता है,भाव का नह ।व तुतः
आप गणप त दे व को अभी स हे तुआम त करने गये
ह। ाथना करकेेम पू
वक हाथ म लए ए अ त-पु प-सुपारी को
वह वृ-तल म छोड़कर वापस घर आ जाय।रा म एका त शयन
कर। व सं के
त- शु
भाशु
भ मल सकते ह,नह भी।कोई बात नह ।
अगली सु बह(मुह अ धे
ं रेही) न य कृय सेनवृहोकर एक
मीटर लाल या पीले नवीन व और खोदने -काटनेकेऔजार के साथ
पुनः वहाँजाकर वृको सादर णाम कर,और गणप त केयान
स हत पू व चय नत म का उ चारण करतेए पू व या उ र मुख
करके सावधानी पू वक जड़ क खु दाई कर।खु दाई काफ गहराई तक
करनी चा हए। यास कर क पू रा का पूरा जड़ (मुशला स हत)
नकल सके । पू
रा काय मौन जप के साथ स प करना है ।यू
ँतो यह
काय वलकु ल अके लेका है, क तुवशे ष प र थ त म कसी
सद का सहयोग लया जा सकता है ,जो शुचता और गोपनीयता
म आपका साथ दे सके । य क ता क योग ढढोरा पीटकर करने
क चीज नह है । सरी बात यह क यास हो क जड़ टू टनेन पावे।
जतना अ छा जड़ होगा उतना ही उपयोगी होगा।इस कार हण
कए गये टू
टे-कटे जड़ का भी उपयोग है ,और स पू ण व ह का
भी।अतः सबको सहे ज ल- साथ ले गयेनवीन व म। यान रहे - वहाँ
से वापस आते समय भी कसी से बात चत न कर। दन चढ़ चु का
रहेगा।रा तेम लोग मलगे ही।पर आप मौन रह।
घर आकर जड़ क व धवत सफाई कर।पु नः,गं
गाजल सेस चत
करनेके बाद लाल व का आसन दे कर छोट चौक वगैरह पर
थायी तौर पर था पत कर व धवत पं
चो/षोडशोपचार पू
जन करने
केबाद यारह माला गणप त म का जप कर।त प ात् दशां

हवन,त दशां
श तपण,त दशांश माजन करने
के बाद एक ा ण और
एक द र नारायण भोजन एवंयथाश द णा दान कर।इस
कार आपके घर म सा ात्
गणप त का आ वभाव हो गया।आगे
न य यथोपचार पूजन एवंकम सेकम एक माला मंजप अव य
करतेरहना चा हए।
जड़ उखाड़ते समय कुछ टुकड़े
(थोड़ेमोटे
से) य द ह तो उनका
भी व भ तरह से उपयोग हो सकता है
। कसी श पी से उन टकड़
को उ क ण कराकर गणप त क छोट सी तमा(तीन-चार च क )
बनवा कर उसे
भी उ व ध सेथा पत कर वही लाभ ा त कर
सकते ह।
ेाक गणप त थापन का फलः- जो
त इस कार गणप त
क न य साधना करता है उसके सभी मनोरथ पू
रे
होते
ह। ान, व ा,धन-स प ,सु र ा, व नशा त सब कुछ वयमेव होता
रहता है।उसकेघर-प रवार पर कसी कार के जा -टोटके
का भाव
नह पड़ता।भवन के वा तु दोष का भी अ तु प सेनवारण हो
जाता है।
ताक मू
े ल के
अ या य योग( पू
व व ध सेा त)--
१. वा य लाभः- जड़ को सु
खाकर चू ण कर ल।आधा
च मच चूण न य ातः-सायं
गो ध के साथ लेनेसेबल-वीय,ओज-
ते
ज क वृ होती है।औषध से वन का ार भ र वपुय योग म ही
करना चा हए।
२. सु
र ा- तां
बे
केताबीज म भर कर पुष दाय बां
ह या
गले म,तथा ी बाय बां ह या गले
म धारण कर।इससे हर कार के
टोने
-टोटके का नवारण होकर पू ण सु
र ा ा त होगी।यह काय भी
र वपु य योग म ही कर।
३. सौभा य वृ - मां क दो क व ध सेही धारण करने
पर यह लाभ भी ा त होता है, क तुइसम एक काय और करना
पड़ता है
- उसी तरह केताबीज म कमल के प ेको डाल कर य
को अपने कमर म बां
धना चा हए।खास कर उ ह जनक कुडली म
स तम भाव(सौभा य थान) बल हो।
४. वशीकरण-स मोहन –(क) े ताक मूल को र वपु
य योग म घी
और गोरोचन केसाथ घस कर माथे पर तलक लगाने सेइस काय
क स होती है ।( यान रख- योग का पयोग न कर,अ यथा
आपक इस स ब धी अ य योग भी न फल हो जायगे । ाणसंकट
या ऐसी ही वशे
ष प र थ त म सफ योग कर।
(ख) बकरी केध म घसकर भी उ लाभ ा त होता है

(ग) ववाहाथ( भचार नह ) कसी ी को स मो हत करने के
लए अपने वीय केसाथ घस कर, तलक लगा उसके चेहरे
पर
डालतेए थोड़ी बात चत करने मा सेबल स मोहन होता
है
।( यान रहे- तलक लगाकर थम उसी पर जाए,भू
ल सेभी
कसी सरे पर नह )।एक महोदय ने
यह योग करने का यास
कया था।सं योग वश यू ँ
ही अपनेकमरेसेतलक धारण कर ग त
क ओर बढ़े ,अचानक एक अ य ी सामने आगयी,और लाख चेा
केवावजू द उसने स भाषण भी कया।प रणामतः ल बेसमय तक वह
उनका पीछा नह छोड़ी।बड़ी क ठनाई सेपड छुड़ाना पड़ा।अतः
ब त सावधानी सेयह तामसी योग कर। स ा त है क स व जब
हठात्तम म पा त रत होता है
तो उसक ऊजा बड़ी खर होती
है
। े
ताक पूणतः सा वक योग है ।अतः ताम सक योग से परहेज
करना चा हए।
५. त भन- यहाँ
इस श द का ापक अथ म योग है
।यानी कसी
कार का त भन करनेम समथ है
यह मू
ल।
(क) े
ताक मूल को लाल या पीलेकपड़ म बाँ
ध कर कमर म
धारण कर स भोग करनेसेर त या काफ ल बी हो जती है।इसे
कमल प म लपे ट कर बां
धा जाय तो और श शाली हो जाता है

(ख) ेताक का ध और मधुमलाकर ले प बनाय।इस लेपम
ताक के
े फल सेा त ई क ब ी बनाकर धी का द पक जला कर
समीप रख।स भोग काल म उसपर डालेरहनेसेवीय- त भन
होता है
।कोई यह तक देसकते ह क यान द पक पर रहने केकारण
भोग-काल क वृ मनोवैा नक प से हो गयी।जी नह ,हाला क
ऐसा भी होता है
। क तु
इस द पक का अपना वल ण योग है ।
(६) राज-कृपा द – साधक को राजकृपा- राजक य पदा धकारी क
अनुकू लता,स मान आ द क आकांा हो तो अपनेनवास थान से
पू
व दशा क ओर थत े ताक-मू ल हण कर ताबीज क तरह
धारण करना चा हए।
(७) रोगनाश,श ु
पराजय,मान सक क ,शोक-स ताप आ द के
नवारण केलए अपनेनवास थान से द ण दशा क ओर थत
ताक-मू
े ल हण कर ताबीज बनाकर धारण करना चा हए।
(८) वरो धय को नीचा दखाने
(दबाने
),उनक या- त भन हे
तु
अपनेनवास थान से प म दशा म थत त ेाक-मूल का योग
करना चा हए।
(९) गृ
ह-वा तु र ा के उ ेय सेव हत मुत म े ताक का पौधा कह
सेलाकर ऐसी जगह पर था पत करेक वे श- ार केसीध म
हो।गृ
ह म वे श करते समय और बाहर नकलते समय ा पू
वक
दशन करे ।वै
सेे ताक का पौधा भवन केकसी भी भाग म होगा तो
लाभदायक ही है , य क सा ात् गणे
श तुय है
। क तुवेश- ार के
सामने,पू
रब दशा म,ईशान कोण म,उ र दशा म होना वशे ष शुभ
माना गया है
। े ताक त म इस चम कारी वन प त के सै
कड़ योग
मलते ह।अपनी साधना-वु से यथो चत योग कर लाभा वत आ
जा सकता है ।

२)बाँ
दा एक परजीवी वन प त
व तुतः बाँ
दा एक परजीवी वन प त है
,जो भूम पर न उग
कर, व भ वृ पर अपना थान बनाता है । जस वृपर उगता है
उसके ही रस-त व से अपना पोषण करता है । यात है क यह
रासना और अमर- लता सेभ है ।वे
दोन सहज- वत प से
उ तुह,जब क बाँ दा एक वकृ त क तरह है।यही कारण है क कु छ
व ान इसे परजीवी वत वन प त न कहकर वृक बीमारी ही
मानतेह। क तु म इसेवत परजीवी इस लए कह रहा ,ँय क
वत ता के सारेल ण इसम व मान ह- इसक का -सं रचना
अपनी है- खुरदरी गां
ठदार,प य का आकार ल बा-गोलाई यु, हरे
रं
ग केसु दर गुलाबी पु पगुछ-ल ग जैसा,फल नमौली जै सेगुछ म
ही पायेजाते ह।यूंतो यह ायः कसी भी वृपर हो सकता है , क तु
आम,म आ, जामु न आ द पर सहजता से दे
खा जा सकता है ।आम के
वृम तो सबसेयादा।इसका भाव यकारी है । जस वृपर उग
जाता है
,या कह जस वृको स ले ता है
,उसका वकास अव हो
जाता है
।यही कारण है क बाग म कसी बृपर दे खते के साथ ही
उसका सं र क त काल ही काट कर न कर दे ता है,ता क इसका
कुभाव अ धक फै लने न पाये

त शा म बाँ दा ब त ही उपयोगी बतलाया गया है
।वभ
वृ पर पायेजानेवाले बाँ
दा का अलग-अलग ता क उपयोग
है
।उन अलग-अलग वृ सेहण का अलग-अलग मुत भी
है
।समुचत मुत म ही न द व ध से उसेहण करना चा हए,तभी
समुचत लाभ ा त हो सकता है ।अ यथा नह ।वन प त त - स
केलए पहले अ याय म बतलाये गए सभी नदश का स यक् पालन
करना भी अ त आव यक है ।तभी अभी क ा त हो सके गी।
३. व भ बाँ
दा के योग
बाँ
दा करण म यहाँ
कु
छ खास बाँ
दा का वणन कया जा रहा
है
।कुछ ऐसे भी पौधेह, जनके मू
ल- वक-का आ द का भी ता क
उपयोग है।अतः उनक चचा भी इसी करण म ख ड वभाजन
करके कर दे
ना उ चत लग रहा है
।यथा-
कुश, नगुडी.पीपल,वट,उ बर इ या द।
(१) वदरी-बाँ
दा- वदरी सं कृत का श द है-इसका च लत
श द है
- बे
र।यह एक सु वा फल है ।इसम बाँदा सौभा य से ही मल
सकता है।य द कह द ख जाये , तो वाती न म व धवत नमंण
दे
कर घर लाना चा हए। व ध वही है जैसा क पू व अ याय म कहा
गया है
।एक दन पहले सं या समय अ त,फू ल,जल, सु पारी,पै
सा
आ द लेकर वृके समीप जाकर.पू व या उ र मुख खड़े होकर
ाथना करे
- "हेद वन प त दे व ! म अपने अभी स हे तुकल
ातः आकर आपको अपने घर ले चलूग
ँा।आप कृ पया मेरे
साथ अपने
द वभू तय स हत चलकर मे रा मनोरथ स कर। " – कहकर
अ त,फू ल आ द वह वृमू ल म छोड़ द।अगले दन ातः नान-
पू
जना द सेनवृहोकर कु छ औजार ले कर पास जाय।वृको
णाम कर, ऊपर चढ़कर, साथ लाये गए औजार से बाँदा को काट
ल।अब साथ लाये गए लाल या पीले कपड़े म लपेटकर ापू
वक
माथेसेलगाय।घर आकर दे व- तमा- थापन क सं त व ध से
थापन करके पं
चोपचार/षोडशोपचार पू जन कर।इसके बाद यारह
माला शव पंचा र एवंयारह माला दे वी-नवाण मं का
जप,हवन,तपण,माजन स प करके कम से कम एक ा ण और
एक द र नारायण को भोजन द णा स हत दान कर।इस कार
आपका काय पू रा हो गया।अब, जब भी आव यकता हो,उस पू जत
का म से थोड़ा अंश काट कर लाल या पीले कपड़े या तां
बेके
ताबीज म भरकर योग कर सकते ह।क याण भावना से ( ापार
नह ) कसी को देभी सकते ह।इस बदरी-बाँ
दा का एक मा काय है -
मनोनुकू
लता दान करना।या न कसी से कु
छ सहयोग ले ना हो,कोई
काय करवाना हो तो व धवत धारण करके उस के पास जाकर
अपने इ मं का मान सक जप करतेए ताव रखना चा हए।
आपका काय अव य स होगा।यह एक अनु
भू
त योग है

(२) व आर का बाँ दा- व आर एक सु प र चत पौधा है
.इसका
एक नाम लसौढ़ा भी है । इसका वृब त बड़ा नह होता।अम द
वगैरह क तरह ही होता है।गोल-गोल छोटेबेर क तरह इसके फल
होतेह।फल ल सेदार(लार क तरह) खाने म लगते ह।यही कारण है
क सु वा फल क े णी म इसे नह रखा जा सकता।हाँ, इसक
लकड़ी बड़ी ह क और चकनी होती है ।दे
हात म जु आठ(हल-
जुआठ) के
लए इसका उपयोग होता है

ब आर का बाँ
दा सौभा य सेकह द ख जाये तो पूव व णत
व ध से मघा न म घर लाकर पूव व ध से ही थापन-पूजन करके
लाल वा पीलेव म लपे ट कर तजोरी,कोष,भ डार,आलमारी,व से
म यथो चत थान दे
द। न य त पं चोपचार पू
जन करके ,कम सेकम
एक-एक माला शव पंचा र एवं दे
वी-नवाण मं का जप वह
बै
ठकर कर लया कर। यह ब आर-बाँ दा धन-समृ केलए अ त ु्
स है । जस घर म इस अ भमंत ब आर बाँ दा क न य पूजा
होती है
,वहाँ
सा ात्ल मी का वास होता है
।अ ा द भ डार सदा भरे
रहते ह।
(३) शरीष बाँदा- क वय का य शरीष एक सु प र चत
पौधा है
।इसकेवशाल पौधे म बड़ेसुदर-कोमल फू ल लगते ह।आठ-
दस च ल बी डे ढ़ च करीब चौड़ी, पतली सी फली म कु छ बीज होते
ह।इनका औषधीय योग भी होता है ।लक ड़याँ शीशम को भी मात
करने वाली होती ह, क तु वा तुशा म इसका उपयोग सवथा
व जत है। शरीष का को स ः वं श-नाशक कहा गया है ।म इसका
य दश ।ँ एक स जन नया मकान वनवाये , जसम अपनी
वा टका म सुलभ ा त शरीष क लक ड़य का कवाड़ लगवाये ।कई
अनु भवी-जानकार ने - यहाँतक क बढ़ई ने भी मना कया, क तु
जा हल- ज लोग तो कसी क सु नतेनह ,या कह भावी होनहार
उनक बु को स ले ता है
।भवन बनने के साल-भीतर ही एक मा
कुल द पक का नधन हो गया।आगे लाख य न के बावजूद स त त-
लाभ न कर सके ।
यहाँ मे
रा अभी शरीष का बाँ
दा है
।इसे
कह सं योग सेा त कर
ल तो, पू
वा भा पद न म पहले अ य योग म बतलायी गयी व ध
सेघर म लाकर थापन-पूजन कर रख ल।इसका फल सव समृ
है
।हर कार क च ता-क का नवारण करने वाला हैयह। वशे

अवसर पर इसका थोड़ा अंश च दन क तरह घसकर सर के ऊपर
म य भाग म तथा ललाट म तलक क भां त लगाना चा हए।
(४) बरगद का बाँदा- (क) बरगद(बर,वट) एक सु प र चत
वशालकाय पौधा है ।भगवान भोले नाथ का यह तीक भी है । शव क
तरह यह जटाजू ट धारी भी है।वा तुकरण म इस पौधे का भवन के
पूरब दशा म होना अ त शु भद माना गया है, क तु प म दशा म
उतना ही हा नकारक भी कहा गया है ।इसका बाँ दा य द सौभा य से
कह द ख जाय तो पू व व णत व ध से आ ान म, घर लाकर
थापन-पूजन करके रख ल। म,सं घष,युआ द म सदा वजयदायी
है
- शववृका बाँ दा। शारी रक सुर ा और श -व न म इसका
जोड़ नह ।सच पू छ तो यह अ त ु योग वाला वन प त है ।आयु वद म
इसके कई औषधीय योग मलते ह।उ बाँ दा को थापन-पू जन के
प ात् च दन क तरह घसकर गाय केध के साथ पीने सेतेज और
बल क बृ होती है ।बु
ढ़ापे को र भगाने क अ त ु मता है इसम।
(ख)वट केअ य योग- १. धन-वृ केलए- यू ँतो वट का
बीज ठ क वट-वृके नीचेनह उगता, क तुसौभा य से कह ऐसा
पौधा नजर आजाय तो कसी सोमवार या र वपु य योग केदन उसे
स मान पूवक घर ले आय। कसी अनु कू
ल जगह पर घर के आसपास
लगा द।पूरबमु
खी घर हो तो उसी दशा म लगाय,और थापना व ध
सेथापन-पू जन कर द।आगे , न य उसकेसमीप खड़े होकर कम से
कम एक माला शव पं चा र मंका जप कर लया कर।यह पौधा
जैसे
-जै से
बड़ा होगा,घर म समृ आते जाये
गी।
२.वरगद एक अजीब पौधा है
- थोड़ा पु
राना होने
पर हम दे
खते ह
क उसके तनेसेकु
छ जड़ नकल कर नीचे जमीन क ओर आने
लगती ह।कभी-कभी तो ये
जमीन म आकर नये वृका सृजन भी
कर देती ह।इन अवरोही जड़ को वरोह या वरजटा कहते ह। कसी
र वपु य योग म अथवा सोमवार को आदर पू वक इसे काट कर घर ले
आय। व धवत इसका पू जन कर। फर इसे छोटे
-छोटेटुकड़ म काट
कर सुर त रख द। न य इस से दातून कर।वरोह क कू ची( श)
बड़ी अ छ होती है ।इसके योग से दां
त क सभी बीमा रयाँर
होती ह। वरोह को सुखा कर चू ण बनाकर मं जन क तरह भी योग
करने से दं
त रोग म लाभ होता है । यात है क सभी वन प तय का
औषधीय गु ण है
, क तुउनम ता क गु ण भी यथा व ध यु कर
दया जाय तो अ त ुलाभ होता है ।आये दन शकायत होती है क
अमुक आयु व दक औष ध कारगर नह है ।इसके पीछे औषध- नमाण
या ही मुय प सेज मे वार है
।पहले ऋ ष-मु न इन सारी
व धय का योग करते थे-(वन प त हण सेनमाण तक), क तु
आज आधु नक क प नयाँ कसी तरह लाकर,कू ं
ट-चूर,पै
क कर बाजार
म ठेल देती ह।जड़ी-बूटय का वैा नक शोधन भले कर लेतेह ये
नमाता, क तु ता क गु ण कहाँ भर पाते ह।यही कारण है क
औष धयाँ नब ज होती जा रही ह।वन प त के औषधीय गु ण के
साथ ता क गु ण का सं योग भी कया जाय तो सोने म सुगध
आजाय।
(५) अ थ(पीपल) का बाँदा- (क) आम,पीपल,वट,पाकर,और गूलर
येप व पं
चप लव े णी म आते ह; जनम पाकड़,पीपल,और वट
मशः सृ केमू
ल ा- ब णु -महेश कहेजाते
ह।इन तीन पौध को
एक (एक ही थल म)लगाने का बड़ा ही शा ीय मह व है
- इसे
सं
कट कहतेह। संकट-वृ थापन,पू जन,दशन को बड़ा ही
धा मक काय माना गया है।येवृआसानी सेायः सभी जगह पाये
जाते ह। इनक वशे षता यह है क इनका बीज सामा य वातावरण म
उ प नह होते , यानी आप बीज लगाना चाह तो अं
कु रत नह
ह गे
; क तुइनके मीठेसु वा फल को प ी भ ण करते ह।उनके
उदर क उ मा से बीज को अं कुरत होने
क मता ा त होती
है
।इस कार प य के बीट (मल) सेा त बीज सहज ही उग आते
ह।
वा तु
शा म पीपल वृका थान भवन के प म दशा म
होना लाभकारी कहा गया है
,यानी वट के
ठ क वपरीत।वहाँ
अव थत होकर भवन-र ा का काय करता है पीपल का पौधा।
आयु वद एवं त थ म इनके सैकड़ योग भरे पड़ेह।यहाँ
हमारा सं ग पीपल वृका बाँ दा- ववे
चन है
।य द सौभा य सेपीपल
का बाँ
दा ा त हो जाय तो पू
व न द व धय से उसेअ नी न
म हण कर और व धवत थापन- पू जन परा त कसी इ छुक ी
को लोकक याणाथ दान कर।उसे गाय के
क चेध के साथ पीस
कर,गाय के ही क चेध के साथ पला द- र वपु य/गुपु य योग म
तो न त ही व या को भी सु दर- व थ सं
तान क ा त होगी।
यात है क यह अ या य ी दोष का भी अमोघ नवारण
है
।हाँ
,य द पुष म भी दोष हो तो उसका नवारण पहले कर लेना
चा हए।तभी ी पर उसक सफलता ा त होगी।यहाँ एक बात का
और भी यान रखना है क शव एवं श मं के साथ-साथ
संतानगोपालमंका भी पु र रण(या कम से कम चौआ लस हजार
जप) व धवत दशां श हवन, तपण,माजन,एवं पां
च वटु
क भोजन
द णा स हत होना अ त आव यक है

(ख)पीपल के अ य योग- १. ीकृण ने गीता केवभू तयोग म वयं
को पीपल कहा है।हम ऊपर कह आये ह क पीपल सा ात्ब णु का
व प है।एक पौरा णक सं ग केअनुसार श नवार को श नदे
व का
वास पीपल म होता है
।यही कारण हैक श न क स ता हे तु
श नवार को पीपल म गूड़ म त जल दान करने का वधान है
।यह
काय प मा भमु ख करना चा हये।सायंकाल पीपल-तल म द प-दान
सेभी श न स होते ह।
२. दे
व वग सेइतर- े
त,वैताल,भैरव,य णी आ द का भी य वृ
पीपल है ।येुयो नयाँ पीपल पर ायः वास करती ह।पीपल के जड़
म न य जलापण से येेत यो नयाँस होती ह। ह री त के
अनु सार दशगा तक पीपल के जड़ म यथा व ध जल डालने का
वधान है। कसी को कसी तरह क अ त र वाधा हो तो
न य, पीपल क पंचोपचार सेवा सेअव य लाभ होगा। कसी अनाड़ी
ओझा-गु नी-ता क के पास भटकने से अ छा हैक ा- व ास
पूवक पीपल क पू जा करे। कसी ज टल रोग-बीमारी क थ त म
(जहाँ डॉ टरी नदान और उपचार कारगर न हो रहा हो)पीपल के प े
पर सायंकाल म दही और साबू त उड़द रख कर पीपल के जड़ के
समीप रख द,और थोड़ा जल दे कर ाथना करे- हेभो! आप मे रा
संकट र कर।स ताह भर के इस योग से अ त ुलाभ होगा।मने
हजार योग कराकर दे खा है,शायद ही कभी नराश होना पड़ा हो।
३. धमशा म पीपल का गु
णगान भरा पड़ा है
।वैा नक से
भी पीपल ब त मह वपूण है
। कसी शु
भ मुत(पं
चां
ग म वृारोपण
मुत देखकर) म पीपल का वृलगाकर उसक से वा कर।जैसे-जै
से
वृबड़ा होगा आपक यश-क त,मान-स मान,धन-स पदा,आरो य
क वृ होती जायेगी।
४. द र ता नवारण केलए कसी अनु कूल पीपल वृ-तल म
शव लग(आठ अं गल
ुसे अ धक नह ) था पत कर,पं
चोपचार
पू
जनोपरा त न य यारह माला शव पंचा र मंका जप कर। थोड़े
ही दन म चम का रक लाभ होगा।
५. हनुम शन—सामा य नयम है क कसी वृके नीचेशयन नह
करना चा हए, वशेष कर रा म तो बलकु ल ही नह ; वशे

प र थ त म पीपल इसका अपवाद है। कसी प व वातावरण म लगे
पीपल वृके समीप(नीचे) बै
ठकर अठारह /इ क श दन तक
हनुमान क पूजा,जप,
तवन,एवं रा शयन आ द करने से य , या कम से कम व म
तो न त ही दशन हो सकता है ।इसकेलए कसी शु भन -
योगा द का वचार करकेकठोर चय पालन करतेए स तशती के
सरे(ल मी)बीज,आ द णव,अ त नमः तथा हनु मतेराम ताय- म
का यारह माला न य केहसाव से जप करने सेअभी स
अव य होती है।अनुान समा त पर षोडशोपचार पूजन स हत
रोट( सफ ध म सनेए गु ड़ म त आटे क मोट रोट के आकार
का शुधी म तला आ पकवान) का नै वेअपण करे ,तथा कु

जप का दशां श हवन-तपणा द केबाद, दो बटु
क और भ ु क का
द णा स हत भोजन भी अ नवाय है

(६) उ बर(गूलर) का बाँ
दा- यू
ँतो ऊपर गनाये गये
प चप लव म आम को छोड़ शे ष चार - (पीपल,वट,पाकर,गू लर)को
उ बर कहा जाता है
; क तुउ बर श द ढ़ हो गया है - गूलर केलए
ही। इसके
फल क स जी या पकौ ड़याँ भी बनायी जाती है ।उदर रोग
केलए गूलर अमोघ औष ध है । व भ रोग - खास कर धातुीणता
म यह ब त गु
णकारी है।नव ह म यह शुक सं वधा है।
उ बर का बाँ
दा रो हणी न म पू
व क थत व ध सेघर लाकर
थापन-पू
जन करनेके बाद तजोरी,ग ला,आलमारी म लाल या पीले
व म लपे ट कर रख द।यह धन-धा य क बृ केलए अ त ु
है
।इसेआप रसोई-घर म भी रख सकते ह।
उ बर के अ य योगः-(क) धनागम- र वपु य योग म(गुपु यम
हर गज नह ) गूलर का जड़ पू व व ध सेनमंण दे कर घर लाव,और
व धवत थापन-पू जन करके ,कम सेकम यारह माला देवी नवाण
मंका जप,दशां श होमा द स प करने केबाद लाल कपड़े म लपे ट
कर पू
जा- थल या कह और सु र त रख द। न य पंचोपचार पू
जन
भी करतेरह। यात है क थम दन चढाये गए ग ध-पुपा द को
यथावत छोड़ द,हटाय नह ।अ य दन वाला पू जन-साम ी अगले दन
हटाते
जाएं ।जड़ को हो सके तो चाँ
द म जड़वा कर भी था पत कर
सकते ह,तां
बा या अ य धातुनह ।इस योग से अ या शत प से
धनागम होते रहता है
।यह योग अपेाकृ त आसान और शतानु भू

है

(ख)स तान-सु ख- जन घर म स तान सु ख का अभाव हो-
(स तान न होता हो,हो-होकर मर जाता हो, जी वत होकर भी
अयो य और उप वी- प रवार केलए ःखदायी हो,रोगी हो) कसी
कारण से भी,वै
सी थ त म उ बर-मू ल का योग चम कारी लाभ
दे
ता है
।सारी बात योग संया- ‘क’ के समान ही रहे गी। अ तर मा
इतना ही क पूजन के बाद अपना अ भ ाय नवे दन करना न
भूल। न य ाथना कर क हे उ बर दे व मु
झे स तान-सु ख दान कर-
मे
रेस तान को सद् बु द... इ या द। योग के थोड़ेदन बाद से ही
आप व ण प रवतन या लाभ अनु भव करगे ।
(ग) े म, त ा और स मोहन- ायः दे खा जाता है
क हर कार से
ठ क-ठाक रहने पर भी, कसी- कसी को घर-प रवार-समाज म
समु चत े म-स मान नह मलता।ऐसी प र थ त म उ बर मू ल का
योग चम कारी लाभ दखलाता है ।( यान रहे
- आकांी का कोई
दोष न हो,वह अपने आप म ठ क हो,दोष अ य का ही
हो)।र वपु ययोग म उ बर-मू ल पू
वव णत व ध से घर लाकर थापन
पूजन करके आकांी को े म-पूवक दान करे ,और आशीष
द। यात है यह लोकक याण क भावना से ही कया जाय। कसी
अ य कारण और उ े य सेहर गज नह ।जड़ क मा ा वशे ष हो,
ता क कम से कम ततीस दन तक घसकर च दन क तरह माथे म
लगाया जा सके । याँ भी व द क तरह उपयोग कर लाभ पा
सकती ह।खासकर य को ही ऐसे मान सक क वशे ष प से
झेलने पड़ते ह। ा- व ास पूवक योग करने सेअव य लाभ
मलेगा।
(घ) सामा य सु
ख-शा त- उ व ध से उ बर मू
ल का हण- थापन
और न य पू जन घर म सु
ख और शा त दान करता है
।यह योग
नरापद और सुवधाजनक है।कोई भी इसका योग वयं के
लए कर सकता है।
(ङ) द ा ेय-साधना—भगवान द ा े य को ा- ब णु
-महेश का
संयु व प माना जाता है ।इनक पू जा- अचना-उपासना भगवान
आशु तोष क तरह शी फलदायी कही गयी है ।द ा ेयत म
व भ योग क चचा है । संगवश यहाँ उ बर- योग क चचा कर
रहा ।ँर वपु य योग म ार भ कर, कसी एका त और प व थान
म गूलर के पे
ड़ के नीचे
बै
ठकर द ा े य पंचा र(ऊँ दां
यु) मंका
सोलह माला जप इ क श दन तक करने सेचम का रक लाभ होता
है।जप से पू
व न य यथास भव पं चोपचार/षोडशोपचार पू जन करना
चा हए;और अनुान समा त क व ध अ य व धय जै सी ही होगी-
यानी दशांश हवन,तपण,माजना द,तथा दो बटु क एवंभ ु क भोजन
सद णा अ नवाय शत है । न य पू
जा म अ य साम ी के साथ-साथ
मलया ग र वे त च दन, वे
त पु प एवंकेवड़ा का इ आव यक है ।
साधक को उ र या पू
वमु
ख बै
ठना चा हए।
यही योग पू
व व ध से
उ बर-मू
ल को घर म लाकर भी कया जा
सकता है

(७) हर गार(हर सगार) का बाँ
दा – यह भी जाना पहचाना
पौधा है
। इसकेपौधेम यम कद-काठ के होतेह,और कटेकनार
वालेछोटे-छोटे
प ।े
खूबसूरत सफे द(नारं
गी डं
ठल यु) फू ल- सु
बह-
सुबह बृके चार ओर गोल घे रेम पसरे- भीनी-भीनी सु
ग ध वखे रते
मलगे।य द आसपास कह हर सगार का एक भी पौधा है ,तो सारा
वातावरण रजनीगं धा सा सु
वा सत हो जाता है
।हर सगार म बाँदा होना
अ त लभ है ।सं
योग से कह ा त हो जाय तो इसे ह ता न म पूव
न द व ध से घर लाकर,पूव व णत व ध सेथापन-पू जन कर ल
और ब से , तजोरी,आलमीरे म यथो चत थान पर रख छोड़।छोटे
टु
कड़े को ताबीज म भर कर भु जा अथवा गले म धारण भी कर सकते
ह।ज रतम द को आशीवाद व प दे भी सकते ह।अ य ल मी के
आम ण केलए यह बड़ा ही अ त ु्है

(८) थू
हर(सीज) का बाँदा- थू
हर एक जहरीला सा पौधा
है
।इसके सवाग म ध ही ध भरा होता है ।इसका ध आं ख केलए
बड़ा ही घातक है।वै
सेइसकेध को सु खा कर, गो लयाँवनाकर
उदरशू ल म वैलोग योग करते ह।यानी क ाणहर नह है ।इसक
लगभग डे ढ़ सौ जा तयाँ ह।सबके गु
णधम भ ह।गृ हवा टका म
इसकेव भ जा तय को खू बसू रती केलए लगाते ह।इसका
च लत नाम कैटस है ।मे
रा अभी ये सभी जा तयाँ नह ,ब क
इसक एक खास जा त है , जो एक-डे ढ़ च गोलाई वाला तना मूलक
होता है
।पु
राना होने
पर म यम वृके
आकार का हो जाता है।तब इसके तनेक मोटाई भी काफ अ धक
हो जाती है।इसक हरी कोमल प य को घी म भू ज कर रस नचोड़,

खांसी-जु काम म भी योग करतेह।इसका गुण कफ- न सारक
है
।पहले , दे
हात म सू तका गृ
ह के ार पर इसे
अव य था पत
कया जाता था।मा यता यह थी क इसके ार-र ण से भू
त- े
त का
भाव सू तकागृ
ह म नह होता।सू य जब ह ता न म आते
ह(बरसात केदन म) तब इसक गां ठ को सरकं डे केसाथ मलाकर
कसान अपने धान केखेत क र ा केलए मे ड़ पर था पत करते
ह।आज शहरी स यता म भी ायः घर म इसका छोटा पौधा गमल
म कैद नजर आजाता है।इससे वा तु दोष का भी नवारण होता
है
। व हत समय म थूहर का बाँ
दा पू
व न द व ध से घर
लाकर, था पत-पूजत कर रख ले ना चा हए। यु प म त व के
लए यह बड़ा ही अ त ुहै।वाक् पटुता,वाक्चातुरी, भाव,
स मोहन,मेघाश वधन, द शता, च तन श आ द म इसका
यथो चत योग करना चा हए। यान रहे - ये
सारेअ त ुगुण तत्
वन प त क व धवत मंसं योग और स से ही स भव है। वना
स यक्स के कोई चम कार ल त नह होगा।
(९) आम का बाँ
दा- आम का बाँदा अ त सु
लभ है। ायः आम
केपेड़ म यह मल ही जाता है
।इसके योग भी अपेाकृ त सहज
ह। कसी न वशे
ष का ब धन भी नह है । सफ र वपुय योग का
वचार करकेपू
व न द व ध से घर लाकर, थापन-पू जन कर कसी
प व थान म सु र त रख द।यह बाँदा वजयदायी है।
पुष को दां
यी भु
जा म एवं य को बांयी भु
जा म ताबीज म भर
कर धारण करना चा हए। कसी काय क सफलता हेतुइसका योग
कया जा सकता है।
(१०) कुश का बाँ
दा- कु
श दो-तीन फ ट ऊं चा ुप जातीय घास
है
, जसकेवना शु
भाशुभ कमकां ड अधू रा माना जाता है
।इसका
संकृ त नाम दभ है
। नव ह म के तुक यह स मधा है ।यू
ँतो इसम
बाँ
दा होना आ य जनक तीत होता है , क तु स चाई येहै क कभी-
कभी इसके पतले तन के बीच कुछ गां
ठ बन जाती ह,जो देखनेम
ा के छोटेदानेस श होती ह- त -शा म इसे ही कुश का
बाँ
दा कहा गया है
।यह लभ बाँ दा कदा चत ा त हो जाय तो भरणी
न म पूव न द व ध से घर लाकर थापन-पू जन करके पव
थान म रख द।इसक मता क नरं तरता केलए न य ी
महाल मी मंका कम से कम सोलह बार जप अव य कर लया
कर।इसका मुय गु ण है
- द र ता का नाश करना।इसके सब धम
एक और बात यान म रखने यो य हैक बाँदा अपने पू
रेप म हो-
कटा-फटा जरा भी नह ,अ यथा कारगर नह होगा।
कुश केअ य योग- वशे ष अवसर पर कु श क प य के तीन
टु
कड़ क बनी अं गठ
ू बां
य हाथ क अना मका अं गल
ुी म एवंदो
प य क दां य हाथ क अना मका म पहन कर कमकां ड- या
का वधान है
।सामा य तौर पर लोग ज रत के समय ही इसेबना ले
ते
ह,और काम के बाद वस जत कर दे तेह; खास कर ा ा द काय के
बाद का कु
शा तो वस जत कर ही देना चा हए।
कुशा हण मुत- कसी काय केलए कु शा हण का एक खास
मुत है- अ य दन म उखाड़ा गया कुशा मा उसी दन केलए यो य
होता है
। कसी मास क आमाव या को उखाड़ा गया कु श महीने
भर
तक काययो य होता है।पूणमा को उखाड़ा गया कुश प ह दन तक
काययो य होता है
; क तुभा मास केआमाव या को उखाड़ा गया
कुशा पू
रेबष भर केलए काययो य माना गया है।इस वशेष
आमाव या को कुशो पा टनी आमाव या कहा गया है
। ातः नान के
बाद कु
श लाने
केन म अ त, फू ल,जला द के साथ खोदनेकेलए
कोई औजार लेकर पौधे केसमीप जाकर, पू
जन- ाथना करके - ऊँ ँ
फट्वाहा मंो चारण करतेए ापू
वक कुश उखाड़ना चा हए।
इस कार घर लाए गए कु श सेआसन का नमाण कर।आसनी
तै
यार हो जाने
के बाद उस पर पू
वा भमु
ख बै
ठकर ी व णु के
पं
चा र मंका एक माला जप कर ल।जप करते समय भाव ये
रहे
क आसन क स हे तुजप कर रहा ।ँ
पौरा णक संग हैक ी
व णु जब पृ वी केउ ार केलए
महावराह का प धारण कए तब शरीर झाड़ने
के म म उनके
महाकाय से
झड़ा आ रोम ही पृवी
पर गर कर प व कुशा केप म अवत रत आ।कु शा क
प व ता का एक और पौरा णक सं ग है
- अपनी माता वनीता
को वमाता क क कै द से छु
ड़ाने केलए वैनते
य ग ड़जी ने अमृ

हरण कया, और शत के अनु सार सप के सम कुश पर ही अमृ
त-
कलश को रख कर चले गए।अमृ त-कलश के पश के कारण कुश
क प व ता और बढ़ गयी।अ तु ।
कु
श का आसन- यहाँ मे
रा अभी है कुशासन- इस सा धत-प व
कु
शासन पर बैठकर जो भी या करगे ,वह सामा य क अपेा
अ धक फलद होगी। यान रहे
- अपना सा धत यह आसन कसी अ य
को उपयोग न करने
द।वैसेपहले भी कह आए ह-
आसन,माला,व ा द कसी यो य व तु का अ य केलए वहार
न ष है ।अपना यो य व तुकसी को कदा प न द, और सरेका
यो य व तुकदा प न ल।साधक को इन बात का स ती से
पालन
करना चा हए।
प व ी(कुश क अं गठ
ू)- उ भा मास क कु शा को ट-
बां
टकर ( मशः तीन और दो प य के संयोग से) दो अं
गू
ठयाँबना
ल।इनम तीन प य वाली अं गठ
ू को बांय मु म,और दो प य
वाली अं
गठू को दां
यी मु म ब द कर सात मनट तक ी व णु
पं
चा र मंका जप कर ल।आगेकसी अनुान म इसे अना मका
अंगल
ुी म धारण कर, या करगे तो वह सामा य क अपेा अ धक
फलद होगी।
कु
श मूल क माला- व हत काल म हण कए गए कु श-मू
लक
माला(चौवन या एक सौआठ मूल) बनाकर कसी र वपु य/गुपुय
योग म ी ब णु पं
चा र मंका सोलह माला जप कर कर ल।जप से
पू
व माला को षोडशोपचार पूजत अव य कर लेना चा हए।अब इस
सा धत कुश-मा लका पर न य सोलह माला महाल मी मंका जप
पू
रेका तक मास म करने सेअ य ल मी क ा त होती है ।अ य
समय म भी ल मी मंका जपानुान इस मा लका पर अ य धक
फलद होता है।
कु
शासन,कुश माला,कु
श क प व ी का उपयोग कसी भी
अनुान म एक प से करना चा हए।इस स ब ध म कु
छ बात और
प कर ँ - सधवा ी को कु श का योग कदा प नह करना
चा हए। आसन केलए सफे द क बल का आसन,और ा क
माला ायः सव ा है ।प व ी क जगह सोने क अं गठ
ू धारण
करना चा हए।सोना स भव न हो तो चां
द -तां
बा सेभी काम चल
सकता है। सरी बात यह क आजकल बाजार म कु श केनाम पर
मलनेवाला आसन कु श हैही नह , युत वै
सा ही द खनेवाला "कास
" है
।वै
से
कु श कोई लभ पौधा नह है ।बात हैसफ पहचान क ।
(११) अनार का बाँ दा- (क) अनार एक सु वा फल है ।इसका
सं कृत नाम दा डम है।यह ख े और मीठे दो कार का होता है ।मे
रा
अभी - वाद नह , बाँ दा है
।दोन म कसी भी पौधे का हो,प रणाम
समान है ।त -शा म अनार का ब त मह व है । य लखने के
लए अनार के डंठल से बनायी ले खनी का उपयोग करने का वधान
है। जा -टोना-टोटका आ द म अनार केव श योग मलते
ह।अनार का बाँ दा घर म रहने सेइनसब कुभाव से बँ
चा जा सकता
है। येा न म अनार का बाँ दा पू
व न द व ध से घर लाकर
थापन-पू जन करने के बाद नौ हजार देवी नवाण से अ भम त
करके गृ
ह केमुय ार के ऊपरी चौखट म जड़ दे ना चा हए। इस
योग से हर कार क बाहरी बाधा का नवारण होता है ।वा तु
-
र ा के अ त र शरीर-र ा म भी इसका उपयोग कया जा सकता है
- तांबेकेताबीज म भर कर, पुष दां यी भुजा म,एवं ी बां य भु जा
म धारण कर।सु वधानुसार गले म भी धारण कया जा सकता
है।ताबीज का धागा सदा लाल ही रहे गा- इस बात का यान रख।
(ख) न भे
द से
अनार के बां
दे
का सरा योग भी है
।शेष पू
जा-
वधान पहले
क तरह ही है
।धन-धा य,वै
भव क कामना सेअनार के
बाँ
दा को पू
वाफा गुनी न म घर लाकर थापन-पूजन करना
चा हए।पूजन के बाद महाल मी मंका सोलह माला जप दशांश
होमा द अंग स हत अव य करे। फर तजोरी आ द म उसेथायी
थापर कर दे।समय-समय पर उसके व बदलते रहना चा हए।
(१२) क प थ (कत,कथ) का बाँ दा- यह गणेशजी का य फल
है- क प थ ज बू फल चा भ णम् ....एक अ त ुगुण है इस फल म-
हाथी को साबूत फल खला द। अगले दन उसके मल म सीधे समू चा
फल मल जाये गा, क तु फोड़कर दे खने पर आप है रान रह जायगे -
उसके अ दर का गू दा गायब रहे गा।ख े -मीठेवाद वाला कै थ देखने म
ठ क वे ल जै
सा होता है , सफ दोन के रं
ग म भेद है
।क प थ भू रेरंग
का होता है
।क प थ का बाँ दा कसी अ याधु नक बूलटे ूफ जैके ट से
जरा भी कम नह ,वशत क सही समय सही ढं ग सेइसेा त कर
व धवत तैयार कया जाय। कृ का न म क प थ-बाँदा को
यथा व ध घर लाकर पू व न द वधान सेथापन-पू जन करके पूजा-
थान म ही सु
र त रख द।जै सा क अ या य बाँ दा योग म कहा
गया है- शव-श म का यथो चत जप-होमा द व धवत स प
करना चा हए।इसके बाद कम से कम एक सौ आठ आवृ दे वी
कवच का पाठ करना भी इस योग म आव यक है । यात है क
जप-पाठ आ द सभी काय म दे व- तमा क तरह चौक वगै रह पर
ऊँ चा थान दे
कर इसेथा पत कर, अपनेसामने ही रखना
चा हए। योग के समय पु नः एक आवृ कवच और एक-एक माला
पूव यु दोन म का योग अव य कर ल।इसे ताबीज केप म
एक साथ दोन भु जा और गले म धारण करना चा हए।
(१३) स भालू -( नगु
डी)- स भालु
चावल क एक जा त है
-
राजभोग,दे
हरा न,वासमती आ द क तरह
क तु यहाँमे
रा व य वषय नगु डी है
।इसका एक सं कृ
त नाम
शेफा लका भी है ।शे
फा लका के पौधेम यम आकार- दस-प ह फ ट
के करीब होते ह, जनक प याँ अरहर क प य जै सी होती
ह, क तुरहर क पती हरे रं
ग क होती है ,जब क शे फा लका क
प य पर लगता है क कृ त नेधूल भरे चूनेका छड़काव कर
दया हो।इसके ह केनीले फू ल बड़े ही सुहावने लगतेह। बहार म इसे
स वार के नाम से जाना जाता है ।इसके और भी कई ेीय नाम ह-
मे
उडी,भूत के शी, स धुर,अथ स क,इ ाणी आ द।इ ाणी नाम से
मत नह होना चा हए, य क इ ायण या इ वा ण नाम का एक
अ य वन प त(लता) भी है । नगु डी बहार-झारखं ड केजंगल म
चुर मा ा म पाया जाता है । क तु इसका बाँ दा अ त लभ
है
।आयवद म नगु डी के पंचांग(फल,फू ल,मूल, वक,प ) का उपयोग
होता है
।यह उ म को ट का वे दनाहर है।त म इसके मू
ल और बाँ दा
ही उपयोगी ह।
(क) बाँ
दा- सौभा य सेकह इसका बाँ
दा द ख पड़ तो ह ता न म
पू
व व णत व ध से घर लाकर थापन-पूजन करकेतजोरी म थान
दे
द।आ थक समृ केलए यह अ त उपयोगी है ।अथ पाजन के नये-
नयेेद खने लगते ह,और थोड़ेयास म पया त सफलता भी ल ध
हो जाती है

ल- नगु
(ख)मू डी-मू
ल के
कई योग ह।इसकेहण केलए
र वपुय/गुपु य योग का वचार करकेपू व न द व ध से घर लाना
चा हए।मू
ल का थापन-पू जन भी पूववत अ नवाय शत है
।पू
जन के
बाद सु
र त रख दे ना चा हए,ता क आव यकतानु सार उपयोग कया
जा सके।यहाँ
बतलाये जा रहेसभी योग आयु वद य मत सेा
ह।इनका उपयोग वैसे भी कया जा सकता है; क तुता क व ध से
हत-सा धत वन प तय का अपना ही चम कार है ।
1. वर-शोधन- पू
व सा धत नगु डी-मू
ल को सुखाकर चू

वनाल।आधे च मच चूण को सु
सुम पानी केसाथ ातः-सायं
कु

दन तक ले तेरहनेसे कं
ठ- वर सु
रीला होगा।गलेक अय
सम या म भी इसेयोग कया जा सकता है ।
2.कृ
शता- नवारण- पू
व सा धत नगु डी-मू
ल को सु
खाकर चूण
वनाल।आधे च मच चूण को सुसु
म ध के साथ न य ातः-सायंकम
सेकम एकतीस दन तक ले नेसेपाचन- या ठ क होती है
,और बल
-वीय-ओज क वृ होती है ।इस चू
ण को आयुव दक अ य पुकर
योग केसाथ मला कर भी लया जा सकता है ।
3.र शोधन- व भ कार के चमरोग (दाद,खाज,खु
जली,ए जीमा
आ द स ाइश कार के ुकु)म पू व सा धत नगुडी-मू
ल को
सु
खाकर चूण वनाल।आधे च मच चूण को मधु के
साथ न य ातः-
सायं
छः महीने तक लागातार से
वन करनेसेसम त र दोष का
नवारण होता है

4.शा तदायी- पू
व क थत व ध सेनगु डी मू
ल का थापन-पू जन
करके घर म कसी प व थान पर रख द। न य त और कु छ नह
तो कम सेकम ापू
वक णाम ही कर लया कर।इस या से
अनेक लाभ ह गे- घर म शा त-सु
ख-समृ आये गी।टोने
-टोटकेसे
घर क र ा होगी।
5. ापार-वृ - व धवत हण कए गये नगु
डी मू
ल (वा पं
चाग)
को पीले
व म,पीले सरसो के
साथ बां
धकर कान के चौखट म
लटका दे
नेसेकेए ाहक का आगमन होने लगता है
। ापार म
अ या शत प सेवकास होने लगता है

र ा- नगु
6.सु डी-मू
ल को ताबीज म भर कर धारण करने
सेभूत-

त,जा -टोने
आ द से सुर ा होती है
।पहले
सेभाव- त रोगी भी
थोड़ेही दन म ठ क हो जाता है

7.गभर ा- जस ी को ायः गभपात हो जाता हो,उसे पूव सा धत
नगु डी-मू
ल को पुनः गभर ा मंसेअ भमंत करके चां
द या तां
वे
केताबीज म भर कर, लाल धागेम परोकर र व या मं
गलवार को
धारण करा दे
ना चा हए।
8. नगुडी-क प- त ा मक आयु वद म नगु डी कायाक प का
वधान है। पू
व सा धत नगु डी-मू
ल को सुखाकर चू
ण वनाल।आधे
च मच चूण को बकरी केमूके साथ ातः-सायं एक बष तक सेवन
करने से
अ त ुचम कार हो सकता है- यह या सफ औषध से वन
नह ,अ पतुएक साधना क तरह है।पूरेसमय शु-सा वक जीवन
नवाह करतेए शव पं चा र एवंदेवी नवाण जप का अनुान भी
चलता रहे
गा।सामा य गृ
ह थ जीवन म मयादा पूवक रहतेए भी एक
बष क यह साधना- क प या क जा सकती है ।कोई पू
ण चय
पू
वक करे तो सोने
म सुग ध जै
सी बात होगी।इस कायाक प के
चम कार का वणन कतना ँ कया जाय थोड़ा है ।आज के समय म
आ यजनक ही कहा जा सकता है - शरीर इतना शुहो जाता हैक
श - त भन,जल- त भन,अ न- त भन आ द सारी याय- खे चरी
व ा क तरह स भव होजाती ह।
(१४) वदारीक द- वदारीक द एक जं गली लता है, जसके
क द(गां
ठदार मू
ल) का योग श वधक औषधी के प म कया
जाता है
।इसक प याँ पान क तरह होती ह,और कं द- वाराही कं

क तरह( क तु र यदार नह )होते ह। वाद म थोड़ा कड़वा होता है ।यू

तो कसी लता म बाँदा का होना अस भव सा है , फर भी जं गल म
भटककर अ वे षण करने से इस लता का एक खास प मल सकता
है
- जसके ल रय म कह -कह उभरी यी गां ठे(एक कार क
वकृ त) मल जाये गी- यही वदारीबाँदा है
।इसेपूव व णत व ध से
पू
वाफा गुनन म घर लाकर थापन-पू जन करके पू
जा- थल या
तजोरी म थायी प सेथान दे द।धन-वृ केलए बड़ा ही सरल
योग हैयह।
(१५) कपास,रो हत,शाखोट,अशोक,और व व- बाँ
दा करण के
ये
अ त ुर न ह।इनकेहण-काल-भे द ह- मशः
भरणी,अनु राधा,मृ
ग शरा,उ राषाढ़ और अ नी न ,शे ष या
और योग वलकु ल समान ह। क तु संत नदशानुसार इसके पूण
मंरह य को प नह कर पा रहा ।ँ वै
सेभी आज केवकृ त-व ल
प रवेश म इस तरह क श य क चचा सवथा अनु चत ही है, य
क न त है क जान ले नेके बाद इनका पयोग ही
होगा.स पयोग होने का सवाल ही नह है ।आँखर कोई अ य होकर
या करेगा? मु
झे पू
रा भरोसा हैसंत केवचन पर,और त के
स ा त पर भी।हाँ ,इसके एक अ य योग क चचा यहाँ करना
अ ासं गक नह होगा- इन बाँ दा को व धवत सं कार करके , शु
गोरोचन के साथ म ण करे ,और अं जन क तरह आँ ख म लगाकर
भूम वदारण मंका योग करने सेभू
गभ-त का ान होता
है
।यहाँयह यान रखना आव यक है क भू म वदारण मंक
साधना(सवा लाख जप)पहले सु वधा नु
सार कर लेनी चा हए,तभी
समय पर योग करने पर कारगर होगा।
(१६) न ब का बाँदा- आम क तरह ही नीम का बाँदा भी सहज
ा त है
।आयु वद म नीम को ब त उपयोगी माना गया है।त शा
म इसका उपयोग षट् कम (म तीनअधम) केलए कया जाता
है
।इसकेहण केलए दो न कहे गए ह- उ े य-भेद से। सफ

पण केलए येा और थापन केलए आ ा न का चयन
करना चा हए।अधम ता क तो दोन ही रखते ह।चूं
क इसका योग
अधम काय केलए ही है ,अतः योग सेबचना चा हए,और सबसे
बड़ी बात येहैक एकप ीय( नज वाथ वस) आप ऐसा करते ह तो
बष भर के अ दर ही आपको इसका प रणाम भु गतना पड़गा।अतः
योग सेपू
व सौ बार सोच ल क आप जसे सतानेकेलए यह योग
करनेजा रहेह, या वह सच म दोषी है
?य द सच म दोषी है
तो इस
त से उसेसजा अव य मले गी,और य द नद ष है,तो सजा सौगु
ना
होकर योग कता को भोगनी पड़े गी।वै
सेयह योग है वलकुल
अमोघ।
पूव न द वधान से नीम केबाँदा को ा त करे ,और आगे क
सारी याय- थापन-पूजना द पुतक केार भ म वतलायी गयी
व ध से स प कर।फक इतना ही है क बाक सारेयोग घर म कए
जाने का नदश है,जब क इस या क पू री साधना घर म नह
करनी है- अनुकू
ल कसी अ य सु र त थान म करनी है । या पू
री
हो जानेपर भी तै
यार सा धत न बबाँदा को घर म लाकर रखना भी
नह है,अ यथा वपरीत प रणाम ह गे। थापन पू जन के बाद चामु
डा
मंका कम से कम छतीस हजार,और अ धक से अ धक सवा लाख
जप करना चा हये - दशां
श या स हत।
ऊपर दो हण-न क चचा है । येा हत बां दा को चू

करकेवरोधी केशरीर पर ( वशेष कर सर पर) छड़क दे नेक बात
है
,तो आ ा हत बांदा को श ु केघर म(स पूण बांदा) कसी तरह
थापन का वधान है
- यानी उसके घर म गाड़ दे- खास कर उसके
शयन-क म सा धत बां दा क उप थ त अ नवाय शत है , य क घर
केकसी अ य भाग म रहने पर प रवार केअ य लोग पर ही भाव
पड़कर रह जाये
गा,खास अछूता ही रहे
गा। यात है क योग
समय के सं
क प का भी यान रखना है - आप उसके साथ करना या
चाहते
ह?सजा कौन सी दे
रहे
ह?
अ य योग- नीम के बीज सेनकाला गया ते ल वभ
औष धय म यु होता है । कसी र वपु य योग म नीम केते
ल को
नौ हजार चामु
डामंसे अ भमंत करकेकसी पा म रख दे । फर
उस पा म वरोधी क त वीर(नाम पता स हत लखकर)डु बो कर
कह कसी भी नीम के पेड़ पर टां
ग द- कालेकपड़े म बां

कर।आपका अभी पू रा होगा थोड़ेही दन म- जो संक प साधे रहगे
- योग म।
(१७) वच – आयु वद म मेधा-वधक औष धय म वच क स
है।मुयतः यह दो कार का होता है- मीठा और कड़वा।कड़वेवाद
वालेवच को घोड़वच भी कहते ह।यह क चत जहरीला भी होता है
-
यानी अ धक मा ा म से
वन ाण-घातक हो सकता है ।स ः ा हरा
तु डी,स ः ा करी वचाः –आष-वचन इस बात को गत करता है
क वच आशु गण
ुकारी है- खासकर ा के मामले
म। नायुत पर
बड़ा अ छा भाव है वच का।सं गीत े मय केलए
वच,मुलहठ ,कुलं
जन आ द स ः आशीष ह- य द इ छत को कल
नाद वरम्, पव माघ चतुदश कृण
दनम्।अ क,भ क,पीतरसं ,वच,वाकु च, ा ी,स घृ
तम्।।
इस चे
तना-साधक वन प त को हण करने केलए अ य
वन प तय क तरह न का आधार न ले
कर सू
या द हण का
आधार लेना है
;यानी दोन म सेकसी भी हणकाल म- जो
अपेाकृत ल बा हो। शे ष बात- थापन-पू
जन वधान पूव न द ही
रहगे।हाँ
, थापनोपरा त वागी री मंका कम सेकम यारह माला
जप त दन केहसाब से २१ दन तक करना चा हए,साथ ही
दशांश व ध से होमा द कम भी स प करने के प ात्यह योग-
यो य हो जाता है
।वच का बांदा अथवा वच क गां
ठ(कुछ भी) इसी
भांत सा धत करके योग करना चा हए।
वच का चू
ण वनाकर आधा च मच चू ण मधु या गोघृ
त के
साथ ातः
लागातार इ क श दन तक से
-सायं वन करने से हर कार क
वरमं
डलीय ा धयाँ - हकलाहट, वरभंग,उ चारण-दोष, ज ा-क
आ द ठ क होकर वर मधु र बन जाता है
। साथ ही अ त ु प से
वाक्
- स भी होती है। न य का औषध-से वन य द सू य दय से
पू
व कया
जाय तो लाभ और भी अ धक हो सकता है ।
(१८) गु ा(घु घ
ंची)- गु ा एक जं गली लता है। चर म ,र ी आ द
इसके अ य नाम ह।इसके जड़ को ही मु लहठ कहते ह।बरसात के
ार भ म ही येअंकुरत हो जाता है
,और फा गु न आते -आते इसक
प यां मु
रझाने लगती ह।गम म तो द खना भी मुकल है ।अ दर म
जड़ पुहोती रहती ह,ऊपर क लता ायः सू ख जाती ह।इसक
प याँ इमली क प य जै सी होती ह।सु दर गुलाबी फूल बड़ेही
मोहक लगते ह। फल गु छ म लगते ह,जो थोड़ी चपट , क तु छोटे
मटर जै सी होती ह।आ न महीने म फू ल लगते ह, अगहन म फ लयाँ
नजर आने लगती ह।फा गु न म पक कर तै यार हो जाती ह।इसी समय
र वपु य योग देख कर इ ह हण करना चा हए,अ यथा य द वल ब
आ तो फर फ लयां चटक कर वखर जायगी।
गु ा क तीन जा तयां तो म दे
ख चुका -ँवे त,र ,और
गु
लाबी।काफ दन तक मे रेगृ
हवा टका म थी यह लता।इसके
अ त र पीत और याम सफ सु नने म आया है।वैसेत शा म
वेत का अ धक मह व है
।पुराने
समय म इसके सुदर बीज से ही
सोनार लोग माप-तौल का काम करते थे
।माप का ‘र ी’ श द इसी का
ोतक है।
भगवान ी कृण का यह अ तशय य वन प त है ।वे
वै
जय ती और कौ तु
भ के साथ गु ा क माला भी धारण करते
थे
।गु ा क ेता का यह माण- नवे यो य य गु णंकष,सतं
सदा न द त नाऽ च म्।यथा कराती क रकुभ ल धः,मुा
प र य य वभ त गु ाम्।।- यथेहै

वे
त केअभाव म र का योग कया जासकता है - ऐसा त -
थ म वणन है
,और यह भेद सफ बीज केलए ही है ।गु ा-मू ल
यानी येीमधु(मुलहठ )जे
ठ मध केलए रं
ग भेद क बात नह है ।
जेठ मधुका योग आयु वद म महाकफ न सारक औष ध केप म
होता है
।यहाँसंगवश म एक और बात बतला ँक गु ामू ल-
मुलहठ उ मको ट का क टाणुनाशक(antibiotic) भी है।शरीर म
रोग तरोधी मता केवकास और पोषण म भी इसका योगदान
है
।Antihistamine भी है
यह। वरमं
डल पर इसका अ त ु भाव
है

हण-मुत- कसी भी काय क सफलता शु ,और
याशु पर नभर है
। शु म ही सही मुत क बात आती
है
।गु ा-बीज अथवा मू ल हण केलए काय-भे द सेकई शुभ मुत
सु
झाये गए ह-यथा- र वपुय योग,शु-रो हणी योग,कृणा मीह त
योग,कृणचतु दशी वा त योग,कृणचतु दशीशत भषा योग,( क चत
मत से गुपुय योग भी)।उ ववरण के अनुसार थ त न बन रही
हो तो वशेष थ त म स योग,अमृ त स योग,सवाथ स
योगा द भी हण कए जा सकते ह।य द उ कसी भी काल म
सू
यच ा द हण योग भी मल जाय तो फर या कहना।
गु ा केता क योग- १.अलौ कक श -दशन- जड़वाद
भौ तक व ान केयु
ग म ऐसी बात करना मा उपहास का वषय हो
सकता है
, क तुज ह त क आ मा का अनु भव और ान हैउनके
लए
कुछ भी आ य नह ।पू व व णत व धय का स यक् पालन करते
ए घु

ंची मू
ल को सा धत करने केबाद शुमधु के साथ घस कर
आं ख म अं जन क तरह लगा ले । यात है क सा धत मूल का पु नः
योग करनेकेलए भी उ मुत का वचार करना आव यक
है।कुछ नह तो र वपु य योग,या फर कम सेकम मं गलवार ही
सही।अं जन लगा कर कसी एका त थान म एका ता पू वक बै ठ कर
बस यह च तना करेक "मु झे कसी अलौ कक श का दशन
हो।"आपका च तन जतना गहन होगा,दशन भी उतना ही शी होगा-
( मनट से घं
ट के बीच)।यहाँयह प कर दे ना भी उ चत हैक ये
अलौ कक श याँ सा वक,राजस,तामस कु छ भी हो सकती है ।अतः
साहसी ही यह योग कर। सरी बात यह क यह पहले से ही
न त कर ल क उनके आगमन के बाद आपको उनसेया सं वाद
करना है- कस उ े य सेआपने
उ ह आ त कया...आप उनसे
चाहते
या ह....आ द...आ द।
इस स ब ध म एक पु रानी घटना का ज करना समयो चत
लग रहा है।बात अब से कोई चालीस साल पहले क है।मेरेपतृ
उन दन कलक े केबड़ा बाजार,वाराणसी घोष ट म कराये के
एक जीणशीण मकान म रहते थे।उनके पास पा डु ल पय का कु छ
धरोहर था, जसे बरसात केबाद धू प से
वन करा रहे थे
- खुली छत
पर,और वह चटाई वछाकर व ाम भी कर रहे थे
।आं ख लग गयी
थी।इसी बीच हवा के झ के सेकुछप े उड़कर पास के सीढ़ पर चले
गये, ज ह एक अ य कराये दार क पुी ने उठा लया।सं योग से
वह
सामा य सं कृत क जानकार थी।प े को पाकर उसनेयोग साध
लया,और पू री सफलता भी मल गयी। क तु बात बष बाद तब खु ली
जब अधरा को आ त कसी तामसी श का शकार होकर वह
च लाई।लोग दौड़ पड़े ।भय से थरथर कां पती लड़क ने अपनी
नादानी और मू खता का वयान कया,और पा डु ल प का वह पृ
पतृ के चरण म रखकर दया क भीख मां गी।इस घटना को लख
कर साधक को भयभीत नह , सावधान करना चाह रहा ।ँ
२.गुत धना द दशन- सा धत गु ामूल को अं कोल(अंकोल के
अ य योग अलग अ याय म दे ख) के ते
ल के साथ घसकर आँ ख म
अंजन लगाने सेकुछ काल केलए द सी ा त हो जाती
है
, जससे साधक जमीन म गड़े- छपेखजाने का ान ा त कर
सकता है ।यह योग करने केलए पु नः योगा द का वचार करतेए
भू म वदारण मंक अलग से साधना कर लेनी चा हए।जीवन म एक
बार भी जस मंका पुर रण कर लया जाय तो फर- फर योग
करने केलए वशे ष क ठनाई नह होती,वस समय-समय पर
( हणा द वशेष अवसर पर)पु नजागृ
त करते रहना चा हए। सरी
बात यह क मंक मयादा का यान रखना भी ज री है । कसी भी
प र थ त म(लोभ-मोह वस) पयोग न हो।इस योग को अ य
भूगभ य ान(जल,श या द) केलए भी कया जा सकता है ।
३.मृ
त-चैत य योग- अपने आप म यह अ त आ यजनक है , क तु
त क अमोघ श य पर अ व ास नह करना चा हए।य द कह
असफलता द ख पड़े तो साधक म ुटवस,न क स ा त म खोट
है
।गुलाब के फू
ल केवरस म सा धत गु ामू ल को घस कर कसी
त काल मृत के शरीर पर सवाग( वशे
ष कर सम त ना ड़य पर)लेप
कर द तो कुछ काल केलए मृ तक क चेतना वापस लौट सकती
है
। क तुयहाँ वचारणीय यह है क ऐसे णक काय- स केलए
इतना कठोर योग करके हम या ल ध करगे? ता क श का
पयोग ही तो इसे
कहगे ।
४.सुर ा कवच- ावहा रक सेयह काफ क ठन लग रहा
है
, क तुयोग है- सहनी केध म सा धत गु ामू ल को पया त
मा ा म घसकर,एका त म न न होकर पूरे
शरीर पर ले
प करके, पु
नः
कपड़े पहन कर युम जाये तो उस पर कसी कार का श ाघात
स भव नह है ।
५. वष नवारण- सा धत गु ा-मू
ल को जल के
साथ पीस कर
पलानेसेव भ कार केवष का नवारण होता है, क तुयान रहे
यह योग सप- वष पर कारगर नह है

६.स तान दायी- सा धत गु ा-मू
ल को तां
बे
केताबीज म भरकर
कमर म बां
धनेसेनराश याँ भी स तान-लाभ कर सकती ह।
७. वजभं
ग- नवारक(पु
स व-वधक)- भस केघी म सा धत
गु ामूल को घस कर पुषे य पर महीने
भर लेप करनेसेव भ
इ य वकार न होकर उ ज ेना आती है
,और शु- त भन भी होता
है

८. बल-वधक- मु
लहठ का चू ण एक-एक च मच न य ातः-सायं
गो ध के साथ से
वन करने सेओज- बल-वीय क अकू त वृ होती
है
। तल के ते
ल केसाथ घसकर पू रे
वदन म ले
प करने
सेभी
का तमय सु दर शरीर होता है

९. ान-व न- बकरी केध म मुलहठ (गु ामू
ल) को घसकर
दोन हथे लय म ल बेसमय तक लेप करने
सेबौ क वकास होकर
धारणा श वक सत होती है

१०.श ु-दमन- रज वला के रज म गु ामू ल को घसकर आं ख म
अं
जन कर जस श ु केसामने जाये,वह न त ही पराभू
त हो,भाग
खड़ा हो।व तुतः इस योग के भाव से श ु
भाव से पात करते ही
दे
खनेवाले को म हो जाता है
।उ भाव काले तल केतेलम
मु
लहठ घसकर अं जन करने सेभी हो सकता है
, क तुभाव थोड़ा
कम द खेगा।
११. कु- नवारण- तीसी(अलसी)के
तेल म गु ामू
ल को
घसकर भा वत अं
ग म ले
प करने
सेग लत कु म लाभ होता है

१२.मारण योग- सा धत गु ामू ल को शुगोरोचन(एक अ त
लभ जां गम )के
साथ पीस कर,अनार क ले खनी से भुज पर
मृयु-यं(सा य नाम यु) लखकर मशान भू म म था पत करके
एक माला मारण-मंका जप करने मा से ही श ुक बड़ी ददनाक
मृयु होती है
- ऐसा त शा का वचन है । पादपूत म म इन बात
क चचा मा कए दे रहा ।ँआज के युग म आ म नयंण का सवदा
अभाव सा है ,अतः यंऔर मंको गत भर कर दे ना ही उ चत
है
।वै
से भी स चे साधक को इन सब योग म अ भ च नह
होती,और आड बरी के हाथ घातक ह थयार देना बु म ा
नह ।अ तु ।
(१९) आं वला- आंवला एक सु प र चत पौधा है
।इसके सामा य गु

सेआम आदमी भी प र चत है ।इसके पौधेायः कमोवे स सभी जगह
पायेजाते ह, क तुआं मलेम बाँ
दा का पाया जाना परम सौभा योदय
होने
के समान है ।य द द ख जाय कह तो पू व न द व ध से
आ े षा न म घर लाकर व धवत थापन-पू जनोपरा त धारण
करना चा हए।यह एक अ त ुसु र ाकवच का काम करता है । कसी
कार के अ -श का इस कवच पर भाव नह ड़ता।
-----()()()()----
४.बाँ
दा तलकःएक व श योग
ऊपर के सं
ग म व भ वन प तय के
बां
दा का प रचय
और उनका ता क योग यथास भव प करने का यास कया
गया।बां
दा के साथ-साथ उनके जड़ का भी ता क योग
सं
गवश साथ म ही देदया गया है ।इस वत अ याय म कु छ खास
तरह केतलक क चचा क जा रही है ।यू

तो सामा य नयमानु
सार
जन- जन वन प तय (बां दा और मूला द) का जो-जो योग बतलाया
गया है
,उसी भां
त उन-उन वन प तय का ायः तलक योग भी
कया ही जा सकता है- अपने वु - ववेक से। फर भी कु
छ वश
योग क चचा और भी खु लेतौर पर कर दे
ना उपयु लग रहा है।
पूव व णत व ध से हत,पू जत,सा धत शाखोट( सहोर) वृके
बां
दा और तद प ही आम का बां दा तै
यार करले ,साथ ही
गोख (कं टक वन प त) ताजी या जड़ी-बू ट क कान से लाकर
समान मा ा म तीन को मलाकर चू ण बना ले ।अब इस म त चू ण
का चतु थाश सधव का भी म ण कर दे । यात है क यह म ण
काय पु नः र वपु य योग वचार करके ही करे,अ य काल म नह ।इस
भांत चूण तै यार करके एक बष तक थायी रखा भी जा सकता
है
।चारो वन प तय म ण तै यार हो जाने पर कम से कम यारह
माला शव पं चा र और नौ माला श नवाण म का जप अव य
कर ले ना चा हए। योग के समय बकरी केध के साथ लेप बना कर
माथे पर पु ड क भां त लगाले।इसका न य योग भी कया जा
सकता है ,और वशे ष अवसर पर भी।इस ले प का साधक यान
लगाकर बड़े सहज प से जो चाहेदेख सकता है ।जैसे- आपके पास
कोई ले
कर आया क मे रा पुघर से भाग गया हैया लापता
है
।अभी वह कहाँ कस थ त म है ? इस ले प का नय मत साधक
वस पल भर केयान थ होगा,अपने इ दे व का यान करे गा,और
उ े य नवे
दन करेगा। ण भर म ही चल च क भां त
वतमान(इ छत) घटना- म उसके सामने घूम जायेगा, जसे पृ
छक
को बता कर लोक क याण का मह वपू ण काय स प कर सकता
है
।पर तुयान रहे
- इस व ा का कदा प पयोग न करे ,अ यथा घोर
वप का सामना करना पड़ सकता है ।मेरेकुटु
ब म एक ऐसे साधक
ह(अभी वतमान म भी)जो इस तरह क अने क साधनाय कर चु के
ह। क तुअफसोस क त शा क आधी बात को ही उ ह ने
अंगीकार कया।लाख हदायत के बावजू द नयम क ध जयां उड़ा
द ,और फर प रणाम भी सामने ही हा जर आ।त को ापार
बना कर जो दौलत और सोहरत उ ह ने हा सल कया सब कु छ पानी
के बु
दबु
देसा कु
छ ही दन म लु त हो गया।प नी गु जरी,बेटा
गु
जरा,ब गुजरी,पोता भी गुजरा,अपना कहा जाने वाला शरीर भी
अचानक नाकाम होने लगा...तब थोड़ी आँ ख खु ली,पर या बषा जब
कृ ष सु
खानी?बड़ेमुकल से अब थोड़े स भले ह।अतः
सावधान।त ब त कु छ दे सकता है,तो सबकु छ छ न भी सकता है ।

पु
याकवन प तत म्
6
५. ा
मानव जा त केलए वन प त जगत का एक अ त ु्उपहार है -
ा ।इसके गुण का कतना ँ वणन कया जाय, थोड़ा ही होगा।
‘ ’ और ‘अ ’ क सं ध से
बना श द ा क उ प के कई
पौरा णक सं ग ह। ी शव पु राण म इसका वशद वणन है । वशेष
ज ासु उस मूल थान पर इसे दे
ख सकते ह।अ या य थ म भी
इसक पया त चचा है ।जप साधना म यु मा लका म इसे सव े
थान ा त है ।वैसेतो अलग-अलग मं केलए अलग-अलग
माला का वधान है , क तु इससे ा क सव ा हता म कमी नह
आयी है ।सोने और हीरे-मा णक क माला से भी उ म माना गया
हैइसे।इसक उ प शव के नेसे मानी गयी है
।ने- अ न त व
का वोधक है - आलोक इसका गु ण है।ऊ मा इसक श
है
।पंचत मा ा म वरीय थान पर है यह।आहार म म लगभग
अ सी तशत नेमाग से ही होता है
।य द आपने ा को ‘ समझ
लया ’ तो समझ क शव का अ सी तशत आपने पा लया,अब
थोड़ा ही शेष रहा आगे जाना।मे रा यह कथन कु छ अजीब लग रहा
होगा, क तु अ रशः स य है यह।इन सबक गहराइय म उतरगे तो
ा क मह ा और भी ल त होगी। शव क ा त केलए ा
का आलोक अ नवाय है ।
ा एक ब बषायु म यम काय वृके प रप व फल
का गु
ठली है।इसका फल गू लर क तरह गोल होता है ,जो गुछ म
काफ मा ा म फलता है ।अ तर यह हैक गू लर मोटे तने म नकले
पुप-त तु म फलता है ,और ा अ य पौध क तरह टह नय क
फुनगी पर,जो गोल काला जामु
न सा गुे
दार होता है
, क तु जामु

वाली कोमलता के वजाय कठोरता होती हैइसके गु ेम।प रप व
फल वतः गर पड़ते ह- नमौ लय क तरह।उ ह बटोर कर जल म
सड़ने को लए डाल दया जाता है ।कु
छ काल बाद अधसड़े गु को
हटाकर अ दर क खु रदरी गु
ठली ा त कर ली जाती है
- यही प व
ा का दाना है। पू
ण प रप व दानेही गु
ण-कम केवचार से उ म
होते
ह।क चे फल सेा त दाने (गु
ठली) केरं
ग और गु ण म पया त
अ तर होता है
।इतना ही नह कुछ अ य जंगली गु
ठ लय केमलावट
भी आसानी से हो जातेह- अप व गुठ लय म।वैसेा त और
उप ब ध के बीच भारी अ तर होने
के कारण मलावट का अ छा
अवसर है।
इसका ा त थान इ डोने सया,ने
पाल,मलाया,वमा आ द ह।वै
से
भारत केभी कई भाग म शौक न लोग अपनी वा टका म लगाकर
गौरवा वत होते
ह।इधर भारत सरकार क भी कृपा यी है- इसके
ावसा यक उ पादन के यास हो रहे
ह।
आकार भे द से ा क कई जा तयाँ ह।मुय प से तो ा
गोलाकार ही होता है, क तुकुछ ल बे,चपटे,च ाकार,अ डाकार
आ द व प भी पाये जातेह।दान का आकार गोल मच के आकार
सेलेकर छोट मटर,बड़ी मटर,बे र,आंवलेतक का पाया जाता है ।लोक
मा यता हैक छोटे दाने उ म होते ह। क तु बात ऐसी नह
है
।गुणव ा क से छोटेआकार का कोई वशे ष मह व नह
है
।पर तुइधर कु छ दन से प म ने इस पर कृ पाकर द है ,साथ ही
अपने ही ापारी सं त ने इसेलभ सा बना दया है - कु
छ नयी-नयी
बात कह कर। और जब कोई तु छ व तुभी ीमान ारा अपनायी
जानेलगगी तो आमजन केलए उसका लभ हो जाना वाभा वक
है
।हमारेपु
रानेसंत- ऋ ष-मह ष इसे शरीर केव भ भाग –
कंठ,जू
ड़ा,वाजू,कलायी आ द म धारण करते थे- वेबड़े आकार के ही
आ करते थे
। क तुअमीर के सु
कुमार शरीर छल न जाय खु रदरे
बड़ेदान सेइस लए छोटेदान का आधु नक सं
तो नेव ापन कर
डाला।अ तु
।सुवधा क सेछोटेदानेपहननेकेलए और बड़े
दाने
जप केलए उपयु कहे जा सकते ह।ब त बड़े दाने
- बे
र या
आंवले से
बड़ेतो जप केलए भी उपयु नह ही कहे जा सकते ।
आकार केस ब ध म एक खास बात और है
क जस पौधे

फल का जो आकार है
,हमे
शा वही रहे
गा।
थोड़ा ब त अ तर भलेहो जाय।यानी छोटेआं
वलेजैसेफल देने वाले
पौधेबड़ेआंवलेजैसेफल कदा प नह दे सकते
।(आंवले म भी यही
बात है
)इस कार चार-पां
च आकार वाले पौधे
होतेह।हाँ
,इन आकार
केसाथ-साथ व भ मु खभे द भी है

अतः ‘मुखभेद’ क चचा करते ह। ा के खुरदरे
दान पर
दे
शा तर रेखा क तरह- ऊपर से नीचेकु
छ धा रयाँ
होती ह- एक से
अनेक तक।शा म इ क स धा रय तक का उ ले ख मलता है ।इन
धा रय को ही मु
ख कहते ह- जतनी धा रयाँउतनेमु
ख।चपटे आकार
वालेदो मुखी,और गोल आकार वाले पां
च मु
खी ा क भरमार
है
।इनम नकली क बात नह है ।हाँ
पु-अपुदान को पहचानना
आव यक है ।छः मु
खी भी ायः सहज ा त ह। क तु शेष मु
ख-संया
वालेका सवथा अभाव है।वाजार क मांग को दे
खतेए धू त-
ापारी कृम(लक ड़य पर खु दाई करके,अथवा पां
च को
यथास भव सात,नौ आ द मुख बनाकर लोग को ठगते रहते ह।एक
मु
खी सवा धक ेऔर लभ है ,अतः इसक सवा धक ठगी होती
है
। जहाँतक मे री जानकारी है
,अलग-अलग मु ख केलए अलग-
अलग पौधे नह होते ।एक ही पौधे
म मुख(धा रय ) का अ तर संयोग
सेमल जाता है -ठ क उसी तरह जैसेबे
ल क तीन प यां एक डंठल
सेजुड़ी होती ह,और सभी ‘ प य ’क यही थ त होती है ; क तु
सं
योग और सौभा य से उसी पौधेम चार-पां
च-छः यहाँतक क यारह
प यां भी एक डं ठल से जु
ड़ी मल जाती ह, ज ह त म काफ
मह वपूण माना गया है । ाचीन थ म मु ख केअनु सार ही ा
का वग करण कया गया है ।
वैसेतो ा सीधेशव से स ब धत है, फर भी व भ मु

का व भ दे वता से संब ध बतलाया गया है;और जब मु
ख के
वामी दे
वता न त ह तो उनका अलग-अलग मंहोना भी
वाभा वक है।
यहाँ
एक से
चौदह मु
ख तक क सू
ची तु
त कया जा रहा है
ः-
मु
ख दे
वता म
एक शव ऊँ नमः
दो अधनारी र ऊँ
नमः
तीन अ न ऊँ ल नमः
चार ा ऊँ नमः
पां
च काला न ऊँ नमः
छः का तके
य ऊँ ँ
नमः
सात स त ष,स तमा का ऊँ ँ
नमः
आठ वटु
क भै
रव ऊँ ँ
नमः
नौ गा ऊँ ँ
नमः
दस व णु
ऊँ नमः
यारह ,इ ऊँ ँ
नमः
बारह आ द य ऊँ र नमः
ते
रह का तके
य,इ ऊँ नमः
चौदह शव,हनु
मान ऊँ
नमः
सामा यतया ा -साधना-शोधना द म सीधेशवपं
चा र(ऊँ
नमः शवाय) का ही योग कर। वशे
ष साधना म तो वशे
ष बात ह
ही।
ा म थोड़ा रं
ग भे
द भी है
- ह के लाल,गहरे
लाल,और
काले
।वै से ा याकार इस रं
ग भेद को वण भेद से
जोड़ना पस द
करते ह। क तुइस स ब ध म मेरी कोई खास ट पणी नह है
।बस
इतना ही यान रख क ा का दाना सु पुऔर अख डत हो।
ा म शीष और तल(head-tail) भे द भी है
।माला गू

थने

इनका वचार होना अ त आव यक है । ायः साधक क शकायत
होती है ब त जप कया, क तु
- "मने सफलता नह मली।" साधना म
असफलता के अनेक कारण ह- यह गहन ववे चन का एक अलग
वषय है।यहाँ
म सफ इतना ही कहना चाहता ँ क गलत तरीकेसे
गूं
थी गयी माला से अभी - स क ठन हो जाती है ,और माला गूं
थने
वाली चू क ायः होती ही है
।माला गू

थने का सही तरीका ठ क वैसा ही
हैजैसेक आप एक सौ आठ य को पं व खड़ा कर रहे
ह । यान देनेयो य बात यह है क ये क का मु
ख अपने
सामने वालेकेपीठ क ओर होगा।और एक सौ आठ क इस पं
को अचानक वृबनाने कहगे तो या होगा? ठ क इसी तरह ये क
दान को धागे म तल क ओर सेपरोयगे ।इस कार एक का शीष
सरे के तल सेमलता रहे गा,और अ त म दोन सरो को आपस म
जोड़कर दोन धाग के सहारे एक सौ नौवांदाना(सु
मे) को भी इसी
व ध सेपरो दगे । शीष और तल(head-tail) क पहचान अ त
सरल है - शीष अपेाकृ त ऊभरा आ होता है ,जब क तल भाग
सपाट होता है।यह ठ क वै सा ही है
जैसेनासपाती का फल डं ठल से
लगा आ हो –यही शीष आ और सरा तल या पृभाग।माला
गूं
थने म एक और अहं बात का यान रखना है क ये क दान के
बीच थू ल थ वनानी चा हए,ता क दो दाने आपस म टकराते न
रह।यह नयम जप-साधना केलए बनायी जारही माला केलए
अ याव यक है ।इसके (बीच क थ) बना माला थ है ।हाँ
,धारण
करने वाले माला म यह ब त ज री नह है ।वैसेइसम भी थ हो तो
कोई हज नह ।
माला गू

थने
केनयम म एक और अ त आव यक नदश है

व ह त थता माला, वह ता घृच दनम्। वह त ल खत ोतम्
श या प यं हरे
त्
।। (अपनेहाथ से
गू
थी गयी माला, घसा गया
च दन, लखा गया तो - वयं व त करने सेइ द्
न का भी ी-मान
हा न हो सकता है ) यानी क अपने हाथ सेगू

थी न जाय,ब क अपने
नदशन म कसी अ य से गु

थवायी जाय- वह घर का कोई सद य( ी
-पुष) हो या यो य बाहरी । कु
छ ऋ षय ने तो यहाँ
तक कह
दया है क माला गू थना - पुी को ज म देनेकेसमान है।अब अपनी
ज मायी यी क या से संयोग तो नह ही करगे।खैर,ठ क पुी वाली
बात भले न हो, क तुकुछ रह य अव य है - ऋ षय क वाणी म, जसे
मान लेना ही म े य कर समझता ।ँ आज के प रवे
श म उ चत है क
सामने बैठकर, माला गू ं
थने वाले कसी करीगर से अपनेनदशन म
गूं
थवा ल- शीष और तल(head-tail) का भे द बतातेए।
ायः लोग बाजार से माला खरीद कर सामा य शोधन करके(या
बना कए) या म लग जाते ह- जो क ब त बड़ी भूल है
। संगवस
यहाँ ा परी ा(पहचान)और माला सं कार क सं त चचा
करना उ चत लग रहा है

Ø ा क परी ाः-
Ø 1. खरीदा जा रहा दाना(माला) ा ही है
- कसी समानदश फल
का बीज अथवा लकड़ी पर क गयी न कासी तो नह - यह जाँ
चना
ज री है
।प रप व फल से उ म ा का दाना ा त होता है
।क चे
फल सेा त दान को ‘भ ा ’ कहते ह।यह गु
णव ा म अ त यू
न है

Ø 2. ा के दान को(गू

था आ माला नह ) टब,नाद,बा ट वगै
रह
म जल भरकर डाल द।जो दानेवरतन केतल म जाबै
ठ- वेही
सही(पु) दाने
ह।ऊपर तै
रतेदानेअप रप व और हण यो य नह
ह।येभावहीन ह।
Ø 3. गु
णव ा क सेदान का बड़ा-छोटा होना ब त मह वपू

नह है।आम तौर पर धारण केलए छोटे और जप केलए
म यम(बड़ेनह ) आकार का चु नाव करना चा हए।
सवागपू
Ø 4.दाने ण ह - कटे
,फटे
,टू
टे
,क ड़े
-यु, वकृ
त,टे
ढ़ेछ
वाले
,दे
खनेम म लन, वलकु ल चकने नह।
Ø 5. साधना केलए नया ा ही खरीद।पु
राना- कसी का व त
न हो।
Ø 6. पहले सेघर म पड़े- पता द ारा व त माला हण कया जा
सकता है, क तुवशे ष साधना म वह भी नह चले गा।पु
राने
मालेपर
कन- कन मंो का जप चला है - यह जानना भी मह वपूण है
। ायः
दे
खा जाता है क घर म पड़ा पुराना माला सीधेपू
वज क स प क
तरह ह थया कर वहार करने लगते ह- साधक केलए यह उ चत
नह है।मान लया कसी ने माला पर वाम या साधी हो,और आप
वशुद ण वाले ह,तो ऐसी थ त म हण कर आप परे शानी म
पड़ सकते ह।(यहाँवाम-द ण का सामा य भे द मा गत
है
,अ तभद क बात म नह कर रहा )ँ
Ø 7. द ागु ारा आशीष व प ा त माला आँ
ख मू
द कर हण
करने यो य है

Ø 8. जप-साधना म माला का प रवतन(अदला-बदली)कदा प नह
होनी चा हए।इसी भां
त धारण करनेवालेमाल का भी नयम है।
Ø 9. पहले
जप कया आ माला बाद म धारण कया जा सकता
है
, क तु
धारण कया आ माला जप के यो य कदा प नह है। ायः
दे
खते ह क सुवधा क से लोग एक ही माला रखते ह- गलेम से
नकाल कर जप कए,और पु नः गले म डाल लए- यह वलकु ल
अ ानता और मूढ़ता है
।सामा य जन को इससे कोई अ तर भले न
पड़ता हो,साधक को ऐसा कदा प नह करना चा हए।
Ø 10. शीष-तल वचार को छोड़,शे
ष नयम (गू

थने सेले
कर
हण,शोधन,और धारण तक) सभी कार के माला केलए लागू
होता है
,न क सफ ा केलए।
Ø 11. तां
बेकेदो टु
कड़ के बीच ा को रख कर दबाने सेअसली
ा का दाना घरनी क तरह नांचने
लगेगा- ऐसा कथन है शा
का, क तुमनेपरी ा कया कुछ दान पर – शत तशत यह लागू
नह होता, फर भी थोड़ा क पन अव य अनुभव होता है।वह भी नह
तो ह केव त ुतरंग क अनु भूत अव य होगी- वशत क शारी रक
प सेआप अपेाकृ त शुह । नय मत नाड़ीशोधन आ द के
अ यासी को यह अनु भव अ धक ती होता है।वैसेभी उनक
अनु भू
तय का ेकाफ वक सत होता है ।
माला का सं कारः- ऊपर व णत नयम के अनुसार ा हण कर
व धवत माला तै यार हो जाने
केबाद उसेसंका रत करना भी
अ तआव यक है - वशेषकर साधना हे
तु
।धारण करनेकेलए भी
सामा य संकार कर लया जाए तो कोई हज नह , क तुसाधना हेतु
तो असं का रत माला कदा प ा नह है । माला –संकार केलए
सवाथ स योग, स योग,अमृ त स योग,गुपु य योग,र वपुय
योग, सोम पुययोग आ द म से कोई सुवधाजनक योग का चुनाव
करना चा हए।चय नत दन को न य या द सेनवृहोकर, मशः
जल, ध,दही,घृ
त,मधु,गू
ड़,पं
चामृत,और गंगाजल से(कमशः आठ
ालन) करनेकेबाद, तां
बेया पीतल केपा म पीला या लाल व
बछा कर,सामने रख। वयं पू
जा केार भक कृय-
आचमन, ाणायामा द करने केबाद जल-अ ता द लेकर सं क प कर-
ऊँअ ..... ी शव ी यथ मालासंकारमहंक र ये
। (संक पा द पू
जा
व ध केलए कोई भी न यकम पु तक का सहयोग लया जा सकता
है
।यहाँसंेप म मुय बात क चचा कर द जारही है,जो सीधे
सामा य पू
जा-प त म नह है।)
अब पुनः जल ले
कर व नयोग करगे- ऊँअ य ी शवपं चा र
मंय वामदेव ऋ षरनुु छ दः ी सदा शवो दे
वता ऊँ
बीजं,नमः
श ः, शवाय क लकं सा बसदा शव ी यथ यासे पूजनेजपे च
व नयोगः।
ऋ या द यास- ऊँवामदे
वाय ऋषये
नमः शर स – कहतेए अपने
शर का पश करे ।
ऊँ
अनु
ुछ दसे
नमः मु
खे
- कहतेए अपने
मु
ख का पश
करे

ऊँ
सदा शवदे
वतायै
नमः द- कहतेए अपनेदय का पश
करे

ऊँ
बीजाय नमः गुे
- कहतेए अपने
गु
दामाग का पश
करे

ऊँ
श ये
नमः पादयोः - कहतेए अपने
दोन पै
र का पश
करे

ऊँशवाय क लकाय नमः सवागे
- कहतेए अपने
मु
ख का
पश करे

ऊँ
नंत पुषाय नमः दये
- कहतेए अपनेदय का पश
करे

ऊँ
मंअघोराय नमः पादयोः - कहतेए अपने
पै
र का पश
करे

ऊँश स ोजाताय नमः गुे
- कहतेए अपने
गु
दा का पश
करे

ऊँ
वां
वामदे
वाय नमः मून - कहतेए अपने
मू
धा का पश
करे

ऊँ
यंईशानाय नमः मु
खे- कहतेए अपने
मु
ख का पश
करे

कर यास- ऊँ
अंगुा याम्
नमः - कहतेए अपने
दोन अं
गठ
ू का
पश करे

ऊँ
नंतजनी याम्
नमः - कहतेए अपने
दोन तजनी का पश
करे

ऊँ
मंम यमा याम्
नमः - कहतेए अपने
दोन म यमा का
पश करे

ऊँश अना मका याम्
नमः - कहतेए अपने
दोन अना मका
का पश करे

ऊँवां
क न ा याम्
नमः - कहतेए अपने
दोन क न ा का
पश करे

ऊँयं
करतलकरपृा याम्
नमः - कहतेए अपने
दोन
हथे
लय का पश करे

दया द यास-ऊँ दयाय नमः - कहतेए अपनेदय का पश करे

ऊँ
नंशरसेवाहा- कहतेए अपनेसर का पश करे

ऊँ
मंशखायै
वषट्
- कहतेए अपनेशखा का पश करे

ऊँश कवचाय म्
- कहतेए अपने
दोन वाजु का पश
करे

ऊँ
वां
ने याय वौषट्
- कहतेए अपने
दोन ने का पश
करे

ऊँयं
अ ाय फट्- कहतेए अपने
दा हने
हाथ क तजनी
और म यमा को वाय हाथ क
हथे
ली पर बजावे

पु
नः जल ले
कर व नयोग करे
- ऊँअ य ी ाण त ाम य
व णु
महेरा ऋषयः ऋ ययुःसामा न
छ दा स यामयवपुः ाणा या दे
वता आँ
बीजं
, श ः
क लकं दे
व ाण त ापनेव नयोगः।
त ा- यासः- ऊँ - व णु
- ऋ ष यो नमः शर स( सर का पश)
ऊँ
ऋ ययु
ःसाम छ दो यो नमः मु
खे ख का पश)
(मु
ऊँ ाणा यदे
वतायै
नमः द ( दय का पश)
ऊँ
आँबीजाय नमः गुे दा का पश)
(गु
ऊँ श यै
नमः पादयोः (पै
र का पश)
ऊँ क लकाय नमः सवागे
षु रे
(पूशरीर का पश)
अब हाथ म रं
गीन(लाल,पीला) फू
ल ले
कर दोन हाथ सेमाला को
ढककर इन म का उ चारण करे , और भावना करेक दे
वता क
श ा मनक म अवत रत हो रही है-
ऊँआँ यँ
रँ
लँवँ
शँषँ
सँहँ
सः सोऽहं
शव य ाणाः इह
ाणाः।
ऊँ
आँ यँ
रँ
लँवँ
शँषँ
सँहँ
सः सोऽहं
शव य जीव इह थतः।
ऊँआँ यँरँ
लँवँ
शँषँ
सँहँसः सोऽहं
शव य सव या ण
वा न व च ु
ः ो ाण ज ापा ण-
पादपायू
ष था न इहाग य सु
खंचरंत तुवाहा।।
अब पुनः अ त-पु
प ले
कर,हाथ जोड़कर न नां
कत मंो का
उ चारण करतेए भावना करेक शव वराज रहेह मनक म-
ऊँ
भूः पुषं
सा बसदा शवमावाहया म।
ऊँभु
वः पुषं
सा बसदा शवमावाहया म।
ऊँवः पुषंसा बसदा शवमावाहया म।
इस कार ा -माला म सा ात्शव को था पत भाव से
यथास भव षोडषोपचार पूजन करे ।त प ात्कम से कम यारह
माला ी शव पं चा र म का जप,त दशां श हवन,त दशांश
तपण,त दशांश माजन एवं एक वटु क और एक भ ु क को भोजन
और द णा दान कर माला-सं कार क या को स प कर।इस
कार पू
रेवधान सेसंकृत ा माला पर आप जो भी जप करगे
सामा य क तुलना म सौकड़ गु ना अ धक लाभ द होगा।इस बात
का भी यान रख क इस माला क मयादा को बनाये रखना है। जस-
तस केपश,यहाँ तक क सेबचाना है
।कहने का ता पय यह क
सदा जपमा लका म छपाकर मयादापू वक रखना है।बष म एक या दो
बार उसके व भी बदल दे ना है
।अ तु ।
ा के ता क योगः- आयु वद एवंत शा म ा के
अनेकाने
क योग बतलाये गयेह। व वध कार क दै हक-दै
वक-
भौ तक संताप का नवारण ा से हो सकता है
।आधुनक व ान
भी इस पर काफ भरोसा करने
लगा है।यहाँ
कुछ खास योग क
चचा क जारही है
-
1. शव-कृ पा- कसी भी आकार और मु
ख वाले ा को
व धवत शो धत-सं का रत करकेशव- तमा क तरह पू
जा जा
सकता है
- वस यही समझ क सा ात्शव ही वराज रहे
ह ा -
मनके
म।
2. शवपु राणा द थ म तो शरीर केव भ अं ग म ा
धारण का वधान है , क तुकम सेकम सफ गले म ५४ या १०८ दान
क माला धारण करने मा से काफ लाभ होता है
।धा मक लाभ के
अतर वा य लाभ भी है ।र वहसं थान क व भ वीमा रय म
अ बुत लाभ होता है । दयरोग म इसके चम कार को परखा जा
सकता है। यारह माला शवपं चा र मंा भमंत ा के
पां
च बड़े दान को गले या बाय बां
ह म(सामा य नयम सेवपरीत-
पुष या ी दोन को)बाँ धनेसे उ चर चाप या दयरोग म
अ या शत लाभ होता है । वना अ भमंण के भी धारण करने से
लाभ तो होगा ही, क तु अ भमंत कर दे नेसेगु
ण म बृ हो
जायेगी।इसी भांत अ भमंत दान को जल म घस कर एक-एक
च मच अवले ह न य दो-तीन बार लया जाय तो अ त ुलाभ
होगा। व थ भी इस योग को कर सकते ह- ते
ज,बल,वीय क
बृ होकर आरो य और द घायु लाभ होगा।
3. व धवत शो धत-सा धत ा के तीन-पां
च-सात-नौ- यारह-
इ क श-स ाइस-इकतीस-चौवन या एक सौ आठ दानेसुवधानु सार
धारण करने
सेसम त ताप (दै हक-दैवक-भौ तक) का शमन होता
है

4. उ री त से ा धारण करने सेअ त
ु प से स मोहन
होकर,मान- त ा म बृ ,यश- ी-लाभ क ा त होती है

5. व धवत शो धत-सा धत ा को घस कर शरीर म ले
प करने
सेभी स मोहन-आकषणा द क स होती है

6. व धवत शो धत-सा धत ा को च दन क तरह घस कर
नय मत से
वन करने
सेभी स मोहन-आकषणा द क स होती है

7. व धवत शो धत-सा धत ा के पां
च दाने
(बड़ेआकार वाले )
कसी व छ तां-पा म डाल कर रातभर छोड़ द।सुबह उस जल
का से
वन कर।इस कार के महीने
भर के योग सेउदर-
वकार,अ न ा अ ल प ,गैस,क ज आ द दै
हक ा धय मे
आशातीत लाभ होता है
।इस योग म यान रहे क ा पर पु रानी
कसी कार क गं दगी न हो।
8. व भ बाल-रोग म व धवत शो धत-सा धत ा के तीन या
पां
च दाने
लाल धागे
म ( थयु) गू थ कर सोमवार केातःकाल
गलेम पहना द।अ बु
त लाभ होगा।
9. ायः ब चे चड़ चड़े हो जाते ह,बात-बात म उ ह कसी क
टोक लग जाती है,सोते
समय च क ँकर उठ जाते ह,माँ
का ध या
बाहरी ध पीने सेइ कार करते ह- इस तरह क अने क बाल-
सम या म व धवत शो धत-सा धत ा को माँ केध के साथ
घस कर, उ के अनुसार (आधा या एक च मच) पलाने से
शी
लाभ होता है।

10. ब य व नवारण हे
तु
समभाग व धवत शो धत-सा धत
ा को सु ग ध रा ना केसाथ चूण करकेएक-एक च मच ातः -
सायं केहसाब से गाय केध के साथ ऋतु नान केदन सेार भ
कर लागातर सात दन तक से वन करना चा हए।यह या लागातार
कुछ महीनेतक जारी रखे ।इस बीच स तानेछु ी न य कम से कम
एक माला शवपं चा र मंका जप और शव पू जन करती रहे
। वयं
न हो सकेतो प त करेया फर कसी यो य ा ण ारा कराये ।

पु
याकवन प तत म्
-7
६. हाथाजोड़ी
कृत का एक अ त ुउपहार है - हाथाजोड़ी।इसकेकई नाम ह-
हथजो ड़या,ह ताजु ड़ी,हथजुड़ी, भुजयु म, ह थया आ द।उ म इसे
बखू र-ए- म रयम कहते ह।इसका एक नाम चु बकउ शान भी
है
।लै टन म-Cyclemen Parcicum कहा जाता है ।कुछ ामक
पुतक म द डी और नगु डी कह दया गया है-जो सवथा
अशुहै ।ये
दोन अलग वन प तयाँ ह।सच पू
छ तो यह लुत
वन प तय क े णी म है
।म य दे श और राज थान के कु
छ भाग म
पाया जाता है।वहाँ
इसेवनवा सय ारा " वरवा" नाम से पु
कारा
जाता है।इसके औषधीय और ता क मह ा को दे खतेए चतु र
वसायी एक अ य वन प त को इस नाम सेचा रत कर दए ह,जो
गु
ण और योग म सवथा भ है । बहार-झारख ड क पहा ड़य पर
चुर मा ा म पायेजानेवालेतीन-चार च ल बी एक अ त ुघास को
गु
ण-धम-सा य के आधार पर हाथाजोड़ी के नाम सेव यात कया
गया है
।जड़ी-बूट क कान पर हाथाजोड़ी के नाम से वही घास
मले गा, जसे याँ पहले अपनेसधोरे म अ य सु हाग क कामना
सेरखा करती थी।यह बो रय केहसाब से उपल ध है ।काली पतली
डंठल के ऊपरी सरे पर एक छोट प ी होती है जो सकु ड़ कर ऐसा
तीत होती हैमान हाथ क अं गुलय को भीतर क ओर मोड़ लया
गया हो।बष क सू खी प ी को जल म थोड़ी देर डाल कर छोड़ दे ने
सेबलकु ल ताजी तीत होने लगती है।हाथ केपंजेक आकृ त और
जल सं पक से ताजी हो जाने
क वशे षता को दे
खतेए हाथाजोड़ी
नाम से स पाजाना इस वन प त केलए सहज हो गया।
बहार-झारख ड के जंगल म काफ भटकने का सौभा य मला
है
,जहाँ यह तथाक थत बू ट चुर मा ा म उपल ध है, जसका अ य
ता क योग है । क तुयान रहे यह असली हाथाजोड़ी नह है ।
असली हाथाजोड़ी एक पौधे क गोलाकार-गां
ठदार
जड़(श करक द क तरह) सेनकली यी दो अ त ुशाखाय ह, जो
ऊपर नकल कर दाय-वाय दो भु जा क तरह खड़ी हो जाती
ह।आप क पना कर क एक नं ग-धडंग आदमी अपने दोन हाथ ऊपर
क ओर उठायेए खड़ा हो, जसके हाथ क अं गुलयांभीतर क
ओर अधमु ड़ी अव था म ह ।ताजी थ त म आ ह ते सेदोन
शाखा को मला दे नेपर आपस म मली( चपक सी) रह
जायगी।यही इसक वशे षता है
।इसेजल सेर ा करने क ज रत है -
य क अ य धक जल-स पक से सड़ जाये
गा,जब क
नकली(हाथाजोड़ी के नाम सेबाजार म मलने वाला)वन प त को
बार बार जल-संयोग सेकोई त नह होती।असली हाथाजोड़ी पौधे
क टहनी पर गु
लाबी रं
ग का सुदर सा फूल नकलता है
।तना (या
इसका धड़ कह) पर हरी प ी होती है
, जसका पृभाग सफे द होता
है
।जड़ ( म ीक द या श करक द क तरह, क तु रं
ग भेद यु)
यामवण होता है

त -साधना हे तुआभायु, सुडौल,सवागपू
ण(जड़,तना और
दोन प याँ) पौधा ही हण करना चा हए। वकृ
त,खं
डत होने
पर
साधना हे
तु
अयो य है ।
चू
ँक हाथाजोड़ी क उपल ध क ठन है ,अतः ा त करने म मुत
वचार क बात नह है ।यह सौभा य सेा त हो जाए- यही सबसे बड़ी
बात है
।अतः ा त हो जाने पर मुत वचार करके साधना ार भ
कर।इस अ त ुवन प त म भगवती चामु डा का सा ात्वास माना
गया है
,अतः नवरा (बारह म सु वधानु
सार कोई भी) हण कया जा
सकता है । ात है क ये क महीनेकेशुल प क तपदा से
नौवमी पय त नवरा याँ ह, ज ह धानता- म से रखा गया है
-
आ न,
चै,आषाढ़,फा गु न,माघ, ावण,अगहन,वै शाख,का तक,भादो, ये
और पौष।त साधना क अलग-अलग व धय म, इनके म म भी
उलटफे र होतेरहता है
-इस स ब ध म सामा य जन को संशय नह
करना चा हए।सीधी सी बात है- आप सुवधानुसार कोई भी महीनेका
शुल प हण कर ल, वशत क खरमास,गु-शुा त आ द न ष
काल न ह ।
व हत काल म अ या य पू
जा वधान क तरह षोडशोपचार पू
जन
करना चा हए।सामा यतया जल से शु करके लाल कपड़े का
आसन दे कर त त कर।पू व अ याय म कहे गये
( ा या े ताक
थापना) वधान सेथापन-पू जन करने के
बाद भगवती चामु डा के
कसी भी अनु कूल(गणना- वचार से) म का सवालाख या कम से
कम छ ीस हजार जप,दशां श होमा द व ध स हत स प कर। यान
रहे
- अनुान क पू णता ा ण और भ ु क भोजन (द णा स हत)
केबाद ही होती है
।इस कार सा धत हाथाजोड़ी को स मान पूवक
कह - पू
जा थल म सु र त रख द,और न य त पं चोपचार पू
जन
करतेए,कम से कम एक माला पूव ज पत मंको अव य जप लया
कर।
हाथाजोड़ी का भाव और योगः- हाथाजोड़ी का मुय भाव
स मोहनशीलता है ।साधक इसे आव यकता पड़ने पर अपने साथ
लेकर जाये - जै
से
, मान लया क उसेकसी अ धकारी से कुछ
मनोनु कू
ल काम नकालना है ।वै
सी थ त म थायी प से रखेए
सा धत हाथाजोड़ी वन प त को आदरपू वक उठाकर माथे सेलगाते
ए अपनी वांछा (आव यकता) नवे दन करे
- मान अ धकारी से ही
नवेदल कर रहा हो,और फर मान सक प से , पू
व सा धत मंका नौ
- यारह-इ क स बार उ चारण करतेए ग त तक थान करे -
बूट को साथ ले कर।यह शत तशत स य है क उस दन उसक
वांछा अव य पूरी होगी। क तुयान रहे
- कसी गलत उ े य से
, वाथ
म अं धेहोकर इस अमोघ अ का योग न कर बै ठे
,अ यथा इसका
भारी खा मयाजा उठाना पड़ सकता है । त अमोघ है ।इसके
सुप रणाम अमोघ ह,तो प रणाम भी उतना ही अमोघ होगा- इसे न
भू
ल।अतः सावधान।
वशीकरण भी स मोहन का ही एक अ य प है। इसकेलए भी
उसी भां
त अपनेशरीर सेलगायेए- सुवधानु
सार हाथ या जे
बम
रखकर पूव क थत व ध सेयोग करना चा हए।
जैसा क पहले भी कहा जा चुका है
- हाथाजोड़ी म भगवती
चामु डा का वास है
।चामु डा, गा,काली आ द सभी एक ही त व के
भ नाम मा ह- क चत कायानु सार।इनके अने क मं
मंमहाणव,मंमहोद ध,आ द व भ थ म उपल ध ह।अपनी
नाम रा श केअनुसार सा य,सुसा य, सा य, म ,अ र आ द वग का
वचार करके अनुकूल मंक साधना कर ले नी चा हए।सामा यतया
सौ य कायाथ गा के सौ य मं का चयन करना चा हए। ू र कम के
लए चामु डा केू र मंो का चयन करना चा हए।
हाथाजोड़ी के
क तपय अ य योग-
v धना त- पूवव णत व ध सेघर म हाथाजोड़ी क थापना करके
न य पू
जन कया करे ।साथ ही सा धत मंका यारह माला जप
करने केबाद अपना अभी नवे दन कर दे मातेरी! मे
- "हे री
नधनता का नवारण कर।" इस कार न य या से थोड़े ही दन म
आप चम का रक लाभ अनु भव करगे ।धना त केनयेोत खु लतेए
ल त ह गे ।
v सव-सु ख- सा धत हाथाजोड़ी को जल केसाथ च दन क तरह
धसकर सू ता क ना भ,पे
ट,और पे
ड पर ले
प कर दे
नेसेसहज ही
सव होकर वे
दना सेमु मल जाती है ।
v मा सक- ाव शोधन- अ नय मत,अव ,आ द व भ रजोदोष म
हाथाजोड़ी के योग सेअ तुलाभ होता है।इसकेलए बू ट का चू

बनाकर व छ कपड़े क पोटली म एक च मच चू ण डाल कर ी क
योनी म रात सोते
समय था पत कर द। ातः जगने के बाद आ ह ते
सेनकालकर फक दे ।इस या को कसी मं गलवार से ही ार भ
करे,और सातव मंगलवार तक जारी रखे
।यानी पौने
दो महीने।
v मूावरोध- कसी भी कारण से
मूकृ ,मूावरोध हो तो सा धत
हाथाजोड़ी को जल केसाथ प कर ना भ और पे
ड पर लेप कर घंटे
भर छोड़ दया कर। आक मक थ त म सफ एक बार के योग से
त ण लाभ होता है।ज टल और द घ ा ध क थ त म कु छ दन
तक योग जारी रखना चा हए।
v गभ- नवारक- सा धत हाथाजोड़ी के चू
ण को एक-एक च मच सु बह
-शाम सात दन तक( कसी श न वा मं गलवार सेार भ कर) गरम
पानी केसाथ से वन करने सेगभपात हो जाता है
। क तु
सावधान-
गभपात एक कम है । ाण- त ा-र ण क थ त म ही ऐसा
योग करना उ चत है ,साथ ही इस बात क सावधानी और व था
भी होनी चा हए क अ य धक र ाव क थ त का भी नवारण
कया जा सके ,अ यथा म हला क जान भी जा सकती है।

.
पु
याकवन प तत म्
-8
७.अं
कोल
अंकोल म यमकाय ब बषायु पौधा है।यह ायः सु लभ- ा त
वन प त है। बहार-झारखं ड के जंगल म मने ब तायत से इसे दे
खा
है
।इसका च लत नाम ढे ला है
।सामा य तौर पर सु दर आकृ त वाली
छड़ी केप म इसके डाल का उपयोग कया जाता है ।पूरेपौधेपर
कठोर छोटे-छोटेकांटेहोतेह।उन नोक को काट-छां ट कर शेष
ाकृ तक उभार को छोड़ दया जाता है , जससे छड़ी क सु दरता
बनी रहती है
।अपरस(हथे ली का एक चम रोग)क बीमारी म इसेघस
कर लगाने का पुराना चलन है।छोटे बे
र क तरह गु छ म फल लगते
ह, जसके अ दर बे र क तरह ही गु ठ लयाँ होती ह- थोड़ी ल बोतरी
आकृ त म।इन गुठ लय म चु र मा ा म ने हन (तै लीय व)होता
है
। नमौली क तरह इनसे भी तेल नकाला जा सकता है , जनका
व भ औषधीय योग होता है ।
त शा म अं कोल ब त ही उपयोगी माना गया है
।अ य
ता क योग के साथ मलाकर,तथा वत प से भी इसका
उपयोग कया जाता है

अंकोल म शव- शवा का युगल प वास माना गया है
।र वपु

योग म इसेपू
व व णत व ध से ही हण करना चा हए। ावण या
आ न के महीने म र वपु
य योग(च मा वाला) मल जाय तो अ त
उ म।वै सेायः आषाढ़ के महीनेम सू
य पुयन पर १४-१५ दन
केलए आते ह।उस बीच र ववार जो मल जाय- उसेहण करना
चा हए।यह (सू
य वाला) र वपुय च मा वाले
र वपुय सेभी उ म है
-- कसी भी वन प त केहण केलए, य क वन प तयाँ सूय के
पु यन म आजाने के कारण सवा धक ऊजावान हो जाती ह।
च मा तो वन प तय केवामी ह ही। वामी केम - सूयक
र मयाँच प नय केलए अ तशय ी तकर हो जाती ह।
अं
कोल ऊ वग त का तीक है - ऊ वग त चाहे जस कसी भी
थ त म, जस कसी भी काय म अ नवाय हो- अंकोल का वहाँ
उपयोग कया जा सकता है।त शा म वणन है क सा धत
अंकोल- बीज-तैल म भग कर य द आम क गु ठली जमीन म
था पत कर द तो आशातीत समय-पूव उसम फल नकल आयगे -
यानी उसका वकास चम का रक प से होगा।इसी भांत कसी भी
वृको शी उपयोगी बनाने केलए इसके तेल का योग कया जा
सकता है।आजकल वैा नक व ध से रसायन का सूची वे श
कराकर फल और स जय को रात रात बड़ा करने का चलन है ,भले
ही उसका वा थ पर भाव पड़ता हो।अतः सोच समझ कर ही
इसका उपयोग कया जाना चा हए। वकास आव यक है ,उ चत भी
क तुएक सीमा तक और सही प से - ाकृतक प से ।हाम नक
उथल-पु थल मचाकर वकास पैदा करना कतई उ चत नह ।
त शा म ऊ वग त वषयक पा का स क चचा है ।या न
वशे ष तरह क पा का(खड़ाऊ) का उपयोग करके आकाशगमन
कया जा सकता है।यह साधना सु
ननेम तो अ व सनीय लग रहा
है
, क तुशा -वणन झूठा नह है
।ऋ षय क वाणी थ नह
है
।हाँ
,इतना अव य कह सकते ह क वणन के बीच के
कुछ त तुलु त
हो गयेह, जसके कारण वसं ग त लग रही है।म पू
रेव ास के साथ
कह सकता ँ क अंकोल म यह वल ण गु ण है,और मे
रा यह ढ़
व ास नराधार भी नह है । साधना केतर क बात है सफ।एक
ऐसे महानुभाव को म नकट से जानता ,ँ जो न य ातः दरभंगा से
कामा या जाकर भगवती का दशन लाभ कर,शी ही वापस अपने
थान पर आ जाया करते थे, जसे उनके ब त करीबी लोग भी नह
जानते थे;और जान भी कै से पाते? दे
र रात जसे अपनेव तर पर
सोतेए जसे देखेह,और भोर- ातः भी जो अपनेव तर पर ही
लेटा,उनी दा पाया जाय उसे कह सुर का या ी कै सेमाना जा
सकता है ?अ तु ।
संगवश यहाँअंकोल पा का स क थोड़ी और चचा कर

।ऊपर कहे गयेमुत म ही अंकोल को व धवत (पू व संया को
नमंण दे कर) घर लाना चा हए- वयं ही काट कर( कसी सरे से
कटवाकर नह )। तना इतना मोटा हो ता क उसके का से खड़ाऊं
बनाया सके । अब कसी सु यो य कारीगर से ( बना उ ेय बताये
,और
सामने बै
ठकर खड़ाऊं बनवाये । यान रहे- जब तक बढ़ई आपका
काम करता रहे ,आप चुप बै
ठे मान सक प से अनवरत शव पं चा र
और दे वी नवाण मंो का जप बारी-बारी से करतेरह।अ याआव क
हो तो बीच म बोलनेम कोई हज नह है - कुछ कह-बोल- नदश
दे
कर, फर अपने कत म लग जाय- जप जारी हो जाय।गौरतलब है
क यहाँ न आपका साधना-क है ,न पू
जा का आसन,न माला।जप
क गणना का भी कोई औ च य नह है ,बस जप क नरं तरता का
( व न-तरं
ग के वातावरण का) मह व है । सरी बात यह क खड़ाऊं
एक ही वैठक म बन ही जाए- कोई ज री नह ।वै सेबन जाय तो
अ छ बात है। दो-चार घं
टा तो लगना ही लगना है
।इसकेलए
उपो सत रहने क भी कोई आव यकता नह है ।आप आराम से खा-
पीकर घर सेजाय,कोई हज नह । ात है क पु यन पर सू

चौदह-प ह दन तक रहते ह।इस बीच सु वधानुसार कभी भी
पा का- नमाण का काय कया जा सकता है ।वै
सेजतना पहले हो
जाय अ छा है, य क शे ष समय का उपयोग अगले अनुान केलए
पया त मल सके ।
व धवत पा का न मत हो जानेकेप ात्पु
नः शु

मुत(भ ा द र हत,सवाथ स योगा द व श योग) का चयन करके
अगला काय म ार भ कर।पा का को जल, धा द पं चामृ
त के
पां
चो साम य से अलग-अलग शु करने के
बाद एक पं चामृत
नान करावे
। फर गं
गाजल से ा लत कर पीले या लाल व के
आसन पर आदर पू वक था पत करके - ा - थापन- वधान म
न द व ध सेथापन- ाण- त ा करके पं
चोपचार कवा
षोडशोपचार पूजन कर;और सु वधानु
सार वभा जत म से जप का
सं
क प ले कर शव-
पं
चा र मंका सवालाख,एवं दे
वी नवाण मंका छतीस हजार जप
मशः दशां
श होमा द या स हत ा ण एवंभ ु क भोजना द
सद णा स प कर अनुान क समा त कर।इस कार आपक
पा का स या स प यी।
अब बारी हैयोग क । यात है क इस साधना और योग के
लए कठोर चय क आव यकता है । चय के ख डन से
आपक ऊ वग त बा धत होगी- अ य बात तो पू ववत रहगी, क तु
का यक भार के कारण गुव बल केवपरीत जाने म क ठनाई होगी।
हाँ
, भू म पर गमन करने म आप अ त ुऊजावान महसू स करगेवयं
को।सामा य क अपेा दस से सौ गुना अ धक क ग त कर सकगे -
यह सब ता का लक साधना का तफल होगा। तः आप अनु भव
करगेक य ही आ मके त होकर सा धत अं कोल-पा का पर पां व
धरगे , आपका गुवबल अ त यू न हो जाये गा।शरीर हवा म उड़ता
आ सा महसू स होगा।पृवी से
चां
द पर प च ंने वाले वैा नक को
कुछ ऐसा ही महसू स आ करता है ।सूय और च मा(गं गा-यमु
ना) क
नयंत ग त को सं तुलत करतेए आप जधर चाह या ा कर सकते
ह।यही इस साधना क उपल ध है । क तु सावधान- कसी भी
ता क-यौ गक श का पयोग न हो।आ म क याण और
लोकक याण ही कसी साधना का अभी है ,और होना
चा हए।जड़ता और मू ढ़ता वस जस कसी ने भी इन श य का
पयोग कया है - प रणाम भी भोगा ही है ।अ तु।ह र ऊँ।

पु
याकवन प तत म्
9
८.एका ी ना रयल
ना रयल एक सु प र चत फल है ।इसका पौधा मुय प से
समुतट य इलाक म पाया जाता है , क तु आजकल व भ ेम
भी यदाकदा उगाया जा रहा है ,भले ही उपल ध और वकास अ त
यू
न हो। भारत के द णी-पू व ा त म यह ब तायत से पाया जाता
है
।ताड़,खजू र,सु
पारी और ना रयल के पौधेआकार और वनावट क
सेकाफ सा य रखते ह।हाँ
,इनके फल के आकार म पया त
भ ता है , फर भी गौर कर तो काफ कु छ समानता भी है- सु
पारी
और ना रयल म तो और भी सामी य है ।येदोन हमारेधा मक
कमकां ड केव श उपादे य ह। कसी पू जा-कम म कलश- थापना
का मह व है ।कलश के पू
णपा पर ना रयल या सु पारी को ही
व वेत कर रखने का वधान है ।त -शा म भी ना रयल क
मह ा दशायी गयी है ।
यहाँ
मे
रा ववे य- सामा य ना रयल न होकर उसक एक व श
फलाकृ त है
।ना रयल का फल रे शदेार कवच म आवेत रहता
है
, जसेबलपूवक उतारने के बाद एक और कठोर कवच मलता
है
,और उसके
अ दर सु वा फल भाग होता है
।ऊपरी जटा(रे शा) उतारनेकेबाद
गौर कर तो मुख भाग म तीन क चत ग े (आँखनु मा) दखाई पड़गे-
येग े- शे
ष कवच-भाग क तु लना म कु छ कमजोर भाग होते ह।इ ह
भाग से भ व य म अं
कुरण होता है
- जो नयेपौधेका सृ जन करता
है
।त -शा म इन तीन ग म दो को आं ख और एक को मु ख का
तीक माना जाता है।ना रयल का यह ाकृ तक वनावट बड़ा ही
आकषक है ।आमतौर पर ये तीन क संया म ही होते ह, क तुकभी-
कभी तीन केवजाय दो ही नशान पाये जातेह।मे
रा अभी यही
है
।त -शा म इसे ही एका ी ना रयल कहा गया है - यानी एक मु

और एक आँ ख(एका )।ऐसा फल ब त ही लभ है ; क तु ऐसा भी
नह क अल य है ।ना रयल क म डय म इसे तलाशा जा सकता
है
।और इस लभ व तु को धर लाने केलए कसी मुत क ती ा
करने क आव यकता नह है - लभ व तु क ा त ही अपने आप म
शुभ व-सू
चक है।हाँ
, सफ इतना यान अव य रखा जाय क ना रयल
" ी" का तीक है,अतः " ीश" केमरण के साथ ही इसेहण कर-
शुला बरधरंदे
वंश शवण चतु
भु
जम्
, स वदनं
यायेसव व नोपशा तये

ासंव स न तारंस े
ः पौ मक मषम्
, पराशरा मजं
व दे
शु
कतातंतपो न धम्
।।
ासाय व णुपाय ास पाय व णवे
, नमो वै नधये
वा स ाय नमो नमः।
अचतु वदनो ा वा रपरो ह रः , अभाललोचनः श भु
भगवान्
वादरायणः ।।
ी व णुकेइस यान- मरण के
साथ ा त एका ी ना रयल को
उ चत मू य दे
कर आदर पू
वक हण कर, और घर लाकर प व
थान म रख द।
जै
सा क पहले भी अ य सं गो म कहा गया है
- कसी भी त -
यो य व तु को शु
भ मुत म सा धत करना चा हए- अमृ त
स ,सवाथ स ,र वपु य,गुपु य आ द कसी उपयु योग का
सु वधानु
सार चयन करके एका ी ना रयल का थापन-पू जन करना
चा हए।गंगाजल से ा लत कर,लाल व म आवेत कर पीतल
या ता पा म रख कर व धवत(पू व अ याय म क थत व ध
से
) थापन पूजन करना चा हए।पू जनोपरा त ी व णु और ल मी के
ादशा र म का कम से कम सोलह हजार जप,दशां श होमा द
व ध स प करने केबाद व - भ ु क भोजन सद णा दान कर
अनुान समा त करना चा हए।आगे पू
जा थान म थायी थान दे कर
न य पंचोपचार पू
जन करते रहना चा हए। जस घर म न य त
एका ी ना रयल क पू जा होती है
,वहाँल मी का अख ड वास होता
है

९.ह र ा
ह र ा केलए च लत श द ह द है ।भारतीय मसाल का राजा-
वशे ष प रचय का मु
हताज नह । वै
ं जय ती के आकार क इसक
प याँ बड़ी खुसबूदार होती ह।करीब छः च चौड़ ,प ह-बीस च
ल बी प याँ आजू -बाजू बृत सेजुड़ती यी,ऊपर बढ़ती जाती
ह; जससे तथाक थत तने का नमाण होता है
,यानी वत प से तने
नह होते इसम।ह द इसी पौधे क गाठ ह।मुय गांठ सेकु
छ सह
गाठ भी नकली होती ह।आम तौर पर एक पौधे सेसौ ाम से
पांचसौ
ाम तक गां ठ ा त होजाती ह।इनम करीब अ सी तशत जलीयां श
होता है
।ताजी गाठ को उबाल कर सु खा लेतेह- यही तै
यार ह द
है
।दोमट या बलु ई म म इसक अ छ पै दावार होती है
।आषाढ़ के
महीने म अंकुरणदार छोट गांठ को आलू या अदरख क तरह मे ड़
बनाकर ह द का रोपण होता है ।बरसात बाद मेड़ को फर से सु
डौल
करना पड़ता है ।आ न-का तक म एक-दो बार ह क सचाई करनी
होती है
।फा गु न केशुआत म ही प यां मुरझानेलगती ह- यही
पौढ़ता का माण है ।फा गुन अ त म ौढ़ पौध को उखाड़ लया
जाता है। छायादार जगह म भी इसक खे ती हो सकती है, इस कारण
छोटेकसान अपने गृ
हवा टका म भी थोड़ा-ब त लगा लेते ह, जससे
घरे
लू उपयोग स होता है ।
ह द के स ब ध म एक च लत कवद त है - कोईरी और माली
जा त को छोड़कर, अ य जा तयाँइसका रोपण न कर।य द कर ही तो
लागातार बारह बष तक लगातेरह,बीच म बा धत न हो- न स भव हो
तो एक ही गां
ठ लगाय, ले
कन लगाने का म न टूटेअ यथा भारी
अ न झे लना पड़ सकता है
।इसके पीछेशा ीय माण या इसका
वैा नक आधार तो म नह कह सकता, क तु इस नयम क जानबू झ
कर अवहे लना करनेवालेका प रणाम म तीन-चार बार दे ख चु
का
-ँरोपण बा धत आ और अवां छत वप सर पर मड़रायी। अतः
उ चत है क इसके रोपण सेबच।
एक और बात- सामा य तौर पर ह द म नौ महीनेकेपै
दावार-अव ध
म ायः फूल लगतेही नह ह। फू ल लगनेकेलए जतनी प रप वता
चा हए,उसकेपू
व ही पौधा मु
रझानेलगता है- चाहे
लाख जतन कर,
क तु कभी-कभी अनहोनी सी हो जाती है
- आ न-का तक के अत
तक प य के बीच एक वशेष क पल बन जाता है ,और थोड़े
ही
दन म उसम फू ल नकल आते ह।ह द म फू ल नकलना कसी
भारी अ न का सूचक है
- खासकर रोगणकता केलए, क तु इस
स ब ध म भी उपयु नयम लागू होता है
- हमे
शा लगानेवाले
कसान को कसी कार क त नह होती।
त शा म ह द के फूल को एक लभ वन प त क सू ची म रखा
गया है
।यहाँ
इसके योग पर इशारा मा ही उ चत समझता -ँ
षटकम के तीन नकृ कम म इसका अमोघ योग है - ा क
तरह
अचूक, नवार,अ त ु।सोचसमझ कर इसका योग करना
चा हए। मरण रहे
- ा अजु न केपास भी था और अ थामा के
पास भी- एक को प र थ त क पहचान थी,और आ म नयंण क
मता;पर सरेके पास इन दोन का अभाव था।अ तु।
आयुवद म ह द केअनेक योग ह।दद,सू जन,र रोधन-
शोधन, ण थापन आ द इसकेव श गु ण ह। सौ दय साधन म भी
काफ यु होता है। हो मयोपै
थी का हाई ाइ टस और कु
छ नह
सीधे
ह द का ही यू फॉम है

पू
जापाठ,एवं अ य मां
ग लक काय म ह द अ त अ नवाय है। ह म
गुवृह प त का य वन प त है यह।यूँतो वृ
ह प त क सं
वधा-
पीपल है
,और र न हैपोखराज। क तुह र ा पर गुक वशेष कृ पा
है
।इतना ही नह गणप त व नेर केलए भी ह र ा ब त ही य
है
।माँपीता बरा(बगलामु
खी) का तो काम ही नह हो सकता ह र ा के
वगै
र।
ह र ा हण वचार- मकर संा त(१४जनवरी) से सूय उ रायण हो
जातेह।इसके बाद ही कोई शुभ मुत म ह र ा को साधना मक प
सेहण करना उ चत है ।यूँ
तो
कसी(र वपु य,सवाथ स ,अमृ त स ) योग म वशे षपर थतम
हण कया जा सकता है ; क तुगुका वशे ष बल तभी ा त होगा
जब गुपु य योग हो। यान रहेक उस समय गुऔर साथ ही शु
अ त न ह ।चूँक यह सुलभ ा य है
,इस लए थम यास तो
यही हो क अ य अ याय म बतलायी गयी व ध के अनुसार पू
वसंया
को नमंण दे कर ही अगले दन न द व ध से घर लाया
जाय।महानगरीय स यता म जीने वाले
महानु
भाव को अस भव या
क ठन लगे तो वाजार क उपल ध का सहारा ले सकते ह।दशहरेके
बाद बाजार म ताजी ह द क गां ठेमल
जाया करती ह।उ चत मुत का वचार करके सुवधानु
सार लाया जा
सकता है । जस कसी व ध से भी ा त हो, घर लाकर पू
वनद
वधान सेथापन-पू जन करने केबाद सव थम वृ ह प त केषड र
मं(बीजयु पं चा र मं)का १९००० जप कर,तथा दशां श होमा द
स प कर। सं गवश यहाँएक बात और प कर ँक ह र ा क
कोई भी या करने केलए व -आसन आ द रं ग केवजाय ह र ा
म ही रंजत ह तो अ त उ म- चाहे उस पर गणप त क या करनी
हो या पीता बरा क ,या क गुक ।इन तीन को पीत रंग(ह र ा) य
है
।इतना ही नह माला भी ह द क गाठ क ही होनी चा हए। साद
केलए ह दयापे ड़ा,चनेक दाल,वेसन केल डू आ द का योग
करना चा हए।साधक अपने भोजन म भी पीलेपदाथ का (उ
चीज ) से
वन कया करे । नान से
पूव ह द का उबटन अव य
लगाले,एवंनानोपरा त च दन के वजाय ह द का ही तलक योग
करे
-कहने का ता पय यह क ह र ा-साधना केलए ह र ामय होजाने
क आव यकता है ।इससे साधना को सु
पु मलती है ,और छोटे
-मोटे
व न वयमे व समा त हो जातेह।
उ व ध से सा धत ह र ा को ह र ारं
जत चावल-सु
पारी-
ना रयल का सू
खा गोला आ द के साथ पीलेव म वेत कर पू जा-
थान या तजोरी म रख द। न य धूप-द प द शत कर और कम से
कम एक माला ीषड र मंका जप अव य कर लया कर।अ य-
थर ल मी केलए यह अ त ु योग है ।
v ह र ा गणप त योग- मं-भे द सेह र ा केअ य योग भी ह।पू व
अ याय- े ताक-गणप त साधना म बतलाये गये वधान सेह र ा-
गणप त क साधना भी क जा सकती है ।मंऔर व ध लगभग वही
होगा। अ तर सफ माला- योग का होगा- वहाँ ा माला यु
होता है
,यहाँह र ा- थ-माला का योग होना चा हए।इस या से
सभी कार केव न का नाश होकर व ा-वु - ी समप ता क
ा त होती है। कसी वशेषउ े य सेभी ह र ा-गणप त क साधना
क जा सकती है - जै
सेकोई श ुअकारण परे शान कर रहा हो, तो
उसके शमन केलए सं क प म उसका नामो चारण करतेए उ
मंका तै तीस हजार जप- दशां
श होमा द स हत समप करे ।हाँ
यान रहे
- कोई भी या वाथा ध होकर न कया जाय,अ यथा
परे
शानी हो सकती है

v पीता बरा योग- उ व ध से सा धत ह र ा- थ को सा ात्
भगवती पीता बरा बगलामु
खी का ी व ह व प घर म था पत कर
न य पू
जा-अचना करने से
षटकम क स होती है ।साधक क
वाचाश अ त ु प सेवक सत होती है ।सचपू
छ तो वाक्-स
होजाती है
।काम- ोध-लोभ-मद-मोहा द सम त अ तः श ु का
शमन होकर तेजोमय साधन-शरीर का उ ोधन होता है
।वा सम त
श ु का शमन-दमन तो सामा य सी बात हो जाती है। यात हैक
इस योग म पीता बरा पू
जन- व ध और षट्श पीता बरा मंका
सवाग अनुान स प करना होता है ।पू
रा वधान पीता बरा-त से
हण करना चा हए।
v ह र ा तलक योग- उ सा धत ह र ा का तलक लगाने मा से
स मोहन और वशीकरण स होता है। साधक अपने ललाट पर
तलक लगाकर कसी सा य पर पात करतेए अपने अभी का
मरण मा करे, और मान सक प सेपीता बरा मंया अपनेअय
इ मंका मरण करता रहे ।
v वषहरण योग- पीता बरा-सा धत ह र ा ख ड को पीसकर
गो ध या जल के साथ पला दे
ने
सेसभी कार केवष का
नवारण होता है

v व या- - योग- उ व ध से
कम सेकम सवा से
र ह र ा- थ
को सा धत कर कसी स ताने
छु ी को दान करे
। ी को चा हए
क रजो नान के प ात् उ सा धत ह र ा का घृतपाक व ध से पाक
तै
यार कर न य ातः-सायं दो-दो च मच से
वन करे गो ध के साथ-
पू
रेसताइश दन तक।(ह र ापाक क व ध सवसामा य है , ायः घर
म म हलाय इसका योग करती ह स ः सू ता को दे
नेकेलए-
समान मा ा म ह र ा,घी और गूड़ म त हलवा-
व य,र शोधक,पीड़ाहर,कोथहर,शोथहर आ द गु ण से भरपूर है

v ेतवाधा- नवारण- कसी भी े तवाधा- सत को नवाण-
सा धत ह र ा- योग सेवाधा-मु कया जा सकता है ।इसकेलए
शुभमुत म- शारद य नवरा ा द म- ह र ा-साधन करना वशे ष
मह वपूण होता है।इस कार स ह र ा- थ को पीले कपड़े म
बां
ध कर भा वत पुष क दां यी भु
जा,एवं ी क बाय भु जा म
बां
ध दे
नेसेकाफ लाभ होता है । उ सा धत ह र ा को पीस
कर,जल म घोलकर भा वत केकमरे,व एवंव तर पर
छड़काव भी न य करते रहना चा हए।साथ ही उसी ह र ा को कमरे
म धूपत भी कर।कमरे क खड़क -दरवाज पर पीले कपड़ म बां ध
कर सा धत ह र ा क गांठ को था पत कर द।इससे बारबार
भा वत करने वाली ेतवाधा म काफ कमी आये गी।जल या ध म
घोल कर सा धत ह र ा को पलाने सेभी काफ लाभ होता
है
।साधक को शारद य नवरा म वशे ष मा ा म ह र ा का
अ भमंण-पू जन लोक-क याणाथ करके सु
र त रख ले ना
चा हए। वशेष प र थ त म त काल साधना से भी काम हो सकता है -
मह व इस बात का है क साधक का आ मबल और उ वषयक
साधना बल कतना- या-कै सा है

v ह र ा- थ-माला- ह द क गाठ क माला का त म काफ
मह व है ।आजकल बनी-बनायी माला भी पू जन-साम ी- व े ता के
यहाँ उपल ध है,जो सूखी ह द क गाठ से बनायी जाती ह।अ य
माला क तरह इ ह भी खरीद कर सं का रत कर उपयोग कया
जा सकता है ।चूँक माला अपने हाथ से गू

थनेका नषे ध ा -
करण म कर आये ह,अतः उ चत है क बाजार सेतैयार ह र ा माला
ही खरीद लया जाय।ऊपर व णत मुय तीन दे वता -
वृह प त,गणप त और बगला केकसी भी मं- योग केलए ह द
क माला ेमानी गयी है ।ह द - न मत माला म एक महान दोष ये
है क यह अ य मनक क तरह द घ थायी नह ह-
ा ,जी वतपुका,प ाख आ द क तरह ल बे समय तक इसे
सहे ज कर रखना बड़ा क ठन होता है - क ड़ेलग जाते ह,और सं कार-
म थ हो जाता है । फर भी दो बात का यान रखगे तो अपेाकृ त
द घ- थायी हो सकता है - एक तो यह क सं का रत माला का
नय मत जप- योग हो,और सरी बात यह क समय-समय पर
मनक म घृ तलेप कर दया कर।माला को अ या य क सेबचाने
का भी नयम है - पात से माला का गुण न होता है - इसका यान
रखतेए स भव हो तो कभी-कभी एका त म खु ली घूप म रख द।
जपमा लका म कपू र केटुकड़े डालकर रखने सेभी ह द क माला
को द घजीवन दया जा सकता है ।देवदार,गुगु
ल,धूना(लोहवान नह )
आ द से समय-समय पर धू पत करने सेभी काफ लाभ होता है । एक
स जन तो फे नाइल आ द रसायन का योग कर दे तेथे - सु
र ा के
लए,जो क सवथा गलत है

Y कृणह र ा-( व श ह र ा)- समा यतया ह द का रं ग पीला ही
होता है
,पर तुएक खास तरह क ह द भी होती है ,जो यामवण
होती है
,और इसका गं ध भी सामा य ह र ा सेक चत भ होता है -
इसम कपू र जैसी मादक गंध होती है
।इसका एक अ य नाम नरकचू र
भी है।त शा म इसका वशे ष मह व है।साधना और योग क
शेष व धयाँ पू
ववत ही होती ह।पीत ह र ा केसभी गु
ण इसम
व मान ह,इसके अ त र कु छ व श गु ण भी ह-
Ø उ माद नाशक- याम ह र ा को ताबीज म भरकर पीले धागेम
गू

थकर र ववार को गले म धारण करा दे
नेसे उ माद रोग का नाश
होता है
।अ न ा, मग ,योषाप मार( ह ट रया) आ द व भ मानस
ा धय म भी अ त ुलाभ होता है ।
Ø अ य-बाधा- नवारण- याम ह र ा क सात,नौ, यारह गांठ क
माला बनाकर पु
नः धू
प-द पा द सं
कार करकेकसी र व या मं गलवार
को गलेम धारण करा दे
नेसे सम त वाय दोष- टोने
-टोटके, ह,भू
त-

ता द व न का शमन होता है।
Ø सौ दय साधन- सामा य ह र ा क तरह याम ह र ा का भी
सौ दय- साधन म योग कया जाता है -उसके साथ भी या अकेले
ही।जल या ध केसाथ लेपन अ त गुणकारी होता है

१०.नागके
सर
नागकेसर व श वन प तय क े णी म है
।यह च दन क तरह
अ त प व और तदनु सार भावशाली भी है ।इसे नागेर भी कहते
ह। प म कबाबचीनी से ब त सा य रखता है।दोन म छोट डं डी लगी
होती है
।अतः पहचान म म हो सकता है ।काली मच के समान गोल-
गोल दाने
( क तुखु रदरेनह , चकने
) होतेह।गुछेदार फूल बड़े ही
खूबसूरत लगते ह- मादक गंधयु।प रप व फल का रं ग थोड़ा
गेआ होता है ।पौधे का आकार महद सेमलता-जु लता है
।वै
से यह
कोई लभ वन प त नह है ।जं गल म चु र मा ा म उपल ध है । जड़ी
ट व े
-वू ता के यहाँआसानी से उपल ध भी है ।आयु वद म इसके
अनेक योग ह।व य,कफ न,और सौ दय-वघक भी है ।
नागके सर शव को अ तशय य है ।धतूर, व वप और वजया(भां ग)
तो ायः व त होता है , क तुशवपू जन म नागके सर भी उसी
णी म है
े ,भले ही अ च लत हो।उ चत तो है क पहचान कर सीधे
जंगल से ही ताजेप म इसेहण कया जाय।शहरी रहन-सहन म
सीधे पौधेसेहण करना स भव न हो तो पं सारी के
यहाँसेही उ चत
काल म य कया जा सकता है ।हाँ
,इतना यान अव य रखा जाय
क देखने म व छ और ताजा हो।
इसका स ब ध शव से है
,अतः सोमपुय योग यानी जस सोमवार को
च मा का पु यन पड़े, उसी दन खरीदकर घर लाना चा हए।वष
म एकबार- चौदह-प ह दन केलए आने वालेसूय केपुयन
म जो सोमवार पड़े
- वह सव म नागके सर- हण-काल होता है।वै
से
ायः कसी भी वन प त को हण करने का यह सव म काल
है
।एकबार ही यथेमा ा म यकर ले, ता क वषभर चल सके

नागके सर- योग- व धवत लायी गयी कसी शव लग(अ या स हत)
को ाण त ा- व ध सेथा पत करके अ याय पूजन साम य
स हत नागके सर को भी अ पत करे
- च दना द क तरह। यात है
क गृ ह थ केघर म आठ अं गल
ुसे ऊँची कोई भी दे
वमू त क थापना
नह करनी चा हए- बड़ी मू तय क थापना घर से बाहर म दर म
होती है
।दोन का थापना- वधान क चत भ होता है ।अ य नयम
मयादा म भी काफ अ तर होता है ।इस वषय क वशे ष जानकारी
कमका डी यो य आचाय से करनी चा हए।" त ामयू ष" आ द
थ म इसका वशद वणन उपल ध है ।पु
राण म भी देवा दमूत-
थापना का वशद वधान व णत है ।
उ था पत शवमू त के पास बै
ठकर पंचोपचार पू
जनोपरा त
यारह हजार ी शवपं चा र मंका जप करे ।जप करते समय
नागकेसर को पीतल या तांबेकेपा म सामने रख ले और भावना
करेक मंक व त ुतरंग नागकेसर म व हो रही ह।जप अपनी
सुवधानुसार एक ही दन म या क वभा जत म म भी कया जा
सकता है।जप पूरा हो जानेपर त दशां
श होमा द व ध भी स प
कर।
Y ी-समृ हेतु- इस कार स नागके सर को नवीन पीत व
म रख कर साथ म ह द क एक गांठ,सु
पारी,अ त, तां
बेका स का
आ द डाल कर पोटली वनाकर,पु
नः कसी पा म रखकर व धवत
पू
जन करे- उस पोटली को ही शवमूत क भावना से।पू
जन परा त
तजोरी,ब से या आलमारी म थायी तौर पर था पत कर दे
।आगे
अ य दन धू पा द नवेदन करतेए हो सके तो कम सेकम एक
माला ी शवपं चा र मंका जप वह बै ठ या खड़ेहोकर कर लया
करे
। शव क कृ पा से
" ी" क ा त का यह अ त ु योग है।
Y वशीकरण- सोमपु य,र वपुय अथवा गुपुय योग म पू
व वध
सेस नागके सर केसाथ चमे ली पु
प,कू
ठ,तगर,और कुमकुम
मलाकर महीन चू
ण बना ल,और गोघृत केसाथ मलाकर ले प
तै
यार कर ले।इस लेप को न य नान केप ात्च दन क तरह
उपयोग करने सेयोगकता म अ त ुस मोहन मता आजाती
है
।घनीभूत चेतना पू
वक जसपर पात करता है,वह णभर म ही
वशीभूत हो जाता है
- ापर। क तुयान रहे- वाथ केवशीभू त
होकर इस योग को कसी गलत इरादे सेन कया जाय,अ यथा लाभ
केबदले हा न क अ धक आशं का है
।त लोक-क याण केलए
है
।लोक-क याथ इसेकसी को अ भमंत कर(उभयप के नाम
स हत) दया भी जा सकता है। पयोग से दोन क हा न है

११. कमल
कमल एक ब च लत जलज पु प है
,जो तड़ाग म अपनी
शोभा वखेरता है
।लाल,गु
लाबी, सफे
द, पीला,नीला,आ द इसके कई
रं
गभेद
ह।अ बुज,अ ज,जलज,बा रज,उ पल,प ,कोकनद,सर सज,तामरस,
शतदल, सह दल,राजीव, आ द कई नाम ह इसके । ल मीनारायण
का यह अ तशय य पु प है
।कमल एक वशुसा वक पु प है
-
सा वकता का सहज तीक।फलतः त शा म इसके सा वक
योग पर ही बल दया गया है
।क तपय ताम सक योग भी ह, क तु
उनक चचा यहाँ करना अनु चत-अ ासं गक सा लग रहा है।
जै
सा क ऊपर कह चु के ह- ल मीनारायण का य पु प है
।अतः
ल मीनारायण को वशीभू त करने क अ त ु मता हैइसम।एक
पौरा णक सं ग हैक राजीव लोचन ीराम एकबार शवाराधन म
संल न थे
। एक लाख कमल पु प से सा बसदा शव को स करने
का संक प था। न यानबेहजार नौ सौ न यानबे क संया पू
री हो
चुक थी,पर अभी पू त हेतुअ तम पु प उपल ध नह था,जब क
सेवक ने पू
री संया जुटायी थी। णभर केलए तो ीराम थोड़ा
च तत ए, क तु तभी उ ह यान आया क लोग तो उ ह राजीव
नयन कहते ह,और यह यान आते ही, चट उठाया कृ
पाण,और अपनी
दां
यी आँख नकालकर शव-चरण म सप पत करने को उ त ए;
और तभी सा बसदा शव उप थत हो गये ।यह हैीराम क भ क
श ।
कसी अभी क स म कमल का अ त ु योग
है
।१०८,१०००८,१००००८-कमल पु
प का त द मंसे समपण
अ तुचम कारी होता है
।ल मी- ा त हे
तु
- वशे
षकर का तक के
महीने
म वे
दो ीसू का पाठ करतेए ये क मंसे कमल-पु प
ीचरण म अ पत करना चा हए। न य या के प ात्गोघृ
त और
कालेतल से उ संया पय त आ त भी दान कर।
ी ब णुक स ता हे तुवेदो पुषसू का पाठ कर,और
येक मंपर एक कमलपु प सम पत कर- वशे
षकर वै
शाख-
अगहन-माघ के महीन म।सोलह दन के अनुान के
प ात्ी ब णु
के ादशा र मंसे अ ो र शत वा अ ो रसह आ त
घृ
त तला द साक य सेकरनी चा हए।
प ाख- योग- कमल के बीज को प ां ख या कमलगटा कहते
ह।ताजी अव था म इन बीज को छे दकर माला बनाया जा सकता
है
।सू
ख जाने पर बनाना ब त क ठन हो जाता है ।वैसेबाजार म
कमलगटे क बनी-बनायी माला भी उपल ध है ।सही थयु माला
खरीद कर पूव( ा अ याय म) व णत व ध से माला-संकार
करके उपयोग कया जा सकता है । थर ल मी क ा त हे तु यह
अ त ु योग है।ल मी केअनुान केलए ा क अपेा प ाख
का योग उ म माना गया है।अपने नामरा श से गणना वचार करके
कसी अनुकूल ल मी-मंका चु नाव करना चा हए।मंसु सा य हो
इस बात का यान रखना अ त आव यक है । सा य,अ र आ द मं
का चयन कदा प नह करना चा हए।मं- हण का वशद वणन मं-
शा म उपल ध है ।वैसेमे
री पु तक पुयाकमं द पका म भी
समयानुसार दे
खा जा सकता है।
कमल-मूल- योग- इसे पुकरमू ल भी कहते ह।जड़ी-बू टय क
कान म इसी नाम से उपल ध है । इसका उपयोग व भ आयु व दक
औष धय म कया जाता है ।मानस ा धय म इसका वशे ष योग
है
। तड़ाग सेताजा पु करमूल ा त करना स भव न हो तो पं सारी क
कान से खरीद कर योग कया जा सकता है ।र वपु य या गुपु य
योग म व धवत हण कया गया पु करमूल वशे ष कारगर होता
है
।आयु वद म व भ औष धय म इसका उपयोग होता है - खास कर
मानस- ा धय म। य क खास ा ध- योषाप मार( ह ट रया)म
अ तलाभकारी है ।समु चत मुत म हण कया गया पु करमू ल पू व
अ याय म व णत व ध सेथा पत-पू जत करके खाकर चू
,सु ण
वनाकर, जौ केवाथ अथवा चावल सेनकले मां
ड़ के साथ कम से
कम तीन माह तक ातः-सायं एक-एक च मच योग करने से ज टल
योषाप मार भी सा य होजाता है।आयु वद थ म अपत क चू ण
का वणन है।इसम पु करमूल का योग होता है ।बाजार से तैयार
अपत क चू ण को भी नवाण मंसे अ भमंत कर योग कया जा
सकता है।पुकरमू ल फ ट-दो फ ट ल बा एक-दो च मोटाई लए
होता है
।काटने पर भीतरी थ त ठ क बै सी ही होती हैजै
सा क
भडी को काटने पर द खता है।मूल केछोटेटु
कड़ को धागे म गूं
थकर
माला बनाकर,सह नवाण मंा भ करके रोगी केगले म धारण
कराने से
अप मार(मृ गी, मरगी)रोग का शमन होता है।वौ क और
मान सक वकास केलए पु करमू ल का औषधीय योग भी
लाभदायक है ।
१२ लवं

"ल लत लवं ग लता प रशीलन,कोमल मलय समीरे ...."-
महाक व जयदे व क अमृ तवाणी लवंग के स ब ध म काफ कु छ कह
रही है।आयावत के द णी ा त म ब तायत से पायी जानेवाली
वन प तय म लवं ग लता भी एक है । सामा य उपयोग म आने वाला
ल ग इसी लता का सु ग धत पु प है
। ल ग इसका पयायवाची है ।ल ग
पु प का योग औष ध, साधन,एवं मसाले केप म होता है ।देव-
पूजन काय म नै वेोपरा त मु खशु थ ता बू ला द स हत ल ग का
योग अ नवाय प सेकया जाता है ।इसका एक नाम दे वपु प भी
है।पूजन-साम य म पु प का य द अभाव हो तो नसं कोच ल गपु प
का उपयोग कर ले ना चा हए।शहरी स यता म ताजे सु
ग धत पु प
का अ य त अभाव है ।वा टका से हत पु प न जानेकब देबशीष पर
अ पत होते ह- यह व च वड बना है ।शा का वचन है क
मालाकार गृ ह म पु प वासी नह होते ,जब क अपने घर म रात म(पू व
दन) हण कये गये पुप का अगले दन वहार म लाना न ष
है; क तुइसका यह अथ नह क जै से-तै
से,सड़े-गलेकई दन के
वासी फू ल को देव-पूजन काय म व त कर लया जाय।इससे
अ छा है क बना फू ल के ही पू
जन कर लया जाय या सव म है
देवपु प- ल ग का वहार करना।
त शा म ल ग को काफ मह वपू
ण माना गया है
।कु
छ खास
साधना म- भु
जयु
म,ज बु
क आ द म तो ल ग केबना काम ही
नह चलता।आयु वद म भले ही ल ग महा प शामक माना गया
हो, क तु
त शा का ल ग वायु शामक धान है।हर कार के
वाय वाधा म ल ग का त ा मक योग कया जाता है । कसी
कार क अ त र वाधा हो- दो-चार अ भमंत ल ग खलाते ही
सहज ही र हो जाता है
- मे
रा यह सह ा धक सफल योग रहा है ।
साधना और योग म अपेाकृ त आसान भी है

ल ग पर भगवती चामु डा क वशे ष कृपा है
।ता क उपयोग
करने केलए उ चत है क पंसारी क कान सेकसी महीने
म(खरमास छोड़कर) र वपु य वा गुपु य म खरीद कर ले आवे ।उनम
सेसाबूत ( जनम अ पु प भाग मौजू द हो) को त -काय म उपयोग
कर,शेष घर के अ य काय म योग कये जा सकते ह। चुने
- बने
व छ-साबू त ल ग को गं
गाजल से शुकरके नवीन लाल व का
आसन दे कर ता पा म सामने रख कर ी शवपं चा र एवं दे
वी
नवाण मं का कम से कम यारह माला जप कर ल। यात है क
जप से पू
व ल ग का सामा य प से पंचोपचार पूजन करना न
भूल,े
और जपा त म दशां श होमा द भी अव य स प कर- जै सा क
येक वन प तय के ता क योग म पहले भी नदश कर आये
ह।मा इतनी या से ही आपका ल ग अभी काय केलए स हो
गया।अ भमंण-पू जन क यह या शारद य वा वासं तक नवरा य
म भी कया जा सकता है - उस बीच र वपु य-गुपु य योग भी मल
जायेतो सोने म सु
ग ध। इस कार सा धत ल ग-पु प को उसी व
म वेत कर कसी ड बे म सुर त रख ल।
ल ग के
ता क योग-
v ेतवाधा -- कसी भी ेतवाधा सत को उ सा धत ल ग
म सेनौ नग नकाल कर पु नः नौवार पू
व मंा भ ष कर के पुष
क दा हनी,एवं ी क वाय भु जा म, लाल कपड़ म लपे टकर तीन
ल ग बां
ध द,एवंशेष छः को एक-एक करके सुबह-दोपहर-रात खाने
का नदश दे द।दो दन के इस योग मा से ही सामा य ेत-वाधाय
र हो जायगी।मनेब त बार तो ऐसा भी दे
खा है क आवे शत
उस अ भमंत ल ग को बं धवाने या खानेसेघबराता है।वै
सी थ त
म बल योग करने क भी आव यकता पड़ती है ।कुछ साधक इस
काय केलए ी हनु मद् मंका भी योग करते ह। पशाच-मोचन हे तु
हनुमान जी क आराधना ब स है ।अतः सुवधा और ानु
सार
योग कया जाना चा हए।
v वशीकरण- शुभ और लोक-क याण भावना से स मोहन-वशीकरण
करने हेतु
उ व ध से सा धत ल ग का योग बड़ा ही कारगर होता
है
।इस काय क स हे तु स मोहन-वशीकरण- मुत और काल- हर
ान स हत योग करने
से अ त ुलाभ होता है

v ी समृ - धन क लालसा तो सभी को होती है
।अतः इसक
स यक पू त केलए अपने
इ दे
व को ल गपु प नय मत अ पत
करना चा हए- यात हैक अपण के समय मन ही मन अपना
अभी मरण करतेए याचना करे ।
v ज बु
क साधना- आगेृ
गाल गी अ याय म इसका वशे
ष वणन
है

v भु
जयु
म-साधना- गत सं
ग म हाथाजोड़ी क चचा हो चु

है
।हाथाजोड़ी क ता क साधना म ल ग का योग वशे ष प से
करना चा हए।पू
व सा धत हाथाजोड़ी को न य ल ग सम पत करने
से
उसक या-श म वकास होता है ।
v द तपीड़ा, वरभंग आ द म ल ग का औषधीय योग ब ु त है।द त
-का त हेतु मं
जन म इसका उपयोग कया जाता है
।ल ग केसु
ग धत
ते
ल को थोड़ी मा ा म ई के फोयेम लगा कर भा वत दां
तम
लगाना चा हए।ल ग के योग से मु
ख एवंदां
त क अनेक बीमा रयाँ
र होती ह।

१३. कपू

कपूर,कपू
र,काफू
र,कैफर(CinnamomumCamphora)
--एक अ त उड़नशील, वलनशील,सु ग धत, वे
त-दाने
दार पदाथ
है।व तु
तः यह
एक वशालकाय,ब वषायु लगभग सदावहार वृका रवादार स व
है
,जो वृके लगभग सम भाग सेा त कया जाता है ।इसका वृ
ए शया केव भ भाग म पाया जाता है ।भारत, ीलं
का,चीन,
जापान,मले शया,को रया,ताइवान,इ डोने शया आ द दे
श म
ब तायत से पाया जाता है
।अ य देश म भी यह से लेजाया गया
है
।कपूर का वृ100 फ ट से भी ऊँचे आकार का पाया जाता
है
।इसी तरह आयु म भी हजार वष पु रानेवृपाये गयेह।इसके
सुदर अ त सुग धत पु प और मनमोहक फल तथा प याँ बरबस
ही अपनी ओर आकृ करते ह।यही कारण है क कह -कह इसे
गा रक वृकेप म भी अपनाया गया है

ृ ।प याँ बड़ी
सु दर, चकनी,मोमी, ला लमा यु हरापन लए होती ह,जो आकार म-
आठ से प ह स.मी. ल बी और तीन से सात स.मी.चौड़ी होती
ह।कु छ प याँ क चत गोलाकार भी होती ह।वस त ऋतु म छोटे-
छोटे अ त सु ग धत फू ल लगतेह।इसके फल भी बड़े मोहक होते ह-
वे
री क तरह, ज ह प य ारा खाने और यहाँ -वहाँ वखे रने के
कारण मू ल बृसे सुर इलाके तक बीज का थाना तरण और
त परा त समय पर अं कुरण होता है
। कपू र वृक लक ड़याँ सुदर
फन चर के काम म भी लायी जाती ह,जो काफ मजबू त और टकाऊ
होती ह। ौढ़ पौधे सेा त लक ड़य को छोटे -छोटेटुकड़ म काट
कर,ते ज ताप पर उबाला जाता है । फर वा पीकरण और शीतलीकरण
व ध से रवादार (Crystalline substancec) बनाया जाता
है
।इसके अलावे अक और ते ल भी बनाया जाता है ; जसका योग
साधन एवं औषधी काय म ब तायत से होता है।आयु वद म इसके
अने क औषधीय योग का वणन है ।अंे जी और हो मयोपै थी
दवाइय म भी कपू र का योग होता है।कपू र उ चको ट का
क टाणु नाशक, णरोपक, वर न,शोथ-कोथहर,अ तसारहर,दद
नवारक पदाथ है ।यह शीतवीय है । यानी ताशीर ठंढा है। वशेष मा ा
म सेवन सेक चत वषा भी है ।भारतीय कमकां ड और त म तो
कपू र रसाबसा है ही।आजकल मलावट सामान का बोलबाला
है
। ापारी इसके दान म मोम डाल कर मोट पपड़ीदार बना कर
बे
चते ह।मोम केमलावट से इसक गु णव ा म काफ कमी आजाती
है
। क तु एक लाभ यह होता है क इसक उड़नशीलता म कमी
आजाती है ।वैसेउ चत है क कपू र को नवात (airtite) ड बेम रखा
जाय,और साथ म ल ग या गोल मच डाल दया जाय।इससे उड़ने क
मता न के बराबर होजाती है
। कपूर को जलाने पर भारी मा ा म
काला धुआं (काबन) नकलता है । याँ ह द -चू
ण के साथ कपू र को
मलाकर व छ कपड़ म लपे टकर व तका बना, तलते ल या घृतदप
व लत कर कपू र-क जली को एक कर ले ती ह।पुनः उस
क जली म यथेमा ा म शुघृ त म त कर जलधार दे कर
बार बार ले
पन कर वकार-मु बनाकर आं ख म लगाने हे
तुकाजल
बनाती ह।ह द -कपू र-घृ
त न मत यह क जली आं ख केलए बड़ा
ही गु
णकारी है।
· कपू
र केव भ योग-
· १) कपू
र एक सा वक पदाथ है ।त -साधना म सा वक काय
केलए ही इसका वशे ष योग कया जाता है । व भ कार के लेप
और तलक तै यार करनेम कपूर का उपयोग होता है
।आरती-
द प,हवना द म भी उपयु है ।दे
वाराधन म अ या य उपचार के बाद
घृतव तका के वजाय कपू र क आरती अ त मह वपू ण माना जाता
है। ीय या अ याय यं-ले खन म( यात य है क अलग-अलग
देवता के अ ग घ भी अलग-अलग होते ह) मसी ( याही) नमाण
म कपू र का योग आव यक है ।मसी नमाण म कपू र मला देने
से
या क गुणव ा बेहद बढ़ जाती है।व तु
क ता क गु णव ा म
भी वढो री हो जाती है
। कसी भी अनुान-पूजा-साधना म जै से
धू ना
या लोहवान का योग कहा गया है,वै
से ही मे
रेवचार सेपू
जा- थान
के आसपास कपू र व लत कर दे ना अ त लाभकारी होता है
।कपूर
को हाथ से मसलकर आसपास वखे र दे
नेसेभी वातावरण क शु
हो जाती है
। पू
जा- म म कई बार कपू र का योग कया जाना
चा हए- ार भक थान शोधन, वलन, तलक और मसी
नमाण,जलपा शोधन,मु खशु ता बू ला द स हत,और अ त म
आरा तक अपण।
· २) वा तु
-दोष नवारण केलए पीले
व म वेत कर कपू र
क पोटली को घर के चार कोन और म य म समु
चत थान पर टां

देना चा हए।
· ३) आकषण- योग के अ तगत कसी मृ ता मा को आ त
करने केलए सव थम क म कपू र क धूल को वखे र दे
ना
चा हए।त परा त कपू
र का द पक जला कर रख द।कपू र केनकला
धूम मृ
त ा णय को वशे ष य है । यात है क े त-आवे शत
को कपू
र सेक होता है। तां
शा- भाव –जांच हेतुयह नु
खा
अपनाया जा सकता है
।मृता मा को आ त कर मनोवां छत वाता का
वधान भी त का वषय है ।इस या को अलग से म अपने संह म
थान ं
गा। ज ासु को वह सेहण करना चा हए।
· ४) य -ले खन ायः भोजप (वृ वशेष क छाल) पर कया
जाता है
।य -ले खन म यु मसी म कपूर का म ण अव य करना
चा हए।कपू र को जलाकर उसक क जली को घृत म त करकेभी
मसी तैयार क जाती है
।श न-य -ले
खन म कपूर-क जली का
उपयोग वशेष भावशाली होता है
। था य व क सेता ा द
धातु पर उ क ण व भ य का वशे ष मह व है
।यहाँ
य -
ले
खन क बात तो नह आती, क तु य -पू जन म अ ग ध नमाण
करतेसमय कपू र अव य उपयोग करना चा हए।इससेय क ऊजा
म वकाश होता है।
· ५) ह तरे
खा वशे
ष ारा कपू
र-क जली का उपयोग कया
जाता है

कपूर-क जली अथवा अ ग ध नमाण केलए कोई भी


आमाव या( वशे ष कर द पावली) का शु
भ मुत चयन करना
चा हए।र वपुय,गुपुया द योग भी ेय कर ह। वजय क कामना से
दे
वी-अ ग ध का नमाण वजयादशमी को सायं काल म करना उ म
है
।अ य (या म त) उ े य हे
तुनवरा केकसी दन म कया जा
सकता है।

१४.नागदमनी

वन प त-जगत म अनेकाने
क पौधेह, जन सबका व तृत गु
ण-धम-
सं
कलन कसी एक भाषा क पु तक म एक कर दे ना अस भव नह
तो क ठन अव य है
। आयुवद का नघ टुसंह काफ हद तक इस
ेम काम कया है।आधु नक वन प त व ान भी नत नूतन शोध
म जुटा है
; क तु
मु
झेलगता हैक पु
राने को ही नयेअ दाज म दे
खने
भर-का जतना यास कया जा रहा है - उतना कसी नये पर यान
नह दया जा रहा है
।असंय वन प तयाँ अभी भी उपेत ह हमारे
चार ओर।नागदमनी भी कुछ वै
सा ही वन प त है।
अपनी हरी तमा और द डाकार सं रचना म शोभायमान नागदमनी
महज बाढ़ लगाने के काम तक समट कर रह गया है ।कह -कह
एकाध गमले म भी द ख पड़ता है ।नागदमनी के प ेगहरेहरेरं

के,त नक लंबाई वाले,तदनु
सार चौड़ाई भी थोड़ी ही- ऊ वमुखी
शाखा पर अ प संया म ही होते ह।कम जल और कसी भी
वातावरण म जी वत रहने वाला नागदमनी के डंठल को तोड़-काट
कर भी आसानी से लगाया जा सकता है ।एक और वशे षता यह भी है
क पशु इसे खातेनह - यही कारण है क घेरे
ब द म सुर त-उपयोग
होता है
।नागदमन,दपदमन,नागपु पी,वनकु मारी केसाथ सपदमन नाम
से भी जाना जाता है
।मा यता हैक इसके आसपास सप नह
आते ।यही कारण है क जानकार लोग गमल म स मान पू वक थान
दे
ते ह।त - थ म महायोगेरी नाम सेयात है ।

ायो गक या- र वपुय योग म नागदमनी क जड़ व धवत(पू व


अ याय म क थत व ध से ) हण कर जला द शु -सं कार करके
नवीन लाल व का आसन दे कर पी ठका पर था पत कर यथोपचार
पू
जन करना चा हए।पू
जन के प ात् कम सेकम यारह माला ी
शवपं चा र मंएवंनौ माला दे
वी नवाण मंका जप कर,पु
नः
पं
चोपचार पू
जन करना चा हए।तथा सामा य साक य(काला
तल,तदघ चावल,तदध जौ,तदघ गूड़, तदध घृ त) सेकम से
कम
अ ो रशत तततत मंो से होम भी अव य कर।इतनी या से
ता क योग केलए नामदमनी तै यार हो गया।इसके योग अ त
सी मत ह।यथा-
Ø मे
धा-श -वधन- म दबु बालक को सा धत नामदमनी मू ल को
भ ा द र हत कसी र ववार या मं
गलवार को ताबीज म भर कर लाल
धागेम परोकर गले या बां
ह म बां
ध दे
ने
सेअ त ुलाभ होता
है
।सामा य बालक के बौ क वकास हे तु
भी यह योग कया जा
सकता है।
Ø स मान-यश- वजय- ा त हेतु
- आयेदन हम दे खतेह क अकारण
ही ायः लोग को अयश और अस मान का सामना करना पड़ता
है
।हाला क उसके अने
क कारण ह।कारण चाहे जो भी ह ,ऐसी थ त
म नामदमनी का योग बड़ा ही लाभकारक होता है
।करना सफ यही
हैजो ऊपर के योग म बतला आए ह- यानी ताबीज म भर कर
धारण मा ।
Ø धन-वृ हे तु
- र वपुय योग म आम ण व ध से (पू
व अ याय म
व णत) नागदमनी का पौधा घर म ले
आय और नये गमले म रोपण
करके,ऊपर बतलायी गयी व ध सेथापन पू
जन-जप-होमा द स प
कर।( यात है क गमले म रोपण करने
सेपूव थोड़ा सा मू
लभाग
तोड़कर अलग रख ल,और सारी व धयाँ साथ-साथ उसकेलए भी
करतेजाएं)।इस कार सा धत नामदमनी केपौधेको घर के म यो र
भाग म था पत कर द और न य जलापण कर णाम करके ,कम से
कम एक माला ी महाल मी मंका जप सु वधानु
सार खड़ेया बै

कर कर लया कर।सा धत जड़ को ताबीज म भर कर लाल धागे म
परोकर गलेया बां
ह म बां
ध ल।आप अनु भव करगेक थोड़ेही दन
म धनागम केनयेोत खु ल रहे
ह,साथ ही पहले
केहोतेआरहे धन
का तकू ल वाह भी क गया है ।
Ø ह-दोष- नवारण- उ वधान से सा धत नागदमनी क जड़ को
ताबीज म भरकर धारण करन सेव भ हदोष का नवारण होता
है
,साथ ही अ त र वाधा का भी शमन होता है ।घर म पू
व व ध से
था पत करने से मकान पर पड़ने वाला ह का तकू ल भाव भी
न होता है। यात है क मकान क र ा केलए नागदमनी का
थापन-पूजन तो पूव व ध से ही होगा, क तुगमले का थान मुय
ार क सीध म होना आव यक है ।सु वधा हो तो मुय ार के दोन
ओर एक-एक गमले रख सकते ह। सरी बात यान म रखने यो य है
क य द पहले से आपका मकान भू त- ेत-वाधा से सत है ,तो
वै
सी थ त म नागदमनी क थापना के पू
व वशे ष जानकार
वा तु
शा ी से परी ण कराकर,शा तकम अव य करा ल,अ यथा
उलटा भाव हो सकता है ।इस बात को य समझ क घर म अवांत
का वे श हैय द, तो पहले उसेबाहर करल,तब दरवाजा ब द
कर।नामदमनी का सु र ा कवच अपनी थापना के बाद अवांछत को
आने नह देगा, क तु पहले सेजो घर म उप थत है उसेबाहर नह
करेगा,और सरी ओर मुय ार नागदमनी-कवच से अव हो जाने
केकारण अवां छत पदाथ चाह कर भी बाहर नह नकल
पाये
गा।प रणाम यह होगा क वह घर के
अ दर ही उतपात मचाता
रहे
गा।अतः सावधानी सेइसका योग करना चा हए।

१५. वजया
वजया का च लत नाम भां ग(भंग) है
।इसका एक ं गो
नाम शव या भी है - य क शव को वशे ष य है । शवाराधन म
अ य पू
जनोपचार के साथ व वप और वजया अ नवाय है ।
व वप का योग तो अ य दे व के पू
जन म भी होता है, क तु
वजया एकमा शव या ही है । ायः सव सु लभ ु प जातीय इस
वन प त केरोपण हेतुसरकारी आ ाप क आव यकता होती
है
, य क इसके सवाग म मादकता गु ण है।वै
सेजंगली वू टय क
तरह ायः जहां-तहांअवांछत प से उग भी जाता है
।भां गक
प य को पीस कर गोली बनाकर या शबत केप म लोग पीते
ह।नशेकेव भ पदाथ म वजया का नशा अपने आप म अनू ठा ही
है
।वै
सेयह शाही घरान से जुड़ा रहा है
। वजया का योग आयु वद के
व भ औष धय म होता है ।इसके कुछ ता क योग भी ह,जो
खासकर वा य से ही स ब धत ह। भां ग को एक खास व ध से
खास समय म योग करने से गु
ण म का फ वृ हो जाती है । योग
पू
व क व ध अ याय वन प तय जै सी ही है

बाजार सेयथेमा ा म भां
ग क सू
खी प याँ खरीद
लाय।उ तत होगा क यह काय ावण महीने
म कसी सोमवार को
कया जाय।झाड़-प छ कर व छ करने केबाद नवीन लाल व का
आसन देकर था पत कर और कम से कम यारह हजार शव
पं
चा र मंका जप कर।जप के पूव शव क पंचोपचार पूजन
अव य कर ल।साथ ही भां
ग क पोटली क भी पू
जा कर- उसम शव
को आवा हत करके
।इस कार योग केलए बू ट तैयार हो गयी।
भांग के योग केलए कु छ सहयोगी घटक भी अ नवाय ह, यथा
- स फ,कागजी बादाम,काली मच, छोट इलाइची,गुलाब क
पंखुड़यां,केसर, ध और श कर( म ी)। भांग क मा ा (सामा य
जन केलए) न य एक ाम से अ धक नह हो।वैसे नशे के आद
लोग तो पांच सेदश ाम तक से वन कर ले
तेह।पर यह उ चत नह
है।समुचत मा ा म सा धत वजया का नय मत योग मे धा श को
बढ़ानेम काफ कारगर है । साल केबारह महीन म वजया योग के
लए अलग-अलग अनु पान का मह व त ा मक आयु वद म बतलाया
गया है
,जो न न ल खत ह-
* चै- ऊपर न द घटक के साथ योग कर।
च तन,धारणा, मरण-श को वजया से
काफ बल मलता है

* वैशाख- ऊपर न द घटक केसाथ योग कर।
च तन,धारणा, मरण-श केलए गु
णकारी है
। नायु
संथान के
लए अ त उ म है ।
* ये- इस महीने म उ घटक के साथ वजया-पेय तैयार कर,
सू
य दय केजतने समीप हण कर सके , उतना लाभदायी है
-
शारी रक बल-का त-सौ दय केलए।
* आषाढ़- इस महीने म वजया का नय मत से वन केश-क प का
काय करता है। योग क व ध बदल जाती है।उ महीन क तरह
पे
य केप म न ले कर,चूण केप म लेना चा हए साथ म च क का
चू
ण भी समान मा ा म मलाकर धारो ण ध या सामा य गरम ध के
साथ ले
ना चा हए।
* ावण- इस महीने म वजया-चूण के साथ शव लगी-बीज केचू

को मलाकर ध या उ घटक के साथ पे
य केप म से
वन करने से
बल-वीय-का त क बृ होती है।( शव लगी के
स ब ध म वशेष
जानकारी शव लगी अ याय म दे
ख)।
* भादो- इस महीने
म वजया-चू
ण को द ती-फल-चू ण केसाथ
समान मा ा म मलाकर ध केसाथ सेवन करनेसेमान सक
अशा त र होकर च क एका ता म बृ होती है ।सुवधा केलए
इसे
गोली बनाकर भी उपयोग कया जा सकता है

* आ न- इस महीने म वजया केप को समान मा ा म
यो त म त(मालकां
गनी) के
साथ चू
ण बनाकर ध केसाथ से
वन
करने सेते
जबल क बृ होती है।
* का तक- इस महीने म वजया के प को समान मा ा म
यो त म त(मालकां
गनी) के साथ चू
ण बनाकर बकरी केध के साथ
से
वन करने सेते
जबल क बृ होती है ।यानी अ य बात वही रही जो
आ न क थी, क तु अनु पान बदल गया। यात है क आयु वद म
अनुपान-भे
द सेएक ही औष ध अने क रोग म यु होती है ।त म
भी या भे द सेयोग और भाव म अ तर हो जाता है ।
* अगहन- इस महीनेम वजया-चू
ण को घी और म ी के
साथ
से
वन करने से
सम त नेरोग म लाभ होता है
। वथ भी ने-
यो त क र ा केलए इस योग को कर सकते ह।
* पौष- इस महीने म वजया-चू ण को काले तल के चूण केसाथ
सेवन करने सेने- यो त बढ़ती है।अनुपान गरम जल का होना
चा हए।कुछ लोग ध का अनु पान सही बतातेह, क तुमे
रेवचार से
काले तल के साथ ध सवथा व जत होना चा हए।इससे एक लाभ
तो हो जाये
गा,पर अनेक हा न के ार भी खुलगे।अतः इस नषेध का
यान रखना ज री है।
* माघ- इस महीनेम वजया-चू
ण को नागरमोथा-चू
ण केसाथ
मलाकर ध या गरम जल से से
वन करना चा हए।इससेशरीर का
भार बढ़ता है
(मोटे
लोग इसका योग न कर)।
* फा गुन- इस महीनेम वजया को चार गु
नेआंवले
केसाथ
मलाकर चू
ण बनाकर,गरम जल के साथ से वन करने
सेअ तु फूत
आती है
।वात,र ,नाड़ी सभी सं
थान का शोधन होकर शरीर का त-
श वान होता है।
इस कार साल के
बारह महीन म अलग-अलग घटक और अनु
पान
भे
द सेवजया क प का योग कया जा सकता है

.

१६. सहदे

सहदे
ई का एक और च लत नाम सहदे वी भी है
। ुप जातीय
बलाचतुय(बला,अ तबला,नागबला, और सहदे ई) समूह क यह
वन प त ायः ामीण इलाक म सव सु लभ है ,भले ही अ ानता वस
उपेत ायः है
।घास-फू
स के े
णी म माना जाने वाला सहदे

आयुवद और त म ब त ही उपयोगी है ।अनेक कार के
लोकोपकारी योग ह इसके ।
हण व ध- सव थम कसी र वपु य योग का चयन कर,जो भ ा द
र हत हो।अब उसके पू
व संया यानी श नवार क सं या समय जल-
अ त और सु पारी ले
कर ा पू
वक उ वन प त के समीप जाकर
नवे
दन कर - " कल ातः लोक-क याणाथ म आपको अपने घर ले
चलूग
ंा।" और अगले दन ातःकाल शु चता पूवक उसे उखाड़ कर
घर लेआय। यात है क हण से लेकर घर प चंने पय त
न नां
कत म का स यक् उ चारण करते रहना चा हए।माग म
कसी से बातचीत न हो।एका ता और उ े य- मरण सतत जारी रहे।
म - ऊँनमो पावत सव ोते त ी सवजनरं जनी सवलोक
वशकरणी सवसु खरं
जनी महामाईल घोल थी कुकु वाहा। (यह
एक का साबर मंहै
,अतः भाषायी वचार म न उलझ)
घर आकर सहदे ई पं
चाग को प व जल से धो कर पु
नः पं
चामृ

नान,एवं
शु नाना द या स प कर, तथा पं चोपचार वा
षोडशोपचार पू
जनोपरा त उ मंका अ ो र सह जप भी
स प कर। पूरी या बलकु ल एका त म, और गोपनीय ढंग से
स प करने का हर स भव यास कर। या मक त मयता के साथ-
साथ -दोष से
भी बचना ज री है

सू
य-च ा द हण, व भ नवरा याँ, खरमास र हत कसी भी महीने
क आमाव या आ द काल म र वपुय योग मल जायेतो अ त
उ म,या फर सूय के
पु यन म आने पर जो शुर ववार मले
उसेभी सहदे
ई-साधना केलए हण कया जा सकता है ।
सा धत सहदे
ई केव भ ता क योग-
v सहदे
ई के मू
ल भाग को लाल व म वेत कर तजोरी,आलमीरे
या अ ागार म था पत करनेसेअ -धना द क वृ होती है
।पु
राण
म व भ अ य पा क चचाय मलती ह। वहां भी कु
छ ऐसा ही
चम कार-योग है

v सहदे
ई के
मूल को गं
गाजल म घसकर ने म अ न करने
से
योगकता क म स मोहन- मता आ जाती है

v सहदेई केमू
ल को तल तेल म घस कर सव-वे
दना- त ी क
यो न पर ले
प करनेसेशी ही सव-पीड़ा सु
ख- सव म बदल जाती
है
,यानी सव हो जाता है

v सहदेई केमू
ल को लाल धागेम बां
ध कर सव-वे
दना- त ी के
कमर म बांध दे
ने
सेशी ही सव-पीड़ा सु ख- सव म बदल जाती
है
,यानी सव हो जाता है
। यात है क सव होते
ही कमर म बं
धा
मू
ल यथाशी खोल कर रख द,और बाद म कह वस जत कर द।
v सा धत सहदे
ई-पं
चाग को चू
ण करके
गोघृ
त के
साथ मा सक धम से
पां
च दन पू
व सेार भ कर पां
च दन बाद तक(पां
च-छः महीने
तक)
से
वन करनेसेस तान-सु
ख ा त होता है

v सा धत सहदे
ई-पं
चाग को चू
ण करके
पान म डाल कर गु त प से
सेवन करा दे
ने
सेअभी साधक केवशीभूत हो जाता है

v सा धत सहदे
ई-पंचाग को चूण करके
जल- म त तलक लगाने से
योगकता के मान- त ा क बृ होती है
।सामा जक- त ा-लाभ
केलए यह अ त ु योग है ।
v सा धत सहदे
ई-मू
ल को लाल धागेम बां
ध कर बालक केगले म
ताबीज क तरह पहना दे
नेसेथोड़ेही दन म ग डमाला रोग न हो
जाता है

v सहदेई को व धवत हण कर घर के वाय वा ईशान ेम
जमीन वा गमले म था पत कर न य पूजन कर कम से कम एक
माला पूव क थत म का जप करते रहने सेगृ
ह-कलहा द क शा त
होती है
,और वा तुदोष का नवारण होता है

v सा धत सहदेई-पं
चाग को चू
ण करकेगो ध अथवा जल केसाथ
न य सेवन करनेसे य के े त दर एवं
र दर म अ त
ुलाभ
होता है

v सहदेई के
अ य आयु व दक योग को आयु वद- थ म देखना
चा हए।बस सफ इस बात का यान रखना है क योग करने केलए
सा धत सहदेई का ही उपयोग हो ता क अ धक लाभाजन हो।
१८. गोरखमु
डी
गोरखमु डी एक सुलभ ा य वन प त है।इसके छोटे
-छोटे पौधे
गे,ं
जौ,र बी आ द के खेत म ब तायत से पायेजाते
ह। ायः जाड़े म
वतः उ प होने वालेयेबड़े
घासनु मा पौधेगम आते -आते प रप व
होजातेह।दो-तीन च ल बी दांते
दार प य के ऊपरी भाग म, गुछ
म छोटे
-छोटे घुडीदार फल लगते ह,जो व तुतः फू
ल के ही सघन
प रव तत प ह।ये पौधेयदाकदा जलाशय के जल सू खजाने के बाद
वहाँभी वतः उ प हो जाते ह।आयु वद म र शोधक औषधी के
प म इसका उपयोग होता है।
ऐसी मा यता है क इसके ता क योग के जनक त गु
गोरखनाथजी ह,और उनके नाम पर ही सामा य मुडी गोरखमु
डी हो
गया।पू
व अ याय म व णत व ध से इसेहण करके उपयोग करनेसे
कई लाभ मलते ह।
Y त - स गोरखमु डी को (पं
चाग) सु
खा कर चू
ण बनाल।इसे
शहद केसाथ न य ातः-सायं एक-एक च मच क मा ा म खाने से
बल-वीय, मरण- मता, च तन और धारणा तथा वाचा-श का
वकास होता है

Y इसके चूण को रात भर भगोकर,सु
बह उस जल सेसर धोने
से
के
श-क प का काय करता है

Y गोरखमुडी के ताजेवरस को शरीर पर लेप करने
सेताजगी
और फूत आती है
। वचा क सुदरता बढ़ती है

Y गोरखमु डी केचू
ण को जौ केआटे म मलाकर(चार-एक क
मा ा म),रोट बनाकर,गोघृ
त चु
पड़ कर खाने सेबल-वीय क बृ
होकर वुढ़ापेक झु रयांमटती ह।शरीर का तवान होता है

Y गोरखमु डी का से
वन षत र को व छ करता है
।वभ
र वकार म इसेसे
वन करना चा हए।
उ सभी योग सामा य औष ध केप म भी कये जा सकते
ह, क तु
ता क वधान सेहण करके ,सा धत करकेउपयोग म
लाया जाय तो लाभ अ धक होगा यह न त है ।

१७. अपामाग
अपामाग का च लत नाम चड़ चड़ी
है
।लटजीरा, चर चटा,और गा आ द नाम से भी इसेजाना जाता
है
। ुप जा तय यह एक सवसु लभ वन प त है
, जसका अंकुरण
बरसात केार भ म होता है ,और कई वष तक पुपत-प ल वत होते
रहता है
।अंकु
रण के दो-ढाई महीने
बाद पुपत होता है
,और जाड़ा
आते -आते सभी फूल प रप व फल म प रणत हो जाते ह।फल के
तु
ष भाग को रगड़ कर अलग करने पर सावां
क क ी क तरह छोटे -
छोटेचावल नकलते ह, जनका आयु वद और त म वशे ष योग
होता है
।साधु
-सं
तो केबीच इसका बड़ा ही मह व है, य क ु धा-
तृ
षा पर नयंण रखने म ब त ही कारगर है। गहरेहरे रं
ग क एक
च गोलाई वाली चकनी प यां वड़ी मनोहर लगती ह। यो तष
शा म बु ध ह क यह सं मधा माना गया है
।रं
ग-भेद से अपामाग
ायः दो कार का होता है- े त और र ।सामा य तौर पर यह भे द
प नह होता, क तु गौर से दे
खनेपर प य और डं ठल म क चत
रं
गभे द द ख पड़ता है
।इसके पौधेायः एक वष म ही सू ख जाते
ह, क तु कुछ पौधे
कई वष तक पुपत-प ल वत होतेए भी दे खे
गये ह। येपौधेबड़ेऔर पु रानेहोने
पर झाड़ीनुमा हो जातेह ।आयु वद
और त म इसके पंचाग का अलग-अलग योग है ।
अपामाग को कसी र वपु य योग म(भ ा द र हत) हण कया
जा सकता है , क तुसूय जब पु यन म ह ,उस व मलने वाले
र व या सोमवार को हण करना वशे ष लाभदायक माना गया
है
।कुछ लोग सौयपु य केबुधवार को भी हण करना उ चत समझते
ह।अ य वन प तय क तरह (जो पु तक केार भक अ याय म
प है ) ही इसे भी पू
व सं या को आमंण दे कर, अगले दन व धवत
पंचोपचार पूजन कर घर लाना चा हए। पू रेपौधेको जड़ स हत
उखाड़ कर ,घर लाकर हरे रं
ग केनवीन कपड़े पर आसन देकर
पंचोपचार पूजन करना चा हए।त परा त ी शवपं चा र,सोम
पंचा र,एवं बु ध पं
चा र मं का कम से कम एक-एक हजार जप-
दशांश होमा द स हत स प कर।इस कार अब अपामाग योग के
यो य तैयार हो गया।
अपामाग के
क तपय योगः-
Ø र अपामाग के डं
ठल सेनय मत दातुन करनेसे वाणी म अ त

चम कार उ प हो जाता है
। योग-कता क वाचा- स हो जाती
है

Ø लाल गा क जड़ को भ म करके , नय मत गो घ के
साथ एक
-एक ाम से
वन करने
वाले
द प त को स तान सु
ख क ा त होती
है

Ø अपामाग केबीज को साफ करके चावल नकाल ल।उन चावल
केदश ाम क मा ा लेकर आठ गु ने
गो ध म पू णमा क रात को
म के नवीन पा म पकाव।पू
री पाक- या म सोमपंचा र मं
का जप मान सक प से चलता रहे
।तैयार पाक को च मा को नै वे
अपण करके ा- े म स हत हण कर।इस पाक म अ त ु मता
है
। य,दमा जै
सी फे
फड़े क व भ वीमा रयां दो-चार बार के योग
सेसमू
ल न हो जाती ह।
Ø उ व ध से तै
यार पाक को हण करने
सेबल-वीय क बृ के
साथ ुधा-तृषा पर चम का रक प सेनयंण होता है
। कसी ल बे
अनुान म इस पाक का योग कया जा सकता है।एक सु पु व तृत
पौधेसेदो-सौ ाम तक चावल ा त कया जा सकता है,जो कई बार
योग करने हे
तुपया त है

Ø सा धत े
त अपामाग-मू
ल को पास म(पस आ द म) रखनेसे
अ या शत धनागम के ोत बनतेह।अ य क याणकारी लाभ भी
होते
ह।
Ø सा धत े त अपामाग-मू ल को ताबीज म भर कर लाल,पीले
या हरे
धागे
म गू

थकर गले वा वां
ह म धारण करने सेश ु
,श ,अ त र
आ द सेर ा होती है

Ø सा धत ेत अपामाग-मू
ल को जल म घस कर तलक लगाने
से
योग कता म स मोहन और आकषण गुण आ जाता है

Ø सा धत े त अपामाग-मूल को चू
ण करके हरेरं
ग केनवीन कपड़ेम
लपेट कर व तका बना, तल ते
ल का द पक व लत कर।उस
द पक को एका त म रखकर उसक लौ पर यान के त करने से
वांछत य दे खे जा सकते ह।मान लया कसी चोरी गई व तु
क ,अथवा गुमशुदा केबारे
म हम जानना चाहतेह,तो इस
योग को कया जा सकता है ।आपका यान जतना के त होगा,
य और आभास उतना ही प होगा।
Ø सा धत े त अपामाग-मूल को उ व ध से द पक तैयार कर,
द पक के लौ पर क जली(काजल) तै यार कर। हां
थ केअं गठ
ू ेके
नाखून पर ले
प करकेकसी वालक को आ त कर,और वां छत
का उ र जानने का यास कर।अं गठ
ूेपर लगे काजल म झां ककर
वालक रदशन के पद क तरह य दे ख कर बता सकता है , जो
काफ सट क होता है ।इस या को करने केलए साबर त के
क जली मंको साध ले ना भी आव यक है ,तभी सही लाभ
मलेगा।वैसेसामा य आभास इतने मा से ही हो जाये
गा।
Ø सा धत े
त अपामाग-मू
ल को जल म पीस कर शरीर पर ले
प करने
सेश ाघात का भाव न केबराबर होता है

Ø सा धत े त अपामाग क प य को जल के साथ पीस कर दं शत
थान पर लेप करनेसेव छु - दं
श का क नवारण होता है
।इस
योग म सा धत े त अपामाग-मूल को भी हण करना चा हए- इसे
आतु र को सु

घातेरहना चा हए।दोन योग एक साथ करनेसे शी
लाभ होता है।
Ø सा धत ेत अपामाग-मू
ल और प य को जल के साथ पीस
कर,अथवा चू
ण बनाकर एक-एक च मच क मा ा म हण करने से
व भ प ज ा धयां न होती ह।
Ø सा धत ेत अपामाग पंचाग को आठ गु ने जल म डाल कर
अ मांश वाथ बनावे। फर उस वाथ को तै ल-पाक व ध सेतल-
ते
ल म पका कर, स ते ल को छान कर सु र त रख ल।इसके ले
पन
का योग शरीर के अं
ग के जल जाने पर ,या अ य ण के रोपण म
करनेसेआशातीत लाभ होता है।मने इस योग को सकड़ बार कया
है
- जलनेका दाग तक मट जाता है। वचा के अ याय रोग म भी इस
अपामाग ते
ल का योग कया जा सकता है ।
Ø सा धत े त अपामाग पंचाग केभ म को दं
त-मं
जन क तरह योग
करनेसे द त, ज ा,तालु
,कं
ठ- वर मं
डल आ द केव भ रोग का
नाश होता है

Ø सा धत ेत अपामाग-मूल को लाल धागेम बां
ध कर सव-वे
दना
पी ड़ता के
कमर म बांध दे
ने
से सु
ख सव हो जाता है।कु
छ लोग इस
मू
ल को सीधेयोनी म रखनेका सु
झाव दे
तेह, क तु वहा रक प से
यह उ चत नह तीत होता।मूल को कमर म ही बां
धेऔर यान रहे
क सव होते
केसाथ,(त ण) ही कमर से खोल दे,अ यथा अपनी
ती श के भाव से गभाशय को भी बाहर ख च सकता है।

वन प तत म्
19
१८. गोरखमु
डी
गोरखमु डी एक सुलभ ा य वन प त है।इसके छोटे
-छोटे पौधे
गे,ं
जौ,र बी आ द के खेत म ब तायत से पायेजाते
ह। ायः जाड़े म
वतः उ प होने वालेयेबड़े
घासनु मा पौधेगम आते -आते प रप व
होजातेह।दो-तीन च ल बी दांते
दार प य के ऊपरी भाग म, गुछ
म छोटे
-छोटे घुडीदार फल लगते ह,जो व तुतः फू
ल के ही सघन
प रव तत प ह।ये पौधेयदाकदा जलाशय के जल सू खजाने के बाद
वहाँभी वतः उ प हो जाते ह।आयु वद म र शोधक औषधी के
प म इसका उपयोग होता है।
ऐसी मा यता है क इसके ता क योग के जनक त गु
गोरखनाथजी ह,और उनके नाम पर ही सामा य मुडी गोरखमु
डी हो
गया।पू
व अ याय म व णत व ध से इसेहण करके उपयोग करनेसे
कई लाभ मलते ह।
Y त - स गोरखमु डी को (पं
चाग) सु
खा कर चू
ण बनाल।इसे
शहद केसाथ न य ातः-सायं एक-एक च मच क मा ा म खाने से
बल-वीय, मरण- मता, च तन और धारणा तथा वाचा-श का
वकास होता है

Y इसके चूण को रात भर भगोकर,सु
बह उस जल सेसर धोने
से
के
श-क प का काय करता है

Y गोरखमुडी के ताजेवरस को शरीर पर लेप करने
सेताजगी
और फूत आती है
। वचा क सुदरता बढ़ती है

Y गोरखमु डी केचू
ण को जौ केआटे म मलाकर(चार-एक क
मा ा म),रोट बनाकर,गोघृ
त चु
पड़ कर खाने सेबल-वीय क बृ
होकर वुढ़ापेक झु रयांमटती ह।शरीर का तवान होता है

Y गोरखमु डी का से
वन षत र को व छ करता है
।वभ
र वकार म इसेसे
वन करना चा हए।
उ सभी योग सामा य औष ध केप म भी कये जा सकते
ह, क तु
ता क वधान सेहण करके ,सा धत करकेउपयोग म
लाया जाय तो लाभ अ धक होगा यह न त है ।

१९. बहे
ड़ा
फला समू ह का एक घटक – बहेड़ा का संकृत नाम
वभीतक है। ह द म इसे बहेरा कहतेह। इसका एक ता क नाम
भूतवृभी है ।मा यता है क बहेरा के
वृपर आ ढ़ होकर,अथवा
इसके तल म आसन लगाकर साधना करने सेवशेष लाभ होता है
-
या शी फलीभू त होती है
।इसकेवशालकाय वृजं गल म
ब तायत से पायेजाते ह।बहे ड़ा केफल केवक भाग को व भ
आयु व दक औष धय म योग कया जाता है ।बड़े मटर स श कठोर
बीज के अ दर क ग र का भी औषधीय उपयोग होता है ।खाने म
कुछ-कुछ च नयां वादाम जै सा वाद होता है इस अ तः म जा
का।त शा म बहे ड़ा के मू
ल, वक और प भाग का उपयोग
कया जाता है ।मंशा म साधना के यो य न द अ य थान के
साथ बहेड़े क भी चचा है । कसी जलाशय(नद -तालाब) के समीप
बहेड़ा का वृहो तो रा म उसके नीचे बैठ कर ता क
याय(जपा द) करने सेआशातीत सफलता मलती है ।यो गनी और
य णी साधना म बहे ड़ेक शाखा पर आ ढ़ होकर जप करने का
वधान है।समा य आसन और थान क तु लना म वभीतक-शाखा ढ़
साधना अन त गु ना फलदायी होती है ।सीधेवभीतक-साधना भी
करने का वधान है - इसम चय नत वभीतक वृको ही ता क
या ारा सा धत कर लया जाता है , जसका उपयोग साधक अपनी
आव यकतानु सार करता है ।इस कार एक सा धत वभीतक वृसे
सौकड़ -हजार लोग का क याण कया जा सकता है । क तु उस
सा धत वृक मयादा क सु र ा एक ब त बड़ी ज मे वारी हो जाती
है
- उस साधक केलए। य क जाने -अनजाने य द कसी अ य
ने
उसका योग कर लया तो भारी परे शा नय का सामना
करना पड़ सकता है ।मे
रेएक स ब धी स जन ने अपने घर के समीप
व धवत तालाब खु दवाया।उसकेपड पर चार ओर व भ उपयोगी
वन प तय को था पत कया।नै ऋ य कोण पर वभीतक वृ
लगाये।समु चत वकास के बाद उसक व धवत साधना स प
क ।जीवन भर काफ लाभ उठाये- नाम,यश,क त,लोक क याण –
सब कु
छ बटोरा, क तु
शरीर थकने पर वृक मयादा का घोर उलं
घन
आ,भारी पयोग भी;और इसका प रणाम भी सामने आया- रहा न
कु
ल म रोअन हारा।अ तु

कसी भी वन प त का सीधे उपयोग करने सेउसके औषधीय
गु
ण तो ा त होतेही ह, क तुहण- मुत और अ य वधान के साथ
उपयोग करने पर चम का रक प से गु
ण म वृ हो जाती है- ऐसा
हमारेमनीषा का अनु भव रहा है
।पुराने
समय म आयु वद इस बात
को जानतेथे,और स यक्प से पालन भी करते थे
,यही कारण था
क औष धयां बलवती होती थी; क तु आज हर व तु का
वाजारीकरण हो गया है, जससे मांग बढ़ गयी है
,और पूत केलए
नयम क ध जयां ऊड़ायी जा रही है ।फलतः अ व ास का
बोलबाला है
। सरी बात है क लोभ-मोहा द गु ण का बा य हो
गया है
।अना धका रय के हाथ लग कर
व तुहो या शा - अपनी मयादा खो चु
का है
।अतः इन बात का सदा
यान रखना चा हए।
बहे
ड़ा केवृक साधना व भ (बारहो महीने के शुल प
तपदा सेनवमी पय त) नवरा य म करनी चा हए। कसी खास
अंग(मू
ल,प ,फल, वका द) का योग करना हो तो कसी
र वपुय,सोमपुय का चयन कर ले
ना चा हए,जो भ ा द कु
योग र हत
हो।
व श मं- ऊँ
नमः सव भू
ता धपतयेस- स शोषय-शोषय भै
रव
चा ाय त वाहा।
पूव संया को जला ता द स हत नमंण दे कर आगामी ातः
पं
चोपचार पू जन करके यो यां ग हण कर। अं ग- हण करते समय
उ मंका नरं तर मान सक जप चलता रहे।घर लाकर व धवत-
पीत या र नवीन व का आसन दे कर पु
नः पं
चोपचार पू
जन
करे,त परा त ी शवपं चा र मंतथा सोम पं चा र मं का कम से
कम यारह- यारह माला जप कर।पू रेवृक साधना करनी हो तो
उ मं के जप के बाद लागातार चौआ लस दन तक दे वी नवाण
मंका जप दशां श होमा द स हत स प करना चा हए।इस कार
स वभीतक के ऊपर आ ढ़ होकर,अथवा तल म आसन लगाकर
यथेयो गनी मंका जप करना चा हए।यो गनी साधना के सबध
म वशे ष बात फर कभी कसी अ य पु तक म करने का यास
क ं गा।
योगः-
Y सा धत बहेड़ा का प ा और जड़ भ डार, तजोरी,ब से
आदम
रखने
सेधन-धा य क वृ होती है। यह न त भावशाली और
सरल योग है
।पां
च-सात-नौ प े
और थोड़े से
मूल भाग पर साधना
करकेयह योग कया जा सकता है ।
Y उदर- वकार - म दा न,अपच,उदर-शूल,को व ता, आ द के
नवारण म सा धत बहे
ड़ा-मू
ल का चम का रक लाभ लया जा सकता
है
। योग केलए अ य औष धय क तरह इसे खाना नह है
,ब क
खातेसमय प व आसन(पीढ़ा,क बल आ द)पर बै ठ जायेऔर
पुष अपनी दाय जं घा के नीचे
,तथा यां अपनी वाय जं घा के
नीचेइसके सा धत मूल को दबा कर बैठ जाय।भोजन के बाद मूल
और आसन दोन को मयादा पू वक उठाकर रख द।पु नः भोजन के
व उसका उसी कार उपयोग कर।ऐसा कम से कम सात-नौ या
यारह दन लागातार करना चा हए। वशेष प र थ त म इ क श दन
तक भी करना पड़ सकता है ।त - भाव से भोजन सुपा य हो जाता
है
। भा वत अंगक या- वकृ त म शनै
ः-शनै
ः सु
धार हो जाता है

Y धातुीणता के रोगी ताजे
बहे
ड़ा केफल को एक कर अथवा
लाचारी म बाजार से
खरीद कर ही लाय।उ व ध सेसाधना स प
कर।अब तोड़कर फल केवक भाग को अलग करल,और चू ण
या वाथ केप म उसका योग इ क श दन तक कर।साथ ही
कठोर बीज को भी पु
नः फोड़ कर अ दर क म जा को बाहर
नकाल।चार-छः म जा न य ातः-सायं गो ध के
साथ सेवन
कर।अ त ुलाभ होगा।

पु
याकवन प तत म्
21
२०. ल मणा
ल मणा एक सु
प र चत वन प त है,जो कटे
री क तरह होता
है
।डाल,प ,े
फल सभी वै
सेही होते
है।अ तर सफ फू ल केरं
ग का है
-
इसके फू
ल नीलेके
वजाय सफे द होतेह।रे
गनी,कं
टकारी आ द इसके
अ य च लत नाम ह।आयु वद म कफ- प शामक औष धय म
इसका उपयोग होता है
।आकार भ ता से इसकेदो कार ह- बड़ी
कटे
री और छोट कटे री।कु
छ लोग का वचार है
क ल मणा इन चार
सेभ , वलकुल ही अलग कार क वन प त है ।आयु
वद का स
औषध- फलघृ त का यह व श घटक है ।
ता क योग हे तु
ल मणा को हण करने का वधान अ य
वन प तय क तु लना म थोड़ा नराला है- र वपुय( वशे
ष कर सूय के
पुयन म पड़ने वालेर ववार) योग क पू व संया को व धवत
जला ता द से आमंण दे आना चा हए। फर अगले दन(मुत वाले
दन) मुत म अ य पू जन साम य के साथ एक सहयोगी और
खनन-उपकरण ले कर उस थान पर प च ं।ेवाभा वक है क उस
व अ धे रा रहे
गा,अतः साथ म रौशनी का साधन भी ज री है ।पौधे
केसमीप प चंकर पू जन साम ी पास म रख द,और वयं वलकु ल
नव हो जाए।इसी अव था म पौधे क पं चोपचार पू
जा कर।
पू
जन-म - ऊँ
नमो भगवते ाय सववदनी ै
लो य का तरणी ँ
फट्वाहा ।
इस मंको बोलतेए सभी साम ी अ पत कर,और पू
जा समा त के
प ात्मम काय स कु- कु वाहा- कहतेए पौधे को समू

ऊखाड़ ल।
घर लाकर अ य वन प तय क तरह ही इसेभी शुजल,गं गाजल
आ द सेशोधन करके ,नवीन पीले
व के आसन पर रख कर ाण-
त ा पू
वक पंचोपचार पूजन कर।पु
नः पू
व मंका सह जप
कर,दशां
श होमा द वधान स हत।इस कार योग के यो य स
ल मणा को सु
र त रख द।
इस वन प त को द पावली,नवरा आ द वशे ष अवसर पर भी
स कया जा सकता है ।मंऔर वधान समान ही
होगा।हां
, वशे
षकर द पावली के अवसर पर स कये जानेवाले
ल मणा का योग काफ मह वपू ण होता है। द पावली क रा म
उ व ध से पू
व सा धत ल मणा को पुनः एक अ य मंसे जागृ

करना चा हए- दे
वी नवाण केतीसरेबीज से ।इस मंका कम से कम
तीन हजार या अ धक से अ धक नौ हजार जप कर ल।इस या से
उसम अ त ुश आजाती है ।
ता क योग-
v सा धत ल मणा का पं चाग जल म पीस कर गो लयां
बना ल।इन
गो लय का योग आकषण और वशीकरण केलए कया जा सकता
है
। योग के समय अमु कं आकषय-आकषय को "तीसरे बीज" से
स पु टत कर सात बार उ चारण करतेए एक गोली अभी
को खला देना चा हए।
v स तान क इ छा वाली ी मा सक नान के पांचव दन सेार भ
कर इ क श दन तक न य ातः-सायं दो-दो गोली उ ल मणा वट
को गो ध के साथ से वन करे तो न त ही सु दर,सु
पुस तान क
ा त होती है
।हां
, य द पुष म भी कोई कमी हो तो उसक च क सा
भी अ नवाय है।उसे भी यही गोली चौआ लस दन तक से वन कराना
चा हए,साथ ही रोग-ल णानु सार इस पुतक के अ य सं गम
बतलायी गई त ौष धय का योग भी करना चा हए।
v सा धत ल मणा-पंचां
ग केसाथ अ य व श वन प तय केम ण
सेघृतपाक वधान से फलघृ त तै
यार कर से
वन करने सेव भ
व य व दोष का नवारण होकर स तान-सु ख ा त होता है
।फलघृत
क साम ी-सूची भै
ष यसंग म दे खना चा हए।बाजार म उपल ध
फलघृ त खरीद कर उसेभी नवाण एवं म मथ मंसे सा धत कर
योग कया जा सकता है ।
v व थ-सामा य ी-पुष भी सा धत ल मणा पं
चां
ग को चू
ण या
वट प म उ व ध से से
वन कर अ य धक कामान द क ा त
कर सकतेह।सहवास-सु
ख म वृ ( त भन,वाजीकरण)
ल मणा का व श गु
ण है

पु
याकवन प तत म्
22
२१. शव लगी
शव लगी- एक यथा नाम तथा प वन प त है।एक समय था
जब इसकेलए मु झेब त भटकना पड़ा था।काफ खोज के बाद
कह से इसके कुछ बीज उपल ध ए।बीज या,मान सा ात शव
ही वराजमान ह अ य म।जी हां
, शव लगी केसुपुबीज को गौर से
दे
ख तो पायगेक ये क अ यनुमा बीज एक छोटा सा शव लग
समा हत कयेए ह अपने अ दर।बरसात केार भ म इन बीज म
अंकु
रण होता है
,और जाड़ा आते-आते कोल सी प यां और बे ल
घे
र लेती ह आसपास के पौध को।इसका व तार बड़ा ही ती होता
है
।बड़े मटर क तरह हरे-हरे, क तुसफे द धारीदार फल काफ मा ा म
लगते ह- गु छे
के गुछे
।फा गु न आते -आते येफल प रप व होकर
क चत ला लमायु हो जाते ह,और फर लाली इतनी गहरी हो जाती
है क का लमा का म होता है ।सफे द धा रय क सु दरता और
नखर आती है । एक प रप व फल म आठ-दस बीज ा त हो जाते
ह।लाल गु के बीच काले बीज बड़े ही सु दर लगतेह।चुंक इसके
फल का वाद थोड़ा तीता होता है ,इस कारण प य से फल क
बरबाद भी नह होती।पके फल को तोड़ कर सु खा लेतेह- सु
खानेसे
पहले उ ह फोड़-मसल दे ना ज री होता है ,अ यथा पू
रेफल को सूखने
म काफ समय लगता है ।उपरी तु ष भाग को हटाकर व छ बीज का
संह कर लया जाता है ।वतमान समय म इन बीज का बाजार मू य
पां
च सौ से हजार पये त कलो ाम है । क तुइसक खे ती
बलकु ल आसान है ।कह भी थ सी जमीन पर मौसम म बीज बो
द। वना म के लता तै
यार हो जाये गी।
शव लग को फा गु न मास क महा शवरा (कृण योदशी-
चतुदशी) को पू
व संया केव धवत नमंण पू वक हण करना
चा हए।धो-प छ साफ करके लाल या पीले नवीन व का आसन
दे
कर अ य वन प तय म बतलाये गये वधान से पं
चोपचार पू
जन
करके ी शवपं चा र एवं दे
वी नवाण तथा कामदे व मं का कम से
कम एक-एक हजार जर कर ले ना चा हए।इस कार उस दन क
या पू
ण हो गयी।आगेयोग के समय पुनः संक प पू
वक( जसे
उपयोग केलए दे ना हो उसके नाम स हत) उ तीन मं का
मशः एक-एक हजार जप करना चा हए,तभी स यक्प सेयोग
के
यो य होता है

शव लगी का सवा धक योग स ताने छुकेलए है।इसके से
वन
सेहर कार का ब य व दोष न होकर सु दर-सु
पुस तान क
ा त होती है
।स तान क कामना वाली ी को उ कार से
अ भमंत शव लगी बीज यथेमा ा म दे द।ऋतुनान के पांचवे
दन सेार भ कर पु नः ऋतु आने तक(लगभग सताइस दन
तक)से वन कराना चा हए- ताजो गो ध के साथ सात-सात दाने नय
ातः-सायं
।सेवन क इस या को पु नः अगले महीने
भी उसी तरह
जारी रखे
।इस कार कम से कम छः महीनेयह म जारी रहे । वशे

लाभ केलए इसके साथ इसी व ध से सा धत
जीयापोता( जऊ पुका)बीज को भी चू ण कर
मला ले
ना चा हए।
शव लगी केबीज को प व ता पू
वक घर म रख कर न य पूजन
भी कया जा सकता है ।इससेशव क स ता ा त होकर सवसु ख-
ा त होती है
।एक बार का संहत बीज दो-तीन बष तक उपयोगी
हो सकता है।आगेउ ह वस जत कर पुनः नवीन बीज हण कर लेना
चा हए।

पु
याकवन प तत म्
23
चतु
थ अ याय
क चत अ य- थावर-जां
गम का ता क योग
१. शं

शंख कोई वान प तक नह , यु त जां
गम है।इसक
उ प त "शं ख" नामक एक कठोर काय समु जीव से होती है।व तु
तः
यह उसका ऊपरी कवच है ,या कह – उपयोग म आने वाला शं ख- शं

नामक क ट का आवास है ; क तु वै सा आवास जै सा क आ मा का
आवास यह शरीर है । कछुआ,घ घा,सीपी, कौड़ी आ द जीव इसी वग
म आते ह,और सब शं ख क भां त ही अपना कवच छोड़ते ह।आकार
भेद से शंख जौ-गेंके दाने सेले
कर तीन-चार सौ वग च तक के पाये
जाते ह।साथ ही गोलाकार,ल बोतरा,चपटा आ द कई आकार म द ख
पड़ता है । वण-भेद सेयह चार कार का होता है - वलकुल
सफे द, क चत ला लमा यु, पीताभ और याम आभा
वाला( वलकु ल काला नह )।शं ख के रंग-भे
द को सामा जक वण-
व था से भी जोड़ कर दे खा जाता है । मशः, ा ण केलए े त
वण शं ख को उ म माना जाता है ; य केलए र वण, वै य के
लए पीत,एवं शूकेलए याम आभावाला शं ख उपयु है ।
पौरा णक संगानुसार शंख और ल मी दोन ही समुसे
उ प ए ह,अतः इ ह भाई-बहन कहा गया है।शंख भगवान ब णु
क पूजा म अ नवाय है
।इससे उनक या- ल मी अ त स होती
ह।वासा म प ो पल शं
ख म ये ,वसा म च े
च महेरे च..... ल मी
केपौरा णक वचन ह।शं
ख क वत प सेपू
जा भी क जाती है

भे
दाभेद वणन म म तो यहां
तक कहा गया है
क शंख और ब णु
म अभेद है

व भ पू जा म शं ख व न का बड़ा ही मह व है ।वै
सेएक
पौरा णक गाथानुसार शव-म दर म शं ख व न व जत है ,ठ क वै
से ही
जैसेक दे वी म दर म घं
टा व जत है
। क तु आजकल अ ानता वश
इन दोन बात का उलं घन होता आ दे खा जाता है।शं
ख शु भार भ
और वजय का तीक है ।यही कारण है क कसी भी उ सव,पव,पू जा
-पाठ,हवन, याण,आगमन,युार भ, ववाह,रा या भषे कआद
अवसर पर अ नवाय प से शं
ख व न क जाती है ।शं
ख-घोष से
वायुमंडल क शु होती है ।दै
वक और भौ तक वाधा का शमन
होता है।शं
ख ओज,ते ज,साहस,परा म,चै त यता,आशा, फू तआद
क वृ करता है ।कोई अ ानी( ज ासु ) यह उठा सकते ह क
शंख तो एक समु क ट क अ थ है , फर पूजा द प व कम म इसे
कैसे रखा जाय?
ा है क शा म कई ऐसी व तु को प व ही नह अ त
पव क े णी म रखा गया है
, भले ही वो जांगम(जीव-ज तु से
ा त) य न
ह । ध,दही,घी,म खन,मधु,मृ
गमद(क तू री),गजमद,गोरोचन, मृ
गचम,
गोचम, ा चम,ह तचम,ह तदं त,मोती,मूगा,गजमुा,मयू
ं रप छ
आ द अने क ऐसे पदाथ ह, ज ह शा ने मया दत कया है।शत
सफ यही है क इ ह वाभा वक प सेा त कया जाय।यानी जीव
क ह या कर या कृम व ध से नह ।जैसा क आजकल धनलोलु प
ापारी कया करतेह। वाला वछड़े को जान-बू
झ कर मार देता
है
( ध वचाने केलोभ से)और हाम नक इ जेशन दे कर ध
नकालता है ।इस कार नकाला गया ध कदा प हण यो य नह
है
।गाय को मार कर गो प ा त कया जाय- यह कतयी ा नह ।
मरी यी गाय सेा त गो प ,गोचम सवदा प व है ।इसी भां
त सभी
जां
गम केसाथ नयम लागू होता है
। क तुकु
छ अ ानी
कुता कक एक ओर ध को र तु य मानतेह तो सरी ओर अ डे
को मां
साहार क े णी सेमु करने का तक दे
तेह।
स चाई यह हैक शं
ख सवथा अ त प व है
- कु
छ खास वजना
को छोड़कर।यथा-
Ø कसी कारण से
शं
ख य द टू
ट-फू
ट गया हो तो उसेयाग दे
ना
चा हए।
Ø शं
ख म दरार आ गयी हो तो वह हण-यो य नह है

Ø बजाते समय असावधानी से य द हाथ से
छू
ट कर गर जाय(खं
डत
ना भी हो,तो भी)उसेयाग दे
ना चा हए।
Ø पाकृ
त षत हो तो उसेहण न कर।
Ø न भ(आभाहीन) शं
ख ा नह है

Ø क ड़ से त त शं
ख ा नह है

Ø कसी कार का दाग-ध बा वाला शं
ख भी शु
भ काय म व जत है

Ø शं
ख केशखर सु
र त ह तभी हण कर।भ न शखर शं

या य है

Ø शा क मा यता है क दो या तीन शं
ख एक घर म न रखे
जाय।शे
ष संया व जत नह है।यानी एक,चार,और उससे आगे

संयाय ा ह।यह नयम कसी भी अ या य दे व- तमा – शव,
गणे
श, शाल ाम आ द केलए भी लागू होता है

संरचना केवचार से शंख मुयतः दो कार के होतेह-
१.वामावत,और २. द णावत। शं ख म जो आ त रक आवतन और
मु
ख होता है , उसी के आधार पर यह वभाजन कया गया है ।आमतौर
पर ा त शं ख को सीधे नोक भाग को आगे कर हाथ म लगे तो पायगे
क उसका मु ख आपक वां यी ओर है।अ दर के आवतन भी वां यी
ओर ही ह गे ।कु छ व श कार के शंख म येदोन बात वलकु ल
वपरीत होती ह- यानी दाय ओर होती ह। इ ह ही द णावत शं ख
कहा जाता है ।येशं
ख क अ त लभ जा त है ।रामेरम् ,और
क याकु मारी म यदाकदा असली द णावत शं ख सौभा य सेा त हो
जाता है
।सामा यतः यह े त वण का ही होता है
, क तु गौर सेदे
खने
पर इन पर लाल-पीली या काली आभयु धा रयां नजर आयगी।शु
त- धया वण- जस पर अ य आभाय न ह - सव म माना जाता

है
।व तुतः यह ब त ही लभ है । वै
से आजकल ट वी चार का यु ग
है
। व तु क मह ा और लभता का लाभ धनलोलु प पहले
सेअ धक उठाने लगे ह।अने क महंगी और लभ व तु का नकली
नमाण धड़ ले सेहो रहा है
।नकली द णावत शं ख भी बाजार म
चुर संया म मल जाये गा। अतः सावधान- ठगी केशकार न ह ।
शंख के कार म एक हीरा शं ख भी है।यह अ त लभ है ।हीरे
जैसी इ धनु षी करण नकलती रहती ह, जस कारण इसे यह नाम
दया गया है।यह भीतर सेठोस होता है
,यानी न तो इसम जल भर
सकते ह, और न बजा सकते ह।मूल शंख जीव के मृत(न )हो जाने
पर इसके उदर केर भाग म कु छ जीवा म आ बै ठते ह, जसके
कारण यह अपेाकृ त वजनी भी हो जाता है
।दे
खने म ऐसा लगेगा
मान शं ख के उदर म म ी का ढेला आ फं सा है
।यह थ त ाकृ तक
प से ल बेसमय म होता है

शं
ख का एक और कार है - मोती-शं
ख।यह सवाग स तवण
आभा वखे रते रहता है।इसक आकृ त भी सामा य शं
ख सेथोड़ी
भ होती है - मुह क ओर अ त सं
ं क ण,और पू ं
छ क ओर मशः
गोलाई म व तृ त होकर लगभग छ ाकार और गोल होता है ।मजबूत
और भारयु भी होता है ।इसे
बजाया भी जा सकता है। दे
खनेम यह
बड़ा मनोहर लगता है ।
कसी भी लभ व तु क ा त हे तु
शुभ मुत क बात बे मानी है
-
व तुका ा त हो जाना ही शुभ व- सूचक है।द णावत शं ख भी
उसी तरह है
। ा त हो गया- यही सौभा य है
।हां
,घर लाकर था पत-
पूजत करने केलए भ ा द र हत र वपु य योग का वचार अव य
करगे,जै
सा क कसी भी व तु के तांक योग केलए कया जाता
है
।स भव हो तो चां
द के पा म,या फर तां बा,पीतल जो भी पा
स भव हो उसम नवीन व बछाकर,धो-प छ कर द णावत
शं
ख(या अ य शं ख)को था पत कर व धवत पं चोपचार पू
जन कर।
पू
जन केलए न नां
कत मं म कसी एक का चु
नाव कर सकते
ह-
§ ऊँ ी ल मी सहोदराय नमः
§ ऊँ ी पयो न ध जाताय नमः
§ ऊँ ी द णावत शं
खाय नमः
§ ऊँ ल ीधर कर थाय,पयो न ध जाताय,ल मी
सहोदराय,द णावत शं
खाय नमः
§ ऊँ ीधर कर थाय,ल मी याय,द णावत शं
खाय मम
च तत फलंा यथाय नमः
चय नत मंसे पं
चोपचार/षोडशोपचार पू
जन स प करने के
प ात्उ मंका कम से कम सोलह माला जप भी अव य कर-
व धवत दशांश होमा द कम स हत।इसके बाद ा ण एवंभ ु
भोजन यथाश द णा स हत स प करके जत शं
,पू ख को आदर
पू
वक थायी थान पर सु र त रख द,और न य यथास भव
पं
चोपचार पू
जन और एक माला जप करते रह।
वै
सेयह नयम कसी भी ा शं ख केसाथ लागूहोता है
, वशे

कर द णावत के बारे
म कहना ही या? एक और बात का सदा
यान रखना चा हए क कसी भी शं ख को खासकर जब सीधी
अव था म रखते ह तो र न रहे,ब क जलपू रत रहे
,और उसके
लए शं खासन भी अ नवाय है
। य क शं खासन पर उसेजलपू रत
सुर त रखा जा सकता है।पीतल या तां
बेकेबने
-बनायेशंखासन
पू
जा साम ी या बरतन क कान म मल जाते ह।खाली रहने पर
उ टा( धे
मु
ह) रख सकते
ं ह। क तु
सही भाव केलए सीधे
मु


और जलपूरत रहना अ नवाय है

Ø पूजत द णावत शं
ख जहां
कह भी रहे
गा- अ य ल मी का वास
होगा।
Ø कसी भी पू
जत शंख म जल भरकर ,व तु
, थान पर छड़क
दे
नेमा सेभा य, अ भशाप,अ भचार,और ह के भाव समा त
हो जाते
ह।
Ø -ह या द महापातक दोष से
मु मलती है- य द द णावत
शं
ख का जलपान कर लया जाय।अभाव म सामा य(वामावत शंख-
जल का योग भी ी व णु मंसे अ भमंत करके कुछ दन तक
करना चा हए।
Ø शं
ख जल-पान से जा -टोना-नजरदोष आ द का नवारण होता
है
।व च केलए यह बड़ा ही लाभदायक योग है । योग कता क
साधना म य द गाय ी समा हत हो तो उसी मंका योग करना
य कर है
े ।अ य इ मं(नवाणा द) का योग भी कया जा सकता
है

Ø द र ता नवारण केलए अभाव म कसी भी उपल ध शंख का
नय मत पूजन कया जा सकता है।समय लगे
गा, क तु
लाभ अव य
होगा।द णावत क तो बात ही और है

Ø शं
ख को हाथ म ले
कर अभी श ु का नामो चारण करतेए
सं
क प पू
वक जोर सेबजाया जाय तो श ुक ग त-म त का त भन
होता है

Ø शं
ख को हाथ म ले
कर अभी सं क प करतेए वादन करने
से
सक जीव-ज तु ( ा , सपा द) से
र ा होती है

Ø रा म सोने सेपू
व सं
क प पू
वक शंख- व न क जाय(पांच-सात
बार)तो चोर-डाकू टे
-लुर क ग त-म त का भी त भन होता है

Ø जलपू रत शं
ख को हाथ म ले
कर सं
क प पू
वक कसी बालक को
नय मत प से थोड़ेदन तक पलाया जाय तो वरमं डल का शोधन
होकर बालक शी बोलने लगता है
।यह योग ज मजात वर- वकृ त
म भी लाभदायक है
।मनेइस योग को कई बार कया है
,और
आशातीत सफलता भी मली है ।
Ø उ व ध सेध भी नय मत दया जा सकता है (जल और ध
वै
क पक म से ), क तुयह योग करने सेपू
व बालक क कुडली
म च मा क थ त का वचार अव य कर ले ना चा हए- कह च मा
नीच रा श,अथवा श ु भाव गत तो नह ह,अ यथा लाभ के वजाय
हा न हो सकती है

Ø आयुवद म शंख का भ म बना कर अ य प मा ा म से
वन करने
का वधान है।शं
ख-भ म या शंख-वट केनाम सेदवा क कान से
इसेा त कया जा सकता है ।अने
क उदर रोग म इसका योग होता
है
।बाजार सेखरीद कर उ औषधी को ऊँ ी महावृ कोदराय नमः
मंसे अ भमंत कर से वन करनेसेज टल उदर रोग म चम का रक
लाभ होता है

पु
याकवन प तत म्
24
2. गोरोचन
जां
गम म गोरोचन आज के जमाने
म एक लभ व तु हो
गया है
।वै
सेनकली गोरोचन पू
जा-पाठ क कान म भरेपड़ेह।छोट
-छोट ला टक क शी शय म उपल ध होने वालेपीले
सेपदाथ को
गोरोचन सेर का भी स ब ध नह है

गोरोचन मरी यी गाय के शरीर सेा त होता है ।कुछ व ान का
मत है क यह गाय के म तक म पाया जाता है , क तुव तुतः इसका
नाम "गो प " है,यानी क गाय का प । शरीर म सव ापी प का
मू
ल थान प ाशय(Gallbladar) होता है । प ाशय क पथरी
आजकल क आम बीमारी जै सी है
।मनु य म इसे श य या ारा
बाहर नकाल दया जाता है ।गाय क इसी बीमारी से गोरोचन ा त
होता है
।वैसेव थ गाय म भी क चत मा ा म प तो होगा ही-
उसकेप ाशय म, जसे आसानी सेा त कया जा सकता है ।
म तक के एक खास भाग पर भी यह पदाथ-
गोल,चपटे , तकोने,ल बे
,चौकोर- व भ आकार म एक हो जाता
है
, जसे चीर कर नकाला जा सकता है ।ह क ला लमायु पीले रं

का यह एक अ त सु ग धत पदाथ है ,जो मोम क तरह जमा आ सा
होता है
।ताजी अव था म ल से
दार,और सू
ख जाने
पर कड़ा- कं
कड़
जैसा हो जाता है

गो प , शवा,मं
गला,मेया,भू
त- नवा रणी,व आ द इसके अने

नाम ह, क तुसवा धक च लत नाम गोरोचन ही है ।शे
ष नाम
सा ह यक प से गु
ण पर आधा रत ह।गाय का प - गो प । शवा-
क याणकारी।मं गला- मं
गलकारी।मे या- मे
धाश बढ़ाने वाला।भू
त-
नवा रणी- भूत सेाण दलाने वाला।व - पू जा द अ त व -
आदरणीय।
आयु वद और त शा म इसका वशद योग-वणन है ।अने

औष धय म इसका योग होता है । य -ले
खन,त -साधना,तथा
सामा य पूजा म भी अ ग ध-च दन- नमाण म गोरोचन क अहम्
भूमका है । हाला क व भ दे वता केलए अलग-अलग कार के
अ ग ध होते ह, क तु
गोरोचन का योग लगभग ये कअ ग धम
व हत है।
गोरोचन को र वपुय योग म सा धत करना चा हए।सु वधानुसार
कभी भी ा त हो जाय, क तुसाधना हेतु शुयोग क अ नवायता
है
।साधना अ त सरल है- व हत योग म सोने या चां
द ,अभाव म तां
बे
केताबीज म शुगोरोचन को भर कर यथोपल ध
पं
चोपचार/षोडशोपचार पूजन कर।त परा त अपने इ दे
व का सह
जप कर,साथ ही शव / शवा के मंो का भी एक-एक हजार जप
अव य कर ल।इस कार सा धत गोरोचन यु ताबीज को धारण
करनेमा से ही सभी मनोरथ पूरे
होतेहै- षटकम-दशकम आ द
सहज ही स प होतेह।गोरोचन म अ त
ुकाय मता है ।सामा य
मसी- ल खत य क तु लना म असली गोरोचन ारा तै
यार क गयी
मसी सेकोई भी य -ले
खन का आन द ही कुछ और है। यात है
क कम शु,भाव शु को साथ शु भी अ नवाय है ।
गोरोचन के
क तपय ता क योग-
Ø सा धत गोरोचन यु ताबीज को घर केकसी प व थान म रख
द,और नय मत प से ,दे
व- तमा क तरह उसक पू जा-अचना करते
रह।इससेसम त वा तुदोष का नवारण होकर घर म सुख-शा त-
समृ आती है ।
Ø नव ह क कृ पा और कोप से सभी अवगत ह।इनक स ता हे तु
जप-होमा द उपचार कये जातेह। क तु गोरोचन के योग से
भी
इ ह स कया जा सकता है ।सा धत गोरोचन को ताबीज प म
धारण करने, और गोरोचन का नय मत तलक लगाने सेसम त
हदोष न होते ह।
Ø ेतवाधा यु को गुपुय योग म सा धत गोरोचन से
भोजप पर स तशती का " तीय बीज" लख कर ताबीज क तरह
धारण करा दे
ने
सेवकट सेवकट े तवाधा का भी नवारण हो जाता
है

Ø मृगी, ह ट रया आ द मानस ा धय म गोरोचन(र वपु
य योग
सा धत) म त अ ग ध से नवाण मं लख कर धारण कर दे
नेसे
काफ लाभ होता है ।
Ø उ बीमा रय म गोरोचन को गुलाबजल म थोड़ा घसकर तीन
दन तक लागातार तीन-तीन बार पलानेसेअ त ुलाभ होता है
।यह
काय कसी र व या मं
गलवार सेही ार भ करना चा हए।
Ø षटकम के
सभी कम म तत् तत्यं का ले
खन गोरोचन म त
मसी से
करने
सेचम कारी लाभ होता है

Ø धनागम क कामना सेगुपु य योग म व धवत सा धत गोरोचन
का चां
द या सोने
केकवच म आवेत कर न य पू जा-अचना करने
सेअ य ल मी का वास होता है

Ø व भ सौदय साधन म भी गोरोचन का योग अ त लाभकारी
है
।ह द ,मलया गरी च दन,के
सर, कपू
र,मं
जीठ और थोड़ी मा ा म
गोरोचन मलाकर गु लाबजल म पीसकर तैयार कया गया ले
प सौ दय
का त म अ त ुवकास लाता है ।इस ले
प को चे
हरे
पर लगाने के बाद
घं
टेभर अव य छोड़ दया जाय ता क शरीर क उ मा सेवतः सू खे।

३. ृ
गाल ृ
गी

जांगम म ृ गाल ृगी एक अ त
ं ुऔर अल य पदाथ
है
। सयार केसभी पयायवाची श द - ज बुक,गीदड़ आ द से जोड़कर
इसके भी पयाय च लत ह; क तुसयार सगी सवा धक च लत नाम
है
। आमलोग तो इसके होने
पर ही सं
दे
ह करतेह- कु-ेसयार
केभी कह स ग होते ह? क तु त शा का सामा य ान रखने
वाला भी जानता हैक सयार सगी कतना मह वपू ण ता क व तु
है
। शहरी स यता और प मीकरण ने नयी पीढ़ केलए ब त सी
चीज अल य बना द ह।ब त सी जानका रयां अब मा कताब तक
ही समट कर रह गयी ह,अपना अनु भव और य ान अ त
सं
क ण हो गया है।चां
द और मंगल क बात भले कर ल,जमीनी
अनुभव केलए भी " वक पी डया" तलाशना पड़ता है ।
ब त लोग ने तो सयार देखा भी नह होगा। च ड़याघर म शे रक
तरह इन बे चार को थान भी शायद ही मला हो, फर शहरी ब चे दे

तो कहां? सयार काफ हद तक कुे सेमलता-जु लता ाणी
है
, क तु कुे सेवभाव म काफ भ ।एक कुा सरे कुेको
दे
खकर गु रगु
राये
गा, य क उसम थोड़ी वादशा हयत है , शे
खी
है
।कुा ब त समू ह म रहना पस द नह करता,जब क सयार बना
समूह के रह ही नह सकता। उसक पू री जीवन-चया ही सामूहक
है
।देहात से जुड़ेलोग को सयार का समू हगान सु
ननेका अवसर
अव य मला होगा।व य-झा ड़य म माँ द(छोटा खोहनुमा)बनाकर ये
रहते ह। दन म ायः छपे रहते ह,और शाम होते ही बाहर नकल कर
" आ... आ" का ककस कोलाहल शुकर दे ते
ह। सयार के इस
समूह म ही एक वशे ष कार का नर सयार होता जो सामा य
सयार से थोड़ा ह ा-क ा होता है।अपने समूह म इसक पहचान
मुखया क तरह होती है ,आहार- वहार- वहार भी वै सा ही।फलतः
डील-डौल म व श होना वाभा वक है ।अ य सयार क तु लना म
यह थोड़ा आलसी भी होता है - बै
ठेभोजन मल जाय तो आलसी होने
म आ य ही या?खास कर रा के थम हर म यह अपने माँद से
नकलता है । वशेष प से ककस सं के त- व न करता है, जसेसुनतेही
आसपास के मां
द म छपे अ य सयार भी बाहर आ जाते ह,और
थोड़ी देर तक सामू हक गान करते ह- व तुतः भोजन क तलाश म
नकलने क उनक योजना, और आ ानगीत है यह। सामूहक गायन
समा त होने के बाद सभी सयार अपने -अपने ग त पर दो-चार क
टोली म नकल पड़ते ह, क तु यह मह थ(मु खया)यथा थान पू ववत
कँार भरते ही रह जाता है।यहांतक क ायः मू छत होकर गर
पड़ता है ।
इसी मह थ केसर पर (दोन कान के बीच) एक व श जटा सी
होती है
, जसेसयार सगी कहते ह। गोल गां
ठ को ठ क से टटोलनेपर
उसम एक छोट क ल जै सी नोक मले गी,जो अस लयत क पहचान
है
। भड़-बकरे क नाभी भी कुछ-कु
छ वैसी ही होती है
,पर उसके
अ दर यह नोकदार भाग नह होता।जानकार शकारी वै सेसमय म
घात लगाये बै
ठेरहते
ह- पास के झु
रमुट म क कब वह मू छत
हो।जैसे ही मौका मलता है,झटकेसेउसक जटा उखाड़ ले तेह।चार
ओर से रोय सेघरा गहरेभूरे
(कुछ छ टेदार) रं
ग का,करीब एक च
ास का गोल गां
ठ – दे
खने म बड़ा ही सु दर लगता है।एक स ग का
वजन करीब प चीस से पचास ाम तक हो सकता है ।ता क
साम ी बेचनेवालेमनमानेक मत म इसे बेचतेह।वैसेपां
च सौ पये
तक भी असली सयार सगी मल जाय तो ले नेम कोई हज
नह । यात है क ठगी के बाजार म सौ-पचास पये म भी नकली
सयार सगी काफ मा ा म मल जाये गा।रोय,रे
श,े
वजन, सब कु छ
बलकु ल असली जै सा होगा,असली वाला ग ध भी होगा,सु गध
भी।व तुतः सयार क चमड़ी म लपे ट कर सुलसेन से गां
ठदार बनाया
आ, म -प थर भरा होगा।क तू री और सयार सगी के नाम से
आसानी से बाजार म बक जाता है ।स चाई ये हैक क तू री तो और
भी लभ व तु है
,जो मू
लतः, मृ
ग क ना भ सेा त होता है ।अतः
धोखे सेसावधान।
असली सयार सग जब कभी भी ा त हो जाय,उसे सु
र त रख
द,और शारद य नवरा क ती ा कर।वै सेअ य नवरा म भी
साधा जा सकता है ।गं
गाजल से सामा य शोधन करने केप ात्नवीन
पीलेव का आसन दे कर यथोपल ध पं चोपचार/षोडशोपचार पू
जन
कर।त प ात्ी शवपं चा र एवं दे
वी नवाण म का कम से कम
एक-एक हजार जप कर ल।इतने से ही आपका सयार सगी योग-
यो य हो गया। योग के नाम पर तो "ब त और ापक" श द लगा
आ है , क तुगनने पर कुछ खास मलता नह ।बस एक ही मू ल
योग क पु नरावृ होती है
। सयार सगी ब त ही श और भाव
वाली व तु है
।पूजन-साधन के बाद इसे एक ड बया म(चां
द क हो
तो अ त उ म) सु र त रख दे ना चा हये
।रखने का तरीका है क
ड बया म पीला कपड़ा बछा दे ।उसम स र भर द,और सा धत
सयार सगी को था पत करके नः ऊपर सेस र भर द। न य
,पु
पंचोपचार पूजन कया कर।पू जन म स र अव य रहे ।इस कार
सयार सग सदा जागृ त रहे
गा।जहां भी रहे
गा,वा तु
दोष, हदोष आ द
को वयमे व न करता रहे गा। कसी कार क व न-वाधा से सदा
र ा करता रहे गा। सयार सगी के उस ड बया सेनकाल कर थोड़ा
सा स र अपेत को अपेत उ े य(त के षटकम) से दे
दया जाय तो अचू क नशाने क तरह काय स करे गा- यही इसक
सबसे बड़ी वशे षता है। योग करते समय चुटक म उस खास स र
को लेकर बस पां च बार पूव सा धत दोन मं का मान सक उ चारण
भर कर ले ना है
- योग के उ े य और यु के नामो चारण के साथ-
साथ। क तुयान रहे - इस नवार व तु का पयोग बना सोचे
समझे (नादानी और वाथवश) न कर दे ,अ यथा एक ओर तो काय-
स नह होती और सरी ओर वह सा धत सयार सगी सदा के
नब ज(श हीन)हो जाये गी।श हीनता का पहचान है क उसम से
अजीब सा ग ध नकलने लगेगा-
सड़ेमां
स क तरह,जब क पहले उस सा धत सयार सगी म एक
आकषक मदकारी-मोदकारी सुग ध नकला करता था- दे
वी-म दर
केगभगृह जै
सा सु
ग ध।अतः सावधान- वाथ के
वशीभू तनह।
सं गवश यहां
एक बात और प कर ंक सयार सगी क
साधना म जो स र योग कया जाय वह असली स र ही हो, य
क आजकल कृम पदाथ से तरह-तरह के स तेऔर महं गेस र
बननेलगे ह,जो शोभा क सेभले ही मह वपू
ण ह , क तुपू
जा-
साधना म उनका कोई मह व नह है
।नकली स र के योग से
साधना न फल होगी- इसम जरा भी सं
दे
ह नह ।इस स ब ध म इसी
पुतक म आगे आठव करण म- स र अ याय म दे ख सकते ह।

४. क तू
री

अ ग ध म क तूरी सवा धक मू यवान और मह वपूण पदाथ


है
।आयु
वद,कमकांड, और त म इसका वशे ष योग होता है
, क तु
सु
लभ ा य नह होनेके कारण नकल का ापार भी ापक है ।
उपल ध- ोत केवचार से क तूरी तीन कार का होता है
-
1. मृ गा क तूरी- जै
सा क नाम सेही प है - मृ
ग केशरीर सेा त
होने
वाला यह एक जां गम है
। यात है क यह सभी मृ ग म
नह पाया जाता, यु त एक वशेष जा त के मृ
ग म ही पाया जाता
है
।उन व श मृ ग म भी सभी म हो ही- यह आव यक नह ।इस
कार, व श म भी व श क े णी म है।मृग क ना भ म एक
वशेष कार का अ तः ाव मशः एक होने लगता है, जसका
सु
ग ध धीरे-धीरे
बाहर भी फु टत होने लगता है।यहांतक क उस
सु
ग ध क अनु भूत उस अभागे मृग को होती तो है
, क तुउसेयह
ात नह होता क सु ग ध का ोत या है ।उसे वह कोई बाहरी
सु
ग ध समझ कर,उसक खोज म इधर-उधर अ त होकर
भटकता है ,और, यहां तक क ता म दौड़ लगाते-लगाते मूछत
होकर गर पड़ता है । ायः उस अव था म उसक मृ युभी हो जाती
है
। "क तूरी कुडली बसे , मृ
ग ढू
ढेवन माह ..." क उ इस बात का
उदाहरण है ।मृ
त मृग क ना भ को काट कर उससे वह गांठ ा त कर
लया जाता है ।ऊपर के चम-कवच को काट कर भीतर भरे
क तूरी(महीन रवादार पदाथ)को नकाल लया जाता है ।धन-लोलु प
शकारी(वनजारे ) सुग ध के आभास से मृग का टोह लेते रहतेह,और
उ ह मार कर ना भ नकाल ले तेह।वैसेभी ना भ- थ के काट ले
ने
पर कसी ाणी का बचना अस भव है ।आजकल इन मृ ग क जा त
लगभग न क थ त म है ।भेड़-बकरे क ना भ को काटकर,उसम
कृम सु ग धत पदाथ भर कर धड़ ले से नकली क तू री का ापार
होता है
।अनजाने लोग ठगी केशकार होते ह,और -शु के
अभाव म सा धत या फलदायी नह होने पर साधक के साथ-साथ
त शा क भी बदनामी होती है ।
2. वडाल क तू री- नाम से ही प है - वडाल( ब ली) केशरीर से
ा त होने
वाला एक जां गम ।व तु
तः नर वलाव के अ डकोश म
एक एक वशे ष कार का अ तः ाव(शुक ट के पोषणाथ
न मत)घनीभू त होकर एक सु ग धत पदाथ का सृजन करता है,जो
काफ हद तक मृ गाक तू री सेगु
ण-धम-सा य रखता है ।यह ायः
येक नर वडाल के अ डकोश सेा त कया जा सकता है ।इस
कार ा त का सबसे सु लभ और स ता ोत है ।अरबी व ान ने
इसे ज दवद तर नाम दया है ।हक मी दवाइय म इसका काफ
उपयोग होता है
।त शा म जहां कह भी क तू री क चचा है,
मुय प से मृ
गाक तू
री ही यु होता है।प व जांगम म
वही मया दत हैसफ,न क वडाल क तू री।वैसे
ताम सक त
साधक इसका योग धड़ ले से
करतेह,और लाभ भी होता है, क तु
सा वक साधक केलए यह सवदा व जत है ।
3. लता क तू री- यह एक वान प तक है, जसेक चत गु ण-
धम के कारण क तू री क संा द गयी है ।वै
से नाम हैलता
क तूरी, क तुइसका पौधा,फू ल,प यां सबकु छ भ डी(रामतु रई)के
समान होता है,ब क उससे भी थोड़ा बड़ा ही।फल क बनावट भी
भ डी जै सी ही होती होती है
,पर तुवलकु ल ठगना ही रह जाता है -
ल बाई म वकास न होकर, सफ मोटाई म वकास होता है ,और फल
लगने के दो-चार दन म ही पु(कड़ा) हो जाता है ।पुहोने से पहले
य द तोड़ लया जाय तो ठ क भ डी क तरह ही स जी बनायी जा
सकती है ।वैसेस जी क तु लना म इसका भु जया अ धक अ छा
होता है
। ये क पौधे म फल क मा ा भी भ डी क तु लना म काफ
अ धक होता है । इसक एक और वशे षता है क यह ब वषायु
वन प त है ।छोड़ दे नेपर काफ बड़ा(अम द, अनार जै सा) हो जाता
है
,और लागातार बारह महीने फल देतेरहता है।एक बात का यान
रखना पड़ता है क हर वष का तक से फा गुन महीने केबीच
सुवधानु सार य द थोड़ी छं टाई कर द जाय तो नये डं
ठल नकल कर
पौधेका स यक्वकास होकर फल क गु णव ा म वृ होती
है
।खेती क से य द रोपण करना हो तो हर तीसरे वष नये बीज
डाल देनेचा हए।मने अपनी गृहवा टका म इसे लगाकर काफ
उपयोग कया है ।इसका फल ब त ही पौ क होता है ।पौ कता म
जड़ क भी अपनी वशे षता है
।इसेसुखा कर चू
ण बनाकर,एक-एक
च मच ातः-सायं मधु के साथ सेवन करनेसेबल-वीय क वृ होती
है
।पु-प रप व फल सेा त बीज को चू ण कर क तूरी क तरह
उपयोग कया जा सकता है ,जो क चत सुग ध यु होता है।गु
ण-धम
म मृ
गाक तूरी जैसा तो नह , फर भी काफ हद कर कारगर है।
आयुवद म थ त के अनुसार उ तीन कार के
क तू
री का
उपयोग कया जाता है
।कमका ड और
त म मुय घटक के साथ-साथ "योगवाही" प म भी यु होता
है
।क तू री म स मोहन और त भन श अ त ु प म व मान
है
,चाहेवह शरीर के वीय(शु) का त भन हो या क बाहरी
(श ु,श ा द) त भन।यह एक वकट प से उ ज ेक भी
है
।शरीर म ऊ मा के संतुलन म भी इसका महद् योगदान है। क तूरी
अ ग ध का एक मु ख घटक है ।इसकेबना अ ग ध क क पना ही
थ है।सा धत क तू री केतलक योग से सं
क पानु सार षट् कम
क स यक्स होती है ।अ य आव यक म त कर दये
जाय, फर कहना ही या।सौभा य से असली क तू री ा त हो जाय
तो सोनेया चांद क ड बया म रख कर पं चोपचार पूजन करने के
बाद ी शवपं चा र,और दे वी नवाण म का एक-एक हजार जप
(दशांश होमा द स हत) स प करकेड बया को सु र त रख ल।इसे
ल बे समय तक सु र त रखा जा सकता है । योग क मा ा ब त ही
कम होती है - सूई के
नोक पर जतना आ सके - एक बार के उपयोग
केलए काफ है ।जै
सा क ऊपर भी कह आये ह- सा वक साधक
सफ मृ
गाक तू री का ही योग कर।अभाव म आठ गु णा बल(साधना)
दे
कर लता क तू री का योग कया जा सकता है, क तु
वडालक तूरी(जु दवद तर) का योग कदा प न कर।

५. मयू
रप छ
मयूर प छ यानी मोर का पं ख- एक अ त प व जां गम
है।भगवान ीकृण केयारे मोर-मुकुट सेसभी अवगत ह।मोर को
रा ीय प ी का दजा ा त है ।वा तुनयमानु सार भी मोर बड़ा ही
मह वपू ण प ी है
।तोते क तरह इसे पालनेक था तो नह है । पजरे
म इसे कै
द भी नह रखा जा सकता है । उ मुता और व तार ही
इसका जीवन-दशन है । पजरे म कै द करतेही थोड़े
ही दन म ण
होकर ाण याग कर दे ता है
। फर भी च ड़याघर म बड़ेपजर म
रखने क धृता तो हम करते ही ह।शौक और सु वधा हो तो मोर को
पाल, क तुमु रहने क सु वधा-स हत।
समय-समय पर मोर केपंख अ य प य क तरह ही वतः
झड़ते रहतेह।इ ह एक कर तरह-तरह के उपयोगी सामान-
पं
खे,चं
वर,मं
जषूा आ द बनायेजाते
ह।मोर केपं
ख को भ म बनाकर
व भ आयु व दक औष धय म योग कया जाता है ।मोर केपं

को हमारेऋ ष-मह ष लेखनी केप म योग करते थे।यहांवै
से
ही
कु
छ व श योग क चचा क जा रही है ।
पू
जा साम ी व े
ता के
यहां
मयू
र प छ सु
लभ ा य
है
।र वपु य या गुपुय योग(भ ा द र हत)का वचार कर, इसेआदर
पू
वक य कर,घर ले आय।उपयोग और योग के अनु
सार बने-बनाये
मोर-पं
खे भी खरीद सकते ह।घर लाकर गं गाजल से शुकरके , पीले
या नीलेनवीन व का आसन दे कर छोट चौक /पी ठका पर
आसीन कर द।पं चोपचार/षोडशोपचार पू जनोपरा त ी कृण
पं
चा र या सफ स तशती का तृ तीय बीज का सह जप,दशां श
होमा द स हत स प कर ल।सा धत मयू र प छ का पं
खा(चंवर)एक
साधक केलए अ त ुक याणकारी अ है ।इसी कार मोर के पंख
को बीस-पचीस के गुछेम भी रखकर उ व ध से साध सकते
ह।दोन के योग भ - भ ह।
योग-
Ø सा धत मोरपं
ख सेबनेचं
वर से
सा धत
मंो चारण(मान सक)पू
वक झाड़ दे
नेसेसम त ह वाधाय शा त हो
जाती ह। े
ता द व भ वाय व न भी श मत होते
ह।
Ø सा धत मोरपं
ख जस घर म समादर पू वक रहता है
,वहांकसी
कार केवा तुदोष, ह दोष, वाय दोष भावी नह होते।
Ø दोष त वा तु को वा धत(खंडत)करने ,र त करनेआ द काय
म सा धत मोरपं
ख का उपयोग कया जा सकता है ।जैसे
,मान लया
कसी के रसोई घर सेसटे(एक ही द वार)शौचालय है
,और रसोईघर
अपने सही थान(अ नकोण) पर है ,तो ऐसी थ त म म य द वार पर
पां
च-सात क संया म सा धत मोरपं ख का योग कर लाभा वत
आ जा सकता है। यात है क रसोईघर क दशा सही होनी
चा हए।ऐसा नह क नै ऋ य कोण पर बनेरसोईघर म भी मोरपं

था पत कर लाभ हो ही जाये
गा।
Ø मकान केभीतर चारो कोन {हो सके तो दस दशा -पू रब,अ न
कोण,द ण,नै ऋ य कोण, नै
ऋ य और प म के म य(पाताल
ख ड),प म,वाय कोण,उ र,ईशान कोण,ईशान और पू रब के
म य(आकाश ख ड)}म सा धत मयू र प छ को था पत करने से
व भ कार के वा तु
दोष का शमन हो जाता है ।हां
,पं
खक
थापना के
बाद सं त री त से वा तुहोम अव य कर द।इसकेलए
कसी यो य वा तु
शा ी सेसहयोग ले ना चा हए।
Ø मयू
र प छ के
कठोर भाग को लेखनी क तरह योग कया जा
सकता है
।सर वती क साधना म इसका बड़ा मह व है
।इस लेखनी से
भोजप पर य ले खन सेय मअ त ुगु
ण-वृ होती है।
Ø मयूर प छ के बीच एक वे त वण मयूर-चां
द होता है
।एक पंखम
यह चां
द एक ही होता है। सा धत सात पं
ख म से इस भाग को कची
सेवलकु ल वारीक से काट,ता क अ य वण का समावे श न हो। फर
उस कटे अंश केअ त महीन टु कड़ेकर( जतना महीन हो सके ),और
थोड़ेगीले गूड़ के
साथ मलाकर सात छोट -छोट गो लयां बना
ल।गो लय का आकार ऐसा हो क बना चबाये आसानी सेनगला
जा सके ।गो लयां
बन जाने पर कां
सेक कटोरी म पीले व का
आसन दे कर था पत कर,पं चोपचार पू
जन कर। फर वह बै ठकर एक
हजार म मथ(कामदे व) मंका जप कर।यह सारा काय फा गु न
पूणमा( जस रात हो लका दहन होता है ) को करना सवा धक
लाभ द होगा।वै सेअ य पूणमा को भी कया जा सकता है , जसम
भ ा और अ य अशु भ योगा द न ह ।इस कार पु नसा धत
"मयूर शखाच वट " को रजो नान के बाद, पां
चव दन से लागातार
सात दन तक, ातः नान के बाद गो ध के अनुपान से
( बना
चबाये ,तोड़े
) से
वन करेतो व भ कार के व य व दोष का
नवारण होकर स तान सु ख क ा त होती है ।
Ø उ मयू र शखाच को जा रत कर मधु केसाथ थोड़ी मा ा(सू

केनोक पर जतना आ सके ) म कु
छ दन तक से
वन कराने सेसम त
वाला र का शमन होता है

Øउ योग को सामा य थ त म भी बालक के
क याण(खास
कर द तो े
द केसमय क पीड़ा)केलए योग कया जा सकता है।
Ø बालक के
झाड़-फू

क म सा धत मयू
र प छ वशे
ष कारगर है

Ø जन बालक को बार-बार नजर-दोष भा वत करता है
,उ ह
मयू
र शखाच को ताबीज म भर कर गले म धारण करानेसे
चम कारी लाभ होता है

६.साहीकं
टक
साही एक जं
तु
का नाम है
,जो बड़ेवलाव जै
सा होता है
, क तु
इसका मु ह(थु
ं थने)कुे क तरह होता है ,और पैर व ली से भी कु छ
ठगने कद का- ठ क वलायती कुे जैसा।साही सयार क तरह मां द
म रहना पसंद करता है,भले ही वह उसका खु द का बनाया आ न
हो।दे
हात म, जहां आसपास जं गली वातावरण क भी सु वधा है , ट
के पु
रानेभ म या भवन के ख डहर म इसे दे
खा जा सकता
है
।मूलतः मां
साहारी होतेए भी, शाकाहार इसे काफ पस द है ; यही
कारण है क ककड़ी-खरबू जे आ द इसे ब त भाते ह।वनजारे इसका
शकार करना खू ब पस द करते ह। क तुाकृ तक संरचना इसक
ऐसी है क डंडेके लाख चोट भी इसे जरा भी घायल नह कर
सकते ।इसके शरीर पर दो अंगल
ुसे लेकर ब े भर तक के ल बे , मोटे
-पतले, कलमनु मा गोलाई वाले,काफ मजबू त असंय कां टेहोते
ह,जो आपातकाल क थ त भां पते ही सीधेतन कर खड़े हो जाते
ह,और वार बचा ले तेह।सामा य थ त म ये सुत रोय जै
से पड़े रहते
ह- ठ क वैसेही जैसेभय या ठंढ क थ त म हमारे शरीर के र गटे
खड़े हो जातेह,और सामा य अव था म शरीर पर चपके से रहते ह।
ाचीन काल म,जब आज का फाउ टे नपेन नह था,मोर केपं
ख,
या फर इस साही नामक पशु केकां
ट का उपयोग ले खनी केप म
होता था।मोटे-पतले
, अलग-अलग लखावट केलए अलग-अलग
आकार के कांट का उपयोग कया जाता था।येकां
टेाकृ तक प से
काले-सफे द, दोन ओर सेनोकदार आ करते ह,जो दे
खनेम बड़े
सुदर लगते ह।
य ोपवीत-सं
कार म अब तो लोग भू
लते
जा रहे
ह, क तु
वटु
क के
शखा- ौर म शखा ेको पांच ख ड म वभा जत करने हे
तुकुशा
और साही-कं
टक का अ नवाय प सेयोग का वधान है ।इसी साही-
कंटक से
ख ड करतेए,बीच म कुशा बां
ध दया जाता है
, जसे
त काल पता/गु ारा छ दत कया जाता है

साही केकां
टेजड़ी-बूट क कान पर आसानी से उपल ध हो
जातेह- ब त ही कम क मत म। कसी भी नवरा के पू
व(आमाव या
क रा या सं या काल म) इसेय कर घर ले आय।गं गाजल से शु
कर आदर पूवक नवीन लाल व का आसन दे कर रख द।अगले दन
सेअ य ता क पदाथ क तरह इसे पं
चोपचार पू
जन कर- पूरे
नवरा भर।साथ ही दे वी-नवाण मंका यारह माला जप भी न य
करतेरह। दन म आपका जो भी नवरा स ब धी योजना हो करते
रह,कोई हज नह ।इस साही-कंटक- या को रा म ही कर( नशीथ
काल म) तो यादा अ छा है।एक साथ एक,तीन,पांच,सात,या नौ
कां
ट को सा धत कर सकते ह।नौ दन केपू
जन और जप,होमा द से
या स प हो जाये गी।कां
टा योग केयो य हो जाये
गा। आगे
योग के समय पुनः कु
छ मंजप( यो य नाम स हत) करना पड़े गा।
सा धत साही-कं
टक-लेखनी सेकसी भी षटकम-य को लखने
से
अ त ुलाभ होता है
।सामा य ले
खनी, अनार क
ले
खनी,मयू
र प छलेखनी आ द क तुलना म साही-कं
टक-ले
खनी का
अपना अलग मह व है।
इसका सबसे मह वपूण काय है- व े
षण और उ चाटन।इसम इसे
महारथ हा सल है
।पु
रानेलोग तो डर से
साही का कां
टा अपने
घर म
रखना भी नह चाहते थे, क प रवार म लड़ाई-झगड़े ह गे
।वै
सेकाफ
हद तक यह सच भी है ।सामा य तया कसी को साही-कांटा अपने
घर
म रखने का सु
झाव तो नह ही ं गा- य क व े षण इसका ा क
गुण है
।सा धत हो जानेपर तो कहना ही या।हां,साधकगण- जो
व भ ता क व तु को सदा अपने पास रखा करतेह,उनक
बात कुछ और है।अपनी साधना-बल से र त रहते ह।
पुन ,सावधान करना चा ग
ंा क कोई भी योग वाथ और लोभ
के
वशीभूत होकर न कर। अ यथा
भारी क मत चु
कानी पड़े
गी। शा का स पयोग लोक क याण के
लए हो।

७. हरताल
हरताल न वान प तक है , और न जांगम।यह थावर क
णी म आता है
े । यानी एक ख नज है
।हरताल दो तरह का होता
है
- वेत और पीत। वे त को गोद ती हरताल भी कहते ह,और पीत को
ह दया हरताल के नाम सेजाना जाता है।यह अ क क तरह
चमक ला और क चत परतदार होता है । अपेाकृ त वजनी भी होता
है
। इसम संखया(Arcenic)का अं श पाया जाता है
,इस कारण
जहरीला भी है
। सामा य अव था( बना शोधन के )म इसका भ ण
जानलेवा है
।आयुवद केसाथ-साथ त म इसका वशे ष योग
है
।य ले खन म इसेयाही क तरह उपयोग कया जाता है।कु

व श होम काय म भी इसका उपयोग होता है
।भगवती पीता बरा
बगला क साधना म ह दया हरताल केबना तो काम ही नह हो
सकता। ता पय यह क इनक साधना म अ याव यक है ।च दन के
प म और होम म भी।अ य व भ अ ग ध केनमाण म हरताल
का उपयोग कया जाता है

जड़ी-वू
ट व ेता के यहांआसानी सेउपल ध है
।वतमान
म(सन्
2014) इसका बाजार भाव एक सेडे
ढ़ हजार पये त
कलो ाम है
।जल म आसानी से घु
लनशील है
।अतः च दन क तरह
घस कर उपयोग कया जा सकता है।
गुपु
य योग म बाजार से
खरीद कर इसे
घर ले
आय,और
गं
गाजल से
शुकर, पीले नवीन व
का आसन दे कर पीतल क कटोरी म पी ठका पर रख कर, पं चोपचार
पूजन कर।पूजनोपरा त ी शवपं चा र मंका यारह माला जप
करने केबाद, थम दन ही यारह माला पीता बरा मंका भी जप
कर। यात है क शवपचं चा र मं-जप ा के माला पर,और
पीता बरा मं-जप ह द के माला पर करना चा हए। आगे छ ीश
दन तक पू ण अनुा नक व ध से उ दोन जप होना चा हए,यानी
लगभग ढाई घं टेन य का काय म रहेगा।एक बार म वाथवश
"ब त अ धक मा ा पर" योग न कर।सौ ाम क मा ा पया त है -
एक बार के योग केलए।
भगवती बगला क उपासना म व भ योग बतलाये गये
ह।सभी म इसका उपयोग कया जा सकता है
।ह द के
चूण के
साथ
दशां
श मा ा म मलाकर हवन करनेसेसभी कार केअभी क
स होती है ।

इस कार व धवत सा धत ह दया हरताल को मयादा पू वक


काफ दन तक सु र त रख कर योग म लाया जा सकता
है
।षटकम के सभी काय इससे बड़ेही सहज प म स होते ह।जल
म थोड़ा घसकर न य तलक लगाय- इस सा धत हरताल
का। व वमोहन का अमोघ अ है यह। क तुयान रहे
- साधना का
पयोग न हो,और न ापार हो ता क व तु का। पयोग का
सीधा प रणाम है- ग लतकु। पयोग से - सा धत ऊजा का
ऊ वगमन अव होकर,अ तः रण का काय होनेलगता है।
प रणामतः रस-र ा द स तधातु सेन मत शरीर के सभी धातु
का हठात्रण होने लगता है
,और अ त म ग लत कु केप म
ल त होता है ।

८. फट करी
फट करी एक सु
प र चत थावर है
,सु
लभ और स ता
भी।इसका शा ीय नाम कांी है ।र -रोधन,र -शोधन, ण-रोपण
आ द म इसका चु र योग होता है।दाढ़ बनाने केबाद फट करी को
पानी म डु
बोकर चेहरेपर रगड़नेम नाई बड़ी फु त दखाता है- य
क कटे भाग पर कुछ वशे ष जलन पै दा करता है
।आयु वद और
हो मयोपैथी म इसकेऔषधीय योग से लोग अवगत ह।यहां कु

अ य लोकोपयोगी योग क चचा क जा रही है -
Ø कसी भी र ववार को फट करी का बड़ा टु कड़ा(सवा कलो करीब
- एक ही ख ड) खरीद कर लाय, और जल से शुकर नवीन लाल
व का आसन दे कर पी ठका पर रख द। फर पंचोपचार पूजन करने
के बाद सूय पंचा र मंसे आर भ कर मशः के तुपंचा र मंतक
( ह के सही म म)एक-एक हजार जप कर ल।जप के बाद
सु वधानुसार कुछ संया म तला द साक य से होम भी अव य
कर।इस कार सा धत कांी को उसी लाल टकड़े म बां
ध कर
वा तुदोष भा वत ेम लटका द।हो सके तो वा तु
म डल के मय
ख ड म इस भां त लटकाव ता क हवा के ह के झ के म भी
दोलायमान हो।दोलन इसक गु णव ा म वृ करता है ।थोड़े ही दन
म आसपास के सम त वा तुदोष को आ मसात कर ले गा।तीन सेछः
माह बाद उसे स मान पू
वक उतार कर व स हत कह जाकर जल
म वस जत कर द,और घर आकर कसी यो य वा तु शा ी से
वा तुव धन करा ल। एक बार क यह या दस-बारह वष तक
कारगर रहे गी,वशत क भवन म कोई वशे ष वा तुदोष जाने-अनजाने
पैदा न कर दया जाय।जै सेक, कसी ने थान को ही छे ड़ दया,
षत कर दया,नै ऋ य म ग ा खोद दया,ईशान म अ न था पत
कर दया- इस कार सीधेपं
चत व को छे
ड़ दया गया,वै
सी थ त म
आपका पूव ब धन वयमेव श थल-ख डत हो जायेगा।
Ø सामा य प सेसा धत करकेछोटे
(सौ-दो सौ ाम) केटु
कड को
भी घर केकसी भाग म रखनेसे
आसपास के वा तु
दोष का नवारण
होता है

Ø फट करी को सीधे गरम तवे पर डाल द।थोड़ी दे
र म पघलने
लगेगा,और कु छ दे
र छोड़ दे
नेपर ह के लावेक तरह हो जायेगा,मान
मकई का लावा हो।अब उसे उतार कर सहेज ल।यह या कसी
सोमवार को नाना द शु के बाद कर।लावा तै
यार हो जानेकेबाद
कां
से के कटोरेम रख कर पं
चोपचार पूजन और कम से कम एक
हजार ी शवपं चा र मंका जप कर ल।इस कार सा धत कांी-
भ म क र ीभर (१२५ म. ा.) मा ा न य ातः-सायं मधुके
साथ,तीन महीने तक सेवन करने से य का दररोग समू लन
होता है

Ø उ व ध से वनायी गयी कांी भ म को व भ जीण- वर म
भी से
वन कया जा सकता है।साथ म गलोय-स व मलाकर से
वन
करनेसेलाभ अ धक और शी होगा।

पु
याकवन प तत म्
31
९. स र
स र कसी वशे
ष प रचय का मोहताज़ नह है
- खास कर
भारत जैसे दे
श म,जहां य केसु हागरज केप म मा यता है
इसे
।सधवा और वधवा क नशानी है - उसके मां
ग का स र।
कुआंरी क याय माँ
ग तो नह भरती,पर कंठ म या ूम य म लगाने से
परहे
ज भी नह करती।आजकल तरह-तरह के रं
ग म स र मलते
ह,और अनजाने म यां उ ह अं
गीकार भी करती ह- उसी मयादा
पू
वक; क तु यह जान ल क असली स र सफ दो ही रं ग का हो
सकता है- पीला और लाल।इसकेसवा और कोई रं ग नह ।
थोड़ा पीछे झां
क कर अपनी सं कृ
त को ढू
ढ़ने
-दे
खनेका यास
कर तो पायगेक जस स र का वहार करने का अ धकार प त
ारा ववाह-मं डप म दया जाता है
,वह स र सफ पीले रं
ग का ही
होता है(लाल भी नह ),और वजन म भी अ य स र क अपेा
भारी होता है

ात है क असली स र का नमाण हगु ल( सम रख)
नामक एक थावर पदाथ से होता है, जसका रं
ग पीला और
चमक ला होता है
।चमक का मुय कारण है - इसकेअ दर पारद क
उप थ त।इसी सस रख से उ वपातन या ारा पारा(Mercury)
नकलता है।पारद केपातन के बाद जो अवशेष रहता है
, उसी से
स र बनता है।इसका महंगा होना भी वाभा वक ही है

गु
ण-धम सेस र र शोधक,र रोधक,और णरोपक
है
।आयु
वद केव भ औष धय म भी इसका योग होता
है
।कमकां
ड-पू
जा-पाठ का व श उपादान हैस र।सभी दे वय को
स र अ पत कया जाता है। स र केवगै
र जै
से
सुहा गन का ृगार

अधू रा है
,उसी कार दे वी-पू
जन भी अधू
रा है
।अपवाद व प, पुष
देवता म हनु मानजी और गणे शजी क पूजा म भी स र
अ याव यक है ।गणेश जी का शव ारा शरो छे दन आ था, तब
आतु र अव था म माता पावती स र ले पन कर उ ह र त क
थी।राम-दरवार म मुा- माला को खं डत करने पर हँ
सी केपा बने
हनु मान नेअपना व थल चीर कर सभासद को च कत कर दया था
- उर म राम-दरवार-दशन करा कर।तब सीता माता नेस र-ले पन
कर उ ह र त कया था।एक और पौरा णक सं ग म सीता के
स र लगाने के औ च य और मह व पर हनु मान ारा ज ासा कट
क गयी। सीता के यह कहने पर क "इससेवामी क आयु बढ़ती
है", ी हनुमान अपने सवाग म स र पोत कर दरबार म पु नः हँ
सी के
पा बने थे।उनका तक था क सफ शरीर के उ वाग म थोड़ी मा ा म
भरा गया स र जब वामी क आयु म वृ कर सकता है , तो य
न पूरेशरीर को स र से भर लया जाय।
बात कु
छ और नह , ये
कथानक सफ स र क ग रमा को
दशाते
ह।
ववाह काल म वारात जब क या के ार पर प च
ंती है,उस समय
मां
-बे
ट एका त कुलदेवी-क म बैठ कर गोबर के गौरी-गणेश पर
नर तर पीला स र चढ़ाती रहती ह- जब तक क मं डप से क या का
बु
लावा न आजाय।भले ही आज इस अ त मह वपू ण या को लोग
मह वहीन करार दे
कर पालन करने म भू
ल कर रहे ह , क तु है
, यह
एक रह यमय ता क या, जसका स ब ध सीधे अ ु ण सु हाग से
है

स र का ता क मह व अमोघ है
।यहां
कुछ वश योग क
चचा क जा रही है
-
ü का तक कृण चतु दशी को हनु मान जी का ज मो सव होता
है।द णा य मत से चैपू णमा क मा यता है । कसी अ य मत से
अ य मास- त थ भी मा य है।उ दोन दन हनु मान जी क आराधना
का वशे ष मह व है।आठ अं गलु माण के प थर क सु दर मूत
खरीद कर घर लाय।सामा य ाण त ा- वधान से उसे त त
कर।यथोपल ध पं चोपचार/षोडशोपचार पू जन स प कर।नै वेम
अ य सामा ी हो न हो,भु
ना आ चना और गू ड़ अ याव यक है ।
अब,एक पीतल, कां सा,या तां
बा के पा म शुघी और शु स र
का मधुनमुा ले
प तै
यार कर,और उस त त मू त क आं ख
छोड़कर,शे ष सवाग म लेपन कर द।त प ात् ऊँ हँहनु
मतये नमः का
यारह माला जप ा के सा धत माला पर कर ल।यह या
इ क श दन तक न य म से , नयत समय पर करते रह। इ क शव
दन अ य साद के साथ शुघी म बना गू ड़-आं टेका चू
रमा(ठेकु
आं )
अ पत कर।कम से कम एक माला से उ मंपू वक तला द साक य
-होम भी कर ल।इस या से हनु मान जी अ त स होते ह।सम त
मनोकामना क स होती है ।उ या को अ य शुभ मुत म
भी ार भ कया जा सकता है ।
ü ये क महीने केकृण प क चतुथ को संक ी गणे
श चतुथ
कहते ह।अगहन महीने म उ त थ से
सं
कट नवारण केलए
गणप त क साधना ार भ क जा सकती है ।सुवधानु
सार कु
छ पू

म सारी तै
यारी कर ल- आठ अं
गल
ु माण क गणे श क सफे द प थर
क मू त खरीद ल। सामा य ाण त ा- वधान से उसे त त कर
ल।यथोपल ध पं चोपचार/षोडशोपचार पू
जन स प कर।नै वेम
अ य साम य के साथ-साथ मोदक(ल डु ) अव य हो।उधर वा भी
अ नवाय ही है- गणेश-पू
जन म- इसेन भूल। अब,एक पीतल,
कां
सा,या तां
बा के पा म शुघी और शु स र का मधु नम
ुा ले

तै
यार कर,और उस त त मू त क आं ख छोड़कर,शे ष सवाग म
ले
पन कर द।त प ात् पू
व सा धत ा के माला पर ऊँ गं
गणपतये
नमः मंका यारह माला जप कर।जप समा त के बाद एक माला से
उ मंो चारण पू वक तला द सा लय-होम भी अव य कर ल।इस
या को पूरे
वष भर इसी व ध से करतेरह- महीनेम सफ एक दन
क वशे ष या है ,शे
ष दन म सामा य पूजन और घृ त म त
स र ले पन तथा एक माला जप भी करते रह।यह संक ी गणे श
चतु
थ त सम त व न को समा त कर मनोकामना क पू त करने म
स म है।
ü अ य सौभा य क कामना ये क ी को होती है।अतः इस
कामना सेसभी सौभा यकांी यां इस ता क योग को कर
सकती ह,खास कर उन य को तो अव य ही करना चा हए,
जनक कुडली म मं गल,श न,रा आ द का दोष हो,तथा प त थान
बल हो। कसी भी कारण सेप त पर आये संकट को र करने म भी
यह या स म है । या व ध- गाय के गोबर से
अंगलुी केआकार
क दो मूतयां
पीले नवीन कपड़ेपर था पत कर,और उ ह गौरी और
गणेश केप म त त कर सामा य पं चोपचार पू
जन कर।पू जन के
प ात्आम या पान के प ेसेऊँमहागौय नमः,ऊँ ी गणे शाय नमः
का उ चारण करतेए एक सौ आठ बार पीला स र अ पत
कर।संया पूरी हो जानेपर कपू
र क आरती दखाव,और अपनी
मनोवां
छा नवेदन कर।त प ात् अ त छड़क कर वसजन कर
द।यह या न य क है ,कम सेकम वष भर तक कर।सामा य थ त
म तो अगहन महीने के शुल प क नवमी सेार भ करनी
चा हए। वशे
ष संकट क घड़ी म सामा य पंचां
ग शु दे ख कर कभी
भी कया जा सकता है । या थोड़ा उबाऊ जैसा तीत हो रहा
है
, क तुहै
अ त ुऔर अमोघ। मुय रह य है - गोबर के
गौरी-गणेश
को नय मत सु हागरज अ पत करना। कसी अ य पदाथ क मू त पर
यही या उतनी करगर नह होगी- इसका यान रख।
ü शु सम रख से बनेपीले स र को पीले नवीन व का आसन
दे
कर,पं
चोपचार पूजन करके,उसके सम दे वी नवाण का कम से
कम
नौ हजार जप कर स कर ल- सु वधानुसार कसी नवरा या अ य
शुभ मुत म,और सुर त रख ल।इस म ा भ ष स र क एक
चुटक पुनः अभी नाम और मंका मान सक उ चारण करतेए
जसेदान कया जाये गा वह वशीभूत होगा, क तुयान रहे
- कसी
बु
रेउ ेय से यह योग कदा प न कर।इस कार सा धत स र का
वयंभी तलक केप म उपयोग कर, ा को वशीभू त कया जा
सकता है।
प चम्प र छे
द ह-न
-रा या द-वन प त-म -सारणी
हमारे
मनी षय ने
लोक-क याणाथ अने कअ त ु ान,अनु भव
और जानका रय का संह कया है । यो तष और त शा का
वन प त-वणन भी उ ह म एक है
। पछले अ याय म आपने दे
खा क
कस कार व भ वन प तय का औषधीय उपयोग न करके , सफ
धारण-र ण-पूजना द करनेमा सेही मानव क मनोवाछां
य पूरी
होती ह,और व भ आपदा का नवारण होता है । ा ने
लोकक याण केलए ही व भ वन प तय का सृ जन कया है ।उसी
सं
दभ को आगे बढ़ातेए, अब यहांकु
छ व श वन प तय का
यो तषीय वचार पू
वक उपयोग पर काश डाला जा रहा है

यो तष-शा हम बतलाता है क आकाश म नौ ह,बारह
रा शयां,और स ाइस न ह।इनके आपसी सामं
ज य सेसृमा
का याकलाप भा वत होता है ।जीवन म होने
वाली येकअ छ-
बुरी घटना का पूवानु
मान और समाधान इन ह-न -रा या द
सेनयंत- भा वत होता है । सृ का कण-कण भा वत है एक
सरे से
।वन प तयां
भी इससे अछूती नह ह।
धान व क सेह म च मा को औषधीश कहा गया है -
यानी सभी वन प तय पर उनका आ धप य और नयंण है ।पु
नः
सभी ह को एक-एक वन प त का वामी वशे ष (सं
र क) बतलाया
गया है
। ह क तु हे तु
(मं-जपा द केप ात् ,या बना जप केभी)
उनक व हत सं मधा सेयथासंया ( नधा रत) आ य(घृ त) यु होम
करने का नदश है - मनी षय का।इस या से अ त ुलाभ होता
है।कुछ अ य वन प तय क वत सारणी भी है - ज ह मा धारण
करने से ही तत्
-तत्ह क तु हो जाती है । उसी भां त बारह
रा शय , और स ाइस न केलए भी सु झावादेश दया है
मनीषा ने । जस रा श वा न स ब धी परेशानी हो, उससे
स ब धत वन प त का योग- होम,धारण,एवं जला े पण नान
आ द का वधान बतलाया गया है । कोई भी योग करने सेपहले,पू

अ याय म व णत व ध से (मुत वचार करके )आमंण पू वक
स ब धत वन प त को हण कर।जहां तक स भव हो ताजी
वन प त ही योग म लायी जाय।अस भव क थ त म जड़ी-बू ट
क कान सेय करना मजबू री है। क तुयान रहे- गु
णव ा क
से ताजगी अ नवाय है । हण करने के प ात्,यथो चत जला द(जल-
वायु-आतप) शु कर। त प ात् पंचोपचार पूजन एवं औषधीश
पंचा र, शव पं चा र,तथा देवी नवाण मंो का यथास भव एका धक
माला जप करना चा हए।इसके बाद जस ह,रा श या न क
वन प त का योग कया जा रहा है ,उससेस ब धत पं चा र मंका
भी यथो चत जप होना चा हए,तभी स यक् लाभकारी होगा।
नव ह के
म , सं
मधा धारणाथ
वन प त
(१) सू
य- ऊँ सू
याय नमः – अकवन - व वमू

(२) च मा- ऊँ ल सोमाय नमः - पलास -
खरनीमू

(३) मं
गल- ऊँ ं भौमाय नमः - ख दर -
अन तमू

(४) बु
ध - ऊँ बु
धाय नमः - अपामाग -
वधारामू

(५) वृ
ह प त-ऊँ ल ँ
वृ
ह पतये
नमः - पीपल -
भृङराज
(६) शु- ऊँ शुाय नमः - उ बर -

(७) श न - ऊँ शनैराय नमः - शमी -
शमीमू

(८) रा - ऊँ राहवे
नमः - वा - तच दन

(९) के
तु- ऊँ के
तवे
नमः - कु
शा -
अ ग धमू

उ सारणी म दयेगयेह-स मधा-सू ची केमरण हे


तुएक ब ु त
ोक है- अकः,पलाशः,ख दरोऽ पामाग ऽथ प पलः।उ बरः शमी
वाः कु
शा स मधः मात् ।।

बारह रा शयां
- वामी ह और उनक वन प तयां
-
(१) मे
ष रा श -- मं
गल -- र च दन
(२) वृ
ष रा श -- शु --- छ तवन(गु
लच
ैी स श)
(३) मथु
न रा श – बु
ध -- कटहल
(४) कक रा श -- च मा -- पलास(ढाक)
(५) सह रा श -- सू
य -- वरगद(वट)
(६) क या रा श – बु
ध -- आम
(७) तु
ला रा श -- शु-- मौल ी(वकु
ल)
(८) वृक रा श – मं
गल -- ख दर(खै
र) जससे
क था
बनता है
(९) धनु
रा श -- वृ
ह प त -- पीपल(अ थ)
(१०) मकर रा श – श न -- शीशम( वशे
ष कर काला शीशम)
(११) कुभ रा श – श न -- शमी
(१२) मीन रा श – वृ
ह प त -- वरगद(वट)

सताइस न - अ धदे
वता -- वन प तयां
-
(१) अ नी - अ नीकु
मार -- आं
वला
(२) भरणी - यमराज -- वरगद और पाकड़(यु
म)
(३) कृ का - अ न -- उ बर(गू
लर)
(४) रो हणी - ा -- ज बु
(जामु
न)
(५) मृ
ग शरा- च मा -- ख दर(खै
र)
(६) आ ा - शव -- ल (पाकड़)
(७) पु
नवसु
- अ द त -- वं
श(वां
स)
(८) पु
य - वृ
ह प त --- अ थ(पीपल)
(९) षा - सप
े --- नागके
सर(नागे
सर)
(१०) मघा - पतृ
( पतर)- वट(वरगद)
(११) पू
वाफा गु
नी- भगदे
व -- पलास(ढाक)
(१२) उ राफा गु
नी- अयमा(सू
य नह )— ा
(१३) ह ता -- सू
य --- अ र ा(रीठा)
(१४) च ा -- व ा --- बे

(१५) वाती -- वायु--- अजु
न(क वा)
(१६) वशाखा -- इ और अ न – वकं
कत
(१७) अनु
राधा -- म --- वकु
ल(मौल ी)
(१८) येा -- इ --- चीड़
(१९) मू
ल --- रा स -- साल
(२०) पू
वाषाढ़ -- जल(व ण नह ) – सीताअशोक(र ाशोक)
(२१) उ राषाढ़ -- व े
दे
वा --- कटहल
(२२) वण -- व णु--- अकवन(अक)
(२३) ध न ा -- वसु --- शमी
(२४) शत भष -- व ण --- कद ब(कदम)
(२५) पू
वभा पद-- अजै
कच --- आम
(२६) उ रभा पद— अ हबु
ध --- न ब(नीम)
(२७) रे
वती -- पू
षा --- मधू
क(म आ)
ात है क सभी न द जाप त क पुी एवं च मा क
प नयांह।मं योग म आ णव-यु पं चा र( ी लगी),अ ये
नमः यु- जैसे- ऊँ
अ यै नमः,ऊँ
भर यैनमः – का यथो चत
योग करना चा हए। वशे
ष प र थ त म सबकेवैदक मंभी योग
कये जा सकते ह।

स तौष ध- दशौष ध-सव ष ध-शतौष ध-सू


ची
सृ म थावर-जां गम-उ ज-अं डज- वे दज( थूल-सू म, य-
अद् य) जो भी ह, कसी व श उ े य सेजक ने इनक सजना क
है
।उ ह सजना म से कुछ वश सेपछले अ या म
प रचय कराने का एक ु यास कया गया। व भ का सफ
ता क ही नह ,अ पतुयो तषीय और कमकां डीय उपयोग भी आ
करता है। पू
जा साम ी क कान पर य द ढू ढने जाय तो ायः दे खते
ह क कान का कू ड़ा-करकट एक कर सव ष ध के नाम पर देदया
जाता है
।इसका मुय वजह है क न तो ब ेता को पता है ,और न
ेता को ही क सव धयांया होती ह।उधर कमकां डी ा ण को
भी शायद ही पता हो,और हो भी य द तो जां
चने-परखने का समय
कहां है
उनके पास।यानी वहा रक जानकारी का अभाव है । ाचीन
समय म हम जं गल से जुड़ेए थे।अब कं करीट के जंगल और
कोलतार क या रय ने हम आधु नक बना दया है । "सव ष ध" श द
का अथ हम सीधे लगाते ह- सभी कार क औष धयां , क तु बात
ऐसी नह है ।
अ तु,पाठक क सु
वधा और जानकारी केलए यहां
इसक सू
ची
मा णक ोक स हत द जा रही है
-
कुंमां
सी ह र ेे
मुरा शै
लय
ेच दनम्
।वचा च पक मु
ता च
स व ष यो दश मृ
ताः।।
यानी कु
ठ,जटामां सी,ह द ,दा ह द ,मुरामां
सी, शलाजीत, ेत
च दन,वच,च पा,और नागरमोथा इन दस औष धय को ही सव ष ध
कहा गया है।एक अ य सू ची म ऊपरो सभी तो यथावत
ह, क तुच पक केथान पर आं वला लया गया है।जटामांसी के
स ब ध म ात है क कह -कह इसके नाम पर छड़ीला देदया
जाता है
,जब क असली जटामां सी ठ क जटा क तरह,और अ त
ती ण गंधी होता है
।अतः उसे ही योग करना चा हए।
एक और सू ची है
– स तौष ध क -
मु
रामां
सी,जटामां
सी,वच,कू
ठ, शलाजीत,दा ह द और
आंवला। यात है क ह द ,च दन और नागरमोथा नह है
इसम,तथा
च पा क जगह आं वला को हण कया गया है ।
0इससेऊपर क सू ची शतौष ध,और उससेऊपर क सूची
सह ौषधी कहलाती ह।वैदक,ता क,पौरा णक काय म इनका
चु
र योग होता है
।य ीय वन प तय केस ब ध म एक ोक है-
शमीपलास य ोध ल वैकङ्
कतो वाः।अ थो बरौ ब व दनः
सरल तथा।शाल देवदा खा दर ेत या काः ।।
आगे
शतौष धय क सू
ची द जा रही है
ः-

(१) व णुानता
(२) मयू
र शखा
(३) सहदे

ननवा
(४)पु
(५) शरपु

खा
(६) वाराहीक द
(७) वदारीक द
(८) च क( चतउर)
(९) काकजं
घा
(१०) ल मणा
(११) तुबका
(१२) बदरीप
(१३) कपू
री
(१४) करे

(१५) कक टका
(१६) च ां

(१७) ताक

(१८) ा प ी
(१९) द ती
(२०) अ ग धा
(२१) तमु
े सली
(२२) याममु
सली
(२३) ग रक णका
(२४) इ वा णी
(२५) अपामाग
(२६) शं
खपु
पी
(२७) घृ
तकु
मारी
(२८) श लक
(२९) ग ध सारणी
(३०) नगु
डी
(३१) दे
वदाली
(३२) वट
(३३) शमी
(३४) ल (पाकड़)
(३५) पलास
(३६) अ थ(पीपल)
(३७) आ
(३८) उ बर(गू
लर)
(३९) ज बु
(जामु
न)
(४०) घनवहे
रा
(४१) वे
तस(वत)
(४२) अ लवत
(४३) नागके
शर
(४४) अजु
न(कहवा)
(४५) अशोक
(४६) मौल ी(वकु
ल)
(४७) पाषाणभे
द(प थरचू
र)
(४८) शाल
(४९) तमाल
(५०) ताड़
(५१) पाटला
(५२) से
वती
(५३) म आ(मधू
क)
(५४) सीरस( स रष)
(५५) ब व(बे
ल)
(५६) कं
टकारी(रे
गनी)बड़ी
(५७) कं
टकारी(रे
गनी)छोट
(५८) खरट
(५९) अ तबला
(६०) सोनापाठा
(६१) नागबला
(६२) जा व ी
(६३) जयपाल(जायफल)
(६४) के
तक (के
वड़ा)
(६५) कदली(के
ला)
(६६) बजौरा(नी बू
क एक जा त)
(६७) अरणी
(६८) अगर
(६९) तगर
(७०) अजवाइन
(७१) पु का
(७२) ोणपु
पी(गू
मा)
(७३) कुभी
(७४) ीपण (शालपण )
(७५) पृपण
(७६) मदन
(७७) च पक(च पा)
(७८) प ाख(कमलगटा)
(७९) वणपु
पी(कटै
ला)
(८०) स ेरी
(८१) करमाला
(८२) धव(धवई)धाय
(८३) कुद
(८४) मु
चकुद
(८५) दा डम(अनार)
(८६) ा ी
(८७) आं
वला
(८८) भृ
गराज(भग रया)

(८९) अधोपु
पी
(९०) मीना ी
(९१) अडू
सा(वासा)
(९२) तरं
गनी
(९३) गलोय(गु
रीच)
(९४) शतावरी
(९५) बावची(वाकु
ची)
(९६) वनतु
लसी
(९७) तु
लसी
(९८) कु
शा
(९९) इ ु
मू

(१००) सषपमू

उ सौ वन प तय क सू
ची म व ान म क चत मतभे
द भी है
।कु

व ान एक ही वन प त के दो अं
ग को अलग-अलग हण कर लए
ह- संया पू
त हेतु
- जै
सेवदरी(बेर) केप ेऔर बेर क जड़। कई
पु तक का अवलोकन करने के बाद मनेव ववेक सेसू
ची म क चत
प रवतन कया है।इसम क मह ा का यान रखा गया है।कुछ
नाम का ेीय नाम भी सु वधा केलए डाल दया गया है।सतत
यास के प ात्भी कु
छ वन प तय के नाम, प पर म बना आ
है
। व ान सेआ ह है क कृ पया यथो चत संके
त करनेका क
करगे।इस स ब ध म म भी यासरत -ँनयी जानकारी मलने पर
पु
नः यहां
संशो धत क ंगा।

सवाभावे
शतावरी
जै
सा क शीषक से ही प है - सवाभावेशतावरी- सबके
अभाव म शतावरी,यानी शतावरी कोई उ कृ वन प त का नाम है ,जो
सबके अभाव का पू
रक है।जी हां
,शा का ऐसा ही आदे श है-
कमकां डीय वन प त योग म य द कु छ न मलेतो शतावरी का
योग करना चा हए,ले
कन इसका यह आशय नह है क कु छ ढू
ढ़ा
ही न जाय।ढू
ढ़नेका यास न करना- कम( वहार) क ु ट कही
जायगी,अतः खोज तो करना ही है- अ या य उपल ध वन प तय का।
शतावरी का एक नाम शतावर भी है
।यह एक जंगली लता
है
, जसक प यां गहरे
हरेरं
ग क ,ब त ही महीन-महीन होती ह-
शमी से कु
छ मलती-जुलती।शमी क तरह शतावर म भी कां टेहोतेह
- ब क उससे भी बड़े
-बड़ेकांटे
। सरी ओर, शमी का पौधा होता
है,और शतावर क लता।आजकल ब त जगह अनजाने म ही शो-
ला ट केप म लोग गमले म लगाते भी ह।नयेवृत पर ह के पील-
परागकण से भरपू
र छोटे
-छोटेफूल लगते ह,जो ौढ़ होकर छोट
गोल मच क तरह फल म प रणत हो जाते ह।इ ह वीज सेवतः ही
आसपास नयी लताय अं कु रत हो आती ह।
योग म आने वाला शतावर इसी लता का मूल है
,जो ब े भर
सेलेकर हाथ भर तक के लं
बेआ करते ह।इन जड़ क वशे षता है
क ये क नया जड़ सीधे मू
सला जड़ के ईद- गद से
ही नकलता है -
यानी जड़ से पुनः पतली जड़ वलकु ल नह नकलती।इस कार
सभी जड़े लगभग समान आकार वाली होती है ।सुवधानुसार साल म
एक या दो बार आसपास क म को करीने सेखोद कर (ता क पौधे
को त न प च ंेऔर मु सला जड़ क भी र ा हो)मूसला जड़ के
अ त र कु छ और जड़ को छोड़ कर शे ष को एक-एक कर तोड़
लेतेह,और फर म को यथावत पाट दे ते
ह।इस कार एक बार क
लगायी यी लता से ल बे समय तक आव यक शतावर ा त कया
जा सकता है।एक प रपुलता से पां
च-दश कलो जड़ तवष ा त
कया जा सकता है ।धो, व छ कर इन जड़ को ह का उबाल दे ते
ह,ता क आसानी से सू
ख सके ,अ यथा सूखनेम ब त समय लग
सकता है।
आयुवद म वाजीकरण औष धय क ेणी म इसेरखा गया
है
।यह ब त ही पौ क है
।इसक एक और वशे षता हैक ध
बढ़ानेम चम का रक काय करता है
। जन म हला क ध- थयां
स यक काय नह करत ,उ ह इसका ीरपाक बनाकर दया जाता
है
।जानकार वाले इस जड़ी का योग अपनेधा पशु के ध-
वधन केलए करते ह। क तुयान रहेअ धक मा ा म से
वन
हा नकारक भी है
।पू
जापाठ म इसे
सव ेऔष ध क सू ची म रखा
गया है

व भ त एवं आयु वद- थ का अवलोकन करने केप ात्
आपके सम मे रा यह ु यास- पु याकवन प तत म् तु त
है
।इसके अ तगत जो भी योग बतलाये गये
ह पूणतः ा और
व ास के यो य ह। ा कथन म ही नवेदन कर चुका ँ क म कोई
महान साधक नह -ँवस यदाकदा योग-साधना करते रहता
।ँव भ वषय को नय मत पढ़ते रहनेक ललक है ,और साथ ही
अपने अनुभव को सुधी जन तक साझा करनेक भी।यही कारण है
क आवाध प से मे
री ले
खनी ायः चलतेरहती है
- ब वषय क
या रय म।
त जै सेगूढ़ वषय म गुबननेक न तो मु झम मता है
,और
न लालसा। फर भी एक अनुभवी योगकता के नाते
य द आपको
मु
झसे कु
छ अपेाय ह ,तो वागत है
।म अह नश तु त ँ आपके
माग-दशन हे
तु
- जहांतक माग मु
झे
द ख रहा है

एक आ ह पुनः करना चा ग
ंा क पू
री ा, व ास और लगन
केसाथ इस माग म आगे बढ़ सकते ह।महज कु
तूहल सेकुछ नह
होता।
इन वन प तय पर कये गयेकसी भी योग का कतई पयोग
करनेक चेा न कर,अ यथा लाभ केबदलेहा न क अ धक आशं का
है
- न फलता तो न त ही । कसी केाण संकट म ह , कसी क
आब पर आ बनी हो, वै
सी थ त म उ योग को कर।अवां
छत
यश और धन-लोलु
पता केशकार न ह ।
आपका सामा य जीवन एक साधक का जीवन हो- एक भटकेए
प थक का जीवन हो- जसे ता हो – घर वापसी क ।व तु तः हम
सभी अपनी मं जल सेवछड़ेए इनसान ही तो ह।परम पता
परमेर ने दश इ य के साथ एक मन दया है,उसकेऊपर बु का
वच व है,और उससे भी ऊपर ववे क क "प रयानी"।इन सबका
सतकता पू वक योग कर।यह नयां एक सराय है
- कसी का घर
नह ।कुछ लेकर नह आये थे
।जातेव भी कुछ लेकर जाना स भव
नह । अकेलेआये ह।जाते व भी कसी का साथ नह मलने वाला
है
।अके लेया ा करनी है
- अपनेघर प चँने
का यास करना है।अ तु ।
.

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