एक दं त दयावंत, चार भुजाधारी । माथे पर तिलक सोहे , मूसे की सवारी ॥
पान चड़ें, फूल चड़ें और चड़ें मेवा ।
लडुअन को भोग लगे, संत करे सेवा ॥
अंधें को आँख दे त, कोड़िन को काया ।
बांझन को पत्र ु दे त, निर्धन को माया ॥
सरू श्याम शारण आए सफल कीजे सेवा |
माता जाकी पार्वती, पिता महादे वा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश दे वा ॥
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता | जिस घर थारो वासो, तेहि में गुण आता | तुमको निशदिन सेवत, हर विष्णु विधाता || कर न सके सोई कर ले, मन नहिं धड़काता ||
तुम बिन यज्ञ न होवे, वस्त्र न कोई पाता |
ब्रह्माणी रूद्राणी कमला, तू हि है जगमाता | खान पान को वैभव, सब तुमसे आता || जय सूर्य चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ||
शुभ गुण सुंदर मुक्त्ता, क्षीर निधि जाता |
दर्गा ु रूप निरं जन, सुख सम्पति दाता | रत्त्न चतर्द ु श तम ु बिन, कोई नही पाता || जय जो कोई तम ु को ध्यावत ऋद्धि सिद्धि धन पाता|
आरती लक्ष्मी जी की, जो कोई नर गाता |
तू ही है पाताल बसन्ती, तू ही है शुभ दाता | उर आनन्द अति उपजे, पाप उतर जाता || कर्म प्रभाव प्रकाशक, भवनिधि से त्राता ||
स्थिर चर जगत बचावे, शभ
ु कर्म नर लाता | राम प्रताप मैया की शुभ दृष्टि चाहता || जय
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