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Shri Satyanarayan Vrat Katha

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Shri Satyanarayan Vrat Katha in Hindi


पहला अ याय
ी यास जी ने कहा – एक समय नैिमषार य तीथ म शौनक आिद सभी ऋिषयों तथा मुिनयों ने पुराणशा के वे ा ीसूत
जी महाराज से पूछा – महामुने! िकस वत अथवा तप या से मनोवांिछत फल पा त होता है, उसे हम सब सुनना चाहते ह,
आप कह। ी सूतजी बोले – इसी पकार देविष नारदजी के ारा भी पूछे जाने पर भगवान कमलापित ने उनसे जैसा कहा
था, उसे कह रहा हू ,ं आप लोग सावधान होकर सुन। एक समय योगी नारदजी लोगों के क याण की कामना से िविवध
लोकों म भमण करते हुए म ृ युलोक म आये और यहां उ होंने अपने कमफल के अनुसार नाना योिनयों म उ प न सभी पािणयों
को अनेक पकार के लेश दुख भोगते हुए देखा तथा ‘िकस उपाय से इनके दुखों का सुिनि चत प से नाश हो सकता है’,
ऐसा मन म िवचार करके वे िव णुलोक गये। वहां चार भुजाओं वाले शंख, च , गदा, प म तथा वनमाला से िवभूिषत
शु लवण भगवान ी नारायण का दशन कर उन देवािधदेव की वे तुित करने लगे। नारद जी बोले – हे वाणी और मन से
परे व प वाले, अन तशि तस प न, आिद-म य और अ त से रिहत, िनगुण और सकल क याणमय गुणगणों से स प न,
थावर-जंगमा मक िनिखल सिृ टपपंच के कारणभूत तथा भ तों की पीड़ा न ट करने वाले परमा मन! आपको नम कार है।
तुित सुनने के अन तर भगवान ीिव णु जी ने नारद जी से कहा- महाभाग! आप िकस पयोजन से यहां आये ह, आपके मन
म या है? किहये, वह सब कु छ म आपको बताउं गा। नारद जी बोले – भगवन! म ृ युलोक म अपने पापकम के ारा िविभ न
योिनयों म उ प न सभी लोग बहुत पकार के लेशों से दुखी हो रहे ह। हे नाथ! िकस लघु उपाय से उनके क टों का िनवारण
हो सकेगा, यिद आपकी मेरे ऊपर कृपा हो तो वह सब म सुनना चाहता हू । ं उसे बताय। ी भगवान ने कहा – हे व स!
संसार के ऊपर अनुगह करने की इ छा से आपने बहुत अ छी बात पूछी है। िजस वत के करने से पाणी मोह से मु त हो
जाता है, उसे आपको बताता हू ,ं सुन। हे व स! वग और म ृ युलोक म दुलभ भगवान स यनारायण का एक महान पु यपद
वत है। आपके नेह के कारण इस समय म उसे कह रहा हू । ं अ छी पकार िविध-िवधान से भगवान स यनारायण वत करके
मनु य शीघ ही सुख पा त कर परलोक म मो पा त कर सकता है। भगवान की ऐसी वाणी सनुकर नारद मुिन ने कहा -पभो
इस वत को करने का फल या है? इसका िवधान या है? इस वत को िकसने िकया और इसे कब करना चािहए? यह सब
िव तारपूवक बतलाइये। ी भगवान ने कहा – यह स यनारायण वत दुख-शोक आिद का शमन करने वाला, धन-धा य की
विृ करने वाला, सौभा य और संतान देने वाला तथा सव िवजय पदान करने वाला है। िजस-िकसी भी िदन भि त और
ा से समि वत होकर मनु य बा णों और ब धुबा धवों के साथ धम म त पर होकर सायंकाल भगवान स यनारायण की
पूजा करे। नैवे के प म उ म कोिट के भोजनीय पदाथ को सवाया मा ा म भि तपूवक अिपत करना चािहए। केले के
फल, घी, दूध, गेहूं का चूण अथवा गेहूं के चूण के अभाव म साठी चावल का चूण, श कर या गुड़ – यह सब भ य सामगी
सवाया मा ा म एक कर िनवेिदत करनी चािहए। ब धु-बा धवों के साथ ी स यनारायण भगवान की कथा सुनकर बा णों
को दि णा देनी चािहए। तदन तर ब धु-बा धवों के साथ बा णों को भोजन कराना चािहए। भि तपूवक पसाद गहण करके
न ृ य-गीत आिद का आयोजन करना चािहए। तदन तर भगवान स यनारायण का मरण करते हुए अपने घर जाना चािहए।
ऐसा करने से मनु यों की अिभलाषा अव य पूण होती है। िवशेष प से किलयुग म, प ृ वीलोक म यह सबसे छोटा सा उपाय
है।
दूसरा अ याय
ीसूतजी बोले – हे ि जों! अब म पुनः पूवकाल म िजसने इस स यनारायण वत को िकया था, उसे भलीभांित िव तारपूवक
कहू गं ा। रमणीय काशी नामक नगर म कोई अ य त िनधन बा ण रहता था। भूख और यास से याकु ल होकर वह
पितिदन प ृ वी पर भटकता रहता था। बा ण िपय भगवान ने उस दुखी बा ण को देखकर वृ बा ण का प धारण करके
उस ि ज से आदरपूवक पूछा – हे िवप! पितिदन अ य त दुखी होकर तुम िकसिलए प ृ वीपर भमण करते रहते हो। हे
ि ज े ठ! यह सब बतलाओ, म सुनना चाहता हू । ं बा ण बोला – पभो! म अ य त दिरद बा ण हू ं और िभ ा के िलए ही
प ृ वी पर घूमा करता हू ।
ं यिद मेरी इस दिरदता को दूर करने का आप कोई उपाय जानते हों तो कृपापूवक बतलाइये। वृ
बा ण बोला – हे बा णदेव! स यनारायण भगवान् िव णु अभी ट फल को देने वाले ह। हे िवप! तुम उनका उ म वत करो,
िजसे करने से मनु य सभी दुखों से मु त हो जाता है। वत के िवधान को भी बा ण से य नपूवक कहकर वृ बा ण पधारी
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भगवान् िव णु वही ं पर अ तधान हो गये। ‘वृ बा ण ने जैसा कहा है, उस वत को अ छी पकार से वैसे ही क ं गा’ – यह
सोचते हुए उस बा ण को रात म नी ंद नही ं आयी। अगले िदन पातःकाल उठकर ‘स यनारायण का वत क ं गा’ ऐसा
संक प करके वह बा ण िभ ा के िलए चल पड़ा। उस िदन बा ण को िभ ा म बहुत सा धन पा त हुआ। उसी धन से
उसने ब धु-बा धवों के साथ भगवान स यनारायण का वत िकया। इस वत के पभाव से वह े ठ बा ण सभी दुखों से मु त
होकर सम त स पि यों से स प न हो गया। उस िदन से लेकर प येक महीने उसने यह वत िकया। इस पकार भगवान्
स यनारायण के इस वत को करके वह े ठ बा ण सभी पापों से मु त हो गया और उसने दुलभ मो पद को पा त िकया। हे
िवप! प ृ वी पर जब भी कोई मनु य ी स यनारायण का वत करेगा, उसी समय उसके सम त दुख न ट हो जायगे। हे
बा णों! इस पकार भगवान नारायण ने महा मा नारदजी से जो कु छ कहा, मने वह सब आप लोगों से कह िदया, आगे अब
और या कहू ? ं हे मुने! इस प ृ वी पर उस बा ण से सुने हुए इस वत को िकसने िकया? हम वह सब सुनना चाहते ह, उस
वत पर हमारी ा हो रही है। ी सूत जी बोले – मुिनयों! प ृ वी पर िजसने यह वत िकया, उसे आप लोग सुन। एक बार
वह ि ज े ठ अपनी धन-स पि के अनुसार ब धु-बा धवों तथा पिरवारजनों के साथ वत करने के िलए उ त हुआ। इसी
बीच एक लकड़हारा वहां आया और लकड़ी बाहर रखकर उस बा ण के घर गया। यास से याकु ल वह उस बा ण को
वत करता हुआ देख पणाम करके उससे बोला – पभो! आप यह या कर रहे ह, इसके करने से िकस फल की पाि त होती
है, िव तारपूवक मुझसे किहये। िवप ने कहा – यह स यनारायण का वत है, जो सभी मनोरथों को पदान करने वाला है।
उसी के पभाव से मुझे यह सब महान धन-धा य आिद पा त हुआ है। जल पीकर तथा पसाद गहण करके वह नगर चला
गया। स यनारायण देव के िलए मन से ऐसा सोचने लगा िक ‘आज लकड़ी बेचने से जो धन पा त होगा, उसी धन से भगवान
स यनारायण का े ठ वत क ं गा।’ इस पकार मन से िच तन करता हुआ लकड़ी को म तक पर रख कर उस सु दर नगर
म गया, जहां धन-स प न लोग रहते थे। उस िदन उसने लकड़ी का दुगनु ा मू य पा त िकया। इसके बाद पस न दय
होकर वह पके हुए केले का फल, शकरा, घी, दूध और गेहूं का चूण सवाया मा ा म लेकर अपने घर आया। त प चात
उसने अपने बा धवों को बुलाकर िविध-िवधान से भगवान ी स यनारायण का वत िकया। उस वत के पभाव से वह धन-पु
से स प न हो गया और इस लोक म अनेक सुखों का उपभोग कर अ त म स यपुर अथात् बैकु ठलोक चला गया।
तीसरा अ याय
ी सूतजी बोले – े ठ मुिनयों! अब म पुनः आगे की कथा कहू ग ं ा, आप लोग सुन। पाचीन काल म उ कामुख नाम का एक
राजा था। वह िजतेि दय, स यवादी तथा अ य त बुि मान था। वह िव ान राजा पितिदन देवालय जाता और बा णों को
धन देकर स तु ट करता था। कमल के समान मुख वाली उसकी धमप नी शील, िवनय एवं सौ दय आिद गुणों से स प न
तथा पितपरायणा थी। राजा एक िदन अपनी धमप नी के साथ भदशीला नदी के तट पर ीस यनारायण का वत कर रहा
था। उसी समय यापार के िलए अनेक पकार की पु कल धनरािश से स प न एक साधु नाम का बिनया वहां आया।
भदशीला नदी के तट पर नाव को थािपत कर वह राजा के समीप गया और राजा को उस वत म दीि त देखकर
िवनयपूवक पूछने लगा। साधु ने कहा – राजन्! आप भि तयु त िच से यह या कर रहे ह? कृपया वह सब बताइये, इस
समय म सुनना चाहता हू । ं राजा बोले – हे साधो! पु आिद की पाि त की कामना से अपने ब धु-बा धवों के साथ म अतुल
तेज स प न भगवान् िव णु का वत एवं पूजन कर रहा हू । ं राजा की बात सुनकर साधु ने आदरपूवक कहा – राजन् ! इस
िवषय म आप मुझे सब कु छ िव तार से बतलाइये, आपके कथनानुसार म वत एवं पूजन क ं गा। मुझे भी संतित नही ं है।
‘इससे अव य ही संतित पा त होगी।’ ऐसा िवचार कर वह यापार से िनवृ हो आन दपूवक अपने घर आया। उसने अपनी
भाया से संतित पदान करने वाले इस स यवत को िव तार पूवक बताया तथा – ‘जब मुझे संतित पा त होगी तब म इस वत
को क ं गा’ – इस पकार उस साधु ने अपनी भाया लीलावती से कहा। एक िदन उसकी लीलावती नाम की सती-सा वी
भाया पित के साथ आन द िच से ऋतुकालीन धमाचरण म पवृ हुई और भगवान् ीस यनारायण की कृपा से उसकी वह
भाया गिभणी हुई। दसव महीने म उससे क यार न की उ पि हुई और वह शु लप के च दम की भांित िदन-पितिदन बढ़ने
लगी। उस क या का ‘कलावती’ यह नाम रखा गया। इसके बाद एक िदन लीलावती ने अपने वामी से मधुर वाणी म कहा
– आप पूव म संकि पत ी स यनारायण के वत को यों नही ं कर रहे ह? साधु बोला – ‘िपये! इसके िववाह के समय वत
क ं गा।’ इस पकार अपनी प नी को भली-भांित आ व त कर वह यापार करने के िलए नगर की ओर चला गया। इधर
क या कलावती िपता के घर म बढ़ने लगी। तदन तर धम साधु ने नगर म सिखयों के साथ ीड़ा करती हुई अपनी क या
को िववाह यो य देखकर आपस म म णा करके ‘क या िववाह के िलए े ठ वर का अ वेषण करो’ – ऐसा दूत से कहकर
शीघ ही उसे भेज िदया। उसकी आ ा पा त करके दूत कांचन नामक नगर म गया और वहां से एक विणक का पु लेकर
आया। उस साधु ने उस विणक के पु को सु दर और गुणों से स प न देखकर अपनी जाित के लोगों तथा ब धु-बा धवों के
साथ संत ु टिच हो िविध-िवधान से विणकपु के हाथ म क या का दान कर िदया। उस समय वह साधु बिनया दुभा यवश
भगवान् का वह उ म वत भूल गया। पूव संक प के अनुसार िववाह के समय म वत न करने के कारण भगवान उस पर
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ट हो गये। कु छ समय के प चात अपने यापारकम म कु शल वह साधु बिनया काल की पेरणा से अपने दामाद के साथ
यापार करने के िलए समुद के समीप ि थत र नसारपुर नामक सु दर नगर म गया और पअने ीस प न दामाद के साथ वहां
यापार करने लगा। उसके बाद वे दोों राजा च दकेतु के रमणीय उस नगर म गये। उसी समय भगवान् ीस यनारायण ने
उसे भ टपित देखकर ‘इसे दा ण, किठन और महान् दुख पा त होगा’ – यह शाप दे िदया। एक िदन एक चोर राजा
च दकेतु के धन को चुराकर वही ं आया, जहां दोनों विणक ि थत थे। वह अपने पीछे दौड़ते हुए दूतों को देखकर
भयभीतिच से धन वही ं छोड़कर शीघ ही िछप गया। इसके बाद राजा के दूत वहां आ गये जहां वह साधु विणक था। वहां
राजा के धन को देखकर वे दूत उन दोनों विणकपु ों को बांधकर ले आये और हषपूवक दौड़ते हुए राजा से बोले – ‘पभो! हम
दो चोर पकड़ लाए ह, इ ह देखकर आप आ ा द’। राजा की आ ा से दोनों शीघ ही दृढ़तापूवक बांधकर िबना िवचार िकये
महान कारागार म डाल िदये गये। भगवान् स यदेव की माया से िकसी ने उन दोनों की बात नही ं सुनी और राजा च दकेतु ने
उन दोनों का धन भी ले िलया। भगवान के शाप से विणक के घर म उसकी भाया भी अ य त दुिखत हो गयी और उनके घर
म सारा-का-सारा जो धन था, वह चोर ने चुरा िलया। लीलावती शारीिरक तथा मानिसक पीड़ाओं से यु त, भूख और यास
से दुखी हो अ न की िच ता से दर-दर भटकने लगी। कलावती क या भी भोजन के िलए इधर-उधर पितिदन घूमने लगी।
एक िदन भूख से पीिड◌़त कलावती एक बा ण के घर गयी। वहां जाकर उसने ीस यनारायण के वत-पूजन को देखा।
वहां बैठकर उसने कथा सुनी और वरदान मांगा। उसके बाद पसाद गहण करके वह कु छ रात होने पर घर गयी। माता ने
कलावती क या से पेमपूवक पूछा – पु ी ! रात म तू कहां क गयी थी? तु हारे मन म या है? कलावती क या ने तुर त
माता से कहा – मां! मने एक बा ण के घर म मनोरथ पदान करने वाला वत देखा है। क या की उस बात को सुनकर वह
विणक की भाया वत करने को उ त हुई और पस न मन से उस सा वी ने ब धु-बा धवों के साथ भगवान् ीस यनारायण का
वत िकया तथा इस पकार पाथना की – ‘भगवन! आप हमारे पित एवं जामाता के अपराध को मा कर। वे दोनों अपने घर
शीघ आ जायं।’ इस वत से भगवान स यनारायण पुनः संत ु ट हो गये तथा उ होंने नपृ े ठ च दकेतु को व न िदखाया और
व न म कहा – ‘नपृ े ठ! पातः काल दोनों विणकों को छोड़ दो और वह सारा धन भी दे दो, जो तुमने उनसे इस समय ले
िलया है, अ यथा रा य, धन एवं पु सिहत तु हारा सवनाश कर दूग ं ा।’ राजा से व न म ऐसा कहकर भगवान स यनारायण
अ तधान हो गये। इसके बाद पातः काल राजा ने अपने सभासदों के साथ सभा म बैठकर अपना व न लोगों को बताया
और कहा – ‘दोनों बंदी विणकपु ों को शीघ ही मु त कर दो।’ राजा की ऐसी बात सुनकर वे राजपु ष दोनों महाजनों को
ब धनमु त करके राजा के सामने लाकर िवनयपूवक बोले – ‘महाराज! बेड़ी-ब धन से मु त करके दोनों विणक पु लाये गये
ह। इसके बाद दोनों महाजन नपृ े ठ च दकेतु को पणाम करके अपने पूव-वत ृ ा त का मरण करते हुए भयिव न हो गये
और कु छ बोल न सके। राजा ने विणक पु ों को देखकर आदरपूवक कहा -‘आप लोगों को पार धवश यह महान दुख पा त
हुआ है, इस समय अब कोई भय नही ं है।’, ऐसा कहकर उनकी बेड़ी खुलवाकर ौरकम आिद कराया। राजा ने व ,
अलंकार देकर उन दोनों विणकपु ों को संत ु ट िकया तथा सामने बुलाकर वाणी ारा अ यिधक आनि दत िकया। पहले जो
धन िलया था, उसे दूना करके िदया, उसके बाद राजा ने पुनः उनसे कहा – ‘साधो! अब आप अपने घर को जायं।’ राजा
को पणाम करके ‘आप की कृपा से हम जा रहे ह।’ – ऐसा कहकर उन दोनों महावै यों ने अपने घर की ओर प थान
िकया।
चौथा अ याय
ीसूत जी बोले – साधु बिनया मंगलाचरण कर और बा णों को धन देकर अपने नगर के िलए चल पड़ा। साधु के कु छ दूर
जाने पर भगवान स यनारायण की उसकी स यता की परी ा के िवषय म िज ासा हुई – ‘साधो! तु हारी नाव म या भरा है?’
तब धन के मद म चूर दोनों महाजनों ने अवहेलनापूवक हंसते हुए कहा – ‘दि डन! यों पूछ रहे हो? या कु छ द य लेने की
इ छा है? हमारी नाव म तो लता और प े आिद भरे ह।’ ऐसी िन ठु र वाणी सुनकर – ‘तु हारी बात सच हो जाय’ – ऐसा
कहकर द डी सं यासी को प धारण िकये हुए भगवान कु छ दूर जाकर समुद के समीप बैठ गये। द डी के चले जाने पर
िन यि या करने के प चात उतराई हुई अथात जल म उपर की ओर उठी हुई नौका को देखकर साधु अ य त आ चय म
पड़ गया और नाव म लता और प े आिद देखकर मुिछत हो प ृ वी पर िगर पड़ा। सचेत होने पर विणकपु िचि तत हो गया।
तब उसके दामाद ने इस पकार कहा – ‘आप शोक यों करते ह? द डी ने शाप दे िदया है, इस ि थित म वे ही चाह तो सब
कु छ कर सकते ह, इसम संशय नही ं। अतः उ ही ं की शरण म हम चल, वही ं मन की इ छा पूण होगी।’ दामाद की बात
सुनकर वह साधु बिनया उनके पास गया और वहां द डी को देखकर उसने भि तपूवक उ ह पणाम िकया तथा आदरपूवक
कहने लगा – आपके स मुख मने जो कु छ कहा है, अस यभाषण प अपराध िकया है, आप मेरे उस अपराध को मा कर –
ऐसा कहकर बार बार पणाम करके वह महान शोक से आकु ल हो गया। द डी ने उसे रोता हुआ देखकर कहा – ‘हे मूख!
रोओ मत, मेरी बात सुनो। मेरी पूजा से उदासीन होने के कारण तथा मेरी आ ा से ही तुमने बार बार दुख पा त िकया है।’
भगवान की ऐसी वाणी सुनकर वह उनकी तुित करने लगा। साधु ने कहा – ‘हे पभो! यह आ चय की बात है िक आपकी
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माया से मोिहत होने के कारण ब ा आिद देवता भी आपके गुणों और पों को यथावत प से नही ं जान पाते, िफर म मूख
आपकी माया से मोिहत होने के कारण कैसे जान सकता हू !ं आप पस न हों। म अपनी धन-स पि के अनुसार आपकी पूजा
क ं गा। म आपकी शरण म आया हू । ं मेरा जो नौका म ि थत पुराा धन था, उसकी तथा मेरी र ा कर।’ उस बिनया की
भि तयु त वाणी सुनकर भगवान जनादन संत ु ट हो गये। भगवान हिर उसे अभी ट वर पदान करके वही ं अ तधान हो गये।
उसके बाद वह साधु अपनी नौका म चढ़ा और उसे धन-धा य से पिरपूण देखकर ‘भगवान स यदेव की कृपा से हमारा
मनोरथ सफल हो गया’ – ऐसा कहकर वजनों के साथ उसने भगवान की िविधवत पूजा की। भगवान ी स यनारायण की
कृपा से वह आन द से पिरपूण हो गया और नाव को पय नपूवक संभालकर उसने अपने देश के िलए प थान िकया। साधु
बिनया ने अपने दामाद से कहा – ‘वह देखो मेरी र नपुरी नगरी िदखायी दे रही है’। इसके बाद उसने अपने धन के र क
दूत कोअपने आगमन का समाचार देने के िलए अपनी नगरी म भेजा। उसके बाद उस दूत ने नगर म जाकर साधु की भाया
को देख हाथ जोड़कर पणाम िकया तथा उसके िलए अभी ट बात कही -‘सेठ जी अपने दामाद तथा ब धुवग के साथ बहुत
सारे धन-धा य से स प न होकर नगर के िनकट पधार गये ह।’ दूत के मुख से यह बात सुनकर वह महान आन द से िव ल
हो गयी और उस सा वी ने ी स यनारायण की पूजा करके अपनी पु ी से कहा -‘म साधु के दशन के िलए जा रही हू ,ं तुम
शीघ आओ।’ माता का ऐसा वचन सुनकर वत को समा त करके पसाद का पिर याग कर वह कलावती भी अपने पित का
दशन करने के िलए चल पड़ी। इससे भगवान स यनारायण ट हो गये और उ होंने उसके पित को तथा नौका को धन के
साथ हरण करके जल म डु बो िदया। इसके बाद कलावती क या अपने पित को न देख महान शोक से दन करती हुई
प ृ वी पर िगर पड़ी। नाव का अदशन तथा क या को अ य त दुखी देख भयभीत मन से साधु बिनया से सोचा – यह या
आ चय हो गया? नाव का संचालन करने वाले भी सभी िचि तत हो गये। तदन तर वह लीलावती भी क या को देखकर
िव ल हो गयी और अ य त दुख से िवलाप करती हुई अपने पित से इस पकार बोली -‘ अभी-अभी नौका के साथ वह कैसे
अलि त हो गया, न जाने िकस देवता की उपे ा से वह नौका हरण कर ली गयी अथवा ीस यनारायण का माहा य कौन
जान सकता है!’ ऐसा कहकर वह वजनों के साथ िवलाप करने लगी और कलावती क या को गोद म लेकर रोने लगी।
कलावती क या भी अपने पित के न ट हो जाने पर दुखी हो गयी और पित की पादुका लेकर उनका अनुगमन करने के िलए
उसने मन म िन चय िकया। क या के इस पकार के आचरण को देख भायासिहत वह धम साधु बिनया अ य त शोक-
संत त हो गया और सोचने लगा – या तो भगवान स यनारायण ने यह अपहरण िकया है अथवा हम सभी भगवान स यदेव की
माया से मोिहत हो गये ह। अपनी धन शि त के अनुसार म भगवान ी स यनारायण की पूजा क ं गा। सभी को बुलाकर
इस पकार कहकर उसने अपने मन की इ छा पकट की और बार बार भगवान स यदेव को द डवत पणाम िकया। इससे
दीनों के पिरपालक भगवान स यदेव पस न हो गये। भ तव सल भगवान ने कृपापूवक कहा – ‘तु हारी क या पसाद छोड़कर
अपने पित को देखने चली आयी है, िन चय ही इसी कारण उसका पित अदृ य हो गया है। यिद घर जाकर पसाद गहण
करके वह पुनः आये तो हे साधु बिनया तु हारी पु ी पित को पा त करेगी, इसम संशय नही ं। क या कलावती भी
आकाशम डल से ऐसी वाणी सुनकर शीघ ही घर गयी और उसने पसाद गहण िकया। पुनः आकर वजनों तथा अपने पित
को देखा। तब कलावती क या ने अपने िपता से कहा – ‘अब तो घर चल, िवल ब यों कर रहे ह?’ क या की वह बात
सुनकर विणकपु संत ु ट हो गया और िविध-िवधान से भगवान स यनारायण का पूजन करके धन तथा ब धु-बा धवों के
साथ अपने घर गया। तदन तर पूिणमा तथा सं ाि त पव पर भगवान स यनारायण का पूजन करते हुए इस लोक म सुख
भोगकर अ त म वह स यपुर बैकु ठलोक म चला गया।
पांचवा अ याय
ीसूत जी बोले – े ठ मुिनयों! अब इसके बाद म दूसरी कथा कहू गं ा, आप लोग सुन। अपनी पजा का पालन करने म त पर
तुगं वज नामक एक राजा था। उसने स यदेव के पसाद का पिर याग करके दुख पा त िकया। एक बाद वह वन म जाकर
और वहां बहुत से पशुओ ं को मारकर वटवृ के नीचे आया। वहां उसने देखा िक गोपगण ब धु-बा धवों के साथ संत ु ट होकर
भि तपूवक भगवान स यदेव की पूजा कर रहे ह। राजा यह देखकर भी अहंकारवश न तो वहां गया और न उसे भगवान
स यनारायण को पणाम ही िकया। पूजन के बाद सभी गोपगण भगवान का पसाद राजा के समीप रखकर वहां से लौट आये
और इ छानुसार उन सभी ने भगवान का पसाद गहण िकया। इधर राजा को पसाद का पिर याग करने से बहुत दुख हुआ।
उसका स पूण धन-धा य एवं सभी सौ पु न ट हो गये। राजा ने मन म यह िन चय िकया िक अव य ही भगवान
स यनारायण ने हमारा नाश कर िदया है। इसिलए मुझे वहां जाना चािहए जहां ी स यनारायण का पूजन हो रहा था। ऐसा
मन म िन चय करके वह राजा गोपगणों के समीप गया और उसने गोपगणों के साथ भि त- ा से यु त होकर िविधपूवक
भगवान स यदेव की पूजा की। भगवान स यदेव की कृपा से वह पुनः धन और पु ों से स प न हो गया तथा इस लोक म
सभी सुखों का उपभोग कर अ त म स यपुर वैकु ठलोक को पा त हुआ। ीसूत जी कहते ह – जो यि त इस परम दुलभ
ी स यनारायण के वत को करता है और पु यमयी तथा फलपदाियनी भगवान की कथा को भि तयु त होकर सुनता है,
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उसे भगवान स यनारायण की कृपा से धन-धा य आिद की पाि त होती है। दिरद धनवान हो जाता है, ब धन म पड़ा हुआ
ब धन से मु त हो जाता है, डरा हुआ यि त भय मु त हो जाता है – यह स य बात है, इसम संशय नही ं। इस लोक म वह
सभी ईि सत फलों का भोग पा त करके अ त म स यपुर वैकु ठलोक को जाता है। हे बा णों! इस पकार मने आप लोगों से
भगवान स यनारायण के वत को कहा, िजसे करके मनु य सभी दुखों से मु त हो जाता है। किलयुग म तो भगवान स यदेव
की पूजा िवशेष फल पदान करने वाली है। भगवान िव णु को ही कु छ लोग काल, कु छ लोग स य, कोई ईश और कोई
स यदेव तथा दूसरे लोग स यनारायण नाम से कहगे। अनेक प धारण करके भगवान स यनारायण सभी का मनोरथ िस
करते ह। किलयुग म सनातन भगवान िव णु ही स यवत प धारण करके सभी का मनोरथ पूण करने वाले होंग। े हे े ठ
मुिनयों! जो यि त िन य भगवान स यनारायण की इस वत-कथा को पढ़ता है, सुनता है, भगवान स यारायण की कृपा से
उसके सभी पाप न ट हो जाते ह। हे मुनी वरों! पूवकाल म िजन लोगों ने भगवान स यनारायण का वत िकया था, उसके
अगले ज म का वत ृ ा त कहता हू ,ं आप लोग सुन। महान प ास प न शतान द नाम के बा ण स यनारायण वत करने के
पभाव से दूसे ज म म सुदामा नामक बा ण हुए और उस ज म म भगवान ीकृ ण का यान करके उ होंने मो पा त िकया।
लकड़हारा िभ ल गुहों का राजा हुआ और अगले ज म म उसने भगवान ीराम की सेवा करके मो पा त िकया। महाराज
उ कामुख दूसरे ज म म राजा दशरथ हुए, िज होंने ीरंगनाथजी की पूजा करके अ त म वैकु ठ पा त िकया। इसी पकार
धािमक और स यवती साधु िपछले ज म के स यवत के पभाव से दूसरे ज म म मोर वज नामक राजा हुआ। उसने आरे
सेचीरकर अपने पु की आधी देह भगवान िव णु को अिपत कर मो पा त िकया। महाराजा तुग ं वज ज मा तर म वाय भुव
मनु हुए और भगव स ब धी स पूण काय का अनु ठान करके वैकु ठलोक को पा त हुए। जो गोपगण थे, वे सब ज मा तर म
वजम डल म िनवास करने वाले गोप हुए और सभी रा सों का संहार करके उ होंने भी भगवान का शा वत धाम गोलोक
पा त िकया।
ी क दपुराण के अ तगत रेवाख ड म ीस यनारायणवत कथा का यह पांचवां अ याय पूण हुआ।

How to do Shri Satyanarayan Vrat Katha

Benefits of Shri Satyanarayan Vrat Katha


According to Hindu Mythology doing Shri Satyanarayan Vrat Katha on Purnima Evening
is the most powerful way to please Lord Vishnu and get his blessing.

Shri Satyanarayan Vrat Katha in


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