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आओ!

ला इलाह इ��ाह क� तरफ़


ًَّ َ ً َ ًَ َ َ َ َ َ ْ َ َ َ ْ ََ
‫اﱂ � ﮐﯿﻒ ﴐب ﷲ ﻣﺜﻼ ﳇِﻤﺔ ﻃ ِﯿﺒﺔ‬

�ा आप ‫ ﷺ‬ने नही ं देखा िक अ�ाह तआला ने क�लमा त�बा क�


�मसाल कै से बयान फ़रमाई ?
َّ ُ َ َ ُ ُ ٔ ْ ُ ٓ َ َّ َ ُ َ َ َ َ ُ ْ َٔ َ َ َ َ
ۢ‫ﲔ‬ ٓ ْ َ ّ َ
ِ ‫ ﺗﺆ ِﰏ أﳇﻬﺎ ﰻ ِﺣ‬٢٤ ‫◌ وﻓﺮﻋﻬﺎ ِ َﰲ ٱﻟﺴﻤﺎ ِء‬ٞ ‫﴿ﻛﺸﺠﺮ ٖة ﻃ ِﯿﺒ ٍﺔ أﺻﻠﻬﺎ � ِﺑﺖ‬
َ َّ َ َ َ ُ ّ َ َ َ ّ َ َ ْ َ ٔ ْ ُ َّ ُ ْ َ َ ۗ َ ّ َ ْ
ُ ْ ِ ‫ﴬب ٱ� ٱ�ﻣﺜﺎل ِلﻠﻨ‬
﴾٢٥ ‫ﺎس ﻟﻌﻠﻬﻢ ﯾﺘﺬﻛﺮون‬ ِ ‫ِ� ِٕذ ِن ر ِﲠﺎ وﯾ‬

जैसे िक एक पाक�ज़ा दर� हो इसक� जड़ मज़बूत तरीन हो और शाख़�


आ�ान तक बुल� हो।ं �जसे हर व� फल ही लगते रहे ह� इसके रब के
�� से। अ�ाह तआला लोगो ं को �मसालो ं से समझा रहा है तािक
समझ जाएं । (सूरह इब्राहीम:24-25)
इस आयत क� त�ीर म� इ� अ�ास र�ज़य�ा� अ�ु फ़रमाते ह�:
क�लमा त�बा से मुराद …… ला इला-ह इ��ाह क� शहादत है।
पाक�ज़ा दर� से मुराद …… मो�मन है �जसके िदल म� ला इला-ह
इ��ाह जम गया है …… उसक� बु�नयाद मज़बूत हो गई है।
आ�ान म� शाख़ो ं से मुराद …… नेक आमाल ह� आ�ान पर प�ंचते
रहते ह� अ�ाह के हाँ मक़बूल होते ह�, अज्र और दरजात म� इज़ाफ़ा का
बाइस ह�।

[2]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़


अ��ु �ल�ािह वहद� वस् सलातु वस् सलामु अ़ला मल् ला न�ब� बअ़द् ह
आस्मान, ज़मीनों और तमाम मख़्लक़
ू से ज़्यादा
वज़नी वज़ीफ़ा और दुआ के िलए अज़ीम वसीला
रसूलु�ाह ‫ ﷺ‬बयान फ़रमाते ह� िक मूसा अलैिहस् सलाम ने अ�ाह
तआला से अज़र् िकया िक ऐ मेरे रब मुझे ऐसी चीज़ बताईए �जसके ज़�रए
से म� आप को याद िकया क�ं और उसके वसीले से आप से दआ ु िकया
क�ं । अ�ाह तआला ने फ़रमाया: मूसा, ला इला-ह इ��ाह पढ़ा
कर। मूसा अलैिहस् सलाम ने अज़र् िकया: ऐ मेरे रब! इसे तो तेरे सारे ही
ब�े पढ़ते ह�।
अ�ाह तआला ने फ़रमाया ऐ मूसा! अगर मेरे �सवा सातो ं आ�ान और
इनके सब रहने वाले और सातो ं ज़मीन� एक पलड़े म� रख दी जाएं और
दसु रे पलड़े म� �सफ़र् ला इला-ह इ��ाह रख कर वज़न िकया जाए, तो
ला इला-ह इ��ाह वाला पलड़ा भारी हो जाएगा। (नसाई:10670,
अल-मु�दरक �लल-हािकम:1936 सहीह अल श�तश् शेख़ैन)
आप ‫ ﷺ‬क� शफ़ाअत का मुस्तिहक़ कौन?
अबू �रैरह र�ज़य�ा� अ�ु ने अज़र् िकया िक वह कौन ख़ूश नसीब
श� है जो आप ‫ ﷺ‬क� शफ़ाअत का मु�िहक़ होगा आप ‫ ﷺ‬ने
फ़रमाया जो श� ख़ुलूसे �न�त से क�लमा ला इला-ह इ��ाह का
इक़रार करेगा। (बुख़ारी:99)

[3]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

नोट: ख़ुलूसे �न�त से कहने का मतलब है िक �शकर् से बचे, जो �शकर् से


ना बचा वह ख़ुलूसे �न�त से इसका क़ाइल नही ं �ाह ज़बान से
इसे पढ़ता हो।
ख़ािलसतन अल्लाह क� रज़ा के िलए किलमा के
इक़रार क� फ़ज़ीलत
रसूले अकरम ‫ ﷺ‬ने फ़रमाया िक: "जब इ�ान स�े िदल से ला इला-ह
इ��ाह का इक़रार करता है तो उसके �लए आ�ान के दरवाज़े खोल
िदए जाते ह� यहां तक िक वह अश� इलाही क� तरफ़ बढ़ता रहता है,
बशत�िक कबीरा गुनाहो ं बचा रहे।" (�त�मज़ी: 3939 सनद�ु हसन)
रसूलु�ाह ‫ ﷺ‬ने फ़रमाया: जो श� ख़ा�लसतन अ�ाह तआला को
राज़ी करने के �लए ला इला-ह इ�ा अ�ाह का इक़रार करता है
अ�ाह तआला उस पर दोज़ख़ के अज़ाब को हराम कर देता है।
(बुख़ारी व मु��म)
आमाल क� कमज़ोरी के बावजदू जन्नत में दािख़लह
नबी करीम ‫ ﷺ‬ने फ़रमाया: जो श� िदल क� गहराइयो ं से गवाही दे िक
अ�ाह तआला के �सवा कोई माबूद नही।ं वह अके ला है ……… उस
का कोई शरीक नही,ं और मुह�द ‫ ﷺ‬उसके ब�े और उसके रसूल ह�।
और यह िक ईसा अलैिहस् सलाम भी अ�ाह के ब�े और रसूल और
उसका क�लमा ह� जो िक अ�ाह तआला ने हज़रत मरयम अलैिहस्
सलाम क� तरफ़ भेजा। और वह (ईसा अलैिहस् सलाम) उसक� भेजी
�ई �ह ह�।

[4]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

और ज�त और दोज़ख़ बरहक़ ह�।


अ�ाह तआला इस गवाही देने वाले को ज�त म� दा�ख़ल फ़रमाएं गे
�ाह उसके अमल कै से ही हो।ं (बुख़ारी: 3435 व मु��म:149)
आज तुझ पर ज़ु� नही ं होगा
रसूलु�ाह ने फ़रमाया: िक़यामत के िदन पूरी काइनात के सामने एक
श� को बुलाया जाएगा उसके सामने �न�ानवे र�ज�र उसक� बुराईयो ं
के रख िदए जाएं गे, हर र�ज�र इतना ल�ा चौड़ा फै ला होगा �जतनी
नज़र काम करती है………अ�ाह तआला क� तरफ़ से सवाल होगा
……… इन बुराईयो ं म� से िकसी एक बुराई का भी इनकार कर सकता
है? मेरे �नगरां फ़�र�ो ं ने कही ं तुझ पर ज़ु� तो नही ं िकया?
वह जवाब देगा ……… ऐ मेरे रब ऐसा नही ं है।
िफर सवाल होगा कोई उज़्र हो तो पेश करो या कोई नेक� हो तो सामने
लाओ!!!
ब�ा डरते डरते जवाब देगा या रब कोई उज़्र भी नही ं और कोई नेक� भी
नही ं ……… अ�ाह तआला फ़रमाएं गे तेरी एक नेक� हमारे पास
महफू ज़ है ……… याद रख! आज तुझ पर ज़� ु नही ं िकया जाएगा।
चुनांचे एक काग़ज़ का टुकड़ा �नकाला जाएगा उसम� �लखा होगा{अश्हदू
अल् ला इलाह इ��ाह व अश्हदू अ�ा मुह�दर् रसूलु�ाह} ब�ा
अज़र् करेगा।
या अ�ाह! इन बड़े बड़े गुनाहो ं के अ�ार के सामने इस टुकड़े क� �ा
है�स�त है। जवाब �मलेगा ……… आज तुझ पर ज़� ु नही ं होगा।

[5]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

चुनांचे गुनाहो ं के वह बड़े बड़े र�ज�र तराज़ू के एक पलड़े म� रख िदए


जाएं गे और काग़ज़ का टुकड़ा दसु रे पलड़े म� रख कर वज़न िकया जाएगा
तो वह क�लमे वाला पलड़ा भारी हो जाएगा। (�त�मज़ी: 2850 सनद�ु
हसन, अल-मु�दरक:9 सहीह अलश् श�त मु��म)
ग़ौर फ़रमाएं ! गुनाहो ं के अ�ार के मुक़ाबले म� यह क�लमा �ूं मक़बूल
�वा, �ोिं क स�े िदल से पढ़ा गया था वरना "अ�� ु ाह �बन उबैय"
मुनािफ़क़ जो क�लमा भी पढ़ता था और रसूलु�ाह ‫ ﷺ‬क� इ��दा म�
नमाज़� भी पढ़ता था इसके बावजूद उसको कोई अमल काम ना आया,
�ोिं क उसक� ज़बान पर तो क�लमा जारी था लेिकन िदल म� कु फ़्र था।
मालूम �वा िक
अल्लाह के हां क़ुबिू लयत का ताल्लुक़ बराहे रास्त
इन्सान के िदल से है
बअ्ज़ औक़ात दो अश्ख़ास क�लमा पढ़ते ह� लेिकन उनके ख़ुलूस म� कमी
बेशी से दजार् व फ़ज़ीलत का इतना फ़क़र् होता है �जतना ज़मीन और
आ�ान के दर�मयान फ़ा�सला है।
ला इला-ह इल्लल्लाह के पढ़ने वाले को लािज़म है िक
वह ला इला-ह इ��ाह के मतलब को ख़ूब अ�� तरह समझता हो
जैसा िक क़ु रआने पाक म� अ�ाह र�ुल् इ�त का इरशादे �गरामी है:
ُ﴾�‫ﺎﻋﻠَ ْﻢ َاﻧَّ ُﻪ َﻻ ا ِٰﻟ َﻪ ا َِّﻻ َا‬
ْ ‫﴿ َﻓ‬

[6]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

पस ख़ूब अ�� तरह समझ लो िक अ�ाह के �सवा कोई माबूद नही।ं


(सूरह मुह�द, पारा:26, आयत:19 )
रसूलु�ाह ‫ ﷺ‬ने फ़रमाया "जो श� इस हाल म� मरे िक वह ला इला-ह
इ��ाह क� समझ रखता हो तो वह ज�त म� जाएगा।"
(मु��म:145)
इस क�लमा का फ़ाएदा तभी प�ंचेगा ……… िक इसम� जो इक़रार
िकया है ख़ूब अ�� तरह समझ कर उसके तक़ाज़े पूरे करे वरना
�जहालत के �सवा कु छ नही।ं
किलमा तय्यबा के पहले िहस्से "ला इलाह" के मअ्ना
ला इलाह का मतलब है िक…कोई माबूद नही ं … यानी एक अ�ाह के
इक़रार से पहले…ला का इक़रार करवा कर पूरे आलम के तमाम
आक़ाओ ं क� नफ़� करवाई गई है। �ोिं क
‫٭‬ आप एक ही आक़ा के नौकर उस व� तक नही ं बन सकते… जब
तक बाक़� तमाम क� नौकरी से इनकार ना कर द�।
‫٭‬ �सफ़र् एक ही चौखट पर तब ही सर झुक सकता है…जब दूसरी
तमाम चौख़टो ं से बे�नयाज़ हो जाए।
‫٭‬ जब आप ने रौशनी को पस� कर �लया है… तो �ज़मनन आप ने
तारीक� से नफ़रत का इज़हार कर िदया।
‫٭‬ आप एक ही जा�नब अपना मूँह नही ं कर स�े …जब तक आप
हर तरफ़ से अपना मूँह ना फे र ल�।

[7]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

तमाम बाितल माबदू ों का इनकार सब से पहली चीज़ है


अ�ाह तआला इरशाद फ़रमाते ह� "ऐ इ� आदम! अगर तू �ए ज़मीन
के बराबर गुनाह लेकर आए और मुझ से इस हाल म� �मले िक िकसी को
मेरे साथ शरीक ना िकया हो तो म� �ए ज़मीन के बराबर मिग़्फ़रत लेकर
तुझे �मलोगं ा" (�त�मज़ी:3885, व क़ालल् अ�ानी: सहीह)
अल्लाह तआला िशकर् को कभी नहीं बख़्शेगा
َ َ ُٓ َ َ َ َ َ ٰ َ ُ َ ُ ْ َ َ َ ْ ُ َٔ ْ َ َ َ َّ َّ
�‫ﴩك ِﺑ ِۦﻪ وﯾﻐ ِﻔﺮ ﻣﺎ دون ذ ِﻟﻚ ِﻟﻤﻦ �ﺸﺎ ۚء و‬َ � ‫﴿ ٕان ٱ� ﻻ ﯾﻐ ِﻔ ُﺮ أن‬
ِ
ً َ ۢ َ َٰ َ َّ َ ْ َ َ َّ ْ ْ ُ
﴾١١٦ ‫ﴩك ِﺑﭑ� ِﻓﻘﺪ ﺿﻞ ﺿﻠﻼ ﺑ ِﻌﯿﺪا‬ ِ �

बेशक अ�ाह तआला अपने साथ �शकर् को नही ं ब�ेगा और इसके


इलावा �जस गुनाह को चाहेगा ब� देगा। और जो अ�ाह के साथ
शरीक ठहराएगा, दरहक़�क़त वह गुमराही म� ब�त आगे �नकल गया है।
(सूरह �नसा, पारा 5 आयत 116)
रसूलु�ाह ‫ ﷺ‬ने फ़रमाया "जो श� इस हाल म� मरे िक अ�ाह
तआला के साथ िकसी को शरीक ठहराता था वह आग म� दा�ख़ल
होगा"। (अल-बुख़ारी: 4497)
मख्खी क� वजह से एक आदमी जहन्नम में चला गया
रसूलु�ाह ‫ ﷺ‬ने फ़रमाया "एक आदमी �सफ़र् म�ी क� वजह से ज�त
म� चला गया और दूसरा जह�म म�" सहाबा ने अज़र् िकया "या रसूलु�ाह
‫ !ﷺ‬वह कै से?" नबी अकरम ‫ ﷺ‬ने फ़रमाया "दो आदमी एक क़बीले के
पास से गुज़रे , उस क़बीले का एक बुत था �जस पर चढ़ावा चढ़ाए बग़ैर
[8]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

कोई आदमी वहां से नही ं गुज़र सकता था, चुनांचा उनम� से एक श� से


कहा गया िक इस बुत पर चढ़ावा चढ़ाओ, उसने कहा िक मेरे पास ऐसी
कोई चीज़ नही,ं क़बीले के लोगो ं ने कहा तु�� चढ़ावा ज़�र चढ़ाना होगा
�ाह म�ी ही पकड़ कर चढ़ाओ, मुसािफ़र ने म�ी पकड़ी और बुत
क� नज़्र कर दी… लोगो ं ने उसे जाने िदया, चुनांचे वह इस चढ़ावे क�
वजह से जह�म म� चला गया।
क़बीले के लोगो ं ने दसु रे आदमी से कहा िक तुम भी कोई चीज़ बुत क�
नज़्र करो, उसने कहा … म� अ�ाह तआला के इलावा िकसी दसु रे के
नाम का चढ़ावा नही ं चढ़ाऊं, लोगो ं ने उसे क़� कर िदया… और वह
ज�त म� चला गया।" (इ� अबी शैबह, शुअब् ल् ईमान �लल-बैहक़�:
7093)
अक्सर लोग अल्लाह पर ईमान लाने बावजदू िशकर् करते हैं
َ ُ ْ ُ ّ ُ َ َّ َّ ُ ُ َ ْ َٔ ُ ِ ْ ُ َ َ
﴾١٠٦ ‫ﴩﻛﻮن‬ِ ‫﴿وﻣﺎ ﺆﯾ� أﻛﱶﱒ ِﺑﭑ� ِ ِٕاﻻ وﱒ ﻣ‬

"और इनम� से अ�र लोग अ�ाह को मानते तो ह� मगर इस तरह िक


साथ दूसरो ं को शरीक भी ठहराते ह�। (यूसुफ़:106)
अज़ाब से बचना ब�त आसान था … लेिकन इ�े आदम ना माना
रहमतुल् �लल-आलमीन ‫ ﷺ‬ने इरशाद फ़रमाया: िक़यामत के िदन
अ�ाह तआला सब से हलके अज़ाब म� मु��ला श� से कहेगा िक
अगर तेरे क़�े म� द� ु ा व मा-फ़�हा और इसके �म� माल व दौलत
होती तो तू �ा आज वह सब कु छ इस अज़ाब से छु टकारा पाने के �लए
िफ़द्या म� दे देता? वह कहेगा … हां।
[9]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

अ�ाह फ़रमाएगा… म� ने तुझ से इससे भी आसान तर चीज़ मांगी थी


जबिक अभी तो पु�े आदम म� था, वह यह िक… मेरे साथ �शकर् ना
करना वरना तुझे जह�म म� दा�ख़ल कर दूंगा… मगर तूने नाफ़रमानी क�
और �शकर् करके ही रहा। (अल-बुख़ारी:3334, मु��म:7261)
िशकर् क्या है ?
अ�ाह ने एक �मसाल से हम� समझाया…ग़ौर से सुनो:
ऐ लोगो! एक �मसाल दी जा रही है उसे ग़ौर से सुनो, अ�ाह तआला
को छोड़ कर �जन माबूदो ं को तुम पुकारते हो… वह एक म�ी भी पैदा
नही ं कर स�े, �ाह वह सब जमा हो जाएं … और अगर म�ी उन से
कोई चीज़ छ�न कर ले जाए… तो वह सब इससे छु ड़ा भी नही ं सकते,
मदद चाहने वाले भी कमज़ोर ह� और �जन से मदद चाहते हो वह भी
कमज़ोर ह�… इन लोगो ं ने अ�ाह तआला क� क़द्र ही नही ं क� जैसा िक
उसक� क़द्र करने का हक़ था। हक़�क़त यह है िक अ�ाह ब�त ताक़त
और इ�त वाला है। (सूरह हज, आयत 73-74)
सब से ज़्यादा गुमराह कौन ?
उससे �ादा गुमराह कौन है जो अ�ाह को छोड़ कर उन से दआ ु करता
है जो िक़यामत तक इसक� दआ ु ओ ं को क़ु बूल नही ं कर स�े… ब��
ु ओ ं से ही ग़ािफ़ल ह�। (सूरह अल-अहक़ाफ़:5)
वह तो इनक� दआ

[10]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

अल्लाह के िसवा िजन से दुआएं करते हो वह तुम ही जैसे बंदे हैं

अ�ाह के �सवा �जन से तुम दआ ु एं करते हो, वह तुम जैसे ही ब�े ह�।
पस दआु एं करो इन से। अगर तुम स�े हो तो इ�� चािहए िक वह
ु ओ ं को क़ु बूल कर�। (सूरह अल-आराफ़:194)
तु�ारी दआ
मुदार् हैं िज़न्दा नहीं इनको इतना पता नहीं िक कब उठाए जाएं गे

और अ�ाह के इलावा �जन से यह दआ ु एं करते ह� वह कु छ पैदा नही ं


करते और वह तो ख़ुद पैदा िकए गए ह�। मुद� ह� �ज़�ा नही ं और इतना
नही ं जानते िक कब उ�� दोबारा �ज़�ा िकया जाएगा। तु�ारा माबूद
�ब�ु ल अके ला माबूद है। तो �जनको आ�ख़रत क� �ज़दं गी का यक़�न
नही ं उनके िदल नही ं मानते, दर हक़�क़त वह मुतक��र ह�। (सूरह अन-
नहल: 20-22)
कहते हैं िक अल्लाह के ह� ज़रू यह हमारे िसफ़ारशी हैं
वह अ�ाह के �सवा उन लोगो ं क� इबादत करते ह� जो इनको नुक़्सान
और फ़ाएदा दे ही नही ं सकते…और कहते ह� िक अ�ाह के �ज़रू यह
हमारे �सफ़ारशी ह�… ऐ नबी ‫ ﷺ‬इन से पूछ� िक तुम अ�ाह को यह नई
बात ऐसे बता रहे हो जैसे उसे कोई इ� ही नही ं है, ना आ�ानो ं का और
ना ज़मीन का। वह पाक और आली शान है उस �शकर् से जो यह कर रहे
ह�।" (सूरह युनसु :आयत 18)
कहते हैं िक यह हमें अल्लाह के क़रीब करते हैं
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आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

"�जन लोगो ं ने अ�ाह के इलावा दूसरो ं को वली बना रखा है (वह कहते
ह� िक) हम इनक� ब�गी इस ग़ज़र् के �लए करते ह� िक यह हम� अ�ाह
के क़रीब कर द�। यक़�नन अ�ाह इनके दर�मयान फ़ै सला करेगा �जस
मुआमले म� यह इ��लाफ़ कर रहे ह�, जो लोग झठू े हो ं और हक़ का
इनकार करने वाले हो ं अ�ाह उ�� िहदायत नही ं देता।" (सूरह अज़-
ज़मु र:3)

मेरे बन्दों को बताओ…िक मैं तो िबल्कुल क़रीब ह� ं


َ َ ِ َّ َ َ ْ َ ُ ُ ٔ ٌ َ ّ َ ّ َ َ َ َٔ َ
َ
ۖ ‫َو ِٕاذا َﺳأﻟﻚ ِﻋ َﺒﺎ ِدي ﻋ ِﲎ ﻓ ِٕﺎ ِﱏ ﻗ ِﺮ‬
ۖ ِ ‫ﯾﺐ أ ِﺟﯿﺐ دﻋﻮة ٱﻟﺪاع ِٕاذا دﻋ‬
‫ﺎن‬
ُ ُ ُ َّ َ َ ْ ُ ْ ْ ْ ُ َ َْ َْ
َ ْ َ ْ ُ َ
١٨٦ ‫ﻓﻠيﺴت ِﺠﯿﺒﻮا ِﱄ وﻟﯿﺆ ِﻣﻨﻮا ِﰉ ﻟﻌﻠﻬﻢ �ﺷﺪون‬

ऐ नबी, मेरे ब�े अगर तुम से मेरे मुता��क़ पूछ� तो उ�� बता दो िक म�
उन से क़रीब ही �ं , पुकारने वाला जब मुझे पुकारता है तो म� उसक�
पुकार को क़ु बूल करता �ं। तो उ�� चािहए िक वह मेरा �� मान� और
मुझ पर ईमान लाएं तािक नेक राह पर आएं । (सूरह अल-बक़रह:186)
ْ ُ َ ْ َ ْ َٔ ٓ ُ ْ ُ ُ ُ ّ َ َ َ َ
﴾‫ﻮﱏ أﺳت ِﺠﺐ ﻟﲂ‬ ِ ‫﴿وﻗﺎل رﺑﲂ ٱدﻋ‬

"तु�ारा रब कहता है मुझे पुकारो और म� तु�ारी दआ


ु एं क़ु बूल क�ं गा।"
(सूरह अल-मुअ�् मन:60)
कौन है जो मुझ से मांगे और मैं उसे अता क�ं?
रसूले अकरम ‫ ﷺ‬ने फ़रमाया "जब रात का �तहाई िह�ा बाक़� रह जाता
है तो हमारा बुज़गु र् व बरतर परवरिदगार आ�ाने द�
ु ा पर ना�ज़ल होता
है और फ़रमाता है… कौन है जो मुझ से दआ ु करे और म� उसक� दआ ु
[12]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

क़ु बूल क�ं ? कौन है जो मुझ से मांगे और म� उसे अता क�ं ? कौन है जो


मुझ से ब��श चाहे और म� उसे ब� दूं?" (अल-बुख़ारी: 1145,
मु��म: 1808)

तुम सब भूके हो िसवाए इसके िजसे मैं �खलाऊं


हदीसे क़ु दसी म� अ�ाह तआला का फ़रमान: " ऐ मेरे ब�ो! तुम सब
भूके हो �सवाए उसके �जसे म� �खलाऊं �लहाज़ा मुझ ही से खाना मांगो म�
तु�� �खलाऊंगा…ऐ मेरे ब�ो! तुम सब नं गे हो �सवाए उसके �जसे म�
पहनाऊं पस तुम मुझ ही से �लबास मांगो म� तु�� (�लबास) पहनाऊंगा।"
(मु��म: 6737)
अ�ाह तआला के �लए अ�रान वग़ैरा क� �मसाल� मत दो
َ ُ َ ْ َ َ ْ ُ َٔ َ ُ َ ْ َ َ َّ َّ َ ۚ َ ْ َٔ ْ َّ ْ ُ ْ َ َ َ
﴾٧٤ ‫ﴬﻮﺑا ِ� ِٱ�ﻣﺜﺎل ِٕان ٱ� ﯾﻌﻠﻢ وأﻧﺘﻢ ﻻ ﺗﻌﻠﻤﻮن‬ ِ ‫﴿ﻓﻼ ﺗ‬

"लोगो! तुम अ�ाह तआला के �लए �मसाल� ना िदया करो…�ोिं क


अ�ाह तआला तो सब कु छ जानता है जबिक तुम नही ं जानते।" (सूरह
नहल आयत:74)
अकेले अल्लाह के िज़क्र से यह बह� त कुढ़ते हैं
َ َ ۖ َ ٓ ٔ ْ َ ُ ْ ُ َ َ َّ ُ ُ ُ ْ َّ َٔ َ ْ ُ َ ْ َ ُ َّ َ ُ َ َ
‫﴿و ِٕاذا ذﻛِﺮ ٱ� وﺣﺪﻩ ٱﴰأزت ﻗﻠﻮب ٱﻟ ِﺬﻦﯾ ﻻ ﺆﯾ ِﻣﻨﻮن ِﺑﭑ� ِﺧﺮ ِة و ِٕاذا‬
ْ َ َ ُ َ ٓ ُ َ َ ّ َ ُ
َ ُ ْ ْ
﴾٤٥ ‫ذﻛِﺮ ٱﻟ ِﺬﻦﯾ ِ� دو ِﻧ ِۦﻪ ِٕاذا ﱒ �ﺴتب ِﴩون‬

[13]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

"जब अके ले अ�ाह तआला का �ज़क्र िकया जाता है तो आ�ख़रत पर


ईमान ना रखने वालो ं के िदल कु ढ़ने लगते ह� और जब उसके �सवा दूसरो ं
का �ज़क्र होता है तो फ़ौरन ख़ुशी से �खल उठते ह�।" (सूरह ज़ुमर:45)
फ़ौत शुदा बुज़ुग� क� यादगारें । िशकर् का सबब बनीं
क़ु रआने पाक म� क़ौमे नूह अलैिहस् सलाम के पाँच माबूदो।ं वद्द, सुवाअ्,
यग़ूस, यऊ़क़ और नस्र का �ज़क्र है �जनक� पर��श क� वजह से क़ौमे नूह
को ग़क़र् िकया गया। इनके बारे म� इ� अ�ास र�ज़य�ा� अ�ु से �रवायत
है िक उस क़ौम के यह नेक लोग थे जब वह मर गए तो शैतान ने उनक�
क़ौम को यह बात सम्झा� िक यह नेक लोग थे… उन क� याद को ताज़ा
रखने के �लए उनक� त�ीर� और मुज�मे बना लो… चुनांचा उ�ोनं े ऐसा
ही िकया। इनके बाद इनक� बे-अक़ल औलादो ं ने इन बुज़ुग� क� त�ीरो ं
और मुज�मो ं क� बा-क़ाइदा पर��श शु� कर दी। (बुख़ारी: 4920)
अल्लाह क� मख़्लक़
ू में बदतरीन लोग
उ�ुल मो�मनीन उ� सलमह र�ज़य�ा� अ�ु ने मु� ह�ह म� ईसाइ�ो ं
का एक �गरजा देखा �जसम� तसावीर भी थी।ं उ� सलमह र�ज़य�ा�
अ�ु ने यह च�दीद म�ज़र रसूलु�ाह ‫ ﷺ‬को बताया तो नबी ‫ ﷺ‬ने
फ़रमाया इनम� अगर कोई सॉलेह और दीनदार श� फ़ौत हो जाता तो यह
लोग उसक� क़ब्र के पास म��द बना लेते…और िफर फ़ौत शुदा श� क�
त�ीर बना लेते थे। फ़रमाया िक अ�ाह क� म�लूक़ म� इस िक़� के
अफ़राद बदतरीन लोग ह�। (अल-बुख़ारी:1341, मु��म:1209)
क़ब्रों को सज्दह गाह बनाने वाले शरीर तरीन लोग हैं

[14]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

इ� मस्ऊद र�ज़य�ा� अ�ु से �रवायत है िक रसूले अकरम ‫ ﷺ‬ने


फ़रमाया िक बदतरीन और शरीर तरीन लोग वह होगं े िक �जनक� �ज़दं गी
म� बड़े बड़े आस़ारे िक़यामत नमूदार होगं े। (मुसनद इमाम अहमद)
यह वह लोग होगं े जो क़ब्रो ं को स�ह गाह बनाएं गे। (अबू हा�तम, सहीह)
क़ब्र को पुख़्ता करना और उस पर बैठना
जा�बर र�ज़य�ा� अ�ु से �रवायत है िक नबी करीम ‫ ﷺ‬ने क़ब्र को
पु�ा बनाने, उस पर बैठने और उस पर इमारत तामीर करने से मना
फ़रमाया है। (मु��म: 2289)
ख़बरदार! मैं तुमको क़ब्रों में मसािजद तामीर करने
से मना करता ह� ं
जु�बु �बन अ�� ु ाह र�ज़य�ा� अ�ु कहते ह� िक म�ने रसूले अकरम
‫ ﷺ‬को वफ़ात से पाँच रोज़ क़� यह फ़रमाते �ए सुना: ख़बरदार! तुम से
पहले लोग अपने अ��या और नेक लोगो ं क� क़ब्रो ं को इबादत गाह बना
�लया करते थे, म� तुमको क़ब्रो ं पर मसा�जद तामीर करने से मना करता
�ं। (मु��म: 1216)

आप ‫ ﷺ‬के इरशाद के मुतािबक़ … लानती कौन ?


इ�े अ�ास से �रवायत है िक रसूलु�ाह ‫ ﷺ‬ने उन औरतो ं को लानती
क़रार िदया है जो क़ब्रो ं क� ब�त �ज़यारत करती ह�। और उन लोगो ं को
भी लानती क़रार िदया जो क़ब्रो ं पर म��द� बनाते और क़ब्रो ं पर चराग़ां
करते ह�। (सुनन अत-�त�मज़ी:321 व क़ाल हदीस हसन, इ� माजा :हसन)
[15]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

ू ुल्लाह ‫ ﷺ‬ने लानत फ़रमाई


रसल
रसूलु�ाह ‫ ﷺ‬ने य�िदयो ं और ईसाइ�ो ं पर लानत फ़रमाई, �ोिं क वह
न�बयो ं क� क़ब्रो ं को स�ह गाह बना लेते थे। (अल-बुख़ारी)
अल्लाह के िसवा िकसी और के नाम पर ज़बह
रसूले अकरम ‫ ﷺ‬ने इरशाद फ़रमाया: "जो श� अ�ाह के इलावा
िकसी और के नाम पर जानवर ज़बह करे उस पर अ�ाह तआला क�
लानत हो।" (मु��म:5239)

क़ब्र वालों को … आप ‫ ﷺ‬भी नहीं सुना सकते


और बराबर नही ं हो स�ा अंधा और आँखो ं वाला … और ना ही अंधरे ा
और रौशनी … और ना ही साया और धूप … इसी तरह बराबर नही ं हो
स�े �ज़दं े और मुद� … अ�ाह �जसको चाहे सुनाता है और आप ‫ﷺ‬
नही ं सुना सकते उनको जो क़ब्रो ं म� ह�। (सूरह फ़ा�तर आयत 22)
क़ब्रों पर मेले और उसर्
मेरी क़ब्र को मेलो ं ठे लो ं और उस� क� जगह ना बना लेना और मुझ पर
द�द भेजो, पस बेशक तु�ारा द�द मुझ तक प�ंचा िदया जाता है, तुम
जहां पर भी हो। (अबू दावूद: 2044, अहमद, व क़ालल अ�ानी: सहीह)
जो शख़्स हड्डी पत्थर मनके और सीपी वग़ैरा लटकाए
[16]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

रसूलु�ाह ‫ ﷺ‬ने फ़रमाया िक जो श� तमीमह (हड्डी, प�र और सीपी


वग़ैरा) लटकाता है अ�ाह तआला उसक� �ािहश को पूरा ना करे और
जो श� �शफ़ा पाने के �लए घू�घे लटकाए अ�ाह उसे आराम ना दे।
(सहीह इ� िह�ान)
एक और �रवायत म� है िक �जस श� ने अपने गले म� तमीमह (हड्डी,
प�र, सीपी और मनके वग़ैरा) लटकाए उसने �शकर् िकया। (मुसनद
अहमद: 17884, सहीह इ� िह�ान: 6086)
रसूले अकरम ‫ ﷺ‬ने फ़रमाया: "झाड़ फूं क के �श�कया दम, तमीमह (हड्डी,
प�र, मनके , सी�पयां और नज़रे बद के जूते लटकाना) और मुह�त के
टोटके करना सब �शकर् है।" (अबू दावूद: 3883 व क़ालल अ�ानी: सहीह)

आदमी … दम वाले धागे के सुपदु र्


रसूलु�ाह ‫ ﷺ‬ने फ़रमाया: "जो श� अपने गले या बाज़ू म� कोई चीज़
लटकाता है तो उसक� �ज़�ेदारी उसी चीज़ के सुपुदर् कर दी जाती है।"
(�त�मज़ी:2072, व क़ाल:हसन)
�ज़ैफ़ा र�ज़य�ा� अ�ु ने एक श� के हाथ म� बुख़ार क� वजह से
धागा दम िकया �वा देखा तो �ज़ैफ़ा र�ज़य�ा� अ�ु ने उसे काट िदया
और िफर सूरह यूसफ़ ु क� आयत 106 �तलावत फ़रमाई िक: "इनम� से
अ�र अ�ाह को मानते तो ह� मगर इस तरह िक उसके साथ दूसरो ं को
शरीक ठहराते ह�।" (इ� अबी हा�तम: 12872)
जानवर के गले में नज़रे बद क� रस्सी

[17]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

रसूलु�ाह ‫ ﷺ‬ने अपने एक सहाबी को भेजा िक िकसी ऊँ ट क� गदर्न म�


कोई ऐसी र�ी या हार बाक़� ना रहने िदया जाए (जो नज़रे बद वग़ैरा के
�सल�सले म� लोग बांध िदया करते थे) अगर नज़र आए तो उसको फ़ौरन
काट िदया जाए। (बुख़ारी: 3005 व मु��म: 2115)

बीमारी क� वजह से बाज़ू में पीतल का छ�ा


रसूलु�ाह ‫ ﷺ‬ने एक श� के बाज़ू म� पीतल का छ�ा देखा, नबी ‫ﷺ‬
ने पूछा: यह �ा है? उस श� ने कहा िक वाहनाह बीमारी क� वजह से
पहना है। नबी ‫ ﷺ‬ने फ़रमाया: अगर इस छ�े को पहने �ए तुझे मौत
आ जाती तो तू इसी के सुपदु र् कर िदया जाता।" (तबरानी: 14770, व
क़ालल अ�ानी: सहीह)
अल्लाह के िसवा िकसी और क� क़सम
रसूलु�ाह ‫ ﷺ‬ने फ़रमाया: "�जसने अ�ाह के �सवा िकसी और क�
क़सम खाई उसने कु फ़्र िकया या �शकर् िकया।" (�त�मज़ी:1535, व
क़ालल अ�ानी: सहीह)
िसतारों क� गिदर् श पर ईमान लाने वाले कािफ़र हो गए
ज़ैद �बन ख़ा�लद र�ज़य�ा� अ�ु से �रवायत है िक रसूलु�ाह ‫ ﷺ‬ने
मक़ामे �दै�बयह म� हम� सु�ह क� नमाज़ पढ़ाई, उस रात बा�रश �ई थी।
रसूलु�ाह ‫ ﷺ‬नमाज़ से फ़ा�रग़ होकर सहाबा िकराम र�ज़य�ा� अ�ु
क� तरफ़ मूतव�ा �ए और पूछा िक �ा तु�� मालूम है िक अ�ाह

[18]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

तआला ने �ा इरशाद फ़रमाया है? सहाबा र�ज़य�ा� अ�ु ने अज़र्


िकया िक अ�ाह तआला और उसका रसूल ‫ ﷺ‬ही बेहतर जानते ह�।
रसूलु�ाह ‫ ﷺ‬ने फ़रमाया अ�ाह तआला फ़रमाता है आज सु�ह मेरे
ब�त से ब�े मो�मन हो गए और ब�त से कािफ़र, �जस ने यह कहा िक
यह बा�रश अ�ाह तआला के फ़ज़्ल व िकराम और उसक� रहमत से �ई
है, वह मुझ पर ईमान लाया और �सतारो ं क� पर��श से इनकार िकया।
और �जसने यह कहा िक यह बा�रश फ़ु लां फ़ु लां �सतारे क� ग�दश क�
वजह से �ई है, उसने मेरा इनकार िकया और �सतारो ं पर ईमान लाया।
(बुख़ारी: 4147, मु��म:240)
मुिश्रक�न से िनकाह हरिगज़ ना करो
और अपनी औरतो ं के �नकाह मु�श्रक मद� से हर�गज़ ना करो, जब तक
वह ईमान ना ले आएं । एक आज़ाद मु�श्रक मदर् से मो�मन ग़ुलाम �ादा
बेहतर है, �ाह वह (मु�श्रक मदर्) तु�� िकतना ही पस� हो।" (सूरह
अल-बक़रह, आयत 221)
मुिश्रक�न के िलए बिख़्शश क� दुआ ना करो
नबी और ईमान वालो ं को यह लाइक़ नही ं िक वह मु�श्रक�न के �लए
ब��श मांग�, �ाह वह उनके क़रीबी �र�ेदार ही �ूं ना हो।ं (सूरह
अत-तौबा:113)
दर अस्ल यह लोग तो जानवरों क� तरह हैं

[19]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

अ�ाह तआला इरशाद फ़रमाते ह�: "हमने ब�त से �जन व इ�ान


जह�म के �लए पैदा िकए ह�।
इनके िदल ह� … मगर समझने के �लए इ��माल नही ं करते।
इनक� आँख� ह� … मगर वह इन से देखते नही।ं
इनके कान ह� … मगर वह इन से सुनते नही।ं
दर अ� यह तो जानवरो ं क� तरह ह�, ब�� उन से भी गए गुज़रे।"
(अल-आराफ़: 179)

अगर नजात चाहते हो तो ... सोचो ... ओर ग़ौर करो

कोई शख़्स अल्लाह तआला का फ़रमांबरदार उस


वक़्त तक नहीं बन सकता,
जब तक िक तमाम शैतानी क़ु �तो ं का बाग़ी ना हो जाए … और शैतान
क� ताक़त का एक बड़ा मरकज़ इ�ान क� अपने जी म� उठने वाली
�ािहशात ह�।
फ़रमाने बारी तआला है: �ा आप ने उस श� को देखा जो अपनी
�ािहशात को माबूद बनाए बैठा है।
पस मक़ामे ला इला-ह इ��ाह को हा�सल करने के �लए सब से पहले
अपनी �ािहशात के बुत क� पूजा तकर् कर दे , �ाह वह दौलते द�
ु ा क�
�ािहश हो या ख़ानदान और �बरादरी के �सूम व �रवाजात। ग़ज़र्
[20]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

अ�ाह क� मुह�त म� इतना शदीद हो िक उसक� मुह�त म� तमाम


�ािहशात और मुह�तो ं से अपने िदल को आज़ाद कर दे। अ�ाह ने
अपने ख़ास ब�ो ं क� यह अलामत इरशाद फ़रमाई है िक
َّ ّ ّ ٗ ُ ُ ّ َ َٔ ْ ٓ ُ َ َ َ َّ َ
﴾ِ �ِ ‫﴿وٱﻟ ِﺬﻦﯾ ءاﻣﻨﻮا أﺷﺪ ﺣﺒﺎ‬

ईमान वाले लोग अ�ाह से शदीद मुह�त करते ह� (सूरह अल-बक़रह,


आयत 165)
सूरतुत् तौबा म� अ�ाह तआला इरशाद फ़रमाते ह�:
आप कह दी�जए िक अगर तु�ारे बाप … और तु�ारे बेटे … और
तु�ारे भाई … और तु�ारी बी�वयां … और तु�ारे ख़ानदान … और
तु�ारे कमाए �ए माल … और तु�ारे वह कारोबार �जनके म�े से तुम
डरते हो … और तु�ारी वह �रहाइश गाह� �ज�� तुम पस� करते हो …
अगर यह सब कु छ तु�� अ�ाह से और उसके रसूल से और उसक� राह
म� �जहाद से �ादा अज़ीज़ ह�, तो तुम अ�ाह के �� से अज़ाब के
आने का इ��ज़ार करो। अ�ाह नाफ़मार्नो ं को िहदायत नही ं िदया
करता। (अत-तौबा, आयत 24)

[21]
आओ! ला इलाह इ��ाह क� तरफ़

यक़ीनन अलाह तआला नह� बख़शेगा िक उसके साथ


िशक� िकया जाए इसके इलावा िजनको चाहे माफ़
फ़रमा देगा (सूरह अन-�नसा, पारा 5, आयत 116)

िशक� से बरात का अक़ीदा ऐसा नह� िक


कोई इ�ान यह कह कर जान छु ड़ा ले िक … "वह �शकर् को अ�ा नही ं
समझता या िदल से क़ु बूल नही ं करता"
ताग़ूत िसर� पर छाया हो तो
ख़ामोशी ही ईमान �ब�ाह के हक़ पर जुमर् हो जाया करती है।
िफर बा�तल के �लए तावीलात क� तलाश और दर�मयानी राह� �नकालने का
चलन हो जाए और �ए बा�तल क� पदार् पोशी हक़ से क� जाने लगे तो … यह
जुमर् ऐसा है िक आज तक �सफ़र् बनी इस्राईल का इ��याज़ बन सका है।
ताग़ूत कोई परहेज़ी िक़सम की चीज़ नह� �वा करती िक
�सफ़र् बे-तव�ुही का मु�िहक़ हो।
ताग़ूत से दश
ु मनी व बरात भी कोई नफ़ली इबादत नह�
�जसका कर लेना बुलंिदए दरजात का सबब हो।
इस आ�ान क� छत तले ताग़ूत अ�ाह का सब से बड़ा द� ु न है और अश�
अज़ीम के मा�लक से ईमान व वफ़ादारी के सबूत के �लए व बुल� तरीन
आवाज़ म� अ�ाह के इस द� ु न से बुग़्ज़ व िहक़ारत का इज़हार और �म�ार
कर देने का अज़्म ईमान का िह�ा, �नजात का सबब और अ��या अलैिहस्
सलाम का अहम तरीन व बुनयादी �मशन है।

[22]

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