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Mahatma Gandhi
Mahatma Gandhi
में काठियावाड़ की
राजकोट रियासत में पोरबन्दर में हुआ। पिता कर्मचन्द राजकोट रियासत के दीवान थे
तथा माता पुतलीबाई धार्मिक प्रवत्ति
ृ की सती-साध्वी घरे लू महिला थी जिनकी शिक्षाओं
का प्रभाव बापू पर आजीवन रहा। आरम्भिक शिक्षा राजकोट में हुई। गांधी साधारण मेधा
के बालक थे। विद्यार्थी जीवन की कुछ घटनाएँ प्रसिद्ध हैं-जिनमें अध्यापक के कहने पर
भी नकल न करना, पिता की सेवा के प्रति मन में गहरी भावना का जन्म लेना,
हरिश्चन्द्र और श्रवण नाटकों की गहरी छाप, बरु े मित्र की संगति में आने पर पिता के
सामने अपने दोषों को स्वीकार करना। वास्तव में ये घटनाएँ बापू के भव्य जीवन की
गहरी आधार शिलाएँ थीं।
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में - भारत में स्वतन्त्रता आन्दोलन की भूमिका बन रही थी।
लोकमान्य तिलक का यह उद्घोष जन-मन के मन में बस गया था कि “स्वतन्त्रता
हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है ।” महात्मा गांधी ने भी इसी भूमिका में काम करना आरम्भ
कर दिया। यह बात अलग है कि उनके दृष्टिकोण और तिलक के दृष्टिकोण में अन्तर
था, पर लक्ष्य एक था। दोनों एक पथ के पथिक थे। फलत: सत्य और अहिंसा के बल पर
महात्मा गांधी ने संवैधानिक रूप से अंग्रेज़ों से स्वतन्त्रता की मांग की। इधर विश्वव्यापी
प्रथम यद्ध
ु छिड़ा। अंग्रेज़ों ने स्वतन्त्रता दे ने की प्रतिज्ञा की और कहा कि यद्ध
ु के पश्चात ्
हम स्वतन्त्रता दे दें गे। श्री तिलक आदि परु ु षों की इच्छा न रहते हुए भी महात्मा गांधी ने
उस युद्ध में अंग्रेज़ों की सहायता की। युद्ध समाप्त हो गया, अंग्रेज़ वचन भूल गए। जब
उन्हें याद दिलाया गया तब वे इन्कार कर गए। आन्दोलन चला, आज़ादी के बदले
भारतीयों को मिला ‘रोलट एक्ट’ और जलियांवाल बाग का गोली कांड। सन ् 1920 में
असहयोग आन्दोलन आरम्भ हुआ।विद्यार्थी और अध्यापक उस आन्दोलन में डटे , पर
चौरा-चौरी के कांड़ से गांधी जी ने आन्दोलन वापस ले लिया। फिर नमक सत्याग्रह चला।
ऐसे ही गांधी जी के जीवन में अनेक सत्याग्रह और उपवास चलते रहे । 1939 ई. में फिर
युद्ध छिड़ा। भारत के न चाहते हुए इंग्लैंड ने भारत का नाम युद्ध में दिया। महात्मा गांधी
बहुत छटपटाए। 1942 में उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया। सभी प्रमख ु
राजनीतिक नेता जेलों में बन्द कर दिए गए। यद्ध
ु की समाप्ति पर शिमला कान्फैं स हुई
पर यह कान्फैं स बहुत सफल न हुई। फिर 1946 ई. में अन्तरिम सरकार बनी पर वह भी
सफल न हुई।
महात्मा गांधी का दर्शन और जीवन व्यावहारिक था। उन्होंने सत्ता और अहिंसा का मार्ग
विश्व के सामने रखा वह उनके अनुभव और प्रयोग पर आधारित था। उनका चिंतन
अखिल मानवता के मंगल और कल्याण पर आधारित था। वे एक ऐसे समाज की
स्थापना करना चाहते थे जो भेद-रहित समाज हो तथा जिसमें गुण और कर्म के आधार
पर ही व्यक्ति को श्रेष्ठ माना जाए। भौतिक प्रगति के साथ-साथ बापू आध्यात्मिक
पवित्रता पर भी बल दे ते रहे हैं। यही कारण था कि वे ईश्वर के नाम के स्मरण को कभी
नहीं भल
ु ाते। उनका प्रिय भजन था-