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पालक शीतऋतु की फसल है तथा पाले को सहन कर सकता है , किंतु अधिक गर्मी नहीं

सह सकता। जब दिन लंबे तथा रातें छोटी होती हैं, तब इसमें बीज के डंठल निकलने लगते
हैं और पौधों का बढ़ना कम हो जाता है ।

कई प्रकार की मिट्टियों में पालक सग


ु मता से उगाया जा सकता है , पर बलई
ु , दम
ु ट,
सादमय दम
ु ट (silty loams) तथा दम
ु ट भमि
ू यों पर अधिक अच्छा उगता है । अम्लता
को यह अधिक सहन कर सकता है । यथेष्ट बद्धि
ु के लिए इसको 6.0 से 7.0 पीएच की
आवश्यकता है । पानी के निकास का अच्छा प्रबंध आवश्यक है , अन्यथा पत्तियों में
बीमारी लग जाती है । इसमें प्रति एकड़ 75 से 100 पाउं ड नाइट्रोजन की आवश्यकत
होती है , जो आंशिक रूप से ऐमोनियम ्‌सल्फेट के रूप में , कई बार करके, प्रत्येक कटाई
के बाद दी जाती है । अधिक अच्छा होगा कि खाद पहले वाली फसल को दी जाए।

सर्दियों के मौसम में सबसे स्वास्थ्यवर्धक सब्जी मानी जाती है । पालक में जो गुण पाये
जाते है वे समान्यत:अन्य सब्जियों में नहीं पाये जाते। पालक में लोहे का अंश भी बहुत
अधिक रहता है , पालक में मौजूद लोहा शरीर द्वारा आसानी से सोख लिया जाता है ।
इसलिए पालक खाने से खन
ू के लाल कणों की संख्या बढ़ती है । [2] [3]

तुलसी - (ऑसीमम सैक्टम) एक द्विबीजपत्री तथा शाकीय, औषधीय पौधा है । यह झाड़ी


के रूप में उगता है और १ से ३ फुट ऊँचा होता है । इसकी पत्तियाँ बैंगनी आभा वाली हल्के
रोएँ से ढकी होती हैं। पत्तियाँ १ से २ इंच लम्बी सुगधि
ं त और अंडाकार या आयताकार
होती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं ८ इंच लम्बी और बहुरं गी छटाओं वाली होती है ,
जिस पर बैंगनी और गल
ु ाबी आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पष्ु प चक्रों में लगते हैं। बीज
चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से यक्
ु त अंडाकार होते हैं। नए पौधे मख्
ु य रूप से वर्षा
ऋतु में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा
बना रहता है । इसके बाद इसकी वद्ध
ृ ावस्था आ जाती है । पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं
और शाखाएँ सूखी दिखाई दे ती हैं। इस समय उसे हटाकर नया पौधा लगाने की
आवश्यकता प्रतीत होती है भारतीय संस्कृति में तुलसी को पूजनीय माना जाता है , धार्मिक
महत्व होने के साथ-साथ तुलसी औषधीय गुणों से भी भरपरू है । आयुर्वेद में तो तुलसी को
उसके औषधीय गुणों के कारण विशेष महत्व दिया गया है । तुलसी ऐसी औषधि है जो
ज्यादातर बीमारियों में काम आती है । इसका उपयोग सर्दी-जक
ु ाम, खॉसी, दं त रोग और
श्वास सम्बंधी रोग के लिए बहुत ही फायदे मंद माना जाता है ।[4] [5]

मत्ृ यु के समय व्यक्ति के गले में कफ जमा हो जाने के कारण श्वसन क्रिया एवम बोलने
में रुकावट आ जाती है । तुलसी के पत्तों के रस में कफ फाड़ने का विशेष गुण होता है
इसलिए शैया पर लेटे व्यक्ति को यदि तल
ु सी के पत्तों का एक चम्मच रस पिला दिया
जाये तो व्यक्ति के मख
ु से आवाज निकल सकती है ।

नीम भारतीय मल
ू का एक पर्ण- पाती वक्ष
ृ है । यह सदियों से समीपवर्ती
दे शों- पाकिस्तान, बांग्लादे श, नेपाल, म्यानमार (बर्मा), थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका 
आदि दे शों में पाया जाता रहा है । लेकिन विगत लगभग डेढ़ सौ वर्षों में यह वक्ष
ृ  भारतीय
उपमहाद्वीप की भौगोलिक सीमा को लांघ कर अफ्रीका, आस्ट्रे लिया, दक्षिण पूर्व एशिया,
दक्षिण एवं मध्य अमरीका तथा दक्षिणी प्रशान्त द्वीपसमूह के अनेक उष्ण और उप-उष्ण
कटिबन्धीय दे शों में भी पहुँच चक
ु ा है नीम एक तेजी से बढ़ने वाला पर्णपाती पेड़ है , जो
15-20 मी (लगभग 50-65 फुट) की ऊंचाई तक पहुंच सकता है और कभी-कभी 35-
40 मी (115-131 फुट) तक भी ऊंचा हो सकता है । नीम गंभीर होती है । हां पत्तियां
अवश्य कड़वी होती हैं, लेकिन कुछ पाने के लिये कुछ तो खोना पड़ता है मसलन स्वाद।
सूखे में इसकी अधिकतर या लगभग सभी पत्तियां झड़ जाती हैं। इसकी शाखाओं का
प्रसार व्यापक होता है । तना अपेक्षाकृत सीधा और छोटा होता है और व्यास में 1.2 मीटर
तक पहुँच सकता है । इसकी छाल कठोर, विदरित (दरारयुक्त) या शल्कीय होती है और
इसका रं ग सफेद-धूसर या लाल, भूरा भी हो सकता है । रसदारु भूरा-सफेद और अंत:काष्ठ
लाल रं ग का होता है जो वायु के संपर्क में आने से लाल-भूरे रं ग में परिवर्तित हो जाता
है । जड़ प्रणाली में एक मजबूत मुख्य मूसला जड़ और अच्छी तरह से विकसित पार्श्व जड़ें
शामिल होती हैं।इसका स्वाद तो कड़वा होता है लेकिन इसके फायदे अनेक और बहुत
प्रभावशाली है । [1][2] [3]
१- नीम की छाल का लेप सभी प्रकार के चर्म रोगों और घावों के निवारण में सहायक है ।

२- नीम की दातन
ु करने से दांत और मसड़
ू े स्वस्थ रहते हैं।

३- नीम की पत्तियां चबाने से रक्त शोधन होता है और त्वचा विकार रहित और कांतिवान

 पुदीना में था वंश से संबधि


ं त एक बारहमासी, खुशबूदार जड़ी है । इसकी विभिन्न
प्रजातियां यरू ोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रे लिया मे पाइ जाती हैं, साथ
ही इसकी कई संकर किस्में भी उपलब्ध हैं।ऐसा विश्वास किया जाता है कि में था का
उद्भव भूमध्यसागरीय बेसिन में हुआ तथा वहॉ से ये प्राकृतिक तथा अन्य तरीकों से
संसार के अन्य हिस्सों में फैला, जापानी पोदीना, ब्राजील, पैरागुए, चीन, अर्जेन्टिना,
जापान, थाईलैंड, अंगोला, तथा भारतवर्ष में उगाया जा रहा है । भारतवर्ष में मुख्यत:
तराई के क्षेत्रों (नैनीताल, बदायूँ, बिलासपुर, रामपुर, मुरादाबाद तथा बरे ली) तथा
गंगा यमुना दोआन (बाराबंकी, तथा लखनऊ तथा पंजाब के कुछ क्षेत्रों (लुधियाना
तथा जलंधर) में उत्तरी-पश्चिमी भारत के क्षेत्रों में इसकी खेती की जा रही है ।
 मेन्थोल का उपयोग बड़ी मात्रा में दवाईयों, सौंदर्य प्रसाधनों, कालफेक्शनरी, पेय
पदार्थो, सिगरे ट, पान मसाला आदि में खुशबू हे तु किया जाता है ।
 इसके अलावा इसका तेल यक
ू े लिप्टस के तेल के साथ कई रोगों में काम आता है । ये
कभी-कभी गैस दरू करने के लिए, दर्द निवारण हे तु, तथा गठिया आदि में भी उपयोग
किया जाता है ।
 अगर आपके मुंह से बदबू आती है तो पुदीने की कुद पत्त‍ियों को चबा लें. निय‍म
से इसके पानी से कुल्ल करने पर भी बदबू चली जाएगी.
 2. पद
ु ीना त्वचा से जड़
ु ी कई बीमारियों में भी एक अचक
ू उपचार है .
 3. गर्मी में लू से बचने के लिए भी पद
ु ीने का इस्तेमाल किया जाता है . इसके रस
को पीकर बाहर निकलने से धप
ू लगने का डर भी कम रहता है .

Toku taki rinka


Phukariri kichika
rukito tokuchi
MIRIKUCHIKATO
rindototodo

आ रही हिमालय से पक
ु ार
है उदधि गरजता बार बार
प्राची पश्चिम भू नभ अपार;
सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त
वीरों का कैसा हो वसंत

फूली सरसों ने दिया रं ग


मधु लेकर आ पहुंचा अनंग
वधु वसध
ु ा पल
ु कित अंग अंग;
है वीर दे श में किन्तु कंत
वीरों का कैसा हो वसंत

भर रही कोकिला इधर तान


मारू बाजे पर उधर गान
है रं ग और रण का विधान;
मिलने को आए आदि अंत
वीरों का कैसा हो वसंत
गलबाहें हों या कृपाण
चलचितवन हो या धनष
ु बाण
हो रसविलास या दलितत्राण;
अब यही समस्या है दरु ं त
वीरों का कैसा हो वसंत

कह दे अतीत अब मौन त्याग


लंके तझ
ु में क्यों लगी आग
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग;
बतला अपने अनभ
ु व अनंत
वीरों का कैसा हो वसंत

हल्दीघाटी के शिला खण्ड


ऐ दर्ग
ु सिंहगढ़ के प्रचंड
राणा ताना का कर घमंड;
दो जगा आज स्मति
ृ यां ज्वलंत
वीरों का कैसा हो वसंत

भूषण अथवा कवि चंद नहीं


बिजली भर दे वह छन्द नहीं
है कलम बंधी स्वच्छं द नहीं;
फिर हमें बताए कौन हन्त
वीरों का कैसा हो वसंत

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