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अभियुक्त की तरफ से मेमोरियल

ृ ीय एमिटी राष्ट्रीय हिंदी आभासी न्यायालय प्रतियोगिता, 2019


तत

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तत

टीम कोड : HMC-023

सम्मानित सत्र न्यायलय, आर्यगढ़

एस.सी. क्र.._____/ 2019

राज्य………………………………………..(अभियोजनकर्ता)

बनाम

गुल है दर और अन्य……………………………….(अभियुक्त)

दं ड प्रक्रिया संहिता की धारा 177 के अंतर्गत

अभियक्
ु त की तरफ से मेमोरियल
अभियुक्त की तरफ से मेमोरियल

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विचाय सूचि

 संक्षिप्त शब्दों की सच
ू ी………………………………………3

 प्रधिकारी की सच
ू ी…………………………………………..4-5

 क्षेत्राधिकारी का कथन……………………………………….6

 तथ्य विलेशव……………………………………………….7-8

 मद्द
ु े………………………………………………………….9

 तर्कों का सार……………………………………………….10-11

 लिखित तर्क ………………………………………………...12-19

 प्रार्थना………………………………………………………20
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संक्षिप्त शब्दों की सूची

ब. - बनाम
इला. - इलाहाबाद
ए आइ आर- ऑल इंडिया रिपोर्टर
एल जे - लॉ जर्नल
एन ओ सी - नोट्स ओफ़ के सिस
एस सी - सुप्रीम कोर्ट
क्रि एल जे - क्रिमिनल लॉ जर्नल
एस सी सी - सुप्रीम कोर्ट के सिस
एन सी टी ओफ़ दिल्ली - नेशनल टेरिटरी ओफ़ दिल्ली
कट - कटक
आर एल डब्ल्यु - राजस्थान लॉ वीकली
आल - इलाहाबाद
ऑल ई आर - ऑल इंग्लेन्ड रिपोर्टर
सी बी आई - सेंट्रल ब्युरो ओफ़ इन्वेस्टिगेशन
सुप्प - सुप्रा
आई ए - इन्टरलोक्युटरी एप्लिके शन
एम्प. - एम्परर
कल. - कलकत्ता
ला. - लाहौर
यू.एस. - युनाइटेड स्टेट्स
क्यू. बी - क्विन्स बेंच
कोक्स सी. सी. - कोक्स क्रिमिनल के सिस
मद्रा.- मद्रास
पी. सी. - प्रिवि काउन्सिल
यू.पी - उत्तर प्रदेश
डी.एल.आर. - दिल्ली लॉ रिपोर्ट
नाग. - नागपुर
एस.सी.आर. - सुप्रीम कोर्ट रिपोर्टर
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प्रधिकारी की सच
ू ी

o इमाम बंदी बनाम मुत्सद्दी (45 कैल 878)


o दीवान और दीवान, आधनि
ु क भारत में मस्लि
ु म कानन
ू , ११६
o मुहम्मद बख्श बनाम गुलाम फातिमा (पीएलडी 1953 लाह। 73)

o है दरी बेगम बनाम जावेद अली शाह AIR 1934 All. 722
o फरजानबाई बनाम अयूब दादामिया AIR (1989) बम 357  
o टी एन मुथुवीरप्पा चेट्टी उर्फ टी एन बच्छ चेती और एक अन्य वी टी आर पोन्नुस्वामी चेट्टी १३ आईसी १६
o सरस्वतीबाई श्रीपद वेद बनाम श्रीपद वासनजी वेद AIR 1941 बम 103
o मूकंद लाल सिंह बनाम नोबोडिप चंदर सिंघा और एक अन्य आईएलआर 25 कैल। 881
o रामाबार अग्रवाल वी राज्य (1983) Cr LJ 122 (ori)
o गौरा वेंकट रे ड्डी बनाम एपी राज्य (2003) 12 एससीसी 469
o किशनगिरी मंगलगिरी गोस्वामी बनाम गुजरात राज्य (2009) 4 एससीसी 52, एआईआर 2009 एससी
1808, (2009) सीआर एलजे 1720 (एससी)
o किशोरी लाल बनाम मध्य प्रदे श AIR 2007 SC 2457
o गुरबचन सिन्ह ब. सतपाल सिन्ह 1990 1 एस सी सी 445
o प्रवीण प्रधान बनाम उत्तरांचल राज्य और अन्र (2012) 9 SCC 734

o चित्रेश कुमार चोपड़ा बनाम राज्य (दिल्ली सरकार के एनसीटी), एआईआर 2010 एससी 1446
o रं गानायाकी ब. स्टे ट(2004) 12 एस सी सी 521
o नरू मोहम्मद मोमिन बनाम महाराष्ट्र राज्य के ए.आई.आर. 1971 SC 885, 1971 (Cr Lj 793 SC)
o के.एम. नानावती बनाम महाराष्ट्र राज्य AIR 1962 SC 605, 1962 (2 SCJ 347)
o काली राम बनाम हिमाचल प्रदे श राज्य (1973) 2 SCC 808
o दशरथ सिंह बनाम यू.पी. 2004 7 SCC 408, AIR 2004 SC 4488
o बी आर श्रीकांतय
ै ा बनाम मायसोर राज्य AIR 1958 SC 672, (1958) CrLj 1251(SC)
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पुस्तकें

 रतनलाल और धीरजलाल के अपराध के नियम - भारतीय दं ड संहिता, खंड I, भारत के कानून


हाउस, दिल्ली, २ n एडीएन, २०१३ पर एक टिप्पणी
 ’रतनलाल और धीरजलाल की अपराध की विधि - भारतीय दं ड पर एक टिप्पणी
 कोड, वॉल्यूम II, भारत लॉ हाउस, दिल्ली, 27 एडन।, 2013
 जस्टिस वी। वी। राघवन, अपराधों का कानून, इंडिया लॉ हाउस, नई दिल्ली, 5 वां एड। 2001।
 के I विभूति, पी। एस। पिल्लई का आपराधिक कानून, लेक्सिस नेक्सिस, 12 वां एड। 2014।
 डॉ। (सर) हरि सिंह गौर, भारतीय दं ड कानन
ू , कानन
ू प्रकाशक (इंडिया) प्रा।
 लिमिटे ड, 11 वां संस्करण, 2011
 जे सी स्मिथ, स्मिथ और होगन आपराधिक कानून - मामले और सामग्री, लेक्सिसनेक्सिस
बटरवर्थ्स, 8 एनटीएन, 2007
 सी के ठक्कर wani टकवानी ’, आपराधिक प्रक्रिया, लेक्सिस नेक्सिस, तीसरा संस्करण, २०१३
 एस.एन. मिश्रा, द कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर, सेंटरल लॉ पब्लिकेशंस, 18 वां एडन।, 2013
 आर.वी. केलकर, आपराधिक प्रक्रिया, ईस्टर्न बुक कंपनी, 5 वीं संस्करण।, 2008
 रतनलाल और धीरजलाल, द लॉ ऑफ़ एविडेंस, लेक्सिस नेक्सिस, 24 वाँ एड।, नागपरु , 2011।
 एम। मोनीर, द लॉ ऑफ़ एविडेंस, 14 वें संस्करण, यनि
ू वर्सल लॉ पब्लिशिंग कंपनी लिमिटे ड, 2011
 कैथ होडकिं सन मुस्लिम फॅमिली लॉ आ सौरसेबूक स्र ्रोम हे ल्म लंदन एंड कैनबेरा 1984
 अक़ील अहमद मोहम्मडन लॉ सेंट्रल लॉ एजेंसी 26th एडिशन 2016
 सईद खालिद रशीद मस्लि
ु म लॉ ईस्टर्न बक
ु कंपनी लखनऊ 5th एडिशन 2016
 आलमगीर मुहम्मद सेराजुद्दीन मुस्लिम फॅमिली लॉ सेक्युलर कोर्ट्स एंड मुस्लिम वीमेन ऑफ़
साउथ आईसीआ ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2011
 बी र वर्मा कमें टरीएस ों मोहम्मडन लॉ लॉ पब्लिशर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटे ड 7th एडिशन 1997

विधि

 भारतीय साक्ष्य संहिता 1872


 भारतीय दं ड संहिता 1860
 दं ड प्रक्रिया अधिनियम 1973

ओनलाइन डाटाबेस
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 सुप्रीम कोर्ट केसस


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क्षेत्राधिकारी का कथन

अभियोजन पक्ष द्वारा दायर मुकदमे के जवाब में माननीय अदालत के समक्ष

अभियोजन पक्ष उपस्थित हुआ है |


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तथ्य विलेशव

 आर्यगढ नामक शहर में श्री हरीश चंद्र एक नामी ज़मींदार था जिसके कारखाने में श्री

अखलाख उल रज़ाक काम करता था तथा वह श्रमिक संघ का नेता भी थाl

 अखलाक उल रज़ाक की तीन संताने थी जिनमें से अशफाक उल्ला उसके पहले विवाह से

जन्मा था तथा खदीजा एवं गल


ु है दर उसके दस
ू रे विवाह के उपरांत हुए l

 हरिश चंद्र की पत्र


ु ी के प्रेम संबंध अखलाक रज़ाक के पत्र
ु अशफ़ाक उल रज़ाक थे जिसकी

जानकारी के पश्चात हरिश चंद्र ने अखलाख उल रज़ाक को काम से निष्कासित कर

दिया था, जिसका कारण उन्होंने व्यक्तिगत रखाl

 अखलाख उल रजाक और बाकी कर्मचारियों ने किराए पर जमीन लेकर कृषि का काम

शरू
ु किया जिसके परिणाम स्वरूप कर्मचारी वर्ग दो भागों में बट गया, एक भाग

अखलाख उल रज़ाक के साथ था और दस


ू रा गल
ु है दर के साथ l

 गुल है दर को श्रमिक संघ का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया था, वो तारा ए हिंद का

उभरता हुआ भावी युवा नेता बन गया उसकी बढ़ती लोकप्रियता को दे खकर हरिश चंद्र ने

अपनी पत्र
ु ी रूपा का विवाह उससे करा दियाl

 रूपा को विवाह के उपरांत रिहाना कहा जाने लगा, विवाह के 1 वर्ष के अंतराल में ही

कबीर का जन्म हुआ l

 इन सब से हटकर हरिश चंद्र के पत्र


ु कुबेर एवं अखलाक उल रज़ाक की पत्र
ु ी खदीजा ने

भी विवाह कर लियाl
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 अशफाक और रिहाना के बीच अवैध प्रेम संबंध विवाह के बाद भी जारी रहे l

 गुल है दर की बहन खदीजा ने रिहाना और अशफाक के बीच अवैध प्रेम संबंधों की

जानकारी गल
ु है दर को दी, जिसे सन
ु ते ही गल
ु है दर ने चाकू उठाया और वह उस बाग

में गया जहां रे हाना और अशफाक बैठे हुए थेl

 वहां गुल की तू तू मैं मैं अशफाक से हुई धीरे -धीरे मोखिक लड़ाई शारीरिक हिंसा में

तब्दील हो गई l

 गुस्से में तिल मिलाए गुल है दर ने अशफाक  को चाकू भोंक दिया रिहाना के विरोध

जताते ही गल
ु ने रिहाना को भी चाकू भोंक दियाl

 दोनों को खून से लथपथ अवस्था में अस्पताल पहुंचाया गया अशफाक कि वहां पहुंचते

ही मौत हो गई अथवा रिहाना ने अंग प्रत्यारोपण सर्जरी की विफलता और विभिन्न

चोटों के कारण दम तोड़ दियाl

 कुबेर और खदीजा पर गल
ु है दर को हत्या के लिए उकसाने के लिए मक
ु दमा चलाया

गयाl
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मुद्दे

मुद्दा 1 - कबीर का संरक्षक कौन होगा: हरीश चंद्र या अख़लाक़ उल रज़्ज़ाक?

मुद्दा 2- क्या कुबेर और खदीजा को दफा 107 और 109 के तहत कत्ल को उकसाने

के लिए दोषी बनाया जाना चाहिए?

मुद्दा 3- क्या गुल है दर को दफा ३०२ के तहत हत्या का दोषी ठरना जाना चाहिए?
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तर्कों का सार

मुद्दा 1 - कबीर का संरक्षक कौन होगा: हरीश चंद्र या अख़लाक़ उल रज़्ज़ाक?

माननीय अदालत के समक्ष यह दलील पेश की जाती है के कबीर का संरक्षक श्री अख़लाक़ उल

रज़्ज़ाक ही होगा| संरक्षक और वार्ड अधिनियम की धारा 7 में प्रावधान है कि अभिभावक की

नियुक्ति के लिए, सर्वोपरि विचार नाबालिग का कल्याण है । हिरासत संरक्षण और वार्ड

अधिनियमकी धारा 17 उप खंड 2 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि, एक बच्चे का धर्म उसके

कल्याण को तय करने में महत्वपर्ण


ू भमि
ू का निभाता है | मस्लि
ु म ला के अनस
ु ार माँ अपने

अधिकार बच्चे पर से खो दे ती है अगर वह अनैतिक जीवन जी रही हो l और इस मामले में

रिहाना के अवैध संबंध अशफाक से थे l

मुद्दा 2- क्या कुबेर और खदीजा को दफा 109 के तहत कत्ल को उकसाने के लिए दोषी बनाया

जाना चाहिए?

माननीय अदलायत के समक्ष यह दलील पेश की जाती है कि यहाँ दावे के साथ यह कहा गया है

कि कुबेर और खदीजा दोनो ही वे व्यक्ति हैं जो इस कृत्य के पीछे हैं और इन्होंने गल


ु है दर को

अशफ़ाक़ का कत्ल करने के लिए उकसाया । धारा 107, भारतीय दं ड संहिता 24 में किसी मामले

में उकसाने की बात का उल्लेख ह l दोनों व्यक्तियों का कार्य स्पष्ट रूप से उनका यह मकसद

दर्शाता है कि वो दोनों ही गल
ु है दर रिहाना और अशफ़ाक़ उल रज़्ज़ाक को रस्ते से हटाना चाहते

थे| इसके अलावा, खादीजा और कुबेर दोनों ही गुल है दर, रिहाना और अशफाक उल रज्जाक के
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खिलाफ आपराधिक साजिश रचने के अपराध के लिए भारत दं ड संहिता की धारा 120 बी के लिए

भी उत्तरदायी होंगे|

मद्द
ु ा ३- कयता गल
ु है दर को दफा ३०२ के तहत हत्या का दोषी ठरना जाना चाहिए?

यह विनम्रतापूर्वक माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया है , गुल है दर के द्वारा की

गयीं दोनों हत्याएं आकस्मिक भावावेश में आकर की गयीं हैं| अभियुक्त को भारतीय दं ड संहिता

की धारा 302 के तहत अपराध के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है । हालांकि धारा 300

के लिए शर्तें पूरी हो गई हैं, मामला धारा 300 के अपवाद 1 के तहत आता है । इसलिए आरोपी

केवल आपराधिक मानव वध के लिए दोषी ठराया जा सकता है किन्तु हत्या के लिए नहीं|यह

मामला धारा ३०० के अपवाद १ के तहत आएगा और अपवाद ४ के तहत नहीं क्योंकि अपवाद ४

का मख्
ु य आवश्यक आपसी लड़ाई है । इसलिए इस मामले में अभियक्
ु त का कृत्य धारा 300 के

अपवाद 1 के तहत हत्या के अधीन  नहीं है |


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लिखित तर्क

मुद्दा 1 - कबीर का संरक्षक कौन होगा: हरीश चंद्र या अख़लाक़ उल रज़्ज़ाक?


¶- माननीय अदलायत के समक्ष यह दलील पेश की जाती है के कबीर का संरक्षक श्री अख़लाक़ उल रज़्ज़ाक ही
होगा|
रूपा जिसे विवाह के उपरं न्त रिहाना कहा जाने लगा , इस से साफ़ स्पष्ट होता है के रूपा ने विवाह के बाद अपना
धर्म बदलवा लिया था और मुसलमान धर्म अपना लिया था इसलिए यह मामला मुसलमान लॉ के अधीन आएगा|

यह अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया गया है कि मुस्लिम कानून के तहत, माँ को 7 वर्ष से कम उम्र के बच्चे का
अभिभावक माना जाता है , लेकिन पिता का अपने बच्चों पर बेहतर अधिकार है

¶- यह इमाम बंदी बनाम मत्ु सद्दी1 में आयोजित किया गया था कि "यह परू ी तरह से स्पष्ट है कि मस्लि
ु म
कानून के तहत पिता अपने बच्चों के प्राथमिक और प्राकृतिक अभिभावक हैं, मां की हिरासत का अधिकार और
कानून में उल्लिखित महिला संबंध पिता के पर्यवेक्षण और नियंत्रण के अधीन हैं| यदि ऐसा है , तो हिज़ानत का
अधिकार माता की सभी शक्तियों को अभिभावकों और वार्ड अधिनियम, 1890 के तहत एक नाबालिग के
अभिभावक की शक्तियों से सम्मानित नहीं करता है ।
माँ की अनप
ु स्थिति में , सन्
ु नी कानन
ू के तहत, निम्नलिखित लोगों को एक बच्चे का संरक्षक बनाया जा सकता है :
(1) माँ की माँ (2) पिता की माँ (3) पूर्ण बहन (4) गर्भाशय बहन (5) संगिनी बहन (6) पूर्ण बहन की बेटी (7)
गर्भाशय बहन की बेटी (8) कंजुआइन बहन की बेटी (9) मात ृ चाची (10) पैतक
ृ चाची

¶- माँ और अन्य महिला संबंधों के हिज़ानत का अधिकार खो जाता है यदि वह एक अनैतिक जीवन जीती है या,
बच्चे की उचित दे खभाल करने की उपेक्षा करती है या, एक व्यक्ति से विवाह करती है जो निषिद्ध डिग्री के भीतर
बच्चे से संबंधित नहीं है या, यदि विवाह के निर्वाह के दौरान , वह जाती है और पिता के स्थान से दरू ी पर रहती
है ।
¶-वाद समस्या में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि रिहाना के गुल है दर के भाई अशफाक उल रज्जाक के साथ अवैध
संबंध थे। इसलिए उसकी संरक्षकता का अधिकार कभी नहीं था क्योंकि वह एक अनैतिक जीवन जीती थी|
माँ का संरक्षकता का अधिकार उसके बच्चों को पालने का अधिकार है। लेकिन यह अधिकार पूर्ण अधिकार नहीं है।
यदि वह बच्चे को पालने के लिए उपयक्
ु त नहीं पायी जाती है या उसकी हिरासत बच्चे के शारीरिक नैतिक और
बौद्धिक कल्याण के लिए अनुकूल नहीं है तो वह अधिकार खो सकती है ।2
यही कारण है कि पिता को संरक्षकता प्रदान की जाती है और पिता की अनुपस्थिति में दादा को दि जाती है |

1
(45 कैल 878)
2
दीवान एंड दीवान, मस्लि
ु म लॉ इन मॉडर्न इंडिया 116
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¶- संरक्षक और वार्ड अधिनियम की धारा 7 में प्रावधान है कि अभिभावक की नियुक्ति के लिए, सर्वोपरि विचार
नाबालिग का कल्याण है ।

यह मुहम्मद बख्श बनाम गुलाम फातिमा3 में आयोजित किया गया था कि


”इस सवाल का निर्धारण करने में कि क्या नाबालिग की हिरासत संरक्षण और वार्ड अधिनियम
की धारा 17 और 25 के तहत ऐसे रिश्तेदार को दी जाएगी जो बच्चे के कल्याण के लिए सबसे अच्छा माना
जाएगा” |4
17. संरक्षक नियक्
ु त करने में न्यायालय द्वारा विचार किए जाने वाले मामले। - (2) नाबालिग के कल्याण के लिए
क्या होगा, इस पर विचार करते हुए, न्यायालय को नाबालिग की आयु, लिंग और धर्म के बारे में बताना होगा,
प्रस्तावित अभिभावक के चरित्र और क्षमता और नाबालिग के परिजनों की उसकी मंशा, इच्छाएं एक मत ृ माता-
पिता, और नाबालिग या उसकी संपत्ति के साथ प्रस्तावित अभिभावक के किसी भी मौजूदा या पिछले संबंध।
अधिनियम की धारा 17 उप खंड 2 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि, एक बच्चे का धर्म उसके कल्याण को तय
करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है |

¶- हिज़ानत के विषय पर विभिन्न पाठ्य पुस्तकों में प्रतिपादित नियम एकरूप नहीं है । इसलिए यदि किसी दिए
गए मामले के तथ्यों पर यह पता चलता है की यह नाबालिग के कल्याण के खिलाफ है तो नियम से प्रस्थान
करने की अनुमति दी जाएगी।
वर्तमान मामले के तथ्यों की ओर मड़ ु ते हुए, यह उच्चारण करना मश्कि
ु ल नहीं है कि नाबालिग का कल्याण कहां
है । यह स्पष्ट है कि माता-पिता दोनों ने इस्लाम धर्म को स्वीकार किया है और इसलिए यह नाबालिग के लाभ के
लिए है कि उसकी परवरिश अब उसके माता-पिता के धर्म के अनुसार की जानी चाहिए। जिसे वह केवल अपने
दादा से प्राप्त कर सकता है |
¶- है दरी बेगम बनाम जावेद अली शाह की अदालत इस नतीजे पे पहची कि-
“संरक्षण के लिए मख्
ु य सवाल यह है कि बच्चे के कल्याण के लिए अधिक अनक
ु ू ल क्या होगा अर्थात बच्चे की
बेहतर दे खभाल कब की जाएगी और पार्टियों के व्यक्तिगत कानन
ू को भी ध्यान में लिया जाएगा|”5
फरजानबाई बनाम अयूब दादामिया6 में , बॉम्बे की अदालत ने कहा कि गार्जियन एंड वार्ड्स अधिनियम के तहत,
पार्टियों का व्यक्तिगत कानून एक कारक है जिसे अदालत द्वारा नाबालिग के हित में ध्यान में रखा जाना है ।

3
(पीएलडी 1953 लाह। 73)
4
25. वार्ड की अभिरक्षा के लिए अभिभावक का पद। ——
(1) यदि कोई वार्ड अपने व्यक्ति के संरक्षक की हिरासत से हटा दिया जाता है , तो न्यायालय, यदि यह राय है कि
यह वार्ड के कल्याण के लिए होगा कि वह अपने अभिभावक की हिरासत में वापस आ जाए, उनकी वापसी के लिए
आदे श और आदे श को लागू करने के उद्देश्य से वार्ड को गिरफ्तार किया जा सकता है और अभिभावक की हिरासत
में पहुंचाया जा सकता है ।
5
AIR 1934 All. 722
6
AIR (1989) बम 357  
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टी एन मुथुवीरप्पा चेट्टी उर्फ टी एन बच्छ चेती और एक अन्य वी टी आर पोन्नुस्वामी चेट्टी7, यह माना गया कि
नाबालिग का कल्याण मुख्य मकसद है ।  
सरस्वतीबाई श्रीपद वेद बनाम श्रीपद वासनजी वेद8 ने कहा कि पार्टियों के अधिकार के बजाय, सर्वोपरि विचार
नाबालिग का हित और लाभ है । नाबालिग का कल्याण सर्वोपरि है ; वह सामग्री, नैतिक और आध्यात्मिक कल्याण,
नाबालिगों की हिरासत को प्रदान करने में निर्णय लेने और शासन करने का विचार है ।

¶- पैसे, आराम और नैतिक और धार्मिक कल्याण के सवाल पर अदालत में नीचे दिए गए शब्दों पर जोर दिया
गया है : -
"फिर हमें इस बात पर विचार करना होगा कि वास्तव में इस नाबालिग के कल्याण में क्या है । यह कल्याण शब्द
का उपयोग अपने व्यापक अर्थों में किया जा सकता है और न केवल धन और आराम के सवाल पर, बल्कि बच्चे
के नैतिक और धार्मिक कल्याण के लिए भी किया जा सकता है ।9

मद्द
ु ा 2- क्या कुबेर और खदीजा को दफा 107 और 109 के तहत कत्ल को उकसाने के लिए दोषी बनाया जाना
चाहिए?

¶- अदालत में यह दलील पेश की जाती है की, यहाँ दावे के साथ यह कहा गया है कि कुबेर और खदीजा दोनो ही
वे व्यक्ति हैं जो इस कृत्य के पीछे हैं और इन्होंने गुल है दर को अशफ़ाक़ का कत्ल करने के लिए उकसाया । धारा
107, भारतीय दं ड संहिता में किसी मामले में उकसाने की बात का उल्लेख है । अगर अभियक्
ु त दावे से भी कहें ,
कि उन्होनें अशफ़ाक़ का कत्ल नहीं किया जो कि उस सब के विपरीत है , जिस और हालात इशारा कर रहे है , तब
भी धारा 107 के तहत उकसाने के दोषी हैं क्योंकि यह अनिवार्य नहीं है कि उकसाया गया जुर्म किया गया हो
अथवा नहीं|

¶- धारा 107 किसी बात का दष्ु प्रेरण- वह व्यक्ति किसी बात के लिए जाने का दष्ु प्रेरण करता है ,
पहला) उस बात को करने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता है ; अथवा

दस
ू रा) उस बात को करने के लिए किसी षड्यंत्र में एक या अधिक अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ सम्मिलित
होता है , यदि उस षड्यंत्र के अनुसरण में, और उस बात को करने के उद्देश्य से, कोई कार्य या अवैध लोपघातीत
होजाए; अथवा

तीसरा) उस बात के लिए किये जाने में किसी कार्य या अवैध लोप द्वारा सश्य सहायता करता है |

सपष्टीकरण १- जो कोई व्यक्ति जानबूझ कर दव्र्ु यपदे शन द्वारा, या तात्विक तथ्य, जिसे प्रकट करने के लिए वह
आबद्ध है , जानबूझकर छिपाने द्वारा, स्वेछया किसी बात का किया जाना करीत या उपप्त करता, अथवा कारित या
उपाप्त करने का प्रयत्न करता है , वह उस बात का किया जाना उकसाता है , यह कहा जाता|

7
१३ आईसी १६
8
AIR 1941 बम 103
9
मक
ू ं द लाल सिंह बनाम नोबोडिप चंदर सिंघा और एक अन्य आईएलआर 25 कैल। 881
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स्पष्टीकरण २- जो कोई या तोह किसी कार्य के किये जाने स इ पूर्व या किये जाने के समय, उस कार्य के किये
जाने को सुकर बनाने के लिए कोई बात करता है और तदद्वारा उसके किये जाने को सुकर बनता है , वह उस कार्य
के करने में सहायता करता है , यह कहा जाता है |

¶- भारतीय दं ड संहिता में " दष्ु प्रेरण " शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है । “दष्ु प्रेरण” का शाब्दिक अर्थ है ,
उत्तेजित करना, आग्रह करना या कुछ भी करने के लिए राजी करना। इसका तात्पर्य है भड़काना या आग्रह करना
कि कुछ कठोर या अनुचित कार्रवाई करना या उत्तेजित करना या उकसाना|10

धारा 107 के अनुसार, अपराध उस व्यक्ति के इरादे पर निर्भर करता है जिसने दष्ु प्रेरण दिया हो, और उस व्यक्ति
के कार्य पे निर्भर करता है जिसको दष्ु प्रेरण दिया हो|11

उकसावा एक अलग एवं सुस्पष्ट जुर्म है , बशर्ते कि जिस मामले को उकसाया गया हो, वह एक अपराध हो।12 गुल
है दर जो की एक नामी चेहरा था अधिकतर चुनाव प्रचार एवं अन्य दल सम्बन्धी कामो के कारण यात्रा पर रहता
था| गल है दर के माध्यम से हरीश चंद्रा को बेहद राजनीतिक लाभ मिल रहा था| खादिजा और कुबेर को ये डर था
कि अगर वर्तमान परिदृश्य जारी रहा, तो हरीश चंद्रा अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा गल
ु है दर और अपनी बेटी
रिहाना के नाम कर सकता है | यह मकसद दोनों लोगों की आपराधिक मानसिकता को दर्शाता है ।13
अपने इस मकसद को पूरा करने के लिए खदीजा ने मौका मिलते ही गुल है दर से अशफ़ाक़ और रिहाना के अवैध
सम्बन्ध के बारे में चुगली करदी|

¶- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 में कहा गया है –


मकसद, तैयारी और पिछले या बाद के आचरण। - कोई भी तथ्य प्रासंगिक है जो किसी भी मुद्दे या प्रासंगिक तथ्य
के लिए एक मकसद या तैयारी दिखाता है या उसका गठन करता है। ऐसे सट
ू या कार्यवाही के संदर्भ में किसी भी
पक्ष, या किसी भी एजेंट के किसी भी पक्ष या कार्यवाही के लिए, या उसमें या संबंधित किसी भी तथ्य के संदर्भ
में, और किसी भी व्यक्ति का आचरण, जिसके खिलाफ विषय है किसी भी कार्यवाही के लिए, प्रासंगिक है , अगर

10
रामाबार अग्रवाल वी राज्य (1983) Cr LJ 122 (ori); गौरा वें कट रे ड्डी बनाम एपी राज्य (2003) 12 एससीसी
469; किशनगिरी मंगलगिरी गोस्वामी बनाम गज
ु रात राज्य (2009) 4 एससीसी 52, एआईआर 2009 एससी
1808, (2009) सीआर एलजे 1720 (एससी)
11
किशोरी लाल बनाम मध्य प्रदे श AIR 2007 SC 2457
12
गुरबचन सिन्ह ब. सतपाल सिन्ह 1990 1 एस सी सी 445
13
धारा 108 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार-
एक व्यक्ति एक अपराध का पालन करता है , जो या तो एक अपराध के आयोग का पालन करता है , या एक
अधिनियम का आयोग, जो एक अपराध होगा, यदि वह उसी इरादे या ज्ञान के साथ अपराध करने के कानून द्वारा
सक्षम व्यक्ति द्वारा प्रतिबद्ध है जो कि बूचड़खाना।
स्पष्टीकरण 1. - एक अधिनियम के अवैध चूक का उन्मूलन एक अपराध की राशि हो सकता है , हालांकि अबेटार
स्वयं उस अधिनियम को करने के लिए बाध्य नहीं हो सकता है ।
 स्पष्टीकरण 2. - घण
ृ ा के अपराध का गठन करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि अपमानित किया गया कार्य
किया जाना चाहिए, या यह कि अपराध के गठन के लिए अपेक्षित प्रभाव का कारण होना चाहिए।
अभियुक्त की तरफ से मेमोरियल

ृ ीय एमिटी राष्ट्रीय हिंदी आभासी न्यायालय प्रतियोगिता, 2019


तत

इस तरह के आचरण मुद्दे या प्रासंगिक तथ्य में किसी भी तथ्य से प्रभावित होते हैं या प्रभावित होते हैं, और क्या
यह पिछले या बाद में था।
स्पष्टीकरण 1. - इस खंड में "आचरण" शब्द में कथन शामिल नहीं हैं, जब तक कि उन बयानों के साथ बयानों के
अलावा अन्य कार्य नहीं होते हैं; लेकिन यह स्पष्टीकरण इस अधिनियम के किसी अन्य खंड के तहत बयानों की
प्रासंगिकता को प्रभावित करने के लिए नहीं है ।  
स्पष्टीकरण 2. - जब किसी व्यक्ति का आचरण प्रासंगिक होता है , तो उसका या उसकी उपस्थिति और सुनवाई में
किया गया कोई भी कथन, जो ऐसे आचरण को प्रभावित करता है , प्रासंगिक है ।

¶- दोनों व्यक्तियों का कार्य स्पष्ट रूप से उनका यह मकसद दर्शाता है कि वो दोनों ही गुल है दर रिहाना और
अशफ़ाक़ उल रज़्ज़ाक को रस्ते से हटाना चाहते थे| परोक्ष रूप से अख़लाक़ उल रज़्ज़ाक एवं हरीश चंद्र दोनों की
ही संपत्ति के वो एकलौते हकदार बन जाते|

“उकसाना” का अर्थ है एक कृत्य करने के लिए आगे बढ़ना, उकसाना, उकसाना या प्रोत्साहित करना। “उकसाना” की
आवश्यकता को पूरा करने के लिए, हालांकि यह आवश्यक नहीं है कि वास्तविक शब्दों का उपयोग उस प्रभाव के
लिए किया जाना चाहिए या “उकसाना” का गठन आवश्यक रूप से और विशेष रूप से परिणाम का विचारोत्तेजक
होना चाहिए।14

¶- यह सनि
ु श्चित करने के लिए कि एक व्यक्ति को अपराध करने के लिए उकसाया गया है , किसी विशेष
मामले की परिस्थितियों से दायित्व एकत्र किया जाता है ।15 उल्लिखित मामले में , अदालत ने आगे आयोजित
किया की “ऐसे मामले में, परिस्थितियों से एक निष्कर्ष निकाला जाता है और यह निर्धारित किया जाता है कि
क्या परिस्थितियां ऐसी थीं जो वास्तव में किसी व्यक्ति को अपना नियंत्रण खो दे ने और अपराध करने पे मजबूर
करदे ती|”

¶- इस के अतिरिक्त किसी मक
ु दमे में यह भी सनि
ु श्चित किया गया है , कि प्रत्यक्ष प्रमाण के अभाव में उद्धेश्य का
अनुमान हालात से लगाया जा सकता है और यदि अनुमान कमजोर भी साबित हो जाए तो भी अभियोजन पक्ष के
विरूद्ध कोई प्रतिकूल निष्कर्ष दे ने के लिए पर्याप्त नहीं होता।16

आगें अदालत ने यह भी कहा है कि उकसावे के जर्म


ु को किसी प्रकार की आपराधिक मानसिकता की जरूरत नहीं
है । तथापि इस मामले में खादिजा और कुबेर के पास एक मजबूत उद्धेश्य था|

इसलिए, याचिकाकर्ता के खिलाफ धारा 109 भारतीय दं ड संहिता के तहत दं डनीय अपराध बनता है।017 धारा 109

14
चित्रेश कुमार चोपड़ा बनाम राज्य (दिल्ली सरकार के एनसीटी), एआईआर 2010 एससी 1446
15
प्रवीण प्रधान बनाम उत्तरांचल राज्य और अन्र (2012) 9 SCC 734
16
रं गानायाकी ब. स्टे ट(2004) 12 एस सी सी 521
17
109. यदि अधिनियम का पालन किया जाता है तो अभियोग की सजा परिणाम में दी जाती है और जहां इसकी
सजा के लिए कोई भी प्रावधान नहीं किया जाता है । - जो कोई भी अपराध करता है वह करे गा, यदि अधिनियम का
पालन किया जाता है , तो वह घण
ृ ा के परिणाम में प्रतिबद्ध है , और कोई भी व्यक्त प्रावधान नहीं है। इस संहिता में
इस तरह के अपमान की सजा के लिए, अपराध के लिए प्रदान की गई सजा से दं डित किया जाना चाहिए।
अभियुक्त की तरफ से मेमोरियल

ृ ीय एमिटी राष्ट्रीय हिंदी आभासी न्यायालय प्रतियोगिता, 2019


तत

को आकर्षित करने के लिए दष्ु प्रेरण करने वाले की उपस्थिति की हमेशा आवश्यकता नहीं होती है । वह तब भी
उत्तरदायी बन जाता है जब वह तब उपस्थित नहीं होता जब अपराधी ने घणि
ृ त अपराध किया हो।
18

¶- इसके अलावा, खादीजा और कुबेर दोनों ही गुल है दर, रिहाना और अशफाक उल रज्जाक के खिलाफ आपराधिक
साजिश रचने के अपराध के लिए भारत दं ड संहिता की धारा 120 बी के लिए भी उत्तरदायी होंगे|19
120 क-आपराधिक षड्यंत्र की परिभाषा- जबकि दो या अधिक व्यक्ति-
1) कोई अवैध कार्य, अथवा 
2)कोई ऐसा कार्य, जो अवैध नहीं है ,अवैध साधनों द्वारा, करने या करवाने को सहमत होते हैं, ऐसी सहमति
आपराधिक षड्यंत्र कहलाती है :

 ¶- परं तु किसी अपराध को करने की सहमति के सिवाय कोई सहमति आपराधिक षड्यंत्र तब तक होगी, जब तक
की सहमति के अलावा कोई कार्य उसके अनुसरण में उस सहमति के एक या अधिकपक्ष द्वारा नहीं कर दिया
जाताl
 स्पष्टीकरण- यह तत्वहीन है कि अवैध कार्य ऐसी सहमति का चरम उद्देश्य है या उस उद्देश्य आनुषंगिक मात्र है l

मुद्दा ३- क्या गुल है दर को दफा ३०२ के तहत हत्या का दोषी ठहरना जाना चाहिए?

¶- यह विनम्रतापूर्वक माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया है , गुल है दर के द्वारा की गयीं दोनों हत्याएं
आकस्मिक भावावेश में आकर की गयीं हैं| उन्हें हत्या का नाम दिया जाना सही नहीं है | वाद समस्या के कृत्य साफ़
शब्दों में स्पष्ट करते हैं की खदीजा के चुगली करते ही गुल है दर ने चाक़ू उठाया और वो उस बाग़ में गया जहाँ
अशफ़ाक़ उल रज़्ज़ाक और रिहाना बैठे हुए थे| वह पहुंच कर गल ु है दर और अशफ़ाक़ उल रज़्ज़ाक के बीच गरम
बेहेस हुई जिसके आकस्मिक भावावेश में आकर गुल है दर ने अशफ़ाक़ उल रज़्ज़ाक को चाक़ू भोंक दिया, अथवा
रिहाना के विरोध करने के पश्चात ् गुल है दर ने उत्तेजित होकर रिहाना को भी चाक़ू भोंक दिए|

यह अदालत के समक्ष प्रस्तत


ु किया जाता है कि अभियक्
ु त को भारतीय दं ड संहिता की धारा 302 के तहत अपराध
के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। हालांकि धारा 300 के लिए शर्तें पूरी हो गई हैं, मामला धारा 300 के
अपवाद 1 के तहत आता है । इसलिए आरोपी केवल आपराधिक मानव वध के लिए दोषी ठराया जा सकता है
किन्तु हत्या के लिए नहीं|

18
नरू मोहम्मद मोमिन बनाम महाराष्ट्र राज्य के ए.आई.आर. 1971 SC 885, 1971 (Cr Lj 793 SC)
19
120 बी। आपराधिक साजिश की सजा - (१) जो कोई भी आपराधिक साजिश के लिए मौत की सजा, [आजीवन
कारावास] या दो साल या उससे अधिक समय के लिए सश्रम कारावास की सजा काट सकता है , जहां सजा के लिए
इस संहिता में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं किया गया है। इस तरह की साजिश को उसी तरह से दं डित किया जाना
चाहिए जैसे कि उसने ऐसा अपराध किया हो। (2) जो कोई भी आपराधिक साजिश के अलावा एक आपराधिक षड्यंत्र
के लिए एक पक्ष है , जो अपराध को दं डनीय है , जैसा कि पर्वो
ू क्त छह महीने से अधिक की अवधि के लिए या तो
जुर्माना या दोनों के साथ या तो विवरण के कारावास से दं डित किया जाएगा।
अभियुक्त की तरफ से मेमोरियल

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तत

यह मामला धारा ३०० के अपवाद १ के तहत आएगा और अपवाद ४ के तहत नहीं क्योंकि अपवाद ४ का मख्
ु य
आवश्यक आपसी लड़ाई है। इसलिए इस मामले में अभियुक्त का कृत्य धारा १ के अपवाद के तहत हत्या के
अधीन नहीं है |

¶- भारतीय दं ड संहिता धारा 300 के अपवाद के अनुसार १ -

अपवाद १- आपराधिक मानव वध कब हत्या नहीं है अपराधिक मानव वध हत्या नहीं है यदि अपराधी उस समय
जबकि वह गंभीर और अचानक प्रकोप से आत्म संयम की शक्ति से वंचित हो उस व्यक्ति की जिसने कि वह ट्रक
ओपन दिया था मत्ृ यु कार्य करें या किसी अन्य व्यक्ति की मत्ृ यु भूल या दर्घ
ु टना वर्ष कार्य करें ऊपर का अपवाद
निम्नलिखित परं तु को के अध्यधीन है।

¶- सर्वोच्च न्यायालय में के.एम. नानावती बनाम महाराष्ट्र राज्य,20 ने भारत में उकसावे से संबंधित कानून पर
विस्तार से चर्चा की और कहा कि-

(1) "गंभीर और अचानक" उकसावे का परीक्षण यह है कि क्या एक उचित व्यक्ति, समाज के एक ही वर्ग से
संबंधित है , जिसे अभियुक्त के रूप में रखा गया है , जिस स्थिति में आरोपी को रखा गया है , वह अपने आत्म-
नियंत्रण को खोने के लिए उकसाया जाएगा ।

(२) भारत में, शब्द और हाव-भाव कुछ परिस्थितियों में भी, किसी अभियुक्त को गंभीर और अचानक उकसावे
का कारण बन सकते हैं ताकि वह अपने कार्य को पहले अपवाद के भीतर ला सके। भारतीय दं ड संहिता के
300।

(३) पीड़ित व्यक्ति के पिछले कृत्य द्वारा बनाई गई मानसिक पष्ृ ठभूमि पर विचार किया जा सकता है कि
क्या बाद में किए गए कृत्य से अपराध हुआ और अपराध करने के लिए अचानक उकसाया गया।

(४) घातक वार को उस उकसावे से उत्पन्न होने वाले जोश के प्रभाव का स्पष्ट रूप से पता लगाया जाना
चाहिए, न कि उस जुनून के बाद जो समय की कमी से ठं डा हो गया है , या अन्यथा पूर्वेक्षण और गणना के
लिए जगह और गुंजाइश दे रहा है ।

¶- इस मामले में आरोपी को अपने भाई और उसकी पत्नी के बीच अवैध संबंध के बारे में पता चला जिसके कारण
वह भड़क गया। इसके अलावा अपनी पत्नी को अपने भाई के साथ पार्क में अकेले बैठे दे खकर उसने आत्म
नियंत्रण खो दिया और अचानक उत्तेजित होकार दोनों को मार डाला|

यह अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया गया है कि गुल है दर बहुत दयालु व्यक्ति था। उन्हें ट्रे ड यूनियन के अध्यक्ष
के रूप में नियक्
ु त किया गया था। वह आर्यगढ़ में एक प्रसिद्ध और सम्मानित व्यक्ति थ i l
भारतीयसाक्ष्य अधिनियम की धारा 53 कहती है कि-
आपराधिक मामलों में, पिछले अच्छे चरित्र प्रासंगिक हैं। - आपराधिक कार्यवाही में , यह तथ्य कि अभियक्
ु त व्यक्ति
अच्छे चरित्र का है , प्रासंगिक है ।

20
AIR 1962 SC 605, 1962 (2 SCJ 347)
अभियुक्त की तरफ से मेमोरियल

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तत

¶- चोट की प्रकृति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि अधिनियम पूर्व नियोजित नहीं था और इसलिए चाकू का झटका
जुनून की गर्मी में था। दोनों मत
ृ क गंभीर और अचानक उकसावे के माध्यम से मर गए। अशफाक उल रज्जाक की
मौत चाकू के एक वार से हुई थी, लेकिन अंग प्रत्यारोपण की सर्जरी में विफलता और कई चोटों के कारण रिहाना
की मौत हो गई|
आरोपी ने उकसावे में आकर एक बार चाक़ू से वार किया जो की अशफाक उल रज्जाक की मत्ृ यु का कारन हो
सकती है लेकिन रिहाना की मत्ृ यु का कारन सिर्फ और सिर्फ गुल है दर के किये वार पर आधारित नहीं हो सकती
वाद समस्या साफ़ शब्दों में स्पष्ट करती है की रिहाना की मत्ृ यु विभिन्न छोटो के कारण हुई है |

¶- काली राम बनाम हिमाचल प्रदे श राज्य21 में, न्यायालय ने कहा कि हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली में
मूलभूत सिद्धांतों में से एक यह है कि अभियुक्त को निर्दोष माना जाता है जब तक कि अभियोजन पक्ष कुछ ऐसे
सबत
ू पेश नहीं करता है जो अभियक्
ु त के अपराध को साबित करता है । जब अदालत अभियक्
ु त के अपराध के बारे
में उचित संदेह मानती है , तो संदेह का लाभ अभियुक्त को जाता है।

अभियोजन पक्ष को उचित संदेह से परे दिखाना होगा कि मत्ृ यु का अंतिम कारण अभियुक्तों द्वारा की गई चोट
थी।22

¶-बी आर श्रीकांतैया बनाम मायसोर राज्य के मामले में, अदालत ने कहा कि-

मत
ृ क पर 24 चोटें थीं और उनमें से 21 गहरे थे। वे उसके सिर, गर्दन और कंधे पर थे। चँ कि
ू , अधिकांश चोटों में
महत्वपूर्ण अंग थे और जो हथियार इस्तेमाल किए गए थे, वे तेज थे, यह माना जाता था कि शारीरिक चोट लगने
के इरादे की स्थापना की गई थी; इसे धारा 300 के दायरे में लाना|23
क्रोध एक ऐसी भावना है जो किसी भी अच्छे या बुरे व्यक्ति को भी दर्बु ल बना दे और न चाहते हुए भी वो
व्यक्ति क्रोध की गर्मी में कुछ ऐसा कर दे जो उसके स्वभाव में ही नहीं है , इसीलिए किसी अन्य अपराध की
आकस्मिक भावावेश में आकर की गयी हत्या से तुलना नहीं की जा सकती|

प्रार्थना

21
(1973) 2 SCC 808
22
दशरथ सिंह बनाम यू.पी. 2004 7 SCC 408, AIR 2004 SC 4488
23
AIR 1958 SC 672, (1958) CrLj 1251(SC)
अभियुक्त की तरफ से मेमोरियल

ृ ीय एमिटी राष्ट्रीय हिंदी आभासी न्यायालय प्रतियोगिता, 2019


तत

मौजद
ू ा मामले के तथ्यों के प्रकाश में , जो मद्द
ु े उठाए गए एवं तर्क उन्नत किए गए एवं

अधिकारियों का हवाला दिया गया, इस न्यायालय से अनुरोध है की-

1- अखलाख उल रज़्ज़ाक को कबीर का संरक्षक घोषित किया जाए।

2- कुबेर और खदीजा को दफा 109 हत्या का बढ़ावा दे ने के आरोप में दोषी करार करा जाए।

3- गुल है दर को दफा ३०२ के के आरोप से बरी किया जाए|

तथा एवं कोई अन्या राहत प्रदान की जाए जो की नये, न्यायसम्य एवं अच्छे विवेक के

हित में समझा जाए.

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