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अभियोजन की तरफ से मेमोरियल

ृ ीय एमिटी राष्ट्रीय हिंदी आभासी न्यायालय प्रतियोगिता, 2019


तत

ृ ीय एमिटी राष्ट्रीय हिंदी आभासी न्यायालय प्रतियोगिता, 2019


तत

टीम कोड : HMC- 023

सम्मानित सत्र न्यायलय, आर्यगढ़

एस.सी. क्र.._____/ 2019

राज्य………………………………………..(अभियोजनकर्ता)

बनाम

गुल है दर और अन्य……………………………….(अभियुक्त)

दं ड प्रक्रिया संहिता की धारा 177 के अंतर्गत

अभियोजन की तरफ से मेमोरियल


अभियोजन की तरफ से मेमोरियल

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विचाय सूचि

 संक्षिप्त शब्दों की सूची………………………………..3

 प्रधिकारी की सच
ू ी…………………………………….4-5

 क्षेत्राधिकारी का कथन…………………………………6

 तथ्य विलेशव…………………………………………7-8

 मद्द
ु े…………………………………………………….9

 तर्कों का सार………………………………………….10-11

 लिखित तर्क ……………………………………………12-19

 प्रार्थना………………………………………………….20
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संक्षिप्त शब्दों की सूची

ब. - बनाम
इला. - इलाहाबाद
ए आइ आर- ऑल इंडिया रिपोर्टर
एल जे - लॉ जर्नल
एन ओ सी - नोट्स ओफ़ के सिस
एस सी - सुप्रीम कोर्ट
क्रि एल जे - क्रिमिनल लॉ जर्नल
एस सी सी - सुप्रीम कोर्ट के सिस
एन सी टी ओफ़ दिल्ली - नेशनल टेरिटरी ओफ़ दिल्ली
कट - कटक
आर एल डब्ल्यु - राजस्थान लॉ वीकली
आल - इलाहाबाद
ऑल ई आर - ऑल इंग्लेन्ड रिपोर्टर
सी बी आई - सेंट्रल ब्युरो ओफ़ इन्वेस्टिगेशन
सुप्प - सुप्रा
आई ए - इन्टरलोक्युटरी एप्लिके शन
एम्प. - एम्परर
कल. - कलकत्ता
ला. - लाहौर
यू.एस. - युनाइटेड स्टेट्स
क्यू. बी - क्विन्स बेंच
कोक्स सी. सी. - कोक्स क्रिमिनल के सिस
मद्रा.- मद्रास
पी. सी. - प्रिवि काउन्सिल
यू.पी - उत्तर प्रदेश
डी.एल.आर. - दिल्ली लॉ रिपोर्ट
नाग. - नागपुर
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एस.सी.आर. - सुप्रीम कोर्ट रिपोर्टर

प्रधिकारी की सच
ू ी
o सीबाती पाधी और एक और वी। चाइल्ड वेलफेयर कमेटी, कटक और अन्य 2013 Cri Lj 3500
o नित्य आनंद राघवन बनाम स्टे ट ऑफ़ दिल्ली ऑफ़ 2017 2017 SCC 454
o ओमप्रकाश बनाम बाल कल्याण बोर्ड 1980 CC OnLine Del। 31।
o अर्ल ने v इंडियन काउं सिल फॉर चाइल्ड वेलफेयर एंड अदर 2006 SCC ओनलीन डेल। 1592
o स्वामी प्रहलाददास वि। राज्य के म.प्र। एंड एम।, 1995 सपोर्ट। (३) एससीसी ४
o बिनायेन्द्र चन्द्र पांडे व एमपेरर (1936) 63 कल 929
o चित्रेश कुमार चोपड़ा v stte (सरकारी एनसीटी दिल्ली सरकार) AIR 2010 SC 1446
o गुजरात के राज्य बनाम प्रयुमन रमन लाल मेहता (1999) सीआर एलजे 736 (गुज।)
o जसोबंत नारायण महापात्र बनाम ओरिसा राज्य (2009) सीआर एलजे 1043 (ओरी)
o राजीव नोग बनाम अस्साम की स्थिति (2011) सीआर एलजे 399 (गौ)
o रं गनायकी वी राज्य द्वारा पलि
ु स निरीक्षक (2004) 12 एससीसी 521
o हरपाल सिंह बनाम दे विद
ं र सिंह ए आई आर 1997 एस सी 2914

o पाडाला वीरा रे डी बनाम स्टे ट अफ आंध्रा प्रदे श और अन्या 1989 सुप्प (2) एस.सी.सी. 70 6 बेस्ट,
संस्करण 12, सैक्शन 439, 440, 441-451, प ृ 372-3821
o गम्भीर बनाम स्टे ट ओफ महाराष्ट्र (1982) 2 एस.सी.सी. 351 3°ए.आई.आर. 1957 एस.सी. 381
o सुखलाल सरकार बनाम भारत संघ (2012) 5 SCC 703, (2012) Cr Lj 3032 (SC)
o कन्है यालाल ए.आई.आर. 1952 भोपाल 21
o कंु दरपु (1962) 1 सीआर एलजे 261
o जगजीत सिंह बनाम हिमाचल प्रदे श 1994 सीआर। एलजे। 233 '1994 SCC (Cri) 176
o पप्पाचन बनाम केरे ला 1994 Cr Lj 1765 (के.आर.)

o के.एम. नानावती बनाम महाराष्ट्र राज्य AIR 1962 SC 605, 1962 (2 SCJ 347)
o केरे ला की माधवन बनाम राज्य १ ९ ६६ केर लेट ११२
o खैराती राम, AIR 1953 पुंज। 241
o लोचन (1886) 8 All. 635
o सोहराब (1924) 5 लाह 67
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o मैकिनी बनाम सरकारी अभियोजन 1942 AC 1 (9), 1941 3 All ER 272 (HL)
o गुजरात AIR 1962 गुजरात का गुरिया बुचा बनाम राज्य। 39
o थंगैया बनाम तमिलनाडु राज्य 2005 Cr LJ 684; AIR 2005 SC 1142; 2005 (10) SCALE 637

पुस्तकें

 रतनलाल और धीरजलाल के अपराध के नियम - भारतीय दं ड संहिता, खंड I, भारत के कानून हाउस,
दिल्ली, २ n एडीएन, २०१३ पर एक टिप्पणी
 ’रतनलाल और धीरजलाल की अपराध की विधि - भारतीय दं ड पर एक टिप्पणी
 कोड, वॉल्यम
ू II, भारत लॉ हाउस, दिल्ली, 27 एडन।, 2013
 जस्टिस वी। वी। राघवन, अपराधों का कानन
ू , इंडिया लॉ हाउस, नई दिल्ली, 5 वां एड। 2001।
 के I विभूति, पी। एस। पिल्लई का आपराधिक कानून, लेक्सिस नेक्सिस, 12 वां एड। 2014।
 डॉ। (सर) हरि सिंह गौर, भारतीय दं ड कानून, कानून प्रकाशक (इंडिया) प्रा।
 लिमिटे ड, 11 वां संस्करण, 2011
 जे सी स्मिथ, स्मिथ और होगन आपराधिक कानून - मामले और सामग्री, लेक्सिसनेक्सिस बटरवर्थ्स, 8
एनटीएन, 2007
 सी के ठक्कर wani टकवानी ’, आपराधिक प्रक्रिया, लेक्सिस नेक्सिस, तीसरा संस्करण, २०१३
 एस.एन. मिश्रा, द कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर, सेंटरल लॉ पब्लिकेशंस, 18 वां एडन।, 2013
 आर.वी. केलकर, आपराधिक प्रक्रिया, ईस्टर्न बुक कंपनी, 5 वीं संस्करण।, 2008
 रतनलाल और धीरजलाल, द लॉ ऑफ़ एविडेंस, लेक्सिस नेक्सिस, 24 वाँ एड।, नागपुर, 2011।
 एम। मोनीर, द लॉ ऑफ़ एविडेंस, 14 वें संस्करण, यनि
ू वर्सल लॉ पब्लिशिंग कंपनी लिमिटे ड, 2011
 कैथ होडकिं सन मुस्लिम फॅमिली लॉ आ सौरसेबूक स्र ्रोम हे ल्म लंदन एंड कैनबेरा 1984
 अक़ील अहमद मोहम्मडन लॉ सेंट्रल लॉ एजेंसी 26th एडिशन 2016
 सईद खालिद रशीद मुस्लिम लॉ ईस्टर्न बुक कंपनी लखनऊ 5th एडिशन 2016
 आलमगीर मुहम्मद सेराजुद्दीन मुस्लिम फॅमिली लॉ सेक्युलर कोर्ट्स एंड मुस्लिम वीमेन ऑफ़ साउथ
आईसीआ ऑक्सफ़ोर्ड यनि
ू वर्सिटी प्रेस, 2011
 बी र वर्मा कमें टरीएस ों मोहम्मडन लॉ लॉ पब्लिशर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटे ड 7th एडिशन 1997
विधि

 भारतीय साक्ष्य संहिता 1872


 भारतीय दं ड संहिता 1860
 दं ड प्रक्रिया अधिनियम 1973
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ओनलाइन डाटाबेस

 मनुपात्रा

 सुप्रीम कोर्ट केसस


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क्षेत्राधिकारी का कथन

सम्मानित आर्यगढ़ सत्र अदालत के पास कथित मामले में मूल न्यायाधिकार है । दं ड प्रक्रिया

संहिता 1973 की धारा 177 के अनुसार:

“प्रत्येक अपराध की जाँच अौर विचारण मामूली तौर पर एसे न्यायालय द्वारा किया जायेगा

जिस की स्थानीय अधिकारिकता के अंदर वह अपराध किया गया है ।"1

1
दं ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 177
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तथ्य विलेशव

 आर्यगढ नामक शहर में श्री हरीश चंद्र एक नामी ज़मींदार था जिसके कारखाने में श्री

अखलाख उल रज़ाक काम करता था तथा वह श्रमिक संघ का नेता भी थाl

 अखलाक उल रज़ाक की तीन संताने थी जिनमें से अशफाक उल्ला उसके पहले विवाह

से जन्मा था तथा खदीजा एवं गुल है दर उसके दस


ू रे विवाह के उपरांत हुए l

 हरिश चंद्र की पत्र


ु ी के प्रेम संबंध अखलाक रज़ाक के पत्र
ु अशफ़ाक उल रज़ाक थे

जिसकी जानकारी के पश्चात हरिश चंद्र ने अखलाख उल रज़ाक को काम से निष्कासित

कर दिया था, जिसका कारण उन्होंने व्यक्तिगत रखाl

 अखलाख उल रजाक और बाकी कर्मचारियों ने किराए पर जमीन लेकर कृषि का काम

शुरू किया जिसके परिणाम स्वरूप कर्मचारी वर्ग दो भागों में बट गया, एक भाग

अखलाख उल रज़ाक के साथ था और दस


ू रा गल
ु है दर के साथ l

 गुल है दर को श्रमिक संघ का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया था, वो तारा ए हिंद का

उभरता हुआ भावी युवा नेता बन गया उसकी बढ़ती लोकप्रियता को दे खकर हरिश चंद्र

ने अपनी पुत्री रूपा का विवाह उससे करा दियाl

 रूपा को विवाह के उपरांत रिहाना कहा जाने लगा, विवाह के 1 वर्ष के अंतराल में ही

कबीर का जन्म हुआ l

 इन सब से हटकर हरिश चंद्र के पत्र


ु कुबेर एवं अखलाक उल रज़ाक की पत्र
ु ी खदीजा ने

भी विवाह कर लियाl

 अशफाक और रिहाना के बीच अवैध प्रेम संबंध विवाह के बाद भी जारी रहे l
10 | P a g e MEMORIALONTHEBEHALFOFRESPONDENT

1st NATIONAL MOOT COURT COMPETITION, 2019

 गुल है दर की बहन खदीजा ने रिहाना और अशफाक के बीच अवैध प्रेम संबंधों की

जानकारी गुल है दर को दी, जिसे सुनते ही गल


ु है दर ने चाकू उठाया और वह उस बाग

में गया जहां रे हाना और अशफाक बैठे हुए थेl

 वहां गल
ु की तू तू मैं मैं अशफाक से हुई धीरे -धीरे मोखिक लड़ाई शारीरिक हिंसा में

तब्दील हो गई l

 गस्
ु से में तिल मिलाए गल
ु है दर ने अशफाक  को चाकू भोंक दिया रिहाना के विरोध

जताते ही गल
ु ने रिहाना को भी चाकू भोंक दियाl

 दोनों को खून से लथपथ अवस्था में अस्पताल पहुंचाया गया अशफाक कि वहां पहुंचते

ही मौत हो गई अथवा रिहाना ने अंग प्रत्यारोपण सर्जरी की विफलता और विभिन्न

चोटों के कारण दम तोड़ दियाl

 कुबेर और खदीजा पर गल
ु है दर को हत्या के लिए उकसाने के लिए मक
ु दमा चलाया

गयाl
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मद्द
ु े

मद्द
ु ा 1 - कबीर का संरक्षक कौन होगा: हरीश चंद्र या अख़लाक़ उल रज़्ज़ाक?

मुद्दा 2- क्या कुबेर और खदीजा को दफा 107 और 109 के तहत कत्ल को उकसाने

के लिए दोषी बनाया जाना चाहिए?

मुद्दा 3- क्या गुल है दर को दफा ३०२ के तहत हत्या का दोषी ठहरना जाना

चाहिए?
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तर्कों का सार

मुद्दा 1 - कबीर का संरक्षक कौन होगा: हरीश चंद्र या अख़लाक़ उल रज़्ज़ाक?

कबीर का पालन-पोषण हिंद ू मान्यताओं और रीति-रिवाजों के तहत हुआ था , जिसे वह हरीश

चंद्र से ही प्राप्त कर सकता था। । यह उन तथ्यों से स्पष्ट होता है कि हरीश चंद्रा आर्थिक रूप

से स्थिर थे, जबकि अशफाक उल रज्जाक जिन्होंने किराए पर जमीन ली थी, आर्थिक रूप से

संघर्ष कर रहे थे। इसलिए हरीश चंद्रा एक बेहतर अभिभावक होंगे। संरक्षकता तय करने में

अभिभावक का चरित्र और क्षमता बहुत महत्वपर्ण


ू भमि
ू का निभाता है |

मुद्दा 2- क्या कुबेर और खदीजा को दफा 107 और 109 के तहत कत्ल को उकसाने के लिए

दोषी बनाया जाना चाहिए?

इस माननीय अदालत में विनम्रतापूर्वक यह दलील पेश की जाती है कि अशफ़ाक उल रज्जाक

और ख़दीजा पर हत्या के लिए उकसाने, आपराधिक साजिश रचने के आरोप बेबुनियाद और

अस्पष्ट हैं| भारतीय दं ड संहिता की धारा 107 के तहत अपराध स्थापित करने के लिए,

अभियुक्त की ओर से आपराधिक मनःस्थिति साबित करना आवश्यक है | इस मामले में , यह

कहीं नहीं उल्लेख किया गया है कि खदीजा द्वारा किया गया कार्य गुल है दर की हत्या करने के

लिए उकसाने के मकसद से किया गया था| आपराधिक मामलों में सबत
ू का भार अभियक्
ु त पर

कभी स्थानांतरित नहीं होता और अपनी निर्दोषिता साबित करने के लिए या अपनी प्रतिरक्षा में

साक्ष्य पेश करने के लिए या कोई कथन करने के लिए वे किसी बाध्यता के अधीन नहीं होतें |
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मद्द
ु ा 3- क्या गल
ु है दर को दफा ३०२ के तहत हत्या का दोषी ठहरना जाना चाहिए?

यह विनम्रतापर्व
ू क माननीय अदालत के समक्ष प्रस्तत
ु किया जाता है कि, अभियक्
ु त को उसके भाई

अशफाक उल रज्जाक और अपनी पत्नी रिहाना की हत्या के लिए भारतीय दं ड संहिता की धारा 302 के

तहत अपराध के लिए दं डनीय है । इस अपराध में भारतीय दं ड संहिता की धारा 300 में दी गई शर्तें परू ी

होती हैं। अपराध भारतीय दं ड संहिता की धारा ३०० के किसी भी अपवाद के तहत नहीं होगा क्योंकि

अभियुक्त के पास शांत होने के लिए पर्याप्त समय था। इसलिए तथाकथित उकसावा अचानक नहीं थे।
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लिखित तर्क

मुद्दा 1 - कबीर का संरक्षक कौन होगा: हरीश चंद्र या अख़लाक़ उल रज़्ज़ाक?


¶-यह विनम्रतापूर्वक माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया है कि हरीश चंद्रा कबीर के संरक्षक
होंगे| वाद समस्या के बिंद ु साफ़ स्पष्ट करते हैं की कबीर का जन्म और उसकी परवरिश परू ी तरह से
हिन्द ू परिवार और हिन्द ू मूल्यों के बीच हुई है कही भी ये ज़िक्र नहीं है की कबीर को अपने नाना हरीश
चंद्र के घर कोई तकलीफ या कोई और परे शानी थी|

¶-संरक्षक और वार्ड अधिनियम की धारा 7 में प्रावधान है कि अभिभावक की नियुक्ति के लिए, सर्वोपरि
विचार नाबालिग का कल्याण है । एक बच्चे की हिरासत के मामले में , बच्चे का कल्याण और सर्वोत्तम
हित सर्वोपरि है ।2

¶-एक बच्चे की संरक्षकता का निर्धारण करते समय एक व्यक्ति का चरित्र और क्षमता एक महत्वपूर्ण
भमि
ू का निभाता है | न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह यह दे खे कि अभिभावक नाबालिग बच्चे के
कल्याण और सर्वोत्तम हित के लिए होगा। अदालत को बच्चे की शारीरिक और भलाई के साथ-साथ
अभिभावकों के चरित्र और योग्यता पर भी विचार करना होगा।3

¶- इसे माननीय अदालत के समक्ष प्रस्तत


ु किया जाता है , अख़लाक़ उल रज्जाक ने काम करने के लिए
किराए पर जमीन ली। इसलिए हम यह नहीं कह सकते कि वह एक बच्चे की दे खभाल करने और उसे
उचित शिक्षा दे ने और उसकी आवश्यकताओं को परू ा करने में परू ी तरह से सक्षम है । हरीश चंद्र शहर का
एक नामी एवं रसख
ू दार ज़मींदार है जो की ना केवल सबसे बड़े कारखाने का मालिक है अपितु हिन्द ू
राजनैतिक संघठन राष्ट्रीय रक्षा दल के कद्दावर नेता भी है |

¶- इस मामले में यह कहीं नहीं कहा गया है कि रूपा ने अपना धर्म बदल लिया। हम केवल इस तथ्य
से कि उसने अपना नाम रूपा से बदलकर रिहाना रख लिया यह अनुमान नहीं लगा सकते हैं कि उसने
इस्लाम अपना लिया था|

2
सीबाती पाधी और एक और वी। चाइल्ड वेलफेयर कमेटी, कटक और अन्य 2013 Cri Lj 3500, नित्य आनंद
राघवन बनाम स्टे ट ऑफ़ दिल्ली ऑफ़ 2017 2017 SCC 454, ओमप्रकाश बनाम बाल कल्याण बोर्ड 1980 CC
OnLine Del। 31।
3
अर्ल ने v इंडियन काउं सिल फॉर चाइल्ड वेलफेयर एंड अदर 2006 SCC ओनलीन डेल। 1592
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¶-यह तथ्यों से स्पष्ट है कि कबीर का पालन-पोषण हिंद ू मान्यताओं और रीति-रिवाजों के तहत हुआ
था। यह स्पष्ट है कि बच्चे के पिता, गुल है दर इसके बारे में अच्छी तरह से जानते थे और इसलिए
उनकी सहमति भी अस्पष्ट है ।

¶- इसके अलावा, इस मामले के तथ्यों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि गुल है दर और रिहाना


दोनों रिहाना के परिवार के साथ रहते थे। जब हरीश चंद्रा ने मजदरू संघ के नेता के पद से अख़लाक़
उल रज़ाक को निकाल दिया, तो उन्होंने अख़लाक़ उल रज्जाक के बेटे गुल हे दर को इस पद के लिए
नियक्
ु त किया। मस्लि
ु म श्रमिक समाज संगठन दो प्रमख
ु ों में विभाजित था, एक गल
ु है दर के अधीन और
दस
ू रा अखलाक उल रज्जाक से। पिता और पुत्र का दागदार संबंध तथ्यों से स्पष्ट है ।
इसलिए बच्चे के कल्याण और उसकी अच्छी परवरिश के लिए हरीश चंद्रा को संरक्षकता प्रदान की जानी
चाहिए। कबीर की मां और पिता दोनों का हरीश चंद्र के साथ स्वस्थ संबंध था, न कि अखलाक उल
रज्जाक से|

मुद्दा 2- क्या कुबेर और खदीजा को दफा 107 और 109 के तहत कत्ल को उकसाने के लिए दोषी बनाया
जाना चाहिए?

¶-इस माननीय अदालत में विनम्रतापूर्वक यह दलील पेश की जाती है कि अशफ़ाक उल रज्जाक और
ख़दीजा पर हत्या के लिए उकसाने, आपराधिक साजिश रचने के आरोप बेबुनियाद और अस्पष्ट हैं|

¶-यह माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है कि, मात्र तथ्यों या सत्य को बताना भड़काने
के लिए उत्तरदायी नहीं होगा| भारतीय दं ड संहिता की धारा 107 के तहत अपराध स्थापित करने के
लिए, अभियुक्त की ओर से आपराधिक मनःस्थिति साबित करना आवश्यक है |4 इस मामले में , यह कहीं
नहीं उल्लेख किया गया है कि खदीजा द्वारा किया गया कार्य गुल है दर की हत्या करने के लिए उकसाने
के मकसद से किया गया था|

¶-वाद समस्या स्पष्ट रूप से खदीजा द्वारा बताए गए कथन के पीछे की सत्यता बताता है | रूपा जिसे
बाद में रिहाना नाम दिया गया था, अशफाक उल रज्जाक के साथ प्यार करती थी, लेकिन उसके पिता
ने अपने राजनीतिक मकसद को पूरा करने के लिए उसकी शादी गुल है दर से कराई, जो खादीजा और
अशफाक उल रज्जाक का सौतेला भाई था| अपने भाई की आँखों पर से पर्दा उठाने के लिए खदीजा ने
4
स्वामी प्रहलाददास वि। राज्य के म.प्र। एंड एम।, 1995 सपोर्ट। (३) एससीसी ४
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उसे रिहाना और अशफाक उल रज्जाक के बीच के अवैध संबंधों के बारे में सच्चाई बताई| यह साबित
नहीं करता है कि कृत्य के पीछे का मकसद हत्या को उकसाना था|

¶-इस माननीय अदालत में विनम्रतापूर्वक यह दलील पेश की जाती है कि, आपराधिक मामलों में सबूत
का भार अभियुक्त पर कभी स्थानांतरित नहीं होता और अपनी निर्दोषिता साबित करने के लिए या
अपनी प्रतिरक्षा में साक्ष्य पेश करने के लिए या कोई कथन करने के लिए वे किसी बाध्यता के अधीन
नहीं होतें |5

¶-यह आवश्यक नहीं है कि कर्ता को उकसाने के लिए वास्तविक शब्दों का उपयोग किया जाए। शब्दों
को विशेष रूप से परिणाम का विचारोत्तेजक होना चाहिए। परिणाम को भड़काने में सक्षम होने के लिए,
एक उचित निश्चितता जो कि अपराध किया जाना चाहिए, आरोपी द्वारा उसके शब्दों या आचरण द्वारा
सुझाया जाना चाहिए।6

¶-किसी अपराध के लिए उकसाना और प्रतिबद्ध अधिनियम के बीच घनिष्ठ संबंध होना चाहिए|7 अपराध
के मामले में अभियुक्त का सक्रिय प्रदर्शन आवश्यक है ।8 यह साबित करने की जरूरत है कि आरोपी ने
जानबझ
ू कर ऐसा कुछ किया है , जो एक चीज करने के लिए दस
ू रे को उकसाने के लिए हो।9

इसे अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है , जैसा कि पहले कहा गया है , अपराध के लिए उकसाने के
लिए खदीजा और उसके पति की ओर से कोई सक्रिय भागीदारी नहीं थी|
उकसावे को उस चीज़ के संदर्भ में होना चाहिए जो उस चीज़ के संदर्भ में है और उस चीज़ के लिए नहीं
है जिसकी संभावना उस व्यक्ति द्वारा की गई है जो उकसाया गया है । यह तभी परू ा होता है जब यह
शर्त परू ी हो जाती है कि कोई व्यक्ति भड़काने के लिए दोषी हो सकता है ।10 भीषण अपराध के लिए
खदीजा और कुबेर की ओर से ऐसा कोई मकसद नहीं था|

5
बिनायेन्द्र चन्द्र पांडे व एमपेरर (1936) 63 कल 929
6
चित्रेश कुमार चोपड़ा v stte (सरकारी एनसीटी दिल्ली सरकार) AIR 2010 SC 1446
7
गुजरात के राज्य बनाम प्रयुमन रमन लाल मेहता (1999) सीआर एलजे 736 (गुज।)
8
जसोबंत नारायण महापात्र बनाम ओरिसा राज्य (2009) सीआर एलजे 1043 (ओरी)
9
राजीव नोग बनाम अस्साम की स्थिति (2011) सीआर एलजे 399 (गौ)
10
रं गनायकी वी राज्य द्वारा पलि
ु स निरीक्षक (2004) 12 एससीसी 521
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¶-हरपाल सिंह बनाम दे विद


ं र सिंह में इस्तेमाल किए जाने वाले सिद्धांत को संदर्भित किया जा सकता है ,
जिसमें न्यायालय ने यह निर्धारित किया है कि एक अधिनियम को करने के लिए केवल उकसाना एक
मंशा दिखाने के लिए आवश्यक नहीं है ।11

¶-इसलिए, यह प्रस्तुत किया जाता है कि प्रत्यक्ष या परिस्थितिजन्य साक्ष्य द्वारा अभियोजन पक्ष को
खादीजा और कुबेर के सामान्य इरादे को साबित करने के लिए पर्याप्त, विश्वसनीय और निर्णायक कुछ
भी नहीं मिला है और इसलिए, पूर्व नियोजित व्यवस्था को साबित नहीं किया जा सकता है ।

¶-सबसे दिलचस्प बात यह है कि वर्तमान मामले में , यह स्वयं की बनाई कहानी से स्पष्ट है कि
खादीजा और कुबेर अपराध का अनम
ु ान नहीं लगा सकते थे और उन्हें यह भी पता नहीं था कि उस
समय क्या हुआ था जब अपराध हुआ था।

¶-जब अपराध से आरोपित व्यक्तियों की दोषिता या निर्दोषता के गम्भीर प्रश्न पर विचार किया जा रहा
हो, अधिकरणों के मार्गदर्शन के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन किए जाने का सुझाव दिया गया
है ।12

1. अभियुक्त के विरूद्ध आरोप साबित किये जान से सम्बंधित प्रत्येक आवश्यक बात

को साबित करने का भार अभियोजन पक्ष पर होता है ।

2. साक्ष्य ऐसा होना चाहिए जो किसी नैतिक निश्चितता तक अभियुक्त की दोषिता

के संबंध में प्रत्येक युक्तियुक्त संदेह को अपवउर्जित कर दो।

3. संदेह के मामलों में सिद्धदोष ठहरने की तल


ु ना में दोषमक्
ु त करना अधिक उचित

होता है , चूंकि यह बेहतर होता है कि कोई दोषी व्यक्ति बच जाये बमुकाबले इसके कि एक निर्दोष
व्यक्ति कष्ट भोगे।

11
ए आई आर 1997 एस सी 2914
12
पाडाला वीरा रे डी बनाम स्टे ट अफ आंध्रा प्रदे श और अन्या 1989 सुप्प (2) एस.सी.सी. 70 6 बेस्ट, संस्करण I 12,
सैक्शन 439, 440, 441-451, प ृ 372-3821
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4. अपराध के सार (बवतचने कमजपबपि) का सबूत साफ और सुस्पष्ट होना चाहिए।

अपचाश्तिा की परिकल्पना को सारे साबित तथ्यों से सुसंगत होना चाहिए।13

¶-यह माननीय अदालत के समक्ष प्रस्तु त किया जाता है कि सभी तथ्यों को दे खते हुए, खादीजा और
कुबे र की ओर से उकसाने के लिए कोई सख्त सबूत नहीं है । इसके अलावा, वर्तमान मामले में , अपराध
को साबित करने के लिए आवश्यक शर्तें पूरी नहीं हुई हैं |

मु द्दा 3 -क्या गुल है दर पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या का आरोप लगाया जाएगा?

¶-यह विनम्रतापूर्वक माननीय अदालत के समक्ष प्रस्तु त किया जाता है कि, अभियु क्त को उसके भाई अशफाक
उल रज्जाक और अपनी पत्नी रिहाना की हत्या के लिए भारतीय दं ड सं हिता की धारा 302 के तहत अपराध के
लिए दं डनीय है ।

¶-इस अपराध में भारतीय दं ड सं हिता की धारा 300 में दी गई शर्तें पूरी होती हैं । इसके अलावा अपराध धारा
300 के किसी भी अपवाद में नहीं आता है |
भारतीय दं ड संहिता की धारा 300
. हत्या- एटस्मिनपश्चात ् अपवादित दशाओं को छोड़कर अपराधिक मानव वध हत्या है , यदि वह कार्य, जिसके
द्वारा मत्ृ यु कारित हो गई हो, तो मत्ृ यु कारित करने के आशय से किया गया हो, अथवा
 दस
ू रा - यदि वह ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो जिससे अपराधी जनता हो कि उस
व्यक्ति की मत्ृ यु कारित करना संभाव्य है , जिसको वह अपहानि कारित की गई है , अथवा
तीसरा - यदि वह किसी व्यक्ति को शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो और वह शारीरिक
क्षति, जिससे कारित करने का आशय हो, प्रकृति के मामूली अनुक्रम में मत्ृ यु कारित करने के लिए पर्याप्त है ,
अथवा 
चौथा- यदि कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो कि वह कार्य इतना आसन संकट है की पूरी अधिसम्भाव्यता
है कि वह मत्ृ यु कारित कर ही दे गा या एसी शारीरिक क्षति कारित कर ही दे गा जिस से मत्ृ यु कारित होना संभव्या
हे और वह मत्ृ यु कारित करने का पूर्वोतक रूप की क्षति कारित करने की जोखिम उठाने के लिए किसी प्रतिहे तु के
बिना ऎसा कार्य करे l
¶-"अचानक" का अर्थ एक ऐसी कार्रवाई है जो अभियु क्तों को भड़काने के लिए त्वरित और अप्रत्याशित होनी
चाहिए।14

¶-भारतीय दं ड संहिता की धारा 300 के अपवाद 1 ने उल्लेख किया है , यह अपवाद केवल तब लागू किया

13
गम्भीर बनाम स्टे ट ओफ महाराष्ट्र (1982) 2 एस.सी.सी. 351 3°ए.आई.आर. 1957 एस.सी. 381

14
सख
ु लाल सरकार बनाम भारत संघ (2012) 5 SCC 703, (2012) Cr Lj 3032 (SC)
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जा सकता है जब उकसावे दोनों गंभीर और अचानक हो।यदि उकसाना अचानक है लेकिन गंभीर नहीं, या गंभीर है
15
लेकिन अचानक नहीं तो अपराधी इस अपवाद का लाभ नहीं उठा सकता है । गंभीर और अचानक प्रकोपन
और आक्रोश जताने के ढं ग में उचित संबंध साबित होना चाहिए|16
¶-सर्वोच्च न्यायालय में के.एम. नानावती बनाम महाराष्ट्र राज्य,17 ने भारत में उकसावे से संबंधित
कानन
ू पर विस्तार से चर्चा की और कहा कि-

(1) "गंभीर और अचानक" उकसावे का परीक्षण यह है कि क्या एक उचित व्यक्ति, समाज के एक


ही वर्ग से संबंधित है , जिसे अभियक्
ु त के रूप में रखा गया है , जिस स्थिति में आरोपी को रखा गया
है , वह अपने आत्म-नियंत्रण को खोने के लिए उकसाया जाएगा ।

(२) भारत में , शब्द और हाव-भाव कुछ परिस्थितियों में भी, किसी अभियक्
ु त को गंभीर और अचानक
उकसावे का कारण बन सकते हैं ताकि वह अपने कार्य को पहले अपवाद के भीतर ला सके। भारतीय
दं ड संहिता के 300।

(३) पीड़ित व्यक्ति के पिछले कृत्य द्वारा बनाई गई मानसिक पष्ृ ठभूमि पर विचार किया जा सकता
है कि क्या बाद में किए गए कृत्य से अपराध हुआ और अपराध करने के लिए अचानक उकसाया
गया।

(४) घातक वार को उस उकसावे से उत्पन्न होने वाले जोश के प्रभाव का स्पष्ट रूप से पता लगाया
जाना चाहिए, न कि उस जुनून के बाद जो समय की कमी से ठं डा हो गया है , या अन्यथा पर्वे
ू क्षण
और गणना के लिए जगह और गुंजाइश दे रहा है ।18

¶-अपने भाई के साथ अपनी पत्नी के अवैध संबंध के बारे में पता चलने के बाद, अभियुक्त ने शायद नियंत्रण खो

15
कन्है यालाल ए.आई.आर. 1952 भोपाल 21
16
कंु दरपु (1962) 1 सीआर एलजे 261; जगजीत सिंह बनाम हिमाचल प्रदे श 1994 सीआर। एलजे। 233 '1994 SCC
(Cri) 176; आरोपी ने पीड़ित के शरीर के महत्वपूर्ण हिस्सों पर कई गंभीर चोटें पहुंचाईं, जिससे उसकी मौके पर ही
मौत हो गई, धारा 300 का अपवाद 1 आकर्षित नहीं हुआ। पप्पाचन बनाम केरे ला 1994 Cr Lj 1765 (के.आर.) राज्य
आरोपी ने चाकू से उस व्यक्ति पर वार किया जिसने उसे शांत करने की कोशिश की, किसी भी अचानक और गंभीर
उकसावे या अचानक लड़ाई का कोई सबत ू नहीं मिला। अपराध धारा 300 के 1 या 4 अपवाद के तहत नहीं आया|
17
AIR 1962 SC 605, 1962 (2 SCJ 347)
18
केरे ला की माधवन बनाम राज्य १ ९ ६६ केर लेट ११२; खैराती राम, AIR 1953 पुंज। 241; लोचन (1886) 8 ऑल।
635
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दिया हो। लेकिन आरोपी के पास इतना समय था कि वह अपनी पत्नी को खोजने और वहां जाने के अंतराल के
कारण अपना गु स्सा शांत करने और अपने आत्म नियं तर् ण को पन
ु ः प्राप्त करने में सफल रहे |
उकसावे का भाव यह होना चाहिए कि न केवल एक गर्म स्वभाव या अति संवेदनशील व्यक्ति बल्कि
साधारण बुद्धि और शांत स्वभाव का व्यक्ति को अपना आपा खोने पर मजबूर कर दे |19
20
¶-मैकिनी बनाम सरकारी अभियोजन अदालत के निदे शक का कहना है कि-

एक व्यक्ति को प्रकोपित तब ही कहा जा सकता है जब वह अस्थायी रूप से आत्म नियंत्रण की शक्ति


से वंचित हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप वह गैरकानन
ू ी कार्य करता है जो मत्ृ यु का कारण बनता है |

¶-धारा ३०० का अपवाद १ लागू नहीं होगा यदि अपराधी द्वारा हिंसा जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति की
मत्ृ यु हो गई आत्म नियंत्रण खोने की मात्रा और अवधि से कोई उचित संबंध नहीं है जो एक सामान्य
व्यक्ति के संबंध में यथोचित उम्मीद की जा सकती है जब उस व्यक्ति को उतना ही गंभीर और
अचानक प्रकोपन मिले|21

धारा ३०० को केवल एक ही चोट या वार के कारण मत्ृ यु होने की वहज से इंकार नहीं किया जा सकता
है | उपयोग किए जाने वाले हथियार की प्रकृति उसके आकार स्थान आदि पर आधारित होता है |22

¶-धारा 299 की व्याख्या २ में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जहां मत्ृ यु शारीरिक चोट के कारण होती
है वह व्यक्ति को जो इस तरह की शारीरिक चोट का कारण बनता है उसको मत्ृ यु का कारण माना
जाएगा हालांकि उचित उपचार और कुशल उपचार का सहारा लेने से मत्ृ यु को रोका जा सकता था|
इसलिए अंग प्रत्यारोपण सर्जरी में विफलता के कारण मौत हत्या के अपराध के बचाव में नहीं इस्तेमाल
की जा सकती|

¶-यह विनम्रतापूर्वक माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया है आरोपी के पास वांछित
आपराधिक मानसिकता थी जिसने उसे ऐसा घणि
ृ त कार्य करने के लिए प्रेरित किया और आगे बढ़कर
उसने अपनी पत्नी और अपने भाई दोनों की हत्या कर दी|

19
सोहराब (1924) 5 लाह 67
20
1942 AC 1 (9), 1941 3 All ER 272 (HL)
21
गुजरात AIR 1962 गुजरात का गुरिया बुचा बनाम राज्य। 39
22
थंगय
ै ा बनाम तमिलनाडु राज्य 2005 Cr LJ 684; AIR 2005 SC 1142; 2005 (10) SCALE 637
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¶-भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 14 में कहा गया है -


तथ्य जो मन की स्थिति या शरीर या शारीरिक भावना के अस्तित्व को दर्शाये, प्रासंगिक हैं|

चँूकि मत्ृ यु कारित करने का आशय मन की एक अवस्था है , इसलिए इसे बाहरी अभिव्यक्तियों द्वारा
सिद्ध किया जा सकता है । यह तथ्य कि आरोपी चाकू लेकर घर से निकला मत
ृ क को मारने के लिए
अभियुक्त की मंशा दर्शाता है ।

आपराधिक कृत्य एक्टस रीअस कोई भी गलत कार्य है । हत्या के एक मामले में , एक्टस रीअस आरोपी
का शारीरिक आचरण होगा जो पीड़ित की मौत का कारण बनता है ।
चूंकि अपराध दोनों आवश्यक को पूरा करता है , इसलिए आरोपी भारतीय दं ड संहिता की धारा 302 के
तहत उत्तरदायी होगा|23

प्रार्थना

मौजद
ू ा मामले के तथ्यों के प्रकाश में , जो मद्द
ु े उठाए गए, तर्क उन्नत किए गए, इस न्यायालय से

अनुरोध है की-

1- हरीश चंद्रा को कबीर का संरक्षक घोषित किया जाए।

23
भारतीय दं ड संहिता की धारा 302- हत्या के लिए दं ड-जो कोई हत्या करे गा, वह मत्ृ यु या आजीवन कारावास से
दं डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दं डनीय होगाl 
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2- कुबेर और खदीजा को दफा 109 के आरोप से बरी किया जाए क्योंकि यह साबित नही

किया जा सका की कुबेर और खदीजा ने गल


ु है दर को क़त्ल के लिए उकसाया हो|

3- गल
ु है दर को दफा ३०२ के तहत हत्या के आरोप में दोषी करार किया जाए|

तथा एवं कोई अन्या राहत प्रदान की जाए जो की नये, न्यायसम्य एवं अच्छे विवेक के

हित में समझा जाए.

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