You are on page 1of 10

मं गल का प्रथम भाव में प्रभाव

मं गल का प्रथम भाव में प्रभाव

प्रथम भाव (लग्न) में मं गल का प्रभाव कुंडली के प्रथम (लग्न) भाव से हमे व्यक्ति का रूप-रं ग गु ण-स्वभाव,
मस्तिष्क की जानकारी प्राप्त होती है ।
कुंडली के प्रथम (लग्न) भाम में मं गल स्थित होने से ऐसा जातक पराक् रमी अभिमानी व क् रोधी होता है। मं गल
लाल रं ग का गर्म ग्रह हैं । इसमें बहुत उष्णता होती हैं । सभी ग्रहों में सबसे अधिक गर्मीत्व उर्जा मं गल में होता हैं
इसलिये लग्न मं गल से जातक भी गु स्से वाला होता है । मं गल लाल रं ग का ग्रह होने से जातक भी जब क् रोध में
आता है । तो वह भी गु स्से से लाल व गर्म हो जाता है। मं गल ग्रह शक्ति कारक ग्रह होने से अपने जातक को भी
पराक् रमी व उर्जावान बनाता है । प्रथम भाव में मं गल के प्रभाव से जातक महत्वाकां क्षी व परिश्रमी होता है ।
ऐसा जातक किसी एक व्यवसाय को ठीक से नही करता। एक साथ सभी व्यवसाय करने की प्रवृ त्ति होती है ।
जातक अपने परिश्रम से उन्नति एवं धन प्राप्त करता है । लग्न में मं गल के प्रभाव से जातक डाक्टर हो तो
शिक्षा के समय सर्जरी को प्रधानता द्रता है । मं गल के प्रभाव से जातक दृढ शरीरवाला व दिखने में सुं दर होता
है । लग्न में मं गल होने से ऐसे जातक को बचपन में चे चक या फोड़े -फुंसी आदि की तकलीफ हो सकती है। क्योंकि
माता के गर्भस्थ अवस्था से ही बच्चे को उष्णता सहनी पड़ती है। उष्णता के साथ-साथ बचपन की अवस्था पर भी
मं गल का अधिकार है जिनका लग्न में मं गल प्रबल हो ऐसे जातक का ये रोग जल्दी होते है। जिनका मं गल दुर्बल
हो, उन्हे कोई तकलीफ नही होती, लग्न में मं गल के प्रभाव से जातक में प्रबल अभिमान होता है कि व्यवसाय में
वह बहुत कुशल हैं योग्यता न होने पर भी ऐसा जातक दुसरों पर रौब जमाने का प्रयत्न करता है। मं गल लग्न में
अशु भ प्रभाव में होने से जातक आवे श में आकर गलत कार्य करने की सं भावना होती है ।
लग्न में मं गल शु भ प्रभाव में हो तो ऐसा जातक लोगों की भलाई के लिये प्रयत्नशील रहता हैं । उसका व्यवहार
उदार, धै र्यशी व सरल तथा प्रामाणिक होता है। लोगो को अपने विचारों से अच्छी सलाह व अच्छी दिशा दिखाने
में सहायता करता है । ऐसा जातक दुसरों के प्रभाव में नहीं आता है। उसमें ने तृत्व क्षमता होती हैं ।

सप्तम दृष्टि
प्रथम भाव (लग्न) में मं गल स्थित होने से उसकी सप्तम भाव पर पड़ती है । मं गल की सप्तम दृष्टि पत्नी के
स्थान पर पडने से जातक की पत्नी से उसकी अनबन बनी रहती है ।

प्रथम भाव में स्थित मं गल चतुर्थ पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव पर होने से जातक को माता का सु ख नहीं मिलता एवं
माता कष्टकारी होती है । जातक माता से स्ने ह रखने वाला होता हैं ।

प्रथम भाव में स्थित मं गल की अष्टम पूर्ण दृष्टि अष्टम भाव पर पडती हैं । मं गल की अष्टम भाव में दृष्टि होने से
जातक को कभी कभी रोगों के होने की सं भावना बनी रहती है।

मं गल का लग्न में अपने मित्र राशि में प्रभाव

मं गल लग्न में अपने मित्रराशि में स्थित होने से जातक का शारीरिक शक्ति अच्छी रहती है तथा वह अपने
परिक्षम से उन्नति करता है ।

मं गल का लग्न में शत्रुराशि में प्रभाव

ू रे लोगों से व्यवहार अच्छा नहीं होता। वह लोभी


मं गल का लग्न में शत्रुराशि में स्थित होने से जातक का दस
होता है।

मं गल का लग्न में स्वराशि उच्च व नीच राशि में प्रभाव

मं गल लग्न में अपनी स्वराशी मे ष या वृ श्चिक में स्थित होने से जातक ते जस्वी, साहसी व दान करने वाला होता
है ।

मं गल लग्न में अपनी उच्च राशि मकर में स्थित होने से जातक पराक् रमी प्रसिद्ध एवं ने ता होता है । मं गल के
उच्च के प्रभाव से वह महत्वाकां क्षी व सु खी होता है ।
ू रे लोगों की से वा करने वाला व गरीब होता है ।
मं गल लग्न में अपनी नीच राशि कर्क में स्थित होने से जातक दस
वह गलत कार्यों की ओर प्रवृ त्त रहता है ।

मं गल का प्रथम (लग्न) भाव में प्रभाव के बारे में बताते समय प्रथम भाव में मं गल के साथ स्थित ग्रह एवं
मं गलपर दृष्टि डालने वाला ग्रह मं गल का प्रथम भाव में उच्च, नीच या शत्रुराशि व मित्राशि में होना इन
सब पर विचार करने के बाद फल कुछ और आने की सं भावना हो सकती हैं । मं गल का प्रथम भाव लग्न में प्रभाव
के बारे में बताने से पहले इन सब बातों को दे खना भी महत्वपूर्ण है।


मं गल का दवितीय भाव में प्रभाव
मं गल का द्वितीय भाव में प्रभाव

कुंडली का द्वितीय भाव से हमे परिवार, धन, आँ ख, वामी, धनसं चय की जानकारी प्राप्त होती है ।

द्वितीय स्थान में स्थित मं गल के प्रभाव से जातक कटु बोलने वाला होता है । क्योंकि द्वितीय भाव वाणी
का होता है । मं गल के प्रभाव अधिक बोलने वाला हो सकता है । मं गल पर शु भ प्रभाव होने से जातक सच
बोलने वाला होता है । द्वितीय भाव में मं गल स्थित होने से जातक थोड़े पै सों को खर्च करना हो तो बहुत
ज्यादा सोचते है । किंतु एकदम बहुत ज्यादा पै से खर्च करना हो तो सोच विचार नही करते । मं गल ग्रह
तीखापन का कारक है । मं गल के कारकत्व में तीखे मसाल, लाल मिर्च ये सब आते है क्योंकि मं गल कर रं ग
लाल हैं । अतः लाल रं ग की वस्तु ओं का उत्पादन मं गल के कारकत्व में शामिल है । द्वितीय भाव जातक के
भोजन का होता है । इस कारण द्वितीय भाव के प्रभाव से ऐसे जातक के स्वभाव भी तामसी व झगडालू
होने की सं भावना होती है । मं गल द्वितीय भाव में होने से जातक अपने धन का हिसाब-किताब नही रखता।
वह उदार भाव का होता है । द्वितीय भाव का परिवार का भी हैं । मं गल द्वितीय भाव में होने से जातक के
अपने परिवार से अच्छे सं बंध होते है । वह परिवार के लिये धन भी अवश्य खर्च करता हैं । मं गल का द्वितीय
भाव में होने से जातक को धन हानि होने की सं भावना रहती हैं । द्वितीय भाव में मं गल को होने से जातक की
वाणी का बोलने का प्रभाव दस ू रों पर होता हैं । बोलने में प्रवीण होते हैं द्वितीय भाव आँ ख का भी होता हैं ।
द्वितीय भाव स्थित मं गल के प्रभाव से जातक को आँ ख के रोग होने से जातक के पास धन टिकता नहीं
आता-जाता रहता है । डाँ क्टर और वकील जातक हो तो उनके द्वितीय भाव में मं गल होना यह योग अच्छा
होता है । किसी ज्योतिषी की पत्रिका में मं गल द्वितीय भाव में होने से उसका कहा बु रा फल तत्काल
मिलता है ।

सप्तम दृष्टि
द्वितीय भाव में स्थित मं गल होने से उसकी सप्तम दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती हैं । मं गल की अष्टम भाव
पर दृष्टि होने से जातक को रोग तथा ज्वर होने की सं भावना रहती है ।

चतु र्थ दृष्टि


द्वितीय भाव में मं गल स्थित होने से उसकी चतु र्थ दृष्टि पं चम भाव पर पड़ती है । मं गल की पं चम भाव पर
दृष्टि होने से जातक का विद्या, बु द्धि तथा सं तान सं बंधी चिं ता रहती है ।

अष्टम दृष्टि
द्वितीय भाव में स्थित मं गल होने से उसकी अष्टम दष्टि नवम (भाग्य) भाव पर पड़ती जिससे जातक को

भाग्य में रूकावटें आती हैं ।

तृ तीय भाव में मं गल का प्रभाव


तृ तीय भाव में मं गल का प्रभाव
तृ तीय भाव से हमें पराक् रम, भाई-बहन साहस, नौकर-चाकर, गायन, धै र्य इन सब बातों की जानकारी प्राप्त
होती है ।
मं गल ग्रह पराक् रम, साहस वीरता इन सबका कारक ग्रह है । मं गल ग्रह आकाशगं गा में अत्याधिक लाल
व गर्म ग्रह है । इसमें एनर्जी होने से तृ तीय भाव में स्थित मं गल के प्रभाव से जातक में भी मं गल के यह गु ण
शामिल रहते हैं । तृ तीय भाव में मं गल होने से जातक अधिक क् रोधी हो सकता है । मं गल का कारक क् रोध
भी है । किंतु मं गल तृ तीय भाव में शु भ स्थिति में हो तो जातक का अपने क् रोध पर नियं तर् ण रखता है ।
तृ तीय भाव में शु भ स्थिति मं गल के प्रभाव से जातक धनी, सु खी, व शूर होता है । इसे कोई दबा नही
सकता। एसा जातक भु जाओं से बलवान होता है । तृ तीय भाव में मं गल के प्रभाव से जातक की भीजाये
मजबु त होने से वह खु द के परिश्रम से धन कमाता है । सभी ग्रहों में शक्ति का प्रतिनिधि ग्रह मं गल है ।
छोटे भाईयों का कारक ग्रह है । भाई पर मं गल का अधिकार होता है । तृ तीय भाव में मं गल स्थित होने से
जातक का भाईयों का सु ख कम मिलता है । जातक के छोटे भाई के लिये अच्छा फल नही मिल पाता। तृ तीय
भाव छोटी यात्राओं का भी होता है । मं गल के तृ तीय भाव में होने से जातक अपने जीवन में छोटी-छोटी
यात्राओं के बहुत मोके मिलते हैं । मं गल तृ तीय भाव में अशु भ स्थिति में होने से जातक अपनी शक्ति का
दुरूपयोग करता है । ऐसे जातक को सही दिशा चु नने में परे शानी आती है । तृ तीय भाव में मं गल शु भ स्थिति
में होने से जातक का गला अच्छा होताहै । तृ तीय भाव में मं गल अशु भ में होने से जातक की अपने पडोसी व
सं बंधियों से अनबन रहती है एवं यात्रों में तकलीफ उठानी पड़ती हैं । अन्य ग्रहों की दृष्टि तथा शु भ या
अशु भ प्रभाव को दे खकर ही फल बताना चाहिये ।

सप्तम दृष्टि
तृ तीय भाव में मं गल स्थित होने से मं गल की पूर्ण सप्तम दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है । नवम भाव पर मं गल
की दृष्टि होने से जातक धर्म में रूचि नहीं रहती। वह धार्मिक नहीं होता।

चतु र्थ दृष्टि



तृ तीय भाव में मं गल स्थित होने से मं गल की चतु र्थ दष्टि छठे भाव पर पड़ती हैं । छठे भाव पर मं गल की
दृष्टि होने से जातक शत्रुओं पर अपना प्रभाव रखता हैं । उसके शत्रु कम होते है । ऐसे जातक पर कर्जा भी
नहीं रहता।

अष्टम दृष्टि

तृ तीय भाव में मं गल होने से मं गलकी अष्टम दष्टि होने से राज्य से लाभ व व्यवसाय में प्रगति होती है ।

मं गल का तृ तीय भाव में मित्रराशि में प्रभाव


मं गल तृ तीय भाव में अपनी मित्रराशि में स्थित होने से जातक में पराक् रम अधिक होता है ।

मं गल का तृ तीय भाव में शत्रुराशि में प्रभाव


मं गल तृ तीय भाव में अपनी शत्रुराशि में स्थित होने से जातक को भाईयों का सु ख नहीं मिलता जातक
अपनी शक्ति का दुरूपयोग करता है ।

मं गल का तृ तीय भाव में स्वराशि, उच्च व नीच राशि में प्रभाव


मं गल द्वितीय भाव में स्वराशि मे ष या वृश्चिक में स्थित होने से जातक अपने पराक् रम से सब कुछ प्राप्त
करता है । तथा उसे भाई-बहनों का सु ख प्राप्त होता है ।

् होती है ।
मं गल तृ तीय भाव में अपनी उच्चराशि मकर में स्थित होने से जातक के पराक् रम में वृ दधि

मं गल तृ तीय भाव में अपनी नीच राशि कर्क में स्थित होने से जातक के नीच के प्रभाव से जातक को भाई
बहनों के सं बंधों से हानि होती हैं । तथा उसके पराक् रम में कमी होती है । वह अपनी शक्ति व बु द्धि का
उपयोग गलत दिशा में कर सकता है ।

चतु र्थ भाव में मं गल का प्रभाव


चतु र्थ भाव में मं गल का प्रभाव
कुंडली का चतु र्थ भाव माता, भूमि भवन एवं सु ख का होता है । चतु र्थ भाव से मन की स्थिति एवं सं पत्ति के
बारे में हमें जानकारी प्राप्त होती है ।
मं गल ग्रह गर्म व लाल रं ग का है । इसमें बहुत अधिक उष्णता होती है । यह अग्नि का कारक ग्रह है ।
मं गल अग्नि कारक ग्रह का चतु र्थ स्नाथ में जो मनस्थिति का भाव माना गया है । उसमें मं गल स्थित होने से
जातक के मन में सताप उत्पन्न होता है । जातक मन की शां ति प्राप्त नहीं कर सकता। चतु र्थ भाव हमारे मन
का भाव होने से ऐसे जातक के मन की शां ति प्राप्त नहीं कर सकता। चतु र्थ भाव हमारे मन का भाव होने से
ऐसे जातक के मन में खु शी नहीं रह पाती। चतु र्थ भाव भूमि भवन का है मं गल को भूमि पु त्र कहा जाता हैं ।
चतु र्थ भाव में भूमि पु त्र मं गल के स्थित होने से जातक को भूमि, खे ती से सं बंधित लाभ प्राप्त होते हैं ।
बं जर भूमि से उत्पादन करने में ऐसा जातक नई-नई व आधु निक तकनीक का इस्ते माल करके फसलों के
उत्पादन में बढोतरी करता है । चतु र्थ भाव माता का सु ख व सहयोग प्राप्त होता है तथा जातक को मकान
का सु ख मिलता है । मं गल अशु भ प्रभाव में होने से जातक को वाहन व सं पत्ति का लाभ नहीं मिलता तथा
वह मन से भी दुःखी रहता है । मं गल को शक्तिशाली ग्रह माना गया है । चतु र्थ भाव जनता का होता हैं
चतु र्थ भाव में शक्ति के प्रतीक मं गल ग्रह स्थित होने से जातक को धनवान व श्रेष्ठ लोगों से धनलाभ
होने की सं भावना रहती है ।

सप्तम दृष्टि
चतु र्थ भाव में स्थित मं गल की सप्तम पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है । चतु र्थ भाव में स्थित मं गल की
दशम भाव पर दृष्टि होने से जातक को राज्य से लाभ प्राप्त होता है । जातक के अपने पिता से वै चारिक
मतभे द रहते है ।

चतु र्थ दृष्टि


चतु र्थ भाव में स्थित मं गल की चतु र्थ दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है उसकी सप्तम भाव पर दृष्टि होने से
जातक की अपनी पत्नी से अनबन होती है तथा व्यापार में हानि होने की सं भावना रहती है ।

अष्टम भाव
चतु र्थ भाव में स्थित मं गल की अष्टम दृष्टि एकादश (लाभ) भाव पर पड़ती है । मं गल की एकादश भाव पर
दृष्टि होने से जातक का नु कसान व रूकावटें आती है ।

चतु र्थ भाव में मं गल का मित्रराशि में प्रभाव


मं गल का चतु र्थ भाव में अपनी मित्रराशि में स्थित होने से जातक को जमीन, मकान व वाहन का सु ख
प्राप्त होता है ।

चतु र्थ भाव में मं गल का शत्रुराशि में प्रभाव


चतु र्थ भाव में शत्रुराशि में स्थित होने से जाकत को अपने जन्मस्थान से दरू रहना पड़ता है । माता को कष्ट
मिलते हैं ।

चतु र्थ भाव में मं गल स्वराशि, उच्च राशि व नीच राशि में प्रभाव

चतु र्थ भाव में मं गल अपनी स्वराशि मे ष या वृ श्चिक में स्थित होने से जातक को माता का सु ख व सहयोग
प्राप्त होता है । जमीन व वाहन का लाभ होता है ।
मं गल चतु र्थ भाव में अपनी उच्च राशि मकर में स्थित होने से जातक को माता भूमि तथा मकान का विशे ष
सु ख प्राप्त होता है । ऐसा जातक सु खी रहता है ।
मं गल चतु र्थ भाव में अपनी नीच राशि कर्क मे स्थित होने से जातक को माता के सु ख में कमी प्राप्त होती है
वं जातक को जमीन व वाहन का सु ख नहीं मिलता है ।

पं चम भाव में मं गल का प्रभाव


पं चम भाव में मं गल का प्रभाव

पं चम भाव में कुंडली का त्रिकोण भाव होने से शु भ भाव माना जाता है । कुंडली के पं चम भाव से हमें सं तान,
बु द्धि व शिक्षा दे वभक्ति की जानकारी प्राप्त होती है । पं चम भाव स्थित मं गल के प्रभाव से जातक को
सं तान की ओर से सु ख प्राप्त होता है । मं गल अग्नि की कारक ग्रह है । पं चम भाव का पे ट से सं बंध होता
है । पं चम भाव स्थित मं गल के प्रभाव से जातक की तीव्र बु द्धि होती है । जातक को यश और कीर्ति प्राप्त
होती है । पं चम भाव में स्थित मं गल के प्रभाव से जातक से ना विभाग, पु लिस विभाग, फाँरेस्टरी
इं जीनियरिं ग, मोटर ड् राईविं ग, टे क्निकल सं स्थान आदि विभागों में शिक्षा प्राप्त करता है । इन सब
विभागों में कार्य करने के लिये अति ऊर्जा की आवश्यकता होती है व मं गल ग्रह ऊर्जा का कारक होने से
पं चम स्थित मं गल के जातक में मं गल की ऊर्जा सम्मिलित होती है । वह इन विभागों के शिक्षा क्षे तर् में
अच्छी प्रगति करता है । ऐसा जातक बु द्धिमान होता है । वह दृढनिश्चय से अपना कार्य करता है । पं चम
भाव में मं गल का स्थित होना सं तान के लिये कष्टकारी योग माना जाता है । स्त्रियों की पत्रिका में पं चम
भाव में मं गल होने से गर्भपात होने की सं भावना बनी रहती है । मं गल पर अशु भ प्रभाव होने से जातक जिद्दी
एवं व्याकू ल होने वाला व धै यहीन होता है । पं चम भाव स्थि मं गल डाक्टर शिक्षा में पढ़ाई करने वाले छात्रों
के लिये अच्छा होता है ।

सप्तम दृष्टि
पं चम भाव में स्थित मं गल की सप्तम दृष्टि एकादश (लाभ) भाव पर पडती है । मं गल की एकादश पर दृष्टि
होने से जातक को अच्छी आय प्राप्त होती है । और वह धनी होता है ।

चतु र्थ दृष्टि


पं चम भाव में स्थित मं गल की चतु र्थ दृष्टि अष्टम भाव पर पड़ती है । मं गल का अष्टम भाव पर दृष्टि होने से
अष्टम भाव सं बंधी अशु भ फल प्राप्त होते है ।

अष्टम दृष्टि
पं चम भाव में स्थित मं गल की अष्टम दृष्टि बारहवे (व्यय) भाव पर पडती है । मं गल की बारहवे भाव पर
दृष्टि होने से जातक रोगी और उग्र होता है ।

मं गल का पं चम भाव में मित्रराशि में प्रभाव


मं गल पं चम भाव में अपनी मित्रराशि में स्थित होने से मं गल के प्रभाव से जातक को सं तान तथा विद्या-
बु द्धि के पक्ष से सु ख एवं यश की प्राप्ति होती है ।

मं गल का पं चम भाव में शत्रुराशि में प्रभाव

मं गल पं चम भाव में अपनी शत्रुराशि में स्थित होने से जातक को सं तान पक्ष से कठिनाई आती है । शिक्षा
के क्षे तर् में परे शानियों के बाद सफलता प्राप्त होती है ।

मं गल पं चम भाव में स्वराशि मे ष या वृ श्चिक में स्थित होने से जातक बु द्धिमान होता है । तथा उसे सं तान
का सु ख मिलाता है ।

मं गल का पं चम भाव में अपनी उच्च राशि मकर में स्थित होने से जातक की शिक्षा के क्षे तर् में अच्छी
् होती है ।
सफलता प्राप्त होती है । वह बु द्धिमान होता है । उसके मान-सम्मान में वृ दधि

मं गल पं चम भाव में अपनी नीच राशि कर्क में स्थित होने से जातक को सं तान से सु ख व सहयोग नही
मिलता शिक्षा के क्षे तर् में भी परे शानियाँ आती है ।

छठे भाव में मं गल का प्रभाव


छठे भाव में मं गल का प्रभाव

कुंडली का छठे भाव से रोग, शत्रु कर्ज एं व ननिहाल के बारे में जानकारी प्राप्त होती है । छठे भाव में सबसे
शक्तिशाली एवं उर्जावान ग्रह मं गल छठे भाव में स्थित होने से जातक बलवान व धै यशाली रहता है । ऐसे
जातक के शक्तिशाली प्रभाव से उसके शत्रुभी उससे डरते है । मं गल में ने तृत्व व अधिकार जमाना, सु रक्षा
करना ये सब गु ण होते है । पु लिस विभाग मु ख्य रूप से मं गल के कारकत्व में आता है । इस कारण छठे भाव में
स्थित मं गल के प्रभाव से जातक के पु लिस अफिसर बनने के योग बनाते है । मं गल के छठे भाव में स्थित
होने से जातक के शत्रु भी शक्तिशाली होते है । ले किन जातक के रौब व प्रभाव से सामने वह टिक नही
पाते । छठे घर में स्थित मं गल के प्रभाव से जातक जासूस होने की सं भावना रहती है । ऐसे जातक को तीखे
या नमकीन पदार्थ खाने में रूचि होती है । अधिक खाने से उष्णता के कारण ऐसे जातक को रोग होने की
सं भावना रहती है । छठे भाव में स्थित मं गल के प्रभाव से जातक को ननिहाल पक्ष से शु भ फल प्राप्त होते
है । ऐसे जातक को स्त्रियों की ओर से लाभ होने की सं भावना हो सकती है । छठे भाव में स्थित मं गल के
होने से जातक शत्रुनाशक धनवान यशस्वी तथा बलवान होता है । छठे भाव में स्थित मं गल क होने से
जातक शत्रुनाशक धनवान यशस्वी तथा बलवान होता है । छठे भाव में मं गल होने से जातक उत्साही व
कुशल कार्यकर्ता होता है । ऐसे जातक के अने क शत्रु होते है । परं तु वह अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त
करता है । प्रत्ये क कार्य को करने के लिये जातक अधीर व उतावला रहता है । छठे भाव में पापग्रह शु भ
फल करते है । ऐसी मान्याता है । अन्य ग्रहों की शु भ व अशु भ प्रभाव को दे खकर ही फल बताना चाहिये ।

सप्तम दृष्टि
छठे भाव में स्थित मं गल की सप्तम पूर्ण दृष्टि बारहवे भाव पर पड़ती है । मं गल की बारहवे भाव पर दृष्टि
होने से जातक अधिक धन खर्च करता है ।

चतु र्थ दृष्टि


छठे भाव में स्थि मं गल की चतु र्थ दष्टि नवम (भाग्य) भाव पर पड़ती है । मं गल की नवम भाव पर दष्टि के
ृ ृ
प्रभाव से जातक का धर्म प्रति रूचि होती है ।

अष्टम दृष्टि
छठे भाव में स्थित मं गल की अष्टम दृष्टि प्रथम (लग्न) भाव पर पडती है । मं गल की लग्न पर दृष्टि होने
से मं गल के प्रभाव से जातक क् रोधी व अभिमानी होता है ।

छठे भाव में मं गल का मित्र राशि में प्रभाव


छठे भाव में मं गल मित्र राशि में होने से जातक अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है । झगडे तथा
झं झटो के बारे में लाभ मिलता है ।

छठे भाव में मं गल का शत्रुराशि में प्रभाव


छठे भाव में मं गल का शत्रुराशि में स्थित होने से जातक को रक्त विकार रोग होने की सं भावना रहती है ।
जातक अस्वस्थ रहता है ।

छठे भाव में मं गल का स्वराशि, उच्च व नीच राशि में प्रभाव


छठे भाव में मं गल अपनी स्वराशि मे ष या मं गल में स्थित होने से जातक अपने शत्रुओं पर अपना प्रभाव
रखता है । परिश्रम से आत्मबल प्राप्त करता है ।

छठे भाव में मं गल का अपनी उच्च राशि मकर में स्थित होने से जातक शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता हैं ।
वह पराक् रमी और परिश्रमी होता है । ऐसा जातक पु लिस विभाग में अधिकारी होता है ।

छठे भाव में मं गल अपनी नीचराशि कर्क में होने से जातक का अपने खर्चो पर नियं तर् ण नही रहने से कर्ज
ले ना पड़ता है । तथा वह अस्वस्थ व निर्बल रहता है ।

सप्तम भाव में मं गल का प्रभाव


सप्तम भाव में मं गल का प्रभाव

कुंडली के सप्तम भाव से स्त्री, विवाह, व्यापार साझे दारी, झगडे की जानकारी महे प्राप्त होती है ।
सप्तम भाव में स्थि मं गल के प्रभाव से जातक का वै वाहिक जीवन सु खी नही रहता सप्तम भाव का सं बंध
जातक के पत्नी का स्वभाव रूप-रं ग तथा विवाहित सु ख का होता है । मं गल के सप्तम भाव में स्थित होने से
जातक के विवाहित सु ख में कमी होने की सं भावना रहती है । सप्तम भाव व्यापार व साझे दारी का भी होता
है । इस भाव में मं गल स्थित होने से जातक साझे दारी में मिलकर व्यापार करे तो वह सफल नहीं हो पाता
जिन लोगों के साथ जातक साझे दारी में व्यापार करता है । उनकी तरफ से जातक को धोखा दे ने की सं भावना
होत है । व्यापार में जातक को अपयश व हानि होने की सं भावना रहती है । सप्तम भाव में स्थित मं गल होने
से जातक डाक्टर या सर्जन हो तो उसे प्रसिद्धि प्राप्त होती है । मै केनिक, इं जिनिअर ड् राईवर खे ती इनका
कारक मं गल ग्रह है । सप्तम भाव में स्थिरता मं गल के प्रभाव से जातक इन क्षे तर् ों में कार्य करे तो उसे
सफलता हासिल होती है । सप्तम भाव में मं गलस स्थित होने से जातक अधिकारी हो तो उसके अपने नीचे
काम करने वालों से झगड़ा होता रहता है । सप्तम भाव में मं गल वक् री या अशु भ प्रभाव यु क्त होकर बै ठा हो
तो ऐसे जातक के विवाह नहीं होने की सं भावना होती है । ऐसा जातक रोगी व शरीर से दुबला पतला दिखाई
दे ता है । सप्तम भाव में मं गल के अशु भ फल ही प्राप्त होते है । सप्तम भाव में मं गल स्थित होने से मं गल के
प्रभाव से जातक एक से अधिक व्यापार या उद्योग करने की ईच्छा रखता है । परं तु वह ठीक तरह से किसी
भी व्यापार में सफल नही हो पाता।

सप्तम दृष्टि
सप्तम दृष्टि भाव में मं गल स्थित होने से उसकी पूर्ण सप्तम दृष्टि प्रथम (लग्न) भाव पर पडती है । मं गल
की लग्न पर दृष्टि होने से जातक क् रोधी व उग्र स्वभआव का होता है ।

चतु र्थ दृष्टि


सप्तम भाव में मं गल स्त होने से उसकी चतु र्थ दृष्टि दशम भाव पर पडती है मं गल की दशम भाव पर दृष्टि
होने से जातक को कार्य क्षे तर् में अधिक परिश्रम के पश्चात फल की प्राप्ति होती है ।

अष्टम दृष्टि
सप्तम भाव में मं गल स्थित होने से उसकी अष्टम दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है । मं गल की दृष्टि भाव पर
दृष्टी होने से जातक धन सं चय नहीं कर पाता एवं परिवार से जातक के मतभे द बने रहते है ।

सप्तम भाव में मं गल का मित्रराशि में प्रभाव


सप्तम भाव में स्थित मं गल के प्रभाव से जातक को पत्नी की ओर से सु ख प्राप्त होता है । तथा व्यवसाय के
क्षे तर् में उन्न्ति प्राप्त होती है ।

सप्तम भाव में मं गल का शत्रुराशि में प्रभाव


सप्तम भाव में मं गल शत्रुराशि में होने से जातक विवाहित जीवन में कष्ट तथा व्यवसाय में कठिनाईयो का
समना करना पडता है ।

सप्तम भाव में मं गल का अपनी स्वराशि मे ष या वृ श्चिक में स्थित होने से जातक को पत्नी से सु ख प्राप्त
होता है एवं व्यवसाय में सफलता प्राप्त होती है । सप्तम भाव में मं गल का अपनी उच्च राशि मकर में
स्थित होने से जातक को व्यवसाय के क्षे तर् में विशे ष सफलता मिलती है । जातक का वै वाहिक जीवन मध्यम
होता है ।

सप्तम भाव में मं गल का अपनी नीच राशि कर्क में स्थित होने से जातक को विवाहित जीवन में दुःखी होता
हैं तथा जातक के अपनी पत्नी से अलग होने की सं भावना बनी रहती है ।

अष्टम भाव में मं गल का प्रभाव


अष्टम भाव में मं गल का प्रभाव

कुंडली के अष्टम भाव से रोग आयु , मृ त्यु के कारँ ण मानसिक चिं ता, समु दर् यात्रा इन सब बातों की
जानकारी हमें प्राप्त होती है ।
अष्टम भाव में स्थित मं गल के प्रभाव से जातक को कई प्रकार के व्यसन एवं रोग होने की सं भावना रहती
है । मं गल लाल रं ग व अग्नि का कारक ग्रह हैं अष्टम में मं गल स्थित होने से जातक को रक्तचाप की
बीमारी या खून बीमारियाँ होने की सं भावना होती हैं । खून लाल रं ग का होने से रक्त का कारकत्व मं गल के
अधीन आता हैं । मं गल अग्नि का कारक होने से अष्टम भाव में स्थित मं गल के प्रभाव से जातक को अग्नि
से मृ त्यु भय रहता है । अष्टम भाव गर्भाशय, मु तर् ाशय, गु दा व गु प्तां ग का होता मं गल अष्टम भाव में
अशु भ प्रभाव में होने से जातक को गु प्तागों के रोग होने की सं भावना रहती है । तथा जातक को मानसिक
चिं ताये भी सताती रहती है । अष्टम भाव में मं गल को अशु भ फल दे ने वाला माना गया है । अष्टम भाव में
स्थित मं गल के प्रभाव से जातक के साथ आकस्मिक दुर्घटनाये होने की सं भावना रहती है । अष्टम मं गल के
प्रभाव से जातक का अर्जीण वायु रोग या पे टरोग होने की सं भावना रहती है । जातक को रोगो के कारण
आपरे शन होने की सं भावना बनी रहती है । अष्टम भाव स्थित मं गल के प्रभाव से जातक को वसीयत से धन
पाने के लिये अतिखर्च करने की सं भावना होती है । ऐसे जातक को गलत कार्यो से धन कमाने की लालसा
रहती है ।

सप्तम दृष्टि
अष्टम भाव में मं गल स्थित होने से उसकी सप्तम दृष्टि द्वितीय भाव पर पड़ती है । मं गल की द्वितीय भाव
पर दृष्टि होने से जातक को धन की कमी बनी रहती है । जातक को पारिवारिक सु ख भी कम मिल पाता है ।

चतु र्थ दृष्टि


अष्टम भाव में मं गल स्थित होने से उसकी चतु र्थ दृष्टि एकादश भाव पर पडती है । मं गल की एकादश भाव
पर दृष्टि होने से जातक को भूमि सं बंधी कार्यो से आय प्राप्त होती है ।

अष्टम दृष्टि
अष्टम भाव में मं गल स्थित होने से उसकी अष्टम दृष्टि होने से मं गल के प्रभाव से जातक साहसी व
पराक् रमी होता है । उसे भाईयों का सु ख प्राप्त होता है ।

अष्टम भआव में मं गल का मित्र राशि में प्रभाव


अष्टम भाव में स्थित मं गल के मित्र राशि में से जातक की दुर्घटना में मृ त्यु की सं भावना नहीं रहती वह कई
बार अपघातों से बच जाता है ।

अष्टम भाव में मं गल का शत्रु राशि में प्रभाव

अष्टम भाव में स्थि मं गल के शत्रु राशि में होने से जातक को लडाई, वाहन, दुर्घटना, आगजनी से कष्ट
होने की सं भावना रहती है ।

अष्टम भाव में मं गल का स्वराशि, उच्च व नीच राशि में प्रभाव

अष्टम भाव में मं गल स्वराशि मे ष या वृश्चिक में स्थित होने से जातक प्रसिद्ध तथा महत्वाकां क्षी होता है ।
तथा वह पराक् रमी एवं सु खी होता है ।

अष्टम भाव में मं गल अपनी नीच राशि कर्क में स्थित होने से जातक को अग्नि से मृ त्यु का भय रहता है ।
नीच राशि में मं गल के अशु भ फल ही प्राप्त होते है । जातक रोगी व अल्पायु होने की सं भावना रहती है ।

नवम भाव में मं गल का प्रभाव


नवम भाव में मं गल का प्रभाव

कुंडली के नवम भाव से धर्म मानसिक वृ त्ति, भाग्योद, तप तीर्थयात्रा, गु रू एवं दान इन सब बातों के बारे में
जानकारी प्राप्त होती है ।
नवम में मं गल स्थित होने से मं गल की ऊर्जा के प्रभाव से जातक अभिमानी, ते जस्वी और उत्साही होता हैं
जातक की धर्म के प्रति विशे ष आस्था नही होती नवम भाव में मं गल स्थित होने से जातक सु धारक प्रवृ त्ति
का होता है । नवमस्थ मं गल डाँ क्टरों के लिये प्रसिद्ध का कारक है । ऐसे जातक का विदे श में भाग्योदय होने
की सं भावना रहती है । नवम भाव में स्थित मं गल के प्रभाव से ऐसा जातक राजनिती करने में कुशल होते
है । ऐसे जातक को अध्यात्म और धर्म में विशे ष श्रद्धा नही रहती इनका आधु निक दृष्टिकोण रहता है नवम
भाव में स्थित मं गल का प्रभाव होने से जातक खु द पर नियं तर् ण नही रख पाने से परं पराओं से हटकर चलना
चाहता है । ऐसा जातक उच्च पद पर अधिकारी रहते है । मं गल ग्रह में पृ थ्वी तत्व अधिक है । यह ठोस होने
से सभी ठोस वस्तु ये भूमि आदि मं गल के कारकत्व में शामिल है । मं गल की यह कठोरता नवम भाव स्थित
जातक में भी मौजूद रहती है । जातक का स्वभाव भी कठोर रहता है । नवम भाव में मं गल शु भ प्रभाव में
होने से जातक धनवान व प्रसिद्ध होता है । मं गल नवम भाव में अशु भ प्रभाव में होने से जातक कानून और
नीतिनियमों का उल्लं घन करता है । अपने स्वार्थ सिद्धी के लिये ऐसा जातक की ओर से दुसरो का नु कसान
करने की सं भावना होती है । नवम भाग्यभाव में स्थित मं गल के शु भ अशु भ दोनों प्रकार के फल जातक को
मिलते है ।

सप्तम दृष्टि
नवम भाव में मं गल स्थित होने से उसकी पूर्ण सप्तम दृष्टि तृ तीय भाव पर पड़ती है । जिसके प्रभाव से
जातक पराक् रमी व भाग्यवान होता है । किंतु उसे भाईयों के सु ख में कमी होती है ।

चतु र्थ दृष्टि


नवम भाव में मं गल स्थित होने से उसकी चतु र्थ दृष्टि बारहवे (व्यय) भाव पर पडती है । जिसके प्रभाव से
जातक का खर्च अधिक होता है । उसे धन सं गर् ह में मु श्किले आती है ।

अष्टम दृष्टि
नवम भाव में मं गल स्थित होने से उसकी अष्टम दृष्टि चतु र्थ भाव पर पडती है । मं गल की चतु र्थ भाव पर
दृष्टि होने से जातक की माता को कष्ट प्राप्त होता है ।

नवम भाव में मं गल का मित्रराशि में प्रभाव


नवम भाव में मं गल अपनी मित्र राशि में स्थित होने से जातक को कीर्ति और धन प्राप्त होता है । ऐसा
जातक भाग्यशाली रहा हैं ।

नवम भाव में मं गल का शत्रुराशि में प्रभाव


नवम भाव में मं गल शत्रुराशि में स्थित होने से जातक की धर्म में रूचि नही होती ऐसे जातक स्वार्थी होता
है ।

नवम भाव में मं गल अपनी उच्च राशि मकर में स्थित होने से जातक का भाग्य प्रबल होने से वह व्यवसाय
में उन्नति करता है एवं उसकी धर्म के प्रति आस्था होती है ।

नवम भाव में मं गल अपनी नीच राशि कर्क में स्थित होने से जातक को भाग्य एवं धर्म के पक्ष में कमी बनी
रहती है । जातक के भागे योन्नति में बाधाएँ आती है । जातक सं घर्षपूर्ण जीवन बिताता है ।

दशम भाव में मं गल का प्रभाव


दशम भाव में मं गल का प्रभाव

कुंडली के दशम भाव से राज्य मान प्रतिष्ठा, नौकरी, व्यवसाय अधिकार पिता इन बातों की जानकारी हमें
प्राप्त होती है । दशम भाव में मं गल स्थित होने से जातक धनवान यशस्वी एवं सु खी होता है । मं गल ग्रह में
अत्याधिक भर्जा होने से ऐसे जातक में भी ने तृत्व क्षमता और अधिकार वृ त्ति होने से जातक सरकारी नौकरी
में उच्चपद पर रहते है । ऐसे जातक का शारीरिक बल अच्छा होता है । दशम भाव व्यवसाय का होने से
जातक में मं गल के प्रभाव से बहुत क्रियाशीलता रहती है । दशम भाव में स्थित मं गल के प्रभाव से जातक
को पु लिस विभाग, टे क्निकल विभाव गर्भ भट् टीवाले स्थान, बिजली विभाग, सु रक्षा सं स्थान इन सब
विभागों में व्यवसाय या नौकरी करने से अच्छी सफलता मिलती है । मं गल में ऊर्जा होने से मशीनरी औजारो
व यं तर् एवं ऊर्जा से सं बंधित कार्य जै से लाईट फिटींग या बिजली सं बंधित कार्य इन पर मं गल का अधिकार
है । मं गल ने तृत्व, सु रक्षा व अधिकार जमाना इनका कारक ग्रह है । इन सब कार्यो को करने के लिये ऊर्जा व
शक्ति की आवश्यक होती है । मं गल ग्रह गर्म होने से इसमें दाहकता है । सभी प्रकार के मसाले व इनसे
सं बंधित व्यवसाय मं गल के कारकत्व में आते है । इसलिये दशम भाव में शु भ मं गल स्थित होने स इन
विभागों में जातक उच्च पद पर कार्य करते है । दशम स्थित मं गल के प्रभाव से जातक ब्राह्मणों एवं
अपने बड़ों का मान सम्मान व आदर करता है । दशम भावमें मं गल शु भ प्रभाव में होने से जातक को पिता की
ओर से सु ख व सहयोग प्राप्त होता है । दशम भाव कें मं गल को शु भफल दे नेवाला कहा जाता है । दशम भाव
में मं गल होने से जातक के घर में मं गलकार्य होने रहते है । थोडे से प्रयास से जातक के कार्य सिद्ध हो जाते
है ।
सप्तम दृष्टि

दशम भाव में मं गल स्थित होने से उसकी सप्तम दृष्टि चतु र्थ भाव पर होती है । मं गल की चतु र्थ भाव पर
दृष्टि होने से जातक को मातृ सुख में कमी आती है ।

चतु र्थ दृष्टि



दशम भाव में स्थित मं गल की चतु र्थ दष्टि प्रथम भाव पर पडती है । मं गल के प्रभाव से जातक का स्वभाव
उग्र होता है ।

अष्टम दृष्टि
ृ ृ
दशम भाव में स्थित मं गल की अष्टम दष्टि पं चम भाव पर होती है । मं गल के दष्टि के प्रभाव से जातक को
सं तान की चिं ता रहती है ।

दशम भाव में स्थित मं गल का मित्रराशि में प्रभाव

दशम भाव में स्थित मं गल मित्रराशि में होने से शु भ फलदायी होता है । जातक का उन्नति व सफलता
मिलती है । पिता से सहयोग प्राप्त होता है ।

दशम भाव में स्थित मं गल का शत्रुराशि में प्रभाव

दशम भाव में मं गल शत्रुराशि में स्थित होने से जातक को व्यवसाय में सं घर्ष से सफलता मिलती है । पिता
से मतभे द रहते है ।

दशम भाव में मं गल का स्वराशि, उच्च व नीच राशि में प्रभाव

दशम भाव में मं गल स्वराशि मे ष या वृश्चिक में होने से जातक को राज्य से सम्मान व व्यवसाय में सफलता
मिलती है ।

दशम भाव में मं गल अपनी उच्च राशि मकर में स्थित होने से जातक राजनीतिज्ञ होता है । जातक को धन,
मान सम्मान व सु खों की प्राप्ति होती है ।

दशम भाव में मं गल अपनी नीच राशि कर्क में स्थित होने से जातक को व्यवसाय में सं घर्ष करना पडता हैं ।
पिता से सु ख व सहयोग नही मिलता।

You might also like