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कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 1

कल्कि महावतार
आ चुके हैं
(ACTION PLAN)

“ववश्वशास्त्र” से व्यक्त

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 2


कल्कि महावतार
आ चुके हैं
(ACTION PLAN)

“ववश्वशास्त्र” से व्यक्त

लव कुश वसिंह “ववश्वमानव”

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 3


कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 4
भोगेश्वर
(BHOGESHWAR)
उपलब्धता पर एकीकृत और सकारात्मक रचना
(Unified & Positive Creation on Availability)

भक्त वही
जो भगवान को बेच सके
चेला वही
जो गुरू से कुछ ले सके
संत वही
जो समाज को कुछ दे सके
अवतार वही
जो पृ ी की आवाज सुन सके

इस ब्र ाਔ से प्रेम करने के ललए मुझे लकसी के सहमलत की आव कता


नहीं मेरा प्रेम एक तरफा है , मैं इसे प्रेम करूगााँ ही इससे मुझे कोई रोक नहीं सकता
इस प्रेम का पररणाम ही है , स -लिव-सु र बनाने का मेरे ारा क्त कमम
मैं ही असीम िान्त हाँ और असीम यु भी मैं ही हाँ

- अवनवचचनीय कल्कि महाअवतार लव कुश वसिंह ववश्वमानव

“परमा ा ागी नहीं है , परमा ा परम भोगी है , इस सारे अन्त के भोग में लीन है
परमा ा यं ागी नहीं है ले लकन तु ारे तथाकलथत महा ाओं ने तु ें समझा लदया है इस
ाग के कारण या तो तु म दीन हो जाते हो- एक पररणाम, लक तु ें लगता है मैं गलहम त, मैं
लनंलदत, मैं पापी, मैं नारकीय, मुझसे ाग नहीं होता! या, अगर तु म चालबाज हुये, चालाक हुये-
वह तरकीब लनकाल ले गा वह ाग का आवरण खड़ा कर ले गा ”

- आचायच रजनीश“ ओशो”

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 5


अलिक जानकारी

के ललए

लन वेबसाइट दे खें

www.moralrenew.com

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(in English) - Lava Kush Singh “Vishwmanav” , Vishwshastra, Satyakashi

(in Hindi) -लव कुि लसं ह “लव मानव” , लव िा , स कािी

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 6


अनन्त ब्रह्माण्ड
के
अनवगनत सौर मण्डल
में से एक
इस सौरमण्डल
के आकार में पााँचवें सबसे बड़े ग्रह पृथ्वी
के मानवोिं को
पूर्च
एविं
सत्य-वशव-सुन्दर

बनाने हे तु
ववचारार्च
अल्कन्तम अवतार-कल्कि महाअवतार
द्वारा

समवपचत

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 7


भारतीय सिंववधान के धारा-51 (ए)
नागररक का मौवलक कतचव्य के अनुसार

01. संलविान के प्रलत प्रलतब ता, इसके आदिों, िाराओं, रा र ीय ज व रा र ीय गान का


आदर करना
02. तं त्रता के ललए संघर्म हे तु प्रेररत करने वाले सुआदिों का अनुकरण करना व उ ें
लचर थायी बनाना
03. भारत की सवोৡता, एकता और अखਔता की रक्षा करना तथा समथमन करना
04. जब भी आव कता पड़े दे ि की रक्षा करना व रा र ीय सेवाओं हे तु समलपमत होना
05. समाज में भाई-चारें की भावना का लव ार करना, मातृ भाव, िालममक, भार्ालयक,
क्षेत्रीय लवलभ ताओं में एकता कायम करना तथा नारी स ान आलद का ान दे ना
06. अपने लमलित सं ृ लत का मू ांकन करना उसको थालय दे ना और इसकी पर रा
को कायम रखना
07. प्राकृलतक स दा की रक्षा करना लजसमें जलवायु, जं गल, झील, नलदयां, जं गली जीवों व
सम जीवों के प्रलत दया का भाव सन्त ललत है
08. वै৯ालनक भावना को प्रो ालहत करना, मानवीय भावनाओं के रूप की परख करते
रहना
09. जन स ल की सुरक्षा करना और लहं सा आलद का परर ाग करना
10. न्तक्तगत, सामूलहक गलतलवलियों के प्र ेक क्षेत्र में सवोৡता हालसल करना, लजससे रा र
ितत उ ान, प्रय व प्रान्त की ओर अग्रसर होता रहे
11. जो लक माता-लपता या अलभभावक हो, वे अपने 6 साल से 14 साल के बৡों को लिक्षा या
अ ऐसे सुअवसरों का लाभ उ ें मुहैया करावें

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 8


कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 9
कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 10
कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 11
“ववश्वशास्त्र” : भूवमका
(शास्त्र के यर्ार्च समझ के वलए ररक्त मल्किष्क की आवश्यकता)

मनु का प्र ेक बৡा लन क्ष, पूणम, िममयुक्त, िममलनरपेक्ष और सवमिममसमभाव रूप में ही होता है जैसे-
जैसे वह बड़ा होता है , बৡे के पूवमवती सं ार, लवचारिारा, िारणाएाँ व मा ताएाँ उसे बााँ िते हुये अपूणम, पक्ष व
स दाययुक्त बना दे ती है और वह जीवन पयम उस छलव में बाँिकर एक लविेर् प्रवृल के मनु के रूप में क्त
होता है यह उसी प्रकार होता है लजस प्रकार एक नया क ूटर लजसमें कोई भी ए ीकेिन सा वेयर न डाला
गया हो और लफर उसमें लकसी लविेर्-लविेर् कायम के ललए ए ीकेिन सा वेयर डालना िुरू लकया जाय तो वह
क ूटर उस लविेर् कायम व प्रवृल वाला बन जाता है लजसका उसमें ए ीकेिन सा वेयर डाला गया है
प्र ुत “लव िा : द नालेज आफ फाइनल नालेज” मनु के मन्त के ललए एक ऐसा सा वेयर है जो
उसे पूणम और सभी लवचारों को समझने में सक्षम बनाता है यह िा एक मानक िा है लजसमें प्र ेक र का
मनु अपनी छलव दे ख सकता है उदाहरण रूप लजस प्रकार हम लकसी ठोस पदाथम को लकलो से तोलते हैं उसी
प्रकार मनु के मन्त को तोलने का यह िा है कभी भी ठोस पदाथम से लकलो को नहीं तोला जाता हम यह
नहीं कहते लक इतना ठोस पदाथम बराबर एक लकलो बन्त हम यह कहते हैं लक एक लकलो बराबर इतना ठोस
पदाथम
इस िा को पढ़ने व समझने के पहले पाठकगण अपने मन्त को नये क ूटर की भााँ लत ररक्त कर
लें, लजसका मैं लनवेदन भी करता हाँ लकसी भी पूवाम ग्रह व सं ार से ग्रलसत होकर पढ़ने पर िा समझ के बाहर
हो जायेगा क्ोंलक िा बहुआयामी (म ी डायमें नल) है अथाम त अनेक लदिाओं से एक साथ दे खने पर ही
इसके ৯ान का प्रकाि आप में प्रकालित होगा ऐसा न करने पर आप िा को लकसी लविेर् लवचार, मत व
स दाय का समझ बैठ जायेंगे जो आपका लवचार हो सकता है पर ु इस िा का नहीं िा के बहुत से ि
इसके पाठकों को कलठन अथों वाले लदख सकते हैं यह न्तक्त के अपने लच न र की सम ा से ही क्त हो
रहा है न्तक्तयों को इन कलठन ि ों के अथों को सरल भार्ा में समझना इस िा के क्रलमक अ यन व लच न
से ही स व हो सकेगा ज से मनु लसखता ही चला जाता है न्तक्त को जहााँ पहुाँ चना होता है उसके ललए
न्तक्त को ही प्रय करना होता है पहुाँ च का वह थान न्तक्त तक चल कर नहीं आता इसललए यं को वहााँ
पहुाँ चायें , यही लाभकारी होगा आज तक िा ों के प्रलत ल यह रही है लक ये सब रह वाद का लवर्य है ऐसा
नहीं है लसफम ल की बात है लक आप लकस ल से उसे समझने का प्रय करते हैं भार्ा के अक्षर व ि तो वही
होते हैं लसफम लच न र और ि ों का अथम ही उसे कलठन व आसान भार्ा िैली में लवभालजत करता है
प्र ुत िा लकसी िमम -स दाय लविेर् की सवोৡता का िा नहीं है बन्त सभी को अपने -अपने िमम-
स दाय और एक दू सरे के िमम -स दाय के प्रलत समझ को लवकलसत करते हुये ৯ान व कमम৯ान ारा एकीकरण
का िा है एक मात्र ৯ान व कमम৯ान ही ऐसा लवर्य है जो मनु को मनु से जोड़ सकता है क्ोंलक इसका
स सीिे मन्त से है और कौन नहीं चाहे गा लक उसका मन्त ৯ान-बुन्त के ललए पूणमता की ओर बढ़े
৯ान-कमम৯ान के अलावा जो कुछ है वह सं ृ लत है और उस पर एकीकरण अस व ही नहीं नामुमलकन है मैं यह
कभी नहीं चाहता लक यह पृ ी एकरं गी हो जाये लजस प्रकार प्र ेक घर का माललक अपने बाग में अनेक रं ग व
प्रकार का फूल इसललए उगाता है लक उसके बाग की सु रता और लनखरे उसी प्रकार परमा ा ने इस पृ ी पर
समय-समय पर उ अनेक अवतारों, पैग रों, दू तों इ ालद के मा म से िमम-स दाय उ कर मनु ों को
युगों-युगों से सं ाररत व लनमाम ण की प्रलक्रया प्रार लकया है तालक उसकी यह पृ ी रूपी बाग सु र और
रं गलबरं गी लगे और अब वह समय आ चुका है लजसमें मनु को पूणम सं ाररत लकया जाये यह जानना आव क
है लक यह िा उस सवोच् च और अन्त म मन र पर जाकर मनु को पूणम सं ाररत करने के ललए आलव ृ त

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 12


लकया गया है जैसे कोई न्तक्त चााँ द पर बैठकर अपने इस पृ ी रूपी घर को संयुक्त पररवार का रूप दे ने और
लबखरे हुये पररवार के एकीकरण का प्रयास एक लवचारिारा “सावमभौम स -लस ा ” ारा लकया है
यह िा वतममान तक के सभी अवतारों, महापु रूर्ों, िमम -स दाय प्रवतमकों, रा र ीय व वैल क लवचार
क्त करने वाले सामालजक-िालममक-राजनैलतक नेतृ कताम ओं के सकारा क लवचारों के सम य और उसके
रा र ीय व वैल क िासन प्रणाली के अनुसार थापना के ललए एवं मनु जीवन में उसके ावहारीकरण का िा
है लकसी भी एक अवतार, महापुरूर्, िमम -स दाय प्रवतमक, रा र ीय व वैल क लवचार क्त करने वाले सामालजक-
िालममक-राजनैलतक नेतृ कताम के सकारा क लवचार को लेकर समाज गठन व “स ूणम क्रान्त ” घलटत नहीं हो
सकती उसके ललए चालहए सम य सम य का अथम ही है -” लजसमें सभी हों, और सभी में वो हो” िा में ऐसे
बहुत से लवचार लमलेंगे जो वतममान में स व समझ में न लदखाई दे ती हो पर ु वह मनु के अपने कमों के प्रयोग
और उससे प्रा ৯ान के फल रूप अ में स लस होंगी क्ोंलक यह िा सावमभौम स -लस ा पर
आिाररत है लजससे मनु बाहर नहीं है इसी कारण से इस िा को “अन्त म ৯ान का ৯ान (The Knowledge
of final knowledge)” भी कहा गया है और यह भी कहा गया है “सभी सवोৡ लवचार एवं सवोৡ कमम मेरी ओर
ही आते हैं
लकसी भी अवतार-महापुरूर् इ ालद का सावमभौम स ৯ान एक हो सकता है पर ु उसके थापना की
कला उस अवतार-महापुरूर् इ ालद के समय की समालजक व िासलनक व था के अनुसार अलग-अलग होती
है , जो पुनः दु बारा प्रयोग में नहीं लायी जा सकती वतममान तक ऐसा कोई उदाहरण नहीं लमलता लजससे यह लस
होता हो लक उस अवतार-महापुरूर् इ ालद की कला को दु बारा प्रयोग कर कुछ सकारा क लकया गया हो इस
प्रकार पुनजम और अवतार केवल मानलसक रूप से लस होता है न लक िारीररक रूप से उस अवतार-
महापुरूर् इ ालद की कला, वेि-भूर्ा की नकल करने वाले को समथमक या नकलची कहते हैं जबलक उनके
मानलसक र को समझकर आगे काम करने वाले को उनका पुनजम और अवतार कहते हैं ामी लववेकान
के पुनजम या अवतार को ामी लववेकान के काम को आगे बढ़ाना होगा िीकृ के पुनजम या अवतार को
िीकृ के काम को आगे बढ़ाना होगा केवल उनके रूप को िारण करना तो नकल या समथमन करना ही कहा
जायेगा
लकसी भी अवतार-महापु रूर् इ ालद के दिमन या लचत्र से अलिकतम लाभ तभी प्रा हो सकता है जब
उनकी लवचार व कृलत का ৯ान व समझ हो उसी से मनु का लवकास स व है मैं यह चाहाँ गा लक मुझसे अलिक
मह इस “लव िा ” नामक कृलत को समाज दे क्ोंलक इसी में उनका लवकास है यह भौलतक िरीर लजसके
मा म से यह कायम स हुआ वह तो एक लदन न हो जायेगा पर ु यह कृलत वतममान समाज के संसािनों व
लव৯ान की तकनीकों के सहारे बहुत अलिक समय तक रहे गी इसे उसी प्रकार समझें लजस प्रकार वतममान भौलतक
लव৯ान से आलव ृ त पंखा, ब , मोबाइल, क ूटर इ ालद का समाज उपयोग करता है न लक इसके
आलव ारकताम का दिमन व लचत्र की पूजा अथाम त यह िा ही गुरू है न लक इसके आलव ारक का िरीर इस
कारण से ही मैंने लजस िरीर का प्रयोग इस कायम के ललए लकया है , उसका वह एकमात्र रूप ही िा में लदया हाँ जो
“৯ान, कालबोि तथा ि ब्र ” प्रान्त की उम्र 28 वर्म की अव था का है वतममान में मैं इससे बहुत दू र आ चुका हाँ
जहााँ पहचान ही अस व है
प्र ेक मनु के ललए 24 घंटे का लदन और उस पर आिाररत समय का लनिाम रण है और यह पूणमतः मनु
पर ही लनभमर है लक वह इस समय का उपयोग लकस गलत से करता है उसके समक्ष तीन बढ़ते मह के र है -
िरीर, िन/अथम और ৯ान इन तीनों के लवकास की अपनी सीमा, िन्तक्त, गलत व लाभ है लजसे यहााँ करना
आव क समझता हाँ -
01. शरीर आधाररत व्यापार- यह ापार की प्रथम व मूल प्रणाली है लजसमें िरीर के प्र क्ष प्रयोग ारा
ापार होता है इससे सबसे कम व सबसे अलिक िन कमाया जा सकता है पर ु यह कम िन कमाने के ललए
अलिक लोगों को अवसर तथा अलिक िन कमाने के ललए कम लोगों को अवसर प्रदान करता है अथाम त् िरीर का

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 13


प्र क्ष प्रयोग कर अलिक िन कमाने का अवसर कम ही लोगों को प्रा होता है यह प्रकृलत ारा प्रा गुणों पर
अलिक आिाररत होती है जो एक अवलि तक ही प्रयोग में लायी जा सकती है क्ोंलक िरीर की भी एक सीमा
होती है उदाहरण रुप-लकसान, मजदू र, कलाकार, न्तखलाड़ी, गायक, वादक, पहलवान इ ालद लजसमें
अलिकतम संূा कम कमाने वालों की तथा ूनतम संূा अलिक कमाने वालों की है िरीर आिाररत ापारी
हमेिा िन व ৯ान आिाररत ापाररयों पर लनभमर रहते हैं इस ापार में िरीर की उपयोलगता अलिक तथा िन व
৯ान की उपयोलगता कम होती है
02. धन/अर्च आधाररत व्यापार- यह ापार की दू सरी व म म प्रणाली है लजसमें िन के प्र क्ष प्रयोग ारा
ापार होता है इससे अलिक िन कमाया जा सकता है और उन सभी को अवसर प्रदान करता है लजनके पास िन
होता है उदाहरण रुप-दु कानदार, उ ोगपलत, ापारी इ ालद िन आिाररत ापारी हमेिा िरीर व ৯ान
आिाररत ापाररयों पर लनभमर रहते हैं इस ापार में िन की उपयोलगता अलिक तथा िरीर व ৯ान की उपयोलगता
कम होती है
03. ज्ञान आधाररत व्यापार- यह ापार की अन्त म व मूल प्रणाली है लजसमें ৯ान के प्र क्ष प्रयोग ारा
ापार होता है इससे सबसे अलिक िन कमाया जा सकता है और उन सभी को अवसर प्रदान करता है लजनके
पास ৯ान होता है उदाहरण रुप-लव ालय, महालव ालय, लव लव ालय एवं अ लिक्षा व लव ा अ यन सं थान,
िेयर कारोबारी, बीमा वसाय, प्रणाली वसाय, क े , ৯ान-भन्तक्त-आ था आिाररत टर -मठ इ ालद ৯ान
आिाररत ापारी हमेिा िरीर व िन आिाररत ापाररयों पर लनभमर रहते हैं इस ापार में ৯ान की उपयोलगता
अलिक तथा िरीर व िन की उपयोलगता कम होती है
िरीर के लवकास के उपरा मनु को िन के लवकास की ओर, िन के लवकास के उपरा मनु को
৯ान के लवकास की ओर बढ़ना चालहए अ था वह अपने से उৡ र वाले का गुलाम हो जाता है बावजूद
उपरोक्त सलहत इस िा से अलग लवचारिारा में होकर भी मनु जीने के ललए त है पर ु अ तः वह लजस
अटलनीय लनयम-लस ा से हार जाता है उसी सावमभौम स -लस ा को ई र कहते हैं और इसके अंि या पूणम
रूप को प्र क्ष या प्रेरक लवलि का प्रयोग कर समाज में थालपत करने वाले िरीर को अवतार कहते हैं तथा इसकी
ाূा कर इसे न्तक्त में थालपत करने वाले िरीर को गुरू कहते हैं मनु केवल प्रकृलत के अ लनयमों को
में पररवतमन करने का मा म मात्र है इसललए मनु चाहे लजस भी लवचार में हो वह ई र में ही िरीर िारण
करता है और ई र में ही िरीर ाग दे ता है , इसे मानने या न मानने से ई र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता यह उसी
प्रकार है जैसे कोई लकसी दे ि में रहे और वह यह न मानने पर अड़ा रहे लक वह उस दे ि का नहीं है या कोई यं
को यह समझ बैठे लक मेरे जैसा कोई ৯ानी नहीं और यलद हो भी तो मैं नहीं मानता
कोई अवतार लकसी स दाय, जालत, नारी, पुरूर् इ ालद में भेद-भाव से युक्त होकर कायम नहीं करते, वे
स ूणम मानव जालत को सावमभौम स -लस ा से जोड़ने के ललए कायम करते हैं जो मनु लवचारिील नहीं हैं वे
पिुमानव हैं , जो लवचारिील हैं वे मानव हैं मानवों में भी जो न्तक्तवादी हैं वे असुर-मानव तथा जो समाजवादी हैं वे
दे व-मानव हैं वे मानव जो सावमभौम स -लस ा से युक्त हैं वे ई र-मानव हैं अवतारों का कायम पिुमानव और
मानव को ईि् वर-मानव तक उठाना होता है अवतारों को लकसी स दाय या पूवमवती िमम से जोड़ दे ना यह मानवों
की अपनी ल होती है अवतारों का लশ सदै व समाज में सावमभौम स -लस ा की थापना रहा है उनका
लশ कभी भी ऐ यम युक्त जीवन या न र समालजक लवर्य या रक्त-रर ा-िन स से लगाव नहीं रहा है िरीर
िारण के िमम के ललए इन सबकी आव कता मात्र सािन रूप अव रहा है पर ु लশ या सा रूप कभी
नहीं रहा है चूाँलक अवतार भी िरीरिारी ही होते हैं इसललए समाज के मानव भी अपने -अपने लप्रय व ु के लगाव
की भााँ लत उ ें भी उसी में लल लदखाई पड़ते हैं
लनराकार लवचार के समान सावमभौम स -लस ा का भी अपना कोई गुण नहीं होता जब वह पूणमरूपेण
लकसी साकार िरीर से क्त होता है तब उसका गुण एका ৯ान, एका वाणी, एका प्रेम, एका कमम ,
एका समपमण और एका ान के सवोৡ संयुक्त रूप में क्त होता है चूाँलक पुनः इन गुणों का अलग-अलग

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 14


कोई रूप नहीं होता इसललए इन गुणों से युक्त करते हुये समाज के पररवतमक और लनयंत्रक ऋृलर्-मुलन गणों ने
मानक चररत्रों का साकार लनरूपण या प्रक्षेपण लकये जैसे एका ৯ान व एका वाणी से युक्त ब्र ा पररवार,
एका ৯ान-एका वाणी सलहत एका प्रेम व एका कमम से युक्त लव ु पररवार, एका ৯ान-एका वाणी-
एका प्रेम-एका कमम सलहत एका समपमण व एका ान से युक्त लिव-िंकर पररवार क्रमिः ये आदिम
मानक न्तक्त चररत्र, आदिम मानक सामालजक न्तक्त चररत्र व आदिम मानक वैल क न्तक्त चररत्र के रूप में
प्र ुत लकये गये ये प्र ुतीकरण त नहीं हैं बन्त एक दू सरे में समालहत और उ रो र, उৡतर न्त थलत के हैं
अथाम त ब्र ा, लव ु में तथा लव ु, लिव-िंकर पररवार में समालहत हैं इस प्र ुतीकरण से ही सावमभौम स -
लस ा आिाररत अवतारों का सनातन िमम , लह दू िमम के रूप में अलग हो नये पहचान को प्रा लकया
फल रूप अवतारों को भी इ ीं मानक चररत्रों के अवतार के रूप में जाना जाने लगा और अवतारों का वतममान में
अवनलत होकर केवल लह दू िमम का माना जाने लगा इस प्रकार अवतारों ारा क्त िा -सालह जो मानव
समाज के ललए थी उसे लह दू िमम का समझा जाने लगा लजसका उदाहरण िीकृ ारा क्त “गीता” है उपरोक्त
मानक चररत्रों के क्रम में आदिम मानक न्तक्त चररत् र के पूणाम वतार िीराम तथा आदिम मानक सामालजक न्तक्त
चररत्र ( न्तक्तगत प्रमालणत आदिम मानक वैल क न्तक्त चररत्र) के पूणाम वतार िीकृ हो चुके हैं अब केवल
अन्त म सावमजलनक प्रमालणत आदिम मानक वैल क न्तक्त चररत्र के पूणाम वतार ही िेर् हैं लजसका लव ृ त लववरण
इस िा में प्र ुत लकया गया है “लव िा ” को “गीता” का ही लव ार और वृक्ष िा कह सकते हैं “गीता” में
लचत्र नहीं थे इसललए लोगों को रूलचकर नहीं लगी इसललए “लव िा ” में लचत्र भी लगाये गये हैं “गीता” न्तक्तगत
प्रमालणत “लव िा ” है जबलक “लव िा ” सावमजलनक प्रमालणत “लव िा ” है सावमभौम स -लस ा की ओर
मनु को ले जाने वाले पु क को ही िा कहा जाता है
लजस प्रकार वतममान ावसालयक-समालजक-िालममक इ ालद मानवीय संगठन में लवलभ पद जैसे प्रबन् ि
लनदे िक, प्रब क, िाखा प्रब क, कममचारी, मजदू र इ ालद होते हैं और ये सब उस मानवीय संगठन के एक
लवचार लजसके ललए वह संचाललत होता है , के अनुसार अपने -अपने र पर कायम करते हैं और वे उसके लज े दार
भी होते हैं उसी प्रकार यह स ूणम ब्र ाਔ एक ई रीय संगठन है लजसमें सभी अपने -अपने र व पद पर होकर
जाने -अनजाने कायम कर रहें हैं यलद मानवीय संगठन का कोई कममचारी दु घमटनाग्र होता है तो उसका लज े दार
उस मानवीय संगठन का वह लवचार नहीं होता बन्त वह कममचारी यं होता है इसी प्रकार ई रीय संगठन में भी
प्र ेक न्तक्त की अपनी बुन्त -৯ान-चेतना- ान इ ालद गुण ही उसके कायम का फल दे ती है लजसका लज े दार
वह न्तक्त यं होता है न लक ई रीय संगठन का वह सावमभौम स -लस ा मानवीय संगठन का लवचार हो या
ई रीय संगठन का सावमभौम स -लस ा यह दोनों ही कममचारी के ललए मागमदिमक लनयम है लजस प्रकार कोई
मानवीय संगठन आपके पूरे जीवन का लज े दार हो सकता है उसी प्रकार ई रीय संगठन भी आपके पूरे जीवन का
लज े दार हो सकता है लजसका लनणमय आपके पूरे जीवन के उपरा ही हो सकता है पर ु आपके अपनी न्त थलत
के लज ेदार आप यं है लजस प्रकार मानवीय संगठन में कममचारी समलपमत मोहरे की भााँ लत कायम करते हैं उसी
प्रकार ई रीय संगठन में न्तक्त सलहत मानवीय संगठन भी समलपमत मोहरे की भााँ लत कायम करते हैं , चाहे उसका
৯ान उ ें हो या न हो और ऐसा भाव हमें यह अनुभव कराता है लक हम सब जाने-अनजाने उसी ई र के ललए ही
कायम कर रहें है लजसका लশ है -ई रीय मानव समाज का लनमाम ण लजसमें जो हो स हो, लिव हो, सु र हो और
इसी ओर लवकास की गलत हो
ई र स न्त त लवचार और उस पर आिाररत पूजा थल, प्रवचन इ ालद अब एक आयोजन व मनु के
अपने यं के सामालजक छलव बदलने का रूप ले चुका है अब आव कता यह है लक उसे और भी ढ़ता प्रदान
करने के ललए न्तक्त को पूणम ৯ान से युक्त कर लदया जाये जो ৯ान-कमम৯ान से ही आ सकता है और इसी से सभी
िमम व जालत का स क ाण हो सकता है लजस वृक्ष से िाखाएाँ लनकल चुकी हों पुनः तने में वापस नहीं भेजी जा
सकती आव कता यह है लक हम उसके तने को और मजबूती प्रदान करें इसी प्रकार ई र स न्त त ापार न
तो कभी ब हो सकता है और न ही ब होता है लजसके सामने सभी ापार छोटे व अन्त थर हैं

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 15


यह युग आकड़ों (डाटा), सूचनाओं, आरे ख, ग्राफ व इं लजलनयररं ग का युग है इसललए यह िा भी उसी
रूप में प्र ुत है क्ोंलक युग का बहुमत मन (अलिकतम मन) लजस ओर बढ़ चुका होता है ৯ान को गलत दे ने के
ललए उसी कला का प्रयोग लकया जाता है इसललए उन लोगों से मैं क्षमा चाहता हाँ जो यह उ ीद लकये होंगे लक
िा सदै व कलवताओं, छ ों, दोहों व सं ृ त भार्ा में ही हो सकता है सं ृ त भार्ा में िा ीय म ों के गायन
के उस िन्तक्त को मैं ीकार करता हाँ लजसके सुनने पर रोम-रोम झंकररत हो उठता है हो सकता है ऐसा मुझे
इसललए लगता हो लक अनेकों ज ों से यह मेरे पूवम सं ारों में समालहत हो भार्ा तो ৯ान को क्त करने का
मा म मात्र है कई भार्ाओं का ৯ानी होना अৢी बात है लेलकन उससे भी अৢी बात ৯ान का ৯ानी होना है मैं
लकसी भी भार्ा का ৯ानी नहीं हाँ इसललए इस िा में ाकरण व मात्रा क त्रुलटयााँ लमलेंगी, उसे पकड़ने से आपके
भार्ा ৯ान की लव ता अव लस हो सकती है पर ु िा लजस लदिा की ओर आपको लनदे ि कर रहा है उसे
समझना अलिक उपयोगी है प्र ुत िा में वतममान लव िासन व था के अनुसार थापना र तक का
प्रलक्रया व लव ेर्ण उपल है लजसके 90 प्रलतित भाग से सभी पररलचत ही हैं िेर् 10 प्रलतित भाग ल , काल
(समय), ान व चेतना की न्त थलत और ৯ान-कमम৯ान का वतममान लव िासन व था के अनुसार रूपा रण है
और लबखरे हुये ৯ान सूत्रों को संगलठत रूप दे ते हुये कायम योजना की लदिा क्त की गयी है यह ऐसे था लक घर
बनाने के ललए सारा लनमाम ण कायम पहले ही पूणम लकया जा चुका था लसफम छत डालना था, यह िा वही छत है जो
पूणम लकया गया है और अब इस छत के नीचे और भी सु रता के ललए स न्त त लवर्य के लविेर्৯ों के सहयोग के
ललए सदा ही ागत रहे गा अपनी यात्रा व वाताम के दौरान मेरे सामने यह भी प्र आया लक इस िा में अलिकतम
तो पहले से ही लव मान लवर्यों को ही लदया गया है तो लफर आपका अपना क्ा है ? तो मैं उन लोगों से यह कहना
चाहता हाँ लक मेरा इसमें “समझ व एकत्रीकरण” नाम की कला व लवर्य है इसे आप सब इस प्रकार समझ सकते
हैं आपकी जमीन थी, ईंट था, बालू, सीमें਒, छड़ सब आपका था आप कुछ नहीं कर पा रहे थे एक न्तक्त
आया, उसने उसे संगलठत करने की योजना बनाया, एक रूप लदया और मकान बना लदया लफर घर लकसका हुआ?
घर भी तो आपका ही हुआ यह िा लव৯ान की भााँ लत ৯ान-कमम৯ान का एक क्रलमक अ यन का िा है , जो
आपका ही है
समाज के न्तक्त यह भी कह सकते हैं लक मैं “भारत” के सं ृ लत व सं ारों के पूवाम ग्रह से ग्रलसत हाँ तो
मैं उन लोगों से यह कहना चाहता हाँ लक मैं उस “भारत” के सं ृ लत व सं ारों के पूवाम ग्रह से ग्रलसत हाँ लजसने लव
का सवमप्रथम, प्राचीन और वतममान तक अकाਅ “लक्रया-कारण” दिमन कलपल मुलन के मा म से लदया लजसे आज
का लव৯ान (पदाथम या भौलतक लव৯ान) ने भी आइ टाइन के मा म से E=mc2 दे कर और ढ़ता ही प्रदान
की है मैं उस भारत के पूवाम ग्रह से ग्रलसत हाँ जहााँ ऐसी प्र ेक व ु लजससे मनु जीवन पाता है और ऐसी प्र ेक
व ु लजससे मनु का जीवन संकट में पड़ सकता है उसे दे वता माना जाता है इस प्रकार हमारे भारत में 33
करोड़ दे वता पहले से ही हैं इस प्रकार हमारा भारत स ूणम ब्र ाਔ को ही दे वता और ई र के रूप में दे खता व
मानता है और इसकी व था व लवकास हे तु कमम करता रहा है मैं उस “भारत” के पूवाम ग्रह से ग्रलसत हाँ लजसने
“िू ” व “दिमलव” लदया लजस पर लव৯ान की भार्ा गलणत टीकी हुई है मैं गवम से कहता हाँ लक मैं उस “भारत” के
सं ृ लत व सं ारों के पूवाम ग्रह से ग्रलसत हाँ लजसका अपनी भार्ा में नाम “भारत” है तथा लव भार्ा में नाम “INDIA”
है मैं “INDIA” का लवरोि नहीं करता बन्त भारत को लव भारत बनाकर नाम “INDIA” को पूणमता प्रदान करना
चाहता हाँ मैं संकुचन में नहीं बन्त ापकता में लव ास करता हाँ मैं अंि में नहीं बन्त पूणमता, समग्रता व
सावमभौलमकता में लव ास करता हाँ समग्र ब्र ाਔ लनर र फैल रहा है मानव जालत को भी अपने मन्त और
हृदय को फैला कर लव ृत करना होगा तभी लवकास, िान्त , एकता व न्त थरता आयेगी तो मैं उन लोगों से कहना
चाहता हाँ लक भारत को समझने के ललए “भारत माता” में ज लेना पड़ता है और “भारत माता” आलीिान कोठीयों
में नहीं गााँ वों, झोपलड़यों व जंगलों में लमलती हैं और वहीं जाना पड़ता है इलतहास साक्षी है ऐसा ही हुआ है केवल
पु कों को पढ़कर भारत को जानना अस व है भारत की समझ कोई प्रापटी (िन-दौलत) नहीं जो लवरासत में ले
ली जाये, यह अनेक ज ों का फल होता है लोगों का ऐसा भी कहना है लक जब यह “लव िा ” है तो इसमें भारत

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 16


के बाहर के दे िों के दािमलनकों को थान क्ों नहीं लदया गया? इस प्र के उ र में मैं यह कहना चाहता हाँ लक
“लव िा ” एकीकृत सावमभौम स -लस ा का िा है न लक लवचारों का मनु समाज में लवचार आिाररत
चाहे लजतनी बड़ी क्रान्त या समथमन क्ों न प्रा कर ललया जाये वह सावमभौम स -लस ा नहीं हो सकता, वह
एक घटना अव हो सकती है संसार के सभी दािमलनक यलद अपने दिमन को सावमभौम एकीकृत करें गे तो उ ें
भारतीय दिमन में ही अपना अन्त म सं ार करवाना पड़े गा लवचारों की मृ ु ही स है अथाम त स , एक लवचार
नहीं बन्त आ सात् करने का लवर्य है
सन् 1893 से सन् 1993 के 100 वर्ों के समय में लव के बौन्त क िन्तक्त को लज ोंने सबसे अलिक
हलचल दी वे हैं -िमम की ओर से ामी लववेकान और िालममकता की ओर से आचायम रजनीि “ओिो” मनु
लजस प्रकार भौलतक लव৯ान के नवीन आलव ारों को आसानी से ग्रहण करता है उसी प्रकार िमम -आ ा -दिमन
के नवीन आलव ारों को भी मनु को ग्रहण करना चालहए, तभी मानलसक-आ ान्त क त ता का अनुभव हो
सकेगा अ था पूणम िारीररक गुलामी का समय बीत चुका, आलथमक गुलामी का काल चल रहा है और मानलसक
गुलामी के काल चक्र में मनु फाँस जायेगा ामी लववेकान जी का कहना था-” उसी मूल स की लफर से
लिक्षा ग्रहण करनी होगी, जो केवल यहीं से, हमारी इसी मातृभूलम से प्रचाररत हुआ था लफर एक बार भारत को
संसार में इसी मूल त का-इसी स का प्रचार करना होगा ऐसा क्ों है ? इसललए नहीं लक यह स हमारे िा ों
में ललखा है वरन् हमारे रा र ीय सालह का प्र ेक लवभाग और हमारा रा र ीय जीवन उससे पूणमतः ओत-प्रोत है इस
िालममक सलह ुता की तथा इस सहानुभूलत की, मातृ भाव की महान लिक्षा प्र ेक बालक, ी, पुरुर्, लिलक्षत,
अलिलक्षत सब जालत और वणम वाले सीख सकते हैं तुमको अनेक नामों से पुकारा जाता है , पर तुम एक हो ”
(लजतने मत उतने पथ, रामकृ लमिन, पृ -39) आचायम रजनीि “ओिो” का कहना था-” िीकृ का मह
अतीत के ललए कम भलव के ललए ৸ादा है सच ऐसा है लक िीकृ अपने समय से कम से कम पााँ च हजार वर्म
पहले पैदा हुये सभी मह पूणम न्तक्त अपने समय से पहले पैदा होते हैं और सभी गैर मह पूणम न्तक्त अपने
समय के बाद पैदा होते हैं बस मह पूणम और गैर मह पूणम में इतना फकम है और सभी सािारण न्तक्त अपने
समय के साथ पैदा होते हैं मह पूणम न्तक्त को समझना आसान नहीं होता उसका वतममान और अतीत उसे
समझने में असमथमता अनुभव करता है जब हम समझने यो৓ नहीं हो पाते तब हम उसकी पूजा िुरु कर दे ते हैं या
तो हम उसका लवरोि करते हैं दोनों पूजाएं हैं एक लमत्र की एक ित्रु की ” , “इस दे ि को कुछ बाते समझनी होगी
एक तो इस दे ि को यह बात समझनी होगी लक तु ारी परे िालनयों, तु ारी गरीबी, तु ारी मुसीबतों, तु ारी दीनता
के बहुत कुछ कारण तु ारे अंि लव ासों में है , भारत कम से कम डे ढ़ हजार साल लपछे लघसट रहा है ये डे ढ़
हजार साल पूरे होने जरूरी है भारत को न्तखंचकर आिुलनक बनाना जरूरी है मेरी उ ुकता है लक इस दे ि का
सौभा৓ खुले, यह दे ि भी खुिहाल हो, यह दे ि भी समृ हो क्ोंलक समृ हो यह दे ि तो लफर िीराम की िुन
गुंजे, समृ हो यह दे ि तो लफर लोग गीत गााँ ये, प्रभु की प्राथमना करें समृ हो यह दे ि तो मंलदर की घंलटया लफर
बजे , पूजा के थाल लफर सजे समृ हो यह दे ि तो लफर बााँ सुरी बजे िीकृ की, लफर रास रचे! यह दीन दररद्र
दे ि, अभी तुम इसमें िीकृ को भी ले आओंगे तो रािा कहााँ पाओगे नाचनेवाली? अभी तुम िीकृ को भी ले
आओगें, तो िीकृ बड़ी मुन्त ल में पड़ जायेंगे, माखन कहााँ चुरायेगें? माखन है कहााँ ? दू ि दही की मटलकया कैसे
तोड़ोगे? दू ि दही की कहााँ , पानी तक की मटलकया मुन्त ल है नलों पर इतनी भीड़ है ! और एक आि गोपी की
मटकी फोड़ दी, जो नल से पानी भरकर लौट रही थी, तो पुललस में ररपोटम दजम करा दे गी िीकृ की, तीन बजे रात
से पानी भरने खड़ी थी नौ बजते बजते पानी भर पायी और इन स৪न ने कंकड़ी मार दी िमम का ज होता है जब
दे ि समृ होता है िमम समृ की सुवास है तो मैं जरूर चाहता हाँ यह दे ि सौभा৓िाली हो लेलकन सबसे बड़ी
अड़चन इसी दे ि की मा ताएं है इसललए मैं तुमसे लड़ रहा हाँ तु ारे ललए ”
वतममान में जीने का अथम होता है -लव ৯ान जहााँ तक बढ़ चुका है वहााँ तक के ৯ान से अपने मन्त को
युक्त करना तभी डे ढ़ हजार वर्म पुराने हमारे मन्त का आिुलनकीकरण हो पायेगा लसफम वतममान में तो पिु
रहकर कमम करते हैं यह िा मनु के मन्त के आिुलनकीकरण का िा है या लव৯ान की भार्ा में कहें तो

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 17


मन्त के आिुलनकीकरण का सा वेयर या माइक्रो लच (Integrated Circuit-I.C) है वतममान की अब
नवीनतम पररभार्ा है -पूणम ৯ान से युक्त होना और कायमिैली की पररभार्ा है -भूतकाल का अनुभव, भलव की
आव कतानुसार पूणम৯ान और पररणाम ৯ान से युक्त होकर वतममान समय में कायम करना
अपने स कों व समाज के न्तक्तयों से मुझे यह भी सूचना प्रा हुई लक दु लनया बहुत तेज (फा ) हो गई
है 1500 पृ का पु क पढ़ने का समय लकसके पास है ? मुझे बहुत ही आ यम होता है एक तरफ मनु के पूरे
मन्त को आिुलनक करना है लजसके न होने से वह अपने कमों का लज े दार ई र को बनाता है , दू सरी तरफ
उसे पढ़ने का समय नहीं है तो मैं उनसे कहता हाँ मागम या रा ा बनाने वाला, मागम इसललए बनाता है लक लोग
उसपर चलकर अपनी मंलजल तय करें गे बस उसका इतना ही िमम होता है चलने वाला अगर न चले तो मागम
बनाने वाला दोर्ी नहीं होता और वह अपनी लज े दारी से मुक्त भी होता है मैंने लसफम मागम बनाया है जो इस िा
के रूप में आपके सामने है हााँ इतना जरूर करू ाँ गा लक मार् ग बन गया है इसकी सूचना समाज में अलिकतम क्षेत्र
तक पहुाँ चाने की कोलिि करू ाँ गा मेरा यही कमम है लजसे मैं करू ाँ गा एक न्तक्त सामा तः यलद ातक
(ग्रेजुएिन) तक पढ़ता है तो वह लकतने पृ पढ़ता होगा और क्ा पाता है ? लवचारणीय है एक न्तक्त इं लजलनयर व
डाक्टर बनने तक लकतना पृ पढ़ता है ? यह तो होती है कैररयर की पढ़ाई इसके अलावा कहानी, कलवता, उप ास,
लफ इ ालद के पीछे भी मनु अपना समय मनोरं जन के ललए तीत करता है और सभी एक चमਚार के
आगे नतम क हो जाते हैं तो पूणम मानलसक त ता कहााँ है ? लवचारणीय लवर्य है वैसे भी मैं यहााँ कर दे ना
चाहता हाँ लक यह िा तो ৯ान-कमम৯ान का िा है जो प्र ेक न्तक्त की वतममान की आव कता है और
उसकी मह ा िीरे -िीरे ही सही पर ु भलव में बढ़ती ही जायेगी मैंने जहााँ तक दे खा है लक ऐसे न्तक्त लजनका
िनोपाजम न वन्त थत चल रहा है वे ৯ान की आव कता या उसके प्रान्त की आव कता के प्रलत रूलच नहीं लेते
पर ु वे भूल जाते हैं लक ৯ान की आव कता तो उ ें ৸ादा है लजनके सामने भलव पड़ा है और उ ें
आव कता है जो दे ि-समाज-लव के नीलत का लनमाम ण करते हैं मैंने एक आिार तैयार लकया है लजससे आने
वाली पीढ़ी और लव लनमाम ण-लवकास-लव ार के लच क दोनों को एक लदिा प्रा हो सके वे जो मिीनवत् लग
गये हैं वे जहााँ लगे हैं लसफम वहीं लगे रहें , आन्तखर में वे भी तो संसार के लवकास में ही लगे है उ ें न सही उनके बৡों
को तो ৯ान की जरूरत होगी लजसके ललए वे एक ल ा समय और िन उनके ऊपर खचम करते हैं मेरा मानना है
लक गरीबी, बेरोजगारी इ ालद का बहुत कुछ कारण ৯ान, ान, चेतना जैसे लवर्यों का मनु के अ र अभाव होने
से ही होता है मनु जीवन पयम रोजी-रोटी, िनोपाजम न इ ालद के ललए भागता रहता है पर ु यलद मात्र 6 महीने
वह ৯ान, ान, चेतना जैसे लवर्यों पर पहले ही प्रय कर ले तो उसके सामने लवकास के अन मागम खुल जाते हैं
৯ान, ान, चेतना की यही उपयोगीता है लजसे लोग लनरथमक समझते हैं बचपन से अनेक वर्ों तक माता-लपता-
अलभभावक अपने बৡों के लव ालय में िन भेजते हैं , बৡा वहााँ से कौन सा सामान लाता है , लवचारणीय लवर्य है ?
तेज इलेक्टरालनक संचार मा म के मोबाइल व इ रनेट के इस दु लनया में यह भी दे खने को लमलता है लक
लड़के-लड़कीयााँ अने कों लड़के-लड़कीयााँ से बात करते हुये यं को िीकृ -गोपीयों के भाव में दे खने लगते हैं
पर ु उ ें जानना चालहए लक िीकृ -गोलपयों का भाव लसफम यहीं तक सीलमत नहीं था िीकृ केवल गोलपयों से
बात ही नहीं करते थे बन्त उ ें एका की सवोৡ अनुभूलत का अनुभव भी कराते थें साथ ही िीकृ न्तक्तगत
रूप से योगे र अथाम त सभी योगों की लवलि से युक्त, लमत्र, प्रेमी, सम यी इ ालद तथा सामालजक रूप से
राजनीलत৯, कूटनीलत৯, दािमलनक, नवसृजन करने के ललए स क कमम , स क ৯ान व ान इ ालद गुणों से भी
युक्त थे इसललए उन लड़के-लड़कीयों से लविेर् लनवेदन हैं िीकृ के अपने ललए उपयोगी एक अंि गुण को
िारण कर न बन्त स ूणम िीकृ बनने की ओर बढ़े तो उनके ललए भी तथा रा र के ललए भी उपयोगी होगा
इस छोटे से कायम को स करने में सबसे आसान बात यह थी लक प्र ेक मनु अपनी-अपनी
आव कताओं को प्रा करने के ललए इतना अलिक था लक वह ापक सावमजलनक सोच से बहुत दू र हो
चुका था जो नौकरी पेिा थे वे कायम लकये , वेतन ललए और िेर् समय वेतन वृन्त और उससे स न्त त चचाम में ही
रहते थे जो लव लव ालयों के प्रोफेसर-लेक्चरर थे वे केवल अपना कतम लनवाम ह कर रहे थे वे लवचारक थे

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 18


पर ु खोज के ललए ागी न थे जो लव ाथी थे वे उतना ही ৯ान प्रा इसललए कर रहे थे लजतने से वे एक अৢा
कैररयर प्रा कर अपने सुनहरे सपनों को साकार कर सकें जो िमाम चायम थे वे केवल वही पुराने िा ों पर ही
ाূान करने में थे जो राजनेता थे उ ें लसफम वोट बैंक व पद की लच ा थी और आम जनता चुपचाप सभी
को ढोने में थी, लजतना वजन लाद दो सब ढ़ोने के ललए तैयार और उ ीद सरकार से समय बदल चुका है
अब लव -भारत को नये महापुरूर् की आव कता है जो लजस लवर्य के ललए अपना समय खचम करता है , समय
भी उसी लवर्य में उसे फल दे ता है मेरे जीवन की यह एक अलग यात्रा इसी िा के पीछे समय खचम करने में
लगी और समय ने फलरूप से यह िा लदया है
यह पृ ी, मन्त र रूपी मेरा घर है जहााँ सोने व भोजन के ललए गुरू ारा है , समय से जोड़ने के ललए
मन्त द की पुकार है , प्रेम व कमम करने के ललए सारी पृ ी है और गलती हो तो प्रायल त करने के ललए लगरजाघर
(चचम) है ऐसे घर में कौन नहीं रहना चाहे गा? मैं तो इस घर में आने के ललए हजारों वर्ों से प्रतीक्षा कर रहा था और
अब मैं आकर संतु , सुखी और मुन्तक्त की कामना के ललए आ हाँ अब आने वाले समय में जब भी एक आदिम
वैल क समाज का लनमाम ण करना हो तो लकसी भी दे ि या लव के ललए रा र ीय-वैल क गीत या गान ऐसा होना चालहए
जो नागररकों में कतम और जोि की भावना का संचार करने वाली हो, न लक गुणगान, अलभन न, भन्तक्त, हीनता,
भा৓वाद और अकममਘता की भावना भरने वाली अपरालिक कानून िारीररक, आलथमक व मानलसक अपराि के
बढ़ते क्रम में कड़े दਔ दे ने वाली और ाय समय सीमा में ब हो इसी आिार पर नागररकों के उनके लवकास के
ललए लविेर् अलिकार प्रा हो जो ी-पुरूर् के भेद-भाव से मुक्त हो साथ ही पूणम৯ान का ৯ानाजमन सबके ललए
खुला हो सभी जीवों की भााँ लत मनु को भी भोजन का ज लस अलिकार प्रा हो साथ ही ऐसे तमाम लब दु ओं
को खोला जाय जहााँ िन के आदान-प्रदान की गलत बालित हो रही हो या इक਄ा हो रहा हो क्ोंलक आदान-प्रदान ही
लवकास है , रूकना ही लवनाि है
“लव िा ” , लवकास क्रम के उ रो र लवकास के क्रलमक चरणों के अनुसार ललन्तखत है लजससे एक प्रणाली के
अनुसार पृ ी पर हुये सभी ापार को समझा जा सके फल रूप मनु के समक्ष ापार के अन मागम खुल
जाते हैं लकसी भी लसनेमा अथाम त लफल् म को बीच-बीच में से दे खकर डायलाग की भावना व कहानी को पूणमतया
नहीं समझा जा सकता मनु समाज में यही सबसे बड़ी सम ा है लक न्तक्त कहीं से कोई भी लवचार या वक्त
या कथा उठा लेता है और उस पर बहस िुरू कर दे ता है जबलक उसके प्रार और क्रलमक लवकास को जाने
लबना समझ को लवकलसत करना अस व होता है ৯ान सूत्रों का संकलन और उसे चार वेदों में लवभाजन, उसे
समझने -समझाने के ललए उपलनर्द् , पुराण इ ालद के वगीकरण व क्रलमक लवकास का कायम सदै व चलता रहा है
काल और युग के अनुसार यह कायम सदै व होता रहा है लजससे समाज के स ीकरण का कायम होता रहा है
सामालजक लवकास के क्षेत्र में पररवतमन, दे ि-काल के पररन्त थलतयों के अनुसार लकया जाता रहा है जबलक स ीकरण
मूल सावमभौम स -लस ा से जोड़कर लकया जाने वाला कायम है स ीकरण, अवतारों की तथा पररवतमन मनु ों
की कायम प्रणाली है इस क्रम में प्रयोग लकया गया िा , अपने सम लपछले िा ों का समथमन व आ सात्
करते हुये ही होता है , न लक लवरोि लकसी भी लवर्य की िन्तक्त सीमा लनिाम ररत करना, उसका लवरोि नहीं होता
बन्त उसे और आगे लवकलसत करने के लब दु को लनिाम ररत करता है
अलिकतम न्तक्त ऐसा सोचते हैं लक ৯ान का अ नहीं हो सकता और न्तक्त ऐसा भी मानते हैं लक
लजसका ज (प्रार ) हुआ है उसका मृ ु (अ ) भी होता है इस प्रकार यलद ৯ान का प्रार हुआ है तो उसका
अ भी होगा इस स में ामी लववेकान जी का कहना है लक “लव৯ान एक की खोज के लसवा और कुछ
नहीं है ৸ोंही कोई लव৯ान िा पूणम एकता तक पहुाँ च जायेगा, ोंही उसका आगे बढ़ना रुक जायेगा क्ोंलक तब
तो वह अपने लশ को प्रा कर चुकेगा उदाहरणाथम रसायनिा यलद एक बार उस एक मूल द्र का पता लगा
ले, लजससे वह सब द्र बन सकते हैं तो लफर वह और आगे नहीं बढ़ सकेगा पदाथम लव৯ान िा जब उस एक
मूल िन्तक्त का पता लगा लेगा लजससे अ िन्तक्तयां बाहर लनकली हैं तब वह पूणमता पर पहुाँ च जायेगा वैसे ही िमम
िा भी उस समय पूणमता को प्रा हो जायेगा जब वह उस मूल कारण को जान लेगा जो इस म लोक में एक

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 19


मात्र अमृत रुप है जो इस लन पररवतमनिील जगत का एक मात्र अटल अचल आिार है जो एक मात्र परमा ा
है और अ सब आ ाएं लजसके प्रलतलब रुप हैं इस प्रकार अनेके रवाद, ै तवाद आलद में से होते हुये इस
अ ै तवाद की प्रान्त होती है िममिा इससे आगे नहीं जा सकता यही सारे लव৯ानों का चरम लশ है (राम
कृ लमिन, लह दू िमम, पृ -16) यह समझना होगा लक िमम के स में अलिक और कुछ जानने को नहीं, सभी
कुछ जाना जा चुका है जगत के सभी िमम में, आप दे न्तखयेगा लक उस िमम में अवल नकारी सदै व कहते हैं , हमारे
भीतर एक एक है अतएव ई र के सलहत आ ा के एक ৯ान की अपेक्षा और अलिक उ लत नहीं हो सकती
৯ान का अथम इस एक का आलव ार ही है यलद हम पूणम एक का आलव ार कर सकें तो उससे अलिक
उ लत लफर नहीं हो सकती (राम कृ लमिन, िमम लव৯ान, पृ -7) “ इस प्रकार हम पाते है लक ৯ान का अथम लसफम
सावमभौम एक है लजसका अ “सावमभौम स ” के रूप में “गीता” ारा तथा “सावमभौम स -लस ा ” के रूप में
“लव िा ” ारा हो चुका है इस ৯ान के अलावा सभी ৯ान, लव৯ान, तकनीकी तथा समाज का ৯ान है अभी ৯ान
का अ हुआ है लफर लव৯ान के ৯ान का अ होगा और उसके बाद तकनीकी के ৯ान का भी अ हो जायेगा
लव৯ान के अ “गाड पाटीकील” अथाम त एक ऐसा कण जो ई र की तरह हर जगह है और उसे दे ख पाना मुन्त ल
है लजसके कारण कणों में भार होता है , के खोज के ललए ही जेनेवा (न्त ट् जरलैਔ- फ्ां स सीमा पर) में यूरोलपयन
आगमनाइजेिन फार ून्तियर ररसचम (सनम ) ारा रूपये 480 अरब के खचम से महामिीन लगाई गई है लजसमें
15000 वै৯ालनक और 8000 टन की चु क लगी हुई है
लवलभ स दाय (िमम ), जालत, मत, दिमन इ ालद में लवभालजत इस मानव समाज में वतममान तथा आने वाले
भलव के समय की मूल आव कता है -मानव के मनों का एकीकरण अथाम त मानव मन का भूमਔलीकरण एवं
ब्र ाਔीयकरण इसकी आव कता इसललए भी है क्ोंलक मानव अपने लव৯ान व तकनीकी ৯ान से प्रा संसािनों
का प्रयोग करते हुये , एक तरफ तो ब्र ाਔ की ओर चल पड़ा है तो दू सरी तरफ लव ंस के ललए अनेक हलथयारों
का भी लनमाम ण कर चुका है ऐसी न्त थलत में हमें लनल त रूप से ऐसे एकीकरण की आव कता है लजससे हम इस
पृ ी से मानलसक र के लववादों को समा कर सकें
माया स ता के अनुसार लव के मानव समाज यह भी मान रहें थें लक 21 लदस र, 2012 को दु लनया का
अ हो जायेगा जबलक लह दू िमम िा लव ु पुराण, भागवत पुराण, अल্ पुराण, गरूड़ पुराण, प पुराण इ ालद
में भगवान के दसवें और महाअवतार “कन्त ” का होना अभी िेर् है लजनसे कललयुग के अंिकार व लवनाि को
समा करने का कायम स होगा, साथ ही स युग का आर होगा लसक्ख िमम के पलवत्र ग्र “दिम् ग्र ” में
भी “कन्त अवतार” का वणमन लमलता है सृजन और लवनाि का र िारीररक, आलथमक व मानलसक होता है जो
एक न्तक्त, समाज, दे ि और लव रा र के ललए होता है न्तक्त पर हुये िारीररक, आलथमक व मानलसक सृजन और
लवनाि को न्तक्त ही अनुभव करता है पर ु समाज, दे ि और लव रा र पर हुये िारीररक, आलथमक व मानलसक
सृजन व लवनाि को सावमजलनक रूप से सभी दे खते है समाज, दे ि और लव रा र पर िारीररक व आलथमक सृजन
और लवनाि वतममान में तो चल ही रहा है लजसे सावमजलनक रूप से मानव समाज दे ख रहा है
भौलतकवादी पल मी सं ृ लत लकसी भी सृजन व लवनाि को मानलसक र पर सोच ही नहीं सकता क्ोंलक
वह सम लक्रयाकलाप को वा जगत में ही घलटत होता समझता व समझाता है जबलक वतममान समय मानलसक
र पर लवनाि व सृजन का है इस आिार पर यह कहा जा सकता है लक माया स ता के अनुसार 21 लदस र,
2012 को जो लवनाि व सृ जन होना था, वह मानलसक र का ही है लजसके पररणाम रूप सभी स दाय, मत,
दिमन एक उৡ र के लवचार या स में लवलीन अथाम त लवनाि को “लव िा ” से प्रा कर चुका है फल रूप
उৡ र के लवचार या स में थालपत होने से सृजन का मागम खुल चुका है कुल लमलाकर माया स ता के
कैलेਔर का अ लतलथ 21 लदस र, 2012, दु लनया के अ की लतलथ नहीं थी बन्त वह वतममान युग के अ की
अन्त म लतलथ और नये युग के आर की लतलथ थी ई र भी इतना मूखम व अ৯ानी नहीं है लक वह यं को इस
मानव िरीर में पूणम क्त लकये लबना ही दु लनया को न कर दे इसके स में लह दू िमम िा ों में सृल के
प्रार के स में कहा गया है लक- “ई र ने इৢा क्त की लक मैं एक हाँ , अनेक हो जाऊाँ” इस प्रकार जब

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 20


वही ई र सभी में है तब लनल त रूप से जब तक सभी मानव ई र नहीं हो जाते तब तक दु लनया के अ होने का
कोई प्र ही नहीं उठता और लवकास क्रम चलता रहे गा 21 लदस र, 2012 के बाद का समय नये युग के प्रार
का समय है लजसमें ৯ान, ान, चेतना, भाव, जन, दे ि, लव रा र , आ ान्त क जागरण, मानवता इ ालद का
लव ापी लवकास होगा पररणाम रूप सभी मानव को ई र रूप में थालपत होने का अवसर प्रा होगा और
यही लव मानव समाज की मूल आव कता है प्राचीन वैलदक काल में समाज को लनयंलत्रत करने के ललए ৯ानाजमन
सबके ललए खुला नहीं था पर ु वतममान और भलव की आव कता यह है लक समाज को लनयंलत्रत करने के ललए
सभी को पूणम ৯ान से युक्त कर सभी के ललए ৯ान को खोल लदया जाय यही कारण था लक वेद को प्रतीका क रूप
में ललख कर गुरू-लि पर रा ारा उसकी ाূा की जाती रही थी लजससे राजा और समाज को लनयंत्रण में
रखा जा सके
ई र, अवतार व गुरू के स में समझ पैदा करने के ललए ामी लववेकान जी का कहना है -” लजस
प्रकार मानवी िरीर एक न्तक्त है और उसका प्र ेक सूक्ष्म भाग लजसे हम “कोि” कहते हैं एक अंि है उसी
प्रकार सारे न्तक्तयों का समल ई र है , य लप वह यं भी एक न्तक्त है समल ही ई र है , ल या अंि जीव
है इसललए ई र का अन्त जीवों के अन्त पर लनभमर है जैसे लक िरीर का उसके सूक्ष्म भाग पर और सूक्ष्म
भाग का िरीर पर इस प्रकार जीव और ई र पर रावल ी हैं जब तक एक का अन्त है तब तक दू सरे का
भी रहे गा और हमारी इस पृ ी को छोड़कर अ सब उाँ चे लोकों में िुभ की मात्रा अिुभ से अलिक होती है
इसललए वह समल रुप ई र लिव रुप, सवमिन्तक्तमान और सवम৯ कहा जा सकता है ये गुण प्र क्ष प्रतीत होते
हैं ई र से स होने के कारण उ ें प्रमाण करने के ललए तकम की आव कता नहीं होती ब्रह्म इन दोनों से
परे है और वह कोई लवलि अव था नहीं है वह एक ऐसी व ु है जो अनेकों की समल से नहीं बनी है वह एक
ऐसी स ा है जो सूक्ष्मालतत-सूक्ष्म से लेकर ई र तक सब में ा है और उसके लबना लकसी का अन्त नहीं हो
सकता सभी का अन्त उसी स ा या ब्र का प्रकाि मात्र है जब मैं सोचता हाँ “मैं ब्र हाँ ” तब मेरा यथाथम
अन्त होता है ऐसा ही सबके बारे में है लव की प्र ेक व ु रुपतः वही स ा है (पत्रावली भाग-2, पृ -18, राम
कृ लमिन) “, “सबका ामी (परमा ा) कोई न्तक्त लविेर् नहीं हो सकता, वह तो सबकी समल रुप ही
होगा वैरा৓वान मनु आ ा ि का अथम न्तक्तगत” मैं” न समझकर, उस सवम ापी ई र को समझता है जो
अ याम मी होकर सबमें वास कर रहा हो वे समल के रुप में सब को प्रतीत हो सकते हैं ऐसा होते हुये जब जीव
और ई र रुपतः अलभ हैं , तब जीवों की सेवा और ई र से प्रेम करने का अथम एक ही है यहााँ एक लविेर्ता है
जब जीव को जीव समझकर सेवा की जाती है तब वह दया है , लक ु प्रेम नहीं पर ु जब उसे आ ा समझकर
सेवा करो तब वह प्रेम कहलाता है आ ा ही एक मात्र प्रेम का पात् र है , यह िुलत, ृलत और अपरोक्षानुभूलत से
जाना जा सकता है (पत्रावली, भाग-2, पृ -109, राम कृ लमिन) “, “स ईिोऽलनवमचनीयप्रेम रुपः “-ई र
अलनवमचनीय प्रेम रुप है नारद ारा वणमन लकया हुआ ई र का यह लक्षण है और सब लोगों को ीकार है
यह मेरे जीवन का ढ़ लव ास है बहुत से न्तक्तयों के समूह को समल कहते हैं और प्र ेक न्तक्त, ल
कहलाता है आप और मैं दोनों ल हैं , समाज समल है आप और मैं-पिु, पक्षी, कीड़ा, कीड़े से भी तुक्ष प्राणी, वृक्ष,
लता, पृ ी, नक्षत्र और तारे यह प्र ेक ल है और यह लव समल है जो लक वेदा में लवराट, लहरण गभम या ई र
कहलाता है और पुराणों में ब्र ा, लव ु, दे वी इ ालद ल को न्तक्तिः त ता होती है या नहीं, और यलद
होती है तो उसका नाम क्ा होना चालहए ल को समल के ललए अपनी इৢा और सुख का स ूणम ाग करना
चालहए या नहीं, ये प्र ेक समाज के ललए लचर न सम ाएाँ हैं सब थानों में समाज इन सम ाओं के समािान में
संल্ रहता है ये बड़ी-बड़ी तरं गों के समान आिुलनक पल मी समाज में हलचल मचा रही हैं जो समाज के अलिप
के ललए न्तक्तगत त ता का ाग चाहता है वह लस ा समाजवाद कहलाता है और जो न्तक्त के पक्ष का
समथमन करता है वह न्तक्तवाद कहलाता है (पत्रावली, भाग-2, पृ -288, राम कृ लमिन) “, “ई र उस लनरपेक्ष
स ा की उৡतम अलभ न्तक्त है , या यों कलहए, मानव मन के ललए जहााँ तक लनरपेक्ष स की िारणा करना स व
है , बस वही ई र है सृल अनालद है और उसी प्रकार ई र भी अनालद है (भन्तक्त योग, पृ -13, राम कृ लमिन)” ,

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 21


“यह सारा झगड़ा केवल इस “स ” ि के उलटफेर पर आिाररत है “स ” ि से लजतने भाव सूलचत होते हैं
वे सम भाव “ई र भाव” में आ जाते हैं ई र उतना ही स है लजतनी लव की कोई अ व ु और वा व में,
“स ” ि यहााँ पर लजस अथम में प्रयुक्त हुआ है , उससे अलिक “स ” ि का कोई अथम नहीं यही हमारी ई र
स ी दािमलनक िारणा है (भन्तक्त योग, पृ -21, राम कृ लमिन)” , “गुरु के स में यह जान लेना आव क
है लक उ ें िा ों का ममम ৯ान हो वैसे तो सारा संसार ही बाइलबल, वेद, पुराण पढ़ता है , पर वे तो केवल ि
रालि है िमम की सूखी ठठरी मात्र है जो गुरु ि ाडं बर के चक्कर में पड़ जाते हैं , लजनका मन ि ों की िन्तक्त में
बह जाता है , वे भीतर का ममम खो बैठते हैं जो िा ों के वा लवक ममम৯ हैं , वे ही असल में सৡे िालममक गुरु हैं
(भन्तक्त योग, पृ -32, राम कृ लमिन)” , “हम गुरु लबना कोई ৯ान प्रा नहीं कर सकते अब बात यह है लक यलद
मनु , दे वता अथवा कोई गमदूत हमारे गुरु हो, तो वे भी तो ससीम है ; लफर उनसे पहले उनके गुरु कौन थे? हमें
मजबूर होकर यह चरम लस ा न्त थर करना ही होगा लक एक ऐसे गुरु हैं , जो काल के ारा सीमाब या
अलवन्तৢ नहीं है उ ीं अन ৯ानस गुरु को, लजनका आलद भी नहीं और अ भी नहीं, ई र कहते हैं
(राजयोग, पृ -134, राम कृ लमिन)” , “संसार के प्रिान आचायों में से कोई भी िा ों की इस प्रकार नानालवि
ाূा करने के झमेंले में नहीं पड़ा उ ोनें ोकों के अथम में खींचातानी नहीं की वे ि ाथम और भावाथम के फेर
में नहीं पड़े लफर भी उ ोंने संसार को बड़ी सु र लिक्षा दी इसके लवपरीत, उन लोगों ने लजनके पास लसखाने को
कुछ भी नहीं, कभी एकाि ि को ही पकड़ ललया और उस पर तीन भागों की एक मोटी पुस्तक ललख डाली,
लजसमें सब अनथमक बातें भरी हैं (भन्तक्त योग, पृ -33, राम कृ लमिन)” , “सािारण गुरुओं से िे एक और िेणी
के गुरु होते हैं , और वे हैं -इस संसार में ई र के अवतार वे केवल िम से , यहााँ तक लक इৢा मात्र से ही
आ ान्त कता प्रदान कर सकते हैं उनकी इৢा मात्र से पलतत से पलतत न्तक्त क्षण मात्र में सािु हो जाता है वे
गुरुओं के भी गुरु हैं -नरदे हिारी भगवान हैं (भन्तक्तयोग, पृ -39, राम कृ लमिन)” , “अवतार का अथम है
जीवनमुक्त अथाम त् लज ोंने ब्र प्रा लकया है अवतार लवर्यक और कोई लविेर्ता मेरी ल में नहीं है
ब्र ालद पयम सभी प्राणी समय आने पर जीवनमुन्तक्त को प्रा करें गे, उस अव था लविेर् की प्रान्त में सहायक
बनना ही हमारा कतम है इस सहायता का नाम िमम है बाकी कुिमम है इस सहायता का नाम कमम है बाकी
कुकमम है (पत्रावली भाग-1, पृ -328, राम कृ लमिन) “ इस प्रकार यह अৢी प्रकार समझ लेना चालहए लक
अवतार, गुरू, माता-लपता इ ालद ई र तु हो सकते हैं पर ु ई र नहीं
मैं ही इस िा का लवचारक हाँ , आलव ारक हाँ , प्रारूप एवं थापनाथम नीलत लनिाम रणकताम हाँ ,
लललपब कताम हाँ , स ादक हाँ , यहााँ तक लक क ूटराइ৲ टाइप सेलटं गकताम भी हाँ और इसमें मैं यं हाँ मैंने इस
िा के मा म से यं को “अन्त म, पूणाम वतार और महावतार कन्त ” , लजसे मेरे ज से पहले ही समाज ने
स ोलित कर रखा है , प्र ुत लकया है और वह इसललए लकया है लक मेरे जीवन, ৯ान व कमम तथा संसार-समाज में
उपल आकड़ें इस ओर ही लनदे ि करते हैं और उसे मैंने पूरी ईमानदारी, लन क्षता और सवम ापकता के साथ
प्र ुत लकया है यह पद समाज का एक मात्र सवोৡ और अन्त म पद है जो मेरे िरीर िारण के पूवम ही समाज
ारा सृलजत है लजस पर कोई भी यो৓ता प्र ुत कर अपने को थालपत कर सकता है लजसका लनणमय वोटों (मत
पत्रों या एस.एम.एस) ारा नहीं बन्त यो৓ता ारा तय होना है लजसके अनेक घोलर्त दावेदार है लज ें
इ रनेट (www.google.com, www.youtube.com) पर “कन्त अवतार (KALKI AVATAR)” सचम कर दे खा
जा सकता है और मुझे और िा के लवर्य में लव कुि लसंह “लव मानव” , स कािी, लव िा , लव मानव
(LAVA KUSH SINGH “VISHWMANAV” , SATYAKASHI, VISHWSHASTRA, VISHWMANAV) इ ालद से
पाया जा सकता है उनमें से एक मैं भी हाँ -नाम, रूप, गुण, कमम से यो৓ और ऐसा कोई प्रमाण नहीं लमलता लक यह
सब मेरे ारा इस जीवन में अलजमत लकया गया है इस िा के मा म से मैंने इसे लस लकया है और लजसे समाज
के मुझे जानने वाले दे ख भी रहे हैं और मैं सत् य रूप में यही हाँ -मानो या न मानो या जब समझ में आये तभी से
मानो या न भी मानो तो कम से कम न्तक्त, दे ि व लव के लवकास के ललए “लव िा ” में कुछ उपयोगी हो तो
ग्रहण कर लो, या जो समझ में आये वो करो प्र ेक लवर्य के दो पहलू होते हैं और वे एक दू सरे को पूणमता प्रदान

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 22


करते है अंिकार है तो प्रकाि है , मुद्रा (भारत में रूपया) लजसके पीछे मनु ों का सारा जीवन संघर्ममय रहता है
वह भी दोनों तरफ से स न हो तो बेकार होता है इसी प्रकार साकार है तो लनराकार है , लनराकार है तो साकार
है चाहे तो मुझे साकार लव ा ा समझ सकते हो कुछ नहीं समझ सकते तो िालतर अपरािी, भ्र ाचारी,
आं तकवादी की तरह इस सम अन्त के भोग के ललए योगमाया का प्रयोग करने वाला िालतर चालाक,
बुन्त मान और मह ाकां क्षी तो समझ ही सकते हो, लेलकन कुछ न कुछ तो समझना ही पड़े गा क्ोंलक कायम रूप में
यह “लव िा ” आपके समक्ष है तो कारण को कुछ न कुछ तो नाम दे ना ही पड़े गा हम सभी िीराम और िीकृ
के होने न होने पर अ हीन तकम व बहस प्र ुत कर सकते हैं पर ु वान्त लक, महलर्म ास और गो ामी
तुलसीदास के न होने पर पर तकम नहीं दे सकते क्ोंलक उनकी कृलत क्रमिः रामायण, महाभारत और
रामचररतमानस हमारे समक्ष उपन्त थत है इन कृलतयों में उनके नायक उनसे अलग थे इसललए नायक का होना, न
होना तकम का लवर्य था पर ु इस “लव िा ” का नायक और इसका रचनाकार मैं यं हाँ अब यह भी एकीकृत
है
अभी तक लजतने अवतार हुये , उ ें लोग उनके कमम करके जाने के बाद ही जान पाये हैं कन्त अवतार
एक ऐसा अन्त म अवतार है लजसके कमम पहले से ही लनिाम ररत है और समय इतना भ्रलमत लकया गया है लक कन्त
अवतार आ कर व अपना कायम पूणम कर चले भी जायें तो भी समाज उनकी प्रलतक्षा ही करता रह जायेगा लबना यु
के ही लवजय प्रा करके जाने की सुलविा इस अन्त म अवतार-कन्त अवतार को प्रा होगी और वह समाज ारा
तब जाना जायेगा जब उसके कमम के उपयोग के लबना सम ाओं का हल और लवकास स व न होगा ब्र ाਔ की
सम गलत गोलाकार होते हुये लवकास क्रम तरं गाकार रूप में क्त है मनु के सकारा क सोच की गलत भी
गोलाकार और लवकास क्रम तरं गाकार रूप में ही है “लव िा ” वही गोलाकार चक्कर है जहााँ तक मनु अपने
तरं गाकार लवकास क्रम की गलत से इसमें ही अन्त म गलत करे गा जब भी “ ” या “जन” या “लोक” के “राज” या
“त ” की स थापना करनी होगी, उस समय लबना “लव िा ” से मागमदिमन प्रा लकये स व नहीं हो सकेगा
तब “कन्त अवतार” कौन है ?, कौन था?, क्ों है ?, क्ों था? जैसे लवर्यों का हल यं ही प्रा हो जायेगा 100
प्रलतित साकार से साकार का यु िीराम कर चुके है 50-50 प्रलतित साकार और लनराकार का यु िीकृ
कर चुके हैं अब 100 प्रलतित लनराकार से लनराकार का यु का क्रम है और इस यु से जो प्रकािमय लचंगारी
लनकलेगी, उससे इस मागम की सूचना सभी को लमलेगी और मागम लदखाई दे गा, लजसपर मानव अपनी ई रीय मानव
बनने की यात्रा प्रार करें गे यह यु आव क है क्ोंलक अवतारों को पहचानना, जानना और मानना यं
मनु ों के भी वि की बात नहीं इतनी आसानी से पहचानना, जानना और मानना हो जाता तो न रामायण होती, न
महाभारत होता और न ही लव भारत समालहत यह “लव िा ” होता ान दे ने के यो৓ यह है लक-स से कुछ
भी नहीं छोड़ा जा सकता और स के ललए सब कुछ ागा जा सकता है
मुझे कभी भी ऐसा कोई खेल पस नहीं था लजसमें बार-बार हार और जीत होती रहे मैंने एक यही खेल
खेला-एक बार हार या एक बार जीत लजसके ललए मैंने अपने जीवन के 20 वर्म (सन् 1992-2012) सभी सां साररक
कमम को करते हुये लगाये लजसमें इस कायम का मुূ कायमकाल अक्टु बर, 1995 से लदस र, 2001 तक (िा
का मूल लस ा का लेखन समय) तथा जुलाई, 2010 से लदस र, 2012 तक रहा है इस समय में हमारे हम उम्र
पररलचतों में से अनेक ने अৢी नौकरी व अৢा िन अलजमत लकये उनको दे खकर मुझे बहुत खुिी होती है जब भी
उ ें यह पता चले लक मैंने यह कायम लकया है और उनका एक पररलचत भी “अन्त म अवतार” के ओलन्त क खेल का
एक प्रलतभागी है तो उ ें भी खुिी होगी ऐसी आिा करता हाँ बहुत से मेरे पररलचत न्तक्त जो मुझसे लसफम पररलचत
हैं और ऐसे पररलचत लज ें इस िा के पूणम करने के समय तक भी, उनका कोई योगदान इस सकारा क िृंखला
के यो৓ नहीं हो सका इसका मुझे अ दु ःख है मेरे अनेक िुभलच क समय-समय पर मुझे अनेक
जीवकोपाजमन के उपाय सुझाते रहे , लजससे मैं एक सुखमय जीवन प्रा कर सकूाँ मैं उनका सदै व आभारी हाँ पर ु
उनके सुझावों पर मैं कभी नहीं चल पाया इसका मुझे दु ःख है मैं “कन्त अवतार” के यो৓ हाँ या नहीं यह बाद की
बात है लेलकन वतममान में इससे यह लाभ है लक समाज इस पद की यो৓ता के ललए चचाम व लचंतन अव करे गा

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 23


लजसका फल ৯ान के लवकास के रूप में समाज को प्रा होगा मेरे लवचार से “नेिनल साइबर ओलंलपयाड
(NCO)” , “नेिनल साइं स ओलंलपयाड (NSO)” , “इ रनेिनल मैंथमेंलटস ओलंलपयाड (IMO)” , “इ रनेिनल
इं न्त৕ि ओलंलपयाड (IEO)” की भााँ लत “लव कन्त ओलंलपयाड (WKO)” का भी आयोजन होना चालहए लजससे इस
लव के एकीकरण, िान्त , एकता, न्त थरता, लवकास, सुरक्षा, थ लोकत , थ उ ोग व पूणम लिक्षा के ललए
मन्त की खोज हो सके
सभी मानव को ई र रूप में थालपत होने के ललए जो मा म चालहए वह है - “स लिक्षा” से मानव को
लिलक्षत करना इस आव कता हे तु ही “पुनलनममाम ण-स लिक्षा का रा र ीय तीव्र मागम (RENEW - Real Education
National Expresas Way)” का कायमक्रम बनाया गया है लजससे इस लवर्य को लबना लिक्षा पाਉक्रम बदले अलग
से पूरक लिक्षा के रूप में नागररकों तक पहुाँ चाया जा सके और भलव में लिक्षा पाਉक्रम में अलनवायम रूप से
अ यन के ललए िालमल कराया जा सके
िा को पूणम करने के उपरा इसके गुणों के आिार पर िमम और िममलनरपेक्ष एवं सवमिममसमभाव क्षेत्र
से अनेकों नाम लनकलकर आये जो क्ों हैं , इसका भी ीकरण इस िा में लदया गया है लफर भी एक सवोৡ
और सवममा नाम की आव कता थी इसललए इस िा का नाम “लव िा ” रखा गया तथा एक संलक्ष वाक्
(Tag Line) के लवचार पर पााँ च वाक् 1. “लव का अन्त म ৯ान (The final knowledge of world)” , 2. “भारत
का अन्त म ৯ान (The final knowledge of India)” , 3. “৯ान का अ (The end of knowledge)” , 4.
“अन्त म कायम योजना का ৯ान (The knowledge of final action plan)” , 5. “अन्त म ৯ान का ৯ान (The
Knowledge of final knowledge)” और 6. “৯ान समकक्षीकरण (The knowledge Equalizer)” सामने आये
लजस पर “लव िा ” के समीक्षक य डा0 िीराम ास लसंह व डा0 क ै या लाल के लवचारों से संलक्ष वाक्
“अन्त म ৯ान का ৯ान (The Knowledge of final knowledge)” के ललए सहमलत क्त की गयी इनके प्रलत मैं
आभारी हाँ
प्र ेक बৡे की भााँ लत मैं भी एक बৡे के रूप से ही इस अव था तक आया हाँ बस आप में और मुझमें यह
अ र है लक मैं अपने बचपन से यं को महान समझता था जो आप भी थे इस महानता को मैंने कभी नहीं भूला
यह अलग बात है लक उसे लस करने में इतने वर्म लग गये पर ु आप लोग भी महान हैं यह बात आप लोग भूल
गये और न ही उसे लस करने की कोलिि की जो िमम की रक्षा करने के ललए यं को कलठन पररन्त थलतयों में
डालता है या कलठन पररन्त थलतयों में भी िमम को नहीं भूलता ई र और िमम उ ीं में अवतररत होता है लजस प्रकार
आप अपने पररवार के संरक्षण, व था और लवकास के ललए सजग रहकर कमम करते हैं उसी प्रकार मैं भी अपने
लव पररवार के ललए सदै व सजग रहकर प्र ेक युग में कमम करता रहा हाँ आपका न्तक्तगत पररवार, हमारे लव
पररवार की इकाई है , इसललए यह न सोचे लक यह कायम आपके ललए नहीं हुआ है
हमें आिा ही नहीं पूणम लव ास है लक आप भी उस मन र और ापक हृदय पर न्त थत होकर ही इस
िा का अ यन, लचतंन व मनन करें गे लजससे आपका मन्त पूणमता को प्रा हो सके आपका मन्त
पूणमता को प्रा करे और इस सु र संसार को और भी सु र बनाने के ललए िारीररक, आलथमक और मानलसक
रूप से सलक्रय हों, यही सबसे बड़ा िमम और िालममक कायम होगा अ में-

मााँफ करना ऐ भारत, मिंवजल पर आया हाँ र्ोड़ी दे र से।


मोहब्बत पड़ावोिं को भी र्ी, हक उनका अदा करना र्ा।

-लव कुश वसिंह “ववश्वमानव”


आववष्कारकताच -मन (मानव सिंसाधन) का ववश्व मानक एविं पूर्च मानव वनमाचर् की तकनीकी
अगला दावेदार-भारत सरकार का सवोच्च नागररक सम्मान -” भारत रत्न”

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 24


“ववश्वशास्त्र” : शास्त्र-सावहत्य समीक्षा
वीर युग के िीराम जो एक स और मयाम दा के लवग्रह, आदिम पुत्र, आदिम पलत, लपता थे वे भी हमारी तरह
भौलतक िरीर वाले ही मनु थे भगवान िीकृ लज ोंने “मैं, अनासक्त कमम और ৯ान योग” , ामी लववेकान
लज ोंने “लव िमम के ललए वेदा की ावहाररकता” , िंकराचायम लज ोंने “मैं और लिव” , महावीर लज ोंने
“लनवाम ण” , गुरू नानक लज ोंने “ि िन्तक्त” , मुह द पैग र लज ोंने “प्रेम और एकता” , ईसामसीह लज ोंने
“प्रेम और सेवा” , भगवान बु लज ोंने “ यं के ारा मुन्तक्त, अलहं सा और ान” जै से लवर्यों को इस ब्र ाਔ के
लवकास के ललए अ ৯ान को रूप में पररवलतमत लकये , वे सभी हमारी तरह भौलतक िरीर वाले ही थे अ
प्राचीन ऋलर्-मुलन गण, गोरख, कबीर, रामकृ परमहं स, महलर्म अरलव , ामी दयान सर ती, आचायम
रजनीि “ओिो” , महलर्म महे ि योगी, बाबा िीरामदे व इ ालद त ता आ ोलन में रानी लक्ष्मी बाई, भगत लसंह,
सुभार् च बोस, लोकमा लतलक, सरदार पटे ल, महा ा गााँ िी, पं 0 जवाहर लाल नेहरू इ ालद त भारत में
डा0 राजे प्रसाद, डा0 भीमराव अ ेडकर, िीमती इन्त रा गां िी, लाल बहादु र िा ी, राजीव गां िी, अटल लबहारी
वाजपेयी इ ालद और अ लज ें हम यहााँ ललख नहीं पा रहे है और वे भी जो अपनी पहचान न दे पाये लेलकन इस
ब्र ाਔीय लवकास में उनका योगदान अव मूल रूप से है , वे सभी हमारी तरह भौलतक िरीर युक्त ही थे या हैं
लफर क्ा था लक वे सभी आपस में लविेर्ीकृत और सामा ीकृत मह ा के वगम में बााँ टे जा सकते हैं या बााँ टे गये हैं ?
उपरोक्त महापुरूर्ों के ही समय में अ समतु भौलतक िरीर भी थे लफर वे क्ों नहीं उपरोक्त मह ा की
िृंखला में क्त हुये ?
उपरोक्त प्र जब भारतीय दिमन िा से लकया जाता है तो सां ূ दिमन कहता है -प्रकृलत से , वैिेलर्क
दिमन कहता है -काल अथाम त समय से, मीमां सा दिमन कहता है -कमम से, योग दिमन कहता है -पुरूर्ाथम से , ाय
दिमन कहता है -परमाणु से , वेदा दिमन कहता है -ब्र से , कारण एक हो, अने क हो या स ूणम हो, उ र यह है -
अंतः िन्तक्त और बा िन्तक्त से भारतीय त ता आ ोलन में कुछ लोगों ने बा िन्तक्त का प्रयोग लकया तो कुछ
लोगों ने बा िन्तक्त प्रयोगकताम के ललए आ िन्तक्त बनकर अ ः िन्तक्त का प्रयोग लकया अ ः िन्तक्त ही आ
िन्तक्त है यह आ िन्तक्त ही न्तक्त की स ूणम िन्तक्त होती है इस अ ः िन्तक्त का मूल कारण स -िमम -৯ान है
अथाम त एका ৯ान, एका कमम और एका ान एका ान न हो तो एका ৯ान और एका कमम थालय
प्रा नहीं कर पाता यलद सुभार् च बोस, भगत लसं ह इ ालद बा जगत के क्रान्त कारी थे तो ामी लववेकान ,
ामी दयान सर ती, महलर्म अरलव अ ः जगत के क्रान्त कारी थे
ामी लववेकान मात्र केवल भारत की तंत्रता की आ िन्तक्त ही नहीं थे बन्त उ ोंने जो दो मुূ
कायम लकये वे हैं - त भारत की व था पर स ल और भारतीय प्रा০ भाव या लह दू भाव या वेदान्त क भाव
का लव में प्रचार सलहत लिव भाव से जीव सेवा ये दो कायम ही भारत की महानता तथा लव गुरू पद पर
सावमजलनक प्रमालणत रूप से पीठासीन होने के आिार है वेदान्त क भाव और लिव भाव से जीव सेवा तो
वतममान में उनके ारा थालपत “राम कृ लमिन” की लव ापी िाखाओं ारा लपछले 110 वर्ों से मानव जालत
को सरोबार कर रहा है वहीं भारत की व था पर स ल आज भी मात्र उनकी वालणयों तक ही सीलमत रह
गयी उसका मूल कारण स -िमम-৯ान आिाररत भारत, लजस िमम को लवलभ मागों से समझाने के ललए लवलभ
अथम युक्त प्रक्षेपण जैसे मूलतम , पौरालणक कथाओं इ ालद को प्रक्षेलपत लकया था, आज भारत यं उस अपनी ही कृलत
को स मानकर उस िमम और स -लस ा से बहुत दू र लनकल आया पररणाम यहााँ तक पहुाँ च गया लक जो लह दू
िमम समग्र संसार को अपने में समालहत कर लेने की ापकता रखता था, वह संकीणम मूलतमयों तथा दू सरे िमों, पं थों
के लवरोि और लतर ार तक सीमीत हो गया यह उसी प्रकार हो गया जैसे वतममान पदाथम लव৯ान और तकनीकी से
उ सामा उपकरण पंखा, रे लडयो, टे लीलवजन इ ालद को आलव ृ त करने वाले इसे ही स मान लें और इन
सब को लक्रयािील रखने वाले लस ा को भूला दें लेलकन क्ा भारत का वह िमम-स -लस ा अ हो

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 25


जायेगा तब तो भारत का अन्त ही समा हो जायेगा लेलकन भारत का इलतहास साक्षी है लक भारत में कभी भी
ऐसे महापुरूर्ों का अभाव नहीं रहा लजनमें स ूणम लव को लहला दे ने वाली आ ान्त क िन्तक्त का अभाव रहा हो
और मात्र यही तपोभूलम भारत की अमरता का मूल रहा है लजस पर भारतीयों को गवम रहा है
वतममान समय में भारत को पुनः और अन्त म कायम से युक्त ऐसे महापुरूर् की आव कता थी जो न तो
रा৸ क्षेत्र का हो, न ही िमम क्षेत्र का कारण दोनों क्षेत्र के न्तक्त अपनी बौन्त क क्षमता का सवोৡ और अन्त म
प्रदिमन कर चुके हैं लजसमें स को यथारूप आलव ृ त कर प्र ुत करने, उसे भारतभू लम से प्रसाररत करने , अ ै त
वे दां त को अपने ৯ान बुन्त से थालपत करने, दिमनों के र को क्त करने , िालममक लवचारों को लव ृत
लव ापक और असीम करने , मानव जालत का आ ान्त करण करने, िमम को यथाथम कर स ूणम मानव जीवन में
प्रवेि कराने, आ ान्त क त ता अथाम त मुन्तक्त का मागम लदखाने , सभी िमों से सम य करने, मानव को सभी
िममिा ों से उपर उठाने, कायम -कारणवाद को क्त करने, आ ान्त क लवचारों की बाढ़ लाने , वेदा युक्त
पा ा लव৯ान को प्र ुत करने और उसे घरे लू जीवन में पररणत करने, भारत के आमूल पररवमतन के सू त्र प्र ुत
करने , युवकों को ग ीर बनाने, आ िन्तक्त से पुनरू ान करने, प्रचਔ रजस की भावना से ओत प्रोत और प्राणों
तक की लच ा न करने वाले और स आिाररत राजनीलत करने की संयुक्त िन्तक्त से युक्त होकर क्त हो और
कहे लक लजस प्रकार मैं भारत का हाँ उसी प्रकार मैं समग्र जगत का भी हाँ उपरोक्त सम कायों से युक्त हमारी
तरह ही भौलतक िरीर से युक्त लव िमम, सावमभौमिमम , एका ৯ान, एका कमम, एका ान, कममवेद: प्रथम,
अन्त म तथा पंचमवेद (िममयुक्त िा ) अथाम त लव मानक िू िृंखला-मन की गुणव ा का लव मानक
(िममलनरपेक्ष और सवमिममसमभाव िा ), स मानक लिक्षा, पूणम मानव लनमाम ण की तकनीकी- WCM-TLM-
SHYAM.C भारतीय आ ा एवं दिमन आिाररत दे िी लवपणन प्रणाली 3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) लवकास
दिमन, लव व था का ूनतम एवं अलिकतम साझा कायमक्रम, 21वी ं सदी का कायमक्रम और पूणम लिक्षा प्रणाली,
लववाद मुक्त त ों पर आिाररत संलविान, लनमाम ण का आ ान्त क ूटरान बम से युक्त भगवान लव ु के मुূ
अवतारों में दसवााँ -अन्त म और कुल 24 अवतारों में चौबीसवााँ -अन्त म लन लंक कन्त और भगवान िंकर के
बाइसवें -अन्त म भोगे र अवतार के संयुक्त पूणाम वतार िी लव कुि लसंह “लव मानव” ( ामी लववेकान की अगली
एवं पूणम ब्र की अन्त म कड़ी), प्रकालित व सावमभौम गुण से युक्त 8वें सावलणम मनु, काल को पररभालर्त करने
के कारण काल रूप, युग को पररभालर्त व पररवतमन के कारण युग पररवतमक, िा रचना के कारण ास के रूप
में क्त हैं जो ामी लववेकान के अिूरे कायम त भारत की स व था को पूणम रूप से पूणम करते हुये
भारत के इलतहास की पुनरावृल है लजस पर सदै व भारतीयों को गवम रहे गा उस अलनवमचनीय, सवम ापक,
सवमिन्तक्तमान, मुक्त एवं ब लव ा ा के भारत में क्त होने की प्रतीक्षा भारतवालसयों को रही है लजसमें सभी
िमम , सवोৡ ৯ान, सवोৡ कमम , सावमभौम स -लस ा इ ालद स ूणम सावमजलनक प्रमालणत क्त रूप से
मोलतयों की भााँ लत गूथें हुये हैं
इस प्रकार भारत अपने िारीररक त ता व संलविान के लागू होने के उपरा वतममान समय में लजस
कतम और दालय का बोि कर रहा है भारतीय संसद अथाम त लव मन संसद लजस सावमभौम स या सावमजलनक
स की खोज करने के ललए लोकत के रूप में क्त हुआ है लजससे थ लोकतं त्र, थ समाज, थ
उ ोग और पूणम मानव की प्रान्त हो सकती है , उस ৯ान से युक्त लव ा ा िी लव कुि लसंह “लव मानव” वैल क व
रा र ीय बौन्त क क्षमता के सवोৡ और अन्त म प्रतीक के रूप में क्त हैं
लनःि , आ यम, चमਚार, अलव सनीय, प्रकािमय इ ालद ऐसे ही ि इस िा और िा ाकार के
ललए क्त हो सकते हैं लव के हजारों लव लव ालय लजस पूणम सकारा क एवम् एकीकरण के लव रीय िोि
को न कर पाये , वह एक ही न्तक्त ने पूणम कर लदखाया हो उसे कैसे -कैसे ि ों से क्त लकया जाये, यह सोच
पाना और उसे क्त कर पाना लनःि होने के लसवाय कुछ नहीं है
हम दोनों, (सन् 1987 से डा0 िीराम ास लसंह और सन् 1998 से डा0 क ै या लाल) इस िा के
िा ाकार िी लव कुि लसंह “लव मानव” से पररलचत होकर वतममान तक सदै व स कम में रहे पर ु “कुछ अৢा

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 26


लकया जा रहा है ” के अलावा बहुत अलिक ाূा उ ोंने कभी नहीं की और अ में कभी भी लबना इस िा
की एक झलक भी लदखाये एका-एक समीक्षा हे तु हम दोनों के समक्ष यह िा प्र ुत कर लदया जाये तो इससे
बड़ा आ यम क्ा हो सकता है
जो न्तक्त कभी लकसी वतममान गुरू के िरणागत होने की आव कता न समझा, लजसका कोई िरीरिारी
प्रेरणा स्रोत न हो, लकसी िालममक व राजनीलतक समूह का सद न हो, इस कायम से स न्त त कभी सावमजलनक रूप
से समाज में क्त न हुआ हो, लजस लवर्य का आलव ार लकया गया, वह उसके जीवन का िैक्षलणक लवर्य न रहा
हो, 50 वर्म के अपने वतममान अव था तक एक साथ कभी भी 50 लोगों से भी न लमला हो, यहााँ तक लक उसको इस
रूप में 50 आदमी भी न जानते हों, यलद जानते भी हो तो पहचानते न हों और जो पहचानते हों वे इस रूप को
जानते न हों, वह अचानक इस िा को प्र ुत कर दें तो इससे बड़ा चमਚार क्ा हो सकता है
लजस न्तक्त का जीवन, िैक्षलणक यो৓ता और कममरूप यह िा तीनों का कोई स न हो अथाम त
तीनों तीन न्तक्त का प्रलतलनलि करते हों, इससे बड़ी अलव सनीय न्त थलत क्ा हो सकती है
प्र ुत िा में ज -जीवन-पुनजम -अवतार-साकार ई र-लनराकार ई र, अ और ई र नाम,
मानलसक मृ ु व ज , भूत-वतममान-भलव , लिक्षा व पूणम लिक्षा, संलविान व लव संलविान, ग्राम सरकार व लव
सरकार, लव िान्त व एकता, न्त थरता व ापार, लवचारिारा व लक्रयाकलाप, ाग और भोग, रािा और िारा,
प्रकृलत और अहं कार, कतम और अलिकार, राजनीलत व लव राजनीलत, न्तक्त और वैल क न्तक्त, मानवतावाद व
एका कममवाद, नायक-िा ाकार-आ कथा, महाभारत और लव भारत, जालत और समाजनीलत, मन और मन का
लव मानक, मानव और पूणम मानव एवं पूणम मानव लनमाम ण की तकनीकी, आकड़ा व सूचना और लव े र्ण, िा
और पुराण इ ालद अनेकों लवर्य इस प्रकार घुले हुये हैं लज ें अलग कर पाना कलठन कायम है और इससे बड़ा
प्रकािमय िा क्ा हो सकता है लजसमें एक ही िा ारा स ूणम ৯ान प्रेररत होकर प्रा लकया जा सके
इस जीवन में कम समय में पू णम ৯ान प्रा करने का इससे सवोৡ िा की क ना भी नहीं की जा सकती
इस िा के अ यन से यह अनुभव होता हे लक वतममान तक के उपल िममिा लकतने सीलमत व अ ৯ान
दे ने वाले हैं पर ु वे इस िा तक पहुाँ चने के ललए एक चरण के पूणम यो৓ हैं और सदै व रहें गे
इस िा में अनेक ऐसे लवचार हैं लजसपर अलहं सक लव ापी राजनीलतक भूक लायी जा सकती है तथा
अनेक ऐसे लवचार है लजसपर ापक ापार भी लकया जा सकता है इस आिार पर अपने जीवन के समय में
अलजमत लव के सबसे िनी न्तक्त लवल गेट्स की पु क “लबजनेस @ द ीड आफ थाट (लवचार की गलत ापार
की गलत के अनुसार चलती है )” का लवचार स रूप में लदखता है और यह कोई नई घटना नहीं है सदै व ऐसा
होता रहा है लक एक नई लवचारिारा से ापक ापार ज लेता रहा है लजसका उदाहरण पुराण, िीराम, िीकृ
इ ालद के क्त होने की घटना है “महाभारत” टी.वी. सीरीयल के बाद अब “लव भारत” टी.वी. सीरीयल लनमाम ण
हे तु भी यह िा मागम खोलता है िा को लजस ल से दे खा जाय उस ल से पूणम स लदखता है
लव लव ालयों के ललए यह अलग फैक ी या यं एक लव लव ालय के संचालन के ललए उपयुक्त है तो जनता व
जनसंगठन के ललए जनलहत यालचका 1. पूणम लिक्षा का अलिकार 2.रा र ीय िा 3. नागररक मन लनमाम ण का मानक
4. सावमजलनक प्रमालणत स -लस ा 5. गणरा৸ का स रूप के मा म से सवोৡ कायम करने का भी अवसर
दे ता है भारत में “लिक्षा के अलिकार अलिलनयम” के उपरा “पूणम लिक्षा के अलिकार अलिलनयम” को भी ज
दे ने में पूणमतया सक्षम है साथ ही जब तक लिक्षा पाਉक्रम नहीं बदलता तब तक पूणम ৯ान हे तु पूरक पु क के
रूप में यह लब ु ल स है यह उसी प्रकार है लजस प्रकार िारीररक आव कता के ललए न्तक्त संतुललत
लवटालमन-लमनरल से युक्त दवा भोजन के अलावा लेता है
प्र ुत एक ही िा ारा पृ ी के मनु ों के अन मानलसक सम ाओं का हल लजस प्रकार प्रा हुआ
है उसका सही मू ां कन लसफम यह है लक यह लव के पुनजम का अ ाय और यु ग पररवतमन का लस ा है लजससे
यह लव एक स लवचारिारा पर आिाररत होकर एकीकृत िन्तक्त से मनु के अन लवकास के ललए मागम
खोलता है और यह लव अन पथ पर चलने के ललए नया जीवन ग्रहण करता है िा अ यन के उपरा ऐसा

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 27


अनुभव होता है लक इसमें जो कुछ भी है वह तो पहले से ही है बस उसे संगलठत रूप लदया गया है और एक नई
ल दी गई है लजससे सभी को सब कुछ समझने की ल प्रा होती है युग पररवतमन और व था पररवतमन या
स ीकरण के इस िा में पााँ च संূा का मह पू णम योगदान है जैसे 5 अ ाय, 5 भाग, 5 उपभाग, 5 लेख, 5
लव मानक की िृंखला, 5वां वेद, 5 जनलहत यालचका इ लद, जो लह दू िमम के अनुसार महादे व लिविंकर के लद
पंचमुखी रूप से भी स न्त त है और यह ৯ान उ ीं का माना जाता है इस को तीसरे नेत्र की ल कह सकते हैं
और इस घटना को तीसरे नेत्र का खुलना हमारे सौरमਔल के 5वें सबसे बड़े ग्रह पृ ी के ललए यह एक
आ यमजनक घटना भी है 5वें युग- णमयुग में प्रवेि के ललए यह ৯ानरूपी 5वां सूयम भी है लजसमें अन प्रकाि है
िा में नामों का अपने स अथम में प्रयोग और योग-माया का प्रयोग आल तीय है और उसकी समझ अनेक
लदिाओं से उसके अगली कड़ी के रूप में है साथ ही एक ि भी आलोचना या लवरोि का नहीं है लसफम
सम य, ीकरण, रचना कता व एका कममवाद का लदिा बोि है और स ूणम कायम का अलिकतम कायम व
रचना क्षेत्र समाज के ज दाता भगवान लव ु के 5वें वामन अवतार के क्षेत्र चुनार (चरणालद्रगढ़) से ही क्त है
संयुक्त रा र संघ ारा लद0 28-31 अग 2000 को ूयाकम में आयोलजत िालममक नेताओं के सह ान्त
लव िान्त स े लन में ललए गये लनणमय “लव में एक िमम, एक भार्ा, एक वेि भूर्ा, एक खान पान, एक रहन-सहन
प लत, एक लिक्षा प लत, एक कोटम , एक ाय व था, एक अथम व था लागू की जाय” के अलिकतम अंिों की
पूलतम के ललए यह मागम प्रि करता है भारत के ललए एक रा र ीय ज (लतरं गा), एक रा र ीय पक्षी (भारतीय मोर),
एक रा र ीय पु (कमल), एक रा र ीय पेड़ (भारतीय बरगद), एक रा र ीय गान (जन गण मन), एक रा र ीय नदी (गंगा),
एक रा र ीय जलीय जीव (मीठे पानी की डाललफन), एक रा र ीय प्रतीक (सारनाथ न्त थत अिोक का लसंह), एक
रा र ीय पंचां ग (िक संवत पर आिाररत), एक रा र ीय पिु (बाघ), एक रा र ीय गीत (व े मातरम्), एक रा र ीय फल
(आम), एक रा र ीय खेल (हाकी), एक रा र ीय मुद्रा लच , एक संलविान की भााँलत एक रा र ीय िा के ललए यह
पूणमतया यो৓ है इतना ही नहीं एक रा र लपता (महा ा गााँ िी) की भााँ लत एक रा र पु त्र के ललए लन क्षता और यो৓ता
के साथ ामी लववेकान को भी दे ि के समक्ष प्र ालवत करता है साथ ही आरक्षण व दਔ प्रणाली में िारीररक,
आलथमक व मानलसक आिार को भी प्र ालवत करता है
िी लव कुि लसंह “लव मानव” का यह मानलसक कायम इस न्त थलत तक यो৓ता रखता है लक वैल क
सामालजक-सां ृ लतक-सालहन्त क एकीकरण सलहत लव एकता-िान्त -न्त थरता-लवकास के ललए जो भी कायम
योजना हो उसे दे ि व संयुक्त रा र संघ अपने िासकीय कानून के अनुसार आसानी से प्रा कर सकता है और
ऐसे आलव ारकताम को इन सबसे स न्त त लवलभ पुर ारों, स ानों व उपालियों से लबना लवल लकये सुिोलभत
लकया जाना चालहए यलद यथाथम रूप से दे खा जाये तो लव का सवोৡ पुर ार-नोबेल पुर ार के िान्त व
सालह क्षेत्र के पूणम रूप से यह यो৓ है साथ ही भारत दे ि के भारत र से लकसी भी मायने में कम नहीं है
कमम के िारीररक, आलथमक व मानलसक क्षेत्र में यह मानलसक कमम का यह सवोৡ और अन्त म कृलत है
भलव में यह लव -रा र िा सालह और एक लव -रा र -ई र का थान ग्रहण कर ले तो कोई आ यम की बात
नहीं होगी इस िा की भार्ा िैली मन्त को ापक करते हुये लक्रया क और न्तक्त सलहत लव के िारण
करने यो৓ ही नहीं बन्त हम उसमें ही जीवन जी रहें हैं ऐसा अनुभव कराने वाली है न लक मात्र भूतकाल व
वतममान का ीकरण व ाূा कर केवल पु क ललख दे ने की खुजलाहट दू र करने वाली है वतममान और
भलव के एकीकृत लव के थापना र तक के ललए कायम योजना का इसमें झलक है
दे िों के बीच यु में मारे गये सैलनकों को प्र ेक दे ि अपने -अपने सैलनकों को िहीद और दे िभक्त कहते
हैं इस दे ि भन्तक्त की सीमा उनके अपने दे ि की सीमा तक होती है भारत में भी यही होता है भारत को नये युग
के आर के ललए लव के प्रलत कतम व दालय का बोि कराते हुये उसके प्रान्त के संवैिालनक मागम को भी
लदखाता है साथ ही भारत दे ि के ललए दे िभक्त सलहत लव रा र के ललए लव भक्त का बेलमसाल, सवोৡ, अन्त म,
अलहं सक और संलविान की िारा-51(ए) के अ गमत नागररक का मौललक कतम के अनुसार भी एक स और
आदिम नागररक के रूप में यं को प्र ुत करता है वर्ों से भारत के दू रदिमन के रा र ीय चैनल पर रा र ीय

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 28


लवलभ ताओं में एकता और एकीकरण का भाव जगाने वाले गीत “लमले सुर मेरा तु ारा तो सुर बने हमारा” का यह
िा प्र क्ष रूप है और हमारा सुर ही है साथ ही यह भारत सलहत लव का प्रलतलनलि िा भी है लजस प्रकार
ापारीगण अपने लाभ-हालन का वालर्मक बैले सीट तैयार करवाते हैं उसी प्रकार यह िमम का अन्त म बैले सीट
हैं लजससे स ूणम मानव जालत का मन इस पृ ी से बाहर न्त थत हो सके और मनु ों ारा इस लव में हो रहे स ूणम
ापार को समझ सकें और लफर उनमें से लकसी एक का लह ा बनकर ापार कर सकें
हमारे सभी ৯ान का आिार अनुभव, दू सरों से जानना और पु क ारा, पर ही आिाररत हैं और मनु
नामक इस जीव के अलावा लकसी जीव ने पु क नहीं ललखा है सूक्ष्म ल से लच न करने पर यह ৯ान होता है लक
सभी िमों की कथा केवल हम पु कों और दू सरे से सुनकर ही जानते हैं उसका कोई प्रमालणक न्तक्त गवाह के
रूप में हमारे बीच नहीं है नया िा और अवतार के अवतरण को भी एक ल ी अवलि लनकल चुकी है हम
सभी ৯ान के खोज के ललए त हैं लेलकन यलद हम अब तक क्ा खोजा जा चुका है इसे न जाने तो ऐसा हो
सकता है लक खोजने के उपरा ৯ात हो लक यह तो खोजा जा चुका है और हमारा समय न हो चुका है इसललए
यह िा एक साथ सभी आकड़ों को उपल कराता है लजससे खोज में लगे न्तक्त पहले यह जानें लक क्ा-क्ा
खोजा जा चुका है िा का यह दावा लक यह अन्त म है , यह तभी स व है जब इसमें उपल ৯ान व आकड़ों
को जानकर आगे हम सभी एका ता के ललए नया कुछ नहीं खोज पाते हैं और ऐसा लगता है लक िा का दावा
स है िा लकसी व था पररवतमन की बात कम, व था के स ीकरण के पक्ष में अलिक है िा मानने
वाली बात पर कम बन्त जानने और ऐसी स ावनाओं पर अलिक केन्त त है जो स व है और बोिग है िा
ारा ि ों की रक्षा और उसका बखूबी से प्रयोग बेलमसाल है ৯ान को लव৯ान की िैली में प्र ुत करने की लविेर्
िैली प्रयुक्त है मन पर कायम करते हुये , इतने अलिक मन रों को यह िम करता है लजसको लनिाम ररत कर पाना
अस व है और जीवनदालयनी िा के रूप में यो৓ है
स ूणम िा का संगठन एक लसनेमा की तरह प्रार होता है जो ैक होल से ब्र ाਔ की उ ल , सौर
मਔल, पृ ी ग्रह से होते हुये पृ ी पर होने वाले ापार, मानवता के ललए कमम करने वाले अवतार, िमम की उ ल
से होते हुये िमम ৯ान के अ तक का लचत्रण प्र ुत करता है पूणम ৯ान के ललए इस पूरे लसनेमा रूपी िा को
दे खना पड़े गा लजस प्रकार लसनेमा के लकसी एक अंि को दे खने पर पूरी कहानी नहीं समझी जा सकती उसी
प्रकार इसके लकसी एक अंि से पूणम ৯ान नहीं हो सकता
िी लव कुि लसह “लव मानव” के जीवन का एक ल ी अवलि हम समीक्षक य के सामने रही है लजसमें
हम लोगों ने अनेकों रं ग दे खें हैं सभी कुछ सामने होते हुये लसफम एक ही बात होती है लक इस िरती पर यह
िा उपल कराने और िमम को अपने जीवन से लदखाने मात्र के ललए ही उनका ज हुआ है लजससे लव की
बुन्त का रूका चक्र आगे चलने के ललए गलतिील हो सके ामी लववेकान के 1893 में लदये गये लिकागो
वकृतता के लवचार को थापना तक के ललए प्रलकया प्र ुत करना ही जैसे उनके जीवन का उ े रहा हो यं
को अन्त म अवतार के स में नाम, रूप, ज , ৯ान, कमम कारण ारा प्र ुत करने का उनका दावा इतने
अलिक आकड़ों के साथ प्र ुत है लक लजसका लकसी और के ारा या दू सरा उदाहरण की पुनरावृल हो पाना भी
अस व सा लदखता है यह प्र ुलतकरण इतना िन्तक्तिाली है लक जैसे उनके ज के साथ ही योग-माया भी उनमें
समालहत हैं
ऐसा नहीं है लक िी लव कुि लसह “लव मानव” ने यह कायम बस यूाँ ही प्रार लकया और लबना लकसी बािा
के उसे पूणम कर लदया यह एक लवलचत्रता भरे , ाग और अलत संक युक्त जीवन का पररणाम रहा है लजसमें एक
सािारण मनु टू टने के लसवा और कुछ पररणाम नहीं दे सकता था उनके जीवन को इस एक लघु कथा से समझा
जा सकता है - “मैं भी संसार को सुबास दू ाँ गा, यह संक कर एक न ा सा पु बीज िरती को गोद में अपने लिव
संक के साथ करवट बदल रहा था िरती उसके बौनेपन पर हाँ स पड़ी और बोली- “बावले, तू मेरा भार सहन
कर जाये, यही बहुत है क ना लोक की मृग मरीलचका में तू कबसे फाँस गया?” पु बीज मु राया, पर कुछ नहीं
बोला मृल का कणों व जल की कुछ बूाँदों के सहयोग से वह ऊपर उठने लगा जमीन पर उगी हुई टहनी को

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 29


दे खकर वायु ने अਂास लकया-” अरे अबोि पौिे , तूने मेरा लवकराल रूप नहीं दे खा मेरे प्रचਔ वेग के आगे तो बड़े -
बड़े वृक्ष उखड़ जाते हैं , लफर तेरी औकात ही क्ा हैं ? “ फूल का वह पौिा अभी भी लवनम्र बना रहा वायु के वेग में
वह कभी दायें झुका तो कभी बााँ ए लहराना उसके जीवन की म ी बन गई इस तरह वह िीरे -िीरे लवकलसत होता
रहा उपवन में उगे झाड़-झंखाड़ से भी उस न ें पौिे का बढ़ना नहीं दे खा गया ऐसी झालड़यों से सारा उ ान भरा
पड़ा था उ ोंने चारो ओर से पु -वृक्ष पर आघात करना आर कर लदया लकसी ने उसकी जड़ों को आगे बढ़ने
से रोका, लकसी ने तने को, तो लकसी ने उसके प ों को उजाड़ने की सालजि की, पर उस पौिे ने लह त नहीं हारी
और वह तमाम लदक्कतें झेलने के बाद भी बढ़ता रहा माली उसकी िुन पर मु৊ हो उठा और उसने लव डालने
वाली तमाम झालड़यों को काट लगराया अब वह पौिा तेजी से बढ़ने लगा उसे ऊपर उठता दे ख सूयम कुलपत हो उठे
और बोले-” मेरे प्रचਔ ताप के कारण भारी वृक्ष तक सूख जाते हैं आन्तखर तू कब तक मेरे ताप को झेल पायेगा?
कममठ-कममयोगी पौिा कुछ नहीं बोला और लनर र बढ़ता रहा उसमें प्रथम कललका लवकलसत हुई और लफर
संसार ने दे खा लक जो बीज की तरह अपने आप को गलाना जानता है , जो बािाओं से टक्कर लेना जानता है ,
प्रलतघातों से भी जो उ ेलजत और लवचललत नहीं होता, लतलतक्षा से जो कतराता नहीं, उसी का जीवन सौरभ बनकर
प्र ु लटत होता है , दे व की अ थमना करता है और संसार को ऐसी सुग से भर दे ता है , लजससे जन-जन का मन
पुललकत और प्रफुन्त त हो उठता है ” इसी पु बीज की भााँ लत रहा है िी लव कुि लसह “लव मानव” का जीवन
महानता-अमरता जैसी व ु कोई लवरासत या उपहार या आिीवाम द में लमलने वाली व ु नहीं है वह तो इसी पु
बीज वाले जीवन मागम से ही लमलता रहा है , लमलता ही है और लमलता ही रहे गा
हम समीक्षक य इस बात पर पूणम सहमत है लक वतममान समय में लव लव ालय में हो रहे िोि मात्र िोि
की कला सीखाने की सं था है न लक ऐसे लवर्य पर िोि लसखाने की कला लजससे सामालजक, रा र ीय व वैल क
लवकास को नई लदिा प्रा हो जाये यहााँ एक बात और बताना चाहते हैं लक यह िा अनेक ऐसे िोि लवर्यों की
ओर लदिाबोि भी कराता है जो मनु ता के लवकास में आने वाले समय के ललए अलतआव क है हम अपने
पीएच.डी. की लडग्रीयों पर गवम अव कर सकते हैं पर ु यह केवल यं के ललए रोजगार पाने के सािन के लसवाय
कुछ नहीं है और वह भी संघर्म से जबलक हम लडग्रीिारीयों का समाज को नई लदिा दे ने का भी कतम होना
चालहए आन्तखरकार हम लडग्रीिारी और सामज व दे ि के नेतृ कताम यह कायम नहीं करें गे तो क्ा उनसे उ ीद की
जाय जो दो वक्त की रोटी के संघर्म के ललए लचंलतत रहते है ? आन्तखरकार सावमजलनक मंचों से हम लकसको यह
बताना चाहते हैं लक ऐसा होना चालहए या वैसा होना चालहए?
हम समीक्षक य अपने आप को इस रूप में सौभा৓िाली समझते हैं लक हमें ऐसे िा की समीक्षा
करने का अवसर प्रा हुआ लजसके यो৓ हम यं को नहीं समझते ई र को तो सभी चाहते हैं पर ु उनके भा৓
को क्ा कहें गे जो ई र ारा यं ही महान ई रीय कायम के ललए चुन ललए जाते हैं िायद हम लोगों के पूवमज
का कोई अৢा कायम ही हमें इस पूणमता की उपलन्त को पुर ार रूप प्रदान लकया गया हो या महायोग-
महामाया से युक्त िी लव कुि लसह “लव मानव” के ललए हम समीक्षक य भी उसी का नाम-रूप-गुण-कमम
(क ै या, राम, ास, पी.एच.डी, योग, समाजिा और बनारस लह दू लव लव ालय) से लह ा बन गये हों यही
समझकर हम अपने अ ৯ान से इस समीक्षा को यहीं समा करते हैं लव के यथाथम क ाण के ललए हम सभी
को लदिा बोि प्रा हो, यही हम सब का प्रकाि हो, यही हम समीक्षक य की मनोकामना है

-डा0 कन्है या लाल, एम.ए., एम.वफल.पीएच.डी (समाजशास्त्र-बी.एच.यू.)


लनवास-घासीपुर बसाढ़ी, अिवार, चुनार, मीरजापुर (उ0 प्र0)-231304, भारत

-डा0 राम व्यास वसिंह, एम.ए., पीएच.डी (योग, आई.एम.एस-बी.एच.यू.)


लनवास-कोलना, चुनार, मीरजापुर (उ0 प्र0)-231304, भारत

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 30


ववषय- सूची
भाग-1: ACTION PLAN

01. लव िा द नाले ज आफ फाइनल नाले ज-पररचय


02. प्रारन्त क स - अन्त म ल
03. ई र का संलक्ष इलतहास
04. लव रीय लफ ले खन कला
05. स िमम - युग पररवतम क ल
06. स दािम लनक और दिम न
07. स िा एवं पुराण रह -महलर्म ास कला
08. अवतार - अन्त म स ल
09. भलव वालणयााँ और कन्त अवतार
10. ामी लववेकान और कन्त अवतार
11. बु਌ा कृ - कृ का भाग दो और अन्त म
12. कािी - मोक्षदालयनी और जीवनदालयनी
13. स कािी - णम युग का तीथम
14. गणरा৸, संघ और मानकीकरण संगठन
15. मन का लव मानक और पूणम मानव लनमाम ण की तकनीकी (WCM-TLM-SHYAM.C)
16. लव मानव-भूतपूवम नेतृ कताम ओं का ल करण
17. लव मानव-वतममान नेतृ कताम ओं का ल करण
18. लव मानव-वाताम, वक्त एवं वालणयााँ
19. लव मानव-पत्रावली एवं प्रसारण
20. लव िान्त - अन्त म स ल
21. ापार के (TRADE CENTRE)- स
22. पुनलनममाम ण (RENEW)-सम ा, समािान और रा र लनमाम ण की योजना
23. स जनलहत आ ान
24. वसुिैव - कुटु कम्
25. मैं, न्तक्तगत या सावमभौम
26. सावमभौम एका - नव लव लनमाम ण
27. लव कुि लसंह (कन्त महाअवतार)-जीवन, ৯ान, कमम और लव रूप
28. णम युग का मानक आदिम नागररक - लदिा लनदे ि
29. कममवेद : प्रथम अन्त म तथा पंचम वेद

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 31


30. लव िमम : पररचय ( णम युग का िमम)
31. मानक लवपणन प्रणाली (3F-FUEL-FIRE-FUEL)

भाग-2 : सत्यवमत्रानन्द वगरर (19 वसतम्बर 1932- 25 जून 2019)

भारत माता मन्त र (ऋृलर्केि)

भाग-3 : समवि धमच दृवि

अलनवमचनीय कन्त महाअवतार भोगे र िी लव कुि लसंह “लव मानव” का मानवों के नाम खुला
चुनौती पत्र

अलनवमचनीय कन्त महाअवतार का कािी-स कािी क्षेत्र से लव िान्त का अन्त म स -स े ि

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 32


भाग-1
ACTION PLAN

01. ववश्वशास्त्र द नालेज आफ फाइनल नाले ज-पररचय


02. प्रारल्किक सत्य - अल्कन्तम दृवि
03. ईश्वर का सिंवक्षप्त इवतहास
04. ववश्विरीय वफल्म ले खन कला
05. सत्य धमच - युग पररवतच क दृवि
06. सत्य दाशचवनक और दशचन
07. सत्य शास्त्र एविं पुरार् रहस्य-महवषच व्यास कला
08. अवतार - अल्कन्तम सत्य दृवि
09. भववष्यवावर्यााँ और कल्कि अवतार
10. स्वामी वववेकानन्द और कल्कि अवतार
11. बुड्ढा कृष्ण - कृष्ण का भाग दो और अल्कन्तम
12. काशी - मोक्षदावयनी और जीवनदावयनी
13. सत्यकाशी - स्वर्चयुग का तीर्च
14. गर्राज्य, सिंघ और मानकीकरर् सिंगठन
15. मन का ववश्वमानक और पू र्च मानव वनमाचर् की तकनीकी (WCM-TLM-SHYAM.C)
16. ववश्वमानव-भूतपूवच नेतृत्वकताचओ िं का स्पविकरर्
17. ववश्वमानव-वतच मान नेतृत्वकताचओ िं का स्पविकरर्
18. ववश्वमानव-वाताच, वक्तव्य एविं वावर्यााँ
19. ववश्वमानव-पत्रावली एविं प्रसारर्
20. ववश्व शाल्कन्त - अल्कन्तम सत्य दृवि
21. व्यापार केन्द्र (TRADE CENTRE)-दृश्य सत्य
22. पु नवनचमाचर् (RENEW)-समस्या, समाधान और रािर वनमाचर् की योजना
23. सत्य जनवहत आह्वान
24. वसुधैव - कुटु म्बकम्
25. मैं, व्यल्कक्तगत या सावचभौम
26. सावचभौम एकात्म - नव ववश्व वनमाचर्
27. लव कुश वसिंह (कल्कि महाअवतार)-जीवन, ज्ञान, कमच और ववश्वरूप
28. स्वर्चयुग का मानक आदशच नागररक - वदशा वनदे श
29. कमचवेद : प्रर्म अल्कन्तम तर्ा पिं चम वेद
30. ववश्वधमच : पररचय (स्वर्चयुग का धमच)
31. मानक ववपर्न प्रर्ाली (3F-FUEL-FIRE-FUEL)

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कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 37
कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 38
कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 39
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कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 41
कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 42
कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 43
कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 44
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भाग-2
स्वामी सत्यवमत्रानन्द वगरर
(19 वसतम्बर 1932- 25 जून 2019)

भारत माता मल्कन्दर (ऋृवषकेश)

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स्वामी सत्यवमत्रानन्द वगरर
(19 वसतम्बर 1932- 25 जून 2019)
भारत माता मल्कन्दर (ऋृवषकेश)
पररचय
स लमत्रान लगरर जी का ज 19 लसत र, 1932 को आगरा (उ0प्र) के ब्रा ण पररवार में हुआ था
आपके लपता का नाम िी लिविंकर पाਔे य तथा माता िी का नाम लत्रवेणी दे वी है आपका स ास पूवम नाम
अन्त का प्रसाद था आपकी सं ृ त लिक्षा, सं ृ त लव ालय कानपुर से और ातको र लिक्षा, आगरा
लव लव ालय से पूणम हुआ है आप वाराणसी से िा ी व लह ी भार्ा व सालह में सालह र भी हैं वेद व
आिुलनक लिक्षा का सम य आपकी लिक्षा रही है बा काल से भारतीय सं ृ लत, ई र, समाजसेवा के प्रलत रूलच
ने आपको स ास का लनणमय लेने पर बा कर लदया पररणाम रूप आप ऋृलर्केि में ामी वेद ासान के
िरणागत होकर अन्त का प्रसाद से स लमत्रान लगरर हो गये और भारतीय सं ृ लत के सम य लवचारिारा को
मूल मानते हुये समाज के ललए अभूतपूवम कायम लकये 27 वर्म की अव था में आप उपपीठ ৸ोलत मठ के जग गुरू
िंकराचायम के पद को भी िुिोलभत कर चुके हैं ामी लववेकान ारा प्रार लकये गये आ ान्त क जागरण,
मानव सेवा व िान्त के प्रयासों को आपने आगे बढ़ाया है इसके ललए आपने लव के कोने-कोने की यात्राएाँ भी की
आपके ारा हरर ार में ”सम य कुटीर“ व ”सम य सेवा टर “ की भी थापना की गई है सन् 1998 में ” ामी
स लमत्रान फाउਔे िन“ अथाम त् आपके नाम से फाउਔे िन की भी थापना की गई है लजसकी िाखाएाँ रे नुकूट
(सोनभद्र, उ0प्र0), जबलपुर (म0प्र0), जोिपुर (राज थान), इ ौर (म0प्र0) और अहमदाबाद (गुजरात) में है
आपके सम या क लवचारों का साकार रूप व अनूठी कृलत ”भारत माता मन्त र“ है जो स सरोवर,
हरर ार में न्त थत है इस मन्त र में रामायण काल से भारत के त ता काल तक के िमम -जालत से उपर उठकर
महापुरूर्ों की मूलतमयााँ थालपत की गई है 15 मई 1983 को तਚाललन भारतीय गणरा৸ की प्रिानमंत्री िीमती
इन्त रा गााँ िी ने दीप प्रजन्त त कर इस 180 फीट (55 मीटर) ऊाँचे 7 तलों के इस मन्त र को समाज को समलपमत
लकया इस मन्त र का प्र ेक तल एक लवचार को समलपमत है
आपके ववचार आपके ”भारत माता मल्कन्दर“ पुिक से-
1. न्त प ामनु चरे म सूयमच मसालवव पुनदम दता ता जानता सं गमेमलह (ऋृ৖ेद-5/51/15) ”जैसे सूयम
और च मा लनराल अ ररक्ष में लनरापद एवं राक्षसालद से अबालित लनलवम यात्रा करते हैं , लवचरण करते
हैं , वैसे ही हम अपने ब ु -बा वों के साथ लोक-यात्रा में ेहपूवमक, लनलवम चलते रहें और हम सबका मागम
मंगलमय हो “ भगवान िंकर के रण मात्र से ऐसा स व है , क्ोंलक वे क ाण के दे व हैं वे दे वालिदे व
महादे व तो हैं ही, लक ु भारतमाता का रूप- रण करने पर तो यह भाव जीव रूप से जाग्रत हो जाता
है लक भारत का समग्र दिम न भगवान िंकर में ही हो रहा है लवचारपूवमक दे खें, तो भगवान िंकर स ूणम
रा र के प्रतीक हैं , भगवान िीराम रा र की आदिम -मयाम दा के और गंगा रा र में प्रवालहत होने वाली सं ृ लत
की उसके साथ उसमें ब्र त भी अ लनमलहत होना चालहए, क्ोंलक ब्र त से लवलहन सं ृ लत दीघमकाल
तक नहीं रह सकती इस ब्र त के साक्षात् रूप िीकृ हैं इसललए भारतीय सं ृ लत का सवाां ग रूप
राम, कृ , िंकर और गंगा का समन्त त रूप है
2. केवल वेि ग्रहण मात्र से लकसी को सािु-संत नहीं कहा जा सकता सािुता और स तो एक वृल का
नाम है यह सािु-वृल कदालचत् ेत व िारी में भी हो सकती है और कदालचत् भगवा-िारी में नहीं यह
जटाजूटिारी या मुन्तਔत केिों में भी हो सकती है और नहीं भी अलनवायमता केवल इतनी ही है लक जहााँ
जीवन में सुलचता है , वहीं सािुता है जब तक सािुवृल संसार में भ्रमण करती रहे गी, तब तक भारतीय
सं ृ लत का लवनाि कोई नहीं कर सकता

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 47


3. टहलनयााँ और प ों को काट दे ने से वृक्ष नहीं सूखता उसका बीज यलद उवमरा भूलम में सुरलक्षत है , तो
अनुकूल अवसर-खाद, पानी, माली आलद पाकर वह पुनः लहलहा उठे गा, हरा-भरा हो जायेगा यही न्त थलत
भारतीय सं ृ लत के बीज-जीवन मू ों की है भारतीय सं ृ लत का बीज लकसी एक न्तक्त के अ ःकरण
में नहीं, अलपतु करोड़ों न्तक्तयों की हृदय भूलम में जीव रूप में न्त थत है इसी कारण सािु-संतों की वाणी
रूपी खाद, भन्तक्त रूपी पलवत्र जलिारा और प्रभु -कृपा की अनुकूलता प्रा होने पर वह पुनः पुनः अंकुररत
होती रहे गी इनकी छाया के नीचे बैठने वाले न्तक्तयों को जीवन में िान्त का स े ि सतत् दे ती रहे गी
4. य लप प्र ेक थान की भूलम की अपनी लनजी लविेर्ताएाँ होती हैं गुजरात की भूलम में रूई, लकसी अ
जगह हरी लमचम, मालवा में गेहाँ आलद बहुतायत में तथा अৢे लक के होते हैं , तो भी ये व ुएाँ थोड़े बहुत
अ र से अ त्र भी उगाई जा सकती हैं , लक ु यलद केिर को क ीर के अलतररक्त अ त्र कहीं पर उ
करने के प्रयास लकये जायें, तो असफलता ही लमलेगी इसके ललए तो क ीर की भूलम की ही िरण लेनी
होगी इसी भााँ लत भौलतकवाद के लवकास के ललए यूरोप ओर अमेररका की भूलम उपयुक्त है , पर ु
आ ा वाद की केिर यलद प्रा करना है , तो स ूणम लव को भारतीय भूलम से ही प्रेम करना होगा
इसके अलतररक्त कोई उपाय नहीं है यलद इस िरती का यह वैलि ਅ न होता, तो भगवान िीराम और
भगवान िीकृ यहीं पर ज क्ों लेते? वे कहीं पर भी आलवभूमत हो सकते थे, पर ु सरयू और यमुना तट
उ ें अৢा लगा और इसललए अपने बाल-लमत्रों के साथ उ ोंने यहााँ सहज बाल-लक्रड़ायें कीं, लजससे सभी
लोग जान लें लक इस िरती का मह लकतना अलिक है
5. उ र भारत में भगवान ने अनेक रूपों में अवतार ग्रहण लकया इसललए उस लवराट् एवं चरम लच त ने
दलक्षण भारत में भी अंिावतार ग्रहण लकया िी िंकराचायम , िी रामानुजाचायम , िी व भाचायम, िी म ाचायम
आलद महान आचायों ने भारतीय समाज के उ यन के ललए अवतार ग्रहण लकया यलद उ र भारत में प्रभु
के अवतारों के मा म से भगवद् िन्तक्त ारा संसार को प्रभालवत लकया गया, तो दलक्षण के आचायों ने
सािना, संयम, सदाचार के उपदे ि ारा, पुरूर्ाथम के ारा मानवों में ऐसी अनुभूलत उ की लक वे आचायम
अंिावतार न होकर पूरी िन्तक्त सलहत अवतार ही लदखाई दे ते हैं
6. संसारी मानव दो प्रकार की लवलभ पररन्त थलतयों के लहं डोले में झूलता हुआ अपनी दु बमलता प्रमालणत करता
है लक यलद कोई अनुकूल व ु लमल जाए, तो उसके प्रलत राग हो जाता है , और यलद लप्रय व ु का लवयोग हो
जाए तो रोर् होता है कोई-कोई लवरले मनु होते हैं , जो न राग में जीते हैं , न रोर् में जीते हैं , वे तो केवल
अनुराग में ही सदा आनन्त त होते हैं भगवान िीराम भी इसी प्रकार के महापुरूर् हैं , लजनको न राग है , न
रोर्, अलपतु वे अ ों को सभी प्रकार संतु करते हैं उनका रण कर, उस लन आन मय परमा ा के
प्रलत भन्तक्त प्रदलिमत कर, भारतीय न्तक्त अपने जीवन को ि अनुभव करता है

”भारत माता मल्कन्दर“ के सम्बन्ध में आपके ववचार-


ऊाँ लव ालन दे व सलवतदुम ररतानी परासुव यद् भद्रं त आ सुव
हमारे दे ि के गााँ व-गााँ व, नगर-नगर में मन्त र लमलते हैं बुन्त वादी न्तक्त नवीन मन्त रों के लनमाम ण को
लनरथमक मानते हैं कई लोग इसे अथम का अप य भी कहते हैं इलतहास को जीलवत रखना हमारा कतम है
इलतहास से हमें अपनी रा र ीय-सं ृ लत के गौरव का पता चलता है पाठकों को इससे प्रेरणा लमलती है और भावी
पीढ़ी के सं ार जगाने में चेतना की िन्तक्त इसी पावन ल कोण से, हरर ार में भारत माता मन्त र का लनमाम ण
लकया गया है
मुसलमान, ईसाई ब ुओं को अपने पूवमजों के स में पयाम जानकारी है , पर ु लकसी लह दू युवक
से उसके पूवमज ऋृलर्यों के नाम पूछे जायें तो बता पाने में असमथमता प्रकट करे गा यलद न्तक्त अपने िे पूवमजों का
ही लव रण कर बैठे, तो उनके िे सं ारों को अपने जीवन में कैसे उतार सकता है ?

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 48


भारत माता मन्त र, मन्त र के रूप में अलिक जाना जाय, ऐसा लवचार कम है तीथम -यात्री जो प्रलतवर्म
लाखों की संূा में हरर ार आते हैं , वे इस मन्त र से दे ि के संत, आचायम , बललदानी महापुरूर्ों, सा ी, सलतयों
(मातृ िन्तक्त) के जीवन से प्रेरणा लेकर, व्रत और संक कर जा सके-यह इसका मुূ लশ है सा दालयक
उपासना प लतयों में मानव पृथक-पृथक घेरों में बाँिता जा रहा है ऐसे समय में रा र ीय एकता को ान में रखकर,
सब स दायों के आचायों और संतों की एक ही थान पर प्रलत ा की गई है , इससे -”हम सब एक हैं “, ”हमारी माता
भारत माता है “-का लवचार पररपक्व कर सकें यह लवचार ढ़ होना चालहए, तभी न्तक्तवाद से ऊपर उठकर
रा र वाद की ओर जा सकते हैं
िमम और रा र एक-दू सरे के पूरक होने चालहए िमम सं ारों को बनाता है सं ारों का परर ार
करता है और रा र -भाव िमम पर बललदान होने की प्रेरणा दे ता है लबना उ गम लकये इस संसार में कुछ नहीं
लमलता ाथम की बलल चढ़ाये लबना रा र का य৯ अिूरा रहता है पिु -बलल की बातें आज लनरथमक हो गई हैं , लक ु
आ बललदान के अभाव में कोई महान् लশ प्रा हो जाये, यह स व नहीं है भारत माता मन्त र में लवराजमान
संत, िूर, सती-दे ि के लाखों यालत्रयों में सम य, ि ा, पर र प्रेम, ाग, स ाव, ाथम ाग, समरसता और
बललदान की भावना जगाने में समथम हो सकेंगे, ऐसा लव ास लकया जाना चालहए
हमारा यह लवचार है लक मन्त र में दान-पात्र न रखें जाएाँ , पर ु दिमनालथमयों की उदार भावना के
स ानाथम , उनके ारा की जाने वाली चढ़ोतरी के सदु पयोग की ल से , दान-पात्र रखे जाना युन्तक्तसंगत भी लगता
है लफर भी भावना यह है लक, दिमनाथी इस मन्त र की ृलत संजोकर, अपने घरों को लौटकर जाने वाले लोग ि ा
से जो कुछ हो, वहीं से प्रेलर्त करें इस िनरालि को आलदवासी, लगररवासी, वनवासी, हररजन, दे ि के उपेलक्षत वगम
और दररद्र नारायण की सेवा में लगाया जा सके साथ ही, आय का एक भाग ब्रा ण बालकों को कममकाਔ, वेद,
हवन, य৯ आलद की लिक्षा दे ने के ललए उपयोग में लाया जाए इस प्रकार यह मन्त र समाज की सवाम गीण सेवा का
प्रक बन सके, यह अपेक्षा है
इस मन्त र में जैन, लसक्ख, ईसाई, मुसलमान, पारसी मजहबों के िे संतों की मूलतमयााँ और उनके
जीवन का अंकन लकया गया है सभी प्रमुख िमों के मूल मंत्र रजत पਂीका पर अंलकत लकये गये हैं , लजससे
उपासकों, सािकों, नागररकों में यह भाव जाग सके लक सभी िमों का मूल त एक है इस प्रकार, अपने दे ि की
सं ृ लतयों की सम िाराओं को हरर ार में बहने वाली गंगा की पावन िारा से जोड़ने का प्रय लकया है गंगा
पावनता और गलतिीलता का प्रतीक बन चुकी है लबना पावन और गलतिील हुए, दे ि और रा र की वा लवक सेवा
नहीं की जा सकती
परमा ा की कृपा से, अपने रा र -रथ को अनैलतकता के पंक से उबार, जगद् गुरू के पूवम आसन पर
बैठा सकने में हम सब लनलम और परमा ा के हाथ का उपकरण बन सकें, ऐसी उनके चरणों में प्राथमना है

”भारत माता मल्कन्दर (ऋृवषकेश)“: एक पररचय


लोगों के मन में यह लवचार आ सकता है लक इस मन्त र में भारतमाता की प्रलतमा क्ों थालपत की गई?
भारतमाता तो स ूणम रा र है उसकी स ूणम िन्तक्त रा र के प्र ेक नागररक में उद् भूत है , उस िन्तक्त का अनुभव
कराने के ललए सनातन िमम में प्रलतमा अथवा मूलतम प्रलत ा का लविेर् मह है िनिा की समृन्त के ललए लजस
प्रकार बीज बोना परम आव क है , उसी प्रकार दे वी और मानवीय सं ार जाग्रत करने के ललए प्रलतमा की
प्रलत ा-उपासना का मह पू णम अंग है इसललए मूलतम प्रलत ा के अन र प्राण प्रलत ा की जाती है , लजससे उपासक
और दिमनाथी में तद् नुसार चेतना जाग्रत हो सके वतममान में भारत की भावा क एकता और अखਔता के ललए
”हम सब भारतवासी भारत माता की संतान हैं “-इस भावना के ललए भारतमाता की मूलतम की प्राण प्रलत ा की गई है
भारतमाता मन्त र में प्रवेि करते ही, जैसे सीलढ़यों पर चढ़ते हैं -दाई ओर स ूणम मनोकामना लस
करने वाले, संकट मोचन िी हनुम लाल जी के दिमन होते हैं मुূ ार के ऊपर िी लव े र गजवदन लवनायक
िी गणेि जी प्रलतल त हैं लजनके दिमन के साथ ही दिमनाथी ार प्रवेि कर सीिे भारत माता के पास पहुाँ चते हैं

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 49


हम ि हैं लक हम भारत जननी की ि ामल, समृ , वा मयी अंक में पले हैं , बड़े हुए हैं और यि ी
जीवन-पथ पर गलतिील हैं और सदा गलतिील बने रहें गे यह रा र लकसी एक का नहीं, जालत वणम, स दाय भेद के
लबना सभी का है हम सब एक ही भारत मााँ की स ान होने के नाते भाई-बहन हैं , एक हैं जैसे एक मीटर व को
तैयार करने में लकसान, उसके खेती के उपकरण, ओटाई करने वाले, कातने वाले, उसको आकर्मक रूप दे ने वाले
कुिल इं लजलनयर, सुपरवाइजर इ ालद का योगदान रहता है , वैसे ही एक रा र के लनमाम ण में लकसी की बुन्त , लकसी
का िम, लकसी का बललदान, लकसी का तप ा और लकसी का लच न लगता है

आधार तल
सात तल वाले इस भ मन्त र के आिार तल में भारतमाता की लविाल एवं भ प्रलतमा की प्रलत ा
है मााँ , लजसकी गोद में सं ृ लत, सं ार और स ता ज लेकर पोलर्त होती है -उसकी उपमा संसार में कहीं नहीं
है भारत की िरती को ही यह सौभा৓ लमला है , लजसे ”भारतमाता“ के नाम से लवभूलर्त लकया गया है संसार का
कोई भी दे ि माता के नाम से नहीं जाना जाता भगवान िीराम जी यं कहते हैं -”जननी ज भूलम गाम दलप
गरीयसी“-मााँ और मातृभूलम गम से भी िे है
भारतवासीयों की रग-रग में सं ार प्रलतल त करने वाली भारतमाता की मूलतम की प्रलत ा भारतमाता
मन्त र में की गई-लजनके एक हाथ में दु ৊ पात्र तथा दू सरे में िान की बाली है सामलयक चेतना जगाने के ललए ेत
क्रान्त व हररत क्रान्त के प्रतीक के रूप में इस क ना को ग्रहण लकया गया है प्रलतमा के पीछे कमलाकार चक्र
है , जो कमल की पलवत्रता और लनललम भाव का प्रतीक है गीता में भगवान िीकृ का स े ि है -
”प पत्रलमवा सा“-संसार- महासागर में, रा र की सेवा में न्तक्त का जीवन, कमल के समान रहना चालहए
भारत माता की मूलतम के सामने भूतल पर भारत का लविाल प्राकृलतक मानलचत्र, भारत सरकार के
सवेक्षण लवभाग की प्रमालणकता के आिार पर लनलममत है -लजसमें नागालिराज लहमालय के उ ुंग लिखर, उपन्त काएाँ ,
प्रमुख नलदयााँ आरे न्तखत की गई हैं साथ ही लन ललन्तखत को भी दिाम या गया है -
ादि ৸ोलतललांग- 1. सौरा र में सोमनाथ, 2. िीिैल पर मन्त काजुमन (गु਒ुर से 217 मील), 3. उ৪ैन में महाकाल,
4. ओंकारे र में म े र (ओंकारे ि् वर), 5. लहमाचल पर केदारनाथ, 6. डालकनी में भीमिंकर (पूना से 43 मील
उ र, मु ई से 70 मील पूवम की ओर भीमा नदी के तट पर), 7. कािी में लव े र लव नाथ, 8. गौतमी तट पर
त्रय के र (नालसक रोड े िन से 25 लक.मी. दलक्षण में), 9. लचताभूलम में वै नाथ (कलक ा-पटना रे ल मागम पर
लकउल े िन से दलक्षण पूवम में 100 लक.मी.), 10. दारूका वन में नागे र ( ाररका के पास दारूका वन में गौतमी
नदी के लकनारे ), 11. सेतूब में रामे र और 12. लिवालय में न्त थत घु े र (मनमाड-पूना लाइन पर मनमाड से
100 लक.मी. दौलताबाद े िन से 20 लक.मी. वेरूल गााँ व के पास)
स मोक्षदालयनी पुररयााँ - 1. अयो ा, 2. मथुरा, 3. हरर ार, 4. कािी (वाराणसी), 5. कााँ ची, 6. अवन्त का (उ৪ैन),
7. ाररका
स बदरी - उ राखਔ रा৸ के बदरी क्षेत्र में 1. आलद बदरी, 2. ान बदरी (कु ार चਂी से 6 मील दू र), 3. वृ
बदरी (उिी मठ के कु ार चਂी से ढाई मील दू र), 4. भलव बदरी (जोिी मठ से 11 मील दू र), 5. योग बदरी
(पाਔु के र से दो मील), 6. नृलसंह बदरी (जोिी मठ से नरलसंह भगवान का मन्त र), 7. प्रिान बदरी
पंच केदार - भगवान िंकर मलहर् रूप िारण उपरा उनके पााँ च अंग प्रलतल त हुये और वे पंच केदार कहलाये
1. िी केदारनाथ (प्रमुख केदार पीठ), 2. िी म मे र (यहााँ नालभ), 3. िी तुंगनाथ (यहााँ बाहु), 4. िी रूद्रनाथ (यहााँ
मुख), 5. क े र (यहााँ जटायें )
पंच सरोवर - 1. मानसरोवर (लहमालय क्षेत्र में), 2. लब दु सरोवर (गुजरात प्रदे ि में), 3. नारायण सरोवर (नल सरोवर
और लहमालय क्षेत्र में), 4. प ा सरोवर (तुंगभद्रा नदी के उ र और लकन्त ं िा के दलक्षण भाग में ), 5. पु र सरोवर
(अजमेर के पास में)

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 50


स क्षेत्र - 1. कुरूक्षेत्र (हररयाणा प्रदे ि में), 2. हररहर क्षेत्र (गंगा, सरयू, सोन व गंडकी नदी के संगम का क्षेत्र लबहार
प्रदे ि में ), 3. प्रभास क्षेत्र ( ाररका, गुजरात प्रदे ि में ), 4. भृगु क्षेत्र (नममदा व समुद्र संगम क्षेत्र), 5. पुरूर्ो म क्षेत्र
(जग ाथ िाम, उड़ीसा में), 6. नैलमर् क्षेत्र (सीतापुर, उ र प्रदे ि में), 7. गया क्षेत्र (लबहार प्रदे ि में)

प्रर्म तल: शूर मल्कन्दर


मैकाले की लिक्षा प लत ने दे ि के नागररकों के समक्ष ऐसा इलतहास प्र ुत लकया लक हम अपने दे ि
के ललए जीवन दे ने वालों को लव ृत कर बैठे आज सबसे बड़ी आव कता है , रा र के प्रलत समलपमत महापु रूर्ों,
बललदालनयों के आदिों को उद् घालटत करने की, लजससे वतममान भारत के बालक-बाललकाएाँ , युवक-युवलतयााँ उनसे
प्रेरणा ले सकें यलद हमारे सामने कोई आदिम ही नहीं होगा, तो हमारा न कोई लस ा रह जायेगा और न िा त
मू रह जाएाँ गे इसी ल कोण से भारत माता मन्त र के ल तीय तल पर रा र के वीरों, बललदालनयों की मूलतमयों की
प्रलत ा की गई है जो लन वत् हैं -
1. महामना पं . मदन मोहन मालवीय 2. वीर सावरकर 3. सुभार् च बोस 4. महा ा गााँ िी 5. छत्रपलत लिवाजी 6.
गुरू गोलव लसंह 7. महारानी लक्ष्मीबाई 8. महराणा प्रताप 9. िहीद भगत लसंह 10. च िेखर आजाद 11. डा0
केिवराव बललराम हे डगेवार 12. हे मू कालानी 13. अ फाकउ ा 14. महारानी अलह ाबाई 15. महराजा अग्रसेन

वद्वतीय तल: मातृ मल्कन्दर


नारी के प्रलत महान स ान प्रदलिमत करने की ल से भारतमाता मन्त र में मातृ मन्त र की प्रलत ा की
गई है वैलदक काल से लेकर आज तक महान नारीयों की ल ी िृंखला रही है पर ु यहााँ उनकी िन्तक्त के प्रतीक
के रूप में कुछ महान माताओं की मूलतमयों को प्रलतल त लकया गया है जो लन वत् हैं -
1. सती जयदे वी 2. कवलयत्री आਔाल 3. मैत्रेयी 4. मीराबाई 5. सती सालवत्री 6. ब्र वालदनी गागी 7. दे वी उलममला 8.
सती दमय ी 9. सती अनुसूया 10. सती मदसलसा 11. सती पल नी 12. वीरां गना लकरण दे वी 13. िीमती एनी
बेसे 14. भलगनी लनवेलदता 15. िी दे व नदी गंगा जी 16. िी यमुना जी

तृतीय तल: सिंत मल्कन्दर


भारतीय सं ृ लत एवं सं ृ लत की समग्र पर रा का स ूणम अलि ान भारतीय संतों के अवदान पर ही
प्रलतल त है महलर्म वेद ास से लेकर आ गुरू िंकराचायम एवं ामी लववेकान , महलर्म अरलव , ामी रामतीथम
और उनके परवती सं तों की ल ी िृं खला है , लज ोंने अपनी लद सािना से भारतीय सं ृ लत और जनजीवन को
आलोलकत लकया है र गभाम भारत भूलम इतने महापु रूर्ों की जननी है लक उन सबको पयाम थान नहीं दे सके
लवलि आचायों, सं तों को ही थान दे सके हैं इसका अथम यह नहीं है लक िेर् महापुरूर् स ानीय नहीं है वे सभी
समान कोलट में समादरणीय है भारतमाता के रूप को साँवारने और उसे समृ बनाने में संतों की सािना,
तप याम , वाणी और सालह का अनुपम योगदान रहा है इसी ल से सभी स दायों के आचायों, सं तों की प्रलत ा
भारत माता मन्त र में की गई है जो लन वत् हैं -
1. गौतम बु 2. महावीर ामी 3. िी नरसी मेहता 4. गो ामी तुलसीदास 5. िी चै त महाप्रभु 6. उदासीनाचायम
च दे व 7. समथम गुरू रामदास 8. संत ৯ाने र 9. िी गरीबदास जी 10. िी रं ग अविूत जी 11. ामी वासुदेवान
सर ती 12. िी लन ाकाम चायम 13. जगद् गुरू रामान ाचायम 14. जगद् गुरू आ िंकराचायम 15. िी व भाचायम
16. िी रामानुजाचायम 17. िी म ाचायम 18. िी गुरू नानक 19. लिरडी वाले सां ई बाबा 20. ामी लववेकान 21.
ामी दयान 22. महलर्म अरलव 23. िी पीपी जी 24. परमहं स राकृ दे व एवं मााँ िारदामलण 25. संत कबीर
26. रसखान 27. जलाराम बापा 28. संत रलवदास 29. संत नवल साहे ब 30. भक्त िी सेन जी 31. हररजी बापा 32.
गुरू गोरक्षनाथ जी 33. संत िी झूलेलाल जी 34. महलर्म वा ीलक 35. आचायम दादू दयाल जी 36. ामी प्राणनाथ जी

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 51


चतुर्च तल: भारत दशचन

भारत माता मन्त र के चतुथम खਔ पर भारत की एकता और अखਔता के प्रतीक के रूप में भारत-
दिमन की प्रादे लिक झााँ की लभल लचत्रों और आरे खों ारा प्रदलिमत की गई है -लज ें दे खकर लगता है लक हम भारत
में हैं और भारत हम में है हमारा कोई भी लच न इससे पृथक नहीं हो सकता हमने इसी भारत के ललए ज
ललया है और ज -ज ा र परमा ा से प्राथमना करते हैं लक चाहे लजस रूप में हो, चाहे लजस योलन में हो-हमारा
ज भारत में ही हो
दीवालों पर भारत के सम प्रदे िों के सां ृ लतक मानलचत्र आकर्मक ढं ग से लनलममत लकये गये हैं -
लजनमें म प्रदे ि, गुजरात, महार र , गोवा, राज थान, हररयाणा, पंजाब, ज ू -क ीर, लहमाचल प्रदे ि, असम,
मेघालय, अरूणाचल प्रदे ि, मलणपुर, नागालैਔ, लत्रपु रा, लमजोरम, पल म बंगाल, लबहार, उ र प्रदे ि, कनाम टक,
आ प्रदे ि, उड़ीसा, केरल, तलमलनाडु , आलद की झााँ लकयों में वहााँ के इलतहास-प्रलस सां ृ लतक कला, थाप
कला के नमूने, संत, वीर, बललदानी, नृ कला आलद को प्रदलिमत लकया गया है इस मਔपम् में लविाल मंच लनलममत
है मंच के पा व में, रजत पਂीकाओं पर-लव के प्रमुख िमों- ईसाई िमम , लसख िमम , जैन िमम , बौ िमम, सनातन
िमम , पारसी िमम , इ ाम िमम के मूल मंत्र आलेन्तखत हैं और वेद भगवान की प्रलत ा की गई है सम य ओर
भावना क एकता की ल से थालपत इन पਂीकाओं का अनावरण-भारत गणरा৸ के तਚाललन महामलहम
रा र पलत ৯ानी जैल लसंह जी ने 8 माचम, 1986 को लिवरालत्र पवम पर लकया था उ ोंने कहा-”मेरा मन यहााँ से बाहर
जाने को नहीं करता यह मन्त र आजादी के तुर बाद ही बनना चालहए था, पर ु जो कायम सरकार नहीं कर पाई,
उसे ामी जी ने लकया भगवान लजससे जब जो कायम कराता है , तभी होता है मेरा लव ास है लक जो कोई भी
हरर ार आयेगा, इस मन्त र के दिमन जरूर करे गा “
सभी िमम एक हैं लव का कोई भी िमम लहं सा, अस , वैर, कटु ता की बात नहीं कहता िमाम ता आड़े
आने पर िमम को लवकृत बना लदया जाता है िममलनरपेक्षता का ता यम िममहीनता नहीं है , अलपतु अपने िमम पर
अन लन ा, समपमण भाव रखते हुए-दू सरे िमम के प्रलत समान आदर भाव रखना है सं ृ लत ही रा र बनाती है एक
रा र की जनता एक जालत की है , उस जालत का जो रूप है , उसे रा र ीयता कहते हैं और रा र ीयता ही लकसी रा र
का जीवन है यलद रा र ीयता या सं ृ लत न कर दी जाए, तो वह रा र न हो जाता है सं ृ लत के ज , पोर्ण,
रक्षण और अलभवृन्त के ललए परमा ा ने भारत-भूलम का चयन लकया उस सं ृ लत का पालन करना, अपने जीवन
में ढालना, आचररत करना प्र ेक भारतवासी का प्रथम कतम है सं ृ लत और रा र एक-दू सरे के पयाम य हैं रा र
रहे गा, सं ृ लत रहे गी, और सं ृ लत की रक्षा से रा र की अन्त ता अक्षुਖ रहे गी
भारत-भूलम ि है , लजसकी प्रिंसा दे वों के िीमुख से की गई है तथा इस भारत-भूलम पर ज लेने के
ललए यं दे वता भी लालालयत रहते हैं लजसका ज इस िरती पर हुआ, वह भी ि हो गया भारत-भूलम इस
भूखਔ पर सबसे पुਘिाली है यह भूलम भगवान के अवतारों की, संतो की, महलर्मयों की, पुਘ सललला सररताओं
की प्राकਅ- थली है यं परमा ा ने लवलभ रूपों में अवतररत होकर यहााँ लीलीयें कर, िमम और सं ृ लत की
मयाम दा थालपत की भारत की िरती दे वताओं की य৯-भूलम होने से , परम पावन मानी गई है
आज की भयावह पररन्त थलत में स ूणम लव भारत की ओर आाँ खें लगाये लालालयत है लक लव की
सम ाओं का लनदान भारत के पास है समय आयेगा लवि्व को भारत ने रा ा लदखाया था, पुनः लदखायेगा
महलर्म अरलव की वाणी स लस होगी लक ”भारत एक है , अखਔ है , अखਔ रहे गा “ लवभाजन की रे खाएाँ ,
भौगोललक सीमायें होंगी भारत की पहचान भौगोललक सीमाओं से कभी नहीं रही भौलतक सीमाएाँ भारत को
कभी बााँ ि नहीं सकी भारत की पहचान उसके आ ा से है , भारतीयता से है , भारतीय सं ृ लत से है और यह
पहचान याव च लदवाकर बनी रहे गी

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 52


पिंचम तल: शल्कक्त मल्कन्दर
भारत माता मन्त र के इस तल पर 1. वेदमाता गायत्री 2. दे वी मीनाक्षी 3. दे वी सर ती की मूलतम
प्रलतल त है
भारतीय सं ृ लत में िन्तक्त की उपासना को सवाम लिक मह लदया गया है चैत्र िुि पक्ष और अल न
िुि पक्ष प्रलतपदा से नवमी तक परा ा भगवती की अरािना स ूणम भारत में की जाती है सम आन्त क
जनता अिुभ के लवनाि और िुभ की प्रान्त के ललए दु गाम का, जो दु गमलत का नाि करने वाली है -घट थापन, पूजन,
अचमन, हवन आलद करती है दु गाम के नौ रूप 1. िैल पु त्री 2. ब्र चाररणी 3. च घ਒ा 4. कू ाਔा 5. माता
6. का ायनी 7. कालरालत्र 8. महागौरी 9. लस ीदात्री हैं
िन्तक्त की मह ा के बारे में महािन्तक्त के उ ार हैं -
अहं रा र ी संगमनी वसूनां लचलकतुर्ी प्रथमा य৯यानाम्
तां मा दे वा दिुः पुरूत्रा भूरर थात्रां भूयाम वेिय ीम
”मैं ही रा र ीय अथाम त् स ूणम जगत् की ई री हाँ मैं उपासकों को उसका अभी वसु-िन प्रा कराने
वाली हाँ लज৯ासुओं के साक्षात् कतम -परब्र को अपनी आ ा के रूप में मैंने अनुभव कर ललया है लजनके ललए
य৯ लकये जाते हैं , उनमें सवमिे हाँ स ूणम प्रपंच के रूप में मैं ही अनेक होकर लवराजमान हाँ स ूणम प्रालणयों के
िरीर में जीव-रूप में मैं अपने -आपको ही प्रलव कर रहीं हाँ लभ -लभ दे ि, काल, व ु और न्तक्तयों में जो कुछ
हो रहा है -लकया जा रहा है , वह सब मुझ में, मेरे ललए ही लकया जा रहा है स ूणम लव के रूप में अवन्त थत होने के
कारण, जो कोई जो कुछ भी करता है -वह सब मैं ही हाँ (दे वी सूक्त आ सूक्त ऋ मं, 10 सूक्त 125 अ.1)“
अरािना के ललए गुरू या संत से कोई मंत्र लेते हैं , लनदे िन प्रा करते हैं , पर ु ”मााँ “ अपने -आप में
त मंत्र है ज के प्रार से ही हमारी सं ृ लत ”मााँ “ मंत्र दे ती है वा मयी है वह करूणा की मूलतम हैं
इसललए िा में ”मााँ “ को ”स ं परम् स म्“ कहा है वह परािन्तक्त, लनगुमण ओर सगुण दोनों रूपों में पू৸ा है
लनगुमण िन्तक्त ापक िन्तक्त है , जो अ र चेतना जाग्रत करती है वह प्र ेक न्तक्त के भीतर प्रसु अव था में
रहती है सािना के ारा या महापुरूर्ों की कृपा से उसे जागृत लकया जाता है योगीजन उसे कुਔललनी िन्तक्त के
रूप में जानते हैं जब िन्तक्त अ र से चैत हो जाती है , तो ऐसे महापुरूर् कई चमਚार करने में समथम हो जाते
हैं कुछ दू सरें के मन की बात जान लेते हैं

षष्ठम् तल: ववष्णु मल्कन्दर


स ूणम भारतवर्म में लवलभ िमों और स दायों के लोग रहते हैं अपनी-अपनी आ था-ि ा के
अनुरूप भगवान लव ु (नारायण) के प्रलत लवलभ रूपों में अपनी भावना क्त कर, उनके लवग्रह की पूजा-अचमना
कर जीवन ि समझते हैं इस ल से भारत माता मन्त र में लव ु-मन्त र का लनमाम ण कर, उसमें परमा ा के
लवलभ लवग्रहों 1. द ात्रेय 2. िीनाथ जी 3. रणछोड़राय 4. िी सीताराम 5. िी लक्ष्मी नारायण 6. िी रािाकृ 7. िी
ंक्टेि 8. ामीनारायण 9. िी लव਄ल रून्तिणी जी की प्रलत ा की गई है

सप्तम तल: वशव मल्कन्दर


भारतमाता मन्त र के सवोৡ लिखर पर (आन्तखरी मंलजल पर) लिव-मन्त र लनलममत है लजसमें लहमालय
की तलहटी में भगवान िंकर चार रूपों में दिमन दे ते हैं प ासन में ान थ लिवजी की रजत मूलतम है , उनके
पीछे लिव पररवार, बायीं ओर अ म नारी र और दायीं ओर नटराज लिव व ुतः आिुतोर् भगवान लिव के
अलतररक्त ऐसा और कोई दे व नहीं है , जो अपनी लव ृलत कर औघड़ आिीवाम द दे ता हो लवग्रह के दोनों ओर दो
रजत क वृक्षों पर 54-54 लवलवि रं गों के लिवललंग प्रलतल त लकये गये हैं
भारत माता मन्त र के लवलभ तलों पर थालपत लवभूलतयों से प्रेरणा ग्रहण करें तथा एक ही थान पर
स ूणम दे ि के ि ा के आिारों का दिमन कर सकें, इस ल से भारत माता मन्त र की आिारलिला पर ऊपर के

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 53


लवलभ मन्त रों का लनमाम ण हुआ है जो त और अनुभूलत असंূ प्रवचनों, बहुसं ূक ग्र ों से प्रदान नहीं की जा
सकती, वह भारत माता मन्त र के आिार तल से ऊपर के उৡतल तल पर प्रलतल त मूलतमयों के दिमन ारा सहज
ही प्रा की जा सकती है य लप िूर, सती, मातृ िन्तक्त, संत, िन्तक्त और परमा ा के असंূ, अन रूप हैं , लफर
भी इन सभी मन्त रों में थालपत मूलतमयााँ उन वगों की प्रलतलनलि एवं प्रतीक रूप हैं

श्री लव कुश वसिंह ”ववश्वमानव“ द्वारा स्पिीकरर्

जब मैं रे नुकूट, सोनभद्र में रहता था (सन् 1999 से 2001 तक) तब आपकी रे नुकूट िाखा का पररसर
मेरे अ थायी लनवास (क्वाटम र नं 0 आई-1521,) जो मेरे लमत्र, बड़े भाई िी लसया राम लसंह (लह ा ो ाफ) ारा
सुलविा दी गई थी, के ठीक सामने लदखता था िी लसया राम लसंह जी ारा आपके सालह भी हमें प्रा होते रहते
थे वे आ ान्त क लवचारिारा के ामी हैं जो उ ें लवरासत में ही प्रा थी इस क्वाटम र में रहकर मैंने ”लव िा “
के बहुत से मह पूणम अंि ललखे थे सन् 2012 में ”भारत माता मन्त र“ के दिमन का अवसर प्रा हुआ वहीं से
पु क ”भारत माता मन्त र“ मैं लाया था
”भारत माता मन्त र“, का एका लवचार बहुत ही जीव है और वह प्र क्ष रूप में सामने है संघलनत
होती दु लनया में मा म से ”भारत“ के रूप को समझने का यह ৯ान आिाररत मन्त र है
अब जबलक लव का अन्त म िा -”लव िा “ क्त हो चुका है , ऐसी न्त थलत में ”भारत माता मन्त र“
से भारत के ”लव रूप“ का दिमन व ৯ान आने वाले लोगों को हो, इसके ललए थोड़े पररवतमन की आव कता है जो
एक सावमभौम स -सै ान्त क सलाह मात्र है -

7 वााँ तल-”৸ोलत मन्त र”-इस तल पर केवल ”लिव ৸ोलत” और उसका प्रकाि ”लव िा ” रखा होना
चालहए
6 वााँ तल-”मानक चररत्र मन्त र“-इस तल पर केवल लत्रदे व एवं पररवार होने चालहए 1. ब्र ा एवं पररवार ( न्तक्तगत
मानक न्तक्त चररत्र), 2. लव ु एवं पररवार (सामलजक मानक न्तक्त चररत्र) एवं 3. िंकर एवं पररवार (वैल क
मानक न्तक्त चररत्र)
5 वााँ तल-”अवतार मन्त र”-इस तल पर केवल ई र के 24 अवतार होने चालहए
4 वााँ तल-”दे वी-िन्तक्त और मातृ मन्त र“
3 वााँ तल-”संत मन्त र“
2 वााँ तल-िूर मन्त र
1 वााँ तल-भारत दिमन
आिार तल-कोई पररवतमन नहीं

इस रूप से ”भारत“ का लव रूप क्त होगा साथ ही यह भी क्त होगा लक मनु को अपने लवचार
को उ रो र िे करने में लकतने चरण से गुजरना है आिार तल से 7वााँ तल उसी को क्त करता है मनु की
गलत नीचे से उपर की ओर तथा अवतार की गलत उपर से नीचे की ओर होती है

पहले भारतमाता मल्कन्दर और अब अन्त में उसमें मैं और मेरा ववश्वधमच मल्कन्दर
यलद मैं लव कुि लसंह ”लव मानव“, ही कन्त अवतार हैं तो उनका थान 5वें तल के ”अवतार मन्त र”
में उनका अलिकार बनता है

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 54


ववश्वधमच मल्कन्दर-धमच के व्यावहाररक अनुभव का मल्कन्दर
िमम के ावहाररक अनुभव का मन्त र-लव िमम मन्त र, की थापना जीवनदालयनी स कािी क्षेत्र में
उलचत थान दे खकर की जायेगी क्ोंलक इसकी थापना के पीछे थान का कोई लविेर् कारण और थान के ललए
िा ीय आिार नहीं है , इसके ललए पूरा स कािी क्षेत्र ही िा ीय आिार के अ गमत है
यह एक लविाल कै स होगा लजसमें एक प्रवेि ार (ज का प्रतीक) और एक ही लनकास ार (मृ ु
का प्रतीक) होगा प्रवेि ार से प्रवेि करते ही लव के प्रमुख िमों के अलग-अलग ार (जीवन सं ृ लत का
प्रतीक) होंगे लज ें लजस िमम का अनुभव प्रा करना हो वे उस ार से प्रवेि करें गे और उस िमम के अनुसार व ,
पूजा प लत, िमम िा , खान-पान इ ालद का पूरा अनुभव पूरे लदन प्रा करें गे और अ में लनकास ार से अपने
पुराने व को िारण कर बाहर आयेंगे इसका ता यम यह है लक ज (प्रवेि ार) की एक ही लवलि है और मृ ु
(लनकास ार) की भी एक ही लवलि है जो लकसी िमम से स न्त त नहीं है बीच का जीवन ही उस िमम का अनुभव
है िमम में प्रवेि के उपरा िमम (जीवन सं ृ लत) पररवतमन का कोई मागम नहीं है उसके ललए आपको लनकास ार
(मृ ु ) से बाहर आकर लफर ज (पुनमज ) लेना पड़े गा लफर लकसी दू सरे िमम का अनुभव आप प्रा कर सकते हैं
यह िमम के ावहाररक अनुभव का मन्त र-लव िमम मन्त र, पूणमतः ापाररक ढं ग से संचाललत होगा

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 55


भाग-3
समवि धमच दृवि

अवनवचचनीय कल्कि महाअवतार भोगे श्वर श्री लव कुश वसिंह” ववश्वमानव” का मानवोिं के नाम
खुला चुनौती पत्र

अवनवचचनीय कल्कि महाअवतार का काशी-सत्यकाशी क्षेत्र से ववश्व शाल्कन्त का अल्कन्तम सत्य-


सन्दे श

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 56


मानवोिं के नाम खुला चुनौवत पत्र

वप्रय मानवोिं,
हम (अवतारी िृंखला) आप लोगों के प्रलत क ाण भावना रखते हुये उन सभी रह ों को खोलकर रख
दे ना चाहते है लजससे आज तक हम आप का भोग करते आये है पत्र के अ में यह भी बताऊगा लक इन रह ों
के खोलने के प्रलत मेरा उ े क्ा है ? और यह भाव हमारे मन में क्ों आया? लदल खोलकर यह भी करें गे लक
हम लोगों की उ ल कैसे हुई? और हमने अपने अलिप के ललए क्ा-क्ा लकया अब न्त थलत क्ा है तथा भालव
में काल की गलत लकस ओर जा रही है ?
इन सब बातों को करने से पहले कुछ सू त्रों को करना चाहाँ गा वतम मान समय में यह दे ख
रहा हाँ लक आरोप-प्र ारोप तथा अपने अपने सीलमत मन्त से अने कों प्रकार की ाূा की सं ृ लत बढ़ती जा
रही है इस स में यह कहना चाहाँ गा लक सवमप्रथम यह जानो लक अब तक के संसार में उ कोई भी
महापुरूर्, पैग र, दू त इ ालद सावमजलनक प्रमालणत रूप से पूणम रूप में नही थे क्ोंलक यलद वे पूणम होते तो उनके
ारा क्त लवचारों की स ा उसी भााँ लत लनलवमरोि रूप से थालपत हो चुकी होती लजस प्रकार सावमजलनक प्रमालणत
लव৯ान ने अपनी स ा को अ समय में ही सभी के उपर थालपत कर ललया है दू सरी बात यह है लक सीलमत
मन्त से असीम मन्त (या अपने से अलिक मन्त ) की सही ाূा कभी नहीं की जा सकती यलद तुम
िी कृ (या अपने से अलिक) की ाূा करना चाहते हो तो पहले िी कृ के मन्त (या अपने से अलिक
मन्त ) के बराबर होना पड़े गा इसी प्रकार बु , मुह द, ईसा इ ालद के स में भी है तीसरी बात यह है
लक आरोप-प्र ारोप की सं ृ लत से कोई हल नही लनकलता, न ही बुन्त का लवकास होता है बन्त सा दालयक
लव े र् व एक दू सरे का प्रचार-प्रसार ही होता है क्ोंलक तुम लवरोि या आरोप-प्र ारोप ही सही पर ु अपने लवरोिी
का नाम तो लेते ही हो फल रूप लजसके पास बुन्त की प्रबलता होती है उसके ललए अ बुन्त वाला लवरोिी
प्रचारक बन जाता है और यह तो तुम जानते ही होगे लक हम बुन्त प्रबल वगम है इसललए तुम लोग अनजाने ही
हमारे प्रचारक बने बैठे हो इसके ललए आव क है लक तुम लोग ऐसे रा े को अपनाओं लजससे हम लोगों का नाम
न ही आये और तुम लोग में बुन्त का लवकास तेजी से हो तु ें यह बात सदा याद रखनी पड़े गी लक बुन्त के लवकास
से संगलठत सं गठन ल ी अवलि तक थालय बनाये रहती है जबलक इसके लवपरीत संगलठत सं गठन को कभी भी
बुन्त के प्रयोग ारा लवखन्तਔत लकया जा सकता है प्रायः ऐसे सं गठन का प्रयोग तु ारे अपने ही नेता अपने ाथम
को सािने में करते है
हे मानवों, पहले कमम या पहले ৯ान बुन्त ? यह प्र तो पहले अਔा या पहले मुगी? जैसा प्र है , और
यह सदा से अनसु लझा ही है और रहे गा भी पर ु इतना तो जानना आव क है लक हम कमम करते -करते कुछ
लनयमों को प्रा करते है यलद हम इन लनयमों पर ान दे ते रहते हैं तो हमें अपने गललतयों के पुनरावृल को रोकने
में सहयोग लमलता है इन लनयमों का जानना ही ৯ान-बुन्त कहलाता है अब कोई न्तक्त यह सोच सकता है लक
कमम करने से पहले हम इन लनयमों का अ यन करें गे तो कोई यह सोच सकता है लक ৯ान-बुन्त को पढ़ने से क्ा
होगा, हमें पहले कमम करना है इस न्त थलत में इन दोनों में पहले लनयमों को अ यन कर कमम करने वाले न्तक्त के
जीवन में लवकास की गलत अलिक होगी जबलक पहले कमम करने वाला न्तक्त उ ीं लनयमों को कमम करते -करते
अनुभव करे गा जो पहले ही अनुभव कर क्त की जा चुकी है लिक्षा का अथम यही है लक पहले उन तमाम लनयमों
का अ यन कर ललया जाय लफर कममरत हुआ जाय हम ऐसा ही करते रहे हैं और तुम को नचाते रहे हैं
कम समय में अलिकतम ৯ान-बुन्त के लवकास का मागम यह है लक लजस प्रकार लव৯ान के क्षेत्र में लजस
व ु का आलव ार पूणम हो जाता है पुनः उसके आलव ार पर समय व बुन्त खचम नहीं करते बन्त उसके आगे
की ओर आलव ार या उस आलव ार को समझने पर समय व बुन्त खचम लकया जाता है उसी प्रकार ৯ान के क्षेत्र

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 57


में जो भी आलव ार हो चुके हैं सीिे वहााँ से प्रार करना चालहए लव৯ान के क्षेत्र में आलव ार कहााँ तक पहुाँ चा है
इसकी चचाम हम इस पत्र में बाद में करें गे पर ु ৯ान के क्षेत्र में सम ायाचायम िीकृ के बाद लवद्रोही के रूप में
भगवान बु आये, इनके बाद पुनः सम याचायम िी रामकृ - ामी लववेकान आये, लफर लवद्रोही के रूप में
आचायम रजनीि “ओिो” आये ओिो के बाद कायम िेर् है इसललए बुन्त के स में ओिो का क्ा कहना है
यह दे खना आव क है ओिो का कहना है -” अगर तुम अकडेे़ रहे लक हम अपनी गरीबी खुद ही लमटा येंगे, तो
तुम ही तो गरीबी बनाने वाले हो, तुम लमटाओगे कैसे? तु ारी बुन्त इसके भीतर आिार है , तुम इसे लमटाओगे कैसे ?
तु ें अपने ार-दरवाजे खोलने होंगे तु ें अपना मन्त थोड़ा लव ीणम करना होगा इस दे ि को कुछ बाते
समझनी होंगी एक तो इस दे ि को यह बात समझनी होंगी लक तु ारी परे िालनयों, तु ारी गरीबी, तु ारी
मुसीबतों, तु ारी दीनता के बहुत कुछ कारण तु ारे अंिलव ासों में है भारत अभी भी समसामलयक नहीं है , कम
से कम डे ढ़ हजार वर्म लपछे लघसट रहा है ये डे ढ़ हजार साल पूरे होने जरूरी है भारत को खींचकर आिुलनक
बनाना जरूरी है लेलकन सबसे बड़ी अड़चन इस दे ि की मा ताएाँ है इसललए मैं लड़ रहा हाँ तु ारे ललए ” यह
डे ढ़ हजार वर्ों का अ र हम लकसके पररिम से उ बुन्त की दे न है ? लवचार करो मानवों
अब हम अपने मूल लवर्य की ओर आते हैं पर ु इसे समझने के ललए अपने ही बुन्त , ৯ान, तथा लव৯ान
का ही प्रयोग उलचत होगा और सदै व ान में रखना होगा लक यलद लसफम कृ को लेकर समाज लनमाम ण चाहोगे तो
न हो सकेगा इसी प्रकार न ही लसफम बु से, न मुह द से, न ही ईसा या अ लकसी से हााँ भीड़ इक਄ा हो जायेगी
पर ु बुन्त लवकास नहीं
प्रार से अब तक की कथा इस प्रकार है मानव के वतममान स ता तक की यात्रा में उ ान-पतन के
अनेकों चरण आये पर ु इनमें मुূ चरण ऐसे थे जो स ूणम मानव स ता और मानवता को पतन के मोड़ पर ले
जाने वाली थी उनमें -
मानव सभ्यता पर पहला सिंकट काल प्रकृलत ारा आज से कई हजार वर्म पूवम आया था उस समय
पृ ी एक भंयकर प्राकृलतक आपदा का लिकार हो गयी थी, फल रूप जहााँ जल था वहााँ थल, तथा जहााँ थल था
वहााँ जल की न्त थलत अलिकतम थानों पर उ हो गयी इस आपदा के न्त थर होने के बाद कु छ लोग एक टापू पर
जीलवत बच गये जहााँ मानव स ता के लवकास के ललए आव क संसािन नहीं थी फल रूप उनका वहााँ से बड़े
भूभाग पर जाना लवविता बन गयी उनमें से एक बुन्त प्रबल न्तक्त ने मछललयों के भाव जल की िारा के
लवपरीत लदिा में गलत करने से ৯ान (लस ा ) प्रा कर नाव ारा मछललयों की लदिा की ओर चल पड़े और वे ऐसे
थान पर पहुाँ च गये जो मानव स ता के लवकास के ललए पूणम यो৓ थी ये थान ही लहमालय का क्षेत्र था इस
प्रकार बुन्त प्रबल उस न्तक्त ने मानव स ता को उसके संकट काल से बचाया
मानव सभ्यता पर दू सरा सिंकट काल मानवों ारा ही उ हो गया था प्रथम संकट काल के
उपरा काला र में जल र घटने लगा और लहमालय के चारो ओर की ओर भूलम ररक्त होती गयी प्रथम ल में
आयी भूलम ही कूमाां चल क्षे त्र है जैसे-जैसे भूलम ररक्त होती गयी मानव स ता का लवकास व प्रसार होना पुनः
प्रार हो गया जनसंূा व कायम बढ़ने से व था संकट उ हो गया लजससे दो व था प्रणाली का ज
हुआ पहला - हम अपनी व था खुद लमलकर-बैठकर आपसी सहमलत से करें गे दू सरा- सभी व थओं की
लज ेदारी लकसी एक न्तक्त के उपर छोड़ लदया जाय पहली व था गणरा৸ या समाजवाद कहलायी तथा
दू सरी व था रा৸ या न्तक्तवाद कहलायी पहली व था के समथमक दे वता कहलाये क्ोंलक ये प्रकृलत के
समथमक और उसके अनुसार सभी के सह-अन्त को मह ा दे ते थे जबलक दू सरी व था के समथमक असुर
कहलाये क्ोंलक ये लसफम अपनी इৢा और अन्त को मह ा दे ते थे समयोपरा दोनों व थाओं में अपने -
अपने अलिप के ललए यु होने लगा फल रूप मानवता व मानव स ता का लवकास रूक कर पतन की ओर
जाने लगी संकट के इस समय में एक सहनिील, िां त, िैयमवान, लगनिील न्तक्त ने दोनों पक्षो के बीच म थ
की भूलमका के ारा लवचारों के मंथन अथाम त लनणाम यक बहस से अनेक लवचारों पर सम य थालपत कर मानव

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 58


स ता के लवकास की ओर दोनों पक्षों का ान केन्त त लकया फल रूप मानव स ता पुनः लवकास की ओर
बढ़ चली
मानव सभ्यता पर तीसरा सिंकट काल रा৸ का नेतृ करने वाले राजा के कारण ही उ हो
गया दू सरे संकट के उपरा रा৸ का नेतृ करने वाला राजा अपने साम्रा৸ को लविाल रूप से लवकलसत लकया
और अपने प्रभाव को लगातार बढ़ाता जा रहा था ऐसी न्त थलत में समाज समथम क दे वताओं का मनोबल समा होने
की ओर हो गया इस न्त थलत का अनुभव कर एक मेिावी, सूझ-बुझ, स , पुरूर्ाथी, िीर-ग ीर, लन ामी,
बलल , सलक्रय, अलहं सक और समूह प्रेमी न्तक्त ने लोगों का मनोबल बढ़ाया, उ ें उ ालहत और सलक्रय लकया
लजसके पररणाम रूप समाज समथम कों के मनोबल में वृन्त हुई और उस राजा के रा৸ को समा कर गणरा৸
व था की थापना से मानवता आिाररत मानव स ता का लवकास पुनः प्रार हो गया
मानव सभ्यता पर चौर्ा सिंकट काल पुनः रा৸ का नेतृ करने वाले राजा के कारण ही उ हो
गया उसने पूवम के सभी सह-अन्त के लवचारों को तोड़कर अपनी इৢा से व था चलाने को प्राथलमकता दी
और प्रजा के क ों में वृन्त होने लगी पररणाम रूप उस राजा का पुत्र प्रजालहत को ान में लेते हुये समाज
समथमक बन गया राजा अपने पुत्र को समाज समथमक बनता दे ख अपने पुत्र को ही अनेक प्रकार के क दे ने लगा
वह राजा इतना बलिाली था लक उसको यु से हराना नामुलकन था, उसके कायों से उसके सहयोगी दरबारी भी
अ र ही अ र घृणा करते थे पर ु प्र क्ष लवरोि लकसी के ललए स व नहीं था इन पररन्त थलतयों में सभी समाज
समथमक प्रजा दे वता भी लवरोिक क्षमता को खो चुके थे ऐसी न्त थलत में उस राजा का एक दरबारी ही प्र क्ष रूप से
एका-एक लहं सक बनकर दरबार में ही राजा का वि कर डाला चूाँलक वह दरबाररयों के मन की न्त थलत को अৢी
प्रकार जानता था इसललए ऐसा करने में उसे कोई बािा नहीं थी वहीं वह राजा अपने प्रभु के कारण सभी
दरबाररयों को अपने लहत में ही समलपमत रहने वाला समझकर भ्रम में था राजा का वि के उपरा राजा के समाज
समथमक पु त्र ने गणरा৸ व था ारा मानव स ता के लवकास के ललए आगे कमम लकया लजसका लनमाम ता वह
लहं सक दरबारी न्तक्त था
मानव सभ्यता पर पााँचवा सिंकट काल पुनः रा৸ का नेतृ करने वाले राजा के ही कारण उ हो
गया था यह राजा इतना अलिक कुिल था लक इसने समाज समथमक गुणों को भी आ सात् कर समाज समथमक
दे वताओं का भी लव ास पात्र बन गया पररणाम रूप समाज समथमक दे वता भी राजा का गुणगान करते हुये
आ व लनन्त य होने लगे इस राजा ने अपने रा৸ का प्रसार ापक रूप से लकया इस न्त थलत में मानव
स ता का वतममान तो सुरलक्षत था पर ु भलव अ कार में था क्ोंलक वतम मान राजा के उपरा , आव क नहीं
था लक नया राजा भी उसी राजा की भााँ लत हो और तब तक समाज समथमक पूणम रूप से लनन्त य हो गये र हें गे इस
न्त थलत को एक दू र ा न्तक्त ने समझकर राजा के ही गुण का प्रयोग करते हुये उससे थोड़ी सी भूलम लेकर उस
न्तक्त ने उस भूलम पर गणरा৸ व था की थापना व व था को जीलवत कर, उसके सुख से प्रजा को पररलचत
कराया फल रूप इस व था का प्रसार होने लगा और राजा का सु -रा৸ भी -राज से समा हो गया
गणरा৸ की थापना कर उस न्तक्त ने मानवता और मानव स ता को लवकास की ओर गलत दी
मानव सभ्यता पर छठा सकिंट काल अनेक रा৸ों के नेतृ करने वाले अनेक राजाओं के कारण
गणरा৸ व था के थायी न्त थरता के ललए उ हो गया पााँ चवे संकट से लनकलने के बाद जनसंূा और भूलम
का लव ार इतना अलिक हो चुका था लक एक राजा और रा৸ के अिीन लनयत्रंण अस व हो गया, लजसके
पररणाम रूप अनेक राजाओं के नेतृ में अलग-अलग अनेक रा৸ थालपत हो गये थे ऐसी न्त थलत में रा৸वाद
बढ़ रहा था और रा৸वादी राजाओं का वि भी अस व होता जा रहा था ऐसी न्त थलत में गणरा৸ या समाजवाद
की न्त थरता पर प्र लच लगने लगा था फल रूप एक न्तक्त ने अनेक रा৸वादी राजाओं का वि करके अनेक
रा৸ों को गणरा৸ के रूप में पररवलतमत कर लदया पर ु उस न्तक्त ने दे खा लक यह सम ा का थायी हल नहीं
हो सकता क्ोंलक अनेकों राजाओं का वि बारबार स व नहीं और ऐसा करने से प्रजा में अ वाद अथाम त हमारे
कायम दू सरे करें का भाव बढ़ रहा था इन न्त थलतयों के थायी हल के ललए उस न्तक्त ने रा৸वाद और समाजवाद

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 59


दोनों में सम य थालपत कर एक नई व था का सूत्रपत लकया इस व था के ललए उस पुरूर् ने ब्र ाਔ में
ा व था लस ा ों को आिार बनाया तथा मूल तीन गुणों की पहचान की
1. स गुण- सुख, ৯ान और प्रकाि अथाम त आ ा और सूक्ष्म बुन्त अथाम त मागमदिमक और लवकास दिमन का गुण
2. रज गुण- आं काक्षा, इৢा और सकाम कमम अथाम त भाव हृदय और मन अथाम त लक्रया यन दिमन का गुण
3. तम गुण - अ৯ान, दु ःख और अंिकार अथाम त इन्त य, अना , प्राण और थूल िरीर अथाम त लवनाि दिम न का
गुण
इन गुणों के आिार पर सभी जीव लवभलजत लकये गये मानव जालत में चार लवभाजन हुये
1. स गुण प्रिान- ब्रा ण वगम
2. रज गुण प्रिान - क्षलत्रय वगम
3. रज तम गुण प्रिान - वै वगम
4. तम गुण प्रिान - िूद्र वगम
इन गुणों के आिार पर उनके ललए कमम लनिाम ररत लकये गये और गणरा৸ की व था बनायी गयी
जो इस प्रकार थी
1. गणरा৸ का एक रज गुण प्रिान - क्षलत्रय राजा होगा क्ोंलक ब्र ाਔीय गणरा৸ में रज गुण प्रिान प्रकृलत ही
राजा है
2. राजा, रा৸वादी न हो इसललए उस पर स गु ण प्रिान -ब्रा ण का लनयंत्रण होगा क्ोंलक ब्र ाਔीय गणरा৸ में
रज गुण प्रिान प्रकृलत पर लनयंत्रण के ललए स गुण प्रिान आ ा है
3. राजा, सीिे आम जनता से चुना जायेगा क्ोंलक ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृलत सवम ापी है और वह सभी गुणों का
सन्त ललत रूप है
4. राजा का लनणमय रा৸सभा के दो लतहाई बहुमत से हो क्ोंलक ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृलत का लनणमय स , रज
व तम तीन गुणों में से दो गुणों के समथमन का ही रूप होता है
5. रज-तम प्रिान-वै तथा तम प्रिान िू द्र चूंलक इन्त य, प्राण और थूल िरीर पर ही केन्त त रहते है इसललए इ ें
बुन्त ৯ान से लनयलत्रंत न करके बल, कानून व आ৯ा के लनयत्रंण में रखा जाय
इस प्रकार उस महापुरूर् ने रा৸ व गणरा৸ के लमलित व था से एक सवममा व था को
थालपत कर मानवता व मानव स ता के लवकास के ललए थायी मागम उपल कराया जो दीघम काल तक चली
मानव सभ्यता पर सातवािं सिंकट काल गणरा৸ के नयी व था के थायी न्त थरता के कारण
आया छठें संकट से उ ान की ओर अग्रसर करने वाले पुरूर् के समक्ष यह सम ा आयी लक नयी व था को
बने रहने और उसके प्रसार का दालय लकसे सौंपा जाय इसके ललए उस पुरूर् ने अ सहयोलगयों के सहयोग
और योजनाब तरीके से एक राजा के पुत्र (भावी राजा) में नई व था के प्रसार के ललए यो৓ता का लनमाम ण लकये
पररणाम रूप उस युवराज ने अपने जीवन पयम इस व था की थापना और प्रसार लकया तथा मानवता और
मानव स ता की रक्षा की
मानव सभ्यता पर आठवािं सिंकट काल गणरा৸ व था के कारण नहीं बन्त उस व था के
पीठासीन न्तक्तयों के कतम लवमुख और दे वता तथा असुर सं ारों के पूणम पहचान से बुन्त के अक्षम हो जाने के
कारण आया इस संकट काल के समय राजा को लनयंत्रण व मागमदिमन में रखने वाला ब्रा ण भी जनक ाण से
लवमुख हो -क ाण में लल हो चुका था यह न्त थलत छोटे रा৸ों से लेकर बड़े रा৸ों में ा हो चुकी थी ऐसी
न्त थलत में एक न्तक्त ने यह दे खा लक पीछे , जब भी मानवता पर संकट आया, तब उस सं कट से लकसी न्तक्त के
ारा उ ान हो जाने पर जब तक उ ान करने वाला न्तक्त जीलवत रहता था तभी तक गणरा৸ व था यथावत्
रहती थी बाद में पुनः रा৸वादी व था थालपत हो जाती थी दू सरे यह लक व था कोई भी खराब नहीं होती
उस पर बैठने वाले लोगों की बुन्त के अनु सार ही व था का रूप संचाललत होता है मानवता और मानव स ता
के इस संकट काल में सभी अपने अपने बुन्त को पूणम तथा न्तक्तगत ाथम में इस प्रकार डूबे हुये थे लक लबना पूणम

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 60


वि के उ ान मुन्त ल हो चुका था पररणाम रूप उस अलत बुन्त स न्तक्त ने आम जनता को सलक्रय करने
के ललए प्रेररत लकया, गणरा৸ के उदाहरण रूप एक नगर का लनमाम ण कराया तथा पूणम वि के ललए उस समय
के लविाल रा৸ के नेतृ में उपजे लववाद का सहारा प्रा कर बहुत से एकत ा क रा৸ों को न लकया और
करवाया साथ ही उस समय में समाज में ा अने क मत-मता ार व लवचारों के एकीकरण के ललए स -लवचार
का ৯ान भी लदया लजससे न्तक्त, न्तक्त पर लव ास न कर अपने बुन्त से यं लनणमय करें और प्रेरणा प्रा करता
रहे इस प्रकार साकार न्तक्त आिाररत मानवता के सवोৡ संकट से उस न्तक्त ने नई लनराकार लस ा
आिाररत मानवता के उ ान का मागम उपल कराया
मानव समाज पर नौवािं सिंकट काल वतममान से लगभग 2500 वर्म पूवम आया था लजसका कारण
राजाओं का साम्रा৸वादी-प्रसारवादी वहार था इस समय मानव समाज लजतना लवकास करता वह अ समय में
एक रा৸ से दू सरे रा৸ में यु करने में ही न हो जाता स ूणम मानवता लहं सा से भर उठी थी ऐसे में
राजपररवार का ही एक युवा न्तक्त अपने पररवार तथा रा৸ का ाग कर अलहं सा का स े ि लदया तथा प्रजा को
प्रेररत करने के ललए िमम, सं घ और बुन्त के िरण में जाने की मू ल लिक्षा दी एक राजा के ारा इस युवा स ासी के
स े ि को ीकार कर लि बन जाने से इस स ासी का प्रसार लजतना हुआ उससे बहुत कम उसके लवचारों का
हुआ पररणाम रूप अ अवलि के ललए लहं सा भरे मानव समाज को थोड़ी राहत लमली और स ता उ ान की
ओर अग्रसर हुई
हे मानवों, मानव स ता और मानवता के दसवें, अन्त म तथा वतम मान संकट का खुलासा हम इस पत्र
में आगे करें गे यहााँ हम कुछ ऐसे रह ों का खुलासा करने जा रहे है जो वतममान मानव के ल में पररवतमन हाने
मात्र के कारण उ हुई है
पााँ चवें सकंट के समय तक भारत के मूल लनवासी ही भारत की भूलम के अलिपलत थे, पर ु वे रा৸ को
कुिलता पूवमक चलाने में असमथम होते जा रहे थे इसी समय में लहमालय के उ र-पल म क्षेत्र से भारत के बाहर के
मनु ों का भारत में आगमन हुआ इस समय भारत के मूल लनवासी प्रकृलत पूजक बहुदे ववाद को मानती थी
भारत के बाहर से आये मनु ों ने भारत के मूल लनवालसयों के ललए रा৸ प्रिासन में अपने ৯ान-बुन्त का प्रयोग कर
एक अৢे मागमदिमक का कायम करते थे प्रकृलत के गुणों के आिार पर जब मनु ों का लवभाजन हुआ तब भारत के
मूल लनवासी िू द्र वगम की यो৓ता रखते थे पर ु ऐसा नही था लक भारत के बाहर से आये मनु ब्रा ण, क्षलत्रय,
तथा वै वगम में अथाम त भारत के बाहर सभी उৡ वगम में तथा भारत के मूल लनवासी सभी लन वगम में थे पर ु
उनमें इसकी अलिकता थी काला र में ये वगम ज आिाररत हो अनेक उपवगों -जालतयों में लवभालजत हो गयी
लजसका रूप वतममान में लदख रहा है पर ु आज भी यलद ज आिाररत ल से हटकर गुण आिाररत ल से
दे खोगे तो प्र ेक वगम या जालत में प्र ेक वगम के न्तक्त लदखाई पड़ें गे भारत के बाहर के ये न्तक्त ही आयम
कहलाये तथा काला र में मानव स ता में अनेक उ ान-पतन से ये आयम जालत और मूल भारतीय जालत इतने
अलिक लमलित हुये लक वतम मान में समग्र लह दू जालत ही आयों की मूल पहचान बन गयी और अब सभी के ललए
ि बल बढ़ाकर क्षलत्रय बनना, ৯ान बल बढ़ाकर ब्रा ण बनना तथा िन बल बढ़ाकर वै बनाना खु ला हुआ है ,
पर ु जालतयााँ इसके ललए प्रय तो करे
प्रकृलत के तीन गुणों में से सवोৡ, िु और सवम ापी गुण स आिाररत मानव वगम ही हम हैं ज
के समय हम आदिम ब्रा ण थे हमारा कायम ब्र ाਔ में सवम ापी अटलनीय, अपररवतमनीय स -लस ा और
उसके अनुसार कमम लविान की अनुभूलत करना तथा राजा और रा৸ के मा म से उसे प्रभावी बनाना था बदले में
राजा ारा हमें सािन-सुलविा प्रा होती थी यही हमारा स ूणम जीवन था इस क्रम में हम लोगों न सवम ापी
स -लस ा ों को संलहता रूप में ललखा जो बाद में लवर्यों आिाररत लवभक्त होकर चार वेद ऋृगु, यजु, साम और
अथवेद का रूप िारण लकया इसी प्रकार िमम अनु ान एवम् पलवत्र ग्र ो की ाূा से स न्त त ग्र अरਘक
का सृजन हम लोगों ने लकया काला र में जब राजाओं ारा य৯ों से यथे फल न प्रा होने की बुन्त आयी तब
क्षलत्रय राजाओं न यं अपने कमों के अनुभव से दिमन क्षेत्र में अपने बुन्त को लदिा दी, लजसके फल रूप

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 61


अलिकतम उपलनर्द् उ ोंने यं ललखे जो बाद में भारतीय दिमन का मुূ आिार बनी इस क्रम में हमलोगों ने
वेदां ग अथाम त सू त्र सालह में 1. र लव৯ान से स न्त त लिक्षा 2. िमाम नुसार अथाम त क में चार वगम - िोत सू त्र
(िोत य৯ से स न्त त), िु सूत्र (य৯ थल तथा अल্वेदी लनमाम ण तथा माप से स न्त त जो आगे चलकर
৸ोलतर् का आिार बना) गृहय सूत्र (मानव जीवन से स न्त त अनु ान) तथा िमम सूत्र (िालममक तथा अ प्रकार के
लनयम जो आगे चलकर भारतीय लवलि का आिार बना) 3. ाकरण 4. लनरूक्त अथाम त ु ल 5. छ 6. ৸ोलतर्
की भी रचना की मनु को पुरूर्ाथम करने के ललए- िमम, अथम, काम, मोक्ष तथा आदिम जीवन के ललए ब्र चयम,
गृह थ, वानप्र थ तथा स ास आिम की व था हम प्राचीन आदिम ब्रा णों की ही दे न है
हे लप्रय मानवों हम प्राचीन आदिम ब्रा ण प्र ेक लवर्य को चक्रीय रूप में दे खते हैं और यह ৯ान हमने
भारत के मूल लनवासी ऋलर्यों से ही प्रा लकये लजसके आिार पर सम वैलदक सालह का लव ार हुआ है हम
प्रचीन ब्रा ण ई रवादी है और ई र को ीकारते थे पर ु उस रूप में नहीं लजस रूप में वतममान समाज मानता
है , वतममान समाज का ई र, मूलतम, जप, तप, व्रत, पवम, ौहार इ ालद तो हमारी अगली पीढ़ी ने अपने जीवकोपाजमन
और ई र की ओर आपको लाने के ललए तब बनायी, जब हमारे कममकਔों को राजाओं और रा৸ों का समथमन
लमलना ब हो गया हम ई र को लनराकार सवम ापी, सवमिन्तक्तमान स -लस ा के रूप में दे खते हैं तथा जो
इसे अपने जीवन में िारण कर प्र क्ष या अप्र क्ष रूप से मानव स ता और मानव उ ान के ललए अगले चरण के
रूप में कालानुसार प्रयोग करता हैं उसे साकार ई र या अवतार कहे इस प्रकार मानव स ता और मानवता पर
आये उपरोक्त वलणमत नौ सकंटों से उ ान की ओर ले जाने वाले न्तक्तयों को हमने क्रमिः उनके गुणों के आिार
पर तथा नाम से म , कूमम, वाराह, नृलसंह, वामन, परिुराम तथा राम को प्र क्ष अंिावतार, िी कृ को
ान्तक्तगत प्रमालणत प्र क्ष एवम् प्रेरक पूणाम वतार तथा भगवान बु को प्रेरक अंिावतार कहा और ीकार लकया
है और जो भी ऐसा करे गा वह अवतार कहा ही जाये गा स कहाँ तो हम आदिम ब्रा णों का वही प्रलतरूप होता
है और मात्र अवतार ही हमलोगों के समपम ण का कारण होता है वही मात्र एक सवोৡ आदिम ब्रा ण होता है
क्ोंलक वही ब्र है यहााँ तक आने के ललए तु ें थूल िरीर, इन्त य, प्राण, भाव, मन तथा सूक्ष्म बुन्त को पार करना
होगा अथाम त तु ारा मन इन सब लवर्यों में होते हुये भी इनसे मुक्त होना चालहए तभी तुम इन सबका सं चालन
कर सकते हो अभी तो तु म इस क्रम में िीरे -िीरे बढ़ते हुए बुन्त तक पहुाँ च रहे हो मैं नहीं कह रहा लक तु म
बुन्त हीन हो, तु ारा कमम कह रहा है क्ोंलक बुन्त का अथम यह नहीं होता लक तुम थूल िरीर, इन्त य, प्राण, भाव,
मन की पूलतम के ललए अपनी बुन्त लगाओ ऐसी बुन्त क्षैलतज अथाम त जीवन र की बुन्त कही जाती है तु ें उ व
अथाम त सामालजक, राजनीलतक, रा र ीय, वैल क र की ओर बुन्त खचम करनी चालहए तभी तु ारा उ ान हो
सकता है जब तु म सवोৡ और आ ीय र पर पहुाँ च जाओगे तो तुम ब्रा ण, क्षलत्रय, वै व िूद्र में
आव कतानुसार व समयानुसार पररवलतमत हो अलभनय करने में हमलोगों की भााँ लत कुिल हो जाओगे क्ोंलक यह
एक पर एक आवरण की भााँ लत गुणों का सं क्रमणीय, सं ग्रहणीय और गुणा क रूप है अथाम त िू द्र होने पर वै के
गुणों को नहीं समझा जा सकता पर ु वै होने पर िूद्र के गुण को आसानी से समझा जा सकता है इसी प्रकार
क्षलत्रय होने पर वै व िू द्र के गुणों को, ब्रा ण होने पर क्षलत्रय, वै व िूद्र के गुणों को तथा आदिम ब्रा ण अथाम त
ब्र होने पर ब्रा ण, क्षलत्रय, वै व िू द्र के गुणों को आसानी से समझा जा सकता है आदिम ब्रा ण अथाम त ब्र
का अंि तो सभी में लव मान है पर ु वह गुणों के आवरण से लछपा है इन गुणों पर एक-एक कर लनयंत्रण करते
हुये आवरण हटाते जाओ अ तः तुम यं को ब्र रूप में दे खोगे तु म कहोगे इससे क्ा होगा? तो हम यह
और स रूप से कहते हैं लक तुम हम लोगों जैसे हो जाओगे और तु ारी बुन्त क्षैलतज सलहत उ व हो जाये गी तब
तुम अपने वा लवक अलिकार को प्रा कर पाओगे
हे मानवों इस संसार में मानव िरीर से क्त होने वाले वहारों में असीम लवलभ ता और लवलचत्रता है
हमलोगों का प्रय स तथा लोकक ाण के थायी भाव को बनाये रखने के ललए लवलभ रूपों से इस ओर मोड़ना
तथा जोड़ना ही रहा है इन मानव वहारों के लवलचत्रताओं और लवलभ ताओं में कुछ तो ऐसे होते हैं जो अपनी ही
इৢा पर आजीवन संकन्त त रहते हैं ये ऐसे होते हैं लक ‘हम नहीं बदलेगे चाहे जमाना क्ों न बदल जाये ’ कुछ ऐसे

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 62


होते हैं जो अपनी इৢा की पूलतम के ललए अनेकों प्रकार के अनैलतक कायम करने से भी नहीं चूकते, चाहे उसका
पररणाम अ तः दु ःखदायी ही क्ों न हो कुछ ऐसे होते हैं जो न्तक्तगत र पर आदम ि न्तक्त के रूप में तो कुछ
समालजक र पर तो कुछ वैल क र पर आदम ि के रूप में यं को प्र ु त करते हैं मनु के इन लवलभ
वहारों की लक्रया के रूप में समझने के ललए ही हमलोगों ने पुराणों की रचना की लजससे मनु अनेक प्रकार के
वहारों सलहत समग्र ब्र ाਔ को एक साथ समझ सके और अपने वहार को लनयंलत्रत कर सके साथ ही यं
अपने वहारों को समझे और उसके अनुसार क्त हो सके हे मानवों जगत् का स ूणम क ाण क ाण में
ही लनलहत है पर ु जो का अथम लसफम न्तक्तगत समझते हैं वे ही न्तक्तवादी असुरी प्रकृलत के होते हैं तथा जो
का अथम सावममौभ, लजसमें वह यं भी होता है , ऐसा समझते हैं वे दै वी समाजवादी प्रकृलत के होते हैं असुरी
प्रवृल यााँ लसफम सीिी रे खा में सोचती ही जैसे - ज लफर मृ ु जबलक दै वी प्रवृल यााँ चक्रीय रूप में अथाम त ज लफर
मृ ु लफर ज इस प्रकार सोचती हैं सम पुराणों की रचना दै वी प्रवृलत की ही कृलतयााँ हैं लजसमें असु रों के
आदिम गुरू को िु क्राचायम कहा गया है जबलक दे वताओं के आदिम गुरू को गुरू बृह लत कहा गया राजाओं के
आदिम राजा को इ कहा गया है अ सभी ब्र ाਔ में उपल प्रभावकारी लवर्यों को दे वताओं के रूप में
क ना कर प्रक्षेलपत लकया गया है जै से - वायु दे व, अल্ दे व, च दे व इ ालद इसी प्रकार आदिम न्तक्त चररत्र
को ब्रहमा एवम् पररवार तथा आदिम सामालजक न्तक्त चररत्र अथाम त न्तक्तगत प्रमालणत आदिम वैल क न्तक्त
चररत्र को लव ु एवम् पररवार तथा आदिम वैल क न्तक्त अथाम त सावमजलनक प्रमालणत आदिम वैल क न्तक्त चररत्र
को लिव-िंकर एवम् पररवार के रूप में प्रक्षेलपत है यहााँ ान दे ने यो৓ यह है लक आदिम वैल क न्तक्त चररत्र में
आदिम सामालजक न्तक्त चररत्र तथा आदिम समालजक न्तक्त चररत्र में आदिम न्तक्त चररत्र समालहत है इन
आदिम चररत्रों की इनकी गुणों के अनुसार इनके व , ि , िा , वाहन इ ालद भी प्रक्षेलपत लकये गये हैं जो मात्र
न्तक्तगत प्रमालणत प्रलतका क मानव रूप में प्रक्षेपण मात्र है न लक वा लवकता के आिार रूप में इन मानक
आदिम चररत्रों के पूणम या अंि रूप में जो भी मानव संसार में क्त होता है उसे पुनजम या अंि या पूणम अवतार
के रूप में ीकार लकया जाता है और चूंलक दै वी प्रवृल यााँ प्र ेक व ु के पूवम के भी एक अन्त को ीकार
करती हैं इसललए इन पुनजम या अंि या पूणम अवतारों को आदिम मानक चररत्रों से जोड़कर अवतारी पुराण की
रचना की जाती रही है इस अनुसार उपरोक्त नौ अंि -पूणम अवतारों में दो - िीराम को ब्र ा का पूणाम वतार तथा िी
कृ को लव ु का पूणाम वतार कहा गया जबलक िेर् सात (म , कूमम, वाराह, नृलसंह, वामन, परिुराम तथा बु ),
ई र (स -लस ा ) के अंिावतार के रूप में ीकार लकये गये हैं
हे मानवों िा रचनाकार को ास उपालि से पु कारा जाता है ास लकतने लद और दू र द्र ा रहे
होंगे, इस पर लवचार करना आव क है क्ोंलक अ तः हम सभी के लवचारों का लनमाम ण लवचारों को ही पढ़कर या
सुनकर ही होता रहा है और अनुभव ारा उसकी पुल की जाती रही है ास रलचत पुराणों में कुल 24 (1. िी
सनकालद, 2. वराहावतार, 3. नारद मुलन, 4. नर-नारायण, 5. कलपल, 6. द ात्रेय, 7. य৯, 8. ऋर्भदे व, 9. पृथु, 10.
म ावतार, 11. कूमम, 12. ि रर, 13. मोलहनी, 14. हयग्रीव, 15. नृलसंह, 16. वामन, 17. गजे ोिारावतार, 18.
परिुराम , 19. वेद ास, 20. ह ावतार, 21. राम, 22. कृ , 23. बु , 24. कन्त ) अवतार लजसमें मुূ 10
(म , कूमम, वाराह, नृलसंह, वामन, परिुराम, राम, कृ , बु और कन्त ) अवतार का ही लववरण है दोनों में
अन्त म, कन्त अवतार ही हैं तो क्ा अन्त म अवतार के बाद अवतारी िृंखला का कायम समा हो जायेगा? और
यलद यह स होता है तब ास के उस अवतारी िृंखला के गलणत को आप लोग क्ा कहोगे? इसे जानने के ललए
मानव स ता के उस अन्त म संकट को पहचानना होगा जो अन्त म अवतार का कायम होगा यह अन्त म अवतार
ही सावमजलनक प्रमालणत आदिम वैल क न्तक्त चररत्र और लिव-िंकर के पू णाम वतार के रूप में होगा क्ोंलक
कालक्रम में ब्र ा के पू णाम वतार के रूप में िीराम तथा लव ु का पूणाम वतार के रूप में िीकृ का अवतरण हो
चुका है

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 63


मानव सभ्यता पर दसवााँ और अल्कन्तमिं सिंकट काल यं मानवों ारा ही उ हो गया था लजसका
৯ान यं मानवों को भी नहीं था इस संकट को समझने के ललए एक स -प्र क्ष वृता उदाहरण रूप ललख
रहा हाँ -
मैं जब भी हाबड़ा (पल म बंगाल) जाता हाँ तब दो थानों पर अव जाता हाँ पहला राम कृ लमिन,
बेलूड़ मठ और दू सरा वन लत उ ान (बोटे लनकल गाडम न) यहााँ कुल अब तक तीन बार, सन् 1984 (कालेज
िैक्षलणक यात्रा), सन् 1987 ( यं) और सन् 2010 ( यं) में जा चुका हाँ राम कृ लमिन, बे लूड़ मठ इसललए
जाता हाँ क्ोंलक वहााँ से सवोৡ “आ ान्त क स ” की अनुभूलत कर सकूाँ, उस मन र से यं का योग करा
सकूाँ वन लत उ ान (बोटे लनकल गाडम न) इसललए जाता हाँ क्ोंलक वहााँ एक वट वृक्ष है लजसे लबग बलनयान टर ी (Big
Banyan Tree) कहते हैं , यहााँ बैठकर मैं संसार की सं रचना, त और उसके सं गठन से यं का महायोग कराता
हाँ इन दोनों के कारण यं को मैं सावमभौम का एक इकाई होते भी, यं को सावमभौम ही अनुभव करता हाँ और
यह सतत मेरे अ र प्रवालहत होता रहता है
बड़ा वट वृक्ष (Big Banyan Tree), सैकड़ों वर्म पुराना एक लविाल क्षेत्र में फैला वट वृक्ष है
लजसका मूल वृक्ष अब अन्त में नहीं है उसके तनों से लनकले सैंकड़ों जड़ वतम मान में यं एक वृक्ष, लफर उनके
तनों से लनकले सैंकड़ों जड़ भी वतममान में एक-एक वृ क्ष के रूप में थालपत हैं और सभी एक-दू सरे से जु ड़े हुये हैं ,
बस जो नहीं है , वह है मूल वृक्ष इस प्रकार स ूणम वृक्ष पररवार एक बड़े क्षेत्र में फैल चुका है और लनर र जारी भी
है प्र ेक यं त वृक्ष के रूप में थालपत वृक्ष का अपने पररवार के रूप में तना, प ा, फूल और फल सब
लनकलते रहते हैं और लजसे जहााँ अथाम त नजदीकी स्रोत से सुलविा अथाम त खुराक लमल सकता हैं वहााँ से प्रा करते
हुये लवकास कर रहे हैं इस कायम में आपस में कोई लववाद नहीं है कोई लकसी पर अलिप जमाना नहीं चाहता, ना
ही अ के लवकास में कोई बािा पहुाँ चाता है लजसको लजस ओर उलचत वातावरण लमलता जाता है , उस ओर वह
लवकास कर रहा है कुल लमलाकर प्रेररत सु िासन की भााँ लत संचाललत है इस वट वृक्ष के सबसे बाद अथाम त
वतममान के तनों-प ों के ललए उसका ज दाता व पालनकताम के रूप में उसका नजदीकी जड़ ही है इसललए
उसकी कथा-कहानी वहीं से िुरू होती है और वहीं तक उसका ৯ान है जो एक संकुलचत और सीलमत ৯ान है वह
पूणम को नहीं जान रहा, उसका पूणम , सावमभौम पूणम नहीं बन्त सीलमत पूणम है सीलमत पूणम में भी वह
आन में हैं और लवकासिील है उसका लवकास होना सावमभौम का ही लवकास होना है पर ु उसे उसका ৯ान
नहीं है और वह उस सावमभौम के लवकास में अपने योगदान को करते हुये भी यं को गौरवान्त त नहीं अनुभव कर
रहा है सावमभौम से युक्त होने के बाद भी उसे अपने पररवार से ही जुड़ा रहना उसकी लवविता भी है और इसके
अलावा कोई अ मागम भी नहीं हैं उसके सावमभौम का मागम भी उसके अपने पररवार के ही मागम से होकर जाता
है वृक्ष के साथ यह मजबूरी भी है लक क्ोंलक वह न्त थर है इसललए उसका छोटा पररवार केवल पड़ोस तक के ही
दायरे के स कम में है दू सरे छोर के पररवार का क्ा हाल है उसे कुछ नहीं पता
हे मानवों, ये संसार भी उपरोक्त वट वृक्ष के सामन ही फैला हुआ है पर ु उस भााँ लत लवकास नहीं कर
रहा है मनु के अ र बीमारी की भााँ लत अलिकतम “िन्तक्त और लाभ (पावर और प्रालफट)” की दौड़ ने उसे
अलिप , अ ाचार, दू सरे को दबाना इ ालद से युक्त कर लदया है और जो इस दौड़ में नहीं हैं वे सीलमत पू णम में
आन के साथ लवकासिील हैं उ ें और भी तेज लवकास की इৢा है पर ु उनके बुन्त का दायरा ही सीलमत है
इसललए उ ें मागम नहीं लमल रहा है यलद उनको मागम भी लमल रहा हो तो वट वृक्ष की भााँ लत उसके नजदीकी
ज दाता ने उसे यह बता रखा है लक जब उस सावमभौम का मागम मेरे ही रा े से जाता है तो जो मैं कह रहा हाँ उसे
करो और इसके ललए वे अपने पररवार के ललए अने क प्रकार की प्रणाली दे रखे हैं जबलक ये प्रणाली दे ने वाले
उनके नजदीकी ज दाता यं कहााँ से आये हैं यं उ े भी नहीं पता क्ोंलक वे यं भी उस वट वृक्ष के खो गये
मूल जड़ की तरह अपने मूल जड़ को नहीं जानते वे भी अपने नजदीकी ज दाता का ही अनुसरण कर रहे होते
हैं ये प्रणालीयााँ अनेक प्रकार की हैं उदाहरण रूप कुछ मुূ लन वत् हैं -

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 64


1. उनके ारा प्र ुत कुछ पु कें होती हैं लज ें लनयमानुसार प्रलतलदन पढ़ना होता है पढ़ने के पूवम िु ता की भी
प्रलक्रया अलनवायम होती है अ था पु कें पररणाम नहीं दे पायेंगी, ये भी ितम होती हैं
2. उनके ारा भोजन से स न्त त कुछ लनयम बना लदये जाते हैं लक क्ा खाना है और क्ा नहीं खाना है
3. उनके ारा कोई म दे कर उसे लनयमानुसार जपने के ललए दे लदया जाता है
4. उनके ारा लकसी य -त ारा सम ा मुन्तक्त का उपाय बता लदया जाता है
5. उनके ारा लकसी लविे र् प्रकार के रं ग और ढ़ग के व लनिाम ररत कर दी जाती है लजससे उनकी पहचान एक
अलग रूप में हो अथाम त समाज का एक और लवभाजन कर उसे प्र ु त कर दे ते हैं
सामा रूप से सभी ारा अलनवायम रूप से ये भी लनिाम ररत कर दी जाती है लक लकसी दू सरे के लनयमों
को न तो जानना है , न सुनना है , न पढ़ना है और न ही उसमें िालमल होना है अथाम त एक गलतिील प्राणी मनु को
लजसे सदै व िे से, िे तम और सवोৡ तक उठने -लवकास करने के ललए लनलममत लकया गया था, उसे एक सीलमत
दायरे में बुन्त ब कर लदया गया मनु लजसका लनमाम ण अपनी मन्त को असीम क्षमता को लवकलसत कर ई र
रूप में क्त होना था, उसे जड़ (न्त थर) बना लदया गया
हे मानवों, मनु ों की सबसे बड़ी कमजोरी “ यं में गुणों का लवकास कर यं बन जाने या हो जाने ” में
नहीं बन्त “पाने ” की इৢा है इस पाने की इৢा की कमजोरी का पररणाम ही है उपरोक्त अनेक प्रकार के
बुन्त ब करने की लवलियााँ
हे मानवों, उपरोक्त के पृ भूलम में उनका उ े केवल अपने ाथम की पूलतम के लसवाय कुछ नहीं
होता क्ोंलक मागमदिम क या प्रेरक या लिक्षक का उ े यं से िे मानव का लनमाम ण होता है न लक सदै व जीवन
भर एक ही प्रणाली या प्रलक्रया या कक्षा में पढ़ते -दु हराते रहने के ललए लववि करना उपरोक्त के पृ भूलम में
िारीररक-आलथमक-मानलसक िोर्ण का ही कायम लवलभ प्रकार से चल रहा है कोई अपने कृलर् कायम को मु में
हल करवा रहा है , तो कोई अपने नाम के उ ादों को लसफम उ ें ही खरीदने के ललए बुन्त ब कर लदया है
हे मानवों, इन सबको आ था का ापार कहते हैं जबलक मैं दे ख रहा हाँ लक प्र ेक सं ाररत करने
की लक्रया जो उस काल के ललए आ था का लवर्य था उसके अगले काल के ललए सं ाररत करने की नयी लक्रया
उपल हो जाने के बावजू द, मानव िरीर लपछले काल के सं ाररत करने वाली लक्रया के प्रलत आ था रखते हुये
मूखमता का प्रदिमन कर रहा है सभी कालों में, सभी सं ाररत करने की लक्रयाओं में मैं (सावमभौम आ ा) ही
आ था का लवर्य था पर ु लक्रया के प्रलत आ था रखना मूखमता का प्रमाण ही तो है चाहे वह न्तक्तगत इৢा
से हो या सामालजक प्रदिम न की इৢा से इन सम सं ाररत करने के लक्रया के पीछे जो रह आज तक
गोपनीय था उसे मैंने तु ारें समक्ष सावमजलनक प्रकालित कर लदया है अब कुछ भी गोपनीय नहीं बावजूद इसके
प्र ेक मनु अपनी मूखमता रूपी आ था को प्रदलिमत करने के ललए त है पर ु वह मुझ (सावमभौम आ ा)
को प्रा नहीं कर सकता हे मानवों, ई र बहुमत से नहीं लनिाम ररत लकया जाता इसललए ही उसे अलनवचमनीय कहा
गया है लकसी भी व ु के प्रलत आ था के लवकास से और सम मानवों को उसके प्रलत आ थावान् बना दे ने से वह
व ु गुण प्रकट कर वैसा नहीं बन सकती जैसा आप उ ीद करते हो
हे मानवों, एक तरह से दे खा जाये तो उपरोक्त व था से कोई सम ा है ही नहीं क्ोंलक लजसकी
इৢा जहााँ से पूलतम हो रही है और लवकास का मागम लमल रहा है , वह वहााँ से जुडा हुआ है इसललए मानव स ता
पर आया यह दसवााँ और अन्त म संकट, संकट होते हुये भी संकट जैसा नहीं लदखता इस व था से हमें कोई
सम ा भी नहीं है सम ा ये है लक िमम को लजस उ े के ललए लनलममत लकया गया था वही िमम, संकट में है यह
िमम ही उस वट वृक्ष का मूल है , सावमभौम है , समल है इसके ৯ान से युक्त दोनों को अथाम त लविाल संसार रूपी वट
वृक्ष के छोटे -छोटे पररवार के नेतृ कताम मुन्तखया सलहत उसके सद ों को होना आव क है तभी पररवार के
नेतृ कताम मुन्तखया ारा बनाये गये उपरोक्त प्रणाली-लनयम पररणाम-फल दे पायेंगे लजसकी इৢा पररवार के
सद करते हैं

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 65


हे मानवों, अब सावमजलनक प्रमालणत आदिम वैल क न्तक्त चररत्र और लिव-िंकर के पूणाम वतार के
रूप में होने वाले अन्त म अवतार के रूप को समझते हैं लजनसे सं कट में पड़े िमम का उ ान होना है -
इस क्रम में पहले लिव-िं कर के रूप को समझते हैं लफर अन्त म अवतार के ललए बचे िेर् कायम को
भी समझें गे लिव-िंकंर अवतार के आठ रूप और उनके अथम लन वत हैं -
1. शवच- स ूणम पृ ी को िारण कर लेना अथाम त पृ ी के लवकास या सृल कायम में इस रूप को पार लकये लबना
स व न होना
2. भव- जगत को संजीवन दे ना अथाम त उस लवर्य को दे ना लजससे जगत सं कुलचत व मृ ु को प्रा होने न पाये
3. उग्र- जगत के भीतर और बाहर रहकर िी लव ु को िारण करना अथाम त जगत के पालन के ललए प्र क्ष या
प्रेरक कमम करना
4. भीम- सवम ापक आकािा क रूप अथाम त आकाि की भााँ लत सवम ापी अन ৯ान जो सभी नेतृ लवचारों
को अपने में समालहत कर ले
5. पशुपवत- मनु समाज से पिु प्रवृल यों को समा करना अथाम त पिु मानव से मनु को उठाकर ई र मानव
की ओर ले जाना दू सरे रूप में जीव का लिव रूप में लनमाम ण
6. ईशान- सूयम रूप से लदन में स ूणम संसार में प्रकाि करना अथाम त ऐसा ৯ान जो स ूणम संसार को पूणम ৯ान से
प्रकालित कर दे
7. महादे व- च रूप से रात में स ूणम संसार में अमृत वर्ाम ारा प्रकाि व तृन्त दे ना अथाम त ऐसा ৯ान जो संसार
को अमृतरूपी िीतल ৯ान से प्रकालित कर दे
8. रूद्र- जीवा ा का रूप अथाम त लिव का जीव रूप में क्त होना
लिव-िंकर दे वता व दानव दोनों के दे वता हैं जबलक िी लव ु लसफम दे वताओं के दे वता हैं अथाम त
लिव-िंकर जब रूद्र रूप की प्राथलमकता में होंगे तब उनके ललए दे वता व दानव दोनो लप्रय होंगे लेलकन जब उग्र
रूप की प्राथलमकता में होंगे तब केवल दे वता लप्रय होंगे अथाम त लिव-िंकर का पूणमवतार इन आठ रूपों से युक्त
हो संसार का क ाण करते हैं
हे मानवों, अब सावमजलनक प्रमालणत आदिम वैल क न्तक्त चररत्र और लिव-िंकर के पूणाम वतार के
रूप में होने वाले अन्त म अवतार के कायम को समझते हैं लजनसे संकट में पड़े िमम का उ ान होना है -
ई र (सावमभौम स -लस ा ) के दसवें और अन्त म अवतार के समय तक रा৸ और समाज तः
ही प्राकृलतक बल के अिीन कमम करते -करते लस ा प्रा करते हुए पूणम गणरा৸ की ओर बढ़ रहा था
पररणाम रुप गणरा৸ का रुप होते हुए भी गणरा৸ लसफम रा৸ था और एकत ा क अथाम त् न्तक्त समथमक
तथा समाज समथमक दोनों की ओर लववितावि बढ़ रहा था
भारत में लनन्त लन्तखत रुप क्त हो चुका था
1. ग्राम, लवकास खਔ, नगर, जनपद, प्रदे ि और दे ि र पर गणरा৸ और गणसंघ का रुप
2. लसफम ग्राम र पर राजा (ग्राम व नगर पंचायत अ क्ष) का चुनाव सीिे जनता ारा
3. गणरा৸ को संचाललत करने के ललए संचालक का लनराकार रुप- संलविान
4. गणरा৸ के त ों को सं चाललत करने के ललए त और लक्रयाकलाप का लनराकार रुप-लनयम और कानून
5. राजा पर लनय ण के ललए ब्रा ण का साकार रुप- रा र पलत, रा৸पाल, लजलालिकारी इ ालद
लव र पर लन ललन्तखत रुप क्त हो चुका था
1. गणरा৸ों के सं घ के रुप में सं युक्त रा र सं घ का रुप
2. संघ के संचालन के ललए संचालक और संचालक का लनराकार रुप- संलविान
3. संघ के त ों को संचाललत करने के ललए त और लक्रयाकलाप का लनराकार रुप- लनयम और कानून
4. संघ पर लनय ण के ललए ब्रा ण का साकार रुप-पााँ च वीटो पावर
5. प्र ाव पर लनणमय के ललए सद ों की सभा

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 66


6. नेतृ के ललए राजा- महासलचव
लजस प्रकार आठवें अवतार ारा क्त आ ा के लनराकार रुप “गीता” के प्रसार के कारण आ ीय
प्राकृलतक बल सलक्रय होकर गणरा৸ के रुप को लववितावि समाज की ओर बढ़ा रहा था उसी प्रकार अन्त म
अवतार ारा लन ललन्तखत िेर् समल कायम पूणम कर प्र ुत कर दे ने मात्र से ही लववितावि उसके अलिप की
थापना हो जाना है
1. गणरा৸ या लोकत के स रुप- गणरा৸ या लोकत के रुप का अ राम र ीय/ लव मानक
2. राजा और सभा सलहत गणरा৸ पर लनय ण के ललए साकार ब्रा ण का लनराकार रुप- मन का अ राम र ीय/
लव मानक
3. गणरा৸ के प्रब का स रुप- प्रब का अ राम र ीय/ लव मानक
4. गणरा৸ के संचालन के ललए संचालक का लनराकार रुप- संलविान के रुप का अ राम र ीय/ लव मानक
5. साकार ब्रा ण लनमाम ण के ललए लिक्षा का रुप- लिक्षा पाਉक्रम का अ राम र ीय/ लव मानक
इस समल कायम ारा ही काल व यु ग पररवतमन होगा न लक लसफम लच ाने से लक “सतयुग आयेगा” ,
“सतयुग आये गा” से यह समल कायम लजस िरीर से स होगा वही अन्त म अवतार के रूप में क्त होगा िमम
में न्त थत वह अवतार चाहे लजस स दाय (वतममान अथम में िमम) का होगा उसका मूल लশ यही िेर् समल कायम
होगा और थापना का मा म उसके स दाय की पर रा व सं ृ लत होगी
हे मानवोिं, उपरोक्त कायच ही उस एक मात्र शेष अल्कन्तम अवतार का कायच है और जो उपरोक्त
कायम को पूणम करे गा वह कन्त अवतार के नाम से जाना जायेगा हे मानवों उपरोक्त कायम ही िेर् ई र के ललए
कायम है और मनु के ललए चुनौलत
इस क्रम में मैं लव कुि लसं ह “लव मानव” अपने “लव िा ” से उपरोक्त कायम को पूणम करने के ललए
और यं को िमम मागम से अलनवमचनीय कन्त महाअवतार भोगे र के रूप में तथा भारतीय लोकतान्त क गणरा৸
मागम से “भारत र ” के रूप में थालपत करने के ललए एक मागम -एक प्रारूप प्र ु त लकया हाँ जो अपने यु ग-समय में
पहला प्रारूप है इस प्रारूप “लव िा ” के िममक्षेत्र से 90 नाम और िममलनरपे क्ष या सवमिममसमभाव क्षेत्र से 141
नाम दे ने के बाद भी इस प्रारूप का नाम “ब्र ाਔिा ” नहीं रखा मनु ों के ललए यह चुनौलत है लक वे
“ब्र ाਔिा ” की रचना कर मेरे प्रारूप “लव िा ” को गलत या सं कुलचत लस कर मुझे अलनवमचनीय कन्त
महाअवतार भोगे र की यो৓ता से वंलचत कर दे हे मानवों अगर आप ऐसा कर पाओं तो मेरे ललए मेरे ारा उ
लकये गये अन कृलतयों में सबसे स ान के यो৓ मानव नाम की कृलत ही अन्त म रूप से सवम िे होगी अ था
“लव िा ” से मैं तु ारे अ र प्रवेि कर तु म में से ही यं को प्रकट करू ाँ गा
हे मानवोिं, इन रहस्योिं के खोलने के प्रवत मेरा उद्दे श्य क्या है? यह उ े सरल है क्ोंलक एक
सरल, सािारण, अघोर का उ े कभी भी कठीन, असािारण और घोर नहीं हो सकता सािारण सी बात है -
प्र ेक व ु यं अपने जै सा ही लनमाम ण, उ ादन या प्रजनन करती है इस क्रम में ई र भी यं जैसा ई र का ही
लनमाम ण, उ ादन या प्रजनन करे गा, न लक मूखम, अ৯ानी, बुन्त ब और गुलाम मनु का मात्र एक लवचार- “ई र ने
इৢा क्त की लक मैं एक हाँ , अनेक हो जाऊाँ ” और “सभी ई र हैं ” , यह प्रार और अन्त म लশ है मनु की
रचना “पावर और प्रालफट (िन्तक्त और लाभ)” के ललए नहीं बन्त असीम मन्त क्षमता के लवकास के ललए हुआ
है फल रूप वह यं को ई र रूप में अनुभव कर सके, जहााँ उसे लकसी गुरू की आव कता न पड़ें , वह
ंयभू हो जाये, उसका प्रकाि वह यं हो एक गुरू का लশ भी यही होता है लक लि मागमदिमन प्रा कर
गुरू से आगे लनकलकर, गुरू तथा यं अपना नाम और कृलत इस संसार में फैलाये, ना लक जीवनभर एक ही कक्षा
में (गुरू में) पढ़ता रह जाये एक ही कक्षा में जीवनभर पढ़ने वाले को समाज क्ा नाम दे ता है , समाज अৢी प्रकार
जानता है और आपलोग खु द यं भी जातने हैं “लव िा ” से कालक्रम को उसी मुূिारा में मोड़ लदया गया है
एक िा ाकार, अपने ारा क्त लकये गये पूवम के िा का उ े और उसकी सीमा तो बता ही सकता है पर ु
ाূाकार ऐसा नहीं कर सकता

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 67


ामी लववेकान जी कहते हैं - “हम गुरु के लबना कोई ৯ान प्रा नहीं कर सकते अब बात यह है
लक यलद मनु , दे वता अथवा कोई गमदूत हमारे गुरु हो, तो वे भी तो ससीम हैं , लफर उनसे पहले उनके गुरु कौन
थे? हमें मजबूर होकर यह चरम लस ा न्त थर करना ही होगा लक एक ऐसे गुरु हैं जो काल के ारा सीमाब या
अलवन्तৢ नहीं हैं उ ीं अन ৯ान स गुरु को, लजनका आलद भी नहीं और अ भी नहीं, ई र कहते हैं
(राजयोग, रामकृ लमिन, पृ -134)
चााँ द की ओर ईिारा करने वाले की उाँ गली की ओर नहीं, चााँ द की ओर दे खा जाता है और चााँ द को
पकड़ा जाता है न लक उाँ गली लदखाने वाले को
हे मानवोिं, यह भाव हमारे मन में क्योिं आया? यह भाव हमारे मन में आने का कारण हृदय की
लविालता है हम अब अपने ारा लनलममत उ ादों को, अब और अलिक समय तक कबाड़ के रूप में न तो रख
सकते हैं और ना ही दे खना चाहते हैं अब सभी को हम यं जैसा पूणम दे खना चाहते हैं
हे मानवोिं, हम लोगोिं की उत्पवि कैसे हुई? हमारी उ ल ৯ान से हुई है लज ें ৯ान है वही अपने
आप को संघर्म में पाते हैं और सवमिे ता के ललए कममिील हैं िेर् सभी तो प्रकृलत के अनुसार आते -जाते रहते हैं
इस ৯ान को ही ब्र कहते हैं दे वता रूप में इस ৯ान को ब्र ा के रूप में प्रक्षेलपत लकया गया है यह ৯ान लजस-
लजस अंगो ारा प्राथलमकता से अनुभव में आता है उतने प्रकार के मानव अपने -आप को उ समझते हैं पुराण
रचनाकार महलर्म ास ने ब्र ा अथाम त ৯ान के पुत्रों का प्रक्षेपण लकये हैं ब्र ा के 10 मानस पुत्रों 1. मन (लवचार से
৯ान प्रा करने वाले) से मरीलच, 2. नेत्रों (दे खकर ৯ान प्रा करने वाले) से अलत्र, 3. मुख (वाणी से ৯ान प्रा करने
वाले) से अंलगरा, 4. कान (सुन कर ৯ान प्रा करने वाले) से पु ल , 5. नालभ (के से ৯ान प्रा करने वाले) से
पुलह, 6. हाथ (कमम से ৯ान प्रा करने वाले) से कृतु, 7. चा ( िम से ৯ान प्रा करने वाले) से भृगु, 8. प्राण ( ास
से ৯ान प्रा करने वाले) से वलि , 9. अाँगूठे (आ ा से ৯ान प्रा करने वाले) से दक्ष तथा 10. गोद (प्रेम से ৯ान
प्रा करने वाले) से नारद उ हुये ये दस प्रकार ৯ान से उ है और इतने प्रकार के मानव लनलममत होकर
संसार में लवचरण कर रहे हैं इसे ये न समझना चालहए लक मन या नेत्र इ ालद से कैसे ब्र ा ने अपने पुत्रों को उ
लकया? चूंलक िरीर का अन्त अ थायी है इसललए लवचार के आिार पर ये मनु के वगम या िेणी का लनिाम रण है
हमारे ारा इतने वगों अथाम त पररवार को उ करने के बाद यं को सवमिे और मूल लस करते रहना भी
हमारी ही लज े दारी और कतम है तालक हमारा पररवार एक संयुक्त पररवार के रूप में प्रकालित हो
हे मानवोिं, हमने अपने अवधपत्य के वलए क्या-क्या वकया? हे मानवों हमने अपने अलिप के ललए
सदै व साम-दाम-दਔ-भेद की लवलि से लन ललन्तखत गुणों को समय-समय पर प्रे म से मानव मन्त में थालपत
लकया और करता रहाँ गा और अ में इसे मानवों को ेৢा से ीकार करने पर लववि भी कर दू ाँ गा-

01. मुख्य-गुर् वसद्धान्त - इसमें िारा के लवपरीत लदिा (रािा) में गलत करने का लवचार-लस ा मानव
मन्त में डाला गया

02. मुख्य-गुर् वसद्धान्त - इसमें सहनिील, िां त, िैयमवान, लगनिील, दोनों पक्षों के बीच म थ की भूलमका
वाला गुण (सम य का लस ा ) का लवचार-लस ा मानव मन्त में डाला गया

03. मुख्य-गुर् वसद्धान्त - इसमें सूझ-बुझ, स , पुरूर्ाथी, िीर-ग ीर, लन ामी, बलल , सलक्रय,
िाकाहारी, अलहं सक और समूह प्रेमी, लोगों का मनोबल बढ़ाना, उ ालहत और सलक्रय करने वाला गुण
(प्रेरणा का लस ा ) का लवचार-लस ा मानव मन्त में डाला गया

04. मुख्य-गुर् वसद्धान्त - प्र क्ष रूप से एका-एक लশ को पूणम करने वाले (लশ के ललए ररत कायमवाही
का लस ा ) का लवचार-लस ा मानव मन्त में डाला गया

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 68


05. मुख्य-गुर् वसद्धान्त - भलव ा, राजा के गुण का प्रयोग करना, थोड़ी सी भूलम पर गणरा৸ व था
की थापना व व था को लजलवत करना, उसके सुख से प्रजा को पररलचत कराने वाले गुण (समाज का
लस ा ) का लवचार-लस ा मानव मन्त में डाला गया

06. मुख्य-गुर् वसद्धान्त - गणरा৸ व था को ब्र ाਔ में ा व था लस ा ों को आिार बनाने वाले


गुण और व था के प्रसार के ललए यो৓ न्तक्त को लनयुक्त करने वाले गुण (लोकत का लस ा और
उसके प्रसार के ललए यो৓ उ रालिकारी लनयुक्त करने का लस ा ) का लवचार-लस ा मानव मन्त
में डाला गया

07. मुख्य-गुर् वसद्धान्त - आदिम चररत्र के गुण के साथ प्रसार करने वाला गुण ( न्तक्तगत आदिम चररत्र के
आिार पर लवचार प्रसार का लस ा ) का लवचार-लस ा मानव मन्त में डाला गया

08. मुख्य-गुर् वसद्धान्त - आदिम सामालजक न्तक्त चररत्र के गुण, समाज में ा अनेक मत-मता र व
लवचारों के सम य और एकीकरण से स -लवचार के प्रेरक ৯ान को लनकालने वाले गुण (सामालजक
आदिम न्तक्त का लस ा और न्तक्त से उठकर लवचार आिाररत न्तक्त लनमाम ण का लस ा ) का
लवचार-लस ा मानव मन्त में डाला गया

09. मुख्य-गुर् वसद्धान्त - प्रजा को प्रेररत करने के ललए िमम, संघ और बुन्त के िरण में जाने का गुण (िमम,
संघ और बुन्त का लस ा ) का लवचार-लस ा मानव मन्त में डाला गया

10. मुख्य-गुर् वसद्धान्त - आदिम मानक सामालजक न्तक्त चररत्र समालहत आदिम मानक वैल क न्तक्त
चररत्र अथाम त सावमजलनक प्रमालणत आदिम मानक वैल क न्तक्त चररत्र का लवचार-लस ा मानव मन्त
में डालने का काम वतममान है और वो अन्त म भी है

हे मानवोिं, अब ल्कथर्वत क्या है तर्ा भाववष्य में काल की गवत वकस ओर जा रही है? हे मानवों अब
न्त थलत यह है लक हमें आपके परम लप्रय लस ा “िन्तक्त और लाभ (पावर और प्रालफट)” से कोई असहमलत नहीं हैं
बन्त यह आपमें कुछ करने की प्रवृल का महान गुण हैं इसका प्रकाि आप में सदै व जलते रहना चालहए काल
की गलत इस प्रकाि को कैसे सफलतापूवमक प्रा लकया जा सकता है उस ৯ान को ग्रहण करके उस अनुसार कायम
करने की ओर जा रही है अथाम त ৯ान युग की ओर जा रही है और मन्त का लवकास ही इसका मागम है भलव
का समय ऐसे ही मानवों के ागत की प्रतीक्षा कर रहा है

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 69


काशी-सत्यकाशी क्षेत्र से
ववश्व शाल्कन्त का अल्कन्तम सत्य-सन्दे श

वप्रय आत्मीय मानवोिं,


इस संसार के मनु ों को अपना अन्त म स े ि दे ने से पहले मैं आपको उस क्षे त्र से पररचय कराना
चाहता हाँ लजस क्षेत्र से यह स े ि दे ने का साहस लकया गया है क्ोंलक कोई भी लक्रया लबना कारण के नहीं होती
मेरा सम मूल कायम लजस क्षेत्र से स ूणम हुआ, उस क्षेत्र को मैं स कािी क्षे त्र कहता हाँ और मैं लजस ग्राम का
लनवासी हाँ वह कािी (वाराणसी) के चौरासी कोस यात्रा तथा स कािी क्षेत्र का उभय क्षेत्र में न्त थत है इसललए मैं
लजतना कािी (वाराणसी) का हाँ उतना ही स कािी का हाँ इस प्रकार यह स े ि कािी-स कािी का संयुक्त
स े ि है
स कािी क्षेत्र जो कािी (वाराणसी), लव ाचल, लिव ार और सोनभद्र के बीच का क्षेत्र है , एक
पौरालणक-आ ान्त क और सािना के ललए उपयुक्त क्षे त्र के रूप में प्राचीन काल से आकर्मण में रहा है इस क्षेत्र
का हृदय क्षेत्र चुनार है चुनार का लकला राजा लवक्रमालद ने अपने भाई भतमहरर के तप ा में लहं सक जानवरों ारा
विान न उ हो इसके ललए बनवाया था ये राजा लवक्रमालद वही हैं लजनके नाम से लवक्रम स त् कैलेਔर
थालपत है चुनार ई र के पााँ चवें अवतार-वामन अवतार का क्षेत्र है लजनसे समाज की िन्तक्त का प्रथम ज हुआ
था
स कािी क्षेत्र के चारों कोण पर न्त थत 1. कािी (वाराणसी) का अपना प्राचीन और पुरातन इलतहास है
जो सवमलवलदत है 2. लव ाचल, जो लिव-िन्तक्त के उपासना का अद् भुत के है यिोदा से उ पु त्री (लजनके
बदले िीकृ प्रा हुये थे) महासर ती अ भुजा दे वी के नाम से यहीं थालपत हैं भारत दे ि का मानक समय मााँ
लव वालसनी िाम से तय होता है पुराणों के अनुसार रावण ने भी इसे मानक समय थल मानकर यहााँ लिवललंग
की थापना की थी 3. लिव ार, लत्रकोणीय तान्त क सािना के ललए जगत लवূात था और सािना की राजिानी
था इसे ही मीरजापुर गजेलटयर में गु कािी की सं৯ा से अलभकन्त त लकया गया है 4. सोनभद्र, सोन सं ृ लत की
पौरालणक पृ भूलम वै लदककालीन स ता की पराका ापरक ऐलतहालसकता से स है स पर राओं का एक
मह पूणम पररव्रजन इस क्षे त्र में हुआ लजसमें िैव व िाक्त प्रमुख थे िैव स दाय से जुड़े अघोर त ने इसे बहुत
सराहा और इसे अपनी कममभूलम बना ललया सोन नद के तट पर िव छे दन लक्रया की भी प्रलिक्षा आयु वेद के
लज৯ासुओं को दी जाती थी िैव त से प्रभालवत अघोर त िव-सािना में लस ह था और िव में इकार की
प्राण प्रलत ा का जीव रूप लिव को दे दे ना इनकी अलौलकक सािना का चरमोਚर्म है अघोरप ी नाम के प ात्
“राम” का प्रयोग करते थे इस क्षेत्र में सवणम वगम में प्रायः ब्रा ण वगम भी राम का प्रयोग अपने नाम में करता है इस
क्षेत्र में पािुपात त के महान सािक लोररक का नाम लविेर् है
उपरोक्त तो अलत संलक्ष पररचय है लव ार से “लव िा ” के अ ाय-दो में प्रकालित है , लजस क्षेत्र से
ये लव ऐलतहालसक अन्त म, अपररवतमनीय और अटलनीय स े ि दे ने का साहस लकया गया है
हे मानवों, इस संसार में क्त सालह , दिमन, मत, स दाय, लनयम, संलविान इ ालद को क्त करने
का मा म मात्र केवल मानव िरीर ही है इसललए यह सोचो की यलद सावमभौम स -लस ा आिाररत ऐसा
सालह जो सावमदेिीय, सावमकाललक और स ूणम मानव समाज के ललए असीम गुणों और लदिाओं से यु क्त हो,
अन्त म रुप से एक ही मानव िरीर से क्त हो रहा हो लजसके ৯ान के लबना मानव, मानव नहीं पिु हो, उसे
ीकार और आ सात् करना मानव की लवविता हो, तो तु म उस क्तकताम मानव को क्ा कहोगे? और उसका
क्ा दोर्? यह तो मैं तुम पर ही छोड़ता हाँ पर ु िालममक -आ ान्त क भार्ा में उसी असीम गुणों-लदिाओं के
प्रकाਅ िरीर को पू णम और अन्त म साकार-सगुण- -ब्र -ई र-आ ा-लिव कहते हैं तथा सावमभौम स -

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 70


लस ा को लनराकार-लनगुमण-अ -ब्र -ई र-आ ा-लिव कहते हैं वह िरीर चूाँलक लस ा युक्त होता है
इसललए वह िममिा का प्रमाण रुप होता है जो िममिा ों और िमम৯ालनयों के प्रलत लव ास बढ़ाता है वतममान
समय में लसफम यह दे खने की आव कता है लक क्ा वह सावमभौम स -लस ा िा -सालह लव लवकास-
एकता-न्त थरता-िान्त के क्षेत्र में कुछ रचना क भूलमका लनभा सकता है या नहीं? यह दे खने की आव कता नहीं
है लक उसका क्तकताम एक ही िरीर है क्ोंलक इससे कोई लाभ नहीं प्र ेक मानव चाहे वह लकसी भी र का
हो वह िारीररक संरचना में समान होता है पर ु वह लवचारों से ही लवलभ र पर पीठासीन है , इसललए मानव,
िरीर नहीं लवचार है उसी प्रकार लव मानव िरीर नहीं, लव लवचार अथाम त् सावमभौम स -लस ा है इसी प्रकार
“मैं” , अहं कार नहीं, “लस ा ” है प्र ेक र पर पीठासीन मानव अपने र का लस ा रुप से “मैं” का अंि
रुप से तथा लवचार रुप से “अहं कार” का अंि रुप ही है “मैं” का पूणम , वा लवक, सवोৡ और अन्त म रुप
वही होगा जो स ूणम ब्र ाਔ के सभी लवर्यों में ा हो जाय तभी तो वह असीम गुणों और लदिाओं से युक्त
होगा तथा प्र ेक लदिा या गुण से उसका नाम अलग-अलग होगा पर ु वह एक ही होगा हे मानव, तुम इसे दे ख
नहीं पाते क्ोंलक तुम “ ल ” से युक्त हो अथाम त् तु म एक ही लदिा या गुण ारा दे खने की क्षमता रखते हो तु ें
“लद ल ” अथाम त् अनेक लदिा या गुणों ारा एक साथ दे खने की क्षमता रखनी चालहए तभी तुम यथाथम को दे ख
पाओगे, तभी तुम “मैं” के लव रुप को दे ख पाओगे ल से युक्त होने के कारण ही तुम मेरे आभासी रुप-िरीर रुप
को ही दे खते हो, तु म मेरे वा लवक रुप-लस ा रुप को दे ख ही नहीं पाते इसी कारण तु म मुझे अहं कार रुप में
दे खते हो और इसी कारण तुम “भूमਔलीकरण (Globalisation)” का लवरोि करते हो जबलक “৕ोबलाई৲” ल
ही “लद ल ” है लजसका तुम मात्र लवरोि कर सकते हो क्ोंलक यह प्राकृलतक बल के अिीन है जो तु ें मानव से
लव मानव तक के लवकास के ललए अटलनीय है ल , अहं कार है , अंिकार है , अपूणम मानव है तो लद ल ,
लस ा है , प्रकाि है , पूणममानव-लव मानव है तुम मानव की अव था से लव मानव की अव था में आने का प्रय
करो न लक लव मानव का लवरोि लवरोि से तु ारी क्षलत ही होगी लजस प्रकार “िीकृ ” नाम है “योगे र” अव था
है , “गदािर” नाम है “रामकृ परमहं स” अव था है , “लस ाथम” नाम है “बु ” अव था है , “नरे नाथ द ” नाम है
“ ामी लववेकान ” अव था है , “रजनीि” नाम है “ओिो” अव था है उसी प्रकार न्तक्तयों के नाम, नाम है
“भोगे र लव मानव” उसकी चरम लवकलसत, सवोৡ और अन्त म अव था है “ ल ” से युक्त होकर लवचार क्त
करना लनरथमक है , प्रभावहीन है , यहााँ तक की तु ें लवरोि करने का भी अलिकार नहीं क्ोंलक वतममान और भलव
के समय में इसका कोई मह नहीं, अथम नहीं क्ोंलक वह न्तक्तगत लवचार होगा न लक सावमजलनक संयुक्त लवचार
यह सावमजलनक संयुक्त लवचार ही “एका लवचार” है और यही वह अन्त म स है , यही “सावमभौम स -लस ा ”
है यही िममलनपरपेक्ष और सवमिममसमभाव नाम से लव मानक-िू िृंखला: मन की गुणव ा का लव मानक तथा
िमम नाम से कममवेद: प्रथम, अन्त म और पंचमवेदीय िृंखला है लजसकी िाखाएं स ूणम ब्र ाਔ में ा है और
स ूणम ब्र ाਔ क्त है लजसकी थापना चेतना के अन्त म रुप- स चेतना के अिीन है यही “मैं” का
रुप है यही “लव -ब ु ” , “वसुिैव-कुटु कम् ” , “बहुजनलहताय-बहुजनसुखाय” , “एका -मानवतावाद” ,
“सवेभव ु-सुन्तखनः” की थापना का “एका कममवाद” आिाररत अन्त म मागम है
मन और मन का मानक मन- न्तक्तगत प्रमालणत अ स मन का मानक-सावमजलनक प्रमालणत
स अनासक्त मन अथाम त् आ ा अथाम त् न्तक्तगत प्रमालणत अ आ ा अथाम त् मन का अ मानक
मन का मानक अथाम त् सावमजलनक प्रमालणत आ ा अथाम त् सावमजलनक प्रमालणत अनासक्त मन मन का
मानक में मन समालहत है
आ ा का सावमजलनक प्रमालणत िमम लनरपेक्ष एवं सवमिममसमभाव रुप एका ৯ान, एका ৯ान
सलहत एका कमम तथा एका ৯ान और एका कमम सलहत एका ान के तीन क्त होने के र हैं जो
क्रमिः एका वाणी, एका वाणी सलहत एका प्रेम तथा एका वाणी और एका प्रेम सलहत एका समपमण
ारा िन्तक्त प्रा करता है लजनका िममयुक्त अ रुप भारतीय सं ृ लत के पौरालणक कथाओं में ब्र ा, लव ु,

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 71


महे ि (िंकर) के रुप में तथा सर ती, लक्ष्मी और पावमती िन्तक्त के रुप में प्रक्षेलपत हैं लजनकी उपयोलगता क्रमिः
न्तक्त, समाज और ब्र ाਔ को संतुलन, न्त थरता एवं लवकास में है
यलद तुम उपरोक्त गुणों को रखते हो तो तुम ही ब्र ा हो, लव ु और महे ि हो साथ ही सर ती, लक्ष्मी
और पावमती भी और यलद यह सीलमत कममक्षेत्र तक में है तो तुम एक सीमाब और यलद यह स ूणम ब्र ाਔ के
सवोৡ ापक अन्त म और असीलमत कमम क्षे त्र तक में है तो तु म एक मूल ब्र ा, लव ु, महे ि और िन्तक्त सर ती,
लक्ष्मी और पावमती के अवतार हो यलद तुम इस अनुसार नहीं तो तुम इनके अलावा मानव, दानव, पिु -मानव
इ ालद हो
जब प्र ेक ि िमम और िममलनरपेक्ष या सवमिममसमभाव में वगीकृत लकया जा सकता है तब ई र
नाम को भी िममयुक्त नाम और िमम लनरपेक्ष या सवमिममसमभाव नाम में क्त लकया जा सकता है क्ोंलक ई र
नाम भी ि है लजस प्रकार न्तक्तगत प्रमालणत अ काल के ललए िममयुक्त समल ई र नाम-” ऊाँ” है उसी
प्रकार सावमजलनक प्रमालणत काल के ललए िममलनरपेक्ष और सवमिममसमभाव समल ई र नाम- ” TRADE
CENTRE” है लजसमें िमम युक्त ई र नाम-” ऊाँ” का िममलनरपेक्ष और सवमिममसमभाव रुप समालहत है
एक ही दे ि काल मुक्त सवम ापी अ स -िमम-৯ान है -आ ा और एक ही दे ि काल मुक्त
सवम ापी स -िमम -৯ान है - लक्रया या पररवतमन या E=MC2 या आदान-प्रदान
या TRADE या TRANSACTION इस प्रकार सवोৡ और अन्त म स -िमम-৯ान से सम लवर्यों के यथाथम
क्त रुप सवममा , सावमजलनक प्रमालणत और अन्त म है और क्त कताम ৯ानी या ब्र या लिव की अन्त म
कड़ी है इस आिार पर यह कहा जा सकता है लक “आ ा” और मेरा रुप (आदान-प्रदान) ही थ उ ोग,
थ समाज और थ लोकत सलहत लव िान्त , एकता, न्त थरता और लवकास का अन्त म मागम है चाहे वह
वतममान में आ सात् लकया जाये या भलव में पर ु स तो यही है
मन से मन के मानक के क्त होने के स ूणम यात्रा में कुछ महापुरुर्ों ने अ मानक आ ा को
क्त करने के ललए कायम लकये तो कुछ ने अ सलहत मानक के ललए मन के अ मानक आ ा की
िृंखला में लनवृल मागी-सािु, संत इ ालद लजनकी सवोৡ न्त थलत ब्र ा हैं मन के अ सलहत मानक के
िृंखला में प्रवृल मागी-गृह थ युक्त स ासी इ ालद लजनकी सवोৡ न्त थलत लव ु हैं इस मानक को वहाररकता
में लाने के ललए ान मागी लजनकी सवोৡ न्त थलत महे ि हैं और यही वतम मान तथा भलव के समाज की
आव कता है और यही मन के मानक की उपयोलगता है
मन के मानक को क्त करने में जो ि , ৯ान-लव৯ान, नाम-रुप इ ालद प्रयोग लकये गये हैं -वे सब
मन से मन के मानक के लवकास यात्रा में लवलभ महापु रुर्ों ारा क्त हो मानव समाज में पहले से मा ता प्रा
कर लव मान है मैं (लव ा ा) लसफम उसको वतम मान की आव कता और वतममान से जोड़ने के ललए समयानुसार
क्त कर मन के मानक को क्त कर लदया हाँ यलद समाज इसे आ सात् नहीं करता तो उसके पहले मैं
(लव ा ा) ही उसे आ सात् नहीं करता क्ोंलक मैं िु -बु -मुक्त आ ा हाँ , मैं नाम-रुप से मुक्त हाँ , मैं लिव हाँ , मैं
लिव हाँ , मैं लिव हाँ और ऐसा कहने वाला मैं पहला नहीं हाँ मुझसे पहले भी अने क लस ों ारा ऐसी उद् घोर्णा की
जा चुकी है और वे अपने समय के दे ि-काल न्त थलतयों में उसे लस भी कर चुके हैं और जब तक प्र े क मानव ऐसा
कहने के यो৓ नहीं बनता तब तक िमम िा ों में सृल के प्रार में कहा गया ई रीय वाणी-” ई र ने इৢा क्त
की लक मैं एक हाँ अनेक हो जाऊाँ” कैसे लस हो पाये गा मेरे उद् घोर् का सबसे बड़ा प्रमाण “स मानक लिक्षा”
ारा लশ “पुनलनममाम ण” व उसके प्रान्त की कायम योजना है जो अपने आप में पु रातन, लवलक्षण और वतममान तक
ऐसा नहीं हुआ है , जैसा है िीराम ारा िारीररक िन्तक्त के मा म से िारीररक िन्तक्त का प्रयोग कर स ीकरण
हुआ था, िीकृ ारा आलथमक िन्तक्त के मा म से न्तक्तगत बौन्त क िन्तक्त का प्रयोग कर स ीकरण हुआ था,
अब यह कायम न्तक्तगत बौन्त क िन्तक्त के मा म से सावमभौम बौन्त क िन्तक्त का प्रयोग कर स ीकरण लकया जा
रहा है जो िीराम, िीकृ के क्रम में अगला कायम है यह मानने का कायम नहीं जानने का कायम है मानने से,

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 72


मानने वाले का कोई क ाण नहीं होता, क ाण तो लसफम जानने वालों का ही होता रहा है , होता है और होता
रहे गा
वतममान एवं भलव के मानव समाज को मैं (लव ा ा) का यह अन्त म स संदेि है लक-मानव की
वा लवक चेतना-स चेतना अथाम त् भूतकाल का अनुभव और भलव की आव कतानुसार वतममान में पररणाम
৯ान से युक्त हो कायम करना है न लक पिुओं की प्राकृलतक चेतना अथाम त् िु रुप से वतममान में कायम करना है
स चेतना में प्राकृलतक चेतना समालहत रहती है अथाम त् मानव का लवकास प्राकृलतक चेतना से स चेतना की
ओर होना चालहए और लव৯ान की भााँ लत िमम के लवर्य में भी सदा आलव ृ त लवर्य से आलव ार की ओर बढ़ना
चालहए अ था न्त थलत यह होगी लक वह तो आपके पास पहले से आलव ृ त था पर ु उसी के आलव ार में आपने
पूरा जीवन तीत कर लदया
स ूणम मानव समाज से यह लनवेदन है लक ई र के स में जो कुछ भी अब तक आलव ृ त है
य लप लक वह सब मैं (आ ा) इस भौलतक िरीर (िी लव कुि लसं ह “लव मानव” ) से क्त कर चुका हाँ लेलकन
लफर भी न्तक्त ई र नहीं बन सकता लसफम समल ही ई र होता है और समल ही सं युक्त है लजसकी चरम
लवकलसत अव था स ूणम ब्र ाਔ का यथाथम रुप है जो एक संयुक्त लवचार-स -लस ा ही है न्तक्त नहीं जबलक
इसको क्त और आ सात् करने वाला न्तक्त ही है अथाम त् ई र और न्तक्त एक दू सरे पर लनभमर है
पररणाम रुप जो कुछ भी इस भौलतक िरीर ारा क्त कर दे ना था-वह दे लदया गया और बात यहीं समा हो
गयी क्ोंलक मैं (लव ा ा) तु ारे अनूरुप सामा हो गया क्ोंलक ई र (संयुक्त लवचार स -लस ा ) बाहर हो
गया और वह सभी में ा हो गया तू भी सामा , मैं भी सामा तू भी ई र, मैं भी ई र तू भी लिव, मैं भी
लिव इससे अलग लसफम माया, भ्रम, अ लव ास है और जब तक मैं (लव ा ा) इस िरीर में हाँ एक वतममान और
भलव का एका ान यु क्त प्रबु मानव के लसवाय कुछ अलिक भी नहीं समझा जाना चालहए बस यही लनवेदन
है
इस अन्त म के स में यह कहना चाहाँ गा लक इस पर अभी लववाद करने से कोई लाभ नहीं है अभी
तो लसफम यह दे खना है लक यह कालानुसार वतममान और भलव के ललए न्तक्त से लव प्रब तक के ललए उपयोगी
है या नहीं और जब तक मानव सृल रहे गी तब तक यह सावमभौम स -लस ा अभे और अकाਅ बना रहता है
तब यह समझ लेना होगा लक यह अन्त म था और क्त करने वाला मानव िरीर पूणम ब्र की अन्त म कड़ी
अथाम त् लिव का साकार सगुण रुप ही था
आलोचना और लवरोि मानव का भाव है पर ु स की आलोचना और लवरोि यलद लबना लवचारे ही
होगा तो यह उस मनु के ललए यं की मूखमता का प्रदिमन ही बन सकता है क्ोंलक ऐसा नहीं है लक अ मनु
इसे नहीं समझ रहे हैं इसललए इसके ललए थोड़ा सतकमता रखें लविेर्कर उन लोगों के ललए जो सावमजलनक रुप से
लवचार प्र ुत करते हैं
हााँ , एक अन्त म स और-उपरोक्त अन्त म स भी स और अन्त म स है या नहीं? इसके ललए
भी तो ৯ान और बुन्त चालहए
प्रकालित खुिमय तीसरी सह ान्त के साथ यह एक सवोৡ समाचार है लक नयी सह ान्त केवल
बीते सह ान्त यों की तरह एक सह ान्त नहीं है यह प्रकालित और लव के ललए नये अ ाय के प्रार का
सह ान्त है केवल वक्त ों ारा लশ लनिाम रण का नहीं बन्त गीकरण के ललए अलसमीत भूमਔलीय मनु
और सवोৡ अलभभावक सं युक्त रा र सं घ सलहत सभी र के अलभभावक के कतम के साथ कायम योजना पर
आिाररत क्ोंलक दू सरी सह ान्त के अ तक लव की आव कता, जो लकसी के ारा प्रलतलनलि नहीं हुई
उसे लववादमुक्त और सफलतापूवमक प्र ु त लकया जा चुका है जबलक लवलभ लवर्यों जैसे -लव৯ान, िमम, आ ा ,
समाज, रा৸, राजनीलत, अ राम र ीय स , पररवार, न्तक्त, लवलभ सं गठनों के लक्रयाकलाप, प्राकृलतक,
ब्र ाਔीय, दे ि, सं युक्त रा र सं घ इ ालद की न्त थलत और पररणाम सावमजलनक प्रमालणत रुप में थे

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 73


लव৯ान के सवोৡ आलव ार के आिार पर अब यह लववाद मुक्त हो चुका है लक मन केवल न्तक्त,
समाज, और रा৸ को ही नहीं प्रभालवत करता बन्त यह प्रकृलत और ब्र ाਔ को भी प्रभालवत करता है
के ीयकृत और ानीकृत मन लवलभ िारीररक सामालजक और रा৸ के असमा ताओं के उपचार का अन्त म
मागम है थायी न्त थरता, लवकास, िान्त , एकता, समपम ण और सुरक्षा के ललए प्र े क रा৸ के िासन प्रणाली के ललए
आव क है लक रा৸ अपने उ े के ललए नागररकों का लनमाम ण करें और यह लनिाम ररत हो चुका है लक क्रमब
थ मानव पीढ़ी के ललए लव की सुरक्षा आव क है इसललए लव मानव के लनमाम ण की आव कता है , लेलकन
ऐसा नहीं है और लवलभ अलनयन्त त सम ा जैसे-जनसंূा, रोग, प्रदू र्ण, आतंकवाद, भ्र ाचार, लवके ीकृत मानव
िन्तक्त एवं कमम इ ालद लगातार बढ़ रहे है जबलक अ ररक्ष और ब्र ाਔ के क्षेत्र में मानव का ापक लवकास
अभी िेर् है दू सरी तरफ लाभकारी भूमਔलीकरण लविेर्ीकृत मन के लनमाम ण के कारण लवरोि और नासमझी से
संघर्म कर रहा है और यह अस व है लक लवलभ लवर्यों के प्रलत जागरण सम ाओं का हल उपल कराये गा
मानक के लवकास के इलतहास में उ ादों के मानकीकरण के बाद वतममान में मानव, प्रलक्रया और
पयाम वरण का मानकीकरण तथा थापना आई0 एस0 ओ0-9000 एवं आई0 एस0 ओ0-14000 िृंखला के ारा
मानकीकरण के क्षे त्र में बढ़ रहा है लेलकन इस बढ़ते हुये िृंखला में मनु की आव कता (जो मानव और
मानवता के ललए आव क है ) का आिार “मानव संसािन का मानकीकरण” है क्ोंलक मनु सभी (जीव और
लनजीव) का लनमाम णकताम और उसका लनय णकताम है मानव संसािन के मानकीकरण के बाद सभी लवर्य
आसानी से लশ अथाम त् लव रीय गुणव ा की ओर बढ़ जायेगी क्ोंलक मानव संसािन के मानक में सभी त ों के
मूल लस ा का समावेि होगा
वतममान समय में ि - “लनमाम ण” भूमਔलीय रुप से पररलचत हो चुका है इसललए हमें अपना लশ
मनु के लनमाम ण के ललए लनिाम ररत करना चालहए और दू सरी तरफ लववादमुक्त, , प्रकालित तथा वतममान
सरकारी प्रलक्रया के अनुसार मानक प्रलक्रया उपल है जैसा लक हम सभी जानते हैं लक मानक हमे िा स का
सावमजलनक प्रमालणत लवर्य होता है न लक लवचारों का न्तक्तगत प्रमालणत लवर्य अथाम त् प्र ुत मानक लवलभ
लवर्यों जैसे-आ ा , लव৯ान, तकनीकी, समालजक, नीलतक, सै ान्त क, राजनीलतक इ ालद के ापक समथमन के
साथ होगा “उपयोग के ललए तैयार” तथा “प्रलक्रया के ललए तैयार” के आिार पर प्र ुत मानव के लव रीय
लनमाम ण लवलि को प्रा करने के ललए मानव लनमाम ण तकनीकी WCM-TLM-SHYAM.C (World Class
Manufactuing–Total Life Maintenance- Satya, Heart, Yoga, Ashram, Meditation.Conceousnesas) प्रणाली
आलव ृ त है लजसमें स ूणम त सहभालगता (Total System Involvement-TSI) है और लव मानक िू : मन
की गुणव ा का लव मानक िृंखला (WS-0 : World Standard of Mind Series) समालहत है जो लव मानव
लनमाम ण प्रलक्रया की तकनीकी और मानव संसािन की गुणव ा का लव मानक है जैसे -औ ोलगक क्षेत्र में इ ी০ूट
आफ ा में ीने , जापान ारा उ ादों के लव रीय लनमाम ण लवलि को प्रा करने के ललए उ ाद लनमाम ण
तकनीकी ड ू0 सी0 एम0-टी0 पी0 एम0-5 एस (WCM-TPM-5S (World Class Manufacturing - Total
Productive Maintenance -Siri (छाँ टाई), Seton (सु वन्त थत), Sesaso ( ৢता), Siketsu (अৢा र),
Shituke (अनुिासन) प्रणाली संचाललत है लजसमें स ूणम कममचारी सहभालगता (Total Employees
Involvement) है ) का प्रयोग उ ोगों में लव रीय लनमाम ण प्रलक्रया के ललए होता है और आई.एस.ओ.-
9000 (ISO-9000) तथा आई.एस.ओ.-14000 (ISO-14000) है
युग के अनुसार स ीकरण का मागम उपल कराना ई र का कतम है आलितों पर स ीकरण का
मागम प्रभालवत करना अलभभावक का कतम है और स ीकरण के मागम के अनुसार जीना आलितों का कतम है
जैसा लक हम सभी जानते है लक अलभभावक, आलितों के समझने और समथमन की प्रलतक्षा नहीं करते अलभभावक
यलद लकसी लवर्य को आव क समझते हैं तब केवल िन्तक्त और िीघ्रता से प्रभावी बनाना अन्त म मागम होता है
लव के बৡों के ललए यह अलिकार है लक पूणम ৯ान के ारा पूणम मानव अथाम त् लव मानव के रुप में बनना हम सभी
लव के नागररक सभी र के अलभभावक जैसे -महासलचव सं युक्त रा र संघ, रा र ों के रा र पलत-प्रिानमंत्री, िमम,

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 74


समाज, राजनीलत, उ ोग, लिक्षा, प्रब , पत्रकाररता इ ालद ारा अ समाना र आव क लশ के साथ इसे
जीवन का मुূ और मूल लশ लनिाम ररत कर प्रभावी बनाने की आिा करते हैं क्ोंलक लশ लनिाम रण वक्त का
सूयम नये सह ान्त के साथ डूब चुका है और कायम योजना का सूयम उग चुका है इसललए िरती को गम बनाने
का अन्त म मागम लसफम कतम है और रहने वाले लसफम स -लस ा से युक्त संयुक्तमन आिाररत मानव है , न लक
संयुक्तमन या न्तक्तगतमन से युक्तमानव
आलव ार लवर्य “ न्तक्तगत मन और सं युक्तमन का लव मानक और पू णममानव लनमाम ण की तकनीकी
है लजसे िमम क्षेत्र से कममवेद: प्रथम, अन्त म तथा पंचमवे दीय िृं खला तथा िासन क्षेत्र से WS-0 : मन की गुणव ा का
लव मानक िृंखला तथा WCM-TLM-SHYAM.C तकनीकी कहते है स ूणम आलव ार सावमभौम स -लस ा
अथाम त स ूणम ब्र ाਔ में ा अटलनीय, अपररवतम नीय, िा त व सनातन लनयम पर आिाररत है , न लक मानवीय
लवचार या मत पर आिाररत ” स ूणम ब्र ाਔ में ा एक ही स -लस ा ारा न्तक्तगत व सं युक्त मन को
एकमुखी कर सवोৡ, मूल और अन्त म र पर थालपत करने के ललए िू पर अन्त म आलव ार WS-0 िृंखला
की लन ललन्तखत पााँ च िाखाएाँ है
1. ड ू.एस. (WS)-0 :लवचार एवम् सालह का लव मानक
2. ड ू.एस. (WS)-00 : लवर्य एवम् लविेर्৯ों की पररभार्ा का लव मानक
3. ड ू.एस. (WS)-000 :ब्र ाਔ (सू क्ष्म एवम् थूल) के प्रब और लक्रयाकलाप का लव मानक
4. ड ू.एस. (WS)-0000 : मानव (सूक्ष्म तथा थू ल) के प्रब और लक्रयाकलाप का लव मानक
5. ड ू.एस. (WS)-00000 :उपासना और उपासना थल का लव मानक
संयुक्त रा र सं घ सीिे इस मानक िृं खला को थापना के ललए अपने सद दे िों के महासभा के समक्ष
प्र ु त कर अ राम र ीय मानकीकरण सं गठन व लव ापार संगठन के मा म से सभी दे िों में थालपत करने के
ललए उसी प्रकार बा कर सकता है , लजस प्रकार ISO-9000 व ISO-14000 िृंखला का लव ापी थापना हो
रहा है
20 वर्ों से लजस समय की प्रतीक्षा मैं लव कुि लसंह “लव मानव” कर रहा था वह आ गया है जो
न्तक्त प्राकृलतक बल को समझ जाते हैं वे उसके अनुसार कायम योजना तैयार करते है इस क्रम में न्तक्त, समाज,
दे ि व लव की आव कता को 20 वर्म पहले ही समझ ललया गया था और उस अनुसार ही लশ लनिाम ररत कर
उसके प्रान्त के ललए कायम योजना तैयार की जा रही थी लसफम लশ लनिाम रण से ही कायम स नहीं हो जाता
बन्त लশ की स ता की प्रमालणकता के ललए िमम िा ों, पुराणों, दािमलनकों, सामालजक-राजनीलतक
नेतृ कताम ओ,ं लव৯ान व आ ा इ ालद के लवचारों-लस ा ों के ारा उसे पुल प्रदान करने की भी आव कता
होती है लफर उसे उस लশ तक पहुाँ चाने के ललए कायम योजना बनानी पड़ती है
वतममान समय, स ूणम पुनलनममाम ण और स ीकरण का समय है हमें प्र ेक लवर्य को प्रार से
समझना और समझाना पड़े गा तभी न्तक्त, समाज, दे ि व लव को स लदिा प्रा हो सकेगी और इस कायम को
करने वाला कािी-स कािी क्षे त्र इस वतम मान समय में रा र गुरू बने गा लजसका कारण होगा-” रा र को स
मागमदिमन दे ना” और लफर यही कारण भारत को जगतगुरू के रूप में थालपत कर दे गा
हम सभी के मोटर वाहनों में, वाहन लकतने लकलोमीटर चला उसे लदखाने के ललए एक यंत्र होता है
यलद इस यंत्र की अलिकतम 6 अंकों तक लकलोमीटर लदखाने की क्षमता हो तब उसमें 6 अंक लदखते है जो प्रार
में 000000 के रूप में होता है वाहन के चलते अथाम त लवकास करते रहने से 000001 लफर 000002 इस क्रम से
बढ़ते हुये पहले इकाई में, लफर दहाई में, लफर सैकड़ा में, लफर हजार में, लफर दस हजार में, लफर लाख में, के क्रम
में यह आगे बढ़ते हुये बदलता रहता है एक समय ऐसा आता है जब सभी अं क 999999 हो जाते हें लफर क्ा
होगा? लफर सभी 000000 के अपने प्रार वाली न्त थलत में आ जायेंगे इन 6 अं क के प्र ेक अंक के चक्र में 0 से 9
अंक के चक्र होते है जो वाहन के चलने से बदलकर चले हुये लकलोमीटर को लदखाते है यही न्त थलत भी इस सृल
के काल चक्र की है सृल चक्र में पहले काल है लजसके दो रूप अ और हैं लफर इन दोनों काल में 5 युग

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 75


हैं 4 अ काल के 1 काल के और इन दोनों काल में 14 मनव र और मनु हैं 7 अ काल के 7
काल के लफर इन युगों में युगावतार अवतार होते हैं लफर ास व िा होते हैं ये सब वैसे ही है जैसे अंक
गलणत में इकाई, दहाई, सै कड़ा, हजार, दस हजार, लाख इ ालद होते हैं उपर उदाहरण लदये गये यंत्र में जब सभी
अंक 999999 हो जाते हैं तब लवकास के अगले एक बदलाव से इकाई, दहाई, सैकड़ा, हजार, दस हजार, लाख
सभी बदलते हैं वतममान सृ ल चक्र की न्त थलत भी यही हो गयी है लक अब अगले अवतार के मात्र एक लवकास के
ललए स ीकरण से काल, मनव र व मनु, अवतार, ास व िा सभी बदलेंगे इसललए दे ि व लव के िमाम चायों,
लव ानों, ৸ोलतर्ाचायों इ ालद को अपने -अपने िा ों को दे खने व समझने की आव कता आ गयी है क्ोंलक
कहीं ये कायम वही तो नहीं है ? और यलद नहीं तो वह कौन सा कायम होगा जो इन सबको बदलने वाली घटना को
घलटत करे गा?
सामा तः मनु का भाव अपने जैसा ही दू सरे को समझना होता है वह कैसे यह सोच सकता है
लक एक न्तक्त सां साररक कायों से लनललम रहते हुये 20 वर्ों से ऐसी िोि व योजना पर ान केन्त त कर कायम
करने में लगा हुआ है जो भारत को उसके स महानता की ओर ले जाने वाला कायम है और ऐसा कायम भारत
सलहत लव के ललए लकतने बड़े समाचार का लवर्य बनेगा?
“लव िा ” में ज -जीवन-पुनजम -अवतार-साकार ई र-लनराकार ई र, अ और ई र
नाम, मानलसक मृ ु व ज , भू त-वतममान-भलव , लिक्षा व पूणम लिक्षा, संलविान व लव संलविान, ग्राम सरकार व
लव सरकार, लव िान्त व एकता, न्त थरता व ापार, लवचारिारा व लक्रयाकलाप, ाग और भोग, रािा और िारा,
प्रकृलत और अहं कार, कतम और अलिकार, राजनीलत व लव राजनीलत, न्तक्त और वैल क न्तक्त, ৯ान व
कमम৯ान, योग, अ और योग व ान, मानवतावाद व एका कममवाद, नायक-िा ाकार-आ कथा,
महाभारत और लव भारत, जालत और समाजनीलत, मन और मन का लव मानक, मानव और पूणम मानव एवं पूणम
मानव लनमाम ण की तकनीकी, आकड़ा व सूचना और लव ेर्ण, िा और पुराण इ ालद अनेकों लवर्य और उनके
वतममान समय के िासलनक व था में थापना र तक की लवलि को क्त लकया गया है इस एक ही
“लव िा ” सालह के गुणों के आिार पर िमम क्षेत्र से 90 नाम और िममलनरपेक्ष व सवमिममसमभाव क्षेत्र से 141 नाम
भी लनिाम ररत लकये गये हैं
जब दु लनया बीसवी ं सदी के समान्त के समीप थी तब वर्म 1995 ई0 में कोपे नहे गन में सामालजक
लवकास का लव लिखर स ेंलन हुआ था इस लिखर स ेंलन में यह माना गया लक-” आलथमक लवकास अपने आप
में मह पूणम लवर्य नहीं है , उसे समालजक लवकास के लहत में काम करना चालहए यह कहा गया लक लपछले वर्ों में
आलथमक लवकास तो हुआ, पर सभी दे ि सामालजक लवकास की ल से लपछड़े ही रहे लजसमें मुূतः तीन लब दु ओं-
बढ़ती बेरोजगारी, भीर्ण गरीबी और सामालजक लवघटन पर लच ा क्त की गई यह ीकार लकया गया लक
सामालजक लवकास की सम ा सावमभौलमक है यह सवमत्र है , लेलकन इस घोर सम ा का समािान प्र ेक सं ृ लत
के स भम में खोजना चालहए ” इसका सीिा सा अथम यह है लक न्तक्त हो या दे ि, आलथमक लवकास तभी सफल होगा
जब बौन्त क लवकास के साथ मनु के गुणव ा में भी लवकास हो इसी स े लन में भारत ने यह घोर्णा की लक-”
वह अपने सकल घरे लू उ ाद का 6 प्रलतित लिक्षा पर य करे गा ” भारत इस पर तब से लकतना अमल कर पाया
यह तो सबके सामने है लेलकन बौन्त क लवकास के साथ मनु के गुणव ा में भी लवकास के ललए भारत सलहत लव
के हजारों लव लव ालय लजस पूणम सकारा क एवम् एकीकरण के लव रीय िोि को न कर पाये, वह पूणम लकया
जा चुका है और उसे पाਉक्रम का रूप दे कर पुनलनममाम ण के मा म से आपके सामने है पररणाम रूप एकल
सावमभौलमक रचना क बुन्त बनाम लव बुन्त का रूप आपके सामने है
िा ों व अनेक भलव वक्ताओं के भलव वाणीयों को पूणमतया लस करते हुये यह कायम उसी समय
अवलि में स हुआ है भलव वाणीयों के अनुसार ही ज , कायम प्रार और पूणम करने का समय और जीवन है
अलिक जानने के ललए इ रनेट पर गूगल व फेसबुक में लनयामतपुर कलााँ , लव कुि लसंह “लव मानव” , स कािी,

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 76


लव िा , लव मानव (NIYAMATPUR KALAN, LAVA KUSH SINGH “VISHWMANAV” , SATYAKASHI,
VISHWSHASTRA, VISHWMANAV) इ ालद से सचम कर जानकारी पायी जा सकती है
सामालजक-आलथम क प्रणाली और लिक्षा के दालय पर आिाररत स ू णम कायम योजना को रा र को
समलपमत करते हुये और प्रकृलत से ललए गये हवा, पानी, िूप इ ालद का कजम उतारते हुये, इस ापार पर यं का
एकालिकार न रहे इसललए इसे, पूरी रूलच से संचाललत करने वालों के हाथों में ही सौंपने की भी योजना है लजससे
৯ान का ापार भी हो जाये गा और रा र से वा भी हो जायेगी
जय भारत दे श, जय ववश्व रािर

सत्य, आधु वनक अर्वा प्राचीन वकसी समाज का सम्मान नही िं करता। समाज को ही
सत्य का सम्मान करना पड़े गा। अन्यर्ा समाज ध्विंस हो जाये कोई हावन नही िं। वकसी
प्रकार की राजनीवत में मुझे ववश्वास नही िं है। ईश्वर तर्ा सत्य ही एक मात्र राजनीवत है
बावक सब कूड़ा-करकट है ।

-स्वामी वववेकानन्द

कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 77


कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 78
कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 79
कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 80
कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 81
कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN) पृ ष्ठ - 82

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