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कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN)
कल्कि महावतार आ चुके हैं (ACTION PLAN)
कल्कि महावतार
आ चुके हैं
(ACTION PLAN)
“ववश्वशास्त्र” से व्यक्त
“ववश्वशास्त्र” से व्यक्त
भक्त वही
जो भगवान को बेच सके
चेला वही
जो गुरू से कुछ ले सके
संत वही
जो समाज को कुछ दे सके
अवतार वही
जो पृ ी की आवाज सुन सके
“परमा ा ागी नहीं है , परमा ा परम भोगी है , इस सारे अन्त के भोग में लीन है
परमा ा यं ागी नहीं है ले लकन तु ारे तथाकलथत महा ाओं ने तु ें समझा लदया है इस
ाग के कारण या तो तु म दीन हो जाते हो- एक पररणाम, लक तु ें लगता है मैं गलहम त, मैं
लनंलदत, मैं पापी, मैं नारकीय, मुझसे ाग नहीं होता! या, अगर तु म चालबाज हुये, चालाक हुये-
वह तरकीब लनकाल ले गा वह ाग का आवरण खड़ा कर ले गा ”
के ललए
लन वेबसाइट दे खें
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बनाने हे तु
ववचारार्च
अल्कन्तम अवतार-कल्कि महाअवतार
द्वारा
समवपचत
मनु का प्र ेक बৡा लन क्ष, पूणम, िममयुक्त, िममलनरपेक्ष और सवमिममसमभाव रूप में ही होता है जैसे-
जैसे वह बड़ा होता है , बৡे के पूवमवती सं ार, लवचारिारा, िारणाएाँ व मा ताएाँ उसे बााँ िते हुये अपूणम, पक्ष व
स दाययुक्त बना दे ती है और वह जीवन पयम उस छलव में बाँिकर एक लविेर् प्रवृल के मनु के रूप में क्त
होता है यह उसी प्रकार होता है लजस प्रकार एक नया क ूटर लजसमें कोई भी ए ीकेिन सा वेयर न डाला
गया हो और लफर उसमें लकसी लविेर्-लविेर् कायम के ललए ए ीकेिन सा वेयर डालना िुरू लकया जाय तो वह
क ूटर उस लविेर् कायम व प्रवृल वाला बन जाता है लजसका उसमें ए ीकेिन सा वेयर डाला गया है
प्र ुत “लव िा : द नालेज आफ फाइनल नालेज” मनु के मन्त के ललए एक ऐसा सा वेयर है जो
उसे पूणम और सभी लवचारों को समझने में सक्षम बनाता है यह िा एक मानक िा है लजसमें प्र ेक र का
मनु अपनी छलव दे ख सकता है उदाहरण रूप लजस प्रकार हम लकसी ठोस पदाथम को लकलो से तोलते हैं उसी
प्रकार मनु के मन्त को तोलने का यह िा है कभी भी ठोस पदाथम से लकलो को नहीं तोला जाता हम यह
नहीं कहते लक इतना ठोस पदाथम बराबर एक लकलो बन्त हम यह कहते हैं लक एक लकलो बराबर इतना ठोस
पदाथम
इस िा को पढ़ने व समझने के पहले पाठकगण अपने मन्त को नये क ूटर की भााँ लत ररक्त कर
लें, लजसका मैं लनवेदन भी करता हाँ लकसी भी पूवाम ग्रह व सं ार से ग्रलसत होकर पढ़ने पर िा समझ के बाहर
हो जायेगा क्ोंलक िा बहुआयामी (म ी डायमें नल) है अथाम त अनेक लदिाओं से एक साथ दे खने पर ही
इसके ৯ान का प्रकाि आप में प्रकालित होगा ऐसा न करने पर आप िा को लकसी लविेर् लवचार, मत व
स दाय का समझ बैठ जायेंगे जो आपका लवचार हो सकता है पर ु इस िा का नहीं िा के बहुत से ि
इसके पाठकों को कलठन अथों वाले लदख सकते हैं यह न्तक्त के अपने लच न र की सम ा से ही क्त हो
रहा है न्तक्तयों को इन कलठन ि ों के अथों को सरल भार्ा में समझना इस िा के क्रलमक अ यन व लच न
से ही स व हो सकेगा ज से मनु लसखता ही चला जाता है न्तक्त को जहााँ पहुाँ चना होता है उसके ललए
न्तक्त को ही प्रय करना होता है पहुाँ च का वह थान न्तक्त तक चल कर नहीं आता इसललए यं को वहााँ
पहुाँ चायें , यही लाभकारी होगा आज तक िा ों के प्रलत ल यह रही है लक ये सब रह वाद का लवर्य है ऐसा
नहीं है लसफम ल की बात है लक आप लकस ल से उसे समझने का प्रय करते हैं भार्ा के अक्षर व ि तो वही
होते हैं लसफम लच न र और ि ों का अथम ही उसे कलठन व आसान भार्ा िैली में लवभालजत करता है
प्र ुत िा लकसी िमम -स दाय लविेर् की सवोৡता का िा नहीं है बन्त सभी को अपने -अपने िमम-
स दाय और एक दू सरे के िमम -स दाय के प्रलत समझ को लवकलसत करते हुये ৯ान व कमम৯ान ारा एकीकरण
का िा है एक मात्र ৯ान व कमम৯ान ही ऐसा लवर्य है जो मनु को मनु से जोड़ सकता है क्ोंलक इसका
स सीिे मन्त से है और कौन नहीं चाहे गा लक उसका मन्त ৯ान-बुन्त के ललए पूणमता की ओर बढ़े
৯ान-कमम৯ान के अलावा जो कुछ है वह सं ृ लत है और उस पर एकीकरण अस व ही नहीं नामुमलकन है मैं यह
कभी नहीं चाहता लक यह पृ ी एकरं गी हो जाये लजस प्रकार प्र ेक घर का माललक अपने बाग में अनेक रं ग व
प्रकार का फूल इसललए उगाता है लक उसके बाग की सु रता और लनखरे उसी प्रकार परमा ा ने इस पृ ी पर
समय-समय पर उ अनेक अवतारों, पैग रों, दू तों इ ालद के मा म से िमम-स दाय उ कर मनु ों को
युगों-युगों से सं ाररत व लनमाम ण की प्रलक्रया प्रार लकया है तालक उसकी यह पृ ी रूपी बाग सु र और
रं गलबरं गी लगे और अब वह समय आ चुका है लजसमें मनु को पूणम सं ाररत लकया जाये यह जानना आव क
है लक यह िा उस सवोच् च और अन्त म मन र पर जाकर मनु को पूणम सं ाररत करने के ललए आलव ृ त
अलनवमचनीय कन्त महाअवतार भोगे र िी लव कुि लसंह “लव मानव” का मानवों के नाम खुला
चुनौती पत्र
आधार तल
सात तल वाले इस भ मन्त र के आिार तल में भारतमाता की लविाल एवं भ प्रलतमा की प्रलत ा
है मााँ , लजसकी गोद में सं ृ लत, सं ार और स ता ज लेकर पोलर्त होती है -उसकी उपमा संसार में कहीं नहीं
है भारत की िरती को ही यह सौभा लमला है , लजसे ”भारतमाता“ के नाम से लवभूलर्त लकया गया है संसार का
कोई भी दे ि माता के नाम से नहीं जाना जाता भगवान िीराम जी यं कहते हैं -”जननी ज भूलम गाम दलप
गरीयसी“-मााँ और मातृभूलम गम से भी िे है
भारतवासीयों की रग-रग में सं ार प्रलतल त करने वाली भारतमाता की मूलतम की प्रलत ा भारतमाता
मन्त र में की गई-लजनके एक हाथ में दु पात्र तथा दू सरे में िान की बाली है सामलयक चेतना जगाने के ललए ेत
क्रान्त व हररत क्रान्त के प्रतीक के रूप में इस क ना को ग्रहण लकया गया है प्रलतमा के पीछे कमलाकार चक्र
है , जो कमल की पलवत्रता और लनललम भाव का प्रतीक है गीता में भगवान िीकृ का स े ि है -
”प पत्रलमवा सा“-संसार- महासागर में, रा र की सेवा में न्तक्त का जीवन, कमल के समान रहना चालहए
भारत माता की मूलतम के सामने भूतल पर भारत का लविाल प्राकृलतक मानलचत्र, भारत सरकार के
सवेक्षण लवभाग की प्रमालणकता के आिार पर लनलममत है -लजसमें नागालिराज लहमालय के उ ुंग लिखर, उपन्त काएाँ ,
प्रमुख नलदयााँ आरे न्तखत की गई हैं साथ ही लन ललन्तखत को भी दिाम या गया है -
ादि ৸ोलतललांग- 1. सौरा र में सोमनाथ, 2. िीिैल पर मन्त काजुमन (गुुर से 217 मील), 3. उ৪ैन में महाकाल,
4. ओंकारे र में म े र (ओंकारे ि् वर), 5. लहमाचल पर केदारनाथ, 6. डालकनी में भीमिंकर (पूना से 43 मील
उ र, मु ई से 70 मील पूवम की ओर भीमा नदी के तट पर), 7. कािी में लव े र लव नाथ, 8. गौतमी तट पर
त्रय के र (नालसक रोड े िन से 25 लक.मी. दलक्षण में), 9. लचताभूलम में वै नाथ (कलक ा-पटना रे ल मागम पर
लकउल े िन से दलक्षण पूवम में 100 लक.मी.), 10. दारूका वन में नागे र ( ाररका के पास दारूका वन में गौतमी
नदी के लकनारे ), 11. सेतूब में रामे र और 12. लिवालय में न्त थत घु े र (मनमाड-पूना लाइन पर मनमाड से
100 लक.मी. दौलताबाद े िन से 20 लक.मी. वेरूल गााँ व के पास)
स मोक्षदालयनी पुररयााँ - 1. अयो ा, 2. मथुरा, 3. हरर ार, 4. कािी (वाराणसी), 5. कााँ ची, 6. अवन्त का (उ৪ैन),
7. ाररका
स बदरी - उ राखਔ रा৸ के बदरी क्षेत्र में 1. आलद बदरी, 2. ान बदरी (कु ार चਂी से 6 मील दू र), 3. वृ
बदरी (उिी मठ के कु ार चਂी से ढाई मील दू र), 4. भलव बदरी (जोिी मठ से 11 मील दू र), 5. योग बदरी
(पाਔु के र से दो मील), 6. नृलसंह बदरी (जोिी मठ से नरलसंह भगवान का मन्त र), 7. प्रिान बदरी
पंच केदार - भगवान िंकर मलहर् रूप िारण उपरा उनके पााँ च अंग प्रलतल त हुये और वे पंच केदार कहलाये
1. िी केदारनाथ (प्रमुख केदार पीठ), 2. िी म मे र (यहााँ नालभ), 3. िी तुंगनाथ (यहााँ बाहु), 4. िी रूद्रनाथ (यहााँ
मुख), 5. क े र (यहााँ जटायें )
पंच सरोवर - 1. मानसरोवर (लहमालय क्षेत्र में), 2. लब दु सरोवर (गुजरात प्रदे ि में), 3. नारायण सरोवर (नल सरोवर
और लहमालय क्षेत्र में), 4. प ा सरोवर (तुंगभद्रा नदी के उ र और लकन्त ं िा के दलक्षण भाग में ), 5. पु र सरोवर
(अजमेर के पास में)
भारत माता मन्त र के चतुथम खਔ पर भारत की एकता और अखਔता के प्रतीक के रूप में भारत-
दिमन की प्रादे लिक झााँ की लभल लचत्रों और आरे खों ारा प्रदलिमत की गई है -लज ें दे खकर लगता है लक हम भारत
में हैं और भारत हम में है हमारा कोई भी लच न इससे पृथक नहीं हो सकता हमने इसी भारत के ललए ज
ललया है और ज -ज ा र परमा ा से प्राथमना करते हैं लक चाहे लजस रूप में हो, चाहे लजस योलन में हो-हमारा
ज भारत में ही हो
दीवालों पर भारत के सम प्रदे िों के सां ृ लतक मानलचत्र आकर्मक ढं ग से लनलममत लकये गये हैं -
लजनमें म प्रदे ि, गुजरात, महार र , गोवा, राज थान, हररयाणा, पंजाब, ज ू -क ीर, लहमाचल प्रदे ि, असम,
मेघालय, अरूणाचल प्रदे ि, मलणपुर, नागालैਔ, लत्रपु रा, लमजोरम, पल म बंगाल, लबहार, उ र प्रदे ि, कनाम टक,
आ प्रदे ि, उड़ीसा, केरल, तलमलनाडु , आलद की झााँ लकयों में वहााँ के इलतहास-प्रलस सां ृ लतक कला, थाप
कला के नमूने, संत, वीर, बललदानी, नृ कला आलद को प्रदलिमत लकया गया है इस मਔपम् में लविाल मंच लनलममत
है मंच के पा व में, रजत पਂीकाओं पर-लव के प्रमुख िमों- ईसाई िमम , लसख िमम , जैन िमम , बौ िमम, सनातन
िमम , पारसी िमम , इ ाम िमम के मूल मंत्र आलेन्तखत हैं और वेद भगवान की प्रलत ा की गई है सम य ओर
भावना क एकता की ल से थालपत इन पਂीकाओं का अनावरण-भारत गणरा৸ के तਚाललन महामलहम
रा र पलत ৯ानी जैल लसंह जी ने 8 माचम, 1986 को लिवरालत्र पवम पर लकया था उ ोंने कहा-”मेरा मन यहााँ से बाहर
जाने को नहीं करता यह मन्त र आजादी के तुर बाद ही बनना चालहए था, पर ु जो कायम सरकार नहीं कर पाई,
उसे ामी जी ने लकया भगवान लजससे जब जो कायम कराता है , तभी होता है मेरा लव ास है लक जो कोई भी
हरर ार आयेगा, इस मन्त र के दिमन जरूर करे गा “
सभी िमम एक हैं लव का कोई भी िमम लहं सा, अस , वैर, कटु ता की बात नहीं कहता िमाम ता आड़े
आने पर िमम को लवकृत बना लदया जाता है िममलनरपेक्षता का ता यम िममहीनता नहीं है , अलपतु अपने िमम पर
अन लन ा, समपमण भाव रखते हुए-दू सरे िमम के प्रलत समान आदर भाव रखना है सं ृ लत ही रा र बनाती है एक
रा र की जनता एक जालत की है , उस जालत का जो रूप है , उसे रा र ीयता कहते हैं और रा र ीयता ही लकसी रा र
का जीवन है यलद रा र ीयता या सं ृ लत न कर दी जाए, तो वह रा र न हो जाता है सं ृ लत के ज , पोर्ण,
रक्षण और अलभवृन्त के ललए परमा ा ने भारत-भूलम का चयन लकया उस सं ृ लत का पालन करना, अपने जीवन
में ढालना, आचररत करना प्र ेक भारतवासी का प्रथम कतम है सं ृ लत और रा र एक-दू सरे के पयाम य हैं रा र
रहे गा, सं ृ लत रहे गी, और सं ृ लत की रक्षा से रा र की अन्त ता अक्षुਖ रहे गी
भारत-भूलम ि है , लजसकी प्रिंसा दे वों के िीमुख से की गई है तथा इस भारत-भूलम पर ज लेने के
ललए यं दे वता भी लालालयत रहते हैं लजसका ज इस िरती पर हुआ, वह भी ि हो गया भारत-भूलम इस
भूखਔ पर सबसे पुਘिाली है यह भूलम भगवान के अवतारों की, संतो की, महलर्मयों की, पुਘ सललला सररताओं
की प्राकਅ- थली है यं परमा ा ने लवलभ रूपों में अवतररत होकर यहााँ लीलीयें कर, िमम और सं ृ लत की
मयाम दा थालपत की भारत की िरती दे वताओं की य৯-भूलम होने से , परम पावन मानी गई है
आज की भयावह पररन्त थलत में स ूणम लव भारत की ओर आाँ खें लगाये लालालयत है लक लव की
सम ाओं का लनदान भारत के पास है समय आयेगा लवि्व को भारत ने रा ा लदखाया था, पुनः लदखायेगा
महलर्म अरलव की वाणी स लस होगी लक ”भारत एक है , अखਔ है , अखਔ रहे गा “ लवभाजन की रे खाएाँ ,
भौगोललक सीमायें होंगी भारत की पहचान भौगोललक सीमाओं से कभी नहीं रही भौलतक सीमाएाँ भारत को
कभी बााँ ि नहीं सकी भारत की पहचान उसके आ ा से है , भारतीयता से है , भारतीय सं ृ लत से है और यह
पहचान याव च लदवाकर बनी रहे गी
जब मैं रे नुकूट, सोनभद्र में रहता था (सन् 1999 से 2001 तक) तब आपकी रे नुकूट िाखा का पररसर
मेरे अ थायी लनवास (क्वाटम र नं 0 आई-1521,) जो मेरे लमत्र, बड़े भाई िी लसया राम लसंह (लह ा ो ाफ) ारा
सुलविा दी गई थी, के ठीक सामने लदखता था िी लसया राम लसंह जी ारा आपके सालह भी हमें प्रा होते रहते
थे वे आ ान्त क लवचारिारा के ामी हैं जो उ ें लवरासत में ही प्रा थी इस क्वाटम र में रहकर मैंने ”लव िा “
के बहुत से मह पूणम अंि ललखे थे सन् 2012 में ”भारत माता मन्त र“ के दिमन का अवसर प्रा हुआ वहीं से
पु क ”भारत माता मन्त र“ मैं लाया था
”भारत माता मन्त र“, का एका लवचार बहुत ही जीव है और वह प्र क्ष रूप में सामने है संघलनत
होती दु लनया में मा म से ”भारत“ के रूप को समझने का यह ৯ान आिाररत मन्त र है
अब जबलक लव का अन्त म िा -”लव िा “ क्त हो चुका है , ऐसी न्त थलत में ”भारत माता मन्त र“
से भारत के ”लव रूप“ का दिमन व ৯ान आने वाले लोगों को हो, इसके ललए थोड़े पररवतमन की आव कता है जो
एक सावमभौम स -सै ान्त क सलाह मात्र है -
7 वााँ तल-”৸ोलत मन्त र”-इस तल पर केवल ”लिव ৸ोलत” और उसका प्रकाि ”लव िा ” रखा होना
चालहए
6 वााँ तल-”मानक चररत्र मन्त र“-इस तल पर केवल लत्रदे व एवं पररवार होने चालहए 1. ब्र ा एवं पररवार ( न्तक्तगत
मानक न्तक्त चररत्र), 2. लव ु एवं पररवार (सामलजक मानक न्तक्त चररत्र) एवं 3. िंकर एवं पररवार (वैल क
मानक न्तक्त चररत्र)
5 वााँ तल-”अवतार मन्त र”-इस तल पर केवल ई र के 24 अवतार होने चालहए
4 वााँ तल-”दे वी-िन्तक्त और मातृ मन्त र“
3 वााँ तल-”संत मन्त र“
2 वााँ तल-िूर मन्त र
1 वााँ तल-भारत दिमन
आिार तल-कोई पररवतमन नहीं
इस रूप से ”भारत“ का लव रूप क्त होगा साथ ही यह भी क्त होगा लक मनु को अपने लवचार
को उ रो र िे करने में लकतने चरण से गुजरना है आिार तल से 7वााँ तल उसी को क्त करता है मनु की
गलत नीचे से उपर की ओर तथा अवतार की गलत उपर से नीचे की ओर होती है
पहले भारतमाता मल्कन्दर और अब अन्त में उसमें मैं और मेरा ववश्वधमच मल्कन्दर
यलद मैं लव कुि लसंह ”लव मानव“, ही कन्त अवतार हैं तो उनका थान 5वें तल के ”अवतार मन्त र”
में उनका अलिकार बनता है
अवनवचचनीय कल्कि महाअवतार भोगे श्वर श्री लव कुश वसिंह” ववश्वमानव” का मानवोिं के नाम
खुला चुनौती पत्र
वप्रय मानवोिं,
हम (अवतारी िृंखला) आप लोगों के प्रलत क ाण भावना रखते हुये उन सभी रह ों को खोलकर रख
दे ना चाहते है लजससे आज तक हम आप का भोग करते आये है पत्र के अ में यह भी बताऊगा लक इन रह ों
के खोलने के प्रलत मेरा उ े क्ा है ? और यह भाव हमारे मन में क्ों आया? लदल खोलकर यह भी करें गे लक
हम लोगों की उ ल कैसे हुई? और हमने अपने अलिप के ललए क्ा-क्ा लकया अब न्त थलत क्ा है तथा भालव
में काल की गलत लकस ओर जा रही है ?
इन सब बातों को करने से पहले कुछ सू त्रों को करना चाहाँ गा वतम मान समय में यह दे ख
रहा हाँ लक आरोप-प्र ारोप तथा अपने अपने सीलमत मन्त से अने कों प्रकार की ाূा की सं ृ लत बढ़ती जा
रही है इस स में यह कहना चाहाँ गा लक सवमप्रथम यह जानो लक अब तक के संसार में उ कोई भी
महापुरूर्, पैग र, दू त इ ालद सावमजलनक प्रमालणत रूप से पूणम रूप में नही थे क्ोंलक यलद वे पूणम होते तो उनके
ारा क्त लवचारों की स ा उसी भााँ लत लनलवमरोि रूप से थालपत हो चुकी होती लजस प्रकार सावमजलनक प्रमालणत
लव৯ान ने अपनी स ा को अ समय में ही सभी के उपर थालपत कर ललया है दू सरी बात यह है लक सीलमत
मन्त से असीम मन्त (या अपने से अलिक मन्त ) की सही ाূा कभी नहीं की जा सकती यलद तुम
िी कृ (या अपने से अलिक) की ाূा करना चाहते हो तो पहले िी कृ के मन्त (या अपने से अलिक
मन्त ) के बराबर होना पड़े गा इसी प्रकार बु , मुह द, ईसा इ ालद के स में भी है तीसरी बात यह है
लक आरोप-प्र ारोप की सं ृ लत से कोई हल नही लनकलता, न ही बुन्त का लवकास होता है बन्त सा दालयक
लव े र् व एक दू सरे का प्रचार-प्रसार ही होता है क्ोंलक तुम लवरोि या आरोप-प्र ारोप ही सही पर ु अपने लवरोिी
का नाम तो लेते ही हो फल रूप लजसके पास बुन्त की प्रबलता होती है उसके ललए अ बुन्त वाला लवरोिी
प्रचारक बन जाता है और यह तो तुम जानते ही होगे लक हम बुन्त प्रबल वगम है इसललए तुम लोग अनजाने ही
हमारे प्रचारक बने बैठे हो इसके ललए आव क है लक तुम लोग ऐसे रा े को अपनाओं लजससे हम लोगों का नाम
न ही आये और तुम लोग में बुन्त का लवकास तेजी से हो तु ें यह बात सदा याद रखनी पड़े गी लक बुन्त के लवकास
से संगलठत सं गठन ल ी अवलि तक थालय बनाये रहती है जबलक इसके लवपरीत संगलठत सं गठन को कभी भी
बुन्त के प्रयोग ारा लवखन्तਔत लकया जा सकता है प्रायः ऐसे सं गठन का प्रयोग तु ारे अपने ही नेता अपने ाथम
को सािने में करते है
हे मानवों, पहले कमम या पहले ৯ान बुन्त ? यह प्र तो पहले अਔा या पहले मुगी? जैसा प्र है , और
यह सदा से अनसु लझा ही है और रहे गा भी पर ु इतना तो जानना आव क है लक हम कमम करते -करते कुछ
लनयमों को प्रा करते है यलद हम इन लनयमों पर ान दे ते रहते हैं तो हमें अपने गललतयों के पुनरावृल को रोकने
में सहयोग लमलता है इन लनयमों का जानना ही ৯ान-बुन्त कहलाता है अब कोई न्तक्त यह सोच सकता है लक
कमम करने से पहले हम इन लनयमों का अ यन करें गे तो कोई यह सोच सकता है लक ৯ान-बुन्त को पढ़ने से क्ा
होगा, हमें पहले कमम करना है इस न्त थलत में इन दोनों में पहले लनयमों को अ यन कर कमम करने वाले न्तक्त के
जीवन में लवकास की गलत अलिक होगी जबलक पहले कमम करने वाला न्तक्त उ ीं लनयमों को कमम करते -करते
अनुभव करे गा जो पहले ही अनुभव कर क्त की जा चुकी है लिक्षा का अथम यही है लक पहले उन तमाम लनयमों
का अ यन कर ललया जाय लफर कममरत हुआ जाय हम ऐसा ही करते रहे हैं और तुम को नचाते रहे हैं
कम समय में अलिकतम ৯ान-बुन्त के लवकास का मागम यह है लक लजस प्रकार लव৯ान के क्षेत्र में लजस
व ु का आलव ार पूणम हो जाता है पुनः उसके आलव ार पर समय व बुन्त खचम नहीं करते बन्त उसके आगे
की ओर आलव ार या उस आलव ार को समझने पर समय व बुन्त खचम लकया जाता है उसी प्रकार ৯ान के क्षेत्र
01. मुख्य-गुर् वसद्धान्त - इसमें िारा के लवपरीत लदिा (रािा) में गलत करने का लवचार-लस ा मानव
मन्त में डाला गया
02. मुख्य-गुर् वसद्धान्त - इसमें सहनिील, िां त, िैयमवान, लगनिील, दोनों पक्षों के बीच म थ की भूलमका
वाला गुण (सम य का लस ा ) का लवचार-लस ा मानव मन्त में डाला गया
03. मुख्य-गुर् वसद्धान्त - इसमें सूझ-बुझ, स , पुरूर्ाथी, िीर-ग ीर, लन ामी, बलल , सलक्रय,
िाकाहारी, अलहं सक और समूह प्रेमी, लोगों का मनोबल बढ़ाना, उ ालहत और सलक्रय करने वाला गुण
(प्रेरणा का लस ा ) का लवचार-लस ा मानव मन्त में डाला गया
04. मुख्य-गुर् वसद्धान्त - प्र क्ष रूप से एका-एक लশ को पूणम करने वाले (लশ के ललए ररत कायमवाही
का लस ा ) का लवचार-लस ा मानव मन्त में डाला गया
07. मुख्य-गुर् वसद्धान्त - आदिम चररत्र के गुण के साथ प्रसार करने वाला गुण ( न्तक्तगत आदिम चररत्र के
आिार पर लवचार प्रसार का लस ा ) का लवचार-लस ा मानव मन्त में डाला गया
08. मुख्य-गुर् वसद्धान्त - आदिम सामालजक न्तक्त चररत्र के गुण, समाज में ा अनेक मत-मता र व
लवचारों के सम य और एकीकरण से स -लवचार के प्रेरक ৯ान को लनकालने वाले गुण (सामालजक
आदिम न्तक्त का लस ा और न्तक्त से उठकर लवचार आिाररत न्तक्त लनमाम ण का लस ा ) का
लवचार-लस ा मानव मन्त में डाला गया
09. मुख्य-गुर् वसद्धान्त - प्रजा को प्रेररत करने के ललए िमम, संघ और बुन्त के िरण में जाने का गुण (िमम,
संघ और बुन्त का लस ा ) का लवचार-लस ा मानव मन्त में डाला गया
10. मुख्य-गुर् वसद्धान्त - आदिम मानक सामालजक न्तक्त चररत्र समालहत आदिम मानक वैल क न्तक्त
चररत्र अथाम त सावमजलनक प्रमालणत आदिम मानक वैल क न्तक्त चररत्र का लवचार-लस ा मानव मन्त
में डालने का काम वतममान है और वो अन्त म भी है
हे मानवोिं, अब ल्कथर्वत क्या है तर्ा भाववष्य में काल की गवत वकस ओर जा रही है? हे मानवों अब
न्त थलत यह है लक हमें आपके परम लप्रय लस ा “िन्तक्त और लाभ (पावर और प्रालफट)” से कोई असहमलत नहीं हैं
बन्त यह आपमें कुछ करने की प्रवृल का महान गुण हैं इसका प्रकाि आप में सदै व जलते रहना चालहए काल
की गलत इस प्रकाि को कैसे सफलतापूवमक प्रा लकया जा सकता है उस ৯ान को ग्रहण करके उस अनुसार कायम
करने की ओर जा रही है अथाम त ৯ान युग की ओर जा रही है और मन्त का लवकास ही इसका मागम है भलव
का समय ऐसे ही मानवों के ागत की प्रतीक्षा कर रहा है
सत्य, आधु वनक अर्वा प्राचीन वकसी समाज का सम्मान नही िं करता। समाज को ही
सत्य का सम्मान करना पड़े गा। अन्यर्ा समाज ध्विंस हो जाये कोई हावन नही िं। वकसी
प्रकार की राजनीवत में मुझे ववश्वास नही िं है। ईश्वर तर्ा सत्य ही एक मात्र राजनीवत है
बावक सब कूड़ा-करकट है ।
-स्वामी वववेकानन्द