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भागवत
भागवत
आज से हम एक ऐसे ग्रंथ में प्रवेश कर रहे हैं जो वैष्णवों का परम धन है , परु ाणों का तिलक है , ज्ञानियों का चिंतन, संतों का मनन,
भक्तों का वंदन तथा भारत की धड़कन है । किसी का सौभाग्य सर्वोच्च शिखर पर होता है तब उसे श्रीमद्भागवत पुराण कहना, सुनना
और पढऩा मिलता है । भागवत महापुराण वह शास्त्र हैं जिसमें बीते कल की स्मति
ृ , आज का बोध और भविष्य की योजना है । तो आज
भागवत में प्रवेश करने से पहले थोड़ा भीतर उतरने की तैयारी करिए। यह स्वयं मल
ू से परिचित कराने का ग्रंथ है । भगवान ने भागवत
की पंक्ति-पंक्ति में ऐसा रस भरा है कि वे स्वयं लिखते हैं- पिबत भागवतं रसमालयं मुहुरवो रसिका भुवि भावुका:।
हमारे भीतर जो रहस्य भरा हुआ है उसको उजागर करने के लिए भागवत एक अध्यात्म दीप है जैसे हम भोजन करते हैं तो हमको
संतष्टि
ु मिलती है उसी प्रकार भागवत मन का भोजन है । जब मन को ऐसा शद्ध
ु भोजन मिलेगा तो मन संतष्ु ट होगा, पष्ु ट होगा और
तप्ृ त होगा और जिसका मन तप्ृ त है उसके जीवन में शांति है । भागवत में प्रवेश करें तो कुछ बातें स्पष्ट करते चलें। हम जिस रूप में
इस सद्साहित्य को पढ़ते चलेंगे, हमारे तीन आधार हैं। संत और महात्माओं का यह कहना है और शोध से ज्ञात भी हुआ है । पहली बात
है भगवान ने अपना स्वरूप भागवत में रखा तो भागवत भगवान का स्वरूप है । दस
ू री बात इसमें ग्रंथों का सार है और तीसरी बात
हमारे जीवन का व्यवहार है । ये तीन बातें भागवत में हैं। ----क्रमशः
भागवत-3: गह
ृ स्थी का ग्रंथ है भागवत
हम सब गह
ृ स्थ लोग हैं, दाम्पत्य में रहते हैं। भागवत की घोषणा है कि मैं दाम्पत्य में आसानी से प्रवेश कर जाती हूं। हमारे दाम्पत्य के
सात सूत्र हैं- संयम, संतुष्टि, संतान, संवेदनशीलता, संकल्प, सक्षम और समर्पण। इन सात सूत्रों को हम प्रतिदिन भागवत में स्पष्ट
करते चलेंगे।हमने भागवत में भगवान का स्वरूप दे ख लिया। ग्रंथों का सार दे ख लिया और जीवन का व्यवहार भी दे ख लिया। लोगों के
मन में प्रश्न उठता है भागवत किसने कही, किसने सुनी? वेदव्यासजी ने ऐसा ग्रंथ रचा कि जिसमें बहुत सारे स्तर पर बहुत सारी
कथाएं चलती हैं। इस कारण भागवत पढऩे वाले भ्रम में आ जाते हैं कि अभी तो ये बोल रहे थे, अभी तो इनकी कथा चल रही थी,
अचानक दस
ू री कथा आ जाती है तो लोग भ्रम में पड़ जाते हैं। भ्रम न पालें , सबसे पहले हम ये जान लें कि भागवत लिखने की नौबत
क्यों आई?
वैसे तो इसका उत्तर भागवत के प्रथम स्कंध के चौथे अध्याय में आता है पर मैं आपको यहीं बता रहा हूं। भागवत का आरं भ उसके
महात्म्य से होता है । जिसे सामान्य भाषा में संदेश(प्रोमो) कहते हैं। क्या बात हुई जो भागवत लिखनी पड़ी? महर्षि वेदव्यास जिनका
नाम कृष्णद्वेपायन है । ब्रह्माजी ने जब वेद रचे तो उनको सौंप दिए। व्यासजी ने वेदों का संपादन किया। चार वेद उन्होंने बनाए
ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्वेद और सामवेद। फिर व्यासजी ने 18 परु ाण लिखे। फिर व्यासजी ने महाभारत की रचना की, जिसको कहते हैं
पंचम वेद। ऐसी अद्भत
ु रचना की कि महाभारत को पढऩे के बाद सारे संसार ने ये तय कर लिया कि जो कुछ भी इस महाभारत में है वो
सारा संसार में है और जो इसमें नहीं है वह संसार में नहीं है ।
अर्थात जो जगत की उत्पत्ति और विनाश के लिए है तथा जो तीनों प्रकार के ताप के नाशकर्ता हैं ऐसे सच्चिदानंद स्वरूप भगवान
कृष्ण को हम सब वंदन करते हैं। सत यानी सत्य, परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग है । चित्त, जो स्वयं प्रकाश है । आनंद-आत्मबोध।
शास्त्रों में परमात्मा के तीन स्वरूप कहे गए हैं सत, चित और आनंद। सत प्रकट रूप से सर्वत्र है । जड़ वस्तओ
ु ं में सत तथा चित है किं तु
आनंद नहीं। जीव में सत और चित प्रकटता है पर आनंद अप्रकट रहता है अर्थात अप्रकट रूप से विराजमान अवश्य है । वह अव्यक्त
रूप से है । वैसे आनंद अपने अन्दर ही है । फिर भी मनष्ु य आनंद को बाहर खोजता है । इस आनंद को जीवन में किस प्रकार प्रकट करें
यही भागवत शास्त्र हमें बताता है । आनंद के अनेक प्रकार तैतरीय उपनिषद् में बताए गए हैं परं तु इनमें से दो मख्
ु य हैं पहला
साधनजन्य आनंद और दस
ू रा है स्वयंसिद्ध आनंद। जिसका ज्ञान नित्य टिकता है उसे ही आनंद मिलता है वही आनंदमय होता है ।
जीव को यदि आनंद रूप होना हो तो उसे सच्चिदानंद के आश्रय होना पड़ेगा । भागवत कहती है मेरे लिए कुछ भी नहीं छोडऩा है । वेद,
त्याग का उपदे श करते हैं, शास्त्र कहते हैं काम छोड़ो, क्रोध छोड़ो, परं तु मनष्ु य कुछ नहीं छोड़ सकता । संसार में फंसे जीव उपनिषदों के
ज्ञान को पचा नहीं सकते । इन सब बातों का विचार करके भगवान व्यासजी ने श्रीमद्भागवत शास्त्र की रचना की है । क्रमशः...
ये पहला श्लोक है भागवत का। प्रथम श्लोक का प्रथम शब्द है सच्चिदानंदरूपाय। भागवत आरं भ हो रहा है और भागवत ने घोषणा की
सत, चित और आनंद। भगवान के तीन रूप हैं सच्चिदानंद रूपाय सत, चित और आनंद। भगवान के रूप को प्रकट किया। भगवान
तक पहुंचने के तीन मार्ग है सत, चित और आनंद। इन तीन रास्तों से आप भगवान तक पहुंच सकते हैं। आप दे खना चाहें भगवान का
स्वरूप क्या है तो भगवान चतुर्भुज रूप में प्रकट नहीं होंगे। भगवान का पहला स्वरूप है सत्य। जिस दिन आपके जीवन में सत्य घटने
लगे आप समझ लीजिए आपकी परमात्मा से निकटता हो गई। सत भगवान का पहला स्वरूप है फिर कहते हैं चित स्वयं के भीतर के
प्रकाश को आत्मप्रबोध को प्राप्त करिए। फिर है आनंद। दे खिए सत और चित तो सब में होता है पर आपमें जो है उसे प्रकट होना पड़ता
है । वैसे तो आनंद हमारा मल
ू स्वभाव है पर हमको आनंद निकालना पड़ता है मनष्ु य का मल
ू स्वभाव है आनंद फिर भी इसके लिए
प्रयास करना पड़ता है ।सत, चित, आनंद के माध्यम से भागवत में प्रवेश करें । यहां भागवत एक और सुंदर बात कहती है भागवत की
एक बड़ी प्यारी शर्त है कि मुझे पाने के लिए, मुझ तक पहुंचने के लिए या मुझे अपने जीवन में उतारने के लिए कुछ भी छोडऩा
आवश्यक नहीं है । ये भागवत की बड़ी मौलिक घोषणा है । इसीलिए ये ग्रंथ बड़ा महान है । भागवत कहती है मेरे लिए कुछ छोडऩा मत
आप। संसार छोडऩे की जरूरत नहीं है । कई लोग घरबार छोड़कर, दनि
ु यादारी छोड़कर पहाड़ पर चले गए, तीर्थ पर चले गए, एकांत में
चले गए तो भागवत कहती है उससे कुछ होना नहीं है । मामला प्रवत्ति
ृ का है । प्रवत्ति
ृ अगर भीतर बैठी हुई है तो भीतर रहे या जंगल में
रहें बराबर परिणाम मिलना है । क्रमश:...
भागवत-7: सबका उद्धार करती है भागवत
भागवत कहती है कि योगियों को जो आनंद समाधि में मिलता है , गह
ृ स्थों को वही आनंद घर में बैठकर भागवत से मिल सकता है । ये
भागवत की मौलिक घोषणा है ।भागवत ने बोला आपसे घर नहीं छूटता तो कोई बड़ा भारी काम करने की आवश्यकता नहीं। घर में रहें ,
संसार में रहें । घर में रहना कोई बुरा नहीं है । हां हमारे भीतर घर रहने लगे वहां से झंझट चालू होती है । भागवत इस अंतर को बताएगी
कि क्या फर्क है संसार में रहने में और संसार अपने भीतर रहने में । इसलिए भागवत ने कहा है कुछ छोडऩे की आवश्यकता नहीं, मेरे
साथ रहो। ऐसे कई प्रसंग आएंगे कि भागवत ये साबित कर दे गी कि यहीं स्वर्ग है और यहीं नर्क है । ये तो हम ही लोग हैं जो इसको नर्क
बनाए जा रहे हैं।इस भागवत शास्त्र की रचना कलयुग के जीवों के उद्धार के लिए की गई है । श्रीमद्भागवत में एक नवीन मार्गदर्शन
कराया गया है । घर में रहकर भी आप भगवान को प्रसन्न कर सकते हैं, प्राप्त कर सकते हैं परं तु आपका प्रत्येक व्यवहार भक्तिमय हो
जाना चाहिए। गोपियों का प्रत्येक व्यवहार भक्तिमय बन गया था। भागवत में कहा है घर में रहो, अपने स्वभाव में रहो और संसार में
फिर परमात्मा को प्राप्त कर सकते है । घर में रहें या बाहर अपनों से मिलें या परायों से। लेकिन जरा मुस्कुराइए...
क्रमश...
भागवत-9: तीनों दख
ु ों का नाश करते हैं श्रीकृष्ण
तीन तरह के ताप का विनाश करने वाले है श्रीकृष्ण। भागवत के पहले श्लोक में ये बताया गया है । सच्चिदानन्दरूपाय
विश्वोत्पत्त्यादिहे तवे। तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नम
ु :।। तापत्रय अर्थात आध्यात्मिक, आधिदै विक, आधिभौतिक तीन तरह के
द:ु ख होते हैं इंसान को। भागवत कितना सावधान ग्रंथ है । पापत्रयविनाशाये नहीं लिखा तापत्रयविनाशाय लिखा। पाप आता है चला
जाता है । यदि आदमी पश्चाताप कर ले। लेकिन पाप का परिणाम क्या है ताप। पाप अपने पीछे ताप छोड़कर जाता है । आदमी को पता
नहीं लगता इसी को संताप कहते हैं। लिखा है आध्यात्मिक आदिदै विक, अदिभौतिक तीनों प्रकार के पापों को नाश करने वाले भगवान
श्रीकृष्ण की हम वंदना करते हैं। अनेक लोगों को मन में यह प्रश्न उठता है कि वंदना करने से क्या लाभ है ? वंदना करने से पाप जलते
हैं। श्रीराधा व कृष्ण की वंदना करें गे तो हमारे सारे पाप नष्ट होंगे। परं तु वंदना केवल शरीर से नहीं मन से भी करना पड़ेगी। अत: ईश्वर
वंदनीय है । वंदना करने का अर्थ है अपनी क्रियाशक्ति को और बद्धि
ु शक्ति को श्रीभगवान को अर्पित करना।
वंदन करने से अभिमान का बोझ कम होता है । श्रीभागवत का आरं भ ही वंदना से किया गया है । और वंदना से समाप्ति की गई है । संत
महात्मा कहते हैं कि ये जो 'श्रीकृष्ण' शब्द लिखा है इसमें जो ये 'श्री' है यह राधाजी का प्रतीक है । राधाजी को 'श्री' भी कहा गया है ।
विद्वानों का प्रश्न है और शोध का विषय भी है बड़ी चर्चा होती है इसकी लोग हमसे भी प्रश्न पछ
ू ते हैं कि भागवत में राधाजी की चर्चा
नहीं आती? पूरे भागवत में राधाजी का नाम ही नहीं है । नायक कृष्ण और राधा का नाम नहीं। लोगों को बड़ा आश्चर्य होता है कि
वेदव्यासजी ने क्या सोचकर राधाजी का नाम नहीं लिखा। जबकि राधा के बिना कुछ नहीं हो सकता।
ऋग्वेदी शौनक ने पूछा- सूतजी बताएं शुकदे वजी ने परीक्षित को, गोकर्ण ने धुंधकारी को, सनकादि ने नारद को कथा किस-किस समय
सुनाई ? समयकाल बताएं। सूतजी बोले- भगवान के स्वधामगमन के बाद कलयुग के 30 वर्ष से कुछ अधिक बीतने पर भ्राद्रपद शुक्ल
नवमी को शक
ु दे वजी ने कथा आरं भ की थी, परीक्षित के लिए। राजा परीक्षित के सन
ु ने के बाद कलयग
ु के 200 वर्ष बीत जाने के बाद
आषाढ़ शुक्ला नवमी से गोकर्ण ने धुंधुकारी को भागवत सुनाई थी। फिर कलयुग के 30 वर्ष और बीतने पर कार्तिक शुक्ल नवमी से
सनकादि ने कथा आरं भ की थी। सूतजी ने जो कथा शौनकादि को सुनाई वह हम सुन रहे हैं व पढ़ रहे हैं। जब शुकदे वजी परीक्षित को
सन
ु ा रहे थे तब सत
ू जी वहां बैठे थे तथा कथा सन
ु रहे थे। भागवत के विषय में प्रसिद्ध है कि यह वेद उपनिषदों के मंथन से निकला सार
रूप ऐसा नवनीत है जो कि वेद और उपनिषद से भी अधिक उपयोगी है । यह भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का पोषक तत्व है । इसकी कथा
से न केवल जीवन का उद्धार होता है अपितु इससे मोक्ष भी प्राप्त होता है । जो कोई भी विधिपूर्वक इस कथा को श्रद्धा से श्रवण करते हैं
उन्हें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार फलों की प्राप्ति होती है । कलयुग में तो श्रीमद्भागवत महापुराण का बड़ा महत्व माना गया है ।
इसी के साथ ग्रंथकार ने भागवत का महात्म्य का समापन किया है ।क्रमश:...