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​भारतीय इ तहास म व मा द य

-अ ण कुमार उपा याय, भव ु ने वर (मो.) ९४३७०३४१७२ arunupadhyay30@yahoo.in


सारांश-महाभारत के बाद राजा यु धि ठर तथा ३१०२ ई.प.ू म भगवान ् कृ ण के दे हा त के बाद क लयग ु म भारतीय
इ तहास म सबसे मह वपण ू ह उ जैन के परमार वंशी राजा व मा द य। इनके वारा ५७ ई.प.ू म आर भ कया
हुआ व म संवत ् आज भी सभी भारतीय पव का आधार है । उनके पौ शा लवाहन का ७८ ई. का शक आज भी
यो तषीय गणना का आधार है । पर इसके व क को वदे शी शक राजा क न क कहा गया जो वा तव म क मीर
के गोन द वंश का राजा १२९२ ई.प.ू म था। अभी भारत म िजतने भी परु ाण, म ृ त थ, जैन आगम आ द
उपल ध ह वे सभी व मा द य काल के ह ह। अतः अं ेज ने भारतीय स यता को न ट करने के लये
व मा द य के अि त व को नकार दया। उनके संवत ् का चलन ब द करने के लये तथाक थत रा य शक
स वत ् १९५७ म आर भ कया। पर इसे चलाने वाले इतने मख ू और मान सक गल ु ाम थे क वे शक और स वत ् का
अथ भी नह ं जानते थे, और आज तक इसका योग वयं सरकार या लोग वारा नह ं हो पाया है । ५७ ई.प.ू से
मालवा के भोज राजा तथा द ल के प ृ वीराज चौहान तक १२०० ई. तक इसी वंश का शासन था। भगवान ् राम
तथा कृ ण के बाद सबसे अ धक सा ह य व मा द य के बारे म ह उपल ध है , पर नकल व वान ् कहते ह क
उसके बारे म कोई सा ह य नह ं है । ायः सभी ाचीन सा ह य उनके नवर न वारा ह है । गु तवंश के च गु त
वतीय को नकल व मा द य बनाया गया है िजसका अभी तक कोई भी शलालेख या सा ह य नह ं मला है ।
अ धकांश ाचीन मारक जैसे अयो या का राम ज मभू म मि दर या ४ थान पर ६४ यो गनी मि दर
व मा द य काल के ह ह। अं ेज का मु य उ दे य भारतीय इ तहास को न ट करना था, िजसके लये
व मा द य का इ तहास न ट करना सबसे ज र था। भारतीय छा को व वास दलाने के लये क वे सचमच ु
इ तहास लख रहे ह, इ तहास रचना का वषय पढ़ाया गया। य द अं ेज इ तहास लखना जानते तो आने दे श का
भी लख सकते थे।
१. भू मका-भारत क ह नता तथा आ ामक लट ु े र क महानता दखाने के लये कई झठ ू बात का चार कया
गया है । यह स दे ह हो सकता है क इनके कारण गल ु ामी हुई या गल
ु ामी के कारण यह चार हुआ।
(१) लट ु े र ने भारत को श त और स य बनाने के लये इस पर शासन कया। इसके वपर त मेगा थनीज ने
लखा है क भारत ने कसी दे श पर आ मण नह ं कया य क यह सदा से अ न और अ य चीज म आ म नभर
था।
(२) चार होता है क भारत म व ान क पर परा सक दर के आ मण से आर भ हुई। य द लट ू मार तथा ह या
से व ान क श ा स भव थी, तो व व व यालय य बनाये गये? ीक लेखक ने सक दर तथा उसके पव ू
बा कस आ मन क त थयां ६७७७ तथा ३२६ ई.प.ू दे ने के लये भी भारतीय कैले डर का ह योग कया है ।
पा चा य जगत ् म जु लयस सीजर के ४६ ई.प.ू के पहले कोई कैले डर नह ं था, िजससे त थ द जा सके।
(३) चार हुआ क परु ाण तथा अ य भारतीय सा ह य म या ह तथा मिु लम शासन के बाद लखे गये ह। पर
हे रोडोटस आ द लेकक क झठ ू क पनाओं को वै ा नक कहा जाता है -जैसे सोने क खद ु ाई करने वाल चीं टयां,
एक आंख वाल जा त तथा पा य ि य वारा ६ वष म ब चे पैदा करना।
(४) भारतीय को इ तहास का ान नह ं था, वे त थ नह ं दे ते थे। यह स ध करने के लये िजतने ता प मलते
थे उनके मैसरू ऐि टकुअर म काशन के पव ू उनका त थ भाग न ट कया जाता था। राज थान म राजाओं क
िजतनी वंशावल मल ं उनको कनल टाड वारा न ट कया गया, िजससेउनको वदे शी हूण का वंशज स ध कया
जा सके। मेवाड़ के ब पा रावल के सभी लेख न ट कये गये-केवल रांआ कु भकण संह वारा गीत गो वद क
ट का क भू मका से पता चला क ब पा रावल ा मण थे, हूण नह ं। जो भारतीय महापु ष बच गये उनको सन ु ीत
कुमार चटज जैसे अं ेज भ त अपने गांव या रा य का स ध करने म लगे रहे ।
वकृ त-इन चार के कारण इ तहास म कई वकृ त हुयीं-
(१) कसी इ तहासकार को भारतीय कालगणना का पता नह ं है । अब यो तषी भी शक और स वत ् का अथ भल ू
चक ु े ह।
(२) भारतीय लेखक को लगता है ीक लेखक ने ह सव थम त थ द ।ं ीस म या कसी शक राजा ने कोई
कैले डर अपने ह रा य म आर भ नह ं कया था। वे त थ कैसे दे सकते थे? या कैसे लख सकते थे क सक दर
आ मण के ३२६ वष बाद इसवी सन ् शु होने वाला है ।
(३) कसी इ तहासकार को पता नह ं है क मौय, गु त राजाओं का काल म कहां से आया। उनको लगता है क
कसी शलालेख म अशोक आ द ने लखा था क म ३६ वष रा य के बाद मर गया और मेरे बाद इन वंशज ने इतने
इतने समय शासन कया।
(४) परु ाण और भारतीय पर पराओं क न दा करने वाले सं थाओं को य दया गया िजससे पता नह ं चले क
वह ं से इ तहास लया गया है , पर उनक कालगणना, भग ू ोल आ द न ट कर।
(५) िजस कसी राजा ने अपना कैले डर शु कया उसे का प नक घो षत कया िजससे काल म का पता नह ं
चले।
(६) िजस राजा ने भी वदे शय को परािजत कया उसे का प नक बनाया। या जो भी महान ् राजा हो वह ह द ू नह ं
हो सकता-अतः अशोक को बौ ध या खारावेल को जैन बनाया। बौ ध थ के अनसु ार क लंग वजय के बाद
अशोक ने १२,००० जैन साधओ ु ं क ह या क । पर चार हु आ क वह हं
स ा का याग करने के लये बौ ध हो गया
मान वै दक या जैन मत के लोग हंसक थे। खारावेल ने रा य के ११व वष म राजसय ू य कया, पर उसे जैन
बनाया गया है ।
(७) १७५० ई. तक अं ेज भारत को चतु कोण लखते रहे । जब क भारत के सभी परु ाण आ द म इसे उलटा कोण
कहा गया है । भारत म अ ांश दे शा तर क प ध त बहुत ाचीन कालसे थी िजससे १५८० म यरू ोपीय लोग ने
सीखा। पर यह चार हुआ क भारतीय लोग प ृ वी का गोल आकार नह ं जानते थे। बना गोल आकार के अ ांश
दे शा तर का कोई अथ नह ं होता।
(८) व मा द य काल के वराह म हर तथा मगु त ने अपने थ म जो त थ द है उसका अथ नकाला जाता
है क वह शा लवाहन शक म है जो उनक म ृ यु के बाद च लत हुआ था।
(९) वेद म वह अनस ु धान ठ क माना गया िजससे स ध हो क ऋ ष केवल गोमांस खाते थे।
(१०) भारत पर असी रया राजाओं के आ मण ८००-६१२ ई.प.ू म न फल कये गये तथा असी रया को परू तरह
व त कया गया, पर चार हुआ क उस काल म भारत म रा य यव था नह ं थी। िजस मालव गण ने यह कया
उसका इ तहास परू तरह मटा दया।
(११) भारतीय काल म को बहुत पीछे हटाया फ़या िजससे इसे हर े म म या ीक स यता क नकल कह
सक। इसके लये १८८७ ई. क मेगा थनीज क इि डका के वानबेक सं करण म भी १९२७ म मैक डल वारा
हे र फेर कया गया। मल ू म लखा था भारतीय लोग ने पचले १५००० वष से कसी दे श पर आ मण नह ं कया
य क वह वावल बी था। इससे भारतीय स यता परु ानी लगती थी, अतः उसम १ शू य कम कर मै समल ू र ने
१५०० ई.प.ू म वै दक स यता का आर भ घो षत कर दया। जालसाजी के बाद इसे मटा कर लखा क भारतीय
कायर थे, अतः कभी आ मण नह ं करते थे।
(१२) बा कस से सक दर आ मण तक भारतीय राजाओं क १५४ पीढ़ गु त काल के च गु त तक थी िजसके
पता घटो कच के नाम का अनव ु द नाई कया गया है । पर १३०० वष के मौय च गु त को उसका समकाल न
कया गया। इसी कार ७८ ई. म शा लवाहन के शक को शक जा त का मान कर उसे १३०० वष पव ू के क मीर के
राजा क न क से जोड़ दया तथा उसे वदे शी बना दया।
२, व मा द य स ब धी सा ह य-(१) भ व य परु ाण के १५ अ याय।
(२) कथा स रतसागर, बह ृ त ् कथा, बेताल पचीसी (प च वंश त), संहासन ब ीसी।
(३) साहसा क च रत ३ ख ड म।
(४) अं ेज वारा जलाने के बाद बची हुआ परमार राजाओं क वंशावल ।
(५) पारसी इ तहासकार अल ब नी, अकबर के दरबार अबल ु फजल वारा व मा द य का वणन। इसके अनस ु ार
अकबर ने व मा द य क नकल कर नवर न रखे, द न इलाह संवत ् शु कया, जमीन के नकशे बनवाये, नया
परु ाण लखवाने क चे टा क ।
नकल व मा द य के सा ह य-(१) दे वी च गु त नाटक के अवशेष-से यक ू स को समु गु त काल म च गु त
वारा परािजत करने का उ लेख। उसी के वषय म समु गु त वारा याग का त भ लेख भी है , पर इसका काल
८०० वष बाद का कर दया है , जब भारत पर कोई आ मण नह ं हुआ था।
(२) वकाटक (पि चमी ओ ड़शा) क रानी भावती दे वी के लेख म अपने पव ू ज घटो कच गु त से समु गु त तक क
शंसा है , च गु त वतीय का उ लेख भी नह ं है ।
(३) द ल के नकट मेहरौल के लौह त भ पर केवल च लखा हुआ है य क यह ीहष (४५६ ई.प.ू ) म च
क सबसे उ र के थान पर था जब व णु वज (बाद का नाम कुतब ु मीनार) बना था। इसे बना कारण च गु त
वतीय मान लया है जब क १ मौय तथा २ गु त काल के च गु त म कसी क भी राजधानी द ल नह ं थी।
३. भारतीय प चा ग- व मा द य ने कस कारण और कैसे अपना स व सर आर भ कया इसे समझने के लये
भारत म शक और स वत ् पर परा समझना ज र है ।
शक और स व सर-सभी त चा त थ से होते ह य क च मा मन का कारक है (च मा मनसो जातः-पु ष
सू त, ७)। इसके अनस ु ार समाज चलता है , अतः त थ गणना स व सर (समवत ् सर त) है । पर चा त थ दन
से कुछ छोट है अतः कई त थ लु त या य हो जाती है । अतः दनके हसाब के लये सय ू दय से आगामी सय ू दय
तक के दन क गणना करनी पड़ती है िजसे शक कहते ह।
शक कसी न द ट काल से दन क गणना है । १ क गनती को कुश वारा कट कया जाता है । इनका समह ू
शि तशाल हो जाता है , अतः इसे शक (समु चय) कहते ह। कुश आकार के बड़े व ृ भी शक ह, जैसे उ र भारत म
सखआ ु (साल) तथा द ण म शक-वन (सागवान)। म य ए शया तथा पव ू यरू ोप क बखर जा तयां भी शक थीं।
पर यह ज बू वीप का अंश था। शक वीप भारत के द ण पव ू म कहा गया है । यह आ े लया है , जहां शक
आकार के यक ू ल टस व ृ बहुत ह। भारत म हमालय का द णी भाग ह शक (साल) े है , जहां ज म होने के
कारण स धाथ बु ध को शा यमु न कहते थे। पर गोरखपरु से द ण पि चम ओ ड़शा तक साल व ृ का े
चला गया है िजसके द णी छोर पर राम ने ७ साल व ृ को भेदा था। यह भारत का लघु शक वीप है , जहां के
ा मण शाक वीपीय कहलाते ह।
चा और सौर वष का सम वय स व सर है । ऋतु से सम वय के लये उसे सौर वष के साथ मलाया जाता है ।
इसके अनस ु ार समाज चलता है , अतः इसे स व सर कहते ह। स व सर के अ य कई अथ भी ह-(१) प ृ वी क ा,
(२) सौर म डल जहां तक सय ू काश १ स व सर म जाता है -१ काश वष या का गोला। (३) गु वष जो ायः
सौर वष के समान है । (४) वेदा ग यो तष के ५ कार के व सर म जो सौर वष के सबसे नकट होता है उसे
स व सर कहते ह।
(१) वाय भव ु मनु काल- वाय भव ु मनु काल म स भवतः आज के यो तषीय यग ु नह ं थे। यह यव था
वैव वत मनु के काल से आर भ हुयी अतः उनसे स ययग ु का आर भ हुआ। य द मा से आर भ होता तो मा
आ य त े ा म नह ं, स य यग ु के आर भ म होते। अथवा स ययग ु पहले आर भ हो गया, पर स यता का वकास
काल त े ा कहा गया। मा क यग ु यव था म यग ु पाद समान काल के थे जैसा ऐतरे य ा मण के ४ वष य गोपद
यग ु म या वाय भव ु पर परा के आयभट का यग ु है । वष का आर भ अ भिजत ् न से होता था, िजसे बाद म
का केय ने ध न ठा न से आर भ कया। का केय काल म (१५८०० ई.प.ू ) यह वषा काल था। वाय भव ु मनु
काल म यह उ रायण का आर भ था। क तु दोन यव थाओं म माघ मास से ह वष का आर भ होता था। मास
का नाम पू णमा के दन च मा के न से था, जो आज भी चल रहा है । मास का आर भ दोन कार से
था-अमावा या से या पू णमा से। यह अयन ग त के अ तर के कारण बदलता होगा जैसा व मा द य ने महाभारत
के ३००० वष बाद शु ल प के बदले कृ ण प से मासार भ कर दया। दन का आर भ भी कई कार से था जैसा
आज है ।
मा के काल म सौर ऋतु वष क भी गणना थी। इसम सय ू क उ रायण-द णायन ग तय के योग से वष होता
था। वषव ु के उ र तथा द ण ३-३ वी थय म सय ू १-१ मास रहता था। वषव ु के उ र तथा द ण म १२, २०, २४
अंश के अ ांश व ृ से ये वी थयां बनती थीं। ३४० उ र अ ांश का दनमान सय ू क इन रे खाओं पर ि थ त के
अनस ु ार ८ से १६ घ टा तक होगा। अतः द ण से इन व ृ को गाय ी (६ x ४ अ र) से जगती छ द (१२ x ४
अ र) तक का नाम दया गया। यह नीचे के च से प ट है । इसक चचा ऋ वेद (१/१६४/१-३, १२, १३,
१/११५/३, ७/५३/२, १०/१३०/४), अथव वेद (८/५/१९-२०), वायु परु ाण, अ याय २, मा ड परु ाण अ. (१/२२), व णु
परु ाण (अ. २/८-१०) आ द म है । इनके आधार पर पं. मधस ु द
ू न ओझा ने आवरणवाद म इसक या या क है
( लोक १२३-१३२)। बाइ बल के इ थओ पयन सं करण म इनोक क पु तक के अ याय ८२ म भी यह वणन है ।
(२) व ु प चा ग- व ु को वाय भव ु मनु का पौ कहा गया है , क तु उनम कुछ अ धक अ तर होगा। भागवत,
व णु परु ाण के अनस ु ार वु को परम पद मला तथा उनके चार तरफ स त ष मण से काल गणना शु हुई। उस
काल से ८१०० वष का व ु संव सर शु हुआ िजसका तीसरा च ३०७६ ई.प.ू म पण ू हुआ। व ु काल ३ x ८१०० +
३०७६ = २७,३७६ ई.पू हुआ। कंु वरलाल जैन ने अपण ू वंशावल के आधार पर पथ ृ ु तक क काल गणना क है ।
संव सर के अनस ु ार इसके २ आधार हो सकते ह- वाय भव ु से वैव वत मनु तक के काल को ६ भाग म बांटने पर
१-१ म व तर का काल आयेगा। यह ायः १५,२००/६ = २५३४ वष होगा। यह स त ष व सर के नकट है , अतः
२७०० वष का स त ष च तथा उसका ३ गण ु ा व ु वष लेना अ धक उ चत है । व ु काल के वणन म ायः २७००
वष का लघ-ु म व तर तथा ८१०० वष का क प हो सकता है । १९२७६ ई.प.ू म ौ च वीप का भु व था िजस पर
बाद म का केय ने आ मण कया।
(३) क यप-१७५०० ई.प.ू म दे व-असरु क स यता आर भ हुई। तथा राजा पथ ृ ु काल म पवतीय े को समतल
बना कर खेती, नगर नमाण आ द हुये। ख नज का दोहन हुआ। इन काल म नया यग ु आर भ हुआ पर उनका
प चा ग प ट नह ं है । उसकाल म पन ु वसु न म वषवु सं ाि त से वष आर भ होता था, अतः इसका दे वता
अ द त (क यप प नी) कहा गया है । शाि त पाठ म ’अ द तजातम ्, अ द तज न वम ्’ का अथ है पन ु वसु से परु ाना
वष समा त तथा नया आर भ हुआ। (ऋ वेद १/८९/१०, अथव ७/६/१, वाजसने य सं. २५/२३, मै ायणी सं. ४/२४/४)
(४) का केय प चा ग-प ृ वी के उ र व ु क दशा अ भिजत ् से हट गयी थी, अतः १५,८०० ई.प.ू म का केय ने
ब मा क सलाह से ध न ठा से वष आर भ कया जो वेदा ग यो तष म चलता है ।
ऋग ् यो तष (३२, ५,६) याजष ु यो तष (५-७)
माघशु ल प न य पौषकृ ण समा पनः। यग ु य प चवष य काल ानं च ते॥५॥
वरा मेते सोमाक यदा साकं सवासवौ। या दा द यग ु ं माघः तपः शु लोऽयनं यद ु क् ॥६॥
प येते व ठादौ सय ू ाच मसावद ु क् । सापाध द णाक तु माघ वणयोः सदा॥७॥
ायः १६००० ईसा पव ू म अ भिजत ् न से उ र व ु दरू हो गया िजसे उसका पतन कहा गया है । तब इ ने
का केय से कहा क मा से वमश कर काल नणय कर-
महाभारत, वन पव (२३०/८-१०)-
अ भिजत ् पधमाना तु रो ह या अनज ु ा वसा। इ छ ती ये ठतां दे वी तप त तंु वनं गता॥८॥
त मढ ू ोऽि म भ ं ते न ं गगना यत ु म ्। कालं ि वमं परं क द मणा सह च तय॥९॥
ध न ठा द तदा कालो मणा प रकि पतः। रो हणी यभवत ् पव ू मेवं सं या समाभवत ्॥१०॥
उस काल म ध न ठा म सय ू के वेश के समय वषा का आर भ होता था, जब द णायन आर भ होता था।
का केय के पव ू असरु का भु व था, अतः द णायन को असरु का दन कहा गया है -
सय ू स धा त, अ याय १-मासै वादश भवष द यं तदह उ यते॥१३॥
सरु ासरु ाणाम यो यमहोरा ं वपययात ्। ष षि टस गण ु ं द यं वषमासरु मेव च॥१४॥
(​ ५) वव वान ् प चा ग-यह वैव वत मनु के पता थे अतः इनका भी काल १३९०२ ई.प.ू माना जा सकता है ,
िजसके बाद १२००० वष का अवस पणी-उ स पणी च तथा चै शु ल से वष आर भ हुये। इसके बाद सय ू
स धा त के कई संशोधन हुये। मयासरु का संशोधन जल लय के बाद स ययग ु समाि त के अ प (१२१ वष) बाद
रोमकप न म हुआ।
सय ू स धा त थम अ याय-अ पाव श टे तु कृते मयो नाम महासरु ः। रह यं परमं पु यं
िज ासु ानमु मम ्॥२॥
वेदा गम य खलं यो तषां ग तकारणम ्। आराधयि वव व तं तप तेपे सद ु ु करम ्॥३॥
त मात ् वं वां परु ं ग छ त ानम ् ददा म ते। रोमके नगरे मशापान ् ले छावतार धक ृ ् ॥ (पन ू ा, आन दा म
त)
शा मा यं तदे वेदं य पव ू ाह भा करः। यग ु ानां प रवतन कालभेदोऽ केवलम ्॥९॥
(६) इ वाकु काल से भी काल गणना आर भ हुई थी। महा लंगम के अनस ु ार उनका काल १-११-८५७६ ई.प.ू चै
शु ल तपदा से हुआ। यह तंजाउर के मि दर क गणना के आधार पर है ।
(७) परशरु ाम प चा ग-६१७७ ई.प.ू -परशरु ाम के नधन पर कल ब (को लम ्) स वत ्। इसका अ य माण है क
मेगा थनीज ने सक दर से ६४५१ वष ३ मास पव ू अथात ् ६७७७ ई.प.ू अ ल ै मास म डायो नसस का भारत
आ मण लखा है िजसम परु ाण के अनस ु ार स य
ू वं
श ी राजा बाह ु मारा गया थ। उससे १५ पीढ़ बाद हरकुलस
( व ण)ु का ज म हुआ। इस काल के व णु अवतार परशरु ाम थे। उनका काल ायः ६०० वष बाद आता है जो १५
पीढ़ का काल है । मयासरु के ३०४४ वष बाद ऋतु १.५ मास पीछे खसक गया था अतः नये स वत ् का चलन
हुआ।
(८) क ल के प चा ग-राम का ज म ११-२-४४३३ ई.प.ू म हुआ था पर उस काल के कसी प चा ग का उ लेख नह ं
है । परशरु ाम के ३००० वष बाद क लयग ु आर भ म ह नये प चा ग क आव यकता हुयी। यु धि ठर काल म ४
कार के प चा ग हुये-(क) यु धि ठर शक-यह उनके रा या भषेक के दन १७-१२-३१३९ ई.प.ू से हुआ। उसके ५
दन बाद उ रायण माघशु ल स तमी को हुआ। अतः अ भषेक तपदा या वतीया को था। (ख) क ल
स वत ्-शासन के ३६ वष से कुछ अ धक बीतने पर १७-२-३१०२ ई.प.ू उ जैन म यरा से क लयग ु आर भ हुआ
जब भगवान ् कृ ण का दे हा त हुआ। उसके २ दन २-२७-३० घं. म.से. बाद २०-२-३१०२ ई.पू २-२७-३० घं. म.से. से
चै शु ल तपदा आर भ हुआ। (ग) जया यद ु य शक-भगवान ् कृ ण के दे हा त के ६ मास ११ दन बाद
२२-८-३१०२ ई.प.ू को जब वजय के बाद जय स व सर आर भ हुआ, तो यु धि ठर ने अ यद ु य के लये स यास
लया। यह पर त शासन से आर भ होता है तथा जनमेजय ने इसी का योग अपने दान-प म कया है । (घ)
क ल के २५ वष बीतने पर क मीर म यु धि ठर का दे हा त हुआ जब स त ष मघा से नकले। उस समय (३०७६
ई.प.ू मेष सं ाि त) से लौ कक या स त ष स व सर आर भ हुआ जो क मीर म च लत था तथा राजतर गणी
म यु त है ।
(९) भटा द-आयभट काल से केरल म भटा द च लत था। महाभारत काल म २ कार के स धा त च लत थे।
पराशर मथ तथा आय मत (​ आयभट-२ का महा स धा त, २/१-२)। यहां पराशर मत व णप ु रु ाण म है जो मै य

ऋ ष ने पराशर को ख ड १ तथा २ म कहा है । यह सय ू स धा त क पर परा म है , अतः ऋ ष को मै य े (म =
सय ू , सौर वष का थम मास, उ रायण से) कहा गया है । वतीय मत आय मत है जो वाय भव ु मनु क पर परा
से था। इसक पर परा म क ल के कुछ बाद (३६० वष) आयभट ने आयभट य लखा। वव वान ् या सय ू पता ह,
उनके पव ू के वाय भव ु मनु मा या पतामह ह। आज भी आय (अजा)का अथ पटना के नकट तथा ओ डशा
आ द म पतामह होता है ।
(१०) जैन यु धि ठर शक-िजन वजय महाका य का जैन यु धि ठर शक ५०४ यु धि ठर शक (२६३४ ई.प.ू ) म
आर भ होता है । इसके अनस ु ार कुमा रल भ ट का ज म ५५७ ई.प.ू (२०७७) ोधी स व सर (सौर मत) म तथा
शंकराचाय का नवाण ४७७ ई.प.ू (२१५७) रा स स व सर म कहा है । यह पा वनाथ का सं यास या नधन काल है ।
उनका सं यास पव ू नाम यु धि ठर रहा होगा या वे वैसे ह धमराज या तीथ कर थे। भगवान ् महावीर (ज म
११-३-१९०२ ई.प.ू ) म पा वनाथ का ह शक चल रहा था। यु धि ठर क ८ वीं पीढ़ म नच ु के शासन म हि तनापरु
डूब गया था- यह सर वती नद के सख ू ने का प रणाम था। उस समय १०० वष क अनाविृ ट कह गयी है जब
द ु भ रोकने के लये शता ी या शाक भर अवतार हुआ। दग ु ा-स तशती (११/४६-४९)
(११) शशन ु ाग काल-पाल बग डेट क पु तक बमा क बौ ध पर परा म बु ध नवाण से अजातश ु काल म एक
नये वष का आर भ कहा गया है (बम म इ यान = नवाण)। इसके १४८ वष पव ू अ य वष आर भ हुआ था िजसे
बम म कौजाद ( शशन ु ाग?) कहा है । ब ु ध नवाण (२७-३-१८०७ ई.प ू
. ) से १४८ वष पव
ू १९५४ ई.प.ू म शशन ु ाग का
शासन समा त हुआ।
(१२) न द शक-महाप मन द का अ भषेक सभी परु ाण का व यात कालमान है । यह पर त ज म के १५००
(१५०४) वष बाद हुआ था। इसम १५०० को पािजटर ने १०५० कर दया िजससे क ल आर भ को बाद का कया जा
सके।
(१३) शू क शक-यह ७५६ ई.प.ू म आर भ हुआ। जे स टाड ने सभी राजपत ू राजाओं को वदे शी शक मल ू का स ध
करने के लये उनक बहुत सी वंशाव लयां तथा ता प आ द न ट कये तथा राज थान कथा (Annals of
Rajsthan) म अि नवंशी राजाओं का काल थोड़ा बदल कर ायः ७२५ ई.प.ू कर दया।
का चय ु लाय भ ट- यो तष दपण-प क २२ (अनप ू सं कृत लाइ ेर , अजमेर एम ्.एस नं ४६७७)-
बाणाि ध गण ु द ोना (२३४५) शू का दा कलेगताः॥७१॥ गण ु ाि ध योम रामोना (३०४३) व मा दा कलेगताः॥
इस समय असरु (असी रया के नबोनासर आ द) आ मण को रोकने के लये ४ मख ु राजवंश का संघ आबू पवत
पर व णु अवतार बु ध क ेरणा से बना। इन राजाओं को अ णी होने के कारण अि नवंशी कहा गया-परमार,
तहार, चालु य तथा चाहमान। भ व य परु ाण, तसग पव (१/६/४५-४९) । ४ राजाओं का संघ होने के कारण यह
कृत संवत ् भी कहा जाता है तथा इ ाणीगु त को स मान के लये शू क कहा गया-शू ४ जा तय का सेवक है ।
(१४) चाहमान शक- द ल के चाहमान राजा ने ६१२ ईसा पव ू म असी रया क राजधानी ननेवे को परू तरह व त
कर दया, िजसका उ लेख बाइ बल म कई थान पर है । इसके न टक ा को स धु पव ू के मधेस (म यदे श,
व य तथा हमालय के बीच) का शासक कहा गया है ।
http://bible.tmtm.com/wiki/NINEVEH_%28Jewish_Encyclopedia%29-
The Aryan Medes, who had attained to organized power east and northeast of Nineveh,
repeatedly invaded Assyria proper, and in 607 succeeded in destroying the city
Media-From BibleWiki (Redirected from Medes)-They appear to have been a branch of the
Aryans, who came from the east bank of the Indus, …
इस समय जो शक आर भ हुआ उसका उ लेख वराह म हर क बह ृ त ् सं हता म है तथा का लदास, मगु त ने भी
इसी का पालन कया है । वराह म हर-बह ृ त ् सं हता (१३/३)-
आसन ् मघासु मन ु यः शास त प ृ वीं यु धि ठरे नप ृ तौ। ष - वक-प च- व (२५२६) यत ु ः शककाल त य रा य॥
(१५) वीर नवाण-िजन वजय महाका य के अनस ु ार जैन मु न कालकाचाय ने लु त जैन आगम का उ धार कया
था अतः उनको वीर कहते ह। उनके श य कुमा रल भ ट ने वै दक सा ह य का उ धार कया। अतः कालकाचाय
(५९९-५२७ ई.प.ू ) के नवाण ५२७ ई.प.ू से वीर स वत ् कहते ह। यह वीर स वत ् है , महावीर स वत ् नह ं।
(१६) ीहष शक (४५६ ईसा पव ू )-इसका उ लेख अलब न ने कया है । शू क के बाद ३०० वष तक मालवगण
चला-िजसे मेग थनीज ने ३०० वष का गणरा य कहा है । ल छवी तथा गु त राजाओं ने इसका योग कया है पर
इसे नर र इ तहासकार ने हषवधन (६०५-६४६ इ वी) से जोड़ दया है ।
(१७) व म संवत-५७ ् ईसा पव ू म उ जैन के परमार वंशी राजा व मा द य (८२ ईसा पव ू -१९ ई वी) ने आर भ
कया। उनका रा य (परो तः) अरब तक था तथा जु लअस सीजर के रा य म भी उनके संवत ् के ह अनस ु ार
सीजर के आदे श के ७ दन बाद व म वष १० के पौष कृ ण मास के साथ वष का आर भ हुआ।
History of the Calendar, by M.N. Saha and N. C. Lahiri (part C of the Report of The Calendar
Reforms Committee under Prof. M. N. Saha with Sri N.C. Lahiri as secretary in November
1952-Published by Council of Scientific & Industrial Research, Rafi Marg, New Delhi-110001,
1955, Second Edition 1992.
Page, 168-last para-“Caesar wanted to start the new year on the 25th December, the winter
solstice day. But people resisted that choice because a new moon was due on January 1, 45
BC. And some people considered that the new moon was lucky. Caesar had to go along with
them in their desire to start the new reckoning on a traditional lunar landmark.”
यहां बना गणना के मान लया गया है क वष आर भ के दन शु ल प का आर भ था, पर वह व म स वत ् के
पौष मास का आर भ था। केवल व म वष म ह चा मास का आर भ कृ ण प से होता है . बाक सभी शु ल
प से आर भ होते ह। इसी व मा द य के दरबार म का लदास, वराह म हर आ द ९ र न व यात थे। क लयग ु
के बाद ३००० वष म ऋतु च १.५ मास पीछे खसक गया था, य क प ृ वी अ २६००० वष म श कु आकार म
च लगाता है । अतः शु ल प के बदले कृ ण प से मास का आर भ हुआ पर अ धक मास क गणना के लये
शु ल प से ह मास आर भ मानते ह। इस यव था म चै मास का थम कृ ण प पछले वष म तथा शु ल
प नये वष म आता है । सी क नकल म इसी वष का थम मास जनवर कहा गया य क जानस ु दे वी का मह ंु
आगे-पीछे दोन दशाओं म होता है । सय ू स धा त गणना से अयनांश ( वषव ु सं ाि त तथा मेष के आर भ का
अ तर) २७ अंश तक ह होता है अतः इससे बढ़ने पर व म स वत ् के आर भ म पन ु ः इसे शू य कया गया। यह
प रवतन नह ं समझने के कारण व मा द य के नवर न का लदास के यो त वदाभरण (३०६८ क ल = व म वष
२४, इसा पव ू ३४) को जाल पु तक माना गया है य क इसक यतीपात गणना ११६४ शक या १२४२ ई. क
लगती है (श कर बालकृ ण द त, भारतीय यो तष, भाग २, प ृ ठ ३६३-अं ेजी अनव ु ाद)। पर इसी पु तक से
पता चलता है क का लदास ने इसके पव ू रघव ु श
ं आ द महाका य भी लखे थे, नह ं तो उन का य म का लदास का
कोई उ लेख नह ं है । मु य कारण है क इसम जु लयस सीजर को ब द बनाने क चचा है िजसे छपा कर इ तहास
न ट करने क चे टा यरू ोपीय लोग २००० वष से कर रहे ह।
(१८) शा लवाहन शक- व मा द य के दे हा त के बाद ५० वष तक भारत वदे शी आ मण का शकार रहा। तब
उनके पौ शा लवाहन ने उनको परािजत कर स धु के पि चम भगा दया। उनके काल म ाकृत भाषाओं का
योग राजकाय म आर भ हुआ। इनके काल म ईसा मसीह ने क मीर म शरण लया (हजरत बाल) ।
(१९) कलचु र या चे द शक (२४८ इसवी)
(२०) वलभी भंग (३१९ ई वी)-गु त राजाओं क परव शाखा गज ु रात के वलभी म शासन कर रह थी िजसका
अ त इस समय हुआ। नर र इ तहासकार इसके १ वष बाद गु त काल का आर भ कहते ह।
(२१) चालु य व म शक-१०७५ ई. म का क शु ल प से।
४. व मा द य को इ तहास से हटाने के कारण-
(१) इ तहास म जालसाजी-यरू ोप के इ तहासकार हे रोडोटस के समय से ह इ तहास म जालसाजी कर रहे थे। ान
का के ीस को स ध करने के लये सक दर ने केवल व व व यालय पर आ मण कर उनको न ट कया
था-इरान का प सपो लस, म का सक द रया तथा भारत का त शल जहां ीस के लोग पढ़ने आते थे।
अपोलो नयस ने लखा है क ीक व ान का ज मदाता भारत म पढ़ा था। वयं अपोलो नयस ठोस या म त
पढ़ने के लये पहले म गया था, पर वहां इसका कोई श क नह ं मलने के कारण उसे त शला आना पड़ा
(हावड ओ रए टल सीर ज-अपोलो नयस)। ह पाकस, यिु लड, टालेमी ने अपनी पु तक म लखा है क उनको
अ ययन के लये म जाना पड़ा था। क तु आजतक ऐसा कोई उदाहरण नह ं है क कोई भी यि त पढ़ने के
लये ीस गया हो। पहले तो वहां कोई व व तर का व यालय नह ं था, दस ू रे वह स य दे श नह ं था जहां कोई जा
सके। ीस म बाहर से वह जा सकता था िजसे वे अपहरण कर गल ु ाम के प म लाते थे।
http://www.sacred-texts.com/cla/aot/aot/aot04.htm
Apollonius of Tyana, by G.R.S. Mead, [1901], at sacred-texts.com
ईसा पव ू ३०० म सम ु े रया के इ तहासकार बेरोसस ने लखा है क हे रोडोटस आ द ीक लेकक को इ तहास का कोई
ान नह ं है ; वे केवल ीस क शंसा म झठ ू कहा नयां लखते रहते ह।
http://www.angelfire.com/nt/Gilgamesh/classic.html-
१००० ई. म पारसी इ तहासकर अल ब न ने लखा है क हर वजेता पराधीन जा तय क न दा तथा अपनी
शंसा के लये झठ ू ा इ तहास लखता है । (Al-Biruni-Chronology of Ancient Nations, page 44)
भारत म इ तहास क जालसाजी का काम व लयम जो स तथा ए रक पािजटर ने आर भ कया िजनके ’ याय’ के
अनस ु ार लगान वसल ू के लये बंगाल म १ करोड़ लोग क नमम ह या हुयी। इसक वणन बं कम च चटज के
आन द मठ तथा टश संसद क रपोट म भी है । १८३१ म भारत का झठ ू ा इ तहास लखने के लये औ सफोड
व व व यालय म बोडेन पीठ था पत हुआ (घो षत उ दे य)। जालसाजी म मै समल ू र, रौथ, मैकडोनेल, क थ,
वेबर, यरू आ द अं ेज तथा भाड़े के जमन लेखक का मु य योगदान है िज ह ने अपनी पु तक म प ट प से
घो षत कया है क भारत क वै दक स यता न ट करना उनका मु य उ दे य है । इसम उनके दलाल राधाकृ णन
आ द का भी यग ू दान है िजसके लये उनको टश शासन तथा उसके बाद उनके अनच ु र वारा स मा नत कय
गया।
http://www.cambridgeforecast.org/MIDDLEEAST/BENGAL.
html http://www.experiencefestival.com/a/Bengal_famine_of_1770/id/1930405
http://www.worldhistoryblog.com/2006/04/famine-of-1770-in-bengal.htm
जालसाजी का व तत ृ वणन न न पु तक म है िजसके लये लेखक वामी काशान द सर वती पर ८४ वष क
आयु म बला कार का झठ ू ा आरोप लगाया गया और उनक म ृ यु हो गयी-
http://www.encyclopediaofauthentichinduism.org/index.html
(२) मालव गण का वरोध-८००-३०० ई.प.ू म पि चम से िजतने आ मण हुए, उनको मु यतः मालव राजाओं ने ह
परािजत कया था। पर अं ेज को दखाना था क भारत म रा य यव था ६०० ई.प.ू म महाजनपद से आर भ
हुई। अतः मालव गण का नाम मटाना आव यक था। व मा द य ने न केवल शक को परािजत कया, वरन ्
जु लयस सीजर को भी सी रया म परािजत कर ब द बना कर लाये थे। यो त वदाभरण म इसका उ लेख है तथा
वल डुर ट ने भी लखा है क इसको छपाने के लये रोमन लेखक ने कई कार क कहा नयां गढ़ ं-जैसे वह म
म ६ मास अ ात थान पर छपा हुआ था, या समु डाकुओं के चंगल ु से बहादरु से नकल गया। सीजर को भी
शक राजा ह कहा गया है , अतः अ धक स भावना है क रोमन सेना को परािजत करने के लये ह व मा द य को
शका र कहा गया है । यो त वदाभरण, अ याय २२-
येनाि म वसध ु ातले शकगणा सवा दशः स गरे ह वा प चनव मा क लयग ु े शाक व ृ ः कृता।
ीम व मभभ ू जु ा त दनं मु ताम ण वणगो स तीभा यपवजनेन व हतो धमः सव ु णाननः॥१३॥
= स ा व मा द य ने सभी दशाओं म ९९,९९९ शक को यु ध म मार कर अपना शक आर भ कया तथा धम
का शासन था पत कर त दन मोती, सोना, र न आ द का दान दे ते थे।
यो मदे शा धप तं शके वरं िज वा गह ृ वो ज यनीं महाहवे।
आनीय स ा य मम ु ोच य वहो स व माकः समस य व मः॥१७॥
= िजसके म दे श (रोम) के शक अ धप त (सीजर) को महासं ाम म परािजत कर ब द बनाया तथा उसे उ जैन
लाकर परे ड (स म) म घम ु ा कर छोड़ दया, वैसा अस य परा मी व म के अ त र त अ य कौन हो सकता है ?
भारतीय राजाओं क वजय अं ेज या उनके भारतीय भ त सहन नह ं कर सकते अतः व मा द य का नाम मटा
दया।
(३) शक-क ाओं को अ वीकार करना-अं ेज कभी भी इ तहास क सह कालगणना नह ं चाहते थे। व व क शू य
दे शा तर रे खा उ जैन से गज ु रती थी (२०० वष पहले ल दन के ीन वच को के मान गया)। अतः उस के
अ धप तय वारा मु य शक (कैले डर) आर भ कये गये। अभी भी भारत म व म स वत ् का ह योग हो रहा
है िजसे समा त करने के लये कई बार अं ेजी शासन तथा उसके बाद अं ेज के अनच ु र नेह वारा प चा ग
बदलने क चे टा हुई। सबका घो षत उ दे य सध ु ार करना था। पर अभी तक कसी को यह पता नह ं चला क
व म स वत ् म भल ू या है या यह शक से कस कार भ न है ।
(४) वदे श म थायी भाव- व मा द य भारत के एकमा राजा ह िजनका भारत के बाहर भी अभी तक भाव है ।
जैसा पहले लखा जा चक ु ा है क वयं रोम म जु लयस सीजर के आदे शके बदले व म स वत ् के मास से वष
आर भ हुआ था। अल ब न ने अपनी पु तक ाचीन दे श क कालगणना म लखा है क हजर सन ् के पहले
अरब म २ सन ् थे। पहला तब शु हुआ जब व मा द य ने काबा मि दर का नमाण कया िजसके लये उनक
शंसा एक वण थाल पर थी जो तक ु के सं हालय म सरु त है ।
http://www.guardiansofdarkness.com/GoD/muslims.pdf
कुछ समय बाद काबा मि दर से मू य तथा वण आभष ू ण क चोर हो गयी। स दे ह म कुछ इ थयो पया के
यापा रय को पकड़ा गया तथा कई अ य को बगा दया। इस पर इ थयो पया क सेना ने आ मण कया और वे
काबा मि दर व त करने वाले थे। तभी व मा द य क हाथी सेना वहां पहुंच गयी और उनको भगाया। उसके
बाद हाथी स वत ् आर भ हुआ। ६२२ ई. म हजर सन ् व म स वत ् के वष के साथ ह आर भ होता था। पर
अ धक मास कॊ घोषणा पैग बर मह ु मद वारा होती थी और ११ वष म ३ बार अ धक मास जोड़े गये। पैग बर क
म ृ यु के बाद इसका नणय करने वाला कोई नह ं रहा और यह यव था ब द हो गयी। पर परा से मह ु मद प रवार
प चा ग बनाता था िजसे कलाम कहते थे। अल ब न-Chronology of Ancient Nations-प ृ ठ ३९, ७३-भारत
को हमयार (परु ाण का हमवत ् वष) लखा है ।
५. व मा द य के नवर न-इनका उ लेख भी यो त वदाभरण, अ याय, २२ म है -नप ृ सभायां पि डतवगाः-श कु
सव ु ा वर चम णर गद ु ो िज णिु लोचनहरो घटखपरा यः।
अ येऽ प सि त कवयोऽमर संहपव ू ा य यैव व मनप ृ य सभासदोऽमी॥८॥
= राजसभा के पि डत-श कु, वर च, म ण( थ), अ गद ु , िज ण(ु गु त), लोचन, हर, घटखपर तथा अमर संह
जैसे व यात क व राजा व म क सभा म ह िजसम म (का लदास) भी सभासद हूं।
स यो वराह म हर त ु सेननामा ीबादरायणम ण थकुमार संहा।
ी व माकनप ृ संस द सि त चैते ीकालत कवय वपरे मदा या॥९॥
= कालत (२ ख ड म कालामत ृ ) का लेखक मेरे अ त र त स य(आचाय- यो तष थ), वराह म हर, त ु सेन,
बादरायण (वेद यास से भ न), म ण थ (फ लत यो तष लेखक), कुमार संह भी ह।
नवर ना न-ध व त र पणकामर संहश कुवतालभ टघटखपरका लदासा।
यातो वराह म हरो नप ृ ते सभायां र ना न वै वर चनव व म य॥१०॥
= नवर न-ध व त र (सु त ु सं हता के व मान सं करण के लेखक), पणक (जटाधर के अनस ु ार बु ध का भेद।
दग बर जैन सं यासी-अनेकाथ व नमंजर नामक कोश के रच यता), अमर संह, श कु या श कुक (
भव ु ना यद ु यम ् के क व, श कु वारा भू म क माप होती है , उसके अ य ), बेतालभ ट (अि न वैताल नामक ेत
से भ न-परु ाण का नया सं करण करने वाले), घटखपर (उपनाम-घटखपर का यम ्, नी तसार), का लदास
(रघव ु श
ं , मेघदत ू , कुमारस भव, कालामत ृ , यो त वदाभरण), व यात वराह म हर (प च स धाि तका,
बह ृ सं हता, बह ृ जातक), वर च (पा ण न याकरण पर वा क, सदिू त कणामत ृ , शा गधर सं हता,
च वा या न-च थान गणना)-ये व मा द य के नवर न ह।
का लदास ने यो त वदाभरण, अ याय २२ म रचनाकाल ३०६८ क ल दया है तथा लखा है उससे पव ू ३ महाका य
लखे थे। अपने को कालत लेखक भी लखा है ।
का य यं सम ु तकृ घव ु श ं पव ू पव ू ततो ननु कय तकमवादः।
यो त वदाभरणकाल वधानशा ं ीका लदासक वतो ह ततो बभव ू ॥२०॥
= का लदास पहले मख ू थे। धोखे से पि डत ने उनका ववाह परम वदष ु ी व यो मा से करा दया। भेद खल ु ने पर
व यो मा ने उनको ध का दे कर बाहर कर दया। काल क कृपा से उनको ान हुआ तथा अ ययन के बाद लौटे ।
प नी ने पछ ू ा क कुछ ान हुआ-अि त कि चत ् वाग ् वशेषः। ान होने पर (सम ु त-कृत) रघव ु श
ं आ द का य
लखे जो इन श द से आर भ होते ह-
(१) अि त-अ यु र यां द श दे वता मा हमालयो नाम नगा धराजः।
पवू ापरौ तोय नधीव ा यः ि थतः प ृ थ या इव मानद डः। (कुमारस भव, १/१)
(२) कि चत ्-कि चत ् का ता वरह गु णा वा धकारात ् म ः, शापेना तंग मत म हमा वष भो येन भतः। ु
य च े जनकतनया नानपु योदकेष,ु ि न ध छायात षु वस तं राम गया मेष।ु (मेघदत ू १/१)
(३) वाग ्-वागथा ववस प ृ तौ वागथ तप ये। जगतः पतरौ व दे पावती-परमे वरौ॥ (रघव ु शं १/१)
इनके अ त र त ु तकमवाद (कालामत ृ -कम फल बताने क े लये यो तष थ) तथा यो त वदाभरण नामक
काल- वधान(मह ु ू ) शा लखे ।
वषः स धरु दशना बरगण ु य
ै ाते कलौ (३०६८ क ल) सि मते, मासे माधवसं के च व हतो थ योप मः।
नानाकाल वधानशा ग दत ानं वलो यादरा-दज ू थसमाि तर व हता यो त वदां ीतये॥२१॥
= इस थ का आर भ क ल वष ३०६८ के माधव (वैशाख) मास म हुआ तथा उसी वष ऊज (का क) मास म पण ू
हुआ। इसम कई काल वधान शा म उ त ान का आदर स हत संकलन है ।
वराह म हर ने कुतह ू ल म जर म अपनी ज म त थ यु धि ठर शक ५०४२ चै शु ल अ तमी (८-३९५ ई.प.ू ) द है -
वराह म हर-कुतह ू ल म जर - वि त ीनप ृ सय ू सन ू जु -शके याते व-वेदा- बर- ै (३०४२) माना द मते वनेह स
जये वष वस ता दके।
चै े वेतदले शभ ु े वसु तथावा द यदासादभू वेदा गे नपण ु ो वराह म हरो व ो रवेराशी भः॥
= वि त, यु धि ठर (सय ू सन ू ु धम के पु ) शक के ग य वष ३०४२, जय स व सर म वस त आर भ म चै शु ल
अ टमी को ा मण एवं सय ू के आशीवाद से आ द यदास के पु प म ज म हुआ।
वराह म हर ने अपने समय म च लत शक (६१२ ई.प.ू ) का भी उ लेख कया है । बह ृ त ् सं हता (१३/३)-
आसन ् मघासु मन ु यः शास त प ृ वीं यु धि ठरे नप ृ तौ। ष - वक-प च- व (२५२६) यत ु ः शककाल त य रा य॥
= प ृ वी पर जब यु धि ठर का शासन था तब स त ष मघा न म थे। उनका शक जानने के लये व मान शक म
२५२६ जोड़ना होगा।
अपना ज म थान क प थक कहा है । बाद म उ ज यनी के स ा व मा द य के आ य म चले गये।
वराह म हर-बह ृ जातक, अ याय २८-उपसंहार-
आ द यदास तनय तदवा त बोधः का प थके स वतल ृ धवर सादः।
आवि तको मु नमतानवलो य स यग ् घोरां वराह म हरो चरां चकार॥९॥
बह ृ त ् सं हता के ट काकार उ पल भ ट के अनस ु ार इनका दे हा त ९० वष क आयु म अथात ् ५ ई.प.ू म हुआ। इसके
८३ वष बाद ७८ ई. म शा लवाहन शक आर भ हुआ, िजसका योग वराह म हर वारा अस भव है , जो व मान
इ तहासकार क क पना है ।
बह ृ त ् सं हता म मकर रा श से सय ू का उ रायण कहा है तथा उसी के अनस ु ार प च स धाि तका म योग गणना
लखी है ।
वराह म हर-बह ृ त ् सं हता (३/१-२)-आ लेषा धा द णमु रमयनं रवेध न ठा यम ्।
नन ू ं कदा चदासी येनो तं पव ू शा ष े ॥ु १॥
सा तमयनं स वतःु ककटका यं मग ृ ा दत चा यत ्। उ ताभावो वकृ तः य पर णै यि तः॥२॥
= ाचीन थ म आ लेषा के म य (११३०२०’) से सय ू का द णायन तथा ध न ठा से उ रायण कहा है ।
आजकल (वराह म हर काल मे) ये कक आर भ (९००) तथा मकर रा श के आर भ (२७००) से आर भ होते ह जो
य दे खा जा सकता है । व मान उपल ध परु ाण म उ रायण आ द का यह आर भ लखा है जो मा णत
करता है क ये व मा द य काल के सं करण ह। ( व णु परु ाण (२/८/६८-६९, ीम भागवत परु ाण, ५/२१/३-४,
अि न परु ाण, १२२/१४-१६, माड परु ाण, १/२/२१/१४४-१४६ आ द)
प च स धाि तका, अ याय ३ (पौ लश स धा त)-
अक दय ु ोगच े वैधत ृ मु तं दश स हते (त)ु । य द च( ं ) य तपातो वेला म ृ या (यत ु ःै भोगैः॥२०॥
आ लेषाधादासी यदा नव ृ ः कलो ण करण य। यु तमयनं तदाऽऽसीत ् सा तमयनं पन ु वसतु ः॥२१॥
= सय ू -च के अंश का योग ३६० होने पर वैध ृ त योग होता है जब सय

ू -च क ाि त समान क तु वपर त
गोल म होती है । १० न (१३३०२०’) जोड़ने पर यतीपात योग होता है जब सय ू च क ाि त समान होती है ,
पर वे ाि त व ृ के वपर त भाग म होते ह। यह तभी स भव है जब आ लेषा के म य (११३०२०’) से द णायन
आर भ हो जो अभी पन ु वसु (कक रा श इसके चतथ ु पाद से) से होता है ।
प च स धाि तका म गणना का आर भ व द ु ४२७ शक (१८५ ई.प.ू ) लया गया है -
प च स धाि तका, अ याय १-स ताि ववेद (४२७) सं यं शककालमपा य चै शु लादौ।
अधा त मते भानौ यवनपरु े सौ य दवसा यः॥८॥
= शक ४२७ के चै शु ल १ से गणना होगी जब सय ू यवनपरु अध अ त था तथा सौ य दवस था (सोम= च पु
बधु का वार)। वराह म हर क म ृ यु के ८३ वष बाद शा लवाहन शक म यह गणना बैठाने के लये श कर बालकृ ण
द त ने भौम = मंगलवार तथा थीबो ने सौ य को सोमवार कर दया। सय ू स धा त म उ जैन से ९०० पि चम
रोमकप न कहा गया है िजसे यवनपरु माना गया है । पर वराह म हर ने इसे उ जैन (७५०४३’) से ७/२० घट (४४०)
पि चम तथा वाराणसी (८३०) से ९ घट (५४०) पि चम कहा है (प च स धाि तका, ३/१३)। अतः यह सक द रया
(३१०१२’ पव ू ) के नकट (यहां से ००३१’ पव ू ) होना चा हये।
प च स धाि तका (३/१३)-पौ लश स धा त-
यवना तरजा ना यः स ताऽव यां भाग संयु ताः। वाराण यां कृ तः साधनम व या म॥१३॥
सय ू ा त से सय ू दय तक सय ू अ त रहता है , इसका अध भाग म यरा है । यवन परु म म यरा होने पर उ जैन
म सय ू दय होगा।
नर संह राव के जग नाथ होरा सू से गणना करने पर ६१२ ई.प.ू तथा अ य शक से त थ द जाती है -
(१) ६१२ ई.प.ू से १८-२-१८५ ई.प.ू को चै शु ल १ का आर भ १८ ता. को १०-१०-२४ बजे हुआ। उस दन उ जैन म
७-३६-३९ बजे सय ू दय हुआ, अतः आर भ त थ है -१७-२-१८५ ई.प.ू , बध ु वार।
(२) ईरान राजा डे रयस का कि पत ५५० ई.प.ू (यु धि ठर के क ल २५ = ३०७६ ई.प.ू म दे हा त से २५२६ क गणना,
ईरान के राजा से मलाने के लये)-वा तव म इसका रा य ५२२-४८६ ई.प.ू था।४२७ वष बाद ५-३-१२४ ई.प.ू को चै
शु ल १ का आर भ ६-४४-२४ बजे था िजसके कुछ समय बाद ६-५३-४४ बजे सय ू दय हुआ। इस दन शु वार था।
(३) व म स वत ् ५७ ई.प.ू से-यह स वत ् है , शक नह ं। पर लोग शक और स वत ् का अ तर भल ू चक ु े ह, अतः
इसम भी गणना क जा रह है । ४२७ वष बाद ४-३-३७१ ई. को २-१३-५४ बजे चै शु ल १ आर भ हुआ, िजस दन
गु वार था।
(४) शा लवाहन शक ७८ ई. से-(क) ग य ४२७ वष म २०-२-५०५ को ८-८-०८ बजे चै शु ल १ आर भ हुआ, अतः
अगले दन सोमवार से त थ मानी जायेगी।
(ख) गत ४२७ वष म ११-३-५०६ को ३-१४-५४ बजे शु वार को चै शु ल १ आर भ हुआ।
अतः ६१२ शक के अ त र त अ य कसी भी का प नक या वा त वक शक से गणना ठ क नह ं होती। अतः
वराह म हर का ६१२ ई.प.ू का शक ठ क है ।
मगु त काल- मगु त ने वयं तथा अ य लेखक ने उनको िज णस ु त
ु कहा है जो यो त वदाभरण के अनस ु ार
व मा द य के पि डत म थे। वराह म हर ने बह ृ जातक म भी उनका उ लेख कया है । अतः उनके पु मगु त
भी वराह म हर के समकाल न थे और उसी शक (६१२ ई.प.ू ) का गणना के लये योग करते थे। मगु त ने इसे
चापवंश के राजा का शक कहा है । चौहान राजाओं को चपहा न या चापवंशी कहते थे। असी रयन इ तहास के
अनस ु ार ६१२ ई.प.ू म स धु पव ू के म यदे श के राजा ने असी रयन राजधानी ननेवे को व त कर दया था।
इसका बाइ बल ाचीन भाग म ५ बार उ लेख है । ा म फुट स धा त, म यमा धकार (१/२)-
मो तं हग णतम ् महताकालेन यत ् खल भत ू म ्। अ भधीयते फुटं ति ज णस ु त ु मगु तेन॥
वटे वर स धा त- ा म- फुट स धा त पर णा याय
द यशा मपहाय यद यत ् ाह िज णत ु नयो नज बु या।
ा म फुट स धा त (२४/७-८)
ीचापवंश तलके ी या मख ु े नप ृ े शकनप ृ ाणाम ्। प चाशत ् संयु तैवषशतैः प च भरतीतैः॥
ा मः फुट स धा तः स जनग णत गोल वत ् ी यै। श ं वषन कृतो िज णस ु तु मगु तेन॥
भ व य परु ाण, तसग पव (१/६)-
एति म नेवकाले तु का यकु जो वजो मः। अबदं ु शखरं ा य महोममथाकरोत ्॥४५॥
वेदम भावा च जाता च वा र याः। मर सामवेद च चपहा नयजु वदः॥४६॥
व मा द य ने नेपाल राजा अंशव ु मन ् (१०१-३३ ई.प.ू ) काल म पशप ु तनाथ म ५७ ई.प.ू चै शु ल १ को व म
स वत ् आर भ कया था। ७ मास बाद सोमनाथ म का का द व म स वत ् आर भ कया य क इस माह से
समु या ा आर भ होती थी जब समु च वात ब द हो जाते थे। सोमनाथ से द णी व ु क भू म तक अ य
कोई भभ ू ाग नह ं है । अंशव
ु मन ् के पु िज णग ु ु त भी ६ मास राजा थे, पर बाद म वे उ जैन म यो तष का
अ ययन करने लगे। हुएनसांग के अनस ु ार अंशव ु मन ् क स ध याकरण पु तक भी थी। उनके स ध होने के
कारण मगु त का प रचय उनके पु प म ह था। अंशव ु मन के १३ लेख त थ स हत ह। व म स वत ् पव ू क
त थयां ६१२ ई.प.ू के चाप शकम ह तथा स वत ् आर भ होने के बाद क त थ व म स वत ् म ह। चाप शक तथा
व म स वत ् के बीच ीहष शक भी ४५६ ई.प.ू म आर भ हुआ था िजसे कई लोग ने थाने वर के राजा हषवधन
(६०५-६४७ ई.) का शक माना है जो ११५० वष बाद हुए तथा बाणभ ट के हषच रत या हे सांग के अनस ु ार कसी भी
शक का आर भ कया था। अंशव ु मन के लेख इस वेबसाईट पर ह-
http://indepigr.narod.ru/licchavi/content81.htm
(१) लेख ६९-स वत ् ५३५ ावण शु ल ७ (य द यह ४५६ ई.प.ू के ीहष शक म हो तो ७९ वष होगा जो उनक म ृ यु
के ११२ वष बाद का है )। अतः यहां चाप शक मे अनस ु ार ७७ ई.प.ू का लेख है , व म स वत ् आर भ से २० वष पव ू
का।
(२) लेख ७६-सवत ् २९, ये ठ शु ल १० (इसके बाद क त थयां व म स वत ् म)
(३) लेख ७७-स वत ् ३०, ये ठ शु ल ६।
(४) लेख ७८-स वत ् ३१ थम (मास नाम लु त, अगले लेख के अनस ु ार पौष) प चमी-इस वष पौष म अ धक मास
था।
(५) लेख ७९-स वत ् ३१ वतीय पौष शु ल अ टमी।
(६) लेख ८०-स वत ् ३१, माघ शु ल १३।
(७) लेख ८१-स वत ् ३२, आषाढ़ शु ल १३।
(८) लेख ८३-स वत ् ३४- थम पौष शु ल २-अ धक मास का वष।
(९) लेख ८४-स वत ् ३६-आषाढ़ शु ल १२।
(१०) लेख ८५-स वत ् ३७, फा गन ु शु ल ५।
(११) लेख ८६-स वत ् ३९, वैशाख शु ल १०।
(१२) लेख ८७-स वत ् ४३- यतीपात योग, ये ठ कृ ण ( त थ लु त)।
(१३) लेख ८९-स वत ् ४५- ये ठ शु ल ( त थ लु त)
िज णग ु ु त के भी २ लेख ह पर उनम त थ न ट हो गयी है । उनके स के भी मले ह िजनम एक व क प डया म
है ।
http://en.wikipedia.org/wiki/Licchavi_(kingdom)
६. व मा द य काल का सा ह य-(१) परु ाण का नया सं करण-इसके पव ू महाभारत समा त होने पर नै मषार य
म शौनक क महाशाला म परु ाण का सं करण हुआ था। इसके अ य बेताल भ ट थे। इसम क लयग ु के मगध
राजाओं का वणन तथा व मा द य के समय अयनांश ि थ त के अनस ु ार ऋतु च वणन म थोड़ा प रवतन कया
गया। शौनक सं था को जैसे महाशाला ( व व व यालय) कहते थे, उसी कार व मा द य काल म परु ाण संकलन
थान को वशाला कहा गया। एक वशाला उ जैन म, एक बहार के पटना के उ र गंगा तट पर है । शंकराचाय
वारा बदर नाथ म मसू क या या के कारण उसे भी बदर - वशाल कहते ह।
शौनको ह वै महाशालोऽ गरसं व धवदप ु स नः प छ ॥३॥-मु डक उप नष (१/१/२-३)
भागवत परु ाण (१/१/४)-नै मषेऽ न मष े े ऋषयः शौनकादयः। स ं वगाय लोकाय सह सममासत॥
प मपरु ाण, सिृ टख ड (५) अ याय १-
सत ू मेका तमासीनं यास श यो महाम तः। लोमहषणनामा वै उ वसमाह तत ्॥२॥
परु ाणं चे तहासं वाधमानथ पथ ृ ि वधान ्(१५) अथ तेषां परु ाण य शु ष ू ा समप यत (१७)
ति मन ् स े गह ृ पत ्ः सवशा वशारदः(१७) शौनको नाम मेधावी व ानार यके गु ः (१८)
प मपरु ाण, उ रख ड (१९६/७२)-
कलौ सह म दानामधन ु ा गतं वज। पर तो ज मकालात ् समाि तं नीयतां मखः॥
भ व य परु ाण, तसग पव ४, अ याय १-
एवं वापरस याया अ ते सत ू न
े व णतम ्। सय ू च ा वया यानं त मया क थतम ् तव॥१॥
वशालायां पन ु ग वा वैतालेन व न मतम ्। कथ य य त सत ू त म तहाससमु चयम ्॥२॥
त मया क थतं सव षीको म पु यदम ्। पन ु व मभपू े न भ व य त समा वयः॥३॥
नै मषार यमासा य ाव य य त वै कथाम ्। पन ु ता न या येव परु ाणा टादशा न वै।।४॥
ता न चोपपरु ाणा न भ व यि त कलौ यग ु े। तेषां चोपपरु ाणानां वादशा यायमु मम ्॥५॥
सारभत ू च क थत इ तहाससमु चयः। य ते मया च क थतो षीको म ते मद ु ा॥६॥
त कथां भगवान ् सत ू ो नै मषार यमाि थतः। अ टाशी त सह ा ण ाव य य त वै मन ु ीन ्॥८॥
(२) शतपथ ा मण पर ह र वामी भा य। हर अ याय के अ त म ह र वामी ने अपने को व मा द य के अधीन
धमा य लखा है ।
(३) धमसू , ग ृ य सू तथा क प सू का णयन या भा य। कई म ृ त थ।
(४) घटखपर वारा कई ताि क थ। उससे पव ू का कोई ताि क सा ह य उपल ध नह ं है ।
(५) पणक वारा जैन आगम। उसके पव ू उ जैन के कालकाचाय (५९९-५२७ ई.प.ू ) वारा कुछ उ धार हुआ था।
(६) क लयग ु के प चम ध व त र वारा सु त ु सं हता का व मान प।
(७) का लदास वतीय वारा ३ महाका य िजनका उ लेख यो त वदाभरण म है । थम का लदास अि न म
काल म थे जो उनके नाटक माल वकाि न म के भरत वा य म लखा है । तत ृ ीय का लदास पण ू ा के ताि क और
आशक ु व थे व मा द य क ११ पीढ़ बाद उनके वंशज भोज के आ त थे।
(८) यो तष थ-वराह म हर का प च स धाि तका, बह ृ त ् सं हता, बह ृ जातक, लघज ु ातक, ीजातक, बहृ
या ा, योगया ा, ट क न क या ा, ववाह पटल, उडुदाय द प। का लदास का यो त वदाभरण और कालामत ृ (पवू
और उ र)। मगु त का म फुट स धा त, ख ड खा यक। स याचाय का स य जातक। वर च का वा य
करण (च ि थ त नकालने के लये सू वा य)।
(९) श कु वारा भू म के प रलेख (सव)। श कु वारा अ ांश तथा दशा का ान होता है (सय ू स धा त)। भू म
पर लगान तथा नवर न क नकल अकबर ने क ।
(१०) अमर संह का अमरकोष, वर च वारापा ण न सू पर वा क।
व मा द य तक सं कृत राजभाषा तथा स पक भाषा थी। उनके दे हा त के बाद उनका रा य १८ भाग म बंट गया
और हर े म लौ कक भाषाओं का सा ह य च लत हुआ। ८वीं सद म गोरखनाथ तथा श य ने लोकभाषा म
वश सा ह य रचा।
सर वती क ठाभरण अल कार (भोजदे व)-
केऽभव ू ना यरा य य रा ये ाकृतभा षणः। काले ीसाहसा क य के न सं कृतवा दनः॥ (२/१५)
७. व मा द य क -इनका वश वणन भ व य परु ाण, तसग पव म है , जो प टतः व मा द य के बाद
जोड़ा गया है । इसम प ृ वीराज चौहान का वशेष वणन है जो उनके या उसके बाद के काल का होगा। राजा यु धि ठर
के बाद सबसे मह व पण ू तथा च व राजा केवल व मा द य थे। उनके रा य म १८० दे श थे। व मान भारत,
पा क तान, अफगा न तान आ द पर य शासन था। द ण पव ू ए शया म उनके भाव के कारण क बो डया
तथा फ लपीन के सं कृत लेख म उनके पौ शा लवाहन के शक का योग है । उनके समय ईरान वत क तु
सहयोगी रा य था। सीजर से यु ध के लये वहां के राजा म द के साथ सेना स हत सी रया तक गये थे और
जु लयस सीजर को ब द बना कर ले आये। अरब म उनका भाव था। वहां के काबा मि दर का नमाण तथा पन ु ः
उसक इ थयोपीय आ मण से र ा व मा द य ने ह क थी। उनके शासन क शंसा अरब लेखक ने क है । रोम
के अधीन इजरायल उनके रा य क सीमा पर था। वहां व मा द य रा य मगध के २ यो तषी गये थे िज ह ने
ईसा के महापु ष होने क भ व यवाणी क थी। भारत के व भ न भाग के ाचीनतम मि दर उनके काल के ह ह
िजनम अयो या का राम ज मभू म मि दर भी है िजसे १०५० म सालार मसद ू तथा १५२७ म बाबर के सेनाप त मीर
बाक ने व त कया था। उ जैन का महाकाल मि दर, उ जैन तथा गज ु रात के हर स ध मि दर (उनक
कुलदे वी), ४ थान पर ६४ यो गनी मि दर, काशी व वनाथ, कृ ण ज मभू म मि दर आ द उ ह ं के बनाये ह।
इसके अ त र त कई अ ात ाचीन मि दर उनके काल के ह।
व मा द य ने रा य को यवि थत करने के लये सड़क का यापक नमाण कया िजसम कलक ा से पेशावर
तक का राजमाग था। इसके कुछ अंश क मर मत शेरशाह ने क होगी, पर उसके परू े भाग पर उसका कभी
अ धकार नह ं था। कृ ष उपज पर कर लेने के लये भ-ू प रलेख न मत हुये।
व मा द य क सै य छावनी कई थान पर थी िजनको मऊ कहते थे। सबसे बड़ी छावनी १८ योजन ल बी थी,
जो स भवतः आज का पाला-मऊ (झारख ड का पलाम)ू है । वहां धातु क खान बहुत ह अतः ह थयार नमाण का
के वह ं था। लोहा को मु ड (अय क) भी कहते ह, अतः उस काम क अ ध ठा ी मु डे वर दे वी का मि दर
भभआ ु (पि चम बहार) म है । छावनी तथा ह थयार नमाण के मु य को उ जैनी तथा लोहत मया राजपत ू कहते
थे जो इस े म बहुत ह। सेना तथा उसक रसद, ह थयार आ द के प रवहन के लये व मा द य ने यापक
यव था क थी। ख चर से सै नक सामान ढोते थे, अतः यह काम करने वाले गद भ ल कहलाते थे। इनको
आजकल गदहे ड़ा या ब जारा कहते ह। व मा द य के अधीन कुल ३ करोड़ सै नक थे। इतने लोग सै य श त
ह गे, क तु छाव नय म भी भार सं या रह होगी। व मा द य के बाद नय मत सेना तथा उनके प रवहन क
यव था धीरे धीरे न ट हो गयी, जो वदे शी आ मणका रय वारा पराजय का मु य कारण है । आ मण होने पर
घर से लोग को नमि त कया जाता था, नय मत थायी सेन नाममा क रहती थी। अपने घर के नकट
आ मर ा हो जाती थी पर १००० कमी. दरू जाकर आ मण करने क मता या साधन नह ं थे। अतः भारतीय
राजा केवल आ मर ा तक ह सी मत रहे िजसम कभी न कभी पराजय होना ह था।
व मा द य क सेना म ४ लाख नौका थी। यह सं या सह लगती है । सक दर के आ मण के समय केवल
कराची तट पर ह उतनी नौका उपल ध थी क उसक परू १२०,००० क सेना एक बार म कराची से म तक जा
सके। यो त वदाभरण, था याय न पणम ् २२, व माकवणनम ्-
वष ु त म ृ त वचार ववेकर ये ीभारते खध ृ तसि मतदे शपीठे ।
म ोऽधन ु ा कृ त रयं स त मालवे े ी व माकनप ृ राजवरे समासीत ् ॥ २२.७ ॥
= यह कृ त ( यो त वदाभरण) मालवे ी व माक के आ य म लखी गयी है िजनका ु त- म ृ त- ववेक के
अनस ु ार भारत के १८० दे श पर शासन है ।
सै यवणनम ्- य या टादशयोजना न कटके पादा तको ट यं वाहानामयत ु ायत ु ं च नव ति ना कृ तहि तनाम ्।
नौकाल चतु टयं वज यनो य य याणे भवत ् सोऽयं व मभप ू त वजयते ना यो ध र ीधरः ॥ २२.१२ ॥
=िजसके १८ योजन के कटक (छावनी, मऊ) म ३ करोड़ पदा तक (पैदल), १० लाख वाहन, १६२,००० हाथी, ४ लाख
नौका ह, उसके हर याण म वजय होती है ।
शाक व ृ काल-
येनाि म वसध ु ातले शकगणा सवा दशः स गरे ह वा प चनव मा क लयग ु े शाक व ृ ः कृता।
ीम व मभभ ू जु ा त दनं मु ताम ण वणगो स तीभा यपवजनेन व हतो धमः सव ु णाननः ॥ २२.१३ ॥
=िजसने प ृ वी पर सभी दशाओं म शक को यु ध म परािजत कर लाख का वध कया और क लयग ु म अपना
शक ( व म स वत ्) चलाया तथा त दन वण, मु ता, गो, हाथी आ द का दान करते ह।
दि वजयवणनम ्-
उ दाम वड म ु कै परशलु ाटाटवीपावको, वे ल व गभज ु गराजग डो गौडाि धकु भो भवः।
गज गज ु रराज संधरु ह रधारा धकारायमाः, का बोजा बज ु च मा वजयते ी व माक नप ृ ः ॥ २२.१४ ॥
दि वजय वणन-राजा व माक सदा वजयी होते ह, उनक सेना उ दाम वड़ के लये परशु है , लाट सेना पी
वन को जलाने वाल आग है , वंग पी सप लये ग ड़, गौड़ समु को पीने के लये अग य गज ु र, स धु म गजन
करते हुए हाथी, प ृ वी का अ धकार दरू करने के लये अयमा तथा क बोज पी कमल के लये च ह।
भु ववणनम ्-
येना यु मह धरा वषये दग ु ा यस या यहो, नी वा या न नतीकृता तद धपाः द ा न तेषां पन ु ः।
इ ा भो यमर म ु मरसरु माभ ृ गणेना जसा, ीम व मभभ ू त
ृ ा खलजना भोजे दन ु ा म डले ॥ २२.१५ ॥
= तापी राजा व म ने सभी क ठन दग ु को जीता (मह धर = पवत, मह धरा वषय-दग ु , छावनी, मह धर+उ
= मऊ), राजां को परािजत कर उनको रा य वापस दे दया, दे वराज इ क तरह जा क र ा क तथा लोक का
पालन कया जैसे च वारा कमल खलता है ।
उ ज यनीवणनम ्-
य ाजघा यु ज यनी महापरु सदा महाकालमहे शयो गनी।
समा य ा यपवगदा यनी ी व माक ऽव नपो जय य प ॥ २२.१६ ॥
= िजसक राजधानी महापरु उ ज यनी म सदा महाकाल महे श और यो गनी का नवास है तथा सभी अपवग
िजसके आ य म मलते ह, वह भप ू त व माक सदा वजयी ह।
यो मदे शा धप तं शके वरं िज वा गह ृ वो ज यनीं महाहवे।
आनीय स ा य मम ु ोच य वहो स व माकः समस य व मः ॥ २२.१७ ॥
= िजसने म दे श (रोम) के अ धप त शके वर (जु लयस सीजर) को महायु ध म परािजत कर उ जैन लाये तथा
परे ड (स म) म घम ु ा कर छोड़ दया वैसा अस य परा मी व म के अ त र त कौन हो सकता है ?
व मा द य परमार वंश के राजा थे। ७५६ ई.प.ू म अबद ु पवत पर व णु अवतार बु ध ने असरु आ मण के
तकार के लये ४ मु य राजाओं का संघ बनाया। दे श र ा म अ (अ णी) होने के कारण इनको अि न वंशी
कहा गया-परमार ( मर, पंवार), तहार (प रहार), चाहमान (चपहा न, चाप, चौहान), शु ल (चालु य, सोलंक ,
सालख ंु े)।
स यद य सव या मस ृ यत त माद र ह वै तमि न र याच ते परोऽ म ्। (शतपथ ा मण, ६/१/१/११)
=िजसने सबसे आगे इनका नमाण कया वह अ होने के कारण परो म अि न कहा गया। (अ = अ सेन,
अ वाल)।
८. भ व य परु ाण वणन-
भ व य परु ाण, तसग पव १, अ याय ६-
एति म नेव काले तु का यकु जो वजो मः। अबदं ु शखरं ा य महोममथाकरोत ्।४५॥
वेदम भावा च जाता च वा र याः। मर सामवेद च चपहा नयजु वदः॥४६॥
वेद च तथा शु लोऽथवा स प रहारकः॥४७॥
= उस समय का यकु ज के ा मण ने अबद ु पवत पर म होम कया िजससे ४ य उ प न हुए-सामवेद
मर, यजव ु द चपहा न, वेद शु ल (शु ल यजव ु द), तथा अथव का प रहार।
अ याय७-पण ू वे च सह ा ते सत ू ो वचनम वीत ्। स त श ं शते वष दशा दे चा धके कलौ॥७॥
मरो नाम भप ू ालः कृतं रा यं च ष समाः। महामर ततो जातः पतरु ध कृतं पदम ्॥८॥
दे वा प तनय त य पतु तु य कृतं पदम ्। दे वदत ू त य सत ु ः पतु तु यं मत ृ ं पदम ्॥९॥
त मा ग धवसेन च प चाशद द भप ू दम ्॥ कृ वा च वसत ु ं शंखम भषे य वनं गतः॥१०॥
शंखेन त पदं ा तं रा यं श ं त ् समाः कृतम ्। दे वांगना वीरमती श े ण े षता तदा॥११॥
ग धवसेनं स ा य पु र नमजीजनत ्। सत ु य ज मकालेतु नभसः पु पव ृ टयः॥१२॥
पेतद ु ु ु द भ योने द व
ु ा त वाताः स ख
ु दाः। शव ि ट वजो नाम श यै सा धं वनं गतः॥१३॥
= सत ू ने कहा क २७१० क ल म मर राजा हुआ तथा ६ वष शासन कया, उसके बाद महामर, दे वा प, दे वद ने
रा य कया। उनके बाद ग धवसेन ने ५० वष शासन कया तथा अपने पु श क को रा य दे कर वन म चले गये।
३० वष शासन के बाद शंख क न स तान म ृ यु हो गयी। उसके बाद ग धवसेन वन से लौटे तथा वीरमती से
ववाह कया। उससे एक पु का ज म हुआ िजस समय दे व ने फूल बरसाये। वह बालक एक स त शव ि ट तथा
उनके श य के साथ वन को चला गया।
वंश भः कमयोगं च समारा य शवोऽभवत ्। पण ू श
ं छते वष कलौ ा ते भय करे ॥१४॥
शकानां च वनाशाथमायधम वव ृ धये। जाति शवा या सोऽ प कैलासा गु यकालपात ्॥१५॥
व मा द य नामानं पता कृ वा मम ु ोद ह। स बालोऽ प महा ा ः पतम ृ ात ृ य करः॥१६॥
प चवष वयः ा ते तपसोऽथ वनं गतः। वादशा द य नेन व मेण कृतं तपः॥१७॥
प चाद बावतीं द यां परु ं यातः याि वतः। द यं संहासनं र यं वा श ं मू तसंयत ु म ्॥१८॥
शवेन े षतं त मै सोऽ प त पदम ह त ्। वैताल त य र ाथ पाव या न मतो गतः॥१९॥
= २० कार के या योग वारा वह शव प हो गया। ३००० क ल वष म शक के नाश के लये शव के आदे श से
तथा आय धम को था पत कया था। उसका नाम व मा द य था। वह ५ वष क आयु म वन म गया और १२ वष
तप कया। उसके बाद वह द य शि त तथा पावती वारा उसक र ा के लये उ प न बेताल के साथ अबावती
(उ जैन) आया।
एकदा स नप ृ ो वीरो महाकाले वर थलम ्। ग वा स पज ू यामास दे वदे वं पना कनम ्॥२०॥
सभा धममयी त न मता यह ू व तरा। नानाधातक ु ृ त त भा नानाम ण वभू षता॥२१॥
नाना म ु लताक णा पु पव ल भरि वता। त संहासनं द यं था पतं तेन शौनक॥२२॥
आहूय ा मणा मु या वेदवेदा गपारगान ्। पज ू य वा वधानेन धमगाथामथाऽशण ृ ोत ्॥२३॥
एति मन तरे त वैतालो नामदे वता। स कृ वा ा मणं पं जयाशी भः श य तम ्॥२४॥
उप व यासने व ो राजान मदम वीत ्। य द ते वणे धा व मा द य भप ू ते॥२५॥
वणया म महा यान म तहाससमु चयम ्॥२६॥
= एक बार राजा महाकाले वर जा कर उनक पज ू ा कये तथा उसके नकट अपनी सभा बनायी िजसम र न ज टत
३२ पु ल का संहासन था। ा मण के आडीवाद से वह संहासन पर बैठे। उस समय वैताल ा मण प म आया
तथा परू कहानी व मा द य को कह ।
भ व य परु ाण, तसग पव, ख ड ३, अ याय २-
वगते व मा द ये राजानो बहुधाऽभवन ्। तथा टादश रा या न तेषां नामा न मे शण ु ९॥
ृ ॥
पि चमे स धन ु य ते सेतब ु धे च द णे। उ रे बदर थाने पव ू च क पला तके॥१०॥
अ टादशैव रा ा न तेषां म ये बभू वरे । इ थं च पा चालं कु े ं च का पलम ्॥११॥
अ तवद ज यैवाजमेरं म ध व च। गौजरं च महारा ं ा वडं च क लंगकम ्॥१२॥
आव यं चोडुपं वंगं गौडं मागधमेव च। कौश यं च तथा ेयं तेषां राजा पथ ृ क् पथृ क् ॥१३॥
नानाभाषाः ि थता त बहुधम वतकाः। एवम दशतं जातं तत ते वै शकादयः॥१४॥
= व मा द य के वगवासी होने पर रा य १८ भाग म बंट गया िजनम कई राजा हुए। पि चम म स धु नद,
द ण म सेतब ु ध रामे वर, उ र म बदर थान तथा पव ू म क पला तक तक १८ रा य थे-(१) इ थ, (२)
पा चाल, (३) कु े , (४) क पल, (५) अ तवद , (६) ज, (७) अजमेर, (८) म ध व, (९) गज ु र, (१०) महारा ,
(११) वड़, (१२) क ल ग, (१३) अव ती, (१४) उडुप (उ = ओ ड़शा), (१५) वंग, (१६) गौड़ (पव ू वंग, असम),
मगध ( बहार, छोटानागपरु ), (१८) कोसल. हर भाग के अलग राजा, भाषा तथ अलग मत थे। इस कार १०० वष
चलता रहा तब शक का आ मण हुआ।
ु वा धम वनाशं च बहुव ृ दै ः समि वताः। के च ी वा स धन ु द मा यदे शं समागताः॥१५॥
हमपवतमागण स धम ु ागण चागमन ्। िज वा या लाँ ठ य वा ता वदे शं पन ु राययःु ॥१६॥
गह ृ वा यो षत तेषां परं हषमप ु ाययःु । एति म न तरे त शा लवाहन भप ू तः॥१७॥
= धम का नाश सन ु कर कई तरफ से आ ामक आये। कुछ ने स धु पार कर आय दे श पर आ मन कया, अ या
हमालय तथा स ध से आये। वजय और लट ू के बाद वे लौट गये। कई ि य का अपहरण कर स न हुए। उसके
बाद शा लवाहन राजा हुआ।
व मा द य पौ च पतरृ ा यं गह ृ तवान ्। िज वा शकान ् दरु ाधषान ् चीनतै रदे शजान ्॥१८॥
बा ल कान ् काम पां च रोमजान ् खरु जान ् शठान ्। तेषां कोषान ् गह ृ वा च द डयो यानकारयत ्॥१९॥
था पता तेन म यादा ले छा याणां पथ ृ क् पथ ृ क् । स धु थान म त ेयं रा माय य चो मम ्॥२०॥
ले छानां परं स धोः कृतं तेन महा मना। एकदा तु शकाधीशो हमतग ंु ं समाययौ॥२१॥
= वह व मा द य का पौ थ तथ अपने पता से रा य लया। उसने शक को जीता तथा सभी आ ा ताओं को
भगाया-चीन, तै र (तातार), बा ल क (ईरान का ब ख), काम प (असम के पव ू और उ र भाग), रोमज (रोमन
रा य के), खरु ज के द ु ट (खरु से उ प न खरु द या कु द-तक ु वष ृ पवत है िजसका राजा वष ृ पवा क पु ी से यया त
का ववाह हुआ था। इसका द णी या न न भाग खरु है जहां के लोग कु द ह)। सभी आ ा ताओं को दि डत कर
उनको स धु नद के पि चम भगाया िजसे आय दे श क सीमा नधा रत क ।
हूणदे श य म ये वै ग र थं पु षं शभ ु म ्। ददश बलवान ् राजा गौरांगं वेतव कम ्॥२२॥
को भवा न त तं ाह होवाच मद ु ाि वतः। ईशपु ं च मां व ध कुमार गभस भवम ्॥२३॥
ले छधम य व तारं स य तपरायणम ्। इ त ु वा नप ृ ः ाह धमः को भवतो मतः॥२४॥
ु वोवाच महाराज ापे स य य सं ये। नमयादे ले छदे शे मसीहोऽहं समागतः॥२५॥
ईशामसी च द यन ू ां ादभ ु ता
ू भयंकर । तामहं ले छतः ा य मसीह वमप ु ागतः॥२६॥
ले छे षु था पतो धम मया त छृणु भप ू ते। मानसं नमलं कृ वा मलं दे हे शभ ु ाशभ ु म ्॥२७॥
नैगमं जपमा थाय जपेत नमलं परम ्। यायेन स यवचसा मनसै येन मानवः॥२८॥
यानेन पज ू येद शं सय ू म डलसंि थतम ्। अचलोऽयं भःु सा ा था सय ू ऽचलः सदा॥२९॥
त वानां चलभत ू ानां कषणः स सम ततः। इ त कृ येन भप ू ाल मसीहा वलयं गता॥३०॥
ईशमू त द ा ता न यशु धा शवंकर । ईशामसीह इ त च मम नाम ति ठतम ्॥३१॥
इ त ु वा स भप ू ालो न वा तं ले छपज ू कम ्। थापयामास तं त ले छ थाने ह दा णे॥३२॥
= एक बार शका र हमालय गये। उस हूण दे श म राजा ने वेत व म गोरे वेत व म एक यि त को दे खा
और पछ ू ा-आप कौन ह। उ ह ने कहा-म कुमार गभ से उ प न ईश का पु हूँ तथा स य त म रह कर ले छ धम
का उपदे श करता हूँ। राजाने पछ ू ा-आपके मत से धम या है ? इश पु ने कहा क ले छ दे श म स य और मयादा
का नाश होने पर वे मसीह प म आये। इन द यओ ु ं म ईशामसी(ह) प म वयं ले छ हो गया हूँ। शर र भले ह
ग दा हो, मन म शु ध होना चा हए। एका हो कर सय ू म डल म ईश क पज ू ा करनी चा हए। मेरे दय म ईश
रहने के कारण इशा मसीह हूँ। राजा ने उनको नम कार कर वहां था पत कया। (क मीर म हजरत बाल या
बहाल-ईसा मसीह क क )
वरा यं ा तवान ् राजा हयमेधमचीकरत ्। रा यं कृ वा स ष य दं वगलोकमप ु ायौ॥३३॥
वगते नप ृ तौ ति मन ् यथा चासी था शण ु ३४॥
ृ ॥
= अपने थान पर लौटने पर राजा ने अ वमेध य कया तथा ६० वष रा य के बाद वग गये। उनके बाद के
राजाओं के नाम सन ु ो।
भ व य परु ाण, तसग पव, ख ड ३, अ याय ३- ी सत ू उवाच-
शा लवाहन वंशे च राजानो दश चाभवन ्। रा यं प चशता दं च कृ वा लोका तरं ययःु ॥१॥
म यादा मतो ल ना जाता भम ू डले तदा। भप ू तदशमो यो वै भोजराज इ त मत ृ ः।
वा ीणम यादां बल दि वजयं ययौ। ॥२॥ सेनया दशसाह या का लदासेन संयत ु ः।
तथा यै ा मणैः सा धं स धप ु ारम प
ु ाययौ॥३॥ िज वा गा धारजान ् ले छान ् का मीरान ् आरवान ् शठान ्।
तेषां ा य महाकोषं द डयो यानकारयत ्॥४॥ एति म न तरे ले छ आचायण समि वतः।
= शा लवाहन वंश म उनके बाद १० राजाओं ने ५०० वष रा य कया। धीरे धीरे प ृ वी पर मयादा कम होती गयी।
दशम राजा भोजराज दि वजय के लये १०,००० सेना के साथ स धु के पार गये। उनके साथ का लदास तथा अ य
ा मण थे। उ ह ने गा धार, क मीर तथा अरब के ले छ को जीत कर दि डत कया और धन लया। उसके बाद
ले छ गरु ा आये।
महामद इ त यातः श यशाखा समि वतः॥५॥ नप ृ चैव महादे वं म थल नवा सनम ्।
गंगाजलै च स ना य प चग य समि वतैः। च दना द भर य य तु टाव मनसा हरम ्॥६॥
= वह महामद (अ त गव , मोह मद) नाम से व यात था तथा कई अनच ु र साथ थे। राजा ने म भू म म ि थत
महादे व (म के वर-म का म) क पज ू ा क । मान सक पज ू ा कर उनको ग ग जल से नान कराया तथ प चग य,
च दन आ द अ पत कया।
भोजराज उवाच-नम ते ग रजानाथ म थल नवा सने। परु ासरु नाशाय बहुमाया व ने॥७॥
ले छै गु ताय शु धाय सि चदान द पणे। वं मां ह कंकरं व ध शरणाथमप ु ागतम ्॥८॥
सत ू उवाच-इ त ु वा तवं दे वः श दमाह नप ृ ाय तम ्। ग त यं भोजराजे न महाकाले वर थले॥९॥
ले छै सद ु ू षता भू मवाह का नाम व त ु ा। आ यधम ह नैवा वाह के दे शदा णे॥१०॥
बभव ू ा महामायी योऽसौ द धो मया परु ा। परु ो ब लदै येन े षतः पन ु रागतः॥११॥
अयो नः स वरो म ः ा तवान ् दै यव धनः। महामद इ त यातः पैशाच कृ त त परः॥१२॥
= भोजराज ने कहा-हे म थल नवासी ग रजानाथ! आपने बहु मायावी परु ासरु का नाश कया। यहां ले छ
वारा र त हो कर भी सि चदान द प ह। मझ ु े सेवक मान कर अपनी शरण म ल। सत ू (परु ाण वाचक) ने
कहा- तु त सन ु कर दे व ने राजा को कहा-आप वाह क (वा ल क-ब ख) के महाकाले वर म जाय जहां ले छ ने
आय धम का नास कर दया है । िजस परु को मने मारा था वह पन ु ः राजा ब ल के आदे श से यहां आया है । वह
महामद के प म नि दत कुल म उ प न हो कर पशाच कम से दै य का बल बढ़ा रहा है ।
नाग त यं वया भप ू पैशाचे दे शधत ू के। मत ् सादे न भप ू ाल तव शु धः जायते॥१३॥
इ त ु वा नप ृ चैव वदे शान ् पन ु रागमत ्। महामद च तैः सा धं स धत ु ीरमप ु ाययौ ॥१४॥
उवाच भप ू तं े णा मायामद वशारदः। तव दे व ो महाराज मम दास वमागतः॥१५॥
ले छधम म त चासी य भप ू य दा णे॥१७॥
= उन धू पशाच के दे श म नह ं जाना चा हए। मेर कृपा से तम ु प व हो जाओगे। यह सन ु कर राजा अपने दे श
लौट गए। उनके साथ महामद भी स धु तट तक आया। राजा का मन ले छ धम से आक षत हो रहा था।
त छृ वा का लदास तु षा ाह महामदम ्। माया ते न मता धत ू नपृ मोहन हे तवे॥१८॥
ह न या म दरु ाचारं वाह कं पु षाधमम ्। इ यु वा स वजः ीमान ् नवाण जप त परः॥१९॥
ज वा दशसह ं च त दशांशं जह ु ाव सः। भ म भू वा स मायावी ले छदे व वमागतः॥२०॥
भयभीत तु ति छ या दे शं वाह कमाययःु । गह ृ वा वगरु ोभ म मदह न वमागतम ्॥२१॥
= यह सन ु कर का लदासने ोध से महामद को कहा-तम ु ने धतू माया से राजाको मो हत कर लया है । तझ ु अधम
वाह क का म वध क ं गा। उसके बाद नवाण म का १०,००० जप कया और दशांश से हवन कया। इससे वह
मायावी ले छ दे व भ म हो गया। उसके श य भयभीत हुए और उनका भ म ले कर चले गये (मद ना)।
था पतं तै च भम ू ये त ोषम ु दत पराः। मदह नं परु ं जातं तेषां तीथ समं मत ृ म ्॥२२॥
रा ौ स दे व प च बहुमाया वशारदः। पैशाचं दे हमा थाय भोजराजं ह सोऽ वीत ्॥२३॥
आ यध म ह ते राजन ् सब धम तमः मत ृ ः ईशा या क र या म पैशाचं धमदा णम ्॥२४॥
लंग छे द शखाह नः म ध ु ार स दष ू कः। उ चालापी सवभ ी भ व य त जनो मम॥२५॥
वना कौलं च पशव तेषां भ या मता मम। मस ु लेनव ै सं कारः कुशै रव भ व य त॥२६॥
त मात ् मस ु लव तो ह जातयो धमद ष
ू काः। इ त पैश ाच धम च भ व य त मया कृतः॥२७॥
= उस भ म को श य ने अपने नगर म था पत कया। मद-ह न होने से वह नगर मद ना हो गया। रात म
मायावी आ मा ने उसके शर र म वेश कर कहा-तु हारा आय धम े ठ है पर म ई वर क आ ा से दा ण पशाच
धम का ह चार क ँ गा। मेरे श य ल ग- छे द , शखाह न, तथा म ु (बकरदाढ़ ) वाले ह गे। वे प तत जोर से
ह ला करगे तथा सवभ ी ह गे। बना कसी कौल (त ) के वे सभी पशओ ु ं को खायगे। उनके कुश जैसे लंग
सं कार वारामस ु ल जैसे हो जायगे, अतः उनको मस ु लमान कहा जायेगा। ऐसा मेरे वारा कृत पैशाच धम होगा।
इ यु वा ययौ दे वः स राजा गेहमाययौ। वण था पता वाणी सां कृती वगदा यनी॥२८॥
शू े षु ाकृती भाषा था पता तेन धीमता। प चाश दकालं तु रा यं कृ वा दवं गतः॥२९॥
था पता तेन मयादा सवदे वोपमा ननी। आ यावतः पु यभू मम यं व य हमालयोः॥३०॥
आ य वणाः ि थता त व या ते वणसंकराः। नरा मस ु लव त च था पताः स धप ु ारजाः॥३१॥
बबरे तष ु दे शे च वीपे नाना वधे तथा। ईशामसीहधमा च सरु ै रा यैव संि थताः॥३२॥
= यह कह कर पशाच दे व चला गया और राजा घर लौट आये। राजा ने ३ वण म सं कृत तथा शू म ाकृत का
चार कया। ५० वष शासन के बाद वगवासी हुए। व य और हमालय के बीच प व भू म म सव दे व मा नत
धम था पत कया। वणसंकर व य के पार, मस ु लव त स धु के पार तथा ईशामसीह का धम बबर तष ु दे श म
रहा।
अ याय ४-सत ू उवाच- वगते भोजराजे तु स तभप ू ा तद वये। जाता चा पायष ु ो म दाि शता दा तरे मत ृ ाः॥१॥
बहु भप ू वती भ ू म तेषां रा ये बभ व
ू ह। वीर सं ह च यो भ प
ू ः स तमः स क ततः॥२॥
तद वये भप ू ा च वशता दा तरे मत ृ ाः। गंगा संह च यो भप ू ो दशमः स क ततः॥३॥
= अ याय ४-सत ू ने कहा-भोजराज के बाद ७ राजाओं ने ३०० वष रा य कया। रा य कई भाग म बंट गया। ७वां
राजा वीर संह था िजसके बाद ३ राजा २०० वष तक रहे । दशम राजा ग गा संह थे।
९. अि नवंशी राजाओं क सच ू ी-४ अि नवंशी या म- राजवंश थे-
(१) मर या परमार (पंवार) वंश
(२) चपहा न, चाहमान (चौहान) वंश। इसक २ शाखाय थीं-तोमर तथा सामलदे व।
(३) शु ल या चालु य वंश (गज ु रात म सोलंक , महारा , कणाटक म सालख ंु े)।
(४) प रहार या तहार वंश।
(१) परमार वंश-१. मर (३९२-३८२६ ई.प.ू ), २. महामर (३८६-३८३ ई.प.ू ), ३. दे वा प (३८३-३८० ई.प.ू ), ४. दे वद
(३८०-३७७ ई.प.ू )।
५. शक राजाओं ने ३७७-१९५ ई.प.ू तह १९५ वष के लये उ जैन पर अ धकार कर लया। परमार राजा ीशैलम चले
गए।
६. ग धवसेन (१८२-१३२ ई.प.ू )
७. शंखराज (१३२-१०२) वन म चले गये और न स तान मरे । ग धवसेन वन से लौटे और पन ु ः रा य कया
(१०२-८२ ई.प.ू )। उनका वतीय पु व मा द य हुआ।
८. व मा द य (८२ ई.प.ू -१९ ई.)
९. दे वभ त (१९-२९ ई.)
१०. अराजकता (२९-७८ ई.)
११. शा लवाहन (७८-१३८ ई.)-ईसा मसीह को क मीर म बसाया।
१२. शा लहो , १३. शा लवधन, १४. सह ु ो , १५. ह वह , १६. इ पाल, १७. मा यवान ्, १८. श भद ु , १९.
भौमराज, २०. व सराज-इन ९ राजाओं का ५०० वष शासन (१३८-६३८ ई.)।
२१. भोजराज (६३८-६९८ ई.)-मोह मद से मले। तत ृ ीय का लदास।
२२. श भद ु -२, २३. भ दप ु ाल, २४. राजपाल, २५. मह नर, २६. सोमवमा, २७. कामवमा, २८. भू मपाल या
वीर संह-७ राजाओं वारा ३०० वष शासन (६९३-९९४ ई.)।
२९. र गपाल, ३०. क प संह, ३१. ग गा संह ( न स तान)-२०० वष (९९३-११९२ ई.)।
अि तम राजा प ृ वीराज चौहान क तरफ से लड़ते हुए ११९२ म तरावड़ी (यहां कु े लखा है ) के यु ध म मारे
गए।
२. चाहमान वंश-(१) चाहमान, ९२) साम तदे व, (३) महादे व, (४) कुबेर, (५) ब दस ु ार, (६) सधु वा-श कराचाय के
४ पीठ के लये यु धि ठर शक २६६३ आि वन पू णमा को आदे श जार कया। (७) वीरध वा, (८) जयध वा, (९)
वीर संह, (१०) वर संह, (११) वीरद ड, (१२) अ रम , (१३) मा ण यराज, (१४) पु कर, (१५) असम जस, (१६)
ेमपरु , (१७) भानरु ाज, (१८) मान संह, (१९) हनम ु ान, (२०) च सेन, (२१) श भ,ु (२२) महासेन, (२३) सरु थ, (२४)
द , (२५) हे मरथ, (२६) च ा गद, (२७) च सेन, (२८) व सराज, (२९) ध ृ ट यु न, (३०) उ म, (३१) सन ु ीक,
(३२) सब ु ाहु, (३३) सरु थ-२, (३४) भरत, (३५) सा य क, (३६) श िु जत ्, (३७) व म, (३८) सहदे व, (३९) वीरदे व, (४०)
वसद ु े व, (४१) वासद ु े व (५५१ ई. म राजा)-उनक २ शाखाओं के अलग रा य। एक शाखा का अ त द ल के अि तम
राजाप ृ वीराज-३ के साथ अ त हो गया। दस ू र शाखा के वीर गोगादे व ने महमद ू गजनवी को म भू म म परािजत
कया था।
द ल -अजमेर शाखा-(४२) साम त, (४३) नरदे व या नप ृ , (४४) व हराज-१, (४५) च राज-१, (४६) गोपे राज
यागोपे क, (४७) दल ु भराज, (४८) गो व दराज या गव ु क -२, (४९) च राज-२ (८४३-८६८ ई.), (५०) गो व दराज
या गव ु क-२ (८६८-८०३ ई.), (५१) च दन गो व दराज (८९३-९१८ ई.), (५२) वा प तराज-१ (व पयराय, ९१८-९४३
ई.), (५३ क) व यराज बहुत कम समय के लये, उसके बाद उनके भाई (५३ ख) संहराज। इनके ४ पु
थे- व हराज-२, दल ु भराज-२, च राज, गो व दराज। (५४ क) व हराज-२ (९७३ ई. से)-गज ु रात के मल
ू राज को
हराया और भग ृ कु छ म आशापरु ा दे वी का मि दर बनवाया। लाहौर के राजा जयपाल क सहायता के लये
सब ु ु तगीन के व ध ९९७ ई. म सेना भेजी थी। (५४ ख) दल ु भराज-२ (९९८ ई.), (५५) गो व दराज-३ (९९९ ई.),
(५६ क) वा प तराज-२ (९९९-१०१८ ई.), (५६ ग) चामु डराज (१०३८-१०६३ ई.), (५७ क) संहल-५६ ग के ये ठ
पु । (५७ ख) दल ु भराज-३ (१०६३-१०७९ ई.)-५६ ग के पु । (५७ ग) व हराज (१०१८-१०३८ ई.)-५७ ख का भाई।
(५८) प ृ वीराज-१ (१०९८-११०५ ई.), (५९) अजयराज (अजयदे व या स हन, ११०५-११३२ ई.)-अजमेर का नमाण
कराया। (६०) अण राज (अनलदे व, अ न, अनक,११३२-११५१ ई.), (६१ क) जगदे व (११५१ ई.) अपने पता अण राज
क ह या क िजसके कारण इनके भाई व हराज-४ ने इनका वध कया। (६१ ख) व हराज-४ ( वशालदे व,
११५१-११६७ ई.)-इ ह ने चालु य को परािजत कया। (६१ ग) सोमे वरदे व (११६९-११७७ ई.) ६१ ख के पु य क
६१ क के पु प ृ वीराज-२ को कोई पु नह ं था। (६२ क) अपर गांगेय या अमय गांगेय-६१ क के पु , (६२ ख)
प ृ वीराज-२-६१ क के पु । (६२ ग) प ृ वीराज-३ (११७७-११९२ ई.)- द ल के अि तम ह द ू राजा। ११९१ म मह ु मद
गोर को परािजत कया क तु ११९२ म परािजत और ब द हो कर गजनी म लाये गये।
३. शु ल या चालु य ( वारका रा )- २७ राजा (३९२-११९२ ई.)
१. शु ल या चालु य, २. व व सेन, ३. जयसेन, ४. वीरसेन, ५. मद संह, ६. स धव ु मा, ७. स धु वीप, ८. ीप त,
९. भज ु वमा, १०. रणवमा, ११. च वमा, १२. धमवमा, १३. कृ णवमा, १४. उदय, १५. वा यकम, १६. गु हल, १७.
कालभोज, १८. रा पाल, १९. जयपाल, २०. वेणक ु , २१. यशो व ह, २२. मह च , २३. च दे व, २४. म दपाल,
२५. कु भपाल या वै यपाल, २६. दे वपाल- द ल के तोमर राजा अनंगपाल का दामाद, २७. जयच -इसक पु ी
संयु ता का ववाह प ृ वीराज चौहान के साथ हुआ। गोर से यु ध म जयच ११९३ म मारे गये।
४. तहार वंश (का लंजर) ३५ राजा (३९२-११९३ ई.)
१. प रहार, २. गौरवमा, ३. घोरवमा, ४. सप ु ण, ५. पन, ६. कारवमा, ७. भोगवमा, ८. क लवमा, ९. कौ शक, १०.
का यायन, ११. हे मवमा, १२. शववमा, १३. भाववमा, १४. वमा, १५. भोजवमा, १६. गववमा, १७. व यवमा,
१८. सख ु सेन, १९. बलाक, २०. ल मण, २१. माधव, २२. केशव, २३. शरू सेन, २४. नारायण, २५. शाि तवमा, २६.
नद वमा-गौड़ को जीत कर वहां शासन कया। २७. सारं गदे व, २८. गंगदे व, २९. अनंग भप ू त, ३०. मह प त-१, ३१.
राजे वर, ३२. न ृ संह, ३३. क लवमा-२, ३४. ध ृ तवमा, ३५. मह प त-२. गोर के साथ कु े यु ध म ११९३ म मारे
गये।

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