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10 गुड़िया

“यू वान्ट टु शो मी इनसाइड..” मेहरा ने घूम कर मेरी तरफ देखा।

“यू नो वाट.. आई वुड रादर स्टे आउट। आई कै न गिव यू द कीस सो यू कै न गो इन और लुक..” मैंने जेब से चाभी निकलते हुए कहा।।

“अरे यू किडिंग मी.. आप मुझे ये घर बेचना चाहती है और खुद मुझे ये कह रही है की यहाँ भूत रहते हैं. यू बिलीव दैट शीत अबौट द हाउस... आपको
सीरियस्ली लगता है की ये घर हॉटेड है..” मेहरा हँसता हुआ बोला।।

“भूत ओर नो भूत, मैं इस घर के अंदर नहीं जाना चाहती...” मैंने चाबी उसकी ओर बढ़ाई।

मेहरा ने चाबी मेरे हाथ से ली और हँसते हुए गर्दन ऐसे हिलाई जैसे ताना मार रहा हो।

30 साल से ये घर मेरी प्रॉपर्टी है। मरने से पहले डैड ये मेरे नाम कर गये थे पर पिछले 30 साल से यहाँ कोई नहीं रहा, या यूँ कह लीजिए की मैंने रहने नहीं
दिया। मेरे पति ने कई बार कोशिश की इस घर को बेच दिया जाए पर घर की लोके शन ऐसी थी की बाहर का कोई खरीदने में इंट्रेस्टेड नहीं था और आस पास
के लोग तो इस घर के नाम से ही डरते थे, खरीदना तो दूर की बात थी।

मेरी इस घर से डर और नफरत की वजह बस इतनी ही थी की इस घर की हर चीज मुझे 30 साल पहले की वो रात याद दिलाती है जब मेरे परिवार की
खुशियां इस घर की कु र्बानी चढ़ गई थी। उस रात यहाँ जो कु छ हुआ था उसके बाद मेरी मम्मी ने अपनी बाकी की जिंदगी एक मेंटल संसथान में गुजारी और
पापा ने शराब की बोतल में।

कहते हैं की ब्रिटिश राज के दौरान किसी ब्रिटिश आफिसर ने इंग्लेंड वापिस जाने के बजाय इंडिया में ही रहने का इरादा कर यहाँ पहाड़ों के बीच एक खूबसूरत
वादी में ये घर बनाया था। लोगों की मानी जाए तो ये उस आफिसर की जिंदगी की सबसे बड़ी गलती थी। कहते हैं की घर बनने के कु छ अरसे बाद ही एक
सुबह उस आफिसर और उसके बीवी बच्चों की लाशें घर के बाहर मिली थी। कोई नहीं जानता की उन्हें किसने मारा था पर लाशों की हालत देखकर यही
अंदाजा लगाया गया की ये किसी जंगली जानवर का काम था।

घर का दूसरा मालिक भी एक अंग्रेज ही था। एक महीना घर में रहने के बाद वो और उसकी बीवी ऐसे गायब हुए जैसे गधे के सर से सींग। बहुत कोशिश की गई
पर उन दोनों का कोई पता नहीं चला, लाशें तक हासिल

नहीं हुई। एक बार फिर इल्ज़ाम जंगली जानवरों पर डाल दिया गया।

घर के तीसरा मालिक एक आर्मी मेजर था। घर खरीदने के एक महीने बाद वो अपने कमरे के पंखे से झूलता। हुआ पाया गया। आत्महत्या की कोई वजह सामने
नहीं आ पाई। कहते हैं की मेजर अपनी जिंदगी से बहुत खुश था और अपने आपको मारने की उसके पास कोई वजह नहीं थी। उसने ऐसा क्यों किया ये कोई
नहीं बता पाया पर उसके बाद इस घर में रहने की किसी ने कोशिश नहीं की।

मेरे पिता कभी भूत प्रेत में यकीन नहीं रखते थे। उनका मानना था की भूत, शैतान जैसे चीजें इंसान ने सिर्फ इसलिए बनाई हैं ताकि उसका विश्वास भगवान में
बना रहे। घर उन्हें कोड़ियों के दाम मिल रहा था और अपना एक वाके शन होम होने का सपना पूरा करने के लिए उन्होंने फौरन खरीद भी लिया। जब मेरी माँ ने
उन्हें रोकने

की कोशिश की तो उन्होंने हँसकर कहा था- “हाउस डोंट किल पीपल। पीपल किल पीपल...”

और फिर एक साल गर्मियों की छु ट्टियां मनाने हम लोग पहली बार इस घर में रहने आए। मेरे पापा ने काफी खर्चा करके घर को रेनोवेट किया था और उस
वक़्त देखने से लगता ही नहीं था की ये घर इतना पुराना था।

साहब मेरी बात मन लीजिए। वो घर मनहूस है, वहाँ जो रहा जिंदा नहीं बचा। क्यों आप अपने परिवार की जिंदगी खतरे में डाल रहे हैं..” वो टैक्सी ड्राइवर जो
हमें घर तक छोड़ने जा रहा था रास्ते में बोला था।

ऐसा कु छ नहीं होता बहादुर..” पापा ने हँसकर उसकी बात टाल दी- “अगर कोई मरता है तो उसकी वजह होती है एक। बेवजह किसी की जान नहीं
जाती...”

और जो लोग यहाँ मरे हैं उसकी वजह ये घर है साहब। इस घर में जो कोई भी बस्ता है, वो नहीं चाहता की उसके सिवा इस घर में कोई रहे..” बहादुर ने हमें
रोकने की एक आखिरी कोशिश की थी पर पापा का इरादा नहीं बदला।

मेरी उमर उस वक्त ** साल थी और मेरे भाई की ** साल। पापा और भाई यहाँ आकर काफी खुश थे और मम्मी जो पहले घबरा रही थी अब पापा की बातें
सुन सुनकर काफी हद तक अपने आपको संभाल चुकी थी। रही मेरी बात तो एक * * साल की बच्ची के लिए यही बहुत होता है की वो अपने परिवार के साथ
छु ट्टयां मनाने । जा रही हैं जहाँ वो लोग बहुत मस्ती करने वाले थे। घर, भूत प्रेत इन सब बातों से तो मुझे मतलब ही नहीं था। और घर में आने के पहले ही दिन
वो मुझे स्टोर रूम में पड़ी मिली थी। करीब दो फीट की वो गुड़िया जो उस वक़्त मेरी कमर तक आती थी और देखने से ही बहुत पुरानी लगती थी। उसकी एक
आँख नहीं थी और एक टाँग टू टी हुई थी।

वाट आन अग्ली डाल...” मेरे भाई ने मेरे हाथ में वो गुड़िया देखी तो कहा।

आई लाइक इट..” मैंने उसको उठाकर धूल झाड़ते हुए कहा और लेकर अपने कमरे में चली गई। काश मुझे खबर होती की आने वाली कु छ रातों में सब कु छ
किस तरह से बदल जाने वाला था।

अगले तकरीब एक हफ्ते तक सब कु छ नार्मल रहा। ऐसा कु छ नहीं हुआ जिसका मेरी माँ को डर था। वो हर रात सोने से पहले कु छ पढ़कर हमारे ऊपर फें क
मारा करती थी। बाद में मुझे पता चला था की वो किसी पीर बाबा की बताई हुई दुआ थी जिसको पढ़कर फें क मार देने से भूत प्रेत या कोई गैर-इंसानी कोई
नुकसान नहीं पहुँचा सकती थी। वो पहली कु छ रातों में मेरे सोने तक मेरे कमरे में रहती और रात में भी कई बार आकर देखती की सब ठीक तो था।

उन्हें क्या खबर थी की जिस मुसीबत से मुझे बचाने के लिए वो इतना कु छ कर रही थी, उस मुसीबत को तो मैं अपने अपनी बगल में ही लेकर सोती थी।

उस गुड़िया को देखने से ही मालूम होता था की वो काफी पुरानी थी। जिस तरह की गुड़िया आजकल बनाई जाती हैं, वो उस तरह की नहीं थी। बाल भी किसी
पुराने जमाने की फिल्म की हेरोइन की तरह बनाए हुए थे। वो कम से कम दो फु ट ऊँ ची थी और उस वक्त बड़ी आसानी से मेरी कमर तक आती थी। चेहरे पर
कई जगह से घिसी हुई थी और उन सब जगहों पर काले रंग के धब्बे बने हुए थे। दायें हाथ की दो अंगुलियां इस तरह से कटी हुई थीं जैसे चाकू से काटी गई
हों।

प्यार से मैंने उसका नाम रखा गुड्डो। मैंने घर में काफी ढूँढने की कोशिश की थी पर उस गुड़िया की एक आँख मुझे मिली नहीं।

जब पापा ने देखा की मुझे वो गुड़िया कु छ ज्यादा ही पसंद है तो उन्होंने आँख की जगह एक बटन चिपका दिया जो उसकी दूसरी आँख से काफी मिलता
जुलता था। प्लास्टिक की उसकी टाँग काफी बुरी तरह से टू टी हुई थी पर फिर भी उन्होंने उसे भी कोशिश करके काफी हद तक ठीक कर दिया। एक तरह से
कहा जाए तो वो गुड़िया । काफी बदसूरत थी जिसे शायद कोई बच्चा अपने पास ना रखना चाहे पर ना जाने क्यों मैंने रखा और हर रात बिस्तर में अपने साथ
ही लेकर सोती थी।

हमें आए घर में एक हफ़्ता हो चुका था। उस रात भी हमेशा की तरह मैं बिस्तर में गुड़िया के साथ लेटी, मेरी माँ ने कु छ पढ़कर मेरे ऊपर फें का और मेरा माथा
चूमकर अपने कमरे में चली गई। उनके जाते ही मैंने गुड़िया को खींचकर अपने से सटाया और उससे लिपटकर सो गई।

देर रात एक आहट से मेरी आँख खुली। कह नहीं सकती की आवाज क्या थी पर एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे कोई हँसा हो। मैं आधी नींद में थी इसलिए
आवाज पर ध्यान ना देकर फिर से सोने के लिए आँखें बंद कर ली और फिर गुड़िया के साथ लिपट गई। दूसरी बार जब मेरी आँख खुली तो मुझे पूरा यकीन
था की मैंने किसी के बोलने की आवाज सुनी थी। मैं फौरन अपने बिस्तर पर उठकर बैठ गई और नाइट बलब की रोशनी में आस पास देखने की कोशिश करने
लगी।

कमरा काफी ठंडा हो रखा था और ठंड से मैं काँप रही थी। कु छ पल बाद जब मेरी आँखें हल्की रोशनी की आदि हुई तो मेरा ध्यान कमरे की खिड़की की तरफ
गया जो की पूरी तरह खुली हुई थी। मुझे अच्छी तरह याद था की जाने से पहले माँ खिड़की बंद करके गई थी क्योंकी पहाड़ी इलाका होने के कारण रात को
सर्दी काफी बढ़ जाती थी और ठंडी हवा चलने लगती थी जबकि उस वक़्त ना की सिर्फ खिड़की खुली हुई थी बल्कि परदा भी पूरा एक तरफ खिसकाया हुआ
था।

मैं उठकर बिस्तर से उतरी और खिड़की तक पहुँची। वो घर काफी पुराना था इसलिए पुराने जमाने के घर की तरह ही उस कमरे की खिड़की भी काफी बड़ी
और थोड़ी ऊँ चाई पर थी। हाइट में छोटी होने की वजह से मेरे हाथ खिड़की तक नहीं पहुँच रहे थे। दो-तीन बार मैंने उछल कर खिड़की तक पहुँचने की
कोशिश की मगर कर ना सकी। हार कर मैंने अपने चारों तरफ देखा। कमरे में बेड के पास एक छोटा सा स्टू ल रखा था। मैंने अंदाजा लगाया तो उसपर खड़े
होकर मेरे हाथ बहुत आसानी से खिड़की तक पहुँच सकते थे। मैं स्टू ल उठाने के लिए। बिस्तर की तरफ बढ़ी ही थी तभी मेरा ध्यान अपने बिस्तर की तरफ
गया। सोते वक़्त जो गुड़िया मेरे साथ मेरे बिस्तर पर थी वो अब वहाँ से गायब थी।

मैंने एक नजर नीचे जमीन पर डाली की शायद वो सोते हुए मेरे हाथ लगने से नीचे गिर गई हो पर गुड़िया का नीचे भी कोई निशान नहीं था। मैं अपने घुटनों के
बल नीचे बैठी और बिस्तर के नीचे देखने लगी। गुड़िया तो । नहीं मिली पर तभी मेरे कमरे के दरवाजे पर हल्की सी आहट हुई जैसे कोई दरवाजा खोलने की
कोशिश कर रहा हो। उस घर के दरवाजे काफी बड़े और भारी थी, इतने के कभी कभी तो मुझे भी कोई दरवाजा खोलने में परेशानी होती थी।

दरवाजा कमरे के अंदर की तरफ खुलता था और उस वक़्त आ रही आवाज को सुनकर ऐसा लगता था जैसे कोई दरवाजे के उस पार खड़ा खोलने की
कोशिश कर रहा हो। एक पल के लिए मेरी जैसे जान ही निकल गई और पर फिर अगले ही पल ध्यान आया की वो शायद मेरी मम्मी थी जो आदत के हिसाब
से रात को कई बार मेरे कमरे में मुझे देखने आती थी। मैंने राहत की साँस ली और खिसक कर बिस्तर के नीचे से निकल ही रही थी की दरवाजा एक झटके से
पूरा खुल गया। मैं अब भी बिस्तर के नीचे ही थी जब मैंने दरवाजे की तरफ देखा। दरवाजा पूरा नहीं खुला था, सिर्फ थोड़ा सा जितना की अंदर देखने के लिए
काफी हो। और दरवाजे के पीछे से एक जाना पहचाना चेहरा कमरे के अंदर झाँक रहा था। गुड्डो को चेहरा। जैसे वो कमरे के अंदर झाँक कर ये तसल्ली कर रही
हो के मैं अब तक सो रही हैं।
मुझे अच्छी तरह याद है की वो पूरी रात मैंने यूँ ही बिस्तर के नीचे रोते हुए गुजारी थी और अगली सुबह मुझे सर्दी से बुखार चढ़ गया था। अगले दिन मैंने पूछा
तो मुझे बताया गया की गुड़िया नीचे के कमरे में सोफे पर बैठी हुई मिली।

ड्राइंग रूम में टीवी ओन था जिसके लिए पापा उसके लाख इनकार करने पर भी मेरे भाई और मम्मी को ही जिम्मेदार मान रहे थे।

रात को 9:00 बजे के बाद कोई टीवी नहीं और जाने से पहले टीवी बंद करके जाया करो...” मैंने पापा को भाई पर चिल्लाते हुए सुना।

डाक्टर आया और मुझे दवाई देकर चला गया। बुखार काफी तेज था और मैं पूरी सुबह अपने कमरे में बिस्तर पर ही रही।

और ये है मेरी प्यारी गुड़िया की गुड्डो...” कहते हुए पापा गुड़िया हाथ में लिए मेरे कमरे में दाखिल हुये। और उस गुड़िया को देखते ही फौरन मेरे दिमाग में कल
रात की याद ताजा हो गई की किस तरह वो दरवाजे के पीछे खड़ी मेरे कमरे में झाँक रही थी। डर के मारे मेरे मुँह से चीख निकल पड़ी और मैं पास बैठी मम्मी
से लिपट गई।

अरें क्या हुआ?” कहते हुए पापा फौरन हाथ में थामे मेरी तरफ बढ़े और मैं इस तरह से चीखने लगी जैसे वो कोई साँप हाथ में ला रहे हो और मुँह मम्मी के
पल्लू में छु पा लिया। थोड़ी देर के लिए किसी को कु छ समझ नहीं आया पर मेरा बर्ताव देखकर मम्मी समझ गई और पापा को इशारे से गुड़िया दूर करने को
कहा।

“क्या हुआ बेटा... आई थाट यू लाइक्ड इट..” पापा के जाने के बाद उन्होंने प्यार से मेरे सर पर हाथ फे रते हुए कहा।

“शी इस अलाइव...” मैंने सुबक्ते हुए कहा- “आई सा हर वाकिं ग लास्ट नाइट..." और उसके बाद मैंने कल रात की पूरी बात उन्हें बताई, की किस तरह मेरे
कमरे की खिड़की खुली हुई थी, और कै से वो गुड़िया दरवाजा खोलकर कमरे से बाहर निकल गई थी।

“टीवी उसने ओन छोड़ा था मम्मी...” मैंने उन्हें समझना चाहा- “वो मेरे कमरे से निकलकर बाहर गई और टीवी ओन करके खुद टीवी देख रही थी और
कमरे की खिड़की भी उसने खोली थी..."

मेरी बात सुनकर माँ हँस पड़ी।

ऐसा कै से हो सकता है बच्चे... वो छोटी सी गुड़िया इतनी बड़ी खिड़की कै से खोलेगी... उस खिड़की तक तो अपना हाथ भी नहीं पहुँचेगा..."

“तो खिड़की कै से खुली?” मैंने पूछा

“मैं भूल गई थी खिड़की बंद करना। ऐसे ही अपने कमरे में चली गई और मेरी प्यार बच्ची बीमार पड़ गई। और वो गुडिया टीवी देखकर क्या करेगी ..." उन्होंने
हँसते हुए कहा पर मैं जानती थी की वो मुझे बहलाने के लिए झूठ बोल रही हैं।

थोड़ी देर बाद पापा मेरे कमरे में आए और उन्होंने बताया की वो गुड़िया को घर से बहुत दूर फें क कर आ गये हैं। “अब आपको डरने की कोई जरूरत नहीं..."

वो वापिस आ गई तो...” मैंने फिर भी डरते हुए पूछा।

हम उसे वहाँ दूर खाई में फें क कर आए हैं..” पापा ने कहा।

और वो गुड़िया तो वैसे भी लंगड़ी है, चाहे भी तो इतना दूर नहीं चल सकती। और फिर आपका कमरा भी तो 1 स्ट फ्लोर पर है ना। आपके कमरे की सीढ़ियां
वो लंगड़ी गुड़िया कै से चढ़ेगी भला?”

मैं उनकी बात सुनकर हँस दी पर फिर भी दिल को जैसे तसल्ली नहीं हुई।

“मैंने आपके साथ सो जाऊं प्लीज...” मैंने उनसे पूछा।

“मम्मी यहाँ आपके कमरे में आपके साथ सोएगी..” मम्मी ने बेड पर मुझे अपने करीब खींचते हुए कहा। “और वैसे भी तो आपकी तबीयत खराब है ना बच्चे।
हम आपको अके ला कै से सोने दे सकते हैं..” पूरा दिन मेरे बुखार में कोई तब्दीली नहीं आई जिसका नतीजा ये हुआ के मैं बिस्तर से उठ ही नहीं पाई। दवाइयां
खाए मैं बेड पर पड़ी पूरा दिन सोती रही।

आप आज मेरे साथ सोएंगी ना...” मैंने डिनर टेबल पर माँ से पूछा। शाम होते होते मेरा बुखार काफी कम हो चुका था इसलिए रात के डिनर के लिए पापा मुझे
उठाकर नीचे ही ले आए थे। मुझे डर था की कहीं ये सोचकरके मेरा बुखार उतर गया है, मम्मी मेरे साथ सोने का अपना इरादा बदल ना दें।

“हाँ... जी बेटा...” माँ ने जवाब दिया- “मम्मी आपके साथ ही सोएगी.”

और ऐसा हुआ भी। उस रात जब मैं सोई, तो मेरा सर माँ की बगल में था। मैं पूरा दिन सोई थी इसलिए माँ के सोने के बाद भी काफी देर तक जागती रही थी।
और जब सोई, तो ऐसी कच्ची नींद की हल्की सी आहट पर भी मेरी आँख खुल जाती थी। और जैसे ही मेरी आँख खुलती, मैं सबसे पहले मम्मी को देखकर ये
तसल्ली करती की वो अब भी मेरे साथ ही हैं और उसके बाद दूसरी तसल्ली ये करती की दरवाजा खुला हुआ नहीं है।
“वो लंगड़ी गुड़िया भला कै से आपके कमरे की सीढ़ियां चढ़ेगी...” मुझे पापा की कही बात याद आती तो थोड़ा हौसला और मिल जाता।

रात यूं ही आँखों आँखों में और जागने सोने का खेल करते हुए गुजर रही थी। ऐसी ही एक आहट पर मेरी आँख फिर खुली। हर बात की तरह इस बार भी
सबसे पहले मैंने मम्मी और फिर दरवाजा बंद होने की तसल्ली की। फिर मेरा ध्यान उस आवाज की तरफ गया जिसकी वजह से मेरी आँख खुली थी। आवाज
दरवाजे की तरफ से आ रही थी। मैं डर से सहम गई और मम्मी का हाथ थाम लिया। आहट एक बार फिर हुई तो मुझे यकीन हो गया की आवाज दरवाजे के
बाहर से आ रही थी।

एक...आवाज फिर आई तो इस बार मुझे साफ सुनाई दी। बड़ी अजीब सी आवाज थी जैसे कोई हांफता हुआ बोल रहा हो।

दो..."

आवाज के साथ साथ साँस की आवाज भी साफ सुनाई दे रही थी जैसे कोई बहुत भाग कर आया हो और बड़ी मुश्किल से चल पा रहा हो।

तीन...”

और इसके साथ ही पापा की कही बात भी जैसे एक बार फिर मेरे कान में गूंज उठी।

हम उसे बहुत दूर फें क कर आए हैं बेटा। और वैसे भी, लंगड़ी गुड़िया आपके कमरे की सीढ़ियां कै से चढ़ेगी?"

“वो मेरे कमरे की सीढ़ियां चढ़ रही है। वो वापिस आ गई है..” मेरे दिमाग में जैसे बाम्ब सा फटा।

चार...”

और इसके साथ ही मैंने बगल में लेटी अपनी माँन के कं धे को पकड़कर जोर जोर से हिलाना शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद ही सुबह की हल्की हल्की रोशनी
चारों तरफ फै ल गई पर हमारे घर में सब लोग जाग चुके थे।

“मैंने कहा था ना की यहाँ मत आओ। कु छ है इस घर में..." बाहर मम्मी पापा के साथ झगड़ा कर रही थी।

“ओह कम ओन...” पापा ने जवाब दिया- “तुम भी क्या बच्चों की बातों में आ गई। वो एक छोटी बच्ची है और डरी हुई है.”

“जो भी है पर क्या तुमने नहीं देखा की डर के मारे उस बेचारी की हालत कै सी हो रखी है... बुखार में काँप रही है। वो। डर के मारे उसका गला बैठ गया है। वो
मुश्किल से बोल सकती है...”

“डाक्टर को बुला भेजा है मैंने..." पापा ने जवाब दिया।

“बात डाक्टर की नहीं है। आई डोंट वान्ट टु स्टे इन दिस हाउस अनीमोर। लेट्स गो बैक...”

“यू आर रूइनिंग योर वाके शन...”

“इस युवर वाके शन वरथ द लाइफ आफ युवर डाटर..."

इस बात का शायद पापा के पास भी कोई जवाब नहीं था। कु छ पल के लिए खामोशी छा गई।

आल राइट, वी विल हेड बैक टुमारो...” उन्होंने मम्मी की जिद के आगे हथियार डालते हुए कहा।

मैं बड़ी मुश्किल से अपने बेड से उठी और दरवाजे तक आई। दरवाजा खोलकर मैंने अपने कमरे के बाहर की सीढ़ियां गिनी। पूरी 11 सीढ़ियां। रात की आवाज
की तरफ मैंने फिर से ध्यान दिया। सीढ़ियों पर कोई निशान तो नहीं थे पर मुझे यकीन था की वो आवाज उस गुड़िया के घिसटने की थी। वो लंगड़ी थी और
अपने एक पैर को खींचते हुए सीढ़ियां चढ़ रही थी।

मैंने फौरन दरवाजा बंद किया और आकर बेड पर लेट गई।

वी विल हेड बैक टू मारो...” पापा की कही बात ने मुझे तसल्ली तो दी थी पर एक बड़ा सवाल अब भी बाकी था। आज की रात कु छ हुआ तो...

“बाइ द वे, वो गुड़िया है कहाँ..." मम्मी की बाहर से फिर आवाज आई “मैंने इसे बेसमेंट में फें क दिया था...”

वो अब भी घर में है.. वो फिर आई तो... वो बेसमेंट से निकल आई तो.. पापा ने तो कहा था की फें क आए उसे... इसलिए वो कल रात मेरे कमरे में आना
चाह रही थी क्योंकी वो घर में ही है.. मेरे दिमाग ने जैसे हजारो सवाल उठा दिए और मुझे पापा पर गुस्सा आने लगा।
उस रात मेरे लिए सोना मुश्किल था। लाख कोशिश करने पर भी नींद नहीं आ रही थी। मुझे बस यही डर सता रहा था की वो गुड़िया अब भी घर में ही थी और
कहीं फिर कल रात की तरह मेरे कमरे की सीढ़ियां चढ़ने की कोशिश ना करे। पर फिर मम्मी को अपनी बगल में लेटी देखकर तसल्ली हो जाती थी की उनके
रहते वो मेरा कु छ नहीं बिगड़ सकती थी।

डरते डरते कब मेरी आँख लग गई मुझे पता ही नहीं चला। और एक बार फिर आहट हुई तो मेरी आँख खुली। हर बार की तरह इस बार भी मैंने बगल में देखा
तो डर के मारे जैसे जान ही निकल गई। मम्मी मेरी साइड में नहीं थी। “मम्मी कहाँ गई..” मेरे दिमाग ने फौरन सवाल तो उठाया पर कोई जवाब नहीं दिया-
"शायद अपने कमरे में वापिस चली गई...”

कमरे के बाहर फिर वैसी ही आवाज आ रही थी जैसे की कल रात आई थी। एक घिसटने जैसी आवाज जैसे कोई बड़ी मुश्किल से चल पा रहा हो।

मैं जानती थी के वो आवाज क्या थी? वो एक बार फिर उठ आई थी। बेसमेंट से निकलकर मेरे कमरे की सीढ़ियां चढ़कर मुझ तक पहुँचने की कोशिश कर रही
थी।

“नौ..” आवाज आई।

वो 9 सीढ़ियां चढ़ चुकी है मतलब 3 कदम और... और वो कमरे के अंदर आ जाएगी।

क्या करेगी वो मेरे साथ... क्या मार डालेगी मुझे... मम्मी कहाँ गई... सवाल फिर दिमाग में उठे और मैंने जोर से चीख मारी जो शायद मैंने खुद ही नहीं सुनी।
बुखार से मेरा गला बैठ गया था और आवाज ही नहीं निकल पा रही थी। मैंने फिर कोशिश की पर कामयाभी हाथ नहीं आई। मेरे गले से सिर्फ हवा ही निकली,
आवाज नहीं।

“दस..." आवाज फिर आई।

कहते हैं की जान पर आ बने तो एक चींटी भी अपने आपको बचाने की पूरी कोशिश करती थी मैं तो फिर भी इंसान थी, छोटी थी तो क्या। मैं जानती थी की
चीखना चिल्लाना काम नहीं आएगा। मैंने फौरन अपने चारों। तरफ देखा की शायद कोई बचाव करने के लिए चीज मिल जाए पर कु छ भी ऐसा नजर नहीं आया।

“ग्यारह...”

और इसके साथ ही मेरे कमरे की डोर नाब घूमी। मैं जानती थी की वो बाहर खड़ी दरवाजा खोलकर अंदर आने की कोशिश कर रही है।

वो गुड़िया तो लंगड़ी है। चलेगी कै से। आपके कमरे की सीढ़ियां चढ़ेगी कै से?"

मुझे फिर पापा की कही बात याद आई और इसके साथ ही खुद को बचाने का तरीका भी दिमाग में आ गया।

गुड़िया लंगड़ी है और मुझे पकड़ ही नहीं सकती। मुझे सिर्फ भागना है। भाग कर मम्मी पापा के कमरे तक पहुँचना है।

मैं फौरन अपने बेड से उठी और तभी उसी वक़्त मेरे कमरे का दरवाजा खुला। जो हिम्मत मैंने थोड़ी देर में बटोरी थी वो दरवाजा खुलते देख हवा हो गई।
भागने का मेरा प्लान फौरन दरवाजे को फिर से बंद करने के प्लान में बदल गया। दरवाजा थोड़ा सा खुला ही था के मैं फौरन दरवाजे की ओर लपकी और झटके
से दरवाजा फिर बंद कर दिया ताकि वो मेरे कमरे में ना आने पाए। और इसके साथ ही मुझे दो आवाजें सुनाई दी। एक तो किसी के गिरने की आवाज और
दूसरी एक बहुत जानी पहचानी आवाज- मेरे भाई की आवाज।

मैं वहाँ दरवाजे के पास कितनी देर तक खड़ी रही मैं नहीं जानती पर वो बहुत लंबा वक्त था। मुझे समझ नहीं आ रहा था की हुआ क्या पर फिर उसके बाद
कोई दूसरी आवाज नहीं आई। ना किसी के चलने की आवाज; ना घिसटने की आवाज; ना गिनती की आवाज।

कु छ देर बाद मैंने हिम्मत करके दरवाजा खोला और नीचे की तरफ देखा। नीचे सीढ़ियों के पास मेरा भाई गिरा पड़ा था और उसके आस पास बहुत सारा खून
था जो उसके सर से निकल रहा था।

अगले दिन सुबह घर में हंगमा मचा हुआ था। कभी मम्मी के रोने की आवाज आती तो कभी पापा के चिल्लाने की आवाज तो कभी किसी और के आने जाने की
आवाज। कभी पोलीस, कभी आंब्युलेन्स कभी कोई तो कभी कोई, जाने कितने लोग आए और कितने गये। हर किसी की जुबान पर एक ही सवाल था- “ये
हुआ कै से?”

किसी ने मुझसे नहीं पूछा, किसी को मैंने नहीं बताया। कभी नहीं। आज तक नहीं। घर पर मनहूस होने का लेबल एक बार फिर चिपक गया।

आल राइट..” मेहरा घर से बाहर आकर बोला तो मेरा ध्यान टू टा- “आई विल बाईं द हाउस...”

***** समाप्त *****

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