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Shani Pradosh

श न दोष
(In Hindi)

Essence Of Astrology
- By Lokesh Agrawal
Essence Of Astrology श न दोष http://essenceofastro.blogspot.com/

दोष त ​ शवजी क स नता और भु व क ाि त के योजन से कये जाने वाला एक पा क त है


अथात येक मह ने शु लप और कृ णप क दोषकाल न योदशी त थ को त रखते ह। हे मा
अनस ू न और न तभोजन मु य है “ शवपज
ु ार इसम शवपज ू ान तभोजन मकं दोषम”्

कंदपरु ाण, मख ड, मो र ख ड, अ याय 6 के अनस


ु ार
योद यां तथौ सायं दोषः प रक तः । त पू यो महादे वो ना यो दे वः फला थ भः ।।
दोषपज
ू ामाहा यं को नु वण यतंु मः । य सवऽ प वबध
ु ाि त ठं त ग रशां तके ।।
दोषसमये दे वः कैलासे रजतालये । करो त न ृ यं वबध
ु रै भ टुतगण
ु ोदयः ।।
अतः पज
ू ा जपो होम त कथा त गण
ु तवः । क यो नयतं म य चतव
ु गफला थ भः ।।
दा र य त मरांधानां म यानां भवभी णाम ् । भवसागरम नानां लवोऽयं पारदशनः ।।
दःु खशोकभया ानां लेश नवाण म छताम ् । दोषे पावतीश य पज
ू नं मंगलायनम ् ।।

िजसका सार है “ योदशी त थ म सायंकाल को दोष कहा गया है । दोष के समय महादे वजी कैलाशपवत
के रजत भवन म न ृ य करते ह और दे वता उनके गण
ु का तवन करते ह। अतः धम, अथ, काम और मो
क इ छा रखने वाले पु ष को दोष म नयमपव
ू क भगवान शव क पज
ू ा, होम, कथा और गण
ु गान करने
चा हए। द र ता के त मर से अंधे और भ तसागर म डूबे हुए संसार भय से भी मनु य के लए यह
दोष त पार लगाने वाल नौका है । शव-पावती क पज
ू ा करने से मनु य द र ता, म ृ य-ु दःु ख और पवत
के समान भार ऋण-भार को शी ह दरू करके स प य से पिू जत होता है ।”

श नवार को दोषकाल म योदशी त थ हो तो उसे श न दोष कहा जाता है । अगर स पण


ू दन ह
योदशी हो तो श न योदशी भी कहते ह। ावण और का तक मास म श न दोष का अ त वशेष मह व
है । इस दन ​ दोष त ज र रखना चा हए।

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शवकृपा से इस वष ावण श नवार के दन श न दोष है ।


18 जल
ु ाई 2020 - ावण कृ ण श न दोष
01 अग त 2020 - ावण शु ल श न दोष

भ व य (2020, 2021, 2022) म आने वाले श न दोष


12 दस बर 2020 - मागशीष कृ ण श न दोष
24 अ ल
ै 2021 - चै शु ल श न दोष
08 मई 2021 - वैशाख कृ ण श न दोष
04 सत बर 2021 - भा पद कृ ण श न दोष
18 सत बर 2021 - भा पद शु ल श न दोष
15 जनवर 2022 - पौष शु ल श न दोष
22 अ टूबर 2022 - का तक कृ ण श न दोष
05 नव बर 2022 - का तक शु ल श न दोष

व भ न मत से श न दोष को महा दोष तथा द प दोष भी कहा जाता है । कुछ व वान केवल कृ णप
के श न दोष को ह महा दोष मानते ह। ​अगर संभव हो सके
तो श न दोष को सांयकाल 1000 अथवा 100 अथवा कम से
कम 32 द पक शव मं दर म ज र जलाएं। सव म रहे गा
अगर आप यो त लग के दशन करे ल। कृ णप श न दोष
मम
​ हाकाले वर ​उ जैन के दशन तो बहुत ह भा यवान लोग
को मलते ह। ाचीन काल म कृ ण श न दोष को
महाकाले वर यो त ल ग म अ त वशेष पज
ू ा होती थी।

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श न दोष त क म हमा अपार है | क दपरु ाण म ा मखंड - ममो रखंड म हनम


ु ान जी कहते ह क

एष गोपसत
ु ो द या दोषे मंदवा सरे । अमं ण
े ा प संपू य शवं शवमवा तवान ् ।।
मंदवारे दोषोऽयं दल
ु भः सवदे हनाम ् । त ा प दल
ु भतरः कृ णप े समागते ।।
एक गोप बालक ने श नवार को दोष के दन बना मं के भी शव पज
ू न कर उ ह पा लया। श नवार को
दोष त सभी दे हधा रय के लए दल
ु भ है । कृ णप आने पर तो यह और भी दल
ु भ है ।

ऐसी मा यता है क श न दोष का दन शव पज


ू ा के लए सव े ठ है । अगर कोई यि त लगातार 4
श न दोष करता है तो उसके ज म ज मांतर के पाप धल
ू जाते ह साथ ह वह पतऋ
ृ ण से भी मु त हो
जाता है ।

क नड़ कौ शक रामायण के अनस
ु ार श न दोष म ब वप से शव सह ाचन करने से ा मण
ापमोचन हो जाता है ।

त के दन दोषकाल म पज
ू ा कर। पु ड धारण करे । शव पावती यग
ु ल द प त का यान करके उनक
मान सक पज
ू ा करे । पज
ू ा के आर भ म एका च हो संक प पढ़े । तदन तर हाथ जोड़कर मन-ह -मन
उनका आ वान करे - ​“​हे भगवान ् शंकर ! आप ऋण, पातक, दभ
ु ा य और द र ता आ द क नव ृ के लये
मझ
ु पर स न ह । म दःु ख और शोक क आग म जल रहा हूँ, संसार भय से पी ड़त हूँ, अनेक कार के
रोग से याकुल और द ं हूँ। वष
ृ वाहन! मेर र ा क िजये। दे वदे वे वर! सबको नभय कर दे ने वाले महादे व
जी! आप यहाँ पधा रये और मेर मेर क हुई इस पज
ू ा को पावती के साथ हण क िजये।”

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इसके प चात ् ग रजाप त क ाथना इस कार करे


ी गणेशाय नमः ।

जय दे व जग नाथ जय श कर शा वत । जय सवसरु ा य जय सवसरु ा चत ॥ १॥

जय सवगण
ु ातीत जय सववर द । जय न य नराधार जय व व भरा यय ॥ २॥

जय व वैकव येश जय नागे भष


ू ण । जय गौर पते श भो जय च ाधशेखर ॥ ३॥

जय को यकस काश जयान तगण


ु ा य । जय भ व पा जया च य नर जन ॥ ४॥

जय नाथ कृपा स धो जय भ ता तभ जन । जय द ु तरसंसारसागरो ारण भो ॥ ५॥

सीद मे महादे व संसारात य ख यतः । सवपाप यं कृ वा र मां परमे वर ॥ ६॥

महादा र यम न य महापापहत य च । महाशोक न व ट य महारोगातरु य च ॥ ७॥

ऋणभारपर त य द यमान य कम भः । है ः पी यमान य सीद मम श कर ॥ ८॥

द र ः ाथये दे वं दोषे ग रजाप तम ् । अथा यो वाऽथ राजा वा ाथये दे वमी वरम ् ॥ ९॥

द घमायःु सदारो यं कोशव ृ धबलो न तः । ममा तु न यमान दः सादा व श कर ॥ १०॥

श वः सं यं या तु सीद तु मम जाः । न य तु द यवो रा े जनाः स तु नरापदः ॥ ११॥

द ु भ म रस तापाः शमं या तु मह तले । सवस यसम ृ ध च भय


ू ा सख
ु मया दशः ॥ १२॥

एवमाराधये दे वं पज
ू ा ते ग रजाप तम ् । ा मणा भोजयेत ् प चा द णा भ च पज
ू येत ् ॥ १३॥

सवपाप यकर सवरोग नवारणी । शवपज


ू ा मयाऽऽ याता सवाभी टफल दा ॥ १४॥

॥ इ त दोष तो ं स पण
ू म्॥

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क दपरु ाण म व णत दोष तो ा टकम का पाठ कर


ी गणेशाय नमः ।

स यं वी म परलोक हतं ी म, सारं वी यप


ु नष धद
ृ यं वी म ।

संसारमु बणमसारमवा य ज तोः, सारोऽयमी वरपदा बु ह य सेवा ॥ १॥

ये नाचयि त ग रशं समये दोषे, ये ना चतं शवम प णमि त चा ये ।

एत कथां ु तपट
ु ै न पबि त मढ
ू ा ते, ज मज मसु भवि त नरा द र ाः ॥ २॥

ये वै दोषसमये परमे वर य, कुव यन यमनस ऽ सरोजपज


ू ाम ् ।

न यं व ृ धधनधा यकल पु सौभा य-स पद धका त इहै व लोके ॥ ३॥

कैलासशैलभव
ु ने जग ज न ीं गौर ,ं नवे य कनका चतर नपीठे ।

न ृ यं वधातम
ु भवा छ त शल
ू पाणौ, दे वाः दोषसमये नु भजि त सव ॥ ४॥

वा दे वी धत
ृ व लक शतमखो वेणंु दध प मज- तालोि न करो रमा भगवती गेय योगाि वता ।

व णःु सा मद
ृ गवादनपटुदवाः सम ताि थताः, सेव ते तमनु दोषसमये दे वं मडृ ानीप तम ् ॥ ५॥

ग धवय पतगोरग स धसा य- व याधरामरवरा सरसां गणां च ।

येऽ ये लोक नलया सहभत


ू वगाः, ा ते दोषसमये हरपा वसं थाः ॥ ६॥

अतः दोषे शव एक एव, पू योऽथ ना ये ह रप मजा याः ।

ति म महे शे व धने यमाने, सव सीदि त सरु ा धनाथाः ॥ ७॥

एष ते तनयः पव
ू ज म न ा मणो मः ।

त है वयो न ये न दाना यैः सक


ु म भः ॥ ८॥

अतो दा र यमाप नः पु ते वजभा म न ।

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त दोषप रहाराथ शरणां यातु श करम ् ॥ ९॥

॥ इ त ी का दो तं दोष तो ा टकं स पण
ू म्॥

संतान ाि त के लए श न दोष त एक अचक


ू उपाय है । वषेशतः शु ल श न दोष।

हे मा म आया है
यदा योदशी कृ णा सोमवारे ण संयत
ु ा।
यदा योदशी शु ला म दवारे ण संयत
ु ा॥
तदातीव फलं ा तं धनपु ा दकं लभेत ् ।

मदनर न म आया है
यदा योदशी शु ला म दवोरण संयत
ु ा।
आर ध यं तं त संतानफल स धये ॥

मदनर न - नणयामत
ृ ा तगत क दपरु ाणवचना द के अनस
ु ार पु ाि त क कामना से शु ल श न दोष
क व ध इस कार है :
तके दन ातः ाना द करके ' ​मम पु ा द ाि तकामनया दोष तमहं क र ये ।' यह संक प करके
सय
ू ा तके समय पन
ु ः ान करे और शवजीके समीप बैठकर वेदपाठ ा मणके आ ानस
ु ार
भवाय भवनाशाय महादे वाय धीमते ।
ाय नीलक ठाय शवाय श शमौ लने ॥
उ ायो ाघनाशाय भीमाय भयहा रणे ।
ईशानाय नम तु यं पशन
ू ां पतये नमः ॥

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इस म से ाथना करके षोडशोपचार से पज


ू न करे । नैवे य म सेके हुए जौका स ,ू घी और श कर का
भोग लगावे । इसके बाद वह ं आठ दशाओं म आठ द पक रखकर येक के थापन म आठ बार
नम कार करे । इसके बाद
धम वं वष
ृ पेण जगदान दकारक ।
अ टमत
ू र ध ठनमतः पा ह सनातन ॥
से वष
ृ ( न द वर ) को जल और दव
ू ा खला - पलाकर उसका पज
ू न करे और उसको पश करके
ऋणरोगा ददा र यपाप ुदपम ृ यवः ।
भयशोकमन तापा न य तु मम सवदा ॥
पिृ व यां या न तीथा न सागरा ता न या न च ।
अ डमा य त ठि त दोषे गोवष
ृ य तु ॥
प ृ टा तु वष
ृ णौ त य ृ गम ये वलो य च ।
पु छं च ककुदं चैव सवपापैः मु यते ॥
इस म न से शव, पावती और नि दके वर क ाथना करे । यह त (पु कामना से शु ल श न दोष
त) वशेषकर ि य के करने का है और वष
ृ के पु छ और ृ ग आ द के पश करने से अभी टा स ध
होती है ।

श न दोष : का तक शु ल योदशी

क दपरु ाण क
​ े माहे वरखंड अंतगत केदारखंड अ याय 17 म का तक शु ल योदशी के बारे म वशेष
वणन मलता है िजसके अनस
ु ार ​का तक मास क शु लप ​म श नवार के दन य द परू योदशी मले तो
यह समझना चा हए क मझ
ु े सब कुछ ा त हो गया है । उस दन दोष काल म सब कामनाओ क स ध
क लए लंग प धार भगवान ् शव का पज
ू न करना चा हए । यह वशेष ​श न दोष ह
​ ै । यह संयोग कई
वष म एक बार आता है । हम सबको शवपज
ू ा के लए इसका उपयोग करना चा हए।

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॥बहृ प त वाच॥
का तके शु लप े तु मंदवारे योदशी॥ सम ा य द ल येत सव ा तयै न संशयः॥
त यां दोषसमये लंग पी सदा शवः॥ पज
ू नीयो ह दे व सवकामाथ स धये॥
ना वा म या नसमये तलामलकसंयत
ु म ्॥ शव य कुया गंधपु पफला द भः॥
प चा दोषवेलायां थावरं लंगम चयेत ्॥ वयंभु था पतं चा प पौ षेयमपौ षम ्॥
जने वा वजने वा प अर ये वा तपोवने॥ ति लंगम चये भ या दोषे तु वशेषतः॥
ाम ब हः ि थतं लंगं ामा छतगण
ु ं फलम ्॥ ा म छतगण
ु ं पु यमर ये लंगम भत
ु म ्॥
आर या छतगण
ु ं पु यम चतं पावतं यथा॥ पावता चैव लंगा च फलं चायत
ु सं तम ्॥
तपोवना तं लंगं पिू जतं वा महाफलम ्॥
त मादे त वभागेन शवपज
ू नाचनं बध
ु ःै ॥ क वयं नपण
ु वेन तीथ नाना दकं तथा॥
पंच पंडा समु ध ृ य नानमा ण
े शोभनम ्॥ कूपे नानं कुव त उ धत
ृ न
े वसेषतः॥
तडागे दश पंडां च उ ध ृ य नानमाचरे त ्॥ नद नानं व टं च महान यां वशेषतः॥
सवषाम प तीथानां गंगा नानं व श यते॥ दे वखाते च त ु यं श तं नानमाचरे त ्॥

“दे वराज ! का तक मास क शु ल प म श नवार के दन य द परू योदशी मले तो यह समझना चा हए


क मझ
ु े सब कुछ ा त हो गया है । उस दन दोष काल म सब कामनाओ क स ध क लए लंग प
धार भगवान ् शव का पज
ू न करना चा हए । दोपहर के समय नान करके तल और आंवले के साथ गंध,
पु प और फल आ द के वारा शव जी क पज
ू ा करे । गाँव के बाहर जो शव लंग ि थत है , उसके पज
ू न का
फल गाँव के अपे ा सौ गन
ु ा अ धक है । उस से भी सौ गन
ु ा अ धक महा य उस शव लंग पज
ू न का है , जो
वन म ि थत हो । वन क अपे ा भी सौ गन
ु ा पु य पवत पर ि थत शव लंग पज
ू न का है । पवतीय
शव लंग क अपे ा तपोवन म ि थत शव लंग के पज
ू न का फल दस हजार गन
ु ा अ धक है । वह महान
फलदायक है । अतः व वान को इस वभाग के अनस
ु ार शव लंग का पज
ू न करना चा हए और तडाग
आ द तीथ म व धवत नान आ द करना चा हए । मटट के पांच पंड नकाले बना कसी बावड़ी म
नान करना शभ
ु कारक नह ं है । कुऐं म से अपने हाथ से जल नकाल कर नह ं नान करना चा हए (र सी
आ द क सहायता से कसी पा म जल नकल कर ह नान करना चा हए) । पोखर से मटट के दस पंड

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नकाल करना ह नान करना चा हए । नद म नान करना सबसे उ म है । सब तीथ म गंगा का नान
सव म है ।

द पानां सह ेण द पनीयः सदा शवः॥ तथा द पशतेना प वा श


ं द पमालया॥
घत
ृ न
े द पये द पाि छव य प रतु टये॥ तथा फलै च द पै च नैवे यैगधधप
ू कैः॥
उपचारै ः षोडश भ लग पी सदा शवः॥ पू यः दोषवेलायां न ृ भः सवाथ स धये॥
द णं कुव त शतम टो रं तथा॥ नम कारा कुव त ताव सं या य नतः॥
द णनम कारै ः पज
ू नीयः सदा शवः॥ ना नां शतेन ोऽसौ तवनीयो यता व ध॥

दोष काल म नान करके मौन रहना चा हए । भगवान ् के समीप 1000 द पक जलाकर काश करना
चा हए । इतना संभव न हो तो 100 अथवा 32 द पो से भी भगवान ् शव के समीप काश कया जा सकता
है । शव क स नता के लए घी से द पक जलना चा हए । इसी कार फल, धप
ू , नैवै य, गंध और पु प
आ द षोडश उपचार से लंग प भगवान ् सदा शव क दोषकाल म पज
ू ा करनी चा हए । वे भगवान ् संपण

मनोरथो को स ध करने वाले ह । य द जलहर का जल न उलांघना पड़े तो पज
ू न के प चात भगवान ् शव
क 108 बार प र मा करनी चा हए । फर य नपव
ू क 108 बार ह नम कार करना चा हए । इस कार
प र मा और नम कार से भगवान ् सदा शव को स न करना उ चत है । त प चात सौ नाम से
व धपव
ू क भगवान ् क तु त करनी चा हए ।

नमो ाय नीलाय भीमाय परमा मने । कपद सरु े शाय योमकेशाय वै नमः ।।

वष
ृ भ वजाय सोमाय सोमनाथाय श भवे । दग बराय भगाय उमाका ताय वै नमः ।।

तपोमयाय भ याय शव े ठाय व णवे । याल याय यालाय यलानाम पतये नमः ।।

मह धराय या ाय पशन
ु ाम पतये नमः । परु ा तकाय संहाय शादलाय
ु मखाय च ।।

मीनाय मीननाथाय स धाये परमेि ठने । कामा ताकाय बु धाय बु धनाम पतये नमः ।।

कपोताय व श टाय श टाय सकला मने । वेदाय वे जीवाय वे गु याय वै नमः ।।

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द घाय द घ पाय द घाथया वना शने । नमो जग त ठाय योम पाय वै नमः ।।

गजासरु महाकालाय धकासरु भे दने । नीललो हत शु लाय चंड मु ड याय च ।।

भि त याय दे वाय ा े ान याय च । महे शाय नम तु यं महादे व हराय च ।।

ने ाय वेदाय वेदा गाय नमो नमः । अथाय चाथ पाय परमाथाय वै नमः ।।

व वभप
ू ाय व वाय व वनाथाय वै नमः । शंकराय च कालाय कालावयव पणे ।।

अ पाय व पाय सू मसू माय वै नमः । श शानवा सने भय


ू ो नम ते वा ससे ।।

शशांक शेखराये शायो भू मशयाय च । दग


ु ायाय दग
ु पाराय दग
ु ावयवसा णे ।।

लंग पाय लंगाय लगानाम पतये नमः । नमः लय पाय णवाथय वै नमः ।।

नमो नमः कारणकारणाय म ृ यु जयाया मभव व पणे ।

ी य बकाया सतकंठशव गौर पते सकलमंगा हे तवे नमः ।।

नारदपरु ाण ​के अनस


ु ार
ऊ शु ल योद यामेकभोजी वजो म । पन
ु ः ना वा दोषे तु वा यतः सस
ु मा हतः ।।
द पानां सह ेण शतेना यथवा वज । द पयेि छवं वा प वा श
ं द पमालया ।।
घत
ृ न
े द पये वीपा गंधा यैः पज
ू येि छवम ् । फलैनाना वधै चैव नैवे यैर प नारद ।।
ततः तव
ु ीत दे वेशं शवं ना नां शतेन च । ता न नामा न क यते सवाभी ट दा न वै ।।

का तक शु ल योदशी को मनु य एक समय भोजन करके त रखे। दोषकाल म पन


ु ः नान नान करके
मौन और एका च हो ब ीस द पक क पंि त से भगवान शव को आलो कत करे । घी से द पक को
जलाए और गंध आ द से भगवान शव क पज
ू ा करे । फर नाना कार के फल और नैवे य वारा उ ह

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संतु ट करे । तद तर न न नाम से दे वे वर शव क तु त करे (कुछ श द म अ तर के अलावा यह


तु त क दपरु ाण म व णत तु त के समान ह है ) -

नमो ाय भीमाय नीलकंठाय वेधसे । कप दने सरु े शाय योमकेशाय वै नमः ।।

वष
ृ वजाय सोमाय सोमनाथाय वै नमः । दगंबराय भग
ं ृ ाय उमाकांताय व धने ।।

तपोमयाय या ताय श प व याय वै नमः । याल याय यालाय यालानां पतये नमः ।।

मह धराय योमाय पशन


ू ां पतये नमः । परु नाय संहाय शादलायाषभाय
ू च ।।

मताय मतनाथाय स धाय परमेि ठने । वेदगीताय गु ताय वेदगु याय वै नमः ।।

द घाय द घ पाय द घाथाय मह यसे । नमो जग त ठाय योम पाय वै नमः ।।

क याणाय व श याय श टाय परमा मने । गजकृ धरायाथ अंधकासरु भे दने ।।

नीललो हतशु लाय चडमड


ंु याय च । भि त याय दे वाय य ांताया ययाय च ।।

महे शाय नम तु यं महादे वहराय च । ने ाय वेदाय वेदांगाय नमो नमः ।।

अथायाथ व पाय परमाथाय वै नमः । व व पाय व वाय व वनाथाय वै नमः ।।

शंकराय च कालाय कालावयव पणे । अ पाय व पाय सू मसू माय वै नमः ।।

मशानवा सने तु यं नम ते कृ वाससे । शशांकशेखरायाथ भू म ताय च ।।

दग
ु ाय दग
ु पाराय दग
ु ावयवसा णे । लंग पाय लंगाय लंगानपतये नमः ।।

नमः भाव पाय भावाथाय वै नमः ।।

नमो नमः कारणकारणाय ते म ृ यज


ंु याया मभव व पणे । यंबकाय श तकंठभा गणे गौर यज
ु े

मंगलहे तवे नमः ।।

ना नां शत मदं व पना कगण


ु क तनम ् । प ठ वा द णीकृ य ायाि नज नकेतनम ् ।।

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एवं कृ वा तं व महादे व सादतः । भु वेह भोगान खलानंते शवपदं लभेत ् ।।

व वर! पनाकधार महादे वजी के गण


ु का तपादन करने वाले इन नाम का पाठ करके महादे वजी क
प र मा करने से मनु य भगवान के नज धाम म जाता है । मन! इस कार त करके मनु य
महादे वजी के साद से इहलोक के स पण
ू भोग भोगकर अंत म शवधाम ा त करता है ।

महादे व! महादे व! महादे व!

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- By Lokesh Agrawal
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