Professional Documents
Culture Documents
. .
.
.
॥ ी राम चिरत मानस ॥
.
.. Shri Ram Charit Manas ..
. .
sanskritdocuments.org
July 26, 2016
.
Document Information
ु
रायँ सभायँ मकु ु कर लीा। बदन ु िबलोिक मक
ु ु ट सम कीा ॥
वन समीप भए िसत के सा। मनँ जरठपन ु अस उपदेसा ॥
ु
नृप जबराज राम कँ दे। जीवन जनम ला िकन ले ॥
दो. यह िबचा उर आिन नृप सिदनु ु सअवस
ु पाइ।
ु
ेम पलिक ु सनायउ
तन मिु दत मन गरिह ु जाइ ॥ २ ॥
कहइ भआ ु सिनअु मिु ननायक। भए राम सब िबिध सब लायक ॥
सेवक सिचव सकल परबासी। ु जे हमारे अिर िम उदासी ॥
सबिह राम िय जेिह िबिध मोही। भ ु असीस जन ु तन ु धिर सोही ॥
ु
िब सिहत पिरवार गोसा। करिहं छो सब रौिरिह नाई ॥
जे गरु चरन रेन ु िसर धरह। ते जन ु सकल िबभव बस करह ॥
मोिह सम य अनभयउ ु न ज। सब ु पायउँ रज पाविन पूज ॥
अब अिभलाष ु एकु मन मोर । पूजिह नाथ अनह ु तोर ॥
मिु न स लिख सहज सने। कहेउ नरेस रजायस ु दे ॥
दो. राजन राउर नाम ु जस ु सब अिभमत दातार।
ु
फल अनगामी मिहप मिन मन अिभलाष ु त ु ार ॥ ३ ॥
सब िबिध गु स िजयँ जानी। बोलेउ राउ रहँिस मृ बानी ॥
नाथ राम ु किरअिहं जबराजू
ु । किहअ कृ पा किर किरअ समाजू ॥
मोिह अछत य होइ उछा। लहिहं लोग सब लोचन ला ॥
भ ु साद िसव सबइ िनबाह। यह लालसा एक मन माह ॥
ु न सोच तन ु रहउ िक जाऊ। जेिहं न होइ पाछ पिछताऊ ॥
पिन
सिनु मिु न दसरथ बचन सहाए।
ु मंगल मोद मूल मन भाए ॥
सनु ु नृप जास ु िबमख
ु पिछताह। जास ु भजन िबन ु जरिन न जाह ॥
भयउ त ु ार तनय सोइ ामी। राम ु पनीत ु
ु ेम अनगामी ॥
दो. बेिग िबलं ब ु न किरअ नृप सािजअ सबइु समाज।ु
ु समं
सिदन ु ग तबिहं जब राम ु होिहं जबराज
ु ु॥ ४ ॥
मिु दत मिहपित मंिदर आए। सेवक सिचव समं ु ु बोलाए ॥
किह जयजीव सीस ित नाए। भूप समं ु गल बचन सनाए ु ॥
ज पाँचिह मत लाग ै नीका। कर हरिष िहयँ रामिह टीका ॥
ु िय बानी। अिभमत िबरवँ परेउ जन ु पानी ॥
मंी मिु दत सनत
िबनती सिचव करिह कर जोरी। िजअ जगतपित बिरस करोरी ॥
जग मंगल भल काज ु िबचारा। बेिगअ नाथ न लाइअ बारा ॥
नृपिह मो सिनु सिचव सभाषा।
ु बढ़त बड़ जन ु लही ससाखा
ु ॥
दो. कहेउ भूप मिु नराज कर जोइ जोइ आयस ु होइ।
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 3
ु ॥ १५ ॥
हरष समय िबसमउ करिस कारन मोिह सनाउ
एकिहं बार आस सब पूजी। अब क कहब जीभ किर जी ॥
फोरै जोग ु कपा अभागा। भलेउ कहत ख रउरेिह लागा ॥
कहिहं झ ूिठ फुिर बात बनाई। ते िय त
ु िह कइ म माई ॥
हमँ कहिब अब ठकरसोहाती। नािहं त मौन रहब िदन ु राती ॥
ु
किर कुप िबिध परबस कीा। बवा सो िनअ लिहअ जो दीा ॥
कोउ नृप होउ हमिह का हानी। चेिर छािड़ अब होब िक रानी ॥
जारै जोग ु सभाउ
ु हमारा। अनभल देिख न जाइ त ु ारा ॥
तात कक बात अनसारी। ु छिमअ देिब बिड़ चूक हमारी ॥
दो. गूढ़ कपट िय बचन सिन ु रािन।
ु तीय अधरबिध
ु
सरमाया ु जािन पितआिन ॥ १६ ॥
बस ब ैिरिनिह सद
सादर पिन ु पिन ँ ित ओही। सबरी गान मृगी जन ु मोही ॥
ु पूछ
तिस मित िफरी अहइ जिस भाबी। रहसी चेिर घात जन ु फाबी ॥
तु पूछँ म कहत डेराऊँ । धरेउ मोर घरफोरी नाऊँ ॥
सिज तीित बिबिध गिढ़ छोली। अवध साढ़साती तब बोली ॥
िय िसय राम ु कहा त ु रानी। रामिह त
ु िय सो फुिर बानी ॥
रहा थम अब ते िदन बीते। समउ िफर िरप ु होिहं िपंरीते ॥
भान ु कमल कुल पोषिनहारा। िबन ु जल जािर करइ सोइ छारा ॥
जिर त ु ािर चह सवित उखारी। ँध किर उपाउ बर बारी ॥
दो. तु िह न सोच ु सोहाग बल िनज बस जान राउ।
मन मलीन महु मीठ नृप राउर सरल सभाउ
ु ॥ १७ ॥
चतरु गँभीर राम महतारी। बीच ु पाइ िनज बात सँवारी ॥
पठए भरत ु भूप निनअउर । राम मात ु मत जानव रउर ॥
सेविहं सकल सवित मोिह नीक । गरिबत भरत मात ु बल पी क ॥
सा त ु ार कौिसलिह माई। कपट चतरु निहं होइ जनाई ॥
राजिह त ु पर ेम ु िबसेषी। सवित सभाउ
ु सकइ निहं देखी ॥
रची ंपच ु भूपिह अपनाई। राम ितलक िहत लगन धराई ॥
यह कुल उिचत राम कँ टीका। सबिह सोहाइ मोिह सिठ ु नीका ॥
आिगिल बात समिु झ ड मोही। देउ दैउ िफिर सो फ ओही ॥
दो. रिच पिच कोिटक कुिटलपन कीेिस कपट बोध ु ॥
किहिस कथा सत सवित कै जेिह िबिध बाढ़ िबरोध ु ॥ १८ ॥
भावी बस तीित उर आई। पूछ ु सपथ देवाई ॥
ँ रािन पिन
ु अबँ न जाना। िनज िहत अनिहत पस ु पिहचाना ॥
का पूछँ त
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 7
ु बन ु सख
दो. भूप मनोरथ सभग ु सिबहं
ु ग समाज।ु
िभिन िजिम छाड़न चहित बचन ु भयंक बाज ु ॥ २८ ॥
मासपारायण, तेरहवाँ िवाम
सनु ानिय भावत जी का। दे एक बर भरतिह टीका ॥
मागउँ सर बर कर जोरी। परवु नाथ मनोरथ मोरी ॥
तापस बेष िबसेिष उदासी। चौदह बिरस राम ु बनबासी ॥
ु मृ बचन भूप िहयँ सोकू । सिस कर अत िबकल िजिम कोकू ॥
सिन
गयउ सहिम निहं क किह आवा। जन ु सचान बन झपटे उ लावा ॥
िबबरन भयउ िनपट नरपा। दािमिन हनेउ मनँ त ता ॥
माथे हाथ मूिद दोउ लोचन। तन ु धिर सोच ु लाग जन ु सोचन ॥
ु
मोर मनोरथ ु सरत फू ला। फरत किरिन िजिम हतेउ समूला ॥
अवध उजािर कीि कै के। दीिस अचल िबपित कै न े ॥
दो. कवन अवसर का भयउ गयउँ नािर िबास।
जोग िसि फल समय िजिम जितिह अिबा नास ॥ २९ ॥
एिह िबिध राउ मनिहं मन झाँखा। देिख कुभाँित कुमित मन माखा ॥
भरत ु िक राउर पूत न होह। आन े मोल बेसािह िक मोही ॥
जो सिन ु स अस लाग त ु ार । काहे न बोल बचन ु सँभारे ॥
दे उत अन ु कर िक नाह। ससंध त ु रघकु ु ल माह ॥
देन कहे अब जिन ब दे। तजँ स जग अपजस ु ले ॥
स सरािह कहे ब देना। जान े लेइिह मािग चबेना ॥
िसिब दधीिच बिल जो क भाषा। तन ु धन ु तजेउ बचन पन ु राखा ॥
अित कटु बचन कहित कै केई। मानँ लोन जरे पर देई ॥
दो. धरम धरंु धर धीर धिर नयन उघारे रायँ।
ु लीि उसास अिस मारेिस मोिह कुठायँ ॥ ३० ॥
िस धिन
आग दीिख जरत िरस भारी। मनँ रोष तरवािर उघारी ॥
ु धार िनठुराई। धरी कू बर सान बनाई ॥
मूिठ कुबि
लखी महीप कराल कठोरा। स िक जीवन ु लेइिह मोरा ॥
बोले राउ किठन किर छाती। बानी सिबनय तास ु सोहाती ॥
िया बचन कस कहिस कुभाँती। भीर तीित ीित किर हाँती ॥
मोर भरत ु राम ु इ आँखी। स कहउँ किर संक साखी ॥
अविस त ु म पठइब ाता। ऐहिहं बेिग सनत
ु दोउ ाता ॥
ु सोिध सब ु साज ु सजाई। देउँ भरत कँ राज ु बजाई ॥
सिदन
दो. लोभ ु न रामिह राज ु कर बत भरत पर ीित।
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 11
ु
किह जयजीव ब ैठ िस नाई। दैिख भूप गित गयउ सखाई ॥
सोच िबकल िबबरन मिह परेऊ। मानँ कमल मू पिरहरेऊ ॥
सिचउ सभीत सकइ निहं पूछँ ी। बोली असभु भरी सभु छी ॥
दो. परी न राजिह नीद िनिस हेत ु जान जगदीस।ु
राम ु राम ु रिट भो िकय कहइ न मरम ु महीस ु ॥ ३८ ॥
आन रामिह बेिग बोलाई। समाचार तब पूछ ँ े आई ॥
चलेउ समं ु राय ख जानी। लखी कुचािल कीि क रानी ॥
सोच िबकल मग परइ न पाऊ। रामिह बोिल किहिह का राऊ ॥
उर धिर धीरज ु गयउ आर । पूछँिहं सकल देिख मन ु मार ॥
समाधान ु किर सो सबही का। गयउ जहाँ िदनकर कुल टीका ॥
राम ु समं
ु िह आवत देखा। आद की िपता सम लेखा ॥
िनरिख बदन ु किह भूप रजाई। रघक ु ु लदीपिह चलेउ लेवाई ॥
राम ु कुभाँित सिचव सँग जाह। देिख लोग जहँ तहँ िबलखाह ॥
दो. जाइ दीख रघबंु समिन नरपित िनपट कुसाज ु ॥
सहिम परेउ लिख िसंिघिनिह मनँ बृ गजराज ु ॥ ३९ ॥
सूखिहं अधर जरइ सब ु अंग।ू मनँ दीन मिनहीन भअंु गू ॥
सष समीप दीिख कै केई। मानँ मीच ु घरी गिन लेई ॥
ु
कनामय मृ राम सभाऊ। थम दीख ख ु सना
ु न काऊ ॥
तदिप धीर धिर समउ िबचारी। पूछ ु
ँ ी मधर बचन महतारी ॥
मोिह क मात ु तात ख कारन। किरअ जतन जेिहं होइ िनवारन ॥
ु राम सब ु कारन ए। राजिह तमु पर बत सन े ॥
सन
देन कहेि मोिह इ बरदाना। मागेउँ जो क मोिह सोहाना।
ु भयउ भूप उर सोचू। छािड़ न सकिहं त
सो सिन ु ार सँकोचू ॥
दो. सतु सनहे इत बचन ु उत संकट परेउ नरेस।ु
सक न आयस ु धर िसर मेट किठन कलेस ु ॥ ४० ॥
िनधरक ब ैिठ कहइ कटु बानी। सनत ु किठनता अित अकुलानी ॥
जीभ कमान बचन सर नाना। मनँ मिहप मृ ल समाना ॥
जन ु कठोरपन ु धर सरी। िसखइ धनषिबा ु बर बी ॥
सब संग ु रघपितिह
ु ु
सनाई। ब ैिठ मनँ तन ु धिर िनठुराई ॥
मन मस ु काइ भानक ु ु ल भान।ु राम ु सहज आनंद िनधानू ॥
बोले बचन िबगत सब षन। मृ मंजल ु जन ु बाग िबभूषन ॥
सनु ु जननी सोइ सतु ु बड़भागी। जो िपत ु मात ु बचन अनरागी ु ॥
ु ु
तनय मात िपत तोषिनहारा। लभ जनिन सकल संसारा ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥
राज ु देन कँ सभु िदन साधा। कहेउ जान बन के िहं अपराधा ॥
ु
तात सनाव मोिह िनदानू। को िदनकर कुल भयउ कृ सानू ॥
दो. िनरिख राम ख सिचवसतु कारन ु कहेउ बझाइ।ु
ु संग ु रिह मूक िजिम दसा बरिन निहं जाइ ॥ ५४ ॥
सिन
रािख न सकइ न किह सक जा। ँ भाँित उर दान दा ॥
िलखत सधाकरु गा िलिख रा। िबिध गित बाम सदा सब का ॥
धरम सन ेह उभयँ मित घेरी। भइ गित साँप ं दिर के री ॥
ु करउँ अनरोधू
राखउँ सतिह ु । धरम ु जाइ अ बंध ु िबरोधू ॥
कहउँ जान बन तौ बिड़ हानी। संकट सोच िबबस भइ रानी ॥
बिर समिु झ ितय धरम ु सयानी। राम ु भरत ु दोउ सतु सम जानी ॥
ु
सरल सभाउ राम महतारी। बोली बचन धीर धिर भारी ॥
तात जाउँ बिल कीे नीका। िपत ु आयस ु सब धरमक टीका ॥
दो. राज ु देन किह दी बन ु मोिह न सो ख लेस।ु
ु िबन ु भरतिह भूपितिह जिह चंड कलेस ु ॥ ५५ ॥
त
ज के वल िपत ु आयस ु ताता। तौ जिन जा जािन बिड़ माता ॥
ज िपत ु मात ु कहेउ बन जाना। त कानन सत अवध समाना ॥
िपत ु बनदेव मात ु बनदेवी। खग मृग चरन सरोह सेवी ॥
अंतँ उिचत नृपिह बनबासू। बय िबलोिक िहयँ होइ हराँस ू ॥
बड़भागी बन ु अवध अभागी। जो रघबंु सितलक त ु ागी ॥
ज सतु कहौ संग मोिह ले। त ु रे दयँ होइ संदे ॥
पूत परम िय त ु सबही के । ान ान के जीवन जी के ॥
ते तु कह मात ु बन जाऊँ । म सिन
ु बचन ब ैिठ पिछताऊँ ॥
दो. यह िबचािर निहं करउँ हठ झ ूठ सन े बढ़ाइ।
मािन मात ु कर नात बिल सरित
ु िबसिर जिन जाइ ॥ ५६ ॥
देव िपतर सब त ु िह गोसाई। राखँ पलक नयन की नाई ॥
अविध अंब ु िय पिरजन मीना। त ु
ु कनाकर धरम धरीना ॥
अस िबचािर सोइ कर उपाई। सबिह िजअत जेिहं भटे आई ॥
जा सखेु न बनिह बिल जाऊँ । किर अनाथ जन पिरजन गाऊँ ॥
सब कर आज ु सकृु त फल बीता। भयउ कराल का िबपरीता ॥
बिबिध िबलिप चरन लपटानी। परम अभािगिन आपिह ु जानी ॥
दान सह दा उर ापा। बरिन न जािहं िबलाप कलापा ॥
राम उठाइ मात ु उर लाई। किह मृ बचन बिर समझ
ु ाई ॥
ु सीय उठी अकुलाइ।
दो. समाचार तेिह समय सिन
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 19
ु
दो. हय गय कोिट के िलमृग परपस ु चातक मोर।
ु सािरका सारस हंस चकोर ॥ ८३ ॥
िपक रथांग सक
राम िबयोग िबकल सब ठाढ़े। जहँ तहँ मनँ िच िलिख काढ़े ॥
नग सफल बन ु गहबर भारी। खग मृग िबपल ु सकल नर नारी ॥
िबिध कै केई िकराितिन कीी। जिह दव सह दसँ िदिस दीी ॥
सिह न सके रघबर ु िबरहागी। चले लोग सब ाकुल भागी ॥
सबिहं िबचार की मन माह। राम लखन िसय िबन ु सख ु ु नाह ॥
जहाँ राम ु तहँ सबइु समाजू। िबन ु रघबीर
ु अवध निहं काजू ॥
चले साथ अस मं ु ढ़ाई। सरु लभ सख ु सदन िबहाई ॥
राम चरन पंकज िय िजही। िबषय भोग बस करिहं िक ितही ॥
दो. बालक बृ िबहाइ गृहँ लगे लोग सब साथ।
तमसा तीर िनवास ु िकय थम िदवस रघनाथ
ु ॥ ८४ ॥
ु जा ेमबस देखी। सदय दयँ ख ु भयउ िबसेषी ॥
रघपित
कनामय रघनाथु गोसाँई। बेिग पाइअिहं पीर पराई ॥
ु
किह सेम मृ बचन सहाए। बिबिध राम लोग समझ ु ाए ॥
िकए धरम उपदेस घन ेरे। लोग ेम बस िफरिहं न फे रे ॥
सी सन े छािड़ निहं जाई। असमंजस बस भे रघराईु ॥
लोग सोग म बस गए सोई। कक देवमायाँ मित मोई ॥
जबिहं जाम जगु जािमिन बीती। राम सिचव सन कहेउ सीती ॥
खोज मािर रथ ु हाँक ताता। आन उपायँ बिनिह निहं बाता ॥
दो. राम लखन सयु जान चिढ़ संभ ु चरन िस नाइ ॥
सिचवँ चलायउ तरु त रथ ु इत उत खोज राइ ॥ ८५ ॥
जागे सकल लोग भएँ भो। गे रघनाथ ु भयउ अित सो ॥
रथ कर खोज कतहँ निहं पाविहं। राम राम किह च िदिस धाविहं ॥
मनँ बािरिनिध बूड़ जहाजू। भयउ िबकल बड़ बिनक समाजू ॥
एकिह एक दिहं उपदेस।ू तजे राम हम जािन कलेस ू ॥
िनंदिहं आप ु सराहिहं मीना। िधग जीवन ु रघबीर
ु िबहीना ॥
ु
ज प ै िय िबयोग िबिध कीा। तौ कस मरन ु न माग दीा ॥
एिह िबिध करत लाप कलापा। आए अवध भरे पिरतापा ॥
िबषम िबयोग ु न जाइ बखाना। अविध आस सब राखिहं ाना ॥
दो. राम दरस िहत न ेम त लगे करन नर नािर।
मनँ कोक कोकी कमल दीन िबहीन तमािर ॥ ८६ ॥
ं बेरपरु पँच े जाई ॥
सीता सिचव सिहत दोउ भाई। सृग
॥ ी राम चिरत मानस ॥
ु
राम लखन पिथ कथा सहाई। रही सकल मग कानन छाई ॥
दो. एिह िबिध रघक ु ु ल कमल रिब मग लोग सखु देत।
जािहं चले देखत िबिपन िसय सौिमि समेत ॥ १२२ ॥
आगे राम ु लखन ु बन े पाछ । तापस बेष िबराजत काछ ॥
उभय बीच िसय सोहित कै स।े जीव िबच माया ज ैसे ॥
बिर कहउँ छिब जिस मन बसई। जन ु मध ु मदन म रित लसई ॥
उपमा बिर कहउँ िजयँ जोही। जन ु बधु िबध ु िबच रोिहिन सोही ॥
भ ु पद रेख बीच िबच सीता। धरित चरन मग चलित सभीता ॥
सीय राम पद अंक बराएँ। लखन चलिहं मग ु दािहन लाएँ ॥
राम लखन िसय ीित सहाई। ु बचन अगोचर िकिम किह जाई ॥
खग मृग मगन देिख छिब होह। िलए चोिर िचत राम बटोह ॥
दो. िज िज देख े पिथक िय िसय समेत दोउ भाइ।
भव मग ु अगम ु अनं तेइ िबन ु म रहे िसराइ ॥ १२३ ॥
अजँ जास ु उर सपन ेँ काऊ। बसँ लखन ु िसय राम ु बटाऊ ॥
राम धाम पथ पाइिह सोई। जो पथ पाव कबँ मिु न कोई ॥
ु िमत िसय जानी। देिख िनकट बटु सीतल पानी ॥
तब रघबीर
तहँ बिस कं द मूल फल खाई। ात नहाइ चले रघराई ु ॥
देखत बन सर स ैल सहाए।ु बालमीिक आम भ ु आए ॥
राम दीख मिु न बास ु सहावन।
ु सदं ु र िगिर कानन ु ज पावन ॥
सरिन सरोज िबटप बन फू ले। गज ं ु त मंज ु मधपु रस भूले ॥
खग मृग िबपल ु कोलाहल करह। िबरिहत ब ैर मिु दत मन चरह ॥
ु सदं ु र आम ु िनरिख हरषे रािजवन ेन।
दो. सिच
ु रघबर
सिन ु आगमन ु मिु न आग आयउ लेन ॥ १२४ ॥
मिु न कँ राम दंडवत कीा। आिसरबा िबबर दीा ॥
ु
देिख राम छिब नयन जड़ाने। किर सनमान ु आमिहं आन े ॥
मिु नबर अितिथ ानिय पाए। कं द मूल फल मधरु मगाए ॥
िसय सौिमि राम फल खाए। तब मिु न आम िदए सहाए ु ॥
बालमीिक मन आनँ भारी। मंगल मूरित नयन िनहारी ॥
तब कर कमल जोिर रघराई। ु ु
बोले बचन वन सखदाई ॥
त ु िकाल दरसी मिु ननाथा। िब बदर िजिम त ु र हाथा ॥
अस किह भ ु सब कथा बखानी। जेिह जेिह भाँित दी बन ु रानी ॥
दो. तात बचन पिनु मात ु िहत भाइ भरत अस राउ।
मो कँ दरस तु ार भ ु सब ु मम प
ु भाउ ॥ १२५ ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥
ज िजयँ धिरअ िबनय िपय मोरी। राम ु लखन ु िसय िमलिहं बहोरी ॥
ु नृप ु िचतयउ आँिख उघािर।
दो. -िया बचन मृ सनत
तलफत मीन मलीन जन ु सचत सीतल बािर ॥ १५४ ॥
धिर धीरज ु उठी ब ैठ भआ।
ु क समं ु कहँ राम कृ पा ॥
कहाँ लखन ु कहँ राम ु सनेही। कहँ िय पबधू
ु ब ैदेही ॥
िबलपत राउ िबकल ब भाँती। भइ जगु सिरस िसराित न राती ॥
तापस अंध साप सिध ु आई। कौसिह सब कथा सनाई ु ॥
भयउ िबकल बरनत इितहासा। राम रिहत िधग जीवन आसा ॥
सो तन ु रािख करब म काहा। जिह न ेम पन ु मोर िनबाहा ॥
हा रघनंु दन ान िपरीते। तु िबन ु िजअत बत िदन बीते ॥
हा जानकी लखन हा रघबर। ु हा िपत ु िहत िचत चातक जलधर।
दो. राम राम किह राम किह राम राम किह राम।
तन ु पिरहिर रघबर
ु िबरहँ राउ गयउ सरधाम
ु ॥ १५५ ॥
िजअन मरन फ दसरथ पावा। अंड अन ेक अमल जस ु छावा ॥
िजअत राम िबध ु बदन ु िनहारा। राम िबरह किर मरन ु सँवारा ॥
सोक िबकल सब रोविहं रानी। प ु सील ब तेज ु बखानी ॥
करिहं िबलाप अन ेक कारा। परह भूिमतल बारिहं बारा ॥
िबलपिहं िबकल दास अ दासी। घर घर दन ु करिहं परबासीु ॥
अँथयउ आज ु भानक ु ु ल भानू। धरम अविध गनु प िनधानू ॥
गार सकल कै कइिह देह। नयन िबहीन की जग जेह ॥
एिह िबिध िबलपत रैिन िबहानी। आए सकल महामिु न यानी ॥
दो. तब बिस मिु न समय सम किह अनेक इितहास।
सोक न ेवारेउ सबिह कर िनज िबयान कास ॥ १५६ ॥
तेल नाँव भिर नृप तन ु राखा। त बोलाइ बिर अस भाषा ॥
धाव बेिग भरत पिहं जा। नृप सिध ु कतँ कह जिन का ॥
एतन ेइ कहे भरत सन जाई। गरु बोलाई पठयउ दोउ भाई ॥
ु मिु न आयस ु धावन धाए। चले बेग बर बािज लजाए ॥
सिन
अनरथ ु अवध अरंभउे जब त। कुसगनु होिहं भरत कँ तब त ॥
देखिहं राित भयानक सपना। जािग करिहं कटु कोिट कलपना ॥
िब जेवाँइ देिहं िदन दाना। िसव अिभषेक करिहं िबिध नाना ॥
मागिहं दयँ महेस मनाई। कुसल मात ु िपत ु पिरजन भाई ॥
दो. एिह िबिध सोचत भरत मन धावन पँच े आइ।
गरु अनसासन
ु ु चले गनस
वन सिन े ु मनाइ ॥ १५७ ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥
िपत ु सरप
ु रु बन रघबर
ु के तू। म के वल सब अनरथ हेत ु ॥
िधग मोिह भयउँ बेन ु बन आगी। सह दाह ख षन भागी ॥
दो. मात ु भरत के बचन मृ सिन
ु सिन
ु उठी सँभािर ॥
िलए उठाइ लगाइ उर लोचन मोचित बािर ॥ १६४ ॥
सरल सभाय ु मायँ िहयँ लाए। अित िहत मनँ राम िफिर आए ॥
भटेउ बिर लखन लघ ु भाई। सोकु सने न दयँ समाई ॥
ु
देिख सभाउ कहत सब ु कोई। राम मात ु अस काहे न होई ॥
माताँ भरत गोद ब ैठारे। आँस ु पिछ मृ बचन उचारे ॥
ु
अजँ ब बिल धीरज धर। कुसमउ समिु झ सोक पिरहर ॥
जिन मान िहयँ हािन गलानी। काल करम गित अघिटत जािन ॥
कािह दोस ु दे जिन ताता। भा मोिह सब िबिध बाम िबधाता ॥
जो एतेँ ख मोिह िजआवा। अजँ को जानइ का तेिह भावा ॥
दो. िपत ु आयस भूषन बसन तात तजे रघबीर।
ु
िबसमउ हरष ु न दयँ क पिहरे बलकल चीर। १६५ ॥
मखु स मन रंग न रोषू। सब कर सब िबिध किर पिरतोषू ॥
चले िबिपन सिन ु िसय सँग लागी। रहइ न राम चरन अनरागीु ॥
ु ु ु
सनतिहं लखन चले उिठ साथा। रहिहं न जतन िकए रघनाथा ॥
ु सबही िस नाई। चले संग िसय अ लघ ु भाई ॥
तब रघपित
राम ु लखन ु िसय बनिह िसधाए। गइउँ न संग न ान पठाए ॥
य सब ु भा इ आँिख आग। तउ न तजा तन ु जीव अभाग ॥
मोिह न लाज िनज न े िनहारी। राम सिरस सतु म महतारी ॥
िजऐ मरै भल भूपित जाना। मोर दय सत कुिलस समाना ॥
ु भरत सिहत रिनवास।
दो. कौसा के बचन सिन
ाकुल िबलपत राजगृह मानँ सोक नवे ास ु ॥ १६६ ॥
िबलपिहं िबकल भरत दोउ भाई। कौसाँ िलए दयँ लगाई ॥
भाँित अन ेक भरत ु समझु ाए। किह िबबेकमय बचन सनाए ु ॥
भरतँ मात ु सकल समझ ु ा। किह परान
ु िु त कथा सहा
ु ॥
छल िबहीन सिच ु सरल सबानी।ु बोले भरत जोिर जगु पानी ॥
जे अघ मात ु िपता सतु मार । गाइ गोठ मिहसरु परु जार ॥
जे अघ ितय बालक बध की । मीत महीपित मार दी ॥
जे पातक उपपातक अहह। करम बचन मन भव किब कहह ॥
ते पातक मोिह होँ िबधाता। ज य होइ मोर मत माता ॥
दो. जे पिरहिर हिर हर चरन भजिहं भूतगन घोर।
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 53
ु भरत हम सब सिध
सन ु पाई। िबिध करतब पर िक न बसाई ॥
दो. तु गलािन िजयँ जिन कर समझ ु ी मात ु करतूित।
ु
तात कै कइिह दोस निहं गई िगरा मित धूित ॥ २०६ ॥
यहउ कहत भल किहिह न कोऊ। लोकु बेद बधु संमत दोऊ ॥
तात त ु ार िबमल जस ु गाई। पाइिह लोकउ बे बड़ाई ॥
लोक बेद संमत सब ु कहई। जेिह िपत ु देइ राज ु सो लहई ॥
राउ सत त ु ु धरम ु बड़ाई ॥
ु िह बोलाई। देत राज ु सख
राम गवन ु बन अनरथ मूला। जो सिन ु सकल िब भइ सूला ॥
सो भावी बस रािन अयानी। किर कुचािल अंतँ पिछतानी ॥
तहँउँ तु ार अलप अपराधू। कहै सो अधम अयान असाधू ॥
करते राज ु त तु िह न दोषू। रामिह होत सनतु संतोषू ॥
दो. अब अित कीे भरत भल तु िह उिचत मत ए।
ु गल मूल जग रघबर
सकल समं ु चरन सन े ॥ २०७ ॥
सो त ु ार धन ु जीवन ु ाना। भूिरभाग को तु िह समाना ॥
यह तार आचरज ु न ताता। दसरथ सअन ु राम िय ाता ॥
सन ु भरत रघबर ु मन माह। पेम पा ु तु सम कोउ नाह ॥
लखन राम सीतिह अित ीती। िनिस सब त ु िह सराहत बीती ॥
जाना मरम ु नहात यागा। मगन होिहं त ु
ु र अनरागा ॥
ु ु ु
त पर अस सने रघबर क । सख जीवन जग जस जड़ नर क ॥
यह न अिधक रघबीर ु बड़ाई। नत कुटं ुब पाल रघराई ु ॥
त ु तौ भरत मोर मत ए। धर देह जन ु राम सन े ॥
दो. तु कहँ भरत कलं क यह हम सब कहँ उपदेस।ु
राम भगित रस िसि िहत भा यह समउ गन ेस ु ॥ २०८ ॥
नव िबध ु िबमल तात जस ु तोरा। रघबरु िकं कर कुमदु चकोरा ॥
उिदत सदा अँथइिह कबँ ना। घिटिह न जग नभ िदन िदन ना ॥
कोक ितलोक ीित अित किरही। भ ु ताप रिब छिबिह न हिरही ॥
िनिस िदन सखदु सदा सब का। िसिह न कै कइ करतब ु रा ॥
पूरन राम सपेु म िपयूषा। गरु अवमान दोष निहं षा ॥
राम भगत अब अिमअँ अघाँ। कीे सलभ ु सधा ु बसधाँ
ु ॥
भूप भगीरथ सरसिरु ु
आनी। सिमरत सकल सम ं ु गल खानी ॥
दसरथ गनु गन बरिन न जाह। अिधकु कहा जेिह सम जग नाह ॥
दो. जास ु सनेह सकोच बस राम गट भए आइ ॥
जे हर िहय नयनिन कबँ िनरखे नह अघाइ ॥ २०९ ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥
ु पिन
पिन ु करत नाम उठाए। िसर कर कमल परिस ब ैठाए ॥
सीयँ असीस दीि मन माह। मगन सन ेहँ देह सिध ु नाह ॥
सब िबिध सानकूु ल लिख सीता। भे िनसोच उर अपडर बीता ॥
कोउ िक कहइ न कोउ िक पूछ ँ ा। ेम भरा मन िनज गित ँछा ॥
तेिह अवसर के वटु धीरज ु धिर। जोिर पािन िबनवत नाम ु किर ॥
दो. नाथ साथ मिु ननाथ के मात ु सकल परु लोग।
सेवक सेनप सिचव सब आए िबकल िबयोग ॥ २४२ ॥
ु गरु आगवनू। िसय समीप राखे िरपदवनू
सीलिसंध ु सिन ु ॥
चले सबेग राम ु तेिह काला। धीर धरम धरु दीनदयाला ॥
ु देिख सानज
गरिह ु अनरागे
ु । दंड नाम करन भ ु लागे ॥
मिु नबर धाइ िलए उर लाई। ेम उमिग भटे दोउ भाई ॥
ु
ेम पलिक के वट किह नामू। की िर त दंड नामू ॥
रामसखा िरिष बरबस भटा। जन ु मिह ठत सन ेह समेटा ॥
रघपितु भगित समं ु गल मूला। नभ सरािह सरु बिरसिहं फू ला ॥
एिह सम िनपट नीच कोउ नाह। बड़ बिस सम को जग माह ॥
दो. जेिह लिख लखन त अिधक िमले मिु दत मिु नराउ।
सो सीतापित भजन को गट ताप भाउ ॥ २४३ ॥
आरत लोग राम सब ु जाना। कनाकर सजान ु भगवाना ॥
जो जेिह भायँ रहा अिभलाषी। तेिह तेिह कै तिस तिस ख राखी ॥
सानजु िमिल पल म सब का। की िर ख ु दान दा ॥
यह बिड़ बातँ राम कै नाह। िजिम घट कोिट एक रिब छाह ॥
ु
िमिल के विटिह उमिग अनरागा। ु
परजन सकल सराहिहं भागा ॥
ु ु
देख राम िखत महतार। जन सबेिल अवल िहम मार ॥
ु
थम राम भटी कै केई। सरल सभायँ भगित मित भेई ॥
पग पिर की बोध ु बहोरी। काल करम िबिध िसर धिर खोरी ॥
ु मात ु सब किर बोध ु पिरतोष ु ॥
दो. भेट रघबर
अंब ईस आधीन जग ु का न देइअ दोष ु ॥ २४४ ॥
ु
गरितय पद बंद े भाई। सिहत िबितय जे सँग आई ॥
गंग गौिर सम सब सनमान ॥ देिहं असीस मिु दत मृ बानी ॥
गिह पद लगे सिमाु अंका। जन ु भेट संपित अित रंका ॥
ु जनिन चरनिन दोउ ाता। परे पेम ाकुल सब गाता ॥
पिन
अित अनरागु अंब उर लाए। नयन सन ेह सिलल अवाए ॥
तेिह अवसर कर हरष िबषा। िकिम किब कहै मूक िजिम ा ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 77
ु
लिख ख रािन जनायउ राऊ। दयँ सराहत सी सभाऊ ॥
दो. बार बार िमिल भट िसय िबदा की सनमािन।
ु
कही समय िसर भरत गित रािन सबािन सयािन ॥ २८७ ॥
ु भूपाल भरत वहा। सोन सगं
सिन ु ध सधा
ु सिस सा ॥
मूद े सजल नयन पलके ु तन। सजसु ु सराहन लगे मिु दत मन ॥
सावधान सनु ु समु िु ख सलोचिन।
ु भरत कथा भव बंध िबमोचिन ॥
धरम राजनय िबचा। इहाँ जथामित मोर चा ॥
सो मित मोिर भरत मिहमाही। कहै काह छिल अित न छाँही ॥
िबिध गनपित अिहपित िसव सारद। किब कोिबद बधु बि ु िबसारद ॥
भरत चिरत कीरित करतूती। धरम सील गनु िबमल िबभूती ॥
समझ ु त सनत
ु सखदु सब का। सिच ु सरसिर
ु ु ॥
िच िनदर सधा
दो. िनरविध गनु िनपम पष
ु ु भरत ु भरत सम जािन।
ु िक सेर सम किबकुल मित सकुचािन ॥ २८८ ॥
किहअ समे
अगम सबिह बरनत बरबरनी। िजिम जलहीन मीन गम ु धरनी ॥
भरत अिमत मिहमा सनु ु रानी। जानिहं राम ु न सकिहं बखानी ॥
बरिन सेम भरत अनभाऊ। ु ितय िजय की िच लिख कह राऊ ॥
ु ु
बरिहं लखन भरत बन जाह। सब कर भल सब के मन माह ॥
देिब परंत ु भरत रघबर
ु की। ीित तीित जाइ निहं तरकी ॥
भरत ु अविध सनहे ममता की। जिप राम ु सीम समता की ॥
परमारथ ारथ सख ु सारे। भरत न सपन ेँ मनँ िनहारे ॥
साधन िस राम पग न े ॥ मोिह लिख परत भरत मत ए ॥
दो. भोरेँ भरत न पेिलहिहं मनसँ राम रजाइ।
किरअ न सोच ु सन ेह बस कहेउ भूप िबलखाइ ॥ २८९ ॥
राम भरत गनु गनत सीती। िनिस दंपितिह पलक सम बीती ॥
राज समाज ात जगु जागे। ाइ ाइ सरु पूजन लागे ॥
गे नहाइ गरु पह रघराई।
ु बंिद चरन बोले ख पाई ॥
नाथ भरत ु परजन
ु महतारी। सोक िबकल बनबास खारी ॥
सिहत समाज राउ िमिथलेस।ू बत िदवस भए सहत कलेस ू ॥
उिचत होइ सोइ कीिजअ नाथा। िहत सबही कर रौर हाथा ॥
अस किह अित सकुचे रघराऊ।ु मिु न पलके
ु लिख सी सभाऊ
ु ॥
तु िबन ु राम सकल सख ु साजा। नरक सिरस राज समाजा ॥
ु के सख
दो. ान ान के जीव के िजव सख ु राम।
ु तिज तात सोहात गृह िजिह ितिहं िबिध बाम ॥ २९० ॥
त
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 91
ु
िहयँ सिमरी ु
सारदा सहाई। ु पंकज आई ॥
मानस त मख
िबमल िबबेक धरम नय साली। भरत भारती मंज ु मराली ॥
दो. िनरिख िबबेक िबलोचनि िसिथल सनेहँ समाज।ु
किर नाम ु बोले भरत ु सिमिर
ु ु ु ॥ २९७ ॥
सीय रघराज
ु गरु ामी। पू परम िहत अतंरजामी ॥
भ ु िपत ु मात ु सद
ु
सरल ससािहब ु सील िनधानू। नतपाल सबय सजानू
ु ॥
ु ु
समरथ सरनागत िहतकारी। गनगाहक अवगन अघ हारी ॥ु
ािम गोसाँइिह सिरस गोसाई। मोिह समान म साइँ दोहाई ॥
भ ु िपत ु बचन मोह बस पेली। आयउँ इहाँ समाज ु सके ली ॥
जग भल पोच ऊँ च अ नीचू। अिमअ अमरपद मा मीचू ॥
राम रजाइ मेट मन माह। देखा सना ु कतँ कोउ नाह ॥
सो म सब िबिध कीि िढठाई। भ ु मानी सन ेह सेवकाई ॥
दो. कृ पाँ भलाई आपनी नाथ की भल मोर।
ु ु चा च ओर ॥ २९८ ॥
षन भे भूषन सिरस सजस
ु
राउिर रीित सबािन बड़ाई। जगत िबिदत िनगमागम गाई ॥
कू र कुिटल खल कुमित कलं की। नीच िनसील िनरीस िनसंकी ॥
तेउ सिन ु सरन सामहु आए। सकृ त नाम ु िकह अपनाए ॥
देिख दोष कबँ न उर आन।े सिन ु गनु साध ु समाज बखान े ॥
को सािहब सेवकिह न ेवाजी। आप ु समाज साज सब साजी ॥
िनज करतूित न समिु झअ सपन। सेवक सकुच सोच ु उर अपन ॥
सो गोसाइँ निह सर कोपी। भजाु उठाइ कहउँ पन रोपी ॥
पस ु नाचत सक ु पाठ बीना। गनु गित नट पाठक आधीना ॥
ु
दो. य सधािर सनमािन जन िकए साध ु िसरमोर।
को कृ पाल िबन ु पािलहै िबिरदाविल बरजोर ॥ २९९ ॥
ु । आयउँ लाइ रजायस ु बाएँ ॥
सोक सन ेहँ िक बाल सभाएँ
तबँ कृ पाल हेिर िनज ओरा। सबिह भाँित भल मानउे मोरा ॥
ु गल मूला। जानउे ँ ािम सहज अनकूु ला ॥
देखउे ँ पाय समं
ु ॥
बड़ समाज िबलोके उँ भागू। बड़ चूक सािहब अनरागू
कृ पा अनहु अंग ु अघाई। कीि कृ पािनिध सब अिधकाई ॥
राखा मोर लार गोसा। अपन सील सभायँ ु भला ॥
नाथ िनपट म कीि िढठाई। ािम समाज सकोच िबहाई ॥
अिबनय िबनय जथािच बानी। छिमिह देउ अित आरित जानी ॥
ु सजान
दो. सद ु ु
ससािहबिह बत कहब बिड़ खोिर।
॥ ी राम चिरत मानस ॥
This text is prepared by volunteers and is to be used for personal study and
research. The file is not to be copied or reposted for promotion of any
website or individuals or for commercial purpose without permission.