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॥ ी राम चिरत मानस ॥
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.. Shri Ram Charit Manas ..

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sanskritdocuments.org
July 26, 2016

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Document Information

Text title : Shri Ram Charit Manas - Ayodhyakand


File name : manas2_i.itx
Location : doc_z_otherlang_hindi
Author : Goswami Tulasidas
Language : Hindi
Subject : philosophy/hinduism/religion
Transliterated by : Mr. Balram J. Rathore, Ratlam, M.P., a retired railway
driver
Description-comments : Awadhi, Converted from ISCII to ITRANS
Acknowledge-Permission: Dr. Vineet Chaitanya, vc@iiit.net
Latest update : March 12, 2015
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Site access : http://sanskritdocuments.org
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 1

॥ ी राम चिरत मानस ॥


ीगणेशायनमः
ीजानकीवभो िवजयते
ीरामचिरतमानस
ितीय सोपान
अयोा-काड
ोक
याे च िवभाित भूधरसता ु देवापगा मके
भाले बालिवधगु ले च गरलं योरिस ालराट ्।

सोऽयं भूितिवभूषणः सरवरः सवािधपः सवदा
् १॥
शवः सवगतः िशवः शिशिनभः ीशरः पात ु माम ॥
सतां या न गतािभषेकतथा न मे वनवासःखतः।
मख ु ी रघनन
ु ाज ु मे सदा ु सा मलमं
ु गलदा ॥ २ ॥
नीलाजु यामलकोमलां सीतासमारोिपतवामभागम।्
् ३॥
पाणौ महासायकचाचापं नमािम रामं रघवंु शनाथम ॥
दो. ीगु चरन सरोज रज िनज मन ु मक ु ु  सधािर।

बरनउँ रघबरु िबमल जस ु जो दायकु फल चािर ॥
जब त राम ु ािह घर आए। िनत नव मंगल मोद बधाए ॥
ु चािरदस भूधर भारी। सकृु त मेघ बरषिह सख
भवन ु बारी ॥

िरिध िसिध संपित नद सहाई। उमिग अवध अंबिध ु कँ आई ॥
मिनगन परु नर नािर सजाती।
ु सिच ु अमोल सदं ु र सब भाँती ॥
किह न जाइ क नगर िबभूती। जन ु एतिनअ िबरंिच करतूती ॥
सब िबिध सब परु लोग सखारी।ु रामचंद मखु चं िनहारी ॥
मिु दत मात ु सब सख सहेली। फिलत िबलोिक मनोरथ बेली ॥

राम प ु गनसी ु
सभाऊ। मिु दत होइ देिख सिन
ु राऊ ॥
दो. सब क उर अिभलाष ु अस कहिहं मनाइ महेस।ु

आप अछत जबराज पद रामिह देउ नरेस ु ॥ १ ॥
एक समय सब सिहत समाजा। राजसभाँ रघराज ु ु िबराजा ॥
सकल सकृु त मूरित नरना। राम सजसु ु सिन
ु अितिह उछा ॥
नृप सब रहिहं कृ पा अिभलाष। लोकप करिहं ीित ख राख ॥
ु तीिन काल जग माह। भूिर भाग दसरथ सम नाह ॥
ितभवन
मंगलमूल राम ु सतु जासू। जो क किहज थोर सब ु तासू ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥


रायँ सभायँ मकु ु  कर लीा। बदन ु िबलोिक मक
ु ु ट सम कीा ॥
वन समीप भए िसत के सा। मनँ जरठपन ु अस उपदेसा ॥

नृप जबराज राम कँ दे। जीवन जनम ला िकन ले ॥
दो. यह िबचा उर आिन नृप सिदनु ु सअवस
ु पाइ।

ेम पलिक ु सनायउ
तन मिु दत मन गरिह ु जाइ ॥ २ ॥
कहइ भआ ु सिनअु मिु ननायक। भए राम सब िबिध सब लायक ॥
सेवक सिचव सकल परबासी। ु जे हमारे अिर िम उदासी ॥
सबिह राम िय जेिह िबिध मोही। भ ु असीस जन ु तन ु धिर सोही ॥

िब सिहत पिरवार गोसा। करिहं छो सब रौिरिह नाई ॥
जे गरु चरन रेन ु िसर धरह। ते जन ु सकल िबभव बस करह ॥
मोिह सम य अनभयउ ु न ज। सब ु पायउँ रज पाविन पूज ॥
अब अिभलाष ु एकु मन मोर । पूजिह नाथ अनह ु तोर ॥
मिु न स लिख सहज सने। कहेउ नरेस रजायस ु दे ॥
दो. राजन राउर नाम ु जस ु सब अिभमत दातार।

फल अनगामी मिहप मिन मन अिभलाष ु त ु ार ॥ ३ ॥
सब िबिध गु स िजयँ जानी। बोलेउ राउ रहँिस मृ बानी ॥
नाथ राम ु किरअिहं जबराजू
ु । किहअ कृ पा किर किरअ समाजू ॥
मोिह अछत य होइ उछा। लहिहं लोग सब लोचन ला ॥
भ ु साद िसव सबइ िनबाह। यह लालसा एक मन माह ॥
ु न सोच तन ु रहउ िक जाऊ। जेिहं न होइ पाछ पिछताऊ ॥
पिन
सिनु मिु न दसरथ बचन सहाए।
ु मंगल मोद मूल मन भाए ॥
सनु ु नृप जास ु िबमख
ु पिछताह। जास ु भजन िबन ु जरिन न जाह ॥
भयउ त ु ार तनय सोइ ामी। राम ु पनीत ु
ु ेम अनगामी ॥
दो. बेिग िबलं ब ु न किरअ नृप सािजअ सबइु समाज।ु
ु समं
सिदन ु ग तबिहं जब राम ु होिहं जबराज
ु ु॥ ४ ॥
मिु दत मिहपित मंिदर आए। सेवक सिचव समं ु  ु बोलाए ॥
किह जयजीव सीस ित नाए। भूप समं ु गल बचन सनाए ु ॥
ज पाँचिह मत लाग ै नीका। कर हरिष िहयँ रामिह टीका ॥
ु िय बानी। अिभमत िबरवँ परेउ जन ु पानी ॥
मंी मिु दत सनत
िबनती सिचव करिह कर जोरी। िजअ जगतपित बिरस करोरी ॥
जग मंगल भल काज ु िबचारा। बेिगअ नाथ न लाइअ बारा ॥
नृपिह मो सिनु सिचव सभाषा।
ु बढ़त बड़ जन ु लही ससाखा
ु ॥
दो. कहेउ भूप मिु नराज कर जोइ जोइ आयस ु होइ।
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 3

राम राज अिभषेक िहत बेिग कर सोइ सोइ ॥ ५ ॥


हरिष मनु ीस कहेउ मृ बानी। आन सकल सतीरथ
ु पानी ॥
औषध मूल फू ल फल पाना। कहे नाम गिन मंगल नाना ॥
चामर चरम बसन ब भाँती। रोम पाट पट अगिनत जाती ॥
मिनगन मंगल ब ु अनेका। जो जग जोग ु भूप अिभषेका ॥
बेद िबिदत किह सकल िबधाना। कहेउ रच परु िबिबध िबताना ॥
सफल रसाल पूगफल के रा। रोप बीिथ परु चँ फे रा ॥
रच मंज ु मिन चौक चा। कह बनावन बेिग बजा ॥
पूज गनपित गरु कुलदेवा। सब िबिध कर भूिमसरु सेवा ॥
दो. ज पताक तोरन कलस सज तरु ग रथ नाग।
िसर धिर मिु नबर बचन सब ु िनज िनज काजिहं लाग ॥ ६ ॥
जो मनु ीस जेिह आयस ु दीा। सो तेिहं काज ु थम जन ु कीा ॥
िब साध ु सरु पूजत राजा। करत राम िहत मंगल काजा ॥
सनत ु राम अिभषेक सहावा।
ु बाज गहागह अवध बधावा ॥
राम सीय तन सगनु जनाए। फरकिहं मंगल अंग सहाए ु ॥

पलिक सेम परसपर कहह। भरत आगमन ु सूचक अहह ॥
भए बत िदन अित अवसेरी। सगनु तीित भट िय के री ॥
भरत सिरस िय को जग माह। इहइ सगनु फ सर नाह ॥
रामिह बंध ु सोच िदन राती। अंडि कमठ दउ जेिह भाँती ॥
दो. एिह अवसर मंग परम सिन ु रहँसउे रिनवास।ु
सोभत लिख िबध ु बढ़त जन ु बािरिध बीिच िबलास ु ॥ ७ ॥
थम जाइ िज बचन सनाए। ु भूषन बसन भूिर ित पाए ॥

ेम पलिक ु
तन मन अनराग। मंगल कलस सजन सब लाग ॥

चौक चा सिमाँ ु मिनमय िबिबध भाँित अित री ॥
परी।
आनँद मगन राम महतारी। िदए दान ब िब हँकारी ॥
पूज ामदेिब सरु नागा। कहेउ बहोिर देन बिलभागा ॥
जेिह िबिध होइ राम कानू। दे दया किर सो बरदानू ॥
गाविहं मंगल कोिकलबयन। िबधबदनु मृगसावकनयन ॥
दो. राम राज अिभषेकु सिन
ु िहयँ हरषे नर नािर।
ु गल सजन सब िबिध अनकूु ल िबचािर ॥ ८ ॥
लगे समं
तब नरनाहँ बिसु बोलाए। रामधाम िसख देन पठाए ॥
गरु आगमन ु सनत
ु रघनाथा।
ु ार आइ पद नायउ माथा ॥
सादर अरघ देइ घर आन े। सोरह भाँित पूिज सनमान े ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

गहे चरन िसय सिहत बहोरी। बोले राम ु कमल कर जोरी ॥


सेवक सदन ािम आगमनू। मंगल मूल अमंगल दमनू ॥
तदिप उिचत जन ु बोिल सीती। पठइअ काज नाथ अिस नीती ॥
ु तिज भ ु की सन े। भयउ पनीत
भता ु आज ु य गे ॥
आयस ु होइ सो कर गोसाई। सेवक लहइ ािम सेवकाई ॥
दो. सिनु सनेह सान े बचन मिु न रघबरिह
ु संस।
राम कस न तु कह अस हंस बंस अवतंस ॥ ९ ॥
बरिन राम गनु सी सभाऊ।ु बोले ेम पलिकु मिु नराऊ ॥
भूप सजेउ अिभषेक समाजू। चाहत देन त ु िह जबराजू
ु ॥
राम कर सब संजम आजू। ज िबिध कुसल िनबाहै काजू ॥
गु िसख देइ राय पिहं गयउ। राम दयँ अस िबसमउ भयऊ ॥
जनमे एक संग सब भाई। भोजन सयन के िल लिरकाई ॥
करनबेध उपबीत िबआहा। संग संग सब भए उछाहा ॥
िबमल बंस य अनिचतु एकू । बंध ु िबहाइ बड़ेिह अिभषेकू ॥
भ सेम पिछतािन सहाई। हरउ भगत मन कै कुिटलाई ॥
ु ु
दो. तेिह अवसर आए लखन मगन ेम आनंद।
ु ु ल कै रव चंद ॥ १० ॥
सनमान े िय बचन किह रघक
बाजिहं बाजन े िबिबध िबधाना। परु मो निहं जाइ बखाना ॥
भरत आगमन ु सकल मनाविहं। आवँ बेिग नयन फ पाविहं ॥
हाट बाट घर गल अथाई। कहिहं परसपर लोग लोगाई ॥
कािल लगन भिल के ितक बारा। पूिजिह िबिध अिभलाष ु हमारा ॥
कनक िसंघासन सीय समेता। ब ैठिहं राम ु होइ िचत चेता ॥
सकल कहिहं कब होइिह काली। िबघन मनाविहं देव कुचाली ॥
ितिह सोहाइ न अवध बधावा। चोरिह चंिदिन राित न भावा ॥
सारद बोिल िबनय सरु करह। बारिहं बार पाय लै परह ॥
दो. िबपित हमािर िबलोिक बिड़ मात ु किरअ सोइ आज।ु
राम ु जािहं बन राज ु तिज होइ सकल सरकाज
ु ु ॥ ११ ॥
सिनु सरु िबनय ठािढ़ पिछताती। भइउँ सरोज िबिपन िहमराती ॥
ु कहिहं िनहोरी। मात ु तोिह निहं थोिरउ खोरी ॥
देिख देव पिन
िबसमय हरष रिहत रघराऊ।ु त ु जान सब राम भाऊ ॥
जीव करम बस सख ु ख भागी। जाइअ अवध देव िहत लागी ॥
बार बार गिह चरन सँकोचौ। चली िबचािर िबबधु मित पोची ॥
ऊँ च िनवास ु नीिच करतूती। देिख न सकिहं पराइ िबभूती ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 5

आिगल काज ु िबचािर बहोरी। करहिहं चाह कुसल किब मोरी ॥


हरिष दयँ दसरथ परु आई। जन ु ह दसा सह खदाई ॥
दो. नाम ु मंथरा मंदमित चेरी कै केइ के िर।
अजस पेटारी तािह किर गई िगरा मित फे िर ॥ १२ ॥
दीख मंथरा नग बनावा। मंजल ु मंगल बाज बधावा ॥
पूछिे स लोग काह उछा। राम ितलकु सिन ु भा उर दा ॥
करइ िबचा कुबि ु कुजाती। होइ अकाज ु कविन िबिध राती ॥
देिख लािग मध ु कुिटल िकराती। िजिम गवँ तकइ लेउँ के िह भाँती ॥
भरत मात ु पिहं गइ िबलखानी। का अनमिन हिस कह हँिस रानी ॥
ऊत देइ न लेइ उसासू। नािर चिरत किर ढारइ आँस ू ॥
हँिस कह रािन गा बड़ तोर । दी लखन िसख अस मन मोर ॥
तबँ न बोल चेिर बिड़ पािपिन। छाड़इ ास कािर जन ु साँिपिन ॥
दो. सभय रािन कह कहिस िकन कुसल राम ु मिहपा।
लखन ु भरत ु िरपदमन
ु ु सिन
ु भा कुबरी उर सा ॥ १३ ॥
कत िसख देइ हमिह कोउ माई। गा करब के िह कर ब पाई ॥
रामिह छािड़ कुसल के िह आजू। जेिह जन ेस ु देइ जबराजू
ु ॥
भयउ कौिसलिह िबिध अित दािहन। देखत गरब रहत उर नािहन ॥
देखे कस न जाइ सब सोभा। जो अवलोिक मोर मन ु छोभा ॥
पूत ु िबदेस न सोच ु त
ु ार । जानित ह बस ना हमार ॥
नीद बत िय सेज तरु ाई। लख न भूप कपट चतरु ाई ॥
सिनु िय बचन मिलन मन ु जानी। झकी ु रािन अब र अरगानी ॥
ु अस कबँ कहिस घरफोरी। तब धिर जीभ कढ़ावउँ तोरी ॥
पिन
दो. कान े खोरे कू बरे कुिटल कुचाली जािन।
ितय िबसेिष पिन ु चेिर किह भरतमात ु मस
ु कािन
ु ॥ १४ ॥
ियबािदिन िसख दीिउँ तोही। सपने ँ तो पर कोप ु न मोही ॥
ु ु समं
सिदन ु गल दायकु सोई। तोर कहा फुर जेिह िदन होई ॥
जेठ ािम सेवक लघ ु भाई। यह िदनकर कुल रीित सहाई ु ॥
ु ु
राम ितलक ज साँचे ँ काली। देउँ माग मन भावत आली ॥
कौसा सम सब महतारी। रामिह सहज सभायँ ु िपआरी ॥
मो पर करिहं सने िबसेषी। म किर ीित परीछा देखी ॥
ज िबिध जनम ु देइ किर छो। होँ राम िसय पूत पतो
ु ॥
ान त अिधक राम ु िय मोर । ित क ितलक छोभ ु कस तोर ॥
दो. भरत सपथ तोिह स क पिरहिर कपट राउ।
॥ ी राम चिरत मानस ॥

ु ॥ १५ ॥
हरष समय िबसमउ करिस कारन मोिह सनाउ
एकिहं बार आस सब पूजी। अब क कहब जीभ किर जी ॥
फोरै जोग ु कपा अभागा। भलेउ कहत ख रउरेिह लागा ॥
कहिहं झ ूिठ फुिर बात बनाई। ते िय त
ु िह कइ म माई ॥
हमँ कहिब अब ठकरसोहाती। नािहं त मौन रहब िदन ु राती ॥

किर कुप िबिध परबस कीा। बवा सो िनअ लिहअ जो दीा ॥
कोउ नृप होउ हमिह का हानी। चेिर छािड़ अब होब िक रानी ॥
जारै जोग ु सभाउ
ु हमारा। अनभल देिख न जाइ त ु ारा ॥
तात कक बात अनसारी। ु छिमअ देिब बिड़ चूक हमारी ॥
दो. गूढ़ कपट िय बचन सिन ु रािन।
ु तीय अधरबिध

सरमाया ु जािन पितआिन ॥ १६ ॥
बस ब ैिरिनिह सद
सादर पिन ु पिन ँ ित ओही। सबरी गान मृगी जन ु मोही ॥
ु पूछ
तिस मित िफरी अहइ जिस भाबी। रहसी चेिर घात जन ु फाबी ॥
तु पूछँ  म कहत डेराऊँ । धरेउ मोर घरफोरी नाऊँ ॥
सिज तीित बिबिध गिढ़ छोली। अवध साढ़साती तब बोली ॥
िय िसय राम ु कहा त ु रानी। रामिह त
ु िय सो फुिर बानी ॥
रहा थम अब ते िदन बीते। समउ िफर िरप ु होिहं िपंरीते ॥
भान ु कमल कुल पोषिनहारा। िबन ु जल जािर करइ सोइ छारा ॥
जिर त ु ािर चह सवित उखारी। ँध किर उपाउ बर बारी ॥
दो. तु िह न सोच ु सोहाग बल िनज बस जान राउ।
मन मलीन महु मीठ नृप राउर सरल सभाउ
ु ॥ १७ ॥
चतरु गँभीर राम महतारी। बीच ु पाइ िनज बात सँवारी ॥
पठए भरत ु भूप निनअउर । राम मात ु मत जानव रउर ॥
सेविहं सकल सवित मोिह नीक । गरिबत भरत मात ु बल पी क ॥
सा त ु ार कौिसलिह माई। कपट चतरु निहं होइ जनाई ॥
राजिह त ु पर ेम ु िबसेषी। सवित सभाउ
ु सकइ निहं देखी ॥
रची ंपच ु भूपिह अपनाई। राम ितलक िहत लगन धराई ॥
यह कुल उिचत राम कँ टीका। सबिह सोहाइ मोिह सिठ ु नीका ॥
आिगिल बात समिु झ ड मोही। देउ दैउ िफिर सो फ ओही ॥
दो. रिच पिच कोिटक कुिटलपन कीेिस कपट बोध ु ॥
किहिस कथा सत सवित कै जेिह िबिध बाढ़ िबरोध ु ॥ १८ ॥
भावी बस तीित उर आई। पूछ ु सपथ देवाई ॥
ँ रािन पिन
ु अबँ न जाना। िनज िहत अनिहत पस ु पिहचाना ॥
का पूछँ त
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 7

भयउ पाख ु िदन सजत समाजू। त ु पाई सिध


ु मोिह सन आजू ॥
खाइअ पिहिरअ राज त ु ार । स कह निहं दोष ु हमार ॥
ज अस क कहब बनाई। तौ िबिध देइिह हमिह सजाई ॥
रामिह ितलक कािल ज भयऊ।þ त ु कँ िबपित बीज ु िबिध बयऊ ॥
रेख खँचाइ कहउँ ब भाषी। भािमिन भइ ध कइ माखी ॥
ज सतु सिहत कर सेवकाई। तौ घर रह न आन उपाई ॥
दो. कूँ िबनतिह दी ख ु त ु िह कौिसलाँ देब।
भरत ु बंिदगृह सेइहिहं लखन ु राम के न ेब ॥ १९ ॥
कै कयसता ु सनतु कटु बानी। किह न सकइ क सहिम सखानी ु ॥
तन पसेउ कदली िजिम काँपी। कुबर दसन जीभ तब चाँपी ॥
किह किह कोिटक कपट कहानी। धीरज ु धर बोिधिस रानी ॥
िफरा करम ु िय लािग कुचाली। बिकिह सराहइ मािन मराली ॥
सनु ु मंथरा बात फुिर तोरी। दिहिन आँिख िनत फरकइ मोरी ॥
िदन ित देखउँ राित कुसपन े। कहउँ न तोिह मोह बस अपन े ॥
काह करौ सिख सूध सभाऊ। ु दािहन बाम न जानउँ काऊ ॥
दो. अपने चलत न आज ु लिग अनभल काक की।
के िहं अघ एकिह बार मोिह दैअ ँ सह ख ु दी ॥ २० ॥
न ैहर जनम ु भरब ब जाइ। िजअत न करिब सवित सेवकाई ॥
अिर बस दैउ िजआवत जाही। मरन ु नीक तेिह जीवन चाही ॥
दीन बचन कह बिबिध रानी। सिन ु कुबर ितयमाया ठानी ॥
अस कस कह मािन मन ऊना। सख ु ु सोहाग ु तु कँ िदन ना ॥
जेिहं राउर अित अनभल ताका। सोइ पाइिह य फ पिरपाका ॥
जब त कुमत सना ु म ािमिन। भूख न बासर नद न जािमिन ॥
पूछ
ँ उ ु
े गिन रेख ित खाँची। भरत भआल ु होिहं यह साँची ॥
भािमिन कर त कह उपाऊ। है त ु र सेवा बस राऊ ॥
ु बचन पर सकउँ पूत पित ािग।
दो. परउँ कू प तअ
कहिस मोर ख ु देिख बड़ कस न करब िहत लािग ॥ २१ ॥
कुबर किर कबलीु कै केई। कपट री उर पाहन टे ई ॥
लखइ न रािन िनकट ख ु क से। चरइ हिरत ितन बिलपस ु ज ैस ॥
ु बात मृ अंत कठोरी। देित मनँ मध ु मार घोरी ॥
सनत
कहइ चेिर सिधु अहइ िक नाही। ािमिन किह कथा मोिह पाह ॥
इ बरदान भूप सन थाती। माग आज ु जड़ावु छाती ॥
ु राज ु रामिह बनवासू। दे ले सब सवित लास ु ॥
सतिह
॥ ी राम चिरत मानस ॥

भूपित राम सपथ जब करई। तब मागे जेिहं बचन ु न टरई ॥


होइ अकाज ु आज ु िनिस बीत। बचन ु मोर िय माने जी त ॥
दो. बड़ कुघात ु किर पातिकिन कहेिस कोपगृहँ जा।
काज ु सँवारे सजग सब ु सहसा जिन पितआ ॥ २२ ॥
कुबिरिह रािन ानिय जानी। बार बार बिड़ बि ु बखानी ॥
तोिह सम िहत न मोर संसारा। बहे जात कइ भइिस अधारा ॥
ज िबिध परबु मनोरथ ु काली। कर तोिह चख पूतिर आली ॥
बिबिध चेिरिह आद देई। कोपभवन गविन कै केई ॥
िबपित बीज ु बरषा िरत ु चेरी। भइँु भइ कुमित कै केई के री ॥
पाइ कपट ज अंकुर जामा। बर दोउ दल ख फल पिरनामा ॥
कोप समाज ु सािज सब ु सोई। राज ु करत िनज कुमित िबगोई ॥
राउर नगर कोलाह होई। यह कुचािल क जान न कोई ॥
दो. मिु दत परु नर नािर। सब सजिहं समं
ु गलचार।
एक िबसिहं एक िनगमिहं भीर भूप दरबार ॥ २३ ॥
बाल सखा सनु िहयँ हरषाह। िमिल दस पाँच राम पिहं जाह ॥
ँ िहं कुसल खेम मृ बानी ॥
भ ु आदरिहं ेम ु पिहचानी। पूछ
िफरिहं भवन िय आयस ु पाई। करत परसपर राम बड़ाई ॥
ु सिरस संसारा। सी सनेह िनबाहिनहारा।
को रघबीर
जिह जिह जोिन करम बस मह। तहँ तहँ ईस ु देउ यह हमह ॥
सेवक हम ामी िसयना। होउ नात यह ओर िनबा ॥
अस अिभलाष ु नगर सब का। कै कयसता ु दयँ अित दा ॥

को न कसंगित पाइ नसाई। रहइ न नीच मत चतरु ाई ॥
दो. साँस समय सानंद नृप ु गयउ कै केई गेहँ।
गवन ु िनठुरता िनकट िकय जन ु धिर देह सन ेहँ ॥ २४ ॥
कोपभवन सिन ु सकुचेउ राउ। भय बस अगड़ परइ न पाऊ ॥

सरपित बसइ बाहँबल जाके । नरपित सकल रहिहं ख ताक ॥
ु ितय िरस गयउ सखाई।
सो सिन ु देख काम ताप बड़ाई ॥
सूल कुिलस अिस अँगविनहारे। ते रितनाथ समन ु सर मारे ॥
सभय नरेस ु िया पिहं गयऊ। देिख दसा ख ु दान भयऊ ॥

भूिम सयन पटु मोट पराना। िदए डािर तन भूषण नाना ॥
कुमितिह किस कुबेषता फाबी। अन अिहवात ु सूच जन ु भाबी ॥
जाइ िनकट नृप ु कह मृ बानी। ानिया के िह हेत ु िरसानी ॥
छं. के िह हेत ु रािन िरसािन परसत पािन पितिह नेवारई।
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 9

मानँ सरोष भअंु ग भािमिन िबषम भाँित िनहारई ॥


दोउ बासना रसना दसन बर मरम ठाह देखई।
तलु सी नृपित भवतता बस काम कौतक ु लेखई ॥
सो. बार बार कह राउ समु िु ख सलोिचिन
ु िपकबचिन।
ु गजगािमिन िनज कोप कर ॥ २५ ॥
कारन मोिह सनाउ
अनिहत तोर िया के इँ कीा। के िह इ िसर के िह जम ु चह लीा ॥
क के िह रंकिह करौ नरेस।ू क के िह नृपिह िनकास देस ू ॥
सकउँ तोर अिर अमरउ मारी। काह कीट बपरेु नर नारी ॥
जानिस मोर सभाउु बरो। मन ु तव आनन चंद चको ॥
िया ान सतु सरबस ु मोर । पिरजन जा सकल बस तोर ॥
ज क कहौ कपटु किर तोही। भािमिन राम सपथ सत मोही ॥
िबहिस माग ु मनभावित बाता। भूषन सजिह मनोहर गाता ॥
घरी कुघरी समिु झ िजयँ देख।ू बेिग िया पिरहरिह कुबेष ू ॥
दो. यह सिन ु सपथ बिड़ िबहिस उठी मितमंद।
ु मन गिन
भूषन सजित िबलोिक मृग ु मनँ िकराितिन फं द ॥ २६ ॥
ु कह राउ सद
पिन ु िजयँ जानी। ेम पलिकु मृ मंजलु बानी ॥
भािमिन भयउ तोर मनभावा। घर घर नगर अनंद बधावा ॥

रामिह देउँ कािल जबराजू ु
। सजिह सलोचिन मंगल साजू ॥
दलिक उठे उ सिन ु
ु दउ कठो। जन इ गयउ पाक बरतो ॥
ऐिसउ पीर िबहिस तेिह गोई। चोर नािर िजिम गिट न रोई ॥
लखिहं न भूप कपट चतरु ाई। कोिट कुिटल मिन ग ु पढ़ाई ॥
जिप नीित िनपनु नरना। नािरचिरत जलिनिध अवगा ॥
कपट सन े बढ़ाइ बहोरी। बोली िबहिस नयन मु मोरी ॥
दो. माग ु माग ु प ै कह िपय कबँ न दे न ले।
देन कहे बरदान इ तेउ पावत संदे ॥ २७ ॥
जान ेउँ मरम ु राउ हँिस कहई। त ु िह कोहाब परम िय अहई ॥
थाित रािख न मािग काऊ। िबसिर गयउ मोिह भोर सभाऊ ु ॥
झ ूठे ँ हमिह दोष ु जिन दे। इ कै चािर मािग मकु ले ॥
रघक ु ु ल रीित सदा चिल आई। ान जाँ ब बचन ु न जाई ॥
निहं अस सम पातक पज ंु ा ॥
ं ु ा। िगिर सम होिहं िक कोिटक गज
ु ु ु
समूल सब सकृ त सहाए। बेद परान िबिदत मन गाए ॥ ु
तेिह पर राम सपथ किर आई। सकृु त सनहे अविध रघराई ु ॥
बात ढ़ाइ कमित हँिस बोली। कमत किबहग कलह जन ु खोली ॥
ु ु ु ु
॥ ी राम चिरत मानस ॥

ु बन ु सख
दो. भूप मनोरथ सभग ु सिबहं
ु ग समाज।ु
िभिन िजिम छाड़न चहित बचन ु भयंक बाज ु ॥ २८ ॥
मासपारायण, तेरहवाँ िवाम
सनु ानिय भावत जी का। दे एक बर भरतिह टीका ॥
मागउँ सर बर कर जोरी। परवु नाथ मनोरथ मोरी ॥
तापस बेष िबसेिष उदासी। चौदह बिरस राम ु बनबासी ॥
ु मृ बचन भूप िहयँ सोकू । सिस कर अत िबकल िजिम कोकू ॥
सिन
गयउ सहिम निहं क किह आवा। जन ु सचान बन झपटे उ लावा ॥
िबबरन भयउ िनपट नरपा। दािमिन हनेउ मनँ त ता ॥
माथे हाथ मूिद दोउ लोचन। तन ु धिर सोच ु लाग जन ु सोचन ॥

मोर मनोरथ ु सरत फू ला। फरत किरिन िजिम हतेउ समूला ॥
अवध उजािर कीि कै के। दीिस अचल िबपित कै न े ॥
दो. कवन अवसर का भयउ गयउँ नािर िबास।
जोग िसि फल समय िजिम जितिह अिबा नास ॥ २९ ॥
एिह िबिध राउ मनिहं मन झाँखा। देिख कुभाँित कुमित मन माखा ॥
भरत ु िक राउर पूत न होह। आन े मोल बेसािह िक मोही ॥
जो सिन ु स अस लाग त ु ार । काहे न बोल बचन ु सँभारे ॥
दे उत अन ु कर िक नाह। ससंध त ु रघकु ु ल माह ॥
देन कहे अब जिन ब दे। तजँ स जग अपजस ु ले ॥
स सरािह कहे ब देना। जान े लेइिह मािग चबेना ॥
िसिब दधीिच बिल जो क भाषा। तन ु धन ु तजेउ बचन पन ु राखा ॥
अित कटु बचन कहित कै केई। मानँ लोन जरे पर देई ॥
दो. धरम धरंु धर धीर धिर नयन उघारे रायँ।
ु लीि उसास अिस मारेिस मोिह कुठायँ ॥ ३० ॥
िस धिन
आग दीिख जरत िरस भारी। मनँ रोष तरवािर उघारी ॥
ु धार िनठुराई। धरी कू बर सान बनाई ॥
मूिठ कुबि
लखी महीप कराल कठोरा। स िक जीवन ु लेइिह मोरा ॥
बोले राउ किठन किर छाती। बानी सिबनय तास ु सोहाती ॥
िया बचन कस कहिस कुभाँती। भीर तीित ीित किर हाँती ॥
मोर भरत ु राम ु इ आँखी। स कहउँ किर संक साखी ॥
अविस त ु म पठइब ाता। ऐहिहं बेिग सनत
ु दोउ ाता ॥
ु सोिध सब ु साज ु सजाई। देउँ भरत कँ राज ु बजाई ॥
सिदन
दो. लोभ ु न रामिह राज ु कर बत भरत पर ीित।
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 11

म बड़ छोट िबचािर िजयँ करत रहेउँ नृपनीित ॥ ३१ ॥


राम सपथ सत कँ सभाऊ।ु राममात ु क कहेउ न काऊ ॥
म सब ु की तोिह िबन ु पूछ
ँ  । तेिह त परेउ मनोरथ ु छ ॥
िरस पिरह अब मंगल साजू। क िदन गएँ भरत जबराजू ु ॥
एकिह बात मोिह ख ु लागा। बर सर असमंजस मागा ॥
अजँ दय जरत तेिह आँचा। िरस पिरहास िक साँचे ँ साँचा ॥
क तिज रोष ु राम अपराधू। सब ु कोउ कहइ राम ु सिठ ु साधू ॥
तु ँ सराहिस करिस सने। अब सिन ु मोिह भयउ संदे ॥
जास ु सभाउ
ु अिरिह अनकूु ला। सो िकिम किरिह मात ु ितकू ला ॥
दो. िया हास िरस पिरहरिह माग ु िबचािर िबबेकु।
जेिहं देखाँ अब नयन भिर भरत राज अिभषेकु ॥ ३२ ॥
िजऐ मीन ब बािर िबहीना। मिन िबन ु फिनकु िजऐ ख दीना ॥
कहउँ सभाउु न छ मन माह। जीवन ु मोर राम िबन ु नाह ॥
समिु झ देख ु िजयँ िया बीना। जीवन ु राम दरस आधीना ॥
सिनु  बचन कुमित अित जरई। मनँ अनल आित घृत परई ॥
कहइ कर िकन कोिट उपाया। इहाँ न लािगिह राउिर माया ॥
दे िक ले अजस ु किर नाह। मोिह न बत पंच सोहाह।
राम ु साध ु त
ु साध ु सयान े। राममात ु भिल सब पिहचान े ॥
जस कौिसलाँ मोर भल ताका। तस फ उिह देउँ किर साका ॥
दो. होत ात मिु नबेष धिर ज न राम ु बन जािहं।
मोर मरन ु राउर अजस नृप समिु झअ मन मािहं ॥ ३३ ॥
अस किह कुिटल भई उिठ ठाढ़ी। मानँ रोष तरंिगिन बाढ़ी ॥
पाप पहार गट भइ सोई। भरी ोध जल जाइ न जोई ॥
दोउ बर कू ल किठन हठ धारा। भवँर कू बरी बचन चारा ॥
ढाहत भूपप त मूला। चली िबपित बािरिध अनकूु ला ॥
लखी नरेस बात फुिर साँची। ितय िमस मीच ु सीस पर नाची ॥
गिह पद िबनय की ब ैठारी। जिन िदनकर कुल होिस कुठारी ॥
माग ु माथ अबह देउँ तोही। राम िबरहँ जिन मारिस मोही ॥
राख ु राम कँ जेिह तेिह भाँती। नािहं त जिरिह जनम भिर छाती ॥
ु माथ।
दो. देखी ािध असाध नृप ु परेउ धरिन धिन
कहत परम आरत बचन राम राम रघनाथ ु ॥ ३४ ॥
ाकुल राउ िसिथल सब गाता। किरिन कलपत मनँ िनपाता ॥
ु आव न बानी। जन ु पाठीन ु दीन िबन ु पानी ॥
कं ठु सूख मख
॥ ी राम चिरत मानस ॥

ु कह कटु कठोर कै केई। मनँ घाय मँ मार देई ॥


पिन
ज अंतँ अस करतब ु रहेऊ। माग ु माग ु त
ु के िहं बल कहेऊ ॥

इ िक होइ एक समय भआला। हँसब ठठाइ फुलाउब गाला ॥
दािन कहाउब अ कृ पनाई। होइ िक खेम कुसल रौताई ॥
छाड़ बचन ु िक धीरज ु धर। जिन अबला िजिम कना कर ॥
तन ु ितय तनय धाम ु धन ु धरनी। ससंध कँ तृन सम बरनी ॥
दो. मरम बचन सिन ु राउ कह क क दोष ु न तोर।
लागेउ तोिह िपसाच िजिम का कहावत मोर ॥ ३५ ॥ û
चहत न भरत भूपतिह भोर । िबिध बस कुमित बसी िजय तोर ॥
सो सब ु मोर पाप पिरनामू। भयउ कुठाहर जेिहं िबिध बामू ॥
ु बिसिह िफिर अवध सहाई।
सबस ु सब गनु धाम राम भताईु ॥
किरहिहं भाइ सकल सेवकाई। होइिह ितँ परु राम बड़ाई ॥
तोर कलं कु मोर पिछताऊ। मएु ँ न िमटिह न जाइिह काऊ ॥
अब तोिह नीक लाग क सोई। लोचन ओट ब ैठु मु गोई ॥
जब लिग िजऔ ं कहउँ कर जोरी। तब लिग जिन क कहिस बहोरी ॥
िफिर पिछत ैहिस अंत अभागी। मारिस गाइ नहा लागी ॥
दो. परेउ राउ किह कोिट िबिध काहे करिस िनदान।ु
कपट सयािन न कहित क जागित मनँ मसान ु ॥ ३६ ॥
राम राम रट िबकल भआ। ु जन ु िबन ु पंख िबहंग बेहा ॥
दयँ मनाव भो जिन होई। रामिह जाइ कहै जिन कोई ॥
उदउ कर जिन रिब रघक ु अवध िबलोिक सूल होइिह उर ॥
ु ु ल गर।
भूप ीित कै कइ किठनाई। उभय अविध िबिध रची बनाई ॥
िबलपत नृपिह भयउ िभनसारा। ु बीना बेन ु संख धिन ु ारा ॥
ु ु ु
पढ़िहं भाट गन गाविहं गायक। सनत नृपिह जन लागिहं सायक ॥
मंगल सकल सोहािहं न कै स। सहगािमिनिह िबभूषन ज ैस ॥
तेिहं िनिस नीद परी निह का। राम दरस लालसा उछा ॥
दो. ार भीर सेवक सिचव कहिहं उिदत रिब देिख।
जागेउ अजँ न अवधपित कारन ु कवन ु िबसेिष ॥ ३७ ॥
पिछले पहर भूप ु िनत जागा। आज ु हमिह बड़ अचरज ु लागा ॥
जा समं ु  जगाव जाई। कीिजअ काज ु रजायस ु पाई ॥
गए समंु  ु तब राउर माही। देिख भयावन जात डेराह ॥
धाइ खाइ जन ु जाइ न हेरा। मानँ िबपित िबषाद बसेरा ॥
पूछ कोउ न ऊत देई। गए जिहं भवन भूप कै कैई ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 13


किह जयजीव ब ैठ िस नाई। दैिख भूप गित गयउ सखाई ॥
सोच िबकल िबबरन मिह परेऊ। मानँ कमल मू पिरहरेऊ ॥
सिचउ सभीत सकइ निहं पूछँ ी। बोली असभु भरी सभु छी ॥
दो. परी न राजिह नीद िनिस हेत ु जान जगदीस।ु
राम ु राम ु रिट भो िकय कहइ न मरम ु महीस ु ॥ ३८ ॥
आन रामिह बेिग बोलाई। समाचार तब पूछ ँ े आई ॥
चलेउ समं ु  राय ख जानी। लखी कुचािल कीि क रानी ॥
सोच िबकल मग परइ न पाऊ। रामिह बोिल किहिह का राऊ ॥
उर धिर धीरज ु गयउ आर । पूछँिहं सकल देिख मन ु मार ॥
समाधान ु किर सो सबही का। गयउ जहाँ िदनकर कुल टीका ॥
राम ु समं
ु िह आवत देखा। आद की िपता सम लेखा ॥
िनरिख बदन ु किह भूप रजाई। रघक ु ु लदीपिह चलेउ लेवाई ॥
राम ु कुभाँित सिचव सँग जाह। देिख लोग जहँ तहँ िबलखाह ॥
दो. जाइ दीख रघबंु समिन नरपित िनपट कुसाज ु ॥
सहिम परेउ लिख िसंिघिनिह मनँ बृ गजराज ु ॥ ३९ ॥
सूखिहं अधर जरइ सब ु अंग।ू मनँ दीन मिनहीन भअंु गू ॥
सष समीप दीिख कै केई। मानँ मीच ु घरी गिन लेई ॥

कनामय मृ राम सभाऊ। थम दीख ख ु सना
ु न काऊ ॥
तदिप धीर धिर समउ िबचारी। पूछ ु
ँ ी मधर बचन महतारी ॥
मोिह क मात ु तात ख कारन। किरअ जतन जेिहं होइ िनवारन ॥
ु राम सब ु कारन ए। राजिह तमु पर बत सन े ॥
सन
देन कहेि मोिह इ बरदाना। मागेउँ जो क मोिह सोहाना।
ु भयउ भूप उर सोचू। छािड़ न सकिहं त
सो सिन ु ार सँकोचू ॥
दो. सतु सनहे इत बचन ु उत संकट परेउ नरेस।ु
सक न आयस ु धर िसर मेट किठन कलेस ु ॥ ४० ॥
िनधरक ब ैिठ कहइ कटु बानी। सनत ु किठनता अित अकुलानी ॥
जीभ कमान बचन सर नाना। मनँ मिहप मृ ल समाना ॥
जन ु कठोरपन ु धर सरी। िसखइ धनषिबा ु बर बी ॥
सब संग ु रघपितिह
ु ु
सनाई। ब ैिठ मनँ तन ु धिर िनठुराई ॥
मन मस ु काइ भानक ु ु ल भान।ु राम ु सहज आनंद िनधानू ॥
बोले बचन िबगत सब षन। मृ मंजल ु जन ु बाग िबभूषन ॥
सनु ु जननी सोइ सतु ु बड़भागी। जो िपत ु मात ु बचन अनरागी ु ॥
ु ु
तनय मात िपत तोषिनहारा। लभ जनिन सकल संसारा ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

दो. मिु नगन िमलन ु िबसेिष बन सबिह भाँित िहत मोर।


तेिह महँ िपत ु आयस ु बिर संमत जननी तोर ॥ ४१ ॥
भरत ानिय पाविहं राजू। िबिध सब िबिध मोिह सनमख ु आज।ु
ज न जाउँ बन ऐसे काजा। थम गिनअ मोिह मूढ़ समाजा ॥
सेविहं अरँडु कलपत ागी। पिरहिर अमृत लेिहं िबष ु मागी ॥

तेउ न पाइ अस समउ चकाह। देख ु िबचािर मात ु मन माह ॥
अंब एक ख ु मोिह िबसेषी। िनपट िबकल नरनायकु देखी ॥
थोिरिहं बात िपतिह ख भारी। होित तीित न मोिह महतारी ॥
राउ धीर गनु उदिध अगाधू। भा मोिह ते क बड़ अपराधू ॥
जात मोिह न कहत क राऊ। मोिर सपथ तोिह क सितभाऊ ॥
ु बचन कुमित कुिटल किर जान।
दो. सहज सरल रघबर
चलइ जक जल बगित जिप सिल समान ॥ ४२ ॥
रहसी रािन राम ख पाई। बोली कपट सने जनाई ॥
सपथ त ु ार भरत कै आना। हेत ु न सर मै क जाना ॥
त ु अपराध जोग ु निहं ताता। जननी जनक बंध ु सखदाता
ु ॥
ु ु ु ु
राम स सब जो क कह। त िपत मात बचन रत अह ॥
ु कह बिल सोई। चौथपन जेिहं अजस ु न होई ॥
िपतिह बझाइ
तु सम सअन ु सकृु त जेिहं दीे। उिचत न तास ु िनराद कीे ॥
लागिहं कुमख ु बचन सभु कै स।े मगहँ गयािदक तीरथ ज ैसे ॥

रामिह मात बचन सब भाए। िजिम सरसिर ु गत सिलल सहाए ु ॥
दो. गइ मु छा रामिह सिमिर
ु नृप िफिर करवट ली।
सिचव राम आगमन किह िबनय समय सम की ॥ ४३ ॥
अविनप अकिन राम ु पग ु धारे। धिर धीरज ु तब नयन उघारे ॥
सिचवँ सँभािर राउ ब ैठारे। चरन परत नृप राम ु िनहारे ॥
िलए सनहे िबकल उर लाई। ग ै मिन मनँ फिनक िफिर पाई ॥
रामिह िचतइ रहेउ नरना। चला िबलोचन बािर बा ॥
सोक िबबस क कहै न पारा। दयँ लगावत बारिहं बारा ॥
िबिधिह मनाव राउ मन माह। जेिहं रघनाथु न कानन जाह ॥

सिमिर महेसिह कहइ िनहोरी। िबनती सन ु सदािसव मोरी ॥
आसतोषु त ु अवढर दानी। आरित हर दीन जन ु जानी ॥
दो. तु ेरक सब के दयँ सो मित रामिह दे।
बचन ु मोर तिज रहिह घर पिरहिर सी सन े ॥ ४४ ॥
अजस ु होउ जग सजस
ु ु नसाऊ। नरक परौ ब सरप
ु ु जाऊ ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 15

सब ख सह सहाव मोही। लोचन ओट राम ु जिन हही ॥


अस मन गनइ ु राउ निहं बोला। पीपर पात सिरस मन ु डोला ॥
ु िपतिह ेमबस जानी। पिन
रघपित ु
ु क किहिह मात ु अनमानी ॥
देस काल अवसर अनसारी। ु बोले बचन िबनीत िबचारी ॥
तात कहउँ क करउँ िढठाई। अनिचत ु ु छमब जािन लिरकाई ॥
ु ु
अित लघ बात लािग ख पावा। काँ न मोिह किह थम जनावा ॥
ु संग ु भए सीतल गाता ॥
देिख गोसाइँिह पूिँ छउँ माता। सिन
दो. मंगल समय सन ेह बस सोच पिरहिरअ तात।
ु भ ु गात ॥ ४५ ॥
आयस ु देइअ हरिष िहयँ किह पलके
ध जनम ु जगतीतल तासू। िपतिह मो चिरत सिन ु जासू ॥
चािर पदारथ करतल ताक । िय िपत ु मात ु ान सम जाक ॥
आयस ु पािल जनम फ पाई। ऐहउँ बेिगिहं होउ रजाई ॥
िबदा मात ु सन आवउँ मागी। चिलहउँ बनिह बिर पग लागी ॥
अस किह राम गवन ु तब कीा। भूप सोक बस ु उत न दीा ॥

नगर ािप गइ बात सतीछी। अत चढ़ी जन ु सब तन बीछी ॥
ु भए िबकल सकल नर नारी। बेिल िबटप िजिम देिख दवारी ॥
सिन
जो जहँ सनइ ु िस सोई। बड़ िबषा निहं धीरज ु होई ॥
ु धनइ
दो. मखु सखािहं
ु लोचन विह सोकु न दयँ समाइ।
मनँ ñकन रस कटकई उतरी अवध बजाइ ॥ ४६ ॥
िमलेिह माझ िबिध बात बेगारी। जहँ तहँ देिहं कै केइिह गारी ॥
एिह पािपिनिह बूिझ का परेऊ। छाइ भवन पर पावकु धरेऊ ॥
िनज कर नयन कािढ़ चह दीखा। डािर सधा ु िबष ु चाहत चीखा ॥
कुिटल कठोर कुबि ु अभागी। भइ रघबंु स बेन ु बन आगी ॥
ु मँ सोक ठाटु धिर ठाटा ॥
पालव ब ैिठ पेड़ु एिहं काटा। सख
सदा राम एिह ान समाना। कारन कवन कुिटलपन ु ठाना ॥

स कहिहं किब नािर सभाऊ। ु सब िबिध अग अगाध राऊ ॥
िनज ितिबंब ु बकु गिह जाई। जािन न जाइ नािर गित भाई ॥
दो. काह न पावकु जािर सक का न समु समाइ।
का न करै अबला बल के िह जग का न खाइ ॥ ४७ ॥
ु िबिध काह सनावा।
का सनाइ ु का देखाइ चह काह देखावा ॥
एक कहिहं भल भूप न कीा। ब िबचािर निहं कुमितिह दीा ॥
जो हिठ भयउ सकल ख भाजन।ु अबला िबबस यान ु गनु ु गा जन ु ॥
एक धरम परिमित पिहचाने। नृपिह दोस ु निहं देिहं सयान े ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

िसिब दधीिच हिरचंद कहानी। एक एक सन कहिहं बखानी ॥


एक भरत कर संमत कहह। एक उदास भायँ सिन ु रहह ॥
कान मूिद कर रद गिह जीहा। एक कहिहं यह बात अलीहा ॥
सकृु त जािहं अस कहत त
ु ारे। राम ु भरत कँ ानिपआरे ॥
ु होइ िबषतूल।
दो. चं चवै ब अनल कन सधा
सपन कबँ न करिहं िक भरत ु राम ितकू ल ॥ ४८ ॥
ेँ
एक िबधातिहं षन ु दह। सधा
ु देखाइ दी िबष ु जेह ॥

खरभ नगर सोच सब का। सह दा उर िमटा उछा ॥
िबबधू कुलमा जठे री। जे िय परम कै केई के री ॥
लग देन िसख सी सराही। बचन बानसम लागिहं ताही ॥
भरत ु न मोिह िय राम समाना। सदा कह य सब ु जग ु जाना ॥
कर राम पर सहज सन े। के िहं अपराध आज ु बन ु दे ॥
कबँ न िकय सवित आरेस।ू ीित तीित जान सब ु देस ू ॥
कौसाँ अब काह िबगारा। त ु जेिह लािग ब परु पारा ॥
दो. सीय िक िपय सँग ु पिरहिरिह लखन ु िक रिहहिहं धाम।
ँ ब भरत परु नृप ु िक जीिह िबन ु राम ॥ ४९ ॥
राज ु िक भूज
अस िबचािर उर छाड़ को। सोक कलं क कोिठ जिन हो ॥

भरतिह अविस दे जबराजू । कानन काह राम कर काजू ॥
ु िबषय रस खे ॥
नािहन राम ु राज के भूख।े धरम धरीन

गर गृह बसँ राम ु तिज गे। नृप सन अस ब सर ले ॥
ज निहं लिगह कह हमारे। निहं लािगिह क हाथ तु ारे ॥
ज पिरहास कीि क होई। तौ किह गट जनाव सोई ॥
राम सिरस सतु कानन जोगू। काह किहिह सिन ु त
ु कँ लोगू ॥
उठ बेिग सोइ कर उपाई। जेिह िबिध सोकु कलं कु नसाई ॥
छं. जेिह भाँित सोकु कलं कु जाइ उपाय किर कुल पालही।
हिठ फे  रामिह जात बन जिन बात सिर चालही ॥
िजिम भान ु िबन ु िदन ु ान िबन ु तन ु चंद िबन ु िजिम जािमनी।
ितिम अवध तल ु सीदास भ ु िबन ु समिु झ ध िजयँ भािमनी ॥
सो. सिख िसखावन ु दी सनतु मधरु पिरनाम िहत।
तेइँ क कान न की कुिटल बोधी कू बरी ॥ ५० ॥
उत न देइ सह िरस खी। मृिग िचतव जन ु बािघिन भूखी ॥
ािध असािध जािन ित ागी। चल कहत मितमंद अभागी ॥
राज ु करत यह दैअ ँ िबगोई। कीेिस अस जस करइ न कोई ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 17

एिह िबिध िबलपिहं परु नर नार। देिहं कुचािलिह कोिटक गार ॥


जरिहं िबषम जर लेिहं उसासा। कविन राम िबन ु जीवन आसा ॥
िबपलु िबयोग जा अकुलानी। जन ु जलचर गन सूखत पानी ॥
अित िबषाद बस लोग लोगाई। गए मात ु पिहं राम ु गोसाई ॥
मखु स िचत चौगनु चाऊ। िमटा सोच ु जिन राख ै राऊ ॥
ु मन ु राज ु अलान समान।
दो. नव गयं रघबीर
ट जािन बन गवन ु सिन
ु उर अनं अिधकान ॥ ५१ ॥
रघक ु ु लितलक जोिर दोउ हाथा। मिु दत मात ु पद नायउ माथा ॥
दीि असीस लाइ उर लीे। भूषन बसन िनछाविर कीे ॥
बार बार मख ु चबं ु ित माता। नयन न ेह ज पलिकत
ु गाता ॥
गोद रािख पिन ु दयँ लगाए। वत ेनरस पयद सहाए ु ॥
ेम ु मो न क किह जाई। रंक धनद पदबी जन ु पाई ॥
सादर सदं ु र बदन ु िनहारी। बोली मधरु बचन महतारी ॥
कह तात जननी बिलहारी। कबिहं लगन मदु मंगलकारी ॥
सकृु त सील सख ु सीवँ सहाई।
ु जनम लाभ कइ अविध अघाई ॥
दो. जेिह चाहत नर नािर सब अित आरत एिह भाँित।
िजिम चातक चातिक तृिषत बृि सरद िरत ु ाित ॥ ५२ ॥
तात जाउँ बिल बेिग नहा। जो मन भाव मधरु क खा ॥
िपत ु समीप तब जाए भ ैआ। भइ बिड़ बार जाइ बिल मैआ ॥
ु अित अनकूु ला। जन ु सन ेह सरत
मात ु बचन सिन ु के फू ला ॥
सखु मकरंद भरे ियमूला। िनरिख राम मन ु भवँ न भूला ॥
धरम धरीनु धरम गित जानी। कहेउ मात ु सन अित मृ बानी ॥
िपताँ दी मोिह कानन राजू। जहँ सब भाँित मोर बड़ काजू ॥
आयस ु देिह मिु दत मन माता। जेिहं मदु मंगल कानन जाता ॥
जिन सन ेह बस डरपिस भोर । आनँ अंब अनह ु तोर ॥
दो. बरष चािरदस िबिपन बिस किर िपत ु बचन मान।
ु देिखहउँ मन ु जिन करिस मलान ॥ ५३ ॥
आइ पाय पिन
बचन िबनीत मधरु रघबर ु के । सर सम लगे मात ु उर करके ॥
सहिम सूिख सिन ु सीतिल बानी। िजिम जवास पर पावस पानी ॥
किह न जाइ क दय िबषा। मनँ मृगी सिन ु के हिर ना ॥
नयन सजल तन थर थर काँपी। माजिह खाइ मीन जन ु मापी ॥
धिर धीरज ु सतु बदन ु िनहारी। गदगद बचन कहित महतारी ॥
तात िपतिह त ु ानिपआरे। देिख मिु दत िनत चिरत त ु ारे ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

राज ु देन कँ सभु िदन साधा। कहेउ जान बन के िहं अपराधा ॥

तात सनाव मोिह िनदानू। को िदनकर कुल भयउ कृ सानू ॥
दो. िनरिख राम ख सिचवसतु कारन ु कहेउ बझाइ।ु
ु संग ु रिह मूक िजिम दसा बरिन निहं जाइ ॥ ५४ ॥
सिन
रािख न सकइ न किह सक जा। ँ भाँित उर दान दा ॥
िलखत सधाकरु गा िलिख रा। िबिध गित बाम सदा सब का ॥
धरम सन ेह उभयँ मित घेरी। भइ गित साँप ं दिर के री ॥
ु करउँ अनरोधू
राखउँ सतिह ु । धरम ु जाइ अ बंध ु िबरोधू ॥
कहउँ जान बन तौ बिड़ हानी। संकट सोच िबबस भइ रानी ॥
बिर समिु झ ितय धरम ु सयानी। राम ु भरत ु दोउ सतु सम जानी ॥

सरल सभाउ राम महतारी। बोली बचन धीर धिर भारी ॥
तात जाउँ बिल कीे नीका। िपत ु आयस ु सब धरमक टीका ॥
दो. राज ु देन किह दी बन ु मोिह न सो ख लेस।ु
ु िबन ु भरतिह भूपितिह जिह चंड कलेस ु ॥ ५५ ॥
त
ज के वल िपत ु आयस ु ताता। तौ जिन जा जािन बिड़ माता ॥
ज िपत ु मात ु कहेउ बन जाना। त कानन सत अवध समाना ॥
िपत ु बनदेव मात ु बनदेवी। खग मृग चरन सरोह सेवी ॥
अंतँ उिचत नृपिह बनबासू। बय िबलोिक िहयँ होइ हराँस ू ॥
बड़भागी बन ु अवध अभागी। जो रघबंु सितलक त ु ागी ॥
ज सतु कहौ संग मोिह ले। त ु रे दयँ होइ संदे ॥
पूत परम िय त ु सबही के । ान ान के जीवन जी के ॥
ते तु कह मात ु बन जाऊँ । म सिन
ु बचन ब ैिठ पिछताऊँ ॥
दो. यह िबचािर निहं करउँ हठ झ ूठ सन े बढ़ाइ।
मािन मात ु कर नात बिल सरित
ु िबसिर जिन जाइ ॥ ५६ ॥
देव िपतर सब त ु िह गोसाई। राखँ पलक नयन की नाई ॥
अविध अंब ु िय पिरजन मीना। त ु
ु कनाकर धरम धरीना ॥
अस िबचािर सोइ कर उपाई। सबिह िजअत जेिहं भटे आई ॥
जा सखेु न बनिह बिल जाऊँ । किर अनाथ जन पिरजन गाऊँ ॥
सब कर आज ु सकृु त फल बीता। भयउ कराल का िबपरीता ॥
बिबिध िबलिप चरन लपटानी। परम अभािगिन आपिह ु जानी ॥
दान सह दा उर ापा। बरिन न जािहं िबलाप कलापा ॥
राम उठाइ मात ु उर लाई। किह मृ बचन बिर समझ
ु ाई ॥
ु सीय उठी अकुलाइ।
दो. समाचार तेिह समय सिन
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 19

जाइ सास ु पद कमल जगु बंिद ब ैिठ िस नाइ ॥ ५७ ॥


दीि असीस सास ु मृ बानी। अित सक ु ु मािर देिख अकुलानी ॥
ब ैिठ निमतमखु सोचित सीता। प रािस पित ेम पनीता ु ॥
चलन चहत बन जीवननाथू। के िह सकृु ती सन होइिह साथू ॥
की तन ु ान िक के वल ाना। िबिध करतब ु क जाइ न जाना ॥
चा चरन नख लेखित धरनी। नूपरु मख ु र मधरु किब बरनी ॥
मनँ ेम बस िबनती करह। हमिह सीय पद जिन पिरहरह ॥
मंज ु िबलोचन मोचित बारी। बोली देिख राम महतारी ॥
तात सन ु िसय अित सक ु ु मारी। सास ु ससरु पिरजनिह िपआरी ॥
दो. िपता जनक भूपाल मिन ससरु भानक ु ु ल भान।ु
पित रिबकुल कै रव िबिपन िबध ु गनु प िनधान ु ॥ ५८ ॥
ु पबधू
म पिन ु िय पाई। प रािस गनु सील सहाई ु ॥
ु किर ीित बढ़ाई। राखेउँ ान जािनिकिहं लाई ॥
नयन पतिर
कलपबेिल िजिम बिबिध लाली। सिच सनहे सिलल ितपाली ॥
फू लत फलत भयउ िबिध बामा। जािन न जाइ काह पिरनामा ॥
पलँ ग पीठ तिज गोद िहंड़ोरा। िसयँ न दी पग ु अविन कठोरा ॥
िजअनमूिर िजिम जोगवत रहऊँ । दीप बाित निहं टारन कहऊँ ॥
सोइ िसय चलन चहित बन साथा। आयस ु काह होइ रघनाथा। ु
चंद िकरन रस रिसक चकोरी। रिब ख नयन सकइ िकिम जोरी ॥
दो. किर के हिर िनिसचर चरिहं  जंत ु बन भूिर।
िबष बािटकाँ िक सोह सतु सभग
ु सजीविन मूिर ॥ ५९ ॥
बन िहत कोल िकरात िकसोरी। रच िबरंिच िबषय सख ु भोरी ॥
ु ु
पाइन कृ िम िजिम किठन सभाऊ। ितिह कलेस न कानन काऊ ॥
कै तापस ितय कानन जोगू। िज तप हेत ु तजा सब भोगू ॥
िसय बन बिसिह तात के िह भाँती। िचिलिखत किप देिख डेराती ॥
सरसरु सभग ु बनज बन चारी। डाबर जोग ु िक हंसकुमारी ॥
अस िबचािर जस आयस ु होई। म िसख देउँ जानिकिह सोई ॥
ज िसय भवन रहै कह अंबा। मोिह कहँ होइ बत अवलं बा ॥
सिनु रघबीर ु जन ु सानी ॥
ु मात ु िय बानी। सील सनेह सधाँ
दो. किह िय बचन िबबेकमय कीि मात ु पिरतोष।
लगे बोधन जानिकिह गिट िबिपन गनु दोष ॥ ६० ॥
मासपारायण, चौदहवाँ िवाम
मात ु समीप कहत सकुचाह। बोले समउ समिु झ मन माह ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

राजकुमािर िसखावन सन।ु आन भाँित िजयँ जिन क गन ु ॥


आपन मोर नीक ज चह। बचन ु हमार मािन गृह रह ॥
आयस ु मोर सास ु सेवकाई। सब िबिध भािमिन भवन भलाई ॥
एिह ते अिधक धरम ु निहं जा। सादर सास ु ससरु पद पूजा ॥
जब जब मात ु किरिह सिध
ु मोरी। होइिह ेम िबकल मित भोरी ॥

तब तब त किह कथा परानी।ु सदं ु िर समझ
ु ाए मृ बानी ॥

कहउँ सभायँ सपथ सत मोही। समु िु ख मात ु िहत राखउँ तोही ॥
दो. गरु िु त संमत धरम फ पाइअ िबनिहं कलेस।
हठ बस सब संकट सहे गालव नष नरेस ॥ ६१ ॥
ु किर वान िपत ु बानी। बेिग िफरब सनु ु समु िु ख सयानी ॥
म पिन
िदवस जात निहं लािगिह बारा। सदं ु िर िसखवन ु सन ु हमारा ॥
जौ हठ कर ेम बस बामा। तौ त ु ख ु पाउब पिरनामा ॥
कानन ु किठन भयंक भारी। घोर घाम ु िहम बािर बयारी ॥
कुस कं टक मग काँकर नाना। चलब पयादेिहं िबन ु पदाना ॥
चरन कमल मु मंज ु त ु ारे। मारग अगम भूिमधर भारे ॥
कं दर खोह नद नद नारे। अगम अगाध न जािहं िनहारे ॥
भा बाघ बृक के हिर नागा। करिहं नाद सिन ु धीरज ु भागा ॥
दो. भूिम सयन बलकल बसन असन ु कं द फल मूल।
ते िक सदा सब िदन िमिलिहं सबइु समय अनकूु ल ॥ ६२ ॥
नर अहार रजनीचर चरह। कपट बेष िबिध कोिटक करह ॥
लागइ अित पहार कर पानी। िबिपन िबपित निहं जाइ बखानी ॥
ाल कराल िबहग बन घोरा। िनिसचर िनकर नािर नर चोरा ॥
ु आएँ। मृगलोचिन त
डरपिहं धीर गहन सिध ु भी सभाएँ
ु ॥
ु ु ु
हंसगविन त निहं बन जोगू। सिन अपजस मोिह देइिह लोगू ॥
मानस सिलल सधाँु ितपाली। िजअइ िक लवन पयोिध मराली ॥
नव रसाल बन िबहरनसीला। सोह िक कोिकल िबिपन करीला ॥
रह भवन अस दयँ िबचारी। चंदबदिन ख ु कानन भारी ॥
दो. सहज सदु गरु ािम िसख जो न करइ िसर मािन ॥
सो पिछताइ अघाइ उर अविस होइ िहत हािन ॥ ६३ ॥
ु मृ बचन मनोहर िपय के । लोचन लिलत भरे जल िसय के ॥
सिन
सीतल िसख दाहक भइ क स। चकइिह सरद चंद िनिस जस ॥
उत न आव िबकल ब ैदेही। तजन चहत सिच ु ािम सन ेही ॥
बरबस रोिक िबलोचन बारी। धिर धीरज उर अविनकुमारी ॥

॥ ी राम चिरत मानस ॥ 21

लािग सास ु पग कह कर जोरी। छमिब देिब बिड़ अिबनय मोरी ॥


दीि ानपित मोिह िसख सोई। जेिह िबिध मोर परम िहत होई ॥
ु समिु झ दीिख मन माह। िपय िबयोग सम ख ु जग नाह ॥
म पिन
दो. ाननाथ कनायतन सदं ु र सखद ु सजान।ु
त ु ु ल कुमदु िबध ु सरप
ु िबन ु रघक ु रु नरक समान ॥ ६४ ॥
मात ु िपता भिगनी िय भाई। िय पिरवा सद ु समदु ाई ॥
सास ु ससरु गरु सजन सहाई। सतु सदं ु र ससील ु ु
सखदाई ॥

जहँ लिग नाथ न ेह अ नाते। िपय िबन ितयिह तरिन ते ताते ॥
तन ु धन ु धाम ु धरिन परु राजू। पित िबहीन सब ु सोक समाजू ॥
भोग रोगसम भूषन भा। जम जातना सिरस संसा ॥
ाननाथ त ु िबन ु जग माह। मो कँ सखद ु कतँ क नाह ॥
िजय िबन ु देह नदी िबन ु बारी। त ैिसअ नाथ पष ु िबन ु नारी ॥
नाथ सकल सख ु साथ त ु ार । सरद िबमल िबध ु बदन ु िनहार ॥
दो. खग मृग पिरजन नग बन ु बलकल िबमल कू ल।

नाथ साथ सरसदन सम परनसाल सखु मूल ॥ ६५ ॥
बनदेव बनदेव उदारा। किरहिहं सास ु ससरु सम सारा ॥
कुस िकसलय साथरी सहाई। ु भ ु सँग मंज ु मनोज तरु ाई ॥
कं द मूल फल अिमअ अहा। अवध सौध सत सिरस पहा ॥
िछन ु िछन ु भ ु पद कमल िबलोिक। रिहहउँ मिु दत िदवस िजिम कोकी ॥
बन ख नाथ कहे बतेर।े भय िबषाद पिरताप घनेरे ॥
भ ु िबयोग लवलेस समाना। सब िमिल होिहं न कृ पािनधाना ॥
अस िजयँ जािन सजान ु िसरोमिन। लेइअ संग मोिह छािड़अ जिन ॥
िबनती बत कर का ामी। कनामय उर अंतरजामी ॥
दो. रािखअ अवध जो अविध लिग रहत न जिनअिहं ान।
दीनबंध ु संदर सखद
ु सील सन ेह िनधान ॥ ६६ ॥
मोिह मग चलत न होइिह हारी। िछन ु िछन ु चरन सरोज िनहारी ॥
सबिह भाँित िपय सेवा किरह। मारग जिनत सकल म हिरह ॥
पाय पखारी ब ैिठ त छाह। किरहउँ बाउ मिु दत मन माह ॥
म कन सिहत ाम तन ु देख। कहँ ख समउ ानपित पेख ॥
सम मिह तृन तपव डासी। पाग पलोिटिह सब िनिस दासी ॥
बारबार मृ मूरित जोही। लागिह तात बयािर न मोही।
ु िजिम ससक िसआरा ॥
को भ ु सँग मोिह िचतविनहारा। िसंघबधिह
ु ु ु
म सकमािर नाथ बन जोगू। तिह उिचत तप मो कँ भोगू ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

दो. ऐसेउ बचन कठोर सिन ु ज न दउ िबलगान।


तौ भ ु िबषम िबयोग ख सिहहिहं पावँर ान ॥ ६७ ॥

अस किह सीय िबकल भइ भारी। बचन िबयोग ु न सकी सँभारी ॥


ु िजयँ जाना। हिठ राख निहं रािखिह ाना ॥
देिख दसा रघपित
ु ु लनाथा। पिरहिर सोच ु चल बन साथा ॥
कहेउ कृ पाल भानक
निहं िबषाद कर अवस आजू। बेिग कर बन गवन समाजू ॥
किह िय बचन िया समझ ु ाई। लगे मात ु पद आिसष पाई ॥
बेिग जा ख मेटब आई। जननी िनठुर िबसिर जिन जाई ॥
िफरिह दसा िबिध बिर िक मोरी। देिखहउँ नयन मनोहर जोरी ॥
ु तात कब होइिह। जननी िजअत बदन िबध ु जोइिह ॥
ु सघरी
सिदन
दो. बिर ब किह ला किह रघपित ु रघबरु तात।
कबिहं बोलाइ लगाइ िहयँ हरिष िनरिखहउँ गात ॥ ६८ ॥
लिख सनहे कातिर महतारी। बचन ु न आव िबकल भइ भारी ॥
राम बोध ु की िबिध नाना। समउ सन े न जाइ बखाना ॥
तब जानकी सास ु पग लागी। सिनअ ु माय म परम अभागी ॥
सेवा समय दैअ ँ बन ु दीा। मोर मनोरथ ु सफल न कीा ॥
तजब छोभ ु जिन छािड़अ छो। करम ु किठन क दोस ु न मो ॥
ु िसय बचन सास ु अकुलानी। दसा कविन िबिध कह बखानी ॥
सिन
बारिह बार लाइ उर लीी। धिर धीरज ु िसख आिसष दीी ॥
अचल होउ अिहवात ु त ु ारा। जब लिग गंग जमनु जल धारा ॥
दो. सीतिह सास ु असीस िसख दीि अनेक कार।
चली नाइ पद पम िस अित िहत बारिहं बार ॥ ६९ ॥
समाचार जब लिछमन पाए। ाकुल िबलख बदन उिठ धाए ॥
ु तन नयन सनीरा। गहे चरन अित ेम अधीरा ॥
कं प पलक
किह न सकत क िचतवत ठाढ़े। मीन ु दीन जन ु जल त काढ़े ॥
सोच ु दयँ िबिध का होिनहारा। सब ु सखु ु सकृु त िसरान हमारा ॥

मो कँ काह कहब रघनाथा। रिखहिहं भवन िक लेहिहं साथा ॥
राम िबलोिक बंध ु कर जोर । देह गेह सब सन तृन ु तोर ॥
बोले बचन ु राम नय नागर। सील सन ेह सरल सख ु सागर ॥
तात ेम बस जिन कदरा। समिु झ दयँ पिरनाम उछा ॥
दो. मात ु िपता गु ािम िसख िसर धिर करिह सभायँ
ु ।
लहेउ लाभ ु ित जनम कर नत जनम ु जग जायँ ॥ ७० ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 23

अस िजयँ जािन सन ु िसख भाई। कर मात ु िपत ु पद सेवकाई ॥


भवन भरत ु िरपसू ु दन नाह। राउ बृ मम ख ु मन माह ॥
म बन जाउँ त ु िह लेइ साथा। होइ सबिह िबिध अवध अनाथा ॥
गु िपत ु मात ु जा पिरवा। सब कँ परइ सह ख भा ॥
रह कर सब कर पिरतोषू। नत तात होइिह बड़ दोषू ॥
जास ु राज िय जा खारी। सो नृप ु अविस नरक अिधकारी ॥
रह तात अिस नीित िबचारी। सनत ु लखन ु भए ाकुल भारी ॥
िसअर बचन सूिख गए क स। परसत तिु हन तामरस ु ज ैस ॥
दो. उत न आवत ेम बस गहे चरन अकुलाइ।
नाथ दास ु म ािम त
ु तज त काह बसाइ ॥ ७१ ॥
दीि मोिह िसख नीिक गोसा। लािग अगम अपनी कदरा ॥
नरबर धीर धरम धरु धारी। िनगम नीित कँ ते अिधकारी ॥
म िसस ु भ ु सन ेहँ ितपाला। मंद मे िक लेिहं मराला ॥
गरु िपत ु मात ु न जानउँ का। कहउँ सभाउु नाथ पितआ ॥
जहँ लिग जगत सन ेह सगाई। ीित तीित िनगम िनज ु गाई ॥
मोर सबइ एक त ु ामी। दीनबंध ु उर अंतरजामी ॥
धरम नीित उपदेिसअ ताही। कीरित भूित सगित ु िय जाही ॥
मन म बचन चरन रत होई। कृ पािसंध ु पिरहिरअ िक सोई ॥
दो. कनािसंध ु सबंु ध के सिन
ु मृ बचन िबनीत।
ु ाए उर लाइ भ ु जािन सन ेहँ सभीत ॥ ७२ ॥
समझ
माग िबदा मात ु सन जाई। आव बेिग चल बन भाई ॥
मिु दत भए सिन ु रघबर
ु बानी। भयउ लाभ बड़ गइ बिड़ हानी ॥
हरिषत दयँ मात ु पिहं आए। मनँ अंध िफिर लोचन पाए।
जाइ जनिन पग नायउ माथा। मन ु रघनंु दन जानिक साथा ॥
ँ े मात ु मिलन मन देखी। लखन कही सब कथा िबसेषी ॥
पूछ
गई सहिम सिन ु बचन कठोरा। मृगी देिख दव जन ु च ओरा ॥
लखन लखेउ भा अनरथ आजू। एिहं सन ेह बस करब अकाजू ॥
मागत िबदा सभय सकुचाह। जाइ संग िबिध किहिह िक नाही ॥
दो. समिु झ सिमाँ
ु राम िसय प ससी ु ु
सभाउ।
नृप सन े लिख धनु ेउ िस पािपिन दी कुदाउ ॥ ७३ ॥
धीरज ु धरेउ कुअवसर जानी। सहज सद ु बोली मृ बानी ॥
ु ु ु
तात तािर मात ब ैदेही। िपता राम सब भाँित सन ेही ॥
अवध तहाँ जहँ राम िनवासू। तहँइ ँ िदवस ु जहँ भान ु कासू ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

जौ प ै सीय राम ु बन जाह। अवध त ु ार काज ु क नािहं ॥


गरु िपत ु मात ु बंध ु सरु साई। सेइअिहं सकल ान की ना ॥
राम ु ानिय जीवन जी के । ारथ रिहत सखा सबही कै ॥
पूजनीय िय परम जहाँ त। सब मािनअिहं राम के नात ॥
अस िजयँ जािन संग बन जा। ले तात जग जीवन ला ॥
दो. भूिर भाग भाजन ु भय मोिह समेत बिल जाउँ।
जौम तु र मन छािड़ छ की राम पद ठाउँ ॥ ७४ ॥

पवती ु जग सोई। रघपित
जबती ु भगत ु जास ु सतु ु होई ॥
नत बाँझ भिल बािद िबआनी। राम िबमख ु सतु त िहत जानी ॥
त ु रेिहं भाग राम ु बन जाह। सर हेत ु तात क नाह ॥
सकल सकृु त कर बड़ फ ए। राम सीय पद सहज सन े ॥
राग रोष ु इिरषा म मो। जिन सपनेँ इ के बस हो ॥
सकल कार िबकार िबहाई। मन म बचन करे सेवकाई ॥
त ु कँ बन सब भाँित सपासू
ु । सँग िपत ु मात ु राम ु िसय जासू ॥
जेिहं न राम ु बन लहिहं कलेस।ू सतु सोइ करे इहइ उपदेस ू ॥
छं. उपदेस ु य जेिहं तात त ु रे राम िसय सखु पावह।
िपत ु मात ु िय पिरवार परु सखु सरित
ु बन िबसरावह।
तलु सी भिह ु िसख देइ आयस ु दी पिन ु आिसष दई।
रित होउ अिबरल अमल िसय रघबीर ु पद िनत िनत नई ॥
सो. मात ु चरन िस नाइ चले तरु त संिकत दयँ।
बागरु िबषम तोराइ मनँ भाग मृग ु भाग बस ॥ ७५ ॥
गए लखन ु जहँ जानिकनाथू। भे मन मिु दत पाइ िय साथू ॥

बंिद राम िसय चरन सहाए। चले संग नृपमंिदर आए ॥
कहिहं परसपर परु नर नारी। भिल बनाइ िबिध बात िबगारी ॥
तन कृ स ख ु बदन मलीन े। िबकल मनँ माखी मध ु छीन े ॥
कर मीजिहं िस धिनु पिछताह। जन ु िबन पंख िबहग अकुलाह ॥
भइ बिड़ भीर भूप दरबारा। बरिन न जाइ िबषा अपारा ॥
सिचवँ उठाइ राउ ब ैठारे। किह िय बचन राम ु पग ु धारे ॥
िसय समेत दोउ तनय िनहारी। ाकुल भयउ भूिमपित भारी ॥
दो. सीय सिहत सतु सभग ु दोउ देिख देिख अकुलाइ।
बारिहं बार सनहे बस राउ लेइ उर लाइ ॥ ७६ ॥
सकइ न बोिल िबकल नरना। सोक जिनत उर दान दा ॥

नाइ सीस ु पद अित अनरागा। ु िबदा तब मागा ॥
उिठ रघबीर
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 25

िपत ु असीस आयस ु मोिह दीज ै। हरष समय िबसमउ कत कीज ै ॥


तात िकएँ िय ेम मा। जस ु जग जाइ होइ अपबा ॥
सिन ु सनेह बस उिठ नरनाहाँ। ब ैठारे रघपित
ु गिह बाहाँ ॥
सनु तात त ु कँ मिु न कहह। राम ु चराचर नायक अहह ॥
सभु अ असभु करम अनहारी। ु ईस देइ फ दयँ िबचारी ॥
करइ जो करम पाव फल सोई। िनगम नीित अिस कह सब ु कोई ॥
दो. -औ करै अपराध ु कोउ और पाव फल भोग।ु
अित िबिच भगवंत गित को जग जान ै जोग ु ॥ ७७ ॥
रायँ राम राखन िहत लागी। बत उपाय िकए छ ागी ॥
लखी राम ख रहत न जान े। धरम धरंु धर धीर सयान े ॥
तब नृप सीय लाइ उर लीी। अित िहत बत भाँित िसख दीी ॥
किह बन के ख सह सनाए। ु सास ु ससरु िपत ु सख
ु समझ ु ाए ॥
िसय मन ु राम चरन अनरागा।
ु घ न सगमु ु बन ु िबषम ु न लागा ॥
औरउ सबिहं सीय समझ ु ाई। किह किह िबिपन िबपित अिधकाई ॥
सिचव नािर गरु नािर सयानी। सिहत सनेह कहिहं मृ बानी ॥
तु कँ तौ न दी बनबासू। कर जो कहिहं ससरु गरु सासू ॥
दो. -िसख सीतिल िहत मधरु मृ सिन
ु सीतिह न सोहािन।
सरद चंद चंदिन लगत जन ु चकई अकुलािन ॥ ७८ ॥
सीय सकुच बस उत न देई। सो सिन ु तमिक उठी कै केई ॥
मिु न पट भूषन भाजन आनी। आग धिर बोली मृ बानी ॥
नृपिह ान िय त ु रघबीरा।
ु सील सन ेह न छािड़िह भीरा ॥
सकृु त सजस ु ु परलोकु नसाऊ। त ु िह जान बन किहिह न काऊ ॥
अस िबचािर सोइ कर जो भावा। राम जनिन िसख सिन ु सखु ु पावा ॥
भूपिह बचन बानसम लागे। करिहं न ान पयान अभागे ॥
लोग िबकल मु िछत नरना। काह किरअ क सूझ न का ॥
राम ु तरु त मिु न बेष ु बनाई। चले जनक जनिनिह िस नाई ॥
दो. सिज बन साज ु समाज ु सब ु बिनता बंध ु समेत।
बंिद िब गरु चरन भ ु चले किर सबिह अचेत ॥ ७९ ॥
िनकिस बिस ार भए ठाढ़े। देख े लोग िबरह दव दाढ़े ॥
किह िय बचन सकल समझ ु ाए। िब बृदं रघबीर
ु बोलाए ॥
गरु सन किह बरषासन दीे। आदर दान िबनय बस कीे ॥
ु ेम पिरतोषे ॥
जाचक दान मान संतोषे। मीत पनीत
ु सिप बोले कर जोरी ॥
दास दास बोलाइ बहोरी। गरिह
॥ ी राम चिरत मानस ॥

सब कै सार सँभार गोसा। करिब जनक जननी की नाई ॥


बारिहं बार जोिर जगु पानी। कहत राम ु सब सन मृ बानी ॥

सोइ सब भाँित मोर िहतकारी। जेिह त रहै भआल ु
सखारी ॥
दो. मात ु सकल मोरे िबरहँ जेिहं न होिहं ख दीन।
ु करे सब परु जन परम बीन ॥ ८० ॥
सोइ उपाउ त
एिह िबिध राम सबिह समझ ु ावा। गरु पद पम हरिष िस नावा।
गनपती गौिर िगरीस ु मनाई। चले असीस पाइ रघराई ु ॥
ु ु
राम चलत अित भयउ िबषा। सिन न जाइ पर आरत ना ॥
कुसगनु लं क अवध अित सोकू । हहरष िबषाद िबबस सरलोकूु ॥
गइ मु छा तब भूपित जागे। बोिल समं ु  ु कहन अस लागे ॥
राम ु चले बन ान न जाह। के िह सखु लािग रहत तन माह।
एिह त कवन था बलवाना। जो ख ु पाइ तजिहं तन ु ाना ॥
ु धिर धीर कहइ नरना। लै रथ ु संग सखा त
पिन ु जा ॥
ु सक
दो. -सिठ ु ु मार कुमार दोउ जनकसता ु ु मािर।
ु सक

रथ चढ़ाइ देखराइ बन िफरे गएँ िदन चािर ॥ ८१ ॥
जौ निहं िफरिहं धीर दोउ भाई। ससंध ढ़त रघराई ु ॥
ु ु
तौ त िबनय करे कर जोरी। फे िरअ भ िमिथलेसिकसोरी ॥
जब िसय कानन देिख डेराई। कहे मोिर िसख अवस पाई ॥
सास ु ससरु अस कहेउ सँदस ु िफिरअ बन बत कलेस ू ॥
े ।ू पि

िपतृगहृ कबँ कबँ ससरारी। रहे जहाँ िच होइ तु ारी ॥
एिह िबिध करे उपाय कदंबा। िफरइ त होइ ान अवलं बा ॥
नािहं त मोर मरन ु पिरनामा। क न बसाइ भएँ िबिध बामा ॥
अस किह मु िछ परा मिह राऊ। राम ु लखन ु िसय आिन देखाऊ ॥
दो. -पाइ रजायस ु नाइ िस रथ ु अित बेग बनाइ।
गयउ जहाँ बाहेर नगर सीय सिहत दोउ भाइ ॥ ८२ ॥
तब समं ु  नृप बचन सनाए।
ु किर िबनती रथ राम ु चढ़ाए ॥
चिढ़ रथ सीय सिहत दोउ भाई। चले दयँ अवधिह िस नाई ॥
चलत राम ु लिख अवध अनाथा। िबकल लोग सब लागे साथा ॥
कृ पािसंध ु बिबिध समझ
ु ाविहं। िफरिहं ेम बस पिन
ु िफिर आविहं ॥
लागित अवध भयाविन भारी। मानँ कालराित अँिधआरी ॥
घोर जंत ु सम परु नर नारी। डरपिहं एकिह एक िनहारी ॥
घर मसान पिरजन जन ु भूता। सतु िहत मीत मनँ जमता ॥
बाग िबटप बेिल कुिलाह। सिरत सरोवर देिख न जाह ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 27


दो. हय गय कोिट के िलमृग परपस ु चातक मोर।
ु सािरका सारस हंस चकोर ॥ ८३ ॥
िपक रथांग सक
राम िबयोग िबकल सब ठाढ़े। जहँ तहँ मनँ िच िलिख काढ़े ॥
नग सफल बन ु गहबर भारी। खग मृग िबपल ु सकल नर नारी ॥
िबिध कै केई िकराितिन कीी। जिह दव सह दसँ िदिस दीी ॥
सिह न सके रघबर ु िबरहागी। चले लोग सब ाकुल भागी ॥
सबिहं िबचार की मन माह। राम लखन िसय िबन ु सख ु ु नाह ॥
जहाँ राम ु तहँ सबइु समाजू। िबन ु रघबीर
ु अवध निहं काजू ॥
चले साथ अस मं ु ढ़ाई। सरु लभ सख ु सदन िबहाई ॥
राम चरन पंकज िय िजही। िबषय भोग बस करिहं िक ितही ॥
दो. बालक बृ िबहाइ गृहँ लगे लोग सब साथ।
तमसा तीर िनवास ु िकय थम िदवस रघनाथ
ु ॥ ८४ ॥
ु जा ेमबस देखी। सदय दयँ ख ु भयउ िबसेषी ॥
रघपित
कनामय रघनाथु गोसाँई। बेिग पाइअिहं पीर पराई ॥

किह सेम मृ बचन सहाए। बिबिध राम लोग समझ ु ाए ॥
िकए धरम उपदेस घन ेरे। लोग ेम बस िफरिहं न फे रे ॥
सी सन े छािड़ निहं जाई। असमंजस बस भे रघराईु ॥
लोग सोग म बस गए सोई। कक देवमायाँ मित मोई ॥
जबिहं जाम जगु जािमिन बीती। राम सिचव सन कहेउ सीती ॥
खोज मािर रथ ु हाँक ताता। आन उपायँ बिनिह निहं बाता ॥
दो. राम लखन सयु जान चिढ़ संभ ु चरन िस नाइ ॥
सिचवँ चलायउ तरु त रथ ु इत उत खोज राइ ॥ ८५ ॥
जागे सकल लोग भएँ भो। गे रघनाथ ु भयउ अित सो ॥
रथ कर खोज कतहँ निहं पाविहं। राम राम किह च िदिस धाविहं ॥
मनँ बािरिनिध बूड़ जहाजू। भयउ िबकल बड़ बिनक समाजू ॥
एकिह एक दिहं उपदेस।ू तजे राम हम जािन कलेस ू ॥
िनंदिहं आप ु सराहिहं मीना। िधग जीवन ु रघबीर
ु िबहीना ॥

ज प ै िय िबयोग िबिध कीा। तौ कस मरन ु न माग दीा ॥
एिह िबिध करत लाप कलापा। आए अवध भरे पिरतापा ॥
िबषम िबयोग ु न जाइ बखाना। अविध आस सब राखिहं ाना ॥
दो. राम दरस िहत न ेम त लगे करन नर नािर।
मनँ कोक कोकी कमल दीन िबहीन तमािर ॥ ८६ ॥
ं बेरपरु पँच े जाई ॥
सीता सिचव सिहत दोउ भाई। सृग
॥ ी राम चिरत मानस ॥

उतरे राम देवसिर देखी। की दंडवत हरष ु िबसेषी ॥


लखन सिचवँ िसयँ िकए नामा। सबिह सिहत सख ु ु पायउ रामा ॥
गंग सकल मदु मंगल मूला। सब सख ु करिन हरिन सब सूला ॥
किह किह कोिटक कथा संगा। राम ु िबलोकिहं गंग तरंगा ॥
सिचविह अनजिहु ु
ियिह सनाई। िबबधु नदी मिहमा अिधकाई ॥
मन ु की पंथ म गयऊ। सिच ु ज िपअत मिु दत मन भयऊ ॥

सिमरत जािह िमटइ म भा। तेिह म यह लौिकक वहा ॥
ु सिचदानंदमय कं द भानक
दो. सद ु ु ल के त।ु

चिरत करत नर अनहरत संसिृ त सागर सेत ु ॥ ८७ ॥
यह सिध ु गहँु िनषाद जब पाई। मिु दत िलए िय बंध ु बोलाई ॥
िलए फल मूल भट भिर भारा। िमलन चलेउ िहँय ँ हरष ु अपारा ॥
किर दंडवत भट धिर आग। भिह ु िबलोकत अित अनराग ु ॥
सहज सन ेह िबबस रघराई। ु ँ ी कुसल िनकट ब ैठाई ॥
पूछ
नाथ कुसल पद पंकज देख। भयउँ भागभाजन जन लेख ॥
देव धरिन धन ु धाम ु त
ु ारा। म जन ु नीच ु सिहत पिरवारा ॥
कृ पा किरअ पर धािरअ पाऊ। थािपय जन ु सब ु लोग ु िसहाऊ ॥

कहे स सब ु सखा सजाना। ु मोिह दी िपत ु आयस ु आना ॥
दो. बरष चािरदस बास ु बन मिु न त बेष ु अहा।
ाम बास ु निहं उिचत सिन ु भयउ ख ु भा ॥ ८८ ॥
ु गहिह
राम लखन िसय प िनहारी। कहिहं सेम ाम नर नारी ॥
ते िपत ु मात ु कह सिख कै स।े िज पठए बन बालक ऐसे ॥
एक कहिहं भल भूपित कीा। लोयन ला हमिह िबिध दीा ॥
तब िनषादपित उर अनमाना। ु ु मनोहर जाना ॥
त िसंसपा

लै रघनाथिह ु
ठाउँ देखावा। कहेउ राम सब भाँित सहावा ॥
ु ु
परजन किर जोहा घर आए। रघबर संा करन िसधाए ॥
गहँु सँवािर साँथरी डसाई। कुस िकसलयमय मृल सहाई ु ॥
सिच ु फल मूल मधरु मृ जानी। दोना भिर भिर राखेिस पानी ॥
ु  ाता सिहत कं द मूल फल खाइ।
दो. िसय समं
सयन की रघबंु समिन पाय पलोटत भाइ ॥ ८९ ॥
उठे लखन ु भ ु सोवत जानी। किह सिचविह सोवन मृ बानी ॥
कक र सिज बान सरासन। जागन लगे ब ैिठ बीरासन ॥
गहँ ु बोलाइ पाह तीती। ठावँ ठाँव राखे अित ीती ॥
आप ु लखन पिहं ब ैठे उ जाई। किट भाथी सर चाप चढ़ाई ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 29

सोवत भिहु िनहािर िनषा। भयउ ेम बस दयँ िबषा ॥


तन ु पलिकत
ु ज लोचन बहई। बचन सेम लखन सन कहई ॥

भूपित भवन सभायँ ु
सहावा। ु
सरपित सदन ु न पटतर पावा ॥
मिनमय रिचत चा चौबारे। जन ु रितपित िनज हाथ सँवारे ॥
ु सिबिच
दो. सिच ु ु
सभोगमय ु सगं
समन ु ध सबास।

पलँ ग मंज ु मिनदीप जहँ सब िबिध सकल सपास
ु ॥ ९० ॥
िबिबध बसन उपधान तरु ाई। छीर फे न मृ िबसद सहाईु ॥
तहँ िसय राम ु सयन िनिस करह। िनज छिब रित मनोज म हरह ॥
ते िसय राम ु साथर सोए। िमत बसन िबन ु जािहं न जोए ॥
मात ु िपता पिरजन परबासी।
ु ु
सखा ससील दास अ दासी ॥
जोगविहं िजिह ान की नाई। मिह सोवत तेइ राम गोसा ॥
िपता जनक जग िबिदत भाऊ। ससरु सरेु स सखा रघराऊ ु ॥
रामचं पित सो ब ैदेही। सोवत मिह िबिध बाम न के ही ॥
िसय रघबीरु िक कानन जोगू। करम धान स कह लोगू ॥
दो. कै कयनंिदिन मंदमित किठन कुिटलपन ु की।
ु अवसर ख ु दी ॥ ९१ ॥
जेह रघनंु दन जानिकिह सख
भइ िदनकर कुल िबटप कुठारी। कुमित की सब िब खारी ॥
भयउ िबषा िनषादिह भारी। राम सीय मिह सयन िनहारी ॥
बोले लखन मधरु मृ बानी। यान िबराग भगित रस सानी ॥
का न कोउ सख ु ख कर दाता। िनज कृ त करम भोग सब ु ाता ॥
जोग िबयोग भोग भल मंदा। िहत अनिहत मम म फं दा ॥
जनम ु मरन ु जहँ लिग जग जा। संपती िबपित करम ु अ का ॥
धरिन धाम ु धन ु परु पिरवा। सरग ु नरकु जहँ लिग वहा ॥

देिखअ सिनअ ु
गिनअ मन माह। मोह मूल परमारथ ु नाह ॥
दो. सपन होइ िभखािर नृप रंकु नाकपित होइ।
जाग लाभ ु न हािन क ितिम पंच िजयँ जोइ ॥ ९२ ॥
अस िबचािर निहं कीजा रोसू। कािह बािद न देइअ दोसू ॥
मोह िनसाँ सब ु सोविनहारा। देिखअ सपन अनेक कारा ॥
एिहं जग जािमिन जागिहं जोगी। परमारथी पंच िबयोगी ॥
जािनअ तबिहं जीव जग जागा। जब जब िबषय िबलास िबरागा ॥
होइ िबबेकु मोह म भागा। तब रघनाथ ु
ु चरन अनरागा ॥
सखा परम परमारथ ु ए। मन म बचन राम पद न े ॥
राम  परमारथ पा। अिबगत अलख अनािद अनूपा ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

सकल िबकार रिहत गतभेदा। किह िनत न ेित िनपिहं बेदा।


दो. भगत भूिम भूसरु सरिभ
ु सरु िहत लािग कृ पाल।
करत चिरत धिर मनज ु तन ु सनत
ु िमटिह जग जाल ॥ ९३ ॥
मासपारायण, पंहवा िवाम
सखा समिु झ अस पिरहिर मो। िसय रघबीर ु चरन रत हो ॥
कहत राम गनु भा िभनसारा।
ु ु
जागे जग मंगल सखदारा ॥
सकल सोच किर राम नहावा। सिच ु सजान
ु बट छीर मगावा ॥
अनज ु सिहत िसर जटा बनाए। देिख समं ु  नयन जल छाए ॥
दयँ दा अित बदन मलीना। कह कर जोिर बचन अित दीना ॥
नाथ कहेउ अस कोसलनाथा। लै रथ ु जा राम क साथा ॥
बन ु देखाइ सरसिर
ु अवाई। आन े फे िर बेिग दोउ भाई ॥
लखन ु राम ु िसय आन े फे री। संसय सकल सँकोच िनबेरी ॥
दो. नृप अस कहेउ गोसा जस कहइ कर बिल सोइ।
किर िबनती पाय परेउ दी बाल िजिम रोइ ॥ ९४ ॥
तात कृ पा किर कीिजअ सोई। जात अवध अनाथ न होई ॥
मंिह राम उठाइ बोधा। तात धरम मत ु त ु सब ु सोधा ॥
िसिब दधीिच हिरचंद नरेसा। सहे धरम िहत कोिट कलेसा ॥

रंितदेव बिल भूप सजाना। धरम ु धरेउ सिह संकट नाना ॥
धरम ु न सर स समाना। आगम िनगम परान ु बखाना ॥
म सोइ धरम ु सलभ
ु किर पावा। तज ितँ परु अपजस ु छावा ॥
संभािवत कँ अपजस ला। मरन कोिट सम दान दा ॥
त ु सन तात बत का कहऊँ । िदएँ उत िफिर पातकु लहऊँ ॥
दो. िपत ु पद गिह किह कोिट नित िबनय करब कर जोिर।
िचंता कविन बात कै तात किरअ जिन मोिर ॥ ९५ ॥
तु पिन ु िपत ु सम अित िहत मोर । िबनती करउँ तात कर जोर ॥
सब िबिध सोइ करत त ु ार । ख न पाव िपत ु सोच हमार ॥
सिनु रघनाथु सिचव संबा। भयउ सपिरजन िबकल िनषा ॥
ु क लखन कही कटु बानी। भ ु बरजे बड़ अनिचत
पिन ु जानी ॥

सकिच राम िनज सपथ देवाई। लखन सँदस ु
े किहअ जिन जाई ॥
कह समं ु  ु पिन
ु भूप सँदस
े ।ू सिह न सिकिह िसय िबिपन कलेस ू ॥
जेिह िबिध अवध आव िफिर सीया। सोइ रघबरिह ु त ु िह करनीया ॥
नत िनपट अवलं ब िबहीना। म न िजअब िजिम जल िबन ु मीना ॥
ु जबिहं जहाँ मन ु मान ॥
दो. मइक ससर सकल सख
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 31

ु न िसय जब लिग िबपित िबहान ॥ ९६ ॥


तँह तब रिहिह सखे
िबनती भूप की जेिह भाँती। आरित ीित न सो किह जाती ॥
िपत ु सँदस
े ु सिन
ु कृ पािनधाना। िसयिह दी िसख कोिट िबधाना ॥
सास ु ससरु गरु िय पिरवा। िफरत ु त सब कर िमटै खभा ॥
सिनु पित बचन कहित ब ैदेही। सन ु ानपित परम सनेही ॥
भ कनामय परम िबबेकी। तन ु तिज रहित छाँह िकिम छ की ॥

भा जाइ कहँ भान ु िबहाई। कहँ चंिका चं तिज जाई ॥
पितिह ेममय िबनय सनाई। ु ु ॥
कहित सिचव सन िगरा सहाई
तु िपत ु ससरु सिरस िहतकारी। उत देउँ िफिर अनिचतु भारी ॥
दो. आरित बस सनमखु भइउँ िबलग ु न मानब तात।
आरजसतु पद कमल िबन ु बािद जहाँ लिग नात ॥ ९७ ॥
िपत ु ब ैभव िबलास म डीठा। नृप मिन मक ु ु ट िमिलत पद पीठा ॥

सखिनधान अस िपत ु गृह मोर । िपय िबहीन मन भाव न भोर ॥
ससरु चवइ कोसलराऊ। भवन ु चािरदस गट भाऊ ॥

आग होइ जेिह सरपित लेई। अरध िसंघासन आसन ु देई ॥
ससु एतास अवध िनवासू। िय पिरवा मात ु सम सासू ॥
िबन ु रघपित
ु पद पम परागा। मोिह के उ सपने ँ सखद ु न लागा ॥
अगम पंथ बनभूिम पहारा। किर के हिर सर सिरत अपारा ॥
कोल िकरात कुरंग िबहंगा। मोिह सब सखद ु ानपित संगा ॥
दो. सास ु ससरु सन मोिर ँित िबनय करिब पिर पायँ ॥
मोर सोच ु जिन किरअ क म बन सखीु सभायँ
ु ॥ ९८ ॥
ाननाथ िय देवर साथा। बीर धरीनु धर धन ु भाथा ॥
निहं मग म ु म ु ख मन मोर । मोिह लिग सोच ु किरअ जिन भोर ॥
सिन ु  ु िसय सीतिल बानी। भयउ िबकल जन ु फिन मिन हानी ॥
ु समं
नयन सूझ निहं सनइ ु न काना। किह न सकइ क अित अकुलाना ॥

राम बोध की ब भाँित। तदिप होित निहं सीतिल छाती ॥
जतन अन ेक साथ िहत कीे। उिचत उतर रघनंु दन दीे ॥
मेिट जाइ निहं राम रजाई। किठन करम गित क न बसाई ॥
राम लखन िसय पद िस नाई। िफरेउ बिनक िजिम मूर गवाँई ॥
दो. -रथ हाँकेउ हय राम तन हेिर हेिर िहिहनािहं।
ु सीस पिछतािहं ॥ ९९ ॥
देिख िनषाद िबषादबस धनिहं
जास ु िबयोग िबकल पस ु ऐसे। जा मात ु िपत ु जीहिहं कै स ॥
बरबस राम समं ु  ु पठाए। सरसिर
ु तीर आप ु तब आए ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

मागी नाव न के वटु आना। कहइ त ु ार मरम ु म जाना ॥


चरन कमल रज कँ सब ु कहई। मानषु करिन मूिर क अहई ॥
अत िसला भइ नािर सहाई। ु पाहन त न काठ किठनाई ॥
तरिनउ मिु न घिरिन होइ जाई। बाट परइ मोिर नाव उड़ाई ॥
एिहं ितपालउँ सब ु पिरवा। निहं जानउँ क अउर कबा ॥
जौ भ ु पार अविस गा चह। मोिह पद पम पखारन कह ॥
छं. पद कमल धोइ चढ़ाइ नाव न नाथ उतराई चह।
मोिह राम राउिर आन दसरथ सपथ सब साची कह ॥
ब तीर मारँ लखन ु प ै जब लिग न पाय पखािरह।
तब लिग न तल ु सीदास नाथ कृ पाल पा उतािरह ॥
ु के बट के ब ैन ेम लपेटे अटपटे ।
सो. सिन
िबहसे कनाऐन िचतइ जानकी लखन तन ॥ १०० ॥
कृ पािसंध ु बोले मस
ु काई।
ु सोइ क जिह तव नाव न जाई ॥
वेिग आन ु जल पाय पखा। होत िबलं ब ु उतारिह पा ॥
जास ु नाम समरतु एक बारा। उतरिहं नर भविसंध ु अपारा ॥
सोइ कृ पा के वटिह िनहोरा। जेिहं जग ु िकय ित पग ते थोरा ॥
पद नख िनरिख देवसिर हरषी। सिन ु भ ु बचन मोहँ मित करषी ॥
के वट राम रजायस ु पावा। पािन कठवता भिर लेइ आवा ॥
अित आनंद उमिग अनरागा। ु चरन सरोज पखारन लागा ॥
बरिष समन ु सरु सकल िसहाह। एिह सम पप ु ज ं ु कोउ नाह ॥
दो. पद पखािर ज पान किर आप ु सिहत पिरवार।
ु पिन
िपतर पा किर भिह ु मिु दत गयउ लेइ पार ॥ १०१ ॥

उतिर ठाड़ भए सरसिर रेता। सीयराम गहु लखन समेता ॥
के वट उतिर दंडवत कीा। भिह ु सकुच एिह निहं क दीा ॥
िपय िहय की िसय जानिनहारी। मिन मदु री मन मिु दत उतारी ॥
कहेउ कृ पाल लेिह उतराई। के वट चरन गहे अकुलाई ॥
नाथ आज ु म काह न पावा। िमटे दोष ख दािरद दावा ॥
बत काल म कीि मजूरी। आज ु दी िबिध बिन भिल भूरी ॥
अब क नाथ न चािहअ मोर । दीनदयाल अनह ु तोर ॥
िफरती बार मोिह जे देबा। सो सा म िसर धिर लेबा ॥
दो. बत की भ ु लखन िसयँ निहं क के वटु लेइ।
िबदा की कनायतन भगित िबमल ब देइ ॥ १०२ ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 33

तब मन ु किर रघक ु ु लनाथा। पूिज पारिथव नायउ माथा ॥



िसयँ सरसिरिह कहेउ कर जोरी। मात ु मनोरथ परउिब
ु मोरी ॥
पित देवर संग कुसल बहोरी। आइ कर जेिहं पूजा तोरी ॥
सिनु िसय िबनय ेम रस सानी। भइ तब िबमल बािर बर बानी ॥
सनु ु रघबीर
ु िया ब ैदेही। तव भाउ जग िबिदत न के ही ॥
लोकप होिहं िबलोकत तोर । तोिह सेविहं सब िसिध कर जोर ॥
तु जो हमिह बिड़ िबनय सनाई। ु कृ पा कीि मोिह दीि बड़ाई ॥
तदिप देिब म देिब असीसा। सफल होपन िहत िनज बागीसा ॥
दो. ाननाथ देवर सिहत कुसल कोसला आइ।
पूजिह सब मनकामना सजसु ु रिहिह जग छाइ ॥ १०३ ॥
गंग बचन सिन ु मंगल मूला। मिु दत सीय सरसिर
ु ु ु ला ॥
अनक
ु कहेउ घर जा। सनत
तब भ ु गहिह ु सूख मख ु ु भा उर दा ॥
दीन बचन गहु कह कर जोरी। िबनय सन ु रघक ु ु लमिन मोरी ॥
नाथ साथ रिह पंथ ु देखाई। किर िदन चािर चरन सेवकाई ॥

जेिहं बन जाइ रहब रघराई। परनकुटी म करिब सहाई ु ॥

तब मोिह कहँ जिस देब रजाई। सोइ किरहउँ रघबीर दोहाई ॥
सहज सन ेह राम लिख तास।ु संग ली गहु दय लासू ॥
ु गहँु याित बोिल सब लीे। किर पिरतोष ु िबदा तब कीे ॥
पिन

दो. तब गनपित िसव सिमिर भ ु नाइ सरसिरिह
ु माथ। ì
ु िसया सिहत बन गवन ु की रधनाथ
सखा अनज ु ॥ १०४ ॥
तेिह िदन भयउ िबटप तर बासू। लखन सखाँ सब की सपासू ु ॥

ात ातकृ त किर रधसाई। तीरथराज ु दीख भ ु जाई ॥
सिचव स दा िय नारी। माधव सिरस मीत ु िहतकारी ॥
चािर पदारथ भरा भँडा। प ु देस देस अित चा ॥
छे अगम गढ़ु गाढ़ सहावा। ु सपन ेँ निहं ितपि पावा ॥
सेन सकल तीरथ बर बीरा। कष अनीक दलन रनधीरा ॥
संगम ु िसंहासन ु सिठ
ु सोहा। छ ु अखयबटु मिु न मन ु मोहा ॥
चवँर जमनु अ गंग तरंगा। देिख होिहं ख दािरद भंगा ॥
दो. सेविहं सकृु ित साध ु सिच
ु पाविहं सब मनकाम।
ु गन कहिहं िबमल गनु ाम ॥ १०५ ॥
बंदी बेद परान
को किह सकइ याग भाऊ। कष पज ं ु कं ु जर मृगराऊ ॥

अस तीरथपित देिख सहावा। ु सागर रघबर
सख ु सख ु ु पावा ॥

किह िसय लखनिह सखिह सनाई। ीमख ु तीरथराज बड़ाई ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

किर नाम ु देखत बन बागा। कहत महातम अित अनरागाु ॥



एिह िबिध आइ िबलोकी बेनी। सिमरत सकल समं ु गल देनी ॥
मिु दत नहाइ कीि िसव सेवा। पिजु जथािबिध तीरथ देवा ॥
तब भ ु भराज पिहं आए। करत दंडवत मिु न उर लाए ॥
मिु न मन मोद न क किह जाइ। ानंद रािस जन ु पाई ॥
दो. दीि असीस मनु ीस उर अित अनं अस जािन।
लोचन गोचर सकृु त फल मनँ िकए िबिध आिन ॥ १०६ ॥
कुसल  किर आसन दीे। पूिज ेम पिरपूरन कीे ॥
कं द मूल फल अंकुर नीके । िदए आिन मिु न मनँ अमी के ॥
सीय लखन जन सिहत सहाए। ु अित िच राम मूल फल खाए ॥
भए िबगतम राम ु सखारे
ु । भरदाज मृ बचन उचारे ॥
आज ु सफलु तप ु तीरथ ागू। आज ु सफल ु जप जोग िबरागू ॥
सफल सकल सभु साधन साजू। राम त ु िह अवलोकत आजू ॥
लाभ अविध सख ु अविध न जी। त ु ार दरस आस सब पूजी ॥
अब किर कृ पा दे बर ए। िनज पद सरिसज सहज सने ॥
दो. करम बचन मन छािड़ छ जब लिग जन ु न त ु ार।
तब लिग सख ु ु सपन ेँ नह िकएँ कोिट उपचार ॥
सिनु मिु न बचन राम ु सकुचान े। भाव भगित आनंद अघान े ॥
तब रघबर ु मिु न सजस
ु ु सहावा।
ु कोिट भाँित किह सबिह सनावाु ॥
सो बड सो सब गनु गन गे। जेिह मनु ीस त ु आदर दे ॥
मिु न रघबीर
ु परसपर नवह। बचन अगोचर सख ु ु अनभवह
ु ॥
यह सिध ु पाइ याग िनवासी। बटु तापस मिु न िस उदासी ॥
भराज आम सब आए। देखन दसरथ सअन ु सहाए ु ॥
राम नाम की सब का। मिु दत भए लिह लोयन ला ॥
देिहं असीस परम सख ु ु पाई। िफरे सराहत सदं ु रताई ॥
दो. राम की िबाम िनिस ात याग नहाइ।
चले सिहत िसय लखन जन मदु िदत मिु निह िस नाइ ॥ १०८ ॥
राम सेम कहेउ मिु न पाह। नाथ किहअ हम के िह मग जाह ॥
मिु न मन िबहिस राम सन कहह। सगम ु सकल मग त ु कँ अहह ॥
साथ लािग मिु न िस बोलाए। सिन ु मन मिु दत पचासक आए ॥
सबि राम पर ेम अपारा। सकल कहिह मग ु दीख हमारा ॥
मिु न बटु चािर संग तब दीे। िज ब जनम सकृु त सब कीे ॥
किर नाम ु िरिष आयस ु पाई। मिु दत दयँ चले रघराई
ु ॥
ाम िनकट जब िनकसिह जाई। देखिह दरस ु नािर नर धाई ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 35

होिह सनाथ जनम फ पाई। िफरिह िखत मन ु संग पठाई ॥


दो. िबदा िकए बटु िबनय किर िफरे पाइ मन काम।
उतिर नहाए जमनु जल जो सरीर सम ाम ॥ १०९ ॥
सनतु तीरवासी नर नारी। धाए िनज िनज काज िबसारी ॥

लखन राम िसय सरताई। देिख करिहं िनज भाय बड़ाई ॥
अित लालसा बसिहं मन माह। नाउँ गाउँ बूझत सकुचाह ॥
जे ित मँ बयिबिरध सयाने। ित किर जगु ित ु राम ु पिहचान े ॥
सकल कथा ित सबिह सनाई। ु बनिह चले िपत ु आयस ु पाई ॥
सिन ु सिबषाद सकल पिछताह। रानी रायँ की भल नाह ॥
तेिह अवसर एक तापस ु आवा। तेजपज ु
ं ु लघबयस ु
सहावा ॥
किव अलिखत गित बेष ु िबरागी। मन म बचन राम अनरागी ु ॥
दो. सजल नयन तन पलिक ु िनज इदेउ पिहचािन।
परेउ दंड िजिम धरिनतल दसा न जाइ बखािन ॥ ११० ॥
राम सेम पलिक ु उर लावा। परम रंक जन ु पारस ु पावा ॥
मनँ ेम ु परमारथ ु दोऊ। िमलत धरे तन कह सब ु कोऊ ॥
बिर लखन पाय सोइ लागा। ली उठाइ उमिग अनरागा ु ॥
ु िसय चरन धूिर धिर सीसा। जनिन जािन िसस ु दीि असीसा ॥
पिन
की िनषाद दंडवत तेही। िमलेउ मिु दत लिख राम सन ेही ॥
िपअत नयन पटु प ु िपयूषा। मिु दत सअसन
ु ु पाइ िजिम भूखा ॥
ते िपत ु मात ु कह सिख कै स।े िज पठए बन बालक ऐसे ॥
राम लखन िसय प ु िनहारी। होिहं सन ेह िबकल नर नारी ॥
ु अन ेक िबिध सखिह िसखावन ु दी।
दो. तब रघबीर
राम रजायस ु सीस धिर भवन गवन ु तइ ँ की ॥ १११ ॥
ु िसयँ राम लखन कर जोरी। जमनु िह की नाम ु बहोरी ॥
पिन
चले ससीय मिु दत दोउ भाई। रिबतनजा ु कइ करत बड़ाई ॥
पिथक अनेक िमलिहं मग जाता। कहिहं सेम देिख दोउ ाता ॥
राज लखन सब अंग त ु ार । देिख सोच ु अित दय हमार ॥
मारग चल पयादेिह पाएँ। ोितष ु झ ूठ हमार भाएँ ॥
अगम ु पंथ िगिर कानन भारी। तेिह महँ साथ नािर सक ु ु मारी ॥
किर के हिर बन जाइ न जोई। हम सँग चलिह जो आयस ु होई ॥
जाब जहाँ लिग तहँ पँचाई। िफरब बहोिर त ु िह िस नाई ॥
दो. एिह िबिध पूछ ु गात ज न ैन।
ँ िहं ेम बस पलक
कृ पािसंध ु फे रिह ितिह किह िबनीत मृ ब ैन ॥ ११२ ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

जे परु गाँव बसिहं मग माह। ितिह नाग सरु नगर िसहाह ॥


के िह सकृु त के िह घर बसाए। ध पमय
ु परम सहाए ु ॥
जहँ जहँ राम चरन चिल जाह। ित समान अमरावित नाह ॥
पपु ज ं ु मग िनकट िनवासी। ितिह सराहिहं सरप
ु रबासी
ु ॥
जे भिर नयन िबलोकिहं रामिह। सीता लखन सिहत घनामिह ॥
जे सर सिरत राम अवगाहिहं। ितिह देव सर सिरत सराहिहं ॥
जेिह त तर भ ु ब ैठिहं जाई। करिहं कलपत तास ु बड़ाई ॥
परिस राम पद पम परागा। मानित भूिम भूिर िनज भागा ॥

दो. छाँह करिह घन िबबधगन बरषिह समन ु िसहािहं।
देखत िगिर बन िबहग मृग राम ु चले मग जािहं ॥ ११३ ॥

सीता लखन सिहत रघराई। गाँव िनकट जब िनकसिहं जाई ॥
ु सब बाल बृ नर नारी। चलिहं तरु त गृहकाज ु िबसारी ॥
सिन
राम लखन िसय प िनहारी। पाइ नयनफ होिहं सखारी ु ॥
सजल िबलोचन पलक ु सरीरा। सब भए मगन देिख दोउ बीरा ॥
बरिन न जाइ दसा ित के री। लिह जन ु रंक सरमिन
ु ढेरी ॥
एक एक बोिल िसख देह। लोचन ला ले छन एह ॥
ु । िचतवत चले जािहं सँग लागे ॥
रामिह देिख एक अनरागे
एक नयन मग छिब उर आनी। होिहं िसिथल तन मन बर बानी ॥
दो. एक देिखं बट छाँह भिल डािस मृल तृन पात।
कहिहं गवाँइअ िछनकु ु म ु गवनब अबिहं िक ात ॥ ११४ ॥
एक कलस भिर आनिहं पानी। अँचइअ नाथ कहिहं मृ बानी ॥
सिनु िय बचन ीित अित देखी। राम कृ पाल ससील
ु िबसेषी ॥
जानी िमत सीय मन माह। घिरक िबलं ब ु की बट छाह ॥
मिु दत नािर नर देखिहं सोभा। प अनूप नयन मन ु लोभा ॥
एकटक सब सोहिहं चँ ओरा। रामचं मख ु चंद चकोरा ॥
तन तमाल बरन तन ु सोहा। देखत कोिट मदन मन ु मोहा ॥
दािमिन बरन लखन सिठ ु नीके । नख िसख सभग
ु भावते जी के ॥
मिु नपट किट कस तूनीरा। सोहिहं कर कमिलिन धन ु तीरा ॥
दो. जटा मकु ु ट सीसिन सभग ु नयन िबसाल।
ु उर भज
सरद परब िबध ु बदन बर लसत ेद कन जाल ॥ ११५ ॥
बरिन न जाइ मनोहर जोरी। सोभा बत थोिर मित मोरी ॥
राम लखन िसय सदं ु रताई। सब िचतविहं िचत मन मित लाई ॥
थके नािर नर ेम िपआसे। मनँ मृगी मृग देिख िदआ से ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 37

सीय समीप ामितय जाह। पूछ ँ त अित सन ेहँ सकुचाह ॥


ु ॥
बार बार सब लागिहं पाएँ। कहिहं बचन मृ सरल सभाएँ
राजकुमािर िबनय हम करह। ितय सभायँ
ु क पूछँ त डरह।
ािमिन अिबनय छमिब हमारी। िबलग ु न मानब जािन गवाँरी ॥
राजकुअँर दोउ सहज सलोन।े इ त लही ित मरकत सोन े ॥
दो. ामल गौर िकसोर बर सदं ु र सषमा
ु ऐन।
ु ु सरद सरोह न ैन ॥ ११६ ॥
सरद सबरीनाथ मख
मासपारायण, सोलहवाँ िवाम
नवापारायण, चौथा िवाम
कोिट मनोज लजाविनहारे। समु िु ख कह को आिहं त ु ारे ॥
ु सनेहमय मंजल
सिन ु बानी। सकुची िसय मन मँ मस ु कानी
ु ॥

ितिह िबलोिक िबलोकित धरनी। ँ सकोच सकिचत बरबरनी ॥
सकुिच सेम बाल मृग नयनी। बोली मधरु बचन िपकबयनी ॥
सहज सभायु ु तन गोरे। नाम ु लखन ु लघ ु देवर मोरे ॥
सभग
बिर बदन ु िबध ु अंचल ढाँकी। िपय तन िचतइ भह किर बाँकी ॥
खंजन मंज ु ितरीछे नयनिन। िनज पित कहेउ ितिह िसयँ सयनिन ॥
भइ मिु दत सब ामबधूट। रंक राय रािस जन ु ट ॥
दो. अित सेम िसय पायँ पिर बिबिध देिहं असीस।
ु जब लिग मिह अिह सीस ॥ ११७ ॥
सदा सोहािगिन हो त
पारबती सम पितिय हो। देिब न हम पर छाड़ब छो ॥
ु पिन
पिन ु िबनय किरअ कर जोरी। ज एिह मारग िफिरअ बहोरी ॥
दरसन ु देब जािन िनज दासी। लख सीयँ सब ेम िपआसी ॥
मधरु बचन किह किह पिरतोष। जन ु कुमिु दन कौमदु  पोष ॥
तबिहं लखन रघबर ु ख जानी। पूछ े मग ु लोगि मृ बानी ॥
ँ उ
सनतु नािर नर भए खारी। पलिकत
ु गात िबलोचन बारी ॥
िमटा मो मन भए मलीन े। िबिध िनिध दी लेत जन ु छीन े ॥
समिु झ करम गित धीरज ु कीा। सोिध सगम ु मग ु ित किह दीा ॥
दो. लखन जानकी सिहत तब गवन ु की रघनाथ।ु
फे रे सब िय बचन किह िलए लाइ मन साथ ॥ ११८ ॥ ý
िफरत नािर नर अित पिछताह। देअिह दोष ु देिहं मन माह ॥
सिहत िबषाद परसपर कहह। िबिध करतब उलटे सब अहह ॥
िनपट िनरंकुस िनठुर िनसंकू। जेिहं सिस की सज सकलं कू ॥
ख कलपत साग खारा। तेिहं पठए बन राजकुमारा ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

ज पे इिह दी बनबासू। की बािद िबिध भोग िबलासू ॥


ए िबचरिहं मग िबन ु पदाना। रचे बािद िबिध बाहन नाना ॥
ए मिह परिहं डािस कुस पाता। सभग
ु सेज कत सृजत िबधाता ॥
तबर बास इिह िबिध दीा। धवल धाम रिच रिच म ु कीा ॥
दो. ज ए मिु न पट धर जिटल सदं ु र सिठ ु ु मार।
ु सक
िबिबध भाँित भूषन बसन बािद िकए करतार ॥ ११९ ॥
ज ए कं द मूल फल खाह। बािद सधािद ु असन जग माह ॥
ु ु
एक कहिहं ए सहज सहाए। आप गट भए िबिध न बनाए ॥
जहँ लिग बेद कही िबिध करनी। वन नयन मन गोचर बरनी ॥
देख खोिज भअन ु दस चारी। कहँ अस पष ु कहाँ अिस नारी ॥
इिह देिख िबिध मन ु अनरागा।
ु पटतर जोग बनावै लागा ॥
की बत म ऐक न आए। तेिहं इिरषा बन आिन राए ॥
एक कहिहं हम बत न जानिहं। आपिह ु परम ध किर मानिहं ॥
ु पप
ते पिन ु ज ं ु हम लेख।े जे देखिहं देिखहिहं िज देख े ॥
दो. एिह िबिध किह किह बचन िय लेिहं नयन भिर नीर।
िकिम चिलहिह मारग अगम सिठु सक ु ु मार सरीर ॥ १२० ॥
नािर सनेह िबकल बस होह। चकई साँझ समय जन ु सोह ॥
मृ पद कमल किठन मग ु जानी। गहबिर दयँ कहिहं बर बानी ॥
परसत मृल चरन अनारे। सकुचित मिह िजिम दय हमारे ॥
ज जगदीस इिह बन ु दीा। कस न समनमय
ु मारग ु कीा ॥
ज मागा पाइअ िबिध पाह। ए रिखअिहं सिख आँिख माह ॥
जे नर नािर न अवसर आए। ित िसय राम ु न देखन पाए ॥
ु बूझिहं अकुलाई। अब लिग गए कहाँ लिग भाई ॥
ु सप
सिन
समरथ धाइ िबलोकिहं जाई। मिु दत िफरिहं जनमफ पाई ॥
दो. अबला बालक बृ जन कर मीजिहं पिछतािहं ॥
होिहं ेमबस लोग इिम राम ु जहाँ जहँ जािहं ॥ १२१ ॥
गाँव गाँव अस होइ अनं। देिख भानक ु ु ल कै रव चं ॥
जे क समाचार सिन पाविहं। ते नृप रािनिह दोस ु लगाविहं ॥

कहिहं एक अित भल नरना। दी हमिह जोइ लोचन ला ॥
कहिहं परर लोग लोगा। बात सरल सन ेह सहा ु ॥
ते िपत ु मात ु ध िज जाए। ध सो नग जहाँ त आए ॥
ध सो देस ु स ै बन गाऊँ । जहँ जहँ जािहं ध सोइ ठाऊँ ॥
सख ु पायउ िबरंिच रिच तेही। ए जेिह के सब भाँित सन ेही ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 39


राम लखन पिथ कथा सहाई। रही सकल मग कानन छाई ॥
दो. एिह िबिध रघक ु ु ल कमल रिब मग लोग सखु देत।
जािहं चले देखत िबिपन िसय सौिमि समेत ॥ १२२ ॥
आगे राम ु लखन ु बन े पाछ । तापस बेष िबराजत काछ ॥
उभय बीच िसय सोहित कै स।े  जीव िबच माया ज ैसे ॥
बिर कहउँ छिब जिस मन बसई। जन ु मध ु मदन म रित लसई ॥
उपमा बिर कहउँ िजयँ जोही। जन ु बधु िबध ु िबच रोिहिन सोही ॥
भ ु पद रेख बीच िबच सीता। धरित चरन मग चलित सभीता ॥
सीय राम पद अंक बराएँ। लखन चलिहं मग ु दािहन लाएँ ॥
राम लखन िसय ीित सहाई। ु बचन अगोचर िकिम किह जाई ॥
खग मृग मगन देिख छिब होह। िलए चोिर िचत राम बटोह ॥
दो. िज िज देख े पिथक िय िसय समेत दोउ भाइ।
भव मग ु अगम ु अनं तेइ िबन ु म रहे िसराइ ॥ १२३ ॥
अजँ जास ु उर सपन ेँ काऊ। बसँ लखन ु िसय राम ु बटाऊ ॥
राम धाम पथ पाइिह सोई। जो पथ पाव कबँ मिु न कोई ॥
ु िमत िसय जानी। देिख िनकट बटु सीतल पानी ॥
तब रघबीर
तहँ बिस कं द मूल फल खाई। ात नहाइ चले रघराई ु ॥
देखत बन सर स ैल सहाए।ु बालमीिक आम भ ु आए ॥
राम दीख मिु न बास ु सहावन।
ु सदं ु र िगिर कानन ु ज पावन ॥
सरिन सरोज िबटप बन फू ले। गज ं ु त मंज ु मधपु रस भूले ॥
खग मृग िबपल ु कोलाहल करह। िबरिहत ब ैर मिु दत मन चरह ॥
ु सदं ु र आम ु िनरिख हरषे रािजवन ेन।
दो. सिच
ु रघबर
सिन ु आगमन ु मिु न आग आयउ लेन ॥ १२४ ॥
मिु न कँ राम दंडवत कीा। आिसरबा िबबर दीा ॥

देिख राम छिब नयन जड़ाने। किर सनमान ु आमिहं आन े ॥
मिु नबर अितिथ ानिय पाए। कं द मूल फल मधरु मगाए ॥
िसय सौिमि राम फल खाए। तब मिु न आम िदए सहाए ु ॥
बालमीिक मन आनँ भारी। मंगल मूरित नयन िनहारी ॥
तब कर कमल जोिर रघराई। ु ु
बोले बचन वन सखदाई ॥
त ु िकाल दरसी मिु ननाथा। िब बदर िजिम त ु र हाथा ॥
अस किह भ ु सब कथा बखानी। जेिह जेिह भाँित दी बन ु रानी ॥
दो. तात बचन पिनु मात ु िहत भाइ भरत अस राउ।
मो कँ दरस तु ार भ ु सब ु मम प
ु भाउ ॥ १२५ ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

देिख पाय मिु नराय त


ु ारे। भए सकृु त सब सफलु हमारे ॥
अब जहँ राउर आयस ु होई। मिु न उदबेग ु न पावै कोई ॥
मिु न तापस िज त ख ु लहह। ते नरेस िबन ु पावक दहह ॥
मंगल मूल िब पिरतोषू। दहइ कोिट कुल भूसरु रोषू ॥
अस िजयँ जािन किहअ सोइ ठाऊँ । िसय सौिमि सिहत जहँ जाऊँ ॥
तहँ रिच िचर परन तृन साला। बास ु करौ क काल कृ पाला ॥
सहज सरल सिन ु रघबरु बानी। साध ु साध ु बोले मिु न यानी ॥
कस न कह अस रघक ु ु लके तू। त
ु पालक संतत िु त सेत ू ॥
छं. िु त सेत ु पालक राम त
ु जगदीस माया जानकी।
जो सृजित जग ु पालित हरित ख पाइ कृ पािनधान की ॥
जो सहससीस ु अहीस ु मिहध लखन ु सचराचर धनी।
सरु काज धिर नरराज तन ु चले दलन खल िनिसचर अनी ॥

ु ार बचन अगोचर बिपर।
सो. राम सप त
अिबगत अकथ अपार न ेित िनत िनगम कह ॥ १२६ ॥
जग ु पेखन त ु देखिनहारे। िबिध हिर संभ ु नचाविनहारे ॥
तेउ न जानिहं मरम ु त ु ारा। औ त ु िह को जानिनहारा ॥
सोइ जानइ जेिह दे जनाई। जानत त ु िह त ु इ होइ जाई ॥
तु िरिह कृ पाँ त
ु िह रघनंु दन। जानिहं भगत भगत उर चंदन ॥
िचदानंदमय देह त ु ारी। िबगत िबकार जान अिधकारी ॥
नर तन ु धरे संत सरु काजा। कह कर जस ाकृ त राजा ॥
राम देिख सिन ु चिरत त ु ारे। जड़ मोहिहं बधु होिहं सखारे
ु ॥
त ु जो कह कर सब ु साँचा। जस कािछअ तस चािहअ नाचा ॥
ँ त सकुचाउँ।
ँ े मोिह िक रह कहँ म पूछ
दो. पूछ
जहँ न हो तहँ दे किह त ु िह देखाव ठाउँ ॥ १२७ ॥
ु मिु न बचन ेम रस सान े। सकुिच राम मन मँ मस
सिन ु कान
ु े॥
बालमीिक हँिस कहिहं बहोरी। बानी मधरु अिमअ रस बोरी ॥
सनु राम अब कहउँ िनके ता। जहाँ बस िसय लखन समेता ॥
िज के वन समु समाना। कथा त ु ािर सभग
ु सिर नाना ॥
भरिहं िनरंतर होिहं न पूर।े ित के िहय तु कँ गृह रे ॥
लोचन चातक िज किर राखे। रहिहं दरस जलधर अिभलाषे ॥
िनदरिहं सिरत िसंध ु सर भारी। प िबं जल होिहं सखारी
ु ॥
ित के दय सदन सखदायक।ु बस बंध ु िसय सह रघनायकु ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 41

दो. जस ु त ु ार मानस िबमल हंिसिन जीहा जास।ु


ु ु ताहल गनु गन चनइ
मक ु राम बस िहयँ तास ु ॥ १२८ ॥
भ ु साद सिचु सभग
ु सबासा।
ु सादर जास ु लहइ िनत नासा ॥
तु िह िनबेिदत भोजन करह। भ ु साद पट भूषन धरह ॥
सीस नविहं सरु गु िज देखी। ीित सिहत किर िबनय िबसेषी ॥
कर िनत करिहं राम पद पूजा। राम भरोस दयँ निह जा ॥
चरन राम तीरथ चिल जाह। राम बस ित के मन माह ॥
मंराज ु िनत जपिहं त
ु ारा। पूजिहं त
ु िह सिहत पिरवारा ॥
तरपन होम करिहं िबिध नाना। िब जेवाँइ देिहं ब दाना ॥
त ु िजयँ जानी। सकल भायँ सेविहं सनमानी ॥
ु त अिधक गरिह
दो. सब ु किर मागिहं एक फ राम चरन रित होउ।
ित क मन मंिदर बस िसय रघनंु दन दोउ ॥ १२९ ॥
काम कोह मद मान न मोहा। लोभ न छोभ न राग न ोहा ॥
िज क कपट दंभ निहं माया। ित क दय बस रघराया ु ॥
सब के िय सब के िहतकारी। ख सख ु सिरस संसा गारी ॥
कहिहं स िय बचन िबचारी। जागत सोवत सरन त ु ारी ॥
तु िह छािड़ गित सिर नाह। राम बस ित के मन माह ॥
जननी सम जानिहं परनारी। धन ु पराव िबष त िबष भारी ॥
जे हरषिहं पर संपित देखी। िखत होिहं पर िबपित िबसेषी ॥
िजिह राम त ु ानिपआरे। ित के मन सभु सदन त ु ारे ॥
दो. ािम सखा िपत ु मात ु गरु िज के सब त
ु तात।
मन मंिदर ित क बस सीय सिहत दोउ ात ॥ १३० ॥
अवगनु तिज सब के गनु गहह। िब धेन ु िहत संकट सहह ॥
नीित िनपनु िज कइ जग लीका। घर त ु ार ित कर मन ु नीका ॥
गनु तु ार समझ ु इ िनज दोसा। जेिह सब भाँित त
ु ार भरोसा ॥
राम भगत िय लागिहं जेही। तेिह उर बस सिहत ब ैदेही ॥
जाित पाँित धन ु धरम बड़ाई। िय पिरवार सदन सखदाई
ु ॥
सब तिज त ु िह रहइ उर लाई। तेिह के दयँ रह रघराई
ु ॥
सरग ु नरकु अपबरग ु समाना। जहँ तहँ देख धर धन ु बाना ॥
करम बचन मन राउर चेरा। राम कर तेिह क उर डेरा ॥
दो. जािह न चािहअ कबँ क त ु सन सहज सने ।
बस िनरंतर तास ु मन सो राउर िनज गे ॥ १३१ ॥
एिह िबिध मिु नबर भवन देखाए। बचन सेम राम मन भाए ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

कह मिु न सनु भानक ु ु लनायक। आम कहउँ समय सखदायक


ु ॥
िचकू ट िगिर कर िनवासू। तहँ त ु ार सब भाँित सपासू
ु ॥

स ै सहावन कानन चा। किर के हिर मृग िबहग िबहा ॥
ु परान
नदी पनीत ु बखानी। अििया िनज तपबल आनी ॥

सरसिर धार नाउँ मंदािकिन। जो सब पातक पोतक डािकिन ॥
अि आिद मिु नबर ब बसह। करिहं जोग जप तप तन कसह ॥
चल सफल म सब कर कर। राम दे गौरव िगिरबर ॥
दो. िचकू ट मिहमा अिमत कह महामिु न गाइ।
आए नहाए सिरत बर िसय समेत दोउ भाइ ॥ १३२ ॥
ु कहेउ लखन भल घाटू। कर कतँ अब ठाहर ठाटू ॥
रघबर
लखन दीख पय उतर करारा। चँ िदिस िफरेउ धनषु िजिम नारा ॥
नदी पनच सर सम दम दाना। सकल कष किल साउज नाना ॥
िचकू ट जन ु अचल अहेरी। चकइु न घात मार मठु भेरी ॥
अस किह लखन ठाउँ देखरावा। थ िबलोिक रघबर ु सख ु ु पावा ॥
रमेउ राम मन ु देव जाना। चले सिहत सरु थपित धाना ॥
कोल िकरात बेष सब आए। रचे परन तृन सदन सहाए ु ॥
बरिन न जािह मंज ु इ साला। एक लिलत लघ ु एक िबसाला ॥
दो. लखन जानकी सिहत भ ु राजत िचर िनके त।
सोह मदन ु मिु न बेष जन ु रित िरतरु ाज समेत ॥ १३३ ॥
मासपारायण, सहँवा िवाम
अमर नाग िकं नर िदिसपाला। िचकू ट आए तेिह काला ॥
राम नाम ु की सब का। मिु दत देव लिह लोचन ला ॥
बरिष समनु कह देव समाजू। नाथ सनाथ भए हम आजू ॥
किर िबनती ख सह सनाए। ु हरिषत िनज िनज सदन िसधाए ॥
िचकू ट रघनंु दन ु छाए। समाचार सिनु सिन
ु मिु न आए ॥
आवत देिख मिु दत मिु नबृदं ा। की दंडवत रघक ु ु ल चंदा ॥
मिु न रघबरिह
ु लाइ उर लेह। सफल ु होन िहत आिसष देह ॥
िसय सौिम राम छिब देखिहं। साधन सकल सफल किर लेखिहं ॥
दो. जथाजोग सनमािन भ ु िबदा िकए मिु नबृदं ।
करिह जोग जप जाग तप िनज आमि सछंु द ॥ १३४ ॥
यह सिध ु कोल िकरात पाई। हरषे जन ु नव िनिध घर आई ॥
कं द मूल फल भिर भिर दोना। चले रंक जन ु टन सोना ॥
ित महँ िज देख े दोउ ाता। अपर ितिह पूछ ँ िह मग ु जाता ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 43

कहत सनतु रघबीरु िनकाई। आइ सबि देख े रघराई ु ॥


करिहं जोहा भट धिर आगे। भिह ु ॥
ु िबलोकिहं अित अनरागे
िच िलखे जन ु जहँ तहँ ठाढ़े। पलक
ु सरीर नयन जल बाढ़े ॥
राम सन ेह मगन सब जान े। किह िय बचन सकल सनमान े ॥
ु जोहािर बहोिर बहोरी। बचन िबनीत कहिहं कर जोरी ॥
भिह
दो. अब हम नाथ सनाथ सब भए देिख भ ु पाय।
भाग हमारे आगमन ु राउर कोसलराय ॥ १३५ ॥
ध भूिम बन पंथ पहारा। जहँ जहँ नाथ पाउ त ु धारा ॥
ध िबहग मृग काननचारी। सफल जनम भए त ु िह िनहारी ॥
हम सब ध सिहत पिरवारा। दीख दरस ु भिर नयन त ु ारा ॥
की बास ु भल ठाउँ िबचारी। इहाँ सकल िरत ु रहब सखारी
ु ॥
हम सब भाँित करब सेवकाई। किर के हिर अिह बाघ बराई ॥
बन बेहड़ िगिर कं दर खोहा। सब हमार भ ु पग पग जोहा ॥
ु िह अहेर खेलाउब। सर िनरझर जलठाउँ देखाउब ॥
तहँ तहँ त
हम सेवक पिरवार समेता। नाथ न सकुचब आयस ु देता ॥
दो. बेद बचन मिु न मन अगम ते भ ु कना ऐन।
बचन िकरात के सनत ु िजिम िपत ु बालक ब ैन ॥ १३६ ॥
रामिह के वल ेम ु िपआरा। जािन लेउ जो जानिनहारा ॥
राम सकल बनचर तब तोषे। किह मृ बचन ेम पिरपोषे ॥
िबदा िकए िसर नाइ िसधाए। भ ु गनु कहत सनत ु घर आए ॥
एिह िबिध िसय समेत दोउ भाई। बसिहं िबिपन सरु मिु न सखदाई ु ॥
जब ते आइ रहे रघनायक ु ु । तब त भयउ बन ु मंगलदायकु ॥
फू लिहं फलिहं िबटप िबिध नाना ॥ मंज ु बिलत बर बेिल िबताना ॥

सरत सिरस सभायँु ु
सहाए। मनँ िबबधु बन पिरहिर आए ॥
ु ु
गंज मंजतर मधकर ेनी। ििबध बयािर बहइ सख ु देनी ॥
दो. नीलकं ठ कलकं ठ सक ु चातक च चकोर।
ु िचत चोर ॥ १३७ ॥
भाँित भाँित बोलिहं िबहग वन सखद
के िर के हिर किप कोल कुरंगा। िबगतब ैर िबचरिहं सब संगा ॥
िफरत अहेर राम छिब देखी। होिहं मिु दत मृगबंद िबसेषी ॥
िबबधु िबिपन जहँ लिग जग माह। देिख राम बन ु सकल िसहाह ॥

सरसिर सरसइ िदनकर का। मेकलसता ु गोदाविर धा ॥
सब सर िसंध ु नदी नद नाना। मंदािकिन कर करिहं बखाना ॥
उदय अ िगिर अ कै लासू। मंदर मे सकल सरबासू ु ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

स ैल िहमाचल आिदक जेत।े िचकू ट जस ु गाविहं तेत े ॥


ु ु न समाई। म िबन ु िबपल
िबंिध मिु दत मन सख ु बड़ाई पाई ॥
दो. िचकू ट के िबहग मृग बेिल िबटप तृन जाित।
ु पज
प ं ु सब ध अस कहिहं देव िदन राित ॥ १३८ ॥
नयनवंत रघबरिहु िबलोकी। पाइ जनम फल होिहं िबसोकी ॥
परिस चरन रज अचर सखारी। ु भए परम पद के अिधकारी ॥
सो बन ु स ै सभायँ
ु ु
सहावन। मंगलमय अित पावन पावन ॥

मिहमा किहअ कविन िबिध तासू। सखसागर जहँ की िनवासू ॥
पय पयोिध तिज अवध िबहाई। जहँ िसय लखन ु राम ु रहे आई ॥
किह न सकिहं सषमा ु जिस कानन। ज सत सहस हिहं सहसानन ॥
सो म बरिन कह िबिध के ह। डाबर कमठ िक मंदर लेह ॥
सेविहं लखन ु करम मन बानी। जाइ न सी सने बखानी ॥
दो. -िछन ु िछन ु लिख िसय राम पद जािन आप ु पर न े।
करत न सपन ेँ लखन ु िचत ु बंध ु मात ु िपत ु गे ॥ १३९ ॥
राम संग िसय रहित सखारी।ु ु िबसारी ॥
परु पिरजन गृह सरित
ु ु ु ु
िछन िछन िपय िबध बदन िनहारी। मिु दत मनँ चकोरकुमारी ॥
नाह न े िनत बढ़त िबलोकी। हरिषत रहित िदवस िजिम कोकी ॥
िसय मन ु राम चरन अनरागा। ु अवध सहस सम बन ु िय लागा ॥
परनकुटी िय ियतम संगा। िय पिरवा कुरंग िबहंगा ॥
सास ु ससरु सम मिु नितय मिु नबर। असन ु अिमअ सम कं द मूल फर ॥
नाथ साथ साँथरी सहाई। ु ु
मयन सयन सय सम सखदाई ॥
लोकप होिहं िबलोकत जासू। तेिह िक मोिह सक िबषय िबलासू ॥

दो. -सिमरत रामिह तजिहं जन तृन सम िबषय िबलास।ु
रामिया जग जनिन िसय क न आचरज ु तास ु ॥ १४० ॥
सीय लखन जेिह िबिध सख ु ु लहह। सोइ रघनाथ
ु करिह सोइ कहह ॥

कहिहं परातन कथा कहानी। सनिहं ु लखन ु िसय अित सख ु ु मानी।
जब जब राम ु अवध सिध ु करह। तब तब बािर िबलोचन भरह ॥

सिमिर मात ु िपत ु पिरजन भाई। भरत सन े सी सेवकाई ॥
कृ पािसंध ु भ ु होिहं खारी। धीरज ु धरिहं कुसमउ िबचारी ॥
लिख िसय लखन ु िबकल होइ जाह। िजिम पषिह ु अनसर ु पिरछाह ॥
िया बंध ु गित लिख रघनंु दन।ु धीर कृ पाल भगत उर चंदन ु ॥
लगे कहन क कथा पनीता। ु ु सख
सिन ु ु लहिहं लखन ु अ सीता ॥
दो. राम ु लखन सीता सिहत सोहत परन िनके त।
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 45

िजिम बासव बस अमरपरु सची जयंत समेत ॥ १४१ ॥


जोगविहं भ ु िसय लखनिहं कै स। पलक िबलोचन गोलक ज ैस ॥
सेविहं लखन ु सीय रघबीरिह।
ु ु सरीरिह ॥
िजिम अिबबेकी पष
एिह िबिध भ ु बन बसिहं सखारी।
ु खग मृग सरु तापस िहतकारी ॥
कहेउँ राम बन गवन ु सहावा।
ु ु समं
सन ु  अवध िजिम आवा ॥

िफरेउ िनषा भिह पँचाई। सिचव सिहत रथ देखिे स आई ॥
मंी िबकल िबलोिक िनषा। किह न जाइ जस भयउ िबषा ॥
राम राम िसय लखन पकारी। ु परेउ धरिनतल ाकुल भारी ॥
देिख दिखन िदिस हय िहिहनाह। जन ु िबन ु पंख िबहग अकुलाह ॥
दो. निहं तृन चरिहं िपअिहं ज मोचिहं लोचन बािर।
ाकुल भए िनषाद सब रघबर ु बािज िनहािर ॥ १४२ ॥
धिर धीरज तब कहइ िनषा। अब समं ु  पिरहर िबषा ॥
तु पंिडत परमारथ याता। धर धीर लिख िबमख ु िबधाता
िबिबध कथा किह किह मृ बानी। रथ ब ैठारेउ बरबस आनी ॥
सोक िसिथल रथ सकइ न हाँकी। रघबर ु िबरह पीर उर बाँकी ॥
चरफरािहँ मग चलिहं न घोरे। बन मृग मनँ आिन रथ जोरे ॥
अढ़िु क परिहं िफिर हेरिहं पीछ । राम िबयोिग िबकल ख तीछ ॥
जो कह राम ु लखन ु ब ैदेही। िहंकिर िहंकिर िहत हेरिहं तेही ॥
बािज िबरह गित किह िकिम जाती। िबन ु मिन फिनक िबकल जेिह भाँती ॥
दो. भयउ िनषाद िबषादबस देखत सिचव तरु ंग।
ु वक चािर तब िदए सारथी संग ॥ १४३ ॥
बोिल ससे
गहु सारिथिह िफरेउ पँचाई। िबर िबषा बरिन निहं जाई ॥
चले अवध लेइ रथिह िनषादा। होिह छनिहं छन मगन िबषादा ॥
सोच समंु  िबकल ख दीना। िधग जीवन रघबीर ु िबहीना ॥
रिहिह न अंतँ अधम सरी। जस ु न लहेउ िबरत रघबी ु ॥
भए अजस अघ भाजन ाना। कवन हेत ु निहं करत पयाना ॥
अहह मंद मन ु अवसर चूका। अजँ न दय होत इ टूका ॥
मीिज हाथ िस धिन ु पिछताई। मनहँ कृ पन धन रािस गवाँई ॥
िबिरद बाँिध बर बी कहाई। चलेउ समर जन ु सभटु पराई ॥
दो. िब िबबेकी बेदिबद संमत साध ु सजाित।

िजिम धोख मदपान कर सिचव सोच तेिह भाँित ॥ १४४ ॥
िजिम कुलीन ितय साध ु सयानी। पितदेवता करम मन बानी ॥
रहै करम बस पिरहिर ना। सिचव दयँ ितिम दान दा ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

लोचन सजल डीिठ भइ थोरी। सनइ ु न वन िबकल मित भोरी ॥


सूखिहं अधर लािग महु ँ लाटी। िजउ न जाइ उर अविध कपाटी ॥
िबबरन भयउ न जाइ िनहारी। मारेिस मनँ िपता महतारी ॥
हािन गलािन िबपलु मन ापी। जमपरु पंथ सोच िजिम पापी ॥
बचन ु न आव दयँ पिछताई। अवध काह म देखब जाई ॥
राम रिहत रथ देिखिह जोई। सकुिचिह मोिह िबलोकत सोई ॥
दो. -धाइ पूिँ छहिहं मोिह जब िबकल नगर नर नािर।
उत देब म सबिह तब दयँ ब ु ब ैठािर ॥ १४५ ॥

पिछहिहं दीन िखत सब माता। कहब काह म ितिह िबधाता ॥
पूिछिह जबिहं लखन महतारी। किहहउँ कवन सँदस ु
े सखारी ॥
राम जनिन जब आइिह धाई। सिमिर ु ब िजिम धेन ु लवाई ॥
पूछँ त उत देब म तेही। गे बन ु राम लखन ु ब ैदेही ॥
जोइ पूिँ छिह तेिह ऊत देबा।जाइ अवध अब य सख ु ु लेबा ॥
पूिँ छिह जबिहं राउ ख दीना। िजवन ु जास ु रघनाथु अधीना ॥
देहउँ उत कौन ु मु लाई। आयउँ कुसल कुअँर पँचाई ॥
सनत ु लखन िसय राम सँदस े ।ू तृन िजिम तन ु पिरहिरिह नरेस ू ॥
दो. -दउ न िबदरेउ पंक िजिम िबरत ीतम ु नी ॥
जानत ह मोिह दी िबिध य जातना सरी ॥ १४६ ॥
एिह िबिध करत पंथ पिछतावा। तमसा तीर तरु त रथ ु आवा ॥
िबदा िकए किर िबनय िनषादा। िफरे पायँ पिर िबकल िबषादा ॥
प ैठत नगर सिचव सकुचाई। जन ु मारेिस गरु बाँभन गाई ॥
ब ैिठ िबटप तर िदवस ु गवाँवा। साँझ समय तब अवस पावा ॥
अवध बेस ु की अँिधआर । प ैठ भवन रथ ु रािख आर ॥
िज िज समाचार सिन ु पाए। भूप ार रथ ु देखन आए ॥
रथ ु पिहचािन िबकल लिख घोरे। गरिहं गात िजिम आतप ओरे ॥
नगर नािर नर ाकुल क स। िनघटत नीर मीनगन जस ॥
दो. -सिचव आगमन ु सनत
ु सब ु िबकल भयउ रिनवास।ु
भवन भयंक लाग तेिह मानँ ेत िनवास ु ॥ १४७ ॥
अित आरित सब पूछ
ँ िहं रानी। उत न आव िबकल भइ बानी ॥

सनइ न वन नयन निहं सूझा। कह कहाँ नृप तेिह तेिह बूझा ॥
दािस दीख सिचव िबकलाई। कौसा गृहँ ग लवाई ॥
ु  दीख कस राजा। अिमअ रिहत जन ु चं िबराजा ॥
जाइ समं
आसन सयन िबभूषन हीना। परेउ भूिमतल िनपट मलीना ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 47

लेइ उसास ु सोच एिह भाँती। सरपु रु त जन ु खँसउे जजाती ॥


लेत सोच भिर िछन ु िछन ु छाती। जन ु जिर पंख परेउ संपाती ॥
राम राम कह राम सन ेही। पिनु कह राम लखन ब ैदेही ॥
दो. देिख सिचवँ जय जीव किह कीेउ दंड नाम।ु
ु उठे उ ाकुल नृपित क समं
सनत ु  कहँ राम ु ॥ १४८ ॥
ु  ु ली उर लाई। बूड़त क अधार जन ु पाई ॥
भूप समं
सिहत सन ेह िनकट ब ैठारी। पूछ ँ त राउ नयन भिर बारी ॥
राम कुसल क सखा सनहे ी। कहँ रघनाथ ु ु लखन ु ब ैदेही ॥
आने फे िर िक बनिह िसधाए। सनत ु सिचव लोचन जल छाए ॥
सोक िबकल पिन ु पूछ
ँ नरेस।ू क िसय राम लखन संदस े ू॥
राम प गनु सील सभाऊ। ु ु
सिमिर ु
सिमिर उर सोचत राऊ ॥
ु दी बनबासू। सिन
राउ सनाइ ु मन भयउ न हरष ु हराँस ू ॥
सो सतु िबरत गए न ाना। को पापी बड़ मोिह समाना ॥
दो. सखा राम ु िसय लखन ु जहँ तहाँ मोिह पँचाउ।
नािहं त चाहत चलन अब ान कहउँ सितभाउ ॥ १४९ ॥
ु पिन
पिन ु पूछ ु सँदस
ँ त मंिह राऊ। ियतम सअन ु
े सनाऊ ॥
करिह सखा सोइ बेिग उपाऊ। राम ु लखन ु िसय नयन देखाऊ ॥
सिचव धीर धिर कह मु बानी। महाराज त ु पंिडत यानी ॥
ु ु
ु धरंधर देवा। साध समाज ु सदा त
बीर सधीर ु सेवा ॥
जनम मरन सब ख भोगा। हािन लाभ िय िमलन िबयोगा ॥
काल करम बस हौिहं गोसा। बरबस राित िदवस की ना ॥
सखु हरषिहं जड़ ख िबलखाह। दोउ सम धीर धरिहं मन माह ॥
धीरज धर िबबेकु िबचारी। छािड़अ सोच सकल िहतकारी ॥
दो. थम बास ु तमसा भयउ सर सरसिर
ु तीर।

ाई रहे जलपान किर िसय समेत दोउ बीर ॥ १५० ॥
के वट कीि बत सेवकाई। सो जािमिन िसंगरौर गवाँई ॥
होत ात बट छी मगावा। जटा मक ु ु ट िनज सीस बनावा ॥
राम सखाँ तब नाव मगाई। िया चढ़ाइ चढ़े रघराई ु ॥
लखन बान धन ु धरे बनाई। आप ु चढ़े भ ु आयस ु पाई ॥

िबकल िबलोिक मोिह रघबीरा। बोले मधरु बचन धिर धीरा ॥
तात नाम ु तात सन कहे। बार बार पद पंकज गहे ॥
करिब पायँ पिर िबनय बहोरी। तात किरअ जिन िचंता मोरी ॥
बन मग मंगल कुसल हमार । कृ पा अनह ु प ु तु ार ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

छं. त ु तात कानन जात सब सख


ु रे अनह ु ु पाइह।
ितपािल आयस ु कुसल देखन पाय पिन ु िफिर आइह ॥
जनन सकल पिरतोिष पिर पिर पायँ किर िबनती घनी।
तलु सी करे सोइ जतन ु जेिहं कुसली रहिहं कोसल धनी ॥
सो. गरु सन कहब सँदसे ु बार बार पद पम गिह।

करब सोइ उपदेस जेिहं न सोच मोिह अवधपित ॥ १५१ ॥

परजन पिरजन सकल िनहोरी। तात सनाए ु िबनती मोरी ॥

सोइ सब भाँित मोर िहतकारी। जात रह नरना सखारी ॥
कहब सँदस े ु भरत के आएँ। नीित न तिजअ राजप पाएँ ॥
पाले जिह करम मन बानी। सी मात ु सकल सम जानी ॥
ओर िनबाहे भायप भाई। किर िपत ु मात ु सजन
ु सेवकाई ॥
तात भाँित तेिह राखब राऊ। सोच मोर जेिहं करै न काऊ ॥
लखन कहे क बचन कठोरा। बरिज राम पिन ु मोिह िनहोरा ॥
बार बार िनज सपथ देवाई। कहिब न तात लखन लिरकाई ॥
दो. किह नाम क कहन िलय िसय भइ िसिथल सनेह।
थिकत बचन लोचन सजल पलकु पिवत देह ॥ १५२ ॥
तेिह अवसर रघबर ु ख पाई। के वट पारिह नाव चलाई ॥
रघक ु ु लितलक चले एिह भाँती। देखउँ ठाढ़ कुिलस धिर छाती ॥
म आपन िकिम कह कलेस।ू िजअत िफरेउँ लेइ राम सँदस े ू॥
अस किह सिचव बचन रिह गयऊ। हािन गलािन सोच बस भयऊ ॥
सतु बचन सनतिहं
ु नरना। परेउ धरिन उर दान दा ॥
तलफत िबषम मोह मन मापा। माजा मनँ मीन कँ ापा ॥
किर िबलाप सब रोविहं रानी। महा िबपित िकिम जाइ बखानी ॥
सिनु िबलाप ख ख ु लागा। धीरज कर धीरज ु भागा ॥
दो. भयउ कोलाह अवध अित सिन ु नृप राउर सो।
ु िबहग बन परेउ िनिस मानँ कुिलस कठो ॥ १५३ ॥
िबपल

ान कं ठगत भयउ भआ। मिन िबहीन जन ु ाकुल ा ॥
इ सकल िबकल भइँ भारी। जन ु सर सरिसज बन ु िबन ु बारी ॥
कौसाँ नृप ु दीख मलाना। रिबकुल रिब अँथयउ िजयँ जाना।
उर धिर धीर राम महतारी। बोली बचन समय अनसारी ु ॥
नाथ समिु झ मन किरअ िबचा। राम िबयोग पयोिध अपा ॥
करनधार त ु अवध जहाजू। चढ़ेउ सकल िय पिथक समाजू ॥
धीरज धिरअ त पाइअ पा। नािहं त बूिड़िह सब ु पिरवा ॥

॥ ी राम चिरत मानस ॥ 49

ज िजयँ धिरअ िबनय िपय मोरी। राम ु लखन ु िसय िमलिहं बहोरी ॥
ु नृप ु िचतयउ आँिख उघािर।
दो. -िया बचन मृ सनत
तलफत मीन मलीन जन ु सचत सीतल बािर ॥ १५४ ॥
धिर धीरज ु उठी ब ैठ भआ।
ु क समं ु  कहँ राम कृ पा ॥
कहाँ लखन ु कहँ राम ु सनेही। कहँ िय पबधू
ु ब ैदेही ॥
िबलपत राउ िबकल ब भाँती। भइ जगु सिरस िसराित न राती ॥
तापस अंध साप सिध ु आई। कौसिह सब कथा सनाई ु ॥
भयउ िबकल बरनत इितहासा। राम रिहत िधग जीवन आसा ॥
सो तन ु रािख करब म काहा। जिह न ेम पन ु मोर िनबाहा ॥
हा रघनंु दन ान िपरीते। तु िबन ु िजअत बत िदन बीते ॥
हा जानकी लखन हा रघबर। ु हा िपत ु िहत िचत चातक जलधर।
दो. राम राम किह राम किह राम राम किह राम।
तन ु पिरहिर रघबर
ु िबरहँ राउ गयउ सरधाम
ु ॥ १५५ ॥
िजअन मरन फ दसरथ पावा। अंड अन ेक अमल जस ु छावा ॥
िजअत राम िबध ु बदन ु िनहारा। राम िबरह किर मरन ु सँवारा ॥
सोक िबकल सब रोविहं रानी। प ु सील ब तेज ु बखानी ॥
करिहं िबलाप अन ेक कारा। परह भूिमतल बारिहं बारा ॥
िबलपिहं िबकल दास अ दासी। घर घर दन ु करिहं परबासीु ॥
अँथयउ आज ु भानक ु ु ल भानू। धरम अविध गनु प िनधानू ॥
गार सकल कै कइिह देह। नयन िबहीन की जग जेह ॥
एिह िबिध िबलपत रैिन िबहानी। आए सकल महामिु न यानी ॥
दो. तब बिस मिु न समय सम किह अनेक इितहास।
सोक न ेवारेउ सबिह कर िनज िबयान कास ॥ १५६ ॥
तेल नाँव भिर नृप तन ु राखा। त बोलाइ बिर अस भाषा ॥
धाव बेिग भरत पिहं जा। नृप सिध ु कतँ कह जिन का ॥
एतन ेइ कहे भरत सन जाई। गरु बोलाई पठयउ दोउ भाई ॥
ु मिु न आयस ु धावन धाए। चले बेग बर बािज लजाए ॥
सिन
अनरथ ु अवध अरंभउे जब त। कुसगनु होिहं भरत कँ तब त ॥
देखिहं राित भयानक सपना। जािग करिहं कटु कोिट कलपना ॥
िब जेवाँइ देिहं िदन दाना। िसव अिभषेक करिहं िबिध नाना ॥
मागिहं दयँ महेस मनाई। कुसल मात ु िपत ु पिरजन भाई ॥
दो. एिह िबिध सोचत भरत मन धावन पँच े आइ।
गरु अनसासन
ु ु चले गनस
वन सिन े ु मनाइ ॥ १५७ ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

चले समीर बेग हय हाँके। नाघत सिरत स ैल बन बाँके ॥


दयँ सोच ु बड़ क न सोहाई। अस जानिहं िजयँ जाउँ उड़ाई ॥
एक िनमेष बरस सम जाई। एिह िबिध भरत नगर िनअराई ॥
असगनु होिहं नगर प ैठारा। रटिहं कुभाँित कुखेत करारा ॥
खर िसआर बोलिहं ितकू ला। सिन ु सिनु होइ भरत मन सूला ॥
ीहत सर सिरता बन बागा। नग िबसेिष भयावन ु लागा ॥
खग मृग हय गय जािहं न जोए। राम िबयोग कुरोग िबगोए ॥
नगर नािर नर िनपट खारी। मनँ सबि सब संपित हारी ॥

दो. परजन िमिलिहं न कहिहं क गवँिहं जोहारिहं जािहं।
भरत कुसल पूिँ छ न सकिहं भय िबषाद मन मािहं ॥ १५८ ॥
हाट बाट निहं जाइ िनहारी। जन ु परु दहँ िदिस लािग दवारी ॥
आवत सतु सिन ु कै कयनंिदिन। हरषी रिबकुल जलह चंिदिन ॥
सिज आरती मिु दत उिठ धाई। ारेिहं भिट भवन लेइ आई ॥
भरत िखत पिरवा िनहारा। मानँ तिु हन बनज बन ु मारा ॥
कै केई हरिषत एिह भाँित। मनँ मिु दत दव लाइ िकराती ॥
ु ससोच देिख मन ु मार । पूछ
सतिह ँ ित न ैहर कुसल हमार ॥
सकल कुसल किह भरत सनाई। ु पूछँ ी िनज कुल कुसल भलाई ॥
क कहँ तात कहाँ सब माता। कहँ िसय राम लखन िय ाता ॥
ु सतु बचन सन ेहमय कपट नीर भिर न ैन।
दो. सिन
भरत वन मन सूल सम पािपिन बोली ब ैन ॥ १५९ ॥
तात बात म सकल सँवारी। भ ै मंथरा सहाय िबचारी ॥
कक काज िबिध बीच िबगारेउ। भूपित सरपित ु परु पग ु धारेउ ॥
ु ु ु
सनत भरत भए िबबस िबषादा। जन सहमेउ किर के हिर नादा ॥

तात तात हा तात पकारी। परे भूिमतल ाकुल भारी ॥
चलत न देखन पायउँ तोही। तात न रामिह सपे मोही ॥
बिर धीर धिर उठे सँभारी। क िपत ु मरन हेत ु महतारी ॥
सिन ु सतु बचन कहित कै केई। मरम ु पाँिछ जन ु मार देई ॥
आिद त सब आपिन करनी। कुिटल कठोर मिु दत मन बरनी ॥
ु राम बन गौन।ु
दो. भरतिह िबसरेउ िपत ु मरन सनत
हेत अपनपउ जािन िजयँ थिकत रहे धिर मौन ु ॥ १६० ॥

िबकल िबलोिक सतिहु समझ ु ावित। मनँ जरे पर लोन ु लगावित ॥
तात राउ निहं सोचे जोगू। िबढ़इ सकृु त जस ु कीेउ भोगू ॥
जीवत सकल जनम फल पाए। अंत अमरपित सदन िसधाए ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 51

अस अनमािन ु सोच पिरहर। सिहत समाज राज परु कर ॥


ु सिठ
सिन ु सहमेउ राजकुमा। पाक छत जन ु लाग अँगा ॥
धीरज धिर भिर लेिहं उसासा। पापिन सबिह भाँित कुल नासा ॥
ज प ै कुिच रही अित तोही। जनमत काहे न मारे मोही ॥
पेड़ कािट त पालउ सचा। मीन िजअन िनित बािर उलीचा ॥
दो. हंसबंस ु दसरथ ु जनकु राम लखन से भाइ।
जननी तूँ जननी भई िबिध सन क न बसाइ ॥ १६१ ॥
जब त कुमित कुमत िजयँ ठयऊ। खंड खंड होइ दउ न गयऊ ॥
बर मागत मन भइ निहं पीरा। गिर न जीह महु ँ परेउ न कीरा ॥
भूप ँ तीत तोिर िकिम कीी। मरन काल िबिध मित हिर लीी ॥
िबिधँ न नािर दय गित जानी। सकल कपट अघ अवगनु खानी ॥
सरल ससील ु ु
धरम रत राऊ। सो िकिम जान ै तीय सभाऊ ॥
अस को जीव जंत ु जग माह। जेिह रघनाथु ानिय नाह ॥
भे अित अिहत राम ु तेउ तोही। को तू अहिस स क मोही ॥
जो हिस सो हिस महु ँ मिस लाई। आँिख ओट उिठ ब ैठिहं जाई ॥
दो. राम िबरोधी दय त गट की िबिध मोिह।
मो समान को पातकी बािद कहउँ क तोिह ॥ १६२ ॥
सिन ु सघु नु मात ु कुिटलाई। जरिहं गात िरस क न बसाई ॥
तेिह अवसर कुबरी तहँ आई। बसन िबभूषन िबिबध बनाई ॥
लिख िरस भरेउ लखन लघ ु भाई। बरत अनल घृत आित पाई ॥
मिग लात तिक कू बर मारा। पिर महु भर मिह करत पकाराु ॥
कू बर टूटेउ फू ट कपा। दिलत दसन मख ु िधर चा ॥
आह दइअ म काह नसावा। करत नीक फ अनइस पावा ॥
सिनु िरपहनु लिख नख िसख खोटी। लगे घसीटन धिर धिर झटी ॥
भरत दयािनिध दीि छड़ाई। कौसा पिहं गे दोउ भाई ॥
दो. मिलन बसन िबबरन िबकल कृ स सरीर ख भार।
ु ार ॥ १६३ ॥
कनक कलप बर बेिल बन मानँ हनी तस
भरतिह देिख मात ु उिठ धाई। मु िछत अविन परी झइँ आई ॥
देखत भरत ु िबकल भए भारी। परे चरन तन दसा िबसारी ॥
मात ु तात कहँ देिह देखाई। कहँ िसय राम ु लखन ु दोउ भाई ॥
कै कइ कत जनमी जग माझा। ज जनिम त भइ काहे न बाँझा ॥
कुल कलं कु जेिहं जनमेउ मोही। अपजस भाजन ियजन ोही ॥
को ितभवनु मोिह सिरस अभागी। गित अिस तोिर मात ु जेिह लागी ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

िपत ु सरप
ु रु बन रघबर
ु के तू। म के वल सब अनरथ हेत ु ॥
िधग मोिह भयउँ बेन ु बन आगी। सह दाह ख षन भागी ॥
दो. मात ु भरत के बचन मृ सिन
ु सिन
ु उठी सँभािर ॥
िलए उठाइ लगाइ उर लोचन मोचित बािर ॥ १६४ ॥
सरल सभाय ु मायँ िहयँ लाए। अित िहत मनँ राम िफिर आए ॥
भटेउ बिर लखन लघ ु भाई। सोकु सने न दयँ समाई ॥

देिख सभाउ कहत सब ु कोई। राम मात ु अस काहे न होई ॥
माताँ भरत गोद ब ैठारे। आँस ु पिछ मृ बचन उचारे ॥

अजँ ब बिल धीरज धर। कुसमउ समिु झ सोक पिरहर ॥
जिन मान िहयँ हािन गलानी। काल करम गित अघिटत जािन ॥
कािह दोस ु दे जिन ताता। भा मोिह सब िबिध बाम िबधाता ॥
जो एतेँ ख मोिह िजआवा। अजँ को जानइ का तेिह भावा ॥
दो. िपत ु आयस भूषन बसन तात तजे रघबीर।

िबसमउ हरष ु न दयँ क पिहरे बलकल चीर। १६५ ॥
मखु स मन रंग न रोषू। सब कर सब िबिध किर पिरतोषू ॥
चले िबिपन सिन ु िसय सँग लागी। रहइ न राम चरन अनरागीु ॥
ु ु ु
सनतिहं लखन चले उिठ साथा। रहिहं न जतन िकए रघनाथा ॥
ु सबही िस नाई। चले संग िसय अ लघ ु भाई ॥
तब रघपित
राम ु लखन ु िसय बनिह िसधाए। गइउँ न संग न ान पठाए ॥
य सब ु भा इ आँिख आग। तउ न तजा तन ु जीव अभाग ॥
मोिह न लाज िनज न े िनहारी। राम सिरस सतु म महतारी ॥
िजऐ मरै भल भूपित जाना। मोर दय सत कुिलस समाना ॥
ु भरत सिहत रिनवास।
दो. कौसा के बचन सिन
ाकुल िबलपत राजगृह मानँ सोक नवे ास ु ॥ १६६ ॥
िबलपिहं िबकल भरत दोउ भाई। कौसाँ िलए दयँ लगाई ॥
भाँित अन ेक भरत ु समझु ाए। किह िबबेकमय बचन सनाए ु ॥
भरतँ मात ु सकल समझ ु ा। किह परान
ु िु त कथा सहा
ु ॥
छल िबहीन सिच ु सरल सबानी।ु बोले भरत जोिर जगु पानी ॥
जे अघ मात ु िपता सतु मार । गाइ गोठ मिहसरु परु जार ॥
जे अघ ितय बालक बध की । मीत महीपित मार दी ॥
जे पातक उपपातक अहह। करम बचन मन भव किब कहह ॥
ते पातक मोिह होँ िबधाता। ज य होइ मोर मत माता ॥
दो. जे पिरहिर हिर हर चरन भजिहं भूतगन घोर।
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 53

तेिह कइ गित मोिह देउ िबिध ज जननी मत मोर ॥ १६७ ॥


बेचिहं बे धरम ु िह लेह। िपसनु पराय पाप किह देह ॥
कपटी कुिटल कलहिय ोधी। बेद िबषक िब िबरोधी ॥
लोभी लं पट लोपचारा। जे ताकिहं परधन ु परदारा ॥
पाव म ित के गित घोरा। ज जननी य संमत मोरा ॥
ु ग अनरागे
जे निहं साधसं ु । परमारथ पथ िबमख ु अभागे ॥
जे न भजिहं हिर नरतन ु पाई। िजिह न हिर हर सजस ु ु सोहाई ॥
तिज िु तपंथ ु बाम पथ चलह। बंचक िबरिच बेष जग ु छलह ॥
ित कै गित मोिह संकर देऊ। जननी ज य जान भेऊ ॥
दो. मात ु भरत के बचन सिन
ु साँच े सरल सभायँ
ु ।
कहित राम िय तात तु सदा बचन मन कायँ ॥ १६८ ॥
राम ान त ान त ु ारे। त
ु रघपितिह
ु ान त ारे ॥
िबध ु िबष चवै वै िहम ु आगी। होइ बािरचर बािर िबरागी ॥
भएँ यान ु ब िमटै न मो। त ु रामिह ितकू ल न हो ॥
मत त ु ार य जो जग कहह। सो सपन ेँ सख ु सगित
ु न लहह ॥
अस किह मात ु भरत ु िहयँ लाए। थन पय विहं नयन जल छाए ॥
करत िबलाप बत यिह भाँती। ब ैठे िहं बीित गइ सब राती ॥
बामदेउ बिस तब आए। सिचव महाजन सकल बोलाए ॥
मिु न ब भाँित भरत उपदेस।े किह परमारथ बचन सदेु स े ॥
दो. तात दयँ धीरज ु धर कर जो अवसर आज।ु
उठे भरत गरु बचन सिनु करन कहेउ सब ु साज ु ॥ १६९ ॥
नृपतन ु बेद िबिदत अवावा। परम िबिच िबमान ु बनावा ॥
गिह पद भरत मात ु सब राखी। रह रािन दरसन अिभलाषी ॥
चंदन अगर भार ब आए। अिमत अनक ु ध सहाए
े सगं ु ॥
सरज ु तीर रिच िचता बनाई। जन ु सरप
ु रु सोपान सहाई
ु ॥
एिह िबिध दाह िया सब कीी। िबिधवत ाइ ितलांजिल ु दीी ॥
ु ु
सोिध समृित सब बेद पराना। की भरत दसगात िबधाना ॥
जहँ जस मिु नबर आयस ु दीा। तहँ तस सहस भाँित सब ु कीा ॥
भए िबसु िदए सब दाना। धेन ु बािज गज बाहन नाना ॥
दो. िसंघासन भूषन बसन अ धरिन धन धाम।
िदए भरत लिह भूिमसरु भे पिरपूरन काम ॥ १७० ॥
िपत ु िहत भरत कीि जिस करनी। सो मख
ु लाख जाइ निहं बरनी ॥
ु ु सोिध मिु नबर तब आए। सिचव महाजन सकल बोलाए ॥
सिदन
॥ ी राम चिरत मानस ॥

ब ैठे राजसभाँ सब जाई। पठए बोिल भरत दोउ भाई ॥


भरत ु बिस िनकट ब ैठारे। नीित धरममय बचन उचारे ॥
थम कथा सब मिु नबर बरनी। कै कइ कुिटल कीि जिस करनी ॥
भूप धरमत ु स सराहा। जेिहं तन ु पिरहिर ेम ु िनबाहा ॥
कहत राम गनु सील सभाऊ।ु सजल नयन पलकेु उ मिु नराऊ ॥
बिर लखन िसय ीित बखानी। सोक सनेह मगन मिु न यानी ॥
दो. सनु भरत भावी बल िबलिख कहेउ मिु ननाथ।
हािन लाभ ु जीवन मरन ु जस ु अपजस ु िबिध हाथ ॥ १७१ ॥
अस िबचािर के िह देइअ दोसू। रथ कािह पर कीिजअ रोसू ॥
तात िबचा के िह कर मन माह। सोच जोग ु दसरथ ु नृप ु नाह ॥
सोिचअ िब जो बेद िबहीना। तिज िनज धरम ु िबषय लयलीना ॥
सोिचअ नृपित जो नीित न जाना। जेिह न जा िय ान समाना ॥
सोिचअ बयस ु कृ पन धनवानू। जो न अितिथ िसव भगित सजानू ु ॥
सोिचअ सूु िब अवमानी। मख ु
ु र मानिय यान गमानी ॥
ु ु
सोिचअ पिन पित बंचक नारी। किटल कलहिय इाचारी ॥
सोिचअ बटु िनज त ु पिरहरई। जो निहं गरु आयस ु अनसरई
ु ॥
दो. सोिचअ गृही जो मोह बस करइ करम पथ ाग।
सोिचअ जित ंपच रत िबगत िबबेक िबराग ॥ १७२ ॥
ब ैखानस सोइ सोच ै जोग।ु तप ु िबहाइ जेिह भावइ भोगू ॥
सोिचअ िपसनु अकारन ोधी। जनिन जनक गरु बंध ु िबरोधी ॥
सब िबिध सोिचअ पर अपकारी। िनज तन ु पोषक िनरदय भारी ॥
सोचनीय सबिह िबिध सोई। जो न छािड़ छ हिर जन होई ॥
सोचनीय निहं कोसलराऊ। भवन ु चािरदस गट भाऊ ॥
भयउ न अहइ न अब होिनहारा। भूप भरत जस िपता त ु ारा ॥

िबिध हिर ह सरपित िदिसनाथा। बरनिहं सब दसरथ गनु गाथा ॥
दो. कह तात के िह भाँित कोउ किरिह बड़ाई तास।ु
राम लखन त ु सहु न सिरस सअनु सिच ु जास ु ॥ १७३ ॥
सब कार भूपित बड़भागी। बािद िबषा किरअ तेिह लागी ॥
य सिन ु समिु झ सोच ु पिरहर। िसर धिर राज रजायस ु कर ॥
राँय राजप त ु कँ दीा। िपता बचन ु फुर चािहअ कीा ॥
तजे राम ु जेिहं बचनिह लागी। तन ु पिरहरेउ राम िबरहागी ॥
नृपिह बचन िय निहं िय ाना। कर तात िपत ु बचन वाना ॥
कर सीस धिर भूप रजाई। हइ त ु कहँ सब भाँित भलाई ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 55

ु िपत ु अया राखी। मारी मात ु लोक सब साखी ॥


परसराम
तनय जजाितिह जौबन ु दयऊ। िपत ु अयाँ अघ अजस ु न भयऊ ॥
दो. अनिचतु उिचत िबचा तिज जे पालिहं िपत ु ब ैन।
ु सजस
ते भाजन सख ु के बसिहं अमरपित ऐन ॥ १७४ ॥
अविस नरेस बचन फुर कर। पाल जा सोकु पिरहर ॥
ु रु नृप पाइिह पिरतोषू। त
सरप ु कँ सकृु त सजस
ु ु निहं दोषू ॥
बेद िबिदत संमत सबही का। जेिह िपत ु देइ सो पावइ टीका ॥
कर राज ु पिरहर गलानी। मान मोर बचन िहत जानी ॥
सिनु सखु ु लहब राम ब ैदेह। अनिचत
ु कहब न पंिडत के ह ॥
कौसािद सकल महतार। तेउ जा सख ु होिहं सखार
ु ॥
परम त ु ार राम कर जािनिह। सो सब िबिध त ु सन भल मािनिह ॥
सपे राज ु राम कै आएँ। सेवा करे सन ेह सहाएँ
ु ॥
दो. कीिजअ गरु आयस ु अविस कहिहं सिचव कर जोिर।
ु आएँ उिचत जस तस तब करब बहोिर ॥ १७५ ॥
रघपित
कौसा धिर धीरज ु कहई। पूत प गरु आयस ु अहई ॥
सो आदिरअ किरअ िहत मानी। तिजअ िबषा काल गित जानी ॥
ु सरपित
बन रघपित ु नरना। तु एिह भाँित तात कदरा ॥
पिरजन जा सिचव सब अंबा। त ु ही सतु सब कहँ अवलं बा ॥
लिख िबिध बाम का किठनाई। धीरज ु धर मात ु बिल जाई ॥
िसर धिर गरु आयस ु अनसर।ु जा पािल पिरजन ख ु हर ॥
गरु के बचन सिचव अिभनंदन।ु सनु े भरत िहय िहत जन ु चंदन ु ॥
सनीु बहोिर मात ु मृ बानी। सील सनहे सरल रस सानी ॥
ु भरत ाकुल भए।
छं. सानी सरल रस मात ु बानी सिन
लोचन सरोह वत सचत िबरह उर अंकुर नए ॥
ु देह की।
सो दसा देखत समय तेिह िबसरी सबिह सिध
ु सी सराहत सकल सादर सीवँ सहज सन ेह की ॥
तल
सो. भरत ु कमल कर जोिर धीर धरंु धर धीर धिर।
बचन अिमअँ जन ु बोिर देत उिचत उर सबिह ॥ १७६ ॥
मासपारायण, अठारहवाँ िवाम
मोिह उपदेस ु दी गरु नीका। जा सिचव संमत सबही का ॥
मात ु उिचत धिर आयस ु दीा। अविस सीस धिर चाहउँ कीा ॥
गरु िपत ु मात ु ािम िहत बानी। सिन
ु मन मिु दत किरअ भिल जानी ॥
उिचत िक अनिचत ु िकएँ िबचा। धरम ु जाइ िसर पातक भा ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

ु तौ दे सरल िसख सोई। जो आचरत मोर भल होई ॥


त
जिप यह समझ ु त हउँ नीक । तदिप होत पिरतोष ु न जी क ॥
ु िबनय मोिर सिन
अब त ु ले। मोिह अनहरतु िसखावन ु दे ॥

ऊत देउँ छमब अपराधू। िखत दोष गन गनिहं न साधू ॥
दो. िपत ु सरप
ु रु िसय राम ु बन करन कह मोिह राज।ु
एिह त जान मोर िहत कै आपन बड़ काज ु ॥ १७७ ॥
िहत हमार िसयपित सेवकाई। सो हिर ली मात ु कुिटलाई ॥

म अनमािन दीख मन माह। आन उपायँ मोर िहत नाह ॥
सोक समाज ु राज ु के िह लेख। लखन राम िसय िबन ु पद देख ॥
बािद बसन िबन ु भूषन भा। बािद िबरित िबन ु  िबचा ॥
सज सरीर बािद ब भोगा। िबन ु हिरभगित जायँ जप जोगा ॥
जायँ जीव िबन ु देह सहाई।
ु बािद मोर सब ु िबन ु रघराई
ु ॥
जाउँ राम पिहं आयस ु दे। एकिहं आँक मोर िहत ए ॥
मोिह नृप किर भल आपन चह। सोउ सनेह जड़ता बस कह ॥
ु कुिटलमित राम िबमख
दो. कै केई सअ ु गतलाज।
ु चाहत सख
त ु ु मोहबस मोिह से अधम क राज ॥ १७८ ॥
कहउँ साँच ु सब सिनु पितआ। चािहअ धरमसील नरना ॥
मोिह राज ु हिठ देइह जबह। रसा रसातल जाइिह तबह ॥
मोिह समान को पाप िनवासू। जेिह लिग सीय राम बनबासू ॥
रायँ राम कँ कानन ु दीा। िबरत गमन ु अमरपरु कीा ॥
ु सचेत ू ॥
म सठु सब अनरथ कर हेत।ू ब ैठ बात सब सनउँ
िबन ु रघबीर
ु िबलोिक अबासू। रहे ान सिह जग उपहासू ॥
ु िबषय रस खे। लोप भूिम भोग के भूख े ॥
राम पनीत
कहँ लिग कह दय किठनाई। िनदिर कुिलस ु जेिहं लही बड़ाई ॥
दो. कारन त कारज ु किठन होइ दोस ु निह मोर।
कुिलस अि त उपल त लोह कराल कठोर ॥ १७९ ॥
कै केई भव तन ु अनरागे
ु । पाँवर ान अघाइ अभागे ॥
ु बत अब आगे ॥
ज िय िबरहँ ान िय लागे। देखब सनब
लखन राम िसय कँ बन ु दीा। पठइ अमरपरु पित िहत कीा ॥
ली िबधवपन अपजस ु आपू। दीेउ जिह सोकु संतापू ॥
मोिह दी सख ु ु सजस
ु ु सराजू
ु । की कै के सब कर काजू ॥
ु टीका ॥
एिह त मोर काह अब नीका। तेिह पर देन कह त
कै कई जठर जनिम जग माह। यह मोिह कहँ क अनिचत ु नाह ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 57

मोिर बात सब िबिधिहं बनाई। जा पाँच कत कर सहाई ॥


ु बात बस तेिह पिन
दो. ह हीत पिन ु बीछी मार।
तेिह िपआइअ बानी कह काह उपचार ॥ १८० ॥
कै कइ सअनु जोग ु जग जोई। चतरु िबरंिच दी मोिह सोई ॥
दसरथ तनय राम लघ ु भाई। दीि मोिह िबिध बािद बड़ाई ॥
त ु सब कह कढ़ावन टीका। राय रजायस ु सब कहँ नीका ॥
ु न जथा िच जेही ॥
उत देउँ के िह िबिध के िह के ही। कह सखे
ु ु
मोिह कमात समेत िबहाई। कह किहिह के की भलाई ॥
मो िबन ु को सचराचर माह। जेिह िसय राम ु ानिय नाह ॥
परम हािन सब कहँ बड़ ला। अिदन ु मोर निह षन का ॥
संसय सील ेम बस अह। सबइु उिचत सब जो क कह ॥
दो. राम मात ु सिठ
ु सरलिचत मो पर ेम ु िबसेिष।

कहइ सभाय सन ेह बस मोिर दीनता देिख ॥ १८१।
गरु िबबेक सागर जग ु जाना। िजिह िब कर बदर समाना ॥
मो कहँ ितलक साज सज सोऊ। भएँ िबिध िबमख ु िबमखु सब ु कोऊ ॥
पिरहिर राम ु सीय जग माह। कोउ न किहिह मोर मत नाह ॥
ु सहब सख
सो म सनब ु ु मानी। अंतँ कीच तहाँ जहँ पानी ॥
ड न मोिह जग किहिह िक पोचू। परलोक कर नािहन सोचू ॥
एकइ उर बस सह दवारी। मोिह लिग भे िसय राम ु खारी ॥
जीवन ला लखन भल पावा। सब ु तिज राम चरन मन ु लावा ॥
मोर जनम रघबर ु बन लागी। झ ूठ काह पिछताउँ अभागी ॥
दो. आपिन दान दीनता कहउँ सबिह िस नाइ।
देख िबन ु रघनाथ
ु पद िजय कै जरिन न जाइ ॥ १८२ ॥
आन उपाउ मोिह निह सूझा। को िजय कै रघबर ु िबन ु बूझा ॥
एकिहं आँक इहइ मन माह। ातकाल चिलहउँ भ ु पाह ॥
जिप म अनभल अपराधी। भ ै मोिह कारन सकल उपाधी ॥
तदिप सरन सनमख ु मोिह देखी। छिम सब किरहिहं कृ पा िबसेषी ॥
सील सकुच सिठ ु सरल सभाऊ।
ु कृ पा सनहे सदन रघराऊु ॥
अिरक अनभल की न रामा। म िसस ु सेवक जिप बामा ॥
ु प ै पाँच मोर भल मानी। आयस ु आिसष दे सबानी
त ु ॥
ु िबनय मोिह जन ु जानी। आविहं बिर राम ु रजधानी ॥
जेिहं सिन
दो. जिप जनम ु कुमात ु त म सठु सदा सदोस।
आपन जािन न ािगहिहं मोिह रघबीर ु भरोस ॥ १८३ ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

भरत बचन सब कहँ िय लागे। राम सनहे सधाँ ु जन ु पागे ॥


लोग िबयोग िबषम िबष दागे। मं सबीज सनत ु जन ु जागे ॥
मात ु सिचव गरु परु नर नारी। सकल सनेहँ िबकल भए भारी ॥
भरतिह कहिह सरािह सराही। राम ेम मूरित तन ु आही ॥
तात भरत अस काहे न कह। ान समान राम िय अह ॥
जो पावँ अपनी जड़ताई। त ु मात ु कुिटलाई ॥
ु िह सगाइ
सो सठु कोिटक पष ु समेता। बिसिह कलप सत नरक िनके ता ॥

अिह अघ अवगन निह मिन गहई। हरइ गरल ख दािरद दहई ॥
दो. अविस चिलअ बन राम ु जहँ भरत मं ु भल की।
सोक िसंध ु बूड़त सबिह त
ु अवलं बन ु दी ॥ १८४ ॥
भा सब क मन मो न थोरा। जन ु घन धिनु सिन
ु चातक मोरा ॥

चलत ात लिख िनरनउ नीके । भरत ानिय भे सबही के ॥
मिु निह बंिद भरतिह िस नाई। चले सकल घर िबदा कराई ॥
ध भरत जीवन ु जग माह। सी सने सराहत जाह ॥
कहिह परसपर भा बड़ काजू। सकल चलै कर साजिहं साजू ॥
जेिह राखिहं र घर रखवारी। सो जानइ जन ु गरदिन मारी ॥
कोउ कह रहन किहअ निहं का। को न चहइ जग जीवन ला ॥
ु ु सहद
दो. जरउ सो संपित सदन सख ु मात ु िपत ु भाइ।

सनमख होत जो राम पद करै न सहस सहाइ ॥ १८५ ॥
घर घर साजिहं बाहन नाना। हरष ु दयँ परभात पयाना ॥
भरत जाइ घर की िबचा। नग बािज गज भवन भँडा ॥
ु कै आही। जौ िबन ु जतन चल तिज ताही ॥
संपित सब रघपित
तौ पिरनाम न मोिर भलाई। पाप िसरोमिन साइँ दोहाई ॥
करइ ािम िहत सेवकु सोई। षन कोिट देइ िकन कोई ॥
अस िबचािर सिच ु सेवक बोले। जे सपन ेँ िनज धरम न डोले ॥

किह सब मरम धरम ु भल भाषा। जो जेिह लायक सो तेिहं राखा ॥

किर सब ु जतन ु रािख रखवारे। राम मात ु पिहं भरत ु िसधारे ॥

दो. आरत जननी जािन सब भरत सन ेह सजान।

कहेउ बनावन पालक सजन सखासन जान ॥ १८६ ॥
च चि िजिम परु नर नारी। चहत ात उर आरत भारी ॥
जागत सब िनिस भयउ िबहाना। भरत बोलाए सिचव सजाना ु ॥
कहेउ ले सब ु ितलक समाजू। बनिहं देब मिु न रामिहं राजू ॥
ु सिचव जोहारे। तरु त तरु ग रथ नाग सँवारे ॥
बेिग चल सिन
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 59

अं धती अ अिगिन समाऊ। रथ चिढ़ चले थम मिु नराऊ ॥


िब बृदं चिढ़ बाहन नाना। चले सकल तप तेज िनधाना ॥
नगर लोग सब सिज सिज जाना। िचकू ट कहँ की पयाना ॥
िसिबका सभगु न जािहं बखानी। चिढ़ चिढ़ चलत भई सब रानी ॥
दो. सिप नगर सिचु सेवकिन सादर सकल चलाइ।

सिमिर राम िसय चरन तब चले भरत दोउ भाइ ॥ १८७ ॥
राम दरस बस सब नर नारी। जन ु किर किरिन चले तिक बारी ॥
ु भरत पयादेिहं जाह ॥
बन िसय राम ु समिु झ मन माह। सानज
देिख सने लोग अनरागेु । उतिर चले हय गय रथ ागे ॥
जाइ समीप रािख िनज डोली। राम मात ु मृ बानी बोली ॥
तात चढ़ रथ बिल महतारी। होइिह िय पिरवा खारी ॥
त ु र चलत चिलिह सब ु लोगू। सकल सोक कृ स निहं मग जोगू ॥
िसर धिर बचन चरन िस नाई। रथ चिढ़ चलत भए दोउ भाई ॥
तमसा थम िदवस किर बासू। सर गोमित तीर िनवासू ॥
दो. पय अहार फल असन एक िनिस भोजन एक लोग।
करत राम िहत नमे त पिरहिर भूषन भोग ॥ १८८ ॥
सई तीर बिस चले िबहान े। सृगं बेरपरु सब िनअरान े ॥
समाचार सब सनु े िनषादा। दयँ िबचार करइ सिबषादा ॥
कारन कवन भरत ु बन जाह। है क कपट भाउ मन माह ॥
ज प ै िजयँ न होित कुिटलाई। तौ कत ली संग कटकाई ॥
जानिहं सानज ु रामिह मारी। करउँ अकं टक राज ु सखारी
ु ॥
भरत न राजनीित उर आनी। तब कलं कु अब जीवन हानी ॥
सकल सरास ु रु जरिहं
ु जझारा।
ु रामिह समर न जीतिनहारा ॥
का आचरज ु भरत ु अस करह। निहं िबष बेिल अिमअ फल फरह ॥
दो. अस िबचािर गहँु याित सन कहेउ सजग सब हो।
हथवाँस बोर तरिन कीिजअ घाटारो ॥ १८९ ॥
हो सँजोइल रोक घाटा। ठाट सकल मरै के ठाटा ॥
सनमख ु लोह भरत सन लेऊँ। िजअत न सरसिर ु उतरन देऊँ ॥
समर मरन ु पिन
ु सरसिरु तीरा। राम काज ु छनभंग ु सरीरा ॥
भरत भाइ नृप ु मै जन नीचू। बड़ भाग अिस पाइअ मीचू ॥
ािम काज किरहउँ रन रारी। जस धविलहउँ भवन ु दस चारी ॥
ु ु
तजउँ ान रघनाथ िनहोर । ँ हाथ मद मोदक मोर ॥
साध ु समाज न जाकर लेखा। राम भगत मँ जास ु न रेखा ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

जायँ िजअत जग सो मिह भा। जननी जौबन िबटप कुठा ॥


दो. िबगत िबषाद िनषादपित सबिह बढ़ाइ उछा।

सिमिर राम मागेउ तरु त तरकस धनषु सना ॥ १९० ॥
बेग भाइ सज सँजोऊ। सिन ु रजाइ कदराइ न कोऊ ॥
भलेिहं नाथ सब कहिहं सहरषा। एकिहं एक बढ़ावइ करषा ॥
चले िनषाद जोहािर जोहारी। सूर सकल रन चइ रारी ॥

सिमिर राम पद पंकज पनह। भाथ बाँिध चढ़ाइि धनह ॥
अँगरी पिहिर कूँ िड़ िसर धरह। फरसा बाँस सेल सम करह ॥
एक कुसल अित ओड़न खाँड़।े कू दिह गगन मनँ िछित छाँड़ े ॥
िनज िनज साज ु समाज ु बनाई। गहु राउतिह जोहारे जाई ॥
ु सब लायक जान े। लै लै नाम सकल सनमान े ॥
देिख सभट
दो. भाइ लाव धोख जिन आज ु काज बड़ मोिह।
ु सरोष बोले सभट
सिन ु बीर अधीर न होिह ॥ १९१ ॥
राम ताप नाथ बल तोरे। करिहं कटकु िबन ु भट िबन ु घोरे ॥
जीवत पाउ न पाछ धरह। ं ड मड ं ु मय मेिदिन करह ॥
दीख िनषादनाथ भल टो। कहेउ बजाउ जझाऊ ु ढो ॥
एतना कहत छक भइ बाँए। कहेउ सगिनअ ु ु ॥
खेत सहाए
बूढ़ु एकु कह सगनु िबचारी। भरतिह िमिलअ न होइिह रारी ॥
रामिह भरत ु मनावन जाह। सगनु कहइ अस िब नाह ॥
ु गहु कहइ नीक कह बूढ़ा। सहसा किर पिछतािहं िबमूढ़ा ॥
सिन
भरत सभाउ ु सी िबन ु बूझ। बिड़ िहत हािन जािन िबन ु जूझ ॥
दो. गह घाट भट सिमिट सब लेउँ मरम िमिल जाइ।
बूिझ िम अिर म गित तस तब किरहउँ आइ ॥ १९२ ॥
लखन सन े सभायँ ु ु । ब ै ीित निहं रइँ राएँ ॥
सहाएँ
अस किह भट सँजोवन लागे। कं द मूल फल खग मृग मागे ॥
मीन पीन पाठीन परान ु ।े भिर भिर भार कहार आने ॥
िमलन साज सिज िमलन िसधाए। मंगल मूल सगनु सभु पाए ॥

देिख िर त किह िनज नामू। की मनु ीसिह दंड नामू ॥
जािन रामिय दीि असीसा। भरतिह कहेउ बझाइ ु मनु ीसा ॥
राम सखा सिन ु संदन ु ागा। चले उतिर उमगत अनरागा ु ॥
गाउँ जाित गहँु नाउँ सनाई।
ु की जोहा माथ मिह लाई ॥
दो. करत दंडवत देिख तेिह भरत ली उर लाइ।
मनँ लखन सन भट भइ ेम न दयँ समाइ ॥ १९३ ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 61

भटत भरत ु तािह अित ीती। लोग िसहािहं ेम कै रीती ॥


ध ध धिन ु मंगल मूला। सरु सरािह तेिह बिरसिहं फू ला ॥
लोक बेद सब भाँितिहं नीचा। जास ु छाँह इ लेइअ सचा ॥
तेिह भिर अंक राम लघ ु ाता। िमलत पलक ु पिरपूिरत गाता ॥
राम राम किह जे जमहु ाह। ितिह न पाप पज ं ु समहु ाह ॥
यह तौ राम लाइ उर लीा। कुल समेत जग ु पावन कीा ॥
करमनास ज सरसिर ु परई। तेिह को कह सीस निहं धरई ॥
उलटा नाम ु जपत जग ु जाना। बालमीिक भए  समाना ॥
दो. पच सबर खस जमन जड़ पावँर कोल िकरात।
ु िबात ॥ १९४ ॥
राम ु कहत पावन परम होत भवन
निहं अिचरज ु जगु जगु चिल आई। के िह न दीि रघबीर
ु बड़ाई ॥
राम नाम मिहमा सरु कहह। सिन ु सिनु अवधलोग सख ु ु लहह ॥
रामसखिह िमिल भरत सेमा। पूछ ँ ी कुसल समं
ु गल खेमा ॥
देिख भरत कर सील सने। भा िनषाद तेिह समय िबदे ॥
सकुच सन े मो मन बाढ़ा। भरतिह िचतवत एकटक ठाढ़ा ॥
धिर धीरज ु पद बंिद बहोरी। िबनय सेम करत कर जोरी ॥
कुसल मूल पद पंकज पेखी। म ितँ काल कुसल िनज लेखी ॥
अब भ ु परम अनह ु तोर । सिहत कोिट कुल मंगल मोर ॥
दो. समिु झ मोिर करतूित कु भ ु मिहमा िजयँ जोइ।
ु पद जग िबिध बंिचत सोइ ॥ १९५ ॥
जो न भजइ रघबीर
कपटी कायर कुमित कुजाती। लोक बेद बाहेर सब भाँती ॥
राम की आपन जबही त। भयउँ भवन ु भूषन तबही त ॥
ु िबनय सहाई।
देिख ीित सिन ु िमलेउ बहोिर भरत लघ ु भाई ॥

किह िनषाद िनज नाम सबान। सादर सकल जोहार रान ॥
जािन लखन सम देिहं असीसा। िजअ सखी ु सय लाख बरीसा ॥
िनरिख िनषा नगर नर नारी। भए सखी ु जन ु लखन ु िनहारी ॥
कहिहं लहेउ एिहं जीवन ला। भटेउ रामभ भिर बा ॥
सिनु िनषा िनज भाग बड़ाई। मिु दत मन लइ चलेउ लेवाई ॥
दो. सनकारे सेवक सकल चले ािम ख पाइ।
घर त तर सर बाग बन बास बनाएि जाइ ॥ १९६ ॥
ं बेरपरु भरत दीख जब। भे सन ेहँ सब अंग िसिथल तब ॥
सृग
सोहत िदएँ िनषादिह लागू। जन ु तन ु धर िबनय अनरागू
ु ॥
एिह िबिध भरत सेन ु सब ु संगा। दीिख जाइ जग पाविन गंगा ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

रामघाट कहँ की नामू। भा मन ु मगन ु िमले जन ु रामू ॥


करिहं नाम नगर नर नारी। मिु दत मय बािर िनहारी ॥
किर मन ु मागिहं कर जोरी। रामचं पद ीित न थोरी ॥

भरत कहेउ सरसिर तव रेन।ू सकल सखदु सेवक सरधे ु नू ॥
जोिर पािन बर मागउँ ए। सीय राम पद सहज सने ॥
दो. एिह िबिध मन ु भरत ु किर गरु अनसासन
ु पाइ।
मात ु नहान जािन सब डेरा चले लवाइ ॥ १९७ ॥
जहँ तहँ लोग डेरा कीा। भरत सोध ु सबही कर लीा ॥
सरु सेवा किर आयस ु पाई। राम मात ु पिहं गे दोउ भाई ॥
चरन चाँिप किह किह मृ बानी। जनन सकल भरत सनमानी ॥
भाइिह सिप मात ु सेवकाई। आप ु िनषादिह ली बोलाई ॥
चले सखा कर स कर जोर । िसिथल सरीर सनेह न थोर ॥
ँ त सखिह सो ठाउँ देखाऊ। न ेकु नयन मन जरिन जड़ाऊ
पूछ ु ॥
जहँ िसय राम ु लखन ु िनिस सोए। कहत भरे जल लोचन कोए ॥
भरत बचन सिन ु भयउ िबषा। तरु त तहाँ लइ गयउ िनषा ॥
ु पनीत
दो. जहँ िसंसपा ु तर रघबरु िकय िबाम।ु
अित सनहे ँ सादर भरत कीेउ दंड नाम ु ॥ १९८ ॥
कुस साँथरीíिनहािर सहाई।ु की नाम ु दिन जाई ॥
चरन रेख रज आँिख लाई। बनइ न कहत ीित अिधकाई ॥
कनक िबं इ चािरक देख।े राखे सीस सीय सम लेख े ॥
सजल िबलोचन दयँ गलानी। कहत सखा सन बचन सबानी ु ॥
ीहत सीय िबरहँ ितहीना। जथा अवध नर नािर िबलीना ॥
िपता जनक देउँ पटतर के ही। करतल भोग ु जोग ु जग जेही ॥
ससरु भानक ु ु ल भान ु भआ।
ु जेिह िसहात अमरावितपा ॥
ाननाथ ु रघनाथु गोसाई। जो बड़ होत सो राम बड़ाई ॥
ु मिन सीय साँथरी देिख।
दो. पित देवता सतीय
िबहरत दउ न हहिर हर पिब त किठन िबसेिष ॥ १९९ ॥
लालन जोग ु लखन लघ ु लोन े। भे न भाइ अस अहिहं न होन े ॥

परजन िय िपत ु मात ु लारे। िसय रघबरिह
ु ानिपआरे ॥
मृ मूरित सकु ु मार सभाऊ।
ु तात बाउ तन लाग न काऊ ॥
ते बन सहिहं िबपित सब भाँती। िनदरे कोिट कुिलस एिहं छाती ॥
राम जनिम जग ु की उजागर। प सील सख ु सब गनु सागर ॥
परजनु पिरजन गरु िपत ु माता। राम सभाउ
ु ु
सबिह सखदाता ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 63

ब ैिरउ राम बड़ाई करह। बोलिन िमलिन िबनय मन हरह ॥


सारद कोिट कोिट सत सेषा। किर न सकिहं भ ु गनु गन लेखा ॥

दो. सखप रघबंु समिन मंगल मोद िनधान।
ते सोवत कुस डािस मिह िबिध गित अित बलवान ॥ २०० ॥
राम सनाु ख ु कान न काऊ। जीवनत िजिम जोगवइ राऊ ॥
पलक नयन फिन मिन जेिह भाँती। जोगविहं जनिन सकल िदन राती ॥
ते अब िफरत िबिपन पदचारी। कं द मूल फल फू ल अहारी ॥
िधग कै केई अमंगल मूला। भइिस ान ियतम ितकू ला ॥
म िधग िधग अघ उदिध अभागी। सब ु उतपात ु भयउ जेिह लागी ॥
कुल कलं कु किर सृजउे िबधाताँ। साइँदोह मोिह की कुमाताँ ॥
सिनु सेम समझ ु ाव िनषा। नाथ किरअ कत बािद िबषा ॥
राम तु िह िय त ु िय रामिह। यह िनरजोस ु दोस ु िबिध बामिह ॥
छं. िबिध बाम की करनी किठन जिहं मात ु कीी बावरी।
ु पिन
तेिह राित पिन ु करिहं भ ु सादर सरहना रावरी ॥
तलु सी न तु सो राम ीतम ु कहत ु ह सौह िकएँ।
पिरनाम मंगल जािन अपन े आिनए धीरज ु िहएँ ॥
सो. अंतरजामी राम ु सकुच सेम कृ पायतन।
चिलअ किरअ िबाम ु यह िबचािर ढ़ आिन मन ॥ २०१ ॥
सखा बचन सिन ु उर धिर धीरा। बास चले सिमरत
ु ु
रघबीरा ॥
यह सिध ु पाइ नगर नर नारी। चले िबलोकन आरत भारी ॥
परदिखना किर करिहं नामा। देिहं कै कइिह खोिर िनकामा ॥
भरी भिर बािर िबलोचन ल ह। बाम िबधातािह षन देह ॥
एक सराहिहं भरत सन े। कोउ कह नृपित िनबाहेउ न े ॥
िनंदिहं आप ु सरािह िनषादिह। को किह सकइ िबमोह िबषादिह ॥
एिह िबिध राित लोग ु सब ु जागा। भा िभनसार
ु गदाराु लागा ॥
ु ु ु
गरिह सनावँ चढ़ाइ सहा। न नाव सब मात चढ़ा ॥ु
दंड चािर महँ भा सब ु पारा। उतिर भरत तब सबिह सँभारा ॥
ु िस नाइ।
दो. ातिया किर मात ु पद बंिद गरिह
आग िकए िनषाद गन दीेउ कटकु चलाइ ॥ २०२ ॥
िकयउ िनषादनाथ ु अगआ।ु मात ु पालक सकल चला ॥
साथ बोलाइ भाइ लघ ु दीा। िब सिहत गवन ु गरु कीा ॥

आप ु सरसिरिह ु लखन सिहत िसय रामू ॥
की नामू। सिमरे
गवन े भरत पयोदेिहं पाए। कोतल संग जािहं डोिरआए ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

कहिहं ससेु वक बारिहं बारा। होइअ नाथ अ असवारा ॥


राम ु पयोदेिह पायँ िसधाए। हम कहँ रथ गज बािज बनाए ॥
िसर भर जाउँ उिचत अस मोरा। सब त सेवक धरम ु कठोरा ॥
देिख भरत गित सिन ु मृ बानी। सब सेवक गन गरिहं गलानी ॥
दो. भरत तीसरे पहर कहँ की बेस ु याग।
कहत राम िसय राम िसय उमिग उमिग अनरागु ॥ २०३ ॥
झलका झलकत पाय क स। पंकज कोस ओस कन ज ैस ॥
भरत पयादेिहं आए आजू। भयउ िखत सिन ु सकल समाजू ॥
खबिर ली सब लोग नहाए। की नाम ु िबेिनिहं आए ॥
सिबिध िसतािसत नीर नहान े। िदए दान मिहसरु सनमान े ॥
देखत ामल धवल हलोरे। पलिक ु सरीर भरत कर जोरे ॥
सकल काम द तीरथराऊ। बेद िबिदत जग गट भाऊ ॥
मागउँ भीख ािग िनज धरमू। आरत काह न करइ कुकरमू ॥

अस िजयँ जािन सजान ु
सदानी। सफल करिहं जग जाचक बानी ॥
दो. अरथ न धरम न काम िच गित न चहउँ िनरबान।
जनम जनम रित राम पद यह बरदान ु न आन ॥ २०४ ॥
जानँ राम ु कुिटल किर मोही। लोग कहउ गरु सािहब ोही ॥
सीता राम चरन रित मोर । अनिदनु बढ़उ अनह ु तोर ॥
जल जनम भिर सरित ु िबसारउ। जाचत ज पिब पाहन डारउ ॥
चातकु रटिन घट घिट जाई। बढ़े ेम ु सब भाँित भलाई ॥
कनकिहं बान चढ़इ िजिम दाह । ितिम ियतम पद नमे िनबाह ॥
भरत बचन सिन ु माझ िबेनी। भइ मृ बािन समं
ु गल देनी ॥
तात भरत त ु सब िबिध साधू। राम चरन अनराग ु अगाधू ॥
बाद गलािन कर मन माह। त ु सम रामिह कोउ िय नाह ॥
दो. तन ु पलके ु बेिन बचन अनकूु ल।
ु उ िहयँ हरष ु सिन
भरत ध किह ध सरु हरिषत बरषिहं फू ल ॥ २०५ ॥
मिु दत तीरथराज िनवासी। ब ैखानस बटु गृही उदासी ॥
कहिहं परसपर िमिल दस पाँचा। भरत सनेह सी सिच ु साँचा ॥
सनतु राम गनु ाम सहाए।ु भराज मिु नबर पिहं आए ॥
दंड नाम ु करत मिु न देख।े मूरितमंत भाय िनज लेख े ॥
धाइ उठाइ लाइ उर लीे। दीि असीस कृ तारथ कीे ॥
आसन ु दी नाइ िस ब ैठे । चहत सकुच गृहँ जन ु भिज प ैठे ॥
मिु न पूछ
ँ ब क यह बड़ सोचू। बोले िरिष लिख सी सँकोचू ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 65

ु भरत हम सब सिध
सन ु पाई। िबिध करतब पर िक न बसाई ॥
दो. तु गलािन िजयँ जिन कर समझ ु ी मात ु करतूित।

तात कै कइिह दोस निहं गई िगरा मित धूित ॥ २०६ ॥
यहउ कहत भल किहिह न कोऊ। लोकु बेद बधु संमत दोऊ ॥
तात त ु ार िबमल जस ु गाई। पाइिह लोकउ बे बड़ाई ॥
लोक बेद संमत सब ु कहई। जेिह िपत ु देइ राज ु सो लहई ॥
राउ सत त ु ु धरम ु बड़ाई ॥
ु िह बोलाई। देत राज ु सख
राम गवन ु बन अनरथ मूला। जो सिन ु सकल िब भइ सूला ॥
सो भावी बस रािन अयानी। किर कुचािल अंतँ पिछतानी ॥
तहँउँ तु ार अलप अपराधू। कहै सो अधम अयान असाधू ॥
करते राज ु त तु िह न दोषू। रामिह होत सनतु संतोषू ॥
दो. अब अित कीे भरत भल तु िह उिचत मत ए।
ु गल मूल जग रघबर
सकल समं ु चरन सन े ॥ २०७ ॥
सो त ु ार धन ु जीवन ु ाना। भूिरभाग को तु िह समाना ॥
यह तार आचरज ु न ताता। दसरथ सअन ु राम िय ाता ॥
सन ु भरत रघबर ु मन माह। पेम पा ु तु सम कोउ नाह ॥
लखन राम सीतिह अित ीती। िनिस सब त ु िह सराहत बीती ॥
जाना मरम ु नहात यागा। मगन होिहं त ु
ु र अनरागा ॥
ु ु ु
त पर अस सने रघबर क । सख जीवन जग जस जड़ नर क ॥
यह न अिधक रघबीर ु बड़ाई। नत कुटं ुब पाल रघराई ु ॥
त ु तौ भरत मोर मत ए। धर देह जन ु राम सन े ॥
दो. तु कहँ भरत कलं क यह हम सब कहँ उपदेस।ु
राम भगित रस िसि िहत भा यह समउ गन ेस ु ॥ २०८ ॥
नव िबध ु िबमल तात जस ु तोरा। रघबरु िकं कर कुमदु चकोरा ॥
उिदत सदा अँथइिह कबँ ना। घिटिह न जग नभ िदन िदन ना ॥
कोक ितलोक ीित अित किरही। भ ु ताप रिब छिबिह न हिरही ॥
िनिस िदन सखदु सदा सब का। िसिह न कै कइ करतब ु रा ॥
पूरन राम सपेु म िपयूषा। गरु अवमान दोष निहं षा ॥
राम भगत अब अिमअँ अघाँ। कीे सलभ ु सधा ु बसधाँ
ु ॥
भूप भगीरथ सरसिरु ु
आनी। सिमरत सकल सम ं ु गल खानी ॥
दसरथ गनु गन बरिन न जाह। अिधकु कहा जेिह सम जग नाह ॥
दो. जास ु सनेह सकोच बस राम गट भए आइ ॥
जे हर िहय नयनिन कबँ िनरखे नह अघाइ ॥ २०९ ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

कीरित िबध ु त ु की अनूपा। जहँ बस राम पेम मृगपा ॥


तात गलािन कर िजयँ जाएँ। डर दिरिह पारस ु पाएँ ॥ ॥
सनु भरत हम झ ूठ न कहह। उदासीन तापस बन रहह ॥
सब साधन कर सफल ु सहावा।
ु लखन राम िसय दरसन ु पावा ॥
तेिह फल कर फ दरस त ु ारा। सिहत पयाग सभाग
ु हमारा ॥
भरत ध त ु
ु जस ु जग जयऊ। किह अस पेम मगन पिन ु भयऊ ॥
सिन ु मिु न बचन सभासद हरषे। साध ु सरािह समन ु सरु बरषे ॥
ध ध धिन ु गगन पयागा। सिन ु सिन ु
ु भरत ु मगन अनरागा ॥
ु गात िहयँ राम ु िसय सजल सरोह न ैन।
दो. पलक
किर नाम ु मिु न मंडिलिह बोले गदगद ब ैन ॥ २१० ॥
मिु न समाज ु अ तीरथराजू। साँिचँ सपथ अघाइ अकाजू ॥
एिहं थल ज िक किहअ बनाई। एिह सम अिधक न अघ अधमाई ॥
तु सबय कहउँ सितभाऊ। उर अंतरजामी रघराऊ ु ॥
मोिह न मात ु करतब कर सोचू। निहं ख ु िजयँ जग ु जािनिह पोचू ॥
नािहन ड िबगिरिह परलोकू । िपत मरन कर मोिह न सोकू ॥
सकृु त सजस
ु भिर भअन ु सहाए।
ु लिछमन राम सिरस सतु पाए ॥
राम िबरहँ तिज तन ु छनभंग।ू भूप सोच कर कवन संग ू ॥
राम लखन िसय िबन ु पग पनह। किर मिु न बेष िफरिहं बन बनही ॥
दो. अिजन बसन फल असन मिह सयन डािस कुस पात।
बिस त तर िनत सहत िहम आतप बरषा बात ॥ २११ ॥
एिह ख दाहँ दहइ िदन छाती। भूख न बासर नीद न राती ॥
एिह कुरोग कर औषध ु नाह। सोधेउँ सकल िब मन माह ॥
मात ु कुमत बढ़ई अघ मूला। तेिहं हमार िहत की बँसल ू ा॥
किल कुकाठ कर की कुजं।ू गािड़ अविध पिढ़ किठन कुमं ु ॥
मोिह लिग य कुठाटु तेिहं ठाटा। घालेिस सब जग ु बारहबाटा ॥
िमटइ कुजोग ु राम िफिर आएँ। बसइ अवध निहं आन उपाएँ ॥
भरत बचन सिन ु ु पाई। सबिहं की ब भाँित बड़ाई ॥
ु मिु न सख
तात कर जिन सोच ु िबसेषी। सब ख ु िमटिह राम पग देखी ॥
दो. किर बोध मिु नबर कहेउ अितिथ पेमिय हो।
कं द मूल फल फू ल हम देिहं ले किर छो ॥ २१२ ॥
ु मिु न बचन भरत िहँय सोचू। भयउ कुअवसर किठन सँकोचू ॥
सिन
जािन गइ गरु िगरा बहोरी। चरन बंिद बोले कर जोरी ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 67

िसर धिर आयस ु किरअ त ु ारा। परम धरम य नाथ हमारा ॥


भरत बचन मिु नबर मन भाए। सिच ु सेवक िसष िनकट बोलाए ॥
चािहए की भरत पनाई। कं द मूल फल आन जाई ॥
भलेह नाथ किह ित िसर नाए। मिु दत िनज िनज काज िसधाए ॥
मिु निह सोच पान बड़ नेवता। तिस पूजा चािहअ जस देवता ॥
सिनु िरिध िसिध अिनमािदक आई। आयस ु होइ सो करिहं गोसाई ॥
दो. राम िबरह ाकुल भरत ु सानज ु सिहत समाज।
पनाई किर हर म कहा मिदत मिु नराज ॥ २१३ ॥

िरिध िसिध िसर धिर मिु नबर बानी। बड़भािगिन आपिह ु अनमानी ु ॥
ु ु
कहिहं परसपर िसिध समदाई। अतिलत अितिथ राम लघ भाई ॥ ु
मिु न पद बंिद किरअ सोइ आजू। होइ सखी ु सब राज समाजू ॥
अस किह रचेउ िचर गृह नाना। जेिह िबलोिक िबलखािहं िबमाना ॥
भोग िबभूित भूिर भिर राखे। देखत िजिह अमर अिभलाषे ॥
दास दास साज ु सब ली । जोगवत रहिहं मनिह मन ु दी ॥
सब समाज ु सिज िसिध पल माह। जे सख ु सरप
ु रु सपन ेँ नाह ॥
थमिहं बास िदए सब के ही। सदं ु र सखद
ु जथा िच जेही ॥
दो. बिर सपिरजन भरत कँ िरिष अस आयस ु दी।
िबिध िबसमय दायकु िबभव मिु नबर तपबल की ॥ २१४ ॥
मिु न भाउ जब भरत िबलोका। सब लघ ु लगे लोकपित लोका ॥
सख ु समाज ु निहं जाइ बखानी। देखत िबरित िबसारह यानी ॥
आसन सयन सबसन ु िबताना। बन बािटका िबहग मृग नाना ॥
सरिभु फू ल फल अिमअ समाना। िबमल जलासय िबिबध िबधाना।
असन पान सच ु अिमअ अमी से। देिख लोग सकुचात जमी से ॥
सर सरभी सरत सबही क । लिख अिभलाष ु सरेु स सची क ॥
ु ु ु
िरत ु बसंत बह ििबध बयारी। सब कहँ सलभ
ु पदारथ चारी ॥
क चंदन बिनतािदक भोगा। देिख हरष िबसमय बस लोगा ॥
दो. संपत चकई भरत ु चक मिु न आयस खेलवार ॥
ु ॥ २१५ ॥
तेिह िनिस आम िपंजराँ राखे भा िभनसार
मासपारायण, उीसवाँ िवाम
की िनमन ु तीरथराजा। नाइ मिु निह िस सिहत समाजा ॥
िरिष आयस ु असीस िसर राखी। किर दंडवत िबनय ब भाषी ॥
पथ गित कुसल साथ सब लीे। चले िचकू टिहं िचत ु दी ॥
रामसखा कर दी लागू। चलत देह धिर जन ु अनरागू
ु ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

निहं पद ान सीस निहं छाया। पेम ु न ेम ु त ु धरम ु अमाया ॥


लखन राम िसय पंथ कहानी। पूछ ँ त सखिह कहत मृ बानी ॥
राम बास थल िबटप िबलोक । उर अनराग ु रहत निहं रोक ॥
दैिख दसा सरु बिरसिहं फू ला। भइ मृ मिह मग ु मंगल मूला ॥
ु बहइ बर बात।
दो. िकएँ जािहं छाया जलद सखद
तस मग ु भयउ न राम कहँ जस भा भरतिह जात ॥ २१६ ॥
जड़ चेतन मग जीव घन ेरे। जे िचतए भ ु िज भ ु हेरे ॥
ते सब भए परम पद जोगू। भरत दरस मेटा भव रोगू ॥
यह बिड़ बात भरत कइ नाह। सिमरत ु िजनिह राम ु मन माह ॥
बारक राम कहत जग जेऊ। होत तरन तारन नर तेऊ ॥
ु लघ ु ाता। कस न होइ मग ु मंगलदाता ॥
भरत ु राम िय पिन
िस साध ु मिु नबर अस कहह। भरतिह िनरिख हरष ु िहयँ लहह ॥
देिख भाउ सरेु सिह सोचू। जग ु भल भलेिह पोच कँ पोचू ॥
गरु सन कहेउ किरअ भ ु सोई। रामिह भरतिह भट न होई ॥
दो. राम ु सँकोची ेम बस भरत सपेम पयोिध।
बनी बात बेगरन चहित किरअ जतन ु छ सोिध ॥ २१७ ॥
बचन सनत ु सरग ु ु मस ु कान े। सहसनयन िबन ु लोचन जान े ॥
मायापित सेवक सन माया। करइ त उलिट परइ सरराया ु ॥
तब िक की राम ख जानी। अब कुचािल किर होइिह हानी ॥
सनु ु सरेु स रघनाथ
ु सभाऊ।ु िनज अपराध िरसािहं न काऊ ॥

जो अपराध भगत कर करई। राम रोष पावक सो जरई ॥
लोकँ बेद िबिदत इितहासा। यह मिहमा जानिहं रबासा ॥
भरत सिरस को राम सनहे ी। जग ु जप राम राम ु जप जेही ॥
दो. मनँ न आिनअ अमरपित रघबर ु भगत अकाज।ु
अजस ु लोक परलोक ख िदन िदन सोक समाज ु ॥ २१८ ॥
सनु ु सरेु स उपदेस ु हमारा। रामिह सेवकु परम िपआरा ॥
मानत सख ु ु सेवक सेवकाई। सेवक ब ैर ब ै अिधकाई ॥
जिप सम निहं राग न रोषू। गहिहं न पाप पून ु गनु दोषू ॥
करम धान िब किर राखा। जो जस करइ सो तस फ चाखा ॥
तदिप करिहं सम िबषम िबहारा। भगत अभगत दय अनसारा ु ॥
अगनु अलेप अमान एकरस। राम ु सगनु भए भगत पेम बस ॥
राम सदा सेवक िच राखी। बेद परान ु साध ु सरु साखी ॥
अस िजयँ जािन तज कुिटलाई। कर भरत पद ीित सहाई ु ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 69

दो. राम भगत परिहत िनरत पर ख खी दयाल।



भगत िसरोमिन भरत त जिन डरप सरपाल ॥ २१९ ॥
ससंध भ ु सरु िहतकारी। भरत राम आयस अनसारी ु ॥
ारथ िबबस िबकल त ु हो। भरत दोस ु निहं राउर मो ॥
ु सरबर
सिन ु सरग ु रु बर बानी। भा मो मन िमटी गलानी ॥

बरिष सून हरिष सरराऊ। लगे सराहन भरत सभाऊ ु ॥
एिह िबिध भरत चले मग जाह। दसा देिख मिु न िस िसहाह ॥
जबिहं राम ु किह लेिहं उसासा। उमगत पेम ु मनहँ च पासा ॥
विहं बचन सिन ु कुिलस पषाना। परजन
ु पेम ु न जाइ बखाना ॥
बीच बास किर जमनु िहं आए। िनरिख नी लोचन जल छाए ॥
ु बरन िबलोिक बर बािर समेत समाज।
दो. रघबर
होत मगन बािरिध िबरह चढ़े िबबेक जहाज ॥ २२० ॥
जमनु तीर तेिह िदन किर बासू। भयउ समय सम सबिह सपासू ु ॥
रातिहं घाट घाट की तरनी। आ अगिनत जािहं न बरनी ॥
ात पार भए एकिह खवाँ। तोषे रामसखा की सेवाँ ॥
चले नहाइ निदिह िसर नाई। साथ िनषादनाथ दोउ भाई ॥
आग मिु नबर बाहन आछ । राजसमाज जाइ सब ु पाछ ॥
तेिहं पाछ दोउ बंध ु पयाद। भूषन बसन बेष सिठ
ु साद ॥
सेवक सद ु सिचवसतु साथा। सिमरत ु लखन ु सीय रघनाथा
ु ॥
जहँ जहँ राम बास िबामा। तहँ तहँ करिहं सेम नामा ॥
ु धाम काम तिज धाइ।
दो. मगबासी नर नािर सिन
देिख सप सनेह सब मिु दत जनम फ पाइ ॥ २२१ ॥
कहिहं सपेम एक एक पाह। राम ु लखन ु सिख होिहं िक नाह ॥
बय बप ु बरन प सोइ आली। सी सन े सिरस सम चाली ॥
बेष ु न सो सिख सीय न संगा। आग अनी चली चतरु ंगा ॥
निहं स मख ु मानस खेदा। सिख संदे होइ एिहं भेदा ॥
तास ु तरक ितयगन मन मानी। कहिहं सकल तेिह सम न सयानी ॥
तेिह सरािह बानी फुिर पूजी। बोली मधरु बचन ितय जी ॥
किह सपेम सब कथासंग।ू जेिह िबिध राम राज रस भंग ू ॥
भरतिह बिर सराहन लागी। सील सन ेह सभाय ु ु
सभागी ॥
दो. चलत पयाद खात फल िपता दी तिज राज।ु

जात मनावन रघबरिह भरत सिरस को आज ु ॥ २२२ ॥
ु ख षन हरनू ॥
भायप भगित भरत आचरनू। कहत सनत
॥ ी राम चिरत मानस ॥

जो क कहब थोर सिख सोई। राम बंध ु अस काहे न होई ॥


हम सब सानज ु भरतिह देख। भइ ध जबती ु जन लेख ॥
ु गनु देिख दसा पिछताह। कै कइ जनिन जोग ु सतु ु नाह ॥
सिन
कोउ कह षन ु रािनिह नािहन। िबिध सब ु की हमिह जो दािहन ॥
कहँ हम लोक बेद िबिध हीनी। लघ ु ितय कुल करतूित मलीनी ॥
बसिहं कुदेस कुगाँव कुबामा। कहँ यह दरस ु पु पिरनामा ॥
अस अनं अिचिरज ु ित ामा। जन ु मभूिम कलपत जामा ॥
दो. भरत दरस ु देखत खलु ेउ मग लोग कर भाग।ु
ु याग ु ॥ २२३ ॥
जन ु िसंघलबािस भयउ िबिध बस सलभ
िनज गनु सिहत राम गनु गाथा। सनत ु जािहं सिमरत
ु ु
रघनाथा ॥
तीरथ मिु न आम सरधामा।ु िनरिख िनमिहं करिहं नामा ॥
मनह मन मागिहं ब ए। सीय राम पद पम सन े ॥
िमलिहं िकरात कोल बनबासी। ब ैखानस बटु जती उदासी ॥
ँ िहं जेिहं तेही। के िह बन लखन ु राम ु ब ैदेही ॥
किर नाम ु पूछ
ते भ ु समाचार सब कहह। भरतिह देिख जनम फ लहह ॥
जे जन कहिहं कुसल हम देख।े ते िय राम लखन सम लेख े ॥
एिह िबिध बूझत सबिह सबानी। ु ु राम बनबास कहानी ॥
सनत

दो. तेिह बासर बिस ातह चले सिमिर ु
रघनाथ।
राम दरस की लालसा भरत सिरस सब साथ ॥ २२४ ॥
मंगल सगनु होिहं सब का। फरकिहं सखदु िबलोचन बा ॥
भरतिह सिहत समाज उछा। िमिलहिहं राम ु िमटिह ख दा ॥
ु सब छाके ॥
करत मनोरथ जस िजयँ जाके । जािहं सनेह सराँ
िसिथल अंग पग मग डिग डोलिहं। िबहबल बचन पेम बस बोलिहं ॥

रामसखाँ तेिह समय देखावा। स ैल िसरोमिन सहज सहावा ॥
जास ु समीप सिरत पय तीरा। सीय समेत बसिहं दोउ बीरा ॥
देिख करिहं सब दंड नामा। किह जय जानिक जीवन रामा ॥
ेम मगन अस राज समाजू। जन ु िफिर अवध चले रघराजूु ॥
दो. भरत ेम ु तेिह समय जस तस किह सकइ न सेष।ु
किबिहं अगम िजिम सख ु ु अह मम मिलन जनषे ु ॥ २२५।
सकल सन ेह िसिथल रघबरु क । गए कोस इ िदनकर ढरक ॥
ज थ देिख बसे िनिस बीत। की गवन रघनाथु िपरीत ॥

उहाँ राम रजनी अवसेषा। जागे सीयँ सपन अस देखा ॥
सिहत समाज भरत जन ु आए। नाथ िबयोग ताप तन ताए ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 71

सकल मिलन मन दीन खारी। देख सास ु आन अनहारीु ॥


ु िसय सपन भरे जल लोचन। भए सोचबस सोच िबमोचन ॥
सिन
लखन सपन यह नीक न होई। किठन कुचाह सनाइिह ु कोई ॥
अस किह बंध ु समेत नहान।े पूिज परािर
ु साध ु सनमान े ॥
छं. सनमािन सरु मिु न बंिद ब ैठे उर िदिस देखत भए।
नभ धूिर खग मृग भूिर भागे िबकल भ ु आम गए ॥
ु सी उठे अवलोिक कारन ु काह िचत सचिकत रहे।
तल
सब समाचार िकरात कोलि आइ तेिह अवसर कहे ॥
ु समं
दो. सनत ु गल ब ैन मन मोद तन पलक ु भर।
ु सी भरे सनेह जल ॥ २२६ ॥
सरद सरोह न ैन तल
बिर सोचबस भे िसयरवनू। कारन कवन भरत आगवनू ॥
एक आइ अस कहा बहोरी। सेन संग चतरु ंग न थोरी ॥
सो सिन ु रामिह भा अित सोचू। इत िपत ु बच इत बंध ु सकोचू ॥
भरत सभाउ ु समिु झ मन माह। भ ु िचत िहत िथित पावत नाही ॥
समाधान तब भा यह जान े। भरत ु कहे मँ साध ु सयान े ॥
लखन लखेउ भ ु दयँ खभा। कहत समय सम नीित िबचा ॥
िबन ु पूछ
ँ क कहउँ गोसा। सेवकु समयँ न ढीठ िढठाई ॥
तु सबय िसरोमिन ामी। आपिन समिु झ कहउँ अनगामी ु ॥
ु सिठ
दो. नाथ सद ु सरल िचत सील सनहे िनधान ॥
सब पर ीित तीित िजयँ जािनअ आप ु समान ॥ २२७ ॥

िबषई जीव पाइ भताई। मूढ़ मोह बस होिहं जनाई ॥
भरत ु नीित रत साध ु सजाना।
ु भ ु पद ेम सकल जग ु जाना ॥

तेऊ आज राम प पाई। चले धरम मरजाद मेटाई ॥
कुिटल कुबंध कुअवस ताकी। जािन राम बनवास एकाकी ॥
किर कुमं ु मन सािज समाजू। आए करै अकं टक राजू ॥
कोिट कार कलिप कुटलाई। आए दल बटोिर दोउ भाई ॥
ज िजयँ होित न कपट कुचाली। के िह सोहाित रथ बािज गजाली ॥
भरतिह दोस ु देइ को जाएँ। जग बौराइ राज प पाएँ ॥
दो. सिस गरु ितय गामी नघषु ु चढ़ेउ भूिमसरु जान।
ु भा अधम न बेन समान ॥ २२८ ॥
लोक बेद त िबमख

सहसबा सरनाथ ु िसंकू। के िह न राजमद दी कलं कू ॥
भरत की यह उिचत उपाऊ। िरप ु िरन रंच न राखब काऊ ॥
एक कीि निहं भरत भलाई। िनदरे राम ु जािन असहाई ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

समिु झ पिरिह सोउ आज ु िबसेषी। समर सरोष राम मख ु ु पेखी ॥


एतना कहत नीित रस भूला। रन रस िबटप ु पलक
ु िमस फू ला ॥
भ ु पद बंिद सीस रज राखी। बोले स सहज ब भाषी ॥
अनिचतु नाथ न मानब मोरा। भरत हमिह उपचार न थोरा ॥
कहँ लिग सिहअ रिहअ मन ु मार । नाथ साथ धन ु हाथ हमार ॥
दो. छि जाित रघक ु ु ल जनम ु राम अनगु जग ु जान।
लातँ मार चढ़ित िसर नीच को धूिर समान ॥ २२९ ॥
उिठ कर जोिर रजायस ु मागा। मनँ बीर रस सोवत जागा ॥
बाँिध जटा िसर किस किट भाथा। सािज सरासन ु सायकु हाथा ॥
आज ु राम सेवक जस ु लेऊँ। भरतिह समर िसखावन देऊँ ॥
राम िनरादर कर फ पाई। सोवँ समर सेज दोउ भाई ॥
आइ बना भल सकल समाजू। गट करउँ िरस पािछल आजू ॥
िजिम किर िनकर दलइ मृगराजू। लेइ लपेिट लवा िजिम बाजू ॥
ु िनदिर िनपातउँ खेता ॥
त ैसेिहं भरतिह सेन समेता। सानज
ज सहाय कर संक आई। तौ मारउँ रन राम दोहाई ॥
दो. अित सरोष माखे लखन ु लिख सिन
ु सपथ वान।
सभय लोक सब लोकपित चाहत भभिर भगान ॥ २३० ॥
जग ु भय मगन गगन भइ बानी। लखन बाब िबपल ु बखानी ॥
तात ताप भाउ तु ारा। को किह सकइ को जानिनहारा ॥
अनिचतु उिचत काज ु िक होऊ। समिु झ किरअ भल कह सब ु कोऊ ॥
सहसा किर पाछ पिछताह। कहिहं बेद बधु ते बधु नाह ॥
ु सरु बचन लखन सकुचाने। राम सीयँ सादर सनमान े ॥
सिन
कही तात तु नीित सहाई।
ु सब त किठन राजम भाई ॥

जो अचवँत नृप मातिहं तेई। नािहन साधसभा जेिहं सेई ॥
सनु लखन भल भरत सरीसा। िबिध पंच महँ सना ु न दीसा ॥
दो. भरतिह होइ न राजम िबिध हिर हर पद पाइ ॥
कबँ िक काँजी सीकरिन छीरिसंध ु िबनसाइ ॥ २३१ ॥
ितिम तन तरिनिह मकु िगलई। गगन ु मगन मकु मेघिहं िमलई ॥
गोपद जल बूड़िहं घटजोनी। सहज छमा ब छाड़ै छोनी ॥
मसक फूँ क मकु मे उड़ाई। होइ न नृपम भरतिह भाई ॥
लखन त ु सबंु ध ु निहं भरत समाना ॥
ु ार सपथ िपत ु आना। सिच
सगनु खी अवगनु ज ताता। िमलइ रचइ परपंच ु िबधाता ॥
भरत ु हंस रिबबंस तड़ागा। जनिम की गनु दोष िबभागा ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 73

गिह गनु पय तिज अवगनु बारी। िनज जस जगत कीि उिजआरी ॥


कहत भरत गनु सी सभाऊ।
ु ु
पेम पयोिध मगन रघराऊ ॥
ु बानी िबबधु देिख भरत पर हेत।ु
ु रघबर
दो. सिन
सकल सराहत राम सो भ ु को कृ पािनके त ु ॥ २३२ ॥
ज न होत जग जनम भरत को। सकल धरम धरु धरिन धरत को ॥
किब कुल अगम भरत गनु गाथा। को जानइ त ु िबन ु रघनाथा
ु ॥
लखन राम िसयँ सिन ु सरु बानी। अित सखु ु लहेउ न जाइ बखानी ॥
इहाँ भरत ु सब सिहत सहाए। मंदािकन पनीत
ु नहाए ॥
सिरत समीप रािख सब लोगा। मािग मात ु गरु सिचव िनयोगा ॥
चले भरत ु जहँ िसय रघराई।
ु साथ िनषादनाथ ु लघ ु भाई ॥
समिु झ मात ु करतब सकुचाह। करत कुतरक कोिट मन माह ॥
राम ु लखन ु िसय सिन
ु मम नाऊँ । उिठ जिन अनत जािहं तिज ठाऊँ ॥
दो. मात ु मते मँ मािन मोिह जो क करिहं सो थोर।
अघ अवगनु छिम आदरिहं समिु झ आपनी ओर ॥ २३३ ॥
ज पिरहरिहं मिलन मन ु जानी। जौ सनमानिहं सेवकु मानी ॥
मोर सरन रामिह की पनही। राम सािमु दोस ु सब जनही ॥
जग जस भाजन चातक मीना। न ेम पेम िनज िनपनु नबीना ॥
अस मन गनत ु चले मग जाता। सकुच सन ेहँ िसिथल सब गाता ॥
फे रत मनँ मात ु कृ त खोरी। चलत भगित बल धीरज धोरी ॥
जब समझ ु त रघनाथ
ु सभाऊ।ु तब पथ परत उताइल पाऊ ॥
भरत दसा तेिह अवसर कै सी। जल बाहँ जल अिल गित ज ैसी ॥
देिख भरत कर सोच ु सने। भा िनषाद तेिह समयँ िबदे ॥
दो. लगे होन मंगल सगनु सिन ु कहत िनषा।
ु गिन
िमिटिह सोच ु होइिह हरष ु पिन
ु पिरनाम िबषा ॥ २३४ ॥
सेवक बचन स सब जान े। आम िनकट जाइ िनअरान े ॥
भरत दीख बन स ैल समाजू। मिु दत िधत जन ु पाइ सनाजू ु ॥

ईित भीित जन जा खारी। ििबध ताप पीिड़त ह मारी ॥
ु सदेु स सखारी।
जाइ सराज ु होिहं भरत गित तेिह अनहारीु ॥
राम बास बन संपित ाजा। सखी ु जा जन ु पाइ सराजा
ु ॥
सिचव िबराग ु िबबेकु नरेस।ू िबिपन सहावन
ु पावन देस ू ॥
भट जम िनयम स ैल रजधानी। सांित समित ु सिच ु सदं ु र रानी ॥

सकल अंग संप सराऊ। राम चरन आित िचत चाऊ ॥

दो. जीित मोह मिहपा दल सिहत िबबेक भआ।
॥ ी राम चिरत मानस ॥

करत अकं टक राज ु परँु सख


ु संपदा सका
ु ॥ २३५ ॥
बन देस मिु न बास घनरे ।े जन ु परु नगर गाउँ गन खेरे ॥
िबपलु िबिच िबहग मृग नाना। जा समाज ु न जाइ बखाना ॥
खगहा किर हिर बाघ बराहा। देिख मिहष बृष साज ु सराहा ॥
बय िबहाइ चरिहं एक संगा। जहँ तहँ मनँ सेन चतरु ंगा ॥
झरना झरिहं म गज गाजिहं। मनँ िनसान िबिबिध िबिध बाजिहं ॥
चक चकोर चातक सक ु िपक गन। कू जत मंज ु मराल मिु दत मन ॥
अिलगन गावत नाचत मोरा। जन ु सराज ु मंगल च ओरा ॥
बेिल िबटप तृन सफल सफू ला। सब समाज ु मदु मंगल मूला ॥
दो. राम स ैल सोभा िनरिख भरत दयँ अित पेम।ु
तापस तप फ पाइ िजिम सखी ु िसरान नेम ु ॥ २३६ ॥
मासपारायण, बीसवाँ िवाम
नवापारायण, पाँचवाँ िवाम
तब के वट ऊँ च चिढ़ धाई। कहेउ भरत सन भजा ु उठाई ॥
नाथ देिखअिहं िबटप िबसाला। पाकिर जंब ु रसाल तमाला ॥
िज तबर म बटु सोहा। मंज ु िबसाल देिख मन ु मोहा ॥
नील सघन प फल लाला। अिबरल छाहँ सखद ु सब काला ॥
मानँ ितिमर अनमय रासी। िबरची िबिध सँकेिल सषमा ु सी ॥
ए त सिरत समीप गोसाँई। रघबर ु परनकुटी जहँ छाई ॥
तलु सी तबर िबिबध सहाए।
ु कँ कँ िसयँ कँ लखन लगाए ॥
बट छायाँ बेिदका बनाई। िसयँ िनज पािन सरोज सहाईु ॥
दो. जहाँ ब ैिठ मिु नगन सिहत िनत िसय राम ु सजान।

ु कथा इितहास सब आगम िनगम परान
सनिहं ु ॥ २३७ ॥
सखा बचन सिन ु िबटप िनहारी। उमगे भरत िबलोचन बारी ॥
करत नाम चले दोउ भाई। कहत ीित सारद सकुचाई ॥
हरषिहं िनरिख राम पद अंका। मानँ पारस ु पायउ रंका ॥
रज िसर धिर िहयँ नयनि लाविहं। रघबरु िमलन सिरस सख ु पाविहं ॥
देिख भरत गित अकथ अतीवा। ेम मगन मृग खग जड़ जीवा ॥
सखिह सनहे िबबस मग भूला। किह सपंु थ सरु बरषिहं फू ला ॥
ु । सहज सन े सराहन लागे ॥
िनरिख िस साधक अनरागे
होत न भूतल भाउ भरत को। अचर सचर चर अचर करत को ॥
दो. पेम अिमअ मंद िबर भरत ु पयोिध गँभीर।
मिथ गटे उ सरु साध ु िहत कृ पािसंध ु रघबीर
ु ॥ २३८ ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 75

सखा समेत मनोहर जोटा। लखेउ न लखन सघन बन ओटा ॥


ु गल सदन ु सहावन
भरत दीख भ ु आम ु पावन। सकल समं ु ॥
करत बेस िमटे ख दावा। जन ु जोग परमारथ ु पावा ॥
देख े भरत लखन भ ु आगे। पूछ ु ॥
ँ े बचन कहत अनरागे
सीस जटा किट मिु न पट बाँध। तून कस कर स धन ु काँध ॥
बेदी पर मिु न साध ु समाजू। सीय सिहत राजत रघराजू
ु ॥
बलकल बसन जिटल तन ु ामा। जन ु मिु न बेष की रित कामा ॥
कर कमलिन धन ु सायकु फे रत। िजय की जरिन हरत हँिस हेरत ॥
दो. लसत मंज ु मिु न मंडली म सीय रघचं ु ।
यान सभाँ जन ु तन ु धरे भगित सिदानं ॥ २३९ ॥
सानज ु सखा समेत मगन मन। िबसरे हरष सोक सख ु ख गन ॥
पािह नाथ किह पािह गोसाई। भूतल परे लकुट की नाई ॥
बचन सपेम लखन पिहचान े। करत नाम ु भरत िजयँ जान े ॥
बंध ु सन ेह सरस एिह ओरा। उत सािहब सेवा बस जोरा ॥
िमिल न जाइ निहं गदरतु ु
बनई। सकिब लखन मन की गित भनई ॥
रहे रािख सेवा पर भा। चढ़ी चंग जन ु खच खेला ॥
कहत सेम नाइ मिह माथा। भरत नाम करत रघनाथा ु ॥
ु ु ु
उठे राम सिन पेम अधीरा। कँ पट कँ िनषंग धन तीरा ॥
दो. बरबस िलए उठाइ उर लाए कृ पािनधान।
भरत राम की िमलिन लिख िबसरे सबिह अपान ॥ २४० ॥
िमलिन ीित िकिम जाइ बखानी। किबकुल अगम करम मन बानी ॥
परम पेम पूरन दोउ भाई। मन बिध ु िचत अहिमित िबसराई ॥
कह सपेु म गट को करई। के िह छाया किब मित अनसरई ु ॥
किबिह अरथ आखर ब साँचा। अनहिर ु ताल गितिह नटु नाचा ॥
अगम सन भरत रघबर को। जहँ न जाइ मन ु िबिध हिर हर को ॥
ेह ु
सो म कुमित कह के िह भाँती। बाज सराग
ु िक गाँडर ताँती ॥
िमलिन िबलोिक भरत रघबर ु की। सरगनु सभय धकधकी धरकी ॥
समझु ाए सरग ु
ु  जड़ जागे। बरिष सून संसन लागे ॥
दो. िमिल सपेम िरपसू ु दनिह के वटु भटेउ राम।
भूिर भायँ भटे भरत लिछमन करत नाम ॥ २४१ ॥
भटेउ लखन ललिक लघ ु भाई। बिर िनषा ली उर लाई ॥
ु मिु नगन ँ भाइ बंद।े अिभमत आिसष पाइ अनंद े ॥
पिन
सानज ु भरत उमिग अनरागा।
ु धिर िसर िसय पद पम परागा ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

ु पिन
पिन ु करत नाम उठाए। िसर कर कमल परिस ब ैठाए ॥
सीयँ असीस दीि मन माह। मगन सन ेहँ देह सिध ु नाह ॥
सब िबिध सानकूु ल लिख सीता। भे िनसोच उर अपडर बीता ॥
कोउ िक कहइ न कोउ िक पूछ ँ ा। ेम भरा मन िनज गित ँछा ॥
तेिह अवसर के वटु धीरज ु धिर। जोिर पािन िबनवत नाम ु किर ॥
दो. नाथ साथ मिु ननाथ के मात ु सकल परु लोग।
सेवक सेनप सिचव सब आए िबकल िबयोग ॥ २४२ ॥
ु गरु आगवनू। िसय समीप राखे िरपदवनू
सीलिसंध ु सिन ु ॥
चले सबेग राम ु तेिह काला। धीर धरम धरु दीनदयाला ॥
ु देिख सानज
गरिह ु अनरागे
ु । दंड नाम करन भ ु लागे ॥
मिु नबर धाइ िलए उर लाई। ेम उमिग भटे दोउ भाई ॥

ेम पलिक के वट किह नामू। की िर त दंड नामू ॥
रामसखा िरिष बरबस भटा। जन ु मिह ठत सन ेह समेटा ॥
रघपितु भगित समं ु गल मूला। नभ सरािह सरु बिरसिहं फू ला ॥
एिह सम िनपट नीच कोउ नाह। बड़ बिस सम को जग माह ॥
दो. जेिह लिख लखन त अिधक िमले मिु दत मिु नराउ।
सो सीतापित भजन को गट ताप भाउ ॥ २४३ ॥
आरत लोग राम सब ु जाना। कनाकर सजान ु भगवाना ॥
जो जेिह भायँ रहा अिभलाषी। तेिह तेिह कै तिस तिस ख राखी ॥
सानजु िमिल पल म सब का। की िर ख ु दान दा ॥
यह बिड़ बातँ राम कै नाह। िजिम घट कोिट एक रिब छाह ॥

िमिल के विटिह उमिग अनरागा। ु
परजन सकल सराहिहं भागा ॥
ु ु
देख राम िखत महतार। जन सबेिल अवल िहम मार ॥

थम राम भटी कै केई। सरल सभायँ भगित मित भेई ॥
पग पिर की बोध ु बहोरी। काल करम िबिध िसर धिर खोरी ॥
ु मात ु सब किर बोध ु पिरतोष ु ॥
दो. भेट रघबर
अंब ईस आधीन जग ु का न देइअ दोष ु ॥ २४४ ॥

गरितय पद बंद े  भाई। सिहत िबितय जे सँग आई ॥
गंग गौिर सम सब सनमान ॥ देिहं असीस मिु दत मृ बानी ॥
गिह पद लगे सिमाु अंका। जन ु भेट संपित अित रंका ॥
ु जनिन चरनिन दोउ ाता। परे पेम ाकुल सब गाता ॥
पिन
अित अनरागु अंब उर लाए। नयन सन ेह सिलल अवाए ॥
तेिह अवसर कर हरष िबषा। िकिम किब कहै मूक िजिम ा ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 77

िमिल जननिह सानज ु रघराऊ।


ु गरु सन कहेउ िक धािरअ पाऊ ॥

परजन पाइ मनु ीस िनयोगू। जल थल तिक तिक उतरेउ लोगू ॥
दो. मिहसरु मंी मात ु गरु गन े लोग िलए साथ ॥
पावन आम गवन ु िकय भरत लखन रघनाथ ु ॥ २४५ ॥
सीय आइ मिु नबर पग लागी। उिचत असीस लही मन मागी ॥

गरपितिनिह मिु नितय समेता। िमली पेम ु किह जाइ न जेता ॥
बंिद बंिद पग िसय सबही के । आिसरबचन लहे िय जी के ॥
सास ु सकल जब सीयँ िनहार। मूद े नयन सहिम सक ु ु मार ॥
पर बिधक बस मनँ मराल। काह की करतार कुचाल ॥
ित िसय िनरिख िनपट ख ु पावा। सो सब ु सिहअ जो दैउ सहावा ॥
जनकसता ु तब उर धिर धीरा। नील निलन लोयन भिर नीरा ॥
िमली सकल सास ु िसय जाई। तेिह अवसर कना मिह छाई ॥
ु ॥
दो. लािग लािग पग सबिन िसय भटित अित अनराग
दयँ असीसिहं पेम बस रिहअ भरी सोहाग ॥ २४६ ॥
िबकल सन ेहँ सीय सब रान। ब ैठन सबिह कहेउ गरु यान ॥
किह जग गित माियक मिु ननाथा। कहे कक परमारथ गाथा ॥
नृप कर सरप ु रु गवन ु सनावा।
ु ु सह ख ु पावा ॥
ु रघनाथ
सिन
मरन हेत ु िनज ने िबचारी। भे अित िबकल धीर धरु धारी ॥
कुिलस कठोर सनत ु कटु बानी। िबलपत लखन सीय सब रानी ॥
सोक िबकल अित सकल समाजू। मानँ राज ु अकाजेउ आजू ॥
मिु नबर बिर राम समझ ु ाए। सिहत समाज ससिरत
ु नहाए ॥
त ु िनरंब ु तेिह िदन भ ु कीा। मिु न कह ज काँ न लीा ॥
दो. भो भएँ रघनंु दनिह जो मिु न आयस ु दी ॥
ा भगित समेत भ ु सो सब ु साद की ॥ २४७ ॥
किर िपत ु िया बेद जिस बरनी। भे पनीत
ु पातक तम तरनी ॥
जास ु नाम पावक अघ तूला। सिमरत
ु ु गल मूला ॥
सकल समं
सु सो भयउ साध ु संमत अस। तीरथ आवाहन सरसिर ु जस ॥
ु ु
स भएँ इ बासर बीते। बोले गर सन राम िपरीते ॥
नाथ लोग सब िनपट खारी। कं द मूल फल अंब ु अहारी ॥
सानजु भरत ु सिचव सब माता। देिख मोिह पल िजिम जगु जाता ॥
सब समेत परु धािरअ पाऊ। आप ु इहाँ अमरावित राऊ ॥
बत कहेउँ सब िकयउँ िढठाई। उिचत होइ तस किरअ गोसाँई ॥
दो. धम सेत ु कनायतन कस न कह अस राम।
॥ ी राम चिरत मानस ॥

लोग िखत िदन इ दरस देिख लहँ िबाम ॥ २४८ ॥


राम बचन सिन ु सभय समाजू। जन ु जलिनिध मँ िबकल जहाजू ॥
सिन ु गरु िगरा समंु गल मूला। भयउ मनँ मात अनक ु ु ला ॥
पावन पयँ ितँ काल नहाह। जो िबलोिक अंघ ओघ नसाह ॥
मंगलमूरित लोचन भिर भिर। िनरखिहं हरिष दंडवत किर किर ॥
राम स ैल बन देखन जाह। जहँ सख ु सकल सकल ख नाह ॥

झरना झिरिहं सधासम बारी। ििबध तापहर ििबध बयारी ॥
िबटप बेिल तृन अगिनत जाती। फल सून पव ब भाँती ॥
सदं ु र िसला सखद
ु त छाह। जाइ बरिन बन छिब के िह पाह ॥
दो. सरिन सरोह जल िबहग कू जत गज ं ु त भृग
ं ।
ब ैर िबगत िबहरत िबिपन मृग िबहंग बरंग ॥ २४९ ॥
कोल िकरात िभ बनबासी। मध ु सिच ु सदं ु र ा सधा
ु सी ॥
भिर भिर परन पट ु रिच री। कं द मूल फल अंकुर जूरी ॥
सबिह देिहं किर िबनय नामा। किह किह ाद भेद गनु नामा ॥
देिहं लोग ब मोल न लेह। फे रत राम दोहाई देह ॥
कहिहं सनेह मगन मृ बानी। मानत साध ु पेम पिहचानी ॥
त ु सकृु ती हम नीच िनषादा। पावा दरसन ु राम सादा ॥
हमिह अगम अित दरस ु त ु ारा। जस म धरिन देवधिन ु धारा ॥
राम कृ पाल िनषाद न ेवाजा। पिरजन जउ चिहअ जस राजा ॥
दो. यह िजँय ँ जािन सँकोच ु तिज किरअ छो लिख ने।
हमिह कृ तारथ करन लिग फल तृन अंकुर ले ॥ २५० ॥
तु िय पाने बन पग ु धारे। सेवा जोग ु न भाग हमारे ॥
देब काह हम त ु िह गोसाँई। ईधन ु पात िकरात िमताई ॥
यह हमािर अित बिड़ सेवकाई। लेिह न बासन बसन चोराई ॥
हम जड़ जीव जीव गन घाती। कुिटल कुचाली कुमित कुजाती ॥
पाप करत िनिस बासर जाह। निहं पट किट निह पेट अघाह ॥
सपोनेँ धरम बि ु कस काऊ। यह रघनंु दन दरस भाऊ ॥
जब त भ ु पद पम िनहारे। िमटे सह ख दोष हमारे ॥
बचन सनत ु परजन
ु ु । ित के भाग सराहन लागे ॥
अनरागे
छं. लागे सराहन भाग सब अनराग ु बचन सनावह।

बोलिन िमलिन िसय राम चरन सने लिख सख ु ु पावह ॥
नर नािर िनदरिहं न े िनज सिनु कोल िभिन की िगरा।
तलु सी कृ पा रघबंु समिन की लोह लै लौका ितरा ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 79

सो. िबहरिहं बन च ओर ितिदन मिु दत लोग सब।


जल  दार मोर भए पीन पावस थम ॥ २५१ ॥
परु जन नािर मगन अित ीती। बासर जािहं पलक सम बीती ॥
सीय सास ु ित बेष बनाई। सादर करइ सिरस सेवकाई ॥
लखा न मरम ु राम िबन ु काँ। माया सब िसय माया माँ ॥
सीयँ सास ु सेवा बस की। ित लिह सख ु िसख आिसष दी ॥
लिख िसय सिहत सरल दोउ भाई। कुिटल रािन पिछतािन अघाई ॥
अविन जमिह जाचित कै केई। मिह न बीच ु िबिध मीच ु न देई ॥
लोकँ बेद िबिदत किब कहह। राम िबमख ु थ नरक न लहह ॥
य संसउ सब के मन माह। राम गवन ु िबिध अवध िक नाह ॥
दो. िनिस न नीद निहं भूख िदन भरत ु िबकल सिच
ु सोच।
नीच कीच िबच मगन जस मीनिह सिलल सँकोच ॥ २५२ ॥
कीी मात ु िमस काल कुचाली। ईित भीित जस पाकत साली ॥
के िह िबिध होइ राम अिभषेकू। मोिह अवकलत उपाउ न एकू ॥
अविस िफरिहं गरु आयस ु मानी। मिु न पिनु कहब राम िच जानी ॥
मात ु कहेँ बरिहं रघराऊ।
ु राम जनिन हठ करिब िक काऊ ॥
मोिह अनचर ु कर के ितक बाता। तेिह महँ कुसमउ बाम िबधाता ॥
ज हठ करउँ त िनपट कुकरमू। हरिगिर त गु सेवक धरमू ॥
एकउ जगु ित ु न मन ठहरानी। सोचत भरतिह रैिन िबहानी ॥
ात नहाइ भिह ु िसर नाई। ब ैठत पठए िरषयँ बोलाई ॥
दो. गरु पद कमल नाम ु किर ब ैठे आयस ु पाइ।
िब महाजन सिचव सब जरेु सभासद आइ ॥ २५३ ॥
बोले मिु नब समय समाना। सन ु सभासद भरत सजाना
ु ॥
धरम धरीन ु भानक ु ु ल भानू। राजा राम ु बस भगवानू ॥
ससंध पालक िु त सेत।ू राम जनम ु जग मंगल हेत ू ॥
गरु िपत ु मात ु बचन अनसारी।
ु खल द दलन देव िहतकारी ॥
नीित ीित परमारथ ारथ। कोउ न राम सम जान जथारथ ु ॥

िबिध हिर ह सिस रिब िदिसपाला। माया जीव करम कुिल काला ॥
अिहप मिहप जहँ लिग भताई। ु जोग िसि िनगमागम गाई ॥
किर िबचार िजँय ँ देख नीक । राम रजाइ सीस सबही क ॥
दो. राख राम रजाइ ख हम सब कर िहत होइ।
समिु झ सयाने कर अब सब िमिल संमत सोइ ॥ २५४ ॥
ु राम अिभषेकू। मंगल मोद मूल मग एकू ॥
सब कँ सखद
॥ ी राम चिरत मानस ॥

के िह िबिध अवध चलिहं रघराऊ। ु कह समिु झ सोइ किरअ उपाऊ ॥


सब सादर सिन ु मिु नबर बानी। नय परमारथ ारथ सानी ॥
उत न आव लोग भए भोरे। तब िस नाइ भरत कर जोरे ॥
भानबंु स भए भूप घनरे ।े अिधक एक त एक बड़ेरे ॥
जनम ु हेत ु सब कहँ िपत ु माता। करम सभास
ु भु देइ िबधाता ॥
दिल ख सजइ सकल काना। अस असीस राउिर जग ु जाना ॥
सो गोसाइँ िबिध गित जेिहं छ की। सकइ को टािर टे क जो टे की ॥
दो. बूिझअ मोिह उपाउ अब सो सब मोर अभाग।ु
ु सनेहमय बचन गरु उर उमगा अनराग
सिन ु ु ॥ २५५ ॥
तात बात फुिर राम कृ पाह। राम िबमख
ु िसिध सपन ेँ नाह ॥
सकुचउँ तात कहत एक बाता। अरध तजिहं बधु सरबस जाता ॥
ु कानन गवन दोउ भाई। फे िरअिहं लखन सीय रघराई
त ु ॥
ु सबचन
सिन ु हरषे दोउ ाता। भे मोद पिरपूरन गाता ॥
मन स तन तेज ु िबराजा। जन ु िजय राउ राम ु भए राजा ॥
बत लाभ लोग लघ ु हानी। सम ख सख ु सब रोविहं रानी ॥
ु ु
कहिहं भरत मिन कहा सो कीे। फ जग जीव अिभमत दीे ॥
कानन करउँ जनम भिर बासू। एिहं त अिधक न मोर सपासू ु ॥
दो. अँतरजामी राम ु िसय त
ु सरबय सजान।

जो फुर कह त नाथ िनज कीिजअ बचन ु वान ॥ २५६ ॥
भरत बचन सिन ु देिख सने। सभा सिहत मिु न भए िबदे ॥
भरत महा मिहमा जलरासी। मिु न मित ठािढ़ तीर अबला सी ॥
गा चह पार जतन ु िहयँ हेरा। पावित नाव न बोिहत ु बेरा ॥
औ किरिह को भरत बड़ाई। सरसी सीिप िक िसंध ु समाई ॥
भरत ु मिु निह मन भीतर भाए। सिहत समाज राम पिहँ आए ॥
भ ु नाम ु किर दी सआसन
ु ।ु ब ैठे सब सिन ु
ु मिु न अनसासन ु॥
बोले मिु नब बचन िबचारी। देस काल अवसर अनहारी ु ॥
ु राम सरबय सजाना।
सन ु धरम नीित गनु यान िनधाना ॥
दो. सब के उर अंतर बस जान भाउ कुभाउ।

परजन जननी भरत िहत होइ सो किहअ उपाउ ॥ २५७ ॥
आरत कहिहं िबचािर न काऊ। सूझ जूआिरिह आपन दाऊ ॥
ु मिु न बचन कहत रघराऊ।
सिन ु नाथ त ु ारेिह हाथ उपाऊ ॥
सब कर िहत ख राउिर राख। आयस ु िकएँ मिु दत फुर भाष ॥
थम जो आयस ु मो कँ होई। माथ मािन करौ िसख सोई ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 81

ु जेिह कहँ जस कहब गोसा। सो सब भाँित घिटिह सेवका ॥


पिन
कह मिु न राम स त ु भाषा। भरत सनहे ँ िबचा न राखा ॥
तेिह त कहउँ बहोिर बहोरी। भरत भगित बस भइ मित मोरी ॥
मोर जान भरत िच रािख। जो कीिजअ सो सभु िसव साखी ॥

दो. भरत िबनय सादर सिनअ किरअ िबचा बहोिर।

करब साधमत लोकमत नृपनय िनगम िनचोिर ॥ २५८ ॥
गु अनरागु भरत पर देखी। राम दयँ आनं िबसेषी ॥
भरतिह धरम धरंु धर जानी। िनज सेवक तन मानस बानी ॥
बोले गरु आयस अनकूु ला। बचन मंज ु मृ मंगलमूला ॥
नाथ सपथ िपत ु चरन दोहाई। भयउ न भअन ु भरत सम भाई ॥
जे गरु पद अंबज ु अनरागी।
ु ते लोकँ बेदँ बड़भागी ॥
राउर जा पर अस अनरागू ु । को किह सकइ भरत कर भागू ॥
लिख लघ ु बंध ु बि
ु सकुचाई। करत बदन पर भरत बड़ाई ॥
भरत ु कहह सोइ िकएँ भलाई। अस किह राम रहे अरगाई ॥
दो. तब मिु न बोले भरत सन सब सँकोच ु तिज तात।
कृ पािसंध ु िय बंध ु सन कह दय कै बात ॥ २५९ ॥
सिन ु मिु न बचन राम ख पाई। गु सािहब अनकूु ल अघाई ॥
लिख अपने िसर सब ु छ भा। किह न सकिहं क करिहं िबचा ॥

पलिक सरीर सभाँ भए ठाढ । नीरज नयन नेह जल बाढ़ ॥
कहब मोर मिु ननाथ िनबाहा। एिह त अिधक कह म काहा।
म जानउँ िनज नाथ सभाऊ। ु अपरािध पर कोह न काऊ ॥
मो पर कृ पा सन ेह िबसेषी। खेलत खिु नस न कबँ देखी ॥
िससपन ु तेम पिरहरेउँ न संग।ू कबँ न की मोर मन भंग ू ॥
म भ ु कृ पा रीित िजयँ जोही। हारेँ खेल िजताविहं मोही ॥
दो. मँ सन ेह सकोच बस सनमख ु कही न ब ैन।
दरसन तृिपत न आज ु लिग पेम िपआसे न ैन ॥ २६० ॥
िबिध न सके उ सिह मोर लारा। नीच बीच ु जननी िमस पारा।
यहउ कहत मोिह आज ु न सोभा। अपन समिु झ साध ु सिच ु को भा ॥
मात ु मंिद म साध ु सचाली।
ु उर अस आनत कोिट कुचाली ॥
फरइ िक कोदव बािल ससाली। ु मक ु काली ॥
ु ु ता सव िक संबक
सपन ेँ दोसक लेस ु न का। मोर अभाग उदिध अवगा ॥
िबन ु समझ ु  िनज अघ पिरपाकू । जािरउँ जायँ जनिन किह काकू ॥
दयँ हेिर हारेउँ सब ओरा। एकिह भाँित भलेिहं भल मोरा ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

गरु गोसाइँ सािहब िसय रामू। लागत मोिह नीक पिरनामू ॥


दो. साध ु सभा गरु भ ु िनकट कहउँ सथल ु सित भाउ।
ेम पंच ु िक झ ूठ फुर जानिहं मिु न रघराउ
ु ॥ २६१ ॥
भूपित मरन पेम पन ु राखी। जननी कुमित जगत ु सब ु साखी ॥
देिख न जािह िबकल महतारी। जरिहं सह जर परु नर नारी ॥
मह सकल अनरथ कर मूला। सो सिन ु समिु झ सिहउँ सब सूला ॥
सिनु बन गवन ु की रघनाथा।
ु किर मिु न बेष लखन िसय साथा ॥
िबन ु पानिह पयादेिह पाएँ। संक सािख रहेउँ एिह घाएँ ॥
बिर िनहार िनषाद सने। कुिलस किठन उर भयउ न बे ॥
अब सब ु आँिख देखउे ँ आई। िजअत जीव जड़ सबइ सहाई ॥
िजिह िनरिख मग साँिपिन बीछी। तजिहं िबषम िबष ु तामस तीछी ॥
दो. तेइ रघनंु दन ु लखन ु िसय अनिहत लागे जािह।
तास ु तनय तिज सह ख दैउ सहावइ कािह ॥ २६२ ॥
ु अित िबकल भरत बर बानी। आरित ीित िबनय नय सानी ॥
सिन
सोक मगन सब सभाँ खभा। मनँ कमल बन परेउ तस ु ा ॥

किह अन ेक िबिध कथा परानी। भरत बोध ु की मिु न यानी ॥
बोले उिचत बचन रघनंु । िदनकर कुल कै रव बन चं ॥
तात जाँय िजयँ कर गलानी। ईस अधीन जीव गित जानी ॥
तीिन काल ितभअन ु मत मोर । पिसलोक
ु तात तर तोरे ॥
उर आनत त ु पर कुिटलाई। जाइ लोकु परलोकु नसाई ॥
दोस ु देिहं जनिनिह जड़ तेई। िज गरु साध ु सभा निहं सेई ॥
दो. िमिटहिहं पाप पंच सब अिखल अमंगल भार।
ु ु परलोक सख
लोक सजस ु ु सिमरत
ु नाम ु त
ु ार ॥ २६३ ॥
कहउँ सभाउु स िसव साखी। भरत भूिम रह राउिर राखी ॥
तात कुतरक कर जिन जाएँ। ब ैर पेम निह रइ राएँ ॥
मिु न गन िनकट िबहग मृग जाह। बाधक बिधक िबलोिक पराह ॥
िहत अनिहत पस ु पिउ जाना। मानषु तन ु गनु यान िनधाना ॥
तात त ु िह म जानउँ नीक । कर काह असमंजस जीक ॥
राखेउ रायँ स मोिह ागी। तन ु पिरहरेउ पेम पन लागी ॥
तास ु बचन मेटत मन सोचू। तेिह त अिधक त ु ार सँकोचू ॥
ता पर गरु मोिह आयस ु दीा। अविस जो कह चहउँ सोइ कीा ॥
दो. मन ु स किर सकुच तिज कह कर सोइ आज।ु
ससंध रघबरु बचन सिनु भा सखी
ु समाज ु ॥ २६४ ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 83

सरु गन सिहत सभय सरराजू


ु । सोचिहं चाहत होन अकाजू ॥
बनत उपाउ करत क नाह। राम सरन सब गे मन माह ॥
ु भगत भगित बस अहह।
बिर िबचािर परर कहह। रघपित
ु किर अंबरीष रबासा। भे सरु सरपित
सिध ु िनपट िनरासा ॥
ु ब काल िबषादा। नरहिर िकए गट हलादा ॥
सहे सर
लिग लिग कान कहिहं धिनु माथा। अब सरु काज भरत के हाथा ॥
आन उपाउ न देिखअ देवा। मानत राम ु ससे
ु वक सेवा ॥

िहयँ सपेम सिमर सब भरतिह। िनज गनु सील राम बस करतिह ॥
ु सरु मत सरग
दो. सिन ु रु कहेउ भल त
ु ार बड़ भाग।ु
सकल समं ु गल मूल जग भरत चरन अनराग ु ु ॥ २६५ ॥
सीतापित सेवक सेवकाई। कामधेन ु सय सिरस सहाई ु ॥
भरत भगित त ु र मन आई। तज सोच ु िबिध बात बनाई ॥
देख ु देवपित भरत भाऊ। सहज सभायँ ु ु
िबबस रघराऊ ॥
मन िथर कर देव ड नाह। भरतिह जािन राम पिरछाह ॥
ु सरग
सनो ु रु सरु संमत सोचू। अंतरजामी भिह
ु सकोचू ॥
िनज िसर भा भरत िजयँ जाना। करत कोिट िबिध उर अनमाना ु ॥
किर िबचा मन दीी ठीका। राम रजायस आपन नीका ॥
िनज पन तिज राखेउ पन ु मोरा। छो सन े की निहं थोरा ॥
दो. की अनह ु अिमत अित सब िबिध सीतानाथ।
किर नाम ु बोले भरत ु जोिर जलज जगु हाथ ॥ २६६ ॥
कह कहाव का अब ामी। कृ पा अंबिनिधु अंतरजामी ॥
गरु स सािहब अनकूु ला। िमटी मिलन मन कलिपत सूला ॥
अपडर डरेउँ न सोच समूल। रिबिह न दोस ु देव िदिस भूल ॥
मोर अभाग ु मात ु कुिटलाई। िबिध गित िबषम काल किठनाई ॥
पाउ रोिप सब िमिल मोिह घाला। नतपाल पन आपन पाला ॥
यह नइ रीित न राउिर होई। लोकँ बेद िबिदत निहं गोई ॥
जग ु अनभल भल एकु गोसा। किहअ होइ भल कास ु भला ॥
देउ देवत सिरस सभाऊ।ु सनमख ु िबमख ु न कािह काऊ ॥
दो. जाइ िनकट पिहचािन त छाहँ समिन सब सोच।
मागत अिभमत पाव जग राउ रंकु भल पोच ॥ २६७ ॥
लिख सब िबिध गरु ािम सन े। िमटे उ छोभ ु निहं मन संदे ॥
अब कनाकर कीिजअ सोई। जन िहत भ ु िचत छोभ ु न होई ॥
जो सेवकु सािहबिह सँकोची। िनज िहत चहइ तास ु मित पोची ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

सेवक िहत सािहब सेवकाई। करै सकल सख ु लोभ िबहाई ॥


ारथ ु नाथ िफर सबही का। िकएँ रजाइ कोिट िबिध नीका ॥
यह ारथ परमारथ सा। सकल सकृु त फल सगित ु िसंगा ॥

देव एक िबनती सिन मोरी। उिचत होइ तस करब बहोरी ॥
ितलक समाज ु सािज सब ु आना। किरअ सफल ु भ ु ज मन ु माना ॥
ु पठइअ मोिह बन कीिजअ सबिह सनाथ।
दो. सानज
नत फे िरअिहं बंध ु दोउ नाथ चल म साथ ॥ २६८ ॥
नत जािहं बन तीिनउ भाई। बिरअ सीय सिहत रघराई ु ॥
जेिह िबिध भ ु स मन होई। कना सागर कीिजअ सोई ॥
देव ँ दी सब ु मोिह अभा। मोर नीित न धरम िबचा ॥
कहउँ बचन सब ारथ हेत।ू रहत न आरत क िचत चेत ू ॥
उत देइ सिनु ािम रजाई। सो सेवकु लिख लाज लजाई ॥
अस म अवगनु उदिध अगाधू। ािम सन ेहँ सराहत साधू ॥
अब कृ पाल मोिह सो मत भावा। सकुच ािम मन जाइँ न पावा ॥
भ ु पद सपथ कहउँ सित भाऊ। जग मंगल िहत एक उपाऊ ॥
दो. भ ु स मन सकुच तिज जो जेिह आयस ु देब।
सो िसर धिर धिर किरिह सब ु िमिटिह अनट अवरेब ॥ २६९ ॥
भरत बचन सिच ु सिनु सरु हरषे। साध ु सरािह समनु सरु बरषे ॥

असमंजस बस अवध नवे ासी। मिदत मन तापस बनबासी ॥
ु रहे रघनाथ
चपिहं ु सँकोची। भ ु गित देिख सभा सब सोची ॥
जनक त तेिह अवसर आए। मिु न बिसँ सिन ु बेिग बोलाए ॥
किर नाम ित राम ु िनहारे। बेष ु देिख भए िनपट खारे ॥
त मिु नबर बूझी बाता। कह िबदेह भूप कुसलाता ॥
ु सकुचाइ नाइ मिह माथा। बोले चर बर जोर हाथा ॥
सिन
बूझब राउर सादर सा। कुसल हेत ु सो भयउ गोसा ॥
दो. नािह त कोसल नाथ क साथ कुसल गइ नाथ।
िमिथला अवध िबसेष त जग ु सब भयउ अनाथ ॥ २७० ॥
कोसलपित गित सिन ु जनकौरा। भे सब लोक सोक बस बौरा ॥
जेिहं देख े तेिह समय िबदे। नाम ु स अस लाग न के  ॥
रािन कुचािल सनत ु नरपालिह। सूझ न क जस मिन िबन ु ालिह ॥
भरत राज रघबर ु बनबासू। भा िमिथलेसिह दयँ हराँस ू ॥
नृप बूझ े बधु सिचव समाजू। कह िबचािर उिचत का आजू ॥
समिु झ अवध असमंजस दोऊ। चिलअ िक रिहअ न कह क कोऊ ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 85

नृपिह धीर धिर दयँ िबचारी। पठए अवध चतरु चर चारी ॥


बूिझ भरत सित भाउ कुभाऊ। आए बेिग न होइ लखाऊ ॥
दो. गए अवध चर भरत गित बूिझ देिख करतूित।
चले िचकू टिह भरत ु चार चले तेरित ॥ २७१ ॥
त आइ भरत कइ करनी। जनक समाज जथामित बरनी ॥
ु गरु पिरजन सिचव महीपित। भे सब सोच सन ेहँ िबकल अित ॥
सिन
धिर धीरज ु किर भरत बड़ाई। िलए सभट
ु साहनी बोलाई ॥

घर पर देस रािख रखवारे। हय गय रथ ब जान सँवारे ॥
घरी सािध चले ततकाला। िकए िबाम ु न मग महीपाला ॥
भोरिहं आज ु नहाइ यागा। चले जमनु उतरन सब ु लागा ॥
खबिर लेन हम पठए नाथा। ित किह अस मिह नायउ माथा ॥
साथ िकरात छ सातक दीे। मिु नबर तरु त िबदा चर कीे ॥
ु जनक आगवन ु सब ु हरषेउ अवध समाज।ु
दो. सनत
रघनंु दनिह सकोच ु बड़ सोच िबबस सरराज
ु ु ॥ २७२ ॥
गरइ गलािन कुिटल कै केई। कािह कहै के िह षन ु देई ॥
अस मन आिन मिु दत नर नारी। भयउ बहोिर रहब िदन चारी ॥
एिह कार गत बासर सोऊ। ात नहान लाग सब ु कोऊ ॥
किर मन ु पूजिहं नर नारी। गनप गौिर ितपरािर
ु तमारी ॥
ु अंचल जोरी ॥
रमा रमन पद बंिद बहोरी। िबनविहं अंजिल
राजा राम ु जानकी रानी। आनँद अविध अवध रजधानी ॥
ु बसउ िफिर सिहत समाजा। भरतिह राम ु करँ जबराजा
सबस ु ॥
एिह सखु सधाँु सची सब का। देव दे जग जीवन ला ॥
दो. गरु समाज भाइ सिहत राम राज ु परु होउ।
अछत राम राजा अवध मिरअ माग सब ु कोउ ॥ २७३ ॥
सिनु सनेहमय परजनु बानी। िनंदिहं जोग िबरित मिु न यानी ॥
एिह िबिध िनकरम किर परजन। ु ु
रामिह करिहं नाम पलिक तन ॥
ऊँ च नीच मम नर नारी। लहिहं दरस ु िनज िनज अनहारी ु ॥
सावधान सबही सनमानिहं। सकल सराहत कृ पािनधानिहं ॥
लिरकाइिह ते रघबर ु बानी। पालत नीित ीित पिहचानी ॥
सील सकोच िसंध ु रघराऊ।
ु समु ख
ु सलोचन
ु सरल सभाऊ ु ॥
कहत राम गनु गन अनरागे ु । सब िनज भाग सराहन लागे ॥
हम सम प ं ु जग थोरे। िजिह राम ु जानत किर मोरे ॥
ु पज
ु आवत िमिथलेस।ु
दो. ेम मगन तेिह समय सब सिन
॥ ी राम चिरत मानस ॥

सिहत सभा संम उठे उ रिबकुल कमल िदन ेस ु ॥ २७४ ॥


भाइ सिचव गरु परजन
ु साथा। आग गवन ु की रघनाथा
ु ॥
िगिरब दीख जनकपित जबह। किर नाम रथ ागेउ तबह ॥
राम दरस लालसा उछा। पथ म लेस ु कलेस ु न का ॥
ु ब ैदेही। िबन ु मन तन ख सख
मन तहँ जहँ रघबर ु सिधु के ही ॥

आवत जनक चले एिह भाँती। सिहत समाज ेम मित माती ॥
आए िनकट देिख अनरागेु । सादर िमलन परसपर लागे ॥
लगे जनक मिु नजन पद बंदन। िरिष नाम ु की रघनंु दन ॥
भाइ सिहत राम ु िमिल राजिह। चले लवाइ समेत समाजिह ॥
दो. आम सागर सांत रस पूरन पावन पाथ।ु
ु ु ॥ २७५ ॥
सेन मनँ कना सिरत िलएँ जािहं रघनाथ
बोरित यान िबराग करारे। बचन ससोक िमलत नद नारे ॥
सोच उसास समीर तंरगा। धीरज तट तबर कर भंगा ॥
िबषम िबषाद तोरावित धारा। भय म भवँर अबत अपारा ॥
के वट बधु िबा बिड़ नावा। सकिहं न खेइ ऐक निहं आवा ॥
बनचर कोल िकरात िबचारे। थके िबलोिक पिथक िहयँ हारे ॥
आम उदिध िमली जब जाई। मनँ उठे उ अंबिध ु अकुलाई ॥

सोक िबकल दोउ राज समाजा। रहा न यान न धीरज ु लाजा ॥
भूप प गनु सील सराही। रोविहं सोक िसंध ु अवगाही ॥
छं. अवगािह सोक समु सोचिहं नािर नर ाकुल महा।
दै दोष सकल सरोष बोलिहं बाम िबिध कीो कहा ॥
सरु िस तापस जोिगजन मिु न देिख दसा िबदेह की।
तलु सी न समरथ ु कोउ जो तिर सकै सिरत सन ेह की ॥
सो. िकए अिमत उपदेस जहँ तहँ लोग मिु नबर।
धीरज ु धिरअ नरेस कहेउ बिस िबदेह सन ॥ २७६ ॥
जास ु यान ु रिब भव िनिस नासा। बचन िकरन मिु न कमल िबकासा ॥
तेिह िक मोह ममता िनअराई। यह िसय राम सन ेह बड़ाई ॥
िबषई साधक िस सयान े। ििबध जीव जग बेद बखान े ॥
राम सन ेह सरस मन जासू। साध ु सभाँ बड़ आदर तासू ॥
सोह न राम पेम िबन ु यानू। करनधार िबन ु िजिम जलजानू ॥
मिु न बिबिध िबदे समझ ु ाए। रामघाट सब लोग नहाए ॥
सकल सोक संकुल नर नारी। सो बास बीतेउ िबन ु बारी ॥
पस ु खग मृग न की अहा। िय पिरजन कर कौन िबचा ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 87

दो. दोउ समाज िनिमराज ु रघराज


ु ु नहान े ात।
ब ैठे सब बट िबटप तर मन मलीन कृ स गात ॥ २७७ ॥
जे मिहसरु दसरथ परु बासी। जे िमिथलापित नगर िनवासी ॥
हंस बंस गरु जनक परोधा।
ु िज जग मग ु परमारथ ु सोधा ॥
लगे कहन उपदेस अनक े ा। सिहत धरम नय िबरित िबबेका ॥

कौिसक किह किह कथा परान। ु ाई सब सभा सबान
समझ ु ॥
ु कोिसकिह कहेऊ। नाथ कािल जल िबन ु सब ु रहेऊ ॥
तब रघनाथ
मिु न कह उिचत कहत रघराई। ु गयउ बीित िदन पहर अढ़ाई ॥
िरिष ख लिख कह तेरितराजू। इहाँ उिचत निहं असन अनाजू ॥
कहा भूप भल सबिह सोहाना। पाइ रजायस ु चले नहाना ॥
दो. तेिह अवसर फल फू ल दल मूल अन ेक कार।
लइ आए बनचर िबपल ु भिर भिर काँविर भार ॥ २७८ ॥
कामद मे िगिर राम सादा। अवलोकत अपहरत िबषादा ॥
सर सिरता बन भूिम िबभागा। जन ु उमगत आनँद अनरागाु ॥
बेिल िबटप सब सफल सफू ला। बोलत खग मृग अिल अनकूु ला ॥
तेिह अवसर बन अिधक उछा। ििबध समीर सखद ु सब का ॥
जाइ न बरिन मनोहरताई। जन ु मिह करित जनक पनाई ॥
तब सब लोग नहाइ नहाई। राम जनक मिु न आयस ु पाई ॥
ु । जहँ तहँ परजन
देिख देिख तबर अनरागे ु उतरन लागे ॥
दल फल मूल कं द िबिध नाना। पावन सदं ु र सधा
ु समाना ॥
दो. सादर सब कहँ रामगरु पठए भिर भिर भार।
पूिज िपतर सरु अितिथ गरु लगे करन फरहार ॥ २७९ ॥
एिह िबिध बासर बीते चारी। राम ु िनरिख नर नािर सखारी
ु ॥
 समाज अिस िच मन माह। िबन ु िसय राम िफरब भल नाह ॥
सीता राम संग बनबासू। कोिट अमरपरु सिरस सपासू ु ॥
पिरहिर लखन राम ु ब ैदेही। जेिह घ भाव बाम िबिध तेही ॥
दािहन दइउ होइ जब सबही। राम समीप बिसअ बन तबही ॥
मंदािकिन मन ु ित काला। राम दरस ु मदु मंगल माला ॥
अटन ु राम िगिर बन तापस थल। असन ु अिमअ सम कं द मूल फल ॥
सखु समेत संबत इ साता। पल सम होिहं न जिनअिहं जाता ॥
ु जोग न लोग सब कहिहं कहाँ अस भाग ु ॥
दो. एिह सख

सहज सभायँ ु ु ॥ २८० ॥
समाज  राम चरन अनराग
ु मन हरह ॥
एिह िबिध सकल मनोरथ करह। बचन सेम सनत
॥ ी राम चिरत मानस ॥

सीय मात ु तेिह समय पठा। दास देिख सअवस


ु आ ॥
सावकास सिन ु सब िसय सासू। आयउ जनकराज रिनवासू ॥
कौसाँ सादर सनमानी। आसन िदए समय सम आनी ॥
सी सन ेह सकल  ओरा। विहं देिख सिन ु कुिलस कठोरा ॥
ु िसिथल तन बािर िबलोचन। मिह नख िलखन लग सब सोचन ॥
पलक
सब िसय राम ीित िक िस मूरती। जन ु कना ब बेष िबसूरित ॥
ु बाँकी। जो पय फे न ु फोर पिब टाँकी ॥
सीय मात ु कह िबिध बिध

दो. सिनअ ु देिखअिहं गरल सब करतूित कराल।
सधा
जहँ तहँ काक उक बक मानस सकृ त मराल ॥ २८१ ॥
सिनु ससोच कह देिब सिमा।
ु िबिध गित बिड़ िबपरीत िबिचा ॥
जो सृिज पालइ हरइ बहोरी। बाल के िल सम िबिध मित भोरी ॥
कौसा कह दोस ु न का। करम िबबस ख सख ु छित ला ॥
किठन करम गित जान िबधाता। जो सभु असभु सकल फल दाता ॥
ईस रजाइ सीस सबही क । उतपित िथित लय िबष अमी क ॥
देिब मोह बस सोिचअ बादी। िबिध पंच ु अस अचल अनादी ॥
भूपित िजअब मरब उर आनी। सोिचअ सिख लिख िनज िहत हानी ॥
सीय मात ु कह स सबानी।
ु सकृु ती अविध अवधपित रानी ॥
दो. लखन ु राम िसय जाँ बन भल पिरनाम न पोच।ु
गहबिर िहयँ कह कौिसला मोिह भरत कर सोच ु ॥ २८२ ॥
ईस साद असीस त ु ारी। सतु सतबधू
ु देवसिर बारी ॥
राम सपथ म की न काऊ। सो किर कहउँ सखी सित भाऊ ॥
भरत सील गनु िबनय बड़ाई। भायप भगित भरोस भलाई ॥
कहत सारद कर मित हीचे। सागर सीप िक जािहं उलीचे ॥
जानउँ सदा भरत कुलदीपा। बार बार मोिह कहेउ महीपा ॥
कस कनकु मिन पािरिख पाएँ। पष ु ।
ु पिरिखअिहं समयँ सभाएँ

अनिचत आज ु कहब अस मोरा। सोक सन ेहँ सयानप थोरा ॥
ु सरसिर
सिन ु सम पाविन बानी। भ सनेह िबकल सब रानी ॥
दो. कौसा कह धीर धिर सन ु देिब िमिथलेिस।
ु िह सकइ उपदेिस ॥ २८३ ॥
को िबबेकिनिध बभिह त
रािन राय सन अवस पाई। अपनी भाँित कहब समझ ु ाई ॥
रिखअिहं लखन ु भरत ु गबनिहं बन। ज यह मत मान ै महीप मन ॥
तौ भल जतन ु करब सिबचारी।
ु मोर सौच ु भरत कर भारी ॥
गूढ़ सन ेह भरत मन माही। रह नीक मोिह लागत नाह ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 89

लिख सभाउु ु सरल सबानी।


सिन ु सब भइ मगन कन रस रानी ॥
नभ सून झिर ध ध धिन। ु िसिथल सनेहँ िस जोगी मिु न ॥
सब ु रिनवास ु िबथिक लिख रहेऊ। तब धिर धीर सिमाँ
ु कहेऊ ॥
देिब दंड जगु जािमिन बीती। राम मात ु सनी
ु उठी सीती ॥
दो. बेिग पाउ धािरअ थलिह कह सन ेहँ सितभाय।
हमर तौ अब ईस गित के िमिथलेस सहाय ॥ २८४ ॥
लिख सनहे सिन ु बचन िबनीता। जनकिया गह पाय पनीता
ु ॥

देिब उिचत अिस िबनय तारी। दसरथ घिरिन राम महतारी ॥
भ ु अपन े नीच आदरह। अिगिन धूम िगिर िसर ितन ु धरह ॥
सेवकु राउ करम मन बानी। सदा सहाय महेस ु भवानी ॥
रउरे अंग जोग ु जग को है। दीप सहाय िक िदनकर सोहै ॥
राम ु जाइ बन ु किर सरु काजू। अचल अवधपरु किरहिहं राजू ॥
अमर नाग नर राम बाबल। सख ु बिसहिहं अपन अपने थल ॥
यह सब जागबिलक किह राखा। देिब न होइ मधु ा मिु न भाषा ॥
दो. अस किह पग पिर पेम अित िसय िहत िबनय सनाइु ॥
िसय समेत िसयमात ु तब चली सआयस
ु ु पाइ ॥ २८५ ॥
िय पिरजनिह िमली ब ैदेही। जो जेिह जोग ु भाँित तेिह तेही ॥
तापस बेष जानकी देखी। भा सब ु िबकल िबषाद िबसेषी ॥
जनक राम गरु आयस ु पाई। चले थलिह िसय देखी आई ॥
लीि लाइ उर जनक जानकी। पान पावन पेम ान की ॥
उर उमगेउ अंबिध ु अनरागू
ु । भयउ भूप मन ु मनँ पयागू ॥
िसय सन ेह बटु बाढ़त जोहा। ता पर राम पेम िसस ु सोहा ॥
िचरजीवी मिु न यान िबकल जन।ु बूड़त लहेउ बाल अवलं बन ु ॥
मोह मगन मित निहं िबदेह की। मिहमा िसय रघबर ु सनहे की ॥
दो. िसय िपत ु मात ु सनेह बस िबकल न सकी सँभािर।
ु धीरज ु धरेउ समउ सधरम
धरिनसताँ ु ु िबचािर ॥ २८६ ॥
तापस बेष जनक िसय देखी। भयउ पेम ु पिरतोष ु िबसेषी ॥
पिु पिव िकए कुल दोऊ। सजस ु धवल जग ु कह सब ु कोऊ ॥

िजित सरसिर कीरित सिर तोरी। गवन ु की िबिध अंड करोरी ॥
गंग अविन थल तीिन बड़ेर।े एिहं िकए साध ु समाज घन ेरे ॥
िपत ु कह स सन ेहँ सबानी।
ु सीय सकुच मँ मनँ समानी ॥
ु िपत ु मात ु ली उर लाई। िसख आिसष िहत दीि सहाई
पिन ु ॥

कहित न सीय सकिच मन माह। इहाँ बसब रजन भल नाह ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥


लिख ख रािन जनायउ राऊ। दयँ सराहत सी सभाऊ ॥
दो. बार बार िमिल भट िसय िबदा की सनमािन।

कही समय िसर भरत गित रािन सबािन सयािन ॥ २८७ ॥
ु भूपाल भरत वहा। सोन सगं
सिन ु ध सधा
ु सिस सा ॥
मूद े सजल नयन पलके ु तन। सजसु ु सराहन लगे मिु दत मन ॥
सावधान सनु ु समु िु ख सलोचिन।
ु भरत कथा भव बंध िबमोचिन ॥
धरम राजनय िबचा। इहाँ जथामित मोर चा ॥
सो मित मोिर भरत मिहमाही। कहै काह छिल अित न छाँही ॥
िबिध गनपित अिहपित िसव सारद। किब कोिबद बधु बि ु िबसारद ॥
भरत चिरत कीरित करतूती। धरम सील गनु िबमल िबभूती ॥
समझ ु त सनत
ु सखदु सब का। सिच ु सरसिर
ु ु ॥
िच िनदर सधा
दो. िनरविध गनु िनपम पष
ु ु भरत ु भरत सम जािन।
ु  िक सेर सम किबकुल मित सकुचािन ॥ २८८ ॥
किहअ समे
अगम सबिह बरनत बरबरनी। िजिम जलहीन मीन गम ु धरनी ॥
भरत अिमत मिहमा सनु ु रानी। जानिहं राम ु न सकिहं बखानी ॥
बरिन सेम भरत अनभाऊ। ु ितय िजय की िच लिख कह राऊ ॥
ु ु
बरिहं लखन भरत बन जाह। सब कर भल सब के मन माह ॥
देिब परंत ु भरत रघबर
ु की। ीित तीित जाइ निहं तरकी ॥
भरत ु अविध सनहे ममता की। जिप राम ु सीम समता की ॥
परमारथ ारथ सख ु सारे। भरत न सपन ेँ मनँ िनहारे ॥
साधन िस राम पग न े ॥ मोिह लिख परत भरत मत ए ॥
दो. भोरेँ भरत न पेिलहिहं मनसँ राम रजाइ।
किरअ न सोच ु सन ेह बस कहेउ भूप िबलखाइ ॥ २८९ ॥
राम भरत गनु गनत सीती। िनिस दंपितिह पलक सम बीती ॥
राज समाज ात जगु जागे। ाइ ाइ सरु पूजन लागे ॥
गे नहाइ गरु पह रघराई।
ु बंिद चरन बोले ख पाई ॥
नाथ भरत ु परजन
ु महतारी। सोक िबकल बनबास खारी ॥
सिहत समाज राउ िमिथलेस।ू बत िदवस भए सहत कलेस ू ॥
उिचत होइ सोइ कीिजअ नाथा। िहत सबही कर रौर हाथा ॥
अस किह अित सकुचे रघराऊ।ु मिु न पलके
ु लिख सी सभाऊ
ु ॥
तु िबन ु राम सकल सख ु साजा। नरक सिरस  राज समाजा ॥
ु के सख
दो. ान ान के जीव के िजव सख ु राम।
ु तिज तात सोहात गृह िजिह ितिहं िबिध बाम ॥ २९० ॥
त
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 91

सो सख ु ु करम ु धरम ु जिर जाऊ। जहँ न राम पद पंकज भाऊ ॥


जोग ु कुजोग ु यान ु अयानू। जहँ निहं राम पेम परधानू ॥
तु िबन ु खी सखी ु त ु तेह। त
ु जान िजय जो जेिह के ह ॥
राउर आयस ु िसर सबही क । िबिदत कृ पालिह गित सब नीक ॥
आप ु आमिह धािरअ पाऊ। भयउ सनहे िसिथल मिु नराऊ ॥
किर नाम तब राम ु िसधाए। िरिष धिर धीर जनक पिहं आए ॥
राम बचन गु नृपिह सनाए। ु ु
सील सन ेह सभायँ ु ॥
सहाए
महाराज अब कीिजअ सोई। सब कर धरम सिहत िहत होई।

दो. यान िनधान सजान ु धरम धीर नरपाल।
सिच
ु िबन ु असमंजस समन को समरथ एिह काल ॥ २९१ ॥
त
ु । लिख गित यान ु िबराग ु िबरागे ॥
ु मिु न बचन जनक अनरागे
सिन
ु मन माह। आए इहाँ की भल नाही ॥
िसिथल सन ेहँ गनत
रामिह रायँ कहेउ बन जाना। की आप ु िय ेम वाना ॥
हम अब बन त बनिह पठाई। मिु दत िफरब िबबेक बड़ाई ॥
तापस मिु न मिहसरु सिन
ु देखी। भए ेम बस िबकल िबसेषी ॥
समउ समिझ धिर धीरज ु राजा। चले भरत पिहं सिहत समाजा ॥

भरत आइ आग भइ लीे। अवसर सिरस सआसन ु दीे ॥
तात भरत कह तेरित राऊ। त ु िह िबिदत रघबीर
ु सभाऊ
ु ॥
दो. राम सत धरम रत सब कर सी सन े ॥
संकट सहत सकोच बस किहअ जो आयस ु दे ॥ २९२ ॥
ु तन पलिक
सिन ु नयन भिर बारी। बोले भरत ु धीर धिर भारी ॥
भ ु िय पू िपता सम आपू। कुलगु सम िहत माय न बापू ॥

कौिसकािद मिु न सिचव समाजू। यान अंबिनिध आपनु ु आजू ॥

िसस ु सेवक आयस ु अनगामी। जािन मोिह िसख देइअ ामी ॥
एिहं समाज थल बूझब राउर। मौन मिलन म बोलब बाउर ॥
छोटे बदन कहउँ बिड़ बाता। छमब तात लिख बाम िबधाता ॥
आगम िनगम िस पराना।ु सेवाधरम ु किठन जग ु जाना ॥
ािम धरम ारथिह िबरोधू। ब ै अंध ेमिह न बोधू ॥
दो. रािख राम ख धरम ु त ु पराधीन मोिह जािन।
सब क संमत सब िहत किरअ पेम ु पिहचािन ॥ २९३ ॥
भरत बचन सिन ु देिख सभाऊ।
ु सिहत समाज सराहत राऊ ॥
ु अगम मृ मंज ु कठोरे। अरथ ु अिमत अित आखर थोरे ॥
सगम
ौ मख ु ु र मक
ु मक ु ु  िनज पानी। गिह न जाइ अस अदभतु बानी ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

भूप भरत मिु न सिहत समाजू। गे जहँ िबबधु कुमदु िजराजू ॥


ु सिध
सिन ु सोच िबकल सब लोगा। मनँ मीनगन नव जल जोगा ॥
देव ँ थम कुलगरु गित देखी। िनरिख िबदेह सनहे िबसेषी ॥
राम भगितमय भरत ु िनहारे। सरु ारथी हहिर िहयँ हारे ॥
सब कोउ राम पेममय पेखा। भउ अलेख सोच बस लेखा ॥
दो. राम ु सन ेह सकोच बस कह ससोच सरराज।

रच पंचिह पंच िमिल नािहं त भयउ अकाज ु ॥ २९४ ॥
सरु सिमिर
ु सारदा सराही। देिब देव सरनागत पाही ॥
फे िर भरत मित किर िनज माया। पा िबबधु कुल किर छल छाया ॥
िबबधु िबनय सिनु देिब सयानी। बोली सरु ारथ जड़ जानी ॥
मो सन कह भरत मित फे । लोचन सहस न सूझ समे ु ॥
िबिध हिर हर माया बिड़ भारी। सोउ न भरत मित सकइ िनहारी ॥
सो मित मोिह कहत क भोरी। चंिदिन कर िक चंडकर चोरी ॥
भरत दयँ िसय राम िनवासू। तहँ िक ितिमर जहँ तरिन कासू ॥
अस किह सारद गइ िबिध लोका। िबबधु िबकल िनिस मानँ कोका ॥
दो. सरु ारथी मलीन मन की कुमं कुठाटु ॥
रिच पंच माया बल भय म अरित उचाटु ॥ २९५ ॥
किर कुचािल सोचत सरराजू
ु । भरत हाथ सब ु काज ु अकाजू ॥
गए जनक रघनाथ समीपा। सनमान े सब रिबकुल दीपा ॥
ु ु
समय समाज धरम अिबरोधा। बोले तब रघबंु स परोधा ु ॥
जनक भरत संबा सनाई।ु भरत कहाउित कही सहाईु ॥
तात राम जस आयस ु दे। सो सब ु करै मोर मत ए ॥
ु रघनाथ
सिन ु जोिर जगु पानी। बोले स सरल मृ बानी ॥
िबमान आपिन ु िमिथलेस।ू मोर कहब सब भाँित भदेस ू ॥
राउर राय रजायस ु होई। राउिर सपथ सही िसर सोई ॥
ु मिु न जनकु सकुचे सभा समेत।
दो. राम सपथ सिन
सकल िबलोकत भरत मख ु ु बनइ न उत देत ॥ २९६ ॥
सभा सकुच बस भरत िनहारी। रामबंध ु धिर धीरज ु भारी ॥
कुसमउ देिख सने सँभारा। बढ़त िबंिध िजिम घटज िनवारा ॥
सोक कनकलोचन मित छोनी। हरी िबमल गनु गन जगजोनी ॥
भरत िबबेक बराहँ िबसाला। अनायास उधरी तेिह काला ॥
किर नाम ु सब कहँ कर जोरे। राम ु राउ गरु साध ु िनहोरे ॥
छमब आज ु अित अनिचत ु मोरा। कहउँ बदन मृ बचन कठोरा ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 93


िहयँ सिमरी ु
सारदा सहाई। ु पंकज आई ॥
मानस त मख
िबमल िबबेक धरम नय साली। भरत भारती मंज ु मराली ॥
दो. िनरिख िबबेक िबलोचनि िसिथल सनेहँ समाज।ु
किर नाम ु बोले भरत ु सिमिर
ु ु ु ॥ २९७ ॥
सीय रघराज
ु गरु ामी। पू परम िहत अतंरजामी ॥
भ ु िपत ु मात ु सद

सरल ससािहब ु सील िनधानू। नतपाल सबय सजानू
ु ॥
ु ु
समरथ सरनागत िहतकारी। गनगाहक अवगन अघ हारी ॥ु
ािम गोसाँइिह सिरस गोसाई। मोिह समान म साइँ दोहाई ॥
भ ु िपत ु बचन मोह बस पेली। आयउँ इहाँ समाज ु सके ली ॥
जग भल पोच ऊँ च अ नीचू। अिमअ अमरपद मा मीचू ॥
राम रजाइ मेट मन माह। देखा सना ु कतँ कोउ नाह ॥
सो म सब िबिध कीि िढठाई। भ ु मानी सन ेह सेवकाई ॥
दो. कृ पाँ भलाई आपनी नाथ की भल मोर।
ु ु चा च ओर ॥ २९८ ॥
षन भे भूषन सिरस सजस

राउिर रीित सबािन बड़ाई। जगत िबिदत िनगमागम गाई ॥
कू र कुिटल खल कुमित कलं की। नीच िनसील िनरीस िनसंकी ॥
तेउ सिन ु सरन सामहु  आए। सकृ त नाम ु िकह अपनाए ॥
देिख दोष कबँ न उर आन।े सिन ु गनु साध ु समाज बखान े ॥
को सािहब सेवकिह न ेवाजी। आप ु समाज साज सब साजी ॥
िनज करतूित न समिु झअ सपन। सेवक सकुच सोच ु उर अपन ॥
सो गोसाइँ निह सर कोपी। भजाु उठाइ कहउँ पन रोपी ॥
पस ु नाचत सक ु पाठ बीना। गनु गित नट पाठक आधीना ॥

दो. य सधािर सनमािन जन िकए साध ु िसरमोर।
को कृ पाल िबन ु पािलहै िबिरदाविल बरजोर ॥ २९९ ॥
ु । आयउँ लाइ रजायस ु बाएँ ॥
सोक सन ेहँ िक बाल सभाएँ
तबँ कृ पाल हेिर िनज ओरा। सबिह भाँित भल मानउे मोरा ॥
ु गल मूला। जानउे ँ ािम सहज अनकूु ला ॥
देखउे ँ पाय समं
ु ॥
बड़ समाज िबलोके उँ भागू। बड़ चूक सािहब अनरागू
कृ पा अनहु अंग ु अघाई। कीि कृ पािनिध सब अिधकाई ॥
राखा मोर लार गोसा। अपन सील सभायँ ु भला ॥
नाथ िनपट म कीि िढठाई। ािम समाज सकोच िबहाई ॥
अिबनय िबनय जथािच बानी। छिमिह देउ अित आरित जानी ॥
ु सजान
दो. सद ु ु
ससािहबिह बत कहब बिड़ खोिर।
॥ ी राम चिरत मानस ॥

आयस ु देइअ देव अब सबइ सधारी


ु मोिर ॥ ३०० ॥
भ ु पद पम पराग दोहाई। स सकृु त सख ु सीवँ सहाई
ु ॥
सो किर कहउँ िहए अपन े की। िच जागत सोवत सपन े की ॥
सहज सन ेहँ ािम सेवकाई। ारथ छल फल चािर िबहाई ॥
अया सम न ससािहब ु सेवा। सो सा जन पावै देवा ॥
अस किह ेम िबबस भए भारी। पलक ु सरीर िबलोचन बारी ॥
भ ु पद कमल गहे अकुलाई। समउ सन े न सो किह जाई ॥
कृ पािसंध ु सनमािन सबानी।
ु ब ैठाए समीप गिह पानी ॥
भरत िबनय सिन ु देिख सभाऊ।
ु ु
िसिथल सनेहँ सभा रघराऊ ॥
ु िसिथल सन ेहँ साध ु समाज मिु न िमिथला धनी।
छं. रघराउ
मन मँ सराहत भरत भायप भगित की मिहमा घनी ॥
भरतिह संसत िबबधु बरषत समनु मानस मिलन से।
ु सी िबकल सब लोग सिन
तल ु सकुचे िनसागम निलन से ॥
सो. देिख खारी दीन  समाज नर नािर सब।
मघवा महा मलीन मएु मािर मंगल चहत ॥ ३०१ ॥
कपट कुचािल सीवँ सरराजू
ु । पर अकाज िय आपन काजू ॥

काक समान पाकिरप रीती। छली मलीन कतँ न तीती ॥
थम कुमत किर कपटु सँकेला। सो उचाटु सब क िसर मेला ॥

सरमायाँ सब लोग िबमोहे। राम ेम अितसय न िबछोहे ॥
भय उचाट बस मन िथर नाह। छन बन िच छन सदन सोहाह ॥
िबध मनोगित जा खारी। सिरत िसंध ु संगम जन ु बारी ॥
िचत कतँ पिरतोष ु न लहह। एक एक सन मरम ु न कहह ॥
लिख िहयँ हँिस कह कृ पािनधानू। सिरस ान मघवान जबानूु ॥
दो. भरत ु जनकु मिु नजन सिचव साध ु सचेत िबहाइ।
लािग देवमाया सबिह जथाजोग ु जन ु पाइ ॥ ३०२ ॥
कृ पािसंध ु लिख लोग खारे। िनज सन ेहँ सरपित
ु छल भारे ॥
सभा राउ गरु मिहसरु मंी। भरत भगित सब कै मित जंी ॥
रामिह िचतवत िच िलखे से। सकुचत बोलत बचन िसखे से ॥
भरत ीित नित िबनय बड़ाई। सनत ु सखदु बरनत किठनाई ॥
जास ु िबलोिक भगित लवलेस।ू ेम मगन मिु नगन िमिथलेस ू ॥
मिहमा तास ु कहै िकिम तलु सी। भगित सभायँ
ु ु िहयँ लसी ॥
समित
आप ु छोिट मिहमा बिड़ जानी। किबकुल कािन मािन सकुचानी ॥
किह न सकित गनु िच अिधकाई। मित गित बाल बचन की नाई ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 95

दो. भरत िबमल जस ु िबमल िबध ु समित


ु चकोरकुमािर।
उिदत िबमल जन दय नभ एकटक रही िनहािर ॥ ३०३ ॥
भरत सभाउ ु ु िनगमँ। लघ ु मित चापलता किब छमँ ॥
न सगम
कहत सनत ु सित भाउ भरत को। सीय राम पद होइ न रत को ॥

सिमरत भरतिह ेम ु राम को। जेिह न सलभ
ु तेिह सिरस बाम को ॥

देिख दयाल दसा सबही की। राम सजान जािन जन जी की ॥
धरम धरीनु धीर नय नागर। स सनेह सील सख ु सागर ॥
देस ु काल लिख समउ समाजू। नीित ीित पालक रघराजू ु ॥
बोले बचन बािन सरबस ु से। िहत पिरनाम सनत ु सिस रस ु से ॥
तात भरत त ु धरम धरीना।ु लोक बेद िबद ेम बीना ॥
दो. करम बचन मानस िबमल त ु समान त ु तात।
गरु समाज लघ ु बंध ु गनु कुसमयँ िकिम किह जात ॥ ३०४ ॥
जान तात तरिन कुल रीती। ससंध िपत ु कीरित ीती ॥
समउ समाज ु लाज गजनु की। उदासीन िहत अनिहत मन की ॥
ु िह िबिदत सबही कर करमू। आपन मोर परम िहत धरमू ॥
त
मोिह सब भाँित भरोस त ु ारा। तदिप कहउँ अवसर अनसारा ु ॥
ु ु ल कृ पाँ सँभारी ॥
तात तात िबन ु बात हमारी। के वल गक
नत जा पिरजन पिरवा। हमिह सिहत सब ु होत खआ ु ॥
ज िबन ु अवसर अथवँ िदनेसू। जग के िह कह न होइ कलेस ू ॥
तस उतपात ु तात िबिध कीा। मिु न िमिथलेस रािख सब ु लीा ॥
दो. राज काज सब लाज पित धरम धरिन धन धाम।
गरु भाउ पािलिह सबिह भल होइिह पिरनाम ॥ ३०५ ॥
सिहत समाज त ु ार हमारा। घर बन गरु साद रखवारा ॥
मात ु िपता गरु ािम िनदेस।ू सकल धरम धरनीधर सेस ू ॥
सो त ु कर कराव मो। तात तरिनकुल पालक हो ॥
साधक एक सकल िसिध देनी। कीरित सगित ु भूितमय बेनी ॥
सो िबचािर सिह संकटु भारी। कर जा पिरवा सखारी ु ॥

बाँटी िबपित सबिहं मोिह भाई। तिह अविध भिर बिड़ किठनाई ॥
जािन त ु िह मृ कहउँ कठोरा। कुसमयँ तात न अनिचत ु मोरा ॥
होिहं कुठायँ सबंु ध ु सहाए।
ु ओिड़अिहं हाथ असिन के घाए ॥
दो. सेवक कर पद नयन से मख ु सो सािहब ु होइ।
ु सी ीित िक रीित सिन
तल ु सकिब
ु सराहिहं सोइ ॥ ३०६ ॥
ु बानी। ेम पयोिध अिमअ जन ु सानी ॥
ु रघबर
सभा सकल सिन
॥ ी राम चिरत मानस ॥

िसिथल समाज सनहे समाधी। देिख दसा चपु सारद साधी ॥


भरतिह भयउ परम संतोषू। सनमख ु ािम िबमख ु ख दोषू ॥
मखु स मन िमटा िबषा। भा जन ु गूगँ िे ह िगरा सा ॥
की सेम नाम ु बहोरी। बोले पािन पंकह जोरी ॥
नाथ भयउ सख ु ु साथ गए को। लहेउँ ला जग जनम ु भए को ॥
अब कृ पाल जस आयस ु होई। कर सीस धिर सादर सोई ॥
सो अवलं ब देव मोिह देई। अविध पा पाव जेिह सेई ॥
दो. देव देव अिभषेक िहत गरु अनसासन
ु ु पाइ।
आन ेउँ सब तीरथ सिल तेिह कहँ काह रजाइ ॥ ३०७ ॥
एकु मनोरथ ु बड़ मन माह। सभयँ सकोच जात किह नाह ॥
कह तात भ ु आयस ु पाई। बोले बािन सनहे सहाई
ु ॥
िचकू ट सिचु थल तीरथ बन। खग मृग सर सिर िनझर िगिरगन ॥
भ ु पद अंिकत अविन िबसेषी। आयस ु होइ त आव देखी ॥
अविस अि आयस ु िसर धर। तात िबगतभय कानन चर ॥
मिु न साद बन ु मंगल दाता। पावन परम सहावन
ु ाता ॥
िरिषनायकु जहँ आयस ु देह। राखे तीरथ ज थल तेह ॥
सिनु भ ु बचन भरत सख ु पावा। मिु न पद कमल मिु दत िस नावा ॥
ु सकल समं
दो. भरत राम संबा सिन ु गल मूल।
सरु ारथी सरािह कुल बरषत सरत
ु फू ल ॥ ३०८ ॥
ध भरत जय राम गोसा। कहत देव हरषत बिरआई।
मिु न िमिथलेस सभाँ सब का। भरत बचन सिन ु भयउ उछा ॥
भरत राम गनु ाम सने । पलिक ु संसत राउ िबदे ॥
सेवक ािम सभाउ ु ु
सहावन। न ेम ु पेम ु अित पावन पावन ॥
मित अनसार ु सराहन लागे। सिचव सभासद सब अनरागे ु ॥
सिनु सिनु राम भरत संबा।  समाज िहयँ हरष ु िबषा ॥
राम मात ु ख ु सख ु ु सम जानी। किह गनु राम बोध रानी ॥
एक कहिहं रघबीर ु बड़ाई। एक सराहत भरत भलाई ॥
दो. अि कहेउ तब भरत सन स ैल समीप सकूु प।
रािखअ तीरथ तोय तहँ पावन अिमअ अनूप ॥ ३०९ ॥

भरत अि अनसासन पाई। जल भाजन सब िदए चलाई ॥
सानजु आप ु अि मिु न साधू। सिहत गए जहँ कू प अगाधू ॥

पावन पाथ पथल राखा। मिु दत ेम अि अस भाषा ॥
तात अनािद िस थल ए। लोपेउ काल िबिदत निहं के  ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 97

तब सेवक सरस थ देखा। िक सजल ु िहत कू प िबसेषा ॥


िबिध बस भयउ िब उपका। सगम ु अगम अित धरम िबचा ॥
भरतकू प अब किहहिहं लोगा। अित पावन तीरथ जल जोगा ॥
ेम सनमे िनमत ानी। होइहिहं िबमल करम मन बानी ॥

दो. कहत कू प मिहमा सकल गए जहाँ रघराउ।
ु ु ु
अि सनायउ रघबरिह तीरथ प भाउ ॥ ३१० ॥
कहत धरम इितहास सीती। भयउ भो िनिस सो सख ु बीती ॥

िन िनबािह भरत दोउ भाई। राम अि गर आयस पाई ॥ ु
सिहत समाज साज सब साद। चले राम बन अटन पयाद ॥
कोमल चरन चलत िबन ु पनह। भइ मृ भूिम सकुिच मन मनह ॥
कुस कं टक काँकर कुरा। कटुक कठोर कुब ु रा ॥
मिह मंजलु मृ मारग कीे। बहत समीर ििबध सख ु लीे ॥
ु बरिष सरु घन किर छाह। िबटप फू िल फिल तृन मृताह ॥
समन

मृग िबलोिक खग बोिल सबानी। सेविहं सकल राम िय जानी ॥
दो. सलभु िसि सब ाकृ त राम कहत जमहु ात।
राम ान िय भरत कँ यह न होइ बिड़ बात ॥ ३११ ॥
एिह िबिध भरत ु िफरत बन माह। नमे ु ेम ु लिख मिु न सकुचाह ॥
प ु जलाय भूिम िबभागा। खग मृग त तृन िगिर बन बागा ॥
चा िबिच पिब िबसेषी। बूझत भरत ु िद सब देखी ॥
सिन ु मन मिु दत कहत िरिषराऊ। हेत ु नाम गनु पु भाऊ ॥
कतँ िनमन कतँ नामा। कतँ िबलोकत मन अिभरामा ॥
कतँ ब ैिठ मिु न आयस ु पाई। सिमरत
ु सीय सिहत दोउ भाई ॥
देिख सभाउ सन े ससेवा। देिहं असीस मिु दत बनदेवा ॥
ु ु
िफरिहं गएँ िदन ु पहर अढ़ाई। भ ु पद कमल िबलोकिहं आई ॥
दो. देख े थल तीरथ सकल भरत पाँच िदन माझ।
कहत सनत ु हिर हर सजस
ु ु गयउ िदवस ु भइ साँझ ॥ ३१२ ॥
भोर ाइ सब ु जरा
ु समाजू। भरत भूिमसरु तेरित राजू ॥
भल िदन आज ु जािन मन माह। राम ु कृ पाल कहत सकुचाह ॥
गरु नृप भरत सभा अवलोकी। सकुिच राम िफिर अविन िबलोकी ॥
सील सरािह सभा सब सोची। कँ न राम सम ािम सँकोची ॥
भरत सजानु राम ख देखी। उिठ सेम धिर धीर िबसेषी ॥
किर दंडवत कहत कर जोरी। राख नाथ सकल िच मोरी ॥
मोिह लिग सहेउ सबिहं संतापू। बत भाँित ख ु पावा आपू ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥

अब गोसाइँ मोिह देउ रजाई। सेव अवध अविध भिर जाई ॥


ु पाय जन ु देख ै दीनदयाल।
दो. जेिहं उपाय पिन
सो िसख देइअ अविध लिग कोसलपाल कृ पाल ॥ ३१३ ॥

परजन पिरजन जा गोसाई। सब सिच ु सरस सन ेहँ सगाई ॥
राउर बिद भल भव ख दा। भ ु िबन ु बािद परम पद ला ॥
ु ु जािन सब ही की। िच लालसा रहिन जन जी की ॥
ािम सजान
नतपा पािलिह सब का। देउ  िदिस ओर िनबा ॥
अस मोिह सब िबिध भूिर भरोसो। िकएँ िबचा न सोच ु खरो सो ॥
आरित मोर नाथ कर छो। ँ िमिल की ढीठु हिठ मो ॥
यह बड़ दोष ु िर किर ामी। तिज सकोच िसखइअ अनगामी ु ॥
भरत िबनय सिन ु सबिहं संसी। खीर नीर िबबरन गित हंसी ॥
दो. दीनबंध ु सिन
ु बंध ु के बचन दीन छलहीन।
देस काल अवसर सिरस बोले राम ु बीन ॥ ३१४ ॥
तात त ु नृपिह घर बन की ॥
ु ािर मोिर पिरजन की। िचंता गरिह
माथे पर गरु मिु न िमिथलेस।ू हमिह त ु िह सपन ेँ न कलेस ू ॥
मोर त ु ार परम पषारथ
ु ु ु धरम ु परमारथ ु ॥
।ु ारथ ु सजस
िपत ु आयस ु पािलिहं  भाई। लोक बेद भल भूप भलाई ॥
गरु िपत ु मात ु ािम िसख पाल । चलेँ कुमग पग परिहं न खाल ॥
अस िबचािर सब सोच िबहाई। पाल अवध अविध भिर जाई ॥
देस ु कोस ु पिरजन पिरवा। गरु पद रजिहं लाग छभा ॥
तु मिु न मात ु सिचव िसख मानी। पाले पिम ु जा रजधानी ॥
दो. मिु खआ मखु ु सो चािहऐ खान पान कँ एक।
पालइ पोषइ सकल अँग तल ु सी सिहत िबबेक ॥ ३१५ ॥
राजधरम सरबस ु एतनोई। िजिम मन माहँ मनोरथ गोई ॥
बंध ु बोध ु की ब भाँती। िबन ु अधार मन तोष ु न साँती ॥
भरत सील गरु सिचव समाजू। सकुच सन ेह िबबस रघराजू ु ॥
भ ु किर कृ पा पाँवर दी। सादर भरत सीस धिर ली ॥
चरनपीठ कनािनधान के । जन ु जगु जािमक जा ान के ॥
संपटु भरत सनहे रतन के । आखर जगु जनु जीव जतन के ॥
कुल कपाट कर कुसल करम के । िबमल नयन सेवा सधरम ु के ॥
भरत मिु दत अवलं ब लहे त। अस सख ु जस िसय राम ु रहे त ॥
दो. मागेउ िबदा नाम ु किर राम िलए उर लाइ।
लोग उचाटे अमरपित कुिटल कुअवस पाइ ॥ ३१६ ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 99

सो कुचािल सब कहँ भइ नीकी। अविध आस सम जीविन जी की ॥


नत लखन िसय सम िबयोगा। हहिर मरत सब लोग कुरोगा ॥

रामकृ पाँ अवरेब सधारी। िबबधु धािर भइ गनद ु गोहारी ॥
भटत भज ु भिर भाइ भरत सो। राम ेम रस ु किह न परत सो ॥
तन मन बचन उमग अनरागा। ु धीर धरंु धर धीरज ु ागा ॥
बािरज लोचन मोचत बारी। देिख दसा सरु सभा खारी ॥
मिु नगन गरु धरु धीर जनक से। यान अनल मन कस कनक से ॥
जे िबरंिच िनरलेप उपाए। पम प िजिम जग जल जाए ॥
ु भरत ीित अनूप अपार।
दो. तेउ िबलोिक रघबर
भए मगन मन तन बचन सिहत िबराग िबचार ॥ ३१७ ॥
जहाँ जनक गरु मित भोरी। ाकृ त ीित कहत बिड़ खोरी ॥
बरनत रघबर ु भरत िबयोगू। सिन ु कठोर किब जािनिह लोगू ॥
सो सकोच रस ु अकथ सबानी।ु ु
समउ सन े सिमिर सकुचानी ॥
ु समझ
भिट भरत रघबर ु ाए। पिन
ु िरपदवन
ु ु हरिष िहयँ लाए ॥
सेवक सिचव भरत ख पाई। िनज िनज काज लगे सब जाई ॥
सिनु दान ख ु ँ समाजा। लगे चलन के साजन साजा ॥
भ ु पद पम बंिद दोउ भाई। चले सीस धिर राम रजाई ॥
मिु न तापस बनदेव िनहोरी। सब सनमािन बहोिर बहोरी ॥
दो. लखनिह भिट नाम ु किर िसर धिर िसय पद धूिर।
चले सेम असीस सिनु सकल समं ु गल मूिर ॥ ३१८ ॥
सानज ु राम नृपिह िसर नाई। कीि बत िबिध िबनय बड़ाई ॥
देव दया बस बड़ ख ु पायउ। सिहत समाज काननिहं आयउ ॥
परु पग ु धािरअ देइ असीसा। की धीर धिर गवन ु महीसा ॥
मिु न मिहदेव साध ु सनमान।े िबदा िकए हिर हर सम जान े ॥
सास ु समीप गए दोउ भाई। िफरे बंिद पग आिसष पाई ॥
कौिसक बामदेव जाबाली। परजन ु ु
पिरजन सिचव सचाली ॥
जथा जोग ु किर िबनय नामा। िबदा िकए सब सानज ु रामा ॥
नािर पषु लघ ु म बड़ेर।े सब सनमािन कृ पािनिध फे रे ॥
दो. भरत मात ु पद बंिद भ ु सिच
ु सन ेहँ िमिल भिट।
िबदा की सिज पालकी सकुच सोच सब मेिट ॥ ३१९ ॥
पिरजन मात ु िपतिह िमिल सीता। िफरी ानिय ेम पनीता
ु ॥
किर नाम ु भटी सब सासू। ीित कहत किब िहयँ न लासू ॥
ु िसख अिभमत आिसष पाई। रही सीय  ीित समाई ॥
सिन
॥ ी राम चिरत मानस ॥

ु पटु पालक मगा। किर बोध ु सब मात ु चढ़ाई ॥


रघपित
बार बार िहिल िमिल  भाई। सम सनहे ँ जननी पँचाई ॥
सािज बािज गज बाहन नाना। भरत भूप दल की पयाना ॥
दयँ राम ु िसय लखन समेता। चले जािहं सब लोग अचेता ॥
बसह बािज गज पस ु िहयँ हार । चले जािहं परबस मन मार ॥
दो. गरु गरितय
ु पद बंिद भ ु सीता लखन समेत।
िफरे हरष िबसमय सिहत आए परन िनके त ॥ ३२० ॥
िबदा की सनमािन िनषा। चलेउ दयँ बड़ िबरह िबषा ॥
कोल िकरात िभ बनचारी। फे रे िफरे जोहािर जोहारी ॥
भ ु िसय लखन ब ैिठ बट छाह। िय पिरजन िबयोग िबलखाह ॥
भरत सन ेह सभाउु ु
सबानी। िया अनज ु सन कहत बखानी ॥
ीित तीित बचन मन करनी। ीमख ु राम ेम बस बरनी ॥
तेिह अवसर खग मृग जल मीना। िचकू ट चर अचर मलीना ॥
िबबधु िबलोिक दसा रघबर ु की। बरिष समन ु किह गित घर घर की ॥
भ ु नाम ु किर दी भरोसो। चले मिु दत मन डर न खरो सो ॥
दो. सानजु सीय समेत भ ु राजत परन कुटीर।
भगित यान ु ब ैराय जन ु सोहत धर सरीर ॥ ३२१ ॥
मिु न मिहसरु गरु भरत भआ।
ु राम िबरहँ सब ु साज ु िबहा ॥
भ ु गनु ाम गनत मन माह। सब चपचाप
ु चले मग जाह ॥
जमनु ा उतिर पार सब ु भयऊ। सो बास िबन ु भोजन गयऊ ॥
उतिर देवसिर सर बासू। रामसखाँ सब की सपासू ु ॥
सई उतिर गोमत नहाए। चौथ िदवस अवधपरु आए।
जनकु रहे परु बासर चारी। राज काज सब साज सँभारी ॥
सिप सिचव गरु भरतिह राजू। तेरित चले सािज सब ु साजू ॥
नगर नािर नर गरु िसख मानी। बसे सखे ु न राम रजधानी ॥
दो. राम दरस लिग लोग सब करत नमे उपबास।
ु िजअत अविध क आस ॥ ३२२ ॥
तिज तिज भूषन भोग सख
सिचव ससे ु वक भरत बोधे। िनज िनज काज पाइ पाइ िसख ओधे ॥
पिन िसख दी बोिल लघ ु भाई। सपी सकल मात ु सेवकाई ॥

भूसरु बोिल भरत कर जोरे। किर नाम बय िबनय िनहोरे ॥
ऊँ च नीच कारज ु भल पोचू। आयस ु देब न करब सँकोचू ॥
पिरजन परजनु जा बोलाए। समाधान ु किर सबस
ु बसाए ॥
सानज ु गे गरु गेहँ बहोरी। किर दंडवत कहत कर जोरी ॥
॥ ी राम चिरत मानस ॥ 101

आयस ु होइ त रह सन ेमा। बोले मिु न तन पलिक


ु सपेमा ॥
ु व कहब करब त
समझ ु जोई। धरम सा जग होइिह सोई ॥
दो. सिनु िसख पाइ असीस बिड़ गनक बोिल िदन ु सािध।
िसंघासन भ ु पाका ब ैठारे िनपािध ॥ ३२३ ॥
राम मात ु गरु पद िस नाई। भ ु पद पीठ रजायस ु पाई ॥
नंिदगावँ किर परन कुटीरा। की िनवास ु धरम धरु धीरा ॥
जटाजूट िसर मिु नपट धारी। मिह खिन कुस साँथरी सँवारी ॥
असन बसन बासन त न ेमा। करत किठन िरिषधरम सेमा ॥
भूषन बसन भोग सख ु भूरी। मन तन बचन तजे ितन तूरी ॥
अवध राज सर राज ु िसहाई। दसरथ धन ु सिन
ु ु ु धन लजाई ॥
तेिहं परु बसत भरत िबन ु रागा। चंचरीक िजिम चंपक बागा ॥

रमा िबलास ु राम अनरागी। तजत बमन िजिम जन बड़भागी ॥
दो. राम पेम भाजन भरत ु बड़े न एिहं करतूित।
चातक हंस सरािहअत ट क िबबेक िबभूित ॥ ३२४ ॥
देह िदनँ िदन बिर होई। घटइ तेज ु ब मखु छिब सोई ॥
िनत नव राम ेम पन ु पीना। बढ़त धरम द मन ु न मलीना ॥
िजिम ज िनघटत सरद कासे। िबलसत बेतस बनज िबकासे ॥
सम दम संजम िनयम उपासा। नखत भरत िहय िबमल अकासा ॥
वु िबास अविध राका सी। ािम सरित ु सरबीिथ
ु िबकासी ॥
राम पेम िबध ु अचल अदोषा। सिहत समाज सोह िनत चोखा ॥
भरत रहिन समझ ु िन करतूती। भगित िबरित गनु िबमल िबभूती ॥
बरनत सकल सकिच ु सकुचाह। सेस गनस े िगरा गम ु नाह ॥
दो. िनत पूजत भ ु पाँवरी ीित न दयँ समाित ॥
मािग मािग आयस ु करत राज काज ब भाँित ॥ ३२५ ॥
ु गात िहयँ िसय रघबी।
पलक ु जीह नाम ु जप लोचन नी ॥
लखन राम िसय कानन बसह। भरत ु भवन बिस तप तन ु कसह ॥
दोउ िदिस समिु झ कहत सब ु लोगू। सब िबिध भरत सराहन जोगू ॥
ु त न ेम साध ु सकुचाह। देिख दसा मिु नराज लजाह ॥
सिन
परम पनीत ु भरत आचरनू। मधरु मंज ु मदु मंगल करनू ॥
हरन किठन किल कष कलेस।ू महामोह िनिस दलन िदन ेसू ॥
पाप पजं ु कं ु जर मृगराजू। समन सकल संताप समाजू।
जन रंजन भंजन भव भा। राम सन ेह सधाकर ु सा ॥
छं. िसय राम ेम िपयूष पूरन होत जनम ु न भरत को।
॥ ी राम चिरत मानस ॥

मिु न मन अगम जम िनयम सम दम िबषम त आचरत को ॥


ु िमस अपहरत को।
ख दाह दािरद दंभ षन सजस
किलकाल तल ु सी से सठि हिठ राम सनमख
ु करत को ॥
सो. भरत चिरत किर न ेम ु तल
ु सी जो सादर सनिहं
ु ।
सीय राम पद पेम ु अविस होइ भव रस िबरित ॥ ३२६ ॥
मासपारायण, इीसवाँ िवाम
इित ीमामचिरतमानसे सकलकिलकषिवंसने
ितीयः सोपानः समाः।
————
(अयोाकाड समा)

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.. Shri Ram Charit Manas ..


was typeset on July 26, 2016

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