तेरे दिल की गलियों से मैं हर रोज़ गुज़रती हूँ हवा के जैसे चलता है तू, मैं रेत जैसे उड़ती हूँ कौन तुझे यूँ प्यार करेगा जैसे मैं करती हूँ? मेरी नज़र का सफ़र तुझ पे ही आके रुके कहने को बाक़ी है क्या? कहना था जो, कह चुके मेरी निगाहें हैं तेरी निगाहों पे तुझे ख़बर क्या, बेख़बर? मैं तुझ से ही छु प-छु प कर तेरी आँखें पढ़ती हूँ कौन तुझे यूँ प्यार करेगा जैसे मैं करती हूँ? तू जो मुझे आ मिला, सपने हुए सरफिरे हाथों में आते नहीं, उड़ते हैं लम्हें मेरे मेरी हँसी तुझ से, मेरी खुशी तुझ से तुझे ख़बर क्या, बेक़दर? जिस दिन तुझ को ना देखूँ पागल-पागल फिरती हूँ कौन तुझे यूँ प्यार करेगा जैसे मैं करती हूँ?