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श्याम मदान
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स्वर्गीय श्रीमती हरबं स कौर

को

श्रद्धं जलि स्वरुप समलपित

श्याम मदान
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प्रस्तावना

श्री श्याम मदान जी से 35 वर्षों के साननध्य में मैंने कभी उन्हें क्रोनित होते नहीं देखा । वे
जीवन की जनिलताओ ं में नवश्वास नहीं रखते । हमेशा सरल और सादा जीवन जीने की चेष्टा
करते हैं । वे मूनति पूजा से अनिक मानव सेवा को महत्त्व देते हैं । सकारात्मक सोच से
ओतप्रोत, हमेशा दूसरों की सहायता के नलए तत्पर एवं समाज सेवा के कायों में अग्रणी श्री
श्याम मदान जी एक ऐसा व्यनित्व हैं नजनकी, उनसे जुडा प्रत्येक व्यनि, तारीफ़ करता है ।
इसका सीिा कारण ये है नक वे पहली मुलाकात में ही लोगों का नदल जीत लेते हैं । अपने
नमलने वालों के नदल पर वे अपनी ऐसी छनव अंनकत करते हैं नक लोग उन्हें भुला नहीं पाते ।
यही कारण है नक वे अपनी 80 वर्षि की आयु में , एक ऐसे व्यनि से नमत्रता ननभा रहे हैं जो
बचपन में उनके साथ खेला करता था । इतने लंबे समय तक नमत्रता ननभाना यह दशाि ता है नक
उन्हें मानव मूल्यों की नकतनी परवाह है । उन्होंने के वल नमत्रता ही नहीं ननभाई, बनल्क
पाररवाररक ररश्ते भी पूरी नवश्वसननयता से ननभाए हैं । एक आज्ञाकारी बेिा होकर घर के बडों
को पूरा सम्मान नदया, बडा भाई होने की नजम्मेदारी बखूबी ननभाई, सवं ेदनशील पनत के रूप
में अपनी जीवन सनं गनी को हमेशा बराबरी का दजाि नदया तथा नपता की भूनमका में उन्होंने
अपनी बेनियों, दामादों एवं उनके बच्चों को अपार स्नेह नदया ।

आदरणीय श्री श्याम मदान जी ने इस पुस्तक के माध्यम से अपनी जीवन यात्रा के उतार-
चढाव एवं उनके खट्टे मीठे अनुभवों को अपनी स्मृनतयों के माध्यम से नलखने का सराहनीय
प्रयास नकया है । मुझे आशा ही नहीं बनल्क पूणि नवश्वास है नक उनका यह लेखन हमारे बच्चों
के नलए एक प्रेरणा का स्रोत सानबत होगा ।

शुभकामनाओ ं के साथ ।

डॉ. नवजय चावला

श्याम मदान
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सख
ु द अनभ
ु ू नत
22 नदसबं र 2017 मेरे नलए अत्यतं सख ु द समाचार लेकर आया, जब मझ ु े पता चला नक मेरी
बेिी की बेिी के घर, एक प्यारी सी बेिी ने जन्म नलया है । अचानक ध्यान आया नक यह तो
मेरे पररवार की चौथी पीढी का शुभारम्भ है । नजसकी रोमााँचकता का अनुभव मैं बार-बार कर
रहा था । खदु ही अत्यनिक उत्सानहत एवं प्रसन्न हो रहा था । अपनी बढती उम्र की परवाह
नकए बगैर मैं अपने बढते, फलते-फूलते पररवार को लेकर आननं दत हो रहा था । इस ख़श ु ी को
लोगों में बांिने की चेष्ठा कर ही रहा था नक तभी अनायास ही, मेरी पत्नी ‘हरबस ं ’ की यादें मेरे
स्मनृ त पिल पर ताज़ा होने लगीं । हर कदम मेरी नज़न्दगी में मेरा साथ ननभाने वाली हरबस ं को
सबसे पहले यह समाचार सनु ने और खश ु होने का अनिकार था । लेनकन ऐसा सभ ं व नहीं था ।
परन्तु आरती के नानी बनने और गौरी के मााँ बनने का समाचार मझ ु े मेरी नज़न्दगी की यादों में
कई साल पीछे ले गया । भोपाल के वह सनु हरे नदन याद आने लगे :-

हरबसं का मेरी नज़न्दगी में आना । भारती, आरती और कीनति का जन्म लेना । तीनों बच्चों का
हमारी गोदी में नखलनखलाना, हमारे घर के आाँगन में खेलना और चहचहाना । वो सब याद
आने लगा । हम समझ ही नहीं पाते नक कै से हमारी नज़न्दगी हमें हर मोड पर नए अनुभव कराते
हुए आगे बडती है और नकतनी खट्टी मीठी यादें दे जाती है । यादों में और पीछे जाते ही,
पानकस्तान की गनलयााँ और मेरा बचपन मुझे याद आ रहा है ।

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अनवभानजत भारत
13 मई 1940 को मेरा जन्म अनवभानजत भारत के शहर खानेवाल, नजला मल्ु तान में हुआ ।
मझ
ु े आज भी याद है नक मैं अपने नपताजी के साथ उनकी अनाज की दुकान पर जाया करता
था, साथ ही बने पाकि में खेला करता था, तथा उस समय के सारे तीज त्यौहार भी मनाया
करता था । पजं ाब के सबसे प्रनसद्ध त्यौहार – ‘ लोहडी ’ के अवसर पर घर-घर जाकर
लकनडया एकनत्रत करने की परंपरा ननभाते हुए, एक लोक गीत गाया जाता था । उस लोक
गीत के बोल कुछ इस प्रकार थे –

“ लोई-लोई लक्कड़ दिवा, जीवे तेरा प्यो ते प्रा, िो िादियााँ, िो रमबे, हुंकार मारे चम्बे,
नाइयाुं िे दिछाव्ड़े दिद्दड बैठा कम्बे, टोर भाई टोर साडा शहर है लाहोर, साडी तदलयााँ िैयााँ ठर,
साडी मााँ मरेसी घर ”

पााँच साल की उम्र में हमारी माताजी, नजनकी िदुं ली यादें मेरे मानस पिल पर आज भी हैं ,
उनका देहांत हो गया था । मेरी और मेरी दो बहनों की आयु को देखते हुए, 1946 में, नपताजी ने
दूसरा नववाह करना ठीक समझा । इन माताजी से भी हमें, आपार स्नेह और अपनापन प्राप्त
हुआ । अपने जीवन की आनखरी सााँस तक उन्होंने अपने कतिव्य का पालन करते हुए हमें
पढाया-नलखाया एवं सम्मानजनक जीवन यापन का मागि प्रशस्त नकया । हम सब बहन-
भाइयों ने भी उनको प्यार और सम्मान देने में कोई कमी नहीं छोडी । माताजी की परीक्षा की
घडी तो शादी के एक साल बाद ही शुरू हो गई, जब उन्हें भारत-पानकस्तान नवभाजन से
उपजी अनेक नवपनियों का सामना अत्यंत छोिे बच्चों के साथ करना पढा । उस समय मेरी
आयु के वल सात वर्षि की थी, नकन्तु मुझे उस त्रासदी के अंश आज तक याद हैं ।

सन् 1947 में भारत-पानकस्तान का नवभाजन हुआ । हम सभी जानते हैं नक, वो समय हमारे
नलए नकतना त्रासदी भरा था । नकतनी मुसीबतें झेल कर हम पानकस्तान से यहां पहुंचे । नकतने
घर बबािद हुए, नकतने लोगों को इिर से उिर, उिर से इिर अपना घर-बार छोडकर जाना पडा
और उसी त्रासदी का मैं साक्षात गवाह बना । मैंने वह सब मंजर अपनी आंखों से देखें । अपना
सब पानकस्तान में छोडकर यहां आना और सालों दर-दर भिकना । देश के बंिवारे से पहले
का समय व बिं वारे के बाद का समय आज भी मेरी स्मनृ त पिल पर तरोताजा है ।

“ ट्रेन का कष्टदायक सफर, भेड बकररयों की तरह ट्रेन में लोगों को भरना, कई लोगों का ट्रेन
से नगरना, भूख-प्यास से बुरा हाल होना । ”

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मुल्तान से अिारी तक का सफर मात्र 5 घंिे में पूरा होना था, लेनकन उस वि यह सफर 40 घंिे
में तय हुआ । नबना कुछ खाए नपए, मैं ट्रेन की छत पर लोगों के बीच बैठा था । हमारे सामने
कई लोग ट्रेन से नगरे । अचानक मैं भी अपना सतं ुलन खो बैठा और नफसलने लगा । लेनकन
भगवान को कुछ और ही मंज़ूर था । नकसी अनजान व्यनि ने मुझे सहारा नदया और मैं बच
गया । इस तरह से हम जैसे-तैसे लाहौर स्िे शन पर पहुंचे । हर पल नज़ंदगी और मौत के बीच
युद्ध चलता रहा नकन्तु नजस वि हम भारत के अिारी स्िे शन पर पहुंचे, उस वि हमारी जान में
जान आई । नहंदू और नसखों के हज़ारों स्वंसेवकों को हमारी मदद हे तु तैयार खडे देख, जीने
की सभ ं ावनाएं प्रबल हुई ं । वहां हमारे नलए शरणाथी नशनवरों के इतं ज़ाम नकये गए थे । नकसी
तरह मुनश्कलों का सामना करते-करते जालंिर पहुंचे, वहां नपताजी को एक सज्जन नमलें,
नजन्होंने एक मकान का ताला तोड हमारे रहने का इतं ज़ाम नकया, हम सब ने एकजिु होकर घर
की सफाई की तथा रहने लगे । शहर का अननु चत माहौल देख नपताजी को बहुत ननराशा हुई
एवं हम बच्चों के भनवष्य को लेकर नचंनतत होने लगे । नपताजी ने सोचा नक यहां तो लिू पाि
के अलावा कुछ नहीं है । मेरे बच्चे यहां क्या सीखेंगे ? वह डर गए और हम सब को लेकर
नदल्ली में रह रही हमारी बआ ु जी के घर जाने का ननणिय ले नलया ।

भनवष्य को इतना अंिकारमय और अनननितता से भरा देखते हुए, हमारी नज़न्दगी एक किी
पतंग की तरह लग रही थी और कोई रास्ता नदखाई नहीं दे रहा था । नदल्ली स्िे शन पहुंचने के
बाद भी हम नदल्ली शहर में नहीं जा सके । तीन नदन तीन रात कर्फयिू के कारण स्िे शन पर ही
रहे, जहां शहर में देखते ही गोली मारने के आदेश थे । मैं, नपताजी के साथ प्लेिफामि पर िहल
रहा था नक एक सज्जन से नपताजी ने पुछा, यह सामने खडी ट्रेन कहााँ जा रही है ? – सज्जन ने
नवनम्र होते हुए कहा नक वह जयपुर जाने के नलए तैयार खडी है । नपताजी ने कुछ देर सोचा
और अचानक सामान बााँिने को कहा । माताजी को बोले नक जयपुर में हमारे कुछ ररश्तेदार हैं
जो शायद हमारी मदद कर सकें ।

जयपरु के झालाननयों की हवेली में एक कमरा मात्र 3 रूपए 50 पैसे प्रनत माह के नकराए पर
हमें नमला । हमें सहारा नमलने पर नपताजी काम की तलाश में ननकल गए । उनकी एक
ररश्तेदार से मुलाकात हुई । वह भी जयपुर में ही कारोबार करना चाहते थे । िीरे-िीरे नस्थनत में
सिु ार होने लगा । व्यवसाय जमने लगा । खुद का मकान बना, नपताजी ने हम सभी बच्चों को
स्कूल में भती कराया । समय रहते हमारा पररवार बढा और हम छ: भाई बहन हो गए ।

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पाररवाररक समरसता

जयपरु में स्कूली पढाई परू ी होने पर, मैं इज


ं ीननयररंग करने भोपाल चला गया । वहीं मेरी भारत
हैवी इलेनक्ट्रकल्स नलनमिे ड (भेल) में नौकरी लग गई और उसी नौकरी के रहते भारत हैवी
इलेनक्ट्रकल नलनमिे ड के आदेशानुसार दनक्षण भारत के कुछ बडे सरकारी कारखानों के भ्रमण
का अवसर प्राप्त हुआ, नजस के दौरान बहुत कुछ सीखने को नमला । जयपुर में नपताजी का
व्यवसाय अच्छा चल पडा था ।

1965 में एक नशनक्षत और सस्ं कारी हरबंस ढींगरा से मेरा नववाह हुआ, जो नक भोपाल में
सरकारी नौकरी करती थीं । उनके नपताजी एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जो शहीद भगत नसहं जी
के साथ कई योजनाओ ं में शानमल थे । शादी के बाद भी हरबंस ने अपनी आगे पढाई जारी
रखी और घर-गृहस्थी का भी पूरा ध्यान रखा । उन्होंने एम. ए. तथा बी. एड. की पढाई शादी के
बाद ही पूरी की । 1966 में मेरी बडी बेिी ‘भारती’ हमारी नज़न्दगी में आई और 1967 में दूसरी
बेिी ‘आरती’ । मैं अपनी दोनो बनच्चयों और पनत्न के साथ भोपाल में सुखमय जीवन व्यतीत
कर रहा था, लेनकन भगवान को कुछ और ही मंज़ूर था ।

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सन् 1970 की बात है , जयपुर से अचानक मेरे नपताजी के अस्वस््य होने का समाचार नमला ।
मुझे और मेरी पत्नी को, हमेशा के नलए जयपुर रवाना होना पढा क्योंनक मेरे दोनो भाई अभी
नवद्यालयीन पढाई कर रहे थे । कहीं मन में यह बात थी नक, हरबंस की सरकारी नौकरी है, वह
छोड पाएगी या नहीं । लेनकन मेरी सोच के नबल्कुल नवपरीत मेरी पत्नी ने, नन:सक ं ोच तुरंत ही
जयपुर चलने और सास-ससरु की सेवा करने का ननणिय नलया । जयपुर आकर नपताजी का
व्यवसाय सभ ं ालने से पहले , जब मैं भारत हैवी इलेनक्ट्रकल्स नलनमिे ड में अपनी नौकरी से
इस्तीफा देने गया, तभी मुझे एक और बेहतर नौकरी, जो नक कें द्रीय सरकार द्वारा मुझे
प्रस्तानवत की गयी थी, का पता चला । नकन्तु मैंने, मेरे नपताजी की सेवा को प्राथनमकता दी ।
इसी कारण मैंने, नौकरी का प्रस्ताव ठुकराकर जयपुर आने का ननणिय नलया ।

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1971 की 13 माचि को मुझे नवदाई पािी दी गई और मैं अपने पररवार को लेकर जयपुर आ
गया । नपता जी की सेवा के साथ-साथ अपना व्यवसाय बढाने हेतु - गोनवंद मागि, आदशि नगर
में एक ‘ऑिोमेनिक पल्सेस प्रोसेनसगं प्लांि’ लगाया । मैं दाल नमल संभालने लगा और मेरे
छोिे भाई ने अपनी पढाई के साथ-साथ कम उम्र में ही नपताजी के व्यवसाय को सभ ं ाल नलया
। मेरा हमेशा प्रयास रहा नक मैं अपने व्यापार को परू ी नैनतकता और ननष्ठा के साथ करूाँ और
मैंने ऐसा नकया भी । मैंने पैसा कमाने की होड में कभी भी गलत तरीको का उपयोग नहीं
नकया और न ही अपने साथ जुडे व्यापाररयों एवं कमिचाररयों के साथ दुव्यिवहार नकया ।
िीरे-िीरे नज़न्दगी की नई शुरुआत में सब कुछ अच्छे से चलता रहा, पूरे पररवार के सहयोग से
हमारा व्यवसाय तरक्की करने लगा ।

1970 में मेरी तीसरी बेिी कीनति का जन्म हुआ । मेरी पत्नी ने पररवार और बच्चों को सभ
ं ालने
में मेरा पूरा योगदान नदया । उन्होंने पररवार की पसदं ना पसदं को सवोपरर माना । अपनी
इच्छाओ ं को कभी प्राथनमकता नहीं दी । एक स्वतंत्रता सेनानी की बेिी थीं इसनलए उनमें राष्ट्र
भनि की भावना सच ं ाररत होना स्वाभानवक था । साथ ही अत्यंत सहृदयी एवं सरल स्वभाव

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उनके व्यवहार की नवशेर्षता रही । स्वास््य के प्रनत अत्यंत सजक रहने के साथ साथ
समयानुसार खान पान और ननयनमत रूप से व्यायाम उनकी नदनचयाि का नहस्सा बने । उन्होंने
मेरे छोिे भाइयों को भी भाभी मााँ जै सा स्नेह नदया और पूरे चाव से उनकी शानदयां भी कीं ।
आपसी तालमेल से हमारा सयं ुि पररवार एक आदशि पररवार की तरह लगने लगा था नजसमे
मेरी तीनों बनच्चयों को भी उनसे अपार स्नेह नमला । इस प्रकार उनके सम्बन्ि में कहा जा
सकता है नक उनमें एक आदशि गृहणी के सारे गुण मौजूद थे । घर के सभी काम करने के साथ
साथ वह बच्चों की उतनी ही अच्छी नशनक्षका भी थीं ।

1979 में मेरे भाई ‘रमेश’ की शादी एक सयु ोग्य लडकी “ररतु” से और 1984 में छोिे भाई सरु े श
की शादी ‘कमल’ से हुई । रमेश और ररतु को एक बेिा ‘रोनहत’ एवं एक बेिी ‘पल्लवी’ हुए ।
सरु ेश और उसकी पत्नी ‘कमल’ की दो बेनियां ‘नशल्पी’ एवं ‘तन्वी’ और एक बेिा ‘देव’ हुए ।
नज़न्दगी चलती रही, जयपुर शहर में अपना नाम कमाया । व्यावसानयक जगत में एक
सम्मानजनक स्थान हानसल नकया । तीनों भाइयों के प्यार में कभी कमी नहीं आई । तीनों
बेनियां भी अपनी-अपनी नशक्षा प्राप्त करती गई ं और जैसे-जैसे उनके नलए सयु ोग्य वर नमलते
गए उनको नववाह के सत्रू में बांि, अपनी नज़म्मेदाररयों का ननविहन नकया ।

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1985 में भारती की शादी ‘नवजय चावला’ के साथ, 1989 में आरती की शादी ‘अननल
अरोरा’ के साथ, 1991 में कीनति की ‘अनखल अरोरा’ के साथ हुई । तीनों के एक-एक नबनिया
और एक-एक बेिा है । सभी बच्चे अपनी पढाई पूणि कर यथा योग्य नौकरी और व्यवसाय में
व्यस्त हैं ।

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मेरे छोिे भाई ‘रमेश’ के पुत्र ‘रोनहत’ की शादी एक प्रनतभाशाली कन्या ‘शेली’ के साथ हुई ।
नजनके एक पुत्र ‘शौयि वीर’ एवं पुत्री ‘समायरा’ हैं । शेली और रोनहत इस पररवार के ऐसे
सदस्य हैं, नजन्होंने न के वल अपने माता-नपता को, बनल्क सयं ुि पररवार को एक ऐसे बंिन में
बांिे रखा नजसके कारण आज हमारा पूरा पररवार एक आदशि पररवार की तरह जाना जाता
है । रोनहत – शेली के इसी व्यवहार की मैं अत्यनिक सराहना करता हाँ । शे ली ने मेरी तीनो
बेनियों को अत्यनिक प्रेम और सम्मान नदया एवं स्वयं भी बहु से अनिक बेिी का दजाि
हानसल नकया । शौयि और समायरा ने भी मुझे आपार स्नेह नदया ।

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मेरे पररवार के सदस्यों की व्यस्तताओ ं को देख करीब 12 वर्षि पूवि ननिय नकया नक मैं अपने
जन्मनदवस पर सभी को एकनत्रत करने का एक अनभयान चलाता हाँ । इस अनभयान में काफी
हद तक मैं सफल भी रहा । प्रत्येक वर्षि नकसी एक नए ररसोिि में मनोरंजक कायिक्रम आयोनजत
कर पूरे पररवार को आमंनत्रत नकया जाता है । सभी को प्रफुनल्लत एवं अन्नानन्दत होते देख,
मुझे बेहद प्रसन्नता का आभास होता है । ये करके नदल में एक सतं ोर्ष भी रहता है नक मैंने
अपने पररवार की ख़ुशी के नलए अपना योगदान नदया ।

सतं ोर्ष हमारे घर पररवार का एक अहम नहस्सा है, नजसने मेरे


पूरे पररवार को अपना मानकर पूरी ननष्ठा से अपनी सेवाएाँ दीं
तथा मेरे स्वास््य के प्रनत भी हमेशा सजक रहा । इतना ही
नहीं, सतं ोर्ष ने ग्रह कायों में भी भरपूर सहयोग नदया और
हमेशा हमारा शुभनचंतक बनकर रहा ।

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डॉ. सी. पी. शमाि से मेरी पहली मुलाकात ज़रूर एक नचनकत्सक के रूप में हुई । लेनकन उनके
मृदुल स्वभाव, आत्मीय व्यवहार और अपनेपन के एहसास ने उन्हें बहुत जल्द ही मेरी बहन का
स्थान दे नदया । उनकी बेिी ‘आभा’ अपने पनत ‘हरमन’ के साथ स्कॉिलैंड के एनडनबगि शहर
में रहती हैं । वह न के वल एक स्कॉलर हैं, बनल्क अच्छी एिं रप्रेन्योर भी हैं । एनडनबगि शहर में ,
उनके दो रेस्िोरें ि हैं और साथ ही एक गैस्ि हाउस भी है , नजनका वे सफलतापूविक सच ं ालन
करती हैं । स्वभाव से अत्यंत सवं ेदनशील ‘आभा’ को मैं अपनी चौथी बेिी मानता हं । वास्तव
में, वह भी बेिी होने के सारे दानयत्व ननभाती हैं । अपने जीवन में घिी हर छोिी बडी बात
मुझसे साझा करती हैं । मेरे द्वारा दी गई हर सलाह को अत्यनिक महत्व देती हैं । डॉ. सी. पी.
शमाि के पुत्र ‘सौरभ’ तथा बहु ‘कृनतका’ से भी मुझे आपार स्नेह एवं सम्मान नमला और िीरे-
िीरे वह भी हमारे पररवार का नहस्सा बन गए ।

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सामानजक उिरदानयत्व
पररवार की ओर से अत्त्यानिक प्रसन्न और सतं ुष्ट होने के पिात, सामानजक कायों में भी मेरी
रूनच बढने लगी । मुझे 1975 में जयपुर दाल नमल एसोनसएशन का “महासनचव” बनने का
अवसर नमला । 1977 में राजस्थान चेंबर ऑफ कॉमसि इडं स्ट्री में मुझे एग्ज़ीक्यूनिव कमेिी में
नलया । 1977 में ही आदशि नगर रामा कृष्णा नमनडल स्कूल की कायिकाररणी में भी स्थान
नमला । पररवार और व्यवसाय में पूरा योगदान देने के उपरान्त भी मैं सामानजक कायों में
सनक्रयता से जुडा रहा । मेरी पत्नी हरबंस, सामानजक सेवा कायों में भी अग्रणी रहीं । उन्होंने
आनथिक रूप से नपछडे वगि के बच्चों को नशक्षा दी एवं ज़रूरतमंद मनहलाओ ं हेतु अनेक सेवा
कायि नकए । पाररवाररक नजम्मेदाररयों के साथ साथ समाज सेवा के उिरदानयत्व को भी
बखूबी ननभाया ।

1984 में लायंस क्लब का प्रेनसडेंि 1985 में ज़ोन चेयरमैन 1990 में नडनस्ट्रक्ि गवनिर के पद पर
रहकर सेवा कायो में जुडने एवं उनमे काम करने का अवसर प्राप्त हुआ । ब्लड डोनेशन कै म्प,
वृक्षारोपण तथा नचनकत्सा नशनवरों में भी कई सेवा कायि नकए । मेरे नलए सबसे महत्वपूणि
आई ऑपरेशन प्रोजेक्ि रहा नजसके अंतगित 125 से ज़्यादा कै म्प छोिे बडे गााँव में लगाये गए ।

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इस पुनीत कायि हेतु मुझे लायंस इिं रनेशनल के अध्यक्ष द्वारा सम्माननत नकया गया । 1994 में
लायंस क्लब इिं रनेशनल की मैनेजमेंि कमेिी की मीनिंग हेतु नेपाल जाने का अवसर नमला ।

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1995 में प्रोडनक्िनविी कौंनसल ऑफ़ इनडडया, भारत सरकार की एग्जीक्यूनिव कमेिी का
सदस्य रहते आसाम जाने का अवसर नमला । गुवाहािी ररफ़ायनरी का औपचाररक ननरीक्षण
नकया । इस कायि में मेरे अलावा 16 डेनलगेि भी थे, जो नक नवनभन्न क्षेत्रों के नवशेर्षज्ञ थे । इस
िूर में हमने कांजीरंगा का गैंडा पाकि एवं नशलांग के मनोरम स्थलों का भ्रमण नकया ।

1995 में क्रार्फि काउंनसल ऑफ राजस्थान, जो नक क्रार्फि्स कौंनसल ऑफ़ इनं डया से सम्बद्ध
है, में मुझे अध्यक्ष के पद पर चुन नलया गया । इस सस्ं था में मुझे करीब 15 वर्षि कायि करने का
अवसर नमला । नजसके अंतगित नशल्पकारों एवं दस्तकारों को सहयोग करने की अनेक
योजनाओ ं पर कायि नकया । नजसमे अनेक बढे शहरों में प्रदशिननयां आयोनजत करना, ट्रेननंग के
कायिक्रम आयोनजत करना तथा हस्त नशल्पों का सवे एवं डॉक्यूमेंिेशन करना प्रमुख था । इन
सभी योजनाओ ं हेतु नवकास आयुि हस्तनशल्प वस्त्र मंत्रालय भारत सरकार द्वारा नशल्पकारों
को आनथिक सहयोग भी प्रदान नकया जाता था ।

जयपरु दाल नमल एसोनसएशन के अध्यक्ष की नज़म्मेदारी नमली, इस पद पर रहते हुए भारत
सरकार ने मझ ु े दाल उत्पादन में मेरी योग्यताओ ं को ध्यान में रखते हुए प्लाननगं कमीशन ऑफ
इनं डया से सराहना नमली । प्लैननगं कमीशन को नदए गए मेरे सझ ु ावों के अनस ु ार दालों की
प्रोसेनसगं के समय जो वेस्ि ननकलता है, यनद उस पर ध्यान नदया जाए तो दालों के उत्पादन में
काफी बढोतरी हो सकती है । दालों के आयात में जो नवदेशी मद्रु ा बडी मात्रा में खचि होती है,
उस पर भी ननयत्रं ण पाया जा सकता है । मेरे इन्ही सझ ु ावों को कें द्र सरकार ने राजस्थान सनहत
अनेक राज्य सरकारों को पत्र नलख कर अवगत कराया एवं उन पर अनुसरण करने का आग्रह
भी नकया ।

सन् 2000 में भारत नवकास पररर्षद् के माध्यम से समाज सेवा करने का अवसर नमला नजसके
अंतगित कच्ची बनस्तयों एवं आभाव ग्रस्त क्षेत्रों के नवद्यालयों एवं आनथिक रूप से नपछडे
नवद्यानथियों को उनकी आवश्यकताओ ं की वस्तुए उपलब्ि काराई गयी । कालांतर में भारत
नवकास पररर्षद् की शाखा का अध्यक्ष बना, तदोप्रांत राजस्थान प्रांत का महासनचव एवं
प्रांतीय अध्यक्ष के पद पर भी कायिरत रहा ।

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मैं और मेरी पत्नी ‘हरबंस’ सख ु ी जीवन व्यतीत कर रहे थे और सोच रहे थे नक सारी
नज़म्मेदाररयां ननभाने के बाद अब हम एक दुसरे के नलए कुछ वि ननकालेंगे । लेनकन तभी
जीवन में एक और भूचाल आ गया । एक नदन, मेरी पत्नी द्वारा ली गयी सािारण सी सरददि
की एक दवाई के दुष्प्रभाव से उनकी तबीयत एकदम नबगडी और अनेको अथक प्रयास करने
के बावजूत भी उन्हें बचाया नहीं जा सका । 6 फरवरी 1994 की मध्य रात्री में
सतं ोकबा दुरलभजी मेमोररयल अस्पताल में उन्होंने अपनी आनखरी सााँस ली ।

सन् 2000 में 60 वर्षि की आयु होते ही मैंने अपने व्यवसाय से सेवाननवृि होने का ननणिय नलया
क्योंनक पाररवाररक नज़म्मेदाररयां पूणि हो चुकी थीं । तीनों बेनियों के नववाह हो गए थे तथा
दोनों छोिे भाइयों ने अपने -अपने व्यापार सभ ं ाल नलए थे । दाल नमल को पूरी तरह से बंद
करना आसान नहीं था । न मेरे नलए, और न ही मेरे कमिचाररयों के नलए । व्यापाररयों की सारी
उिारी माफ़ कर अपने सारे कमिचाररयों को छ: माह की अनग्रम रानश देकर मैंने यह कायि पूणि
नकया । दाल नमल के स्थान पर एक शॉनपंग कॉमप्लेक्स बनाने का ननणिय नलया, नजसे बनाने
के उपरान्त मुझे नकराए के रूप में पेंशन नमलने लगी ।

हरबंस की मृत्यु के पिात मेरे जीवन में एक एकांकीपन आ गया था । क्योंनक बहुत हद तक मैं
उन पर आनश्रत था । अचानक मुझे लगने लगा नक मैं अके ला पड गया हं । मुझे मेरी तीनों
बेनियों की नचंता होने लगी थी । एक पल को लगा नक उनका तो मायका ही नछन जाएगा ।

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यह सब अके ले कर पाना मेरे नलए अत्यंत मुनश्कल था । लेनकन पूरे पररवार के सहयोग से
जीवन आसान होता चला गया । मेरे छोिे भाई की पत्नी ररतु ने ना के वल मेरा ख्याल रखा
बनल्क मेरी बेनियों को भी अपार स्नेह और प्यार नदया । ररतु एक ऐसा व्यनित्व है नजन्होने
कभी नकसी का नदल नहीं दुखाया, कभी गुस्सा नहीं नकया, बडों को हमेशा सम्मान नदया,
बच्चों से अपार स्नेह रखा और घर आए अनतनथ का पूरी ननष्ठा से स्वागत-सत्कार नकया । नफर
चाहे वो अनतनथ हमारे नकसी ररश्तेदार का ररश्तेदार ही क्यों न हो । अपनी थकावि व
परेशाननयों को कभी अपने चेहरे से उजागर न करते हुए हमेशा दूसरों के नलए सोचा और उन्हें
अपनापन नदया । इतनी सरल, सहज, शालीन, सहनशील ररतु ने मेरी बेिी की उम्र की होते
हुए भी एक मााँ की भूनमका ननभाई । उसने न के वल मेरा ख्याल रखा बनल्क भारती, आरती
और कीनति को भी अपार स्नेह और दुलार नदया । सारे तीज-त्योहार और रीनत-ररवाज बेनियों
के साथ इस तरह ननभाए नक उन्हें आज तक मााँ की कमी महसस ू नहीं होने दी । तीनों दामाद
भी इस घर में जो सम्मान पाते हैं उसका भी परू ा श्रेय ररतु और रमेश को ही जाता है ।

रमेश चाहे आसानी से अपनी भावनाएं अनभव्यि न करता हो लेनकन इतना नननित है नक ररतु
के हर छोिे बडे फैसले में उसकी स्वीकृनत रहती है । वो हर कदम ररतु का साथ देता है एवं
समय समय पर उसे प्रोत्सानहत भी करता है । एक सयं ुि पररवार को बांिकर रखने के जो
सस्ं कार इन दोनों में हैं , बहुत कम पररवारों में देखने को नमलते हैं । मैं गवि से कह सकता हं नक
आज जब पूरे देश में सयं ुि पररवार िूि रहे हैं, तब इन दोनों ने एक नई नमसाल कायम कर पूरी
ननष्ठा से सयं ुि पररवार के आदशों को बरकरार रखा है । इनके सस्ं कारों को देखकर अनायास
ही मुझे मेरे नपताजी श्री खानचंद मदान जी की याद आती है । जो िानमिक और कमियोगी होने
के साथ-साथ आदशिवादी इस ं ान भी थे । नजनका देहांत 9 साल तक लकवा ग्रस्थ बीमारी से
लडते रहने के बाद हुआ । अपने अंनतम समय में वह के वल राम नाम का स्मरण नकया करते थे
। उनके स्वास््य लाभ हेतु हमने नचनकत्सा क्षेत्र में अनेको प्रयास नकये लेनकन सफल न हो
सके । उनके आदशों और सस्ं कारों को मैंने हमेशा अपने अन्दर आत्मसात् नकया, और उनपर
चलने का पूरा प्रयास भी नकया ।

श्याम मदान
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यात्रा वृतांत
जीवन यापन की मूल-भूत आवश्यिायें पूणि होने के पिात नवदेश यात्रायों के अवसर भी
प्राप्त होने लगे ।

यूनधइटे ड लकंर्गडम

सन् 2004 में मुझे आभा ने स्कॉिलैंड घूमने एवं कुछ नदन अपने साथ रहने के उद्देश्य से
आमंनत्रत नकया । डॉ. सी. पी. शमाि जी, डॉ. नवजय चावला (मेरे सबसे बढे दामाद) के साथ मैं
स्कॉिलैंड – एनडनबगि पहुंचा । लगभग 40 नदन के प्रवास में मुझे जो प्यार और अपनापन
नमला, मैं कभी भुला नहीं सकता । वह नदन मेरे जीवन के उन सनु हरे नदनों में शानमल हैं जो
मझ ु े अत्यतं सख
ु द अहसास कराते हैं । आभा ने, न के वल अपने शहर के नवशेर्ष स्थलों का
भ्रमण कराया, बनल्क वहां रहने वाले अपने नमत्रों से भी रूबरू करवाया । नजस कारण वहां
की सस्ं कृनत और रहन-सहन को भी करीब से जानने का अवसर नमला । रोज़ मझ ु े एक नई
जगह पर ले जाया जाता तथा उसके बारे में परू ी जानकारी दी जाती ।

श्याम मदान
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15 नदन के पिात नवजय को अपने कारोबार को देखने हेतु इनडडया वापस आना पढा । नकन्तु
मैंने शेनेगन का भी वीसा ले नलया था, नजसकी वजह से हरमन के साथ पेररस जाने का
प्रोग्राम तय कर नलया । नकसी कारणवश हरमन का जाना मुमनकन नहीं हो पा रहा था । लन्दन
के एक बाज़ार में घूमते हुए अचानक मेरी नज़र एक ट्रेवल एजेंसी पर पढी । मैंने पेररस जा रहे
िूर के बारे में जानकारी ली, क्योंनक मैं अके ला था - नकसी िूर के साथ जाने का ख्याल मन में
आया । उसके पिात िूर ऑपरे िर को दो नदन बाद जाने वाले एक िूर में मेरी बुनकंग कराने का
आग्रह नकया ।

पेररस

64 वर्षि नक आयु में अके ले अनजान देश में, जहां की भार्षा की कोई समझ नहीं, वहां जाना
अपने आप में काफी चुनोती भरा अनुभव रहा । नजन लोगों के साथ मैंने िूर की बुनकंग करवाई
थी, आज उनसे नमलने का नदन था । आज नए अनजाने सफ़र पर कुछ अनजान लोगों के साथ
जाने का नदन था ।

आनखर वह यात्रा, वह सफ़र शुरू हो गया । एक गज ु राती पररवार, नजनके 15 से 20 लोग थे


और एक मैं । कुछ समय पिात अके लेपन का आभास होने लगा । पीछे एक कोने से उठकर
खडा हुआ और उनके पास जाकर ताली बजाते हुए कहा, मझ ु े माफ़ करें , मैं यहााँ आकर गलती
कर बैठा हाँ । आप सभी अपने परू े पररवार के साथ यात्रा कर रहे हैं, नकन्तु मैं अके ला पढ गया
हाँ । ऐसे में इतनी लम्बी यात्रा करना मेरे नलए सभ
ं व नहीं हो पायेगा । मेरे आग्रह का मान रखते
हुए, उन सज्जन लोगों ने मुझे बडे ही प्रेम से अपने पास नबठाया और मुझसे बातचीत शुरू कर
दी । अपने पररवार जैसा समझते हुए, मेरा पूरा साथ नदया ।

पेररस अनत सन्ु दर देश है नजसका वणिन शब्दों में नहीं नकया जा सकता । गुजराती पररवार से
भी अत्यंत प्रेम नमला और यात्रा सख
ु द एवं मंगलमय रही । भार्षा की वजह से थोडी परेशानी
ज़रूर रही नकन्तु सभी का साथ होने की वजह से इस कमी का आभास कम हुआ ।

मंबई – िक्श्वदीप स्टधर क्रूज

सन् 2007 मेरे जीवन की पहली समुद्री जहाज़ की यात्रा नजसका अनुभव रोमााँनचत करने
वाला रहा । मुंबई पोिि पर खडे नवशालकाय जहाज़ और उसके अन्दर बसाई पूरी दुननया, एक
अजूबा है । मैं नवजय और उसके पूरे पररवार के साथ गया, नजनमे उनके नपताजी, बच्चे , एवं
भतीजे भी शानमल थे । समुद्री लहर देखते हुए खुली हवा में बैठना एवं उसे महसस
ू करना मेरे
जीवन के कुछ अनमोल पलों में से एक हैं ।

श्याम मदान
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मॉरीशस

सन 2007 में मॉरीशस से एक डेलीगे शन नदल्ली भारतीय योग सस्ं थान में योगा ट्रेननंग के नलए
भारत आया । भारतीय योग सस ं थान की जयपुर इकाई के अध्यक्ष होने के नाते सब की रहने
की व्यवस्था तथा जयपुर भ्रमण की नज़म्मेदारी मेरी थी, जो नक मैंने पूणि रूप से ननभाई । सभी
लोगों ने जयपुर की सांस्कृनतक िरोहर का अवलोकन कर अपनी प्रसन्नता व्यि की तथा मुझे
मॉरीशस आने का ननमंत्रण भी नदया ।

सन् 2008 में मझ ु े , श्री बाबरू ाम चावला (मेरे समिी), श्री पी.डी. मदान एवं सरदार श्री
नौननहाल नसहं के साथ घमू ने एवं योगा को बढावा देने के उद्देश्य से मॉरीशस जाने का अवसर
प्राप्त हुआ । बडे ही आदर सत्कार सनहत सभी लोगों ने हमारा स्वागत नकया । 75 नक.नम. की
दूरी तय करके वह सब ‘लालमािी’ से हमें अपनी गानडयों में लेने आये थे । नजसे देख हम सब
आत्मनवभोर हो उठे । इस पूरे रास्ते में हमे वहां की सस्ं कृनत एवं इनतहास के बारे में बताया गया
। भोजपुरी एवं फ्रेंच वहां की राष्ट्र भार्षा है । सभी लोग वहां सरकार से खुश रहते तथा सरकार
की ओर से सभी के नलए ढेरों सनु विाए - जैसे नक अस्पतालों में नन:शुल्क इलाज, सभी प्रकार
की मुर्फत नशक्षा, नवद्यानथियों के नलए नन:शुल्क बस यात्रा एवं सभी वररष्ठ नागररकों के नलए
पैंशन आनद प्रदान की जाती है ।

‘लालमािी’ तक का हमारा यह सफ़र काफी रोमााँचक एवं ज्ञानवििक रहा । हमारे रहने के नलए
दो रूम का पूरा र्फलैि नदया गया जो नक पूणि रूप से सस
ु नज्जत था । कुछ देर नवश्राम करने के

श्याम मदान
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पिात सभी ने साथ में भोजन नकया और अगले नदनों की योजनायें बनाकर सभी चीज़ों का
ननयनमत समय तय कर नलया गया ।

बहुत ही शांत तथा नहंसा मुि देश, नजसमे 40 से अनिक अनत सन्ु दर बीच हैं । रोज़ सबु ह के
समय खाना एवं नाश्ता लेकर भ्रमण के नलए ननकल जाते तथा शाम होने पर योग सािना के
अभ्यास में व्यस्त हो जाते । वह 10 अनमोल नदन हाँसते खेलते कब बीत गए उसका आभास
ही नही हुआ । आखरी रात को हमारे रवाना होने से पहले लोक सगं ीत के मनोरंजक कायिक्रम
का आयोजन नकया गया तथा अंत में भावभीनन नवदाई दी गई ।

सम्पूर्ि दलिर् भधरत

अक्िूबर – नवम्बर 2009 - चार नमत्रों के साथ ननणिय नलया नक सम्पूणि दनक्षण भारत का
भ्रमण नकया जाए । और हम चार नमत्र – श्री वेद किाररया, डॉ. देसराज परनामी, श्री पी. डी.
मदान और मैं, जयपरु से ट्रेन द्वारा रवाना होकर आणदं , बडौदा, गोवा, कोनच्च के साथ परू ा
के रल, कन्याकुमारी, मदुराई, रामेश्वरम, बैंगलोर, मैसरू , हैदराबाद से होते हुए 26 नदन बाद
जयपरु पहुचं े।

यात्राओ ं के दुसरे चरण में मैंने अपनी बेनियों के पररवारों को साथ लेकर अनेक मनोसज
ं क
यात्राएं की ।

केरिध

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सन् 2013 में अपनी तीनों बेनियों और उनके सारे बच्चों के साथ के रला घूमने जाने की
पाररवाररक यात्रा बहुत ही मनोरम रही । समुद्र तथा हररयाली का आनंद नलया एवं रक्षाबंिन
का पावन त्यौहार एक समुद्री बोि में बडे ही िूम िाम से मनाया । सभी बच्चों को आनंनदत
देख मुझे अत्यंत ख़ुशी का आभास हुआ । वह पूरी यात्रा सभी बच्चों और मेरे नलए हमेशा
यादगार रहेगी ।

लसंर्गधपर – िंग्कधवी जै लमनी स्टधर क्रूज़

सन् 2016 में मेरी बेनियों और उनके सभी बच्चों के साथ दूसरा बेहतरीन अनुभव था । इस
बार नवशालकाय समुद्री जहाज़ की यात्रा नसगं ापूर से मलेनशया की थी । इस बार मेरे छोिे भाई
की पनत्न ‘ररतु’ एवं उनकी पुत्री ‘पल्लवी’ भी हमारे साथ थीं ।

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बधिी

सन् 2018 में नवभा, नवरल और सोम्या के साथ बाली, इडं ोनेनशया जाने का अवसर नमला ।
सनु विा को ध्यान में रखते हुए, बच्चों ने िूर प्रारम्भ होने से पूवि ही वहां एक कार की बुनकंग
कर ली थी । जो नक नबना ड्राईवर हमें बाली हवाई अड्डे से नमल गयी थी । पूरे सात नदन तक,
वह कार हमारे पास ही रही । पूरे मुनस्लम देश में इकलौता शहर बाली नहन्दुओ ं का था । शहर
से दूर एक खेत पर बना घर नकराए पर नलया नजसमें नस्वनमंग पूल, लक्ज़री रूम, गैराज एवं
नकचन भी था, जहां हम दो रातों के नलए रहे । वह अनुभव हमारे नलए नया एवं अद्भुद था ।
प्रकृनत के इतने करीब रहकर वहां के लोगों को जानने का अवसर नमला । आनंदपूविक यात्रा
पूरी कर हम वानपस तो आ गये नकन्तु लगता है नक मन अभी भी वही ाँ कहीं घूम रहा है ।

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रॉयि कॅरीबीयन क्रूज़ ( लसंर्गधपूर - मिेलशयध - थधईिैंड )

सन् 2019 - अमेररका की एक बडी क्रूज़ कंपनी – रॉयल कॅ रीबीयन का क्वांिम ऑफ़ द सीज़
जो नक दुननया के 10 सबसे बडे जहाज़ में से एक है , नसगं ापुर से मलयेनशया के बीच चलने हेतु
आया । हालांनक क्रूज़ में मेरा यह तीसरी बार जाना हुआ । नकन्तु सबसे बडे एवं बहुमंनजला
क्रूज़ का यह पहला अनुभव था । इस बार नसगं ापरू शहर में चार नदन नबताने के बाद क्रूज़ से दो
और नए शहर फुके ि (थाईलैंड) और पेनांग (मलेनशया) घुमने का मौका भी नमला । नवरल
और सौम्या के अलावा उनके दोस्त प्रतीक, रािा एवं बच्ची रानिका साथ थे । नसगं ापुर की
पूरी यात्रा हमने मेट्रो रेल से ही की । यह अनुभव मेरे नलए आनंदमय रहा, वहां के लोगों के
बीच यात्रा करते उनके रहन-सहन जानने का मौका नमला । हंसते -खेलते 11 नदन नबताए और
आत्मनवभोर होकर वापस लौिे । रािा एवं प्रतीक, जो नक मेरे नवासे के हमउम्र हैं, मेरा बहुत
ख्याल रखा । उनके हस ं मुख स्वभाव ने मुझे बहुत ही आकनर्षित नकया ।

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आध्यानत्मक पहलु
ऐसा प्रतीत होता है नक मेरी आध्यानत्मक नशक्षा की नीव 5-6 वर्षि की आयु में रखी गयी थी ।
हमारी माताजी की मत्ृ यु के बाद बआ ु जी और फूफा जी ने हमारी परवररश की, जो नक हमारी
ही हवेली के एक नहस्से में रहते थे । फूफा जी से मझ ु े अध्यानत्मक ज्ञान प्राप्त हुआ । वे श्री कृष्ण
के अनन्य भि थे । गायत्री मत्रं , रामायण, महाभारत एवं उससे जडु े एक-एक पात्र का नवश्ले र्षण
देते हुए मझ
ु े कहानी के रूप में सनु ाया करते थे । उत्सुकता एवं ध्यान पवू िक मैं सारी बातें सनु ता,
समझता एवं याद रखता था । छः वर्षि की आयु तक मुझे हनमु ान चानलसा ज़बु ानी याद हो
गयी थी । भारत – पानकस्तान के नवभाजन के पिात नपताजी से ज्ञान एवं सस्ं कार नमले जो
नक जीवन में अत्यतं काम आये ।

मैंने योग का नवनिवत प्रनशक्षण ऋनर्षके श जाकर भी नलया एवं हमारी योग नवद्या में दशाि ये
योग आसनों का वर्षों अभ्यास नकया । सन् 1980 में भारतीय योग सस्ं थान की एक शाखा से
जुडने का अवसर प्राप्त हुआ, उसी के एक अभ्यास नशनवर में मुझे महनर्षि पतंजनल के योगसत्रू ों
के सक ं लन के बारे में अवगत कराया गया, नजसमें उन्होंने पूणि कल्याण तथा शारीररक,
माननसक और आनत्मक शुनद्ध के नलए आठ अंगों वाले योग का एक मागि नवस्तार से
बताया । मुझे जानने को नमला नक अष्टांग योग (आठ अंगों वाला योग) को आठ अलग-
अलग चरणों वाला मागि नहीं समझना चानहए; यह आठ आयामों वाला मागि है नजसमें आठों
आयामों का अभ्यास एक साथ नकया जाता है । योग के ये आठ अंग हैं: - यम, ननयम,
आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, िारणा, ध्यान, समानि । मेरा ऐसा मानना है नक योग अभ्यास
में मेरी अत्यनिक रूनच मेरे सस्ं कारों एवं पररवार में रहे अत्यानध्मक वातावरण के कारणवश
रही है ।

कुछ ही समय में मुझे भारतीय योग सस्ं थान का प्रिान बनाया गया । जयपुर में हम सभी ने
नमलकर 16 से अनिक शाखाएं खोलीं । अनेक अलग – अलग नशनवरों में जाकर मैंने
अध्यात्म एवं योग का प्रनशक्षण नदया । 1984 में शहीद भगत नसहं पाकि में योगा क्लास
प्रारम्भ की, नजसका प्रभारी मुझे बनाया । भगत नसहं पाकि सनमनत का 6 साल तक अध्यक्ष
रहा । योगा कक्षाओ ं में मेरे सभी साथी पूणि समपिण के साथ खडे रहे और साथ नमलकर
राजस्थान की अनेक यात्राएाँ की ।

जीवन में हमारे साथ जो भी घनित होता है , उसके पीछे ईश्वर का कोई न कोई प्रयोजन रहा
होता है । यह मैंने तब अनभ
ु व नकया, जब मेरी पत्नी हरबस
ं जी का देहांत काफी कम आयु में

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हुआ । अके लापन महसस ू करने के साथ-साथ अनेकानेक नकारात्मक नवचारों से मैं नघरने
लगा । मैं कई सतं ों के व्याख्यान सनु ने जाने लगा, योग सािना भी करने लगा । अपने मन को
शांत एवं सहज रखने का प्रयास भी करने लगा । नकन्तु इन सभी के बावजूद मेरा मन उदास
रहता था । पत्नी के रूप में नमली मेरी सच्ची साथी, नजसने हर पररनस्थनत में मेरा साथ नदया,
उसके नबना जीवन व्यतीत करना कदानप सरल कायि नहीं था । इसी बीच मुझे श्री रामचंद्र
नमशन, नजनकी कई शाखाएं पूरे नवश्व में हैं , से जुडने का मौका नमला । वहां दीक्षा लेकर योग
सािना एवं ध्यान कर अपने सांसाररक एवं अध्यानत्मक जीवन के सतं ुलन को बनाये रखते हुए
उनका अनुसरण करने लगा । उनकी इस नवचारिारा से मैं अत्यनिक प्रभानवत हुआ नक
अध्यात्म एवं सािना को अपने जीवन में उतारने के नलए सांसाररक वस्तुओ ं का त्याग करना
आवश्यक नहीं है । पाररवाररक जीवन व्यतीत करते हुए भी हम आध्यानत्मक हो सकते हैं ।
अध्यात्म की नजज्ञासाओ ं की पनू ति के नलए मैंने राम चंद्र नमशन के सानहत्य को भी नवस्तार से
पढा । साथ ही उनके द्वारा कराए जाने वाले मेनडिे शन के महत्त्व को भी समझा । प्रत्येक
रनववार प्रातः काल में इस मेनडिे शन का अभ्यास आज भी जारी है ।

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मेरे बडे दामाद नवजय के नपताजी ‘श्री बाबुराम चावला’ से मैं अत्यानिक प्रभानवत हुआ, जो
प्रनतनदन अपने सभी अनुयानययों के साथ नमलकर सत्सगं नकया करते एवं उन्हें योग का
प्रनशक्षण देते थे । उन्हें आयुवेद का भी अत्यानिक ज्ञान था । इसी कारण वह अनेक रोगों के
उपचार हेतु आयुवेनदक दवाओ ं का परामशि नन:शुल्क नदया करते थे । उनके आध्यानत्मक ज्ञान
एवं पररवार में रहकर जीवन जीने की कला को मैं भी सीखने लगा और उन्हें भी मेरे साथ
अच्छा लगने लगा । िमि के अनेक नवर्षयों पर हमारी लम्बी चचािएाँ होना प्रारम्भ हो गयीं ।
इतना तो नननित था नक वे सांसाररकता में रहकर जीवन जीने की कला बहुत अच्छे से जान
गए थे । नजन्हें मैं भी अपने जीवन में अनुसरण करने की पूरी कोनशश करने लगा । यहााँ मैं उनके
कुछ सझ ु ावों का उल्लेख भी करना चाहाँगा जो नक सभी के नलए उपयोगी हो सकते है –

 अपनी गृहस्थी में सन्ं यस्त की तरह रहना ही सबसे बडी तपस्या है ।
 जीवन में नजतनी इच्छाएाँ व अपेक्षाएाँ कम होंगी, दुःख भी उतना ही कम होगा ।
 नचन्ता मनुष्य को बीमार करती है, नचन्तन स्वास््य प्रदान करता है ।
 परमात्मा एक है , बाकी सब शून्य है । शून्य बाद में रहेगा तो हर चीज़ का मोल
बढेगा । परमात्मा को सदा ही पहले रखें ।
 इमानदारी से कमाया िन सदा सख
ु व कपि से कमाया िन सदा दुःख का कारण
बनता है ।
 सेवा के नलए उठाये हाथ, प्राथिना के नलए उठे हाथों से अनिक पनवत्र होते हैं ।
 अच्छा आचरण और नैनतक मूल्य सबसे बडी पूजा-प्राथिना है ।
 प्रसन्नता की पहली पायदान पररवार में ही होती है ।

एक नदन, एक व्यनि ने मुझसे पुछा – ‘इतने नदन, इतने साल तुमने अध्यात्म और ध्यान सीखने
में नबताए हैं, तुम्हे क्या प्राप्त हुआ? ’ मैंने अनायास ही बडे सहज स्वभाव से कहा – नक यह
पूछो क्या खोया ? श्री बाबुराम जी, जो नक मेरे पास ही बैठे थे , ने उठकर मुझे सराहा एवं
प्रशंसा करते हुए कहा नक आज मेरा मन अत्यंत प्रसन्न हो गया है । सच्चाई यही है नक हम
ध्यान और अध्यात्म से क्रोि, अवसाद, नचंता, असरु क्षा, बुढापे और मृत्यु का भय आनद का
त्याग कर देते हैं ।

श्री बाबुराम चावला जी अपने अंनतम नदनों में इस अवस्था में नहीं थे नक वह अपनी कोई बात
कह सके या नकसी को पहचान सकें । लेनकन अपने अंनतम समय से कुछ ही क्षण पूवि मुझे
पहचान कर उन्होंने मुझे, मेरे नाम से पुकारा । नकन्तु कुछ ही क्षण में एकांत अवस्था में उन्होंने

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अपने प्राण त्याग नदए । नवजय ने अपने नपता को खोया नकन्तु मैंने अपने भाई, मागिदशि क एवं
नप्रय नमत्र को खोया । मैंने उनसे अनेकों ज्ञान वििक बातें सीखी एवं उनका अनुसरण करते हुए
अपने जीवन को साथिक करने के प्रयास नकए । आज भी वे मेरी यादों में एक सख ु द एहसास
की तरह हैं । मेरी यही कोनशश रही नक उनसे सीखी सारी बातें एवं ज्ञान को आगे लोगों तक
पहुंचा सकूं और इसके प्रयास ननरंतर करता आ रहा हाँ । नजसे करने में मुझे अत्यंत आनंद नक
अनुभूनत होती है ।

जैसा नक आयि समाज की कायिप्रणाली और उनके द्वारा ननयनमत रूप से नकए जाने वाले हवन
की उपयोनगता को सभी जानते हैं । मुझे भी आयि समाज की सस्ं था से जुडने का अवसर प्राप्त
हुआ । वातावरण की शुनद्ध हेतु नकए जाने वाले हवन का भी साक्षी बना जो ननयनमत रूप से
आज भी जारी है ।

श्री सत्यमेव सामवेदी जी, आयि समाज - जयपुर के प्रिान होने के साथ-साथ वैनदक कन्या
नवद्यालय एवं महानवद्यालय के सस्ं थापक भी हैं । नजन्होंने जयपुर शहर में आयि समाज के
प्रचार-प्रसार में अपना अमूल्य योगदान नदया । आयि समाज में उनके द्वारा इसके प्रचार और
प्रसार की नदशा में नकए गए उत्क्रष्ट कायों हेतु देश भर में उनकी प्रशंसा होती है । गरीब पररवार
से आई बनच्चयों को नन:शुल्क नशक्षा प्रदान कर, उनके उज्जवल भनवष्य के नलए हमेशा ही
तत्पर रहे । उनके द्वारा नजस नदन वैनदक कन्या महानवद्यालय का प्रशासक ननयुि करने हेतु
मुझे प्रस्ताव नदया गया, मैंने सहर्षि इसे स्वीकार कर नलया । क्योंनक ननस्वाथि भाव से नकए

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जाने वाले सामनजक कायों में हमेशा से ही मेरी रूनच रही है । और यही कारण है नक, मैंने
प्रशासक के पद पर नबना नकसी वेतन के एक मानसेवी के रूप में रहने का ननणिय नलया और
आज भी इस पद पर कायिरत हाँ ।

परम श्रद्धेय श्री के . एल. जैन (मानद महासनचव – राजस्थान चैम्बर ऑफ़ कॉमसि एडं
इडं स्ट्रीज़) मुझे मेरे आदशि के रूप में नमले , नजनके साथ मैंने 40 साल एनडशनल सेक्रेिरी के
रूप में नबताये ।

साथ नमलकर हमने अनेक समाज सेवी कायिक्रमों में भाग नलया और समाज के कमजोर वगि
को हर सम्भव सहायता पहुंचाने का प्रयास नकया । जैसा सभी जानते हैं नक राजस्थान चैम्बर
ऑफ़ कॉमसि उद्योगपनतयों एवं व्यापाररयों की सस्ं था है । जो उनके नहतों के नलए कायि करती
है । महासनचव के पद पर रहते हुए उन्होंने पूरी ननष्ठा और समपिण के साथ अपना कििव्य
ननभाया । उनके इसी समपि ण भाव ने मुझे प्रभानवत नकया और मैं भी राजस्थान चै म्बर ऑफ
कॉमसि में अपनी सेवाएं देने लगा । मुझे उनसे अपार स्नेह एवं सम्मान नमला, नजस हेतु मैं सदा
उनका आभारी रहाँगा ।

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नमत्र बंिन

सन् 1957 में मेरे चंद नमत्रों ने नमलकर प्रत्येक रनववार शाम साथ नबताने का ननणिय नलया था ।
मझु े यहां इस बात का उल्लेख करते हुए अत्यतं हर्षि हो रहा है नक वो सम्मैत्री की बैठक आज
भी जारी है । आज भी हम नमलते हैं और कुछ न कुछ मनोरंजक गनतनवनि अवश्य करते हैं ।
मुझे नए नमत्र बनाना, उनसे हर नवर्षय पर बात करना एवं एक दूसरे को सहयोग करना बहुत
पसदं है । यही कारण है नक मुझे मेरे जीवन में अत्यतं सहृदयी दोस्त नमले ।

अपनी जीवन यात्रा वृिांत में मैं यनद अपने नमत्र श्री हंसराज खुराना का उल्लेख न करूं तो ये
बहुत बडा अन्याय होगा । अब तक का लगभग सारा जीवन मैंने नजस व्यनि के साथ अपने
गम और खुनशयां बांिते हुए नबताया है उसे कै से भूल सकता हं । नजसने नबना कोई सवाल
नकए हमेशा मदद को हाथ बढाया हो, नजसने मदद के नलए कभी रात नदन न देखा हो और
नजसके पूरे पररवार ने मुझे हमेशा सम्मान नदया हो । उसके बारे में नलखना तो आवश्यक है :-

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हस ं राज जी स्वभाव से अत्यानिक सरल एवं नमलनसार व्यनि हैं । वे बहुत ही सकारात्मक
सोच रखते हैं । 80 साल की उम्र में भी उनके व्यवहार में बच्चों सी मासूनमयत झलकती है ।
हम दोनों साथ योगा करते हैं , भारत नवकास पररर्षद् के माध्यम से समाज सेवा के कायि करते
हैं और लगभग सभी नवर्षयों पर चचाि भी करते हैं । हम दोनों के पररवारों के आपसी सम्बन्ि
तो वर्षों से थे लेनकन तीन वर्षि पहले इस सम्बन्ि को हमने ररश्तेदारी में बदलने का ननणिय
नलया । मेरी नानतन ‘गौरी’ और हस ं राज जी के पोते ‘आयश ु ’ का नववाह करा कर हम दोनों
दोस्त समिी भी बन गये ।

मेरी जीवन यात्रा के बेहद महत्वपूणि अंश मेरे सभी नमत्र हैं , नजनके सहयोग एवं साथ के नबना
जीवन नीरस प्रतीत होता है ।

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जीवन अनंत
मेरी अब तक की जीवन यात्रा के खट्टे मीठे अनुभवों से मैंने आप सभी को अवगत कराया ।
ईश्वर की मुझ पर बहुत कृपा रही नक मेरा पररवार मेरे दुख सख ु में हमेशा मेरे साथ खडा रहा ।
मेरी बेनियां, मेरे दामाद, मेरे प्यारे नाते नानतन और उनके जीवन साथी, सभी ने मुझे बहुत
आदर एवं सम्मान नदया । मैं इन सभी को ह्रदय की गहराइयों से िन्यवाद करता हं, जो मेरी
एक आवाज़ पर दौडे चले आते हैं । मेरे छोिे भाई रमेश एवं ररतु का तो मैं नजतना भी िन्यवाद
करूं वह कम है । नजन्होंने मुझे कभी भी अके लेपन का अहसास नहीं होने नदया । आज मैं
स्वयं को दुननया का सबसे भाग्यशाली व्यनि समझता हं । मेरा पररवार ही नहीं, मेरे दोस्त और
मेरे अपने, नजनसे खून का ररश्ता ना होते हुए भी उन्होंने मेरी नज़न्दगी की हर खुशी और गम में
मेरा साथ नदया ।

ईश्वर का मैं अत्यतं आभारी हाँ नक, उसने जीवन के इतने उतार चढाव के बावजदू मझु े एक सवि-
सनु विा सपं न्न एवं खनु शयों से भरा पररवार नदया । न के वल नाती नानतनों को अपने सामने
पलते-बढते देखने तथा उनके साथ हसने-खेलने का सनु हरा अवसर नदया, बनल्क उनके भी
बच्चों को पलते बढते देखने का रोमााँच नदया । मेरी यही कामना है नक, यह सभी बच्चे
अध्ययन के अपने अपने क्षेत्रों में बहुत अनिक तरक्की करें और सफलताओ ं की नई उचाईयों
को छूकर, पररवार का नाम रौशन करें ।

वास्तव में जीवन अनंत है । नदी के ननमिल जल की तरह बहता है और पीढी-दर-पीढी आगे
बढते रहता है । कभी आनंनदत करता है , तो कभी रोमांनचत करता है । देनखए ना, नजस सख ु द
अनुभूनत से मैंने इस नकताब की शुरुआत की थी हबह वही अनुभूनत इस नकताब की अनन्तम
पंनियां नलखते-नलखते भी हो रही है । क्योंनक वैसा ही सुखद समाचार मुझे इस बार, मेरी
बडी बेिी से नमला नक भारती की बेिी नवभा के घर प्यारी सी इनाया ने जन्म नलया है । यही
खुशी के पल मेरे जीवन को पररपूणिता प्रदान करते हैं और अनायास ही मेरी स्मृनतयों में जुडते
जाते हैं । यनद सम्भव हुआ तो नई स्मनृ तयों को इस नकताब के दूसरे सस्ं करण में लेकर आपके
समक्ष आवश्य आऊंगा।

“ इशरा से इनाया तक”

श्याम मदान
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‘ इनाया’

26 अप्रैल 2020

श्याम मदान
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1963- भोपाल से मैकेननकल इज ं ीननयररंग में स्नातक ।


1963- वािर िरबाइन और रेि नवभाग में भारत हेवी इले नक्ट्रकल नलनमिे ड (भेल) में नौकरी ।
1971- जयपुर में अपना खुद का उद्योग दलहन प्रसंस्करण स्वचानलत संयंत्र शुरू नकया ।
1975 - जयपुर दाल नमलसि एसोनसएशन (JDMA) के 'महासनचव' पद पर ननयि ु ।
1976- राजस्थान चैं बर ऑफ कॉमसि एडं इडं स्ट्रीज (RCCI) के 'प्रबंिन सनमनत’ का सदस्य ।
1978- जयपरु दाल नमलसि एसोनसएशन (JDMA) के 'अध्यक्ष' के रूप में प्रचाररत ।
1980- राजस्थान दाल नमल ओनसि एसोनसएशन (RDMOA) के 'महासनचव' के पद पर ननयुि ।
1980- लायंस क्लब जयपुर के ‘चािि र वाईस प्रेनसडेंि’ ।
1984- लायंस क्लब जयपुर में ‘प्रेनसडेंि’ ।
1985- लायंस क्लब इिं रनेशनल नडनस्ि् रक्ि 323E1 में 'जोन चे यरमैन'।
1985- क्रार्फि काउंनसल ऑफ़ राजस्थान में ‘अध्यक्ष’ ।
1986- राम कृ ष्ण माध्यनमक नवद्यालय में ‘प्रबि ं सनमनत सदस्य’ के रूप में कायिरत ।
1987- लायंस क्लब के ‘रीज़न चे यरमैन’ के रूप में ननयुनि ।
1990- राजस्थान चैं बर ऑफ कॉमसि एडं इडं स्ट्रीज (RCCI) में 'संयुि सनचव' के पद पर कायिरत ।
1990- लायंस क्लब (C.S.F) के 'राष्ट्रीय समन्वयक' ।
1990- लायंस क्लब इिं रनेशनल ‘प्रेनसडेंि अवाडि’ से सम्माननत ।
1995- लायंस क्लब के अंतराि ष्ट्रीय सम्मेलन में सनम्मनलत ।
1995- खाद्य प्रसस्ं करण उद्योग मत्रं ालय में पेपर प्रेजेंिेशन एवं सरकार द्वारा सराहना ।
2000- फेडरे शन ऑफ इनं डयन चैंबर ऑफ कॉमसि एडं इडं स्ट्रीज, नई नदल्ली की बैठक में सनम्मनलत ।
2003- आर.सी.सी.आई की ओर से आर.बी.आई कोर कमेिी की बैठक में सनम्मनलत ।
2004- राज. चैंबर ऑफ कॉमसि एडं इडं स्ट्रीज (RCCI) में 'अनतररि सनचव' के रूप में कायिरत ।
2007- मॉरीशस में योग एवं प्राणायाम का प्रनशक्षण ।
2011- भारत नवकास पररर्षद के 'राज्य महासनचव' के रूप में ननयनु ि ।
2012- भारत नवकास पररर्षद (राज. नॉथि ईस्ि) के 'राज्य अध्यक्ष' के रूप में ननयनु ि ।
2012- वैनदक कन्या पी.जी. महानवद्यालय के 'मानसेवी प्रशासक' के रूप में कायिरत ।

श्याम मदान
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प्यार और आशीर्ााद के साथ

स्र्र्गीय श्री खान चंद मदान और स्र्र्गीय श्रीमती शांतत दे र्ी जी

एक कहानी और कदवताऔ ुं की दकताब दलखने मे आिका सज ृ न झलकता है , दकसी


व्यदित्व िर दकताब दलखने में आिका सच ुं ार कौशल झलकता है । लेदकन अिने ही जीवन
यािा वत् ृ ाुंत को दलखने में आिकी स्मदृ तयों का िरू ा सस ुं ार झलकता है । दजतना मैंने सोचा
था उससे कहीं ज्यािा कदठन होता है उन जीए हए लम्हों को आज की स्मदृ तयों में समायोदजत
करना । भिवान की मुझ िर असीम कृिा है दक मुझे दवरासत में याििाश्त बहत अच्छी दमली
है, दजस कारण मैं अिने जीवन यािा वृत्ाुंत को आिके समक्ष अत्यतुं सहज रूि में हू बहू
प्रस्तुत कर सका । मेरे माता-दिता ने मुझे जीवन का िाठ िढाया, दजससे मुझे एक अद्भुत
जीवन जीने में मिि दमली । उन्होंने मुझे अनुशासन, कदठन िररश्रम, दशष्टाचार तथा िूसरों का
हमेशा सम्मान करने की दशक्षा िी । वे मेरे हर सघुं र्ष में मेरे साथ खड़े रहे ।

मेरे िररवार के अनुजो ने भी मुझे अत्यदिक स्ने ह और सम्मान दिया दजनका मैंआभारी हूुं,
क्योंदक उन्होंने मेरी िूरी जीवन यािा में हमेशा मेरा साथ िेने में अदतररि प्रयास दकया । मुझे
वास्तव में कुछ नहीं िता दक मैं कहााँ हो सकता था, अिर उन्होंने मुझे ऐसा प्यार नहीं दिया
होता,दजसकी मुझे हर उम्र में सख्त ज़रूरत थी ।

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