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अन्नमयकोश की सरल एवं व्यावहारिक साधना PDF
अन्नमयकोश की सरल एवं व्यावहारिक साधना PDF
यावहा रक साधना
गाय ी के पांच मख
ु मे आ मा के पांच कोश मे थम कोश का नाम ' अ नमय कोश' है |
अ न का साि वक अथ है ' प ृ वी का रस '| प ृ वी से जल , अनाज , फल , तरकार , घास
आ द पैदा होते है | उ ह से दध
ू , घी , माँस आ द भी बनते ह | यह सभी अ न कहे जाते ह
, इ ह के वारा रज , वीय बनते ह और इ ह से इस शर र का नमाण होता है | अ न
वारा ह दे ह बढ़ती है और पु ट होती है और अंत मे अ न प प ृ वी मे ह भ म होकर या
सड़ गल कर मल जाती है | अ न से उ प न होने वाला और उसी मे जाने वाला यह दे ह
इसी धानता के कारण 'अ नमय कोश ' कहा जाता है |
च क सा प ध तय क पहुच थल
ू शर र तक है जबक कतने ह रोग ऐसे ह जो अ न
मय कोश क वकृ त के कारण उ प न होते ह और िजसे च क सक ठ क करने मे ायः
असमथ हो जाते ह|
अ नमय कोश क ि थ त के अनस
ु ार शर र का ढांचा और रं ग - प बनता है | उसी के
अनस
ु ार इि य क शि तयां होती ह | बालक ज म से ह कतनी ह शार रक ु टय ,
अपण
ू ताएं या वशेषताएं लेकर आता है | कसी क दे ह आरा भ से ह मोती , कसी क
ज म से ह पतल होती है | आँख क ि ट , वाणी क वशेषता , मि त क का भोडा या
ती होना , कसी वशेष अंग का नबल या यन
ू होना अ नमय कोश क ि थ त के
अनु प होता है | माता - पता के राज-वीय का भी उसमे थोडा भाव होता है पर वशेषता
अपने कोश क ह रहती है | कतने ह बालक माता- पता क अपे ा अनेक बात मे बहुत
भ न पाए जाते ह |
शर र िजस अ न से बनता - बढ़ता है उसके भीतर सू म जीवन त व रहता है जो क अ न
मय कोश को बनाता है | जैसे शर र मे पांच कोश ह वैसे ह अ न मे भी तीन कोश ह ..
१. थल
ू कोश
२. सू म कोश
३. कारण कोश
थल
ू मे वाद और भार , सू म मे पराभव और गण
ु तथा कारण कोश मे अ न का
सं कार होता है | िज वा से केवल अ न का वाद मालम
ु होता है , पेट उसके भार का
अनभ
ु व करता है , रस मे उसक मादकता , उ णता कट होती है | अ नमय कोश पर
उसका सं कार जमता है | माँस आ द कतने अभ य पदाथ ऐसे ह जो जीभ को वा द ट
लगते ह , दे ह को मोटा बनाने मे भी सहायक होते ह , पर उनमे सू म सं कार ऐसा होता है
जो अ नमय कोश को वकृत कर दे ता है और उसका प रणाम अ य प से आकि मक
रोग के प मे तथा ज म ज मांतर तक कु पता एवँ शार रक अपण
ू ता के प मे चलता
है | इस लए आ म - व या के ाता सदा साि वक सस
ु ं कार अ न पर जोर दे ते ह ता क
थल
ू शर र मे बीमार , कु पता , अपण
ू ता , आल य एवँ कमजोर क बढो र न हो |
अभ य खाने वाले आज नह ं तो भ व य मे इसके शकार हो ह जायगे | इस कार अनी त
से उपािजत धन या पाप क कमाई कट मे आकषक लगने पर भी अ नमय कोश को
द ू षत करती ह और अंत मे शर र को वकृत तथा चर रोगी बना दे ती है | धन संप न होने
पर भी ऐसी दद
ु शा भोगने के अनेक उदाहरण य दखाई दया करते ह |
१. उपवास
२. आसन
३. त व शु ध
४. तप चया
ये चार मु य ह |
मोटे तौर पर उपवास के लाभ -पेट मे का अपच पचता है , व ाम करने से पाचक अंग
नव चेतना के साथ दन
ू ा काम करते ह , आमाशय मे भरे अप व अ न से जो वष बनता है
वह ऐसे मे बनना बंद हो जाता है , आहार क बचत से आ थक लाभ होता है | डा टर का
यह भी न कष है क व पाहार द घ जीवी होते ह | ( ठूस- ठूस कर खाने वाले पेट को चैन
ना लेने दे ने वाले लोग क जीवनी शि त को नु सान पहुचता है , आयु कम होती है , रोग
तता होती है )
गीता मे ' वषया व नवत ते नराहार य दे हनः' लोक मे बताया गया है क उपवास से
वषय - वकार क नव ृ त होती है | मन का वषय वकार से र हत होना एक बहुत बड़ा
मान सक लाभ है उसे यान मे रखते हुए येक शभ
ु काय के साथ उपवास को भारतीय
परमपराओं मे जोड़ दया गया है | ( क यादान के दन माँ-बाप उपवास करते ह , अनु ठान
के दन आचाय और यजमान , नौ दग
ु ा मे भी आं शक या पण
ू उपवास क परं परा है
...आ द )
अ नमय कोश को शर र से बांधने वाल ये उपि यकाएँ शार रक एवँ मान सक अकम मे
उलझकर वकृत होती ह तथा स कम से सु यवि थत रहती है | आहार वहार का संयम
तथा साि वक दनचया ठ क रखना , कृ त के आदे श पर चलने वाल क उपि यकाएँ
सु यवि थत रहती ह | साथ ह कुछ अ य यौ गक उपाय भी ह जो उन आंत रक वकार
पर काबू पा सकते ह िज ह केवल वा य उपचार से सध
ु ारना क ठन है |
ऋतओ
ु ं के अनस
ु ार शर र क ६ अि नयाँ यन
ू ा धक होती रहती ह | ऊ मा , बहुवच
ृ ,
वाद , रो हता , आ पता , याती यह ६ शर रगत अि नयाँ ी म से लेकर बसंत तक ६
ऋतओ
ु ं मे याशील रहती ह | इनमे से येक के गण
ु भ न - भ न ह | १. उ रायण ,
द णायन क गोलाध ि थ त २. च मा क बढ़ती घटती कलाएं ३. न का भू म पर
आने वाला भाव ४. सय
ू क अंश करण का माग ,,इनसे ऋतू अि नय का स ब ध है
अतः ऋ षय ने ऐसे पु य पव नि चत कये ह िजससे अमक
ु कार से उपवास करने पर
अमक
ु भाव हो |
उपवास के पांच भेद ह --१. पाचक ( जो पेट क अपच , अजीण , को ठब धता को पचाते
ह ) २. शोधक ( जो भख
ू े रहने पर रोग को न ट करते ह इ ह लंघन भी कहते ह ) ३.
शामक ( जो कु वचार , मान सक वकार , द ु व ृ तय एवँ वकृत उपि यकाओं को शमन
करते ह ) ४. आनस ( जो कसी वशेष योजन के लए , दै वी शि त को अपनी ओर
आक षत करने के लए कये जाते ह ) ५. पावस ( जो पाप के ायि चत के लए होते ह )
कई बार मोटे , तगड़े व थ दखाई पड़ने वाले मनु य भी ऐसे मंद रोग से सत हो जाते
ह , जो उनक शार रक अ छ ि थ त को दे खते हुए न होने चा हए थे | इन ् मा मक रोग
का कारण मम थान क गडबडी है | कारण यह है क साधारण प र म या कसरत वारा
इन मम थान का यायाम नह ं हो पाता | औष धय क पहुच वहाँ तक नह ं होती | श य
या या सच
ू ी -भेद ( इंजे सन ) भी उनको भा वत करने मे समथ नह ं होते | उस वकत
गु थी को सल
ु झाने मे केवल 'योग -आसन ' ऐसे ती ण अ ह जो मम शोधन मे अपना
चम कार दखाते ह |
ऋ षय ने दे खा क अ छा आहार - वहार रखते हुए भी , व ाम - यायाम क यव था
रखते हुए भी कई बार अ ात सू म कारण से मम थल वकृत हो जाता है और उसमे
रहने वाल ह य-वहा , क य -वहा त डत शि त का संतल
ु न बगड़ जाने से बीमार और
कमजोर आ धमकती है , िजससे योग साधना मे बाधा पड़ती है | इस क ठनाई को दरू
करने के लए उ ह ने अपने द घकाल न अनस
ु ध
ं ान और अनभ
ु व वारा 'आसन - या' का
आ व कार कया | आसन का सीधा भाव हमारे मम थल पर पड़ता है | धान
नश-ना ड़य और मांसपे शय के अ त र त सू म कशे काओ का भी आसन वारा ऐसा
आकंु चन - ाकंु चन होता है क उसमे जमे हुए वकार हट जाते ह तथा फर न य सफाई
होते रहने से नए वकार जमा नह ं होते | मम थल क शु ध , ि थरता एवँ प रपिु ट के
लए आसन को अपने ढं ग का सव म उपचार कहा जा सकता है | (( आसन अनेक ह
उसमे से ८४ धान ह इनक व तत
ृ या या के लए पू य पं डत ीराम शमा आचाय जी
वारा ल खत पु तक 'बलवधक यायाम' दे ख ))
आठ आसन ऐसे ह जो सभी मम थान पर अ छा भाव डालते ह ...
आयव
ु द शा मे वात , प , कफ का असंतल
ु न रोग का कारण बताया है | वात का अथ
है वायु , प का अथ है गम और कफ का अथ है जल | पंच त व मे प ृ वी शर र का
ि थर आधार है | मटट से ह शर र बना है और जला दे ने या गाड़ दे ने पर मटट प मे
ह इसका अि त व रह जाता है | इस लए प ृ वी त व शर र का ि थर आधार होने से वह
रोग आ द का कारण नह ं बनता |
दस
ू रे आकाश का स ब ध मन से बु ध और इि य क सू म त मा ाओं से है | थल
ू
शर र पर जलवायु और गम का ह भाव पड़ता है और उ ह भाव के आधार पर रोग
एवँ व य बहुत कुछ नभर रहते ह | वायु क मा ा मे अंतर् आ जाने से ग ठया , लकवा
, दद , कंप , अकडना , गु म , ह फुतन, नाडी व ेप आ द रोग होते ह | त व के वकास से
फोड़े -फंु सी , चेचक वर, र त प , है जा , द त , य , वास उपदं श , र त वकार
आ द बढते ह |
आयव
ु द के मत से मत से वशेष भावशाल , ग तशील स य एवँ थल
ू शर र को ि थर
करने वाले कफ वात प अथात जल वायु गम ह है और दै नक जीवन मे जो उतारचढाव
होते रहते ह उनमे इन ् तीन का ह धान कारण होता है | फर भी शेष दो त व प ृ वी और
आकाश शर र पर ि थर प मे काफ भाव डालते ह |
मोटा या पतला होना , लंबा या ठगना होना , पवान या कु प होना , गोरा या काला होना
, कोमल या सु ढ़ होना शर र मे प ृ वी त व क ि थ त से स बं धत है | इसी कार
चतरु ता - मख
ू ता , सदाचार -दरु ाचार , नीचता -महानता , ती बु ध , दरू द शता व
ख नता - स नता एवँ गण
ु , कम , वभाव , इ छा , आकांछा , भावना , आदश , ल य
आ द बात इस पर नभर रहती ह क आकाश त व क ि थ त या है ? उ माद , सनक ,
दल क धडकन , अ न ा , पागलपन - द:ु व न , मग , मछ
ू ा , घबडाहट , नराशा आ द
रोग मे भी आकाश ह धान कारण होता है | त व क मा ा मे गडबडी पड़ जाने से
व य मे नि चत प से खराबी आ जाती है | जलवायु सद गम ( ऋतू भाव ) के
कारण रोगी मनु य नरोग और नरोग रोगी बन सकता है |
१. जल-त व क शु ध :
सब
ु ह शौच जाने से लगभग २०-३० मनट पव
ू एक गलास पानी पीने से रात का अपच धल
ु
जाता है और शौच साफ़ होता है |
पानी को सदा घट
ूँ -घट
ूँ कर धीरे -धीरे पीना चा हए | हर घट
ूँ के साथ यह भावना करते जाना
चा हए ' क इस अमत
ृ -तु य जल मे शीतलता , मधरु ता और शि त भर हुई है उसे खीच
कर मै अपने शर र मे धारण कर रहा हूँ ' इस भावना के साथ पया हुआ पानी दध
ू के
समान गण
ु कारक होता है |
िजन थान का पानी भार , खार , तैल य , उथला , तालाब का तथा हा नकारक हो , वहाँ
रहने पर अ नमय -कोश मे वकार पैदा होता है | कई थान मे पानी ऐसा होता है क वहाँ
फ ल-पावँ , अंड-नासरू , जलोदर , कु ठ , खज
ु ल , मले रया , जए
ु ं -म छर आ द का बहुत
सार होता है | ऐसे थान को छोड़कर व छ हलके सप
ु ा य जल के समीप अपना नवास
रखना चा हए | ध नक लोग दरू थान से ह अपने लए उ म जल मंगवा सकते ह |
कभी -कभी ए नमा वारा पेट मे जल चढाकर आंत क सफाई कर लेनी चा हए | उससे
सं चत मल से उ प न वष पेट मे से नकल जाते ह और च बड़ा ह का हो जाता है |
ाचीन काल मे वि त- या योग का बड़ा आव यक अंग था | अब ए नमा यं वारा यह
या सग
ु म हो गयी है |
२. अि न -त व क शु ध:
सय
ू के काश के अ धक संपक मे रहने का यास करना चा हए | घर क सभी खड़ कयाँ
खल
ु रखनी चा हए ता क धप
ु और हवा खब
ू आती रहे | सबेरे क धप
ु नंगे शर र पर लेने का
यास करना चा हए | सय
ू टाप से तपाये हुए जल का उपयोग करना , भीगे बदन पर धप
ु
लेना उपयोगी है | सय
ू क अ ावायलेट करणे व य के लए बड़ी उपयोगी सा बत
होती ह | वे जल के साथ धप
ु का म ण होने से खच जाती ह | धप
ु मे रखकर रं गीन कांच
से स पण
ू रोग क च क सा करने क च क सा करने क व तत
ृ व ध तथा अि न और
जल के सि म ण से भाप बन जाने पर उसके वारा अनेक रोग क उपचार करने क
व ध सय
ू - च क सा व ान क कसी भी ामा णक पु तक मे दे ख सकते ह |
३ . वाय-ु त व क शु ध :
ातःकाल क वायु बड़ी वा य द होती है , उसे सेवन करने के लए तेज चाल से टहलने
के लए जाना चा हए | दघ
ु धत एवँ बंद हवा के थान से अपना नवास दरू ह रखना चा हए
| तराई , सीलन , नमी वाले थान क वायु वर आ द पैदा करती है | तेज हवा के झ क
से वचा फट जाती है | अ धक ठं ढ या गम हवा से नमो नया या लू लगना जैसे रोग हो
सकते ह | इस कार तकूल मौसम से अपनी र ा करनी चा हए |
गाय ी साधक को अपने अ नमय कोश क वायु शु ध के लए कुछ हवन साम ी बना
कर रख लनी चा हए , िजसे धप
ू दानी मे थोड़ी थोड़ी जलाकर उससे अपने नवास थान क
वायु शु ध करते रहना चा हए |
सांस मह
ु से नह ं सदा नाक से ह लेना चा हए | कपडे से मह
ु ढक कर नह ं सोना चा हए
और कसी के मह
ु से इतना पास नह ं सोना चा हए क उसके मह
ु से छोड़ी हुई सांस आपके
भीतर जाए | धल
ू -धव
ु ां और दग
ु ध भर वायु से सदा बचना चा हए |
४ .प ृ वी त व क शु ध :
शु ध मटट मे वष नवारण क अ भत
ु शि त होती है | गंदे हांथ को मटट से माँजकर
शु ध कया जाता है | ाचीन काल मे ऋ ष मु न ज़मीन खोद कर गफ
ु ा बना लेते थे और
उसमे रहा करते थे इससे उनके व य पर बड़ा अ छा असर पड़ा करता था | मटट
उनके शर र के द ू षत वकार को खीच लेती थी साथ ह भू म से नकालने वाले वा प
वारा दे ह का पोषण भी होता रहता था | समा ध लगाने के लए गफ
ु ाएं उपयु त थान
समझी जाती ह यो क चर ओर मटट से घर होने के कारण शर र को सांस वारा ह
बहुत सा आहार ा त हो जाता है और कई दन तक भोजन क आव यकता नह ं पड़ती
या कम भोजन से भी काम चल जाता है |
आकाश त व क शु ध :
आकाश त व पछले चार त व क अपे ा अ धक सू म होने से अ धक शि तशाल है
| व व यापी पोल मे , शू याकाश मे एक शि त त व भरा हुआ है िजसे अं ेजी मे ईथर
कहते ह | पोले थान को खाल नह ं समझना चा हए | वह वायु से सू म होने के कारण
य प से अनभ
ु व नह ं होता तो भी उसका अि त व पण
ू तया ामा णत है | रे डयो
वारा गायन , समाचार , भाषण आ द जो हम सन
ु ते ह वे ईथर मे , काश त व मे तरं ग
के प मे आते ह | जैसे पानी मे ढे ला फक दे ने पर उसक लहर बनती है और वह लहर
जलाशय के अं तम ोत तक चल जाती है उसी कार ईथर ( आकाश ) मे श द क तरं गे
पैदा होती है और पलक मारते व व भर मे फ़ैल जाती है | इसी व ान के आधार पर
रे डयो यं का आ व कार हुआ | एक थान पर श द तरं ग के साथ बजल क शि त
मलकर उसे अ धक बलवती करके वा हत कर दया जाता है | अ य थान पर जहाँ
रे डयो यं लगे है इन ् आकाश मे बहने वाल तरं ग को पकड़ लया जाता है और े षत
स दे श सन
ु े दे ने लगते ह |
तप चया :
दस
ू र बात यह है क वतमान समय मे सामािजक आ थक बौ धक यव थाओं मे
प रवतन हो जाने से मनु य के रहन सहन मे बहुत अंतर् पड़ गया है बड़े नगर के
नवा सय मे यां क स यता के बीच रहने के फल व प शार रक म बहुत कम करना
पड़ता है और अ धकाँश मे कृ तम वातावरम के कारण शु ध जलवायु से भी वं चत रहना
पड़ता है | ऐसी अव था मे शर र को पव
ू काल न तपयो य रखना कहाँ संभव हो सकता है ?
कुछ समय पव
ू तक ने त धोती व ती नयोल ब ोल कपल-भा त आ द याएँ आसानी
से हो जाती थीं उनके करने वाले अनेक योगी दे खे जाते थे पर अब यग
ु भाव से उनक
साधना क ठन हो गयी है जो कसी कार इन ् याओं को करने भी लगते ह वह उनसे वह
लाभ नह ं उठा पाते जो इनसे होनी चा हए | अ धकाँश हठ योगी तो इन ् क ठन साधनाओं
के कारण क ह क ट सा य रोग से सत हो जाते ह | र त - प , अ दाह
,मल
ू ाधार,कफ , अ न ा जैसे रोग से सत होते हुए अनेक हठयोगी दे खे ह | इस लए
वतमान काल क शार रक ि थ तय का यान रखते हुए तप चया मे बहुत सावधानी
बरतने क आव यकता है |
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