You are on page 1of 25

अ नमयकोश क सरल एवं

यावहा रक साधना

पं डत ीराम शमा आचाय


गाय ी के पांच मख
ु पांच द य कोश : अ नमय कोश -१

गाय ी के पांच मख
ु मे आ मा के पांच कोश मे थम कोश का नाम ' अ नमय कोश' है |
अ न का साि वक अथ है ' प ृ वी का रस '| प ृ वी से जल , अनाज , फल , तरकार , घास
आ द पैदा होते है | उ ह से दध
ू , घी , माँस आ द भी बनते ह | यह सभी अ न कहे जाते ह
, इ ह के वारा रज , वीय बनते ह और इ ह से इस शर र का नमाण होता है | अ न
वारा ह दे ह बढ़ती है और पु ट होती है और अंत मे अ न प प ृ वी मे ह भ म होकर या
सड़ गल कर मल जाती है | अ न से उ प न होने वाला और उसी मे जाने वाला यह दे ह
इसी धानता के कारण 'अ नमय कोश ' कहा जाता है |

यहाँ एक बात यान रखने क है क हाड -माँस का जो यह पत


ु ला दखाई पड़ता है वह
अ नमय कोश क अधीनता मे है पर उसे ह अ नमय कोश न समझ लेना चा हए | म ृ यु
हो जाने पर दे ह तो न ट हो जाती है पर अ नमय कोश न ट नह ं होता है | वह जीव के साथ
रहता है | बना शर र के भी जीव भत
ू -योनी मे या वग नक मे उन भख
ू - यास , सद
-गम , चोट , दद आ द को सहता है जो थल
ू शर र से स बं धत है | इसी कार उसे उन
इ य भोग क चाह रहती है जो शर र वारा ह भोगे जाने संभव ह | भत
ू क इ छाएं
वैसी ह आहार वहार क रहती है , जैसी मनु य शर र धा रय क होती है | इससे कट है
क अ नमय कोश शर र का संचालक , कारण , उ पादक उपभो ता आ द तो है पर उससे
पथ
ृ क भी है | इसे सू म शर र भी कहा जा सकता है |

च क सा प ध तय क पहुच थल
ू शर र तक है जबक कतने ह रोग ऐसे ह जो अ न
मय कोश क वकृ त के कारण उ प न होते ह और िजसे च क सक ठ क करने मे ायः
असमथ हो जाते ह|
अ नमय कोश क ि थ त के अनस
ु ार शर र का ढांचा और रं ग - प बनता है | उसी के
अनस
ु ार इि य क शि तयां होती ह | बालक ज म से ह कतनी ह शार रक ु टय ,
अपण
ू ताएं या वशेषताएं लेकर आता है | कसी क दे ह आरा भ से ह मोती , कसी क
ज म से ह पतल होती है | आँख क ि ट , वाणी क वशेषता , मि त क का भोडा या
ती होना , कसी वशेष अंग का नबल या यन
ू होना अ नमय कोश क ि थ त के
अनु प होता है | माता - पता के राज-वीय का भी उसमे थोडा भाव होता है पर वशेषता
अपने कोश क ह रहती है | कतने ह बालक माता- पता क अपे ा अनेक बात मे बहुत
भ न पाए जाते ह |
शर र िजस अ न से बनता - बढ़ता है उसके भीतर सू म जीवन त व रहता है जो क अ न
मय कोश को बनाता है | जैसे शर र मे पांच कोश ह वैसे ह अ न मे भी तीन कोश ह ..

१. थल
ू कोश

२. सू म कोश

३. कारण कोश

थल
ू मे वाद और भार , सू म मे पराभव और गण
ु तथा कारण कोश मे अ न का
सं कार होता है | िज वा से केवल अ न का वाद मालम
ु होता है , पेट उसके भार का
अनभ
ु व करता है , रस मे उसक मादकता , उ णता कट होती है | अ नमय कोश पर
उसका सं कार जमता है | माँस आ द कतने अभ य पदाथ ऐसे ह जो जीभ को वा द ट
लगते ह , दे ह को मोटा बनाने मे भी सहायक होते ह , पर उनमे सू म सं कार ऐसा होता है
जो अ नमय कोश को वकृत कर दे ता है और उसका प रणाम अ य प से आकि मक
रोग के प मे तथा ज म ज मांतर तक कु पता एवँ शार रक अपण
ू ता के प मे चलता
है | इस लए आ म - व या के ाता सदा साि वक सस
ु ं कार अ न पर जोर दे ते ह ता क
थल
ू शर र मे बीमार , कु पता , अपण
ू ता , आल य एवँ कमजोर क बढो र न हो |
अभ य खाने वाले आज नह ं तो भ व य मे इसके शकार हो ह जायगे | इस कार अनी त
से उपािजत धन या पाप क कमाई कट मे आकषक लगने पर भी अ नमय कोश को
द ू षत करती ह और अंत मे शर र को वकृत तथा चर रोगी बना दे ती है | धन संप न होने
पर भी ऐसी दद
ु शा भोगने के अनेक उदाहरण य दखाई दया करते ह |

कतने ह शार रक वकार क जड़ अ नमय कोश मे ह होती है | उनका नवारण दवा


-दा से नह ं , यौ गक साधन से हो सकता है | जैसे संयम , च क सा , श य च क सा ,
यायाम , मा लश , व ाम , उ म आहार वहार , जलवायु आ द से शार रक व य मे
बहुत कुछ अंतर् हो सकता है | वैसे ह ऐसी भी या है िजनके वारा अ न मय कोश को
प रमािजत एवँ प रपु ट कया जा सकता है और व वध व ध शार रक अपण
ू ताओं से
छुटकारा पाया जा सकता है |
ऐसी प ध तय मे

१. उपवास
२. आसन
३. त व शु ध
४. तप चया
ये चार मु य ह |

अ नमय कोश क शु ध के चार साधन --१.उपवास


अ नमय कोश क अनेक सू म वकृ तय का प रवतन करने मे उपवास वह काम करता
है जो च क सक के वारा च क सा के पव
ू जल
ु ाब दे ने से होता है | ( च क सक इस लए
जल
ु ाब आ द दे ते ह यो क द त होने से पेट साफ़ हो और औष ध अपना काम कर सके )

मोटे तौर पर उपवास के लाभ -पेट मे का अपच पचता है , व ाम करने से पाचक अंग
नव चेतना के साथ दन
ू ा काम करते ह , आमाशय मे भरे अप व अ न से जो वष बनता है
वह ऐसे मे बनना बंद हो जाता है , आहार क बचत से आ थक लाभ होता है | डा टर का
यह भी न कष है क व पाहार द घ जीवी होते ह | ( ठूस- ठूस कर खाने वाले पेट को चैन
ना लेने दे ने वाले लोग क जीवनी शि त को नु सान पहुचता है , आयु कम होती है , रोग
तता होती है )

गीता मे ' वषया व नवत ते नराहार य दे हनः' लोक मे बताया गया है क उपवास से
वषय - वकार क नव ृ त होती है | मन का वषय वकार से र हत होना एक बहुत बड़ा
मान सक लाभ है उसे यान मे रखते हुए येक शभ
ु काय के साथ उपवास को भारतीय
परमपराओं मे जोड़ दया गया है | ( क यादान के दन माँ-बाप उपवास करते ह , अनु ठान
के दन आचाय और यजमान , नौ दग
ु ा मे भी आं शक या पण
ू उपवास क परं परा है
...आ द )

रो गय के लए उपवास को 'जीवन मरू ' कहा गया है | सं ामक , क टसा य एवँ


खतरनाक रोग मे लंघन भी च क सा का एक अंग है | ( नमो नया , लेग , सि नपात ,
टाइफाइड मे उपवास कराया जाता है )

इस त य को हमारे ऋ षय ने अ नवाय समझा था | इसी कारण हर मह ने कई उपवास


का धा मक मह व था पत कया था |
अ नमय कोश क शु ध के लए उपवास का वशेष मह व है | शर र मे कई जा त क
उपि यकाएँ दे खी जाती ह , उ ह शर र शा ी ' नाड़ी -गु छक ' कहते ह |वै ा नक इन ्
नाड़ी गु छक के काय का कुछ वशेष प रचय अभी ा त नह ं कर पाए ह , पर योगी लोग
जानते ह क ये उपि यकाएँ शर र मे अ नमय कोश क बंधन ं थयां ह | म ृ यु होते ह सब
बंधन खल
ु जाते ह और फर एक भी गु छक ि टगोचर नह ं होता | सब उपि यकाएँ
अ नमय कोश के गण
ु दोष का तीक ह |

'इि धका' जा त क उपि यकाएँ चंचलता , अि थरता , उ व नता क तीक ह | िजन


यि तय मे इस जा त के नाडी गु छक अ धक ह तो उनका शर र एक थान पर बैठकर
काम न कर सकेगा | 'द पका' जा त क उपि यकाएँ जोष , ोध ,शार रक उ णता,
अ धक पाचन ,गम ,खु क आ द उ प न करगी | ऐसे गु छक क अ धकता वाले रोग
चम रोग , फोड़ा , फंु सी , नकसीर फूटना , पीला पेशाब , आँख मे जलन आ द रोग के
शकार होते ह |

इसी कार अ य गु छक मो चका , पष


ू ा , चि का आ द ह इनक अ धकता भ न
- भ न कार के रोग के कारण बनते ह | ऐसे उपि यकाओं क भ न भ न ९६ जा तयां
मानी जाती ह | ये ं थयां ऐसी ह जो शार रक ि थ त को अ छानक
ु ू ल बनाने मे बाधक
होती ह | मनु य चाहता है क मै अपने शर र को ऐसा बनाऊ , वह उपाय भी करता है पर
कई बार वे उपाय सफल नह ं होते | कारण यह है क ये उपि यकाएँ शर र मे भीतर ह
भीतर ऐसी या और ेरणा उ प न करती ह जो बा य य न को सफल नह ं होने दे ती
और मनु य अपने आपको बार बार असफल एवँ असहाय महसस
ू करता है |

अ नमय कोश को शर र से बांधने वाल ये उपि यकाएँ शार रक एवँ मान सक अकम मे
उलझकर वकृत होती ह तथा स कम से सु यवि थत रहती है | आहार वहार का संयम
तथा साि वक दनचया ठ क रखना , कृ त के आदे श पर चलने वाल क उपि यकाएँ
सु यवि थत रहती ह | साथ ह कुछ अ य यौ गक उपाय भी ह जो उन आंत रक वकार
पर काबू पा सकते ह िज ह केवल वा य उपचार से सध
ु ारना क ठन है |

उपवास से उपि यकाओं के संशोधन , प रमाजन और सस


ु त
ं स
ु न से बड़ा स ब ध है | योग
साधना मे उपवास का एक सु व तत
ृ व ान है | अमक
ु अवसर पर ; अमक
ु मास मे ;
अमक
ु मह
ु ू त मे ; अमक
ु कार से उपवास करने का अमक
ु फल होता है | ऐसे आदे श शा
मे जगह जगह मलते ह |

ऋतओ
ु ं के अनस
ु ार शर र क ६ अि नयाँ यन
ू ा धक होती रहती ह | ऊ मा , बहुवच
ृ ,
वाद , रो हता , आ पता , याती यह ६ शर रगत अि नयाँ ी म से लेकर बसंत तक ६
ऋतओ
ु ं मे याशील रहती ह | इनमे से येक के गण
ु भ न - भ न ह | १. उ रायण ,
द णायन क गोलाध ि थ त २. च मा क बढ़ती घटती कलाएं ३. न का भू म पर
आने वाला भाव ४. सय
ू क अंश करण का माग ,,इनसे ऋतू अि नय का स ब ध है
अतः ऋ षय ने ऐसे पु य पव नि चत कये ह िजससे अमक
ु कार से उपवास करने पर
अमक
ु भाव हो |

उपवास के पांच भेद ह --१. पाचक ( जो पेट क अपच , अजीण , को ठब धता को पचाते
ह ) २. शोधक ( जो भख
ू े रहने पर रोग को न ट करते ह इ ह लंघन भी कहते ह ) ३.
शामक ( जो कु वचार , मान सक वकार , द ु व ृ तय एवँ वकृत उपि यकाओं को शमन
करते ह ) ४. आनस ( जो कसी वशेष योजन के लए , दै वी शि त को अपनी ओर
आक षत करने के लए कये जाते ह ) ५. पावस ( जो पाप के ायि चत के लए होते ह )

आि मक और मान सक ि थ त के अनु प कौन सा उपवास उपयु त होगा और उसके


या नयमोप नयम होने चा हए इसका नणय करने के लए गंभीरता क आव यकता है |
पाचक उपवास मे भोजन तब तक छोड़ दे ना चा हये जब तक भख
ू ना लगे | एक दो दन
का उपवास करने से क ज पच जाता है | पाचक उपवास मे नी बू का रस या अ य पाचक
औष ध क सहायता ल जा सकती है | शोधक उपवास के साथ व ाम आव यक है यह
लगातार आव यक है जबतक रोग खतरनाक ि थ त से अलग हट जाए | शामक उपवास
दध
ू , छाछ फल का रस आ द पर चलते ह | इसम वा याय , मनन , एकांत सेवन , मौन
, जप , यान , पज
ू ा , ाथना आ द आ म शु ध के उपचार भी साथ मे करने चा हए |
अनास उपवास मे सय
ू क करण वारा अभी ट दै वी शि त का आ वान करना चा हए |
पावस उपवास मे केवल जल लेना चा हए और स चे दय से भु से मा याचना करना
चा हए क भ व य मे वैसा अपराध नह ं होगा |

साधारणतः स ताह मे एक दन उपवास अव य रहना चा हए | गाय ी साधक के लए


र ववार सवा धक उपयु त है |

अ नमय कोश क शु ध के चार साधन --२.आसन

ऋ षय ने आसन को योग साधना मे इस लए मख


ु थान दया है यो क ये व य
र ा के लए अतीव उपयोगी होने के अ त र त मम थान मे रहने वाल ' ह य- वहा '
और 'क य- वहा ' त डत शि त को याशील रखते ह| मम थल वे ह जो अतीव कोमल ह
और कृ त ने उ ह इतना सरु त बनाया है क साधारणतः उन तक वा य भाव नह ं
पहुचता | आसन से इनक र ा होती है | इन ् मम क सरु ा मे य द कसी कार क बाधा
पड जाए तो जीवन संकट मे पड सकता है | ऐसे मम थान उदर और छाती के भीतर
वशेष ह |

कंठ -कूप , क द , पु छ , मे दं ड और वा य रं से स बं धत ३३ मम ह | इनमे कोई


आघात लग जाए , रोग वशेष के कारण वकृ त आ जाए , र ताभीषण क जाए और वष
-बालक
ु ा जमा हो जाए तो दे ह भीतर ह भीतर घल
ु ने लगती है | बाहर से कोई य या
वशेष रोग दखाई नह ं पड़ता , पर भीतर ह भीतर दे ह खोखल हो जाती है | नाडी मे वर
नह ं होता पर मह
ु का कड़वा पन, शर र मे रोमांच , भार पन , उदासी , हडफुटन , सर मे
ह का स दद , यास आ द भीतर वर जैसे ल ण दखाए पड़ते ह | वै य डा टर कुछ
समझ नह ं पाते , दवा -दा दे ते ह पर कुछ वशेष लाभ नह ं होता |

मम मे चोट पहुचने से आकि मक म ृ यु हो सकती है | तां क अ भचार मारण का योग


करते ह तो उनका आ मण इन ् मम थल पर ह होता है | हा न , शोक , अपमान आ द
क कोई मान सक चोट लगे तो मम थल त - व त हो जाती है और उस यि त के
ाण संकट मे पड जाते ह | मम अश त हो जाएँ तो ग ठया , गंज , वे कंठ, पथर , गद

क श थलता , खु क , बवासीर जैसे न ठ क होने वाले रोग उपज पड़ते ह |

सर और धड मे रहने वाले मम मे 'ह य- वहा' नामक धन व यत


ु का नवास और हाथ
पैर मे 'क य- वहा' ऋण व यत
ु क वशेषता है | दोन का संतल
ु न बगाड जाए तो लकवा
, अधाग , सं धवात जैसे उप व खड़े होते ह |

कई बार मोटे , तगड़े व थ दखाई पड़ने वाले मनु य भी ऐसे मंद रोग से सत हो जाते
ह , जो उनक शार रक अ छ ि थ त को दे खते हुए न होने चा हए थे | इन ् मा मक रोग
का कारण मम थान क गडबडी है | कारण यह है क साधारण प र म या कसरत वारा
इन मम थान का यायाम नह ं हो पाता | औष धय क पहुच वहाँ तक नह ं होती | श य
या या सच
ू ी -भेद ( इंजे सन ) भी उनको भा वत करने मे समथ नह ं होते | उस वकत
गु थी को सल
ु झाने मे केवल 'योग -आसन ' ऐसे ती ण अ ह जो मम शोधन मे अपना
चम कार दखाते ह |
ऋ षय ने दे खा क अ छा आहार - वहार रखते हुए भी , व ाम - यायाम क यव था
रखते हुए भी कई बार अ ात सू म कारण से मम थल वकृत हो जाता है और उसमे
रहने वाल ह य-वहा , क य -वहा त डत शि त का संतल
ु न बगड़ जाने से बीमार और
कमजोर आ धमकती है , िजससे योग साधना मे बाधा पड़ती है | इस क ठनाई को दरू
करने के लए उ ह ने अपने द घकाल न अनस
ु ध
ं ान और अनभ
ु व वारा 'आसन - या' का
आ व कार कया | आसन का सीधा भाव हमारे मम थल पर पड़ता है | धान
नश-ना ड़य और मांसपे शय के अ त र त सू म कशे काओ का भी आसन वारा ऐसा
आकंु चन - ाकंु चन होता है क उसमे जमे हुए वकार हट जाते ह तथा फर न य सफाई
होते रहने से नए वकार जमा नह ं होते | मम थल क शु ध , ि थरता एवँ प रपिु ट के
लए आसन को अपने ढं ग का सव म उपचार कहा जा सकता है | (( आसन अनेक ह
उसमे से ८४ धान ह इनक व तत
ृ या या के लए पू य पं डत ीराम शमा आचाय जी
वारा ल खत पु तक 'बलवधक यायाम' दे ख ))
आठ आसन ऐसे ह जो सभी मम थान पर अ छा भाव डालते ह ...

१. सवागासन २. ब ध-प मासन ३.पाद ह तासन ४. उ कटासन ५. पि चमो ान आसन


६. सपासन ७. धनरु ासन ८. मयरू ासन

इन ् सभी से जो लाभ होता है उसका सि म लत लाभ सय


ू -नम कार से होता है | यह एक
ह आसन कई आसन के म ण से बना है | इसे ातःकाल सय
ू दय से पव
ू करना चा हए |

अ नमय कोश क शु ध के चार साधन --३. त व-शु ध

यह सिृ ट पंच त व से बनी हुई है | ा णय के शर र भी इ ह त व से बने हुए ह | मटट


, जल , वायु , अि न और आकाश इन ् पांच त व का यह सबकुछ सं सार है | िजतनी
व तए
ु ं ि टगोचर होती ह या इि य वारा अनभ
ु ाव मे आती ह उन सब क उ प पंच
त व वारा हुई ह | व तओ
ु ं का प रवतन , उ प , वकास तथा वनास इन ् त व क
मा ा मे प रवतन आने से ह होता है | यह स द है क जलवायु का व य पर भाव
पड़ता है शीत धान दे श के तथा यरू ो पयन दे श का रं ग प , कद - व यअ का के
उ ण दे श वा सय के रं ग - प , कद , व य से सवथा भ न होता है | पंजाबी ,
का मीर , बंगाल , म ासी लोग के शर र तथा व य क भ नता य है | जलवायु
का ह अंतर् है |

क ह दे श मे मले रया , पीला बख


ु ार , पे चस , चम रोग , फ ल पावं , कु ट आ द रोग
क बाढ़ सी रहती है और क ह थान क जलवायु ऐसी होती है क वहाँ जाने पर तपे दक
सर खे क ट सा य रोग भी अ छे हो जाते ह | पशु प ी , घास -अ न , फल , औष ध आ द
के रं ग , प , व य , गण
ु , कृ त आ द मे भी जलवायु के अनस
ु ार अंतर पड़ता है इस
कार वषा, गम -सद का त व-प रवतन ा णय मे अनेक कार के सू म प रवतन कर
दे ता है |

आयव
ु द शा मे वात , प , कफ का असंतल
ु न रोग का कारण बताया है | वात का अथ
है वायु , प का अथ है गम और कफ का अथ है जल | पंच त व मे प ृ वी शर र का
ि थर आधार है | मटट से ह शर र बना है और जला दे ने या गाड़ दे ने पर मटट प मे
ह इसका अि त व रह जाता है | इस लए प ृ वी त व शर र का ि थर आधार होने से वह
रोग आ द का कारण नह ं बनता |

दस
ू रे आकाश का स ब ध मन से बु ध और इि य क सू म त मा ाओं से है | थल

शर र पर जलवायु और गम का ह भाव पड़ता है और उ ह भाव के आधार पर रोग
एवँ व य बहुत कुछ नभर रहते ह | वायु क मा ा मे अंतर् आ जाने से ग ठया , लकवा
, दद , कंप , अकडना , गु म , ह फुतन, नाडी व ेप आ द रोग होते ह | त व के वकास से
फोड़े -फंु सी , चेचक वर, र त प , है जा , द त , य , वास उपदं श , र त वकार
आ द बढते ह |

जल त व क गडबडी से जलोदर ,पे चस, सं हणी, मलमू , मेह व न दोष , सोम , दर


, जक
ु ाम , खांसी आ द रोग पैदा होते ह | अि न क मा ा कम हो तो शीत , िजकाम ,
अकडन , अपच , श थलता शर खे रोग उठ खड़े होते ह | इस कार अ य त व का घटना
बढ़ना अनेक रोग उ प न करता है |

आयव
ु द के मत से मत से वशेष भावशाल , ग तशील स य एवँ थल
ू शर र को ि थर
करने वाले कफ वात प अथात जल वायु गम ह है और दै नक जीवन मे जो उतारचढाव
होते रहते ह उनमे इन ् तीन का ह धान कारण होता है | फर भी शेष दो त व प ृ वी और
आकाश शर र पर ि थर प मे काफ भाव डालते ह |

मोटा या पतला होना , लंबा या ठगना होना , पवान या कु प होना , गोरा या काला होना
, कोमल या सु ढ़ होना शर र मे प ृ वी त व क ि थ त से स बं धत है | इसी कार
चतरु ता - मख
ू ता , सदाचार -दरु ाचार , नीचता -महानता , ती बु ध , दरू द शता व
ख नता - स नता एवँ गण
ु , कम , वभाव , इ छा , आकांछा , भावना , आदश , ल य
आ द बात इस पर नभर रहती ह क आकाश त व क ि थ त या है ? उ माद , सनक ,
दल क धडकन , अ न ा , पागलपन - द:ु व न , मग , मछ
ू ा , घबडाहट , नराशा आ द
रोग मे भी आकाश ह धान कारण होता है | त व क मा ा मे गडबडी पड़ जाने से
व य मे नि चत प से खराबी आ जाती है | जलवायु सद गम ( ऋतू भाव ) के
कारण रोगी मनु य नरोग और नरोग रोगी बन सकता है |

योग साधक को जान लेना चा हए क पंच त व से बने शर र को सरु त रखने का मह व


पण
ू आधार यह है क दे ह मे सभी त व ि थर मा ा मे रह | गाय ी के पांच मख
ु शर र मे
पांच त व बनकर नवास करते ह यह पंच ानेि य और पंच कमइि य को याशील
रखते ह | लापरवाह , अ यव था और आहार - वहार मे असंयम से त व का संतल
ु न
बगड़ कर रोग त होना एक कार से पंच मख
ु ी गाय ी माता का दे ह -परमे वर का
तर कार करना है |

अ नमय कोश क शु ध के चार साधन --३. त व-शु ध

अ नमय कोश के प रमाजन के लए उपाय 'त व-शु ध' है | थल


ू प से शर र के पंच
-त व को ठ क रखने के लए जल , वायु , ऋतू , दे श और वातावरण का यान रखना
आव यक है | सू म प से पंचीकरण व या के अनस
ु ार त व ान ा त करके आ मत व
और अना म त व के अंतर् को समझते हुए पंच से छुटकारा पाना चा हए | त व-शु ध
के दोन ह पहलू मह वपण
ू ह | िजसे अपना अ नमय कोश ठ क रखना है उसे यावहा रक
जीवन मे पंचत व क शु ध स ब धी बात का यान अव य रखना चा हए |

१. जल-त व क शु ध :

जल से शर र और व क शु ध बराबर करता रहे | नान करने का अथ मा मैल


छुड़ाना नह ं है वरन पानी मे रहने वाले ' व शवा ' नामक व यत
ु से दे ह को सतेज करना
एवँ आ सीजन , नाइ ोजन आ द बहुमू य त व से शर र को मलता भी है |

सब
ु ह शौच जाने से लगभग २०-३० मनट पव
ू एक गलास पानी पीने से रात का अपच धल

जाता है और शौच साफ़ होता है |

पानी को सदा घट
ूँ -घट
ूँ कर धीरे -धीरे पीना चा हए | हर घट
ूँ के साथ यह भावना करते जाना
चा हए ' क इस अमत
ृ -तु य जल मे शीतलता , मधरु ता और शि त भर हुई है उसे खीच
कर मै अपने शर र मे धारण कर रहा हूँ ' इस भावना के साथ पया हुआ पानी दध
ू के
समान गण
ु कारक होता है |

िजन थान का पानी भार , खार , तैल य , उथला , तालाब का तथा हा नकारक हो , वहाँ
रहने पर अ नमय -कोश मे वकार पैदा होता है | कई थान मे पानी ऐसा होता है क वहाँ
फ ल-पावँ , अंड-नासरू , जलोदर , कु ठ , खज
ु ल , मले रया , जए
ु ं -म छर आ द का बहुत
सार होता है | ऐसे थान को छोड़कर व छ हलके सप
ु ा य जल के समीप अपना नवास
रखना चा हए | ध नक लोग दरू थान से ह अपने लए उ म जल मंगवा सकते ह |

कभी -कभी ए नमा वारा पेट मे जल चढाकर आंत क सफाई कर लेनी चा हए | उससे
सं चत मल से उ प न वष पेट मे से नकल जाते ह और च बड़ा ह का हो जाता है |
ाचीन काल मे वि त- या योग का बड़ा आव यक अंग था | अब ए नमा यं वारा यह
या सग
ु म हो गयी है |

जल- च क सा प ध त रोग नवारण एवँ व य संवधन के लए बड़ी उपयु त है |


डा टर लइ
ु कने ने इस व ान पर वतं थ लखे ह | उनक बताई प ध त से कये गए
कट नान , मेहन नान , मे दं ड नान , गील चादर लपेटना , कपडे का फल- तर आ द
से रोग नवारण मे बड़ी सहायता मलती है |

२. अि न -त व क शु ध:

सय
ू के काश के अ धक संपक मे रहने का यास करना चा हए | घर क सभी खड़ कयाँ
खल
ु रखनी चा हए ता क धप
ु और हवा खब
ू आती रहे | सबेरे क धप
ु नंगे शर र पर लेने का
यास करना चा हए | सय
ू टाप से तपाये हुए जल का उपयोग करना , भीगे बदन पर धप

लेना उपयोगी है | सय
ू क अ ावायलेट करणे व य के लए बड़ी उपयोगी सा बत
होती ह | वे जल के साथ धप
ु का म ण होने से खच जाती ह | धप
ु मे रखकर रं गीन कांच
से स पण
ू रोग क च क सा करने क च क सा करने क व तत
ृ व ध तथा अि न और
जल के सि म ण से भाप बन जाने पर उसके वारा अनेक रोग क उपचार करने क
व ध सय
ू - च क सा व ान क कसी भी ामा णक पु तक मे दे ख सकते ह |

र ववार को उपवास रखना सय


ू क तेजि वता एवँ बलदा यनी शि त का आ वान है | परू ा
या आं शक उपवास शर र क कां त और आि मक तेज को बढ़ाने वाला स ध होता है |

३ . वाय-ु त व क शु ध :

घनी आबाद के मकान जहाँ धल


ु -धव
ु ां , सीलन क भरमार रहती है और शु ध वायु का
आवागमन नह ं होता , वे थान व य के लए खतरनाक ह | हमारा नवास खल
ु हवा
मे होना चा हए | दन मे व ृ और पौध से आ सीजन वायु नकलती रहती है , वह मनु य
के लए बहुत उपयोगी है | जहाँ तक हो सके व ृ -पौध के बीच अपना दै नक काय म
करना चा हए | अपने घर आँगन चबत
ू रे आ द पर पौधे-व ृ आ द लगाने चा हए |

ातःकाल क वायु बड़ी वा य द होती है , उसे सेवन करने के लए तेज चाल से टहलने
के लए जाना चा हए | दघ
ु धत एवँ बंद हवा के थान से अपना नवास दरू ह रखना चा हए
| तराई , सीलन , नमी वाले थान क वायु वर आ द पैदा करती है | तेज हवा के झ क
से वचा फट जाती है | अ धक ठं ढ या गम हवा से नमो नया या लू लगना जैसे रोग हो
सकते ह | इस कार तकूल मौसम से अपनी र ा करनी चा हए |

ाणायाम वारा फेफड़ का यायाम होता है | इस लए व थ वायु के थान पर बैठ कर


न य यायाम करना चा हए |
हवन करना :

अि न त व के संयोग से हवन वायु को शु ध करता है | जो वायु अि न मे जलाई जाती है


वह न ट नह ं होती वरन सू म होकर वायु मंडल मे फ़ैल जाती है | भ न - भ न व ृ क
स मधाओं और हवन साम य मे अलग अलग गण
ु ह | उनके वारा ऐसा वातावरण रखा
जा सकता है जो शर र और मन को व थ बनाने मे सहायक ह | कस स मधा और कन
- कन साम य से कस वधान के साथ हवन करने का या प रणाम होता है ? इसके
लए गाय ी य वधान लखा गया है |

गाय ी साधक को अपने अ नमय कोश क वायु शु ध के लए कुछ हवन साम ी बना
कर रख लनी चा हए , िजसे धप
ू दानी मे थोड़ी थोड़ी जलाकर उससे अपने नवास थान क
वायु शु ध करते रहना चा हए |

चंदन , चरु ा , दे वदा , जायफल , इलायची , जा व ी अगर गर अपरू , छार-छबीला ,


नागरमोथा , खस , कपरू -कचर , तथा मेवाय , जो कूट करके थोडा घी और श कर
मलकर धप
ु बन जाती है इस धप
ु क बड़ी मनमोहक एवँ वा यवधक गंध आती है |
बाजार से भी कोई अ छ अगरबती या धप
ू ब ी लेकर काम चलाया जा सकता है | साधना
काल मे ऐसी यव था कर लेना उ म है |

सांस मह
ु से नह ं सदा नाक से ह लेना चा हए | कपडे से मह
ु ढक कर नह ं सोना चा हए
और कसी के मह
ु से इतना पास नह ं सोना चा हए क उसके मह
ु से छोड़ी हुई सांस आपके
भीतर जाए | धल
ू -धव
ु ां और दग
ु ध भर वायु से सदा बचना चा हए |

४ .प ृ वी त व क शु ध :
शु ध मटट मे वष नवारण क अ भत
ु शि त होती है | गंदे हांथ को मटट से माँजकर
शु ध कया जाता है | ाचीन काल मे ऋ ष मु न ज़मीन खोद कर गफ
ु ा बना लेते थे और
उसमे रहा करते थे इससे उनके व य पर बड़ा अ छा असर पड़ा करता था | मटट
उनके शर र के द ू षत वकार को खीच लेती थी साथ ह भू म से नकालने वाले वा प
वारा दे ह का पोषण भी होता रहता था | समा ध लगाने के लए गफ
ु ाएं उपयु त थान
समझी जाती ह यो क चर ओर मटट से घर होने के कारण शर र को सांस वारा ह
बहुत सा आहार ा त हो जाता है और कई दन तक भोजन क आव यकता नह ं पड़ती
या कम भोजन से भी काम चल जाता है |

छोटे बालक जो कृ त के अ धक समीप ह प ृ वी के मह व को जानते ह , वे भू म पर


खेलना, लेटना, ग द त कय के अलावा अ धक पसंद करते ह | पशओ
ु ं को दे खये वे
अपनी थकान मटाने के लए ज़मीन पर लोट लगाते ह और लोट-पीट कर प ृ वी क पोषण
शि त से फर ताजगी ा त कर लेते ह |तीथ या ा और धम काय के लए नंगे पैर चलने
का वधान है | तप वी लोग भू म पर शयन करते ह |

इन ् थाओं का उ ये य धम साधन के नाम पर प ृ वी क पोषण शि त वारा साधक को


लाभाि वत करना ह है | प के मकान क अपे ा मटट के झोपड़ मे रहने वाले सदा
अ धक व थ रहते ह | मटट के उपयोग वारा व य सध
ु ार मे हम बहुत सहायता
मलती है | नद ष प व भू म पर नंगे पावँ टहलना चा हए | जहाँ छोट -छोट हर घास
उग रह हो वहाँ टहलना तो और भी अ छा है | पहलवान लोग चाहे वे अमीर ह य नह
ई के ग द पर कसरत करने क अपे ा मल
ु ायम मटट के अखाड़ मे ह यायाम करते
ह , ता क मटट के अमू य गण
ु का लाभ उनके शर र को ा त हो |
साबन
ु के थान पर मु तानी मटट का योग कया जा सकता है | वह मैल को दरू करे गी
, वष को खीचेगी और वचा को कोमल ताजा , चमक ला और फुि लत कर दे गी |

मटट शर र पर लगाकर नान करना एक अ छा उबटन है | गम के दन मे उठने वाल


मरोडीयाँ और फुि सयाँ दरू हो जाती ह सर के बाल को मु तानी मटट से धोने का
रवाज अभी तक मौजद
ू है

यह बाल को काला बनाये रखने के लए एक बहुत ह सु दर औष ध का काय करता है |


फोड़े -फंु सी , दाद , खाज , ग ठया , जहर ले जानवर के काटने , सज
ू न,ज म, ग ट ,
नासरू , दख
ु ती हुई आँख ; कु ठ रोग , र त वकार आ द रोग पर गील मटट बांधने से
आ चय जनक लाभ होता है | डा. लइ
ु कने ने अपनी जल च क सा मे मटट क प ट के
अनेक उपचार लखे ह | चू हे क जल हुई मटट से दाँत मांजने , नाक के रोग मे मटट
के ढे ले पर पानी डालकर सघ
ंू ने , लू लगने पर पैर के ऊपर मटट थोप लेने क व ध से
लोग प र चत होने चा हए |

कसी थान पर बहुत समय तक मल मू डालते रहे तो डालना बंद कर दे ने के बाद भी


बहुत समय तक वहाँ दग
ु ध आती रहती है | कारण यह है क भू म मे शोषण शि त है वह
पदाथ को सोख लेती है और उसका भाव बहुत समय तक अपने अंदर धारण कये रहती
है | प ृ वी क सू म शि त लोग के सू म वचार और गण
ु को सोखकर अपने मे धारण
कर लेती ह | िजन थान पर ह या , य भचार , जआ
ु आ द द ु कम होते ह उन थान का
वातावरण ऐसा घातक होता है क वहाँ जाने वाल पर उनका भाव पड़े बना नह ं रहता |

मशान भू म जहाँ अनेक मत


ृ शर र न ट हो जाते ह अपने मे एक भयंकरता छपाए रहती
है --वहाँ जाने पर एक वल ण भाव मनु य पर पड़ता है अनेक तां क साधनाएं तो ऐसी
ह िजनके लए केवल मा मरघट का वातावरण ह उपयु त होता है |
भू मगत भाव से गाय ी साधक को लाभ उठाना चा हए | जहाँ स पु ष रहते ह , वहाँ
वा याय , स वचार , स काय होते ह , वे व न य तीथ ह , उन थान का
वातावरण साधक क सफलता मे बड़ा लाभदायक होता है | िजन थान मे कसी समय
कोई अवतार या द य पु ष रहे ह , उन थान क भाव शि त का सू म नर ण करके
तीथ बनाये गए ह | जहाँ कोई स ध पु ष या तप वी बहुत काल तक रहे ह वह थान
स ध पीठ बन जाते ह और वहाँ रहने वाल पर अनायास ह अपना भाव डालते ह |

सू मदश महा माओं ने दे खा है क भगवान ीकृ ण क य ल ला तरं गे अभी तक ज


भू म मे बड़ी भाव पण
ू ि थ त मे मौजद
ू ह | तीथवा सय के द ू षत च के वावजद
ू इस
भू म क भाव शि त अब भी बानी हुई है और साधक को उसका पश होते ह शां त
मलती है | कतने ह मम
ु ु ु अपनी आि मक शां त के लए इस पु य भू म मे नवास
करने का थायी या अ पकाल न अवसर नकालते ह | कारण यह है क लेशयु त
वातावरण के थान मे िजतने म या समय मे िजतनी सफलता मलती है उसक अपे ा
पु य भू म के वातावरण मे कह ं ज द और कह ं अ धक लाभ होता है | तीथ थान मे नंगे
पैर मण करने का भी महा य इस लए है क उन थान क पु य तरं गे अपने शर र से
पश करके आि मक शां त का हे तु बने |

आकाश त व क शु ध :
आकाश त व पछले चार त व क अपे ा अ धक सू म होने से अ धक शि तशाल है
| व व यापी पोल मे , शू याकाश मे एक शि त त व भरा हुआ है िजसे अं ेजी मे ईथर
कहते ह | पोले थान को खाल नह ं समझना चा हए | वह वायु से सू म होने के कारण
य प से अनभ
ु व नह ं होता तो भी उसका अि त व पण
ू तया ामा णत है | रे डयो
वारा गायन , समाचार , भाषण आ द जो हम सन
ु ते ह वे ईथर मे , काश त व मे तरं ग
के प मे आते ह | जैसे पानी मे ढे ला फक दे ने पर उसक लहर बनती है और वह लहर
जलाशय के अं तम ोत तक चल जाती है उसी कार ईथर ( आकाश ) मे श द क तरं गे
पैदा होती है और पलक मारते व व भर मे फ़ैल जाती है | इसी व ान के आधार पर
रे डयो यं का आ व कार हुआ | एक थान पर श द तरं ग के साथ बजल क शि त
मलकर उसे अ धक बलवती करके वा हत कर दया जाता है | अ य थान पर जहाँ
रे डयो यं लगे है इन ् आकाश मे बहने वाल तरं ग को पकड़ लया जाता है और े षत
स दे श सन
ु े दे ने लगते ह |

वाणी चार कार क होती है .. १. बैखर - जो मह


ु से बोल और कान से सन
ु ी जाती है िजसे
'श द' कहते ह |२. म यमा -जो संकेत से , मख
ु ाकृ त से , भाव-भंगी ने से कह जाती है ,
इसे भाव कहते ह |३. प य ती- जो मन से नकलती है और मन ह उसे सन
ु सकता है , इसे
वचार कहते ह | ४. परा - यह आकां ा , इ छा , न चय , ेरणा , शाप , वरदान आ द के
प मे अ तःकरण से नकलती है , इसे संक प कहते ह | यह चार ह वा णयां आकाश मे
तरं ग प मे वा हत होती है | जो यि त िजतना ह भावशाल है , उसके श द , भाव,
वचार और संक प आकाश मे उतने ह बल होकर वा हत होते रहते ह |

आकाश मे असं य कृ त के असं य यि तय वारा असं य कार क थल


ू एवँ सू म
श दावल े रत होती रहती है | हमारा अपना मन िजस क पर ि थर होता है उसी जा त
के असं य कार के वचार हमारे मि त क मे धंस जाते ह और अ य प से उन अपने
पव
ू नधा रत वचार क पिु ट करना आर भ कर दे ते ह | य द हमारा अपना वचार
य भचार करने का हो तो असं य य भचा रय वारा आकाश मे े रत कये गए वैसे ह
श द ,भाव , वचार और संक प हमारे ऊपर बरस पड़ते ह और वैसे ह उपाय सझ
ु ाव माग
बताकर उसी ओर उ सा हत कर दे ते ह |

हमारे अपने व- न मत वचार मे एक मौ लक-चु बक व होता है उसी के अनु प


आकाशगामी वचार हमार ओर खीचते ह | रे डयो मे िजस टे शन के मीटर पर सई
ु कर द
जाए उसी के स दे श सन
ु ाई पड़ते ह और उसी समय मे जो अ य टे शन बोल रहे ह , उनक
वाणी हमारे रे डयो से टकराकर लौट जा त वह सन
ु े नह ं दे ती | उसी कार हमारे अपने
व- न मत मौ लक वचार ह अपने सजा तय को आमं त करते ह |

मार लाश को दे खकर कौवा च लाता है तो सैकड़ कौवे उसक आवाज सन


ु कर जमा हो
जाते ह | ऐसे ह अपने वचार भी सजा तय को बल
ु ाकर एक अ छ खासी सेना जमा कर
लेते ह | फर उस वचार , सै य क बलता के आधार पर उसी दशा मे काय भी आर भ
हो जाता है |

आकाश त व क इस वल णता को यान मे रखते हुए हम कु वचार से वषधर सप क


भां त सावधान रहना चा हए | अ यथा वे अनेक वजा तय को बल
ु ाकर हमारे लए संकट
उ प न कर दगे | जब कोई कु वचार मन मे आवे तो त ण उसे मार भगाना चा हए
अ यथा यह स पण
ू मानस े को वैसे ह खराब कर दे गा जैसे वष क बँद
ू सारे भोजन
को बगाड़ दे ती है |
मन मे सदा उ म उ च साि वक उदार वचारो को ह थान दे ना चा हए िजससे उसी जा त
के वचार अ खल आकाश से खीचकर हमार ओर चले आव और स माग क ओर े रत
कर उ म बात सोचते रहने वा याय मनन आ म- चंतन परमाथ और उपासनमयी
मनोभू म हमारा बहुत कुछ क याण कर सकती है | य द तकूल काय न हो रहे ह उ च
वधारधारा से ह स ग त ा त हो सकती है भले ह उन वचार के अनु प काय न हो रहे
ह |

संक प कभी न ट नह ं होते | पव


ू काल मे ऋ ष मु नय के , महापु ष के जो वचार वचन
एवँ संक प थे वे अब भी आकाश मे गँज
ू रहे ह य द हमार मनोभू म अनक
ु ू ल हो तो उन
द य आ माओं का पथ - दशन एवँ सहारा भी हम अव य ा त होता रहे गा |

पर हक ा मी ेरणाएँ शि तयां करणे तथा तरं गे भी आकाश वारा ह मानव


अ तःकरण को ा त होती है | दै वी शि तयां ई वर क व वध गण
ु वाल करणे ह तो ह
, आकाश वारा मन के मा यम से उनका अवतरण होता है | शव जी ने आकाशवा हनी
गंगा को अपने शर पर उतारा था तब वह प ृ वी पर बह थी | ह क सव धान शि त
आकाश वा हनी गाय ी गंगा को साधक सबसे पहले अपने मनः े मे उतारता है | यह
अवतरण होने पर ह जीवन के अ य े को यह प तत-पावनी पु यधारा पावन करती है |

तप चया :

आलसी और आरामतलब शर र मे अ नमय कोश क व थता ि थर नह ं रह सकती |


इस लए १.उपवास २. आसन ३. त वशु ध के साथ ४. तप चया को थम कोश अ नमय
कोश क सु यव था का आव यक अंग बताया गया है |
तप का अथ है --उ णता , ग त , याशीलता , घषण , संघष , त त ा क ट सहना |

कसी व तु को नद ष , प व एवँ लाभदायक बनाना होता है तो तपाया जाता है | सोना


तपने से खरा हो जाता है | डा टर पहले अपने औजार को गम कर लेते ह तब उनसे
आपरे सन करते ह | चाकू को सान पर न घसा जाए तो काटने क शि त खो बैठेगा | ह रा
खराद पर न चढ़ाया जाए तो उसमे चमक और सद
ंु रता पैदा न होगी | यायाम क ट सा य
म कये बना कोई मनु य पहलवान नह ं बन सकता | अ ययन का कठोर म कये
बना कोई व वान नह ं बन सकता | माता ब चे को गभ मे रखे बना , पालन पोषण का
क ट सहे बना मात ृ व का सख
ु लाभ नह ं ा त कर सकती | ल द को धप
ु मे ना सख
ु ाया
जाए तो उनमे से बदबू आने लग जायेगी | ईट य द भ ट मे ना पक तो उनमे मजबत
ू ी
नह ं आ सकती | माँ पावती ने तप करके मनचाहा वरदान पाया था |

भागीरथ ने तप करके गंगा को भल


ू ोक मे बल
ु ाया था | व
ु के तप से भगवान को वत कर
दया था | तप वी लोग कठोर तप चया करके स धयाँ ा त करते थे | रावण ,
कु भकरण , मेघनाथ , हर यक यप , भ मासरु आ द आ द ने भी तप के भाव से
वल ण वरदान पाए थे | आज तक िजस कसी को जो कुछ भी ा त हुआ है वह तप के
ह बल से ा त हुआ है | ई वर ताप वी पर स न होते ह और उ ह मनचाहा वरदान दे ते
ह | जो भी धनी , संप न , सु दर , व थ , व वान , तभाशाल , नेता , अ धकार
आ द के प मे चमक रहे ह , उनक चमक अभी के या पव
ू ज म के तप पर ह अवलं बत
है | य द वे नया तप नह ं करते ह और परु ाने तप को ह खा जाते ह तो उनको चमक धध
ंु ल
होती जायेगी | जो लोग भी आज गरे ह उनके उठने का एक ह माग है -तप | बना तप के
कोई भी स ध , कोई भी सफलता नह ं मल सकती -न ह सांसा रक न ह आि मक |

ाचीन काल मे तप चया को बड़ा मह व दया जाता था जो यि त िजतना प र मी ,


क ट स ह णु , साहसी पु षाथ और कायशील होता था उसक उतनी ह त ठा होती थी
| धनी- गर ब , राजा-महाराजा सभी के बालक गु ल भेजे जाते थे ता क वे कठोर जीवन क
श ा ा त करके अपने को इतना सु ढ़ बना ल क आप य से लड़ना और संप को
ा त करना सग
ु म हो सके | आज तप के, क ट -स ह णत
ु ा के मह व को लोग भल
ू गए ह
और आराम तलबी , आल य , नजाकत को अमीर का च ह मानने लगे ह फल व प
पु षाथ घटता जाता है यो यता वारा उपाजन करने क अपे ा लोग छल धत
ू ता और
अ याय वारा बड़े बनने का य न कर रहे ह | गाय ी साधक को तप वी होना चा हए ,
अ वाद त , उपवास , ऋतू भाव का सहना , त त ा , घषण आ क प , दात य ,
नकासन , साधन , हचय , चं ायन , मौन अचन , समय के मह व को पहचानना ,
कत यपरायण होना यह गाय ी साधक के लए अ नवाय है |

परोपकार , लोकसेवा , स काय के लए दान , य भावना से कये जाने वाले पारमा थक


जीवन य तप ह | दस
ू र के लाभ के लए अपने वाथ का ब लदान करना तप वी
जीवन का धान च ह है | आज क ि थ त मे ाचीन काल क भां त तप नह ं कये जा
सकते अब शार रक ि थ त ऐसी नह ं रह गयी क भागीरथ पावती या रावण के जैसे उ
तप कएय जा सक द घ काल तक नराहार रहना या बना व ाम कये लंबे समय तक
साधना रत रहना आज संभव नह ं है वैसा करने से शर र तरु ं त पीड़ा त हो जाएगा |
सतयग
ु मे लंबे समय तक दान तप होते थे यो क उस समय शर र मे वायु त व धान था
| त
े ा मे शर र मे अि न त व क धानता थी | वापर मे जल त व अ धक था | उन यग

मे जो साधनाएं हो सकती थी वह आज नह ं हो सकती यो क आज कलयग
ु मे मानव दे ह
मे प ृ वी त व धान है | प ृ वी त व अ य सभी त व से थल
ू है इस लए आधु नक काल
के शर र उन तप याओं को नह ं कर सकते जो त
े ा मे आसानी से होती थी |

दस
ू र बात यह है क वतमान समय मे सामािजक आ थक बौ धक यव थाओं मे
प रवतन हो जाने से मनु य के रहन सहन मे बहुत अंतर् पड़ गया है बड़े नगर के
नवा सय मे यां क स यता के बीच रहने के फल व प शार रक म बहुत कम करना
पड़ता है और अ धकाँश मे कृ तम वातावरम के कारण शु ध जलवायु से भी वं चत रहना
पड़ता है | ऐसी अव था मे शर र को पव
ू काल न तपयो य रखना कहाँ संभव हो सकता है ?
कुछ समय पव
ू तक ने त धोती व ती नयोल ब ोल कपल-भा त आ द याएँ आसानी
से हो जाती थीं उनके करने वाले अनेक योगी दे खे जाते थे पर अब यग
ु भाव से उनक
साधना क ठन हो गयी है जो कसी कार इन ् याओं को करने भी लगते ह वह उनसे वह
लाभ नह ं उठा पाते जो इनसे होनी चा हए | अ धकाँश हठ योगी तो इन ् क ठन साधनाओं
के कारण क ह क ट सा य रोग से सत हो जाते ह | र त - प , अ दाह
,मल
ू ाधार,कफ , अ न ा जैसे रोग से सत होते हुए अनेक हठयोगी दे खे ह | इस लए
वतमान काल क शार रक ि थ तय का यान रखते हुए तप चया मे बहुत सावधानी
बरतने क आव यकता है |

आज तो समाज सेवा , ान चार , वा याय , दान , इ य संयम आ द के आधार पर


ह हमार तप साधना होनी चा हए |

अ धक जानकार के लए दे ख http://hindi.awgp.org/

You might also like