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1.

मुलम कौन है
?

मुलम व ध एक वै
य क व ध (Personal Law) है | यह कहा जाता हैक मुलम व ध, द वानी व ध क एक शाखा है
जो मुलम के गत व पा रवा रक मामलो पर लागू
होती है|

यहाँ
सबसे
पहला यह हैक -

हम मुलम कसे
माने
गे
?

न न को हम मुलम माने
ग–

(1) इ लाम धम को मानने


वाला मुलम कहलाता है– इ लाम अरबी भाषा का एक श द है
, जसका शा दक अथ है
– ई र के त पूण समपण | व ध के कोण सेइ लाम एक ऐसा धम हैजसमे दो मुख स ां तो पर व ास रखना
अ नवाय है–

(a) ई र (अ लाह) के
वल एक ही है
|

(b) मु
ह मद साहब इस अ लाह के
अ तम त है
|

(2) ज म से
मुलम (Muslim by Birth) - कसी के
ज म के
समय य द उसके
माता- पता दोन ही मुलम रहे
हो तो
वह भी मुलम होगा |

हे
दाया केअनु
सार - य द ज म के समय माता- पता म से
कोई भी मुलम रहा हो तो वह मुलम होगा | पर तु
भारतीय
अदालत के ारा भै या शे
र बहा र बनाम भै
या गं
गा ब स सह के मामलेम कहा गया क कसी के
ज म के समय
उसके माता पता या पता म सेकेवल कोई एक ही मुलम रहा हो तब उसेमुलम तभी माना जाये
गा जब उसका लालन-
पालन मुलम क भां त आ हो |

(3) धम प रवतन ारा मुलम (Converted Muslim) – कसी भी धम को मानने वाला जो वय क तथा व थ चत
म त क का है अपनेमूल धम का प र याग करके
इ लाम धम धारण कर सकता है
| पर तुसं
प रवतन राशयपूण नह होना
चा हए, राशयपू
ण होने
पर यह मा य नह होगा |

2. इ लाम म व ध क सं
क पना को बताइए ?

इ लाम म व ध क सं
क पना न न है

(1) श रयत (Shariat) – इ लाम म कानू


न या व ध क दै
वीय उ प मानी जाती है
, इ लाम धम क मा यता के
अनुसार -
केवल ई र (अ लाह ) ही सव च व धकार है वह मनुय केसभी काय कलाप को व नय मत करने केलए कानून पा रत
करने म स म है|

अतः इ लाम धम के
अनु
सार - व ध अ लाह के
ऐसेनदशो को कहा जाता है
जो मनु
य के
धा मक, नै
तक या लौ कक काय-
कलाप को व नय मत करता है|

(2). फ़ ह (Fiqh) – फ़ ह से कानून केआधु नक अथ का बोध होता है


| मुलम व धवेाओ क मा यता हैक मानव
कायकलाप केलए दै वीय स दे
श तथा पै
ग़ बर क पर पराओ ारा समु चत मागदशन के अभाव म कानू
न केकसी का
नणय लेनेकेलए मानव तक व मनु य के ान का योग आव यक है | मनुय केव ध के ान अथवा ा का ही
प रभा षत नाम फ़ ह है |

3. मुलम व ध के ोत या है
?

मुलम व ध के ोत (Sources of Muslim Law) – मुलम व ध के ोत को दो भागो म बां


ट ा गया है
जो न न है

(1) ाथ मक ोत
(2) गौण ोत

[1] ाथ मक ोत (Primary Sources) – मुलम व ध केाथ मक ोत वे


पु
र ातन ोत हैज ह वयं
पै
ग बर मोह मद
नेव ध के ोत के प म था पत कया था जो चार है

(a) कु
रान

(b) सुा अथवा अहा दस

(c) इ मा

(d) कयास

(a) कुरान – कुरान मुलम व ध का थम ोत है | यह मुलम समुदाय का प व थ भी है तथा इसे‘Book of God’ भी


कहा जाता है | मुलम क यह मा यता रही हैक पै
ग बर मुह मद ई र केत है तथा उ ह ई र से दै
वीय स देश ा त होता
था | उ ह दै
वीय स देश सव थम 609 ईसवी म ा त आ इसके बाद समय-समय पर 632 ईसवी तक अथात उनके
जीवनपयत तक उ ह दै वीय स दे
श ा त होते
रहे
| मुह मद साहब पढ़े
- लखेनह थे , उ ह जो स देश ई र सेा त होता, वह
अपनेश य को बताते तथा उनकेश य इसेल पब करते गए | मु
ह मद साहब के मृयुकेबाद सारेदैवीय संदे
शो को एक
कया गया तथा इसका सं कलन करके एक व थत पु तक का प दान कया गया जो ‘कु रान’ कहलाया |

कुरान म धम, कानू


न तथा नै
तकता का स म ण है| पू
रे
कुरान को व ध ोत के प म नह माना जाता व भ अ याय म
बखरी लगभग 200 आयते ही व ध से
स ब ध रखती है
|

(b) सुा या अहा दस (Traditions of the Prophet) – पै


ग बर क पर पराओ को सुा कहा जाता है
| मु
ह मद साहब ने
बना दै
वीय े रणा केएक सामा य मनुय क भां त जो कुछ कहा या कया, वे
सब पै
ग बर क पर परा के अ तगत आते है
तथा इसम पै ग बर मोह मद का मौन समथन भी आता है |

मु
ह मद साहब क पर परा को सुा के प म व ध का मा णत ोत के
वल तभी माना जाता है
जब उनका वणन कसी
यो य व स म वाचक ारा कया गया हो |

व तुतः सुा अथवा पर पराएं


धम तथा कानू
न के ऐसेववरण है जो पीढ़ दर पीढ़ समाज म च लत होते रहते
है
, काफ
समय तक न तो यह ल पब येऔर न ही इ ह सुव थत रखा गया, ले कन म लक इ न अनस क पु तक ‘मु
व ा’, इ न
हनबल क पु तक ‘मसदन’ तथा इमाम मुलम क पु तक ‘शाही मुलम’ इ या द म व ान ने
इन पर परा का संह कया
है|

सुा का वग करण – इसका वग करण इसके


मह व के
आधार पर कया गया है

(क) अहा दस-ए-मु


तवा तर (Universal Traditions) - हजरत मु
ह मद क कुछ पर पराएं सावभौ मक मानी जाती है
|
येक मुलम चाहेवह कह का रहने वाला हो कसी भी समु दाय का रहने
वाला हो इन पर परा को व ध का ोत मानता
है|

(ख) अहा दस-ए मश र (Popular Traditions) - मु


ह मद साहब क ऐसी पर परा जसे
मुलम समाज के
ब मत ारा
मा यता मली और वह काफ मश र ई, अहा दस-ए-मश र कहलाया |

(ग) अहा दस-ए-अहद (Isolated Traditions) – इस को ट म सुा न तो सवस म त ारा मा य है


और न ही इसका
चलन सदै व रहा है
, समाज के
केवल अ पसंयक लोगो ने ही इसका अनु सरण कया और समाज म इस कार के सुा का
चलन एकाक पर परा के प म ही सी मत रहा |

(c) इ मा (Consensus Opinion of the Jurists) – कसी नयी सम या केलए कु रान तथा सुा म कोई नयम नह
ा त होनेपर व धवेाओ केमतै य नणय ारा नया कानू न ा त कर लया जाता था, इस कार का मतै य नणय ‘इ मा’
कहलाया जो मुलम व ध का तृतीयक ोत माना जाता है |

मुलम व ध केवकास म इस ोत का मुय हाथ रहा हैय क इ मा के ारा ही सामा जक आव यकता के अनुप नए
कानू
न बनाना ज री था | इ मा क मा यता का आधार पै
ग बर मु
ह मद का वह सुत हैजसमे
उ ह ने
कहा था क, ई र
अपने यो को कसी गलत बात पर सहमत होने नह देगा |

इ मा का वग करण (Classification of Ijma) – इ मा क मा यता उसकेनमाण म स म लत होने


वाले यो क
ेता पर नभर करता है
| इ मा को न न कार से वग कृत कया जा सकता है
-
(क) सहयो गय का इ मा – पै
ग बर मु
ह मद केनकटतम सहयोगी सबसे उ च को ट केव धवेा माने
जाते
थे
, इस लए ऐसा
इ मा जसमे इन सहयो गय नेभाग लया हो उ म को ट का इ मा माना जाता है
|

(ख) व धशा य का इ मा – पै
ग बर मु
ह मद के
सहयोगीयो के
मतै
य सहम त के
अभाव म अ य व धशा य का इ मा
मा य आ |

(ग) जनसाधारण का इ मा – कभी-कभी व धशा य के अ त र सामा य मुलम जनो का सामू


हक नणय भी कानू

मान लया जाता है
| लेकन मुलम व ध के ोत के प म अब इसका कोई मूय नह है
|

इ मा का मह व (Important of Ijma) – दन त दन बदलते समाज क नयी प र थ तय के स दभ म कुरान तथा सुा


म न हत कानू न केनयम अपू ण व अस म पाये गए, नए मुलम समाज ने
अप र चत सम या को ज म दया जसकेलए
नए व श नयम अप रहाय हो गये | इ मा का मह व दो कारण से
था – थम कुरान तथा सुा का आगे का वकास इ मा
ारा ही सं
भव था तथा सरा ऐसे नए नयम जो ग तशील समाज केलए आव यक थे (लेकन कुरान एवंसुा म नह दये
गए थे ) इ मा ारा ही व नय मत हो सके|

इ मा के
दोष (Defects of Ijma) –

(1) कु
छ समय बाद मै
त य ारा नणय ा त करना स भव नह रहा, उस थ त म के
वल ब मत नणय ही मान लया गया है
जब क इ मा व धशा य का मै त य नणय होना च हये
|

(2) सहयो गयो के


इ मा के
अ त र अ य को ट के
दो इ मा कसी बाद के
इ मा ारा नर त या प रव तत कर दए जा
सकते हैअतः इ मा ारा तपा दत नयम म न तता नह रह पाई |

(3) ब त थोड़े
समय म इ लाम का चार र- र तक हो गया और सभी थान केव धशा य म मै
त य नणय केलए एक
थान पर एक त कर पाना क ठन हो गया |

(d) कयास (Analogical Deduction) – अरबी भाषा केश द कयास का अथ है, माप अथात एक तमान सेकसी सरे
व तुक समानता | कसी नवीन सम या से स बं
धत नयम ा त करने केलए कुरान तथा सुा म उसी कार क सम या से
संद भत नयम को सीधे कु
रान अथवा सुा केमू
लपाठ से ही नग मत कर लया जाता था, इसे
ही कयास कहा जाता है
| यान
दे
नेयो य बात यह हैक कयास ारा नयेनयमो का तपादन नह होता है |
कयास क व ध सेनयम ा त करने
केलए के
वल न न ल खत दो आव यक शत है

(1) सा यता था पत करने


वाला मु
जत हद अथात व धशा ी रहा हो |

(2) उसनेनयम को कु
रान, सुा या इ मा केकसी न त मू
लपाठ सेनग मत कया हो |

[2] गौण ोत (Secondary Sources) –

(a) थाएं

(b) या यक नणय

(c) वधान

(a) थाएं(Customs) – इ लाम पूव का अरब समाज के


वल थाओ ारा ही नयंत होता था | जब इ लाम का
आ वभाव आ तो पै ग बर मु
ह मद नेपाया क सभी थाए अ यं
त नकृ है , इस लए उ ह ने
अरब समाज म च लत सभी
था को इ लाम केव घो षत कर दया | ले
कन कु
छ अ छ था (मे हर, तलाक आ द) का पै
ग बर मु
ह मद ने
इनके
चलन पर रोक न लगाना अथात उनका मौन समथन सुत माना गया | अतः कसी था को व ध का ोत नह माना गया
वरन उसेसुा के प म मा यता ा त ई है |

अदालत क म थाओ का मह व – भारतीय आं


ल अदालत नेथा को इतना अ धक मह व देदया हैक उन
थाओ को भी लागूकया जो कसी ाथ मक ोत केकसी नयम केव है|

अ ल सै न बनाम सोना डे
र ो के
वाद म वी क सल का कहना था क - कसी मू
ल थ केल खत कानू
न क तु
लना म
एक ाचीन तथा अप रवतनीय था को वरीयता मले
गी |

मुलम व ध म था क वतमान थ त – मुलम पसनल लॉ (श रयत) ए लीके शन ए ट 1937 क धारा 2 के अनु


सार -
य द कसी वाद म प कार मुलम है और वाद उ रा धकार, म हला क व श सं प , ववाह, मे
हर, ववाह व छेद, भरण
-पोषण, सं
र कता, दान, व फ तथा यास से
स बंधत हैतो केवल मुलम वै
य क व ध ही लागूहोती है
| अतः उ मामलो
म थागत व ध का लागू
होना अस भव है
|

ले
कन मुलमो म कृ ष-भूम, खै
र ात तथा धा मक एवं
धमाथ पु
त व यास के
मामले
म अभी भी थाओ को लागूकया जा
सकता हैयो क इस अ ध नयम म उसे शा मल नह कया गया है
|

(b) या यक नणय (Judicial Decisions) – कसी व र यायालय का नणय उसके


अधीन थ सभी यायालय केलए
अ नवायतः मा य होता है
इसे
पू
व नणय अथात नजीर का स ांत कहतेहै|

मुलम व ध के ोत के प म पू
व नणयन का कोई मह वपू
ण थान नह हैयो क लगभग सभी नयम मू
ल धा मक ं
थो म
न हत है
और अदालत का उ ह उसी प म लागूकरना अ नवाय है
|

(c) वधान (Legislation) – वधान का अथ होता है


, वधा यका ारा व धय का नमाण करना मुलम समाज के
सबध
म न न व धया बनाई गयी है –

मु
सलमान व फ वै
लीडे
टग ए ट, 1913

चाइ ड मै
रज
ेर े
स ए ट, 1929

मुलम पसनल लॉ श रयत ए लीके


शन ए ट, 1937

डजो यू
सन ऑफ़ मुलम मै
रज
ेे
ज ए ट, 1939

मुलम वमे
न ए ट, 1986

5. मुलम व ध म नकाह को बताइए ?

नकाह क प रभाषा (Definition of Muslim Marriage) – मुलम ववाह क प रभाषा न न व ानो नेन न कार से
द है–

हे
दाया – “ कानू
न क श दावली म नकाह से
एक ऐसी सं
वदा का बोध होता है
जो सं
तानो प को वै
धा नकता दान करने
केउ ेय से क जाती है
”|
अ ल का दर बनाम सलीमा के
वाद म यायमू
त महमू
द – “ मुलमो म ववाह शु प से
एक सं
वदा है
यह कोई सं
कार
नह है
“|

नकाह क कृ त – मुलम व ध के अं
तगत ववाह एक संवदा है
| अतः इसक कृ त सां
व धक ही मानी जाती है
इसक
व ध को संवदा मक मानना एक या यक व व धक प ही हैस वल सं वदा के
अ त र इ लाम म ववाह का समा जक
तथा धा मक मह व भी है
|

व धक प (Legal Aspect) – मुलम ववाह के


सा व दक व प क सं
क पना न न ल खत त य पर आधा रत है

सं
वदा के
सामान नकाह म भी दोन प कार स म होते
है|

नकाह भी बना ताव व वीकृ


त के
पूण नह माना जाता है
|

व धक सीमा के
अंतगत सं
वदा क भां
त नकाह म भी दा प य जीवन क कु
छ शत वं
य प कारो ारा नधा रत क
जाती है
|

सामा जक प (Social Aspect) – सामा जक प भी न न है


कोई एक साथ ही अन गनत सं


वदाये
कर सकता है
लेकन मुलम व ध के
अंतगत एक पुष चार से
अ धक य से
ववाह नह कर सकता |

सं
वदा के
प कारो के
आपसी स ब ध नह होता है
जब क न ष सं
बं
धो के
बीच नकाह क सं
वदा शू
य है
|

धा मक प (Religious Aspect) – मुलम व ध म ववाह का धा मक पहलू भी है


| कुरान म येक स म मुलम को
अपनी इ छत ी सेववाह करने का नदश दया गया अतः बना कसी उ चत कारण के अ ववा हत रह जाना कु
रान के
नदश का उ लंघन व अधा मक कृय है| उसके
अ त र वं य पै
ग बर मुह मद नेभी ववाह कया इस लए यह पै ग बर
मु
ह मद का सुत है| जसका अनु
सरण करना ये क मुलम का धा मक कत भी है |

अनीस बे
गम बनाम मु
तफा सै
न म यायाधीश सु
ले
म ान ने
कहा क- सं
वदा के
अतर मुलम ववाह एक धा मक सं
कार
भी है
|

व धमा य ववाह क आव यक शत (Essentials of a Valid Marriage) –

ववाह के
दोन प कार स म हो |
दोन प कार या उनके
अ भभावक क वतंसहम त होनी च हये
|

ववाह क आव यक औपचा रकता पू


र ी हो |

दोन प कारो के
बीच न ष स ब ध न हो |

स म प कार (Competence Parties) – स म प कार होने


केलए न न का होना आव यक है

उसने
यौनाव था क वय ा त कर ली हो |

व थ म त क वाला हो |

मुलम हो |

यौवनाव था क वय (Age of Puberty) – मुलम व ध म ववाह, मे हर तथा तलाक सेस बं


धत मामलो म वय कता क
आयु 18 वष न होकर यौवनाव था क वय मानी गयी है
| मुलम व ध के अंतगत ववाह केलए यौवनाव था क वय अथात
आयु 15 वष मानी गयी है
| जब प कार 15 वष क आयु पू
र ी कर ले
ते
हैतो वह ववाह केलए व धमा य सहम त भी दे
सकते है|

लेकन अगर कोई 15 वष क आयुा त नह कया है


या यौनाव था क वय ा त न क हो तो ववाह केलए उसे
अवय क
माना जाये
गा तथा उसक ओर से
उसकेअ भभावक ववाह क स म त दे सकतेहै| मुलम व ध म ववाह केलए अवय क
केअ भभावक वरीयता म म न न है

सुी व ध म –

पता

पतामह

भाई व पतृ
व कु
ल अ य सद य

माता

माता अथवा मातृ


कुल के
अ य सद य

शया व ध म –

पता

पतामह ही हो सकता है
चाहे
वह कतनी भी उ च पीढ़ का य न हो |
चू

क 15 वष क आयु अ य कसी मामले म अवय कता क आयु होती है
तथा बाल ववाह अवरोधक अ ध नयम 1929 के
अनु
सार - जो बाल- ववाह क था को रोकनेकेलए बनाया गया इसम पुष केलए यू नतम आयुववाह केलए 21 वष
क गए है |

इस अ ध नयम का भाव मुलम व ध पर भी पड़ता है


तथा जो इसे
कराता है
वह द डनीय होगा |

व थ च होना (Soundness of Mind) – ववाह स प होते समय दोन प कारो का व थ चत होना आव यक है


यो क अगर वह व थ चत नह ह गेतो वह व धमा य स म त दे
नेम असमथ होगे
| लेकन अगर उनक तरफ से उनका
अ भभावक स म त देदे
ता है
तो उनका ववाह हो सकता है
|

प कारो का धम (Religion of the Parties) – य द प त व प नी दोनो ही मुलम है


तो वहां
पर वह कसी भी शाखा के
हो वह ववाह व धमा य माना जायेगा ले
कन इनके धम अलग-अलग होने पर इनका ववाह अं
तधम य ववाह माना जायेगा |
अंतधम य मुलम ववाह केनयम न न है -

अं
तधम य ववाह (Inter-Religious Marriage) – अं
तधम य ववाह म शया तथा सुी क अलग अलग व धयां
है–

(1) सुी व ध – इसकेअंतगत एक सुी पुष को कसी मुलम म हला (चाहेवह कसी संदाय क हो) तथा कसी
कता बया लड़क सेववाह करने का पू
ण अ धकार है
| ऐसा समु
दाय जो अपना उ गम कसी दै
वीय मू
ल केप व पु तक को
मानता हैकता बया समु
दाय कहलाता है
| अदालत ने
य द तथा ईसाइयो को कता बया समु
दाय क मा यता दया |

(2) शया व ध – शया पुष को कसी गैर मुलम म हला सेववाह करनेका अ धकार नह है
वह कसी कता बया म हला
सेभी ववाह करनेकेलए अयो य है
, पर तुएक शया कसी कता बया या अ न पूजक लड़क (पारसी) से
मु
ता या अ थायी
ववाह कर सकता है
|

(3) मुलम म हला का गै


र मुलम पुष सेववाह – शया या सुी कसी भी संदाय क मुलम म हला को कसी गै

मुलम पुष सेववाह करने का अ धकार नह हैकता बया से
भी नह |

मुलम व ध के
अंतगत अं
तधम य ववाह से
स बं
धत न न है

सुी पुष और शया म हला के


म य ववाह व धमा य ववाह है
|
सुी पुष और कता बया म हला के
म य ववाह व धमा य ववाह है
|

सुी पुष और गै
र मुलम अथवा गै
र कत बया म हला के
म य ववाह अ नय मत ववाह है
|

शया पुष और कता बया अथवा गै


र कता बया म हला के
म य ववाह शू
य ववाह है
|

मुलम म हला और गै
र मुलम पुष के
म य ववाह शू
य ववाह है
|

वतंसहम त (Free Consent) – मुलम ववाह केव धमा य होनेकेलए प कारो या उनके अ भभावक क सहम त
आव यक हैप कार य द वय क तथा व थ चत म त क वाले है
तो उनक वयं क सहम त ही पया त है
| सहम त चाहे
वयं
प कारो क हो या उनके
अ भभावको क , वतंहोनी चा हये
| न न प र थ तय म सहम त वतंनह मानी जाये गी

1- बलपू
वक या जबरद ती – ववाह क सहम त य द बल योग ारा डरा-धमकाकर अथवा कसी अ य कार सेा त क
गयी है
तो सहम त वतंनह होती हैइन प र त थय म ववाह शू
य होगा |

2-कपट (Fraud) – ववाह क सहम त य द कपटपू


वक या धोखा दे
कर ा त क गयी है
तो धोखे
सेभा वत के
वक प पर वह ववाह शूयकरणीय हो सकता है|

3- त य क भूल (Mistake of Fact) – ववाह केकसी मह वपू ण त य के बारे


म य द त य क भूल दोन प कारो ारा
हो गई है
तो सहम त मा य नह है| व तु
तः ऐसी थ त म सहम त ही नह होती हैववाह म सहम त अगर त य क भू
ल के
कारण ई है तो ववाह शूय होगा |

हनफ व ध – हनफ व ध म सहम त य द बलपू


वक या जबरद ती भी ा त क गयी हो तो ववाह पू
ण पे
ण व धमा य
ववाह माना जाये
गा |

ववाह क औपचा रकताएँ (Formalities in the Marriage) – मुलम व ध के अंतगत ववाह पू


ण होने
केलए कसे
धा मक अथवा संकारगत औपचा रकता क अ नवायता नह है मुलम ववाह केपू ण होने
क व धक औपचा रकताए मा
यह हैक इसम इजाब अथात ताव व कबू ल अथात वीकृ त एक ही बै
ठक ए हो |

a- ताव तथा वीकृत (Offer and Acceptance) – ववाह केलए अपनी इ छा करना ही ताव कहलाता है
,
ताव लड़का या लड़क दोन म सेकसी के भी तरफ सेहो सकता हैववाह के ताव क वीकृत (कबू
ल) आव यक है |

ववाह का ताव व वीकृ


त मौ खक भी हो सकती है
और ल खत भी, इनका ल खत होना आव यक नही होता है
|
ताव अथवा वीकृ
त एक ही बै
ठक म होना आव यक है
इसका वा त वक अथ यह हैक ताव तथा वीकृ
त साथ-साथ
ए हो |

उदाहरण- A कसी स देश वाहक या प ारा ववाह का ताव B को भेजता है


B दो स म गवाह केसम स दे श वाहक
या प का वागत करतेए उसके स दभ म अपनी वीकृ त दे
दे
ती है
इस कार क ताव व वीकृ त ारा कया गया
ववाह वै
ध है
(मगर यहाँ त ताव नही होना चा हये
)|

b- सा य क उप थ त (Presence of Witnesses) – ववाह का ताव तथा वीकृ त दो स म सा य क


उप थ त म होना चा हए | व थ च वाला कोई भी मुलम जसने वय कता क उ पार कर ली हो ववाह का सा ी बन
सकता हैमगर जहांके वल एक ही पुष है
वहा पर एक पुष व दो व थ च वाली म हला, जो वय क हो, गवाह बन सकती
ह|

शया व ध – शया व ध म ववाह क वै


धता केलए स म गवाह क उप थ त अ नवाय नह होती है
|

दोन प कारो के
बीच न ष स ब ध न हो –

व धक नषेध – ववाह क वै
धता केलए मुलम व ध के अं
तगत नधारत कयेगयेनषेध नही होनी चा हए | मुलम
व ध के
अंतगत ववाह केलए नधा रत नषे
धो को दो वग म वभा जत कया गया है

(A)- स पू
ण नषे

(B)- सापे नषे


(A)- स पू
ण नषेध (Absolute Prohibitions) – स पू
ण नषे
धो के
उ लं
घन म कया गया ववाह शू
य माना जाता है
|
इनमे तीन कार केस ब ध आते ह–

(a)- र सबध
(b)- ववाह स ब ध

(c)- धा े
यस बध

(a)- र -स ब ध (Consanguinity) – र स ब ध के
अंतगत कोई मुलम अपनेन न ल खत वग के
संबं
धय सेववाह
नही कर सकता है -

(1)- अपने
पू
वज तथा वं
शज कतनी भी उ च व न न पीढ़ के – एक मुलम पुष अपनी माता, दाद , नानी आ द कतने
भी
उ च पीढ़ क म हला य न हो, ववाह नही कर सकता है
| इसी कार कोई मुलम म हला अपनेपता, पतामह सेववाह
नह कर सकती | इसी कार कोई मुलम पुष अपनी लड़क से व कोई मुलम म हला अपने
लड़के सेववाह नह कर
सकती |

(2)- अपनेपता व माता के


वंशज चाहेकतनी ही न न पीढ़ तक के हो – इस कार कोई पुष अपनी सगी बहन सेया
कोई म हला अपनेसगेभाई सेववाह नह कर सकती है | इसी कार कोई मुलम पुष अपनी भां
जी या भतीजी सेववाह
नह कर सकता तथा मुलम म हला भी अपने भतीजे व भांजेसेववाह नही कर सकती |

(3)- पू
वजो केभाई या बहन – कोई मुलम पुष अपनी बुआ तथा अपनी मौसी सेववाह नह कर सकता और कोई मुलम
म हला अपने चाचा व मामा सेववाह नही कर सकती है
|

(b)- ववाह स ब ध -

(1)- प नी (या प त ) के
पूवज या वं
शज – इसम पुष केलए अपनी सास तथा म हला केलए अपनेसु
र सेववाह करने
पर रोक है तथा कोई पुष अपनी प नी क लड़क सेववाह नह कर सकता इसी कार कोई म हला अपनेप त के
लड़के से
ववाह नह कर सकती |

ट पणी – य द प नी प त के
बीच ववाह स ब ध तो आ मगर स भोग नह आ तो प त, उसक उस प नी क लड़क से
ववाह कर सकता है तथा प नी भी अपनी इस पुष के
लड़केसेववाह कर सकती है
|

(2)- अपने
पूवज तथा वं
शज क प नी – मुलम पुष अपनेपता या पतामह क प नी सेववाह नह कर सकता है
अथात
कोई अपनी सगी माँ
सेतो र स ब ध केकारण ववाह नह सकता लेकन अपनी सौते
ली माँ
सेभी नकटता के
आधार पर
ववाह नह कर सकता |

(c)- धा े
य स ब ध (Fosterage) – धा े य स ब ध के
आधार पर ववाह का नषे ध मुलम व ध क व श ता है | य द दो
वष से कम उ केकसी ब चे को उसक सगी माँ केअ त र कसी अ य म हला ने अपना तनपान कराया हो तो वह
म हला ब चे क धाय माँ कहलाती है| कोई मुलम पुष अपनी धाय माँक र स बं धयो तथा नकट स बंधयो सेववाह
नह कर सकता है | धा े
य स ब धो का उ लंघन करनेपर ववाह शू
य हो जाता है
|

(B)- सापे नषेध (Relative Prohibitions) – सापे नषेधो से


ता पय उन नषे
धो से
हैजनका पालन करना तो
अ नवाय तो नह हैमगर इनका संबंधो म होना आव यक है| सापे नषेध न न ल खत है

(1)- व ध व सं
योजन (Unlawful Conjunction) – मुलम व ध दो या दो सेअ धक य जो चार तक हो सकती
हैसेववाह करनेक अनुम त दे
ती है
लेकन ऐसी ी जो वतमान प नी से र स ब ध, नकटता व धा े य स ब ध के
कारण
आपस म पू ण न ष स ब धी क ण ेी म आती हो, सेववाह करना व ध व संयोजन माना जाता है
| जै
सेक कसी
पुष का अपनी सगी बहन सेववाह व ध व सं
योजन माना जाएगा यो क दोन बहने र स ब धी ह |

सुी व ध म व ध व सं
योजन का ववाह अ नय मत माना जाता है
मगर शया व ध म यह शू
य माना जाता है
|

(2)- पां
चवांववाह (Marriage with Fifth Wife) – मुलम व ध एक साथ चार ववाह करने क अनुम त दे
ती हैले
कन
पां
चवा ववाह होनेपर यह अ नय मत माना जाएगा यह शू य नह होता है| अतः इस ववाह से उ प संतान क वैधा नकता
पर कोई असर नह होता ले कन पां
चवेववाह म प त का प नी क सं प म व प नी का प त के सं
प म कोई उ रा धकार
नह होता हैतथा थम चार प नय म सेकसी क मृ यु होनेपर या ववाह- व छेद होने
पर पां
चवा ववाह नय मत हो जाता
है| वही शया व ध म पां
चवा ववाह शूय माना जाता है|

(3) गै
र-मुलम सेववाह (Marriage with Non Muslim) – सुी व ध म गैर मुलम ववाह अ नय मत माना जाता है
ले कन उ ह कसी कता बया म हला सेववाह करने का अ धकार है
जब क शया व ध म कसी गै
र मुलम सेववाह शू य
है| यहाँकता बया म भी ववाह शू
य माना जाता है
|

(4) स म गवाह क अनुप थ त (Absence of Competent Witnesses) – सुी व ध के अं


तगत ववाह दो स म
गवाह क उप थ त म होनी चा हए ववाह केलए स म गवाह न होने
पर या गवाह क अनु
प थ त म स प ववाह
अ नय मत है| शया व ध म गवाह क उप थ त अ नवाय नह है|
(5) इ त क अव ध म ववाह (Marriage during Iddat) – ववाह व छे
द केबाद वधवा या तलाकशु
दा म हला को इ त
क अव ध पूण करनी होती है
इस अव ध म आ ववाह अ नय मत माना जाता है| वही शया व ध म शू
य माना जाता है|

इ त (Iddat) –

इ त का शा दक अथ है - गणना करना | मुलम व ध के अं तगत इ त उस अव ध को कहते हैजसमे ववाह- व छेद के


प ात कसी वधवा या तलाकशु दा म हला केपु
न ववाह करने पर तब ध है इस अव ध म प नी को एकां
तवास म रहकर
सा वक जीवन बताना पड़ता है तथा इस अव ध म उसके पुन ववाह का नषेध है
इसका बड़ा साथक उ ेय है | व तु
तः
ववाह- व छे
द के पू
व य द प त प नी का कुछ दन पहले ही स भोग आ हो तो उस स भोग के फल व प प नी ने गभ
धारण कया है अथवा नह इसका इसका पता लगाना क ठन होता है , ऐसी थ त म य द प त क ही भां
त प नी को ववाह
व छेद केतु
रतंबाद ववाह का अ धकार देदया जाए तो उसके संभा वत गभ क पैतृ
कता पूव प त क मानी जाए अथवा
सरे प त क , इसका नधारण सं दे
हा पद हो जाता है
| इसी संशया मक थ त से उबरने केलए मुलम व ध केनयम
नधा रत कये गयेक ववाह व छे द के
प ात प नी एक न त अव ध क ती ा करे |

वह अव ध न न है
-

(1)- तलाक ारा ववाह व छे द होने


पर – य द प नी व प त केबीच स भोग हो चूका हैतो इ त क अव ध तीन मा सक धम
तक होगी य द प नी को मा सक धम न हो तो इ त का समय तीन चंमॉस होगा | य द तलाक ारा ववाह- व छे
द स भोग के
पहले हो चु
का हो तो इ त क आव यकता नह है |

ववाह- व छे
द के
समय य द प नी गभवती हो तो इ त क अव ध गभपात या ब चे
केज म तक होगी |

(2)- प त क मृ
युारा ववाह- व छे
द–

a – य द ववाह- व छे
द का कारण प त क मृ
युहै
तो ी को चार माह दस दन का समय गु
जारना होता है
|

b – य द प त क मृयु के
समय म हला गभधारण क है
तो चार माह दस दन या ब चे
केज म तक जो भी अ धक हो, तक
पालन करना पड़ता है|

(3)- तलाक क इ त म प त क मृ
यु– तलाक क इ त तीन चंमॉस होती है
| तलाक क इ त के
पालन करने
केदौरान ही
य द उस तलाकशु दा प नी के
पूव प त का दे
हां
त हो जाए तो उसे
प त क मृ
युकेदन से
चार माह दस दन का एक नया इ त
शुकरना होगा |

इ त ारं
भ होने
का समय – इ त ारं
भ होने
का समय प त क मृ
युकेदन या तलाक केदन से
माना जाता है
|

इ त क अव ध म म हला के
अ धकार व कत -

इ त क अव ध म म हला भरण-पोषण क अ धकारी होती है


|

इ त क अव ध के
दौरान म हला पु
न ववाह नह कर सकती |

प नी मु
व जल मे
हर पाने
क हकदार हो जाती है
|

कु
छ प र थ तय म प त क मृ
युहोने
पर प नी को उ रा धकार के
आधार पर सं
प म अ धकार ा त हो जाता है
|

व वध नषे
ध (Miscellaneous Prohibitions) -

1- तीथया ा म ववाह (Marriage during Pilgrimage) - यह नषे


ध केवल शया व ध म ही मा य है
| वह जो
तीथया ा (हज) पर हो ाथना केलए नधा रत व (एहराम) पहन चु का हो वह उस थ त म ववाह नह कर सकता |

2- ब प त व (Polyandry) – मुलम व ध म पुष को तो चार य सेववाह क छु


ट है
लेकन कसी मुलम म हला
को एक से अ धक पुष सेववाह करनेका कोई अ धकार नह है |

3- तलाकशु दा प नी से
पु
नः ववाह (Remarriage with divorced wife) – तलाक ारा ववाह व छे द पू
ण हो जाने
पर
प त या प नी कसी अ य ी या पुष सेववाह करने केलए व ं त है
, ले
कन आपस म इनके पुनः ववाह करने पर
तब ध है इनके पु
नः ववाह केलए एक व श तथा ह या अपनाई जाती हैजसे
‘हलाला’ कहा जाता है
|

हलाला – ‘हलाला’ वह या हैजसके मा यम सेतलाकशुदा प त-प नी आपस म पु


नः ववाह कर सकते है | इस या के
अं
तगत तलाकशु दा प नी को कसी अ य पुष के साथ नकाह कर वै वा हक स ब ध था पत करना पड़ता है
, और फर उस
वै
वा हक स ब ध को व छे द करके ही वह अपनेपूव प त से
पु
नः नकाह कर सकती है |

ववाह का वग करण –
(A)- सुी व ध – इनमे
तीन कार केववाह होते
है:-

व धमा य ववाह

शू
य ववाह

अ नय मत ववाह

1. व धमा य ववाह (Valid Marriage) – व धमा य ववाह वेववाह होते


हैजो मुलम व ध ारा कसी मा य ववाह के
लए नधा रत अ नवाय शत को पू र ा करकेआ है|

2. शू
य ववाह (Void Marriage) – शू
य ववाह कोई ववाह नह होता है
, ब क यह एक अवै
ध स ब ध माना जाता है
|

न न प र थ तय म ववाह शू
य तथा बा तल माना जाता है

a – ववाह म स पू
ण नषे
ध का उ लं
घन होने
पर |

b – कसी ववा हत म हला सेकया गया ववाह शू


य होता है
|

3. अ नय मत ववाह (Irregular Marriage) – अ नय मत ववाह के


वल सुी व ध म ही मा य है
, अ नय मत ववाह ऐसे
अपूण ववाह होते
हैज ह इनके अ नय मतताय र करके पू
ण कया जा सकता है
|

न न प र थ तय म सं
प ववाह अ नय मत माना जाएगा –

a – अवै
ध सं
योजन केनयम केव ववाह |

b – कसी पां
चवी प नी सेकया गया ववाह |
c – दो स म गवाह के
अभाव म कया गया ववाह |

d – कसी गै
र मुलम, गै
र कता बया सेकया गया ववाह |

e – इ त का पालन करती ई म हला सेववाह |

(B)- शया व ध –

1. व धमा य ववाह

2. शू
य ववाह

3. मु
ता ववाह

1. व धमा य ववाह (Valid Marriage) – व धमा य ववाह वेववाह होते


हैजो मुलम व ध ारा कसी मा य ववाह के
लए नधा रत अ नवाय शत को पू र ा करकेआ है|

2. शू
य ववाह (Void Marriage) – न न प र थ तय म शया व ध म ववाह शू
य माने
जाते
है–

अवै
ध सं
योजन का ववाह

पां
चवी प नी सेववाह

तीथ या ा के
दौरान तीथ थल पर स प ववाह

कसी गै
र मुलम सेकया गया ववाह

इ त का पालन करती ई म हला सेववाह

3. मु
ता- ववाह (Temporary Marriage) (Muta Marriage) – मु ता ववाह एक वशे
ष कार का अ थायी ववाह होता
हैजसे अथना अशा रया शया व ध ही मा यता दे
ती है
| एक नधा रत अव ध केलए कसी न त धनरा श के बदले म ी
व पुष का स ब ध ही मु
ता कहलाता है|
मु
ता क आव यक शत –

दोन प कार स म होने


च हये

इसम पुष कसी मुलम या कता बया से


मु
ता कर सकता है

दोन प कारो क वतंसहम त होनी च हये

मु
ता ववाह ताव व वीकृ
त के ार ही सं
प होता है

नकाह के
भां
त ही कोई न ष स ब ध प कारो के
बीच नह होना च हये

इसम सहवास क नधा रत अव ध का उ ले ख होना चा हए | ऍम. ए. सै


न बनाम राज मा के
वाद म एक ी ने
मु
ता ववाह
कर लया बाद म उसका प त मर गया इस मु
ता ववाह क अव ध नधा रत नह थी अतः इसेनकाह माना गया |

मे
हर जो मु
ताह ववाह म तफल होता वह अव य ही नध रत होना चा हए |

मु
ता- ववाह केव धमा य भाव (Legal Effects of Muta Marriage) –

स भोग व धस मत माना जाता है


|

सं
तान धमज होती है
इ ह माता व पता दोन क स प य से
उ रा धकार ा त है
|

इसम प नी या प त पर पर एक सरे
केउ रा धकारी नही माने
जाते
है|

स भोग हो जाने
पर मे
हर के प म तय पू
र ी रा श प नी को पाने
का अ धकार होता है
|

मु
ता प नी को प त से
भरण-पोषण पाने
का अ धकार नह होता है
|

शू
य (बा तल) और अ नय मत (फा सद) ववाह म अं
तर –

य द ववाह पू
ण असमथता ारा तबं धत है
तब ववाह शू
य होगा जब क अ थायी या सापेअसमथता क दशा म कया
गया ववाह अ नय मत या फा सद होगा |

शू
य ववाह ार भतः शूय होता है
तथा उसक असमथता कभी र नही क जा सकती जब क अ नय मत ववाह म
असमथता र हो जाने
केप ात ववाह व धमा य हो जाता है
|

शू
य ववाह म प त प नी केम य व धमा य वै
वा हक अ धकार व कत ो का ज म नह होता जब क अ नय मत ववाह म
असमथता र हो जानेके बाद प कार आपस म प त प नी क हैसयत ा त कर ले
तेहै|

शूय ववाह म वै
वा हक स ब ध था पत करना अवै ध होता है
और इसम उ प सं
तान अवै
ध सं
तान होती है
जब क
अ नय मत ववाह से उ प संतान वै
ध सं
तान होती है
|
वै
ध ववाह और शू
य ववाह म अं
तर –

वै
ध ववाह के
सभी व धमा य प रणाम होते
हैजब क शू
य ववाह का कोई व धक प रणाम नह होता |

वै
ध ववाह म प कार पू णतः व धक है सयत ा त करते ह व आपस म प त प नी माने
जाते है
तथा उनसेपै
दा होनेवाली
सं
तान वैध सं
तान होती है
, प त तथा प नी के
बीच उ रा धकार का सृ
जन होता है
जब क शू य ववाह ार भतः शू य होता है
तथा प त प नी म कोई व धक अ धकार व कत का सृ जन नह होता है
न ही उनक संतान ही व धक मा यता ा त करत
ह|

वै
ध ववाह और अ नय मत ववाह म अं
तर –

अ नय मत ववाह केप कार एक सरे सेकसी भी समय अलग हो सकते


ह इसकेलए ववाह व छे
द होना आव यक नह
है
जब क वैध ववाह केप कार बना ववाह व छे
द केएक सरे सेअलग नह हो सकते
|

अ नय मत ववाह म प कारो के म य समागम केबावजू


द उ रा धकार का अ धकार उ प नह होता जब तक अ नय मतता
र न हो जाए जब क वै
ध ववाह म प कारो के
म य ार भ सेही उ रा धकार का अ धकार उ प हो जाता है
|

6. मुलम व ध म मे
हर सेया ता पय है
?

मे
हर क प रभाषा (Definition of Dower) – ‘’मे
हर वह धनरा श तथा सं
प है
जो ववाह के
फल व प प त ारा प नी
को उसके त स मान कट करने के उ ेय सेदया जाता है|’’

यायमू
त महमू
द नेअ ल का दर बनाम सलीमा केवाद म कहा क मुलम व ध म मे
हर, वह धनरा श या कोई अ य सं

हैजसेप त ववाह के तफल व प प नी को दे ने
अथवा अंत रत करने
का वचन दे
ता हैऔर जहां मे
हर प प से
न त नह कया गया है
वह भी ववाह केअ नवाय प रणाम के प म क़ानू
न मे
हर का अ धकार प नी को दान करता है|

मे
हर क सं
क पना (Concept of Dower) –

मे
हर क इ लामी सं
क पना यह हैक मेहर वह धन सं प हैजसे मुलम प त को अपनेप नी के त स मान कट करने
हे
तुउसेअव य दान करना चा हए, मे
हर न तो प नी का मूय है
और न ही उससे
स भोग करने का तफल |
मे
हर का उ ेय –

मुलम व धशा म मे हर का उ ेय ववाह केअंतगत एक ऐसा मा यम दान करना हैजसके ारा प त अपने
प नी क
त ा के
स य को अ भ करे| मे
हर का सैां
तक प है इसके अ त र मे
हर क वहा रक उपयो गता भी है–

प त ारा प नी को मे
हर के
वल प नी के
लाभ एवम्
उसकेवतंउपभोग केलए दान कया जाता है | इस प म मे
हर का
अथ होता हैप नी केलए कसी ऐसी संप या धनरा श क व था करना ता क ववाह व छे
द के
बाद वह असहाय न रहे|

यह प त के तलाक देनेकेअ तबं धत अ धकार पर अपरो प सेकु


छ अंकु
श लगाता हैयो क तलाक केबाद प त को
पूर ी मे
हर का भु
गतान कर दे
ने
का दा य व है
| अतः तलाक दे
ने
सेपू
व प त अपने
इस दा य व पर भी व ववे
क वचार कर लेगा
|

मे
हर का वग करण (Classification of Dower) –

1. उ चत मे
हर या थागत मे
हर

2. न त मे
हर

1. उ चत मे
हर या अ न त मेहर या थागत मेहर (Proper Dower or Unspecified Dower) – ववाह के समय य द
मे
हर न त न हो पाया हो तब भी प नी को मे
हर पानेका अ धकार होता है
य द मे
हर का उ ले
ख न हो तो उ चत धनरा श या
सं
प अदालत मे हर के प म तय कर दे
ती है| उ चत मे
हर क धनरा श नधा रत करनेका स ांत यह हैक अदालत को
न न घटक पर वचार करना चा हए -

(a) प नी का गत गु
ण,

(b) प नी केपता का सामा जक तर,

(c) प नी केपतृ
कुल म मे
हर क धनरा श का कोई उदाहरण अथवा उस प रवार म च लत पर परा के
अनु
सार ( था),

(d) प नी क आयु
, सु
दरता व मान सक मता |
शया व ध - शया व ध म उ चत मे
हर क रा श 500 दरहम से
अ धक नह हो सकती |

2. न त मे हर (Specified Dower) – सामा यतः मेहर का नधारण वं


य प कार एवंउनके अ भभावक ारा ही होता
है| इनके ारा जो भी धनरा श या सं
प मे हर के प म नधा रत कर द जाती है
उसेन त मेहर कहते
है| मे
हर क
धनरा श ल खत भी हो सकती है और मौ खक भी | कसी अ भभावक ारा न त क गई मे हर क धनरा श केभुगतान के
लए कभी अ भभावक गत प से उ रदायी नह होगा |

शया व ध म अगर अवय क का ववाह अ भभावक ारा सं प कराया जाता है


तो प त के
असमथ होने
पर मे
हर के
भुगतान
केलए अ भभावक गत प से उ रदायी माना जाता है
|

न त मे
हर को न न भागो म बाटां
जा सकता है

(1) तु
रत
ंदेय मेहर (Prompt Dower) – न त मे
हर म य द भु
गतान केलए य द यह तय आ हैक ववाह पू
ण हो जाने
केप ात् प नी जब चाहेइसक मां
ग कर सकती है
तब मे
हर को तु
रत
ंदेय मे
हर कहा जाता है
|

तु
रत
ंदेय मेहर क वशेष बात यह नह हैक ववाह के तुरत
ंबाद इसेमां
ग ले
ना चा हए प नी इसेकभी भी मां
ग सकती है
वह
जब भी मां
ग करती है
प त को इसेदे
ना होगा | इसम प नी स भोग करने
से माना कर सकती है |

(2) थ गत मे
हर (Deferred Dower) – थ गत मेहर कसी वशे ष घटना के
घ टत होनेपर दया जाता हैयह घटना
प कारो केबीच आपस म तय होती हैइस घटना के
पूव थ गत मेहर दे
य नह होता अगर घटना से
पूव ही ववाह व छेद हो
जाता है
तो ववाह व छेद केबाद इसे
दे
ना आव यक हो जाता है
|

उदाहरण – प नी और प त केबीच यह तय होता हैक जै


से
ही प त सरा ववाह करे
गा उसे
तु
रत
ंमे
हर का भु
गतान करना
पड़े
गा इसेथ गत मेहर कहा जाता है
|

तुरत
ंदेय या थ गत मे
हर का उ ले
ख न होने
पर – य द कसी ववाह म मेहर क धनरा श तो न त कर द गयी है पर तु
यह
नधा रत न कया गया हो क यह तु
रत
ंदे
य मे
हर हैया थ गत मे
हर तो इनका नधारण न न नयमो केअनुसार होगा –
सुी व ध म – इस व ध म उ लेख न होने
पर कुछ भाग को तु
रत
ंदेय बाक शेष को थ गत मान लया जाता हैकतने को
तु
रत
ंव कतने को थ गत माना जाएगा यह थानीय थाएं, प कारो केसामा जक तर मेहर क धनरा श इ या द पर नभर
करता है
|

शया व ध – इसम तु
रत
ंदे
य व थ गत का उ ले
ख न होने
पर सारी धनरा श तु
रत
ंदे
य मानी जाती है
|

मेहर क वषयव तु – कसी भी मूयवान व तुको चाहे


वह धनरा श हो या सं
प मे हर के प म न त कया जा सकता है
चल व अचल सं प य के लाभां
श भी मे
हर के प म न त कया जा सकता है | प त ारा प नी को कुरान का पाठ कराना
मेहर के प म न त कया जा सकता है | श त प त ार प नी को पढ़ाना भी मेहर हो सकता है| भ व य म ा त होने
वाली सं
प को मे हर के प न त नह कया जा सकता इसके अ त र सं प ऐसी हो जसे इ लाम वैध सं प त के प
म मा यता दे
ता हो | इ लाम म कु
छ संप या, जै
से– शराब या सू
अर आ द को अवै ध संप माना गया है तथा यह मे हर क
वषय-व तु नह हो सकती |

मे
हर क धनरा श – कोई भी धनरा श तथा कसी भी मूय क सं
प न त मे
हर के प म नधा रत हो सकती है
इसक
कोई अ धकतम सीमा नह है |

सुी व ध के
अंतगत न त मे
हर क यू
नतम रा श 10 दरहम है
इससे
कम धनरा श का मे
हर न त नह कया जा सकता
है
|

मे
हर के
अ धकार क कृ
त (Nature of Right to Dower) –

(1)- न हत होने
केप ात मेहर का अ धकार कभी समा त नह होता है
– ववाह पू
ण हो जाने
केत काल बाद से
ही मे
हर
ा त करनेका अ धकार प नी म न हत हो जाता है
|

न न प र थ तय म उसे
इस अ धकार से
वंचत नह कया जा सकता है

(a) प नी ने
प त क ह या कर द हो |

(b) प नी नेवयं
आ मह या कर ली हो |
(c) प नी ने
इ लाम धम का प र याग कर कोई सरा धम वीकार कर लया हो |

(d) प नी राचा रणी हो अथवा पर–पुष गमन करती हो |

मुलम ववाह व छेद अ ध नयम 1939 क धारा 5 के


अनुसार – इस अ ध नयम के
अंतगत ववाह व छे
दक ड ात
करने
केप ात्भी प नी मे
हर ा त करने
क अ धका रणी रहती है|

(2)- अद मेहर एक अ तभू त ऋण – मे हर का भु


गतान य द न हो पाया हो तो ऐसा समझा जाता हैक जै
सेप त ने मे
हर क
धनरा श प नी से
उधार ली हो जसका भु गतान वह अभी तक नह कर पाया है | अद मे हर एक ऋण क भां त होता है|
जस कार एक ऋण दाता अपने ऋण क अदायगी अदालत के ारा करा सकता है ठ क उसी कार प नी भी अद मे हर
क ा त केलए प त केव वाद ला सकती है| अद मे हर एक अ तभू त ऋण हैजसकेलए प त के वल गत
प सेही उ रदायी होता है
प त केमृयुकेप ात् प नी भी अ य ऋण दाता क भां त अपना ऋण प त केसंप यो से
वसूल कर सकती है |

मे
हर के
अ धकार का वतन (Enforcement of the Right to Dower) - मुलम व ध म कोई प नी न न प से
मे
हर
केअ धकार का वतन करा सकती है

(1)- दा प य अ धकार सेइ कार (Refusal of Conjugal Rights) – मे


हर तु
रत
ंदे य हो तथा स भोग एक बार भी न आ
हो तो मे
हर क मांग तुत करने केबाद जब तक प त इसका भु गतान न कर देप नी उसेस भोग करने से मना कर सकती है
|

नसरा बे
गम बनाम रजवान अली के वाद म कहा गया क य द दा प य अ धकार के या थापन केलए प नी केव वाद
दायर करता हैतो वह वाद खा रज कर दया जाएगा यो क स भोग न होने क थ त म तु रत
ंदेय मे
हर का भुगतान न करना
प नी ारा प त को दा प य अ धकार से वं चत रखनेका पया त औ च य माना जाता है
| पर तु
मेहर य द तु
रत
ंदेय न हो
अथवा एक बार भी स भोग हो चुका हो तो प नी अपने
प त को स भोग से वं
चत नह कर सकती है |

(2)- ऋण क भां त मे
हर का वतन (Enforcement of Dower as a Debt) – अद मे हर ऋण क भां त होता है
इसम
प नी ऋणदाता व कजदार माना जाता है | य द मे
हर के
भुगतान के
पूव ही प त का दे
हां
त हो गया हो तो मे
हर क वसूली के
लए प नी प त केउ रा धका रयो पर वाद ला सकती हैऔर उ रा धकारी जो संप उ रा धकार म ा त कया है उसका
अपने अपने अंश केबराबर मे
हर का भुगतान करे गे
|
(3)- वधवा के तधारण का अ धकार (Widow’s Right of Retention) – इस अ धकार के
अंतगत प त केजीवन काल
म प त क वतंसहम त से य द प नी ने
अद मे
हर केबदले प त क संप पर क ज़ा बना लया है तो प त के
दे
हांत के
प ात् उसकेवधवा को उस स प पर तब तक क जा बनाए रखने का अ धकार होता है
जब तक क प त के उ रा धकारी
अद मे हर का भु
गतान न कर द |

वधवा के त-धारण के
अ धकार क मुय वशे
षता न न है

(a) प त क सं
प पर क जा (Possession of husband’s Property) – इस अ धकार केव धपूण वतन केलए
यह आव यक हैक प नी ने प त केसं
प पर के वल मे
हर केबदले
म क जा ा त कया हो कसी अ य कारण से
नह |
सरी उ लेखनीय बात यह हैक यह अ धकार पहले से
ही ा त कये
गए क जो को बनाए रखने
का न क प त के
दे
हां
त के
प ात क ज़ा ा त करने का तथा तीसरी बात प त क सं
प पर क ज़ा प त केवतंसहम त सेा त आ हो |

(b) मा क जेका अ धकार (Only a Possessory Right) – मे


हर के
बदले
म वधवा को अपने
प त क सं
प पर
केवल क जा का अ धकार रहता है
वह इसेअं
त रत नह कर सकती |

(c) सं
प के लाभांश से
मे
हर का भु
गतान – जो सं
प वधवा के क जे म हैवह उसका अं
तरण करके
मेहर का भु
गतान नह
ा त कर सकती उसको सं
प के लाभां
श सेही मे
हर का भु
गतान करना होगा |

(d) क जे क संप का ह तां


तरण – वधवा अद मे हर केबदले म क जे क सं प का अं तरण नह कर सकती मै ना बीबी
बनाम चौधरी वक ल अहमद के वाद म प त नेप नी केववाह म न त मे हर का भु
गतान प त न कर पाया और उसक मृ यु
हो गयी प नी ने
अद मेहर केबदले म उसक सं प क उसके (प त के
) उ रा धका रयो ने
मेहर का भु
गतान नह कर पाए
तो प नी ने
उसका दान कर दया यायलय ने इसेशू य ठहराया |

(e) क ज़ा समा त होनेपर पु


नः ा त नह होता – अगर अं तरण सेया कसी भी तरह से
क ज़ा वधवा के
हाथ से
समा त हो
जाता है
तो उसेपुनः ा त नह होगा (मै
ना बीबी बनाम चौधरी वक ल अहमद) |

(f) तधारण केअ धकार का अंतरण – क जा बनाये


रखनेका अ धकार अं
तरण यो य अ धकार है
या नह इस वषय पर
यायालय म मतभे
द हैलेकन कपूर च द बनाम कद सा म उचतम यायलय नेवचार कया क क जा बनायेरखने
का अ धकार अं
तरण यो य अ धकार है|

या मे
हर भु
गतान यो य है
?
व धमा य ववाह (Valid Marriage) – य द स भोग न आ हो तो न त मे हर आधी धनरा श, य द मे
हर म न त न हो
तो नाममा का भेट | अगर ववाह व छेद यौवनाव था केवक प पर है तो कु
छ नह | ववाह के बाद एक बार भी स भोग हो
चुका है
तो प नी को न त मेहर क पूर ी धनरा श, अगर न त न हो तो उ चत धनरा श |

अ नय मत ववाह (Irregular Marriage) – अ नय मत ववाह म स भोग हो चु


का है
तो न त या उ चत मे
हर जो भी कम
हो वह दे
य होगा |

मे
हर क माफ – प त ारा जो संप प नी को मे
हर के प म द जाती है
अगर उस सं
प या धनरा श क माफ प नी कर
दे
ती है
उसेमे
हर क माफ कहते हैमे
हर क माफ आं शक या पू
ण हो सकती है
इसकेदो आव यक शत है–

मे
हर के
माफ के
समय प नी व थ च व वय क हो |

उसक सहम त वतंहो |

7. मुलम व ध म ववाह व छे
द को बताइए ?

ववाह- व छेद (Dissolution of Marriage) – पै


ग बर मु
ह मद क एक घोषणा के
अनु
सार कानू
न केअं
तगत जन चीजो
को वीकृ त दान क जाती हैववाह- व छे द उसमे सेसबसेनकृ हैफर भी कुछ भा यपू
ण प र त थय म वै
वा हक
संवदा भं
ग हो जाती है
| मुलम व ध म ववाह व छे द केव भ कार अ ल खत ता लका ारा प कये गए है –

1. ई रीय कृय ारा (By act of God) – जब ववाह के प कार म सेकसी क भी मृ


युहो जाती है
तो ववाह व छे
द हो
जाता हैवहां
ई रीय कृ य ारा ववाह व छे द कहा जाता है|

2. प कारो के
कृय ारा (By act of Parties) -

(A) बना या यक कायवाही के


– जब प कार खुद अपनेमन से
तलाक क घोषणा करते
हैउसेबना या यक कायवाही के
ववाह व छे
द कहा जाता है
येन न तरह से
हो सकतेहै

(1)-प त ारा ववाह व छे
द – प त ारा ववाह व छे
द न न तरीके
सेदया जा सकता है

A- तलाक

B- इला

C- जहार

A- तलाक (Talak) – अरबी श द ‘तलाक’ का शा दक अथ है - नमु करना | मुलम व ध म तलाक का अथ - प त ारा


वैवा हक संवदा का नराकरण करना है| प त को मुलम व ध म प नी को अकारण ही तलाक दे
ने
का अ धकार मला है
,
इ लाम क यह नी त कभी नह रही हैक प त को ऐसा अ धकार दान कया जाए पर तुभा यवश इ ला मक नी तय के
वपरीत प त केअ तबं धत अ धकार को ले कर समाज व यायालय म ा तयाँ हैतथा इस अ धकार का पयोग भी
करता है|

तलाक भी ब त तरह सेदया जा सकता है


, जनका उ ले
ख न न ल खत है

(a)- तलाक–उल–सुत (Revocable Talak) - तलाक-उल-सुत एक तसं हरणीय तलाक हैयो क तलाक के
शद
को उ चा रत करने
केबाद इसे
वापस ले
ने
व तलाक को नर त करनेक गु

जाइश बनी रहती है
|

सरेश द म तलाक देने


केबाद ववाह- व छे
द तु
र त नह हो जाता उनके
बीच समझौता हो सके
इसकेलए पया त समय
रहता है
| इसके
दो तरीके
है–

(1) तलाक-अहसन (Most Proper) - तलाक ारा वै


वा हक सं
वदा को नराकृ
त करने
का सबसे
अ छा तरीका तलाक-
अहसन है, इसक औपचा रकता न न है –

(A)- तलाक देनेकेलए प त को प नी के हर’ अथात शु काल म के


‘तु वल एक बार तलाक को उ चा रत करना पड़ता है|
यथा - प नी को सं
बो धत करतेए प त कहेमने तु
हेतलाक दया | कोई भी ी जब मा सक धम म नह रहती है तो वह
उसका तु हर काल कहलाता है|
(B)- उपयु ढंग सेतलाक उ चा रत हो जाने
के प ात प नी तीन माह तक इ त का पालन करती है
इ त क अव ध म प नी
व प त केबीच कभी समझौता (स भोग) हो जाता है
तो उपयु श द नर त हो जाएगा और ववाह भं ग होने से बच जाए और
जब इ त काल पू ण हो गया और उन दोन केबीच समझौता न हो सका तो इ त केख़ म होनेपर तलाक पूर ा हो जाता है
|

इसक मुय बात यह हैक य द प त ोधवश या असावधानी पू


वक तलाक देदया है
तो उसे
पु
नः वचार करने
केलए 3
माह का समय रहता है
|

(2) तलाक–हसन (Proper) – तलाक-हसन ववाह व छे द का सबसेउ चत तरीका तो नह हैफर भी इसे


एक उ चत
तरीका माना जाता हैयो क प त प नी के
बीच समझौता होने
का पया त समय रहता है| तलाक-हसन क औपचा रकताये
न न है

(A)- प नी के
तु हर काल म प त तलाक को एक बार उ चा रत करे
तथा इस पू
रे
शु काल म य अथवा अ य
समझौता न हो |

(B)- प नी केसरेतु हर काल आने


पर प त फर एक बार तलाक को उ चा रत करे
, सरे
शुकाल म भी प त ारा तलाक
का तसं हरण न हो |

(C)- प नी को तीसरे
तु
हरकाल आने
पर प त पु
नः तलाक क घोषणा करे
इस तीसरे
व अं
तम घोषणा के
बाद तलाक पू
ण मान
लया जाएगा |

(b)- तलाक–उल– व त ्(Irrevocable Talak) - तलाक-उल– व त्अ तसं हरणीय तलाक हैइसेतलाक–उल–वे न या
तहरा तलाक भी कहा जाता है
इस तलाक क वशे षता यह हैक एक ही बार उ चा रत कर दए जाने
पर तलाक पू
ण हो
जाता हैऔर प त-प नी म समझौता होने
क गुं
जाइश नह रहती है|

पैग बर मु
ह मद ने
इस कार केतलाक का कभी अनु म ोदन नह कया और न ही इसका चलन उनके
जीवन काल म हो पाया
| सुी व ध केहनफ शाखा म इसे
मा यता ा त है
, शया व ध म इसेमा यता ा त नह है
इसक न न औपचा रकताये है

(1)- इसम प त एक बार ही तलाक क उ ोषणा कर दे


तो वहां
यह तलाक पू
ण हो जाता है
| यथा- मने
तुहे
तलाक दया, मने
तुहे तलाक दया, मने
तु हेतलाक दया |
हैक प त ारा मा कु
छ श द के एक ही बार म उ चा रत करके
दा प य जीवन को पूण व अं
तम प से
समा त कर
दया जाता है
| तलाक-उल– व त हमे
शा व धशा यो केलए आलोचना का वषय रहा है |

रहमतु ला बनाम उ र देश केवाद म इलाहाबाद उ च यायालय ने


कहा क तलाक-ए- व त अवैध हैयो क यह प व
कुरान केसमादेशो केवपरीत है
ले कन अपील म उ चतम यायालय नेउ च यायालय केनणय से असहम त कट कया |
पां
च यायाधीश ारा ग ठत इस सं वै
धा नक पीठ नेनणय दया क इलाहाबाद उ च यायालय ारा उ ल खत तहरा तलाक
अ व धमा य है यह उ चत नह है| उ चतम यायालय ने कहा क तलाक-उल- व त सं
वै
धा नक है
|

इसम उ चतम यायालय नेतहरे तलाक क आलोचना करतेए कहा क यह तलाक का कठोरतम प है तथा प त प नी के
बीच समझौते
के सभी रा ते बं
द हो जाते
है| अतः यह तलाक तभी दया जाना चा हए जब प त प नी के
बीच समझौते का
कोई वक प मौजूद न हो |

तीन तलाक ( पल-तलाक) के


स दभ वतमान व ध व था –

दे
श के
सबसे
ज टल सम या म से
एक पल तलाक को शायरा बानो के
वाद म असं
वै
धा नक घो षत कर दया गया है
|

या था मामला – उ राखं ड केकाशीपु


र क शायरा बानो नेसाल 2016 म उ चतम यायालय म अज दायर कर पल
तलाक, नकाह, हलाला तथा ब ववाह था के चलन के सं
वै
धा नकता को चु
नौती द थी तथा अपने अज म मुलम पसनल
लॉ केतहत म हलाओ के साथ ल गक भेदभाव के मु े
, एकतरफा तलाक और सं वधान म गारंट केबावजूद पहली शाद के
रहतेए सरी शाद के मुेपर वचार करनेको कहा और साथ ही यह भी कहा क तीन तलाक़ सं वधान केअनुछेद 14 व
15 केतहत मले मौ लक अ धकार का हनन है| इस अज के बाद एक केबाद एक कई या चकाएं दायर क गय | एक
मामले म उ चतम यायालय के डबल बच ने भी खु द संान ले
तेए चीफ ज टस से आ ह कया था क वह पे शल बच का
गठन करे , ता क भे
दभाव क शकार मुलम म हला के मामलेको दे
खा जा सके | जसके बाद उ चतम यायालय ने क
केअटान जनरल और ने शनल लीगल स वस अथा रट को जवाब दा खल करने को कहा था |

जवाब के क क ओर से यह कहा गया क सं वधान कहता हैक, जो भी क़ानू


न मौ लक अ धकार केखलाफ है , वह क़ानू

असंवै
धा नक है | अतः कोट को इस मामले को संवधान केदायरे
म दे
खना चा हए और यह मू ल अ धकार भी का उलंघन
करता है
, तथा तलाक़ म हला के मान-स मान और समानता केअ धकार म दखल दे ता है
| ऐसेम इसेअसंवै
धा नक घो षत
कया जाए | आगे यह भी कहा क पसनल लॉ धम का ह सा नही है और अनु छे
द 25 के दायरेम शाद और तलाक नही है |
अगर कोई क़ानू न लग समानता, म हला के अ धकार और उसक ग रमा को भा वत करता है तो वह क़ानू
न अमा य होगा
और ऐसे म तीन तलाक अवै ध है|

या चकाकता शायरा बानो क तरफ सेव ान्


अ धव ा राम जे
ठमलानी जी ने
यह दलील दया क अनु
छेद 25 म धा मक
ेटस क बात है अतः तीन तलाक अनु छेद 25 के तहत सं
र त नही हो सकता | मुलम धा मक दशनशा म तीन
तलाक को बु र ा और पाप कहा गया है
ऐसेम इसे धा मक व ंतता केअ धकार केतहत संर त कै सेकया जा सकता है
तथा
यह भी कहा गया क “ शाद तोड़ने केइस तरीकेके प म कोई दलील नही द जा सकती | शाद को एकतरफा ख़ म करना
घनौना है
, इस लए इससेरी बरती जानी चा हए | आल इं डया मुलम म हला पसनल बोड क ओर से दलील द गयी क
तीन तलाक इ लाम का मू ल ह सा नही है
और कु रान म इसका कही भी ज नही कया गया है |

वही तीन तलाक़ के प म मुलम पसनल लॉ के ओर से कहा गया क अनुछेद 25 यानी धा मक वतंता केतहत पर परा
क बात है और सं वधान पर परा को सं
र त करता है | सरकार चाहे
तो पसनल लॉ को रे
गलुे
ट करनेकेलए क़ानू न बना
सकती है | व ान वक ल क पल स बल ने आगेयह भी कहा क “ तीन तलाक़ पाप हैऔर अवां छत है
| हम भी बदलाव
चाहतेहै, लेकन पसनल लॉ म कोट का दखल नही होना चा हए | नकाहनामा म तीन तलाक़ न रखने केबारेम लड़क कह
सकती हैक प त तीन तलाक नही कहे गा | मुलम व ध म नकाहनामा एक कां ेट है
| सहम त सेनकाह होता हैऔर
तलाक का ावधान उसी के दायरेम है|

उ चतम यायालय ने अपने अभू


तपू
व नणय म पांच जज के संवै
धा नक पीठ के ारा 3:2 केब मत केनणय के आधार पर
तहरेतलाक ( पल तलाक) को भारतीय संवधान केअनु छे
द 14 के उलंघन करनेके कारण असं
वै
धा नक घो षत कया
और कहा क सं वधान का अनुछे
द 14 समानता का अ धकार दे
ता हैतथा तहरा तलाक मुलम म हलाओ के मू
लभू

अ धकार का हनन करता हैयह था बना कोई मौका दए शाद को ख़ म कर देता है| कोट ने
मुलम देशो म पल तलाक
पर लगेबै
न का भी ज कया और पू छा क भारत इससे आजाद य नही हो सकता | अ य दो यायधीश ज ह ने इसके
वरोध म मत कया था उ ह ने
भी पल तलाक को सही नही माना था |

व धमा य तलाक क आव यक शत (Conditions for a Valid Talak) -

1- मता (Capacity) – व थ च यौवनाव था क वय ा त मुलम ही तलाक दे


सकता है
|

2- वतं-सहम त (Free Consent) – हनफ शाखा को छोड़कर मुलम व ध क सभी शाखाओ म तलाक वे
छया से
दे
ना आव यक है| अथात वतंसहम त आव यक है |

3- तलाक केश द प हो (Words of Talak must be Express) – तलाक के


श द प होने
चा हए ता क प त ारा
ववाह व छेद कयेजाने
क धारणा पूणतः सुन त क जा सके |

B - इला (Vow of Continence) –


इला क व ध सेववाह भं ग करने केलए, प त शपथ लेता हैक वह प नी से स भोग नह करे
गा | इस शपथ केप ात्
यद
प त व प नी के
बीच 4 माह तक स भोग नह होता हैतो 4 माह के
पूण हो जानेपर ववाह व छे
द बना कसी कायवाही के
पू
ण हो जाएगा और इन चार माह केअ दर उनके स ब ध ठ क हो जाता हैतो यह शपथ नरथक हो जाये गा |

C - जहार (Injurious Assimilation) – जहार का अथ है – ‘आप जनक तु लना’| इस व ध सेववाह- व छेद करनेके
लए प त अपने प नी क तु लना कसी ऐसी म हला से करता हैजससेववाह करना उसकेलए न ष है | यं
था – माता या
बहन इस कथन के बाद 4 माह का समय पू ण हो जाने
पर ववाह व छे
द हो जाएगा इसी बीच प त अपने
इस कथन को वापस
लेलेता है
तो यह कथन नकृ हो जाये गा |

शया व ध म जहार क घोषणा दो स म गवाह के


सम होती है
|

प नी ारा ववाह व छे
द (Divorce by Wife) –

मुलम व ध म प नी ारा व छे
द प त ारा तलाक के
अ धकार को प नी म यायो जत करने
पर अथात तफवीज के
अं
तगत होता है
|

प नी मा अपनी वे
छा सेववाह व छे
द करने
म स म नह है
|

तलाक-ए-तफवीज (Delegated Talak) - मुलम प त को तलाक ारा ववाह व छे


द करनेका इतना स पू
ण असी मत
अ धकार ा त हैक वह इस अ धकार का वं य न करके
इसेकसी अ य म त न हत करके उसेयह अ धकार दान
कर सकता है|

सामा यतः तलाक केअ धकार को प त ारा अपनी प नी म ही त न हत करनेका चलन है , ऐसी थ त म प नी भी इस
ा धकार केअंतगत तलाक देसकती है
और यह उसी कार मा य तथा भावी होगा जै सा क वं य प त ारा दया गया
तलाक | प त तलाक दे
नेकेप नी के
अ धकार को चाहेतो हमेशा केलए सौप सकता हैया कु
छ न त अव ध केलए |

प त ारा प नी को तलाक का अ धकार सौप दे


ने
पर भी प त का वं
य का तलाक दे
ने
का अ धकार बना रहता है
|

पार प रक सहम त ारा ववाह- व छे


द (Divorce by Mutual Consent) -
पार प रक सहम त ारा ववाह- व छे
द दो कार से
हो सकता है

खु
ला

मु
बारत

(1) खु
ला (Khula) – व ध क श दावली म खु
ला का मतलब है
- प त क सहम त से
उसे
(प त को) कु
छ मु
आवजा दे
कर
प नी ारा ववाह- व छे
द|

मु
शंी बु
जलुल रहीम बनाम लतीफु सा के स वाद म ीवी क सल ने कहा क खु ला ववाह व छेद का एक तरीका है
जसमे प नी वै
वा हक बं
धन से अपनेको नमु करने केलए पहल करती है
छुटकारा पाने
केएवज म प नी अपने प त को
कुछ न कु
छ तफल दे ती है
या तफल व प कु छ रा श या सं
प दान करनेका अनुबं
ध करती है|

व धमा य खु
ला क आव यक शत –

प त तथा प नी व थ च तथा वय क हो |

प त व प नी दोनो क वतंसहम त आव यक है
|

खु
ला का उपबं
ध ताव तथा वीकृ
त ारा पू
ण होना च हये
|

खु
ला म प नी ारा प त को मु
आवजा व तपू
त के प म तफल का दया जाना आव यक है
|

(2) मु
बारत (Mubarat) – मु
बारत शु प से
पर पर अनु
म त ारा ववाह- व छे
द माना जाता है
|

मु
बारत केअनु बं
ध म ववाह- व छे
द का ताव प त ारा भी कया जा सकता है और प नी ारा भी | सरे प ारा इसे
वीकार कर लए जाने पर ववाह- व छे
द पू
ण हो जाता है
खुला क भां
त मु
बारत म भी प त व प नी का स म होना
आव यक है |

या यक ववाह- व छे
द (Judicial Divorce) -

मुलम ववाह व छेद अ ध नयम, 1939 कसी यायालय के आदेश ारा ववाह- व छे
द या यक ववाह- व छे द कहलाता
है
| मुलम व ध म या यक ववाह को ‘फ क’ कहते
है| मुलम म हला ववाह- व छे
द अ ध नयम, 1939 पा रत होने
के
पू
व मुलम म हला अपने
प त से
केवल दो आधार पर ही तलाक ा त कर सकती थी –

प त के
नपु

सक होने
पर

प त ारा ा भचार का झू
ठा आरोप

उपरो आधार के
आलावा य द प नी अपने
प त से
मु होना चाहती थी तब उसके
पास धम प रवतन ही एक मा रा ता
था |

इस अ ध नयम म ऐसेकई आधार दए गए हैजनके


अंतगत कोई प नी, जसका ववाह मुलम व ध के
अनु
सार आ हो,
या यक ववाह- व छे
द करा सकती है
|

प नी ारा या यक ववाह- व छे
द के
आधार (Ground for Judicial Divorce by Wife) –

धारा 2 के
अनु
सार कोई प नी जसका ववाह मुलम व ध के अनुसार सं
प आ है , न न आधार म सेकसी एक अथवा
एक से अ धक आधार पर यायालय क ड ारा अपना ववाह भं
ग कराने
का वाद तु त कर सकती है
, धारा 2 के
उपबं

भू
तल ीय भाव रखते है

1. चार वष तक प त का लापता होना – य द 4 वष सेप त लापता है


और उनकेसंबंधय को उसके बारेम कु
छ नह पता है
तो यायालय ववाह- व छे द क ड पा रत कर दे गा क तु यह ड 6 माह बाद ही भावी होगी इस बीच प त य द लौट
आता है अथवा अपनी उप थ त सेयायालय को कसी अ य मा यम से अवगत करा दे
ता है
तो ड नर त कर द जायेगी
और ववाह- व छे द नह हो पाता है
|

2. भरण-पोषण दे
ने
म प त क असफलता – प त अपनी प नी को लगातार दो या अ धक वष तक भरण पोषण उपल ध
करनेम असफल रहा हो तो प नी ववाह- व छे
द का वाद तु
त कर सकती है|

उ ले
खनीय हैक प नी का भरण पोषण ा त करनेका अ धकार उसकेवं
य केसंवहार पर भी नभर करता है
| बना
कसी औ च य केप नी य द प त से
अलग रहनेलगी है
तो उसे
भरण-पोषण ा त करने
का कोई अ धकार नह है|

3. सात वष तक प त का कारावास – प त को य द कसी अपराध केलए सात से


अ धक वष तक कारावास आ है
तो
प नी ववाह व छेद क ड का वाद तु त कर सकती है|
इस आधार पर पर ववाह- व छे
द क ड तभी पा रत होती है
जब प त ारा अपील कये
जाने
क मयादा समा त हो चु

है
अथवा प त नेअपील क हो और वह ख़ा रज हो चु
क हो |

4. प त ारा वै
वा हक दा य व का पालन न करना – य द प त बना यायो चत कारण के3 वष या इससे
अ धक समय तक
प नी के त अपने वै
वा हक दा य व का पालन करने म असफल रहा तो प नी को ववाह भं
ग करानेक ड ा त करने
का अ धकार मल जाता है |

5. प त क नपु

सकता – प त क नपु

सकता के
कारण भी प नी को ववाह- व छे
द के
बाद क अ धका रता द गयी है
इसके
लए दो बातेमह वपू
ण है

(a) प त ववाह सं
प होते
समय नपु

सक रहा हो, और

(b) प नी ारा वाद तु


त कये
जानेकेसमय भी उसक नपु

सकता बनी रहे| वाद तु
त कये
जातेसमय प त य द चाहे
तो
इस आशय का ाथना प दे सकता हैक उसेअपनी नपु

सकता स करने केलए एक वष तक का समय दया जाना
चा हए |

6. प त का पागलपन कु रोग या र तज य रोग – प त दो या अ धक वष से पागल रहा हो तो प नी को यायालय ारा


ववाह व छेद क ड को ा त करने का अ धकार मल जाता है | कुरोग व र तज य रोग म भी प नी तलाक ले
सकती हे
|

7. प नी ारा यौनाव था का वक प – य द कसी ी का ववाह उसक अवय कता (15 वष से कम आयु ) म उसकेपता
या कसी अ य अ भभावक ने कराया है
और वय कता अथात 15 वष क आयुा त होने पर उसनेववाह नराकृ त कर दया
हो तो इस थ त म यायालय को अवगत करातेए वह ववाह व छे दक ड ा त कर सकती है
| प नी अब इस
अ धकार का उपयोग 18 वष क उ तक कर सकती है बशत स भोग न आ हो |

8. प त क ू रता – प त य द अपने प नी के त ूरता का वहार करता हैतो प नी को अपनेववाह व छे दक ड


ा त करने का अ धकार मल जाता है | उ ले
खनीय हैक ू रता का अथ के
वल शारी रक त प च ँाना या मारना पीटना
नह है प त का वहार या कोई भी आचरण जससे प नी को मान सक त प च ंेप त क मान सक ू रता मानी जाती है
|
इस अ ध नयम म न न आचरण को ू
रता क संा द गयी है

A- प त ारा अपनी प नी को ायः मारने पीटने तथा शारी रक क दे ना अथवा अपनेकसी अ य कार केनदयतापू ण
वहार सेप नी का जीवन क मय बना दे ना | सै
यद जलाउ न बनाम परवे ज सुताना - इसम परवेज सुतान व ान
नातक थी, मे
डकल कॉले ज म वे श लेना चाहती थी, जसकेलए 8000 क ज रत थी | सु ताना ने
इस शत के अधीन
जलाउ न सेववाह कर लया क ववाह पू ण होने पर वह 8000 दे गा | जलाउ न नेववाह हो जाने पर धनरा श दे
नेसे
इ कार कर दया सु ताना नेववाह क शत का उ लं घन व धोखा दए जाने केलए ववाह व छे द केलए वाद तु त कया
तथा प त सेअलग रहने लगी | इस पर प त ने प नी केव दा प य अ धकार क पु न थापना का एक वाद यायालय म
तुत कर दया | प नी ने
अपने बचाव म यायालय म कु छ ऐसे श द का योग कया जससे प त नेअपना मानहा न माना
और प नी केव भारतीय द ड सं हता क धारा 499 के अंतगत एक फौजदारी इ तगासा दायर कर दया | यायालय ने
नणय दया क प त ने प नी को फंसानेकेलए फौजदारी मु कदमा चलाया था इस लए प त ने प नी केसाथ ू रता क है |

प त का कोई भी अनु चत आचरण जससे


प नी का मानस आहत होता हो अथवा उसका जीवन सं
कट म पड़ जाए, मान सक
ूरता मानी जाती है
|

B- प त का बदनाम यो से
सं
पक रखना अथवा अनै
तक जीवन तीत करना प नी के त ू
रता मानी जाती है
|

C- प नी क अनुम त लए बगै र उसक सं प का प त ारा अं तरण अथवा प नी को अपनी सं


प के
मनचाहेयोग पर
तब ध लगाना प त क ू रता म स म लत है| पर तुबना प नी क अनु
म त लए उसक छोट मोट सं
प ले ले
ना अथवा
अं
त रत कर दे
ना ू रता नह है| इसी कार प नी के इलाज केलए अथवा कसी अ य लाभ केलए प नी क सं
प का
अं
तरण कया जाना ू रता नह माना गया है|

D- प त ारा प नी को अपने
धम अथवा धा मक री त– रवाज के
पालन करने
पर तब ध लगाना प नी केव मान सक

रता है
|

अबू बकर बनाम मामूकोया के


वाद म प त अपनी प नी को साड़ी पहनकर सनेम ा दे
खनेजानेपर मजबू र करता था | प नी
साड़ी पहनना इ लाम धम केव काय मानती थी और इस आधार पर क प त उसके धा मक रवाज के पालन पर
तब ध लगाता है उसनेववाह व छे द क ड का वाद तु त कया के
रल उ च यायालय नेनणय दया क धारा 2 (7)
(e) केआधार पर तो प नी ववाह व छे द क ड नह ा त कर सकती यो क धू ल भरी क रपंथी मा यताओ से हटकर
चलना गैर इ लामी आचरण नह है |

E- प त के
पास य द एक सेअ धक प नयां
हो तो उन सबसेसामान वहार न करना अथात कसी को कम और कसी को
अ धक ने ह एवं
सु वधा दान करना उपेत प नी के त प त क ूरता है
| प त का कोई भी व व
्े
षपू
ण आचरण जसमे
प नी को मान सक पीड़ा हो मान सक ू
रता मानी जा सकती है
|

मुलम व धमा य कोई अ य आधार –

धारा 9 मुलम व ध म मा य एक अव श उपधारा है | कोई अ य आधार जो मुलम व ध म ववाह व छे


द केलए मा य
हो पर तुइस अ ध नयम म स म लत न हो सका हो, के आधार पर भी प नी का ववाह यायालय केड ारा भं
ग कया
जा सकता है |

लआन –

लआन का अथ है – प त ारा प नी केव परपुषगमन का म या आरोप लगाना | अगर प त यह आरोप अपनी प नी


पर लगाता है
तो प नी ववाह व छेद कर सकती है
|

मु
ह मद उ मान बनाम सैनबा उ मा के
वाद म प नी ने
प त केव इस अ ध नयम केअंतगत ववाह व छे द का वाद तु त
कया क धारा 2 म व णत कोई भी आधार नह लए गए थे | प नी का मा कथन यह था क वह अपने प त से घृ
णा करती
थी | के
रल उ च यायालय ने यह नण त कया क प त-प नी कई वष तक व व ्े
षपू
ण जीवन जी रहेहै
तो यु सं गत न कष
यही नकाला जा सकता हैक दा प य जीवन वा त वक प सेवघ टत हो चु का हैतथा कानू
न केइस वा त वकता को
मा यता दे
कर उनका दा प य जीवन समा त कर दे
ना च हये|

ववाह व छे
द के
प रणाम –

ववाह व छे
द या तलाक के
पूण हो जाने
पर ववाह के
प कारो केन न ल खत अ धकार एवं
दा य व उ प हो जाते
है–

1. सरा ववाह करने का अ धकार – तलाक के प ात्प नी ववाह क पू


णाव था क दशा म इ त क अव ध पूण करके
सरा ववाह कर सकती है और ववाह पूणाव था को ा त नह आ हो तब तलाक के प ात्ही सरा ववाह कर सकती है |
चार प नया रखनेवाला पुष अपने तलाक द ई प नी क इ त अव ध के पू
ण हो जाने
के बाद ही सरा ववाह कर सकता
है|

2. मे
हर त काल देय हो जाता है
– य द ववाह क पूणाव था ा त हो चु
क है तब प नी मु
व जल मे
हर को त काल पाने

हक़दार हो जाती है| य द ववाह क पूणाव था न ा त ई हो तब प नी नधा रत मे
हर क 1/2 धनरा श पाने
क हक़दार हो
जाती है
तथा य द मे
हर न त न हो तब वह मा तीन कपड़े
पाने
क हक़दार होती है
|

3. तलाक के
पूण होने
केप ात प त प नी के
एक सरे
के त उ रा धकार का अ धकार समा त हो जाता है
|

4. तलाक पू
ण होने
केबाद प त प नी के
बीच समागम अवै
ध हो जाता है
|

तलाक ा त य ारा आपस म पु न ववाह - सामा य नयम यह हैक तलाक ा त प त-प नी तलाक के बाद आपस म
पुन ववाह नह कर सकतेपर तु य द वेऐसा करना चाहते हैतब प नी को इ त समा त होनेकेबाद कसी अ य पुष से
ववाह करके उससेतलाक लेना होगा व पु
नः इ त का पालन करने के बाद ही वह उस पुष सेववाह कर सकती हैजसने
उससे पहली बार तलाक लया था |

इस कार कया गया ववाह ऐसा ववाह समझा जाये


गा क मानो प त प नी ने
एक नए सरे सेववाह था पत कया है और
उनके
पूव ववाह के
अ धकार व दा य व पु
नज वत नह ह गेब क नये अ धकार व दा य व का ज म माना जाएगा |

8. मुलम व ध के
अ तगत सं
र कता को बताइए ?

वह जसेकानून के
अंतगत अवय क के
शरीर अथवा सं
प दोन क सु
र ा का अ धकार ा त है
वह अवय क का
सं
र क कहलाता है
|

सं
र क का वग करण (Classification of Guardians) –

नै
स गक अथवा व धक सं
र क

वसीयती सं
र क

यायालय ारा नयु सं


र क

त यतः सं
र क

1. नै
स गक अथवा व धक-सं
र क (Natural or Legal Guardian) – ऐसे जसेकसी अवय क क ग त व धयो
पर नगरानी रखने
का व धक अ धकार हो अवय क का नैस गक अथवा व धक सं
र क माना जाता है
|
कसी अवय क के
नैस गक सं
र क न न है

पता

पता का न पादक

पतामह

पतामह का न पादक

इनमे
सेकसी के
न होने
पर अवय क का नै
स गक या व धक सं
र क कोई नह होता है
|

शया व ध म – अवय क के
नैस गक सं
र क उसकेपता तथा उसके
बाद उसकेपतामह ही माने
जाते
है|

2. वसीयती सं
र क (Testamentary Guardian) – कसी वसीयत केअंतगत नयु कया गया सं र क वसीयती
सं
र क कहलाता है| पता या उसकेन रहने
पर पतामह वसीयत ारा अपनी अवय क संतान केलए संर क नयु कर
सकता है| सं
र क नयु कये जाने
वाला वय क व व थ च का हो कसी गैर मुलम या म हला को भी सं
र क
नयु कया जा सकता है |

शया व ध म कोई गै
र मुलम अवय क का वसीयती सं
र क नह बन सकता है
|

3. यायालय ारा नयु सं र क (Guardian appointed by Court) – नै


स गक या वसीयती संर क के अभाव म या
उनके स म न होने पर यायालय अवय क केहतो को यान म रखतेए कसी उपयु को उसका संर क नयु
कर सकता है | यायालय को अवय क का सं
र क नयु करने का अ धकार गा जयन एंड वाड्
स ए ट 1890 के अं
तगत
ा त है
| यायालय अवय क केववाहाथ सं र क क नयु नह कर सकता है | यहाँ
यायालय से ता पय जला जज
यायालय से है|

कसी अवय क के
संर क के प म अपने
को नयु करने
केलए न न म से
कोई एक जला जज के
सम ाथना प दे
सकता है
-

(a)- वह जो अवय क का सं
र क बनने
का दावा करता हो अथवा सं
र क बनने
का इ छु
क हो |
(b)- अवय क का कोई स ब धी अथवा म |

(c)- रा य त न ध के प म जले
का कले
टर |

4. त यतः सं
र क (De facto Guardian) – जो न तो नै
स गक, न ही वसीयती और न ही यायालय ारा नयु
सं
र क हैफर भी अवय क क अ भर ा तथा दे खरेख करता है
उसेत यतः संर क कहते है|

अवय क के शरीर क सं
र कता (Guardianship of the Person) – अवय क के
शरीर क संर कता सेता पय उसके
स पू
ण व पर नगरानी रखना है
शरीर के
संर क को वलायत-ए–न स कहते है
| नै
स गक संर क होने
के कारण पता
तथा पतामह या उसकेन पादक अवय क के शरीर के
संर क माने
जाते है
|

अ भर ा ( हजानत) -

अ भर ा ( हजानत) का अथ है
– कसी अवय क को उसके शैशव काल तक अपने
पास रखना | माता शै
शव काल तक शशु
को अपनी अ भर ा म रखनेक अ धका रणी मानी जाती है
|

माता क अ भर ा का अ धकार ( हजानत का अ धकार ) (Mother’s Right of Child’s Custody) -

शशु
य द पुष हैतो 7 वष व ी हैतो उसको यौवनाव था क वय तक माँ अपनी अ भर ा म रखने
क व धक अ धकारी है
हैक शफ कू ल के अं
तगत माता अपनी पुी को तब तक अपने पास रख सकती है
जब तक क पुी का ववाह न हो
जाए | ववाह व छेद होनेकेप ात भी एक वधवा या तलाकशु दा माँ
का अपनेशशु क हजानत का अ धकार बना रहता है
|

जै
नब बनाम गौस के
मामले म म ास उ च यायालय ने
कहा क अगर कोई प नी इ लाम धम का याग कर दे
ती है
तो उसके
हजानत का अ धकार समा त नह होगा |

माता केहजानत का अ धकार कब समा त होता है


वधवा व तलाकशु
दा माँ
नेपु
नः ववाह कर लया हो |
य द माँ
अनै
तक जीवन तीत कर रही हो |

य द माँ
शशु
केपता से
कह र अलग रह रही हो |

य द माँ
लापरवाही या समयाभाव के
कारण शशु
क दे
खरे
ख करने
केअसमथ पायी जाए |

माता केहजानत का अ धकार अ धकार समा त होने


पर शशु
क अ भर ा वरीयता म म न न लोगो के
पास आ जाती है

माँ
क माँ

पता क माँ

माँ
क माँ
क माँ

पता क माँ
क माँ

सगी बहन

सहोदर बहन

सगी बहन क पुी

सहोदर बहन क पुी

माँ
क सगी बहन

माँ
क सहोदर बहन

पता क सगी बहन

शया व ध – शया व ध म माँ


अपनेपुको 2 वष तक व पुी को 7 वष तक अपने
अ भर ा म रख सकती है
| माँ
केन
रहनेपर अवय क केअ भर ा का अ धकार मशः वरीयता म म पता व पतामह को मल जाता है|

पता का अ भर ा का अ धकार ( हजानत का अ धकार ) (Father’s Right of Child’s Custody) – उपरो सू


ची म
अगर कोई नह है तो पता को अपनेशशु क अ भर ा या हजानत का अ धकार मल जाता है |

पता के
न रहने
अथवा उसके
अयो य होने
पर सं
तान क अ भर ा वरीयता म म न न स ब धय को है

नकटम पतामह

सगा भाई
सगो भाई

सगे
भाई का पु

सगो भाई का पु

पता का सगा भाई

पता का सगो भाई

पता के
सगे
भाई का पु

पता के
सगो भाई का पु

पर तु
उपरो स ब धय को सं तान क अ भर ा दए जानेम एक शत हैक कोई पुष अपने
अ ववा हत क या को अपने
अ भर ा म तब तक रख सकता है
जब तक इन दोनो के
बीच कोई न ष स ब ध हो |

यौनाव था क वय 15 वष से
कम उ क क या के साथ ववाह होने
पर प त उसको अपनी अ भर ा म नह रख सकता इस
दशा म भी क या क अ भर ा उसक माँ
केपास ही होती है
|

ववाहाथ सं
र क ( वलायत-ए-जबर) (Guardianship for Marriage) - ववाहाथ सं
र क न न है

पता

पतामह

भाई या पतृ
व कु
ल का कोई सद य

माता

माता या मातृ
व कु
ल का कोई अ य सद य

शया व ध – शया व ध म ववाहाथ सं


र क के
वल पता और पतामह ही होते
है|

सं
प क सं र कता ( वलायत-ए-माल) (Guardianship for Property) – कसी अवय क क सं
प क सु
र ा तथा
दे
खरे
ख का अ धकार अवय क के सभी कार के संर क को है |

अवय क क सं
प केनै
स गक अथवा व धक सं
र क (Natural or Legal Guardians for Minor’s Property) –
अवय क के
संप के
नैस गक सं
र क न न है

पता

पता ारा नयु स पादक

पतामह

पतामह ारा नयु स पादक

महबूब साहेब बनाम सै


यद इ माइल के
मामले
म उ चतम यायालय ने
कहा क माता को अवय क के
संप का सं
र क नह
माना जाता है|

पता तथा पतामह या उनके ारा नयु कोई स पादक न होने


पर अवय क के
संप क सुर ा व था केलए गा जयन
एं
ड वाड्
स ए ट 1890 के अं
तगत यायालय कसी यो य को सं
र क नयु कर सकती है
|

(1)- व धक सं
र क ारा अचल सं
प का अं तरण – कसी व धक सं
र क को अवय क क सं
प के
अंतरण का
अ धकार नह हैले
कन न न प र थ त म वह ऐसा कर सकता है

(a) जब व य ारा सं
प के
मूय का दो गु
ना दाम मले
|

(b) जब अवय क के
भरण पोषण केलए सं
प का अं
तरण आव यक हो |

(c) जब व य कसी ऐसे


मृ
तक के
ऋण के
भुगतान करने
केलए करना पड़ेजसका उ रा धकारी वह अवय क है
|

(d) जब वसीयत म दए गए कसी सामा य नदश केलए व य आव यक हो गया हो |

(e) सं
प जब लाभकारी न रह गयी हो |

(f) सं
प जब न हो गयी हो या इसे
खो जाने
का त का लक भय उ प हो गया हो |

(g) सं
प जब कसी ऐसे के
अवै
ध क जे
म हो जससे
पु
नः क ज़ा ा त करना क ठन हो |
(2)- बं
धक - सं
र क अवय क क सं
प का बं
धक तब तक कर सकता है
जब यह अवय क केहत म हो या वयं
उस
संप केलए लाभकारी हो |

(3)- प ा - व धक सं
र क अवय क क सं प का प ा भी के
वल सं
प केलाभ केलए अथवा वयं
अवय क के
लाभ के
लए या उस प र थ त म जब क ही अ य कारण से
ता का लक आव यकता हो कर सकता है
|

सं
र क ारा अवै ध अंतरण शूयकरणीय – कसी सं
र क ारा अवय क क अचल संप के अं तरण के स बधम
उ लेखनीय हैक य द उसने अवय क क संप मुलम व ध केनयमो केवपरीत अंत रत कर द है तो ऐसा अं
तरण शूय
नह माना जाता है
, यह शू
यकरणीय रहता हैजसेअवय क अपनी वय कता ा त करकेअनुम ो दत करके पू
ण बना सकता
हैया नराकृ
त कर सकता है |

1. व धक संर क ारा चल संप का ह ता तरण – मुलम व ध केअंतगत कसी सं र क को अवय क क चल संप


अंत रत करनेका वशे
षा धकार ा त है
| अवय क केभोजन, व , श ा तथा इलाज क व था करनेलए सं र क
अवय क क सं प को रेहन अथवा गरवी रख सकता है
और आव यकता पड़ने पर व य भी कर सकता है
|

2. अवय क क सं प के वसीयती सं
र क (Testamentary Guardians of Minor’s Property) – मुलम व ध के
अंतगत वसीयती संर क भी व धक संर क माना जाता है
| अवय क के
संप के स ब ध म वसीयती संर क केअ धकार
व दा य व ठ क उसी कार हैजस कार पता व पतामह के |

3. यायालय ारा नयु संर क (Guardians of Property Appointed by Courts) – नै


स गक व वसीयती सं
र क
क अनु प त थ म यायालय कसी यो य को अवय क क सं प का सं र क नयु कर सकता है |

अचल सं
प (Immovable Property) – ऐसा सं र क यायालय क पूव अनु
म त लए बना अवय क क अचल संप
का कसी कार ह ता तरण तथा व य व नमय बंधक नह कर सकता हैकेवल अ य धक आव यक होने
पर अथवा
अवय क केलए य लाभकारी होने पर ही यायालय ह ता तरण क अनु
म त देसकता है
|

प ा – यायालय ारा नयु सं


र क अवय क क अचल सं
प को अ धकतम 5 वष या उसक वय कता क उ से
एक
वष तक केलए प ेपर देसकता है
इससे
अ धक समय के
प ा केलए यायालय क पू
व अनु
म त आव यक है
|

चल सं
प (Movable Property) – यायालय ारा नयु सं
र क को बना यायालय के
पूव अनु
म त के
भी अवय क
क कसी चल सं प को अंत रत करनेका अ धकार ा त है
पर तु
सं
र क ारा अवय क क चल सं
प के ले
नदे
नमठक
उतनी ही सावधानी अपेत हैजतनी एक साधारण ा के सेउसक वयं क सं
प के स ब ध म क जा सकती है
|

4. अवय क क सं
प के
त यतः सं
र क (De facto Guardians of Minor’s Property) –

अचल संप – त यतः संर क कानूनक म कोई सं


र क नह माने
जाते
है| उ ह अवय क के
अचल सं
प के
लेन-दे

अथवा अं
तरण का कोई अ धकार नह है
तथा यह शू
य है|

चल संप – जहाँ तक चल संप के अंतरण अथवा ले


न-दे
न का हैत यतः सं
र क को अवय क क चल सं
प को
बे
चनेतथा गरवी रखनेका अ धकार है
| बशत अवय क क मु ख आव यकताओ तथा भोजन व या इलाज क पू
त के
लए उसक कोई ता का लक आव यकता आ पड़ी हो |

9. मुलम व ध के
अंतगत भरण-पोषण को समझाइये
?

भरण पोषण म भोजन, व , नवास- थान तथा जीवन-यापन केलए अ नवाय अ य व तु


एं
स म लत है
| मुलम व ध क
श दावली म भरण पोषण को ‘नफका’ कहा जाता है
|

मुलम व ध म न न भरण पोषण ा त कर सकते


है–

प नी

अवय क सं
तान

अभाव त माता- पता

नष स ब धो के
अंतगत आने
वाले
अ य अभाव त स ब धी

प नी का भरण-पोषण (Maintenance of Wife) –


प नी केभरण-पोषण क व था करना प त का एक व धक दा य व माना जाता है | अतः प त के
साधनहीन होनेव प नी
केवयं समथ होनेके बावजूद भी प नी को अपनेप त से
भरण पोषण ा त करने का अ धकार रहता है
| हैक मा
ववाह हो जाने
पर ही प नी अपने प त सेभरण पोषण का दावा कर सकती है
| मुलम व ध म स प ववाह म प नी को दो
व ध णाली मुलम व ध और द ड या सं
हता केनयमो ारा शा सत कया जाता है |

प नी के
भरण पोषण के
आव यक त व –

मुलम व ध म प नी को अपने
प त से
भरण पोषण ा त करने
का अ धकार न न शत के
अधीन है

मुलम व ध के अं
तगत ववाह व धमा य होना च हए | पर तुववाह अगर गवाह क अनु
प त थ के
कारण अ नय मत आ
है
तो भरण पोषण ा त करने
का अ धकार है |

प त का अपनी प नी के
भरण पोषण दे
ने
का दा य व प नी के
यौनाव था पू
ण होने
केप ात्
ही शु होता है
|

एक नब धत अ धकार रखतेए भी प नी के
भरण पोषण का अ धकार उसकेवयं
केआचरण पर होता है
|

बना कसी यायो चत कारण केप नी अपनेप त सेअलग रह रही है


और उसे
स भोग सु
ख से
सेवं
चत कर रही है
तो उसका
भरण पोषण ा त करनेका अ धकार समा त हो जाता है
|

इतवारी बनाम असगरी के


मामले
म इलाहबाद यायालय नधा रत कया क चार प नयो सेववाह क छु ट होने पर भी य द
कसी मुलम प त नेसरा ववाह कर लया है
तो पहली प नी का उससे
अलग होना यायो चत माना जाता है
|

द ड या सं
हता 1973 के
अंतगत प नी का भरण पोषण –

द ड या सं
हता 1973 के
अंतगत भी एक मुलम प नी भरण पोषण क मां
ग कर सकती है
|

भरण पोषण के
अ धकार का वतन –

1- मुलम व ध के अंतगत – प त य द प नी के
भरण पोषण क व था करने से
इनकार कर दे अथवा वह प नी क उपेा
कर रहा हो तो प नी द वानी यायालय म मुलम व ध के अं
तगत भरण पोषण क मां ग का वाद तुत कर सकती है साथ
ही द ड या संहता के अंतगत प त सेभरण पोषण ा त करने केलए थम ण ेी म ज े ट केयायालय म भी ाथना
तु
त कर सकती हैयायालय उसके मां
ग केऔ च य का परी ण मुलम वै य क व ध के अंतगत ही करता है
औचय
स हो जाने पर वह प नी के प म ड पा रत कर दे ता है| प नी भरण पोषण क बकाया ा त करने क अ धका रणी
नह मानी जाती |

2- द ड या संहता के
अंतगत – इस अ ध नयम क धारा 125 के
अंतगत भरण-पोषण केलए मा सक दर पर रा श
जसे मज े
ट ठ क समझेनधा रत कर सकता है|

तलाकशु
दा म हला का भरण पोषण – तलाकशु
दा म हला के
भरण पोषण का अ धकार तीन नयमो से
है–

मुलम वै
य क वध

द ड या सं
हता, 1973 (धारा 125 से
128 तक)

मुलम म हला अ ध नयम, 1986

(a) मुलम वैय क व ध के अंतगत – मुलम वै


य क व ध के अंतगत तलाशुदा म हला अपने
पूव प त सेकेवल इ त
क अव ध तक ही भरण पोषण क मां ग कर सकती है
| तलाक य द प नी क अनुप थ त म दया गया गया हैतो उसका
भरण पोषण ा त करने का अ धकार तलाक दए जाने क सू
चना मलने क तारीख सेार भ होती हैन क उस दन सेजस
दन यह वा तव म दया गया है
|

(b) द ड या सं हता, 1973 के अंतगत – यह अ ध नयम मुलम स हत भारतवष क सभी तलाकशु दा म हला पर
सामान प से लागू होता है इसम ववाह व छे द क ये क थ त म ववाह व छे द केबाद प नी धारा 125 का लाभ उठा
सकती है बशत उ ह ने पुनः ववाह न कया हो | उ लेखनीय हैक मुलम वै य क व ध म तो तलाकशु दा प नी इ त क
अव ध के प ात कसी भी थ त म भरण पोषण क अ धका रणी नह रहती पर तु द ड या संहता क धारा 125 के
अंतगत तलाकशु दा प नी इ त के बाद भी अपने पू
व प त सेतब तक भरण पोषण ा त कर सकती है जब तक क उसका
पु
नः ववाह न हो इस कार हम दे खते हैक इस अ ध नयम के अं
तगत मुलम प त मा तलाक दे कर अपनी प नी के भरण
पोषण के अ धकार को समा त नह कर सकता | पर तु धारा 125 केअंतगत भरण पोषण का दावा इस अ ध नयम के धारा
127 के अधीन है धारा 127 (3) केअनुसार तलाकशु दा प नी न न ल खत प र थ तय म अपने पू
व प त से भरण पोषण
नह ा त कर सकती है –

जब उसका पु
नः ववाह हो गया हो |

जब उसेथागत या वै
य क व ध के
अंतगत ववाह व छे
द पर दे
य स पू
ण रा श ा त हो गयी हो |

जब ववाह व छे
द के
प ात तलाकशु
दा प नी ने
अपनी वे
छा से
भरण पोषण के
अ धकार का प र याग कर दया हो |

बाई ता हरा बनाम अली सै


न केवाद म उ चतम यायालय नेकहा क मे
हर क पू
र ी धनरा श ा त कर ले
ने
केवावजू
द भी
धारा 125 के अंतगत मुलम प नी को भरण पोषण ा त करने
का अ धकार ा त है |
मु
ह मद अहमद खां बनाम शाह बानू
केवाद म उ चतम यायालय ने कहा क ऐसी तलाकशुदा मुलम प नी को जो अपना
नवाह वयं कर पानेम असमथ हो द ड या सं
हता क धारा 125 केअं
तगत अपने पू
व प त से
भरण पोषण क मां ग कर
सकती है|

यायालय के अनुसार मुलम वै य क व ध म जसके अं तगत प त का दा य व इ त काल तक ही सी मत है वह द ड


या संहता क धारा 125 म वचा रत प र थ त के प रक पत नह है य द तलाकशुदा प नी वयं जीवन नवाह म स म
हैतो इ त समा त होतेही दा य व भी समा त हो जाता हैपर तुवह वयं अपना नवाह करने यो य न हो तो धारा 125 का
उपयोग करने क अ धका रणी मानी जाये गी लेकन इस मामले म यायालय नेनणय दया क मुलम वै य क वधवद ड
या संहता क धारा 125 म कोई वरोधाभाष नह है |

उ ले
खनीय हैक उ चतम यायालय का नणय अ य धक ववादा पद एवं
ब च चत नणय बन गया |

पर तुफर भी इस नणय सेअसं तुवग क मां


ग पर सं
सद ने
इस नणय के भाव को न करने
केलए मुलम म हला
अ ध नयम 1986 पा रत कया |

(c) मुलम म हला अ ध नयम 1986 के


अंतगत – इस व ध म तलाकशु
दा म हला के
भरण पोषण से
स बं
धत न न उपबं

है–

1- इ त क अव ध म भरण पोषण – इ त क अव ध म तलाकशु


दा मुलम म हला अपने
पू
व प त से
अपनेवयं
केलए
उपयु भरण पोषण क रा श मां
ग सकती है|

2- इ त काल के प ात भरण पोषण – मुलम म हला अ ध नयम क धारा 4 (1) के अनु सार म ज े ट य द इस बात से
सं
तुहैक म हला ने पु
नः ववाह नह कया है और न ही वह भरण पोषण करने म समथ है तो वह म हला के ऐसेस बं धयो,
जो उसके उ रा धकारी हो, को आदेश दे
सकता हैक वे इस म हला केभरण पोषण क व था कर | अगर उस म हला क
कोई संतान हो, जो उसका भरण पोषण करने म स म हो तो यायालय सव थम उसे यह दा य व देगा | अगर सं
तान नह है
तो यह दा य व उसके माता- पता को दया जाएगा | अगर वह भी समथ नह है
तो यह दा य व अ ततः व फ बोड पर आ
जाता है|

3- मे
हर तथा प नी क अ य स प यां– तलाकशुदा प नी अपने अद मे हर को ा त करने क अ धका रणी है
| मे
हर के
अ त र प त अथवा उसके स बं
धयो या म ो ारा द गयी प नी को उसके माता- पता या स बं
धयो ारा द गई तथा
उसक व-अ जत सं प भी उसक अपनी अ य सं प मानी जाती है |
4- द ड या सं
हता क धारा 125 का वक प – मुलम म हला अ ध नयम 1986 क धारा 5 के अनुसार भरण पोषण
सेस बं धत मामलो केाथना प क थम सु नवाई केदन तलाकशु दा म हला या उसका पू
व प त य द चाहेतो हलफनामेया
कसी अ य घोषणा ारा यह मंत कर देक वेअपना वाद द ड या सं हता क धारा 125 केअंतगत नण त
करना चाहतेहै |

5- द ड या सं
हता केअंतगत पा रत हो चु
केआदे
श – मुलम म हला अ ध नयम 1986 चूँक भू
तल ी भाव नह
रखता अतः द ड या संहता क धारा 125 केअं
तगत पा रत हो चु
केआदे
श को यह अ ध नयम भा वत नह करता |

मुलम म हला अ ध नयम 1986 क सं


वै
धा नकता –

मुलम म हला अ ध नयम 1986 क संवै


धा नकता को चु
नौती दे
ने
वाली कई या चकाये
उ चतम यायालय के
सम तु

क गई यो क द ड या संहता क धारा 125 से
128 व इस अ ध नयम म सम पता नह थी |

उ चतम यायालय ने
इस ववाद पद नयम को न न वाद म सं
वै
धा नक घो षत कया-

डै
नयल लतीफ एवंअ य बनाम भारत सं
घ (2001)- इस अ ध नयम को व धमा य ठहरातेए उ चतम यायालय ने
न न ल खत न कष दए –

1. तलाकशु
दा मुलम प नी केपू
व प त का दा य व हैक वह उसकेभ व य केलए उसे एक उ चत व यायो चत साम ी
स हत उसकेभरण पोषण क व था करे | इस अ ध नयम क धारा 3 (1) के
अंतगत पू
व प त का दा य व हैक वह इ त
क अव ध व उसके बाद भी ऐसी व था करे |

2. तलाकशु
दा प नी के
भरण पोषण का भु
गतान एक मुलम प त का दा य व के
वल इ त अव ध तक ही सी मत नह है
वरन्
उसके जीवनकाल तक क हैवशत उसने पु
नः ववाह न कया हो |

3. इ त क अव ध के प ात कोई मुलम म हला ववाह न क हो और अपना भरण पोषण करनेम असमथ हो वह इस


अ ध नयम क धारा 4 केअंतगत अपनेभरण पोषण ा त करने केलए अपने उन स बंधयो केव दावा कर सकती है
जो उसके मरणोपरां
त उसक संप म उ रा धकारी ह गे|

4. मुलम म हला अ ध नयम भारतीय सं


वधान के
अनु
छेद 14, 15, 21 का अ त मण नह करता है
|
शाहबानो केनणय तथा इस नयम के भाव क ववेचना करतेए उ चतम यायालय ने कहा क हम लोग ( यायमू
तगण) ने
इसका यानपू वक व षेण कया है और इस नणय पर प च
ंेहैक यह अ ध नयम व तु
तः वही सं
हताब करता हैजो
शाहबानो केमामले
म कहा गया है
|

वधवा का भरण-पोषण – मुलम व ध के अंतगत वधवा को भरण पोषण को ा त करनेका अ धकार नह है


| चू

कद ड
या संहता क धारा 125 म श द ‘प नी’ म वधवा स म लत नह है अतः इस अ ध नयम केअं
तगत भी वधवा भरण
पोषण क मांग नह कर सकती |

सं
तान का भरण-पोषण (Maintenance of the Children) – व धक सं र क होनेकेकारण संतान का भरण पोषण
मुयतः पता का ही दा य व माना जाता है
| मुलम व ध के
अंतगत पुजब तक यौनाव था क वय (अथात 15 वष तक)
क आयु न ा त कर ले तब तक उसके भरण पोषण क व था करने का दा य व उसकेपता पर रहता है
|

पुय द वकलां गता अथवा कसी अ य शारी रक व मान सक बलता के


कारण अपनेनवाह करनेम असमथ हो तो
वय कता ा त कर लेने
केप ात भी पता उसके भरण पोषण क व था करने केलए वा य है
|

मुलम व ध के अंतगत पुी केअ ववा हत रहने


तक उसके भरण पोषण क व था करने का दा य व उसकेपता का है
,
पर तु
ऐसी अ ववा हत पुी जो बना कसी यायो चत कारण केपता से अलग रह रही है
वह भरण पोषण ा त करने क
अ धका रणी नह है| य द वधवा अथवा तलाकशुदा पुी अपना नवाह करने
म असमथ हो तो वह भी अपनेपता सेभरण
पोषण ा त करनेक अ धका रणी है |

साधनहीनता अथवा नधनता के कारण पता य द सं तान केभरण पोषण करने


म असमथ है
और माँ
सामथवान है
तो सं
तान
का भरण पोषण, सं
तान क माता का दा य व हो जाता है
|

मुलम म हला अ ध नयम 1986 के अंतगत भरण पोषण – हैक मुलम म हला अ ध नयम 1986 क धारा 3 (1)
(b) के
अंतगत एक तलाकशुदा म हला अपनेअ भर ण म रखी गई सं
तान के
भरण पोषण क मां ग अपने
पूव प त से
2 वष
क अव ध तक मांग सकती है
|

अतः ऐसी सं
तानेअपनी पता से केवल 2 वष क उ तक भरण पोषण ा त करने क अ धकारी माने
जाये
गेजब क द ड
या संहता क धारा 125 जो अ य समुदाय क अवय क सं तान स हत मुलम सं
तान को भी वय कता क वय (18
वष)अथवा जब तक क वे साम यवान न हो जाए अपनेपता सेभरण पोषण ा त करतेरहने
का अ धकार दान करती है
|
जहाँतक ववाह- व छे
द केप ात संतान केभरण पोषण का है
द ड या सं
हता क धारा 125 केअं
तगत जब तक
ऐसी सं
ताने
वय क या साम यवान न हो जाए तब तक उ ह अपनेपता से
भरण पोषण ा त करने का अ धकार उनका एक
पृ
थक अ धकार है|

नू
र सबा खातून बनाम मुह मद का सम के
वाद उ चतम यायालय नेनधा रत कया क द ड या सं
हता क धारा 125
केअंतगत मुलम दं प से उ प सं
तान को जब तक वे
वय क अथवा साम यवान न हो जाए भरण पोषण दान करना
पता का पू
ण दा य व होता है
|

अधमज संतान का भरण पोषण – पता अधमज सं


तान का संर क नह होता अतः अधमज पुअथवा पुी कसी के
भी
भरण पोषण क व था केलए उसका कोई दा य व नह है |

हनफ व ध के
अनु
सार अधमज सं
तान अपनी माता से
भरण पोषण ा त कर सकता है
|

मुलम व ध म तो अधमज संतान के


भरण पोषण का दा य व पता पर नह रहता पर तु
द ड या सं
हता क धारा 125
केअंतगत अधमज संतान के
भरण पोषण केलए पता ठ क उसी कार सेज मे दार है
जै
सा वह धमज संतान केलए माना
जाना है
|

माता- पता का भरण पोषण (Maintenance of Parents) – मुलम व ध के


अंतगत संतान अपने
अभाव त माता-
पता के भरण पोषण क व था करने केलए बा य है| मुलम व ध केअं
तगत माता- पता के
भरण पोषण से
स बं
धत
नयम न न ल खत है –

सं
तान अपने माता पता केभरण पोषण क व था करने
केलए तभी वा य है
जब क उसक आ थक थ त ठ क हो तथा
माता- पता अभाव त हो |

माता- पता का भरण पोषण पुतथा पुी दोन का सामान दा य व माना जाता है
|

माँ
चाहेअश न भी हो पर तु य द वह नधन है
तो वषम आ थक प र थ तय म रहने पर भी पुउसकेभरण पोषण के
लए ज मे
दार माना जाये
गा नधन होने के
साथ ही अपने
जी वकोपाजन केलए कु छ भी न कमा सकने
वालेपता के
भरण
पोषण केलए गरीब पर तु जी वकोपाजन म स म पु ज मेदार माना जाता है
|

सं
तान य द अपने
माता पता के
भरण पोषण क अलग व था न कर पाए तो उ ह अपने
साथ रखने
केलए वा य कया जा
सकता है|

पुअपनेपता क उस प नी को जो उसक सगी माँ


न हो, के
भरण पोषण केलए वा य नह है
|
द ड या संहता 1973 के
अंतगत माता- पता का भरण पोषण – द ड या सं
हता क धारा 125 माता- पता के
भरण पोषण क व था करता है य द कोई सु वधाजनक थ त म होतेए भी अपने माता पता जो जी वकोपाजन म
असमथ हो, को भरण पोषण दान नह करता अथवा उसक उपेा करता है तो थम ण ेी म ज े ट उस को यह
आदेश देसकता हैक वह भरण पोषण हेतु एक न त धनरा श तमाह दे |

पतामह व पतामही का भरण पोषण – पै


तृ
क तथा मातृ
क दोन ही प म अभाव त पतामह एवंपतामही को अपने
पौ ,
पौ ी से
भरण पोषण ा त करने का अ धकार है
|

स बंधयो का भरण-पोषण (Maintenance of Relatives) – मुलम व ध केअंतगत ऐसे


स ब धी जो कसी के
उ रा धकारी हो सकते
हैउस केभरण पोषण केलए ज मे दार माने
जाते
हैबशत वह अभाव त हो तथा
स ब धी सुवधाजनक त थ म हो |

पुवधु का भरण-पोषण – मुलम व ध के अं


तगत पुक प नी अथात पुवधूको अपनेसु
र से
भरण पोषण ा त करने
का कोई अ धकार नह रहता है | पुवधु
चाहेवधवा ही य न हो उसके
भरण पोषण क व था करने
केलए सु र को
वा य नह कया जा सकता है |

10. मुलम व ध के
अंतगत जनकता व औरसता को बताइए ?

जनकता (Parentage) – सं
तान के
माता- पता से
उनका व धक स ब ध सं
तान क जनकता कहलाती है
|

औरसता (Legitimacy) – कसी क औरसता एक ऐसी ा थ त है जो उसकेपतृ व केफल व प उ प होता है


|
सं
तान का पतृ
व सु था पत हो जाने
पर उसक औरसता भी सु था पत हो जाती है
| ववाह वै
ध होने
पर मुलम व ध के
अं
तगत कसी सं तान क औरसता अपने आप सु
था पत हो जाती है
|

हबीबु
रहमान बनाम अ ताफ अली के वाद म वी क सल ने कहा क पुके औरस होने
केलए यह आव यक हैक वह
कसी पुष तथा उसक प नी क सं तान हो कसी अ य कार से उ प सं तान अवै
ध स ब ध क सं
तान होती है
तथा कभी
औरस नह मानी जाती हैप नी श द सेअ नवायतः वै
ध ववाह का बोध होता है
|

इ ला मक व ध म औरसता क उपधारणा – यह वषय अब मा शैणक मह व का रह गया हैयो क भारत वष म


औरसता भारतीय सा य अ ध नयम 1872 केअं
तगत सुन त होता है
|
मुलम व ध म औरसता का नधारण न न नयम के
अनु
सार होता है

पता य द पतृ
व क अ भ वीकृ
त न करे
तो ववाह होने
के6 माह के
अ दर उ प होने
वाला शशु
अवै
ध सं
तान माना जाता
है|

ववाह सं
प होने
के6 माह बाद पै
दा आ शशु
वै
ध सं
तान माना जाता है
बशत प त उसे
अ वीकार न करे
|

ववाह व छे
द हो जाने
केप ात उ प आ शशु
वै
ध सं
तान माना जाएगा य द वह –

ववाह व छे
द के
10 माह के
अ दर उ प आ हो ( शया)

ववाह व छे
द के
दो वष के
अ दर आ हो (हनफ )

औरसता क वतमान व ध (Present Law of Legitimacy) – भारत म औरसता का नधारण सा य अ ध नयम, 1872
केअं
तगत होता है
| भारतीय सा य अ ध नयम, 1872 क धारा 112 के
अंतगत न न त य कसी क औरसता के
न या मक माण माने जाते ह–

वह अपने
माता पता के
वैध ववाह के
दौरान उ प आ हो |

वह इस ववाह व छे
द के
280 दन के
अ दर उ प आ हो बशत उसक माँ
नेपु
न ववाह न कया हो |

यध प औरसता केवषय म मुलम व ध तथा सा य अ ध नयम क धारा 112 म प असमानता है तथा प मुलम व ध के
अं
तगत सं प ए ववाह सेउ प संतान क औरसता का नधारण भारतीय अदालत ने भारतीय सा य अ ध नयम 1872
क धारा 112 के
अंतगत कया है
तथा इस वषय म मुलम व ध लागूनह क गयी है|

सा य अ ध नयम 1872 क धारा 112 के


लागू
होने
केलए ववाह व धमा य होना चा हए |

पतृव क अ भ वीकृ त ( इकरार–ए–नसब ) (Acknowledgement of Paternity)- कसी ारा पतृवक


अ भ वीकृ त का अथ है उसके ारा अपने
को कसी सं तान का पता वीकार कर ले
ना मुलम व ध म इसेइकरार-ए-नसब
कहा जाता है| अवै
ध स ब ध तथा मुलम व ध के अंतगत न ष ववाह से उ प ई अवै ध सं
तान को अ भ वीकृ त ारा
औरस नह बनाया जा सकता है |

व धमा य अ भ वीकृ
त के
अ नवाय शत (Essential Conditions for a Valid Acknowledgement) –

1. अ भ वीकृ
त के
वल ऐसे
सं
तान को दान क जा सकती हैजसके
गभ म आने
केसमय उसक माँ
तथा अ भ वीकृ

दान करने
वाले
पुष के
बीच वै
ध ववाह सं
भव रहा हो |

2. पतृ
व क अ भ वीकृत के
वल उस सं
तान केलए हो सकती हैजसकेपता के बारेम अ न तता हो कोई ऐसी
कसी सं
तान को जसका पता न त प सेात है अ भ वीकृ त ारा अपनी सं
तान नह बना सकता |

3. अ भ वीकृ
त दान करने
वाले व सं
तान के
बीच इतना अं
तर होना चा हए क वेपता पुजै
से
लग |

4. अ भ वीकृ
त के
वल सं
तान को पतृ
व दान करनेकेआशय से ही नह वरन उसे
उ रा धकार स हत अ य सभी मामलो म
अपना औरस पुअथवा पुी के प म वीकार करने
केलए होना चा हए |

5. सं
तान ारा अ भ वीकृत का अनु
म ोदन होना भी आव यक हैकसी को उसक इ छा केव अ भ वीकृ
त ारा
कसी क सं तान नह बनाया जा सकता |

पतृव क अ भ वीकृत अ तसंहरणीय है– एक बार अ भ वीकृ


त का अनु
म ोदन कर दे
ने
पर वह इसे
पु
नः नराकृ
त नही
कर सकता है
और यह अ तसंहरणीय हो जाता है
|

अ भ वीकृ
त व द क हण म समानता –

अ भ वीकृ
त सं
तान व द क सं
तान दोन धमज पुहोते
है|

अ भ वीकृ
त व द क दोन म पुको पता क सं
प म उ रा धकार ा त होता है
|

अ भ वीकृ
त व द क हण दोन म सं
तान को पता के
धा मक व लौ कक दा य व को पू
र ा करने
का कत होता है
|

द क और अ भ वीकृ
त म अं
तर –

द क म सरे केपुको पुके प म हण कया जाता है


जब क अ भ वीकृ
त म अपने
ही पुको पुके प म वीकार
कया जाता है
|

द क पुष और म हला दोन ारा लया जा सकता है


जब क अ भ वीकृ
त के
वल ब चे
केपता ारा क जा सकती है
|

द क लेने
वाले का अपना पु, पौ , पौ तथा पुी क दशा म अपनी पुी या पौ ी जी वत नह होनी चा हए जब क
अ भ वीकृत पुया पुी होने
केदशा म भी कया जा सकता है|
द क का उ ेय धा मक व अ या मक होता है
जब क अ भ वीकृ
त का उ ेय सं
प का उ रा धकार तय करना होता है
|

11. मुलम व ध म हबा को समझाइये


?

सं
प का ऐसा अंतरण जससे एक जी वत सरेजी वत के
प म अपनी सं प का वा म व बना कसी
तफल के अं
त रत कर दे
वह दान या हबा कहलाता है| दान चू

क सं
प का अं तरण हैइस लए इसका शासन सं प
अं
तरण अ ध नयम, 1882 केअंतगत होता हैक तुय द दानकता मुलम हो तो उस पर हबा क व ध लागू
होती है| हबा
मुलम व ध सेव नय मत होता है
संप अं तरण अ ध नयम से नह |

दान ( हबा) क प रभाषा –

हे
दाया केअनुसार - हबा कसी वतमान सं
प केवा म व का तफल र हत एवंबना शत केकया गया तु
रत
ं भावी होने
वाला अंतरण है
|

मुला केअनु
सार - हबा या दान तु
रत
ं भावी होने
वाला संप का ऐसा अं तरण है
जो बना कसी व नमय के
एक
ारा सरे के प म कया जाए तथा सरे ारा इसेवीकार कया जाए |

व धमा य हबा क अ नवाय शत (Essentials of a Valid Hiba) –

दान क घोषणा

दान क वीकृ

दान क सं
प के
क जे
का प रदान

दान क घोषणा (Declaration of Gift) –


दान क घोषणा का ता पय है
- दानकता ारा दान हीता के
प म सं
प को दान करने
केमं
त क अभ |

दान क घोषणा मौ खक भी हो सकती है


और ल खत भी | इलाही शमसुन बनाम जै
तु
न बी मकबूल के
वाद म उ चतम
यायालय ने
कहा क संप कसी भी कार क हो मुलम व ध म दान क घोषणा व वीकृ त मौ खक हो सकती है
| हबा
वव त नही हो सकता इसेप होना चा हए |

दान क घोषणा म दानकता क वे


छा तथा वतंसहम त आव यक है
, अ यथा दान शू
य माना जाये
गा |

दान क घोषणा सदाशयपू


ण होनी चा हए | ऋणदाता को धोखा दे
ने
केउ ेय सेकया गया दान शू
य होता है
|

दानकता क स मता – दानकता क न न स मता होनी चा हए –

मुलम हो

व थ च हो

वय क हो

दान दे
ने
का अ धकार – दानकता को सं
प दान करने
का अ धकार होना चा हए | अतः दानकता को दान क जाने
वाली
संप का वामी होना चा हए |

दान क वीकृ
त–

व धमा य दान केलए घोषणा के


साथ उसक वीकृ त भी अ नवाय है
| दान क वीकृ
त न होनेपर दान शू
य होता है
| कोई
जी वत जो दान करने
केसमय अ त व म हो दान हीता बननेकेलए स म माना जाता है
|

अज मा क तु
गभ म आ चुकेशशु
केप म दान कया जा सकता है
लेकन वह दान करने
क त थ से
6 माह के
भीतर
ज म ले
ले
ना आव यक है
|

कसी सामा य मनु


य क भां
त व धक भी दान हीता हो सकते
है|

अवय क तथा पागल – अवय क तथा पागल भी स म दान हीता है


| य द दान हीता अवय क या अ व थ म त क
का हो तो दान क वीकृ
त उसके
संर क ारा होनी चा हए | दान क वीकृ
त केलए वरीयता म म न न सं
र क है
-

पता

पता ारा नयु न पादक

पतामह

पतामह ारा नयु न पादक

दो या अ धक दान हीता - दान हीता एक भी हो सकता है


और कई य का समू
ह भी क तु
दान हीता य द
य का समू
ह या वग हैतो इस वग का ये
क अ भ न त होना चा हए |

क जे
का प रदान –

मुलम व ध म दान म क जे का प रदान अ नवाय है


| दानकता ारा दान हीता को सं
प का क ज़ा दे ना ही क जे
का
प रदान कहा जाता है
| स प क कृ त तथा प र थ तय के आधार पर क जे केप रदान क दो व धयाँच लत है–

1.वा त वक प रदान

2. ल त प रदान

1. वा त वक प रदान – दान क गयी सं प क कृ त य द ऐसी हैक उस पर भौ तक प से क जा कया जा सके अथवा


एक थान सेसरेथान पर ले जाया जा सकेतो क जे का प रदान वा त वक प रदान कहलाता है
| दान क वषय-व तुयद
अचल सं प है तो इसके वा त वक प रदान केलए दानकता ारा कोई ऐसा काय कया जाना चा हए जससेक दान हीता
उस सं प का पू र ा उपभोग करनेक थ त म आ जाए | अतः दानकता य द उस मकान का हबा करे जसमेवह वयं रह
रहा हैतो उसे
चा हए क वह मकान खाली कर दे ता क दान हीता उसमे नवास कर सके|

2. ल त प रदान – जब सं प केवा त वक क जा न दए जानेपर भी कानू


न क पना कर लेक दान हीता को क जा
ा त हो गया है
तो क जे
का ल त प रदान माना जाये
गा | ल त प रदान न न दो थ त म पया त माना जाता है

जब दान क गयी सं
प अमू
त सं
प हो |
जब दान क गयी सं
प मू
त सं
प होतेए भी प र थ तवश उसका भौ तक क जा सं
भव न हो |

रज न तो अ नवाय हैऔर न ही पया त – मुलम व ध म क जे


का प रदान इतना मह वपू
ण त व माना जाता हैक
रज होनेकेबावजूद य द क जेका वा त वक अथवा ल त प रदान न हो सका हो तो हबा शू
य माना जाये
गा |

क जेका प रदान कब पू
ण माना जाता है– चल सं
प य के दान म तो क जे
का प रदान उस समय पू
ण हो जाता है
जब
दान हीता को सं
प भौ तक प से ह तगत कर द जाती है
पर तुअचल तथा अमू त सं
प य के क जेका प रदान पू

होने
का ठ क समय कर पाना मुकल है |

इसे
सुन त करने
केलए अदालत ने
दो स ां
त अपनाया है

1. लाभ का स ां
त- इसके
अंतगत अचल व अमू त संप के
दान म क जे
का प रदान उस समय पू
ण माना जाता जस समय
सेदान हीता सं
प का लाभ उठाना ार भ कर दे|

2. आशय का स ां
त- इसके
अनुसार अचल व अमूत संप य केहबा म क जे केप रदान को पू
णतः का समय दानकता के
मं
त या आशय पर नभर करता हैअथात क जे का प रदान उस समय पू
ण माना जाता हैजस समय से दानकता ने
सोचा
हो क सं
प का अ धकार अब दान हीता को मल जाये|

आप करने का अ धकार - कसी हबा म क जे का प रदान पू


ण आ हैक नही इस पर आप करने
का अ धकार के
वल
दानकता, दान हीता अथवा इसकेदावे
दार को ही है
|

अवय क अथवा पागल के प म कये गयेदान का क जेका प रदान - दान हीता य द पागल अथवा अवय क है
तो उसके
प म कया गया दान तब तक पू
ण नही माना जाये
गा जब तक क इनके संर क संप क कृ त केअनुप वा त वक
अथवा ल त क जा न ा त कर ले |

हे
दाया के
अनु
सार - अवय क दान हीता य द ववे क क वय का हो चु का है
और अपनेप म कये गए दान के
संप का
क ज़ा वयंा त कर ले तो, दान को व धमा य माना जाना चा हए यो क वह उसकेहत म है
|

क जे
का प रदान कब आव यक नह है
– न न प र थ त म दान क वै
धता केलए क जे
का प रदान आव यक नह है

जब दानकता व दान हीता दान कये
गये
मकान म रहते
हो |

प त-प नी ारा पर पर एक सरे


को कया गया दान |

सं
र क ारा तपा य को कया गया दान |

दान क वषयव तु
जब वयं
दान हीता के
क जे
म हो |

हबा क वषय-व तु- कोई भी स प जसपर दानकता का वा म व हो, हबा क वषय-व तु


बन सकती है
बशत सं

अं
तरण अ ध नयम, 1882 केअंतगत वह अं
तरण यो य सं
प मानी गयी हो |

दान क वषय-व तु
म कु
छ व श सं
प य का वणन न नवत है

1.भावी सं
प का दान – भावी सं
प का दान शू
य होता है
, दान के
समय सं
प का अ त व म होना आव यक है
|

2.उ रा धकार क संभावना का दान – उ रा धकार क सं


भावना का हबा भी शू
य है
, उ रा धकार क सं
भावना का अथ है
भ व य म उ रा धकार क संभावना तथा वसीयत के अं
तगत कसी संप केा त होने क संभावना |

3.बीमा पा लसी का दान - बीमा पा लसी का दान वै


ध होता है
|

हर का दान - मे
4.मे हर का दान भी कया जा सकता है
|

मु
शा का दान (हनफ व ध का मु
शा का स ां
त) – मुलम व ध म मु
शा का ता पय कसी सं
यु सं
प के
अ वभा य
ह सेसे है|

मु
शा अथात सं
यु सं
प दो कार के
ह–

मु
शा अ वभा य

मु
शा वभाजन यो य

1. मु
शा अ वभा य (Musha Indivisible) – अ वभा य मुशा सं
प य का दान बना क जे
का प रदान कयेए भी
व धमा य माना जाता है
| कु
छ सं
प य क कृ त ऐसी होती हैक उनका भौ तक प सेवभा जत कया जाना सं
भव नही
माना जाता है
| अ वभा य मु
शा सं
प य के
दान पर मु
शा का स ां
त लागू
नह होता है
|

2. मु
शा वभाजन यो य (Musha Divisible) – वभाजन यो य मु
शा सं
प य का दान वभाजन तथा क जे
का प रदान
कये बगैर अ नय मत माना जाता है
|

हनफ व ध म मु
शा केस ां
त के
अंतगत कसी वभाजन यो य मु
शा सं
प के अ वभा जत ह से केदान क वै
धता केलए
दान कये
गयेव श ह से का वभाजन तय दान हीता के
प म इसके क जे
का वा त वक ह तां
तरण अ नवाय है
|

मु
शा केस ां
त क सीमाएंन नवत है

मु
शा का स ां
त के
वल हनफ व ध म मा य है
|

अ वभा य सं
प के
दान म यह लागू
नह होता है
|

इस स ां
त केव कया गया दान शू
य नह माना जाता, यह के
वल अ नय मत रहता ह |

हनफ व ध का मु
शा स ां
त के
वल दान पर लागू
होता है
|

मु
शा स ां
त का अपवाद –

कसी सह-उ रा धकारी को मु


शा का दान – य द दानकता व दान हीता सह-उ रा धकारी है
तो वभाजन यो य मु
शा सं

का हबा, वभाजन तथा वा त वक क जे के प रदान केबना भी पू
णतया व धमा य माना जाता है
|

जम दारी केकसी ह से
का दान |

कसी भू
-कं
पनी के
शेयर का दान |

वसा यक शहर म थत कसी उ मु सं


प के
अंश का दान |

सशत एवं
समा त दान –

मुलम व ध के
अंतगत दान य द कसी कार क शत स हत गया है
तो वह व धमा य होता है
पर तु
शत शू
य मानी जाती है
|

सं
प के
आय तथा लाभां
श को आर त करने
का शत – मुलम व ध के
अंतगत य द कसी हबा मे
दानकता दान क गयी
मुय सं
प अथात उसके
काय को भा वत करने
वाला शत लगाता है
तो शत शू
य मानी जाती है
|

पर तु
दानकता य द सं
प के लाभां
श को अपनेतथा कसी अ य केलाभाथ कुछ समय केलए सु र त कर लेनेके
शत केसाथ हबा करता है
तो चू
ँक यह शत तथा सं
प क ‘काय’ को भा वत नह करती इस लए शत तथा हबा दोन ही
वै
ध माने
जातेह|

समा त दान – समा त दान शू


य होता है
भ व य क कोई अ न त घटना जो प कारो केनयंण म न हो आक मक
कहलाती है
| आक मक पर आ त दान समा त दान कहलाता है |

समा त दान के
स दभ म उ ले खनीय बात यह हैक चू ँक यह ार भतः शू
य माना जाता है
अतः वह घटना जसपर वह
आ त हैघट जाए तो भी दान भावी नही माना जाता है
|

आजीवन हत का दान – कसी सं प के आजीवन हत को आजीवन स पदा कहते है सुी व ध केअंतगत आजीवन
स पदा का दान सं
भव नह है
, यो क मा जीवन काल केलए भी कया गया दान भी पू ण दान के प म भावी होता है
|
पर तुशया व ध के अनु
सार दान हता के
जीवन काल तक केलए कया गया हबा वै ध तथा भावी माना जाता है
व तु
तः
शया व ध के इस नयम का ोत नवा जश अली खांबनाम अली रजा खां
का वाद है|

हबा का तसं हरण – हबा पू


ण होनेसे
पहलेअथात क जे का प रदान होनेसेपहले, दानकता जब भी चाहे
मा एक
घोषणा ारा हबा का तसंहरण कर इसेनर त कर सकते है
| हबा पूण होनेसेपू
व य द दानकता क मृ युहो जाए तो
उसकेउ रा धकारी को हबा नर त करने
का अ धकार नह है|

क जेकेप रदान के
प ात हबा का तसं हरण – हबा पू
ण हो जाने
केप ात उसका तसंहरण नही हो सकता | पर तु
क जेकेह तां
तरण के प ात भी त य क भूल, वतंसहम त का अभाव अथवा कसी अ य उपयु कारण के आधार पर
अदालत क ड ारा हबा न भावी हो सकता है
|

शया व ध – शया व ध के
अंतगत क जेकेप रदान के
प ात भी थ त दानकता हबा का तसं
हरण मा घोषणा ारा
कर सकता है
बशत हबा अ तसंहरणीय न हो |

अ तसं हरणीय हबा – यह उस हबा को कहते


हैजसे
क जे
का प रदान पू
ण हो जाने
पर अदालत क ड ारा भी
नर त नह कया जा सकता |
यह न न है

प त-प नी के
बीच पर पर एक सरे
को कया गया दान |

दानकता व दान हीता के


बीच न ष स ब ध होने
पर |

दानकता व दान हीता म सेकसी एक क मृ


युहो जाने
पर |

सं
प के
न या समा त हो जाने
पर |

दानकता ारा सं
प को कसी अ य के
प म अं
तरण पर |

दान क वषय व तु
म ब त यादा प रवतन आने
पर |

दान का उ ेय धा मक तथा आ या मक होने


पर |

दान केहबा- बल-एवज होने


पर |

सदका – धा मक अथवा आ या मक भावना सेे रत होकर कया गया दान सदका कहलाता है | सदका का उ ेय ई र को
स करना है | जहाँ
तक अं
तरण क व धक कृ त का हैहबा तथा सदका म कोई अंतर नह है| अतः जो शत कसी
हबा क वैधता केलए अ नवाय है
वही सदका केलए भी आव यक मानी जाती है | हबा क तुलना म सदका न न प से
भ है –

सदका म प वीकृ
त का होना आव यक नही है
|

पू
ण हो जाने
पर यह कसी अपवाद केबना अ तसं
हरणीय है
|

अ रयत - एक न त अव ध तक कसी सं
प केउपभोग के
अ धकार का दान अ रयत कहलाता है| य द एक न त काल
तक केलए संप क आमदनी तथा उपज को बना कसी तफल के ह तां
त रत कया गया है
तो इस ह तांतरण को
अ रयत क संा द जाती है
|

हबा- बल-एवज एवंहबा-ब-शतु


ल एवज को समझाईये
| दोन म अं
तर भी बताईये?

हबा- बल-एवज – हबा- बल-एवज का अथ है


- तकर केबदले
म दान | ऐसा दान जसमे तकर पहले
ही ा त कर लया
गया होता है
| जब कोई अपनी सं
प का अंतरण कसी सरे
को कसी अ य सं प या व तु
केबदलेम करता है
तब
संवहार हबा- बल-एवज कहलाता है|

हबा बना तफल के संप का अं


तरण होता है
, पर तुहबा- बल-एवज म सं
प तफल के बदलेअंत रत होती है
पर तु
फर भी इसेहबा इस लए कहते
हैयो क ार भ म कया गया अं तरण तकर यु नह होता है
| हबा- बल-एवज म दो
अंतरण होतेह - पहला अं
तरणदाता ारा अदाता को और सरा अं
तरण अदाता ारा दाता को कया गया होता है
| दान और
प रदान दोन अलग-अलग संवहार होते ह जनको स म लत प सेहबा- बल-एवज कहते है
|

उदाहरण - A और B भाई ह, A अपने भाई B और अपनी वधवा C को छोड़कर मरता है


| A के
मरनेके बाद B एक द तावे

लखता हैजसके ारा वह दो भाग का अनु दान C को कर दे
ता है
और C इस अनुम के बदलेएक द तावेज ारा B केप
म प त क संपदा का प र याग कर दे
ती है
यह संवहार हबा- बल-एवज है |

मेहर ऋण केबदले म हबा – मेहर ऋण य द 100 पए से अ धक है, तब कोई मुलम प त 100 पए से अ धक क


अपनी अचल सं प को अपनी प नी के प म मौ खक अं तरण नह कर सकता, यह संवहार दान नह है यह केवल
र ज टड लखत ारा ही हो सकता है उपरो नणय इलाहाबाद उ च यायालय ने शे
ख गुलाम अ बा स बनाम र जया के
वाद
म दया हैतथा महावीर बनाम मुतफा केवाद म ीवी क सल नेइसेव य माना है|

हबा-ब-शतुल एवज – हबा-ब-शतुल एवज का अथ है - अनु


बं
ध के साथ तफल के बदलेकया गया हबा | जहाँ कोई दान
इस शत के साथ कया जाता हैक अदाता इस दान केबदले म दाता को कोई न त सं
प दान करेतो ऐसे संवहार को
हबा-ब-शतुल एवज कहा जाता है
| हबा-ब-शतु
ल एवज म तफल का भु गतान थ गत कर दया जाता है| इस लए क जे
का प रदान आव यक होता है| जब तफल का भु गतान कर दया जाता हैतब संवहार व य का प ले ले
ता है| यह
भारत म लागूनही है
|

हबा- बल-एवज एवंहबा-ब-शतु


ल एवज म अं
तर –

हबा- बल-एवज म तफल त का लक होता है


जब क हबा-ब-शतु
ल एवज म तफल सं
वदा या अनु
बं
ध के प म होता है
|

हबा- बल-एवज म क जे
का प रदान होना आव यक नही है
जब क हबा-ब-शतु
ल एवज म क जे
का प रदान होना आव यक
है|

हबा- बल-एवज कये जातेही अ तसं


हरणीय हो जाता है
जब क हबा-ब-शतु
ल एवज म तफल का भु
गतान हो जाने
पर
अ तसं हरणीय हो जाता है
|

हबा- बल-एवज व य क सं वदा के


सामान हैजब क हबा-ब-शतु
ल एवज ार भ म हबा के
सामान होता है
और तफल
ा त हो जाने
केबाद व य म बदल जाता है
|12. मुलम व ध के
अंतगत व फ क अवधारणा को समझाइए ?

व ध श दावली म व फ का ता पय - सं
प क एक ऐसी व था करने सेहैजसमे
सं
प अह तां तरणीय होकर सदै
व के
लए बंध जाती हो ता क इससेा त होने
वाला लाभ धा मक व पु
य के
काय केलए नरं
तर ा त होता रहे
|

व फ क गई सं
प को अह तां
तरणीय बनाने
केलए मुलम व धशा यो ने
ई र के
प म सम पत कये
जाने
का
स ांत उ क सत कया है
|

व फ क प रभाषा –

मु
सलमान व फ व धमा यकरण अ ध नयम, 1913 म व फ का अथ है – ‘’इ लाम धम म आ थावान ारा कया गया
कसी भी संप का एक ऐसा थायी समपण जो कसी ऐसे उ ेय क पू
त केलया कया गया हो जो मुलम व ध के
अं
तगत धा मक पु
यशील अथवा खैर ाती काय के प मा य हो | ”

शया व धशा यो के अनुसार - व फ एक ऐसा धा मक काय हैजसका भाव यह होता हैक कसी व तु
क काय तो बं

जाती है
पर तु
इसका लाभां
श वतंछोड़ दया जाता है |

व फ के
ल ण–

1- शा तता – व फ क सं
प सदै
व थाई प सेन त कर द जाती है
|

2- अह तां
तरणीय – व फ क गयी सं
प अह तां
तरणीय हो जाती है
|

3- अ तसं
हरणीय – व फ क सं
प को पु
नः तसं
हरण नह कया जा सकता है
|

व धमा य व फ के
आव यक शत –
सं
प का थायी समपण आ हो |

वा कफ स म हो |

व फ क सं
प व फ यो य हो |

व फ का उ ेय मुलम व ध के
अंतगत धा मक, पु
याथ व परोपकारी काय माना जाता हो |

व फ का सृ
जन करने
क व धक औपचा रकता पू
र ी कर ली गयी हो |

थायी समपण (Permanent Dedication) – व फ का समपण थाई होना चा हये


सशत तथा समा त ( कसी घटना पर
आधा रत) व फ शू
य होता है
|

वा कफ क स मता – वय क तथा व थ चत वाला ये क व फ करने क मता रखता है | वय कता का नधारण


इंडयन मेजां
रट अ ध नयम, 1875 केअं तगत होता है| गै
र मुलम भी व फ करने केलए स म है | गै
र मुलम केलए
समपण ऐसा होना च हयेक जो समपण कता के पंथ व इ लाम दोन म वैध माना जाता है| गै
र मुलम को गत व फ
तथा इमामबाड़ा का सृ
जन करनेका अ धकार नह है | अगर कोई मुलम कसी मं दर के प म व फ करता है तो यह शूय
होगा पर तु
वह हबा कर सकता है
| वही कोई ह कसी मं दर के
प म व फ करता है तो वह भी शू य होगा वह मंदर के
प म हबा कर सकता है |

व फ करतेसमय वा कफ को व फ क जानेवाली सं
प का वामी होना च हयेवा कफ य द पदानशीनंम हला है
तो
मु
तव ली व हत ाही को अलग सेस करना होगा क म हला ने
व फ करते समय अंतरण क कृ त को भली-भां

समझा था और व फ करने म उसका नणय वतंरहा | व फ केसृ
जन केलए वा कफ क सहम त वतंहोनी चा हए |

व फ क वषयव तु
(The Subject Matter of Wakf) – चल व अचल, मू
त या अमू
त ये क कार क व तुव धमा य
व फ क वषयव तु
बन सकती है| अदालत नेवशे ष प सेन न संप यो का व फ वैध माना है

राजक य बचत प

दरगाह का चढ़ावा

वा टका-धारक का सा प क अ धकार

राजक य तभू

कं
पनी के
शेयर

नकद पया

मु
शा का व फ (Wakf of Musha) – मु
शा सं
प का व फ व धमा य है| सुी व ध का मु
शा स ां
त व फ पर लागू
नह
होता इस लए कसी सं
प के एक ह सेको वभा जत कयेबगै
र ही व धमा य व फ केलए सम पत कया जा सकता है|
संप
ेम मु
शा का स ां
त व धमा य है
बशत यह –

म जद केनमाण केलए न हो

सावज नक क तान बनाने


केलए न हो

प े
पर द गयी सं
प न हो |

व फ का उ ेय (The Object of Wakf) – मुलम व ध म धा मक परोपकारी काय के प म मा य उ ेय क पू


त के
लए ही व धमा य व फ का सृ
जन हो सकता है|

व फ का व धमा य उ ेय –

म जद अथवा इमामबाड़ा का नमाण, उसक दे


ख-रे
ख या इसम धा मक ाथना का आयोजन |

मु
हरम के
दौरान ता जया रखने
तथा धा मक जु
लु
स म ऊं
ट अथवा ल ल का बं
ध करना |

कसी म जद म द प व लत करना |

म का म तीथया यो केलए नःशु


क आवास एवं
भोजन केलए सराय का नमाण |

सावज नक अथवा गत थान पर कु


रान का पाठ |

गरीबो को आ थक सहायता या उ ह हज पर जाने


केलए सु
वधा दान करना |

व फ का अवै
ध उ ेय –

शराब क कान, जु
आघर अथवा सु
कर-मां
सक कान का नमाण या इनक दे
ख-रे
ख करना |

कसी अ ात अजनबी को लाभा वत करने


क व था करना |

वक ल को लाभा वत करने
क व था करना |

कसी मं
दर अथवा चच का नमाण या दे
ख-रे
ख तथा कसी कार क मू
तपू
जा क व था करना |

य द कसी व फ के उ ेय का कुछ ह सा वै
ध तथा कु
छ ह सा अवै
ध हो तो वै
ध उ ेय केलए कया गया व फ व धमा य
होगा तथा अवै
ध उ ेय वाला भाग शू
य होगा |
व फ का उ ेय न त होना चा हयेले
कन यह स हो जानेपर क व फ वैध है
के
वल इस आधार पर ही क इसका उ ेय
अ न त हैइसेशूय तथा न भावी नह घो षत कया जा सकता है
उ ेय अ न त होने
पर भी व फ भावी रहता है
और
उसकेलाभां
श का उपयोग गरीबो के
लाभ केलए कया जा सकता है
|

व फ क औपचा रकता – व फ सृजन केलए कोई व श औपचा रकता क आव यकता नह होती है


व फ का सृ
जन
ल खत भी हो सकता है
और मौ खक भी |

पं
जीकरण व फ अ ध नयम, 1995 केअनुसार - व फ का पं
जीकरण अ नवाय कर दया गया है
| इस अ ध नयम क धारा
36 क उपधारा 1 के अनु
सार ये
क व फ चाहे वह इस अ ध नयम केपू
व या प ात्था पत आ हो उसका पंजीकरण
कराना आव यक है |

गरीबदास बनाम मुशंी अहमद के वाद म उ चतम यायालय ने


कहा क व फ क वै
धा नकता केलए यह आव यक नह हैक
इसके सृजन के समय मु तव ली क भी नयु कर द जाए, मु तव ली क नयु बाद म भी हो सकती है
तथा क जे
का
प रदान भी बाद म हो सकता है|

व फ के
सृजन केव धयां
– व फ का सृ
जन न न 3 कार से
हो सकता है

सं
प के
त काल समपण के ारा

वसीयत के
अंतगत सं
प के
समपण ारा

सं
प केमरणातीत उपयोग ारा

व फ केहत ाही – जन य के लाभाथ व फ कया जाता है वह व फ केहत ाही होते ह | व फ का हत ाही एक


भी हो सकता है
या कु
छ य का समूह भी हो सकता है
या सामा य जनता भी हो सकती है यहाँ
तक क गैर
मुलम भी कसी व फ का हत ाही होने
केलए स म है |

वा कफ ारा आय को अपनेलए सुर त रखना – हनफ व ध के


अंतगत समपणकता व फ क गई सं
प क आय को
अंशतः अथवा पू
णतः अपने
लाभ केलए सुर त कर सकता है
|

उदाहरण व प – एक हनफ मुलम अपने मकान का व फ इस शत के अनुसार कर सकता हैक जब तक वह जी वत रहे


मकान क आमदनी उसके भरण पोषण केन म उसेदान होती रहे तथा उसक मृ युकेप ात उसका उपयोग धमाथ तथा
परोपकारी काय केलए हो | ले
कन व फ क आमदनी अ ततः गरीबो केलाभ अथवा कसी अ य धा मक, पुयाथ अथवा
परोपकारी काय केलए सु
र त हो |
व फ का बं
धक – व फ क गई सं
प य का बं
धन, इसक देख-रे
ख, सु
र ा तथा व फ सं
प के
लाभां
श को इसके
उ ेय क पू
त केलए वत रत करने
वाला तव ली” कहलाता है
“मु |

मु
तव ली क नयु – मु
तव ली क नयु वरीयता म म न न ल खत य म सेकसी एक के ारा हो सकता है

वा कफ अथवा व फ को सृ
जत करने
वाले ारा

वा कफ केन पादक ारा

मृ
युशै
या सेवयं
मु
तव ली ारा

यायालय के ारा

धम सभा ारा

वा कफ ारा मुतव ली क नयु – मुतव ली को नयु करनेका पू


ण अ धकार मुयतः वा कफ को ही ा त है
| अपनी
इ छा अनु
सार वह कसी भी स म को व फ संप का मु
तव ली बना सकता है
य द चाहे
तो वह वयंअपनी नयु
भी व फ के थम मुतव ली के प म कर सकता है
|

वा कफ केन पादक ारा – वा कफ अगर मुतव ली क नयु करने के पूव ही दवं


गत हो गया है
और व फनामा भी
नयु के बारे
म मौन है
तो वा कफ केन पादक को वा कफ क भां
त ही मु
तव ली नयु करने का अ धकार है
|

मु
तव ली ारा नयु – य द वतमान मु
तव ली मृ युशै
या पर हो और अपने जीवन क आशा छोड़ चुका हो तथा उपयु
व धय सेमुतव ली क नयु तुरत
ंसं भव न हो तो वह मृयुशै
या सेही अपनेउ रा धकारी क नयु कर सकता है |यद
कसी थानीय था के कारण मु
तव ली का पद पै
तृक हो तो वतमान मरणास मु तव ली अपना उ रा धकारी नयु नही
कर सकता है|

यायालय ारा मु
तव ली क नयु – यायालय को मु
तव ली नयु करने
केलए न न बातो का यान रखना चा हए –

जहा तक सं
भव हो मु
तव ली क नयु वा कफ केनदश के
अनु
कू
ल होना चा हए |

मु
तव ली क नयु म हत ाही का हत सव परी होना चा हए |

धम सभा ारा मु
तव ली क नयु – कभी-कभी मु
तव ली का चु
नाव धम-सभा ारा भी होता है
| धम-सभा से
ता पय
कसी समु
दाय वशेष के गणमा य य केऐसेजनसमूह सेहैजसमे उस समु
दाय केधा मक एवं लोक हतकारी वषय
पर चचा क जाती हो |

मु
तव ली कौन हो सकता है
?

कोई जो वय क व व थ च हो मुतव ली होने


केलए स म है | य द मु
तव ली पद पैतृ
क हो तथा अं
तम मु
तव ली
क मृयु
हो चु
क को और वंश का अगला अवय क हो तो वह मु
तव ली हो सकता है |

म हला तथा गै
र मुलम मु
तव ली – सामा यतः म हला व गै
र मुलम भी मु
तव ली हो सकता हैय द व फ के
अंतगत
मु
तव ली ारा इन धा मक कृय केकये जाने का उ लेख कया गया है
तो म हला व कोई गै
र मुलम मु
तव ली नह हो
सकता –

य द मु
तव ली को धा मक मु
ख के प म काय करना हो |

मु
तव ली को इमाम के प म काय करना हो |

मु
तव ली को य द मु
ला के प म काय करना हो |

मु
तव ली को य द धम उपदे
शक के प म काय करना हो |

मु
तव ली का पा र मक – अपनेसे
वा के बदले म मु
तव ली कु
छ न कु
छ पा र मक ा त करनेका हकदार रहता है
वा कफ इसक धनरा श तय कर सकता है
य द यायालय इसक पा र मक तय करता है
तो वह व फ क संप के लाभां

के 10%सेअ धक न होगी |

मु
तव ली केकाय व श याँ– मु
तव ली व फ सं
प का ब धक होता है उसका मुय कत व फ सं प को ई र क
अमानत के प म सुर त रखना तथा इसके
लाभां
श को नधा रत उ ेय क पूत केलए उपयोग म लाना है
| मु
तव ली का
पद अं
तरण यो य नही है
|

सामा यतः मु
तव ली केन न काय एवं
श या ह –

मु
तव ली ऐसेसभी काय कर सकता हैजो व फ क सं
प क र ा शासन केलए यु यु हो मु तव ली क श या
यासी केसामान होती है
पर तु
वह व फ का मा बं
धक होता है
| वह आव यकता पड़ने
पर अ भकता भी रख सकता है
|

वह व फ क सं प को अंत रत या भा रत तभी कर सकता है


जब व फ इस स दभ म मौन हो तथा यह श उसेा त हो
गयी हो या यायालय क अनु
म त मल गयी हो या ता का लक आव यकता हो |
यायालय क अनु
म त से
मु
तव ली पया उधार ले
सकता है
तथा व फ क सं
प को बं
धक, व य आ द कर सकता है
|

मु
तव ली कृ
ष योजन केलए 3 वष या अ य योजन केलए 1 वष केलए व फ क जमीन का प ा कर सकता है
|

मु
तव ली मृ
युशै
या पर रहतेए अपना उ रा धकारी नयु कर सकता है
|

मु
तव ली संथापक ारा नयत पा र मक पाने
का हकदार है पर तु
य द यह ब त कम है
तो यायालय इसको बढ़ा सकता है
पर तु
यह रकम व फ क आय के 10% से
अ धक नही होगी |

व फ क सं
प से
मु
तव ली को कोई गत हत नही होता है
|

मु
तव ली का हटाया जाना – इस स दभ म व फ अ ध नयम, 1995 क धारा 64 केअं
तगत ावधान दया गया है|
अ ध नयम क धारा 64 क उपधारा 1 के अनु
सार व फ वलेख म कसी बात केहोतेए भी व फ बोड मु
तव ली को उसके
पद सेहटा सकता है
, य द ऐसा मु
तव ली –

अ ध नयम क धारा 61 के
अंतगत दं
डनीय अपराध म एक से
अ धक बार द डत हो चु
का हो |

आपरा धक यास भं
ग का दोषी हो |

अ व थ म त क का हो |

अनु
मो चत दवा लया है
|

शराब पीने
का आ द हो |

व फ क ओर से
या उसकेव व धक भु
गतान यो य व धक सलाहकार के प म नयो जत कया गया हो |

यथाश य सा म य का स ांत – यथाश य सा म य का अथ होता है


- “ जतना नकट संभव हो सके“ | यह स ां
त मुय
प सेयास केमामलो म लागूहोता है
पर तु
व फ म जब व फकता ारा नद शत उ ेय केलए व फ क सं प का
योग न कया जा सकता हो तब यायालय एसी संप का योग उन उ ेय केलए कर सकता है जो उ ेय व फकता
ारा नद शत उ ेय सेअ यंत नकटता रखते हो या गरीबो के
क याणाथ उपयोग कर सकता है|

कुलसुम बीबी बनाम गु


लाम सैन केवाद म यायालय नेनणय दया क जहा व फकता ारा व फ के
सृजन के
उ ेय
असफल हो जाते ह तब व फ को असफल नह होनेदया जाएगा और व फ क सं प का योग गरीबो के
क याण केलए
या व फकता ारा बताये गयेउ ेय के अ यं
त नकट के उ ेय केलए कया जाएगा |

जहांएक गाँ
व के
लोगो को ाथ मक प से सा र बनाने
केलए व फ का सृ
जन कया गया हो तथा गाँ
व के
सभी लोग
ाथ मक तर पर सा र हो चु
केहो, वहा पर व फ संप का योग उस गाँ
व केलोगो क उ च श ा पर खच कया जा
सकता है|

यथाश य सा म य लागू
होने
केलए दो त व आव यक ह –
मू
ल व फ व धमा य होना चा हए य द मू
ल व फ शू
य है
तब यह स ां
त लागू
नह होगा |

व फ म खै
र ात का आशय प होना चा हए |

व फ अलल-औलाद अथवा पा रवा रक या नजी व फ –

व फ अलल-औलाद एक कार सेनजी व फ होता वही जो व फकता अपने अज मे वंशजो केक याण के उ ेय से
था पत करता है
| मु
ह मद साहब नेअपने प रवार या पड़ो सय केलए सं
प समपण करने को खै
र ात माना है
इस कारण
मुलम व ध म ाचीन समय से ही प रवार केलए कया गया व फ व धमा य रहा है
| व फ अलल-औलाद केलए
आव यक शत यह हैक सं प का समपण थाई तौर पर होना चा हए |

या यक नणय के
मा यम से
वतमान समय म व फ अलल-औलाद केलए न न त व का होना आव यक है

य द व फ का उ ेय मा अपने प रवार को लाभ प चाना है तब ऐसा व फ शू


य होगा अतः व फ अलल-औलाद म
पा रवा रक उ ेय के
साथ-साथ खैर ाती उ ेय भी होना आव यक है|

पा रवा रक व खै
र ाती काय केलए सं
प का वैछक समपण होना चा हए |

खै
र ात के
स ब ध म आशय प होना चा हए न क ामक |

एक वाद म ीवी क सल नेयह प कया हैक जब व फ का मुय उ ेय खानदान क तर क हो और खै


र ात केलए
अ पधन केवल दखावा हो तो ऐसा व फ अमा य होगा |

स जादानशील – स जादानशील का अथ होता है - ाथना के आसन पर बै ठने वाला | वह जो नमाज पढ़ते समय
नमा जय म सबसे आगे बै
ठता हो स जादानशील होता है | यह धा मक स ां तो का उपदे शक होता है| यह जीवन केनयमो
को बतानेवाला, कसी संथा का व थापक और खै र ात का शासक होता है | इसक थ त ह म दर के महंथ क भां

होती है
| कोई ी या अवय क स जादानशील नही हो सकता है | वह ायः अपनी सं था का मु
तव ली भी होता है
|

स जादानशील केन न ल खत काय ह –

धा मक कत ो को पू
र ा करना |

व फ क सं
प को धा मक योजन म लगाना |

व फ सं
प क आमदनी का बं
ध करना |
स जादानशील का पद आ या मक पद होता है
अतः इसे
धा मक श क भी कहा जाता है
|

व फ पर शास नक व कानू
नी नयंण –

व फ पर न न ल खत कार सेशास नक व कानू


नी नय ण लगाया गया है

(1)- मु
तव ली का खच का यौरा दे
ना – य द व फ केसृ
जन के समय व फकता ने मु
तव ली को प प सेयह अ धकार
व छुट देदया हैक उसे
व फ शासन पर होने वाले
खच का हसाब नह देना होगा तब व फ का कोई लाभाथ उससे व फ
संप का हसाब नह ले सकता | पर तुय द वा कफ ने
ऐसी कोई छु
ट दान नह क है तब मु
तव ली हसाब देने
केदा य व
सेमु नह होगा और सभी लाभाथ मलकर व फ केहसाब केलए यायालय म वाद ला सकते हैऔर यायालय मुतव ली
सेव फ शासन का हसाब मां ग सकती है |

व फ अ ध नयम म भी मु
तव ली ारा जला यायालय के
सम व फ का हसाब- कताब समय-समय पर तु
त करने
का
ावधान कया गया है
|

(2)- कानू
नी नयंण – व फ केअ छेशासन केलए क व रा य सरकार ने समय-समय पर कुछ अ ध नयम भी पा रत
कये है
| इसम व फ अ ध नयम 1913, 1923, 1954 और 1984 मु ख ह | अब मु
तव ली का कत हैक वह समय-
समय पर जला यायालय म व फ क सं प का हसाब व ले खा-जोखा तु त करेगा |

वतमान समय म उपरो सभी अ ध नयम को नर सत कर भारत सरकार ने व फ अ ध नयम, 1995 पा रत कर दया है
इस
अ ध नयम ारा सभी देशो म व फ बोड क थापना क गई है इसम एक चे यरमै
न व अ य सद य ह गे
| इस बोड को
व धक व ा त है
| इस अ ध नयम ारा मु
तव ली क श पर ब त सारे तब ध लगा दए गये ह और अब
मुतव ली को नयु करने व हटाने
का अ धकार बोड को ा त है| मु
तव ली अब व फ के खातेको आ डट बोड से करवाने
केलए बा य है|

न न ल खत व फ क व धमा यता बताईये


1- म जद तथा क तान केलए व फ – म जद तथा क तान केलए व फ मुलम व ध म धा मक योजन है


अतः
व फ वै
ध है|

2- गरजाघर बनवाने
केलए व फ – गरजाघर मुलमो का धा मक थान नह है
अतः गरजाघर बनवाने
केलए कये
गये
व फ का उ ेय अमा य है
, व फ नही कया जा सकता है
|
3- मुलम तथा ह व धशा पढ़ानेकेलए कालेज का व फ – मुलम व धशा केलए मा य है
पर तुह
व धशा केलए कया गया व फ का उ ेय व धमा य नह है
|

4- ाईवेट मकबरे
केरख-रखाव तथा चराग जलाने
केलए कया गया व फ का उ ेय खै
र ाती व धा मक है
अतः व धमा य
होगा |

5- एक सं
त के
मकबरे
केलए कया गया व फ चू

क धा मक थल केलए है
अतः व फ मा य होगा |

6- बं
धक के अधीन सं
प का व फ – ब धककता ारा कया जा सकता हैयो क वह उसका वामी होता है
| बं
धकदार
ारा कया गया व फ अमा य हैयो क वा म व उसमे
न हत नही है

|13. मुलम व ध म हक़ शु
फा (अ - या धकार) को समझाईये
?

शु
फा एक अरबी श द है
, जसका अथ होता है
– जोड़ना | कु
छ प र थ तय म जब दो य केबीच अचल सं प य का
व य, हो तब तीसरा बीच म पड़कर खुद खरीददार होने
का दावा कर सकता है
ऐसे
अ धकार को शु
फा या अ -
या धकार कहते ह|

मू
ल के अनुसार – शु
फा का अ धकार एक ऐसा अ धकार हैजसके
अनु
सार अचल सं
प केवामी को यह अ धकार ा त
होता हैक वह अ य अचल सं प को खरीद लेजसका व य कसी अ य को कया जा चु
का है
|

शु
फा के
अ धकार का आव यक त व –

शफ को कसी अचल सं
प का वामी होना चा हए |

शफ क अचल सं
प के
अतर कसी अ य सं
प का व य होना चा हए |

व य क सं
प व शफ क अचल सं
प म कु
छ स ब ध होना चा हए |

शफ सं
प उ ही शत के
अधीन व उसी तफल पर खरीदने
का हकदार हैजन शत के
अधीन े
ता ने
उसे
ख़रीदा है
|
शु
फा एक वशे
षा धकार है
जो सं
प के
शां
तपू
ण उपभोग के
स ब ध म उ प होता है
|

व े
ता व शफ को मुलम होना अ नवाय है
पर तुे
ता कोई भी हो सकता है
|

उदाहरण – A और B का मकान अगल-बगल म है| A अपना मकान C को बे


चता है
B को कु
छ प र थ तय म यह अ धकार
है
क वह A से वह मकान वयंखरीदने
का दावा कर सकता है|

शु
फा केअ धकार क कृ त – शु फा का अ धकार सु
खा धकार के
सामान ही एक अ धकार है
जो मुलम व ध ारा
शा सत भू
म सेजुड़ा रहता है| भूम या अ य अचल सं
प से लगी ई अचल सं प केव य के समय ही शुफा का
अ धकार ार भ हो जाता है
| इस अ धकार म शफ के वल े ता केथान पर त था पत होकर व े ता को बा य कर सकता
हैक वह अपनी सं
प को उसके हाथ बेचे
|

गो व द दयाल बनाम इनायतु


ला के
वाद म ज टस महमूद ने
कहा क कसी अचल संप म शां तपू
ण उपभोग केलए
दान कया गया उस सं प केवामी का ऐसा अ धकार जसके अंतगत वह कसी सरे को बे
च गयी अचल सं

उ ही शत पर खरीद सकता हैजन शत पर े ता उसे
खरीदना चाहता है
और शफ वयंे ता केथान पर त था पत हो
सकता है |

व म सह बनाम खजान सह के वाद म ज टस सु


बा राव ने
कहा क, ‘’शु
फा का अ धकार त थापन का अ धकार है
इसे
पुनः य का अ धकार नही कहा जा सकता है
|’’

शु
फा क मां
ग कौन कर सकता है
– न न ल खत मुलम शु
फा क मां
ग कर सकते
ह–

1- शफ -ए-शरीक – सह वा म व क सं
प का कोई भागीदार शफ -ए-शरीक कहलाता है
| वह अ य सह वामी ारा बे
चे
जानेवाली अपनेभाग केलए शुफा क मां
ग कर सकता है
|

2-शफ -ए-खलीत – ऐसा जसको सरेक जमीन से


सु
खा धकार ा त हो तो वह उस सरेारा उस जमीन को बे
चे
जाने
पर पहलेउसेखरीदनेका हकदार है
|

3-शफ -ए-जार – शफ -ए-जार का अथ है


बगल वाली सं
प का वामी अपने
बगल क जमीन को पहले
खरीदने
क मां

व ेता सेकर सकता है|

शु
फा का अ धकार कब ार भ होता है
तथा कब तक बना रहता है
?
शु
फा केअ धकार का उदय व य के समय तथा व य पू
ण होने
पर उ प होता है
तथा यह तब तक बना रहता है
जब तक
यायालय ड नही पा रत कर दे
ता |

शु
फा के
अ धकार क औपचा रकताएँ – शु
फा केअ धकार क मां
ग म औपचा रकताओ को पू
र ा कया जाना नतां

आव यक ह | शु
फा क न न औपचा रकतायेह-

1. पहली मां
ग (तलब-ए-मु
ब सबत) – पहली मां
ग से
ता पय है
शफ व े ता से
सं
प केव य के थम अवसर पर और
तु
रतंअपनेारा उसक सं प खरीदने क इ छा करेया व य पू
ण होने
क जानकारी मलते
ही व े
ता सेवयं
या
एजट के मा यम सेतु
रत
ंअपनी इ छा उसेबता दे|

2. सरी मांग (तलब-ए-इशाद) – शफ को बना दे


र ी कयेसरी मांग तु
रत
ं तुत करनी चा हए | सरी मां
ग म पहली मां

का ज करना चा हए व मां ग कये जाते
समय दो सा ी होनेचा हए तथा व े
ता या े
ता क उप थ त म मां ग कया जाना
चा हए | यह सं
प को छु तेए क जा सकती है | सरी मां
ग म य द शफ वयं उप थत नह हो सकता तब सरी मां ग
अ भकता ारा भी क जा सकती है |

3. तीसरी मां
ग (तलब-ए-तमलीक) – तीसरी मां
ग कोई मां
ग नही होती ब क कानू
नी कायवाही होती है
इसक आव यकता
तब पड़ती है जब शफ क पछली दो मां गो को व ेता ारा वीकाय नही कया जाता है |

शु
फा का अ धकार कब न हो जाता है
? शु
फा का अ धकार न न दशा म न हो जाता है

शफ े
ता के
प म अपने
अ धकार का अ ध याग कर दे
ता है
|

शफ क व य पर मौन सहम त हो, जै


से
– व यमस य भाग ले
ता है
, व य के
पूव सहम त दे
दे
ता है
, े
ता से
सं

का प ा ले
ले
ता है
या े
ता से
समझौता कर ले
ता है
|

शफ अपने
साथ कसी ऐसे को सह-वाद बनाए जसको शु
फा का अ धकार न हो |

औपचा रकताओ का पालन न करने


पर |

शफ अपनी ही सं
प का अं
तरण कर दे
ता है
|

शु
फा का अ धकार कब न नह होता ?
वाद के
दौरान शफ क मृ
युहो जाने
पर |

व य के
पूव शफ ारा सं
प खरीदने
सेइनकार करने
पर |

व य क सूचना मलनेपर भी शफ खरीदने


का ताव न करे
तो भी शु
फा समा त नह होता यो क शु
फा का अ धकार
व य पू
ण होने
पर उ प होता है
|

अ - या धकार (शु
फा) क सं
वै
धा नक वै
धता –

शु
फा के
संवै
धा नक वै
धता के
स ब ध म हम दो थ तय पर वचार करना पड़े
गा –

44 व सं
शोधन से
पू
वक थत

44 व सं
शोधन के
बाद क थत

(1) 44 व सं
शोधन से पू
व क थ त – सं वधान के 44 व सं
शोधन के पू
व संवधान केअनु छेद 19 (1) (f) म सं
प का
अ धकार मूल अ धकार माना जाता था तथा अनुछेद 19 (5) म इसपर लोक हत और एस0सी0 और एस0ट 0 केहत म
नब धन लगाए जाने का ावधान था | अतः अ - या धकार क वै धता इस बात पर नभर थी क वह अनु छेद 19(5) के
दायरेम आता हैया नह आता है| शु
फा का अ धकार पडोसी क जमीन को खरीदने का एक बहाना बन गया था व इस
अ धकार के तहत पडोसी को भूम कम क मत पर बे चनेको ववश होना पड़ता था इसी कारण उ चतम यायालय ने शफ -ए-
जार केशुफा केअ धकार को असंवैधा नक ठहराया |

भाऊराम बनाम बै
जनाथ के वाद म शफ -ए-खलीत के
शुफा का अ धकार उ चतम यायालय ने
वै
ध ठहराया यो क सह वामी
ारा ही सं
प का ख़रीदा जाना सं
प केलए हतकारी था |

(2) 44 व सं
शोधन केबाद क थ त – 44 व सं वधान संशोधन ारा सं
प के अ धकार को मू
ल अ धकार क ण ेी सेहटा
दया गया और शु
फा का अ धकार पु
नज वत हो गया तथा शु
फा क वै
धता अब अनुछे
द 14 व 15 केआधार पर जाँ
ची जाती
है|

आ म काश बनाम ह रयाणा रा य के


वाद म उ चतम यायालय नेनणय दया क शु
फा के
अ धकार केलए एक को
एक वग माना जा सकता है
|

14. मुलम व ध म उ रा धकार स बं


धत व ध क ा या करे
?
सामा यतः उ रा धकार दो कार केहोतेह, थम तो वसीयती तथा तीय नवसीयती | य द कोइ स प मृ तक क
इ छानुसार उसकेइ छत य म वभा जत होता हो तो उन उ रा धका रय को वसीयती उ रा धकार कहगे| वही सरी
ओर जहा मृ तक क संपदा उसकेव धक उ रा धका रय म पू व नधा रत ह स म वभा जत होकर जब उनमे न हत हो
जाती हैतो वेनवसीयती उ रा धकारी कहलाते
है|

मृ
तक क दाययो य संप यो का वभाजन मुलम व ध केनयमो के अं
तगत आता है | दाययो य सं
प य से अथ उन
सं
प य से हैजो मृ
तक क स पदा म सेउसके अंयेी संकार, ऋण के
भुगतान तथा वसीयतदारो (य द कोई हो) का
भु
गतान कर दे
नेके बाद जो सं
प या बचती है
उनसेलगाया जाता है
|

यह उ ले
खनीय बात हैक मुलम व ध म उ रा धका रय का नयम अपने आप म कु
छ वशेषता लए ए ह, य क इसके
अं
तगत न केवल उ रा धका रय तथा उनकेव न द ह स क ा या है वरन व भ प र थ तय म मृ
तक केअय
स बंधयो के
पर पर वरोधी दावे
केनपटारेक भी व था क गई हैजो अपनेआप म अनूठ व था है |

मैनाटन केश द म, “ व तु
तः उ रा धकार केनयमो से
अ धक यायो चत उ रा धकार क कोई अ य व था सोच पाना
क ठन है|

इन सब के
होतेए भी यह भी स य हैक मुलम व ध के
उ रा धकार केनयम अ य व ध णा लय क तु
लना म अपने
आप म ज टलता लए ए है |

मुलम व ध म उ रा धकार केनयम इ लाम पू


व क व ध व था सेकाफ हद तक भा वत है | इ लाम पू
व क व धय
क कु
छ व था म इ लाम ारा काफ हद तक प रव तत कर कया गया है
जो न न ल खत ह –

पू
व क व था म म हलाये तथा मात◌ृ
-बं
धुको स म उ रा धकारी नही माना जाता था जसे
क इ लाम ारा सं
शो धत
कया गया तथा इ ह भी स म उ रा धकारी माना गया |

पू
व क व था म म हला को स म उ रा धकारी न मानाने केकारण प त तथा प नी पर पर उ रा धकारी नही माने
जाते
थेजसे
इ लाम ारा प रव तत कया गया तथा ये
दोनो पर पर एक सरेके उ रा धकारी मानेजानेलगे |

माता- पता तथा अ य पू


वजो केसाथ वं
शजो केअ धकार उ रा धकार म समान कर दए गये
ह जब क इ लाम म पहले
यह
व था नही थी और पूवजो क तुलना म वं
शज को ाथ मकता मलता था |

म हला तथा पुष को उ रा धकार म समान अ धकार ा त हो गय जब क इ लाम पू


व क व था म म हला को यह
अ धकार ा त नही था | इ लाम क व था के अनुसार म हला का ह सा सामा यतः पुष उ रा धका रय केह स म
आधा रहता है|
उ रा धकार के
सामा य स ां
त (General Principles of Inheritance) –

1-दाय यो य स प क कृ त (Nature of Heritable Property) – दाययो य सं


प ही मृतक केउ रा धका रय म
उ रा धकार नयमो के अंतगत वभा जत क जाती हैशया व ध के अं तगत संतान वहीन वधवा मृ
तक प त क केवल चल
स प य म से ही अपना नधा रत ह सा 1/4 भाग पानेक अ धका रणी है |

सं
यु अथवा पै तृक सं
प (Joint or Ancestral Property) – मुलम व ध म हद व ध केअनुप संयु संप
नही पायी जाती अतः कसी मुलम क मृ यु
केबाद उसकेवा म व क सभी स प या तु रत
ंउसकेव धक उ रा धका रय
म न हत हो जाती हैतथा मृ
तक के
देहां
त केतु
रत
ंबाद, उसका ये क उ रा धकारी अपने
अपनेह से
का पू
ण वामी बन
जाता है|

मुलम व ध के
अंतगत त न ध व का स ां
त मा य नही है
|

त एवं त शाखा का वभाजन – सुी व ध केअंतगत एक ही वग केउ रा धका रय के बीच म स पदा का


वभाजन त- केनयम केअनुसार कया जाता है
| अतएव सुी व ध म मृतक का उ रा धकारी वमं अपना
त न ध व करता है
न क अपनी शाखा का जसका वह सद य है| वही शया व ध म स पदा का वभाजन त-शाखा के
नयम ारा कया जाता है
|

म हला क थ त – म हला तथा पुष उ रा धका रय केअ धकार समान ह पर तुसामा यतः प रणाम म म हला
उ रा धकारी का ह सा उसके
समक पुष उ रा धका रय केह से का आधा होता है
|

गभ थ शशु
भी उ रा धकारी हो सकता है
बशत वह जी वत उ प हो |

सौते
ली सं
ताने
अपने
सौते
ले
माता पता क स पदा क उ रा धकारी नही है
|

मुलम व ध म जेा धकार का नयम नही लागूनही कया जाता हैयेहो या क न क, येक पुका ह सा बराबर रहता
है
| शया व ध म मृ
तक क तलवार, अं
गठ
ू, कुरान तथा व ो का एक मा उ रा धकारी उसका येपुहोता है|

पे
शल मैरज
ेए ट, 1954 के अंतगत संप ववाह – य द कोई मुलम ने अपना ववाह पे
शल मै
रज
ेए ट,1954 के अं
तगत
कया हो तो उ रा धकार के
मामलो म उसे मुलम नही माना जाता और उसक संप य का उ रा धकार इं
डयन स से
शन
ए ट, 1925 केउपबंधो केअधीन होता है
|

मुलम व ध म उ रा धकार सेकसे


अपव जत कया गया है
-

नन य को उ रा धकार से
अपव जत कया गया है

1- मानव वध (Homicide) – हनफ व ध के अंतगत कोई भी जसके ारा मृतक क ह या का रत ई हो, मृ


तक क
स पदा का उ रा धकारी नही बन सकता है
पर तुशया व ध म उ रा धकारी ारा मृ
तक क ह या साशय कये जाने पर ही
उसे उ रा धकार से
वंचत कया जाता है अ यथा नही |
2- अधमजता (Illegitimacy) – सुी व ध के
अंतगत अवै
ध संतान को पता क स पदा का उ रा धकारी नही माना जाता
पर तु
माता क स पदा वह उ रा धकार म ा त कर सकता है
| जब क शया व ध म अधमज सं तान को पता अथवा माता,
दोन म सेकसी क भी स पदा को उ रा धकार म ा त करनेका अ धकार नही है
|

3- धा मक- भ ता (Difference of Religion) – य द कोई उ रा धकारी धमप रवतन करके


गैर-मुलम हो गया हो तो भी
वह मुलम मृ तक का उ रा धकारी पूववत बना रहता हैपर तुय द कोई मुलम धम प रवतन ारा ह हो जाए तो उसके
दे
हां
त केप ात उसक स पदा का उ रा धकार ह व ध सेव नय मत होगा न क मुलम व ध ारा |

4- थानीय था अथवा अ ध नयम के


अं तगत पुय का अपवजन – य द कसी थानीय था के
अनु
सार पुय को
उ रा धकार से
अपव जत कया गया हो तो वो ह सा नही ले
सकती |

उदाहरण केलए - क मीर के


गुजरो तथा ब करवालो क थानीय था के अनु
सार पतामह क स पदा म उसकेकसी भी
पुष वं
शजो क अनु प थ त म पुयाँउ रा धकार सेवं
चत हो जाती है
|

सुी व ध म उ रा धकार केनयम – सुी व ध म उ रा धकार से


स ब धी दो े
णयां
बनायी गयी ह –

मुय ण
ेी

तीय ण
ेी

मुय ण
ेी – यह तीन वग म वभ हैजनका ववरण न न है

1- थम वग – सुी व ध म इस वग को उ रा धकार म वरीयता ा त हैइस वग म मृतक केह से दार आते है


| इस वग का
मह व सायद इस कारण भी अ धक हैक इस वग केउ रा धका रय तथा इनकेन द ह स को कु रान म प प से
नधा रत कर दया गया है
| इस कारण इस वग के
उ रा धका रय को कु रा नक उ रा धकारी भी कहा जाता है
| इस वग म
न न उ रा धकारी स म लत ह –

प त – 1/4 भाग

प नी – 1/8 भाग, एक से
अ धक होने
पर भी ये
क को 1/8

पता – 1/6 भाग का ह से


दार होगा
वा त वक पतामह – 1/6 भाग

माता – 1/6 भाग

वा त वक पतामही – 1/6

पुी – एक है
तो 1/2 भाग य द एक से
अ धक है
तो 2/3 भाग

पुक पुी (चाहेकतनी भी नचली पीढ़ क हो) – एक है


तो 1/2 भाग एक से
अ धक है
तो 2/3 भाग

सगी बहन – एक है
तो 1/2 भाग पर तु
य द एक से
अ धक है
तो ये
क को 2/3 भाग

समर बहन – एक है
तो 1/2 भाग तथा एक से
अ धक होने
पर 2/3 भाग

सहोदर बहन अथवा सहोदर भाई – एक ह तो 1/6 भाग और एक से


अ धक होने
पर 1/3 भाग

2- तीय वग – य द थम वग के उ रा धका रय को ह सा देने


के बाद भी कु
छ संप बच जाती है तो उसेइस वग के
सद य म वभ कर दया जाता है | इस कारण इस वग केसद य को अव श ाही सद य कहते ह | उ लेखनीय हैक
कभी-कभी थम वग के उ रा धकारी भी अव श ाही बन जातेह| उदाहरण व प - बहन य द भाई के साथ हो या पुी य द
पुके साथ हो तो कु
रा नक उ रा धकारी न रह कर ये
अव श ाही बन जाते ह प रणामतः इ ह कु
रा नक ह सा न मलकर
अव श सं पदा का अंश ा त होता है| अव श ाही मृ
तक के वं
शजो, पूवजो तथा सा पा क म से हो सकते ह|

1- वं
शज (Descendants) –

(A) पु- पुी केअभाव म पुस पू


ण अव श सं
पदा ा त करने
का अ धकारी है
पर तु
य द पुपुी के
साथ हो तो उसे
पुी का दोगु
ना ह सा मलता है
|

(B) पुका पु कतनी भी नचली पीढ़ का – नकटतम पुका पु र थ पुके


पुको अपव जत कर दे
ता है
| पुके
पुय द दो या दो से
अ धक हो तो सभी को बराबर अं
श मले
गा |

2- पू
वज (Ascendants) –

(A) पता – अव श ाही के प म मृ


तक का पता स पू
ण अव श स पदा पाने
का अ धकारी है
|

(B) वा त वक पतामह – वा त वक- पतामह भी बची यी स पू


ण अव श स पदा ा त करनेका अ धकारी है
पर तु
नकटतम वा त वक पतामह कसी र थ वा त वक पतामह को अपव जत करके उ रा धकार सेउसेवं
चत कर देता है
|
(C) सा पा क : पता के
वंशज – इस वग के
उ रा धकारी म न न शा मल ह –

i. सगा भाई – सगी बहन क उप थ त म सगा भाई स पू


ण अव श स पदा ा त करता है पर तुय द सगेभाई के
साथ सगी
बहन भी हो तो अव श स पदा म सगेभाई केसाथ सगी बहन का भी ह सा होता है
पर तु
भाई का ह सा बहन केह सेसे
गु
ना होता है
|

ii. सगी बहन – सगेभाई तथा वं


शजो क को ट के अव श ा हयो क अनु
प थ त म सगी बहन अव श ाही बन जाती है
बशत उसके साथ मृ
तक क पुी या पुयाँया पुक पुी चाहेकतनी भी नचली पीढ़ क हो अथवा एक पुी और एक पु
कतनी भी नचली पीढ़ क हो म से कोई एक हो |

iii.समर भाई तथा समर बहन |

(D) सा पा क : वा त वक पतामह के
वंशज –

i. सगा पै
तृ
क चाचा |

ii. समर पै
तृ
क चाचा |

iii. सगे
पै
तृ
क चाचा का पु|

iv. समर पै
तृ
क चाचा का पु|

v. सगे
पै
तृ
क चाचा के
पुका पु|

vi. समर पै
तृ
क चाचा के
पुका पु|
3- तृ
तीय वग – इस वग केउ रा धकारी म मृ
तक के र -स ब धी ह जो उपयु दोन वग म स म लत नही हो पाये
हइह
सहोदर-उ रा धकारी केनाम से
जाना जाता है| इनमेन न स म लत ह –

मृ
तक के वं
शज जो न तो ह से
दार हो और न ही अव श ाही | इसम पुक सं
ताने
तथा इनके
वंशज, पुक पुी क सं
ताने
तथा इनकेवं
शज स म लत ह |

मृ
तक केमाता- पता के
पूवज जो न तो ह से
दार हो और न ही अव श ाही इसम म या पतामह तथा म या पतामही
स म लत ह |

मृ
तक केमाता- पता के
वंशज जो न तो ह से
दार हो और न ही अव श ाही | इस वग म सगेभाई क पुी तथा उसकेवं
शज,
समर भाई क पुी तथा उसके वंशज, सहोदर भाई क संतानेतथा उनकेवं
शज, सगे भाई क पुक पुयाँ तथा उसके
वं
शज, समर भाई के पुक पुयाँ तथा उसके वंशज, बहन क सं ताने
तथा उसके वंशज स म लत ह |

अव श ा हयो केअ त र पू
वजो के
अ य वं
शज | इस वग म नकटतम पतामह- पतामही चाहे
वो वा त वक हो या म या
तथा रवत पू
वजो केवं
शज स म लत ह |

उ रा धकार क शया व ध – शया व ध म उ रा धकारी या तो वैवा हक सं


बं
धो के
आधार पर या र स ब ध के
आधार
पर ही हो सकता है
| शया व ध म उ रा धका रय को न न तीन वग म वभ कया गया है –

इस वग म माता- पता, स ताने


तथा अ य न न पीढ़ के
वंशज आते
ह|

इस वग म वा त वक अथवा म या पतामह- पतामही चाहेकतने


भी उ च पीढ़ के
हो, भाई तथा बहने
, भाइयो तथा बहन के
वं
शज आते ह|

इस वग म मृतक केचाचा अथवा बु


आ तथा उनकेवं
शज, माता- पता के
चाचा अथवा बु
आ तथा उनकेवंशज कतनी भी न न
पीढ़ केहो, पतामह- पतामही के
चाचा अथवा बु
आ तथा उनके वं
शज चाहेकतनेभी न न पीढ़ केहो, स म लत ह |

उ रा धका रय केन द ह से

प त – सं
तान या वं
शजो के
साथ 1/4 उनके
न होने
पर 1/2

वधवा – सं
तान या वं
शजो केसाथ 1/8 उनक अनुप थ त म 1/4 भाग पर तु
य द वधवा सं
तान वहीन है
तो वह प त क
केवल चल स प य म से 1/4 भाग ही ा त करने
क अ धकारणी होगी |

पता – सं
तान अथवा वं
शजो के
साथ 1/6 उनक अनु
प थ त म अव श ाही बन सकता है
|

माता – सं
तान या वं
शजो अथवा दो या अ धक समर भाइयो अथवा एक सगा या समर भाई के साथ दो सगी या समर
बहने अथवा पता केसाथ चार सगी या समर बहन क उप थ त म 1/6 इनके अनुप थ त म 1/3 भाग क अ धकारणी
ह गी |

पुी – एक है
तो 1/2 वही दो या अ धक पुय का ह सा 2/3 होगा पर तु
य द पुके
साथ पुी है
तो वह अव श ाही बन
जाती है|
सगी या समर बहन – अ य उ रा धका रय क अनुप थ त म एक सगी या समर बहन का ह सा 1/2 तथा दो या दो से
अ धक सगी या समर बहन होने पर उनका सं
यु ह सा 2/3 होगा | पर तु
वही य द वह सगे
या समर भाई या पता के
साथ हैतो सगी या समर बहन अव श ाही बन जाती है
|

सहोदर भाई या सहोदर बहन – माता- पता, सं


तान तथा वं
शजो क अनुप थ त म एक सहोदर भाई या बहन का ह सा 1/6
होगा पर तु
य द वेदो या दो से
अ धक हैतो उनका संयु ह सा 1/3 भाग होगा |

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