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मुलम कौन है
?
मुलम व ध एक वै
य क व ध (Personal Law) है | यह कहा जाता हैक मुलम व ध, द वानी व ध क एक शाखा है
जो मुलम के गत व पा रवा रक मामलो पर लागू
होती है|
यहाँ
सबसे
पहला यह हैक -
हम मुलम कसे
माने
गे
?
न न को हम मुलम माने
ग–
(a) ई र (अ लाह) के
वल एक ही है
|
(b) मु
ह मद साहब इस अ लाह के
अ तम त है
|
(2) ज म से
मुलम (Muslim by Birth) - कसी के
ज म के
समय य द उसके
माता- पता दोन ही मुलम रहे
हो तो
वह भी मुलम होगा |
हे
दाया केअनु
सार - य द ज म के समय माता- पता म से
कोई भी मुलम रहा हो तो वह मुलम होगा | पर तु
भारतीय
अदालत के ारा भै या शे
र बहा र बनाम भै
या गं
गा ब स सह के मामलेम कहा गया क कसी के
ज म के समय
उसके माता पता या पता म सेकेवल कोई एक ही मुलम रहा हो तब उसेमुलम तभी माना जाये
गा जब उसका लालन-
पालन मुलम क भां त आ हो |
(3) धम प रवतन ारा मुलम (Converted Muslim) – कसी भी धम को मानने वाला जो वय क तथा व थ चत
म त क का है अपनेमूल धम का प र याग करके
इ लाम धम धारण कर सकता है
| पर तुसं
प रवतन राशयपूण नह होना
चा हए, राशयपू
ण होने
पर यह मा य नह होगा |
2. इ लाम म व ध क सं
क पना को बताइए ?
इ लाम म व ध क सं
क पना न न है
–
अतः इ लाम धम के
अनु
सार - व ध अ लाह के
ऐसेनदशो को कहा जाता है
जो मनु
य के
धा मक, नै
तक या लौ कक काय-
कलाप को व नय मत करता है|
3. मुलम व ध के ोत या है
?
(1) ाथ मक ोत
(2) गौण ोत
(a) कु
रान
(c) इ मा
(d) कयास
मु
ह मद साहब क पर परा को सुा के प म व ध का मा णत ोत के
वल तभी माना जाता है
जब उनका वणन कसी
यो य व स म वाचक ारा कया गया हो |
(c) इ मा (Consensus Opinion of the Jurists) – कसी नयी सम या केलए कु रान तथा सुा म कोई नयम नह
ा त होनेपर व धवेाओ केमतै य नणय ारा नया कानू न ा त कर लया जाता था, इस कार का मतै य नणय ‘इ मा’
कहलाया जो मुलम व ध का तृतीयक ोत माना जाता है |
मुलम व ध केवकास म इस ोत का मुय हाथ रहा हैय क इ मा के ारा ही सामा जक आव यकता के अनुप नए
कानू
न बनाना ज री था | इ मा क मा यता का आधार पै
ग बर मु
ह मद का वह सुत हैजसमे
उ ह ने
कहा था क, ई र
अपने यो को कसी गलत बात पर सहमत होने नह देगा |
(ख) व धशा य का इ मा – पै
ग बर मु
ह मद के
सहयोगीयो के
मतै
य सहम त के
अभाव म अ य व धशा य का इ मा
मा य आ |
इ मा के
दोष (Defects of Ijma) –
(1) कु
छ समय बाद मै
त य ारा नणय ा त करना स भव नह रहा, उस थ त म के
वल ब मत नणय ही मान लया गया है
जब क इ मा व धशा य का मै त य नणय होना च हये
|
(3) ब त थोड़े
समय म इ लाम का चार र- र तक हो गया और सभी थान केव धशा य म मै
त य नणय केलए एक
थान पर एक त कर पाना क ठन हो गया |
(d) कयास (Analogical Deduction) – अरबी भाषा केश द कयास का अथ है, माप अथात एक तमान सेकसी सरे
व तुक समानता | कसी नवीन सम या से स बं
धत नयम ा त करने केलए कुरान तथा सुा म उसी कार क सम या से
संद भत नयम को सीधे कु
रान अथवा सुा केमू
लपाठ से ही नग मत कर लया जाता था, इसे
ही कयास कहा जाता है
| यान
दे
नेयो य बात यह हैक कयास ारा नयेनयमो का तपादन नह होता है |
कयास क व ध सेनयम ा त करने
केलए के
वल न न ल खत दो आव यक शत है
–
(2) उसनेनयम को कु
रान, सुा या इ मा केकसी न त मू
लपाठ सेनग मत कया हो |
(a) थाएं
(b) या यक नणय
(c) वधान
अ ल सै न बनाम सोना डे
र ो के
वाद म वी क सल का कहना था क - कसी मू
ल थ केल खत कानू
न क तु
लना म
एक ाचीन तथा अप रवतनीय था को वरीयता मले
गी |
ले
कन मुलमो म कृ ष-भूम, खै
र ात तथा धा मक एवं
धमाथ पु
त व यास के
मामले
म अभी भी थाओ को लागूकया जा
सकता हैयो क इस अ ध नयम म उसे शा मल नह कया गया है
|
मुलम व ध के ोत के प म पू
व नणयन का कोई मह वपू
ण थान नह हैयो क लगभग सभी नयम मू
ल धा मक ं
थो म
न हत है
और अदालत का उ ह उसी प म लागूकरना अ नवाय है
|
मु
सलमान व फ वै
लीडे
टग ए ट, 1913
चाइ ड मै
रज
ेर े
स ए ट, 1929
डजो यू
सन ऑफ़ मुलम मै
रज
ेे
ज ए ट, 1939
मुलम वमे
न ए ट, 1986
नकाह क प रभाषा (Definition of Muslim Marriage) – मुलम ववाह क प रभाषा न न व ानो नेन न कार से
द है–
हे
दाया – “ कानू
न क श दावली म नकाह से
एक ऐसी सं
वदा का बोध होता है
जो सं
तानो प को वै
धा नकता दान करने
केउ ेय से क जाती है
”|
अ ल का दर बनाम सलीमा के
वाद म यायमू
त महमू
द – “ मुलमो म ववाह शु प से
एक सं
वदा है
यह कोई सं
कार
नह है
“|
नकाह क कृ त – मुलम व ध के अं
तगत ववाह एक संवदा है
| अतः इसक कृ त सां
व धक ही मानी जाती है
इसक
व ध को संवदा मक मानना एक या यक व व धक प ही हैस वल सं वदा के
अ त र इ लाम म ववाह का समा जक
तथा धा मक मह व भी है
|
सं
वदा के
सामान नकाह म भी दोन प कार स म होते
है|
व धक सीमा के
अंतगत सं
वदा क भां
त नकाह म भी दा प य जीवन क कु
छ शत वं
य प कारो ारा नधा रत क
जाती है
|
सं
वदा के
प कारो के
आपसी स ब ध नह होता है
जब क न ष सं
बं
धो के
बीच नकाह क सं
वदा शू
य है
|
अनीस बे
गम बनाम मु
तफा सै
न म यायाधीश सु
ले
म ान ने
कहा क- सं
वदा के
अतर मुलम ववाह एक धा मक सं
कार
भी है
|
ववाह के
दोन प कार स म हो |
दोन प कार या उनके
अ भभावक क वतंसहम त होनी च हये
|
दोन प कारो के
बीच न ष स ब ध न हो |
उसने
यौनाव था क वय ा त कर ली हो |
व थ म त क वाला हो |
मुलम हो |
सुी व ध म –
पता
पतामह
भाई व पतृ
व कु
ल अ य सद य
माता
शया व ध म –
पता
पतामह ही हो सकता है
चाहे
वह कतनी भी उ च पीढ़ का य न हो |
चू
ँ
क 15 वष क आयु अ य कसी मामले म अवय कता क आयु होती है
तथा बाल ववाह अवरोधक अ ध नयम 1929 के
अनु
सार - जो बाल- ववाह क था को रोकनेकेलए बनाया गया इसम पुष केलए यू नतम आयुववाह केलए 21 वष
क गए है |
अं
तधम य ववाह (Inter-Religious Marriage) – अं
तधम य ववाह म शया तथा सुी क अलग अलग व धयां
है–
(1) सुी व ध – इसकेअंतगत एक सुी पुष को कसी मुलम म हला (चाहेवह कसी संदाय क हो) तथा कसी
कता बया लड़क सेववाह करने का पू
ण अ धकार है
| ऐसा समु
दाय जो अपना उ गम कसी दै
वीय मू
ल केप व पु तक को
मानता हैकता बया समु
दाय कहलाता है
| अदालत ने
य द तथा ईसाइयो को कता बया समु
दाय क मा यता दया |
(2) शया व ध – शया पुष को कसी गैर मुलम म हला सेववाह करनेका अ धकार नह है
वह कसी कता बया म हला
सेभी ववाह करनेकेलए अयो य है
, पर तुएक शया कसी कता बया या अ न पूजक लड़क (पारसी) से
मु
ता या अ थायी
ववाह कर सकता है
|
मुलम व ध के
अंतगत अं
तधम य ववाह से
स बं
धत न न है
–
सुी पुष और गै
र मुलम अथवा गै
र कत बया म हला के
म य ववाह अ नय मत ववाह है
|
मुलम म हला और गै
र मुलम पुष के
म य ववाह शू
य ववाह है
|
वतंसहम त (Free Consent) – मुलम ववाह केव धमा य होनेकेलए प कारो या उनके अ भभावक क सहम त
आव यक हैप कार य द वय क तथा व थ चत म त क वाले है
तो उनक वयं क सहम त ही पया त है
| सहम त चाहे
वयं
प कारो क हो या उनके
अ भभावको क , वतंहोनी चा हये
| न न प र थ तय म सहम त वतंनह मानी जाये गी
–
1- बलपू
वक या जबरद ती – ववाह क सहम त य द बल योग ारा डरा-धमकाकर अथवा कसी अ य कार सेा त क
गयी है
तो सहम त वतंनह होती हैइन प र त थय म ववाह शू
य होगा |
a- ताव तथा वीकृत (Offer and Acceptance) – ववाह केलए अपनी इ छा करना ही ताव कहलाता है
,
ताव लड़का या लड़क दोन म सेकसी के भी तरफ सेहो सकता हैववाह के ताव क वीकृत (कबू
ल) आव यक है |
दोन प कारो के
बीच न ष स ब ध न हो –
व धक नषेध – ववाह क वै
धता केलए मुलम व ध के अं
तगत नधारत कयेगयेनषेध नही होनी चा हए | मुलम
व ध के
अंतगत ववाह केलए नधा रत नषे
धो को दो वग म वभा जत कया गया है
–
(A)- स पू
ण नषे
ध
(A)- स पू
ण नषेध (Absolute Prohibitions) – स पू
ण नषे
धो के
उ लं
घन म कया गया ववाह शू
य माना जाता है
|
इनमे तीन कार केस ब ध आते ह–
(a)- र सबध
(b)- ववाह स ब ध
(c)- धा े
यस बध
(a)- र -स ब ध (Consanguinity) – र स ब ध के
अंतगत कोई मुलम अपनेन न ल खत वग के
संबं
धय सेववाह
नही कर सकता है -
(1)- अपने
पू
वज तथा वं
शज कतनी भी उ च व न न पीढ़ के – एक मुलम पुष अपनी माता, दाद , नानी आ द कतने
भी
उ च पीढ़ क म हला य न हो, ववाह नही कर सकता है
| इसी कार कोई मुलम म हला अपनेपता, पतामह सेववाह
नह कर सकती | इसी कार कोई मुलम पुष अपनी लड़क से व कोई मुलम म हला अपने
लड़के सेववाह नह कर
सकती |
(3)- पू
वजो केभाई या बहन – कोई मुलम पुष अपनी बुआ तथा अपनी मौसी सेववाह नह कर सकता और कोई मुलम
म हला अपने चाचा व मामा सेववाह नही कर सकती है
|
(b)- ववाह स ब ध -
(1)- प नी (या प त ) के
पूवज या वं
शज – इसम पुष केलए अपनी सास तथा म हला केलए अपनेसु
र सेववाह करने
पर रोक है तथा कोई पुष अपनी प नी क लड़क सेववाह नह कर सकता इसी कार कोई म हला अपनेप त के
लड़के से
ववाह नह कर सकती |
ट पणी – य द प नी प त के
बीच ववाह स ब ध तो आ मगर स भोग नह आ तो प त, उसक उस प नी क लड़क से
ववाह कर सकता है तथा प नी भी अपनी इस पुष के
लड़केसेववाह कर सकती है
|
(2)- अपने
पूवज तथा वं
शज क प नी – मुलम पुष अपनेपता या पतामह क प नी सेववाह नह कर सकता है
अथात
कोई अपनी सगी माँ
सेतो र स ब ध केकारण ववाह नह सकता लेकन अपनी सौते
ली माँ
सेभी नकटता के
आधार पर
ववाह नह कर सकता |
(c)- धा े
य स ब ध (Fosterage) – धा े य स ब ध के
आधार पर ववाह का नषे ध मुलम व ध क व श ता है | य द दो
वष से कम उ केकसी ब चे को उसक सगी माँ केअ त र कसी अ य म हला ने अपना तनपान कराया हो तो वह
म हला ब चे क धाय माँ कहलाती है| कोई मुलम पुष अपनी धाय माँक र स बं धयो तथा नकट स बंधयो सेववाह
नह कर सकता है | धा े
य स ब धो का उ लंघन करनेपर ववाह शू
य हो जाता है
|
(1)- व ध व सं
योजन (Unlawful Conjunction) – मुलम व ध दो या दो सेअ धक य जो चार तक हो सकती
हैसेववाह करनेक अनुम त दे
ती है
लेकन ऐसी ी जो वतमान प नी से र स ब ध, नकटता व धा े य स ब ध के
कारण
आपस म पू ण न ष स ब धी क ण ेी म आती हो, सेववाह करना व ध व संयोजन माना जाता है
| जै
सेक कसी
पुष का अपनी सगी बहन सेववाह व ध व सं
योजन माना जाएगा यो क दोन बहने र स ब धी ह |
सुी व ध म व ध व सं
योजन का ववाह अ नय मत माना जाता है
मगर शया व ध म यह शू
य माना जाता है
|
(2)- पां
चवांववाह (Marriage with Fifth Wife) – मुलम व ध एक साथ चार ववाह करने क अनुम त दे
ती हैले
कन
पां
चवा ववाह होनेपर यह अ नय मत माना जाएगा यह शू य नह होता है| अतः इस ववाह से उ प संतान क वैधा नकता
पर कोई असर नह होता ले कन पां
चवेववाह म प त का प नी क सं प म व प नी का प त के सं
प म कोई उ रा धकार
नह होता हैतथा थम चार प नय म सेकसी क मृ यु होनेपर या ववाह- व छेद होने
पर पां
चवा ववाह नय मत हो जाता
है| वही शया व ध म पां
चवा ववाह शूय माना जाता है|
(3) गै
र-मुलम सेववाह (Marriage with Non Muslim) – सुी व ध म गैर मुलम ववाह अ नय मत माना जाता है
ले कन उ ह कसी कता बया म हला सेववाह करने का अ धकार है
जब क शया व ध म कसी गै
र मुलम सेववाह शू य
है| यहाँकता बया म भी ववाह शू
य माना जाता है
|
इ त (Iddat) –
वह अव ध न न है
-
ववाह- व छे
द के
समय य द प नी गभवती हो तो इ त क अव ध गभपात या ब चे
केज म तक होगी |
(2)- प त क मृ
युारा ववाह- व छे
द–
a – य द ववाह- व छे
द का कारण प त क मृ
युहै
तो ी को चार माह दस दन का समय गु
जारना होता है
|
b – य द प त क मृयु के
समय म हला गभधारण क है
तो चार माह दस दन या ब चे
केज म तक जो भी अ धक हो, तक
पालन करना पड़ता है|
(3)- तलाक क इ त म प त क मृ
यु– तलाक क इ त तीन चंमॉस होती है
| तलाक क इ त के
पालन करने
केदौरान ही
य द उस तलाकशु दा प नी के
पूव प त का दे
हां
त हो जाए तो उसे
प त क मृ
युकेदन से
चार माह दस दन का एक नया इ त
शुकरना होगा |
इ त ारं
भ होने
का समय – इ त ारं
भ होने
का समय प त क मृ
युकेदन या तलाक केदन से
माना जाता है
|
इ त क अव ध म म हला के
अ धकार व कत -
इ त क अव ध के
दौरान म हला पु
न ववाह नह कर सकती |
प नी मु
व जल मे
हर पाने
क हकदार हो जाती है
|
कु
छ प र थ तय म प त क मृ
युहोने
पर प नी को उ रा धकार के
आधार पर सं
प म अ धकार ा त हो जाता है
|
व वध नषे
ध (Miscellaneous Prohibitions) -
3- तलाकशु दा प नी से
पु
नः ववाह (Remarriage with divorced wife) – तलाक ारा ववाह व छे द पू
ण हो जाने
पर
प त या प नी कसी अ य ी या पुष सेववाह करने केलए व ं त है
, ले
कन आपस म इनके पुनः ववाह करने पर
तब ध है इनके पु
नः ववाह केलए एक व श तथा ह या अपनाई जाती हैजसे
‘हलाला’ कहा जाता है
|
ववाह का वग करण –
(A)- सुी व ध – इनमे
तीन कार केववाह होते
है:-
व धमा य ववाह
शू
य ववाह
अ नय मत ववाह
2. शू
य ववाह (Void Marriage) – शू
य ववाह कोई ववाह नह होता है
, ब क यह एक अवै
ध स ब ध माना जाता है
|
न न प र थ तय म ववाह शू
य तथा बा तल माना जाता है
–
a – ववाह म स पू
ण नषे
ध का उ लं
घन होने
पर |
न न प र थ तय म सं
प ववाह अ नय मत माना जाएगा –
a – अवै
ध सं
योजन केनयम केव ववाह |
b – कसी पां
चवी प नी सेकया गया ववाह |
c – दो स म गवाह के
अभाव म कया गया ववाह |
d – कसी गै
र मुलम, गै
र कता बया सेकया गया ववाह |
(B)- शया व ध –
1. व धमा य ववाह
2. शू
य ववाह
3. मु
ता ववाह
2. शू
य ववाह (Void Marriage) – न न प र थ तय म शया व ध म ववाह शू
य माने
जाते
है–
अवै
ध सं
योजन का ववाह
पां
चवी प नी सेववाह
तीथ या ा के
दौरान तीथ थल पर स प ववाह
कसी गै
र मुलम सेकया गया ववाह
3. मु
ता- ववाह (Temporary Marriage) (Muta Marriage) – मु ता ववाह एक वशे
ष कार का अ थायी ववाह होता
हैजसे अथना अशा रया शया व ध ही मा यता दे
ती है
| एक नधा रत अव ध केलए कसी न त धनरा श के बदले म ी
व पुष का स ब ध ही मु
ता कहलाता है|
मु
ता क आव यक शत –
मु
ता ववाह ताव व वीकृ
त के ार ही सं
प होता है
नकाह के
भां
त ही कोई न ष स ब ध प कारो के
बीच नह होना च हये
मे
हर जो मु
ताह ववाह म तफल होता वह अव य ही नध रत होना चा हए |
मु
ता- ववाह केव धमा य भाव (Legal Effects of Muta Marriage) –
सं
तान धमज होती है
इ ह माता व पता दोन क स प य से
उ रा धकार ा त है
|
इसम प नी या प त पर पर एक सरे
केउ रा धकारी नही माने
जाते
है|
स भोग हो जाने
पर मे
हर के प म तय पू
र ी रा श प नी को पाने
का अ धकार होता है
|
मु
ता प नी को प त से
भरण-पोषण पाने
का अ धकार नह होता है
|
शू
य (बा तल) और अ नय मत (फा सद) ववाह म अं
तर –
य द ववाह पू
ण असमथता ारा तबं धत है
तब ववाह शू
य होगा जब क अ थायी या सापेअसमथता क दशा म कया
गया ववाह अ नय मत या फा सद होगा |
शू
य ववाह ार भतः शूय होता है
तथा उसक असमथता कभी र नही क जा सकती जब क अ नय मत ववाह म
असमथता र हो जाने
केप ात ववाह व धमा य हो जाता है
|
शू
य ववाह म प त प नी केम य व धमा य वै
वा हक अ धकार व कत ो का ज म नह होता जब क अ नय मत ववाह म
असमथता र हो जानेके बाद प कार आपस म प त प नी क हैसयत ा त कर ले
तेहै|
शूय ववाह म वै
वा हक स ब ध था पत करना अवै ध होता है
और इसम उ प सं
तान अवै
ध सं
तान होती है
जब क
अ नय मत ववाह से उ प संतान वै
ध सं
तान होती है
|
वै
ध ववाह और शू
य ववाह म अं
तर –
वै
ध ववाह के
सभी व धमा य प रणाम होते
हैजब क शू
य ववाह का कोई व धक प रणाम नह होता |
वै
ध ववाह म प कार पू णतः व धक है सयत ा त करते ह व आपस म प त प नी माने
जाते है
तथा उनसेपै
दा होनेवाली
सं
तान वैध सं
तान होती है
, प त तथा प नी के
बीच उ रा धकार का सृ
जन होता है
जब क शू य ववाह ार भतः शू य होता है
तथा प त प नी म कोई व धक अ धकार व कत का सृ जन नह होता है
न ही उनक संतान ही व धक मा यता ा त करत
ह|
वै
ध ववाह और अ नय मत ववाह म अं
तर –
6. मुलम व ध म मे
हर सेया ता पय है
?
मे
हर क प रभाषा (Definition of Dower) – ‘’मे
हर वह धनरा श तथा सं
प है
जो ववाह के
फल व प प त ारा प नी
को उसके त स मान कट करने के उ ेय सेदया जाता है|’’
यायमू
त महमू
द नेअ ल का दर बनाम सलीमा केवाद म कहा क मुलम व ध म मे
हर, वह धनरा श या कोई अ य सं
प
हैजसेप त ववाह के तफल व प प नी को दे ने
अथवा अंत रत करने
का वचन दे
ता हैऔर जहां मे
हर प प से
न त नह कया गया है
वह भी ववाह केअ नवाय प रणाम के प म क़ानू
न मे
हर का अ धकार प नी को दान करता है|
मे
हर क सं
क पना (Concept of Dower) –
मे
हर क इ लामी सं
क पना यह हैक मेहर वह धन सं प हैजसे मुलम प त को अपनेप नी के त स मान कट करने
हे
तुउसेअव य दान करना चा हए, मे
हर न तो प नी का मूय है
और न ही उससे
स भोग करने का तफल |
मे
हर का उ ेय –
मुलम व धशा म मे हर का उ ेय ववाह केअंतगत एक ऐसा मा यम दान करना हैजसके ारा प त अपने
प नी क
त ा के
स य को अ भ करे| मे
हर का सैां
तक प है इसके अ त र मे
हर क वहा रक उपयो गता भी है–
प त ारा प नी को मे
हर के
वल प नी के
लाभ एवम्
उसकेवतंउपभोग केलए दान कया जाता है | इस प म मे
हर का
अथ होता हैप नी केलए कसी ऐसी संप या धनरा श क व था करना ता क ववाह व छे
द के
बाद वह असहाय न रहे|
मे
हर का वग करण (Classification of Dower) –
1. उ चत मे
हर या थागत मे
हर
2. न त मे
हर
1. उ चत मे
हर या अ न त मेहर या थागत मेहर (Proper Dower or Unspecified Dower) – ववाह के समय य द
मे
हर न त न हो पाया हो तब भी प नी को मे
हर पानेका अ धकार होता है
य द मे
हर का उ ले
ख न हो तो उ चत धनरा श या
सं
प अदालत मे हर के प म तय कर दे
ती है| उ चत मे
हर क धनरा श नधा रत करनेका स ांत यह हैक अदालत को
न न घटक पर वचार करना चा हए -
(a) प नी का गत गु
ण,
(c) प नी केपतृ
कुल म मे
हर क धनरा श का कोई उदाहरण अथवा उस प रवार म च लत पर परा के
अनु
सार ( था),
(d) प नी क आयु
, सु
दरता व मान सक मता |
शया व ध - शया व ध म उ चत मे
हर क रा श 500 दरहम से
अ धक नह हो सकती |
न त मे
हर को न न भागो म बाटां
जा सकता है
–
(1) तु
रत
ंदेय मेहर (Prompt Dower) – न त मे
हर म य द भु
गतान केलए य द यह तय आ हैक ववाह पू
ण हो जाने
केप ात् प नी जब चाहेइसक मां
ग कर सकती है
तब मे
हर को तु
रत
ंदेय मे
हर कहा जाता है
|
तु
रत
ंदेय मेहर क वशेष बात यह नह हैक ववाह के तुरत
ंबाद इसेमां
ग ले
ना चा हए प नी इसेकभी भी मां
ग सकती है
वह
जब भी मां
ग करती है
प त को इसेदे
ना होगा | इसम प नी स भोग करने
से माना कर सकती है |
(2) थ गत मे
हर (Deferred Dower) – थ गत मेहर कसी वशे ष घटना के
घ टत होनेपर दया जाता हैयह घटना
प कारो केबीच आपस म तय होती हैइस घटना के
पूव थ गत मेहर दे
य नह होता अगर घटना से
पूव ही ववाह व छेद हो
जाता है
तो ववाह व छेद केबाद इसे
दे
ना आव यक हो जाता है
|
तुरत
ंदेय या थ गत मे
हर का उ ले
ख न होने
पर – य द कसी ववाह म मेहर क धनरा श तो न त कर द गयी है पर तु
यह
नधा रत न कया गया हो क यह तु
रत
ंदे
य मे
हर हैया थ गत मे
हर तो इनका नधारण न न नयमो केअनुसार होगा –
सुी व ध म – इस व ध म उ लेख न होने
पर कुछ भाग को तु
रत
ंदेय बाक शेष को थ गत मान लया जाता हैकतने को
तु
रत
ंव कतने को थ गत माना जाएगा यह थानीय थाएं, प कारो केसामा जक तर मेहर क धनरा श इ या द पर नभर
करता है
|
शया व ध – इसम तु
रत
ंदे
य व थ गत का उ ले
ख न होने
पर सारी धनरा श तु
रत
ंदे
य मानी जाती है
|
मे
हर क धनरा श – कोई भी धनरा श तथा कसी भी मूय क सं
प न त मे
हर के प म नधा रत हो सकती है
इसक
कोई अ धकतम सीमा नह है |
सुी व ध के
अंतगत न त मे
हर क यू
नतम रा श 10 दरहम है
इससे
कम धनरा श का मे
हर न त नह कया जा सकता
है
|
मे
हर के
अ धकार क कृ
त (Nature of Right to Dower) –
(1)- न हत होने
केप ात मेहर का अ धकार कभी समा त नह होता है
– ववाह पू
ण हो जाने
केत काल बाद से
ही मे
हर
ा त करनेका अ धकार प नी म न हत हो जाता है
|
न न प र थ तय म उसे
इस अ धकार से
वंचत नह कया जा सकता है
–
(a) प नी ने
प त क ह या कर द हो |
(b) प नी नेवयं
आ मह या कर ली हो |
(c) प नी ने
इ लाम धम का प र याग कर कोई सरा धम वीकार कर लया हो |
मे
हर के
अ धकार का वतन (Enforcement of the Right to Dower) - मुलम व ध म कोई प नी न न प से
मे
हर
केअ धकार का वतन करा सकती है
–
नसरा बे
गम बनाम रजवान अली के वाद म कहा गया क य द दा प य अ धकार के या थापन केलए प नी केव वाद
दायर करता हैतो वह वाद खा रज कर दया जाएगा यो क स भोग न होने क थ त म तु रत
ंदेय मे
हर का भुगतान न करना
प नी ारा प त को दा प य अ धकार से वं चत रखनेका पया त औ च य माना जाता है
| पर तु
मेहर य द तु
रत
ंदेय न हो
अथवा एक बार भी स भोग हो चुका हो तो प नी अपने
प त को स भोग से वं
चत नह कर सकती है |
(2)- ऋण क भां त मे
हर का वतन (Enforcement of Dower as a Debt) – अद मे हर ऋण क भां त होता है
इसम
प नी ऋणदाता व कजदार माना जाता है | य द मे
हर के
भुगतान के
पूव ही प त का दे
हां
त हो गया हो तो मे
हर क वसूली के
लए प नी प त केउ रा धका रयो पर वाद ला सकती हैऔर उ रा धकारी जो संप उ रा धकार म ा त कया है उसका
अपने अपने अंश केबराबर मे
हर का भुगतान करे गे
|
(3)- वधवा के तधारण का अ धकार (Widow’s Right of Retention) – इस अ धकार के
अंतगत प त केजीवन काल
म प त क वतंसहम त से य द प नी ने
अद मे
हर केबदले प त क संप पर क ज़ा बना लया है तो प त के
दे
हांत के
प ात् उसकेवधवा को उस स प पर तब तक क जा बनाए रखने का अ धकार होता है
जब तक क प त के उ रा धकारी
अद मे हर का भु
गतान न कर द |
वधवा के त-धारण के
अ धकार क मुय वशे
षता न न है
–
(a) प त क सं
प पर क जा (Possession of husband’s Property) – इस अ धकार केव धपूण वतन केलए
यह आव यक हैक प नी ने प त केसं
प पर के वल मे
हर केबदले
म क जा ा त कया हो कसी अ य कारण से
नह |
सरी उ लेखनीय बात यह हैक यह अ धकार पहले से
ही ा त कये
गए क जो को बनाए रखने
का न क प त के
दे
हां
त के
प ात क ज़ा ा त करने का तथा तीसरी बात प त क सं
प पर क ज़ा प त केवतंसहम त सेा त आ हो |
(c) सं
प के लाभांश से
मे
हर का भु
गतान – जो सं
प वधवा के क जे म हैवह उसका अं
तरण करके
मेहर का भु
गतान नह
ा त कर सकती उसको सं
प के लाभां
श सेही मे
हर का भु
गतान करना होगा |
या मे
हर भु
गतान यो य है
?
व धमा य ववाह (Valid Marriage) – य द स भोग न आ हो तो न त मे हर आधी धनरा श, य द मे
हर म न त न हो
तो नाममा का भेट | अगर ववाह व छेद यौवनाव था केवक प पर है तो कु
छ नह | ववाह के बाद एक बार भी स भोग हो
चुका है
तो प नी को न त मेहर क पूर ी धनरा श, अगर न त न हो तो उ चत धनरा श |
मे
हर क माफ – प त ारा जो संप प नी को मे
हर के प म द जाती है
अगर उस सं
प या धनरा श क माफ प नी कर
दे
ती है
उसेमे
हर क माफ कहते हैमे
हर क माफ आं शक या पू
ण हो सकती है
इसकेदो आव यक शत है–
मे
हर के
माफ के
समय प नी व थ च व वय क हो |
7. मुलम व ध म ववाह व छे
द को बताइए ?
2. प कारो के
कृय ारा (By act of Parties) -
A- तलाक
B- इला
C- जहार
(a)- तलाक–उल–सुत (Revocable Talak) - तलाक-उल-सुत एक तसं हरणीय तलाक हैयो क तलाक के
शद
को उ चा रत करने
केबाद इसे
वापस ले
ने
व तलाक को नर त करनेक गु
ं
जाइश बनी रहती है
|
(A)- प नी के
तु हर काल म प त तलाक को एक बार उ चा रत करे
तथा इस पू
रे
शु काल म य अथवा अ य
समझौता न हो |
(C)- प नी को तीसरे
तु
हरकाल आने
पर प त पु
नः तलाक क घोषणा करे
इस तीसरे
व अं
तम घोषणा के
बाद तलाक पू
ण मान
लया जाएगा |
(b)- तलाक–उल– व त ्(Irrevocable Talak) - तलाक-उल– व त्अ तसं हरणीय तलाक हैइसेतलाक–उल–वे न या
तहरा तलाक भी कहा जाता है
इस तलाक क वशे षता यह हैक एक ही बार उ चा रत कर दए जाने
पर तलाक पू
ण हो
जाता हैऔर प त-प नी म समझौता होने
क गुं
जाइश नह रहती है|
पैग बर मु
ह मद ने
इस कार केतलाक का कभी अनु म ोदन नह कया और न ही इसका चलन उनके
जीवन काल म हो पाया
| सुी व ध केहनफ शाखा म इसे
मा यता ा त है
, शया व ध म इसेमा यता ा त नह है
इसक न न औपचा रकताये है
–
इसम उ चतम यायालय नेतहरे तलाक क आलोचना करतेए कहा क यह तलाक का कठोरतम प है तथा प त प नी के
बीच समझौते
के सभी रा ते बं
द हो जाते
है| अतः यह तलाक तभी दया जाना चा हए जब प त प नी के
बीच समझौते का
कोई वक प मौजूद न हो |
दे
श के
सबसे
ज टल सम या म से
एक पल तलाक को शायरा बानो के
वाद म असं
वै
धा नक घो षत कर दया गया है
|
वही तीन तलाक़ के प म मुलम पसनल लॉ के ओर से कहा गया क अनुछेद 25 यानी धा मक वतंता केतहत पर परा
क बात है और सं वधान पर परा को सं
र त करता है | सरकार चाहे
तो पसनल लॉ को रे
गलुे
ट करनेकेलए क़ानू न बना
सकती है | व ान वक ल क पल स बल ने आगेयह भी कहा क “ तीन तलाक़ पाप हैऔर अवां छत है
| हम भी बदलाव
चाहतेहै, लेकन पसनल लॉ म कोट का दखल नही होना चा हए | नकाहनामा म तीन तलाक़ न रखने केबारेम लड़क कह
सकती हैक प त तीन तलाक नही कहे गा | मुलम व ध म नकाहनामा एक कां ेट है
| सहम त सेनकाह होता हैऔर
तलाक का ावधान उसी के दायरेम है|
2- वतं-सहम त (Free Consent) – हनफ शाखा को छोड़कर मुलम व ध क सभी शाखाओ म तलाक वे
छया से
दे
ना आव यक है| अथात वतंसहम त आव यक है |
C - जहार (Injurious Assimilation) – जहार का अथ है – ‘आप जनक तु लना’| इस व ध सेववाह- व छेद करनेके
लए प त अपने प नी क तु लना कसी ऐसी म हला से करता हैजससेववाह करना उसकेलए न ष है | यं
था – माता या
बहन इस कथन के बाद 4 माह का समय पू ण हो जाने
पर ववाह व छे
द हो जाएगा इसी बीच प त अपने
इस कथन को वापस
लेलेता है
तो यह कथन नकृ हो जाये गा |
प नी ारा ववाह व छे
द (Divorce by Wife) –
मुलम व ध म प नी ारा व छे
द प त ारा तलाक के
अ धकार को प नी म यायो जत करने
पर अथात तफवीज के
अं
तगत होता है
|
प नी मा अपनी वे
छा सेववाह व छे
द करने
म स म नह है
|
सामा यतः तलाक केअ धकार को प त ारा अपनी प नी म ही त न हत करनेका चलन है , ऐसी थ त म प नी भी इस
ा धकार केअंतगत तलाक देसकती है
और यह उसी कार मा य तथा भावी होगा जै सा क वं य प त ारा दया गया
तलाक | प त तलाक दे
नेकेप नी के
अ धकार को चाहेतो हमेशा केलए सौप सकता हैया कु
छ न त अव ध केलए |
खु
ला
मु
बारत
(1) खु
ला (Khula) – व ध क श दावली म खु
ला का मतलब है
- प त क सहम त से
उसे
(प त को) कु
छ मु
आवजा दे
कर
प नी ारा ववाह- व छे
द|
मु
शंी बु
जलुल रहीम बनाम लतीफु सा के स वाद म ीवी क सल ने कहा क खु ला ववाह व छेद का एक तरीका है
जसमे प नी वै
वा हक बं
धन से अपनेको नमु करने केलए पहल करती है
छुटकारा पाने
केएवज म प नी अपने प त को
कुछ न कु
छ तफल दे ती है
या तफल व प कु छ रा श या सं
प दान करनेका अनुबं
ध करती है|
व धमा य खु
ला क आव यक शत –
प त तथा प नी व थ च तथा वय क हो |
प त व प नी दोनो क वतंसहम त आव यक है
|
खु
ला का उपबं
ध ताव तथा वीकृ
त ारा पू
ण होना च हये
|
खु
ला म प नी ारा प त को मु
आवजा व तपू
त के प म तफल का दया जाना आव यक है
|
(2) मु
बारत (Mubarat) – मु
बारत शु प से
पर पर अनु
म त ारा ववाह- व छे
द माना जाता है
|
मु
बारत केअनु बं
ध म ववाह- व छे
द का ताव प त ारा भी कया जा सकता है और प नी ारा भी | सरे प ारा इसे
वीकार कर लए जाने पर ववाह- व छे
द पू
ण हो जाता है
खुला क भां
त मु
बारत म भी प त व प नी का स म होना
आव यक है |
या यक ववाह- व छे
द (Judicial Divorce) -
मुलम ववाह व छेद अ ध नयम, 1939 कसी यायालय के आदेश ारा ववाह- व छे
द या यक ववाह- व छे द कहलाता
है
| मुलम व ध म या यक ववाह को ‘फ क’ कहते
है| मुलम म हला ववाह- व छे
द अ ध नयम, 1939 पा रत होने
के
पू
व मुलम म हला अपने
प त से
केवल दो आधार पर ही तलाक ा त कर सकती थी –
प त के
नपु
ं
सक होने
पर
प त ारा ा भचार का झू
ठा आरोप
उपरो आधार के
आलावा य द प नी अपने
प त से
मु होना चाहती थी तब उसके
पास धम प रवतन ही एक मा रा ता
था |
प नी ारा या यक ववाह- व छे
द के
आधार (Ground for Judicial Divorce by Wife) –
धारा 2 के
अनु
सार कोई प नी जसका ववाह मुलम व ध के अनुसार सं
प आ है , न न आधार म सेकसी एक अथवा
एक से अ धक आधार पर यायालय क ड ारा अपना ववाह भं
ग कराने
का वाद तु त कर सकती है
, धारा 2 के
उपबं
ध
भू
तल ीय भाव रखते है
–
2. भरण-पोषण दे
ने
म प त क असफलता – प त अपनी प नी को लगातार दो या अ धक वष तक भरण पोषण उपल ध
करनेम असफल रहा हो तो प नी ववाह- व छे
द का वाद तु
त कर सकती है|
उ ले
खनीय हैक प नी का भरण पोषण ा त करनेका अ धकार उसकेवं
य केसंवहार पर भी नभर करता है
| बना
कसी औ च य केप नी य द प त से
अलग रहनेलगी है
तो उसे
भरण-पोषण ा त करने
का कोई अ धकार नह है|
4. प त ारा वै
वा हक दा य व का पालन न करना – य द प त बना यायो चत कारण के3 वष या इससे
अ धक समय तक
प नी के त अपने वै
वा हक दा य व का पालन करने म असफल रहा तो प नी को ववाह भं
ग करानेक ड ा त करने
का अ धकार मल जाता है |
5. प त क नपु
ं
सकता – प त क नपु
ं
सकता के
कारण भी प नी को ववाह- व छे
द के
बाद क अ धका रता द गयी है
इसके
लए दो बातेमह वपू
ण है
–
(a) प त ववाह सं
प होते
समय नपु
ं
सक रहा हो, और
7. प नी ारा यौनाव था का वक प – य द कसी ी का ववाह उसक अवय कता (15 वष से कम आयु ) म उसकेपता
या कसी अ य अ भभावक ने कराया है
और वय कता अथात 15 वष क आयुा त होने पर उसनेववाह नराकृ त कर दया
हो तो इस थ त म यायालय को अवगत करातेए वह ववाह व छे दक ड ा त कर सकती है
| प नी अब इस
अ धकार का उपयोग 18 वष क उ तक कर सकती है बशत स भोग न आ हो |
A- प त ारा अपनी प नी को ायः मारने पीटने तथा शारी रक क दे ना अथवा अपनेकसी अ य कार केनदयतापू ण
वहार सेप नी का जीवन क मय बना दे ना | सै
यद जलाउ न बनाम परवे ज सुताना - इसम परवेज सुतान व ान
नातक थी, मे
डकल कॉले ज म वे श लेना चाहती थी, जसकेलए 8000 क ज रत थी | सु ताना ने
इस शत के अधीन
जलाउ न सेववाह कर लया क ववाह पू ण होने पर वह 8000 दे गा | जलाउ न नेववाह हो जाने पर धनरा श दे
नेसे
इ कार कर दया सु ताना नेववाह क शत का उ लं घन व धोखा दए जाने केलए ववाह व छे द केलए वाद तु त कया
तथा प त सेअलग रहने लगी | इस पर प त ने प नी केव दा प य अ धकार क पु न थापना का एक वाद यायालय म
तुत कर दया | प नी ने
अपने बचाव म यायालय म कु छ ऐसे श द का योग कया जससे प त नेअपना मानहा न माना
और प नी केव भारतीय द ड सं हता क धारा 499 के अंतगत एक फौजदारी इ तगासा दायर कर दया | यायालय ने
नणय दया क प त ने प नी को फंसानेकेलए फौजदारी मु कदमा चलाया था इस लए प त ने प नी केसाथ ू रता क है |
B- प त का बदनाम यो से
सं
पक रखना अथवा अनै
तक जीवन तीत करना प नी के त ू
रता मानी जाती है
|
D- प त ारा प नी को अपने
धम अथवा धा मक री त– रवाज के
पालन करने
पर तब ध लगाना प नी केव मान सक
ू
रता है
|
E- प त के
पास य द एक सेअ धक प नयां
हो तो उन सबसेसामान वहार न करना अथात कसी को कम और कसी को
अ धक ने ह एवं
सु वधा दान करना उपेत प नी के त प त क ूरता है
| प त का कोई भी व व
्े
षपू
ण आचरण जसमे
प नी को मान सक पीड़ा हो मान सक ू
रता मानी जा सकती है
|
लआन –
मु
ह मद उ मान बनाम सैनबा उ मा के
वाद म प नी ने
प त केव इस अ ध नयम केअंतगत ववाह व छे द का वाद तु त
कया क धारा 2 म व णत कोई भी आधार नह लए गए थे | प नी का मा कथन यह था क वह अपने प त से घृ
णा करती
थी | के
रल उ च यायालय ने यह नण त कया क प त-प नी कई वष तक व व ्े
षपू
ण जीवन जी रहेहै
तो यु सं गत न कष
यही नकाला जा सकता हैक दा प य जीवन वा त वक प सेवघ टत हो चु का हैतथा कानू
न केइस वा त वकता को
मा यता दे
कर उनका दा प य जीवन समा त कर दे
ना च हये|
ववाह व छे
द के
प रणाम –
ववाह व छे
द या तलाक के
पूण हो जाने
पर ववाह के
प कारो केन न ल खत अ धकार एवं
दा य व उ प हो जाते
है–
2. मे
हर त काल देय हो जाता है
– य द ववाह क पूणाव था ा त हो चु
क है तब प नी मु
व जल मे
हर को त काल पाने
क
हक़दार हो जाती है| य द ववाह क पूणाव था न ा त ई हो तब प नी नधा रत मे
हर क 1/2 धनरा श पाने
क हक़दार हो
जाती है
तथा य द मे
हर न त न हो तब वह मा तीन कपड़े
पाने
क हक़दार होती है
|
3. तलाक के
पूण होने
केप ात प त प नी के
एक सरे
के त उ रा धकार का अ धकार समा त हो जाता है
|
4. तलाक पू
ण होने
केबाद प त प नी के
बीच समागम अवै
ध हो जाता है
|
तलाक ा त य ारा आपस म पु न ववाह - सामा य नयम यह हैक तलाक ा त प त-प नी तलाक के बाद आपस म
पुन ववाह नह कर सकतेपर तु य द वेऐसा करना चाहते हैतब प नी को इ त समा त होनेकेबाद कसी अ य पुष से
ववाह करके उससेतलाक लेना होगा व पु
नः इ त का पालन करने के बाद ही वह उस पुष सेववाह कर सकती हैजसने
उससे पहली बार तलाक लया था |
8. मुलम व ध के
अ तगत सं
र कता को बताइए ?
वह जसेकानून के
अंतगत अवय क के
शरीर अथवा सं
प दोन क सु
र ा का अ धकार ा त है
वह अवय क का
सं
र क कहलाता है
|
सं
र क का वग करण (Classification of Guardians) –
नै
स गक अथवा व धक सं
र क
वसीयती सं
र क
त यतः सं
र क
1. नै
स गक अथवा व धक-सं
र क (Natural or Legal Guardian) – ऐसे जसेकसी अवय क क ग त व धयो
पर नगरानी रखने
का व धक अ धकार हो अवय क का नैस गक अथवा व धक सं
र क माना जाता है
|
कसी अवय क के
नैस गक सं
र क न न है
–
पता
पता का न पादक
पतामह
पतामह का न पादक
इनमे
सेकसी के
न होने
पर अवय क का नै
स गक या व धक सं
र क कोई नह होता है
|
शया व ध म – अवय क के
नैस गक सं
र क उसकेपता तथा उसके
बाद उसकेपतामह ही माने
जाते
है|
2. वसीयती सं
र क (Testamentary Guardian) – कसी वसीयत केअंतगत नयु कया गया सं र क वसीयती
सं
र क कहलाता है| पता या उसकेन रहने
पर पतामह वसीयत ारा अपनी अवय क संतान केलए संर क नयु कर
सकता है| सं
र क नयु कये जाने
वाला वय क व व थ च का हो कसी गैर मुलम या म हला को भी सं
र क
नयु कया जा सकता है |
शया व ध म कोई गै
र मुलम अवय क का वसीयती सं
र क नह बन सकता है
|
कसी अवय क के
संर क के प म अपने
को नयु करने
केलए न न म से
कोई एक जला जज के
सम ाथना प दे
सकता है
-
(a)- वह जो अवय क का सं
र क बनने
का दावा करता हो अथवा सं
र क बनने
का इ छु
क हो |
(b)- अवय क का कोई स ब धी अथवा म |
(c)- रा य त न ध के प म जले
का कले
टर |
4. त यतः सं
र क (De facto Guardian) – जो न तो नै
स गक, न ही वसीयती और न ही यायालय ारा नयु
सं
र क हैफर भी अवय क क अ भर ा तथा दे खरेख करता है
उसेत यतः संर क कहते है|
अवय क के शरीर क सं
र कता (Guardianship of the Person) – अवय क के
शरीर क संर कता सेता पय उसके
स पू
ण व पर नगरानी रखना है
शरीर के
संर क को वलायत-ए–न स कहते है
| नै
स गक संर क होने
के कारण पता
तथा पतामह या उसकेन पादक अवय क के शरीर के
संर क माने
जाते है
|
अ भर ा ( हजानत) -
अ भर ा ( हजानत) का अथ है
– कसी अवय क को उसके शैशव काल तक अपने
पास रखना | माता शै
शव काल तक शशु
को अपनी अ भर ा म रखनेक अ धका रणी मानी जाती है
|
शशु
य द पुष हैतो 7 वष व ी हैतो उसको यौवनाव था क वय तक माँ अपनी अ भर ा म रखने
क व धक अ धकारी है
हैक शफ कू ल के अं
तगत माता अपनी पुी को तब तक अपने पास रख सकती है
जब तक क पुी का ववाह न हो
जाए | ववाह व छेद होनेकेप ात भी एक वधवा या तलाकशु दा माँ
का अपनेशशु क हजानत का अ धकार बना रहता है
|
जै
नब बनाम गौस के
मामले म म ास उ च यायालय ने
कहा क अगर कोई प नी इ लाम धम का याग कर दे
ती है
तो उसके
हजानत का अ धकार समा त नह होगा |
वधवा व तलाकशु
दा माँ
नेपु
नः ववाह कर लया हो |
य द माँ
अनै
तक जीवन तीत कर रही हो |
य द माँ
शशु
केपता से
कह र अलग रह रही हो |
य द माँ
लापरवाही या समयाभाव के
कारण शशु
क दे
खरे
ख करने
केअसमथ पायी जाए |
माँ
क माँ
पता क माँ
माँ
क माँ
क माँ
पता क माँ
क माँ
सगी बहन
सहोदर बहन
माँ
क सगी बहन
माँ
क सहोदर बहन
पता के
न रहने
अथवा उसके
अयो य होने
पर सं
तान क अ भर ा वरीयता म म न न स ब धय को है
–
नकटम पतामह
सगा भाई
सगो भाई
सगे
भाई का पु
सगो भाई का पु
पता के
सगे
भाई का पु
पता के
सगो भाई का पु
पर तु
उपरो स ब धय को सं तान क अ भर ा दए जानेम एक शत हैक कोई पुष अपने
अ ववा हत क या को अपने
अ भर ा म तब तक रख सकता है
जब तक इन दोनो के
बीच कोई न ष स ब ध हो |
यौनाव था क वय 15 वष से
कम उ क क या के साथ ववाह होने
पर प त उसको अपनी अ भर ा म नह रख सकता इस
दशा म भी क या क अ भर ा उसक माँ
केपास ही होती है
|
ववाहाथ सं
र क ( वलायत-ए-जबर) (Guardianship for Marriage) - ववाहाथ सं
र क न न है
–
पता
पतामह
भाई या पतृ
व कु
ल का कोई सद य
माता
माता या मातृ
व कु
ल का कोई अ य सद य
सं
प क सं र कता ( वलायत-ए-माल) (Guardianship for Property) – कसी अवय क क सं
प क सु
र ा तथा
दे
खरे
ख का अ धकार अवय क के सभी कार के संर क को है |
अवय क क सं
प केनै
स गक अथवा व धक सं
र क (Natural or Legal Guardians for Minor’s Property) –
अवय क के
संप के
नैस गक सं
र क न न है
–
पता
पतामह
(1)- व धक सं
र क ारा अचल सं
प का अं तरण – कसी व धक सं
र क को अवय क क सं
प के
अंतरण का
अ धकार नह हैले
कन न न प र थ त म वह ऐसा कर सकता है
–
(a) जब व य ारा सं
प के
मूय का दो गु
ना दाम मले
|
(b) जब अवय क के
भरण पोषण केलए सं
प का अं
तरण आव यक हो |
(e) सं
प जब लाभकारी न रह गयी हो |
(f) सं
प जब न हो गयी हो या इसे
खो जाने
का त का लक भय उ प हो गया हो |
(g) सं
प जब कसी ऐसे के
अवै
ध क जे
म हो जससे
पु
नः क ज़ा ा त करना क ठन हो |
(2)- बं
धक - सं
र क अवय क क सं
प का बं
धक तब तक कर सकता है
जब यह अवय क केहत म हो या वयं
उस
संप केलए लाभकारी हो |
(3)- प ा - व धक सं
र क अवय क क सं प का प ा भी के
वल सं
प केलाभ केलए अथवा वयं
अवय क के
लाभ के
लए या उस प र थ त म जब क ही अ य कारण से
ता का लक आव यकता हो कर सकता है
|
सं
र क ारा अवै ध अंतरण शूयकरणीय – कसी सं
र क ारा अवय क क अचल संप के अं तरण के स बधम
उ लेखनीय हैक य द उसने अवय क क संप मुलम व ध केनयमो केवपरीत अंत रत कर द है तो ऐसा अं
तरण शूय
नह माना जाता है
, यह शू
यकरणीय रहता हैजसेअवय क अपनी वय कता ा त करकेअनुम ो दत करके पू
ण बना सकता
हैया नराकृ
त कर सकता है |
2. अवय क क सं प के वसीयती सं
र क (Testamentary Guardians of Minor’s Property) – मुलम व ध के
अंतगत वसीयती संर क भी व धक संर क माना जाता है
| अवय क के
संप के स ब ध म वसीयती संर क केअ धकार
व दा य व ठ क उसी कार हैजस कार पता व पतामह के |
अचल सं
प (Immovable Property) – ऐसा सं र क यायालय क पूव अनु
म त लए बना अवय क क अचल संप
का कसी कार ह ता तरण तथा व य व नमय बंधक नह कर सकता हैकेवल अ य धक आव यक होने
पर अथवा
अवय क केलए य लाभकारी होने पर ही यायालय ह ता तरण क अनु
म त देसकता है
|
चल सं
प (Movable Property) – यायालय ारा नयु सं
र क को बना यायालय के
पूव अनु
म त के
भी अवय क
क कसी चल सं प को अंत रत करनेका अ धकार ा त है
पर तु
सं
र क ारा अवय क क चल सं
प के ले
नदे
नमठक
उतनी ही सावधानी अपेत हैजतनी एक साधारण ा के सेउसक वयं क सं
प के स ब ध म क जा सकती है
|
4. अवय क क सं
प के
त यतः सं
र क (De facto Guardians of Minor’s Property) –
9. मुलम व ध के
अंतगत भरण-पोषण को समझाइये
?
प नी
अवय क सं
तान
नष स ब धो के
अंतगत आने
वाले
अ य अभाव त स ब धी
प नी के
भरण पोषण के
आव यक त व –
मुलम व ध म प नी को अपने
प त से
भरण पोषण ा त करने
का अ धकार न न शत के
अधीन है
–
मुलम व ध के अं
तगत ववाह व धमा य होना च हए | पर तुववाह अगर गवाह क अनु
प त थ के
कारण अ नय मत आ
है
तो भरण पोषण ा त करने
का अ धकार है |
प त का अपनी प नी के
भरण पोषण दे
ने
का दा य व प नी के
यौनाव था पू
ण होने
केप ात्
ही शु होता है
|
एक नब धत अ धकार रखतेए भी प नी के
भरण पोषण का अ धकार उसकेवयं
केआचरण पर होता है
|
द ड या सं
हता 1973 के
अंतगत प नी का भरण पोषण –
द ड या सं
हता 1973 के
अंतगत भी एक मुलम प नी भरण पोषण क मां
ग कर सकती है
|
भरण पोषण के
अ धकार का वतन –
1- मुलम व ध के अंतगत – प त य द प नी के
भरण पोषण क व था करने से
इनकार कर दे अथवा वह प नी क उपेा
कर रहा हो तो प नी द वानी यायालय म मुलम व ध के अं
तगत भरण पोषण क मां ग का वाद तुत कर सकती है साथ
ही द ड या संहता के अंतगत प त सेभरण पोषण ा त करने केलए थम ण ेी म ज े ट केयायालय म भी ाथना
तु
त कर सकती हैयायालय उसके मां
ग केऔ च य का परी ण मुलम वै य क व ध के अंतगत ही करता है
औचय
स हो जाने पर वह प नी के प म ड पा रत कर दे ता है| प नी भरण पोषण क बकाया ा त करने क अ धका रणी
नह मानी जाती |
2- द ड या संहता के
अंतगत – इस अ ध नयम क धारा 125 के
अंतगत भरण-पोषण केलए मा सक दर पर रा श
जसे मज े
ट ठ क समझेनधा रत कर सकता है|
तलाकशु
दा म हला का भरण पोषण – तलाकशु
दा म हला के
भरण पोषण का अ धकार तीन नयमो से
है–
मुलम वै
य क वध
द ड या सं
हता, 1973 (धारा 125 से
128 तक)
(b) द ड या सं हता, 1973 के अंतगत – यह अ ध नयम मुलम स हत भारतवष क सभी तलाकशु दा म हला पर
सामान प से लागू होता है इसम ववाह व छे द क ये क थ त म ववाह व छे द केबाद प नी धारा 125 का लाभ उठा
सकती है बशत उ ह ने पुनः ववाह न कया हो | उ लेखनीय हैक मुलम वै य क व ध म तो तलाकशु दा प नी इ त क
अव ध के प ात कसी भी थ त म भरण पोषण क अ धका रणी नह रहती पर तु द ड या संहता क धारा 125 के
अंतगत तलाकशु दा प नी इ त के बाद भी अपने पू
व प त सेतब तक भरण पोषण ा त कर सकती है जब तक क उसका
पु
नः ववाह न हो इस कार हम दे खते हैक इस अ ध नयम के अं
तगत मुलम प त मा तलाक दे कर अपनी प नी के भरण
पोषण के अ धकार को समा त नह कर सकता | पर तु धारा 125 केअंतगत भरण पोषण का दावा इस अ ध नयम के धारा
127 के अधीन है धारा 127 (3) केअनुसार तलाकशु दा प नी न न ल खत प र थ तय म अपने पू
व प त से भरण पोषण
नह ा त कर सकती है –
जब उसका पु
नः ववाह हो गया हो |
जब उसेथागत या वै
य क व ध के
अंतगत ववाह व छे
द पर दे
य स पू
ण रा श ा त हो गयी हो |
जब ववाह व छे
द के
प ात तलाकशु
दा प नी ने
अपनी वे
छा से
भरण पोषण के
अ धकार का प र याग कर दया हो |
उ ले
खनीय हैक उ चतम यायालय का नणय अ य धक ववादा पद एवं
ब च चत नणय बन गया |
2- इ त काल के प ात भरण पोषण – मुलम म हला अ ध नयम क धारा 4 (1) के अनु सार म ज े ट य द इस बात से
सं
तुहैक म हला ने पु
नः ववाह नह कया है और न ही वह भरण पोषण करने म समथ है तो वह म हला के ऐसेस बं धयो,
जो उसके उ रा धकारी हो, को आदेश दे
सकता हैक वे इस म हला केभरण पोषण क व था कर | अगर उस म हला क
कोई संतान हो, जो उसका भरण पोषण करने म स म हो तो यायालय सव थम उसे यह दा य व देगा | अगर सं
तान नह है
तो यह दा य व उसके माता- पता को दया जाएगा | अगर वह भी समथ नह है
तो यह दा य व अ ततः व फ बोड पर आ
जाता है|
3- मे
हर तथा प नी क अ य स प यां– तलाकशुदा प नी अपने अद मे हर को ा त करने क अ धका रणी है
| मे
हर के
अ त र प त अथवा उसके स बं
धयो या म ो ारा द गयी प नी को उसके माता- पता या स बं
धयो ारा द गई तथा
उसक व-अ जत सं प भी उसक अपनी अ य सं प मानी जाती है |
4- द ड या सं
हता क धारा 125 का वक प – मुलम म हला अ ध नयम 1986 क धारा 5 के अनुसार भरण पोषण
सेस बं धत मामलो केाथना प क थम सु नवाई केदन तलाकशु दा म हला या उसका पू
व प त य द चाहेतो हलफनामेया
कसी अ य घोषणा ारा यह मंत कर देक वेअपना वाद द ड या सं हता क धारा 125 केअंतगत नण त
करना चाहतेहै |
5- द ड या सं
हता केअंतगत पा रत हो चु
केआदे
श – मुलम म हला अ ध नयम 1986 चूँक भू
तल ी भाव नह
रखता अतः द ड या संहता क धारा 125 केअं
तगत पा रत हो चु
केआदे
श को यह अ ध नयम भा वत नह करता |
उ चतम यायालय ने
इस ववाद पद नयम को न न वाद म सं
वै
धा नक घो षत कया-
डै
नयल लतीफ एवंअ य बनाम भारत सं
घ (2001)- इस अ ध नयम को व धमा य ठहरातेए उ चतम यायालय ने
न न ल खत न कष दए –
1. तलाकशु
दा मुलम प नी केपू
व प त का दा य व हैक वह उसकेभ व य केलए उसे एक उ चत व यायो चत साम ी
स हत उसकेभरण पोषण क व था करे | इस अ ध नयम क धारा 3 (1) के
अंतगत पू
व प त का दा य व हैक वह इ त
क अव ध व उसके बाद भी ऐसी व था करे |
2. तलाकशु
दा प नी के
भरण पोषण का भु
गतान एक मुलम प त का दा य व के
वल इ त अव ध तक ही सी मत नह है
वरन्
उसके जीवनकाल तक क हैवशत उसने पु
नः ववाह न कया हो |
सं
तान का भरण-पोषण (Maintenance of the Children) – व धक सं र क होनेकेकारण संतान का भरण पोषण
मुयतः पता का ही दा य व माना जाता है
| मुलम व ध के
अंतगत पुजब तक यौनाव था क वय (अथात 15 वष तक)
क आयु न ा त कर ले तब तक उसके भरण पोषण क व था करने का दा य व उसकेपता पर रहता है
|
मुलम म हला अ ध नयम 1986 के अंतगत भरण पोषण – हैक मुलम म हला अ ध नयम 1986 क धारा 3 (1)
(b) के
अंतगत एक तलाकशुदा म हला अपनेअ भर ण म रखी गई सं
तान के
भरण पोषण क मां ग अपने
पूव प त से
2 वष
क अव ध तक मांग सकती है
|
अतः ऐसी सं
तानेअपनी पता से केवल 2 वष क उ तक भरण पोषण ा त करने क अ धकारी माने
जाये
गेजब क द ड
या संहता क धारा 125 जो अ य समुदाय क अवय क सं तान स हत मुलम सं
तान को भी वय कता क वय (18
वष)अथवा जब तक क वे साम यवान न हो जाए अपनेपता सेभरण पोषण ा त करतेरहने
का अ धकार दान करती है
|
जहाँतक ववाह- व छे
द केप ात संतान केभरण पोषण का है
द ड या सं
हता क धारा 125 केअं
तगत जब तक
ऐसी सं
ताने
वय क या साम यवान न हो जाए तब तक उ ह अपनेपता से
भरण पोषण ा त करने का अ धकार उनका एक
पृ
थक अ धकार है|
नू
र सबा खातून बनाम मुह मद का सम के
वाद उ चतम यायालय नेनधा रत कया क द ड या सं
हता क धारा 125
केअंतगत मुलम दं प से उ प सं
तान को जब तक वे
वय क अथवा साम यवान न हो जाए भरण पोषण दान करना
पता का पू
ण दा य व होता है
|
हनफ व ध के
अनु
सार अधमज सं
तान अपनी माता से
भरण पोषण ा त कर सकता है
|
सं
तान अपने माता पता केभरण पोषण क व था करने
केलए तभी वा य है
जब क उसक आ थक थ त ठ क हो तथा
माता- पता अभाव त हो |
माता- पता का भरण पोषण पुतथा पुी दोन का सामान दा य व माना जाता है
|
माँ
चाहेअश न भी हो पर तु य द वह नधन है
तो वषम आ थक प र थ तय म रहने पर भी पुउसकेभरण पोषण के
लए ज मे
दार माना जाये
गा नधन होने के
साथ ही अपने
जी वकोपाजन केलए कु छ भी न कमा सकने
वालेपता के
भरण
पोषण केलए गरीब पर तु जी वकोपाजन म स म पु ज मेदार माना जाता है
|
सं
तान य द अपने
माता पता के
भरण पोषण क अलग व था न कर पाए तो उ ह अपने
साथ रखने
केलए वा य कया जा
सकता है|
10. मुलम व ध के
अंतगत जनकता व औरसता को बताइए ?
जनकता (Parentage) – सं
तान के
माता- पता से
उनका व धक स ब ध सं
तान क जनकता कहलाती है
|
हबीबु
रहमान बनाम अ ताफ अली के वाद म वी क सल ने कहा क पुके औरस होने
केलए यह आव यक हैक वह
कसी पुष तथा उसक प नी क सं तान हो कसी अ य कार से उ प सं तान अवै
ध स ब ध क सं
तान होती है
तथा कभी
औरस नह मानी जाती हैप नी श द सेअ नवायतः वै
ध ववाह का बोध होता है
|
पता य द पतृ
व क अ भ वीकृ
त न करे
तो ववाह होने
के6 माह के
अ दर उ प होने
वाला शशु
अवै
ध सं
तान माना जाता
है|
ववाह सं
प होने
के6 माह बाद पै
दा आ शशु
वै
ध सं
तान माना जाता है
बशत प त उसे
अ वीकार न करे
|
ववाह व छे
द हो जाने
केप ात उ प आ शशु
वै
ध सं
तान माना जाएगा य द वह –
ववाह व छे
द के
10 माह के
अ दर उ प आ हो ( शया)
ववाह व छे
द के
दो वष के
अ दर आ हो (हनफ )
औरसता क वतमान व ध (Present Law of Legitimacy) – भारत म औरसता का नधारण सा य अ ध नयम, 1872
केअं
तगत होता है
| भारतीय सा य अ ध नयम, 1872 क धारा 112 के
अंतगत न न त य कसी क औरसता के
न या मक माण माने जाते ह–
वह अपने
माता पता के
वैध ववाह के
दौरान उ प आ हो |
वह इस ववाह व छे
द के
280 दन के
अ दर उ प आ हो बशत उसक माँ
नेपु
न ववाह न कया हो |
यध प औरसता केवषय म मुलम व ध तथा सा य अ ध नयम क धारा 112 म प असमानता है तथा प मुलम व ध के
अं
तगत सं प ए ववाह सेउ प संतान क औरसता का नधारण भारतीय अदालत ने भारतीय सा य अ ध नयम 1872
क धारा 112 के
अंतगत कया है
तथा इस वषय म मुलम व ध लागूनह क गयी है|
व धमा य अ भ वीकृ
त के
अ नवाय शत (Essential Conditions for a Valid Acknowledgement) –
1. अ भ वीकृ
त के
वल ऐसे
सं
तान को दान क जा सकती हैजसके
गभ म आने
केसमय उसक माँ
तथा अ भ वीकृ
त
दान करने
वाले
पुष के
बीच वै
ध ववाह सं
भव रहा हो |
2. पतृ
व क अ भ वीकृत के
वल उस सं
तान केलए हो सकती हैजसकेपता के बारेम अ न तता हो कोई ऐसी
कसी सं
तान को जसका पता न त प सेात है अ भ वीकृ त ारा अपनी सं
तान नह बना सकता |
3. अ भ वीकृ
त दान करने
वाले व सं
तान के
बीच इतना अं
तर होना चा हए क वेपता पुजै
से
लग |
4. अ भ वीकृ
त के
वल सं
तान को पतृ
व दान करनेकेआशय से ही नह वरन उसे
उ रा धकार स हत अ य सभी मामलो म
अपना औरस पुअथवा पुी के प म वीकार करने
केलए होना चा हए |
5. सं
तान ारा अ भ वीकृत का अनु
म ोदन होना भी आव यक हैकसी को उसक इ छा केव अ भ वीकृ
त ारा
कसी क सं तान नह बनाया जा सकता |
अ भ वीकृ
त व द क हण म समानता –
अ भ वीकृ
त सं
तान व द क सं
तान दोन धमज पुहोते
है|
अ भ वीकृ
त व द क दोन म पुको पता क सं
प म उ रा धकार ा त होता है
|
अ भ वीकृ
त व द क हण दोन म सं
तान को पता के
धा मक व लौ कक दा य व को पू
र ा करने
का कत होता है
|
द क और अ भ वीकृ
त म अं
तर –
द क लेने
वाले का अपना पु, पौ , पौ तथा पुी क दशा म अपनी पुी या पौ ी जी वत नह होनी चा हए जब क
अ भ वीकृत पुया पुी होने
केदशा म भी कया जा सकता है|
द क का उ ेय धा मक व अ या मक होता है
जब क अ भ वीकृ
त का उ ेय सं
प का उ रा धकार तय करना होता है
|
सं
प का ऐसा अंतरण जससे एक जी वत सरेजी वत के
प म अपनी सं प का वा म व बना कसी
तफल के अं
त रत कर दे
वह दान या हबा कहलाता है| दान चू
ँ
क सं
प का अं तरण हैइस लए इसका शासन सं प
अं
तरण अ ध नयम, 1882 केअंतगत होता हैक तुय द दानकता मुलम हो तो उस पर हबा क व ध लागू
होती है| हबा
मुलम व ध सेव नय मत होता है
संप अं तरण अ ध नयम से नह |
हे
दाया केअनुसार - हबा कसी वतमान सं
प केवा म व का तफल र हत एवंबना शत केकया गया तु
रत
ं भावी होने
वाला अंतरण है
|
मुला केअनु
सार - हबा या दान तु
रत
ं भावी होने
वाला संप का ऐसा अं तरण है
जो बना कसी व नमय के
एक
ारा सरे के प म कया जाए तथा सरे ारा इसेवीकार कया जाए |
दान क घोषणा
दान क वीकृ
त
दान क सं
प के
क जे
का प रदान
मुलम हो
व थ च हो
वय क हो
दान दे
ने
का अ धकार – दानकता को सं
प दान करने
का अ धकार होना चा हए | अतः दानकता को दान क जाने
वाली
संप का वामी होना चा हए |
दान क वीकृ
त–
अज मा क तु
गभ म आ चुकेशशु
केप म दान कया जा सकता है
लेकन वह दान करने
क त थ से
6 माह के
भीतर
ज म ले
ले
ना आव यक है
|
पता
पतामह
क जे
का प रदान –
1.वा त वक प रदान
2. ल त प रदान
जब दान क गयी सं
प अमू
त सं
प हो |
जब दान क गयी सं
प मू
त सं
प होतेए भी प र थ तवश उसका भौ तक क जा सं
भव न हो |
क जेका प रदान कब पू
ण माना जाता है– चल सं
प य के दान म तो क जे
का प रदान उस समय पू
ण हो जाता है
जब
दान हीता को सं
प भौ तक प से ह तगत कर द जाती है
पर तुअचल तथा अमू त सं
प य के क जेका प रदान पू
ण
होने
का ठ क समय कर पाना मुकल है |
इसे
सुन त करने
केलए अदालत ने
दो स ां
त अपनाया है
–
1. लाभ का स ां
त- इसके
अंतगत अचल व अमू त संप के
दान म क जे
का प रदान उस समय पू
ण माना जाता जस समय
सेदान हीता सं
प का लाभ उठाना ार भ कर दे|
2. आशय का स ां
त- इसके
अनुसार अचल व अमूत संप य केहबा म क जे केप रदान को पू
णतः का समय दानकता के
मं
त या आशय पर नभर करता हैअथात क जे का प रदान उस समय पू
ण माना जाता हैजस समय से दानकता ने
सोचा
हो क सं
प का अ धकार अब दान हीता को मल जाये|
अवय क अथवा पागल के प म कये गयेदान का क जेका प रदान - दान हीता य द पागल अथवा अवय क है
तो उसके
प म कया गया दान तब तक पू
ण नही माना जाये
गा जब तक क इनके संर क संप क कृ त केअनुप वा त वक
अथवा ल त क जा न ा त कर ले |
हे
दाया के
अनु
सार - अवय क दान हीता य द ववे क क वय का हो चु का है
और अपनेप म कये गए दान के
संप का
क ज़ा वयंा त कर ले तो, दान को व धमा य माना जाना चा हए यो क वह उसकेहत म है
|
क जे
का प रदान कब आव यक नह है
– न न प र थ त म दान क वै
धता केलए क जे
का प रदान आव यक नह है
–
जब दानकता व दान हीता दान कये
गये
मकान म रहते
हो |
सं
र क ारा तपा य को कया गया दान |
दान क वषयव तु
जब वयं
दान हीता के
क जे
म हो |
दान क वषय-व तु
म कु
छ व श सं
प य का वणन न नवत है
–
1.भावी सं
प का दान – भावी सं
प का दान शू
य होता है
, दान के
समय सं
प का अ त व म होना आव यक है
|
हर का दान - मे
4.मे हर का दान भी कया जा सकता है
|
मु
शा का दान (हनफ व ध का मु
शा का स ां
त) – मुलम व ध म मु
शा का ता पय कसी सं
यु सं
प के
अ वभा य
ह सेसे है|
मु
शा अथात सं
यु सं
प दो कार के
ह–
मु
शा अ वभा य
मु
शा वभाजन यो य
1. मु
शा अ वभा य (Musha Indivisible) – अ वभा य मुशा सं
प य का दान बना क जे
का प रदान कयेए भी
व धमा य माना जाता है
| कु
छ सं
प य क कृ त ऐसी होती हैक उनका भौ तक प सेवभा जत कया जाना सं
भव नही
माना जाता है
| अ वभा य मु
शा सं
प य के
दान पर मु
शा का स ां
त लागू
नह होता है
|
2. मु
शा वभाजन यो य (Musha Divisible) – वभाजन यो य मु
शा सं
प य का दान वभाजन तथा क जे
का प रदान
कये बगैर अ नय मत माना जाता है
|
हनफ व ध म मु
शा केस ां
त के
अंतगत कसी वभाजन यो य मु
शा सं
प के अ वभा जत ह से केदान क वै
धता केलए
दान कये
गयेव श ह से का वभाजन तय दान हीता के
प म इसके क जे
का वा त वक ह तां
तरण अ नवाय है
|
मु
शा केस ां
त क सीमाएंन नवत है
–
मु
शा का स ां
त के
वल हनफ व ध म मा य है
|
अ वभा य सं
प के
दान म यह लागू
नह होता है
|
इस स ां
त केव कया गया दान शू
य नह माना जाता, यह के
वल अ नय मत रहता ह |
हनफ व ध का मु
शा स ां
त के
वल दान पर लागू
होता है
|
मु
शा स ां
त का अपवाद –
जम दारी केकसी ह से
का दान |
कसी भू
-कं
पनी के
शेयर का दान |
सशत एवं
समा त दान –
मुलम व ध के
अंतगत दान य द कसी कार क शत स हत गया है
तो वह व धमा य होता है
पर तु
शत शू
य मानी जाती है
|
सं
प के
आय तथा लाभां
श को आर त करने
का शत – मुलम व ध के
अंतगत य द कसी हबा मे
दानकता दान क गयी
मुय सं
प अथात उसके
काय को भा वत करने
वाला शत लगाता है
तो शत शू
य मानी जाती है
|
पर तु
दानकता य द सं
प के लाभां
श को अपनेतथा कसी अ य केलाभाथ कुछ समय केलए सु र त कर लेनेके
शत केसाथ हबा करता है
तो चू
ँक यह शत तथा सं
प क ‘काय’ को भा वत नह करती इस लए शत तथा हबा दोन ही
वै
ध माने
जातेह|
समा त दान के
स दभ म उ ले खनीय बात यह हैक चू ँक यह ार भतः शू
य माना जाता है
अतः वह घटना जसपर वह
आ त हैघट जाए तो भी दान भावी नही माना जाता है
|
आजीवन हत का दान – कसी सं प के आजीवन हत को आजीवन स पदा कहते है सुी व ध केअंतगत आजीवन
स पदा का दान सं
भव नह है
, यो क मा जीवन काल केलए भी कया गया दान भी पू ण दान के प म भावी होता है
|
पर तुशया व ध के अनु
सार दान हता के
जीवन काल तक केलए कया गया हबा वै ध तथा भावी माना जाता है
व तु
तः
शया व ध के इस नयम का ोत नवा जश अली खांबनाम अली रजा खां
का वाद है|
क जेकेप रदान के
प ात हबा का तसं हरण – हबा पू
ण हो जाने
केप ात उसका तसंहरण नही हो सकता | पर तु
क जेकेह तां
तरण के प ात भी त य क भूल, वतंसहम त का अभाव अथवा कसी अ य उपयु कारण के आधार पर
अदालत क ड ारा हबा न भावी हो सकता है
|
शया व ध – शया व ध के
अंतगत क जेकेप रदान के
प ात भी थ त दानकता हबा का तसं
हरण मा घोषणा ारा
कर सकता है
बशत हबा अ तसंहरणीय न हो |
प त-प नी के
बीच पर पर एक सरे
को कया गया दान |
सं
प के
न या समा त हो जाने
पर |
दानकता ारा सं
प को कसी अ य के
प म अं
तरण पर |
दान क वषय व तु
म ब त यादा प रवतन आने
पर |
सदका – धा मक अथवा आ या मक भावना सेे रत होकर कया गया दान सदका कहलाता है | सदका का उ ेय ई र को
स करना है | जहाँ
तक अं
तरण क व धक कृ त का हैहबा तथा सदका म कोई अंतर नह है| अतः जो शत कसी
हबा क वैधता केलए अ नवाय है
वही सदका केलए भी आव यक मानी जाती है | हबा क तुलना म सदका न न प से
भ है –
सदका म प वीकृ
त का होना आव यक नही है
|
पू
ण हो जाने
पर यह कसी अपवाद केबना अ तसं
हरणीय है
|
अ रयत - एक न त अव ध तक कसी सं
प केउपभोग के
अ धकार का दान अ रयत कहलाता है| य द एक न त काल
तक केलए संप क आमदनी तथा उपज को बना कसी तफल के ह तां
त रत कया गया है
तो इस ह तांतरण को
अ रयत क संा द जाती है
|
हबा- बल-एवज म क जे
का प रदान होना आव यक नही है
जब क हबा-ब-शतु
ल एवज म क जे
का प रदान होना आव यक
है|
व ध श दावली म व फ का ता पय - सं
प क एक ऐसी व था करने सेहैजसमे
सं
प अह तां तरणीय होकर सदै
व के
लए बंध जाती हो ता क इससेा त होने
वाला लाभ धा मक व पु
य के
काय केलए नरं
तर ा त होता रहे
|
व फ क गई सं
प को अह तां
तरणीय बनाने
केलए मुलम व धशा यो ने
ई र के
प म सम पत कये
जाने
का
स ांत उ क सत कया है
|
व फ क प रभाषा –
मु
सलमान व फ व धमा यकरण अ ध नयम, 1913 म व फ का अथ है – ‘’इ लाम धम म आ थावान ारा कया गया
कसी भी संप का एक ऐसा थायी समपण जो कसी ऐसे उ ेय क पू
त केलया कया गया हो जो मुलम व ध के
अं
तगत धा मक पु
यशील अथवा खैर ाती काय के प मा य हो | ”
शया व धशा यो के अनुसार - व फ एक ऐसा धा मक काय हैजसका भाव यह होता हैक कसी व तु
क काय तो बं
ध
जाती है
पर तु
इसका लाभां
श वतंछोड़ दया जाता है |
व फ के
ल ण–
1- शा तता – व फ क सं
प सदै
व थाई प सेन त कर द जाती है
|
2- अह तां
तरणीय – व फ क गयी सं
प अह तां
तरणीय हो जाती है
|
3- अ तसं
हरणीय – व फ क सं
प को पु
नः तसं
हरण नह कया जा सकता है
|
व धमा य व फ के
आव यक शत –
सं
प का थायी समपण आ हो |
वा कफ स म हो |
व फ क सं
प व फ यो य हो |
व फ का उ ेय मुलम व ध के
अंतगत धा मक, पु
याथ व परोपकारी काय माना जाता हो |
व फ का सृ
जन करने
क व धक औपचा रकता पू
र ी कर ली गयी हो |
व फ करतेसमय वा कफ को व फ क जानेवाली सं
प का वामी होना च हयेवा कफ य द पदानशीनंम हला है
तो
मु
तव ली व हत ाही को अलग सेस करना होगा क म हला ने
व फ करते समय अंतरण क कृ त को भली-भां
त
समझा था और व फ करने म उसका नणय वतंरहा | व फ केसृ
जन केलए वा कफ क सहम त वतंहोनी चा हए |
व फ क वषयव तु
(The Subject Matter of Wakf) – चल व अचल, मू
त या अमू
त ये क कार क व तुव धमा य
व फ क वषयव तु
बन सकती है| अदालत नेवशे ष प सेन न संप यो का व फ वैध माना है
–
राजक य बचत प
दरगाह का चढ़ावा
वा टका-धारक का सा प क अ धकार
राजक य तभू
त
कं
पनी के
शेयर
नकद पया
मु
शा का व फ (Wakf of Musha) – मु
शा सं
प का व फ व धमा य है| सुी व ध का मु
शा स ां
त व फ पर लागू
नह
होता इस लए कसी सं
प के एक ह सेको वभा जत कयेबगै
र ही व धमा य व फ केलए सम पत कया जा सकता है|
संप
ेम मु
शा का स ां
त व धमा य है
बशत यह –
म जद केनमाण केलए न हो
प े
पर द गयी सं
प न हो |
व फ का व धमा य उ ेय –
मु
हरम के
दौरान ता जया रखने
तथा धा मक जु
लु
स म ऊं
ट अथवा ल ल का बं
ध करना |
कसी म जद म द प व लत करना |
व फ का अवै
ध उ ेय –
शराब क कान, जु
आघर अथवा सु
कर-मां
सक कान का नमाण या इनक दे
ख-रे
ख करना |
वक ल को लाभा वत करने
क व था करना |
कसी मं
दर अथवा चच का नमाण या दे
ख-रे
ख तथा कसी कार क मू
तपू
जा क व था करना |
य द कसी व फ के उ ेय का कुछ ह सा वै
ध तथा कु
छ ह सा अवै
ध हो तो वै
ध उ ेय केलए कया गया व फ व धमा य
होगा तथा अवै
ध उ ेय वाला भाग शू
य होगा |
व फ का उ ेय न त होना चा हयेले
कन यह स हो जानेपर क व फ वैध है
के
वल इस आधार पर ही क इसका उ ेय
अ न त हैइसेशूय तथा न भावी नह घो षत कया जा सकता है
उ ेय अ न त होने
पर भी व फ भावी रहता है
और
उसकेलाभां
श का उपयोग गरीबो के
लाभ केलए कया जा सकता है
|
पं
जीकरण व फ अ ध नयम, 1995 केअनुसार - व फ का पं
जीकरण अ नवाय कर दया गया है
| इस अ ध नयम क धारा
36 क उपधारा 1 के अनु
सार ये
क व फ चाहे वह इस अ ध नयम केपू
व या प ात्था पत आ हो उसका पंजीकरण
कराना आव यक है |
व फ के
सृजन केव धयां
– व फ का सृ
जन न न 3 कार से
हो सकता है
–
सं
प के
त काल समपण के ारा
वसीयत के
अंतगत सं
प के
समपण ारा
सं
प केमरणातीत उपयोग ारा
मु
तव ली क नयु – मु
तव ली क नयु वरीयता म म न न ल खत य म सेकसी एक के ारा हो सकता है
–
वा कफ अथवा व फ को सृ
जत करने
वाले ारा
मृ
युशै
या सेवयं
मु
तव ली ारा
यायालय के ारा
धम सभा ारा
मु
तव ली ारा नयु – य द वतमान मु
तव ली मृ युशै
या पर हो और अपने जीवन क आशा छोड़ चुका हो तथा उपयु
व धय सेमुतव ली क नयु तुरत
ंसं भव न हो तो वह मृयुशै
या सेही अपनेउ रा धकारी क नयु कर सकता है |यद
कसी थानीय था के कारण मु
तव ली का पद पै
तृक हो तो वतमान मरणास मु तव ली अपना उ रा धकारी नयु नही
कर सकता है|
यायालय ारा मु
तव ली क नयु – यायालय को मु
तव ली नयु करने
केलए न न बातो का यान रखना चा हए –
जहा तक सं
भव हो मु
तव ली क नयु वा कफ केनदश के
अनु
कू
ल होना चा हए |
मु
तव ली क नयु म हत ाही का हत सव परी होना चा हए |
धम सभा ारा मु
तव ली क नयु – कभी-कभी मु
तव ली का चु
नाव धम-सभा ारा भी होता है
| धम-सभा से
ता पय
कसी समु
दाय वशेष के गणमा य य केऐसेजनसमूह सेहैजसमे उस समु
दाय केधा मक एवं लोक हतकारी वषय
पर चचा क जाती हो |
मु
तव ली कौन हो सकता है
?
म हला तथा गै
र मुलम मु
तव ली – सामा यतः म हला व गै
र मुलम भी मु
तव ली हो सकता हैय द व फ के
अंतगत
मु
तव ली ारा इन धा मक कृय केकये जाने का उ लेख कया गया है
तो म हला व कोई गै
र मुलम मु
तव ली नह हो
सकता –
य द मु
तव ली को धा मक मु
ख के प म काय करना हो |
मु
तव ली को इमाम के प म काय करना हो |
मु
तव ली को य द मु
ला के प म काय करना हो |
मु
तव ली को य द धम उपदे
शक के प म काय करना हो |
मु
तव ली का पा र मक – अपनेसे
वा के बदले म मु
तव ली कु
छ न कु
छ पा र मक ा त करनेका हकदार रहता है
वा कफ इसक धनरा श तय कर सकता है
य द यायालय इसक पा र मक तय करता है
तो वह व फ क संप के लाभां
श
के 10%सेअ धक न होगी |
मु
तव ली केकाय व श याँ– मु
तव ली व फ सं
प का ब धक होता है उसका मुय कत व फ सं प को ई र क
अमानत के प म सुर त रखना तथा इसके
लाभां
श को नधा रत उ ेय क पूत केलए उपयोग म लाना है
| मु
तव ली का
पद अं
तरण यो य नही है
|
सामा यतः मु
तव ली केन न काय एवं
श या ह –
मु
तव ली ऐसेसभी काय कर सकता हैजो व फ क सं
प क र ा शासन केलए यु यु हो मु तव ली क श या
यासी केसामान होती है
पर तु
वह व फ का मा बं
धक होता है
| वह आव यकता पड़ने
पर अ भकता भी रख सकता है
|
मु
तव ली कृ
ष योजन केलए 3 वष या अ य योजन केलए 1 वष केलए व फ क जमीन का प ा कर सकता है
|
मु
तव ली मृ
युशै
या पर रहतेए अपना उ रा धकारी नयु कर सकता है
|
मु
तव ली संथापक ारा नयत पा र मक पाने
का हकदार है पर तु
य द यह ब त कम है
तो यायालय इसको बढ़ा सकता है
पर तु
यह रकम व फ क आय के 10% से
अ धक नही होगी |
व फ क सं
प से
मु
तव ली को कोई गत हत नही होता है
|
मु
तव ली का हटाया जाना – इस स दभ म व फ अ ध नयम, 1995 क धारा 64 केअं
तगत ावधान दया गया है|
अ ध नयम क धारा 64 क उपधारा 1 के अनु
सार व फ वलेख म कसी बात केहोतेए भी व फ बोड मु
तव ली को उसके
पद सेहटा सकता है
, य द ऐसा मु
तव ली –
अ ध नयम क धारा 61 के
अंतगत दं
डनीय अपराध म एक से
अ धक बार द डत हो चु
का हो |
आपरा धक यास भं
ग का दोषी हो |
अ व थ म त क का हो |
अनु
मो चत दवा लया है
|
शराब पीने
का आ द हो |
व फ क ओर से
या उसकेव व धक भु
गतान यो य व धक सलाहकार के प म नयो जत कया गया हो |
जहांएक गाँ
व के
लोगो को ाथ मक प से सा र बनाने
केलए व फ का सृ
जन कया गया हो तथा गाँ
व के
सभी लोग
ाथ मक तर पर सा र हो चु
केहो, वहा पर व फ संप का योग उस गाँ
व केलोगो क उ च श ा पर खच कया जा
सकता है|
यथाश य सा म य लागू
होने
केलए दो त व आव यक ह –
मू
ल व फ व धमा य होना चा हए य द मू
ल व फ शू
य है
तब यह स ां
त लागू
नह होगा |
व फ म खै
र ात का आशय प होना चा हए |
व फ अलल-औलाद एक कार सेनजी व फ होता वही जो व फकता अपने अज मे वंशजो केक याण के उ ेय से
था पत करता है
| मु
ह मद साहब नेअपने प रवार या पड़ो सय केलए सं
प समपण करने को खै
र ात माना है
इस कारण
मुलम व ध म ाचीन समय से ही प रवार केलए कया गया व फ व धमा य रहा है
| व फ अलल-औलाद केलए
आव यक शत यह हैक सं प का समपण थाई तौर पर होना चा हए |
या यक नणय के
मा यम से
वतमान समय म व फ अलल-औलाद केलए न न त व का होना आव यक है
–
पा रवा रक व खै
र ाती काय केलए सं
प का वैछक समपण होना चा हए |
खै
र ात के
स ब ध म आशय प होना चा हए न क ामक |
स जादानशील – स जादानशील का अथ होता है - ाथना के आसन पर बै ठने वाला | वह जो नमाज पढ़ते समय
नमा जय म सबसे आगे बै
ठता हो स जादानशील होता है | यह धा मक स ां तो का उपदे शक होता है| यह जीवन केनयमो
को बतानेवाला, कसी संथा का व थापक और खै र ात का शासक होता है | इसक थ त ह म दर के महंथ क भां
त
होती है
| कोई ी या अवय क स जादानशील नही हो सकता है | वह ायः अपनी सं था का मु
तव ली भी होता है
|
धा मक कत ो को पू
र ा करना |
व फ क सं
प को धा मक योजन म लगाना |
व फ सं
प क आमदनी का बं
ध करना |
स जादानशील का पद आ या मक पद होता है
अतः इसे
धा मक श क भी कहा जाता है
|
व फ पर शास नक व कानू
नी नयंण –
(1)- मु
तव ली का खच का यौरा दे
ना – य द व फ केसृ
जन के समय व फकता ने मु
तव ली को प प सेयह अ धकार
व छुट देदया हैक उसे
व फ शासन पर होने वाले
खच का हसाब नह देना होगा तब व फ का कोई लाभाथ उससे व फ
संप का हसाब नह ले सकता | पर तुय द वा कफ ने
ऐसी कोई छु
ट दान नह क है तब मु
तव ली हसाब देने
केदा य व
सेमु नह होगा और सभी लाभाथ मलकर व फ केहसाब केलए यायालय म वाद ला सकते हैऔर यायालय मुतव ली
सेव फ शासन का हसाब मां ग सकती है |
व फ अ ध नयम म भी मु
तव ली ारा जला यायालय के
सम व फ का हसाब- कताब समय-समय पर तु
त करने
का
ावधान कया गया है
|
(2)- कानू
नी नयंण – व फ केअ छेशासन केलए क व रा य सरकार ने समय-समय पर कुछ अ ध नयम भी पा रत
कये है
| इसम व फ अ ध नयम 1913, 1923, 1954 और 1984 मु ख ह | अब मु
तव ली का कत हैक वह समय-
समय पर जला यायालय म व फ क सं प का हसाब व ले खा-जोखा तु त करेगा |
वतमान समय म उपरो सभी अ ध नयम को नर सत कर भारत सरकार ने व फ अ ध नयम, 1995 पा रत कर दया है
इस
अ ध नयम ारा सभी देशो म व फ बोड क थापना क गई है इसम एक चे यरमै
न व अ य सद य ह गे
| इस बोड को
व धक व ा त है
| इस अ ध नयम ारा मु
तव ली क श पर ब त सारे तब ध लगा दए गये ह और अब
मुतव ली को नयु करने व हटाने
का अ धकार बोड को ा त है| मु
तव ली अब व फ के खातेको आ डट बोड से करवाने
केलए बा य है|
2- गरजाघर बनवाने
केलए व फ – गरजाघर मुलमो का धा मक थान नह है
अतः गरजाघर बनवाने
केलए कये
गये
व फ का उ ेय अमा य है
, व फ नही कया जा सकता है
|
3- मुलम तथा ह व धशा पढ़ानेकेलए कालेज का व फ – मुलम व धशा केलए मा य है
पर तुह
व धशा केलए कया गया व फ का उ ेय व धमा य नह है
|
4- ाईवेट मकबरे
केरख-रखाव तथा चराग जलाने
केलए कया गया व फ का उ ेय खै
र ाती व धा मक है
अतः व धमा य
होगा |
5- एक सं
त के
मकबरे
केलए कया गया व फ चू
ँ
क धा मक थल केलए है
अतः व फ मा य होगा |
6- बं
धक के अधीन सं
प का व फ – ब धककता ारा कया जा सकता हैयो क वह उसका वामी होता है
| बं
धकदार
ारा कया गया व फ अमा य हैयो क वा म व उसमे
न हत नही है
|13. मुलम व ध म हक़ शु
फा (अ - या धकार) को समझाईये
?
शु
फा एक अरबी श द है
, जसका अथ होता है
– जोड़ना | कु
छ प र थ तय म जब दो य केबीच अचल सं प य का
व य, हो तब तीसरा बीच म पड़कर खुद खरीददार होने
का दावा कर सकता है
ऐसे
अ धकार को शु
फा या अ -
या धकार कहते ह|
मू
ल के अनुसार – शु
फा का अ धकार एक ऐसा अ धकार हैजसके
अनु
सार अचल सं
प केवामी को यह अ धकार ा त
होता हैक वह अ य अचल सं प को खरीद लेजसका व य कसी अ य को कया जा चु
का है
|
शु
फा के
अ धकार का आव यक त व –
शफ को कसी अचल सं
प का वामी होना चा हए |
शफ क अचल सं
प के
अतर कसी अ य सं
प का व य होना चा हए |
व य क सं
प व शफ क अचल सं
प म कु
छ स ब ध होना चा हए |
शफ सं
प उ ही शत के
अधीन व उसी तफल पर खरीदने
का हकदार हैजन शत के
अधीन े
ता ने
उसे
ख़रीदा है
|
शु
फा एक वशे
षा धकार है
जो सं
प के
शां
तपू
ण उपभोग के
स ब ध म उ प होता है
|
व े
ता व शफ को मुलम होना अ नवाय है
पर तुे
ता कोई भी हो सकता है
|
शु
फा केअ धकार क कृ त – शु फा का अ धकार सु
खा धकार के
सामान ही एक अ धकार है
जो मुलम व ध ारा
शा सत भू
म सेजुड़ा रहता है| भूम या अ य अचल सं
प से लगी ई अचल सं प केव य के समय ही शुफा का
अ धकार ार भ हो जाता है
| इस अ धकार म शफ के वल े ता केथान पर त था पत होकर व े ता को बा य कर सकता
हैक वह अपनी सं
प को उसके हाथ बेचे
|
शु
फा क मां
ग कौन कर सकता है
– न न ल खत मुलम शु
फा क मां
ग कर सकते
ह–
1- शफ -ए-शरीक – सह वा म व क सं
प का कोई भागीदार शफ -ए-शरीक कहलाता है
| वह अ य सह वामी ारा बे
चे
जानेवाली अपनेभाग केलए शुफा क मां
ग कर सकता है
|
शु
फा का अ धकार कब ार भ होता है
तथा कब तक बना रहता है
?
शु
फा केअ धकार का उदय व य के समय तथा व य पू
ण होने
पर उ प होता है
तथा यह तब तक बना रहता है
जब तक
यायालय ड नही पा रत कर दे
ता |
शु
फा के
अ धकार क औपचा रकताएँ – शु
फा केअ धकार क मां
ग म औपचा रकताओ को पू
र ा कया जाना नतां
त
आव यक ह | शु
फा क न न औपचा रकतायेह-
1. पहली मां
ग (तलब-ए-मु
ब सबत) – पहली मां
ग से
ता पय है
शफ व े ता से
सं
प केव य के थम अवसर पर और
तु
रतंअपनेारा उसक सं प खरीदने क इ छा करेया व य पू
ण होने
क जानकारी मलते
ही व े
ता सेवयं
या
एजट के मा यम सेतु
रत
ंअपनी इ छा उसेबता दे|
3. तीसरी मां
ग (तलब-ए-तमलीक) – तीसरी मां
ग कोई मां
ग नही होती ब क कानू
नी कायवाही होती है
इसक आव यकता
तब पड़ती है जब शफ क पछली दो मां गो को व ेता ारा वीकाय नही कया जाता है |
शु
फा का अ धकार कब न हो जाता है
? शु
फा का अ धकार न न दशा म न हो जाता है
–
शफ े
ता के
प म अपने
अ धकार का अ ध याग कर दे
ता है
|
शफ अपने
साथ कसी ऐसे को सह-वाद बनाए जसको शु
फा का अ धकार न हो |
शफ अपनी ही सं
प का अं
तरण कर दे
ता है
|
शु
फा का अ धकार कब न नह होता ?
वाद के
दौरान शफ क मृ
युहो जाने
पर |
व य के
पूव शफ ारा सं
प खरीदने
सेइनकार करने
पर |
अ - या धकार (शु
फा) क सं
वै
धा नक वै
धता –
शु
फा के
संवै
धा नक वै
धता के
स ब ध म हम दो थ तय पर वचार करना पड़े
गा –
44 व सं
शोधन से
पू
वक थत
44 व सं
शोधन के
बाद क थत
(1) 44 व सं
शोधन से पू
व क थ त – सं वधान के 44 व सं
शोधन के पू
व संवधान केअनु छेद 19 (1) (f) म सं
प का
अ धकार मूल अ धकार माना जाता था तथा अनुछेद 19 (5) म इसपर लोक हत और एस0सी0 और एस0ट 0 केहत म
नब धन लगाए जाने का ावधान था | अतः अ - या धकार क वै धता इस बात पर नभर थी क वह अनु छेद 19(5) के
दायरेम आता हैया नह आता है| शु
फा का अ धकार पडोसी क जमीन को खरीदने का एक बहाना बन गया था व इस
अ धकार के तहत पडोसी को भूम कम क मत पर बे चनेको ववश होना पड़ता था इसी कारण उ चतम यायालय ने शफ -ए-
जार केशुफा केअ धकार को असंवैधा नक ठहराया |
भाऊराम बनाम बै
जनाथ के वाद म शफ -ए-खलीत के
शुफा का अ धकार उ चतम यायालय ने
वै
ध ठहराया यो क सह वामी
ारा ही सं
प का ख़रीदा जाना सं
प केलए हतकारी था |
(2) 44 व सं
शोधन केबाद क थ त – 44 व सं वधान संशोधन ारा सं
प के अ धकार को मू
ल अ धकार क ण ेी सेहटा
दया गया और शु
फा का अ धकार पु
नज वत हो गया तथा शु
फा क वै
धता अब अनुछे
द 14 व 15 केआधार पर जाँ
ची जाती
है|
मृ
तक क दाययो य संप यो का वभाजन मुलम व ध केनयमो के अं
तगत आता है | दाययो य सं
प य से अथ उन
सं
प य से हैजो मृ
तक क स पदा म सेउसके अंयेी संकार, ऋण के
भुगतान तथा वसीयतदारो (य द कोई हो) का
भु
गतान कर दे
नेके बाद जो सं
प या बचती है
उनसेलगाया जाता है
|
यह उ ले
खनीय बात हैक मुलम व ध म उ रा धका रय का नयम अपने आप म कु
छ वशेषता लए ए ह, य क इसके
अं
तगत न केवल उ रा धका रय तथा उनकेव न द ह स क ा या है वरन व भ प र थ तय म मृ
तक केअय
स बंधयो के
पर पर वरोधी दावे
केनपटारेक भी व था क गई हैजो अपनेआप म अनूठ व था है |
मैनाटन केश द म, “ व तु
तः उ रा धकार केनयमो से
अ धक यायो चत उ रा धकार क कोई अ य व था सोच पाना
क ठन है|
इन सब के
होतेए भी यह भी स य हैक मुलम व ध के
उ रा धकार केनयम अ य व ध णा लय क तु
लना म अपने
आप म ज टलता लए ए है |
पू
व क व था म म हलाये तथा मात◌ृ
-बं
धुको स म उ रा धकारी नही माना जाता था जसे
क इ लाम ारा सं
शो धत
कया गया तथा इ ह भी स म उ रा धकारी माना गया |
पू
व क व था म म हला को स म उ रा धकारी न मानाने केकारण प त तथा प नी पर पर उ रा धकारी नही माने
जाते
थेजसे
इ लाम ारा प रव तत कया गया तथा ये
दोनो पर पर एक सरेके उ रा धकारी मानेजानेलगे |
सं
यु अथवा पै तृक सं
प (Joint or Ancestral Property) – मुलम व ध म हद व ध केअनुप संयु संप
नही पायी जाती अतः कसी मुलम क मृ यु
केबाद उसकेवा म व क सभी स प या तु रत
ंउसकेव धक उ रा धका रय
म न हत हो जाती हैतथा मृ
तक के
देहां
त केतु
रत
ंबाद, उसका ये क उ रा धकारी अपने
अपनेह से
का पू
ण वामी बन
जाता है|
मुलम व ध के
अंतगत त न ध व का स ां
त मा य नही है
|
म हला क थ त – म हला तथा पुष उ रा धका रय केअ धकार समान ह पर तुसामा यतः प रणाम म म हला
उ रा धकारी का ह सा उसके
समक पुष उ रा धका रय केह से का आधा होता है
|
गभ थ शशु
भी उ रा धकारी हो सकता है
बशत वह जी वत उ प हो |
सौते
ली सं
ताने
अपने
सौते
ले
माता पता क स पदा क उ रा धकारी नही है
|
मुलम व ध म जेा धकार का नयम नही लागूनही कया जाता हैयेहो या क न क, येक पुका ह सा बराबर रहता
है
| शया व ध म मृ
तक क तलवार, अं
गठ
ू, कुरान तथा व ो का एक मा उ रा धकारी उसका येपुहोता है|
पे
शल मैरज
ेए ट, 1954 के अंतगत संप ववाह – य द कोई मुलम ने अपना ववाह पे
शल मै
रज
ेए ट,1954 के अं
तगत
कया हो तो उ रा धकार के
मामलो म उसे मुलम नही माना जाता और उसक संप य का उ रा धकार इं
डयन स से
शन
ए ट, 1925 केउपबंधो केअधीन होता है
|
नन य को उ रा धकार से
अपव जत कया गया है
–
मुय ण
ेी
तीय ण
ेी
मुय ण
ेी – यह तीन वग म वभ हैजनका ववरण न न है
–
प त – 1/4 भाग
प नी – 1/8 भाग, एक से
अ धक होने
पर भी ये
क को 1/8
वा त वक पतामही – 1/6
पुी – एक है
तो 1/2 भाग य द एक से
अ धक है
तो 2/3 भाग
सगी बहन – एक है
तो 1/2 भाग पर तु
य द एक से
अ धक है
तो ये
क को 2/3 भाग
समर बहन – एक है
तो 1/2 भाग तथा एक से
अ धक होने
पर 2/3 भाग
1- वं
शज (Descendants) –
2- पू
वज (Ascendants) –
(D) सा पा क : वा त वक पतामह के
वंशज –
i. सगा पै
तृ
क चाचा |
ii. समर पै
तृ
क चाचा |
iii. सगे
पै
तृ
क चाचा का पु|
iv. समर पै
तृ
क चाचा का पु|
v. सगे
पै
तृ
क चाचा के
पुका पु|
vi. समर पै
तृ
क चाचा के
पुका पु|
3- तृ
तीय वग – इस वग केउ रा धकारी म मृ
तक के र -स ब धी ह जो उपयु दोन वग म स म लत नही हो पाये
हइह
सहोदर-उ रा धकारी केनाम से
जाना जाता है| इनमेन न स म लत ह –
मृ
तक के वं
शज जो न तो ह से
दार हो और न ही अव श ाही | इसम पुक सं
ताने
तथा इनके
वंशज, पुक पुी क सं
ताने
तथा इनकेवं
शज स म लत ह |
मृ
तक केमाता- पता के
पूवज जो न तो ह से
दार हो और न ही अव श ाही इसम म या पतामह तथा म या पतामही
स म लत ह |
मृ
तक केमाता- पता के
वंशज जो न तो ह से
दार हो और न ही अव श ाही | इस वग म सगेभाई क पुी तथा उसकेवं
शज,
समर भाई क पुी तथा उसके वंशज, सहोदर भाई क संतानेतथा उनकेवं
शज, सगे भाई क पुक पुयाँ तथा उसके
वं
शज, समर भाई के पुक पुयाँ तथा उसके वंशज, बहन क सं ताने
तथा उसके वंशज स म लत ह |
अव श ा हयो केअ त र पू
वजो के
अ य वं
शज | इस वग म नकटतम पतामह- पतामही चाहे
वो वा त वक हो या म या
तथा रवत पू
वजो केवं
शज स म लत ह |
उ रा धका रय केन द ह से
–
प त – सं
तान या वं
शजो के
साथ 1/4 उनके
न होने
पर 1/2
वधवा – सं
तान या वं
शजो केसाथ 1/8 उनक अनुप थ त म 1/4 भाग पर तु
य द वधवा सं
तान वहीन है
तो वह प त क
केवल चल स प य म से 1/4 भाग ही ा त करने
क अ धकारणी होगी |
पता – सं
तान अथवा वं
शजो के
साथ 1/6 उनक अनु
प थ त म अव श ाही बन सकता है
|
माता – सं
तान या वं
शजो अथवा दो या अ धक समर भाइयो अथवा एक सगा या समर भाई के साथ दो सगी या समर
बहने अथवा पता केसाथ चार सगी या समर बहन क उप थ त म 1/6 इनके अनुप थ त म 1/3 भाग क अ धकारणी
ह गी |
पुी – एक है
तो 1/2 वही दो या अ धक पुय का ह सा 2/3 होगा पर तु
य द पुके
साथ पुी है
तो वह अव श ाही बन
जाती है|
सगी या समर बहन – अ य उ रा धका रय क अनुप थ त म एक सगी या समर बहन का ह सा 1/2 तथा दो या दो से
अ धक सगी या समर बहन होने पर उनका सं
यु ह सा 2/3 होगा | पर तु
वही य द वह सगे
या समर भाई या पता के
साथ हैतो सगी या समर बहन अव श ाही बन जाती है
|