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4 (i).

साधारण अपवाद (धारा 76-95)

भारतीय द ड सं
हता म अ याय 4 अने
क तर ा से स बंधत हैतथा इस अ याय को साधारण अपवाद कहा जाता है|
भारतीय द ड सं
हता म सभी अपराध पर यह धारा लागू
होता है
, अ याय 4 म धारा 76 से
106 कु
ल 31 धारा है इन सभी
अपराध को एक अ याय म उपबं धत करनेका मुय कारण यह हैक इ ह व भ अपराध के साथ पु
नः दोहराने

आव यकता न रहे|

अ याय 4 दो व तृ
त कार के
अपराध से
स बं
धत है

यु सं
गत

1- य – इसम अपराध तो होता है


मगर अपराधी का षत आशय नह होता इस लए उसे
माफ कर दया जाता है
इसका
वणन धारा 76 से
95 तक म है
|

2- यु सं
गत – अगर ऐसी प र थ तयांव मान है जो अपराध को यु सं
गत बनाती हो तो उस दशा म भी अपराधी को
माफ कर दया जाता है
इसका वणन धारा 79, 96 से
106 तक म है |

साधारण अपवाद –

भू
ल (धारा 76, 79)

या यक काय (धारा 77, 78)

घटना या भा य (धारा 80)

आव यकता (धारा 80)

वा याव था या शै
शवाकाल (धारा 82, 83)

च वकृ
त (धारा 84)

म ता या मदहोशी (धारा 85, 86)

सहम त (धारा 87 से
91)

सद्भावना (धारा 92, 93)


धमक ारा ववशता (धारा 94)

तु
छ काय (धारा 95)

ाइवे
ट तर ा का अ धकार (धारा 96 से
106)

सामा य अपवाद को सा बत करने


का भार हमे
शा अ भयु पर होता है
|

धारा 76. व ध ारा आब या त य क भू ल केकारण अपने आप को व ध ारा आब होने का व ास करनेवाले


ारा कया गया काय – कोई बात अपराध नह है
, जो कसी ऐसे ारा क जाए जो उसे
करनेकेलए व ध ारा
आब हो या जो त य क भू ल के कारण न क व ध क भूल केकारण सद्भावपू वक व ास करता हो क वह उसे
करने
केलए व ध ारा आब है |

आव यक त व –

एक ारा कया गया कोई काय जसे


करने
केलए वह व ध ारा बा य है
|

एक ारा कया गया कोई काय जसे


करने
केलए वह अपने
को व ध ारा बा य समझता है
|

यह व ास त य क भू
ल के
कारण होना चा हए |

उसने
सद्भावपू
वक व ास कया हो |

एक ारा कया गया कोई काय जसेवह करने


केलए व ध ारा बा य है
– ऐसा काय अपराध नह होता जो व ध
ारा आब ारा कया जाता है
|

ा त – व ध के
समादे
शो के
अनु
वतन म अपने
व र आ फसर के
आदे
श से
एक सै
नक क भीड़ पर गोली चलाता है
, क ने
कोई अपराध नह कया |

एक ारा कया गया कोई काय जसे


करनेकेलए अपनेको व ध ारा बा य समझता है
– धारा 76 केअं
तगत,
इसका बचाव तभी वीकार कया जाता है
जब वह त य क भू
ल के
कारण कोई काय करनेकेलए अपने को व ध ारा
आब समझता है |

यह व ास त य क भू ल केकारण होना चा हए – यह धारा इस लै


टन सू- Ignorantia facit excusat, ignorantia
juris non excusat (त य स ब धी भू
ल य है , व ध क भू ल य नह है) पर आधा रत है |
भू
लक तर ा होने
केलए यह आव यक हैक वह त य से
स बं
धत हो न क व ध से
|

आरo बनाम वेलेकेवाद म जहाज के क तान को एक ऐसेअपराध केलए द डत कया गया जसे या ा के
दौरान अपराध
घो षत कया गया था, क तान का यह तक क उसे इस व ध क जानकारी नह थी मा य नह कया गया |

व ध क भूल य नह है यह सभी अपराध पर लागू


होता है
तथा इसका कोई अपवाद भी नह हैयहाँ
तक एक वदे
शी भी
जसके बारे
म यह कहा जाता हैक उसे
इस दे
श क व धय का ान नह है वह भी इस सूके दायरे
म आता है
|

धारा 77. या यकतः काय करतेए यायाधीश का काय – कोई बात अपराध नह है
, जो या यकतः काय करतेए
यायाधीश ारा ऐसी कसी श के योग म क जाती है , जो या जसकेबारेम उसेसद्भावपू वक व ास हैक वह उसे
व ध ारा द गयी है |

यह धारा एक जज को उस समय सुर ा दान करती है


जब क वह या यकतः काय कर रहा हो, यह धारा एक जज को उन
मामलो म सुर ा दान करती हैजनमेवह व ध ारा द अ धकार का योग अ नय मतता से करता है और उन मामलो म
भी एक यायाधीश को बचाव ा त हैजहाँ
वह सद्भावपू वक अपनेेा धकार को पार कर जाता है |

नोट – “इस धारा के


अंतगत व ध क भू
ल के
अंतगत भी बचाव ा त है

पर तुन न शत केअधीन होगा – जहाँएक यायाधीश या यकतः काय कर कर रहा हो एवंऐसा काय करतेए वह अपने
अ धकार ेसे बाहर चला जाता है
साथ ही वह इस कार का काय करतेए यह व ास रखता हैक उसे ऐसा काय करने
क अ धका रता ा त हैअथात ऐसा व ास उसके ारा सद्भावपू वक कया गया हो तो वह यह बचाव पाने
का अ धकारी
होगा |

पर तु
उसने यह काय सद्भावपू
वक न कया हो तो उसेव ध क भू
ल के
अंतगत बचाव नह मले
गी ऐसी थ त म उसके
साथ साधारण य जै
सा वहार कया जाये
गा |

नोट – या यकतः काय करतेए एक यायाधीश को व ध क भू ल केअंतगत बचाव ा त है


, ठ क इसी कार सं
हता क
धारा 499 का अपवाद 2, 3 व 7 म भी आपरा धक दा य व सेयायाधीश को उ मु दान करता है |

भू
ल दो कार क होती है

त य क भू

व ध क भू

1. त य क भू
ल – भू
ल को तर ा का आधार होने
केलए यह आव यक हैक वह त य से
स बं
धत हो न क व ध से
|

ा त – यायालय का आ फसर क, म को गर तार करनेकेलए उस यायालय ारा आ द कये जाने पर और स यक


जाँ
च के प ात्यह व ास करकेक य, म हैय को गर तार कर ले
ता है
क, ने
कोई अपराध नह कया |

धाक सह बनाम रा य AIR 1955 के


मामलेम इलाहाबाद उ च यायालय नेत य क भू
ल को वीकार कर लया और पता
को बरी कर दया जहाँ
पता ने
इकलौतेबे
टे
को शे
र समझकर मार डाला था |

इ परर बनाम व रयम सह इस मामले म अ भयु रात के समय एक ऐसे रा ते


से जा रहा था जहाँपर र- र तक कसी गां

का अनुम ान नह था उसने
एक थान पर कु छ लोगो को रोशनी म नाचतेए देखा अ भयु ने उ ह भू
त समझकर उनपर गोली
चला द जससे एक मारा गया यहाँ
पर अ भयु के त य के भू
ल केतक को वीकार कया गया और अ भयु को
बरी कया गया |

न न प र थ तय म त य क भू
ल का बचाव नह लया जा सकता –

य द उ चत पू
छताछ पर त य को जाना जा सकता था |

कोई ऐसा अपराध जो राशय के


संान केबना अपराध घो षत कया गया है
|

2. व ध क भू
ल – जस कार से त य क भू ल य हैव ध क भू ल य नह होती हैयो क य द व ध क भू
ल को
बचाव म वीकार कर लया जाए तो हर अपराधी यह तक उठाएगा क उसेव ध क जानकारी नह थी |

धारा 78. यायालय केनणय या आदे


श केअनुसरण म कया गया काय – यह धारा, धारा 77 का ही एक उप स ांत हैयह
धारा ऐसेअ धका रय को सं
र त करता है
जो यायालय केकसी नणय या आदे श के अनु सरण म काय करते हो तथा यह
व ास रखते हो वह आदे
श नणय यायालय के ेा धकार केभीतर है
ऐसा व ास सद्भावपू वक होना चा हए |
सरेश द म, कसी ारा या यक नणय के अनुपालन म कोई काय कया जाता हैतो वह काय तब तक अपराध नह
होगा जब तक अनुपालन करानेवाले नेसद्भावना पू वक काय कया हो य द उस को यह मालू
म हो जाता है
क या यक नणय ु टपूण हैऐसी प र थ त म उसका दा य व बनता हैक आदे
श देनेवालेा धकारी को सूचना देपर तु
य द वह यह जानतेए क आदे श ुटपूण है
तो और ऐसे आदेश का अनु
पालन कराता है तो वह अपराधी माना जाएगा
|

धारा 79. व ध ारा यायानु मत या त य क भूल सेअपनेको व ध ारा यायानुमत होनेका व ास करने
वाले ारा
कया गया काय – कोई बात अपराध नह है , जो ऐसे ारा क जाए, जो उसे
करने केलए व ध ारा यायानु
मत हो,
या त य क भू ल के कारण, न क व ध क भू ल केकारण सद्भावपू वक व ास करता हो क वह उसे करनेकेलए व ध
ारा यायानु
मत है|

आव यक त व –

एक ारा कया गया काय जो त य के


भूल के
अंतगत हो |

भू
ल व ध से
स बं
धत नह होनी चा हए ब क भू
ल त य से
स बं
धत होनी चा हए |

भू
ल सद्भावना पू
वक होना चा हए |

कता को व ध ारा यायानु


मत ा त हो अथवा उसेव ास हो क व ध ारा यायानु
मत है
|

व ध ारा यायानु
मत – व ध ारा यायानु
मत से
ता पय ऐसे
काय से
हैजो व ध ारा न ष नह है
|

“ एक व ध ारा यायानु
मत माना जाता है
जब व ध उससे
कुछ करने
क अपेा करती है
|“

धारा 76 व धारा 79 म अं
तर –

धारा 76 उन मामलो सेस बं धत हैजनमे त य क भू ल केकारण मत एक व श ढं ग सेकाय करनेकेलए अपने


को व ध ारा बा य पाता हैय प क यथाथ म उसका काय एक अपराध हैक तु धारा 79 ऐसेमामलो से
स बं धत है जहाँ
त य क भू ल के कारण मत एक व श ढं ग से काय करनेम अपने को व ध ारा यायानुमत पाता है
| इन दोन
धारा के बीच केअंतर को ‘ व ध ारा बा य’ तथा ‘ व ध ारा यायानु
मत’ श द के योग ारा प कया गया है |

धारा 80. व धपू


ण काय करने
म घटना – कोई बात अपराध नह है
, जो घटना या भा य से
और कसी अपरा धक आशय
और ान केबना व धपू ण कार सेव धपू
ण साधन ारा व उ चत सतकता और सावधानी से साथ व धपू
ण काय करने

हो जाती है
|

ा त – क कुहाड़ी से
लकड़ी काट रहा है
अचानक कुहाड़ी सेफाल नकल जाता है
और उसके पास खड़े को लग
जाता हैअगर क ने
उ चत सावधानी बरततेए काय कया है
तो उसेइस धारा क तर ा होगी |

आव यक त व –

काय या घटना भा यवश हो|

काय कसी आपरा धक आशय या ान केबना कया गया हो |

घटना व धक साधन ारा व धक री त सेकये


गए कसी व धक काय का प रणाम हो |

काय उ चत सतकता व सावधानी सेकया गया हो |

काय घटना या भा यवश हो – धारा 80 केअंतगत काय घटना या भा यवश होना चा हए | घटना का अथ सं
योग ारा
कोई घटना नही है
अ पतुघटना ऐसी अनाश यत हो अथात सामा य ववे
क से
परे
कोई अ या शत घटना जसका हम
प रक पना न कर सके|

घटना या भा य दोन ही श द का अ भ ाय कसी अ य को प च


ँी त से
हैघटना म सरे को त अं
त त होती
हैभा य म जतनी त तकता को होती है उतनी ही त काय सेअलग कसी अ य को होती है
|

काय को आपरा धक आशय या ान केबना कया जाना चा हए – धारा 80 म काय को राशय के


अभाव म कया जाना
आव यक होता है| य द ऐसा नही है
तो धारा का बचाव नह दया जाएगा |

घटना व धक साधन ारा व धक री त सेकये गए कसी व धक काय का प रणाम हो – ज देर बनाम इ परर इसम एक
सरे को घू

ंे से
मार रहा था, तभी उसक प नी दो माह का ब चा गोद म लए आई और उसे बचाने
का य न
कया पर पहले नेम हला पर भी हार कया मगर चोट उसको न लगकर ब चे को लग गई और उसक मृयु
हो गई |
यह न णत कया गया क ब चे को अक मात चोट आयी | चूँक अ भयु एक व धक काय, व धक री त से नह कर रहा था
अतः वह भारतीय द ड संहता क धारा 80 का बचाव नह ले सकता है |

शा कर खान बनाम ाउन के वाद म कु


छ लोगो का झुं
ड जं
गलो म शु करो का शकार करनेगया | एक शूकर ने
उन पर
आ मण कया, उनमे से
एक नेशूकर पर गोली चलाया, गोली शू
कर को न लग कर झु

ड के ही एक को लगी और
वह मर गया | इस मामले
म वह उ रदायी नह ठहराया गया | यह नण त आ क मृ युघटना के कारण ई |
अवैध काय सेघटना – मै काले
क राय म जब कोई अपराध का रत करने
म लगा है
और नता त घटना ारा मृयु
का रत कर दे
ता है
तो वह मा अपने
अपराध केलए द डत होगा | आक मक मृ
युकेकारण वह द डत नह होगा |

उदाहरण – अगर कोई पाके


टमार चोरी करनेकेउ ेय सेकसी केजेब म हाथ डालता है
और उस जे
ब म भरी ई ब क
रहती हैजसका आभास पाके टमार नह कर पाता हैत प ात ब क चल पड़ती है और उस क मृ यु
हो जाती है
वहां
चोर को के
वल चोरी केलए उ रदाई ठहराया जाता है
अ य कसी काय केलए नह |

सतकता व सावधानी पू
वक कया गया काय – काय पू
र ी सतकता व सावधानी पू
वक कया गया होना चा हए |

भू
प सह बनाम गु जरात रा य केवाद म एक पु
लस वाले नेअपनेऊपर के पु
लस को गोली मार द उसका कहना था क
उसनेमृतक को बां
ध केमनार टावर पर टहलतेए देखा और वह सोचा क वह मीनार को आग लगा रहा है
तथा उसने
उसेदो बार आवाज भी द लेकन उसके तरफ सेकोई उ र नह मला तब उसनेउसपर गोली चलाई यहाँयायालय नेउसे
उ रदाई ठहराया यो क उसक ओर से सतकता एवंसावधानी पू
वक काय नह कया गया था |

आपरा धक व ध केकसी आशय म योगदायी उपेा कोई बचाव नह है


| इस वाद म दोन के
म य पू
व से मनी चली आ
रही थी |

धारा 81. काय जससे का रत होना स भा हो पर तु


जो आपरा धक आशय केबना और अ य अपहा न केनवारण के
लए कया गया – कोई बात केवल इस कारण अपराध नह हैक वह यह जानतेए क गयी हैक उससे अपहा न का रत
होना स भा है य द वह अपहा न का रत करनेकेलए कसी आपरा धक आशय केबना और या सं
प को अ य
अपहा न का नवारण या प रवजन करने के योजन सेसद्भावपूवक क गयी हो |

आव यक त व –

दोषकता य प यह जानता हैक अपराध का रत करने


वाले
काय ारा अपहा न का रत होना स भा हैफर भी उसे
अपहा न का रत करने
केकसी आपरा धक आशय केबना कया गया हो |

काय सद्भावपू
वक कया गया हो |

काय कसी अ य अपहा न केनवारण या प रवजन हे


तुकया गया हो |

अपहा न जसेनवा रत या प रव जत करने


का उ ेय हैकसी या सं
प से
स बं
धत होना चा हए |
यह धारा कसी बड़ी हा न केनवारण हे
तु
छोट हा न को का रत करने
क अनु
म त दे
ता है
|

जब कभी आव यकता कसी को अवै ध काय करने


केलए बा य करती है, वह उसे
करने
म यायो चत होगा, यो क
कोई भी आपरा धक आशय या इ छा केबना कसी अपराध का दोषी न होगा |

उदाहरण – दो जो लकड़ी के
एक त ते को पकड़ने केलए संघष कर रहे है
पर तु
वह त ता केवल एक का
बोझ ही सह सकती है
य द उनमे
सेएक सरे को ध का दे
ता है
और उसके डू
बने सेमृयु
हो जाती है
तो वह दोषी नह होगा
यो क उसने उसे
ऐसेअवसर पर छोड़ दया ता क वह सरा त ता खोज सके, उसनेऐसा मा आव यकतावश कया |

माउस का मामला – एक ना वक ने
अपीलकता के
सामान को उठाकर नद म फ़क दया ता क तू
फान से
या य क र ा क
जा सकेयहाँउसेउ रदाई नह माना गया |

बना कसी आपरा धक आशय के– इस धारा के अं


तगत तर ा का अ धकार पाने
केलए यह आव यक हैक काय कसी
आपरा धक आशय केबना कया गया हो | साशय कया गया आपरा धक कृ
य यायो चत नह ठहराया जा सकता |

काय सद्भावपू
वक कया गया हो – इस धारा के वतन केलये
काय सद्भावपू
वक होना आव यक है
|
सद्भावपू
वक को इस सं
हता क धारा 52 म बताया गया |

काय कसी अ य अपहा न केनवारण या प रवजन हे


तुकया जाना चा हए – मुय स ां त जस पर यह धारा आधा रत है
वह यह हैक कसी या सं
प को गुतर अपहा न सेनवारण हे तुलघुतर अपहा न का का रत कया जाना उपयु है|

यहाँ यह हैक - अपने जीवन क र ा करते


समय नद ष को का रत नु
कसान कस सीमा तक आव यकता के
स ात को यायो चत ठहराता है
?

आरo बनाम डड॒ ले एवंट फस के वाद म A, B, C तथा एक अवय क बालक एक नाव म या ा कर रहे थेवेसमुम तूफान
केकारण बह गए थे , कुछ दन बीत गए तो उनके पास खा साम ी समा त हो गयी तथा जो अवय क बालक था वह भी
कमजोर हो रहा था | इस पर A ने
B व C को सलाह दया क इस बालक को मारकर य न खा लया जाए | इस पर C ने
अपनी सहम त नह द , तथा A व B ने उसे मार दया और तीनो नेउसे खाया | जब A, B, C तीनो सु
र त घर आयेतो
अ भयोजन के दौरान उ ह ने बचाव म यह तक लया क लड़के क हालत नाजु क थी और इस बात क स भावना थी क वह
तीनो से
पहले मरता, अगर तीनो नेब चेको मारकर न खाया होता तो वेभी जी वत नह बचते और इसके अलावा उनकेपास
कोई और साधन भी न था | यायालय नेनणय दया क ऐसी कोई आव यकता न थी जो अ भयु के इस काय को
यायो चत ठहरा सके
|

डॉ टर हरी सह गौड़ा ने
उपरो नणय सेन न ल खत नयम को नकाला –

आ म सं
र ण एक परम आव यकता नह है
|

कसी को सरे
का जीवन ले
कर अपना सं
र ण करने
का अ धकार नह है
|

कोई भी आव यकता मानववध को उ चत नह ठहराती |

तीसरे
नयम का अथ हैक कोई भी आव यकता क सु
र ा हे
तुमानववध को यायो चत नह ठहराती क तु
इसका
एक अपवाद है
वह यह हैक आ मर ा एवं
लोक याय अथवा सु
र ा हे
तुकया गया मानववध अपराध नह है|

धनीया दाजी बनाम इ परर के


वाद म चोर को पकड़ने
केलए ताड़ी के बतन म जहर डाला तथा एक अ य नेउसे
सैनको को पला दया | यहाँअ भयु को धारा 328 के
अंतगत दोषी ठहराया गया यो क चोर को पकड़ने
क कोई ऐसी
आव यकता नह थी जससेक सरे को त प च
ँाने
का जो खम उठाया जाये |

वश भर बनाम मल के वाद म प रवाद को उसका चे


हरा काला करके पू
रेगॉव म घु
म ाया गया था तथा अ भयु जो क
पंचायत के
सद य थे
, के
आदे श पर अ भयु को जूत सेपटा गया | प रवाद नेएक चमार क लडक से छेड़छाड़ कया था
और फल व प उस समु दाय के200 लोग ह थयार सेलै
श होकर उसे द डत करना चाहते थे, यहाँ
पर पं
चायत ारा कये
गए काय को आव यकता माना गया |

धारा 82. सात वष से


कम आयु
केशशु
का काय – कोई बात अपराध नह है
जो सात वष से
कम आयु
केशशुारा कया
जाए |

धारा 83. सात वष से


ऊपर व 12 वष केकम आयु केअप रप व समझ केशशु
का काय – कोई बात अपराध नह है
जो 7
वष से ऊपर और 12 वष सेकम आयु केऐसेशशुारा क जाती हैजसक समझ इतनी प रप व नह ई हैक वह उस
अवसर पर अपने आचरण क कृ त व प रणामो का नणय कर सके|

धारा 84. वकृ


तच का काय – वकृ
तच के ारा कया गया कोई भी आपरा धक कृ
य पू
णतः य है
,
यो क ऐसा अपराध केलए आव यक राशय धारण करनेम असमथ होता है |

वकृ
तच से
ता पय ऐसे से
हैजो व थ च का नह है
ऐसे चार कार के
होते
हैजनके
बारे
म कहा
जा सकता हैक वेव थ च के
नह है

1- जड़ – जड़ वह होता हैजो ज म सेहो, अ व थ च का हो, जो 20 तक गनती नह गन सकता, जो अपने


माता
पता का नाम नह बता सकता हो, उ ह पहचान न सकता हो या जो स ताह या दन के
नाम न बता सकता हो |

2- ऐसा जो कसी बीमारी के


कारण वकृ
त च का हो गया हो – वकृ
त च ता के
दौरान कया गया काय य होगा |

3- उ म या पागल – वह जो मान सक वकार से


कुछ समय केलए पी ड़त हो जाता है
और फर व थ हो जाता है
उसे उ म या पागल कहतेहै
|

4- म – जो गाँ
जा आ द पीता हो | वकृ
त च के
काय को ाचीन आं
ल व ध म भी आपरा धक दा य व से
छु
ट ात
थी पर तुव ध व थत नह हो पायी थी |

समय समय पर अने


क मामलो म वकृ
त च ता से
स बं
धत न न ल खत परी ण वक सत कये
गए -

आरo बनाम अरनाइल केमामलेम वाइ ड बी ट टे


ट (जंगली ाणी प र ण) तपा दत कया गया | इसकेअनु
सार
पागलपन सेभा वत को तब तक आपरा धक दा य व से उ मु नह करना चा हए जब तक क यह कट न हो जाए
क वह अपनी बु तथा समझ सेपू
णतः वंचत हो गया हैऔर एक ब चे, एक नदयी या एक जं
गली पशु
केसमान यह
समझने म असमथ हैक वह या कर रहा है|

आरo बनाम है
टफ ड के मामले म व त ा त परी ण तपा दत कया गया | इसकेअनु
सार पागलपन का नधारण उस
उ माद म केअं
तगत होना चा हए जससे
पी ड़त होकर अ भयु ने
अपराध कया है|

आरo बनाम बाउलर के


मामले
म उ चत और अनु
चत म भे
द करने
केस ां
त को तपा दत कया गया |

आरo बनाम मैनाटन, (1843) के


वाद म A जो काटलड म रहता हैउसने टश धानमंी केनजी स चव मं ड को
टश धानमंी राबट पील समझकर मार डाला यो क वह राबट पील को अपनेभा य का कारण समझता था |
यायालय ने
अ भयु को दोषमु कर दया यो क अ भयु उ म था |
उ नणय से टे न म ववाद होने
लगा, हॉउस आफ लाडस म भी मतभेद पै
दा हो गया इस लए इस वषय पर व ध नधा रत
करने केलए 15 सद यीय या यक स म त ग ठत क गयी जसनेपां
च स ां त तपा दत कयेजससेवकृ त च ता से
स बंधत व ध को व थत कया गया इस वाद म तपा दत स ां तो को द ड सं हता क धारा 84 म लागूकया गया इस
वाद म न न ल खत स ात तपा दत कये गए –

यह क पना क जाती हैक ये


क व थ च म त क का है
जब तक क इसकेवपरीत सा बत न कया जाए |

यह आव यक हैक कृ य करते
समय अ भयु ऐसे
म त क दोष से
पी ड़त हो क वह अपने
कृय तथा उसके
प रणाम को
समझनेम असमथ हो |

य द अ भयु यह जानता था क उसका कृ


य ऐसा हैजसे
उसे
नह करना चा हए या वह व ध व था तो अ भयु को
द डत कया जाना चा हए |

मान सक व म से त आपरा धक दा य व से
मु का अ धकारी है
|

एक च क सक, जसने
अ भयु के
परी ण के
पूव कभी नह दे
खा हो, क राय ा नह क जानी चा हए |

द ड सं
हता क धारा 84 मैनाटन के
वाद म तपा दत स ां
तो पर आध रत है
इसकेन न ल खत आव यक त व है
-

कृ
य एक वकृ
तच ारा कया गया हो |

ऐसी च वकृ
तता काय करते
समय हो |

वह यह जानने
म असमथ हो क,

काय क कृ
त या

काय दोषपू
ण है
या

काय व ध के तकू
ल है
|

आव यक त व क ववे
चना –

1- काय एक वकृ
तच ारा कया गया होना चा हए |

2- ऐसी वकृत च ता काय करतेसमय हो – धारा 84 का बचाव अ भयु को तभी मले


गा जब वह सा बत कर देक वह
अपराध के समय वकृ त च था य द वह पहलेया बाद म वकृत च था और अपराध केसमय ठ क था तो उसेबचाव नह
मले गा |
3- वकृत च ता के कारण काय क कृ त समझने म या यह क काय दोषपूण है
या व ध के तकू ल है
जानने
म असमथ
था – धारा 84 का लाभ तभी ा त कया जा सकता हैजब अ भयु यह स कर दे ता हैक वह वकृ
त च होने
केकारण
काय क कृ त को न समझ सका क वह जो कु
छ कर रहा हैव ध व या अपराध होगा |

बसं
ती बनाम टे ट (1989) केवाद म एक म हला जो अपनेब चेकेसाथ आ मह या करना चाहती थी, आ मह या करने
से
पू
व ही बचा ली गयी | यायालय ने
उसे धारा 84 के
अंतगत लाभ नह दया |

घू

ंर मल बनाम इ परर (1989) इस वाद म अ भयु मृतक को प थर सेमारने
केबाद नद क ओर चला गया था, वहा उसने
पहले अपनेकपड़ो को छपाया फर शरीर पर लगे खू
न केध बो को साफ कया यायालय ने
उसे
धारा 84 का बचाव दे
ने से
मना कर दया यो क मामलो क प र थ तय से यह न कष नह नकाला जा सकता था क अ भयु अपराध के समय
वकृ त च ता के
कारण काय क कृ त जाननेम असमथ था |

असी न बनाम स ाट के मामलेम एक को व म दै


वीय आ ा ा त ई क अपने पुका ब लदान कर दो, उसने
अपने इकलौते पुक ब ल चढ़ा द | कलक ा उ च यायालय नेउसे
धारा 84 का लाभ दया पर तु
इ ही त य के
आधार पर
इलाहाबाद उ च यायालय ने
ल मी बनाम रा य केमामले
म भ मत दया |

पारसराम बनाम पं
जाब रा य के
वाद म दे
वी को स करने
केलए ब ल चढाने
पर सभी अ भयु को धारा 84 का सं
र ण
नह ा त आ था |

वकृत च ता क व धक ा या काफ हद तक च क सक य ा या सेभ है


तथा ये
क कार क वकृ
त च ता को
व ध म मा यता नह दान क गई है
|

ा त - कोई च क सक के अनुसार कसी भी कार केवकृ त च ता से


पी ड़त हो सकता हैक तुधारा 84 म व णत
च वकृ तता से वह पी ड़त नह हो सकता है| य द त य द शत करते
हैक अ भयु को इस बात का ान था क उसने
गलत कृ य कया है तो च क सक क म वह चाहेकतना भी वकृत च न हो उसेबचाव तभी मलेगा जब वह धारा 84
क शत को पू र ा करता हो |

एस. तु
बा चे
तया बनाम असम रा य, 1976 – व धक वकृत च हे
तु यह स करना आव यक हैक स बं धत क
ाना मक मताएं ऐसी हैक वह नही जानता हैक उसनेया कया हैया उसके
काय का प रणाम या होगा |
सु
धीर च द व ास बनाम प म बं गाल केमामलेम अ भयु क उ के ता या सनक या वहार क व च ता से उ मु
के
वल व धक पागलपन ही दान करता है | इसे
ग ठत करनेहे
तु आव यक हैक म त क क वकृ त ऐसी हो जससे
अपराधी काय क कृ त जानने म या यह जानने
म क वह व ध व काय कर रहा है
, असमथ है
| ऐसी मनः थ त अपराध
करतेसमय होनी चा हए न तो उसके पहलेऔर न ही उसकेबाद |

वकृ
त च ता क स भा रता – वकृ त च ता क स भा रता अ भयु पर होती है ऐसा उपबंध भारतीय सा य अ ध नयम
क धारा 105 म हैजसे
के. एम. नानावती बनाम महारा रा य के
वाद म अपनाया गया था |

मीतुखा दया बनाम उड़ीसा रा य केवाद म यह अवधा रत कया गया क वकृ त च ता या पागलपन को पू
ण प सेस
कया जाना चा हए | स करने का दा य व अ भयु पर होता है
| यायालय अ भले
ख पर उपल ध सा य तथा मामले
के
त य एवंप र थ तय के आधार पर अ भयु को साधारण अपवाद का लाभ दे सकता है|

नवार भावना या अ नयंत े रणा – धारा 84 के


अंतगत नवार भावना को मा यता नही ा त है
| आपरा धक व ध एक
को के
वल उसके दोष केलए द डत करती है न क उसकेभा य केलए | य द म त क क ऐसी अव था व मान
हैजसमे कता यह जानता हैक उसका काय दोषपू ण हैक तु
वह इस कार रोग त हैक अपराध का रत करने से
अपने
को वरत नही रख सकता तो यह एक नवार भावना या अ नयंत े रणा का मामला होगा |

भारतीय व ध और आंल व ध क तुलना - भारतीय द ड सं


हता म धारा 84 म वकृ
त च ता से
स बं
धत जो व ध बतायी
गयी है
वह आरo बनाम मैनाटन केस ांतो पर आधा रत है|

आं ल व ध म मैनाटन केनयमो को संशो धत कया जा चु


का है
, तथा वहा सामा जक तथा च क सक य च वकृ तता को
मा यता दे
द गयी है
इसके स ब ध म “The Homiside Act, 1957” पा रत कया गया है| अतः भारतीय व ध को भी
आज क प र थ तय के अनुकू
ल बनानेकेलए यु यु सं शोधन करना चा हए |

धारा 85. ऐसे का काय जो अपनी इ छा केव म ता म होने


केकारण नणय पर प च ँनेम असमथ है – कोई
बात अपराध नही है
, जो ऐसे ारा क जाती है
, जो उसे करते
समय म ता के कारण उस काय क कृ त, या यह क
जो कुछ वह कर रहा हैवह दोष पू
ण या व ध के तकू ल है
, जानने
म असमथ है , पर तु
यह तब जब क वह चीज, जससे
उसक म ता ई थी, उसको अपनेान केबना या इ छा केव द गयी थी |

अनैछक म ता – म ता च वकृ त क ही एक जा त है जहांच वकृ त म था य व का त व भावी होता है


वही
म ता अ थायी होती है
| आदतन म दरापान सेउ प मान सक वकार म ता से उ प वकार, य द इस कार का हैजसमे
अ भयु अपने काय क कृ त या प रणाम को नही समझ सकेतो मैनाटन का स ा त लागू हो जाता है
|
इ तहास – 19 व सद केार भ तक म ता को आपरा धक दा य व सेउ मु का बचाव नही ा त था | रे
न जर बनाम
फोगो सा केमामलेम मानव वध के
आरोपी को मृ यु
द ड आदे
शत कया गया (म ता क थ त म होतेए भी) पर तु धीरे
धीरे
इस कठोर नयम को लचीला बनाया गया तथा अनैछक म ता को एक बचाव के प म मा यता ा त होनेलगी |

आंल व ध म सव थम आरo बनाम मीड (1909) के


मामले
म म ता को के
वल द ड कम करने
केलए बचाव म तक के
प म मा यता द गयी |

भारतीय व ध – भारतीय द ड सं
हता म म ता से स बंधत व ध का वणन धारा 85 तथा धारा 86 म कया गया है
| धारा
85 जहांअनैछक म ता से स बंधत हैवही धारा 86, वैछक म ता से स बं धत है|

धारा 85 के
अनु सार म ारा कया गया आपरा धक काय य है जब क काय करतेसमय अ भयु या अपने
कृय क कृ त तथा काय दोषपू
ण है या व ध के तकू ल है जानने
म असमथ होता है
जब क वह व तुजससेउसको म ता
ई उसे उसके ान केबना या इ छा केव द गयी हो |

धारा 85 के
आव यक त व न न ल खत ह –

काय कसी म के ारा कया गया होना चा हए,

ऐसी म ता काय करते


समय हो,

अ भयु यह जानने
म असमथ हो , क – (a) काय क कृ
त, या (b) काय क दोषपू
ण है
, या (c) काय व ध के तकू

है
|

वह व तुजससे
म ता यी वह उसके ान केबना या इ छा केव द गयी हो |

डी. पी. पी. बनाम बयड (1920) – इस मामले म अवय क लड़क मल के रा ते


सेजा रही थी जब क मल के पहरेदार ने
बला सं ग करने केआशय से उसे पकड़ लया तथा तथा उसक आवाज दबाने केलए उसके गले पर अं
गठ
ूा रख दया
प रणाम व प उसक मृ युहो गयी | इस मामले
म अ भयु को ह या केलए द डत कया गया तथा म ता से स बंधत
न न ल खत स ां त तपा दत कया गया –

जन मामलो म व श आशय या ान अपराध का एक आव यक त व है उनमे य द म ता के


कारण अ भयु अपेत
आशय न मत करने म असमथ था तो ऐसी असमथता दोषमु का आधार होगी |

वकृ
त च ता एक तवाद है
चाहे
वह म ता से
उप ई हो या अ यथा |
आरo बनाम लीपमै
न – इस वाद म दवा के
अ य धक से
वन केकारण अ भयु को लड़क सांप दखाई दे
ती है
और वो उसे
मार डालता है
उसे
आपरा धक मानववध केलए दोषी ठहराया गया न क ह या केलए |

धारा 86. कसी ारा, जो म ता म है


, कया गया अपराध जसमे वशे
ष आशय या ान होना अपेत है – उन
दशाओ म, जहाँ क कोई कया गया काय अपराध नह होता जब तक क वह कसी व श आशय या ान से न कया गया
हो, कोई जो वह काय म ता क हालत म करता है , इस कार बरतेजाने
केदा य व के
अधीन होगा मानो उसेवही ान
था जो उसेहोता य द वह म ता म न होता जब तक क चीज, जससे उसेम ता ई थी, उसे
उसके ान केबना या उसक
इ छा केव न द गयी हो |

वैछक म ता से स बं धत भारतीय व ध, धारा 86 म व णत है


| धारा 86, धारा 85 का एक अपवाद तुत करती है
साधारणतया यह धारा बचाव उपल ध नह कराती यो क यह म को एक सामा य ा वाले के ान सेयु
मानती है
पर तु
सामा य ा वाले के आशय से यु नह मानती | इस कार धारा 86 एक खं डनीय क पना से
स बंधत है|

धारा 86 के
आव यक त व –

कोई कृ
य अपराध न होता जब तक क व श आशय या ान से
न होता |

म ारा कया गया हो |

यह मान लया जाएगा क उसे


वही ान था जो उसे
होता य द वह म न होता |

म करने
वाली व तु
उसने
अपनेान या इ छा सेलया हो |

इस कार धारा 86 सेप हैक यह उन मामलो म बचाव तु त नह करती जनमे व श ान का होना अपराध का एक
आव यक त व है | चूँ
क इस धारा का सरा भाग व श आशय केस ब ध म मौन है
अतः यह ऐसे
मामलो म बचाव का
आधार हो सकती है|

जुगाद म लाह बनाम स ाट (1930 ) पटना इस मामलेम अ भयु पर मृ तक ने


हमला कया और नशे क हालत म उसे
नीचेगरा दया | तब अ भयु नेउसेचाकू से हमला कर दया फर वह पागल क तरह च लाता आ भागा क उसने ह या
कर द हैऔर अपने को फां
सी लगाने
जा रहा है| यह नणय दया दया गया क साधारण म ता सेमनु य के ान म कोई
अंतर नह आता है चूँ
क अ भयु को अपने कृ य केाकृ तक प रणामो का ान था अतः उसे
दोषी ठहराया गया |

म ता से
स बंधत भारतीय व ध क प ा या वासु
दे
व बनाम पे
सूरा य (1956 S.C.) केवाद म उ चतम यायालय ने
क | इसम एक बारात गया आ था खानेकेसमय जगह केलए उसने एक ब चे को खसकने केलए कहा
उसकेइनकार करने पर उसनेउसे गोली मार द | उ चतम यायालय ने
अ भयु को ह या केलए दोष स करतेए कहा
क जहाँतक ान का हैम को एक सामा य ा वाले के ान से
मु माना जाना चा हए | जहाँतक
आशय का हैउसका नधारण म ता को उ चत थान दे तेए सामा य प र थ तय सेकया जाना चा हए | य द अ भयु
अपना होशो-हवाश खो चु
का था तो उसकेव आव यक आशय क प रक पना नह क जाये गी |

डॉ टर हरी सह गौड़ के
अनु
सार म ता स ब धी भारतीय व ध न न ल खत प म व णत है

अनैछक म ता पू
ण बचाव है
|

वैछक म ता के
वल आशय के
स ब ध म बचाव है
पर तुान के
मामलो म नह |

धारा 87. स म त सेकया गया काय जससे मृयुया घोर उपह त का रत करने का आशय न हो और न उसक सं भा ता का
ान हो – कोई बात, जो मृयुया घोर उपह त का रत करने केआशय से न क गई हो और जसके बारे
म कता को यह ान न
हो क उससे मृ युया घोर उपह त का रत होना सं
भा है , कसी ऐसी अपहा न के कारण अपराध नह हैजो उस बात से 18
वष से अ धक आयु के को, जसने वह अपहा न सहन करने क चाहेअभ चाहेवव त स म त देद हो, का रत
हो या का रत होना कता ारा आश यत हो अथवा जसके बारेम कता को ात हो क वह उपयु जै सेकसी को,
जसने उस अपहा न क जो खम उठाने क स म त दे द है , उस बात ारा का रत होनी सं
भा है|

धारा 87 आं ल व ध के
सू'स मत काय से त नही होती' ( valenti non fit injuria ) पर आधा रत है
| आं
ल व ध का
यह पुर ाना स ां
त हैक य द कोई कृय पी ड़त क सहमती सेकया गया है और उस कृ य के
प रणाम व प उसे
कोई त या अपहा न होती है तो ऐसा काय अपराध नही होता है
|

'जो स म त दे
ता है
उसे त नही होती' यह रोमन व धशा क पु
र ानी उ है
|

सहम त का अथ – सहम त का ता पय है
, कयेजा रहे
काय को वीकार कर लेना | सहमती तथा समपण के
बीच अं
तर है
ये
क सहमती म समपण होता है पर तु येक समपण म सहमती नही होती है
|

धारा 87 के
आव यक त व –

काय न तो मृयुया गं
भीर चोट का रत करने
केआशय सेकया गया है
और न तो इस ान सेक काय ारा मृ
युया गं
भीर
चोट का रत होने
क सं भावना है;

त कसी को उसक सहम त से


का रत क गयी हो ;
सहमती दे
ने
वाला 18 वष से
अ धक आयु
का हो ;

सहम त प या वव त हो सकती है

सहम त ारा बचाव दो अवधारणा पर आधा रत है


1. ये
क अपनेहत का उ म नणायक है

2. कोई भी जस काय को हा नकारक समझता है


उसकेलए सहम त नही दे
ता |

स म त से
स बं
धत उपबं
ध साधारण अपवाद के
अधीन है
अतः इस बचाव क स भा रता का दा य व अ भयु का है
|

धारा 88. कसी केफायदे केलए स म त से


सद्भावपू वक कया गया काय, जससे मृयुका रत करनेका आशय
नह है – कोई बात, जो मृ
यु का रत करने
केआशय से न क गयी हो, कसी ऐसी अपहा न के कारण नही हैजो उस बात से
कसी ऐसे को, जसके फायदेकेलए वह बात सद्भावपू वक क जाए और जसने उस अपहा न को सहने , या उस
अपहा न क जो खम उठाने केलए चाहे अभ चाहेवव त स म त दे द हो, का रत हो या का रत करनेका कता का
आशय हो या का रत होने क संभा ता कता को ात है|

धारा 88 तपा दत करती हैक कता उस काय केलए द डत नही कया जाएगा जससे
स म त दाता को त होती हो,
भले ही वह काय त केआशय या ान के साथ कया गया हो |

धारा 88 के
आव यक त व –

काय मृ
युका रत करने
केआशय या उसके
संभा ता के ान से
न कया गया हो |

काय सद्भावपू
वक कया गया हो |

काय सहम त सेकया गया हो |

स म त दाता स म त दे
ने
हे
तु
स म हो |

सु
क क वराज के मामलेम अ भयु नेएक केबवासीर का आपरे
शन साधारण चाक़ूसेकर दया तथा वह वशे

भी नही था | उसे
स म त का सं
र ण नही ा त होगा यो क उसनेकाय सद्भावपू वक नही कया |
नटे
शन के
वाद म एक कू ल का अ यापक जो अपनेश य को उ चत एवं
उपयु शारी रक द ड दे
ता है
ता क कू
लम
अनु
शासन बना रहे
, इस धारा के
अंतगत सं
र त होगा |

फायदा – धारा 88 के लागूहोनेकेलए आव यक है , काय स म त दाता के


फायदे
केलए कया गया हो | धारा 92 के
प ीकरण के अनु सार धारा 88, 89 और 92 के
अंतगत फायदा मा आ थक लाभ ा त करना नह है |

जहां
एक पता अपने
पुको आ थक लाभ केलए नपु

सक बना दे
ता है
, वह इस धारा के
अंतगत सं
र त नह होता है
|

धारा 88 मुयतः च क सको को सं


र ण दान करता है
|

धारा 87, धारा 88 सेन न दो कार सेभ है


धारा 88 केअंतगत मृ
युके
अ त र कोई भी त का रत क जा सकती है
जब क धारा 87 के
अंतगत मृ
युतथा गं
भीर
चोट के अ त र कोई त का रत क जा सकती है
|

धारा 88 म सहम त दे
नेवाले के
आयु
का वणन नह कया गया है
जब क धारा 87 म सहम त दे
ने
वाले क आयु
18 वष से अ धक होनी चा हए |

धारा 89. सं
र क ारा या उसक स म त सेशशु या उ म केफायदे
केलए सद्भावपू वक कया गया काय –
कोई बात, जो 12 वष सेकम आयु के या वकृ तच केफायदेलए सद्भावपू वक उसके सं
र क के , या व धपू

भारसाधक कसी सरे के ारा, या क अ भ या वव त स म त सेक जाए, कसी ऐसी अपहा न के कारण,
अपराध नह है जो उस बात से
उस को का रत हो, या का रत करने
का कता का आशय हो या का रत करने क
सं
भा ता कता को ात हो |

परं
तु

पहला – इस अपवाद का व तार साशय मृ


युका रत करने
या मृ
युका रत करने
के य न पर न होगा ;

सरा – इस अपवाद का व तार मृ


युया घोर उपह त केनवारण केया कसी घोर रोग या अं
ग शै
थ य सेमु करने के
योजन सेभ कसी योजन केलए कसी ऐसी बात के करनेपर न होगा जसेकरने वाला जानता हो क उससे
मृयु
का रत होना सं
भा है ;
तीसरा – इस अपवाद का व तार वे छया घोर उपह त का रत करने या घोर उपह त का रत करने
का य न करनेपर न होगा
जब तक क वह मृ युया घोर उपह त केनवारण के, या कसी घोर रोग या अंग शैथ य से मु करने
के योजन सेनक
गयी हो ;

चौथा – इस अपवाद का व तार कसी ऐसे


अपराध के पे
रण पर न होगा जस अपराध केकये
जाने
पर इसका व तार
नह है |

यह धारा, 12 वष सेकम आयु केशशुतथा वकृतच केअ भभावक को अ धकार दे


ती हैक वह शशु
या
वकृत च वाले को अपहा न का रत करने
हे
तुसहम त दे
पर तु
यह आव यक हैक अपहा न सद्भाव म उसके
लाभ हे
तु का रत क गयी हो |

धारा 89 के
आव यक त व –

काय सं
र क ारा या उसक सहम त से
या व धपू
ण भारसाधक ारा कया गया हो ;

काय सद्भावपू
वक कया गया हो ;

काय 12 वष के
कम आयु
के ( शशु
) या वकृ
तच केलए कये
गया हो ; और

काय फायदे
केलए कया गया हो |

धारा 88 क भांत इस धारा म भी लाभ श द का योग कया गया है


इसम आ थक लाभ स म लत नह है
| लाभ न यतः
गत व सां
सा रक हो |

उदाहरण – क एक पता अपनेपुके लाभ हेतुउसे साधारण प से मारता है


क नेकोई अपराध नह कया है | इसी कार
जहाँक अपनेपुको एक थान पर बंद कर दे
ता है
, क नेकोई अपराध नह कया है पर तु
जहाँ क सद्भाव से अपनेपुी
केलाभ हे
तुउसक ह या कर दे
ता है
ता क वह डाकुओ के हाथ म पड़नेसेबच जाए, वह धारा 89 का लाभ ा त करने का
हक़दार नह है|

सहम त दो मामलो म अपराध को य बना दे


ती है

मृ
युतथा गं
भीर चोट के
अतर अ य मामलो म |
अपहा न के
उन मामलो म भी जनमेमृ
युका रत हो जाती हैक तु
मृयु
का रत करने
का आशय नह रहता अ पतु
सद्भाव से उस केलाभ हे
तु
काय कया जाता है

धारा 90. स म त, जसके स ब ध म यह ात हो क वह भय या म के अधीन द गयी है


– कोई स म त ऐसी स म त नही है
जैसी इस संहता क धारा से
आश यत है , य द वह स म त कसी ने त, भय केअधीन, या त य के म केअधीन द
हो, और य द काय करनेवाला यह जानता हो या उसकेपास व ास करने
का कारण हो क ऐसे भय या म के
प रणाम व प वह स म त द गयी थी ; अथवा

उम क स म त – य द वह स म त ऐसे ने
द हो जो च वकृ त या म ता के
कारण उस बात क , जसके
लए वह स म त दे
ता है
, कृ
त और प रणाम को समझने
म असमथ हो ; अथवा

शशु
क स म त – जब तक क स दभ से
त तकू
ल तीत न हो, य द वह स म त ऐसे ने
द हो जो 12 वष से
कम
आयु
का है
|

न न मामलो म द गयी सहम त इस धारा के


अंतगत वतंसहम त नही है

अपहा न के
भय से
एक ारा द गयी सहम त ;

त य के म के
अंतगत द गयी स म त ;

12 वष से
कम आयु
केशशुारा द गयी सहम त ;

वकृ
त च वाले ारा द गयी सहम त ;

एक म ारा द गयी सहम त |

अपहा न का भय – धारा 90 के अनुसार य द एक अपहा न के भय से अपनी सहम त देदेता हैऔर उसी समय य द
वह जो काय करता है या उसेव ास करने का कारण हैक सहम त इस भय के कारण द गयी है तो वह एक उ चत
सहम त नही होगी | अपहा न या त, जैसी क धारा 44 म प रभा षत है
, का अथ हैशरीर, म त क, यश या सं
प क त
का भय |

दशरथ पासवान के वाद म अ भयु लगातार तीन वष तक परी ा म असफल रहा और अपना जीवन समा त करना चाहा
तथा इसक सू चना अपनी प नी को भी दया | प नी ने
कहा क वह पहले उसका जीवन समा त कर देफर अपना करेगा
उसने प नी को मार डाला व अपनेआ मह या करने से
पू
व ही पकड़ा गया | यह नणय दया गया क प नी अपनी सहम त
त के भय से या त य के म म नही दया था अतः अ भयु ह या का दोषी नही है
अ पतुमानववध का दोषी है
|
त य का म – त य के म के
अंतगत द गयी सहम त उ चत एवं
वै
ध सहम त नही है
|

पु
नाई फाते
म ा के
वाद म सपे
र ा ने को उकसाया क वह सां
प से कटवा ले
तथा वह उसे
कुछ होने
न दे
गा | यहाँ
पर सपे
रा
उस क सहम त को बचाव के प म तु त नही कर सकता |

धोखेारा ली गयी सहम त – धोखे


सेली गयी सहम त यथाथ सहम त नही है
पर तु
यह आव यक हैक धोखे
के योग म
सहम त दे
नेवाले को त य के
बारे
म म रहा हो |

शशुओ तथा व तो क सहम त – एक वकृ तच ारा द गयी सहम त को न करने


केलए म त क य अव था
या म ता क मा ा वही होनी चा हए जो आपरा धक आरोप केलए पागलपन या म ता के आधार पर उ मु दान करे
गी |

यूo बनाम बै
र ेकेवाद म यह नणय दया गया क एक व त लड़क केसाथ जो कै
द को पहचाननेएवं
उसका वणन
करने म असमथ है तथा जो पू
ण वक सत एक औरत थी जो अपनी अश थ त केबावजू
द, ती पाश वक कृ
त सेयु
हो सकती थी, मा सं
पक बला कार का पया त कारण नही है
|

स म त का अपख डन – द गयी स म त अपख डत क जा सकती है


पर तु
स म त दए गये
काय के
आर भ होने
केपू
व ही
|

धारा 91. ऐसे


काय का अपवजन जो का रत अपहा न केबना भी वतः अपराध है – धारा 87, 88 और 89 के अपवाद
का व तार उन काय पर नह हैजो उस अपहा न केबना भी वतः अपराध है जो उस को, जो स म त दे
ता है
या
जसक ओर से स म त द जाती है
, उन काय से
का रत हो, या का रत कये
जानेका आशय हो, या का रत होने

स भा ता ात हो |

इस धारा के
अनुसार य द कया गया काय का रत अपहा न केबना भी एक अपराध हैतो कता सहम त के
आधार पर अपना
बचाव नही कर सकता | उदाहरण केलए गभपात का रत करना, लोक यूसस करना, लोकसुर ा व नै
तक आचरण केव
अपराध |

धारा 92. स म त केबना कसी केफायदे केलए सद्भावपू वक कया गया काय – कोई बात जो कसी के
फायदे केलए सद्भावपू वक य प उसक सहम त केबना क गई है , ऐसी कसी अपहानी के
कारण, जो उस बात सेउस
को का रत हो जाए, अपराध नही है
य द प र थ तयां
ऐसी हो क उस केलए यह असं भव हो क वह अपनी
स म त कट करे या वह सहम त देने
केलए असमथ हो और उसका कोई सं र क या व धपू
ण भारसाधक कोई अ य
न हो जससे
ऐसे
समय पर स म त अ भ ा त करना सं
भव हो क वह बात फायदे
केसाथ क जा सके
|

धारा 92 का नी तगत आधार यह हैक, “अ थायी आपात कसी भी क श म वृ कर दे


ता है
, तथा उसके ारा
उठाये गयेकदमो को औ च यपूण बना दे
ता है
|"

उ ेय – इस धारा का उ ेय च क सीय वसा यय को उन प र थ तय म सु


र ा दान करना है
जब वेकसी रोगी क
जान बचानेकेलए बना सहम त के काय करते
है|

धारा 92 का बचाव तभी उपल ध है


जब –

पी ड़त केहत केलए कया गया हो ;

सद्भावपू
वक कया गया हो ;

बना सहम त केकया गया हो, और

ऐसी प र थ तय म कया गया हो क पी ड़त या उसकेव धक त न ध क स म त ले


ना सं
भव न हो |

ां
त–

A – क, घोड़े
सेगरकर बेहोश हो गया तथा एक श य च क सक ख क यह राय हैक उसका कपाल श य या आव यक है
य द वह मृयु
का रत करनेकेआशय केबना, क के फायदेकेलए श य या करता है, तो ख ने
कोई अपराध नही कया है
|

B – क, जो क एक श य च क सक है यह देखता हैक एक शशुजसक घटना ई है तु


रत
ंउपचार नही कया गया तो वह
मर जाएगा तथा इतना समय भी नही कई क उसके सं
र क से सहमती लया जाये
| क शशुकेफायदेकेलए
सद्भावपू वक उसका इलाज करता है, क नेकोई अपराध नही कया है
|

C – क, एक शशुय केसाथ क एक जलतेए गृ ह म है


| गृ
ह के
नीचे
लोग एक क बल तान दे
ते
ह | क यह जानतेए क
सं
भा है क गरनेसेवह मर जायेगा, ऐसा आशय न रखतेए सद्भावपू वक शशु
को छत सेनीचे फे
क दे
ता है
, यहाँ
,यद
गरनेसे वह शशु
मर भी जाता है
, तो भी क ने
कोई भी अपराध नह कया ।

अपवाद – धारा के
साथ सं
ल न पर तु
क धारा के
अपवाद बताते
हैअथात न न ल खत प र थ तय म धारा 92 का बचाव
नही मले
गा –
धारा 92 का व तार साशय मृ
युका रत करने
या मृ
युका रत करने
के यास पर न होगा |

धारा 92 का व तार मृ
युया घोर उपह त केनवारण के
या कसी घोर रोग या अं
ग शै
थ य से
मु करने
के योजन सेभ
कसी अ य योजन केलए नह होगा |

जब जानबू
झकर चोट प चाई गई हो |

जब कसी ऐसे
अपराध का े
रण कया गया हो जसपर भारतीय सं
हता न लागू
होती हो |

धारा 93. सद्भावपू वक द गई सं


सू
चना (Communication made in good faith) – सद्भावपू
वक द गयी
सं
सूचना उस अपहा न केकारण अपराध नही है
, जो उस को हो जसे
वह द गयी है, य द वह उस के फायदेके
लए द गयी हो |

धारा का आधार आव यकता तथा लोकनी त है


| धारा 93 नद ष, सं
सू
चना से
सं
ब धत है
|

उ ेय – यह ावधान सं हता म सं
भवतः इस कारण रखा गया हैक मरणास मरनेसेपू
व अपनी इ छा क पूत
कर लेतथा वसीयत, दान-धम आ द जो भी वह करना चाहता है
उसे
करके लौ कक कत ो तथा ब धन सेमु ा त कर
सके|

ा त – जहां
एक च क सक सद्भावपू वक मरीज को यह बताता हैक उसक राय म वह अब जी वत नही रह सकता |
इस आघात के प रणाम व प उस रोगी क मृ
युहो जाती है
, च क सक ने
कोई अपराध नही कया है
|

धारा 94 – वह काय जसको करने


केलए कोई धम कय ारा ववश कया गया है

धारा 94 के
अनु
सार कोई काय अपराध नही होता जो कसी ारा धम कय सेववश कये
जाने
केकारण कया गया
हो बशत धमक ऐसी हो जससे उसे–

मृ
युया गं
भीर त क आशं
का उ प हो गयी हो ;

आशं
का यु यु एवं
ता का लक हो ;

ऐसी आशं
का काय कये
जाने
तक वधमान रही हो ;

अपराधकता ने
जानबू
झकर अपने
को ऐसी थ त म न डाला हो |
कया गया काय ह या या रा य केव मृ
यु
द ड से
दं
डनीय अपराध सेभ हो |

प ीकरण 1 – कोई इस अपवाद का फायदा उठाने


का हकदार नही होगा जहां
वह वयं
अपनी इ छा से
, या पीटे
जाने
क धमक के कारण डाकु
ओ क टोली म उनके शील को जानतेए स म लत हो जाता हैक वह अपनेसा थयो ारा ऐसी
बात करने
केलए ववश कया गया था जो व धतः अपराध है |

प ीकरण 2 – य द कोई डाकु


ओ केगरोह ारा पकड़ लया जाता है और उसको यह धमक द जाती हैक वह य द
क थत अपराध नही करे
गा तो उसे जान सेमार दया जाएगा, तो ववश कया गया अपराध केलए दायी नही होगा |
उदाहरणाथ जहां
एक लु हार को डाकुओ क टोली ारा मृ यु या गं
भीर शारी रक त क धमक दे कर एक घर का ताला
तोड़नेकेलए ववश कया जाता है ता क डाकूघर म घु
स सक यहाँ लुहार ताला तोड़ने
केअपराध केलए दायी नही होगा |

धारा 94 का आधार – धारा 94 का आधार लैटन सू“Actus me invito factus non est mens actus“ हैजसका
अथ है र ेारा मे
“मे रे
इ छा केव कया गया काय मे
र ा नही है
”|

धारा 95 – तु छ अपहा न का रत करने


वाला काय – कोई बात इस कारण से अपराध नही हैक उससेकोई अपहा न का रत
होती हैया का रत क जानी आश यत हैया का रत होने क सं
भा ता ात है, य द वह इतनी तु
छ हैक मामू
ली समझ और
वभाव वाला कोई उसक शकायत नही करे गा |

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