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चा स डािवन
िवनोद कमार िम

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पू य िपताजी व. ी ल मी चरण िम (अवकाश ा वै ािनक
अिधकारी) क िचर मृित को सादर समिपत

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भूिमका
दुिनया क सभी धम थं म यह प प से दज ह िक मानव सिहत सृि क हर चर और अचर ाणी क रचना
ई र ने अपनी इ छा क अनुसार क । ाचीन पौरािणक ंथ म उपल ध वणन से भी यह प होता ह िक ाचीन
काल म मनु य लगभग उतना ही सुंदर व बु मान था िजतना िक आज ह।
प म क अवधारणा क अनुसार यह सृि लगभग छः हजार वष पुरानी ह। यह िवधाता ारा एक बार म रची
गई ह और पूण ह।
ऐसे म िकसी कित िव ानी (औपचा रक िश ा से वंिचत) ारा यह सािबत करने क िह मत करना िक यह
सृि लाख , करोड़ वष पुरानी ह, अपूण ह और प रवतनीय ह, िकतनी बड़ी बात होगी, इसक िसफ क पना ही
क जा सकती ह। ई र क संतान या ई र क अंश माने जाने वाले मनु य क पूवज बंदर और वनमानुष रह ह गे,
यह सािबत करने वाले को अव य यह अंदेशा रहा होगा िक शायद उसका ह भी कह ूनो और गैलीिलयो जैसा
न हो जाए।
उ ीसव सदी क पहले दशक म यात िचिक सक प रवार म ज मे चा स डारिवन ने िचिक सा का पेशा नह
चुना। हार कर उनक िपता ने उ ह धमाचाय क िश ा िदलानी चाही पर वह भी पूरी नह हो पाई।
बचपन से ही ाकितक व तु म िदलच पी रखने वाले चा स को जब कित िव ानी क प म बीगल

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अनुसंधान जहाज म या ा करने का अवसर िमला तो उ ह ने अपने जीवन को एक नया मोड़ दे िदया।
समु से डरने वाले तथा िवशाल आलीशान मकान म रहने वाले चा स ने पाँच वष समु ी या ा म िबताए और
एक छोट से किबन क आधे भाग म गुजारा िकया। जगह-जगह क पि याँ, लकिड़याँ, प थर, क ड़ व अ य जीव,
ह याँ बटोर ।
उन िदन फोटो ाफ क यव था नह थी। अतः उ ह सार नमून पर लेबल लगाकर समय-समय पर उ ह वापस
इ लड भेजना होता था। अपने काम क िसलिसले म वे दस-दस घंट घुड़सवारी करते थे और मील पैदल भी चलते
थे। जगह-जगह खतर से खेलना, लु ािणय क जीवा म को बीनना, अनजाने जीव को िनहारना ही उसक
जवानी क िनयित थी।
गलापाजोज क या ा चा स क िलए िनणायक रही। इस ीप म उ ह अ ुत कछए और िछपकिलयाँ िमल ।
उ ह िव ास हो गया िक आज जो िदख रहा ह, कल वैसा नह था। कित म स ाव व थरता िदखलाई अव य
देते ह पर इनक पीछ वा तव म सत संघष और प रवतन चलता रहता ह।
लंबी या ा क थकान उतरी नह िक चा स ने आगे का अ वेषण व उस पर आधा रत लेखन ारभ कर िदया।
ब त थोड़ से लोग ने उनका हाथ बँटाया। शेष काय चा स को खुद ही करना पड़ा।
े वै ािनक का काय े आमतौर पर कोई िति त सं था या िश ा क होता रहा ह। अर तु से लेकर
यूटन, फराड तक को कोई-न-कोई रॉयल सोसाइटी, रॉयल सं थान आिद िमल ही जाता था जो काम व काम क
खच दोन म हाथ बँटाता था।
पर डारिवन ने अपना काय े ामीण इलाक क दूरदराज थत मकान म बनाया। अपनी पैतृक संपि से ा
सारा धन उ ह ने इसम लगा िदया। िजस कार का काम वे कर रह थे—उसम न तो कोई पैसा लगाने क िलए आगे
आया और न ही चा स ने िवशेष यास िकए।
जीवो पि का िस ांत उनक म त क म ज म ले चुका था। स 1844 म उ ह ने उसे िव तार से कलमब
भी कर िलया था। पर इसे कािशत करने क कोई ज दी उ ह ने नह िदखलाई। इसक भावी िति या का उ ह
एहसास था और इसिलए वे इसम कोई खामी रहने देना नह चाहते थे। वे लगातार योग-दर- योग करक उसे
प ा करते चले गए।
वे धैयपूवक िलखते रह। उनक रचनाएँ तेजी से पाठक क हाथ म आती रह । शायद वे कछ वष और इतजार
कर लेते पर वालेस क अनुसंधान का प रणाम पाकर उ ह अपना िस ांत सावजिनक करना पड़ा। हालाँिक उनक
पास पु ता माण थे िक वे िन कष पर पहले प चे थे पर उ ह ने वालेस को बराबर का स मान िदया।
उनक िस ांत पर घोर िति या ई। ई र क संतान माने जाने वाले मानव बंदर क संतान माने जाने लगे। इसे
मानव क पतन क सं ा दी गई। राजशाही से लेकर चच सभी ितलिमला गए पर डारिवन को र ी भर भी ग र नह
आया। िति या को वे पूरी िवन ता से वीकारते रह।
घोर प र म से िकए गए योग क प रणाम क शु ता क आगे घोर िवरोध भागता चला गया और अंततः लु
जाितय क तरह िवलु हो गया।
डारिवत ने जीवन क हर पहलू पर योग िकए। उ ह ने प , फल , पि य , तनपायी जीव सभी पर योग
िकए। अपने िम माइकल फराड ारा िवकिसत िव ुत जनरटर का योग करक उ ह ने िविभ मानिसक

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थितय का चेहर पर पड़ने वाला भाव भी देखा और उसक अ ययन पर आधा रत पु तक क रचना भी क ।
इसम उनक क े बॉब ने उ ह भरपूर सहयोग िदया और बतलाया िक भूख लगने पर, गु सा होने पर, स होने पर
उसक मुख-मु ा कसे बदलती ह।
दुिनया को माँसाहारी पौध क बार म ान देने वाले चा स डारिवन ने िनरीह कचु क यापक योगदान पर भी
काश डाला और उ ह सामािजक स मान िदलवाया। उनक योगदान को सािबत करने क िलए उ ह ने गिणत का
भी सहारा िलया हालाँिक वे यूटन व गैलीिलयो क तरह गिणत म सश नह थे। पर वे अपने िस ांत को अनेक
ि कोण व तरीक से परखना चाहते थे।
वभाव से िवन , प र मी, धैयवान, साहसी, तकसंगत िवचार वाले, कलम क धनी चा स आज भी दुिनया क
े तम वै ािनक म से एक और यूटन, आइ टाइन आिद क समक माने जाते ह। उनका िवरोध आ, होता रहा
पर उनक िस ांत का िवक प कोई नह दे पाया। आमतौर पर े वै िनक का प रवार त रहता ह पर
डारिवन का बड़ा प रवार गितशील व समृ था और उनक बेट भी े वै ािनक बने। शायद इसम उनक
क णाशील प नी ए मा का भी हाथ रहा।
िव ान क अित र चा स ने िकसी अ य काय जैसे समाजसेवा, राजनीित यवसाय आिद म हाथ नह डाला पर
दास था क वे घोर िवरोधी थे। उ ह मनु य क ही नह पशु-पि य क दद क भी परवाह थी और वे घोड़ पर
चाबुक भी बदा त नह कर पाते थे।
ऐसे महापु ष क जीवनी िलखने हतु साम ी जुटाने क िलए सी.एस.आई.आर. क अनुसंधान भवन िद ी थत
लाइ ेरी क भारी ीमती रणु पांडय तथा सािह य अकादमी क लाइ ेरी क ी प ानासन ने िवशेष सहयोग
िदया।
हर बार क ही तरह मेर िम व सहयोिगय क अलावा मेरी प नी वीना िम व पु व ण व िवशाल ने अनुकल
वातावरण बनाए रखकर व िविभ कार से इस रचना हतु य व अ य सहयोग िदया। म उन सभी का
हािदक आभारी ।
इस जीवनी से पूव म एक अ य ृंखला क अंतगत अ ाव , राणा सं ाम िसंह (सांगा), कलीन िडलान
जवे ट व हलेन क लर क जीवनी िलख चुका । वतमान ृंखला क अंतगत अ बट आइ टाइन व थॉमस
अ वा एिडसन क जीवनी कािशत हो चुक ह। इस जीवनी ने आगे का माग श त कर िदया ह और आने वाले
समय म अ ड नोबल, ाहम बैल, िलयोनाड द िवंसी, हनरी फोड तथा मैडम यूरी आिद क जीविनयाँ पाठक
क हाथ म आएँगी। अतः आपसे िवन ाथना ह िक काय म ुिटय व भावी सुझाव से अवगत कराते रह।
—िवनोद कमार िम

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कित क खोज का िसलिसला
ारभ से मनु य क मन म िज ासाएँ उठने लग थी िक आिखर इस िविवधता पूण कित क रचना कसे ई होगी।
उसने अपने आस-पास का ाकितक स दय देखा होगा। थोड़ी ब त या ा करक पाया होगा िक इस स दय का एक
मुख आधार िविवधता ह।
पर तब न बड़ा था और मनु य का मता थोड़ी थी। िन य ही उसने ज दी ही मान िलया होगा िक इस
संसार क रचियता ने ही यह सब रचा होगा। वह परम श मान ह। उसने न िसफ मनु य को रचा वर मनु य को
भोगने क िलए सुंदर, मोहक सृि रचकर दी।
मनु य का ई र क ित आदर व आ था बढ़ते चले गए। यह सब वतः फत क पना थी और इस कदर
ाकितक थी िक दुिनया क सभी धम म इसे थान िमला।
अनािद माने जाने वाले सनातन धम िजसे िहदू धम क नाम से भी जाना जाता ह म क पना ह िक ने सृि
क रचना क और मनु और ा क रचना क । आिद पु ष व आिद ी माने जाने वाले मनु और ा को
आज भी पूर ा व आदरभाव से पूजा जाता ह य िक हम सब इ ह क संतान माने जाते ह।
उसी तरह अित ाचीन य दी धम, लगभग दो हजार वष पुराने ईसाई धम और लगभग तेरह सौ वष पुराने
इसलाम धम म आदम और ह वा को आिद पु ष और आिद ी माना जाता ह। उनका नाम भी पूर आदर से िलया

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जाता ह य िक सभी उनक ही संतान माने जाते ह।
पर काल म क गणना म िविभ धम म अंतर माना जाता ह। सनातन धम क मा यता क अनुसार सृि क
रचना होती ह, िवकास होता ह और िफर संहार/ लय होता ह। इसम युग क गणना का ावधान ह और हर युग
लाख वष का होता ह जैसे वतमान किलयुग क आयु चार लाख ब ीस हजार वष आँक गई ह।
पर प मी धम क मा यता क अनुसार ई र ने सृि क रचना एक बार म और एक बार क िलए क ह।
उनक अनुसार मानव क रचना अिधक पुरानी नह ह और लगभग छः हजार वष पूव मनु य क रचना उसी प म
ई ह िजस प म मनु य आज ह। इसी तरह सृि क अ य चर-अचर ाणी भी इसी प म रचे गए और वे पूण
ह।
पर मनु य क िज ासाएँ कभी ख म होने का नाम नह लेती ह। स य क तलाश जारी रही। प रवतनशील कित
का अ ययन उसने अपने साधन क ज रए जारी रखा और उपरो मा यता म खािमयाँ शी ही नजर आने लग ।
पूव म धम इतना सश व िढ़वादी कभी नह रहा। समय-समय पर आय भ , गु , भा कराचाय जैसे
िव ान ने जो नवीन अनुसंधान िकए उन पर गहन चचा ई। लोग ने प और िवप म अपने िवचार खुलकर
य िकए।
पर प म म धम अ यंत श शाली था। वह िढ़य से त भी था। जो य उसक मा यता पर चोट
करता था उसे इसक भारी क मत चुकानी पड़ती थी। कोपरिनकस ने धािमक मा यता पर पहली चोट प चाई।
उनका िस ांत उनक पु तक ‘‘मै नम ओपस’’ क प म जब आया तो वे मृ यु श या पर थे। ज दी ही चल
बसे।
पर ूनो, गैलीिलयो जैसे लोग को भारी क मत चुकानी पड़ी। ूनो को िजंदा जला िदया गया। गैलीिलयो को लंबा
कारावास भुगतना पड़ा। पर ये बिलदान यथ नह गए। इ ह ने लोग क ान-च ु खोल िदए। अब लोग हर चीज
को वै ािनक नज रए से देखने लगे।
तब तक यातायात क सुिवधाएँ भी िवकिसत हो चुक थ । यूरोप क लोग यापार क िलए, धम- चार क िलए
और अ य उ े य क िलए िव मण पर िनकलने लगे। अनेक साहिसक याि य ने अथाह माने जाने वाले
सागर का सीना चीरते ए दुिनया क ओर छोर नाप िलए।
अब लोग कित क खोज म भी िनकलने लगे। कित ेिमय ने अब तक कित का जो अ ययन िकया था
उसने नए िव ान का प ले िलया था। ये िव ानी अपने कित-िव ान का िव तार करना चाहते थे और इसक िलए
लंबी-लंबी या ा पर िनकलने लगे।
अठारहव और उ ीसव सदी म ऐसी तमाम या ाएँ संप ई। इन या ा क अनेक उ े य थे। उनम से एक
मुख उ े य यह था िविभ उपल ध चर-अचर ािणय का वग करण। इस समय तक तमाम जाितय क
ािणय व वन पितय का ान हो चुका था और िबना उिचत वग करण क उनका अ ययन किठन हो रहा था।
इस संबंध म पहली मह वपूण या ा टोनफोट ने संप क थी। स 1700 म ारभ इस या ा म दो वष लगे।
टोनफोट ांस क रहने वाले और वन पित शा ी थे। उ ह ने अपनी या ा क अनुभव को प ारा य िकया
जो अ यंत लोकि य सािबत ए। ये जब बीसव सदी म िफर से छापे तो खूब िबक। उनक वणन म वहाँ क भूिम
व वन पितयाँ सभी शािमल थे। उ ह ने वहाँ क राजनैितक व धािमक थित का भी वणन िकया।

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उनक या ा को राजनैितक संर ण ा था और खच ांसीसी शासन ारा उठाया गया था। इस पर बाद म
िकए गए शोध क अनुसार इस या ा का उ े य ऑटोमन सा ा य म उपल ध ाकितक संसाधन का पता लगाना
था। उस समय फोटो ाफ क सुिवधा नह थी, इसिलए एक ा टमैन उनक साथ भेजा गया था।
इसक तीन वष बाद वीडन से एक या ी िनकला िजसका नाम लीिनयस था। उस काल म वीडन ांस क
तुलना म गरीब था। लीिनयस ने लैपलड क या ा क । गरिमय म आयोिजत यह कम अविध क या ा थी। इसक
िलए रॉयल िव ान सोसाइटी से मामूली अनुदान ही िमला था। पर इससे वन पित शा को नया आयाम िमला।
उपरो या ा ने लंबी दूरी क दीघकालीन या ा को आधार दान िकया। अठारहव सदी क उ रा म
साइबे रया क या ा से नई-नई जाितय क ाणी व पौधे िमले। क टन जे स कक क नेतृ व म दि णी गोला
क या ा संप ई। उस समय महाश माने जाने वाले ि टन और ांस इस िदशा म भी एक दूसर से ट र
लेने लगे।
ब पयोगी या ा का िसलिसला जारी रहा। अ वेषण दल जब िम गया तो उसक साथ सेना भी थी। भौगोिलक
खोज क साथ उपिनवेश बनाने क ललक भी जुड़ गई। पर इससे कित िव ािनय का काय किठन भी हो गया।
िविभ यूरोपीय ताकत आपस म एक दूसर को नीचा िदखाने लग । उनक इस यवहार क कारण थानीय लोग
अ सर भड़क उठते थे। स 1788 म ला पे ज का अिभयान दल शांत महासागर से गायब ही हो गया। कई
जगह पर कित िव ािनय और नौसैिनक म तीखी झड़प भी ई।
पर अिभयान चलते रह। कछ ब त सफल रह और कछ म कित िव ानी वापस वतन नह लौट पाए। ांसीसी
या ी िव टर जैकमांट अपनी चार वष क या ा म भारत म कित का अ ययन करते रह और स 1832 म बंबई
म ही चल बसे।
पर अब अिभयान-दल पया संसाधन जुटा कर चलने लगे। उनक साथ धम चार करने वाले पादरी भी होते थे।
अिभयान-दल क सभी लोग टोनफोट क तरह कशल लेखक तो नह होते थे पर उनक या ा क िववरण कल
िमलाकर अ यंत रोचक होते थे। उनम नए-नए त य भी होते थे और त वीर भी।
इनक अिभयान क आधार पर कथा-सािह य भी तैयार होने लगा जो अ ुत था। अनेक दाशिनक इसक आधार
पर नए िसर से िचंतन करने लगे जो मौिलक और त य-परक होने लगा। वे समाज म फली िविवधता और सापे ता
पर िवचार करने लगे और ये िवचार अब तक क मा यता से िभ थे।
कित िव ानी जब अिभयान से वापस आते थे तो अपने साथ न िसफ कथाएँ, िक से व िवचार लाते वर बड़ी
मा ा म वतमान व लु जाितय क जीवा म, सूखी वन पितय क नमूने भी लाते थे िजससे अ य वै ािनक को
भावी अनुसंधान का आधार िमलता था।
या ा से ान का दायरा िकस कदर बढ़ रहा था इसका अंदाज इस बात से लगता ह िक सतरहव सदी क
अंत म टोनफोट ने लगभग दस हजार पौध का वणन दज िकया था जबिक एक शता दी पूव चंद हजार पौध का
ही ान उपल ध था।
स 1833 म िम क या ा क प ा पचास हजार पौध क बार म वणन उपल ध था और इसक बाद इसक
सं या म वृ होती ही गई। कालांतर म इन वन पितय को अजायबघर म रखा जाने लगा तािक आम य भी
उ ह देख सक। साथ-साथ इनक वणन का सं ह भी तैयार हो गया।
लगभग ऐसी ही गित—जंतु िव ान क े म ई। ािणय क कटालॉग तैयार ए। उ ह वै ािनक आधार पर

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वग कत िकया गया। य - य अ ययन बढ़ा य - य वग करण का आधार भी बढ़ता गया। कछ पौध को घास
माना गया तो कछ को झाड़ी और कछ को पेड़। इसी तरह चल ािणय को ारभ म छः वग म बाँटा गया। ये थे

• मैमल अथा तनपायी
• बड अथा िचिड़याँ
• एंफ िबयन िजनम मढ़क, टोड आिद आते ह
• िफश अथा मछिलयाँ
• इसे ट अथा क ड़
• वम अथा सू म क ड़
इसक प ा इनका उपिवभाजन आ। इसक अलावा इनक यौन यवहार क आधार पर भी वग करण ारभ
आ। िविभ वन पितय और ािणय म वंश वृ कसे होती ह यह देखा गया और दज िकया गया।
लीिनयस ने जो वग करण िकया उसम तमाम खािमयाँ थ । समय क साथ उनम सुधार ए। िविभ कार क
इलाक का, तापमान का वन पितय पर भाव दज िकया गया। इन या ा म कित िव ािनय ने पाया िक ब त
थोड़ पौधे ऐसे होते ह जो हर कार क भूिम, तापमान, नमी म उग जाते ह। जब यूरोप और ऑ टरिलया क
वन पितय क तुलना क गई तो पाया गया िक कल वन पितय का मा एक बटा अ सीवाँ िह सा ही साझा था।
जब चा स डारिवन ने बीगल जहाज म स 1831 म या ा ारभ क तो उ ह अब तक िकए गए काय का ब त
कम ान था। बाइस वष य युवक ने नए िसर से अ ययन ारभ िकया और दुिनया को कित-िव ान क े म
एक नई िदशा दे दी। उनक काम से न िसफ वै ािनक जग म वर समाज क अनेक े म उथल-पुथल मच
गई।
आने वाले अ याय म डारिवन क जीवन क िविभ पहलु और िकए गए काय पर काश डाला जाएगा।
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पा रवा रक िवरासत
स 1760 का एक िदन ऐितहािसक िदन कहलाया। उस िदन उस समय क एक िस िचिक सक डॉ. एरा मस
डारिवन एक मरीज को देखने गए। वह मरीज एक युवा बतन िनमाता था िजसका नाम जोिसयाह वेजवुड था।
स 1731 म ज म डॉ. एरा मस डारिवन ने िचिक सा िव ान क पढ़ाई कि ज िव िव ालय से पूरी क थी।
कि ज व एिडनबग म पढ़ने क प ा उ ह ने िलचफ ड म ै टस ारभ क ।
डॉ. डारिवन को शी ही खासी लोकि यता हािसल हो गई य िक उ ह ने एक मरीज क ब त िबगड़ ए रोग
को अपने नवीन उपचार क तरीक से ठीक कर िदया। इस युवा मरीज का इलाज उनसे पहले अनेक डॉ टर ने
िकया था पर गलत तरीक से इलाज क कारण मरीज क हालत िनरतर िगरती जा रही थी।
जब डॉ. डारिवन ने इलाज ारभ िकया तो मरीज क थित म तेजी से सुधार ारभ होने लगा। इससे उ ह
अभूतपूव लोकि यता िमली और वे न िसफ िलचफ ड म िस ए वर उ ह रा ीय व अंतररा ीय तर पर
याित िमलती चली गई।
पर लंबे कद क भारी डीलडौल वाले डॉ. एरा मस डारिवन जो िवग भी लगाते थे, अनेक िचय वाले थे और वे
अपना िचंतन िचिक सा िव ान तक सीिमत नह रखते थे। समकालीन आिव कारक व उ ोगपित जे सवाट, मै यू
बु टन उनक घिन िम म से एक थे। ये लोग उस भाप क इजन म सुधार करने म लगे थे िजसने आने वाले

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समय म इ लड का न शा ही बदल िदया।
पेशे से िचिक सक डॉ. डारिवन को इन यास का मू य पहले ही समझ म आ गया और उ ह ने बु टन से
ताव िकया िक य न साझीदारी म एक फम खोली जाए िजससे भाप क श से गािड़याँ चलाई जाएँ। डारिवन
ने इसका पेटट हािसल करने क भी योजना तैयार क ।
पर यह योजना चल नह पाई। दुखी डॉ टर ने अपनी असफलता क दुख को एक किवता म उड़ला। यह किवता
दुखी डारिवन क दय से तब फटी जब वह अपने गम भुलाने क िलए ामीण इलाक म चाँदनी रात म टहल रह
थे। किवता का सार इस कार था—
‘‘ह भाप तुम पर अभी तक कोई िवजय नह पा सका ह, पर ज दी ही तु हार सहार जहाज धीमी गित से आगे
बढ़गे, तेज कार दौड़ने लगगी, अपने चौड़-चौड़ पंख क ज रए उड़ने वाले रथ आसमान क ऊचाइय को चूमगे।’’
उधर िजस मरीज को देखने क िलए ब मुखी ितभा क धनी डॉ. डारिवन गए थे वे जोिसयाह वेजवुड स 1730
म ज मे थे। अथा आयु म डॉ टर से स रह महीने बड़ थे। जोिसयाह क िपता का देहांत तभी हो गया था जब
जोिसयाह मा नौ वष क थे और इस कारण उ ह कल क पढ़ाई छोड़नी पड़ी। जोिसयाह अब अपने भाई क साथ
काम करने लगे जो बतन बनाते थे। उ ह ने अपने छोट से घर क िपछले िह से म एक कमर म अपना काम ारभ
िकया था।
जोिसयाह ज दी ही कारोबार क गुर समझ गए थे। बाद म उ ह ने इस काय म अ णी थॉमस िव डन से भी
साझीदारी क । उ ह ने परपरागत तरीक से िम ी क बतन बनाने म भी महारत हािसल क और नए- नए योग भी
िकए।
स 1759 म उ ह ने वेजवुड वेयर क नाम से सुंदर व अनोखे बतन िनमाण का कारोबार ारभ िकया िजसने
ारभ म ही धूम मचा दी। जोिसयाह का नाम अ णी बतन िनमाता म िगना जाने लगा। उ ह ने अपने बेहतरीन
बतन त कालीन महारानी करोलीन को भट िकये िज ह ने उ ह शाही बतन िनमाता क उपािध दान क । यही नह ,
स क सा ा ी कथरीन ने उ ह िडनरसेट तैयार करने का ब मू य आडर िदया िजसम इ लड क ाकितक नजार
क तेरह सौ खूबसूरत य अंिकत करने थे।
जोिसयाह ने उपरो काय पूरी कशलता से कर िदखाया और इससे उ ह अंतररा ीय तर क याित िमली।
धीर-धीर उ ह ने अ य आिव कार भी िकए और नई नहर , सड़क आिद क काम म भी भागीदारी ारभ क जो उस
समय क ांितकारी काय माने जाते थे और ि िटश सा ा य इ ह पूरा मह व दे रहा था।
इस कार इलाज क बहाने जब डॉ. डारिवन व जोिसयाह वेजवुड िमले तो िचिक सक व रोगी का र ता शी ही
िम ता म प रवितत हो गया। दोन खुले म त क क वामी थे और हाल ही म ई ांसीसी ांित म उभर िवचार
व िस ांत क समथक थे। उ ह अमे रका म चल रह वतं ता सं ाम से भी हमदद थी।
दोन को उस समय क दास- था से नफरत थी और वे इसे श द म भी य करते थे और कित व म भी।
जोिसयाह ने अपने एक बतन म काले गुलाम को जंजीर म बंधा िदखाया था और साथ म अंिकत िकया था ‘‘ या
म मनु य व आपका भाई नह ।’’
डॉ. डारिवन और जोिसयाह दोन गित क पथ पर आगे बढ़ते चले गए। जोिसयाह एक-से-एक खूबसूरत बतन
िडजाइन करते चले गए जो बेशक मती होते थे। डॉ. डारिवन क भी ित ा बढ़ती चली गई और उ ह ने त कालीन

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ि िटश स ा जॉज तृतीय को भी भािवत िकया िज ह ने उ ह शाही िचिक सक का काय भार संभालने का िनमं ण
िदया िजसे डॉ. डारिवन ने अ वीकार कर िदया और वे अपना यादातर समय लेखन म लगाने लगे।
उ ह ने अपने ंथ ‘‘जूनोिमया’’ पर लगभग बीस वष लगाए िजसका उ े य रोग क िस ांत का ितपादन
करना था और इससे जीवन क िविभ पहलु को सामने लाने म सहायता िमलती थी। उ ह ने एक जगह िलखा
भी िक यह क पना करना किठन नह ह िक इस पृ वी क अ त व म आने क करोड़ साल बाद ही मानव जीवन
का अ त व ारभ आ। यही नह यह भी कहा जा सकता ह िक सभी गम खून वाले ाणी ारभ म एक कोिशका
वाले जीव ही थे।
डॉ टर डारिवन उस समय तक लीिनयस तथा बफॉन ारा िकए गए काय से काफ भािवत थे िज ह ने
वन पितय और ािणय का वग करण िकया था। उ ह ने यह भी सािबत करने का यास िकया था िक ारभ म
एक मौिलक जीव था।
डॉ टर डारिवन किव भी थे और िचंतक भी। उ ह ने दोन गुण का उपयोग करते ए क पना ारभ क िक
आिखर एक जीव से अनेक जाितयाँ कसे िवकिसत ई ह गी। आज क सभी चौपाए और मनु य आिखर कसे
जलजीव क प म रहते ह गे। हो सकता ह िकसी आपदा या मजबूती क कारण वे सूखे इलाक म आए ह गे। यह
भी हो सकता ह िक लाख -करोड़ साल म पृ वी पर ये वन पितयाँ, स जयाँ और अ य ाणी ही रह ह और बाद
म मनु य अ त व म आया हो।
उन िदन लामाक का जीवन संबंधी िस ांत आया था। उसक संदभ म डॉ. डारिवन ने अपनी रचना
‘‘जूनोिमया’’ म िलखा था िक सभी ािणय म लगातार प रवतन होते रहते ह। इनम से कछ प रवतन उनक अपने
यास से होते ह जो उनक इ छा क पूित क िलए होते ह जबिक कछ उनम संतुलन क कारण होते ह।
इस कार उस समय अनेक देश वीडन, ांस आिद क वै ािनक भी जीव क उ पि क संदभ म अिधक-से-
अिधक जानने म लगे ए थे। पर लोग इस कार क िस ांत जैसे एक कोिशका वाले ािणय से गम खून और
ठड खून वाले ािणय क उ पि ई थी, को आसानी से मानने क िलए तैयार नह थे। वे पूछ बैठते थे िक हल,
सील और मढक एक मूल क कसे हो सकते ह।
इस समय ािणय को कि म प से प रवितत करने क यास भी चल रह थे। अनेक घोड़ को ती गित से
दौड़ने क िलए तैयार करने हतु कि म प से घोिड़य का गभाधान कराया गया था। उसी तरह ऐसे क े तैयार िकए
जा रह थे जो सूँघने क िवशेष ह । इसी तरह नई जाितय क गाय व भेड़ तैयार क जा रही थ ।
इन सभी को देखकर डॉ टर डारिवन लगातार िचंतन करते रहते थे। एक िदन उ ह ने देखा िक एक क ड़ा एक
म खी को मारकर ले जा रहा ह। उस पर उस समय बह रही ठडी हवा को कोई भाव नह पड़ रहा ह। इससे भी
उ ह ेरणा िमली। उ ह ने यह भी सोचा िक जीवन म गित होती ह यह धारणा अित ाचीन काल म बन गई थी
और इस कारण यूनानी और रोमन सािह यकार ने कछ वै ािनक आधार पर और कछ क पना क आधार पर
अनोखी रचनाएँ रच । म य युग म अव य ही इस िचंतन म ठहराव आ गया था।
उन िदन अथा अठारहव सदी म यूरोप म िव ान का उदय तेजी से हो रहा था। डॉ. डारिवन क नए िवचार को
सराहा गया और उनक रचना ‘जूनोिमया’ ने लोग म िदलच पी उ प क । सात वष म इसक तीन सं करण िबक
गए। इसका च, इतालवी तथा जमन भाषा म अनुवाद भी आ।
पर यादातर लोग इसे रोग क संबंध म पा य-पु तक ही मानते थे और जीवन क उ पि क बार म उनक

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िवचार लोग क गले नह उतर पाते थे य िक डॉ. डारिवन ने उसम योग , िनरी ण आिद का सहारा लेने क
बजाय िसफ क पना का इ तेमाल िकया था। उस समय ये िवचार अ यंत क े थे। पर िफर भी इस बार म
िचंतन तो ारभ हो ही गया था।

िनजी जीवन
डॉ. डारिवन ने युवाव था म ही िचिक सा क ै टस ारभ करते ही एक सतरह वष य युवती से िववाह कर
िलया था। यह युवती पहली नजर म ही उनका िदल जीत चुक थी। ये लोग एक पुराने मकान म रहने लगे।
कालांतर म वह युवती पॉली तीन बेट क माँ बनी। ये थे—चा स, एरा मस तथा रॉबट वेय रग। रॉबट वेय रग
(जो सबसे छोट थे) का ज म स 1766 म आ था।
उधर, डॉ टर डारिवन क नए िम जोिसयाह वेजवुड का िववाह स 1764 म आ था। वे भी तीन बेट और
तीन बेिटय क िपता बने। ीमती वेजवुड का वा य अ छा नह रहता था और इस कारण ब को दूर कल
भेज िदया गया। पर बाद म देखा गया िक उनक पढ़ाई ठीक नह चल रही ह और उ ह घर पर पढ़ाने का िनणय
िलया गया। इस िनणय म भी डॉ. डारिवन का योगदान था जो लड़क व लड़िकय दोन क िलए आधुिनक िश ा
क प धर थे। उन ब क िलए अ छ िव ान िश क रखे गए।
बाद म डारिवन प रवार और वेजवुड प रवार क ब े एक ही कल म पढ़ने गए जहाँ पर पढ़ाए जाने वाले पाठ
छोट थे पर भोजन ब त अ छा िमलता था। ब को अ छी कसरत कराई जाती थी पर पढ़ाई या यवहार म कमी
क कारण मार नह पड़ती थी।
यह से राबट वेय रग डारिवन और सूजनाह (जोिसयाह क बेटी) म बचपन क मोह बत ारभ हो गई। यार म
बाधा उ प होने का कोई सवाल ही नह था। राबट को बाद म िचिक सा िव ान क अ ययन क िलए एिडनबग
भेजा गया पर ेम चलता रहा।
स 1796 म राबट तथा सूजनाह क िववाह क साथ ही डारिवन प रवार और वेजवुड प रवार क बीच अब तक
चली आ रही िम ता र तेदारी म बदल गई। हालाँिक इस िदन को देखने म पूव ही (िववाह क एक वष पूव)
जोिसयाह का देहांत हो गया था।
युवा डॉ टर रॉबट डारिवन भी एक कशल िचिक सक थे। उ ह ने सू्रसबरी म ै टस करने का िनणय िलया जो
एक पुराना शहर था और एक पहाड़ी क ऊपर बसा आ था। इससे होकर एक नदी भी बहती ह जो सिपल रा ते से
बलखाते ए आगे बढ़ती जाती थी। उन िदन लोग उ ीसव सदी क आगमन का इतजार कर रह थे। पर यह शहर
उस समय अपनी म यकालीन इमारत क िलए जाना जाता था िजनम से एक दीवार और नदी क िकनार बसा िकला
अतीत क दा तान बयान करते ए मालूम पड़ते थे।
डॉ. डारिवन तथा सूजनाह ने ूसबरी म अपना घर बसाया जहाँ पर हर सिदय म कलीन लोग आकर रहते थे।
डॉ टर क ै टस भी अ छी चलती थी। सूजनाह ने एक क बाद एक संतान को ज म िदया।
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चा स डािवन का ज म
स 1809 को एक मह वपूण वष या भा यशाली वष माना जाता ह। जूिलयस ह सली नामक िव ान ने इसे
िवशेष-वष क सं ा दी य िक इस वष लैड टोन, हो स जैसे लगभग आधा दजन महापु ष ने ज म िलया।
यही नह , दुिनया क महानत ह तय म से एक तथा अमे रका क महानतम रा पितय म से एक अ ाहम
िलंकन का ज म 12 फरवरी, 1809 को ही आ था।
उसी िदन सूजनाह ने अपनी पाँचव संतान को अपने मकान ‘िद माउट’ ायर जािजयन हाउस म ज म िदया
िजसे डॉ. राबट डारिवन ने स 1800 म बड़ चाव से बनवाया था। यह इलाका शहर से अलग था पर नदी क
िकनार बसे इस इलाक से अ ुत ाकितक छटा िनहारने का एक अलग ही आनंद था। आस-पास सुंदर, मोहक
पेड़ थे।
ब े का नाम चा स रखा गया। उस समय यूरोप म भारी उथल-पुथल मची थी। अं ेज नेपोिलयन से जूझ रह थे।
यु क खबर ही लोग क बीच चचा का मुख िवषय थ ।
बालक चा स भी लोग क बीच इस तरह क बात सुनता रहता था। वेजवुड प रवार का एक युवक मोच पर
डटा था और उसने ऐितहािसक वाटरलू यु म भाग भी िलया।
जून 1815 म अफवाह उड़ी िक नेपोिलयन ने आ मसमपण िदया ह तो िकसी को िव ास ही नह आ। डारिवन

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प रवार और वेजवुड प रवार जब भी िमलता तो यु क ही बात करता। िकसी का भी यान पाँचव संतान चा स
पर नह जाता था।
चा स का ारिभक िवकास अितधीमी गित से आ। जब नेपोिलयन क आ मसमपण क खबर आई तो सभी
उ ेिजत थे। सभी ने देखा छः वष य चा स अचानक उ ेिजत आ। अभी तक क उसक गितिविधयाँ अपने हमउ
बालक से पीछ रहा करती थ ।
पर सब कछ यादा ठीक नह रह पाया। जब चा स मा आठ वष का था तब उसक माता सूजनाह इस दुिनया
से चल बस । चा स को इस गहर आघात का कोई खास एहसास नह हो पाया। वह अपनी ही दुिनया म खोया था
और कचे, िस , डाक-िटकट, पौधे, िचिड़य क अंड आिद एकि त करता रहता था। धीर-धीर वह मर ए क ड़
को इक ा करने लगा। उसक बड़ी बहन ने उसे बतला िदया था िक जीिवत ािणय को नह मारना चािहए और
वह इसका पालन करता था।
डॉ. डारिवन एक लंबे कद क भारी भरकम शरीर वाले तो थे ही, उनक आवाज भी कड़क थी। वे इस अबोध
िबन माँ क ब े क इन हरकत से परशान रहते थे और उसे अ सर डाँटते ए कहते थे िक तुम इन क ,
िब य , चूह आिद क खेल म लगे रहते हो। तु ह अपने भिव य क कोई िचंता नह ह। तुम अव य ही अपने
खानदान का नाम डबो दोगे।
माता क देहांत क थोड़ िदन बाद बालक चा स को ूसबरी ामर बोिडग कल म भेजा गया िजसक थापना
दो सौ पचास वष पूव ि िटश स ा एडवड ष म ने क थी। यहाँ का पा य म काफ स त व परपरागत था।
चा स जैसे अनोखे ब े क िलए यहाँ पर किठनाइयाँ ही किठनाइयाँ थ । घर क तरह कल क अ यापक,
धाना यापक डॉ. बटलर आिद सभी उससे िनराश थे।
उसक कल क रपोट इस कार थी—
अं ेजी—औसत
लैिटन—औसत
गिणत—औसत
भूगोल—औसत
इितहास—औसत
च—औसत
िट पणी—चा स एक द बू ब ा ह। वह दूसर ब क साथ घुल-िमल नह पाता ह। वह िसफ फल, प े,
च टी, क ड़ आिद इक करने म लगा रहता ह।
पर चा स इन सब िट पिणय से बेखबर था। वइ इन क ड़ आिद क बार म यादा-से- यादा जानने म लगा था।
वह अ य िकताब भी पढ़ता था पर प ी िव ान, क ट िव ान म उसक गहरी िच थी। घर आकर भी वह यही सब
करता रहता था, हालाँिक सभी इस बात से काफ िचढ़ते थे।
उधर चा स क बड़ भाई एरा मस डारिवन ने अपने बगीचे म एक रासायिनक योगशाला लगाई थी। िजसम
चा स भी अपने भाई क साथ देर-देर रात तक लगा रहता था। दोन भाई िमलकर तरह-तरह क गैस व यौिगक
तैयार िकया करते थे। यह खबर चा स क कल तक जा प ची और उसक साथी उसे ‘गैस’ क नाम से पुकारने

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लगे।
धाना यापक डॉ. बटलर तो पहले से ही उससे खफा थे। वे उसे इन फालतू काम म समय बरबाद करने क
िलए सावजिनक प से डाँटने लगे।
उपरो गितिविधयाँ वैसे ही कम नह थी। ऊपर से चा स क सौतेले चाचा सामुवेल गा टन ने उसे िनशाना
लगाना और िसखा िदया। जब चा स ने पहली बार बंदूक से िनशाना लगाया तो वह अ यंत उ ेिजत आ। एक बार
को तो उसक िह मत ही नह पड़ी िक वह दोबारा कारतूस भर। धीर-धीर वह िचिड़य का िशकार करने म मािहर हो
गया।
िपता डॉ. डारिवन उन सब गितिविधय को कोई खास पसंद नह करते थे पर वे उ ह बदा त करते रह।
चा स अपने िपता क डील-डौल व गजदार आवाज से काफ भािवत था। वह अ सर उनक चचा भी करता
था। लंबे तगड़ डॉ टर जब गरीब मरीज को देखने जाते थे तो पहले अपने कोचवान को जाँचने क िलए अंदर
भेजते थे िक कह दरवाजे से उनका िसर कह टकरा तो नह जाएगा।
सभी ब े डॉ. राबट डारिवन क तरह-तरह से चचा करते थे। कोई उ ह नदी का ार कहकर पुकारता था तो
कोई िकसी अ य नाम से। कई बार उनक कड़ी बात चा स क बाल कलेजे को बुरी तरह छलनी कर देती थ ।
धीर-धीर वह आ मिनभर होता चला गया।
पर वह अपने िपता क गितिविधय व बात को यान से देखता और तौलता था। उसने उनक मुँह से लगातार
सुना िक अ सर मिहलाएँ अपने वा य क बार म िशकायत गोल-मोल तरीक से करती ह। डॉ. डारिवन का
मानना था िक उ ह शरीर म नह वर मन म तकलीफ होती ह और इसिलए वे ऐसा करती ह। यह बात उस काल
क िलए िब कल नई थी और ब त बाद म ायड ने इसका खुलासा िकया।
संवेदनशील चा स पर इन बात का गहरा असर पड़ रहा था। एक भाव यह पड़ा िक वह िकसी भी बात को
िबना मजबूत आधार क मानता नह था। वह और को भी े रत करता था िक वे भी पूरी जाँच क बाद ही माने।
पर मजबूत और स त राबट डारिवन का पु चा स ारभ से ही नाजुक वा य वाला हो गया। डॉ टर स
िच रहते थे पर बेटा चा स िचंितत-सा रहने लगा। बाप लोग को अपनी बात मनवा लेता था जबिक बेटा सामा य
तक म भी हार मान जाता था। वह काफ दयालु वभाव का हो गया।
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िचिक सा का पेशा ठकराया
डॉ. राबट डारिवन क हािदक इ छा थी िक उसक दोन बेट उसक और अपने दादा क पदिच पर चल
िज ह ने बतौर िचिक सक बड़ा नाम कमाया था।
बड़ भाई इरा मस ने कि ज म िचिक सा-शा क पढ़ाई ारभ कर दी थी। स 1825 म वह एिडनबग
िव िव ालय म जाने वाला था। िपता राबट ने फसला िकया िक चा स कल म कोई खास नह कर पा रहा ह,
अतः उसे भी िचिक सा-शा क पढ़ाई क िलए जाना चािहए। जाने से पूव िपता राबट ने बेट को िचिक सा पेशे क
चंद ारिभक गुर समझाने चाह और उसे गरीब मरीज क इलाज क समय साथ रखा।
हालाँिक उस समय चा स क आयु मा सोलह वष थी और वह िचिक सा िव ान क पढ़ाई क िलए कम-उ
था। पर उन यास क कारण उसक अंदर क णा आ गई। वह मनु य से सही तरह से यवहार करने क तौर-तरीक
सीख गया। वह रोिगय क ल ण कागज पर दज करने लगा और अपने िपता को जोर से पढ़कर सुनाता था।
डॉ टर डारिवन उसक अनुसार दवा बतलाते थे।
चा स रोज एक दजन से अिधक मरीज से बातचीत करता था। वह इस काम म गहरी िच भी लेता था और
अब उसक िपता स होकर कहते थे िक चा स एक िदन नामी िचिक सक बनेगा। उ ह इस बात क स ता थी
िक चा स अपने मरीज म िव ास उ प कर लेता ह।

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पर मेिडकल कॉलेज का माहौल अलग ही िक म का था। अपने समय क लोकि य व चिचत वै ािनक
गैलीिलयो को भी िचिक सा-शा क पढ़ाई नह भाई थी। चा स डारिवन का भी वैसा ही हाल था। चा स क
आयु सोलह वष क हो चुक थी पर उसका मन ब जैसा ही था।
उन िदन कॉटलड म पड़ने वाली ठड क बावजूद ातः आठ बजे िचिक सा िव ान क िविभ िवषय क
या यान ारभ हो जाते थे। ये या यान चा स पर कोई भाव नह डाल पाते थे। िश क भी भावहीन थे। वे भी
पुराने िघसे-िपट िलखे िलखाए या यान को श द-दर-श द दोहराते थे।
कई बार थित हा या पद भी हो जाती थी य िक स 1825 म पढ़ा रह िश क डॉ. मुनरो अपने दादा ारा
िलखे गए या यान को जो उ ह ने अपने कायकाल म िलखा था, दोहराते थे। और उसम स 1719 म क गई
कायवाही का हवाला देते थे। उ ह इस बात से कोई मतलब नह था िक छा -छा ा समझ रह ह या नह । लड़क
तरह-तरह क गोिलयाँ बना-बनाकर उन फकते थे पर उन पर कोई असर भी नह होता था।
उन िदन पढ़ाई म या यान पर अिधक जोर िदया जाता था और योग पर नह क बराबर। िकशोर चा स को
शरीर क रचना का ान या यान ारा तो करवा िदया गया था पर मेढ़क का शरीर काट कर यावहा रक ान
नह कराया गया।
चा स डारिवन को यावहा रक ान पहले-पहल तब आ जब उसे एिडनबग अ पताल म सजरी क दौरान भेजा
गया। पहली बार तो उसने झेल िलया पर दूसरी बार ऑपरशन िथयेटर म ब े का ऑपरशन होना था। उन िदन तक
ोरोफाम का आिव कार नह आ था। ब े को दद से तड़पते देखकर चा स ऑपरशन िथयेटर से तो या
अ पताल से ही भाग गया और दोबारा लौट कर नह आया। वह वीभ स य चा स को लंबे समय तक सताता
रहा।
चा स ने ठान िलया िक वह डॉ टर नह बनेगा। उसे यह भी पता था िक उसक िपता क पास अथाह जायदाद व
पैसा ह िजसक सहार वह जीवन गुजार सकता ह। अब उसने फसला कर िलया िक वह वही करगा जो उसे पसंद
ह। वह समु क िकनार िनकल जाता था और समु ी जंतु से संबंिधत िवषय का यावहा रक अ ययन करता
था।
वह इन जीव को एकि त भी करता था। वह सीपी पालने वाल क साथ भी उठता-बैठता था और उनक
िविभ जाितय क बार म यादा-से- यादा जानका रयाँ एकि त करता था। उसने जीव क शरीर को काटकर
उनका अंद नी अवलोकन भी ारभ िकया और इसक िलए एक माइ ो कोप का भी बंध िकया। पर वह
माइ ो कोप पया व उपयु नह था और उसका अ ययन अधूरा ही रह गया।
उसने समु ी जल म बहते बीज देखे। उनका भी उसने माइ ो कोप ारा अ ययन िकया और पाया िक वे तो
लावा ह। इससे चा स का उ साह और बढ़ गया। उसने अपने अब तक क अ ययन क आधर पर एक शोध-प
िलखा। एक छा क सभा म उसने इसे पढ़कर भी सुनाया। यह शोध-प कािशत तो नह हो पाया पर उससे
चा स क एक पहचान अव य बन गई।
अब चा स लगातार िकताब पढ़ता रहता था और िव िव ालय म होने वाली सभा , बैठक म ोता क प
म जा-जाकर सुनता रहता था। एक िव ान ने एक सभा म िचिड़य क बार म अपने अ ययन क बार म बतलाया
था। इस सभा क अ य ता यात लेखक सर वा टर कॉट ने क थी। चा स ने उसम भी भाग िलया।

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एिडनबग म रहते ए चा स को अपने मामा जोिसयाह वेजवुड (जूिनयर) क साथ पे रस जाने का भी अवसर
िमला। वहाँ से उसक साथ उसक ममेरी बहन भी वापस आई, िजनम से एक ए मा बाद म चा स क प नी बनी।
इसी दौरान चा स को िनशानेबाजी का भी भरपूर अवसर िमला।
वेजवुड प रवार स ाहांत क छ य म अपने मकान ‘मायर’ म आता था। यहाँ पर अ य िम व र तेदार भी
आकर जुटते थे और छ य का भरपूर आनंद लूटते थे। यह मकान छोटी पर सुंदर झील क िकनार कछ ऊचाई पर
था। साथ म मकान क दोन ओर लंब-े चौड़ बगीचे थे। मकान म बड़-बड़ कमर थे िजनम िकनार पर अलमा रय म
िकताब सजी रहती थ । सभी लोग उ ह पढ़ते और उन पर चचा करते थे। चा स इस कार क चचा को कभी
नह छोड़ता था। वह संगीत क काय म म भी भाग लेता था और बगीच म बहने वाली शीतल बयार और भीनी-
भीनी सुगंध का भी आनंद लेता था। मकान और आसपास क पेड़ क परछाई चंचल जल पर जब पड़ती थी तो
एक अ ुत मनोहारी य उ प होता था और चा स का मन इसे देखकर कभी नह भरता था।
इस घर म ब व छोट क िलए समय-समय पर दावत होती थ और उनम सभी घुड़सवारी का आनंद लेते थे।
किटग भी होती थी और झील म नौकायन का भी मजा िलया जाता था।
चा स का मन यह सब छोड़कर जाने का नह होता था पर उसे मन मारकर एिडनबग लौटना पड़ता था। कब दो
साल बीतने को आए पता ही नह चला। अब तक सभी क िदमाग म यह बात घर कर गई थी िक चा स अपने
िपता और दादा क तरह डॉ टर तो नह बन पाएगा।
पर िफर आिखर या बनेगा और या करगा। ोधी वभाव क डॉ. राबट डारिवन अ सर परशान हो जाते थे
और अपना गु सा रोक नह पाते थे। उ ह चा स क बार म बचपन से ही अंदेशा था और वह सच सािबत होता जा
रहा था। वे चा स क फल-प ी, क ड़-मकोड़ इक ा करने क आदत और िनशानेबाजी क शौक को छड़ाना
चाहते थे।
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नए पेशे क तलाश
कि ज जाने क तीसर वष चा स क िलए नए पेशे क तलाश ारभ हो गई। उस समय चंद पेशे जैसे कानून,
िचिक सा, धमगु , फौज, राजनीित आिद िति त पेशे माने जाते थे। इनम से कानून से चा स का दूर-दूर तक का
कोई नाता नह था।
अतः जीवन क उ ीसव वष म चा स क िलए यह फसला आ िक वह धम क िश ा हण कर। हमेशा से
िपता क आ ा मानने वाले चा स ने यह बात मान ली और स 1928 से 1931 क दौरान उसने कि ज म नए िसर
से अ ययन ारभ िकया।
उसने अनेक पु तक पढ़ । उसक तमाम िम भी बन गए। यहाँ का जीवन उसे एिडनबग या ूसबरी क जीवन
से बेहतर लगा। उसने अिनवाय या यान भी सुने और पा य म को पूरा करने क िलए िनजी यूटर क भी
सहायता ली।
इस तरह उसने अपनी आव यक परी ाएँ सफलतापूवक पास कर ल और ाइ ट कॉलेज म उसे दसवाँ थान
ा आ।
इन सभी क साथ उसने िनशानेबाजी, िशकार, लंबी घुड़सवारी भी जारी रखी। उसे पािटय म पीने-िपलाने, गाने,
ताश खेलने का भी शौक हो गया। उन िदन िव िव ालय म क ड़ , िततली आिद पकड़ने का फशन ारभ हो

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गया। चा स को तो इसम पहले से ही महारन हािसल थी। जब इस काम क दीवान से उसका प रचय उसक चचेर
भाई िविलयम डारिवन ने करवाया तो िफर या कहना था। चा स उनका अ णी हो गया।
इसी म म एक िदन चा स ने एक लकड़ी क ल क छाल को छीला तो उसे दो नए कार क क ड़ िमले।
उसने उन दोन को एक-एक हाथ म पकड़ा। तभी उसे तीसरा िदखाई िदया और उसे पकड़ने क धुन म उसने दाएँ
हाथ म पकड़ा क ड़ा मुँह म रख िलया और तीसर पर क जा िकया। इसी बीच मुँह म बंद क ड़ ने अजीब-सा तरल
पदाथ छोड़ा िजसे चा स बदा त नह कर पाया और उसे थूकना पड़ा। पूरा घटना म दुखद रहा य िक तीसरा
क ड़ा भी हाथ से छट गया। िजसक िलए चा स ने वह अ वाभािवक काय िकया था।
अब चा स इस काम म अपने सािथय से ित पधा भी करने लगा। वह क ड़ , िततिलय आिद को पकड़ने क
िलए नए-नए तरीक आिव कार करने लगा। वह इस काम म मजदूर क सहायता भी लेने लगा जो उसक िलए पेड़
क सफाई आिद करते थे।
उसे इस काम म इस कदर आनंद आता था िक वह इसे य करने क िलए किवताएँ िलखने लगा। जब उसक
क ड़ पकड़ने पर पहली किवता छपी तो उसे अ यंत स ता ई। इसी बीच उसक िम ता पादप-िव ान (बोटनी)
क एक ा यापक जॉन टीवन हसलो से हो गई। हसलो एक अ यंत ितभावा य थे और लंबे अवलोकन क
प ा िनणय या िन कष िनकालने म महारत रखते थे।
चा स व हसलो दोन को लंबी सैर करने का शौक था और दोन कि ज क पास क ामीण इलाक म सैर क
िलए िनकल जाते थे। चा स को दो मह वपूण िकताब भी पढ़ने क िलए िमल । इनम से एक या ा-वृतांत संबंधी थी
और दूसरी दशन संबंधी थी। अब उसक मन म या ा करने तथा कित क बार म अिधक-से-अिधक जानने क
इ छा जगने लगी। उसने पु तक क अंश हसलो तथा अपने अ य िम को जोर-जोर से पढ़कर सुनाए।
अब उसक मन लगन उठी िक कित क बार म और अिधक जाना जाए और ाकितक-िव ान को अिधकािधक
समृ बनाया जाए। उधर, जनवरी 1831 म परी ा पास करने क प ा उसे कि ज म दो स और रहना था।
हसलो ने उसे े रत िकया िक इस अविध का उपयोग वह भूगभ-िव ान क अ ययन म कर। उसी दौरान गरिमय म
ो. आदम सेजिवक वे स क पास पुरानी च ान क भूगभ य अ ययन क योजना बनाई गई।
हसलो ने ो. सेजिवक को इस बात क िलए राजी कर िलया िक वे चा स डारिवन को अपने अ ययन दल म
शािमल कर ल। जाने से पूव सेजिवक ने डारिवन प रवार क साथ एक रात ूसबरी म िबताई। बात ही बात म
चा स ने ोफसर को बता िदया िक हाल ही म एक मजदूर को ग ा खोदते समय एक शैल िमला ह। सुनकर
ोफसर ने कहा िक िफर तो आस-पास और भी ब त कछ दबा होगा।
इस बात ने चा स डारिवन को एक नई िदशा दी। उसे मालूम हो गया िक िव ान म अनेक ऐसे सामा य िनयम
होते ह िजनक सहायता से िन कष िनकाले जा सकते ह।
भूगभ शा य क साथ क गई अनुसंधान-या ा से भी चा स को बड़ा मजा आया। तभी उसे याद आया िक
पतझड़ मौसम क ारभ म उसक निनहाल म िनशानेबाजी क ित पधा होती ह। उसने छोटा रा ता चुना तािक वह
ज दी घर प च सक। उस समय तक उसे लगता था िक िनशानेबाजी िकसी भी िव ान, भूगभ िव ान या अ य से
अिधक मह वपूण ह और आनंददायक भी।
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महान या ा का ारभ
निनहाल प चने से पूव चा स को अपने घर ‘माउट’ कना पड़ा। यहाँ पर एक प उसक नाम से पहले से आया
आ था। यह प उसक ि य िम ोफसर हसलो ारा भेजा गया था।
वा तव म ि िटश नौसेना क एक क टन राबट िफ जराय एक वै ािनक अनुसंधान िमशन पर जाना चाहते थे।
उनक पास इस ल य क िलए एक िवशेष जलयान था एच.एम.एस. बीगल। इसक ज रए वे दुिनया क बड़ भाग
का मण करक तमाम ाकितक िव ान संबंधी जानका रयाँ एकि त करना चाहते थे। उ ह एक ाकितक िव ानी
क आव यकता थी िजसक िलए नाम सुझाने क ाथना उ ह ने वन पित शा क ोफसर हसलो से क थी।
इस प क ज रए हसलो ने चा स डारिवन क वीकित माँगी िक य न वे इस महा ल य क िलए इसका नाम
सुझा द। चा स यह पढ़कर रोमांिचत हो गया। उस प म िजन थान क या ा का उ ेख िकया गया था वे नाम
उसने सुने तक नह थे।
इसक अलावा िन न भी स य थे—
1. चा स क सेवा इस अिभयान म वै ािनक सलाहकार क होनी थी जबिक चा स क पास िव ान संबंधी ऐसी
कोई िड ी नह थी िजसक आधार पर वह सलाह देता।
2. उसे समु से ब त डर लगता था।

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पर चा स क पास चौक े कान व संवदेनशील नाक थी। प म हसलो ने िलखा था िक यह बेहतरीन अवसर
ह। तु ह अपनी अयो यता पर अिधक यान नह देना चािहए। मेर िवचार से अिभयान-दल को तुम जैसे य क
ही तलाश ह।
उ सािहत चा स अनुमित क िलए अपने िपता डॉ टर डारिवन क पास गया। पर स त िपता ने जोरदार डॉट
िपलाकर सारा उ साह ठडा कर िदया। उ ह पेशे म प रवतन मंजूर नह था। उ ह ने कहा िक इससे धमगु क प म
भिव य म काम करने म कोई लाभ नह िमलेगा। चा स को त काल इकार कर देना चािहए।
पर बात ही बात म डॉ टर डारिवन एक बात कह गए िक यिद एक भी समझदार य इस बेवकफ भर
ताव क िलए हाँ कर दे तो वे चा स को जाने क वीकित दे दगे।
अब या था, राह िमल गई। चा स ने अपने मामा वेजवुड प रवार से राय ली और सभी ने एक वर से इसे
आकषक, चुनौतीपूण ताव बतलाया। मामा ने कहा िक वे डॉ टर को मना लगे। चा स ने अपने िपता क
आपि याँ िलिखत म अपने मामा को द िजनका मामा ने िबंदुवार उ र िदया। उ ह ने अपने प म िलखा िक
ाकितक िव ान का ऐसा अ ुत, उपयोगी अनुभव धमगु क पेशे म बाधक नह वर सहायक सािबत होगा। इस
या ा म उसे तमाम य और तमाम चीज देखने को िमलगी और इससे उसका ान समृ होगा।
प क साथ चा स ने अपनी िट पणी भी जोड़ी िजसम िलखा था िक वह इनता ान घर पर रहकर या पढ़कर
हािसल नह कर पाएगा। इस या ा क प ा वह यो य जीवन िबताने क हर संभव कोिशश करगा। पर वह अपने
घरवाल क अनुमित से ही जाएगा।
प डाक ारा भेज िदए गए। पर मामा-भानजे को तस ी नह ई और वे य गत प से वीकित लेने आ
गए। अंततः डॉ टर डारिवन ने न िसफ रजामंदी दी वर रा ते क खच क भी यव था क य िक चा स डारिवन
क वेतन आिद क बार म कछ तय नह था।
चा स ने िपता से वायदा िकया िक वह अपने भ े से ही अपना गुजारा करगा। उसने यह सुखदायक समाचार
अपने ेरक-िम हसलो को भेजा। थोड़ ही िदन म नौसेना य क कायालय से चा स डारिवन क िलए
औपचा रक आदेश आ गए।
इसक उ र म चा स ने क टन िफ जराय को िलखा िक चार नवंबर का िदन उसक जीवन म ऐितहािसक िदन
होगा। उस िदन वह अपना दूसरा जीवन ारभ करगा।
ारभ म क टन ने चा स को देखकर कछ नाक-भ ह िसकोड़ी पर ज दी ही दोन क म य तालमेल बैठ गया।
आिखर 27 िदसंबर, 1831 का िदन आ ही गया। उस िदन ब तीि त पुरवाई हवा चल पड़ी। जहाज का लंगर
खोला गया तथा वह बंदरगाह छोड़ने क िलए तैयार हो गया।
जाने से पूव क टन िफ जराय, सेकड ले टीनट जे स सलीवान तथा चा स डारिवन ने समु ी तट पर भोजन
िकया िजसम मटन चॉप क अलावा शपेन भी थी। उ ह ने अपनी मातृभूिम इ लड को िवदा िकया य िक वे जानते थे
िक कम-से-कम तीन वष क िलए जा रह ह।
िदन क दो बजे थे। ह क -ह क हवा बह रही थी। ठड क मौसम म बीगल जहाज धीर-धीर गहर समु म
उतरा।
उस समय िकसी को इस बात का एहसास नह था िक यह या ा एक ऐितहािसक व महा या ा कहलाएगी। उस

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सौ फ ट लंबे जहाज क तीन म तूल थे। उस पर बह र य सवार थे। उनम से सात अिधकारी थे और पाँच
अपर अिधकारी थे। दो िचिक सक थे और एक पसर था। दस नौसैिनक थे और चौतीस जहाजी। छः काम करने
वाले लड़क थे और नौकर। तीन फजी वासी थे जो अपने वतन वापस जा रह थे। एक िमशनरी पादरी था और एक
ाकितक-िव ानी अथा चा स डारिवन।
बीगल जहाज क यह दूसरी अनुसंधान या ा थी। इसक अंतगत इसे एक लंबी या ा करनी थी जो दि णी समु
से होकर गुजरनी थी। उसे कप ऑफ गुड होप होकर िफर इ लड वापस भी आना था।
इसक िलए बीगल को नए िसर से तैयार िकया गया था। इसका भार 235 टन से 242 टन हो गया था। इसे इस
लायक बनाया गया था िक यह चंचल समु म भी आसानी से आगे बढ़। इसम अनेक नए उपकरण भी लगाए गए
थे तािक अनजाने समु ी इलाक व तटीय इलाक क अिधकािधक जानका रयाँ एकि त क जा सक।
जहाज क चलने से पूव यव था क आँकलन से स चा स डारिवन ने एक उ साहव क प अपने प रवार
को िलखा। उसने अपना ल य भी बताया िक उसे न िसफ अनजाने समु ी इलाक का चाट बनाना ह वर दुिनया
को यह भी बतलाना ह िक यह जीवन जो अनािद सा लगता ह का मूल उ व कसे आ।
औपचा रक िश ा से वंिचत पर ढ़ संक प क धनी चा स ने जब या ा ारभ क तो वह मा बाइस वष का था
और उसक मन म अथाह िज ासाएँ थ । उसक पास अपने काम क िलए चंद िवशेष उपकरण भी थे जैसे—
1. अ छी िप तौल व उसका खोल,
2. एक उ क रायफल,
3. एक दूरबीन,
4. भूगभ शा म योग होने वाला कपास,
5. माइ ो कोप जो 6 इच लंबा और 4 इज गहरा था।
रा ते क िलए उसने एक दजन कमीज भी ले ली थ । उसक बहन ने दरी-िब तर भी बाँध िदया था। उसक पास
ह क जूते भी थे और च पल का जोड़ा भी। साथ म पेिनश म िलख िकताब भी थ ।
चलते समय उसे हसलो ने एक नव कािशत रचना भेजी थी िजसम भूगभ शा क िस ांत विणत थे। हसलो ने
आ ह िकया था िक उसे ज र पढ़ लेना। इसम विणत त य मह वपूण ह। काम आएँग।े
डारिवन को पु तक पढ़ने का अवसर ज दी ही िमल गया य िक जहाज चलने क कछ ही समय बाद तेज हवाएँ
चलने लग और समु ी लहर उ पात मचाने लग ।
चा स को एक छोटा-सा किबन रहने को िमला था िजसम एक अ य अिधकारी भी था। इसम वह िसफ सीधा
लेट सकता था। इसम चाट तैयार करने क िलए एक टबल भी थी िजसक दराज म उसने अपने कपड़ भर िदए थे।
समु िदन पर िदन अशांत होता गया। िदन म चा स लेटकर वह िकताब पढ़ता था और रात म वह चाँद, तार
क गितिविधयाँ िनहारा करता था। इस समय तक प म म आम आदमी मानता था िक बाइिबल म िजस कार
विणत ह, उसी कार पृ वी क रचना ई र ने क ह। भूगभ शा क उस िकताब क ब ीस वष य लेखक चा स
लाइल ने नई अवधारणा को दुिनया क सामने रखा था। उनक अनुसार हवाएँ, बा रश, ालामुखी आिद का
अ त व सृि क ारभ म भी था। जो बल आज सि य ह वे तब भी थे और उ ह क कारण ये महादेश, समु ,
पहाड़ आिद क रचना ई।
इस पु तक क बार म हसलो, सेजिवक आिद क धारणा ितकल थी। वे इसे अधािमक मानते ए इसका सि य

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िवरोध कर रह थे। पर चा स डारिवन को इस पु तक को पढ़ने म आनंद आ रहा था। इसक भाषा सरल थी पर
िवचार उ ेजक और िन कष क ओर ले जाने वाले थे। चा स डारिवन इसम विणत क पना क जाँच योग व
आँकड़ ारा करना चाहता था। समु ी या ा म चा स को जो भौितक बेचैनी हो रही थी, यह िकताब उसे
मानिसक संतुि देते ए मरहम का काय कर रही थी।
5 जनवरी, 1832 को बीगल जहाज जब एक ीप क समीप प चा तो हवाएँ ह क पड़ गई और मौसम
गुनगुना हो गया। 6 तारीख को चा स ने उस ीप पर सूय दय का अ ुत नजारा देखा। उस समय आसमान म
बादल टकड़ म बँट थे और िविवध रग से सराबोर थे।
पर यह राहत अ पजीवी थी। शी ही एक नाव दुखद समाचार लेकर बीगल क बगल म आई। सुनकर सभी
च क गए।
उस समय इ लड म हजा फल चुका था और उसक खबर भी दूर-दूर तक फल रही थी। सैकड़ लोग काल क
ास बन चुक थे। ए मा वेजवुड को अंदेशा था िक बीगल पर या ा कर रह लोग को कोई अपने समु ी तट पर
उतरने नह देगा।
इस समाचार से चा स को भी गहरा आघात लगा। लोग क चु पी देखकर क टन िफ जराय ने िनणय िलया िक
जहाज को दूर ांसीसी क जेवाले प मी अ का क ओर ले जाया जाए।
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नए-नए योग
अब चा स ने नए-नए योग ारभ कर िदए। वह जाल फककर रोज समु ी जीव पकड़ने लगा। उसने चार फ ट
लंबा एक थैला तैयार िकया था और उसे जहाज क पीछ बाँध िदया था। उसम वह रोज पकड़ जीव को डालता था
और उनका आकार कार सं या आिद दज करता था। अब उसक सामने नए-नए त य उभरने लगे।
उसने देखा िक तमाम बड़-बड़ जीव थल से दूर पाए जाते ह। ये जीव िविवध कार क तथा रग-िबरगे ह। उसे
यह भी अचंभा आ। िक यहाँ इतना अ ुत सौदंय ह और उसे देखने वाला कोई नह ह। उसने यह भी िन कष
िनकाला िक ये छोट-छोट जीव व मछिलयाँ ही बड़ी मछिलय क अ त व का कारण ह।
16 जनवरी, 1832 को बीगल जहाज सैन िटयागो प चा। यह कप वड ीप समूह का एक भाग ह। डारिवन ने
पहली बार जहाज से उतर कर भूिम पर कदम रखा था। उसने सोचा िक वह इस सूखे पहाड़ी ीप पर भूगभ य
अनुसंधान करगा पर समु से िनकलकर जमीन पर आने क खुशी इतनी थी िक वह ज न मनाने म जुट गया। उसने
संतर खरीद कर खाना ारभ िकया जो एक िशिलंग सैकड़ा िबक रह थे। उसने वहाँ उपल ध कला भी चखा पर
उसे उसका वाद पसंद नह आया।
अब उसने चा स लाइल क नजर से उस ीप को िनहारना ारभ िकया। तभी उसे एक अ यंत सफद
चमकदार इलाका नजर आया। इस चमकदार प ी को यान से देखने क िलए चा स ऊचाई पर गया तो उसने

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पाया िक ये तो सीिपय क ढर ह।
पर इनम और समु से िनकलने वाली सीिपय म थोड़ा अंतर था। अब चा स ने सोचना ारभ िकया। उसने पाया
िक इन सीिपय पर लगातार सूय का ताप पड़ता रहा था और इस कारण ये रवादार चूने क प थर या दागदार प थर
क तरह जम गए ह। ारभ म ीप क ऊचाई समु तल से अिधक ऊची नह रही होगी। कालांतर म जब ये सीपी
जमते चले गए तो यह ीप समु तल से पतालीस फ ट ऊचा हो गया।
अब चा स ने हर चीज का बारीक से अवलोकन ारभ िकया और तक का सहारा लेना ारभ िकया। वह तुलना
भी करने लगा और इस कार उसक म त क म वह खाका उभरने लगा जो हो चुक घटना म को पद पर उतारता
था।
चा स ने वहाँ टहलना ारभ िकया। उसने पाया िक यहाँ क पेड़ रिग तानी पेड़ जैसे ह। आसमान म सूय का
तेज काश था जो काफ गम वातावरण उ प कर दे रहा था। पर साथ ही उसने देखा िक समु से आया पानी
एक जगह जमा ह िजसम रग-िबंरगे मूँगे चमक रह ह।
उसका मन आ िक वह इन सबको -ब- दज कर ले। उसने ठान िलया िक वह भूगभ-शा पर एक नई
िकताब िलखेगा। उसक सामने िब कल नया व अनोखा िवषय उभर कर आया ह। उसक अंदर उ ेजना भी थी और
अ यिधक स ता भी।
जहाज चलने को आ। चा स वापस जहाज म आकर बैठा। जहाज ाजील क ओर बढ़ रहा था। अब समु
शांत था और चा स जहाज क डक पर आराम से बैठकर िलखने-पढ़ने लगा। उसने हमबो ट क किवताएँ पढ़ जो
ाजील क जंगल का वणन कर रही थ ।
पर जब चा स जहाज से उतरकर ाजील क जंगल म प चा तो उसे लगा िक वे किवताएँ तो वा तिवकता से
पर थ । वा तिवकता तो अ यिधक सुंदर थ । लंबे ऊचे पेड़, खूबसूरत आकषक फल और फल, नए अ ुत
परजीवी पौधे व बेल, रगिबरगी िचिड़याँ, िविवध कार क क ड़, इतना कछ िक देखने वाला या देखे और या न
देख।े
इस जंगल म शांित व विन का अ ुत संगम था। डारने वाली शांित को क ड़ क आवाज परािजत करने का
यास कर रही थी। देखते-देखते रात हो गई। डारिवन जहाज पर चढ़ गया जो समु ी तट से कई सौ गज दूर खड़ा
था। रात म उ ह तटीय इलाक से समूह-गान क विन िमली। सचमुच जहाँ उतना स दय हो वहाँ क स ता और
उससे िनकलने वाले वर िकतने मनोरम ह गे।
बीगल ाजील क तट का सव ण करता रहा और इस म म चा स ने कई च र इन जंगल क लगाए। उसने
िततली पकड़ने वाले जाल क सहायता से तमाम िततिलयाँ, रग-िबरगे क ड़ आिद एकि त िकए। उसने अपने चाक
से तमाम वन पितय क टकड़ भी एकि त िकए। जब वह अपनी िप तौल, कपास व अ य उपकरण क साथ
बाहर िनकलता था तो थानीय आदमी, औरत, ब े उसक पीछ हो लेते थे। उन लोग को चा स एक अजूबा ही
लगता था।
बीच-बीच म वह ब को स करने क िलए अपने उपकरण िदखलाता भी था। वह तरह-तरह क जाल,
बोतल, क ड़ रखने क िडिबया, र सयाँ आिद िदखलाता था। उसक पास तमाम माल भी थे जो नापने, लपेटने
आिद क काम आते थे। ब े इन अजीबोगरीब चीज को देखकर िखल-िखलाते थे।

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ाजील क जंगल म चा स को ऐसी वन पितयाँ भी िमली जो क ड़ , िततिलय को अपनी सुगंध ारा आकिषत
कर लेती थ । उसे इ लड व दूर थ ाजील क वन पितय क बीच अनेक सा यताएँ भी देखने को िमल जो उस
समय च काने वाली थ ।
समय क साथ डारिवन का सं ह बढ़ता ही चला जा रहा था। उसक पास सैकड़ -हजार पौधे, प थर, जीव,
मकिड़याँ, मछिलयाँ, रगने वाले ाणी एकि त हो गए थे। ये सब जगह घेरते जा रह थे। बीच-बीच म चा स रा ते
म िमलने वाले इ लड जा रह जहाज म ये सामान ब स म पैक करक भेजता भी जा रहा था पर िफर भी जहाज पर
उसका ढर बढ़ता ही जा रहा था। इस जहाज क डक का भारी जॉन ीमट िवकहम उस गंदगी से त बार-बार
कहता था िक अगर वह जहाज का क ान होता तो चा स और उसक जंगली कड़ से त काल छ ी पा लेता।
पर जहाज का चालक-दल उस युवा कित-िव ानी से ेम और स ाव रखता था। ारभ म सभी लोग उसे सर
कहकर पुकारते थे य िक चा स जहाज क क ान क साथ भोजन करता था। ज दी ही लोग उसे िफलोसफर
कहकर पुकारने लगे। जब उ ह यह नाम लंबा लगने लगा तो उसे िफलोस कहने लगे।
एक बार एक नािवक ने नए नािवक से कहा िक वह दूर खड़ा य जहाज का क ान ह। उसक साथ खड़ा
उसका उपक ान पहला (फ ट िल टीनट) ह पर उसका काम म खयाँ पकड़ना ह। चा स ने यह सुन िलया पर
उसे बुरा नह लगा।
तभी 1 अ ैल आ गई। रात क 12 बजे नया िदन ारभ होने से पूव ही जहाज क बढ़ई ने ठ क-पीट शु कर दी।
सभी को लगा िक लगता ह िक जहाज म छद हो गया ह। हाय अब या होगा। डबगे िक बचगे। जहाज पर सवार
सभी डक पर आ गए। एक िच ाया ‘‘डारिवन बचना ह तो जहाज से कदो।’’ पास म जमीन िदखलाई दे रही ह।
डारिवन कपड़ उतार कर कदने क िलए तैयार भी हो गया पर तभी हसी का फ वारा फटा। लोग अ ैल-फल का
आनंद ले रह थे।
5 जुलाई को ाजील का सव ण पूरा आ। उस िदन ातः रयो डी जेने रयो बंदरगाह पर एक बह र तोप
वाला िवशाल यु पोत आया। िजसने िपछले दो यु म यु -कौशल िदखलाया था। बीगल म सवार सभी लोग
ने उस महा जहाज पर चढ़ने का गौरव ा िकया। उस जहाज क बड-वादक ने इस अवसर पर एक धुन भी
बजाई जो यादगार सािबत ई।
स 1832 क बचे महीन और स 1833 क पूर साल बीगल जहाज ने दि ण अमे रका क पूव तट पर जगह-
जगह सव ण िकया। यह इलाका उस समय अनजाना यादा था। पुराने न श और वा तिवकता म कई-कई मील
का अंतर था। अनेक ऐसे ीप िमले िजनका अ त व मानक न श म नह था।
यह इलाका खतर से भरा पड़ा था। इसक एक भाग क या ा पर चा स नह उतरा था। चालक दल क तीन
सद य जो गए थे बुखार म जकड़ गए और अंत म मृ यु का िशकार बने।
डारिवन जमीन पर उतर कर अंदर दूर तक गया था। उ वे क पूव िकनार पर थत मा डोनाडो नामक इलाक
म जब वह गया तो उसक साथ हिथयार , िप तौल आिद लैस र क थे। डारिवन को इस तरह चलते ए देखकर
बड़ा मजा आ रहा था। पर ज दी ही यह मजा िकरिकरा हो गया जब यह पता चला िक एक िदन पहले जो या ी
गया था उसका िबना िसर का धड़ पड़ा िमला ह।
उस समय सव ण का काम अ यंत किठन होता था। बीगल का एक दल तट क िकनार सव ण क िलए चार
नौका म गया था। दूसरी ओर डारिवन अंदर भूगभ य अ वेषण क िलए गया था। इससे पहले िक दो नाव क

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लोग वापस लौटते तट पर आँधी चल पड़ी। सारी खा साम ी न हो गई और िजन कपड़ म या ी थे, वही पहने
रह गए।
बात यह तक सीिमत नह रही। कछ समय बाद बा रश ारभ हो गई। सभी क हालत पतली हो गई। अगले िदन
सवेर िफर आँधी उठी। लोग को ना ते म दो बड़ पि य जो तट पर मर पड़ थे, का माँस खाने म िमला। िदन म
एक लहर आई जो अनेक मछिलय को तट पर पटक कर चली गई। डारिवन और उसक सािथय ने उ ह राि का
भोजन बनाया।
क टन ने कछ लोग को अनाज आिद क तलाश म भेजा। कछ लोग को सामान ढढ़ने क िलए अ छी खासी
तैराक भी करनी पड़ी पर कछ खास हाथ नह लगा। उस रात को कड़ाक क ठड पड़ी। डारिवन पूरी रात ठड से
काँपता रहा और उसे एक िमनट क िलए भी न द नह आई।
पर उन या ा म आनंद भी पूरा आया। उन इलाक म यूरोपीय लोग शायद कभी नह गए थे, इसिलए डारिवन
और उसक साथी एक िक म से अजूबे थे। लोग उनसे तरह-तरह क सवाल इशार आिद क ज रए पूछते थे जैसे—
1. पृ वी घूमती ह या सूय,
2. उ र म ठड यादा ह या गरमी,
3. कोलंबस क या ा क कारण पेन यादा मश र था और लोग पेन क बार म यादा पूछते थे।
डारिवन को जगह-जगह पर अपना कपास िदखलाना होता था और उसक बार म समझाना होता था। अनेक
जगह पर जब लोग को पता चलता िक एक बड़ा वै ािनक आया ह तो भीड़ जुट जाती थी और लोग वै ािनक
न क साथ अ य सवाल भी पूछते थे जैसे िक या यूनोस आयस क मिहलाएँ िव म सबसे सुंदर ह।
इस या ा म चा स डारिवन का यवहार एक राजनियक (िड लोमैट) जैसा हो गया था और वह गोल-मोल
जबाव देने लगा था। वह थानीय लोग , य , चीज आिद क तारीफ करक उ ह खुश कर देता था। उसक बात
सुनकर लोग क बाछ िखल जाती थ य िक वे मानते थे िक चा स डारिवन अब तक आधी दुिनया देख चुका ह।
य - य बीगल दि ण क ओर बढ़ता गया य - य उसे नई-नई जाितयाँ देखने को िमलती चली गई। ारभ म
उसे घास यादा हरी लगी। वहाँ क िनवािसय का यह मानना था िक वे इसक बेहतर देखभाल करते ह और पया
खाद आिद देते ह। यह सच भी था। उन इलाक म खाद का बेहतर योग भी देखा गया था। पर िन कष िनकालना
किठन था िक यह इलाक क जमीन क कारण ह या देख-रख व खाद क कारण। तभी डारिवन क नजर दो
यूरोपीय जाितय क पौध पर पड़ी िज ह यूरोप से आए ारिभक लोग अपने साथ लाए थे। ये पौधे अब सैकड़
वग मील इलाक म फल चुक थे। इन पौध क ऊचाई भी अपे ाकत ऊची थी। डारिवन को लगा िक इन नए पौध
ने वहाँ क परपरागत पौध को दबा िदया ह।
इसी तरह डारिवन को कछ ाचीन ािणय क अवशेष िमले। ये ाणी गड क आकार- कार क थे। इतने बड़
ािणय को कौन मार या न कर सकता ह। हो सकता ह िक ये ाकितक कारण से न ए ह । तभी उसे
लेखक लाइल क िकताब याद आई िजसम िलखा था िक थल इलाक क लंबाई-चौड़ाई, ऊचाई आिद म
दीघकालीन पर धीमी गित से प रवतन होते रहते ह।
अब उसने नए नज रए से सोचना ारभ िकया। उसने देखा िक लगभग सभी जाितय क ािणय क सं या म
वृ यािमतीय दर से होती ह। अनेक ाणी हजार हजार अंड एक बार म देते ह। िजन ािणय क वृ दर
कम मानी जाती ह यिद उ ह भी िनबाध छोड़ िदया जाए तो उनक भी बेताहाशा वृ हो जाए। अनेक ाणी दूसरी

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जगह से आते ह या लाए जाते ह। अनुकल वातावरण म उनम भी वृ होती ह पर एक सीमा से यादा नह हो
पाती ह। क ड़ ह या क े, घास हो या बेल इनक तादाद थर-सी रहती ह। ब त यान से देखने पर भी पता नह
चल पाता ह िक उनक वृ कब क गई।
डारिवन को एक त य और नजर आया। उसने पया िक पहले ाणी दुलभ हो जाता ह और िफर अ त वहीन।
अपने अनुभव म चा स ने देखा िक फॉकलड ीप समूह म एक लोमड़ी थी जो देखने म तो भेिड़या जैसी थी पर
इतनी भोली िक एक माँस का टकड़ा िदखाने से पास म आ जाती थी। डारिवन क दौर क दौरान वह लोमड़ी
फॉकलड ीप समूह क पूव भाग म दुलभ हो चुक थी। बाद म उसका अ त व ही िमट गया। बाद म डोडो क
साथ भी यही कछ घटा।
डारिवन ने अपने द तावेज म दज िकया िक िजस ाणी का अ त व िमट जाता ह वह िमटने से पूव दुलभ हो
जाता ह। दुलभ होना िमटने से पूव ऐसा ही ह जैसा िक मरने से पूव बीमार हो जाना। बीमार य क मरने पर
आ य नह होता ह।
अब डारिवन क सम एक क बाद एक न खड़ होने लगे। उसे पता चला िक जब कोलंबस ने अमे रका क
धरती पर कदम रखा था तो वहाँ एक भी थानीय घोड़ा नह था। पर डारिवन को घोड़ जैसे ाणी क दाँत अवशेष
क प म िमले। इसका अथ ह वहाँ पर घोड़ थे पर बाद म उनका अ त व िमट गया। बाद म पेन क लोग अपने
घोड़ लेकर महा ीप म आए। बाद म दि ण अमे रका क ही तरह उ री अमे रका म भी घोड़ जैसे ाणी क दाँत
क अवशेष िमले। इसका अथ ह िक इस कार क ाणी जैसे घोड़, हाथी आिद जंगल और मैदान म घूमते ह गे।
बाद म दोन ही ीप म कछ ही ािणय क जाितयाँ रह गई।
उधर भूगभ य प रवतन भी इसका कारण हो सकता ह। डारिवन का मानना था िक ये दोन भाग धीर-धीर अलग
होते गए। इसी दौरान डारिवन ने अजीबोगरीब घटनाएँ भी देखी। उसने देखा िक अंधेर म अचानक िचंगारी िनकलती
थी और रोशनी उ प हो जाती थी। अनेक छोट चमकदार जीव पानी को आग क लपट म बदल देते थे।
बीगल जहाज फॉकलड क बाद आगे बढ़ता गया। महादेश का िकनारा आ प चा। िजसे पार करते ही हवा व
लहर क गित तेज होती चली गई। तभी िकनार से जंगली फिजयन ने जहाज का पीछा करना ारभ कर िदया। एक
रात को नािवक िकनार तट पर जंगल से जंगली आवाज ही सुनते रह।
डारिवन क िलए यह भी शोध का िवषय था। वह सोचता रहा िक स य मनु य और जंगली मनु य म िकतना
अंतर होता ह। ये फिजयन नंगे खड़ थे। उनका बूढ़ा धान छह फ ट तीन इच ऊचा था और उसक िसर पर सफद
पंख का मुकट था। उसक चेहर पर िविच आकितयाँ थ ।
बीगल क नािवक ने उसे जब लाल कपड़ा िदया तो उसने उसे गदन क पास बाँध िलया। िपछली या ा म जब
उन लोग ने बीगल क एक नाव चुरा ली तो क टन िफ जरॉय ने उनम से तीन को बंधक बना िलया था। बाद म
उ ह ने एक और थानीय लड़क को एक मोती देकर खरीदा था और उ ह इ लड ले गए थे। वहाँ पर उ ह धािमक
िश ा दी गई थी।
उनम से एक क चेचक क कारण मृ यु हो गई थी पर शेष को वापस उनक वतन छोड़ने क िलए ले जाया जा
रहा था। अब उन लोग क िन त नाम थे िजसे सुनकर वे िति या य करते थे। इनम से एक जेमी जहािजय
का ि य बन चुका था। वह चा स डारिवन से भी ब त िहल-िमल गया था।
पर जब इन फिजयन को तमाम सामान आिद देकर उनक वतन छोड़ा गया तो वे वापस अपने रग म रग गए।

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चंद महीने बाद बीगल क जहाजी जेमी को देखने गए तो वहाँ िफर से नंगा रह रहा था और उसका सारा सामान
गायब था। उसक साथ एक लड़क थी िजससे उसका िववाह हो चुका था। जब जेमी से दोबारा इ लड चलने को
कहा गया तो उसने मना कर िदया।
बीगल जहाज क साथ एक पादरी भी आया था िजसका उ े य रयेरा डल फिजय म ईसाई धम का चार था।
हालाँिक इलाक म ब त कम लोग रहते थे और जमीन उबड़-खाबड़ थी। पर इस पादरी ने िह मत करक वहाँ रहना
ारभ कर िदया था।
ईसाई िमशन रय ने इलाक क आिदवािसय को प मी चकाच ध क ज रए आकिषत करने हतु आधुिनक
उपयोग क तमाम सामि याँ भेजी थ िजनम िन न मुख थे—
1. शराब पीने क िलए आकषक लास,
2. म खन रखने क िलए तनाव क आकार क कटो रयाँ,
3. चाय क कप रखने क िलए सुंदर टर,
4. सूप पीने क िलए कटोर,
5. अनेक कार क आधुिनक व ,
6. सुंदर िलनेन क सािड़याँ, ाक आिद,
7. बुने ए हट।
उपरो चीज त कालीन अंगे्रज समाज म ब मू य मानी जाती थी पर उन भोले-भाले आिदवािसय क िलए
इनका कोई मू य नह था। जब ये चीज उ ह भट क गई तो उ ह ने उनक कोई परवाह नह क और जब भी इ ह
इ तेमाल िकया तो मूखतापूण तरीक से िकया और ये टट-फट गई।
ज दी ही पादरी का यादातर सामान चोरी हो गया। यह नह , उसक सुर ा भी खतर म पड़ गई। बीगल क
जहािजय ने तय िकया िक यिद पादरी क जान बचानी ह तो उसे वापस इ लड भेज िदया जाए।
तभी स 1832 को ि मसम आया। जहािजय क िलए यह बड़ा अवसर था। यादातर जहािजय ने इसे जहाज
पर धूमधाम से मनाया। पर चा स और सलीवान जमीन पर उतर आए और तट पर थत पहाड़ीनुमा ढर पर चढ़
गए। वहाँ से उ ह ने जहाज का नजारा देखा जो लंगर डाले खड़ा था।
उ ह एक बड़ी गुफा िमली और वे उसम घुस गए। जब वे उसम िच ाते या अपनी िप तौल दागते तो उ ह बड़ा
आनंद आता था। बाद म वे ऊचाई पर चढ़कर बड़-बड़ प थर को लुढ़काने लगे। प थर क टकराने से अलग ही
विनयाँ उ प हो रही थी। वे इस कदर म त थे िक उ ह आसपास क खबर ही नह थी। ब त देर बाद म उनक
नजर पड़ी तो पाया िक जंगली फिजयन उनक जंगलीपन व पागलपन को देखकर आनंद ले रह ह।
उस रात को आसमान साफ था और तेज हवा बह रही थी। लहर तेज उठ रही थ और दो सौ फ ट क ऊचाई
तक उछाल मार रही थ । ज दी ही समु अशांत हो गया और बीगल जहाज क आगे बढ़ने क संभावना ीण हो
गई।
छह िदन बाद जब जहाज आगे बढ़ा तो िफर तेज लहर उठने लग । एक बार को तो यह थित बन गई िक वे
कहाँ ह, उ ह समझ म ही नह आ रहा था। डारिवन सिहत सभी लोग को लगने लगा था िक अब बचना किठन ह।
लगभग चौबीस िदन तक ऐसी ही उथल-पुथल चलती रही। हार मानकर चालक दल ने लंगर डाल िदया था।
इसी बीच फिजयन का एक नया दल जहाज और जहािजय का तमाशा देखने क िलए आ गया। ये लोग िब कल

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ही नंगे थे। उनक शरीर पर जानवर का चमड़ा तक नह था। उनम एक ी भी थी जो गोद म न हा ब ा िलए घंट
खड़ी रही और अं ेज जहािजय को िनहारती रही। बीच-बीच म वह ब े को अपना दूध िपलाती थी और टकटक
लगाए डारिवन और उसक सािथय को देखती रही।
उधर डारिवन भी उन लोग क बार म सोचता रहा। वह सोच रहा था िक वह उ पि क िस ांत क तलाश कर
रहा ह। आिखर ये जंगली लोग कसे उ प ए ह गे। यिद ये कह से आए ह तो इस उजाड़-िबयावान इलाक म ही
य आए। यह तो दुिनया क थल इलाक का अंितम छोर ह।
उस समय यह भी कहा जाता था िक इन फिजयन आिदवािसय क सं या घट रही ह पर डारिवन को इस पर
िव ास नह आ। उसे लगा िक ये जलवायु उनक िलए अनुकल ह और ये इसी को वतन मानते ह। कह जाना भी
नह चाहते ह।
िटयारा डल फिजय क बाद एक साल का समय अमे रका क पूव तट क सव ण म िनकल गया। इस बीच
जहािजय को नई-नई जगह, नए-नए माग देखने को िमले। उ ह बीच म खराब मौसम भी झेलने क िलए िमला। पर
खराब मौसम का नजारा भी देखने म अ सर आकषक लगता था। पहाड़ क ऊची-ऊची चोिटयाँ, उन पर जमी
बफ, उनसे टकराते काले-काले घने बादल एक अ ुत य उ प कर देते थे।
मौक का फायदा उठाते ए बीगल क जहाजी उन पहाड़ का ही सव ण करते रह। जहाज क क ान िफ जरॉय
ने ाकितक-िव ानी चा स डारिवन क नाम पर एक पहाड़ क चोटी का नाम माउट डारिवन रख िदया।
q
जहाज बढ़ता गया
बीगल क शांत महासागर क या ा का अलग ही आनंद था। पर साथ म किठनाइयाँ भी कम नह थ । इस या ा
क बार म वणन करते ए चा स डारिवन ने अपनी बहन को िलखा िक यहाँ पर पानी इतना गहरा ह िक जहाज क
िलए लंगर डालना तक संभव नह ह। कई बार उ ह गु प अंधेरी रात म 14-14 घंट तक पतले संकर इलाक म
िबना लंगर डाले खड़ रहना पड़ता था और इस म म जहाज कई बार च ान क ब त िनकट आ गया।
इसक अलावा कई बार जहाज को उछलते-कदते गरजते समु म भी सावधानी पूवक आगे बढ़ना पड़ा। ऐसी
गजना थी िक यिद थल िनवासी सुन ले तो एक ह ते तक डर क मार सो न पाए। जहाज तेजी से ऊपर-नीचे होता
रहा। इसी बीच जहाज का पसर मृ यु का िशकार हो गया। वह पहले से ही बीमार था और इस बीच उसक हालत
िबगड़ती चली गई।
जहािजय ने जहाज क डक पर उसका शव रखा और अंितम ाथना पढ़ी। इसक बाद शव को समु म
आदरपूवक डाल िदया गया। डारिवन को भी समु से परहज था और उसका वा य भी अ छा नह चल रहा था।
इस दुःख का उस पर ब त गहरा असर पड़ा।
पर दुःख अिधक िदन नह रह पाया। दि णी गोला म जून-जुलाई म सरदी पड़ती ह। ज दी ही आसमान साफ
हो गया और हवा म नमी का नामोिनशान नह रहा। जब वे िचली म वैलपरइसो प चे ता धूप िखली थी। डारिवन

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को एक पुराना कली िम िमला िजसने उसे अपने घर पर आमंि त िकया।
िम का घर सुिवधा से सुस त था। खाने म ताजा माँस िमला करता था। पर इस आरामदायक माहौल म भी
डारिवन को अनेक बात क िचंता मार डाल रही थी। वह पूरी या ा म जानवर , ािणय , क ड़ , वन पितय क
नमूने िड ब , ट म पैक कर करक भेज रहा था तािक उनक आगे जाँच हो। इस बीच हसलो का एक प िमला
पर उसम िड ब व करट का यौरा अधूरा था।
डारिवन को िचंता हो रही थी िक कह वे नमूने खो या न तो नह हो गए। पर ज दी ही डारिवन को एक और
प िमला िजसे इ लड से डारिवन तक प चने म अठारह माह लगे थे और उसम न िसफ सार नमून का यौरा था
वर उनक तारीफ भी क गई थी और हसलो ने िलखा था िक इस काम से िव ान क गित म मह वपूण योगदान
होगा।
उधर चा स क घर क भी समाचार सुखद थे। डॉ टर डारिवन अपने बेट क वै ािनक काय से संतु थे। जब
उ ह पता चला िक बढ़ ए काम क कारण चा स परशान ह तो उ ह ने चा स को एक सहायक रखने क अनुमित
दे दी। हालाँिक क ान िफ जराय एक जहाजी को डारिवन क सेवा क िलए िनयु करते थे पर वह पया नह
था।
अब चा स का िनजी सहायक उसक िलए तमाम िनजी काम क अलावा नमूने तैयार करना, बंदूक लेकर साथ
चलने जैसे काम करता रहता था।
इसी बीच अग त 1834 म वैलपराइसो म डारिवन ने वहाँ क बफ ले पहाड़ का भी मुआइना िकया। उसने सूय
डबने, आकाश म काले बादल क िघर आने का नजारा देखा। उसे लगता था िक सूय क अंितम िकरण जब
पहाड़ क बफ ली चोिटय पर पड़ती थी तो ऐसा लगता था मानो लाल बी (एक र न) चमक रहा हो।
जब सूय िब कल ढल जाता था तो वे लोग बाँस क पेड़ क बीच आग जलाते थे और माँस पकाते खाते थे।
बीच-बीच म वे थानीय पेय का भी वाद लेते थे। इस बीच उसे तरह-तरह क आवाज सुनाई देती थ जो स ाट
को अचानक भंग कर देती थ । इस माहौल म रहने का अलग ही आनंद था।
इस इलाक म थत सोने व ताँबे क खदान म अनेक बार जाने का अवसर चा स को िमला। इसका उसने
वणन भी अपनी पि का म िकया। उसे इस बात पर दुःख आ िक उ ीसव सदी म भी यहाँ क लोग खान म भर
जाने वाले पानी को म क म भर-भर कर िनकालते ह। उस समय ि टन म यह काय भाप क इजन ारा िकया
जाता था।
उस जमाने म िचली क खदान मजदूर को िदन िनकलने से पहले काम ारभ करना पड़ता था और वे अंधेरा होने
तक काम करते थे। इसक बदले उ ह मा एक पाउड मािसक वेतन िमलता था और िदन म तीन बार मामूली
भोजन वह भी आधा पेट िमल पाता था। शायद ही वे कभी माँस चख पाते थे और यादातर अनाज पर गुजारा करते
थे।
एक बार खान का मुआयना करते समय चा स ने वहाँ क ी शराब पी ली जो थोड़ी जहरीली थी। उसक हालत
िबगड़ गई। वह इस कािबल भी नह रहा िक खान क बाहर आ सक और कई िदन अंदर ही पड़ा रहा। इसक
अलावा उसने इस इलाक म एक बार लंबी घुड़सवारी क तो उसका पेट िबगड़ गया। उन िदनो म उसे सूखी घास
(पुआल) पर सोना पड़ता था और उसे वह भी साफ नह नसीब होती थी। साफ पुआल पाकर वह ई र को

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ध यवाद देता था। बाद म उसे घास पर सोने और घोड़ क बदबूदार कपड़ को िब तर बनाने क याद आती तो वह
हसता था।
काम क दबाव और रहन-सहन ने उसका शरीर तोड़ िदया और वह बुरी तरह बीमार हो गया। जहाज क डॉ टर
ने उसे दवा दी और िव ाम करने क िलए कहा। इस बीमारी का उसक शेष जीवन क वा य पर भी भाव पड़ा
और चा स इस बात क िलए भी परशान रहा िक अगर वह बीमार न होता तो और जीव पकड़ लेता।
जैसे ही डारिवन या ा क िलए तैयार आ बीगल ने दि णी िचली क सव ण का काय बंद िकया और जहाज
आगे बढ़ चला। पर बाधाएँ कहाँ कम होनी थ । ि िटश नौ-सेना का इरादा बीगल क या ा क बार म बदल रहा
था। पर क ान िफ जराय अड़ गया। अंततः जहाज अपनी मूल योजना क अनुसार आगे बढ़ने लगा।
एक िदन चा स अपनी खोज म भटक रहा था। अचानक उसे थकान महसूस ई और वह जमीन पर लेट गया।
तभी उसे लगा िक उसक नीचे से जमीन सरक गई ह। यह हलचल इतनी भयानक थी मानो जहाज िकसी ार को
पार कर रहा हो।
वह िदन 20 फरवरी, 1835 का था और िचली क उस भूकप तथा उससे उ प सुनामी लहर क भयानकतम
दा तान आज भी इितहास म दज ह। उस शहर का एक भी मकान उस िदना सीधा खड़ा नह रह सका था। भूकप
से उ प सुनामी लहर दूर-दूर तक गई और ब त कछ बहा ले गई। िकनार से टकराकर उ ह ने चार टन क तोप
को इस कदर पटका मानो ितनका लहर म डब उतर रहा ह।
चा स डारिवन और उसका जहाज बीगल उस इलाक म लगभग तीन वष से था और एक-एक इलाक का
बारीक से सव ण िकया जा रहा था। जब यह भीषण दुघटना उनक आँख क सामने घटी तो उ ह ने िफर से नाप-
जोख ारभ क । उ ह ने देखा िक कछ जगह पर जमीन पहले क तुलना म दो-तीन फ ट ऊची हो गई ह। अनेक
ीप इधर-उधर सरक गए ह। डारिवन को अपने पुराने अ ययन से संबंिधत गुंिथय को सुलझाने म भी सहायता
िमली और पता चल गया िक पहले भी ऐसा होता रहा होगा तभी अचानक ऊचाई पर सीपी दब गए ह गे।
या ा लंबी थी। उस या ा म लाइल क िलखी भूगभ-शा संबंधी पु तक क दूसर और तीसर खंड भी आ चुक
थे। डारिवन उ ह न िसफ बड़ चाव से पढ़ रहा था वर उनक आधार पर िविभ घटना का िव ेषण भी कर
रहा था। वह लेखक से अिधकािधक भािवत होता जा रहा था।
िचली म डारिवन ने लंबी या ाएँ भी क । उसने एक माग-िनदशक क सहायता भी ली और ख र क सवारी
का आनंद भी उठाया। इस म म उसने उस घोड़ी का भी अ ययन िकया िजसक गले म घंिटय बँधी थ और जो
या ा का आनंद बढ़ाती जा रही थी। साथ म और ख र भी थे िजन पर सामान लदा था। या ा म यादा सामान
इसिलए ले जाया जा रहा था य िक माच का महीना था और अगर बफ आिद पड़ने लगे, रा ता बंद हो जाए तो
परशानी न हो।
अब तक चा स को अनेक कार क या ा का आनंद ा हो चुका था। इस या ा म रा ते म आग जलाकर
बड़ लोह क बतन म खाना पकता था। इसम खुला आसमान ही कई बार छत होती थी। पर कित का अ ययन
आसान होता था और डारिवन हर चीज को अपने नज रए से देखता और दज करता चला गया।
एक जगह एक तरफ गरजता समु था और दूसरी तरफ आकाश चूमते पहाड़। डारिवन ने थित क तुलना क
और तभी उसे समु क िकनार क रत क ढर क याद आई िक ये रत क ढर भी िवशालकाय दुगम पहाड़ ही रह
ह गे जो निदय क बहाव से व अ य ाकितक आपदा से चूर-चूर हो गए। यह लगभग वैसा ही ह जैसे िक तमाम

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ािणय क िविभ जाितय का समय क साथ लु हो जाना।
इस या ा म डारिवन ने अनेक ऊचाइयाँ भी छई। सिपल रा त से चढ़ते ए वे ऊपर जाते गए। एक जगह पर
ऊचाई समु क तल से बारह हजार फ ट थी और यहाँ क हवा िवरल थी। आदमी और ख र दोन को साँस लेने
म परशानी हो रही थी और ख र 50 गज चलकर साँस लेने क िलए क जाते थे।
धीर-धीर ऊचाई बढ़ती रही। तेरह हजार फ ट क ऊचाई पर उ ह और परशान होना चािहए। पर वे परशानी भूल
गए य िक डारिवन को समु ी सीिपय का एक ढर पहाड़ क बीच परत क प म िदखाई दे गया। अब तक क
समु ी या ा म डारिवन ने अनेक कार क सीिपय का अ ययन िकया था तथा वह पहचान लेता था िक कौन-सा
सीपी िकस ाणी क ह।
अब वह इन सीिपय क नमूने लेने लगा पर थानीय माग-दशक ने सलाह दी िक देर नह करनी चािहए य िक
यहाँ क बफबारी जानलेवा सािबत होगी। मन मारकर डारिवन थोड़ ही नमूने ले पाया।
पर िफर भी डारिवन क अनेक गु थयाँ थोड़ ही समय म सुलझ गई। उसने पाया िक पहाड़ क ऊचाइय क
अनेक च ान वैसी ही ह जैसी िक सागर क तलहटी म आ करती ह। इसका अथ ह िकसी समय समु तली
ऊपर आ गई और उनम सागर क जीव क अवशेष भी दब गए।
या ा म नए-नए त य इस कार आ रह थे िक वयं डारिवन को डर लग रहा था िक उसक िवचार और खोज
क प रणाम पढ़कर पर परागत भूगभ-शा ी या सोचगे। िहचिकचाते ए उसने हसलो को िलखा िक मेर पास अब
जीवन क वे स ाइयाँ ह जो तु ह बकवास और िनराधार लगगी। वा तव म पहाड़ क चोिटयाँ और समु क
तिलय म ब त कछ एक पता ह।
या ा म डारिवन ने जगह-जगह ाकितक छटा का भी आनंद िलया। ऊपर खुला आसमान, लंबी-लंबी घािटयाँ
बीच-बीच म टट पहाड़, जगह-जगह अवशेष मानो अपनी दा तान सुनाना चाह रह ह । कह -कह पर च ान क
रग चमकदार थे और जमी ई बफ का नजारा ही कछ अलग था।
ऐसी या ा शायद उस समय तक िकसी ने क नह थी और यिद क थी तो उसका वृतांत नह छोड़ा था। वहाँ पर
जब हवाएँ सनसनाती थ तो ऐसा लगता था मानो ई र वयं कछ कहना चाह रहा हो।
धीर-धीर डारिवन और उसका दल नीचे आने लगा। यारह हजार फ ट क ऊचाई पर जब उ ह ने कप लगाया तो
उ ह आग जलाने म काफ परशानी हो रही थी। वहाँ पर सूखी लकिड़याँ कम थ और हवा तेज थी। न उनक ठड
िमट रही थी और न ही पतीले म रखे आलू उबल रह थे।
सारी रात िनकल गई। आलू नह उबले। सुबह सभी ने िबना आलु का ना ता िकया। साथ चल रह सहायक
आपस म बात कर रह थे िक िजस बतन म आलू उबाले जा रह थे वह नया और अिभशािपत था और इसीिलए
आलू नह उबले।
इस या ा म काफ उतार-चढ़ाव थे और इस कारण चा स डारिवन को िविभ ऊचाइय पर थत हवा व
उसक गुण का अनुभव आ। उसने देखा िक चौदह हजार फ ट क ऊचाई पर हवा ब त साफ व सूखी थी। इस
कारण इस ऊचाई से चाँद व तार िब कल साफ और प िदखलाई देते ह। उसे यह भी अनुभव आ िक इस
ऊचाई पर िव ुत-आवेश ब त तेजी से उ प हो जाता ह। एक बार इि फाक से चा स ने अपना कोट रगड़ा तो
उसे लगा िक चमक उ प हो रही ह। यह िब कल वैसा ही था मानो कोट को फा फोरस से धोया गया हो।
या ा क दौरान उसने न िसफ नैसिगक स दय का नजारा देखा वर जगह-जगह च ान क नमूने भी िलए।

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इसक अलावा उसने बफ क रग क खंभे भी देख।े नजदीक से देखने पर मालूम आ िक वा तव म वे पुराने कट
ए पेड़ थे जो समय क साथ सफद रग क रवादार पदाथ म प रवाितत हो गए ह। इनक ऊचाई तीन से पाँच फ ट
तक थी।
अब तब चा स को काफ अनुभव हो चुका था और उसक आधार पर उसने त काल अनुमान लगा िलया।
उसक अनुसार एक समय ये पेड़ हर-भर थे। ये पेड़ अटलांिटक महासागर क नजदीक थे। स 1830 क दशक म
यह महासागर उन पेड़ से 700 मील दूर था। पर हमेशा से ऐसा नह रहा। इस इलाक क जमीन का तर कई बार
नीचे गया और कई बार ऊपर आया। इस कारण ये पेड़ कई बार पानी से डबे भी और बाहर भी िनकले। पर इनक
जड़ मजबूत थ । इस कारण ये अपनी जगह से िहले नह । इनक ऊपर से कई बार पानी भी गुजरा और रत भी। इन
सबका भाव इन पेड़ क ठठ पर पड़ता रहा।
जब समु क नीचे क ालामुखी फट तो उनका लावा और रत भी इनसे होकर गुजरा और इन पेड़ क ठठ म
िलपटा। यह कहानी अनेक बार दोहराई गई और लावा क ऊपर रत और िफर रत क ऊपर लावा जमता रहा।
एक समय ऐसा आया जब जमीन क नीचे क लेट िफर आपस म टकराई और इससे हजार फ ट ऊची तथा
लंबी चौड़ी पवत-माला उ प हो गई इसक बाद हवा बा रश और बफ का भाव पड़ने लगा और पुराना जमा
आ लावा और रत उखड़ते चले गए। इस कार इन पेड़ क नए व प का ज म आ।
डारिवन समय क भाव का खाका तैयार करता रहा। उस पूरी पवतमाला क या ा म उसने िजतने नमूने एकि त
िकए थे उनका वजन एक ख र पर लादे जा सकने वाले कल वजन क आधे से कम नह था। साथ ही उसक
आ मिव ास का वजन भी बढ़ता जा रहा था और उसने अपनी बहन सूजन को प म िलखा था िक िबना माण
क उसक एक भी बात नह मानी जानी चािहए। वह अपने िम ो. हसलो को भी अपनी या ा क बार म िव तार
से िलखता था। उसने िलखा था िक वह जो कछ भी िलख रहा ह उसक पु ता माण उसक पास ह।
इस दौरान बीगल ने िचली और पे सव ण म अिधक समय लगाया और इस कारण चा स को इन
पवतमाला म घूमने व अ वेषण करने का अित र समय िमलता रहा। उसने यह भी देखा िक वहाँ का मैदानी
इलाका बंजर व वीरान ह।
उस समय पे म भयंकर अराजकता फली ई थी। वहाँ क रा पित ने आदेश दे रखा था िक जो भी उसका
आदेश नह मानेगा, उसक ह या कर दी जाएगी या सीधे-सीधे गोली ही मार दी जाएगी। इन प र थितय म पे क
या ा असंभव थी। पर िफर भी डारिवन ने छोटी-मोटी या ाएँ क और वहाँ क घर म कई बार का। पर वह वहाँ
क म खी-म छर से ब त परशान रहा।
कई बार उसे खीझ भी होती थी िक दुिनया का यह िह सा उसक अपने सू्रसबरी से इतना िभ य ह। वह
अनेक बार खीझ कर वापस अपने जहाज बीगल क डक पर आ जाता था। पर चंद बार बिढ़या भोजन करने और
भरपूर न द लेने क बाद वह तरोताजा हो उठता था तथा िफर पे क ओर चल देता था।
उसे वहाँ क दो चीज अ छी लगने लगी थ । एक तो मिहलाएँ और दूसरा िचलीमोया जो एक फल था। यह फल
खाने म अित वािद तथा सेब जैसा था िजसे क टड म डाला जा सकता ह। साथ ही युवा व कआर चा स को
पे क युवितयाँ अित सुंदर लगती थ । उस काल म वे युवितयाँ इला टक यु गाउन पहना करती थ िजससे
उनक शरीर क उभार और अिधक प हो जाते थे और देखने वाला मोिहत ए िबना नह रह पाता था।
यही नह , आकषक व क कारण वे अपने आपको बड़ा सहज कर चलती थ । उनक िस क क मोजे और

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सुंदर पैर जब झलकते तो डारिवन का कलेजा बाहर को आ जाता था। दुभा यवश उनका चेहरा काले बुरकनुमा
रशमी कपड़ से ढका रहता था िजससे िसफ उनक काली कजरारी आँख ही िदखलाई दे पाती थ पर उन आँख म
गजब क गहराई होती थी। 26 वष य चा स डारिवन का अब तक का जीवन क ड़ , पतंग , िततिलय , प थर ,
सीिपय क नमूने बटोरने म बीता था। जवानी का एक बड़ा िह सा सागर क लहर िनहारने, िकताब पढ़ने आिद म
बीत गया था। पहली बार उसने जीवन का यह पहलू बड़ यान से देखा था। उ ह देखने क बाद उसे वहाँ क
इमारत , चच आिद क खूबसूरती िनहारने व कलमब करने कभी सुध नह रही।
पर चा स को यहाँ यादा िदन रहने का अवसर नह िमल पाया। बीगल जहाज गलापाजोज क आर बढ़ने वाला
था। इस बीच उसे इ लड म िविभ लोग को अनेक प भी िलखने थे। आगे क या ा म प भेजने क सुिवधा
नह थी।
उन प म िलखी जाने वाली िविभ बात म से एक मुख बात आिथक सम या थी। चा स जो-जो काम कर
रहा था उसम खच भी हो रहा था िजसे उसक िपता को चुकाना था। दबंग िपता क सम सम या रखने क िह मत
पड़ नह रही थी। अतः चा स ने अपनी बहन सूजन का सहारा िलया।
सूजन को िलखे प म चा स ने यह समझाने का यास िकया िक वह िपता को यह समझाए िक चा स ब त
थोड़ म गुजारा कर रहा ह। इससे पहले वह साल म 100 प ड खच करता था। िजसका एक भाग बीगल का
िकराया, खाने-पीने का खच आिद था। पर िचली म एंडस क अ वेषण अिभयान म उसका खच मा 60 प ड
आ।
चा स क प िवनोद-पूण लहजे म होते थे। उसने बहन को यह भी समझाया िक समु ी-या ा म तो वह कम
खच करता ह य िक समु म वह कर तो या कर। पर जब म जमीन पर प च जाता और घोड़ िदख जाते ह तो
मेरा खच बढ़ जाता ह, म घुड़सवारी िकए िबना रह नह पाता और घोड़ का मािलक मेरी जेब झाड़ लेता ह।
उसे यह भी लगता था िक शायद डॉ. डारिवन क स का बाँध टट गया होगा य िक कहाँ वे उ मीद कर रह थे
िक बेटा कमाएगा और कहाँ वह अभी तक खच ही कर रहा ह। घोड़ , ख र पर चढ़कर पहाड़ , जंगल ,
िबयावान क खाक-छान रहा ह।
पर दूसरी ओर डॉ. डारिवन ने इसी को चा स क िनयित मान िलया था। बेट को िवदा िकए ए चौथा साल पूरा
होने जा रहा था पर अभी तक उ ह झुंझलाहट नह ई।
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गलापागोज—एक अ ुत पड़ाव
घर से िनकले लगभग पौने चार वष हो चुक थे। उस दौरान अनेक पड़ाव िमले। चा स ने ब त कछ देखा, ब त
कछ सीखा, ब त कछ जाना। इस म म उसक अंदर एक अ ुत कला ज म ले चुक थी। अब वह वह देखने
लगा था जो और लोग नह देख पाते थे। अब वह वह सीखने लगा था जो और लोग नह सीख पाते थे। उसक
सवाल अ ुत होते थे और उन सवाल से ान क तलाश इस कार ारभ होती थी िक जवाब पर जवाब ान क
झरने क प म िनकलते चले आते थे।
हालाँिक चा स क आयु अभी छ बीस वष ही थी पर अब दुिनया क उ पि , िविभ जीव , वन पितय क
उ पि का पूरा य उसक सामने एक िच क तरह उभरने लगा था। उसने अब तक उ री गोला क भी ाणी
देखे थे और दि णी गोला क भी। उनम िदखने वाले अंतर का कारण भी वह समझता जा रहा था। उसे अब
पृ वी क वतमान आयु तथा इस दौरान अित धीमी गित से ए प प रवतन का भी आभास होने लगा था।
अब बीगल जहाज एक नए पड़ाव क ओर अ सर था पर उस पडा़व पर ा होने वाले अ ुत ान का
आभास कतई िकसी को भी नह था। 7 िसतंबर, 1835 को बीगल गलापोज क ओर बढ़ने लगा। दूर से देखने से
गलापोज समु क बीच म च ान का एक ढर-सा लगता था। 17 िसतंबर, 1835 को बीगल ने गलापोज म लंगर
डाला।

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इस इलाक म दस बड़ ीप थे। युवा चा स व उसक साथी सबसे पूव वाले ीप चैथम पर उतर। यह ीप
एक मैदान क टट ए टकड़ जैसा लगता था। िजस पर ालामुखी का काला लावा िबछा था। इस लावे पर वष से
समु ी लहर तांडव कर रही थ । अतः यह िघस-िघस कर िब कल प ा हो चुका था। सूय क तपती रोशनी बार-
बार इस ीप को सूखा प ा बना देती थी।
उस ीप पर नाममा को वन पितयाँ थ । वहाँ पर एक अ ुत पर बेहद बुरा जायका उ प करने वाली दुगध
थी। समु क िकनार पड़ी काली च ान ऐसी लगती थ मानो काली िवशाल िछपकिलयाँ लेटी ह ।
जब चा स ने पहली बार इस ीप का नजारा देखा तो उसे लगा िक पता नह वह कहाँ आ गया ह। हालाँिक
अब तक उसने जो इलाक देखे थे वे कम अ ुत नह थे और इन इलाक क बार म दुिनया को अब तक नह क
बराबर जानकारी थी। पर अब तक देखी िविच ताएँ गलापोज क सामने नग य थ ।
अब तक चा स ढर नमूने एकि त कर चुका था। िविभ इलाक से ा नमून क न िसफ पहचान कर चुका
था वर उनम आपसी संबंध का िव ेषण भी कर चुका था। उसने यह भी देखा िक य - य आगे बढ़ते ह य -
य प रवतन होता चला जाता ह। पहाड़ क एक ओर और पहाड़ क दूसरी ओर क थितयाँ अलग-अलग होती
ह।
डारिवन क म त क म यह बैठता जा रहा था िक ये िविवधताएँ उ पि कता क कारण नह ह। ये सभी एक ही
समय और एक ही प म उ प ई थ पर समय क साथ इसम प रवतन आया ह। य न आया हो यह तो
सािबत हो ही चुका ह िक अनेक थल इलाक पहले जल क तर क नीचे थे और िफर ऊपर आ गए। इसी तरह
अनेक इलाक पहले ऊपर थे और िफर जल म डब गए।
भूिम क िहलने, अपना थान बदलने का नजारा चा स फरवरी 1835 क भूकप व उसक बाद उठी िवनाशकारी
सुनामी लहर क दौरान देख चुका था। इससे उसक अंदर उठ रह िस ांत का बीज फट चुका था और वह एक
कोमल नवजात पौधे का प लेने क िलए याकल था।
एक अ य िवशेष बात यह भी थी िक लंब-े ऊचे कद क युवा, भूरी आँख वाले अं ेज चा स डारिवन का मन
एक साफ लेट क तरह था। उस पर न कोई पहले क छाप थी और न कोई पूवा ह। वह हर चीज को एक नई
ि से देख रहा था, समझ रहा था और एक म म रखता जा रहा था। इ लड से आने क बाद उसने अ का का
एक िकनारा भी देख िलया था और लैिटन अमे रका क दोन पूव व प मी भाग भी। वह िव ोही भी नह था और
अब तक क मा यता क बिखया उधेड़ने क िलए आतुर भी नह था।
वह अपनी नोट बुक म उपल ध त य को संजोता रहा। उसे इस बात का कतई एहसास नह था िक आने वाले
समय म वह दुिनया को एकदम नया व खतरनाक चुनौती देने वाला िस ांत दे देगा। शायद यही कारण था िक
आने वाले िस ांत क तैयारी वह पूरी ईमानदारी से कर रहा था। यह लगभग वैसा ही था मानो एक गभवती मिहला
यह न जानते ए िक उसक लड़का होगा या लड़क , गभ क सुर ा व आने वाले समय क तैयारी कर रही हो।
िसतंबर क गम सुबह को जब डारिवन चैथम ीप क ऊबड-खाबड़ इलाक म उतरा तो उसने तय िकया िक
यह एक नया इलाका ह और उसम वह हर जीिवत व तु का कम-से-कम एक नमूना अव य लेगा। उसने यह भी
सोचा िक वह शु आत वन पितय से करगा।
पर ज दी ही उसे झटका लगा और उसने पाया िक गम लावे से बनी इस धरती म चंद जाितय क ही पौधे ह।

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उसक अनुमान से ऐसा तो उ री या दि णी ुवीय देश म ही होना चािहए। यहाँ ऐसा य हो रहा ह। गलापोज तो
िवषुवत (भूम य) रखा पर ह अथा पृ वी क बीच क इलाक म ह। इसक िकनार पर दि ण से आने वाली शीत
जलधाराएँ बहती ह। ऐसी जलवायु म तो कित का प तेजी से िनखरता ह और ज दी ही समृ हो जाता ह।
इस उहापोह म डारिवन को ज दी ही नए आ यजनक व िदलच प त य िमलने लगे। वहाँ क लकिड़याँ जो
अभी तक सूखी पि य िवहीन लकिड़याँ लग रही थ वे वा तव म पि य से िवहीन नह थ । हालाँिक उसे उनम
एक भी फल िदखलाई नह िदया पर उसक उनम िदलच पी बढ़ती चली गई।
उधर, बीगल जहाज चैथम ीप क चार ओर सव ण काय करने लगा और इधर डारिवन ने ीप पर अपना
तंबू तान िलया। वह ीप का बारीक से िनरी ण करने लगा। अपने तंबू से उसने दूर-दूर तक नजर मारी और पाया
िक इस ऊबड़-खाबड़ ीप पर चलना एक किठन काय ह। उसक टट से साफ िदखाई दे रहा था िक आस-पास
लावे क लाल रग क साठ ढर ह जो पचास से सौ फ ट तक ऊचे थे। इसक अलावा जगह-जगह बड़-बड़ ग भी
थे िजनक िकनार तीखे थे और असावधानी होते ही य सीधे ग म चला जाता। वह समझ गया िक जब
ालामुखी फटता ह तो उसक लावे क साथ गैस भी बबूल क प म िनकलती ह और बबूले जब फट ह गे तो
ग बन गए ह गे।
वहाँ पर उस समय भयंकर गरमी थी। डारिवन को िब कल नह सूझ रहा था िक वह िकधर जाए और कसे
जाए। तभी उसे ह का-सा रा ता िदखा।
पर उसक मन म तुरत सवाल उठा िक यह तो िनजन ीप ह। इसम कसे यह रा ता बना और िकसने बनाया।
ज र ही यह िकसी जानवर ने बनाया होगा। उसका आ य ज दी ही ठड़ा पड़ गया जब उसे दो भीमकाए कछए
िदखाई िदए। उनम से एक का वजन 80 िकलो ाम से कम नह था और वह वहाँ क जंगली काँटदार क टस पौध
को धीर-धीर चबा रहा था।
कौतूहलवश डारिवन उनक िनकट आ गया और बड़ गौर से देखने लगा। दूसरा कछआ जो लगभग उसी आकार
का था, अपना िसर उठाकर डारिवन को देखने लगा और एक आवाज भी िनकाली। पर वे डारिवन को देखकर
खास डर नह । उधर झािड़य पर बेरगे पंख वाली िचिड़या चहचहा रही थ ।
अब डारिवन को लग गया िक इस ीप पर ये बड़-बड़ आकार से सरीसृप, जमा आ काला लावा, प ी
िवहीन झािड़याँ, बड़-बड़ क टस आिद ही ह। उसे यह ीप बाबा आदम क जमाने का लगा।
अब बीगल जहाज अ य ीप पर भी गया। डारिवन को वहाँ पर भी वृ दाकार सरीसृप जीव िमले। उसे लगा
िक यिद कोई किव या सािह यकार होता तो इस ीप क दशा देखकर िकसी दूसर ह या चं मा क क पना कर
लेता और रोचक ंथ िलख डालता।
अब उसका म त क भी क पना करने लगा। उसने िन कष िनकाला िक ये कछए यह क ह और ऐसे कछए
दुिनया म और कह नह ह।
पर यह बात कोई नई नह थी। पहली बार जब एक जहाज इस ीप क िकनार प चा था तो उसने उस समय
अथा स 1708 म देखा था िक इस ीप म कछए-ही-कछए भर पड़ थे। इसक बाद जो भी जहाज उस ीप
क पास से गुजरता उसक नािवक अपने मुँह का जायका बदलने क िलए इन कछ का बड़ी बेरहमी से िशकार
करते थे। इन ीप समूह क बार म कहािनयाँ थ िक एक जहाज क जहािजय ने एक िदन म सात सौ कछए
पकड़ थे और एक यु पोत क जहािजय ने एक िदन म दो सौ। उन जहािजय को ताजे माँस क ब त िदन से

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तम ा थी और वे उन मासूम िनरीह कछ पर टट पड़ते थे।
यही कारण था िक कछ क तादाद यहाँ पर कम होती जा रही थी और बीगल क जहािजय को एक िदन म
मा पं ह कछए ही िमल पाए। बीगल म ताजा पीने का पानी ख म हो चुका था और वह इसक तलाश म आगे
गया और इस कारण चा स अगले ीप जे स पर तंबू तानकर क गया। वह बड़ यान से अवलोकन करने लगा।
उसने कछए क पैर क िनशान देखे और उनका पीछा करते-करते ीप क क ीय भाग म प चा जो ऊचाई पर था
और वहाँ पर मीठ पानी का झरना था। इस जगह पर बादल नीचाई पर थे और उनसे जो नमी िमल रही थी वह इस
भाग को हरा-भरा बना रही थी।
इस झरने पर बड़ सरीसृप अपना िसर गड़ाकर पानी क घूँट भर रह थे। डारिवन को उनक यास का अंदाज इस
बात से लग रहा था िक वे वृ दाकार जीव ित िमनट दस बार घूँट भर-भर कर िनगल रह थे और इस गम
वातावरण म वह शीतल जल उ ह िकस कदर सुख व शांित दान कर रहा था, इसका अंदाज उनक श से लग
रहा था।
डारिवन ने उन कछ क चाल का भी अवलोकन िकया और पाया िक वे दस िमनट म लगभग साठ गज क
दूरी तय कर लेते ह। इस कार यिद वे पूर िदन िबना क चल तो लगभग साढ छह िकलोमीटर चल लगे।
इन कछ क बार म पेन क जहािजय का कहना था िक ये बहर ह। डारिवन ने इसक भी जाँच क । जब तक
वह उनक बराबर िकनार-िकनार दौड़ता रहा उ ह ने डारिवन पर यान नह िदया पर य ही डारिवन ने सामने से
रा ता काटा, वे िबदक गए। उ ह ने एक आवाज ‘िहस’ िनकाली और अपना िसर अपने पैर क बीच यूँ दबा िलया
मानो वे मृत ह ।
अब डारिवन उनम से एक क ऊपर चढ़ गया और जोर-जोर से कदने लगा। मजबूर होकर वह कछआ धीर-धीर
चलने लगा। डारिवन चलते कछए पर अपना संतुलन नह बनाए रख सका और उसे नीचे आना पड़ा।
धीर-धीर डारिवन को िव ास होता चला गया िक अ ुत ाणी इसी ीप क ह। उसने अपने अ वेषण का
दायरा बढ़ाया। उसने तीन चार फ ट लंबी िछपकिलय का अवलोकन ारभ िकया। वहाँ क पीली-भूरी िछपकिलयाँ
भी अनोखी थ । ारभ म जो लोग उस ीप पर गए थे वे बतलाते थे िक ये काली िछपकिलयाँ अ सर समु म
गोता लगाने जाती ह और मछिलय का िशकार करक लौटती ह।
डारिवन ने भी उ ह िकनार क च ान से समु म कदते देखा था। वे पानी म जब तैरती थ तो उनका शरीर
साँप क तरह बल खाता था। उनक पूँछ सीधी हो जाती थी। पर उसे इस बात पर िव ास नह था िक वे मछिलयाँ
खाती ह। उसने िकसी मुँह म मछली देखी भी नह ।
बाद म चा स ने उन िछपकिलय का पेट फाड़ा तो पाया िक उसम समु म उपजने वाली वन पितयाँ थ । ये
वन पितयाँ तट पर उपजने वाली नह थ वर समु क तलहटी म उपजने वाली थ । इन िछपकिलय क आत
वैसी ही थ जैसी िक वन पित खाने वाले शाकाहारी ािणय क होती ह।
डारिवन क आ य का िठकाना न था। उसने अपने जीवन म कभी शाकाहारी िछपकिलय क बार म नह सुना
था। यही नह , उन िछपकिलय का भोजन समु पर आधा रत था। उनक शरीर क संरचना समु ी जीव जैसी थी,
वे वा तव म समु म तैरती, गोते लगाती थ पर जब वे भयभीत होती तो डरक मार समु म छलाँग नह लगाती
थ।
इस बात पर चा स ने अनेक योग िकए। उसने समु क िकनार उन िछपकिलय को काफ दौड़ाया पर वे कभी

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समु म नह कद । उसने एक क पूँछ पकड़कर एक तालाब म फक िदया पर वह नीचे गई और तैरती ई िफर से
उसी थान पर ऊपर आ गई जहाँ पर वह थी। डारिवन ने उसक पूँछ पकड़कर दोबारा पानी म फका तो वह िफर
उसी कार बाहर आ गई।
अब डारिवन एक मदारी क तरह उसे बार-बार पानी म फकता रहा पर उस िछपकली का यवहार वैसा ही रहा
जैसा िक एक िशि त बंदर या भालू का होता ह। काफ सोचने क बाद चा स ने िन कष िनकाला िक यह
िछपकली थल इलाक को अिधक सुरि त मानती ह य िक यहाँ इसका कोई श ु नह ह जबिक समु म इसे
शाक जैसी मछिलय का भय होता ह।
पीले रग क िछपकिलयाँ जे स ीप म इस कदर बड़ी तादाद म थ िक बीगल क जहािजय को यहाँ पर अपना
तंबू गाड़ने म तमाम िद त आती थ । यही नह , यहाँ पर चलने म भी परशानी होती थी य िक अ सर पैर इन
िछपकिलय क पीले-पीले शरीर पर पड़ जाता था।
लंबे समय तक ये िछपकिलयाँ डारिवन क आकषण का क बनी रह । ये जमीन को खोदती थ । जब वे आधा
खोदकर उसम वेश कर जाती थ तो डारिवन उनक पूँछ पकड़कर बाहर कर देता था। उस अव था म वे डारिवन
को घूरती थ मानो कह रही ह िक तुमने पूँछ य पकड़ी।
उस उजाड़ ीप म इन िछपकिलय क पास पीने को पानी तक नह था। वे हवा म मौजूद नमी पर गुजारा करती
थ । जमीन पर उनक िलए पौि क आहार क प म क टस क छोटी-छोटी पि याँ ही थ । डारिवन छोटी-छोटी
पि याँ तोड़कर उनक सामने फकता तो वे उसी कार भाग जाती थ जैसे क ा ह ी दबा कर भाग जाता ह। इन
मामूली पि य पर छोटी-छोटी िचिड़याँ भी झप ा मारती थ और िछपकिलयाँ भी।
खेल-खेल म डारिवन का िस ांत भी ज म ले रहा था। वह सोच रहा था िक इन कछ ने यहाँ क जमीन पर
रा ता तक बना िदया ह। ये िछपकिलयाँ भी इसी जमीन पर क जा िकये बैठी ह। संभवतः इसी कार दुिनया म हर
जगह समु ी जीव समु म ई जीव क भीड़ से राहत पाने क िलए जमीन पर आए ह गे और िफर उ ह ने क जा
कर िलया होगा। बाद क काल म दुिनया क अ य इलाक म तो तनपायी जीव का क जा हो गया पर इस ीप म
अभी भी इन सरीसृप का ही क जा ह।
ारभ म उनम से कछ शाकाहारी ह गे और कछ माँसाहारी। कछ हल क आकार क भी ह गे और उनका
दबदबा जमीन पर भी होगा और पानी म भी।
इस ीप म रहने क बाद डारिवन क िज ासा और बढ़ती चली गई। उसने यहाँ क थल म वास करने वाले
छ बीस पि य का िववरण दज िकया। ये प ी अनेक आकार- कार क थे और दुिनया म अ य कह नह पाए
जाते थे। यहाँ पर बाज जैसे िवशाल प ी भी थे और म खय का भ ण करने वाले छोट प ी भी। यहाँ पर कबूतर
जैसे प ी भी थे और तोते जैसी नाक वाले भी। डारिवन ने उन सभी को म से कलमब िकया। इनम से कछ
ाणी अमे रक ािणय से कछ हद तक िमलते-जुलते थे पर अंतर अिधक प था।
कोई यह भी कह सकता ह िक शु म यहाँ पर प ी िब कल नह थे और एक जाित ले जाई गई थी। बाद म
उसी मे फर-बदल करक अ य जाितयाँ तैयार कर दी गई थ । पर इस प रक पना पर भी पूरी तरह िव ास नह
िकया जा सकता था।
डारिवन ने यारह कार क जलपि य को भी एकि त िकया। उनम से मा तीन गलापाजो क िलए ही थे और
अ य नह िमलते ह। डारिवन का मानना था िक जल-प ी अिधक गितशील ह और इस कारण पूर संसार म

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आसानी से फल जाते ह। शायद यही कारण ह िक िकसी एक थान पर अनोखे जल-प ी नह िमल पाते ह। वे हर
कार क जल म अपनी दुिनया बसा लेते ह और इस कारण पूर संसार म पाए जाते ह।
डारिवन को तरह-तरह क घ घे व सीपी िमले। उनम से सोलह कार क मीठ पानी म रहने वाले थे। िसफ एक
ऐसा था जो अ य नह िमला बाक सब दूसरी जगह म भी पाए जाते ह। इसी तरह समु ी खार जल म रहने न बे
सीिपय म से सतालीस अनोखे थे और शेष दूसरी जगह पर भी पाए जाते ह। इससे यह भी पता चलता ह िक घ घे
भी पूर संसार म अ छ खासे फले ह। िततालीस कार क घ घे जो अ य भी पाए जाते ह उनम से प ीस अमे रका
क प मी तट पर पाए जाते ह। इनक अलावा ये शांत महासागर क अ य ीप जैसे िफलीपीन आिद म पाए
जाते ह। इसका अथ यह िनकाला जा सकता ह िक ये अमे रका से आए ह गे।
पर उस समय क िकताब म यह िलखा था ये घ घे उसी जगह पर िवकिसत होते ह और इस कारण शांत
महासागर क िविभ ीप क घ घ क अपनी-अपनी और प िवशेषताएँ होती ह।
अमे रका क दोन भाग उ री व दि णी क प मी तट पर समु दूर-दूर तक फला ह और आते-जाते जहाज
गलापाज म कते रह ह। यिद भूगभ शा क ि से देखा जाए तो यह इलाका िकसी समय अमे रका का अंग
था और बाद म टटकर अलग आ होगा। आज यह अमे रका िकसी भी िह से से कम-से-कम पाँच-छह सौ समु ी
मील से कम दूर नह ह।
यिद ये प ी, सरीसृप, जल-प ी आिद वैसे ही होते जैसे िक अमे रका म होते ह तो थित को प करने क
िलए तक िवकिसत करना अ यंत सरल था। यह आसानी से कहा जा सकता था िक वे चलकर या उड़कर आ गए
ह गे। पर िद त यह थी िक यहाँ पर आधे से अिधक पौधे व यादातर ाणी मौिलक थे या समतु य जाितय से
इतने अिधक िभ थे िक उ ह अमे रक पौध या ािणय क ेणी म िब कल नह रखा जा सकता था।
हालाँिक अब तक क या ा म डारिवन ने असं य जाितय क नए-नए प ी, सरीसृप, घ घे, क ड़, पतंगे, पौधे,
वन पितयाँ आिद देखे थे और उनक संरचना, आवाज, डील-डौल आिद म भारी िभ ता थी पर उन गलापाजो क
ािणय से कोई भी मेल नह खाता था। डारिवन ने उ ण इलाक , रिग तान क ािणय का भी अ ययन िकया था
पर उनसे भी इनक तुलना नह क जा सकती थी।
यह सवाल उसक मन म लगातार उठता रहा। इसी बीच िनणय आ िक बीगल अब आगे जाएगा। अतः चा स
ने अपने अ वेषण का काम ती कर िदया। तभी एक िदन उन ीप-समूह क उपरा यपाल से चा स क बातचीत
ई। उस अिधकारी ने बात -बात म कह िदया िक िविभ ीप क कछए आपस म उतने अलग ह िक वे कछआ
देखकर पहचान सकते ह िक कौन-सा कछआ िकस ीप का ह।
डारिवन क िदमाग म यह बात गहरी उतर गई। उसने पाया िक इस ीप समूह क िविभ ीप एक-दूसर से
मा 50-60 मील दूर ह और आसानी से देखे जा सकते ह, पर इनक रहायश म इतनी िभ ता ह िक कछए भी
पहचाने जा सकते ह।
यान से देखने पर चा स डारिवन को यह बात स य लगी। उसने अ य ािणय को इसी ि से देखा। भा यवश
नमूने एकि त करते समय हर ाणी पर उसक ीप का नाम भी िचपका िदया गया था। यह पाया गया िक अलग-
अलग ीप म अलग-अलग जाितयाँ िवकिसत ई थ । चा स ीप क अलग जाित थी जबिक जे स व चैथम
क अलग थी। इसी तरह का अंतर पौध क जाितय क बीच भी था। कछ ीप क फल एक कार क थे और
अ य क एक कार क।

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इन अवलोकन क बार म डारिवन लगातार सोचता रहा। कछ समय बाद उसने िन कष िनकाला िक यहाँ पर
अलग-अलग ीप पर ािणय क अलग-अलग जाितयाँ ह। कछए जैसे चर ािणय क भी अलग जाितयाँ ह
और पौध क भी। िन य ही अलग-अलग ीप क अलग-अलग प र थितयाँ ह और इन प र थितय क
कारण जाितय म अंतर ह। एक जैसी प र थितय म ािणय क सामा य यवहार म एक पता प प से
झलक रही ह।
पर चा स डारिवन इसी त य से संतु नह था। वह यह भी सोच रहा था िक आिखर यहाँ पर इन जीव क
उ पि कसे ई होगी। या ये एक तरह से या एक जगह उ प ए ह गे और िफर दूसर ीप म फले ह गे तो
शायद उस म म इनक शरीर व यवहार म प रवतन आ होगा।
एक न यह भी उभर रहा था िक यिद ये ाणी पास क इलाक अमे रका से उन पहले जहािजय क ज रए आए
ह गे तो उन पर अमे रक ािणय क छाप होनी चािहए। डारिवन लैिटन अमे रका क अ वेषण म यह देख चुका था
िक जब इलाक क दो भाग अलग होते ह तो िवभाजन क प छाप ािणय पर पड़ती ह। कालांतर म दोन भाग
क बीच बड़ा समु िवकिसत हो जाए या ऊचा पहाड़ मूल छाप बनी रहती ह।
इस इलाक क समु म ती गित वाली जलधाराएँ बहती ह। इस बात क पूरी संभावना थी िक यिद कोई अंडा या
बीज पानी म िगर जाता तो उसका सुरि त बचे रहना किठन था। उन ीप क बीच समु क गहराई भी काफ थी
तथा यह भी नह माना जा सकता था िक िनकट भूतकाल म ये आपस म जुड़ रह ह गे।
काफ उधेड़-बुन क बाद भी चा स डारिवन को सही व प उ र नह िमल पाया। उसने जो त य दज िकए वे
इस कार थे—
1. हर ीप पर हर कार क ाणी क अलग-अलग उ पि ई।
2. ये ाणी एक जगह उ प ए और िफर दूसरी जगह पर फले।
इस कार डारिवन ने दोन ही संभावना से इनकार नह िकया और यह माना िक अ य थित तो हो नह
सकती ह।
पर साथ ही डारिवन को अपनी उपरो प रक पना क भावी भाव का अंदेशा था। वह डर भी रहा था और
उसने इस डर को अपनी पॉकट बुक म दज भी िकया। उसने अपनी एक पॉकट बुक म प ी-िव ान क बार म दज
िकया था तथा िविभ ीप म देखे गए पि य क बीच अंतर को दज कर रहा था। साथ ही उसने लैिटन
अमे रका क पूव भाग तथा फॉकलड म पाई गई लोमिड़य क बीच क अंतर को दज िकया। साथ-साथ उसने यह
भी िलख िदया िक इसका अथ यह भी ह िक जाितय क थरता म संदेह ह।
इसका एक कारण यह भी था िक वह यह जानता था िक वह ब त कछ नह जानता ह। अब तक अ ययन से
यह भी प था िक ा ड म ब त कछ ऐसा ह िक िजसका प वणन नह िकया जा सकता ह। इस कारण
कभी भी अपनी नोट बुक म उसने प दावा नह िकया।
पर भावी जीवो पि का उसका िस ांत भू्रण का प ले चुका था। छ बीस वष य चा स डारिवन जब 20
अ ूबर 1835 को गलापोज से रवाना आ तो उस ीप क कछ , िछपकिलय , तोते जैसी च च वाले पि य ने
एक नई ही छाप उसक मन पर छोड़ दी थी और अब वह यही सोच रहा था िक आिखर इस पृ वी पर जीवन कसे
आया होगा और िविभ जीव का िवकास कसे आ होगा।
अब जहाज दि णी सागर क ओर एक लंबी या ा क िलए चल पड़ा था। हजार मील का सफर अभी तय

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करना था। रा ते म सूय क तेज धूप थी और आसमान म बादल िब कल न थे। म यम गित क हवा लगातार बह
रही थी।
नवंबर का महीना आ चुका था। कित का स दय अपनी जवानी पर था। तीन हजार दो सौ मील क सफर क
बाद एक सुंदर ीप िदखलाई िदया। 15 नवंबर को उस तािहती ीप पर बीगल जहाज ने लंगर डाला।
ीप का तट लंबा, सफद, चमकदार था। दूर बीच क इलाक ऊचाई पर थे। दूर से िदखाई दे रहा था िक बीच
क इलाक म तरह-तरह क फलदार वृ ह िजनम संतर, कले, ना रयल, अम द आिद क पेड़ प िदखलाई दे
रह थे।
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या ा का अंितम चरण
डारिवन को इस बात पर गहरा आ य आ िक तािहती ीप क नाग रक जंगली या अस य नह थे। ये लोग
जब काम करते थे तो कमर क ऊपर कपड़ नह पहनते थे। लंबे, गठीले बदन वाले ये लोग शांत व स -िच
लग रह थे। उनक शरीर क िविभ अंग पर गोदने ारा अ छी सु िचपूण कलाकारी क गई थी।
वहाँ क मिहलाएँ बाल म सफद व अ य रग क फल लगाती थ और इससे उनक सुंदरता और बढ़ जाती थी।
िजस रात अं ेज जहाजी ीप पर प चे, उस रात बीगल क आगमन पर बड़ा बोनफायर आ। इसम सभी अं ेज
जहाजी व तािहती क िनवासी शािमल ए। एक छोटी ब ी ने किवता गाई तथा बाद म सभी ने उन पं य को
दोहराया।
उस रात म चाँदनी िखल रही थी और आस-पास क बड़ ताड़ आिद क पेड़ क प े मानो कोरस गा रह थे। अब
तक अनुभव क िवपरीत डारिवन यहाँ पर ठगा-सा खड़ा था।
तािहती ीप का क ीय भाग ऊचा था और उसम पानी क ऊचे झरने थे। मण का शौक न डारिवन भला कसे
कता और उसने बीच क भाग म जाने क तैयारी कर ली। उसने अपना ज री सामान िलया और गठरी बनाकर
एक बाँस क टकड़ म बाँध िलया। इस सामान को उसक दो थानीय तािहतीयन मागदशक ने सँभाल िलया। पर
जब वे चल पड़ तो डारिवन को लगा िक उसे रा ते क िलए खाने-पीने का सामान और पहनने क िलए अित र

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कपड़ भी ले लेने चािहए। पर इस बात पर वे मागदशक हसने लगे।
उ ह ने समझाया िक वहाँ पर पया खाने क साम ी िमलेगी। जब चा स डारिवन और अ य लोग बीच क
ऊचाई वाले इलाक पर चढ़ तो उ ह सीधी चढ़ाई वाले पहाड़ िमले िजनम बीच-बीच म झरने भी थे। पहाड़ क
ढलान इतने तीखे थे िक अनेक जगह पर उ ह र सा फककर, फसाकर और िफर उसक सहार लटक-लटककर
चढ़ना होता था।
काफ ऊचाई पर डारिवन को पहाड़ी कल क पेड़ का बड़ा झुंड िमला और थानीय लोग ने चंद िमनट म ही
चा स क िलए प का एक सुिवधाजनक आिशयाना खड़ा कर िदया। इसी बीच उनम से चंद लोग ने मछिलय ,
गाय क माँस, क -े प कल आिद को एकि त करक काट क प पर िबछाया और राि का भोजन पकाना
ारभ कर िदया। उन लोग को वािद िविवधतापूण यंजन तैयार करने म 15 िमनट मा लगे।
उस जगह से नीचे क हरी-भरी घािटयाँ भी िदखलाई देती थ और दूर क ऊचे-ऊचे पहाड़ भी। डारिवन ने शाम
का आसमान भी देखा और राि म तार भी।
डारिवन को तािहती म रहने और आगे काम करते रहने का अवसर नह िमला। जहाज ज दी चल िदया। चलते
समय शाम थी। उसने ताड़ क ऊचे पेड़ और पहाड़ क चोिटय क बीच ढलते ए सूरज को देखा और जहाज
इधर चल पड़ा। अब सभी उस लंबी या ा से ऊब चुक थे और उनक इ छा अपनी धरती का स दय देखने क थी।
डारिवन और िवकहम ने पुराना एटलस (मानिच ) िनकाला और आगे क िविभ दू रय क गणना करने लगे।
वे जोड़-घटाव करक यह अनुमान लगा रह थे िक अंितम दौर क यह या ा िकतनी लंबी होगी और कब वे घर
प चगे।
इस धुन म बीगल जहाज यूजीलड जैसे बड़ ीप म मा दस िदन का। इससे कम कना संभव नह था और
उससे यादा क िकसी क इ छा नह थी। इसक बाद वे ऑ टरिलया प चे। यहाँ का पड़ाव तीन स ाह का था।
यहाँ डारिवन को बड़ी सं या म अपने हमवतन िमले जो लंबे समय से ऑ टरिलया म रह रह थे पर उ ह उनक
एक बात ब त बुरी लगी। ये दूर बसे अं ेज वहाँ क थानीय लोग , आिदवािसय पर तरह-तरह क अ याचार करते
थे।
इस सामा य-सी लगने वाली घटना ने भी चा स डारिवन क म त क म उभर रह भावी िस ांत को एक आयाम
िदया। उसने मान िलया िक िविभ जाितय क मामले म भी ऐसा ही होता होगा। जो मजबूत होता ह वह कमजोर
को दबा लेता ह।
पर िफर भी डारिवन को वह बड़ा महा ीप ऑ टरिलया अ छा लगा। िवदा लेते ए उसने ऑ टरिलया को
सलाम िकया और माना िक यह महादेश एक िदन दि ण का एक बड़ा िसतारा बनेगा। डारिवन ने कहा िक वह इस
महा व मह वाकां ी देश से ेम करता ह पर अभी इसका आदर नह कर सकता ह। इसक िलए इस देश को और
महा बनना होगा। डारिवन ने ऑ टरिलया का समु ी तट िबना िकसी दुःख या पछतावे क छोड़ा।
अब बीगल जहाज िहद महासागर म वेश कर गया था। माग म चंद ीप पड़ जो सुमा ा क दि ण म थत
थे। इनक आसपास मूँगे क बड़-बड़ भंडार थे। जो वै ािनक व गैर वै ािनक दोन क िलए आकषण का क बने
ए थे।
उस इलाक म मुि का क आकार क झील-सी थ और जब सूय क िकरण उनक पानी पर पड़ती थ तो वह हर

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रग का िदखने लगता था। बाहर म अनेक कार क घेर थे। कह च ान क घेर थे तो कह ना रयल क पेड़ क।
जल क नीचे मूँगे, ऊपर ह रयाली, ऊचे आसमान म सफद बादल क टकड़, सचमुच कित म गजब क समृ
छाई ई थी।
डारिवन ने इसी या ा म पहले-पहल कप वड ीप क पास क साफ पानी म मूँगे देखे थे। दि ण अमे रका क
रा ते क जगह-जगह मूँग क कतार िमली थ । पर यहाँ का य अलग ही था। यहाँ प चने से पहले सबको
इ लड प चने क धुन सता रही थी पर मूँग क ढर देखकर न िसफ सामा य जहाजी वर क ान िफ जरॉय व
चा स डारिवन भी बौरा गए थे। बीच-बीच म जब सागर का जल उछाल मॉर कर मूँग क ढर क य को ओझल
कर देता था तो सागर उ ह दु मन-सा लगने लगता था।
मनु य िजस चीज से ेम करने लगता ह, वह चीज उसे अ यंत नाजुक लगने लगती ह और उसे लगातार आशंका
बनी रहती ह िक वह न न हो जाए। उस इलाक क तेज समु ी लहर िकनार क मजबूत च ान से जोरदार
तरीक से टकराती थ और ऐसा लगता था िक वे उन तट क ेनाइट, ा ज क च ान को मिलयामट कर
दगी। पर उन लहर क न हो जाने क बाद बीगल क जहाजी पाते िक पानी क नीचे मूँगे का नाजुक ढर य का
य ह।
डारिवन ने अपने द तावेज म िलखा भी िक आिखर समु म तो तूफान लगातार और लंबे समय से आते रह ह।
पर ये नाजुक मूँगे उनक उस श को झेलते रह ह िजसे न तो मनु य क कलाकारी बाँध पाती ह और न ही
कित क िनज व रचनाएँ।
तभी क ान ने उस सागर क तली का अंदाज लगाने क िलए योग िकया और पाया िक सागर ब त गहरा ह।
अब चा स का वै ािनक िदमाग भी दौड़ने लगा और वह यह जानने का यास करने लगा िक मूँगे क ढर िकतने
लंबे चौड़ ह। गणना करने क प ा ात आ िक सुदीवा का ढर 44 मील लंबा और 34 मील चौड़ा ह। दूसरी
ओर रम काई का ढर 54 मील लंबा और बीस मील चौड़ा ह।
अब उ ह ने तरह-तरह क योग िकए और यह जानने क कोिशश क िक ये मूँगे क ढर िजस न व पर ह वह
कसी ह। पर कछ िवषय क जिटलता क कारण और कछ घर प चने क ज दी क कारण वे यादा अ वेषण नह
कर पाए।
अब बीगल ने इ लड का ख िकया। अब तक अनेक सवाल चा स क मन म उमड़ चुक थे। उसक म त क
म यह सवाल भी था िक आिखर इस पृ वी क सतह पर कह जल और कह थल कसे बने ह गे।
बीच म बीगल अ प अविध क िलए मॉरीशस क पास एक ीप मडागा कर म का था। पर यहाँ पर कोई
खास गितिविध संप नह ई। कप ऑफ गुड होप होते ए बीगल वापस अटलांिटक महासागर म आ गया।
अब जहाज तेजी से चल रहा था। इसने उन ीप को भी छआ िजन पर वह पहले का था। चा स डारिवन को
उ ह िसफ िनहारने का अवसर िमला।
2 अ ूबर 1836 को लगभग पाँच वष बाद बीगल इ लड क तट पर प चा और फा माउथ बंदरगाह पर उसने
लंगर डाला।
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नया जीवन
पाँच वष पूव जब चा स डारिवन बीगल जहाज से रवाना आ था तो वह एक अनजान युवक था। उसका
म त क एक साफ लेट क भाँित था।
पर अब थित बदल चुक थी। आज वह एक पूण ाकितक-िव ानी बन चुका था। उसक म त क म
अनेकानेक मौिलक िवचार उमड़ रह थे। उसक पास असं य नमूने थे िजनका िव ेषण अभी िकया जाना था।
उसक नोट बुक भरी ई थ िजनका सार अभी िनकाला जाना था।
इ लड वापस प चने से पूव ही उसक काम क याित यहाँ पर प च चुक थी। उसक भेजे नमूने समय-समय
पर आते रह थे। डारिवन को भूगभ शा पढ़ाने वाले सेजिवक उन नमून को यान से देख रह थे। चा स डारिवन
क ेरक ो. हसलो डारिवन क अनेक प को कि ज थत िफलोसोिफकल सोसाइटी क बैठक म पढ़-पढ़ कर
सुना चुक थे। यही नह ये प एक 31 पृ वाले पच क प म छपकर सोसाइटी क सद य क बीच बंट भी चुक
थे।
चा स डारिवन क साथ उसक नोट बुक का जो बड़ा ग र आया था उसने अब तक क अनेक मा यता
क जड़ को िहलाना ारभ कर िदया था। जीव-जंतु व उनक िव तार क बार म िफर से िचंतन ारभ हो चुका
था।

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जब चा स ने फा माउथ बंदरगाह पर कदम रखा था तो शाम हो चुक थी। पर वा तव म यह उसक नए जीवन
क सुबह थी।
मन ही मन वह इस बात को मान चुका था िक संसार क िविभ ािणय क बीच जो तमाम समानताएँ और
िविभ ताएँ ह ये महज इि फाक नह ह। संसार क रचियता ने इ ह इसी व प म नह बनाया होगा। ये समय क
साथ बदलती रही ह और प र थितय क अनु प ढलती रही ह।
पर साथ ही या ा क थकान ने डारिवन को तोड़ भी िदया था। बंदरगाह पर उतरने क बाद उसे घर तक प चना
भारी हो रहा था। उस िदन बा रश ई थी और रा ता ब त खराब था। घोड़ा-गाड़ी रह-रहकर धचक खा रही थी
और चा स का बुरा हाल था। इतने िदन क समु ी-या ा से यह थल क या ा नए-नए क क कारण लंबी भी
मालूम पड़ रही थी।
रिववार को बंदरगाह से घोड़ा-गाड़ी पकड़ने क बाद मंगलवार तक चा स को अपने सामने समु क लहर, तट
क च ान आिद ही िदखती रह । मंगलवार को उसे पहली बार लहलहाते खेत और हर-भर पेड़ िदखे और उसे
िव ास हो गया िक वह वा तव म घर ही जा रहा ह।
अब उसे यह भी लग रहा था िक आिखर इ लड क लोग अपनी हरी-भरी धरती और खुशहाली को छोड़कर
हजार मील दूर िबयावान म भटकने जाते ही य ह।
अपने शहर सु्रसबरी क सीमा म दािखल होते-होते चा स को िफर शाम हो गई। उसे लगा िक आधी रात को
अपने घरवाल को जगाना ठीक नह रहगा। उसने कोचवान से कहकर राि एक सराय म िबताई।
अगले िदन सवेर ना ते से पहले ही महा या ी अपने घर ‘माउट’ प चा। उसे देखते ही उसक िपता डॉ.
डारिवन उसक बहन, नौकर-चाकर आिद दौड़ पड़ और उसे घेर िलया। स ता का पारावार नह था और न
क झड़ी लग गई। पर उसक मुँह से न तो जवाब िनकल पा रह थे और न ही उ ह कोई सुन रहा था।
घर क लोग को चा स दुबला तो लग रहा था पर उसे ठीक-ठाक देखकर सभी लोग स थे। घर म इस कदर
खुशी थी िक उसक फाम क दो मजदूर ने रात बेतहाशा शराब पी ली और खूब शोर मचाया।
थक होने क बावजूद चा स ने हाथ से िलखा एक पचा अपने मामा क यहाँ िभजवाया िजसम िलखा था िक वह
स ता क कारण बुरी तरह िमत भी ह तथा अपने मामा क घर ‘मायर’ आना चाहता ह और अपने सभी
र तेदार , नातेदार से िमलना चाहता ह। चा स ने अपनी इस लंबी या ा का शुभांरभ कराने का पूरा ेय अपने
मामा को िदया, िज ह ने अपने भाव का इ तेमाल करते ए न िसफ िपता डॉ. डारिवन क अनुमित िदलवाई थी
वर उस या ा को शी व सुचा प से ारभ करवाने म भी योगदान िकया। जोिसयाह वेजवुड का काफ
कारोबार िवदेश जैसे चीन म भी फला आ था।
उसे यह भी महसूस हो रहा था िक वह कछ बन गया ह और आगे क जीवन म कछ कर िदखाएगा। पर साथ ही
वह इस बात का ेय अपने मामा को देना चाह रहा था िजनक कारण यह या ा व उसम उसक भागीदारी संभव हो
सक ।
पर अपने मामा क पास य गत प से जाने और उ ह आभार य करने क िलए समय उसक पास नह था
य िक यह लंबी या ा उसक सामने िवशाल व लंबा काय म तुत कर चुक थी िजसे शी अित शी पूरा करना
था।

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उसे बीगल से अपना सामान िजनम तमाम व असं य कार क पदाथ जीव आिद थे, िनकालना था। अब तक
भेजे गए नमून क ढर वृ दाकार थे और उ ह उिचत प से सजाकर रखने तािक अ वेषण काय िनबाध प से
संप हो सक, क िलए ब त बड़ी जगह और ब त सारा समय चािहए था।
इसी बीच उसे समाचार िमला िक भूगभ िव ानी लाइल िजसक पु तक से चा स डारिवन को यह अिभयान एक
िन त िदशा म चलाने म सहायता िमली थी भी उससे िमलना चाहता था। या ा क दौरान लाइल चा स क दौर क
समाचार व भेजी गई रपोट क द तावेज पढ़ता रहता था। उधर डारिवन भी इस जाने-माने भू-िव ानी क ित पूरी
तरह कत था िजसक पु तक ने या ा क दौरान नए अथ िदए। वह अपने नमून व उनक भावी योग क बार म
लाइल क सलाह भी चाहता था।
लाइल ने चा स को सलाह दी िक वह इन भूगभ-िव ान संबंधी नमून को अपनी समझ क अनुसार लगाए और
उनका अ ययन कर। इससे वह अब तक क मा यता क भाव म नह आएगा।
खबर फलते देर न लगी और उस समय लंदन व कि ज क जाने-माने वै ािनक गण ने उसका वागत करना
ारभ कर िदया। उसक पास अनेक िति त सं था जैसे िलनेन सोसाइटी, भूगभ-िव ान सोसाइटी क सद यता
क ताव आए और कछ जगह पर वह बाकायदा चुना भी गया। पर इस दौरान जब उसने कछ वै िनक को
अपने नमून को वग कत करने, काटने, छाँटने क िलए िनयु करना चाहा तो उसे सफलता नह िमली।
पूरा अ ूबर महीना बीत गया। नवंबर महीना भी आधा बीत गया। चा स क य तता कम ही नह ई। महीने क
अंत म वह िकसी तरह मामा क घर जाने का समय िनकाल पाया। पर य ही वह प चा तो वेजवुड प रवार क घर
पर आस-पास क लोग का मेला लग गया। वे लोग उसक साहिसक-या ा क सफल समापन का ज न मनाना
चाहते थे।
पर चा स अपने नमून और उनसे संबंिधत अनुसंधान पर गहन चचा करने क िलए मायर गया था। उसने बार-
बार आए ए लोग से माफ माँगी और तब जाकर उन लोग को बैठकर गंभीर चचा करने का अवसर िमल पाया।
िजन बात क चचा ई, उनम से एक जहाज क या ा क बार म क ान िफ जटाय ारा िलखी िकताब से
संबंिधत थी। या ा क अंत तक क ान िफ जटाय भी चा स क काम से काफ भािवत हो चुका था। वह क ान
अपनी या ा क बार म एक िकताब िलखकर कािशत कराना चाहता था।
उसने डारिवन से कहा िक वह अपने नोट का एक िह सा दे तािक वह पु तक क अंश क प म छप सक।
डारिवन ने त काल हाँ कर दी। उसे िव ास ही नह था िक सामा य बातचीत क प म क गई चचा का उतना
मह व होगा िक वह चचा का िवषय बन जाएगी।
‘मायर’ म ई चचा म सूजन ने आपि उठाई िक चा स क काम को क ान क काम क साथ िमलाना उिचत
नह था। पर चा स ने अपने काम क जो द तावेज सीधे घर भेजे थे उनसे सारा प रवार भािवत था। चा स क
दोन बहन सूजन व करोलीन जो उसक साथ ही मायर गई थ , ने ताव िकया िक चा स डारिवन क द तावेज
अलग से और पूण पु तक क प म छपने चािहए। मामा जोस, ए मा व प रवार क अ य लोग ने इस बात का
जोरदार समथन िकया।
उधर चा स का भी एक सपना था िक वह अपने िकए गए काम को पु तक का प दे और शी अित शी
कािशत करवाए। पर समय क कमी एक ब त बड़ी सम या थी। पहले उसने िनणय िकया था िक वह कि ज म
चंद महीने रहकर अपने नमून को यव थत करगा। पर यहाँ मायर म उसने वायदा कर िदया िक वह लगभग रोज

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शाम को आकर अपनी िकताब ‘चा स जरनल’ को पूरा करगा।
उधर उसक िपता ने जो उसे धम गु बनाने का मंसूबा बाँधा था, वह पूरी तरह से लु हो चुका था। जब वह
कि ज वापस प चा तो उसक पुराने सहपाठी जा चुक थे। इस वीराने म उसक पास काम करने क अलावा कोई
िवक प नह था। उसे ोफसर हसलो से िवशेष सहायता िमली। वह पुराने जीवा म को अलग रख रहा था। काम
क दौरान उसने ािणय व वन पितय क अनेक नए-नए वंश, कल आिद गिठन कर िदए।
उस समय तक दि ण अमे रका क िवलु तनपायी ािणय क दो कल ही पहचाने जाते थे। डारिवन को
अजिटना क क चड़ म िह पोपोटामस क आकार का एक जीवा म िमला था िजसे उसने एक कल म रखा। इसक
अलावा उसे घोड़ क आकार का एक जीवा म और िमला था िजसक बार म माण िमले थे िक वह चीिटयाँ खाता
था। डारिवन ने उसे अ य कल म थान िदया।
कि ज क श य िचिक सक ने उपरो जीवा म को सहष वीकार िकया और उनक अनुकितयाँ आिद
बनाकर उनका अ ययन ारभ कर िदया। उ ह ने उनका िववरण कािशत करने का भी िनणय िलया तािक अ य
लोग भी उनका अ ययन कर सक।
दूसरी ओर पु तक लेखन का मोचा भी मजबूत था। चा स डारिवन ने बीगल क या ा क दौरान एक भी पल
गँवाया नह था। वह अपनी भावी पु तक क अंश लगातार िलखता चला जा रहा था। उसने पूरा मन लगाकर और
अ यंत सावधानी पूवक अंश िलखे और साथ ही बाहर े म िकए गए अ ययन क प रणाम जो उसक नोट बुक
म दज थे, को बड़ी सावधानी पूवक जोड़ा गया था।
अतः पूण पु तक तैयार करने क िलए उसे मा अपने पूव लेखन क नकल ही तैयार करनी थी। कछ ही जगह
पर उसे पूव िववरण का िव तार करना था और कह -कह पर उसे दूसरा प भी देना था। वह कछ अंश को काट
देना चाहता था य िक उसे लगता था िक ये आम जनता क िलए िचकर नह ह गे।
जहाज पर तैयार िकए गए नो स म लगभग एक लाख नवासी हजार श द थे। इसका एक ितहाई िह सा चा स ने
अलग कर िलया य िक उसम मु य तौर पर चा स क अपनी भावनाएँ, जहाज क ऊपर क जीवन, अपने जहाज
क हमसफर का वणन आिद ही था। पर साथ ही उसने लगभग एक लाख श द जोड़ने का भी िनणय िलया। इस
नव लेखन म उस साम ी को िलया गया था जो उन देश क भूगभ शा , जंतु-शा संबंधी त य से संबंिधत थी,
िजन देश म वह गया था। इस अनोखे ंथ को पूरा करने समय उसने अपना अित र य गत वृतांत भी जोड़
िदया।
गरिमय से पूव चा स को यह लगा िक उसे लंदन जाना होगा तािक वह अपना काम पूरा कर सक। उस समय
तक यह िनणय िलया जा चुका था िक उसक पु तक अनेक खंड म कािशत होगी। इनम से तीन खंड उसक
या ा से सीधे संबंिधत थे। जहाज क क ान िफ जटॉय ने पहले दो खंड तैयार करने का दािय व ले िलया था।
डारिवन अब लंदन म ही 36 मालबरो ीट पर थत कमर म रहने लगा था और अपने उस अभूतपूव ंथ पर
काम कर रहा था। तभी चचा ई िक इस या ा से संबंिधत जंत-ु शा ीय िवषय पर एक अलग खंड तैयार हो। उधर
डारिवन क योजना थी िक िविभ वै ािनक क ारा उसक ारा लाए गए नमून का जो अ ययन िकया जा रहा
ह, वह भी कािशत होना चािहए।
ये वै ािनक जीवा म वाले तनपायी जीव , आधुिनक तनपायी जीव , पि य , मछिलय सरीसृप आिद का
अ ययन कर रह थे। यह खचा तथा पु तक काशन का खचा डारिवन क आिथक श क बाहर था। इस कार

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का अनुसंधान व काशन पहली बार हो रहा था। लोग इसे कौतूहल क ि से देख रह थे। तरह-तरह क राय-
मशवर भी दे रह थे पर आिथक िनवेश क बात कोई नह कर रहा था।
पैसे क इतजाम क िलए चा स डारिवन ि टन क यय-िवभाग क त कालीन चांसलर टी. ंग-टाइस से िमला
और एक हजार प ड क अनुदान रािश क िलए िनवेदन िकया। उसने यह अनुदान जंत-ु शा संबंधी अनुसंधान क
िलए माँगा था।
चांसलर डारिवन से स ता पूवक िमले और उसक चल रह काम क मह व क शंसा भी क । उ ह ने माँगे
गए अनुदान को वीकित दान करने का आ ासन भी िदया। डारिवन का हौसला अब और बढ़ गया था।
अब डारिवन क ंथ का काम तेजी से चल पड़ा। उसने मु क क पास इसी साम ी को अंितम प देकर भेजा
और मु क ने भी अपना काम शी तापूवक िकया और नवंबर महीने म उसे तैयार करक दे िदया। जब डारिवन क
पास उसक पहली ित आई तो उसक खुशी का िठकाना न था।
उस रात वह रोशनी म उस छपे ए ंथ को ही िनहारता रहा। िचकने कागज पर प , सुंदर छपाई अ यंत
खूबसूरत लग रही थी। अपनी भावना को उसने हसलो को िलखे प म उड़ला और कहा िक म उसक पहले
प े को ही लंबे समय तक िनहारता रहा।
अपने काय क ित अपनी िति या म लंबे समय तक खोए रहने क बाद डारिवन ने पाया िक उसक सामने
अभी लंबी राह ह और उसने काय म तय करते ए हसलो को िलखा िक वह चाहता ह िक वह काम करते ए
अ सी वष क आयु ा कर।
गहर नीले आवरण वाले अपने ंथ को डारिवन ने वै ािनक लाइल को समिपत िकया था और प िलखा था
िक इस ंथ म जो कछ भी वै ािनक काय विणत ह, वह लाइल क िलखी पु तक ‘‘ि ंिसप स ऑफ िजयोलॉजी’’
से पे्ररणा ा करक िकया गया ह। जब डारिवन ने पु तक क ित क साथ प लाइल को िलखा तो िफर प
िकया ‘‘आप ही क कारण म लेखक बन पाया ।’’
पर इस ंथ क औपचा रक प म कािशत होने म लगातार िवलंब होता रहा। इसका एक कारण इसक दो
खंड क तैयार होने म आ िवलंब था िज ह क ान िफ जराय को तैयार करक देना था। डारिवन क स का
पैमाना छलक रहा था और वह अ कािशत ंथ क सिज द या िज दहीन ितयाँ अपने िम और वै ािनक को दो
साल तक बाँटता रहा। ये लोग इस रचना म िदलच पी भी िदखा रह थे और काफ उ सािहत भी थे।
उधर लाइल क िपता भी इस ंथ क हर प े को पढ़-पढ़कर मु ध हो रह थे। लाइल ने उस अ कािशत ंथ क
एक ित एक युवा वन पित-शा ी जोसेफ डा टन कर को दी थी। वह युवा वै ािनक इसे पढ़कर इस कदर
उ सािहत व उ ेिजत आ िक उसने लगातार इस पु तक को अपने िसरहाने तिकए क नीचे रखा और योजना बनाता
रहा िक वह िकस कार इस तरह क या ा म शािमल हो सकगा। हालाँिक डारिवन को इस कार क
िति या , उ साह, उ ेजना क जानका रयाँ ब त बाद म िमल ।
स 1839 म आिखर उसका ंथ कािशत हो ही गया। इसम डारिवन क जंतुशा संबंधी अनुसंधान वाला भाग
अ यािधक लोकि य आ। ारभ म इसका शीषक लंबा था—जरनल ऑफ रसचज इट िद िजयोलॉजी एंड नेचुरल
िह ी ऑफ वे रयस क ीज िविजटड बाई एच.एम.एस. बीगल अंडर िद कमांड ऑफ क टन िफ जराय ॉम स
1832-1836।
बाद म यही पु तक अमे रका से भी कािशत ई तथा इसका शीषक छोटा व सरल था—‘‘िद वायज ऑफ िद

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बीगल।’’
q
वैवािहक जीवन
लंबी या ा, या ा क बाद क अनुसंधान तथा लेखन ने चा स क जीवन म नए बदलाव का ादुभाव कर िदया था।
वैसे भी वह युग इ लड व लंदन क िलए बदलाव का ही युग था।
उस समय आिथक प र य म भी बदलाव आ रहा था और सामािजक रीित- रवाज म भी। इ लड म एक नए
िक म का बौ क माहौल चल पड़ा था। नई रानी िव टो रया महा ि िटश सा ा य क िसंहासन पर आसीन होने
वाली थी।
उस समय ि िटश उ ोग-तं तेजी से फलता जा रहा था। जगह-जगह पर लंबी पर गंदी इमारत म नई-नई
फ ट रयाँ खुल रही थ । उनम काम करने वाले मजदूर गंदी बैरक म रहते थे। पर इनसे देश क समृ तेजी से
बढ़ रही थी और इस कारण ि िटश अथ यव था जो अतीत म किष पर आधा रत थी, म तेजी से बदलाव आ रहा
था।
उपरो कारण से लोग अं ेजी कानून म भी बदलाव चाह रह थे और िति यावादी फसल से संबंिधत कानून
म बदलाव चाह रह थे िजनक ज रए िकसान को सुर ा िमलती थी। शोर मचाने वाली रल व उसक िलए रल लाइन
िबछाने का काम गाँव-गाँव म चल रहा था। पुरानी घोड़ा-गािड़याँ नुमायश क चीज बन रही थ और ि टन एक
औ ोिगक महाश का प ले रहा था।

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पर चा स डारिवन क िनजी जीवन म कोई आिथक प रवतन नह आया था। उसका ंथ चचा का िवषय अव य
बन चुका था पर कमाई एक पैसे क न थी। ारभ म चा स ने अपनी पु तक क ितयाँ िविभ िव ान और
िचंतक को भट क और इनक लागत क प म उसे काशक को 21.10 प ड चुकाने पड़। िब क ारिभक
र तार अ यंत धीमी थी पर धीर-धीर वह तेज होती जा रही थी।
चा स क निनहाल म भी हलचल मची ई थी। िजस इलाक म ‘मायर’ भवन था, उस इलाक म रलवे लाइन
िबछ रही थी और उस समय यह काय अभूतपूव था तथा उसक रोजाना चचा घर म होती थी। अभी तक वेजवुड
प रवार घोड़ा-ब गी म ही सैर िकया करता था।
पर मई 1836 म ए मा वेजवुड, कथरीन डारिवन तथा प रवार क अ य लोग जब पे रस थत अपने र तेदार से
िमलने गए तो उ ह ने बरिमंधम से र बी तक क या ा रलगाड़ी से क । इस या ा म उ ह अभूतपूव आनंद आया।
उस समय तीस मील क या ा उ ह ने ढाई घंट म तय क थी। घोड़ा-गाड़ी क अपे ा न िसफ समय कम लगा
वर थकान भी कम ई। ए मा तो इस कदर आनंिदत ई िक उसने अपने र तेदार से िनवेदन िकया िक अगली
बार जब वे िमलने आएँ तो रल ारा ही आएँ।
ि टन सिहत तमाम यूरोपीय देश क राजनीित व रोजमरा क जीवन म चच क दखलंदाजी पहले ब त यादा
थी। पर अठारहव सदी म इसमे काफ कमी आई। इससे जीवन क आधारभूत त य तथा मू य तेजी से प रवितत
होने लगे थे। क रपंिथय क पकड़ ढीली पड़ रही थी। उस समय तक कलीन-तं मजबूत रहा था और अमीर
को दबदबा समाज क हर गितिविध म चल रहा था पर वह भी अब ह का पड़ रहा था।
स 1832 म ब चिचत सुधार-कानून लागू आ था और उससे समाज क आिथक गैर-बराबरी को कम करने म
सहायता िमल रही थी। सुधार क उस माहौल म लेखक को भी लेखन हतु उ क साम ी चुर मा ा म िमल रही
थी। पहले कालाइल, र कन और िफर चा स िडकस क प म यं य शैली म िलखने वाल को सराहना िमलती
गई और वे िविभ िवषय पर अपने-अपने तरीक से अपने िवचार तुत करने लगे। उनक लेखन-शैली म खोज
व संदेह का भी समावेश होता था और वे िवषय का पदाफाश करने का य न िकया करते थे।
नए युग म लेखक अब िसफ चंद कलीन क िलए नह िलखते थे। वे चाहते थे िक सामा य जन उनका पाठक
बने। ऐसे माहौल म चा स डारिवन को आगे बढ़ने का माहौल िमला। उसने नई दुिनया देखी थी। उसक पास भी
असं य नए न थे। उसक पास उस समय चल रही बौ क ांित का उपयोगी व मह वपूण िह सा बनने का
पूरा सामान था। वह भी इस ांित क सू धार से िमलने क िलए बेताब था।
लंदन आने क प ा चा स क बड़ भाई एरा मस ने चा स को त कालीन यात लेखक कालाइल से
िमलवाया। दोन भाई लेखक महोदय क घर पर चाय पर आमंि त िकए गए थे। एरा मस काफ समय से लंदन म
था और स ांत वग म उसक अ छी प च थी। एरा मस ने भी अपने िपता क इ छा का पालन नह िकया था और
डॉ टर नह बना था। पर उसने लंदन म एक बेहतरीन पु तकालय बनाया था और वह कला- ेिमय को तरह-तरह
से संर ण भी देता था। वह उदार भी था और अपने घिन िम क समय-समय पर आिथक सहायता भी करता
था। लेखक कालाइल अ सर आिथक संकट म पड़ जाता था। एरा मस ने हर बार उसक मदद क । एरा मस क
घोड़ा-ब गी तो कालाइल जैसे िम क सेवा म ही लगी रहती थी।
पहली बार जब चा स कालाइल से िमला तो कॉटलड वासी ीमती कालाइल क कॉट लहजे से वह परशान

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आ और उसे कई बात समझ म ही नह आई। पर वह कालाइल क बात पर यान देता रहा और उसक
िदलच पी उनम जगने लगी।
बाद म एरा मस क घर पर कालाइल दंपि आते रह और दोन म वाता , चचा का लंबा दौर चला। इसी
बीच एरा मस ने एक राि -भोज आयोिजत िकया िजसम कालाइल, लाइल, चा स बबाज (क यूटर क
आिव कारक) आिद सभी एक साथ बैठ। इस भोज म कालाइल ने शांित (साइलस) पर या यान िदया िजसे सभी
ने शांितपूवक सुना। उस भोज म भाग लेने वाले सभी बातूनी थे पर सभी ने शांित पर ए या यान पर कालाइल को
बधाई व ध यवाद िदया।
अब चा स डारिवन को बु लोग क साथ उठने-बैठने, चाय पीने, भोजन करने का अवसर िमलने लगा।
इितहास-िवद क एक बैठक म वह लॉड टनहोप क घर पर मैकाले से िमला। पर मैकाले ब त कम ही बातचीत
करते थे। टनहोप क यहाँ ई उस बैठक म टनहोप ारा सुनाई गई कहानी क अलावा िकसी त य या तारीख क
ऊपर तगड़ी बहस भी आकषण का क बनी। उस बैठक म चा स ने देखा िक जो त य या ितिथ मैकाले ने
बतलाई उसे सच मान िलया गया और िकसी ने भी उसक जाँच करने क िलए पु तकालय जाने का क नह
िकया।
चा स उपरो घटना को अपने नज रए से देख रहा था और काफ कछ हण भी कर रहा था। उन बैठक म
िकसी भी िवषय, पु तक आिद पर चचा िछड़ जाती थी और वह लंबी चलती थी। धीर-धीर उसका मन इन चचा
से उबने लगा।
इसी बीच चा स को लगा िक वह अपने काम और मूल उ े य से भटक रहा ह और उसने लंदन शहर छोड़ने
का भी मन एक बार बना िलया।
डारिवन प रवार और वेजवुड प रवार म पहले िम ता थी जो बाद म र तेदारी म बदल गई। कालांतर म दोन
प रवार म चचा चली िक य न इस संबंध का नवीनीकरण करा जाए। इसक साथ ही चा स व ए मा क िववाह
क चचा चल पड़ी।
चा स ने इस िवषय को भी एक वै ािनक सम या क प म िलया तथा तािवत िववाह से होने वाले लाभ-
हािन का बाकायदा िव ेषण इस कार िकया—
लाभ : 1. ब का ज म होगा।
हािन : समय क बरबादी होगी। जीवो पि क िस ांत को िवकिसत करने क िलए कम समय िमलेगा।
लाभ : 2. जीवनभर क िलए, िवशेष प से बुढ़ापे क िलए एक साथी िमलेगा।
हािन : वह बीगल जैसी या ा पर कम या नह जा पाएगा।
लाभ : 3. संगीत व मिहला क साथ बातचीत का सुख िमलेगा।
हािन : उसे र तेदार से िमलने व उनक आवभगत करने म अिधक समय देना होगा।
अंततः उसे लगा िक जीवन म िसफ काम ही सब कछ नह ह और कोमल, नाजुक-सी प नी क साथ सोफा पर
बैठना, आग तापना, संगीत आिद का आनंद लेना भी ज री ह। अंततः उसने शादी करने का िनणय ले ही डाला।
भावी प नी ए मा का ज म 8 मई, 1808 को आ था और इस कार वह चा स से 9 महीने बड़ी थी। िवशेष

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बात यह भी थी िक ए मा और उससे दो वष बड़ी बहन फनी वेजवुड प रवार क सबसे छोटी और लाड़ली बि याँ
मानी जाती थ । बचपन से ही दोन को िखलौन जैसा यवहार िमला था। ए मा क तो पढ़ाई भी घर पर ही रखकर
ई थी और उसे वेजवुड प रवार क सं कार िदए गए थे।
वेजवुड प रवार क ब को डाँटा या रोका-टोका नह जाता था। पर साथ ही इन ब को अपने माता-िपता या
आया क साथ बदसलूक भी नह करने दी जाती थी। ए मा ने ाँस व जमनी क या ा क दौरान च और
जमन भाषाएँ भी कछ-कछ सीख ल । उसे िपयानो बजाने का भी काफ अ यास हो चला था। पर उसक गुण म
सबसे मुख था दूसर क देख-रख करना, उनका याल करना।
शादी क चचा चलने क बाद जब चा स ने अपने अनोखे तरीक से शादी का िनणय ले िलया तो उसने तय िकया
िक वह सबसे पहले ए मा क सहमित लेगा। वा तव म बीगल क या ा क बाद वह इस कदर य त रहा िक जब
भी वेजवुड प रवार से िमला तो ए मा सिहत अपने हमउ क साथ उसक औपचा रक बात ही यादा ई और
य गत बात करने का समय ही नह िमला था।
इस समय तक ए मा लगभग 30 वष क लंबी, छरहरी खासी आकषक युवती हो चुक थी। उसक भूर चमकदार
बाल, चेहर पर अठखेिलयाँ करती दो रशमी जु फ उसक स दय को बेतहाशा बढ़ा देती थ । उसक नाक-न श तीखे
थे।
म त, िबंदास ए मा अपने कपड़ आिद क अिधक परवाह नह करती थी। अलब ा उसक प रवार-जन अव य
उसक िलए आधुिनकतम फशन क कपड़-जेवर आिद उपल ध कराते थे।
सगाई क िदन भी घरवाल को िचंता थी िक पता नह अब ए मा क कपड़ आिद क बार म कौन िचंता करगा।
ए मा क औपचा रक सहमित क बाद जब सगाई ई तो दोन ही प रवार अ यंत स थे। वेजवुड प रवार को इस
बात क तस ी थी िक उनक बेटी एक जाने-पहचाने प रवार म ही जा रही ह।
वेजवुड प रवार ने अपने अ य ब क शािदय क अवसर पर भी िन त रकम उपहार क प म दी थ और
भिव य म िन त आमदनी सुिन त क थी। उसी पंरपरा क अनुसार उ ह ने ए मा को भी 5,000 प ड का एक
बाँड तथा 400 प ड सालाना आय का साधन सुिन त िकया। नव-बंधन म बंधे युगल को वचन िदया गया िक
जब तक जोिसयाह िजंदा रहगे तब तक यह रकम उ ह िमलती रहगी।
युवा चा स को िववाह क स ता तो थी पर साथ ही यह िचंता भी थी िक आने वाले समय म ए मा को अपनी
शाम तनहाई म गुजारनी ह गी। वह खुद अपने जीव-जंतु , वन पितय , प थर क नमून से जूझता रहगा और घर
म समय कम ही दे पाएगा। उसे इस बात का भी एहसास था िक वेजवुड प रवार म तो अ सर शाम को दावत होती
रहती थ । वह तो इन सबक बार म अभी सोच भी नह सकता ह।
पर ए मा को िकसी िक म क कोई बेचैनी नह थी। वह अपने भावी पित क ित पूरी तरह समिपत थी और इस
बात पर स थी िक िजसक साथ वह रहने वाली ह उसे वह पहले से ही जानती ह।
अंततः 29 जनवरी, 1839 उनक िववाह क ितिथ िन त हो गई। िववाह से पूव ही चा स डारिवन को भूगभ-
िव ान सोसाइटी क सिचव का दािय व संभालना पड़ा था हालाँिक उसक इसक िलए कोई िवशेष इ छा नह थी।
उसे अपनी बीगल या ा क रपोट भी पूरी करनी थी।
अंततः यह तय आ िक चा स और ए मा शादी क बाद लंदन म ही रहगे। अब चा स अपने भाई एरा मस क

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साथ लंदन क सड़क पर ब गी दौड़ाते ए सही मकान क तलाश करने लगे। उस समय लंदन क मकान-मािलक
क िदमाग खराब थे और वे अनाप-शनाप पैसा माँग रह थे।
अंततः िववाह से पूव उ ह अपने आिशयाने क िलए जगह िमल ही गई। 12 अपर गावर ीट पर थत मकान म
अ छा ाइग- म भी था और पीछ छोटा-सा बगीचा भी। लंदन शहर म उस समय बगीचे वाला मकान कम ही
िमल पाता था। िववाह से पहले ही घर म ठीक-ठाक पद आिद लगाए गए। घर क काम-काज क िलए रसोइया,
बटलर, आया आिद क यव था क गई। ज दी ही ब त सारा सामान भी घर म आ गया िजसम यादातर
उसक या ा क दौरान एकि त नमूने थे। अपना घर होने क बाद चा स को खासी तस ी ई और उसने स ता
पूवक ए मा को प ा िलखा िक यादातर सामान अब आ चुका ह।
इसी बीच िववाह क ितिथ भी आ गई। शादी क िलए कपड़ का चयन भी वै ािनक चा स क िलए एक िवकट
सम या थी। पा रवा रक दज चाह रहा था िक वह नीला कोट और सफद पट तैयार कर। पर चा स चाह रहा था
िक वह ऐसे कपड़ पहने तािक वह शालीन तरीक से चल िफर सक। इसक िलए उसने कोट क िडजाइन म
प रवतन भी कराया।
पर उसक मन म इस बात का डर भी था िक शायद उसक कपड़ उस समय क स ांत प रवार क परपरा क
नह ह और आम लोग को हा या पद लगगे। कभी-कभी उसे यह डर भी लगता था िक कह ए मा उसक भ े
कपड़ को देखकर शादी से इनकार न कर दे। पर ए मा को उसक कपड़ क िवशेष िचंता नह थी।
कछ भी हो चा स खासा यारा लग रहा था। तीस वष क आयु म भी वह छरहर बदन का था पर उसक कधे
सीधे थे। उसक ह क भूर बाल हमेशा कधी ारा कढ़ रहते थे। उसका माथा चौड़ा था और चा स उस समय क
फशन क अनुसार जब बाल काढ़ता था तो आकषक लगता था। उसक आँख काफ हरी थ जबिक भ ह अ यंत
धनी।
29 जनवरी, 1839 को ए सादे िववाह क प ा चा स और ए मा अपने मकान म रहने चले गए। उ ह अपना
घर इतना यारा और सुिवधाजनक लगा िक उनका कह आने-जाने का मन ही नह होता था। हालाँिक इस बीच
लाइल, अ य र तेदार क यहाँ से राि -भोज क अनेक िनमं ण आते रह पर चा स क िलए इन िनमं ण को
वीकार करना सुखकर नह रहा। चा स और ए मा इन दावत म जाते थे पर ये दावत चा स पर भारी पड़ने लग ।
अगले िदन जब वह सोकर उठता तो उसे भंयकर िसर-दद का सामना करना पड़ता था और उसक नाक बहने
लगती थी।
शादी का साल अभी बीता नह िक गृह थी म उथल-पुथल मच गई। ए मा गभवती हो गई और बीमार भी रहने
लगी। दूसरी ओर चा स भी गंभीर प से बीमार पड़ गया। बड़ी मु कल से दोन प रवार क गाड़ी घसीटने लगे।
27 िदसंबर, 1839 को ए मा ने अपनी पहली संतान िविलयम एरा मस को ज म िदया। इि फाक से यह वही
िदन था जब आठ वष पूव बीगल जहाज रवाना आ था। नवजात िशशु अ यंत सुंदर व यारा था। चा स व ए मा
उसे यार से ‘‘िम टर होडी-डोडी’’ क नाम से पुकारते थे। चा स को वह ब ा इतना नाजुक लगता था िक वह
उसे ठीक से िखलाने से भी डरता था।
पर चा स क दैिनक िजंदगी बद से बदतर होती जा रही थी। डॉ टर प रवार म ज मे चा स क बीमारी का
कारण कोई डॉ टर नह पकड़ पा रहा था। शारी रक ल ण क अभाव म िचिक सक को लग रहा था िक उसे
कोई मनोवै ािनक रोग ह। शायद उसक म त क म उसका भावी जीवो पि िस ांत उमड़ रहा हो और वह इस

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कदर य त हो िक शरीर क आव यकता क पूित न कर पा रहा हो।
कल िमलाकर िववाह क पहले वष म चा स का जीवन वैसी ही गु थी बन कर रह गया िजस कार क गु थी
वह सुलझाना चाह रहा था।
q
िफर से काम पर
हालाँिक चा स पूर िदन काम करने लायक व थ नह हो पाया था पर िफर भी वह काम म जुट गया। उसने
‘‘जूलॉजी ऑफ बीगल’’ शीषक पु तक का काम पूरा िकया। इसक साथ ही मूँग क ऊपर रचना ारभ क । इसम
उसने मूँग क उ पि कसी होती ह, इस िस ांत पर काश डालना ारभ िकया। यह िस ांत उसक बीगल या ा
क अंितम दौर म ही ितपािदत आ था।
डारिवन अपने िस ांत क ब त बारीक से जाँच करता था और उ ह सावजिनक करने म कतई ज दीबाजी
नह करता था। मूँग क उ पि क िस ांत क मामले म एक संदेह बच रहा था और इसिलए डारिवन ने तय
िकया िक वह उसक िलए भी आव यक योग करगा।
वह महीन तक जब भी उसक िलए शारी रक प से संभव होता, नौसेना क द तर म तथा ि िटश अजायबघर
म जाता रहा। या ा क सं मरण व िनदश आिद का अ ययन िकया। उसने एक बड़ न शे पर अपने माग क मूँग
क भंडार का अ ययन िकया और उ ह िविभ रग से दशाया। उसने िविभ ालामुिखय (जो समु क तली
पर फटते ह) को भी न शे पर अंिकत िकया। उसने देखा िक िजस माग पर उसने मूँग क ढर देखे थे उन पर
ालामुिखय क कभी फटने क कोई ल ण नह िदखे थे। पर सुमा ा क तट पर तथा िफलीपीन क आस-पास ये
िमले थे।

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डारिवन क मूँग क उ पि पर आधा रत पु तक स 1842 म पूरी हो चुक थी। इस पु तक का सबसे बड़ा
आकषण इसक साथ लगा रग-िबरगा न शा था। मूँग क पवतनुमा समु क नीचे ढर पृ वी क अंदर चल रही
गितिविधय क भी झलक देते ह। यह साफ िदखाई देता ह िक पृ वी क ऊपरी पपड़ी क नीचे का लावा ऊपर क
ओर फटता ह। दूसरी ओर कछ इलाका समय क साथ धीर-धीर नीचे धँसता चला जाता ह।
डारिवन ने अपने िन कष म िलखा िक हम प प से समझ सकते ह िक पृ वी क सतह पर प रवतन होते
रह ह। यह प रवतन ब त बड़ और यापक पैमाने पर होते ह पर होते ब त धीर-धीर ह। ये सुंदर िजलेिटन यु
छोट-छोट मूँगे इस हलचल क दा तान सुनाते ह।
पर जब तक यह पु तक कािशत ई तब तक अथा स 1842 तक उसका मन लंदन क भीड़-भाड़ भरी
य त िजंदगी से ऊब चुका था। वह अब शांत ामीण जीवन क तलाश म था। लंदन म रहते ए उसक सामािजक
य ताएँ ब त यादा हो जाती थ और उसक िलए उनसे पीछा छड़ाना किठन हो जाता था।
अब चा स और ए मा ने ामीण इलाक म अ छा मकान तलाशना ारभ कर िदया। वे चाहते थे िक भीड़-भाड़
से दूर रह पर चा स क िलए यह भी आव यक था िक वह अपने िम , वै ािनक क संपक म रह। साथ ही
वै ािनक बैठक आिद म भाग ले सक।
अंततः उ ह ‘‘डाउन’’ नामक मकान िमला। यह ामीण इलाक म बना िवशाल मकान था जो कट नामक थान
पर था और यह थान लंदन से सोलह मील दूर था। पर इस इलाक म घोड़ागाड़ी से जाने क िलए लंबे रा ते का
योग करना पड़ता था जो बाइस मील लंबा था। यह रा ता भी कई जगह पर संकरा था और जाने वाल क िसर
पर पेड़ क टहिनयाँ टकरा जाती थ । कई बार डारिवन से िमलने आने वाल ने रा ते क दुदशा का रोना रोया। एक
ने तो यह कह िदया िक डारिवन ने रहने क िलए ऐसी जगह चुनी ह जहाँ पर िसफ ख र क सवारी करक ही
जाया जा सकता ह। डारिवन भी वीकार करता था िक उसने अपने काम क िलए सबसे शांत इलाका ही चुना ह।
उस जगह सबसे नजदीक जो ामीण ब ती थी वह भी चौथाई मील दूर थी। उसम एक पुराने िगरजाघर क आस-
पास बसे चंद घर थे। आस-पास सभी ओर जंगल व खेत थे और लकिड़याँ ही लकिड़याँ िदखलाई देती थ । चा स
क ‘‘डाउन’’ नामक मकान से काफ दूर तक भी िकसी भ पु ष का मकान नह था।
शायद यही कारण था िक चा स को इस मकान म रहते ए ऐसा लगता था मानो वह दुिनया क अंितम िसर पर
रह रहा हो। उसक घर क आगे ढलान शु हो जाती थी। जब चा स और ए मा ने इस ामीण इलाक को पहली
बार सरिदय म स 1842 म देखा तो उ ह यह वीरान लगा। पर उ ह उ मीद थी िक साल क िकसी मौसम म यह
लहलहाएगा। हो सकता ह बसंत म यह इलाका बगनी फल से लबालब हो जाए।
डारिवन ने इस ईट से बने प मकान क आस-पास अठारह एकड़ जमीन खरीदी। उसका मकान तीन मंिजला
था और वगाकार था। उसने िखड़िकय आिद क ऐसी यव था क थी िक उसक पूर मकान म पया रोशनी होती
थी। नीचे 18 फ ट लंबा और 18 फ ट चौड़ा बड़ा हॉल था। इसक अलावा रहने का बड़ा कमरा व अनेक शयन
क थे। उ ह ने इतनी यव था कर रखी थी िक डारिवन प रवार व वेजवुड प रवार स मिलत होकर वहाँ समारोह
कर सक।
दूसर को यह इलाका कसा भी लगता हो पर चा स ने वहाँ पर अपनी दुिनया बसा ली थी। उसने मकान क चार
ओर लंबा चौड़ा लॉन िवकिसत िकया और मकान क दीवार क िकनार-िकनार इस तरह पेड़ लगवाए तािक फल

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िखड़िकय क ऊचाई पर िखल। पेड़ व वन पितय क कतार इस तरह लगाई गई थ िक पूरा नजारा घर क अंदर
से भी और बाहर दूर से भी भ य नजर आता था।
एक िकनार पर िकचन-गाडन तैयार िकया गया था िजसे बाद म चा स ने ीन-हाउस (हरा क ) बना िलया था
और वह उसम तरह-तरह क योग करता था। इसक अलावा एक भाग खुला छोड़ा गया था जो एक एकड़ म था
और यहाँ से नीचे ढलान का इलाका अलग ही तरीक से िदखलाई देता था। चा स डारिवन वहाँ रोज टहलता था।
इस कार इस अटपट से मकान म रहने का िनणय चा स डारिवन ने िलया और उसे इस मकान और जगह से
इस कदर यार हो गया था िक वह शेष जीवन यह रहा। उसक इस मकान क ित लगाव को शेष दुिनया ने भी
सराहा और चा स क गुजरने क प ा सर वक टन ाउन ने उस मकान को खरीदा और ठीक-ठाक कराया और
उसे रा को समिपत कर िदया।
इस थान पर स 1929 म एक बडा समारोह आ िजसे ि िटश एसोिसएशन ने आयोिजत िकया। इस अवसर
पर सर बक टन ने आस-पास क जमीन भी खरीद ली तथा चा स का एक और मारक बनवाया। साथ ही युवा
श य-िचिक सक क िलए एक अनुसंधान क भी तैयार िकया गया।
उपरो पूरी ि या म ि िटश एसोिसएशन क अ य सर आथर क थ क अह भूिमका रही और आज यह
मकान रा ीय िनिध ह।
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अनुसंधान का अगला दौर
बीगल क या ा क दौरान जो जीवा म चा स को िमले थे, उसने अब उन पर अनुसंधान ारभ कर िदया। उसने
पाया िक जो सबसे बड़ी जीवा म ह ी ह वह उसे दि ण अमे रका म जमीन म गड़ी िमली थी और यह िकसी
च टीखोर ाणी क िसर क ह ी थी। पर यह ाणी वैसा िब कल नह था जैसे िक आज क च टीखोर होते ह।
उसने इस त य को अपनी डायरी म दज िकया। उसने माना िक यह िकसी आधुिनक च टीखोर ाणी का पूवज
होगा। इसक साथ ही उसक म त क म अनेकानेक सवाल उठते चले गए। उनम से एक सवाल यह था िक यिद
यह िवलु ाणी वा तव म िकसी वतमान ाणी का पूवज ह तो िन य ही ािणय क एक जाित से दूसरी
जाित उ प होती ह। इसका यह भी अथ ह िक दुिनया क िविभ ािणय क िविभ जाितयाँ िकसी रचियता
ारा अलग-अलग मपूण तरीक से नह रची गई ह।
स 1837 म कि ज म अनुसंधान करते समय जब पहले-पहल चा स क मन म यह िवचार आया तो वह खुद
दहल गया। उसने इस त य को अपनी आ मकथा म दज िकया।
चंद स ाह प ा लंदन म चा स ने गलापाजोस से लाए गए नमून पर यान से अवलोकन िकया तो उसक
सामने एक और आ यजनक त य उभरा। उसने पाया िक एक ाणी क िविभ जाितय म काफ समानताएँ भी
ह। उसे लगा िक एक ही कछए को जब अलग-अलग ीप म ले जाया गया होगा तो उनम मामूली प रवतन जगह

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क अनुसार कर िदया गया होगा या हो गया होगा।
इस तरह एक और िस ांत उभरा िक एक ही जाित अलग-अलग प म िवकिसत हो जाती ह। हालाँिक उस
समय इस प रक पना को िस करने म अनेक म भी थे पर िफर भी उसने इस प रक पना को दज करना ारभ
िकया िक जाितय म हरा-फरी या प रवतन होते ह।
अब उसक म त क म उभरा िक इसीिलए आधुिनक ाणी कछ हद तक िवलु ािणय जैसे थे। इस िवचार क
उभरते ही डारिवन ने एक नई नोट-बुक खोल ली और ािणय क जाितय म होने वाले प रवतन क संदभ म
अपने िवचार को दज करने लगा। इसक िलए उसने दि ण अमे रका से ा जीवा म व गलापाजोस से ा
ािणय क नमून का अ ययन महीन तक िकया। उसने एक नई नोट-बुक ारभ करक िविभ ािणय क शरीर
ि या-िव ान का तुलना मक अ ययन ारभ िकया। इस तरह ािणय क अनेक वंशानुगत गुण सामने आए। धीर-
धीर प रवतन का म समझ म आने लगा। यह पता लगा िक पहले या आ होगा और उसक बाद या आ
होगा। धीर-धीर यह भी प हो गया िक प रवतन का झुकाव िकस तरफ ह।
पर उपरो त य को वीकार करने म डारिवन को काफ परशानी हो रही थी। उसने अपने म त क म हो रही
उथल-पुथल और उठ रह डर को अनेक प म य भी िकया। अपनी आ मकथा म उसने िलखा िक लाइल ने
िबना सोचे-समझे व भेदभाव िकए भूगभ-शा संबंधी िविभ त य को दुिनया क सामने रख िदया। इसक साथ ही
उसे एक नया रा ता भी िमल गया और उसने त कालीन ािणय व वन पितय क प रवतन को दज करना ारभ
िकया। इस म म उसने ाकितक- ािणय व वन पितय को भी िलया और पालतू ािणय व घरलू वन पितय को
भी। उसे उ मीद थी िक इस तरह शायद उसका िस ांत यादा प प से सामने आ सक।
उसका यह तरीका बेकन क िस ांत पर आधा रत था। अब उसने अपने िस ांत को एक तरफ रख िदया और
बड़ पैमाने पर नमूने लेना ारभ कर िदया। उस समय िविभ ािणय क संकर समूह िवकिसत िकए जा रह थे।
इस काय को करने वाले अपनी पि काएँ भी िनकालते थे। डारिवन ने इस ीडर जरनल को भी पढ़ना ारभ िकया
और तरह-तरह क कटालॉग , सूची-प का अ ययन ारभ कर िदया।
इस तरह उसने िबना िकसी पूवा ह क इस िवषय पर उपल ध सम त सािह य पढ़ डाला और कछ भी नह
छोड़ा। उसने अपने चचेर भाई िविलयम डारिवन जो कि ज म था, से भी संपक िकया। उसक भी िदलच पी
ािणय व उनक ीिडग म थी। चा स ने उसे भी े रत िकया और भरोसा िदलाया िक िविभ जाितय व उसने
संबंिधत नमून क सहायता से एक िदन वह अभूतपूव िस ांत िवकिसत कर लेगा।
डारिवन क सलाह पर िविलयम ने तमाम घरलू िचिड़य , जानवर , क , िब य , गाय आिद क न ल म हो
प रवतन क यास से संबंिधत त य एकि त करक देना ारभ कर िदया। कछ मामल म यह पाया गया िक नई
जाित उ प करने क यास म ािणय को मृ यु हो जाती थी। दूसर महा ीप से लाए जाने वाले ािणय जैसे
कबूतर , िब य आिद का थानीय न ल से संसग कराया जाता था पर संतान यादा नह जी पाती थी।
अब डारिवन ने मूल िवषय से हटकर इस िवषय पर अ वेषण ारभ िकया। उसने पाया िक मनु य सदा से
उपयोगी न ल चाहता रहा ह। इसक िलए यह यास िकया जाता था िक अ यंत तेज दौड़ने वाले घोड़-घोड़ी का
संसग कराकर और तेज दौड़ने वाला घोड़ा या घोड़ी तैयार िकए जाएँ।
पर तभी उसक म त क म एक िवचार उभरा िक ारभ म तो इस कार क कि म यास नह िकए जाते थे।

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िफर कसे अलग-अलग कार क न ल िवकिसत होती ह गी और े न ल ही य यादा ह। यह सवाल काफ
िदन तक उसक म त क म घूमता रहा।
अ ूबर 1838 म उसने थॉमस मालथस ारा िलखी गई लोकि य पु तक पढ़ी जो जनसं या पर कि त थी।
इसम लेखक मालथस ने चेतावनी दी थी िक यिद मनु य क जनसं या पृ वी पर िनबाध प से बढ़ती रहगी तो
एक िदन पृ वी पर भोजन क कमी हो जाएगी। उस थित को िसफ यु , महामा रयाँ या अकाल ही रोक पाएँग।े
मालथस क अनुसार कित म एक िक म का संघष बड़ी बेदद से हमेशा जारी रहता ह।
डारिवन को उपरो बात तुरत समझ मे आ गई थी। उसने अपनी या ा क दौरान देखा था िक मजबूत लोग
सैकड़ वगमील का इलाका घेरते जा रह ह। ऐसा दि ण अमे रका म भी था और यूजीलड म भी जहाँ पर अंगरज
थानीय लोग को बेदखल करक क जा जमाते जा रह ह। उसने त काल िन कष िनकाला िक जीवन व अ त व-
र ा क िलए िनरतर व किठन संघष करना पड़ता ह।
इस त य को चा स डारिवन ने अपनी आ मकथा म भी दज िकया। उसने िलखा िक समय क साथ जाितय क
व प म जो अनुकल प रवतन होते ह वे प र थितय क अनु प होने क कारण बने रहते ह जबिक जो ितकल
प रवतन होते ह वे प र थितय क अनु प न होने क कारण न हो जाते ह।
इससे यह प हो जाता ह िक संघष ही चयन का आधार ह। इस संघष म जो प र थितय क सबसे अिधक
अनुकल होता ह वह बच जाता ह और शेष िवलु हो जाते ह।
यही कारण ह िक आज िजन ािणय / जाितय का अ त व ह वे िवजेता ह और वे अपने पूवज से या उनसे जो
िवलु हो चुक ह, से िभ ही ह गे। इसक साथ ही चा स डारिवन का जीवो पि का िस ांत अ त व लेने लगा।
पर चा स को अंदर ही अंदर डर लग रहा था। उसक पास अनुसंधान क माण थे, अका य तक थे पर िफर भी
उसे लग रहा था िक यह िस ांत उस समय क मा यता क िब कल िवपरीत ह। वह इसका रह यो ाटन करने
से पूव हर कार से जाँचना चाहता था।
जून 1842 म अथा नए मकान ‘‘डाउन’’ म आने से चंद महीने पहले ही चा स ने अपने इस नए ांितकारी
िस ांत का सार जो लगभग 35 पृ का था, तैयार िकया। स 1844 म उसने इसे िव तार िदया और पूर िस ांत
का 230 पृ क द तावेज म वणन िकया।
पर उसने इसे चंद लोग को ही िदखलाया और उसे कािशत करने क उसक िह मत नह पड़ी। इसक चंद
कारण थे—
1. चा स डारिवन वभाव से ही सावधानी से काय करने का आिद था।
2. उसे यह भी लग रहा था िक उसका िस ांत धािमक आ था वाले य य को गहरा आघात प चाएगा।
उसक प नी भी धािमक िवचार क थी।
3. चा स डारिवन ने यह भी सोचा िक शायद अभी उसक िस ांत म खािमयाँ ह और इन खािमय को दूर करने
क िलए और योग क आव यकता ह।
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दोहरी सावधानी
स 1839 म चा स डारिवन जब फ गर म टहल रह थे तो अचानक उनक मुलाकात उस अफसर से हो गई
जो उनक साथ बीगल क या ा क दौरान थे। ये युवा, सुंदर अिधकारी जोसेफ डा टन कर सर िविलयम कर क
बेट थे जो यू थत रॉयल बोटािनकल गाडन क िनदेशक थे।
डारिवन इस मुलाकात को ज दी ही भूल गए पर कर ने इसे लंबे समय तक याद रखा। कर ने डारिवन क
पु तक क ूफ न िसफ पढ़ वर लंबे समय तक उ ह अपने तिकए क नीचे सहज कर रखा और उनसे इस कदर
े रत आ िक उसने अपने आपको अंटाकिटका क भावी अिभयान क िलए तुत कर िदया। यह अिभयान सर
जे स रॉस क नेतृ व म जा रहा था।
कर ने यह भी ढ़ िन य कर िलया था िक वह इस लंबे युवा वै ािनक क पद िच पर चलेगा िजनसे वह
िमल रहा ह। उसे डारिवन क मोहक वाणी, घनी भ ह, नािवक जैसा खुला व िमलनसार वभाव पंसद आए। कर
ने डारिवन को मन ही मन अपना महा िम मान िलया।
स 1839 क उ रा म कर एच.एम.एस. इरबस नामक जहाज म रवाना आ िजसका नेतृ व सर जे स रॉस
कर रह थे। यह जहाज उसी पथ पर चला िजस पर ारभ म बीगल चला था पर बाद म यह दि ण धु्रव क पास
बफ ले इलाक क ओर बढ़ गया। इस अिभयान क उ े य म से एक उ े य यह भी था िक दि णी चुंबक य-

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ुव क थित क पहचान करना।
कर िजसक बचपन से ही िदलच पी वन पित शा म थी, इस या ा म एक िवशेष वन पित-शा ी क प
म गया था। इस तीन वष क या ा म उसका ान व अनुभव बेतहाशा बढ़ गए थे। इस या ा क दूसर चरण म
वापस आते समय इरबस ने उस थान पर लंगर एक रात क िलए डाला जहाँ पर बीगल का था। कर ने डारिवन
क सं मरण क संदभ म उन जगह व िबंदु पर नजर मारी।
उसे लगा िक चा स डारिवन ने जैसा वणन िकया ह, त य भी वैसे ही ह। या ा क दौरान कर ने डारिवन को
अपने अ ययन क आधार पर अनेक प भी िलखे िज ह डारिवन ने पूरी गंभीरता से पढ़ा।
या ा क समा पर चा स डारिवन ने न िसफ कर को बधाई दी वर एक िक म का ज न मनाने क िलए
लंदन म अपने भाई एरा मस क घर पर ना ते क िलए आमंि त िकया।
दोन वै ािनक क बीच अनुराग व िव ास बढ़ते चले गए। कर बाद म डारिवन क ामीण मकान ‘‘डाउन’’
म भी प चे और उ ह ने डारिवन क यूिजयो तथा गलापाजोस से लाए सं ह पर नई ि से अ ययन करने हतु
अपनी सेवाएँ तुत क ।
डारिवन को तो मानो मनचाही मुराद िमल गई। दोन का अ ययन व वातालाप ांरभ हो गया। िवशेष बात यह थी
िक अब तक डारिवन ने अ ययन क बाद जो िन कष िनकाले थे, कर क िवचार भी िब कल वैसे ही थे। िविभ
ीप से ा वन पितय का अंतर और इनक कारण प होते चले गए।
इसक साथ ही चा स डारिवन और कर जीवन भर क िलए िम हो गए और एक दूसर को न िसफ सलाह देने
लगे वर उनक काम म सहायता भी देने लगे। िविभ मंच पर एक दूसर का समथन भी करने लगे। दोन म एक
मौिलक अंतर भी था। डारिवन क पास अपने िवषय म कोई शैि क यो यता नह थी। इसिलए उ ह िवषय का
िवशेष नह माना जाता था पर कर हर हाल म िवशेष थे। दोन क िवचार एक से थे और उनक िन कष भी
एक जैसे िनकलने लगे। कई मामल म वे एक-दूसर क पूरक हो गए।
जनवरी 1844 म चा स डारिवन ने कर को अपने जीवो पि िस ांत का सार सुनाया। उ ह ने िविभ
जीवा म , वन पितय , ािणय से संबंिधत अपना अ ययन सामने रखा। उ ह ने यह भी बताया िक उपरो
प रणाम क आधार पर प ह िक िवकास क ि या ारभ से चल रही ह और आगे भी चलेगी।
इसक साथ ही डारिवन ने अपने िस ांत क सार व उसक बाद उसक 230 पृ क िव तार क ितिलिपयाँ
तैयार क और एक ित िलिप कर क पास भेजी। कर ने उसे गंभीरता से पढ़ा और अपने िवचार दो खंड म
य िकए। ये खंड थे—
1. पालतू जीव म और ाकितक (जंगली) जीव म अंतर य होता ह।
2. एक ही मूल क ािणय क वंश म समय क साथ प रवतन य होता ह।
कर ने इनक प म भी तक िदए और िवप म भी। इसी बीच डारिवन क अ य काम भी चलते रह। उ ह ने
अपनी िकताब ‘डारिवन जरनल’ को और सुधारा तथा उसका नया सं करण स 1845 म बाजार म आ गया।
बीच-बीच म काफ बीमार रहने क बाद भी चा स डारिवन ने अपनी तीन भूगभ-शा संबंधी पु तक , कोरल रीफ,
व कािनक आईल स और िजयोलॉिजकल ऑ जरवेशंस ऑन साउथ अमे रका पर लगभग साढ़ चार वष तक
काम िकया।

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अंततः डारिवन क िकताब एक क बाद एक कािशत होती चली गई। स 1846 म दि ण अमे रका क
अवलोकन से संबंिधत पु तक जब आई तो डारिवन बुरी तरह थक चुका था। अ यिधक प र म क कारण वह
ब त बीमार था और टट चुका था।
पर उसे इस बात क तस ी थी िक पाँच वष क बीगल या ा म उसने जो कछ भी एकि त िकया था, उसका
अ ययन भी हो चुका ह और उसे दज भी िकया जा चुका ह। उसका जरनल, जंतुिव ान संबंधी िकताब व भूगभ-
िव ान संबंधी िकताब सभी लोग क हाथ म प च चुक थ और अमर थ ।
पर िफर भी उसे संतुि नह िमल पा रही थी। उसक ारा लाए गए नमून म से एक अभी भी न बना आ
था। उ ह ने एक नमूने क पहचान करने क िलए सैकड़ नमून का कई बार अ ययन िकया था।
कर से डारिवन क िम ता इतनी प हो चुक थी िक अब वे अपनी हर परशानी और हर उपल ध को
उनक साथ बाँटते थे। वे रोज सवेर िडसे सन टबल (िजस पर रखकर ािणय क चीर-फाड़ क जाती ह) पर बैठ
जाते थे और एक-एक ाणी क शरीर क चीर-फाड़ करक उसका बारीक से अ ययन िकया करते थे। इसक िलए
वे माइ ो कोप का भी योग करते थे जो उनक पास ही रहता था।
कमजोर शरीर क कारण चीर-फाड़ करना और िफर माइ ो कोप ारा अवलेकन करना किठन काय था पर वे
आठ वष तक लगातार इस काम को करते रह। इस म म उ ह ने हर ाणी का बड़ी बारीक से अ ययन िकया।
उस समय िविभ जाितय को जो नाम िदए गए थे वे साथक नह थे। डारिवन ने लगातार अ ययन क बाद गुण
क आधार पर उ ह वग कत िकया।
यह काम इतना नीरस व उबाऊ था िक कई बार कई स ाह काम करने क प ा एक िन कष िनकल पाता था
और एक वंश क पहचान हो पाती थी पर अचानक िकसी नए प रणाम क कारण पुराना िन कष िनर त करना
पड़ता था और नए िसर से अ ययन ारभ हो जाता था।
इस अ ययन म एक िवशेष बात यह थी िक चा स डारिवन क पास पहले से शरीर-रचना शा , भूगभ-शा
आिद क िड ी नह थी। उ ह ने जो कछ सीखा था वह बीगल या ा क दौरान ही सीखा था और इस कारण जो भी
वग करण हो रहा था वह िन प -भाव से हो रहा था और इस कारण उसम खासा नयापन था।
उनक इस अ ययन क आधार पर वतमान जाितय क वणन पर आधा रत दो मोटी पु तक और िवलु ािणय
क वणन पर आधा रत दो पतली पु तक तैयार हो चुक थ । इनम विणत त य क जाँच कर भी कर चुक थे।
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शांत घर—अनोखी जीवन शैली
काय क दौरान चा स डारिवन ने अपने घर का व प व वातावरण अ ुत बना िलया था। यही कारण था िक
जब चा स क ब े िकसी अ य घर म जाते और देखते िक माइ ो कोप आिद नह ह तो च कते थे और पूछते थे
िक ये अंकल करते या ह।
पर कल िमलाकर उनका घर ‘डाउन’ एक अ यंत शांत व यव थत घर था। वहाँ हर चीज यव थत रहती थी।
चा स क तबीयत कछ िदन ठीक रहती थी और कछ िदन क िलए खराब हो जाती थी। पर घर म हमेशा शांित
बनी रहती थी। कभी भी अफरा-तफरी नह रहती थी।
डाउन म आने से पूव ही ए मा माँ बन चुक थी। जब डारिवन दंपि इस नए ामीण मकान म आए थे तो पहला
िम. होडी-डोडी अथा िविलयम तीन वष का था और एन एक वष क थी। एन क बाद म दस वष क आयु म
मृ यु हो गई थी।
शेष संतान इस नए मकान म ई। स 1843 म हनरीए ा, 1845 म जाज, 1847 म एिलजाबेथ, 1848 म
ांिसस, 1850 म िलयोनाड, 1851 म होरस का ज म आ। डारिवन क दो अ य संतान का बचपन म ही िनधन
भी हो गया था।
नैसिगक स दय का धनी मकान ‘डाउन’ सूय क र मय व स ता दोन से लहलहाता था। इस घर का भाव

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चा स क बेटी हनरीए ा पर बचपन से ही पड़ा और यह भाव बड़ होने पर उसक लेखनी से उड़ला गया। उसने
गरिमय क िदन म कए से पानी िनकालने क दौरान िघरिनय से िनकलती मधुर आवाज से लेकर उस पानी से स चे
जाने वाले पौध , उनम उगने वाले िलली आिद फल का िव तृत वणन िकया। आस-पास क बगीच म पेड़ क
कतार लग थ िजनम दजन मधुम खी क छ े थे और यह ब ी उन छ क आस-पास मंडराती असं य
म खय को िनहारा करती थी। वह देखती िक उसक िपता चा स घास पर लेट रहते थे और उसक शेष भाई-बहन
आस-पास म खेलते-कदते थे। उसक माता आकषक व पहने बैठी रहती और ब क गितिविधय पर नजर
रखती थ ।
ए मा चा स क ित पूरी तरह समिपत थी। उसने अपनी िदनचया ऐसी बना रखी थी िक चा स क पास जब
खाली समय होता तो ए मा उस समय उनका पूरा साथ देती थी। जब चा स बीमार पड़ते तो वह उ ह एक पल क
िलए भी अकला नह छोड़ती थी। वह घंट कम रोशनी म चा स क बगल म बैठी रहती थी। चा स को अ सर
भंयकर िसरदद उठता था। ऐसे म ए मा तरह-तरह क उपाय करती थी तािक उनक तबीयत और न िबगड़ तथा
यादा-से- यादा राहत िमले। समय क साथ चा स का ए मा क ित ेम गाढ़ होता चला गया और पित-प नी क
बीच कभी मन-मुटाव का सवाल ही नह उठा।

िदनचया
डारिवन रोज सुबह ज दी उठ जाते थे। वे ना ते से पूव टहलने क िलए जाते थे। अ सर उनक कोई न कोई
संतान टहलने क दौरान उनक साथ होती थी। उनक ब े िवशेष प से ांिसस उनक साथ टहलने क याद बाद
क काल तक करते रह। उ ह याद था िक उनक महा िपता सरिदय म ातःकाल क लाल सूय से अ यंत भािवत
होते थे और उसक स दय को स मान क साथ िनहारा करते थे। कई बार इस ातःकालीन मण म उनक मुठभेड़
लोमिड़य से भी ई जो उनक घर क आस-पास च र काटा करती थ ।
ना ते क त काल बाद लगभग पौने आठ बजे से वे अपने अ ययन काय म लग जाते थे। उनक िदन का डढ़ घंट
का समय ( ातः आठ बजे से साढ़ नौ बजे तक) उनक िलए अित उपयोगी सािबत होता था।
साढ़ नौ बजे क बाद वे अपने ाइग म म आ जाते थे जहाँ पर वे अपनी रोजाना क डाक देखते थे। कई बार
ए मा उ ह पा रवा रक प पढ़कर सुनाती थ । समय िमलने पर िकसी उप यास का अंश भी सुना देती थ ।
साढ़ दस बजे वे िफर अपने काम पर आ जाते थे। वे दोपहर तक काम करते रहते थे। कई बार उनका कोई
ब ा बीमार होता था और वह यह वचन देता था िक वह शोर नह मचाएगा और चुपचाप सोफ पर लेटा रहगा तो
उसे आने िदया जाता था। कई बार कई ब े एक साथ कागज का टकड़ा माँगने या िचपकाने क िलए टप आिद
माँगने आ जाते थे पर आमतौर पर काम करते समय चा स डारिवन को शांत वातावरण उपल ध कराया जाता था।
दोपहर तक चा स डारिवन को लगता था िक उ ह ने काफ काम कर िलया ह और िफर वे दोपहर क मण पर
िनकल जाते थे। टहलते समय उनक पालतू लोमड़ी भी साथ हो लेती थी। रा ते म वे अपने ीन-हाउस को िनहारा
करते थे। योग हतु लगाए गए पौध को वे बड़ी बारीक से िनहारा करते थे।
वे घर क पास क फटपाथ पर टहलते रहते थे और उनक ब े आस-पास खेलते, दौड़ते, कदते रहते थे। कई
बार डारिवन उनक खेल म भाग भी लेते थे। वे ब े उनक साथ दौड़कर िवशेष फल या िचिड़या को देखने का
यास करते थे।

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एक बार वे घर क पास क घासएकि त कर रह थे। उनक पास ब े खेल रह थे और वे भी खेल छोड़कर घास
एकि त करने लगे। उनम से एक ने नए कार क घास चुनकर दी। इस घास को िकसी अ य ने या खुद चा स ने
कभी नह देखा था। डारिवन अ यंत स ए और उ ह ने राि क भोजन क समय लेट म उस घास को रखा
और उस ब े क तारीफ क ।
दोपहर क टहलने क बाद भोजन होता था। भोजन क बाद चा स डारिवन अपने ाइग म म चले जाते थे जहाँ
पर वे अखबार पढ़ते थे। उनका यही समय गैर-वै ािनक काय क िलए माना जाता था। इससे उ ह अब तक काम
क थकावट व तनाव से राहत िमलती थी। इसक बाद वे बड़ी कस पर बैठ जाते थे। वे इस कस को आव यकता
पड़ने पर आग क नजदीक भी ले आते थे। इस कस म िलखने क िलए बोड भी लगा था िजसे वे ख चकर िलखना
ारभ कर देते थे। डारिवन िनयम से प ाचार करते थे और उनक कई प लंबे-लंबे होते थे। कई बार वे आए ए
प क पीछ अपने प रवार क िकसी सद य को उ र िड टट करा देते थे।
कई बार जब वे अपना प पूरा कर लेते थे तो ए मा को उसे जोर-जोर से पढ़ने को कहते थे। प सुनते-सुनते वे
कई बार सो भी जाते थे पर ए मा सुनाना जारी रखती थ य िक य ही वे कती थ य ही चा स क न द खुल
जाती थी।
शाम साढ़ चार बजे से साढ़ पाँच बजे तक वे िफर से काम म जुट रहते थे। राि क भोजन क बाद वे अपनी
प नी ए मा क साथ बैकगैमन खेल का एक दाँव अव य खेलते थे। इस खेल का प रणाम ( कोर) अव य दज
होता था और दोन ही िखलाड़ी एक-दूसर से आगे रहने का यास करते थे।
चा स डारिवन क तबीयत अ सर खराब रहती थी पर जब भी वह कामचलाऊ होती थी तो वे खुद कोई न कोई
िकताब पढ़ते थे। यिद तबीयत खराब होती थी तो ए मा उ ह जोर-जोर से पढ़कर सुनाया करती थी। कभी-कभी वह
उ ह िपयानो बजाकर भी सुनाया करती थी।
दस बजे वे अपने शयन-क म चले जाते थे पर वे ज दी सो नह पाते थे। अ सर वे िब तर पर घंट बैठ रहते
थे और िकसी वै ािनक सम या पर िचंतन करते रहते थे
कभी-कभी डारिवन प रवार क र तेदार उनसे िमलने क िलए आ जाते थे। कर, लाइल जैसे वै ािनक िम भी
उनसे िमलने आते थे। उनक उपचार क िलए उ ह िकसी नदी या झील म भी ले जाया जाता था और जल ान से
उ ह लाभ होता था। दो-चार बार वे समु तट पर भी मण, िपकिनक आिद पर गए। इस कार क अवसर कम ही
आए जब वे अपने िनवास थान ‘डाउन’ से दूर गए हो।
उनका कोचवान उपरो अवसर पर उ ह ब गी म बैठाकर िनकटतम रलवे टशन तक ले जाता था। वहाँ से वे
आगे जाते थे। वे वै ािनक सिमितय म यादा-से- यादा िशरकत करना चाहते थे पर कर नह पाते थे। जब भी वे
िकसी वै ािनक सभा म जाते तो नए सद य को नह पहचान पाते थे और पुरान को जब देखते तो ऐसा लगता
मानो वे और बूढ़ हो गए ह ।
45 वष क आयु म वे पूर गंजे हो गए थे। िसफ उनक चांद क िकनार बाल थे पर वे काफ घने थे। उनक
जुल़्फ काफ घनी थ । वे ऊचा कॉलरदार कोट जैसा पहनते थे िजसक अंदर वे टकोट भी होती थी। उनक पहनावे
से ताजेपन व ामीणपन दोन क झलक िमलती थी। लोग उ ह गाँव का भ पु ष मानते थे। सचमुच उ ह ामीण
जीवन से अथाह ेम था और जब भी वे बाहर से अपने घर लौटते थे तो काफ स ता और राहत क अनुभूित
करते थे।

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उनका बनाकल (एक कार क छोट ािणय का समूह) क िव ेषण का काय स 1854 क गरिमय म पूरा
हो गया था। इसम पूर आठ वष लग गए थे। इन ािणय क वणन पर आधा रत पु तक क दो खंड तैयार हो चुक
थे। इसक साथ ही इन ािणय क दस हजार नमूने घर से बाहर िनकाले गए। अपने काय क गित का वणन करते
ए चा स ने कर को िलखा िक अब वे अपने जाितय पर दज पुराने नो स देखगे।
इस कार यह कहा जा सकता ह िक डाउन थत चा स का जीवन म त व शाही कित का था। उसम न तो
कोई भागमभाग थी और न ही औपचा रकता। यही कारण था िक िबना िकसी औपचा रक िव िव ालयी िश ा क
उ ह ने पूवा ह से त ए िबना लगातार नए िसर से नई सोच क सहार काम िकया। उनक िम व शंसक वयं
प रणाम िनकालते थे।
इस अनोखे जीवन को उनक प रवारीजन भी लगातार याद करते रहते थे। बाद क काल म चा स क पोती वेन
डारिवन रवरट अपने सं मरण म बताती थी िक उसे अब भी ऐसा लगता ह िक उस मकान ‘डाउन’ का जीवन
सचमुच िकतना खुशहाल था। वह याद करती थी िक वहाँ पर माता-िपता और संतान क बीच संबंध सचमुच पूण
था। उसक चाचा लोग (डारिवन क पाँच बेट थे) म इस मकान का भाव दीघकाल तक रहा। बाद क काल म भी
डारिवन क प रवार क सद य आम जीवन से हटकर जीवन िबताते रह।
अपने जीवन काल म भी डारिवन को महसूस होने लगा था िक उनका जीवन सचमुच अनोखा ह और एक बार
उ ह ने इसका उ ेख कर को िलखे अपने प म िकया भी था। उ ह ने िलखा था िक सभी लोग उनसे कहते थे
िक उनका जीवन िखले ए फल क तरह सुंदर ह। उ ह ने यह भी िलखा िक शायद यह अित यो ह य िक
तुमने ऐसा कभी नह कहा।
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नए िस ांत का अचानक खुलासा
िसतंबर 1854 से चा स ने प - यवहार तेज कर िदया हालाँिकसाथ म अ य अनुसंधान काय भी चल रहा था।
उ ह ने अ ययन भी तेज कर िदया था और अब वे एक साथ एक दजन वै ािनक-सम या पर िचंतन कर रह थे।
अपने काय क योजना क बार म उ ेख करते ए चा स ने कर को प िलखा िक अब तक जीवो पि क
िस ांत क बार म उनक जो िवचार उभर ह उनका एक क ा िच ा कािशत कर िदया जाना चािहए।
पर कर व लाइल दोन ने उ ह ज दी काशन से रोका। उ ह ने सलाह दी िक डारिवन को पूरी पु तक ही
कािशत करनी चािहए, िजसम इन िवचार का भी समावेश हो। उनक यह राय थी िक पु तक तैयार करने का
काय तेजी से होना चािहए।
इसी बीच स 1857 आ गया। डारिवन ने अपने अ ययन और िवचार को दज करने क िलए नोट-बुक खोलने
का जो िसलिसला ारभ िकया था उसक बीसव वषगाँठ थी। अब तब उनक नोटबुक म अथाह साम ी और
आँकड़ थे जो िविभ िवषय जीव-िव ान, भूगभ-िव ान, वन पित-शा सिहत िव ान क अ य आधा दजन
उपिवषय से संबंिधत थे।
बीसव वषगाँठ क अवसर पर जो समारोह आ उसम िम , वै ािनक से ेरणा पाकर डारिवन ने पु तक-लेखन
का काय ारभ िकया पर वह तेज नह हो सका य िक स यापन क िलए बीच-बीच म जाँच क आव यकता पड़

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रही थी।
स 1858 का ारभ आ गया था और अभी मा यारह अ याय ही तैयार हो पाए थे। काय क िवशालता और
गित को देखकर चा स ने अपने िम से िज िकया िक यह िवषय अ यंत लंबा ह और इसे पूरा करने म अभी
उसे दो वष तो और लग ही जाएँगे। उनक मन म और भी शंकाएँ उमड़ रही थ और कभी-कभी यह भी लगता था
िक वे इस अंतहीन िवषय पर पु तक को ेस म प चा भी पाएँगे या नह ।
तभी 18 जून, 1858 आया और उस िदन चा स ने अपनी डाक देखी। उसम मलाया म रह रह अं ेज कित-
िव ानी का एक लेख था िजसक साथ चा स का प - यवहार चल रहा था।
उस लेख म विणत था िक ािणय क मूल जाित से प रवतन क वृि लगातार चलती ही रहती ह। जब
डारिवन ने यह लेख पढ़ा तो वे दंग रह गए। उनक अब तक िवकिसत िस ांत का सार उस लेख म था। चा स ने
स 1844 म जो खाका तैयार िकया था वह पूरा का पूरा इस लेख म समाया आ था। उ ह ने अपनी िकताब क जो
अठारह अ याय तैयार िकए थे, उनक शीषक इस लेख म उ ेिखत थे।
कसा संयोग था। सैकड़ हजार साल से दुिनया अपनी ऱ तार से चलती जा रही थी। सभी लोग उसे िविवध
तरीक से देख व िनहार रह थे। िकसी क मन म इस तक-संगत िवकास क बात नह आई और आई तो दो लोग
क मन म एक साथ आई और वह भी उन दो लोग क मन म जो दुिनया क अलग-अलग िसर पर बैठ थे।
डारिवन इस संयोग से इस कदर त ध थे िक उ ह ने तुरत लाइल को प िलखा िक अब तक ई देर उ ह कह
का नह छोड़गी। यिद वालेस का िस ांत कािशत हो गया तो डारिवन क िस ांत क मौिलकता चकनाचूर हो
जाएगी। यही नह , उनका वृहद ंथ भी अपना मू य खो बैठगा। अभी तक जो मेहनत उ ह ने इस िस ांत को
िवकिसत करने म क ह वह जाया हो जाएगी।
वालेस ने अपने िस ांत क काशन का कोई उ ेख नह िकया था पर डारिवन ने उसे प म िलखा िक वह
शी ही इस लेख को एक-दो पि का म भेज दे। साथ ही लाइल को िलखे प म डारिवन ने आशा य क
िक वालेस ने इस िस ांत का जो खाका ख चा ह वह वीकाय होगा। जो आपक राय होगी, उसे ही म अपनी राय
मान कर वालेस को िलख दूँगा।
अब तक क घटना म से कर को भी अवगत कराया गया। डारिवन अब अपने दोन िम लाइल और कर
से सलाह क अपे ा कर रहा थ। उनका स 1844 म बना खाका अ कािशत पड़ा था। हाल ही म उ ह ने एक
अमे रक वन पित-शा ी आसा े को एक प िलखा था िजसम अपने िस ांत क चंद िबंदु का वणन था, वह
भी काशन क िलए नह भेजा गया था।
डारिवन को लग रहा था िक चूँिक वालेस ने अब अपना िस ांत उ ह िलखकर भेज िदया ह अतः अब यिद वे
अपना िस ांत सामने रखगे तो कोई कह सकता ह िक यह इसी क नकल ह।
खीझे ए डारिवन ने यह भी कह िदया िक यिद िकसी ने ऐसा कहा तो वे अपनी अब तक क तैयार पु तक जला
दगे। डारिवन क मनोदशा को भाँपकर लाइल और कर त काल कायवाही म जुट गए। कर ने कहा िक वे उसे
स 1844 का खाका व आसा े को िलखे प क ित भेज द। डारिवन ने उनक ितयाँ तैयार करक अपने नौकर
क हाथ िभजवा भी दी।
पर बाधा ने डारिवन का पीछा कहाँ छोड़ा था। उ ह िदन पूर गाँव म कारलेट बुखार फल गया और ‘डाउन’

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भी उसक चपेट म आ गया। 28 जून को डारिवन क सबसे छोटी संतान जो मा अठारह माह क थी और
िवकलांगता से पीिड़त थी इस बुखार को नह झेल पाई और चल बसी।
यही नह , हनरी ए ा तथा देख-रख करने वाली दो आयाएँ भी बीमार पड़ गई और उनम भी इस रोग क ल ण
िदखलाई देने लगे। प रवार क अ य ब को सुर ा हतु अ य थान पर भेजा गया। वे घिड़याँ सचमुच भयावह
थ।
पर इन सबक बावजूद लाइल और कर ने तैयारी कर ली िक डारिवन क िस ांत व वालेस क काम का एक
साथ तुितकरण िकया जाए। उ ह ने िलनेन सोसाइटी क सम ऐसा करने का िनणय िकया। इसक अलावा उ ह ने
यह भी तय िकया िक अपने िस ांत क साथ वालेस का काम भी कािशत करा िदया जाए। उ ह ने अपना सं मरण
िव तार से तैयार िकया िजसम विणत था िक उ ह ने स 1844 म इस िस ांत को ितपािदत कर िलया था।
1 जुलाई को िलनेन सोसाइटी क बैठक ारभ ई। चा स क साथ लाइल और कर भी उप थत थे। उ ह ने
सोसाइटी क उप थत फलो सद य से आ ह िकया िक वे इस अभूतपूव िवषय को यान से सुन य िक इसक
भाव दीघगामी ह गे।
सचमुच डारिवन और वालेस क काम क तुित पूर िव को झकझोर ने वाली थी। ारभ म सभी सद य
अपनी उ ेजना को रोककर िदल थामे बैठ रह और िकसी तरह सुनते रह पर य ही व य पूरा आ एकदम
शांित छा गई। िकसी क भी चचा करने क िह मत नह ई।
कर ने अगले िदन डारिवन को प म िलखा िक शायद िवषय इतना नया था िक पुराने िवचार क लोग क
िलए इस पर बहस करने क िलए अपने आपको तक तथा त य से लैस करना संभव नह था।
संयोगवश उपरो बैठक एक अ य वै ािनक जाज बॉथम क शोध-प पर चचा करने क िलए बुलाई गई थी पर
नए काम क अ ुत तुित क च र म अवाक रह गए बॉथम ने अपना शोध-प वापस ले िलया। उसक काम
का सारा आधार ही उलट-पुलट हो गया।
सिमित क अ य सद य भी बेचैन हो गए। उ ह लगने लगा िक िव क िव ान क अब तक क न व सरक
चुक ह, अब तो हर िवषय क बार म नए िसर से सोचना पड़गा। उधर डारिवन काफ संतु थे। उ ह लगा िक
वालेस क काम क साथ उनक काम क तुित जोरदार रही। उ ह ने तय िकया िक वालेस क लेख क साथ वे
अपना काम प रिश क प म लगा दगे।
उधर घरलू मोच पर भी राहत िमल चुक थी। ारभ म लग रहा था िक हनरी ए ा व दोन आयाएँ कारलेट
बुखार क चपेट म ह पर बाद म पता लगा िक िसफ एक आया ही चपेट म ह और उसक थित म भी सुधार आ
रहा था। शेष सभी ब े भी सुरि त थे।
डारिवन को अब िव ाम क स त आव यकता थी। वे एक िपकिनक थल पर प चे जहाँ पर उ ह ने अब तक
क वीकत िस ांत का सार तैयार करना ारभ कर िदया। यह एक लेख क प म था और योजना थी िक यह
अनुमािनत 30 पृ कालेख िलनेन सोसाइटी क पि का म कािशत हो जाएगा।
पर जब िलखना ारभ िकया तो लेख बढ़ता चला गया। यह पु तक क आकार का होने लगा। लाइल क कहने
पर काशक मर ने इसे िबना देखे ही पु तक क प म कािशत करना वीकार कर िलया।
डारिवन िलखते चले गए। बीच-बीच म उ ह कई बार भयंकर िसरदद आ। उनका पेट भी खराब आ पर वे
क नह । 13 महीने क अथक प र म क प ा पांडिलिप तैयार हो गई।

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चा स डारिवन ने इसका शीषक तय िकया ‘‘एन ए टर ट ऑफ एन एसे ऑन ओ रिजन ऑफ पेसीज एंड
वेराइटीज ू नेचरल सेले शन।’’ पर काशक मर को लगा िक यह शीषक ब त लंबा ह और चल नह पाएगा।
लेखक और काशक क बीच तक-िवतक ारभ आ और इस च र म मर ने जो वयं भूगभ-शा ी था, पूरी
पांडिलिप पढ़ डाली। इसक साथ ही वह बुरी तरह डर गया और उसने डारिवन को मनाना ारभ िकया िक वह इस
िवषय को याग दे और कबूतर पर अब तक क अवलोकन पर पु तक तैयार कर दे। उसने यह भी िवक प िदया
िक इस पु तक क साथ वह अपने सामा य िवचार का संि प भी जोड़ दे जोिक कािशत हो जाएगा।
मर ने ब त समझाया िक लोग कबूतर म खासी िदलच पी रखते ह और वह खूब िबकगी पर डारिवन नह माने।
उ ह ने शीषक तो छोटा कर िदया पर िवषय नह बदला। य बदलते? आिखर सारा जीवन उसम लगा चुक थे।
आिखर काशक को हार माननी पड़ी। काशन का काय ारभ आ। डारिवन का हाजमा िबगड़ता रहा पर
पू्रफ पढ़ जाते रह। वे इस कदर कमजोर हो चुक थे िक उनक श ब जैसी होती गई पर पु तक का प
िनखरता गया।
आिखर दुिनया क महानत व अिधकतम भावशाली पु तक तैयार हो ही गई। 24 नवंबर, 1859 को
‘‘ओ रिजन ऑफ पेसीज’’ शीषक कािशत हो गई। पहले सं करण म बारह सौ पचास ितयाँ छपी थ और वे
पहले ही िदन सारी क सारी िबक गई। काशक ने दूसर सं करण क प म तीन हजार का आदेश त काल ेस
को दे िदया।
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घोर िवरोध ारभ
पाठक क हाथ म पु तक आते ही उथल-पुथल ारभ हो गई। अभी तक लोग का मानना था िक ई र ने
ािणय को िजस प म बनाया था वही प चल रहा ह। जो कछ आ ई र ने िकया। अपने आप या
प र थितवश कछ नह आ।
‘‘ ाटरली र यू’’ शीषक पि का ने डारिवन क िस ांत क आलोचना करते ए िलखा िक यह िस ांत ई र
क महानता व पूणता को खंिडत करता ह। उ ह ने आरोप लगाए िक डारिवन ने ऊटपँटाग त य एकि त करक
क पना व संभावना का एक ढाँचा खड़ा कर िदया ह। इस तरह तो आज जो फल ह कल वे भी िवकिसत होकर
ाणी और िफर मानव बन जाएँगे।
एथेनेयम ने इस िस ांत पर हार िकया िक मानव क पूवज बंदर थे। यादातर वै ािनक डारिवन का िवरोध कर
रह थे। वे यह मानने को तैयार नह थे िक सार ाणी (मानव सिहत) एक मूल से िवकिसत ए ह।
पर टाइ स पि का अपवाद सािबत ई। उसने िन प भाव से एक बड़ा लेख िलखा िजसम िलखा िक कित-
िव ािनय ने बीस वष से जो शोध िकया ह उसका प रणाम यह ह िक कित म समय और प र थितय क अनुसार
प रवतन होते ह। इन प रवतन को देखा और समझा जा सकता ह।
मजे क बात यह थी िक टाइ स म छपे इस एकमा िन प लेख म लेखक का नाम नह छपा था। डारिवन को

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शक था िक थॉमस ह सली ने यह लेख िलखा होगा य िक उनक ही पास इस ेणी का ान व लेखन शैली ह।
डारिवन का शक सही िनकला। ितभावा जीव-िव ानी ह सली ारभ से जीवन म छाई भारी िविवधता क बार
म अब तक क मा यता से असंतु थे। इस नए िस ांत क बार म पढ़कर और जानकर उ ह लगा िक अब
तक क चम कारी िस ांत कपोल-क पना ह और इसक सामने नह ठहरते ह। उ ह यह िस ांत अंधेर म काश
क तेज िकरण लगा।
ह सली ने डारिवन को एक ेरकप भी िलखा िजसम उ ह ने कहा िक आपने िचंतनशील लोग को अनुगृहीत
िकया ह। साथ आगाह करते ए सां वना भी दी िक भ कने वाले क से यादा न डर य िक आपक अनेक िम
साथ भी दगे। आप िवरोध का मुकाबला करने क ठान ल।
जून 1860 क अंत म ऑ सफोड म ि िटश एसोिसएशन फॉर िद एडवांसमट ऑफ साइस क बैठक आयोिजत
ई। 28 जून को बृह पितवार क िदन डारिवन क िस ांत पर ती तम हार करने वाले दो शोध-प उसम तुत
िकए गए।
ारभ म ह सली ने इसम धैय रखा और बहस नह होने दी पर य ही दूसर व ा सर रचड ओवन ने घोषणा
क िक गो र ा क म त क और मनु य क म त क म उतना ही अंतर ह िजतना िक उ तम और िन न ाणी क
म त क म होता ह तो ह सली ने इसे काट िदया। उ ह ने ओवन को चुनौती दे डाली िक वे इस व य को िनर त
करने क िलए शी ही और पया माण तुत करगे।
शु वार को इस िवषय पर शांित रही पर शिनवार को यूयाक िव िव ालय क अ य जॉन पर ने जब यूरोप
क बौ क िवकास पर बोलना ारभ िकया तो ऑ सफोड क िबशप सामुवेल िवलबर फोस भी आ गए और चच
तथा िव ान क बीच तनाव क थित उ प हो गई।
आगे बैठक जब ारभ होने को ई तो क म भारी भीड़ उमड़ पड़ी और आयोजक को बड़ा सभा-क लेना
पड़ा। उस बड़ क म लगभग सात सौ पु ष - य क भीड़ ठसी ई थी और यादातर मिहलाएँ प मी िकनार
पर िखड़क क पास जमी ई थ ।
डरपर क या यान क समा पर सभा क अ य ता कर रह हसलो को घोषणा करनी पड़ी िक उ ह लोग
को अपनी बात रखने क अनुमित दी जाएगी जो वैध वै ािनक-तक तुत कर पाएँग।े पर लोग क उ ेजना क
बीच यह िनदश सुना-अनसुना हो गया।
एक आदमी भागकर लैक-बोड पर प चा और उसने दो िबंदु बना िदए। एक को मनु य बताया और दूसर को
बंदर। तभी अचानक ातक तर क छा का झुंड बंदर-बंदर िच ाने लगा। उस य को लैक-बोड से
हटाया गया।
हसलो ने अपना िनदश पुनः दोहराया तो इस बार भीड़ ने िबशप को बोलने का अवसर देने क माँग क । िबशप
न िसफ धमाचाय थे वर गिणत क ोफसर भी थे। उनसे उ मीद थी िक वे डारिवन का डटकर मुकाबला करगे।
िबशप ने आधे घंट का या यान िदया और डारिवन को उनक िस ांत क िलए बुरी तरह लताड़ा। उ ह ने
ह सली को भी लपेटा जो उनक पास ही बैठ थे और िध ारते ए सुनाया िक या तु हार दादा या उनक दादा
वनमानुष थे।
िबशप को भारी समथन िमला। मिहला ने सफद माल उड़ाकर िबशप का समथन िकया। हसलो को बार-

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बार यव था बनाए रखने का िनदश देना पड़ा। पहले च म िबशप िन त प से भारी पड़ गए।
पर ह सली कहाँ पीछ रहने वाले थे। उ ह ने अपने उ र म कहा िक ई र ने उ ह वै ािनक बनाया ह और वे
इसक िलए उसक आभारी ह। उ ह ने इस बात पर दुःख य िकया िक िबशप अ ानी ह। अमे रक व ा िबलवट
फोस क तक क ध याँ उड़ाते ए उ ह ने ने यह भी कहा िक वनमानुष को अपना पूवज मानते ए उ ह कोई
शम नह महसूस हो रही ह। वनमानुष तो भोला होता ह। वह िबशप से तो बेहतर ही होता ह जो िबना जानका रय व
त य क एक वै ािनक िवषय पर कतक कर रह ह।
पर लगा िक भीड़ को ह सली का कटा समझ म नह आया। पर काफ शोर गुल होने लगा। कल िमलाकर
लोग को यह लगा। िक धमाचाय का अपमान हो रहा ह और वे पैर पटक-पटककर इसका िवरोध करने लगे।
भयानक य देखकर एक मिहला लेडी ू टर बेहोश हो गई। एडिमरल िफ जरॉय जो बीगल जहाज क क ान
भी रह थे, ने हवा म बाइिबल लहराई। तरह-तरह क नार लगने लगे। लोग आपसी बहस म उलझ गए। कर ने
कहा िक उसका खून खौल रहा ह।
इस घटना का यौरा िलखते ए मैकिमलन पि का म एक अनाम लेखक ने कहा उ ह ने ऐसी घृणा फलाने
वाली बैठक कभी नह देखी थी। उनका यह भी मानना था िक जो लोग डारिवन का प ले रह थे उनक िखलाफ
घृणा तेजी से जोर पकड़ रही थी।
उस घड़ी क साथ ही िव ान व धम क बीच तकरार एक नए िसर से ारभ हो गई।
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महा जीवो पि िस ांत
अब लोग यह जानने का यास करने लगे िक आिखर यह जीवो पि िस ांत ह या? वा तव म चा स डारिवन
ने जो पु तक तैयार क थी उसम िविभ जाितय क बार म त य मा थे और कोई प िन कष भी नह
िनकाला गया था। धम पर हार करने क तो क पना भी नह क गई थी। वह पु तक िवचार से पूण, वै ािनक
तथा संयिमत थी।
पर इसक बाद म जो िवचार उभर और इसक दीघगामी प रणाम क बार म जो क पनाएँ क गई वे अित
िव फोटक थ । अब तक क मा यता से े रत लोग डारिवन को िव ोही मानते ए घृणा का पा बना रह थे,
हालाँिक कछ लोग ऐसे भी थे जो डारिवन क इस िस ांत से े रत हो रह थे।
डारिवन का िस ांत िन न त य पर आधा रत था—
1. ािणय क तादाद यािमतीय म म बढ़ती ह। यिद ाणी क एक जोड़ को वतं छोड़ िदया जाए तो वह
इतनी संतान और िफर उनक संतान उ प करता रहगा िक पूरी पृ वी उ ह से अथा उस जाित से भर जाएगी।
2. पर पृ वी पर खा पदाथ व अ य अिनवाय आव यकताएँ उस अनुपात म नह बढ़ पाती ह। वा तव म एक
थित ऐसी आती ह जबिक भोजन व अ य अिनवाय चीज कम पड़ने लगती ह। पृ वी क संसाधन ज म ले सकने
वाले ािणय क तुलना म अ य प ह।

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3. अतः एक थित आती ह जब संसाधन क िलए ािणय को आपस म पहले ित पधा और िफर संघष
करना पड़ता ह। यह संघष जीवन मरण का होता ह और जो सश त होता ह वह बचता ह और शेष मार जाते ह।
4. जो ाणी अपने आपको प र थितय क अनुकल बना लेते ह और चतुर िशकारी होते ह या सबसे मजबूत
यो ा होते ह या अपने श ु को चकमा देकर भाग जाते ह, िछप जाते ह वे ही बच पाते ह और शेष न हो जाते
ह।
चा स ने इसे ाकितक वरण (नेचुरल सेले शन) क सं ा दी और कहा जो े तम होगा उसी का अ त व
बच पाएगा। इस िस ांत क पीछ त य भी थे और तक भी। सभी जानते थे िक जनन क ऱ तार तेजी होती ह।
यिद यह िनबाध प से जारी रहगी तो पृ वी छोटी पड़ जाएगी। यहाँ तक िक िजन ािणय क जनन दर धीमी
होती ह वे भी चंद वष या दशक म दुगुने हो जाते ह।
इससे पहले लीिनयस ने बताया था िक हर पौधे से यिद साल म दो बीज भी उ प ह और हर बीज से पौधा
ज म ले तो पूरी पृ वी पर उसी पौधे क कतार लगी िदखगी। हाथी िजसक जनन दर धीमी होती ह यिद उसे
िनबाध छोड़ िदया जाए तो साढ़ सात सौ वष म पृ वी पर हाथी-हाथी िदखगे।
डारिवन ने िसफ सै ांितक गणनाएँ ही नह तुत क । उ ह ने अमे रका क भूिम से खोदकर िनकाला गया घोड़
का दाँत िनकाला और िदखाया िक एक समय मे अमे रका क धरती से घोड़ा िवलु हो चुका था। यह दोबारा तब
आया जब यूरोपीय वासी इसे अपने साथ लाए थे। यही नह , अजिटना म भी ऐसा ही देखने को िमला। चरने वाले
पालतू जानवर तब दोबारा आए जब यूरोपीय वासी उ ह वहाँ अपने साथ लेकर प चे।
यही नह , सुरि त वातावरण म अमे रका म घोड़ क सं या शू य से लाख हो गई। यही थित नई लगाई गई
वन पितय क ई थी जबिक उनक ज म दर बढ़ाने क िलए कोई िवशेष उपाय नह िकए गए थे। िसफ उनक
िवनाश को हतो सािहत िकया गया था।
पर साथ ही यह भी था िक पृ वी पर उपरो िस ांत क ज रए एक अ ुत संतुलन बना रहता ह। िकसी भी
जाित चाह वह मनु य हो या पौधा, सरीसृप हो या क ड़ा-मकोड़ा उसका आिधप य नह हो पाता ह। कित म तेजी
से जनन भी होता ह और एक सत यु भी जारी रहता ह।
डारिवन क अनुसार पृ वी म अनेक घटनाएँ लगातार चलती रहती ह। कछ चीज क चुरता हो जाती ह तो कछ
का भारी अभाव। कछ िवलु ही हो जाती ह तो कछ प रवितत हो जाती ह। इस सुंदर व च िधयाने वाली कित म
लगातार िनमम संहार भी होता रहता ह। सुंदर गीत सुनाने वाली िचिड़याँ क ड़-मकोड़ को खाकर या बीज को
पचाकर िनरतर जीवन न करती रहती ह। उनक अंड या ब को दूसर िशकारी ाणी जैसे साँप आिद खा जाते
ह।
उ ह ने अपने िस ांत को आम आदमी क गले उतारने क िलए अनेक उदाहरण िदए। उ ह ने कहा िक यह संघष
अनेक प म देखा व समझा जा सकता ह। रिग तान क िकनार खड़ा पेड़ अपने आप को लगातार सूखने से
बचाता ह। इसी तरह एक पौधे से एक हजार बीज िनकलते ह पर उनम से एक ही वृ को ज म दे पाता ह। इस
म म बीज को अनेक कार से संघष करना पड़ता ह। कछ को जमीन नह िमल पाती ह य िक आस-पास क
पौधे जमीन को घेर रहते ह। कछ एक ही डाल म उगते ह पर कछ को िचिड़याँ खा जाती ह।
उ ह ने अपने बगीचे म अनेक योग भी िकए। एक बार बसंत क मौसम म उ ह ने तीन फ ट लंबे और दो फ ट

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चौड़ भूिम क टकड़ पर खुद खुदाई क और उसे साफ भी िकया। इसक बाद उ ह ने देखा िक उस जमीन म तीन
सौ स ावन क पल उग थ । वे रोज उस जमीन का अवलोकन करते थे और उ ह ने पाया िक उनम से दो सौ
िप ानवे क पल न हो गई। उनम से यादातर क ड़ ारा न ई थ । उ ह ने प रणाम िनकाला िक उन
अनचाही जंगली खरपतवार को भी अ त व क िलए संघष करना पड़ा और इस म म उनम से 83 ितशत
अपना अ त व खो बैठ ।
डारिवन ने पं ह कार क बीज बोए। उस थान पर अ य पौधे भी थे। उन बीज से जो पौधे िनकले उ ह आस-
पास क पेड़-पौध से अ त व हतु संघष करना पड़ा। हालाँिक सभी बीज से पौधे िनकले पर आस-पास क पेड़-
पौध से संघष म उनम से एक भी बीज उ प करने लायक थित म नह आ पाया।
डारिवन ने उपरो कार क योग अपने डाउन मकान क अलावा अ य थान पर भी करवाए। पास म थत
थान सर म उ ह ने एक मैदान को चार तरफ से िघरवाया तािक उसम जानवर न वेश कर सक। इसक बाद
उ ह ने देखा िक वहाँ पर तरह-तरह क वन पितयाँ उगने लग । उ ह ने अनेक जगह पर देखा िक बड़ पेड़ क
आस-पास दूसर पौधे उगते तो ह पर ज दी ही न हो जाते ह।
डारिवन ने िलखा िक हर पौधे को अपना अ त व बचाना होता ह। एक वग गज क इलाक म ही उसक अनेक
कार क और तमाम श ु होते ह। यही कारण ह िक अनेक वन पितयाँ और ाणी िवलु हो जाते ह।
उ ह ने म खय पर भी अनुसंधान िकया। उ ह ने पाया िक म खय को चूह नुकसान प चाते ह। चूह को
िब याँ खा जाती ह। इस तरह म खय क सं या चूह पर और चूह क सं या िब य पर िनभर करती ह।
डारिवन ने यह भी प िकया संघष क अंदर भी संघष चलता रहता ह। एक ही े म रह रह एक ही जाित
क ािणय म यह संघष अित गंभीर होता ह। ये लोग एक ही कार क भोजन को खाते ह और एक ही कार क
खतर का हर समय सामना करते ह। उ ह ने उदाहरण िदए िक कछ जगह पर एक कार क झाड़ी दूसर कार क
झाड़ी को न कर देती ह। उ ह ने स का उदाहरण िदया और कहा िक जब अ य एिशयाई देश से काकरोच
आए तो उ ह ने थानीय काकरोच को भगा िदया। ऑ िलया म जब यूरोपीय लोग अपने यहाँ क मधु म खयाँ ले
गए तो उन मधुम खय ने थानीय मधु-म खय को भगा िदया।
उ ह ने कारण ढढ़ने का भी यास िकया िक आिखर कसे एक जाित दूसरी पर हावी हो जाती ह। य एक जीत
जाता ह और दूसरा हार कर न हो जाता ह या भाग जाता ह। उ ह ने कहा िक हर ाणी को खाने क िलए भोजन
और रहने क िलए थान चािहए। उ ह उन ािणय से बचाव क िलए जगह चािहए जो मारना चाहते ह और उन
ािणय का इलाका चािहए जहाँ उनक िशकार ाणी या वन पित उपल ध होते ह। इस कार क जेदार और क जा
करने वाले तथा आ मणकारी और बचाव करने वाले क बीच जंग चलती ह।
उ ह ने प िकया िक हर ाणी एक काल म अपनी तेजी से वृ करता से ह और एक काल म उसका तेजी
से िवनाश होता ह।
डारिवन ने यह भी सािबत िकया िक हर ाणी उसी कार एक-दूसर से िभ ह िजस कार मनु य एक-दूसर से
िभ होते ह। उ ह ने इसका कारण जानने क कोिशश क और तरह-तरह क योग ारभ िकए।
q

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योग का िसलिसला जारी
िजस समय चा स डारिवन योग करक यह जानना चाह रह थे िक ािणय म िविवधता य और कसे होती ह
उसी समय ऑ टरिलया क एक पादरी अबोर ेगेर मडल अपने बगीचे म मटर बो कर तरह-तरह क योग कर रह
थे। उ ह ने मटर क वण संकर जाितयाँ उ प क िजससे भिव य म जीन क प रक पना िवकिसत ई और
अनुवांिशक का िस ांत ितपािदत आ। इस तरह एक नया िवषय ही ारभ हो गया।
मडल ारा िकया गया काय स 1866 म कािशत आ और उससे छह वष पूव ही डारिवन क पु तक
‘ओ रिजन ऑफ पेसीज’ लोग क हाथ म आ चुक थी। उ ह िदन डारिवन भी वंशानुगत गुण का अ ययन
करने म जुट ए थे। उ ह ने भी हरी और पीले रग क मटर िमलाकर बोई और प रणाम क प म पीली मटर ा
क । उसक बाद उ ह ने िवपरीत योग िकए और हर रग क मटर ा क । पर डारिवन क गिणत म कोई खास
िदलच पी नह थी और उ ह प रणाम का कोई िवशेष मह व समझ म नह आया तथा उ ह ने यह अनुसंधान छोड़
िदया। उधर, मडल का अनुसंधान भी लोकि य नह हो पाया और कागज , फाइल म दबा रहा। बाद म स 1900
म तीन अलग-अलग वै ािनक ने इसे वतं प से ितपािदत िकया और तब यह लोकि य आ।
पर डारिवन अपने िस ांत को सश बनाने क म म आगे बढ़ते गए। उ ह ने कहा िक अगर सभी ाणी एक
जैसे ह गे तो उनम से िकसका अ त व बचेगा और िकसका िमटगा यह मा संयोग पर िनभर करगा। पर ऐसा नह

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होता ह। कछ ाणी अ यंत सश होते ह और कछ अ यंत चपल। कछ अ यंत कठोर होते ह जैसे कछआ और
कछ अ यंत धूत जैसे लोमड़ी।
डारिवन ने आगे अ ययन ारा पाया िक प ा खाने वाले क ड़ हर होते ह और छाल खाने वाले भूर। बफ ले
इलाक क कछ ाणी बफ जैसे सफद रग क होते ह। उन सभी ािणय क बचने क संभावना काफ यादा होती
ह। इनक संतान भी इन गुण का लाभ उठाती रहती ह। इसी तरह क थित पौध म भी देखी जाती ह। िजनक गुण
सवािधक अनुकल होते ह वह सबसे मजबूत होता ह और उसक अ त व क बचने क संभावना सबसे अिधक
होती ह।
यह म पीिढ़य दर पीढ़ी और युग -युग तक चलता रहा और इस म म बचे ािणय ने अपने आपको
सुंदरतापूवक और सफलतापूवक कित क अनुकल ढाल िलया। इस म म उ ह ने मधुम खय और फल का
उदाहरण िदया जो अपनी वंश-वृ क िलए एक-दूसर पर िनभर ह और अपने आपको एक-दूसर क अनुकल
ढालते रह ह।
उ ह ने पि य क पंख क िविवधता को दिशत करक सािबत िकया िक ये उनक िलए अनुकल बने ह और यह
अनुकलता समय क साथ िवकिसत ई ह। इस कार क गुण छोट-छोट घ घ से लेकर बीज , पि य क च च ,
फर आिद म िवकिसत ए।
अपने िस ांत क स यापन क िलए डारिवन िविभ बगीच , ऑिकड आिद का अवलोकन करते रह। समय क
साथ उ ह िव ास होता गया िक वणसंकर जाितय क गुण बेहतर होते ह और उनक अ त व क र ा क
संभावना अिधकतम होती ह। आिकड़ क अ ययन क प ा उ ह ने ‘‘िद फिटलाइजेशन ऑफ आिक स’’
शीषक पु तक िलख डाली जो स 1862 म कािशत ई।
उपरो पु तक देखकर लोग चा स डारिवन का लोहा मानने लगे। यह पु तक अ यंत प व सटीक त य से
प रपूण थी और इसम विणत े ण प रणाम तथा िनकाले गए िन कष लंबे समय तक माने जाते रह और आधुिनक
िव ान क सुिवधा से लैस िवशेष भी उसे चुनौती नह दे पाए।
योग क म को अ य लोग का सहयोग भी िमला। मडागा कर म रहने वाले एक य ने एक बड़ा और
अित सुंदर फल डारिवन को भेजा। यह ष कोणीय फल तार जैसा चमक ला था और इसका रग बफ जैसा सफद
था। इसक ने टार नली साढ़ यारह इच लंबी थी और िसफ अंत क डढ़ इच म ने टार भरा होता था।
डारिवन ने माना िक ऐसा कोई क ड़ा अव य होता होगा िजसका डक ( ोब) इतना लंबा होता होगा। जब यह
बात क ट-िव ािनय ने सुनी तो उ ह ने उपहास िकया। उ ह ने कहा िक ऐसा कोई क ड़ा होता ही नह ह।
पर डारिवन धैयपूवक अनुसंधान करते रह। उ ह ने इस आिकड को अनेक कार से काटा और जाँचा। उ ह ने
प ा िन कष िनकाला िक इस फल का अ त व इसीिलए बचा ह य िक ऐसा क ड़ा िजसका डक ( ोब) साढ़
दस इच लंबा ह इसक जनन म सहायक भूिमका िनभाता ह।
आिखर ऐसा क ड़ा कछ समय बाद िमल ही गया। उसका डक कडली जैसा था और इस फल पर बैठकर वह
पूरा साढ़ दस इच लंबा हो जाता था। इस तरह इस अ ुत फल ‘‘ टार ऑफ बैथलहम’’ क गु थी सुलझी।
इसी तरह का अ वेषण बकट-आिकड क मामले म आ। इसका िनचला भाग बा टी क आकार का होता ह।
मधुम खयाँ इस फ ल क पराग से आकिषत होकर इसक रसपान क िलए आपस म ित पधा करती थ । इस म

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म ध ा-मु करते ए वे इसक बा टी म िगर जाती ह और इसम मौजूद तरल से उनक पंख गीले हो जाते ह।
अब पंख क गीलेपन क कारण वे उड़ने म असमथ होती ह और अपने न ह पैर क सहार िघसटकर बाहर आने
का यास करती ह। इस बा टी क तीन िकनार िफसलन भर होते ह पर एक िकनारा सीढ़ी जैसा होता ह और उसक
सहार वे बाहर आने का यास करती ह। कई बार वे दोबारा िगर जाती ह। पर इस म म उसी फल का या िकसी
अ य फल का परागशेचन कर देती ह और उनक शरीर म िचपका पराग उिचत थान पर प च जाता ह।
डारिवन ने आिकड पर अनेक योग िकए और इनक प रणाम से वे भािवत भी ए और उनका ाकितक वरण
िस ांत और सश होता चला गया। उ ह ने देखा िक हर ाणी अपने आपको ाकितक आव यकता क
अनु प ढालता जाता ह।
समय क साथ डारिवन क िस ांत क वीकायता बढ़ती चली गई और साथ म लोग उसक स यापन क िलए
और उदाहरण ढढ़ने लगे। पर इस म म न भी उठने लगे। अनेक लोग सवाल करने लगे िक कछ ािणय म
अ प अंतर होता ह जबिक कछ म खासा अंतर होता ह। इतने यादा अंतर का या कारण हो सकता ह।
हर न डारिवन क िलए अनुसंधान का अलग िवषय होता था और वे संबंिधत िवषय पर गहन अ ययन म जुट
जाते थे। उ ह ने पाया िक घरलू पालतू जानवर म काफ अंतर होता ह। उ ह ने पाया िक ारभ म अरब लोग
ती गित क चपल घोड़ पसंद करते थे पर उ री यूरोप क लोग मजबूत और भारी भरकम घोड़ पसंद करते थे।
ारभ म घोड़ क बीच अंतर कम था। पर दोन ही वग ने अपनी इ छा क गुण को बढ़ाने क िलए वणसंकर
जाितयाँ उ प क और इनसे अंतर और बढ़ता चला गया। जो घोड़ न यादा तेज थे और न यादा मजबूत उ ह
वणसंकर जाितयाँ उ प करने म योग नह िकया गया। इस तरह इनक तादाद घटती चली गई। समय क साथ
एक ओर तेज, चपल, इकहर बदन क अरबी घोड़ छा गए और दूसरी ओर भारी भरकम मजबूत यूरोपीय घोड़।
लोग को िव ास ही नह होने लगा िक ये एक ही मूल से उ प ए ह।
डारिवन का अ वेषण इस तरह आगे बढ़ता रहा। एक बार उनक मन म सवाल उठा िक अलग होने का अथा
डाइवजस का कारण या ह। वे इस बार म लगातार सोचते रह। कई साल बाद जब वे एक बार घोड़ा-गाड़ी से
या ा कर रह थे तो उ ह इसका उ र िमला।
उ ह ने िन कष िनकाला िक एक ही जाित क जीव क शारी रक रचना, गठन और वभाव म काफ प रवतन
हो सकता ह यिद वे िब कल अलग प र थितय म रहने लगते ह। जब ािणय क सं या बढ़ी तो उ ह ने नए
वातावरण म नए िठकान म रहना ारभ िकया। उनम उनक अनुसार प रवतन होते गए और अंतर बढ़ता चला गया।
इस संबंध म एक अ य न यह उठा िक िविभ महादेश क बीच समु ह। अतः जो ाणी एक जैसे ह या वे
एक थान पर िवकिसत ए और यिद ए तो वे दूसर भाग म िकस कार प चे। इससे पहले धािमक मा यता
क आधार पर माना जाता था िक ई र ने अपनी इ छानुसार संसार क िविभ भाग म ािणय क रचना क थी।
इस सवाल ने डारिवन को बुरी तरह उलझा िदया। उ ह ने इस उलझन क बार म अपने चचेर भाई िविलयम
डारिवन फॉ स को भी प िलखा। मूल न यह था िक ािणय का उ पि -क एक था या अनेक। यिद एक था
तो ये अ य भाग म कसे फले?
उस समय भूगभ-शा ी महा ीप क सरकने क िस ांत पर काम कर रह थे। स 1850 और 1860 क
दशक म अनेक अ णी भूगभ-शा य ने दुिनया क सामने अपने िस ांत रखे और कहा िक िविभ थल देश
क थित समय क साथ बदली ह। संभवतः इसी क ज रए ाणी भी एक थल- देश से दूसर थल देश प च

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गए ह।
पर डारिवन को उन िस ांत पर हसी भी आती थी और रोष भी होता था। उ ह ने कहा िक ये भूगभ-शा ी तो
दुिनया क बड़-बड़ महा ीप को इस तरह उलट-पुलट रह ह जैसे—रसोइया कढ़ाई म पकौड़ को तलते समय
उलटता-पुलटता ह।
डारिवन का मानना था िक थल महा ीप का टटना, अलग होना जीव क अ त व म आने से पहले ही हो
चुका होगा और बाद म ए प रवतन मामूली और ब त धीमी गित से ए ह गे।
उ ह ने गलापाजोस म देखा था िक छोट-छोट ीप ह और उनक बीच कोई पुल या पुल जैसा थल नह ह।
िफर न उड़ने और न तैरने वाले सरीसृप जीव, क ड़, पौधे आिद एक ीप से दूसर ीप कसे प चे ह गे। एक
िवचार आया िक या बीज समु ी जल म तैर कर प चे ह गे। कर ने अपनी वन पित-िव ान क योगशाला म
ारिभक जाँच करक बतलाया िक बीज यिद इतने लंबे समय तक नमक न पानी म तैरगा तो वह िफर उगने लायक
नह रह पाएगा पर डारिवन को िव ास नह आ।
उपरो त य को गलत सािबत करने क िलए गाजर, मूली, याज आिद क बीज को नमक न समु ी-पानी से
भरी बोतल म रखा गया। कछ बीज को बफ क पानी म रखा गया और वे एक स ाह म सड़ गए। उनम से नए
पौध क क पल क थान पर बदबू आने लगी।
पर जब उ ह जमीन पर बोया गया तो उनसे क पल िनकलने लग । डारिवन क उ साह का िठकाना नह था। अब
उ ह ने इन बीज को चौदह िदन तक समु ी पानी म रखा और िफर प रणाम देखा। बीज क पेड़ म बदलने क
मता पर भाव नह पड़ा।
डारिवन लगे रह। इ स िदन, िफर अ ाइस िदन का योग आ। प रणाम इस कार आए—
िदन : 21
कल बीज : 100

बीज िजनसे अंकर फट : सभी क सभी

िदन : 28
कल बीज : 87
बीज िजनसे अंकर फट : 64

िदन : 137
कल बीज : 100
बीज िजनसे अंकर फट : चंद बीज

समु ी जलधारा औसतन एक मील ित घंट क र तार से बहती ह और इस कार एक स ाह म बीज 168
मील दूर प च सकते ह। खाड़ी क जलधारा तो 50-60 मील ित घंट क र तार से बहती ह। इस तरह तो बीज

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इस अविध म कह से कह प च जाएँग।े
पर कर क आशंका थी िक बीज तैरगे नह , नीचे डब जाएँगे। डारिवन ने िफर से योग ारभ िकया। कछ
बीज एक टक म डाले गए और देखा िक वे तो तली म बैठ गए। डारिवन को झटका लगा। िस ांत जो आगे
बढ़ता नजर आ रहा था डबने लगा।
पर िफर कछ फल क बीज डाले गए और देखा गया िक वे तैर रह ह। इसक बाद कछ सूखी टहिनयाँ िजनम
फल और बीज लगे थे समु ी जल म डाले गए। वे तैर रह थे।
अब डारिवन ने नए िसर से भी सोचना ारभ िकया। उ ह ने जूलॉिजकल सोसाइटी म थत मछिलय को बीज
िखलाए। उस समय वे उस टक पर लगातार िनगाह रखे ए थे। उनक क पना थी िक मछली बीज को िनगल लेगी
और इस तरह बाद म वह िकसी तट पर प च जाएगा और उगेगा।
उनका योग अंततः सफल रहा। मछिलय ने समु ी घास क बीज खाए और बाद म उन बीज से घास क
अंकर फट।
इसक साथ ही ािणय , वन पितय क संसार म फलने का िस ांत नए िसर से उभरने लगे। यह माना जाने लगा
िक ये अनेक कार से फले ह गे। यिद पेड़ क कोई टहनी या पूरा का पूरा पेड़ जड़ समेत झखड़कर समु ी जल म
बहता ह तो उस जड़ म िम ी भी होती ह। यह िम ी जड़ को सुरि त रखती ह और बाद म यह पेड़ िकसी दूसर
िकनार पर जाकर िफर से खड़ा हो सकता ह। इस म म पेड़ लंबी समु ी या ा भी कर लेता ह। डारिवन ने वयं
इस तरह क तीन पचास वष पुराने ओक क पेड़ दोबारा खड़ िकए और वे जीिवत हो गए।
एक और मा यम िनकला। डारिवन ने देखा िक िचिड़याँ बड़-बड़ सागर पार कर जाती ह। साथ ही फल खाते
समय बीज भी खा जाती ह। डारिवन ने यह सािबत करने क िलए िक उनका पाचन-तं बीज को हािन नह प चाता
ह जूलॉिजकल सोसाइटी क योगशाला म योग िकए। उ ह ने वहाँ क योगशाला म उपल ध बाज को बीज
िखलाए। बारह से बीस घंट क प ा उनक बीट से बीज वापस िमल गए। जब उन बीज को जमीन म लगाया
गया तो अंकर फटने लगे। डारिवन ने कर को िलखा िक इन बाज ने भले आदिमय क तरह यवहार िकया ह।
वन पितय क फलने क कारण क सामने आने का िसलिसला जारी रहा। यह सामने आया िक प ी क पैर म
िम ी लगी होती ह। इस िम ी म भी न ह-न ह बीज हो सकते ह। इस तरह भी बीज दूर-दराज क इलाक म प च
सकते ह।
डारिवन क एक िम ने एक िचिड़या क टाँग भेजी िजसम िम ी क 9 दाने थे। पर इसम भी फल का एक बीज
था िजसे जब डारिवन क बगीचे म लगाया गया तो वह न िसफ उगा वर उसम बाद म फल भी िखले। यह योग
िफर दोहराया गया और एक प ी क पैर म लगी िम ी को िनकालकर तीन वष तक सुरि त रखा गया। बाद म
उसे जब उगाया गया तो उससे 82 पौध क अंकर फट।
इस कार पौध क फलने का िस ांत तो िवकिसत हो गया पर िफर सवाल उठा िक मीठ पानी म रहने वाले
मोल क (सीप ) कसे दुिनया भर म फले ह गे। मीठ पानी क ोत झील-तालाब आिद तो एक-दूसर से हजार मील
दूर ह और बीच म पहले थल इलाक ह और िफर अथाह माने जाने वाले समु ।
ये ाणी समु ी-जल क सतह पर तैरते ए दूसर थान पर नह प च सकते ह य िक नमक न जल म ये
त काल मर जाते ह। ये िकसी िचिड़या या मछली ारा ले जाए गए ह गे यह भी नह माना जा सकता य िक ये तो
उनक शरीर म जाते ही हजम हो जाते ह।

@BOOKHOUSE1
िपछली आदत क अनुसार डारिवन ने इस बार भी कर को प िलखा और उनसे इस पर राय माँगी। तभी उ ह
वयं एक घटना देखने को िमली। एक बतख पोखर से बाहर आई तो उसक पैर म कछ िचपका था। उ ह ने उस
ब ख को पकड़वाया और उसक पैर क जाँच करवाई। इसम उ ह मीठ पानी क सीिपय क िशशु (ओवा) िमले।
हर पैर पर 30 से 40 तक ओवा थे जो हाल ही म ज मे थे और ब ख क पैर पर चढ़ गए थे। ये न ह ाणी पानी
म 20-24 घंट तक जीिवत रह पाते ह। इतनी देर म ब ख छह-सात सौ मील दूर िकसी अ य मीठ जलाशय तक
उड़ कर प च जाती ह।
इस कार ये न ह ाणी एक ीप क जलाशय से दूसर थल इलाक क जलाशय म प चे ह गे। डारिवन को
उनक राह पता चल गई।
अब डारिवन क म त क म नए-नए न उठने लगे। उ ह प चने क साधन , माग का तो ान होने लगा पर
कछ ीप पर कछ ाणी ढढ़ नह िमलते ह। उ ह याद था िक उ ह समु ी ीप पर मढ़क नह िमलते थे। इसक
अलावा ीप पर तनपायी जीव भी नह िमले।
डारिवन का मानना था िक अ य चर-अचर ाणी इसिलए प च पाए य िक उनक बीज या अंड दूर थ
महा ीप से सागर क लहर पर डबते-उतरने प च गए। उनम से कछ उखड़ ए पेड़ क तने क सहार तो कछ
सूखी टहिनय क सहार प चे। कछ ािणय जैसे पि य क पैर क सहार प च गए।
पर िसफ वही प च गए जो इस महाया ा क दौरान बच गए। उन ीप पर आने क प ा वे सामा य जीवन
जीने लगे। इस तरह डारिवन क िस ांत का एक और स यापन योग व प रणाम क ज रए आ।
डारिवन अपनी पु तक ओ रिजन िलखते समय अब तक एकि त साम ी क नमून का एक अ पांश ही उपयोग
कर पाए थे। उनक शेष साम ी अ मा रय म ही रखी थी पर उनम लेबल बाकायदा लगे थे। अपने इस अथाह
सामान को देखकर वे उपहास करते थे िक म अजीबोगरीब त य का करोड़पित ।
पर उ ह यह िचंता भी खाए जा रही थी िक उ ह ने अनेक बात अपनी पु तक म िलख तो दी ह पर उनका
यापक ायोिगक माण उपल ध नह हो पाया ह।
आिकड पर पु तक कािशत होने क प ा उ ह ने घरलू ािणय व पौध म िदखने वाली िविवधता का
अ ययन ारभ कर िदया।
q

@BOOKHOUSE1
संवेदन शील क (सं) वेदनाएँ
नई िकताब िलखने क बीच उनका वा य बुरी तरह िबगड़ता चला गया। पढ़ने से उनका िसर बुरी तरह दुखने
लगता था। स 1864 क उनक डायरी म दज था िक जनवरी, फरवरी और माच म वे लगातार बीमार रह।
स 1860 से 1870 क दशक म बेटी हनरीए ा भी लगातार बीमार रही। पूरा प रवार एक बार िफर काटलेट
बुखार क चपेट म आ गया। इसक अलावा अ य छोटी-मोटी बीमा रयाँ भी लगी रह ।
इसी बीच ह सली दंपि का एक ब ा गुजर गया। उदारमना ए मा ने ीमती ह सली को राजी कर िलया और
उ ह उनक तीन ब व आया समेत अपने मकान ‘डाउन’ म ले आई।
ीमती ह सली इस सहायता से ग द हो गई पर उ ह ने यह भी बताया िक वे इतनी कमजोर हो चुक ह िक
दोपहर से पहले घर से बाहर िनकल ही नह सकत । ए मा ने उनका हौसला बढ़ाते ए कहा िक कोई बात नह
उनक प रवार का भी ऐसा ही हाल ह।
वान रवरट ने ‘डाउन’ क हालात देखकर िट पणी क िक वहाँ लोग बीमार रहते ए भी खुश तथा और से
अलग महसूस करते ह। इसका एक कार यह था िक डारिवन हमेशा बीमार रहते थे और उनक ब े उ ह ब त
यार करते थे। कई बार वे अपने िपता क जान-बूझकर नकल भी करते थे य िक उनक माता उन पर दया भी
करती थ और देखभाल भी जो अिधक आनंददायक होती थ ।

@BOOKHOUSE1
चा स डारिवन का ये पु िविलयम स 1858 म पढ़ने क िलए कि ज भेजा गया। उसक वेश व रहने-
खाने क इतजाम म काफ पैसा खच आ पर िविलयम को संतुि नह ई। उसे िशकायत थी िक इन कमर म
अनाव यक शोर-गुल होता ह। उसने इ छा य क िक वह उन कमर म जाकर रहगा िजनम उसक िपता अपने
छा -जीवन म रहा करते थे।
प क ज रए पु क इ छा जानकर उदार िपता ने इसक अनुमित भी दे दी। साथ म आशा य क िक वह
अपने आपको ऊजावान व उ मी बनाए रखेगा। उसक भावी जीवन क सफलता इ ह पर िनभर करगी। राय देते
समय उ ह ने यह भी िलखा िक उसक प रवार क यह परपरा रही ह िक बड़ छोटो को उपदेश देते ह।
पर कल िमलाकर चा स अपने िपता क िवपरीत अपने ब क ित नरम रह। उ ह ने अपने ब से कभी
डाँट-डपट भी नह क और दबाव भी नह डाला। िसफ एक बार उ ह ने िविलयम से गु से म बात क थी जब
उसने जमैकाक एक गवनर क ऊपर अभ िट पणी क थी। उस गवनर ने नी ो िव ोिहय को दबाने क िलए
कररता का सहारा िलया था।
चा स ने गु से म अपने बेट से कहा था िक ऐसा कहने से पहले उसे साउथपटन म जाकर देख आना चािहए िक
वा तव म या आ था। पर चा स क गु से को उतरते देर नह लगी थी और वे रात भर सो नह पाए थे। उ ह
अपने गु से पर इस कदर पछतावा था िक अगले ही िदन ातः सात बजे अपने बेट क िब तर प च गए।
उन िदन नौकर को बुरी तरह डाँटने-फटकारने का रवाज था। पर चा स छोट-से-छोट काम क िलए नौकर से
बाकायदा िनवेदन करते। जब वे कहते ‘‘ या आप यह करने क कपा करगे’’ तो नौकर ग द हो जाते थे।
वे िसफ अपने इद-िगद क लोग क ित ही कपालु नह थे। कोई भी य जो डारिवन को प िलखता था,
उ र पाता था। धीर-धीर प ाचार बढ़ता चला गया। एक थित ऐसी आई जब उ ह ने प का ा प तैयार करवाया
तािक उ र देने म समय कम लगे पर उसका योग नह हो पाया।
लोग उनक पास अपनी पाडिलिपयाँ िट पणी क िलए भेजते थे। वे बड़ी िवन ता से िट पणी करते थे और सलाह
देते थे िक यिद शोध-प सरल भाषा म िलखा जाए तो अिधक भावी होगा। वे श द क उिचत चयन क भी
सलाह देते थे।
वे िकसी भी असहाय य क िखलाफ अ याचार को बदा त नह कर पाते थे। उस समय चल रही गुलामी क
था से वे आजीवन घृणा करते रह। इस कारण उनका बीगल-या ा क दौरान क ान िफ जरॉय से भी कई बार
िववाद आ था। ाजील म एक बार क ान िफ जरॉय एक जम दार क इलाक म गए थे। उस जम दार क पास
अनेक गुलाम थे। उस जम दार का दावा था िक वह अपने गुलाम क साथ ब त उदारता क साथ पेश आता था।
जब िफ जरॉय उस जम दार क यहाँ मेहमान बने तो उस जम दार ने अनेक गुलाम को क ान क स मुख पेश
िकया और पूछा िक या वे आजाद होकर अपने वतन जाना चाहते ह। सभी ने एक सुर म इनकार कर िदया।
जब क ान ने डारिवन क सामने इस घटना को दोहराया और उस जम दार क शंसा क तो यह बात डारिवन
को नह भाई। उनका मानना था िक गुलाम ने मजबूरी म कहा होगा। अपने मािलक क सामने वे और या कह
सकते थे।
िफ जरॉय को ब त गु सा आया। उ ह ने डारिवन से चले जाने को कहा। डारिवन अपने कमर म गए और
सामान बाँधने लगे। पर तब तक क ान क समझ म बात आ गई थी और ोध शांत हो गया। चंद घंट बाद ही
क ान ने जहाज क एक अिधकारी क ज रए माफ माँगी और साथ खाना खाने का यौता भेजा।

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डारिवन को अपने देश क ही नह , दुिनया भर क गुलाम क िचंता थी। स 1860 क दशक म अमे रका म गृह-
यु चला और उसम अ ेत व गुलाम पर घोर अ याचार ए डारिवन इस संबंध म समाचार भी हािसल करते रह
और सािह य भी पढ़ते रह। उ ह इ लड क राजनीितक घटना से अिधक अमे रका क गुलाम क साथ घट रही
दुघटना क िचंता थी। इन कारण से वे कई रात सो नह पाए।
जब अमे रका म गुलामी- था क िखलाफ संघष म बड़ी सं या म जान जाने लग तो अनेक लोग ने तरह-तरह
क िट पणी क । पर चा स का मानना था िक चाह जो भी क मत चुकानी पड़ इस गुलामी क था को तो िमटाना
ही होगा। कर को िलखे प म उ ह ने इसे िव क सबसे घिटया था बताया। उ ह ने अमे रका म अ ेत क
प कार आसा े को अनेक प िलखे और इस िवषय पर अपनी सहानुभूित व समथन य िकया।
स 1860 क दशक क म य म चा स का वा य थोड़ा सुधरा। इस दौरान उ ह ने रॉयल सोसाइटी क
अिधवेशन म भी भाग िलया। यहाँ पर उ ह अपने अनेक पुराने िम से िमलने का अवसर िमला। उनम से अनेक
लोग से वे बरस बाद िमले थे और वे लोग चा स को पहचान भी नह पाए थे।
वे भी या करते। इस दौरान चा स डारिवन पूरी तरह गंजे हो चुक थे। उ ह ने पूरी दाढ़ी भी बढ़ा ली थी। पुराने
लोग क िलए उ ह पहचानना लगभग असंभव था। सोसाइटी क अ य ने डारिवन और अ य दो मेहमान को ि ंस
ऑफ वे स (राजकमार) से िमलवाया। पर मुलाकात क दौरान ि ंस जो भी फसफसाए चा स उसे हण नह कर
पाए। ए मादास म ही थी। उ ह ने देखा िक चा स ने झुककर अिभवादन िकया और िकनार हो िलए।
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काम का अगला दौर
स 1868 क गरिमय म डारिवन ने 6 स ाह क िलए आइल ऑफ वाइट म मकान िलया। वहाँ का पड़ोसी
टनीसन डारिवन प रवार से िमलने आया। ारभ म डारिवन प रवार अपने इस नामी पड़ोसी से भािवत नह आ।
पर धीर-धीर दोन प रवार आपस म घुलने-िमलने लगे। हालाँिक दोन को एक-दूसर क िवषय अटपट लगते थे।
वह पर उनक जान-पहचान लॉगफलो व उनक र तेदार टॉम एपलटन से ई। दोन ने डारिवन का यान संसार
क अ य िवषय क ओर आक करने का यास िकया। वे लोग उ ह बगीचे म ले जाकर लालटन क रोशनी म
तरह-तरह क कहािनयाँ सुनाया करते थे।
30 जनवरी, 1868 तक पालतू पशु व वन पितय पर चल रही पु तक क दो खंड कािशत हो चुक थे। पर
वे अपने काम से संतु नह थे और उ ह लग रहा था िक चार वष म जो उ ह ने प र म िकया, प रणाम उसका
20 ितशत भी नह ह। पता नह पूरा काम कब तक होगा और कसे होगा।
पर तभी काशक मर का संदेश आया िक इन खंड क पं ह सौ ितयाँ मा एक स ाह म िबक गई ह और
एक िति त पि का म इसक उ क समी ा छपी ह िजसम काम क तारीफ क गई ह। अब जाकर डारिवन को
कछ तस ी ई और उ ह ने मन म उमड़ संतोष को कर को िलखे प म उड़ल िदया।
जाितय पर काम करते समय डारिवन क मन म अ सर सवाल उठते थे िक आिखर ये घरलू जानवर घोड़,

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क े, िब ी, कबूतर व मनु य क ि य खा व तुएँ जैसे गे , फल, फल आिद कसे िवकिसत ए ह गे। इनक
पूवज कसे ह गे और ये उनसे िकतने िभ और कसे िभ ए ह गे।
डारिवन क सम उपरो न एक भीषण चुनौती थे और उ ह ने इसक िलए बड़ पैमाने पर काम ारभ कर
िदया।
उ ह ने इितहास क प े पलटना ारभ िकया। ाचीन सािह य व काल का अ ययन ारभ िकया। उस समय जो
लोग वणसंकर जाितयाँ ( ीिडग) उ प कर रह थे, उनक प रणाम देखे गए। शरीर-शा क ि से ािणय का
तुलना मक अ ययन ारभ िकया।
उ ह ने खुद भी तरह-तरह क योग ारभ िकए तािक वतमान जाितय से उनक पूवज का अनुमान लगाया जा
सक। यह वा तव म ब त मेहनत का काम था और अभी तक िकसी ने उसक कोिशश भी नह क थी।
प रणाम सामने आने लगे। उ ह ने पाया िक क ा पहले भेिड़ए जैसा होता था। इसी तरह घोड़ा पहले जंगली
जानवर जैसा होता था। इसी तरह उ ह ने गे व एक दो िचिड़य क पूवज का खाका दुिनया क सामने रख िदया।
पर कबूतर क मामले म उ ह ने गहन अनुसंधान िकया और दुिनया क सामने च काने वाले प रणाम रखे। इसका
एक कारण यह था िक कबूतर से संबंिधत उनक योग व प रणाम िव सनीय यादा रह। उनका मानना था िक
आज क एक सौ पचास कार क कबूतर एक ही नीले रग क पवतीय कबूतर क संतान ह।
पर ये कबूतर आपस म भी एक-दूसर से अलग-अलग लगते ह और ये अपने पूवज कबूतर से भी िभ ह।
डारिवन ने अंततः यह वीकार िकया िक संभवतः कबूतर वह पहला ाणी ह िजसे मनु य ने पालतू बनाया होगा।
यह काम कम-से-कम पाँच हजार वष पूव आ होगा।
अपने अ ययन और िव ेषण से डारिवन उस िन कष पर भी प चे िक सोलह सौ क आस-पास कबूतर क
व प म काफ बदलाव आया। यह प रवतन सुदूर भारतवष म िकए गए योग से आया।
उस समय भारत म मुगल बादशाह अकबर का शासन था। अकबर ने अपने दरबार क आस-पास क इलाक म
लगभग बीस हजार कबूतर पाले थे और उनक न ल सुधारने क िलए उनका संसग उन दुलभ जाितय क कबूतर
से कराया था जो फारस व तुरान क बादशाह ने तोहफ क प म भेजे थे।
इस कार इन कबूतर क पैर क लंबाई, पूँछ क पंख क सं या, च च क व प आिद म प रवतन आया।
डारिवन ने यह भी िन कष िनकाला िक सतरहव शता दी क बाद कबूतर म िभ ता इतनी तेजी से या इतनी यादा
नह बढ़ी।
उपरो सभी योग करने क िलए डारिवन ने अपने प रसर म ही एक घने पेड़ क नीचे प ी-गृह बनाया था।
बाद म वे दो अ य कबूतर- ेमी सोसाइिटय क सद य भी बन गए। अपने अ ययन से उ ह ने अलग न ल उ प
करने क दौरान प रवतन का पूरा खाका तैयार कर िलया था।
डारिवन ारा कबूतर पर िकए गए योग लगातार चचा का िवषय बने रह। जब भी वे िकसी बड़ी दावत आिद
म जाते तो खाना खाते समय या उसक आगे-पीछ उनक कबूतर संबंधी अनुसंधान पर कभी गहन चचा हो जाती थी
तो कभी मजाक बनाया जाता था।
ऐसे अवसर पर डारिवन अ सर संयम बनाए रखते थे। कभी-कभार वे िट पणी करते थे तो उनक िट पिणयाँ
सारगिभत होती थ । एक बार उ ह ने कह िदया िक यिद कलीन-वग को यह पता होता िक कबूतर पर अनुसंधान म

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िकतना आनंद और शांित िमलती ह तो हर कलीन य अपने घर म एक प ी-गृह बनवा लेता।
उ ह ने अपने पु िविलयम को कबूतर पालने क सलाह दी। उ ह ने बताया िक इससे घर व उसक आस-पास
क ड़-मकोड़ क सम या नह रहगी।
डारिवन ने कबूतर , अ य घरलू ािणय , फल , फल क उ पि , िवकास से संबंिधत जो अनुसंधान िकए उनम
इस बात क अका य माण िवकिसत ए िक इन सब घरलू ािणय व वन पितय का िवकास मनु य ने ही िकया
ह।
पर यह अनुसंधान पूण नह था य िक इनक ाचीन व प व आधुिनक व प क बीच क किड़याँ लु हो
चुक ह। पर यह सब मानव क ही काल म संप आ।
अब तक डारिवन क जीवो पि िस ांत पर जो लोग शक करते थे, उनसे डारिवन ने उलट कर पूछना ारभ
कर िदया ‘‘इसी तरह अ य ािणय म भी प रवतन ए थे। यिद बीच क किड़याँ उपल ध नह ह तो इसका अथ
यह कदािप नह ह िक प रवतन नह आ।’’
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मानवीय िवकास कसे आ
अब तक ब त सार ािणय क िवकास से संबंिधत अवधारणा पर रोशनी पड़ चुक थी। पर मानव क िवकास
क संबंध म प माण तुत करना शेष था।
इस संबंध म िज ासा स 1837 म ही उठ चुक और उ ह ने जाितय से संबंिधत पहली नोटबुक म उसे दज भी
कर िलया था। उ ह यह भी याद था िक उनक दादा ने भी क पना क आधार पर कहा था िक सभी ाणी िजनम
मनु य भी शािमल ह, एक ही तंतु अथा िफलामट से उ प ए ह। अब तक योग से भी यह िस होता ह िक
जब अ य ािणय का मब िवकास आ तो मनु य का भी आ होगा।
जब डारिवन ओ रिजन पर काय कर रह थे तो वालेस ने सलाह दी थी िक पहले मनु य पर चचा कर ली जाए।
पर डारिवन ने पीछा छड़ा िलया और कहा िक यह िवषय तमाम पूवा ह से त ह।
मन ही मन वे मान रह थे िक एक कित-िव ानी क िलए यह एक अ यंत िदलच प पर सबसे बड़ा िवषय ह।
साथ ही उ ह यह भी लग रहा था िक यिद इस िवषय पर पूण व पया माण न ह तो इसे लोग क सामने लाना न
िसफ िनरथक वर घातक भी िस होगा। ओ रिजन क रचना क दौरान उ ह ने इस िवषय को लगभग छोड़ ही
िदया।
पर उनक अंतरा मा क आवाज उ ह स य को छपाने से रोक रही थी। उ ह लग रहा था िक िकसी स माननीय

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य को यह कहने का अवसर नह िदया जाना चािहए िक वे भाग रह ह। इस कारण उ ह ने अपनी रचना म इस
िवषय पर एक छोटी-सी िट पणी जोड़ दी थी।
पर यह िट पणी ही तहलका मचा देने क िलए पया थी। आलोचक ने कहा िक यह मानना क मनु य क पूवज
बंदर थे, पागलपन ह। डारिवन क कॉलेज क जमाने क भूगभ-शा क ोफसर सेजिवक ने उ ह बड़ रोष व
अफसोस क साथ प िलखा और इस बात का डर य िकया िक यह अटपटा िस ांत मानवता क अवधारणा
क िलए ही घातक होगा और मनु य को ऐितहािसक पतन क ओर ले जाएगा।
प क अंत म उ ह ने िलखा ‘‘बंदर का पु व तु हारा पुराना िम ।’’ ोफसर िकस कदर आहत हो चुक थे
इसका अंदाजा लग सकता ह। यह लगभग वैसा ही था जैसा िक िबशप ने ह सली पर हार करते ए िक वनमानुष
क संतान।
डारिवन ने इस आरोप को पूर स मान व धैय क साथ झेला। उ ह ने यारोप भी लगाने क चे ा नह क ।
लगाते भी कसे? वा तव म ा यापक सेजिवक ने अपनी असहमित य करक अपने िश य को एक कार से
आदर ही िदया था। िसफ उ ह इस बात का दुःख था िक आिखर मनु य को अभी तक अ यंत स मान क साथ
सबसे िभ माना जाता था।
संभवतः सेजिवक को प ने डारिवन को एक िदशा दे दी। उ ह लगने लगा िक स य तो तभी िनखरगा जब वह
चार ओर से तमाम हार झेलते ए ऊपर उठगा। ओ रिजन क काशन क चंद वष बाद डारिवन ने तय िकया िक
मनु य क उ पि क िस ांत क सावजािनक तुित से पूव वे इस िवषय पर िकसी वै ािनक से लंबी चचा करगे
जो उनक ही िवचारधारा का हो।
उ ह लगा िक लाइल इस काम क िलए सबसे उपयु ह गे। पर स 1863 म जब लाइल क पु तक
‘‘एंटीिकटी ऑफ मैन’’ आई तो उसम जीवो पि क बात बड़ दबे श द म वीकार क गई थी। उ ह ने िलखा था
िक ािणय म प रवतन ाकितक वरण िस ांत क अनुसार आ होगा, इस बात क बल संभावना ह।
डारिवन को घोर िनराशा ई। लाइल उनक पुराने िम व ेरक रह थे। बातचीत व प - यवहार म वे अ यंत
िनम क मालूम पड़ते थे। अपनी इस िनराशा को डारिवन ने कर को िलखे प म य भी कर िदया। उधर लाइल
ने भी बाद म अपनी गलती मानते ए प ीकरण िदया िक वे इस बात का तमाश नह बनाना चाहते थे िक मनु य
पहले एक जंगली जीव था। बाद म उ ह ने अपनी पु तक क संशोधन सं करण म डारिवन क िस ांत को -ब-
वीकार कर िलया।
अब कोिशश ई िक वालेस को मनु य पर पु तक िलखने क िलए राजी िकया जाए। वालेस डारिवन से अनेक
बात से भािवत थे जैसे—
1. डारिवन ने वालेस क िस ांत को पूरा स मान िदया।
2. वे चाहते तो वालेस क प को दबा देते और िसफ अपना िस ांत कािशत करते।
दोन लोग एक-दूसर से अनु हीत थे। डारिवन ने वालेस को िलखे एक प म कहा था िक हम दोन ने एक ही
िस ांत लगभग एक ही साथ सावजािनक िकया। पर मुझे आपसे कभी ई या नह हो रही ह। म आपको अपना
ित ंदी भी नह मानता।
वालेस ने पहले मनु य क संबंध म एक संि लेख तैयार िकया था। उ ह ने उसे डारिवन को भेजा। डारिवन ने

@BOOKHOUSE1
उसम चंद संशोधन करक वापस भेजा और कहा िक यह िजतना आपका ह इतना ही मेरा ह। उ ह ने यह भी सुझाव
िदया िक यिद इस उ क लेख पर आधा रत पु तक तैयार करने म िदलच पी हो तो ारभ कर। यिद चाह तो
उसक िलए बाद म तैयार िकए ए चंद नोट वे भेज सकते ह और वालेस यिद उनका मू य समझ तो अपने काय म
उ ह जोड़ ल।
वालेस ने तुरत कहा िक वे नोट भेज द। पर उ ह ने आशंका भी य क िक वे इस काय को कर भी पाएँगे या
नह । अब डारिवन को लगा िक उ ह यह काय वयं ही करना पड़गा। उधर स 1860 का दशक अलग िवचार से
पूण था। स 1869 म जेनेवा म एक कायशाला म अ य ीय भाषण देते ए यात कित िव ानी काल वो ट ने
घोषणा क थी िक अब यूरोप म कोई भी यह मानने का साहस नह करगा िक ािणय का िनमाण अलग-अलग
आ होगा। अब यादातर युवा कित-िव ानी यह खुलकर कहने लगे थे िक सभी ाणी िकसी एक ाणी क ही
िवकिसत, प रवितत प ह।
पर जो पुराने और स मािनत लोग थे वे अभी भी उसी पुरानी अवधारणा पर अड़ ए थे। अब डारिवन ने अपनी
बात को प ारा कहना ारभ कर िदया। उ ह ने अपने पुराने नो स का ग र िनकाला और देखना ारभ िकया
िक उ ह ने अपनी पु तक ‘ओ रिजन’ म और अ य काम म जो िन कष िनकाले थे उसम से िकतने मानव संबंधी
थे। उस समय तक डारिवन ने जो काम िकए थे वे िकसी एक खास ाणी से संबंिधत नह थे। उ ह लगा िक अगर
इस तरह अ वेषण िकया जाए तो वह अिधक िदलच प होगा।
उधर फरवरी 1867 म डारिवन क ‘ ाणी व वन पित’ शीषक पांडिलिप काशक क पास चली गई। ूफ आने
म समय लगा और इस दौरान उनक पास खाली समय भी था और मानव उ पि -िस ांत को उजागर करने क
आतुरता भी थी। उ ह ने काम ारभ कर िदया।
डारिवन क पहली प रक पना थी िक मनु य पहले िकसी िन न ाणी क प म था। यिद ऐसा था तो उसक
पूवज क ल ण तलाशने चािहएँ। या ये ल ण य व पया ह?
अब डारिवन ने मनु य क शरीर क संरचना क तुलना अ य ािणय जैसे बंदर, सील व अ य तनपायी ािणय
से ारभ क । कछ समानताएँ िमल पर वे पूण व प नह थ । एक त य जानदार था और वह यह था िक मनु य
अनेक बीमा रयाँ जैसे हाइ ोफोिबया पशु से ा करता ह और िफर ये आगे अ य मनु य म फलती ह। इससे
ऊतक व र म समानता उभरती ह।
एक और समानता डारिवन ने देखी िक इन सभी क ज म एक जैसी ि या से भरते ह। इसी तरह जनन
यवहार म भी समानता देखने को िमलती ह और पहले नर-मादा क म य ेम उभरता ह और िफर दोन क बीच
शारी रक संसग होता ह। नर-मादा िमलकर नवजात िशशु क देखभाल करते ह।
धीर-धीर समानता क माण बढ़ते चले गए पर इनम काफ िविच ता भी देखने को िमली। डारिवन ने यह सािबत
िकया िक मनु य का भू्रण मा एक बटा एक सौ प ीस इच यास वाला होता ह और यह अ य ािणय क
समतु य ही होता ह। यही नह , ूण अपने िवकास क दौर अनेक व प लेता ह और इसम गदन पर िगल जैसा
छद भी उ प होता ह और एक पूँछ भी होती ह।
यही नह , ज म क प ा भी मनु य क शरीर म अपने पुरख क अवशेष बने रहते ह। उसक शरीर म अनेक
माँसपेिशयाँ ( ड़ीमटरी) रह जाती ह िजनका अब कोई उपयोग शेष नह रह गया ह। पर ये सभी उसक पूवज क
िलए अित उपयोगी थ । इसी तरह उसक अपिड स तथा ान दंत भी पूवज क ही अवशेष ह।

@BOOKHOUSE1
अब डारिवन को तीन मह वपूण त य िमल गए थे और ये शरीर क िविभ पहलु जैसे ूणाव था, सामा य
शरीर-रचना आिद से संबंिधत थे। पर इन पु ता माण क साथ डारिवन क मन म एक बात भी कचोट रही थी।
अभी तक िविभ मानव स यता म यह माना जाता रहा ह िक मनु य दैवीय ि या से उ प अथा डमी गॉड
(आधा ई र) ह और डारिवन क िस ांत क अनुसार इसका िवकास बंदर (डीमर) से आ ह।
आिखर लोग इस घोर पतन को कसे वीकार कर पाएँगे। इसका उ र तलाशते ए उनक मन म न उठा और
वह यह था िक मनु य म भी तो भारी प रवतन देखने को िमलते ह। इन प रवतन का भी कोई कारण अभी तक
प नह हो पाया ह।
तभी एक िवचार उभरा िक यिद िकसी चीज का उपयोग हो और न हो तो उसक व प म प रवतन देखने को
िमलता ह। उदाहरण क तौर पर मानव शरीर म दो गुद होते ह। यिद एक बीमारी क कारण खराब हो जाए तो दूसर
पर दबाव पड़ता ह और उसका आकार बढ़ जाता ह। वह दोन गुद क बराबर काम करने लगता ह। गुफा म
रहने वाले दूर तक नह देख पाते ह जबिक खुले म रहने वाले दूर तक देख लेते ह।
ये सभी प रवतन अनुवंिशक प ले लेते ह यिद पीढ़ी दर पीढ़ी लोग का यवहार और जीवन शैली वैसी ही रह।
अनेक पीिढ़य बाद हो सकता ह पता ही न चले िक ऐसा य हो रहा ह।
ब त बाद म जाकर अनुवांिशक का िस ांत सामने आया और तब मनु य म प रवतन क या या संभव ई
पर डारिवन ने दुिनया को एक िवचार तो दे ही िदया था। वे िबना क आगे बढ़ते चले गए। उ ह ने यह भी सािबत
िकया िक अ य ािणय क तरह मनु य क वृि भी िव तार क ह। उसे भी अ य ािणय क ही तरह अ त व-
र ा क िलए संघष करना पड़ता ह। जो अपने आपको दुिनया क अनुकल बना लेते ह वे पूरा जीवन जीते ह और
उनक बाद उनक उ रािधकारी सुख भोगते ह।
डारिवन ने अ य ािणय क ही तरह मनु य म भी ाकितक वरण क िस ांत को आजमाया और सािबत करने
का यास िकया िक शायद िक ह कारण से जैसे भोजन, वातावरण म प रवतन क कारण ये बंदर पेड़ से उतरकर
जमीन पर रहने लगे ह गे। जमीन पर चलने क िलए इनक दो पैर ही पया थे और इस तरह उनक हाथ वतं हो
गए। इनका उपयोग ये टल , उपकरण , हिथयार क िनमाण व योग म करने लगे। इससे उ ह श ु से बचाव व
िशकार करने आिद म आसानी होने लगी होगी। जो बंदर दो पैर क सहायता से यादा अ छा चलने लगे और सीधे
खड़ होने लगे वे अपने आपको कित क यादा अनुकल बनाते गए और उनका अ त व बचा और शेष या तो
न हो गए या बंदर क ही भाँित पेड़ पर रहते रह।
जब मनु य ने दो पैर पर चलना और सीधा खड़ा होना ारभ िकया तो उसक शरीर म इस आव यकता को पूरा
करने क िलए अनुकल प रवतन होने लगे। उसक िविभ ह याँ जैसे पे वस, रीढ़ क ह ी आिद नया व प
लेने लगी। उसक िसर क थित भी बदली। इस तरह मनु य का आधुिनक व प तैयार हो गया।
इस अवधारणा को सािबत करने म डारिवन क सम एक भी वै ािनक सम या नह थी। मनु य क शारीरीक
िवकास से यह प ह िक वह कभी बंदर, वनमानुष रहा होगा।
पर आलोचक कहाँ हार मानने वाले थे। िवशेष प से मनु य क मानिसक श अ य ािणय िवशेष प से
जंगली जानवर क तुलना म ब त यादा ह। डारिवन ने इस आपि को भी गंभीरता से िलया और अ वेषण का
िसलिसला ारभ आ। उ ह ने इस संबंध म िविभ उपल ध त य को एकि त करना ारभ कर िदया।
ारभ म उ ह ने त काल मान िलया िक मानिसक श म अंतर ह और खासा यादा ह। सबसे िन न जंगली

@BOOKHOUSE1
जानवर और वनमानुष म ब त यादा अंतर ह। पर साथ ही एक जंगली मनु य जो तीन-चार से अिधक नह िगन
सकता ह और यूटन, शे सिपयर जैसे य क मानिसक तर म भी भारी अंतर ह।
डारिवन ने दोन अंतर म िकतना अंतर ह यह आँकलन ारभ कर िदया। इस संबंध म िन न त य उभर कर आए

1. सबसे िन न जानवर व मनु य देन ही अनेक थितय को समझ सकते ह जैसे—
— स ता,
— दद,
— शोक।
2. वे उपरो को मनु य क भाँित य भी कर सकते ह। उनक य करने का तरीका भी काफ हद तक
एक जैसा होता ह।
3. उपरो घटना क भाव भी िविभ ािणय पर एक जैसे ही पड़ते ह जैसे भय क थित म—
— माँसपेिशयाँ अ थर हो जाती ह।
— िदल क धड़कन तेज हो जाती ह।
— र गट खड़ हो जाते ह।
यह सब िसफ मनु य को नह , सभी ािणय को हो जाता ह।
अपनी इन धारणा को सािबत करने क िलए डारिवन ने िन न योग िकया—
िचिड़या-घरवाल से अनुमित लेकर वे टोकरी म नकली साँप बंद करक बंदर क बाड़ म गए। बंदर को साँप
क भनक तुरत लग गई। वे शी ही नकली साँप क टोकरी क इद-िगद जमा हो गए। उ ह ने, जोर से िच ाना भी
ारभ कर िदया।
धीर-धीर डारिवन ने उ ह टोकरी म बंद मृत मछली, मृत चूहा और मृत ककड़ा िदखलाया। ारभ म बंदर थोड़ा
सहमे पर धीर-धीर सामा य हो गए। जब वे िजंदा साँप टोकरी म डालकर अंदर गए तो बंदर क िति या िब कल
अलग िक म क थी। इस बार एक बंदर आया और उसने उस टोकरी को पहले क तरह खोल िदया पर वह डर
क मार िछटक कर दूर खड़ा हो गया। इसक बाद एक-एक बंदर िसर उठाकर आया और उस डरावने जीव को
देखकर एक आवाज सी िनकालकर आगे बढ़ता गया। यह यवहार लगभग मनु य जैसा था।
डारिवन ने िन कष िनकाला िक मनु य व उ ेणी क ािणय जैसे बंदर, वनमानुष आिद म समझने, भाँपने,
आशंका य करने, संवेदना अनुभव करने आिद क गुण एक जैसे ही होते ह।
पर मु य अंतर तो रह ही गया। मनु य क अलावा अ य पशु-प ी सजा-सजा कर वा य बोलने क मता नह
रखते ह। डारिवन ने इस िदशा म भी अ वेषण ारभ िकया। उ ह ने पाया िक यादातर पशु अपनी बात का अथ
अपनी बोली या विन ारा य कर देते ह।
उ ह ने क क मािलक से बात करक पाया िक वे लोग अपने क क आवाज को सुनकर यह भाँप लेते ह
िक वह िज ासा य कर रहा ह या िनराशा। वे आ य, डर आिद भी अपनी बोली ारा य कर लेते ह।
उनक मादा जब अपने िशशु क ित यार जताती ह तो वह विन भी अलग ही होती ह।
डारिवन का अ वेषण जारी रहा। उ ह ने पाया िक क े मनु य क ब त सी बात या िनदश समझ जाते ह और
उसक अनु प काय भी कर लेते ह। तोता, मैना आिद न िसफ श द का उ ारण कर लेती ह वर श द को

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जोड़कर वा य भी बना लेती ह।
इस संबंध म उ ह ने बीगल क अपने सहया ी सर सलीवान से भी बातचीत क जो अब ि िटश नौसेना क
एडिमरल बन चुक थे। उ ह ने बताया िक उनक िपता क पास एक तोता था जो ितिदन सुबह ना ते क समय
‘गुड-मॉिनग’ और राि को भोजन क बाद ‘गुड-नाइट’ बोलता था। वह इसम कभी हर-फर नह करता था।
डारिवन ने अब िन कष िनकाला िक िन न- ेणी क ाणी मनु य से इसिलए कमतर कह जा सकते ह य िक वे
िविवधतापूण िवचार विन क ज रए य नह कर पाते ह। इसका कारण उनक सीिमत मानिसक श ह। उ ह ने
यह भी िन कष िनकाला िक नैितकता क समझ और अंतरा मा क आवाज जैसे गुण मनु य म इसिलए बढ़ते चले
गए य िक उसका मानिसक िवकास होता चला गया। यिद हम नवजात िशशु क िवकास को यान से देख तो
पाएँगे िक िविश मानवीय गुण इसम समय क साथ िवकिसत होते ह।
संयोगवश उ ह िदन एक यूक ारा िलखी पु तक स 1869 म छपकर आई िजसम यह विणत था िक ई र
ने तो मनु य को स य ाणी बनाया था पर संसार म आने क बाद उसका पतन होता गया और वह एक बबर ाणी
हो गया।
डारिवन ने इस अवधारणा का खंडन अपनी पु तक पतन (िडसट) म िकया। उ ह ने कहा िक मनु य भी पहले
जानवर क तरह जंगली था पर धीर-धीर उसम नैितकता और धम-ईमान जैसे गुण िवकिसत ए।
अपनी बात पर जोर देते ए डारिवन ने अपनी पु तक म िलखा िक उनक िस ांत से मनु य जाित को अपमािनत
होने क आव यकता नह ह। उ ह ने कहा िक मनु य को गव होना चािहए िक आज वह जीव व अ य अजैिवक-
पदाथ म अंतर समझ सकता ह और उसक अनुसार यवहार कर सकता ह।
मनु य क उ पि व िवकास पर अनुसंधान का काय वष तक चला। इस बीच म तरह-तरह क न उठते रह।
एक न यह भी था िक िविभ मूल क मनु य जैसे आय, नी ो, मंगोल आिद म काफ अंतर ह और ाकितक
वरण का िस ांत इसक पूरी तरह या या नह कर पाता ह।
पर ाकितक वरण का िस ांत तो अनेक बात क या या नह कर पाता ह। नर-मयूर देखने म अ यंत
आकषक होता ह। उसक पँख ब त लंबे होते ह। पर ये गुण उसक जीवन क संभावना म बाधक भी होते ह। इस
कारण ये गुण अभी तक समा हो जाने चािहए पर ऐसा नह होता ह। इसका एक कारण यह भी ह िक जीवन म
भोजन संभोग व अ य काय भी मह वपूण होते ह। अपने बड़ शरीर, स दय, श , रग आिद का उपयोग मनु य
अनेक काय क िलए करना रहता ह।
िजन नर- ािणय क पास उपरो विणत अित र गुण होते ह वे मादा को आकिषत करने क िलए इनका योग
करते ह। इस तरह ये उ क गुण संतान म भी आते जाते ह। िजनक पास ये गुण नह होते ह या कम होते ह उनक
वंश वृ क संभावना अपे ाकत कम होती ह। डारिवन ने इस िस ांत को से सुअल सेले शन या यौन संबंधी
वरण का नाम िदया।
अब तक डारिवन इस संबंध म अनेक त य व माण एकि त कर चुक थे और उनक आधार पर उ ह ने सािबत
िकया िक यिद उ तर ेणी क नर-पशु िकसी मादा क साथ जब संसग करते ह तो उनक बेहतर गुण संतान म
आते जाते ह। मोर जैसे ािणय का भी ऐसा ही हाल आ और सुंदरतम मोर क सं या बढ़ती चली गई। यही नह ,
समय क साथ उनक सुंदरता म भी वृ ई।
डारिवन ने ाकितक-वरण व यौन संबंधी वरण क बीच अंतर प िकया। उ ह ने बतलाया िक ाकितक-वरण

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क अंतगत नर-मादा दोन को कठोर जीवन से जूझना पड़ता ह और श शाली ाणी बच जाते ह और शेष न हो
जाते ह। दूसरी ओर यौन संबंधी वरण क मामले म एक ही िलंग (नर या मादा) आपस म ित पधा करते ह और
जो श शाली िस होते ह वे आगे वंश-वृ का अवसर पाते ह और शेष न हो जाते ह।
डारिवन क पु तक क तमाम िवषय म यह िवषय अ यंत रोचक िस आ। उ ह ने यौन संबंधी वरण क
आधार पर िविभ मूल (रस) क िनमाण क या या क । िडसट (पतन) शीषक पु तक क इस भाग म इस िवषय
से संबंिधत छह छोट अ याय थे। बाद म इसका िव तार आ और चौदह बड़ अ याय तैयार ए।
इनम यौन क आधार पर अंतर, यार करने क तरीक आिद का वणन िकया गया। िविभ ािणय जैसे घ घ ,
क ड़ , मछिलय , िचिड़य , सरीसृप, तनपायी जीव आिद क यौन संबंधी यवहार पर गहन चचा क गई।
इस कार डारिवन क दूसरी महानत पु तक ‘‘िद िडसट ऑफ मैन एंड सेले शन इन रलेशन ट से स’’ तैयार
ई। यह इस कदर मपूण काय था िक पूरा करते-करते वे बुरी तरह थक कर बीमार भी हो चुक थे। ऊपर से उ ह
यह डर भी लग रहा था िक िविभ मूल क लोग अपने बार म िट पिणय से िचढ़गे और तमाम सवाल-जवाब
करगे। इस कारण उ ह ने िविभ मूल क भिव य क बार म आशंका व आशा म चचा नह क । उ ह ने
िसफ अब तक उभर स य तक अपने आपको सीिमत रखा। यह भी कह िदया िक यह उन माण पर आधा रत ह
जो मने अपनी अिधकतम मता क आधार पर एकि त िकए ह।
उपरो काम म उ ह तीन वष लगे। बीच-बीच म अनेक बाधाएँ भी आई। उ ह अ सर िसर-दद व नाक बहने
क सम या रहती थी। बीच-बीच म वे इस कदर थक जाते थे िक उ ह लगता था िक उनका काम अधूरा ही रहगा
और यह पांडिलिप कभी काशक भी पास जा भी पाएगी या नह । इस च र म उनका उ साह औसतन आधा ही
रह पाया था पर वे यह मानते थे िक यह छपने लायक ह और छप तो जाएगी ही।
24 फरवरी, 1871 को ‘िडसट’ पाठक क हाथ म आई। इसका पहला सं करण इ स सौ ितय का था जो
हाथ -हाथ िबक गया। काशक ने त काल पाँच हजार ितयाँ छापने का आदेश िदया। डारिवन को त काल स
1470 प ड रॉय टी िमल गई। उ ह लगा िक यह बड़ी रकम ह।
पर नई रचना िडसट ने उनका िवरोध भी बढ़ा िदया। जहाँ अनेक अखबार व पि का जैसे एिडनबग र यू ने
इसे लाजवाब बताया, वह ‘िद टाइ स’ ने नए िस ांत को खा रज कर िदया।
वह समय भी अलग िक म का था। पे रस म सा यवािदय का दखल बढ़ रहा था। यह नई िवचारधारा इ लड म
भी पाँव पसार रही थी। ऑ सफोड तथा कि ज म इस पर गहन चचा हो रही थी। ि िटश संसद दबाव म आकर
वतं ाथिमक िव ालय खोलने क अनुमित दे रही थी और ड-यूिनयन से संबंिधत कानून चचा म था।
उ ह िदन जॉन टअट िमल जैसे िवचारक व लेखक मिहला क अिधकार क िलए मुखर हो रह थे।
मिहला क कल म सुधार हो रह थे और िववािहत मिहलाओ को अपनी संपि , धन पर िनयं ण का अिधकार
िमल रहा था।
ऐसे म अनेक लोग को डारिवन का नया िस ांत और नई िकताब अटपट लगे पर िकताब िबक खूब रही थी।
डारिवन भी अपने ऊपर चल रह हार से असहज महसूस कर रह थे।
एक जमन संवाददाता क सामने उ ह ने वीकार भी िकया िक वे खूब खरी-खोटी सुन रह ह। भगवा जाने इसम
िकतने गुण-अवगुण ह पर उ ह ने तो अपनी मता का पूरा उपयोग कर िदया ह।
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सब कछ बदल गया
‘िडसट ऑफ मैन’ अथा मनु य क पतन क गाथा से चार ओर उथल-पुथल मची थी। एक ओर डारिवन का
भारी समथन हो रहा था तो दूसरी ओर घोर िवरोध। िव ानकम उसे नई ि से देख रह थे और कित-िव ानी इसे
नया और अ ुत िस ांत मान रह थे। समथन बढ़ता देख िवरोधी िवरोध हतु नया आधार ढढ़ने म लगे थे।
िवरोधी छटते चले गए। ब त थोड़ लोग ही ढ़ता क साथ कह पा रह थे िक सृि क रचना क पहले ही मनु य
व अ य चर-अचर ाणी वैसे ही थे जैसे िक आज ह। पर साथ ही अनेक वै ािनक डारिवन क िस ांत म संशोधन
सुझा रह थे। कछ कित-िव ानी तो नया संशोिधत जीवो पि िस ांत तुत कर रह थे। उनक अनुसार कछ
ािणय क रचना ारभ म वतं प से क गई होगी और शेष िजनम यादातर आधुिनक ाणी शिमल ह, उ ह
से उ प ए ह। पर उनक बात म पूरा आ मिव ास नह था।
डारिवन को लग रहा था िक उनक जीवन का यादातर काम िनपट चुका ह पर वे सि य थे। स 1871-72 म
उ ह ने अपनी रचना ‘ओ रिजन’ क छठ लोकि य सं करण का ा प तैयार िकया। इसम उ ह ने उन लोग क िलए
चंद न भी जोड़ जो उनक जीवो पि िस ांत को नह मान रह थे। ये न इस कार थे—
1. या आप वा तव म ऐसा मानते ह िक सृि क ारभ म ऐसे मौिलक परमाणु थे िज ह ने एकाएक िजंदा
ऊतक का प धारण कर िलया?

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2. या आप मानते ह िक सृि -सृजन क समय एक य उ प आ था या अनेक?
3. जग म जो असं य िक म क चराचर ाणी ह वे िकसी बीज से या िकसी अंड से उ प ए थे या पूण
सामा य प म?
तनपायी जीव क मामले म इन जीव ने माता क गभ क अंदर िकस कार पौि क आहार ा िकया होगा?
उपरो न व उनसे संबंिधत व य क िलए डारिवन क बुरी तरह भ सना क गई। इनक कारण अनेक
कित-िव ानी जो समथन कर रह थे, वे या तो चु पी लगा गए या गोल-मोल बात करने लगे।
पर धीर-धीर थित सामा य होती गई। लोग अब िव को और अपने आपको नए नज रए से देखने लगे।
डारिवन को लगा िक फतह हो गई ह। उनक ारा उजागर स य धीर-धीर उनका आ मिव ास बढ़ाता रहा और
यह उनक प व रचना म झलकने लगा।
अब उ ह यह भी लगने लगा िक जो ान उ ह ने उ प िकया ह वह सुरि त हो चुका ह और अब वे आराम से
रह सकते ह। उ ह ने अपने िम से भी कहना ारभ कर िदया िक अब वे िकसी मौिलक िस ांत क ितपादन म
नह लगगे। जीवो पि क िस ांत ने उ ह बुरी तरह थका िदया था।
वे यह भी मानते थे िक अनेक लोग अंितम िदन म नए मौिलक काम म कद पड़ते ह। उस समय उनक
बौ क मता भी ीण होने लगती ह और समय भी साथ नह देता ह।
उनक खुद क शारी रक थित भी बदल चुक थी। मा तरसठ वष क आयु म उनक बाल और लंबी दाढ़ी
सफद हो चुक थी। यही नह , उनक घनी भौह भी सफद हो चुक थी। िजनसे उनका चेहरा वृ जैसा लगने लगा
था। उनक कधे लचक गए थे और वे छड़ी क सहार चलते थे।
पर इन सबक बावजूद उनक जीवन क ये अंितम दस वष हर िलहाज से उ क रह। य ही उनक मन से काम
का बोझ हटा उनका वा य चमकने लगा। अब वे यादा घंट काम करने लगे। वे यादा लोग से िमलने-जुलने
लगे। अब उ ह ने अिधक सं या म या ाएँ ारभ कर द । उ ह ने उ क मौिलक, भावशाली काय जारी रखा।
स 1870 क दशक म उनक यहाँ यादा-से- यादा अितिथ आने लगे। दूर थ ामीण मकान डाउन म छा ,
िवदेशी मेहमान का ताँता लगा रहता। ये जाने माने लोग तमाम िज ासाएँ लेकर आते थे और तृ होकर वापस जाते
थे। एक ही स ाह म तीन नामचीन जमन िव ान आए। अनेक िव ान उनसे िनरतर प - यवहार करते थे।
चा स का िस ांत जमनी म भी लोकि य हो रहा था। वे अ सर जमनी जाते थे और उनका भारी मान-स मान
होता था। पर इस म म उनक प नी ए मा जमन क कमजोर टटी-फटी अं ेजी से परशान रहती थी। एक बार
चा स बाहर गए ए थे तभी दो जाने-माने जमन ोफसर घर पर आ गए। ए मा को उनक बात शोर जैसी लग
और वे जमन से खीझ गई।
स 1871 म उनक बेटी हनरीए ा का िववाह एक बै र टर रचड िलच फ ड से आ था। िलचफ ड
कामकाजी लोग क िलए खुले कॉलेज क सं थापक म से एक थे। यह अवसर भावुक िपता क िलए अनोखा था।
उनक बेटी जो हरदम उनक पास बैठी रहती थी पराए घर जा रही थी।
शादी क बाद जब वह हनीमून क िलए यूरोप रवाना ई तो एक िज मेदार िपता ने अपने मन म उमड़ रही
भावना को प क प म उड़लते ए प िलखा िक तुम सब ब ने अब तक मुझे तमाम स ताएँ दी ह और
इसिलए तुम लोग भिव य म तमाम स ताएँ पाने क अिधकारी हो। पर साथ म एक अिमट स य यह भी ह िक

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अब तु हारी शादी हो चुक ह और तुम दूर रहोगी इसका दुःख मुझे सालता रहगा।
साथ ही उ ह ने अपनी बेटी को सलाह दी िक वह अपनी माता को आदश बनाए और उनक तरह प नी क
भूिमका िनभाए। यिद तुम ऐसा करोगी तो आने वाले साल म िलचफ ड तु ह न िसफ यार करगा वर तु हारी
उसी तरह पूजा करगा जैसे म तु हारी माँ क पूजा करता ।
िलचफ ड गरिमय क िदन म एक चाय-पाट आयोिजत करते थे िजसम वे कॉलेज क छा गीत गाते थे, िज ह
िलचफ ड पढ़ाया करते थे। शादी क बाद हर गरिमय म डारिवन प रवार उपरो समूह को अपने मकान ‘डाउन’
म आमंि त िकया करता था। इन पािटय का िववरण हनरी ए ा ने अपनी पु तक म िदया जो इस प रवार क 100
प का संकलन था। उसक अनुसार यह िनमं ण अ यंत मू यवा आ करता था। इसम 60-70 लोग भाग लेते थे
िजनका वागत चा स और ए मा वयं िकया करते थे। लॉन म चाय का आयोजन होता था और डारिवन दंपि
घूम-घूमकर सभी क देखभाल करते थे और गीत का भी आनंद लेते थे।
चा स और ए मा अपने बेटी-दामाद से िमलने भी जाते थे और उनक घर म उ ह बड़ा सुकन िमलता था। 4
ायन टोन ीट लंदन थत इस मकान म वे अपनी अलग िदनचया मनाते थे।
लंदन म ही चा स अपने भाई एरा मस क घर ीन एन ीट पर भी जाते थे और वहाँ पर उनका बेटा जॉज
उनक िलए दावत का आयोजन िकया करता था। जॉज उ ह तरह-तरह क चुटकले भी सुनाया करता था। वह एक
पल क िलए भी उ ह शांित से नह बैठने देता था।
अपने पा रवा रक जीवन से चा स अ यंत संतु थे। इस बात का उ ेख उ ह ने ह सली को िलखे अपने प
म भी िकया।
बाद म सभी क कहने पर उ ह ने एक महीने क िलए लंदन म मकान भी िलया। वहाँ रहते ए उ ह ने पाया िक
उनक िम व ेरक ह सली काम क दवाब से टट रह ह। साथ ही एक मुकदमे क कारण खासे परशान ह।
ीमती लाइल ने चा स को सुझाव िदया िक यिद उनक चंद िम िमलकर उ ह उपहार व प कछ रािश दे द
तो वे इस थित से उबर सकते ह।
डारिवन को यह िवचार भा गया। उ ह ने त काल अपने चंद िम क सहायता से इ स सौ प ड एकि त
िकए। पर इस रकम को िकस कार िदया जाए इस पर मश त करनी पड़ी। उ ह डर था िक वािभमानी ह सली
कह इस बात पर नाराज न हो जाएँ। गहर मंथन क प ा चा स ने सधे श द म ह सली को प िलखा। उनक
खुशी का तब पारावार न था जब उ ह पता चला िक ह सली ने भट वीकार कर ली। इसी तरह क स ता चा स
को तब ई थी जब उ ह ने कित-िव ानी वालेस को पशन िदलाने क अिभयान म सफलतापूवक भाग िलया था।
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योग का अनवरत िसलिसला
चा स डारिवन को सबसे अिधक आनंद अपने योग म ही आता था। इस बात को उ ह ने अपनी आ मकथा म
भी दज िकया।
स 1872 म उ ह ने योग का एक नया िसलिसला ारभ िकया। उ ह ने मनु य व पशु म भावना का
भाव कसे और िकतना होता ह यह जानने क िलए योग ारभ िकए। उनका इरादा क ड़ा खाने वाले पौध क
गितिविधय और सू म क ट (वम) क अ ययन का भी था।
उपरो सभी योग न िसफ अपनी ि व ल य क िहसाब से सफल रह वर उ ह ने डारिवन क जीवो पि
िस ांत को भी सश िकया। अपनी रचना िडसट ऑफ मैन म उ ह ने यह बताया था िक मनु य व िन न- ािणय
म िसफ िड ी का अंतर ह कोई मौिलक अंतर नही ह।
उ ह ने योग ारा यह सािबत िकया िक िन न- ेणी क ाणी भी वैसे ही भावना का अनुभव करते ह जैसे
िक मनु य और उसी तरह य भी करते ह। उ ह ने इस िवषय पर अपनी पु तक भी ारभ कर दी िजसका शीषक
था ‘‘िद ए सपै्रशन ऑफ िद इमोश स इन मैन एंड एनीम स’’।
अपने योग क प रणाम क िलए वे लोक-िवचार पर िनभर नह रहते थे वर वयं िनरी ण िकया करते थे।
उ ह ने अपने मकान ‘‘डाउन’’ म ही तमाम ािणय व अपने ब का अवलोकन ारभ िकया।

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उ ह ने अपने आस-पास क ािणय का भी बारीक से अवलोकन िकया। उनक एक िम एक बड़ पागलखाने
क भारी थे और उ ह ने अपने यहाँ डारिवन को अ ययन क अनुमित दे दी।
डारिवन ने अपनी आव यकतानुसार माण ज दी ही एकि त कर िलए। इस बार म उनक िदलच पी तब और
गहरी हो गई जब उ ह ने िकसी का व य सुना िजसक अनुसार चेहर पर िवशेष माँसपेिशयाँ होती ह जो िविभ
भावना मक थितय को दशाती ह।
ारभ म चा स को एक पा यपु तक म दज उपरो कथन पर िव ास नह आ। उ ह याद था िक स 1839
म जब उनका पु िविलयम िजसे वे यार से िम. होडी-डोडी कहा करते थे ज मा था, तो उ ह ने उसक चेहर का
बारीक से अ ययन िकया था और वह िविभ भावना को चेहर ारा य कर लेता था। उसक चेहर क
थित अलग िक म क थी पर बाद म वह अ स ता क मामूली थित को भी अपने चेहर ारा य कर लेता
था।
अब डारिवन ने अ य लोग क चेहर को भाँपना भी ारभ कर िदया। एक बार उ ह ने रल क िड बे म बैठी एक
वृ मिहला को यान से देखा। देखते ही लगा िक वह िनराशा क भंवर म गोते लगा रही ह।
डारिवन ने य ही उसक दुःख का कारण पूछा उसक आँख भर आई। संभवतः उस मिहला क इ छा अपना
दुःख सावजिनक करने क नह थी पर उसक चेहर क माँस-पेिशय ने वतः ही ऐसा कर िदया।
चेहर क माँसपेिशयाँ ारभ से ही िच कार , मूितकार , लेखक आिद क िलए िज ासा क व तुएँ रह ह। वे
माँसपेिशय क थित समझने, दशाने का काय ाचीन-काल से बखूबी करते रह ह। डारिवन ने यूनानी मूितकार
क ाचीन मूितयाँ यान से देख । पर उ ह ने पाया िक उ ह ने अपनी कला क स दय को बनाए रखने क िलए स य
को िछपा िदया। यह काय उ ह ने संभवतः जान-बूझकर ही िकया होगा।
अब उ ह ने जानवर क चेहर क भाव को पढ़ना ारभ िकया। उ ह ने अपने क े बॉब का सव थम अ ययन
िकया। उ ह ने पाया िक उनका क ा तब सबसे अिधक स होता ह जब वह अपने मािलक क साथ चलता ह।
उस समय उसका िसर व पूँछ दोन ऊपर होते थे। पर य ही डारिवन उसे छोड़कर अपने ीन-हाउस क ओर
मुड़ते थे, बॉब क िसर व पूँछ दोन लुढ़क जाते थे। उसक चेहर से लगने लगता था िक वह िनराश हो चुका ह और
उस पर दया आने लगती थी।
यह बात पूर प रवार को मालूम थी। डारिवन मनु य तो या, िकसी भी जीव को दुखी नह करना चाहते थे पर
अपने अ ययन क िलए उ ह यह योग कई बार दोहराना पड़ा। उ ह िव ास हो गया िक मनु य क ही तरह पशु
भी अपने चेहर पर दुःख, िनराशा, स ता, ोध, आ मण क भाव दशा लेते ह।
डारिवन ने अनेक योग िकए। उ ह ने पाया िक जब मनु य आ यचिकत होता ह तो यह उसक आँख से
झलकने लगता ह। उसका मुँह खुला रह जाता ह और भौह तन जाती ह। इसी तरह जब वह िव ोही मु ा म होता तो
उसका िसर और शरीर सीधा तन जाता ह। उसक मु याँ कस जाती ह। कई बार जब हसी लंबी हो जाती ह तो
आँख म आँसू भर आते ह।
योग क दौरान 16 कार क न उभर। जब उ र सामने आए तो िन न त य सामने आए—
1. दुःख, स ता, ोध व अ य भावनाएँ सभी मनु य क एक जैसी होती ह। चाह वे कह भी रहते ह और
िकतने ही कम या यादा स य ह ।

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2. आँस,ू मु कान, ोध का ार सभी मनु य म एक से भाव उ प करता ह।
इस कार डारिवन ने एक और त य उजागर िकया िक सभी लोग एक ही मूल माता-िपता क संतान ह और
बाद म मूल (रस) बने। अपनी इस बात को उ ह ने ‘‘ए स ेशन ऑफ इमोश स’’ म दज िकया और यह पु तक
स 1872 म कािशत ई। य ही यह पु तक बाजार म आई इसक 5,267 ितयाँ हाथ -हाथ िबक गई।
डारिवन एक पु तक क ूफ को वीकित देने से पूव ही अगले योग ारभ कर देते थे। 22 अग त, 1872 को
उ ह ने अगले योग का िसलिसला ारभ कर िदया। उ ह ने माँसाहारी पौध का अ ययन ारभ कर िदया। इस
िवषय म उनक पुरानी िच थी। स 1860 म जब वे अपनी रचना ‘‘ओ रिजन’’ से उपजी उथल-पुथल क बाद
हाटफ ड म िव ाम कर रह थे तो उ ह ने ससे स क पास ामीण इलाक का दौरा िकया था। उ ह ने वहाँ पर
अनेक ऐसे पौधे देखे जो क ड़ को लपेट लेते थे और उ ह हजम कर जाते थे।
चा स ने इन पौध को बड़ गौर से देखना ारभ िकया। उ ह ने पाया िक इन पौध म क ड़ को फसाने का एक
सश तं होता ह। इसक एक-एक प ी ही तेरह-तेरह क ड़ को फसा कर हजम कर जाती ह। चा स का य -
य इस बार म अ ययन बढ़ा उनक िदलच पी भी बढ़ती चली गई।
जब वे अपने मकान ‘डाउन’ म वापस आए तो अपने साथ अनेक ऐसे पौधे भी ले आए। समय क साथ उ ह ने
इसका रह य भी खोज िनकाला। उ ह ने पाया िक उनक पि य क नोक पर संवेदनशील ंिथयाँ होती ह। इनक
ज रए एक अ ुत ाव िनकलने लगता ह और यह ाव सूय क रोशनी म ओस क मोती क तरह चमकता रहता
ह।
पर जब कोई क ड़ा उसक प ी क संपक म आता ह तो ये पि याँ चौक ी हो जाती ह और उसी तरह मुड़ने
लग जाती ह जैसे िक हाथ क उगिलयाँ मुड़कर मु ी बना लेती ह।
डारिवन ने इस गितिविध को िवशलक शीशे से बारीक से देखा और पाया िक यह काय मा दस सेकड से कम
समय म संप हो जाता ह। इस दौरान वह बदनसीब क ड़ा जो फल क स दय और सुगंध क आकषण म आया था
इसक चपेट म आ जाता ह। वह ात उसक अंग को उसी कार गलने लगता ह जैसे िक सां अ ल मानव अंग
को।
ऐसे एक पौधे का नाम रखा गया सन- यू अथा सूय ओस और इसका वन पित शा संबंधी नाम था ोसेरा।
यह अपने अंदर गए क ड़ क िलए एक अ थायी उदर (पेट) का काय करता ह। अपने आहार को वह एक
वािद सूप का प दे देता ह और चट कर जाता ह। यह फल एक जानवर क भाँित क ड़ सटकता रहता ह।
इसे अपना आहार पचाने म एक से लेकर सात िदन एक लगते ह और िफर यह क ड़ क भ ण क िलए तैयार
हो जाता ह। इसक अनुसंधान म डारिवन को इस कदर आनंद आया िक वे अ य ािणय को भूल गए।
उनक प नी ए मा भी इस दौरान आ यचिकत थ । ीमती लाइल को िलखे प म उ ह ने चुटक ली िक इस
गरमी म चा स पूरी तरह ोसेरा क पीछ पड़ ह और अ य जानवर को भूल गए ह। पर लगता ह िक वे अपने
अनुसंधान क बाद इस सुंदर फल को भी जानवर ही घोिषत कर दगे।
ए मा कभी अपने पित क काम क गहराई म नह जाती थी पर इस बार वह आ यजनक प से सही सािबत
ई। माँसाहारी पौध से संबंिधत अनुसंधान म चा स ने कल पं ह वष लगाए और अंततः उ ह अ य माँसाहारी
जानवर क समतु य सािबत कर िदया।
उ ह ने अपने एक योग क दौरान प रक पना क िक यह फल नाइ ोजन यु पदाथ चाहता ह। उ ह ने ोसेरा

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क पंखड़ी क पास एक भुने ए माँस का अ यंत छोटा टकडा रखा। उसक पि य ने वैसा ही यवहार िकया और
उसे गटक गई। अब यह योग बार-बार दोहराया गया। अंड का सफद भाग व अ य नाई ोजन यु पदाथ एक-
एक करक इसक पास लाए गए और फल ने हर बार वैसा ही यवहार िकया।
अब डारिवन ने अलग कोण से योग ारभ िकया। उ ह ने माँस क टकड़ को छोट-से-छोटा करना ारभ िकया।
उनका उ े य था िक िकतना छोटा टकड़ा इस अ ुत फल को सि य कर सकता ह। उ ह ने मिहला क बाल
क नोक क बराबर अथा लगभग 1/125 इच लंबा बाल का टकड़ा िजसका भार मा .000822 िमली ाम था,
इस फल क िनकट रखा पर फल उससे भी संवेदनशील हो गया और उसी िविध से उसे गटक गया।
डारिवन ने इस तरह यह सािबत करने क चे ा क िक उस फल क संवेदनशीलता मनु य से अिधक ह य िक
जब उ ह ने अपनी जीभ पर उससे दुगुना लगभग 1/50 इच लंबा बाल का टकड़ा रखा तो उ ह कोई अनुभूित नह
ई।
समय क साथ डारिवन इस फल से अिधक भािवत होते जा रह थे। उ ह ने उसे कित का सबसे अिधक
उ ेखनीय त य बतलाया। उ ह ने ोसेरा क पाचन मता का भी आकलन िकया और पाया िक िजस तरह
इसक पंखुिड़या अित संवेदनशील ह उसी कार उसका पाचन तं भी जोरदार ह। यह फल भुने ए माँस का एक
यूब 48 घंट म लगभग हजम कर जाता ह। जब उ ह ने इस अविध क प ा शेष बचे पदाथ क माइ ो कोप से
जाँच क तो पाया िक माँस क माँसपेिशय का एक महीन टकड़ा मा बच गया ह।
उ ह ने आस-पास क तरल पदाथ को यान से देखा तो पाया िक उसम गहर रग क चंद िबंदु ह। उ ह ने मनु य
क पाचन-तं का अ ययन िकया और पाया िक उदर म मौजूद पाचक-रस पहले माँस को घुलाते ह और उसक
बाद हजम करने क ि या ारभ होती ह िजनमे वे गहर िबंदु भी साफ हो जाते ह। इस कार डारिवन ने नए िसर
से सािबत कर िदया िक यह पौधा भी माँस को वैसे ही हजम करता ह जैसे अ य जानवर करते ह। उ ह ने यह भी
पाया िक ािणय क उदर म जो पे सन व हाइ ो ो रक अ ल मौजूद रहते ह उनम और ोसेरा क ाव म काफ
सा यता ह।
अपनी बात को समा करते ए उ ह ने िफर अपने मूल िबंदु पर बल िदया िक जीवन का ारभ एक ही िबंदु से
ारभ आ ह। उनक पु तक ‘इसे टीवोरस लांट’ जुलाई स 1875 म कािशत ई। इस पु तक म लोग क
िदलच पी ब त यादा थी। इस बात का उ ेख उ ह ने अपनी आ मकथा म भी िकया और कहा िक इस
अनुसंधान से उ ह पया आ मसंतुि िमली ह।

चलने वाले पौधे


डारिवन को पौध पर अनुसंधान करना ब त भाता था। यह काम उ ह पु तक िलखने या सामा य अनुसंधान
करने से अिधक सरल लगता था। उ ह ने इसे आगे भी जारी रखा। इस संबंध मे जब भी कोई चचा चलती तो वे उसे
बड़ यान से सुनते थे और उसक िकसी िबंदु को पकड़ कर अनुसंधान ारभ कर देते थे।
स 1860 क दशक म उनक एक िम आसा े ने एक शोध-प पढ़ा था। उसम उ ह ने बेल क मुड़ने, कडली
बनाने पर चचा क । डारिवन का यान तपाक क इस िवषय पर आ गया और उ ह ने एक प रक पना िवकिसत क
िक पौधे भी चल सकते ह। इससे पूव तक िवशेष का मानना था िक पौध व चर ािणय म मु य अंतर इसिलए
होता ह य िक पौधे अचर ह और ाणी चर ह।
डारिवन ने शोध ारभ कर िदया। इसक ारिभक दौर म उ ह ने 100 से अिधक िविवध ािणय का अ ययन

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िकया। साथ ही उ ह ने अपने ीन-हाउस म तमाम बेल लगा डाल पर उ ह ये अपया लग और उ ह ने अपने
िबिलयड- म को एक नई योगशाला म प रवितत कर िदया।
डारिवन ने एक जंगली जाित कोकबर से िव तृत अ ययन ारभ िकया। उ ह ने इसक बढ़त को बड़ी बारीक
से देखा और पाया िक इसक हर शाखा का अ -भाग धीर-धीर पर लगातार मुड़ता रहता ह तथा एक गोला जैसा
बनाता जाता ह। यह गोला-सा लगभग आधे से दो घंट क बीच पूरा होता ह। कई बार गोला दोहरा-ितहारा भी बन
जाता ह और िफर यह दूसरी िदशा म बनने लगता ह।
बेल क इस अटपट िवकास से डारिवन चिकत थे और ारभ म उ ह इससे संबंिधत कोई सुराग िमल नह रहा
था। उ ह ने सहायता क िलए िम कर को पुकारा और प म िलखा िक आप भी बेल क यवहार को यान से
देिखए या यह आपको भी अटपटा लग रहा ह।
उ ह िदन चा स को थकान, िशिथलता और नाक बहने क भी िशकायत रही। इस बार थित इस कदर गंभीर
थी िक कई ह ते तक वे अपने कमर से बाहर ही नह िनकल पाए। पर तभी उ ह ने एक पौधा जो रोपा था, क
अंकर को िनहारना ारभ कर िदया।
ारभ म यह मा पौने दो इच लंबा था। इसको िनहारते-िनहारते डारिवन अपने क वे परशािनय को भूल गए
और उ ह ने उस बेल को इस तरह बाँधा िक उसका सामने वाला भाग गितिविध क िलए वतं रह।
ारभ म लगा िक यह अचल ह पर अगले िदन ातः डारिवन ने पाया िक 9 घंट म उसने एक गोला बना िलया
ह। अब वे इसे अपने सोफ दर बैठ-बैठ देखते रहते थे। उ ह ने पाया िक इस बेल ने 37 च पूर िकए और इसक
बाद वह सीधी हो गई। उसका आगे बढ़ना बंद हो गया।
उ ह ने िन कष िनकाला िक ये बेल आगे बढ़ती ह और जब िकसी व तु या िपंड से टकराती ह तो ये उसक चार
ओर घेरा डाल लेती ह। इसक बाद इसक कोमल भाग िसकड़ने लगते ह और यह मजबूत होती जाती ह। उ ह ने
यह भी पाया िक ये चढ़ने वाली बेल काश पाने का यास करती ह। ये अपनी थित ऐसी बनाने का यास करती
ह तािक इनक पि य को अिधकािधक हवा िमल सक।
ये बेल लगभग उसी तरह से यास करती ह जैसे िक एक बड़ा पेड़ करता ह। पर बड़ पेड़ क पास एक मोटा व
मजबूत तना होता ह िजस पर उसक शाखाएँ और पि याँ िटक रहती ह।
डारिवन ने इन बेल क बार म िकए लंबे अ ययन को अपनी पु तक ‘‘िद मूवम स एंड हिब स ऑफ
ाइ बंग लां स’’ म दज िकया। पर इसम एक रह य अनसुलझा ही रह गया और वह यह था िक अनेक पौध
म चढ़ने या आगे बढ़ने का गुण तभी हो सकता ह जबिक सभी पौध म यह गुण थोड़ी-ब त मा ा म हो। यिद ऐसा
न हो तो डारिवन क जीवो पि िस ांत पर ही न िच ह लग जाएगा।
वे लगे रह और इस रह य पर से पदाफाश उ ह ने अपनी अगली पु तक ‘‘िद पावर ऑफ मूवमट इन लां स’’
म िकया जो िक स 1880 म कािशत ई। इस तरह उ ह ने यह भी बताने क कोिशश क िक पौधे अ य चर-
ािणय क तरह आगे बढ़ भी सकते ह और अपना भोजन पकड़ भी सकते ह। उ ह यह भी संदेह आ िक शायद
दोन का जनन-तं भी एक जैसा ही ह।
अपने संदेह को सािबत करने क िलए उ ह ने दो या रयाँ तैयार करवाई। एक म बीज से फ फिटलाइजेशन वाले
थे और दूसर म ॉस फिटटलाइजेशन वाले। डारिवन ने देखा िक से फ फिटलाइजेशन वाले बीज क यारी म जो

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पौधे उग गए थे उनक गुणव ा हर कार से कमजोर थी। उनक ऊचाई भी कम थी और पौधे भी लटक-लटक से
थे।
अगले समय उ ह ने यही योग िफर से दोहराया और पाया िक प रणाम वैसे ही थे। वे इस योग को लगातार
यारह वष तक दोहराते रह।
इससे पहले उ ह ने आिकड पर काम िकया था और पाया था। िक एक पौधे क पराग को दूसर पौधे तक ले
जाने से जो ॉस फिटलाइजेशन होता ह उससे एक-से-एक जिटल पर अ ुत जाितयाँ तैयार होती ह। यह
िसलिसला अनेक प से चलता रहता ह। इस भाव का वणन उ ह ने अपनी पु तक ‘‘िद इफ स ऑफ ॉस
एंड से फ फिटलाइजेशन’’ म िकया जो स 1876 म कािशत ई।
इसी साल उ ह न उसी से संबंिधत िवषय पर एक और पु तक तैयार कर दी िजसका शीषक था ‘‘िद िडफरट
फॉमस ऑफ लावस ऑन लां स ऑफ िद सेम पेसीज’’। इस पु तक क आने से पूव वन पित-शा ी इस बात
से चिकत रहते थे िक एक ही पेड़ पर दो या अिधक कार क फल कसे उगते ह। डारिवन ने अपने अनुसंधान
ारा यह सािबत िकया िक ये अलग-अलग िदखने वाले फल वा तव म सामा य एक-िलंग ािणय क नर और
मादा क तरह एक दूसर से संबंिधत ह। यह ि या मूलतः अनुकलन ह जो ॉस फिटलाइजेशन को सुिन त
करती ह और इसम जो सवािधक श शाली होता ह वही अपना अ त व बचा पाता ह। यह भी कहा जा सकता ह
िक फल क संरचना का अंितम उ े य ॉस फिटलाइजेशन ह।
पर इन छोटी-छोटी खोज से डारिवन को अिधक संतुि नह िमली। उ ह लगता था। िक ॉस फिटलाइजेशन क
कारण ही फल क जाितयाँ बची ई ह।
डारिवन का अपने समकालीन वन पित शा य से संबंध व प - यवहार लगातार बना रहा। वन पित-शा ी
आसा े ने स 1874 म नेचर पि का क एक अंक म उनक भू र-भू र शंसा क और िलखा िक उ ह ने अपने
ाकितक वरण िस ांत को अनेक ि य व अनेक कोण से सािबत िकया ह। उ ह ने यह भी कहा िक लीिनयस
ने तथा उनक बाद क वै ािनक ने अब तक जो काय िकया ह उनम डारिवन का काम सव े ह।
अपने जीवन-काल म ही चा स डारिवन े तम जीव-वै ािनक माने जाने लगे थे पर डारिवन ऐसा नह मानते
थे। वे दूसर क काम को े तर मानते थे। उ ह िदन एक जमन वन पित-शा ी ने उनक वन पित-शा संबंधी
काय क एक सूची तैयार क । इस पर डारिवन ने आ य य करते ए कहा िक मने इनता काम कर िदया ह।
इस पर तो मुझे भी िव ास नह होता ह। संभवतः यह आप लोग क उदारता ह जो मेर काम को बड़ा करक
आकलन िकया जा रहा ह।
डारिवन आजीवन वन पित शा संबंधी काय करते रह और उ ह ने कभी थकान का अनुभव नह िकया। कित
उ ह लगातार ऊजा दान करती रही। उ ह कभी सहायक क भी आव यकता महसूस नह ई।
पर ाकितक कारण से उ ह एक सहायक िमल ही गया। उनक पु ांक ने िचिक सा-शा का अ ययन
िकया था पर उ ह ने िचिक सा का पेशा कभी नह अपनाया। उनक िच वन पित-शा म थी। युवा ांक
( ांिसस) का िववाह आ पर उनक प नी अपने बेट बनाड को ज म देते समय वग िसधार गई। िपता ांक
अपने नवजात िशशु को लेकर अपने िपता क मकान ‘डाउन’ म आ गया।
इस तरह चा स को अपने अनुसंधान काय क िलए एक सिचव िमल गया और डारिवन प रवार को बनाड क
प म िखलौना। जब भी बनाड रोता था तो चा स अपनी जेब म रखा िवशालक शीशा िनकालते और उसक

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सहायता से चमकदार िबंदु को िदखा कर पोते को स करते रहते थे।
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बड़ा पर सुखी प रवार
चा स क शेष पु का िववाह भी यथासमय आ और उ ह ने िपता से अलग अपने-अपने घर बसाए। वे अपने
बचपन क घर ‘डाउन’ से दूर अव य रहते थे पर संबंध म ढीलापन कभी नह आया।
िविलयम डारिवन बकर बना। वह साउथपटन म रहने गया। जाज डारिवन कि ज म खगोल-शा का ोफसर
बना। होरस डारिवन भी कि ज म ही बस गया और उसने वै ािनक उपकरण का िविनमाण ारभ िकया। िलयोनाड
डारिवन सेना म अिधकारी बना। ये सबक-सब अपनी प नय व ब क साथ अपने बचपन क मकान ‘डाउन’ म
अपने माता-िपता से िमलने समय-समय पर आते रह।
चा स डारिवन अपनी पु -वधु को बेिटय क तरह यार करते थे। जब उनक पु िविलयम का िववाह सारा
सेजिवक से तय आ तो उ ह ने अपनी भावी पु -वधु को प िलखा िजसम उ ह ने अपनी सारी भावनाएँ उड़लते
ए कहा िक मुझे अपने पु क भा य खुलने पर असीम स ता हो रही ह। उनक अनुसार यिद साथ म यार करने
वाली प नी न हो तो जीवन शू य सा हो जाता ह। अपनी ब को भरोसा िदलाते ए चा स ने िलखा िक िविलयम ने
जीवन म ऐसा कोई काम नह िकया ह िजससे उ ह कभी कोई िचंता या दुःख आ हो। उसका वभाव मीठा ह
और उसका दय म खन जैसा ह।
भावी दंपि क ित शुभकामनाएँ य करते ए उ ह ने िलखा िक मेरी हािदक इ छा ह िक तुम दोन स

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रहो और िविलयम को अपना पित वीकार करने क िलए म तु हारा तह-िदल से शुि या अदा करता ।
डारिवन अपने पु से ब त संतु थे। जब उनक बेट जॉज को एक स मान िमला तो उ ह ने िलखा िक भगवा
ने उ ह जो पु िदए वे सभी अ ुत काय करक िदखा रह ह। यह घोषणा उ ह ने ब त पहले कर दी थी और बाद
म उनक पु जॉज, ांक तथा होरस को सर क उपािधय से नवाजा गया।
बाद क काल म ांक डारिवन ‘ि िटश असोिसएशन फोर िद एडवांसमट ऑफ साइस’ क अ य बने।
िलयोनाड तो दो सं था ‘यूजेिन स सोसाइटी’ तथा ‘रॉयल िजयो ािफकल सोसाइटी’ क अ य बने।
उनक नाितन वेन रवरट ने अपनी रचना म अपने पाँच मामा अथा चा स डारिवन क पाँच पु क गुण
का वणन िकया। उसक अनुसार िजतना वह वणन कर रही ह उसक ये मामा उससे कह बेहतर थे। यह इस कदर
स य ह िक कई बार उसे वयं लगता िक या उसक ये मामा इसी साधारण से िदखने वाले बदसूरत संसार क
िनवासी ह। अपने बचपन क याद को ताजा करते ए लेिखका ने आगे िलखा िक इन लोग को कभी िकसी कार
क परशानी नह ई और इ ह ने अपने िविश व स माननीय थान आसानी से बना िलए। उ ह ने क णा और
स मान पाया और वही बाँटते रह। नाना चा स इस कदर सिह णु थे िक य व क टकराने का न ही नह
उठा। उनक सोच का दायरा इतना वृहद था िक बेट को अपनी अलग सोच बनाने का अवसर ही नह िमला।
उनक पीछ िपता क अ ुत पृ भूिम थी जो उ ह आगे बढ़ाती रही।
हालाँिक वेन रवारट ने यह भी कहा िक आम प रवार म इतनी स ता तथा सुर ा का वातावरण न तो होता ह
और न ही होना चािहए। थोड़ी ब त नोक-झ क, कछ स ती बेहतर ही होती ह।
जब ब े ‘डाउन’ से दूर अपने प रवार म म त होते तो भी ‘डाउन’ म जीवंत वातावरण ही होता था। पित-प नी
काम भी करते थे और आराम भी। वे टहलते भी थे और जब थक जाते तो बैठकर पढ़ते भी थे। पित-प नी खेल भी
खेलते थे और हार-जीत का लेखा-जोखा भी करते थे। स 1876 म आसा े को िलखे एक प म चा स ने िलखा
िक बेचारी गरीब ए मा िसफ 249 गेम जीत पाई जबिक मने 2,795 गेम जीत िलए और इसक साथ ही उ ह ने
अपनी जीत क खुशी को श द म य कर िदया।
हालाँिक वे शांत जीवन पसंद करते थे पर िफर भी बतौर वै ािनक ब त सार वै ािनक िवषय से संबंिधत
कायवािहय म भाग लेना पड़ता था। कभी-कभी वे आव यकतानुसार मुखर भी हो जाते थे।
पर वे दूसर क पीड़ा नह सहन कर पाते थे। एक बार उ ह ने देखा िक दूसरी घोड़ा-गाड़ी का कोचवान अपने
घोड़ को पीट रहा ह। वे तुरत अपनी घोड़ा-गाड़ी से कद पड़ और उ ह ने उस कोचवान को जाकर रोका। घोड़ क
दद से वे इस कदर यिथत थे िक जब वे लौट तो उनका चेहरा मार दुःख क पीला पड़ गया था।
उनका अपना कोचवान भी कभी उनक सामने घोड़ को चाबुक नह मार पाता था। एक बार एक अितिथ को
लाने जब डारिवन क घोड़ा-गाड़ी गई तो अितिथ ने ज दी प चने क धुन म कोचवान से चाबुक चलाने को कहा।
पर कोचवान ने अपनी मािलक का िक सा सुनाते ए असमथता य क और कहा िक यिद उसने ऐसा िकया तो
मािलक उसे भी नह छोडगे।
डारिवन को यह पता था िक यिद घोड़ से बेहतर काम लेना ह तो उनक न ल सुधारनी होगी। इसक िलए तरह-
तरह क योग करने ह गे। इस तरह मारने-पीटने से कछ नह होगा। यह बात उ ह ने ‘िद टाइ स’ अखबार तथा
रॉयल कमीशन जैसे संगठन को प िलखकर भी कही।

@BOOKHOUSE1
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कचु पर अनुसंधान
जब चा स बीगल क या ा से लौट थे तो ‘मायर’ मकान म उनक मामा जोिसयाह वेजवुड ने लॉन म बैठ-बैठ
िट पणी क िक ये कचुए बड़ी मा ा म पृ वी क नीचे से िम ी ऊपर लाते रहते ह। उनक इस कथन से युवाव था
म ही चा स क िच इन कचु मे िवकिसत हो चुक थी।
पर बाद क काल म य तता क कारण उ ह इन कचु पर अनुसंधान करने का समय नह िमला। पर स
1870 क दशक क अंितम वष म उनका ब त सारा काय समा हो चुका था और अब उ ह ने इस िवषय पर
तरह-तरह क योग ारभ िकए। कचु क बार म ान को सावजािनक करने क अलावा उनका एक और
उ े य था और वह यह था िक वे अपने जीवो पि क िस ांत को हर िदशा म सािबत करना चाहते थे।
उ ह ने मायर मकान क पास पड़ी जमीन म स 1827 म चूना डलवाया था। बाद म जब उ ह ने उस जमीन पर
छद करक देखा तो पाया िक चूने क अंश जमीन क ढाई इच नीचे तक प च गए थे। उ ह ने उससे िन कष िनकाला
िक इससे ऊपर क िम ी अलग से िबछाई गई ह। यह काय इन न ह, िलजिलजे कचु ने ही िकया होगा चा स
को िव ास होने लगा। ये कचुए नीचे से जो िम ी लाते ह वह ऊपरी सतह पर जमा होती ह और हर साल होने
वाली बा रश इसे िबछा देती ह।
डारिवन ने स 1837 म ही इस संबंध म एक शोध-प तैयार िकया था जो लंदन थत भूगभ शा ीय सोसाइटी

@BOOKHOUSE1
म पढ़ा गया था। पर इस पर िति याएँ धीमी गित से आई। लगभग दस साल बाद एम.डी. आिकयाक ने इसक
तीखी आलोचना क । इसक बाद िफर कई साल िनकल गए। िति या का इतजार होता रहा।
िफर ‘गाडनर ोिनक स’ म एक लेखक ने चा स डारिवन क कचुए संबंधी अनुसंधान व िन कष का उपहास
िकया। उ ह ने िलखा िक ये कचुए इतने छोट और इस कदर कमजोर ह िक इतना बड़ा व उपयोगी काय वे कर ही
नह सकते ह। उ ह ने डारिवन क बात को मूखतापूण बताया।
उपरो लेख स 1869 म कािशत आ था। डारिवन ने अब िन य कर िलया िक वे अपनी बात को अब
वै ािनक प से तुत करगे और माण सिहत दुिनया क सामने ले जाएँग।े साथ ही उनक अब तक क मा यता
और ढ़ हो गई। उ ह ने कहा िक न िसफ िम ी म वर पूर िव म ब त धीमी गित से अनेक ि याएँ चलती
रहती ह िजनका कल प रणाम च काने वाला होता ह।
पहली बार डारिवन ने अपने शोध-प म िलखी भाषा म स ती लाते ए कहा िक यिद हम अ यंत धीमी गित से
चल रह अनवर प रवतन को कशलता से जोड़कर सावजिनक करने म असफल रहगे तो हमार िव ान क गित
क ऱ तार धीमी ही रह जाएगी।
जीवन क अंितम दौर म जब डारिवन ने इन कचु पर अनुसंधान ारभ िकया तो माण का ढर लगाना ारभ
कर िदया। अपने मकान ‘डाउन’ म उ ह ने ित वग इच जमीन म कचु क चलने क िनशान क गणना ारभ
कर दी। उ ह ने कचु क जीवन, आदत , शरीर रचना-शा आिद का भी अ ययन ारभ कर िदया। इतने छोट
जीव का इतना िव तृत और गहराई से अ ययन पहली बार चला।
वे अ सर एक बतन म कचुए भरकर ले जाते थे और अपने अ ययन क म उनका कई-कई िदन लगातार िदन-
रात अ ययन करते थे। वे न िसफ उ ह िनहारते वर उनक साथ तरह-तरह क योग भी करते थे। उनक इस दशा
को देख कर उनक प नी ए मा कहा करती थ िक वे इन कचु को िश ण दे रह ह।
उस समय एक मा यता यह थी िक कचुए काश क ित ब त संवेदनशील ह। पर जब डारिवन ने इसक जाँच
क िलए रात को कचुए से भर बतन को िबना कोई आवाज िकए पलट िदया और एक लाल या नीली लालटन का
पतला पुंज उन पर डाला तो पाया िक उन पर कोई भाव नह पड़ा ह। पर जब उ ह ने अपने िवशालक शीशे क
सहायता से उन पर काश को कि त िकया तो वे छटपटाते ए अपने िबल म उसी कार घुस गए जैसे िक
खरगोश अपने दरबे म घुस जाता ह।
डारिवन इन न ह कचु पर विन और कपन का भाव भी जाँचना चाहते थे। उ ह ने कचु से भर बतन म
तीखी सीटी बजाई। उ ह ने पाया िक इन कचु पर इसका कोई भाव नह पड़ा। अब उ ह ने अनेक कार क
तीखे विन कपन उ प िकए। पर भाव नह आ।
पर अभी तक वे िकसी िन कष पर नह आ पा रह थे। अब वे कचु से भरा बतन अपने िपयान क पास ले
आए। जब उ ह ने उस c नोट दबाया तो उ ह ने उसका कचु पर भाव देखा।
सभी लोग अब सफद दाढ़ी वाले वै ािनक को इन छोट िलजिलजे िघनौने से कचु से जूझते ए देखकर
चिकत हो रह थे। कचु क साथ उनका यह सफर दशक पुराना हो चुका था। स 1841 म उ ह ने ‘डाउन’ क
पास पड़ी खाली जमीन पर हल चलवाया था। उसक बाद उ ह ने इसे लंट क मोटी परत से ढकवा िदया था। यह
काफ मजबूत परत थी और लोग इसे प थर का मैदान कहा करते थे। ब े इस पर दौड़ते थे। यिद घोड़ को भी इस

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पर दौड़ाया जाता था तो इस पर कोई िनशान नह पड़ पाता था।
स 1871 म तीस साल बाद डारिवन को इस मैदान क याद आई और उ ह ने इसे कचु से संबंिधत
अनुसंधान क िलए चुना। जब वे उसे देखने गए तो पाया िक उस मैदान पर अब िम ी क एक तह जम गई ह।
उ ह ने उस मैदान म गड़ प थर क ऊचाई को भी मापा और पाया िक वे नीचे चले गए ह।
जाँच करने पर पता चला िक इन कचु ने प थर क चार ओर क खाली िम ी और नीचे क िम ी को
अपना आिशयाना बना िलया ह। इस कारण अनेक प थर अपने-अपने थान पर या तो धसक गए ह या दूसरी ओर
सरक गए ह।
तमाम मापन और गणना क बाद जब डारिवन अपने घर वापस लौट तो उ ह इन मामूली से बेकार लगने
वाले कचु क चंड श का एहसास हो चुका था। उ ह लग रहा था िक इस तरह तो यादगार माने जाने वाले
प थर भी इन कचु क कमाल क आगे धराशायी हो जाएँगे।
उपरो अनुमान क स यापन म भी देर नह लगी। स 1876 म ‘एिबंगर हॉल’ म ाचीन स यता से संबंिधत
कछ अ वेशष काय चल रहा था। यह जगह लाड फारर क जायदाद थी। इन अ वेषण क दौरान कछ रोमन
अवशेष िमले। संयोगवश लॉड फारर का िववाह हसले वेजवुड क पु ी से आ था और इस नाते चा स डारिवन
क उनसे र तेदारी थी। इस कारण डारिवन प रवार को वह जगह देखने का अवसर िमला।
अगली गरिमय म चा स व ए मा ‘एिबंगर हॉल’ देखने गए जहाँ पर उस समय आगे अ वेषण क िलए ग ा
खोदा जा रहा था। सतह से कई फ ट नीचे खोदने वाल को एक स त चीज िमली जोिक क ट क कवर वाला
ब सा था या छोटी लाल रोमन टाइल।
बाद म अनुमान लगाया गया िक ये टाइल एक रोमन महल क वागत-क क टाइल थ । इसक ऊपर क खेत
को सिदय से जोता जाता रहा था पर िकसी को भी इस बात का अहसास नह था िक इस हरी-भरी धरती क नीचे
एक महान सा ा य क अवशेष दबे पड़ ह।
उस समय इस बात क क पना करना असंभव था िक इतना बड़ा महल कचु ने नीचे दबा िदया होगा। पर
डारिवन ने इसे यान से देखना ारभ िकया। क ट क ऊपर कोई खास भाव देखने को नह िमला। पर य ही
डारिवन ने इन टाइल क नीचे देखना ारभ िकया तो उ ह कचु क कार तानी क भाव देखने को िमले। तीसर
िदन ातः डारिवन तथा लॉड फारर ने जब और यान से देखना ारभ िकया तो उ ह कचु क 25 िबल िदखलाई
िदए। उ ह ने जब उनक ऊपर क िम ी हटाई तो उ ह चार जीिवत कचुए तेजी से भागते ए िदखलाई िदए।
िन कष प था। ये कचुए वष से रोमन इमारत क फश तथा दीवार को नीचे ले जाते रह थे और उनक नीचे
क िम ी को ऊपर ला रह थे। लगभग एक हजार वष क प र म से उ ह ने इस इमारत को इतना नीचे प चा िदया
था िक मनु य को इसक उप थित क भनक भी न लग पाए।
इस आधार पर डारिवन ने गणना ारभ क । उ ह ने पाया िक इ लड क अनेक इलाक म इतने कचुए ह िक वे
ित एकड़ दस टन िम ी हर वष हजम कर जाते ह और वह उनक शरीर से होती ई पृ वी क सतह पर आ
जाती ह। इस कार पूर इ लड क सतह क सारी िम ी इन न ह कचु क पेट म चंद वष म ही चली जाती ह।
ये एक िक म से खेत क जुताई करते ह, िम ी साफ करते ह। उसे एक प बनाते ह और खेती क िलए अिधक
उपयोगी व समृ बनाते ह।
डारिवन ने यह भी िन कष िनकाला िक कित म शायद इतना अिधक उपयोगी ाणी और कोई नह होगा जो

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मनु य क िलए इतनी लाभ- द भूिमका िनभाता होगा। इि फाक क बात यह भी थी िक डॉ. एरा मस डारिवन ने
अपनी पु तक ‘‘जूनोिमया’’ म इन कचु क बार म िट पिणयाँ क थ और लोग का आ ान िकया था िक वे
कचु को अपनी बहन माने। एक शता दी बाद उनक पोते चा स डारिवन ने उनक कथन को योग ारा
स यािपत कर िदखलाया था।
अब डारिवन ने अपने योग व अ य अ ययन को पु तक क प म कलमब करना ारभ िकया। अब तक
लोग इन न ह, िलजिलजे, िघनौने ािणय को ने हीन, वणहीन, मूक, संवेदनहीन माना करते थे। इ ह देखकर
उनका मन खराब हो जाया करता था पर अब डारिवन को िव ास हो गया था िक लोग इ ह सलाम करगे और
इनक बार म यादा-से- यादा जानने का यास करगे।
आिखर य नह । ये जमीन को इस कदर उपजाऊ बना देते ह िक पैदावार काफ बढ़ा देते ह। साथ ही ये इतने
श शाली भी ह िक ाचीन स यता को जमीन क नीचे धँसा देते ह।
डारिवन क पु तक ‘‘िद फामशन ऑफ वेजेटबल मो ड ू िद ए शन ऑफ वमस’’ जब स 1881 म
कािशत ई तो उसे भू र-भू र शंसा िमली। पाठक व समी क दोन ने डारिवन क उ साह क तारीफ क ।
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स मान क झड़ी
कछ लोग को छोट-मोट काय पर ही पुर कार व स मान िमलने लगते ह। पुर कार व स मान मनु य का उ साह
बढ़ाते ह और इसिलए यिद ये ज दी ही हािसल हो जाएँ तो अिधक कागरर िस होते ह।
डारिवन ने अथक प र म िकया। उ ह ने अनुसंधान क िलए ऐसे िवषय चुने जो नए व अछते थे। उनक काय क
जो प रणाम िनकले वे त कालीन सामािजक व धािमक मा यता क िवपरीत थे। उस समय भी ि िटश समाज पर
धम क पकड़ मजबूत थी। अतः उनक काय क आलोचना ही यादा ई।
चा स डारिवन क पीछ कोई सं था नह थी। यूटन ने रॉयल सोसाइटी को अपना काय े बनाया था। माइकल
फराड ने रॉयल इ ीटयूशन को अपना काय े बनाया था। यहाँ िकए गए काम को सुिवधाएँ व समथन यादा
व आसानी से िमलते थे।
पर चा स ने अपने घर जो एक ामीण इलाक म था, को अपना काय े बनाया था। वहाँ तक प चना भी
किठन था। उ ह ने अपने घर व बगीचे को एक अनुसंधान क म प रवितत कर िदया था िजसक यव था उ ह
वयं ही करनी पड़ती थी। उनक ीन-हाउस म लगाए गए एक-एक पौधे उ ह क पसीने का दा तान दोहराते थे।
पर देर म ही सही, जीवन क अंितम दशक तक दुिनया को उनक योगदान का एहसास हो ही गया और जब
स मान क शु आत ई तो झड़ी ही लग गई।

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अनेक िवदेशी वै ािनक सोसाइिटय ने उ ह अपने यहाँ सद यता का चुनाव िजताने क पेशकश क । स 1878
म तो उ ह आ यजनक सूचना दी गई िक उ ह एक च सं थान क वन पित-शा संबंधी अनुभाग का सद य
चुन िलया गया।
वा तव म लंबे समय से इस बात पर आपि य क जा रही थी िक चा स डारिवन को ांस क स मािनत
वै ािनक समूह से बाहर रखा गया ह। वै ािनक जग इसे गोलमाल क सं ा भी दे रहा था।
पर यह सब धीर-धीर ही हो पा रहा था और ारिभक दौर म असफलताएँ भी चखने को िमल । स 1872 म
ांस म जंतुशा संबंधी अनुभाग का सद य बनाने क िलए तैयारी क गई पर उस समय वहाँ डारिवन क
जीवो पि िस ांत क िवरोिधय का दबदबा था और इस कारण उ ह कल पड़ 48 मत म से 15 मत ही िमल
पाए।
इस चुनाव क बाद तीखी िति याएँ उठ । कछ ने इस पर दुःख य िकया तो कछ ने डारिवन क िस ांत
को, कछ ने उनक पु तक क शीषक को बुरा-भला कहा। लोग को ‘िडसट ऑफ मैन’ शीषक पसंद नह आया।
उनका मानना था िक उससे पतन क बू आती ह। उनक अनुसार इसम कोरी प रक पनाएँ ह जो अंततः िनराधार
सािबत ह गी। ऐसी िकताब क रचियता को स मािनत सं था म कोई थान नह िमलना चािहए।
पर जब वन पित-शा क रा ते डारिवन को वेश िमल गया तो उ ह बड़ी हसी आई। अपनी भावना को य
करते ए उ ह ने आसागे्रको प िलखा िक यह कसा मजाक ह िक मुझे वन पित-शा खंड का सद य चुना गया
ह जबिक म तो चंद फल वाले पौध और अनाज म मटर आिद का ही थोड़ा-ब त ान रखता ।
पर डारिवन को जमनी क वै ािनक जग म आसानी से वेश िमल गया। बिलन िव ान अकादमी म हमहो झ
तथा िवरचो ने उनक प म चार िकया और वे सद य चुने गए।
उ ह तुरीन क रॉयल अकादमी से बे्रसा पुर कार तथा रॉयल कॉलेज ऑफ िफजीिशयंस से ‘बाली’ पदक भी
ा आ। स 1877 म उनक ज म िदवस पर दो सुंदर सिज द ंथ िमले िजनम 154 डच तथा जमन वै ािनक
क फोटो ाफ थे जो उ ह स मािनत करना चाहते थे।
इस अ तीय स मान क पेशकश पर हॉलड क ोफसर ए. वॉन बे मेलेन को िलखे प म डारिवन ने कहा िक
मेरा मानना ह िक हर िव ान कम को अपने जीवन म कभी-कभार ही िनराश होना होता ह जब वह यह सोचता ह
िक जो कछ भी उसने कािशत िकया या उसका मू य उस प र म क समतु य ह जो उसने िकया ह। पर अब मेर
तो जीवन क चंद वष ही शेष रह गए ह। जब भी मेरा मन स होने को करगा तो म अपने इन वै ािनक िम क
फोटो ाफ देखकर स होता र गा िज ह ने मेर ित अनुराग दिशत िकया ह।
अंितम दशक म उ ह स मान िमलते ही रह पर उनम एक स मान े तम माना जाता ह िजसक अंतगत उनक
अपने िव िव ालय कि ज ने उ ह मान एल.एल.डी. उपािध दान क थी। यह समारोह 17 नवंबर, 1877 को
संप आ था और उस िदन सीनेट हॉल खचाखच भरा था। भीड़ इस कदर थी िक तमाम ातक तर क छा
ऊपर बनी कि ज क महा िवभूितय क मूितय पर भी िवराजमान हो गए थे।
उस िदन चा स डारिवन ने परपरागत कारलेट िस क गाउन पहनी ई थी और उनक वागत म इस कदर शोर
हो रहा था िक कान क पद फट जा रह थे। ए मा अपने बेट-बेिटय क साथ बैठी स तो हो रह थ पर उ ह यह
भी लग रहा था िक चा स इस अवसर पर अपनी भावना को रोक भी पाएँगे या नह ।

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पर चा स पूर धैय क साथ मु कराते ए बैठ रह। तभी गैलरी से पदा हटा और सामने एक पुराना कमरा
िदखलाई िदया। अचानक एक िखलौना बंदर बाहर आया। उसे देखकर उप थत जनसमुदाय िखलिखला पड़ा।
िव िव ालय क ॉ टर उसे पकड़ने क िलए दौड़ पर पकड़ नह पाए और पदा िगर गया।
उधर, लोग इस नाटक से चिकत थे और इधर िव िव ालय क उपकलपित अपनी औपचा रक पोशाक म अंदर
आए। परपरागत ढग से चा स डारिवन का वागत संप आ। समारोह क प ा जॉज क क म भ य दावत
का आयोजन था। इसी बीच कॉलेज क अिधकारी, छा तथा पुराने िम चा स को य गत प से बधाई देने क
िलए घेर चुक थे।
भोजन क प ा चा स कॉलेज क मैदान म प चे जहाँ पर उ ह ने थोड़ा सा िव ाम िकया और अपने कॉलेज
क पुराने िदन को याद भी िकया। पर इन सबसे वे इस कदर थक चुक थे िक उनम राि क भोज म कने क
इ छा नह बची थी जो िफलोसोिफकल- ब ारा िदया जा रहा था। पर कना तो था ही।
रात को भोज से पूव ह सली ने उप थत जनसमुदाय को लगभग डाँटते ए कहा िक इस महान कि ज
िव िव ालय ने िव क महानत वै ािनक म से एक चा स डारिवन को ब त देर से पुर कत व स मािनत
िकया। इस अंितम दौर से िदया जाने वाला स मान िव िव ालय क िलए सुरि त तो ह पर बासी भी हो चुका ह।
मौक क नजाकत को भाँपते ए उ ह ने सधे श द म कहा िक अर तू ने जो जीव िव ान संबंधी ान दुिनया को
िदया था, दुिनया अभी तक उसे ही आँख मूँदकर मानती चली आ रही थी। पहली बार ‘ओ रिजन ऑफ पेसीज’ क
प म नया ान िमला ह। यह ान तमाम माण पर आधा रत ह और इसिलए अ तीय ह।
ये अकले ऐसे वै ािनक ह िज ह ने कित संबंधी नवीनतम ान दुिनया क सामने तुत िकया ह और उसक
िलए अनिगनत व यापक माण भी एकि त िकए ह। अनोखी बात यह भी ह िक आमतौर पर वै ािनक िस ांत
पहले सामने रख देते ह और माण एक-एककर बाद म आते ह। इस पैमाने पर यिद देखा जाए तो चा स डारिवन
क अंत ि अ तीय ह और प रणाम म गजब क शु ता भी ह।
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अलिवदा
स 1880 का दशक ारभ आ। टी.एच. ह सली ारा िदया गया भाषण समय क साथ सािबत होता जा रहा
था। डारिवन क जीवो पि -िस ांत को वै ािनक-जग म मा यता िमलती जा रही थी।
उधर, डारिवन को भी अपनी िवजय का एहसास हो रहा था। उ ह उ मीद नह थी िक उनक जीवन-काल म ही
उनका िववादा त िस ांत वीकत होने लगेगा। पर साथ ही उ ह ने इस वीकित को पूरी सरलता से िलया।
अपनी आ मकथा को वे कई वष से िलख रह थे। इस दशक क ारभ म उ ह ने अपनी इस संि आ मकथा
को पूरा िकया।
अपने जीवन पर उ ह बड़ा संतोष था। उ ह ने िलखा िक मेरी मताएँ तो सामा य िक म क ही थ । पर मुझे
आ य हो रहा ह िक मने उ ह क सहायता से वै ािनक जग को अ यंत मह वपूण िबंदु पर अपनी राय से
सहमत करा िलया।
स 1881-82 म सिदयाँ जब आई तो डारिवन को कमजोरी क अनेक झटक का सामना करना पड़ा। पहले ही
झटक म वे इस कदर कमजोर हो चुक थे िक उनक िलए टहलना असंभव हो चुका था। उ ह लगने लगा था िक
अब उनक पास अिधक समय शेष नह ह।
12 फरवरी, 1882 को उनका ितह रवाँ ज म-िदवस मनाया गया। उस िदन तमाम लोग ने उ ह बधाई दी। पर

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बधाई देते समय उ ह ऐसा लग रहा था िक यह उनक जीवन क अंितम बधाई ह।
सिदयाँ बीत , बसंत आया। वन पितयाँ लहलहाने लग । फल िखलने लगे पर डारिवन क तिबयत िबगड़ने लगी।
चंद िदन िब तर पर रहने क प ा 19 अ ैल, 1882 को दयगित क जाने से उनका उनक ि य िनवास थान
‘डाउन’ म िनधन हो गया।
आजीवन सि य रहने वाले चा स डारिवन का पािथव शरीर शांत-िन े आ पर पूर िव म तहलका मच
गया। दूर-दूर क देश म उनक िम , समथक, वै ािनक व अ य लोग शोकाकल हो गए। य गत, औपचा रक,
आिधका रक, िनजी शोक-संदेश का ताँता लग गया।
टाइ स पि का ने उ ह अपने िवषय का अ तीय तथा िव क अब तक े तम माने जाने वाले दो-तीन
वै ािनक क समतु य बताया। उधर ि टन क बीस सांसद ने वे टिमं टर क डीन को प िलख कर एक वर से
सुझाव िदया िक इस महानतम वै ािनक को वे टिमं टर क गाह म पूर स मान क साथ दफनाया जाए। इन सभी क
अनुसार यह इ छा देश क सभी नाग रक क ह िजनम सभी वग व िवचार क लोग शािमल ह।
सर जॉन लुबोक ने रा क ओर से डारिवन प रवार को प िलखा िक चा स डारिवन क शव को ‘डाउन’ क
भूिम म नह वे टिमं टर क भूिम म दफनाने क िलए अपनी सहमित द। यह सभी क इ छा ह हालाँिक चा स
अपनी कमभूिम ‘डाउन’ को बेहद पसंद िकया करते थे।
26 अ ैल, 1882 को चा स डारिवन क शवया ा ारभ ई। लोग काले व पहने ए थे। यह उनक िवदाई
भी थी और एक रा ीय समारोह भी था। इसम सभी शािमल थे, जननेता, िवचारकजन, राजनैितक िवरोधी, वै ािनक
सहकम , यात आिव कारक, कलाकार व िवशेष ।
इस शवया ा क साथ ांस, जमनी, इटली, पेन, स क सरकारी ितिनिध भी थे और िव िव ालय , िव ान
सोसाइिटय आिद क ितिनिध भी। चा स ने अपना पूरा जीवन शांत व सादगी से िजया था पर उनक शवया ा म
पूरी गहमा-गहमी थी।
उनक साथ उनक जीवन क तमाम हमसफर, चल रह थे— कर, ह सली, वालेस, उनक पड़ोसी भी साथ थे।
अमे रका से आए मं ी जे स रसैल लावेल, कनन फरार, िविलयम पोिट वुड भी साथ चल रह थे। रॉयल सोसाइटी
क अ य , डरबी क अल, डवोनशायर क यूक, आिगल क यूक भी साथ थे। शायद ऐसा कोई नह था िजसने
उनका जीवनभर साथ िदया हो पर अब साथ न हो।
पर जीवनभर साथ िनभाने वाली जीवनी संिगनी ए मा कह िदखाई नह दी।
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जाने क बाद
अब तक िकसी भी वै ािनक ने जीवन क बार म स य क इतनी गहन व िव तृत खोज नह क थी। कित म
या िविवधता का तो वणन भी क पनातीत माना जाता रहा था और इसम या यव था और इसक पीछ
िस ांत को इतनी सरलता और प ता क साथ लाने का यास िकसी ने भी नह िकया ह। आइ टाइन और
ायड भी चा स डारिवन क सामने ह क पड़ते ह।
पर उ ह ने इतना वृहद काय िकया था िक उसम बीच-बीच म खाली थान या अपया ता दशाना किठन नह था
पर वे जीवन भर उ ह भरने म जुट रह। उ ह ने जीवन क सभी पहलु , उसक उ पि , िवकास, इसक गठन, काय
णाली आिद को जीवनभर प तर बनाने क िलए प यास िकए।
पर उनक जाने क बाद उनक िस ांत का स यापन और तेजी से होता गया। उनक काय व प रणाम म जो
खाली थान बचे थे वे तेजी से भरते चले गए। बाद म तमाम जीवा म क नमूने ा ए िज ह उिचत थान पर
रखकर तथा तदनुसार नामकरण करक ृंखला पूरी क गई।
डारिवन का िस ांत वै ािनक क िलए चुनौतीपूण शोध का िवषय बना रहा। अनेक वै ािनक समय-समय पर
इसे चुनौती देते रह। डारिवन क अनुसार ािणय क अंग म उनक उपयोग व अनुपयोग क अनुसार प रवतन होते
ह। जो अंग अिधक उपयोग होते ह वे अिधक सश होते जाते ह और िजनका उपयोग नह होता ह वे अंग कमजोर

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होते जाते ह और अंततः लु हो जाते ह।
बाद म अनेक वै ािनक ने इस िस ांत को इस आधार पर चुनौती दी िक यह िस ांत यह तो बतला देता ह िक
ािणय क अंग समय क साथ सश , प रवितत और लु कसे होते ह पर यह नह बतला पाता िक अचानक नए
गुण या अंग कसे िवकिसत हो जाते ह।
सबसे बड़ चुनौतीदाता डच वन पित शा ी डी ाइस थे िज ह ने अपने योग ारा ऐसी वन पितय का
उ पादन िकया था जो नई थ । इस कार डारिवन क िवकासवाद को सश चुनौती का सामना करना पड़ा।
दोन ओर से प और िवप म अनुसंधान चलते रह। उस समय तक आनुवंिशक क गुण क पया जानकारी
नह थी। बाद म जब मडल क योग क प रणाम सावजिनक ए तो डारिवन क िवकासवाद पर एक बार िफर
प मोहर लग गई। य - य आनुवंिशक का ान प रप होता गया य - य डारिवन क िस ांत क
िव सनीयता बढ़ती चली गई।
समय क साथ लोग क डारिवन क ित य गत आ था व ा भी बढ़ती गई। इसका एक मुख कारण
यह भी था िक आमतौर पर इस कार क मामल म वै ािनक िस ांत तो सावजिनक कर देते ह पर उसक प म
पया माण त काल नह जुटा पाते ह। ये माण समय क साथ एकि त होते ह और यादातर मामल म वै ािनक
क मृ यु क प ा दूसर वै ािनक जुटाते ह।
पर चा स डारिवन ने अपने सामने तमाम माण जुटाए और उ ह जुटाने क िलए अथक म िकया। उ ह ने
िस ांत क ितपादन म िकसी कार क ज दी नह क । इसी कारण उनक अंत ि तथा शु ता दोन क
सराहना क जाती ह।
इसक अलावा एक अ य मह वपूण बात यह भी ह िक डारिवन ने मनु य को न करने का अिधकार िदला
िदया। इसक साथ कित क िविभ घटना और उनक पीछ िस ांत को तक क कसौटी पर कसा जाने लगा।
इसक साथ ही आधुिनक िव ान का िवकास ारभ हो गया और ािणय क िव तार, मनु य क गितिविधय और
उनक जिटलता आिद पर पूरी वतं ता से अनुसंधान ारभ हो गया।
पर इससे ई र क ित आ था और धम क समाज पर पकड़ म कमी नह आई। अनेक लोग व सं थाएँ अभी
भी यह मानते रह िक संसार क रचनाकार ई र ह और डारिवन का िस ांत अपूण ह या कपोल-क पना ही ह।
यह बहस बीसव सदी म लगातार जारी रही और दुिनया क आधुिनकतम व धम-िनरपे माने जाने वाले अमे रका म
भी छा को िव ान क पढ़ाई क साथ डारिवन का िवकास-वाद पढ़ाया जाए या नह , इस पर बहस चहती रही।
िवरोिधय ने साथ म ई र ारा सृजन को पढ़ाने पर भी जोर िदया।
अमे रका म डारिवनवाद और सृजनवाद क बीच संघष काँट का रहा। एक जनमत सं ह क प रणाम क अनुसार
ई र ने इस संसार क जीव का सृजन िकया ह यह मानने वाले 45 ितशत लोग ह। यही नह , कसास रा य म
डारिवन वाद क साथ सृजनवाद पढ़ाया जाए या नह , इस िश ा बोड म मतदान आ और फसला 6-4 से
डारिवनवाद क प म गया।
स 1987 म यह िववाद अमे रक सव यायालय म गया था। तब यायालय ने यह िनणय िदया था िक िकसी
भी धािमक िव ास को िवकासवाद िस ांत क साथ नह पढ़ाना चािहए य िक इससे िव ान क ग रमा कम होती
ह। पर त कालीन अमे रक रा पित जाज बुश क अनुसार दोन ही िस ांत पढ़ाए जाने चािहएं तािक लोग िनणय

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कर सक िक या मानना चािहए और या नह ।
बहरहाल समय क साथ डारिवनवाद क प म एक क बाद एक पु ता माण िमलते चले गए। आज िन न
माण उपल ध ह—
1. वग करण : संसार क तमाम जीव को ऊची और िनचली कई ेिणय म िवभािजत िकया गया ह। िवकास क
ि या क कारण ही इतना उतार-चढ़ाव संभव हो सका ह।
2. भूिव ानी-अिभलेख यह मािणत करते ह िक सरल व िन न ेणी क जीव पहले उ प ए और जिटल या
उ ेणी क जीव बाद म डारिवन क िवकासवाद क आधार पर ही इस ि या क या या क जा सकती ह।
3. बाद क काल म अनेक लु किड़याँ ा ई ह। ये दो जीव ेिणय क म य क ह। बाव रया म पाया जाने
वाला आिकओ ट र स नामक जीवा म आधा प ी ह और आधा सरीसृप। उसम पि य क भाँित डने और च च ह
पर सरीसृप क भाँित लंबी पूँछ और मुँह म दाँत ह। इसी तरह ऑ िलया का लेिटपस पि य क तरह अंड़ देता ह
पर उसक शेष अिधकांश गुण तनपायी जीव क तरह ह।
हाल ही म अमे रक िव ान-पि का नेचर म कािशत एक शोध-प म िशकागो िव िव ालय क जीवा म
िव ािनय ने एक ऐसी मछली क जीवा म क जानकारी दी ह िजसक पंख भूिम पर चलने वाले चौपाय क तरह
िवकिसत होने क ि या म थे। वै ािनक क अनुसार यह जलचर और थलचर क बीच क कड़ी ह।
ये चार से नौ फ ट लंबे जीवा म आकिटक वृ म आने वाले कनाडा क एलसमेयर ीप म िमले। यह जीव
मछली और घिड़याल क गुण क बीच का ह। यह माँसाहारी था और अनुमान क अनुसार साढ़ ततीस करोड़ वष
पूव पृ वी पर िनवास करता था। यह अिधकांशतः पानी म िनवास करता था पर इसक आगे क पंख म जमीनी
चौपाय क तरह ह याँ थ । यह पंख क सहायता से जमीन पर आराम से चल सकता था। र टािलक रोिसया
नामक इस जीव क शरीर म फफड़ और गलफड़ दोन थे। पर उसका जबड़ा और िसर मछिलय जैसा था।
4. अनेक जीव म ऐसे अंग आज भी िव मान ह िजनका उनक िलए आज उपयोग नह ह पर दूसर जंतु उन
अंग का उपयोग करते ह। ये जंतु पूण प से प रव त ह। उदाहरण क तौर पर मनु य क कान क माँसपेिशयाँ
अभी भी ह पर ये िन य ह। पर दूसर जीव जैसे—गाय, भस आिद म ये माँसपेिशयाँ सि य ह। ये इ ह िहला-
डलाकर म खी उड़ा लेते ह।
इसी तरह मनु य क शरीर क पाचक-नाल म प रशोिषका ह। यह भी अविश अंग ह और इसका उपयोग नह
होता ह। मनु य क ही शरीर म पहले पूँछ रही होगी पर पूँछ का अवशेष जो नीचे िनकली ई ह ी ह, अभी भी
मौजूद ह।
5. ूणाव था म उ - ेणी क जंतु का ूण भी उ ह अव था से गुजरता ह िजनसे िन न- ेणी का ूण
गुजरता ह। ारिभक अव था म मनु य, प ी, सरीसृप, मढ़क, मछली क भू्रण म तमाम समानताएँ देखने को
िमलती ह।
6. यिद िविभ जंतु क शरीर क तुलना क जाए तो समानताएँ इतनी यादा िमलती ह िक यह मानना अिधक
तकसंगत लगता ह िक एक जीव क उ पि ई होगी और उसी क िवकास- म म अ य जंतु िवकिसत ए ह गे।
अलग-अलग जंतु क रचना ई होगी ऐसा मानने का वै ािनक आधार नह िमलता ह।
पर डारिवन क िवरोधी अ सर कहते रहते ह िक आँख जैसे जिटल अंग का िवकास डारिवन क प रक पना क
आधार पर संभव नह ह। उ ह अव य ही ई र या िकसी महामेधा ने रचा होगा। हालाँिक वै ािनक इस संबंध म

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डारिवन क प को मािणत करने म लगे ह।
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प रिश -1
अठारहव व उ ीसव शता दी क महान या ाएँ जो कित-िव ािनय ने संप क ।
1700-02 जोसेफ िप ॉन डी टोन फोट ने लेवट (यूनान व तुक ) क या ा क ।
1732 लीिनयस ने लैपलड क या ा क ।
1735-70 जोसेफ डी जूसो ने दि ण अमे रका क या ा क । उसने चा स मेरी डी ला क डामाइन क नेतृ व म
या ा ारभ क थी। बाद म वह दि ण अमे रका म 35 वष तक रहा।
1749-54 माइकल एंडसन ‘कपनी डी इडीस’ क कमचारी क प म 5 वष तक सेनेगल रहा।
1763-75 क टन जे स कक क नेतृ व म दि णी गोला क या ा संप ई िजसक ज रए जोसेफ बक और
िफर जमन याि य जोहान व जाज फोर टर ने वहाँ क कित का अ ययन िकया।
1767-71 लुई एंटनी डी बोगेनिवले क िव -या ा िजसम िफलबट कोमसन नामक वन पित-शा ी ने जगह-
जगह अ वेषण िकए।
1768-74 साइबे रया क या ा िजसका नेतृ व जमन जंतु िव ानी पीटर साइमन पलास ने िकया था।
1785-09 जीन ांकोस डी ला पे ज क नेतृ व म या ा, िजसक अंत म दो जहाज बुसोली तथा ए ोलैब गायब
हो चुक थे।

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1791-04 एंटनी डी एं ी का ट का अिभयान जो मूलतः ला पे ज क जहाज क तलाश क िलए था।
1799-1804 अलै जडर वॉन हबो ट तथा ऐमे बोन लांड क दि ण अमे रका या ा।
1800-04 कमांडट िनकोलस बॉडीन क दि णी सागर क या ा।
1831-06 चा स डारिवन क बीगल जहाज पर या ा।
1832 िव टर जैकमांट क या ा िजसम उनका बांबे (मुंबई) म िनधन हो गया।
1848-52 अं ेज याि य अ ड रसैल वालेस तथा एच.ड यू. बै स क अमेजोिनया क या ा।
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प रिश -2
उपकरण व साम ी जो ले जाए जाते थे
उस काल क या ा क अविध यूनतम तीन वष मानी जाती थी। अतः कित-िव ानी अिभयान को सफल
बनाने क िलए िन न साम ी साथ लेकर चलते थे—
1. 300 लीटर रगहीन शराब ( प रट)।
2. 300 सफद शीशे क जार। (उपरो जार म भर अ कोहल म छोट-छोट आकार क ाणी डाले जाते थे।
इससे वे अिधक िदन तक सुरि त रहते थे।)
3. प ीस िकलो ाम मा टक।
4. 500 ाम कोरोिसव स लीमट जो शीशे क ला क म रखा जाता था। यह दवा क प म योग होता था।
5. लेबल बनाकर लगाने क िलए 300 वगफ ट पतला ग ा।
6. एक पंच तथा टप क लड़ी। इनक मा यम से जार पर सं या डाली जाती थी और वही सं या संल न
िववरण म डाली जाती थी।
7. िशकार करने क िलए तीन बंदूक।
8. दो चौड़ी तली क टीन क ब से जो िशकार व वन पित-शा संबंधी अ ययन म योग होते थे।

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9. एक म म प ीस िकलो ाम आसिनकल साबुन।
10. बारह ब से िजनम कॉक क लाइिनंग होती थी और ये एक-दूसर क अंदर िफट हो जाते थे। इनम एकि त
क ड़ रखे जाते थे।
11. पं ह रम कागज िजसम पौधे लपेट जाते थे।
12. 50 िकलो ाम र ी कागज िजसम खिनज पदाथ लपेट जाते थे।
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प रिश -3
अ तु योग िजसने िस िकया िक िविभ वन पितयाँ एक थान से दूसर थान तक िकस कार फल ।
चा स डारिवन ने उपरो त य को सामने लाने क िलए एक योग ृंखला संप क ।
1. उ ह ने 87 बीज को 28 िदन तक समु ी-जल म डबोए रखा।
प रणाम—उनम 64 अभी भी इस अव था म थे िक नए पौध को ज म दे सक।
2. उ ह ने 94 पौध को सुखाकर और िफर समु ी-पानी म अ ाइस िदन तक तैराया।
प रणाम—94 म से 19 पौधे अ ाइस िदन तैराने क बाद भी सकशल थे तथा दोबारा उगने क थित म थे।
उपरो दोन प रणाम को िमलाया गया।
अंितम प रणाम—िकसी भी देश क सौ म से 14 पौधे अ ाइस िदन तक समु ी-जल म तैरकर दूसर देश क
अनुकल समु ी तट पर प चकर िफर से उग सकते ह। यिद औसत गित वाली समु ी धारा बह रही हो तो एक देश
क वन पित एक हजार िकलोमीटर दूर दूसर देश म प चकर उग सकती ह।
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प रिश -4
दुभा य का नमूना
उन िदन लंबी जिटल या ा को संप करने क बाद भी याि य क पास ब त काम होता था िजसक बाद ही
वे दुिनया को नया ान दे पाते थे।
कित-िव ानी कोमसन ने एक लंबी या ा क । पर प रणाम दुिनया क सामने लाने से पूव ही चल बसा। उसक
पांडिलिप व वन पितय का भंडार उसक वा रस क हाथ लगा िज ह ने उसक परवाह ही नह क ।
ब त बाद म वह अ य लोग क पास आई। इस भंडार का कछ िह सा अब तक पड़ा ह िजसम वन पितयाँ,
मछिलयाँ आिद ह। उसक पांडिलिपयाँ व न शे दूसर क पास जब गए तो उ ह ने उनका योग अपने काम को
आगे बढ़ाने म कर िलया।
बाद म जब लोग ने कोमसन क काय का आँकलन िकया तो पाया िक उसने लीिनयस क शैली म ािणय ,
वन पितय आिद का वग करण िकया था और वह अिधक शु था। यिद कोमसन वयं अपना काम करक दुिनया
को िदखाता तो शायद वह इितहास म थम ेणी क कित-वै ािनक क प म अपना नाम दज करा लेता।
कोमसन जैसे अनेक वै ािनक या ा क दौरान या या ा क बाद त काल काल क ास बन गए। उनका एकि त
सामान इधर-उधर पड़ा रहा या िकसी सरकारी सं था म बाद म योग हतु डाल िदया गया।

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