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भभै र वस्ततोत्रमम
भहन्दश्रीटश्रीकतोपहे त मम
व्यवाख्यवाकवार
रगुभ वारहं स वा
स्ववामश्री पपूरवारनन्द सरस्वतश्री नहे भभैरवस्ततोत्र कवा भहन्दश्री भवाषवान्तर एवहं भवस्ततृत
भपूभमकवा तथवा क्रमस्ततोत्र कक व्यवाकररवानगुसवार व्यवाख्यवा समगुपसस्थत करकहे रभैव जगतम कवा
महवान उपकवार भकयवा हभै। अदभैत सम्प्रदवाय कक प्रत्यभभजवा धवारवा उपवासककों कक परमतोपयतोगश्री हभै।
उपकवार दस
गु रवा हतो हश्री नहहीं सकतवा। स्ववामश्री जश्री नहे यह अभभनन्दनश्रीय कवायर करनहे कवा प्रयत्न
करकहे हमम आनसन्दत भकयवा हभै। हम शश्री दभक्षिरवामपूतर्ती सहे प्रवाथर नवा करतहे हभै भक स्ववामश्री जश्री
स्ववास्थ्यपपूरर जश्रीवन दश्रीररकवाल तक व्यतश्रीत करतहे हह ए रभैव जगतम कतो इसश्री प्रकवार कक उत्कतृष
कतृभतयकों कवा रसवास्ववादन करवानहे मम समथर रहम। इनकतो हमवारवा हवाभदर क आरश्रीववारद हभै।
'ओमम रमम'
हहे महहेर! आपकक अनगुग्रह रभक्ति सहे यह समस्त जगत इस समय मगुझहे
(अभभनवगगुप्त कतो) आपकहे स्वरुप सहे हश्री भवाधसत हतो रहवा हभै अथवारत भगववान
भभैरवनवाथ हश्री इस समस्त जगत रुप मम हभै। भभैरवनवाथ कहे अभतररक्ति इसकक कतोई
सतवा नहहीं हभै। इस प्रकवार सवरत्र भगववान भभैरवनवाथ आप हश्री मगुझहे भदखवाई दहे रहहे हप
और आप ततो सवरदवा महेरश्री आत्मवा हश्री हप अथवारत "भभैरवतोवोऽहहं" इस प्रकवार स्ववाभभन्न रुप
सहे मगुझहे आपकवा जवान हतो रहवा हभै अतमः महेरहे धलए यह समस्त जगत भश्री आत्मरुप हतो
गयवा हभै॥२॥
स्ववात्मभन भवश्र्वगतहे त्वभय नवाथहे तहे न न सहं स तृभ तभश्रीभतमः कथवासस्त।
हहे नवाथ! महेरहे आत्मस्वरुप आपकहे समस्त जगतरुप हतोनहे सहे अथवारत महेरश्री
आत्मवा हश्री समस्त जगतरुप हतोनहे सहे अत्यन्त असहनश्रीय दमःगु ख एवहं त्रवास कतो दहेनहे
ववालहे अनन्त कमर्वो हं कहे उपसस्थत हतोनहे पर भश्री मगुझहे सहंसवार सहे थतोडवा सवा भश्री भय नहहीं
रह गयवा हभै। (क्यकोंभक अपनहे सहे भभन्न हतोनहे पर हश्री भय हतोतवा हभै ) जगत ततो
आत्मस्वरुप हतो गयवा और आत्मवा सहे ततो भय हतोतवा नहहीं, अतमः मगुझहे जगत सहे कतोई
भय नहहीं हभै॥३॥
अन्तक मवाहं प्रभत मवा द श्गु महे न वाहं क्रतोधकरवाल तमवाहं भवदधश्रीभह।
रङ्कर सहे व न भचन्तनधश्रीरतो भश्रीषर भभै र व रभक्तिमयतोवोऽसस्म॥४॥
हहे अन्तक! (समस्त भवश्र्व कवा भवनवार करनहे ववालहे) यम! मगुझहे अपनश्री क्रतोध-
यक्ति
गु इस दृभष कतो मत भदखवाओ, अथवारत क्रतोध भरहे नहेत्रकों सहे मगुझहे मत दहेखतो क्यकोंभक
मप स्वयहं हश्री रङ्कर (भभैरव) कक सहेववा तथवा भचन्तन मम दृढ रहनहे ववालवा हहआ और भगववान
भभैरव कक भयहंकर रभक्ति-सहंपन्न हहआ। अतमः मगुझहे आपसहे कतोई भय नहहीं हभै॥४॥
हहे नवाथ! आपकतो नमस्कवार हभै। आपकहे स्वरुपभपूत जवान रसश्मयकों सहे महेरहे ह्रदय
कवा अन्धकवार (अजवान) नष हतो चगुकवा हभै, अतमः मप मतृत्य,गु यम, अन्तक, कमर,
भपरवाचकों सहे कदवाभप नहहीं डरतवा हहआ॥६॥
आपकक कतृपवा सहे ह्रदय मम सत्य एवहं चभैतन्य कक रसश्मयकों कहे उदय हतो जवानहे सहे
समस्त भवश्व कहे यथवाथर तत्व कतो जवाननहे ववालवा मप अनन्त भवाववामतृतकों सहे पररपपूरर
आत्मस्वरुपभपूत आप मम भनवतृधत(परम रवासन्त) कतो प्रवाप्त कर रहवा हहआ॥६॥
हहे नवाथ! जब भश्री (जयकों हश्री) ररश्रीर कतो सहंतप्त करनहे ववालश्री अथवारत कष दहेनहे
ववालश्री क्लहेर दरवा कवा उदय महेरहे अन्तमःकरर मम हतोतवा हभै तब हश्री अथवारत उसश्री क्षिर
आपकहे सवाथ अभहेद कवा कथन करनहे ववालश्री अमतृतवतृभष कवा भश्री उदय हतो जवातवा हभै ,
अथवारत आपकहे सवाथ अभहेद भवावनवात्मक अमतृत सहे महेरहे सहंपर पू र क्लहेर नष हतो जवातहे
हप॥८॥
नतृत् यभत गवायभत ह्रष्यभत गवाढहं सहं व भदयहं ममम भभै र व नवाथ।
त्ववाहं भप्रयमवाप्य सगुद रर नमहे कहं द ल
गु र भमन्यजनभै मः समयजमम॥ ९॥
आचवायर अभभनवगगुप्त नहे पभौष कतृष्र दरमश्री सहं. ६८ मम इस स्ततोत्र कतो रचवा हभै,
धजससहे प्रसन्न हतो कर सवरव्यवापक दयवाभनधध भगववान भभैरवनवाथ अपनहे भक्ति कहे
सहंसवार-तवाप कतो रश्रीघ्र हश्री हर लहेतहे हप, अथवारत सहंसवार सहे मगुक्ति कर दहेतहे हभै॥१०॥
॥ इभत शश्रीमहवामहहे श्र्व रवाचवायर अभभनवगगुप्त पवाद भवरभचत भभै र वस्ततोत्रमम सहं प पूरर मम॥
॥भभै र ववापर रमस्तगु॥
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