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॥शश्री भभैरववाय नममः॥

शश्रीमहवामहहे श्र्व रवाचवायर -अभभनवगगुप्त पवादभवरभचतमम

भभै र वस्ततोत्रमम
भहन्दश्रीटश्रीकतोपहे त मम

व्यवाख्यवाकवार

स्ववामश्री पपूर वारन न्द सरस्वतश्री


शतोभत्रय-ब्रह्मभनष-शश्रीमत्परमहहंस पररववाजकवाचवायर -दवारर भनक

सवावर भभौम भवदवाववाररधध-वहेदवान्तववागश्रीर शश्री १००८ स्ववामश्री

महहेरवानन्द भगररजश्री महवारवाज महवामण्डलहेश्र्वर कक

रगुभ वारहं स वा
स्ववामश्री पपूरवारनन्द सरस्वतश्री नहे भभैरवस्ततोत्र कवा भहन्दश्री भवाषवान्तर एवहं भवस्ततृत

भपूभमकवा तथवा क्रमस्ततोत्र कक व्यवाकररवानगुसवार व्यवाख्यवा समगुपसस्थत करकहे रभैव जगतम कवा

महवान उपकवार भकयवा हभै। अदभैत सम्प्रदवाय कक प्रत्यभभजवा धवारवा उपवासककों कक परमतोपयतोगश्री हभै।

प्रवामवाभरक भवदवान स्ववानगुभपूभत कहे आधवार पर इसकतो प्रत्यप


गु स्थवाभपत करहे इससहे अधधक

उपकवार दस
गु रवा हतो हश्री नहहीं सकतवा। स्ववामश्री जश्री नहे यह अभभनन्दनश्रीय कवायर करनहे कवा प्रयत्न

करकहे हमम आनसन्दत भकयवा हभै। हम शश्री दभक्षिरवामपूतर्ती सहे प्रवाथर नवा करतहे हभै भक स्ववामश्री जश्री

स्ववास्थ्यपपूरर जश्रीवन दश्रीररकवाल तक व्यतश्रीत करतहे हह ए रभैव जगतम कतो इसश्री प्रकवार कक उत्कतृष

कतृभतयकों कवा रसवास्ववादन करवानहे मम समथर रहम। इनकतो हमवारवा हवाभदर क आरश्रीववारद हभै।

स्ववामश्री महहे र वानन्द भगरश्री


दभक्षिरवामपूत र्ती मठ
भमश पतोखरवा, ववारवारसश्री
२२१०१०
शश्रीमदभभनव गगुप्त वाचवायर सहं भ क्षिप्त जश्रीवनश्री

सवाधवारर जनतवा कक जवानकवारश्री कहे धलए अभभनवगगुप्तपवाद कवा सहंभक्षिप्त जश्रीवन


पररचय प्रस्तगुत करनहे कवा यह एक सवाधवारर प्रयवास हभै। प्रस्तगुत पररचय शश्री
अभभनवगगुप्त कक भवदतवा तथवा पवासण्डत्य कवा दररन करवानहे कवा एक सवाधवारर परन्तगु
महत्वपपूरर प्रयत्न हभै। अभभनवगगुप्तपवाद कश्मश्रीर अदभैत मत कहे जवातवा हश्री नहश्री अभपतगु
प्रतश्रीक थहे। वहे इस मत कक प्रत्यहेक रवाखवा कवा सहंपपूरर जवान रखतहे थहे। यदभप इनकक
जश्रीवनश्री असहंख्य सहंस्कररकों मम भश्री पपूरररुप सहे वभररत नहहीं कक जवा सकतश्री तथवाभप
लहेखक उत्सगुकतवा कहे कवारर एक सहंभक्षिप्त रहेखवा भचत्र प्रस्तगुत हभै।
वहं र वावलश्रीमः- अभभनवगगुप्त कहे आभद पपूवरज शश्री अभत्रगगुप्त हहए हभै। वह गङवा तथवा
यमगुनवा कहे मध्य-अन्तरववादश्री क्षिहेत्र मम, रवाजवा यरतोवमरन(कवामरवानववासश्री) कहे रवाजकवाल
मम रहतहे थहे। रवाजवा यरतोवमरन कवा रवाजकवाल ७३०-७४०ई. मवानवा जवातवा हभै। अभत्रगगुप्त
नहे सवामवान्य रुप सहे सभश्री भरक्षिवाक्षिहेत्रकों मम और भवरहेष रूप सहे रभैवरवासकों मम पवासण्डत्य
प्रवाप्त भकयवा थवा। कश्मश्रीर नरहेर शश्री लधलतवाभदत्य उनकक भवदतवा सहे भवरहेषकर उनकहे
रभैवरवासकों कहे जवान सहे अभतप्रभवाभवत हहए थहे। रवाजवा यरतोवमरन पर भवजय प्रवाभप्त कहे
पशवात लधलतवाभदत्य नहे उनकतो(अभत्रगगुप्त कतो) कश्मश्रीर आनहे कक प्रवाथरनवा कक, जतो
अभत्रगगुप्त नहे स्वश्रीकवार कक। पशवात अभत्रगगुप्त सपररववार 'कवान्य कगुब्ज' सहे 'कश्मश्रीर'
स्थवानवापन्न हहए। इनकहे रहनहे कहे धलए भवतस्तवा नदश्री कहे तट पर एक भव्य भवन कवा
भनमवारर भकयवा गयवा और इसकक दहेखभवाल कहे धलए एक बडवा जवागश्रीर (भपूभम) भश्री
प्रदवान भकयवा गयवा। एक सभौ पचवास वषर कहे उपरवान्त इसश्री वहंर मम 'वरवाहगगुप्त' उत्पन्न
हहए तथवा इन्हहीं सहे अभभनवगगुप्त कहे भपतवा 'नरधसहंह गगुप्त' कवा जन्म हहआ। परम्परवागत
भवदतवा तथवा भभक्तिभवावनवा कहे कवारर वरवाहगगुप्त तथवा उनकहे पगुत्र नरधसहंह गगुप्त भश्री
परमभवदवान तथवा भरवभक्ति प्रमवाभरत हहए।
नरधसहंह गगुप्त लतोगकों मम 'चगुखलक' कहे नवाम सहे भवख्यवात थहे। अभभनव गगुप्त कक
मवातवा कवा नवाम 'भवमल कलवा' थवा। वह भश्री धवाभमरक तथवा पभवत्र स्वभवाव ववालश्री थश्री।
स्पष हभै भक अभभनवगगुप्त कवा ररहेलपू ववातवावरर पपूररतयवा धवाभमरक तथवा अध्ययनरश्रील
रहवा थवा और इसश्री ववातवावरर नहे उनकतो उच्चकतोभट कवा भवदवान तथवा प्रभतभवारवालश्री
बनवायवा थवा।
जन्मकवालमः- अभभनवगगुप्त दवारवा रभचत कगुछ ग्रन्थकों कवा रचनवाकवाल भदयवा गयवा
हभै। जभैसहे 'भभैरवस्ततोत्र' कवा असन्तम शतोक 'वसगुरस पभौषहे..' सहे स्पष हभै भक यह ६८
सप्तभषर कहे पभौषमवास कक कतृष्र दरमश्री कतो रचवा गयवा हभै। इसश्री प्रकवार 'क्रमस्ततोत्र' सहे
जवात हतोतवा हभै भक यह स्ततोत्र ६६ सप्तभषर कहे मवागररश्रीषर कक कतृष्र नवमश्री कतो रचवा गयवा
हभै। 'क्रमस्ततोत्र' अभभनवगगुप्त कक आभद रचनवा मवानश्री जवातश्री हभै। इस स्ततोत्र कक लहेखन
कलवा सहे उसकक बगुभद्धि कक पररपक्वतवा प्रकट हतोतश्री हभै। उसकक बगुभद्धि कहे इस प्रकवार
कहे भवकवास कतो दृभष मम रखकर मवाननवा पडतवा हभै भक उसनहे यह स्ततोत्र तश्रीस -पपतश्रीस
वषर कक आयगु कहे पशवात हश्री रचवा हतोगवा। 'क्रमस्ततोत्र' कवा रचनवा कवाल ६६ सप्तभषर
अथववा ९९० ई. हभै। इस प्रथम रचनवा कवा समय उनकक तश्रीस-पपतश्रीस वषर कक आयगु
कतो मवानतहे हहए स्पष हभै भक उनकवा जन्म ९५५ तथवा ९६० ई. कहे बश्रीच हहआ हतोगवा।
भरक्षिवा-भदक्षिवामः- अभभनवगगुप्त कतो बवाल्यकवाल मम, पवास हश्री एक पवाठरवालवा मम
भहेजवा गयवा थवा, जहवाहं उसनहे अपनश्री तश्रीक्ष्र बगुभद्धि तथवा वक्तितृत्वतवा सहे भरक्षिक कतो
अभतप्रभवाभवत भकयवा थवा तथवा भभवष्यतम महवानतवा कहे भचह्न प्रकट भकयहे थहे। व्यवाकरर
मम गहन जवान कहे कवारर उसहे पतञ्जधल कहे समवान रहेष -नवाग कवा अवतवार मवानवा जवातवा
हभै।
अभभनवगगुप्त नहे अपनहे समय कहे सवर्वोत्कतृष भरक्षिककों सहे भभन्न भवषयकों कक
अधधकतृत जवानकवारश्री प्रवाप्त कक। प्रत्यहेक भवदवान नहे भबनवा भहचभकचवाहट कहे उसहे
अपनहे-अपनहे भवषय कवा रहस्यपपूरर जवान प्रदवान भकयवा। उसनहे व्यवाकरर नरधसहंहगगुप्त
सहे, दभैतववाद ववामन सहे, ब्रह्मभवदवा भपूभतरवाज सहे तथवा भपूभतरवाज सहे हश्री दभैत तथवा अदभैत
रभैव कवा अध्ययन भकयवा। इस प्रकवार इन्दरगु वाज सहे ध्वनश्री-रवास कवा जवान प्रवाप्त
भकयवा। इसकहे अभतररक्ति शश्रीचन्द, भभक्तिभवलवास, यतोगवानहंद, चन्दवर, अभभनहंद,
भरवभक्ति, भवभचत्रनवाथ, धमर, भरव, ववामन, उद्भट, भपूभतरवा तथवा भवास्कर सहे भश्री
अपनहे-अपनहे भवषय कवा जवान प्रवाप्त भकयवा थवा। रभैव दररन भवरहेष कर 'क्रम' तथवा
'भत्रक' दररन कवा अध्ययन उसनहे अपनहे गगुरु लक्ष्मरगगुप्त सहे हश्री भकयवा थवा।
अभभनवगगुप्त कक मवातवा 'भवमल कलवा' उसकतो बवाल्यकवाल मम हश्री छतोडकर इस
नवारववान सहंसवार सहे भनकल चगुकक थश्री। मवातवा कवा अपवार स्नहेह छगुट जवानहे कहे कवारर
उसकवा आत्म-रवाग न्यन गु हतोतवा गयवा और अल्पवायगु मम हश्री उसनहे सवाहंसवाररक
आकषररकों कतो त्यवाग कर भवववाह कभश्री न करनहे कक ठवान लश्री थश्री। वहे अपनवा समय
आगमवाचवायर्वो हं कहे सवाथ व्यतश्रीत करतहे थहे। पवाररववाररक भवदतवा तथवा धवाभमरक परम्परवा,
उच्च भरक्षिवा, यतोग कहे प्रयतोगकों कवा अभ्यवास, ब्रह्मचयर, कश्मश्रीर कहे अन्दर तथवा बवाहर
सहे भवदवा प्रवाभप्त सहंगश्रीत, नवाट्य तथवा ध्वभन रवास कवा जवान अदभैत रभैव दररन पर पपूरर
अधधकवार नहे उन्हम बभौभद्धिक तथवा अध्यवासत्मक रभक्ति प्रदवान कक थश्री। वषर्वो हं कहे
यतोगवाभ्यवास कहे फलस्वरुप उसनहे रभैवमत कहे तश्रीनकों रवाखवाओहं क्रम, भत्रकम तथवा कभौल
पर कवायर भकयवा। क्रमतोपदहेर कहे अनगुसवार अध्यवासत्मक अध्ययन कतो परखवा और
अध्यवासत्मक शहेषतवा प्रवाप्त कक। इसकहे पशवात भत्रकम उपदहेर कवा अध्ययन भकयवा,
अन्त मम 'कभौल' प्ररवालश्री दवारवा अध्यवासत्मक पपूररतवा तथवा रवासन्त प्रवाप्त कक। इस तरह
कभौल रवाखवा कहे आचवायर रम्भगुनवाथ कक महवानतवा स्पष हतोतश्री हभै। क्यकोंकक जतो
परमभरव कहे सवाथ ऐक्य भवाव 'तन्त्रवालतोक' कक रचनवा करनहे सहे पपूवर हश्री उसनहे
अनगुभव भकयवा थवा, वह रम्भगुनवाथ कहे भरक्षिर कवा हश्री परररवाम थवा। इस बवात कक पगुभष
उसनहे स्वयहं तन्त्रवालतोक कक भपूभमकवा मम भकयवा हभै।
रचनवायम मः - अभभनवगगुप्त दवारवा रभचत बहहत सहे उच्चकतोभट कहे ग्रन्थ भमलतहे हभै।
कहवा जवातवा हभै भक उन्हतोनहे लगभग ८० ग्रन्थ रचहे हभै। धजनमम भभन्न-भभन्न भवषयकों कक
व्यवाख्यवा कक गई हभै। दभ गु वारग्यवर उनकहे कई ग्रन्थ अब अप्रवाप्य हतोनहे कहे कवारर
दष्गु प्रवाप्य हभै उनकहे कगुछ एक ग्रन्थ भनम्नधलधखत हप।
१.बतोधपञवाभरकवा, २.मवाधलनश्री भवजय ववाभतरक, ३.परवाभत्रहंभरकवा भववतृधत,
४.तन्त्रवालतोक, ५.तन्त्रसवार, ६.तन्त्र वटधवाभनकवा, ७.भगवद्गश्रीतवाथर सहंग्रह,
८.परमवाथरसवार, ९.ईश्र्वर प्रत्यभभजवा भववतृधत भवमभररनश्री, १०.ईश्र्वर प्रत्यभभजवा
भवमभररनश्री, ११.क्रमस्ततोत्र, १२.दहेहस्त-दहेवतवा चक्रस्ततोत्र, १३.भभैरवस्ततोत्र,
१४.परमवाथर दवादभरकवा, १५.परमवाथर चचवार, १६.अनगुभव भनवहेदनस्ततोत्र, १७.
दहेभवस्ततोत्र भववरर, १८.ध्वन्यवालतोक'लतोचन', १९.अभभनव भवारतश्री तथवा
२०.नवाट्यरवास.
रभै व सम्प्रदवाय मम अभभनवगगुप्त कवा स्थवानमः- अभभनवगगुप्त कक धलखश्री हहई
टश्रीकवाओहं तथवा तन्त्रवालतोक मम वभररत तन्त्र तथवा पद्धिभत कहे कवारर उनकतो सभश्री रभैव
रवाखवाओहं यतमः धसद्धिवान्त, ववाम, भभैरव, यवामल, कभौल, भत्रक, एकवश्रीरवाभद कवा
सवर्वोत्कतृष भवदवान मवानवा जवातवा हभै। उनकहे अधधकवारपपूरर रभैववागमकों कक व्यवाख्यवा नहे
सभश्री भवदवानकों कतो उनकहे शश्रीकण्ठ कवा अवतवार मवाननहे पर भववर भकयवा थवा। उन्हम
लतोग भभैरव कवा अवतवार भश्री मवानतहे थहे। रभैवमतवानगुसवार भभैरव भरर, रवर तथवा वमनम
रभक्ति स्वरुप हतोतवा हभै। अथवारतम भरररुप सहे जगतम कतवार , वमन रुप सहे जगतम पवालक
तथवा रवर रूप सहे जगतम सरहवारक हतोतवा हभै। इसकहे सवाथ हश्री रुददहेव कहे प्रभत
अनन्य भभक्ति, मन्त्रधसभद्धि, सभश्री तत्वकों पर अधधकवार मनतोववाहंभछत कहे प्रवाप्त करनहे कक
समथरतवा, सवररवासकों कक आकसस्मक जवान प्रवाभप्त, भभैरव रुप कहे भचह्न हतोतहे हभै। सभश्री
समकवालश्रीन भवदवानकों नहे उनमम उपरतोक्ति सभश्री तथ्यकों कतो पवाकर उन्हम सवाक्षिवात भभैरव
मवान धलयवा थवा। इस बवात कक पगुभष उनकहे एक सगुयतोग्य भरष्य तथवा तन्त्रवालतोक कहे
प्रधसद्धि टश्रीकवाकवार 'जयरथ' नहे भश्री कक हभै। अभभनवगगुप्त; वसगुगगुप्त, सतोमवानन्द तथवा
उत्पलवाचवायर कहे सगुयतोग्य तथवा प्रभतभवारवालश्री अनगुयवायश्री मवानहे जवातहे हप।
अभभनवगगुप्त कहे भरष्य 'मधगुरवाज' नहे एक ध्यवान शतोक दवारवा उनकवा रहेखवा-भचत्र
हश्री प्रस्तगुत भकयवा हभै। शतोक कवा रुपवान्तर इस प्रकवार हभै :-
“भगववान शश्री दभक्षिरवामपूतर्ती अभभनवगगुप्त कहे रूप मम 'शश्री कण्ठ' कहे अवतवार हश्री
हप। उनकक आआ खतो मम अध्यवासत्मक आनन्द छलकतवा हभै। मवाथहे पर भत्रपगुण्ड स्पष हभै,
कवान रुदवाक्षिकों सहे सगुरतोभभत हभै, जटवा सगुन्दर पगुष्पकों सहे गगुन्थश्री हभै, दवाढश्री लम्बश्री तथवा
ररश्रीर गगुलवाबश्री हभै। ग्रश्रीववा कपपूरर, कस्तपूरश्री, चन्दन तथवा कहेसर कहे लहेप सहे रभौभवायमवान
तथवा कतृष्र वरर सश्री हभै। यजतोपवश्रीत भश्री बडवा रतोभवायमवान लगतवा हभै। वहे चन्दन सहे
सगुगसन्धत, फपूलमवालवाओहं, दश्रीपककों तथवा सगुन्दर भचत्रकों सहे सगुससजजत अङगुर-ववाभटकवा
मम प्रधसद्धि सवाधगु-सन्तकों कम मध्य, ववाद यन्त्रकों कक ध्वनश्री सहे ध्वभनत एक भवरवाल
मण्डप पर कभौमगुदश्रीरुप रहेरमश्रीवस पहनहे हहए तथवा कतोमल आसन पर वश्रीरमगुदवा मम बभैठहे
हहए पररभवरवाजमवान हप। पवास हश्री बभैठहे हहए क्षिहेमरवाजवाभद सभश्री भरष्यगर उन्हहीं कहे चररकों
मम मन एकवाग्र भकयहे हहए हप तथवा जतो कगुछ वह कह रहहे हभै, भरष्यगर वह लहेखनश्रीबद्धि
कर रहहे हप। दतोनकों ओर दतो अङनवायम हवाथकों मम चहंवर धलयहे ढतोलतश्री हभै।"
अभभनवगगुप्त नहे अपनहे भवश्र्वभवख्यवात ग्रन्थ 'ईश्र्वर प्रत्यभभजवा भववतृधत भवमभररनश्री'
कक रचनवा कहे पपूवर हश्री 'जश्रीवनमगुक्ति' कवा पद प्रवाप्त भकयवा थवा। इसकहे भवषय मम वहे स्वयहं
भववतृधत कहे आरम्भ मम धलखतहे हभै भक "यह ररश्रीर उनकहे पवाधथरव असस्तत्व कवा
असन्तमरूप हभै।"
कहवा जवातवा हभै भक अन्त मम अभभनवगगुप्त नहे अपनहे १२०० भरष्यकों समहेत भभैरव-
गगुफवा मम प्रवहेर भकयवा थवा और पगुनमः कभश्री नहहीं लभौटहे थहे। यह गगुफवा वतर मवान बश्रीरु
(भभैरव) ग्रवाम मम (जतो धजलवा बडगवाम कवा एक तहसश्रील हभै) अभश्री भश्री भवदमवान हभै।
इस तरह अभभनवगगुप्त कहे स्वरर यगगु कक समवाप्तश्री हहई।
अभभनवगगुप्त कक कवायर-कगुरलतवा कतो दहेखकर मवाननवा पडतवा हभै भक वहे स्वयहं
रहंकरवाचवायर कहे अवतवाररुप हतोकर अदभैत भवचवार कतो और दृढ करनहे कहे धलए
अवतररत हहए थहे। वहे एक उच्चकतोभट कहे दवाररभनक, टश्रीकवाकवार तथवा ग्रन्थकवार हहए
हप। उन्हकोंनहे रभैवमत कहे सभश्री रहस्यपपूरर तथ्यकों कवा वररन करकहे वसगुगगुप्त, सतोमगगुप्त,
सतोमवानन्द, उत्पलवाचवायर तथवा शश्रीकण्ठवाभद कहे प्रजवधलत भकयहे दश्रीपक कतो और
दृढतवा प्रदवान कक तथवा रभैवमत कहे यतोग्यतम भवदवानकों मम सवर्वोपरर स्थवान प्रवाप्त भकयवा।

'ओमम रमम'

महवाभरवरवात्रश्री स्ववामश्री पपूरवारनन्द सरस्वतश्री


१९८६
ओहं नमतो भगवतहे भभै र ववाय
अथ भभै र वस्ततोत्रमम

व्यवाप्त चरवाचर भवावभवरहे षहं भचन्मयमहे क मनन्तमनवाभदमम।


भभै र वनवाथमनवाथ ररण्यहं त्वन्मयभचतयवा ह्रभद वन्दहे ॥ १॥

समस्त चरवाचर(जङम और स्थवावर) जगत मम व्यवापक रुप सहे भवदमवान रहनहे


ववालहे चभैतन्य स्वरुप एक(अभदतश्रीय) अनन्त अनवाभद(धजसकवा अन्त भश्री नहहीं और
आभद भश्री नहहीं) ऐसहे अनवाथकों कतो ररर दहेनहे ववालहे भगववान भभैरवनवाथ कतो अपनहे ह्रदय
मम सस्थत करकहे अपनहे भचत कतो उनकहे चररतो मम तन्मय करतहे हहए मप अभभववादन
(नमस्कवार यवा स्तगुभत) करतवा हहआ॥१॥

त्वन्मयमहे त दरहे ष भमदवानहीं भवाभत मम त्वदनगुग्र हरक्त्यवा।


त्वहं च महहे र सदभै व ममवात्मवा स्ववात्मयहं मम तहे न समस्तमम॥ २॥

हहे महहेर! आपकक अनगुग्रह रभक्ति सहे यह समस्त जगत इस समय मगुझहे
(अभभनवगगुप्त कतो) आपकहे स्वरुप सहे हश्री भवाधसत हतो रहवा हभै अथवारत भगववान
भभैरवनवाथ हश्री इस समस्त जगत रुप मम हभै। भभैरवनवाथ कहे अभतररक्ति इसकक कतोई
सतवा नहहीं हभै। इस प्रकवार सवरत्र भगववान भभैरवनवाथ आप हश्री मगुझहे भदखवाई दहे रहहे हप
और आप ततो सवरदवा महेरश्री आत्मवा हश्री हप अथवारत "भभैरवतोवोऽहहं" इस प्रकवार स्ववाभभन्न रुप
सहे मगुझहे आपकवा जवान हतो रहवा हभै अतमः महेरहे धलए यह समस्त जगत भश्री आत्मरुप हतो
गयवा हभै॥२॥
स्ववात्मभन भवश्र्वगतहे त्वभय नवाथहे तहे न न सहं स तृभ तभश्रीभतमः कथवासस्त।

गु र र द मःगु ख भवमतोहत्रवासभवधवाभयषगु कमर गरहे ष गु॥ ३॥


स्तस्वभप द ध

हहे नवाथ! महेरहे आत्मस्वरुप आपकहे समस्त जगतरुप हतोनहे सहे अथवारत महेरश्री
आत्मवा हश्री समस्त जगतरुप हतोनहे सहे अत्यन्त असहनश्रीय दमःगु ख एवहं त्रवास कतो दहेनहे
ववालहे अनन्त कमर्वो हं कहे उपसस्थत हतोनहे पर भश्री मगुझहे सहंसवार सहे थतोडवा सवा भश्री भय नहहीं
रह गयवा हभै। (क्यकोंभक अपनहे सहे भभन्न हतोनहे पर हश्री भय हतोतवा हभै ) जगत ततो
आत्मस्वरुप हतो गयवा और आत्मवा सहे ततो भय हतोतवा नहहीं, अतमः मगुझहे जगत सहे कतोई
भय नहहीं हभै॥३॥

अन्तक मवाहं प्रभत मवा द श्गु महे न वाहं क्रतोधकरवाल तमवाहं भवदधश्रीभह।
रङ्कर सहे व न भचन्तनधश्रीरतो भश्रीषर भभै र व रभक्तिमयतोवोऽसस्म॥४॥

हहे अन्तक! (समस्त भवश्र्व कवा भवनवार करनहे ववालहे) यम! मगुझहे अपनश्री क्रतोध-
यक्ति
गु इस दृभष कतो मत भदखवाओ, अथवारत क्रतोध भरहे नहेत्रकों सहे मगुझहे मत दहेखतो क्यकोंभक
मप स्वयहं हश्री रङ्कर (भभैरव) कक सहेववा तथवा भचन्तन मम दृढ रहनहे ववालवा हहआ और भगववान
भभैरव कक भयहंकर रभक्ति-सहंपन्न हहआ। अतमः मगुझहे आपसहे कतोई भय नहहीं हभै॥४॥

इत्थमगुप तोढ भवन्मय सहं भ वद म दश्रीधधतदवाररत भपूर रत भमसमः।


मतृत् यगु यमवान्तक कमर भपरवाचभै न वारथ ! नमतोवोऽस्तगु न जवातगुभ बभहे भ म॥५॥

हहे नवाथ! आपकतो नमस्कवार हभै। आपकहे स्वरुपभपूत जवान रसश्मयकों सहे महेरहे ह्रदय
कवा अन्धकवार (अजवान) नष हतो चगुकवा हभै, अतमः मप मतृत्य,गु यम, अन्तक, कमर,
भपरवाचकों सहे कदवाभप नहहीं डरतवा हहआ॥६॥

प्रतोभदत सत्यभवबतोध मरश्रीभच प्रतोभक्षित भवश्र्व पदवाथर स तत्वमः।


भवावपरवामतृत भनभर रपपूरर त्वय्यहमवात्मभन भनवतृरधतमहे भ म॥६॥

आपकक कतृपवा सहे ह्रदय मम सत्य एवहं चभैतन्य कक रसश्मयकों कहे उदय हतो जवानहे सहे
समस्त भवश्व कहे यथवाथर तत्व कतो जवाननहे ववालवा मप अनन्त भवाववामतृतकों सहे पररपपूरर
आत्मस्वरुपभपूत आप मम भनवतृधत(परम रवासन्त) कतो प्रवाप्त कर रहवा हहआ॥६॥

मवानसगतोचरमहे भ त यदभै व क्लहे र दरवातनगुत वाप भवधवात्रश्री।


नवाथ तदभै व मम त्वदभहे द स्ततोत्र परवामतृत वतृभ षरुदहे भ त॥७॥

हहे नवाथ! जब भश्री (जयकों हश्री) ररश्रीर कतो सहंतप्त करनहे ववालश्री अथवारत कष दहेनहे
ववालश्री क्लहेर दरवा कवा उदय महेरहे अन्तमःकरर मम हतोतवा हभै तब हश्री अथवारत उसश्री क्षिर
आपकहे सवाथ अभहेद कवा कथन करनहे ववालश्री अमतृतवतृभष कवा भश्री उदय हतो जवातवा हभै ,
अथवारत आपकहे सवाथ अभहेद भवावनवात्मक अमतृत सहे महेरहे सहंपर पू र क्लहेर नष हतो जवातहे
हप॥८॥

रङ्कर! सत्यभमदहं वतदवान स्नवान तपतो भव तवाप भवनवाभर।


तवावक रवास परवामतृत भचन्तवा स्यन्धभत चहे त धस भनवतृर भत धवारवा॥८॥
हहे रङ्कर! यह सत्य हभै भक आपकहे भनभमत भकयहे गयहे वत, दवान, तप और
स्नवान सहंसवार कहे सहंतवाप कतो नष करनहे ववालहे हप। परन्तगु आपकवा स्तवन करनहे ववालहे
अमतृत रुप रवासकों कवा भचन्तन ह्रदय मम परम रवासन्त रुप अमतृत धवार कक वषवार करतवा
हभै॥८॥

नतृत् यभत गवायभत ह्रष्यभत गवाढहं सहं व भदयहं ममम भभै र व नवाथ।
त्ववाहं भप्रयमवाप्य सगुद रर नमहे कहं द ल
गु र भमन्यजनभै मः समयजमम॥ ९॥

हहे भभैरवनवाथ! आप भप्रय, सगुन्दर दररन ववालहे एक अभदतश्रीय यजस्वरूप हप।


आप अन्य (अभक्ति) जनकों कहे दवारवा दल गु र भ हप। ऐसहे तत्त्व कतो पवाकर महेरवा यह जवान
आनन्द सहे नवाच रहवा हभै, गवा रहवा हभै और हभषरत हतो रहवा हभै॥९॥

वसगुर सपभौषहे कतृ ष्रदरम्यवामभभनवगगुप्त मः स्तवभमममकरतोतम।


यहे न भवभगुभर वमरूसहं त वापहं रमयभत झभटभत जनस्य दयवालगुमः ॥१०॥

आचवायर अभभनवगगुप्त नहे पभौष कतृष्र दरमश्री सहं. ६८ मम इस स्ततोत्र कतो रचवा हभै,
धजससहे प्रसन्न हतो कर सवरव्यवापक दयवाभनधध भगववान भभैरवनवाथ अपनहे भक्ति कहे
सहंसवार-तवाप कतो रश्रीघ्र हश्री हर लहेतहे हप, अथवारत सहंसवार सहे मगुक्ति कर दहेतहे हभै॥१०॥

॥ इभत शश्रीमहवामहहे श्र्व रवाचवायर अभभनवगगुप्त पवाद भवरभचत भभै र वस्ततोत्रमम सहं प पूरर मम॥
॥भभै र ववापर रमस्तगु॥
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