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िडया यूज़ - ेिकं


इं ग यूज
िन:शु क (31,219)

कभी हार मत मानो – बीमारी होने के बावजूद भी नह के पॉल


मथ
by Mohammad Shakeel / June 4, 2015

िसत बर 1921 म पैदा ए पॉल मथ को “ पा टक सेिर ल पा सी (Spastic Cerebral Palsy)”


ंो पे, बोली
नाम की एक िबमारी थी। िजसका मलतब है , बचपन से ही उनका अपने चेहरे पे, अपने अग
पे उनका िनयंण नह था। इसी वजह से वो खुद से नहाना, कपडे पहनना, या खाना खाने जैसे काम
भी नह कर सकते थे। वो खुद को ढं
ग से य नह कर सकते थे, और वो कूल भी नह जा सकते
थे।

पर पॉल मथ जैसे लोग यह सािबत करते है िक अगर मन म कुछ करने की इ छा है , तो बड़ी से बड़ी
सम या आपको नह रोक सकती। पॉल को पे टं ग करने का शौक था। और इतनी सम या के
बावजूद कुछ नया करने का जूनन
ू था।
इसी िह मत और साहस के साथ उ ह ने सु आत की “टाइपराइटर पे टं
ग” की।

सोचो वो ढं
ग से कुं
जी (Key) भी नह दबा सकते थे। अपने बाए हाथ से अपने दाये हाथ को पकड़ के
Key दबाते थे। और करते थे टाइपराइटर पे पे टं
ग।

Typewriting art painting by Paul Smith (कुछ ति रे जो पॉल मथ ने typewriter से


बनाय )

Pual Smith Typewriting art gallery

य िक वो यादा Key नह दबा सकते थे तो उ ह ने िसफ सरल keys का उपयोग करके पे टं ग


बनानी शु की। िसफ सरल keys उपयोग करके उ ह ने टाइपराइटर से ऐसी-ऐसी पिटं स बनाई की
दिु नया है रान रह गई। उ ह ने ऐसी 400 से भी यादा पे टं
स बनाई, िसफ टाइपराइटर की कुछ keys
को उपयोग करके।
एक से बढकर एक पे टंग बना कर उ ह ने यह सािबत िकया िक िवकल गता िसफ िदमाग म होती है ।
उ ह ने अपने िवकल गता पर यान देने के जगह अपनी यो यता के साथ अपनी एक पहचान बनाई
अपना एक नाम बनाया।

जब िजद ंगी म एक दरवाजा बं ू रा दरवाजा ज र खुलता है । लेिकन हम म से कुछ


द होता हेना तो दस
लोग उस बं द दरवाजे को देख के अफ़सोस करते रहते है । उस बंद दरवाजे को देख के परेशान होते
रहते है ।

लेिकन कुछ लोग बं द दरवाजे को देखने के बजाय उस खुले ए दरवाजे को देखते है और अपनी एक
पहचान बनाते है ।

पॉल मथ से मेने एक चीज ज र सीखी िक अगर इ शान ठान ले तो उसकी वीर शि के आगे बड़ी
से बड़ी चुनौती भी आसन हो जाती है ।

उसकी वीर शि के आगे बड़ी से बड़ी बीमारी भी कुछ नह कर सकती। इ शान के वीर शि के
आगे बड़ी से बड़ी सम या भी छोटी हो जाती है ।

तो कुछ भी हो जाये कभी, कभी, कभी, कभी हार मत मानो..!!

All The best


**िश ा द कहािनय का िवशाल संह**

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