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स पूण योग िव ा म योग के सभी कार का ब त सारग भत वणन कया गया है। इस

पु तक क िवशेषता है क पाठक के िलए योगा यास का बड़ा सटीक िववरण सिच


तुत कया गया है। म आशा करता ँ क ान के िज ासु , िव ा थय एवं शोधा थय
के िलए यह पथ दशक का काय करे गी।
- ो. गणेश शंकट िगरी
मुख, यौिगक िव ान िवभाग
डॉ. ह र संह गौर िव िव ायल, सागर

इस ानवधक पु तक क िवशेषता यह है क इसे पढ़कर कोई भी पाठक अपने अ तरं ग एवं


बिहरं ग का िवकास कर अपने ि व को वतमान समयानुकूल ब आयामी बना सकता
है। साथ ही वह अपने शारी रक, मानिसक, शैि क, आ याि मक एवं सां कृ ितक जीवन म
मनचाहे प रवतन भी ला सकता है।
-डे. शैले पाराशर
ोफ़े सर एवं िनदेशक,
अ बेडकर पीठ,िव म िव िव ालय, उ ैन

ी राजीव जैन "ि लोक" ारा िलखी गई स पूण योग िव ा पु तक जगत क फु लवारी म
एक गुलद ता है। िजस कार गुलद ता बनाने के िलए माली वा टका के सु दर पु प का
चयन करता है, उसी कार ी ि लोक जी ने योग जगत क िविभ या को एक
पु तक म िलिपब कर दया है। जो िव ा थय , योग साधक एवं योग के ित िज ासा
रखने वाल के िलए ब त उपयोगी है।
- ी.एम.पी. यादव
िश क, रा य योग भारी - म. .
शासक य योग िश ण क , भोपाल

पुिलस क ततम एवं अिनयिमत जीवनचया म मानिसक एवं शारी रक ािधयाँ


अनजाने ही पैदा हो जाती ह। इससे काय, नौकरी पेशा, वहार, जीवनशैली म हंसा,
आ मह या जैसी घटना से समाज, िवभाग तथा प रवार भािवत होता है। स पूण योग
िव ा म इस सम या का वै ािनक उपचार बताया गया है। िजसे िबना कसी िश क के
सीखकर लाभाि वत आ जा सकता है। व थ पुिलसमैन भी इस पु तक के ान से अ छी
िनणय मता तथा अथक् प र म करने का साम य ा कर सकते ह। येक तर के
पुिलस कमचारी एवं अिधका रय के िलए एक अमू य, साथ रखने यो य ंथ है।
-डॉ. सुभाष अ ,े आई.पी.एस.
मुक सिचव, गृह, ीसगढ़

अमे रका म योग सीखने एवं िसखाने के िलए सं था क बाढ़ आई ई है। क तु वयं
योगा यास के िलए कोई ीिमयर नह है। अमे रका म पि मी स यता के प रवेश म
मानिसक एवं शारी रक व थता के िलए स पूण योग िव ा अ य त उपयोगी ंथ है।
योगासन को करने क वहा रक रीित तथा उनके मेिडकल मह व को अ य त रोचक एवं
बोधग य तरीके से तुत कया गया है। ऐसी तुित अ य कसी पि मी लेखक क
पु तक म देखने को नह िमलती। सुदरू देश म अके ले रहने वाले हमारे सभी लोग इससे
लाभाि वत ह गे।
-सौरभ शमा
लोबल िडलीवरी मैनेजर, ाइसलर

- पश शमा
ॉय, डे ॉइट, िमिशगन (अमे रका)

ी राजीव जैन ने अथक प र म एवं गहन शोध कर "गागर म सागर" कहावत को


च रताथ कया है। एवं योगा मक ान एवं अनुभव का अ भुत िम ण है। आधुिनक युग
के तनाव, पयावरण दूिषत तथा गितमय जीवन म योग का ान एवं उपयोग अप रहाय हो
गया है। सभी कार क जीवनशैली म व थ व स रहने के िलए एक अनुपम ंथ है।
-उदय उपरीत
डायरे टर एटीसलात, दुबई (यू.ए.ई.)

ी राजीव जैन "ि लोक" ारा कया गया यह यास अ य त अिभनव है। उ ह ने इस
पु तक म योग के स यक व प क ा या भारतीय दशन के प र े य म क है। योग के
े म िनि त ही यह िविश उपलि ध है। इस हेतु उ ह बधाई। हमारी आशा एवं अपे ा
है क पाठक इससे लाभाि वत ह गे।
-डॉ. महेश जैन
िनदेशक

यह पु तक योग सीखने के इ छु क ि य के िलए एक स पूण मागद शका है। साथ ही


योग का अ यास करने वाल के िलए यह एक ब त मह वपूण संदभ ंथ भी है।
-डॉ. मोहन संह
टा रयो, कनाडा
मंजुल पि ल शंग हाउस
कॉरपोरे ट एवं संपादक य कायालय
ि तीय तल, उषा ीत कॉ ले स, 42 मालवीय नगर, भोपाल-462 003
िव य एवं िवपणन कायालय
7/32, भू तल, अंसारी रोड, द रयागंज, नई द ली-110 002
वेबसाइट : www.manjulindia.com
िवतरण के
अहमदाबाद, बगलु , भोपाल, कोलकाता, चे ई,
हैदराबाद, मु बई, नई द ली, पुणे

स पूण योग िव ा :
योगासन, ाणायाम, मु ा, बंध, ष कम, यान एवं कु डिलनी योग
वै ािनक आधार सिहत
कॉपीराइट © 2008 राजीव जैन

थम सं करण : 2008
संशोिधत चतुथ सं करण : मई 2015
तृतीय आवृि : अग त 2016

ISBN 978-81-8322-173-3

इस पु तक के मा यम से काशक या लेखक का आशय पाठक को कोई भी पेशेवर सलाह या सेवा देना नह है। पु तक म
बताए गए िवचार, याएँ और सुझाव कसी भी िच क सक य सेवा का िवक प नह ह। इसिलए वा य से संबंिधत
कसी भी मामले म िच क सक य परामश को ही ाथिमकता द। इसम दी गई कसी भी जानकारी या सूचना के उपयोग
से य द कसी पाठक को कोई हािन या ित होती है तो काशक और लेखक क कोई जवाबदेही नह होगी।

यह पु तक इस शत पर िव य क जा रही है क काशक क िलिखत पूवानुमित के िबना इसे या इसके कसी भी िह से


को न तो पुनः कािशत कया जा सकता है और न ही कसी भी अ य तरीके से, कसी भी प म इसका ावसाियक
उपयोग कया जा सकता है। य द कोई ि ऐसा करता है तो उसके िव कानूनी कारवाई क जाएगी।
िवषय सूची

दांजली
समपण
आभार
दो श द
शुभ आशीष
आमुख
ा थन
तावना
मंगल-पाठ
ाथना
योग प रचय : एक वैचा रक दृि कोण1
योग के कार
योग का अथ और प रभाषा
योग क िविभ प रभाषाएँ एवं िविभ ंथ म तुलना
वतमान प र े य म योग क आव यकता
योग या करता है
योग या है
योग ारा जीवन जीने क कला
योगासन से लाभ के वै ािनक कारण
योगासन का शरीर के अंग पर पड़ने वाला भाव - एक वैचा रक दृि कोण
शरीर के िविभ अवयव पर भाव डालने वाले आसन
आयुवद म वात,िप व कफ़
वात,िप व कफ़ को शांत करने वाले आसन
योग के तुलना मक िविभ ंथ
िच क ा या
िच वृि के कार
िच वृि य के िनरोध का उपाय
अ यास मे दृढ़ होने का उपाय
ई र िणधान
लेश उ प करने वाले कारण
लेश को दूर करने का उपाय
या योग
या योग का फल
योग माग के िव , अंतराय, िच , िव म एवं बाधाएँ
िव को दूर करने का उपाय
मन (िच ) को ि थर करने वाला साधन
अ ांग योग - अ ाग योग क उपयोिगता
अ ांगयोग के काय एवं मह व
अ ांगयोग के अंग(यम, िनयम, आसन, ाणायाम, याहार, धारणा, यान और समािध)
योग- आसन के नाम - एक रह यमय ता कक दृि कोण
योग- सावधािनयाँ/िनयम
यौिगक सू म ायाम (ह के ायाम)
यौिगक ाथना/उ ारण थल व िवशुि च शुि
बुि तथा घृित शि िवकासक या/ मरण शि िवकासक या
मेधा शि िवकासक या/ने शि िवकासक या
कपोल शि िवकासक या/कण शि िवकासक या
ीवा शि िवकासक या - थम/ि तीय
ीवा शि िवकासक या - तृतीय/ कं ध तथा बा मूल शि िवकासक या
भुजबंध शि िवकासक या/कोहनी शि िवकासक या
भुजबि ल शि िवकासक या
पूण भुजा शि िवकासक या
मिणबंध शि िवकासक या
कर पृ शि िवकासक या
करतल शि िवकासक या
अंगुिल मूल शि िवकासक या/अंगुिल शि िवकासक या
व ः थल शि िवकासक या - थम/ि तीय
उदर शि िवकासक (अजगरी) या - थम से दशम तक
क ट शि िवकासक या - थम से चतुथ तक
क ट शि िवकासक या - पाँचवी, मूलाधार च शुि या
उप थ तथा वािध ान च शुि /कु डिलनी शि िवकासक या
जंघा शि िवकासक या - थम/ि तीय
जानु शि िवकासक या/ पंडली शि िवकासक या
पादमूल शि िवकासक या/गु फ, पादतल, पादपृ शि िवकासक या
पादांगुिल शि िवकासक या
यौिगक थूल ायाम
रे खा गित/ दयगित (इं जन दौड़)
उ कू दन (ज पंग)/ऊधवगित
सवागपुि
सरल योग याएँ
पवनमु ासन समूह क याएँ
वायु िनरोधक, उदर देश एवं शि बंध हेतु सरल याएँ
वायु िनरोधक याएँ - पादांगुिल, पादतल, पादपृ एवं गु फ
शि वधक/िवकासक या
सु जानु संचालन या/उ ान जानु संचालन या
उ ान ि जानु संचालन या
जानु च मय बनाने क या
ोणी िवकासक एवं शि वधक या/गितमय अ िततली आसन
गितमय पूण िततली आसन
मुि का, मिणबंध, कोहनी, कं ध शि वधक/िवकासक या
कं ध को घुमाने क या ( कं ध संचालन या) व ः थल को घुमाने क या
गितमय ीवा शि वधक/िवकासक या
उदर देश अंग क याएँ
उ ानपादासन
गितमय उ ानपादासन, पैर ारा वृ बनाना/पादवृ ासन
पाद संचालन या/साइ कल चलाना/ि -च कासन
सु पाद संचालन या/उतान जानु संचालन या
सु पवन मु ासन/पूण पवनमु ासन म लुढ़कना
गितमय पवन मु ासन
मकटासन/सु उदराकषणासन/क ट मदनासन
नौकासन/मु ह त मे द डासन
शि बंध क याएँ
र सी ख चने क या/दही मथना
गितमय मे व ासन
आटा च चलाने क या (तीन कार)
नौका संचालन (नाव चलाने क या)
मुि का घात या/का त णासन
सु नम कारम
वायु िन कासन या
कौआ चालन या
उदराकषणासन
ऊजा दायक िवशेष आसन एवं याएँ
अ ासन, गितमय अ ासन
गितमय गोमुखासन
मकरासन, गितमय मकरासन
सपासन
अध शलभासन/गितमय अध शलभासन
शलभासन
िवपरीत नौकासन
मुगा आसना मक या
ि लोकासन
गितमय ि लोकासन
गितमय ितयक पृ ासन/गितमय ितयक ि लोकासन
क ट वृ ासन
कं गा कू द
मढक कू द
बाल हंसी/बाल मचलन या
दृि वधक यौिगक अ यासावली
तनाव मुि एवं िशिथलता के िलए आसन
ासन/मृतासन/पूण िव ामासन
सूयनम कार-एक अनु चंतन
सूय नम कार का ाचीन इितहास/आधुिनक इितहास
सूय नम कार
सूय नम कार क एक अ य िविध
सूय नम कार के लाभ
च नम कार
योगासन
प ासन एवं यान से संबंिधत आसन
सुखासन
गु ासन/मु ासन ( थम कार)
वाि तकासन/योगासन
अध प ासन
प ासन
कमलासन, ी आसन, आ द आसन, आसन, मु प ासन गु प ासन, पतंग
आसन
ब प ासन
िस ासन/िवजयासन
पवतासन/िवयोगासन
योग मु ासन
व ासन एवं उससे संबंिधत आसन
व ासन
आन द म दरासन/पादा दरासन
शशकासन/शशांक आसन
सु व ासन
पयकासन ( थम कार)
उ ासन
कू मासन ( थम कार)
भ ासन
म डू कासन/भेकासन (दो कार)
उ ान म डू कासन (दो कार)
माजारी/माजार आसन
ा ासन ( थम कार)
वीरासन (तीन कार)
खड़े होकर एवं झुककर कए जाने वाले आसन
ताड़ासन
ितयक् ताड़ासन/उ व ह तो ानासन
गितमय समकोणासन
गितमय दोलासन
संकटासन/सकटासन
ग ड़ासन
वृ ासन/एकपाद नम कारासन/उ वह ति थत एकपाद िवराम आसन ुव आसन/
भागीरथ आसन
पाद ह तासन/ह तपादासन
उ ानासन (दो कार)
काल भैरवासन ( थम कार)
उि थत ह त पादांगु ासन
शुतुरमुग आसन/गज आसन
शीष पादांगु पशासन
वीर भ ासन/एक पादासन
पादांगु ासन ( थम कार)
म यम समूह के आसन
बकासन ( थम कार)/बक यानासन
कागासन
म यासन
संहासन (दो कार)
गोमुखासन (दो कार)(सु गोमुखासन/ यान वीरासन)
उ कटासन (दो कार)
गितमय उ कटासन
कु कुटासन
वृषभासन
ि कोणासन (दो कार)
गितमय ि कोणासन
अ ांग नम कारासन
हनुमानासन
अध च ासन (चार कार)
लोलासन
तुलासन/झूलासन/उि थत प ासन ( थम कार)
मे आकषणासन/सु एक ह तपाद उ वासन
विश ासन
गभासन/गभ िप डासन/उ ान कू मासन
मु ासन (ि तीय कार)
खगासन
सेतुआसन/रपटासन/िवपरीत द डासन/पूव ानासन
पूव ानासन के तीन अ य कार
खंजनासन
िवपरीत शीष ि ह त ब ासन/क याणासन
पीछे क ओर झुककर कए जाने वाले आसन
भुजंगासन
उ ान पृ ासन
धनुरासन
च ासन (अध च ासन, अनु च ासन, उ व धनुरासन)
पूण च ासन/च बंधासन
सेतुबंधासन/शीष पादासन
ीवासन
िसर, कं धा तथा गदन के बल कए जाने वाले आसन
सवागासन
प सवागासन/एक पाद सवगासन
िवपरीतकरणी-मु ासन/िवलोमासन
िव तृत पाद सवागासन/सु कोणासन
कण पीड़ासन
एक पाद शीषासन
साल ब शीषासन
शीषासन
कपा यासन/कपािल आसन
प ासन यु शीषासन/शीष प ासन/उ व प ासन
शीषासन म पंडासन यु उ व प ासन
मु ह त शीषासन/िनराल ब शीषासन
शीष च ासन
मूधासन/ सा रत पाद उ ानासन
आगे क ओर झुककर कए जाने वाले आसन
पि मो ानासन
गितमय पि मो ानासन
पाद- सार पि मो ानासन/पृ मुि ब पि मो ानासन
सु जानु शीष पशासन/शैथ यासन
उि थत जानु िशरासन
उ ासन
जानु-शीष आसन/जानु िशरासन
महामु ासन
ब कोणासन
िव तृत पाद भू-नमनासन/भूमासन/उपिव कोणासन
उि थत पादह तासन/एकपाद प ो ानासन/िनराल ब
पि मो ानासन/उ वमुख पि मो ानासन
उि थत ह त-मे द डासन/उभय पादांगु ासन/मे द डासन
मे द ड मोड़कर कए जाने वाले आसन
ितयक भुजंगासन
अध म ये ासन
पूण म ये ासन
मे व ासन
ितयक मे भू-नमनासन
ितयक कट च ासन (तीन कार)
पीत के बल कए जाने वाले आसन
सु पवन मु ासन
सु पादागु नासा पशासन
कं धरासन/सेतुबंधासन
ि –पा व आसन/पा व धनुरासन
उ अ यास एवं संतुलनके आसन
पाद सारणक छप आसन/कू मासन (ि तीय कार)
कदपीड़ासन/कदासन
नािभ पीड़ासन
धनुराकषणासन/आकणधनुरासन ( थम कार)
आकण धनुरासन (ि तीय कार)
आकण धनुरासन (तृतीय कार) / धनुष बाण चालन या.
पृ ासन
कपोतासन ( थम एवं ि तीय कार).
प रघासन
मृलबंधासन.
वृि कासन/पूण वृि क आसन
उि थत वृि क आसन
नटराज आसन (दो कार)
वातायनासन
तोलागुलासन (दो कार)
ि -ह त भुजासन
हंसासन
मयूरासन/प मयूरासन/मयूरी आसन.
बकासन (ि तीय कार)/उ व सा रत एकपादासन
प पवतासन/प ासन यु "जानु ि थरासन'/ उि थत प ासन (ि तीय कार)
गोर ासन ( थम कार)
गोर ासन (ि तीय कार)
उ व कु कुटासन/प बकासन
पादांगु ासन (ि तीय कार)
जानुिशर एक-पाद कं धासन/एक पाद िशरासन/ कं दासन
शीष जानु पशासन
अधब प ो ानासन
अ व ासन
उि थत ट भासन
लं गाकारासन
ा ासन (ि तीय कार)/उि थत शीषासन
सं यासन
धराजासन ( लेग पो चर)/एक पाद शीष पशासन/कायो सग ि थत एक पाद
शीषासन/उधव एक पादतल शीष पशासन
दुवासन/उि थत एक पाद िशरासन/उि थत एक पाद कं धासन
क यापासन
पूण शलभासन
पयकासन (ि तीय कार)
ि पाद, िशरासन/ि पद कधासन
उि थत ि पाद ीवासन/उि थत ि पाद िशरासन/ उि थत ि पाद कधरासन/ उि थत
ि पद कदासन
काल भैरवासन (ि तीय कार)
िव ािम ासन
ि पाद कधरासन
णवासन/योगिन ासन/सु गभासन
नािड़याँ : कार एवं काय
ाणायाम : एक मह वपूण प रभािषत, वैचा रक दृि कोण.
ाण के कार (वायु ान)
ाणायाम क अव थाएँ.
ाणायाम काउ े य
ाणायाम म सन या के कार
ाणायाम का अ यास काल और अविध
ाणायाम संबंिध संकेत, सावधािनयाँ व िनयम
ाणायाम से होने वाले लाभ
नाड़ी-शोधन ाणायाम- एक अनु चंतन
नाड़ी-शोधन ाणायाम एवं अनुलोम-िवलोम ाणायाम
वृि ाणायाम
सम वृि ाणायाम, िवषम वृि ाणायाम
ाणायाम के कार
सिहत कुं भक (सगभ/िनगभ)
सूय-भेदन ाणायाम
उ ायी ाणायाम
शीतली ाणायाम
भि का ाणायाम
कार जाप/उ ीथ ाणायाम
मू छ ाणायाम
के वली ाणायाम
चं -भेदन ाणायाम
सीतकारी ाणायाम
कपाल-भाित ाणायाम
लािवनी ाणायाम
मु ा: एक दृि कोण
Hন্তাধা
महावेध मु ा
खेचरी मु ा
िवपरीत करणी मु ा
वजोली मु ा
योिन मु ा/ष मुखी मु ा
शि चािलनी मु ा.
ताड़ागी मु ा
मा डु क मु ा
शा भवी मु ा
अि नी मु ा
पािशनी मु ा
काक मु ा
मातंिगनी मु ा
भुजंिगनी मु ा
योग मु ा
সম্ভ কৰা,
मु ा उपसंहार एवं सम त लाभ
ह त मु ा-िव ान
মান সূসা
वायु मुद ा/शू य मु ा (आकाशीय मु ा)/सूय मु ा
व ण मु ा/सुरिभ मु ा
पृ वी मु ा/अपान मु ा (मृत संजीवनी मु ा)/ ाण मु ा
लंग मु ा
बंध : कार एवं लाभ
मृल बंध
उिड़यान बंध
जालंधर बंध
महाबंध
िज हा बंध
हठयोग - (ष कम)
1. धौित 2. वि त 3. नेित 4. ाटक 5. नौिल 6. कपाल भाित
धौित : अंतधित (वातसार धौित, वा रसारधौित, शंख- ालन)
शंख- ालन - (तीन कार)
लघु शंख ालन
शंख ालन क कया म आसन कै से काम करते ह - एक वै ािनक प ित
शंख ालन (एक वै ािनक कारण)
कु जल/गजकरणी के िलए (प प)
शंख ालन के लाभ
शंख- ालन क सावधािनयाँ
अि सार अंतध ित
बिह कृ त अंतधित
ालन कम
दंत धौित - (दंत मूल, िज वा शोधन, कण, कपालरं धौित).
द धौित (द ड धौित, वमन धौित)
कु जल या/गजकरणी या
ा या/बाधी या
वसन धौित (व धौित), मूल शोधन (गणेश या)
वि त
जल वि त
थल वि त, नेित– जल नेित
सू नेित
लौिलक (नौिल)
ाटक
कपाल भाित, वात म कपाल भाित, ु म कपाल भाित
शीत म कपाल-भाित
यौिगक षटकमचा
योग िन ा (नये जीवन क शु आत, िड ेशन को दूर कर)
धारणा, 1. पा थवी धारणा
आ सी धारणा/आ ेयी धारणा
वायवीय धारणा (वायु धारणा)/आकाशी धारणा
यान योग
थूल यान
योितमय यान/सू म यान/ यान का मह व और मन पर भाव
कु डिलनी : एक िववेचना
मूलाधार च
वािध ानां च
मिणपूरक च
अनाहत च
िवशुि च
आ ाच
सह ार च
नािभ िव ान परी ण - नािभ हटने के मुख कारण
नािभ हटने से उ प होने वाले रोग/नािभ ठीक करने वाले योगासन
यो य आहार - एक दृि अप य आहार
प य आहार (लेने यो य आहार)
यो य आहार क उपयोिगता
संतुिलत भोजन/भोजन के कार
िविभ कार के भोजन का मन पर भाव
अनुपयु भोजन (आहार) के भाव तथा दु भाव
कस बीमारी म या खाएँ? या न खाएँ?
कस महीने म या खाएँ? या न खाएँ?.
मानव शरीर रचना एवं शरीर या िव ान
ए यू ेशर
योग और आयुवद (एक अ ययन)
स पूण वा य के िलए कु छ ट स
तनाव बंधन म योग क भूिमका
यौग और मानिसक वा य
ि व प रभाषा एवं घटक
ि व को भािवत करने वाले कारक
प रवार संबंधी कारक/सामािजक आ थक संि थित/समूह का भाव/
िव ालय का भाव.
ि व के िवकास पर योग का भाव.
ाथना- ाथना के कार
ि गत ाथना/सामूिहक ाथना/सावभौिमक ाथना
सकाम ाथना/िन काम ाथना/अिन कारी ाथना
दैिनक जीवन म ाथना क उपयोिगता व मह व
आधुिनक जीवन म तनाव, ं एवं नैरा य
तनाव के कार/आधुिनक जीवन म तनाव के कारण
दृ या संघष.
नैरा य और ं दूर करने के उपाय.
यान का मन पर भाव
योग से संबंिधत ामक धारणाएँ
ामक धारणा का मन पर भाव.
िनराकरण के उपाय
हा य योग िच क सा
शांित पाठ
कस रोग म कौन सा आसन कर?
अ यासावली एक नजर
ित दन के िहसाब से कये जाने वाले आसन
(सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गु वार, शु वार, शिनवार, रिववार)
ब के िलए योग
मिहला के िलए योग
कायालय म काम करने वाले ि य के िलए योग
रा ीय योग ितयोिगता (िनयमावली)
संद भत थ
उपसंहार
अनु मिणका
ांजिल
देव आचाय ी 108 िवमलसागर जी महाराज एवं आचाय ी ानसागर जी
गु महाराज को नमो तु करते ए, अपने पू य िपता ी व. िवजय कु मार जैन (के वलारी,
म. .) एवं माता ी व. ीमती कमला बाई जैन तथा िपता तु य व. ी कृ णचं रखेजा
सा. एवं माता ी व. ीमती मंजुल देवी रखेजा जी को शत्-शत् नमन करता ,ँ िजनके
दए सं कार ही आ मो दारक बन गए।
जब मेरी उ लगभग 2 साल थी, तभी मेरी माँ का वगवास हो गया था। इसके बाद
िजस माँ ने मेरी अँगुिल पकड़कर मुझे मागदशन दया, वे थ व. ीमित उमा देवी जैन।
अब वे भी िनवाण ाि के िलए अगले ज म क या ा पर िनकल चुक ह, उनको मेरा
बार बार णाम।
समपण

वे जोािणयव थकोहोनावा चाहते ह या जो व थ ह एवं उस ई रीय शि को िजसने सम त


य दान करने के िलए मुझे िनिमत बनाया। साथ ही उन सबको जो
इस माग ारा सम त ािणय को मो माग , सुखी, िनरोग एवं समृ देखना चाहते ह।
आभार

म सव थम आभार
रखेजा साहब एवं
करता ँ मंजुल पि ल शंग हाउस के डायरे टर ीमान िवकास
ीमती अनु रखेजा का, िज ह ने मुझे िलखने क ेरणा ही नह
वरन् अपना वा स य भी दान कया।
इस पु तक क टाइपसे टंग, आंत रक स ा एवं िडज़ाइ नंग का काय ी दीपक शमा
एवं वीण शमा क लगनशीलता व रचना मकता से संप आ। पु तक को सुंदर व प
दान करने के िलए म इन दोन का दय से आभारी ।ँ
म आभारी ँ अपने सभी शुभ चंतक का, पाठक का एवं मेरी प ी आशा जैन, पु ी
अनु ी जैन व पु आदीश जैन का, जो हमेशा मेरे साथ मेरी छाया बनकर रहे।
"दो श द"

भा रतीय सं कृ ित म अनेक आ मानुभवी शान ए ह। उ ह ने अपने ान से इस वसुंधरा


को हमेशा स चा और स यक् ान का काश दखाकर क याण क ओर अ सर
कया। उसी ान के काश क एक करण हमारे शरीर को भी वा य दान करती आ
रही है। इसी ान व पर परा को मेरे सुयो य िश य राजीव जैन "ि लोक" ने िवन ता से
हण कर स पूण योग िव ा के प म जनसामा य के िलए िलिपब कया ता क
ाणीमा शारी रक, मानिसक एवं भौितक सुख ा करता आ आ म क याण कर सके ।
यह पु तक आज क सभी आव यकता को यान म रखकर िलखी गई है। आज योगासन
पर सैकड़ पु तक बाज़ार म उपल ध ह, ले कन उनम हमेशा कु छ न कु छ कमी खलती रही
है। इ ह किमय को दूर करने के उ े य से राजीव जैन "ि लोक" का यह यास सराहनीय
है। एक ही पु तक म कई कार के िवषय समािहत होने के कारण यह अपने स पूण योग
िव ा नाम को साथकता दान करती है। इस कार यह पु तक कई दृि कोण से अिधक
पठनीय बन गई है। मेरी ओर से लेखक को आशीवाद एवं ढेर सारी शुभकामानाएँ।
गोिव द साद गु ा
सं थापक
भारतीय योग अनुसंधान प रषद
शुभ आशीष

मु झेसागरजी
बड़ी स ता हो रही है क िजस कार मने अपने गु
महाराज, आ यकार माता ानमितजी,
, आचाय - 108 ी िवमल
ी कृ ण दासजी परमहंस
महाराज 'नेपालीबाबा', वामी स यानंद सर वती जी महाराज, वामी सि दानंद
सर वती जी, िज ह ने हरदा (म. .) म मुझे (मेरा नामकरण कर) ' वामी णवानंद
सर वती' के नाम से स बोिधत कया था, वामी धीरे चारी जी, संचालक
अंतरा ीय िव ायतन योगा म, कटरा (ज मू-क मीर)- के ान एवं कला को लगन व
िन ा के साथ आ मसात् कर उसे जन-जन तक प चँ ाने का यास कया और लगातार कर
रहा ।ँ
ठीक उसी कार मेरे सुयो य िश य ि य राजीव जैन 'ि लोक" ने सम त संसार को
मानव जाित के जीवन म सुख-शांित, वा य एवं आ मो ित म सहायक एक ऐसी पु तक
क रचना कर समाज को अ पत क है, िजसम ायः उन सभी िवषय का समायोजन कया
गया है, जो मानव जीवन क साथकता के िलए आव यक ह एवं मानव मा के िलए
िहतकारी ह।
म लगभग 50 वष से गु जन के इस ान (योग) को लोग के वा य के साथ उनक
आ याि मक भावना मक उ ित के िलए िनल भ होकर बाँट रहा ,ँ ता क वे मानव जीवन
को सफल बनाकर आ या म क ऊँचाई तक प च ँ सक।
यहाँ पर म एक बात िवशेष प से कहना चा ग ँ ा क मेरे योग गु वामी स यानंद
सर वती जी एवं वामी धीरे चारी जी हमेशा मुझसे एक बात कहा करते थे क
िजस तरह हमने अपनी योग कलाएँ तु ह िसखाई ह, वैसे ही तुम भी उ ह य का य
अपने िश य और जन-जन तक प च ँ ाना। उनक इसी बात को यान म रखकर (जो क
उनका आदेश था) मने लगभग 20 वष से साधना कर रहे अपने िश य राजीव जैन
"ि लोक" से कहा है क चाहे योग क क ाएँ लो या कसी भी कार क योग क पु तक
िलखी, उनम वैसा ही िलखने का यास करना, जैसा उ ह ने बताया है। ता क उनक बताई
ई योग कला का हास न हो और उनका नाम अजर-अमर रहे, साथ ही तुम भी अ या म
क ऊँचाईयाँ ा करो। इसी मंगल कामना एवं आशवाद के साथ तुम गु पर परा ारा
चली आ रही व मेरे ारा दी ई इस योग कला को जन-जन तक प च ँ ाने का काय करना।

इित शुभम्।
योगाचाय डॉ. फू लचंद "योगीराज"
'आयोग िम ' (म. . मानव अिधकार आयोग)
उपा य - म य देश योग प रषद
आमुख

द काल म ान क पर परा का िवकास करने वाले अलख िनरं जन भगवान िशव


आ 1008 ी आ दनाथ को हम नमन करते ह एवं उनके ॐकार पी द घोष को,
जो क वीर भु के शासनकाल तक माँ सर वती का प लेकर माता िजनवाणी
कहला , उन शारदा देवी (वाणी) को भी मेरा शत्-शत् नमन।
यही स यक् ान बड़े-बड़े संत, महा मा, ऋिष-मुिनय एवं आचाय ने अपने िश य को
य का य दान कया। िजस कारण भारतीय सं कृ ित लहलहाती रही और इसने पूरे
िव म अपनी अलग पहचान बनाई।
'यह ान का पुंज उ ह का आशीवाद है।'
सव थम मुझे आ याि मक ान क धारा मेरे पू य िपताजी से ही ा ई। कई बार
उनक मुलाक़ात द ा मा से भी आ करती थ । ई र क कृ पा कह क मेरे अंदर भी
आ याि मक िवकास दन- ित दन होता गया। आ याि मक िज ासा बढ़ती गई। मने कई
िवषय का अ ययन कया। चूँ क आ याि मक िवषय ब त गहन एवं िव तृत है, अतः
अलग-अलग िवषय के िलए मने कई गु का साि य ा कया और साधक बनकर
िनरं तर अ यास करता रहा। य द आज भी कह आ याि मक या योग या से संबंिधत
कसी िशिवर का आयोजन होता है, तो म एक अबोध बालक क तरह िबना पूव प रचय
दए िवन ता से उस ान एवं या को हण करने का यास करता ।ँ यह एक ऐसा
िवषय है िजसे हम िजतना सीखगे हमारे ान का उतना ही अिधक िवकास होगा।
म उन संत, आचाय , योिगय के नाम लेना चा ग ँ ा, िजनसे मुझे य या परो प से
ान ा आ।
सव थम म गौतम गणधराचाय को नमन क ं गा एवं ी कुं दकुं दाचाय, ी
शुभचं ाचाय, प.पू. आचाय िव ासागरजी, प.पू. ु. यान सागरजी महाराज, मह ष
पतंजिल महाराज, ॠिष घेर ड, मुिन विश जी, वामी िशवानंद, वामी स यानंद
सर वती, ी बी.के .एस. आयंगार, ी बफांनी बाबा, वामी िवशु ानंद परमहंस
' ानगंज', म.म.पं. गोपीनाथ किवराज, वामी का तके यजी, वामी धीर चारी,
परमहंस िनरं जनानंद सर वती, डॉ. के .एम. गांगुली जी, बाबा रामदेव, ीमती शिश सूद,
ीमान एस.डी.सूद को म णाम करता ।ँ यह ान क पुि तका आप सबका आशीवाद ही
है, य क आप सबक ाना मा एवं आपक स यक् दृि भी तो सबको व थ देखने के
िलए आकु ल रही है।
आदरणीय पं. राजमल जी को भी णाम क ँ गा, िज ह ने मुझे अ या म क ेरणा दी।
म ि लोक ा य िव ा रसच सटर क टीम एवं वग य अजय कु मार वमा, डॉ. एच.
मालवी, ी एम.पी. यादव, डॉ. ी अशोक जनवदे, डॉ. सुभाष अ े (पूव डी.जी.पी.), ी
मनोज कु लकण , ी हेमंत चौहान (अित र पुिलस अधी क), डॉ. महेश भागाव,
ीच गोपाल जेठवानी, ी देवे शमा (काटू िन ट), डॉ. शोिभत, व. दीदी सिवता सैनी,
नेहा ि पाठी (PG, आहार एवं पोषण), डॉ. मोद शंकर सोनी, ी संजीव दुबे तथा डॉ.
अ य जैन का भी दय से आभारी ।ँ
हमने योग ही नह भारतीय सं कृ ित क ा य िव ा को अ ु ण बनाए रखने के िलए
एवं उसम अिधक से अिधक शोध हो, िजसका लाभ पूरे िव को ा हो, इस दृि को
साकार करने के िलए ि लोक ा य िव ा रसच सटर क थापना क , जो क वष से
अपना काय सुचा प से करता आ रहा है। इस अनुसंधान क म अिधक से अिधक
जानकारी समािहत हो, यह िवचार कर हमने कई योगी, हठयोगी, योितषी, वा तुिवद,
आयुवदाचाय, तं -मं , ाटक-िवशेष , कु डिलनी जागरण िव ा, रह यपूण अलौ कक
व तु/ थान, िस भूिमयाँ, पारद िव ान, वणतं म्, दुलभ जड़ी-बू टयाँ, सूय िव ान
(िजसम एक व तु को दूसरी व तु म पांत रत कया जाता है), ह तिलिखत योितष
शा , परामनोिव ान आ द कई ा य िव ाएँ एवं ढेर सारे अनुभव एकि त कए और ये
सभी अनुभव/ योग हम अपने िज ासु साधक को मशः बताते जाएँगे।
हमारा यास है क यह पूरा जगत् और आप भौितक, आ याि मक, शारी रक एवं
मानिसक प से सुखी एवं समृ ह । इस पुि तका को तैयार करने म हमने ब त मेहनत
क है। यह इस पु तक का चतुथ पुनः मु त संशोिधत सं करण है। यह सब आपक ही
पु या मक करण से संभव आ है। हमने पूरा यास कया है क आपको आसन के
अिधक चिलत नाम से अवगत कराएँ। तब भी िवशेष प से देखा गया है क देश, काल
क प रि थित के अनुसार िभ -िभ आचाय ने एक ही आसन के अलग-अलग नाम दए
और कई बार यह भी देखने म आया है क एक ही नाम के आसन को अलग-अलग प म
कराया जाता है। कई बार एक ही आसन क थोड़ी सी या िभ कराकर उसका नाम भी
प रव तत कर दया गया है, परं तु हमारा साधक से िनवेदन है क वे इस कार क
िभ ता क ओर यान न द एवं वयं व दूसर को उन योगासन के लाभ से अवगत
कराएँ तथा आ म क याण व जन क याण क भावना रख। िव ाथ वग से भी िनवेदन है
क योगासन के नाम व उनके िच , िविध आ द क जानकारी योग िश क से िववेकपूवक
ा कर ल। य िप इस पु तक क रचना म हमने कई बात यान म रखी ह, कं तु हमारा
िनवेदन है क योग िव ा संबंधी कोई भी या करने से पहले कसी योग िश क/गु से
परामश अव य ल। य द आप अपनी कोई बात हमारे सम रखना चाहते ह या कह कोई
ु ट ई हो, तो िन:संकोच हम अवगत कराने क कृ पा कर, हम आपके आभारी रहगे।

इित शुभम्,
योगाचाय - राजीव जैन "ि लोक"
डायरे टर : िहमालय योग िनके तन सिमित
ि लोक ा य िव ा रसच से टर
मो. 09826530366
rajeevjaintrilok@gmail.com
ा थन

मा नव के सभी दु:ख का कारण अ ानता है संत आचरण ही स ा सुख है। वा याय से


अ ानता का नाश होता है। मेरे ि य लेखक ी राजीव जैन "ि लोक" ने इस संपूण
योग िव ा नामक ंथ क रचना कर भूतल पर वग सी रचना कर दी है। इ ह ने
मानिसक, शारी रक एवं आ याि मक लेश के श के उपाय क िववीचना कर गागर म
सागर भरने का काय बड़ी चतुराई से कया है। वतमान समय म यह योग ंथ हर घर म
गृह िच क सक का काय करे गा। इस समय योग िच क सा बड़ी लोकि य हो रही है। इस
ंथ क माँग िन य ित बढ़ेगी। मने िपछले 32 वष म अनेक योग ंथ का अ ययन कया,
पर तु संपूण योग िव ा पी मोतीयु माला को पहली बार देखा है। योग परमा मा से
िमलने का अलौ कक यास है। िजसम कोई चैत य िच नह है। यह परमान द है। योग
का कोई चरम िब दु नह है। उसे मापने क कोई इकाई नह है। ंथ म लेखक क शुभ व
सकारा मक चंतन क अनुभूित झलकती है। िजसक आ म चेतना जागृत है, उसके स कम
साधने के िलए सदा समथ कृ ित के िनयम त पर रहते ह।
यह योग ंथ पूण सावभौिमक व वै ािनक है। इसम न स दाय क बू है, न धा मक
संक णता है। इस ंथ क रचना देश, काल, धम, जाित, लंग आ द क िभ ता को यान म
रखकर क गई है। यह मानव जाित के िलए अमू य धरोहर है। इस ंथ का अ ययन करने
वाल को इस बात का यान रखना चािहए क िजस कार तैरना सीखने के िलए पु तक य
ान काम म नह आता, बि क पानी म उतरना ही पड़ता है। उसी कार इस ंथ के
स पूण ान को ा करने के िलए अ यास भी आव यक होगा। योग से आ म ान ा
होता है और आ म ान से ही मुि ा होती है। इस ंथ म दखाया गया माग अपने आप
म पूण है। इस ंथ का उ े य योग पी ान क खोई ई िवरासत को पुनः जागृत करते
ए दान करना है। इस ंथ का सृजन लेखक ने ब त सहजता से कया है, ता क इसे सरल
भाव से आ मसात् कया जा सके । मेरा मत है क इस ंथ के अ ययन से साधक क
िज ासा क पू त अव य होगी य क योग के सभी ाचीन ंथ के सार का समावेश कर
इसक रचना नैसिगक िविध से क गई है। वतमान म मानव समाज असा य रोग से
िनरं तर पीिड़त हो रहा है। इस पीड़ा से िनवृि के माग का उ लेख भी लेखक ने िवशेष ढँग
से कया है। इस ंथ म शारी रक, मानिसक, आ याि मक ताप के शमन का यथा थान
वणन कया गया है। यह मानव चेतना का माग श त करने वाला एकमा ंथ है। इसका
सारभूत एवं उ कृ प िज ासुजन के िहताथ ही िलिपब है। यह पु तक अ ान,
अ धकार को िमटाने के िलए ान योित है। लेखक ने इसके पूव सं करण म कु छ संशोधन
कर इसे और अिधक सरल, सरस, सहज और ु ट रिहत करने का यास कया है। हमारा
िव ास है क यह नूतन स यास योग िज ासु के सामने वा तिवक त य को उजागर
कर उ ह स तुि दान करे गा। आज ि के दु:ख का एक ही कारण है, वह सोचता है
क रोग और ािधयाँ ही हमारा भा य और ार ध है। जब क वा य और आन द ही
स यतः ज मिस अिधकार व िवरासत है। रोग और ािध क इस सामूिहक िवि ता से
उबरने के िलए तथा वा य, आन द और रचना मक स पूणता का अनुभव करने के िलए
यह आव यक है क हम अपनी दैिनक जीवनचया म योग का वेश मानुगित से कराएँ।
इस ंथ म इसका िवशेष समावेश कया गया है, जो क बीमा रय का मूल है। इस मूल के
कारण को न करने के िलए यौिगक िच क सा णाली को सहजता से समझाया गया है।
योगांगो पर चलकर अितशी लाभ के इ छु क साधक रोग क ती ता व समयाविध को भी
यान म रख, साथ ही यह भी यान रख क वयं का इलाज मा पु तक पढ़कर न कर,
बि क कसी कु शल मागदश योग िच क सक से कराएँ। यह पु तक उन आम लोग को
े रत करने के उ े य से िलखी गई है, जो दैिहक, दैिवक और भौितक ताप से िसत ह,
च ओ ँ र से ण अव था से िघरे ए ह और योगा यास ारा अपनी इस रोग भािवत
अव था से ऊपर उठने क इ छा रखते ह।
इस ंथ म ऐसी ऊजा है, जो मन म वेश करके जब एक सश िवचार बनकर अ यास
म उतरती है, तो यह क से उबरने का समथ साधन िस होती है। यह ंथ िच क सक के
िलए एक संदिे शका व मागद शका क तरह है, जो िच क सा के नए आयाम क खोज
करना चाहते ह। मेरी कामना है क इस ंथ का संचालन आ म-िनभर, िवजयी, ि लोक,
अख ड ांड क स ा से होगा।

डॉ. एल. जे. पचौरी


शासक य िच क सा अिधकारी
ाकृ ितक एवं योग िच क सा िव ान
भोपाल (म. .)
तावना

पूण योग िव ा पु तक के लेखक ी राजीव जैन "ि लोक" ने अपने अनुभव को


स पु तक म समािहत करते ए एक जनोपयोगी ंथ का सृजन कया है। यह न के वल
जन साधारण अिपतु योग के िव ा थय के िलए भी उपयोगी है। हालाँ क योग क
अनेक पु तक आज उपल ध ह, पर तु स पूण योग िव ा वा तव म अपने नाम को
च रताथ करती है।
योग एवं ाकृ ितक िच क सा प ित मनु य के रोग िनवारण के साथ-साथ उसके
सवागीण िवकास म सहायक है। ये प ितयाँ न के वल हािनरिहत ह अिपतु सरल, भावी
और शी प रणाम देने वाली ह।
योग एवं ाकृ ितक िच क सा प ितय क आज सव माँग है य क ये िच क सा के
प म सामने आई ह। व तुतः आज आव यकता ऐसे सािह य क है जो अनुसंधान के
प र े य म मािणकता के साथ िलखा गया हो। स पूण योग िव ा पु तक क इस दशा म
मह वपूण भूिमका है।
पु तक का तुतीकरण अ छा है तथा िच से उसक उपयोिगता और भी बढ़ गई है।

डॉ. राजीव र तोगी


सहायक िनदेशक ( ा.िच.)
के ीय योग एवं ाकृ ितक िच क सा अनुसंधान प रषद
नई द ली
( मंगल-पाठ )

कारं बंदस
ु ंयु ं िन यं यायि त योिगनः।
कामदं मो दं चैव काराय नमो नमः ।
( ाथना )

योगेन िच य पदेन वाचां,


मलं शरीर य च वै के न।
योऽपाकरोतं वरं मुनीनां,
पत िल ा िलरानतोऽि म ।

ह रहर, ा, बु , िजने र, परमिपता अ लाह ताला,


वाहे गु यह अरज क ँ म, बना र ँ म दल वाला।

िनरपराध को कभी न मा ँ , बनूँ नह मन का काला,


चाहे कोई य न मुझे दे, पारसमिणय क माला।

िनबल दुिखयारे जीव पर, स य क णा सदा क ँ ,


अवसर पर म बनूँ सहायक, धीरज साहस सदा ध ँ ।

क म मु काना सीखूँ, दु कम से सदा ड ँ ,


वतमान म जीना सीखूँ, लेकर भु का नाम म ँ ।

जो बताव मुझे अि य हो, वह न कसी के साथ क ँ ,


छोट को दे ेम बड़ से, म आदर से बात क ँ ।

योगा यास क ँ म ित दन, अ छी सेहत ा क ँ ,


' यान'योग के अवलंबन से, सब रोग का नाश क ँ ।
योग साधना क सम त याएँ मश: धैयपूवक,
आ मिव ास व पूण आ था के साथ उ रो र
करनी चािहए, तब वे हम शारी रक एवं मानिसक
लाभ के साथ आ याि मकता के चम कष के आनंद
क भी अनुभूित दान कराती ह।
-RJT

पु रसायारो अ पा, जोई वरणाणदंसण सम गो।


जो झाय द सोजोई, पावहारो भव द िणहंदी।

अथ: पु ष के शरीर म ि थत जो आ मा, योगी बनकर े ान और दशन से पूण


आ मा का यान करता है, वह रोगी पाप का हरने वाला तथा राग- ष
े से रिहत
होता है।
मो पा ण
आचाय ी कु द कु द वामी

हमारा वा य हमारे इस िव को भी
वा य दान करने म सहयोगी बनता है।
-RJT
योग प रचय
एक वैचा रक दृि कोण
ितहास क दृि से यह करना अ यंत क ठन होगा क िव म योग िव ा का
इ आिवभाव कब, कै से और कहाँ से आ। य द हम ाचीन ंथ पर नज़र डाल तो योग
िव ा का उ लेख वेद और जैन धम के ंथ म िमलता है। अत: कह सकते ह क योग
िव ा क परं परा ाचीन काल से ही चली आ रही है। योग िव ा का चलन उस समय से
है जब योग से संबंिधत ान िलिपब न होकर एक आचाय से दूसरे आचाय एवं अ य
िश य तक यह िव ा गु -मुख से प च ँ ाई जाती रही है परं तु इस तक-िवतक म उलझना
क योग का आिवभाव कब आ और कसने कया, यह उतना मह वपूण नह है बि क
योग साधना के रह य को कब और कसने उ घा टत कया यह मह वपूण है। योग
कई हज़ार वष से संसार म अपना वच व बनाए ए है। इसने िव के सभी धम को
अनु ािणत कया और मानव जाित को सही दशा क ओर अ सर कया।

योग वा तव म एक 'सावभौम् िव मानव धम' है। योग क दृि म धम एक िव ान है


कं तु योग को कसी धम िवशेष से न जोड़ते ए उसका अ ययन कर तो पाएँगे क हम
अपने कसी धा मक अंग का ही पठन-पाठन कर रहे ह और अपनी आ था एवं धा मक
भावना को मानव जाित के क याण व उ थान के िलए दृढ़ कर रहे ह। इस कार हम
योग के रह य को प प से समझने का यास कर सकते ह।

िजन ऋिषय ने आ मा का दशन कर िलया था यह उनके ारा ितपा दत िविधय का


िनदशन है और आ याि मक आचार णाली का िमक दशन कराता है एवं साधक को
अपने ल य तक प च ँ ाने म समथ होता है। इस कार ावहा रक प म योग दी ा मक
दशन एवं सावभौम् धम का तीक है।
आज जनमानस का मानना है क मह ष पतंजिल ने योग का िन पण कया जब क योग
के थम गु भगवान िशव ही ह। कु छ लोग का मानना है क िहर य-गभ रिचत योगसू
जो अब लु हो गए ह, उ ह के आधार पर पतंजिल योग दशन क रचना ई। मह ष
पतंजिल ने अ ांग योग का ितपादन कया जो क यम, िनयम, आसन, ाणायाम,
याहार, धारणा, यान तथा समािध के प म गृहीत है। भारतीय वा य म योग पर
वृहत् चंतन तुत कया गया है। गीता म भगवान ी कृ ण कहते ह -

तपि व योऽिधको योगी ािन योऽिप मतोऽिधकः ।


क म य ािधको योगी त मा ोगी भवाजुन। (6/46)

हे अजुन! तू योगी बन जा। य क तपि वय , ािनय और सकाम कम म िनरत् जन -


इन सभी म योगी े है।

ीम ागवत् महापुराण म अपने सखा उ व को उपदेश देते ए ी कृ ण कहते ह -

िजतेि य य युकृ य िजत वास य योिगनः।


मिय धारयत ेत उपित ि त िस यः (11/15/1)

ि य उ व! जब योगी इि य, ाण और मन को वश म करके अपना िचत मुझम


लगाकर मेरी धारणा करने लगता है तब उसके सामने ब त सी िसि याँ उपि थत हो
जाती ह। इसका प अथ यह है क योग के ारा सभी िसि याँ क अ िसि याँ) वतः
ा हो जाती ह। परं तु योग क चरम उपलि ध मा आ म दशन आ म सुख और आ मबल
क ाि है।

योग क िविभ प ितय एवं उपासना क अनेकानेक िविधय का मुख ल य िच


को राग, षे आ द मल से रिहत उसम स वगुण का उ क
े करके वृि य को िनमलता दान
करना है। योग व प-बोध से व पोपलि ध तक क या ा है। अंत: ेतना क जागृित का
योग अ यतम साधन है।

च र िनमाण म योग का जी मह व है वह भी प है। मानव म िनिहत साि वक त व


जब योग साधना ारा जागृत हो उठते ह तब वह मानवीय गुण से मि डत हो जाता है।
मा, दया, क णा, ान-दशन और वैरा य क अिभवृि ही च र िनमाण क िभि याँ
ह।

̈योग को कार

ाचीन ंथ म योग के अनेक कार का उ लेख आ है िच-भेद से उन योग के अनुगामी


भी कई कार के ह। योग दीप म राज योग, अ ांग योग, हठ योग, लय योग, यान योग,
भि योग, या योग, मं योग, कम योग और ान योग का उ लेख करते ए योग को
कई कार का माना गया है। ी कृ ण भगवान् ने तीन योग का उपदेश दया है - ान
योग, कम योग, भि योग।

योग का अथ और प रभाषा

योग श द का सामा य अथ है जुड़ना, िमलना, यु होना या एक करना। सं कृ त म योग


क ु पि युज धातु से मानी गई है, योग श द 'युज" धातु के बाद करण और भाव वा य
म धज यय लगाने से बना है। सं कृ त म युज धातु का योग धा दगण म संयोग के िलए
यु आ है, 'युिजर योगे!1"। दवा दगण म समािध के िलए 'युज समाधौ2"। चुरा दगण
म संयमन के िलए यु आ है 'युज संयमने3"। इन अथ म व णत 'युज" धातु म धज
यय जोड़ने से योग श द ु प आ है।

योग श द का ावहा रक अथ ब त ापक है। इसका े भी ब त िव तृत है। इस


कार योग के िविभ अथ िमलते ह।

योग सां य का ही या मक प है। योग िव के सभी धम, सं दाय, मत-मतांतर के


प पात और तक-िवतक से रिहत सावभौम् धम है, जो त व (आ मा) का ान वयं के
अनुभव ारा ा करना िसखलाता है और साधक को उसके अंितम ल य (मो ) तक
प च
ँ ाता है।

आज योग से स बंिधत अनेक कार क ांितयाँ फै ली ई ह। य द हम साफ़ श द म


समझे तो थूलता से सू मता क ओर जाना तथा बिहरा मा से अंतरा मा क ओर जाना ही
योग है। िच क वृि य ारा हम थूलता क ओर जाते ह अथात् हम ि थर िच न
होकर बिहमुख होते जाते ह। हम िजतने अि थर िच होते जाएँगे, रज और तम क मा ा
भी उतनी ही बढ़ती जाएगी। परं तु जब हम िच को अंतरो मुख करते जाएँगे तब हमारे
अंदर उतने ही सत् अथात् स यक् ान और स यक् दशन का ादुभाव होता जाएगा और
आ म-दशन ा कर िनिवक प अव था को ा हो सके गे।

पतंजिल ने अपने योग-दशन के समािध पाद के ि तीय सू म योग क प रभाषा को इस


कार दशाया है - योगि वृि िनरोध:।।2।। अथात् िच क वृि य का िनरोध ही
योग है।
ी पतंजिल आगे िलखते ह :

तदा ु ः व पेऽव थानम् ।।3।।

अथात् तब (वृि य का िनरोध होने पर) ा के व प म अवि थित होती है।


वृि सा यिमतर ।।4।।

दूसरी ( व प अब ि थित से अित र ) अव था म ा वृि के समान प वाला


तीत होता है।
ऊपर दूसरे सू म के वल िच वृि िनरोध श द है। सव िच वृि िनरोध नह है।
इस कार सू कार ने सं ात और असं ात दोन कार क समािधय को योग
बताया है। असं ात-समािध िजसम सब वृि य का िनरोध हो जाता है वह िन
अव था तो योग है ही परं तु सं ात-समािध भी िजसम साि वक एका वृि बनी रहती
है, वह एका अव था भी योग के ल ण के अंतगत है अथात् जब िच से रज और तम का
मल पी आवरण हट जाए तब सत् के काश म जो एका ता रहे उसको भी योग ही
समझना चािहए।

योग क िविभ प रभाषाएँ एवं िविभ ंथ म तुलना

★ वेदा त के अनुसार : जीवा मा और परमा मा का संपूण प से िमलना योग है।


★ देहा म बुि यागकर अथात शरीर से मम व भाव हटाकर आ म भाव उ प करना
योग है।
★ सां य मतानुसार : 'पुं कृ यो वयोगेऽिप योग इ यिभधीयते' पु ष, कृ ित का
पृथक व थािपत कर दोन का िवयोग करके पु ष का व प म ि थत होना योग है।
★ योग कमसु कौशलम् : कम का कौशल प भी योग है।गीता।
★ ाण और अपान के संयोग, च और सूय के िमलन को, िशव और शि के ए य को
भी योग कहते ह।
★ योग भा य के अनुसार:
'योगः समािधः स च सव भौमिशच य धमः ॥'''
★ महा मा या व य के श दानुसार:
"संयोग योग इ यु ो जीवा मपरमा ो।"
★ यो ण शा मतानुसाट :
'सव िचता प र य ो िनि तो योग उ यते।"
★ यिभ ा दशनानुसाट :
'िशव तथा आ मा के अभेद ान का नाम ही योग है।"
★ योग विश के अनुसाट :
'संसार सागर से पार होने क युि को ही योग कहते ह।"
★ ी भारती कृ णतीथ के मतानुसार:
'नारायण के साथ नर के एका म हो जाने के साधन क योग कहते ह।"
★ ी अर वंद के कथनानुसार :
'योग का अथ के वल ई र क ाि ही नह अिपतु उस या का नाम है िजसके ारा
भगवतचौत य क अिभ ि हो तथा वह वयं ही भगवत कम का अंग बन सके ।"
★ संपूणानंद (िचद िवलास) ने िलखा है क :
'आ मसा ा कार का एकमा उपाय योग है।"
★ भगवान ीकृ ण ने कहा है क :
ना य त तु योगोऽि त न चैका तमन तः।
नचाित व शील य जा तो नैवचाजुन।
यु ाहार िवहार य यु चे य कमसु।
यु व ावबोध य योगो भवित दुःखहा। । गीता 6–16/17

जो ब त भोजन करता है, उसका योग िस नह होता। जो िनराहार रहता है, उसका
भी योग िस नह होता। जो ब त सोता है, उसका भी योग िस नह होता और ना ही
उसका योग िस होता है जो ब त जागता है।

जो मनु य आहार-िवहार म, दूसरे कम म, सोने-जागने म प रिमत रहता है उसका योग


दुःखभंजन हो जाता है।
★ इस पु तक के लेखक के िवचार अनुसार (राजीव जैन 'ि लोक') : "इस थूल शरीर
म ि थत अवचेतन मन के ारा स यक् प से ा प म उतरकर आ म दशन करना ही
योग है।"
★ ीम ोगागीता के अनुसाट:
' ाणापानसमायोगो योगि ा मनो तथा
य जीवेशयोय ग तं योगं िवि भूपते।"

ब ानंद कहते ह क हे भूपते! िजसके अ यास से ाण और अपान क एकता होती है,


िच और आ मा का तादा य होता है और जीव व ई र क एका मकता होती है, उसको
तू योग जान अथात यही योग का ल ण है।
★ ी यशोिवजयकृ ता ' ाि िशका' म िलखा है:
मो ेण योजनादेव योगो िन यते।

अथात िजन-िजन साधन से आ मा क शुि और मो का योग होता ह उन साधन को


योग कहते ह।
यशोिवजय ाि िशका म आगे िलखा है :
सिमितगुि धारणं धम ापार वमेव योग वम्।

अथात मन, वचन, काय (सिमित के तीन कार) शरीरा द को संयत करने वाला
धम ापार ही योग है।
★ कमी योळी ने कहा हे :
योग वदा यै बल बुि े
पौ ष भवेत सदिचत सौ य।
ेमंच ेय योगं सुधीनः।

अथात् संपूण जीवन म योग ही एक ऐसा माग है, िजसके ारा पु ष को बल, बुि ,
े ता, पौ ष एवं स र ता - ये पाँच सव तम गुण ा होते ह।

योग के ारा ही ि सामा य तर से ऊपर उठकर आ मा और परमा मा तक प च


ँ ने
क मता ा कर लेता है और इसके मा यम से ही ि को क याण, शुभ व और सुिध
ा होती है।

वतमान प र े य म योग क आव यकता

पहले क अपे ा आज योग क अिधक आव यकता है। पहले पयावरण, वातावरण, खान-
पान, रहन-सहन सभी कु छ आज क अपे ा ब त ही ाकृ ितक था, परं तु आज दूिषत
वातावरण, दूिषत पयावरण, फ़ा ट फू ड एवं िड बाबंद भो य पदाथ, िवटािमन और
ोटीन रिहत खानपान, बदलता प रवेश और िवकृ त मानिसकता इन सभी ने हमारे संपूण
वा य को भािवत कया है। आज वै ािनक ने जहाँ कई सुिवधाएँ दान क ह। वह
उनके िवपरीत भाव ने हमारे वा य को नकारा मकता दान क है। इन सभी बात के
कारण आज योग िश ा क ब त अिधक आव यकता है। य क योग ारा हम मा
वतमान पीढ़ी को ही नह , आने वाली पी ढ़य को भी सही सोच एवं स ा मागदशन दे
सकते ह।

योग या करता है

यह बता पाना मुि कल है क योग या- या करता है। यह तो इसका योग करने पर ही
मालूम हो सकता है। फर भी हमने कु छ श द म इस बात को बताने क कोिशश क है।

योग साधना के माग म वृ होने पर उदर देश के रोग जैसे अपच, अ िच, अजीण,
क़ ज़, गैस, ख ी डकार आ द म लाभ िमलता है। योग म बताए आहार से र चाप,
मधुमेह, दय रोग जैसी घातक बीमा रय से बचा जा सकता है। शांित एवं संतोष क
भावना वभािवक प से जीवन म समािहत हो जाती है। छल-कपट, झूठ, चोरी एवं
च र हीनता से साधक दूर ही रहता है। िजस कारण ि गत एवं सामािजक, दोन तर
पर नैितकता का िवकास होता है।

योग हम शारी रक संप ता के साथ मानिसक शि भी दान करता है। िजससे


मानिसक तनाव से मुि िमलती है। योग िन ा, एवं यान के ारा हम अपनी मृित
मता को भी बढ़ा सकते ह। योग हमारी कायकु शलता एवं काय मता म अभूतपूव वृि
करता है।

योग से हमारे शरीर के प रसंचरण-तं , पाचन-तं , सन-तं एवं उ सजन-तं


याशील हो जाते ह। वै ािनक परी ण से यह िस हो गया है क आयु बढ़ने के साथ-
साथ होने वाली शारी रक िशिथलता एवं वैचा रक अि थरता का िनदान योगा यास के
ारा कया जा सकता है। योग ारा हम अपनी नकारा मकता को दूर कर सकते ह एवं
अपनी रोगनाशक शि का िवकास कर सकते ह।

इस कार यह िन ववाद स य है क योग एक वै ािनक प ित है, न क के वल शारी रक


ायाम। इसके आसन व ष कम जहाँ शरीर को िनरोग एवं मानिसक एका ता, शारी रक
ओज-तेज को भी बढ़ाते ह।

लगभग सभी भारतीय दशन ने इसे वीकारा है। जब तक मनु य का िच या


अंत:करण िनमल नह होता, कषाएँ मंद नह होत , तब तक उसे स यक दशन और स यक्
ान का बोध नह हो सकता। आ म उ थान के िलए योग सव म साधन है। इससे शरीर
और मन क शुि होती है।

योग-िव ान जीवनयापन का स ा पथ दशक है। ान का जीवन से सीधा संबंध होने


के कारण येक े म योगा मक, या मक िव ान क आव यकता रही है। योग
पूणतः ायोिगक मनोिव ान है। इस कार योग मानव का च म ँ ुखी िवकास करता है।
योग िव ान होने के साथ-साथ एक उ म जीवन जीने क कला भी िसखाता है।

योग या है?

य द हम अं ेज़ी वणमाला YOGA के चार वणाँ के आधार पर िवचार कर तो हम यह प


नज़र आएगा क इन चार वण को अलग-अलग करने पर या अथ िनकलता है।
Yield (योग ि को कौन से प रणाम दान करता है?)
साँस के िनयं ण को शारी रक प से पु रखता है।
यान मानिसक ि थरता दान करता है। संवेगा मक संतुलन बनाने म सहायक
होता है - सुख-दु:ख म मान-अपमान क चंता नह रह जाती।
मनोवै ािनक प से अ छा महसूस करना, जीवन स िच होना, समाज के
साथ अ छे से जुड़ना, क याणकारी काय के साथ संतुि का आभास होना।
सभी शा त–मू य, स य, धम, शाित, ेम तथा अ हंसा हमारे जीवन को सदैव
सुखमय बनाते ह तथा इ ह के पालन से आ याि मकता को महसूस कया जाता
है।

Obtains (योग से ि को कौन सी नई उपलि धयाँ ा होती ह)


इसके ारा उ े यपूण जीवन का िनमाण होता है तथा जीवन क दशा का
िनधारण होता है।
इसके ारा ि म जागृित, चेतनता, सजगता बनी रहती है। िजससे उसे
अपने ारा कए गए कमाँ, िवचार आ द क जानकारी होती है, वह एक
होशपूण, सै ांितक और अ छे इं सान क तरह जीता है।
इससे ि गहन यान के मा यम से एका िचत होता है तथा वह सव
शि मान के सम वयं को सम पत करके अहम् का प र याग करता है।
इससे ि म वि थत एवं योजनाब तरीके से काम करने क वृि
उ प होती है।
ि म सकारा मकता, रचना मकता तथा िवरि का भाव पैदा होता है।

Give up (योग ारा ि या- या छोड़ सकता है?)


ि म बुरी आदत, गलत वृि याँ, मादक पदाथ का सेवन, िवखि डत
ि व के कारण उ प सम याएँ - जो भी उसे नुक़सान प च
ँ ाते ह, वह उन
सभी को छोड़ देता है।
उसक नकारा मक एवं िव वंसा मक सोच धीरे -धीरे समा होने लगती है और
उसे अपने बारे म स यक् ान होने लगता है।
सांसा रक पदाथ म आसि , धन लोलुपता, मान-स मान क इ छा,
आव यकता क पू त क चंता आ द म धीरे -धीरे कमी आती है।
अवांिछत तथा अता कक कायाँ तथा िवचार से, िजनसे वयं का अिहत तो
होता ही है तथा समाज का प रवेश भी िबगड़ता है, को वह छोड़ देता है। अत:
योग करने से मन क िनमलता बढ़ती है।

Attains (योग से ि अंतत: या ा करता है?)


सवागीण वा य क ाि होती है, शरीर पु रहता है, मन शांत रहता है,
सभी ओर से खुिशयाँ िमलती ह और आ या म क ाि होती है।
जीवन म कौशल का िवकास होता है, जीवन गुणव ामय बनता है, अ छे
प रवेश मोहक होता है, जीवन लय एवं रसपूण होता है, संपूणता क कामना
होती है, जीवन ेम से प रपूण होता है।
िच स रहता है, हर ाणी म जीवन दखाई देता है, जीवन जीने का आनंद
आता है, भावना का आदान- दान होता है।
सभी नकारा मकता से चंता िमटती है, आराम का अनुभव होता है, शांित
का एहसास होता है, मन एवं दय शू य म चले जाते ह, उठा-पटक एवं द
का अंत होता है, शारी रक िवकार का िवनाश होता है और ि को शांित
ा होती है।
इन सबके साथ ही ि अपने को सफल महसूस करता है और उसे जीतने का
एहसास होता है। उसे अपनी आ मा के सही मू य का ान होता है।

योग ारा जीवन जीने क कला

संभवतः लोग ने योग का अथ के वल ायाम, योगासन, ाणायाम या शारी रक या


को समझ रखा है। ले कन अगर हम योग को गहराई से समझ सकते और उसका वा तिवक
अथ िनकाल सकते तो हम इसे जीवन क सबसे बड़ी उपलि ध बना लेते। योग से हम मा
शारी रक, मानिसक व भौितक उ ता ही ा नह करते ह वरन् अपने जीवन क राह को
सुखी और समृ कर पूरे प रवार को संपूण ल य दे सकते ह एवं अ याि मकता के चरम
िशखर को भी छू सकते ह।
म जब भी कोई योग िशिवर लगाता ,ँ तो सभी िशिवरा थय को योग के साथ-साथ
उनके जीवन के उ थान के िलए भी े रत करता ।ँ अपने व म म योग के साथ जीने
क कला भी िसखाता ,ँ ता क साधक इसे आ मसात् कर सक।
यह एक िनयम है क हम जैसा सोचते ह, शरीर म वैसा ही घ टत होता है।
उदाहरण के तौर पर हम देखते ह क जैसे ही हम ोध आता है, हमारे हाव-
भाव वैसे ही होने लगते ह। भ ह तन जाती ह, र संचार बढ़ जाता है।
माँसपेिशयाँ िखच जाती ह। शरीर म एकि त ऊजा अनाव यक प से न
होती है, िजससे मानिसक तनाव बढ़ जाता है। हमारे आस-पास का प रवेश,
वातावरण भी खराब हो जाता है। हमारी छिव िबगड़ जाती है और
नकारा मकता का वेश हो जाता है। शरीर म एक कार के िवष का िनमाण
होता है जो नुक़सानदायक होता है। हमेशा ोध करते रहने से शरीर क रोग
ितरोधक मता कम हो जाती है, िजससे शरीर ज द ही कमज़ोर हो जाता है
और आसानी से रोग त होने लगता है। जीवन म हमारे साथ कई बात घ टत
होती ह। हम शारी रक एवं मानिसक रोग से िसत व आ थक प से भी
कमज़ोर हो जाते ह। तो हमारे िम भी वैसे ही बनते ह। कई बार गलत आदत
भी पड़ जाती ह, जैसे नशे क लत। इससे दमकते चेहरे भी मुरझा जाते ह। हम
आहार लेते ह, ले कन शरीर पर उसका सकारा मक असर नह दखता। दन -
दन हालत बदतर होती जाती है। प रवार टू ट जाते ह, ब े सं कारवान नह
बन पाते। समाज ितर कार भरी दृि से देखने लगता है। इससे हम उपे ा के
िशकार हो जाते ह। संसार से ऊब जाते ह और जीवन अथहीन लगने लगता है।
सुबह से शाम तक चंता सताती है तथा राि म न द भी नह आती। जीवन
दवाइय के सहारे चलता है। चार ओर िनराशा नज़र आती है। तो या हम
इसिलए पैदा ए ह? तो या हम बाक़ िज़दगी म कु छ नह कर पाएँगे ?
कौन कहता है क अब तुम कु छ नह कर पाओगे? कौन कहता है क तुम कु छ नह हो ?
नह , तुम ब त कु छ हो।
तुम आज भी वैसे हो। तुम अनंत शि य के पुज हो। तु हारी आ मा म कोई अवगुण नह
है। जो भी अवगुण आए थे, वे सब बाहर से ही आए थे और बाहर ही छू ट जाएँगे। तु हारे
अंदर अनंत ान है। तुम स े इं सान हो, तु हारे अंदर ब त सारी मताएँ ह, उ ह
िवकिसत करो। तु हारे अंदर सुख का भंडार है। उठो, अभी! पूरे जोश के साथ उठो, अ छा
करने लगी, मत देखी ज़माने क । ज़माना तु हारा साथ तब देगा, जब तुम उनको िव ास
म ले लोगे।
अके ले ही संघष करो। तु हारे साथ अदृ य शि याँ ह। तु हारे पूवज क करण ह।
'िनयम ले ली’ अभी से तु हारे अंदर नई चेतना का ादुभाव होगा।
क़सम खा लो क आज से म नए जीवन क शु आत क ं गा, ोध नह क ं गा, माँसाहार
का सेवन नह क ं गा, नशा नह क ं गा, अपश द नह बोलगा। कहो क म अहंकार का
याग करता ,ँ माया से मुि चाहता ँ और लोभ को छोड़ता ।ँ
अब म अपनी शु ता के साथ ही िवचरण क ं गा।
म सबसे ेम क ं गा, सबको ेह दूग ँ ा। कसी से कोई अपे ा नह क ं गा, सबको
वा स य दूगँ ा। ऐसा करने पर आप देखगे क आपके चार ओर शांित ही शांित है, शु
वातावरण है। आपका मान-स मान बढ़ गया है। आप मु कु राते ह तो आपको देखकर पूरा
िव मु कराता है।
कु छ दन बाद आप देखगे क आपका शरीर पहले से अ छा हो गया है, मानिसक प
से आप अिधक व थ हो गए ह। आप वयं क , और दूसर क नज़र म भी ऊपर उठ गए
ह। आप हर कार से अ छे हो गए ह।
यह छोटा सा उदाहरण देने का हमारा उ े य िसफ़ इतना है क हम जैसा सोचते ह,
हमारे इस शरीर म वैसे ही रासायिनक त व का िनमाण होने लगता है। हमारी सोच
अ छी होगी तो ऐसे रसायन का िनमाण होगा जो अमृततु य ह गे जो क हम इस समय
से लेकर मृ यु पय त हर कार क पोषकता दान करगे। तो य न हम आज से ही सब
कु छ बदल ल और यम, िनयम को अपने जीवन म अपना ल।
उपिनषद् म िलखा है क 'यथा िप डे तथा ांड’े इस छोटे से वा य म
अनिगनत बात िछपी ह। हमारा यह शरीर तो ांड क अिभ ि है। जो
त व एवं शि याँ इस ांड का िनमाण करती ह, वही हमारे शरीर, मि त क
और सू म शरीर का भी िनमाण करती है। आप और हम देखते ह क कृ ित का
वातावरण असंतुिलत हो रहा है। िजस कारण से हमारा ांड भी बीमार हो
गया है एवं जहाँ-तहाँ ाकृ ितक िवपदाएँ ही दखाई दे रही ह। इसी कार य द
हमारा खान-पान, रहन-सहन भी असंतुिलत होगा तो यह शरीर तथा मि त क
भी रोगयु हो जाएगा। हम पराधीन हो जाएँगे। इसिलए संतुिलत जीवन
िजएँ, बे फ़ हो जाएँ। इस कार हम अपने जीवन जीने का अंदाज बदल कर
और योग को आ मसात् कर हम इस जीवन को सफल एवं सुंदरतम् बना सकते
ह।

योगासन से लाभ के वै ािनक कारण

यौिगक सू म ायाम, यौिगक थूल ायाम, पवन मु ास ज समूह, वायु िनरोधक


एवं शि बंध क या से लाभ - सुबह के समय शरीर म कड़ापन होता है। उ
अ यास के िलए शरीर एकदम से तैयार नह रहता। अत: ह के ायाम करने से अंग -
उपांग म लोच, लचीलापन आ जाता है। ह के ायाम से हमारे सि ध सं थान व पूरे
शरीर के जोड़ खुल जाते ह। र संचार पया मा ा म होने लगता है और आगे के
योगासन म सम या नह होती।

पूरे शरीर म ती ता आ जाती है। शरीर ह का हो जाता है। शरीर म फू त आ जाती है।
सि ध जोड़ खुल जाने के कारण उनम फसी ई वायु र संचार क ती ता के कारण वहाँ
से िनकल जाती है। पूरे शरीर को एक कार क नई ताज़गी, चेतनता ा होती है।
मि त क म र का वाह ती होने से उसे याशील बनाता है। इस कार हमारे पैर के
अँगूठे से लेकर टखना, पंडली, घुटना, जंघा, िनतंब, उप थ, कमर, उदर, पीठ, मे द ड,
फे फड़े, हाथ क अंगुिलयाँ, कु हनी, कध, ीवा, आँख, िसर, पाचनतं के अंग आ द सभी
भाग याशील हो जाते ह और उनके िवकार दूर होकर हम िनरोगी काया दान करते ह।

पदमासन एवं यान से संबंिधत आसन से लाभ : प ासन एवं इनसे संबंिधत आसन को
करने से हमारे कु डिलनी च क ऊजा उ वमुखी होती है अतः मूलाधार से लेकर
सह धार च क ऊजा को हम आ मसात् कर उनसे होने वाले सभी लाभ ा कर सकते
ह। जीवन म नई चेतना का ादुभाव होता ̈ ह।ै इस अव था म बैठकर यान करने से हम
आ म सा ा कार ा कर सकते ह। प ासन म बैठने से हमारा मे द ड ि थरता को ा
करता है; अतः बुढ़ापे म झुकने क सम या नह होती। प ासन म बैठने से यान और
धारणा के ारा हम अपनी मरण शि को तेज़ कर सकते ह।

व ासन से संबंिधत आसन से लाभ : जब हम व ासन म बैठते ह, तो यह हमारे ोणी


देश, जनन अंग और पाचनतं के अंग म र संचार को सुचा कर उ ह सुदढ़ृ बनाता
है। जनन अंग के कई अ य रोग को लाभ दान करता है। जैसे ह नया, िशिथलता,
शु ाणु का न बनना, बवासीर, अ डकोश ि थ क वृि , हाइ ोिसल आ द एवं मिहला
के मािसक ाव क गड़बड़ी को दूर करता है।

खड़े होकर कए जाने वाले आसन से लाभ : इस कार के आसन से पंडली एवं जंघा
क माँसपेिशय म मज़बूती आती है िजस कारण उनम होने वाले रोग जैसे ग ठया,
कपवात, पंडिलय का दद, घुटने क सम या आ द रोग से छु टकारा िमल जाता है। खड़े
होकर करने वाले आसन से पीठ क पेिशय म भी िखचाव आता है, िजससे वे वि थत
होती ह।

पीछे क ओर झुककर कए जाने वाले आसन से लाभ : पीछे क ओर झुककर कये जाने
वाले आसन से हमारे फे फड़े, फु फु स फै लते ह, िजस कारण वे ऑ सीजन क अिधक मा ा
सं िहत कर हमारे शरीर को नवयौवनता दान करते ह। पीछे झुकने से उदर देश क
पेिशयाँ तनती ह। िजस कारण पाचन क अ छी मािलश भी हो जाती है।

पीछे झुकने से हमारे मे द ड क तंि काएँ पु होती ह। पूरा शरीर इनसे जुड़ा आ
होता है। अत: उनके संतुलन को ठीक कर उनसे होने वाली बीमा रयाँ जैसे, ि लप िड क,
साइ टका, पॉि डलाइ टस एवं मे द ड के कई रोग आ द को ठीक करता है।

आगे झुककर कए जाने वाले आसन से लाभ : इस कार के आसन से उदर देश म
संकुचन होता है, िजस कारण उसम अिधक दबाव पड़ता है। पीठ क कशे काएँ फै लती ह
और माँसपेिशयाँ उदी होती ह। मे द ड क ओर र संचार पया मा ा म होता है।
िजससे वह अपने काम को सु वि थत प से करता है। उदर देश म संकुचन और दबाव
पड़ने के कारण उदर देश के अंग क अ छी मािलश हो जाती है। िजस कारण पाचन तं
के रोग न होते ह व गुदा, यकृ त, अ ाशय आ द अंग मज़बूत होकर िनरोग रहते ह।

मे द ड मोड़कर कए जाने वाले आसन से लाभ : हमारे शरीर का त भ मे द ड य द


व थ है तो हमारा शरीर वृ के तने क तरह सुग ठत दखेगा। इसको मोड़कर कए जाने
से हमारे भीतरी अंग क अ छी मािलश हो जाती है। माँसपेिशय का अ छा ायाम हो
जाता है। मे द ड अिधक लोचदार व लचीलापन िलए रहता ह। मे द ड को मोड़कर कए
जाने वाले आसन से पाचनतं के अंग का भी अ छा ायाम हो जाता है, अतः ये अंग
उ ी होकर सुचा ढंग से काय करते ह।

िसर के बल कए जाने वाले आसन से लाभ : िसर के बल कए जाने वाले आसन से


मि त क म र संचार बढ़ जाता है, िजससे िसर को संपूण पोषण िमलता है। पीयूष ंिथ
क काय णाली बेहतर होती है। अत: हमारे सोचने-समझने क शि का िवकास होता है।
हमारे पूरे शरीर म र संचार ती हो जाता है। िजस कारण दय देश सु वि थत
होकर हमारे र क शु ता को बढ़ाता है। उदर देश के भीतरी अंग, पीठ आ द क
कायप ित बेहतर ढंग से काय करने लगती है। हमारे मानिसक रोग ह , झड़ते बाल ह ,
चेहरे क सुंदरता हो या हम कह सकते ह क िसर, कधे के बल कए जाने वाले आसन
कायाक प का काम करते ह।

योगासन का शरीर के अंग पर पड़ने वाला भाव

(एक वै ािनक दृि कोण)

यह बात िबलकु ल स य है क हमारे ऋिष-मुिनय का ान अथाह था। ले कन होता यह है


क हम उनके ान क पराका ा क तुलना अपने ान से करते ह और उनके ान क तक-
िवतक करके गलत सािबत कर देते ह या फर पि मी देश के वै ािनक क बात मान लेते
ह। वो कहते ह क ाचीन संत ने गलत कहा तो हम गलत मान लेते ह और य द वे कहते ह
क तु हारे ऋिषय ने सही कहा तो हम सही मान लेते ह। हम अपने दमाग को
सकारा मक ढंग से लगाना ही नह चाहते। अब हम योग को ही देख ल, लाख वष से
हमारे यहाँ यह परं परा चली आ रही थी। हमने कई दशक पूव से अपने अ ान, आल य के
कारण योगासन म यान देना बंद कर दया था या कोई करता था तो हम हँसते थे और
सामने करने वाला भी कई बार इसी कारण से करना छोड़ देता था। अब चूँ क पि मी देश
के लोग ने अपनाना चालू कर दया तो हमारी भी आँख खुल गई।
यह बात िसफ़ योगासन क ही नह थी बि क कई बात हम अभी भी नह मानते जैसे
महान आ मा ने कहा है क राि भोजन और म , माँस का सेवन नह करना चािहए।
ऐसी कई बात ह िज ह हम अनदेखा कर रहे ह। अब हम राि भोजन का वै ािनक कारण
देख तो डॉ टर का भी कहना है क सोने से 4 घंटे पहले भोजन कर लेना चािहए। य द हम
भोजन करके तुरंत सो जाते ह तो भोजन पचेगा नह । रात भर उदर म पड़ा रहेगा, भोजन
सड़ेगा। हमारी उदर- या पूण प से िवटािमन, ोटीन का शोषण और अपना काय नह
कर पाती। पेट को कभी िव ाम ही नह िमल पाता। भोजन पच नह रहा हो तो वायु
िवकार उ प होते ह, िजससे कई-तरह क बीमा रयाँ होने क संभावना रहती है।
अत: आचायाँ ने सोने के चार घंटे पहले भोजन करने क कहा है। य द हम यहाँ
वै ािनक कारण जान तो पाएँगे क हम उन चार घंट म काफ़ प र म कर चुके होते ह
िजससे भोजन को पचने म सम या नह हो पाती।
शाकाहार पर आचाया ने बताया क शाकाहार पूणतः सुपा य होने के साथ-साथ हम
शारी रक, मानिसक व आ याि मक ऊजा भी दान करता है और हम कई कार के पाप,
दोष से बच जाते ह। हमारे अंदर तामिसकता नह पनप पाती, य क कहा है क 'जैसा
खाओ अ वैसा बने मन।" अ छे आहार से अ छे िवचार आते ह। घर के वातावरण म सुख,
शांित व समृि रहती है।
अ यिधक वासना करने से हम कई कार क बीमा रय से िघर जाते ह। शरीर का ओज,
तेज न हो जाता है। चेहरे क कांित ख म हो जाती है। चेहरा झु रय से भर जाता है।
शरीर कमज़ोर हो जाता है। मानिसक कमज़ो रयाँ हो जाती ह। आँख म फ़क़ दखने लगता
है। हाथ-पैर कमज़ोर हो जाते ह। या ा त् कमज़ोर हो जाती है। आधुिनक शोध से ात
आ है क अ यिधक वासना से मि त क िसकु ड़ने लगता है।
ऐसी सैकड़ चीज़े हमारे पू यनीय ऋिष-मुिनय , संत , आचाय ने बताई य द हम
उनक बात आ मसात् कर तो हमारे जीवन म ब त बड़ा प रवतन हो सकता है।
हम यहाँ पर योगासन का शरीर म या भाव पड़ता है उसक वै ािनक िववेचना
करगे।

पाचन-सं थान

इस धरा का एक िनयम है क िजस व तु का हम उपयोग नह करते, उसक काय मता


मशः कम होती जाती है। आज कई आधुिनक उपकरण आने से मनु य क शारी रक
काय मता कम हो गई है िजस कारण उस अंग के काय करने क द ता भी कम हो गई है।
आज पाचन-तं पर भी इ ह क ह कारण का भाव ज़बद त पड़ रहा है िजस कारण
से क़ ज़, अजीण, अ लता, वायु-िवकार, गुद खराब होना, आंत का सही ढंग से काम न
करना, अ सर, द त, बवासीर आ द कई रोग क उ पित हो रही है।
हम ऐसे आसन करना है क उदर- देश पर दबाव पड़े। जैसे आगे झुकने वाले आसन,
पि मो ानासन, योगमु ासन, नौकासन आ द। ऐसे आसन िजससे उदर- देश पर खंचाव
या तनाव आए जैसे धनुरासन, भुजंगासन, म यासन, च ासन आ द। वे आसन िजससे क
उदर- देश के दोन बाज़ पर दबाव व तनाव आए। वे ह क टच ासन, अध
म ये ासन, ितयक् ताड़ासन, ितयक् भुजंगासन, उ ान म डू कासन आ द। इस कार
उपरो आसन से पाचन-तं के संपूण अंग क अ छी मािलश हो जाती है। र -संचार
बढ़ जाता है। िजससे र क कावट दूर होती ह। पाचन-तं सुचा प से काम करने
लगता है। हमारे अिनयिमत जीवन, अ त- त िज़दगी म आए ए िव ेप दूर होते ह। इन
आसन से संपूण उदर- देश के अंग क काय मता बढ़ जाती है। उदर- देश के सामने क
माँसपेिशय ( ट ए डॉिमनल मस स) को पूण प से यो य ायाम िमल जाता है अतः
पाचन-तं हमारे कए ए भोजन से पया मा ा म िवटािमन, ोटीन आ द पोषक त व
का शोषण कर हम वा य दान करता है और कई बीमा रय से बचाता है।
इसी कार ाणायाम से (अंत कुं भक, बिहकुं भक करने से) फे फड़े व उदर अंग वि थत
ढंग से काम करने लग जाते ह।
मु ा के साथ तीन बंध एवं नौिल व शुि या को करने से पाचन-तं के सम त
अंग सुचा ढंग से काम करते ह। यान के आसन म भी बैठने से उदर- देश के कई छोटे-
मोटे िव ेप दूर हो जाते ह य क यानासन म बैठने से उदर- देश क सामने क
माँसपेिशय म ह का तनाव उ प होता है िजससे सम त उदर- देश को लाभ िमलता है।
अत: हम कह सकते ह क योग- या का पाचन-तं को सुचा प से काय करने म
सहयोग िमलता है।

सन सं थान

आज हम देखते ह क पूरा वायुमंडल दूिषत है। वातावरण अशु हो गया है एवं य द आप


कसी त ि से कह क योगासन वगैरह कया करो, तो वह कहता है क साँस लेने
क तो फु सत नह है, योग वगैरह कब करगे। तो हम कहगे क भैया साँस तो ढंग से ली,
वरना िजओगे कै से ? यह तो एक ं या मक बात हो गई, परं तु इस ं य से यह बात िस
हो जाती है क आम आदमी क िज़दगी कै सी हो गई है।
साँस लेने क कला आना आव यक है अ यथा दय, फे फड़े ही कमज़ोर नह हाँगे बि क
सन सं थान क स पूण काय णाली अपना काय सुचा प से नह कर पाएगी। यही
नह हमारे शरीर म लगभग छह सौ खरब छोटी-बड़ी कोिशकाएँ भी ह, िज ह व थ रहने
के िलए शु वायु (ऑ सीजन) क ज़ रत पड़ती ही है। अत: योगासन एवं ाणायाम क
िवशेष या को कर हम फे फड़े, को कोिशकाएँ ही नह स पूण शरीर को व थता
दान कर सकते ह।
सन–सं थान के िलए च ासन, मयूरासन, सवागासन, हलासन, शलभासन,
पि मो ानासन, म डू कासन अित लाभकारी आसन ह। ये सभी आसन उदर एवं व :
गुहा पर दबाव व तनाव डालकर सन-संबंधी माँसपेिशय को अिधक कायशील एवं
स यता दान करती है।
हमारे योगाचाय ने सन-तं को मज़बूत बनाने के िलए ाणायाम का भी उपयोग
बताया है। तरह-तरह के ाणायाम का उ े य लगभग एक ही है। अंत कुं भक बा कुं भक,
दीघ, पूण एवं समगित आ द क याएँ सन-तं के अंतगत अंग क मािलश के साथ
उनके ारा शु होने वाला र अिधक शु होता आ र -संचार को ठीक करता है,
िजससे जीवनीय शि बढ़ जाती है। फे फड़े मज़बूत, अिधक स य एवं लोचयु हो जाते
ह। सभी नाड़ी-क म संतुलन बनाकर उ र चाप एवं िन र चाप के रोिगय का
लाभ दान करती है।
उिड़यान बंध, बा एवं अंत:कुं भक, कपाल-भाित, नाड़ीशोधन ाणायाम, नौिल, नेित,
धौित आ द सभी याएँ स पूण सन णाली-तं को िनरोग रखती ह। िजससे सन
संबंधी होने वाले रोग, दमा, सद , नज़ला एवं उ र चाप, िन र चाप, र क
अशुि आ द नह हो पाते।

र संचार- णाली एवं दय- देश

दय क र प रवहन तं का क कहा जाता है। योग- या म जो आसन कया जाता है,


उससे संबंिधत अंग म िवशेष र -संचार व दबाव एवं तनाव उ प होने से वह अंग म
सुधार होने लगता है तथा उसके अंदर बाहरी क टाणु से लड़ने क मता पैदा हो जाती
है और वह िबलकु ल सही ढंग से अपना काय करता है, जैसे शरीर के अधोभाग हेतु
व ासन, गौमुखासन, म डू कासन, भ ासन, शशांकासन, आ द। कमर के अंग के िलए
प ासन, योगमु ा, ब प ासन, म यासन आ द। उदर– देश के िलए शलभासन,
मूलबंध, नौिल, कुं जल आ द एवं शीषासन व उसके समूह, िवपरीतकरणी,
पि मो ानासन, ि कोणासन, शशांकासन, उ ानम डू कासन, तोलांगुलासन, ि पाद
कधरासन आ द आसन शरीर के सभी माँसपेिशयाँ, अवयव सं थान आ द अंग को र -
संचार सुचा प से दान कर उ ह िनरोग बनाए रखते ह।
शीषासन, सवांगासन आ द आसन िजनम पैर क ि थित ऊपर क तरफ़ रहती ह, वे
र -संचार क मंद गित दूर कर िशरा से दय- देश ि थत सभी िशरा , धमिनय क
र चाप- णािलय को सु वि थत कर उ ह सुयो यता दान करते ह। कई बार हम देखते
ह क य द अिधक शारी रक और मानिसक काय कर तो दय-गित और र चाप म
अनाव यक प से तनाव उ प होता है, िजससे दय- देश को हािन होने क संभावना
बनी रहती है। इसके िलए शवासन, िशिथलीकरण क या, यान के आसन, ाणायाम
आ द अ यास दय को लाभ दान करते ह। अत: दल का दौरा या दय संबंिधत कोई
िवकार उ प नह हो पाते और हमारा शरीर व थ रहता है।

नाड़ी सं थान

72,000 नािड़य क इस देह को व थ रखने के िलए काफ़ सोच-िवचार क आव यकता


है और िसफ़ सोच-िवचार ही पया नह है, उ ह या मक प से लागू भी करना होगा।
जैसे टेलीिवज़न का एक छोटा-सा पुज़ां भी ख़राब हो जाए तो त वीर साफ़ नह आत । उसे
ठीक करने के बाद ही त वीर साफ़ आती है। हमारी इस काया का भी यही हाल है। जब
तक हम इस देह म रहते ह, तब तक इसक ब त देख-रे ख करना पड़ती है, य क यह
शरीर असं य पु ल परमाणु से िमलकर बना है।
नाड़ी-सं थान को भािवत करने वाले लगभग सभी योग- ायाम उपयोगी िस ए
ह, तथािप सूय नम कार, उ ानपादासन, पि मो ानासन, लोलासन, कु कुटासन,
धनुरासन आ द आसन अिधक लाभकारी ह। धारणा और यान के अ यास एवं शवासन व
िशिथलीकरण क या ारा भी पया लाभ िमल सकता है।
उपरो आसन को करने से तनाव, अिन ा, चंता, अशांित, िचड़िचड़ापन, आवेग,
ोध एवं मानिसक िवकार का नाश होकर ि शांत, आ याि मक, हँसमुख चेहरा एवं
गंभीर कृ ित को ा होता है।

लिसका–सं थान

चूँ क लिसका-सं थान के कायाँ पर वे ही आसन भावकारी ह जो र संचार णाली को


भािवत करते ह, अत: र संचार- णाली से संबंिधत आसन देख।

अंत: ावी िथय को भािवत करने वाले आसन


शरीर के िविभ अवयव पर भाव डालने वाले आसन

संपूण उदर देश के अवयव जैसे जठर, यकृ त, लीहा, आ , शलभासन, म ये ासन,
शीषिसन, उ ानपादासन, पवनमु ासन, शि बंध को आसन।
ह द य : शीषिसन, सवागासन, शवासन, योग-िन ा, नाडी शोधन ाणायाम, सूय
नम कार।
फु फु स : च ासन, मयूरासन, सवागासन, हलासन, शलभासन, पि मो ानासन,
उिड़यान बंध, नाड़ी शोधन ाणायाम, कपाल-भाित।
मि त क : शीषासन के समूह, सवागासन, म यासन, प ासन, िस ासन, योगमु ासन।
आँख : शीषासन, सूय नम कार, सू नेित, जल नेित, सामा य ाटक।
नाक, दाँत, कान : सूय नम कार, सवागासन, म यासन, संहासन, नाड़ीशोधन, ामरी
ाणायाम।

आयुवद म वात,िप व कफ़

हमारे भारतवष क सबसे ाचीन िच क सा प ित म से एक आयुवद भी है। आयुवद के


अनुसार ि दोष ही हमारे शरीर के रोग क जड़ है। जब यह दोष सम अव था म हो तो
शरीर व थ रहता है और य द एक भी दोष िवषमता को ा होता है तो उससे स बंिधत
रोग उ प हो जाते ह। अनुवांिशक तथा ज मजात प से ि के शरीर म कसी एक
अथवा दो दोष क मुखता हो सकती है िजसके कारण उसके शरीर क कृ ित िनधा रत
होती है। अत: कस कृ ित म कौन सा आसन करना चािहए, वह िन िलिखत है :

वात कृ ित

पवनमु ासन समूह क या, शि बंध के आसन, व ासन, वीरासन, म ये ासन (अध
एवं पूण) धनुरासन। च ासन, सवागासन, शंख– ालन या, नौली, उिड़यान बंध, सूय
नम कार, माजारी आसन।

िप कृ ित

नौकासन, भुजंगासन, शलभासन, उिड़यान बंध।

कफ़ कृ ित

शीषासन, सवागासन, पि मो ानासन, उ ानपादासन, कपाल-भाित, उिड़यान बंध।


आयुवद म तीन कार क कृ ित का वणन आता है। उपरो तीन कृ ित एक-दोषज ह।
इसके बाद तीन ि -दोषज ह जो क वात-िप कृ ित, वात-कफ़ कृ ित और िप -कफ़
कृ ित कहलाती ह। इनके िलए दोन कार क कृ ित के आसन करना चािहए। चौथी
कृ ित सि पाितक कहलाती है। इसके िलए तीन दोष के आसन गु -िनदशानुसार करना
चािहए। इस कार हम अपने शरीर को योगा यास के मा यम से हमेशा िनरोग रख सकते
ह।

वात, िप व कफ़ को शांत करने वाले आसन

वात दोष शांत करने के िलए


योग के तुलना मक िविभ ंथ

य द हम तुलना मक दृि से देख तो योग के कई ंथ उपल ध ह जैसे - अमृताशीित गा.


38.52, योग त वोपिनषद 29, योगकु ड योपिनषद 1/4, योग चूड़ाम युपिनषद 3/4,
हठयोग दीप 1/43, कू मपुराण उ रा 11/43, ानाणवः 3/58, मर यकि टका पृ 74,
समािधतं गा. 103, लंग पुराण पूवा 8, देवी भागवत 7/35/9, माक डेय पुराण अ 39,
वायु पुराण 11/13, िशवपुराण वा.स.उ.खं. 3/37, िव णु पुराण 6/7/39, कध पुराण
वै.ख.अ. 30/12, नारद पुराण 33/111/116, ीम ागवत 3/28 और अि पुराण अ.373
म आसन के भेद िविध एवं मह व का ितपादन कया गया है।

िच क ा या

मुिन ास ने िच क पाँच अव था का वणन कया है। जो क िन िलिखत ह


ि ं मूढ़िवि मेका िन मित िच भूमय:।
( ासभाषा यो.द. 1/1)

1.मूढ़ अव था

चूँ क यह अव था तम धान होती है, यह काम, ोध, लोभ, मोह के कारण होती है
और तब मनु य क अव था अ ानमय होने के कारण समािध थ नह हो पाती। इसम
मनु य के रज और सत् त व गौण प से होते ह। इस अव था म तं ा, िन ा, आल य, भय
और म क गुणवृि मनु य म यादा पाई जाती है। अतः यह अव था ु मनु य के
अंतगत आती है।

2.ि अव था

इस अव था का मनु य रज धान होता है अत: उसम राग- ष े , मोह, कषाय, सांसा रक


कम क वृि , मन क चंचलता आ द गुणवृि अिधक पाई जाती है। इसम तम और सत्
गौण प से रहते ह, अतः यह अव था सांसा रक मनु य क है।

3.िवि अव था

इस अव था का मनु य स गुण धान होता है अतः धम, ान, वैरा य और ऐ य अिधक


पाया जाता है। इसम रज और तम गुण गौण प से रहते ह परं तु रजोगुण मन को िवि
करता है। यह अव था ऊँचे मनु य, स यक् ानी, धा मक िवचारक क रहती है परं तु
उपरो तीन अव थाएँ िच क अपनी वाभािवक नह ह और न योग क अव थाएँ ह
य क बा िवषय का भाव िच म रहता है।

4.एका व था

इस अव था का मनु य स वगुण धान होता है। इसम रज और तम गुण आंिशक मा ा


म रहते ह। इसम मनु य क दशा सं ात समािध क होती है। इसम व तु का यथाथ ान
होता है। जब एक ही िवषय म िच क वृि क त रहती है तब एका ाव था कहलाती है
और वृि का व प वाभािवक होता है।

5.िन ० ाव था
जब िववेक– याित ारा िच और पु ष का भेद सा ात् कट हो जाता है तब उस
याित से भी वैरा य (पर-वैरा य) उदय होता है य क िववेक- याित भी िच क ही
वृि है। इस वृि के भी िन होने पर सववृि य के िनरोध होने से िच क
िनरोधाव था होती है। इस िनरोध अव था म अ य सब सं कार का ितरोभाव होने से पर-
वैरा य के सं कार मा ही शेष रह जाते ह। िनरोधाव था म कसी कार क भी वृि न
रहने के कारण पदाथ भी जानने म नह आता तथा अिव ा द पाँच लेश सिहत
कमांशय प ज मा द के बीज नह रहते इसिलए इसको असं ात तथा िनब ज समािध
भी कहते ह।

इस शंका के िनवारणाथ सववृि य के िनरोध होने पर पु ष का भी िनरोध हो जाता है।


सववृि य के िन होने पर पु ष व प म ि थत होता है।

िच वृि के कार

मह ष पतंजिल के अनुसार - िच क वृि याँ और अि ल भदो वाली 5 कार क होती


ह। ि ल अथात् अिव ा द लेश को पु करने वाली और योग साधना म िव प होती
है तथा दूसरी अि ल अथात् लेश को य करने वाली और योग साधना म सहयोग
करने वाली होती है।

साधक िच क वृि य को यथा प समझकर पहले ि ल वृि य को हटाव फर उन


अि ल वृि य का भी िनरोध करके योग िस कर। वे पाँच कार िन िलिखत ह :

1. माण वृि के ल ण

माण िवपयय िवक प िन ा मृ यः। (प.यो.द. 1/6)

उपरो पाँच कार क वृि य म से माण वृि के भेद िन कार से ह।

य ानुमानागमाः माणािन। (प.यो.द. 1/7)

य , अनुमान और आगम, ये तीन माण ह।

य माण

बुि , मन और इि य के जानने म आने वाले िजतने भी पदाथ ह उनका अंत:करण और


इि य के साथ िबना कसी वधान के संबंध होने से जो ांित तथा संशय रिहत ान
होता है उसके य अनुभव से होने वाली वृि माण वृि है।

ब. अनुमान माण

कसी य दशन के सहारे युि य ारा िजस अ य पदाथ के व प का ान


होता है उस अनुमान से ात होने वाली वृि माण वृि है, जैसे धुआ
ं देखकर अि क
उपि थित का ान होना।

स, अगम माणा

वेद, शा और आ (यथाथव ा) पु ष के वचन को आगम कहते ह। जो पदाथ मनु य


के अंत:करण और इि य के य नह है एवं जहाँ अनुमान क भी प च
ँ नह है उसके
व प का ान वेद, शा और महापु ष के वचन से होता है वह आगम से होने वाली
माण वृि है।

2. िवपयय वृि के ल ण

िवपययो िम या ानमतदूप ित म्। (प.यो.द. 1/8)

ा या : कसी भी व तु के असली व प को न समझकर उसे दूसरी ही व तु समझ लेना


यह िवपरीत ान ही िवपयय वृि है जैसे सीप म चाँदी क तीित होना।

3. िवक प वृि के ल ण

श द ानानुपाती व तुशू यो िवक प:। (प यो.द. 1/9)

अथ : जो ान श द जिनत ान के साथ-साथ होने वाला है िजसका िवषय वा तव म नह


है, वह िवक प है।

ा या : के वल श द के आधार पर पदाथ क क पना करने वाली जो िचत क वृि है वह


िवक प वृि है। आगम- माण जिनत वृि से होने वाले िवशु संक प के िसवा सुनी-
सुनाई बात के आधार पर मनु य जो नाना कार के थ संक प करता रहता है, उन
सबको िवक प वृित के अंतगत समझना चािहए।

4. िन ा वृि के ल ण

अभाव ययाल बना वृि न ा। (प.यो.द. 1/1o)

अथ : अभाव के ान का अवलंबन करने वाली वृि िन ा है।


ा या : िजस समय मनु य को कसी भी िवषय का ान नह रहता, के वल मा ान के
अभाव क तीित रहती है। वह ान के अभाव का ान िजस वृि के आि त रहता है वह
िन ावृि है। िन ा भी िच क वृि िवशेष है तभी तो मनु य गाढ़ िन ा से उठकर कहता
है क मुझे आज ऐसी गाढ़ िन ा आई िजसम कसी बात क कोई ख़बर नह रही, इस मृित
से ही यह िस होता है क िन ा भी एक वृि है।

5. मृित वृि के ल ण

अनुभूतिवषयास मोषः मृितः । (प.यो.द. 1/11)

अथ : अनुभव कए ए िवषय का िछपना िव मृित तथा कट हो जाना मृित है।

ा या : उपयु माण, िवपयय, िवक प और िन ा इन चार कार क वृि य ारा


अनुभव म आए ए िवषय के जो सं कार िच म पड़े ह उनका पुनः कसी िनिम को
पाकर फु रत हो जाना ही मृित है। उपरो सू म वृि य का िन पण कया, अब
उनके िनरोध का उपाय बताते ह।

िच वृि य के िनरोध का उपाय

अ यासवैरा या यां तिनरोध:। (प.यी.द. 1/12)

अथ : अ यास और वैरा य से उन वृि य का िनरोध होता है।

ा या : िच क वृि य का सवथा िनरोध करने के िलए अ यास और वैरा य ये दो


उपाय ह। िच वृि य का वाह परं परागत सं कार के बल से सांसा रक भोग क ओर
चल रहा है, उस वाह को रोकने का उपाय वैरा य है और उसे क याण माग म ले जाने का
उपाय अ यास है।

अ यास का ल ण

त ि थतौ य ोऽ यासः । (प.यो.द. 1/13)

अथ : उन दोन म से ि थरता के िलए जो य करना है वह अ यास है।

ा या : जो वभाव से ही चंचल है ऐसे मन को कसी एक येय म ि थर करने के िलए


बार बार चे ा करते रहने का नाम अ यास है। यम, िनयम आ द योग के आठ अंग का
बार-बार अनु ान प य अ यास का व प है और िच वृि य का िनरोध होना
अ यास का योजन है।
अ यास म दूढ़ होने के उपाय

स तु दीघकालनैर तय स काराऽऽसेिवतो दृढ़भूिमः। (प.यो.द. 1/14)

अथ : परं तु वह ब त काल तक िनरं तर और आदरपूवक वधान रिहत सेवन करने पर दृढ़


आ था वाला होता है।

ा या : अपने साधन के अ यास को दृढ़ बनाने के िलए साधक को चािहए क साधना को


कभी-कभी न कर। यह दृढ़ िव ास रख क कया आ अ यास कभी भी थ नह हो
सकता। अ यास के बल से मनु य िन:संदह
े अपने ल य क ाि कर लेता है। यह समझकर
अ यास के िलए काल (समय) क अविध न रख। जीवन पय त अ यास कर। साथ ही यह
भी यान रख क अ यास म वधान न पड़ने पाए अथात् कावट न आए (जैसे कु छ दन
कया फर छोड़ दया, फर कु छ माह कया आगे कु छ दन के िलए छोड़ दया) िनरं तर
अ यास चलता रहे। अ यास म तु छ बुि न रख तथा उसक अवहेलना कदािप न कर।
बि क अ यास को ही जीवन का आधार बनाकर अ यंत आदर और ेमपूवक उसे सांगोपांग
करता रह इस कार कया आ अ यास दृढ़ होता है।

वैरा य ल ण (अपर-वैरा य और पर-वैरा य)

दृ ानु िवकिवषयिवतृ ण य वशीकारसं ा वैरा यम्ः।


(प.यो.द. 1/15)

अथ : देखे और सुने ए िवषय म सवथा तृ णारिहत िच क जो वशीकार नामक


अव था है वह वैरा य है।

ा या : अंत:करण और इि य के ारा य अनुभव म आने वाले इस लोक के सम त


भोग का समाहार यहाँ 'दृ ' श द म कया गया है और जो य उपल ध नह है,
िजनक बड़ाई वेद, शा और भोग का अनुभव करने वाले पु ष से सुनी गई ह - ऐसे
भो य िवषय का समाहार आनु िवक श द म कया गया है। उपरो दोन कार के
भोग से जब िच भलीभांित तृ णा रिहत हो जाता है तब उसक ा करने क इ छा का
सवथा नाश हो जाता है।

ऐसे कामना रिहत िच क जो वशीकार नामक अव था िवशेष है वह अपर-वैरा य है।


अब पर-वैरा य के ल ण बताते ह।

त परं पु ष यातेगुण वैतृ णयम्। (प.यो.द. 1/16)

अथ : पु ष के ान से जो कृ ित के गुण म तृ णा का सवथा अभाव हो जाता है वही पर-


वैरा य है।

ा या : पहले बताए ए िच क वशीकार, सं ा प वैरा य से जब साधक क िवषय-


कषाय का अभाव हो जाता है और उसके िच का वाह समान प से अपने येय के
अनुभव म एका हो जाता है, उसके बाद समािध प रप होने पर कृ ित और पु ष
िवषयक िववेक ान कट होता है। उसके होने से जब साधक के तीन गुण म और उसके
काय म कसी कार क किचत् मा भी तृ णा नह रहती, जब वह सवथा आ काम
िन काम हो जाता है ऐसी सवथा राग-रिहत अव था क पर-वैरा य कहते ह।

ई र िणधान - मह ष पतंजिल के अनुसार

ई र िणधाना ा। (प यो.द. 123)

अथ : ई र- िणधान से शी तम् समािध लाभ होता है।

ा या : ई र क भि अथात् शरणागित का नाम ई र- िणधान है। इससे भी


िनब ज-समािध शी िस हो सकती है य क वे सव-समथ ह। वे अपने शरणागत भ
पर स होकर उसक इ छानुसार सबकु छ दान कर सकते ह।

ई र के ल ण

लेशकमिवपाकाशयैरपरामृ ः पु षिवशेष ई रः।


(प.यो.द. 1/24)

अथ : लेश, कम, िवपाक और आशय - इन चार से जो संबंिधत नह ह, जो सम त पु ष


से उ म है, वह ई र है।

ा या :

1. लेश पाँच ह - अिव ा, अि मता, राग, ष े और अिभिनवेश।


2. कम चार कार के ह - पु य, पाप, पु य-पाप िमि त एवं पु य-पाप से रिहत।
3. िवपाक - कम के फल का नाम िवपाक है।
4. आशय - कम-सं कार के समुदाय का नाम आशय है।

सम त जीव का इन चार से अना दकाल से संबंध है। य िप मु जीव का पीछे संबंध


नह रहता, तो भी पहले संबंध था ही। कं तु ई र का तो कभी इनसे न संबंध था, न है और
न होने वाला है। इस कारण उन मु पु ष से भी ई र िवशेष है। यह बात कट करने के
िलए ही सू कार ने 'पु ष िवशेष:' पद का योग कया है।
त िनरितशयं सव बीजम्। (प.यो.द. 1/25)

अथ : उस (ई र) म सव ता का बीज (कारण) अथात् ान िनरितशयहै।

ा या : िजससे बढ़कर कोई दूसरी व तु हो वह साितशय है और िजससे बड़ा कोई नह


वह िनरितशय है। ई र अविध ानी है। उसका ान सबसे बढ़कर है। उससे बढ़कर कसी
का ान नह है, (वह के व य ानी ह) इसिलए उसे िनरितशय कहा गया है।

सएष पूवषामिप गु : कालेनानव छे दात्। (पयो.द. 1/26) \

अथ : वह ई र सबके पूवज का भी गु है, य क उसका काल से अव छेद नह है।

त य वाचकः णवः । (प.यो.द. 1/27)

अथ : उस ई र का वाचक (नाम) णव (ॐ कार) है।

त प तदथभावनम्। (प.यो.द. 1/28)

अथ : उस ॐ कार का जप और उसके अथ व प परमे र का चंतन करना चािहए।

ा या : साधक को ई र के नाम का जप और उसके व प का मरण- चंतन करना


चािहए। इसी को पूव ई र िणधान अथात् ई र क भि या शरणागित कहते ह।

ततः यकचेतनािधगमोऽ य तराया भावशच । (प.यो.द. 1/29)

अथ : उ साधन से िव का अभाव और अंतरा मा के व प का ान भी हो जाता है।

ा या : ई र के भजन- मरण से िव का अपने आप नाश हो जाता है और अंतरा मा


के व प का ान होकर कै व य अव था भी ा हो जाती है।

लेश उ प करने वाले कारण


पतंजिल ने लेश प च
ँ ाने वाले पाँच कारण बताए ह।

अिव ाि मताराग ेषािभिनवेशा: लेशाः । (प.यो.द. 2/3)

ये अिव ा आ द पाँच ही जीवमा को संसार च म घुमाने वाले महा-दु:खदायक ह।


इस कारण इनका नाम लेश रखा है।

1. अिव ा लेश

अिव ा े मु रे षा सु तनुिवि छ ोदाराणाम् । (प.यो.द. 2/4)

अथ : जो सु , तनु िवि छ और उदार - इस कार चार अव था म रहने वाले ह एवं


िजनका वणन (तीसरे सू म) अिव ा के बाद कया गया है उनका कारण अिव ा है।

अिव ा का व प :

अिन याशुिचदुःखाना मसुिन यशुिचसुखा म याितरिव ा।


(प.यो.द. 2/5)

अथ : अिन य अपिव दु:ख और अना मा म (जड़ म) म से िन य शुिच, सुख आ म याित


(आ मभाव) अथात् चेतनता का ान अिव ा है।

2. अि मता लेश

दू दशनश योरे का मतेवाि मता। (प.यो.द. 2/6)

अथ : क् शि और दशन शि - इन दोन का एक प सा हो जाना अि मता है।

अि मता का व प :

दृ ा चेतन है और बुि जड़ है। इनक एकता हो ही नह सकती तथािप अिव ा के कारण


दोन क एकता सी हो रही है।

3. राग कलेश

सुखानुशयी रागः। (प.यो.द. 2/7)

अथ : सुख भोगने के पीछे जो िच म उसके भोग क इ छा रहती है उसका नाम राग है।

ा या : कृ ित थ जीव को जब कभी िजस कसी अनुकूल पदाथ म सुख क अनुभूित ई


है या होती है, उसम और उसके िनिम म उसक आसि हो जाती है, उसी को राग कहते
ह।

4. ेष कलेश
दुःखानुशयी ेषः। (प.यो.द. 2/8)

अथ : दु:ख के अनुभव के पीछे जो घृणा क भावना िच म रहती है उसको ष


े लेश
कहते ह।

ा या : मनु य को जब कभी िजस कसी ितकू ल पदाथ म दु:ख क तीित ई है या


होती है उसम और उसके िनिम म ष े हो जाता है तब वह ष
े लेश कहलाता है।

5. अिभिनवेश लेश

वरसवाही िवदुषोऽिप तथा ढोऽिभिनवेशः। (प.यो.द. 29)

अथ : जो परं परागत वभाव से चला आ रहा है एवं जो मूढ़ क भाँित िववेकशील पु ष


म भी िव मान देखा जाता है, वह अिभिनवेश लेश है।

ा या : मरणभय जीव के अ त:करण म इतना गहरा बैठा आ है क मूख के जैसा ही


िववेकशील पर भी इसका भाव पड़ता है इसिलए इसका नाम अिभिनवेश लेश रखा
गया है।

लेश को दूर करने का उपाय

ते ित सवहेयाः सू माः । (प.यो.द. 2/1o)

यानहेया तदवृ यः । (प.यो.द. 2/11)

अथ : सू म अव था को ा लेश िच को अपने कारण म िवलीन करने के साधन ारा


न करने यो य है एवं उन लेश क वृि याँ यान के ारा नाश करने यो य ह।

ा या : या योग और यान योग ारा सू म कए ए लेश का नाश िनब ज समािध


के ारा िच को उसके कारण िवलीन करके करना चािहए य क या योग या यान
योग ारा ीण कर दए जाने पर भी जो लेशमा लेष शेष रह जाते ह उनका नाश दृ ा
और दृ य के संयोग का अभाव होने पर ही होता है। उसके पहले लेश का सवथा नाश
नह होता, यह भाव है।

या योग

तपः वा यायेशवर िणधानािन यायोगः । (प.यो.द. 2/1)

अथ : तप, वा याय और ई र-शरणागित ये तीन या योग ह।


तप : अपने वण, आ म, प रि थित और यो यतानुसार वधम का पालन करना और
उसके पालन म जो अिधक से अिधक शारी रक या मानिसक क ा हो उसे सहष सहन
करने का नाम तप है। त, उपवास आ द भी इसी म आते ह। िन काम भाव से इस तप का
पालन करने से मनु य का अ त:करण अनायास ही िस हो जाता है।

वा याय : िजनसे अपने कत -अकत का बोध हो सके ऐसे वेद, शा , महापु ष के


लेख पठन-पाठन और भगवान के ॐ कार आ द कसी नाम का या कसी भी इ देव के मं
का जाप करना वा याय है। इसके अलावा व यानी आ मा के गुण का यान करना भी
वा याय है।

ई र िणधान : ई र के शरणागत हो जाने का नाम ई र- िणधान है। करना, उसक


आ ा का पालन करना ये सभी ई र- िणधान के अंग ह।

या योग का फल

समािधभावनाथः लेशतनूकरणाथ । (प.यो.द. 2/2)

अथ : यह या योग समािध क िसि करने वाला और अिव ा द लेश को ीण करने


वाला है।

ा या : उपयु यायोग अिव ा द दोष को ीण करने वाला और समािध क िसि


करने वाला है अथात् इसके साधन से साधक के अिव ा द लेश का य होकर उसको
कै व य अव था तक समािध क ाि हो सकती है।

योग माग के िव , अंतराय, िच िव म एवं बाधाएँ

योग साधक के माग या अ यास म जो बाधाएँ या अंतराय िच म िव म पैदा करती ह वे


िन िलिखत ह :

ािध यानसंशय मादाल यािवरित ाि तदशनाल ध

भूिमक वानवि थत वािन िच िव ेपा तेऽ तरायाः।


(प.यो.द. 1/3 o)

अथ : ािध, यान, संशय, माद, आल य, अिवरित, ांितदशन अल धभूिमक व और


अनवि थत व - ये नौ िच के िव ेप अंतराय ह। ये ही नौ योग माग के िव माने गए ह।

1. ािध : शरीर म कसी कार का रोग उ प हो जाना ािध है। शारी रक वा य म


कसी कार के दोष होने के कारण साधक क साधना म अंतराय आते ह। चूँ क अ छा
वा य मानिसक िवकास और ान ाि के िलए मह वपूण है, जब शरीर अ व थ है या
नाड़ी-म डल दूिषत है तो मन अि थर हो जाता है, िजसके कारण यान लगाना क ठन हो
जाता है।

2. यान : िच (मन) क अकम यता, उदासीनता होने के कारण साधक साधन म


वृि न कर पाएँ उसे यान कहते ह।

3. संशय : साधक य द वयं म, गु म या योग साधना म शंका करे , तो वह संशय नाम का


अंतराय कहलाता है।

4. माद : योग साधन के अनु ान क (काय प ित) अवहेलना करते रहना माद है।

5.आल य : तमोगुण और कफ़ आ द क अिधकता के कोप के कारण िचत और शरीर म


भारीपन हो जाना और उसके कारण साधन म वृ न होना आल य कहलाता है।

6.अिवरित : इि य सुख के िवषय क िनरं तर इ छा बनी रहना अिवरित है। इस कारण


वैरा य का अभाव रहता है।

7. ांितदशन : स यक् दशन का ा न होना और (चूँ क ांित दशन के कई मायने हो


सकते ह, अतः योग से संबंध होने के कारण) योग साधना क ान को िम या मानना।

8.अल धभूिमक व : वह साधक जो यान क चरम भूिम पर प च


ँ ने म असमथ होता है
या समािध क ि थित को ा न कर सके ।

9.अनवि थत व : आ मदशन से पहले समािध से छू ट जाना या अपने ल य म प च


ँ ने के
पहले िवचिलत हो जाना। इसके अित र और भी दूसरे िव (अंतराय) ह।

दुःखदौमन या गमेजय व ास ासा िव ेपसहभुवः।


(प.यो.द. 1/31)

अथ : दु:ख, दौमन य, अंगमेजय व, ास और ास ये पाँच भी अंतराय के कारण बनते


ह।

1. दु:ख : आ याि मक, आिधभौितक और आिधदैिवक इस कार दु:ख के तीन मुख भेद
ह।
(अ) काम, ोध आ द ज य मानस प रताप और ािध आ द ज य शारी रक प रताप
आ याि मक दु:ख कहलाते ह।
(ब) संह, सप, आ द से दु:ख आिधभौितक है।
(स) िव ु पात, अित वषा, अि , अित वायु आ द दैिवक शि य से ज य दु:ख
आिधदैिवक है।

2. दौमन य : इ छा क पू त न होने पर मन म ोभ होता है।

3. अंगमेजय व : शरीर के अंग म कपन होना।

4. शवास : िबना इ छा के बाहर क वायु का नािसका ारा भीतर वेश कर जाना अथात
बाहरी कुं भक म िव हो जाना ास है।

5. ास : िबना इ छा के भीतर क वायु का नािसका ारा बाहर िनकल जाना अथात


भीतरी कुं भक म िव हो जाना ास है।

ये पाँच िव िच क िवि ता से आते ह। एका िच वाल के नह होते। ये िव ेप


के साथ होने वाले उपिव ेप कहलाते ह।

िव को दूर करने का उपाय

त ितषेधाथमेकत वा यासः । (प.यो.द. 1/32)

साधक को इन िव को दूर करने के िलए एक त व का अ यास करना चािहए अथात्


कसी अिभमत एक त व ारा िच क ि थित के िलए य करना चािहए।

मै ीक णामु दतोपे ाणां सुखदुःखपु यापु यिवषयाणां


भावनाति सादनम्। (प.यो.द. 1/33)

अथ : िम ता, क णा (दया), हष (अित आनंद) और उदासीनता (उपे ा, ितर कार) इन


धमाँ क सुखी, दु:खी पु या मा और पापा मा के िवषय म मानुसार भावना के अनु ान से
िच क िनमलता और स ता होती है।

ा या : सुखी मनु य म िम ता क भावना करने से एवं दु:खी मनु य म दया क


भावना करने से, पु या मा पु ष म स ता क भावना करने से और पािपय क उपे ा
क भावना करने से िच के राग, ष े , घृणा, ई यां और ोध आ द मल का नाश होकर
िच शु , िनमल हो जाता है। अत: साधक को इनका अ यास करना चािहए।

िच शुि का दूसरा उपाय बताते ह :

छदनिवधारणा यांवा ाण य। (प.यी.द. 1/34)

अथ : ाणवायु को बार-बार बाहर िनकालने और रोकने के अ यास से भी िचत िनमल


होता है। शरीर क नािड़य का भी मल न होता है।

मन (िच ) को ि थर करने वाला साधन

िवषयवती वा वृि प ा मनसः ि थितिनब धनी।


(प.यो.द. 1/35)

अथ : द िवषय वाली वृि उप होकर वह भी मन क ि थित बाँधने वाली हो


जाती है।

ा या : अ यास करते-करते साधक क द िवषय का सा ात् ही जाता है, उन द


िवषय का अनुभव करने वाली वृि का नाम िवषयवती वृि है। ऐसी वृि उ प
होने से साधक का योगमाग म िव ास और उ साह बढ़ जाता है। इस कारण वह
आ म चंतन के अ यास म भी मन को ि थर करने म कारण बन जाती है।

िवशोका वा योित मती। (प.यो.द. 1/36)

अथ : इसके िसवा शोक रिहत योित मती वृि भी मन को ि थर करने वाली होती है।

ा या : अ यास करते-करते साधक क य द शोक रिहत, काशमय वृि का अनुभव


हो जाए तो वह भी मन को ि थर करने वाली होती है।

वीतरागिवषयं वा िच म्। (प.यो.द. 1/37)

अथ : वीतराग को िवषय करने वाला िच भी ि थर हो जाता है।

ा या : िजस पु ष के राग- ष
े सवथा न हो गए ह, ऐसे िवर पु ष को येय बनाकर
अ यास करने वाला अथात् उसके िवर भाव का मनन करने वाला िच भी ि थर हो
जाता है।

व िन ा ानाल बन वा। (प.यो.द. 1/38)

अथ : व और िन ा के ान का अवलंबन करने वाला िच भी ि थर हो सकता है।

ा या : व म कोई अलौ कक अनुभव आ हो जैसे अपने इ देव का दशन आ द उसक


मरण करके वैसा ही चंतन करने से मन ि थर हो जाता है तथा गाढ़ िन ा म के वल िच
क वृि य के अभाव का ही ान रहता है। कसी भी पदाथ क तीित नह होती, उसी
को ल य बनाकर अ यास करने से भी अनायास ही िच ि थर हो जाता है।
यथािभमत याना ा।। (प.यो.द. 1/39)

अथ : जो भी अिभमत अनुकूल हो उसके यान से भी मन ि थर होता है।

ा या : उपरो साधन म से कोई साधन कसी साधक के अनुकूल नह पड़ता हो तो


उसे अपनी िच के अनुसार अपने इ का यान करना चािहए। अपनी िच के अनुसार
अपने इ का यान करने से मन ि थर हो जाता है।

1'युिजर योगे' िस ांत कौमुदी धातु म सं या 1444


2'युज समाधौ' िस ांत कौमुदी धातु म सं या 1177
3'युज संयमने' िस ांत कौमुदी धातु म सं या 1807
अ ांग योग

अ ाग योग क उपयोिगता

योगा गानु ानादशुि ये ानदीि रािववेक यातेः । (पयो.द.2/28)

अथ : योग के अंग का अनु ान ( योग, या मक प) करने से अशुि का नाश होने पर


ान का काश, िववेक याित पयत हो जाता है।

ा या : आगे बताए जाने वाले योग के आठ अंग का अनु ान करने से अथात् उनको
आचरण म लाने से िच के मल का अभाव होकर वह सवथा िनमल हो जाता है। उस समय
योगी के ान का काश, िववेक याित (सात कार क सबसे ऊँची अव था वाली ा
बुि ) तक हो जाता है। अथात् उसे आ मा का व प बुि , अहंकार और इि य से सवथा
िभ य दखाई देता है।

अ ांग योग के काय एवं मह व

य द हम गहराई से देख तो योग के आठ अंग कोई साधारण काय नह करते यह तो ऋिष-


मुिनय क ब त बड़ी सोच है, उनक बड़ी अनुकपा है जो उ ह ने इसको अलग-अलग
बाँटकर फर एक माला के प म िपरोकर हम अवगत करा दया य क सभी आठ अंग
के अलग-अलग काय ह जो क हमारे हाथ पैर के नाखून से लेकर हम मो तक का रा ता
बताते ह। यह हमारे और इस िव के िलए ब त बड़ी उपलि ध ह यह महान आ मा का
दया आ हमारे िलए ब त बड़ा उपहार (िग ट) है। य न हम इसे आ मसात् कर उनके
ित कृ त ता कर।

अ ांग योग के आठ अंग (यम, िनयम, आसन, ाणायाम, याहार, धारणा, यान और
समािध) ह।

1. "यम" हम मशः सामािजक एवं धा मक प से जीना िसखाता है िजस कारण


हमारी सामािजक नैितक मू य क वृि होती है।
2. "िनयम" हमारे पूरे जीवन क काय प ित को बदल देता है यह हमारे च र को
उ वल करता है। और हम अनुशासन म रहना िसखाता है।

3. "आसन" हम जीवन के अंितम ण तक िनरोग रखता है हमारे शरीर का िवकास


उ रो र करता है।

4. " ाणायाम" हमारे ाण को एक नया आयाम देता है। ाणायाम हम ास लेने क


कला िसखाता है और हमारे ाण का उ थान व िवकास करता है।

5. " याहार" हम हमारी इं य से िवजय दलाता है। यह वयं से वयं को जीतने


क कला िसखाता है यह हमारा मानिसक िवकास करता है।

6. "धारणा" अंग हमारे मन को एका करता है हमारा बौि क िवकास करता है।

7. " यान" हम कई उपलि धयाँ दान कराता है। हम जीवन के लगभग सभी काय े
के िलए यान के सोपान क आव यकता पड़ती है। यान ारा हम आ म ान तक ा कर
सकते ह। ,

8. "समािध" ारा हम अपने अवचेतन मि त क का िवकास कर परम आनंद ा कर


सकते ह जो क जीवन का अंितम ल य होता है।

इस कार हम अ ांग योग ारा अपने जीवन के सम त े का िवकास कर पूरे जीवन


को मब तरीके से जीने क कला सीख सकते ह।

अ ांग योग के अंग

यमिनयमासन ाणायाम याहारधारणा यान समाधयोऽ ाव गािन ।


(प.यो.द.2/29)

अथ : यम, िनयम, आसन, ाणायाम, याहार, धारणा, यान और समािध योग के आठ


अंग ह। इन आठ अंग क दो भूिमकाएँ ह।

1. बिह ग 2. अंतरं ग

कहते ह, य क इनक िवशेषता बाहर क या से ही स बंिधत है। शेष तीन अथात्


धारणा, यान और समािध अंतरं ग ह। इसका संबध
ं के वल अंत:करण से होने के कारण
इनको अंतरं ग कहते ह।

अब इन आठ अंग का िववेचन कया जाता है :


अ हंसास या तेय चयाप र हा यमाः । (प.यो.द. 2/30)

अथ : अ हंसा, स य, अ तेय (चोरी का अभाव), चय और अप र ह (सं ह का अभाव)


ये पाँच यम ह। 1. अ हंसा : अ हंसा ित ायां त सि धौ वैर यागः । (प.यो.द.2/35)

जब योगी का अ हंसा भाव पूणतः दृढ़ ि थर हो जाता है तब उसके िनकटवत हंसक जीव
भी अपना वैरभाव छोड़ देते ह। कसी जीव कोमन, वचन और शरीर ारा कभी कसी
कार क चंत् मा भी क न प च ँ ाने का नाम अ हंसा है। जैन धम म इन पाँच यम को
पाँच महा त का नाम दया गया है। उनक धम क आधार-िशला माना गया है। धम
शा म िलखा है क सब जीव के साथ संयम से वहार रखना अ हंसा है। संसार म
िजतने भी जीव ( ाणी) ह उनको जाने-अनजाने म न वयं मारना चािहए और न दूसर से
मरवाना चािहए। जो मनु य ािणय क वयं हंसा करता है, दूसर से हंसा करवाता है
और हंसा करने वाल का अनुमोदन (बड़ाई) करता है, वह संसार म अपने िलए बैर को
बढ़ाता है। और, कहा भी है क अ हंसा परमोधम: एवं िजयो और जीने दो।

अतः मन, वचन, काय से किचत् मा भी कसी भी ाणी को दु:ख न देना ही अ हंसा है
व दूसर के दोष को भी िव मृत कर देना इसी के अंतगत आते ह। .

2. स य : स य ित ाया या फला य वम। (प.यो.द.2/36)

सदा अ मादी (आल य रिहत) और सावधान रहकर अस य को यागकर िहतकारी स य


वचन ही बोलने चािहए। स य क दृढ़ ि थित हो जाने पर या फल के आ य का भाव आ
जाता है। योगी को वरदान, आशीवाद या शाप देने का साम य ा हो जाता है।

3. अ तेय : अ तेय ित ाया सवर ोप थानम्। (प.यो.द.2/37)

चोरी के अभाव क दृढ़ ि थित हो जाने पर उस योगी के सामने सब कार के र कट हो


जाते ह। पदाथ सचेतन हो या अचेतन, थोड़ा हो या ब त वह व तु िजसके अिधकार म हो
उसक आ ा िलए िबना पूण संयमी साधक न तो वयं हण करते ह और न दूसर को
हण करने के िलए े रत करते ह और न ही उसका अनुमोदन करते ह। दूसर क िबना दी
ई व तु भी चोरी से हण नह करनी चािहए।

4. चय: चय ित ायां वीयलाभः । (प.यो.द.2/38)

चय धम का मूल है। इसिलए िन ंथ मुिन चय के पालन म दृढ़ बने रहते ह। जब


साधक चय का पूण पालन करता है तब उसके शरीर, मन और आ मा म असीम शि
का ादुभाव होता है।

5. अप र ह: अप र ह थैय ज मकथ तासंबोधः । (प.यो.द.2/39)

अप र ह अथात् प र ह का यास न करना। आव यकता से अिधक व तु का सं ह न


करना ही अप र ह है। िन ंथ मुिन कसी कार का प र ह नह रखते, अप र ही ि
को योग साधना और धा मक या-कलाप से उ म फल क ाि होती है।

िनयम

येक साधक के जीवन म िनयम अव य होने चािहए। ि चाहे सांसा रक सुख क


इ छा करता ही या आ याि मक सुख ा करना चाहता हो, उसके जीवन म उ कृ िनयम
अव य होने चािहए। पतंजिल के अनुसार पाँच िनयम िन िलिखत ह :-

1. शौच : शौचा वा गगजुगु सा परै रसंसग:। (प यो.द.2/40)

शौच के पालने वाले को अपने अंग से वैरा य और दूसर से संसग करने क इ छा का


अभाव होता है। अथात् अपने शरीर म और दूसर के शरीर म आसि का भाव नह
रहता। मै ी आ द क भावना के ारा अथवा जप-तप आ द अ य कसी साधना ारा
आत रक शौच के िलए अ यास करने से राग- ष े , ई यां आ द मल का अभाव होकर
मनु य का अ त:करण िनमल और व छ हो जाता है। मन क ाकु लता का नाश होकर
उसम सदैव स ता बनी रहती है। िव ेप-दोष का नाश होकर एका ता आ जाती है और
सब इि याँ मन के वश म हो जाती ह। अत: उसम आ मदशन क यो यता आ जाती है।

2. संतोष : संतोषादनुतमसुखलाभ:। (प यो.द.2/42)

संतोष से बढ़कर कोई दूसरा सुख नह ! कसी ने कहा है क संतोषामृत िपया करो - अथात्
संतोष पी अमृत का पान करो (धारण करो)। साधक को जब संतोष होता है तो तृ णा का
नाश होता है, चाहत का अभाव होता है। कसी किव ने कहा है क

गोधन, गाजधान, बाजधन और र धन खान ।


जब आवै सतोष धन, सब धन धू र समान।

3. तप : कायेि यिसि रशुि या पसः । (प.यो.द.2/43)


तप के भाव से अशुि का नाश होता है। शरीर और इि य क िसि होती है। तप कई
कार के होते ह परं तु वह तप जो अपने वानुभूित के दशन कराए िजससे अंतरं ग और
बिहरं ग दोन शु होकर उ थान को ा हो जाएँ, तप कहलाता है।

4. वा याय : वा याया द देवतासम योग: । (प.यी.द.2/44)

वा याय से इ देवता का दशन होता है। जैन धम म वा यायः परम तपः माना गया है।
अथात् व यानी आ मा (म) का अ ययन चंतन-मनन करना ही वा याय है। शा का
अ ययन अ यापन करना वा याय है।

5. ई र- िणधान : समािधिसि री र िणधानात्। (प.यो.द.2/45)

समािध क िसि ई र- िणधान से होती है। साधक जब अपनी इ छा, कम और येक


वह व तु िजससे उसके अहंकार क पुि होती है, ई र को सम पत कर दे, वह ई र-
िणधान है। जब ि ई र के ित िन वकार भाव से अपने को सम पत करता है तो वह
समािध क चरम दशा म प च ँ जाता है। जब वह भेदिव ान क दृि अथात् जड़ और
चेतन को पृथक-पृथक देखता है तो स यक् दशन और स यक् दृि ा हो जाती है और वह
ई र का सा ा कार कर लेता है। यही ई र िणधान है।

आसन

योग का तीसरा अंग आसन है। मह ष पतंजिल के अनुसार :

ि थरसुखमासनम्। (प.यो.द.2/46)

सुखपूवक ि थर बैठन का नाम आसन है।

ा या : िजस या से ि थरतापूवक (हलन-चलन रिहत) िनराकु लता िलए सुखपूवक


दीघकाल तक बैठा जा सके वह आसन कहलाता है। ि थर और सुखपूवक शारी रक ि थित
से मानिसक संतुलन आता है। मन क चंचलता कती है। योगी आसन के अ यास से
शरीर और मन पर िवजय ा कर अपना जीवन ध य कर लेता है। साधक जानता है क
व थ शरीर म ही व थ मि त क का िवकास होता है। आसन के िनरं तर अ यास से
शारी रक असमथता और मानिसक बाधा से ि वयं को मु कर ह का महसूस
करता है। साधक परमा मा क ाि के िलए आकाश म नह देखता, पवत क ख़ाक नह
छानता। वह तो अ यास के ारा मशः अपने अंदर महसूस करता है।

य शैिथ यान तसमापि याम्। (पयो.द.2/47)

य क िशिथलता से और अनंत (परमा मा) म मन लगाने से आसन िसछ होता है।


वाभािवक शरीर क चे ा का नाम य है। उस वाभािवक चे ा से अंगमेजय व के
रोकने के िनिम उपरत् होना य क िशिथलता है। इस य क िशिथलता से अासन
िस छ होता है। फर साधक शरीर अौर मन क उपे ा नह करता और न ही उसको न
करने क कोिशश करता है। वह उसे ान ाि का उपकरण मानता है।

ततो ं ानिभघातः । (प.यो.द.2/48)

अथ : अब कहते ह क आसन-िसि हो जाने से या अिधकार ा कर लेने से सद -गम ,


भूख- यास, जय-पराजय, लाभ-हािन, मान-अपमान, शरीर-मन, मन-शरीर इस कार के
समा हो जाते ह तब साधक योगमाग क चौथी सीढ़ी ाणायाम तक प च ँ ता है।

ाणायाम

(अिधक जानकारी के िलए आगे ाणायाम पर िव तृत िववेचना क गई है)

ति मन् सित श ास ासयोगितिव छे दः ाणायामः।

(प.यो.द. 2/49)

अथ : उस आसन क िसि होने के बाद ास- ास क गित िव छेद होना (िव छेद हो
जाना) ाणायाम है।

शवास : ाणवायु का नािसका ारा अंदर वेश कराना ास कहलाता है।

ास : को –ि थत वायु का नािसका िछ ो ारा बाहर िनकलना ास कहलाता है।

ास- ास क गितय का वाह रे चक, पूरक और कुं भक ारा बा यंतर दोन


थान म रोकना ाणायाम कहलाता है। यहाँ आसन क िसि के बाद ाणायाम करना
चािहए, ऐसा बताया है। इससे यह तीत होता है क आसन क ि थरता का अ यास कए
िबना जो ाणायाम करते ह, वे गलत करते ह। ाणायाम का अ यास करते समय आसन
क ि थरता का होना आव यक है।

बा य तर त भवृि दशकालसं यािभःप रदृ ोदीघसू मः॥ (प.यो.द. 2/50)

अथ : ाणायाम बा वृित, आ यांतरवृित और त भवृि ऐसे तीन कार का होता है।


देश, काल (समय) और सं या ारा देखा आ लंबा और ह का होता जाता है।

बा वृि ाणायाम
को ि थत वायु को बाहर िनकालकर उसक वाभािवक गित का अभाव करना रे चक
या बा वृि ाणायाम कहलाता है।

आ यांतर वृि ाणायाम

ाणवायु को नािसका-रं ध से अंदर ख चकर उसक वाभािवक गित का अभाव पूरक


ाणायाम या आ यांतर वृि ाणायाम कहलाता है।

त भ वृि ाणायाम

ास- ास दोन गितय के अभाव से ाणवायु को एकदम जहाँ है वह रोक देना


तंभवृि ाणायाम या कुं भक ाणायाम कहलाता है।

देश, काल, सं या के िहसाब से ाणायाम क ा या इस कार से है :

1. देश प रदृ

देश से देखा या नापा आ जैसे रे चक म नािसका तक ाण का िनकलना। पूरक म


मूलाधार तक ास का ले जाना। कुं भक म नािभच आ द म एकदम रोक देना।

2. काल प रदृ

समय से देखा आ, िवशेष समय म ास क कु छ मा ा का िनकलना, अंदर ले जाना


और रोकना जैसे दो सेकड म रे चक, एक सेकड म पूरक और चार सेकड म कुं भक।

3. सं या प रदू

सं या से प रपूण जैसे इतनी सं या म पहला। (मन म सं या िनधारण कर ल) इतनी


सं या म दूसरा और इतनी सं या म तीसरा ाणायाम। इस कार अ यास कया आ
ाणायाम दीघ और सू म अथात् लंबा और ह का होता है।

भावाथ : जैसे-जैसे साधक अपना अ यास बढ़ाता है, वैसे-वैसे रे चक, पूरक और कुं भक ये
तीन कार का ाणायाम देश, काल और सं या के प रमाण से दीघ (लंबा) और सू म
(ह का, पतला) होता चला जाता है। अब चौथे ाणायाम का वणन करते ह।

बा ा य तरिवषया ेपी चतुथ:। (पयो.द.2/51)

अथ : बाहर और भीतर के िवषय का याग या आलोचना करने वाला चौथा ाणायाम है।
इस अव था का साधक बाहर और भीतर के िवषय-कषाय के चंतन-मनन का याग कर
देने से अथात् इस समय ाण (वायु) बाहर िनकल रहे ह या भीतर जा रहे या चल रहे ह या
ठहरे ए ह, इस कार के भाव का याग करके मन को इ - चंतन म लगा देने से देश, काल
और सं या के ान के िबना ही अपने आप जो ाण क गित िजस कसी देश म क जाती
है वह चौथा ाणायाम कहलाता है। उपरो तीन कार के ाणायाम से यह सवथा िभ
है। इसम मन क चंचलता शांत होने के कारण अपने आप ाण (वायु) क गित कती है।

ाणायाम का फळ

ततः ीयते काशावरणम्। (प.यो.द.2/52)

अथ : उस ाणायाम के अ यास से ान पी काश को ढ़कने वाला अ ान का आवरण


ीण हो जाता है।

पंचिशखाचायानुसार

तपो न परं ाणायामात् ततो िवशुि मलानां दीि ान य ।

अथ : ाणायाम से बढ़कर कोई तप नह । उससे कमफल धुल जाते ह और ान का काश


होता है।

भगवान मनु के अनुसार

जैसे अि से पके ए वण आ द धातु के मल न हो जाते ह उसी कार ाणायाम करने


से इि य के मल न हो जाते ह।

ाणायाम का और दूसरा फल बताते ह :

धारणासु च यो यता मनसः । (प.यो.द.2/53)

अथ : धारणा म मन क यो यता होती है।

ा या : ाणायाम से मन ि थर होता है और उसम धारणा क यो यता आ जाती है।

याहाट

अब याहार के ल ण करते ह :

विवषयास योगे िच व पानुकार इवेि याणा याहारः।


(प.यो.द.2/54)

अथ : अपने िवषय के साथ स बंध न होने पर िच के व प का अनुकरण इि य का


याहार कहलाता है।

ा या : सू कार कहते ह क ाणायाम के अ यास से पाँच इि य के बा िवषय और


मन धीरे -धीरे िनमलता को ा होते जाते ह। साधक का यान अंतरो मुख हो जाता है।
िवषय-कषाय सब िवलीन हो जाते ह। इसी का नाम याहार है। यही योगी क पाँचव
अव था है। वह अंतर-आ मा के ानदीप से बाहर के इि य-जिनत िवषय-कषाय को
जलाकर स यक् -दृि हो जाता है।

आगे याहार का फल बताते ह।

ततः परमाव यतेि याणाम्। (पयो.द.2/55)

अथ : उस याहार से इि य का उ म वशीकार होता है।

या व य ने याहार का ल ण बताते ए िलखा है क वभावतः अपने-अपने


िवषय म िवचरण करती ई इि य का बलपूवक एकाएक आकषण याहार कहलाता
है।

िवषय से िच के िनवृत होने म जैसा िच का व प होता है वैसा ही इि य क


एका ता होना याहार है।

गोर प ित म सू कार कहते ह क पाँच इि याँ- ाण, च ु, िज वा, कण और पशन


के िवषय गंध, दृि , वाद, सुनना और पश - उ ह यथा म साधन ारा धीरे -धीरे याग
करना अथात् इि य को उनके िवषय-कषाय से िवमुख करना याहार कहलाता है।
आसन और ाणायाम को िस कर लेने के बाद मानिसक िवषय-िवकार को हटाकर अपने
व प म ि थत होना याहार कहलाता है। आगे कहते ह क जैसे कछु आ अपने िसर, पैर
आ द अंग को िसकोड़कर अपने भीतर िछपा लेता है वैसे ही योिगय को चािहए क वे
अपनी इि य को िवषय से हटाकर उनक वृि य को आ मा म अनुर कर। िवषय-
सुख म आस होकर यह जीव अपना बड़ा भारी अिहत कर रहा है। अत: इन सबका याग
कर ि को अपना आ मक याण करना चािहए, यही याहार क साथकता है।

िपछले अ याय म यम, िनयम, आसन, ाणायाम और याहार इन पाँचबिहरं ग


साधन का फल सिहत वणन कया गया है। शेष तीन अंतरं ग साधना धारणा, यान और
समािध का वणन यहाँ से कया जाता है। जब शरीर आसन ारा वि थत कर साधा
गया, जब मन (िचत) ाणायाम क अि से शु कया गया और जब इि याँ याहार के
ारा वशीभूत क गई ह, तब साधक अ ांग योग क छठी अव था धारणा को ा करता
है।

धारणा

देशब धि य धारणा। (प यो.द.3/1)

अथ : िच का वृितमा से देश िवशेष म बाँधना धारणा कहलाता है।

ा या : यहाँ देश िवशेष से ता पय कसी अंग के आस-पास के थान जैसे क ट देश, उदर
देश, ललाट देश से है। ये शरीर के भीतर के देश ( थान, जगह) ह और बाहर के थान सूय,
चं या कसी देवता क ितमा इनम से कसी एक थान िवशेष म मन क वृि को
लगाना धारणा है। (धारणा अ याय भी देख)

यान

त ययैकतानता यानम्। (प.यो.द.3/2)

अथ : उसम वृि का एक सा बना रहना यान है।

ा या : धारणा म िच िजस वृितमा से येय म लगता है, जब वह वृि इस कार


समान वाह से लगातार उदय होती रहे क दूसरी कोई और वृि बीच म न आए तब
उसको यान कहते ह। अनेक आचायाँ ने अनेक कार से ा याएँ क ह : ( यान अ याय
भी देख)

वाच पित िम ने कहा है क :

मन का एका और एकतान हो जाना यान है।

याससू -वृि के ी िव नाथ के अनुसार -

िणधानम िच एका िमदम ।

अथात् िणधान म िच एका हो जाता है।

यान मन के ठहराव (चंचलता का अभाव) क अव था है िजसम िच -वृि का िनरोध


होता है। जहाँ पर राग- ष
े का अभाव हो जाता है, रजोगुण और तमोगुण शू य ाय: हो
जाते ह और िच क ि , िवि और मूढ़ अव थाएँ िवलीन हो जाती ह। िच क
चौथी अव था एका ाव था है जहाँ स गुण बलहोने पर मानिसक शि याँ एकमा एक
िवषय या एक देश पर क त होती ह। िच क पंचम अव था िन छ ाव था है। जहाँ मन,
बुि , अहंकार, राग और ष
े का भेद नह रहता और सम त आत रक शि याँ परमा मा
क शरण म या सेवा म सम पत क जाती ह। यहाँ म और मेरा का बोध हटकर यान थ
क अव था होती है।

समािध

तदेवाथमा िनभासं व पशू यिमव समािधः॥(प.यो.द.3/3)

अथ : जब यान म के वल येय मा का आभास होता है और व प शू य सा हो जाता है


तब समािध थ अव था कहलाती है। येयाकारिनभिस यान ही जब येय वभाव के
आवेश से अपने ाना मक वभाव से शू य के समान होता है, वह समािध क अव था
कहलाती है।

यान क अंितम अव था का नाम समािध है जो क ि थरिचत क सवाँतम अव था है।


आ मिव मृित क तरह यान ही समािध है। यान करते-करते जब साधक आ मिव मृत ही
जाता है, जब के वल येय-िवषयक स ा क ही उपलि ध होती रहती है तथा अपनी स ा
िव मृत हो जाती है। येय से अपना पृथक व ानगोचर नह होता है तब येय िवषय पर
उस कार का िचत- थैय ही समािध है। आ म-सा ा कार क ि थित समािध िबना नह
होती। समािध साधना क खोज का अंत है।

यमेक संयमः । (प.यो.द.3/4)

अथ : ये धारणा, यान और समािध तीन ही एक संयम कहे जाते ह। तीन क शा ीय


भाषा संयम है। अत: इस ंथ म जहाँ कह भी संयम बोला गया हो, वहाँ धारणा, यान,
समािध से मतलब है, ऐसा समझना चािहए।

त या ालोकः ॥ (प.यो.द.3/5)

अथ : संयम जय से समािध म ा (बुि ) का आलोक ( काश) होता है। अथात् िजतने


सू मतर िवषय म संयम कया जाता है, उतनी ही बुि िनमल होती जाती है। अथात्
साधक क बुि म अलौ कक ान शि आ जाती है। ालोक का अथ है, स ात प
ा का आलोक, भुवन- ाना द नह । हीत- हण- ा िवषयक जो ताि वक ा या
समापित है, वह कै व य का सोपान है। उसी को मु यतः ालोक नाम से कहा गया है।

त य भूिमषु िविनयोगः। (प.यो.द.3/6)

अथ : भूिमय म उस संयम का िविनयोग करना चािहए।


ा या : सू कार का कहना है क िज ह ने िन भूिमय को नह जीता वे परवत
भूिमय को लाँघकर परा त भूिमय म संयम लाभ नह कर सकते। अथात् पहले थूल
िवषय पर संयम कर फर म से सू म िवषय पर संयम कर और इस कार मशः आगे
बढ़ते जाएँ।

यम तर ग पूव यः। (प.यो.द.3/7)

अथ : धारणा, यान और समािध - ये तीन सं ात योग के पहले कहे ए यम, िनयम,


आसन, ाणायाम और याहार साधन क अपे ा अंतरं ग ह।

ा या : सं ात योग के ही धारणा, यान तथा समािध अंतरं ग ह, य क समािध ारा


त वसमूह का फु ट् ान होने पर एका वभाव िच ारा वह ान जब िवधुत रहता है
तब वह सं ात कहलाता है।

तदिप बिहर गं िनबीज य । (प.यो.द.3/8)

अथ : तब भी अथात् धारणा, यान, समािध अंतरं ग साधन य िनब ज समािध (असं ात


समािध) के बिहरं ग साधन ह। उसका अंतरं ग के वल परवैरा य है। कारण, यहाँ सं ात का
भी अभाव या िनरोध हो जाता है। वृि -िनरोध को लेकर देखने म सं ात और असं ात
दोन ही योग या समािध ह पर सबीज समािध को लेकर िवचारने से असं ात का अथ
होगा बिहरं ग समािध।
योग-आसन के नाम-एकरह यमयता कक दृि कोण

हठयोग के अंतगत िविभ कार के योगासन का वणन आता है। हमारे आचायाँ ने
िविभ कार के आसन के नाम िभ -िभ कार से रखे। उ ह ने इ ह बड़े अथपूण नाम
दए। कु छ आसन के नाम पि य से संबंिधत ह जैसे बकासन (बगुला), मयूरासन (मोर),
कु कुटासन (मुगां), हसासन (हस)। कु छ के नाम क ड़ से जोड़े गए ह : वृि कासन
(िब छू ), शलभासन ( टड़ा)। कु छ के नाम जानवर पर आधा रत ह : ानासन (कु ा),
उ ासन (ऊँट), संहासन ( संह), गोमुखासन (गाय), वातायन (घोड़ा), आ द। कु छ के नाम
पेड़-फू ल आ द पर रखे जैसे वृ ासन (पेड़), ताड़ासन (ताड़), प ासन (कमल) आ द। कु छ
जलचर और उभयचर ािणय के नाम पर भी ह जैसे म यासन (मछली), कू मासन
(कछु आ), भेकासन मेढ़क), मकरासन (मगर)। ज़मीन म रगने वाले ाणी सप को सपांसन
व भुजंगासन नाम दया। हनुमानासन, वीरासन, महावीरासन, बु ासन जैसे आसन के
नाम भगवान क छिव से िलए और महान ऋिषय जैसे किपल (किपलासन), विश
(विश ासन), िव ािम , भागीरथ आ द नाम उनक याद के िलए हमारे सं कार म डाले।

आिखर या कारण रहा क हमारे महा ानी ऋिष-मुिनय ने ये नाम उनसे जोड़े। यहाँ
यह तक बड़े सरल ढंग से कया जा सकता है क जब हम उस आसन क अंितम ि थित म
प चँ ते ह तो वह आसन उसके व प म वैसा ही दखता है जैसा आसन का नाम है। जैसे
मयूरासन, जब हम यह आसन लगाते ह तो यह आसन मयूर के समान ही दखाई पड़ता है
और साधक को उसके ित लगाव भी उ प करना रहा है। इसके पीछे और भी तक दए
जा सकते ह। मेरा (लेखक) िवचार है क जब हम िभ -िभ ािणय के समान उनक
आकृ ित हण करते ह तो साधक के मन म उनके ित स मान व ेम उ प होना चािहए
एवं ािणय से घृणा नह होनी चािहए। कारण वह जानता है क सारी सृि म छोटे जीव
से लेकर बड़े-बड़े महा मा तक वही िव ा मा ास लेता है, जो असं य प को हण
करता है। वह िनराकार प ही उसका सबसे महान प है। वैसे यहाँ तक यह भी है क
ई र ने येक ाणी को एक न एक गुण िवशेष प से दान कया है, यहाँ तक क पेड़-
पौधे तक म कोई न कोई गुण िवशेष रहता है। चूँ क मनु य अपने अंदर अिधक से अिधक
गुण समािहत करना चाहता है, अतः उसका उ े य आसन से वह ा करना है एवं उस
आसन से जो उसके लाभ ह वह भी ा करना चाहता है। एक कारण और ता कक है क
हम वे आचाय कृ ित से िनकट थ करना चाहते ह ता क कृ ित के गुण को भी आ मसात्
कर सक।
वग जैसे सुख के िलए शरीर को व थ र
खना आव यक है।
-RJT

वात रोग को शांत करने के िलए सकारा मक सोच


िप रोग को शांत करने के िलए शुभ यान कर
कफ़ रोग को शांत करने के िलए उजावान बन।
योग-सावधािनयाँ/िनयम

यो गारखनायासपड़ता
शु करने से पहले साधक को काफ़ िनयम व सावधािनय का यान
है, अतः येक साधक को िन िलिखत बात पर यान अव य देना
चािहए। जैसे क हम जब कसी मकान का िनमाण करते ह, तो उसक न व पर िवशेष
यान देकर उसको मज़बूत बनाते ह ता क उस पर खड़ी होने वाली इमारत ब त दन तक
थाई बनी रहे वैसे ही य द हम योग या से संबंिधत िनयम व सावधािनय को अपने
जीवन म उतारते ह तो हमारे जीवन म होने वाली कई कार क क ठनाईय का हल अपने
आप ही हो जाता है।

अभयास कम
कसी यो य िश क क देख-रे ख म ही योगासन एवं योग क या का
अ यास करना चािहए।
कसी भी योगासन को कर, परं तु मूल अव था म लौटते समय या का म
िवपरीत ही होना चािहए जैसा अंितम अव था म प च
ँ ने के पहले था।
योगा यास मश: और या मक प से कर तो यादा लाभाि वत ह गे।
योगासन एवं सम त या करते समय संपूण यान अ यास पर ही क त रख।
योग या न ही कसी क देखा-देखी कर और न ही कसी को दखाने का
यास कर।
योगा यास व-अथ क या है, जैसा करगे वैसा लाभ िमलेगा।
योगा यास क जो समय-सीमा और गित तय है। उसी अनुपात म कर, अ यथा
हािन क भी संभावना है।
यम िनयम के पालन पर िवशेष यान द।
कौन-सा योगासन आपको करना है और कौन सा नह इसका िनणय पु तक का
संपूण अ ययन करने के बाद ही ल।
कसी भी आसन को एकदम से नह करना चािहए। पहले ह के ायाम, सू म
आसन, थूल आसन या पवनमु ासन से संबंिधत आसन को कर ता क शरीर
का कड़ापन समा हो और शरीर नरम बने एवं मांसपेिशय म लचीलापन आए
फर ( ारं िभक, म यम, उ अ यास) ाणायाम एवं यान का म उपयु
रहता है।
कसी भी आसन को ज़बद ती न कर। मश: अ यास से आसन वत: सरल हो
जाता है।
योग क कसी भी या के अंत म शवासन करने का यान अव य रख।
शवासन करने से अ यास या म आया आ कसी भी कार का तनाव दूर
होकर स ता का एहसास होता है।
जैसे कोई आसन सामने क तरफ़ झुकने वाला है तो िणक िव ाम के बाद
पीछे क तरफ़ झुकने वाला आसन (अपनी अव था एवं रोग को देखते ए
िववेक का उपयोग अव य कर, ऐसा करने से कसी भी कार क िवकृ ित नह
आती है।) कर।

ास— ास
कसी भी योग या को करते समय ास- ास के ित सजगता बनाए रख।
ास नािसका ार से ही भर, मुख से नह ।
येक आसन का अपना एक ास- ास का म होता है। उसका अव य
यान रख।

आहार
आसन के अ यास से पहले मू ाशय एवं आँत र होना चािहए।
य द कसी को क़ ज़ क िशकायत हो तो वह पहले पु तक म दी ई शंख-
ालन क या कसी गु क देख-रे ख म कर या उनसे परामश ल, त प ात्
अ य योगा यास कर।
शरीर को फु त ला, चु त, सुंदर और िचरयुवा बनाने के िलए िजतना मह व हम
योगासन को देते ह, उतना ही मह व हम आहार को भी देना चािहए।
ब त यादा ख ा, तीखा, तामसी, बासा एवं देर से पचने वाला आहार नह
लेना चािहए। आज इस बात को वै ािनक भी मानने लगे ह कहमारा भोजन
साि वक, शाकाहारी, शु , ताज़ा एवं िबना ज टलता िलए हो।
आसन करने से कु छ समय पहले एक लास ठं डा एवं ताज़ा पानी पी सकते ह
यह सि ध थल का मल िनकालने म अ यंत सहायक होता है।
साधक को शराब, गाँजा, भौग, त बाकू , बीडी, िसगरे ट, आ द मादक पदाथ का
सेवन नह करना चािहए।
य द कसी रोग से पीिड़त ह तो आसन एवं आहार क जानकारी कसी
िवशेष से ल।
भोजन करने के आधे घंटे पहले एवं भोजन करने के कम से कम चार घंटे बाद
ही योगा यास या कर।
य द यादा क़ ज़ नह है तो योगा यास से यह रोग (सामा य पाचन िवकार)
दूर हो जाता है। वैसे भी शंख- ालन वष म कम से कम एक या दो बार
अव य करना चािहए।
तामिसक भोजन जैसे अंडा, मछली, मांस आ द का याग कर देना चािहए
य क 'जैसा खाओ अ , वैसा बने मन"।

ान
आसन से पूव व आसन के कु छ समय बाद व छ एवं शीतल जल से ान कर
(ऋतु एवं अव था अनुसार)।


आसन करते समय चु त कपड़े न पहन। ढीले, आरामदायक, सूती एवं
सुिवधाजनक व का ही योग कर।
आसन के िलए कबल या दरी का योग कर।
कबल आ द का योग करने से अ यास के समय िन मत िव ुत वाह न नह
होता।
पु ष साधक को क छा या लगोट अव य पहनना चािहए।

समय
योगासन का अ यास ात: सूय दय के समय अ छा माना जाता है।
ात:काल सूय से िनकलने वाली ऊजा हम नई ताक़त देती है य क वह ऊजां
जीवन को संचार दान करने वाली होती है।
ात:काल योग करने का कारण संभवतः ि का तनाव मु रहना भी है।
येक आसन क समय सीमा अपने शरीर क प रि थित को भी देखकर कर।
ात:काल ि के पास समयाभाव भी नह रहता।
ात:काल योग करने से ि दनभर तरोताज़ा और फू त महसूस करता है।
अत: वह दनभर स िच हो येक काय करता है। य द कसी कारणवश
धूप से आने के बाद योगा यास करना हो तो कु छ देर िव ाम कर।
िनि त समय और िनि त थान पर अ यास अिधक भावशाली हो जाता है।

थान
अ यास के िलए थान साफ़-सुथरा, हवादार, शांत, मन को स करने वाला,
अ छा एवं दूषण मु वातारण होना चािहए।
योगा यास का थान समतल होना चािहए।
य द ब द कमरे म योगा यास कर रहे ह तो िखड़क एवं दरवाज़े खोल ल।

दशा
लेटकर कए जाने वाले आसन म पैर क दशा उ र या पूव हो तो अित
उ म रहती है।
खड़े होकर कए जाने वाले आसन म मुख पूव क तरफ़ हो तो िवशेष लाभ
ा होता है।
ाथना आ द करते समय उ र-पूव दशा का चयन कर, तो अितशी वा य
लाभ होता है।
दशा का मह व इसिलए भी है क इससे हमारी चेतना ऊ वमुखी होती है एवं
आ याि मक ऊजा के साथ-साथ कई लाभ वतः ा हो जाते ह।

दूि
ारं भ म ने बंद न कर। अ यास हो जाने के बाद ही ने को बंद रख, परं तु
मन को िनि य और चंचल न होने द।
ने बंद (योग िश क के आदेशानुसार) रहते ए भी आसन या के ित
मि त क क सजग रख।

अव था/आयु
योगासन के िलएआयु-सीमाकाकोईिनधारण नह है तथािप ि को अपनी
उ , अव था, अ यास आ द समझकर िववेक का उपयोग करना चािहए।

रोगी के िलए
योगासन से संबंिधत याएँ तो होती ही ह रोग को दूर कर वा य दान
करने के िलए परं तु रोगी उस आसन को न कर िजससे उनक पीड़ा अथवा रोग
क ती ता बढ़ती हो। जैसे - उ र चाप के रोगी शीषांसन या सवांगासन
आ द न कर।
' कस रोग म कौन सा आसन कर अथवा कौन सा आसन न कर ?’ वह अ याय
अव य देख। साथ ही, रोग क अव था म कसी यो य िश क के परामश के
प ात् ही आसन कर।

8यन
उसका सकारा मक चंतन कर क वह रोग ठीक हो रहा है।
अ यास काल म मन को चंता, ोध घबराहट, घृणा, ई यां, भय, अहंकार,
ितशोध क भावना आ द उ ग
े से पूणतः मु रख।

योग अ यास के दौरान िवशेष बात


योग क याएँ पूणतः िववेक का उपयोग करते ए ही कर।
पूण िव ास, धैय और सकारा मक िवचार रख।
मन म ई यां, ोध, जलन, ष
े एवं िख ता न रख।
नशीले पदाथ का सेवन एवं गंदी मानिसकता न रख।
य द कसी आसन के अ यास के दौरान परे शानी का अनुभव हो तो यो य गु
एवं िववेक का उपयोग कर।
आदत का याग कर।

योग करने वाले साधक को सभी सावधािनय एवं िनयम का पालन अव य करना
चािहए, अ यथा शरीर म कई कार के िवकार उ प हो सकते ह। जैसे हड़ी का िखसकना,
जोड़ म दद का बढ़ जाना, दय गित का कम या यादा होना, नािभ का सरकना, क ज़
होना या द त लगना, माँसपेिशय म दद होना, ास गित का अिनयंि त होना, थकान
महसूस करना आ द। साथ ही कई कार क शारी रक, मानिसक एवं आ थक हािन होने
क संभावना भी रहती है।
येक ि को अपने जीवन म योग साधना अपनानी
चािहए, परं तु उिचत है क साधक सव थम योगा यास से
संबंिधत सभी बात को भलीभाँित समझ ल और याि वत
कर। ऐसा करने से अिधक लाभ ा होता है।

-RJT

यह जानते ए क हमारा पेट हमारा है


उसके बाद भी ि पेट म कु छ भी डाल लेता है।
अथात् या खाना चािहए और या नह ,
इसक चंता नह करता। सोचने वाली बात है! –

RJT
A
यौिगक सू म ायाम

(सरल/ह क ायाम)
क बात हम अ छे से समान है क कई भी कम एकम से नह होता। इसके िलए
ए अ यास क ज़ रत पड़ती है। चाहे वह योगासन हो या कोई भी कसरत। सुबह
शरीर कड़ा (जकड़ा) रहता है, इस कारण आसन का अ यास आसानी से नह हो
पाता। इसके िलए हम शरीर ढीला (लचीला) करने एवं योगासन क तैयारी के िलए कु छ
सू म ायाम कर लेने चािहए िजससे आसन के अ यास म सरलता एवं कसी कार के
दु भाव न ह । वैसे योगाचाय के मतानुसार सू म ायाम सू म ाण का िनयिमत
िवकास करता है एवं नामानुसार शरीर को संतुिलत भी करता है।

चूँ क लगभग ये सभी आसन गितमय वायुिनरोधक (पवनमु ासन) एवं शि बंध समूह
के अंतगत आते ह अतः हमने इनक अलग से प रभाषा न देकर सू म ायाम म ही
सि मिलत कया है। साधकगण इनका योग कर मश: लाभ उठाएँ (लेखक ने कई जगह
योग क म जाकर देखा है क कह इ ह पवनमु ासन समूह तो कह सू म ायाम के
नाम से कराया जाता है)।

योगाचाय गु देव लचंद योगीराज ने उनके गु वामी धीरे चारी से ये यौिगक


सू म ायाम सीखे एवं उ ह ने मुझे इसक िश ा दान क । गु देव का कहना है क
वामी धीरे . हमेशा कहते थे क ये सू म ायाम जन-जन तक प च ँ े और वे
लाभाि वत हो। म गु देवका, वामी का तके य जी व वामी धीरे चारी का आभार
करता ।ँ

1. यौिगक ाथना
िविध : दोन पैर को िमलाकर (समाव था') हाथ जोड़कर अँगूठे को कठकू प पर थािपत
कर। भुजवि लय से व : थल को दबाएँ। ास सामा य रख मन एका होने पर हाथ को
ढीला छोड़, कम से कम आधा िमनट भगवान का यान कर। ास और मन एका कर।
लाभ : मन क एका ता बढ़ती है।
मानिसक शांित और आ म सा ा कार के िलए लाभकारी है।
मनोवहा नािड़य पर दबाव होने से मन का संयम होता है।
मानिसक रोग ठीक होते ह।

2. उ ारण थल व िवशुि च -शुि


िविध :समाव था' म खड़े ह । बाय हाथ क किनि का अनािमका म यमा और तजनी
चार को गले पर थािपत कर, करतल भाग अ दर क ओर रख दािहने हाथ क तजनी क
बाय पर उ टा थािपत कर, दोन हाथ को क ध के सीध म रख गदन को इसी अव था म
रखते ए हाथ को बाजू से पूव अव था म लाव। 25 बार सीने के बल ास ास कर,
या को समा कर यान िवशु च या कठ पर के ि त कर।
लाभ : क ठ क सम त नािड़याँ जहाँ वात, िप , कफ क मा ाएँ एकि त हो जाती है
इस या को करने से वे पेट म चली जाती है और श द का उ ारण प होने
लगता है।
हकलाना और तुतलाना जैसे िवकार ठीक होते है। कटु वर मधुर बनता है।
संगीत के िलए िवशेष लाभकारी है।
मि त क के िवकार ठीक होते ह।
िवचार शि क वृि होती है।

3. बुि तथा धृित शि िवकासक या


िविध : समाव था म खड़े ह । गदन को धीरे -धीरे ऊपर ले जाएं। ूम य (दोन भौह के
बीच) म देख, या को इस क पना के साथ क िजये जैसे दुबुि हटकर उनका िवकास हो
एवं वह ती खर हो, 25 बार ास ास सीने के बल कर। यान क िशखा म डल या
चोटी पर के ि त कर।
लाभम : िशखा मंडल के रोग दूर करने म सहायक है।
बुि िवकिसत होती है।
शारी रक व मानिसक मता बढ़ती है।
इ छा शि अथवा संक प शि का ादुभाव होता है।
म द बु ती होती है व िव ेषण शि बढ़ती है।

4. मरण शि िवकासक या
िविध : समाव था म खड़े रह। पैर के अंगूठे क सीध म नीचे क ओर अनुमानत: 41/2 फट
दूरी पर देख। या को इस क पना के साथ कर क िव मरण को दूर कर मरण शि ती
और खर कर रहे ह तथा इसका िवकास कर रहे ह। 25 बार सीने के बल ास ास कर।
यान को तालू थान पर रख।
लाभ : मि त क क थकान और िव मृित दूर होती है।
तालू थान से िशखा मंडल तक के अंग का िह सा कफ िवकार से मु होता है।
िवि अव था ठीक करने म सहायक है।
मानिसक शि ती बनती है।

5. मेधा शि िवकासक या
िविध : समाव था म खड़े रह। ठु ी क ठ म लगाय, ने बंद रख। 25 बार ास ास
सीने के बल कर। यान को गदन के पीछे गठीले थान पर (मेधा च ) के ि त कर। या
को समा कर पूव ि थित म आएं।

लाभ : क ठक ंिथय क शुि होती ह।


सह ार च से िनकलने वाला अमृत शरीर तथा मन को िवकिसत करने म
सहायक है।
शरीर से आल य, िन ा जैसे रोग ठीक होते ह और ऊजा शि ती बनाती है।
शरीर के कफ िवकार ठीक होते ह, िव मरण व बुि मंदता भी ठीक हो जाते ह।
साधक का शरीर फु त ला व आकषक बनता है।

6. ने शि िवकासक या

िविध : समाव था म खड़े रह। नाक के अ भाग को देखते ए गदन को धीरे -धीरे पीछे क
ओर ले जाय। टीका, िब दी, ितलक लगाने वाले थान को लगातार अपलक देखना है, आँसू
आने पर वैसे ही सूखने द, ास को सामा य रख धीरे -धीरे मूल ि थित म वापस आएं।
यान ने पर रख।

लाभ : ने क योित बढ़ती है, आँख म औाँसू आाना, कम दखाई देना आ द िवकार
न होते ह।
आकषण शि का ादुभाव होता है, साधक दूसरे ि को भािवत करने क
मता ा करता है।
ाटक या के िलए सहायक है। मन एका होकर िच शुि होती है।
इसके िनर तर अ यास का समय बढ़ाने से च मा छू ट सकता है।

7. कपोल शि िवकासक या

िविध : समाव था म खड़े रह। हाथ क अंगुिलय को पर पर िमलाय अंगूठे से नाक ब द


कर, गदन को ऊपर ले जाय। मुँह को कांक च च क तरह बनाय िजस तरह सीटी बजाते ह।
अब आठ अंक मन म िगनते ए मुँह से ास अंदर खीच तुर त मुख को बंद कर। गाल को
फु लाय। ने ब द रख ठु ी, क ठकू प से लगाएँ। 32 अंक तक मन म िगनते ए ास को
रोक त प ात गदन सीधी कर अँगूठा हटाकर सोलह अंक तक मन म िगनते ए नाक से
ास बाहर छोड़। ास रोकते समय किनि का सीने पर रख। दोन हाथ क कध के सीध
म रख या को तीन बार दोहराएँ।

लाभ : साधक दीघायु बनता है। यास शांत होती है। मुख के रोग दूर होते ह।
दाँत पु बनते ह और मुख क दुगध दूर होती है। मुख फु ि लत होकर गाल क
झु रयाँ, चेहरे के फोड़े, फु ि सयाँ ठीक होते ह। सौ दय साधन क आव यकता नह होती
है। िसर दद, ने दोष, पेट क गम , बाल का पकना, झड़ना आ द िवकार ठीक होते ह।

8. कण शि िवकासक या
िविध : समाव था म खड़े रह। हाथ के अँगूठे से कान ब द कर। तजनी से ने और म यमा
से नाक को ब द कर। या न. 7 के समान गदन को ऊपर ले जाएं आठ अंक तक मुँह म
ास भर गाल को फु लाय, ठु ी कठकू प म लगाय 32 अंक तक मन म िगनते ए ास को
रोके । दोन हाथ क कधी के सीध म ज़मीन के समाना तर रख। गदन को सीधा कर
म यमा अँगुिल हटाते ए नाक से 16 अंक म ास को बाहर छोड़। या तीन बार कर।

लाभ : कान का मैल, कान बहना, कम सुनाई देना आ द िवकार न होते ह।


कणर ध क शि जा त होती है और वे पु बनते ह। कान, नाक, आंख और मुंह ब द
करने से सुषु ा नाड़ी का माग शु होता है िजसके कारण िविवध कार के नाद ( विन)
सुनाई देते ह। ाणायाम के िलए िवशेष लाभकारी या है।

9. ीवा शि िवकासक या-1

िविध : भाग-क : समाव था म खड़े रह। ास ख चते ए गदन को बाएँ कधे क सीध म
ले जाएँ, िबना के गदन को दाई ओर लाएँ, ास छोड़ अब गदन दाएँ कधे क सीध म
रख। या को इसी तरह दस बार दोहराएँ।

भाग-ख : ास लेकर गदन क नीचे से ऊपर क ओर ले जाएं। ऊपर क ओर देख, ास


छोड़कर गदन को नीचे क ओर वापस लाएं।

लाभ : ीवा के सम त दोष दूर होते ह। गदन का मोटापा कम होता है टाि स स,


क ठमाला आ द रोग ठीक होते ह। वर मधुर व सुरीला बनता है। हकलाहट और
तुतलापन जैसे िवकार ठीक होते ह। गदन पु और मजबूत बनती है।

10. ीवा शि िवकासक या-2

िविध : समाव था म खड़े रह। ठु ी क ठकू प म लगाय। आँख ब द न कर। ास ख चकर


रोक, िसर को बाएँ क धे क ओर से च ाकर घुमाते ए सामने लाएँ, ास छोड़, पुनः
ास भर। च ाकर म दाईओर से बाई ओर िसर वापस लाय। पूण च होने पर ास
छोड़। यास कर क दोन समय गदन को इतना झुकाएँ क कान, कधे से पश करने लगे।
कधी को उठाएँ। या को तीन बार कर।

लाभ : ीवा के सम त दोष दूर होते ह। गदन का मोटापा कम होता है टाि स स,


क ठमाला आ द रोग ठीक होते ह। वर मधुर व सुरीला बनता है। हकलाहट और
तुतलापन जैसे िवकार ठीक होते ह। गदन पु और मजबूत बनती है।

11. ीवा शि िवकासक या-3


िविध : समाव था म खड़े रह। ास छोड़कर पेट िपचकाय, फर ास ख चकर पेट फु लाते
ए गले क नसे तान। या को 10 बार कर।

लाभ : ीवा के सम त दोष दूर होते ह। गदन का मोटापा कम होता है। टाि स स,
क ठमाला आ द रोग ठीक होते ह। वर मधुर व सुरीला बनता है। हकलाहट और
तुतलापन जैसे िवकार ठीक होते ह। गदन पु और मजबूत बनती है।

12. कध तथा बा मूल शि िवकासक या

िविध : समाव था म खड़े रह। अँगूठा िछपाकर मु ी ब द कर व मु ी का पृ भाग सामने


क ओर रख या न. सात और आठ क तरह गदन को ऊपर ले जाय, काकच च बनाय
आठ अंक मन म िगनने तक मुँह से ास को अ दर खीच। मुँह को ब द करके गाल को
फु लाएँ, ठु ी क ठ म लगाएँ, आँख को ब द रख। 32 अंक मन म िगनते ए क ध को
ताकत के साथ नीचे ऊपर घुमाएँ हाथ को कड़ा रख। कोहनी से हाथ को न मोड़। गदन को
सीधा कर 16 अंक मन म िगनते ए नाक से ास को बाहर छोड़। क ध को िहलाना ब द
कर। या तीन बार दोहराएँ।

लाभ : क ध क हि याँ और माँसपेिशयाँ शि शाली बनती है। क धे सुडौल व सु दर


बनते ह। क ध का दद िमटता है। गदन के िवकार ठीक होते ह।

13. भुजबंध शि िवकासक या

िविध : समाव था म ख़डे रह। अँगूठा िछपाकर मु ी ब द कर। कोिहनी से हाथ को मोड़कर
कोहनी तक का िह सा जमीन के समानांतर रख। ास ख चकर हाथ क क ध के सामने
लाएं मुटठी का पृ भाग सामने रख ास छोड़कर हाथ को पूव ि थित म लाएँ। या को
5 से 10 बार दोहराएँ।

लाभ : भुजा व क ध का दद िमटता है। भुजबंध पु बनते ह। भुजाएँ थूल बनती ह।


आर क व सैिनक के िलए लाभकारी है।

14. कोहनी ि िवकासक या

भाग-ख : हाथ क मु याँ खोल। अँगुिलयाँ सटाएँ। करतल भाग आगे व करपृ भाग पीछे
रख। कोिहिनयाँ कमर से सटाएँ। भाग-क के समान इस िविध को दस बार दोहराएँ।

लाभ : कोहनी का दद िमटता है।


हि य के जोड़ पु बनते ह।
कोहिनयाँ सु दर व आकषक बनती ह।

15. भुजबि ल शि िवकासक या

िविध : समाव था म खड़े रह।

भाग-क : ास लेते ए बाएँ हाथ को बाजू से क धे के ऊपर ले जाएँ, भुजबंध को कान से


पश कराएँ। हथेली बाहर क ओर । रख, ास छोड़ते ए पूव ि थित म लाएँ, या 10
बार कर।

भाग-ख : ास ख चकर दाएँ हाथ को बाजू से क धे के ऊपर ले जाय, भुजबंध कान से


पश कर, हथेली का तल भाग बाहर क ओर रख। ास छोड़कर पुन: पूव ि थित म आ
जाएं। या 10 बार कर।

भाग-ग : ास लेते ए दोन हाथ को ऊपर क ओर ले जाएं। भुजबंध कान से पश कर।


ास छोड़ते ए पुनः पूव क ि थित म आएँ। या 10 बार कर।

लाभ : भुजाएँ पु व बलशाली बनती ह।


कोहनी से कलाई का िह सा संतुिलत होकर उसके दद िमटते ह।
भुजबि लयाँ शि शाली बनकर काय करने क मता बढ़ाती ह।

महान योगी कोई अलग योग याएँ नह करते, बि क


वे हर या को सकारा मक नज़ रए से करते ह।

-RT

16.पूण भुजा शि िवकासक या

िविध: समाव था म खड़े रह।


भाग-क: अँगूठा िछपाकर बाई मु ी ब द कर, हाथ को क धे के सामने ज़मीन के समानांतर
फै लाय, हाथ को कड़ा कर ास ख चकर रोक, हाथ को च ाकार म दस बार
ऊपर से नीचे घुमाएँ, कोहनी से हाथ को मोड़कर कमर से सटाएँ, ास छोड़ते
ए हाथ को सामने फक।
भाग-ख: भाग क के समान बाएँ हाथ को नीचे से ऊपर दस बार घुमाएँ, कोहनी से हाथ को
मोड़कर कमर से सटाएँ, ास छोड़ते ए हाथ क समाने फके ।
भाग-ग: अँगूठा िछपाकर दाएँ हाथ क मु ी ब द कर, क धे के सामने हाथ को ज़मीन से
समानांतर फै लाएँ, ास ख चकर रोक, दाएँ हाथ को च ाकार दस बार ऊपर
से नीचे घुमाएँ, कोहनी से हाथ मोड़कर कमर से सटाएँ, ास छोड़ते ए हाथ
सामने फक। अब या समा कर।
भाग-घ: भाग ग के समान िविध को दोन हाथ नीचे से ऊपर घुमाते ए दस बार कर।
भाग-च: अंगूठा िछपाकर मु ी ब द कर, दोन हाथ को क ध के सामने ज़मीन से
समाना तर फै लाएँ, िविध को दस बार भाग क व ग के समान ऊपर से नीचे
घुमाकर पूरा कर।
लाभ: शरीर के वायु िवकार ठीक होते ह।
हाथ क नस नािड़याँ व जोड़ का दद िमटता है।
हाथ क स दय वृि होती है। भुजाय शि शाली व पु बनती ह।
कं धे मज़बूत होते ह।

17. मिणबंध शि िवकासक या

िविध: समाव था म खड़े रह।


भाग-क: अँगूठा िछपाकर मु याँ ब द कर, दोन हाथ को क धे के सामने ज़मीन से
समाना तर फै लाएँ, हाथ म क ध के बराबर अ तर रख, करतल भाग नीचे क
ओर रख, ास को ख चते ए कलाई को ताकत के साथ धीरे -धीरे नीचे से
ऊपर ले जाएँ, ास छोड़कर कलाई को ऊपर से नीचे क ओर लाएँ, िविध को
पांच बार दोहराएँ।
भाग-ख: कोहनी से हाथ को मोड़कर सीने के सामने ज़मीन के समानांतर फै लाएँ। अँगूठा
िछपाकर मु ठठयाँ ब द कर, शेष या भाग-क के समान ही रहेगी।
लाभ: इन सम त या के करने से कलाई, करपृ , करतल एवं अँगुिलयाँ पु बनती ह
और उनके िवकास ठीक होते ह। हथेिलयाँ शि शाली बनती ह इन या के
करने से मनोनहा नािड़याँ भािवत होती ह िजनसे शरीर और मन एका
होकर अ याि मक उ ित होती है, हाथ का कं पन ठीक होता है, जोड़ का दद
िमटता है, टंकण य पर काय करने वाले साधक लाभाि वत होते ह।

18. कर पृ शि िवकासक या

भाग-क : समाव था म खड़े रह। हाथ क मु याँ खोलकर अँगुिलयाँ सटाते ए दोन हाथ
को क धे के सामने ज़मीन के समाना तर फै लाएँ, ास लेते ए हथेली को
ताकत के साथ धीरे -धीरे नीचे से ऊपर ले जाएँ। ास को छोड़कर हथेली को
धीरे -धीरे ऊपर से नीचे लाएं, या पाँच बार दोहराएँ।
भाग-ख : कोहनी से हाथ को मोड़कर सीने के सामने ज़मीन के समानांतर फै लाएँ, करतल
भाग नीचे रख शेष िविध को भाग क के समान पाँच बार दोहराएँ।

अ ांगयोग से शारी रक व मानिसक रोग ही दूर नह


होते, बि क पा रवा रक व सामािजक संबंध म सुधार
के साथ शांित व आनंद क ाि भी होती है।

-RJT

19. करतल शि िवकासक या


भाग-क :समाव था म खड़े रह। दोन हाथ क अंगुिलयाँ फै लाकर क ध के सामने हाथ
क ज़मीन से समानांतर रख करतल भाग नीचे क ओर हो, ास को लेते ए
हथेली को ताकत के साथ धीरे -धीरे नीचे से ऊपर ताने। ास को छोड़कर
हथेली को ताकत के साथ ऊपर से नीचे लाएँ, िविध को पाँच बार दोहराएँ।
भाग-ख: दोन हाथ को कोहनी से मोड़कर अँगुिलयाँ फै लाते ए सीने के सामने ज़मीन से
समाना तर रख, करतल भाग ज़मीन क ओर रख, शेष िविध भाग-क के समान
पाँच बार दोहराएँ।

योग से उददे य पूण जीवन का िनमाण होता है


एवं जीवन को नई दशा िमलती है।

-RJT

20. अँगुली मूल शि िवकासक या


िविध : समाव था म खड़े रह। दोन हाथ क कलाई तक के िह से को कड़ा रखते ए
क ध को ज़मीन के सामने समाना तर फै लाएँ। हथेली को ढीला छोड़। करतल भाग ज़मीन
क ओर रख। ास सामा य रखते ए अंगुिलय को शि के साथ 10-15 बार आगे-पीछे
िहलाएँ।

21. अँगुली शि िवकासक या

िविध : भाग-क : दोन हाथ के पंज को फै लाते ए क ध के सामने ज़मीन को समाना तर


तान। ास को सामा य रखकर 10-15 बार अंगुिलय के अ भाग क शि के साथ ऊपर
से नीचे मोड़।

भाग-ख : कोहनी से हाथ को मोड़कर सीने के सामने ज़मीन से समाना तर तान। भाग–क
को समान पंजो को फै लाएँ। 10-15 बार िविध को पूरा कर।

लाभ : या न. 17 से 21 तक या के लाभ - इन सम त या को करने से कलाई,


करपृ , करतल एवं अंगुिलयाँ पु बनती ह और उनका ठीक से िवकास होता है। हथेिलयाँ
शि शाली बनती ह। इन या को करने से मनोनहा नािड़याँ भािवत होती ह, िजनसे
शरीर और मन एका होकर अ याि मक उ ित होती है। हाथ का कं पन ठीक होता है,
जोड़ का दद िमटता है, टंकण य (क यूटर) पर काय करने वाले साधक लाभाि वत
होते ह।

22. व ः थल शि िवकासक या-1

िविध : समाव था म खड़े रह। करतल भाग अ दर क ओर रखते ए हाथ को जंघा के


सामने पर थािपत कर। ास लेकर दोन हाथ को ऊपर ले जाएँ। हाथ के म य िसर को
रख और ऊपर क ओर देख। व : थल को पूण प से पीछे झुकाकर उसी अव था म कु छ
देर क। फर ास छोड़ते ए धीरे -धीरे पहली अव था म आ जाएँ, यह या तीन बार
कर।

23. व ः थल शि िवकासक या-2

िविध : समाव था म खड़े रह। हाथ को जंघा के बाजू म रख। ास को अ दर लेते ए


दोन हाथ को बाजू से पीछे क ओर पीठ क तरफ़ तान। ऊपर क ओर देख। सीना फु लाएँ।
ास छोड़कर पूव अव था म आएँ। इस िविध को तीन बार कर।

दोन के लाभ : फे फड़े पु होकर उनके रोग न होते ह। दय रोग दूर होता है। टी.बी.,
दमा, कफ़, खाँसी आ द रोग न होते ह। रीढ़ क ह ी का टेढ़ापन दूर होता है। सीना चौड़ा
व पु बनता है।

24. उदर शि िवकासक (अजगरी) या–1

िविध : समाव था म खड़े रह। ास को बाहर िनकालकर पेट को िपचकाते ए पीठ क


ओर ले जाएँ। ास को यथाशि रोक। ास को अ दर ख चते ए पेट फु लाएँ। ास को
यथाशि (आंत रक कु भक) रोक। यह या तीन बार कर।

25. उदर शि िवकासक या-2


िविध : समाव था म खड़े रह। सू म ायाम क या मांक-2 के समान बाई हथेली को
अँगूठा छोड़कर शेष अँगुिलय को गले पर थािपत कर। दािहने हाथ क तजनी बाएँ हाथ
पर उ टी टकाएँ। गदन को इसी अव था म रखते ए दोन हाथ को बाजू से नीचे लाएँ
(अथात् गदन को थोड़ा सा लगभग आधा अंगुल ऊपर उठाएँ)। ास बाहर िनकालकर पेट
िपचकाएँ। ास को अ दर लेकर पेट को फु लाएँ। यान को पेट पर के ि त कर और िबना
के ए ज दी-ज दी यह या प ीस बार कर।

26. उदर शि िवकासक या-3

िविध : समाव था म खड़े रह। सू म ायाम क या मांक-3 के समान गदन को धीरे -


धीरे ऊपर ले जाएँ। ूम य म देख और ास छोड़ते ए पेट िपचकाएँ। प ीस बार ज दी-
ज दी कर।
27. उदर शि िवकासक या-4

िविध : समाव था म खड़े रह। या मांक-4 के समान पैर के अँगूठे से अनुमानतः साढे
चार फ़ट क दूरी पर सामने देख। ास छोड़कर पेट िपचकाएँ। ास ख चकर पेट को
फु लाएँ। िबना के ए इस या को प ीस बार कर।

योग से जीवन जीने क कला का िवकास होता है।

-RJT

28. उदर शि िवकासक या-5 कु भक


िविध : समाव था म खड़े रह। या मांक-7 से 12 के समान गदन को धीरे -धीरे ऊपर ले
जाएँ। काकचौच बनाकर आठ अंक मन म िगन। मुँह से ास अ दर लेते ए मुँह को ब द
कर तुर त गाल को फु लाएँ और ठु ी क ठ कू प से लगाएँ। 32 अंक तक ास को अ दर
रोक त प ात् गदन सीधी करते ए 16 अंक पर नाक से ास बाहर िनकाल। यह या
एक बार कर।

29. उदर शि िवकासक या-6

िविध : समाव था म खड़े रह। अंगूठा पेट क ओर रखते ए दोन हाथ को कमर पर
थािपत कर, 60° के कोण पर झुक। सामने देख और ास छोड़कर पेट िपचकाएँ। ास
ख चकर पेट फु लाएँ, यह या 25 बार कर।
वह सुख जो कभी समा न हो उसके िलए के वल
िन वक प यान ही कायका रणी है।

30. उदर शि िवकासक या–7

िविध : समाव था म खड़े रह। अँगूठा पेट क ओर रखकर दोन हाथ को कमर पर
थािपत कर। 90° के कोण पर आगे झुक। सामने देख ास छोड़कर पेट को िपचकाएँ।
ास को ख चकर पेट को फु लाएँ। यह या 25 बार कर।

31. उदर शि िवकासक या–8

िविध : समाव था म खड़े रह। अंगूठा पेट क ओर रखते ए दोन हाथ को कमर पर
थािपत कर। 60° कोण पर आगे झुक और सामने देख। ास छोड़कर बा कु भक कर
आंत रक शि से अपने पेट को ज दी-ज दी िहलाएँ। इस या को यथाशि कर।

32. उदर शि िवकासक या–9

िविध : समाव था म खड़े रह। अँगूठा पेट क ओर रखकर दोन हाथ क कमर पर
थािपत कर। 90° के कोण पर आगे झुकते ए सामने देख। ास को बाहर िनकाल, बा
कु भक कर खाली पेट को आंत रक शि से आगे-पीछे िहलाएँ। इस या को एक बार
यथाशि कर।

33. उदर शि िवकासक या–10 (नौली)

िविध : दोन पैर के बीच एक हाथ का अ तर रखकर खड़े हो जाएँ। दोन हाथ को सामने
झुककर घुटने पर थािपत कर।

1. म य नौली - नाक से ास को बाहर िनकालकर पेट को खाली कर। आंत रक शि से


खाली पेट को आगे-पीछे िहलाएँ। पेट को आ त रक बल से अ दर िपचकाते ए म य नौली
िनकाल। बाएँ हाथ से बाएँ घुटने पर दबाव डालकर बाई नौली िनकाल। इसी कार दाएँ
हाथ से दाएँ घुटने पर दबाव डालते ए दाई नौली िनकाल। ास लेने क इ छा होने पर
पेट िहलाना बंद कर। इस िविध क तीन बार कर।
2. वाम नौली - पुनः ास को बाहर िनकाल एवं पेट को खाली कर। आंत रक शि से
खाली पेट को दािहने घुटने को कं िचत दबाते ए बाएँ से दाएँ यथाशि घुमाएँ। ास
लेने क इ छा होने पर या को ब द कर। इसे वाम नौली कहते ह।

3. दि ण नौली- ास बाहर िनकालकर पेट को खाली कर। बाएँ घुटने को कं िचत दबाते
ए आंत रक शि से खाली पेट को दाएँ से बाएँ घुमाएँ, ास लेने क इ छा पर या
समा कर। इस िविध को दि ण नौली कहते ह।

या न. 24 से 33 तक क या के लाभ

1. पेट के सम त िवकार दूर होते ह।


2. पेट के सम त अंग शि शाली बनते ह।
3. पेट म जमी चब कम होती है।
4. अ याि मक शि का िवकास होता है।
5. साधक दीघ आयु वाला बनता है।
6. कु डली जागरण म सहायक है।
7. पाचन सं थान अपना काय ती गित से करने लगता है।
8. नािभ के को ठीक रखने म सहायक है। .
9. र का संचार भली-भाँित होने लगता है।
10. शरीर क सम त नािड़याँ शु होती ह।

34. क ट शि िवकासक या-2

िविध : भाग-क : समाव था म खड़े रह। दोन हाथ को पीछे ले जाएँ, दािहने हाथ से बाई
कलाई को पकड़। अंगूठा िछपाकर बाई मु ी बंद कर, ास अंदर लेते ए गदन, कमर को
यथाशि पीछे ले जाएँ। ऊपर देखते ए पीछे झुक। ास को छोड़कर िसर, गदन, कमर
को सीधा कर एवं सामने क तरफ़ झुकते ए िसर को घुटने तक लाने का यास कर। इस
या को तीन बार कर।
भाग-ख : बाएँ हाथ से दाएँ हाथ क कलाई पकड़ और अँगूठा िछपाकर दािहनी मु ी
ब द कर। शेष या भाग-क के समान तीन बार कर।

35. क ट शि िवकासक या-2

िविध : समाव था म खड़े रह। दोन पैर को यथाशि फै लाएँ। अँगूठा पेट क तरफ़ रखते
ए हाथ को कमर पर थािपत कर। ास अ दर लेते ए गदन व कमर को अिधक से
अिधक पीछे झुकाएँ। ऊपर देखते ए ास को छोड़कर िसर को अिधक से अिधक नीचे
लाएँ। यह या तीन बार कर। तीसरी बार या करते समय दोन हाथ क ज़मीन पर
रख और िसर क ज़मीन पर टकाने का यास कर। िसर टकाकर हाथ को कमर पर रख
और यथाशि क। त प ात् हाथ के सहारे उछलकर पूव ि थित म आएँ।

36. क ट शि िवकासक या-3

िविध : दोन पैर म चार अंगुल का अ तर रखते ए खड़े ह । करतल भाग अ दर रखते
ए जंघा से सटाएँ। ास छोड़ते ए गदन, कमर को अिधक से अिधक पीछे क ओर
झुकाएँ। ऊपर देख, ास को छोड़कर िसर को शरीर का भार सँभालते ए घुटने तक लाने
का यास कर। ने खुले रख, हाथ को पीठ क ओर तान। इस या को ज दी-ज दी 10
बार कर।

37. क ट शि िवकासक या-4


िविध : भाग–क : समाव था म खड़े रह। दोन हाथ को कध के बाजू से ज़मीन के
समाना तर फै लाएँ। हथेली ज़मीन क ओर रख। अँगुिलयाँ सटाएँ, ास को अ दर भरते
ए बाई ओर 30° के कोण पर झुकाएँ। दाएँ हाथ को 150° ऊपर तान। इस कार दोन
हाथ को एक रे खा म रख, साथ-साथ गदन, कमर को भी झुकाएँ। ास को बाहर
िनकालते ए पूव ि थित म आ जाएँ। पुनः ास ख चते ए गदन व कमर के साथ दाएँ
हाथ को 30° के कोण पर नीचे क ओर झुकाएँ। बाएँ हाथ को 150° पर ऊपर तान। दोन
हाथ एक सीधी रे खा म रख, ास छोड़कर पूव ि थित म आ जाएँ। यह या 10 बार कर।

भाग-ख : दोन पैर म एक हाथ का अ तर रखकर सीधे खड़े हो जाएँ। भाग क के समान
या 10 बार पूरी कर।

38. क ट शि िवकासक या-5


िविध : दोन पैर म 1 फ़ ट का अंतर रखकर खड़े हो जाएँ। ास लेते ए िसफ़ कमर के
ऊपरी भाग को हाथ के साथ अध चं ाकार घुमाएँ (दािहनी तरफ़)। ास छोड़ते ए
मूलाव था म आएँ। अब यही या बाई तरफ़ कर। यह या 5-6 बार क जा सकती है।

लाभ : या मांक-34 से 38 तक क या के अ यास से कमर सु दर, सुडौल और


पतली होती है तथा पु बनती है। कमर के दद िमटते ह। कमर लचीली बनकर नृ य
कलाकार के िलए उपयोगी होती है। शरीर काि तयु और फु त ला बनता है। उ के थम
20 वष तक साधक क ल बाई बढ़ती है।

39. मूलाधार च शुि या

िविध : भाग-क : समाव था म खड़े रह। ास को बाहर िनकाल, पेट खाली करके मल ार
को आंत रक शि से नािभ क ओर ख च। शरीर म कं पन होने पर या समा कर। यह
या एक बार कर।

भाग-ख : ि थित दोन पैर म चार अंगुल का अ तर रखकर खड़े ह । भाग-क के समान
या को एक बार म पूरा कर।

लाभ : ाण अपान वायु एक होने से कु डली जागरण म सहायक है। शरीर ह का बनता
है। मि त क म ताज़गी क अनुभूित होती है। शरीर शि स प बनता है। क़ि ज़यत दूर
होती है। बवासीर क बीमारी िमटती है। शरीर फु त ला और दीघायु बनता है।

40. उप थ तथा वािध ान च शुि


िविध : दोन पैर म एक हाथ का अ तर रखकर सीधे खड़े हो जाएँ। ास को अ दर
ख चकर मू ेि य और मल ार को एक साथ यथाशि नािभ क ओर खीच। पैर के कं पन
होने पर या समा कर। यह या एक बार कर।

लाभ : मू ाशय तथा गुदा के रोग ठीक होते ह। मधुमेह, भग दर, बवासीर जैसे रोग ठीक
होते ह। मिहला के िलए िवशेष लाभकारी है, गभाशय संबंधी रोग ठीक होते ह। चय
के पालन म सहायक है। व दोष दूर होते ह।

41. कु डिलनी शि िवकासक या


िविध : समाव था म खड़े रह। ास ख चते ए बाएँ पैर क एड़ी को उठाकर िनत ब पर
ठ क। ास छोड़कर पैर को पूव ि थित म लाएँ। पुनः ास ख चकर दाएँ पैर क एड़ी से
िनत ब पर ठ क। ास छोड़कर दाएँ पैर को पूव ि थित म लाएँ। यह या 10 बार कर।

लाभ : कु डली जागरण म सहायक है। शरीर पु व फु त ला बनता है। ान का स वधन


होता है। चय और मो ाि म सहायक है।

42. जंघा शि िवकासक या-1


िविध : भाग-क : समाव था म खड़े रह। ास को अ दर ख चते ए कू दकर दोन पैर को
बाजू म फे क। दोन हाथ को क धे के बाजू से िसर के ऊपर ले जाएँ। ास छोड़कर दोन
पैर को हाथ के साथ कू दकर पूव ि थित म लाएँ। यह या 10 बार कर।

भाग-ख : ास को छोड़कर कू दते ए दोन पैर को जंघा के बाजू म फे क। दोन हाथ


को क ध के बाजू से िसर के ऊपर ले जाएँ। हथेली बाहर क ओर रख। ास को छोड़कर
कू दते ए हाथ और पैर को पूव ि थित म ले आएँ। इस या को 10 बार कर।

43. जांघा शि िवकासक या-2

िविध : भाग-क : समाव था म खड़े रह। दोन हाथ को ज़मीन से समाना तर क ध के


सामने फै लाएँ। हथेिलयाँ ज़मीन क ओर रख। ास ख चकर (ख चते ए) दोन घुटने
िमलाकर कु स के समान बैठ। ास को छोड़कर पूव ि थित म खड़े हो जाएँ। यह या
तीन बार कर।

भाग-ख : दोन हाथ क कध के बाजू म ज़मीन के समाना तर फै लाएँ। ास को ख चकर


पंज पर खड़े होते ए घुटने फै लाकर कु स नुमा नीचे बैठ। ास छोड़कर पूव ि थित म आ
जाएँ। यह या तीन बार कर।

लाभ : जंघाएँ शि शाली, सु दर, सुडौल बनती ह। घुटन का दद िमटता है।

44. जानु शि िवकासक या


िविध : समाव था म खड़े रह। ास ख चते ए बाएँ पैर क एड़ी को ऊपर उठाकर
िनत ब से पश कर। ास छोड़कर पैर को जैसे फु टबॉल म कक मारते ह, वैसे सामने फे क।
इसी िविध क दािहने पैर से भी कर। यह या 10 बार कर।

लाभ : जोड़ का दद िमटता है। ग ठया क बीमारी ठीक होती है। कु डिलनी जागरण म
सहायक ह। िखलािड़य के िलए उपयु है। घुटने सु दर सुडौल होते ह।

45. पंडली शि िवकासक या

िविध : समाव था म खड़े रह। अंगूठा मु ी के अ दर कर, दोन हाथ को ज़मीन से


समानांतर कध के सामने फै लाएँ, करतल भाग एक-दूसरे के सामने रख। ास लेकर घुटने
िमलाते ए बैठक लगाएँ। एिड़य को ज़मीन पर टकाकर रख। ास छोड़कर खड़े होने के
पूव दोन हाथ क कध के सामने से च ाकार म घुमाते ए सीने के पास लाएँ। हाथ को
त प ात् नीचे कर और पूव ि थित म आ जाएँ। इस या को पाँच बार कर।

लाभ : पैर का दद िमटता है। घुटने व जंघाएँ पु बनते ह। चय त म सहायक है। पैर
क अँगुिलय का दद िमटता है।

46. पादमूल शि िवकासक या

िविध : भाग-क : समाव था म खड़े रह। एिड़याँ उठाकर पंज पर खड़े ह । अपने थान पर
10-15 बार धीरे -धीरे उछल। पंज क ज़मीन पर टकाकर रख।

भाग-ख : ास को सामा य रखते ए अपने थान पर पंजो के बल पर ऊपर-नीचे 10-15


बार कू द।

47. गु फ, पादतल, पादपृ शि िवकासक या


िविध : भाग-क : समाव था म खड़े रह। बाएँ पैर को ज़मीन से सामने क ओर लगभग 9"
ऊपर उठाकर तान। पंजे से 'शू य' को बनाएँ और िमटाएँ ास को सामा य रखते ए इस
या को तीन बार कर।

भाग-ख : बाएँ पैर को पीछे क ओर तान। ज़मीन से लगभग 9" ऊपर उठाकर तान। पंजे से
'शू य' को बनाएँ और िमटाएँ। ास को सामा य रखते ए या को तीन बार कर।

भाग-ग : भाग-क के समान दाएँ पंजे से तीन बार या को पूरा कर। भाग-घ : दाएँ पैर
क ज़मीन से लगभग 9" पीछे उठाकर तान, भाग-ख के समान या तीन बार कर।

लाभ : पैर क अँगुिलय , पंजे, पैर का पृ भाग और तलव का दद िमटता है। पैर सु दर
सुडौल बनते ह। मोच को दूर करने के िलए उपयु है। अिधक चलने या दौड़ने से आई
थकावट दूर होती है।

48. पादांगुिल शि िवकासक या


िविध : समाव था म खड़े रह। दोन हाथ क सहायता से पैर के पंज क अँगुिलय को
उ टा कर आपस म जोड़, ास को सामा य रख, अंगुिलय के बल कू दकर सीधे खड़े हो
जाएँ, या एक बार म पूरी कर।

लाभ : पैर क अंगुिलय को िवशेष बल ा होता है, पंजे व अंगुिलय का दद िमटता है।
चलने दौड़ने से होने वाली थकान दूर होती है। अँगुिलयाँ व पैर के पंजे लचीले होते ह तथा
उनका दद भी िमट जाता है।

योग से जीवन म नई उपल धता ा होती है।

-RJT

* समाव था का अथ है दोन पैर को िमलाकर खड़े होकर सामने क ओर देख। एड़ी पंजे िमलाकर हाथ को जंघा से
सटाएँ। करतल भाग अंदर क तरफ़ रख। पैर से कं ध तक का िवभाग सरलता से सीधा रख। इस अव था को समाव था
कहते ह।
यौिगक थूल ायाम
यौिगक थूल ायाम
ब हम यहाँ यौिगक थूल ायाम क चचा कर योग िलखगे। योग एक ब त वृहद
अ िवषय है और यह अना दकाल से चला आ रहा है। उदाहरण के तौर पर हम यहाँ पर
थोड़ी सी चचा कर क जैसे आयुवद म कसी भी एक औषिध क अपनी एक तासीर
होती है, अपना एक गुण होता है और वही औषिध मौसम के अनुसार, गम या ठं डा या
पीसकर ल तो वह अपना एक अलग भाव दखाती है। य द उसम दो-तीन कार क
औषिधयाँ और िमला दी जाएँ, तो उसका असर और भी अिधक हो जाता है। इसी कार
योग से संबंिधत कोई भी एक या य द हम वि थत तरीके से कर, तो हम उसका लाभ
दोगुना िमलता है। य द उसके साथ कु छ और या कर ली जाएँ (गु िनदशानुसार कर),
तो हम अपने शरीर को िनरोगी तो बना ही लगे, साथ म अपने शरीर का कायाक प भी
कर सकते ह। अपने शरीर को एक घंटा दीिजए, ताउ रोग से छु टकारा पा जाइए। कोई
भी योग हो, य द हम मानुसार एवं कसी योग गु के सािन य म कर, तो हम आशा से
अिधक लाभ होगा। योग शरीर को सश , सुंदर, िनरोगी एवं सुडौल बनाने का साधन है।
य द इसम तिनक भी संदह े होता, तो इसका िवलोप हो गया होता। योग बोलने क व तु
नह , योग करने का नाम है। पूरी दुिनया म आज करोड़ लोग योग से लाभ उठाकर
अपना जीवन सफल कर रहे ह।

थूल ायाम का समावेश य द योग के साथ कया जाता है तो साधना का प रणाम


अ प समय म ही प रलि त होने लगता है। इं जन दौड़ या ऊ व गित क याएँ य द हम
दो तीन िमनट ित- दन करते ह तो मोटापा एवं दय रोग क बीमा रयाँ नह हो सकती।
सू म ायाम से जहाँ सू म अंग का ायाम होता है, वही थूल ायाम क पाँच
याएँ एक साथ पूरे शरीर को लाभाि वत करती ह।

1. रे खा गित
िविध : भाग-1 : समाव था म खड़े रह। ास को ख चकर बाएँ पैर क एड़ी को ऊपर
उठाकर बाजू से अध च ाकार ले जाते ए दािहने पैर के अँगूठे के आगे रख, ास को छोड़े।
ास को ख चकर दािहने पैर क एड़ी को ऊपर उठाकर बाजू से अध च ाकार घुमाते ए
बाएँ पैर के अँगूठे के आगे रख। ास छोड़। इस कार सामने देखते ए दस क़दम आगे
चल। भाग-2 : ास को ख चकर दािहने पैर क एड़ी को ऊपर उठाकर दाई ओर अध
च ाकार म पीछे क ओर दाएँ अँगूठे को बाई एड़ी के पीछे रख। ास छोड़ एवं पुनः ास
ख चकर बाएँ पैर (एड़ी) को ऊपर उठाकर बाई ओर अध च ाकार घुमाते ए बाएँ अँगूठे
को दाएँ पैर क एड़ी के पीछे रख। इस कार 10 क़दम पीछे चल। चलते समय सामने देख।

लाभ : इसके अ यास से मन एका होता है। मरण शि का िवकास सुचा प


से होता है। हमारे जीवन को ि थरता दान करता है।

2. दय गित (इं जन दौड़)


िविध : समाव था म खड़े रह। अँगूठा िछपाकर मु याँ ब द कर। कोहिनयाँ कमर से
सटाएँ। बाएँ हाथ को कोिहनी से मोड़ कर ज़मीन के समाना तर कमर से सटाएँ और दाएँ
हाथ को कोहनी से सीधा रखकर ज़मीन के समाना तर समाने क ओर फै लाएँ। मु ी का
भाग एक-दूसरे के सामने रख। ास को लेकर बाएँ पैर को घुटने तक 90° के कोण पर
उठाएँ। दाएँ हाथ को सामने कर। ास को छोड़। तुर त ास लेकर दायाँ पैर घुटने से
मोड़कर 90° के कोण तक उठाएँ। बाएँ हाथ को सामने कर। ास को छोड़कर दािहना पैर
और बाएँ हाथ पूव ि थित म लाएँ। या को इस कार 8-10 बार करने के प ात् ास-
ास के साथ ज दी-ज दी अपने थान पर दौड़। थकान आने पर या समा कर।

लाभ : हाथ व पैर का दद िमटता है व शरीर का मोटापा भी कम होता है। सीना जंघाएँ
और पंडिलयाँ पु होती ह तथा उनका दद िमटता है। दौड़ लगाने वाले साधक के िलए
िवशेष लाभकारी है। शरीर फु त ला और शि शाली बनता है।

3. उ कू दन (ज पंग)
िविध : समाव था म खड़े रह। अँगूठा छु पाकर दोन हाथ क मु याँ बंद कर। दोन हाथ
को क ध के सामने जमीन से समाना तर फै लाएँ। हथेली एक-दूसरे के सामने रख। ास
को लेकर दोन हाथ को सामने से च ाकार म घुमाते ए कोहनी से मोड़कर कमर से
सटाएँ। हाथ को जमीन से समाना तर रख। ास को छोड़ फर ास को अ दर लेते ए
उछलकर दोन एिड़य से िनत ब को ठोक। ास छोड़ते ए हाथ को क धे के सामने
फै लाएँ और पैर को ज़मीन पर टकाएँ। इस या को पाँच बार कर।

लाभ : उ के थम 20 वष तक साधक क ल बाई बढ़ती है। कु डली जागरण म सहायक


ह, हाथ और पैर पु बनते ह तथा उनका दद िमटता है। िनत ब व जंघाएँ सुडौल बनती ह।
सीना चौड़ा और पु बनता है। फे फड़ के रोग न होते ह।

4. ऊ वगित
िविध : समाव था म खड़े रह। दोन हाथ को कोहनी से ऊपर क ओर मोड़कर क ध के
समाना तर बाजू से थािपत करके दृि ऊपर रख। ास लेते ए बाएँ पैर को 90° के कोण
पर ऊपर उठाएँ। बाएँ हाथ को क धे के बाजू म फै लाकर कोहनी को मोड़ते ए िसर क
ओर ऊपर उठाएँ। दाएँ हाथ को िसर के ऊपर ताने। हथेिलयाँ सामने रख, ास छोड़कर
बाएँ पैर को ज़मीन पर टकाएँ, बाएँ हाथ को िसर के ऊपर फै लाएँ और ास लेकर दाएँ
पैर को ज़मीन से 90° के कोण पर ऊपर उठाएँ। दाएँ हाथ को क धे के बाजू म लाकर
कोिहनी से मोड़ते ए िसर क ओर ले जाएँ, ास को छोड़कर दाएँ पैर को ज़मीन पर
टकाते ए दाएँ हाथ को िसर के ऊपर फै लाएँ। बाएँ हाथ को बाएँ क धे के बाजू म फै लाकर
कोहनी से मोड़ते ए िसर क ओर ले जाएँ। इस कार या को धीरे -धीरे 8 से 10 बार
करने के प ात् अपने थान पर दौड़ते ए यथाशि कर। थकान आने पर या को समा
कर द।

लाभ : हाथ और पैर पु होते ह। फे फड़े के रोग न होते ह। शरीर क थूलता दूर होती है।
हाथ और पैर ठ डे होने क िशकायत दूर होती है। जाँघ का मोटापा दूर होता है। िखलाड़ी
साधक के िलए िवशेष लाभकारी ह।

5.सवाग पुि

िविध : दोन पैर को फै लाकर सीधे खड़े हो जाएँ। अँगूठा छु पाकर हाथ क मु याँ ब द
कर। दोन हाथ को नीचे झुकाकर बाएँ टखने के पास बायाँ हाथ नीचे और दायाँ हाथ
कलाई के ऊपर थािपत कर। ास को लेकर धीरे -धीरे दोन हाथ से ऊपर क ओर बाएँ
क धे के बाजू से िसर तक ले जाएँ और दाएँ टखने क ओर ास को छोड़। दािहना हाथ
नीचे और बायाँ हाथ ऊपर रख। पुनः ास लेकर दोन हाथ के नीचे से ऊपर दाएँ क धे
तक लाते ए िसर के ऊपर तक ले जाएँ। बाई ओर मुड़ते ए दोन हाथ को बाएँ क धे से
नीचे क ओर बाएँ टखने तक लाएँ। ास को छोड़, हाथ को बदल-बदलकर बायाँ नीचे
और दािहना ऊपर रख। इस या क तीन बार कर।

लाभ : सम त अंग पु बनते ह। शरीर लचीला बनता है। साधक का ठगनापन दूर होता
है। फे फड़ के रोग दूर होते ह। कमर व पीठ का दद िमटता है। पाचन या ठीक होती है।
सरल योग याएँ
पवनमु ासन समूह क याएँ
वायुिनरोधक, उदर देश एवं शि बंध हेतु सरल याएँ

लगभग सभी योग क म ये सरल ायाम कराए जाते ह जो क पवनमु ासन* क


अ यास ेणी के अंतगत आते ह। ित दन ारं भ म कराए जाने का कारण यह है क इनका
योग मांसपेिशय तथा शरीर के लगभग सभी जोड़ म लचीलापन लाने के िलए व शरीर
का कड़ापन दूर करने के िलए कया जाता है। िपछले अ याय म सू म ायाम एवं थूल
ायाम क ृंखला दी गई है वे सभी ायाम भी शरीर क थािय व दान करते ह।
िन िलिखत सभी याएँ करने से हमारे शरीर के जोड़ खुल जाते ह तथा शरीर का
आल य समा हो जाता है। साधक फू त एवं ताजगी महसूस करता है िजससे आगे होने
वाली योग या व अ यास म सरलता होती है।
सभी आसन सरल होते ए भी ब त अिधक भावकारी ह जो क शरीर को नई चेतना
और ऊजा दान करते ह।

वायु िनरोधक याएँ


पादांगुली, पादतल, पादपृ एवं गु फ शि वधक/िवकासक या

िवशेषः सू म ायाम म हमने यही या खड़े होकर क थी। इसे बैठकर भी कर सकते ह।
जो क लगभग सभी योग क म कराई जाती है।

अ यास म 1 : बैठ जाएँ। सामने क तरफ़ पैर को लंबा कर। थोड़ा सा पीछे झुकते ए
हाथ को अगल-बगल म िनतंब के पीछे ज़मीन पर रख द। मे दंड, ीवा व िसर को झुकने
न द एवं कु हिनयाँ भी न मोड़ और मन को तनाव मु रख। पूरा यान पैर क अँगुिलय
पर रखते ए दस अँगुिलय को आगे झुकाएँ, फर पीछे झुकाएँ।
ास म/समय : अँगुिलयाँ आगे झुकाते समय ास छोड़। अपनी तरफ़ करते समय ास
ल। 10 से 15 बार आगे-पीछे कर।

अ यास म 2 : अब पैर के पंज को टखन के जोड़ से आगे क तरफ़ इतना झुकाएँ क वे


ज़मीन को पश करने लगे। िजतना अिधक से अिधक झुका सकते ह, झुकाएँ। पूरे पंजे को
वापस अपनी तरफ़ िजतना मोड़ सकते ह, मोड़ने का यास कर।

ास म/समय : अँगुिलयाँ एवं पैर के पंजे अपनी तरफ़ करते समय ास ल एवं वापस
आगे झुकाते समय ास छोड़। 10 से 15 बार यही म दोहराएँ।

अ यास म 3 : अब दोन पैर के बीच थोड़ा अंतर कर उ ह दूर कर द। पहले दािहने पैर
से अ यास कर। दािहने पैर के पंजे क टखने से वृ ाकार घुमाना है। अतः दाएँ से बाएँ
तरफ़ 10 से 15 बार घुमाएँ। फर बाएँ से दाँये 10 से 15 बार कर। यही अ यास बाएँ पैर से
कर। अब दोन पंज को िमलाकर उपरो अ यास कर। यही या िन िलिखत कार से
भी कर सकते ह।
इसी म म अब दोन पैर म कु छ फ़ासला रख और एक पैर को बाएँ से दाएँ तो दूसरे
पैर को दाएँ से बाएँ वृ ाकार घुमाएँ। अब यही म दूसरी दशा म भी कर। इस कार से
घुमाने पर आपस म दोन पैर के अंगूठे वृ पूरा होने पर एक-दूसरे को पश करते ह।

ास म/समय : पंज क ऊपर लाते समय ास ल और नीचे क तरफ़ जाते समय ास


छोड़। उपरो सभी याएँ 10 से 15 बार समान प से करनी चािहए।
अ यास म 4 : पंज को वृ ाकार बनाने के िलए इस कार से भी अ यास कर सकते ह।
एक पैर लंबवत् कर दूसरे पैर के पंजे को पहले पैर क जंघा पर ऐसा रख क गु फ बाहर
क तरफ़ आ जाएँ। अब एक हाथ से टखने को पकड़कर दूसरे हाथ से अँगुिलयाँ पकड़ ल।
पहले दाएँ से बाएँ फर बाएँ से दाएँ 10 से 15 बार वृ ाकार घुमाएँ। यही अ यास दूसरे
पैर से कर।

ास म/समय : अ यास म तीन के अनुसार।

सु जानुसंचालन या - अ यास म 5

(घुटन को आगे-पीछे करने क या)

सामने क तरफ़ पैर को लंबवत् करके बैठे। चूँ क इसम घुटन को संचािलत कर आगे-पीछे
करना है। अतः माँसपेिशय को संकुिचत करते ए घुटन को अपनी ՀՀ: तरफ़ ख च। कु छ
ण क एवं ढीला £ छोड़ द। यही म पुनः दोहराएँ।

ास म/समय : घुटन को अपनी तरफ़ ख चते ए ास ल एवं ढीला करते समय ास


छोड़। 10 से 15 बार यही म दोहराएँ।
लाभ : पंडली, पंजे, टखना, घुटने एवं अँगुिलय के जोड़ मज़बूत एवं लचीले होते ह।
भिव य म होने वाले ग ठया जैसे रोग क संभावना उस अंग म नह रहती।
पंडली के दद म राहत एवं ठन को ठीक करता है।

उ ान जानुसंचालन या - अ यास म 6

(अ) अपने आसन म सामने क तरफ़ समानांतर प से पैर फै लाकर बैठे। दोन हाथ से
दािहनी जंघा को पकड़, दािहने घुटने को मोड़ते ए, जंघा को उदर व व ः थल से सटाएँ।
अब इस पैर को धीरे -धीरे ऊपर क तरफ़ तान। कु छ ण क, वापस ज़मीन पर रख द।
इस या म पैर िजतना ऊपर कर सकते ह कर। यहाँ तक क नािसका का घुटने से पश
हो जाए एवं दूसरा पैर पूणतः ज़मीन से पश करता रहे तथा मे द ड और कमर सीधी
रख। इस कार उपरो या 10 बार कर एवं यही या पैर बदलकर कर।

(ब) अब इसी या को िवपरीत तरीके से कर। पहले दािहना पैर सीधा ऊपर उठाएँ। कु छ
ण क। घुटने से मोड़कर जाँघ को अपने सीने से पश कराएँ। वापस पैर क ज़मीन पर
रख द। यह या 10 बार कर और दूसरे पैर से इसी या को दुहराएँ।

उ ान ि जानु संचालन या - अ यास म 7

यह अ यास म 6 क तरह ही है, परं तु इसम दोन पैर से एक साथ करना होता है।

(अ) सामने क तरफ़ पैर फै लाकर बैठ। पैर को समानांतर िचपकाकर रख। दोन हाथ को
िनतंब के अगल-बगल म पीछे रख, अब दोन पैर को घुटने से मोड़ते ए सीने से पश
कराना है। इसके प ात दोन पैर को एक साथ ऊपर क तरफ़ लंबवत कर द और वापस
ज़मीन पर रख द। यही या 10 बार कर।
(ब) इस या म दोन पैर को पहले ज़मीन से ऊपर उठाएँ। त प ात घुटन से मोड़ते ए
छाती से पश कराएँ और वापस ज़मीन पर रख द। 10 बार यही या को दुहराएँ।

ास म : पैर को मोड़ते समय ास बाहर िनकाल एवं पैर ऊपर क तरफ़ सीधे करते
समय ास ल।

सावधािनयाँ: ती कमर दद, दय रोग, उ र चाप वाले िववेक पूवक कर।

लाभ : घुटन के सम त िवकार दूर होते ह। कमर दद व िनतंब का दद थायी प से


िमट जाता है।
पैर का कं पवात वाला रोग नह हो पाता।
क़ ज़, मंदाि दूर होकर भूख बढ़ती है।
पेट क चब कम होती है।

जानुच मय बनाने क या - अ यास म 8

िविध : सामने क तरफ़ दोन पैर को फै लाकर बैठ। चूँ क हाथ से जंघा को पकड़कर घुटने
से आगे के िह से को घुमाना है अतः दािहनी जाँघ को दोन हाथ से पकड़कर उदर देश के
पास लाये या दािहने जाँघ के नीचे से भुजा को िनकालकर एक दूसरे पंजे से कु हिनयाँ
पकड़ ले एवं उदर देश से जंघा को सटाते ए पंजे को ऊपर क तरफ़ उठाएँ और घुटने एवं
घुटने से िनचले िह से को 10 बार दाएँ से बाएँ वृ ाकार घुमाएँ तथा 10 बार बाएँ से दाएँ
वृ ाकार घुमाएँ। अब यही या बाएँ पैर से कर।

ास म : पैर को ऊपर ले जाते समय ास ल एवं नीचे लाते समय ास छोड़।


यान : घुटने क िनरोगता हेत।ु

लाभ : ग ठया जैसी बीमा रय से िनजात दलाता है।


घुटने के जोड़ को मज़बूती दान करता है और दद से राहत दलाता है।
जमे ए र को िविनयिमत करता है।

ोणी िवकासक एवं शि वधक या - अ यास म 9

िविध : दोन पैर को सामने फै लाकर बैठ जाएँ। बाएँ पैर क जंघा पर दाएँ पैर के पंजे को
रख। बाएँ हाथ से दाएँ पैर के पंजे को पकड़ और दाएँ हाथ से मुड़े ए घुटन को पकड़।
घुटने ारा एक बड़ा सा च बनाने क कोिशश कर। अब यही या िवपरीत दशा म भी
कर तथा पैर बदलकर यही म दोहराएँ।

ास म/समय : ास सामा य रख एवं 10-10 च दोन तरफ़ से कर।

लाभ : संपूण ोणी देश, कमर, िनतंब, जनन अंग आ द को लाभ िमलता है।
आसन करने म इन अंग से होने वाली परे शािनयाँ नह होती ह।

गितमय अध िततली आसन - अ यास म 10

िविध : सामने क तरफ़ सीधे पैर फै लाकर बैठ जाएँ। कमर, रीढ़ और गदन सीधी तनी रह।
बाएँ पैर को मोड़कर दाएँ पैर क जाँघ पर रख, दाएँ हाथ से बाएँ पैर के अँगूठे को पकड़कर
रख ता क आगे-पीछे न हो एवं बाएँ हाथ से बाएँ पैर के घुटने को पकड़। अब बाएँ हाथ से
घुटने को ज़मीन क तरफ़ दबाएँ और फर घुटने क व ः थल क ओर उठाएँ। इस या
को शनै: शनै: इस कार कर क घुटना ज़मीन को छू ने लगे। यही या पैर बदलकर कर।

ास म : घुटने को ऊपर उठाते समय ास ल एवं नीचे करते समय ास छोड़।

गितमय पूण िततली आसन - अ यास म 11

पहला कार : सामने क तरफ़ पैर फै लाकर बैठ जाएँ। कमर, रीढ़, गदन एवं िसर सीधा
रख। अब दोन पैर को मोड़ते ए दोन तलव को आपस म िमलाएँ और जनन य के
पास सटाकर रख। दोन हाथ से दोन पैर के पंज को पकड़ और दोन जाँघ को ऊपर-
नीचे पहले धीरे -धीरे फर कु छ तेज़ी से ज़मीन से पश कराने क कोिशश कर।

दूसरा कार : सामने क तरफ़ पैर फै लाकर बैठ जाएँ। कमर, रीढ़, गदन व िसर सीधा एवं
तना आ रख। दोन पैर को मोड़ते ए दोन तलव को आपस म िमलाएँ और जनन य
के पास सटाकर रख। दोन हाथ घुटन पर रख (बायाँ हाथ बाएँ घुटने पर एवं दािहना
हाथ दाएँ घुटने पर) एवं धीरे -धीरे दोन हाथ से दोन घुटन को ज़मीन क तरफ़ दबाएँ
फर इ ह वापस ऊपर आने द। यही म 20 से 25 बार कर। घुटन का पश ज़मीन से
कराने क कोिशश कर।

ास म :सामा य
लाभ : िततली आसन से घुटने और िनतंब के जोड़ मज़बूत होते ह और यह िनतंब म
बढ़ी ई अनाव यक चब कम कर उ ह संतुिलत करता है।
वायु कोप शांत करता है।
अधोभाग म नई चेतना दान करता है।
पाचनतं को थािय व दान करता है।
जंघा को सुडोल बनाता है।

सावधािनयाँ : साइ टका एवं कमरदद वाले रोगी प रि थित अनुसार कर एवं ती दद ही
तो न कर।

मुि का, मिणबंध, कोहनी, कं ध शि वधक/िवकासक कया

अ यास म 12 : सुखासन के कसी भी आसन म बैठ जाएँ। दोन हाथ को सामने क


तरफ़ फै ला ल। ऊँचाई कं धे के समक रख। हथेिलयाँ पूरी खुली ई ज़मीन क तरफ़ रख।
अँगुिलय को फै लाकर तनाव उ प कर।
ास म/समय : अँगुिलय के फै लते समय ास छोड़े एवं बंद करते समय ास ल। 10 से
15 बार यही या दोहराएँ।

अ यास म 13 : अब इसी म म हाथ को आगे फै लाते ए सामने क ओर तान।


हथेिलयाँ खुली परं तु अँगुिलयाँ आपस म सटी ई हो। मिणबंध के जोड़ से पूरे पंजे को ऊपर
क तरफ़ करते ए अपनी तरफ़ तनाव द। अब हथेिलय को नीचे क तरफ़ करते ए पुनः
अपनी तरफ़ तनाव द। अ यास के दौरान हाथ िबलकु ल सीधे ह ।

ास म/समय : ऊपर क तरफ़ करते ए ास ल एवं नीचे क तरफ़ करते ए ास


छोड़े। 10 से 15 बार इस या को कर।

अ यास म 14 (अ) : अब उपरो िविध म ि थत होकर अँगूठे को अंदर करते ए मु ी


बाँधे और दाएँ से बाएँ वृ ाकार 10 से 15 बार घुमाएँ। अब बाएँ से दाएँ यही या कर।
हाथ को बदलकर यही या दोहराएं। भुजाएँ सीधी एवं हथेली ज़मीन क तरफ़ रख।

अ यास म 14 (ब) : अब यही या दोन हाथ को सामने क तरफ़ फै लाकर कर। दोन
मु याँ एक ही दशा म घुमाएँ। अथात् बाएँ से दाएँ 10 से 15 बार फर दाएँ से बाएँ 10 से
15 बार।
अ यास म 14 (स) : अब दोन मु य को िवपरीत दशा म एक साथ घुमाएँ जैसे बा
मु ी को दाएँ से बाएँ तो दाई मु ी को बाएँ से दाएँ तरफ़ घुमाएँ। यही म उ टी दशा म
करते ए दोन मु याँ घुमाएँ।

लाभ : कलाइय के जोड़ मज़बूत होते ह एवं अँगुिलय म होने वाले रोग नह होते। हाथ
का र संचार समुिचत प से होता है।

अ यास म 15 (अ) : सुखासन से कसी भी आसन म बैठ। दोन हाथ को (कं धे के


समानांतर) सामने फै लाएँ। हथेिलयाँ आसमान क तरफ़ या एक-दूसरे के आमने-सामने
रख। अब अंगुिलय से कं ध को पश कर। कोहिनय से हाथ को मोड़ और कं ध को पूणतः
पश करने क कोिशश कर। त प ात् भुजा को पुनः सीधा कर। इस कार 10 से 15
आवृि याँ कर।

अ यास म 15 (ब) : उपरो ि थित म ही बैठ। हाथ को पि य के पंख क तरह


अगल-बगल म फै लाएँ। हथेिलयाँ आसमान क तरफ़ रख। कं धे के समानांतर ही ि थित
िन मत कर। अब हाथ को कोहिनय से मोड़ और कं ध का पश कर। वापस हाथ को
अगल-बगल म फै लाएँ। इस कार 10 से 15 आवृि याँ कर।
अ यास मः 15 (स) : उपरो ि थित म ही बैठ। यह िविध गितमय है। सामने क तरफ़
हाथ को कं धे के समानांतर फै ला ल। हथेिलय का मुख आमने-सामने क तरफ़ रहेगा। अब
दोन को गितमय करते ए अगल-बगल म ले जाएँ और पुनः वापस सामने क तरफ़ ले
आएँ। पुन: गित करते ए हाथ को अगल-बगल म लाएँ और पुनः सामने क तरफ़ ए
हाथ को िशिथल कर एवं गोद म रख। इस कार 10 से 15 आवृि याँ कर। (हाथ को
अगल-बगल म ले जाते ए हथेिलयाँ ज़मीन क तरफ़ एवं लाते समय हथेिलयाँ सामने क
तरफ़ रहगी।)

अ यास म 15 (द) : सुखासन क ि थित म बैठे एवं हाथ को अगल-बगल म फै ला ल।


हथेिलयाँ ज़मीन क तरफ़ और भुजाएँ कं ध के समानांतर ही रख। अब दोन हाथ को गित
करते ए ऊपर क तरफ़ ले जाएँ। भुजाएँ कान को पश करती ई एवं हथेिलय का मुख
आमने-सामने क तरफ होना चािहए। वापस हाथ को कं धे के समानांतर लाएँ और गोद म
रख ल। फर दोबारा हाथ को कं धे के समानांतर लाएँ तथा हाथ को िसर के ऊपर क
तरफ़ तान और वापस नीचे कं धे के समक फै लाएँ। उ ह गोद म रख ल। आप इस िविध को
िगनती करते ए भी कर सकते ह। एक िगनती करते ए कं ध को अगल-बगल म फै लाएँ।
दो िगनती करते ए ऊपर क तरफ़ ले जाएँ। तीन िगनती करते ए वापस कं ध के समक
अगल-बगल म रख और चार िगनती करते ए हाथ को गोद म रख ल। इस कार 5 से 10
बार कर।

ास म/समय : हाथ को फै लाते/उठाते समय ास ल एवं मोड़ते/नीचे लाते समय ास


छोड़। उपरो सभी याएँ आव यकतानुसार कर सकते ह।

लाभ : फे फड़ क काय मता म वृि होती है। व ः थल चौड़ा और मज़बूत होता है।
हाथ के सम त जोड़ सुचा ढंग से काय करने लगते ह।
कं धे मज़बूत होते ह।

कं ध को घुमाने क या ( कं ध संचालन या)

अ यास म 16, िविध : सुखासन के कसी भी आसन पर बैठ जाएँ। दोन हाथ को कं ध
के समानांतर फै लाएँ और कु हिनय से मोड़ते ए दाई हथेली को दाएँ कं धे पर एवं बाई
हथेली को बाएँ कं धे से पश करते ए रख। अब दोन कु हिनय को सामने लाते ए छाती
के सामने आपस म पश कराने का यास कर। त प ात कु हिनय को ऊपर उठाते ए
कान से पश कराने का यास कर एवं कु हिनय को िजतना पीछे ले जा सकते ह, ले जाएँ
ता क छाती अिधक फै ल सके । दोन भुजा का बगल से पश कराते ए कु हिनयाँ वापस
मूल अव था मे ले जाएँ। इस कार कु हिनय को घुमाते ए 10 से 20 च पूरे कर। अब
यही या िवपरीत दशा क ओर कर।

ास म : कु हिनयाँ ऊपर उठाते समय ास ल एवं नीचे क ओर आते समय ास छोड़।


लाभ : छाती उ त एवं पु होती है। मिहलाएँ इस या को करके व ः थल सुडौल
बना सकती ह।
फे फड़ के फै लने एवं संकुचन करने से उनक काय णाली म सुधार आता है।
आकसीजन लेने क मता बढ़ती है।
कं धी के जोड़ सश होते ह।

व ः थल को घुमाने क या

िविध : सुखासन के कसी भी आसन म बैठ जाएँ। हाथ को कु हिनय से मोड़कर अँगुिलय
को कं ध पर रख ल। अब धीरे -धीरे कं ध को दाएँ से बाएँ व ः थल के साथ आधा घुमाना
है और फर धीरे -धीरे वापस बाएँ से दाएँ आना है। इस कार इस अ यास को आप चाहे
तो धीरे -धीरे भी कर सकते ह या ज दी-ज दी भी कर सकते ह। इसम मु य बात यह है क
िसर क ि थित एवं दृि िब कु ल ि थर रहेगी। िसफ़ कं धे और व ः थल ही गितमय ह गे।

ास म : दाएँ एवं बाएँ मुड़ते समय ास छोड़ एवं मूल अव था म आते समय ास ल।
सावधािनयाँ : य द गदन म कोई रोग है तो िववेक का पूण उपयोग कर।
दय रोग या उ र चाप हो तो मश: अ यास कर।
लाभ : फे फड़े अिधक याशील हो जाते ह िजस कारण उनम अिधक ऑ सीजन लेने
क मता पैदा होती है।
गदन म लोच, लचक पैदा होती है।
उदर देश याशील होता है।

गितमय ीवा शि वधक/िवकासक या

अ यास म 17 (अ) : सुखासन के कसी भी आसन म बैठ जाएँ। अँगुिलय से ान मु ा


बनाकर उ ह गोद म या घुटन पर रख। आँख बंद कर। अब िसर को धीरे -धीरे आगे क ओर
इतना झुकाएँ क ठु ी कं ठकू प (व ः थल) क पश करने लगे फर िसर को ऊपर उठाएँ
और पीछे क तरफ़ धीरे -धीरे ले जाएँ। वापस मूल अव था म आएँ एवं इसी म को 5 से
10 बार या आव यकता अनुसार कर।

ास म : सामने क तरफ़ झुकाते समय ास छोड़ एवं पीछे क तरफ़ झुकाते ए ास


ल।

अ यास म 17 (ब) : उसी अव था म बैठे ए अब िसर को बाई तरफ़ इतना झुकाने का


यास कर क बायाँ कान बाएँ कं धे को पश करने लगे। िसर को धीरे -धीरे वापस सीधा
कर और यही अ यास दाई तरफ़ भी कर। इस कार 5 से 10 आवृि याँ कर।

ास म : िसर को झुकाते समय ास छोड़। िसर को ऊपर उठाते समय ास ल।


अ यास म 17 (स) : उसी ि थित म बैठे रह। अब िसर को िबना झुकाए बाई तरफ़ इतना
घुमाएँ क ठु ी कं धे के सीध म हो जाए और धीरे -धीरे वापस पहली ि थित म आएँ। अब
िसर को दा तरफ़ घुमाएँ ता क ठु ी और कं धे एक सीध म हो जाएँ। यह एक आवृि ई।
इसी कार 5 से 10 आवृि कर।

ास म : बाएँ/दाएँ तरफ़ मोड़ते समय ास छोड़ एवं िसर को सामने लाते समय ास
ल।

अ यास म 17 (द) : उसी ि थित म बैठे रह। अब िसर को वृ ाकार घुमाना है अतः िसर
को सामने क तरफ़ झुकाएँ और धीरे -धीरे दािहने तरफ़ से बाई तरफ़ घुमाते ए एक वृत
बनाएँ। इसी अ यास को कम से कम 5 से 10 बार कर। अब इसी या को िवपरीत दशा
से कर 5 से 10 आवृि पूरी कर।

ास म : िसर को ऊपर क तरफ ले जाते समय ास ल एवं नीचे क तरफ़ लाते समय
ास छोड़।

सावधािनयाँ: च र आने पर क जाएँ एवं आँख खोलकर आराम कर। गदन म


कसी भी कार के दद म या कसी भी कार क कोई सम या अथवा परे शानी महसूस हो
तो योग गु से परामश ल।
अ यास म 17 (ई) : उपरो िविध के अनुसार ही बैठे। अब गदन को सामने क तरफ़
धीरे -धीरे झुकाएँ। कु छ ण क, वापस िसर को ऊपर क तरफ़ उठाएँ। धीरे -धीरे पीछे ले
जाएँ। कु छ ण क। धीरे -धीरे वापस िसर को सीधा कर। कु छ ण क एवं िसर को धीरे -
धीरे दाई तरफ़ घुमाएँ। कु छ ण क और वापस धीरे -धीरे िसर को सीधा कर। फर िसर
को बाई तरफ़ घुमाएँ और वापस िसर सामने क तरफ़ ले आएँ। यह एक आवृि ई। इस
कार 5 आवृि कर।

नोट : एक तरफ़ िसर झुकाते समय िजतना समय लगता है, उतना ही समय सब तरफ़
लगना चािहए।

ास म : िसर को ऊपर ले जाते समय ास ल और झुकाते समय ास छोड़ एवं िसर को


घुमाते समय ास छोड़ एवं िसर सामने सीधा करते समय ास ल।

लाभ : िव ाथ , ऑ फ़स म काम करने वाले और गदन झुकाकर काम करने वाल के िलए
ब त अिधक लाभदायक है। गदन संबंधी सम त िवकार म लाभ िमलता है।

उदर देश अंग क याएँ


उ ानपादासन

िवशेष : यह आसन ुव के िपता उ ानपाद को सम पत है।

अ यास म 1 (अ): पीठ के बल ज़मीन पर लेट जाएँ। दोन हाथ को कमर के अगल-
बगल म रख। हथेिलयाँ ज़मीन पर ि थर कर। ास ल और हाथ पर ह का दबाव देते ए
दोन पैर को एक साथ ज़मीन से लगभग 600 के कोण पर उठाएँ। दोन पैर एक साथ िमले
ए ह व पंजे सामने क तरफ़ तने ए ह । एक से 2 िमिनट इसी अव था म क, मूल
अव था म वापस आएँ। ास या सामा य रख।

ास म/समय : पैर को ऊपर उठाते समय ास रोक एवं नीचे आते समय ास छोड़।
ऐसा 3 से 5 बार कर।

सावधािनयाँ : कमर या रीढ़ आ द म कसी कार का तेज दद हो तो न कर।

लाभ : अपने थान से हटी ई नािभ को ठीक करता है।


पेट क चब कम करता है।
क़ ज़ के िलए रामबाण है। पीठ, कमर एवं पेट क माँसपेिशय को सुदढ़ृ ता
दान करता है।
वायु िवकार का शमन करता है।

गितमय उ ानपादासन

अ यास म 1 (ब):

िविध : पीठ के बल ज़मीन पर लेट जाएँ। हथेिलयाँ अगल-बगल म रख। ास लेते ए बाएँ
पैर को इतना उठाएँ क समकोण क आकृ ित िन मत हो, कु छ देर क एवं ास छोड़ते ए
वापस मूल अव था म आ जाएँ। इस कार बाएँ पैर से 5-6 बार कर। यही या दाएँ पैर
से कर। अब यही या दोन पैर से एक साथ कर।
लाभ : उदर देश, पाचन तं , मे द ड, पीठ के िनचले िह से क पेिशय को मज़बूत
बनाता है। लोच व लचक पैदा करता है।
चब दूर कर जंघाएँ एवं िनत ब सुडोल बनाता है।

पैर ारा वृ बनाना/पादवृ ासन

अ यास म 2 :

िविध : शवासन म लेट जाएँ। पहले दायाँ पैर सीधा उठाएँ और उसे दाएँ तरफ़ से बाएँ
लाते ए वृ बनाएँ। ऐसा 10 से 15 बार कर। अब उसी पैर से बाएँ से दाएँ तरफ़ घुमाएँ।
अब बाएँ पैर से उपरो या कर। अब दोन पैर से यही या दोहराएँ।

ास म: या करते समय ास- ास क गित सामा य रख।

लाभ : कमर दद म राहत।


िनतंब मज़बूत और सुडौल बनते ह।
पैर क सम त माँसपेिशय को लाभ िमलता है।
मोटापा कम करने के िलए सबसे अ छा आसन है। पेट और जंघा क
अित र चब को कम करता है।
नोट : चाहे तो ारं भ म दोन पैर से करते समय नीचे हाथ लगा ल। थकान होने पर
िव ाम कर। िजतना बड़ा वृत बना सकते है उतना बड़ा वृत बनाएँ।

पाद संचालन या/साइ कल चलाना/ि च कासन

अ यास म 3, (अ) िविध : शवासन म लेट और क पना कर क आप साइ कल चला रहे


ह।

1. पहले एक पैर उठाएँ और साइ कल चलाने जैसा आगे-पीछे, ऊपर-नीचे कर। 10-15
बार सीधा पैडल एवं उतना ही उ टा पैडल मार।
2. अब दूसरे पैर से पहले पैर क पुनरावृि कर।
3. अब दोन पैर को साइ कल पर बैठकर चलाने क या कर।
4. अब दोन पैर को एक साथ जोड़ और साइ कल चलाने क या को दोहराएँ।
5. हर बार 10-15 सीधे पैडल और फर उ टे पैडल घुमाएँ।

ास म : पैर को लंबवत् करते समय ास ल एवं घुटने मोड़ते समय ास छोड़।

लाभ : उदर- देश क लाभ होता है।


टखने, पंडली, घुटने, जाँघ, िनतंब व कमर इन सभी अंग को लाभ िमलता है।
जोड़ को खोलकर मांसपेिशय को सुचा करता है।
अपानवायु का िन कासन करता है।
मोटापे को कम करने म सहायक है।
जंघा और िनत ब को सुडोल बनाता है।

नोट :
थकान होने पर आराम कर।
अनुकूलतानुसार कर।
पैर को िजतना पीछे ला सकते ह उतना पीछे क तरफ़ लाएँ।
हाथ को भी पैर क ही तरह आगे-पीछे व ऊपर-नीचे चला सकते ह।

सु पाद संचालन या

अ यास म 3, (ब) िविध : ज़मीन पर पीठ के बल लेट जाएँ। हाथ को अगल-बगल म


रख। बाएँ पैर को घुटने से इतना मोड़ क जंघा का िह सा पेट से पश करने लगे। अब पैर
को सामने क तरफ़ सीधा कर (ज़मीन से दो फ ट ऊपर) और ज़मीन पर रख द। यह या
5 से 10 बार पहले बाएँ पैर से फर दाएँ पैर से कर। अब यही या िवपरीत दशा म कर।
पहले बायाँ पैर ज़मीन से 2 फ़ट ऊपर उठाएँ फर पैर को घुटने से मोड़कर पेट से लगाएँ
और ज़मीन पर सीधा रख द। यही या दाएँ पैर से कर।
यही या दोन पैर से कर। पहले दोन पैर को घुटने से मोड़कर पेट से लगाएँ। सामने
क ओर पैर सीधा कर (ज़मीन से दो फट ऊपर) और ज़मीन पर रख द। 5 से 10 बार यही
या कर अब इसके िवपरीत कर। दोन पैर ऊपर उठाएँ। घुटने से मोड़कर पेट से पश
कराएँ और वापस ज़मीन पर रख द।

ास म : पैर को ल बवत् करते समय ास ल एवं घुटने मोड़ते समय ास छोड़े।

समय : ये सभी याएँ 5-10 बार कर।

लाभ : उदर देश म ि थत चब को कम करता है।


पाचन तं मज़बूत कर क़ ज़ दूर करता है।
नािभ अपने थान से हट गई हो, तो उसे ठीक करता है।
घुटने, जंघा, पंडली म र संचार बढ़ाकर उ ह मज़बूत करता है।
पैर के काँपने से िनजात दलाता है।
जंघा और िनत ब को सही अकार दान करता है।

कारांतर : यही या बैठकर करने से उ ान जानु संचालन या कहलाती है।

सु पवनमु ासन - अ यास म 4 (अ)

(पहला कार) : शवासन क ि थित म लेट जाएँ। अब दाएँ पैर को मोड़कर जाँघ को सीने
क तरफ़ लाएँ। तदोपरांत दोन हाथ के पंज क आपस म फँ साकर घुटन पर रख। ास
बाहर िनकाल और हाथ से दबाव डालते ए जाँघ को सीने से िचपकाने क कोिशश करते
ए िसर को ऊपर उठाकर नाक से घुटने का पश कर। कु छ देर इसी ि थित म रह।
शवासन क ि थित म आ जाएँ। ास एवं आसन के ित सजग रह। इस कार 3-5 बार
कर और यही या पैर बदलकर कर।

सु पव मु ासन - अ यास म 4 (ब)

(दूसरा कार) : शवासन क ि थित म लेट जाएँ। अब दोन पैर को मोड़कर जाँघ को
सीने से लगाने का यास कर। इसके बाद दोन हाथ से आ लंगन क भाँित घुटन क
लपेट ल। ास बाहर िनकाल। अब हाथ से दबाव बनाते ए जाँघ को सीने से िचपकाएँ
और िसर को उठाते ए नाक से घुटन का पश कर। कु छ देर क, वापस मूल अव था म
आएँ। 8 से 10 बार यही या दोहराएँ। इसे पूण पवनमु ासन भी कहते ह।

पूण पवनमु ासन म लुढ़कना - अ यास म 5 (अ)


(तीसरा कार) : पूण पवनमु ासन क ि थित म पहले बाई तरफ़ लुढ़कना है। िजसम
बायाँ कान, कधा, घुटना एवं सम त बाएँ अंग को ज़मीन से पश कराने क चे ा करना
है। अब वापस आकर दाएँ अंग क तरफ़ लुढ़कना है। वापस मूल अव था म आएँ। यह एक
आवृि ई। इस कार 10 से 15 आवृि कर।

गितमय पवन मु ासन – अ यास म 5 (ब)

(चौथा कार) : गितमय के िलए पूण पवनमु ासन क ि थित म रहते ए मशः उकडू
बैठे और बाद म हाथ छोड़ते ए खड़े हो जाएँ (चाह तो हाथ को ऊपर क तरफ़ तान)।
पुनः लौटते ए उकडू क ि थित के बाद पवनमु ासन क ि थित म आएँ। यह एक आवृि
ई। इस या को 5 से 10 बार कर।

सावधानी : ायाम या करते ए सजग रह, चूँ क इस पूरे अ यास म मे द ड पर


िवशेष दबाव पड़ता है। अतः पीठ के नीचे कं बल (मोटी तह करके ) रख ल।

ास म : गितमय क ि थित म ास सामा य रख।


लाभ : पवन-मु ासन क़ ज़ के रोिगय को िवशेष प से लाभ देता है। मल-िन कासन
म क ठनाई, उदर-िवकार के कारण होने वाले िसर-दद, अपान-वायु के
ऊ वमुखी होने के कारण मि त क म गम बढ़ने, सं म आ द ािधय म यह
आसन अ यंत लाभकारी है।
जैसा क नाम है उसी अनुसार लाभ दान करता है। शरीर से अपान-वायु को
बाहर िनकालता है। अतः शरीर ह का महसूस होता है।
मे द ड को सश बनाता है।
दय संबंधी िवकार ठीक करता है। ास रोगी को लाभ िमलता है।
चेहरे के तेज एवं ओज को बढ़ाता है।
बाल को असमय झड़ने से रोकता है।
शरीर को छरहरा करने म सहायक है।

मकटासन/सु उदराकषणासन

अ यास म 6 :
( थम कार) : पीठ के बल आसन पर लेट जाएँ। हाथ को कं ध के समानांतर फै लाएँ और
हथेली आकाश क तरफ़ खुली अव था म रख या फर अंगुिलय को आपस म फसाकर
हथेिलय िसर के पीछे रख, दोन पैर को मोड़कर िनतंब के पास ले आएँ एवं दोन पैर के
बीच लगभग डेढ़ फ़ट का अंतर रख। अब दा तरफ़ धुटन को झुकाते ए ज़मीन से पश
करा द। इस ि थित म दायाँ पैर ज़मीन से पश करे गा एवं बायाँ घुटना भी दाएँ पैर के पंजे
के पास ज़मीन पर पश करे गा। गदन को बाई तरफ़ मोड़कर रख। यही या बाई तरफ़
पैर मोड़कर कर।
(ि तीय कार) : पीठ के बल आसन पर लेट जाएँ। हाथ क ि थित पूववत् ही रहेगी।
दोन पैर को मोड़कर िनतंब के पास रख। दोन घुटने आपस म सटाकर रख। अब घुटन
को दाई ओर झुकाते ए ज़मीन से पश करा द। बायाँ घुटना दाएँ घुटने के ठीक ऊपर होगा
और दाएँ पैर के पंजे के ऊपर बाएँ पैर का पंजा होगा। गदन बाई तरफ़ घुमाकर रख। अब
यही या पूण करने के िलए बाई तरफ़ पैर को झुकाएँ व गदन दाई तरफ़ कर।

(तृतीय कार) : पीठ के बल आसन पर लेट जाएँ। हाथ क कं ध के समानांतर फै लाएँ।


अब दाएँ पैर को िनतंब से उठाकर मोड़ते ए समकोण को ि थित िन मत कर (िच देख)
और बाएँ हाथ से दाएँ पैर के अँगूठे को पकड़। गदन दाई तरफ़ मोड़कर रख। अब यही
आसन िवपरीत दशा म कर।

िवशेष: पैर य द बाएँ तरफ़ है तो िसर दाएँ तरफ़ कर एवं पैर दाएँ तरफ़ करते है तो िसर
बाएँ तरफ़ कर इस कार करते रहने से इ टरनल मसाज होती है।
लाभ : थम एवं ि तीय कार क िविध करने से ि लप िड क, कमर दद, साय टका,
सवाइकल प िडलाइ टस वाले रोिगय को अितशी लाभ प च ँ ता है।
पेट नरम करता है अथात् क़ ज़ व गैस दूर करता है।
मे द ड क िवशेष लाभ िमलता है।
िनतंब देश को भी लाभ ा होता है।
पेट पर जमी चब को दूर करता है। थोड़ा तेज़ गित से करने पर कमर पतली
कर शरीर को छरहरा बनाता है।
फू त दान करता है।

नोट : कु छ योग िश क इसे क ट मदनासन भी कहते ह।

योगा यास मा ायाम ही नह बि क शारी रक और


मानिसक वा य दान करने एवं शरीर तथा मन के
एक प होकर कु छ नया घ टत होने क संभावना का
या मक अ यास है।

-RJT

नौकासन

अ यास म 8, थम कार : पीठ के बल लेट जाएँ। हाथ को भी समानांतर रख। ास


ल। दोन पैर दोन हाथ, धड़ व िसर को एक साथ ज़मीन से धीरे -धीरे ऊपर उठाएँ। यान
रहे िसर और पैर लगभग एक ही ऊँचाई पर रह। िजतनी देर इस अव था म रह सकते ह
उतनी देर क। यह आसन पूण नौकासन कहलाता है। यही म 5-6 बार कर।

ि तीय कार : दूसरे कार से आप हाथ को लंबवत् रखे या अंगुिलय को आपस म


िमलाकर िसर के िपछले िह से म रख और लगभग 1 फट पैर और कं धे उठाएँ। इस कार
यह आसन अध नौकासन कहलाएगा।

यान : वािध ान, मिणपूरक एवं अनाहत च पर।

ास म : य द क ज़ हो तो पहले ास ल और ऊपर उठते समय व अंितम ि थित म एवं


वापस आते समय अंतकुं भक कर। इसके बाद ास छोड़।
लाभ : इस आसन से पीठ ब त यादा मज़बूत होती है।
पेट क आँत पर अ छा भाव पड़ता है।
अध नौकासन लीहा, यकृ त और िप ाशय क उिचत देखभाल करता है।
मे द ड दृढ़ और मज़बूत होता है।
पेट क कृ िमय का नाश करता है।
पैर को बल िमलता है, बुढ़ापे म पैर का कांपना बंद होता है।
अपने थान से हटी ई नािभ को ठीक करता है।
इस आसन को िनयिमत करने से मिहलाएँ अपने ी रोग को लाभ प च ँ ा
सकती ह जैसे िड बाशय, गभाशय, ब े के ज म के बाद योिन, जरायु, और
लटकते पेट को ठीक कर सकती ह।

नोट : थम कार को कु छ योग गु मु ह त मे द डासन भी कहते ह।

* मने पवनमु ासन क या क बारी कयाँ सबसे पहले डॉ. के .एम. गांगुली साहब से सीखी। इसके बाद डॉ. फू लच द
योगाचाय जी से एवं इसके बाद एक िशिवर म परमहंस िनरं जनानंद सर वती से यह योग याएँ सीख । आप सभी का
म आभार करता ।ँ
शि बंध क याएँ

र सी ख चने क या

अ यास म 1 (अ) : र सी ख चने क या को तीन कार से कर सकते ह। क पना कर


क हम कु एँ से पानी ख च रहे ह। (हमारी या ठीक वैसी ही होनी चािहए जैसी क आपने
देखी होगी - एक पैर आगे, एक पैर पीछे और पहले एक हाथ से फर दूसरे हाथ से कु एँ से
बा टी ख ची जाती है। पहले इसी तरीके से कर फर यही या पैर बदलकर कर। हाथ को
िजतना आगे व पीछे ले जा सकते ह, ले जाएँ। यह या 10 से 20 बार कर।

अ यास म 1 (ब) : यही या बैठकर कर। सामने पैर तानकर बैठ जाएँ एवं उपरो
या कर।
अ यास म 1 (स) (दही मथना)

सामने पैर फै लाकर बैठ जाएँ और ऐसी क पना कर क बाएँ हाथ म एक र सी का छोर है
और दूसरे हाथ म दूसरी र सी का छोर। अब आप अलग-अलग हाथ से समानांतर प से
एक साथ ख च रहे ह और आपके सामने भी कोई साधक आपक तरफ़ मुँह करके बैठा आ
है। आपके ारा ख ची ई र सी को वह वापस ख च लेता है। आप फर वही र सी दोबारा
ख चते ह सामने वाला साधक दोबारा वह र सी अपनी तरफ़ ख च लेता है। इस कार क
ख चा-तानी 15-20 बार कर। हाथ को िजतना पीछे ले जा सकते ह, ले जाएँ। यह या
ठीक दही मथने के समान ही है।

ास म : हाथ आगे लाते समय ास ल एवं हाथ पीछे करते समय ास छोड़।
लाभ : हाथ के पंजे, कोहनी, भुजाएँ और कं ध क माँसपेिशय को ज़बद त ायाम
िमल जाता है। िजनसे वह शि शाली और लोचमय बन जाती ह। ि य के
उरोज का िवकास करता है।
मे द ड लचीला बन जाता है।
पाचन तं के रोग का नाश होता है। पेट म जम चब नम होती है।
फे फड़ो को बल िमलता है।
पाचन तं के सभी अंग को लाभ िमलता है।

गितमय मे व ासन
अ यास म 2, िविध : अपने आसन म सामने पैर फै लाकर बैठ जाएँ। अब दाएँ हाथ को
बाएँ पैर के अँगूठे के पास लाएँ। हो सके तो पश कराएँ। अपने शरीर के कमर से ऊपरी
भाग को बाई तरफ़ मोड़ते ए बाएँ हाथ को पीछे क तरफ़ फै ला द एवं ऊपरी धड़ को
मोड़ते ए बाएँ हाथ को देखने का यास कर। इस कार दोन हाथ एक सीध म हो
जाएँगे। ठीक इसी कार दूसरी तरफ़ से भी कर। यह 1 च आ। इस कार 10 से 20 बार
कर। अ य त हो जाने पर गित बढ़ा सकते ह। मुड़ते समय ास ल और वापस आते समय
ास छोड़।

लाभ : मे द ड और पीठ के आंत रक अंग क मािलश होती है।


उदर देश को िनरोगता दान करता है।
फे फड़ के सामा य िवकार दूर होते है।
पेट के मोटापे को दूर करने म सहायक है।
कमर पतली कर शरीर को छरहरा बनाता है।

आटा च चलाने क या

अ यास म 3, (अ)
िविध : सामने क तरफ़ सीधे पैर करके बैठ जाएँ। हाथ को सीधे सामने क ओर तानते
ए पंज को एक-दूसरे म फं सा ल। मन ही मन सोच क अब हम च चला रहे ह। इस
कार कमर और कमर के ऊपरी भाग को चार तरफ़ चलाते ए घेरा बनाएँ। िजतना
आगे-पीछे झुक सकते ह उतना आगे-पीछे झुक। अब यही या उ टी तरफ़ से कर; पहले
दाएँ से बाएँ फर बाएँ से दाएँ 10 से 15 बार कर।

ास म : पीछे क तरफ़ जाते समय ास ल एवं आगे क तरफ़ झुकते समय ास छोड़।

अ यास म 3, (ब)

िविध : सामने क तरफ़ पैर फै लाकर बैठ जाएँ। अब दोन पैर को फै लाकर दूर-दूर कर ल
और यह सोच क आपके ठीक सामने पैर के बीच आटा च रखी है। बस बाक या
पूवानुसार है।

अ यास म3, (स)

िविध : तीसरी या भी उपरो ानुसार ही है। इसम आपको िसफ़ सुखासन म बैठना है
और क पना करना है क आपके सामने च रखी है। और आप च चला रहे ह। पहले
दाएँ से बाएँ, फर बाएँ से दाएँ 10-15 बार यही म दोहराएँ।

लाभ : सभी वग के िलए यह लाभकारी है। इससे उदर- देश क अंद नी तं क


मािलश हो जाती है।

शौच क क ठनाई म लाभ होता है।

कमर दद से राहत िमलती है।


मािसक धम क अिनयिमतता को दूर करता है।
मोटापे को दूर करता है एवं कमर को पतली करता है।
पेडू (पेट का िनचला िह सा), िनत ब एवं जंघा क आकृ ित सुडोल होती है।

नोट : पुराने समय म हर घर पर हाथ से अनाज पीसने के िलए प थर क बनी ई आटा


च आ करती थी। मिहला या पु ष वग ित दन गे ँ वगैरह पीसकर अनचाहे ही यह
ायाम कर लाभाि वत हो जाते थे। कं तु अब यह सब-कु छ संभव न हो पाने के कारण हम
िसफ़ यह या ायाम व प कर उसके लाभ ा कर सकते ह।

नौका-संचालन (नाव चलाने क या)

अ यास म 4, िविधः सुखासन म बैठ जाएँ। पैर सामने क तरफ़ फै ला ल। अब हम


क पना करना है क हम नाव चला रहे ह। यही सोचते ए नाव चलाने क या करनी है।
िजतना आगे-पीछे होते ए अ यास कर सक उतना करना चािहए। अब ठीक इसके
िवपरीत अ यास कर जैसे क नािवक नाव को आगे गितमय करने के िलए च पू चलाता है
और नाव को पीछे लौटाने के िलए दूसरी तरह से च पू चलाता है। यही या 10-15 बार
कर।

ास म : पीछे जाते समय ास ल एवं आगे झुकते समय ास छोड़।


लाभ : इसके अ यास से कमर, मे द ड, पैर, पीठ, कं धे तथा हाथ को अ छा ायाम
िमल जाता है िजससे उससे संबंिधत लाभ वत: िमल जाते ह।
शरीर म जमी ई चब को दूर कर बदन को छरहरा बनाता है। ।
उदर देश को लाभ िमलता है।
यह या शरीर म ऊजा दान करती है।

मुि का घात या

अ यास म 5, िविध : पैर के पंज के बल उकडू बैठ जाएँ। दोन घुटन के बीच क दूरी
लगभग 2 फु ट के आस-पास रख। अब दोन हाथ को सामने लंबवत करते ए अंगुिलय को
आपस म फँ साकर बाँध कर मुि का जैसा बना ल। त प ात हाथ को ऊपर क तरफ़ ले
जाएँ एवं नीचे लाएँ। ऐसा लगे क आप अपनी मुि का से ज़मीन पर रखी व तु पर घात
कर रहे ह। इस दौरान संभव हो तो हाथ को ऊपर उठाकर अिधकतम पीछे ले जाएँ और
ऊपर हाथ क ओर देखने का भी यास कर।

ास म : हाथ को ऊपर उठाते समय ास ल एवं नीचे लाते समय ास छोड़। इसक 5
से 10 आवृि पूरी कर।

लाभ : मिहला के गभाशय क माँसपेिशय क िवशेष लाभ।


फे फड़े को थािय व िमलता है एवं कं ध के जोड़ भी लाभाि वत होते ह।
व ः थल को िवकिसत करने म मिहला को अ यिधक लाभ।
जनन तं के अंग को लाभ िमलता है।

नोट : कु छ योग िश क इस या को का त णासन कहते ह।


अित उ र चाप वाले तेज गित से न कर।

सु नम कारम

अ यास म 6, िविध : पंज के बल उकडू बैठ जाएँ। पंज के बीच अिधकतम दूरी रख।
दोन हाथ से ाथना क मु ा बनाकर लंबवत् कर त प ात् दोन हाथ को घुटन के बीच
म रख व भुजा पर घुटन से अंदर क तरफ़ दबाव डाल। ास ल। अब ऊपर क तरफ़
देख एवं हाथ को ाथना क मु ा म छाती के पास लाएँ और भुजा से पैर पर बाहर क
तरफ़ दबाव डाल। ास छोड़ते ए वापस मूल अव था म आ जाएँ। इस कार 5 से 10
बार यही या दोहराएँ।

लाभ : पैर क सम त माँसपेिशय को लाभ िमलता है। कं धे व पीठ क सामा य वेदना म


लाभ िमलता है। यह संपूण ोणी देश को भी लाभ प च
ँ ाता है।

योग या ारा हम वापस


अपनी सं कृ ित क ओर लौट रहे ह।
-RJT

वायु िन कासन या

अ यास म 7, िविध : दोन पैर के बीच अंतर रखते ए पंज के बल उकडू बैठ जाएँ।
हथेिलय को पंज के नीचे रख। अंगुिलयाँ अंदर क तरफ़ हो। चाहे तो पैर के पंज को
अपने हाथ से पकड़ ल। घुटन से कु हिनय पर दबाव डाल व ास लेते ए सामने क
तरफ़ देख। ास छोड़े, घुटन को सीधा करते ए खड़े हो जाएँ िनत ब उठा आ िसर झुक
ि थित म घुटन को देख। पैर के पंजे पकड़े रह। अ यास के दौरान आँख खुली ई ह ।
मे द ड को अिधक से अिधक झुकाएँ, ास रोकते ए अनुकूलतानुसार क, ास लेते ए
मूल अव था म लौट आएँ। यह एक च आ। 5 से 10 च कर।

सावधानी : उ र चाप, च र आना, या मे द ड क ज टलता ही तो पूणतः सजगता के


साथ कम अ यास कर।

लाभ : नाम के अनुसार वायु को अधोगामी बनाता है।


वायु िवकार दूर कर मन को आनंद देता है।
सम त कि ध- थल, टखने, घुटने, कं धे, कु हनी आ द के जोड़ म फँ सी वायु को
दूर कर दद से राहत िमलती है।
पंडिलय , जाँघ , मे द ड, पीठ आ द म खंचाव पैदा कर र संचार को
सुचा करता है।

कारांतर : पाद ह तासन क तरह हाथ के पंज को सामने क तरफ़ से पकड़ सकते ह।

कौआ चालन या

अ यास म 8, िविध : ज़मीन पर पंज के बल उकडू बैठ जाएँ। दोन घुटन पर अपनी
हथेिलय को रख द और पंज के अगले िह से पर ज़ोर देकर चलना शु कर द। जब आप
अपना बायाँ पैर आगे बढ़ाएँ तो दायाँ घुटना ज़मीन पर पश करे और जब दायाँ पैर आगे
बढ़ाएँ तो बायाँ घुटना ज़मीन पर पश करे । कम से कम 15-20 क़दम चल फर वापस
अपनी जगह पर आ जाएँ। ास सामा य ही रहने द।

लाभ : पैर म र संचार को बढ़ाकर उ ह िनरोग रखता है। पैर क माँसपेिशय को


मज़बूत करता है।
क ज़/उदर िवकार म भी भावकारी है।
क़ ज़ क अिधकता वाले एक िगलास पानी पीकर भी यह आसना मक या
कर सकते ह।

उदराकषणासन

शाि दक अथ : उदर का मतलब पेट एवं आकषण यानी खंचाव या ख चना।

अ यास म 9, िविध : इस आसन का उपयोग शंख ालन क या म कया जाता है।


पंज पर शरीर का वज़न रखते ए उकडू बैठ जाएँ। दोन हाथ घुटन पर रख। इसी ि थित
म कमर से ऊपरी भाग को दािहन तरफ़ मोड़ व अपने पीछे क तरफ़ देखने का यास करते
ए बाएँ घुटने को ज़मीन से पश कराएँ। दािहनी जाँघ से पेट पर दबाव थािपत कर।
िणक कते ए मूल अव था म वापस आएँ। अब यही या बाई तरफ़ के िलए कर। यह
एक आवृि ई। इस कार 8 से 10 आवृि कर।

ास म/समय : मूल अव था म गहरी ास ल एवं मुड़।े लगभग 5 सेकंड तक अ तःकुं भक


कर और मूल अव था म आते समय ास छोड़।

लाभ : संपूण उदर- देश को भािवत कर िवकार का नाश करता है।


पाचनतं क अंद नी मािलश होती है अतः पाचनतं अपना काय सुचा प
से करता है।
पेट क अित र चब को भी कम करने म सहायक है।
ऊजा दायक िवशेष आसन एवं याएँ

अ ासन

िविध : पेट के बल ज़मीन पर लेट जाएँ, दोन हाथ क भुजा से कान का पश कराते
ए सामने क तरफ़ रख। हथेिलयाँ एवं पाद पृ ज़मीन से पश करते ए रख तथा नाक
एवं ललाट को भी ज़मीन से पश कराएँ। इसी ि थित म शरीर क िशिथल कर। सामा य
ास- ास कर।

गितमय अ ासन

कारांतर:
1. पेट के बल ज़मीन पर लेट जाएँ। दोन हाथ को कान क तरफ़ से पश कराते ए
सामने क तरफ़ रख। अब दाएँ हाथ एवं बाएँ पैर को एक साथ ऊपर क तरफ़ िजतना
उठा सकते ह उठाएँ एवं िसर भी ऊपर उठाएँ। कु छ ण ककर मूल अव था म वापस
आएँ। इसी कार बाएँ हाथ को एवं दाएँ पैर को एक साथ ऊपर क तरफ़ उठाएँ एवं
िसर भी ऊपर उठाय। अब मूल अव था म वापस आएँ। यह एक च आ। लगभग 10
च पूरे कर।
2. दूसरे कारांतर म दोन हाथ, दोन पैर एवं िसर (कु छ भाग छाती का) को एक साथ
ऊपर उठाने क कोिशश कर। फ़र मूल अव था म वापस आएँ। यह या लगभग 5 से
10 बार कर। ऊपर उठते समय ास ल एवं वापस आते समय ास छोड़।
लाभ : मे द ड से संबंिधत रोग के िलए अित लाभकारी।
कमर दद, बदन दद एवं तनाव से मुि ।
िशिथिलकरण के िलए उपयु ।
ताज़गी दान करता ह।

गितमय गोमुखासन

िविध :सामने क तरफ दोन पैर को फै लाकर बैठ जाएँ । बाएँ पैर को घुटने से मोड़कर
पंजे को दाएँ िनतंब के बगल म रख ल और इसी कार दाएँ पैर के पंजे को बाएँ िनतंब के
समीप रख । इस अव था म बाएँ घुटने के ऊपर दाएं पैर का घुटना आ जाएगा । अब दाएँ
हाथ से बाएँ पैर के अंगूठे को पकड़े और बाएँ हाथ से दाएँ पैर के अंगूठे को पकड़ और बाएँ
हाथ से दाएँ पैर के अंगूठे को पकड़ । यह इसक ारं िभक अव था है । धीरे -धीरे ास को
छोड़ते ए सामने क तरफ झुके एवं माथे से घुटने के आगे को पश करने क कोिशश कर,
कु छ ण के । ऊपर उठते ए ास ल । यह एक आवृि ई । इस कार 5 से 10 बार
कर ।

कारांतर:सामने क तरफ झुकते समय आप बाएँ और दाएँ पंजे क तरफ झुककर भी इस


या को कर सकते ह ।
लाभ : कमरदद एवं मे द ड के सामा य िवकार को दूर करने म समथ ।
पीठ क माँसपेिशय म खंचाव होने के कारण उनम पया मा ा म र -
संचार होने लगता है अतः उनम होने वाले िवकार नह हो पाते ।
िनतंब के लचीलेपन को बढ़ाता है ।
चेहरे क झु रय को कम कर ताज़गी दान करता है ।
वायु िवकार दूर करने म सहयोगी है ।
सावधािन :
सवाइकल ा लम वाले इस आसन को न कर ।
मे द ड से संबंिधत रोगी इस आसन को गितमय न कर ।

मकरासन

शाि दक अथ : जलचर ाणी मगरम छ क तरह िन मत क ई आकृ ित को मकरासन


कहते ह।

िविध : सव थम पेट के बल लेट जाएँ। चूँ क मगरम छ का िसर हमेशा उठा आ दखाई
देता है। अतः वैसी ही आकृ ित बनाने के िलए अपने दोन हाथ क कोहिनय को ज़मीन पर
टकाएँ। अब गदन व िसर को उठाते ए हथेिलय से गाल एवं ठु ी को सहारा द। पूण
आराम क दशा म आँख को बंद करते ए ऊजा के ऊ वमुखी होने क क पना कर। सहज
प से ास- ास ल।

समय : अनुकूलतानुसार क।

गितमय मकरासन

िवशेष : मकरासन से अ य लाभ ा करने के िलए हम इसे थोड़ा गितमय बनाते ए


अ यास कर सकते ह।
कारांतर :
1. पहले मकरासन क ि थित म प च ँ ।े अब धीरे -धीरे िसर को बाई तरफ़ घुमाते ए,
अपने बाएँ पैर क एड़ी व पंजे को देख, थोड़ा क फर वापस मूल ि थित म आएँ। इसी
कार दाई तरफ़ भी देख। मूल अव था म वापस आएँ। यह 1 च आ। इस कार 10
च पूरे कर। ास या सामा य रख।
2. सबसे पहले मकरासन क ि थित म प च ँ । अब उसी ि थित म रहते ए धीरे -धीरे
कु हिनय को आगे क तरफ़ सरकाना है। जैसे-जैसे कु हिनयाँ आगे सरकगी वैसे-वैसे गदन
के िनचले िह से म ह का तनाव उ प होगा। यथाशि क। और धीरे -धीरे वापस मूल
अव था म आएँ। अब धीरे -धीरे कु हिनय को छाती के क़रीब लाएँ और वापस मूल
अव था म आएँ। यह 1 च आ। इसी कार 5 से 10 च पूरे कर।
3. मकरासन क ि थित म रह। अब पहले एक पैर को घुटने से मोड़कर जाँघ पर रख। इस
ि थित म एड़ी िनतंब देश को पश करे गी। दूसरा पैर वैसा ही रहेगा। इसी म म अब
दूसरा पैर जाँघ से पश करे गा, तो पहला पैर वापस ज़मीन पर आएगा। मब तरीके
से यही या दोहराएँ। इसी या को तेजी के साथ कया जा सकता है।

4. यही या दोन पैर से एक साथ भी कर। कम से कम 10 बार दोहराएं।


लाभ : सवाइकल ॉ लम, ि ल पिड क, पॉि डलाइ टस म अ यिधक लाभ।
गदन क सामा य बीमा रय म लाभ।
फू त, ताज़गी एवं ऊजा ा होती है।
कमर दद, मे द ड वाले रोिगय को लाभ।
अ थमा/फु फु स रोग से पीिड़त ि भी लाभाि वत होता है।
सवागासन, हलासन एवं िवपरीतकरणी मु ा के बाद यह आसन अव य कर।
ि पहले धन कमाने के िलए
वा य क चंता नह करता,
बाद म वा य ठीक करने के िलए
धन क िचता नह करता। आ य है!
-RJT

सपासन

िविध : अपने थान पर कं बल के ऊपर पेट के बल लेट जाएँ। ठु ी ज़मीन पर टकाएँ और


सामने देख। दोन हाथ को पीठ के पीछे ले जाकर आपस म पंज को फं सा ल। धीरे -धीरे
ास ख च। अब ास रोकते ए िसर एवं व ः थल को ज़मीन से ऊपर उठाएँ। हाथ को
पीछे क ओर तानते ए यथासंभव ऊपर उठाएँ और महसूस कर क कोई पीछे से हाथ को
ख च रहा है।

ास म/समय : अनुकूलतानुसार क एवं ास छोड़ते ए वापस मूल अव था म आएँ।


इस या के कम से कम 5 च कर।

लाभ : व ः थल चौड़ा, मजबूत होता है। फे फड़े सुचा प से फै लते ह।


दमा (अ थमा) के रोिगय को लाभ।
उदर देश के अंग क मािलश होती है। अत: सभी अंग िनरोग होते ह। क़ ज़
दूर होता है।

सावधािनयाँ : उ र चाप एवं दय रोगी अिधक प र म के साथ न कर।


अध शलभासन

िविध : पेट के बल कं बल पर लेट जाएँ। दोन हाथ क हथेिलय को जाँघ के नीचे रख ल।


पैर को लंबवत तानते ए ठु ी को भी आगे क ओर थोड़ा-सा तान। अब बाएँ पैर को ऊपर
क तरफ़ (िच ानुसार) िजतना संभव हो ले जाएँ व दाएँ पैर को तनावमु रख।
अनुकूलतानुसार क एवं पैर को वापस लाएँ। इसी कार दाएँ पैर से अ यास कर। यह
अ यास कम से कम 5 से 10 च तक कर।

ास म/समय : ास लेने के साथ ही पैर ऊपर उठाएँ। कुं भक कर, पैर को नीचे लाते
समय ास छोड़।
लाभ : क़ ज़ दूर करता है।
उदर देश के अंग को लाभ िमलता है।
साय टका एवं ि ल पिड क वाल को लाभ ा होता है।
कमर दद एवं पीठ दद म लाभकारी।

गितमय अध शलभासन

इसम अ य त होने के बाद पैर को ऊपर-नीचे करने क गित म तेज़ी लाएँ। दायाँ पैर ऊपर
तो बायाँ पैर नीचे कर। इस कार मश: ऊपर-नीचे करते ए पैर क गित दान कर।

शलभासन
िविध : पेट के बल कं बल पर लेट जाएँ। दोन हाथ क हथेिलय को अधमु ी बनाकर
जाँघ के नीचे रख ल। ठु ी को थोड़ा आगे क ओर तानते ए ज़मीन पर ही ि थर रख।
शरीर को िशिथल कर, परं तु पूणतः सजगता रख। अब दोन पैर को एक साथ लंबवत रखे
एवं ास लेकर ऊपर क तरफ़ पैर को उठाएँ। िजतनी देर क सकते ह क एवं ास
छोड़ते ए पैर को नीचे लाएँ। शरीर को िशिथल कर। इस कार कम से कम 5 बार यह
या कर। कु छ योग िश क िसर को ऊपर क तरफ़ उठाना एवं हाथ को जंघा के पास
रखवाकर यह करवाते ह।

यान : िवशुि च पर।

सावधािनयाँ : दय रोगी, हाई लड ेशर, ह नया के रोगी धैय पूवक कर।

गितमय शलभासन : िजन साधक को उपरो बीमा रयाँ न ह वे इस शलभासन को


ग या मक प से कर सकते ह, चूँ क दोन पैर को एक साथ संतुलन देकर उठाना होता है
इसिलए पूरी सजगता के साथ अ यास कर।

लाभ : मे द ड के गु रय म आए ए र थान को ठीक करता है।


िन य अ यास से टी.बी. ( यरोग) नह होता।
लोन ंिथ स य होने के कारण मधुमेह के रोिगय को लाभ।
उदर देश को िनरोग रखता है। साइ टका व ि लप िड क वाले रोगी इस या
को अव य कर।
यकृ त एवं आमाशय को याशील बनाता है।
ि लप िड क का रोगी ज द ही िनरोगी हो जाता है। मू ाशय संबंधी
बीमारी दूर होती है।

नोट : कु छ योग िश क इस आसन को अध शलभासन भी कहते ह।


िवपरीत नौकासन

शाि दक अथ : िवपरीत का अथ 'उ टा' है।

िविध : पेट के बल ज़मीन पर लेट जाएँ। बाह से दोन कान को दबाते ए हाथ को आगे
क तरफ़ नम कार क मु ा म ले जाएँ या आपस म फँ सा ल। ह का तनाव देते ए धड़,
िसर और पैर को ऊपर उठाएँ। हाथ, िसर व पैर को उठाते समय ास ल वापस आते
समय ास छोड़े।

यान : िवशुि च पर।

लाभ : संपूण शरीर को आराम देता है।


शरीर म ऊ णता को बढ़ाता है।
मे द ड व कमर के िलए लाभकारी है।
पैर क माँसपेिशय म खंचाव उ प कर र संचार िविनयिमत करता है।

ट पणी : यह शलभासन का ही एक कार है।

य द आप िनरोगी ह तो सदा िनरोगी बने रहने के


िलए योगा यास कर और य द आप रोग त ह
तो िनरोग होने के िलए योगा यास अव य ही
कर और व थ व सुंदर हो जाएँ।

-RJT
मुगा आसना मक या

िवशेष : पहले कू ल म जब कोई िव ाथ शरारत करता था तो िश कगण उसे मुगा बना


देते थे। वैसे तो यह एक सज़ा होती थी ले कन यह या शरीर को कई कार से लाभ
प च ँ ाती है।

िविध : दोन पैर को थोड़ा सा फै लाकर खड़े हो जाएँ। नीचे क तरफ़ झुकते ए को घुटने
के अंदर क तरफ़ से डालकर कान को पकड़। इस अव था म आने के बाद धीरे -धीरे
िनतंब को ऊपर क तरफ़ उठाएँ और िसर को सामने क तरफ़ करने क कोिशश कर। 5 से
10 सेकंड क और वापस मूल अव था म आएँ।

ास म/समय : सामने क तरफ़ झुकते समय ास छोड़ व मूल अव था म लौटते समय


ास ल। 5 से 10 बार यही या कर।

लाभ : वायु िन कासन के िलए ब त अ छा आसन है।


चेहरे म र संचार बढ़ने के कारण चेहरे के ओज-तेज म वृि होती है। झु रयाँ
समा होती ह।
मरण शि बढ़ती है। िव ा थय को अव य करना चािहए।
आँख के िलए लाभदायक है। मश: अ यास करने से माइ ेन म लाभ प च
ँ ता
है।
िनतंब, जंघा, पीठ एवं मे द ड क माँसपेिशय म खंचाव होता है इसिलए
र संचार बढ़ाकर उनके िवकार दूर करने म सहायक है।

सावधािनयाँ : दय रोगी, उ र चाप, पुराने कमर दद के रोगी एवं गभवती मिहलाएँ


न कर।

ि लोकासन

श दाथ : ि लोक का अथ तीन लोक।

िविध : दोन पैर के बीच लगभग तीन फ़ट क दूरी रखकर खड़े हो जाएँ। दोन हाथ को
कमर पर इस कार रख क अँगूठा कमर के पीछे पीठ क तरफ़ हो। चार अँगुिलयाँ सामने
पेट क तरफ़ होनी चािहए। मे द ड, ीवा एवं िसर सीधा रख। दृि सामने क ओर रख
और अंतकु भक करते ए धीरे -धीरे ज़मीन क तरफ़ बैठने का यास कर। िणक क,
वापस मूल अव था म आएँ। धीरे -धीरे अ यास के ारा अिधक से अिधक ज़मीन के िनकट
िनतंब को ले जाने का यास कर।

ास म : नीचे बैठते समय ास छोड़े एवं ऊपर उठते समय ास ल।


समय : 4 से 5 बार या कर।

िवशेष : दोन पैर के पंजे बाहर क तरफ़ िनकले ह । इस अव था म कमर पर रखे ए


हाथ क कु हनी पंज क सीध म हो जाती है।
लाभ : पंडली और जंघाएँ मज़बूत होती ह।
पैर का कं पवात िमटता है।
िनयिमत प से यह या करने पर जंघा क अनाव यक चब कम हो जाती
है। जंघाएँ सुडौल बनती ह।
उदर देश लाभाि वत होता है।

गितमय ि लोकासन

िविध : इस आसन को और अिधक गितमय बनाने के िलए मूल अव था (ि लोकासन) म


खड़े हो जाएँ। पहले बाएँ पैर पर धीरे -धीरे वज़न देते ए घुटने से मोड़ (िच ानुसार)। पूरा
भार बाएँ पैर क पंडली पर देते ए झुक एवं बाएँ पैर के पंजे पर ज़ोर देते ए बैठने क
कोिशश कर। दूसरा पैर लंबवत ही रख। इस कार एक पैर मुड़ा आ एवं दूसरा पैर तना
आ रहेगा। अब धीरे -धीरे बाएँ पैर पर ज़ोर देते ए सीधे खड़े हो जाएँ। यही अ यास दाएँ
पैर से कर।

ास म/समय : नीचे बैठते समय ास छोड़। ऊपर उठते समय ास ल। 5-5 बार दोन
पैर से कर।
िवशेष : यह िपछले अ यास से थोड़ा क ठन है। अतः धीरे -धीरे ही कर।
पैर को अिधक से अिधक फै लाकर करने से सरलता महसूस होती है।

लाभ : वे सभी लाभ िमलते ह, जो ि लोकासन से ा होते ह एवं पैर क माँसपेिशयाँ


अिधक शि शाली हो जाती ह।

गितमय ितयक पृ ासन/गितमय ितयक ि लोकासन

िविध : ि लोकासन क अव था म खड़े हो जाएँ या दोन पैर के बीच लगभग 3 फट का


अ तर रखकर खड़े हो जाएँ हाथ को कमर पर रख (अंगुिलयाँ पेट क तरफ़ और अंगूठा
पीठ क तरफ़ एवं पैर क अंगुिलयाँ बाहर क तरफ़ हो) अब कमर से ऊपर के भाग को
बाएँ पैर क तरफ़ घुमाएँ और झुकाकर (िच देख) समकोण क ि थित िन मत कर। कु छ
देर क और शरीर के ऊपरी भाग को घुमाते ए म य म लाकर मूल अव था म आ जाएं।
यही या दािहने तरफ़ से भी कर। िवपरीत तरीके से या कर जैसे पहले सामने क
तरफ़ झुक, घूमते ए बाई तरफ़ जाएँ, फर ितयक अव था म खड़े हो, त प ात् ऊपरी
भाग को सीधा कर सामने देख। अ य त होने के बाद आसन करने म तेजी लाएँ।

ास म/समय : दोन तरफ़ 4 से 5 बार अ यास कर। शरीर को झुकाते समय ास छोड़
मूल अव था म वापस आते समय ास ल।

लाभ : पीठ, कमर के िवकार दूर करता है।


शरीर को छरहरा बनाता है।
पाचन तं को याशील करता है।
वायु का शमन करता है।

सावधािनयाँ : कड़क मे द ड, ती कमर दद से पीिड़त ि न कर।

क ट वृ ासन

िविध : सीधे खड़े हो जाएँ। दोन पैर के बीच यादा अंतर न रख (लगभग 8 से 12 इं च)।
दोन हाथ कमर पर रख। अब कमर को गोल-गोल घुमाएँ। इसके िलए कमर को आगे
झुकाएँ व दाई तरफ़ से घुमाते ए पीछे से बाई तरफ़ ले आएँ, फर सामने कर। इस कार
चार तरफ़ कमर को घुमाते ए वृ बनाएँ। कम से कम 40 से 50 बार दाएँ से बाएँ घुमाएँ
और फर वापस 40 से 50 बार िवपरीत दशा म घुमाएँ।

ास म : आगे क तरफ़ कमर करते समय ास ल एवं पीछे क तरफ़ घुमाते समय ास
छोड़।

नोट : कमर को िजतना आगे-पीछे कर सकते ह, कर।

लाभ : क़ ज़ का नाश करता है। पाचन या ती करता है। गैस को बाहर करता है।
यादा से यादा करने पर पेट क अित र चब दूर होती है।
कमर पतली एवं मज़बूत होती है।
मोटापा दूर करने म अिधक सहायक है।
मिहला के िलए अित लाभदायक है।

िवशेष : कमर म हाथ रखने क ि थित म अंगूठे को पेट क तरफ़ भी रख सकते ह।

कं गा कू द
िविध : इस आसन म कं गा क तरह उछल-कू द करनी होती है। अत: सीधे खड़े होकर
िच ानुसार ि थित िन मत कर। अपने थान से कं गा क तरह पंज के बल कू दते ए कम
से कम दस क़दम आगे जाएँ। वापस कू दते ए अपने थान पर आ जाएँ। यह एक आवृि
ई। इस कार कम से कम 2 से 3 आवृि कर।

ास म : ास लेते ए कू द और अंितम ि थित म आकर ास छोड़।

लाभ : आलस समा होता है। शरीर म फू त एवं ताज़गी आती है।
र संचार क या बेहतर होती है।
यह या आनंद देती है।
उदर देश याि वत होता है।

नोट : यास कर क अिधक उछलकर कू दते ए आगे जाएँ

सावधानी : गभवती मिहलाएँ या अधोभाग म िजनका आपरे शन आ हो वे न कर।

मढक कू द
िवशेष : आज के दौर म ि मशीन के अधीन होता जा रहा है। इस वजह से शरीर म
फू त क कमी हो जाती है। परं तु ऊजादायक िवशेष आसन एवं याएँ स ता के साथ-
साथ फू त एवं ताज़गी भी बढ़ाती ह।

िविध : जैसे मढक बैठता है, वैसे ही पंज के बल उकडू बैठे (िच देख)। घुटन को फै लाएँ,
हाथ क अंगुिलय को भी फै लाकर रख। कु हिनयाँ घुटन से सटाकर रख। अब पैर और
हाथ के पंज पर दबाव डाल और मढक क तरह उछलकर आगे क ओर कू द। दोबारा फर
आगे क ओर कू द। इस कार यह या 10 बार कर और वापस कू दते ए अपने थान पर
आएँ।

ास म/समय : कू दते समय ास लेकर अंतकु भक कर। ज़मीन पर आने पर ास छोड़।


इस कार 20 से 40 बार मढक क तरह कू द।

लाभ : पूरे शरीर म र संचार तेज़ होता है। सभी नस-नािड़याँ खुल जाती ह।
यह या स ता देती है।
हाथ-पैर क माँसपेिशयाँ मज़बूत होती ह।
फे फड़ क काय मता बढ़ती है।
पाचन तं मज़बूत होता है।

सावधािनयाँ : गभवती मिहलाएँ या अधोभाग के ऑपरे शन वाले ि न कर।


बाल हॅसी/बालमचलन या

िविध : पीठ के बल लेट जाएँ। पूरे शरीर को तनाव मु कर। हाथ क मु याँ बंद कर।
अब वैसा ही कर जैसे छः महीने का ब ा अपने हाथ-पैर को चलाता आ रोता है या
हँसता है। इसके िलए दायाँ घुटना ऊपर मोड़ और बायाँ हाथ िसर के पीछे से उठाएँ और
छाती के बगल से आगे लाएँ। उसी समय म से दूसरे पैर और हाथ के साथ भी वैसा ही
कर। ज दी-ज दी हाथ-पैर चलाएँ। जैसे छोटा ब ा हँसता है वैसे ही आप भी अपने आप
को छोटा ब ा समझकर हँस ।

लाभ : हाथ-पैर को आराम िमलता है। मे द ड, पीठ क माँसपेिशय और फे फड़ म


र संचार सुचा होता है।
यह या आनंद दान करती है।
मानिसक तनाव को दूर करती है।
अहंकार का भाव नह रहता एवं ह कापन महसूस होता है।

िवशेष : इस या को कराने का मतलब अपने अ दर वा स य और िन कपट भाव पैदा


करना है।
दृि वधक यौिगक अ यासावली

हालाँ क आँख के दोष दूर करने के िलए कई कार के योगासन इसी पु तक म दए गए ह।


फर भी इन सभी या को मशः ित दन करने से कु छ ही महीन म दृि दोष
लगभग समा कया जा सकता है। दृि दोष दूर करने के िलए अपने दनभर के
याकलाप और खान-पान पर यान देना भी ब त ज़ री है। िन िलिखत अ यास कर
और जीवन भर आँख म होने वाली बीमा रय से बच।

आँख पर हथेिलयाँ रखना - अ यास म 1

िविध : वैि छक प से कसी भी सुखासन के आसन म बैठे। हथेिलय को आपस म इतना


रगड़ क गमािहट महसूस होने लगे। अब आँख बंद कर और हथेिलय को आँख पर रख।
आँख म गमाहट महसूस कर। हथेली के ठं डे होने पर यह या पुनः कर। इस कार
हथेिलय से िनकलने वाली शि को महसूस कर। यह िविध 3 बार कर।

दाएँ-बाएँ दृि करना - अ यास म 2


िविध : उपरो िविध के अनुसार ही बैठ। या सामने पैर फै लाकर बैठ। हाथ क दोन
तरफ़ कं ध के समानांतर फै लाएँ। मु ी बंद कर ल, परं तु अँगूठे को ऊपर क तरफ़ कर। िसर
क ि थर रख। अब आँख से पहले बाएँ अँगूठे को देख फर दृि को बीच म नासा पर
लाएँ। इसके बाद दृि को दाएँ अँगूठे पर ले जाएँ एवं वापस फर नासा पर लाएँ। यह
या इसी म म 10 से 15 बार या आव यकतानुसार कर और आँख को कु छ देर के िलए
आराम दान कर।

ास म : दाएँ-बाएँ देखते समय ास ल और सामने देखते समय ास छोड़।

सामने और दाएँ/बाएँ देखना - अ यास म 3

िविध : िपछली िविध के अनुसार ही बैठ। अब कं ध के समानांतर बाएँ हाथ क आँख के


ठीक सामने एवं दाएँ हाथ को दाई तरफ़ ले जाएँ। कं धे क ऊँचाई के बराबर अँगूठे को
बाहर िनकालकर मु ी बंद कर ि थर कर। अब िबना िसर िहलाए सामने वाले अँगूठे को
देख फर दाएँ अंगूठे को देख। इस कार 10 से 15 बार देख और हाथ क ि थित को
बदलकर बाएँ हाथ को बाई तरफ़ व दाएँ हाथ को सामने क तरफ़ करते ए कर। आँख
को कु छ देर के िलए आराम दान कर।

ास म : दाएँ और बाएँ देखते समय ास ल और सामने देखते समय ास छोड़।

दृि को दाएँ से बाएँ करना - अ यास म 4

िविध : उपरो िविध के अनुसार ही बैठे रह। दाएँ हाथ को ठीक आँख के सामने कर।मु ी
बंद और अंगूठा बाहर िनकला आ अब हाथ को दा तरफ़ ले जाएँ। (दृि अंगूठे पर ही
रख)। फर हाथ को सामने से घुमाते ए बाई तरफ़ ले जाएँ एवं वापस हाथ को आँख के
सामने ि थर कर। इसी कार यह अ यास 10 से 15 बार कर। इसके बाद आँख को
लगभग आधा िमनट तक आराम द।

ास म : दाएँ जाते समय ास ल। वापस आते समय ास छोड़। बाएँ जाते समय भी
यही या दोहराएँ।

दृि को वृताकार घुमाना - अ यास म 5


िविध : िपछली िविध के अनुसार ही बैठे रह। बाएँ हाथ को जंघा पर रख और दाएँ हाथ
को सामने क तरफ़ ताने ए रख (मु ी बंद)। अँगूठा ऊपर क तरफ़ िनकला आ व िसर
ि थर रख। अब दृि को अँगूठे पर क त कर और तने ए हाथ से तनी ई अव था म ही
सामने क तरफ़ दाएँ से बाएँ एक बड़ा सा वृ बनाएँ (दाई तरफ़ से घुमाते ए पहले दाई
तरफ फर उ पर क तरफ रख एवं बाद म बाई तरफ़ से लाते ए सामने क तरफ़ ले
आएँ)।
यही या 5 बार दाएँ से बाएँ और 5 बार बाएँ से दाएँ क ओर कर। वृ बनाते समय
िसर ि थर, मे द ड सीधा एवं िसफ दृि चलायमान रहेगी। अब आँख क आराम द।

ास म : हाथ को ऊपर ले जाते समय ास ल और नीचे का वृ बनाते समय ास


छोड़।

दृि को ऊपर-नीचे करना - अ यास म 6


िविध : उपरो िविध अनुसार ही बैठे रह। दोन हाथ क ऊपर िनकालकर सामने रख
ल। मे द ड सीधा तना आ व िसर ि थर रख। अब दाएँ हाथ के अँगूठे पर दृि ि थर कर
और दाएँ हाथ को धीरे -धीरे ऊपर क तरफ़ ले जाएँ और वापस (दृि को पूणतः अंगूठे पर
ही क त रखते ए ऊपर-नीचे कर) अँगूठा एवं दृि नीचे क तरफ़ कर। अब यही या
बाएँ हाथ से भी कर। इस कार दोन हाथ से 5-5 बार कर।

ास म : दृि ऊपर ले जाते समय ास ल व नीचे करते समय ास छोड़।

दृि को दूर पास करना - अ यास म 7


िविध : िपछली िविध के अनुसार ही बैठे रह। दाएँ हाथ को कं धे के समक उठाकर सामने
क तरफ सीधा तान द। मु याँ बंद, अंगूठा बाहर ऊपर उठा आ रख। दृि अँगूठे पर
ि थर कर और धीरे -धीरे अँगूठे को पास लाते ए नाक से पश कराएँ और वापस दूर ले
जाते ए हाथ को लंबवत तान द (दृि अँगूठे के ऊपरी भाग पर ि थर रख। फर अँगूठे को
पास लाते ए नाक से पश कराएँ। इस कार 5 आवृि कर।

ास म : अँगूठा पास लाते समय ास छोड़ और दूर ले जाते समय ल।

दूर-पास देखना - अ यास म 8

िविध : इस अ यास को खुले मैदान या घर क छत पर कर सकते ह। नािसका के अ भाग


पर 5 सेकंड तक दृि ि थर कर और उसके बाद दूर आकाश पर या दूर कसी व तु पर 5
सेकंड के िलए दृि ि थर कर। यही म 5 से 10 बार कर।

ास म : पास देखते समय ास छोड़। और दूर देखते ए ास ल।


िवशेष : सभी या के बाद हथेिलय को रगड़कर आँख पर लगाएँ।
अंत म कु छ देर शवासन म आकर िव ाम ल।
आँख म ठं डे पानी के छ टे द। आँख को रगड़े नह ।

आँख बंद करना और खोलना - अ यास म 9

िविध : पूरा यान आँख क तरफ़ रख। आँख को तेज़ी के साथ बंद कर (िमचिमचाएँ या
मीच)। आँख के चार तरफ़ से ज़ोर लगाएँ और 1 से 2 सेकंड के बाद खोल। यही या 5
से 10 बार कर। यह या करते समय दाँत को आपस म जोड़कर रख।

िवशेष: कु स या कसी आरामदायक जगह पर बैठकर भी कर सकते ह। कसी भी कार


क ठनाई महसूस हो तो तुरंत बंद कर द।

आँख के ायाम से लाभ


आँख क सम त पेिशय को लाभ िमलता है।
आँख के ितरछेपन को दूर करता है। ितरछापन आने से रोकता है।
िजनक नज़र कमज़ोर ह। जो च मा लगाते ह, पढ़ते समय आँख से आँसू आने
लगते ह , इन सभी के िलए आँख के ये सारे ायाम लाभदायक ह।
आँख व थ एवं सुंदर बनती ह।
बुढ़ापे तक आँख म कोई रोग नह हो पाता है।

दूसर के रा ते म फू ल िबछाना चालू कर दो।


तु हारे रा ते के काँटे भी फू ल बन जाएंग।

-RJT
तनाव मुि एवं िशिथलता के िलए आसन

शवासन/मृतासन/पूण िव ामासन

शाि दक अथ : शव का अथ मृत शरीर है। यह आसन करते समय शरीर िन ल हो जाता


है, जैसे मृत हो गया हो। इसिलए इस आसन का नाम मृतासन भी है।

िविध : पीठ के बल लेट जाएँ। हाथ को दोन तरफ़ कमर के समक रख। हथेिलयाँ
आकाश क तरफ़ अधखुली रख। एिड़याँ आपस म िमली ई ह पर पंज के बीच एक
िनि त दूरी बनाए रख। आँख बंद रख जीभ ि थर रख। अब धीरे -धीरे ास ल और छोड़।
एका ता बढ़ाने के िलए ास पर यान द। कु छ देर बाद नािड़याँ िनि य हो जाती ह।
साधक क िन लता बढ़ने लगती है एवं वह ह कापन व स ता अनुभव करने लगता है।
पूरे शरीर म शि के वाह का अनुभव कया जा सकता है। इसे लगभग 5 से 10 िमनट
तक कर।

यान : ास पर यान देते ए मूलाधार से ऊपर उठती ई ऊजा का अनुभव कर।


लाभ : अिन ा के रोगी इसका अ यास कर पूण लाभ ा कर सकते ह।
तनाव त ि को यह आसन अ भुत शांित दान करता है।
दमागी शि बढ़ाने के िलए इसका उपयोग कर।
उ र चाप वाले इसे िनयिमत प से कर।

िवशेष : अिधक लाभ के िलए योग िन ा का अ यास कर।


आ द य य नम कारान्, ये कु वि त दने दने।
आयुः ा बलवीय तेजस् तेषाञ् च जायते I |

अथः जो ित दन सूयनम कार करते ह, वे आयु, ा (अ छी बुि ), बल, वीय और तेज


ा करते ह।
आ ददेव नम तु यं सीद मम भा कर।
दवाकर नम तु यं भाकर नमोऽ तु ते।।

अथात् - हे आ ददेव भा कर! आपको णाम है, आप मुझ पर स ह , हे दवाकर!


आपको नम कार है, हे भाकर! आपको णाम है।
सूय नम कार
एक अनु चंतन

सू यआजकाभीमहसूवय समझाने के िलए हमारे धम ंथ म अना द काल से वणन होता आया है।
एक रह य है और मशः खोज जारी है। परं तु एक बात प है क यह
हम ाचीन समय से अपनी ओर आक षत करता आया है। हम िपछले युग म जाएँ या
आज के युग क बात कर, सूय हम हमेशा जीवनदाियनी ऊजा देता आया है। सूय के बारे म
जानने के िलए आज का वै ािनक दन-रात एक कर रहे ह, जब क हमारे ऋिष-मुिन
इसक द ता और उसका उपयोग करना भी जानते थे। सूय मा हमारे शरीर को ही
नह , हमारे सू म शरीर को भी अपनी चैत य शि से जीवंतता दान करता है। वै ािनक
इसे आग का गोला कह अथवा कोई ह परं तु ाचीन काल म ही इसके अनेक रह य को
हमारे मनीिषय ने समझ िलया था और उसका उपयोग करने क कला को जन-क याण
तक प च ँ ाया था। परं तु अब सूय का ान लु ाय है। यहाँ पर हम थोड़ी सी चचा सूय के
रह य को समझाने के िलए करना चाहते ह, ता क हम जब सूय नम कार कर तो हमारे मन
म ा, लगन और आ था कट हो और हम उससे लाभाि वत हो सक।
पाठकगण शायद जानते ह क बनारस म एक ब त बड़े संत ए ह िजनका नाम था
वामी िवशु ानंद परमहंस और उनके िश य थे काशी हंद ु िव िव ालय के ाचाय
गोपीनाथ किवराज। चूँ क कथानक काफ़ िव तृत है, अत: हम िसफ इतना बताना चाहगे
क उ ह ने िहमालय के कसी गु आ म ( ानगंज आ म) म जाकर 12 वष क क ठन
साधना क । इसके बाद सन् 1920 के आस-पास वापस बनारस आकर सूय िव ान का
चम कार इस पूरे िव को बताकर आ यच कत कर दया था। लोग ने दाँत तले
अँगुिलयाँ दबा ल थ । सैकड़ िश य के सामने वे सूय िव ान ारा एक व तु को दूसरी
व तु म पांत रत कर दया करते थे, जैसे कपास को वे फू ल, प थर, ेनाइट, हीरा, लकड़ी
आ द कु छ भी बनाकर दखा देते थे। यहाँ तक क उ ह ने एक बार मृत िचिड़या को जीिवत
कर दया था। यह आ म आज भी िहमालय म ि थत है। यह वृतांत लेखक पॉल ंटन क
पु तक से िलया गया है। यह दृ ांत बताने के पीछे हमारा उ े य सूय के ित आपक
िज ासा और आ था बढ़ाने का है ता क हम उस दनकर से अिधक से अिधक लाभ ा
कर सक।
सूय नम कार क एक आवृित म 12 ि थितयाँ ह। येक आसन का अपना एक मं है।
येक या का अपना एक लाभ है। हम तो इतना कहगे क नया जीवन चािहए, तो सूय
नम कार क िजए।
ित दन िनयम से कया जाने वाला सूय नम कार अ य ायाम क अपे ा यादा
लाभकारी है। सूय देव का वणन हम िजतना कर, कम है। अत: हम सूय देव को नम कार
करने क प ित का वणन करगे।

सूयनम कार का ाचीन इितहास

सूय नम कार करने का मु य कारण संभवतया उसके ारा जीवनदाियनी ऊजा िमलना
और उसके ित कृ त ता कट करना रहा है। सूय म थािपत अकृ ि म ितमा को या यूँ
कह क सूयदेव को अ य सम पत करने का चलन आ दकाल से रहा है, जब इस भरत-
भूिम के थम च वत राजा भरत सूय म ि थत िजनालय को नम कार कया करते थे।
क ह कारण से इसका चार- सार अिधक नह हो पाया परं तु दि ण भारत के आचाय
ने इसे आ मसात् कया और इस िव ा को जीवंत रखा। जब वे शेष भारत के तीथ पर
मण हेतु आते तो वहाँ भी िन यकम म सूय नम कार करते थे। तीथ थान क जनता
उ ह देखकर सूय नम कार क िविध का अनुसरण करती थी। इस कार पुनः संपूण भारत
वष म सूय नम कार का चार- सार आ।

सूय नम कार का आधुिनक इितहास

सूय नम कार क कई मु ाएँ ह कं तु पारड़ी िजला - सूरत (गुजरात) के वेदमू त ी ीपाद


दामोदर सातवलेकर ने सव सुलभ बारह अंक के सूय नम कार क िविध चिलत क ,
िजसका उपयोग संपूण भारत म कया जाता है। िशवाजी महाराज को उनके गु समथ
रामदास ने सूय नम कार क िविध िसखाई िजसका उ ह ने अ यास कया और
प रणाम व प उनका शरीर एवं च र इितहास म अि तीय है। िशवाजी महाराज ने
अपने सैिनक को सूय नम कार क िविध िसखाई और इस कार सूय नम कार क िविध
का चार- सार बढ़ा। 'सूय नम कार' के ादश आदश बीज मं एवं या मं होने के
कारण बारह अंक के सूय नम कार क वै ािनकता बढ़ जाती है।

सूय नम कार

1. ाथना मु ा/नम कारासन/ णामासन


िविध : ाथना क मु ा म पंज को िमलाकर पूव दशा क तरफ़ सीधे खड़े हो जाएँ। पूरे
शरीर को िशिथल कर द एवं आगे के अ यास के िलए तैयार रह।

ास म : समा य।

यान : अनाहत च पर।

मं : ॐ िम ाय नमः अथात हे िव के िम सूय, आपको नम कार। बीज मं - ॐ हां।

लाभ : र संचार सामा य करता है। एका ता एवं शांित दान करता है।

नोट : इसे नम कार मु ा भी कहते ह।

2. ह तउ ानासन
िविध : दोन हाथ को ऊपर उठाएँ। कं ध क चौड़ाई के बराबर दोन भुजा क दूरी
रख। िसर और ऊपरी धड़ को यथासंभव पीछे झुकाएँ। परं तु भुजाबंध कान क सीध म रख।

ास म : भुजा को ऊपर उठाते समय ास ल।

मं : ॐ रवये नमः अथात हे संसार म चहल-पहल लाने वाले सूयदेव, आपको नम कार।
बीज मं - ॐ ह ।

यान : िवशुि च पर।

लाभ : उदर क अित र चब को हटाता है। पाचन-तं बेहतर बनाता है। फु फु स पु


होते ह। भुजा और कं ध क माँसपेिशय का ायाम होता है।

3. पाद ह तासन/ह त पादासन


िविध : सामने क तरफ़ झुकते ए दोन हाथ के पंज को पैर के बगल म पश करते ए
रख। म तक को घुटने से पश कराएँ। पैर को सीधा रख।

ास म : सामने क तरफ़ झुकते ए ास छोड़ एवं अिधक से अिधक ास बाहर


िनकालने के िलए अंितम ि थत म पेट को संकुिचत कर।

यान : वािध ान च पर।

मं : ॐ सूयाय नमः अथात हे संसार को जीवन देने वाले सूयदेव, आपको नम कार। बीज
मं - ॐ ।ं

लाभ : उदर क चब कम करता है। पेट एवं अमाशय के दोष को रोकता तथा न करता
है। क़ ज़ नाशक है। मे द ड को लचीला बनाता है एवं उसके ायु के दबाव को सामा य
करता है। र संचार तेज़ करता है।

4. अ संचालनासन/एक पाद सारणासन


िविध : अब बाएँ पैर को िजतना पीछे ले जा सकते ह ले जाएँ और बाएँ घुटने एवं पाद पृ
भाग को ज़मीन से पश कराएँ। दाएँ पंजे को अपनी ही जगह पर दृढ़ रखते ए घुटने को
मोड़। भुजाएँ अपने थान पर सीधी रह। हाथ के पंजे एवं दाएँ पैर का पंजा एक सरल रे खा
म ही रख।

इस या म दोन हाथ, बाएँ पैर का पादपृ , घुटना एवं दाएँ पैर के ऊपर शरीर का वज़न
ि थत रहेगा। अब िसर पीछे क तरफ़ उठाएँ। दृि सामने ऊपर क तरफ़ और शरीर को
धनुषाकार बनाएँ।

ास म : बाएँ पैर को पीछे ले जाते समय ास ल।

यान : आ ा च पर।

मं : ॐ भानवे नमः अथात हे काशपुंज, आपको नम कार हो। बीज मं - ॐ ह।

लाभ : मे द ड म लोच पैदा होती है। उदर देश के ह के तनाव के कारण पाचन-तं म
र संचार बढ़ाता है, इससे पाचन-तं सुचा प से काय करता है।

5. पवतासन/भूधरासन
िविध : शरीर का वज़न दोन हाथ पर ि थर करते ए दाएँ पैर को सीधा करके पंजे को
बाएँ पंजे के पास रख। अब िनतंब को अिधकतम ऊपर क तरफ़ उठाएँ एवं िसर को दोन
भुजा के बीच लाएँ। एिड़याँ ज़मीन से ऊपर न उठे और घुटन क तरफ़ देखते ए पैर
और भुजाएँ एक सीध म रख।

ास म : दाएँ पैर को पीछे लाते समय एवं िनतंब को उठाते समय ास छोड़।

यान : िवशुि च पर।

मं : ॐ खगाय नमः अथात हे आकाश म गित करने वाले देव, आपको नम कार। बीज
मं - ॐ व ।

लाभ : िसर सामने क तरफ़ झुका होने के कारण र संचार बढ़ जाता है। इससे चेहरे पर
ताज़गी होने के साथ ही आँख क रोशनी व बाल का झड़ना कता है। भुजा और पैर
का ायाम होता है। मे द ड के ायु को लाभ होता है। इससे लचीलापन बढ़ता है और
मे द ड सश होता है।

6. अ ांग नम कारासन/ िणपातासन

िविध : घुटने मोड़ते ए शरीर को ज़मीन क तरफ़ इस कार से झुकाएँ क दोन पाद पृ ,
दोन घुटने, छाती, दोन हाथ के पंजे एवं ठु ी ज़मीन का पश कर। िनतंब व उदर देश
ज़मीन से थोड़े ऊपर उठे रह।

ास म : ास को रोककर रख। यान : मिणपूरक च पर।

मं : ॐ पू णे नमः अथात हे संसार के पोषक, आपको नम कार। बीज मं : ॐ हः।

लाभ : छाती और फे फड़ को शि देता है। पैर और हाथ क माँसपेिशय को मज़बूती


देता है।

7. भुजंगासन
िविध : हाथ को सीधा कर। शरीर के अगले िह से- िसर, छाती और कमर भाग को ऊपर
उठाते ए िसर तथा गदन को पीछे क तरफ़ झुकाएँ।

ास म : उदर देश एवं छाती को धनुषाकार बनाकर ऊपर उठाते समय ास ल।

यान : वािध ान च पर। मं : ॐ िहर यगभाय नमः अथात हे योितमय, आपको


नम कार। बीज मं - ॐ हां।

ला भ : पाचनतं म तनाव उ प कर र संचार बढ़ाता है। अतः पाचन या को


याशील करता है। क़ ज़ हटाता है। फे फड़ को सुचा करता है। मे द ड को लचीला
बनाता है। दमा, काइ टस, सरवाइकल प डेलाइ टस, ि लप िड क रोिगय के िलए
लाभकारी।

8. पवतासन/भूधरासन

िविध : यह ि थित 5 क ही पुनरावृि है। शरीर के िनतंब वाले भाग को ऊपर उठाते ए
पैर के पंज क ज़मीन पर थािपत कर। शरीर क अंितम ि थित म कमर तथा िनतंब
अिधक से अिधक ऊपर ह । पैर के पंजे आपस म िमले ए ह ।दृि नािभ क तरफ़ रख।

ास म : िनतंब व धड़ को ऊपर उठाते समय ास छोड़।


यान : िवशुि च पर।

मं : ॐ मरीचये नमः अथात हे करण के वामी, आपको नम कार। बीज मं - ॐ ह ।

लाभ : हाथ एवं पैर के ायु एवं माँसपेिशय को नई ऊजा दान करता है। मे द ड को
लचीला बनाता है। इससे ि थित 5 के सभी लाभ ा होते ह।

नोट : कु छ योग िश क इसको अधोमुख ानासन भी कहते है।

9. अ -संचालनासन/एक पाद सारणासन

िवशेष : यह ि थित मांक 4 क आंिशक पुनरावृि है। ि थित 4 म बायाँ पैर पीछे जाता
है, जब क इस ि थित म दायाँ पैर पीछे रहता है।

िविध : बायाँ पैर सामने दोन हथेिलय के बीच म रख। इसी के साथ बाएँ पैर को मोड़
और पंजे को वह ि थर रहने द। दाएँ पैर को यथासंभव पीछे क ओर ख च। यान रख क
पाद पृ भाग और घुटना ज़मीन से पश करता रहे। भुजाएँ सीधी रख। इस ि थित म
शरीर का भार दोन हाथ, बाएँ पैर का पंजा, पाद पृ और दािहने घुटने पर होगा।

ास म : बाएँ पैर को आगे ले जाते समय ास ल।

यान : आ ा च पर। मं : ॐ आ द याय नमः अथात हे संसार के र क, आपको


नम कार। बीज मं : ॐ ।ं

लाभ : ि थित मांक 4 के सभी लाभ िमलते ह।


10. पाद ह तासन/ह त पादासन

िवशेष : यह ि थित मांक 3 क पुनरावृि है।

िविध : दोन हाथ पर भार डालते ए दाएँ पैर के पंजे को बाएँ पैर के पंजे के समक
थािपत कर। पैर को सीधा कर। म तक को घुटने से पश कराएँ। इस कार अंितम
ि थित म पैर के पंजे और हाथ के पंजे एक सीध म रहगे।

ास म : सामने क ओर झुकते समय ास छोड़। अिधक से अिधक ास बाहर


िनकालने के िलए उदर देश को संकुिचत कर।

यान : वािध ान च पर। मं : ॐ सिव े नमः अथात हे िव को उ प करने वाले,


आपको नम कार। बीज मं : ॐ ह।

लाभ : ि थित मांक 3 के सभी लाभ ा होते ह।

11. ह त उ ानासन
िवशेष : यह ि थित 2 क पुनरावृि है।

िविध : झुके ए शरीर को ऊपर उठाएँ एवं दोन हाथ को िसर के ऊपर ले जाएँ। कं ध क
चौड़ाई के बराबर दोन भुजा क दूरी रख। िसर एवं ऊपरी धड़ को यथासंभव पीछे
झुकाएँ।

ास म : हाथ को उठाते समय ास ल।

यान : िवशुि च पर।

मं : ॐ अकाय नमः अथात हे पिव ता को देने वाले, आपको नम कार। बीज मं - ॐ ह ।

लाभ : ि थित मांक 2 के लाभ ा होते ह।

12. ाथना मु ा/ णामासन/नम कारासन


िवशेष : यह ि थित मांक 1 क पुनरावृि है।

िविध : ऊपर उठे ए हाथ को ाथना क मु ा म पंज को िमलाकर सीधे खड़े हो जाएँ।
पूरे शरीर को िशिथल कर द।

ास म : ास छोड़कर सामा य ास- ास कर।

यान : अनाहत च पर।

मं : ॐ भा कराय नमः अथात हे काश करने वाले, आपको नम कार। बीज मं : ॐ हः



यह सूय नम कार क आधी आवृि है। पूरी आवृि करने के िलए हमने आसन मांक 4
और 9 म िजस पैर को पीछे कया था अब पूरी आवृि करने के िलए दूसरे पैर से करगे।
जैसे हमने पहले दायाँ पैर पीछे कया था, वैसे ही अब हम बायाँ पैर पीछे करगे। इस कार
कु ल 24 आसन के समूह को 1 आवृि कहते ह।
य द आप आधी आवृि (12 आसन) करने के बाद थकान महसूस कर, तो कु छ ास-
ास करते ए िव ाम कर। येक आसन करते समय सजग रह। स तापूवक मं जाप
करते रह। य द आप कसी आसन को िविधवत न कर पा रहे ह , तो पहले उसका अ यास
कर ल।
िवशेष : साधक को अपने शरीर का यान रखते ए 2 या 3 आवृि करनी चािहए। सूय
नम कार करने का सबसे अ छा समय मु त का है। इसे शौचा द से िनवृ होने के बाद
ान करके स मन से कर। व छ एवं ढीले व पहन। वातावरण शांत होना चािहए।
इसके िलए सुबह का समय ही बेहतर रहता है, य क इस समय जलवायु शु होती है
और सूय क अ ावॉयलेट करण भी हािन नह प च ँ ात । इसिलए ातः काल का समय
ही उपयु है। कसी कारणवश ातः काल सूय नम कार न कर पाएँ तो ख़ाली पेट या
सं या के समय कया जा सकता है।

सावधािनयाँ : 8 वष से यादा आयु वाले सभी ि यह आसन कर सकते ह। मे द ड क


सम या, उ र चाप, दय दोष व ह नया आ द रोग त साधक कसी गु के िनदश म
यह आसन कर।

संपूण लाभ
यह ाण शि दाता है।
इसम शारी रक और मानिसक दोन तर पर ऊजा संतुिलत होती है।
सूय नम कार के अ यास से सारे शरीर का ायाम हो जाता है।
मे द ड के बारी-बारी से आगे तथा पीछे मुड़ने के कारण शारी रक लाभ के
साथ-साथ कु डिलनी जागरण म भी इसका अिधक मह व है। चूँ क सुषु ा का
माग मे द ड ही है, अत: ऊजा उ वमुखी भी होती है।
सूय नम कार मानिसक शांित देता है। मरण शि बढ़ाता है। बल, वीय व तेज
क वृि करता है।
क़ ज़ का दु मन है। बुढ़ापे को पास नह आने देता।
ि याँ अपने शरीर को आकषक, सुंदर व सुडौल बना सकती ह।
सूय नम कार सम त बीमा रय का नाश करता है।
सूय के समान तेजवान बनाता है।
िव ाथ सूय नम कार को कर इनसे होने वाले लाभ को अव य ा कर।

सूय नम कार क एक अ य िविध

सूय नम कार क हमारे देश म कई िविधयाँ चिलत ह। इसक एक अ य िविध का


शासक य योग िश ण क के योग िश क ी मंगलेश यादव ने प ानुवाद कया है,
िजसे हम यहाँ तुत कर रहे ह :
समव था पूवािभमुख मीिलतनयन िवशेष,

सूयदेव को नमत है अ कचन'मंगलेश'।

िम ,रिव, सूर, भानु, खग, पू ण िहर यगभाय,


मा रच, आ द य, सिव , अक ब दौ भा कराय।

एक म हाथ और िसर पीछे , दो म िसर घुटनन लग जाय,

तीन म हो बायाँ पग पीछे , चार म मश: ऊपर जाय।

पाँच म पवत आसन करके छ: म देओ द ड लगाय,


सात म बायाँ पग हो आगे, आठ म मश: ऊपर जाय।

नौ म पुन: बने पवत सा, दस म देओ द ड लगाय,

यारह म उछल फर दोसा, बारह म एक-सा हो जाय।

सूय नम कार के लाभ

सूरज नमन से िमटत आिध और ािध,

शेर सी फु त , शरीर म आय।

वीर िशवाजी क तरह बनोगे च र वान,


कु ठा व कलुषता, तुरत भग जाय।

पीठलोचदार, मुखम डल ही कांितवान,

'मंगल' क भावना भुजा से आय।

सूरज क करण िमटाती ह अनेक रोग,


तन क सुघरता वत: बढ़ जाय।

इसी कार सूय नम कार क और भी कई िविधयाँ िविभ आचाय ने बताई ह परं तु हमने
मु य प से चिलत िविधय का ही वणन कया है।
चं नम कार

सूय नम कार क तरह चं नम कार भी ब त मह पूण है। इसम भी 12 याएँ होती ह,


(कह -कह 14 या का भी वणन आता है) िजनके 12 मं ह। इन मं का जाप येक
आसन के साथ कया जा सकता है। वैसे तो येक आसन का अपना मह व होता है परं तु
इन आसन को ृंखलाब तरीके से कया जाए तो उनक पूणता के बाद उन आसन के
लाभ म वृि हो जाती है, अत: साधक को चं नम कार से होने वाले लाभ अव य उठाना
चािहए।

पहली अव था

िविध : चं क तरफ़ मुख करके ताड़ासन क ि थित म खड़े हो जाएँ। दोन हाथ को ऊपर
उठाते ए कमर से ऊपर के िह से को िजतना पीछे झुका सकते ह, झुकाएँ। दोन हाथ खुले
ए आकाश क तरफ़ रख एवं मन ही मन ॐ चं ाय नम: का जाप कर।

दूसरी अव था

िविध : अब हाथ और कमर के ऊपरी भाग को सामने क तरफ़ झुकाते ए हाथ क पैर
के समानांतर रख। िसर को घुटन से पश कराएँ, कं तु घुटन को न मोड़। अब ॐ सोमाय
नम: का जाप कर।

तीसरी अव था

िविध : इसके उपरांत बाएँ पैर को पीछे ले जाकर सीधे लंबवत् रख। फर घुटने से मोड़ते
ए दाएँ पैर पर शरीर का पूरा भार डाल द एवं दोन हाथ दाएँ पैर के अगल-बगल म रख
और मन ही मन ॐ इ वे नम: का जाप कर।

चौथी अव था
िविध : अब जहाँ पर पैर के पंजे ह, उ ह उसी थान पर ि थर रखते ए इस कार खड़े ह
क बाएँ पैर का घुटना ज़मीन को पश करे और दायाँ घुटना समकोण बना ले। अब हाथ
को ऊपर उठाते ए कमर से ऊपर के भाग को पीछे क ओर झुकाएँ और मन ही मन ॐ
िनशाकराय नम: का जाप कर और कु छ देर तक क।

पाँचव अव था

िविध : अब तृतीय ि थित क तरह दाएँ पैर क जगह बाएँ पैर पर पूरा वज़न देते ए दाएँ
पैर को पीछे ले जाएँ। बाएँ पैर क एड़ी एवं दोन हाथ बाएँ पैर के पंजे के अगल-बगल म
ि थर कर और ॐ कलाभृताय नमः का जाप कर।

छठी अव था
िविध :अब चौथी अव था क तरह बाएँ पैर पर वज़न देते ए इस कार खड़े ह क दाएँ
पैर का घुटना ज़मीन को पश करता रहे और हाथ को ऊपर क तरफ़ तान द। अब ॐ
सुधाधराय नम: का जाप कर और कु छ देर इसी अव था म रह।

सातव अव था

िविध : इसके बाद दोन हाथ को नीचे ज़मीन पर ि थर कर और बाएँ पैर को दाएँ पैर के
पास ले जाएँ। इसी ि थित म रहते ए एक द ड लगा ल और ॐ िनशापतये नम: का जाप
कर।

आठव अव था
िविध :एक द ड लगाने के बाद उसी अव था म दोन घुटने जमीन पर टका ल और िसर
नीचे झुकाकर माथे से भूिम को पश कर । दोन हाथ क ि थित यथावत् रख एवं मन ही
मन ऊँ िशव शेखराय नमः का जाप कर ।

नौव अव था

िविध :वैसी ही ि थित म अब हाथ को िसर सिहत ऊपर क तरफ उठाएँ । कमर के ऊपरी
भाग को सीधा लंबवत् रखते ए पीछे क तरफ झुकाएँ । हाथ को आकाश क तरफ ही
रख एवं घुटने व पंज के बल एिड़य पर बैठ तथा ऊँ अमृतदीिधतये नमः का जाप कर ।

दसव अव था
िव िध :अब दोन हाथ को सामने क तरफ भूिम पर डेढ़ फट के अंतर पर रख । उसी
ि थित म एक द ड और लगा ल एवं उसी िविध म पंज और हाथ के बल बैठते ए घुटन
को भूिम से ऊपर उठा ल । इसके बाद मन ही मन ऊँ तमो ाय नमः का जाप कर ।

यारहव अव था

िविध : इसके बाद हाथ को िबना आगे- पीछे कए दोन पैर को उछालकर दोन हाथ के
बीच कर ल एवं पंज पर भार देकर बैठे। हथेली क जगह अंगुिलयाँ ही भूिम पर पश
करगी। िनतंब का भार एड़ी पर रहेगा। अब मन ही मन ॐ राजराजाय नम: का मं जाप
कर।

बारहव अव था
िविध : अब अंत म उसी ि थित म सीधे खड़े हो जाएँ। दोन हाथ सामने क तरफ़ जोड़ ल
और ॐ शशांक देवाय नम: का जाप कर।

इस कार यह एक आवृि ई, इसी कार 5-6 आवृि कर। थकान अनुभव होने पर
शवासन क ि थित म आराम कर।

समय : िजस कार सूय नम कार िवशेष प से ातः काल कराया जाता है उसी कार
चं नम कार सं या काल म करना चािहए।

लाभ :

O वैसे तो येक आसन का अपना अलग मह व होता है और उसका अपना एक अलग


लाभ भी होता है परं तु इसक पूरी आवृि करने से एक साथ कई लाभ ा होते ह।

O शरीर सुंदर, बिल , सुडौल होता है। उदर देश को लाभ िमलता है। क़ ज़, अ लता,
अजीण आ द दूर होते ह। शरीर कांितवान एवं तेजमय बन जाता है। मानिसक शांित एवं
शीतलता ा होती है। आल य, माद आ द नह होते। संपूण शरीर को िनरोगी बनाता
है।

नोट: कु छ योग क म चं नम कार क िविध िविभ कार से कराई जाती है।


दशा : चूँ क चं मा क ऊजा एवं उससे होने वाले लाभ को आ मसात् करना है। अत: िजस
दशा म चं का उदय हो उसी दशा का चयन करना चािहए।
येक ि को अपने जीवन म योग साधना
अपनानी चािहए, परं तु उिचत है क साधक
सव थम योगा यास से संबंिधत सभी बात को
भलीभाँित समझ ल और याि वत कर।
ऐसा करने से अिधक लाभ ा होता है।
-RJT

योगिव ाएँ मा ायाम ही नह ह, ब क


पूणअ ांग योग शारी रक तथा मानिसक
वा य दान कर स यक दृि व का
िनमाण करता है और आ मा को उ थान क
ओर अ सर करता है।
-RJT
प ासन एवं यान से संबंिधत आसन

सुखासन

शाि दक अथ : सुख का अथ स ता है। यह आसन पालथी मारकर बैठने क वजह से


सुखासन कहलाता है। य िप, िजस आसन म बैठने से सुख क अनुभूित हो, वह भी
सुखासन कहलाता है परं तु ाचीन समय से पालथी लगाकर बैठने वाले आसन को ही
सुखासन माना जाता रहा है।

िविध : आराम से ज़मीन पर घुटने मोड़ते ए पालथी मारकर बैठ जाएँ। (िच देख) हाथ
को गोद म या घुटन पर रख। मे द ड, ीवा व िसर सीधे रख।

यान : सम त च से िनकलने वाली ऊजा क अनुभूित।

ास म : ाणायाम के साथ/अनुकूलतानुसार।
समय : यथासंभव ।

दशा : पूव या उ र (आ याि मक लाभ हेत)ु ।

लाभ : यान के िलए यह एक उ कृ आसन है।


भोजन करते समय इस आसन का उपयोग िहतकारी है।
जो यान के िलए प ासन लगाने म असमथ ह वे इस आसन का उपयोग कर
सकते ह।
पूजा-पाठ म यह आसन अिधकतर कया जाता है।
यह आसन शारी रक फू त, मन क शांित और शरीर को िनरोगी रखने म
लाभकारी है।

गु ासन

शाि दक अथ : गु अथात् िछपा आ।

िविध : सुखासन म बैठ जाएँ। अपने बाएँ पैर क एड़ी को सीवनी नाड़ी पर लगाकर दबाएँ
और दािहने पैर क अँगुिलय को बाएँ पैर क जाँघ एवं पंडली के बीच फं साएँ। हाथ को
ान-मु ा क ि थित म लाकर घुटन के ऊपर रख।

यान : मूलाधार से सह ार च तक सम त च का मशः यान कर।

ास म : वाभािवक ास- ास कर।


समय : िनराकु ल होकर िजतना समय बैठ सकते ह बैठ।

दशा: पूव या उ र (आ याि मक लाभ हेत)ु ।

भलाभ: बल, वीय, ओज तेज ऊ वमुखी होकर तेज वी बनाता है।


ने - योित ती होती है।
व दोष, काम-िवकार का शमन होता है व चय क शि ा होती है।
सकारा मक यान करने से संपूण शरीर के िवकार मश: न होते ह।
72,000 नािड़य के मल का शोधक है।
मानिसक तनाव दूर करता है।

मु ासन( थम कार)

िविध : बाएँ पैर क एड़ी को गुदामूल से पश कराकर उस पर दािहने पैर क एड़ी को रख।
मे द ड, ीवा तथा िसर एक सीध म रखते ए बैठे। सभी िसि य को देने वाला यह
आसान मु ासन कहलाता है।

यान : मूलाधार से उठती ई ऊजा का यान कर।

िवशेष : ास म समय, दशा एवं लाभ गु ासन के ही समान ही है।

नोट : ि तीय कार के मु ासन आगे पृ पर दया गया है।


वाि तकासन

शाि दक अथ : वाि तक का शुभ िच न (साितया/卐)2= सभी जानते ह। यह िच न


आ याि मक व सांसा रक सुख को देने वाला है।

िविध : सुखासन म बैठकर दोन पादतल को दोन जाँघ के बीच थािपत कर


ि कोणाकार आसन लगाएँ। मे द ड, ीवा व िसर सीधा रख। दृि ूम य पर ि थर कर।

हठयोग दीिपका के अनुसार:


जानूव र तरे स यक् कृ वा पादतले उभे।
ऋजुकायः समासीनः वि तकं तत् च ते।

यान : आ म उ थान के िलए मशः सम त च का।

ास म : सामा य रख। समय : प रि थित अनुसार।

दशा: पूव या उ र (आ याि मक लाभ हेत)ु ।

मं ो ारण : ॐ का उ ारण विन- प म कर।

लाभ : वे सभी लाभ जो गु ासन व सुखासन से ा होते ह।

योगासन
उ ानौ चरणौ कृ वा सं था य जानुनोप र।
आसनोप र सं था य उ ानं करयु मकम्।।
पूरकै वायुमाकृ य नासा मवलोकयेत।्
योगासनं भवेदेतद् योिगनां योगसाधनम्।। (धे सं.44,45)
अथ : सुखासन म बैठ जाएँ अब दोन पैर को उठाकर दोन जाँघ के ऊपर थािपत करके
बाएँ पैर को दािहनी जाँघ पर व दािहने पैर को बाँयी जांघ पर रख एवं दोन हाथ को
उ ान भाव से आसन के ऊपर रख। तब पूरक ाणायाम ारा वायु को भीतर ख चकर
नािसका के उ भाग पर ि रखते ए साधक कुं भक ारा वायु को रोक। योिगय को इसे
ित दन अव य करना चािहए। यही योगासन कहलाता है।

िवशेष: ास म, समय, लाभ एवं सावधािनयाँ प ासन के समान ही ह।

अध प ासन

शाि दक अथ : अध मतलब आधा। प ासन क मु ा को पूण प से न लगाना।

िविध : अपने आसन म स मन से सामने क तरफ़ पैर फै लाकर बैठ जाएँ। बाएँ पैर को
मोड़कर दािहने पैर क जाँघ के नीचे रख एवं दािहने पैर को मोड़कर बाई जाँघ के ऊपर
रख। दोन हाथ को घुटन पर रख। मे द ड, गदन व िसर सीधा रख। इस कार कु छ
समय बाद पैर बदलकर कर।

ास म : ास सामा य रख।

यान : मूलाधार से सह ार तक मशः यान कर।

दशा : पूव या उ र (आ याि मक कारण से)।

समय : अनुकूलतानुसार।

लाभ : मे द ड सीधा रहने से सम त शरीर को लाभ िमलता है। पूण प ासन लगाने
से पहले इसका अ यास करना चािहए।

चेतना क ऊ वमुखी बनाता है।


कसी भी इ मं का जाप ास- ास पर यान देते ए करने से मन को
ि थरता दान करता है।

प ासन

शाि दक अथ : प (प ) का मतलब कमल।

आकृ ित : कमल के फू ल के समान।


दशा : उ र या पूव (आ याि मक कारण से)।

िवशेष : पहले हम इस आसन को समझ ल। यह सभी िसि य को दान करने वाला कहा
गया है। इस आसन का अ यास अव य करना चािहए। यह शरीर क सभी नािड़य
(72,000) को शु करता है। यह आसन आ याि मक साधक को ि य होता है। यह सैकड़
मं क िसि य को देने वाला कहा गया है। कु डिलनी जागृत करने म यह आसन
अि तीय है। इस आसन म शु आ मा या िन वक प यान लगाने से सम त पाप का नाश
होता है।

िविध : सव थम सामने क तरफ़ पैर फै लाकर बैठ जाएँ या सुखासन म बैठ जाएँ फर बाएँ
पैर के पंजे को उठाकर दािहनी जाँघ पर रख व दािहने पैर के पंजे को उठाकर बाएँ पैर क
जाँघ पर थािपत कर। मे द ड सीधा रख। घुटने ज़मीन को पश करते रह। बाएँ हाथ को
दोन पैर के तलव के ऊपर एवं दािहने हाथ के पंजे को बाएँ हाथ के पंज के ऊपर रख
ता क नािभ से पश होता रहे यथासंभव िजतनी देर क सकते ह, क। ास- ास लेते
रह। (कह -कह हाथ को घुटन के ऊपर भी रखने का िवधान है।)

हठयोग दीिपका एवं घेर ड संिहतानुसार प ासन को िभ तरीके से प रभािषत


कया गया है।

वामो प र दि ण िहचरण सं था य वामं तथा,


द ो प र पि मेन िविधना धृ वा करा यां दृढम।
अङगु ौ दये िनधाय िचबुकं नासा मालोकयेत,्
एत ािधिवकारनाशनकरं पदमासनं ो यते। (धे सं. 29)

अथ : बा जंघा पर दािहने पैर का पंजा और दािहनी जंघा पर बाएँ पैर का पंजा रखकर
िवपरीत िविध से हाथ को पृ भाग पर ले जाएँ और बाएँ हाथ से बाएँ पैर का अँगूठा और
दािहने हाथ से दािहने पैर के अँगूठे को दृढ़तापूवक पकड़कर ठोड़ी (िचबुक) को दय के
ऊपर कं ठकू प पर रखकर दृि को नािसका के अ भाग पर ि थर कर। सभी रोग का नाशक
यह आसन प ासन कहलाता है।

ट पणी: यहाँ पर मह ष घेर ड ने एवं हठयोग दीिपका म ब प ासन को ही


िविश प से प ासन ही कहा है। ब प ासन देख।

घेर ड संिहता म अ याय दो के 44.45 नं. ोक म िजस योगासन क ा या


क है वह भी प ासन जैसा ही है।

ा या : सबसे पहले दोन पैर को सामने क तरफ़ फै लाएँ फर बाएँ पैर को दािहनी
जंघा पर एवं दािहने पैर को बाई जंघा पर ि थर कर। पैर के तलवे आकाश क तरफ़ कर।
एिड़याँ उदर देश के अ भाग से पश कर और दोन घुटने ज़मीन को पश करते रह। पीठ
एवं िसर सीधे तने ए ह अब अपने हाथ को पृ भाग से िवपरीत िविध से बाएँ हाथ से
बाएँ पैर के अँगूठे को एवं दािहने हाथ से दािहने पैर के अँगूठे को पकड़ एवं ठोड़ी (िचबुक)
को दय के ऊपर ि थत कं ठकू प से लगाएँ अथात जालंधर बंध लगाते ए नािसका के
अ भाग पर दृि ि थर कर।

यह सभी रोग का नाश करने वाला प ासन कहलाता है।

म य नाथ के अनुसार : दोन पैर को सामने क तरफ़ फै लाकर बाएँ पैर को दािहने पैर
क जंघा पर एवं दािहने पैर को बाएँ पैर क जंघा पर थािपत कर। जंघा के म य दोन
हाथ को सीधे रखकर नािसका के अ भाग पर दृि ि थर कर एवं दाढ़ क जड़ पर िज वा
को तंिभत कर और ठोड़ी (िचबुक) को कं ठकू प पर थािपत कर फर वायु को धीरे -धीरे
ऊपर उठाएँ अथात मूलबंध लगाएँ। यह आसन या सभी रोग का नाश करने वाली है।
योगीजन ने इसे प ासन कहा है।

योगकु ड युपिनषद् के अनुसार :

ऊवा प र चेद े उभे पादतले यथा।


प ासनं भवेदेत सवपाप णाशनम्।

अथ : दोन जाँघ पर एक-दूसरे के पैर के तलु को सीधे रखने से प ासन होता है जो


सब पाप को नाश करने वाला है। हठयोग दीिपका म िलखा है क :-

कृ वासंपु टतौ करौ दृढ़तरं ब वा तु प मासनं,


गाढं व िस सि धाय िचबुकं यायं त ेतिस ।
वारं वारमपानमू वमिनलं ो सारय पू रतं,
यंच ाणमुपैित बोधमतुलं शि भावा रः।

ा या : हठयोग के ंथकार का कहना है क दोन हाथ को संपु टत करके गोदी म ि थत


करके दृढ़रीित से प ासन लगाएँ और ठोड़ी को मज़बूती से व : थल के समीप ि थर कर
अथात् जालंधर बंध को करके का चंतन कर अब गुदा को बार-बार िसकोड़ और
अपान को ऊपर उठाएँ अथात मूलबंध करके सुषु ा के माग से अपान को ऊपर चढ़ाते ए
पूरक ाणायाम से ाणवायु को नीचे कर, अथात ाण और अपान को एक करके साधक
कु डिलनी जा त कर असीिमत ान का धारी हो जाता है।

यान : सम त च का यान कर और यह भावना रख क आपके सम त च जागृत हो


रहे ह, आ मा शु होती जा रही है; अथवा गु के ारा दए मं का जाप कर।
सावधािनयाँ :

मता से अिधक देर तक ज़बद ती न बैठ।


घुटन म दद हो तो पहले पवनमु ासन संबंधी या को कर।
साइ टका और घुटन के ती दद से पीिड़त ि यथासंभव मशः कर।
जब भी आसन लगाएँ मे द ड, गदन व िसर सीधे रखकर ही अ यास कर।
>पैर क ि थित बदलकर अव य कर ता क शरीर के अंगो का िवकास समान
प से हो।

लाभ : इस आसन से ाण वायु अपान से िमलती है।

यह आसन शरीर के सभी ायुतं खोलता है।


ाण सुषु ा से वािहत होने लगते ह िजससे जीवनदाियनी शि ा होती
है।
काम-िवकार को नाश कर कामशि यथावत् करता है।
चेतना ऊ वमुखी बनाता है।
चेहरे क कांित दी होती है।
शरीर के सभी रोग को मशः ीण करता आ साधक को िनरोगी बनाताहै।
शांित दान कर मन क चंचलता को दूर करता है।
इस आसन को िनयिमत करते रहने से पापकम का मश: नाश होता जाता है।
कु डिलनी जागरण म िवशेष सहायक।
10-15 िमिनट तक बैठकर यान करने से अपने थान से हटी ई नािभ ठीक हो
जाती है।
िनयिमत अ यास से साधक क 72,000 नािड़याँ ासुक (शु ) होती ह।
इस आसन को करने पर पैर म र संचार कम हो जाता है िजस कारण उदर
एवं क ट देश म र क मा ा बढ़ जाती है। इस कार इन दोन अंग से
संबंिधत सभी रोग म लाभ िमलने लगता है।

नोट : कु छ योग िश क इस आसन को कमलासन, ी आसन, आ दआसन, ा आसन


और मु प ासन भी कहते ह।
कारांतर : प ासन क अव था म ही पेट के बल लेट जाए और हाथ को पीठ के पीछे ले
जाकर नम कार क मु ा बना ल, तो यह अव था गु प ासन कहलाती है। कु छ योग
िश क गु प ासन को पतंग आसन भी कहते ह।

योग माग क सभी साधन प ितयाँ एक ही उ े य,

एक ही ल य क ओर अ सर करती ह:

शारी रक वा य, मानिसक शांित एवं

चेतना को ऊ वमुखी बनाना।

-RJT

ब प ासन

शाि दक अथ : ब अथात् बँधा या पकड़ा आ।

िविध : प ासन म बैठ जाएँ। ास छोड़ अब दोन हाथ को पीठ के पीछे से ले जाते ए
दािहने हाथ से दािहने पैर का अँगूठा और बाएँ हाथ से बाएँ पैर का अँगूठा पकड़। पकड़ने म
सम या आ रही हो, तो आगे क तरफ़ झुककर पकड़। ठु ी को कं ठकू प पर एवं दृि नासा
पर के ि त कर फर वापस अपनी ि थित म आ जाएँ। ास- ास सामा य रख। अब
यही या पैर बदलकर कर।

यान : वािध ान च और अनाहत च पर।

ास म/समय : इस आसन का अ यास 2 से 5 िमनट तक कर। ास- ास सामा य रख


या ाणायाम कर।

लाभ: छाती को उ त बनाकर मज़बूती दान करता है।

हाथ, कं ध , घुटन व पैर क माँसपेिशयाँ मज़बूत करता है।


पेट संबंधी िवकार न होते ह। जठराि ती होती है। क़ ज़ िमटाता है और
भूख बढ़ती है।
दय, फे फड़े व कडनी को स म एवं याशील बनाता है।
ि य के व : थल को उभार दान करता है।

नोट : ज़ री नह है क आप पहली बार म ही अँगूठे पकड़ ल अतः आप उसी ि थित म


िसफ़ पैर पश क कोिशश क िजए। कु छ दन बाद अँगूठे पकड़ म आने लगगे।

सावधािनयाँ : साइ टका या मे द ड म ती वेदना वाले साधक िववेक पूवक कर।

िवशेष : योग मु ासन भी कर सकते ह।

इस आसन को जालंधर बंध व मूलबंध लगाने से िवशेष लाभ िमलता है। (बंध
अ याय देख)

िस ासन/िवजयासन
आकृ ित : प ासन से िमलती-जुलती, िसि ाि म सहायक, इसिलए िस ासन कहलाता
है।

यान : सम त च पर।

िविध : सुखासन म बैठ जाएँ। बाएँ पैर के तलवे क दािहनी जाँघ से सटाकर ऐसे लगाएँ
ता क एड़ी आपके गुदा और अंडकोश के बीच के भाग को छू ने लगे। अब दािहने पैर क एड़ी
को जनन य और वि त क हड़ी के बीच दबाव डालते ए रख। दािहने पैर क अँगुिलय
को बाई पंडली और जाँघ के बीच फँ साएँ। यान रहे घुटने ज़मीन को छू ते रह। शरीर
एकदम सीधा रख। हाथ को घुटन पर ान मु ा क ि थित म रख। ठोड़ी को दय देश
के ऊपर कं ठकू प म ि थर कर। दृि भौह के म य रख एवं तनाव रिहत होकर बैठ। पैर क
ि थित बदलकर यही अ यास कर।

दशा: पूव या उ र (आ याि मक लाभ हेत)ु ।

समय : यथासंभव।

ास म : ाणायाम के साथ/अनुकूलतानुसार।

मं : गु ारा द या अपने इ देव या ॐ नमः िस दे यः का जाप कर।

ट पणी : िस ासन और प ासन के लाभ लगभग एक जैसे ही ह। चेतना को ऊ वमुखी


बनाने के िलए यह आसन उपयु है अतः सभी साधक , चा रय को यह आसन अव य
करना चािहए। ाणायाम और यान के िलए यह आसन ज़ र करना चािहए।
लाभ : इस आसन से दृढ़ इ छा शि का िवकास होता है। मे द ड ि थर व दृढ़ होता है।
गुदा संबंधी रोग तथा काम-िवकार का नाश होता है। इस आसन को 48 िमनट तक
ित दन करने से िसि याँ ा होती ह। बुढ़ापे म भी कमर नह झुकती। इस आसन म
बैठकर ाटक करने से स मोहन शि बढ़ती है। उदर देश को भरपूर लाभ िमलता है।

सावधािनयाँ : साइ टका, ती कमर दद या घुटन क ती वेदना म मशः धैयपूवक


अ यास कर।

पवतासन/िवयोगासन

शाि दक अथ : 'पवत' को हम बोलचाल क भाषा म 'पहाड़' भी कहते ह। पवतासन को


िवयोगासन भी कहते ह।

िविध : प ासन म बैठे। हाथ को नम कार क ि थित म ऊपर उठाते ए िसर के ऊपर ले
जाएँ या पंज को एक-दूसरे म फँ साकर ऊपर उठाएँ। हाथ पूण प से तने ए होने
चािहए। आसन क ि थित म यथासंभव हाथ को ऊपर रोक।

यान : आ ाच पर।

ास म : हाथ ऊपर उठाते समय ास ल और नीचे लाते समय ास छोड़।


समय : यह या 5-6 बार क िजए / 1 से 2 िमनट तक कर।

लाभ : हाथ का काँपना बंद होकर हाथ क माँसपेिशयाँ मज़बूत होती ह।

फे फड़े मज़बूत होते ह। मे द ड पर अ छा भाव पड़ता है।


ह नया पर भी सामा य भाव पड़ता है।
ि य के उरोज को सही आकार देता है।

ट पणी
यह घुटन के बल खड़े होकर भी कया जाता है (देख गोर ासन)।
सूय नम कार म ि थित नं. 5 को भी पवतासन कहते ह।

योग मु ासन

िविध : प ासन म शांतिच होकर आँख बंद करके बैठे। ारं िभक अव था म दोन हाथ
को पीठ के पीछे ले जाएँ एवं दोन हाथ क कलाई को पकड़। ास छोड़ते ए िसर को
सामने ज़मीन पर धीरे -धीरे झुकाएँ। माथा ज़मीन से पश कराएँ। 10 से 15 सेकंड तक
उसी ि थित म रहते ए ास- ास करते रह। अब वापस मूल अव था म आये एवं यही
या दुहराय।

यान : सम त च को जागृत करने के िलए उपयु । मूलाधार एवं आ ाच पर िवशेष।

ास म : झुकते समय ास छोड़। पूण आसन क ि थित म धीरे -धीरे गहरी ास ल।


वािपस मूल अव था म आते समय ास ल।

दशा : आ याि मक कारण से पूव या उ र दशा यादा सटीक है।


लाभ : पाचन-सं थान क या को ती करता है।

को ब ता दूर करता है। फे फड़ का संकुचन भी ठीक होता है।


आ याि मकता म लाभ प च
ँ ाता है।
मे द ड को पूण लाभ िमलता है।
कु डिलनी जागरण म सहायक।

सावधािनयाँ : उ र चाप, गभवती मिहलाएँ, साइ टका, दय रोग से पीिड़त ि न


कर।

ट पणी : पूण आसन के िलए यथासंभव पैर के अँगूठ को पकड़कर धीरे -धीरे यास कर।
य द क ठनाई महसूस हो तो हाथ को पीठ पर रखकर आपस म बाँध ल।

नोट : अिधक जानने के िलए प ासन एवं ब प ासन भी देख।


व ासन एवं उससे संबंिधत आसन

व ासन

शाि दक अथ : व का अथ है 'कठोर’। इस आसन से दृढ़ता आती है।

िविध : दोन पैर के घुटने मोड़कर इस कार बैठ क पैर के तलव के बीच िनतंब एवं
एिड़य के बीच गुदा ार और गु ांग आ जाएँ। दोन पादांगु एक-दूसरे को पर पर पश
करते रह। हाथ को घुटन पर रखकर ानमु ा लगाकर बैठ या सामा य ि थित म रख।
याद रख मे द ड, पीठ एवं गदन को एकदम सीधा रखना है, िजससे यादा लाभ ा हो।

िवशेष : यह आसन सरल होते ए भी क पवृ के समान है।

ास म : ाणायाम भी कर सकते ह। भोजन करते समय दािहने वर से ास ल।

यान : सम त च पर। िवशेषकर मिणपूरक च पर।


मं : अपने गु ारा दए मं या अपने इ का यान कर या 'ॐ नमः िसछ े यः' का
मानस-जाप कर।

ला भ : व ासन का जो िन य अ यास करे गा वह बुढ़ापे क अव था म भी व के


समान रहेगा। आ मो थान् हेतु िहतकारी है। सुषु ा का ार खोलता है। ह नया
और बवासीर म लाभदायक है। भोजन के तुरंत बाद इस आसन को 10-15 िमनट तक
अव य कर। यह आसन वायु संबंधी रोग के िलए अित लाभ द है। उ र या पूव दशा
क तरफ़ बैठकर यान करने से यह आसन सुख देता है। ि य क मािसक
अिनयिमतता को दूर कर उ ह िनरोग बनाता है। वायु-िवकार से उ प िसरदद के
िलए यह रामबाण है। क़ ज़, मंदाि को ठीक करता है।

नोट : कु छ योग िश क पैर के दोन अँगूठ को एक के ऊपर एक रखकर यह आसन करवाते


ह।

सावधानी : घुटन के दद से पीिड़त ि इस आसन का अ यास न कर।

आन द म दरासन ( कारा तर : 1)

व ासन क ही ि थित म हथेिलय को एिड़य पर इस कार रख क अँगूठे पैर के तल. व


पर रह और अँगुिलयाँ एक दूसरे के सामने ही उस ि थित को आन द म दरासन कहते ह।
नोट : यान, लाभ व सावधिनयाँ व ासन के ही समान ह।

नोट : यान, लाभ व सावधिनयाँ व ासन के ही समान ह।


पादा दरासन ( कारा तर : 2)

व ासन क ही ि थित म बैठ। दोन हाथ क व : थल के सामने से कचीनुमा बनाते ए


दाई हथेली को बाएँ बगल (काँख) म और बाई हथेली को दाएँ बगल (काँख) म इस कार
रख ल क अँगुिलयाँ अंदर क तरफ़ व अँगूठा बाहर ऊपर क तरफ़ उठा आ रहेगा। अब
अँगूठा और तजनी अँगुिल से बीच वाले भाग को कसकर दबाएँ। ने को बंद कर ास-
ास क तरफ़ यान लगाय।

लाभ :
यह अ यास ास- ास करने म आए ए अवरोध को दूर करता है।
व ासन के सभी लाभ ा होते है।

िवशेष : ाणायाम के अ यास म सरलता के िलए इसका अ यास कया जा सकता है। य द
दािहनी तरफ़ क नािसका बंद है तो उस तरफ़ वाले हाथ से िवपरीत वाला बगल दबाएँ
थोड़ी ही देर म ास का वाह िविनयिमत हो जाता है एवं दोन तरफ़ के वर बंद है तो
दोन तरफ़ क बगल को दबाकर रख।

श कासन/ शांकासन
शाि दक अथ : शश का अथ खरगोश और चाँद के बीच म दखने वाला ध बा भी है। इस
आसन क आकृ ित बैठे ए खरगोश जैसी तीत होने के कारण इसे शशकासन नाम से
जाना जाता है एवं शश + अंक = शशांक अथात चं मा भी होता है।

िविध : व ासन म बैठ जाएँ। ास लेते ए दोन हाथ को कान के बगल से सटाते ए
िसर के ऊपर उठाएँ। अब ास छोड़ते ए िसर व दोन हाथ को एक साथ सामने क
तरफ़ ज़मीन से पश कराएँ। बा कुं भक कर। अनुकूलतानुसार कु छ देर क फर ास लेते
ए हाथ व िसर को एक साथ ऊपर उठाएँ। ास छोड़ते ए मूल अव था म आ जाएँ।
ास के ित सजग रह।

समय : यह या 10 से 12 बार कर।

ास म : िविध म समािहत है।

लाभ : यह आसन उदर संबंधी रोग से छु टकारा दलाता है।

मे द ड के िवकार दूर करता ह।


मिहला के वि त- देश को लाभ प च
ँ ाता है।
र -संचार णाली को सुचा करता है।
मानिसक िवकार दूर होते ह।
वायु िवकार का शमन करता है।
जनन अंग के िवकार को ठीक करता है।

सावधानी : अित उ र चाप वाले इस आसन को न कर।

योग जीवन को उ तम संयोग दान


करने क सकारा मक प ित है।

-RJT

सु व ासन

िविध : सबसे पहले व ासन लगाएँ। फर धीरे -धीरे कोहिनय के सहारे पीछे क तरफ़
झुकते जाएँ एवं भूिम पर िच लेट जाएँ। अब पीठ के भाग को थोड़ा ऊपर उठाएँ व गदन
को झुकाते ए िसर पर वज़न द। हाथ को या तो सीने पर रख ल या जाँघ पर। यथाशि
यह आसन कर।

यान : वािध ान च (नािभ से कु छ नीचे) से िवशुि च (गला) पर।

समय : 2 से 3 िमनट तक

ास म : पीछे क तरफ़ झुकते समय ास ल। पूण ि थित म धीरे -धीरे गहरा सन कर।
मूल ि थित म लौटते समय ास ल।

लाभ : क़ ज़ दूर करता है तथा चेहरे पर िनखार लाता है।


इस आसन से पंडली, जंघाएँ, सीना एवं रीढ़ क ह ड़ी मज़बूत होती है।
यह आसन उदर देश, मे द ड, व : थल को संपूण प से लाभ प च
ँ ाता है।
गले संबंधी बीमारी वाले भी इस आसन को धीरे -धीरे कर

सावधािनयाँ :
वापस मूल अव था (व ासन क अव था) म आने के बाद ही पैर को आगे
फै लाएँ अ यथा घुटने के जोड़ िखसक सकते ह।
साइ टका/ती कमर दद, घुटने के दद, ि लप िड क वाले ि धैय पूवक कर।

नोट : इस आसन को करने से व ासन, म यासन, पयकासन, उ ान– म डू कासन के


लगभग सभी लाभ ा होते ह।

पयकासन( थम कार)

शाि दक अथ : पयक का अथ िब तर है।

िविध : व ासन म बैठ। पीठ क तरफ़ झुक। इस आसन म के वल िसर के ऊ वभाग को


ज़मीन पर पश कराएँ। पीठ और गदन को ऊपर उठाएँ जैसे पुल का िनमाण कया हो।
हाथ को िसर के पास ले जाकर आपस म बाँध ल। अथात दािहने हाथ से बाएँ हाथ क
कोहनी और बाएँ हाथ से दािहने हाथ क कोहनी पकड़ (िच देख)। वाभािवक प से
ास ल। लगभग 40 से 50 सेकंड क। हाथ को छोड़ द और वापस व ासन म आने के
बाद पैर को एक-एक करके सीधा कर ल। अब शवासन म िव ाम कर।

समय : अ य त होने के बाद 50 सेक ड से लेकर 3 िमनट तक / 2 से 3 बार।

ास म : पूण आसन पर धीरे -धीरे गहरा ास- ास कर। मूल अव था म लौटते समय
ास ल।

लाभ : व ासन, सु व ासन और म यासन के सभी लाभ िमलते ह।


पृ ीय सं थान पूणतः फै लते ह, िजससे फु फु स अ छी तरह फै ल जाते ह। ास
रोगी को लाभ िमलता है।
गदन के ायु तन जाते ह और गल- ंिथ उ ेिजत हो जाती है इस कारण यह
ठीक काम करती है।
थायराइड के रोग को मशः समा करता है।
सावधािनयाँ : वे सभी सावधािनयाँ रख जो सु व ासन के िलए ह।

नोट: कु छ योग िश क इस आसन को सु व ासन के समान मानते ह

पयकासन के ि तीय कार का वणन आगे पृ पर दया गया है।

िवशेष : मर य कि डका नामक शा म प ासन को पयकासन कहा गया है। यह शा


सन 0940 (लगभग 1070 वष पुराना) म िलखा गया था जो क वतमान म भी उपल ध है।

उ ासन

आकृ ित : उ का अथ ऊँट है।

िविध : व ासन म बैठ जाएँ और घुटन के बल खड़े हो जाएँ अब पीछे क तरफ़ झुकते ए
दािहने हाथ से दािहनी एड़ी एवं बाएँ हाथ से बाई एड़ी को पकड़। िसर को पीछे झुकाएँ।
उदर देश, नािभ एवं उप थ े को आगे क ओर उभार। िसर एवं मे द ड को अिधक से
अिधक पीछे झुकाएँ और इसी ि थित म 10-15 सेकंड रह।

ास म : एिड़य को पकड़ते समय ास ल। पूण ि थित म सामा य ास- ास कर।

समय : 10-15 सेकंड। 4 से 5 बार कर।

यान : वािध ान एवं िवशुि च पर।

िवशेष : मूलाधार का यान करते ए गुदा ार को भीतर क तरफ़ ख च।

लाभ : मोटापा कम करते ए बदन को छरहरा बनाता है। दमा के रोगी यह आसन
अव य कर। इससे सन-तं मज़बूत होता है। मधुमेह का नाश करता है। क़ ज़ दूर
करने क यह रामबाण औषिध है। पेट-संबंधी सभी रोग दूर करता है। पीठ दद व
कमर दद दूर करता है। जनन य के सम त रोग दूर करता है। ि य के कई रोग
के िलए यह आसन अित उ म है। ने योित बढ़ाता है। वर ठीक करता है।
थायराइड के रोिगय के िलए लाभकारी।

नोट : पूण उ ासन के िलए हाथ को ज़मीन से पश कराएँ एवं अध उ ासन के िलए
हाथ को एिड़य म न रखकर कमर पर रख। थम अ तरा ीय योग दवस म अध उ ासन
को ही अध उ रासन कहा गया है।

कृ मासन ( थम कार)

िविध : घेर ड संिहतानुसार - सीवनी नाड़ी (अ डकोश) के नीचे दोन एिड़य (गु फ) को
िवपरीत म से रख और शरीर, िसर एवं ीवा (गदन) को सीधा करके बैठ। यह कू मासन
कहलाता है। इस अव था म बैठने के बाद दोन कु हिनय क आपस म िमलाकर नािभ
थान के पास रख। हाथ क अधमुँदी मु याँ बनाकर ास छोड़ते ए आगे क ओर झुक
व सामने देखने का यास कर।

ास म : अंितम ि थित म ास सामा य।

समय : 1 से 2 िमनट तक। 2 से 3 कर।

ला भ : इस आसन का उ े य कछु ए के समान अपने सभी अंग को अंदर समेट लेना


अथात साधक अपनी पाँच इं य को सांसा रकता क ओर न ले जाकर संयम, तप और
याग के ारा उन पर िवजय ा कर। उदर देश एवं पाचन तं लाभाि वत कर उ ह
सश बनाता है।

सावधािनयाँ : हा नया से पीिड़त ि न कर। ज टल उदर रोगी भी न कर।


नोट : कू मासन के ि तीय कार का वणन आगे कया गया है।

भ ासन

शाि दक अथ : भ का अथ िश है।

िविध : व ासन म बैठ जाएँ। धीरे -धीरे घुटन को फै लाएँ (घुटन को अिधक से अिधक
फै लाने क कोिशश कर)। पैर क अँगुिलय को एक-दूसरे से िमलाकर िनतंब क ज़मीन से
पश करा द। हाथ को घुटन पर ानमु ा क ि थित म रख। घेर ड संिहतानुसार- दोन
एिड़याँ सीवनी नाड़ी (अ डकोश) के नीचे उलटकर रख फर दोन हाथ क पीठ के पीछे
क तरफ़ ले जाकर दोन पैर के अंगूठ को पकड़े और जालंधर बंध करके नािसका के अ
भाग को देख। यह आसन सभी रोग का नाश करने वाला है।

ास म/समय : वाभािवक ास चलने द। अनुकूलतानुसार समय लगाएँ।

यान : मूलाधार च से आ ाच तक।

लाभ : जाँघे, घुटने, पैर एवं एिड़याँ मज़बूत और सश होते ह। काम-िवकार न


होते ह अत: आ याि मक उ ित म यह आसन सहायक है। अश, मेह, अंडकोश-वृि ,
भगंदर आ द रोग का शमन होता है। व ासन के भी लाभ वतः िमल जाते ह।
मूलाधार च के उ थान म सहायक।

सावधानी : ती कमर दद वाले इस आसन को शनै: शनै: कर।


नोट : 21 जून 2015 'अ तरा ीय योग दवस' को भ ासन वैसे कराया गया था जैसे क
हम िततली आसन

क या करते है, फ़क िसफ इतना है क उसम िततली क तरह पैर को ऊपर नीचे नही
करते।

म डू कासन/भेकासन

शाि दक अथ : मंडूक का अथ मढक है। यह आसन करते समय मढक जैसी आकृ ित िन मत
होती है। इसिलए इसे मंडूकासन कहते ह।

िव िध : 1. व ासन म बैठ। धीरे -धीरे घुटन को एक-दूसरे से अलग कर और पैर क


अँगुिलयाँ एक-दूसरे को पश कर। अब अपने हाथ व हथेिलय को ज़मीन से पश कराते
ए घुटन के सामने या बगल म रख। मे द ड और िसर को झुकाते ए सीधा रख। ास-
ास वाभािवक गित से चलने द। 8-10 सेकंड इसी ि थित म क।
िविध : 2. इस ि थित म दोन हाथ को अगल-बगल म न रखते ए दोन हाथ क मु ी
बनाकर नािभ के पास रखकर उ ह दबाते ए आगे क तरफ़ झुक व सामने क तरफ देख।

ास म : आगे झुकते समय ास छोड़। मूल ि थित म लौटते समय ास ल।

यान : वािध ान च पर।

लाभ : पाचन तं णाली को ठीक करता है अत: पेट के अंदर से उठने वाली दुगध
आ द रोग को न करता है।
बुढ़ापे म कमर झुकने से रोकता है।
ि य के िलए यह अित लाभकारी है। जनन-तं पर भाव डालता है।
जाँघ, िनतंब और पेट क अनाव यक चब कम करता है।

नोट : उपरो दोन िविधयाँ चिलत होने के कारण यहाँ दी गई ह।

पहली िविध को कह -कह मंडूक आसन के नाम से भी जाना जाता है।

सावधानी : गभवती मिहलाएँ न कर।

उ ान म डू कासन
शाि दक अथ : उ ान का अथ ती , तनाव एवं म डू क का अथ मढक है।

िविध : 1. मंडूकासन जैसी ि थित तो है पर हाथ क ि थित बदलकर ऊपर चली जाती है।
इसम िसर के ऊपर हाथ बाँधने जैसी ि थित बन जाती है। बाएँ हाथ से दािहनी कोहनी
और दािहने हाथ से बाई कोहनी को पकड़ना है। ास ल और सीने को तानकर सामने दृि
रख। यह आसन सुिवधानुसार कर।

लाभ : यह आसन कुं भक करते ए करने से फु फु स क शि बढ़ती है।


र -िवकार न होते ह। ाण अधीन रहते ह।
शरीर सुडौल, व : थल चौड़े और जंघाएँ सश बनती ह।

2. व ासन म बैठ। धीरे -धीरे पीछे क ओर झुकते ए िसर ज़मीन से पश कराएँ और िसर
को कोहिनय पर टका द। िवशेष जानकारी के िलए इसी का कारांतर सु व ासन और
पयकासन देख। इस आसन के लाभ भी इ ह के समान ह।

यान : वािध ान, मिणपूरक व अनाहत च पर एका ता रख।


ास म : पूण ि थित म सामा य एवं मूल ि थित म लौटते समय ास ल।

समय : लगभग 2 से 3 िमनट/2 से 3 बार।

लाभ : इस आसन क आकृ ित पयकासन व सु व ासन के जैसी होने के कारण इनके लाभ
भी एक जैसे ही है। अत: पयकासन व सु व ासन के लाभ देख।

नोट : उपरो दोन िविधयाँ चिलत होने के कारण यहाँ दी गई ह।

माजारी आसन/माजार आसन

शाि दक अथ : माजारी अथात् िब ली।

िविध : सव थम व ासन म बैठ जाएँ, अब घुटन के बल खड़े होते ए दोन हाथ के पंज
को ज़मीन पर इस कार रख क अँगुिलयाँ सामने क तरफ़ ह और हाथ क कोहिनयाँ
सीधी हो। पैर क ि थित िच ानुसार हो। यह इस आसन को याि वत करने क तैयारी
है।

त प ात् ास लेते ए मे द ड (पीठ) को नीचे झुकाएँ (जैसे कसी ने ऊपर से पीठ को


हाथ से दबा दया हो) और गदन को ऊपर क तरफ़ कर। अब ठीक इसके िवपरीत ास
छोड़ते ए मे द ड ऊपर ले जाएँ एवं गदन नीची करते ए ठु ड़ी को छाती से पश
कराएँ। िवशेष लाभ के िलए ास छोड़ते ए पेट को िसकोड़ अथात् अंदर क तरफ़ ख च।
इस कार यह एक आवृि ई।

ास म/समय : ास- ास क या करते समय िवशेष यान द। इस या को 8 से


10 बार दोहराएँ।

लाभ : क़ ज़ को दूर करता है एवं पेट क अित र चब का कम करता है।


कमर, मे द ड एवं गदन को सुग ठत कर उ ह लचीला एवं िनरोग रखता है।
मिहला के िलए यह अित भावकारी है।
फे फड़ को भी पया लाभ िमलता है।

सावधािनयाँ : मे द ड और कमर के ती दद से पीिड़त ि इस या को धीरे -धीरे


याि वत कर।

ा ासन ( थम कार)

िविध : माजारी आसन लगाएँ। िसर को उठाकर सामने क तरफ़ देख। अपने दािहने पैर को
पीछे क तरफ़ ल बवत् कर। घुटने से मोड़ते ए पैर को िसर क तरफ़ लाएँ।

अब इसी उठे ए पैर के घुटने को नीचे लाते ए सीने से लगाएँ एवं िसर को झुकाते ए
नाक को घुटने से पश कराएँ। इस अ यास म मे द ड ऊपर क तरफ़ उठ जाएगा। दूसरे
पैर से उपरो या दोहराएँ।

ास म/समय

यही या कम से कम 3 से 5 बार कर। पैर पीछे ल बवत् करते समय ास ल। घुटना


ऊपर मोड़ते समय कुं भक कर एवं घुटना नीचे लाते समय ास छोड़।

िवशेष : घुटने को सीने से लगाते समय पंजे को ज़मीन से पश न होने द।

लाभ : मिहला के िलए अित लाभकारी एवं उनके जनन अंग को पु करता है।
गभाव था के (कु छ मिहन ) बाद मिहलाएँ इस या को कर लाभ ा कर सकती ह।
साइ टका वाले रोगी इस आसन को मश: अ यास कर िनरोगता ा कर
सकते ह।
मे द ड को लचीला एवं पाचनतं सुचा करता है।
पेट, जंघा, एवं िनतंब को सुडौलता दान करता है।

नोट : ि तीय कार का वणन आगे के पृ पर कया गया है।

वीरासन (तीन कार)

शाि दक अथ : वीर का अथ ि य, यो ा व परा मी है।

िवशेष : इसक कई िविधयाँ चिलत है।

थम कार : व ासन म बैठ, परं तु िनतंब को ज़मीन पर ि थर कर। ऐड़ी व तलव को


िनतंब के बगल म रख। इस कार एक तलवे क दूसरे तलवे से दूरी लगभग डेढ़ फ़ ट
रहेगी अब हाथ l को ानमु ा क अव था म घुटन के ऊपर रख। पीठ सीधी रख। गहरी
साँस लेते ए यथाशि क। दोन हाथ को पर पर िमलाकर िसर के ऊपर सीधा तान।
गहरी ास- ास कर। कु छ देर क अब हाथ को िशिथल कर एवं उनको तलव पर
रखकर आगे झुक। नािसका के अ भाग को घुटन के बीच रख। वाभािवक प से ास-
ास कर। अब ास छोड़ते ए उठे और पैर को आराम द।

लाभ : चूँ क यह व ासन का ही एक कार है अत: खाना खाने के बाद भी कर सकते


ह। इससे पाचन-शि यथायो य होकर भारीपन िमटता है। (भोजन के बाद कर
तो आगे न झुक)

घुटन म आमवात का दद और गाऊट दूर करता है।


एिड़य के दद से मुि िमलती है।
वायु िवकार का नाश होता है।
शरीर ह का एवं िच स रहता है।

ि तीय कार : दूसरी अव था म व ासन म बैठ। अब एक पैर मोड़कर (घुटना ऊपर क


तरफ़ और पादमूल ज़मीन को पश करे ) दूसरे पैर के घुटने के समीप रख। हथेिलय को
पर पर िमलाते ए िसर के ऊपर सीधा तान या िच ानुसार रख। वाभािवक ास-
ास चलने द। अब इसी आसन को पैर /・ है बदलकर कर। कम से कम 8-10 सेकंड इसी
अव था 9 म क। इस या को 4 से 6 बार कर।

यान : थम कार के आसन क ि थित म वािध ान च पर।

ि तीय अव था म मूलाधार च पर।

लाभ: मूलाधार म यान करते ए ास िनयंि त कर। यह ास को लंबे समय तक के


िलए कुं भक क ि थित म लाता है।

सम त च का लाभ िमलता है।


एका ता बढ़ती है।
तंि का तं क संवेदनशील बनाता है।
यह यकृ त, अमा य, वृ एवं जनन अंग को सुचा करता है।

तृतीय कार : एक पैर से व ासन कर और दूसरे पैर को अधप ासन क तरह करते ए
व ासन वाले पैर क जंघा पर रख। थम अ यासी हाथ का सहारा लेकर घुटने के बल
उठकर ि थर हो और संतुलन बनाते ए दोन हाथ को िसर के ऊपर हाथ जोड़ने के तरीके
को अपनाएँ। कु छ देर क मूल अव था म आय व पैर बदलकर कर। दृि नािसका के
अ भाग पर या सामने रख।

ास : उठते समय ास रोके । आसन लग जाने पर सामा य ास- ास कर। वापस


आते समय ास छोड़।

लाभ : उदर देश क लाभ। आल य समा होता है। दृि ि थर होती है।
आँख क रोशनी बढ़ती है। शारी रक एवं मानिसक ि थरता आती है।

नोट : कु छ योग िश क पहली िविध अनुसार कराते ह एवं ि तीय िविध घेर ड
संिहतानुसार है। कु छ योगाचाय ने थम िविध का नाम चय आसन रखा है। इस
आसन के अलावा वीरासन के और भी कार है।

युग बदले, काल बदला, धम म आ थाएँ बदल ,

भाषाएँ बदल , सं कृ ितयाँ बदल , खान-पान बदला


परं तु योगासन से ा होने वाले लाभ नह बदले।

-RJT
खड़े होकर एवं झुककर कए जाने वाले आसन

ताड़ासन

िविध : पैर को एक साथ िमलाकर सावधान (समाव था) क ि थित म खड़े ह परं तु अँगूठे
और एिड़याँ समानांतर ही रख। अब पंज पर ज़ोर देते ए धीरे -धीरे ऊपर उठे एवं दोन
हाथ को िमलाकर ऊपर क तरफ़ तान द। इस अव था म घुटने एवं जाँघ क माँसपेिशय
को ऊपर ख च। पेट को यथासंभव अंदर कर। सीने को आगे कर। रीढ़ और गदन को सीधा
रख। शरीर का भार िसफ़ पंज पर रख। कु छ देर इसी अव था म क। वापस आते समय
ास छोड़ते ए मूल ि थित म प च
ँ ।

ास म : उठते समय ास ल और वापस आते समय ास छोड़।


समय : 5-6 बार कर। 1 से 2 िमनट तक कर।

लाभ: लंबाई बढ़ाने का सबसे अ छा अ यास है।

शरीर क ि थरता देता है।


माँसपेिशयाँ मज़बूत करता है।
ि लप िड क वाले यह आसन अव य कर।
ि य के िलए लाभकारी है। खासतौर से गभाव था के शु आती महीन म
ि य के िलए िवशेष लाभकारी ( व थ संतान होती है)।
शंख ालन क या के िलए आव यक।

सावधािनयाँ

दोन पैर के पंज पर एक साथ वज़न देते ए या कर एवं संतुलन पर यान द। इसके
प ात् शीषासन से संबंिधत कोई आसन कर।

नोट

पूण आसन क ि थित म ऊपर देख एवं मानिसक प से यह िवचार कर क ऊपर कोई
व तु रखी है और हम उसे पकड़ने वाले ह। ऐसा करने से कई लाभ वत: ा हो जाते ह।

ितयक् ताड़ासन/ऊ व ह तो ानासन


शाि दक अथ : ितयक् का मतलब ढालुआ, ितरछापन या आड़ापन। ताड़ एक वृ है जो
काफ़ लंबाई िलए ए होता है।

िविध : ताड़ासन म खड़े हो जाएँ। अब आपको एड़ी को उठाते ए पंज के बल खड़े होना है
एवं कमर से ऊपर के भाग को दाएँ एवं बाएँ मशः 10-10 बार झुकाना है। य द पंज के
बल खड़े होने म परे शानी का अनुभव हो तो बगैर एड़ी उठाए ही अ यास कर।

ास म : उठते समय ास ल। दाएँ मुड़ते समय ास छोड़। मूल ि थित म आते समय
ास ल। बाएँ मुड़ते समय ास छोड़। मूल ि थित म आते समय ास ल।

लाभ : ताड़ासन के सभी लाभ वत: ा हो जाते ह।


शंख- ालन या के िलए यह अ यास अित उ म है।
उदर-िवकार का नाश होता है। शौच क क ठनता समा होती है।
पेट क थूलता कम होती है। कमर पतली व लचीली बनती है।

नोट : कु छ योग िश क इस आसन को पैर क ि थित बदलकर करवाते ह।

योगा यास क आव यकता कल थी

आज है और कल भी रहेगी।

-RJT

गितमय समकोणासन
िव िध : समाव था म खड़े हो जाएँ। दोन हाथ को कान से पश कराते ए ऊपर क
तरफ़ नम कार क मु ा म तान द। पीठ को थोड़ा-सा धनुषाकार बनाते ए िनत ब को
थोड़ा-सा पीछे ले जाएँ अब समकोण क ि थित बनाने के िलए िसर, छाती एवं हाथ को
सामने क तरफ़ कमर से इतना झुकाएँ क पैर से लेकर कमर तक व कमर से िसर तक
समकोण क आकृ ित िन मत हो जाएँ एवं सामने क तरफ़ देखने क कोिशश कर। लगभग
5 से 10 सेक ड क और वापस मूल अव था म आ जाएँ अ यास हो जाने पर इस आसन
को करने म गित लाएँ।

ास म/समय : सामने क तरफ़ झुकते समय ास छोड़ मूल अव था म लोटते समय


ास ल।

लाभ : मे द ड के िवकार को दूर करता है


गदन के िपछले िह से पर भावी होने से गदन के समा य िवकार को दूर कर
अनेक रोग म लाभ प च ँ ाता है।

सावधानीयाँ : कड़क मे द ड वाले, सवाइकल ा लम एवं साइ टका वाले न कर।

गितमय दोलासन
िविध : ि लोकासन क अव था म खड़े हो जाएँ अथात् दोन पैर के बीच म लगभग 1%
से 2 फट का अंतर बनाकर खड़े हो जाएँ। दोन हाथ को कान से पश कराते ए ऊपर
क तरफ़ तान द तथा हाथ क अंगुिलयाँ आपस म िमला ल या खुली रख, अब समकोण
क आकृ ित बनाते ए शरीर के ऊपरी भाग को नीचे क तरफ़ झुकाएँ एवं ढीला छोड़ द
और झूले क तरह झुलाएँ। पुनः समकोण क ि थित िन मत करते ए मूल अव था म
वापस आ जाएँ।

ास म/समय : कम से कम 4 से 5 बार अपने शरीर को अंितम अव था म पैर के बीच


झुलाएँ एवं शरीर को नीचे लाते समय मुँह से फे फड़ क पूरी वायु को िनकाल द। मूल
अव था म लौटते समय ास ल।

लाभ : फे फे ड़े पु होते ह। उनके मशः सम त िवकार िनकल जाते ह, उनम ऑ सीजन


हण करने क मता बढ़ती है।

घुटन के पृ भाग क नस म और पीठ पर खंचाव उ प होता है िजससे र


संचार उिचत प से होता है।
चेहरे और िसर म र क मा ा पूण प से प च
ँ ने के कारण कई कार के
िवकार वत: समा हो जाते ह।
चेहरे का ओज तेज बढ़ता है। लािलमा बढ़ती है। आँख क रोशनी भी बढ़ती है।

सावधानीयाँ : हाई लड ेशर, च र आना, कमर एवं पीठ दद वाले इस आसन को न कर।
संकटासन/सकटासन

शाि दक अथ : संकट यानी िवपित/क एवं सकट यानी शाखोट नामक पेड़।

िविध : ताड़ासन म खड़े हो जाएँ। अब बाएँ पैर को दािहने पैर पर लपेट और हाथ को भी
ऊपर क तरफ़ ले जाकर बाएँ हाथ को दािहने हाथ पर लपेट (कह -कह योग िश क हाथ
को घुटन पर रखने को कहते ह)। वाभािवक ास ल। यही म बदलकर कर। शरीर
सीधा रख।

ास म/समय : वाभािवक ास- ास कर। यथाशि समय द। यान : आ ा च


पर।

लाभ : पैर को दृढ़ता दान करता है। िनरं तर अ यास से पैर का काँपना दूर होता है।

हाथ का बल बढ़ता है।


कमर दद, पीठ दद और ह नया म लाभ प च
ँ ाता है।

नोट : ग ड़ासन भी लगभग इससे िमलता-जुलता आसन है।

सावधानीयाँ : ग ठया जैसी बीमा रय वाले रोगी सावधानी पूवक अ यास कर।

ग ड़ासन
शाि दक अथ : ग ड़ - पि य का राजा, भगवान िव णु का वाहन है।

िविध : ताड़ासन म खड़े हो जाएँ। दािहना पैर उठाएँ और बाएँ पैर पर इस कार लपेट क
दािहनी जाँघ का िपछला िह सा बाई जाँघ पर और दािहना पैर बाई पंडली को पश करे ।
अब हाथ को भी कोहिनय से मोड़कर आपस म लपेट ल व दोन हथेिलय को आपस म
ाथना क मु ा म जोड़ ल। वापस मूल ि थित (ताड़ासन) म आ जाएँ। अब इतने ही समय
के िलए पैर और हाथ को बदलकर कर। यही या 2 से 5 बार कर।

समय : लगभग 15-20 सेकंड इसी अव था म क।

ास म : पूण आसन म धीरे -धीरे गहरी ास ल।

यान : आ ाच पर।

नोट : आसन का पूण अ यास हो जाने पर धीरे -धीरे सामने क तरफ़ झुककर हाथ से
ज़मीन क पश करने क कोिशश कर।

लाभ : इस आसन से टखन का सही िवकास होता है।


एका ता बढ़ती है। शरीर के संतुलन का अ यास बढ़ता है।
पंडिलय क माँसपेिशय क ठन को रोकने के िलए बड़ा ही लाभदायक
आसन है।
हाथ व पैर लचीले एवं सश बनाता है।
जननांग के िवकार दूर करता है।

सावधािनयाँ : ग ठया जैसी बीमा रय वाले रोगी सावधानीपूवक अ यास कर। साइ टका
वाले इस आसन को कर, पर तु आगे क ओर न झुक।

वृ ासन/एक पाद नम कारासन/ऊ वह ति थत-एक पाद िवराम आसन

आकृ ित : वृ के समान आकृ ित होने के कारण इसे वृ ासन कहा गया है।

िविध : सव थम समाव था म खड़े ह । फर शरीर को संतुिलत रखते ए दािहने पैर को


घुटने से मोड़ और पैर के पंजे को बाएँ पैर क जाँघ के मूल म लगाएँ। यान रहे दािहने पैर
के पंजे क अंगुिलयाँ ज़मीन क तरफ़ रह। इस कार एक पैर पर संतुलन बनाएँ। अब दोन
हथेिलय को िमलाएँ और सीधे आकाश क तरफ़ उठाएँ। दोन हाथ क कोहिनयाँ सीधी
रख।

यान : आ ा च पर।

समय : इस अव था म 5 से 10 सेकंड तक क। वापस ताड़ासन क ि थित म आएँ। अब


आपको यही या दािहने पैर पर खड़े होकर दोहरानी है। इस कार यह या लगभग
मश: चार से पाँच बार कर।

ास म : दोन हाथ उठाते ए ास ल। पूण ि थित म वाभािवक ास- ास कर।


हाथ को नीचे करते समय ास छोड़े।

दशा : पूव या उ र।

लाभ : इस आसन म आ ाच पर यान लगाने से मरण-शि ती होती है। ने -


योित बढ़ती है।

हाथ-पैर का काँपना बंद होता है एवं भुजाएँ व पंडली स त होती ह। शरीर


को संतुलन दान करता है।

नोट : वृ ासन को कु छ योगाचाय िसर नीचे और पैर ऊपर करते ए हाथ के बल ि थर


होकर कराते ह।

िवशेष : इसी आसन म जब सामने हाथ जोड़कर नम कार करते ह तो इसको नम कार
आसन भी कहते ह। जब क सूय नम कार क थम ि थित को भी नम कारासन कहते ह।

ुव आसन/ भागीरथ आसन

श दाथ : भ ुव एवं भागीरथ ऋिष ने इसी आसन से साधना क थी। संभवतः तब से


इस आसन का नाम ुव आसन या भागीरथ आसन पड़ा। इसे दो कार से कया जा सकता
है।

थम कार : समाव था म खड़े हो जाएँ। इसके बाद दािहने पैर को घुटने से मोड़कर बाएँ
पैर के जंघा मूल पर पंजे को थािपत कर। अब दोन हाथ को व : थल के सामने
नम कार क मु ा बना ल। बाएँ पैर को ढ़तापूवक ज़मीन पर ि थर रखकर संतुलन
बनाएँ। यही म पैर बदलकर कर। ास म सामा य रख।

ि तीय कार : समाव था म खड़े हो जाएँ। उपरो िविध अनुसार दािहने पैर को घुटने से
मोड़कर पंजे को बाएँ पैर क जंघा मूल पर थािपत कर द। फर बाएँ हाथ क अंजिल
बनाकर नािभ के समीप रख। अब कुं भक करते ए दािहने हाथ को सीधे ऊपर क ओर
उठाएँ एवं अनुकूलतानुसार क। वापस मूल अव था म आएँ और पैर बदलकर यही या
कर।

ास म : पूण-ि थित म सामा य ास- ास कर।

समय : अनुकूलतानुसार।

लाभ : पैर म दृढ़ता आती है। पैर का काँपना बंद होता है।
आलस समा होता है। जीवन म संतुलन लाता है।
मूलाधार च उि थत होता है। नई चेतना का ादुभाव होता है।
साधना िसि म सहायक है।

पाद ह तासन/ह त पादासन

शाि दक अथ : पाद का अथ पैर और ह त का अथ हाथ होता है। अपने ही हाथ के पंज


पर ऊपर पैर रखकर खड़े होना।

िविध : ताड़ासन क ि थित म खड़े ह । पैर के पंज के बीच क दूरी आधा फ़ ट से एक


फ़ ट तक रख। ास छोड़ते ए धीरे -धीरे आगे क तरफ़ झुक एवं दोन हाथ क हथेिलय
को पैर के तलव के नीचे लगाएँ। इस दौरान घुटने नह मुड़ने चािहए। अपने िसर को
झुकाते ए घुटन के बीच रिखए।

ास म/समय : 5 से 10 सेकंड तक क। वाभािवक प से ास- ास कर। ास लेते


ए िसर उठाएँ और वापस पूव ि थित म आ जाएँ।

यान : मूलाधार एवं वािध ान च पर।

लाभ : यह आसन पेट म गैस भरी रहने, वायु िसर पर चढ़ने या पेट फू लने जैसी
बीमा रय म ब त लाभदायक है।

पि मो ानासन के भी लाभ इससे ा होते ह।


अनाव यक चब कम होती है।
बाल का झड़ना बंद होता है, आँख क रोशनी बढ़ती है और चेहरे म िनखार
आता है।

सावधािनयाँ: उ र चाप, कमर दद, रोग एवं िज ह च र आते ह , वे


सावधानीपूवक अ यास कर।

नोट : पादागु ासन ( थम कार) और उ ानासन ( थम कार) उपरो आसन से काफ


समानता रखते ह।

उ ानासन ( थम कार)

शाि दक अथ : उत् एक सं कृ त उपसग है, जो श द म लगकर अथ देता है। तान का अथ


फै लना, फै लाया आ, तानना या बढ़ाना। इस आसन म मे द ड को बलपूवक ताना जाता
है।

िविध : स मु ा म अपने आसन म सीधे खड़े हो जाएँ। ास छोड़ एवं आगे क ओर


झुकते ए हथेिलय को एिड़य के पास ज़मीन पर रख। घुटन को मुड़ने न द, अंितम
ि थित म िसर घुटन से न लगाकर ऊपर क तरफ़ तान। मे द ड भी तना आ रहेगा। इस
या म ास गहरी ल। अब पुनः ास छोड़ और िसर घुटन से सटा द (िच देख)।
वाभािवक ास लेते ए लगभग 1 िमनट या यथाशि क। अब पहले िसर उठाएँ, ास
ल। हाथ उठाते ए वापस मूल अव था म आ जाएँ।

ास म/समय : उपरो िविध म सि मिलत है।


लाभ : ि य के मािसक ऋतु ाव के समय होने वाली पेट क पीड़ा को कम करता है।

ज दी उ ेिजत होने वाले ि , िचड़िचड़े वभाव एवं तुरंत आवेश या ोध


करने वाले ि य के िलए यह आसन ब त उपयोगी है, य क यह मि त क
क कोिशका को शांत करता है एवं मानिसक उदासीनता को न करता है।
उदर-पीड़ा को शांत करता है।
यकृ त, लीहा एवं गुद ( कडनी) को लाभ दान करता है।
दय को पु करता है।
मे द ड को लचीला बनाता है एवं मे द ड संबंधी ब त से लाभ दान करता
है।

िव शे ष : पादांगु ासन और पाद ह तासन ये दो आसन इस उपरो आसन से काफ़


समानता रखते ह। कई योगाचाय के अनुसार ये आसन िविभ भी होते ह एवं एक और
कार के उतानासन का उ लेख यहाँ पर कया गया है। अत:साधक अपने िववेकानुसार
उपयोग कर।

सावधािनयाँ : उ र चाप एवं कड़क मे द ड वाले इस आसन को सावधानी पूवक कर।


साइ टका, सवाइकल, पॉि डलाइ टस, ि ल पिड क रोगी इस अ यास को न कर।

उतानासन (ि तीय कार)

िविध : दोन पैर के बीच लगभग दो से ढाई फ़ट क दूरी बनाकर सीधे खड़े हो जाएँ। पैर
के पंज को बाहर क तरफ़ मोड़कर खड़े ह । अब दोन हाथ को पेट के सामने क तरफ़
लंबवत् प म एक दूसरे से फं साकर लटका ल। या छाती के सामने हाथ जोड़ ल।

ास छोड़ते ए धीरे -धीरे नीचे क तरफ़ बैठ। घुटने बाहर क तरफ़ पंजे के ऊपर एक
सीध म ि थत होने चािहए। ास लेते ए वापस उसी ि थित म खड़े हो जाएँ। इस
अ यास म मशः िजतना अिधक संभव हो उतना नीचे बैठने क कोिशश कर। अ यास के
दौरान मे द ड सीधा एवं दृि सामने रख। 5 से 10 बार यह या कर।

िवशेष: बैठते समय घुटने बाहर क ही तरफ़ मुड़े रह।

य द पहली बार म ही बैठते न बने तो पहले 1 फ़ट तक िनतंब को नीचे कर


फर डेढ़ फ़ट कर। अ यास हो जाने पर पूरा बैठने क कोिशश कर।

लाभ : जनन देश के िवकार का शमन करता है।

पैर क माँसपेिशय को मज़बूती दान करता है।


जाँघ, घुटने व पंडली को मज़बूती दान करता है।
ाण के वाह को िनयिमत करता है। मू ाशय एवं गभाशय को लाभ िमलता
है।
पीठ के सामा य िवकार दूर करता है।
टखने, घुटने एवं कमर क संिधय को उिचत लाभ दान करता है।

सावधािनयाँ
पहली बार म ही पूणतः बैठने क कोिशश न कर।
िसर एवं मे द ड सीधा रख। आगे क तरफ़ न झुक।
गभाव था क ि थित म पूण प से न बैठे एवं तीन महीने क गभाव था के
बाद न कर।

काल भैरवासन ( थम कार)


शाि दक अथ : काल का मतलब िवनाश या समय। भैरव का अथ भयानक या उ । यह
भगवान िशव के आठ प म से एक है।

िवशेष : इसक कई िविधयाँ ह। जैसा क नाम से इं िगत है, यह आसन कालभैरव जी का है।
भारत म कालभैरव जी क तरह-तरह क मु ा वाली ितमाएँ िमलती ह।

िविध : यहाँ उनक मु ा िच ानुसार है। पहले सीधे खड़े हो जाएँ। दोन पैर म लगभग 1
फ़ ट का अंतर रख। एक पैर दूसरे पैर के पीछे होना चािहए। हाथ को या तो ऊपर कर ल
या फर आगे-पीछे। आँख अपलक िनहारती ई और जीभ थोड़ी बाहर िनकली ई हो।

समय : 3 से 5 िमनट अ यास कर।

यान : ास क तरफ़ यान द एवं यान कर क सम त ोध बाहर जा रहा है और


आ याि मक आनंद अंदर आ रहा है।

लाभ : शरीर म दृढ़ता आती है।

आँख क योित बढ़ती है।


साधक के अंदर िनभयता आती है, साहस बढ़ता है।
व : थल चौड़ा व मज़बूत होता है।

नोट : कालभैरवासन का ि तीय कार अगले पृ पर देख।


उि थत ह त पादांगु ासन

िविध : समाव था म खड़े हो जाएँ अथात् दोन पंजी को एक साथ िमलाकर खड़े हो जाएँ।
दृि सामने रख। अब दािहने घुटने को मोड़कर दािहने हाथ से दािहने पैर के अंगूठे को
पकड़। इस कार अंगूठे को पकड़े क दािहना हाथ पैर के अंदर क तरफ़ हो त प ात् दाएँ
पैर को धीरे -धीरे सीधा कर, और पैर को ल बवत् तानते ए ऊपर क तरफ़ ले जाएँ। बाएँ
हाथ को कमर पर रख य द स तुलन नह बन पा रहा हो तो हाथ क सामने या बगल क
तरफ़ ऊपर उठाएँ।

नोट: इस आसन म पैर को धीरे -धीरे अ यास म लाते ए पैर को इतना ऊपर उठाएं क
आपक जांघ ठु ी से पश करने लग। इस यास के िलए दोन हाथ से पैर को ऊपर क
तरफ़ उठाएँ।

ास म/समय : अनुकूलतानुसार क या 5 से 10 सेक ड तक ही क और दोन पैर से


पाँच-पाँच च पूरे कर। पैर उठाते समय ास ल और आसन बनाते समय अंत:कुं भक कर
तथा पैर को नीचे लाते समय ास छोड़।

लाभ : पैर क मांसपेिशयाँ एवं िनत ब के जोड़ मज़बूत होते ह।


िनत ब और जंघा म सुडोलता आती ह।
शरीर और मन दोन का िनयं ण होता है।

सावधानीयाँ : साइ टका और कमर रोग से अिधक पीिड़त ि न कर।

वह योग कायकारी है

जो िनवणा पथ पर ले जाये

-RJT

शुतुरमुग आसन

शाि दक अथ : शुतुरमुग एक प ी है, जो दौड़ने म तेज़ होता है व कई दन तक पानी िपए


िबना जीिवत रहने क मता रखता है।

िविध : स मु ा म सीधे खड़े हो जाएँ। दोन पैर के बीच थोड़ा सा अंतर रख। अब
सामने क तरफ़ झुक व दोन हाथ ज़मीन से लगा द एवं अँगुिलय के बल पूरा शरीर
उठाएँ। अँगुिलयाँ खुली रख तथा पैर क एिड़य को भी ज़मीन से ऊँचा उठा ल। पैर क
अँगुिलय एवं हाथ के बल खड़े हो जाएँ। अंितम ि थित म शरीर का संपूण वज़न पैर क
अँगुिलय एवं हाथ क अँगुिलय पर रहेगा। हाथ क कोहनी और पैर के घुटने नह मुड़ने
चािहए। सामने क तरफ़ देख। इस अव था म थोड़ा इधर-उधर चल सकते ह। अंितम
अव था म ास- ास सामा य रख।

ास म : सामने क तरफ़ झुकते समय ास छोड़। वापस उठते समय ास ल।

लाभ : पैर क अँगुिलय से लेकर जाँघ तक पूरा पैर मज़बूत व सुग ठत होता है।

िजनको गैस क सम या है, वे इस आसन को कर वायु-िवकार से मु हो सकते


ह।
हाथ क अंगुली, कोहनी एवं भुजाएँ सुंदर, मज़बूत व दृढ़ होती ह।
ने -रोग म फ़ायदा होता है।
मोटापे का य होता है।

नोट : कु छ योग िश क इस आसन को गज आसन भी कहते ह।

सावधािनयाँ : साइ टका एवं उ र चाप वाले रोगी िववेकपूवक कर।

शीष पादांगु पशासन

शाि दक अथ : शीष का अथ िसर। पाद-अंगु का अथ पैर का अँगूठा।

िविध : पहले ताड़ासन म खड़े ह । अब िसफ़ बाएँ पैर को दािहने पैर से 2-3 फ़ ट आगे कर।
हाथ को पीछे बाँधे और िसर को बाई ओर झुकाते ए अँगूठे से पश कराने का य कर।
इस अव था म दािहना पैर सीधा रहेगा और बायाँ घुटना कु छ मुड़ग े ा। पैर को बदलकर
यही म जारी रख।

ास म : झुकते समय ास छोड़। मूल अव था म लौटते समय ास ल।


समय : यह आवृि 3 से 5 बार दोहराएँ।

लाभ : पैर क माँसपेिशयाँ एवं मे द ड सश होते ह एवं इनके सामा य रोग म लाभ
िमलता है।

वायु-िवकार एवं क़ ज़ के िलए िहतकारी।


मानिसक िवकार का शमन होता है। सावधािनयाँ

सावधािनयाँ
इस आसन के बाद और पहले पीछे मुड़ने वाले आसन करने से इसक क ठनता
समा होती है और अ य िवकार नह हो पाते।
आसनाव था म ास रोके रह। ास- ास न कर।
ि लप िड क वाले और साइ टका क सम या वाले रोगी इसे न कर।

वीरभ ासन/ एक पादासन

िविध : खड़े हो जाएँ। दोन हाथ को कान से पश कराते ए िसर के ऊपर ले जाएँ एवं
अंगुिलय को आपस म फं सा ल। अब चूं क एक पैर पर स तुलन थािपत करना है, अतः
एक पैर (दािहना) पर पूरा यान के ि त कर कमर से ऊपर के भाग को सामने क तरफ़
झुकाते ए बाएँ पैर को पीछे ले जाएँ इस कार िसर, छाती, पीठ और बायाँ पैर एक सीध
म हो जाएँग।े अंितम अव था म दािहने पैर पर ही पूरा स तुलन रहेगा। अनुकूलतानुसार
क और वापस मूल अव था म आ जाएँ। यही या दूसरे पैर से भी कर।

ास म/समय : झुकते समय ास छोड़ अंितम अव था म ास सामा य रख। मूल


अव था म लौटते समय ास ल। अनुकूलतानुसार क और येक पैर से 2 से 3 बार कर।

लाभ : पैर क मांसपेिशय को मज़बूती दान करता है।


सम त शरीर म और जीवन म स तुलन को प रभािषत करता है।
र संचार यथावत करता है। मन क चंचलता को रोकता है।

सावधानी : उ र चाप वाले इसे न कर।

पादांगु ासन( थम कार)

शाि दक अथ : पाद का अथ पैर। अंगु का अथ अंगूठा।

िविध : ताड़ासन म खड़े हो जाएँ। पैर के म य लगभग एक फ़ ट का अंतर रख। ास छोड़े


एवं आगे क तरफ़ झुकते ए पैर के अँगूठे को अंदर क तरफ़ से ऐसे पकड़ क दोन
हथेिलयाँ आमने-सामने हो जाएँ। िसर को सामने क तरफ़ रख। अब पैर क अँगुिलय म
तनाव देते ए घुटन के बीच िसर को रख। सामा य ास- ास कर और लगभग 5 से 10
सेकंड इसी ि थित म रह। अब ास छोड़। िसर ऊपर क ओर कर। पैर क अँगुिलय को
छोड़कर ताड़ासन क ि थित म आ जाएँ।

ट पणी : पाद ह तासन, पादांगु ासन ( थम कार) एवं उ ान आसन ( थम कार) ये


सभी लगभग एक जैसे ही ह।

यान : िवशुि च पर।

लाभ : िजनके पैर काँपते ह , वे इस आसन को अव य कर। जो साधक इस आसन को


िनयिमत करता है उसके पैर म सु होना और कं पन आ द नह होता। वायु
िन कासन करता है।

िनत ब, कमर, मे द ड, पेट और सीना ये सभी आकषक बन जाते ह। जो


आपके ि व पर चार चाँद लगाते ह।
पाचन- या ठीक करता है। मोटापा कम करता है।

सावधािनयाँ : उ र चाप, च र आने और साइ टका क सम या वाले इस आसन को न


कर।

नोट : पादांगु ासन के ि तीय कार का वणन आगे कया गया है।
म यम समूह के आसन

बकासन ( थम कार)

शाि दक अथ : बक अथात् बगुला।

िविध : उकडू बैठ जाइए। दोन हाथ के पंजे ज़मीन पर रिखए। अब संतुलन बनाकर पूरा
वज़न हाथ पर देते ए उ ठए। दोन घुटन को काँख के बगल से पश कराएँ या रख।
धीरे -धीरे एिड़य को िनत ब के नीचे क तरफ़ रिखए। िसर को थोड़ा नीचे क तरफ़ ले
जाएँ। िसर और एिड़याँ लगभग एक समान रे खा पर ह ।

ास म/समय : ास- ास समान रिखए। 5 से 10 सेके ड तक कर।

यान : आ ाच पर।

लाभ : एका ता बढ़ती है।


पाचन तं ठीक करता है। उदर देश क कु िपत वायु का िन कासन करता है।
नािभ पर ज़ोर पड़ने के कारण यह सभी 72,000 नािड़य पर असर करता ह।
हाथ क माँसपेिशयाँ मज़बूत होती ह।
झु रय को मशः समा कर चेहरे म िनखार लाता है।

सावधािनयाँ : अित उ र चाप वाले और मि त क रोगी यह आसन न कर।

नोट : कु छ योग िश क इसे बक यानासन भी कहते ह।

ट पणी : बकासन करने के दो-तीन तरीके और भी ह, परं तु उन सभी के लाभ उपरो


आसन करने से ा हो जाते ह।

कागासन

श दाथ : काग एक प ी का नाम है िजसे हम चिलत भाषा म 'कौआ' कहते ह।

िविध : सव थम सावधान क ि थित म खड़े हो जाएँ। अब दोन पैर के बल इस कार


बैठे क पैर के बीच िब कु ल अंतर न रहे। दोन हाथ को घुटन पर रख ल एवं कोहिनय
को जंघा , छाती व पेट के बीच म ि थत कर द। कमर, मे द ड और गदन सीधी रख।
ास म : ास या सामा य रख।

समय : 2-3 िमनट तक इस ि थित म बैठे।

लाभ : उदर के अवयव को लाभ।


वायु िवकार का शमन होता है।
जंघाएँ सुंदर, सुडौल बनती ह।
ष कम म क जाने वाली यौिगक या के अ यास म ि थरता आती है।

म यासन

शाि दक अथ : म य का अथ मछली है। इस आसन क एक िवशेषता यह है क इसे


लगाकर पानी के ऊपर घंट लेटा जा सकता है। इसिलए इसे म यासन भी कहते ह।

िविध : ज़मीन पर शवासन क ि थित म लेट जाएँ। अब बाएँ पैर को दािहनी जाँघ पर
और दािहने पैर को बाई जाँघ पर रख। यह आपका िव ाम प ासन कहलाया। अब धीरे -
धीरे पीठ के भाग को उठाएँ, िजससे शरीर का वज़न िसर एवं िनतंब पर पड़े। अब दोन
हाथ से दोन पंज के अंगूठे पकड़। इस ि थित म आप काफ़ देर रह सकते ह। परं तु शु म
8-10 सेकंड ही कर। यह आसन सरल होते ए भी काफ़ लाभ द है।

यान : अनाहत च व ास पर।

ास म/समय : पूण आसन पर गहरी ास ल। 3 से 5 िमनट कर।

लाभ : यह आसन बवासीर (खूनी और दाह-यु ) को ठीक करता है। दय को बल िमलता


है। फे फड़े मज़बूत होते ह। ास-संबंधी रोग के िलए यह िहतकर औषिध जैसा है। क़ ज़
दूर कर भूख बढ़ाता है। आल य दूर करता है। मे द ड, कमर, पीठ एवं जाँघ क
माँसपेिशय को मज़बूत करता है। ीवा म तनाव पड़ने के कारण गल ंिथ को लाभ
प च ँ ता है। सवाइकल, प डलाइ टस म ब त आराम िमलता है। थायरॉइड ंिथ को ठीक
करता है।
िवशेष : शीषासन और सवागासन के बाद यह आसन करने से िवकार समा होते ह एवं
पूव म कए गए आसन के लाभ म वृि होती है।

नोट : इस कार से भी कर सकते ह क पहले बैठकर प ासन लगाएँ और धीरे -धीरे


शवासन क ि थित म प च
ँ जाएँ।
कु छ योग िश क सामने पैर को ल बवत् कराकर करवाते ह।

सावधानीयाँ : मे द ड व पीठ दद के रोगी, दय रोगी, गभवती मिहलाएँ व हा नया के


रोगी इस आसन को शारी रक अव था का यान रखकर म पूवक कर।

संहासन ( थम कार)

आकृ ित : संह के समान।

िविध : सुखासन म बैठ जाएँ। िनतंब को ऊपर उठाएँ। अब बाएँ पैर क एड़ी को दाएँ
िनतंब के नीचे और दाएँ पैर क एड़ी को बाएँ िनतंब के नीचे जमाकर बैठ जाएँ एवं
हथेिलय को घुटन पर फै ला ल। अब पेट को िपचकाते ए व : थल को सामने तान या
उभार। मुँह खोलते ए जीभ को यथासंभव बाहर क ओर िनकाल और गले से गुराने क
आवाज़ िनकाल। ने से दोन भ ह के बीच देखने का य कर। अब नाक और मुँह से
एक साथ ास छोड़ने का य कर। चेहरे पर तनाव लाएँ। इस कार करने से चेहरा
वीभ स लगता है। 8-10 सेकंड इसी ि थित म क। पैर को बदलकर 3-4 बार कर (पहले
दािहना पैर बाएँ के ऊपर था, तो अब बदलकर बाएँ पैर के नीचे कर), परं तु समय दोन का
बराबर रहे।
यान : आ ा च पर और िवशुि च पर।

लाभ : कठ मधुर होता है।


हकलाना बंद होता है।
ने - योित ती होती है।
यह आसन व ासन वाले सभी लाभ दान करता है।
छाती को मज़बूत बनाता है और पेट को नरम रखता है।

संहासन (ि तीय कार)

िविध : घेर ड संिहतानुसार - दोन पैर क एिड़य को ु मपूवक सीवनी नाड़ी


(मूलाधार च के नीचे) के नीचे लगाकर जालंधर बंध लगाते ए नािसका के अ भाग या
दोन भ ह के बीच दृि ि थर कर। यह संहासन नामक आसन सभी कार क ािध को
न करता है।

हठयोग दीिपका म िलखा है क संहासन से तीन बंध क िसि हो सकती है।

ि िशख णोपिनषद् म िलखा है क-

सीवनी गु फदेशे यो िनपीडय ु मेण तु।


ासाय जानुनोह तावासनं संह पकम।
अथ : दोन एिड़य से सीवनी नाड़ी को िवपरीत िविध ारा दबाकर दोन घुटन और
हाथ को फै लाकर ि थत ह तो यह संह पी आसन/ संहासन होता है।

समय : ित दन 15 से 20 सेक ड तक कर फर धीरे -धीरे समय बढ़ाते जाएँ।

लाभ : तुतलाना बंद होता है कठ मधुर होता है।


िनभयता आती है।
मूलाधार च एवं आ ा च भी जा त होता है।
ने योित बढ़ती है।

िवशेष : इस आसन को थोड़ी-थोड़ी हाथ और पैर क ि थित को बदलकर भी करवाया


जाता है।

गोमुखासन

आकृ ित : गाय के मुँह जैसा (एक िसरे पर पतला और दूसरे िसरे पर चौड़ा)।

शाि दक अथ : उपरो िविध म एक के ऊपर एक घुटने रखने से इसक आकृ ित गाय के


मुख के समान और पैर के पंजे अगल-बगल से बाहर क तरफ़ िनकले होने के कारण गाय
के कान के समान दखाई पड़ते ह अत: गौमुख आसन कहलाता है।

थम कार (इस िविध म एिड़याँ आपस म नह िमलती ह) : पैर को सामने क तरफ़


फै लाकर बैठ जाएँ। दािहने पैर को घुटने से मोड़ते ए पंजे को बाएँ िनतंब के पास और बाएँ
पैर को मोड़कर दािहने घुटने पर बाएँ घुटने को रख। इस ि थित म बाएँ पैर का पंजा
दािहने िनतंब के पास आ जाएगा। अब बाएँ हाथ को ऊपर िसर के पीछे से ले जाएँ और
दािहने हाथ क कमर के बगल से पीठ के ऊपर क तरफ़ ले जाएँ। दोन हाथ के पंज क
अँगुिलयाँ आपस म फं सा ल। यही अंितम अव था है। पैर और हाथ के म को बदलकर
इसी अ यास को फर से कर।

ास म/समय : अंितम ि थित म ास सामा य/आधा िमनट से एक िमनट तक कर।

ि तीय कार : सुखासन म बैठकर बाएँ पैर के पंजे को दािहने िनतंब के नीचे इस कार
रख क एड़ी गुदा ार के नीचे आ जाए। दािहने पैर को मोड़कर बाएँ पैर के ऊपर इस
कार रख क पंजे ज़मीन को छू ने लग। मश:अ यास से दोन एिड़याँ आपस म िमलने
लगती ह।

अब बाएँ हाथ को बगल से पीठ के पीछे ले जाएँ और दािहने हाथ को दािहने कान क
तरफ़ से पीछे ले जाएँ। दोन हाथ के पंज को कची क तरह फं सा ल। इस समय ि थर
रहकर ास- ास कर। मूल ि थित म वापस आएँ एवं हाथ और पैर क ि थित बदल ल।
इस कार यह आसन पूण होता है।

यान : मूलाधार च पर।


नोट : 1. पहली िविध अनुसार पहले जो पैर ऊपर ि थत रहता है उसी तरफ़ का हाथ भी
ऊपर क तरफ़ से पीछे जाता है।
2. दूसरी िविध अनुसार जो पैर नीचे ि थत है उस तरफ़ हाथ ऊपर से पीछे जाता है।
लाभ : यह आसन भी िस ासन और प ासन क तरह लाभ देने वाला है।

छाती मज़बूत और चौड़ी होती है।


इस आसन को करने से मूलबंध अपने-आप लग जाता है।
यह आसन मधुमेह, ग ठयावात, क़ ज़, पीठ दद व शी पतन जैसी कई
बीमा रय को दूर करता है।
पैर क ठन दूर करता है।
कं ध को मज़बूत करता है।
ि य के व : थल सुग ठत होते ह।

िवशेष : इसी आसन म जब दोन हाथ को घुटन पर रखते ह तो यह सु गोमुखासन


कहलाता है। कह -कह इस अव था को यान वीरासन भी कहते ह।

योग साधना आ म– व पको


अनुभव करने का सरल िव ान है।

-RJT

उ कटासन

िविध : यह आसन दो कार से कया जा सकता है :

1. घेर ड संिहतानुसार : ताड़ासन म खड़े हो जाएँ और धीरे -धीरे पंज के बल बैठ जाएँ।
एिड़याँ िनतंब से सटाते ए गुदा ार पर रख ल। वाभािवक ास- ास करते रह।
हाथ को घुटन पर रख द।
2. ताड़ासन क ि थित म खड़े हो जाएँ। अब दोन हाथ को िसर के ऊपर ले जाकर
हथेिलय को नम कार क मु ा बना ल। अब कु स पर बैठने क तरह िनतंब को नीचे लाएँ।
यास कर क सीना आगे क तरफ़ न जाएँ (ऐसा लगने लगे क हम कु स पर बैठे ह )।
यथासंभव क। अब वापस मूल ि थित म आ जाएँ।

यान : मूलाधार और आ ा च पर (अनुकूलतानुसार)।

ास म : वभािवक शवास- ास कर।


समय : यथाशि ।

लाभ : ाण सुषु ा से वािहत कराने के िलए यह आसन अव य कर। अतः कु डली


जगाने के अ यासी इसे ज़ र कर।

एका ता बढ़ाने के िलए उपयु ।


टखने और पैर मज़बूत होते ह।
दमाग क ताज़गी िमलती है।
मोटापा कम करने म सहायक।
मे द ड को बल िमलता है।

गितमय उ कटासन

िविध : समाव था म खड़े हो जाएँ। सीने के सामने हाथ को नम कार क ि थित म रख


और ास लेते ए हाथ को िसर के ऊपर तान द। दोन भुजा को कान से पश कराएँ।
अब ास छोड़ते ए बैठने क कोिशश कर। पहले कु स म बैठने तक क अव था रख,
इसके बाद अ यास को बढ़ाकर िनत ब क ज़मीन से पश करने क कोिशश कर। इस
कार अ यास हो जाने पर इसम गित लाएँ (हाथ को सामने क तरफ़ भी कर सकते ह)।
ास म : उठते समय ास ल और िनत ब को नीचे करते समय ास छोड़।

समय : ार भ म धीरे -धीरे कर एवं पंडली, जाँघ, घुटन म लोच व लचक आ जाने के
बाद तेज़ी लाते ए 10 से 15 बार कर।

लाभ : पैर म होने वाला दद, खंचाव, सु पड़ना, पंडली, जाँघे एवं एड़ी सिहत पूरे
पैर के िवकार दूर करता है।
घुटने के साम य दद को दूर करता है।
पीठ का दद, ि लप िड क, साइ टका, कमर दद क सम या से िनजाद दलाता
है।
पाचन तं को भावी करता है।
फे फड़ को शि दान करता है।

सावधािनयाँ
एकदम से पहली बार म ही ज़मीन पर बैठने क कोिशश न कर।
घुटने के आपरे शन या ब त अिधक कमर दद से पीिड़त ि न कर या पहले
उनसे संबंिधत आसन कर ल।

कु कुटासन
आकृ ित : कु कुट आसन अथात् मुग क तरह दखने वाला आसन।

िविध : प ासन म बैठे। हाथ को िप डिलय और जाँघ के बीच म से धीरे -धीरे िनकाल।
हथेिलय को ज़मीन पर इस कार रख क अंगुिलयाँ सामने क तरफ़ रह। अब पूरे शरीर
को धीरे -धीरे हाथ के पंज पर वज़न देते ए ऊपर उठाएँ। िजतना संभव हो सके क। फर
वापस मूल ि थित म आ जाएँ। अ यास हो जाने पर पैर को बदलकर कर।

यान : दय-च का यान कर एवं आ याि मक लाभ हेतु मूलाधार च पर।

ास म :
अंितम अव था म साधारण प से ास- ास कर।
ऊपर उठते समय ास ल और वापस आते समय ास छोड़।

समय : यह या 3-4 बार कर।

लाभ: हाथ के पंजे, कोहनी और कं धे मज़बूत होते ह।


पेट क माँसपेिशयाँ मज़बूत होती ह।
लोलासन से होने वाले सम त लाभ ा होते ह।
शरीर म मज़बूती आती है।
पो स म वॉलीबॉल, बा के टबॉल, जूडो-कराटे वाल को यह आसन अव य
करना चािहए।

िवशेष : िप डली, जाँघ और हाथ म िचकना लगाकर आसन करने म सरलता होती
है।

वृषभासन
शाि दक अथ : वृषभ का मतलब बैल है। यह भगवान िशव का वाहन एवं थम तीथकर
भगवान आ दनाथ क मू त के नीचे िशलाप पर अं कत कया जाने वाला पहचान िच ह
है।

िविध : जैसे बैल ज़मीन पर िव ाम क ि थित म बैठता है वैसे ही इस आसन क ि थित


होती है। अपने आसन पर घुटन के बल बैठ जाएँ या व ासन म बैठ जाएँ। अब
िच ानुसार बैठे। य द बाई जाँघ के बल बैठते ह तो बाएँ पैर क एड़ी सीवनी- थान पर
पश कर एवं दािहने पैर को बाएँ पैर के ऊपर िच ानुसार रख। अब दोन हाथ को सामने
इस कार रख जैसे बैल अपने सामने के पैर को रखता है।

ास म/समय : ास या सामा य रख और अब यही या पैर को बदलकर कर। 5


िमनट तक ित दन अ यास कर सकते ह।

यान : आ याि मक लाभ हेतु भगवान िशव भगवान आ दनाथ का यान कर।

लाभ : वृष के समान शि शाली एवं कं धे मज़बूत होते ह।


जाँघ, पैर, हाथ, बा , कध, घुटने सभी पु एवं सुग ठत होते ह।
पेट क दूिषत वायु का िवसजन होता है अतः ि ह कापन महसूस करता
है।
कई कार के शारी रक लाभ वत: ा हो जाते ह।

ि कोणासन
शाि दक अथ: ि का अथ तीन। कोण का अथ कोना (ि कोण अथात् ितकोना)।

िविध : स मन से सावधान खड़े हो जाएँ अब पैर के बीच 2-3 फ़ ट का अंतर बना ल।


दोन हाथ क कं ध क सीध म ज़मीन के समानांतर पि य के पंख क तरह फै ला ल।
धीरे -धीरे कमर के ऊपरी िह से क सामने दािहनी तरफ़ झुकाएँ। दािहने हाथ क हथेली से
दािहने पैर के पंजे को पकड़े या पैर क अँगुिलय को पश कर। दोन घुटने तने ए होने
चािहए। अंितम अव था म बाएँ हाथ क ि थित को दो कार से कर सकते ह। पहली
ि थित म बायाँ हाथ दािहने हाथ क सीध म रहेगा एवं दूसरी ि थित म बाएँ हाथ क
भुजा बाएँ कान के ऊपर रखते ए ि कोण क ि थित िन मत करे गी। अब इसी या को
बाई तरफ़ झुकते ए कर।

ास म : झुकते समय ास छोड़ एवं सीधे खड़े होते समय ास ल।

लाभ : क़ ज़ को दूर करता है।


पैर क माँसपेिशय को ठीक करता है।
मे द ड को लचीला बनाता है।
पीठ का दद एवं गदन के रोग ठीक करता है।
उदर-संबंधी िवकार ठीक करता है।
िवशेष : इस आसन क या म थोड़ा-थोड़ा प रवतन कर इसके 3-4 कारांतर कए जा
सकते ह।

ि कोणासन – कारा तर

िविध : दोन पैर के बीच लगभग 3 फ़ ट का अंतर रखकर सीधे खड़े हो जाएँ। दोन हाथ
को पि य के पंख क तरह कं ध के समानांतर फै ला ल।

अब बाएँ पैर के पंजे को दािहने हाथ से पश करने के िलए शरीर को आगे झुकाते ए
दाएँ अंग को मोड़। ास छोड़ते ए दािहने हाथ से बाएँ पैर के पंजे क पश कर।

बाएँ हाथ को आसमान क तरफ़ ऊपर कर ता क दोन हाथ क भुजाएँ एक सीध म ह ।


लगभग 5 सेकड क। अब वापस बीच क ि थित म आ जाएँ और यही या बाएँ हाथ से
कर। धीरे -धीरे अ यास करते ए कने क ि थित म समय लगाएँ।

िवशेष : हाथ को ऊपर क तरफ़ करते ए आसमान क तरफ़ घुमाकर दृि ि थर कर।

यान : पीठ, पेट एवं पंडली के तनाव को महसूस कर। मिणपूरक च का भी यान
कर।

गितमय ि कोणासन : अब इसी या को तेज़ करते ए गितमय बनाएँ।


लाभ : इस गितमय या को ित दन िनयिमत प से करने पर उदर देश को
आ यजनक प से लाभ िमलता है। पाचन-तं मज़बूत होता है।
मोटापे को कम करता है।
पैर क पंडली तनाव रिहत होकर सश बनती है।
वायु िवकार का शमन करता है।
कमर शि िवकास के िलए यह अित भावकारी या है।
कमर पतली कर पेडू (पेट का िनचला िह सा) म जम चब को कम करता है।

नोट : कु छ योग िश क इसको पा ि कोणासन, कोणासन और प रवृति कोणासन भी


कहते ह।

अ ांग नम कारासन

शाि दक अथ : अ ांग का अथ आठ अंग सिहत। नम कार का अथ णाम करना। शरीर के


आठ अंग (दोन पैर, दोन हाथ, दोन घुटने, छाती एवं ठु ड़ी) को झुकाकर नमन करना
या णाम करना। इस कारण इस आसन को अ ांग नम कारासन कहते ह।

िविध : पेट के बल उ र या पूव क दशा क तरफ़ िसर करके लेट जाएँ। दोन पैर क
अंगुिलयाँ, दोन घुटने, दोन हाथ क हथेिलयाँ, छाती व ठु ी यह सभी अंग पृ वी को
पश कर। यह आसन भगवान को सा ांग नम कार करने जैसा ही है।

ास म/समय : वाभािवक ास- ास कर। अनुकूलतानुसार क।

यान : अपने ई भगवान या गु का यान कर।


मूलाधार च से उठती ई शि का यान कर, जो क सह ार क तरफ़
भािहत हो रही है।
शरीर के रोग का नाश हो रहा है, ऐसा यान कर।

लाभ : यह आसन मे द ड के रोग म अित लाभकारी है।


यह आसन शरीर को पूण आराम देता है एवं नई चेतना का संचार करता है।
मानिसक शांित दान करता है।

नोट : दशा का मह व आ याि मक कारण से।


कु छ योग िश क इसको िणपातासन कहते ह।

नुमानासन

िविध : चाहे तो दोन घुटन के बल बैठे या एक घुटने को ज़मीन पर टेक और दूसरे पैर को
उसके बगल मे रख। अब दोन हाथ क हथेिलय को शरीर के अगल-बगल क ज़मीन पर
रख। धीरे -धीरे दोन पैर को आगे-पीछे फै लाएँ। हाथ का सहारा ल (ज दबाज़ी न कर,
चूँ क जाँघ , पंडिलय एवं गुदा ार के पास अिधक तनाव होता है, अतः या को पूण
करने म नए साधक को कु छ दन भी लग सकते ह) दोन पैर को िवपरीत दशा म इतना
फै लाएँ क िनतंब, जाँघे व पंडली ज़मीन को पश करने लग, अब हाथ का सहारा
हटाकर छाती के सामने हाथ को लाएँ और नम कार मु ा बनाएँ या दूसरी कार से हाथ
को िसर के ऊपर ले जाकर नम कार मु ा बना सकते ह।

यान : हनुमानजी का यान लगाएँ और उनके च र का चंतन कर एवं उनके गुण को


आ मसात् कर।

समय : 10 से 20 सेकंड तक कर। 2 से 3 बार कर।

ास म : अंितम ि थित म वाभािवक शवास- ास ल।

लाभ : काम-िवकार को शांत करता है। जनन य के रोग दूर करता है।
पंडिलय , जाँघ और ोणी- थान म र संचार क या को बढ़ाकर
ायुतं को लाभ प च
ँ ाता है।
ग ठया रोग को दूर करता है।

नोट : एक हाथ म गदा एवं एक हाथ म पवत - इस कार क मू त के चलन म होने के


कारण कोई-कोई योग गु हनुमानासन को उस कार से भी करवाते ह। एवं हनुमानासन
को और भी कई कार से कया जा सकता है।

सावधानी : आसन करने के बाद एकदम से खड़े न ह , सामने पैर फै लाकर बैठ जाएँ।

अध चं ासन( थम कार)

िविध : स तापूवक सीधे खड़े हो जाएँ। दोन पैर को लगभग 2 से 3 फ़ ट क दूरी पर


फै लाएँ और हाथ क कथे क सीध म ज़मीन के समानांतर रख। चूँ क आपको िच ानुसार
आसन करना है, अतः दािहनी तरफ़ झुकते ए दािहने घुटने को मोड़। अब धीरे -धीरे पूरा
संतुलन दािहनी तरफ़ करते ए बाएँ पैर को उठाएँ। बाएँ पैर को इतना उठाएँ क दािहने
हाथ क हथेली ज़मीन को छू ने लगे, परं तु शरीर का भार दािहने पैर और िनतंब पर पड़े।
बाएँ हाथ को बाई तरफ़ कमर के समानांतर रख। 10 से 20 सेकंड इस ि थित म क।
मशः अपनी मूल ि थित म आ जाएँ और यही या पैर बदलकर दूसरे पैर से कर।

ास म : ास- ास अंितम अव था म वाभािवक रख।

लाभ : मे द ड के िनचले एवं पृ भाग को मज़बूत करता है।


िजनके पैर काँपते ह , वे इस आसन को अव य कर। लाभ िमलेगा।
घुटने के दद व ठन को ठीक कर लाभ प च
ँ ाता है।
वायु-िन कासन कर शरीर ह का करता है।
िवशेष : अलग-अलग परं परा म अधचं ासन को अलग-अलग ढंग से कराए जाने के
कारण हमने उनको यहाँ पर दशाया है।

अधचं ासन(ि तीय कार)

िविध : व ासन क ि थित म रह व घुटन के बल खड़े हो जाएँ अब पीठ व िसर को पीछे


क और झुकाएँ (िच देख) एवं हाथ को छाती के सामने आपस म बाँध ल।

ास म/समय : पीछे झुकते समय अंतःकुं भक कर। मूल अव था म लौटते समय ास


छोड़।

लाभ : क ज िमटता है। पाचनतं मज़बूत होता है, पीठ, कमर व मे द ड के रोग ठीक
होते ह।

नोट : कु छ योग िश क इसको अध उ ासन भी कहते है।

अथ चं ासन (तृतीय कार)

िविध : घुटन के बल खड़े हो जाएँ। बाएँ पैर को लगभग एक फ़ट आगे करते ए पंजे को
ज़मीन पर रख, अब दािहने पैर को पीछे क ओर ख चते ए गदन व पीठ को पीछे क
तरफ़ धीरे -धीरे यथासंभव झुकाएँ। हाथ को नीचे क तरफ़ अगल-बगल म ही रख या
आसन क पूणाकृ ित बनाने के िलए हाथ को ऊपर क तरफ़ उठाकर पीछे क ओर झुकाते
ए अध चं ाकार का िनमाण कर। वापस मूल अव था म आएँ और दूसरे पैर को आगे
रखकर आसन क या को दोहराएँ।

यान : वािध ान च पर।

ास म/समय : पीछे क तरफ़ मुड़ते ए ास ल एवं मूल अव था म लौटते समय ास


छोड़। यह एक आवृि ई। इस कार पाँच आवृि कर।
लाभ : शरीर के र संचार को सुचा करता है। मे द ड को सश एवं लोचदार
बनाता है। पैर क माँसपेिशय को थािय व देता है। ी रोग के िलए अित
लाभकारी। ीवा एवं फे फड़ को पया लाभ प चँ ाता है।

अधचं ासन (चतुथ कार)

िविध : व ासन क ि थित म बैठे, दोन हाथ को ऊपर करते ए घुटन के बल खड़े हो
जाएँ। धीरे -धीरे मे द ड को इतना झुकाएं क हथेिलयाँ तलव पर आ जाएँ (िच दख)
इसी ि थित म तलव को पकड़ ल यथा शि क और वापस मूल अव था म आ जाएँ।

शवास : अंत:कुं भक करते ए आसन क ि थित िन मत कर एवं मूल अव था म लौटते


समय ास छोड़।

लाभ : मे द ड म लोच व लचीलापन आता है। वात रोगी को जोड़ के दद से


राहत िमलती है। कमर, पीठ, मे द ड, पेट, गदन एवं िसर को धीरे -धीरे रोग से
छु टकारा िमलता है। ि याँ इस आसन से कई लाभ ा कर सकती ह च ासन से
िमलने वाले लाभ भी इस आसन के अ यास से वत: ा हो जाते ह।

सावधानी : कड़क मे द ड वाले और ज टल उदर रोग से पीिड़त ि न कर।

नोट : इस आसन को पूण उ ासन भी कहते है।

लोलासन
शाि दक अथ : लोल का अथ कं पायमान, िहलता आ या चंचल है।

िविध : सामने पैर फै लाकर बैठ जाएँ। दोन हाथ क हथेिलय को कमर के अगल-बगल
रख। आसन से उठते ए दािहने घुटने को पीछे क तरफ़ मोड़ एवं तलवे को बाएँ िनतंब के
नीचे रख। उस पर बैठ जाएँ। अब बाएँ घुटने को मोड़ते ए पुनः आसन से उठते ए दािहने
िनतंब के नीचे बाएँ तलवे को रख और उस पर बैठ जाएँ। ास ल एवं हाथ के बल पूरे
शरीर को साधते ए ज़मीन से ऊपर उठाएँ। हाथ पर संतुलन बनाते ए धीरे -धीरे पूरे
शरीर को आगे-पीछे िहलाएँ। झूलते समय ास रोककर रख एवं मूल अव था म आकर
ास छोड़ द। जब तक संभव हो संतुलन बनाकर रख।

लाभ : संपूण हाथ को पु बनाता है।


उदर के अवयव को लाभ िमलता है।
पीठ और पैर क माँसपेिशय को पु और लचीला बनाता है।

नोट : यह आसन तुलासन या झूलासन के जैसा ही है। अंतर इतना है क तुलासन म पैर के
ऊपर पैर रखकर प ासन-अव था जैसा होता है परं तु लोलासन म पैर को िनत ब के
नीचे रखना है।

योगा यास ि को शांत भी बनाता है


और याशील भी।

-RJT
तुलासन/झुलासन/उि थत प ासन( थम कार)

शाि दक अथ : तुला का अथ तराजू के दो पलड़े और झूले क तरह झूल सकते ह, इसिलए


इसका नाम झूलासन भी है।

िविध : प ासन म बैठे। दोन हाथ क हथेिलय को दोन जाँघ के अगल-बगल क


ज़मीन पर रख। ास लेते ए दोन हाथ पर वज़न देकर शरीर को ऊपर उठा ल। कु छ देर
क। चाहे तो झूले क भाँित धीरे -धीरे आगे-पीछे झूल। वापस मूल अव था म आते समय
ास छोड़। अब यही या पैर क ि थित बदलकर कर।

समय : 1 िमनट से 3 िमनट तक।

यान : मूलाधार च पर।

लाभ : छाती को पु बनाता है।


भुजा, कलाई व कं ध को मज़बूत बनाता है।
उदर क दीवार को भी पु बनाता है।
जीवन म भी संतुलन दान करता है।

सावधानी : मिणबंध पर अिधक ज़ोर पड़ता है। अतः कमज़ोर मिणबंध वाले मश:
अ यास के साथ ही कर।

नोट : कु छ योग िश क इस आसन को लोलासन भी कहते ह एवं उि थत प ासन का


ि तीय कार आगे दया गया है।

मे आकषणासन/सु एक तपाद उ वासन

िविध : अपने आसन पर पीठ के बल लेट जाएँ त प ात् दािहने करवट ल और दािहने हाथ
को सहारा देते ए िसर को ऊपर उठाकर हथेली पर रख एवं बाएँ पैर पर बाएँ हाथ को
रख। अब धीरे -धीरे बाएँ पैरे को ऊपर क तरफ़ उठाएँ और बाएँ हाथ से पैर के अंगुठे को
पकड़ने क कोिशश कर संभव ना हो तो पंडली या टखने को पकड़ते ए पैर को तानकर
रख। वापस मूल अव था म आएँ। अब यही म दूसरी तरफ़ से भी कर।

कारा तर : इसी आसन मे हाथ को िसर के नीचे न लगाकर कान से पश कराते ए


दोन हाथ को ऊपर क तरफ़ णाम क अव था म रख और जब बाएँ पैर को उठाएँ तो
बाएँ हाथ क उठाते ए पैर के अंगूठे को पकड़ने क कोिशश कर। इस अव था को एक
ह त पाद अंगु पशासन भी कहते ह।

ास म/समय : हाथ और पैर को उठाते समय ास ल अंितम अव था म ास- ास


सामा य रख। हाथ और पैर को वापस लाते समय ास छोड़। यथा संभव िजतनी देर के
सकते ह के । दोन तरफ़ से 5-5 बार दोहराएँ।

लाभ : यह आसन पूरे पैर क नस म खंचाव पैदा करता है। अत: र संचार सुचा
होता है।

कमर पैर के बीच के सि ध थल म लोच पैदा करता है।


िनत ब और जंघा म ज़मी अित र चब को कम करता है और उनम
सुडोलता दान करता है।

सावधानी : ि लप िड क, सवाइकल ा लम, साइ टका वाले न कर।

नोट : कु छ योग िश क उपरो आसन को अन तासन भी कहते ह।

विश ासन

शाि दक अथ : विश एक िस ऋिष का नाम है, जो क सूयवंशी राजा के पुरोिहत


और ऋ वेद के सातव मंडल के रचनाकार थे।

िविध : ज़मीन पर बाई करवट से लेट जाएँ। बाएँ हाथ को ज़मीन से पश करता आ कं धे
के पास रख। अब पूरे शरीर का भार बाई हथेली एवं बाएँ पैर के पंजे पर देते ए
िच ानुसार शरीर को उठाएँ। शरीर पूरा तना आ रहना चािहए। जब आप इस ि थित को
अ छे से कर ल तब दािहने पैर को उठाकर आकाश क तरफ़ कर एवं दािहने हाथ से पैर
का अँगूठा पकड़। घुटना मुड़ना नह चािहए। नए साधक दीवार का सहारा ले सकते ह।
यही या पैर क ि थित बदलकर कर।

ास म : अंितम अव था म ास- ास वाभािवक रहने द।


समय : यथाशि ।

लाभ : भुजाएँ मज़बूत एवं दृढ़ होती ह।


यह आसन कमर एवं गुदा ि थत सं थान को ठीक करता है।
हाथ एवं पैर के कपन को समा करता है।
पूरे शरीर म लोच एवं सुदढ़ृ ता दान करता है।

सावधानी : उ अ यास एवं संतुलन क या होने के कारण दीवार का सहारा ल।

गभासन/गभ पंडासन/उ ान कू मासन

शाि दक अथ : गभ- पंड का अथ गभाशय म ूण (िवकिसत िशशु)।

िविध : प ासन म बैठे। अब दोन हाथ को पंडिलय और जाँघ के बीच से इतना


िनकाल क कु हिनयाँ मुड़ सक। अब िनतंब पर बैठने क कोिशश करते ए घुटन को ऊपर
उठाएँ व कोहिनय को मोड़कर कान को पकड़े या गदन के पीछे आपस म गूंथ ल। शरीर
का सारा वज़न गुदाि थ पर पड़ना चािहए। कान को पकड़ते समय ास िनकाल और पूण
आसन के समय वाभािवक ास ल तथा लगभग 10-15 सेकंड क। अब पैर बदलकर
यही आसन कर।

यान : वािध ान च पर।

लाभ : यह आसन उदर देश को अ छी तरह संकुिचत करता है िजससे र संचार


समुिचत ढंग से होता है। इस कारण उदर- देश सुग ठत होता है।
यह कमज़ोर मि त क या मानिसक बीमा रय के िलए लाभदायक है।
पाचन-शि बढ़ती है।
जठराि को उ ी करता है।
यह एि नल ंिथ को िनयिमत करता है।
शरीर म वात, िप एवं कफ़ का संतुलन बनाए रखता है।
पूण शरीर को सुंदर, सुडौल, आकषक बनाता है।
कू हे और घुटन के संिधवात को न करता है, अत: ग ठया जैसे रोग दूर
भागते ह।

नोट : नये अ यासी आसन िन मत करने के िलए दीवार आ द का सहारा ल।

मु ासन (ि तीय कार)

शाि दक अथ : मु का अथ वतं , िन ंत।

थम कार : सबसे पहले व ासन म बैठे। त प ात् दोन पंज के बल बैठने क कोिशश
करते ए एिड़य को आपस म िमलाकर गुदामाग और िश के बीच ि थत मूलाधार च
के पास सीवनी थान म लगा दीिजए एवं घुटन को फै लाते ए पूरा वज़न एड़ी और पंज
पर ही टकाकर आसन म ि थत हो जाइए। हाथ को ान-मु ा आ द म लगाकर घुटन के
ऊपर रख। यथासंभव ि थित तक बैठे।
लाभ : कु डिलनी जागरण म यह आसन लाभकारी है।
पंज और पैर को मज़बूती दान करता है। पैर का असमय काँपना बंद होता
है।
ी और पु ष दोन क जनन य के िवकार को दूर कर उ ह वि थत
करता है।

योग का ार भ यम िनयम के साथ करने


पर साधकगण अिधक लाभाि वत होते ह।

-RJT

खगासन

श दाथ : खग अथात् आकाश म गमन करने वाला एवं खगासन भगवान िव णु का एक


नाम। ऊचाई पर उड़ते प ी स श इस आसन क आकृ ित तीत होने के कारण इसे
खगासन कहा गया है।

िविध : पहले प ासन लगा ल एवं इसी अव था म पेट के बल अपने आसन पर लेट जाएँ।
दोन हाथ के पंज को कमर पर इस कार रख क अंगूठे पेट क तरफ़ एवं अंगुिलयाँ पीठ
क तरफ़ हो। अब िसर को ऊपर उठाते ए सामने क तरफ देख।

ास म/समय : िसर उठाते समय अंत:कु भक कर। यथाशि क और मूल अव था म


वापस आते समय ास छोड़े।
लाभ : वात, िपत, कफ तीन म स तुलन थािपत होता है।
मू ाशय संबंधी िवकार ठीक होते है।
पाचन तं याशील होता ह।
कमर तथा पीठ दद का िनवारण होता है।
थूलता कम होती है।
दोन हाथ पीठ क तरफ़ कर हाथ को नम कार क मु ा म कर तो यह गु
प ासन भी कहलाता है।

सेतुआसन/रपटासन/िवपरीत डासन/पूव ानासन*

हथेिलय को जमीन पर ि थत कर। धड़ को भी थोड़ा-सा पीछे क तरफ़ झुका द।

अब हाथ पर वज़न द और िनतंब सिहत पूरे शरीर को उठाते ए तान। पैर के तलव
को ज़मीन से पश कराने क कोिशश कर। िसर को पीछे क तरफ़ झुका द। (यह ि थित
ठीक वैसी ही बन जाती है जब सी ढ़य पर कू टर चढ़ाने के िलए लकड़ी का प टया रखा
जाता है।) अनुकूलतानुसार क, वापस मूल अव था म आएँ। यह 1 च पूरा आ इस
कार 10 से 12 च पूरा कर। बैठी अव था म ास ल। ऊपर उठते समय ास रोक और
वापस मूल अव था म आते समय ास छोड़।

यान : मिणपूरक च पर।

लाभ : मिणबंध, भुजाएँ मज़बूत होती ह। पूरे शरीर को मज़बूती दान करता है।
क ट देश एवं मे द ड को लाभ प च
ँ ता है।
उदर देश म ि थत अनाव यक चब को कम करता है।
सावधािनयाँ : उ र चाप एवं दयरोगी मशः अ यास म लाएँ।

िवशेष : ऊपर उठते समय हाथ एवं पैर तने ए होना चािहए। कु छ योग िश क इसको
कोणासन भी कहते है।

खंजानासन

शाि दक अथ : खंजन एक प ी का नाम है। इसका िमलना अित शुभ एवं दुलभ माना
जाता है।

िविध : सीधे खड़े हो जाएँ। दोन पैर को लगभग 2 फ़ ट फै लाएँ। सामने क तरफ़ घुटन
को मोड़ते ए बैठने का यास कर, परं तु पूण प से न बैठे। अब दोन जाँघ के पीछे से
दोन हाथ को िनकालते ए हथेिलय को दोन पैर के पंज पर पश करा द या पकड़ ल।
िनतंब को पीछे से उठाते ए छाती को तान। चेहरा सामने ऊपर क तरफ़ रख।

ास म : आसन बनाते समय ास छोड़। आसन पूण होने पर ास- ास समा य


चलने द। मूल अव था म आते समय ास ल।

समय : अनुकूलतानुसार।

लाभ : क़ ज़ दूर करता है।

पाचन-तं ठीक करता है।


मे द ड लचीला बनाता है।
जाँघ , घुटन और गदन के जोड़ मज़बूत करता है।

सावधािनयाँ : उ र चाप दयरोगी या मे द ड से संबंिधत ज टल रोग हो तो शरीर


को ित सजग रहे।

साधना साधन क मोहताज नह होती।

िवपरीत शीष ि ह त ब दासन/क याणासन

शाि दक अथ : िवपरीत का अथ 'उ टा' या 'िवलोम' है। शीष का अथ िसर। ि ह त का


अथ दोन हाथ। ब का अथ पकड़ा आ या बँधा आ।

िविध :
​ 1. स मु ा म सीधे खड़े हो जाएँ। इसके प ात् दोन पैर को िव तृत कर ल।
अब सामने क तरफ़ झुकते ए दोन हाथ एवं िसर को धीरे -धीरे दोन पैर के
बीच से िनकाल और क ट-भाग क ऊँचा उठा ल। दोन हाथ से पैर के टखन
को पकड़ ल। ास- ास वाभािवक गित से चलने द। कु छ देर क और पुनः
कर।
​ 2. पैर के टखने पकड़ने क बजाय दोन हाथ कमर के पीछे ले जाकर आपस म
गूंथ ल।

ास म : सामने झुकते समय ास छोड़। मूल अव था म लौटते समय ास ल।

लाभ : शरीर व थ, सुंदर और फू तदायक बना रहता है।


मे द ड को लाभ िमलता है।
उदर-िवकार से पीिड़त रहने वाल के िलए लाभकारी है।
मंदाि दूर होकर जठराि दी होती है।
र -िवकार नह होता।
िसर-संबंधी रोग जैसे बाल का झड़ना, पकना व िसर-दद आ द समा होते ह।
ने -रोग और वायु िवकार को शमन करता है।

सावधािनयाँ : साइ टका, दयरोगी एवं उ र चाप के रोगी इसे न कर।

िवशेष : ऊपर उठते समय हाथ एवं पैर तने ए होना चािहए । कु छ योग िश क इसको
कोणासन भी कहते है ।

*पूव ानासन को योगाचाय ने अलग-अलग ढंग से ितपा दत कया है, जैसे


सीधे खड़े हो जाएँ। दोन हाथ को ऊपर क ओर ले जाते ए कमर को पीछे क तरफ़ झुकाएँ।

हलासन म जाएँ और दोन हाथ से दोन पैर के अँगूठ को पकड़ ल।

पैर को सामने क तरफ़ लंबवत् कर। िनतंब पर वज़न रखते ए पैर को ऊपर उठा ल और हाथ से अंगूठे को पकड़
ल।
पीछे क ओर झुककर कए जाने वाले आसन

भुजंगासन

शाि दक अथ : भुजंग का अथ नाग या सप होता है। इस आसन क आकृ ित फन उठाए ए


सप क भाँित होती है।

िविध: पेट के बल ज़मीन पर लेट जाएँ। पैर को तानकर रख एवं तलवे ऊपर आसमान क
तरफ़ ह । अब चूँ क हाथ के सहारे िसर व धड़ को ऊपर उठाना है अतः हाथ को कं ध के
समीप रख और हथेिलय को ज़मीन पर टकाकर िसर और धड़ को धनुषाकार प म
धीरे -धीरे ऊपर उठाएं। पूण आसन होने पर हथेिलय पर ज़ोर द ता क शरीर अ छे से तना
रहे। दृि सामने रख। इस कार यह आसन 5-6 बार दोहराएँ।

ास म/समय : ऊपर उठते ए ास ल। लगभग 10-15 सेकंड पूण आसन क ि थित म


रहते ए वाभािवक ास- ास कर। मूल ि थित म वापस आते समय ास छोड़ते ए
आएँ।

लाभ : चूँ क यह आसन पेट और रीढ़ म खंचाव उ प करता है अतः यह शरीर को


लोच दान करता है एवं क़ ज़ दूर करता है।
ि लप िड क वाले रोगी अव य कर।
मे द ड एवं मे द ड से संबंिधत सभी अंग को लाभ प च
ँ ाता है।
ी रोग म लाभकारी।
पेट क चब को कम करता है। शरीर छरहरा एवं सुडोल बनाता है।

सावधािनयाँ : गभवती ि याँ न कर एवं हा नया, पेि टक अ सर एवं दय रोगी सजगता


पूवक कर।

िवशेष : कु छ साधक सपिसन एवं कु छ साधक उ वमुख ानासन भी कहते ह।

नोट : कु छ साधक भुजंगासन करते समय पैर के पंज को मोड़ते T ह और कु छ साधक पैर
के पंज को पीछे क तरफ़ तानकर रखते ह। दोन कार के आसन उिचत ह। परं तु पैर के
पंज को तानने से मांसपेिशयाँ अिधक िखचती ह। िजससे साधक को अिधक लाभ ा
होता है। अत: पीछे क तरफ़ पंज को तानकर ही करना चािहए।

उ ान पृ ासन

िविध : पेट के बल अपने आसन पर लेट जाएँ और व ः थल के नीचे हाथ क आपस म


बाँध ल। ऐसा लगे मानी एक-दूसरे हाथ से भुजा को पकड़ रखा है। पहली ि थित म
िसर, व ः थल और अब धड़ को पीछे ले जाते ए ठु ी और व ः थल को ज़मीन पर बंधे
ए हाथ के पीछे पश करा द। ऐसा करने से िनतंब पीछे ऊपर क तरफ़ उठ जाएँगे। वापस
पहली ि थित म आ जाएँ।

ास म/समय : िनतंब को उठाते समय ास अंदर ल और पहली ि थित म वापस आते


समय ास बाहर कर। 2 से 2 1/2 िमनट यथाशि कर।

यान : वािध ान और मिणपूरक च पर।

लाभ : पीठ एवं मे द ड को लचीला बनाता है।


उदर देश क जमी चब को कम करता है।
मिहला के िलए लाभकारी।
वायु िवकार दूर करता है।

सावधानी : मे द ड कड़क हो या रीढ़ क हड़ी म कोई ज टल रोग हो तो झटके के साथ न


कर।

धनुरासन

आकृ ित : धनुष के समान।

िविध : पेट के बल ज़मीन पर लेट जाएँ। घुटन से पैर को मोड़ते ए दोन हाथ से एिड़य
के पास पकड़े एवं िसर और सीने को भी ऊपर उठाएँ। हाथ को सीधे रखते ए पैर क
मांसपेिशय म तनाव पैदा करते ए ख च। इस कार आगे-पीछे झूलते ए ह का ायाम
भी कर सकते ह।

ास म : पैर को पकड़ते समय ास अंदर ल। कुं भक कर। मूल ि थित म आते समय
ास छोड़।

समय : 15 सेकंड से आधा िमिनट तक। 4 से 5 बार कर।

यान : मूलाधार या िवशुि च पर।

लाभ : पुराने क़ ज़ को दूर कर मन स करता है।


पाचन-तं मज़बूत कर जठराि ठीक करता है।
मोटापे का दु मन है।
मे द ड लचीला बनाकर शरीर म फू त पैदा करता है।
गु क देख-रे ख म इससे संबंिधत समानांतर आसन करने से य रोग म लाभ।
ि य के जनन तं को कायशील बनाता है व और भी कई बीमा रय को दूर
करता है।

सावधािनयाँ :
आँत, कडनी, अ सर व हािनया आ द रोग वाले इस आसन को न कर एवं
र चाप व दय िवकार वाले भी न कर।
यह आसन खाली पेट कर। य क पूरा ज़ोर पेट पर ही पड़ता है।

नोट : कु छ योग गु धनुरासन को इस कार से भी करवाते ह। जब क यह हलासन


कहलाता है।

च ासन
िविध : पीठ के बल ज़मीन पर लेट जाएँ। अब दोन पैर को मोड़कर एिड़य को िनतंब से
सटा ल एवं दोन हाथ को कान के पास इस कार रख क अंगुिलयाँ पैर क तरफ़ रह।
अब धीरे -धीरे िसर क तरफ़ वज़न देते ए एवं ास लेते ए म य वाले भाग से पूरे शरीर
को ऊपर उठाएँ। अंतः कुं भक कर। इसी अव था म कु छ देर क। मूल अव था म वापस आते
समय ास बाहर छोड़ एवं पहले िसर ज़मीन से टकाएँ फर शरीर को नीचे लाएँ।

नोट : अपनी मतानुसार अ यास कर। अ यास होने पर धीरे -धीरे हाथ को एड़ी के पास
ले जाएँ।

यान : नािभ, दय व कपाल पर।

लाभ : यह उदर, पीठ, पेट व जनन अंग के िलए काफ़ लाभदायक है। ि य के
आंत रक रोग के िलए लाभकारी है। शरीर को लचीला बनाता है। वायुरोग का
शमन करता है। मोटापा कम करता है। जाँच, मे द ड व भुजाएँ मज़बूत करता है।
चेहरे के ओज तेज को बढ़ाता है।

सावधािनयाँ: गभाव था एवं कमज़ोरी महसूस होने पर न कर।


च ासन का अ यास ास अंदर रोककर ही करना चािहए।
अ सर, ह नया पीठ व मे द ड के रोग से पीिड़त ि न कर।

िवशेष : उपरो च ासन को कु छ योगाचाय अध च ासन भी कहते ह एवं कह -कह


अधच ासन क िभ कार से भी कराया जाता है। जैसे सीधे खड़े हो जाएँ। दोन हाथ
ऊपर कर एवं िजतना पीछे झुक सकते ह झुक। इस अव था को अधच ासन कहते ह
जब क यह अनु च ासन है। कु छ योग िश क च ासन को उ व धनुरासन भी कहते ह।
कु छ योग िश क अध च ासन इस कार से भी करवाते ह सीधे खड़े हो जाएँ ह का-सा
पीछे झुके, छाती उभार िसर पीछे झुकाये एवं हाथ को पीछे ले जाकर आपस म कचीनुमा
पंज को फँ साकर तान द।

पूण च ासन/च बंधासन

िविध : पूण च ासन क िविध च ासन जैसी ही है। पहले च ासन बनाएँ फर पूण
च ासन के िलए सावधानीपूवक धीरे -धीरे हाथ को बढ़ाकर टखन को पकड़ ल और
कोहिनय को भूिम पर टकाए रखते ए संतुलन िन मत कर।

ास म/समय : च ासन क िविध देख। यथाशि या 10 से 12 सेके ड।

लाभ : च ासन के सम त लाभ वत: ा हो जाते ह।


मे द ड व कमर म और अिधक लचीलापन आता है।

िवशेष : पूण च ासन दो कार से कया जा सकता है।

1. इसम साधक पीठ के बल लेटकर म यभाग ऊपर उठाकर धीरे -धीरे पूण च ासन
बनाता है। यादातर साधक इस िविध को अपनाते ह।
2. इसम साधक सावधान क ि थित म खड़े होकर दोन हाथ को ऊपर कर। धीरे -धीरे
पीछे क तरफ़ कमर को मोड़कर संतुलन बनाते ए हाथ को ज़मीन से पश कराते ए
मश: पूण च ासन क ि थित िन मत कर।

सावधािनयाँ : उ र चाप, दयरोगी एवं कलाई के कमज़ोर होने पर न कर।

पूण च ासन के बाद हलासन, सवागासन करना चािहए।

सेतुबंधासन/शीष पादासन

शाि दक अथ : सेतु का अथ पुल है एवं सेतुबंधासन का अथ ऐसा आसन है िजसक आकृ ित


उठे ए पुल जैसी हो।

िविध : अपने आसन म शवासन अथात् पीठ के बल लेट जाएँ, चूँ क शरीर के बीच के भाग
को िसर और पैर के पंज के बल उठाना है अत: सव थम ास ल एवं शरीर के ित सजग
रह अब धीरे -धीरे शरीर के म य भाग को उठाएँ। नए साधक अपने हाथ का सहारा ल।
अपने हाथ को या तो िसर के पीछे ले जाएँ और हाथ को बल देते ए शरीर को उठाएँ या
फर कमर और पीठ के भाग को हाथ से उठाएँ। पूण अ यास हो जाने पर हाथ को
नम कार क मु ा म लाएँ या हाथ को पेट के ऊपर रखकर बाँध ल या हाथ क जांघ के
ऊपर रख ल। यान रहे पाँव का तलवा पूरा ज़मीन से िचपका रहे। पूण आसन क अव था
म ास रोक। वापस आते समय ास छोड़।

लाभ : गदन के िवकार दूर होते ह और ीवा पु होती है।


शीष ंिथयाँ, पीयूष ंिथ और ीवा ंिथय म र पया मा ा म प च
ँ ने से
वे ठीक ढंग से काय करती ह।
मे द ड लचीला एवं िवकार रिहत होता है।
पाचन सं थान को लाभ िमलता है।
जंघाएँ एवं पैर म सु ढ़ता आती है।

सावधािनयाँ : उ र चाप वाले रोगी न कर


िसर के नीचे मोटा कबल रख।

नोट : कु छ योग िश क सेतुबंधासन अलग तरह से करते है। देख कं धरासन।

ीवासन

िविध : क बल क मोटी तह करके िबछा ल और पीठ के बल लेट जाएँ। दोन पैर को


थोड़ा फै ला ल एवं घुटन को मोड़ते ए एिड़य को िनत ब से पश कराएँ अब
िच ानुसार ि थित िन मत करने के िलए हथेिलय को कान क तरफ़ ज़मीन पर रख।
हाथ और पैर के पंज पर जोर डालकर कमर के िह से को ऊपर उठाएँ एवं िसर के ऊपरी
भाग को ज़मीन पर ि थत कर एवं हाथ को सीने पर बाँध ल।

अंितम अव था म पैर के पंजे और िसर के ारा संतुलन थािपत कर।

ास म/समय : कमर के ऊपरी भाग को उठाते समय अंतःकुं भक कर। अंितम अव था म


ास- ास धीमी गित से कर एवं मूल अव था म आते समय धीरे -धीरे ास छोड़।
अंितम अव था म अिधकतम 5 से 10 सेक ड क। एक से दो बार कर।

लाभ : मे द ड और गदन म लोच-लचक पैदा कर उ ह मज़बूती दान करता है एवं


उनके िवकार को दूर करने म सहयोगी है।
पाचनतं को भावशाली बनाता है।
ी रोग म भी लाभ दान करता है।

कारा तर : ीवासन क ही ि थित म पैर को आगे क तरफ़ तानते ए पंज को ज़मीन


पर थािपत कर और हाथ को सीने के ऊपर बांध ल या जघा पर रख। इस आसन को
कु छ योग गु शीषपाद भूिम पशासन कहते है।

सावधािनयाँ : पॉि डलाइ टस, ि ल पिड क, सवाइकल ा लम या हाइ लड ेशर,


च र आना, दय िवकार हो वे इस आसन को न कर। इस आसन के बाद पि मो ानासन
या आगे झुकने वाले कोई भी आसन अव य कर।

नोट : कु छ योग िश क इसको पूण सेतु आसन भी कहते ह।

िवशेष : पेट के बल कए जाने वाले आसन म भुजंगासन, उ ानपृ ासन, खगासन, ितयक भुजंगासन, धनुरासन, अ ांग
नम कारासन भी इसी ेणी म आते ह। जो क इसी पु तक म समािहत ह।
िसर, कं धा तथा गदन के बल कये जाने वाले
आसन

सवागासन

शाि दक अथ : सव का अथ पूरा, पूण या सभी है और अंग का अथ शरीर का भाग है चूँ क


इस आसन म सभी अंग से योग याएँ हो जाती ह और पूरा शरीर लाभाि वत होता है
इसिलए इस आसन का नाम सवागासन है। वैसे इस आसन को शीषासन के प ात् सबसे
मह वपूण माना गया है। इस आसन को आसन का राजा भी कहा जाता है।

िविध : पीठ के बल लेट जाएँ। दोन हाथ ज़मीन पर कमर के अगल-बगल म रख। घुटन
को कड़ा रखते ए धीरे -धीरे दोन पैर को ऊपर क ओर इतना उठाएँ क कमर और पैर
लगभग समकोण बना ल अब अपनी हथेिलय को कमर पर लगाएँ और धीरे -धीरे कमर को
हाथ के सहारे इतना उठाएँ क आपक ठु ड़ी आपके सीने को छू ने लगे। चूँ क आपने अभी
हाथ का अवलंबन िलया है अत: यह सालंब सवागासन कहलाएगा। अ यास हो जाने के
बाद हाथ का अवलंबन हटा ल। वह सवागासन कहलाएगा। इस आसन को ित दन करने
से आशातीत लाभ होता है।

ास म/समय : आसन करते समय और वापस आंते समय अंतःकुं भक कर एवं पूण आसन
पर वाभािवक ास चलने द। आधे से 5 िमनट तक कर सकते ह। अ यास हो जाने पर
समय बढ़ाएँ।

यान : सह ार च छोड़कर स पूण कुं डिलनी का यान कर। िवशेष प से िवशुि च


पर।

लाभ: य द हम इसे काया-क पासन कह, तो अितशयोि नह होगी। मूल प से इस


आसन का भाव थायरॉइड ंिथ, मे द ड, दय एवं पैर से स बंिधत सभी
रोग पर पड़ता है।

आसन करने पर र क मा ा बढ़ जाने से ंिथ क काय मता बढ़ जाती है,


िजससे वा य पर अ छा भाव पड़ता है।
िजनक बुि हमेशा िमत रहती है, काम करने म मन नह लगता; उनको यह
आसन लगभग 6 महीने तक कम से कम 3 से 5 िमनट तक अव य करना
चािहए।
िमग रोग और कमज़ोर मि त क वाल के िलए यह आसन अ यंत लाभकारी
है।
ि याँ मशः इस अ यास को कर कई रोग से छु टकारा पा सकती है।
वायु गोला टल जाने पर इस आसन को एक ही समय म चार से छह बार
अव य करना चािहए। यह आसन पुनयोवन देता है।
बाल का झड़ना रोकता है, चेहरे को साफ़, चमकदार व तेजोमय बनाता है।
कामशि को वि थत कर काम-िवकार का शमन करता है।
ने - योित, िन र चाप, पाचन-सं थान, र -िवकार व मेह आ द रोग के
िलए यह िनतांत उपयोगी है।
शीषासन से िमलने वाले लाभ भी इस आसन से िमल जाते ह।
इस आसन को िनयिमत करने से संपूण शरीर व य रहता है।

सावधािनयाँ
उ र चाप, दय स बंधी बीमारी वाले साधक कसी यो य गु के िनदशन
म कर।
सवाइकल पॉि डलाइ टस, ि लप िड क एवं यकृ त के िवकार वाले इस आसन
को न कर।

नोट : वे ि जो सवागासन नह लगा सकते वे िवपरीत करणी आसन अपनी


मतानुसार लगा सकते ह।

िवशेष : प सवागासन लगाने के िलए सवागासन क अंितम ि थित म प च ँ कर


प ासन लगाएँ या पहले प ासन लगाएँ फर सवागासन क ि थित म प च
ँ जाए तो वह
प सवागासन कहलाएगा। एक पाद सवागासन के िलए एक पैर को कमर से मोड़कर
सामने िसर क तरफ़ जमीन से पश कराएं।

िवपरीतकरणी–मु ासन/िवलोमासन

नोट : यह आसन ठीक सवागासन क तरह ही है। बस अंतर यह है क इसम छाती और


ठु ड़ी को आपस म नह िमलाया जाता। दोन के बीच काफ़ अंतर रहता है।
िविध : इसक िविध भी सवागासन क ही तरह िमलती जुलती है। शवासन क ि थित म
लेट जाएँ। दोन हाथ से दोन िनत ब क सहारा देते ए दोन पैर को समानांतर ऊपर
उठाएँ। 60° पर पैर थािपत करते है। िच ानुसार उस ि थित तक प च
ँ ।

यान : मूलाधार च से िवशुि च तक। कु डली जागरण के िलए यह आसन साथक है।

ास म : आसन करते समय कुं भक कर। पूण आसन पर वाभािवक ास- ास कर।
मूल ि थित तक प च
ँ ने पर ास रोक। सामा य होने पर ास छोड़।

समय : मश: बढ़ाते ए 5 से 10 िमनट तक कर।

लाभ : कं ठ स बंधी सभी रोग का य होता है।


कं ठ सुरीला व मधुर बनता है। छाती मज़बूत होती है।
पीठ एवं पेट के सम त िवकार दूर होते ह।
हाथी पाँव, पैर म झुनझुनी और पैर के सु पड़ने आ द रोग म लाभ द है।
सभी कार के िसरदद दूर करता है।
ने - योित ती करता है।
बाल का असमय पकना व झड़ना दूर करता है।
हा नया म भी लाभ िमलता है।
हाइपो/हाइपर थायराइड म ती लाभ िमलता है।
पूरे शरीर को व य एवं सु दर बनाता है।

सावधािनयाँ : हाई लड ेशर, ि ल पिड क, पॉि डलाइ टस एवं दयरोगी

मश: अ यास म लाएँ। नोट : मु ा वाले अ याय म भी इसका वणन आया है।

हलासन
शाि दक अथ : हल का अथ है लांगल (खेत म उपयोग कए जाने वाले एक औज़ार का
नाम)। यह आसन सवागासन का ही एक प है।

िविध : शवासन क ि थित म लेट जाएँ। पैर को समानांतर उठाये व सवागासन क


ि थित से होते ए पैर को पीछे क ओर (िसर क तरफ़) ले जाएँ। पैर के पंज को ज़मीन
से पश कराएँ। यान रहे इस ि थित म पैर को लंबवत् ही मोड़कर ज़मीन पर पश
कराना है, इस ि थित म जालंधर बंध अपने आप लग जाता है। हाथ क ि थित दो कार
से कर सकते ह। पहली ि थित म हाथ ज़मीन पर या िनत ब के नीचे रहने द। दूसरी ि थित
म अपने हाथ से पैर के पंज को पश कर। लगभग 10 से 15 सेकंड क ि थित के बाद
धीरे -धीरे वापस शवासन क ि थित म आ जाएँ।

ास म/समय : पूण ि थित म जाते समय ास अ दर रोक एवं पूण ि थित बन जाने के
बाद धीरे -धीरे ास- ास कर व मूल ि थित म वािपस आंते समय अंतःकुं भक कर।
त प ात् ास छोड़ अ यास हो जाने पर 5-7 िमनट तक हलासन क ि थित म ही रह।

यान : िवशुि च पर।

लाभ: यह आसन भी यौवन दान करता है। रीढ़ क हड़ी एवं कमर को बुढ़ापे तक
झुकने नह देता है।
दय एवं पीठ को बल दान करता है।
र का पूण संचार कर र को शुि देता आ जठराि को उ ी करता है
एवं भूख को बढ़ाता है।
यौन शि को यथावत् रखता आ यौन-िवकार का नाश करता है।
चेहरे का िनखार बढ़ाता है।
यह आसन सू म तंि का-तं को सश बनाता है।
इस आसन से आल य दूर हो जाता है।
काय करने क मता बढ़ती है।
पृ भाग क पीड़ा को शांत करता है।
मन स करता है।
ीवा स बंधी रोग को दूर करता है।
गभांशय को मज़बूती दान करता है।
क़ ज़ नाशक है।
अ ाशय के उ ी होने के कारण इ सुिलन क मा ा म वृि होने लगती है
अतः मधुमेह के रोिगय को लाभ होता है।
थायराइड म लाभ ा होता है।
कडनी को सुचा करता है। मोटापा को दूर करता है एवं छोटी आंत व बड़ी
आंत क याशील बनाता है।

सावधािनयाँ
कड़क शरीर वाले या रीढ़ क हड़ी म चोट वाले इस आसन को उिचत देख-रे ख
म कर।
साइ टका, ि लप िड क, हा नया, अित उ र चाप वाले रोगी इस आसन को
न कर।

िवशेष : हलासन के बाद, च ासन, म यासन और सु व ासन या पीछे झुककर कए


जाने वाले आसन अव य कर।

नोट: हलासन क ि थित म जब हाथ को पैर क तरफ़ ले जाकर हथेिलय से पैर के


पंज को पकड़ा जाता है। तब कु छ योगाचाय उस ि थित को पूव ानासन भी
कहते ह एवं कह -कह इसका वणन धनुरासन के प म भी आंता है। हमने
पूव ानासन का वणन सेतु आसन के साथ कया है और धनुरासन का वणन
िपछले पृ पर है।
कु छ योग िश क हलासन म पैर के पंजे क ि थित बदलवाकर करवाते ह।
गोले के अ दर िच को देख।

योग साधना से मनु य क अंत निहत शि याँ जागृत होती ह।

-RJT

िव तृत पाद सवागासन/सु कोणासन

िवशेष : सवागासन का यह एक कार है या हलासन का ही एक पांतर।

िविध : अपने आसन म पीठ के बल लेट जाएँ। दोन हाथ को िसर क तरफ़ पीछे ले जाएँ।
पैर को ज़मीन से एक साथ ऊपर उठाते ए धीरे -धीरे िसर के पीछे ले जाएँ। घुटन को
मुड़ने न द एवं दोन पैर को फै लाकर दािहने हाथ से दािहने पैर के अंगूठे को एवं बाएँ हाथ
से बाएँ पैर के अंगूठे को पकड़े या एिड़य का पश कर। एिड़याँ ऊपर क तरफ़ तनी ई ह ।

ास म/समय : अंितम ि थित म वाभािवक प से ास- ास कर। लगभग आधा


िमनट तक इसी ि थित म बने रह। अंितम ि थित म िन मत करते समय अंतःकुं भक कर।
आधे से एक िमनट तक अनुकूलतानुसार कर।

यान : वािध ान या मिणपूरक च म लगाएँ।

लाभ : पैर को दृढ़ और मज़बूत बनाता है।


मे द ड मज़बूत एवं लचीला बनता है।
उदर के अवयव को ठीक करता है।
र संचार को भी ठीक करता है एवं हलासन के सभी लाभ वतः ा हो जाते
ह।

सावधािनयाँ : ि लप िड क, पॉि डलाइ टस, दय रोगी, उ र चाप एवं मे द ड


संबंधी कोई पुराना रोग हो तो न कर।

कण पीड़ासन

शाि दक अथ : कण अथात् कान। पीड का अथ दबाव डालना होता है।

िविध : पीठ के बल िच लेट जाएँ। दोन हाथ कमर के अगल-बगल म रख। धीरे -धीरे
दोन पैर एक साथ ऊपर उठाएँ और हलासन क ि थित म आ जाएँ। अब दोन घुटने
िशिथल करते ए या मोड़ते ए बाएँ कान के पास बायाँ घुटना और दािहने कान के पास
दािहना घुटना रख एवं ह का दबाव डाल। इस ि थित म पैर के पंजे ज़मीन पर टके रहगे।
कण पीड़ासन को दो कार से कर सकते ह। ( थम) दोन हाथ कमर पर सवागासन क
तरह रहगे। (ि तीय) दोन हाथ ज़मीन पर पश करते रहगे।

िवशेष : अंितम अव था म हाथ से जंघा को जकड़ते ए एक दूसरी हथेिलय से भुजबंध


पकड़ते ह।

ास म : मूल आसन क मु य ि थित म ास या लंबी और गहरी होगी। आसन


ि थित िन मत करते समय अंतःकुं भक कर।

समय : यह आसन 5-6 बार कर/ येक बार 10 से 20 सेकंड। यान : आ ा च पर


लगाएँ।

लाभ : यह आसन पूरे शरीर को सुंदर, सुडौल व पु बनाता है।


मे द ड को लचीला बनाता है। मे द ड स बंधी िवकार न होते ह।
दय- देश और पैर को आराम िमलता है।
इस अ यास से सम त ायु सं थान सश और सुचा प से याशील होते
ह। क ट देश म र संचार सुचा करता है।

सावधािनयाँ : मे द ड पर अिधक ज़ोर पड़ता है अतः सावधानी रख।

उ र चाप एवं दय रोगी िववेक पूवक अ यास कर।

एक पाद शीषासन

शाि दक अथ इस आसन म एक पैर ज़मीन पर और एक पैर ऊपर उठाकर शीषासन कया


जाता है। अत: इसे एकपाद शीषासन कहते ह।

िविध : यह िविध शीषासन से सरल है। इसम फ़क़ िसफ़ इतना है क शीषासन म दोन पैर
ऊ व क तरफ़ कए जाते ह और संतुलन क तरफ़ यान देना पड़ता है। परं तु इसम एक पैर
ज़मीन पर ही टका रहता है। अतः इस आसन को एकपाद आलंिबत शीषासन भी कहते
ह।

नोट : शेष िववरण िविध एवं लाभ लगभग शीषासन जैसे ही ह।

िवशे ष : एक पाद शीषासन को अ य कार से भी कराया जाता है िजनका वणन आगे


दया गया है।

योग िव ा भारतवष क एक ाचीनतम वै ािनक साधना प ित है।-RJT

साल ब शीषासन

शाि दक अथ : सालंब का अथ आधार सिहत एवं शीष का अथ िसर का अ भाग है। यानी
कसी आधार का अवलंबन लेकर शीषासन करना।

िविध : यह िविध भी शीषासन जैसी ही है परं तु इसम हाथ क ि थित थोड़ी बदल जाती
है। इसम हथेिलय को ज़मीन से पश कराते ए अवलंबन िलया जाता है। शेष आसन
िविध, यान व सावधािनयाँ शीषासन जैसी ही ह।

लाभ : शीषासन के सभी लाभ िमलते ह।

िवशेष : इसी अव था म हाथ के बल पूरे शरीर को ऊपर उठा द तो उसे अधोमुख


वृ ासन भी कहते ह। पर तु कु छ साधक इसको वृ ासन भी कहते ह।

शीषासन
शाि दक अथ : शीष का अथ यहाँ पर िसर के अ भाग से है। इसम साधक िसर के अ भाग
से आसन करता है अत: इसे शीषासन कहा गया है।

िविध : व ासन म बैठ जाएँ। िसर को सामने क तरफ़ झुकाते ए कबल पर िसर के अ
भाग का ऊपरी तल टकाएँ। दोन हाथ क अंगुिलय को एक-दूसरे म फं साकर िसर के
समीप घेरा बनाते ए रख, अब मशः िसर क तरफ़ वज़न देते ए कमर को उठाएँ।
(ऐसी अव था म शरीर का आधा वज़न िसर क तरफ़ व आधा वज़न पैर क तरफ़ हो
जाएगा) इसी म म अब पूरा संतुलन बनाते ए शरीर का पूरा भार िसर के अ भाग पर
रखने क कोिशश करते ए दोन घुटन को ऊपर उठाएँ। धीरे -धीरे एक पैर को सीधे
आकाश क तरफ़ तान द व दूसरा पैर भी संतुलन बनाते ए ऊपर क तरफ़ कर। यह
अव था शीषासन कहलाती है। य द अके ले नह कर सक तो कसी सहायक या कोने क
दीवार का सहारा ल। अनुकूलतानुसार कु छ देर क। मूल ि थित म ज़मीन पर रख। पूण
आसन क ि थित म ास- ास क ि थित वाभािवक रहेगी। आसन करते समय ास
लेकर कुं भक कर एवं वापस आंते समय भी कुं भक कर। (इस आसन को शरीर का भार माथे
के तरफ़ रखते ए करते ह। िसर के िब कु ल बीच के भाग म नह रखते अतः यान पूवक
कर)

यान : वाभािवक ास म यान लगाएँ।

नये साधक के िलए : चूँ क इसम िसर पर पूरे शरीर का वज़न पड़ता है अत: िसर के नीचे
कबल क मोटी तह कर ल।
लाभ : शीषासन को भी आसन का राजा कहा गया है। यह आसन शरीर का कायाक प
करता है।

ित दन अ यास के कारण मि त क क िशरा म व थ एवं शु र


वािहत होने लगता है िजसके कारण मानिसक दुबलता एवं मि त क स बंधी
रोग धीरे -धीरे ीण होने लगते ह।
यह आसन ओज, तेज और चेहरे क चमक बढ़ाता है।
इस आसन के अ यास से चूँ क र शु होता है, अतः बाल का असमय
पकना, बाल का झड़ना एवं वचा स बंधी रोग का शमन होता है।
यौवन देता आ चेहरे क झु रय को समा कर देता है।
ने स बंधी दोष दूर होते ह। ने को सु दर बनाता है।
इस आसन से ि का जीवन उ साह और फू त से भर जाता है।
सम त कार के वायु िवकार को नाश करता है।
उ माद व िमग के िलए भी यह आसन उिचत है व चंचल मन को संतुलन
दान करता है।
लकवा (प ाघात) से पीिड़त ि उिचत देख-रे ख म एवं म पूवक िनयिमत
कर।
दमा व य रोग को िनयिमत अ यास से दूर कया जा सकता है।
को ब ता दूर करता है।
काम-िवकार का शमन कर यह कामशि यथावत् करता है।
उदर- देश एवं जनन सं थान क उिचत देखभाल करता है।
सम त मानिसक िवकार म यथासंभव लाभ िमलता है।

सावधािनयाँ: नए अ यािसय को चािहए क शीषासन अके ले नह कर।

य द दीवार का सहारा ल तो दीवार से 2 या 3 इं च क दूरी पर कर अ यथा


इसका उ टा असर पेट या पीठ पर पड़ेगा।
ज दबाज़ी न कर वरना गदन या पीठ म दद हो जाएगा।
इस आसन म शरीर पूरा सीधा रख, ता क वह ि थरता और दृढ़ता पा सके ।
दोन पैर आकाश क तरफ़ लंबवत समानांतर होने चािहए।
नए अ यासी शु म 1 से 2 िमनट ही कर।
अ यास हो जाने पर दोन पैर ह के झटके के साथ सीधे ऊपर क तरफ़ तान द।
शीषासन के पहले सवागासन का अ यास ज़ र कर।
शीषासन के बाद ताड़ासन व शवासन अव य कर।
उ र चाप व िन र चाप वाले इन आसन से शु म परहेज़ कर।
दय रोग, च र आना, िसर घूमना आ द बीमारी वाले भी आसन का उपयोग
न कर।

कपा यासन/कपािल आसन

जब इसी आसन को शीषासन म न करके पूरा वज़न कपाल देश (माथा) पर रखकर करते
ह तो वह कपािल आसन कहलाता है। शेष लाभ शीषासन के समान ही है।

जो योगा यास करता है आल य उससे दूर रहता है


और जो आलसी है उससे योग दूर रहता है।

-RJT

प ासन यु शीषासन/शीषप ासन/ऊ वप ासन


शाि दक अथ : प का अथ कमल है। इस आसन का मतलब शीषासन क अव था म
प ासन लगाना है।

िविध : यह आसन दो कार से कर सकते ह। थम तो यह क साधक शीषासन क


अव था म रहकर प ासन लगाएँ और दूसरी िविध यह है क प ासन लगाकर बैठ जाएँ।
अब िसर को सामने क तरफ़ झुकाते ए घुटन के बल खड़े हो जाएँ। हाथ से ज़मीन का
सहारा ल। िसर के कपाल भाग को तह कए ए कं बल पर रख एवं प ासन सिहत
िनत ब को ज़ोर देकर ऊपर उठाएँ। यह अव था प ासन यु शीषासन कहलाएगी। इसे
ऊ वप ासन भी कहते ह। शेष िविध शीषासन जैसी है।

लाभ : शोषिसन म देख।

नोट : शीषासन म प रप हो जाने के बाद ही ये आसन कर। शेष वणन शीषासन जैसा ही
है।

शीषासन म पंडासनयु ऊ वप ासन


शाि दक अथ : पंड का अथ ूण है। (गभ थ िशशु क अव था)

िविध : शीषासन क अव था म आएँ। इसी अव था म ऊ वप ासन लगाएँ। अब प ासन


अव था को सामने क तरफ़ इतना झुकाएँ क दोन घुटने काँख या भुजा को पश करने
लग। अंितम ि थित म आने के िलए प ासन अव था म िनत ब को ढीला कर। दो बार
ास खीच और मश: एक-एक करके दो बार ास छोड़ते ए घुटन को भुजा के पास
लाएँ। 20-30 सेकंड या मतानुसार क। ास लेते ए मूल अव था म आएँ। यही म
पैर क ि थित बदलकर कर।

लाभ : शीषासन के लाभ िमलते ह।


उदर- थान के अवयव को र संचार बराबर िमलता है।
ऊ वप ासन के भी सभी लाभ िमलते ह।

नोट : यह आसन पूरी तरह से शीषासन सीखा आ साधक ही कर। शेष वणन शीषिसन
जैसा ही है।

मु ह त शीषासन/िनराल ब शीषासन
शाि दक अथ : मु का अथ वतं है। ह त का अथ हाथ है। शीष का अथ िसर है। इस
आसन को िनरालब शीषासन भी कहते ह।

िविध : ब त अिधक अ यास के बाद ही यह आसन करना संभव है। शीषासन म खड़े होने
के बाद धीरे -धीरे हाथ का आलंबन भी यागना पड़ता है। जब यह अ यास हो जाता है
और आसन म पूण द ता ा हो जाती है, तो वह मु ह त शीषासन या िनरालब
शीषासन कहलाता है।

नोट : 1. शेष िववरण शीषासन जैसा ही है।

2. यह एक अित उ अ यास का आसन है अतः ब त सावधानीपूवक एवं योगाचाय के


सािन य म कर।

योग क सम त या को मश:
समझकर पूण लाभ ा करना चािहए।

-RJT
शीष च ासन

शाि दक अथ : शीष अथात् िसर और च अथात् गोलाकार।

िविध : इस आसन म चूँ क पूरा ज़ोर िसर पर ही होता है अतः िसर के नीचे कबल आ द
व का योग कर। सीधे खड़े हो जाएँ। सामने क तरफ़ झुकते ए िसर को कबल या तह
कए ए व पर रख। इस कार शरीर क ि कोण ि थित बन जाएगी। थम अव था म
हाथ का सहारा ल। िसर एवं हाथ को अपनी अव था म ही रहने द और पैर को चलाते
ए बाई ओर से घूमकर एक च र लगाएँ ( यान रहे िसर मूल थान से न हटे)। त प ात
दािहनी ओर से भी च र लगाएँ। इस कार मशः अनुकूलतानुसार च र लगा ल। हाथ
के सहारे से अ यास हो जाने के बाद दोन हाथ क कमर के पीछे रखकर कर।

ास म/समय : आगे झुकते समय ास छोड़। पूण ि थित म गित करते समय ास म
सामा य रख एवं मूल अव था म लौटते समय ास ल। 2 से 3 िमनट कर।

लाभ : मरण-शि का िवकास होता है।


साधक मि त क को ताज़ा महसूस करता है।
म तक, ीवा, व ः थल, जाँच, घुटने व टखने बलवान होते ह।
ने - योित बढ़ती है।
र -संचार को िनयिमत करता है।
चेहरे क कांित बढ़ाता है।
वायु-नाशक है।

मूधासन/ सा रत पाद-उ ानासन


िविध : दोन पैर के बीच लगभग 3 फ ट का अ तर रखकर खड़े हो जाएँ। सामने क तरफ़
झुक और हथेिलय को ज़मीन पर रख। इस अव था म शरीर का वजन सामान प से हो।
अब िसर के सामने वाले भाग को ज़मीन पर दोन हाथ के बीच रख, त प ात् हाथ को
ऊपर उठाएँ और पीठ के पीछे ले जाकर एक हाथ से दूसरे हाथ क कलाई को पकड़ ल।
एिड़य को उठाएँ और शरीर का पूरा वजन िसर एवं पंजो पर ि थत कर। अनुकूलतानुसार
क। वापस हाथ को ज़मीन पर रख और मूल अव था म खड़े हो जाएँ।

ास म/समय : सामने क तरफ़ झुकते समय ास छोड अंितम अव था म वभािवक


ास ल, वापस मूल अव था म आंते समय ास ल। अनुकूलतानुसार क पर तु धीरे -धीरे
समय बढ़ाते जाएं इस कार शारी रक ि थित के अनु प एक या दो च कर।

लाभ : लो लड ेशर वाले साधक के िलए िहतकारी।


मि त क संबंधी िवकार को शनैः-शनैः दूर करता है।
िसर म र क मा ा पया प मे प च
ँ ाता है।
चेहरे क झु रय को समा करता है, ओज तेज को बढ़ाता है।
दूिषत वायु को िन कािषत करता है।

सावधािनयाँ: हाई लड ेशर एवं िसर म कोई गंभीर चोट हो तो न कर।


च र आना, कमज़ोर मि त क वाले इससे परहेज रख।
िवशेष : कु छ योग िश क इसको पाद सा रत उतानासन भी कहते ह।
आगे क ओर झुककर कए जाने वाले आसन

प मो ानासन

िविध : ज़मीन पर बैठकर पैर सामने क तरफ़ लंबवत् कर। ास छोड़, अब सामने क
तरफ़ झुकते ए दोन हाथ क अँगुिलय से दोन पैर के अंगूठ को छू ने क कोिशश कर।
पैर को तानकर रख। घुटन को उठने न द। अब धीरे -धीरे िसर को घुटन से पश कराएँ।
अ यास हो जाने पर पीठ उठी ई नह रहती बि क समतल हो जाती है। अ यास मशः
कर, ज दबाज़ी न कर। पूव ि थित म आते समय ास ल।

यान : वािध ान च पर।

ास म/समय : सामने झुकते समय ास छोड़ और वािपस आते समय ास ल। इसे 2 से


3 िमनट या कम से कम पाँच बार अनुकूलतानुसार कर।

लाभ : चूँ क इस आसन से ाण सुषु ा से वािहत होने लगते ह अतः कु डिलनी


जगाने म सहायक है।
अित र वसा को कम कर शरीर को छरहरा बनाता है।
क़ ज़ दूर करने के िलए यह अित-उपयोगी है।
पैर क मांसपेिशयाँ मज़बूत होती ह।
मधुमेह म आशातीत लाभ देता है।
गुद व िजगर आ द को याशील बनाता है।
मन तनाव रिहत करता है।
योगी साधक को यह आसन अव य करना चािहए। यह आ याि मक उ ित
देता है चय म सहायक है।
सभी आयु वग के िलए यह आसन अित उ म है।
ि य के जनन अंग के रोग का शमन करता है।
यह आसन शरीर का कद ल बा करता है। इसके अ यास से ग ठया, जांघ का
एवं पंडिलय का दद दूर होता है। कमर म लचीलापन आता है। पीठ व कमर
के ायु पु होते ह। म ा तंतु के दोष दूर होते ह।

सावधािनयाँ : गभवती ि याँ, ती कमर दद और साइ टका वाले रोगी यह आसन


ज़बद ती न कर।

ट पणी : कु छ योग िश क इस आसन को ' चयासन' और 'उ ासन' भी कहते ह। उ


मतलब घोर, तेज वी, कठोर, भयंकर और चय का शाि दक अथ यानी आ मा,
चय मतलब रमना, आ मा म यान करने वाले को चारी कहते ह, य क उसका यान
कह अ य नह जाता, खासतौर से काम-वासना क तरफ़। अ य पर परा म चयासन
और उ ासन अलग कार से कराया जाता है।

िवशेष : मह ष घेर ड ने इस आसन को उ ासन भी कहा है।

गितमय पि मो ानासन
िविध : इसी आसन को गितमय करने के िलए पीठ के बल लेट जाएँ। दोन हाथ कान के
बगल से होते ए िसर के ऊपर क तरफ़ ले जाएँ हथेली आसमान क तरफ़ रख। अब धड़
को ऊपर उठाते ए बैठे एवं आगे झुककर पि मो ानासन कर। थोड़ा क वापस बैठने क
ि थित म आएँ व मूल ि थित म लौट जाएँ। यह एक च आ। इस कार 5 से 10 च पूरा
कर।

ास म/समय : बैठते समय ास ल, पि मो ानासन करते समय ास छोड़, वापस


बैठने क ि थित म ास ल एवं मूल ि थित म आते समय ास छोड़। 5 से 10 बार कर।

नोट : लाभ एवं सावधािनयाँ पि मो ानासन के समान ही है। इसी म म


पि मो ानासन के कई कार ह।

पाद- सार पि मो ानासन/पृ मुि ब दपि मो ानासन


िविध : अपने आसन पर सामने क तरफ़ पैर फै लाकर बैठ जाएँ दोन पैर क िजतना
अिधक फै ला सकते ह, फै ला ल। दोन हाथ को पीठ के पीछे ले जाकर अंगुिलय को आपस
म फसा ल या मु ी बांध ल। अब कमर से ऊपरी भाग को दािहने तरफ़ मोड़े और िसर को
दािहने पैर के घुटने से पश कराने क कोिशश कर। हाथ को पीठ के पीछे ऊपर क तरफ़
तान कर रख अनुकूलतानुसार िजतनी देर रह सकते ह उतनी देर क और ास लेते ए
िसर को ऊपर उठाएँ। वापस मूल अव था म आएँ। यही अ यास बाएँ पैर क तरफ़ से भी
कर।

ास म/समय : झुकते समय ास छोड़। अंितम अव था म सहज प से ास- ास


कर। िसर को उठाते समय ास ल। अनुकूलतानुसार क अथवा 5 से 10 सेक ड तक क।

लाभ : पि मो ानासन के लगभग सभी लाभ वतः ा हो जाते ह।


दोन पैर के बीच के कध थल म लोच-लचक पैदा करता है एवं िखचाव होने
के कारण र संचार बराबर मा ा म होता है।
कमर एवं मे द ड व पीठ के िवकार दूर होते ह।

सावधानी : कड़क शरीर वाले पहले इससे संबंिधत दूसरे आसन कर या इस आसन को
मशः धैयपूवक कर।
रा मतर : उपरो अव था म ही हम िसर को दोन पैर के बीच म ज़मीन से पश
कराने का भी यास करना चािहए।

सु जानु शीष पशासन/शैथ यासन

िविध : दोन पैर को सामने क तरफ़ फै लाकर बैठ जाएँ। बाएँ पैर को घुटने से मोड़कर
एड़ी और पादतल को दािहने जांघ से िचपका द तथा दािहने पैर को घुटने से मोड़ते ए
दािहने िनत ब के पास दािहनी एड़ी को रख। अब दोन हाथ को ऊपर उठाएँ और िसर को
सामने क तरफ़ झुकाते ए माथे को घुटने से पश कराएँ वापस िसर को उठाएँ और पुनः
िसर को सामने झुकाएँ पर तु इस बार घुटने के बाएँ तरफ़ ज़मीन से पश कराएँ। पुनः िसर
को ऊपर उठाएँ और फर से िसर को सामने झुकाएँ। इस बार िसर को घुटने के दािहने
तरफ़ क ज़मीन पर पश कराएँ इस कार पहले घुटने पर फर घुटने के बाएँ तरफ़, फर
घुटने के दाएँ तरफ़ ज़मीन से पश कराते ह। तथा यही म पैर को बदल कर दािहने तरफ़
भी कर।

ास म/समय : िसर को झुकाते समय ास छोड़े अंितम अव था म सामा य ास-


ास कर एवं िसर को उठाते समय ास ल। येक बार िसर का पशकाल 8 से 10
सेक ड रख।

लाभ : पाचन तं के अंद ु नी भाग क मािलश करता है।


मे द ड एवं पीठ के अंग म खंचाव उ प कर र संचार सुचा करता है।
कमर के जोड़ म लोच पैदा करता है।
वायु को अधोगामी करता है।

सावधानी : कड़क मे द ड वाले शनैः शनैः कर।

उि थत जानुिशरसासन

िविध : दोन पैर के बीच लगभग 2 से 3 फ ट का अंतर रखकर खड़े हो जाएँ अब कमर से
ऊपरी भाग को सामने क तरफ़ झुकाते ए िसर को दोन घुटन के बीच लाएँ और हाथ
क पैर के पीछे ले जाकर या तो आपस म बांध ल या पंडिलय को पकड़। अंितम अव था
म छाती क जांघा से पश कराएँ एवं पैर को सीधा रख।
श ास म/समय : सामने झुकते समय ास छोड़। अंितम अव था म ास म सामा य
रख। मूल अव था म आते समय ास ल। 10 से 15 सेक ड क या अनुकूलतानुसार के व
4 से 5 बार आसन को दोहराएँ।

लाभ : दूिषत वायु का िन कासन करता है।


इस आसन का अ यास िन य ित करने से िसर के सम त िवकार दूर होते ह,
ने संबंधी िवकार भी दूर करता है।
चेहरे म ओज तेज को बढ़ाता है।
कमर, मे द ड, पीठ म र संचार सुचा करता है।
बाल का झड़ना रोकता है।
पाचन तं के अंगो को वि थत करता है।

सावधािनयाँ : कड़क मे द ड वाले एवं ती कमर दद से पीिड़त ि न कर।


इस आसन के बाद धनुरासन, भुजंगासन आ द कर।

नोट: इस आसन को उतानासन ि थत ह तब जानुिशरासन भी कहते ह।

उ ासन

िविध : अपने आसन पर सामने क तरफ़ पैर फै लाकर बैठ जाइए। दोन पैर के बीच ढाई
से तीन फट क दूरी रिखए। अब ास छोड़ते ए दािहने हाथ से दािहने पैर के अंगूठे को
और बाएँ हाथ से बाएँ पैर के अंगूठे को पकड़ और िसर को ज़मीन से पश कराएँ।
यथासंभव िजतनी देर क सकते ह क एवं ास लेते ए वापस मूल अव था म आ जाएँ।
पूरी कोिशश कर क घुटने न मुड़ने पाएँ।
यान : आ ा च पर।

ास म/समय : ास म िविध म समािहत है एवं तीन से पांच िमनट तक कर या


मतानुसार तीन से पांच बार कर।

लाभ : उदर- देश को लाभ प च


ँ ता है।
वायु िवकार दूर होता है।
पि मीतानासन के समान सभी लाभ ा होते ह।

नोट : उ ासन को योगी आयंगार ने पि मो ानासन और चयासन कहा है। साधक


इनसे होने वाले लाभ से मतलब रखकर अपने िववेक का उपयोग कर।

सावधािनयाँ : ज टल मे द ड, ती कमरदद, साइ टका, गभवती मिहलाएँ न कर।

दुिनया का कोई भी ि योग का अ ययन


कर सकता है तथा इसक अनुभूितयाँ ा कर
लाभाि वत हो सकता है। मा आव यकता है
इसे अपने जीवन म याि वत करने क ।

-RJT

जानु-शीष आसन/ जानु िशरासन


शाि दक अथ : जानु अथात् घुटना और शीष मतलब िसर। एक पैर लंबवत् कर िसर को
घुटने से पश कराना ही जानुशीषासन है।

िविध : ज़मीन पर दोन पैर लंबवत् करके बैठे। पहले बाएँ पैर को घुटने से मोड़कर एड़ी
को गु ांग के पास लगाएँ। अब दोन हाथ को पर पर िमलाकर दािहने पैर के अंगूठे को
पकड़ने क कोिशश कर। धीरे -धीरे हथेिलय को तलव क तरफ़ ले जाएँ और इसी म को
जारी रखते ए िसर को घुटन से पश कराएँ। िसर झुकाते समय ास छोड़। आसन क
पूण ि थित म प च ँ ने पर गहरी साँस लेते ए आधे से 1 िमनट क। मूल अव था म आते
समय ास ल। यही या पैर बदलकर कर। पहले वाले पैर से करने म िजतना समय
िलया था उतना ही समय दूसरा पैर बदलकर कर।

यान : ऊजा को ऊ वमुखी बनाने के िलए आ ा च पर एवं रोग के िलए वािध ान एवं
मिणपूरक च ।

लाभ : कडनी को ठीक करता आ उसे सुचा प से याशील बनाता है।


ऊजा को ऊ वमुखी बनाता है िजससे चेहरे क कांित बढ़ती है।
अंडकोश क वृि से दु:खी साधक यह आसन कु छ अिधक समय तक कर।
यकृ त और लीहा स बंधी रोग का शमन करता है।

नोट : कह -कह इसे अध-पि मो ानासन भी कहते ह एवं बाएं पैर को दािहनी जांघ के
ऊपर रख और पैर के अंगूठे को पकड़े। इस अव था को उि थत जानु शीषासन कहते ह।
अब यही या पैर बदलकर कर। उपरो सभी लाभ म वृि होती है।

सावधािनयाँ : साइ टका, गभवती मिहलाएँ व ज टल मे द ड वाले रोगी न कर।

महामु ासन
शाि दक अथ : महा अथात् महान, बड़ा, यादा े एवं मु ा का मतलब भिगमा।

िविध : सामने क तरफ़ पैर फै लाकर बैठ जाएँ। बाएँ घुटने से मोड़ते ए बाएँ पैर के तलवे
को दािहने पैर क जाँघ से लगाते ए एड़ी को गु ांग के समीप मूलाधार के पास यथोिचत
प से ि थर कर। अब आप देखगे क आपका लंबवत् दािहना पैर व आगे मुड़ा आ बायाँ
पैर एक कार से समकोण का िनमाण कर रहे ह। हाथ क सामने क तरफ़ करते ए
लंबवत् पैर के अंगूठे को पकड़। मे द ड तना आ सीधा रख, अब अपनी ठु ड़ी को सीने के
ऊपर ि थत हंसली के ग े म टका द। मश : अंग को िशिथल करते ए यही या
दािहने पैर को मोड़कर कर।

ास म/समय : ास ल परं तु पूरे उदर- देश को कसते ए एवं िपचकाते ए। पेट और


पीठ के अंत: थल को िमलाने क कोिशश कर। अब उदर- देश क ि थित को सामा य कर।
ास छोड़, दोबारा ास ल और पुनरावृि कर। ज़बरद ती न कर, 1 से 3 िमनट तक क।

लाभ : यह स पूण उदर- देश को लाभाि वत करता है। कडनी को ठीक कर यथावत्
सश बनाता है। यह आसन अंडकोश के िवकार को दूर करता है। गभांशय िखसकने
से िसत ि याँ इससे लाभाि वत होती ह। यह गभाशय को मूल थान म प च ँ ाता है।
यह क़ ज़ से उ प िवकार को काफू र करता है। इस महामु ा के बारे म हठयोग
दीिपका म िलखा है क यह मृ यु और महारोग का नाश करती है/ऐसी कौन सी व तु है
िजसे इस मु ा का अ यासी पचा नह सकता ? महान िवष को भी यह पचा सकता है।
इसके अ यासी को कु , को ब ता, बवासीर, लीहा एवं कई ज टल रोग नह होते।
सावधािनयाँ : दयरोग से त, उ र चाप एवं गम कृ ित वाले रोगी इस आसन को न
कर।

नोट : आसन के ित सजग रह। मशः अ य त हो जाने के बाद ही पूण प से कर।

ब द कोणासन

शाि दक अथ : ब का अथ बंधा आ, अ छी तरह से जमाया या बैठा आ। कसी के साथ


जुड़ा, लगा आ, पकड़ा आ।

िविध : सामने क तरफ़ पैर फै लाकर बैठ जाएँ। अब धीरे -धीरे दोन घुटन को मोड़ते ए
पैर के पंज को आपस म िमलाते ए एिड़य को गु ांग के पास मूलाधार से लगाएँ। जाँघ
और घुटन को ज़मीन से पश कराएँ। मे द ड सीधा तना आ, दृि सामने और दोन
पंज को पकड़े ए ि थर रह। अब ास छोड़ और आगे ज़मीन को नाक से पश कराने के
िलए झुक। ठु ड़ी भी पश कर। वाभािवक ास- ास कर। 10 से 20 सेके ड तक क,
ास ल और वापस झुकने से पहले क ि थित म प च ँ ।

ास म/समय : िविध म समािहत है।

लाभ : पु ष-रोग और ि य के िलए यह ब त ही लाभकारी है।


कडनी, िश - ंिथयाँ और मू ाशय को िनरोगता दान करता है।
हा नया, अंडकोश और कू हे के दद के िलए यह आसन वरदान है।
ि य के अिनयिमत ऋतु ाव को ठीक कर गभाशय को सश करता है।
गभवती ि याँ िनयिमत इस आसन पर बैठे (झुके नह ) तो सूित के समय
वेदना कम होती है और िशरा म सूजन भी नह होती।
इस आसन ारा पीठ, उदर देश और वि त देश म र संचार क वृि कर
देता है अतः उ ह पया लाभ िमलता है।

सावधािनयाँ : पहली बार म ही संभव नह ह क आप इस अ यास को याि वत


कर ल अत: मश: चे ा कर।
उ र चाप, दय रोगी एवं मे द ड के ज टल सम या वाले इस अ यास को
न कर।

िव तृत पाद भू-नमनासन/भूमासन/उपिव कोणासन

शाि दक अथ : भू अथात् पृ वी या भूिम। नमन का अथ णाम या झुकना। भूनमन अथात्


भूिम को आदर से नमन करना।

िविध : अपने आसन म सामने क तरफ़ पैर फै लाकर बैठ जाएँ। अब धीरे -धीरे पैर को
पि य के पंख क तरह फै ला ल (िच देख) एवं दािहने हाथ से दािहने पैर के अंगूठे को
पकड़े व बाएँ हाथ से बाएँ पैर के अंगूठे को पकड़। एड़ी से जाँघ तक का िह सा ज़मीन पर
पश करता रहे। ास छोड़ते ए व : थल को सामने नीचे क तरफ़ झुका कर पेट, छाती
एवं ठु ड़ी को ज़मीन से पश कराएँ। 5 से 10 सेकड क एवं ास भरते ए मूल अव था म
आ जाएँ।

लाभ : आ याि मक ऊजा बढ़ती है।


यान अव था म मन लगता है।
ि याँ यह आसन करके अपने व : थल उ त बनाकर स दय को आकषक बना
सकती ह।
पूरे शरीर का ायाम हो जाता है। अतः मांसपेिशयाँ, सभी नस-नािड़याँ और
हिड़य को अ छा वा य ा होता है।
मोटापे को कु छ हद तक कम करता है।
मू -सं थान के िवकार ठीक होते ह।

नोट : अ यास के बाद म तक ज़मीन पर लगाकर भी इस आसन को कर सकते ह। कु छ


योग िश क इस आसन को प ी आसन भी कहते ह।

सावधािनयाँ : आसन व ास के ित सजग रह। क ठन होने के कारण ज दबाज़ी न कर।


मश: आराम से कर।

उि थत पादह तासन

िविध : अपने आसन म सामने क तरफ़ पैर फै लाकर बैठ जाइए। अब दािहने हाथ से
दािहने पैर का अंगूठा और बाएँ हाथ बाएँ पैर का अंगूठा पकड़े और ास भरकर दोन पैर
को एक साथ ऊपर क तरफ़ उठाएँ एवं िसर को घुटन से लगाएँ। यथासंभव क । प ात्
मूल अव था म वापस आएँ और रे चक कर। यथाशि या को दोहराएँ।

एक पाद प ो ानासन
िविध : य द दोन पैर एक साथ उठाते न बने तो पहले एक पाद प ो ानासन कर। अथात्
एक पैर प ासन क अव था म रखकर मूलाधार या सीवनी के पास एड़ी लगाएँ और दूसरे
पैर को दोन हाथ से पकड़कर िसर घुटने से लगाएँ। यही म बदलकर कर।

नोट : कु छ योग गु इस आसन को अध प पादो ानासन भी कहते ह।

िनराल ब पि मो ानासन/ऊ वमुख पि मो ानासन

िविध : यह आसन भी उि थत पाद ह तासन का एक कारांतर है। इसम के वल इतना


अंतर है क घुटन को मोड़कर बैठे और पैर के तलव को पकड़। ास भरकर दोन पैर
को एक साथ ऊपर उठाएं। बाक़ या उपरो ानुसार ही रहेगी। शरीर का पूरा भार
िनत ब पर ही रहता है।

उि थत ह त-मे द डासन/उभय पादांगु ासन


िविध : यह आसन उि थत पादह तासन के ही समान है। अंतर िसफ इतना है क इसम
िसर घुटन से नह लगाते ह। के वल पैर को ऊपर क ओर तानकर रखते ह।

िवशेष : कु छ योग िश क इस आसन को पूव ानासन भी कहते ह।

मे द डासन

िविध: इस आसन म घुटन को िसर से न लगाकर पैर को दाएँ बाएँ िजतना फै ला सकते ह
उतना फै लाते ह व पंज को पकड़ कर अ तकु भक करते ए िजतनी देर क सकते ह ककर
मूल अव था म आते समय रे चक करते ह।

लाभ : उपरो सभी आसन उदर- देश क याशील बनाते ह।


पेट क चब को कम करता है। जनन अंग को लाभ िमलता है।
पैर सुडौल एवं मज़बूत होते ह।
संतुलन शि बढ़ती है।
मे द ड लचीला, सश और रोग-मु होता है।

सावधािनयाँ : ि लप िड क, साइ टका या मे द ड से स बंिधत रोगी इन ायाम को न


कर।

नोट : उपरो आसन उि थत पादह तासन के ही समान होने के कारण हमने उ ह यहाँ
दशाया है।
मे द ड मोड़कर कए जाने वाले आसन

ितयक् भुजंगासन

िविध : यह शंख- ालन के िलए यु होने वाली एक या है। भुजंगासन क ही ि थित


म िसर एवं धड़ को पहले दािहनी दशा म घुमाते ए बाएँ पैर क एड़ी को देखना है और
यही म िवपरीत दशा से करना है। यह एक आवृि ई। इस कार दोन तरफ़ से 5-5
बार कर। ास ास के ित सजग रह।

ास म: ऊपर उठते समय ास ल।


दोन तरफ़ मुड़ते समय ास रोक।
मूल अव था म आते समय ास छोड़।

समय : शंख- ालन के समय इसक 10-10 आवृि कर।


यान : वािध ान च पर।

लाभ : भुजंगासन के सम त लाभ िमलते ह।


शंख- ालन के िलए करने पर उदर को िवशेष लाभ िमलता है।
पाचन तं म आंत रक देश क अ छी मािलश करता है।
मे द ड के ज टल रोग म मश: शनै: शनै: करने से रोग का य होता है।
पेट म जमी चब को दूर करता है।

नोट : पैर के पंज म लगभग आधे से एक फ ट का अंतर रखने से धड़ एवं िसर को कु छ


यादा घुमाना पड़ता है। अत: इससे साधक अिधक लाभाि वत होता है।

अध म ये ासन

आकृ ित का अथ : संभवतः यह आसन योगी म ये नाथ ने अपने साधक को पहले


िसखाया हो, अत: यह उ ह के नाम पर रखा गया है।

िविध : दोन पैर को फै लाकर बैठ जाएँ। बाएँ पैर क एड़ी को मूलाधार के पास सीवनी
थान पर रख या दािहने िनत ब के पास रख। अब दािहना पैर मोड़ और दािहने टखने को
बाएँ घुटने के ऊपर रख। दािहने घुटने पर बाई बगल टकाएँ। अब दािहने पैर के घुटने को
बाएँ हाथ क बगल से अपनी तरफ़ ध ा देते ए दािहनी तरफ़ घूम व दृि भूम य पर रख।
िजतना मुड़ सकते ह, मुड़। परं तु बाएँ हाथ से दािहने पैर के अंगूठे को पकड़ना न भूल। अब
यही म पैर बदलकर बाई तरफ़ कर।

ास म/समय : यथाशि 5-10 सेकड इसी ि थित पर क। मुड़ते समय रे चक कर, फर


बा कुं भक कर। पूव ि थित म आते समय पूरक कर।

लाभ : क़ ज़ के िलए यह रामबाण है।


मे द ड पूण सश बनता है।
उदर भाग क मािलश कर पाचन तं ठीक करता है।
72,000 नािड़य के दोष ठीक कर सैकड़ रोग दूर करता है।
कु डिलनी जगाने म सहायक है।
मोटापे का हरण करता है।
मधुमेह और हा नया म लाभ द।

सावधािनयाँ : साइ टका, पेट का अ सर, मे द ड संबंधी चोट वाले, गभवती मिहलाएँ,
ि लप िड क आ द रोग वाले इस आसन को न कर।

पूण ये ासन
िवशेष : यह आसन हठ योगी म ये नाथ को सम पत है।

िविध : इस आसन म बाएँ पैर को अध प ासन क ि थित म रखते ह अथात् अध


म ये ासन म बायाँ पैर िनत ब के नीचे रखते ह और पूण म ये ासन म बायाँ पैर
दािहने पैर के ऊपर रखते ह। शेष अ यास पहले जैसे ही है एवं लाभ भी लगभग बराबर ह।

ास म : मुड़ते समय रे चक कर फर बाहय कुं भक कर एवं मूल अव था म आते समय


पूरक कर।

समय : अिधकतम 2 िमनट के िलए मुड़े या क ठनाई महसूस हो तो वापस मूल अव था म


आ जाएँ।

लाभ : अध म ये ासन के समान सम त लाभ ा होते ह।


इस आसन को लगाने से उदर देश के अवयव एक ओर से िसकु ड़कर और
दूसरी ओर खंचाव होने के कारण उ ह पया लाभ िमलता है।
िनत ब के जोड़ का दद अितशी दूर होता है।
मे द ड के पा वगत घुमाव के कारण, पीठ व कमर दद एवं िनतंब के जोड़
का दद अितशी दूर होता है।
जनने य के रोग दूर करता है एवं पेट क जम चब को दूर करता है।

सावधािनयाँ : साइ टका, पेट का अ सर, मे द ड संबंधी चोट वाले, गभवती मिहलाएँ,
ि लप िड क आ द रोग वाले इस आसन को न कर।

मे व ासन
िविध : पैर को सामने क तरफ़ फै लाकर बैठ जाएँ। दािहने पैर को मोड़कर बाई जाँघ क
दूसरी तरफ़ रख और कमर से ऊपर के िह से को बाई तरफ़ मोड़। पहले ास ल। शरीर
मोड़ते समय कुं भक कर। मूल अव था म आने पर ास छोड़। इसी ि थित म पैर को
बदलकर ऊ व शरीर को दूसरी तरफ़ मोड़।

ास म/समय : ास म िविध म समािहत है एवं दोन तरफ़ पांच-पांच बार कर।

यान : मूलाधार और वािध ान च पर।

लाभ : यह क़ ज़ को हरता है। पाचन तं के अंग क मािलश वत: हो जाती है।


मे द ड लचीला व सश बनाता है।
आल य दूर करता है।
िनयिमत करने से कमर पतली और चब को कम करता है।
िनयिमत करने पर सुषु ा को खोलता है।

सावधानी : मे द ड एवं पीठ से संबंिधत ज टल रोग वाले ि धैयपूवक कर।

ितयक मे भू–नमनासन
िविध : सामने क तरफ़ पैर को ल बवत् करके बैठ जाएँ। िच देख चूं क बाएँ तरफ़
उ वभाग को मोड़कर िसर को ज़मीन से लगाना है अत: दािहने हाथ को बाएँ िनत ब के
पास रख और बाएँ हाथ के पंजे को दािहने हाथ के पंजे से थोड़ा दूर रख। वभािवक प से
ऊपरी िह सा मुड़गे ा (लगभग 90 िड ी मोड़े) फर िसर को सामने क तरफ़ झुकाते ए
ज़मीन से पश कराने क कोिशश कर। कु छ देर के और मूल अव था म लोट आएँ, यही
म दािहने तरफ़ से भी करे ।

नोट : बाएँ तरफ़ मोड़ते समय िसर को बाएँ हाथ क तरफ़ लाएँ।
िसर को झुकाते समय मे द ड तना आ रख एवं िनत ब और पैर को उठने न
द।
दोन तरफ़ बराबर समय से कर।

ास म/समय :
उ व भाग मोड़ते समय ास ल। झुकते समय ास छोड़ एवं िसर को ऊपर
उठाते समय ास ल।
5 से 10 सेक ड क एवं दोन तरफ़ से 5 च पूरे कर।

लाभ : मे द ड म लोच (लचीलापन) लाता है।

पीठ एवं कमर म खंचाव पैदा कर र संचार सुचा करता है।


पाचन तं के अंग क मािलश कर उ ह या मक करता है।
कमर के आसपास जमी चब को कम करता है।

ितयक् क ट च ासन (तीन कार)


िवशेष : यह शरीर क शुि करता आ िनमलता बढ़ाता है। िवशेष प से यह या शंख-
ालन के िलए भी क जाती है।

थम कार :

िविध : सावधान क ि थित म खड़े हो जाइए और दोन पैर को इतना फै ला ल क उनके


बीच एक से डेढ़ फु ट का अंतर हो जाए। दोन हाथ के पंज को आपस म फसाकर सामने
क तरफ़ ज़मीन के समाना तर उठा ल। अब कमर को झुकाएँ परं तु पीठ तनी ई हो। दृि
सामने क ओर रख और धीरे -धीरे दािहने तरफ़ घूम और कमर के ऊ वभाग को गितमय
बनाते ए बाई ओर घूम जाएँ। अब वापस उसी गित से सामने क ओर मूल अव था म आ
जाएँ।

नोट : दािहने एवं बाई तरफ़ िजतना अिधक मुड़ सकते ह उतनी कोिशश कर।
अ यास के समय पूरक करते ए अंतकुं भक कर।
मूल अव था म रे चक कर।
ास का म इस कार भी कर सकते ह : जैसे दािहनी ओर जाते समय ास
ल और मूल अव था म आते समय ास छोड़ द। अब बाई तरफ़ जाते समय
ास ल और मूल अव था म आते समय ास छोड़ द। इस कार करने से शंख-
ालन क या म अिधक लाभ क संभावना रहती है। कम से कम 4 से 8
बार यह या कर।

ि तीय कार

िविध : इस िविध म हाथ क ि थित बदलकर बायाँ हाथ दािहने कं धे पर और दािहना


हाथ पीठ के पीछे रखकर दािहनी ओर घूमकर िजतना पीछे क तरफ़ देख सकते ह देखने
का यास कर वापस मूल अव था म आ जाएँ और अब दािहने हाथ को बाएँ कधे पर
रखकर और बाएँ हाथ को पीठ के पीछे रखकर बाई तरफ़ िजतना देख सकते ह, देख। इस
कार 4 से 8 बार यह या दोहराएँ।

तृतीय कार
िविध : इसम हाथ क ि थित बदलकर कमर पर रखना होता है बाक़ या
उपरो ानुसार ही है।

लाभ : कमर, मे द ड, पीठ, फु फु स, गदन आ द के िवकार को दूर कर उ ह व थता


दान करता है।
क़ ज़ का दु मन है। पाचनशि ती करता है।
मोटी कमर को छरहरी एवं पतली करता है।
गैस बन रही हो या डकार नह िनकल रही हो तो यह या पानी पीकर भी
कर सकते ह।
मे द ड म लचीलापन लाता है।
शारी रक/मानिसक तनाव दूर होता है।
पीठ के बल कए जाने वाले आसन

सु पवन मु ासन

शाि दक अथ : पवन का अथ है हवा, वायु। मु का अथ वतं । वह आसन िजसे करने से


पवन (वायु) शरीर से मु होती है, उसे पवन मु ासन कहते ह।

िविध : पीठ के बल लेट जाएँ। पैर को सामने क तरफ़ ज़मीन के समानांतर सीधे रख।
ास छोड़ और बा य कुं भक करते ए हाथ का सहारा लेकर दािहना घुटना मोड़कर िसर
क तरफ़ ले आएँ। अब घुटने को नाक से पश कराने के िलए िसर को ऊपर उठाएँ। जाँघ से
पेट को दबाने क कोिशश कर। कु छ देर क। अब ास लेते ए वापस मूल ि थित म आएँ।
यही या बाएँ पैर से कर। यही या एक साथ दोन घुटन को मोड़कर कर। दािहने पैर
के ारा कया गया आसन दि ण पवन मु ासन और बाएँ पैर के ारा कया गया आसन
वाम पवन मु ासन कहलाता है तथा दोन पैर के ारा कया गया आसन पूण सु पवन
मु ासन कहलाता है।

शवास म/समय : घुटने को नाक से पश कराते समय ास छोड़। मूल अव था म लौटते


समय ास ल। 5 से 10 बार इस या को दोहराएँ।

नोट : एक पैर के घुटने को जब नाक से पश कर, तो दूसरा पैर जमीन के समानांतर पश


करता आ रख।

लाभ : नाम के अनु प अपान वायु को शरीर से िन कािसत करता है। पुराने से
पुराना ग ठया और कमर दद इसके अ यास से मशः ीण होता जाता है। क़ ज़, खाने
म अ िच, आल य, आ वृि , र िवकार आ द रोग क यह संजीवनी बूटी है। िसर
घूमना, मानिसक कमज़ोरी, िसर दद आ द रोग म लाभकारी है। मेद (चब , मोटापा)
कम करता है तथा मे द ड व ीवा को मज़बूत करता है।

सावधािनयाँ : अित उ र चाप, ि लपिड क एवं साइ टका वाले न कर।

िवशेष : जब इसी आसन को बैठ कर कया जाता है तो उसे कु छ योग िश क इसे िसफ़
पवन मु ासन भी कहते ह।

सु पादांगु नासा पशासन

शाि दक अथ : सु का अथ सोया आ, लेटा आ या लेटना। पाद का अथ पैर। अंगु का


अथ अँगूठा। नासा का अथ नाक या नािसका। पश का अथ छू ना।

िविध : पीठ के बल िच लेट जाएँ। अपने दोन हाथ से दािहने पैर को उठाते ए मोड़े
और चेहरे क तरफ़ लाएँ। पैर के अँगूठे को नािसका से पश कराने का य कर। बायाँ पैर
ज़मीन से पश करता रहे। धीरे -धीरे मूल अव था म वापस आएँ। अब यही म बाएँ पैर
को उठाकर कर। अ यास हो जाने पर दोन पैर को एक साथ मोड़ते ए नािसका से पश
कराएँ।

शवास म : अंतकुं भक करते ए अँगूठे का पश नािसका से कराएँ मूल ि थित म लौटते


समय ास छोड़।

समय : दाएँ पैर ारा तीन से पाँच बार फर बाएँ पैर ारा तीन से पाँच बार एवं दोनो पैर
से तीन से पाँच बार तक कर।

लाभ : कमर क पीड़ा कम होती है।


कमर म लोच पैदा होती है। जमी ई चब कम होती है।
िनत ब और जाँच सुदढ़ृ एवं पु होते ह।
पाचन शि बढ़ती है।
मे द ड को लाभ िमलता है।

नोट : एक पैर नािसका से लगाते समय दूसरा पैर ज़मीन को पश करता रह अ य त हो


जाने पर िसर को ज़मीन से न हटाएँ।

सावधानी : यह आसन ज टल होने के कारण ज दबाजी न करते ए मशः िववेक पूवक


कर।

कं धरासन

िविध : पीठ के बल क बल पर लेट जाइए। अब घुटने मोड़ते ए एिड़य को िनत ब के


पास रिखए। बाएँ हाथ से बाएँ पैर का टखना एवं दाएँ हाथ से दाएँ पैर का टखना पकिड़ए
और िनत ब को पूरे यास के साथ ऊपर उठाइए। साथ ही नीचे से पीठ को, ऊपर क और
धके लते ए धनुषाकार बनाएँ। इस कार का आकार बनाने के िलए व : थल, उदर देश
को ऊपर क ओर तान। कु छ देर के वापस मूल अव था म आएँ। टखन को छोड़ते ए
पैर को आगे क ओर फै ला ल।

शवास म : िनत ब को ऊपर क ओर करते समय ास अंदर रोक। मूल अव था म आते


समय ास छोड़।

समय : इस कार इसक 5 से 10 बार यह या कर।

यान : िवशुि च एवं अनाहत च पर।


लाभ : ि य के रोग के िलए यह आसन िवशेष लाभदायक ह। जैसे अिनयिमत
मािसक धम, गभपात आ द जैसे रोग दूर कर उनके जनन अंग को भी पु करता है।
सामा यतः यह उदर देश के आंत रक अंग क िशिथलता को दूर करता है।
ऑ फस म काम करने वाले इसके िनयिमत अ यास से पीठ एवं मे द ड के दद
से िनजात पा सकते ह।
मे द ड संबंधी कई रोग को ठीक करता है।
दमा नाशक है एवं सन तं सुचा करता है।
थायरॉइड संबंधी रोग म लाभकारी।

सावधानी : उदर देश म कोई ज टल रोग हो, मे द ड स त हो, हा नया, अ सर और


ीवा संबंधी िवकार हो तो मशः धीरे -धीरे कर।

िवशेष नोट : कु छ योग िश क इसको सेतु बंधासन कहते ह।

ि -पा आसन/पा धनुरासन

िविध : कं बल के ऊपर पीठ के बल लेटकर करवट ले ल एवं ास छोड़ते ए दोन पैर को


पीछे क तरफ़ मोड़े और दोन हाथ से दोन पैर के पंज को पकड़ ल। तदुपरांत ास
लेकर अंतकुं भक करते ए यथासंभव करवट बदलते रह एवं अनुकूलतानुसार इसे करके
ास बाहर िनकाल द। वापस सामा य ि थित म आ जाएँ।

शवास म/समय : आसन करते समय अंतःकुं भक कर। यही या 4 बार कर।

लाभ : क़ ज़ दूर करता है और पाचन-तं मज़बूत करता है।


मोटे ि य को अव य करना चािहए। इस या को करने से उदर- देश म
जमी ई चब कम होती है।
छाती मज़बूत एवं चौड़ी होती है।
साइ टका वाले अव य कर।

सावधािनयाँ : ज टलता या दय रोग से पीिड़त ि िववेक का योग कर।

नोट : िवशेष प से यह गितमय या शंख- ालन के िलए क जाती है।

िवशेष : हमने इसी पु तक म पीठ के बल कए जाने वाले आसन और भी जगह दए ह। कृ पया िन िलिखत आसन भी
देख।
च ासन, पूण च ासन, च बंधासन, सेतु बंधासन, शीष पादासन, ीवासन, रपटासन, सेतु आसन, िवपरीत द डासन,
पूव ानासन।
उ अ यास एवं संतुलन के आसन

पाद सारणक छप आसन/ कूमासन (ि तीय कार)

शाि दक अथ : कू म का अथ कछु आ है। पैरो को फै लाकर कछु ये क तरह आकृ ित बनाने के


कारण इस आसन का नाम दया है।

िविध : ज़मीन पर पैर लंबवत् करके बैठ जाएँ। दोन घुटन के बीच लगभग 1 या 1/2 फ़ ट
का अंतर रख। िसर सामने क तरफ़ झुकाएँ और इसी म म हाथ को दािहने घुटने के नीचे
से दािहने हाथ को, बाएँ घुटने के नीचे से बाएँ हाथ को बाहर िनकाल और दोन हाथ को
धीरे -धीरे पीठ क तरफ़ ले जाएँ। दोन हाथ क हथेिलय को एक दूसरे से िमलाएँ या
दोन हाथ को धरती के समाना तर फै ला ल। आसन पूण करने के िलए घुटन को ऊपर
उठाते ए पैर के तलव को ज़मीन के समानांतर रख। ास या सामा य रख। पहले
झुकते समय रे चक कर। इसी म म दोन पैर के टखन को एक दूसरे म फं सा ल और हाथ
को पीठ पर बाँध ल तो सु कू मासन कहलाएगा।

ास म : सामने झुकते समय ास बाहर िनकाल। अंितम ि थित म ास- ास


सामा य रख एवं मूल ि थित म आते समय ास ल।

समय : यथासंभव। आ याि मक लाभ हेतु अिधक देर तक कर।

यान : वािध ान और मिणपूरक च पर।

लाभ : यह आसन शारी रक ि थरता दान करता है।


मि त क को तनाव मु करता है। मन फु ि लत करता है।
पीठ दद, कमर दद व ीवा दद को दूर करने के िलए उपयोगी।
उदर के अवयव को स य करता है।
क़ ज़ दूर करता है।
यह आसन िवषय-कषाय को जीतना िसखाता है।
गुद को शि दान करता है।

सावधािनयाँ : ि लप िड क व साइ टका से पीिड़त रोगी इस आसन को न कर।

कं दपीड़ासन/कं दासन

शाि दक अथ: कं द का अथ मूल ांिथ, जड़ या गाँठ।

हठयोग दीिपका के तृतीय अ याय म िलखा है क कुं डिलनी कद पर शयन करती है। यह
योिगय , महा मा को मो और भोिगय को बंधन दलाती है।

िविध : अपने आसन म स तापूवक बैठे। पैर को सामने सीधा फै ला ल। घुटने मोड़ते ए
जाँघ को चौड़ा कर और एिड़य को आमने-सामने आपस म िमला ल (यह लगभग ब द
कोणासन के समान हो जाता है)। दािहने पैर के पंजे को दािहनी हथेली से और बाएँ पैर के
पंजे को बाई हथेली से पकड़। अब हाथ से पैर के पंज को ऊपर धड़ क तरफ़ ख च। टखन
को उ टा कर। पंजे पकड़कर घुटने व जाँघ को ख च एवं नािभ व सीने से एिड़य और पैर
के बा भाग को िचपका ल। थम अ यासी पैर को पकड़े रख एवं अ यास हो जाने पर
हाथ को घुटन पर रख।
ास म/समय: अंितम ि थित म ास सामा य रख एवं अनुकूलतानुसार कर।

यान : वािध ान च या मिणपूरक च पर।

लाभ : काम-वासना को िनयंि त करता है। बंद ु (ऊजा) ऊ वमुखी करता है। नािभ के नीचे
क येक माँसपेशी को ायाम िमलता है। िनत ब, घुटने, टखने क संिधय को लचीला
बनाता है। िजससे कड़ापन दूर होता है। मन क चंचलता का शमन करता है।

सावधािनयाँ: चूँ क यह उ अ यास का आसन है, इसिलए िवशेष सावधानी रख।


िजनके घुटने के जोड़ म लोच और मजबूती हो, वे ही इस आसन को कर।

नािभ पीड़ासन

िविध : अपने आसन म सामने क तरफ़ पैर फै लाकर बैठ जाएँ। घुटन को मोड़ व दोन
तलवे आपस म िमला ल। दोन हाथ से दोन पंज को पकड़ और उनको अंदर क तरफ़
ख चते ए नािभ के पास लाकर सटा द। चूँ क इसम घुटने ऊपर उठ जाएँग अतः पूरा भार
िनत ब पर आएगा। इसिलए संतुलन लाने क कोिशश करते ए यथाशि इस आसन को
कर।

ास म/समय : पैर को उठाते समय अंतःकुं भक कर एवं मूल ि थित म वापस आते समय
रे चक कर। 4 से 5 बार यथाशि कर।
लाभ : पाचन-तं , उदर और आँत क शि म वृि होती है।
हाथ व पैर को बल िमलता है।
ाण क गित बराबर होती है और यदाकदा सुषु ा म भी उसक गित होने
लगती है।
वीय वािहनी नस पु होती ह।
आ म उ थान के साथ जीवन म संतुलन का मशः िवकास होता है।

सावधािनयाँ : साइ टका, ि लपिड क, घुटन के जोड़ के रोगी इसे न कर।

धनुराकषणासन/आकण धनुरासन ( थम कार)

िविध : दोन पैर सामने क ओर फै लाकर बै ठए। अब बाएँ पैर के ऊपर दािहने पैर को अध
प ासन क अव था म रिखए। दािहने हाथ से बाएँ पैर के अँगूठे को पकिड़ए। घुटना
ज़मीन से उठने न पाए। अब बाएँ हाथ से दािहने पैर का अँगूठा पकड़कर कान के समीप
लाइए। पीठ, गदन, िसर सीधा तना आ रहे।

ास म/समय : अध प ासन क अव था म पूरक, अंितम अव था म कुं भक और मूल


अव था म आते समय रे चक कर। यही आसन पैर बदल कर कर। अनुकूलतानुसार या 5
बार कर।

लाभ : जाँघ, पंडली, घुटना, पंजे आ द सभी अंग को ि थरता िमलती है।
पैर का कं पन बंद होता है।
उदर- देश के अधोभाग को शि िमलती है।
मलो सग म मदद िमलती है।
हाइ ोसील बीमारी के रोगी इससे लाभ ा कर सकते ह।
मे द ड को लाभ प च
ँ ाता है।
आ मिव ास म वृि करता है।

सावधािनयाँ : साइ टका, ि ल पिड क के रोगी इसे न कर।

आकण धनुरासन(ि तीय कार)

शाि दक अथ : कण का अथ कान। उपसग आ का अथ तक। धनु का अथ धनुष।

िविध : ज़मीन पर पैर फै लाकर बैठ जाएँ। दािहने पैर के अँगूठे को दािहने हाथ से पकड़कर
ऊपर कान क तरफ़ लाएँ एवं बाएँ हाथ से बाएँ पैर के अँगूठे को पकड़। 5 से 10 सेकड तक
इसी ि थित म रह। आसन करते समय य द दािहने पैर का अँगूठा दािहने कान के पास है,
तो बायाँ पैर सीधा तानकर रख (घुटने को ऊपर न उठने द)। अब पैर को बदलकर यह
आसन कर।

ास म/समय : अँगूठा कान के पास लाते समय अंतःकुं भक कर, मूल ि थित म लौटते
समय रे चक कर। पाँच-पाँच बार दोन पैर से कर।
लाभ : पैर क माँसपेिशयाँ लचीली होती ह।
िनत ब सुडौल बनते ह।
उदर िवकार दूर होते ह।
मलो सग म मदद िमलती है।
शरीर का उिचत िवकास होता है।

सावधािनयाँ :O मे द ड सीधा रख। ती कमर दद वाले िववेक का उपयोग कर।


िजस पैर को नह मोड़ा है वह सीधा लंबवत् रख।
साइ टका, ि ल पिड क के रोगी न कर।

ट पणी : कु छ योगाचाय इस आसन को िभ कार से भी करवाते ह।

आकण धनुरासन (तृतीय कार)/धनुष बाण चालन या

िविध : दोन पैर के बीच लगभग दोन कध क चौड़ाई के बराबर अंतर रखकर खड़े हो
जाएँ। बाँये पंजे को थोड़ा सा एक क़दम आगे रख। बाँये हाथ को शरीर के बगल से ल बवत्
कर और मु ी बाँधे परं तु थोड़ा ज़मीन के समाना तर से ऊँचा रख। दाँये हाथ क मु ी बाँधे
और बाँये हाथ क मु ी से थोड़ा पीछे रख। अब बाँये हाथ क मु ी को ऐसा देख मानो
आपने धनुषबाण हाथ म िलया आ हो। ास ल और धनुष क जैसे यंचा ख चते ह, वैसे
ही दािहने हाथ क मु ी को धीरे -धीरे पीछे ख चते ए कान के पास लाएँ। दोन भुजाएँ
तनी ई ह । िसर को थोड़ा सा पीछे लाएँ। ास छोड़, फर क पना कर क तीर छोड़
दया है। तनाव कम कर और वापस दािहनी मु ी को बाँयी मु ी के पास ले आये। इस
कार 5 बार कर और पैर तथा हाथ क मु ाएँ बदलकर 5 बार कर।

िवशेष : इस या को ह के पन से न ल, य क यह या दो चीज िसखाती है। पहली है


एका ता और दूसरी है ल य। जब हम यंचा ख चते ह, तब हम एका होकर उस ल य
को देखते ह, िजसका हमने िनशाना साधा है।
इसी कार हम अपने जीवन म िवकास का ल य बनाकर एका ता से उस काम को
करगे तो सफल अव य ह गे। हम जीवन म ये दो चीज हमेशा याद रखनी चािहए।

लाभ : जीवन जीने का िवकास मं िमलता है।


एका ता शि बढ़ती है। ल य हािसल करने के रा ते खुलते ह।
कं धे हाथ गदन के िवकार समा होते ह।

नोट : इस िविध म साधक धनुष क यंचा को ख चने का उप म करता है।

पृ ासन

िविध : सीधे खड़े हो जाएँ। दोन पैर के बीच लगभग 1 फ ट का अंतर रख अब घुटन को
थोड़ा-सा आगे झुकाते ए हाथ को पीछे ले जाकर पंडली के िनचले िह से (टखन ) को
पकड़े। ऐसा करने से कमर और सीना मुड़ता आ धनुषाकार हो जाएगा। िसर को भी पीछे
झुकाएँ (िसर को ज़मीन क तरफ़ अिधकतम झुकाने का यास कर।) यह इस आसन क
पूणता है।

ास म/समय : पीछे क तरफ़ झुकते समय ास छोड़। पूण ि थित म सन या धीमे-


धीमे कर। वापस आते समय अंतःकुं भक कर। शु -शु म यथाशि क बाद म मशः
समय बढ़ाएँ।

लाभ : ीवा शि िवकास के िलए यह आसन अ छा ह।


उदर देश के अंगो को अिधक कायशील बनाता है।
कमर, पीठ, मे द ड के िवकार दूर करता है। पैर को सश बनाता है।

सावधािनयाँ: अ सर, उ र चाप, पीठ या पेट के ज टल रोग म इस आसन को न


कर।
इस आसन के बाद सामने झुकने वाले आसन अव य कर।

िवशेष : नये अ यासी चाहे तो हाथ को पहले कमर के पीछे रखकर धीरे -धीरे हथेिलयाँ
सरकाते ए जंघा, पंडली फर टखन तक जाएँ।

कपोतासन ( थम कार)

शाि दक अथ : कपोत का अथ कबूतर है। पूण आसन के समय छाती चौड़ी होकर कबूतर
क तरह फू लती है, इसिलए इसका नाम कपोतासन है।

िविध : व ासन म बैठ जाएँ एवं पीछे क ओर लेट जाएँ। अब हाथ को कोहनी से मोड़ते
ए हथेिलय को कान के पास ज़मीन पर रख द और धीरे -धीरे कमर, छाती एवं िसर के
िह से को ऊपर उठाएँ। एड़ी से लेकर घुटने ज़मीन के समानांतर ही रखने ह। चूँ क इस
आसन को पूण करने के िलए िसर को पैर के तलव के ऊपर रखना होता है, अतः इसम
ब त अ यास क ज़ रत पड़ती है। इसिलए धीरे -धीरे शरीर को ऊपर उठाते ए िसर को
तलव के पास लाने क कोिशश कर और कु छ सेके ड उसी ि थित म क एवं मशः समय
को बढ़ाएँ। पूण आसन म वाभािवक ास ल। आसन बनाते समय ास- ास के ित
सजगता रख। ास छोड़ते ए वापस िसर को धीरे -धीरे उठाते ए गदन, पीठ और िसर
को ज़मीन पर रख। फर धीरे -धीरे पैर को सीधा करते ए आराम कर।

यान : वािध ान च या आ ा च पर।

लाभ :O छाती चौड़ी होती है। फे फड़े पु होते ह। दय क उ म देख-रे ख होती है।
मे द ड स बंधी कोई रोग नह होता।
जनन तं और वि त- देश को उिचत लाभ।
जंघाएँ सुडौल होती ह।

सावधािनयाँ : चूँ क इस आसन को करने से जंघा, उदर देश, दय देश सभी तनाव त
होते ह, अत: उ र चाप, दय रोगी इस आसन को न कर।

नोट : कह -कह िश कगण इसे िभ कार से भी कराते ह।

कपोतासन (ि तीय कार)


िविध : पहले घुटने टेक कर बैठ जाएँ एवं दोन घुटन के बीच लगभग डेढ़ फट का अंतर द
और दोन पैर के पंज को आपस म िमला द। अब दोन हाथ क जाँघ के बीच म से पीछे
ले जाकर पादतल म थािपत करते ए आगे झुक कर बैठ जाएँ। (दोन हाथ क हथेिलय
से दोन पैर के पंज को ढक द) त प ात् कुं भक करते ए िसर को थोड़ा सा ऊपर क
तरफ़ उठा ल। अब रे चक करते ए ( ास छोड़ते ए) िसर नीचे कर ल। इस कार 6 से 8
बार कर।

यान : अनाहत च पर।

लाभ : व : थल चौड़ा, फे फड़े मज़बूत होते ह


गले के िवकार समा होते ह।
अपानवायु क गित सरल होती है।
हाथ एवं पैर म सुदढ़ृ ता आती है।

योग िव ा हमारे ऋिष-मुिन, यित, संत-महा मा


ारा द द उपहार है। आइए हम इसे
संभाल और िवत रत कर।
-RJT

प रधासन
िविध : घुटन के बल खड़े हो जाएँ दोन घुटन को पास-पास रख। अब दािहना पैर बगल
म फै लाएँ एवं पादतल को ज़मीन पर जमाएँ। दािहने पैर का पंजा बाएँ पैर के घुटने क
सीध म ही रख। दोन बाह को अगल बगल म कं धे क सीध म फै लाएँ दािहने हाथ और
कमर के ऊपरी िह से को दािहनी तरफ़ झुकाते ए हथेली को आसमान क तरफ़ कर दाएँ
पैर के पंज के ऊपर रख। कु हनी का िनचला िह सा पैर के टखने को पश करते ए रख।
िसर को इतना झुकाएँ क दािहना कान दािहनी भुजा को पश कर।
अब बाएँ हाथ को ऊपर उठाकर बाएँ कान का पश कराते ए अंगुिलय को दािहने
हाथ क हथेली से पश कराएँ। दािहना पैर, दोन हाथ और िसर, बाएँ पैर के घुटने क
सीध म रहेग। यह आसन क अंितम अव था है। लगभग 20 से 30 सेक ड इसी ि थित म
रह और अपनी मूल ि थित म वापस आ जाएँ। यही या बाएँ पैर से भी कर।

ास म/समय : िसर को झुकाते समय ास छोड़। अंितम ि थित म सामा य सन कर।


मूल अव था म आते समय ास ल। दोन दशा म 20 से 30 सेक ड तक क। अ यास
होने के बाद समय को 1 से डेढ़ िमिनट तक कर।

लाभ : कमर, एवं उसके आस-पास जमी चब को कम करता है और शरीर को छरहरा


बनाता है।
उदर देश म खंचाव और िसकु ड़ने के कारण अंद ु नी अंगो क मािलश करता
है।
पाचन तं को याशील बनाता है।

सावधानी : संतुलन का िवशेष यान द।

मूलबंधासन
शाि दक अथ : मूल का अथ जड़ या उ म थान और बंध का अथ बंधन या कड़ी।

िविध : स तापूवक अपने आसन पर सामने क तरफ़ पैर फै लाकर बैठे। दोन घुटन को
मोड़ते ए पैर के तलव को आपस म िमलाएँ। यह ि थित ब कोणासन क ि थत हो
जाएगी। अब लंग थान और गुदा- ार (सीवनी नाड़ी) के म य एिड़य को रखकर बैठ
जाएँ िजससे एिड़य का दबाव मूलाधार पर पड़े। इसका अ छे से अ यास हो जाने पर
एिड़य के थान पर पंजे के अँगूठे को रखने का अ यास कर सकते ह।

ास म/समय : सन या गहरी हो। इसे आधे से एक िमनट तक कर।

यान : मूलाधार च से ऊजा ऊ वमुखी हो रही है, ऐसा यान कर।

लाभ: आ याि मकता क तरफ़ साधक का मन लगता है। ऊजा ऊ वमुखी होती है।
जनन सं थान और िश ंिथय को लाभ िमलता है।
काम-वासना का शमन होता है। चय का पालन करने वाल के िलए यह
उ म आसन है।
मानिसक शांित दान कर नकारा मक िवचार का नाश करता है।

सावधानी : अिधकतम भाव घुटन पर पड़ता है। िजनके घुटन के जोड़ म दद या


कसी कार क ती वेदना हो, वे न कर।
ती कमर दद वाले भी न कर।

नोट : कु छ योग िश क इस आसन को गोर ासन भी कहते ह।

वृि कासन

शाि दक अथ : वृि क का अथ िब छू है। जब यह डंक मारता है तो अपनी पूँछ को िसर क


तरफ़ मोड़ता है। आसन क आकृ ित आ ामक िब छू के समान होने के कारण इसका नाम
वृि कासन पड़ा है।

िविध : अपने आसन म घुटने टेककर आगे क ओर झुक और ज़मीन पर दोन हाथ क
कोहनी से लेकर हथेिलयाँ तक समानांतर रख। हाथ क कध के समक ही रख। गदन
और िसर ऊपर उठाएँ। ास छोड़। पैर और कमर के भाग को ऊपर उछालते ए
शीषासन जैसी ि थित म प च ँ और संतुलन बनाते ए कमर के भाग को और पैर को
घुटन से मोड़ते ए पंज को िसर क तरफ़ लाएँ। यथाशि गदन और िसर ऊपर ऊँचा
उठाएँ चूँ क यह उ अ यास का आसन है अतः सावधानीपूवक कर। मे द ड को इतना
मोड़ने क कोिशश कर क पैर क एिड़याँ िसर के ऊ व भाग को पश करने लग जाएँ।
कोहनी से कं धे तक भुजाएँ लंबवत् प म होनी चािहए। भुजा और ज़मीन म रखे हाथ
क ि थित समकोण होनी चािहए। इस आसन क अंितम ि थित म गदन, कं धे, सीना,
मे द ड, पृ भाग और उदर थान सभी तने ए रहते ह। अत: ास या तेज़ हो जाती
है। वाभािवक ास लेने क कोिशश कर। यथाशि क और मूल अव था म वापस आ
जाएँ।

ास म : शीषासन जैसी ि थित म आते समय ास क अंदर रोककर कुं भक कर फर


सामा य सन कर। मूल ि थित म लौटते समय ास छोड़।

यान : आ ा च पर।

लाभ : यह आसन चेहरे को कांित, लाव य और सौ यता दान करता है।


कं धे, भुजाएँ, शि शाली बनते ह।
उदर-िवकार दूर होते ह एवं पाचनतं स य हो जाता है।
पृ भाग के सं थान सश और व थ होते ह।
मे द ड और ीवा के रोग म लाभ िमलता है।
योगाचायाँ का कहना है क यह आसन मनोवै ािनक भाव भी डालता है।
इसम साधक अपने पैर से अपने िसर को पश कर या मारकर उसम से घृणा,

े , अहंकार, ई यां आ द कलुिषत भावना को उ मूिलत करता है। इससे
साधक दयावान िवनयशील और संयमी बनता है। अत: यह कहना क यह
साधक को आ याि मक ऊजा दान करता है, अितशयोि नह होगी।

सावधािनयाँ: पीठ के तनाव को कम करने के िलए पि मो ानासन या सामने क


तरफ़ झुकने वाले आसन कर।
उ र चाप, दयरोगी, मे द ड से संबंिधत िवकार हो तो यह आसन न कर।
जब तक अ य त ना हो जाएँ तब तक कसी ि का सहारा ल।
अित उ अ यास क या होने के कारण धैय का प रचय द।
नोट : कु छ योग िश क इस आसन को पूण वृि कासन कहते ह।

िजन-िजन साधन से आ मा क शुि और मो का


उपाय होता है, उन सब साधन को योग कह सकते ह।
- ी यशोिवजयकृ ता ि िशका 10/1
उि थत वृि क आसन

िवशेष : यह आसन अपे ाकृ त क ठन आसन है। िजनका मे द ड व पीठ लचीली हो,
कलाई मजबूत हो एवं जो संतुलन के अ यासी ह तथा जो वृि क आसन लगा लेते ह, वे ही
इस आसन को कर।

िविध : ताड़ासन म खड़े हो आगे झुक और हथेिलय को ज़मीन पर कं ध के बीच के अंतर के


बराबर ही रख एवं भुजा को पूरी तरह से फै ला ल। अब हाथ पर पूरा वज़न देते ए
पैर को उठाएँ, घुटन को मोड़। ास छोड़। धड़ और पैर को ल बवत् प म ऊपर क
ओर उछाल। यथा शि िसर और गदन को उठाएँ। संतुिलत हो जाएँ। मे द ड और सीना
तानते ए घुटने मोड़ और पैर के पंज को िसर के िपछले िह से से पश कराएँ, पैर क
अंगुिलयाँ सामने क तरफ़ रख।

ास म/समय : हाथ के पंज व कलाईय पर संतुलन बनाते ए 10 से 15 सेक ड तक


क व अंितम ि थित म वभािवक ास ास कर।
नोट : जो साधक वृि क आसन लगाते ह, वे उसी अव था म हाथ को सीधा करते ए
पंज के बल खड़े हो जाएँ।
इस आसन के िलए ढ़ संक प और ित दन के अ यास क आव यकता होती है।

इस आसन म पूरा शरीर तन जाता है। जैसे गदन, कं धे, व : थल और फे फड़े, मे द ड एवं
उदर देश इस कारण ास या अिधक तेज एवं क कर तीत होती है।

लाभ: फु फु स पूरी तरह फै लते ह, अतः सुचा प से काम करते ह।


मे द ड लचीला एवं सश होता है।
चेहरे का तेज, ओज बढ़ाता है, चेहरे म झु रय को समा कर नई काि त से
दी करता है।
बाल का असमय पकना, िगरना, खेपन से मुि िमलती है।
उदर िवकार समा होते ह।
आँख क रोशनी बढ़ती है।
मानिसक शांित ा होती है एवं ढ़ता आती है।
पूरा शरीर एक नव चेतना से भर जाता है।

सावधािनयाँ : स त मे द ड वाले इस आसन को न कर।


उ र चाप, दयरोग, च र आने जैसी सम या से पीिड़त ि इसे न
कर।
कसी योग िश क क देख-रे ख म कर।
आगे झुकने वाले आसन इस आसन के बाद कर।
अ यिधक लोच वाले ही इस आसन को कर।
धैय का अवलंबन ल।

योग एक वै ािनक कला है, िजसका उ े य


शरीर को िनरोग रखते ए आ मा क शि य
एवं ऊजा को उ वमुखी बनाना है।
-RJT
नटराज आसन (दो कार)

शाि दक अथ : नट का अथ नतक। नटराज भगवान िशव का एक नाम है और उनका यह


(आसन) िच ब त िस भी है। नटराज क मू त दि ण भारत (तिमलनाडु ) क िस
पूिजत मू तय म से एक है।

िविध : 1. सीधे खड़े हो जाएँ। दािहने घुटने को थोड़ा मोड़ते ए बाएँ पैर को िच ानुसार
ऊपर उठाएँ। अब बाएँ हाथ को बाएँ पैर के ऊपर कु छ दूरी पर िच ानुसार रख। दािहने
हाथ को कोहनी से मोड़कर बाएँ हाथ के ऊपर रख। हथेिलय को आशीवाद क मु ा म
रखते ए ान मु ा लगाएँ। दृि सामने ि थर रख।
िविध : 2. ताड़ासन म खड़े हो जाएँ। दािहने पैर को पीछे क और मोड़। सरलता के िलए
दािहने हाथ से दािहने पैर के अंगूठे को पकड़ ल और धीरे -धीरे संतुलन बनाते ए पैर को
िजतना संभव हो सके ऊपर क तरफ़ ले जाएँ। बाएँ पैर पर संतुलन बनाकर खड़े ह और
बाएँ हाथ को सामने क तरफ़ लंबवत् फै ला द। हथेली ज़मीन क तरफ़ और अंगुिलयाँ
पर पर जुड़ी ई ह । ास- ास वाभािवक रहने द।

यान : आ ा च पर। यही या बाएँ तरफ़ से भी कर।

लाभ : पैर से लेकर मे द ड तक स पूण ायुतं क मािलश एवं संतुलन का अ यास


व मे द ड का सशि करण होता है।
छाती चौड़ी एवं शरीर सुग ठत होता है।
ि तीय कार के आसन से उपरो लाभ के अलावा उदर देश के िवकार दूर
होते ह।

नोट : उपरो दोन िविधयाँ चिलत होने के कारण यहाँ दी गई ह।

सावधािनयाँ : ि तीय कार क िविध म संतुलन, आ मिव ास एवं लोच सिहत मे द ड


वाले ही कर।

वातायनासन
शाि दकअथ : वातायन का अथ घोड़ा है। अ क मुखाकृ ित जैसा होने के कारण यह नाम
पड़ा है।

िविध : ताड़ासन क ि थित म खड़े हो जाएँ। बाएँ पैर को मोड़कर दािहनी जाँघ के ऊपर
रख। यह अध प ासन जैसा आ। अब दोन हाथ को सीने के ऊपर नम कार जैसी ि थित
म रख (कु छ योग िश क दोन हाथ को आपस म लपेटने जैसी ि थित बनवाते ह)। िजस
जाँघ के ऊपर पैर रखा आ है उस पैर को धीरे -धीरे घुटन से मोड़ते ए ज़मीन क तरफ़
लाएँ। संभव हो सके तो बाएँ घुटने को ज़मीन से पश करा द। यथासंभव क। यही म पैर
बदलकर उतने ही समय कर िजतना समय पहले लगाया था।

नोट : ारं भ म हाथ का सहारा ल।

ास म/समय : एक पैर पर खड़े रहने पर पूरक। आसन को पूण करने पर कुं भक एवं
वापस मूल अव था म आते समय रे चक कर। यथाशि यास कर।

यान : संतुलन बनाते ए अनाहत च पर।

लाभ : योिगय को यह आसन अिधक ि य होता है य क यह ओज, तेज को


ऊ वमुखी करता है। िजससे चय क र ा होती है एवं काम-िवकार न होता है।
िनत ब और जाँघ क छोटी-मोटी बीमा रय का नाश होता है। ग ठया रोग से
िनजात दलाता है।
अंडकोश और जनन सं थान पर अ छा भाव पड़ता है।

तोलांगुलासन

शाि दक अथ : तोल का अथ तराजू, अंगुल का अथ हथेिलय के साथ अँगुिलयाँ। पूरे शरीर


को दोन हाथ क अँगुिलय के बल पर ऊपर उठाकर संतुिलत करने के कारण इस आसन
को तोलांगुलासन कहते ह।

िवशेष : अलग-अलग योग के म योग िश क तोलांगुलासन को दो कार से कराते ह।


अत: हम दोन का उ लेख यहाँ कर रहे ह :

िविध :1. ज़मीन पर पैर को लंबवत् करके बैठे। अब दोन हाथ को ज़मीन पर रखकर
दस अँगुिलय के सहारे शरीर को ऊपर उठाएँ। अंितम अव था म ास ल। वापस आते
समय ास छोड़।

लाभ : हाथ, अँगुिलयाँ और भुजाएँ मज़बूत होकर दृढ़ होती ह।


उदर िवकार दूर होते ह।
दय को बल िमलता है। सीना चौड़ा होता है। कं धे मज़बूत होते ह।
काम-िवकार का नाश करता है।
िविध : 2. प ासन क अव था म बैठे। दोन हाथ को िनत ब पर रख एवं पीछे कोहिनयाँ
ज़मीन पर टकाएँ। अब धीरे -धीरे कोहिनय क ज़मीन पर गड़ाते ए हथेिलय के बल पूरे
शरीर को उठाएँ। इस कार शरीर का पूरा भार िनत ब पर पड़ेगा और हथेिलयाँ पूरा
भार सहन करगी। ास क या उपरो ानुसार ही रहेगी।

लाभ : कं धे, पीठ, मे द ड को मज़बूती दान करता है।


सीना चौड़ा, फे फड़े मज़बूत होते ह।

नोट : कु छ योगाचाय थम िविध को चयासन के नाम से जानते ह। कु छ योगाचाय


इसको अंगु ासन भी कहते ह। जब क कु छ योगाचाय तुलासन को ही तोलांगुलासन कहते
ह।

ि - त मुजासन
िविध : दोन पैर के बीच लगभग डेढ़ फ ट का अंतर रखकर खड़े हो जाएँ और घुटन को
मोड़कर बैठ जाएँ। दोन पैर के बीच अंगुिलयाँ आगे क तरफ़ रखते ए हथेिलय को
ज़मीन पर रख। दृि सामने रख और दोन भुजा पर शरीर का भार एवं स तुलन बनाते
ए शरीर को ऊपर उठाएँ। पैर को सामने क तरफ़ रख।

ास म/समय : आसन बनाते समय अंतःकुं भक ( ास अंदर रोककर रख) कर। अंितम
अव था म सामा य सन कर। मूल अव था म आते समय ास छोड़े। 10 से 20 सेक ड
क। 2 या 3 बार कर।

लाभ : भुजा क मांसपेिशय को मज़बूती देता ह कं धे के जोड़ सुदढ़ृ होते ह।


अ ा य को उ ी करता है।
पाचन तं के अंगो क याशील करता है।

सावधानी : स तुलन म यान द कमज़ोर कलाई वाले न कर।

नोट : पैर के पंजी को आपस म फं सा ले तो उसे भुज पीड़ासन कहते है।

तनाव उ प होने का एक कारण नकारा मक


िवचार भी ह अत: सकारा मक िच तवन कर
-RJT
हंसासन

िविध : घुटन के बल ज़मीन पर बैठे। अंगुिलयाँ सामने क तरफ़ करते ए हथेिलयाँ ज़मीन
पर रख। आगे झुक और कु हिनय पर पेट को तथा भुजा पर सीना थािपत कर। एक-एक
करके दोन पैर को पीछे कर और कु हिनय व भुजा पर शरीर का भार देते ए तथा
पैर को ज़मीन से उठाते ए स तुलन बनाएँ। यथाशि िजतनी देर क सकते ह क
त प ात् पैरो को ज़मीन पर रखकर वापस मूल अव था म आ जाएँ।

नोट : कु छ योगी यह आसन पंज को ज़मीन पर ही प शत करते ए कराते ह। अथात्


हंसासन म पैर के अंगूठे को ज़मीन से ऊपर नह उठाने देते एवं हाथ क अंगिु लय को
पैर क तरफ़ करवाकर ही करते ह।

ास म/समय : आसन िन मत करते समय ास बाहर ही रोककर रख। कने का


अ यास हो तो धीरे -धीरे सन या कर। वापस आते समय बाहर ही ास रोककर रख।
यथाशि क एवं 3 बार दोहराएँ।

लाभ : पाचन तं के सभी अंगो को भािवत करता है। क ज़, दूिषत वायु ठीक करता
ह।
आमाशय, अ ा य, छोटी आत, बड़ी आत, कडनी, लीवर आ द अंगो को
भािवत कर उनसे होने वाले रोग से बचाता है।
र संचार तेज करता है। चेहरे म ओज-तेज बढ़ता है।
जीवन म भी स तुलन पैदा करता है।

सावधािनयाँ: कमज़ोर कलाई वाले धीरे -धीरे अ यास म लाएं।


अित उ र चाप, अ सर, ह नया वाले रोगी न कर।
गभवती मिहलाएँ इस आसन को िब कु ल न कर।

िवशेष : मयूरासन और हसासन म हाथ के पंज क ि थित का ही फ़क है।

मयूरासन

आकृ ित : मोर के समान।

िविध : घुटन और पैर के पंज के बल ज़मीन पर बैठे। अब दोन हाथ के पंज को आगे रख
(अँगुिलयाँ पैर क तरफ़। दोन हाथ क किन ा अँगुिलयाँ एक-दूसरे को पश करते ए
रख। कोहिनयाँ मोड़ व नािभ से लगाने क कोिशश कर। धीरे -धीरे पूरे शरीर का वज़न
हाथ पर रखते ए पैर को समानांतर ज़मीन से ऊपर उठाते ए लंबवत् कर (अपने
अ यास अनुसार चाहे तो पहले एक पैर लंबवत् कर फर मशः दूसरा पैर लंबवत् कर)।
आसन पूण होने पर शरीर ज़मीन से ऊपर पूण समानांतर क ि थित म आ जाता है।
अ यास हो जाने पर धीरे -धीरे पैर को और ऊपर क तरफ़ ले जाने क कोिशश कर।

ास म/समय : ऊपर उठते समय पूरक, पूण आसन पर यथासंभव कुं भक, शरीर को नीचे
करते समय रे चक कर। यह आसन 5 से 15 सेके ड तक कर।

लाभ : यह आसन मेद वृि (मोटापा) रोकता है।


हाथ क माँसपेिशय को बल दान करता है।
पूरे शरीर को ि थरता दान करता है।
उदर भाग को ठीक रखता है, िजस कारण क़ ज़ दूर होती है। पाचन शि
बढ़ती है। कहते ह यह आसन सामा य प से िवष को भी अमृत बना देता है।
र -प र मण के बढ़ जाने के कारण चेहरे को लाल सुख, कांितमय बनाता है।

िवशेष : इसी आसन को जब प ासन यु करते ह तो वह प मयूरासन या मयूरी आसन


कहलाता है। दोन के लाभ लगभग एक जैसे ही ह।

नोट : मिहलाएँ इसे ज़बरद ती न कर।

बकासन (ि तीय कार)/उ व सा रत एकपादासन

िविध : दोन पैर को एक साथ रखकर खड़े हो। दोन हाथ को कान से पश कराते ए
ऊपर क तरफ़ ले जाएँ। अब कमर के िह से को सामने क तरफ़ झुकाएँ और दोन हाथ से
दािहने पैर का अंगूठा पकड़े एवं इसी समय बाएँ पैर को धीरे -धीरे पीछे ले जाते ए ऊपर
क तरफ़ तान द, इस अव था म बायाँ पैर और िसर एक सीध म रहता है। वापस मूल
अव था म आ जाएँ। यही म दूसरे पैर से भी कर।
ास म/समय : नीचे झुकते समय ास छोड़। अंितम अव था म ास सामा य रख। मूल
अव था म आते समय ास ल। 5 से 10 सेक ड क और दोन पैर से 3 च पूरे कर।

लाभ : वे सभी लाभ जो एकपादासन/वीर भ ासन से ा होते ह।


मि त क एवं िसर के िवकार दूर करने म सहायक है।

सावधािनयाँ : हाई लड ेशर, च र आना एवं च ुपटल से पीिड़त ि न कर।

प पवतासन/प ासनयु "जानुि थरासन'/ उि थत पदमासन (ि तीय


कार)/गोर ासन ( थम कार)

िविध : प ासन म बैठ जाइए। अब हाथ के सहारे आगे क तरफ़ झुकते ए िनत ब को
उठाइए। संतुलन बनाते ए दोन घुटन के सहारे खड़े होने का य क िजए और दोन
हाथ को नम कार क मु ा म ले आइए। कमर और मे द ड सीधा रख। यह आसन धीरे -
धीरे अ यास म लाएँ एवं पैर को बदलते ए उतने ही समय के िलए कर िजतना समय
पहली ि थित म िलया था।

ास म/समय : पूण ि थित म प च


ँ ने पर ास- ास सामा य क िजए। यथाशि कर।

लाभ : एका ता बढ़ती है व मि त क स बंधी दोष दूर होते ह।


यह आसन साधक को संतुिलत जीना िसखाता है।
नाड़ी दोष ठीक करता है। प ासन के सभी लाभ िमलते ह।
जो करता हो गोर ासन, कमरदद क तरफ़ न जाता मन।
ऊजा (चेतना) ऊ वमुखी करता है।

नोट : थम नाम आयंगारजी क परं परानुसार है और ि तीय नाम (अगले पेज पर)
घेर डसंिहतानुसार है। थम कार को कह -कह पर पवतासन के नाम से भी जाना जाता
है।

सावधानी : इस आसन म अ यिधक संतुलन क आव यकता पड़ती है अत: कसी दीवार


का सहारा ल।

गोर ासन (ि तीय कार)

जानूव र तरे पादौ उ ानो संि थतौ ।


गु फ चा छा ह ता यामुताना यां य त:।
क ठसंकोचनं कृ वा नासा मव लोकयेत।्
गोर ासनिम या योिगना िसि कारणम्। (धे.सं.2/25-26)
घेर ड संिहतानुसार

िविध : दोन जंघा और दोन घुटन के बीच म दोन एिड़य को ऊपर क ओर उठाकर
गु रख। दोन हाथ से दोन एिड़य को पकड़कर कठ का संकोचन कर और दृि को
नािसका के अ भाग पर जमाएँ। यह आसन योिगय के िलए िसि दाता है।

लाभ : क ठ का संकोचन करने से क ठ रोग म लाभ प च


ँ ता है।
दृि नािसका के अ भाग पर ि थर करने से ाटक का अ यास अपने आप हो
जाता है एवं ने िवकार दूर हो कर आँख म आकषण पैदा होता है।
ित दन अ यास करने से काम िवकार का नाश होता है।
ऊजा को ऊ वमुखी करता है।
ित दन के अ यास से यान क अव था म काफ़ देर तक बैठा जा सकता है।

उ व कु कुटासन/पदमबकासन

िवशेष : यह आसन दो कार से कर सकते ह।

िविध : 1. प ासन क ि थित म बैठ जाएँ। दोन हाथ क हथेिलय को सामने ज़मीन पर
ि थर कर और घुटन के बल खड़े हो जाएँ। हाथ पर ज़ोर देते ए प ासन क ही ि थित
म ऊपर क तरफ़ उठे । पूणतः संतुलन को बनाए रख। यथाशि के । अ यास को मश:
बढ़ाते जाएँ।

िविध :2. प ासन यु शीषासन क ि थित म आएँ। धीरे -धीरे उसी अव था म ास


छोड़ते ए, कमर के िह से को मोड़ ल और उ आसन म घुटन को हाथ के पृ भाग पर
रख। इसी ि थित को सामा य ास लेते ए संतुलन बनाएँ। अब ास छोड़ हथेिलय म
दृढ़ता लाएँ और धड़ को ऊपर क तरफ़ ख च एवं िसर को ऊपर क तरफ़ उठाएँ। भुजाएँ
सीधी और तनी ई रख। िनत ब ज़मीन से अिधक से अिधक उठाएँ। कु छ सेके ड तक हाथ
म संतुलन बनाएँ रख। ाकृ ितक प से ास- ास कर। मूल ि थित म लौटने के िलए
ास छोड़। कु हिनयाँ मोड़, घुटन को भुजा के पा व पर टकाएँ। िसर ज़मीन क ओर
नीचा कर और प ासन यु शीषासन म आएँ। अब पाद बंधन को मु करते ए साल ब
शीषासन म आएँ। या प ासन क अव था म बैठ कर पैर को बंधन से मु कर। शवासन
क ि थित म थोड़ी देर िव ाम कर। प ासन के पैर क ि थित बदलकर यह या
दोहराएँ।

ास म/समय : ास म िविध म समािहत है एवं यथाशि कर।

लाभ : हाथ म सु ढ़ता आती है। कलाई मज़बूत होती है।


उदर देश एवं मे द ड को स पूण प से लाभ ा होता है
जीवन दाियनी शि बढ़ती है।
पूरे शरीर म र संचार क मा ा बढ़ जाती है। अत: सम त नस- नािड़याँ
सुचा प से काय करती ह।

सावधािनयाँ : उ र चाप, दयरोगी एवं उ अ यास म साम य न रखने वाले इस


आसन को न कर।

पादांगु ासन(ि तीय कार)


शाि दक अथ : पाद का अथ पैर। अंगु का अथ अँगूठा।

िविध : एिड़याँ ऊपर उठाते ए पंज के बल उकडू बैठ जाइए। नए अ यासी हाथ का
सहारा लेकर दािहने पैर को उठाकर बाएँ पैर क जंघा पर रख, बाएँ पैर क एड़ी (सीवनी
नाड़ी) गुदा और लंग के म य भाग पर रख। ता क संतुलन क अव था म एड़ी का दबाव
ठीक हो। अब दोन हाथ को सामने क तरफ़ जोड़कर ाथना मु ा म रिखए। यही आसन
अब पैर क ि थित बदलकर कर।

ास म/समय : सामा य ास ास एवं यथा संभव िजतनी देर क सकते ह, क।

यान : संतुलन रखते ए मूलाधार च का यान कर।

लाभ: पैर का असमय काँपना बंद होता है।


सम त पैर क माँसपेिशय को मज़बूती देता है।
चय का पालन करने वाल के िलए यह उपयु आसन है।
धातु दौब य दूर करता है।
जनन सं थान के िवकार को दूर करता है।
सावधािनयाँ : एड़ी को सीवनी नाड़ी पर ही लगाकर आसन कर, ता क मूलाधार च
वि थत हो सके ।

ट पणी : पादांगु ासन को िभ मतानुसार दो कार से कया है।

नोट : थम कार का वणन पहले कया जा चुका है।

जानुिशर एकपाद कं धासन/एक पाद िशरासन/ कं दासन

शाि दक अथ : पाद का अथ पैर है और कं ध का अथ कं धे ह।

िविध : ज़मीन पर समानांतर पैर फै लाकर बैठ जाएँ। अब आपको एक पैर कं धे पर रखना
है। इसके िलए नए अ यासी पहले दोन पैर थोड़े-थोड़े मोड़ ल, अब दािहने पैर के टखने को
पकड़ और धीरे -धीरे िसर के ऊपर से दािहने पैर ( पंडली) को कं धे पर रखने क कोिशश
कर। क ठनाई हो रही हो तो िसर व धड़ को थोड़ा आगे क तरफ़ झुका ल। याद रहे दूसरा
पैर सीधा ज़मीन से सटा रहे। एक पैर कं धे पर रखते समय ास छोड़ और धीरे -धीरे िसर
व मे द ड को सीधा कर। इस ि थित को एकपाद कधासन कहते ह। अब इसी अव था म
पि मो ानासन कर। (इस अव था को पाद ीवा पि मो ानासन भी कहते है।) ास
छोड़ते ए माथे को घुटने से लगाना है क तु घुटने को ज़मीन से नह उठाना है। ास लेते
ए वापस आएँ और पैर को भी सामा य अव था म ले आएँ। इसी कार अब पैर बदलकर
आसन कर।

ास म/समय : झुकते समय ास छोड़। लौटते समय ास ल। लगभग 10-15 सेके ड


इसी अव था म रह। गहरी साँस लेते रह।

यान : िवशुि च या आ ाच पर।

लाभ : मे द ड को अिधक मा ा म र िमलता है, िजससे संतुलन बनाए रखने वाले


च को ऊजा शि िमलती है। कमर एवं िनत ब म लोच पैदा होती है। जनन-
तं स बंधी िवकार न होते ह। शरीर अिधक सुदढ़ृ होता है। ये आसन र
शु ीकरण म ब त सहयोग दान करते ह।

सावधािनयाँ : साइ टका, ि लप िड क और हा नया के रोगी इसे न कर।

नोट : इस आसन के पहले या तुरंत बाद म पीछे झुकने वाले आसन करने से आसन म आया
आ िवकार दूर होता है।

शीष जानु पशासन

शाि दक अथ : शीष अथात् िसर एवं जानु का अथ घुटना है।

िविध : यह संतुलन एवं उ अ यास का आसन है। देखने म सरल कं तु या मक प से


क ठन है। सावधान क ि थित म खड़े हो जाएँ। बाएँ पैर के घुटने को मोड़ते ए एड़ी को
िनत ब से लगाएँ। दोन हाथ से पंजे को पकड़। अब िसर आगे क तरफ़ झुकाते ए दािहने
पैर के घुटने से पश कराएँ। कोिशश कर क घुटना मुड़े नह । इसी या को पैर बदलकर
कर।
ास म/समय : ास या के ित सजग रह। झुकते समय ास छोड़। वापस आते
समय ास ल। 4 से 5 बार कर।

लाभ : शरीर का वात कम होता है। कं पन रोग नह होता।


संतुलन शि बढ़ती है।
मे द ड को लाभ िमलता है।
जाँच मज़बूत होती ह।
जोड़ के दद म लाभ िमलता है।

सावधािनयाँ : ि लप िड क, साइ टका वाले रोगी न कर।


उ र चाप, च र आने एवं दय रोग से पीिड़त ि इसे मशः धैय पूवक
कर।

अधब द प ो ानासन

िविध : समाव था म खड़े हो जाएँ अथात् दोन पैर के पंजो को एक साथ ि थत कर। दृि
सामने रख। बाएँ पैर पर स तुलन बनाते ए दािहने पैर को उठाकर घुटने से मोड़ और
दािहने पंजे को बाय जंघा पर ऊपर क तरफ़ अध प ासन क ि थित म हाथ का सहारा
लेकर रख। अब यहाँ पर हाथ क ि थित दी कार से कर सकते है या तो हाथ को ऊपर
क तरफ़ कर और अंगुिलय को आपस म फसा ल या फर दािहने हाथ को पीठ के पीछे से
घुमाकर दािहने पंजे या अंगूठे को पकड़े त प ात् धीरे -धीरे सामने क तरफ़ झुक और
हाथ को ज़मीन पर तथा नािसका को घुटने से पश कराएँ। अनुकूलतानुसार क और मूल
अव था म वापस आ जाएँ। हाथ क ि थित सामा य कर। दोन पैर को जमाकर िशिथल
कर। खड़े रहने के ि थित म िव ाम के बाद बाएँ पैर से आसन क पुनरावृि कर।

ास म/समय : सामने झुकते समय ास छोड़। अंितम अव था म सामा य ास- ास


कर। मूल अव था म लौटते समय ास ल। 10 से 15 सेक ड क या अनुकूलतानुसार के
मशः 2 च पूरे कर।

लाभ : उदर के अंगो को उ ी कर पाचन तं को मज़बूत करता है।


क़ ज़ दूर कर शरीर और मन म ह कापन लाता है।
पैरो का कं पन दूर कर उ ह मज़बूत बनाता है।
वायु नाशक है। शरीर के ऊ व अंग को भी बल िमलता है।

सावधािनयाँ : धैयपूवक संतुलन बनाएँ।


गभवती ि याँ, मे द ड के ज टल रोग से पीिड़त, साइ टका, ि लप िड क एवं
िवचिलत मन वाले न कर।

अ व ासन

यह आसन मुिन अ ाव को सम पत है जो क सीता के िपता और राजा जनक के गु थे।

िविध : लगभग डेढ़ फ ट क दूरी पर दोन पैर फै ला कर खड़े हो जाएँ। घुटन को मोड़े।
ज़मीन पर पैर के बीच दािहनी हथेली और बाएँ पैर के थोड़ा आगे बाय हथेली रख।
दािहनी भुजा पर दािहना पैर इस कार रख क दािहनी कु हनी के ऊपर दािहनी जांघ का
पृ भाग आए। अब बाएँ पैर को भुजा के बीच आगे दाएँ पंजे के पास रख। ास छोड़
एवं दोन पैर को ज़मीन से ऊपर उठाएँ। दाएँ पैर के टखने पर बायाँ पैर रखकर फसाएँ
(िच देख) और पैर को दािहने तरफ़ ितरछे प म फै लाएँ इस कार दोन जांघो के बीच
दािहनी भुजा आ जाएगी अब दािहनी कु हनी को थोड़ा झुका ल। बाय भुजा सीधी होनी
चािहए। दोन हाथ पर स तुलन थािपत कर एवं कोहिनयाँ मोड़े, ज़मीन के समाना तर
िसर एवं धड़ को लाएँ। यह इस आसन क अंितम अव था है यथा संभव क व ास ल।
भुजा को सीधा कर। िसर एवं धड़ ऊपर उठाएँ, पैर को अलग कर और ज़मीन पर रख।
अपनी मूल अव था म आ जाएं और दूसरी तरफ़ से भी इसी या को दुहराएँ।

ास म/समय : पैर को ऊपर उठाते समय अंतःकुं भक कर। अंितम अव था म सन


या सामा य रख। पैर को नीचे करते समय ास छोड़।

लाभ : मिणबंध, भुजा व कं धे को मज़बूत और सु ढ़ता देता है।


उदर देश क याशील बनाता है।
मन को िनयि त करता आ जीवन म उ थान लाता है।
पूरे शरीर म र संचार को िविनयिमत करता है।
चेहरे के ओज-तेज को बढ़ाता है।

सावधािनयाँ: कमज़ोर कलाई व कं ध के िवकार से िसत ि न कर।


स तुलन पर यान के ि त कर आसन के बाद िशिथलता वाले आसन कर।

उि थत ट भासन
शाि दक अथ : झ गुर का सं कृ त नाम ' ट भ' है।

िविध : अपने आसन म बैठे। सामने क तरफ़ पैर तान। अब दोन पैर को फै ला ल। दोन
हाथ को िच ानुसार ज़मीन पर रख एवं हाथ के सहारे सारे शरीर को ऊपर उठा ल। पैर
लंबवत् ही रख और घुटने न मोड़। इसे सही ढंग से करने के िलए ब त अ यास क
आव यकता होती है। अतः ज दी न कर।

ास म/समय : ास के ित सजग रह। ऊपर उठते समय ास ल एवं मूल अव था म


आते समय ास छोड़े। 4-5 बार यह या कर।

&यान : ऊ व चेतना का यान कर।

लाभ : 'चेतना' सू म प से ऊ वमुखी होती है।


आ मिव ास को बल िमलता है।
मानिसक शांित िमलती है।
हाथ क िवशेष लाभ िमलता है।
बुढ़ापे म कं पन वाला रोग नह होता।
पूरे शरीर म दृढ़ता आती है।

सावधािनयाँ : अित उ र चाप, दय रोगी एवं कमज़ोर कलाई वाले न कर।

नोट : पैर क ि थित सामने क तरफ़ भी करके यह आसन कया जा सकता है, पर तु
लाभ म िवशेष अंतर नह पड़ता। उस ि थित को ि ह त भुजासन भी कहते ह।

लं गाकारासन
िवशेष : लंग का अथ िच ह, अनुमान या कृ ित और िशव क िवशेष मू त के िलए कया
जाता है। उसम अ त निहत भाव को समझने के िलए तो िववेक क आँख चािहए। िशव क
अिभ ि के िलए कोई यथाथ कृ ित कृ ित हो ही नह सकती। कहा भी है क 'न त य
ितमा अि त।’ यानी उस द स ा क न कोई ितमा हो सकती है न ितमान। इसिलए
उसे गोलमटोल अथवा ल बाकार िप ड के प म दखाया जाता है। िशव लंग जैसी
आकृ ित होने के कारण इसे लं गाकारासन नाम से अिभनीत कया गया है।

िविध : यह एक उ अ यास वाला आसन है। वृि क आसन का अ छा अ यास होने के


बाद धीरे -धीरे िनत ब को पीठ से सटाते ह एवं जंघा को िसर से सटाते ह। इस कार
िसर से कमर तक का भाग िनत ब, जघा एवं पैर के समाना तर हो जाता है और इस
ि थित म िनत ब, जंघा एवं पैर भी ज़मीन के सामाना तर हो जाते ह। पैर के पंजे िसर से
आगे हो जाते ह।

लाभ : शरीर के मश: रोग िनवारण म पूणतः समथ।


कसी भी कार के कपवात का अचूक इलाज़।
शरीर म लोच, लचक एवं नई ताज़गी का ादुभाव होता है।
आि मक उ थान म सहायक।
इस आसन को करने के बाद लगभग सभी आसन आसानी से कए जा सकते ह।
उदर देश, फे फड़े, मे द ड, जांघा, पीठ, कमर आ द सभी म र संचार को
सुचा बनाता है।
सावधािनयाँ: ब त अिधक यास के बाद ही संभव है, अतः योग िश क क देख-रे ख
के िबना न कर।
चूँ क साधक का शरीर कमर के िह से से इतना मुड़ जाता है क साधक क पीठ
पर जंघा का पश होने लगता है, अत: महीन के अ यास से ही संभव है।
उ र चाप, च र आना, दय रोग एवं स त शरीर वाले आसन न कर। इस
आसन को करने के बाद पि मो ानासन, पाद ह तासन कर।

उि थत शीषासन/ ा ासन (ि तीय कार)

िविध : दोन घुटन के बल जमीन पर बैठ जाएँ। सामने दोन हाथ क कोहिनयाँ और
हाथ के पंजे को जमीन पर रख तथा शरीर का पूरा वजन हाथ पर देते ए पूरे शरीर को
शीषासन क तरह कर पर तु पूरा भार हाथ पर ही रख। िसर को उठाकर सामने देखने क
कोिशश कर एवं पीठ को मोड़ते ए पैर को उ व म ि थर कर (िच देख)।

ास म/समय : पैर को उठाते समय अंत:कु भक कर अंितम ि थित मे ास म धीमा


कर और 10 से 20 सेके ड तक मतानुसार कर।

लाभ : र संचार ती करता है। झड़ते बाल को रोकता है। झु रय का शमन कर


चेहरे का तेज बढ़ाता है।
आँख क रोशनी बढ़ती है।
व : थल मजबूत होता है। फे फड़े पु होते ह।
हाथ, कं धे, मे द ड एवं कमर म लोच-लचक तथा मजबूती आती है।

सावधािनयाँ:O इस आसन से उ र चाप, दय रोग एवं मानिसक "कमज़ोरी वाले


परहेज कर।
उ अ यास का आसन होने के कारण योग िश क का सहयोग ा कर।

नोट : ा ासन के थम कार का वणन पहले आ चुका है।


कु छ योग िश क इस आसन को िप छ मयूरासन भी कहते ह।

सं यासन
िवशेष : इसको दो कार से कर सकते ह

िविध : थम : कागासन म बैठ जाएँ। अब दािहने पैर को उठाकर दोन हाथ क सहायता
से दािहने कं धे के पीछे मश: ले जाएँ व बाएँ पैर के पंजे पर पूरा संतुलन थािपत कर।
हाथ को नम कार क मु ा म बनाएँ। यथाशि बैठने क कोिशश कर।

िविध : ि तीय : दोन पैर सामने क तरफ़ फै लाकर बैठ जाएँ और हाथ क सहायता से
दािहने पैर क उठाकर दािहने कं धे के पीछे ले जाएँ और धीरे -धीरे फै ले ए दूसरे पैर को
ख चकर हाथ क सहायता से घुटने को मोड़कर पंजे को ज़मीन पर जमाकर बैठ जाएँ।
(जब दािहने पैर को कं धे पर रखते ह तब बाएँ पैर को भी थोड़ा सा घुटने से मोड़ लेने पर
आसन लगाने म सरलता होती है) हाथ से नम कार क मु ा बना ल। उपरो दोन
िविधय म पैर बदल कर भी या को दोहराएँ।

ास म/समय : अंितम ि थित म सामा य ास ास कर। 5 से 10 सेके ड कर।


लाभ : पूरे शरीर म र संचार क वृि करता है
जीवन म भी संतुलन दान करता है।
उदर देश, मे द ड, एवं ोणी देश को लाभ।

सावधािनयाँ : उ अ यास के आसन होने के कारण इसे धीरे -धीरे करना चािहए। य द
िनत ब व कमर म अिधक लोच लचक एवं मजबूत हो तभी कर।

धराजासन( लेगपो चर)/एकपादशीष पशासन/कायो सग

ि थत एक पाद शीषासन/उ व एक पादतल शीष पशासन


िविध : समाव था म खड़े हो जाएँ, चूँ क यह अित उ अ यास क या है। अतः
सावधानी पूवक दािहने पैर को धीरे -धीरे ऊपर उठाते ए पहले 900 का कोण फर 18o0
को कोण का िनमाण कर, इस अव था म पैर िब कु ल गदन एवं िसर के समक होता आ
पादतल आकाश क तरफ़ हो जाएगा। अंितम अव था म हाथ का सहारा लेने से सरलता
होती है। यही आसन पैर बदलकर भी कर। कु छ साधक एक हाथ सामने क तरफ़ तानते ह।

ास म/समय : पैर को ऊपर उठाते समय अंतःकुं भक कर। अंितम ि थित म सामा य
ास ास कर। मूल अव था म आते समय ास छोड़। यथाशि क।

लाभ : पैर क माँसपेिशयाँ सश और मजबूत होती है। िनत ब के जोड़ एवं कमर को
वि थत करता है। पीठ क माँसपेिशयाँ व मे द ड सु ढ़ होते ह। पूरे शरीर को सौ व
दान होता है।

सावधानी : िनत ब के जोड़ और कमर पर जोर पड़ने के कारण धैय और िववेक का


उपयोग कर एवं अ यास को धीरे -धीरे बढ़ाएँ।

नोट : कु छ योगाचाय उपरो आसन को एक पाद शीषासन भी कहते ह। जब क एक


पादश षासन अ य कार से भी होता ह।

दुवासन/उि थत एक पाद िशरासन/

उि थत एक पाद कं धासन
िवशेष : यह आसन उन साधक को करना चािहए जो उ अ यास के आसन म अ य त
ह।

िविध : दोन पैर को सामने फै लाकर बैठ जाइए। अब एक पैर को िसर के िपछले भाग पर
कं धे का सहारा लेकर रिखए। और दूसरे पैर को मोड़ते ए हाथ का सहारा लेते ए उकडू
बैठे और धीरे -धीरे संतुलन बनाते ए खड़े हो जाएँ। ( थम अ यासी य द सीधा खड़ा नह
हो जाता है। तो थोड़ा झुककर संतुलन बनाते ए सीधे खड़े होने का यास कर) अंितम
ि थित म हाथ से नम कार क ि थित िन मत कर। जब तक आकु लता रिहत खड़े रह
सकते ह , खड़े रह। धीरे -धीरे सजगता के साथ बैठे। और इसके बाद पैर बदलकर यही
आसन बनाएँ।

ास म/समय : खड़े होने क ि थित म ास ल। पूण आसन पर सामा य सन कर एवं


बैठते समय ास छोड़। अनुकूलतानुसार कर।
यान : अनाहत च पर

लाभ : इस आसन को करने से जीवन म संतुलन/िवन ता आती ह।


वािभमानी बनाता है। मृदभ
ु ाषी होता है।
पैर का असमय कांपना बंद होता है।
सामा य कमर दद से राहत एवं मे द ड लचीला बनता है।
उदर देश के अवयव को सुचा करता है।

सावधािनयाँ: थम अ यासी दीवार आ द का सहारा ल।


साइ टका, मे द ड, कमर से अ यिधक पीिड़त एवं दयरोगी इसे न कर।

नोट : इसी आसन म जब हाथ को फै ला दया जाए तो उसको यान आसन कहते ह।

क यापासन

िवशेष : यह आसन ा के पु मरीिच ऋिष के पु क यप मुिन को सम पत है।

िविध : ताड़ासन म खड़े हो जाएँ। आगे झुक और दोन हथेिलय को ज़मीन पर रख एवं 4
से 5 फट अपने पैर पीछे ले जाएँ पूरे शरीर को दाय तरफ़ ितरछा घुमाएँ दायाँ हाथ और
दािहने पैर पर पूरे शरीर का स तुलन बनाते ए रख अब बायाँ पैर का पंजा दािहने जांघ
के ऊपर क तरफ़ इस तरह रख क यह अध प ासन क तरह दखे। बाएँ हाथ को पीठ के
पीछे ले जाकर बाएँ पैर के अंगूठे को पकड़े। यह अंितम अव था है। वापस मूल अव था म
आएँ तथा यही या दूसरी तरफ़ से भी कर।

ास म/समय : आसन बनाते समय अंत:कु भक कर। ास छोड़कर बाएँ हाथ से बाएँ पैर
का अंगूठा पकड़े अंितम ि थित म गहरी ास ल। वापस आते समय ास छोड़। यथाशि
क, दोन तरफ़ एक-एक बार कर।

लाभ : मे द ड क अकड़न दूर करता ह।


पाचन तं के सभी अंगो को याशील बनाता है।
हाथ और पैर म पु ता दान करता है।
एका ता िवकिसत होती है।

सावधानी : स तुलन का िवशेष यान रख।

पूण शलभासन
िविध : पेट के बल ज़मीन पर लेट जाएँ। चूँ क मे द ड को मोड़कर पैर को आसमान क
तरफ़ उठाना है, अत: इस िविध म हाथ क ि थित, छाती का अगला िह सा एवं ठु ी
ज़मीन से पश करती रहेगी। अब पैर को जमीन से इतना ऊपर उठाएँ क आपका मे दंड
बीच म से मुड़ जाए और पेट व छाती भी कु छ हद तक उठ जाये। पैर के तलवे आसमान क
तरफ़ ह तथा ऐड़ी का अगला िह सा िसर क तरफ़ झुका आ हो। इस कार पूण
शलभासन को करने म काफ़ समय लग जाता है। पहली ही बार म पूण यास न कर। जो
पूण व थ ह व िजनका मे दंड लचीला हो, वे ही इस आसन को कर।

ास म/समय : पैर को ऊपर एवं नीचे करते समय अंतकुं भक कर। पूण अव था म ास
सामा य ही रख। 5 से 10 सेके ड तक कर।

लाभ : शलभासन के सभी लाभ ा होते ह। कु छ हद तक शीषासन, सवांगासन के भी


लाभ ा होते ह।

सावधािनयाँ: कड़क मे दंड वाले न कर। गुद क सम या, कमज़ोर आँत अ सर,
हा नया व उ र चाप से पीिड़त रोगी न कर।
दय रोगी िब कु ल न कर।
जो साधक वृि क जैसे क ठन आसन लगा लेते ह वे ही इस आसन क कर।

नोट : कु छ योगाचाय पूण शलभासन के िलए पादतल को िसर के ऊपर भी रखवाते


ह।
चूँ क यह उ अ यास का आसन है। अत: पूण सावधानी रख।

पयकासन (ि तीय कार)


िविध : सामने क तरफ़ पैर को फै लाकर बैठ जाएँ। अब बाएँ पैर को बाई तरफ़ ले जाकर
घुटना थोड़ा मोड़ ल। फर बाई तरफ़ लेटकर बायाँ हाथ बाएँ पैर पर रख ल और त कया
सा बनाकर हथेली से िसर क सहारा द। फर दािहना पैर सीधा सामने क तरफ फै ला ल
और दािहने हाथ को दािहने पैर क जंघा पर रख। अब यही या पैर बदलकर कर।

ास म/समय : पैर को उठाते समय ास ल और अंितम अव था म ास- ास गहरा


पर तु धीमा कर। मूल ि थित म लौटते समय ास छोड़। आधे से 1 िमनट कर।

लाभ : जांघ, कमर, व ः थल, मे द ड, पीठ, ीवा, पाचन तं पर आसन का िवशेष


भाव पड़ता ह। अतः सभी अंग अिधक याशील हो जाते ह।

सावधािनयाँ: यह आसन वे साधक ही कर जो ि पाद िशरासन कर लेते ह।


शारी रक प से लोच-लचक वाले साधक मश: अ यास पूवक कर।

नोट : पयकासन के थम कार का वणन िपछले पृ पर कया गया है।

िवशेष : िजस कार भगवान िशव क बैठी ई यान थ मु ा है उसको भी कु छ साधक


पयकासन कहते ह।

ि पाद िशरासन/ि पाद कं दासन


िवशेष : यह आसन उन साधक को करना चािहए जो क एक पाद िशरासन म अ यास है।

िविध : दोन पैर फै लाकर बैठ जाएँ। एक पैर को दोन हाथ के सहारे एक पाद िशरासन
कर। इसी कार से दूसरे पैर को भी कं धे पर रख एवं दोन पैर को वि थत कर आपस म
कचीनुमा ढंग से फं सा ल, पर ज़बरद ती न कर। मश: अ यास से संभव हो जाता है। अब
िनत ब म संतुलन बनाते ए नम कार क मु ा बनाएँ।

यान : वािध ान च पर

ास म/समय : रे चक करते ए मशः पैर को कध पर रख। आसन क पूण ि थित म


वभािवक सन एवं रे चक ही करते ए पैर को िनकाल। यथाशि अ यास कर।

लाभ : पु ष रोग के िलए अ य त लाभकारी।


मिहलाएँ मािसक धम क सम या से छु टकारा पा सकती ह।
पाचन तं को वि थत कर क़ ज़, अपच आ द बीमा रय को दूर करता है।
कमर और मे द ड म लोच-लचक पैदा कर उ ह सश बनाता है।
मोटापे से िनजात दलाता है।
सावधािनयाँ :O थम अ यासी 10/15 सेके ड से यादा न कर।
मे द ड, पीठ और कमर क कसी भी सम या से पीिड़त ि न कर।
गभवती ि य और उ र चाप, साइ टका, दयरोग, सवाइकल,
पॉि डलाइ टस से पीिड़त रोगी न कर।

उि थत ि पाद ीवासन/उि थत ि पाद िशरासन/उि थत ि पाद कं दासन

िविध : दोन हाथ को जाँघ के पास ज़मीन पर ि थर कर या सामने क तरफ़ पैर को


फै लाकर बैठे। पहले एक पैर को दोन हाथ का सहारा लेते ए कं धे पर ि थर कर।
त प ात् दूसरे पैर से भी आसन िन मत कर और दोन पैर को कचीनुमा ढंग से फै सा ल।
दोन हाथ को जाँघ के बीच म से िनकालकर सामने ज़मीन पर हथेिलय को रख एवं
संतुलन बनाते ए भुजा के बल पूरे शरीर को धीरे -धीरे ऊपर उठाएँ। थकान या
अि थरता होने पर धीरे -धीरे वापस आएँ एवं मशः पैर को बंधन से मु कर।

ास म : ऊपर उठते समय पूरक कर। अंितम ि थित म सामा य ास- ास एवं मूल
ि थित म लौटते समय रे चक कर।

समय : 10-30 सेके ड या सुिवधापूवक िजतनी देर रह सक।


लाभ : वे सभी लाभ ा होते ह जो ि पाद िशरासन, उि थत एक पाद शीषासन और
ि पाद कधरासन से होते ह।

नोट : जो साधक उि थत एक पाद िशरासन/ि पाद क धरासन या ि पाद िशरासन कर


लेते ह, वे ही उपरो आसन कर।

सावधािनयाँ : वे सभी सावधािनयाँ, जो ि पाद िशरासन/उि थत एक पाद शीषासन के


िलए ह।

काल-भैरवासन (ि तीय कार)

श दाथ : भगवान िशव का ही एक प।

िविध : दोन पैर सामने फै लाकर बैठ जाएँ। बाएँ टखने को दोन हाथ से पकड़ और छाती
के पास लाएँ। ास छोड़। छाती और गदन को थोड़ा सा आगे झुकाते ए बाएँ टखने को
गदन के पीछे रख। अब दोन हाथ को िनत ब के पास रख और बाएँ तरफ़ मुड़। दािहने
हाथ को सहारे के िलए बॉई तरफ़ रख। दािहने पैर को ितरछा कर। ास छोड़ और दोन
हाथ से वज़न देते ए शरीर को ऊपर उठाएँ। सामा य ास- ास कर। फर ास छोड़।
दािहने हाथ का सहारा हटाएँ। अब इसी हाथ को सीधे आकाश क तरफ़ तान द। इस कार
शरीर का पूरा भार (संतुलन) दािहने पैर और बाएँ हाथ पर रहेगा।
ास म/समय : लगभग 5 से 10 सेके ड इसी अव था म रह व धीमी और गहरी ास ल
एवं मूल अव था म आते समय अंत:कुं भक कर।

लाभ : पूरे शरीर म एक कार क ऊजा िन मत होती है। िजससे हमारे सात च का
उ थान होता है।
र संचार ती गित से होने लगता है। िजस कारण दय देश अशु र को
ासुक करने म अिधक सहयोगी हो जाता है।
हमारे शरीर के ायु सं थान, नाड़ी सं थान को ठीक करता है।
छाती बिल और ास या अिधक प रपूण ढंग से होती है।

सावधािनयाँ : अित उ र चाप से पीिड़त ि न कर।


कसी भी कार क शारी रक ज टलता हो, तो न कर।

िवशेष : काल भैरवासन का थम कार िपछले पृ म दया गया है।

िव ािम ासन

िव ािम एक िस ऋिष का नाम है। यह आसन उ ह को सम पत है।


िविध : ताड़ासन म खड़े हो जाएँ। आगे क ओर झुक एवं हथेिलयाँ ज़मीन पर रख। दोन
पैर को 4 से 5 फट पीछे ले जाएँ। ास छोड़। दायाँ पैर दाएँ हाथ के पास लाएँ। दािहने
जांघ के सामने का िह सा दािहनी भुजा के ऊपर िपछले भाग पर रख और शी ही शरीर
को दाय तरफ़ घुमाएँ। बायाँ हाथ बाय जांघ पर रख और स तुलन बनाय रख। बाएँ पैर
को ितरछा कर अब बाएँ पैर के तलवे और एड़ी को ज़मीन पर दबाएँ तथा दािहने हाथ पर
वज़न देते ए दािहने पैर को ऊपर सामने क और सीधा कर एवं बायाँ हाथ सीधे ऊपर क
ओर कर उसक तरफ़ देख। यह इस आसन क अंितम अव था है। वापस मूल अव था म
आएँ। यही या दूसरे पैर से भी कर।

ास म/समय : पैर उठाते समय अंत:कु भक कर। अंितम ि थित म सामा य सन कर।
मूल अव था म आते समय ास छोड़। अंितम ि थित म 10 से 15 सेक ड क एवं एक-एक
बार दोन तरफ़ से यही या कर।

लाभ : एका ता और स तुलन म सामंज य बैठाता है।


हाथ और पैर को सश और मज़बूत बनाता है।
पूरे शरीर म सु ढ़ता दान करता है।
उदर के अंगो को पु बनाता है।

सावधानी : स तुलन म यान द।

ि पाद कं धरासन

नोट : कु छ योग गु इस आसन को सु ि पाद कधरासन भी कहते ह।


िविध : आसन करने के िलए पहले क बल क मोटी तह कर ल। य क शरीर का पूरा भार
पीठ व मे द ड पर ही रहता है। पीठ के बल क बल पर लेट जाएँ। शरीर को िशिथल कर।
अब एक पैर को दोन हाथ का सहारा लेकर धीरे -धीरे िसर के पीछे रख और यही म
दूसरे पैर के िलए कर। दोन पैर क जाँघ को भुजा के नीचे अवि थत करना होता है।
अत: सजगता के साथ कर। अंितम ि थित म दोन पैर के पंज को कचीनुमा ढंग से फै सा ल
और हाथ से नम कार क मु ा बना ल।

यान : वािध ान च पर।

ास म/समय : रे चक करते ए पैर को िसर के पीछे ले जाइए। अंितम ि थित म


सामा य ास- ास एवं रे चक करते ए मूल ि थित म आएँ। यथाशि अ यास कर।

लाभ : ऊजा उ वमुखी होती ह। चय म सहायक है।


उदर देश, पाचन तं , जनन तं सभी को वि थत करता है।
मनोबल एवं आ मिव ास बढ़ता है।
मे द ड, कमर एवं पीठ क माँसपेिशय म लोच पैदा करके और सश बनाता
है।

सावधािनयाँ : ती कमर दद, साइ टका, ोग, आित उ र चाप, हा नया से पीिड़त
ि , कड़क मे द ड और कम आ मिव ास वाले ि एवं गभवती ि याँ इसे िब कु ल
न कर।

णवासन/योगिन ासन/सु गभासन

शाि दक अथ : योग िन ासन - िन ा का अथ न द एवं योग िन ा का मतलब कु छ हद तक


समािध क अव था। इसम साधक न तो सोता है और न ही जागरण क अव था म होता
है। दोन के बीच क अव था का नाम योगिन ा है। णवासनः णव का अथ बीज
ऑकार मं ॐ है।

िविध : कबल को मोटी तह करके िबछा ल और उस पर पीठ के बल लेट जाएँ। पहले ास


छोड़। अब दािहने पैर को घुटन से मोड़ते ए दोन हाथ से पकड़कर गदन के पृ भाग पर
िसर के नीचे रख। सामा य ास ास कर। त प ात् ास छोड़। बाएँ पैर को भी इसी
कार रखते ए दािहने पैर के नीचे टखन पर बाएँ पैर के टखने को फं सा ल। कु छ ास
ास कर। अब कं धे उठाएँ और दोन हाथ को जाँघ के पृ भाग (पीठ के नीचे) पर ले
जाकर अँगुिलय को आपस म फं सा ल। अंितम ि थित म ास छोड़। छाती को ऊपर उठाएँ
एवं ीवा को पीछे क और तान। वाभािवक ास- ास लेते ए 10 से 20 सेके ड इस
आसन म रह। वापस मूल अव था म आने के िलए ास छोड़। हाथ को खोल एवं पैर क
पकड़ ढीली करते ए िनकाल एवं पैर को सीधा करते ए िव ाम कर। पुनः इस आसन
को लगाएँ। परं तु पहले जो पैर रखा था, अब उसको बाद म रख।

लाभ : ित दन के अ यास से गुद, यकृ त, लीहा, आँत, िपताशय आ द व थ रहते ह।


िश ंिथयाँ तथा मू ाशय व थ होते ह। िनरं तर अ यास से उदर के अवयव रोगमु
होने से साधक आनंद का अनुभव करता है। जनन ंिथय क शि और बल िमलता है।
नकारा मक िवचार नह आते एवं अ छे कायाँ म मन लगता है।

सावधािनयाँ : उ र चाप, साइ टका एवं दयरोग वाले रोगी इस आसन को न कर।
उ अ यास का आसन होने के कारण मश: अ यास कर।
नािडयाँ : कार एवं काय
नािड़याँ: कार एवं काय
नाड़ी श द 'नाड' श द से िनकलता है िजसका अथ है 'तृण या वनि पत का पोला, खोखला
डंठल'। नाड का श दाथ ' विन' या 'तरं ग' भी है। नाड़ी का अथ श दकोश म िलखा है क
शरीर के अंदर माँस और तंतु से िमलकर बनी ई ब त सी नािलय म से कोई एक या
हर एक जो दय से शु र लेकर सब अंग म प च ँ ाती है। आधुिनक िव ान के अनुसार
तंि का (न स) रे शे (फाइबस) का एक समूह है जो शरीर के एक भाग से णोद
(ए प सेस) को लेकर दूसरे भाग म प च ँ ाता है। येक रे शा (फाइबर) एक तंि का-
कोिशका (नव सेल) का तंि का (ए सॉन) होता है। योग के अनुसार नाड़ी, धमिनयाँ या
निलकाएँ वे ह जो वायु, जल, र और अ य पोषक पदाथ के साथ पूरे शरीर म आवागमन
का काम करती ह। ाणायाम या म इ ह नािड़य का उपयोग कया जाता है।
साधल यं नाङ ः सि त देहा तरे नृणाम्।
धानभूता नाड तु तासु मु या तुदश।।
सुषु णेडा िप गला च गा धारी हि तिजिहवका।
कु : सर वती पूषा शंिखनी च पयि वनी।
वा णाल बुषा चैव िव ोदरी यशि वनी।
एतासु ित मु याः युःिप गालेडासुषु णका।
(िशव संिहता 2/13-15)
हमारे शरीर म साढ़े तीन लाख नािड़याँ ह (परं तु 72,000 का उ लेख सबसे यादा िमलता
है।) पर उनम मु य प से चौदह ह, िजनके नाम इस कार ह –
1. सुषु ा 2. इड़ा 3. पंगला 4. गा घाटी 5. हि तिज हा 6. कु 7. स वती 8.
पूषा 9. शंि जी 10. पयि वजी 11. वा णी 12. अलंबुषा 13. िव ोदरा 14.
यशि वनी
इनम भी िवशेष प से 3 नािड़याँ मुख ह।
1. इड़ा 2. पंगला 3. सुषु ा
नािड़याँ ब त छोटी-छोटी होती ह और नाड़ी-च सम त तीन शरीर- थूल शरीर, सू म
शरीर और कारण शरीर म पर पर िमली ई गुि छकाएँ होती ह। वैसे वै ािनक और
िच क सक सू म और कारण शरीर के अि त व को नकारते आ रहे ह। परं तु हमारे महान-
ानी ऋिष-मुिनय ने इनको जाना, आ मसात् कया और इनका िव तृत िववेचन भी
कया। वराहोपिनषद म िलखा है क नािड़याँ शरीर म पैर के तलव से लेकर िसर के
ऊ वभाग तक ा ह। इनम ही ाण रहता है जो जीवन का ास है। उसी म आ मा का
िनवास होता है जो शि का आवास है और चेतन तथा पु ल जगत का िनमाता है।
अ य शा के अनुसार हमारे शरीर म 72,000 नािड़याँ होती ह, िजनका उ म थल
गुदा और जननेि य के ठीक 12 अंगुल ऊपर तथा नािभ के ठीक नीचे है, िजसे कं द कहते ह।
अिधकतर योिगय ने इसका उ म थान नािभ के नीचे ही माना है परं तु कु छ नािड़य के
अंितम थान म मतभेद भी है। कठोपिनषद् और ोपिनषद् के अनुसार नािड़य का उ म
थान दय थली है जो सैकड़ नािड़य का िवतरण थान है।

14 मुख नािड़य का िववरण इस कार है


दए ए िच से नािड़य क ि थित प है। सुषु ा क द के बीच म मे द ड के साथ
म तक तक जाती है। उसके दाएँ भाग म पंगला व बाएँ भाग म इड़ा ि थत है। इड़ा म चं
व पंगला म सूय त व िवचरण करते ह। सर वती व कु नािड़याँ सुषु ा के मश: पीछे व
आगे रहती ह। गा धारी व हि तिज हा इड़ा के पीछे व आगे ि थत रहती ह। पूषा व
यशि वनी पंगला के पीछे व आगे ह। कु व हि तिज हा के बीच म िव ोदरा तथा
यशि वनी ि थत ह। यशि वनी व कु के बीच म वा णी ि थत है। पूषा व सर वती के
बीच पयि वनी तथा गा धारी व सर वती के बीच शांिखनी ि थत है। अलंबुषा कं दम य के
नीचे अि थत है।
योग व आयुवद के अनुसार सू म शरीर का अंग होने के चलते नािड़याँ, ाण वाह तथा
उसके िनयं ण म व रोग के उपचार म मह वपूण भूिमका िनभाती ह।
अलंबुषा नाड़ी : मूलाधार च , गुदा, अपान वायु तथा उ सजन तं से स बंध रखती है।
कु नाड़ी : वािध ान च , जननांग व मू निलका तथा अपान वायु से स बंध रखती है।
िव ोदरा नाड़ी : मिणपूरक च , पाचन तं , समान वायु से स बंध रखती है।
वा णी नाड़ी : अनाहत च , सन तं तथा उदान वायु से स बंध रखती है।
सर वती नाड़ी : िवशुि च , सन तं तथा उदान वायु से स बंध रखती है।
सुषु ानाड़ी : इस नाड़ी का स बंध सह ार च , मि त क व ाणवायु से होता है।
इड़ा नाड़ी : शरीर व नािसका के बाएँ भाग व मन से स बंध रखती है जब क पंगला
नाड़ी शरीर व नािसका के दाएँ भाग व ाण से स बंध रखती है। दोन ही नािड़याँ तृतीय
ने से स बंिधत ह। नाड़ी शोधन, सूयभेदन, चं भेदन, अनुलोम-िवलोम इ या द
ाणायाम व शरीर क ठं डी व गम कृ ित को िनयंि त करने म मह वपूण भूिमका
िनभाती है।
शंिखनी बाएँ कान से पयि वनी दाएँ कान से तथा गा धारी बाई आँख से व पूषा दाई
आँख से स बंध रखती है। यशि वनी दाएँ हाथ व पैर तथा उनके अँगूठ से गुज़रती है।
हि तिज हा दाएँ हाथ, पैर तथा अँगूठ से गुज़रती है।
नािड़य म ाण वाह के असंतुलन से रोग उपजते ह। उनसे स बंिधत अंग व ार क
मािलश व िसकाई से रोग का उपचार कया जाता है।
प ासने ि थतो योगी नािड ारे ण पू रतम्।
मा तं धारयेदम तु स मु ो नाऽ संशय।।

अथ : प ासन म बैठकर जो योगी ाणायाम करता है


उसक मुि म कोई शंका नह होनी चािहए।

कसी भी कार के ाणायाम म ास लेते समय यह िवचार


कर क इस पूरे ा ड म जो पिव ऊजा, द ता, शांित
और परमा म काश है, वह मेरे अंदर वेश कर रहा है। म
आलौ ककता से प रपूण हो रहा ँ, मेरे अंदर िनमलता आ रही
है। मेरी आ मा शु हो रही है एवं ास छोड़ते समय यह भाव
रख क आपके कमाँ का य हो रहा है - ोध, मान, माया,
लोभ का नाश हो रहा है। इस कार िच तन करने से हम कई
गुना लाभ ा कर सकते ह।
-RJT

योगासन संबंधी याएँ आ मिव ास के साथ


कर एवं पूण िव ास रख क हम आि मक एवं
शारी रक लाभ अव य ा करगे।
-RJT
ाणायाम
एक मह वपूण प रभािषत, वैचा रक दृि कोण
ांग योग म ाणायाम का एक िवशेष थान और मह व है। अलग-अलग
अ योगाचाय ने इसे िविभ तरीक़ से प रभािषत करते ए लगभग एक जैसे ही
कार के अथ कए ह। अ ांगयोग का चतुथपाद ‘ ाणा य आयाम: इित
ाणायाम:" अथात ाण का िव तार ही ाणायाम है। इसका अ यास ित दन करने से
ाणशि म अ यिधक वृि होती है आगे मह ष पतंजिल ने साधनपाद के 49व ोक म
इस कार वणन कया है क :-

ति म सित श ास शवास योगित िव छे दः ाणायामः । ।

आसन क िसि होने पर ास ास का जो गित िव छेद कया जाता है ( वाभािवक


गित का िनयमन करना-रोककर सम कर देना) अथात् जो उदयाभाव है, वही ाणायाम है।

ाणायाम दो श द से िमलकर बना है - ाण + आयाम। ाण का अथ है 'जीवन शि '।


ाणायाम पूरे अ ांग योग का ही ाण है, ऐसा भािषत हो जाता है। ाण एक ऐसी ऊजा है
जो कसी न कसी तर पर सारे ांड म ा है। ाण ऊजा सभी जीव म सू म और
सश प से पाई जाती है। ाण म िनिहत है ऊजा, ओज, तेज, वीय (शि ) और
जीवनदाियनी शि । वही आयाम का अथ है िव तार, फै लाव, िविनयमन, अवरोध या
िनयं ण। अत: ाणायाम का अथ आ ाण अथात सन (जीवन शि ) का िव तार,
दीघकरण और फर उसका िनयं ण।

ाणायाम का िवषय िवराट है। इसम असीिमत संभावनाएँ िछपी ई ह। इसम शरीर
और मि त क दोन ही के म य भीतरी स बंध क खोज क जाती है। ाणायाम िजतना
सरल और आसान तीत होता है, उतना है नह । जब कोई ि ाणायाम क चे ा
करता है तो लगने लगता है क यह कोई हँसी-खेल नह है, बि क एक ज टल पर तु साथक
कला है।
ाणायाम कोई का पिनक या नह है अिपतु त काल भावशाली है। ाणायाम क
कई याएँ सू म से सू मतर होती चली जाती ह।

आज के दौर का ि कु छ यादा ही तनावपूण हो गया है। संतुिलत एवं शांितमय


जीवन जीना जैसे ब त क ठन हो गया है। ायुिवक और र -संचालन णािलय को
भािवत करने वाली चंताएँ और रोग अपे ाकृ त बढ़ गए ह। कु छ ि मानिसक
सम या से पीिड़त ह तो कु छ ावहा रक कारण से। खुद को शांत व ि थर बनाए रखने
के िलए वह तरह-तरह के मादक का सेवन करता है कं तु उनसे शांित नह िमलती
बि क वह जीवन को नक बना लेता है। संभवतया धू पान और मादक से वह कु छ
समय के िलए दुःख भूल जाएँ परं तु यह सम या का हल नह है। वे शारी रक और मानिसक
िवकार तो पुनः लौटकर आ जाते ह। हमने योगा मक प से देखा है क जीवन म
ाणायाम जैसा सश मा यम अपनाने से हम कई सम या को हल कर सकते ह।

ाणायाम तक, वाद-िववाद से परे है। इसे सीखने के िलए उ लास, धैय, आ म-समपण,
गु -िनदश और सावधानी पूवक क गई चे ा क ज रत होती है और यही इसे साथकता
दान करती है।

आयुवद म भी वायु का िवशेष और मह वपूण थान ितपा दत करते ए मह ष चरक


ने चरक संिहता सू थान 12/7 म प कया है क वायु-शरीर और शरीर अवयव को
धारण करने वाला ाण, उदान, समान, अपान और ान इन पाँच कार वाला, ऊँची
और नीची सभी कार क शारी रक चे ा का वतक, मन का िनयं क और णेता,
सभी इि य को अपने-अपने िवषय को हण करने म वृ कराने वाला, शरीर क
सम त धातु का ूह करने वाला, शरीर का संधान करने वाला है। वाणी का वतक,
पश और श द क कृ ित, वण और पशन इि य का मूल, हष और उ साह क योिन,
जठराि को दी करने वाला, िवकृ त दोष का शोषण करने वाला वेद, मू , पुरीष
आ द मल को बाहर िनकालने वाला, थूल और सू म ोत का भेदन करने वाला है। इस
कार अकु िपत वायु, आयु या जीवन के अनुवृित िनवाह म सहायक है। यह भी कहा है क
ाण को मात र ा कहते ह। वायु ही ाण है। भूत, भिव य और वतमान सब-कु छ ाण म
ही अिधि त है। हठयोग के ि तीय अ याय म िलखा है क -

चले वाते चलं िच ं िन ले िन लं भवेत्।

योगी थाणु वमा ोित ततो वायुिनरोधयेत्। (हयो. .2/2)

अथ : वायु के चलायमान होने से मन (िचत) भी चलायमान होता है और वायु के ि थर


(िन ल, चंचलता रिहत) हो जाने से िच (मन) भी ि थर हो जाता है। ाणवायु और मन,
इन दोन के ि थर होने से योगी थाणु प को ा होता है तथा साधक ि थर और
दीघकाल (लंबे समय) तक जीता है। अतः योगी ाणवायु का िनरोध कर। आगे कहते ह क
:

याव ायुः ि थतो देहे ताव ीवनमु यते ।

मरणं त यिन ॉित ततो वायुं िनरोधयेत।् । (ह.यो. .2/3)

अथ : जब तक शरीर म वायु ि थत है तब तक संसार ाणी को जीिवत मानता है और उस


ाण (वायु) के शरीर से िनकल जाने को मरण (मृ यु) कहते ह। अत: लंबे और वा यपूण
जीवन के िलए वायु का िनरोध कर ाणायाम करना चािहए। ा याकार ने आगे कहा है
क-

शुि मेित यदा सव नाड़ी च म मलाकु लम।

तदैव जायते योगी ाणसं हणे मः । । (ह.यो. .25)

अथ : मल से ाकु ल स पूण नािड़याँ जब शु व िनमल होती ह, उसी समय म योगी


(साधक) वायु के सं हण म समथवान हो पाता है; अतः ाणायाम सदैव कर।

जैसा हमने बताया क ाण का अथ जीवन शि है और आयाम का अथ िव तार या


फै लाव है। इस कार ाणायाम का अथ ास का दीघाक ँ रण और फर उसका िनयं ण है।
वायुसाधना ( ास लेने क कला) को ही िशव संिहता म ाणायाम कहा गया है। मह ष
पतंजिल ने ि थरता पूवक एक आसन पर बैठकर ास लेने और िनकालने क या पर
िनयं ण को ाणायाम कहा है।

हठयोग दीिपका के दूसरे अ याय के दसव ोकानुसार : योगी इड़ा नाड़ी से अथात्
वाम नाड़ी से वायु का पूरक कर ( ास लेना), फर उसे िनयि त कर अथात कुं भक कर
उस वायु को फर दूसरी पंगला नाड़ी से रे चन कर ( ास छोड़ना)। और इसके बाद
पंगला नाड़ी से वायु का पान कर अथात् दि ण नाड़ी से वायु पूरक कर तो उस ाणवायु
का कुं भक करके वाम नाड़ी से ाणवायु का रे चन कर। इस पूव सूय-चं क िविध से
अथात् चं मा से पूरक और कुं भक करके सूय से रे चन कर और सूय से पूरक और कुं भक
करके चं मा से रे चन कर। इस कार इस िविध से सदा अ यास करते ए योगीजन क
नािड़य के गण तीन महीने के अनंतर शु और िनमल होते ह।

ी आयंगार का कहना है क ाणायाम एक कला है और इसम तकनीक सि मिलत क


गई ह, जो सन-अवयव को इ छा, लय और सघनता से संचािलत और सा रत करती
ह। इसम पूरक या ( ास लेना) रे चक या ( ास छोड़ना) और कुं भक या ( ास
रोकना) का दीघ िनयंि त और सू म वाह शािमल है। पूरक सन णाली को उ ेिजत
करता है, रे चक दूिषत वायु और िवषा पदाथ को बाहर फकता है और कुं भक ऊजा को
सारे शरीर म िवत रत करता है। इन संचालन म फु फु स और पसिलय के पंजर का
ऊ वाकार िव तार, ेितज आरोह और िवशालता (प रवेशीय िव तार) शािमल होते ह।
इस कार अनुशािसत सन से मन क त होता है और साधक लाभाि वत होता है।

ाण के कार (वायु ान)

चरक संिहता सू थान 12/7 म मह ष चरक ने ाण को पाँच भाग म िवभ कया है,
उसका संि वणन यहाँ दया गया है। (विश संिहता म ाण 70 कार के बताये गये ह)

1. ाण : ास या पर िनयं ण रखता है अथात् यह वह शि है, िजसके ारा ाणी


ास को अंदर क ओर ख चता है और व ीय े क गितशीलता दान करता है।
ाणायाम म ाणवायु अंत: ास से याशील होती है।
2. अपान : उदर- े के नीचे (नािभ- थान से नीचे) के थान म याशील रहता है। मू ,
वीय और मल िन कासन को िनयंि त करता है। अपान बा ास से याशील रहता है।
3. समान : उदर थान क गितशील करता है। पाचन या म सहायता करता है। उदर के
अवयव को ठीक ढंग से काम करने हेतु सुर ा दान करता है।
4. उदान : ीवा ारा काय करता आ वतं (वाणी) और भोजन के अंत हण को
वि थत करता है। उदान रीढ़ क हड़ी के िनचले िसरे से ऊजा को उठाकर मि त क तक
ले जाता है।
5. ान : सम त शरीर म ा रहने के कारण शरीर क गितिविधय को िनयिमत,
सुचा और िनयंि त करता है। भोजन और ास से िमली ऊजा को धमिनय , िशरा
और नािड़य ारा पूरे शरीर म प च ँ ाने का काय करता है। ान वायु ाण और अपान क
या के िलए आव यक ह। उपरो पाँच ाण एक से दूसरे तक ऊजा प च ँ ाने का मा यम
है।
ाण को पाँच उप ाण या पाँच भाग म भी िवभ कया है।
उ ह मश :
1. नाग : जो क उदर का भार कम करता है।
2. कू म : आँख क बाहरी पदाथ से र ा हेतु पलक क याएँ करता है।
देखने का काय कू म ारा िनयंि त होता है।
3. कृ कल : नाक एवं गले से बा पदाथ को रोकने (छ कने और खाँसने) म
सहायता करता है।
4. देवद : ज हाई आना (न द लाना)।
5. धनंजय : कफ़ पैदा करता है और शरीर का पोषण करता है।
जैसा क ऊपर बताया गया है क ाण और उप ाण के कतने कार ह, वैसे ही वेदांत
के अनुसार शरीर भी तीन कार या प का होता है। जो क आ मा को मा डिलक प से
घेरे रहता है। इन तीन प के पाँच अंतभदी और अंतः आि त कोष होते ह।

1. थूल शरीर
शारी रक अ मय कोष कहलाता है तथा आकार मोटा होता है।
2. सू म शरीर
इसका िनमाण मनोमय, ाणमय और िव ानमय कोष करते ह।
3. कारण शरीर
आनंदमय कोष कहलाता है और इसके कारण साधक को चेतना का अनुभव होता है।
ाणायाम क अव थाएँ
आचाय ने ाणायाम क अव था का वणन चार चरण म कया ह।

1.आरं भ 2.घट 3. प रचय 4.िन पि

आरं िभक अव था म साधक क िज ासा और िच ाणायाम म जा त होती है। पहले


पहल वह ज दी करता है और थकान अनुभव करता है। ज दी प रणाम क वजह से उसका
शरीर काँपने लगता है और पसीना आ जाता है। जब वि थत प से धैय के साथ
अ यास करता है तो पसीना आना एवं काँपना बंद हो जाता है और वह दूसरे चरण म
प च
ँ जाता है जो घटाव था कहलाती है। शरीर क तुलना घड़े से क गई है जैसे िबना
पका आ िम ी का घड़ा ज द ही न हो जाता है। वैसे ही यह पंचत व से बना भौितक
शरीर भी ज द ही न हो जाता है पर तु य द इसे ाणायाम क अि म खूब तपाया जाए
एवं मशः अ यास कया जाए तो इसम ि थरता आ जाती है और इसके बाद वह
प रचया मक चरण म वेश करता है। इस ि थित म उसे ाणायाम के अ यास तथा
अपने बारे म िवशेष ान ा होता है, िजससे वह अपने गुण और अवगुण को पहचान
कर कम के कारण को महसूस करता है। इसके बाद साधक िन पि चरण म प च ँ ता है।
साधक क परम गित क यह अंितम अव था है। उसक कोिशश सफल होती ह। वह कम
क िनजरा करता है। वह स पूण गुण से यु हो जाता है और उसे आ म ान ा हो
जाता है।

ाणायाम का उ े य
ाणायाम के कई उ े य है, उनम से एक है स पूण वा य देते ए ल बी उ दान
करना। ाणायाम ारा हम ास क गित को िनयंि त कर सुखी हो सकते ह। कृ ित म
भी देखते ह क जो पशु-प ी तेज गित से ज दी-ज दी ास- ास करते ह, उनक उ
कम होती ह। िन िलिखत तािलका से हम समझ सकते ह।
1. कछु आ : 1 िमिनट म ास ास 4 से 5 बार/उ लगभग 200 से 400 वष
2. सप : 1 िमिनट म ास ास 8 से 10 बार/उ लगभग 120 से 150 वष
3. मनु य : 1 िमिनट म ास ास 15 से 16 बार उ लगभग 100 वष
4. घोड़ा : 1 िमिनट म ास ास 24 से 26 बार/उ लगभग 40 वष
5. िब ली : 1 िमिनट म ास ास 30 बार/उ लगभग 20 वष
6. कु ा : 1 िमिनट म ास ास 30 से 32 बार/उ लगभग 14 से 15 वष

इस कार िस होता है क ास क गित को िनयंि त कर हम अपने ब मू य जीवन


को बढ़ा सकते ह।

वर योग के थ म ाण के माण का वणन इस कार से दया है। य द रे चक ( ास


का िनकलना) कतने अंगुल बाहर िनकलती ह तो उसका या फल होगा जैसे सामा य
ास का िनकलना 12 अंगुल होता है। सामा य पूरक 10 अंगुल का होता है। गमन के समय
24 अंगुल, दौड़ते समय 42 अंगुल, मैथुन काल म 65 अंगुल का होता है। भोजन और वमन
के समय 18 अंगुल होता है। आगे भगवान- िशव माँ पावती से कहते ह क योगी ाण क
गित को एक अंगुल घटा ल तो िन कामता, दो अंगुल घटा ल तो आनंद और तीन अंगुल
घटा ल तो किव व शि ा होती है। चार अंगुल कम कर तो वाक िसि , नौ अंगुल
घटाने से नौ िनिध और यारह अंगुल कम कर ल तो छाया का भी अभाव हो जाता है। आगे
कहते ह क 12 अंगुल ाण घटा ले तो हसगित और गंगा अमृत के रसपान क शि आ
जाती है, इस कार क अिभ ि से ाणायाम का मह व और अिधक बढ़ जाता है।

ाणायाम म सन या के कार
ाणायाम म सन या को समझने के िलए हम उदर सन, उरः सन, अ क सन
एवं यौिगक सन को समझ लेना चािहए।
1. उदर सन
शवासन क ि थित म लेट जाएँ या यान के कसी भी आसन म बैठ जाएँ और वाभािवक
ास ास कर। अब दाएँ हाथ को पेट पर नािभ क जगह पर रख और बाएँ हाथ को
दय पटल के म य पर रख। ल बा ास ल। ास लेने के साथ ही उदर देश ऊपर उठने
लगता है पर तु बाएँ हाथ वाला दय पटल नीचे क तरफ़ जाता है। धीरे -धीरे गहरी ास
ल। इस दौरान उदर देश को िजतना फै ला सकते ह, फै लाएँ पर तु दय देश को न
फै लाएँ। अब ास छोड़। उदर देश नीचे क ओर चला जाता है दायाँ हाथ मे द ड क
तरफ़ नीचे जाता है, इस कार रे चक पूरक कर पर तु व ः थल एवं कं ध को ि थर रख।

2. उरः शवसान या व ः श सन
इस कार के सन म पूणतः पसली पंजर (व : पंजर) को फै लाकर सन या क
जाती है। -
यान के कसी भी आसन म बैठ जाएँ या शवासन क ि थित म लेट जाएँ। पूरा यान,
व पंजर पर के ि त कर ास ल। हम अपने उदर देश को न फु लाते ए ास को व
पंजर के अंदर लेना है। व देश को अिधक से अिधक फै लाएँ और इस कार अनुभव भी
कर। व पंजर म आने वाली ास के ित सजग रह। अब रे चक कर और अनुभव कर क
व पंजर िसकु ड़ रहा है। कु छ देर िव ाम के बाद इसे पुनः कर। इस कार कु छ देर तक
उरः सन कर।

3. अ क सन
इस कार के सन म व पंजर को ास लेते ए पूरी तरह फै लाएँ फर थोड़ी और ास
ल। ऐसा करने से गदन क माँसपेिशय मुख प से फु फु स का ऊपरी भाग याशील
होता ह। अब रे चक कर और गदन क माँसपेिशय म आया आ तनाव एवं व पंजर को
खाली कर। ारि भक ि थित म वापस आएँ। इसी कार इस या को फर दोहराएँ।

4. पूण या यौिगक सन
इस कार के सन म मशः उदर, व ः और अ क सन तीन िविधय का योग होता
है।

यान के कसी भी आसन म बैठ जाएँ या शवासन क ि थित म लेट जाएँ। अब धीरे -
धीरे गहरा ास ल और उदर देश को फै लने द। उदर के बाद अब वायु फे फड़ म वेश
कराएँ। धीरे -धीरे और सन कर, िजससे गदन क माँसपेिशय के सभी भाग म तनाव आ
जाए। उदर, फे फड़े और गदन क माँसपेिशय के ित सजग रह। अब धीरे -धीरे मश:
गदन क माँसपेिशयाँ व : थल एवं उदर देश को िशिथल करते ए रे चक या कर।
उदर देश के ायु और फे फड़ पर ह का दबाब देकर अिधक से अिधक वायु िनकाल द।
ये सभी याएँ एक तारत य म लयब तरीके से होनी चािहए न क खंिडत प से।

इस कार चार सन को समझकर हम इसे अपने जीवन म उतारकर ाणायाम के


मह व को अिधक आ मसात् कर सकते ह

ाणायाम का अ यास काल और अविध


हठयोग दीिपका के दूसरे अ याय के यारहव ोक म इसका वणन है। सू कार कहते ह
क ात:काल सूय दय से लेकर तीन घड़ी दन चढ़े तक (एक घड़ी मतलब 48 िमिनट,
इसको तीन से गुणा करने पर लगभग सवा दो घंटे ए) यानी य द सूय दय पौने छह बजे
होता है तो सुबह 8 बजे तक ाणायाम करना े है। दोपहर म पाँच भाग कए तो दन के
म य भाग म और सायंकाल अथात् सूया त से पूव और सूया त के अनंतर तीन-तीन घड़ी
सं या के समय म तथा अधराि म अथात् राि के म य भाग म दो मु त म - मशः इन
पूव चार काल म चार बार अ सी ाणायाम कर। य द राि म न कर सक तो तीन
समय ही अ सी-अ सी (80) बार ाणायाम कर। य द चार बार करते ह तो 320 बार और
तीन बार कर तो 240 बार ाणायाम कर।

उपरो बात से लगता है क ये उ कृ योगी के िलए कही गई ह, य क ाणायाम के


एक च म पूरक या, अंतःकु भक या, रे चक या और बा कुं भक या होती है।
इस कार 320 च पूरे करने ह। दूसरा यह क पहले के वातावरण और काय एवं आज के
प रवेश, दोन एक जैसे नह रहे फर भी ाणायाम करना आव यक है। ाणायाम को
संभव हो सके तो सूयादय के पहले ही करना बेहतर है। यह समय ताज़गी देने वाला,
फू तदायक व थकान रिहत होता है। य द ात:काल न कर सक तो सूया त के ठीक आस-
पास करना अ छा रहता है। जो साधक यान या मं जाप करते ह वे इस दौरान ाणायाम
या कर तो उ ह दोगुना लाभ ा होता है।

ाणायाम संबंधी संकेत, सावधािनयाँ व िनयम


हम यहाँ पर ाणायाम स बंिधत लगभग सभी मह वपूण त य को िलख रहे ह - जैसे यह
कस समय करना चािहए, कै से करना चािहए वगैरह। ऐसी तमाम बात हम इसम
सि मिलत कर रहे ह, िजससे पाठक, भरपूर लाभ उठा सक।
बा िव जैसे म छर, मि खय या अ य छोटे जीव जंतु से बचे रहने क
पूरी व था करनी चािहए।
प ासन या िस ासन म बैठकर करने से ाणायाम उिचत ढंग से हो जाता है।
(वृ या रोगी अ य व तु का उपयोग कर सकते ह जैसे टू ल या कु स वगैरह)
थान शु एवं एका त हो, हवा क व छता एवं आवागमन भलीभाँित होना
चािहए।
ाणायाम करने वाले ि को तामिसक व तुए,ँ मांसाहार व मादक पदाथ
इ या द का सेवन नह करना चािहए। ाणायाम का स पूण लाभ ा करने के
िलए इनका याग कर व अपनी सुंदरता, तेज और बल म चार चाँद लगाएँ।
योगासन के बाद और याना यास से पहले स िचत मन से ाणायाम कर या
अनुकूलतानुसार कर।
कोिशश कर क ाणायाम का समय, थान व दशा िनि त हो।
ाणायाम का समय सूय दय और सूया त से संबंध रखता है परं तु कसी
कारणवश य द कसी और समय कर तो यह भोजन से कम से कम चार घंटे बाद
होना चािहए। ाणायाम के आधे घंटे बाद भोजन कर सकते ह।
ने क नािसका पर के ि त कर या बंद करके ाणायाम का अ यास कर।
मन को पूण प से ास या पर लगा लेना चािहए। इससे आपक एका ता-
शि , मरणशि और मानिसक शि का िवकास तेज गित से होगा।
कम आयु वाले ब े कुं भक या का अ यास न कर।
शी ता से ाणायाम न कर और न ही फु फु स धे होने के समय कर।
ाणायाम के बाद शवासन म िव ाम कर।
ान के बाद ाणायाम कर तो यादा लाभ होगा। परं तु ाणायाम के ठीक
बाद ान न कर। ान के िलए लगभग आधे घंटे क।
य द ब त यादा मानिसक वेदना हो, मन और शरीर िख हो, हताशा,
उदासी या कोई उलझन हो तो कोई ह का-फु का आसन कर या शवासन कर
मन को शांित द, तभी ारं भ कर।
उिचत ढंग से ाणायाम न करना मन को बेचैन कर देता है, िचड़िचड़ापन,
बेचैनी और तनाव उ प करता है। चेहरे पर भी इसका असर दखने लगता है,
अतः ऐसे अशु अ यास से सदैव बच।
िनयिमत आसन से फु फु स के तंतु म लोच आ जाता है और ाणायाम
उिचत ढंग से होता है।
ाणायाम से पूव मू ाशय और अंतराशय (आँत ) को खाली कर लेना चािहए।
तेज़ विन के बीच और घबराहट के समय ाणायाम न कर।
ाणायाम के समय या बाद म कसी कार क शारी रक व मानिसक परे शानी
हो तो तुरंत योग िश क से परामश ल।
सामा य मनु य के िलए आव यक है क उसक नािड़य म वािहत होने वाले
र म ऑ सीजन पया मा ा म हो। यह पू त ाणायाम ारा हो जाती है।
योग शा के अनुसार पूरक, कुं भक और रे चक का अंतराल 1:4:2 होना
चािहए। अथात् िजतना समय पूरक म लगे उससे चौगुना कुं भक म और पूरक से
दोगुना समय रे चक म लगना चािहए।
ाणायाम क सं या का िनधारण कर। सभी िनदश का पालन करते ए
सं या बढ़ाएँ।
कु छ ाणायाम गम बढ़ाते ह और कु छ शीत। अत: जो प रि थित के अनुकूल
हो, वही अ यास कर।
थम प से ाणायाम के अ यास के िलए दो बात ज़ री ह। एक मन क
ि थरता और दूसरी मे द ड क ि थरता। मे द ड को ऐसी ि थित म रखकर
बैठने का अ यास कर क वह न तो यादा पीछे क तरफ़ झुका हो और न ही
यादा आगे क तरफ़। पीछे क तरफ़ झुकने से फु फु स का सार होगा। आगे
क ओर झुकने के कारण वे फै ल नह पाते। इसिलए अ यासी को चािहए क वह
मे द ड म ि थरता लाएँ।
िस ासन, प ासन, सुखासन एवं वि तकासन ाणायाम के िलए अिधक
उपयोगी रहते ह।
मन क एका ता और ास म लय अित आव यक है।
हठयोग दीिपका म सू कार का कहना है क जैसे िश क शेर, हाथी या चीते
को धीरे -धीरे पालतू बनाता है उसी कार साधक को मशः अपने ास-
ास पर िनयं ण करना चािहए अ यथा प रणाम िवपरीत होते ह।
गंभीर रोगी और गभवती मिहला को योग िश क से परामश करना चािहए
एवं उपवासी ि या खाली पेट अथवा भोजन करने के तुरंत बाद कभी
ाणायाम नह करना चािहए।
िजस थान पर ाणायाम कर वहाँ संभव हो तो वायु मंडल को भी शु कर ल।
धूप, गु गल या शु घी के दीपक लगाने से मन म भी पिव ता क वृि होती
है। (िच क शु ता बढ़ती है।)
आसन सही ढंग से न कया जाए तो सन या मंद हो जाती है तथा
सहनशीलता कम हो जाती है।
शाि ड योपिनषद् म िलखा है क :-

यु ं यु ं तजे ायुं यु ं यु ं च पूरयेत्।

यु ं यु ं च बहनीयादेवं िसि भवा ुयात्।।

नए अ यासी को ाणायाम करते समय ाणवायु को धीरे -धीरे पूरक और रे चक करना


चािहए। ास को रे चक और पूरक करते समय म ज दबाज़ी न कर। धीरे -धीरे अ यास
कर, इस कार ाणायाम का अ यास करने से कोई हािन नह होती और न कोई रोग
होता है। कोई रोग हो भी तो धीरे -धीरे आरो य लाभ ही होता ह और योग िसि िमल
जाती है।

ाणायाम से होने वाले लाभ


ाणायाम दीघ आयु दान करता है।
यह चय कारक है। अथात् यह बंद ु को ऊ वमुखी बनाता है, िजससे ओज,
तेज तथा बल बढ़ता है।
चय और ाणायाम को एक-दूसरे का पूरक भी कह सकते ह। य क जो
मनोयोग से ाणायाम करता है, उसके िवषय-कषाय दूर होते ह। काम-वासना
का शमन होता है एवं जो चय का पालन करता है वह साधक ाणायाम
अित शी साध लेता है।
ि तोष नाशक है (वात, िप , कफ का नाश करता है।)
ाणायाम से सम त शरीर म जीवन और शि का संचार होता है।
ाणायाम बुढ़ापे को दूर रखता है। बुढ़ापे म ास या के मंद हो जाने के
कारण दय को पूरी मा ा म ऑ सीजन नह िमल पाती, िजससे फु फु स क
वायु कोिशकाएँ संकुिचत हो जाती ह। ाणायाम ारा साधक र संचार क
गित को सामा य करता आ ासो छवास क पू त कर लेता है।
दूिषत नािड़य का शुि करण कर यह शरीर को फु त ला बना देता है।
ाणायाम शारी रक और मानिसक बल ही नह बढ़ाता बि क वह आ मा का
भी उ थान करता है। अत: ाणायाम को जीवन का अंग बना लेना चािहए।
शु ढंग से कया गया अ यास सांसा रक िवषय-वासना से िवमुख करता है
और साधक म पाँच इि य को वश म करने क मता आ जाती है।
य द हम आसन म प रप हो जाएँ और उसके बाद ाणायाम का लाभ ल तो
हम अ यािशत लाभ ा होगा।
ाणायाम या करने से जठराि तेज होती है, िजससे क़ ज़ एवं अ य ऐसी
सम याएँ नह होत ।
ाणायाम का स बंध हमारी ायु- णाली से ब त अिधक है। य द ये व त हो
जाएँ तो मन एका नह हो पाता। ायु म तनाव रहता है तो मन म भी तनाव
रहेगा और जब तक मन शांित क ि थित म न हो, हणशील न हो, तब तक
ाणायाम का अ यास हो ही नह सकता।
ाणायाम से रोग ितरोधक शि का िवकास होता है।
ाणायाम ारा अतीि य ान का काश होकर अ ान का नाश होताहै।
ाणायाम करके हम एक कार से इस िव को भी वा य देने म सहयोगी
बन जाते ह।
इससे उदर देश के सम त रोग दूर होते ह, जैसे पाचन तं संपूण प से व थ
होता है, िजस कारण क़ ज़ का नाश होता है। आँत म मल नह िचपकता अतः
वायु िवकार का भी नाश होता है। इसिलए वायु संबंधी रोग जैसे िसरदद,
माइ ेन, बाल का असमय सफ़े द होना, वात दद (घुटन का दद, कमर दद
आ द) का शमन होता है।
पाचन तं के सुचा प से प रचालन होने के कारण भोजन अ छी तरह से
पचता है। अत: भोजन म पाए जाने वाले िवटािमन, ोटीन एवं खिनज लवण
पूणतः हमारे शरीर को पोषकता दान करते ह, िजससे हमारा शरीर बुढ़ापे
तक व थ रहता है। और व थ शरीर म ही व थ मि त क का िनमाण होता
है, इसिलए बुढ़ापे म कसी कार का मानिसक उ ग े या कोई मानिसक
अ व थता नह रहती। िजस कारण बुढ़ापे म होने वाली बीमा रयाँ, अित मण
नह कर पाती।
चूँ क ाणायाम करने से पाचनतं फु फस एवं दय देश सुचा प से काम
करते ह। अतः शरीर को भरपूर मा ा म ऑ सीजन िमलती है एवं र क
शु ता बढ़ती है। र संचार ठीक ढंग से होता है। र संचार अ छा हो तो पूरे
शरीर को नवजीवन, नवचेतना, फू त ा होती ह। शरीर का कायाक प
होता है। ओज़-तेज़ बढ़ता है। चेहरे म झु रया नह पड़ती, चेहरे म चमक रहती
है। आँख सु दर दखती ह। हम हमेशा जब तरोताज़ा दखते ह, तो सामने वाला
भी खुश रहता है। हमारे आसपास का वातावरण भी खुशनुमा बन जाता है,
िजस कारण हम घर, प रवार, पड़ोसी, दो त, शहर, देश, देश एवं िव को
इस पंचत व से बने ऊजावान शरीर ारा अनु ािणत करते ह।
नाडी-शोधन ाणायाम
एक अनु चंतन
(नाड़ी का िववेचन हम कर चुके ह। िव तृत जानकारी के िलए ‘नाड़ी कार एवं काय' अ याय देख।)

हाँ नाड़ी-शोधन का ता पय नािड़य के शुि करण ( ासुकता) से है। शरीर क


य ति का णाली म कसी भी कार का अवरोध उ प होने से तरह-तरह के
शारी रक वधान उ प होते ह। योग से स बंिधत हमारे कई ंथ म नािड़य के
शुि करण हेतु ाणायाम का वणन कया गया है जैसे िशव संिहता, हठयोग- दीिपका,
घेर ड संिहता आ द।
वैसे तो ाणायाम क पूरी या क सफलता का ेय आपक एका ता और सजगता
को जाता है, परं तु नाड़ी-शोधन ाणायाम का िवशेष याल रखा जाए तो बाक़ के
ाणायाम से यादा से यादा लाभ उठाया जा सकता है। ाणायाम का लाभ तो हम शु
से ही िमलने लगता है, तब भी इसम दृढ़ िन य क आव यकता होती है। इसक ऊजा
को अित संवेदनशीलता, एका ता और सू मता के साथ ास- ास को ि थरता दान
करने या अनुशािसत करने िलए वािहत करना होता है। ता क ास, ाण और मि त क
को आ याि मक बनाया जा सके । आ मा के शुि करण क यह छोटी परं तु मह वपूण
या है। आ मा से परमा मा तक प च
ँ ने का एक रा ता यहाँ से भी िमलता है।
सभी ाणायाम म नाड़ी-शोधन ाणायाम सबसे अिधक संवेदनशील, ज टल और सू म
है। जब नाड़ी को सू मतम तर पर ासुक कया जाता है तो यह आ मानुभूित क तरफ़ ले
जाती है।
नाड़ी-शोधन ाणायाम के िलए पहले आप अपनी अँगुिलय क द ता बढ़ाएँ और
दूसरा नािसका िझि लय म संवेदनशीलता का िवकास कर तभी यह ाणायाम करना
साथक होगा।

नाडी-शोधन ाणायाम/अनुलोम-िवलोम ाणायाम

अ यास एक
िविध : सुखासन के कसी भी एक आसन म बैठे। (प ासन, िस ासन) िजसम कम से कम
कु छ देर आराम से बैठ सक। मे द ड, गदन व िसर एक सीध म रख। ाणायाम के िलए
तैयार रह। बायाँ हाथ घुटने पर रिखए, दाएँ हाथ क अँगुिलय को दोन भ ह (म तक के
बीच -बीच) के बीच रख। दोन कधे समानांतर होने चािहए। अब दाएँ हाथ क तजनी और
म यमा को म तक के बीच म रख (कु छ योग िश क िसफ़ तजनी अँगुली को ही रखवाते ह)
एवं नािसका के दािहनी तरफ़ अँगूठे को व बाई तरफ़ के नािसकारं के बाहरी भाग पर
अनािमका अँगुली को रख। दाएँ नािसका िछ को अँगूठे से दबाव डालकर बंद क िजए।
बाएँ नािसका िछ से ास (पूरक) लीिजए और उसी नािसका िछ से रे चक कर ( ास
छोिड़ए)। पूरा यान ास क तरफ़ रख। पूरक एवं रे चक िमलाकर एक च आ। इस
कार 10 से 15 च कर।

अब अनािमका अँगुली से बायाँ नािसका िछ बंद कर और दािहनी तरफ़ से उपरो


यानुसार 10 से 15 च कर।

सावधािनयाँ : ास या विन रिहत होनी चािहए। दोन नािसका िछ से


बराबर लय बनाते ए ास ल। सीना कम- यादा न फै लाएँ।
समय : 5 से 10 िमिनट तक दोहराएँ।
नोट : थकान महसूस हो तो शवासन कर ल। इस ाणायाम से अँगुिलयाँ और
नािसका-निलका का अ यास हो जाता है ता क वे अिधक से अिधक लाभ ाि
म सहायक ह ।

अ यास ि तीय
नाड़ी-शोधन हेतु अनुलोम-िवलोम ाणायाम करते ह।

िविध : पूरी सजगता के साथ सुखासन, िस ासन या प ासन म बैठ जाइए।


दाएँ अँगूठे से दाएँ नािसका िछ को बंद क िजए तथा बाएँ नािसका ार से (पूरक)
ास लीिजये। अब बाएँ नािसका ार को अनािमका अँगुली से बंद क िजए और दाएँ
नािसका ार से रे चक क िजए ( ास छोिड़ए)। इसी ार से पूरक क िजए। अब अँगूठे से
नािसका- ार बंद क िजए और बाएँ नािसका ार से रे चक क िजए। यह पूरी या एक
च है।
इस अ यास म साधक को मश: ास- ास क गित को म यम और फर ती करना
चािहए। ती गित से पूरक कर फर रे चक कर एवं िनदशानुसार ास गित मंद, म यम
और फर ती कर। इस कारण इसम विन भी उ प होती है। साधक ास- ास क
गित को एक ॐ या दो ॐ या तीन ॐ का मानिसक जप करता आ और धीरे -धीरे बढ़ाकर
सात ॐ तक कर सकता है। 3 िमिनट से शु कर 10 िमिनट तक कर सकते ह। इसम रे चक
और पूरक के समय म समानता रहनी चािहए।
सावधािनयाँ : तनाव होने पर कु छ ण क। िव ाम कर एवं थकान दूर होने
पर पुनः ाणायाम कर।
िवशेष : मूलाधार क शि ऊ वमुखी होती है।

अ यास तृतीय

िविध : ाणायाम के कसी भी आसन म बैठ जाइए। पूव िविध के अनुसार दाएँ
नािसका ार को बंद कर बाएँ नािसका ार से पूरक कर। दोन नािसका ार को बंद कर
अंतकु भक कर। दाएँ ार से रे चक कर। अब दाएँ नािसका ार से पूरक कर, अंतकु भक कर
और बाएँ ार से रे चक कर - यह एक च आ। ास रोकने के समय आप मन ही मन म
ॐ बोल या 5 तक िगनती कर। इस तरह लगभग 25 च पूरे कर। बाद म पूरक, अंतकु भक
और रे चक का अनुपात 5:10:10 कर ल। अथात् पाँच िगनती तक पूरक कर, दस िगनती
तक कुं भक कर और दस िगनती तक ही रे चक कर। अ यास हो जाने पर िगनती म वृि कर
ल। िनराकु लता क अव था म ास- ास एवं कुं भक कर। इसके बाद कसी यो य गु से
पूछकर या वतः िनणय लेकर अनुपात म वृि कर जैसे 1:6:2, आगे 1:6:4, अ यास हो
जाने के बाद 1:8:6 के अनुपात म अ यास म बनाए रख। यहाँ 1:8:6 का मतलब य द 5
िगनती म पूरक करते ह तो 40 िगनती तक कुं भक कर और 30 िगनती म रे चक कर। कु ल
लगभग 10 से 15 िमिनट या लगभग 20 से 25 च कर।

अ यास चतुथ

िवशेष : चूँ क इस अ यास म अंतःकु भक के साथ बिहकु भक भी करना होता है अतः पूण
सावधानी रख। हवादार कमरा, शांितमय वातावरण, तनाव रिहत व स िचत होकर कर
एवं अनुपात इस कार रहेगा- 1:4:2:2 अथात् 5 िगनती तक पूरक, 20 िगनती तक
अंतकु भक 10 िगनती तक रे चक और 10 िगनती तक ही बिहकु भक कर। य द पूरक का
समय बढ़ाएँ तो बाक़ को भी उसी अनुपात म बढ़ा ल। यो य िश क से पूछकर या अ यास
म दृढ़ता आने पर कुं भक के समय मूल बंध या जालधर बंध लगाने का अ यास कर सकते
ह। अंत म शवासन ज़ र कर।

िविध : बाएँ से पूरक कर। अंतकु भक कर। दाएँ से रे चक कर। बिहकु भक कर। फर उ टे
म से दाएँ से पूरक कर। अंतकु भक कर। बाएँ से रे चक कर। बिहकु भक कर। यह 1 च
आ। यथासंभव 15 च कर।
लाभ :
नाड़ी-शोधन के अ यास अ य ाणायाम के आधार- थल ह अतः साधक
िजतना अ छा नाड़ी-शोधन करे गा, बाक़ के ाणायाम का भी उतना ही लाभ
िमलेगा।
मि त क को चु त, या मक और संवेदनशील बनाता है।
शारी रक और मानिसक संतुलन थािपत होता है, िजस कारण शारी रक और
मानिसक रोग नह होते।
धारणा, यान और समािध का तर बढ़ता है।
सम त नािड़य म वतमान मल का शुि करण होकर वतमान और भिव य के
प रणाम अ छे होते ह।
मन शांत, स िच रहता है।
कई गुण वतः बढ़ते ह और िम या व का धीरे -धीरे नाश होता है।
अ थमा, टॉि सल, कफ़ स बंधी रोग, हड़ी, चम एवं लड ेशर के िनयं ण म
अित लाभदायक, माई ेन एवं साइनस म िवशेष

लाभ द। ाणायाम से रोग ितरोधक शि का

िवकास होता है।

-RJT

वृि ाणायाम
वृि ाणायाम दो कार के होते ह :
सम वृि ाणायाम और िवषम वृि ाणायाम ।

समवृि ाणायाम
समवृि ाणायाम म पूरक, रे चक और अंतःकु भक और बिहकु भक या म ास का
समय समान होता है। समवृि ाणायाम म य द ास लेने का समय 5 सेक ड है तो
अंतकु भक भी 5 सेक ड का होगा एवं ास को बाहर िनकालने का समय भी 5 सेक ड का
होगा और बिहकु भक का समय भी 5 सेक ड का ही होगा।
इस ाणायाम म रे चक और पूरक या का समय और लय एक समान होना चािहए।
मश: अ यास करने पर ास लेने का समय और रे चक एवं दोन कु भक का समय म
संतुलन आ जाता है। परं तु सबसे पहले अ यास अंतकु भक के साथ कर। जैसे तीन
या म समय का अनुपात 1: 1/4 :1 रखना चािहए। हम इसको ऐसे समझे क जैसे
16 िगनती तक हमने पूरक कया तो अंतकु भक िसफ़ 4 तक कर फर रे चक को 16 िगनती
म पूरा कर। मशः इस अनुपात को बढ़ाकर 16:8:16 कर ल, जब इसम अ य त हो जाएँ
तो अंतकु भक बढ़ाकर 16:16:16 कर ल।
अब मशः बिहकु भक का भी अ यास कर। शु म पूरक: अंतकु भक रे चक बिहकु भक को
16:16:16:4 ही रख। धीरे -धीरे इस अनुपात को 16:16:16:8 कर। इसके बाद इस अनुपात
को और बढ़ाएँ एवं 16:16:16:12 कर। जब इसम ढ़ता हो जाए तब 16:16:16:16 कर
लेना चािहए। इस कार समवृि ाणायाम क समयाविध को मश: बढ़ाना चािहए।

िवषम वृि ाणायाम


चूँ क यह िवषम (अिनयिमत) होता है अतः इस ाणायाम को करने वाला साधक व थ
फे फड़े और मज़बूत नािड़य वाला हो। इसको िवषम वृि वाला ाणायाम इसिलए कहा
जाता है य क इसम पूरक, अंतकु भक,रे चक और बिहकु भक क समय अविध अलग-अलग
होती है। अनुपात म अंतर के कारण यह साधक को क ठनाई करता है।
सबसे पहले पूरक या, अंतकु भक या और रे चक या 8:16:8 के अनुपात म ारं भ
कर। इसके बाद धीर-धीरे अनुपातः बढ़ाकर 8:24:8 कर और फर बढ़ाकर 8:32:8 कर।
अब इस अनुपात को समायोिजत कर और अनुकूल बनाकर 8:32:10 कर फर 8:32:12
फर 8:32:14 और पुनः 8:32:16: कर। जब इसम पूण अिधकार ा हो जाएँ। तब धीरे -
धीरे बिहकु भक 8:32:16:2 फर 8:32:16:4 फर 8:32:16:6 और फर 8:32:16:8 के
अनुपात से कर। यह चार अनुपात िवषम वृि ाणायाम के एक च का िनमाण करते ह।
साधक को पहले रे चक बिहकु भक और पूरक म लय को िनयिमत करने म क ठनाई
महसूस होगी। शु म साधक क साँस फू लने लग सकती ह, परं तु यह अ यास ल बे समय
तक ित दन करने से सरल लगने लगेगा।
िवषम वृि ाणायाम म एक आदश अनुपात इस कार होता है। जैसे पूण पूरक या
म 8 सेक ड तक ास क जाती है और अंतकु भक म 32 सेक ड लग जाते ह। रे चक या
म 16 सेक ड लगते ह और बिहकु भक म 8 सेक ड लगते ह। इस कार यह अनुपात
8:32:16:8 हो जाता है या 1:4:2:1 हो जाता है। जब इस म म अ य त हो जाएँ तो इस
या को उ टे तरीके से करना चािहए। 16 सेक ड तक पूरक या और 32 सेक ड तक
कुं भक या कर एवं 8 सेक ड तक रे चक या कर। इस कार यह अनुपात 16:32:8
(2:4:1) हो जाता है। इस या म बिहकु भक को जोड़कर इसको 16:32:8:4 फर
16:32:8:6 फर 16:32:8:8 कर।
समय सीमा को अलग-अलग कर सकते ह। उदाहरण के तौर पर पूरक या 32 सेक ड
कुं भक या 16 सेक ड और रे चक या 8 सेक ड क हो तो बिहकु भक क सीमा कम
करके 4 सेक ड कर सकते ह। ता क इनके बीच का अनुपात 32:16:8:4 हो जाए।
िवषम वृि ाणायाम का समय िभ -िभ अनुपात म अलग-अलग हो सकता है। जैसे
8 : 16 : 32 : 4,16:32:4:8 या 32:4:16:8 या 4:8:32:16। िवषम वृि ाणायाम म
अनेक म प रवतन और संयोजन हो सकते ह।
सावधािनयाँ : हालाँ क एक िनयम यह है क जब तक पूण अ यास न हो, तब
तक इसे योग िश क क देखरे ख म ही करना चािहए। खासतौर पर िवषम
वृि ाणायाम तो ख़तर से भरा आ है, अतः िबना मागदशन के न कर।
िवषम वृि ाणायाम से मि त क म तनाव हो सकता है। र धमिनय म र संचार
क ती ता होने से उ र चाप या बैचेनी हो सकती है।

जो साधक चय को धारण कर ाणायाम क याएँ करता है


उसक कु डिलनी जागरण क या वतः होने लगती है।
-RJT

पूरक = ास अ दर लेना, रे चक = ास बाहर करना।


अंतःकु भक = ास अ दर रोकना, बा य कुं भक = ास बाहर रोकना।
ाणायाम के कार
मह ष घेर ड ने ाणायाम के िन िलिखत भेद बताए है।

सिहत: सूयभेद उ ायी शीतली तथा।


भि का ामरी मू छ के वली चा कु भकाः।। घे.सं.5/46।

इस कार ये आठ कु भक ाणायाम है।


सिहत कु भक दो कार का होता है:
अ. सगभ ब. िनगभ

सगभ कु भक म बीज मं का योग होता है और िनगभ कु भक म बीज मं से अ यास


नह कया जाता।

अ. सगभ : मह ष घेर ड कहते ह क सुखासन क अव था म उ र या पूव क तरफ़ मुख


करके बैठे एवं लाल वण के रजोगुण यु ा का यान कर। अब बाएँ वर से अं बीज का
सोलह बार जप करके पूरक कर। पूरक के बाद और कु भक के पहले उिड़यान बंध लगाएँ।
अब सतीगुणी उकार बीज प कृ ण वण ह र का यान कर और जप करते ए चौसठ
मा ा तक कु भक कर और तमोगुण यु मकार पी शु लवण के िशवजी के यान के साथ
'म' बीज मं जपते ए रे चक कर। अब उपरो कार से ही दाई नािसका से पूरक, कु भक
और बाई नािसका से रे चक कर। िबना तजनी और म यमा लगाए अनुलोम िवलोम
अ यास कर।

ब. िनगभ : इस ाणायाम (कु भक) म बीज मं का योग नह कया जाता। पूरक,


कु भक और रे चक वाले ाणायाम क एक से लेकर सौ तक मा ाएँ होती ह। इसी कार
उ म ाणायाम क बीस मा ाएँ म यम क सोलह और अधम क बारह होती ह। इस
तरह ाणायाम के तीन अंग होते ह। अधम ाणायाम म वेद (पसीना) िनकलता है,
म यम से मे क प होता है और उ म ारा पृ वी से ऊपर आकाश म िवचरण करता है।
इस कार वेद िनकलना, मे क प होना और पृ वी से ऊपर उठना, ये तीन ही ल ण
िसि को कट करने वाले ह। ाणायाम के अ यास से आकाश गमन, रोगनाशन और
कु डिलनी जागरण होता है। ाणायाम के अ यास से पु ष का मन आनं दत होता है और
वह सुखी होता है।

सूय-भेदन ाणायाम

मह व : सूय-भेदन ाणायाम क िवशेषता यह है क इसक सभी पूरक ( ास लेना)


याएँ दाएँ नािसका ार से क जाती है और रे चक ( ास छोड़ना) याएँ बाएँ ार से
क जाती है।

पूरक या म ाण-ऊजा पंगलानाड़ी (सूयनाड़ी, जमुना नाड़ी) एवं रे चक या म ाण-


ऊजा, इड़ा नाड़ी (चं नाड़ी, गंगा नाड़ी) से वािहत होती है।

िविध : सुखासन म बैठ जाइए। बाएँ नािसका ार को बंद कर दाएँ नािसका ार से गहन
(दीघ) ास लीिजए। ार बंद क िजए, कुं भक क िजए, जालंधर और मूलबंध लगाइए। बंध
िशिथल करते ए बाएँ ार से धीरे -धीरे रे चक या क िजए। यह एक च आ। इस
कार मशः 10 च तक बढ़ाइए।

िवशेष : कुं भक का समय धीरे -धीरे बढ़ाते जाना चािहए। हठयोग म िलखा है क कुं भक
तब तक कर, जब तक शरीर से पसीना न िनकल आए जब क शु -शु म ऐसा संभव नह
होता, इसिलए िववेक पूवक ढंग से ही या कर।

लाभ : पाचन-तं मज़बूत करता है। य क दायाँ वर इस काय म सहायक होता है।

शरीर म ऊ णता बढ़ती है। वात और कफ़ का शमन होता है।


वचा-िवकार ठीक होते ह।
झु रयाँ िमटती ह। चेहरे का तेज बढ़ता है।
साइनस साफ़ और व छ होते ह
िन र चाप म िनयिमत अ यास से लाभ िमलता है।
सावधािनयाँ : उ र चाप वाले रोगी न कर।

गम के मौसम म यथासंभव न कर।

ाणायाम से जीवन म संतुलन आता है


एवं आ मशि का िवकास होता है।
-RJT

उ ायी ाणायाम

नासा यां वायुमाकृ य मुखम ये च धारयेत।


द ला यां समाकृ य वायु व े च धारयेत।।
मुख ा य स व कु या ाल धरं तत:।
आशि कु भकं कृ वा धारयेदिवरोधत:।
उ ायी कु भकं कृ वा सवकायािणसाधयेत।्
न भवे कफ़रोग ू रवायुरजीणकम्।
आमवातः यः कासो वरः लीहा न िव ते ।
जरामृ युिवनाशाय चो ाय साधये रः।। (घे.सं. 5/70-73)
इस ाणायाम म फु फु स पूरी तरह से फै लता है। छाती का भाग ऊपर उठ जाता है।

िविध : ाणायाम के आसन िस ासन या प ासन म बै ठए। योगाचाय के अनुसार मुख


का संयमन करके दोन नािसका ार से धीरे -धीरे वायु ख च। वह श द करती ई ीवा
(क ठ) से लेकर दय-पयत तक भर जाए। िबना आकु लता के कु छ ण कुं भक कर।
त प ात् बाएँ नािसका ार से रे चक कर। िजस समय ास भीतर खीच उस समय छाती
फु लाइए।

िवशेष : ास लेते समय क ठ ार को संकुिचत कर ता क गले से ह क विन उ प हो


त प ात् मुख का ालन कर एवं जालंधर बंध लगाकर िनराकु लता पूवक यथाशि
वायु को धारण कर।

समय : अनुकूलतानुसार/यथाशि पूवक कर।


लाभ: जठराि बढ़ाता है। इससे सभी काय िस होते ह।

कफ़ नाशक है।
दय-िवकार दूर करता है।
एका ता बढ़ाकर मरणशि तेज़ करता है।
अिन ा, मानिसक चंता एवं उ मादी रोिगय को लाभ।
आमवात् यरोग, कास, वर, लीहा, दु वायु आ द रोगो का भी नाश होता
है।
घेर डसंिहतानुसार इस कुं भक को िस कर ल तो, जरा-मरण भी न होते ह।

शीतली ाणायाम

िविध : इस ाणायाम से शरीर का तापमान कम कया जा सकता है। इस कारण इसका


नाम शीतली ाणायाम है।

िस ासन या प ासन म बैठ जाइए। दोन हाथ घुटन पर रख। मे द ड, िसर तथा ीवा
एक सीध म रख। िज हा को मुँह से बाहर िनकालते ए इस कार मीिड़ए क वह निलका
(नालीनुमा) के समान तीत हो। इसी ि थित म पूरक कर। धीरे -धीरे ास लेते ए फे फड़
को भर। अंतःकु भक क िजए, िज हा को वापस अंदर क रए व मुख बंद रख। िसर को नीचे
झुकाय और जालंधर बंध कर। मूलबंध के िबना या मूलबंध के साथ पाँच से सात सेक ड
तक कुं भक कर। बंध हटाएँ और रे चक कर। यह एक च पूरा आ पाँच से दस िमिनट तक
दोहराएँ। (रे चक या नािसका से ही कर)

लाभ: यह ाणायाम मन को स करता है तथा िप -दोष हरता है।

यकृ त और लीहा को स य बनाता है।


यास बुझाता है।
उ र चाप को कम करता है।
र शुि करता है।

सावधािनयाँ: िन र चाप, पुरानी क़ ज़ एवं अिधक कफ के रोगी इसे न कर।

भि का ाणायाम
भि का लोहकाराणां यथा मेण स मेत।्
तथा वायुच नासा यामुभा यांचालये छनै:।।
एवं वंशितवारं च कृ वा कु या कु भकम्।
तद ते चालये ायुं पूव ं च यथािविध।।
ि वारं साधयेदेनं भि काकु भकतं सुधीः।
न च रोगो न च लेश आरो य च दने दने।। (धे सं. 5/76-78)

नो ट : भि का का अथ ध कनी होता है। इस ाणायाम म ास- ास क गित ती


बलशाली और सश होती है। ास- ास म एक कार क विन िनकलती है िजसक
हम लोहार क ध कनी के वर से तुलना कर सकते ह।

अथ : जैसे लोहार ध कनी ारा वायु भरता है उसी कार नािसका ारा वायु को उदर म
भर शनैः शनैः पेट म चलाएँ। इस तरह बीस बार करके कुं भक ारा वायु धारण कर फर
लोहार क ध कनी से जैसे वायु िनकलती है वैसी ही नािसका ार से वायु िनकाल यह
भि का कुं भक कहलाता है। इस कार तीन बार िनयम से कर। इससे कसी कार के रोग
नह होते और मशः आरो य क वृि होती है।

थम िविध : प ासन म बै ठए। दािहने नािसका ार को बंद कर बाएँ नािसका ार से


तेज़ गित से पूरक क रए तथा वैसे ही रे चक क रए। यही म लगभग बीस बार क रए। अब
यही या दािहने नािसका ार से कर। इस अ यास म रे चक-पूरक एक लय म हो। उदर-
देश का फै लना और िपचकाना सुचा और सम हो। यह एक च कहलाया। इस कार
तीन च पूरे कर। त प ात् जालंधर बंध एवं मूलबंध का योग कर। ि तीय िविध :
ाणायाम के िलए सुखासन म बै ठए। इस िविध म दोन नािसका ार से गहरी व पूरी
शि के साथ ास लेना एवं बाहर भी पूरी शि के साथ ास छोड़ना है। यह या बीस
बार कर। त प ात् अंतःकु भक करके जालंधर और मूलबंध (सुिवधानुसार) का अ यास
क िजए। यह एक च आ। इस कार इस िविध को तीन बार कर।
िवशेष: वा य के अनुसार ास गित मंद, म यम व ती गित से कर।
ास अंदर लेते समय अ छा चंतन कर एवं छोड़ते समय शरीर और मन के
िवकार िनकल रहे ह ऐसा िवचार कर।
कु डिलनी जागरण के साधक भि का ाणायाम को व ासन म बैठ कर करते
ह।
र चाप एवं दय रोग से पीिड़त ि ती गित से न कर।
एक च पूरा हो जाए तब िव ाम कर।
पूरी सजगता के साथ कर। िजनके फु फु स कमज़ोर ह वे न कर।
कसी भी समय थकान, आकु लता, परे शानी महसूस हो तो उस समय ाणायाम
का अ यास रोक द।

समय : रोग के अनुसार 5 से 10 िमनट तक कर।

लाभ: शरीर के िवजातीय, िवषैले त व का िन कासन होता है। िजसके प रणाम


व प र क शु ता एवं शारी रक िनरोगता बढ़ती है।

फे फड़े मज़बूत होते ह अत: दमा एवं य रोग का शमन होता है।
कठ रोग म लाभ होता है एवं कफ़ को िनकालता है।
वात, िप व कफ़ का नाशक है और कु डिलनी को जगाने वाला आसन है।
उदर- देश के अवयव यकृ त, लीहा एवं पाचन-तं क ंिथय क याशि
बढ़ जाती है।
साइनस, टॉि सल म भी लाभदायक।

कार जाप/उदगीथ ाणायाम


िविध : यान के कसी एक आसन म बैठकर ने बंद कर। गहरी ास भरकर ॐ का एक
लय के साथ विनपूवक उ ारण कर। 5 से 11 बार कर।

लाभ : इससे मानिसक िवकार दूर होते ह। मन शांत व ि थर होता है। वर ठीक होता है
आनंद क अनुभूित होती है। अिन ा, दुः व से छु टकारा िमलता है। कई लाभ वतः ा
हो जाते है। शारी रक, मानिसक, भौितक एवं अ याि मक लाभ िमलते ह।

िवशेष : ऊँ का ित दन अ यास करने से नकारा मकता वेश नह कर पाती। चेहरे का


तेज एवं आँख क चमक बढ़ती है। गले संबंधी सभी कार के रोग दूर होते ह यान पूवक
ित दन ऊँ का उ ारण करने से अनंत ज म क कम धूली न होती है और वह इस ज म
को सफल करता आ िनवाणपथ क ओर अ सर होता है।

ामरी ाणायाम

अथ: मर का अथ ‘भ रा’ होता है। यह ामरी ाणायाम इसिलए कहलाता है क रे चक


करते समय जो विन उ प होती है वह भ रे के समान गुंजायमान होती है।

िविध : प ासन, िस ासन या सुखासन म बैठ जाएँ। दोन नािसका िछ से ास


लीिजए। दोन हाथ क तजनी अँगुली से कान के िछ को बंद क िजए। चाहे तो कु छ देर
कुं भक लगा ल। अब भ रे के समान गुंजन करते ए धीरे -धीरे रे चक क िजए। इसके 5 च
से 10 च तक कर।
घेर ड संिहतानुसार : जब अध-राि तीत हो जाए और जीव-ज तु का श द
सुनाई न दे, तब एका त थान म जाकर साधक अपने दोन हाथ से दोन कान को बंद
करके पूरक और कु भक कर। फर अंदर क िविभ विनय को दािहन कान से सुन। पहले
झ गुर क विन, फर बाँसुरी क धुन, फर बादल के गजने क आवाज, फर झाँझ के
बजने क आवाज़, फर भौर क गुजन, िन य अ यास से िविभ कार के नाद सुनाई
पड़ने लगते ह और अनाहत म श द विन होने लगती है। यही अ भुत विन है। इसम जो
योित दखाई देती है, वही है। जब इसम मन िवलय हो जाता है, तब िव णु भगवान
के परम पद क ाि होती है। इस कार ामरी कु भक िस होने पर समािध क िस ी
होती है। घेर ड जी आगे कहते ह क जप से आठ गुना उ म यान है यान से आठ गुना तप
है तप से आठ गुना संगीत (अनहद् नाद) है एवं इस संगीत (अनहद् नाद) से बढ़कर कु छ
नह है।

ट पणी : इस ाणायाम को तेज गित से करने पर मर वर क तरह एवं मंद गित से


करने पर ामरी वर क तरह गुंजायमान होता है। इस कार करने से आनंद क अनुभूित
होती है।

यान : आ ाच पर।
िवशेष: गुंजन करते समय आप णव मं ॐ क विन िनकाल सकते ह।
मुंह बंद रख कं तु दाँत को आपस म न िमलाएँ।
ष मुखी मु ा के साथ भी कर सकते ह।
गुजन करते समय कई बार दूसरे श द भी िनकलने लगते है अतः यान रख।

लाभ: वर मधुर होता है और आवाज़ म िनमलता आती है।

अिन ा रोग दूर होता है।

आ याि मक लाभ िमलते ह।

मानिसक रोग - िचड़िचड़ापन, ोध, आवेग व तनाव इ या द दूर होते ह।

उ र चाप म लाभ।

दय रोग को भी लाभ िमलता है।

नोट : कु छ साधक कान को अँगूठ से बंद करके , तजनी को माथे पर, म यमा को आँख
पर, अनािमका को नाक के पास एवं किन ा को मुँह के पास रखकर यह या करते ह।

ाणायामक अ यास से अ छा

वा य और जीवंतता ा होती है।

-RJT

मू छा ाणायाम

िविध : प ासन या िस ासन म बैठकर यह आसन कर ता क िन लता बनी रहे। दोन


हाथ घुटन पर रख। आँख बंद कर िसर को पीछे ले जाते ए (लगभग 45 अंश का कोण)
दोन नािसका िछ से पूरक कर, अंतकुं भक लगाएँ। मानिसक चंता याग द और िसर
नीचे करते ए रे चक कर। ने बंद भी ह तो उनसे भूम य (दोन भ ह के बीच) देखने क
कोिशश क रये। शरीर व मन के ित सजग रिहए। इसी अ यास क पुनरावृि क िजए।
कम से कम 5 बार कर या अनुकूलतानुसार कर।

घेर ड संिहतानुसार : पहले सुखपूवक पूव म कहे ए कु भक करके िवषय यान


वासना से मन को हटाकर दोन भौह के बीच म ि थत आ ा च म यान लगाएँ और
इस प म ि थत परमा मा म लीन कर द इसे मू छ कुं भक कहते है। इस कु भक से आनंद
क ाि होती है।

लाभ: मानिसक चंता त ि को अथवा मि त क को िनि य हो जाने क


अव था म सुख लाभ महसूस होता है।

िसर दद स बंिधत रोग म लाभ।


कु डिलनी व यान म सहयोगी।
मि त क का िवकास कर सभी मानिसक सम या का िनवारण करता है।

सावधािनयाँ : उ र चाप, दयरोगी, िमग , च र आना एवं मि त क िवकार से


संबंिधत रोगी िमक प से धैय पूवक कर।

के वली ाणायाम

घेर ड संिहतानुसार : मह ष घेर ड के अनुसार येक जीवा मा जब ास बाहर


छोड़ता है तब ‘हं’ वण एवं जब ास अंदर हण करता है तब ‘सः’ (सी) वण का जाप
करता है। इस कार चौबीस घंटे म 21,600 बार येक जीव ास लेता है। ‘हं’ वण
िशवान द और ‘सः’ वण शि प ह िजसको 'अजपा नाम गाय ी' कहते ह और इसी हंसः
को एवं िवलोम से सोह को सब जीव िनरं तर जपते रहते ह।
लंग और गुदा के बीच (मूलाधार), दय कमल और नािसका िछ म वायु का
आवागमन होता है। मह ष घेर ड कहते ह क थूल शरीर िछयानवे (96) अंगुल प रमाण
का है और देह से वाभािवक बाहर जाने वाली वायु क गित ादश (12) अंगुल होती है
और गायन म सोलह अंगुल, भोजन म बीस अंगुल, माग चलने म चौबीस अंगुल, न द म
तीस अंगुल, रित या म छ ीस अंगुल एवं अ य प र म म इससे भी अिधक होती है।
(अलग-अलग आचाय ने अंगुल माण अपने-अपने मतानुसार बताया है।)
वाभािवक ाण क गित से इनक गित यून होती जाए तो परमायु (आयु वृि ) हो
और बारह अंगुल से अिधक हो तो आयु घट जाती है, ऐसा योगीजन कहते ह। जब तक
ाणवायु क ि थित है तब तक मृ यु नह होती। कुं भक के अ यास म यह ाणवायु मु य
है। शरीर के ि थर रहने तक के वली कुं भक ( ाणायाम) करके अजपाजप को जपता रहे।
के वली ाणायाम करने से आयु म वृि होती है अथात् इ स हज़ार छ: सौ बार जप पूण
होने से गित घट जाती है और मन स ता से भर जाता है।
नािसका ार से वायु को ख चकर के वल कुं भक कर। पहले दन च सठ बार तक ास-
ास को धारण कर। के वली कुं भक का अ यास ित दन आठ हर म आठ बार करना
चािहए (अथात् 8x8=64)। ात:काल, म याह व सायंकाल तीन समय, समान सं या म
अ यास कर। इस कार के वली कुं भक क िसि होने तक अजपाजप गाय ी के साथ
माण से पाँच-पाँच बार वृि करता जाए।

हठयोगानुसार : वि तक आसन म बैठ जाएँ। ासो छवास कए िबना ही (रे चक पूरक


कए िबना ही) ाण को (वायु को) जहाँ का तहाँ ही त ध कर देना 'के वली-कुं भक
ाणायाम' होता है।
रे चकं पूरकं य वा सुखं यद् वायुधारणम्।
ाणायामोऽयिम यु ःस वै के वल-कु भकः।।

कु छ आचाय ने त भवृि ाणायाम और के वली-कुं भक को एक ही माना है।


कु भके के वले िस रे चक-पूरकव जते।
न त य दुलभं कं िचत ि षु लोके षु िव ते ।

रे चक पूरक को रोककर के वल कुं भक के िस हो जाने पर कु छ भी दुलभ नह रह जाता


सब-कु छ सुलभ हो जाता है। योगी जन कहते ह क 'सिहत कुं भक' िजसम रे चक-पूरक
( ास- ास) के साथ कुं भक कया जाता है, के िस हो जाने पर "के वली-कुं भक" म शी
सफलता िमलती है।

लाभ: हठयोग दीिपका म िलखा है क तीन लोक म ऐसी कोई व तु नही है जो


के वली कुं भक के िस हो जाने के बाद साधक को ा न हो।

अपनी इ छा के अनुसार ाणवायु के धारण से राजयोग पद तक ा हो जाता


है।
द -दृि ा हो जाती है।
यान म दृढ़ता दान करता है।

ाणायाम का अ यास स पूण शरीर म ाण के वाह

को िविनयिमत करता है।

-RJT

चं -भेदन ाणायाम
िविध : इसक सभी याएँ सूय-भेदन ाणायाम के ठीक िवपरीत होती ह। सुखासन म
बैठ जाइए व बाएँ नािसका ार से पूरक क िजए। पूरक या धीरे -धीरे , सावधानी पूवक
और गहराई से होनी चािहए। दोन नािसका ार बंद कर। कुं भक के साथ जालंधर और
मूलबंध लगाएँ। वाभािवक िवराम द। बंध िशिथल कर व दािहने नािसका ार से रे चक
कर। यह एक च पूरा आ। इस कार मशः 10 च तक कर और कुं भक क ि थित
मशः बढ़ाते जाएँ।

नोट: इस ाणायाम म सभी पूरक याएँ बाएँ नािसका ार से क जाती ह एवं रे चक


याएँ दािहने नािसका ार क जाती ह।

िवशेष : एक ही दन म दोन ाणायाम (सूय भेदन और चं भेदन ाणायाम) न कर।

लाभ: शरीर म शीतलता आती है और मन स होता है।

िप को कम करता है।
ग मय म लाभकारी है।
मानिसक शांित प च
ँ ाता है, ोध को कम करता है।
तनाव को कम करता है।
मरण शि बढ़ाने म सहायक है।
उ र चाप वाल को िनयिमत अ यास से लाभ ा होता है।
सावधािनयाँ: िन र चाप वाले न कर।
ठं ड के दन म यथासंभव न कर।

ाणायाम के अ यास से ायुकोष,


ंिथय , सम त नािड़य और माँ पेिशय को
जीवन शि िमलती है और वे सश होकर
शरीर और मन को आरो यता दान करती ह।

-RJT

सीतकारी ाणायाम

िविध : यह शीतली ाणायाम क भाँित है कं तु िज हा क ि थित म अंतर है। िज हा के


आगे के भाग को इस तरह पीछे क तरफ़ मोिड़ए क उसके आगे के भाग का पश ऊपरी
तालु से हो। दाँत क पंि को एक-दूसरे से िमलाइए और होठ को फै लाइए। अब सी.सी.
क आवाज़ करते ए ास ल और फे फड़ म भर। जालंधर बंध लगाएँ व मुँह बंद कर तथा
नाक से धीरे -धीरे रे चक कर। यह एक च आ। इस तरह 8-10 बार कर।

िवशेष : िबना बंध के भी कर सकते ह।

लाभ: ी म ऋतु म करने से शरीर ठं डा रहता है।

शीतली के सभी लाभ िमलते ह।


गले, मुख, नाक रोग म लाभ िमलता है।
िप - कृ ित वाले अव य कर। लाभ ा होता है।
उ र चाप को सामा य करता है।

नोट : यह ाणायाम भी शीतली ाणायाम का एक कार है। यह भी शरीर को ठं डा


रखता है।
सावधािनयाँ: िन र चापवाले न कर।
वात- कृ ित के ि न कर।

कपाल-भाित ाणायाम

अथ : कपाल-भाित का अथ कपाल यानी खोपड़ी और भाित का अथ चमक या काश है।


िजस ाणायाम से माथे या मि त क का तेज कट हो वह ाणायाम कपाल-भाित
ाणायाम कहलाता है।

िविध : यह ाणायाम भि का ाणायाम क तरह ही है। इस ाणायाम म ास लेने क


गित धीमी होती है और ास छोड़ने क गित सश होती है। सामा य पूरक कर व पूरा
यान रे चक या म लगाएँ। अथात् शि पूवक ास बाहर िनकाल। सहज प से ास ल
और रे चक गितपूवक कर (कु छ िव ान इसके साथ बंध के अ यास क बात करते ह। यो य
िश क के िनदश म कर)। दोन ने को बंद कर आ ाच म यान लगाएँ और ताज़गी व
शि का अनुभव कर।
सावधािनयाँ: मोितया बंद (ने -रोग) से पीिड़त ह या कान म पीप वगैरह या अ य
बीमारी हो तो न कर।
उ र चाप दयरोगी, च र आना, गैि क अ सर से पीिड़त ि िववेक
का उपयोग करते ए धीरे -धीरे कर।

लाभ: इस ाणायाम से ताज़गी, शांित और स ता आती है।

मधुमेह और क़ ज़ का शमन होता है।


मि त क रोग म फ़ायदा िमलता है।
मोटापा कम करता है।
शरीर का वज़न संतुिलत करता है।
कई असा य बीमा रय को ठीक करता है।
कसर जैसे रोग म भी लाभदायक।
ास क गित बलपूवक होने के कारण डाय ाम म संकुचन एवं फै लाव के
कारण सम त उदर देश को लाभ प चाता है जैसे गुदां, आमाशय अ ाशय,
यकृ त, लीहा, गभाशय आ द सभी अंग सु वि थत होते ह।

नोट : कु छ िव ान इस या को ाणायाम मानते ह, जब क अ य िव ान इसको


ष कम क या कहते ह। िवशेष जानने के िलए लेखक क अ य पु तक
स पूण योग िव ा भी अव य देख।

एक सामा य व थ ि के िलए रे चक सं या 120 ित िमिनट संतोष द


मानते ह या 3 िमनट से लेकर रोग अनुसार 15 िमिनट तक कर सकते ह।
िवशेष: अिधक लाभ के िलए कपाल भाित ाणायाम गु िनदश म अिधक बार कर
सकते ह। च र आने या कसी कार क परे शानी महसूस होने पर रोक द और
शवासन कर।
ास बाहर िनकालते समय यह िवचार कर क हमारे शरीर के िवकार, सम त
कार के रोग, भय, अ ान, ोध, मान, माया, लोभ एवं दु:ख दूर हो रहे ह
और म शारी रक, मानिसक एवं अ याि मक प से सुखी हो रहा ।ँ

लािवनी ाणायाम
अ तः व ततोदारमा तापू रतोदरः।
पय यगाधेऽिप सुखा लवते पदमप वत्।। (ह.यो. . 2/70)
अथ : लावन का अथ तैरना या उतराना होता है। इस ाणायाम का िस साधक जल म
आसानी से तैरता है।

िविध : सुखासन म बैठकर दोन नािसका िछ से पूरक क रए। वायु को पेट म इतना
भ रए क वह फु गे के समान फू ल जाए या तन जाए। यथासंभव कुं भक कर और धीरे -धीरे
वायु को नािसका िछ से बाहर कर द - यह एक च आ। यथाशि इस म को
दोहराते रह।

लाभ: इसके अ यास से साधक पानी के ऊपर आराम से तैर (लेट) सकता है जैसे कोई
लकड़ी का टु कड़ा तैरता है।

पाचन-तं के अवयव ठीक कर क़ ज़ को दूर करता है।


मसान और अपान ाण को कु िपत नह होने देता।
राग ेष व तत आ मा के य अथात योग
प पंदन के कारण (मन वचन काय) एक
वायु संचािलत होती है और वायु से शरीर
पी यं अपने काय म वृि करते ह।
-आचाय पू यपाद वामी (समािध तं गाथा . 103) .

ाणायाम करने से शरीर के सू म कोष के अवरोध दूर


होते ह और उनका शोधन होते ए नािड़य म ाण का
सचार एक समान होता है।
-RJT
मु ा : एक दृि कोण
मारे ऋिष-मुिनय ने इस मानव-जाित को ब त कु छ दया। हमारे हण करने क
ह मता म ही कु छ किमयाँ थ अ यथा आज हमारे देश के पदिच ह पर पूरा िव चल
रहा होता। अनेक रह य से उ ह ने पदा हटाया। एक से एक िव ाएँ हम दान क
और उसी ृंखला म यह एक िव ान है िजसे हम मु ा िव ान कहते ह। यह आसन,
ाणायाम से अिधक गहरी प च ँ वाला, सू म माना जाता है। इनका भाव इतनी गहराई
तक प च ँ ता है क हमारी सम त जीवनदाियनी ऊजा क मता अिधक खर और
अंतरो मुख बनाई जा सके एवं उनम जो दुबलता, णता व िशिथलता का समावेश हो
गया है उसका िनवारण हो सके । इन मु ा का उपयोग कर हम अपने जीवन म अिधक
भावशाली ि व और आ याि मकता क चरम सीमा का आनंद उठा सकते ह।
घेर ड संिहता म प ीस मु ा का वणन आता है जो क सभी अनिगनत लाभ क
ज मदाता ह परं तु मु य प से हम उन मु ा का वणन करगे िजनका चलन यादा है।
अ य मु ा के लाभ भी हम इ ह मु य मु ा से ा होते ह। ये सभी मु ाएँ सरल ह
एवं िमक प से हम साथकता दान करती ह।

1. महामु ा
िविध : अपने आसन म स िच होकर दोन पैर सामने फै लाकर बैठ जाएँ। अब दािहने
पैर को मोड़ते ए एड़ी को गुदा ार के नीचे रख। त प ात् सामने झुकते ए बाएँ पैर के
अँगूठे को दोन हाथ से पकड़ तथा गहरी ास ल। मूल बंध एवं जालंधर बंध लगाएँ।
कुं भक करते ए अंतचतना को ऊ वमुखी बनाने का यास कर। कु डली-च का यान
कर तथा बंध हटाएँ। धीरे -धीरे रे चक या कर। यही म दािहने पैर से कर एवं यथासंभव
कुं भक कर। लगभग 3 से 5 च कर।

लाभ: उदर-रोग जैसे मंदाि , अजीण, अपच, क़ ज़ इ या द को दूर करता है।

बवासीर (अश) और मेह का नाश करता है।


यान के िलए उ कृ एवं कु डली जागरण म सहयोगी।
बढ़ी ई ित ली एवं यरोग दूर करता है।
पुराना वर नाशक है।
नोट : िवशेष जानने के िलए महामु ासन भी देख।
2. महावेध मु ा

िविध : दािहने पैर क एड़ी को गुदा- ार और लंग के बीच ि थत सीवन म ि थर कर।


बाएँ पैर को आगे फै लाकर बैठ जाएँ। सामने पैर के अँगूठे को दोन हाथ से झुकते ए
पकड़े। ास ल (पूरक कर)। दृि ूम य म रख। ि बंध लगाएँ (जाल धर बंध, मूलबंध,
उि यान बंध)। अंतःचेतना को देख।
मूलाधार से उ व के च का यान कर। यथाशि क। त प ात् उि यान, मूलबंध
और अंत म जालंधर को िशिथल कर तथा ने को सामा य कर। धीरे -धीरे रे चक कर।
िवशेष : कह -कह महावेध मु ा के समान ही बैठना है और कह -कह बंध लगाने के बाद
कू ह को धीरे -धीरे उठाते ए भूिम पर पटकना है। आसन म दृढ़ता के बाद यह अ यास
कर सकते ह।
घेर ड संिहतानुसार : पु ष के िबना जैसे ी का लाव य और प यौवन बेकार ह वैसे ही
महावेध के िबना मूलबंध और महाबंध िन फल है। पहले महाबंध मु ा का अ यास कर
उि यान-बंध कर कुं भक से वायु को रोक, इसे महावेध कहते ह। जो योगी ित दन महावेध
के साथ महाबंध और मूलबंध का आचरण करते ह। वे योगी योिगय म े हो जाते ह।
बुढ़ापा और मृ यु उन पर आ मण नह कर पाते अथात् उनका काया क प हो जाता है।

लाभ: कई िसि याँ वतः ा हो जाती ह।

शरीर पर झु रं याँ नह पड़त । ि सदा युवा दखता है।


कं पवात नह होता। बाल सफे द नह होते।
ाण सुषु ा म वािहत होने लगते ह एवं समािध भी लगती है।
नोट : महाबंध जानने के िलए ब ध अ याय देख।

3. खेचरी मु ा

िविध : साधक अपनी िज हा को उ टी ले जाकर तालू-कु हर म पश कराएँ (मुंह बंद रखते


ए)। यह मु ा खेचरी मु ा कहलाती है। साधक अपनी जीभ को तालू-कु हर से पश नह
करा पाता है अतः िज हा को बढ़ाने के तीन साधन बतलाए ह। छेदन, चालन और दोहन।
छे दन : जीभ के नीचे के भाग म एक सूताकार तंतु से जीभ जबड़े से जुड़ी ई रहती है इस
कारण जीभ को पलटकर तालू से लगाना मुि कल हो जाता है। इसके िलए ित दन उस
तंतु को सधा नमक क डली से रगड़े या य द श य या ारा िव छेद संभव हो तो वह
योग कया जा सकता है। कु छ दन के प ात् अ यास से िज हा का अ भाग तालू के
ऊपरी िछ म आसानी से चला जाता है।

चालन और दोहन : अँगूठे और तजनी अँगुली से या महीन (बारीक) व से जीभ को


पकड़कर चार तरफ़ उलट फे रकर िहलाने और ख चने को चालन कहते ह।
म खन या घी आ द से लगाकर दोन हाथ क अँगुिलय से जीभ को ख च (जैसे गाय
का तन दोहन करते ह)। धीरे -धीरे आकषण करने का नाम दोहन है।
इन सब या म जो सुखद लगे वह गु -िनदशन म करना चािहए। त प ात् जीभ
इतनी लंबी हो जाती है क नािसका के ऊपर ूम य तक प च ँ जाती है।
सावधानी : उपरो अ यास म ज दबाज़ी नह करनी चािहए। अ यथा प रणाम
खतरनाक हो सकते ह। िबना यो य िश क के न कर।
िवशेष : चय का पालन अव य कर। सफलता क संभावना बढ़ जाती है।
लाभ : अ यास हो जाने के बाद साधक रं से टपकने वाले मधुर रस अथात् अमृत का
पान करता है। जीभ के िव होने पर इड़ा, पंगला और सुषु ा के माग खुल जाते ह।
िजससे समािध क ि थित उ प होती है। अमृतपान करने से साधक अपनी मृ यु को भी
वश म कर लेता है (दीघायु होता है)। िन ा, आल य तथा भूख- यास इ या द अिधक नह
सताती।
नोट : हमने कु छ साधक देखे ह जो क वाभािवक प से िन य ित अ यास करने पर
अपनी िज हा को इतनी लंबी कर लेते ह क वह तालु-कु हर से पश हो जाए।

4.िवपरीतकरणी मु ा

िविध: घेर ड संिहता के अनुसार नािभ के मूल म सूय नाड़ी है और मुख के तालु
क जड़
म चं नाड़ी है। जब नीचे से सूय नाड़ी अपने तेज से शरीर म ि थत अमृत का पान कर
लेती है तब मनु य क मृ यु होती है। इसिलए सूय को ऊपर उठाना चािहए और च को
नीचे क ओर ले आना चािहए। इसका नाम िवपरीतकरणी मु ा है। इसके अ यास के िलए
साधक सवागासन क तरह ही दखने वाली िवपरीतकरणी या कर। थोड़े ही य से
मूलबंध और उि यान बंध वयं लग जाएँगे। घेर ड संिहता म आचाय कहते ह क तब
पूरक ाणायाम कर कुं भक कर एवं यथाशि क तो इसको िवपरीतकरणी मु ा कहते ह।
सावधानी: उ र चाप एवं दय रोग से पीिड़त ि न कर।

लाभ: जो साधक ित दन अ यास करता है वह मृ यु और बुढ़ापे को जीत लेता है।

इसके ित दन अ यास से जठराि दी होती है। अतः आहार क मा ा


संतुिलत रखनी चािहए।
च का यान करने से ओज, तेज, बल, वीय आ द क वृि होती है।
युवाव था बनी रहती है एवं ि थरता दान करता है।

5. व ोली मु ा

िविध : रबर क एक िवशेष नली िजसे के थेटर कहते ह, वह 4-5 न बर क डेढ़ फ ट के


करीब ल। यह नली मू निलका म वेश कराई जाती है। उस रबर क नली के अ भाग म
चार-पाँच इं च तक शु घी या बादाम का तेल लगाकर धीरे -धीरे मू निलका के िछ म
डाल। पीड़ा होने पर िनकाल ल और मश: अ यास कर एवं अ यास हो जाने पर इससे
थोड़ी मोटी निलका 7-8 न बर वाली डालने का अ यास कर। अ यास हो जाने पर नौिल
या से आँत को उठाकर मूलाधार को िसकोड़कर मू - णाली का संकुचन करते ए
पहले वायु का आकषण कर। त प ात् जल, दूध, (शु कया आ सं का रत पारा) का
आकषण कर। बाद म ये मू यागते समय बाहर आ जाते ह। इसका अ यास रबर
नली के बाद चाँदी क निलका से कर।
िवशेष : कसी यो य गु के िनदशन म ही कर।

लाभ: ऊजा ऊ वमुखी होती है। अतः शरीर कांितवान बनता है।

चय क र ा होती है।
मानिसक शांित, आनंद व आ याि मक लाभ िमलता है।
मृ यु पय त साधक युवा बना रहता है।
साधक के शरीर से सुगंध आने लगती है।
यह मु ा साधक को अमृत दान करती ई िव का महान योगी बनाती है।
मु ाएँ धीरे -धीरे साधक क आ मा को उ थान एवं
िवशु ता क ओर ले जाती ह।
-RJT

6. योिन मु ा/ष मुखी मु ा


िविध : सुखासन म बैठ जाइए। दोन हाथ अपने चेहरे पर इस कार रिखए क अँगूठे
ारा कान के िछ , तजिनय ारा दोन आँख, म यमा ारा नािसका रं और अनािमका
व किन ा ारा होठ के ऊपर आसानी से रखते बन जाए। काक मु ा ारा ाण को
ख चकर अपान वायु से िमला द। शरीर के च का यान करते ए या ह सः मं ारा
कु डिलनी शि को जगाते ए साधक अपनी उजा को सह ार म ले जाएँ। साधक
अ यास के समय के वल यह धारणा कर क वह भगवान िशव के साथ शि मय होता आ
आनंदमय िवहार कर रहा है और वह वयं पूण हो गया है। इसे योिनमु ा कहा गया
है।

लाभ: यह दुलभ मु ा है। इस मु ा के अ यास से साधक कई पाप से मुि पाता है।


(घेर ड संिहता)

शरीर म तेज, बल व वीय क वृि होती है।


शरीर िनरोगी होता है।
यह मु ा नया यौवन दान करती है।
पूण एका ता से अ यास करने पर साधक को सू म विनय का अनुभव
िमलता है।

देव के समान दखना चाहते हो तो ाणायाम एवं


मु ा का अ यास करो।
-RJT

7. शि चािलनी मु ा
िव िध : घेर ड संिहता के अनुसार मूलाधार म जो कु डिलनी साढ़े तीन लपेटे कु डली
मारकर सो रही है, जब तक यह सु अव था म है तब तक जीव अ ानी ही रहता है। अतः
स यक् ान ाि तक इसको जगाने का अ यास करना चािहए। जैसे िबना ताला खोले
ार नह खोला जा सकता वैसे ही कु डिलनी शि जागरण के िबना रं का ार नह
खुल सकता। एकांत थान म जाकर एक हाथ लंबा और चार अँगुल चौड़ा कोमल व
नािभ से लपेटकर कमर म बाँधे। शरीर म भ म, राख आ द लगाकर िस ासन म बैठ जाएँ।
अब ाण को ख चकर अपान वायु से िमलाएँ। अब अि नी मु ा ारा गुदा थान को
संकुिचत करते रह। इस कार कुं भक करने से सप िपणी कु डिलनी जागकर ऊपर क
ओर उठती है। शि चािलनी मु ा के अ यास के बाद योिनमु ा का अ यास कर।

लाभ: ित दन अ यास से िव ह-िसि सिहत सव िसि याँ ा होती ह।

सभी कार के शारी रक और मानिसक रोग समा होते ह।


आि मक आनंद क ाि होती है।

य द आप िनरोगी ह तो सदा िनरोग बने रहने के िलए योगा यास


कर और य द आप रोग त ह तो िनरोग होने के िलए
योगा यास अव य कर ता क आप व थ व सुंदर हो जाएँ।
-RJT

8. ताड़ागी मु ा
उदरं पि मो ानं कृ वा च ताड़ागाकृ ित:।
ताड़ागी सा परामु ा जरा मृ युं िवनाशनी।
(घे. सं. 3/73)

अथ : पि मो ानासन लगाकर बैठ और उदर को इस कार फु लाएँ मानो पेट के भीतर


पानी भरा हो; यही ताड़ागी मु ा है। इससे वृ ाव था और मृ यु पर िवजय ा करते ह।
पि मो ानासन म बैठे। दोन हाथ से पैर के पंज को पकड़, परं तु झुक नह । अब ास
अंदर ल और पेट को िजतना फु ला सकते ह फु लाएँ। यथाशि कुं भक कर। अंत म धीरे -धीरे
रे चक कर। रे चक करते समय पेट को तालाब जैसा गहरा बना ल। कही-कह योगीजन
कुं भक के समय वायु को तालाब म लहर क तरह चलायमान करते ह।

लाभ: उदर स बंधी सभी रोग न होते ह।

पेट लचीला होता है तथा पाचन-तं सुचा होता है।


वृ ाव था पर िवजय पाई जा सकती है।

9. मा डु क मु ा
मुखं संमु तं कृ वा िज ववामूल चालयेत।
शनै सेदमृतं तां मा डु क मु कां िवदु:।
विलतपिलतं नैव जायते िन य यौवनम।
न के शे जायते पाको यः कु यािन यमा डु क म्
(घे.सं 3/74-75)
िविध : मुख को बंद कर जीभ को तालू म घुमाना चािहए और सह ार से टपकते ए
अमृत का िज हा से पान करना चािहए। यह मा डु क मु ा है।
भ ासन म बैठ जाएँ (पृ 215 देख)। हाथ को घुटन पर रख। यथाशि िनत ब को
ज़मीन पर टकाएँ। मे द ड, गदन व िसर सीधा रख। मुख बंद कर। अब अंदर ही अंदर
िज हा को ऊपर तालू म दाएँ-बाएँ, ऊपर-नीचे घुमाएँ। इस कार क या करने से ंिथ
ाव होता है। ऋिष कहते ह क यही अमृत है। इसके पान से बुढ़ापा पास नह आता।
शरीर कांितवान रहता है, अतः साधक को िन य अ यास करना चािहए।
िवशेष : इस मु ा को करते समय सह ार पर यान एका कर आि मक आनंद का लाभ
उठाना चािहए।

लाभ: बाल का झड़ना एवं असमय पकना बंद होता है।

थायी यौवन क ाि होती है।


शरीर कांितवान बनता है व सम त रोग का नाश होता है।
यह मु ा शरीर म वात-िप -कफ़ का संतुलन थािपत करती है।

10. शा भवी मु ा

िविध : ूम य म दृि को ि थर करके यान पूवक परम आ मा का चंतन कर। यही


शा भवी मु ा है।
सुखासन म बैठ जाएँ। मे द ड, ीवा एवं िसर एक सीध म रख। हाथ को एक-दूसरे के
ऊपर रख ल या घुटन पर रखकर ान मु ा बना ल। अब पूण एका िचत होकर दृि दोन
भ ह के बीच कर और अपनी शु ा मा का यान कर।
िवशेष : आँख म दद महसूस हो तो िवराम कर। आँख म पानी के छ टे डाल या फर
पहले आँख के अ य अ यास कर ल।
समय : ास सामा य रखते ए अनुकूलतानुसार कर।

लाभ: आ ा च िवकिसत होता है।

अचेतन मि त क जागृत होता है।


आँख म आकषण पैदा होता है।
यान शि का िवकास होता है।
मरण शि ती ण होती है।

11. अि नी मु ा
आकुं चयेद ् गुदा ारं काशयेत् पुनः पुनः।
सा भवेदि नीमु ा शि बोधका रणी।।
आि नी परमा मु ा गुहारोग िवनाशन ।
बलपुि करी चैव अकालमरणं हरे त।् ।
(घे.सं 3/82-83)

िविधः सुखासन म तनाव रिहत बै ठए। ने को बंद कर व पूरक कर। कुं भक करते ए
गुदा ार का बार-बार आकुं चन (संकोचन) कर। यथाशि या कर। त प ात् रे चक कर।
सुिवधानुसार या कर।
िवशेष: ास या सामा य रखते ए भी कर सकते ह।

लाभ: अकाल मृ यु का भय ख म होता है।

गुदा देश के रोग वतः समा हो जाते ह।


कु डिलनी जागरण म सहायता िमलती है।
शारी रक और मानिसक लाभ िमलते ह।

12. पािशनी मु ा
क ठपृ े ि पे पादौ पाशवद् दृढ़ब धनम्।
सा एव पािशनी मु ा शि बोधका रणी।
पािशनी महती मु ा वयःपुि िवधाियनी।
साधनीया य ेन साधकै ः िसि कांि िभः ।।
(घे.सं 3/84-85)

िविध: दोन पैर को उठाकर गले के पीछे से लाते ए उ ह आपस म पाश के समान दृढ़ता
से बाँध ल। कु डिलनी को जगाने वाली यह पािशनी मु ा है।
िवशेष: यो य िश क क देख-रे ख म कर।
यान: िवशुि च या मूलाधार च ।

लाभ: बलव क है। शरीर पु होता है।

िसि दाता है। अ िसि याँ ा होती ह।


मानिसक शांित एवं स ता रहती है।

13. काक मु ा

काकच चुवदा येन िपबे ायं शनैः शनैः।


काक मु ा भवेदष
े ा सवरोग िवनाशनी।
काक मु ा परा मु ा सवत ेषुगोिपता।
अ याः सादमा ेण काकव ी जो भवेत्।।
(घे.सं 3/86-87)

अथ: कौवे क च च के समान मुख बनाकर धीरे -धीरे वायु पान कर। इससे सब कार के
रोग दूर होते ह। यह काक मु ा कहलाती है। इस अ यास से साधक कौवे के समान रोग
रिहत हो जाता है।
मह ष घेर ड का कहना है क यह मु ा गु रखनी चािहए।
िवशेष: इसम ास मुँह ारा ही लेना है। नािसका से नह लेना है परं तु ास छोड़ने का
काय मुख बंद कर नािसका ारा से ही करना है।

लाभ: सवरोग नाशक है।

शीतलता िमलती है।


उ र चाप म लाभकारी।
पाचन-तं ठीक कर क़ ज़ से छु टकारा दलाती है।
मानिसक शांित िमलती है।
सामा य प से यह कई बीमा रय का य करती है।
सावधानी: िन र चाप वाले न कर।

14. मातंिगनी मु ा
क म ेजले ि थ वा नासा यां जलमाहरे त।्
मुखािनगमये प ात् पुनव ेण चाहरे त।्
नासा यां रे चयेत, प ात कु यादेवं पुनः पुनः।
माति गनी परा मु ा जरामृ यु िवनाशनी।
िवरले िनजने देशे। ि थ वा चैका मानसः ।
कु या माति गनी मु ां मात ग इव जायते।
य य ि थतो योगी सुखम य तम ुत।े
त मात सव य ेन साधयेत् मु कांपराम्
(घे.सं 3/88-91)

अथ: गले तक जल म खड़े होकर नािसका ारा जल ख चकर मुख से जल को बाहर


िनकालना चािहए और फर मुख से जल भरकर नािसका के ारा िनकाल। पुनः नािसका से
जल ख चे और मुँह ारा बाहर िनकाल। यह या बार-बार कर। यह मातंिगनी नाम क
मु ा है।

लाभ: इसके िस होने से जरा-मरण का भय नह होता।

इसक िस कर तो हाथी के समान शि मान बन सकते ह।


इस मु ा को करने से सब कार के सुख िमलते ह।

15. भुजंिगनी मु ा
व ं कि सु साय चािनलं गलया िपवेत।
सा भवे भुज गी मु ा जरामृ युिवनािशनी।
याव उदरे रोगमजीणा द िवशेषत: ।
त सवना येदाशु य मु ा भु गीनी।
(घे.सं 3/92-93)

अथ: मुख को फै लाकर, खोलकर गले से वायु का पान कर एवं गले म पवन का ध ा ज़ोर
से लगे। इसको भुजंिगनी मु ा कहते ह। िस ासन, प ासन, या व ासन म बैठकर उपरो
िविध को करना चािहए।

लाभ: बुढ़ापा और मु यु का नाश करती है।

उदर-रोग स बंधी सभी िवकार का नाश होता है।


अजीण रोग दूर होता है। पाचन-सं थान मज़बूत होता है।
कं ठ-रोग दूर होता है।

16. योग मु ा
िविध : प ासन म शांतिचत होकर आँख बंद करके बैठ। ारं िभक अव था म दोन हाथ
को पीठ के पीछे ले जाएँ एवं दोन हाथ क हथेली से (इस कार दािहने हाथ म दािहने
पैर का पंजा तथा बाएं हाथ से बाएं पैर का पंजा पकड़ने म आएगा।) पैर के अंगूठी को
दोन हाथ के पंजी से पकड़े (इस कार दािहने हाथ से दािहने पैर का अगूंठा एवं बाय हाथ
से बाँये पैर का अंगूठा पकड़ने म आयेगा) अब ास छोड़ते ए िसर को सामने ज़मीन पर
धीरे -धीरे झुकाएँ। माथा ज़मीन से पश कराएँ। 10 से 15 सेक ड तक उसी ि थित म रहते
ए ास- ास करते रह। ास लेते ए मूल ि थित म लौट।
दशाः आ याि मक कारण से पूव या उ र दशा कर।
यान: सम त च को जागृत करने के िलए उपयु । मूलाधार एवं आ ाच पर िवशेष।

लाभ: पाचन-सं थान क ती करता है।

को ब ता दूर करता है।


आ याि मकता म लाभ प च
ँ ाता है।
मे द ड को पूण लाभ िमलता है।
चेहरे म िनखार लाता है ने योित ती होती है।
ट पणी: पूण आसन के िलए यथासंभव धीरे -धीरे यास कर। य द क ठनाई महसूस हो
तो हाथ को पीठ पर रखकर आपस म बाँध ल।
नोट: अिधक जानकारी के िलए योग मु ासन भी देख।

17. मु ा
आकृ ित: ा के चार मुख के समान।
िविध: कसी भी याना मक आसन (प ासन, सुखासन) म बैठे। मे द ड व धड़ को सीधा
कर आँख को बंद कर ल। हाथ को ान या िचन मु ा म घुटने पर रख। शांत मनोभाव से
इस मु ा का अ यास करने के िलए िसर सामने ि थर कर। फर िसर को धीरे -धीरे दािहनी
ओर घुमाएँ इतना धीरे -धीरे क वह ढाई िमनट म कं धे क सीध म आ जाए।
समय क गणना करने के िलए िगनती या साँस क सं या का सहारा ल। लगभग
चौथाई िमनट (15 सेक ड) ि थर रहने के बाद िसर को वापस बा ओर घुमाना ारं भ कर
तथा पाँच िमनट म बाएँ कं धे क सीध म प च ँ ा द। लगभग चौथाई िमनट (15 सेक ड)
ि थर रहने के बाद िसर को वापस दािहनी ओर घुमाना ारं भ कर तथा ढाई िमनट म
ारं िभक ि थित म प चँ ।े लगभग चौथाई िमनट(15 सेक ड) ि थर रहने के बाद िसर को
ऊपर क ओर ले जाना ारं भ कर। ढाई िमनट तक ऊपर उठाते ए िसर को अिधकतम
पीछे ले जाएँ। लगभग चौथाई िमनट (15 सेक ड) ि थर रहने के बाद िसर को वापस
सामने लाते ए नीचे क ओर पाँच िमनट म लाएँ। चौथाई िमनट (15 सेक ड) ि थर रहने
के बाद िसर को वापस ारं िभक ि थित म ढाई िमनट म ले आएँ। चार दशा म िसर क
गित म 21 िमनट तीत होने चािहए। यह मु ा का एक च माना जाता है। ास क
गित सामा य से कम रहेगी।
लाभ: बारी-बारी से गले क नस को तानने व ढीला करने से उनम शि व
लचीलापन आता है।

े िनयल न स जो गदन से गुज़रती ह, क अ छी मािलश हो जाने से मि त क


से िविभ अंग जैसे आँख, कान, नाक, िज हा इ या द व थ होते ह।
टॉि स स क अनचाही बढ़त, जलन व सूजन समा होती है।
मन को शांत, ि थर व अंतःक त करने म सहायक है। िजससे यान के उ
योग कए जा सकते ह।
िवशुि , आ ा व सह ार च पर भाव डालता है।

मु ा : उपसंहार एवं सम त लाभ


मु ा का अ यास सभी इ छा क पू त करता है। बुढ़ापे और मृ यु को दूर
रखता है।
परम गोपनीय और देव-दुलभ है। दु , नाि तक तथा अयो य ि को नह
बताना चािहए।
स ेभ ,उ चंतनशील एवं शांतिच वाले को यह ान देना चािहए।
सव ािध का नाशक है। िन य अ यास से शील क र ा होती है
जठराि ती होती है।
बुढ़ापे और मृ यु पर िवजय कर लेता है। उसे अि , जल और वायु का भय नह
रहता।
कास, ास, लीहा, कु , े मा आ द बीस कार के रोग दूर होते ह।
र शोधक है।
वात, िप व कफ़ का शमन होता है।

नए वग क रचना करनी हो तो
योग-िव ा को अपनाओ।
-RJT
अ ांग योग हमारे रोग और अ ान का नाश कर
वतमान और भिव य दोन का च ँमुखी िवकास
कर द ता दान करता है।
-RJT

योग द का नह
वतः लाभ का िव ान है।
-RJT
ह तमु ा िव ान

हमारा शरीर अनंत रह य का भ डार है। अभी हम जो िव ाएँ ात ह वे उन कै व य


ानी परमा मा ारा द ान का एक ितशत भी नह ह। य द हम उ ह एक
ितशत का कु छ भाग ात हो जाए तो हम ानमद से चूर हो जाते ह और कई बार हम
ान का अपच हो जाता है। इ ह अपच को दूर करने के िलए हम पौरािणक काल से
मह षय ने कई िस ांत ितपा दत कए, कई कार क वै ािनक कलाएँ िसखाई। वे
ाचीन वै ािनक कलाएँ आज कई प म िव मान ह। उ ह म से एक है ह तमु ा िव ान।
हम इन मु ा के ारा शरीर से बाहर जाने वाली शि य को अपने अंदर वापस
आ मसात् कर उ ह एकि त कर उसका ब आयामी लाभ उठा सकते ह। वैसे भी हमारा
शरीर कृ ित के पाँच त व से िमलकर बना है। कदािचत् कोई त व कम या यादा होता है
तो हमारा शरीर कई कार के रोग से िसत हो जाता है। उ ह त व को िनयंि त करने
के िलए ह त-मु ा का उपयोग करना िसखाया जाता रहा है। इनके अलावा हमारे शरीर
म तीत होने वाली कई अनजान घटना को भी इ ह ह तमु ा का अवलंबन लेकर
हम शारी रक, मानिसक तथा सू म शि य का लाभ उठाकर आ मउ थान कर सकते ह।
हमारे हाथ क पाँच अँगुिलयाँ हम पाँच त व क तरफ़ इं िगत करती ह। अँगूठा - अि
त व को, तजनी अँगुली- वायु त व को, म यमा (बीच क अँगुली)- आकाश त व को,
अनािमका – पृ वी त व को और किन ा अँगुली - जल त व को इं िगत करती है। इ ह
पाँच अँगुिलय से हमारे शरीर म आई कसी कृ ित थ िवकृ ित को मु ा के ारा इन
त व को सम कर हम वा य को ा कर सकते ह।

कसी भी अँगुली के अ भाग को य द अँगूठे से िमलाते ह तो उस अँगुली से स बंिधत


त व म आधी िवकृ ित सम हो जाती है। य द अँगूठे को कसी भी अँगुली के मूल भाग से
िमला द तो उस अँगुली से स बंिधत त व बढ़ने लगते ह। य द कसी अँगुली के अ भाग को
अंगु के थम पोर क ग ी से दबाते ह तो उससे स बंिधत त व घटने लगते ह।

इस कार हम कई बीमा रय को, चाहे वह शारी रक हो या मानिसक, इन मु ा का


योग करके अ हंसा मक लाभ उठा सकते ह। अत: हम उन कई मु ा म से मुख मु ा
का वणन करते ह।

1. ान मु ा

यह मु ा ब त यादा चिलत है। दखने म साधारण और भाव म अ यिधक लाभ देने


वाली है।

प ासन, अध प ासन, िस ासन या सुखासन जैसे कसी भी आसन म बैठ जाएँ एवं
हाथ को घुटन पर रखकर तजनी अँगुली के अ भाग को अँगु के अ भाग से पश कराएँ।
बाक़ अँगुली खुली ई लंबवत् ही रहगी। य द हथेली का मुख आकाश क तरफ़ करते ह तो
यह िचन मु ा कहलाती है और य द ज़मीन क तरफ़ करते ह तो वह ान मु ा कहलाती
है। (आजकल कु छ लोग चलते- फरते, उठते-बैठते टी.वी. वगैरह देखते ए भी ान मु ा
को बनाकर रखते ह।)

साधक को जब भी समय िमले यह मु ा अव य लगानी चािहए। इस मु ा के लगातार


अ यास करने से कई मानिसक बीमा रयाँ भी ठीक होती देखी गई ह। कई शारी रक
बीमा रयाँ जैसे न द न आना, उ माद, िमग , पागलपन, िचड़िचड़ापन, आवेश, ोध,
मरण शि ीण होना आ द म भी लाभदायक है।

कु छ साधक ान मु ा लगाकर यान क अव था म बैठकर तीसरे ने (आ ा च ) का


िवकास करते ह। इस कार हम मु ा को िनरं तर अ यास म लाकर कई कार के लाभ ा
कर सकते ह।

2. वायु मु ा
शरीर म य द वायु क अिधकता हो जाए तो कई कार क बीमा रयाँ हो जाती ह। जैसे -
हाथ-पैर का कांपना, लकवा, ग ठया, िसर दद, दय-िवकार आ द कई कार के वायु दोष
इस वायु मु ा ारा दूर कए जा सकते ह।

िच ानुसार तजनी अँगुली को मोड़कर अँगूठे क जड़ पर रख एवं अँगूठे को तजनी


अँगुली के ऊपर ह का दबाव रखते ए रख। शेष तीन अँगुिलयाँ लंबवत् रख। यह मु ा
वायु दोष को दूर कर शरीर म वायु को िनयंि त करती है।

3. शु य मु ा (आकाशीय मु )

इस शू य मु ा ारा हमारे शरीर म उ प दोष जैसे - कण रोग, कम सुनाई देना, कान का


दद आ द दोष ठीक कये जा सकते ह।

िच ानुसार म यमा अँगुली को अँगूठे क जड़ पर रखकर उस पर अँगूठे का ह का दबाव


बनाते ए रख। शेष तीन अँगुिलयाँ खुली ई रख। इस दोष से स बंिधत ि ज दी
व थ होने के िलए अपने दोन हाथ क मु ा का उपयोग कर लाभाि वत हो सकता है।

4. सूय मु ा
अनािमका अँगुली पृ वी त व का तीका मक व प है। अनािमका अँगुली ह तरे खा शा
के अनुसार सूय स बंधी भाव को दशाती है। यह अँगुली सूय के समान शरीर के िव ुत
वाह को भी वािहत करती है।

िच ानुसार अनािमका अँगुली के अ भाग को य द अँगु के जड़ भाग से पश कराया


जाए और अँगु का उसके ऊपर ह का सा दबाव डाला जाए तो यह सूय मु ा बनती है।

इस मु ा के योग से शरीर का मोटापा एवं भारीपन कम कया जा सकता है। इस


अँगुली के ारा कसी के भी आ ाच को पश कर उसे भािवत कया जा सकता है।

5. व ण मु ा

यह मु ा जल त व का तीक है। शरीर म जल त व क कमी होने के कारण शरीर म र -


िवकार, खापन आ द कई बीमा रयाँ ज म ले लेती ह। अत: िवकार दूर करने के िलए
व ण मु ा का योग कया जाना चािहए।

इस मु ा के िलए किन ा अँगुली के अ भाग को (िच ानुसार) अँगु के अ भाग से


िमलाने पर इस मु ा का िनमाण होता है।

सुरिभ मु ा
यह यौिगक मु ा रह यमयी मानी गई है। लगभग सभी साधक को यह मु ा अव य करनी
चािहए। यह शरीर म वात, िप , कफ़ के असंतुलन से उ प होने वाले दोष को अ भुत
तरीके से दूर करती है। इस मु ा के िनरं तर अ यास करने से ि ती गित से
आ याि मक व शारी रक लाभ उठा सकता है।

आचाय का कहना है क इस मु ा का वणन अकथनीय है। यह अपने अंदर अनंत रह य


को समेटे ए है।

िच ानुसार एक हाथ क अनािमका को दूसरे हाथ क किन ा और दूसरे हाथ क


किन ा को पहले हाथ क अनािमका से पश कराएँ। ऐसे ही म यमा अँगुली दूसरे हाथ क
तजनी अँगुली से और पहले हाथ क तजनी अँगुली दूसरे हाथ क म यमा अँगुली से पश
करे गी। दोन अँगूठे खुले रहगे।

7. पृ वी मु ा

इस मु ा के ारा ि अपने शरीर के सभी खिनज त व को संतुिलत कर सकता है।


शरीर के वज़न को यथावत् रखता आ शरीर को कांितवान बना सकता है।

िच ानुसार अनािमका अँगुली के अ भाग को अँगु के अ भाग से पश कराएँ तो यह


पृ वी मु ा बनती है।

8. अपान मु ा (मृत संजीवनी मु )


कहावत है क पेट नरम और र गरम होना चािहए। य द आपको क़ ज़ है, मल-मू पेट म
सड़ रहा है तो आपको कई कार क बीमा रयाँ हो सकती ह। य द अपान मु ा का योग
कर तो शरीर म वायु का कोप नह रहेगा, शरीर सुंदर और िनमल भी बनाया जा सकता
है।

इस मु ा के ित दन अ यास करने से अपान वायु िनयंि त होकर सम हो जाती है और


इस वायु के िनिमत से होने वाले सभी काय ठीक से होने लगते ह। दूिषत वायु एवं
मलावरोध इस मु ा के ारा सुचा प से होने लगते ह।

िच ानुसार इस मु ा को बनाएँ और इस मु ा का योग कम से कम 15 िमनट से 45


िमनट तक कर। अिधक लाभ के िलए अपान वायु मु ा के साथ ाण मु ा का भी योग
कर।

9. ाण मु ा

यह मु ा वा तव म ाणदाियनी है य क इस मु ा के अ यास से सारे शरीर म एक कार


क ऊजा का संचार होने लगता है। कमज़ोर से कमज़ोर ि भी इस मु ा के ारा शरीर
म होने वाले िवटािम स/ ोटीन क किमय को दूर कर वा य लाभ ले सकता है। ने -
िवकार दूर कर सकता है िजस कारण च मे के नंबर कम हो जाते ह या िब कु ल हट जाते ह।
ाणोपासना म ाण मु ा शरीर के सभी सं थान को सुचा प से काय करने म
सहायता करती है। िच ानुसार किन ा और अनािमका अँगुली के अ भाग से अँगु के
अ भाग को िमलाकर साधकगण इसका लाभ उठा सकते ह।

10. लंग मु ा

इस मु ा का योग शरीर क गम बढ़ाने के िलए कया जाता है। स दय म इसका योग


कर कई कार से शरीर सुरि त कया जा सकता है। इस मु ा का योग करके पुराने से
पुराना नज़ला (जुकाम) न कया जा सकता है।

िच ानुसार हाथ क समान अँगुिलय को फं साकर अँगु को ऊपर आकाश क तरफ़


तान द। इस मु ा को लगाने से कु छ ही देर म ‘सद म भी गम का एहसास' होता है।

अंत म हम इतना कहगे क सभी मु ा म एक बात क समानता है, वह है धैय,


लगातार अ यास और िव ास। इनके िबना कु छ भी करना बेकार है। अत: उपरो बात
का यान रखकर ही स पूण लाभ उठाया जा सकता है।

ह तमु ाएँ साधक के भीतर क नकारा मकता को दूर कर सकारा मकता का वेश
कराती ह।

-RJT
बंध : कार एवं लाभ

एक िववेचना : बंध का शाि दक अथ बंधन अथात् एक को दूसरे से िमलाना, बाँधना,


कसना, िनयं ण इ या द।

इस श द का योग इसिलए कया गया है क इसम शरीर के कु छ िवशेष अवयव या


आंत रक अंग को ाणवायु ारा कसकर बाँध िलया जाता है। ये बंध शि को अंतरो मुख
करते ह तथा ाणायाम म सहायक होते ह। साधक के शरीर म जब ाणायाम ारा ऊजा
वािहत होती है तब साधक इन बंध का उपयोग कर शि को बिहमुख होने से बचा लेता
है। ाणायाम ारा उ प शि को ये बंध आत रक अंग म िवतरण करने म सहायता
करते ह। इनका अ यास कु डली जगाने म भी कया जाता है। बंध का काय आंत रक अंग
क गंदगी को दूर करके अिधक व छ एवं ासुक बनाना है। बंध को लगाने से शरीर के
अवयव पु होते ह। एक कार क मािलश हो जाती है। बंध शरीर क नाड़ी-िवशेष को
ो सािहत एवं उ ह सुचा कर र ा द के मल को शु करते ह। इनको करने से वे सभी
ंिथयाँ खुल जाती ह जो हमारे शरीर म ि थत च म ाण के वाह को रोकती ह। इस
दौरान सुषु ा नाड़ी ारा ऊजा के वाह को दशा िमलती है, उ अ यासी समािध क
दशा म यह अनुभव ा करते ह। बंध एवं मु ा के योग से ाणायाम म िवशेष लाभ
िमलता है। चूँ क कुं भक (अंतकुं भक या बिहकुं भक) एवं बंध ाणायाम के िलए आव यक ह।
अत: कुं भक लगाने क मता बढ़ाना चािहए।

यहाँ हम मु य प से पाँच कार के बंध का उ लेख करगे।

मूल बंध
पा णना वामपाद य योिनमाकु ये तः।
नािभ ि थ मे द डे सुधीः संपी य त:।
मेढूं दि णगु फे न दूढब ध समाचरे त।्
जरािवनािशनी मु ा मूलब धो िनग ते।
संसारसागरं ततुमिभलषित यः पुमान॥
सुगु ो िवरलो भू वा मु ामेता सम यसेत।्
अ यासा धन या य म ि सि भवेद ुवम्।
साधये त त ह मौनी तु िविजतालसः।।
(घे.सं.3/6-9)

अथ : मूल का अथ जड़, आरं भ, आधार, बुिनयाद या धरातल होता है। योग िवषय म
मूलबंध का स बंध मूलाधार च से है, जो क गुदा और जननेि य के बीच ि थत होता है।

िविध : प ासन या िस ासन म बैठ जाइए। हथेिलय को घुटन पर रिखए तथा यान
क अव था म बैठ जाइए। मे द ड सीधा, ने बंद, शरीर क अव था िशिथल और
एका ता मूलाधार च पर।
ास अंदर लीिजए, अंतकुं भक लगाइए। इसी के साथ जालंधर बंध लगाइए। अब गुदा
भाग और जननेि य भाग को ऊपर क ओर आकु चन या करते ए उ ह ऊपर क तरफ़
ख िचए (आपने गाय आ द जानवर को मल यागने के प ात् देखा होगा क वह कस
कार गुदा को अंदर क तरफ़ ख चते ह) वैसे ही हमको भी अपने मूलाधार च देश को
ख चना है। यही मूलबंध क अंितम अव था है। मतानुसार कए। अधोभाग ढीला
क िजए व िसर ऊपर उठाइए एवं ास छोिड़ए। यह अ यास बिहकुं भक क अवि थित म
भी कर सकते ह। 5 से 10 बार अनुकूलतानुसार क िजए।

नोट आसन लगाते समय यान रहे क एड़ी का दबाव गुदा भाग म पड़े।

िवशेष : गलत अ यास के कारण शारी रक दौब य और पौ ष का अभाव होने क


आशंका रहेगी। अि नी मु ा के अ यास से साधक को मूलबंध पर अिधकार ज दी होता है।

लाभ : कु डली जागरण क या म सहायक।

ऊजा शि को ऊ वमुखी बनाता है। फल व प चेहरे के कांित, तेज, बल तथा


वीय क वृि होकर वृ भी युवा के समान दखाई देता है एवं उसी के समान
काय करने क मता ा कर लेता है।
जननेि य के िवकार दूर होते ह।
मूलबंध के िनरं तर अ यास से ाण, अपान एवं नाद और बंद ु एक होकर योग
िसि एवं परमा मा क ाि होती है।
जालंधर बंध के सभी लाभ भी ा होते ह।
चय साधने म सहायक।
गुदा संबंधी िवकार दूर होते ह जैसे अश, गुदा का बाहर िनकलना अा द ।

जीवन से कभी िनराश, हताश, उदास नह होना चािहए सुख और अनंत शि को


धारण करती ई आ मा पी ऊजा िव मान है। अत: उसको पहचान और जीवन को
पांत रत कर। -
-RJT

उिडडयान बंध

उदरे पि मं तानं नािभ व तुकारयेत।्


उड़ीयानं कु ते य मादिव ा तं महाखग:।
उड़ीयानं वसौ ब धो मृ युमातंगके सरी।
सम ाद ब धना येतदुड़ीयानं िविश यते।
उड़ीयाने सम य ते मुि : वाभािवक भवेत्।
(धे सं3/12-13)

अथ : उिड़यान का अथ ऊँचा उड़ना होता है। इस या म ऊजा अधोभाग से उठकर


ऊ वभाग तक वािहत होती है या जब शि ऊ वमुखी होकर सुषु ा म वेश करे , उसे
उिड़यान बंध कहते ह।

िविध : सावधान क ि थित म खड़े हो जाइए। अब दोन पैर के बीच लगभग 1 या डेढ़
फट का अंतर रिखए। घुटन को थोड़ा सा मोड़ते ए आगे क ओर झुक और हाथ को
घुटने के पास जाँघ पर रख। दीघ रे चक क िजए एवं बिहकु भक लगाइए। जालंधर बंध म
यथासंभव ठु ड़ी नीचे कर। अब पूरे उदर थान (पेट) को मे द ड क ओर पीछे (भीतर)
ख चे। यही उिड़यान बंध क अंितम अव था है। अनुकूलतानुसार अ यास कर। अब मश:
उदर को अपनी सामा य ि थित म लाएँ और जालंधर बंध को िशिथल कर। पूरक कर एवं
सामा य होने पर यही या दोहराएँ। इसक शि चालन ाणायाम भी कहते ह।
लाभ : दता ेय योग के अनुसार इस बंध के अ यास से वृ भी युवा हो जाता है। उिड़यान
बंध सव म बंध है। दय े क मांसपेिशय क अ छी मािलश होती है। उदर- देश के
अंग कोमल होते ह िजससे जठराि ती हो जाती है। इस बंध क उपमा शेर के समान क
गई है जो क मृ यु पी हाथी पर िवजय पा लेता है। चेहरे क झु रय को समा कर तेज
बढ़ाता है।

िवशेष : 5 से 10 बार आवृि कर। ख़ाली पेट कर।

नोट : इसका अ यास बैठकर (प ासन, िस ासन म) भी कया जाता है।

जलधर बंध
क ठसंकोचनं कृ वा िचबुक दये यसेत्।
जाल धरे कृते ब धे षोडशाधारब धनम्
जाल धरमहामु ामृ यो यका रणी।
िस दो जाल धरो ब धो योिगना िसि दायकः ।
ष मासम यसे ो िह स िस ो ना संशयः । ।
(घे.सं.3/10-11)

शाि दक अथ : जाल का शाि दक अथ जाला, जाली।

िविध : प ासन, िस ासन, वाि तकासन या भ ासन म बैठे। पीठ, गदन तथा छाती को
सीधा रख। दोन हाथ को घुटन पर रिखए। लंबी ास ल (पूरक कर) और अंतकुं भक कर।
िसर को सामने क तरफ़ झुकाइए। ठु ड़ी को छाती के ऊ वभाग (हसिलय के बीच) म
दबाइए। परं तु छाती (सीना) को ऊँचा उठाएँ ता क ठु ड़ी का पश आसानी से हो सके ।
ीवा भाग को न तो दबाएँ और न ही नीचे क तरफ़ धके ल। गले क माँसपेिशयाँ िशिथल
रख। ठु ड़ी रखने का थान कठकू प एवं िसर एक सीध म रख। अब िजतनी देर सामा य
कुं भक कर सक उतनी देर कए। शरीर िशिथल क िजए तथा िसर ऊपर क तरफ़ उठाइए
व धीरे -धीरे ास छोिड़ए। यह जाल धर बंध कहलाता है। इस कार यह आवृि 5 से 10
बार कर।

िवशेष : शा म आया है क िसर के ऊ व भाग म ि थत सह दल कमल से टपकने


वाले अमृत ाव को सभी ािणय क नािभ म ि थत अि अंदर ही जलाती रहती है।
अतः जालंधर बंध का अ यास कर साधक उस अमृत का पान कर िचरं जीवी बन।

भाव : यह इड़ा और पंगला नािड़य को भी दबाता है और सुषु ा (सर वती नाड़ी)


ारा ाण वािहत करता है।
लाभ : मि त क को आराम िमलता है, अहंकार का नाश तथा बु को िनमल करता है।
िवशुि च को जगाता है। क ठ-दोष दूर कर वाणी को शु करता है। मानिसक अवसाद,
चंता, तनाव ोध, िचड़िचड़ापन को दूर करता है। मानिसक एका ता बढ़ाता है एवं
मरण शि तेज़ करता है। स पूण शरीर को िनरोग रखता है।

नोट :: यह बंध खड़े होकर भी कया जा सकता है।

महाबंध

वामपाद व गु फे न पायुअ िनरो धयेत्


द पादेन तद्गु फ संपी यू यलत: सुधी: । ।
शनकै ालये याि ण योिनमाकु ये छनैः
जाल धरे धरे जाण महाब धो िनग ते । ।
महाब ध: परो ब धो जरामरण नाशन: ।
सादाद य ब ध थ साधये सववाि छतम् ।
(घे.सं. 3/14-16)

िविध : यान के कसी भी आसन म बैठे, परं तु मु यतः िस योगी आसन म ही बैठे।
इसम तीन बंध एक साथ लगाने होते ह। अब ास ल। पहले जालंधर बंध लगाएँ फर
उिड़यान बंध और मूल बंध लगाएँ। सम त च पर मशः मूलाधार से सह ार तक
यान लगाएँ। अनुकूलतानुसार उसी ि थित म रिहए। अब मश: मूलबंध, उिड़यान बंध
फर जालंधर बंध खोिलए। धीरे -धीरे ास ल तथा मूल अव था म आने के बाद यही म
दोहराएँ। उपरो तीन बंध का अ यास अ छी तरह हो जाने के बाद ही यह बंध लगाएँ।

लाभ : उपरो तीन बंध के सभी लाभ इस महाबंध से िमलते ह।

कु डली जागरण के िलए अ भुत।


बंद ु (वीय) बल क र ा हेत।ु
िच िशव-ि थित म प च
ँ जाता है। फल व प अनेक िसि याँ वत: ा हो
जाती ह।
गंगा, जमुना, सर वती के संगम क ही तरह तीन नािड़य का संगम होता है।

िज हा बंध

िविध : कसी भी याना मक आसन (प ासन, सुखासन) म बैठे व मे द ड व धड़ को


सीधा कर आँख को बंद कर ल। शांत मनोभाव से इस बंध का अ यास करने के िलए मुख
खोलकर िज हा को उलटकर तालू से लगाते ह। इसके उ अ यास के अंतगत िज हा को
कपाल गुहा म और उसके बाद गले म ले जाने का अ यास कया जाता है।

लाभ : योग व तं शा म व णत खेचरी मु ा को साधने म ारं िभक अ यास के


प म उपयोगी।
ललना च के जागरण म सहायक।
वाद व काम इि य पर िवजय पाने म सहायक।
याहार म सहायक।

अ त निहत शि योको जागृत करना हो तो बंध का अ यास कर।


-RJT
सटा याय: परम तप:
भगवान महावीर वामी

सम त योग िव ा क याएँ िसफ आ मा से परमा मा को ही िमलाने का काय नह


करत बि क कम के बंधन से छु ड़ाने का काय भी करती ह।
-RJT

शारी रक, मानिसक, सांसा रक, अ याि मक एवं पारलौ कक या ा को सुखद एवं
आनंदमय बनाने के िलए अ ांग योग के साथ आयुवद एवं धा मकता को जीवन का
आव यक अंग बनाय।
-RJT
हठ योग - (ष कम)

क मा भारत ही ऐसा है जहाँ ऋिष-मुिनय ने आ म त व क ाि के िलए अनेक


ए कार क िविधयाँ बताई ह। ि अपने-अपने कमानुसार ज म लेता है व मृ यु को
ा होता है। यही कारण है क उसी कम के अधीन मनु य के भाव एवं िवचार म
िभ ता होती है। योगाचाय को यह दशन पूव से ही ात था। उनका मानना था क य द
हम ि को िशवा मा का एक ही माग बताएँगे तो शायद सभी को एक साथ समझ म
नह आएगा। य क एक तो िवचार नह िमलग और दूसरा मनु य क शारी रक
अव थाएँ भी अलग-अलग होती ह। दुिनया का कोई काम करना हो तो उसके िलए सबसे
यादा ज़ री है 'अ छा वा य।' इस स बंध म एक कहावत भी चिलत है, ‘पहला सुख
िनरोगी काया।" यह पंि ब त सोच-समझकर िलखी गई है। यही कारण है क उन परम
उपकारी आ मा ने हम योग दशन दया िजससे हम शारी रक प से व थ बन और
वही या मक अ यास हमारे जीवन को सुंदर बनाने म सहयोग कर। अंतत: हम उस
िनजा म त व का दशन कर िजससे हमारा ज म-मरण च समा हो जाए और हम कै व य
को ा कर सक।

इसी म को उ ह ने यथावत् रखते ए हम योग क कई कलाएँ िसखाई। उसी कला म


से एक कला का नाम है - मलशोधन ष कम।

मह ष घेर ड िलखते ह क –

ष कमणा शोधनंच आसनेन भवेददूढ़म।


मु या ि थरता चैव याहारे ण धीरता।
ाणायामा लाघवं च याना य मा मनः ।
समािधना िन ल ं च मुि रे व न संशयः।।
(घे.सं. 1/10-11)

अथ : ष कम से शरीर क शुि होती है। आसन से शरीर म दृढ़ता आती है। मु ा


से
ि थरता आती है और याहार से धीरता बढ़ती है। ाणायाम से शरीर म फू त और
ह कापन आता है। यान ारा आ मा य होती है तथा िन वक प समािध के ारा
िबना संशय के मुि होती है।

हठयोग म ष कम के बारे म िलखा है क :-

मेदः शले मािधकः पूव ष कमािण समाचरे त् ।


अ य तु नाचरे ािन दोषाणां समभावत:। ।
धोितवि त तथा नेित ाटकं नौिलकं तथा।
कपालभाित ैतािन षट् कमािण च ते।।
कमषटकिमदं गो यं घटशोधनकारकम।

िविच गुण संधािय पू यते योिगपुंगवै:।


(ह.यो. .2/21-23)

अथ : आचाय कहते ह िजस पु ष म मेद और े मा आ द क अिधकता हो उसे पहले


ष कम करना चािहए। अथात् िजनको कफ़ क अिधकता हो, जुकाम हो, (नाक-मुँह से कफ़
िनकलता हो) थूलता आ द से पीिड़त ह , उ ह शरीर शुि हेतु मलशोधन ष कम करने
चािहए। ले कन िजनम थूलता, े मा आ द न हो उ ह ष कम क आव यकता नह होती
है। मलशोधन ष कम के नाम िन िलिखत ह।
1. धोित
2. वि त
3. नेित
4. ोटक
5. नौिल
6. कपाल–भाित

िव ान आचाय ने ये ष कम योग माग म बताए ह। ये ष कम गोपनीय तथा शरीर को


शु करने वाले और िविच गुण को उपजाने वाले ह। योगीजन इनक शंसा करते ए
कहते ह क य द ये गु न रखे जाएँ तो अ य लोग भी इसको करगे िजससे योगीजन क
पू यता न रह सके गी। योिगय को उ कृ बनाना ही ष कम का उ े य है।

एवं घेर डसंिहता म िलखा है क :-


धोितवि त तथा नेितः लोिलक ाटको तथा।
कपालभाित ेतािन ष कमािण समाचरे त।
(घे.सं. 1/2)

अथ : धौित, वि त, नेित, लौिलक (नौली), ाटक और कपाल–भाित इन षट् कमाँ को


शरीर शुि हेतु कर।

घोिन
घेर ड संिहता म इसक िव तृत ा या क गई है। धौित चार कार क ह
1. अंतधौित
2. द तधौित
3. ौित
4. मूलशोधन

1. अंतधोित

अंतधित का अथ शरीर के अंदर क शु ता (सफ़ाई) या आंत रक ालन। इसके िलए हम


जल, वायु और व का उपयोग करते ह। अ तधाँित भी चार कार क ह।
1. वातसार
2. वा रसार ।
3. अि सार
4. बिह कृ त

1. वातसार धौित

दोन होठ को कौए क च च के समान करके धीरे -धीरे वायु को पीएँ। पूण प से वायु का
पान कर लेने के प ात् पेट म उसका चालन-प रचालन कर और फर धीरे -धीरे उस वायु
को िनकाल द। यह वातसार धौित या है।
लाभ : इससे जठराि दी होती है। उदर स बंधी रोग न होते ह। शरीर क िनमलता
बढ़ती है।

2. वा रसार धौित (शंख– ालन)


यह या कायाक प के नाम से भी जानी जाती है अत: यह मह वपूण या है। वा रसार
धौित का पूणाथ आ, ‘जलत व से धोना।' इस या से साधक नव-यौवन ा कर लेता
है। शरीर पूण व थ होकर कांितमान बन जाता है।
िविध :: मुख ारा धीरे -धीरे इतना जल िपएँ क क ठ तक भर जाए। फर उदर- देश का
संचालन करके अधोभाग (गुदा) से िनकाल द। यह वा रसार धौित अ यंत गु और शरीर
को िनमल करने वाला है। यह या िन य ित और सावधानी पूवक करने से साधक देव
तु य शरीर ा करता है।
ा या : इस िविध को करने के कई कार चिलत ह। चूँ क इस िविध से शरीर के अंदर
उदर- देश पूणत: शु हो जाता है अतः इसे करने से पहले कु छ तैयारी कर लेनी चािहए।
जो साधक इसका पूण लाभ ा करना चाहते ह वे दो-तीन दन पूव इसक तैयारी कर ल।

हमारा मत है क यह या अिधकतर साधकगण ही करते ह, अत: उनका खान-पान


वैसे भी सादा रहता है। तब भी हम दो-तीन दन पहले से अपना खान-पान ह का रख तो
और भी अ छा है। िमच, मसाले, खटाई, तेल, भारी भोजन और पेट भर भोजन करना
सवथा याग कर देना चािहए। इससे शरीर शुि करने म परे शानी नह होती। शंख-
ालन से पहले व बाद म ये चीज़ लेनी चािहए- मूंग क दाल, चावल क िखचड़ी, घी
आ द भोजन सुपा य भी है और आरामदायक व ह का भी है। िजस साधक ने अपने उदर-
देश को मह व दया है वह हमेशा व थ रहता है। शंख- ालन क या क िवशेष
मह व इसिलए भी दया जाता है य क वह हमारे आमाशय क शुि करता है। आमाशय
म भोजन के कण, न पचने वाले भो य पदाथ और मल इ या द िचपक जाता है तथा सड़ने
लगता है िजससे हमारे उदर- देश ि थत माँसपेिशयाँ कमज़ोर हो जाती ह और हमारे
भोजन से वह पूण प से उपयोगी त व को हण नह कर पात । र दूिषत होने लगता
है। वायु दोष उ प हो जाता है। नािड़याँ अशु हो जाती ह िजसके कारण हम पूरी उ
व थ नह रह पाते।

हमारी आँत शंख क तरह घुमावदार होती ह। िजस कार शंख बजाने से पूव शंख म
एक तरफ़ से पानी डाला जाता है एवं दूसरी तरफ़ से िनकाल दया जाता है, तो शंख
याशील हो उठता है। उसी कार मुख ार से जल पीकर मल- ार ारा िवशेष िविध से
िनकाल दया जाता है, िजससे शरीर योग साधना के िलए तैयार हो जाता है। यही या
शंख ालन के नाम से जानी जाती है।

शख- ालन
िविध : थम कार - आज कल कई योग क म अपने-अपने तरीके से (साधक क
प रि थित अनुसार) अ यास कराए जाते ह। हम यहाँ अिधक चिलत या का वणन
करगे। एक बा टी म साफ़ छना आ पानी ल (कपड़े से छान ल ता क कोई अशुिचता न रह
जाए) उसे गरम कर और पानी को कु नकु ना (पीने यो य) कर ल। त प ात् उसम साफ़
िपसा आ इतना नमक िमलाएँ क पानी का वाद नमक न हो जाए तब कागासन अथात
कधे के बराबर क दूरी पैर म थािपत करके बैठे। थम दो िगलास पानी ज दी-ज दी पी
ल ता क जल नीचे आँत तक चला जाए। अब गु िनदशानुसार मशः 1. ितयक भुजंगासन
। 2. ितयक ताड़ासन 3. क ट च ासन एवं उदराकषणासन इन चार आसन क आठ-आठ
आवृि याँ कर। फर दो िगलास पानी पीिजए एवं उपरो आसन क पुनरावृि क िजए।
फर दो िगलास पानी पीिजए एवं आसन को दोहराइए। शौच को जाएँ, य द शौच नह
आता है तो पुनः दो िगलास पानी पीिजए अब आपको शौच अव य आएगा। पहले ठोस
प म आएगा फर पतला मल िनकलेगा। शौच जाने के बाद पुनः जल का सेवन कर एवं
आसन क पुनरावृि कर। अब आपको शौच एकदम पतला पानी जैसा पीलापन िलए ए
िनकलेगा। फर से जल का सेवन कर। आपको शौच िबलकु ल पानी जैसा ही साफ़
िनकलेगा। ज़ री नह है क आपका पेट िबलकु ल साफ़ हो जाए। हो सकता है आपको
इसके िलए आसन क कई बार पुनरावृि करना पड़े। जब आपका शौच पूणतः पानी जैसा
ही िनकलने लगे तो समिझए क आँत म िचपका मल पूणतः िनकल गया है और आपक
शंख- ालन क या पूरी हो गई है। अब चार िगलास पानी पीकर कुं जर या कर।
सारा जल वमन कर बाहर िनकाल द। इसके बाद जल नेित कर। फर लगभग 1 घंटे बाद
तैयार क ई मूंग क िखचड़ी शु देशी घी के साथ खाएँ।

ि तीय कार - पहले शंख ालन क तरह ही साफ़ छने ए पानी को गरम कर उसे
कु नकु ना कर ल। अब इतना नमक िमलाएँ क वाद नमक न हो जाए। उसके बाद दो न बू
िनचोड़ द और अ छी तरह से िमला ल।

अब दो िगलास कु नकु ना जल िपएँ और िन िलिखत पाँच आसान मपूवक चार-चार


बार कर। (1) भुजंगासन (2) ि -पा ासन (3) पवनमु ासन (4) िवपरीतकरणी आसन
(5) ह तपादासन। जब तक शौच जाने क इ छा न हो तब तक जल पीते रह और उपरो
आसन को दोहराते रह। चार-छः िगलास पानी एवं आसन को दो या तीन बार दोहराने
से मल यागने क इ छा अव य होगी। तब साधक को तुरंत शौच के िलए जाना चािहए।
हो सकता है मल कड़क जाए। उसके बाद फर से दो िगलास जल का सेवन कर और आसन
का अ यास कर। शौच न आ रहा हो तो फर से दो िगलास जल िपएँ और आसन का
अ यास कर। इस बार मल पतला िनकलेगा।

यह या आपको तब तक करनी है जब तक मल ार से साफ़ पानी न िनकलने लगे। जब


साफ़ पानी िनकलने लगे तो समझना चािहए क पाचन णाली पूणत: मल रिहत हो गई
है। य क साफ़ पानी तभी िनकलता है, जब आँत म िचपक अशुि और मल पूणत: न
िनकल जाएँ। इसके प ात कु जर- या अव य करनी चािहए। लगभग चार िगलास पानी
पीएँ एवं कुं जर- या के ारा पेट म भरा आ पानी िनकाल द। और नेित या भी कर तो
अ छा है।

तृतीय कार - शंख ालन म कह -कह पाँच कार के आसन करवाए जाते ह। उसम
जो आसन जोड़ा जाता है उसका नाम है ताड़ासन। उनके म भी बदल जाते है। (1)
ताड़ासन (2) ितयक ताड़ासन (3) क ट च ासन (4) ितयक भुजगासन (5)
उदराकषणासन। बाक िविध उपरो ानुसार ही है।

नोट : तीन कार म आसन के अ यास म ही अंतर है। बाक़ अ य याएँ पहले शंख
ालन क ही तरह ह एवं लाभ भी एक जैसे ह।

लघु शंख ालन


िविध : उपरो शंख ालन क ही तरह कु नकु ना पानी नमक सिहत तैयार क िजए।
चूँ क ात:काल का समय ही उिचत रहता है अत: उसी समय क िजए। दो िगलास (आधा
लीटर) पानी पीिजए। पहली िविध म दए आसन क आठ-आठ आवृि क िजए। शौच
जाने क इ छा न हो तो दो िगलास पानी फर पीिजए और आसन को दोहराइए। य द
अभी भी शौच न आ रहा हो तो दो िगलास पानी पीिजए और आसन क पुनरावृि
क िजए। शौच अव य आएगा। अत: तुरंत मल का याग कर।

िवशेष : चूँ क इस िविध म पूण शंख


ालन क तरह जल का सेवन और आसन को तब
तक नह कया जाता जब तक आँत क पूणतः शुि हो जाए। अत: इस लघु ालन म
यादा सावधानी क ज़ रत नह पड़ती।

सावधानी : शौच जाने के बाद कम से कम 1 घंटा कु छ नह खाना चािहए और उ


र चाप व िन र चाप एवं कसी कारण से उदर- देश के रोग से पीिड़त हो तो ि
यो य िश क क देख-रे ख म कर।

नोट : िजन ि य को क़ ज़ बनी रहती है वे चाह तो स ाह म दो बार यह या (लघु-


शंख ालन) कर लाभाि वत हो सकते ह।

शख ालन क या म आसन कै से काम करते ह - एक वै ािनक प ित

शंख ालन क या धैय एवं सजगता के साथ क जाती है। मुख से जल हण कर


मल ार से िन कािसत करने क यह एक वै ािनक िविध है। जब हम कागासन म बैठकर
नमक िमला कु नकु ना पानी पीते ह, तो यह नमक िमले कु नकु ना पानी से गला तथा आहार
नली एवं अमाशय क संकाई व सफाई हो जाती है। जब थम आसन ितयक भुजंगासन
करते ह तो यह अमाशय क धुलाई करता है। ास भरकर दाएँ-बाएँ मुड़ने से डाय ॉम का
दबाव अमाशय पर पड़ता है तथा पाइलो रक वा व को स पीिड़त करता है। िजससे
अमाशय का जल छोटी आँत क तरफ़ ती ता से बढ़ता है ितयक ताड़ासन म पैर को
िमलाकर हाथ क अँगुिलय को आपस म गुि फत कर उ ह पकड़ते ए ास भरकर दाएँ-
बाएँ मुड़ते ह। इससे पसिलय का दबाव छोटी आँत पर बगल से तथा डाय ॉम का दबाव
ऊपरी तरफ़ से पड़ता है छोटी आँत का जल बड़ी आत म धके ल दया जाता है। क ट
च ासन म पैर को लगभग एक फ़ट क दूरी पर थािपत कर हाथ को सामने क ओर
तथा ज़मीन के समाना तर रखते ए ास भरकर दाएँ-बाएँ कमर से जब मुड़ते ह तब बड़ी
आँत के ऊपर दबाब बढ़ता है और जल तथा मल मलाशय वाले भाग म चला जाता है।
चूँ क मलाशय आहार नली का िनचला िह सा होता है। अत: मलाशय वाले भाग पर दबाव
उदराकषणासन से थािपत कया जाता है। कागासन म बैठकर ास को भरकर हथेिलय
को घुटन पर रखते ए बाएँ पैर के घुटने को दािहने पैर के पंजे के पास लाते ह एवं दािहने
पैर से पेट पर दबाव थािपत करते ह। यही या िवपरीत पैर से भी करते ह।
उदराकषणासन मलाशय के ऊपर दबाव डालता है। िजससे मल एवं बाद म पानी बाहर
िनकलने लगता है। बार-बार उपरो आसन करने से पहले कड़ा मल बाद म पतला मल
एवं त प ात िसफ़ पानी ही िनकलता है। यह या तब तक करते रहनी है जब तक साफ़
पानी न िनकलने लगे। कभी-कभी शौच जाने क इ छा होती है पर शौचालय म बैठने पर
मल िवसजन नह होता तब शौचालय म ही उदराकषणासन का अ यास कर लेना
चािहए।

कु ल - शंख ालन या के 15 िमनट प ात् िबना नमक के गम पानी पीकर कु ल


कर लेना चािहए तथा जल नेित भी करना चािहए एवं उिचत होगा क या के बाद ान
न कर। बंद कमरे म िव ाम कर।

आहार - लगभग 1 घ टा होने पर हरी मुंग क दाल तथा चावल से िन मत पतली


िखचड़ी िजसम नमक, ह दी आ द न डाला हो, का आहार िलया जाए। िखचड़ी म लगभग
50 ाम शु घी डाल लेना चािहए य क जो बार-बार नमक पानी पीने से खु क उ प
होती है, वह घी के कारण समा हो जाती है तथा िचकनाहट आ जाती है।

आयुव दक योग - काली िमच, गुलवन सा ड डाचूण, तुलसी प , बड़ी िलया जाए और
पानी के थान पर य द उ काढ़े का योग कया जाए तो उ म है।

शंख- ालन (एक वै ािनक कारण)

य द हम अपने शरीर पर दृि डाल और यह सोच क पूरे शरीर को कौन सा अंग िवशेष
प से भािवत करता है ? ऐसा कौन सा अंग है जो क हमारे इस पूरे शरीर को पोषकता
दान करता है? ऐसा कौन सा अंग है िजसके िलए ि सुबह से शाम तक कमाता है तो
उ र एक ही आएगा और वह है पेट (उदर)। आदमी इसी पेट के िलए सब कु छ करने को
तैयार हो जाता है और इसी पेट क वजह से पूरा शरीर संचािलत होता है।

अब चूँ क हम मालूम है क इसी पेट क वजह से हमारा शरीर, अ व थ होता है तो य


हम इस पेट म ख़राब व तु डाल अथात् हम य ऐसी खा साम ी का सेवन कर जो क
हम आज नह तो कल नुक़सान प च ँ ाएगी और िजसके कारण हमारे पूरे उदर- देश का
बंधन ख़राब होता है। िजसक वजह से सैकड़ कार क बीमा रयाँ उ प होती ह। क़ ज़
होता है, इस कारण आँत म मल िचपक कर सड़ता रहता है िजस कारण िवषा वायु पैदा
होती है। रोग को उ प करने वाले बीजाणु, क टाणु बनने लगते ह और य द हम देख तो
बाहर से बीमा रय का हमला कम ही होता है। आदमी अपने अंदर ही सैकड़ बीमा रय
को ज म देता है।

शंख ालन क या से अंदर आँत म मल नह िचपक पाता। मल नह िचपकता तो


रोगाणु नह पनप पाते, दुगिधत वायु उ प नह हो पाती। आँत के साफ़ होने से भूख
ठीक ढंग से लगती है। पाचन-तं हमारे आहार म से पूणत: िवटािमन, ोटीन को ख च
लेते ह िजससे हमारे पूरे शरीर को उिचत पोषण िमलता है। हमारा शरीर सुग ठत होता
है। हमारे शरीर क रोग- ितरोधक मता बढ़ जाती है अत: बाहर के क टाणु भी िनि य
हो जाते ह। हम पूणतः व थ हो जाते ह। िजससे हमारा मि त क भी अ छा काय करता
है, मरण शि तेज़ हो जाती है। आँख िनमल होती ह। चेहरे पर तेज बढ़ जाता है। शरीर
क वृि उिचत ढंग से होती है। र िवकार नह हो पाता। सु ती आ द आत रक िवकार
उ प नह होते। वात, िपत, कफ़ नह बन पाते अत: उनसे होने वाले रोग भी नह होते।

इस कार हम देख तो शंख ालन क या पूणत: वै ािनक है िजसके लाभ हम


सा ात् दृि गोचर होते ह। अतः हम अपने जीवन म शंख ालन क या कम से कम
एक-दो बार करके उसक अनुभूित अव य करनी चािहए। गु देव योगाचाय फू लच द
योगीराज हमेशा ष कम पर िवशेष मह व देते ह उनके ारा रिचत किवता यहाँ तुत है
:

कु जल/गजकरणी के िलए
बधु िनश दन शोिधय देह मिलन मल ार,
िजनसे बहता रहे अितघृिणत अपावन सार।
घृिणत अपावन सार देह म ािध बढ़ावे,
मल सचय मान िन य ष कम करावे।
कहत ‘योगीराज’ वा य का मम यही है,
देह शुछ हो जाए वात कफ िप सही है।
शंख- ालन के िलए
देह ताप अनुसार ही पानी गम कराय,
खाली पट िपलाइय सधा नमक िमलाय।
सधा नमक िमलाय पच आसन करवाए,
आसन क उपरात पुन: शौचालय जावे।
कहत योगीराज अत गजकरणी क रए,
नित या कराय पेट का पानी ह रए/

लाभ: वायु घट गम घटे चम रोग िमट जाए,


जठराि क तज़ कर कफ़ को देय नशाय।
कफ को देय नशाय अजीरण शी पछार,
खासी रोग िवनशाय नािड़याँ सभी सुधारे ।
कहतो 'योगीराज" शि कु जर सी लिहयो,
कु जर या कराय सदैव िनरोगी रिहए।
तन शुि आलस हटै बवासीर िमट जाए,
चम रोग इ या द भी कभी न टकन पाए।
कभी न fटकनं प य भग दर Ifध नशIव,
तन पु ष व बढ़ाय आज अ आभा आव।
उिचत रीित अपनाय शाख ालन क जै।

शंख- ालन के स पूण लाभ


शंख- ालन या से कई लाभ ा होते ह, जो इस कार है।
शंख ालन ही मा एक ऐसी या है, जो मुँह से लेकर मल ार तक क सफ़ाई
करती है।
पेट क कृ िम एवं आँत म पनपने वाले अमीवा को यह बाहर िनकाल देता है और नूतन
पाचक रस को ािवत कर पाचन सँ थान का कायाक प कर देता है।
य द उपरो िविध व सावधािनय का पालन कया जाए तो मोटापे से पीिड़त ि
का वजन स ाह भर म 3 से 4 कलो तक कम हो जाता है और दुबले-पतले ीण
काय ि म नवीन ऊजा का संचार होता है।
उदर-िवकार स बंधी सम त बीमा रय का नाश होता है। चाहे वह क़ ज़ हो, वायु दोष
हो, िप दोष हो या कफ़ दोष हो, इस कार यह ि दोष नाशक है।
शरीर का कायाक प करके यौवन दान करता है। चम रोग िमटाता है।
आज िवकराल प ले चुका मधुमेह इस या से शनै: शनै नाश को ा होता है।
आलसपन समा होता है।
इस या के बाद ि वयं को ह का व पूण व थ महसूस करता है साथ ही
मानिसक प से भी पूण व थ रहता है।
िसर दद ( कसी भी कार का) पूणत: ठीक हो जाता है।
अँ सुंदर, बड़ी, आकषक एवं िनरोग हो जाएँगी
चेहरा सुंदर, तेजवान व चमकदार हो जाता है।
र दोष दूर होता है। मुँह से िनकलने वाली दुग ध का नाश होता है।
शंख- ालन क या के बाद आसन, ाणायाम, मु ा, बंध, यान एवं कु डिलनी
जागरण म िवशेष लाभ िमलता है।
यह या शरीर के िलए अ भुत एवं अमृत के समान है। पु ष व शि म वृि होती
है।
बावासीर एवं भगदर रोग म लाभ।

शख- ालन क सावधािनयाँ


दूध एवं दूध से बनी साम ी िमच मसाले खटाई तथा ग र आहार का शंख ालन के
बाद एक ह ते तक योग विजत है।
शंख- ालन के बाद कुं जल या एवं जल नेित ज़ र कर ता क आपके मुख से लेकर
उदर- देश एवं नाक तक क सफ़ाई हो जाए।
शंख- ालन के तुरंत बाद ान न कर/कम से कम उस दन ठं डे जल से ान न कर।
इस या के बाद आराम कर पर सोएं नह ।
अित मेहनत का काम न कर।
एक ह ते तक ह के ायाम कर। योगासन क ज टल या न कर।
िन र चाप उ र चाप एवं मानिसक रोग से पीिड़त ि न कर।
ती उदर-िवकार से िसत ि न कर।
गभवती ि याँ न कर।

3. अि सार अ तधौित
नािभ ि थ मे पृ शे तवारं च कारयेत।
अि सारिम धौितयोिगना योगिसि दा।
उदरामयजं वक वा जठराि िवव येत्।
एषा धौितः परा गो या देवानामिप दुलभा ।
के वलं धौितमा ेण देवदेहं भवे ुवम्।।
(धे.सं. 1/19-20)

िविध : अि सार धौित के िलए ाणवायु को कुं भक करके नािभ को मे पृ भाग पर


लगाएँ। इससे पेट के सम त रोग न होते ह। यह अि सार धौित कम अ यंत गोपनीय और
देवता के िलए भी दुलभ है। यह या करने से मनु य का शरीर देव के समान हो जाता
है।

भावाथ : कसी उपयु आसन पर बैठ जाएँ। िजससे यह या करना आसान हो। जैसे
व ासन, प ासन, िस ासन आ द। मे द ड सीधा रख। लंबी व गहरी ास ल एवं मुँह से
पूरे पेट क वायु को िनकाल द। अब बिहकुं भक कर ता क नािभ मे द ड के अंद नी िह से
को पश कर। इसी अव था म पेट को ती गित से अंदर बाहर करना है। लगभग 10 से 15
बार अपनी मतानुसार कर। तब धीरे -धीरे ास ल। यही या पुनः कर। इस या से
उदर- देश का सारण और संकुचन होता है। पेट के सभी अंग का ायाम हो जाता है
िजससे वह सुचा प से काम करने लगते ह व उनक काय मता बढ़ जाती है।

िवशेष : ख़ाली पेट कर। उपरो या 3-4 बार कर। गु के िनदश म ही कर।

सावधानी : यह बात िवशेष प से यान देने वाली है क दय रोगी/उ र चाप/


उदर के ज टल रोग/ अ थमा आ द रोग म न कर।

लाभ : उदर- देश के सभी अंग क मािलश हो जाती है। अत: सभी अंग सुचा प से
काम करते ह और उनक काय मता बढ़ जाती है। जठराि और पाचन-तं शि शाली
होता है। उदर-िवकार का नाश होता है अतः पूण शरीर म व थता बनी रहती है। शरीर म
ओज, तेज क वृि हो जाती है। िजस कारण साधक देव सदृश तीत होता है।

4. बिह कृ त अंतधौित
काक मु ां शोधिय वा पूरयेदद
ु र म त।
धारयेदधयामं तु चालयेदधोव मना।
एषा धौितः परा गो या न काशया कदाचना।
(घे.सं. 1/21)
िविध : दोन होठ को कौवे क च च के समान कर। वायुपान करते ए उदर को पूरा भर
ल तथा उस वायु को डेढ़ घंटे तक उदर म रोक। त प ात् प रचालन करके गुदामाग से
बाहर िनकाल द यह परम गोपनीय बिह कृ त् धौित है।

िवशेष : यह या कसी यो य गु के िनदश म कर। यह एक क ठन या है।

लाभ : सभी नािड़याँ शु होती ह।

शरीर युवा बना रहता है।


शरीर म नई शि का संचार होता है।
वात-रोग का शमन होता है।

ालन कम
नािभम जले ि थ वा शि नाड़ िवसजयेत।्
करा यां ालयेनाड़ याव मलिवसजनम्।
ताव ा य नाड़ च उदरे वेशये पुन:।
इदं ालनं गो यं देवानामिप दुलभम्॥
के वलं धौितमा ेण देवदेहो भवेद ् धुवम ।।
यामाध धारणाशािवत याव धारये रः ।
बिह कृ त मह ौित ताव ैव न जायते ।
(घे.सं. 1/22-24)

अथ : नािभपयत जल म खड़े होकर शि नाड़ी को बाहर िनकालकर जब तक मल दूर न


हो तब तक धोएँ या ािलत कर। जब साफ़ हो जाए तब उसको वापस अंदर कर द। यह
ालन या ब त ही क ठन है देवता को भी दुलभ है और इस ालन धौितकम
मा से देवता के समान शरीर हो जाता है।

िवशेष : यह धौित अ यंत क ठन है। यह धौित उस गु के िनदशन म कर जो वयं यह


करने म समथ हो। पु तक के आधार पर या कसी के कहने से नह करना चािहए। यहाँ
एक बात मह वपूण है क ‘यह देवता को भी दुलभ है" कहने का आशय है क अ छे-
अ छे ानी, िव ान लोग को भी यह ात नह है। दूसरा "देवता जैसा शरीर हो जाता
है" अथात् शरीर का ओज, तेज, कांित व बल इतना अिधक हो जाता है क वह शरीर
देवता के समान तीत होता है।

हम इतना कहगे क उपरो सभी धौित मशः धैयपूवक अनुकूलतानुसार, यो य


िश क व वत: के मश: अ य त होने पर ही कर।

2. दंत धौित
द तमूलं िज वामूलं र ं च कणयु मयोः।
कपालर प ैतेद तधौित वधीयते।
(घे.सं. 1/25)

अथ : दंत धौित के पाँच कार ह –


1. दाँत क जड़ को धोना (दंत मूल)।
2. जीभ मूल को धोना। 3. दायाँ कान। 4. बायाँ कान
5. कपाल िछ का ालन।

1. दंत मूल धौित

कसी अ छे मंजन से दाँत माँजना चािहए। योिगय को यह साधन दाँत के कई रोग से


सुर ा के िलए ित दन अव य करना चािहए।

2. िज हा शोधन धौित

िज हा शोधन ारा जीभ क लंबी करके जरा, मरण और कई रोग का नाश हेतु यह या
करनी चािहए।

तजनी म यमा और अनािमका इन तीन अँगुिलय को िमलाकर मुँह म डालकर जीभ के


मूल को साफ़, व छ करना चािहए। शनै: शनै: करने से कफ़ दोष का नाश होता है।
उपरांत जीभ म म खन लगा ल और दोहन कर (दूध दुहने जैसी या) ऐसा करने से जीभ
क लंबाई बढ़ जाती है। िज हा शोधन धौित से कफ़ का नाश होता है। इससे स बंिधत
नािड़याँ शु होती ह। जीभ हमेशा साफ़ और मुलायम बनी रहती है।

3. कण धोित

यह दंत धौित का तीसरा कार है। तजनी और अनािमका अँगुिलय से ित दन कण-िछ


क सफ़ाई कर। ित दन करने से नाद क अनुभूित होती है। इससे कान क सफ़ाई हो
जाती है। अंदर से िनकलने वाला मल एवं बाहर से अंदर जाने वाला कचरा दोन साफ़ हो
जाते ह। अत: कान के अंदर क टाणु नह पनप पाते एवं कण-रोग होने क संभावना कम हो
जाती है।
4. कपालरं धौित

िसर के बीच म िजसे हम कपाल रं कहते ह उसक दािहने हाथ से ह के -ह के पानी ारा
थपक देना चािहए। ऐसा करने से कफ़ दोष का िनवारण होता है। इससे स बंिधत नािड़याँ
िनमल और शु होती ह। साधक को द दृि ा होती है। इसका अ यास ात:काल,
भोजन उपरांत और सं या के समय करना चािहए।

3. द धौित
ौित ि िवधांकुया डवमनवाससा।
(घे.सं. 1/35)
अथ : दय धौित के तीन कार है– द ड धौित, वमन धौित और बसन धौित (व धौित)
जो क दय का शोधन करने वाली है।

क. द ड धौित

िविध : के ले के पौधे के बीच ि थत द ड अथवा ह दी का द ड या िचकने बत का द ड गले


ारा उस द ड को धीरे -धीरे वेश कराएँ और पुनः उसे धीरे -धीरे िनकाल। अथात् उस
द ड को गले ारा अंदर-बाहर धीरे -धीरे कर यह द ड धौित कफ़, िप , तथा लेश
(अकु लाहट) आ द िवकारी मल का शमन करती है। इससे दय के सम त रोग का नाश
होता है।
िवशेष: अिधकतर के ले के पौधे से िनकाले गए द ड का ही योग कया जाता है।
कसी योग िश क क देख-रे ख म कर।

ख. वमन धौित
भोजना ते िपबे ा र-चाक ठं पू रतं सुधीः
उ वाँ ि ण कृ वा त ल वमये पुन:।
िन यम यास योगेन कफिप िनवारयेत्।
(घे.सं. 1/38-39)

अथ : साधक को भोजन के अ त म गले तक पानी पीकर त प ात कु छ देर बाद ऊपर क


ओर देखते ए उसे वमन के ारा िनकाल देना चािहए। इस योग से कफ़ और िप का
िनवारण होता है।
इस वमन धौित के दो कार ह। पहले कार के अ यास को खाली पेट कया जाता है।
िजसे कु ल या गजकरणी कहते ह। दूसरी िविध म साधक भोजन के प ात करता है, िजसे
ा या या बाघी या कहते ह।

1. कु ल या/गजकरणी या

िविध : लगभग दो लीटर जल कु नकु ना ल। उसम लगभग दो चाय के च मच के बराबर


नमक डाल द कसी ऐसी जगह का चयन कर ल, जहाँ पर आप आसानी से वमन या को
कर सके । अब कम से कम छः िगलास पानी तुरंत ज दी-ज दी पी ल। आपको लगता है क
इससे भी अिधक पानी पी सकते ह तो पीएँ (धीरे -धीरे या घूंट-घूंट करते ए पानी न पीएँ)
अब आपको वमन करने क इ छा होगी सामने झुक, और िसर एवं धड़ को लगभग ज़मीन
के समाना तर या कमर से ऊपर के धड़ को समकोण सा बना ल। मुँह खोले और अपने
दािहने हाथ क म यमा और तजनी अँगुली को अंदर डाले एवं जीभ के िपछले भाग का
ह के -ह के अँगुिलय से रगड़े ऐसा करने से वमन होना शु हो जाएगा। अमा य का पूरा
जल तेजी से बाहर िनकल जाएगा। इस कार अमाशय को िब कु ल खाली करने के िलए
दो-तीन बार अँगुिलय का सहारा ल। इस या ारा अमाशय साफ होने से िनकलने
वाला जल भी साफ िनकलेगा।

2. ा या या बाधी या

िविध : यह या उदर म िबना पचा आ भोजन या अपच हो जाने पर वमन धौित क


इस या ारा िनकाल दया जाता है।

सामा यतया भोजन के आधे घंटे बाद तैयार कया आ जल को लगभग 5-6 िगलास या
िजतना अिधक पेट म पानी आ सके , पीएँ। उपरो प ित क तरह अमाशय म भरे ए
पानी और अपचे भोजन को वमन या ारा िनकाल द। य द ऐसा लगता है क अभी
वमन या और क जा सकती है तो दोबारा पानी पीकर अमाशय के खराब जल को बाहर
िनकाल द। इसके बाद जल नेित या कर ल।

सावधािनयाँ

O वमन या म ब त अिधक जोर न लगाये एवं मन को इस या के िलए तैयार कर ल।


पूणतः अमाशय खाली हो जाता है। अतः कम से कम 30 िमिनट तक कु छ न खाएँ।
िन र चाप, उ र चाप, दय रोग, िमग , म योग गु से बात कर। लाभ : इन
या से अ सर और अित अ लता वाले रोग नह होते। िप शा त होता है।
िसरदद, माइ ेन (आधासीसी दद) म ब त यादा फ़ायदा होता है। सड़े ए भोजन को
बाहर िनकाल कर मुँह से आने वाली दुग ध समा होती है। भारीपन, क़ ज़, िमतली
आ द से छु टकारा िमलता है। उदर देश के अवयव को उ ी करती है िजससे पाचन
स ब धी िवकार दूर होता है। गैस क सम या से छु टकारा िमलता है। सद -खाँसी
म लाभ िमलता है। आँख क रोशनी बढ़ती है।

ग. वसन धौित (व धौित)

इस या म चार अँगुल चौड़ा और पाँच हाथ लंबा महीन कपड़ा लेकर धीरे -धीरे िनगल
जाएँ। फर धीरे -धीरे इस कपड़े को बाहर िनकाल। यह व धौित कहलाती है।.

िविध : लगभग 2 इं च चौड़ा कपड़ा और लगभग 8 फट लंबा सूती (कॉटन) का महीन


कपड़ा मुँह के ारा धीरे -धीरे िनगल। कपड़े का पहले वाला िह सा जब जठर तक अंदर
प च
ँ जाए तब धीरे -धीरे कपड़े को वापस िनकाल ल। यह अ यास मौन रहते ए ात:
समय म खाली पेट कर। इसके अ यास से रोग और िप एवं कफ़ का नाश होता है। इस
योग से शारी रक बल, सुख व िनरोगता दनो दन बढ़ती है।

4. मूल शोधन (गणेश या)

जब तक पेट साफ़ नह होता तब तक अपान वायु क ू रता बनी रहती है। गुदा से वायु
क से िनकलती है। अतः मूल शोधन अव य करना चािहए।
इस या के िलए ह दी क कोमल जड़ से या फर अपने हाथ क म यमा अँगुली से
गुदा ार साफ़ करना चािहए। म यमा अँगुली को गीला करके धीरे -धीरे गुदा के अंदर
वेश कराएँ और अंदर अँगुली को धीरे -धीरे चलाएँ। अंद नी िह से क दीवार को अँगुल
से साफ़ कर। ऐसा करने से अपान वायु ारा क नह होता है।

मूलशोधन या से गुदा म जमे कड़े मल का िन कासन होता है और वायु ारा होने


वाले रोग म कमी आती है। अजीण दूर होता है। जठराि तेज़ होती है। शरीर क कांित
बढ़ती है और देव क जैसी पु ता ा होती है।
वि त
जल वि तः शु कवि तवि त च ि िवधौ मृतौ ।

जल व तं जले कु या छु कव तं सदा ि तौ।


(घे.सं.1/45)

वि त कम दो कार का है - जल वि त और शु क वि त। जल वि त का अ यास जल म
और शु क वि त का अ यास भूिम (सूख)े पर कया जाता है।

जल वि त
नािभम जले पायु य तालो कटासनः।
आकु नं सारं च जल-व तं समाचरे त।्
मेहं च उदावत ू रवायुं िनवारयेत।्
भवेत् व छं द देह कामदेवसमो भवेत।् (घे.सं.1/46-47)

िविध : नािभ पय त जल म बैठकर उ कट आसन लगाएँ और गुदा- देश को िसकोड़ और


फै लाएँ (आकुं चन और सारण), इसी को जल वि त कहा गया है।

इस अ यास के िलए कसी बड़े पा म या नदी, तालाब म नािभ तक जल म ि थत


होना चािहए और उ कट आसन लगाएँ एवं गुदा ार का आकुं चन और सारण कर, जैसे
अ आ द जानवर मल याग के समय करते ह। अिधक से अिधक गुदा ार को िसकोड़
और फै लाएँ। ऐसा करने से पहले जल थोड़ी-थोड़ी मा ा म अंदर जाता है फर अ यास हो
जाने पर जल क मा ा बढ़ जाती है और आत म िचपका मल जल को बाहर करते समय
िनकल जाता है। इससे आंत रक अंग क सफ़ाई हो जाती है। चूँ क गंदगी िनकलती है अतः
यह या बहते पानी म कर।

लाभ : मेह का नाश होता है।

उदर रोग का शमन होता है।


कु िपत वायु को दूर करने म सहायक है।
देह िनमल होकर देव के सदृश कांितवान बनती है।
नािड़याँ भी शु होती ह।

थल वि त
वि त पि मो तानतो चालिय वा शनैरधः ।
अि नी मु या पायुमाकु चयेत सारयेत।् ।
एवम यासयोगेन को दोषो न िव ते।
िवव ये ठराि मा वातं िवनाशयेत। (घे.सं. 1/48-49)

िविध : अि नी मु ा के ारा गुदा का संकुचन एवं सारण करना चािहए और


पि मो ानासन म बठकर नीचे के भाग म वि त का प रचालन कर। यह थल वि त
कहलाती है। इसके अ यास से वात, िप व कफ़ का नाश होता है। जठराि बढ़ जाती है।
आमवात और को के दोष आ द रोग का नाश होता है।

नेित या

िवति तमानं सू म सू ं नासानाले वेशयेत् ।


मुखािनगमये प ात् ो यते नेितकमकम् ।।
साधना ेित काय य खेचरी िसि मा ुयात्।
कफ़दोषा िवन यि त द दृि ः जायते ।। (घे.सं. 50-51)

िविध : आधा हाथ लंबा डोरा नािसका िछ म डालकर उसका चालन करके मुख के ारा
उसे बाहर िनकाल, यह सू नेित कम है।

िवशेष : नेित पाँच कार क होती है जल नेित, सू नेित, दु ध नेित, घृत नेित एवं तेल
नेित।

जल नेित
िविध : इस अ यास के िलए एक ऐसा लोटा लेते ह िजसम से एक लंबी ट टी िनकली
रहती है। उस लोटे म कु नकु ने पानी को थोड़ा सा नमक के साथिमलाकर भर ल। िसर को
दािहनी तरफ़ थोड़ा सा झुकाते ए लोटे क ट टी को बाएँ नािसका ार के भीतर डािलए
और जल को अंदर जाने दीिजए (मुँह को खोलकर रख ता क ास- ास कया जा सके )।
जल धीरे -धीरे बाएँ नािसका िछ के भीतर जाकर दािहने नािसका िछ से बाहर िनकल
जाएगा। य द जल नह िनकल पा रहा हो तो िसर और लोटे का झुकाव ठीक कर। जल
िनकलने क या वाभािवक होती है। लगभग पूरे लोटे का जल बा तरफ़ से डाल।
त प ात् ती गित से ास बाहर कर जैसे भि का ाणायाम म करते ह। इस कार
करने से नािसका िछ साफ़ हो जाएगा। अब यही या दािहने नािसका िछ से कर। इस
या के बाद नािसका-रं को व छ कर लीिजए।

सू नेित

साधन : इस अ यास के िलए लगभग एक फ़ ट लंबा सूत का महीन धागा लेते ह।


आजकल साधक रबर क नली िजसे के थेटर कहते ह, (यह मेिडकल टोस म आसानी से
उपल ध है) इसका भी उपयोग कर सकते ह।

िविध : महीन धागे के िसरे पर मोम लगाकर कड़ा कर ल और इसे धीरे -धीरे नािसका
िछ म डाल। धागे का िसरा मुँह म आ जाता है। इसको हाथ से पकड़ ल और दोन िसर
को आगे पीछे ख च। यह या दोन नािसका िछ से बारी-बारी से क िजए। 25 से 30
बार यह या दोहराएँ। पूण सजगता के साथ कर।

लाभ : दोन नेित या से कई लाभ ा होते ह। घेर ड संिहता के आचाय का


कहना है क इससे आकाश-गमन क शि आती है। कफ़ स बंधी सभी दोष दूर होते ह।
ने -रोग का नाश होता है तथा द दृि ा होती है।

नोट : जलनेित एवं सू नेित के अलावा दु धनेित, धृतनेित, तेलनेित, दहीनेित और


वमू नेित भी योिगजन करवाते ह।

लौिलक (नौिल)

अम दवेगेन तु दं ामयेदभ
ु पा वयोः।
सव रोगािनह तीह देहानल िवव नम ।। (घे.सं. 1/52)
अथ : अित बल वेग से उदर को दोन तरफ़ घुमाएँ। इसी का नाम लौिलक है। इससे
सभी कार के रोग न होते ह। जठराि तेज़ होती है और पाचन तं को मज़बूत करती है।

नोट : उदर शि िवकासक या नं. 10 भी देख।

ा या : ातःकाल कर, जब पेट साफ़ और ह का हो गया हो। पैर के बीच एक या डेढ़


फट का अंतर रखकर खड़े हो जाइए। थोड़ा सा झुकते ए घुटन पर हाथ रिखए। घुटन
पर दबाव दीिजए। या ारं भ करने से पहले ास बाहर िनकाल। कोिशश कर क ास
पूरी तरह से बाहर हो जाए और पेट पीठ के अंद नी िह से से िचपक जाए। अब पेट को
बाहर क तरफ़ कर। ऐसा बार-बार कर ता क नौिल या करने म आसानी हो। अब घुटन
पर दबाव डालते ए गुदा के पास उदर ायु को संकुिचत करके उदर के म य भाग तक
ले आएँ और बाहर िनकालने का य कर। यह म यम नौिल है।

अब बाई ओर ह का झुकते ए बाएँ हाथ पर दबाब बढ़ाइए। इससे उदर के ायु बाँई
तरफ़ आ जाएँगे। यह वाम नौिल है। यही या दि ण नौिल के िलए क िजए। इसम उदर
ि थत सभी पेिशयाँ दािहनी तरफ़ आ जाती ह। यह दि ण नौिल कहलाती है।
अब समान गित और मनोबल का योग करते ए मानुसार म यम नौिल, वाम नौिल
और दि ण नौिल क िजए। धैय पूवक अ यास से नौिल या म आप अ य त हो जाएँग।

िवशेष/सावधानी : नौिल के प रचालन के समय छाती, कं ठ और ललाट पर नािड़य का


द हो रहा है ऐसा लगता है। द त लगने चालू हो सकते ह। इस या के पहले
पि मो ानासन और मयूरासन का अ यास कर लेना चािहए। उिड़यान बंध और अि सार
या म द होना आव यक है। पूण सावधानी पूवक और यो य गु के िनदशन म कर
अ यथा उदर रोग, आमवात, क टवात, शु - दोष या कोई अ य रोग हो सकता है। पहले
बाएँ से अ यास कर। त प ात् दािहनी तरफ़ से भी यही अ यास कर। इस या म द ता
िनयिमत अ यास से ही संभव है। आमाशय म शोथ, िप कोप जिनत अितसार,
वािहका (पेिचश), सं हणी, उ र चाप वाले ि तथा दय रोगी इसे न कर।

लाभ : नौिल या को सभी या म मूध य कहा है।(ह.यी. .)

पाचन-तं स बंधी िवकार (मंदाि , गैस व क़ ज़) म लाभ दहै।


मेद कम करता है।
मानिसक शांित, कु डिलनी जागरण, यान, एका ता आ द कई लाभ ा
होते ह।
सभी कार के वात रोग का शमन होता है।
आचाय ने इस या को संजीवनी बूटी कहा है।
ाटक

ाटक के स बंध म यहाँ सू कार कहते ह क बगैर पलक झपकाए कसी लघु ल य पर
टकटक लगाकर देखते रहना ाटक है। इसके अ यास से शा भवी मु ा क िसि होती है।
ने -िवकार का य होकर द दृि ा होती है।

ाटक या को भले ही हठ योग का एक अंग माना गया हो परं तु ाटक करने वाले
कु छ साधक हठयोग के बारे म नह जानते कं तु फर भी इसका अ यास कर जीवन को
आनंदमय बनाते ह। सचमुच म ाटक या का अपना अलग ही मह व है। ाटक को दूसरे
श द म स मोहन (िह ो ट म) भी कहते ह। ित दन अ यास करने वाले साधक क आँख
म आकषण न हो, ऐसा हो नह सकता। सच बात तो यह भी है क ाटक को अब दशन
क व तु बना िलया गया है। जहाँ-तहाँ इसके सेिमनार आयोिजत होते ह और िसफ़ ाटक
को ल य बनाकर व ा एक घंटे का भाषण देकर चले जाते ह। उनक पूरी योगा मक
प ित न तो वे बता पाते ह और न ही आम ि ठीक से समझ पाता है।

ाटक से िसफ आँख म ही आकषण नह बढ़ता बि क इतना यादा आ मबल आ जाता


है क हम दूसरे के मन क बात को भी समझ लेते ह। इस योग से यान का माग श त
होता है और आ याि मक ऊजा भी ा होती है। जीवन को सुंदर बनाना हो तो ाटक का
अ यास मानुसार, िविधपूवक व धैय के साथ सीख। ाटक के अ यास ारा आप सामने
वाले ि को स मोिहत तो कर ही सकते ह तथा बड़ी से बड़ी सभा को भी आप अपनी
ओर आक षत कर सकते ह।

मनमोहक, तेजोमय व अ भुत बन जाती ह। आज इसके कु छ उदाहरण हमारे सामने ह


जैसे भगवान रजनीश (ओशो), वामी िववेकानंद, वामी िवशु ानंद परमहंस ( ानगंज,
िहमालय) आ द ऐसे सैकड़ उदाहरण ह, जो अपनी आकषण शि का उपयोग करके लोग
को अपना बना लेते थे। वयं लेखक सूय ाटक ह। ाटक का उ े य आँख बड़ी करना नह
होना चािहए। कु छ ाि क भावना भी होनी चािहए। आप ाटक क सहायता से दु मन
को भी दो त बना सकते ह। हंसक पशु को भी वश म कर सकते ह।

ाटक क कई िविधयाँ चिलत ह। हम यहाँ मु य िविधय का ही वणन करगे ता क


साधकगण लाभाि वत हो सक।

िविध : आप एक ऐसे थान का चयन क िजए जो साफ़, सुंदर व शांितमय हो तथा


वातावरण भी अ छा हो। वहाँ जब तक आप अ यास कर तब तक कसी कार का िव न
हो पाए।

ाटक करने क व तु से लगभग 4 फ ट दूर सुखासन म बै ठए। सबसे पहले मोमब ी


जलाइए और इसको उिचत दूरी पर रिखए (मोमब ी एवं आँख समक होना चािहए)
य द कमरे म हवा का आवागमन अिधक होगा तो मोमब ी क लौ िहलेगी िजससे आँख म
िवकार हो सकता है। इसिलए बेहतर होगा क उसके तीन तरफ़ काँच या लाि टक का
आवरण लगा द और सामने से खुला रख। अब स िच होकर मोमब ी क ऊपरी लौ को
बगैर पलक झपकाए देख। शु -शु म आँख म जलन मचेगी अतः धैय पूवक अ यास कर।
यथाशि िन वकार व िन नमेष होकर देखने का यास कर। एकदम से काफ़ देर तक न
देखते रह अ यथा दूसरे दन अ यास म क ठनाई महसूस होगी। लगभग 5 से 6 महीने के
अ यास से सफलता िमलने लगती है। मोमब ी क जगह दीपक या अगरब ी से अ यास
कर सकते ह परं तु अंधेरे कमरे म कर।

िबना आकु लता के जब तक देख सकते ह देखने का यास कर। तदोपरांत आँख बंद कर
उसी लौ को देखने का यास कर। वह लौ आपको कु छ देर तक आँख बंद करने पर भी
दखेगी। यह आपका अंत: ाटक कहलाएगा एवं एका ता और दृि दोन ि थर हो
जाएँगी।

ाटक करने क और भी कई िविधयाँ चिलत ह जैसे बंद,ु च , सूय, चं , तारे , दपण,


नािसका का अ भाग, अपने इ देव क ितमा, चमकता आ बंद ु आ द। आजकल बना
बनाया ाटक चाट िमल जाता है। इससे भी आप अ यास कर सकते ह। णव मं ॐ पर
भी कु छ साधक ाटक करते ह।
िवशेष : इस अ यास को तनावरिहत होकर कर। स ता रख। यथासंभव चय और
शाकाहा रता का यान रख। अथात् जो साधक काम-िवकार क तरफ़ यान नह देता और
शु शाकाहारी भोजन करता है उस साधक के अंदर िवल ण शि का ादुभाव होता है।
वह धीरे -धीरे भूत तथा भिव य को भी जानने म समथ हो जाता है। उसके अंदर कई
शि याँ आ जाती ह। वह जीवन के सव िशखर पर प च ँ जाता है।

नोट : आँख म जलन महसूस होने पर उ ह मल (रगड़े) नह । उन पर ठं डे पानी के छोट


डाल या गुलाब जल का योग कर। िजनक आँख कमज़ोर ह वे ाटक का अ यास
िववेकपूवक कर।

यह साधना उतनी सरल नह है िजतनी क दखाई देती है। इसके िलए धैय,
आ मिव ास और पूण िववेक क आव यकता होती है। आंत रक ाटक के िलए आँख बंद
कर भूम य म देखने का यास कर।

लाभ : द दृि ा होती है।

सामा य ने -िवकार समा होते ह।


जीवन क कई मह वाकाँ ाएँ पूरी होती ह।
आ याि मक और सांसा रक दोन कार के सुख िमलते ह।
शारी रक और मानिसक लाभ िमलते ह।
िसि ा होती है।
कु डिलनी जागरण के िलए यह एक सश मा यम है।
बल, ओज और तेज क वृि होती है।
एका ता शि का िवकास होता है। मरण शि बढ़ती है।
आ याि मक शि का िवकास होकर इहलोक और परलोक दोन सुधरते ह।

योग क या को करते समय एका ता एवं उनसे


होने वाले लाभ को यान म रखकर करने से व थ होने
क संभावना तेजी से बढ़ती है।
-RJT
कपाल-आित

(अिधक जानने के िलए ाणायाम म कपालभाित अ याय भी देख)

वात मेण ु मेण शी मेण िवशेषत:।


भालभाित ि धा कु या क दोष िनवारयेत।्
(घे.सं. 1/55)

अथ : कपाल-भाित के तीन भेद ह वात म कपाल-भाित, ु म कपाल-भाित और


शीत म कपाल-भाित। इनके अ यास से कफ़ स बंधी िवकार का नाश होता है।

भ ाव लौहकार य रे चपूरौ सस मी।


कपालभाित व याता कफदोषिवशौषणी।
(ह.यो. . 2/35)

अथ : लोहार क ध कनी के समान अ यंत शी ता से (शांित पूवक) मशः रे चक-पूरक


ाणायाम को करना योगशा म कफ़ दोष को हरने वाला कहा गया है एवं यह या
कपाल-भाित के नाम से िस है।

वात म कपाल-भाित

इडया पूरये ायुरेचयेत् पंगलां पुन:।


पंगलया पूरिय वा पुन ेणरे चयेत।्
पूरक रे चक कृ वावेगेनन तु धारयेत।्
एवम यासयोगेन कफ दोषिनवारयेत।् (घे.सं. 1/56-57)

अथ : (इड़ा नाड़ी) बाएँ नािसका ार से ास ल और ( पंगला नाड़ी) दािहने नािसका


िछ से ास छोड़ द। अब दािहने नािसका िछ से ास ल और बाएँ नािसका िछ से
ास छोड़ द। रे चक-पूरक करते समय व रत (तेज़) गित नह होना चािहए। इस कार के
अ यास से कफ़ दोष आ द का य होता है।

ु म कपाल–भाित
नासा यां जलमाकृ य पुनव ेणरे चयेत्।
पायं पायं ु मेण े मा दोषिनवारयेत्।
(घे.सं. 1/58)

अथ : दोन नािसका िछ से जल को खीच और मुँह ारा िनकाल द। अब मुँह ारा जल


पीकर नािसका ार से िनकाल द। यह या ु म कपाल-भाित कहलाती है। यह सब
कार के कफ़ को दूर करती है।

शीत म कपाल-भाित
शीतकृ य पी वा व ेण नासानालै वरचयेत।
एव यास योगेन कामदेव समो भवेत।्
न जायते वा कं च वरो नैव जायते ॥
भवेत व छद देह कफ दोषिनवारयेत्। (घे.सं. 1/59-60)

अथ : साधक मुख से सी कार करता आ जल हण कर और नािसका ारा िनकाल द।


यह शीत म कपाल-भाित कहलाता है। इस योग या से साधक कामदेव क तरह सुंदर,
कांितवान और तेज वी बन जाता है। साधक को बुढ़ापा नह आता। शरीर िनमल होता है।
कफ दोष का िनवारण होता है।

सावधानी : दय क िनबलता, वमनरोग, ऊ वर िप , अ लिप , वरभंग, िन ा


नाश, तेज़ बुखार आ द रोग के समय न कर।

लाभ : सम त ष कम साधक को नया जीवन देते ह।

झु रय का नाश होता है, चेहरे व अ य शरीर थान पर झु रं याँ नह पड़त


तथा शरीर कांितवान बनता है।
कपाल-भाित से शरीर क कई अशुि याँ दूर होती ह।
ष कम कु डली जागरण के िलए अित आव यक है।
आ याि मकता ा होती है।
पूरा शरीर सुदढ़ृ , बलवान, तेजोमय, आभावान, आकषक और सुंदर बनता है।
अ ांग योग क याएँ सकारा मक प रणाम
दान करती ह।
-RJT
योग िन ा
(नए जीवन क शु आत, िड ेशन को कर दूर)

जी सहो तरह से आज का प रवेश, वातावरण, पयावरण, रहन-सहन, व त भरा जीवन


गया है, इ ह सब वजह से मानव जीवन त हो चला है। जब आदमी तनाव से
पीिड़त हो तो दुिनया के िजतने गलत काम है, वह करता है, जैसे नशा करना, लड़ाई-झगड़े
करना, बात-बात म गु सा करना। पा रवा रक िज़दगी व अड़ोस-पड़ोस आ द म हर जगह
पर इसका असर दखता है। इन चीज से बचने के िलए य द हम अपने जीवन म योग िन ा
का ित दन अ यास कर, तो वतमान जीवन सुखी व शांितमय हो जाएगा और भिव य का
िनमिण भी अ छा होगा।

योगिन ा या है? योग िन ा एक ऐसी या है, एक ऐसी यौिगक न द है, जो तुरंत


आदमी क चेतना को, सोयी ईखोई ई शि को नई ताजगी भरी/ स ता के साथ
आ मशि को िवकिसत कर सकारा मकता दान करती है। यह वह िविध है िजसम वयं
आ म स मोहन कर चेतना क गहराई म वेश करता है। अपने अवचेतन मन को स य
करता है और कु छ ही पल म एक फू त, ताज़गी, नई चेतनता के साथ उसका िवकास होता
है।

हम अपने जीवन म ित दन योगिन ा का अ यास करना चािहए। इसे अपने जीवन का


अंग बना ल, य क योगिन ा के 5 या 10 िमनट आपके पूरे 24 घंटे को सुिनयोिजत ढंग से
आनंदमयी और ऊजावान बना सकता है।

योग िन ा िव ाम करने क एक िवकिसत प ित है। कई बार हम अपनी थकान पूरी


रात सोने के बाद नह उतार सकते। वह थकान मा योग िन ा ारा िमटाई जा सकती है।
इसम ि /साधक जागते ए सोता है। शरीर िव ाम क अव था म रहता है और
चेतना पूण प से जाग क रहती है। योग िन ा का अथ है पूणतः सजगता के साथ सोना।
य क ऐसी अव था म भी सजगता और चेतनता बनी रहती है। मन क अनेक अव थाएँ
होती है। यह मन क जा त एवं सुषुि के बीच क अव था है। जहाँ अवचेतन मन काय
करता रहता है और धीरे -धीरे शरीर म िशिथलता आती है एवं चेतना तथा अवचेतन मन
सजग हो जाते ह। ि सभी कार के तनाव चाहे वे शारी रक हो, भावना मक हो या
फर मानिसक हो, उन सबसे तनाव रिहत हो जाता है। इसे हम िड ेशन दूर करने क
सबसे अ छी पि ित भी कह सकते ह।

योग िन ा के कई तरीके ह, िविभ योग के म कई कार से कराया जाता है। हम


यहाँ सबसे अिधक चिलत तरीक़ को अिभ करगे।

यािविध: कृ पया आप सभी योग िन ा के िलए तैयार हो जाइए। अपने आसन पर पीठ
के बल आराम से लेट जाइए, अपने शरीर को ढीला रख। पैर के बीच थोड़ा सा अंतर रख।
दोन हाथ को कमर से कु छ दूर रख। हथेिलयाँ आसमान क तरफ़ खुली रख। शरीर म
कसी भी कार का तनाव न रख, य द हो तो उसे िशिथल कर द। िब कु ल ढीला शरीर।
िसर से पैर तक ढीला रख। ने को बंद क रए। जब तक ने को खोलने के िलए न कहा
जाये तब तक ने बंद रिखए। शरीर का कोई-सा भी अंग न िहलाएँ, ठीला शरीर, पूण प
से ढीला िशिथल शरीर।

अब गहरी ास लीिजए। धीरे -धीरे गहरी ल बी ास लीिजए। ल बी ास छोिड़ए


अब फर से ल बी ास लीिजए और ल बी ास छोिड़ए।

अब आप मन ही मन संक प लीिजए क म योग िन ा के अ यास के िलए पूण प से


तैयार ,ँ क मै सोऊँगा नह , म सोऊँगा नह , म सोऊँगा नह । अब आप मेरे ारा दये गये
िनदश को यान पूवक सुिनए। अपने मन को कसी भी कार के िवचार या क पना म
मत लगाइए। पूणतः िवचार से मु हो जाइए। आप सुनने तथा चेतना के तर पर
कायरत रहगे। कं तु शारी रक प से पूणतः अचेत पड़े रहगे। आप अपने मन को िसर से
पैर तक घुमाइए।

स पूण शरीर म चेतना या मन क जाग कता को िनदशानुसार घुमाएँग।े अपने अंग के


ित सचेत रिहए और पूण प से एका ता बनाए रख।

अब अपनी चेतना को शरीर के िविभ च एवं अंग पर घुमाइए। मानिसक प से मेरे


साथ-साथ आप भी मन ही मन उन बात को दोहराएँ िज ह म कहता ँ और आपको उस
अंग के बारे म सजग रहना है।

अपने बाएँ हाथ क ओर यान दीिजए। अपनी मानिसक चेतना (सजगता)को ले जाइये
बाएँ हाथ का अँगूठा, पहली अँगुली, दूसरी अँगुली, तीसरी अँगुली, चौथी अँगुली, बाई
हथेली, कलाई, कु हनी, कधा, बगल, बाई ओर क कमर बाएँ पैर का पंजा, अँगूठा, पहली
अँगुली, दूसरी अँगुली, तीसरी अँगुली चौथी अँगुली, दायाँ हाथ का अँगृ ा, पहली अँगुली,
दूसरी अँगुली, तीसरी अँगुली, चौथी अँगुली, दाएँ हाथ क हथेली, कलाई, कु हनी, भुजा,
दाएँ हाथ का कधा, दाएँ हाथ के बगल वाला भाग, दाई ओर क कमर, दाई जाँघ, दायाँ
घुटना, दाई पंडली, टखना, दाई ऐड़ी, पजा, दाएँ पैर का अँगूठा, पहली अँगुली, दूसरी
अँगुली, तीसरी अँगुली, चौथी अँगुली, िसर का ऊपरी िह सा, माथा, दाई भ ह, बाई भ ह,
भूम य, दािहनी आँख क पलक, दािहनी आँख क पुतली, पूरी दािहनी आँख, बाई आँख क
पलक, बाई आँख क पुतली, पूरी बाई आँख, दािहना कान, दािहना गाल, बायाँ कान,
बायाँ गाल, नाक के दािहने तरफ़ का भाग, नाक के दाँई तरफ़ वाली छाती, बाँई तरफ़
वाली छाती, पूरी छाती, नािभ, पेट और पेट का िनचला भाग।

पूरा दािहना हाथ, पूरा बायाँ हाथ, पूरा दायाँ पैर, पूरा बायाँ पैर, दायाँ िनत ब, बायाँ
िनत ब, मे द ड, पूरी पीठ, पेट, छाती, शरीर का सामने वाला भाग, शरीर का पीछे वाला
िह सा, पूरा शरीर, स पूण शरीर। स पूण शरीर को एक साथ देख।

अब महसूस कर क पूरा शरीर अधचेतन अव था म ज़मीन पर लेटा आ है।

अपनी ास- ास क ओर यान दीिजए। अनुभव क िजए क आप ास ले रहे ह और


ास छोड़ रहे ह। सामा य प से ास- ास क िजए।

अब क पना क िजए क आप समु के कनारे घूम रहे ह। समु क लहर आपके पैर का
पश कर रही ह। शीतलता महसूस हो रही है। मंद-मंद सुगि धत हवा बह रही है। आपको
मानिसक और शारी रक प से व थ कर रही ह। सामने से सूय दय हो रहा है। धीरे -धीरे
सूय क करण आपके ऊपर आ रही ह। आपको एक नई चेतना िमल रही है। वह पर खड़े
होकर आप चेतना का अनुभव कर रहे ह। सूय का रं ग लाल है और उसक करण सामने
एक बगीचे पर भी पड़ रही है।

आप उस बगीचे क तरफ़ जा रहे ह। बगीचे म प च ँ कर आपने देखा क ब त ही सु दर


फू ल रं गिबरं गे िखले ए ह। उनक खुशबू आपको आ रही है। आपको नई ताज़गी का
अनुभव हो रहा है। आप उसी बगीचे म बैठ जातेह। चारो तरफ़ शांित ही शांित है। अब
आप अपने पूरी चेतना के साथ वािपस अपने शरीर क तरफ़ लौट रहे ह। अपने िशिथल पड़े
ए शरीर का अनुभव क िजए। अपनी ास- ास के ित सजग हो जाइए। ास आ रही
है, ास जा रही है। आती-जाती ास को देिखए। अब आप पूण प से शरीर को बाई
तरफ़ से करवट दलवाइए फर दाई करवट लीिजए। पुन: बाई और करवट लीिजए और
उठकर बैठ जाइए। ऊँ का तीन बार ल बी विन के साथ उ ारण क िजए, ने बंद ही रहने
दीिजए।
ऊँ असतोमा सदगमय।
तमसो मा जयोितगमय ॥
मृ योमाऽमृतंगमय।
ऊ शाि त शाि त शाि त।

हथेिलय को आपस म रगिड़ए हथेिलय को ने म लगाइए। चेहरे म हाथ को फे रते ए


धीरे -धीरे आँख खोिलए एवं अब नई चेतना व उजा को महसूस क िजए और नए उ साह के
साथ जीवन को आगे बढ़ाइये। इस कार हम नये जीवन क शु आत कर सकते ह।

कारा तर : इस कार हम और भी कई धारणाएँ बनाकर योग िन ा कर सकते ह।


जैसे सात - च का यान, िगनती िगनते ए पहले सीधी िगनती फर उ टी िगनती।
वग क क पना कर सकते ह। समीशरण का यान कर सकते ह। न दयाँ, तालाब, प थ
यान, पद थ यान, िसफ आ मा का िन वंक प यान, िहमालय म बफाँले े का यान,
िस े का यान, तीथ े आ द कई कार क धारणा को मन म लाकर हम योग
िन ा कर सकते ह।

लाभ : आप शारी रक/मानिसक प से तनाव रिहत हो जाते ह।

योग िन ा ारा आप-अपने शरीर के रोग समा कर सकते ह। उन रोग के बारे


म ऐसा िवचार कर क वे ठीक हो रहे ह। बार-बार ऐसा िच तन करने से शरीर
म रोग ितरोधक मता बढ़ती है िजस कारण वे रोग दूर हो जाते ह।
मानिसक मता बढ़ा सकते ह। मरण शि बढ़ा सकते ह। ब का मानिसक
िवकास हो सकता है।
आपके शरीर म नई चेतना आ जाती है।
आप अपने सात च क ऊजा को पा त रत कर सकते ह।
अपनी ऊजा को ऊ वमुखी कर सकते ह।
सभी े म चाहे वे सांसा रक ह , ह थ ह , आ याि मक ह , गित कर
सकते ह।
ोध, मान, माया, लोभ को ख म कर सकते ह।
सकारा मक यान करके आप अ छे इं सान बन सकते ह। जैसे म ईमानदार ।ँ
म पूणतया िनरोगी ,ँ म दयावान ,ँ मेरे अंदर क णा है। इस कार यान
करके आप सब कु छ बदल सकते ह।
सावधािनयाँ : योग िन ा के समय ि को सोना नह चािहए।
दए जा रहे िनदश को यानपूवक सुनना चािहये।
योग िन ा का अ यास करते समय य द कोई ि न द क
अव था चला जाता है तो उसके माथे को पश कर। उसके पैर का अँगूठा पश
कर जा त अव था म लाइए।

योगसाधना क सम त याएँ मश: धैयपूवक,


आ मिव ास व पूण आ था के साथ उ रो र करना
चािहए, तब वे हम शारी रक एवं मानिसक लाभ के साथ
आ याि मकता के चम कष के आनंद क भी अनुभूित
दान कराती ह।
-RJT
धाटणा - पंच धाटणा

हाँ अँ सुंदर, बड़ी, आकषक एवं िनरोग हो जाएँगी कषाय के प रणाम मंद होते ह।
य जैन धम के ंथ म यान और धारणा का िव तृत िववेचन िमलता है िजनका
चंतन करने से कमाँ का य होता है और आि मक लाभ ा होता है।

मह ष घेर ड यहाँ कहते ह क ये धारणाएँ िस होने से सभी काय वतः स पा दत हो


जाते ह। पाँच धारणा ये ह :
1. पािथवी धारणा
2. आ भसी धारणा
3. आ ेयी धारणा
4. वायवीय धारणा
5. आकाशी धारणा

1. पा थवी धारणा
य ह रतालदेशरिचत भौमलकाराि वतम।
वेदा कमलासनेनसिहतं कृ वा द थािपतम्
ाण य िवलीय पंचघ टकाि ाि वता धारयेत।्
ऐषा त भकरी सदाि ितजयं कु यादधोधारणा।
पा थवीधारणामु ां यः करोित तु िन यशः।
मृ युंजयः वयं सोऽिप स िस ो िवचरे दभुिव ।।
(घे.सं. 3/17-18)

अथ : पृ वी त व का वण हरताल के समान है। इसका लं बीज चौकोर आकार और देवता


है। साधक योगसाधना ारा इसे कट कर दय म धारण कर। पाँच घड़ी (2 घंटे)
ाण को आक षत कर कुं भक कर। यह पा थवी धारणा या अधो-धारणा मु ा कहलाती है।
इसक पूण िसि होने पर साधक पृ वी िवजय कर लेता है। िनरं तर इस धारणा को करने
वाला साधक मृ युजय और िस होकर धरती पर गमनागमन करता है।

2. आ भसी धारणा
शंखे दु ितमंच कु द धवल त वं कलाल शुभम।
त पीयूषवकारबीजसिहत यु सदा िव णुना।
ाणां त िवलीय पंच घ टकाि ाि वतां धारयेत्।
एषा दुःसहताप पापह रणी यादा भसी धारणा।
आ भसी परमा मु ा यो जानाितस योगिवत्।
जलेच घोरे गंभीरे मरण त यनो भवेत।्
इयं तु परमा मु ा गोपनीया य त:।
काशाि सि हािनः या स यं वि म च त वतः।
(घे.सं. 3/19-21)

अथ : जल त व का रं ग शंख और चं मा क तरह उ वल एवं कुं द के फू ल क तरह शु


होता है तथा इसक सं ा अमृत है। बीज वकार वं और िव णु इसके देवता ह। योग के
भाव से दय के बीच उ जल त व समुदाय का यान कर और उसी समय ाणवायु को
ख चकर पाँच घड़ी िच को ि थर रखते ए कुं भक कर। यह आ भसी धारणा है। यह मु ा
बड़े-बड़े दु:ख , ताप और पाप का नाश करता है। जो साधक यह धारणा करता है वह
योिगय का िशरोमिण कहलाता है। वह भयंकर और गंभीर जल म भी ास साधना के
कारण नह डू बता है।

3. आ ेयी धारणा
य ािभि थतिम गोपस शां बीजं ि कोणाि वतं –
त वं वि नमयं दी म णं देण यि सि दम्।
ाणां त िवलीय पंचघ टकांि ाि वतं धारयत्।
एषाकालगभीर भीितह रणी वै ानरी धारणा। (घे.सं. 3/22)

अथ : अि त व का थान नािभ थल है। इसका रं ग इ गोप (बीर ब टी) क तरह लाल


है। बीज मं रं है। इसका आकार ि कोण और देवता है। यह त व तेज का समूह है,
दी मान है, काशवान है और अनेक िसि य का देने वाला है। इसे योग बल से उदय
करके यान थ होकर पाँच घड़ी तक (2 घंटा) कुं भक ारा ाणवायु को धारण कर। इसका
नाम आ ेय धारणा मु ा है। इसके िन य अ यास से संसार का (ज म-मरण का) भय दूर
होकर साधक िवजयी होता है। य द अचानक ि अि म िगर जाए तो भी अि जला
नह सकती और वह सुरि त बच जाता है।

4. वायवीय धारणा (वायुधारणा)


दभ ांजन पुंज सि भिमदं f
त वं स वमयं यकारसिहतं य ेशवरो देवता ।
ाणां त िवलीय पंच घ टकां िच ताि वतां धारयेत्।
एषा खे गमनं करोित यािमनां या ायवी धारणा। इ
यं तु परमा मु ा जरामृ यु िवनाशनी।
वायुनाि यते नािप खेच गित दाियनी।
शठाय भि हीनाय न देयं य य क यिचत्।
द ेच िसि हािनः या स यवि मचच डते।
(घे.सं. 3/24-26)

अथ : वायु त व का रं ग िघसे ए अंजन (सुमा) या धुंए के रं ग के समान ह का-मटमैला है।


बीजमं यं यकार है और ई र इसके देवता है। यह त व स वगुण मय है। योग बल के
भाव से वायु त व को उदय करके एका िचत हो ाणवायु को ख चकर कुं भक ाणायाम
के ारा पाँच घड़ी तक धारण कर। इसका नाम वायवीय मु ा है (वायु धारणा)। इसके
अ यास से वायु ारा कभी मृ यु नह होती और साधक को आकाश गमन करने का साम य
ा हो जाता है। बुढ़ापा और मृ यु का नाश करती है। यह िविध मूख, नाि तक या वह
ि िजसके भीतर भि भाव नह होते, जो शठ ह ऐसे ि को कभी न बताएँ। ऐसा
करने से िसि ा नह होती है।

5. आकाशी धारणा
यि स ी वरशु वा रसदृशं ोमा यमुदभासते।
त वं देवसदािशवेन सिहत बीज हकाराि वतम्।
ाणां त िवलीय पंच घ टकाि ाि वतं धारयेत।्
ऐषा मो कपाटभेदनकरी कु यानाभो धारणा।
आकाशीयधारणा मु ा यो वेि स योगिवत्।
न मृ यु ायते त य लये नावसीदित । (घे.सं. 3/27-28)

अथ : आकाश त व का रं ग समु के िवशु जल (नील वण) क तरह कािशत ह। इसके


देवता सदािशव ह और बीजमं हकार है। इसी आकाश त व को सदािशव सिहत योग बल
ारा उ दत कर यान थ होकर धारण करधारण कर। इसी को आकाश मु ा कहते ह। यह
मु ा करने से मो होता है जो साधक आकाशी धारणा जानता है, अ यास करता है, वह
योगी है। उसक मृ यु कसी से नह होती। लय होने पर भी वह य का य बना रहता
है।

िवशेष : हमने सभी धारणा को यथा म दया व उनके भावाथ कए। हमारा िनवेदन
है क साधक इन धारणा को ठीक-ठीक समझे। शांतिच होकर इनका अ यास कसी
यो य िश क से जानकर उनका यथावत् पालन कर। इस मु ा को धारण करने से पहले
उसम वे सभी गुण होने चािहए जो क इसी पु तक म हमने जगह-जगह कहा है। गु से
वह ा कर। इन धारणा क िसि के िलए ब त ही यादा धैय और पु षाथ क
आव यकता पड़ती है। अतः हमारी मुमु ु िज ासु से ाथना है क वह अपने स यक्
ान का उपयोग कर लाभाि वत ह ।

वग जैसा सुख चािहए तो िन वकार यान करो।

-RJT

चय पूवक क गई अ ांगयोग क याय कभी


िनरथक नही जाती।

-RJT
यान योग

या नपहलेएकके महअ याय


वपूण साधना है। इसके अ यास के िबना मुि होना संभव नह है।
म िजतनी भी याएँ ह वे सभी लगभग शरीर थ यादा ह कतु
यान आ मा क वह या है जो साधक को ान क सव कृ उपलि ध 'कै व य ान'
ा कराती है। यान क कई याएँ ह। लगभग सभी धमाँ म यान योग को मह व दया
गया है। जैन धम मानता है क िन वक प यान के िबना कमाँ का य नह होता है। हंद ू
धमानुसार ि को ित दन भगवत् आराधना, पूजा—अचना व यान अव य करना
चािहए। यान का िजतना मह व धमाँ म बताया गया है उसका उतना ही मह व हमारे
सांसा रक जीवन के िलए भी है।

अलग-अलग शा म यान क कई िविधयाँ बताई गई ह। गौर प ित म सू कार


कहते ह क ‘िच म योग शा के अनुसार िविध से िनमलांतर करके आ म-त व का
मरण करना यान कहलाता है।" यह यान सगुण-िनगुण भेद से दो कार का है। याम
वण िव णु का यान करना सगुण यान है। एकांत म पिव थान पर बैठकर िस ासन,
प ासन या कसी सुखासन म बैठकर कु डिलनी च म िच लगाकर या नािसका के
अ भाग म दृि लगाकर च सिहत येय व तु का यान करना िनगुण यान है। यह यान
मु ा है तथा इसे करने वाला योगी सम त पाप से मु हो जाता है। यान के नव थान
का वणन करते ए सू कार नव यान यो य थान के कार बताते ह। वे इस कार ह :
1. मूलाधार
2. वािध ान
3. नािभ (मिणपूरक)
4. अनाहत
5. िवशुि
6. घं टका मूल
7. लिबका का थान
8. आ ा च
9. सह ार च

इसके ऊपर का शू य थान। योिगय ारा उ नव थान यानोपयोगी कहे गए ह।


इ ह उपािध अथात् पृ वी, जल, तेज (अि ), वायु तथा आकाश इन पाँच त व से
सि मिलत यान करने से अिणमा द अ िसि य का उदय होता है।

िववेक चूड़ामिण म िलखा है क जैसे सुवण को अि म शोधन करने से वह ार, मल


आ द याग कर शु हो जाता है, इसी तरह यान ारा स व, रज और तमोगुण के संयोग
से मिलन आ मन िनमल होकर आ म-त व को ा हो जाता है। िववेक चूड़ामिण म आगे
िलखा है क जैसे अ य या क आसि को याग कर अथात् दूसरे उपाय को न करके
के वल मरपन का िनरं तर यान करते-करते क ट-पतंगे आ द मर के प म प रिणत हो
जाते ह अथात् मर (भ रा) बन जाते ह ऐसे ही साधक भी आ म-त व का यान करते-
करते ई र- प पा जाते ह। अत: साधक यान के भाव से परम-आ मा को उपल ध हो
जाता है।

योग सू ानुसार

िच (मन) को कसी एक थान म ठहराना धारणा है और उस ानवृि क एकतानता


ही यान है। अथात् जहाँ मन को लगाया जाए उसी म वृि का एकतार (शहद क धारा के
समान) चलना यान है। यान के चरम उ कष का नाम ही समािध है। यान जब अथ मा
िनभांस होता है या यान जब इतना गाढ़ होता है क के वल येय िवषय मा क ही
याित होती रहती है तब उसे समािध कहते ह और जब धारणा, यान तथा समािध तीन
एक ही जगह ि थत ह तो वह संयम कहलाता है।

घेर ड संिहतानुसार

थूलं योित थासू मं यान य ि िवधं िवदुः।


थूल मू तमयं ोत योित तेजोमयं तथा।
सू म, िव दुमयं कु डली परदेवता। (घे.सं. 6/1)

मह ष घेर ड के अनुसार यान तीन कार का है। थूल यान, योित यान और सू म
यान। थूल यान म मू तमय इ देव (सगुण व प) का यान कया जाता है। योितमय
यान वह यान होता है िजसम तेजोमय योित प आ मा (िनगुण ) का चंतन हो
एवं सू म यान वह है िजसम बंदम
ु य( कु डिलनी) का यान कया जाता है।

थूल यान

आचाय कहते ह क साधक अपने दय म ऐसा यान कर क मानो वह अमृत का समु


है और उस समु के बीच एक र मय (हीरे जवाहरा द) ीप है जो क र मय बालुका
(रे त) से शोभायमान हो रहा है। िजसक चार दशा म नीम के वृ फू ल सिहत शोिभत
हो रहे ह। वह ीप फू ल क शोभा से प रपू णत है और वह फू ल के कले क खाई के
समान तीत हो रहे ह। मालती, मि लका, चमेली, के शर, चंपा और बकायन, थल कमल
आ द पु प क सुगंध से मानी चार दशाएँ महक रही ह।

उसके बीचो-बीच एक क पवृ है। योगी ऐसा यान कर क वह क पवृ ब त ही


मनमोहक है। मन को हरने वाला, अित सुंदर है। िजसक चार शाखाएँ चार वेद से
शोभायमान हो रही ह और वह वृ िन य नए-नए फल-फू ल से लदा आ रहता है िजसम
मर और कोयल के मधुर श द सुनाई पड़ रहे ह। साधु-साधक कमाँ का उपदेश कर रहे ह।
उनके श द गुंजायमान हो रहे ह। अब उस क पवृ के नीचे मािण य र का मंडप सजा
आ है। िजसके नीचे एक र मय आसन है। उसम अपने इ देव िवराजमान ह। गु ारा
बताई िविध से उनका चंतन व यान क िजए। कै सा है वह इ ? तो बताते ह क आभूषण
गहन से सुशोिभत है। ऐसे इ के यान को िव ान लोग थूल यान कहते ह।

थूल यान के कार - रं म सह ार नामक एक सह दल का कमल है या एक


हज़ार पंखुिड़य वाला एक कमल है िजसका योगी यान करते ह। उस महाकमल के बीच
म जो किणका है उसके बीच एक और कमल है िजसम बारह पंखुिड़याँ ह िजसका रं ग सफ़े द
है और तेजोमय है। उन बारह दल म बीज मं दख रहे ह। पहले दल म ह दूसरे म स
तीसरे म , म, ल, व, र, यू, ह, स ख, इस कार मश: सभी दल म बीज मं ह। उस
बारह दल के कमल क बीच के भाग म जो किणका है उसम अ, क, थ इन अ र क तीन
रे खाएँ ह। अथात् ि कोण बना है और ह, ल, ये अ र संयु ह। िजसके बीच म णव
मं ॐ िवराजमान है।

अब योगी ऐसा यान कर क मानो वहाँ नाद- बंदम ु य एक मनोहर संहासन रखा आ
है। वहाँ एक हँस का जोड़ा बैठा आ है जो क गु पादुका का तीक है। वहाँ पर ऐसा गु
का यान कर िजनके दो हाथ ह, तीन ने ह, सफ़े द धवल व पहने ए ह और ेत पु प
क माला पहने ए ह तथा उनके शरीर म शु ल वण का लेपन है और उसम से शु गंध
िनकल रही है। उनके बाएँ अंग क तरफ़ लाल रं ग के व पहने ए उनक शि
शोभायमान है। इस िविधपूवक गु का यान करने से थूल यान क ाि होती है।

जयोितमय यान

मह ष घेर ड कहते ह क पहले थूल यान के बारे म सुना। अब तेजो यान के बारे म सुनो
िजसके यान से या िसि से शु ा मा कट हो जाती है।

मूलाधार और लंगमूल के बीच क जगह म कु डिलनी शि सप क तरह िव मान है।


यहाँ दीपक क लौ के प म परमे र िवराजमान ह। वह जो योितमय तेज सिहत
परमे र है, उसक योितमय यान कहते ह।

दोन भ ह के बीच और मन के ऊ व भाग म ऑकारमय जो तेज बल यु जो िशखा है


वही तेजो यान है। अथात् योितमय है।

सू म यान

मह ष घेर ड कहते ह क अभी तुमने तेजो यान को सुना। अब सू म यान को सुनो। िजस
साधक क कु डिलनी जागृत होती है वह बड़ा ही भा यवान है। तब वह आ मा से िमलकर
ने - ार से िनकलकर राजमाग म िवचरण करने लगता है परं तु अपनी सू म चंचलता के
कारण कसी को दृि गोचर नह होता है। तब योगी शा भवी मु ा के योग से कु डली
शि का याना यास कर। यही या सू म यान कहलाती है। यह सू म यान ब त ही
गोपनीय है और देवता को भी दुलभ है।

थूल यान से सौ गुना अिधक योितमय यान फलदायी है और योितमय यान से


लाख गुना फलदायी सू म यान है और यह सू म यान दूर से भी दूर है। अथात् बड़ी
क ठनता से ा होता है।मह ष घेर ड कहते ह क यह दुलभ यान मने तुमको बताया।
िजसक िसि होने से आ म-त व कट होता है वही यान सबसे उ म यान है।

यान का मह व और मन पर भाव - यान का मह व मु य प से अपने परमे र


क ाि है। यान से कमाँ का नाश ही नह होता बि क हम उस परम त व को ा कर
लेते ह िजसक िसि अित दुलभ है और असीम आनंद क अनुभूित होती है। जहाँ के वल
ान ही ान है। योगी वहाँ प च
ँ कर अनंतकाल के िलए समािध थ होकर उस परम िपता
परमे र के दशन करता है िजसक ा या कोई नह कर सकता। यान से मन क
चंचलता का नाश होता है और िच ि थर होकर अचेतन मन से एकाकार करता है। यान
के भाव से साधक को असीम शांित िमलती है। कई दुलभ काय आसान हो जाते ह। मन के
अंदर उठने वाले वेग, िवकार- जैस,े काम, ोध, लोभ, मोह, हंसा, झूठ, चोरी, कु शील,
प र ह इनका य होता है और ि का िवकास चरमो कष पर प च ँ ता है। यान से
आ मा का उ थान होता है।
पैर से लेकर िसर तक अपने शरीर म करोड़ सूय के तेज के समान सफे द पीला या लाल
रं ग का चंतन ारा उसके यान करने से सब रोग न होते ह और आयु बढ़ती है - बंद ु
योग

शारी रक, मानिसक, भौितक और आ याि मक सुख ा करना हो व इहलोक तथा


परलोक ठीक करना हो तो अ ाग योग का गहराई से अ ययन कर।
-RJT
पैर से लेकर िसर तक अपने शरीर म करोड़
सूय के तेज के समान सफे द पीला या लाल रं ग
का चंतन ारा उसके यान करने से सब रोग
न होते ह और आयु बढ़ती है
बंद ु योग

शारी रक, मानिसक, भौितक और आ याि मक


सुख ा करना हो व
इहलोक तथा परलोक ठीक करना हो तो अ ाग
योग का गहराई से अ ययन कर।

-RT
कु डिलनी िव ान - एक िववेचना
मारे ाचीन ऋिष-मुिनय वे आ म-िव ान क पराका ा पर प च ँ चुके थे अतः
ह उनका यान ाणीमा क तरफ़ उनके जीवन के उ थान के िलए गया। उ ह ने उस
चैत य व को ा करने के अनेक माग बताए। साधक ने उन माग को अपनाया और
वे उस ल य तक प च ँ े भी। यह िनयम है क जब कोई साधक साधना ारा अपनी आ मा
का उ थान कर लेता है तो वह अपने से िन वग के साधक को यथावत् वह उपाय बता
देता है ता क वह भी ल य क ा कर सक और आ भी यही। पर परागत तरीके से ा
आज एक से बढ़कर एक ा य िव ान हमारे पास ह। भले ही कु छ गु है और कु छ गट।
इ ह म से एक है योग िव ान। योग िव ान क कई शाखाएँ ह। येक शाखा का अपना
अलग मह व है। येक शाखा का िव ान िवशु प से योग करने पर अंितम बंद ु तक
प चँ ाता है। हमने अपनी इस पु तक म कु छ बंद ु पर काश डाला है। इस योग िव ान
क एक उ तम शाखा भी है िजसका नाम है ‘कु डिलनी िव ान'।
कु डिलनी िव ान पर भी कई िव ान ने िविभ शा क रचना क एवं उनको
इतना सरल कर दया क वह येक वग के लोग को आसानी से समझ म आ जाए और
िजसका योगा मक प से अ ययन यो य गु के िनदश म कर वे उसका मीठा फल चख
सक।
कु डिलनी जागरण के अनेक उपाय समय-समय पर िवकिसत ए। चाहे वे लकड़ी क
छेनी से कपाल म छेद करके शि जगाने क बात हो या जड़ी-बू टय के योग ारा।
सबसे अिधक योग-िव ान ारा इसका िवकास आ। योग-िव ान म जो साधक मशः
आगे बढ़ता है वह िन य ही अपने येय को ा कर लेता है। यहाँ मु य प से हम 7 च
का ही वणन करगेजो क सू म प से अवि थत ह। सव थम हम कस शा म कु डिलनी
के बारे म या िलखा है, यह जानने का यास करगे।

िशव संिह ानुसार

मूलाधार च म ि थत सु पड़ी ई कु डिलनी शि को ाणवायु ारा चलाने और


जगाने वाली शि चालन या सव शि दाियनी है। जो योगी िसि ाि क इ छा से
शि चालन का िन य अ यास करता है उसके शरीर म सो रही स पणी कु डिलनी जागृत
होकर वयं ही ऊ वमुख हो जाती है। िनरं तर अ यास से िसि ा होती है तथा
अिणमा द िवभूितयाँ ा हो जाती ह।
िशव संिहता म आगे िलखा है क ाणवायु के आघात से च के म य रहने वाले देवता
जागते ह और महामाया कु डिलनी कै लाशपित िशव से जा िमलती है।
वामनाड़ी का वाह करने वाला चं मा शि प म और दि ण नाड़ी का वाहक सूय
िशव प म ि थत रहता है। शि चािलनी मु ा का ित दन अ यास करने वाले साधक
क आयु म वृि होती है और रोग का नाश होता है।
शांिड य उपिनषद् म िलखा है क नािभ के नीचे कु डिलनी देवी का िनवास थान है।
यह आठ कृ ित वाली है तथा इसके आठ कु डल ह। यह ाणवायु को यथावत् करती है।
अ और जल को वि थत करती है। मुख तथा रं क अि को कािशत करती है।

योग कु डिल योपिनषद् के अनुसार

मूलबंध के अ यास म अधोगामी अपान को बालात्। ऊ वगामी बनाया जाए। इससे वह


दी होकर अि के साथ-साथ ही ऊपर चढ़ता है।
इसी उपिनषद् म आगे िलखा है क बुि मान साधक कु डलीभूत शि को संचािलत
कर। मूलाधार से फू त-तरं ग उठकर भूम य म प च
ँ े और द नाद क अनुभूित कराने
लगे तभी कु डिलनी शि जागृत-संचािलत समझना चािहए।

घेर ड संिहतानुसार

मूलबंध के अ यास ारा म त िस होती है। अथात् शरीर थ वायु पर िनयं ण होता है।
अतः आल यरिहत होकर मौन रहते ए इसका अ यास करना चािहए।

ऐतरे य आर यक

यह ाण सब इि य का र क है। यह कभी न नह होने वाला। यह िभ -िभ माग


अथात् नािड़य के ारा आता और जाता है। मुख तथा नािसका के ारा ण- ण इसी
शरीर म आता है तथा फर बाहर चला जाता है। यह ाण शरीर म अ या म व प म
वायु के प म ि थत है परं तु व तुतः वह आिधदेव प म सूय ही ह।

त सार - कु डिलनी शि आ म- े म हँसा ढ़ होकर िवचरती है।

यान बंद ु उपिनषदानुसार

िजस माग से थान तक सुगमता से प च ँ ा जा सकता है उस माग का ार परमे री


कु डिलनी अपने मुँह से ढंके सोई ई है। अि , मन तथा े रत ाणवायु के सि मलत योग
से वह जागृत होती है और जैसे सुई के साथ धागा जाता है उसी कार ाणवायु के साथ
वह कु डिलनी सुषु ा-पथ से ऊपर जाती है। जैसे चाबी से बंद ार खोल दया जाता है
वैसे ही योगी कु डिलनी शि से मो ार को भेदते ह।
ऐसे और भी अनेक शा ह। िजनम कु डिलनी क िव तृत िववेचना दी ई है एवं अनेक
िव ान ने भी इस संदभ म काफ़ कु छ कहा है।
म.म.प. गोपीनाथ किवराज जी कहते ह क इसी कु डिलनी शि का नामांतर बंद ु है।
इसे िचदाकाश कहा जाता है। यही परमे र क महामाया पी शि है। परमे र अथवा
परम िशव िचत व प इनम दो शि याँ ह। एक िच प ू ी और दूसरी अिच प
ू ी।
इसी कार कई धम दशन म भी इसको कसी न कसी प म हण कया गया है।

यहाँ पर हम अब 7 च का संि वणन करते ह। उनके नाम ह :-


1. मूलाधार च 2. वािध ान च
3. मिणपूरक च 4. अनाहत च
5. िवशुि च 6. अा ा च
7. सह ार च

1.मूलाधार च
इसका मूल थान गुदा- ार से दो अंगुल ऊपर और लंग- थान से दो अंगुल नीचे - चार
अंगुल िव तार का मूलाधार च पे रिनयम म अवि थत है । कई शा म इस थान को
कं द कहा है जहाँ कु डिलनी स पणी क तरह साढ़े तीन आंटे (लपेटे) मारकर बैठी है ।
षट् च िन पण म िलखा है क मूलाधार ि थत ि कोण के भीतर वण के समान भू लंग है
िजस पर कमल-तंतु के समान बा ार को अपने मुख से ढंके ए िव ुत एवं पूण चं मा
क आभायु अितसू म कु डिलनी शि सो रही है ।
सुवण वण म चार पंखुिड़य वाला कमल दल है।
इसका रं ग गहरा लाल है। इसके मु य देवता चतुभुज ा ह और देवी डा कनी ह।
इसक येक पंखुिडय म वं, श, ष, सं, मं ा र िलखे ह। इस कमल दल के बीच म
वगाकार पृ वी त व है िजसका वण वण के समान पीला है। जो चमकदार अ शूल यु
है। उस वगाकार का बीज मं ल है जो क ऐरावत हाथी पर सवार है। कमल दल क
किणका के बीच म मुलायम, अ यंत सुंदर और िव ुत के समान चमकता आ लाल रं ग का
ि भुज है िजसे काम प भी कहते ह। इस ि भुज का िसरा नीचे क ओर है। इस ि भुज के
अंदर रहने वाली देवी को ि पुर सुंदरी एवं इस ि भुज क शि पीठ भी कहा गया है। इस
ि कोण के अंदर वयंभू लंग है। िजसका रं ग धुंए के समान याम वण है और स पणी पी
कुं डिलनी उस लंग के चार तरफ़ िलपटी ई है।
हठ योगानुसार जैसे पु ष कुं जी (चाबी) से दरवाज़ा खोलता है उसी कार योगी हठ
योग के अ यास से सुषु ा के माग से होता आ मो मागको ा कर लेता है। सुषु ा के
ऊ व िशखा के म य म परमा मा ि थत है। उस सुषु ा-माग के ार को मुख से आ छा दत
करके कु डिलनी सोती है। वही । कु डिलनी मूखाँ के िलए बंधन है और योगीजन के िलए
मो का ार है।
इड़ा- पंगला नाड़ी के म य म जो सुषु ा नाड़ी है वह बालर डा कहलाती है। उसको
हठयोग पूवक हण कर और परमपद को ा कर। सू कार कहते ह क ाण-िनरोध के
अ यास से ाणवायु ारा तािड़त होने पर कु डिलनी जागृत हो जाती है। इसको िस
करने के िलए ित दन सुबह और सं या के समय डेढ़ घंटे अ यास करना चािहए। व ासन
करके एिड़य से ऊपर पैर (गु फ ) को पकड़ और हाथ से पकड़े ए पाद से कद के थान
म कद को पीिड़त कर या दबाएँ।
व ासन म ि थत योगी कुं डली को चलाकर या शि चालन मु ा करके भ ा नाम के
कुं भक ाणायाम को कर। इस रीित से कुं डिलनी शी जागृत होती है। शि चालन के
अनंतर भ ा म व ासन का ही िनयम है।
नािभ-देश के आकु चन से वहाँ ि थत अि या सूय का आकुं चन हो जाता है। फर सूय के
आकु चन से कु डली शि का चालन कर। जो योगी इस कार क या करता है उसे मृ यु
या काल का भय नह रहता।
जो साधक चय का पालन करते ए िमताहार करता है उस साधक को एक म डल
म ही िसि ा हो जाती है। जो योगी कुं डली का चालन करता आ भ ा कुं भक ही
िवशेष प से करता है उसे यम का भय नह रहता। देह यागने क भी िसि हो जाती है।
यह सुषु ा- प म यम नाड़ी साधक के आसन ाणायाम मु ा आ द के दृढ़ अ यास से
सरल हो जाती है। अथात् िस हो जाती है।
इस कार साधक कु डिलनी जागृत करने के िलए उपरो संदभ को यान म रखकर
धैय पूवक गु -िनदशन म िन य ित अ यास कर। सफलता एवं िसि ा करते ए वह
साधक आ म ाता बनकर परमाथ करता आ पू यनीय बन जाता है।
य द सामा य प से मूलाधार च का यान कर तो भी कई लाभ ा होते ह। जैस-े
शरीर म कांित, तेज व ओज क वृि होती है। मे द ड सश होता है। र -िवकार, काम-
िवकार, वचा-िवकार, ने -िवकार, मू - देश के िवकार इ या द नह होते। च के सही
िवकास नह होने से भी कई रोग होते ह। अत: साधक को च का यान अव य करना
चािहए।
2. वािध ान च

यह ि तीय च मूलाधार से लगभग दो अंगुल ऊपर एवं नािभ के कु छ नीचे ि थत है। इसम
प छ: दल यु संदरू ी रं ग का है। दल पर मं - वं, भ, मं, यं, रं और ल िलखे ए ह।
उसके बीच म अध चं है। यह े ेत (उ वल) है। इसके अंदर व ण बीज वं है जो क
मगर के वाहन पर िवराजमान है। इसका त व ह का नीला जल है। उस बीज मं के बंद ु
पर ग ड़ प ी पर भगवान िव णु बैठे ए ह एवं उनके हाथ म मशः शंख, च , गदा और
प ह। उनके पीले व ह। देवी शा कनी ह, जो याम वण ह। िजनके एक नािसका िछ से
र धारा बहती रहती है। इस च का स बंध जनन करने वाले अंग, भावना, दोन पैर
एवं कु टुंब बढ़ाने क इ छा से है। य द च िवकार- त है, तो उपरो अंग पर भाव
पड़ता है।
गोरख प ित म िलखा है क इस वािध ान च क सगुण या िनगुण योित- व प
आ मा को नािसका के अ भाग पर दृि करके यान करने से साधक आनंद क अव था को
ा करता है।
इस च के यान से और भी कई अ य लाभ िमलते ह। जैसे शरीर िनरोगी हो जाता है।
संसार का भय नह रहता। मन शांत होता है। ई यां और राग- ष
े का य होता है। शरीर
कांितवान बनता है। खर वाणी होती है। जनन स बंधी अंग िवकिसत और सुचा होते
ह।
अत: वािध ान च का यान अव य करना चािहए। स दयलहरी म िलखा है क
कु डिलनी क आराधना करने वाला ि अपने सफल साथक जीवन क आभा सब ओर
फै लाता है। ि व िहमालय जैसा धवल-िनमल बनता है। उदारता और स प ता बढ़ती
है। अपनी खर ितभा के कारण वह दु ता के सप को ग ड़ क तरह परा त करने म
सफल होता है।

3.मिणपूरक च
शरीर के क थल-नािभ मूल म ि थत यह अि त व च दश कमल दल यु होता है।
वण रं ग क दस पंखुिड़य पर मश: ड, ढ, णां, तं, यं, द, ध, न, प, फ िलखा आ है। इस
प के अंदर लाल रं ग से रॉिजत उ टा ि भुज है। िजस पर बीज मं रं िलखा है। इसका
बीज वाहन भेड़ (मेढ़ा) है। इसके मुख देवता ह और शि देवी ला कनी है।
यह च मिण क भांित चमकदार है। अि का क है। यह आि मक और भौितक शरीर
का ाण क है तथा चैत यता और शि से दी है तथा ंिथ का िनवास थान है।
यह सूय का (ताप) क है। िजस कारण ि क जीवन र ा होती है।
14 से 21 साल क आयु मिणपूरक च से भािवत रहती है। इससे भािवत ि
िसि , यश तथा नाम क ाि के िलए त पर रहता है।
चूँ क यह सूय का क है अतः यह हमारे उदर- देश से स बंिधत अंग का सुचा प से
संचालन करता है। च के िवकार त हो जाने से पाचन-तं से स बंिधत रोग होते ह।
र -िवकार, दय-िवकार तथा मानिसक-िवकार उ प होता है। शरीर आल य, सु ती
और िनराशा से भर जाता है। अत: मिणपूरक च का यान कर उपरो रोग से बचा जा
सकता है एवं इस च का यान करने से कई अ य लाभ भी ा कए जा सकते ह। जैसे
मधुमेह नह होता, पाचन-तं , डाय ॉम, बड़ी आँत, छोटी आँत एवं स पूण उदर- देश को
लाभ िमलता है। आ याि मक लाभ के प म ि अ हंसा, स य, चय, मा आ द
धारण कर उ रो र गित करता है।

4.अनाहत च

यह च दय च भी कहलाता है और इसका थान दय- देश म ही है। यह बारह दल


से यु नील वण (बंधुक पु प) का चमकदार प है। िजसके येक दल म क, ख, ग, घं, ड,
च, छ, जां, झां, ञ, टं और ठठं अ र िलखे ए ह। इसके म य म ष कोणाकृ ित (दी ि भुज
एक-दूसरे के िवपरीत अव था म) है िजसका धू वण का वायुमंडल है। इसका बीजमं य
है। जो क वायु बीज को इं िगत करता है। यह काले मृग (िहरण) पर ि थत है। वायु बीज के
बंद ु के म य ि ने ी इं शा हँस के समान ह। िजनके दो हाथ वरदान और अभय मु ा दान
करते ए ह एवं इसक देवी का कनी है जो क वण वण क चतुभुजी है। ि कोण के म य
बाण लंग है। िजसके िसर पर अधचं और बंद ु है। इसके नीचे दीपक क लौ जैसा हँस के
समान जीवा मा है।
इस च का स बंध व : थल, दय, र वािहिनयाँ एवं सन-सं थान से है। च के
िवकार त होने से दय रोग, ास क बीमारी (दमा), मानिसक ािधयाँ आ द हो
सकती ह। इस च के जागृत होने पर उपरो ािधय म लाभ ा होता है।
आ याि मक लाभ के प म दया, क णा, मा, िववेक व आि मक आनंद आ द क शि
ा होती है।

5. िवशुि च
इस च का थान क ठ देश है। यह सोलह दल से यु प है। िजसका रं ग बैगनी
िमि त धू वण यु है और िजसक पंखुिड़य पर षोडशमा ा के सोलह वर ह। अं, एं,
एँ, आ , औ, अं, अः जो क लाल रं ग म चमकते ह।
इस कमल के अंदर ेत वृ है। उस वृ के म य ि कोण है। िजसके अंदर चं मंडल है।
उस चं मंडल के बीच ेत वण का ेत आभूषण से यु एक हाथी है। िजस पर नभ बीज
ह है। उस
बीज मं के अंक म भगवान िशव अधनारीशवर प म िवराजमान ह िजनके पाँच मुख
और दस भुजाएँ ह। इसके च क देवी सा कनी ह िजनक ि थित हिड़य पर है जो क
ेत वण, चार भुजा, पाँच मुख, ि ने ी और पीला व पहने ए है।
गोरख संिहता के अनुसार इस कठ- थान म दीप- योित समान कांितमान िवशुि च
म नािसका के अ भाग म दृि ि थर करके सगुण, िनगुण या योित- व प आ मा के
यान करने से योगी अमर होता है।
िवशुि च के यान करने से साधक भूख- यास के िबना कई दन तक रह सकता है।
आ म- चंतक, िवचारक एवं दाशिनक हो जाता है। वाणी खर हो जाती है। कठ- देश म
टपकने वाले अमृत रस का पान कया जा सकता कर सकता है।
परं तु इस च के िवकार त होने से कठ िवकार हो सकता है। मरण-शि का य
एवं कई कार के मानिसक िवकार हो सकते ह।

6.आ ा च
यह च दोन भौह के बीच ि थत होता है जो क ि दल प कहलाता है। इसको तीसरा
ने क भी सं ा दी गई है। इन प दल का रं ग ेत काशमय है। इन दो दल म ह और
वण चमकते ह। यान क गहराइय म साधक आ ाच ारा पारलौ कक अनुभव ा
करता है। इस बीज-कोष के अंदर लंग- प म ेतवण िशव योिन के अंदर योित के
अनु प काशमान हो रहे ह। वह बीजमं ॐ कािशत हो रहा है। उस काश से
नाड़ी दृि गोचर होने लगती है। ि भुज जो क कु ल शि प म अवि थत है। इस च के
मुख देवता पी भगवान िशव ह एवं देवी हा कनी है िजसका वण सफ़े द है। छह मुख र
वण के ह। येक मुख म तीन-तीन ने ह। इनक छ: भुजाएँ ह जो क ेत वण के प पर
िवरािजत ह।
साधक म इस च का ब त मह व है य क यान क अनेक अव था म इस च क
उपयोिगता अिधक है। इस च के जागरण से साधक द ानी, द दाशिनक दूसर के
मनोभाव को समझने क शि , भिव य ान, भूतकाल एवं िवचार के सं ेषण करने क
द ता ा हो जाती है। यही आ ा च पी बंद ु आ मा के उ थान का ार माना जाता
है।
इस च को संगम भी कहा जाता है। य क मूलाधार से गंगा (इड़ा) जमुना ( पंगला)
और सर वती (सुषु ा) अलग-अलग वािहत होकर इसी थान म िमलती ह और यह पर
तीन मु य नािड़य का िवलय भी होता है। इस च के ित त होने से मानिसक
बीमा रय का भय हमेशा बना रहता है। अत: सावधानीपूवक गु िनदश म सै ांितक प
से इस च का यान कर साधक को अपना जीवन ध य करना चािहए।

7.सह ार च

िसर के ऊपरी भाग म अवि थत उ तम चेतना का क है। सह दल वाले पूण चं के


समान ेत वण वाला अधोमुखी प है िजसम सं कृ त के सभी वण सूय जैसी करण क
कांित वाले दैदी यमान प से सुशोिभत ह। इस सह दल म बीस घेरे ह िजसके येक
घेरे म पचास दल ह। इसम िवसग रं के ऊ व भाग म है। यह स पूण शि य का क -
थल है। इस प के बीज-कोष म काशमान िशव लंग है जो क आ याि मक ऊजा का
तीक है। वह अपनी महाशि के साथ िवराजमान है। इसका त व त वातीत है। त व बीज
िवसग है और त व बीज-गित बंद ु है। इसका यं शुभ वण का पूण चं है।
इस परमा मा पी सह ार क िसि से अस ात समािध क अव था ा हो जाती
है। यहाँ प च
ँ ने पर साधक क िच वृि लय को ा हो जाती है। यहाँ क ि थित
िन वक पता या िन वकार प है। अत: साधक सहज समािध क अव था को भी ा
होता है। साधक को यहाँ उस द ान क अनुभूित होती है िजसम अनंत ान, अनंत
दशन, अनंत सुख और अनंत शि का चरण ारं भ होता है।
सह ार च के िवकार त होने से ि को शारी रक और मानिसक अव था का
ान नह रहता है। अत: मशः धैयपूवक च क अवि थित को समझते ए पूण
सावधानी पूवक यो य गु के स मुख रहते ए साधकगण अपने माग पर अ सर ह ।
मनोरोधे भवेद ु ं िव मेव शरी रिभः।
ायोऽसंवृतिच ानां शेषरोधोऽ यपाथकः ।।
- ानाणव 22/6

िजसने मन का रोध कया उसने सब ही रोका, अथात्


िजसने अपने मन को वश कया, उसने सबको वश म कया
और िजसने अपने मन को वशीभूत नह कया उसका अ य
इि या दक का रोकना भी थ ही है।

आपके ारा कसी को दी गई शुभकामना


एक दन आपका भा य बनकर लौटे गी।

-RT
नािम िव ान परी ण
मारी गरी का थान ,नािभ यह मानव को वा य दान करने म मु य योगदान
दान करता है।

आयुवदाचाय के मतानुसार नािभ-च य द अपने क थान से हट जाए (सरक जाए


या पलट जाए) तो कई कार के रोग को पैदा कर सकता है। नािभ-च के अपने थान से
िखसक जाने पर उदर- देश म अवि थत मिणपूरक च के सभी अंग कई कार क
ािधय से पीिड़त हो जाते ह। अत: स पूण शरीर को पूण तंद ु त रखने के िलए नािभ का
अपने थान पर होना अित आव यक है।

नािभ हटने के मुख कारण

कई लोग हमेशा नािभ-च का टलना या हटने को लेकर परे शान रहते ह या कई लोग
को मालूम ही नह रहता क उनका नािभ-च अ वि थत है और वे पूरी उ उनसे होने
वाले रोग को लेकर चंितत रहते ह। नािभ के हटने के कई कारण हो सकते ह, जैसे
अचानक कसी वज़नदार व तु को उठाना, पैर क चलते समय ि थित िबगड़ जाना,
उछलना-कू दना, भागना, सोते समय से अचानक सीधे उठ जाना, एक हाथ से अिधक वज़न
उठाना, मल-मू के वेग को रोकना, उदर- देश को बगैर जानकारी के बलपूवक मलने से,
उदर क कसी पुरानी बीमारी के कारण, भूख- यास को रोकना, सोने और उठने के म म
अिनि तता, मानिसक िवकार जैसे भय, अिधक चंता, ोध क अिधकता। अशु भोजन
या वायु उ प करने वाला भोजन करने से, आहार क अिधकता, छ क या ज हाई को
रोकना, अपान-वायु को िनकलने से रोकना, ठीक ढंग से योग क या को न करना
आ द अनेक कारण से नािभ अपने थान से हट जाती है।

नािभ हटने से उ प होने वाले रोग

य द नािभ- पंदन अपने थान से हट जाए तो कई कार ल ण और रोग दृि गोचर होने
लगते ह। क़ ज़ हो जाता है, मल क जाता है या ब त कम मल याग होता है या बार-बार
मल कम मा ा म िनकलता है, आँत म मल िचपक जाता है िजस कारण वायु-िवकार क
संभावना अिधक बनी रहती है। ने -िवकार, बाल का झड़ना या असमय सफ़े द होना,
दुबलापन, वीय-िवकार, मुँह से बदबू आना, र िवकार तथा दय िवकार आ द।

नािभ ठीक करने वाले योगासन

नािभ च ठीक करने के िलए िन िलिखत आसन अिधक उपयोगी व लाभकारी माने जाते
ह जैसे - सु व ासन, पि मो ानासन, उ ासन, च ासन, धनुरासन, नौकासन, हलासन,
उ ानपादासन आ द।

नािभ ठीक करने वाले योगासन


आयुवदानुसार : आयुवद म नािभ-च ठीक करने के िलए कई कार क जड़ी-बू टयाँ भी
उपयोग म लाई जाती ह। - कसी आयुवद के डॉ टर से परामश ल।

1. ात:काल खाली पेट लगभग दस ाम स फ़ और इतना ही गुड़ िमलाकर ित दन


( व थ होने तक) अ छे से चबाकर खाएँ। नािभ अपने थान पर आ जाती है।
2. िनगु डी का पता पेट पर बाँधने से लाभ िमलता है।
3. आक के पके ए प म अर डी का तेल लगाकर आग म सक कर गम-गम पेट क
िसकाई कर और पेट पर बाँध ल। इससे नािभ च ठीक होकर पेट के अंदर क सभी
कार क सूजन को िमटाता ह।
4. अितसार रोग के िलए बरगद का दूध नािभ म भरने से ब के द त के िलए
लाभकारी है।
5. टमाटर के बीच म से दो टु कड़े कर और उसके बीज वाला भाग िनकाल देव और उसम
भुना आ सुहागा 9 र भर देव और आँच पर गम करके चूसने से नािभ च अपने
थान पर आ जाता है।
6. बहेड़े के फल क म ा का ाथ बना ल और 1-1 घंटे से िपलाएँ तो नािभ च और
अितसार ठीक होते ह।

हमारे वेद-पुराण और ाचीन ंथ म नािभ के मह व को दशाया गया है। आज इस संदभ


म पूण जानकारी न होने के कारण अनजाने म हम अपना इलाज उिचत ढंग से नह करा
पाते और कई कार के रोग से िघर जाते ह। अत: इस तरफ़ हम अपना यान एका कर
तो हमको बेहतर लाभ ा होगा। यह िवषय ब त बड़ा है। कसी आयुवद के डॉ टर से
परामश ल। थानाभाव के कारण हम यहाँ िवराम देते ह।
यो य आहार - एक दृि

एक ब त पुरानी कहावत है क ‘जैसा खाओ अ , वैसा बने मन"’, ‘जैसा िपयो पानी वैसी
ही वाणी"। हम जो भोजन करते ह वह अपनी इस देह के िलए ही तो करते ह। तो या
हमने इसके िलए कोई पैमाना तय कया है ? या कस कार का भोजन हमारे िलए
िहतकर होगा ?, कतना भोजन करना चािहए?, कौन सा भोजन ठीक रहता है ? कस
समय पर करना चािहए?, भोजन क गुणव ा कै सी होनी चािहए आ द।

य द हम शा स मत बात कर या फर आज के डॉ टर क बात कर तो दोन म एक


बात क समानता नज़र आएगी। वह यह क शु आहार और शाकाहार ही सव कृ
आहार है। शाकाहार मनु य को पया िवटािमन, ोटीन और कई अ य खिनज लवण क
पू त कराता है। आहार हमारे जीवन म ब त भाव डालता है। इससे हमारी मानिसकता
पर ब त अिधक भाव पड़ता है और यही कारण है क िव ान ने साि वक आहार पर
अ यिधक ज़ोर डाला है।

हठयोग म िलखा है क

सुि धमधुराहार तुथाशिवव जतः।


भु यते िशवसं ी यै िमताहारः स उ यते । । (ह.यो. . 1/58)

अथात् साधक को िमताहार करना चािहए। वह पूण प से ि ध (िचकना) और मधुर


आहार हो। उदर (पेट) को दो भाग अ से भरना चािहए एक भाग जल से पूण करना
चािहए एवं चौथे भाग को ाणवायु के िलए शेष रखना चािहए।

अप य अहार

सू कार कहते ह क साधक को ये आहार नह करना चािहए। जैसे कटु (कड़वा), ख ा


(इमली आ द), ती ण (िमच, चटपटे मसाले आ द), ती ण लवण म नमक न, उ ण म गुड़
आ द, ह रत प का शाक, सौवीर (कॉजी) तैल, ितल, म दरा, म य इनको अव य
(विजत) न लेने यो य कहते ह और मांसाहार, दही, मादक आ द सभी उ ेजक पदाथ
को नह लेना चािहए।

हठयोग म आगे िलखा है क इस कार का भोजन भी नह करना चािहए, जैसे अि म


दोबारा गम कया आ अ (दाल, चावल आ द) और खाअथात् घी आ द से रिहत।
िजसम अिधक मा ा म लवण हो ऐसा भोजन व जत है। अिधक बोलना भी याग यो य है।
क द पुराण म िलखा है क कटु अ ल, लवण आ द को याग कर हमेशा दूध का सेवन
करना चािहए। इसम आगे उ लेख है क माँस और खल कु ि सत अ (या वनाल, कोदू
आ द) उ कट, िमच आ द सभी व जत ह अथात् इनका सेवन नह करना चािहए। दुगधयु
एवं बासी (पुराना, एक दन पहले का) भोजन भी नह करना चािहए।

योग साधक को अपनी साधना के समय अित ी सेवन, दु का संग, अिधक फलाहार,
अिधक उपवास, अिधक भार लाना–ले-जाना, अनेक बार सूय नम कार आ द का याग कर
देना चािहए। यहाँ इस सू म कहने का आशय यह है क अित नह करनी चािहए। जैसे
चय का पालन नह करगे या अिधक उपवास करगे तो शरीर कमज़ोर हो जाएगा और
आप यथायो य साधना नह कर पाएँग।े साधक को अपने िववेक से काम लेना चािहए।

प य आहार (लेने यो य आहार)

आचाय महाराज कहते ह क साधक को अपने शरीर को व थ रखने के िलए एवं िच


क स ता के िलए िहतकर और प रपूण शाकाहार करना चािहए। गे ,ँ शािल, अ , दूध,
घी, िम ी, म खन, स ठ, परवल, आ द पाँच कार के शाक, मूंग और शु जल (छना आ
जल, फ टर वॉटर) ये सभी िहतकारी ह। इनको अव य लेना चािहए। यहाँ प करते ह
क देह क पुि हेतु शकरा और घी से यु दूघ (गाय का हो तो उ म), धातु पोषक (ल डू
पुआ आ द) एवं अपने मन को िहतकर लगे ऐसा शाकाहारी सुयो य िमताहारी शा
स मत भोजन ही करना चािहए।

साधक इन सभी उपरो बात को यान म रखते ए अपने भोजन क िनयमावली


बनाएँ। ित दन शु व ताज़ा भोजन कर। साधक को सं या (राि होने से पहले) के समय
भोजन कर लेना चािहए। िजससे वह सुचा प से पाचक बन सके । य द आहार करने के
कु छ देर बाद ही राि िव ाम करना है तो रात भर भोजन उदर म पड़ा रहेगा िजससे
आल य बढ़ेगा, क़ ज़ होने क आशंका रहेगी एवं उदर क मांसपेिशयाँ आहार के गुण
िवटािमन, ोटीन इ या द पूण प से हण नह कर पाएँगी। फल व प कई बीमा रय
क उ पि होने क आशंका बनी रहती है। अतः अपने शरीर को सुंदर, सुग ठत बलशाली,
िनरोगी तथा तेज वी बनाना हो तो ि को आहार का पूण यान रखकर जीवनयापन
करना चािहए।

यो य आहार क उपयोिगता
वे पदाथ जो शरीर म हण कए जाने के प ात् ऊजा उ प करते ए तंतु का िनमाण
करते ह तथा टू टे-फू टे तंतु क मर मत करते ह , शरीर क िविभ या के िलए
सहायक होते ह। यही भोजन कहलाता है।

ि भूख लगने पर िजतना भोजन हण करता है, वह उस ि क खुराक कहलाती


है। येक ि क खुराक अलग-अलग होती है। आयु, मौसम, कद काठी, सामािजक
प रवेश के अनुसार ि क खुराक िनधा रत होती ह।

संतुिलत भोजन

चािहए। शरीर के संतुलन को बनाए रखने के िलए 75: ार धान और 25; अ ल धान
भोजन क आव यकता होती है। एक ही कार का आहार अिधक मा ा म न िलया जाए,
बि क कई गुण व रस से यु आहार लेना चािहए।

भोजन के कार

ि गुण िस ांत के आधार पर भोजन तीन कार के होते ह –

1. साि वक भोजन 2. राजसी भोजन 3. तामिसक भोजन

1. साि वक भोजन - ऐसे भो य पदाथ जो जीव को ाण, वा य, स ता द तथा जीवन


रस यु ाकृ ितक और कृ ित से सरल प से ा कए गए ह , आयुवछ क तथा
बुि व क होते ह। ये भोजन मन को शांत कर कु शा बुि और संतुिलत आचरण पैदा
करते ह। ऐसे भोजन अ मय, ाणमय, मनोमय तथा िव ानमय कोष को समान प से
पोिषत करते ह तथा सम त कोष म संतुलन बनाए रखतेह।

दाल, चावल, गाय का दूध, घी, मीठे फल आ द तथा वे पदाथ जो पेड़-पौध तथा दूध
घी से बने ह उ ह साि वक भोजन कहा जाता है। आयु, आहार साि वक भोजन कहलाते ह।

2. राजसी भोजन - ऐसे भो य पदाथ जो तीखे, अ लीय, ारीय, अ यिधक गम, जलन
पैदा करने वाले तरह-तरह के मसाले, तेल, घी आ द म भूनकर वाद के िलए ज़ायके दार
बनाए जाते ह। गरम मसाले, चाय, कॉफ़ , त बाकू ,काली िमच इ या द ये राजसी भोजन
क ेणी म आते ह। ऐसे भोजन शरीर क या क अ यिधक ती करते ह िजनसे शरीर
म अ यिधक ाण का संचार होने लगता है जो ठीक नह है। अत: ये पंचकोष म असंतुलन
का कारण बन जाते ह। गीता के अनुसार कड़वे, ख े, लवणयु भोजन, दु:ख और शोक
उ प करने वाले हो जाते ह। ‘ रच डाइट' जैसे हलुआ, पूड़ी यादा तला आ भोजन भी
राजसी भोजन कहलाता है। अत: ये सभी राजसी भोजन के अंतगत आते ह।
3. तामिसक भोजन - ऐसे भो य पदाथ जो बासी ह , मृत ह या उ ह आिशक प से
सड़ाया गया हो। मांस, मछली, अंड,े बासी भोजन तथा यादा मा ा म भोजन लेने पर एवं
शराब का सेवन भी तामिसक वृित को ज म देता है। बासी, दूिषत, िड ब म बंद भोजन
तामिसक भोजन क ेणी म आते ह। गीता के अनुसार जो भोजन ब त समय पहले
पकाया आ हो, रस रिहत हो, दुग ध यु और अपिव हो, तामिसक भोजन कहलाता है
एवं लहसुन याज भी तामिसक आहार के अंतगत आते ह।

िविभ कार के भोजन का मन पर भाव

कहते ह ि जैसा भोजन करे गा वैसे ही उसके िवचार और काय ह गे। कहा भी गया है
जैसा अ वैसा मन। भोजन के कार तथा गुण का भाव ि के शरीर तथा मन दोन
पर पड़ता है।

1. साि वक भोजन का भाव - साि वक भोजन करने से स वगुण स बंधी िवचार एवं
याएँ होती ह। ऐसे भोजन से स वगुण जैसे - स य, ान, बुि क कु शा ता, शांित, मन
क ि थरता व गंभीरता, दय क शु ता, मन क सरलता, आनंद, सुख आ द सकारा मक
प रणाम होते ह। संयम तथा सहनशीलता का िवकास होता है। शरीर िवकार रिहत होकर
व थ बना रहता है। िच म िनमलता रहतीहै।

2. राजसी भोजन का भाव - राजसी भोजन से मन क चंचलता, वहार म ई यां, ष े


एवं झगड़े क वृित, वाणी म कठोरता एवं ककशता, तनाव एवं दु:ख आ द प रणाम ा
होते ह। इस कार का भोजन ोध, उ ेजना तथा वासना को ज म देता है। मन सदा
चंचल रहता है। शरीर म भारीपन क अनुभूित होती है। िच एका नह रह पाता एवं
तंि का-तं उ ेिजत रहता है।

3. तामिसक भोजन का भाव - तामिसक भोजन के सेवन से आल य, अ ान, मोह, मद,


ोध, भारीपन आ द दु भाव होते ह। इससे िवचार और वहार म कठोरता, ू रता एवं
हंसा आ द आती है। ि वाथ , झगड़ालू, असिह णु कृ ित का हो जाता है। उसका
वहार खा और रा सी वृि का हो जाता है जो परे शानी व दु:ख का कारण बनता है।

अनुपयु भोजन (आहार) क भाव तथा दु भाव

भोजन या अनुपयु आहार या अ ाकृ ितक भोजन से शरीर के अंदर अनेक कार के
िवकार इक े हो जाते ह। अनेक रोग शरीर को घेर लेते ह। शरीर क शि ीण हो जाती
है। आज के युग क अिधकांश बीमा रयाँ गलत आहार का ही प रणाम ह। मधुमेह, उ
र चाप, मोटापा, आँत एवं लीवर के अनेक रोग इसी कारण से होते ह।

मौसाहार के दु भाव
अिधकांश पशु गंदा पानी व िवषैला भोजन करते ह िजससे िविभ कार के
रासायिनक त व उनके शरीर म प च ँ जाते ह तथा माँस को ज़हरीला या
रोगयु बना देते ह। पशु को मारते समय भय के कारण पशु के शरीर म
डर, ोध, कु ठा स बंधी हाम न (ए ने िलन नामक हाम न) उ प होते ह जो
उनके शरीर के मा यम से माँसाहार खाने वाले ि के शरीर म प च ँ कर
दुगुण का संचार करते ह।
माँसाहारी जीव के दाँत क संरचना माँस क चीर-फाड़ हेतु पैनी तथा
नुक ली होती है। उनके नाखून भी बड़े एवं कठोर होते ह। जब क शाकाहारी
जीव के दाँत भोजन को पीसने एवं चबाने हेतु अनुकूल होते ह।
माँसाहार मनु य क कृ ित के िवपरीत है।
मानव शरीर क रचना शाकाहारी मशीन क तरह ई है। मनु य शरीर क
आँत शरीर के अनुपात से 6 गुना अिधक लंबी होती है, जब क
माँसाहारी जीव क आँत उनक शारी रक लंबाई के अनुपात म होती है।
माँसाहारी जीव क आँत म अिधक अ ल िनकलता है जो क माँसाहार
पदाथ को आसानी से पचा सकता है, परं तु मनु य क आँत म अ ल कम
िनकलता है अत: वह माँसाहारी भोजन को ढंग से पचा नह पाता।
माँसाहारी जीव के जबड़े (भोजन चबाने पर) ऊपर-नीचे गित करते ह, जब क
शाकाहारी जीव के जबड़े काफ़ वतं गित करते ह। इन सभी चीज़ को
दृि गत कर यह कहा जा सकता है क मनु य के िलए शाकाहार ही उपयु व
सव े भोजन है।
माँस-भ ण से मानिसक तनाव व शारी रक असंतुलन होता है, जब क
शाकाहारी भोजन मानिसक शांित व शारी रक संतुलन म पूणतः सहायक िस
होता है।
मौस खाने से एसके टस, टीनोसोिलयम तथा दूसरे परजीवी मौस के साथ मनु य
के शरीर म प च ँ जाते ह जो कई रोग का कारण बनते ह। कु छ जानवर का
माँस खाने से िमग एवं मैड काऊ बीमारी क आशंका रहती है।

िव वा य संगठन (WH.O.) के अनुसार लगभग 160 बीमा रय मौसाहार के सेवन से


होती ह। माँसहा रय को अपच, क़ ज़, अ लता, ह नया, िपताशय क परे शानी, बवासीर
क बीमारी, शाकाहारी ि य के मुक़ाबले दुगुनी होती है।

एक वै ािनक अ ययन के अनुसार तन-कसर, बड़ी आँत का कसर, ो टेट का कसर,


शाकाहा रय म माँसाहा रय क तुलना म 50 ितशत कम होता है य क शाकाहारी
भोजन म ऐसे त व होते ह जो कसर से शरीर को बचाते ह तथा रोग ितरोधा मक मता
बढ़ाते ह।

गंजापन, अ सर, शुगर क बीमारी (मधुमेह), िमग , उ र चाप इ या द रोग भी


शाकाहार भोजन करने वाल म कम होते ह।

आहार पर एक ट पणी

एक सव के अनुसार हम ित दन 5 रं ग के शाकाहार लेने चािहए। फ़ाइबर यु आहार


लेना चािहए जो क पाचन या म सहायक है और मेटाबॉिल म व गंभीर लंबी
बीमा रय से बचाने म भी मह वपूण भूिमका िनभाता है। फ़ाइबर िसफ़ शाकाहारी भोजन
म ही पाया जाता है।

पानी िनयिमत प से 8-10 िगलास पीना चािहए जो क मोटापे के साथ कई कार क


बीमा रय से बचाने म सहायता करता है। अ ांग योग का िनयिमत पालन कर और पेट म
सुयो य शाकाहारी भोजन ही डाल, य क आपका शरीर आपका है, अतः सावधानी
बरत।

वह सुख जो कभी समा न हो उसके िलए के वल


िन वक प यान ही कायका रणी है।

-RJT
कस बीमारी म या खाएँ? या न खाएँ?
एक कहावत :
पेट ह का तो िसर ह का,पेट भारी तो िसर भारी,
पेट िबग़डा तो सब कु छ िबगड़ा, पेट साफ तो बीमारी माफ
मािसक धम क अिनयिमतता के िलए - या
खाएँ, या पीएँ, या कर?

मािसक धम क अिनयिमतता म मु य दो सम याएँ सामने आती ह :

1. मािसक धम म कावट। 2. मािसक धम का अिधक आना।

मािसक धम क अिनयिमतता म िन िलिखत आहार िलए जा सकते ह:

ना रयल : ना रयल खाने से मािसक धम खुलकर आता है।

मटर : मािसक धम क कावट को दूर करता है।

तुलसी : तुलसी क जड़ को छाया म सुखाकर और पीसकर, चौथाई च मच पान म रखकर


खाने से अनाव यक ऋतु- ाव बंद हो जाता है। संतुिलत भोजन ल, न बू, मौस बी, गम
चाय, कॉफ़ , गाजर, राई, स फ का सेवन कर।

मािसक धम कम करने के िलए :

अनार के सूखे िछलक को पीसकर छान ल। इसे 1 च मच भरकर काफ़ ठं डे पानी से लेने
से र - ाव बंद हो जाता है। ह ग का सेवन भी लाभकारी होता है।

या न खाएँ, या न पीएँ, या न कर? – तेल, ग र व अिधक िमच-मसालेदार भोजन,


अचार, मीठे पदाथ, पॉिलश वाले चावल, माँसाहार आ द। अिधक वासना से दूर रह।

मोटापा (िनवारण के िलए) - ात:काल ख़ाली पेट ित दन आधा न बू के रस के साथ दो


िगलास पानी पीएँ। रात को ताँबे के बतन म पानी भरकर रख एवं ात:काल वही पानी
पीएँ। भोजन म ग ँ का दिलया, लौक क स ज़ी, िगलक , बरबटी, पालक, कु लथी एवं
सलाद का योग अिधक से अिधक कर। टमाटर का सूप, लौक का जूस एवं छाछ का योग
ित दन कर। भोजन हमेशा सादा, संतुिलत एवं सुपा य ही कर। सुबह ित दन पैदल घूम।
िन य प से ह के ायाम, योगा यास एवं ाणायाम कर। मोटापा बढ़ाने वाले अंग जैसे
थायरॉइड क पूणतः देखभाल कर। आलस का याग कर। मतानुसार अिधक से अिधक
काय अव य कर।

या न खाएँ, या न कर, या न पीय - घी, तेल से बने खा पदाथ, ग र भोजन,


िमठाई, चावल, आलू, के ला, मौसाहार, शराब, चाय, शीतल पेय, दन का िव ाम, राि
भोजन के तुरंत बाद सोना, सुबह देर से उठना, आलसी बने रहना, आ द कारण का पूणत:
याग कर।

नोट : उपरो कस बीमारी म या खाएँ, या न खाएँ का वणन सामा य प से कया


गया है अपने शरीर के अनु प एवं िववेक का पूणतः उपयोग कर। अिधक जानकारी या
सहयोग के िलए लेखक से भी स पक कर सकते ह।

वात, िप , कफ़ के कारण सैकड़ बीमा रय का ज म होता है। अत: कु छ बात यहाँ


बताई जा रही ह, यान रखने यो य ह।
इन सब बात को अलावा एक बात और यान रख :
"ब त मह वपूण वा य होटल→ हो सके तो टल।"
उपरो वणन पुरानी कहावत के अनुसार कया गया है, अतः इनका उपयोग , े ,
काल एवं शारी रक प रि थित के अनु प कर।
मानव शरीर रचना एवं या िव ान

मा नव शरीर एक अ भुत रचना, ई र क अनमोल देन एवं अ छे कम का उपहार है।

इस अ याय म मानव शरीर और उससे जुड़ी या का अ ययन कया जाएगा जो क


आपको योग से स बंिधत आसन म सहायक ह गी।

योगासन का िवशेष भाव मांसपेिशय , ंिथय , मे द ड आ द म थम प से देखा


गया है। अत: इस िवल ण आकृ ित को समझने के िलए इस अ याय म संि लेख िलखा
गया है।

शरीर रचना िव ान

(Anatomy)
मानव शरीर अनेक छोटी-छोटी कोिशका (cells) से िमलकर बना है। ये कोिशकाएँ
आपस म जुड़कर ऊतक (tissue) बनाते ह और ऊतक पेिशय (muscles) का िनमाण करते
ह। इस तरह अलग-अलग पेिशयाँ (muscles) िमलकर सभी अ य ंिथयाँ और अवयव
(organs) बनाते ह। इस तरह हम शरीर को छह िह स म बाँटकर उसका अलग से
अ ययन कर सकते ह।जैसे : िसर (head), गला (neck), हाथ (upper limbs), पैर (lower
limb), पेट (abdomen), तथा छाती (thorax) |

िसर(Head)

िसर के कं काल को Skull कहते ह। ये ब त सारी हि य से जुड़कर बना होता है। Skull म
दो हि य का जोड़ होता है, एक Cranium दूसरी Mandible (जबड़ा। Cranium के अंदर
बने खोखले िह से को brain box कहते ह, िजसम मि त क (brain) होता है।

ला(Neck)

गदन हमारे िसर को धड़ से जोड़ती है। इसके अंदर ब त सारे अंग होते ह। जैसे, चुि लका
ंिथ (Thyroid gland), उप-चुि लका ंिथ (Parathyroid gland), Thymus gland,
धमिनयाँ (Arteries), िशराएँ (Veins), नस(Nerves), Trachea, esophagus आ द

बा (Upper limbs)
हमारे हाथ क बनावट इस तरह से है।

1. कं धे - Shoulders

2. ऊपरी बा - Arm

3. अ बा — Forearm

4. थेली - Palm

कं धे को तीन भाग म िवभािजत कया जाता है –

1. सीना (Pectoral region) 2. काँख Axillary region 3. के पुला (Scapula)

पैर (Lower limbs)

आम तौर पर सभी जानवर ारा हाथ और पैर का इ तेमाल चलने के िलए कया जाता
है। इसके िवपरीत मनु य चलने- फरने के िलए िसफ़ अपने पैर का ही इ तेमाल करता है।

पैर क बनावट म मु य प से िन िलिखत आकृ ितयाँ होती ह।

(1) Pelvic girdle - Hip bone + Sacrum + Coccyx

(2) Femur

(3) Tibia & Fibula

(4) Foot-tarsal & metatarsals

पेट (Abdomen)
पेट शरीर का एक ब त बड़ा व मह वपूण िह सा है, जो ब त सारे अंग से िमलकर बना
है।

जैसे : यकृ त (liver), अ ाशय या लोम- ंिथ (pancreas), आमाशय (stomach), आँत
(intestine-small and large), ित ली (spleen), मिहला म गभाशय और रज पंड
(uterus & varies) होते ह और पु ष म वीय पंड (testis) होते ह।

व ीय पंजरा (Thorax)
यह भाग गले के नीचे से शु होता है और Xiphoid process f the sternum तक
र ता है। Thorax म हि य का एक ढाँचा होता है जो क पसिलय (ribs) ारा बना
होता है। जो सामने क तरफ़ sternum से जुड़ा होता है और पीछे क तरफ़ vertebral
column à जुड़ा होता है। इसके भीतर दय (heart) और फु फु स (lungs) होते ह जो क
सन या और रकतसंचार िनयंि त करते ह।

खोपड़ी के वायु िववर (Air sinuses in the Skull)

खोपड़ी क हि य म कु छ cavities पाई जाती है, िजनम वायु भरी होती है। इ ह वायु
िववर (Air sinuses) कहा जाता है।

ये यादातर frontal, sphenoid, ethmoidal, maxillary थान पर पाए जाते ह। ये


सभी नाक पर खुलते ह। इनसे वर म गूँज उ प होती है, तथा यह चेहरे तथा कपाल का
भार कम करते ह।

वायुिववर शोथ या साइनुसाइ टस (Sinusitis)

नािसका का सं मण वायु िववर म प चँ ता है िजससे यह भी सं िमत हो जाती है और


इनम सुजन (inflammation) हो जाता है। इससे इनम शोथ inflammation उ प हो
जाता है िजसे वायु िववर शोथ या साइनुसाइ टस कहा जाता है। इस रोग म िसर म िवशेष
प से उस थान पर दद होता है जहाँ पर कोई वायु िववर रोग आ होता है तथा जुकाम
बना रहता है। रोग के पुराना पड़ जाने पर एक नासा रं से ाव होने लगता है। िजससे
कभी-कभी बदबू भी आती है। िजसे Chronic Sinusitis कहते ह।

संिध सं थान (Articular System)

दो यो दी से अिधक अि थय के आपस म िमलने के थान को जोड़ (joint) कहते ह।


संिधय के अ ययन क संिध िव ान (arthrology) कहा जाता है। संिधयाँ अि थय
(bones), उपाि थय (cartilages), ायु (ligaments), तंतुमय ऊतक (fibrous
tissue) एवं ेषक कला (synovial membranes) क बनी होती ह। संिधय को तीन वग
म िवभािजत कया गया है :

(1) तंतुमय संिधयाँ (Fibrousjoints)

(2) उपाि थ संिधयाँ (Cartilaginousjoints)

(3) ेषक संिधयाँ (Synovialjoints)

वात रोग (Gout) - इस रोग म र म यू रक एिसड क मा ा ब त बढ़ी ई होती है तथा


संिधय म सोिडयम यूरेट के रवे जमा हो जाते ह िजससे संिध शोथ हो जाता है।

सामा यतः पैर क अँगुिलय और अँगूठे से यह रोग ार भ होता है। पैर म सूजन,
बुख़ार, हाथ-पैर म दद होता है तथा पसीना आता है।
शरीर या िव ान

हमारा शरीर िविभ कार के तं ारा संचािलत होता है। अलग-अलग या करने के
िलए अलग-अलग तं काम करते ह। जैसे र का संचारण पूरे शरीर म करने के िलए र -
प रसंचरण तं काम करता है। ऐसे ही बाक़ सभी तं अपने-अपने थान पर कायरत
रहते ह।

हमारे शरीर ारा िजतनी भी याएँ क जाती ह उ ह संचािलत करने का काय यह तं


ही करते ह।

तं के नाम –

(1) प रसंचरण तं (Circulatory system)

(2) लसीका तं (Lymphatic system)


(3) जािलका अंत:कला तं (R.E.system)

(4) पोषण तं (Digestive system)

(5) शवसन तं (Respiratory system)

(6) अंत ावी तं (Endocrine system)

(7) मू तं (Urinary system)

(8) जनन तं (Reproductive system)

(9) मे तंि का तं (Nervous system)

प रसंचरण तं (Circulatory System)

इस तं म मु य अंग दय है जो क मूलाधार है प रसंचरण तं का। दय से


र वािहकाएँ जुड़ी होती ह जो क पूरे शरीर म फै ली होती ह और र का संचार करती
ह।

हमारे शरीर म दो कार क र वािहकाएँ होती ह :

(1) धमिनयाँ (arteries) (2) िशराएँ (veins)


दय क ि थित

दय छाती या व म फे फड़ के म य टनम के पीछे मीिडया टीनम म ि थत होता है।


इसका बड़ा भाग बाई ओर होता है।

दयच (Cardiaccycle)

दय एक प प के समान है। स पूण शरीर म र प रसंचरण से स बंिधत याएँ दय के


ारा क जाती ह। उ ह सि मिलत प से दय च कहा जाता है। दय क या
साइनस अिल द नोड से शु होती है और पूरे दय म से होते ए िनलय तक प च ँ ती है
तथा िनलय संकुिचत होते ह। अिल द (Arterium) और िनलय (Ventricle) क या को
दो भाग म िवभ कया जाता है - कु चन (Systole) तथा अनुिशिथलन (Diastole)।
कु चन म दय के को िसकु ड़ते ह तथा अनुिशिथलन म र दय से बाहर आता है। साथ
ही दय र से भरकर फू ल जाता है।

दय विनयाँ (Heart sounds)

िनलय (ventricles) के कु िचत होने पर अिल द िनलय कपाट (arterial ventricular


valve) िनि य प से बंधो जाते ह। इसके कपाट बंद होते समयजो विन िनकलती है वह
थम दय विन (first heart sound) कहलाती है। इसे हम Lubb के समान सुनते ह।
िनलय (ventricles) का संकुचन समा होने पर H&Territ (aorta) तथा फु फु स कपाट
(aortic valve r semicircular valve) जब बंद होते ह तब ि तीय दय विन
(secondheartsound) होती है। इसे हम Dub के समान सुनते ह। दय क यह स पूण
काय णाली धड़कन (Heart Beat) कहलाती है िजससे यह ात होता है क दय सुचा
प से काय कर रहा है।

नाड़ी या है? (Pulse)

जब धमिनय म दाब क लहर आती है साथ ही दय से र बाहर आता है उस समय एक


लहर सी महसूस होती है। वह Pulse है। हम Pulse को Radial Artery म यादातर देखते
ह। वैसे हो हम Pulse को Brachial Artery, Popliteal Artery, Femoral Artery,
Dorsalis Pedis Artery म भी देख सकते ह। नाड़ी क आदश गित वय क म सामा यतः
एक िमिनट म 72 बार होना चािहए तथा नवजात िशशु म 140/min हमारे पूरे शरीर म
र क मा ा लगभग 5 लीटर होती है।

र चाप (Blood Pressure)

र -वािहका (arteries and veins) म प रसंच रत होते समय वािहका क Walls


पर र िजतना lateral पा दबाव डालता है उसे र चाप या Blood Pressure कहते ह।
र चाप को मापने के िलए ि फगनोमेनो मीटर का उपयोग कया जाता है। र चाप के
बढ़ने को हम Hypertension đồ "TH से जानते ह और र चाप के कम होने क
Hypotension à Sixth Joint National Committee Hypertension उ र चाप को
समझने या वग करण करने के िलए िन िलिखत Criteria अपनाया है।

पाचन तं (Digestive System)

पाचन तं एक ऐसा तं है जो क ब त से अंग से िमलकर बना होता है। इसम


िन िलिखत अंग पोषण तं बनाने म सहायक होते ह :
(1) मुख (Mouth)

(2) सनी (Pharynx)

(3) ासनली (Oesophagus)

(4) आमाशय (Stomach)

(5) छोटी (Small Intestine)

(6) बड़ी आँत (Large Intestine)

(7) मलाशय (Rectum)

(8) मल ार (Anus)

(9) यकृ त (Liver)

ये सभी अंग िमलकर ऐलीमे ी कनाल (Alimentary Canal) बनाते ह। मु य प से


पाचन या मुख से शु होकर मल ार पर ख म होती है। ले कन इस पाचन या म
सहायक कु छ और भी अंग ह। यह सभी अंग पाचन तं के मुख अंग म से ह जैसे -
ंिथयाँ, लार ंिथयाँ (Salivary glands), अ ाशय (Pancreas), िप ाशाय
(Gallbladder) आ द।

पाचन या

जब कभी भोजन का कौर (िनवाला) मुँह म रखा जाता है उसी दौरान मुख क ंिथयाँ
अपना रस छोड़ने लगती ह और उस भोजन के िनवाले के साथ िमल जाती ह। भोजन को
चबाने के बाद भोजन ासनली म जाता है। फर वहाँ से भोजन आमाशय म आता है। यहाँ
पर भोजन म रासायिनक व यांि क या होती है और इसम कई कार के रस िमलते ह।
इस तरह से एक पचा आ भोजन बन जाता है।

अब यह भोजन छोटी आँत म जाता है। जहाँ पर अवशोषण (absorption) क या


होती है। छोटी आँत क िसकु ड़ने तथा फै लने क या ारा यह भोजन सरकते ए बड़ी
आँत तक प च ँ ता है। यहाँ पर शेष थ बचा आ भोजन मल के प म प रव तत हो
जाता है तथा बड़ी आँत म नीचे क ओर प च ँ जाता है। अंत म यह मल ार से बाहर
िनकाल दया जाता है।

शरीर म आव यक त व

(1) काब हाइ ट


े (Carbohydrate)

(2) ोटीन (Protein)

(3) वसा (Fat)

(4) िवटािमन (Vitamins)

(5) खिनज लवन (Mineral salts)

(6) जल या पानी (Water)

काब हाइ ेट (Carbohydrate)

हमारे आहार का सबसे बड़ा अंश काब ज़ का है एवं शरीर म उ प होने वाली अिधकांश
शि का ोत है। टाच (starch) और शकरा (sugar) ये काब ज़ के दो धान वग ह।

ोटीन (Protein)

ोटीन आहार का अ यंत आव यक अंश है। ये धानत: नाइ ोजन त वयु होता है तथा
इससे शरीर क कोिशका के ोटो ला म ऊतक तथा को ांग क रचना होती है। यह
सामा यतः सोयाबीन, दाल, दूध, पनीर, मूंगफली, चने, मूंग क दाल आ द म पाया जाता
है।

वसा (Fat)

वसा म भी काब ज़ के समान काबन हाइ ोजन तथा ऑ सीजन त व होते ह। परं तु इनका
अनुपात िभ होता है। म खन, घी, वन पित ोत वाली वसा का ायः आहार म उपयोग
होता है।

खिनज लवण (Mineralsalts)

खिनज लवण हमारे शरीर म होने वाली सभी जैिवक या के िलए आव यक होता है।
हम भोजन ारा इन खिनज-लवण को हण करते ह। ये सब खिनज लवण शरीर म भी
िव मान रहते ह। मु य खिनज त व इस कार ह - कै ि शयम, फ़ाँ फ़ोरस, लोहा,
सोिडयम, पोटेिशयम, मै ीिशयम, आयोडोन।

कै ि शयम (Calcium)

यह मु यत: हि य तथा दाँत म पाया जाता है तथा इनके िनमाण के िलए आव यक होता
है। कै ि शयम ारा हि याँ मज़बूत और कठोर होती ह।सामा यत: इसक आव यकता
वय क म ित दन 1 ाम ित दन होती है। गभवती ि य म 1 1/2 ाम ित दन होती
है। कै ि शयम दूध, दही, पनीर, चूना, बादाम और मूली, गोभी के प म, मैथी, सहजन क
प ी, गाजर म तथा दाल म पाया जाता है।

फ़ाँ फ़ोरस (Phosphorus)

यह शरीर म मु यतः येक कोिशका म पाया जाता है। यह हि य और दाँत के िनमाण


म सहायक होता है। यह तंि का तं को व थ रखता है। गभवती ि य एवं ब को
इसक अिधक आव यकता होती है। फ़ाँ फ़ोरस मु य प से प ागोभी, सेब, मूली,
सोयाबीन, गाजर, भु ा आ द म पाया जाता है।

लोहा (Iron)

यह र के लाल कोिशका म Hb (Haemoglobin) के िनमाण म अिधक उपयोगी होता


है। सामा यतः एक ि को ित दन 20-30 mg लोहे क आव यकता होती है। यह सेब,
पालक, मटर, मैथी, गुड़, गाजर, खीरा, याज़, टमाटर, अँगूर आ द म पाया जाता है।

सोिडयम (Sodium)
सामा यतः इसे हम दैिनक भोजन म नमक के प म इसे हण करते ह। यह लवण म
लोरीन के साथ िमलकर सोिडयम लोराइड बनाता है। सामा यत: इसक आव यकता
ित दन 2 से 5 ाम होती है।

पोटे िशयम (Potassium)

पोटेिशयम क मा ा सबसे यादा (Intercellular fluid) अंत:कोिशका तरल म होती है।


पोटेिशयम कोिशका म होने वाली रासायिनक या म आव यक होता है। यह
तंि का आवेग के संचारण के िलए आव यक होता है।

सामा यतः इसक आव यकता एक ि म ित दन लगभग 4 ाम होती है। यह


िवशेषकर ोटीनयु खा पदाथ म पाया जाता है।

मै ीिशयम (Magnesium)

यह शरीर म हि य तथा दाँत म पाया जाता है। मानव शरीर म 50% मै ीिशयम हि य
म होता है। एक सामा य मनु य को ित दन 200 से 300mg, मै ीिशयम (Magnesium)
क आव यकता होती है।

यह फल तथा सि ज़य म अिधक मा ा म पाया जाता है।

आयोडीन (Iodine)

हमारे शरीर म गले पर थायरॉइड नाम एक ंिथ होती है। िजसको सुचा प से चलाने म
आयोडीन काम आता है। यह थायरॉइड को हारमोन जैसे थायरॉि सन तथा ाई
आयडोथाइरोिमन के िनमाण म सहायक होता है। आयोडीन याज़ म अिधक मा ा म
पाया जाता है (हालाँ क आयुवद म याज़ को तामिसक माना गया है)। समु ी पदाथ व
नमक म पाया जाता है। इसक कमी से घघा (Goitre) रोग होता है।

िवटािमन (Vitamin)

िवटािमन आव यक रासायिनक यौिगक होते ह जो सू म मा ा म ाय: सभी खा पदाथ


म पाए जाते ह। िवटािमन दो कार के होते ह। वसा घुलनशील एवं जल घुलनशील।

िवटािमन – वसा घुलनशील िवटािमन (fat soluble) &A, D, E, K


जल घुलनशील िवटािमन (water soluble) &B तथा C

िवटािमन A
िवटािमन A वन पितय म तथा - Carotene के प म िमलत है। यह ो-िवटािमन
रे टनोल म ितव तत होता है। यह या ाय: ऑत म होती है। िवटािमन-A हमारी दृि
मता को बढ़ाता है। यह िवटािमन रे टनल िपगमटस् को बनाने म मदद करता है जो क
कम रोशनी म देखने म काम करते ह। यह िवटािमन शरीर क सं ामक रोग से र ा
करता है। यह िवटािमन जनन शि को बनाए रखने म सहायक होता है तथा अि थ
कोिशका के िनमाण को िनयंि त करता है। यह ाय: हरी सि ज़य , गाजर, पपीता,
बटर (म खन) तथा दूध म पाया जाता है। इसक कमी से रत धी (night blindness),
शु काि पाक (xerophthalmia), नामक बीमा रयाँ होती ह।

िवटािमन D : ाय: इसके दो कार होते ह।


िवटािमन D - D2 Calcifer f Cholecalciferol D3

िवटािमन D हमारे शरीर म कै ि शयम के Absorption म सहायक होता है। यह िवटािमन


हि य के िनमाण म सहायक है। यह Kidney म Phosphorus के िनमाण म मदद करता
है। हम सबसे यादा िवटािमन D सूय ऊजा से िमलता है। इसक कमी से रके स
(Ricketts) ब म तथा steomalacia बड़ म हो जाता है।

िवटािमन E

यह िवटािमन वचा म घुलनशील होता है। इसको टोकोफे रोल के नाम से भी जानते ह। यह
मु यतः वन पित तेल, ई के बीज, सूरजमुखी के बीज, बटर (म खन) म पाया जाता है।
इसक आव यकता 0.8mg ित दन होती है। यह िवटािमन अपने ित-ऑ सीकारक
(Antioxident) गुण के कारण शरीर म अनाव यक ऑ सीकरण को रोकता है। यह
िवटािमन बं यता (Sterility) को रोकता है। गभ के िवकास म अिधक सहायक होता है।

िवटािमन K

इसे हम र ावरोधी कारक िवटािमन के नाम से जानते ह। यह मु यतः हरी सि ज़य


तथा फल म पाया जाता है। यह गाय के दूध म अिधक मा ा म पाया जाता है।

जल घुलनशील िवटािमन - B तथा C

िवटािमन B - यह िवटािमन कॉ ले स म पाया जाता है। जैसे –

Vitamin - B1 Complex

Vitamin — B2 Riboflavin
Vitamin – B6 Pyridoxine

Vitamin -B3 Pantothenic acid

Vitamin - B12 Cyanocobalamin

िवटािमन C - (Ascorbic acid)

इस िवटािमन को हम एसकारिबक एिसड के नाम से जानते ह। यह िवटािमन जल म


घुलनशील होता है तथा ऊ मा से न हो जाता है। यह िवटािमन ाय: ताज़े फल म
िवशेष प से पाया जाता है िजनम Citrus acid (िस स एिसड) होता है। जैसे- संतरा,
नीबू, नारं गी, आँवला, टमाटर, पपीता, अँगूर, चुकंदर आ द। यह िवटािमन इं सुिलन के
उ पादन म सहायक होता है। इसक कमी हो जाने से कव Scurvy रोग हो जाता है।

अंत : ावी तं (Endocrine System)

हमारे शरीर क ंिथयाँ दो कार म िवभािजत ह। एक वह जो अपने ाव सीधे र म


वािहत करती ह और इन ंिथय म ाव निलयाँ नह होत । उ ह हम अंतः ावी
ंिथयाँ (Endocrine glands) कहते ह। दूसरी वह िजसम ावनिलयाँ होती ह। उ ह हम
बिह: ावी ंिथयाँ (Exocrine glands) कहते ह।
हाँम न

शरीर म कु छ ऐसी ंिथयाँ होती ह। िजनका ाव उ प होकर र म िमल जाता है और


फर र के साथ शरीर म प रसंचा रत होता है। इन ाव के कायकारी त व को हम
हाँम न के नाम से जानते ह।

अंत: ावी ंिथयाँ


(1) पीयूष ंिथ (Pituitary gland)
(2) थायरॉइड ंिथ (Thyroid gland)
(3) पैराथायरॉइड ंिथ (Parathyroidgland)
(4) थाइमस ंिथ (Thymus gland)
(5) ए ीनल ंिथ (Adrenalgland)
(6) अ ाशय म लैगरहस क ीिपकाएँ (Istets f Langerhans in the Pancreas)
(7) पीिनयल ंिथ(Pinealgland)
(8) िलग ंिथ (Sexual gland)

पीयूष ंिथ (Pitutary gland)

यह ंिथ मि त क के आधार पर होती है। इस ंिथ म अ ज ख ड (anterior lobe)प ज


ख ड (posterior lobe) और दोन के बीच म म यवत भाग (pars intermedia) होते ह।
यह लािलमा िलए ए भूरे रं ग क होती है। अ ज ख ड (anterior lobe) से िन कार के
हाँम न िनकलते ह :
(1) वृि हाँम न (GH) - यह हाँम न शरीर क वृि के िलए आव यक होता है।
(2) ए ोनोकॉ टंको ािपक हाँम न Adrenocorticotropic Hormone (ACTH)- यह
हाम न ए ोनल ंिथ के क ट स क वृि िवकास के िलए आव यक होता है।
(3) थायरॉइड ेरक अंत रक हाँम न (Thyroid stimulating Hormone (TSH)- यह
हाम न थायरॉइड ंिथ क वृि और उसक याशीलता को बढ़ाने के िलए काम
करता है।
(4) गोनाडी ॉ फक हाँम न (Gonadotropic Hormone) – từ और पु ष दोन म
अ ज िपयुष ंिथ से िन दो जनन ंिथयाँ पोषण या लंग हाँम न उ प होते ह -
1. पुटक उ ीपक हॉम न, 2. पीतिप डकर हाँम न।
(5) पुटक उ ीपक हॉम न (Follicle FSH) - यह ि य म िड ब ि थ पुटक (Overian
Follicles) क वृि के िलए काम करता है।
(6) पीतिप डकर हाँम न (Luteinizing Hormone) - यह ि य म िड ब ंिथ पुटक
या ा फयत पुटक को पूण प से प रप करता है।
(7) तन ेरक हाँम न (Prolactin Hormone) - यह हाँम न ए ोजन तथा ोजे टेरोन
हाँम न के साथ तन का िवकास करता है। तथा गभाव था के दौरान दु ध िनमाण
करने के िलए े रत करता है।

प ज ख ड से िनकलने वाले हाँम न


(1) ए टीडायूरे टक हाँम न (Antidiuretic Hormone) — यही हाँम न जल के िलए
वृ य निलका क Permeability को बढ़ाकर उनम जल म पुनः अवशोषण को
बढ़ाता है।
(2) ऑ सीटोिसन हाँम न (Oxytocin Hormone) - इस हाँम न का काम मु यतः ी
के तन क Myoepithelial Cells को संकुिचत करना होता है। िजसका काय दूध
को बाहर िनकालना होता है।

(I) थायरॉइड हाँम न (Thyroid Hormone)

यह हाँम न थायरॉइड ंिथ से िनकलता है। थायरॉइड से थायर ि सन (Thyroxine T4)


एवं ाइआयडोथारोनीन (Triodothyronine 1,3) हाँम न िनकलते ह। ये हाँम न ऊतक
क वृि एवं िवकास को िनयंि त करते ह। इनक कमी या अिधकता होने से कई कार क
बीमा रयाँ हो जाती ह। जैस-े थायरॉइड अ प यता (Hypothyroidism) और थायरॉइड
अित यता (HyperThyroidism)

(II) थाइमस ंिथ(Thymus gland)

यह ंिथ व ीय गुहा म िवराजमान रहती है। इसम दो ख ड होते ह। यह मु य प से


बचपन से स य होती है। थाइमस ंिथ का काय एंटीबॉडी एवं रोग ितरोधक मता को
बनाए रखने म काम करती है।

(III) ए ीनल ंिथ (Adrenal gland)

ये ंिथ वृ के ऊपर ि थत होती है। इससे िवभ कार के हाम न िनकलते ह। जैस-े लूको
का टकॉयड, िमनरलोका टकॉयड, लंग टैरॉयड आ द।

अ ाशय म लैगरहस क ीिपकाएँ

यह ंिथ वािहनी यु होती है। इसके ऊतक से पाचक रस उ प होता है जो पाचन या


म काम आता है। अ ाशय के कोिशका के इन गु छ को लगरहस क ीिपकाएँ कहते ह
जो अंत: ावी ंिथयाँ होती ह। इन कोिशका को दो भाग म िवभािजत कया गया है
इन कोिशका (cells) ारा लूकैगान हामॉन उ प होता है तथा ि कोिशका (cells)
से इं सुिलन उ प होता है।
पीिनयल ंिथ (Pineal gland)

यह मि त क के नीचे तृतीय िनलय (Third Ventricle) के पीछे कापस कै लोसम के िनकट


एक छोटा सा लगभग 10 से.मी. लंबा लाल या भूरे रं ग का िप ड होता है।

लंग ंिथ (Sexual gland)

पु ष और मिहला के शरीर म अंग और निलका क वह व था है जो शु ाणु


और अ डाणु क उ पि करती है।
ए यु ेशर
म भारत देश ही एकमा ऐसा देश है जूही असं य कार क िव ा का ज म
िव आ। क ह कारणवश अनेक िव ाएँ लु ाय ह, परं तु जो भी ान उपल ध है य द
उ ह का उपयोग मब सही तरीके से कया जाए तो हम मृ युपयत िनरोगी जीवन जी
सकते ह। उ ह म से एक है 'ए यू ेशर’ प ित। िजसका अथ है ‘दबाव'। भारत देश म
ए यू ेशर को ाचीनकाल से कसी न कसी कार से िच क सीय प म अपनाया जाता
रहा है। ए यू ेशर प ित ारा शरीर के िनि त िविश थान पर उिचत प से
आव यकतानुसार दबाव डालकर उससे स बंिधत रोग का िनराकरण कया जाता है।

चूँ क हमारा शरीर पाँच त व से िमलकर बना है और यह शरीर एक िवशेष कार क


ऊजा ारा संचािलत होता है िजसे हम आ मा, चेतना या जैव-िव ुत (जैव-शि ) के प
म जानते ह। यही ऊजा हमारे स पूण शरीर म िव मान रहती है। हमारे हाथ व पैर के
तलुव म 7,200 ायु िसरे ि थत ह। इन तलुव म उठा दाब बंद ु मुख है। हमारे शरीर म
वािहत होने वाले जैव िव ुत के ि वच बोड इ ह हाथ और पैर के तलुव म ि थत है।
ए यू ेशर क मान तो उसके अनुसार असंयिमत जीवन जीने से हमारे शरीर म कई
िवजातीय त व जमा हो जाते ह। िजस जगह पर यह िवजातीय त व जमा होते ह उससे
स बंिधत रोग उ प हो जाता है। हाथ व पैर के तलुव म ि थत उससे स बंिधत बंद ु म
भी अप , अवरोध या टल जमा हो जाते ह और रोग तेज़ी से बढ़ने लगते ह। इनको
दूर करने के िलए हथेली एवं तलुव के उन र लै स बंद ु पर आव यकतानुसार दबाव
डालकर उन अप को दूर कया जाता है। िजस कारण रोग शनै: शनै: समा हो जाते
ह।

डॉ. एफ़ एम. घे टन (ए यू ेशर िच क सक) के अनुसार हमारे शरीर म जैव-िव ुत


िव मान है। जब वह हाथ व पैर के तलुव से लीक होने लगती है तोप रणाम व प उस
बंद ु से स बंिधत अंग म कोई न कोई रोग होने लगता है। अत: जब हम इन बंद ु पर
दबाव डालते ह तो उस ऊजा का िनकलना बंद हो जाता है। िजस कारण िव ुत शि का
वाह उस अंग म सामा य हो जाता है और रोग ठीक होने लगते ह। यह प ित सीधी,
सरल, कम समय, कम ख़च और िवशु प से अ हंसक भी है। यह पूण प से शरीर और
मन को शांित दान कर ऊजा को िवकिसत करने वाली है। थानाभाव के कारण हम यहाँ
पर प रचय मा दे रहे ह। अत: इस प ित का उपयोग करने वाले ि इस िच क सा से
स बंिधत िवशेष से संपक थािपत कर पूण प से लाभ ा कर। हमने िच के साथ
बंद ु तथा अंग के नाम दए ह िजस पर उिचत दबाव डालकर ठीक कया जा सके ।

अपने आ मबल से वात, िव , कफ को संतुिलत कर


वात रोग को शांत करने के िलए चंता छोड़े
वा याय कर

िप रोग को शांत करने के िलए भय का याग कर


ई र क शरण ल।

कफरोग को शांत करने के िलए हंसा का याग कर,


वभाव म ि थरता लाये।

-RJT
योग और आयुवद (एक अ ययन)

ा रंिआभककरता
योग भारतीय समाज म ि गत साधना एवं आ याि मकता का प रचायक
था। परं तु आज के भौितकतावादी युग म योग ब च चत एवं
ब ासंिगकता को ा कर अंतररा ीयता क ओर अ सर आ है। योग का थान
ि गत साधना एवं आ याि मकता से आगे जाकर ापक समाज परक उपयोिगता एवं
वै ािनकता क ओर अ सर हो गया है।

आधुिनक योग, योग का एक प मा है जब क योग का मूल आ याि मकता है एवं यह


त व ान एवं त वानुभूित का िव ान है।

आयुवद तथा योग एक काल म उ प एवं एक ही समान ल य को यान म रखकर


बनाई गई िव ाएँ ह। आयुवद क प रभाषा से ही िव दत होता है क आयुवद सदैव
सुखमय एवं िहतकर जीवन जीने के उपरांत मो ाि का साधन रहा है। आयुवद का
शाि दक अथ है - आयु = जीवन, वेद = ान या िव ान है, जो क जीवन जीने क कला
िसखाता है।

आयुवद को आरो य के िलए एक ब उ ेशीय िव ान के प म िवकिसत कया गया है।


िजसक सहायता से जीवन के चार ल य - धम, अथ, काम एवं मो क ाि होती है।
इनके थम तीन तो सुखमय एवं िहतमय आयु के ारा ा कए जा सकते ह, कं तु चतुथ
पु षाथ हेतु आयुवद म औषिधय के साथ-साथ योग अ यास का भी वणन कया जाता है।

आयुवद शरीर, इि य, स व एवं आ म- प जीवन का िवधान करता है वह योग स व


एवं चेतना का िव ान है जो त व ान एवं त वानुभूित के साथ-साथ आंत रक दुःख
िनवृि तथा मो दायक िव ा है। योग एवं आयुवद दोन ही वा य के े म मशः
मानस एवं चैत य वा य तथा शारी रक एवं मानिसक वा य से स बंिधत है। इस
वैिश के होने के बाद भी योग आयुवद का ही एक अंग है। संभव है क आयुवदा त
मानस एवं चैत य िच क सा का हीिव तृत व प योग के प म सामने आया होगा।

साथ ही साथ अनेक िव ान का मत है क शरीर, मन एवं वाणी क शु ता के िलए


कसी एक आचाय ने ही शरीर हेतु आयुवद, मन हेतु योग एवं वाणी हेतु ाकरण शा
क रचना क है, ये आचाय और कोई नह अिपतु वही योग के वतक आचाय पतंजिल ह।
चरक संिहता के थम ोक क ा या करते व टीकाकार उि देते ह -

पत लमहाभा यचरक ित सं कृ तेः ।


मनोवा ायदोषाण हसेऽिहयतये नम:।

आयुवद के आ द ंथ चरक संिहता म योग िव ा के सम त िस ांत सारांश प म पहले


ही उपल ध ह। चरक संिहता के नैि क िच क सा के अंतगत त व ान एवं त वानुभूित
मूल म योग िव ा एवं स व बुि का वणन ा होता है। इसी सारांश प योग िव ा का
वणन पत ल कृ त योग सू म िव तार पूवक ा होता है।

ी अि देव िव ालंकार के अनुसार यायावर जाित के कृ ण यजुवद क चरक शाखा


के लोग आयुवद एवं योग म वीण होते थे। ये सदैव मणशील कृ ित के आ करते थे,
इसिलए इ ह चरक कहा जाता है।

आयुवद एवं योग के मूल िस ांत एवं शरीर शोधक िस ांत आपस म अन य समानता
रखते ह। आयुवद क मुख शरीर शोधक या प कम है िजसके अंतगत आचाय चरक ने
वमन, िवरे चन, अनुवासन, अ थापन एवं िशरोिवरे चन को सि मिलत कया है एवं योग
सू म मह ष पतंजिल ने ष कम का वणन शरीर शोधन के प म कया है, जो मश:
धौित वि त नेित नौली ाटक कपालभाती। इनम एवं आयुवदो प कमाँ म अ यिधक
समानता है। यह ष कम आयुवद म भी पूण कं तु सू म प म िव मान है। इनका आयुवद
म िवकास आ और बाद म इ ह हठयोग म सि मिलत कर िलया गया।

योग का मूल उ े य मनु य को मो ाि कराना रहा है जो जीवन के िव ान अथात्


आयुवद का एक अंश या प मा है। आयुवद स पूण जीवन का मागदशक शा है एवं
मो ाि आयुवद का अंितम ल य है जो आ याि मक िवकास से स बंिधत है।
आ याि मक िवकास के अित र आयुवद शारी रक एवं मानिसक िवकास का भी उपदेश
दान करता है।

आयुवद मशः मानिसक, शारी रक, आ याि मक, आिधदैिवक तथा आिधभौितक क
के िनवारण का िव ान है िजसे आयुवद स पूण आरो य मानता है यही आरो य मनु य को
पु षाथ चतु (धम, अथ, काम, मो ) क ाि का साधन कराता है। जब क, योग
आ याि मक क का िनवारण कर मो का साधन मा है।

जैसा क पूव म कहा गया है क मन, वाणी एवं शरीर शुि हेतु एक ही आचाय ने तीन
िविभ ंथ क रचना क है। िच शुि हेतु पत ल योगसू , वाणी शोधन हेतु
पतंजलकृ त महाभा य एवं शरीर शोधन हेतु चरक संिहता (पतंजिल कृ त)। इसी आधार पर
आयुवद के आठ अंग एवं योग सू म व णत आठ अंग म अ यंत समानता प रलि त
होती है।

योगसू म व णत थम अंग यम है, िजसके अंतगत अ हंसा, स य, अ तेय, चय एवं


अप र ह व णत है। इनका आयुवद म मशः वा य वृ , आचार, रसायन, पापकम, ि -
उप त भ एवं िहतआयु आ द म िव तृत वणन ा होता है। योगसू के ि तीय अंग िनयम
के अंतगत शौच, संतोष, तप तथा वा याय एवं ई र िणधान वणन है। इ ह भी आयुवद
म अित वि थत एवं सुग य तरीके से व णत कया गया है जो वा य-वृ एवं दनचया
आ द के मुख अंग के प म थािपत है। इसी कार आसन, ाणायाम, याहार, धारणा,
यान एवं समािध इन छह अंग का भी आयुवद म िव तार-पूण, व छ, एवं खर वणन
ा होता है। इनम भी धारणा, यान, समािध को आचायाँ ने मानिसक रोग क मुख
िच क सा के प म व णत कया है। आयुवद म व णत ा एवं योग पु ष के ल ण योग
सू म व णत ऋत भरा, ा एवं भगव गीता के योग थ पु ष के समान ही ह।

इस कार हम देखते ह क योग आयुवद का एक अंग मा है। आयुवद के िस ांत पर


गौर करने से पता चलता है क आयुवद इहलौ कक एवं परालौ कक सुख क कामना को
यान म रखकर सृिजत कया गया है। आयुवद धम-अथकाम-मो पु षाथ चतु एवं
धन-ए णा, ाण-ए णा एवं परलोक-ए णा आ द ि -ए णा क सफलता क ाि हेतु
पथ- दशक है। यह औषिध, आहार एवं िवहार ारा इहलौ कक सुख क ाि का साधन
है, तो आ या म त व ान एवं त वानुभूित ारा परालौ कक सुख ाि का साधन योग
आयुवद का एक प होने के साथ दोन आपस म एक-दूसरे के पूरक भी ह। जहाँ
आयुवदो िविभ शुि कारक उपाय के ारा शारी रक, मानिसक तथा आ याि मक
शुि के उपरांत मो ाि हो जाती है वह योग क िविभ या ारा शारी रक,
मानिसक एवं आ याि मक शोधनोपरांत मो ाि होती है। य िप योग के वल मो
ाि का साधन है, कं तु जब तक ि व थ एवं सहज नह होगा तब तक मो ाि
क ओर अ सर नह हो सकता। इसिलए आयुवद को सुखमय जीवन उपरांत मो दान
करने के िनिम वाला शा होने से धानता दी जाती है एवं योग को सहायक या अंग
कहा जाता है।
स पूण वा य के िलए कु छ ट स

ातःकाल सूय दय से पहले िब तर का याग कर द।


तांबे के बतन म रात को पानी रख व सुबह कम से कम दो िगलास या अिधक
पीएँ।
एक च मच ि फला का योग कर।
ना ते म शु आहार ल (िड बा, पैकेट या शीिशय म बंद आहार का यथासंभव
याग कर)।
नशीले पदाथ का सेवन याग द।
आहार म शाकाहारी भोजन, सलाद, फल, जूस इ या द ल।
दोपहर के पहले आहार लेने क कोिशश कर तथा राि िव ाम के 4 घंटे पहले
भोजन कर तथा राि को ज दी सोएँ।
साि वक और शु भो य पदाथ आपके ओज और तेज का तो िनमाण करता ही
है साथ ही स ता और ेम क भावना को भी उ प करता है।
खाँसी, छ क, ज हाई, उ टी, पेशाब एवं शोच को कदािप न रोक। इ ह रोकने
से कई तरह क बीमा रयाँ ज म लेती ह।
जानवर क तरह दनभर जुगाली करना छोड़ द। बबलगम, युइंगम, गुटखा,
त बाकू , पान-बीड़ी, िसगरे ट जब इनको चबाते ह या पीते है तो ये भी आपके
ब मू य जीवन को चबाते ह और पीते ह। तो या आप चाहते ह क कोई
आपके जीवन को मु त म चबाए और पी जाए? अत: इनका सेवन कदािप न
कर।
रात को सोने से पूव हाथ, पैर एवं चेहरे को साफ़ पानी से ज़ र धोना चािहए।
ऐसा करने से न द अ छी आती है और वा य लाभ भी होता है।
पेट क बीमा रयाँ एवं क़ ज़, अजीण, वात, िप , कफ़ ये सब उपवास से
िनयि त होते ह।
जीवन जीने के िलए खाना खाएँ, खाने के िलए न िजएँ।
आहार शु होने से अंतःकरण क शुि होती है। अंतःकरण क शुि से िन ल
मृित िमलती है, मृित क ाि होने पर स पूण ंिथयाँ खुल जाती ह।
वात, िप , कफ़; ये तीन ही शरीर को रोगी और िनरोगी बनाते ह। इनको
यान म रखकर अपना खान-पान, वहार, ायाम, दनचयां तथा बाक क
अ य बात िनधा रत कर। िजससे आप वात, िप , कफ़ के कोप से बच सक।
अपने आ मबल से वात, िप , कफ़ को संतुिलत कर। वात रोग शांत करने के
िलए चंता का याग कर। िप रोग को शांत करने के िलए अपनी मताएँ
बढ़ाएँ और कफ़ रोग को शांत करने के िलए अपने वभाव म ि थरता लाएँ।
रात को दो बादाम पानी म डाल द एवं सुबह दूध के साथ िछलका उतारकर व
िघसकर खाएँ। यह आपक मरणशि म वृि करता है तथा दमाग तेज़
करता है।
सू म ायाम व ह के आसन के साथ सूय नम कार कर।
अ छे वा य के िलए िनयमानुसार योगा यास कर।
यान व भुदशन कर। योगासन स बंधी याएँ मा हम अ छा वा य ही
दान नह करत बि क वे हम मानिसक व थता भी दान करती ह।
चय अपनाएँ, जीवन मज़बूत बनाएँ।
मा योग ही आज एक ऐसा िवक प है िजससे मे द ड म लचीलापन पैदा
कया जा सकता है। यह शरीर, मन तथा मि त क को अ छा वा य व सुख-
शांित दान करता है। कहा भी गया है क ' व थ शरीर म व थ मि त क का
िनवास होता है।'
िजसने योगा यास क अि से अपने शरीर क तपा िलया हो उसे फर न कोई
रोग सताता है न ही बुढ़ापा। मृ यु भी उसके पास जाने से डरती है - उपिनषद्।
सकारा मक सोच रख।
बड़ी सोच का बड़ा जादू होता ही है, याि वत कर।
अ छे सािह य पढ़ - ऊजावान बन।
िवन ता रख, शि शाली हो जाएँ।
दनभर त रहते ए भी अपनी देह के ित सजग रह।
प रवार के अ य लोग से अपे ा न करते ए उ ह ेह द।
दस बात का चंतन कर और उनका पालन करने क कोिशश कर। मा,
मादव, आजव, शौच, स य, संयम, तप, याग, अ कं चन और चय।
चार चीज़ छोड़ द - ोध, मान, माया, लोभ।
पाँच बात यान रख, हंसा, झूठ, चोरी, कु शील और प र ह - जो अपनाने
यो य नह ह।
आप दूसर क नज़र म कतना उठे हो, इस पर गौर मत करो। खुद क नज़र
म कतना उठे हो, इस पर गौर करो।
दूसर क राह म फू ल िबछाना चालू कर दो। आपके रा ते के काँटे भी फू ल बन
जाएँग।
आपको भाषाएँ कतनी आती ह यह मह वपूण नह है। आप कतने सं कारवान
ह, यह मह वपूण है।
िसर म शु तेल क मािलश ज़ र कर। बाज़ार के ख़शबू वाले तेल से बच।
ना रयल का तेल, सरस का तेल या बादाम का तेल लगाएँ, ये मि त क को
ताजगी देते ह।
ित दन अ छा सािह य पढ़ने क आदत डाल। ान कभी िनरथक नह जाता।
जब शरीर म साि वक रस पी मेघ बरसते ह तब आयु य पी नदी दन- दन
बढ़ती जाती है। - संत ाने र
यान रख मन के हारे हार है और मन के जीते जीत।
िजसके अंदर आ मबल है उसक मदद देवता भी करते ह।
यान रहे जैसे टेलीिवज़न के अंदर का कोई भी पुज़ा ज़रा सा भी ख़राब हो
जाता है तो त वीर सही नह आती, धुंधली आती है। रे खाएँ आती ह या ख़राब
दखाई देता है। वैसे ही आपके शरीर का कोई अंग य द कोिपत है तो आपक
िज़दगी भी ख़राब टेलीिवज़न क भाँित हो जाती है। वा य क तरफ़ यान द
आपक त वीर सदा अ छी दखेगी।
यान रहे जैसे टेलीिवज़न के अंदर का कोई भी पुज़ा ज़रा सा भी ख़राब हो
जाता है तो त वीर सही नह आती, धुंधली आती है। रे खाएँ आती ह या ख़राब
दखाई देता है। वैसे ही आपके शरीर का कोई अंग य द कोिपत है तो आपक
िज़दगी भी ख़राब टेलीिवज़न क भाँित हो जाती है। वा य क तरफ़ यान द
आपक त वीर सदा अ छी दखेगी।
हमारा शरीर कई पु ल परमाणु का पुंज है। अनंत अणु तथा परमाणु से
िमलकर बना है। वे सभी इसी ा ड के असं य रह य िछपाए ए ह। अपने
आपको जानने क चे ा कर। न जाने कौन सा रह य, कौन सी शि दान कर
जाए।
जैसे हम मकान बनाते समय य द नकली माल लगा दगे तो वह ज दी िगर
जाएगा और टू टकर िबखर जाएगा। उसी कार आप जो भोजन करते ह, उसी
से आपका िनमाण होता है। अब आपके ऊपर िनभर करता है क आप अपने
देह- पी मकान को कै से बनाते ह।
तनाव बंधन म योग क भूिमका

तनाव जीवन क गित के िलए अ य आव कता क तरह मह वपूण होता है परं तु इसका
िनयं ण के बाहर चले जाना घातक हो सकता है। योग जीवन के ित अपने दृि कोण व
दशन से तथा िच क सा के मा यम से तनाव को िनयंि त रखता है जो क हािनरिहत तथा
लाभकारी होता है, िजसे ‘ ेस' कहते ह। जीवन म गित व गित इसी से आती है। परं तु
इसी ेस क मा ा जब अ यिधक हो जाए तो ‘िड ेस' अथात् हताशा कहते ह।
जीवन म आधुिनकता व आधुिनक उपकरण के वेश ने जहाँ ि को मानव - मू य
से दूर कया है वह अितशय तनाव एक महामारी क तरह फै ल चुका है िजसके कारण
नाना कार क मनोकाियक बीमा रयाँ ज म ले रही ह। योग म जहाँ एक ओर यम, िनयम,
आसन, ाणायाम, याहार, धारणा, यान व समािध का पालन व काम, ोध, लोभ
मोह, म सर, ई य, ष े से दूर रहना िसखाया जाता है, वह दूसरी ओर जीवन के उ तर
उ े य क ओर यान दलाया जाता है। उ तर जीवन है, उसे िजया भी जा सकता है यह
न जानने के कारण हमम से कई लोग सारा जीवन ही तनाव-भटकाव म िबता देते ह।
तनाव के सकारा मक उपयोग से जहाँ ित पधा म अ छे प रणाम आते ह, अंितम
समय तक काय को े तम प देने क यो यता व ऊजा बनी रहती है वह संघष म िवजय
कराने और हम लापरवाह होने से बचाने म सकारा मक तनाव क महती भूिमका है।
तनाव को मह म प म उपयोगी बनाए रखने के िलए योग सहारा बनता है।
तनाव के नकारा मक प रणाम िविभ कार के रोग क ज म देते ह जैसे- उ
र चाप, मधुमेह, क़ ज़, अ व थ पाचन तं , अ सर, आँख व अंग क शि कम होना,
साँस फू लना, ए न
े ल ंिथ से अिधक ाव का होना, अिन ा, िचड़िचड़ापन, उ ग े , चंता,
भयभीत बने रहना, काम करने का मन न होना, दय रोग व दयाघात (हाट अटैक),
मानिसक अवसाद, ग ठया इ या द।
यम के अंतगत अ हंसा, स य, अ तेय, अप र ह व चय का आचरण समाज म व थ
व सुरि त प रवेश तैयार करता है। ि गत प से इसका पालन सभी कर िजससे सुंदर
व थ व सुरि त वातावरण म अनेक तनाव के कारण वयंमेव ओझल हो जाएँगे।
िनयम के अंतगत शौच, संतोष, तप, वा याय, ई र- िणधान हम संयिमत व संतु
जीवन जीना िसखाते ह। असंतुि व अतृि का भाव, गलत ता ककता तथा नकारा मक
चंतन - तप, वा याय, ई र- िणधान से ही जाता है अ यथा जीवन िबन उ े य भटकने
जैसा हो जाता है।
आसन के अंतगत मन शरीर के साथ जुड़कर शि शाली, सहनशील, शांत व तनाव
रिहत बनना िसखाता है, मताएँ बढ़ाता है िजसे योग क भाषा म िसि याँ कहते ह।
आसन के िच क सक य लाभ सवांिधक मनोकाियक रोग पर देखे गए ह।
ाणायाम के ारा मन अ-मन बनता है, भावना मक संतुलन बढ़ता है, मन आ मा से
जुड़ता है। आि मक गुण का िवकास होता है। मानव के प रपूण प से िखलने क
संभावना बढ़ती है। अंत: ावी भाव को िन भावी कर सकने क संभावना बनती है।
तब तनाव एक ेरक का काय करता है।
याहार से इि य को अंतमुखी कर उनके िवषय को अंतर म ा करने क िव ा
िसखाई जाती है िजससे मन क बाहर क दौड़ कम होती है। उसका भटकाव व तनाव कम
होता है।
धारणा, यान, समािध से मि त क से ए फ़ा तरं ग िनकलती ह जो मन म शांित व
सृजनशीलता लाती ह। न द, हा य, खेल व एकांतवास के वा यकारी प रणाम देखे गए
ह परं तु यान क तुलना म वे अित सीिमत ह।
योग साि वक व संतुिलत भोजन हण करने को भी े रत करता है िजसके मनोिवकार
पर भाव को अब आधुिनक िव ान ने वीकारा है। वाद व उ ेजना को तलाशने वाला
मन अब भोजन से पौि कता व वा य तलाशता है।

सव कृ ाथना वही है िजसम सम त

जीव के ित क णा भाव ह ।

-RJT

याद रख - य द आप कोई भी काय कृ ित के िवरोध म कर रहे


ह तो आप ा ड म उ प होने वाले नाद ( द विन) क अवमानना कर रहे ह।
इनके प रणाम हमेशा िव फोटक एवं घातक ही होते ह। इसिलए कृ ित के साथ
ाकृ ितक प से एकाकार हो।

-RJT
योग और मानिसक वा य

ि व - प रभाषा एवं घटक

भारतीय एवं िव दशन का अवलोकन करने से एक त य आलो कत होता है क जहाँ एक


ओर बाहरी वातावरण ि क िज ासा का सतत् क रहा, वह दूसरी ओर उसने मानव
जीवन के गुण को समझने का भी पया यास कया। ि व के स बंध म लोग क
अनेक धारणाएँ ह। इसके वै ािनक अ ययन, मापन तथा ा या के अनेक यास पूव एवं
पा ा य देश म कए गए ह। इसक प रभाषा जो सवमा य हो, उसका चयन आज भी
बाक़ है। आरं िभक दौर के कु छ मनोवै ािनक, मानिसक, जैिवक, रासायिनक एवं
शारी रक प पर बल देते थे तो दूसरे बा वहार का िनरी ण करते थे।
िन िलिखत िव ान ने समय-समय पर ि व को प रभािषत कया है िजसम आलपोट
क प रभाषा क संतोषजनक माना गया है :

ो. गॉडन ड यू. आ पोट ने सन् 1937 म कािशत अपनी पु तक 'पसनैिलटी: ए


सायकोलॉिजकल इं टरि टेशन' म ि को इस कार प रभािषत कया : " ि व
ि क उन मनोशारी रक प ितय का वह आंत रक ग या मक संगठन है जो क
पयावरण म उसके अन य समायोजन को िनधा रत करता है।"
आ पोट क यह प रभाषा सभी सै ांितक िवचार को समािहत करती है। अिधकतर
मनोवै ािनक य या परो प से इसे संतोषजनक मानते ह। प रभाषा का तीन
बंद ु के आधार पर िव ेषण कया जाता है, जो िन िलिखत है :
1. मनोदैिहक व था
2. ग या मक संगठन
3. अन य आंत रक समायोजन
इस तरह प होता है क ' ि व' क अवधारणा अ यंत ापक है। इसम ि क
स पूण िवशेषताएँ िनिहत ह ओर उनम सम वयन पाया जाता है।

ि व क घटक
ि व के कई घटक होते ह। िजनसे ि का वहार िनयंि त एवं िनदिशत होता है।
मु य शीलगुण िन िलिखत ह -

1. सामा य याशीलता
2. ायु–िवकृ ित
3. सांवेिगक अि थरता
4. भु व/अधीनता
5. िवषाद
6. सामािजकता
7. अहं शि

ि व को भािवत करने वाले कारक

ि व ि के आंत रक और बा िवशेषता का ग या मक संगठन है। ि व के


िवकास म जैिवक, सां कृ ितक, सामािजक प रवेश तथा मनोवै ािनक कारक िवशेष भाव
डालते ह। जब बालक का ज म होता है तो उसे माता-िपता से अनेक गुण आनुवंिशक प
से ा होते ह। इसके अित र प रवार, िव ालय, सामािजक व प तथा समूह इ या द
बालक के ि व िनमाण म मह वपूण योगदान देते ह।
ि व क भािवत करने वाले कारक को चार ेिणय म िवभािजत कया गया है।

1. जैिवक कारक

इ ह आंत रक िनधारक भी कहा जाता है य क इन पर ि का िनयं ण नह होता।


इनम मु य कारक अनुवांिशकता अथवा जीव जिनत याएँ ह िजसके अंतगत
अंत: ावी ंिथयाँ, शारी रक संरचना, शरीर-रसायन तथा ायुम डल मु य ह। ि व
को भािवत करने वाले कारक म अनुवांिशकता एवं पयावरण दोन को मह वपूण थान
ा है।
आनुवांिशकता : जनन शा क सहायता से ि व के जैिवक य िनधारक म
आनुवांिशकता का थान ात करने का यास कया गया है। म डल के िस दांत के आधार
पर जनन के तीन िनयम ह :
1. पृथ रण का िनयम
2. भावशाली और गौण ल य का िनयम
3. वतं इकाई ल ण का िनयम
यह िव दत आ है क आनुवांिशकता का भाव जी स के मा यम से एक पीढ़ी से दूसरी
पीढ़ी तक प चँ ता है। ज म के प ात् बालक के ि व िनधारण म चार जैिवक य कारक
िवशेष प से भूिमका िनवाह करते ह।

2. ि व के सां कृ ितक िनधारक

येक समाज क सं कृ ित अलग-अलग होती है। ि के खान-पान, आचार-िवचार तथा


ि व पर सं कृ ित का गहन भाव पड़ता है। सं कृ ित के अंतगत रीित- रवाज, आदत,,
पर पराएँ, रहन-सहन, वेश-भूषा तथा खान-पान आ द मुख ह।
ि व पर सं कृ ित के भाव के िवषय म योगा मक तथा मानवशा ीय माण
िविभ अ ययन ारा तुत कए गए ह।
सं कृ ित दो कार क होती है - 1. भौितक सं कृ ित
2. अभौितक सं कृ ित

3. ि व क सामािजक िनधारक

बालक के ज म के बाद उसे जो प रवेश ा होता है उसका प भाव बालक के


ि व पर दखाई देता है। हरलॉक, 1974 के अनुसार सामािजक प रि थितयाँ आयु के
अनुसार सीखने का िनधारण करती ह। ऐसा करने से ि म ' व' का िवकास होता है
और सामािजक उ रदािय व क भावना बढ़ती है। ि व के सामािजक िनधारक
उपल ध मूल साम ी के पूण प रवतन के िलए उ रदायी होते ह। इनम पा रवा रक तथा
कू ल स बंधी कारक अिधक मुख ह।

4. ि व के मनोवै ािनक िनधारक


प रवार संबंधी कारक

माता-िपता तथा बालक का स बंध। हाल 1966, िमशेल 1958, ीन टीन 1966 के
अ ययन -

अित सतक माता-िपता


कठोर माता-िपता
ितर कार करने वाले माता-िपता
प पाती माता-िपता
माता-िपता के आपसी स बंध
प रवार का आकार
ज म म तथा ि व – थम, म यम म वाले ब ,े अितमबालक

सामािजक आ थक संि थित

प रवार का नगरीय अथवा ामीण वातावरण ि व के िनधारण म मह वपूण है।


प रवार क सामािजक ि थित क भांित उसक आ थक ि थित का भाव भी ि व पर
पड़ता है। अ यंत धनी तथा अ यंत िनधन दोन कार के प रवेश ब े के समुिचत िवकास
म बाधक िस होते ह।

समूह का भाव

ि िजस समूह का सद य होता है उसक संरचना भी उसके ि व को भािवत


करती है। समूह ाथिमक अथवा गौण हो सकता है। इसक सद यता अिनवाय अथवा
ऐि छक हो सकती है। इसी तरह नेता तथा सद य का ि व अलग-अलग दखाई देता
है।

िव ालय का भाव

1. पा म
2. िश क
3. िव ालय का सामा य अनुशासन
4. िव ालय के साथी
5. िव ालय जाने क आयु

योग साधना का ि व िनधारण म थान

योग के िनयिमत अ यास से ि क बुि -लि ध बढ़ती है। उसम ा कु ठा, चंता,
अके लापन तथा हीनभावनाएँ कम होती ह। उसक िचयाँ प रमा जत होती ह। उसके
मू य सामािजक प से मा य होते ह। उसक जीवन शैली आधुिनक होते ए भी यौिगक
होती है। कु ल िमलाकर ि व का सकारा मक िवकास होता है।

ि व िवकास पर योग का भाव

ि व को बाहरी व भीतरी भाव के आधार पर ही ठीक तरह से समझा जा सकता है।


हर ण हमारी ज स, हमारे अनुभव, हमारा प रवेश व हमारी वतं इ छाशि हमारे
ि व का िनधारण करती रहती ह। येक ि कु छ बात म अपनी अलग िवशेषता
रखता है जैसे-भावनाएँ, आचरण, साम य, आदश क क पनाएँ इ या द। ि जो भी
कु छ सोचता है उस येक या व िवचार म उसके ि व का आिव कार होता है।
आधुिनक मनोिव ान के अनुसार ि व स बंधी प र े य इन पाँच मु य िस ांत के
अंतगत आते ह :
1. मनोिव ेषणकारी प र े य जो ि व को वहार के ग या मक प म दशाता है।
2. शील गुण प र े य जो ि व को वहार के ारा प रभािषत करता है।
3. मानवतावादी प र े य जो मानव के िवकास क संभावना पर यान देता है।
4. सामािजक सं ाना मक प र े य िजस तरह से समाज व प रवेश के ारा हमारा
ि व भािवत होता है उस पर ज़ोर डालता है।
5. िवकासवादी प र े य िजसके अंतगत जीव का वहार उसके िवकास के अनुसार होता
है।

आधुिनक मनोिव ान के अनुसार ि व के िन घटक ह िजनको योग ारा संतुिलत व


िवकिसत कए जाने से ि व िवकास होता है।
1. बु ि - आसन व ाणायाम के अ यास के साथ-साथ ाटक व यान ारा बुि -लि ध
बढ़ती है।
2. ेरणा - साधक सदा ही सकारा मक भाव व ऊजा से ओत- ोत होता है। िजसके कारण
कई अवरोध पर िवजय पाते ए वह हमेशा ही अिभ े रत व जोश से भरा आ अनुभव
करता है।
3. िच - िचय के आधार पर ही साधक अंतमुखी व बिहमुखी होता है। योग व यान के
ारा मन सांसा रक व आ याि मक दोन उपलि धयाँ ा करता है। जब वह बिहमुखी
होता है तो सांसा रक व अंतमुखी होता है तब आ याि मक उपलि धयाँ ा करता है।
जगत म े तम जीवन िनवाह के िलए दोन ही दशाएँ आव यक ह।
4. अिभवृ ि - योग सेवा, ेम, याग इ या द आि मक गुण के िवकास को िसखाता है।
इसिलए ि जीवन म सदा सकारा मक अिभवृि रखता है।
5. चंता व 6. कु ठा – अके लापन तथा हीनभावना को योग साधना कम करती है। इसके
अ यास ारा अके लापन व असहायपन के थान पर हमारी एकता व तादा य सम त
अि त व के साथ ही जाने से हम अपने आप म पूण अनुभव करते ह।
7. मू य - छह कार के मू य बताए गए ह। 1. ान धान मू यिजससे ि स य व ान
क खोज म लगता है। जैसे दाशिनक व वै ािनक। 2. स दय धान मू य - िजससे ि
जीवन के स दय म िच लेता है। कला व स दय उसका ल य होते ह। जैसे िच कार,
किव, गायक, नतक इ या द। 3. अथ धान मू य – जीवन को आ थक व
उपयोिगतावादी दृि कोण से देखते ह। जैसे उ ोगपित, ापारी 4. राजनीित धान
मू य- ये ि राजनीित म अिधक िच रखने वाले होते ह जैसे राजनीित , नेता।5.
धम धान मू य - धा मक कृ य म िच रखने वाले धम गु व साधु-संत इ या द इस
ेणी म आते ह। 6. समाज धान मू य - समाज क िविभ गितिविधय व उसके
सुधार म लगे रहने वाले जैसे समाज सुधारक, समाज सेवी कायकता इस ेणी म आते
ह।
वयं योग म यम व िनयम के अंतगत मू य भी बताए गए ह िजनके पालन से ि व
समाज दोन का िवकास होता है। जैसे अ हंसा, स य, अ तेय, अप र ह, चय, शौच,
संतोष, तप, वा याय व ई र िणधान। यम-िनयम क साधना उस प रवेश का
िनमाण करती है िजसम उपरो शील गुण का पालन आसान हो जाए।
8. संवेग - योग के ारा संवेग पर िनयं ण ा होता है अ यथा ि संवेग के भाव म
आकर अनुपयु व अवांिछत काय कर लेता है और बाद म पछताता है।
9. जीवन शैली - उसक जीवन शैली आधुिनक होते ए भी यौिगक होती है। वह इि य
सुख क तुलना म आि मक सुख को मह व देता है। भौितकता क दौड़ के बजाय उ तर
ल य क पू त जैसे आ मानुभूित म लगा रहता है।

भारतीय प र े य के अनुसार मानवीय ि व का मूल त व आ मा है। इस आ मा का


अनुभव करना भारतीय मनोिव ान के अनुसार मानव जीवन का ल य है। आ म अनुभव
हो जाने से ि के आचार व वहार म प रवतन आता है। मानवीय ि व तीन गुण
व पंच कोष का बना है। उनके संतुलन व िवकास से ि व िवकास होता है। आहार-
िवहार व चंतन-मनन के िनयमन से साि वक, राजिसक व तामिसक इन तीन गुण म
संतुलन होता है। पाँच कोष के अंतगत िन िलिखत कोष आते ह
1. अ मय कोष
2. ाणमय कोष
3. मनोमय कोष
4. िव ानमय कोष
5. आनंदमय कोष
योग िश ा व साधना के ारा इनके िवकास से ि व िवकास होता है।

ष कम-शुि याएँ
नेित, धौित, वि त, नौिल, ाटक व कपाल-भाित व आसन के ारा अ मय कोष अथात्
थूल शरीर क शुि व िवकास होता है। ाणायाम ारा ाणमय कोष का िवकास होता
है। जीवन शि व रोग ितरोधक मता का िवकास ाण क मा ा शरीर म अिधक होने
से होती है। याहार व धारणा ारा मनोमय कोष का, यान ारा िव ानमय कोष का
तथा समािध ारा आनंदमय कोष का िवकास होता है।
ाथना

ाथना का शाि दक अथ - ई र के ित आ म िनवेदन या स ी िवनय।

पूण ा भि और िव ास के साथ ई र चरण म वयं को सम पत करना ही


ाथना है। स ी ाथना वही है िजसम हम अपनी िवराट् स ा के वाह म अपने ु अहम्
का शमन करते ह। हम अपने आंत रक काश को िव म िबखेरते ए काश म िमला देते
ह तथा अनंत अमर स ा क अनुभूित म अपनी तु छ ि गत स ा का लोप कर देते ह।
ऐसा होने पर जहाँ एक ओर हमारा ु अहम् न हो जाता है, व हं दूसरी और वा तिवक
व प का ान होता है।
ाथना वािचक भी हो सकती है और मानिसक भी। ाथना प रि थितज य भी हो
सकती है। ाथना के िन और े अनेक व प और तर ह। ाथना का िन तम तर
वह है जब ि अपने श ु के िवनाश या उसक मृ यु के िलए अथवा कसी के अिन के
िलए ई र से ाथना करता है। े तम तर क ाथना म वाथपूण चे ाएँ नह होत ।
वह पूणत: िन काम होती ह। उसम कसी कार का भोग शािमल नह होता।
सांसा रक िवषय म मन का भटकना ाथना क भावो पादकता को न कर देता है
य क ाथना म मन का पूण प से ि थर होना एवं अपने उपा य म पूणतः क त होना
अित आव यक है।
स ी ाथना संि होनी चािहए, य क सुदीघ ाथना म भटकने क आशंका बनी
रहती है। े तम ाथना सव तर तक ले जाती है, जहाँ ाथना क आव यकता नह
रहती, य क उपासक अनंत म पूणतः िवलीन हो चुका रहता है।

ाथना के कार

सामािजक एवं आ याि मक दृि से ाथना के तीन कार ह


- 1. सामािजक दृि कोण से ाथना के कार :
(अ) ि गत ाथना
(ब) सामूिहक ाथना
(स) सावभौिमक ाथना
2. आ याि मक दृि कोण से ाथना के कार
(अ) सकाम ाथना
(ब) िन काम ाथना
(स) अिन कारी ाथना

सामािजक दृि कोण से ाथना के कार क ा या -

1. ि गत ाथना

ि गत ाथना वह ाथना है, िजसम ि वयं ही सम पत होकर ाथना करता है।


इस कार क ाथना म ई र के द गुण के क तन तथा देव कृ पा ाि क भावना
क जाती है। उदाहरण-
वमेव माता च िपता वमेव, वमेव ब धु सखा वमेव ।
वमेव िव ा िवड़म् वमेव, वमेव सवम् मम देव-देव।

2. सामूिहक ाथना

ऐसी ाथना जो कसी समूह म या गु -िश य के म य, समूह के क याणाथ क जाती है वह


सामूिहक ाथना कहलाती है। इस कार क ाथना का अ छा उदाहरण वेद व
उपिनषद म िमलता है।
उदा.- अथव वेद म गु एवं िश य ारा एक साथ िन ानुसार क गई ाथना इस
कार क ाथना का सुंदर उदाहरण है।
'सहनाभवतु, सहनी भुन ु, सहवीयम् करवावहै।
तेजि वनावधीतम तु मा िवि षावहै,' ऊँ शांित शांित शांित:।

3. सावभौिमक ाथना

यह ाथना सम त िव के क याणाथ क जाने वाली ाथना है। इसम ाथनाकता के


भीतर वयं के िलए कोई आकां ा, अपे ा नह होती और न ही कसी ि िवशेष के
िलए कोई कामना होती है। ि िन: वाथ भाव से स पूण िव के क याण हेतु ाथना
करता है।
उदा:-
सवभव तु सुिखनः सव स तु िनरामयाः।
सव भ ािण प य तु, मा कि त् दुःखभागभवेत।्

आ याि मक दृि कोण से ाथना के तीन कार ह

1. सकाम ाथना
अपने वयं के तथा अपने बंधु िम के सुख, वा य, धन-लाभ अथवा जय-िवजय
ाि हेतु क गई ाथना ‘सकाम' ाथना है। कसी ि के सुधाराथ सकाम ाथना इस
कार क जा सकती है।
सुधरे वह सुशील बन, पालन कर आचार।
कम धम म रत रहे, सब कु सन िनवार।

2. िन काम ाथना

वयं के चैत य भाव क जागृित, िच शुि , मन क िवमलता तथा पाप से िनवृि हेतु
तथा िन: वाथ भाव से परिहत, परसुख, वा य, पदो ित आ द हेतु क गई ाथना
िन काम ाथना है। उपयु उ लेिखत अभी उ े य य िप एक कार क कामना ही है।
परं तु सांसा रक वाथ न होने तथा परमाथ होने म कता का इस लोक स बंधी, सांसा रक
सुख, यश आ द का कोई योजन न हो वह कम उसका िन काम कम है। अतः ऐसे परमाथ
एवं आ मक याण हेतु क गई ाथना ि के आ याि मक उ थान म ब त सहायक है
तथा देश के सुधार हेतु भी क जा सकती है।
उदा.- आ म क याण हेतु िन ानुसार ाथना क जा सकती है।
जगे चेतना िवमलतम, हो स य सु काश।
शांित सव आनंद हो, पाप ताप का नाश।
बुि वृि , िववेक, बल, आ म बल बढ़ जाए।
स द छा मानस बल बढ़े,धृित धम को पाए।

इसी कार देश सुधार हेतु िन काम ाथना का एक व प इस कार हो सकता है।
सदाचार स कम का, कर पालन सब लोग। मेल एकता साध के , हरे देश के रोग।

3. अिन कारी ाथना

ऐसी ाथना िजसम अपने श ु के िवनाश अथवा कसी के अिन के िलए ई र से िनवेदन
कया जाता है, वह अिन कारी ाथना कहलाती है। ऐसी ाथना काम, ोध, लोभ, मद,
मोह आ द भावना से े रत वाथपूण चे ा से भािवत होती है। ऐसी ाथना
िन तरीय ाथना होती है, उसम कसी का क याण नह होता बि क ाथना क ा वयं
अपने आ या म पतन का कारण बनता है।
कसी को क , लेश देने हेतु ाथना करना, कसी के शरीर को हािन या धन क हािन
प चँ ाने हेतु ाथना करना, अ याय के िलए ाथना करना, कसी िन तर क शि को
स ा बनाने के िलए ाथना करना, कसी अपराधी को मु कराने हेतु ाथना करना आ द
को िन तर का मानकर संत ारा व जत कया गया है।

दैिनक जीवन म ाथना क उपयोिगता व मह व


मानव जीवन म ाथना का बड़ा मह व है। ाथना क िविभ प रि थितयाँ। जहाँ एक
ओर संबल दान करती ह, वह दूसरी ओर भय मु भी करती ह। ाथना जहाँ हम जीवन
जीने हेतु आधार दान करती है वह हमारे पूरे ि व को भी भािवत करती है।

1. स पूण वा य क ाि का साधन

मानवीय स पूण वा य के तीन प ह। थम प शारी रक प है जो थूल है। ि तीय


प मानिसक है जो सू म है तथा तृतीय प आ याि मक है जो आ मा से स बंिधत है। इन
तीन प म एक गहरा पारं प रक स बंध और तालमेल है। ाथना के अभाव म
आ याि मक प क िनरं तर अवहेलना होती जाती है। इसके प रणाम व प आ मीय प
दु:ख से भर जाता है और त प ात् मन अशांत, अि थर और लेश यु हो जाता है। ऐसी
ि थित लंबे समय तक जारी रहने से अनेक कार के मनोरोग जैसे दु ंता, अकारण भय,
मानिसक अवसाद उ प होते ह। इसके प ात् इन मनोरोग के कारण उ र चाप,
मधुमेह, दय रोग, पेट क बीमा रयाँ जैसे वायुिवकार, िह टी रया आ द मनोकाियक रोग
उ प हो जाते ह।
ाथना से आ याि मक प को बल एवं शि ा होती है, िजसम तनाव, तथा
िवपरीत प रि थितय म हम अनुकूलन करना सीख जाते ह। सतत् ाथना के भाव से
रोग से लड़ने क शि बढ़ने लग जाती है तथा दूसरी ओर रोग का कोप भी कम होने
लगता है, इसके प रणाम व प बीमा रय को दूर करने म ब त मदद िमलती है। प है
क सतत् ाथना से व प के तीन प सबल बनते ह और स पूण वा य क ाि होती
है।

2. आ म-शोधन का साधन

ाथना का हमारे जीवन म एक मह वपूण उ े य है ‘आ मो ित"। पहले साधक अपने


ारा कए गए पाप का प ाताप करता है और पापाचार को पुनः न करने का संक प
लेता है। ाथना साधक के जीवन म एक कत परायण िनयिमत हरी क तरह होती है
जो चोर एवं समाज िवरोधी त व को घर के पास आने से रोकती है। बार-बार ाथना
करने से साधक को बार-बार आ म िनरी ण का अवसर िमलता है िजससे वह दो
ाथना क म याविध म मन, वचन एवं कम से होने वाले खलन को जान जाता है।
इस कार यान म बैठ जाने पर ाथना का थान प ाताप ले लेता है और साधक पुनः
अपराध न करने का िन य करता है। िजस कार ान व शोधक औषिधयाँ हमारे शरीर
को बा य एवं आंत रक शुि दान करती ह उसी कार ाथना भी आ म-शोधन का
साधन है।

3. अ याि मक साम य क ाि का साधन

ाथना न के वल शोधन का काय करती है अिपतु हम आ याि मक साम य भी दान करती


है। सतत् ाथना से मन क चंचलता समा होने लगती है और मन ि थरता को ा होता
है। िच क वृि य पर साधक का िनयं ण हो जाता है। िनरं तर िनयिमत ाथना से
मानिसक एका ता का तर भी धीरे -धीरे बढ़ने लगता है और फर ु अहम् का िवनाश
हो जाता है। इस कार साधक को ाथना ऐसे ऊँचे तर तक ले जाती है जहाँ साधक को
ई र को सव ापकता क अनुभूित होती है और साधक का अनंत से संपक सं थापन होता
है।

4. के कै व य ाि का साधन

सतत् ाथना के भाव से िच क वृि य पर िनयं ण ा हो जाता है। िच और मन म


संयम के साथ-साथ ाथना से ऐसा र ा कवच ा होता है जो याना द के उ अ यास
के समय सांसा रक लोभन से साधक के समीप प च ँ ने पर साधक के मन म आ याि मक
सफलता का गव जागृत कर सकता है। ऐसी ि थित म ाथना से मन म उ प ए इस
अहम् और गव आ द को िवन कया जा सकता है।
हमारे सामािजक प रदृ य म ऐसे कई महापु ष के उदाहरण ह िज ह ने ाथना के
ारा क ठन से क ठन समय म, अ यिधक दु:ख म रहते ए भी जीवन म सामंज य कर
दखाया। ईसा मसीह ारा अपने अंितम समय म अ याचा रय के क याणाथ ाथना
करके शारी रक घोर क से मुि पाई और ई र के सव ापी होने क िस कया।
महा मा गाँधी ने ाथना के बल पर ही अ हंसा और स य को आधार बनाकर देश को
आज़ादी दलाने म अहम् भूिमका िनभाई। कै व य ाि के िलए िन थ संत होना और
आ मा का चंतन, मनन या िन वक प यान आव यक है।
आज के वै ािनक युग म ाथना क उपयोिगता पर गंभीरता से िवचार कर तो हम
पाएँगे क आज ाथना अनेकानेक बीमा रय को दूर करने म औषिध के प म योग क
जा रही है। आज ॐ पर ए अनुसंधान से यह प हो चुका है क ाथना (ॐ के उ ारण
के प म) से उ अथवा िन र चाप जैसी बीमा रय को दूर कर ि को व थ
अव था म लाया जा सकता है।

आधुिनक जीवन म तनाव, ं एवं नैरा य

आधुिनक जीवन म मानिसक ािधय क बढ़ती सं या के मु य कारण तनाव ं व


नैरा य है। समाज म अपनी ि थित सुदढ़ृ बनाने, प रवार व समाज के आदेश एवं मू य से
तादा य बनाने तथा वयं अपनी इ छापू त म िवफल होने इ या द अवसर पर तनाव
उ प हो जाता है।

तनाव का अथ

मनोिव ान म तनाव श द का उपयोग कारण तथा भाव के संदभ म कया जाता है।
मानिसक तनाव के कारण के प म ितबल

तनाव का स बंध ितबलक से है अथात् वह घटना या कारण जो मानिसक परे शानी


उ प करता है। यह ितबलक शारी रक, सामािजक तथा मनोवै ािनक होते ह। जैसे-
थकान, पीड़ा, बीमारी इ या द शारी रक ितबलक ह। सामािजक ितबलक के अंतगत
मानिसक गड़बड़ी के सामािजक कारक को िलया जाता है यथा गरीबी, बेरोज़गारी,
छु आछू त आ द। मनोवै ािनक ितबलक का अथ वे घटनाएँ ह जो ि म मानिसक
वैष याव था उ प कर देती ह। जैसे-नौकरी छू ट जाना, कसी ि यजन क मृ यु, वैवािहक
झगड़े इ या द।

मानिसक तनाव के भाव के प म ितबल

दूसरे अथ म तनाव का स बंध मानिसक ि थित या मनोिव ान से है। इस अथ म तनाव


वा तव म कसी घटना का भाव या प रणाम होता है, कारण नह ।
िविभ वै ािनक ने तनाव क प रभाषा अलग-अलग तरीके से क है। मु य प से
रे थस तथा नेिवड 1991, रे बर 1995 तथा डेवीसन तथा नील 1996 क प रभाषा को
अिधक मा यता ा है।

तनाव के कार

आधुिनक जीवन म तनाव के कारण

आज के ित पधा मक सामािजक प रवेश म िविभ कारण से ि तनाव अनुभव


करता है। भागदौड़ से अ त- त जीवन दन- ित दन क माँग से सामंज य बैठाने के
यास म ऊब और थकान अनुभव करने लगता है। ऐसा लगता है जीवन आनंदपूण और
सहज नह रह गया है। प रवार, पड़ोस और काय े से स बंिधत क ठनाइय का िनवारण
उिचत समय पर नह हो पाता। फल व प और अिधक तनाव उ प हो जाता है। िजसके
मु य कारण िन िलिखत ह।

1. दैिनक क ठनाइयाँ
1. घरे लू क ठनाइयाँ
2. वा य से स बंिधत क ठनाइयाँ
3. समय दबाव क क ठनाइयाँ
4. आंत रक क ठनाइयाँ
5. पयावरणीय क ठनाइयाँ
6. आ थक उ रदािय व स बंधी क ठनाइयाँ
7. ावसाियक क ठनाइयाँ
8. भिव य सुर ा संबंधी क ठनाइयाँ

2. जीवन प रवतन

जीवन म अचानक, अवांिछत प रवतन भी तनाव का मु य कारण है।

3. पीड़ा और क

शारी रक ित अथवा रोग।

4. कु ठा और ं

अपनी अथवा प रवार क आव यकता पूरी न कर पाने पर कु ठा का अनुभव होता है जो


क बाद म तनाव म बदल जाता है। भी तनाव उ प करता है।

5. ाकृ ितक तथा ौ ोिगक जिनत महासंकट

यह भी आधुिनक जीवन म तनाव के बड़े कारण म से एक है। तूफ़ान, बाढ़, िव फोट,


महामारी आ द ाकृ ितक संकट के उदाहरण ह। िजनका भाव य प से पड़ता है।
इनसे लोग भािवत होते ह और तनाव का िशकार हो जाते ह।
ौ ोिगक जिनत संकट भी गंभीर तनाव उ प करते ह जैसे भोपाल गैस ासदी,
जयपुर म पे ोल िडपो म आग लगना, अणु िव फोट इ या द घटना से आस-पास कई
क.मी. तक लोग तनाव त हो जाते ह।

ं या संघष
ं के कार

1. आगमन - आगमन संघष - जब ि के सामने दो समान शि वाले धना मक ल य


होते ह तब यह तय नह कर पाता क वह कसे पहले ा कर और कसे बाद म। जैसे
पहले भोजन कर या सोने जाएँ। ऐसी दुिवधा का िनवारण आसान होता है। ि पहले
भोजन कर ले फर सोने चला जाए।

2. प रहार - प रहार संघष - इस कार का संघष दो कार का होता है। जैसे एक ओर


शेर हो और दूसरी ओर गहरी खाई! तो ि कसे चुने ? अिधकतर ि कोई तीसरा
िवक प चुनने का यास करते ह।

3. आगमन - प रहार संघष - इस कार के मानिसक संघष म ि एक ही समय म


धना मक और ऋणा मक ल य के बीच पड़ जाता है तथा यह तय करना उसके िलए
क ठन हो जाता है क कसका चुनाव करे । उदाहरण आपको ऐसे ि ने राि भोज पर
आमंि त कया है िजसे आप श ु समझते ह। ऐसे म िनमं ण ठु कराने से अस य कहलाने
का भय है, िनमं ण वीकार करने से अहम् को ठे स लगती है।

संघष के ोत
1. िविचछ प रवार
2. माता-िपता क दोषपूण मनोवृि .
3. दोषपूण िश ा णाली
4. गलत वसाय िनयोजन
5. सामािजक ितबंध
6. िवरोधी सां कृ ितक मू य .
7. इड तथा सुपर ईगो का िवरोधी व प

‘नैरा य' अथवा ‘कु ठा' श द वा तव म लै टन श द से बना है, िजसका अथ है ' थ' होता
है।

नैरा य के कारण
नैरा य पर ित या

कु ठा के प रमाण, कारक व कार आ द के अनुसार ि कु ठा पर ित या


करता है। ये दो कार क होती ह :

साधारणा ित या

उ ित या
1. आत रक आ ा मकता - आ मह या तक कर सकता है।
2. बा आ ा मकता - नौकर, प ी या ब े को डाँटने या पीटने लगना।

नैरा य और ंद दूर करने के उपाय

मानिसक संघष दो कार के होते ह, िज ह चेतन संघष तथा अवचेतन संघष कहते ह।
चेतन संघष का अथ वह संघष है जो मन के चेतन तर पर होता है। ऐसे संघष क
जानकारी ि क रहती है। इस संघष के कारण तथा इसके व प व प रणाम क
जानकारी भी ि क रहती है। इसके िवपरीत अवचेतन संघष का अथ वह संघष है जो
अवचेतन तर पर होता है तथा ि को इसक जानकारी नह होती। चेतन संघष का
सामना तथा समाधान उनका समाधान भी क ठन होता है।
चेतन संघष का समाधान

अवचेतन संघष का समाधान

मनोरचना वह मानिसक या है, िजसके ारा ि अवचेतन प से मानिसक


का समाधान करता है। इ ह ितर ा रचनाएँ भी कहते ह। इस मानिसक या के ारा
ि इड (Id) तथा सुपर ईगो (superego) के िवरोधी व प के कारण उ प का
समाधान मनोरचना के मा यम से करके ईगो अपने आपको िच ता तथा तनाव से बचाने
का यास करता है इसिलए इ ह ईगो ितर ा कहा जाता है।

मनोरचना के कार

गौण मनोरचनाएँ
यान का मन पर भाव

या नआसानी
करने का मु य उ े य मन म ि थरता लाना है जो ायः मन म नह होती और
से िवचिलत होती रहती है। अि थर मन कसी भी सम या के िनदान व
समाधान के यो य नह होता। इसके िवपरीत, यह सम या को और अिधक उलझा देता है।
अ त- त मन प रि थितय का कु छ ही लाभ ले पाता है। अिधकतर असफल ही रहता
है।
मानिसक शांित हर कसी को चािहए जो इ छा के रहते संभव नह । हमारी अनंत
इ छाएँ ही मानिसक अशांित का कारण ह। मानव के समाज म रहते उसका मन सदैव
चंचल बना रहता है। य द मानव समाज म रहते ए शांित चाहे तो यान का सहारा लेना
पड़ेगा अ यथा वह प रि थितय व सम या से पलायन करे गा।
भारतीय ऋिषय के अनुसार आ मा ही ान का आ द ोत है। यह ान दय से तभी
वािहत होता है जब मन पूणत: शांत व अंतमुखी होता है। मन क अि थरता से ान के
ब त से दरवाज़े बंद हो जाते ह जब क शांत व अंतमुखी मन ान के नए आयाम को खोल
देता है। अथात् ान के िलए मन क वह अव था चािहए जो ि थर, एका , शांत व
अंतमुखी हो। अ यथा मन थ क पना म खोया रहता है। मन को कसी भी क पना से
खाली करने का उपाय है यान। इससे मन सहनशील, शांत, सू म व ह का होता है। यान
के दैिनक योग से शांित लगातार वािहत ही मन म शालीनता, िनरहंका रता, साहस व
धैय जगाती है। यानजिनत िव ाम मन को तनाव से मु करता है। िनराश मन म आशा
का संचार होता है। सारांश म कह तो यान ारा मन को एक नया ताज़गी से भरा
पुनज वन ा होता है।
यान के ारा मन सांसा रक व आ याि मक दोन उपलि धयाँ ा करता है। जब वह
बिहमुखी होता है तब सांसा रक होता है, जब अंतमुखी होता है तो आ याि मक
उपलि धयाँ ा करता है। जगत् म े तम जीवन िनवाह के िलए दोन ही दशाएँ
आव यक ह। मन को एक ही िवषय पर ित दन एका करने पर इसक मता बढ़ती
जाती है। यान के इसी िव ान का उपयोग मन क मता के िवकास म कया जाता है।
लेखक , कलाकार , संगीत , िच कार , गायक , वै ािनक म इस तरह से मन क मता
िवकिसत होती देखी गई है। जाने-अनजाने हर ि हर समय यान ही कर रहा है, परं तु
एक िवषय पर नह , िजससे उसक अंत निहत मता जाग जाए। हाथ से काम करने वाले
िमक व मन-मि त क से काम लेने वाले बुि जीवी दोन ही यान ारा शि व शांित
ा करते ह।
यान से मि त क से ए फ़ा तरं ग िनकलती ह जो मन म शांित व सृजनशीलता लाती ह।
यान का योग न कर सकने वाले न द व मन क शांित के िलए स का सहारा लेते देखे
गए ह परं तु उसके साइड इफ़े स अिधक ह। यान से मि त क के दािहने व बाएँ दोन
गोला द के काय म संतुलन आता है। मि त क क चयापचयन- या सही काय करती
है। यान करने से इि य क बोध मता म व मन व बुि क समझने व िनणय लेने क
मता म आ यजनक िवकास देखा गया है। मरण शि , भावना मक सहानुभूित व न द
म गुणा मक सुधार होता है। थ चंता व सन कम होते ह। हमारी आदत बदलने व नई
आदत डालने म यान अित सहायक िस होता है।
आ या म म मन व िवचार के ित इतनी िवमुखता य पाई जाती है? इसिलए क मन
ही बंधन व मो का, सुख-दु:ख का कारण है। मन के न रहते ही न बंधन है न मो , सुख है
न दु:ख। यान के ारा मन क वह ि थित पाई जाती है जहाँ मन-अ-मन (शांित) व नमन
(ई र को सम पत) हो जाता है।

योग से संबंिधत ामक धारणाएँ

योग के स बंध म कई तरह क ामक धारणाएँ समाज म फै ली ई ह। सामा यतः हमारे


समाज म योग के संदभ म सबसे पहले यह ांित चिलत है क योग का स बंध कसी
ि िवशेष या कसी महान आ मा अथवा योगी, स यासी से है। यह िव ा अ यंत क ठन
व कु छ ि िवशेष के िलए है सामा य ि य के िलए नह या सामा य ि इसका
उपयोग अथवा इसक जानकारी नह रख सकते ह जो क पूणतः ग़लत व ामक धारणा
है। जब क इसके िवपरीत योग एक सहज, सुलभ माग है। अपने जीवन को, अपने शरीर को
और अपने मन को सुंदर और व छ बनाने म योग क िविश भूिमका है।
योग जीवन जीने क एक कला के प म िवकिसत आ एक वै ािनक माग है िजसे हम
िन सा रणी म आसानी से समझ सकते ह -

1. योग सामा य ि के िलए नह है?


2. के वल आसन, ाणायाम ही योग है

योग के स बंध म ग़लत ामक धारणा यह है क के वल आसन, ाणायाम ही योग ह।


अिधकांश ि आसन, ाणायाम को ही योग समझकर एवं इसका अ यास करके योग
क इित ी समझ लेते ह, जब क वा तव म योग एक िव तृत िवषय है इसका परम ल य
कै व य है जो क ि के िवकास का सव िशखर है। मह ष पतंजिल ने योग का िव तार
यम से लेकर समािध तक अ ांग माग के प म हम बताया है िजसम आसन, ाणायाम
उसके दो अंग मा ह। अत: के वल आसन, ाणायाम ही योग नह ह योग इससे कह आगे
के सोपान का ल य हमारे स मुख रखता है।

3. योग एक चम कार है

योग के संदभ म यह भी एक ग़लत धारणा चिलत है क योग एक चम कार है अथवा


इसका स बंध या इसक उपलि ध चम कार से प रपूण है जो क हमारी ामक सोच को
बताती है य क योग का स बंध कसी तरह के चम कार से नह है। इसके िवपरीत योग
चम कार को साधना माग पर आगे बढ़ने के िलए एक बाधा मानता है। योग के अंतगत
िजस िसि का वणन कया गया है उनका उ लेख ि के िलए एक चेतावनी के प म
कया जाता ह न क चम कार के प म। अत: हम कह सकते ह योग चम कार नह है।
4. योग एक िच क सा शा है

ाचीन समय से लेकर वतमान युग तक योग के िविभ अथ व उपयोग ि य ारा गढ़े
गए। उसम से एक ामक धारणा यह है क योग एक िच क सा शा है, जब क वा तिवक
त य यह है क िजस कार गे ँ के साथ चारा वतः ही ा हो जाता है उसी कार योग
के अंितम ल य कै व य क ओर जाने हेतु िनःयोगांग का उपयोग करते ह। इसके कारण हम
िविभ बीमा रय से छु टकारा िमलने के साथ-साथ एक पूण शारी रक लाभ भी ा
होता है कं तु इसका ता पय यह नह क योग एक िच क सा शा है।

5. योग के वल त व ान है

योग के स बंध म कई दाशिनक ारा चचाएँ करने एवं उसम िनिहत त य का उपयोग
करने के कारण जन सामा य म यह धारणा भी इ ह से फै ली है क योग एक त व ान का
िवषय है िजसके अंतगत ई र, आ मा, मो इन सभी क िववेचना करते ह। इसके
िवपरीत योग इन सभी क चचा मा समझने एवं हमारे माग को प करने हेतु करता है
ता क हम िजस गंत क ओर बढ़ रहे ह उसका पृथक ान हो। चूँ क योग एक ायोिगक
िवषय भी है अत: हम कह सकते ह क योग के वल त व ान नह है।

6. योग एक ायाम प ित है

योग के स बंध म ाय: लोग क धारणा बनी ई ह योग एक ायाम प ित है, िजसका
उपयोग शारी रक वा य हेतु करते ह, जो क पूणतः ग़लत है य क योग का ल य
के वल शारी रक वा य नह अिपतु मानिसक व आ याि मक लाभ ा करना भी है।
योग इन तीन आयाम पर काम करता है। शरीर जीवन का आधार है िजसक सहायता से
ि कै व य को ा करता है। अत: इसको व थ रखना िनतांत आव यक है। इस हेतु
योग म शारी रक या को जोड़ा गया ह कं तु इसका यह ता पय नह है क योग
ायाम प ित ह, योग का ल य इससे कह ऊँचा है।

िन कष

इस कार हम देखते ह योग एक सरल व सामा य कला है िजसे कसी भी धम, जाित या
वण का ि चाहे वह गृह थ हो या चारी इसके िनयिमत अ यास से लाभ ा कर
सकते ह। अत: उपरो सभी ामक धारणाएँ एवं उनके स बंध म सही त य के काश म
हम योग के स बंध म चिलत ांितयाँ याग कर योग के ित एक नवीन व सकारा मक
दृि कोण अपना सकते ह।

ामक धारणा का मन पर भाव


योग के स बंध म जनसामा य के बीच जो ामक धारणाएँ फै ली ई ह उनके कारण
समाज तथा ि के मन पर उनका भाव प रलि त होता है जो आगे जाकर योग तथा
योगी के स बंध म कु चार का प ले लेता है। ऐसी ामक धारणा का हमारे मन पर
या भाव होता है, इ ह िन बंद ु के काश म समझा जा सकता है :
1. योग को ित उदासीनता। .
2.यौिगक या तथा उनके अंग के ित भय क तीित।
3. योग के वा तिवक ल य के ित मपूण ि थित का िन मत होना।
4. योग तथा योगी के ित हेय दृि का भाव। .
5.योग ंथ के ित अ िच उ प होना।

ामक धारणा के ोत

1. क पना िनिहत या कही-सुनी बात

योग के स बंध म ि य ारा के वल क पना के आधार पर उसके स बंध म एक धारणा


बना लेना या कह भी कसी के ारा सुनी बात के आधार पर एक ग़लत, ामक
िवचारधारा का अनुसरण करना या उसके स बंध म अनगल बात करना।

2. बा -आड बर या वेशभूषा

"योगी" के स बंध म चिलत उसका बा - प या वेशभूषा क एक परे खा बनाकर


हमेशा उसी दृि कोण से योग या योगी के स बंध म सोचना या देखना।
उदाहरण- योगी बढ़ी ई दाढ़ी व के श दोन रखते ह।
योगी के वल सफ़े द या भगवा व का धारण करते ह।

3. परं परा क िभ ता व संकुिचत दृि कोण

मह ष पतंजिल से आधुिनक युग तक िविभ िविभ पर परा के ारा या मह षय ारा


योग को समझने या समझाने क अलग-अलग या के कारण उ प मपूण ि थित
तथा अपनी या के ित अित-िव ास होना संकुिचत दृि कोण को ज म देता है।

4. िवषय क अधूरी समझ

समाज व देश म अिधकांश उन ि य ारा योग के स बंध म िनरं तर ा या करना या


ट पणी देना, िज ह योग के स बंध म ायोिगक या शा ीय कोई ान नह है, िवषय क
अधूरी समझ उ प करता है।

5. वैचा रक िभ ता
िविभ मत व स दाय या माग क िभ ता के कारण उनके ारा या उनके िव ा थय
ारा अपने-अपने ान को सही मानकर चार करना वैचा रक िभ ता को ज म देता है।

6. बुि क अप रप ता

अ प ान व अिवकिसत प ितय के अपनाने व उसका िनरं तर पालन करने के कारण एक


तरह क हठध मता रखना बुि क अप रप ता को ज म देता है।

7. संकुिचत प रभाषाएँ

योग एक स पूण शा है, कं तु हठध मता के चलते या अपने ही मन को सही मािणत


करना, ऐसी प रभाषाएँ करना जो के वल उसका वही प दखाएँ िजस अथ िवशेष को
आप मह व देते ह, संकुिचत प रभाषा क ेणी म आता है।

8. योग क सा य-साधन िव ास का अभाव

अिधकांश ि य को यही पता नह होता क योग या है ? या उसक ाि या है? इस


स बंध म अधूरे ान के कारण उनके ारा अपने ही मन के अनुसार उसके सा य-साधन
िविभ अंग के बना लेना ही योग के सा य-साधन िवचार के अभाव को ज म देता है।

9. योग के िविभ अंग के भाव को समझने म क ठनाई

अिधकांश ि य क योग सीखने से लेकर उसे सीख जाने के उपरांत भी यह पता नह


होता क उसके अंग या ह ? यही नह उन अंग का मह व या है ? या उनका परानु म
य है? इस कारण उनके ारा उ टे-सीधे तरीक़ से उसक ा या करना ामक
धारणा को ज म देता है।

िनराकरण के उपाय

योग के संबंध म चा रत ामक धारणा के िनराकरण के उपाय िन ह –


1. योग के ित सकारा मक दृि कोण का चार करना।
2. योगशा तथा ंथ को पढ़ने हेतु समाज को े रत करना।
3. योग क सही व उिचत जानकारी का चार करना।
4. योग क या व आसन का उनके लाभ सिहत दशन करना।
5. सरल एवं सुग य भाषा म ंथ का अनुवाद करना तथा समाज म उसका चार- सार
करना।
6. योग के सा य प को आ थक आधार पर न भुनाने क िश ा देना।
आहार शु होने से अंत:करण क शुि होती है।

अंत:करण क शुि से मन िनमल होता है। मन क

िनमलता से आ मा क पिव ता बढ़ती है और आ मा क

पिव ता से परमा मा क िनकटता ा होती है।

-RJT
हा य - योग िच क सा

हमको िसफ हँसना और हँसाना है : हा-हा-हा...ही-ही-ही... हो-हो-हो-हो...

आज के जनमानस को देखकर ऐसा तीत होता है क वह हँसना ही भूल गया है जब क


हँसना शरीर व वा य के िलए उतना ही मह वपूण है िजतना क भोजन। मनु य धीरे -
धीरे कई ाकृ ितक चीज़े भूलता जा रहा है िजसके प रणाम व प उसके अंदर कई कार
क िवकृ ितयाँ आती जा रही ह। कई ि तो िसफ इसिलए नह हँसते क कह कोई उ ह
'गंभीरता रिहत' (मज़ा कया) न समझ ले। वह कु छ धनवान ि या उ - पदािधकारी
भी वयं से िन ेणी के कमचा रय के साथ चाहते ए भी नह हँसते, य क उनका
िवचार है क 'य द म भी इनके साथ हँसूंगा तो कह ये लोग मुझे अपने तर का न समझ
ल।' यह सारी बात िनरथक ह। हँसने से एक साथ कई कार क बात घ टत होती ह। पूरा
प रवेश बदल जाता है, पूरा वातावरण िनमल मन क सुगंध से सुगंिधत हो जाता है। हर
ि के चेहरे पर मु कान छा जाती है। पूरे शरीर म एक कार का कं पन होता है िजससे
पूरा उदर- देश (पेट) भािवत होता है और पाचन-तं क सम त याएँ सुचा प से
काम करने लगती ह। ास क गित िनयंि त होती है िजससे िन र चाप एवं उ
र चाप वाल को उिचत लाभ िमलता है। फु फु स/फे फड़ म हवा के को ारा अंतर का
वातावरण िनमल होता है। र का संचार तेज़ होने से दय- देश क काय णाली
सुसंचा रत होती है। पूरी 72,000 नािड़याँ खुल जाती ह। इस कारण कई कार के ायाम
का लाभ वतः ही िमल जाता है। य द आप हँसते ह तो सामने वाला ि भी हँसता है।
आप मु कराते ह तो सामने वाला ि भी मु कराता है। कोई भी ि चाहे कतना ही
ोध म य न हो, आपक सटीक मु कराहट से वह भी स िच हो जाता है। कई क ठन
से क ठन काम आसान हो जाते ह। खुलकर जी भर कर हँस - इससे जीवन म कई कार क
परे शािनय एवं तनाव से मुि िमलती है। आपके अंदर एक नई ऊजा का संचार होता है।
यह एक ाकृ ितक िच क सा है जो आपके अंदर क मन िसयत एवं नकारा मकता को दूर
फक देती है। शायद दुिनया क यही एक मा ऐसी या है, िजसका िबना पैस के ही
आदान- दान हो सकता है। इस या को िजतना बांटगे उतनी ही यह बढ़ती है। यह
सामािजक प रवेश को भी मज़बूती दान करती है य क जब आप समूह म हँसते ह तो
आपको महसूस होता है क आप अके ले नह ह वरन् आपके साथ िश ाचारी लोग भी ह।
य द आपके चेहरे पर हमेशा मु कराहट रहती है तो आपके कह भी प चँ ने पर वहाँ मौजूद
लोग के चेहरे पर मु कराहट आ जाती है और वहाँ का माहौल भी खुशनुमा हो जाता है।

हँसने से ोध समा होता है। आपका अहंकार वयं चला जाता है। लोभ और मोह
दोन का लोप हो जाता है। आपके अंदर क णा आती है। आप मा, मादव, आजव, शौच,
संयम, तप, याग, अ कं चन और आ म-अनुशीलन के रा ते पर चलने क उ कं ठत हो जाते
ह। इस कार से आप कह धा मकता को भी पश कर लेते ह।
आइए, हम सब िमलकर हँसने और हँसाने को अपने जीवन का अंग बनाएँ और अपने
शरीर, मन, आ मा का ही नह बि क पड़ोस, समाज, देश व सम त िव को आनंद,
स ता व िनमलता से प रपूण कर द।

आइए अब हँस! हा हा हा... हो हो हो... ही ही ही...।

शांित पाठ
ऊँ असतो मा स मय,
तमसो मा योितगमय, मृ यध माऽमृतंगमय ।
लोकाः सम ताः सुिखनो भव तु।
ऊँ य बकं यजामहे सुगि धम् पुि वधनम्।
उवा किमव ब धना मृ योमु ीयमाऽमृतात।
ऊँ शाि तः शाि तः शाि तः
कस योग म कौन-सा आसन कर?

दमा, ास संबंधी रोग - (अ थमा)


शीषासन समूह, सवागासन, भुजंगासन, शलभासन, धनुरासन, वीरासन, उ ासन,
पयकासन, पि मो ानासन, सु वीरासन, नाड़ी-शोधन ाणायाम, सूयभेदन ाणायाम,
उि यान बंध, योग िन ा।

उ र चाप- (हाड लड ेशर)


प ासन, पि मो ानासन, िस ासन, पवनमु ासन, नाड़ी-शोधन ाणायाम (कुं भक न
कर), सीतकारी, सीतली, च भेदन ाणायाम, उ ायी, योग िन ा। शांत भाव से बैठकर
ई र का यान कर, एवं हमेशा बग़ैर तेल-मसाले के शाकाहारी भोजन हण कर।

िन र चाप - (लो लड ेशर)


सालंब शीषासन, सवागासन, हलासन, कण पीडासन, वीरासन, सूय नम कार,
शशांकासन, नाड़ी-शोधन ाणायाम, भि का, कपाल-भाित, सूय भेदन ाणायाम तथा
शवासन ।

मधुमेह - (डायिबटीज़) शीषासन एवं उसके समूह - सूय नम कार, सवागासन, महामु ा,
मंडूकासन म य ये ासन, शवासन, नाड़ी-शोधन ाणायाम (िबना अंतकु भक के )।

िसर दद
प ासन, शीषासन, हलासन, सवागासन, पवनमु ासन, प मो ानासन, व ासन
माजारी आसन, नाड़ी—शोधन ाणायाम/अनुलोमिवलोम ाणायाम, योग िन ा।
िमग /अप मार
हलासन, महामु ा, पि मो ानासन, शशाकासन, भुजंगासन और िबना कुं भक के नाड़ी-
शोधन ाणायाम, अंतकु भक के साथ उ ायी ाणायाम, शीतली ाणायाम, शाकाहारी
भोजन, यान, योग िन ा।

आधाशीशी - (माइ ेन)


शीषासन, सवागासन, पि मो ानासन, प ासन म यान लगाएँ या िस ासन म यान
लगाएँ, वीरासन, शवासन, िबना कुं भक के नाड़ी-शोधन ाणायाम, उ ीथ ाणायाम,
योग िन ा।

सीना/छाती रोग

सूय नम कार, शीषासन, सवागासन, भुजंगासन, धनुरासन, प ासन, आकण धनुरासन,


पि मो ानासन, अध म ये ासन, बकासन, ब कोणासन, चकासन, कपोतासन,
नटराजासन, पीछे झुककर कए जाने वाले आसन, उ ायी तथा नाड़ी-शोधन ाणायाम,
योग िन ा।

कमर दद
वे सभी आसन िजनक या खड़े होकर पीछे क तरफ़ क जाती है एवं सु व ासन,
धनुरासन, भुजंगासन, अध म ये ासन, पवतासन, सवागासन, शीषासन, च ासन,
नाड़ी-शोधन ाणायाम कपाल-भाित।

मि त क एवं मरण शि के िवकास के िलए


शीषासन एवं उसका समूह, सवागासन, पि मो ानासन, उ ानासन, योग– मु ासन,
पादह तासन, प ासन म यान या िस ासन म यान, सामा य ाटक, शवासन, नाड़ी-
शोधन ाणायाम, सूय भेदन एवं भि का ाणायाम, योगिन ा।

पेट दद/उदरशूल
शीषासन, सवागासन, हलासन, उ ानासन, वीरासन, सु वीरासन, व ासन एवं
नौकासन, (नािभ सरक हो तो नािभ ठीक करने वाले आसन कर)

गुदा रोग ( कडनी)


सूय नम कार, सवागासन, शीषासन एवं उसका समूह, हलासन,
पि मो ानासन,उ ासन, शलभासन, धनुरासन, अध नौकासन, म य ये ासन,
भुजंगासन, हनुमानासन, कपोतासन।

नपुंसकता दूर करने व काम-शि यथावत् रखने के िलए


शीषासन एवं उसके समूह,सवागासन, उतानासन, पि मो ानासन, महामु ासन अध
म ये ासन, हनुमानासन, कपाल–भाित, अनुलोम-िवलोम, नाड़ी-शोधन ाणायाम साथ
म अंतकु भक लगाएँ। उि यान बंध, व ोली मु ा एवं िवपरीतकरणी मु ा।

आल य
शीषासन, सवागासन, पि मो ानासन, उ ानासन, िबना कुं भक के नाड़ी-शोधन
ाणायाम ।

द त
शीषासन और उसके समूह, सवागासन, जानुशीषासन, िबना कुं भक के नाड़ी-शोधन
ाणायाम। नािभ क ि थित देख।

आँत का अ सर
शीषासन एवं उससे स बंिधत समूह, सवागासन, पि मो ानासन, योग िन ा, अध
म ये ासन, उ ायी एवं नाड़ी-शोधन ाणायाम, अंतकु भक के साथ उि यान बंध।

उदर थ उ सर
व ासन, मयूरासन, नौकासन, पादह तासन, उ ानासन, पादांगु ासन, शलभासन ।

हा नया
शीषासन एवं उसका समूह, सवागासन, आकण धनुरासन।

अ डकोष वृि
शीषासन एवं उनका समूह, सवागासन, हनुमानासन, समकोणासन,पि मो ानासन, ब द
कोणासन योग मु ासन, हाचयासन,वातयनासन,व ासन एवं ग ड़ासन।

दय म दद/िवकार
शवासन, उ ायी ाणायाम िबना कुं भक के , योग िन ा, सुखासन म यान या शवासन म
यान, एवं नाड़ी-शोधन ाणायाम।

पेट संबंधी रोग, जैसे - को ब ता/क ज़/गैस बनना/अजीण/ मल िन कासन म परे शानी/
अ लता एवं वात रोग/दुगिधत ास
शीषासन व उसका समूह, सवागासन, नौकासन, पि मो ानासन, म ये ासन, रहकर
करने वाले सभी आसन, व ासन, पवनमु ासन व इससे संबंिधत आसन, ि कोणासन,
महामु ा, शलभासन, म यासन, अध चं ासन, शशांकासन, पादांगु ासन एवं
शंख ालन वाले आसन। नािभ क ि थित देख।

संिधवात/जोड़ का दद/वनज/मे द डीय/ कधाि थ/ग ठया


शीषासन तथा उसका समूह, सवागासन, प ासन, िस ासन, वीरासन, पयकासन,
गौमुखासन, उ ानासन एवं पि मो ानासन, पवनमु ासन समूह क याएँ।

दाँत/मसूढ़े/पाय रया/गंजापन/चेहरे क ताज़गी/झु रया/ सामा य ने िवकार


शीषासन एवं उसका समूह, सवागासन, हलासन, िवपरीतकरणी मु ा, पि मो ानासन,
शलभासन, व ासन (िसर के बल कए जाने वाले सभी आसन), भुजंगासन, सूय नम कार,
संहासन एवं दृि वधक यौिगक अ यासावली।

मोटापा दूर करने के िलए


ऊजां दायक िवशेष आसन एवं याएँ, सूय नम कार, शीषासन तथा उसका समूह,
सवागासन, हलासन, पवनमु ासन समूह क याएँ िवपरीतकरणी मु ा एवं वे सभी
आसन जो पेट स बंिधत रोग व अजीणता के िलए ह। आहार का िवशेष यान रख।

प ेफड़े, फु फु स
शीषासन तथा उसका समूह, सवागासन, प ासन, सूय नम कार, लोलासन,वीरासन,खड़े
होकर कए जाने वाले आसन, च ासन, धनुरासन, अंतकु भक के साथ सभी ाणायाम।

ि लप िड क/साइ टका/कमर/मे द ड/सवाइकल दद/ पाँि डलाइ टस


खड़े रहने क या के और पीछे झुकने वाले आसन जैसे - भुजंगासन, शलभासन,
धनुरासन, उ ानपादासन, व ासन, सु व ासन, गौमुखासन, ताड़ासन, उ कटासन,
मकरासन।

शरीर क लंबाई बढ़ाने के िलए

ताड़ासन, सूय नम कार, धनुरासन, हलासन, सवागासन एवं पि मो ानासन।

लकवा (प ाघात) पोिलयो


शलभासन,धनुरासन, मकरासन, भुजंगासन, प ासन, िस ासन, कं धरासन, हलासन,
सवागासन, शवासन, उ ायी तथा नाड़ी—शोधन ाणायाम।
सबसे अ छा यह है क रोगी क ि थित देखकर कसी डॉ टर से सलाह लेकर योग
या करवाई जाए। पोिलयो अिधकतर ज म से होता है और लकवा बा याव था या
उसके बाद। रोग कतना पुराना है उस िहसाब से आयुव दक औषिधय के साथ योग या
यादा लाभकारी रहगी।

र अ पता या र य
शीषासन एवं उसका समूह, सवागासन, पि मो ानासन, सूय नम कार, उ ायी
ाणायाम, नाड़ीशोधन ाणायाम, कपालभाित ाणायाम ।

बवासीर (अश, गुदा-िवकार, भगंदर )


य द क़ ज़ भी है तो उसका उपाय कर। त प ात् शीषासन एवं उसका समूह,
सवागासन,हलासन, िवपरीतकरणी मु ा, म सयासन, संहासन, शलभासन, धनुरासन,
िबना कुं भक के उ ायी, तथा नाड़ी-शोधन ाणायाम।

खाँसी
शीषासन एवं उसका समूह, सवागासन, उ ानासन, जुकाम के साथ है तो सूयनम कार भी
कर। पि मो ानासन, अध म ये ासन एवं दमा रोग के भी आसन देख।

अिन ा, चंता, उ माद, िनराशा, मानिसक दुबलता


सूय नम कार एवं उसका समूह, सवागासन, कू मासन, पि मो ानासन, शशांकासन,
योगमु ा, उ ानासन िबना कुं भक के भि का, नाड़ी—शोधन तथा सूय भेदन ाणायाम
साथ म ामरी, मू छ, शीतली एवं सीतकारी ाणायाम एवं योगिन ा अव य कर। योग
ारा जीवन जीने क कला अव य पढ़। तथा उजां दायक िवशेष आसन एवं याएँ।

अिनयिमत ऋतु ाव, मािसक धम, अ डाशय व उससे संबंिधत रोग


सवागासन, भुजंगासन, वीरासन, व ासन, शशाकासन, माजारी आसन, योग– िन ा,
नाड़ी-शोधन ाणायाम, मूलबंध, उि यान बंध,िवपरीतकरणी, वजोली मु ा, योिनमु ा
एवं योग मु ासन।

मिहला के िलए
अिधक मािसक ाव के िलए बछ कोणासन, जानुशीषासन, पि मो ानासन, उ ानासन
एवं पवनमु ासन समूह क याएँ करना चािहए एवं मिहलाएं रोग िवशेष के िलए
संबंिधत अ याय भी देख।

पौ ष ि थ, मू -दोष (पेशाब-िवकृ ित)


शीषासन तथा उसका समूह, सवागासन, हलासन, शलभासन, धनुरासन, उतानासन,
नौकासन, सु व ासन, ब कोणासन, उि यान, नाड़ी-शोधन।

व दोष
शीषासन से स बंिधत आसन समूह, सवागासन, पि मो ानासन, ब कोणासन, मूलबंध,
व ोली मु ा, योिन मु ा, नाड़ी-शोधन ाणायाम (अ छी सोच रख) एवं राि को शीतल
जल से हाथ पैर धोकर सोय एवं भु यान कर।

जनानॉग संबंधी दोष


सूय नम कार, व ासन, शशांकासन, उ ासन, ताड़ासन, उ ानासन, ि कोणासन, योग
मु ासन, च ासन, तोलांगुलासन, धनुरासन, मकरासन, वीरासन, धनुराकषणासन,
चयासन, मयूरासन एवं कपालभाित ाणायाम।
गभाव था
ह के ायाम (यौिगक सू म ायाम) पवनमु ासन संबंधी आसन एवं िबना कुं भक के
ाणायाम, उिचत िश क क देख-रे ख म कर।

बाँझपन
सवागासन, हलासन, पि मो ानासन, प ासन या िस ासन, च ासन, ग ड़ासन,
वातायनासन, सभी मु ाएँ (व ोली मु ा, योिन मु ा) नाड़ी-शोधन ाणायाम,
कपालभाित ाणायाम।

िनबल एवं कमज़ोर ि य के िलए


ित दन ाथना (भाव के साथ) एवं ाथना को योगा मक प से अपने जीवन म उतार।
ाणायाम, अनुलोम िवलोम कम से कम 10 से 15 िमिनट सुबह सूय उदय के आसपास,
यान योग, ह के ायाम (रोग के अनुकूल) प ासन एवं म यम समूह के आसन। स पूण
वा य के ट स दखे, कस महीने या खाये या न खाये अव य योग कर एवं ग के
वार का योग कर।

सौ दय वृि कारक आसन


ताड़ासन, व ासन प ासन, सूयनम कार, म सयासन, माजारी आसन, उ ान कू मासन,
भुजंगासन, च ासन, सवागासन, हलासन, नौकासन, पवनमु ासन, मकटआसन,
अनुलोम-िवलोम ाणायाम, कपालभाित ाणायाम, भि का ाणायाम, योगिन ा एवं
यान।

दुबलापन दूर करने के िलए


दुबलेपन का एक कारण वंशानुगत भी हो सकता है। दूसरा थायरॉइड, िप ूटरी ंिथ,
ए ीनल ल स के काय म गड़बड़ी उ प होना, हॉम स का असंतुलन, गलत खानपान
एवं सबसे बड़ा कारण चंता भी है।
आव यकता से अिधक भोजन शरीर के िलए फलदायक नह होता, बि क शरीर म दोष
भी उ प करता है। भोजन को आदर द एवं स तापूवक भोजन कर। सुयो य आहार ल।
चंता का याग कर सकारा मक सोच। ित दन यान कर तथा दुबले व कमज़ोर ि य
के अ छे वा य क ाथना कर। इस कार क ाथना आपके शरीर को सुग ठत करे गी।
ित दन योग व ाणायाम अव य कर।

स पूण वा य के िलए
पु तक म दए गए िनयम एवं पवनमु ासन समूह के आसन शीषासन से आसन, ा ासन
( थम कार), प ासन, योग मु ा, मूलबंध, नाड़ी-शोधन ाणायाम, व ोली और योिन
मु ा, महामु ासन एवं कपालभाित व भि का ाणायाम ।

नो ट : सम त योगा यास क सं या ब त अिधक होने के कारण कई बार यह िनणय ले


पाना मुि कल दखता है क कौन सा आसन करना चािहए और कौन सा आसन नह करना
चािहए। यहाँ पर हमने सभी रोग/वग के िहसाब से आसन क सूची दी है। कसी यो य
िश क क देख-रे ख म, शरीर लोच के अनुसार, समय, रोगी और रोग क अनुकूलतानुसार,
मौसम एवं अपने िववेक का योग करते ए योगा यास यानपूवक करना चािहए। कृ पया
सभी बात का यान रख और रोग क छु ी कर द एवं आसन, ाणायाम के साथ उनके
लाभ व सावधािनय का अ ययन अव य कर।
ाणायाम करने से शरीर के सू म कोष के
अवरोध दूर होते ह और उनका शोधन होते ए
नािड़य म ाण का संचार एक समान होता है।
-RJT

आपका शरीर आपका है। इसे व थ रखगे तो यह


वग जैसी सुख-स पदा इसी धरती पर दे देगा।
-RJT

योग साधना येक ि को अपने जीवन म


अपनानी चािहए, परं तु उिचत होगा क साधक
सव थम योगा यास से संबंिधत सभी बात को
भलीभाँित समझ ल और फर याि वत कर।
ऐसा करने से अिधक लाभ ा होता है।
-RJT
कस रोग म कौन-सा आसन न कर?
उ र चाप/च र आना/मानिसक रोग/ज टल दय रोगी/ गले से संबंिधत पुराना रोग
शीषासन, हलासन, िवपरीतकरणी, धनुरासन, सवागासन (अिधक देर तक न कर) एवं
येक योगासन म दए गए सावधािनय का यान द।

कान म मवाद/ थानांत रत च ुपटल से पीिड़त


उलट-पुलट वाले आसन।

अपेि डसाइ टस/हा नया

पि मो ानासन, योग मु ासन, पीछे मुड़ने वाले आसन म डू कासन जैसे अ य आसन

ि लप िड क/साइ टका/सवाइकल दद
सामने क तरफ़ झुक कर कए जाने वाले आसन।

गभाव था के दौरान
उदर- देश पर कसी भी कार का दबाव न पड़े ऐसे आसन ही कर। आसन करने से पूव
यो य िश क से उिचत परामश ज़ र ल।

गभाव था के बाद
सूित के प ात् कम से कम तीन महीने तक कोई भी आसन न कर। इसके बाद ह के -फु के
सू म ायाम कए जा सकते ह।

मिहला के िलए
मािसक ाव के समय कोई आसन न कर। सवागासन, शीषासन मयूरासन जैसे आसन तो
कदािप न कर।

िवशेष नोट :
​* उ र चाप, दय रोग, हा नया वाले रोगी एवं वे सभी जो उिचत अ यास क
ढंग से याि वत नह कर पाते कसी यो य योग िश क क देख-रे ख म ही
कर।
​* कह -कह हमने आसन के नीचे भी उ लेख कया है क वह कस रोग से
स बंिधत है अतः कृ पया अ यास करने से पूव इस बात का िवशेष यान रख।
*​ वैसे तो योग के सभी आसन लाभ दान करते ह परं तु िवशेष प से कसी रोग
त ि को यह जानकारी होना बेहद ज़ री है क वह कौन सा आसन करे
अथवा कौन सा आसन न करे । अतः योगा यास ारं भ करने से पूव िववेक पूवक
पु तक का अ ययन कर।

वात रोग को शांत करने के िलए क णा भाव रख


िप रोग को शांत करने के िलए मा भाव रख
कफ़ रोग को शांत करने के िलए संयम रख
-RJT
अ यासावली - (एक नज़र)
भी ि य के िलए एक जैसी अ यासावली तैयार करना उिचत नह
स है, य क येक ि क अपनी अलग कद-काठी, अलग उ , अपने-अपने शरीर
क लोच-लचक, िविभ कार के िवचार और रोग भी हो सकते ह। इस पु तक को
हमने हर कार से स पूण बनाने क कोिशश क है। अतः हमारा िनवेदन है क पु तक को
कई बार पढ़ और अपनी अनुकूलता के अनुसार एक पेज पर आसन ाणायाम आ द नोट
करते जाएँ। अ छी शु आत करने के िलए हमने इसे िन िलिखत भाग म बाँटते ए तुत
कया है।

ारि भक अ यासावली

इसके अ तगत वे ि आएँगे, जो शु आत करना चाहते ह। जो कड़क शरीर वाले ह या


िजनको कोई ब त ज टल बीमारी है तथा कसी कारणवश म यम या उ अ यास नह
कर सकते। गभवती ि य को भी शु आत के 3 से 4 महीने ब त ही सरल आसन करने
चािहए। इ ह भी योग-िच क सक से परामश लेने के बाद ही कर।

पहले महीने के िलए 1 घंटा

यौिगक सू म ायाम/पवनमु ासन समूह व उजा दायक िवशेष आसन एवं याएँ 40
िमिनट। अनुलोम िवलोम ाणायाम- 10 िमनट। शवासन हा ययोग/योगिन ा - 10
िमिनट ।

दूसरे महीने के िलए 1 घंटा

यौिगक सू म ायाम/पवनमु ासन समूह व उजा दायक िवशेष आसन एवं याएँ 40
िमनट। अनुलोम िवलोम/उ ायी ाणायाम 10 िमनट। मकरासन, शवासन, योगिन ा/
हा ययोग 10 िमनट।

तीसरे महीने के िलए 1 घंटा

पवनमु ासन समूह व उजा दायक िवशेष आसन एवं याएँ 30 िमनट । व ासन,
माजारी आसन, शवासन – 15 िमनट। अनुलोम िवलोम ाणायाम, उ ायी, योगिन ा,
हा ययोग - 15 िमनट

म यम समूह
पहले महीने 1 घटा : ० पवनमु ासन समूह व उजा दायक िवशेष आसन एवं याएँ 15
िमनट। व ासन, माजारी, ा ासन ( थम कार) शशांक आसन, भुजंगासन, ताड़ासन,
अधशलभासन 20 िमनट। अनुलोम िवलोम, उ ायी 15िमनट। मकरासन, शवासन,
योगिन ा, हा य योग 10 िमनट ।

दूसरे महीने 1 घंटा या 80 िमनट : पवनमु ासन समूह ( ि अपने िहसाब से चयन
कर) सूय नम कार 2 से 3 आवृित। 15 िमनट से 20 िमनट । सुखासन, अध प ासन,
व ासन, शंशाकासन, भुजंगासन, ितयक भुजंगासन, शलभासन, ताड़ासन, ि कोणासन,
च ासन, धनुरासन, ह त पादासन, शवासन, उ ायी ाणायाम ामरी ाणायाम, उ ीथ
ाणायाम, योगिन ा, हा ययोग।

तीसरे महीने 1 घंटा/80 िमनट : सूय नम कार 2 से 3 आवृित। प ासन, व ासन, सु


व ासन, शंशाकासन, भुजंगासन, ि यंक भुजंगासन, पि मो ानासन, शवासन, उ ायी,
कपाल भाित (धीरे -धीरे ) ामरी, उ ीथ ाणायाम, योगिन ा, हा ययोग।
म यम समूह के आसन के साथ कु छ उ अ यास के आसन भी शु कर देने चािहए।
उपरो अ यासावली जनसामा य के िलए तैयार क गई ह, िजसका उपयोग गु क
देखरे ख म िववेकपूवक करना चािहए। योग का समय 1 से डेढ़ घंटा रखना चािहए। उसम
लगभग वे सभी कार के आसन समूह आ जाते है। जो क िविभ कार क बीमा रय को
दूर करने म कायकारी होते है।
हम सू म ायाम, थूल ायाम, उजा दायक िवशेष आसन एवं या ,
पवनमु ासन समूह क या म से कु छ या को जो क उस समूह को या ि को
अित आव यक लगती ह, मशः 10 से 15 िमनट अव य कर। ता क शरीर आगे करने वाले
आसन को शि दान एवं ज टलता को दूर कर सक। इसके बाद प ासन वाले समूह
या ताड़ासन वाले समूह के आसन से शु कर, पर तु एक बात जो ब त ज़ री और यान
रखने यो य है क हम िजस कार का भी आसन कर, उसके िवपरीत पोजीशन (ि थित)
वाले अ यास भी अव य कर। इस कार करने से उस आसन के ारा कदािचत् ज टलता
आ भी गई हो तो वह िवपरीत आसन से दूर हो जाती है। जैसे शीषासन कर तो म य द
बायाँ पैर पहले रखते ह, तो आसन समाि के बाद दािहने पैर को भी पहले रख कर कर।
इस कार योग क सम त या कलाप को समझते ए हम जीवन म योग को अपनाकर
उसका स पूण लाभ उठाना चािहए।

म यम व उ : म यम समूह एवं इसके बाद धीरे -धीरे उ अ यास के आसन क सा रणी


अपनी अनुकूलता को समझकर तैयार कर।

ित दन के िहसाब से कए वाले आसन


सोमवार : वायु िनरोधक याएँ, गितमय अ ासन, गितमय गोमुखासन, मकरासन,
गितमय मकरासन, सपासन, अध शलभासन, शलभासन, ाणायाम, योगिन ा
(सू म ायाम अपनी अनुकूलता के अनुसार से 5 िमिनट तक कर)
मंगलवार : उदर देश क याएँ, ि यक भुजंगासन, िवपरीत नौकासन, ाणायाम,
उ ायी ाणायाम, योग िन ा (सू म ायाम अपनी अनुकूलतानुसार)
बुधवार : शि बंध क याएँ, गोमुखासन, गितमय गोमुखासन, शलभासन उ ीथ
ाणायाम, कपाल भाित ाणायाम, योग िन ा (सू म ायाम अपनी
अनुकूलतानुसार)।
गु वार : वायुिनरोधक याएँ, सू म ायाम क याएँ अपनी अनुकूलतानुसार
प ासन, िस दासन, व ासन, आनंद म दरासन, पादा दरासन, माजार आसन,
ताड़ासन, ि कोणासन, सूयनम कार, उ ायी ाणायाम, कपालभाित
ाणायाम, बाल मचलन या,योग िन ा।
शु वार : उदर देश क याएँ, प ासन, मु ासन, शशांक आसन, उ ासन, ा ासन
( थम कार) ताड़ासन, ि कोणासन, गितमय ि कोणासन, पादह तासन,
सवागासन, हलासन, पि मो ानासन, उदगीथ ाणायाम, उ ायी ाणायाम
कपाल भाित ाणायाम योगिन ा।
शिनवार : शि बंध क याएँ, ताड़ासन, ितयक ताड़ासन, क टवृ ासन, प ासन, ब द
प ासन, पि मो ानासन, सवागासन, हलासन, धनुरासन, च ासन, माजार
आसन, ा ासन ( थम कार) गोमुखासन, गितमय गोमुखासन, शशांकासन,
म डू कासन, व ासन, सूयनम कार, हा य योग, उ ायी ाणायाम, भि का
ाणायाम, कपाल भाित ाणायाम, योग िन ा।
रिववार : पवनमु ासन समूह क याएँ (अनुकूलतानुसार) उजादायक िवशेष आसन
एवं याएँ, प ासन, ब प ासन, व ासन, शशांकासन, म डू कासन,
माजार आसन, ा ासन ( थम कार), पि मो ानासन, गितमय
पि मो ानासन, सवागासन, हलासन च ासन,धनुरासन, भुजंगासन, ितयक
भुजंगासन, ताड़ासन ितयक ताड़ासन, भि का, अनुलोम िवलोम ाणायाम,
योग िन ा, हा य योग।
ये जो सा रणी है वह हमने जन सामा य के िलए बनाई ह। आप अपने शारी रक अव था
के अनु प सब आसन को मपूवक कर अ यास म लाएँ व ऊजा दायक िवशेष आसन
एवं याएँ, पवन मु ासन समूह क याएँ यौिगक सू म ायाम तथा थूल ायाम
को अपनी अव थानुसार चयन कर योग म लाएँ

ब के िलए योग
चाहे ब के शारी रक िवकास क बात हो या मानिसक मता को िवकिसत करने क
बात, योग भी उनके जीवन के िलए उतना ही मह वपूण है, िजतना खेलकू द या अ य
गितिविधयाँ।
ब के िमक िवकास के िलए योग को अिनवाय कर देना चािहए। ब े अपने शरीर म
िनयिमत अ यास से लोचलचक पैदा कर उ अ यास को भी आसानी से कर सकते ह।
ित दन योगा यास करने से शरीर के सभी अंग सुचा प से काय करने लगते ह।
लगभग 8 वष से लेकर 16 वष क उ तक ब का जीवन गीली िम ी क तरह होता
है। जैसा बनाओ वैसे बन जाता है अतः ब को अ ांग योग म यम और िनयम क भी
िश ा देकर उनक सं कारवान बनाकर उनके भिव य म उ वलता लाई जा सकती ह।
मरण शि बढ़ाने, लंबाई बढ़ाने, दृि दोष दूर करने जैसे शारी रक एवं मानिसक
आव यकता को पूरा करने का सबसे अ छा मा यम स पूण योग िश ा ही है। इसिलए
ब को योग अपने जीवन म अव य अपनाना चािहए।
हम यहाँ पर एक संि अ यासावली दे रहे ह। सबसे पहले ब को यौिगक सू म
ायाम, यौिगक थूल ायाम, पवनमु ासन समूह क या को एवं ऊजा दायक
िवशेष आसन व या को लगभग 2 से 6 महीने तक सीखना चािहए। ऐसा करने से
शरीर म फू त, एक नई ताजगी व सुदढ़ृ ता आएगी एवं योग म िच बढ़ेगी।
मशः ह के फु के योग, अनुलोम-िवलोम ाणायाम, उ ायी, ामरी, उ ीथ
ाणायाम एवं योग िन ा के अ यास से वे अपने अंदर एक नया आ म-िव ास पैदा कर
सकते ह, जो ब के भिव य के िलए एक उपलि ध से कम नह होगा। ब े अपनी
अनुकूलतानुसार अपने िलए योग अ यास हेतु सा रणी तैयार करवा ल एवं िनयिमत
अ यास करके इस कला को आ मसात् कर।

मिहला के िलए योग


मिहलाएँ अपने वा य के िलए सबसे यादा चंितत रहती ह। अिधकतर मिहलाएँ
मानती ह क उ ह कोई न कोई बीमारी लगी रहती है। ब त ही कम मिहलाएँ अपने आप
को पूणतः व थ मानती ह। आज मिहला का जीवन पहले क अपे ा काफ़ बदल गया
ह। य क पहले क ि याँ सुबह से शाम तक घर के काम म लगी रहती थ । इस कारण
अनजाने म ही योग क याएँ हो जाया करती थ । जैसे सूय दय से पहले उठना, झाडू
लगाना, साफ सफाई करना, िबलोना, म खन िनकाल कर घी बनाना। उ ह ऐसे कई काम
म त रहना होता था एवं इसी कारण दनभर क थकान क वजह से राि को न द भी
अ छा आया करती थी, पर तु आज का वातावरण, प रवेश व प रि थयाँ बदल गई ह।
आज क मिहलाएँ नौकरी एवं वसाय को सँभालने लगी ह। अतः घर म उनके काम
करने क िज़ मेदारी नौकर-चाकर और िव ुत मशीन ने ले ली है। साथ ही और भी कई
कारण आज कट हो गये ह। इसीिलए आजकल मिहला को कई बीमारीयाँ ब त ज दी
घेर लेती ह जैसे मोटापा, कमरदद, दर, िह टी रया, िसरदद, वायु दोष, यूके रया,
अिन ा, मधुमेह, दय रोग, क ज, ग ठया एवं मानिसक तनाव आ द।
योगा यास ही एक ऐसा मा यम है, जो उनको स पूण वा य के साथ सु दरता दान
कर सकता है। अतः िनयिमत प से ित दन 1 घंटा योगासन व ाणायाम के िलए
िनकालना अितआव यक हो गया है। इस पु तक को पढ़कर अपने रोगानुसार आसन-
ाणायाम का चयन कर ल। इससे मिहलाएँ अपने स पूण वा य के िलए िन िलिखत
आसन का अ यास कर लाभ ा कर सकती ह।
सरल अ यास से शु कर, जैसे यौिगक सू म ायाम, यौिगक थूल ायाम
पवनमु ासन समूह के अ यास, ऊजा दायक आसन व याएँ, अध प ासन, प ासन,
व ासन, शशांकासन, भुजंगासन, ितयक भुजंगासन, च ासन, शलभासन, मकरासन,
गोमुखासन, उ ासन, ताड़ासन, ितयक ताड़ासन, पादह तासन, ि कोणासन,
ह तो ानासन, पि मो ानासन, मंडूकासन, माजारी आसन, सवागासन, िवपरीतकरणी,
शवासन योगिन ा आ द। नाड़ी शोधन ाणायाम आ द योगा यास करके मिहलाएँ व थ
सुंदर हो सकती ह।
इस कार मिहलाएँ वयं व थ रहकर अपने प रवार वाल को भी वा य दान
करने म मदद कर सकती ह।

कायालय म काम करने वाले ि य के िलए योग


कायािलय म काम करने वाले ि वयं थोड़ा सा प रवतन ला कर व थ रह सकते ह।
जैसे कायालय म प च ँ ते ही मानिसक प से तरोताजा महसूस कर और मु कराते ए
कु स पर बैठे, मे द ड सीधा रखे एवं आँख बंद कर ॐ का या अपने इ का उ ारण कर।
पाँच बार ल बी गहरी ास ल व छोड़। इसके बाद आ मिव ास के साथ काय करने हेतु
तैयार हो जाएँ।
चूँ क टेबल-कु स म काम करते रहने से मे द ड, गदन, आँख और मि त क पर अिधक
जोर पड़ता है। अतः कु स पर बैठने के तरीके म प रवतन लाएँ। मे द ड सीधा रख। गदन
झुकाकर काम करने से गदन म िवकार उ प हो जाते ह, इसिलए कु स पर बैठे-बैठे ही
ीवा शि िवकासक या को 2 से 5 िमनट कर। आँख के िलए दृि वधक या को
अव य कर एवं मानिसक िवकास के िलए योगिन ा, यानयोग व ाणायाम को िनयिमत
प से ातःकाल म कर।
सुबह 1 घंटे का समय िनकाल। सबसे पहले सरल अ यास से शु कर। पवनमु ासन
समूह के अ यास, उजा दायक आसन एवं याएँ, अधप ासन, प ासन, ब प ासन,
व ासन, शशांकासन, मंडूकासन, भुजंगासन, ितयक ताड़ासन, ितयक ताड़ासन आ द
अ यास एवं ाणायाम म अनुलोम िवलोम, उ ायी, भि का, कपालभाित, उदगीथ व
ामरी ाणायाम को कर त प ात् योगिन ा अव य कर।
हमने उपरो आसन एवं ाणायाम को सरलता के िहसाब से दया है। आप पूरी
पु तक को पढ़कर अपने रोगानुसार आसन व ाणायाम एवं अ य अ यास क सा रणी
बना ल एवं स िच मन से ित दन अ यास करना शु कर द।
रा ीय योग ितयोिगता
िनयमावली
1. रा ीय योग ितयोिगता बालक एवं बािलका के िलए पृथक-पृथक तीन आयु समूह
म आयोिजत होगी।
1. िमनी ुप (14 वष तक)
2. जूिनयर ुप (17 वष तक)
3. सीिनयर ुप (19 वष)
2. एक दल म 7 ितभागी ह गे। ‘ए’ ुप क ितयोिगता म 4+1 ‘बी’ ुप क
ितयोिगता (आ टि टक) म एक ितभागी एवं ‘सी’ ुप क ितयोिगता
( रदिमक) म एक ितभागी सि मिलत ह गे। इस कार 7 बालक + 7 बािलका
14 ितभागी ह गे।
3. योग आसन ितयोिगता हेतु 18 आसन ए, बी एवं सी समूह म िवभािजत ह।

4. समय : 'ए' ुप के आसन हेतु 14 वष के िलए 1 िमनट एवं 17 से 19 हेतु 2 िमनट


िनधा रत ह। 'बी' ुप के आसन हेतु 20 सेकंड िमनी ुप के िलए तथा 30 सेकंड
जूिनयर एवं सीिनयर हेतु िनधा रत ह। ‘सी’ ुप हेतु िमनी ुप वाल के िलए 15
सेकंड एवं जूिनयर एवं सीिनयर हेतु 20 सेकंड िनधा रत ह। ए, बी एवं सी ुप से 1
+ 1 + 1 = 3 आसन करने होते ह। 18 आसन के अित र 2 आसन ितभािगय
को पृथक से करने होते ह। उस हेतु सभी के िलए समय सीमा 10 सेकंड िनधा रत है।
कसी भी ि थित म समय सीमा नह बढ़ाई जा सकती है, य द िनणायक दल
सहमत है तो समय सीमा कम क जा सकती है।
5. आसन का चयन : ‘ए’ एवं 'बी' समूह से आसन हेतु ा ारा आसन का चयन
बालक एवं बािलका हेतु येक आयु समूह हेतु कया जाता है। ‘सी’ समूह का
आसन ितभागी अपने मन से करता है। एक बार आसन का चयन करने के उपरांत
आसन को बदला नह जा सकता है।
6. ‘ए’ एवं ‘बी’ समूह के आसन को स पा दत करते समय कोई अवसर नह दया
जाता है, जब क सी समूह के आसन हेतु तीन अवसर दए जाते ह।
7. आसन क मा कग करते समय िन िब दु पर यान दया जाता है। आसन लगाने
का ढंग तथा वापस आने के तरीके हेतु 1-1 अंक िनधा रत है। िनधा रत समय सीमा
तक कने हेतु 2 अंक िनधा रत ह। परफ़े ट पो र हेतु 4 अंक तथा िबना तनाव एवं
कपन के आसन लगाने पर 2 अंक दान कए जाते ह। इस कार कु ल 10 अंक
येक आसन हेतु िनधा रत ह।
8. वैि छक आसन को ए, बी एवं सी तीन भाग म िवभ कया गया है। िजसके िलए
मशः 10, 8 एवं 6 अंक िनधा रत ह।
9. िनणायक दल : बालक एवं बािलका हेतु दो पृथक िनणायक दल िनयु होते ह।
येक दल म 8 ि होते ह, िजसम से 1 मु य िनणायक, 5 िन णायक, 1 कोरर,
1 टाइम क पर होता है।
10. येक िनणायक को रं ग शीट पर अपने अंक अं कत करता है एवं आसन समा
होने के उपरांत उसे िड ले प का पर िड ले करना होता है। कोर शीट पर
अं कत करना होता है।
11. िनणायक अवलोकन हेतु वतं होते ह य द आव यक समझ तो कसी आसन को वे
पुनः लगाने हेतु िनदिशत कर सकते ह।
12. प रधान ( स े ) : ेक सूट पहनकर आसन लगाना ितबंिधत है। शॉ स, लै स,
वी मंग कॉ ूम पहनना अिनवाय है। ितभािगय हेतु टाइट अंडरिवयर (िवथ
इलाि टक) पहनना अिनवाय है।
13. समान अंक आने पर अंक का िनधारण :
(अ) सभी िनणायक ारा द अंक के योग के आधार पर।
(ब) य द फर भी अंक बराबर होते ह तो ऐि छक 2 आसन म ा अिधक अंक के
आधार पर।
(स) य द फर भी अंक बराबर होते ह तो सी ुप म ा अंक के आधार पर।
(द) य द फर भी अंक बराबर होते ह तो दोन को संयु िवजेता घोिषत कया जाएगा।
एवं टॉस ऑफ़ कॉइन से िवजेता का िनधारण कया जाएगा।
14. अंक का समावेश : 18 आसन म से ‘ए’, ‘बी’ एवं ‘सी’ समूह से एक-एक आसन
करना होता है िजसके िलए 30 अंक दो ऐि छक आसन 10+10=20 अंक तथा सूय
नम कार के दस अंक कु ल 60 अंक के आधार पर ितयोिगता स प कराई जाती
है।
15. सूय नम कार हेतु अंको का िनधारण िन ानुसार होगा :
बॉडी पो र हेतु 3 अंक
आगे झुकने क ि थित पर 3 अंक
पीछे झुकने क ि थित के आधार पर 3 अंक
एवं से के िलए 1 अंक िनधा रत है।
16. ज मितथी पा ता एवं ोटे ट, एसजीएफआई स के तहत िनधा रत मापद ड
के आधार पर होगा।

रदिमक एवं आ टि टक ितयोिगता हेतु िनयमावली िन ानुसार है:


1. आ टि टक : 1. तंभ शीषासन
2. पूण वृि कासन
3. ि पादक दासन
4. क दपीड़ासन
5. नटराजास म
6. लैग पो र
7. लंगकारासन
म से क ह पाँच आसन का दशन करना होता है। येक आसन क समय सीमा सभी के
िलए 15 सेकंड िनधा रत है। पाँच आसन हेतु 50 अंक तथा णव विन हेतु 10 अंक
िनधा रत ह। कु ल 60 अंक।
2. रदिमक योग ितयोिगता : इस ितयोिगता म उ 8 से कम नह एवं 10 से अिधक
नह । आसन का दशन ढाई िमनट म स प करना होता है। ितयोिगता म
िविभ आसन का दशन करना होता है िजनक बेल संग बे डंग एवं धारण
मता के आधार पर अंक दान कए जाते ह। संगीत जैसे रकॉडर लेयर एवं सीडी
आ द क व था ितभागी को वयं करनी होती है।
संद भत थ

पतंजलयोग दीप, घेर डसंिहता, विश संिहता, ह ोग दीिपका मर यकि टका,


क दपुराण, मन मृित, ीमद् योग गीता, ीमद् भागवत गीता,योग त वोपिनषद, योग
कु ड योपिनषद, योग चूड़ामिण, शाि ड योपिनषद, कू म पुराण उतरा द, ानाणव,
समािधतं , लंगपुराण पूवा द, वरिव ान, वायु पुराण, माक डेय पुराण, नारद पुराण,
अि पुराण, योगांक—गीता ेस, योगसार, योग और आयुवद, योग दशन, िशव संिहता,
तं सार, यान िब दु उपिनषद् अमृताशीित– ीमद् आचाय योगी दुदव े , योग विस ,
मा डु य उपिनषद, क याण- गीता ेस, तं या और योगिव ा- वामी स यानंद
सर वती, आसन ाणायाम मु ा बंध- वामी स यानंद सर वती, शि का जागरण और
कु डिलनी-म.म.प. गोपीनाथ किवराज, सािव ी कु डिलनी तं ीराम शमा आचाय,
अमे रकन योगा- के री ेडर, आयुव दक िच क सा-झा, हठयोग िव ा- वामी िव ानानंद
सर वती, मानव शरीर रचना और शरीर यािव ान- िवजय कु मार, यौिगक सू म
ायाम- धीरे चारी, लाइट आन योगा- बी.के .एस. आयंगार, फू ड ए ड यू ेशन-
वामीनाथन, यू ेट वे यु ऑफ़ इि डयन फ़ू ड- राजगोपालन, एनाटामी ए ड
फ िजयोलॉजी- टोरा टोरा, ाकृ ितक िच क सा िस ांत एवं वहार - डॉ. पी.डी. िम ा,
योगासन- वामी कु व यानंद, फ़ ट टेप टु हायर योगा- ी योगे रानंद परमहंस, आरो य
अंक- गीता ेस, यान िवचार- आचाय ी िवजय कलापूण सूरी जी, टे ट स इन
साइ लोजी ए ड ए यूकेशन- गैरेट, भारतीयदशन- राधाकृ ण, फ़ाउं डेशन ऑफ़ िबहेिवयस
ए ड रसच- कर लंगर, सामा य मनोिव ान- डॉ. अ ण कु मार, पतंजल योग दीप -
ओमानंद तीथ, ऑ फस योगा - े ड बगर, योरी ऑफ़ पसनािलटी वामी िव ानंद िवदेह,
हठयोग दीिपका- वा माराम योगी, साधनांक- गीता ेस, व थयवृत- रामहष संह,
िशव वरोदय– अनु. हरे कृ णा शा ी, योगसार ाभूत- आचाय अिमत गित, योगपथ-
भुवाद वामी योगशा - आचाय हेमच , मो पा ण- आचाय ी कु द कु द वामी,
फलासफ ऑफ़ उपिनषद, विस संिहता (योग का ड)– वामी दग बर जी, योग दशन–
ह रकृ ण दास, योग के िस ांत एवं अ यास- डॉ. कालीदास एवं डॉ. गणेश शंकर, क याण
कारक- उ ा द याचाय, पतंजलयोग एवं जैन योग का तुलना मक अ ययनअ णा आनंद,
योग दशन- संपूणानंद, िववेक चूड़ामिण एवं सौ दय लहरी। शाि ड य उपिनषद्, िजने
िस ांत कोष।
उपसंहार

न धम य कता न चाथ य हता, न काम य भो ा न मो य पाता ।


नरो बुि मान धीरस वोऽिप रोगी, यत ति नाशादभवे ैव म यः।।
क याणकारक
( ी उ द याचाय महाराज)

अथ : मनु य बुि मान, ढ़मन क होने पर भी य द रोगी हो तो वह न धम कर सकता


ह, न धन कमा सकता ह, न ही काम भोग सकता है और न ही मो साध सकता है। अथात्
वह धम, अथ, काम और मो इन चार कार के पु षाथ नह कर सकता। जो ये चार
पु षाथ नह कर सकता, वह मनु य ज म लेने पर भी मनु य कहलाने यो य नह ह।
य क मनु य ज म क सफलता पु षाथ करने म है।
सैकड़ वष पहले िलखी गई बात हमेशा एवं येक मनु य पर च रताथ ह गी, य क
मनु य ज म क साथकता तो उसके िनरोग होने पर िनभर है। ी उ ा द याचाय महाराज
उपरो ोक ारा कहते ह क य द आप रोगी ह तो पहले अपने रोग को ठीक कर और
फर चार कार के पु षाथ म िववेक का उपयोग कर।
उपरो बात को ा प म लाने के िलए ही इस पु तक क रचना ई है। लगभग 28
वष से म अ ांग योग को अपने जीवन म ा िपत कर रहा ।ँ पर तु एक कमी हमेशा
खलती थी क कोई ऐसी पु तक ा हो जाए, िजसम अ ांग योग के साथ उससे संबंिधत
सभी िवषय भी ह , िजससे वह संपूणता को ा हो। यही िच तन धीरे -धीरे ई र कृ पा से
श दा कत होता गया।
मने 28 वष से योग िवषय के संबंध म जो बारी कयाँ सीख एवं िसखा , वे सब म
आपको इस पु तक के मा यम से देने क कोिशश कर रहा ।ँ एक बात और मह वपूण है
क हमने इस पु तक म वै ािनक कारण दए, बीमा रय के िहसाब से एक सा रणी दी,
आज के प रवेश को यान म रखकर जीवन जीने क कला को दशाया। साथ ही योग या
है, या करता ह, या दान करता है आ द ज़ री दृि कोण को भी इस पु तक म
िलिपब कया। हमारा मानना है क पाठक को यह पु तक कई बार पढ़नी चािहए और
इसम दी ई तकनीक एवं िस ांत को िववेकपूवक अमल म लाना चािहए।
हमारा उ े य आप और आपके शरीर को िनरोगी रखने, सुंदरता ा कराने के साथ
शारी रक, मानिसक, भौितक और आ याि मक सुख, शांित, समृि और परम आनंद दान
कराना है।
आप जीवन म स पूण स य व वा य लाभ ल, यही ि लोक क आशा है।
इितशुभम्।
योगाचाय राजीव जैन "ि लोक"
मह वपूण यह नह क हम कतने समय एवं कतने कार
के योग करते ह मह वपूण तो यह है क हमारी सोच, या
एवं प ितयाँ कतनी िवकिसत एवं सटीक है।
-RJT

योगासन स बंधी याएँ आ मिव ास के साथ कर एवं


पूण िव ास रख क हम आि मक एवं शारी रक लाभ
अव य ा करगे।
-RJT

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