घर में फु ल-झड़ियाँ छू टे, मन ही मन में लड्डू फू टे दीप जले हैं घर आँगन में, उजयारा हो जाए मन में अपनों की तो बात अलग है, आज तो सारे ग़ैर भले हैं दीवाली के दीप जले हैं राम की जय-जय-कार हुई है, रावन की जो हार हुई है सच्चे का हर बोल है बाला, झूटे का मुँह होगा काला सच्चाई का डंका बाजे, सच के सर पर सहरा साजे झूट की लंका ख़ाक बना के , राम अयोध्या लौट चले हैं दीवाली के दीप जले हैं हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, मिल कर खाएँ यार मिठाई भूल के शिकवे और गिले सब, हँसते गाते आज मिले सब कहने को हर धर्म जुदा है, लेकिन सब का एक ख़ुदा है इक माटी के पुतले 'हैदर', इस साँचे में ख़ूब ढले हैं दीवाली के दीप जले हैं