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स्वदेशी पत्रिका

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“अिनी तदनचयाा में बदिाव , शरीर के सभी रोगों से बचाव”

 सामान्य परिचय :-
एरंि का पौधा लड़त्रकयों और महीलाओं के ललए बहुत खास है। एरंि का ये पौधा लड़त्रकयों और मत्रहलाओं की

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हर तरह की बीमाररयों को दूर करता है। एरंि का पौधा आठ से पंद्रह फीट लंबा होता है। इसकी पलियों के त्रवशेष आकार
के कारण इसे गन्धववहस्त के नाम से भी जाना जाता है। चाहे इसके बीज हों या पलियां और तो और इसकी जड़ों का भी
औषधीय प्रयोग होता आया है। आइए इसके कुछ औषधीय प्रयोगों को जानें....

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 गभववती स्िी को सुखपूववक प्रसव कराने के ललए आठवें महीने के बाद पंद्रह ददनों के अंतर पर दस डमली लीटर
एरंि का तेल त्रपलाना चात्रहए और ठीक प्रसव के समय पच्चीस से तीस डमली लीटर केस्टर आयल को दूध के
साथ दे ने से शीघ्र प्रसव होता है।

 एरंि के तेल का प्रयोग ब्रेस्ट मसाज आयल के रूप में स्तनों को उभारने में भी त्रकया जाता है। साथ ही स्तन शोथ
में इसके बीजों की त्रगरी को लसरके में एक साथ पीसकर लगाने से सूजन में लाभ डमलता है।

 प्रसूता स्िी में जब दूध न आ रहा हो या स्तनों में गााँठ पड़ गयी हो तो आधा त्रकलो एरंि के पिों को लगभग दस
लीटर पानी में एक घंटे तक उबालें। अब इस प्रकार प्राप्त हल्के गरम पानी को धार के रूप में स्तनों पर िालें तथा
लगातार एरंि तेल की माललश करें और शेष बचे पिों की पुलटीश को गााँठ वाले स्थान पर बााँध दें । गांठें कम होना
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प्रारम्भ हो जाएंगी तथा स्तनों से पुन: दूध आने लगेगा।
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 एरंि के पिों के 5 डमली रस को और समान मािा में घृतकुमारी स्वरस को डमलाकर यकृत (Liver) व प्लीहा के
रोगों में लाभ होता है।

 त्रकसी भी प्रकार के सूजन में इसके पिों को गरम कर उस स्थान पर बांधने माि से सूजन कम हो जाती है।
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 पांच डमली एरंि की जड़ के रस को पीने से पीललया यानी कामला (जौंडिस) में लाभ डमलता है।

 त्रफशर (पररकर्तिका) के रोग में रोगी को एरंि के तेल को त्रपलाना फायदे मंद होता है।

 पुराने और ठीक न हो रहे घाव पर इसके पिों को पीसकर लगाने से व्रण (घाव) ठीक हो जाता है

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