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World History ch-21 by Pra&ash
World History ch-21 by Pra&ash
परिचय
द्वितीय विश्व युद्ध जो वर्ष 1939 - 45 के दौरान हुआ इसमें दुनिया का लगभग हर हिस्सा शामिल था।
इस युद्ध के दौरान प्रमुख धुरी शक्तियां जर्मनी, इटली, और जापान थी, और मित्र राष्ट्रों में फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ, और चीन शामिल थे।
यह इतिहास का सबसे बड़ा संघर्ष था जो लगभग छह साल तक चला।
इसके दौरान लगभग 100 मिलियन लोगों का सैन्यीकरण हुआ , और 50 मिलियन लोग मारे गए थे (दुनिया की आबादी का लगभग 3%)
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इसके तहत जर्मनी ने अपने क्षेत्रों, कालोनियों, कोयला और लोहे की खानों को खो दिया था। इस संधि के कारण जर्मनी के जमीनी क्षेत्र के साथ जर्मनी के सैनिकों और आयुधों में
भी कमी आई ।
प्रथम विश्व युद्ध के नुकसान के लिए जर्मनी को जिम्मेदार ठहराया गया था और उसे एक खाली कागज में हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया था । उसकी इच्छा के बावजूद
जर्मनी को इस प्रतिशोध से भरी संधि पर हस्ताक्षर करने पड़े ।
इस तरह जर्मनी के लोगों के बीच बदले की भावना पैदा हो गई। कु छ समय बाद जर्मनी ने वर्साय की संधि के सभी प्रावधानों की अवहेलना की। इसमें द्वितीय विश्व युद्ध के लिए
आवश्यक कारण मौजूद थे।
4) मुसोलिनी और फासीवाद:
हालांकि, इटली एक विजेता राष्ट्र था, लेकिन इसे 1919 के पेरिस शांति सम्मेलन में कम करके आंका गया ।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद इटली में बेरोजगारी, श्रम हड़ताल, दंगे, आंदोलन और वर्ग संघर्ष हुए। इस महत्वपूर्ण घटना के कारण बेनिटो मुसोलिनी का उदय हुआ। उन्होंने युद्ध के
पक्ष में घोषणा की और कहा-"युद्ध पुरुष के लिए वही महत्व रखता है, जो एक महिला के लिए ‘मातृत्व’ रखता है" ।
उसने इटली में प्राचीन रोम के गौरव को दोबारा स्थापित करने का वादा किया। उसने अपनी क्षेत्रीय सीमा बढ़ाने के लिए इटली में फासीवाद की स्थापना की ।
इसलिए, उन्होंने जर्मनी के तानाशाह हिटलर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए। इससे पूरे यूरोप में डर का माहौल पैदा हो गया । मुसोलिनी ने इथियोपिया पर कब्जा भी कर
लिया ।
5) 1929 की महामंदी:
1930 के दशक की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने यूरोप और एशिया में विभिन्न तरीकों से प्रभाव डाला।
यूरोप में, राजनीतिक सत्ता कई देशों (जर्मनी, इटली और स्पेन सहित) में तानाशाही और साम्राज्यवादी सरकारों में परिवर्तित हो गई ।
एशिया में, संसाधनों से वंचित जापान ने आक्रामक रूप से विस्तार करना शुरू किया और चीन पर हमला किया तथा उसने प्रशांत क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए कई पैंतरेबाज़ी
की ।
6) जापान का उद्भव:
सुदूर पूर्व में जापान का उद्भव द्वितीय विश्व युद्ध का एक और प्रमुख कारण था । प्रथम विश्व युद्ध के बाद जापान ने एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरने की
कोशिश की।
इसका मुख्य उद्देश्य अपने साम्राज्य का विस्तार करना और उपनिवेशों का अधिग्रहण करना था। 1931 में जापान ने मंचूरिया पर हमला किया और उस पर कब्जा कर लिया ।
फिर इसने चीन के शहरों पर एक के बाद एक कब्जा कर लिया ।
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जापान की साम्राज्यवादी नीति की सीमा काफी हद तक इसके सम्राट हिरोहितो के शासन काल मे बढ़ी । हिटलर और मुसोलिनी के साथ इसके गठबंधन ने अत्यधिक विस्फोटक
स्थिति पैदा कर दी जिससे द्वितीय विश्वयुद्ध का मार्ग प्रशस्त हुआ ।
7) विचारधाराओं का संघर्ष:
प्रथम विश्व युद्ध के बाद, पूरी दुनिया वैचारिक संघर्ष के दौर में प्रवेश कर गयी थी।
इटली, जर्मनी, जापान और स्पेन तानाशाही और सैन्यीकरण में विश्वास रखते थे। दूसरी ओर, संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और फ्रांस लोकतांत्रिक सिद्धांतों में विश्वास रखते
थे। जर्मनी और इटली ने वर्साय की संधि के नियमों का उल्लंघन किया ।
इस वैचारिक द्वंद्व ने दुनिया को दो गुटों में बांट दिया। इटली के तानाशाह मुसोलिनी ने टिप्पणी की थी कि -" दो दुनियाओं के बीच के संघर्ष पर कोई समझौता नहीं कर सकता
या तो हम या वे " ।
लोकतांत्रिक सिद्धांतों में विश्वास रखने वाले अमेरिका, इंग्लैंड और फ्रांस ने मुसोलिनी की इस विचारधारा का सामना करने के लिए खुद को तैयार किया।
शुरुआत
बढ़ते अंतरराष्ट्रीय तनाव के तीन साल जिसमे स्पेन का गृहयुद्ध, जर्मनी और ऑस्ट्रिया का एकीकरण, सुडेटेनलैंड पर हिटलर के कब्जे
और चेकोस्लोवाकिया पर आक्रमण के कारण धुरी शक्तियाँ और मित्र राष्ट्रों के बीच संबंधों के स्तर में गिरावट आई ।
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हालांकि, 1 सितंबर 1939 को पोलैंड पर जर्मनी का आक्रमण हुआ और दो दिन बाद ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी पर युद्ध की घोषणा कर दी ।
यह द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत के रूप में जाना जाता है।
रिबेंट्रॉप पैक्ट
1939 के शुरुआती समय तक जर्मन तानाशाह एडॉल्फ हिटलर ने पोलैंड पर हमला करने और उस पर कब्जा करने की तैयारी कर ली थी।
पोलैंड पर यदि जर्मनी हमला करता है तो फ़्रांस और ब्रिटेन से उसे सैन्य मदद मिलनी थी, हालांकि हिटलर ने पोलैंड पर हमला करने का मन बना लिया था लेकिन पहले उसे
इस संभावना से निपटना पड़ा कि सोवियत संघ अपने पश्चिमी पड़ोसी के आक्रमण का विरोध करेगा।
अगस्त 1939 में गुप्त वार्ता, मास्को में जर्मन-सोवियत गैर-आक्रामकता संधि पर हस्ताक्षर किए गए।
इसके अलावा, रूस ने सितंबर में पोलैंड में जर्मनी का साथ दिया और पोलैंड को वर्ष के अंत तक दोनों आक्रमणकारियों के बीच मे विभाजित कर लिया गया।
ऑपरेशन बारबारोसा
ब्रिटेन में हार का सामना करने के बाद हिटलर ने रिबेंट्रॉप पैक्ट तोड़ दिया और 1941 में रूस पर हमला कर दिया।
अक्टू बर के अंत में सेबस्टोपोल का पतन, और मॉस्को पर साल के अंत तक हमला होना एक तीव्र घटना थी।
रूस की कड़ी सर्दियों ने जर्मनी की सेना को अपंग बना दिया जिनका अनुभव नेपोलियन ने भी डेढ़ शताब्दी पहले किया था।
सोवियत संघ ने दिसंबर में जवाबी हमला किया और पूर्वी मोर्चा वसंत ऋतु तक यथावत रहा।
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पर्ल हार्बर पर जापान का हमला
हिटलर की सेनाओं ने यूरोप के माध्यम से चढ़ाई की, जापान की सेना दक्षिण पूर्व एशिया में कु छ इसी तरह का प्रयास कर रही थी ।
7 दिसंबर, 1941 को, जापान द्वारा पर्ल हार्बर में संयुक्त राज्य अमेरिका के नौसेना बेस पर हमले में 20 से अधिक अमेरिकी जहाजों और
300 विमानों को क्षतिग्रस्त या नष्ट कर दिया गया । 4000 से अधिक अमेरिकी मारे गए या घायल हुए । अगले दिन, संयुक्त राज्य
अमेरिका आधिकारिक तौर पर युद्ध में शामिल हो गया।
जापान का आत्मसमर्पण
अगस्त में, संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना ने जापान पर दो परमाणु बम गिराए (एक हिरोशिमा शहर के ऊपर, दूसरा
नागासाकी के ऊपर)।
उन्हें आशा थी कि शक्तिशाली नया हथियार जापानी नेताओं को जल्दी आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करेगा और
इसने ऐसा किया भी क्योंकि सम्राट हिरोहितो ने कु छ दिनों बाद ही 2 सितंबर, 1945 को जापानी रेडियो पर युद्ध की आधिकारिक समाप्ति की घोषणा की।
जापान और जर्मनी के आत्मसमर्पण के साथ द्वितीय विश्व युद्ध खत्म हो गया।
व्यापक विनाश
4 करोड़ से ज्यादा लोग मारे गए जिनमें से आधे रूसी थे । कई लोग बेघर हो गए। जर्मनी के औद्योगिक क्षेत्र और शहर तबाह हो गए। इसी तरह फ्रांस और पश्चिम रूस के शहर
हवाई हमलों से तबाह हो गए। ‘प्रलय’ युद्ध की एक और विशेषता थी ।
हिटलर ने यातना शिविरों में छह लाख यहूदियों को व्यवस्थित रूप से मौत के घाट उतार दिया। हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों से अनगिनत जापानी मारे
गए और विकलांग हो गए और आने वाली पीढ़ी पर भी इसके प्रभाव देखे जा सकते है।
शक्ति संतुलन
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द्वितीय विश्व युद्ध के साथ ही विश्व पर यूरोपीय प्रभुत्व समाप्त हो गया और सत्ता का संतुलन यूएसएसआर (USSR) और अमेरिका के पक्ष में चला गया। युद्ध की उच्च लागत
के कारण इटली, जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस लगभग दिवालिया होने के कगार पर थे।
ब्रिटेन अत्यधिक अमेरिकी ऋण के नीचे दबा हुआ था जिसे उसने ‘लेंड-लीज अधिनियम’ (1941) के तहत प्रदान की गई अमेरिकी सहायता से प्राप्त किया था । युद्ध के बाद
ब्रिटेन को एक और अमेरिकी ऋण मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा । साथ ही यूरोपीय निर्यात में भी गिरावट आई ।
अमेरिका आर्थिक रूप से मजबूत था, जबकि यूएसएसआर के पास सबसे बडी सेना थी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया एक द्विध्रुवीय विश्व मे बदल गया था, जो बाद में दो
महाशक्तियों के बीच शीत युद्ध का कारण बना।