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च ां दपु र-जह जपु र (जजल -लजलतपु र, उ.

प्र) क प्र चीन जै न मांजदर और प्रजतम एां


पुर तत्वजिद ां और इजतह सक र ां के जलए बुां देलखां ड क्षे त्र सदै ि आकर्षण क केंद्र रह है । इस क्षे त्र में प्रचुर पुर तत्व सम्पद और
अनेक प्र चीन जैन और जहन्दू मांजदर प ये गए है ज जक समपषण, भक्ति, स्थ पत्य और मूजतष जनम ष ण कल के जिक स की ग थ ग ते
है । जहन्दू और जैन धमष क प्रच र-प्रस र इस क ल की मुख्य उपलक्ति कही ज सकती है । चांदेल र ज ओां ने भी जैन धमष क
सम न प्रश्रय जदय एिां ध जमषक सजहष्णुत क पररचय जदय । जैन कल और स्थ पत्य क जिक स बुां देलखां ड क्षे त्र में जैन व्य प ररय ां
और श सक ां के स जनध्य में हुआ।

च ां दपुर ग्र म उत्तरप्रदे श र ज्य के लजलतपुर जजले में क्तस्थत है | यह ग्र म पुर तत्व और अिशेर् ां के जलए जिख्य त है । च ां दपुर में
प ां च मांजदर समूह प ये गए है ज जक जैन और जहन्दू धमष से सम्बां जधत है | यह स्थ न दे िगढ़ से करीब 12 जकल मीटर की दु री पर
पूिष जदश में क्तस्थत है और दे िगढ़ से धौर ष ज ने ि ली सड़क से लगभग 1 जकल मीटर अांदर क्तस्थत है । यह ग्र म िीर ने में क्तस्थत
ह कर झ ाँ सी-मुांबई रे ल म गष के प स में क्तस्थत है । जनकटिती रे लिे स्टे शन धौर ष 5 जक.मी. की दू री पर है , तथ जह जपुर बस
स्टे ण्ड की दू री 2 जक.मी. है ।
जैन मांजदर समूह च ां दपुर ग्र म से लगभग आध जकल मीटर ब हर दजक्षण पूिष जदश में झ ाँ सी-मुांबई रे ल ल इन के प स क्तस्थत है ।
क्षे त्र लगभग िीर न जगह क्तस्थत है , कुछ झ पजड़य ां और कच्चे मक न नज़र आते है । यह ां क ई जैन पररि र नही ां रहत है । जैन
मांजदर समूह में कुछ प्र चीन जैन मांजदर, मूजतष य ां , सरदल, पुर तत्व अिशेर् प ये गए है । एक जैन मांजदर पूरी तरह से सही सल मत
अिस्थ में है , जबजक कुछ मांजदर के मांडप और अिशेर् ही बचे है । जैन मांजदर में 11िी शत ब्दी की स लहिें तीथंकर श ां जतन थ
प्रभु की 15 फ़ीट उतुां ग खडग़ सन प्रजतम जिर जम न है । इस मांजदर क प्रिे श द्व र क फी छ ट है , जह ाँ झुक कर ही प्रिे श जकय
ज सकत है । अांदर से मांजदर में श ां जतन थ प्रभु के दशषन ह ते है । श ां जतन थ प्रभु के चेहरे पर सौम्यत और श ां जत की झलक
जदख ई पड़ती है । प्रभु श ां जतन थ की भु ज एाँ घुटन ां तक लम्बी है और द य ाँ ह थ खांजडत अिस्थ में है । प्रभु के द न ां तरफ कुछ
जैन तीथंकर ां की मूजतष य ां उकेरी गयी है , सां भितः मध्यक लीन मुक्तिम आक्रमणक ररय ां ने खांजडत कर जदय है । ये छ टी जैन
मूजतष य ां खड् ग सन अिस्थ में ध्य नरत है इनके शीश खांजडत कर जदए गए है । मांजदर की ब यीां दीि र पर कुछ जैन मूजतष य
पद्म सन अिस्थ में ध्य नरत है और कुछ मूजतष य ां खड् ग सन अिस्थ में सीधी रे ख में उकेरी गयी है । मांजदर के अांदर मूलन यक
मूजतष के प स जजन श सन दे िी की मूजतष भी उकेरी गयी है । पूर जैन मांजदर पररसर ही जैन अिशेर् ,ां खांजडत मूजतष य ,ां सरदल ां और
कल कृजतय ां से अट पड़ है । कुछ खांजडत जैन मूजतष य ां क पररसर और खांजडत मांडप की दीि र के सह रे रख गय है ।
अजधकतर मूजतष य ां क जनम ष ण ल ल पत्थर से हुआ है ज जक बलुआ पत्थर है और आस नी से जमलने की िजह से बहुत यत से
उपय ग जकय गय है ।

इस स्थ न के पुर तत्व महत्व क दे खते हुए कई जिद्व न ां और पुर तत्वजिद ां ने इसे अपनी जकत ब ां में स्थ न जदय है । यह ाँ मांजदर के
ब हरी दीि र पर यक्षी अक्तम्बक , कुबे र यक्ष की मूजतष य ां उकेरी गयी है ज जक पुर त क्तत्वक दृजि से अत्यांत महत्त्वपूणष है । यक्षी
अक्तम्बक और यक्ष कुबे र की प्रजतम एाँ लगभग 10िी-11िी शत ब्दी ईस्वी की है । यक्षी अक्तम्बक की प्रजतम जद्वभु ज के रूप में
जनरूजपत की गयी है जजसके ि म भु ज में जशशु क जनरूपण जकय गय है स थ ही द यें ह थ में आम्र लुम्बी जनरूजपत है । यक्षी
अक्तम्बक आम के िृ क्ष के नीचे लजलत सन में जनरूजपत की गयी है । यक्षी अक्तम्बक के आसन के नीचे उनक ि हन जसां ह जनरूजपत
है । यक्षी अक्तम्बक के द यें भ ग में यक्ष कुबे र क जनरूपण जकय गय है ज जक लजलत सन में अिक्तस्थत है । यक्ष-यजक्षणी के स थ
भि प्रजतम ओां क भी जनरूपण भी जकय गय है । यक्षी अक्तम्बक क उल्लेख डॉ. म रुजत नांदन प्रस द जति री ने अपनी पुस्तक में
जकय है । यह ाँ क्तस्थत जहन्दू मांजदर ां में सहस्त्र जलांगेश्वर और जिष्णु मांजदर दशषनीय है । इस मांजदर के आस प स और भी कई इम रत ,ां
मांजदर , स्तू प ,ां और ब िजड़य ां के अिशेर् जबखरे पड़े है , जजन्हे पुर तत्व जिभ ग सहे जने क प्रयत्न कर रह है ।
यह ाँ पर भी पुर तत्व जिभ ग क ब डष लग हुआ है ज जक इस स्थ न के पुर तत्व महत्व क घ जर्त करती है , परन्तु, इस स्थ न की
सु रक्ष के जलए उनकी और से क ई चौकीद र मौजूद नही ां है । प स ही में एक धमषश ल भिन भी बन हुआ है जजसक सां च लन
लजलतपुर की जैन सम ज के द्व र जकय ज त है । यूां त ये मांजदर पुर तत्व जिभ ग की दे खरे ख में है , जकन्तु यजद कहे जक जैन
सम ज ही इस स्थ न की दे ख रे ख कर रही है त गलत नही ां ह ग | इस स्थ न की पुर तत्व सम्पद की सु रक्ष और सां रक्षण के जलए
ध्य न दे ने की जरूरत है ।

लजलतपुर की जैन सम ज ने क्षे त्र के जिक स के जलए अनेक य जन यें घ जर्त की है | मांजदर सजमजत द्व र इसी मांजदर के प स रे लिे
ल इन से कुछ दू री पर छह एकड़ जमीन भी खरीदी गई है । कुछ िर्ष पहले श्रीरणछ रध म के प स बेति नदी से जनकली
श्रेय ां सन थ प्रभु की प्र चीन प्रजतम क लेकर यह ाँ एक भव्य मांजदर बन ने की य जन है | पुर तत्व जिभ ग के जनयम ां के अनु रूप
मांजदर की स्थ पन की ज एगी। इसके अल ि श ां जतन थ भगि न की लगभग 21 फुट ऊांची निीन मूजतष भी स्थ जपत ह गी। य जत्रय ां
के जलए धमषश ल , आश्रम के स थ जशक्ष ि स्व स्थ्य की व्यिस्थ ह गी। 1 य 2 िर्ष पूिष यह ाँ एक जैन आच यष ने भी च तु म ष स
जकय थ , जजससे क्षे त्र की क्तस्थजत में कुछ सु ध र हुआ है |

क्षे त्र क प्रच र प्रस र ह न च जहए और आसप स के तीथो में प स्टर आजद लग ने च जहए । कृपय आप अजधक से अजधक सां ख्य
में इस स्थ न के दशषन कीजजए जब भी आप लजलतपुर य दे िगढ़ पध रे । और स्थ नीय लजलतपुर के ल ग क त सप्त ह में य
महीने में य कभी कभी ज ते रहन च जहए । हम सभी क सहय ग करन च जहए इस क्षे त्र के जिक स के जलए और ऐसे ही कई
क्षे त्र ां के जिक स के जलए ।

Article By:

Manish Jain, Udaipur, Rajasthan. +91-9461872124

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