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005 Ami Jharat Bigsat Kanwal PDF
005 Ami Jharat Bigsat Kanwal PDF
मौजूद ह- --जो हए
ु जो ह- , जो ह;गे। एक गु
म? सारे गु
मौजूद ह- ।
भरम अंधेरा िमट गया, पारसा पद िनरबान।।
एक श'द भी कान म? पड़ जाए स^य का, एक रोशनी क5 करण ू3वS हो जाए तु[हारे
अंधकारपूण मह म?, तु[हारे Mदय म? एक चोट पड़ जाए, तु[हारा Mदय झंकार उठे --एक बार
िसफ, बस काफ5 है । भरत अंधेरा िमट गया...उसी bण िमट जाता है सारा अंधकार--ॅम
का, माया का, मोह का। परसा पद िनरबान। उसी bण उस महत पद का छूना हो जाता
है , हाथ म? आ जाता है , ःपश हो जाता है िनवाण का।
कल के नीरस श'द; म? करनी है बात आज क5,
अिभHय3T भावना अपनी, भाषा म? समाज क5--
है 3ववश कंतु कर दे ता क3व को उसका ह8 ःवर,
क5 हवा म? tास न िलया...सतगुर संग न संचरा, रामनाम उर नाहं ...और Aजसके Mदय म?
दसरा
ू ूवचन; दनांक १२ माच, १९७९; ौी रजनीश आौम, पूना
भगवान! णमो णमो भगवान, फर-फर भूले को, चब म? पड़े को श'द क5 गूज
ं से, जागृित
क5 चोट से, Fािनय; क5 HयाZया से; 3ववेक ःमृित, सुरित, आ^म-ःमरण और जागृित
क5 गूज
ं से फर च(का दया भगवान! णमो णमो भगवान!
मानव जीवन क5 संत; ने इतनी महमा Nय; गायी है ?
जीवन स^य है या अस^य?
भगवान! बिलहार8 ूभु आपक5
अंतर-Yयान दलाय।
पहला ू: भगवान! णमो णमो भगवान! फर-फर भूले को, चब म? पड़े को--श'द क5 गूज
ं
से, जागृित क5 चोट से, Fािनय; क5 HयाZया से; 3ववेक, ःमृित सुरित, आ^म-ःमरण
और जागृित क5 गूज
ं से, फर च(का दया भगवान! णमो णमो भगवान!
मोहन भारती! च(कना शुभ है , लेकन च(कना काफ5 नह8ं है । च(ककर फर सो जा सकते हो।
च(ककर फर करवट ले सकते हो! फर गहर8 नींद, फर अंधेरे क5 लंबी ःवiन याऽा शुR हो
सकती है ।
च(कना शुभ जRर है , अगर च(कने के पीछे जागरण आए। लेकन िसफ च(कने से राजी मत
हो जाना; मत सोच लेना क च(क गए तो सब हो गया। ऐसा Aजसने सोचा फर सो
जाएगा। Aजसने सोचा क च(क गया तो बस सब हो गया, अब करने को Nया बचा--उसक5
नींद सुिनAXत है ।
और Yयान रखना, जो बार-बार च(ककर सो जाए, फर धीरे -धीरे च(कना भी उसके िलए
Hयथ हो जाता है । यह उसक5 आदत हो जाती है । च(कता है , सो जाता है । च(कता है , सो
जाता है ।
तुम कुछ नए नह8ं हो, कोई भी नया नह8ं है । न मालूम कतने बुK;, न मालूम कतने
Aजन; के पास से तुम गुजरे होओगे। और न मालूम कतनी बार तुमने कहा होगा: णमो णमो
भगवान! फर-फर भूले को, चब म? पड़े को चौका दया! और फर तुम सो गए और चल
पड़ा वह8...फर वह8 ःवiन, फर वह8 आपाधापी, फर वह8 मन का 3वAbq Hयापार।
का। आंख पर भरोसा नह8ं आया उस मोहUले के लोगो को। गर8ब; का मोहUला। झोपड़े थे
ू -फूटे । वह गर8ब आदमी तो एकदम आकर सॆाट के चरण; म? िसर झुकाया और उसने
टटे
कहा क आFा हो महाराज, आपको यहां तक आने क5 Nया जRरत थी? खबर भेज द8
होती, म- महल हाAजर हो जाता।
सॆाट ने कहा क म- आया हंू सामाियक खर8दने। महावीर ने कहा है क तुझे सामाियक
उपल'ध हो गई है । बेच दे और जो भी तू मूUय मांगे, मुंह--मांगा मूUय दे ने को राजी हंू ।
जैसे महावीर हं से थे, वैसे ह8 वह गर8ब आदमी भी हं सा। उसने कहा: महावीर ने आपसे खूब
मजाक कया। कुछ चीज? ह- जो क5मत से िमलती ह- ; कुछ चीज? ह- Aजनका क5मत से कोई
संबध
ं नह8ं। सामाियक कुछ वःतु थोड़े ह8 है क म- तु[ह? दे दं ?
ू अनुभव है । जैसे ूेम अनुभव
है , कैसे दे सकते हो? यह तो आंतरकतम अनुभव है ; इसे बाहर लाया ह8 नह8ं जा सकता।
मेर8 गद न चाहए तो ले ल?। मुझे खर8दना हो तो खर8द ल?। म- चल पड़ता हंू , आपका
सेवक, पैर दबाता रहंू गा। लेकन Yयान नह8ं बेचा जा सकता। नह8ं क म- बेचना नह8ं चाहता
हंू , बAUक ःवभावतः Yयान हःतांतरत नह8ं हो सकता है ।
मूUयवान वे चीज? ह- जो बेची नह8ं जा सकतीं। ूेम, Yयान, ूाथना, भ3T, ौKा--ये बेचने
वाली, 3बकने वाली चीज? नह8ं ह- । ये चीज? ह8 नह8ं ह- । ये अनुभूितयां ह- । और केवल मनुंय
ह8 इन अमोलक अनुभिू तय; को पाने म? समथ है । संत; ने मनुंय क5 महमा गाई है ताक
तु[ह? याद दलाया जा सके क तुम कतनी बड़8 संपदा के मािलक हो सकते हो और हए
ु नह8ं
अब तक। अब और कतनी दे र करनी है ?
है कसका यह मौन िनमंऽण?
द8घ tास क5 पीड़ाओं का
है साॆा_य िछपा अंतर म?,
मूक िमलन क5 मूक 3पपासा
का खग िनत उड़ता अंबर म?,
भरो Hयथा म? आज ूलोभन,
है कसका यह मौन िनमंऽण?
उस अतीत क5 कथा कहानी
ह8 सुिधय; का नीड़ बन गई,
अथह8न शैशव क5 बात?
मेरे उर क5 पीर बन गई,
सुिध-सपन; पर करो िनयंऽण,
नह8ं हो पाए। और सुनने वाले िशंय ह8 नह8ं बन पाए, िसफ 3वGाथu रह गए। यहां
3वGािथय; क5 जगह ह8 नह8ं है । म- कोई िशbक नह8ं हंू और मेरे पास कोई िशbा का शाk
नह8ं है । म- खुद एक द8वाना हंू , खुद Aजसने जी भर के पी है ! मुझ से दोःती बनाओगे तो
मेरे साथ लड़खड़ा कर चलना सीखना होगा! इसके बीना कोई उपाय नह8ं है ।
इसिलए कैलाश गोःवामी, कांित भgट ठcक ह8 कहते ह- क कृ ंणमूित के पास बु3Kम:ा का
अक इकgठा होता है । मगर बु3Kम:ा का अक जरा भी मूUय का नह8ं है , दो कौड़8 उसका
मूUय नह8ं है ।
कोई पंिह वषw तक मेरे पास भी उसी तरह वे लोग इकgठे होते थे, फर मुझे उनके साथ
छुटकारा करने म? बड़8 मेहनत करनी पड़8। वह8 बु3Kम:ा का अक मेरे पास इकgठा होता था।
जो लाग कृ ंणमूित को सुनने जाते ह- वे ह8 मुझे भी सुनने आते थे। कर8ब-कर8ब वे ह8 लोग!
मुझे उनसे छुटकारा पाने के िलए बड़8 मेहनत करनी पड़8 बामुAँकल उन से छुटकारा कर
पाया। Nय;क उ2ह;ने कृ ंणमूित का जीवन खराब कया। उ2ह;ने कृ ंणमूित के जीवन से जो
लाभ हो सकता था वह नह8ं होने दया। सार8 बात? बस बु3K क5 हो कर रह गई थीं। और म-
नह8ं चाहता था क मेरे पास भी बस वह8 बात? चलती रह? ।
और एक कठनाई होती है , अगर तु[हारे पास एक ह8 तरह क5 जमात इकgठc हो जाए तो
मुAँकल हो जाती है । वह जो भाषा समझती है उसी भाषा म? तु[ह? बोलना पड़ता है । म-
भगवान! उपिनषद कहते ह- क स^य को खोजना खग क5 धार पर चलने जैसा है । संत
दरया कहते ह- क परमा^मा क5 खोज म? पहले जलना ह8 जलना है । और आप कहते ह- क
गाते नाचते हए
ु ूभु के मंदर क5 और आओ। इन म? कौन सा 3Sकोण स[यक है ?
वो नगमा बुलगुले रं गी नवा इक बार हो जाए।
कली क5 आंख खुल जाए चमन बेदार हो जाए।।
भगवान! आपको सुनता हंू तो लगता है क पहले भी कभी सुना है । दे खता हंू तो लगता है
क पहले भी कभी दे खा है । वैसे म- पहली ह8 बार यहां आया हंू , पहली ह8 बार आपको सुना
और दे खा है । मुझे यह Nया हो रहा है ?
आप कुछ कहते ह- , लोग कुछ और ह8 समझते ह- ! यह कैसे
केगा?
आपका मूल संदेश Nया है ?
पहला ू: भगवान! उपिनषद कहते ह- क स^य को खोजना खग क5 धार पर चलने जैसा
है । संत दरया कहते ह- क परमा^मा क5 खोज म? पहले जलना ह8 जलना है । और आप
कहते ह- क गाते नाचते हए
ु ूभु के मंदर क5 और जाओ। इनम? कौन सा 3Sकोण स[यक
है ?
आनंद मैऽेय! स^य के बहत
ु पहलू ह- । और स^य के सभी पहलू एक ह8 साथ स^य होते ह- ।
उन म? चुनाव का सवाल नह8ं है । Aजस ने जैसा दे खा उस ने वैसा कहा।
उपिनषद क5 बात ठcक ह8 है , Nय;क स^य के माग पर चलना जोAखम क5 बात है । बड़8
जोAखम! Nय;क भीड़ अस^य म? डु बी है । और तुम स^य के माग पर चलोगे तो भीड़ तु[हारा
3वरोध करे गी। भीड़ तु[हारे माग म? हजार तरह क5 बाधाएं खड़8 करे गी। भीड़ तुम पर हं सेगी,
तु[ह? 3वAbq कहे गी। भीड़ म? एक सुरbा है ।
स^य के माग पर चलनेवाला Hय3T अकेला पड़ जाता है । भीड़ उस से नाते तोड़ लेती है ,
उस से संबध
ं 3वAnछ2न कर लेती है । समाज उसे शऽु मानता है । नह8ं तो जीसस को लोग
सूली दे ते क मंसूर क5 गद न काटते? वे तु[हारे जैसे ह8 लोग थे Aज2ह;ने जीसस को सूली द8
और Aज2ह;ने मंसूर क5 गद न काट8। अपने हाथ; को गौर से दे खोगे तो उनम? मंसरू के खून
यह मशाल जलेगी
पये पर चोट पड़े तो होश न आ जाए। थोड़ा-थोड़ा होश आया क कह8ं सुबह बदल न जाए।
तो कुछ ूमाण होना चाहए। चार; तरफ दे खा क Nया ूमाण हो सकता है । दे खा एक शंकरा
जी का सांड िमठाई क5 दकान
ु के सामने ह8 बैठा हआ
ु है । उसने कहा: ठcक है । यह8 दकान
ु
है ...। एक तो अपने को भी याद होना चाहए क कस दकान
ु पर...नह8ं अपन ह8 सुबह कह8ं
और कसी क5 दकान
ु पर पहंु च गए तो झगड़ा-झांसा खड़ा हो जाए। यह8 दकान
ु है ।
सुबह आया और आकर पकड़ ली दकानदार
ु क5 गद न और कहा: हद हो गई! मुझे तो रात ह8
शक हआ
ु था। मगर इतने दरू तक म-ने भी न सोचा था क तू धंधा ह8 बदल लेगा आठ आने
के पीछे । कहां हलवाई क5 दकान
ु , कहां नाईवाड़ा। वUद8यत भी बदल ली! आठ आने के पीछे !
नाई तो कुछ समझा ह8 नह8ं। उसने कहा: तू बात Nया कर रहा है ! कहां का हलवाई, म-
सदा का नाई!
उसने कहा: तू मुझे धोखा न दे सकेगा। दे ख वह सांड, अभी भी अपनी जगह बैठा हआ
ु है !
म- िनशान लगाकर गया हंू ।
अब सांड का कोई भरोसा है ! बैठा था हलवाई क5 दकान
ु के सामने सांझ को, सुबह बैठ गया
नाई क5 दकान
ु के सामने। तुम छाया को पकड़ते हो, छाया िछटकती है । इधर पकड़े उधर
िछटक5 आज है , कल नह8ं है । तु[हार8 Aजंदगी Hयथ क5 आपाधापी म? Hयतीत हो जाती है --
छायाओं को पकड़ने म?।
ःवामी राम ने िलखा है क म- एक घर के सामने से िनकलता था, एक छोटा बnचा अपनी
छाया को पकड़ने क5 कोिशश कर रहा था। सुबह थी, सद सुबह! मां काम म? लगी थी,
बnचा आंगन म? धूप ले रहा था। उसको अपनी छाया दखाई पड़ रह8 थी। तो वह छाया को
पकड़ने के िलए आगे बढ़े , लेकन खुद आगे बढ़े तो छाया भी आगे बढ़ जाए। Aजतनी बु3K
बnचे म? हो सकती है , सब तरक5ब? उसने लगायी। इधर से चNकर मारकर गया, उधर से
चNकर मारकर गया, लेकन जहां से भी चNकर मारकर जाए वह छाया उसके साथ हट
जाए। रोने लगा। उसक5 मां ने उसे बहत
ु समझाया।
राम खड़े होकर दे खते रहे । यह खेल तो वह8 है जो पूरे संसार म? हो रहा है , इसिलए राम
खड़े होकर दे खते रहे । उसक5 मां ने बहत
ु समझाया क पागल ऐसे छाया नह8ं पकड़8 जा
सकती! छाया तो हट ह8 जाएगी। मगर छोटे बnचे को कैसे समझाओ? वह कहे म- तो
पकडू ं गा म- पकड़कर रहंू गा, कोई तरक5ब होनी चाहए।
आAखर राम आगे बढ़े आगे बढ़े । उ2ह;ने उस बnचे क5 मां को कहा क तू समझा न सकेगी,
यह हमारा धंधा है । हम यह8 काम करते ह- । लोग; को यह8 समझाते ह- क कैसे।
उस बnचे का हाथ िलया, पूछा उससे: तू Nया पकड़ना चाहता है । उसने कहा क वह छाया
का िसर पकड़ना है । उस बnचे का हाथ पकड़कर उसके िसर पर रख दया। बnचे के ह8 िसर
नया मनुंय
भगवान! मेरे आंसू ःवीकार कर? । जा रह8 हंू आपक5 नगर8 से। कैसे जा रह8 हंू , आप ह8 जान
सकते ह- । मेरे जीवन म? दख
ु ह8 दख
ु था। कब और कैसे Nया हो गया, जो म- सोच भी नह8ं
सकती थी; अंदर बाहर खुशी के फHवारे फूटे रहे ह- ! आपने मेर8 झोली अपनी खुिशय; से भर
द8 है , मगर Mदय म? गहन उदासी है और जाने का सोचकर तो सांस
कने लगी ह- । आप
हर पल मेरे रोम-रोम म? समाए हए
ु ह- । मुझे बल द? क जब तक आपका बुलावा नह8ं आता,
म- आपसे दरू रह सकूं।
म- परमा^मा को पाना चाहता हंू , Nया करना आवँयक है ?
भगवान! आपके ूवचन म? सुना क एक जैन मुिन आपक5 शैली म? बोलने क5 कोिशश करते
ह- तोते क5 भांित। पर यह मुिन ह8 नह8ं, बहत
ु -बहत
ु से महानुभव; को यह करते दे ख रहे ह- ।
चुपके-चुपके वे आपक5 कताब? पढ़ते ह- , फर बाहर घोर 3वरोध भी करते ह- । और बुरा तो
पए ह- , ब-क
पए दे ने को राजी होता है । अगर तु[हारे पास
पए नह8ं ह- , ब-क मुंह फेर
लेता है --क राःता लो, कह8ं और जाओ। Aजसक5 राख है बाजार म?, उसको ब-क
पए दे ता
है । उसको जRरत नह8ं है
पए क5, इसीिलए
पए दे ते ह- । ये बड़े अजीब िनयम ह- , मगर
यह8 िनयम ह- ! Aजसको
पए क5 कोई जRरत नह8ं है , ब-क उनके पीछे घूमता है । ब-क के
मैनेजर खुद आते ह- क कुछ ले ल?, फर कुछ हमार8 सेवा ले ल?। और Aजसको जRरत है
वह ब-क; के चNकर लगाता है , उसे कोई दे ता नह8ं।
परमा^मा का िनयम भी कुछ ऐसा ह8 है तुम अगर संतुS हो, परमा^मा कहता है ले ह8 लो,
मुझे, आ जाने दो मुझे भीतर। तु[हारे संतोष म? अपना घर बनाना चाहता है ।
संतोष म? ह8 तुम मंदर होते हो और मंदर का दे वता jार पर दःतक दे ता है , क आ जाने
दो। अब तुम राजी हो गए। अब तुम मंदर हो, अब म- आ जाऊं और 3वराजमान हो जाऊं।
िसंहासन बन चुका, अब खाली रखने क5 कोई जRरत नह8ं है ।
लेकन तुम हो असंतोष क5 लपट; से भरे हए।
ु मंदर तो है ह8 नह8ं; तुम एक िचता हो, जो
धू-धूकर जल रह8 है । परमा^मा आए तो कहां आए?
तुम कहते हो: म- परमा^मा को पाना चाहता हंू !
Nय; पाना चाहते हो? जरा कारण; म? खोजो। अजीब-अजीब कारण ह- । कसी क5 पी मर
गयी, वे परमा^मा क5 तलाश म? लग गए। कसी का दवाला िनकल गया, मुंड़ मुड़ाए भये
सं2यासी! अब दवाला ह8 िनकल गया है तो अब करना भी Nया है दकान
ु पर रहकर! अब
सं2यासी होने का ह8 मजा ले लो!
ककर दे ख लो, जांच कर ले क पीछे कोई है भी फटकारने वाला, कोड़ा मारने वाला?
तेली और भी मुःकुराया, और भी लंबी मुःकान। उसने कहा: तुम समझे नह8ं। तुमने Nया
मुझे 3बलकुल बुKू समझा है ? अगर ऐसा होता तो हम बैल होते और बैल तेली होता। तुमने
हम? समझा Nया है ? कोई धंधा ऐसे ह8 कर रहे ह- ! दे खते नह8ं बैल के गले म? घंट8 बांध द8
है । घंट8 बजती रहती है जब तक बैल चलता है । जैसे ह8
के बnचू क म- उचका। और दया
एक फटकारा और हांका। उसको पता ह8 नह8ं चल पाता क म- नह8ं था। घंट8 सुनता रहता
हंू । जब तक बजती रहती है तब तक म- भी िनAXत। जैसे ह8 घंट8
क5, इधर घंट8
क5
नह8ं क म-ने आवाज द8 नह8ं, क म-ने हांका नह8ं। तो भेद नह8ं पड़ता उसे, कभी पता नह8ं
चलता।
मगर दाशिनक भी दाशिनक, बस उसने कहा कहा एक ू और: बैल कभी यह भी तो कर
सकता है , खड़ा हो जाए और िसर को हलाहलाकर घंट8 बजाए? अब थोड़ा तेली िचंितत
हआ।
ु उसने कहा: जरा धीरे महाराज, कह8ं बैल न सुन ले! और आगे से तेल और कह? ले
िलया करना। दो पैसे का तो तेल ले रहे हो और Aजंदगी मेर8 खरा कए दे रहे हो। ऐसी बात?
खतरनाक ह- । नNसलवाद8 मालूम होते हो या Nया बात है ? क[यूिनःट हो? बैल; को भड़काते
हो! शम नह8ं आती क मेरा ह8 तेल पीते हो और मुझे ह8 से दगा कर रहे हो?
बैल भी कभी-कभी सोच सकते ह- । तेली ठcक कह रहा है । अगर ऐसे तुम क[यूिनःट
मेनीफेःटो पढ़ते रहो बैल के सामने, तो बैल को भी आAखर सोच आ सकता है क बात तो
जंचती है । लेकन आदमी सोचता ह8 हनीं, 3वचारता ह8 नह8ं, Aजए चला जाता--है बस कोUहू
के बैल क5 तरह। और न कसी ने तु[हार8 आंख पर पAgटयां बांधी ह- , िसवाय क तुमने
ःवयं बांध ली ह- । और न तु[हारे गले म? कसी ने घंट8 बांधी है , िसवाय इसके तुमने खुद
लटका ली है । Nय;क और लोग भी लटकाए ह- ; घंट8 बजती है , अnछc लगती है । और और
लोग भी आंख; पर पAgटयां बांध? ह- तो तुमने भी बांध ली ह- , Nय;क 3बना पAgटयां बांध
ठcक नह8ं। पAgटयां सुरbा है । अजीब-अजीब बात? लोग; म? चलती ह- ।
कल म- एक इितहास क5 कताब पढ़ रहा था। आज से सौ साल पहले, जब पहली दफा
बाथ-टब बना अमर8का म? तो अमर8का के एक रा_य ने कानून पाबंद8 लगा द8। क कोई
बाथ-टब अपने घर म? नह8ं रख सकता, Nय;क इस म? नहाने से हजार; तरह क5 बीमारयां