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एस के एस वर्ल्ड स्कूल

कक्षा -7 ववषय – हिन्दी


भाषा सेतु पाठ -4,5 ( प्रश्नोतर )

पाठ -4 ( पंच-परमेश्वर )
(क) जायदाद की रजजस्ट्री होते ही जम्
ु मन का व्यवहार बदल गया। इससे जम्
ु मन के स्ट्वभाव की क्या
ववशेषता प्रकट होती है?
उत्तर
जायदाद की रजजस्ट्री होते ही जुम्मन ने खाला की देखभाल व परवाह करना छोड़ ददया । इससे जुम्मन के
स्ट्वार्थी और धूतत स्ट्वभाव का पता चलता है।

(ख) “मैं अलग पका-खा लूँ ग


ू ी” खाला ने ऐसा क्यों कहा?
उत्तर:
समय पर खाना न ममलने से खाला ने परे शान होकर ऐसा कहा ।

(ग) जुम्मन ने खाला को रोटी-कपड़ा देना क्यों कबल


ू ककया र्था?
उत्तर:
जुम्मन ने खाला को रोटी-कपड़ा देना इसमलए कबूल ककया र्था, क्योंकक खाला ने अपनी जायदाद जुम्मन के
नाम पर रजजस्ट्री कर दी र्थी।
(घ) फैसला सुनते ही जुम्मन सन्नाटे में क्यों आ गए?
उत्तर:
अपने ममत्र अलगू चौधरी से अपने खखलाफ फैसले की उसे बबलकुल उम्मीद नही र्थी । इसमलए अपने
खखलाफ फैसला सुनते ही जुम्मन सन्नाटे में आ गए।

(ङ) सरपंच का आसन ग्रहण करते हुए जुम्मन में कौन-सा भाव पैदा हुआ?
उत्तर:
सरपंच का आसन ग्रहण करते हुए जुम्मन में अपनी नैततक जजम्मेदारी का भाव पैदा हुआ।

पाठ -5 ( सररता )

प्रश्न -1 ‘सररता’ कववता का भावार्थत मलखखए |


यह सरल कववता गोपाल मसंह द्वारा रचचत मन को शांतत पहुचाने वाली कववता है | कवव ने इसमें नदी के
जल की खबू बयों का बखान ककया है | नदी कैसे बफत के पहाड़ से तनकल कर धीरे धीरे मचल कर उतरती है
और दध
ू की सफेद धरा सामान लगती है | चंचल चाल और तनमतल भाव से वह आगे बढती है | न जाने
ककतने पवततों को पार कर अपने दृढ संकल्प से लगातार उतरती है | बफत के पहाड़ों और घने जंगलों के बीच
जहा कोई न रहता यह वह अपने छल छल आवाज़ से मंगल करती है | ऊचे पवतत से उतरती और रस्ट्ते में
बड़े बड़े पत्र्थरों से टकराती हुई शोर मचाती है और सारे कंकडों पत्र्थरों से होकर बहती चली जाती है | बफत
वपघल कर नदी बन जाता है और इसकी धार एक र्थके मस
ु ाकफर की प्यास बझ
ु ाती है | धप
ू में जलती कफर
भी तनमतल, स्ट्वच्छ और शीतल यह यग
ु ों तक बहती है |

प्रश्न – 2 ) तनम्न पंजक्तयों की सप्रसंग व्याख्या कीजजए|


यह लघु सररता————————————-का बहता जल॥

संदभत – ‘यह पद्यखंड हमारी पाठ्यपस्ट्


ु तक ‘भाषा सेत’ु के ‘सररता’ नामक पाठ से मलया गया है। इसके
रचतयता कवववर श्री गोपाल मसंह ‘नेपाली’ हैं।

प्रसंग – प्रस्ट्तुत कववता में कवव ने सररता ( नदी ) की ववशेषताओं का वणतन ककया

व्याख्या – कवव ने इसमें छोटी नदी के बहते हुए जल की खूबबयों का बखान ककया है | कवव कहता है कक
इस छोटी नदी का बहता हुआ जल बहुत अचधक शीतल यानी ठं डा व तनमतल अर्थातत स्ट्वच्छ है । दहमालय से
दहम से बहकर आनेवाला यह पानी दध
ू जैसा स्ट्वच्छ, तनमतल है। यह जल कल-कल की ध्वतन में गान करते
हुए, चंचल चाल और तनमतल भाव से वह आगे बढती है | नदी का बहता हुआ जल मानो शरीर की चंचलता
और मन की लगन प्रदमशतत करता हो। ऐसा है इस छोटी नदी में प्रवादहत होता हुआ जल।

प्रश्न -3 लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर


(क) सररता का जल कहाूँ से आता है ?
उत्तर:
सररता का जल पवतत की ऊूँची बफत की (बफीली) चोदटयों से आता है।

(ख) सररता का जल रात-ददन बहते हुए कौन-सा कायत करता है?


उत्तर:
सररता का जल रात-ददन बहते हुए पथ्
ृ वी के धरातल को धोने का कायत करता है ।

(ग) पचर्थक सररता के जल से ककस प्रकार सख


ु पाता है?
उत्तर:
पचर्थक सररता के शीतल जल को पीकर तजृ प्त पाते हुए सख
ु पाता है ।

(घ) कवव ने जननी के अंत:स्ट्र्थल को कोमल क्यों कहा है?


उत्तर:
धरती के भीतरी भाग (अंत:स्ट्र्थल - हृदय) में जल के अववतछन्न व अजस्र जल स्रोत बहते हैं । अतः कवव ने
जननी (धरती) को कोमल कहा है।

प्रश्न -4 नीचे मलखी पंजक्तयों का भाव स्ट्पष्ट करो-

(क) ‘तन का चंचल मन का ववह्वल, यह लघु सररता का बहता जल’


(ख) “ददन भर, रजनी भर, जीवन भर, धोता वसुधा का अंत: स्ट्र्थल’
(ग) “तनत जलकर भी ककतना शीतल’
(घ) ‘बहता रहता यग
ु -यग
ु अववरल’
उत्तर-
(क) ‘तन का चंचल मन का ववह्वल, यह लघु सररता का बहता जल
भावार्थत:
नदी का जल तनरं तर प्रवादहत होता हुआ आगे बढ़ता रहता है।, इसी कारण नदी के जल को ‘तन का चंचल,
मन का ववह्वल’ कहा गया है।

(ख) “ददन भर, रजनी भर, जीवन भर, धोता वसुधा का अन्तस्ट्तल’
भावार्थत:
सारा ददन सारी रात सारा जीवन यह धरती का हृदय धोता रहता है।

(ग) “तनत जलकर भी ककतना शीतल’


भावार्थत:
यह तनरं तर पथ्
ृ वी के अंदर के ताप व और सूयत की ककरणों से आते ताप को सहकर भी अत्यचधक ठं डा है ।
(घ) ‘बहता रहता युग-युग अववरल’
भावार्थत:
यह स्ट्वच्छ जल युग-युग से तनरं तर बहता चला आ रहा है।

(घ) – दो-दो पयातयवाची शब्द मलखो- सररता, पवतत, जल, वसुधा


उत्तर-
सररता – नदी, तरं चगणी।
पवतत – पहाड़, शैल।
जल – नीर, समलल।
वसध
ु ा – धरा, भमू म।

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