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आज भी तुलसी दास एक पहेली ह

 Prabhat Ranjan  9 mins ago  Featured, लेख

कल महाक व तुलसीदास क जयंती मनाई जा रही थी। ेम कुमार म ण का यह लेख कल पढ़ने को मला। मोद रंजन ने एक प
ु मेल म

साझा कया था। आप भी प ढ़ए। ेम कुमार म ण के लेखन का म पहले से ही क़ायल रहा ँ और क़ायल हो गया-

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क व तुलसीदास का ज म,जीवन,ज म थान,वय और यहां तक क उनक जा त आज भी एक पहेली है. पहेली बने रहने के कुछ लाभ ह.
और ये लाभ उस न हत वाथ वाले तबके को ही मल सकते ह, जो तुलसी और उनके सा ह य के मनमाने अथ स े षत करता आ रहा है.

तुलसी - वषयक वै ा नक अ ययन क ज रत इस लए भी है क इस से भ -का वषयक अनेक ां तयां ख़ म हो सकती ह. वमश और


सोच के नए गवा खुल सकते ह. इस लए यह आव यक तीत होता है क इस वषय पर समु चत यान दया जाय.

भ -आंदोलन के थम मह वपूण क व कबीर पर संतोषजनक काय ए ह,और नरंतर हो भी रहे ह. अनेक वदे शी व ान , जन म

यूरोपीय व ान क सं या अ धक है, ने कबीर पर उ लेखनीय काय कये ह. मेरी जानकारी के अनुसार तुलसीदास पर इस तरह से काय नह
ए ह. इसका कारण यह भी है क वैचा रक तर पर कबीर के सरोकार अ धक मानवीय और ापक ह, और इस कारण उ ह ने पूरी नया

को भा वत कया है. यह हक कत है क भारत े से प म बु के बाद सबसे अ धक कबीर ने प मी जगत को आक षत कया

है. ले कन इस लेख म मुझे तुलसीदास क चचा करनी है. वशेष कर उनके जीवन से जुड़े त य क , जनम थम या गहरे अंत वरोध
दखते ह. अंत वरोध कबीर वषयक अ ययन म भी थे, ले कन उसे पूणतः तो नह , ले कन ब त अंश तक दे शी - वदे शी शोधा थय ने प

कर दया है,सुलझा लया है. जैसे कबीर के जीवन को लेकर अब कसी को म नह है क वह एक सौ बीस साल जए. नयी जानका रय

( लडा हेस और सुकदे व सह – बीजक ऑफ़ कबीर ,ऑ सफ़ोड यू नव सट ेस ) के अनुसार उनका जीवन काल ब त सं त (ज म

1398 ई. और मृ यु 1448 ; यानी कुल पचास साल ) था. इसी तरह उनके जीवन के अ य पहलु के वषय म अ धक शोध पूण और
व सनीय जानकारी हमारे पास उपल ध है. 
ले कन तुलसीदास के जीवन को लेकर आज भी ब त अ प ता ,उधेड़ -बुन और अटकलबा जयां ह. जैसे उनक आयु को ही ली जए. ऐसी

मा यता है क वह एक सौ छ बीस (126) वष जी वत रहे. उन पर काम करने वाले अ धकांश व ान ने इसे वीकार लया है. इसके समथन
म दलील भी द गयी ह. वे नह समझते इससे तुलसी को दे व व तो मल जाता है, ले कन उनक व सनीयता कमजोर हो जाती है. तुलसी

इस प म अभागे ह क उ ह व ान शोधाथ और आलोचक कम, भ अ धक मले. भ अपने इ म दै वी आभा आरो पत करते रहते ह.

भ से बहस नह क जानी चा हए; ले कन कसी भी वै ा नक- -संप अ येता को यह या अटपटा नह लगता? शायद ही आने वाली

पी ढ़यां इन अनाप -शनाप और ग -म योर पर यक न करे. इस लए मेरी समझ से यह ज री लगता है क शी ताशी इन ब पर


शोध और अ ययन से एक व सनीय थ त बनाई जाय. अ यथा आने वाला समय हम शायद मुआफ नह करेगा.

तुलसीदास के ज टल जीवन क न य ही एक ज टल कहानी होगी. सामा य प से जो च लत मा यता है उसके अनुसार उनका ज म

व म स वत 1554 और मृ यु व म स वत 1680 म आ था. यह अव ध 126 वष क है. उनका ज म थान उ र दे श के च कूट जले


का राजापुर गाँव माना गया है. ले कन एक अ य मा यता के अनुसार तुलसीदास का ज म थान वतमान कासगंज के पास ( जला एटा ) का

सोर गाँव है, जसे सूकरखेत या शूकर े भी कहा गया है. एक सोर या शूकर े ग डा जले म भी है, और इसम राजापुर गाँव भी

अव थत है. इन सब के बीच यह तय करना मु कल है क इनम तुलसी का ज म - ाम कौन -सा है. ज म वष के बारे म भी एक और मा यता

स वत 1511 -1623 क है. इसके अनुसार भी उनक आयु 112 वष बनती है. हाँ , यसन का अनुमान अ धक व सनीय है, जसमे उनका
ज मवष स वत 1589 माना गया है. मृ यु स वत 1680 म ई है, तो इसके अनुसार उनक आयु 91 साल बनती है. मृ यु -वष तो नह ,

ले कन मृ यु - थल के बारे म सब एकमत ह क उनक मृ यु वाराणसी के अ सी मोह ले म ई.

तुलसीदास वषयक अ ययन का पार प रक आधार नाभादास ( स वत 1583 -1639 ) वर चत भ माल पु तक है, जनम तुलसीदास के

स ब ध म छह पं याँ ह. स वत 1712 म कसी यादास ने भ माल क एक ट का लखी – ‘भ रासबो धनी’. यादास का समय

तुलसीदास का समय नह है. ले कन उ होने नाभादास क छह पं य को बढ़ा कर यारह कर दया. पछली सद म 1920 ई. के इद - गद
दो कताब और कट . बेनीमाधवदास क एक कताब आयी -‘ मूल गोसा च रत ‘, जसे स वत 1620 क रचना बतलाया गया. सरी

कताब दसानी या भवानीदास ल खत ‘गोसा च रत ‘ है. इसी तरह 1950 ई. म एक कताब मलती है -‘गौतम च का’ , जसके लेखक

कृ णद म ह , यह कताब स वत 1624 क लखी बतलायी गयी. यह कहा गया क लेखक कृ णद के पता तुलसी दास के म थे .

उपरो तमाम पु तक ने कोई नयी व सनीय जानकारी नह द , एक सरे का मौन समथन कया और साथ ही कुछ नए वतंडे खड़ा कये.

इससे इन सब के बीच कसी कु टल घालमेल का भी याल बनता है. इन सब कारण से तुलसीदास वषयक अ ययन पर कोई नया न कष

नह आ सका. जो नया होता था, वह उनके बारे म अ तशय-उ याँ होती थ . कुल मला कर उस क व का जीवन अचरज का एक ऐसा

पटारा बना दया गया क अ व सनीयता उसक पहली पहचान हो गयी. राजापुर के एक गृह थ लसी -आ माराम बे के घर स वत 1554
के ावण शु ल प क सातव तारीख, जो अभु मूल न है, को एक पु का ज म होता है. तीन रोज बाद या न दशमी को लसी, यानी

उस नवजात क माँ अपनी दासी चु नया को उस ब चे को दे दे ती है क वह इसे ले कर अपने मायके चली जाय. कथा बनती है क बालक का

ज म बारहव महीने म आ है . आम तौर पर मानव शशु का ज म नौ माह पूरा होने पर होता है. ज म से रह य पर रह य. ब चे के मुंह म

ज म से ही ब ीस दांत ह. इतना ही नह ज म लेते ही ब चा रोता नह , राम का नाम लेता है. सचमुच इतना रह य और आ य क

आ तशबाज़ी तो उस राम के ज म म भी नह ई, जसका ‘गुलाम ‘ तुलसी ने वयं को माना है. रह य का दायरा बढ़ता ही जा रहा है. बालक

तुलसी, जो तब रामबोला था, साढ़े पांच साल का ही था तब अचानक धममाता चु नया का भी नधन हो जाता है. बालक रामबोला अब पूरी
तरह अनाथ है. ऐसे म नरहयानंद इस बालक को मलते ह. वे उसे बनारस लाते ह. रामबोला क श ा -द ा, य ोपवीत, ववाह सब होता है.

कब वह रामबोला से तुलसी बनते ह, यह प नह होता. ले कन ऐसा लगता है रामबोला नाम व ाथ काल म ही तरो हत हो गया था. एक

नाटक य घटना के साथ तुलसी का ववाह स ब ध टू ट जाता है. हताश- नराश तुलसी से हनुमान क मुलाकात होती है और उनक ेरणा से

वह च कूट जाते है, जहाँ राम और ल मण ( आ य क सीता नह ) से उनका दशन होता है. इस दशन से अ भभूत तुलसीदास स वत 1631

क राम नवमी के दन से अपने मु य का - ंथ रामच रत मानस क रचना करने म जुट जाते ह. यह रचना दो वष सात महीने और छ बीस

दन म पूरी होती है.

मरणीय है इस रचना का आर भ तुलसीदास ने सतह र वष क वयोवृ ता म कया था. या इस उ म इतना व थत काय कया जा
सकता है? फर इस मानस को लेकर जो कवदं तयां ह, उनका अलग यौरा है. यह या आ यजनक नह है क हद सा ह य के कसी भी

व ान और अ येता ने उनके जीवन के इन झाड़ -झंकार से उ ह मु करने क को शश नह क !

सवा धक व म उनक जा त को लेकर है. सामा य तौर पर यह वीकार लया गया है क वह सरयूपारी ा ण थे. उनके पता का नाम

आ माराम बे और गाँव राजापुर बतलाया गया. हद तो यह है क ज म के तीसरे रोज ही माता उसे याग दे ती है. तुलसी ने वयं लखा है

-‘मातु - पता जग जाए त यो, व ध ह न ल यो कछु भाल -भलाई’ . इतनी घनीभूत पीड़ा का बयान शायद ही कसी क व ने कसी भी ज़माने

म कया हो. आ माराम - लसी का कोई अता -पता फर कभी नह मलता. एक साधु ने मुझे तुलसी क था का बयान कया था. उनके

अनुसार तुलसी कभी अपने गाँव नह जाना चाहते थे. उ साधु ने तुलसी के नाम से दो पं याँ सुनाई थ . मुझे यह तुलसी का म कभी
नह मली. ले कन फर भी वह दे खने लायक है.

तुलसी वहाँ न जाइये, जहाँ जनम का गाँव

गुण -अवगुण परखै नह ,धरै पुरानो नाँव

( तुलसी कहते ह, अपने ज म गाँव म कभी नह जाना चा हए . लोग गुण -अवगुण तो दे खते नह , पुरानी पहचान का मज़ाक उड़ाते ह.)

य तुलसी अपने गाँव नह जाना चाहता? गाँव म उसक कोई इ जत नह है. न उसक त त आ थक थ त है, न ही कुल -प रवार और
न ही जा त. इनम से कसी भी एक क उप थ त होती तो तुलसी या वहाँ अपमा नत होता! तुलसी क ही तरह कोई द लत भी अपने

ज मगाँव नह जाना चाहता. वहाँ उसे अपमान, उपहास और उपे ा के सवा या मल सकता है! अपने ज मगाँव से ऐसी अ च या मोहभंग

अकारण नह है. इसक पृ भू म म एक गहरी मनोवै ा नक उथल-पुथल है, जसका हमारे व ान ने कभी संधान नह करना चाहा.


तुलसीदास पर एक उ लेखनीय काय अं ेजी म माता साद गु त ारा ज र आ है, जसका हद अनुवाद इलाहाबाद व व ालय के हद

वभाग ने का शत कया है. लोकभारती इसका वतरक है. यह कताब न त ही रेखां कत करने यो य है. ले कन यहाँ भी दलच प

उदाहरण क भरमार है. बाद म इस बात क खूब शना त ई क उनका ज म राजापुर म आ अथवा सोर म ,जो एटा जले का एक गांव

है. मेरी जानकारी के अनुसार उ र दे श सरकार ने च कूट के राजापुर के बजाय इटावा के सोर को ही उनका ज म थान माना है. माता

साद गु त क कताब म ही क ही भ द शमा के एक लेख का उ लेख है, जसके अनुसार तुलसी सरयूपारी नह ,सना ा ण थे. शमा

जी ने सोर के योगमाग मोह ले म क व का मकान भी ढूँ ढ लया. उनके अनुसार तुलसी के गु का नाम भी नरहयानंद नह , नर सह चौधरी है.
तुलसीदास के एक भाई नंददास भी मल गए. उनक ससुराल बद रया गाँव बतलाया गया. इन सब उ रण से एक ही बात प होती है क

तुलसी का जीवन उथल -पुथल से भरा है और वहाँ कुछ भी थर नह है. कभी वह च कूट के राजापुर के हो जाते ह, तो कभी एटा के सोर

के हो जाते ह, क ही लोग के लए वह सरयूपारी -कुल -व लभ ह; तो क ही के लए सना कुल के.

मेरी मा यता है,और इसके आधार ह क कुछ मायन म तुलसी क जीवन -कथा कबीर से अ धक क ण और ज टल है. बनारस के जन

‘ व ान ’ ने कबीर को ‘ ा णी -जाया’ बतलाया उ ह ने ही तुलसी के लए भी कथा गढ़ . तुलसी को ा ण बनाना अ धक आसान था,

इस लए क उ ह ने अपने का रामच रत मानस म वणधम क त ा क है. हालां क वणधम का समथक होना ा ण होने क पहचान

नह हो सकती. हमारे ज़माने म गांधी ( मोहनदास ) ा ण नह थे,ले कन उ ह ने वणधम का समथन कया था . इसके मुकाबले रवी नाथ
टै गोर ा ण थे , क तु वणधम वरोधी थे . (वणधम पर गाँधी और टै गोर क वैचा रक ट कर अलग से एक दलच प संग है .) तुलसीदास

के सभी का - ंथ म नह ,केवल रामच रत मानस म यह वणधम समथन मुखर प म है. और जस जोरदार ढं ग से वहाँ वण-धम क त ा

क गयी है, उस से उसके त होने (बाद म जोड़े जाने ) क संभावना अ धक है. ले कन इस पर इस लेख म वमश करना वषयांतर होना

होगा.

इस कथा म कोई दम नह है क तुलसी आ माराम बे क संतान थे. यह पूरी कथा मन-गढ़ त और बे - सर पैर क तीत होती है. आ माराम

बे और तुलसी के पास कौन -सा कारण था क उसे अपने नवजात व थ शशु को याग दे ने क थ त आ गयी? केवल अभु मूल न म
ज म लेने के कारण कोई अपने ऐसे बेटे को फक या याग दे गा भला, जसने ज मते ही राम का नाम लया हो और जसके ब ीस दाँत ह ?

और उस आ माराम के या और कोई र तेदार नह थे क उसने एक न न जा त दासी को अपने बेटे को स पा? मुझे कोई आप नह है क

उनका लालन-पालन एक तथाक थत न न कुल या जा त वाले प रवार म आ; ले कन उस ज़माने के हसाब से यह कुछ अटपटा लगता है.

या न न कुल म पले -पुसे बालक को कसी उ चकुलीन गु (नर सह चौधरी या नरहयानंद ) का मल जाना इतना सहज था? कथा पर

सवाल यह भी हो सकता है क या उस पूरे अभु मूल म केवल इस ब चे का ही ज म आ था, जो इसे यागने क मजबूरी आ माराम को

ई. या आ माराम कोई सेठ या सामंत था जसक शु -लाभ वाली ग सँभालने के लए शुभ न म ज म आ बालक चा हए था उसे?

भीख मांगने के लए या शुभ -अशुभ न !

तुलसी य द बे प रवार क संतान होते तो अपने नाम के साथ न य ही इसे जोड़ते. रामबोला बे या तुलसी बे होते. य क मानस के

अनुसार उनक मान सकता वणवाद है. उनक प नी जब उ ह ताने दे रही थी, तब अव य ही अपने इस कुलनाम और उसके ध स का उपयोग

करते. ले कन प नी के पहले ही आघात पर वह बखर गए. तुलसी तो उस पर अपनी जान योछावर कर रहे थे,ले कन र ना को अपने प त

क जा त और बुलंद आ थक थ त चा हए थी. र ना के मन म एक कुलीन और धनवान -साम यवान है. रावण राजा भी है और ा ण भी.

तुलसी तो ठहरा भखमंगा गुसा . उसने चुपचाप अपनी राह अलग कर ली. मानस ब त अंश म राम कथा से अ धक तुलसी क आ मकथा

है.

तुलसी अपनी सं ा म बस तुलसी रहे ह. ज़माने ने उनमे जोड़ा है तो इसके आगे गो वामी और पीछे दास. गो वामी तुलसीदास. तुलसीदास को

उनके ज़माने ने गुसाई कहा है. लोग ने इस गुसा क पड़ताल करने क कभी कोई को शश नह क . यह हमारी व त मंडली का बौ क

् ही कहा जायेगा क इस पर भी वचार नह कया क बेनीमाधवदास और भवानीदास क तुलसीगाथा का नाम ‘मूल गोसा च रत ‘
दा र य

और ‘ गोसाई च रत ‘ ही य है?

गो वामी और गुसा पर मेरा यान पहली दफा तब गया था, जब 1990 म आर ण को लेकर हमारे रा ीय जीवन म एक हसक कोहराम

खड़ा आ. जन लोग को उस ज़माने का मरण होगा वे याल कर सकते ह क पहले ही दौर म एक अ यंत पीड़ादायक लोमहषक घटना

घट जब राजीव गो वामी नाम के एक नौजवान ने इसके वरोध म आ मदाह कर लया. उसक ददनाक मौत ई. बाद म मुझे पता चला क
राजीव गो वामी को खुद पता नह था क वह अ य पछड़े वग का सद य है और यह मंडल- संग उसके जीवन म भी थोड़ा बदलाव ला

सकता है. यह घटना मेरे मन अथवा अवचेतन म बैठ रही. कुछ साल बाद मुझे गो वामी समाज के कुछ लोग मले और उनसे यह जानकारी

मली क तुलसी दास ा ण नह , गो वामी थे. मेरे लए यह नई सूचना थी. उसके कई वष पूव मने तुलसी के जीवन को लेकर एक कहानी

लखी थी,जो आ मालाप शैली म थी,और जस म तुलसी अपने वकट जीवन को याद कर रहे ह. मेरे गुसाई (तुलसी ) को काशी के ा ण से

काफ संघष करना पड़ा था. उस समय भी मेरी समझ थी क जीवनानुभव ने उ ह पूरी तरह बदल दया था,और उ ह इस बात का अफ़सोस

था क अपने मानस म उ ह ने वण धम का समथन य कया. ले कन यह कहानी थी. उस समय मेरे मन म यह नह था क गुसा एक अलग

जा त है, जो ा ण से भ ह .

मने दसनामी गुसाइय के इ तहास पर एक कताब पढ़ . यह कोई खास कताब नह थी. हर जा त - बरादरी के लोग ऐसी कताब लखते

-छपवाते रहे ह, जसम उनका अपना म हमा -मंडन होता है. ले कन उनसे यह तो पता चला क गो वामी एक ऐसी बरादरी है जो पंजाब और

हमाचल दे श को छोड़ कर पूरे भारत म अ य पछड़े वग म शुमार कये गए ह. मने उ र दे श क क य और ांतीय सरकार वाली अ य

पछड़े वग वाली अनुसूची दे खी. बारहव नंबर पर गो वामी या गुसा थे. तुलसीदास इसी समाज से आते थ ,जैसे जुलाह के समाज से कबीर.

हर जा त क कुछ खा सयत और क मयां होती ह. मेरा ल य फलहाल इसका संधान करना नह है. मने दशना मय क सामा जक-आ थक

थ तय का एक सामा य अ ययन कया. यह महनतक़श जा त समाज नह है, अथात आय या जीवन -यापन के लए कसी ऐसे पेशे से

नह जुडी है, जस म शारी रक म लगता हो. गुसा मुसलमान म भी होते ह और वहाँ भी इनका काम यही है, जो ह के बीच है. जब
कोई अपने म के बूते खाने क थ त म नह रहता,यानी जब वह परजीवी हो जाता है, सर के म पर खाने क थ त म हो जाता

है, तब वह समाज के बीच वतं प से वचार रखने क थ त म भी नह रह जाता. यही थ त तुलसी के साथ ई. कबीर और रैदास जैसे

क वय क थ त भ थी. वे महनतक़श थे. चादर बुन कर या जूते गाँठ कर कमाते थे और अपनी रोट जुटाते थे. तुलसी मांग कर खाने 
वाले थे. कबीर -रैदास क तरह चाह कर भी म त -मौला नह हो सकते थे. उस तरह से आज़ाद याल नह हो सकते थे. ले कन तुलसी म एक

जबरद त कसमसाहट है. मुझे यह भी तीत होता है क नगुण- नराकार राम क जगह एक सामंतवाद राम के गुणगान क अपनी सीमा

को तोड़ने के लए अपने आ खरी समय म वह बेचैन थे. ‘क वतावली’ मानस के मुकाबले एक छोट रचना है. ले कन तुलसी का वहाँ एक भ

प है. तुलसी का आ मसंघष कबीर से कह ज टल है. काश, इस पर वमश करने का साम य हमारे पास होता. बावजूद को शश तो क ँ गा.
ले कन, अभी बस इतना ही.

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  ेमकुमार म ण  हद के च चत कथाकार व चतक ह। दनमान  से प का रता क शु आत। अबतक पांच कहानी


संकलन, एक उप यास, और पांच नबंध संकलन का शत।  उनके नबंध ने हद म अनेक नए वमश को ज म
दया है तथा पहले जारी कई वमश को नए आयाम दए ह।  बहार वधान प रषद् के सद य भी रहे। मोबाइल
+91 9431662211 

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