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अपना परिवार हिन्दू परिवार PDF
अपना परिवार हिन्दू परिवार PDF
अपना परिवाि
हिन्दू परिवाि
(माननीय कृ ष्णप्पा जी के व्याख्यान पि आधारित)
संकलन
प्रशांत वाजपेई
मुद्रक:
मातृभहू म
प्रकाशक:
माधव चेतना न्यास
मोबाईल : 09310379448
दूिभाष : 01262-699944
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माननीय कृ ष्णप्पा जी
को समर्पमत यि पुष्प
कृ ष्णप्पा जी ने 1954 में बी.ए. ऑनसम (संस्कृ त) की हशक्षा प्राप्त की।
1954 में िाष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचािक बन उन्िोंने स्वयं को मां भािती
की सेवा में समर्पमत कि ददया। वे कनामिक प्रांत प्रचािक, दहक्षण क्षेत्र प्रचािक,
अहखल भाितीय कायमकािी मण्डल के सदस्य ििे। आपने परिवाि प्रबोधन के
हवषय को लेकि देशभि में अनेक वषम प्रवास दकया। 10 अगस्त 2015 को
आपने अपनी जीवन यात्रा पूणम की।
आभाि
श्रद्धेय भाऊ सािेब भुस्किे व्याख्यानमाला सहमहत
रिमिनी, ििदा (मध्य प्रदेश)
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सत्संग किना।
07. घि के सामने तुलसी का पौधा समुहचत व्यवस्था के साथ ििे।
08. घि के द्वाि या योग्य स्थान पि ॐ, शुभ-लाभ, जय श्री िाम इत्यादद
मंगल शब्द हलखें।
09. घि में देवी-देवता, मिापुरुषों औि पूवमजों का हचत्र योग्य स्थान पि
सुशोहभत ििे।
10. घि में धार्ममक ग्रंथ ििें औि उनका पठन प्रहतददन िोता ििे।
11. घि में दैहनक, साप्ताहिक, माहसक पहत्रकाएं आती ििें औि घिवालों को
उनको पढ़ने का अभ्यास ििे।
12. घि में भजन कीतमन सत्संग इत्यादद कायमक्रम िोते ििें।
13. घि में एक पूजा स्थान ििे । घि के सदस्य ददन में कम से कम एक बाि
विााँ जाते ििें।
14. घि में आये अहतहथयों को योग्य आदि हमलता ििे।
15. संस्कृ त भाषा अध्ययन में घि के सभी सदस्यों को रुहच ििे।
16. पडोहसयों के साथ संबंध मधुि ििें।
17. बचत का अभ्यास घि में सभी सदस्यों को िो।
18. सोने के पिले ईश स्मिण किने का अभ्यास ििे । सािे ददन दकये गए
कामों के बािे में हनममल भाव से अवलोकन किने का भी अभ्यास िो।
19. अनेक भाषाओं को सीखना। ज्यादा भाषाएाँ हजसको आती िैं उसकी
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नमस्काि किना, वािन साफ किना, स्नानगृि धोना, शौचालय धोना, जमीन
साफ किना, समाचाि सुनना औि नोि किके सबको बताना, कु सी िेबल साफ
किना, ध्यान किना, व्यायाम किना, मंद श्वासोच्छ्वास किना।
27. अनावश्यक खचम (Consumerism) भोगवाद िमािे प्रहत औि अपनी
धमम प्रवृहि को शोभा निीं देता,योग्य भी निीं िै।
28. बन्धुजनों को रिश्ते से पिचानना। उसी संबोधन (काका, मामा, बुआ
आदद... अंकल आन्िी निीं) से उनको संबोहधत किना।
29. हववाि इत्यादद मंगल प्रसंगों में धार्ममक भाग को मित्व देकि उसे श्रद्धा
औि एकाग्रता से, शाहन्त से किना।
सुबि
01. सूयोदय से पिले उठना। दाहिनी ओि से उठना।
02. उठते िी दोनों िाथों को देखते हुए किाग्रे वसते . . . श्लोक किना।
03. घि के सामने वाले प्रांगण को सबेिे औि शाम को जल से सींचकि स्वच्छछ
किना।
04. घि के सामने िं गोली सजाना।
05. भगवान के सामने हनत्य दीप प्रज्वलन किना।
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भोजन
01. भोजन के हलये स्थान, समय, क्रम हनधामिण किके उसका पालन किना।
02. भोजन के पिले नैवेद्य समपमण किके िी भोजन किना।
03. भोजन के प्रािं भ में मंत्र किना। भगवान की प्राथमना किना। भोजन में
दकसी भी पदाथम को थाली में झूठा निीं छोडना।
04. घि के सभी सदस्यों द्वािा ददन में कम से कम एक बाि साथ में भोजन
किना।
05. िसोई घि को बाि-बाि साफ किके उसका पाहवत्र्य िक्षण िोते ििना
चाहिए।
06. भोजन का स्थान भी सदा स्वच्छछ ििे। उसका पाहवत्र्य िक्षण िोते ििना
चाहिए।
07. हमष्ठान को बांिकि िी खाना। अके ले निीं खाना।
08. पिोसते समय भोजन किने वालों की आवश्यकता ओि रुहच को
समझकि स्नेि, श्रद्धा भहि से पिोसना।
09. भोजन किते समय दूसिे घिों की िसोई के संबंध में निीं बोलना चाहिए।
10. भोजन किते समय उद्वेककािी चचाम निीं किना। उिम हितकािी बातें
किना।
11. पानी पीते समय धीिे -धीिे पीना। बैठकि पीना।
12. दाहिने िाथ से िी खाना। भोजन किते समय एक िाथ का िी उपयोग
किना।
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13. भोजन बनाते, किवाते एवं किते समय प्रसि मन ििना चाहिए।
14. सप्ताि में एक बाि के वल फल, सब्जी, अंकुरित अनाज ताजा (हबना
पकाया) खाना।
15. पथ्य, व्रत त उपवास उपवास इत्यादद इत्यादद का क्रम समझकि अभ्यास
किना।
16. िेहलहवजन के सामने कु छ भी न खाना न पीना।
आिोग्य
01. घि में शौचालय औि स्नान गृि अलग ििें तो अच्छछा।
02. मुाँि िाथ पैि धोकि िी भोजन खाना िै।
03. िि हनवाले को धीिे चबाकि िी खाना।
04. भोजन या अल्पािाि के बाद उपयोग दकये पात्रों को तुिन्त धोका िखना।
हबना धोए दफि से उपयोग निीं किना।
05. घि में उपयोग िोने के बाद जल हनकास की योग्य व्यवस्था ििे।
06. शाम को बच्चों का खेलना अहनवायम ििे। बच्चे अनेक िीहत के खेल खेल,ें
खूब दौड भाग िो। तब िी शिीि के सभी भाग दक्रयाशील ििेंगे।
07. उं गहलयों के नखों को निीं चबाना।
08. िि ददन कम से कम तीस हमनि व्यायाम किना।
09. मंदगहत श्वासोच्छ्वास किना।
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10. प्रातः बेड िी का अभ्यास ठीक निीं िोता िै। आिोग्य के हलये अत्यन्त
िाहनकािक िै।
11. खडे-खडे िसोई बनाना शिीि के हलये िाहनकािक िै। कमि ददम,
सायरिका, सहन्धवात इत्यादद िोग िोते िैं।
12. जमीन पि सुखासन में बैठकि खाना अत्युिम आिोग्यदायक िै। खडे-खडे
खाना भी ठीक निीं िै।
13. घि में दकसी के बीमाि िोने पि घबिाएाँ निीं। प्रािं हभक हचदकत्सा घि में
सावधानी से किें । दफि हचदकत्सक के पास ले जाएाँ।
14 . रुग्णों की सेवा, सुश्रुषा, पथ्यपालन इत्यादद प्रेम से किने का सभी को
अभ्यास िो।
15. िि नौजवान को वषम में एक दो बाि ििदान किना चाहिये।
16. मृत्यु के बाद नेत्रदान किने के बािे में सब जागृत ििें।
17. मृत्यु अहनवायम िै। इसको समझकि दकसी को भी मत्य के बािे में निीं
डिना चाहिए।
18. शौचालय अपने देश के तिीके का ििे। कमोड बुजुगों एवं िोहगयों के हलए
ठीक ििेगा ििेगा। कमोड आिोग्यशाली युवकों के हलये निीं िै।
19. चीनी के स्थान पि गुड खाना अच्छछा ििता िै।
20. सफे द नमक निीं खाना, खडा नमक या सेंधा लवण का उपयोग किना।
21. तेल निीं खाना। घी खाना।
22. लाल-हमची के स्थान पि काली हमचम खाना अच्छछा।
23. बािि से घि वापस आने पि तुिंत िाथ पााँव धोना।
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त्यौिाि मंददि
01. घि में उत्सवों पवों को कै से मनाना चाहिए ये सब हमलकि सोचें।
02. जनमददन अपनी हिन्दू िीहत से हतहथ नक्षत्र के अनुसाि मनाना। मंददि
जाना, बन्धुओं को बुलाकि हमलकि पूजा किना, नववस्त्र धािण किना, घि
में बना हुआ हमष्ठान बााँिना, बडों से आशीवामद लेना औि दान किना।
03. अपने कु लदेवता के बािे में श्रद्धा हनर्ममत किना।
04. त्यौिािों के ददन अपने से बडों के यिााँ जाकि, प्रणाम कि आशीवामद
मााँगना।
05. त्यौिािों में हवशेषतः जन्मददन में अभ्यंजन स्नान अहनवायम प प से किना
िै।
06. मंगल अवसि पि दान किना। सामाहजक कामों के हलये हनहध देना।
07. श्राद्ध औि पूवमजों के स्मृहत ददनों को हवहधपूवमक मनाना िै।
08. मंददि में आिती, तीथम, प्रसाद को भहिभाव से स्वीकाि किना।
09. देवताओं की हवशेषताओं को पूछकि समझना।
10. मंददि में चढ़ावा देना।
11. मंददि के अचमकों से सम्मानपूवमक व्यविाि किना।
12. मंददि से बािि आकि थोडी देि मौन बैठना।
13. दीप जलाना िमािी पिम्पिा िै, बुझाना निीं। जन्मददन पि मोमबिी न
बुझाएाँ, दीप जलाएाँ।
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यंत्रों का उपयोग
01. िी. वी. के उपयोग के बािे में हशक्षण िो, चचाम किें दक क्ट्या, कब, दकतना
देखना। यि हनहश्चत किके अनुसिण किना।
02. दूिभाष में बोलते समय 'िैलो' छोडकि 'िरि ॐ, नमस्ते, जय श्री िाम,
शिणम्' इत्यादद शब्दों का प्रयोग किना।
03. यंत्रों जैसे T.V., Computer, Camera, Fridge, Tape Recorder
इत्यादद के उपयोग में कु छ संकेतों का पालन किना।
04. वैसे िी वािनों के बािे में भी हनयम ििे।
05. घि में कम्प्युिि िै तो उसका उपयोग ठीक िीहत से िी िो ििा िै क्ट्या,
इसके बािे में सभी को ध्यान देना िै।
अथामत 'मैं निक में हाँ तुम कौन से निक में िो?'
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सावधाहनयााँ
01. िाथ, पैि, मुि
ाँ धोकि िी भोजन किना िै।
02. घि व्यसन से मुि िो।
03. बच्चों के सामने घि की समस्याओं (हववाद, कलि, वनंदा) की चचाम न
किें ।
04. अपशब्द निीं बोलना, सुनना भी निीं।
05. बच्चों के सामने झगडा किना, गाली देना इत्यादद न किें । जाहत सूचक
शब्द औि व्यविाि का िमािे घि में स्थान न िो।
06. गिीब औि हभक्षुकों के बािे में सबको प्रीहत औि करुणा ििे। दान
देने का संस्काि हमले।
07. हववश िोकि किने वाले कामो का आदत न िो, प्रसिहचि िोकि िी
काम किें ।
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िमािी आस्थाएाँ
01. 'सत्यं वद धमम चि’। सत्य बोलना धमम के अनुसाि चलना।
02. पि स्त्री को माता जैसे देखना।
03. पि धन को हमट्टी जैसे देखना।
04. प्रत्येक जीव मात्र को अपने जैसे देखना।
05. ईश्वि एक िै नाम अनेक। 'एक सत् हवप्राः बहुधा वदहन्त'।
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भोजन के पिले :-
ब्रह्मापमणं ब्रह्मिहवि् ब्रह्मिौ ब्रह्मणाहुतम्।
ब्रह्मैवतेन गन्तव्यं ब्रह्मकमम समाहधना।।
यज्ञ में दकया जाने वाला समपमण, यज्ञ में दी जाने वाली आिहत (िहव
आदद) ब्रह्म िै। ब्रह्मप पी अहि में ब्रह्मप प िोमकताम द्वािा जो िवन दकया गया,
वि भी ब्रह्म िै अत: ब्रह्मप प कमम में समाहधस्थ पुरुष के द्वािा जो प्राप्त िोने
योग्य िै वि ब्रह्म िी िै।
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सोने के पिले :-
िाम स्कन्दं िनुमन्तं वैनतेयं वृकोदिम्।
शयने यः स्मिे हित्यं दुःस्वप्नं तस्य नश्यहत।
श्रीिाम जी, कार्तमकेय जी, िनुमान जी, गरुड जी, भीमसेन को जो शयन
किते समय स्मिण किता िै उसके बुिे स्वप्न समाप्त िो जाते िैं।
शाहन्त मंत्र :-
सवे भवन्तु सुहखनः सवे सन्तु हनिामया।
सवे भद्राहण पश्यन्तु मा कहश्चत् दुःखभाग्भवेत।् ।
सभी सुखी िोवे, सभी िोगमुि ििें, सभी मंगलमय घिनाओं के साक्षी
बनें औि दकसी को भी दुःख का भागी न बनना पडे।
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भाित परिचय
हिमालयं समािभ्य यावददन्दु सिोवि,
तं दैव हनर्ममतं देश हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।।
हिमालय पवमत से आिम्भ कि इन्दु मिासागि तक फै ले देवताओं द्वािा
हनर्ममत देश को हिन्दुस्थान किते िैं। अथामत् इस भूभाग पि िािने वाले 'हिन्दू’
िैं।
सात नददयााँ :-
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सिस्वती।
नममवे हसन्धु कावेिी जलेऽहस्मन् सहिवधं कु प ।।
गंगा, यमुना, सिस्वती, गोदाविी, नममदा, कावेिी औि हसन्धु।
सात पवमत :-
मिेन्द्रो मलय: सह्यो देवतात्मा हिमालयः।
ध्येयो िै वतको हवन्थ्यो हगरिश्चािावहलस्तथा।।
हिमालय, हवन्ध्याचल, मिेन्द्र पवमत (उडीसा), मलय पवमत (कनामिक),
सह्यादद्र (मिािाष्ट्र), िै वतक (गुजिात) औि अिावली (िाजस्थान)।
सात मोक्षपुरियााँ :-
अयोध्या मथुिा माया काशी काहि अवहन्तका।
पुिी द्वािावती चैव सप्तैता मोक्षदाहयकाः॥
अयोध्या, मथुिा, िरिद्वाि (माया), काशी, कांहच, अवहन्तका (उज्जहयनी)
औि द्वारिकापुिी।
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चाि धाम :-
बद्रीनाथ (हिमालय), जगिाथपुिी (उडीसा), सेतुबन्ध िामेश्विम्
(तहमलनाडु ) औि द्वारिका (गुजिात)
चाि शांकि मठ :-
ज्योहतममठ (गढ़वाल, हिमालय), गोवधमन मठ (जगिाथपुिी), श्रृंगेिी मठ
(कनामिक) औि शािदा मठ (द्वारिका, गजिात)
चाि कु म्भ स्थल :-
िरिद्वाि, प्रयाग, अवहन्तका औि नाहसक। बािि ज्योहतर्लांग : के दािनाथ
(गढ़वाल, उििाखण्ड), हवश्वनाथ (काशी, उ० प्र०), वैद्यनाथ (देवधि,
हबिाि), ओंकािे श्वि/अमलेश्वि औि मिाकाल (उज्जहयनी) (मध्यप्रदेश),
सोमनाथ औि नागेश्वि (गुजिात), त्र्यंबके श्वि, भीमशंकि औि घुष्मेश्वि
(मिािाष्ट्र), महल्लकाजुमन (श्रीशैलम, आंध्र), िामेश्वि (तहमलनाि)
भाित माता की जय
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