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अपना परिवाि
हिन्दू परिवाि
(माननीय कृ ष्णप्पा जी के व्याख्यान पि आधारित)
संकलन
प्रशांत वाजपेई

मुद्रक:
मातृभहू म

ए-31, फ्लैरिड फै क्ट्री कॉम्पलैक्ट्स, माधव कु ञ्ज, हुडा कॉम्पलैक्ट्स,

झण्डेवाला, नई ददल्ली - 110055 िोितक (िरियाणा)

प्रकाशक:
माधव चेतना न्यास
मोबाईल : 09310379448
दूिभाष : 01262-699944
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“िमािे ऋहष, िमािे हवद्वान किते िैं दक जब तक िमािी


परिवाि व्यवस्था सुदढ़ृ िै, संस्कािक्षम िै औि परिवाि अपने बच्चों को
धमम-संस्कृ हत औि िाष्ट्र की सुिक्षा की सुिक्षा की सीख देता िै, तब
तक हवश्व की कोई भी शहि इस समाज को कमजोि निीं कि सकती।
शहिशाली परिवाि व्यवस्था के बल पि िम सभी चुनौहतयों को, पाि
कि अपनी संस्कृ ती की िक्षा किें ग।े “

माननीय कृ ष्णप्पा जी
को समर्पमत यि पुष्प
कृ ष्णप्पा जी ने 1954 में बी.ए. ऑनसम (संस्कृ त) की हशक्षा प्राप्त की।
1954 में िाष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचािक बन उन्िोंने स्वयं को मां भािती
की सेवा में समर्पमत कि ददया। वे कनामिक प्रांत प्रचािक, दहक्षण क्षेत्र प्रचािक,
अहखल भाितीय कायमकािी मण्डल के सदस्य ििे। आपने परिवाि प्रबोधन के
हवषय को लेकि देशभि में अनेक वषम प्रवास दकया। 10 अगस्त 2015 को
आपने अपनी जीवन यात्रा पूणम की।

आभाि
श्रद्धेय भाऊ सािेब भुस्किे व्याख्यानमाला सहमहत
रिमिनी, ििदा (मध्य प्रदेश)
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प्रातः जागिण श्लोक


किाग्रे वसते लक्षमीः किमध्ये सिस्वहत।
किमूले हस्थता गौिी प्रभाते किदशमनम्।।
िाथों के अग्रभाग में लक्षमी, मध्य में श्री सिस्वती एवं
िाथों के मूल में गोववंद का वास िोता िै। इसहलए
प्रातः उठकि अपने िाथों का दशमन किना चाहिए।

स्नान किते समय श्लोक


गंगे च यमुने चैव गोदाविी सिस्वहत।
नममदे हसन्धु कावेरि जलेहस्मन् सहिवधं कु रु।
िे गंगा, यमुना, गोदाविी, सिस्वती, नममदा औि
कावेिी आप समस्त नददयााँ मेिे स्नान जल में आएं। इस
प्रकाि के आिवान से सािे देश का पालन किने वाली
नददयों के प्रहत कृ तज्ञता का भाव प्रगाढ़ िोता िै।

भोजन किते समय श्लोक


अिपूणे सदापूणे शंकि प्राणवल्लभे।
ज्ञानवैिाग्य हसद्धयथम हभक्षां देहि च पावमहत॥
अि से पूण,म सदा परिपूणम ििने वाली, शंकि को हप्रय,
िे पावमतीमाता! ज्ञान, वैिाग्य एवं हसद्धी के हलए िमें
हभक्षा दो।।
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संध्या काल में श्लोक


शुभम् किोहत कल्याणम् आिोग्यं धनसंपदा।
दुष्टबुहद्ध हवनाशाय दीप: ज्योहत नमोस्तुत॥

िमािा शुभ किने वाली, कल्याण किने वाली, िमें
आिोग्य एवं सुख सम्पदा प्रदानकि, बुहद्ध को शुद्ध
किने वाली िे दीपज्योहत! आपको िमािा नमस्काि
िै।

हिन्दू जीवन की हवशेषताएाँ


01. प्रहतददन तीन काम का - हनत्य स्नान, हनत्य ध्यान, हनत्य व्यायाम।
02. सप्ताि बाद में एक ददन हसि से पैि के तलवे तक सािे शिीि
लगाकि गिम पानी से स्नान किना।
03. पक्ष में (14 ददन में) एक बाि व्रत िखना, अथामत कु छ निीं खाना।
04. मास में एक ददन हविे चन (जुलाब) लेना।
05. वषम में एक बाि प्रवास। दकसी प्रेिणा देने वाले स्थान पि पूिे परिवाि के
साथ जाना।
06. सप्ताि में एक ददन परिवाि के सभी सदस्यों द्वािा हमलकि एक घंिा
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सत्संग किना।
07. घि के सामने तुलसी का पौधा समुहचत व्यवस्था के साथ ििे।
08. घि के द्वाि या योग्य स्थान पि ॐ, शुभ-लाभ, जय श्री िाम इत्यादद
मंगल शब्द हलखें।
09. घि में देवी-देवता, मिापुरुषों औि पूवमजों का हचत्र योग्य स्थान पि
सुशोहभत ििे।
10. घि में धार्ममक ग्रंथ ििें औि उनका पठन प्रहतददन िोता ििे।
11. घि में दैहनक, साप्ताहिक, माहसक पहत्रकाएं आती ििें औि घिवालों को
उनको पढ़ने का अभ्यास ििे।
12. घि में भजन कीतमन सत्संग इत्यादद कायमक्रम िोते ििें।
13. घि में एक पूजा स्थान ििे । घि के सदस्य ददन में कम से कम एक बाि
विााँ जाते ििें।
14. घि में आये अहतहथयों को योग्य आदि हमलता ििे।
15. संस्कृ त भाषा अध्ययन में घि के सभी सदस्यों को रुहच ििे।
16. पडोहसयों के साथ संबंध मधुि ििें।
17. बचत का अभ्यास घि में सभी सदस्यों को िो।
18. सोने के पिले ईश स्मिण किने का अभ्यास ििे । सािे ददन दकये गए
कामों के बािे में हनममल भाव से अवलोकन किने का भी अभ्यास िो।
19. अनेक भाषाओं को सीखना। ज्यादा भाषाएाँ हजसको आती िैं उसकी
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व्याहप्त हवशाल िोती िै। पिले बोलना, उसके पश्चात् पढ़ना-हलखना भी


सीखना िै।
20. पत्र हलखने का अभ्यास अत्यंत श्रेष्ठ िै। गौिव को बढ़ाता िै।
21. दान देने की प्रवृहि बढ़ाना।
22. शुभ अवसि पि मंगल स्नान, शुभ वस्त्र धािण, मंददि जाकि देव दशमन,
दान औि हमष्ठान बााँिना ये पााँच काम किना िी चाहिए।
23. देकि खाना िी धमम िै। 'तेन त्यिे न भुज्जीथा'
24. घि में इन शब्दों का प्रयोग साधािणतः िोता ििे।
25. हनमंत्रण पत्रों को मातृभाषा, हिन्दी में या संस्कृ त में छपवायें।
पूजा, अहभषेक, तीथम, नैवेद्य, प्रसाद, आिती, प्रदहक्षणा, साष्टांग प्रमाण,
अगिबिी, धूप-दीप, कममफल, पुनजमन्म, धमम, अथम-काम, मोक्ष, अपमण, पाप-
पुण्य, स्वगम-निक, सुख-दु:ख, प्रात -िात, जन्म-मिण, उत्थान-पतन।
26. घि में सभी द्वािा दकए जाने वाले छोिे-छोिे काम, झाडू लगाना, हबस्ति
हबछाना, उसे समेिकि िखना, कपडे धोना, कपडे सुखाना, कपडे लोिा
किना, िसोई किना, पिोसना, थाली िखना, पानी िखना, बतमन मााँजना,
सामान लाकि देना, सब्जी कािना, दुकान जाना, खिीदकि लाना, अगिबिी
जलाना, दीप जलाना, पत्र हलखना, Account हलखना, िं गोली बनाना,
आिती किना, आिती देना, आिती लेना, तीथम लेना, प्रसाद स्वीकािना,

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नमस्काि किना, वािन साफ किना, स्नानगृि धोना, शौचालय धोना, जमीन
साफ किना, समाचाि सुनना औि नोि किके सबको बताना, कु सी िेबल साफ
किना, ध्यान किना, व्यायाम किना, मंद श्वासोच्छ्वास किना।
27. अनावश्यक खचम (Consumerism) भोगवाद िमािे प्रहत औि अपनी
धमम प्रवृहि को शोभा निीं देता,योग्य भी निीं िै।
28. बन्धुजनों को रिश्ते से पिचानना। उसी संबोधन (काका, मामा, बुआ
आदद... अंकल आन्िी निीं) से उनको संबोहधत किना।
29. हववाि इत्यादद मंगल प्रसंगों में धार्ममक भाग को मित्व देकि उसे श्रद्धा
औि एकाग्रता से, शाहन्त से किना।

सुबि
01. सूयोदय से पिले उठना। दाहिनी ओि से उठना।
02. उठते िी दोनों िाथों को देखते हुए किाग्रे वसते . . . श्लोक किना।
03. घि के सामने वाले प्रांगण को सबेिे औि शाम को जल से सींचकि स्वच्छछ
किना।
04. घि के सामने िं गोली सजाना।
05. भगवान के सामने हनत्य दीप प्रज्वलन किना।

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भोजन
01. भोजन के हलये स्थान, समय, क्रम हनधामिण किके उसका पालन किना।
02. भोजन के पिले नैवेद्य समपमण किके िी भोजन किना।
03. भोजन के प्रािं भ में मंत्र किना। भगवान की प्राथमना किना। भोजन में
दकसी भी पदाथम को थाली में झूठा निीं छोडना।
04. घि के सभी सदस्यों द्वािा ददन में कम से कम एक बाि साथ में भोजन
किना।
05. िसोई घि को बाि-बाि साफ किके उसका पाहवत्र्य िक्षण िोते ििना
चाहिए।
06. भोजन का स्थान भी सदा स्वच्छछ ििे। उसका पाहवत्र्य िक्षण िोते ििना
चाहिए।
07. हमष्ठान को बांिकि िी खाना। अके ले निीं खाना।
08. पिोसते समय भोजन किने वालों की आवश्यकता ओि रुहच को
समझकि स्नेि, श्रद्धा भहि से पिोसना।
09. भोजन किते समय दूसिे घिों की िसोई के संबंध में निीं बोलना चाहिए।
10. भोजन किते समय उद्वेककािी चचाम निीं किना। उिम हितकािी बातें
किना।
11. पानी पीते समय धीिे -धीिे पीना। बैठकि पीना।
12. दाहिने िाथ से िी खाना। भोजन किते समय एक िाथ का िी उपयोग
किना।
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13. भोजन बनाते, किवाते एवं किते समय प्रसि मन ििना चाहिए।
14. सप्ताि में एक बाि के वल फल, सब्जी, अंकुरित अनाज ताजा (हबना
पकाया) खाना।
15. पथ्य, व्रत त उपवास उपवास इत्यादद इत्यादद का क्रम समझकि अभ्यास
किना।
16. िेहलहवजन के सामने कु छ भी न खाना न पीना।

आिोग्य
01. घि में शौचालय औि स्नान गृि अलग ििें तो अच्छछा।
02. मुाँि िाथ पैि धोकि िी भोजन खाना िै।
03. िि हनवाले को धीिे चबाकि िी खाना।
04. भोजन या अल्पािाि के बाद उपयोग दकये पात्रों को तुिन्त धोका िखना।
हबना धोए दफि से उपयोग निीं किना।
05. घि में उपयोग िोने के बाद जल हनकास की योग्य व्यवस्था ििे।
06. शाम को बच्चों का खेलना अहनवायम ििे। बच्चे अनेक िीहत के खेल खेल,ें
खूब दौड भाग िो। तब िी शिीि के सभी भाग दक्रयाशील ििेंगे।
07. उं गहलयों के नखों को निीं चबाना।
08. िि ददन कम से कम तीस हमनि व्यायाम किना।
09. मंदगहत श्वासोच्छ्वास किना।

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10. प्रातः बेड िी का अभ्यास ठीक निीं िोता िै। आिोग्य के हलये अत्यन्त
िाहनकािक िै।
11. खडे-खडे िसोई बनाना शिीि के हलये िाहनकािक िै। कमि ददम,
सायरिका, सहन्धवात इत्यादद िोग िोते िैं।
12. जमीन पि सुखासन में बैठकि खाना अत्युिम आिोग्यदायक िै। खडे-खडे
खाना भी ठीक निीं िै।
13. घि में दकसी के बीमाि िोने पि घबिाएाँ निीं। प्रािं हभक हचदकत्सा घि में
सावधानी से किें । दफि हचदकत्सक के पास ले जाएाँ।
14 . रुग्णों की सेवा, सुश्रुषा, पथ्यपालन इत्यादद प्रेम से किने का सभी को
अभ्यास िो।
15. िि नौजवान को वषम में एक दो बाि ििदान किना चाहिये।
16. मृत्यु के बाद नेत्रदान किने के बािे में सब जागृत ििें।
17. मृत्यु अहनवायम िै। इसको समझकि दकसी को भी मत्य के बािे में निीं
डिना चाहिए।
18. शौचालय अपने देश के तिीके का ििे। कमोड बुजुगों एवं िोहगयों के हलए
ठीक ििेगा ििेगा। कमोड आिोग्यशाली युवकों के हलये निीं िै।
19. चीनी के स्थान पि गुड खाना अच्छछा ििता िै।
20. सफे द नमक निीं खाना, खडा नमक या सेंधा लवण का उपयोग किना।
21. तेल निीं खाना। घी खाना।
22. लाल-हमची के स्थान पि काली हमचम खाना अच्छछा।
23. बािि से घि वापस आने पि तुिंत िाथ पााँव धोना।

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त्यौिाि मंददि
01. घि में उत्सवों पवों को कै से मनाना चाहिए ये सब हमलकि सोचें।
02. जनमददन अपनी हिन्दू िीहत से हतहथ नक्षत्र के अनुसाि मनाना। मंददि
जाना, बन्धुओं को बुलाकि हमलकि पूजा किना, नववस्त्र धािण किना, घि
में बना हुआ हमष्ठान बााँिना, बडों से आशीवामद लेना औि दान किना।
03. अपने कु लदेवता के बािे में श्रद्धा हनर्ममत किना।
04. त्यौिािों के ददन अपने से बडों के यिााँ जाकि, प्रणाम कि आशीवामद
मााँगना।
05. त्यौिािों में हवशेषतः जन्मददन में अभ्यंजन स्नान अहनवायम प प से किना
िै।
06. मंगल अवसि पि दान किना। सामाहजक कामों के हलये हनहध देना।
07. श्राद्ध औि पूवमजों के स्मृहत ददनों को हवहधपूवमक मनाना िै।
08. मंददि में आिती, तीथम, प्रसाद को भहिभाव से स्वीकाि किना।
09. देवताओं की हवशेषताओं को पूछकि समझना।
10. मंददि में चढ़ावा देना।
11. मंददि के अचमकों से सम्मानपूवमक व्यविाि किना।
12. मंददि से बािि आकि थोडी देि मौन बैठना।
13. दीप जलाना िमािी पिम्पिा िै, बुझाना निीं। जन्मददन पि मोमबिी न
बुझाएाँ, दीप जलाएाँ।

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यंत्रों का उपयोग
01. िी. वी. के उपयोग के बािे में हशक्षण िो, चचाम किें दक क्ट्या, कब, दकतना
देखना। यि हनहश्चत किके अनुसिण किना।
02. दूिभाष में बोलते समय 'िैलो' छोडकि 'िरि ॐ, नमस्ते, जय श्री िाम,
शिणम्' इत्यादद शब्दों का प्रयोग किना।
03. यंत्रों जैसे T.V., Computer, Camera, Fridge, Tape Recorder
इत्यादद के उपयोग में कु छ संकेतों का पालन किना।
04. वैसे िी वािनों के बािे में भी हनयम ििे।
05. घि में कम्प्युिि िै तो उसका उपयोग ठीक िीहत से िी िो ििा िै क्ट्या,
इसके बािे में सभी को ध्यान देना िै।

भाितीय औि पाश्चात्य दृहष्टकोण में अंति


स्वामी हववेकानंद किते िैं दक मानव ब्रह्मा का अंश िै। मानव को पापी
किना िी पाप िै।
हिन्दू सोच पहश्चम से हभि िै। िमािे वचंतन के अनुसाि, हजस घि में िम
ििते िैं उसको िम महन्दि मानते िैं। िमािे ऋहष मनुष्य को अमृत पुत्र या
ईश्वि का अंश मानते िैं। पाहपयों का हनवास निक माना जाता िै।
पाश्चात्य लोगों ने जब िेहलफोन का अहवष्काि दकया तो नया शब्द ढू ंढा
'िैलो (hello)'. इस 'hell' का अथम क्ट्या िोता िै? Hell का अथम िै निक
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अथामत 'मैं निक में हाँ तुम कौन से निक में िो?'

अपने बच्चों को हसखाना िै


01. घि में िी तीन पीदढयााँ ििें तो वि उिम घि िै, चाि पीदढयााँ िई तो
अहतश्रेष्ठ िै।
02. परिवाि का हवस्ताि (Extension) िो, हवभाजन (Partition) निीं।
03. दादाजी का अनुसिण पोता भी किे । ऐसे काम कौन से िैं, ये सोचना।
04. घि के बच्चे हवद्यालय हनयहमत जाएाँ। उनकी हशक्षा की योग्य व्यवस्था
िो।
05. अपने कल की उिम बातें, अपने पूवमजों की साधनाएाँ औि उनकी अच्छछी
आदतें हनिं ति हसखाते ििना।
06. बच्चों को पडोसी बच्चों के साथ खेलने के हलए प्रोत्साहित किना।
07. बच्चों को दूसिों को सियोग देना भी हसखाना चाहिए।
08. अपने बन्धु हमत्रों के घि के कायमक्रमों में बच्चों को ले जाना, लौिकि विााँ
के कायमक्रम का क्रम, हवशेषताओं का वणमन किने को किना।
09. अपने गााँव या मूल स्थान की हवशेषताओं का वणमन किना, बच्चों को
बताना।
10. जल संिक्षण औि जल सदुपयोग हसखाना।
11. अच्छछी हचत्र कथा, पुस्तकें का लाकि बच्चों को देना, पढ़ने की प्रेिणा
देना।

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12. घि के सभी काम किने औि कु शलतापूवमक किने का सामथ्यम सब में


आए।
13. बच्चों को हतहथ, वाि, नक्षत्र, मास औि वषम का नाम कण्ठस्थ किवाना।
14. बच्चों को संस्कािक्षम श्लोकों को कण्ठस्थ किवाना।
15. िि ददन बच्चों को अच्छछी किाहनयााँ सुनाना। इससे ज्ञान के साथ संबंध
बढ़ता िै।
16. बच्चों का स्वाहभमान बढ़े, प्रेिणा हमले ऐसे नाम िखना।
17. स्नान के बाद मस्तक पि हतलक लगाना।

सावधाहनयााँ
01. िाथ, पैि, मुि
ाँ धोकि िी भोजन किना िै।
02. घि व्यसन से मुि िो।
03. बच्चों के सामने घि की समस्याओं (हववाद, कलि, वनंदा) की चचाम न
किें ।
04. अपशब्द निीं बोलना, सुनना भी निीं।
05. बच्चों के सामने झगडा किना, गाली देना इत्यादद न किें । जाहत सूचक
शब्द औि व्यविाि का िमािे घि में स्थान न िो।
06. गिीब औि हभक्षुकों के बािे में सबको प्रीहत औि करुणा ििे। दान
देने का संस्काि हमले।
07. हववश िोकि किने वाले कामो का आदत न िो, प्रसिहचि िोकि िी
काम किें ।
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08. जो देखें वो सब खिीदने की औि उसमें िी गवम किने की पाश्चात्य दृहष्ट


अपने घि में निीं आने देना चाहिए।
09. घि के समािोिों में क्ट्या किना, क्ट्या निीं किना ऐसी चचाम किते
तद्नुसाि व्यविाि किना।
10. दिेज निीं लेना। दिेज लेने से यिी पता चलता िै दक िम वध को नीचा
समझते िैं।
11. सदा धन के बािे में हचन्ता, चचाम न िो।
12. अपने पडोसी के घि भी अपने जैसे स्वच्छछ ििें, इस िेतु प्रयास िो।
13. ईश्वि के बािे में श्रद्धा बनी ििे।
14. हस्त्रयों के बािे में कभी भी हतिस्काि का शब्द प्रयुि ना िो। उनको सदैव
आदि से संबोहधत किें ।
एक अनुभव - हपता औि पुत्र दोनों डाक्ट्िि। पुत्र ने ऊंची आवाज में कठोिता
से बिन को पुकािा "ऐ सुशीला....!" हपता ने तुिंत पुत्र को बुलाया औि पूछा
"आनंद! दकसको बुलाया?" आनंद ने किा, "सुशीला को" हपता ने पुत्र को किा
"सुशीला इस घि की लक्षमी िै। स्नेि औि कोमलता से बात दकया किो।"

घि में सभी को मालूम िो


01. जल्दी सोकि जल्दी उठना (हजनका ददन बडा िोता िै वे देव औि हजनकी
िाहत्र बडी िोती िै वे िाक्षस बनते िैं)।
02. हबना कािण हमष्ठान निीं खाना। अके ले हमष्ठान निीं खाना।
03. घि में हमष्ठान को पिले बच्चों को देना, बाद में बडों ने खाना।
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04. Credit card के पीछे का हचन्तन आिोग्यकि औि हितकािी िै क्ट्या?


दकसी को भी बचत का अभ्यास न िो ऐसी Credit card की अवधािणा िै।
िि एक परिवाि बचत किे गा तो के वल स्वयं का िी निीं, देश औि समाज का
भी भला िोगा।
05. अच्छछे परिवाि में क्ट्या क्ट्या ििता िै? स्वच्छछता, सिलता, आपस में प्रीहत
औि हवश्वास, तुलसी, ईश्वि के हलए एक स्थान, िं गोली, स्वदेशी स्वभाव,
भाितमाता का हचत्र, मिापुरुषों के हचत्र, उिम वातामपत्र, सबको सुहवधा देने
की आद्यता, अहतहथयों का आत्मीय स्वागत, आइये बैरठये इत्यादद गौिवयुि
वचन, बैठने के हलये आसन, पीने का पानी, जलपान देना इत्यादद।
06. बडों को, गुरुजनों को, हस्त्रयों को, िोहगयों को, बच्चों को प्रमुखता देकि
बाद में िम साधन का उपयोग किें ।
07. परिवाि में मातृभाषा में िी बातचीत किना।
08. भाित एक देश िै, िमािी एक िी संस्कृ हत िै िम सबका एक िी
जनजीवन िै।
09. िम गोपूजक िैं। गो माता िै। वि सब देवताओं का आश्रय स्थान िै।
10. घि में आने वालों से उनकी जाहत के बािे में निीं पूछना चाहिए। दकसी
भी जाहत की वनंदा न किें ।
11. घि से बािि जाते समय बडों को बताकि जाएाँ।
12. घि में सब वस्तुओं का हनहश्चत स्थान ििना चाहिए औि सब उसी स्थान
पि िखें।
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13. सब अपने काम स्वयं किें ।


14. हन:शि बुजगों का काम, िम किके दें।
15. सबको जानकािी ििे ऐसे मित्वपूणम हवषय-
हतहथ- प्रथमा, हद्वतीया...।
वाि - िहव, सोम...।
मास - चैत्र, वैशाख...।
िाहश - मेष, वृषभ...।
पक्ष - शक्ट्ल, कृ ष्ण...।
संवत्सि - प्रभव, हवभव...।
ऋत - वसंत. ग्रीष्म...।
अयन - उििायण, दहक्षणायन।
ददशाएाँ- पूव,म पहश्चम...।
ददक्ट्पाल- इन्द्र, अहि...।
16. समयोहचत कु छ श्लोक-
उठते समय - किाग्रे वसते...।
सोने के पिले - िाम स्कद...।
ऐसे िी स्नान, भोजन इत्यादद के समय बोलने के श्लोक।
17. घि में पशु पहक्षयों का संिक्षण औि पोषण योग्य िीहत से िो।
18. िसोई की प्रथम िोिी गाय को औि आहखिी िोिी कु िे को।
19. घि में स्वदेशी वस्तुओं का िी उपयोग िो।
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20. देश के मिापुरुषों की हवशेषताओं का स्मिण किने की व्यवस्था िो।


21. घि, बािि व अन्दि से स्वच्छछ ििे औि जमीन साफ सुथिी ििे।
22. घि में आये अहतहथयों को शिबत, चाय, पानी देना।
23. अपने घि के साथ अपना परिसि औि घि के सामने का िास्ता भी स्वच्छछ
ििे।
24. साधु सज्जन घि में आकि कु छ समय ििें ऐसी योजना किें । इससे घि में
सुख शांहत बनी ििती िै।
25. घि में दान िेतु मुहष्ट धान्य, हुहण्ड इत्यादद हनयहमत ििे।
26. गोग्रास, उपवास, नैवेद्य, प्रसाद, समपमण इत्यादद शब्दों का परिचय औि
उपयोग घि में िोता ििे।
27. घि में बडों को सम्मान छोिों को स्नेि हमलने का वाताविण ििे।
28. हवद्यालय, मिाहवद्यालय जाते समय व अन्य समय में भी घि की प्रहतष्ठा
बढ़े, ऐसा वेष पिनना।
29. सभी काम ठीक समय पि किना।
30. जो वस्तु िमािी निीं िै उसको िखना निीं चाहिए।
31. सप्ताि में एक बाि सािे शिीि को तेल लगाकि स्नान किना।।
32. गृिकायम बच्चे स्वयं किें । मातायें उसको किने के हलये आगे निीं बढ़ें।
माता औि बच्चों का संबंध न हबगडे। यदद बच्चे स्वयं आकि पूछते िैं तो आपको
हजतना मालूम िै उतना बता सकते िैं। मैं िी सब हसखाती हाँ ऐसा भाव ठीक
निीं िै। बच्चों को आत्महनभमि बनने दें।
33. सामाहजक समिसता लाने वाले िाष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, िाष्ट्र सेहवका

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सहमहत, सत्संग इत्यादद कायम में सदक्रय िोना।


34. घि में सामाहजक हवकास, सामाहजक समस्याओं के बािे में हवचाि िोते
ििें औि उिम कायों को सियोग हमलता ििे। यि समाज के हित के हलए
बहुत आवश्यक िै।
35. घि में वृद्ध लोग, सामाहजक कायमकताम, प्रचािक इत्यादद आएाँ तो बच्चों
को उनके साथ बैठकि बातचीत किने की आदत डालना। कमिे में जाओ, उन्िें
ऐसा न किें।
36. बच्चे िि ददन हतहथ, वाि, नक्षत्र, संवत्सि, मास, पक्षों का नाम दुििाना
सीखें ऐसी व्यवस्था घि में िो।
37. हिन्दुओं का मतांतिण बढ़ ििा िै। हिन्दू जनसंख्या कम िो ििी िै। घि में
सबको यि हवषय मालूम िो। सभी को इसके प्रहतकाि के बािे में सोचना
चाहिए।
38. बच्चों का हववाि दकस आयु में िोना ठीक ििेगा इस बािे में भी बताना
िोगा।
39. दकतने बच्चे िों? व्यहि, परिवाि, समाज तीनों दृहष्ट में िखकि सोचना
चाहिए।
40. घि में मम्मी, डैडी, अंकल, आंिी इत्यादद शब्दों को छोडकि दादा,
नाना, ताई, अम्मा, बाबूजी इत्यादद संबंध सूचक शब्दों का प्रचलन िो।
हिन्दुओं को हिन्दू संस्कृ हत िी अपनानी चाहिए।

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भाितीय औि पाश्चात्य दृहष्टकोण में अंति


मान लो बात किते समय िम दकसी व्यहि का उल्लेख कि ििे िैं, इतने
में वो आ जाता िै तो िम क्ट्या किते िैं? "इनकी लम्बी आय िै, हचिं जीवी िैं"।
पिं तु अंग्रेजी में अहभव्यहि िोती िै तो Think of the Devil, there
he comes (अथामत शैतान का नाम लो, शैतान िाहजि) यि अंग्रेजी से
अनुवाददत िै। मूलतः यि भाितीय किावत निीं िै। शैतान शब्द भी
अभाितीय िै।

हिन्दू पिं पिा की हवशेषताएाँ


01. प्राहणयों की विंसा निीं किना। अविंसा पिमो धममः।
02. बडों से उित स्थान पि निीं बैठना चाहिए।
03. जब बडे खडे िैं, छोिों को निीं बैठना चाहिए।
04. पूजा िो ििी िो तो भहि भाव से शांहतपूवमक भाग लेना चाहिए।
05. गंगा हवश्व में श्रेष्ठ नदी िै, उसका पानी अत्यन्त पहवत्र िै।
06. जीवन में कम से कम एक बाि काशी औि िामेश्विम की यात्रा
07. शुभ अवसिों पि 'मंगलहनहध' प्रदान किना चाहिए।
08. दकसी घि में जाकि अंत्यदशमन कि आने के बाद स्नान किने के बाद िी
सामान्य व्यविाि प्रािं भ किें ।
09. सबको संकल्प याद ििें। िि ददन दुििाएाँ। इससे अपने देश, संस्कृ हत औि
परिवाि का ज्ञान जागृत ििता िै।
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10. धन का अजमन उिम िीहत से िी िो।


11. खचम किते समय घि के हनवमिन, अगली पीढ़ी को उिम संस्काि, बचत
किना औि धमम कायम के हलये इन सबका संतुलन ििे।
12. िि व्यहि पि तीन ऋण िोते िैं-देवऋण, ऋहषऋण, हपतृऋण।
13. प्रदशमन के हलये खचाम निीं किना चाहिए।
14. घि के कामों में सभी सदस्यों का सियोग यथाशहि हमलता ििे।
15. बच्चों को खाने के पिले दकसी को देकि खाने' का अभ्यास किवायें।
16. काम किते समय माताएाँ स्तोत्र या भहिगीत गाते-गाते काम किें , तो
वाताविण बदल जाता िै, बच्चों में आत्महवश्वास बढ़ता िै।
17. वृद्ध माता हपता के साथ ििें।
18. घि में कभी-कभी गपशप िोती ििे।
19. वषम में एक बाि अपने बन्धु हमत्रों को अपने घि में बुलाकि पूजा यज्ञ
आदद किके सबको प्रसाद देने का कायमक्रम िो।
20. उतम ग्रंथों के बािे में कभी-कभी चचाम िोती ििे।
21. बडे व्यहि घि में आएाँ तो उनको नमस्काि किके आशीवामद लेना।
22 बडे व्यहियों के साथ सम्मान से कै से बात किें यि भी बच्चों को हसखाना
चाहिए।
23. घि के सभी व्यहि सप्ताि में एक बाि हमलकि अपने परिवाि के बािे में
चचाम किें ।
24. भूख, अंधकाि औि मौन का अनुभव सबको िो ऐसी योजना बनाना।
25. ग्राम हवकास के कामों में परिवाि के सब सदस्यों का सियोग हमलता
ििे।
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हवहशष्ट हिन्दू संकल्पनाएाँ


मिर्षम वेदव्यास हवश्व प्रहसद्ध वचंतक िैं। उन्िोंने िी वेदों को चाि भागों
में बााँिा। दकसी ने उनसे प्रश्न पूछा, "िम साधािण व्यहि िैं। बहुत पढ़ना िम
से निीं िोता। आपके ग्रंथों का मूल तत्व क्ट्या िै यि िमको संक्षेप में समझा
सकते िैं क्ट्या?" वेदव्यास ने उिि ददया-
“पिोपकािाय पुण्याय पापाय पिपीडनम्।”
"पिोपकाि किना पुण्य, पिपीडा पाप" दूसिों का कल्याण किना पुण्य,
दूसिे को कष्ट देने से पाप। यि िमािे सभी ग्रन्थों का साि िै। मानव को मानव
बनने के हलए दोनों बातों का पालन किना चाहिए। पुण्य अथामत् लोकहित
किते ििना। अपना परिवाि हिन्दू परिवाि पाप अथामत् पिपीडन कभी निीं
किना। इसका पालन किने से मानव श्रेष्ठ बनता िै।
एक हवहचत्र बात िै। 'पाप' इसका पयामयवाची शब्द अंग्रेजी में Sin
िै। लेदकन 'पुण्य' के हलए विााँ कोई शब्द निीं िै।

िमािी आस्थाएाँ
01. 'सत्यं वद धमम चि’। सत्य बोलना धमम के अनुसाि चलना।
02. पि स्त्री को माता जैसे देखना।
03. पि धन को हमट्टी जैसे देखना।
04. प्रत्येक जीव मात्र को अपने जैसे देखना।
05. ईश्वि एक िै नाम अनेक। 'एक सत् हवप्राः बहुधा वदहन्त'।

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06. ईश्वि सवाांतयाममी िैं, सवमशहिमान िै, सवमज्ञ िै।


07. ईश्वि िमको दण्ड निीं देता, िमािा िक्षण किता िै।
08. हवश्व के वल मानव मात्र के हलये निीं समस्त जीव मात्र के हलये िै।
09. िमें हजतनी अवश्यकता िै उतना मात्र उपयोग किना। अनावश्यक खचम
निीं किना।
10. दूसिों का अच्छछा दकया तो पुण्य, बुिा दकया तो पाप। पुण्य का काम
किते ििें, पाप कमम कभी न किें ।
11. चाि पुरुषाथम - हजनको सभी को किना िोता िै - धमम, अथम, काम, मोक्ष।
12. "पुनिहप जननं पुनिहप मिणं” जो पैदा िोते िैं वे सब मिते िैं - जो मिते
िैं वे सब दफि से जन्म लेते िैं।
13. जैसा कमम किते िैं, वैसा फल हमलता िै। इसको िाल निीं सकते।
14. 'उद्धिे दात्मनात्मानम्' िमािी उिहत अपने िाथ में िी िै।
15. देकि खाना िी धमम िै - तेन त्यिे न भुज्जीथा।
16. िि मानव को पााँच यज्ञ किना िै। देवयज्ञ, हपतृयज्ञ, मनुष्ययज्ञ,
भूतयज्ञ, ब्रह्मयज्ञ।
17. मातृ देवोभव, हपतृ देवोभव, आचायम देवोभव, अहतहथ देवोभव।
18. ििा वृक्ष निीं कािें। फलदाि-छायादाि वृक्ष लगाएाँ।
19. िम ऋहषयों की सन्तान िैं।
20. घि मंददि िै। उसको मंददि जैसे िी िखना।
21. गायत्री मंत्र अत्यंत श्रेष्ठ मंत्र िै।
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22. गिीबी पाप निीं िै।


23. स्वेच्छछा दारिद्रय औि अपनी आवश्यकताओं को कम किना यि एक श्रेष्ठ
मानहसकता िै।
24. 'त्यागाय संवत
ृ ाथामना' िघुवंश के इस गुण की वृहद्ध िो। न्याय मागम से खूब
धनाजमन किना। धन को पुण्य कायों में खचम किना। 'शतिस्तेन समािि सिस्व
िस्तेन हवदकि' - सौ िाथों से कमाना, िजाि िाथों से बााँिना।
25. यदद िमािा पैि दकसी को लगे तो तुिंत िाम-िाम किते हुए हसि
झुकाकि उनके उस भाग को िाथ से स्पशम कि अपनी आाँखों को लगाना िै।
यि पश्चाताप औि प्रायहश्चत का प प िै। ।
26. मानव ईश्वि बन सकता िै। बनना िी िै। इसके हलये िी भाित में जन्म
हुआ िै।
27. 'धन्यो गृिस्थाश्रमः' यि सबको मालूम िो।

भाित में जन्म हमलना एक सौभाग्यक्ट्यों किा गया?


भगवान आदद शंकिाचायम किते िैं दक तीन वस्तुएाँ जीवन में हमलना
बहुत दुलभ
म िैं औि ईश्वि की कृ पा के हलए ये तीन वस्त अहनवायम िैं।
दलमभत्रयमेवत ै द् दैवानुग्रिकािकम्।
मनुष्यत्वं मुमक्ष
ु त्वं मिापुरुषसंश्रयः।।
मनुष्य को ये तीन दुलमभ िैं। एक मनुष्यता (मनुष्य शिीि तो सबके पास
िै, पि मनुष्यता दुलमभ िोती िै।) दूसिा मोक्ष (पिम ज्ञान, हनवामण) की इच्छछा

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औि तीसिा, मोक्ष तत्व (ब्रह्म ज्ञान) को जानने वाले मिापुरुष (हसद्ध,


ब्रह्मज्ञानी) की संगहत।
भाित में जन्म हमलने से ये तीनों सिजता से प्राप्त िो जाते िैं। भाित
भूहम में अध्यात्म का एक अदृश्य हवद्युत प्रवाि (Under Current) सदा बना
ििता िै।

इन श्लोकों को याद िखें


सबेिे उठते समय :-
समुद्रवसने देहव! पवमतस्तनमण्डले।
हवष्णुपहल! नमस्तुभ्यम् पावस्पशम क्षमस्व मे॥
समुद्रप पी वस्त्रधािण किने वाली, पवमतप पी स्तनों वाली एवं भगवान
श्रीहवष्णु की पत्नी िे भूहमदेवी! मैं आपको प्रणाम किता हं। मेिे पैिों का
आपको स्पशम िोगा। इसहलए क्षमा चािता हाँ।

भोजन के पिले :-
ब्रह्मापमणं ब्रह्मिहवि् ब्रह्मिौ ब्रह्मणाहुतम्।
ब्रह्मैवतेन गन्तव्यं ब्रह्मकमम समाहधना।।
यज्ञ में दकया जाने वाला समपमण, यज्ञ में दी जाने वाली आिहत (िहव
आदद) ब्रह्म िै। ब्रह्मप पी अहि में ब्रह्मप प िोमकताम द्वािा जो िवन दकया गया,
वि भी ब्रह्म िै अत: ब्रह्मप प कमम में समाहधस्थ पुरुष के द्वािा जो प्राप्त िोने
योग्य िै वि ब्रह्म िी िै।
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सोने के पिले :-
िाम स्कन्दं िनुमन्तं वैनतेयं वृकोदिम्।
शयने यः स्मिे हित्यं दुःस्वप्नं तस्य नश्यहत।
श्रीिाम जी, कार्तमकेय जी, िनुमान जी, गरुड जी, भीमसेन को जो शयन
किते समय स्मिण किता िै उसके बुिे स्वप्न समाप्त िो जाते िैं।

शाहन्त मंत्र :-
सवे भवन्तु सुहखनः सवे सन्तु हनिामया।
सवे भद्राहण पश्यन्तु मा कहश्चत् दुःखभाग्भवेत।् ।
सभी सुखी िोवे, सभी िोगमुि ििें, सभी मंगलमय घिनाओं के साक्षी
बनें औि दकसी को भी दुःख का भागी न बनना पडे।

बचपन में िी सबको हसखाना िै।


हतथयः (16)
प्रथमा, हद्वतीया, तृतीया, चतुथी, पंचमी. षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी,
दशमी, एकादशी. द्वादशी, त्रयोदशी, चतुदश
म ी, पौर्णममा, अमावस्या।
पक्षाः (2)
शुक्ट्लपक्ष (प्रथमा से पूर्णममा तक)
कृ ष्णपक्ष (प्रथमा से अमावस्या तक)
चन्द्र मासाः (12)
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चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाद, श्रावण, भाद्रपद, आहश्वन, कार्तमक,


मागमशीषम, पौष, माघ औि फाल्गुना
सौिमासाः (12)
मेष, वृषभ, हमथुन, ककम , वसंि, कन्या, तुला, वृहश्चक, धनुष, मकि, कुं भ
औि मीना
ऋतूहन (6)
चैत्र वैशाख मासयोः - वसन्त ऋतु:
ज्येष्ठ आषाढ़ मासयोः - ग्रीष्म ऋतु:
श्रावण भाद्रपद मासयोः - वषाम ऋतुः
आश्वयुज कार्तमक मासयोः - शिदूतुः
मागमशीघम पुष्य मासयोः - िेमन्त ऋतु:
माघ फाल्गुन मासयोः - हशहशि ऋतु:
वासिाः 7 सप्ताि के सात ददन
(1) आददत्य, िहव भानु (2) सोम, इन्दु (3) मंगल, भौम्य (4) बुध, सौभ्य
(5) गुरु, बृिस्पहत (6) शुक्र, भागमव (7) शहन, हस्थि मन्द
नक्षत्रा: (27)
अहश्वहन, भिणी, कहतका, िोहिणी, मृगहशिा, आद्रा, पुनवमस,ु पुष्या,
आश्लेषा, मघा, पूवाम, उििा, िस्ता, हचत्रा, स्वाहत, हवशाखा, अनुिाधा, ज्येष्ठा,
मूला. पूवामषाढ़ा, उििाषाढ़ा, श्रवण, घहनष्ठा, शहतहभषा, पूवामभाद्रा,
उििाभाद्रा औि िे वती।

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भाित परिचय
हिमालयं समािभ्य यावददन्दु सिोवि,
तं दैव हनर्ममतं देश हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।।
हिमालय पवमत से आिम्भ कि इन्दु मिासागि तक फै ले देवताओं द्वािा
हनर्ममत देश को हिन्दुस्थान किते िैं। अथामत् इस भूभाग पि िािने वाले 'हिन्दू’
िैं।
सात नददयााँ :-
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सिस्वती।
नममवे हसन्धु कावेिी जलेऽहस्मन् सहिवधं कु प ।।
गंगा, यमुना, सिस्वती, गोदाविी, नममदा, कावेिी औि हसन्धु।
सात पवमत :-
मिेन्द्रो मलय: सह्यो देवतात्मा हिमालयः।
ध्येयो िै वतको हवन्थ्यो हगरिश्चािावहलस्तथा।।
हिमालय, हवन्ध्याचल, मिेन्द्र पवमत (उडीसा), मलय पवमत (कनामिक),
सह्यादद्र (मिािाष्ट्र), िै वतक (गुजिात) औि अिावली (िाजस्थान)।
सात मोक्षपुरियााँ :-
अयोध्या मथुिा माया काशी काहि अवहन्तका।
पुिी द्वािावती चैव सप्तैता मोक्षदाहयकाः॥
अयोध्या, मथुिा, िरिद्वाि (माया), काशी, कांहच, अवहन्तका (उज्जहयनी)
औि द्वारिकापुिी।

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चाि धाम :-
बद्रीनाथ (हिमालय), जगिाथपुिी (उडीसा), सेतुबन्ध िामेश्विम्
(तहमलनाडु ) औि द्वारिका (गुजिात)
चाि शांकि मठ :-
ज्योहतममठ (गढ़वाल, हिमालय), गोवधमन मठ (जगिाथपुिी), श्रृंगेिी मठ
(कनामिक) औि शािदा मठ (द्वारिका, गजिात)
चाि कु म्भ स्थल :-
िरिद्वाि, प्रयाग, अवहन्तका औि नाहसक। बािि ज्योहतर्लांग : के दािनाथ
(गढ़वाल, उििाखण्ड), हवश्वनाथ (काशी, उ० प्र०), वैद्यनाथ (देवधि,
हबिाि), ओंकािे श्वि/अमलेश्वि औि मिाकाल (उज्जहयनी) (मध्यप्रदेश),
सोमनाथ औि नागेश्वि (गुजिात), त्र्यंबके श्वि, भीमशंकि औि घुष्मेश्वि
(मिािाष्ट्र), महल्लकाजुमन (श्रीशैलम, आंध्र), िामेश्वि (तहमलनाि)

भाित माता की जय

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