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लेखक य - बहत कम लोग इस अ ात त य से प रिचत ह गे िक वी पर होने वाली

सभी अकाल मृ यु और वाभािवक मृ यु के बाद लगभग तीस ितशत लोग


‘ ेतगित’ को ा होते ह । इसम अकाल मृ यु वाल का दस से प ह ितशत होता
है और लगभग प ह से बीस ितशत ही वाभािवक मृ यु से मरे लोग का होता है ।
बीमारी, दघु टना, ह या, टोना आिद ारा अकाल मृ यु को ा हये लोग, अभी उनक
आयु शेष रहने से, अपने सू म शरीर म आयु का ठीका पणू होने तक भटकते रहते ह ।
ये साधारण और अ सर बङे ेत से डर कर रहने वाले ेत होते ह ।
लेिकन खास तौर पर वाभािवक मृ यु मरे लोग अ ानतावश उ टे, सीधे, नीच, और
अ ात देवी देव पजू ने से ेतगित को ा होते ह । य िक अनजाने म वे वयं ही
अपना सं कार उनसे जोङ देते ह । ायः ऐसे ेत पहले िक म क अपे ा सबल होते
ह।
इसके अित र एक तीसरी णे ी उन लोग क भी होती है, जो जानबझू कर ेत,
मसान, िज न आिद को लालच हेतु या शौिकया िस करते ह या अ य तरीक से
उनक सेवा करते ह, स पक म रहते ह । ये भी अ त समय ेतगित को ही ा होते ह ।
ये बङे और खतरनाक और ताकतवर ेत होते ह ।
इसके भी अलावा कुछ गलत ढंग से वामपंथी साधनाय करने वाले, िजनम शव
साधना, शमशान साधना, कापािलक आिद करने वाले भी अ त म ऐसी ही गित को
ा होते ह । इसी कार क साधनाओ ं म एक ‘िवशेष’ साधना और है, जो अ सर
लोग भि समझ कर करते ह और अिधकांश ी पु ष पजू ा सोच कर करते ह (िकसी
कारणवश इसको बताना उिचत नह ) ये भी अ त म इसी गित को ा होते ह । और
इनम से बह ितशत नीच देव के गण बनते ह ।
मनु य जीवन िजतना जीते जी मह वपणू है । उससे कह यादा मरने पर सम याये ह ।
य िक एक बार पच ं त व से बना ये भौितक शरीर छूट कर यिद अित दख
ु दायी और
क दायक ेतयोिन को ा हो जाता है । तो बङे ल बे समय तक उस जीव को
अनेकानेक कार के दा ण क को भोगना होता है ।
ततु कहानी ऐसे ही कुछ त य और ि थितय का वणन करती है ।
- राजीव कुल े
आगरा
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ेतनी का मायाजाल

शाम के सात बजकर चवालीस िमनट हो चक ु े थे ।


वातावरण म ह का ह का अधं रे ा फ़ै ल चक
ु ा था । सनू इस समय किलयारी कुटी
नामक एक बेहद गु और िस थान पर मौजदू था ।
किलयारी कुटी के आसपास का लगभग सौ िकमी इलाका िनजन वन था, िसफ़
उसक एक िदशा को छोङकर, जो यहाँ से तीन िकमी दरू किलयारी गावं के नाम से
जाना जाता था । इसको इस तरह से समझ िक सौ िकमी यास का एक वतृ बनाय,
और उसम बीस अंश का िह सा काट िदया जाय, और यही बीस अश ं वाला िह सा
इसं ान के स पक वाला था ।
शेष िह सा एकदम िनजन रहता था ।
किलयारी कुटी को साधना थली के प म उसे उसके गु ‘बाबाजी’ ने दान िकया
था और तबसे इस थान पर सनू कई बार सशरीर और अशरीर आ चक ु ा था ।
अपनी पहली अतं र या ा उसने इसी थान से अशरीर क थी ।
किलयारी कुटी के छह िकमी के दायरे म यहाँ पवू म तप यारत रह चक ु े िकसी तप वी
पु ष क ‘आन’ लगी हयी थी । वो तप वी पु ष कौन था । इसक जानकारी उसे नह
थी और न ही बाबाजी ने उसे कभी कुछ बताया था ।
उस कुटी के िनकट ही पहाङी ख ं ला से एक झरना िनकलता था । िजसम प थर के
टकराने से साफ़ हआ पानी उजले कांच के समान चमकता था । ये इतना व छ और
बेहतरीन जल था िक कोई भी इसको बेिहचक आराम से पी सकता था ।
कुटी से चार फ़लाग दरू वो पहाङी थी िजस पर इस व सनू मौजदू था । इस पहाङी
पर चार फ़ुट चौङी और दस फ़ुट ल बी, दो फ़ुट मोटी, दो प थर क िशलाएं एक घने
वृ के नीचे िबछी हयी थी । इस तरह यह एक शानदार ाकृितक डबल बेड था ।
किलयारी गावं से साढ़े तीन िकमी क दरू ी पर और इस पहाङी से आधा िकलोमीटर
क दरू ी पर एक परु ाना शमशान थल था । िजसके एक साइड का दो िकमी का
इलाका िकसी नीच वाम शि ने ‘बांध’ रखा था ।
कभी कभी उसे हैरत होती थी िक एक ही थान पर दो िवपरीत शि यां यानी साि वक
और तामिसक अगल बगल ही मौजदू थी, जो एक तरह से असंभव जैसा था ।
सनू ने एक िसगरे ट सलु गायी और जैसे यँू ही किलयारी िवलेज क ओर देखने लगा ।
जहाँ बहत ह के काश के प म जीवन के िच नजर आ रहे थे ।
एक तरफ़ साधना के िलये इसं ानी जीवन से दरू एकदम िनजन म भागना, और दसू री
तरफ़ लगभग अप रिचत से इस जनजीवन को दरू से देखना, एक अजीब सी सख ु द
अनभु िू त देता था ।
सनू पहाङी पर टहलते हये अपने घर के बारे म सोचने लगा ।
नीलेश अपनी गल ड मानसी के साथ उसके घर मारीशस गया हआ था । बाबाजी
िकसी अ ात थान पर थे और इस व उसके स पक म नह थे ।
उसने अतं र क ओर देखा । जहाँ धीरे धीरे जवान होती रात के साथ असं य तारे
नजर आने लगे थे । उसका िदल कर रहा था िक किलयारी कुटी म अशरीर होकर
सू म लोक क या ा पर िनकल जाये, जो इ ह तार के बीच अतं र म हर ओर
फ़ै ले हये थे ।
पर बाबाजी के आदेशानसु ार उसे बीस िदन का समय इसी किलयारी कुटी म एक
िवशेष साधना करते हये िबताना था ।
- दाता । उसके मख ु से आह सी िनकली - तेरी लीला अपर पार ।
उसने र टवाच क लाइट आन कर समय देखा ।
रात के नौ बजने वाले थे ।
तभी उसे अपने आसपास एक िविच सा अहसास होने लगा ।
ह या.. कुसमु .. ह या.. कुसमु ..! ये श द बारबार उसके जेहन पर जैसे द तक सी देने
लगे ।
इसका सीधा सा मतलब था िक आसपास कोई सामा य आदमी मौजदू है । िजसके
िदमाग म इस तरह के िवचार का अंधङ चल रहा था ।
इस ‘आन’ लगे हये और दसू री साइड पर बांधे गये थान पर एक सामा य आदमी का
मौजदू होना और वो भी िकसी ह या के इरादे से एक अजबू े से कम नह था । तप वी
क ‘आन’ लगा हआ थान इटं रनेट के उस ‘वाइ फ़ाइ’ थान के समान होता है ।
िजसम आम िजंदगी क बात दरू से ही िबना यास के कै च होने लगती है, और इसी
आन के भाव से ‘जीव’ णे ी म आने वाली आ माय एक अ ात भाव से उस
थान से अनजाने ही दरू रहती ह ।
वह इस नयी हलचल के बारे म सोच ही रहा था िक शमशान थल क तरफ़ एक
रोशनी सी हयी और कुछ ही देर म बझु गयी ।
या माजरा था ?
वह पणू सचेत होकर उसी तरफ़ उस ‘अनजान जीव’ क तरफ़ एका हो गया ।
- या वह उसके पास जाकर देखे । उसने सोचा - या यह से उसका ‘माइडं रीड’ करे ।
िफ़र अपना यही िवचार उसे सही लगा और उसने उसके िदमाग से स पक जोङा ।
वह एक आदमी था । िजसके पास इस समय एक भरी हयी रवा वर थी, और वह
कुसमु नाम क िकसी औरत क ह या कर देना चाहता था । इससे यादा इस व
उसके िदमाग म और कुछ नह था, जो सनू रीड करता ।
उसक िज दगी के और भी िप ले प ने उसने खोलने क कोिशश क । िजसम वह
उस व पणू तया असफ़ल रहा । इसक बेहद ठोस वजह ये थी िक इस व वह
आदमी परू ी एका ता से इसी िवचार पर के ि त था, और उसक िज दगी के अ य
अ याय बक के िकसी मजबतू सेफ़ वा ट क तरह ला ड थे ।
कुसमु नाम क वह औरत कौन थी और इस व यहाँ य कर आयेगी ।
ये उसके िलये एक अजीब गु थी थी ।
अब उसके िलये एक बङा सवाल ये भी था िक वह उससे कै से बात करे ? करे या न
करे । वह उससे कै से पछ
ू े गा िक वो यहाँ य है ? यही सवाल वो उससे करे गा तो वह
उसे या जबाब देगा ?
- मािलक । उसने गहरी सांस ली - अजब गजब खेल तेरे ।
िफ़र उसे एक उपाय सझू ा ।
पहल उसी क तरफ़ से हो तो अ छा था ।
ऐसा सोचकर सनू ने कमर म बंधी बे ट से लटकती टाच िनकाली और जलाकर तीन
चार बार सचलाइट क तरह इस तरह घमु ाया, मान सरकस वाले शो ार भ होने पर
घमु ा रहे ह ।
प रणाम उसक आशा के अनु प ही िनकला ।
वह उसक यानी वहाँ िकसी अ य क उपि थत जान गया था और इसक एक ही
वजह थी ।
उस समय उसका बेहद च क ना होना ।
वह आदमी इस नयी ि थित पर कुछ देर तक खङा खङा सोचता रहा और िफ़र मानो
एक ग भीर िनणय के साथ उसक ओर आने लगा । सनू ने उसे अपनी और भी सही
पोजीशन जताने के िलये आठ दस बार लाइटर इस तरह जलाया बझु ाया । मान
िसगरे ट जलाने म िकसी तरह क िद कत हो रही हो ।
दस िमनट बाद ही वह पहाङी से नीचे एक वृ के पास आकर खङा हो गया । पर
उसने उसके पास आने या उसे पक ु ारने क कोई कोिशश नह क । उ टे उसने उसका
फ़ामलाू उसी पर आजमाते हये िसगरे ट बीङी म से कुछ मँहु से लगाकर तीन बार
मािचस को जलाया ।
अब वह उससे लगभग दो सौ कदम दरू पहाङी के नीचे कुछ हटकर मौजदू था ।
पर तु वे दोन ही इस कशमकश म थे िक एक दसू रे के बारे म कै से जाना जाय ?
तब उसने मान िन े य ही टाच क रोशनी अपने ऊपर पेङ पर फ़क और
वाभािवक ही सनू के मख ु से तेज आवाज म िनकला - ऐ वहाँ पर कौन है ?
- म हँ भाई । वह तेज आवाज म बोला - मेरा नाम दयाराम है ।
और अगले कुछ ही िमनट म वह उसके पास प थर क िशला पर बैठा था और उसे
उस िनजन और वीराने थान म अके ला देखकर बेहद हैरान था । उसक ये हैरानी और
ती िज ासा का हो जाना सनू का अ यिधक नक ु सान कर सकती थी । इसिलये
सनू ने उसे बताया िक वह बायोलोजी का छा है, और उसका काय कुछ अलग
िक म के जीव ज तओ ु ं पर शोध करना है, जो ायः इस े म अिधक िमलते ह ।
उसने जानबझू कर आधी अं ेजी और बेहद किठन श द का योग िकया था । तािक
उसक बात भले ही उसक समझ म न आये । पर वह उसके यहाँ होने के बारे म
अिधक सदं हे न करे , और कुछ समझता कुछ न समझता हआ संतु जाय ।
वही हआ ।
लेिकन इसम सनू क चपल बात से यादा इस व उसक मानिसक ि थित
सहयोग कर रही थी । िजसके िलये वह इस लगभग भतु हा और डरावने थान पर रात
के इस समय मौजदू था ।
कुछ देर म संयत हो जाने के बाद उसने उसका नाम पछ ू ा।
सनू ने सहज भाव से बताया ।
- सनू जी । वह आसमान क तरफ़ देखता हआ बोला - आपक शादी हो चक ु है ?
- नह । सनू ने जंगली े क तरफ़ लगे घने पेङ क तरफ़ देखते हये कहा -
दरअसल कोई लङक मझु े पस द ही नह करती । आपक िनगाह म कोई सीधी साधी
लङक हो तो बताना ।
- िफ़र तो तमु खश ु िक मत ही हो, दो त । उसने एक गहरी सांस ली और बोला - इस
सिृ म औरत से यादा खतरनाक कोई चीज नह है ?
कहकर कुछ देर तक वह जैसे िकसी गहरी सोच म डूबा रहा, िफ़र उसने चरस से भरी
हयी िसगरे ट िनकाल कर सल ु गायी, और एक दसू री िसगरे ट सनू क ओर बढ़ाई ।
लेिकन िफ़र उसके मना करने पर वह िसगरे ट के कश लगाता हआ मान अतीत म
कह खो गया । और जैसे उसक उपि थित को भी भल ू गया ।
तब सनू ने एक सादा िसगरे ट सल ु गायी और र टवाच पर ि पात िकया ।
रात के लगभग दस बजने वाले थे ।
चरसी िसगरे ट क अजीब सी कसैली महक वातावरण म तेजी से फ़ै ल रही थी ।
दयाराम ह के नशे म मालमू होता था ।
इसका सीधा सा अथ था िक उसके पास आने से पवू ही वह एक-दो िसगरे ट और भी
पी चक ु ा था ।
यह उसके िलये िबना यास के ही हआ फ़ायदे का सौदा था । य िक तब स चाई
जानने के िलये उसे उसके िदमाग से यादा छे ङछाङ नह करनी थी । बि क उस गम
के मारे ने खदु ही रो रोकर उसे अफ़साना ए िज दगी सनु ा देना था ।
कुछ देर तक दयाराम चरसी िसगरे ट के सु े लगाता रहा ।
िफ़र उसने शमशान क तरफ़ िनगाह डाली । मान वह बङी बेकरारी से िकसी क
ती ा कर रहा हो ।
सनू को उसक इस हरकत पर जैसे बेहद हैरत हो रही थी ।
अधं ेरे म भला वह अपने ल य को कै से देख सकता था । हालािं क च मा क रोशनी
के कारण गहरा अधं ेरा तो नह था । िफ़र भी वह इतना पया नह था िक यहाँ से
आधा िकलोमीटर दरू वह िकसी को आते जाते या खङा देख सके ।
उसने दो तीन बार मािचस जलाकर बहाने से सनू का चेहरा मोहरा देखकर ये
अ दाजा लगाने क कोिशश क िक वह िव ास करने यो य है, या नह ।
सनू अ छी तरह समझ रहा था िक वो बार बार यही सोच रहा है िक अपना राज उसे
बताये, या न बताये ।
- तमु । अ ततः दयाराम बोला - यही सोच रहे होगे िक आिखर म कौन हँ, यहाँ य
आया हँ ?
सच तो ये है सनू , म अपनी बीबी क ह या करने आया हँ । वो बीबी, जो मेरी बीबी
है, पर जो मेरी बीबी नह है ।
बात के बीच म ही वो अचानक हँसा, िफ़र ओर भी जोर से हँसा, और अ हास करने
लगा - उफ़ है न कमाल ! बीबी है, पर बीबी नह है, तो सवाल ये है सनू जी, िक
बीबी आिखर कहाँ गयी ? है वही, पर वो नही है, तो िफ़र कुसमु कहाँ गयी ।
अगर मेरे साथ चार साल से रह रही औरत एक ेतनी है, तो िफ़र कुसमु कहाँ है, या
िफ़र कुसमु लङक नह एक ेत है । कौन यक न करे गा इस पर ?
- तमु .. । वह उसे ल य करता हआ बोला - तमु , शायद यक न कर लो, और तमु
यक न करो या न करो, पर इस वीराने म तु ह अपनी दा तान बताकर मेरे सीने का ये
बोझ ह का हो जायेगा..?
दयाराम परतापरु का रहने वाला था ।
उसक तीन शािदयाँ हो चक ु थी पर शायद उसक िक मत म प नी का सख ु नह था ।
उसक पहली शादी प चीस बरस क आयु म राजदेवी के साथ हयी थी । नौ साल
तक उसका साथ िनभाने के बाद राजदेवी का देहा त हो गया । मरने से पवू सात साल
तक राजदेवी ग भीर प से बीमार ही रही थी, और इसी बीमारी के चलते अतं तः
उसका देहा त हो गया ।
राजदेवी के कोई सतं ान नह हयी थी ।
पतीस बरस क आयु म दयाराम का दसू रा िववाह शारदा के साथ हआ ।
शारदा से दयाराम को तीन ब च का बाप बनने का सौभा य ा हआ । उनक
ह थी मजे से चल रही थी िक एक िदन चौदह साल बाद शारदा भी िबजली के करट
से िचपक कर मर गयी ।
िजस िदन शारदा मरी ।
उसका सबसे छोटा ब चा दो साल का था, बीच का आठ साल का, और बङा यारह
साल का । दयाराम के सामने ब च के पालन पोषण क बेहद सम या आ गयी ।
उसके घर म ऐसा कोई नह था, जो इस िज मेदारी को सभं ाल लेता ।
तब दयाराम क सास ने अपने धेवत का मख ु देखते हये अपनी तीस साल क लङक
कुसमु जो शादी के सात साल बाद िवधवा हो गयी थी । उसक शादी िफ़र से दयाराम
के साथ कर दी ।
यह से दयाराम क िजंदगी म अजीब भचू ाल आना शु हो गया ।
िववाह के बाद दयाराम कुसमु को जब पहली बार बल ु ाने गया तो मोटर साइिकल से
गया था । उसके घर और ससरु ाल के बीच म लगभग एक सौ साठ िकलोमीटर का
फ़ासला था ।
लगभग सौ िकलोमीटर का फ़ासला तय करते करते दोपहर हो गयी ।
तब दयाराम ने सु ताने और खाना खाने के िवचार से मोटर साइिकल एक बिगया म
रोक दी । घने वृ से यु इस बिगया म एक कंु आ था । िजस पर एक र सी बा टी
राहगीर को पानी उपल ध कराने के िलये हर समय रखी रहती थी ।
बिगया से कुछ ही दरू पर बङे बङे तीन गढ्ढे थे, और कुछ ही आगे एक िवशाल
पीपल के पेङ के पास एक बङी पोखर थी ।
बेहद थकान सा अनभु व करते हये दयाराम का यान इस िविच और रह यमय
बिगया के रह यमय वातावरण क ओर नह गया । अलब ा खेत हार बाग बगीच
म ही अिधक घमू ने वाली कुसमु को ये बिगया जाने य बङी रह यमय सी लग रही
थी ।
वह बिगया एक अजीब सा रह यमय स नाटा ओढ़े हये जान पडती थी । उसके पेङ
पर बैठे उ लू और खसु िटया जैसे प ी मान एकटक कुसमु को ही देख रहे थे ।
दयाराम खाना खाकर आराम करने के िलये लेट गया ।
लेिकन िववाह के कई साल बाद, कुसमु यकायक एक पु ष क िनकटता पाकर शी
सहवास के िलये उ सक ु हो रही थी । जब दयाराम ने बिगया म मोटर साइिकल रोक ।
तभी उसने सोचा िक दयाराम ने ये िनजन थान इसीिलये चनु ा है िक वो भी कुसमु क
ही तरह शी ही उसके साथ सहवास क इ छा रखता है ।
य िक बिगया के आसपास दरू तक गावं नह थे, और न ही वहाँ कोई पशु चराने वाले
थे ।
अपने पित के मरने के बाद कुसमु ल बे समय तक दैिहक सख ु से वंिचत रही थी ।
इसिलये आज दयाराम को दसू रे पित के प म पाकर उसक स भोग क वह दबी
इ छा वाभािवक ही बलबती हो उठी ।
पर उसक इ छा के िवपरीत दयाराम लेटते ही सो गया और ज दी ही खराटे लेने लगा

हालांिक कुसमु भी कुछ थकान सी महससू कर रही थी । पर कामवासना के तेज क ङे
जैसे अब उसके अ दर कुलबु ल ु ा रहे थे । िजनके चलते वह अजीब सी बैचेनी महससू
कर रही थी । अभी वह दयाराम से इतनी खल ु ी भी नह थी िक उसे जगाकर स भोग
का ताव कर देती ।
अतः उसने एक बेबसी क आह सी भरी, और सनू ी बिगया के चार तरफ़ देखा ।
िफ़र हार कर वह एक पेङ से िटककर बैठ गयी और उसक िनगाह वृ पर घमू ने लगी

तब अचानक ही उसके शरीर म जोर क झरु झरु ी हयी, और उसके सम त शरीर के
र गटे खडे हो गये ।
उ लू जैसे गोल मँहु वाले वो छोटे छोटे प ी कुसमु को ही एकटक देख रहे थे । उनक
मखु ाकृित ऐसी थी, मान हँस रहे ह । घबरा कर उसने अ य वृ पर नजर डाली तो
वहाँ भी, उसे एक भी सामा य प ी नजर नह आया ।
सभी वैसे ही अजीब से गोल मँहु वाले थे, और एकटक उसी को देख रहे थे ।
तब पहली बार कुसमु को अहसास हआ िक य वो बिगया उसे रह यमय लग रही
थी ।
वहाँ अ य म भी िकसी के होने का अहसास था । और िन य ही कोई था, जो उसके
आसपास था । और बेहद पास था ।
भयभीत होकर उसने दयाराम को पक ु ारा । पर वह जैसे िकसी गहरी मायावी न द म सो
रहा था । तभी उसने अपने पु उरोज पर िकसी का पश महससू िकया ।
वह बेहद घबरा गयी, और अभी वह कुछ और समझ पाती िक िकसी िलजिलजे से
हाथ के पश ने उसक नािभ से नीचे तक जाकर योिन को छुआ ।
वह िच लायी - बचाओ ।
पर उसके मँहु से आवाज न िनकली ।
यकायक ही उसका िसर चकराने लगा, और कोई उसे जोहङ क तरफ़ ख चकर ले
जाने लगा ।
और िफ़र उसक चेतना अंधकार क गहन गहराईय म डूबती चली गयी ।
- फ़गआत । सनू के मँहु से अचानक िनकला - लोखङा ?
दयाराम ने च ककर उसक तरफ़ देखा ।
वह अतीत से बाहर आ चक ु ा था ।
उसका नशा जैसे ह का होने लगा था ।
सनू ने एक िसगरे ट जलायी, और िसगरे ट के स उसक तरफ़ बढ़ाया ।
िसगरे ट सलु गाने के बाद उसने िफ़र एक िनगाह शमशान पर डाली पर वहाँ कोई नह
था ।
पट म घसु ी हयी रवा वर से उसे परे शानी हो रही थी । उसने रवा वर िनकालकर
िशला पर रख दी और िसगरे ट के कश लगाता हआ टहलने लगा ।
िफ़र मान उसे कुछ याद आया और वह बोला - अभी अभी तमु ने या कहा..लोखङा
?
यह एक तरह से उससे गलती हो गयी थी ।
वह दयाराम को अपनी ेत जगत आिद क जानकारी का प रचय नह देना चाहता था

य िक ऐसा होने पर वह उ सक ु ता से अनेक सवाल करता । और सबसे बङी बात
किलयारी कुटी वाला गु थान, जो इस पहाङी से महज चार फ़लाग दरू था । उस
तरफ़ उसका यान जा सकता था, और उस ि थित म िफ़र उसे िवशेष उपाय करने होते

अतः उसने बात को घमु ाते हये कहा - कुछ नह , अभी अभी मझु े एक दल ु भ जीव पास
ही नजर आया था, पर मेरा यान तु हारी बात पर लगा था । खैर कोई बात नह , जाने
दो, िफ़र आयेगा ।
फ़गआत या लोखङा ेत क वो िक म होती है । जो िकसी अिभश थान पर, या
इ तेमाल न िकये जाने वाले शमशान थल के आसपास ही रहती है ।
अब तक दयाराम क सगं त म सनू बहत कुछ जान गया था । कुछ घटना वह अपने
िदमाग से अपनी जानकारी के अनसु ार सनु ा अव य रहा था । पर कुछ रह य इसम ऐसा
भी था । िजसके बारे म दयाराम भी नह जानता था ।
दरअसल ना जानकारी म दयाराम एक अिभश बिगया और अिभश थान पर क
गया था, जहाँ ेतवासा था । और पचास, साठ या अ सी साल पहले उस थान को
शमशान के प म योग िकया जाता होगा । बाद म कुछ घटनाएं ऐसी घटी ह गी,
िजससे वो थान अिभश या अछूत समझा जाने लगा होगा । इसी वजह से उसके
आसपास आबादी नह थी, और इसी वजह से वहाँ पशु आिद चराने वाले नह थे ।
य िक जो लोग ेतवासा के बारे म जानते ह गे, वह जानबझू कर आफ़त य मोल
लगे ।
इस तरह धीरे धीरे मनु य के दरू होते चले जाने से, उस थान पर ेत का क जा प का
होता चला गया, और दयाराम कुसमु जैसे यि अ ानता म उसम फ़ंसने लगे ।
पर उसके िदमाग म और भी बहत से सवाल थे ।
कुसमु पर ेत का आवेश हो जाना कोई बङी बात नह थी ।
लेिकन चार साल म उसने, या ेत ने, ऐसा या िकया था । जो दयाराम उसे मारने पर
आमादा था । दयाराम को कै से मालमू पङा िक कुसमु पर ेत था । उसने या इलाज
कराया । और सबसे बङा सवाल दयाराम उसको मारना ही चाहता था, तो घर पर
आसानी से मार सकता था ।
वह इस वीराने म य आया ?
चार साल तक ेतनी का एक आदमी के साथ रहना मामल ू ी बात नह थी ।
आिखर ेतनी कौन थी और या चाहती थी ?
अगर ेतनी परू ी तरह से कुसमु के शरीर का इ तेमाल कर रही थी ।
तो कुसमु इस व कहाँ थी, और िकस हाल म थी ?
ऐसे कई सवाल थे, िजनका उ र दयाराम, और सही उ र, कुसमु के पास था ।
पर कुसमु इस व कहाँ थी ?
बेहद सहु ानी, मगर बेहद रह यमय हो उठी रात धीरे धीरे अपना सफ़र तय कर रही थी ।
सनू ने किलयारी कुटी क तरफ़ देखा ।
उसने सोचा - अगर दयाराम न आया होता, तो वह या कर रहा होता ?
दयाराम अब भी टहल रहा था ।
उसने उ सक ु तावश िशला पर रखी टाच क रोशनी पेङ पर डाली ।
पेङ नीबू और बेर के िमले जल ु े आकार वाले फ़ल से लदा पङा था । ये गदू दे ार मीठा
फ़ल था, जो सनू भख ू लगने पर अ सर खा िलया करता था ।
किलयारी कुटी से पांच सौ मीटर दरू ऐसा ही एक अ य वृ था । िजस पर जामनु के
समान लाल और बगनी रंग के िच ेदार फ़ल लगते थे । ये फ़ल भी खाने म वािद थे
। पर ये एक चम कार क तरह किलयारी गांव और अ य गावं वाल से बचे हये थे ।
य िक पहाङी के नीचे का इलाका िकसी ेत शि ने बांध रखा था, और किलयारी
कुटी को िकसी तप वी क आन लगी हयी थी । ऐसी हालत म सामा य मनु य यिद
इधर आने क कोिशश करता तो उसे डरावने मायावी अनभु व हो सकते थे ।
जैसे अचानक बङे अजगर का िदखाई दे जाना, अचानक िकसी िहसं क ज तु का कट
हो जाना, अचानक कोई रह यमयी आकृित का िदखाई देना, विजत े म कदम
रखने वाले को तेज च कर आने लगना आिद जैसे कई भाव हो सकते थे ।
िजससे आदमी घबरा जाता, और ऐसी जगह पर आना छोङ देता ।
और ये वा तिवकता अभी दयाराम भी नह जानता था िक वो सनू के होने से इतनी
देर यहाँ िटक सका था । वरना िशकारी खदु ही िशकार हो जाना था ।
ेत के िलये रवा वर का भला या मह व था ।
अचानक दयाराम चौक ना हो उठा ।
और सनू रह यमय अ दाज म मु कराया ।
उसने फ़ुत से रवा वर उठा ली और सतकता से इधर उधर देखने लगा ।
सनू जानता था िक उसके र गटे खङे हो चक
ु े ह, और िनकट ही वह िकसी ेत क
उपि थित महससू कर रहा है, िजसका िक चार साल के अनभु व म वह अ य त हो
चक ु ा था ।
वा तव म उस व वहाँ दो ेत पहाङी के नीचे मौजदू थे ।
जो सनू को प िदखाई दे रहे थे ।
उनम से एक औरत अगं ी था, जो शायद कुसमु थी । और दसू रा कोई अ य पु ष अगं ी
था ।
हालािं क सनू ‘कवड’ ि थित म था, िफ़र भी वे ऊपर नह आ रहे थे ।
इसके दो कारण थे, एक तो ऊपर वाला इलाका लगभग आन के े म आता था ।
जहाँ ेत या य , िक नर, गंधव, डािकनी, शािकनी जैसी शि यां भी घसु ने से पहले
सौ बार सोचती ।
दसू रे सनू भले ही कवड (उ च तर के ताि क साधक अपने को एक ऐसे अ य
कवच म ब द कर लेते ह, िजससे उनक असिलयत का पता नह चलता । उ च तर
के महा मा, साध,ु सतं ायः इस तरीके को अपनाते ह, जो िक ही अ ात कारण वश
बेहद आव यक होता है) था । पर उस ि थित म भी वे एक अनजाना भय महससू कर
रहे थे ।
और उ ह जैसे अ ात खतरे क बू आ रही थी ।
सनू दयाराम को और अिधक िड टब नह होने देना चाहता था । इस तरह उसका
क मती समय न हो सकता था । अतः उसने उसक िनगाह बचाते हये एक ढेला
उठाया और फ़ंू क मारकर ेत क ओर उछाल िदया ।
उसे इसक िति या पहले ही पता थी ।
ेत अपने अगं म जबरद त खजु ली महससू करते हये तेजी से वहाँ से भागे ।
उनका अनमु ान सही था ।
पहाङी पर उनके िलये खतरा मौजदू था और वे अब लौटकर आने वाले नह थे ।
कुछ ही देर म दयाराम सामा य ि थित म आ गया ।
वह िफ़र से प थर क िशला पर बैठ गया और बैचेनी से अपनी उंगिलया चटका रहा
था ।
एक खश ु हाली क खाितर, अपने ब च क सही परव रश क खाितर, उसने तीसरी
बार शादी क । और उस शादी ने उसके परू े जीवन म आग लगा दी ।
पर वह कुछ भी तो नह कर सका ।
या करता बेचारा ?
- िफ़र । उसका यान पनु ः अपनी तरफ़ आकिषत करते हये सनू ने पछ ू ा - उसके बाद
या हआ ?
बिगया म सोया हआ दयाराम जैसे अचानक ही हङबङाकर उठा ।
उसने कलाई घङी पर नजर डाली तो तीन बजने वाले थे ।
यानी ढाई घ टे, वह एक तरह से घोङे बेचकर सोया था ।
उसे बेहद हैरत थी िक ऐसी चम कारी न द अचानक उसे कै से आ गयी थी ?
वह तो महज आधा घ टा आराम करने के उ े य से लेट गया था । मगर लेटते ही
उसक चेतना ऐसे लु हयी मान िकसी नशे के कारण बेहोशी आयी हो ।
पर वह न द म भी नह था ?
अपनी उसी अचेतन अव था म वह एक घनघोर भयानक जगं ल म भागा चला जा रहा
था ।
जंगल म रह यमयी पीला, काला अधं कार छाया हआ था ।
आसमान और उजाला कह नजर नह आ रहा था ।
बस चार तरफ़ वृ ही वृ थे और उन वृ के बीच म छोटे छोटे मंिदर बने हये थे ।
दयाराम को तब ऐसा लग रहा था िक जैसे कुछ अ ात लोग उसके पीछे पङे हये ह,
जो उसको मार डालना चाहते ह । बस उ ह से बचने को वह भाग रहा था ।
अचानक भागते म ही वह एक पेङ क झक ु डाली से टकराया, और िगर पङा ।
बस इसके बाद उसे कुछ याद नह रहा ।
उठने के तरु त बाद ही उसने एक बैचेन ि कुसमु क तलाश म इधर उधर दौङाई ।
वह गमु समु सी एक पेङ के नीचे बैठी थी, और एकटक कंु एं क ओर देख रही थी ।
मान औरत के थान पर एक िजंदा लाश हो ?
दयाराम ने उसे पकु ारा और आगे क या ा के िलये तैयार हो गया ।
वह मशीनी अ दाज म मोटर साइिकल पर बैठ गयी ।
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दयाराम के तीन ब चे सगी मौसी को माँ के प म पाकर बेहद खश ु थे ।
वह अपने ल बे चौङे घर म अके ला ही रहता था । शारदा के मरने के बाद उसने एक
नौकर रख िलया था, जो उसके तीन ब च और गाय बकरी आिद पशओ ु ंक
देखभाल करता था ।
उसका यह पु तैनी मकान काफ़ बङी जगह म बना हआ था । िजसम बङे बङे बाईस
कमरे थे । इसके अित र बाहर गली पार करके पशओ ु ं के िलये एक अहाता था, और
बारह कमर का एक कूल बना हआ था, जो अब ब द था, लेिकन दयाराम क
स पि था ।
उसके एकदम बगल वाला घर, िकसी यवसायी का था । िजसे वह गोदाम के प म
इ तेमाल करता था, और उसम कोई रहता नह था । इसी तरह दसू री साइड म भी,
लगभग आठ सौ मीटर क जगह खाली पङी थी ।
कुल िमलाकर दयाराम क वह िवशाल हवेली आबादी के िलहाज से लगभग अके ली
ही थी ।
कुसमु के शादी के बाद घर म पहली बार पैर रखते ही एक अजीब सा रह यमय
वातावरण सिृ जत हो गया । िजस पर अनजाने म ही दयाराम का यान नह गया ।
उस रात ही पहली बार दयाराम ने जब कुसमु से स भोग िकया तो उसे कुसमु म एक
अजीब सी और अनजानी ताकत का अहसास हआ । वह पहले ही सहवास म शरमाने
के बजाय कुछ हद तक िनल ज सा यवहार कर रही थी ।
दो तीन बार तो उसने दयाराम को वहशी क तरह लगभग दबोच ही िलया ।
दयाराम ने सोचा, कुसमु साली होने के नाते खल
ु ी हयी है और अपनी ताकत िदखा रही
है तथा एक ल बे समय के बाद पु ष का संसग हािसल होने से वह मयादाहीन हो रही
है ।
अतः उसे कुछ अजीब सा तो लगा, पर त काल ही कोई बात उसक समझ म नह
आयी ।
लेिकन अगली सबु ह तक सब कुछ सामा य हो चला था ।
कुसमु ने बडी द ता से घर सभं ाल िलया था और चहु लबाजी करती हयी एक नयी
प नी क तरह यवहार कर रही थी ।
दयाराम ने राहत क सांस ली ।
उसक उजङी ह थी िफ़र से बस चक ु थी ।
वह यादातर िदन भर घर से बाहर खेत पर ही रहता था ।
इसिलये अगले ढाई साल तक वह अपने घर म फ़ै ल चक ु े मायाजाल को नह जान
सका था । हालांिक उसे कुछ न कुछ ऐसा अव य था, जो अजीब लगता था, पर वो
कुछ, या था ।
यह उसक समझ से बाहर था ।
इन ढाई साल म कुसमु के दो ब चे हये, जो तीन-चार महीने क अव था होते ही
रह यमय तरीके से मर गये । कुसमु का यवहार भी अजीब था । इसका िज उसके
दोन बङे ब च ने और उसके नौकर पलाल ने भी िकया था ।
ब च के कूल जाते ही, घर अके ला होते ही, वह एकदम नंगी हो जाती थी, और
यादातर नगं ी ही रहती थी । उसे पानी के स पक म रहना बहत अ छा लगता था ।
गिमय म वह चार बार तक, और सिदय म दो बार नहाती थी ।
दयाराम उससे स भोग करे , या न करे । वह रात म िनव ही रहती थी ।
दयाराम के पछू ने पर उसने कहा िक - कपङ म वह घटु न महससू करती है ।
एक अजीब बात िजसने दयाराम को सबसे यादा च काया, वह यह थी िक उसने
कभी अपने जाये ब च को तनपान नह कराया । इसका कारण उसने यह बताया िक
उसक छाितय म दधू ही नह उतरता ।
िफ़र पलाल के इशारा करने पर दयाराम ने गौर िकया िक वह कभी पलक नह
झपकाती थी अथात उसक आंख िकसी प थर क मिू त क तरह अपलक ही रहती
थ।
पलाल ने यह भी बताया िक कभी वो गलती से उसक नंगी हालत म घर म आ
गया, तो भी उसने कपङे पहनने या कमरे म जाने क कोई कोिशश नह क ।
पलाल बाहर कूल म रहता था । इसिलये काम पङने पर ही घर म आता जाता था ।
ढाई साल बाद, इस तरह के अजीब अजीब समाचार सनु कर दयाराम मान सोते से
जागा ।
िजन बात को वह अब तक नजरअ दाज कर रहा था । उनके पीछे कोई खतरनाक
रह य िछपा हआ था । यानी पानी िसर से ऊपर जा रहा था ।
तब वह अपने ब च क खाितर बेहद िचिं तत हो उठा ।
जाने य उसे अपनी ये हवेली बेहद खतरनाक और रह यमय लगने लगी ।
और उसे एक अ य मायाजाल का अहसास होने लगा ।
यही सोच िवचार करते हये उसने आगे से घर म अिधक समय िबताने का िन य िकया

और तब उसने दो प माण देखे ।
पहला, जब वह बाथ म के शीशे के सामने शेव कर रहा था ।
कुसमु उसके ठीक पीछे आकर उससे एकदम सटकर खङी हो गयी । उसके पु उरोज
दयाराम क पीठ से सटे हये थे, और उसके दोन हाथ दयाराम के ‘अगं ’ को खोज रहे
थे, पर ..?
पर शीशे म उसका कोई ितिब ब नह था । जो िक उस बङे आकार के शीशे म
िनि त होना चािहये था ।
उस समय दयाराम इस रह य को अपने िदल म ही छुपा गया ।
और उसने कुसमु से कुछ नह कहा ।
लेिकन अब वह कुसमु से मन ही मन भयभीत रहने लगा ।
खासतौर पर वह अपने छोटे छोटे ब च के िलये िचंितत हो उठा ।
और िफ़र दसू रा माण भी उसे ज दी ही िमल गया ।
वह दोपहर के समय छत पर था । जब समु न सख ू े कपङे उतारने छत पर आयी ।
दयाराम और कुसमु एक ही ि थित म खङे थे ।
लेिकन सयू क रोशनी म छाया िसफ़ दयाराम क बन रही थी ।
कुसमु िकसी भी कोण से खङी हो, उसक छाया नह बन रही थी ।
उफ़ ! दयाराम के परू े शरीर म अ ात भय क तेज िसहरन सी हयी ।
और उसके जैसा िह मती िजगर वाला भी कांप उठा - भतू नी..?
कुसमु तो औरत के प म ेत थी ?
इसका मतलब, वह अब तक एक ेतनी के साथ रह रहा था ।
कुसमु नीचे चली गयी, तो दयाराम कुसमु के साथ गजु ारे अपने िजदं गी के ण म वह
रह य खोजने क कोिशश करने लगा, जब जब उसने कुसमु म कोई अजीब बात देखी
हो ।
एक िहसाब से सभी बात अजीब थी, लेिकन उ ह िकसी औरत का िवशेष वभाव
मान , तो कुछ भी अजीब नह था ।
- हे भगवान । उसने असमजं स म माथा रगङा - तेरे खेल िकतने अजीब ह । तेरे खेल
िकतने यारे ह । इसको भला तेरे अलावा कौन समझ सकता है ?
धीरे धीरे रात के बारह बज गये ।
दयाराम क बात सच थी ।
सनू को अपनी कहानी सनु ाते सनु ाते वह अपने आपको काफ़ ह का महससू कर
रहा था, और लगभग भल ू ही गया था िक वह यहाँ िकस उ े य से आया था ।
अब वह बारबार चरस क भरी िसगरे ट भी नह पी रहा था । रवा वर क तरफ़ तो
उसका यान ही नह था । ये शायद चार साल से उसके मन म भरा हआ गबु ार
िनकलने से हआ था ।
ठंडी रात और खल ु ा आसमान भी उसको राहत पहचं ा रहे थे ।
उसक आधी कहानी तो सनू क समझ म आ रही थी, पर आधी को लेकर वह भी
उलझन म था ।
भिू तया िक स म िच िविच घटनाओ ं का होना कोई मायने नह रखता ।
पर एक सामा य आदमी के िलये वह एक अदभतु ितिल म से कम नह होता ।
वा तव म वह एक ितिल म ही होता है ।
एक मायाजाल !
और ये भी एक मायाजाल ही था ।
एक ेतनी का मायाजाल !
- िफ़र । सनू ने उ सक ु ता से पछ
ू ा - उसके बाद तमु ने या िकया, जब तु ह यह पता
चला िक बीबी के नाम पर तु हारे साथ रह रही औरत कुसमु नह , बि क एक ेत है ?
- िफ़र म या करता । वह अजीब से भाव से बोला - म तो अभी ये ही तय नह कर
पाया था िक वो कौन है और उसका रह य या है । कुसमु कहाँ चली गयी ? ये कहना
भी बेबकूफ़ थी, य िक थी तो वो कुसमु के शरीर म ही ।
आिखर वो ेतनी कौन थी, या चाहती थी, सनू जी, ये अनेक मेरे सामने थे, पर
इनका जबाब कौन देता । कहाँ से लाता म इनका जबाब ?
पर नह , शायद ये बात गलत है ।
हर का उ र है, हर सम या का समाधान है ।
वो अगर दद देता है, तो दवा भी देता है । वो अगर मसु ीबत भेजता है, तो हल भी
भेजता है ।
और िफ़र एक िदन ‘दवा’ आयी ।
कुसमु के ेत होने के दो माण िमल जाने के बाद एक िदन सबु ह दस बजे दयाराम
अपने ब द कूल के सामने बरगद के पेङ के नीचे कुस डालकर बैठा था । अब उसके
िदमाग म यही दं चलता रहता था िक इस नयी ि थित म या िकया जाय, या न
िकया जाय ।
वह अपनी सम या को लेकर तीन अलग अलग ताि क से भी कुसमु से िछपकर
िमल चक ु ा था । उ ह ने कुछ गंडा ताबीज बना िदये थे, और कुछ उपाय भी बताये थे
िक कुसमु के ऊपर सोते म यह भभतू िछडक देना, साद के बहाने पेङे म उसको यह
‘िवशेष ल ग’ िखला देना, यहाँ अगरब ी लगाना, वहाँ ये धागा बाधं ना आिद आिद
पर इन उपाय से कोई लाभ नह हआ ।
तब िचंितत दयाराम अपने नौकर पलाल के बताये अनसु ार हनमु ान जी क िवशेष
पजू ा करने लगा । इससे वह अपनी मानिसक ि थित म कुछ शािं त तो महससू करता,
पर कुसमु म कोई प रवतन नह हआ ।
तब मान एक िदन भगवान ने उसक सनु ी ।
कुस पर बैठा हआ दयाराम उस समय च का, जब गली से गजु रता हआ एक जटाधारी
बाबा उसक हवेली के सामने क गया, और बङे चिकत भाव से उसक हवेली को
ऊपर से नीचे तक बारबार देखने लगा ।
दयाराम ने उसको रोकने टोकने का कोई य न नह िकया ।
वह बेहद िदलच पी से जटाधारी साधु क हरकत को देख रहा था ।
जटाधारी साधु ने थैले म से कुछ बीज से िनकाले, और एक बार गली म इधर उधर
देखा ।
दयाराम शी ता से बरगद के मोटे तने के पीछे छुप गया ।
गली को एकदम सनू ा पाकर जटाधारी साधु ने उन बीज को मु ी बांधकर म सा
पढ़ते हये फ़ंू का, और हवेली के गेट क तरफ़ उछाल िदया ।
आ यजनक प से एक िमनट के अ दर ही कुसमु हवेली के गेट पर आकर खङी हो
गयी ।
उस ेतनी क आंख िकसी छोटे तेज ब ब के समान चमक रह थी । उसके लाउज
के सभी हक खल ु े हये थे, और ा तो वह पहनती ही नह थी ।
वह जलती हयी आंख से जटाधारी को घरू रही थी ।
िफ़र दयाराम ने सनु ा ।
जटाधारी कह रहा था - तो तू है, परू ा अड्डा है ेत का, ऐ कु टा तेरा आदमी कहाँ है
?
कुसमु ने दरवाजा भङाक से ऐसे ब द िकया, मान जटाधारी के मँहु पर मारा हो ।
जटाधारी ‘हो हो’ करके हसं ने लगा, और कुछ सोचता हआ सा आगे बढ़ गया ।
उसके थोङा आगे बढ़ते ही दयाराम बरगद के पीछे से िनकल कर दौङते हये जटाधारी
के सामने पहँचा, और हाथ जोङकर खङा हो गया ।
उसने बताया िक वही उस हवेली का मािलक है, और िफ़र संि म बात बताने के
बाद वह जटाधारी को कूल के अ दर ले गया ।
यहाँ कुसमु कभी नह आती थी, िफ़र भी सावधानी बरतते हये उसने अ दर से दरवाजा
ब द कर िलया ।
रह यमय जटाधारी साधु कुस पर बैठ गया, और कूल म नजर घमु ाने लगा ।
दयाराम आगे क बात, कुसमु का रह य जानने को बैचेन था ।
उसने जटाधारी को परू ी बात शु से आखीर तक बतायी और िफ़र हाथ जोङकर
बोला - महाराज, ये सब या घनच कर है, म तो तंग ही आ गया ।
जटाधारी म यम तर का ताि क था, और सबसे अ छी बात थी िक वह वभाव का
एकदम स चा था । वह फ़ खाबाद के िनकट कह कायमगंज नामक थान का रहने
वाला था, और इस व च बल के बीहङ म काली नदी के िकनारे एक गु थान पर
साधना कर रहा था, और बाबा मल ू च द के नाम से जाना जाता था । वह ब ती म
बहत कम आता जाता था ।
उसने दयाराम को बताया िक हवेली म तीन ेत रहते ह, जो कुसमु पर आवेिशत रहते
ह । लेिकन लगभग तीन साल से तीन ेत से आवेिशत वह औरत कै से िजंदा है, यह
उसके िलये भी हैरत क बात थी ।
उन ेत से उसको बचाना उसके िलये सभं व न था । उसक ताि क शि अभी उस
तर पर नह पहचं ी थी । यह काम उसके गु कर सकते थे, पर उसके गु उससे
आसाम जाने क कहकर गये थे, और तबसे उनका कोई पता नह था । ये भी िनि त
नह था िक वो कब लौटगे ।
लेिकन िफ़र उसने त काल ही पाँच अिभमि त ताबीज भरे । जो उसके तीन ब च के
िलये, एक उसके िलये, और एक पलाल के िलये था । इन ताबीज से ेत उन लोग
का कोई िवशेष अिहत नह कर सकते थे । यह बात बाद म सच सािबत हयी । उसने
कुछ और उपाय, कुछ और ज री बात दयाराम को बतायी, और वहाँ से िवदा हो गया

जटाधारी बाबा से एक तरह से उसे कोई राहत नह िमली थी, और एक तरह से बहत
कुछ िमला था । उसक सम या य क य मौजदू थी, पर वह और उसके ब चे ेत
के भाव से रि त हो गये थे । यही बहत बडी बात थी ।
जटाधारी उसका और कुछ भला भले ही न कर सका हो, पर उसे एक िवशेष कवच
बनाकर दे गया, िजसके होते कोई भी बङी से बङी ेत शि न उसको डरा सकती थी,
और न ही हमला कर सकती थी ।
अब सनू को उसके िनडरता से इस थान पर होने और ेत से लङने के हौसले का
राज पता चल गया ।
ये बात िकसी हद तक तो सच थी, लेिकन परू ी तरह नह ।
मल ू च द बाबा शायद उसको ये सावधान करना भल ू गया िक ये कवच ब ती जैसे
थान पर ही कारगर होता है ।
ेत के े म पहँचकर ‘अछूत’ जगह क वजह से कवच क शि मामल ू ी रह जाती
है, और िकसी गलती के हो जाने पर कवच खि डत भी हो सकता था, और ऐसी
हालत म दयाराम क मौत भी हो सकती थी । पर िकसी उलझी हयी सम या से
लगातार परे शान आदमी का िदमाग ितशोध क अव था म पहचं जाता है, और वह
मरने मारने पर उता हो जाता है ।
पर यह कै सा ितशोध था, और िकससे था । यह ठीक से उसक भी समझ म नह आ
रहा था ।
अ य़ और अ ात क इस लङाई को लङते हये दयाराम को कुसमु क शादी के बाद
के तीन साल गजु र गये, और तब कुसमु क आदत म नये बदलाव होने लगे ।
वह साधारण औरत से मदम त औरत म बदल गयी ।
दयाराम ने कभी िज नह िकया था िक वह जानता है िक वो औरत न होकर एक
ेतनी है । इस तरह के िज से उसे या लाभ होना था ? और ढाई साल के बाद तो
वह वयं इस हक कत से ठीक से वािकफ़ ही हआ था ।
अगले छह महीने उसने समाधान खोजने और या करना चािहये, या नह करना
चािहये, जैसी कशमकश म गजु ारे थे, और अब अपनी एक र ते क ताई के सझु ाव
अनसु ार कुसमु को िकसी तरह से बालाजी ले जाने क िफ़राक म था ।
कहते ह न, ऊंट खो जाता है, तो परे शान आदमी उसको घङे म भी खोजने क कोिशश
करता है ।
लेिकन दयाराम उसको बालाजी ले जा पाये, उससे पहले ही वह एक मदम त हि तनी
औरत क भािं त बेकाबू हो उठी । कामवासना को लेकर उसम जबरद त प रवतन
हआ, और वह हर व कामातरु सी रहने लगी । वह रात म सोते हये दयाराम को
जबरन ही उठा लेती, और बलपवू क स भोग का आदेश सा देती ।
हैरत क बात यह भी थी िक उस व उसके आदेश म जाने या स मोहन होता िक
दयाराम उसका आदेश पालन करने पर िववश हो जाता, और इस तरह वह एक-एक
रात म चार-चार बार तक स भोग क मागं करने लगी ।
दसू री बात ये हयी िक अ छे खाने पीने से बना दयाराम का ह ा क ा शरीर तेजी से
कमजोर होने लगा, और वह भी धीरे धीरे ेतभाव से आवेिशत हो रहा था ।
लेिकन मामला यह पर शातं नह हआ ।
कुसमु एक और नया खेल भी खेलने लगी ।
वह अ सर रात को यारह-बारह बजे उठती, और दरवाजा खोलकर अहाता पार करते
हये दसू री गली म छलागं लगाकर कूद जाती, और गली के आगे उस रा ते पर तेजी से
दौङ लगा देती ।
जहाँ ‘िमयां भीका’ नाम का कि तान था ।
यह बात दयाराम को उस िदन पता चली । जब रात म कुसमु अपने िब तर से गायब
थी ।
उसने चार तरफ़ देखा पर उसका कोई पता नह था ।
बैचेनी से िसगरे ट फ़ंू कता हआ वह उसके लौटने का इतं जार करता रहा ।
इतं जार करने के अलावा वह कर भी या सकता था ?
उस रात कुसमु साढ़े तीन बजे लौटी और चपु चाप लेटकर सो गयी ।
दयाराम के िलये ये नया टसन था िक कुसमु आिखर रात को कहाँ जाती है ।
वह समझ नह पा रहा था िक ऐसे अजीब हालात म उसे या करना चािहये ? उपाय
पछ ू े तो िकससे पछ
ू े , और इसका उपाय भला या हो सकता था ।
आिखर म उसने कुसमु का पीछा करने का िन य िकया, और इस खेल को ख म करने
का िन य िकया । उसने बरस से बेकार रखा रवा वर िनकाल कर चेक िकया, और
गोिलयां डालकर फ़ायर आिद करके सतं ु हो गया ।
अब उसे इस बात का इतं जार था िक कुसमु रात म िकसी सनु सान थान पर पहँचे ।
जहाँ वो गोली मारकर उसक ह या कर दे, और लाश िठकाने लगा दे ।
उफ़ ! पागलपन म आदमी पता नह या या सोचता है ।
जो भी हो, वह इस औरत से तंग आ गया था ।
यह ेतनी हो, या कुसमु हो, या कोई भी हो ।
अब हर हालत म उससे छुटकारा पाना था, तभी वह चैन क िजंदगी जी सकता था ।
आिखर उसने कुसमु क ह या का प का िन य कर िलया ।
रात और अिधक गहरा चली थी, अपनी कहानी सनु ाते सनु ाते दयाराम भावक ु हो उठा
था ।
िजंदगी क अजीब और रह यमय प रि थय ने इस धनी, स प न और जीवट इसं ान
को लगभग तोङकर रख िदया था । वह अपने मासमू ब च का मँहु देखकर हार जाता
था । वरना तो वह गोली मार कर कब का इस भतू नी का खेल ख म कर चक ु ा होता ।
पर उसके सामने और भी सवाल थे ।
िफ़र वह अपनी सास को या बताता, वह समाज को या बताता ।
दसू रे उसे खदु यह रह य मारे डाल रहा था िक अ छी भली कुसमु आिखर ेत कै से
बन गयी ?
वह जब अपनी ससरु ाल जाता था, वो एक सामा य औरत क तरह यवहार करती ।
उससे जीजा जीजा कहकर खबू हसं ी मजाक करती । उस समय उसम ऐसी कोई बात
नह थी ।
पहली िवदा के समय बिगया म जो अजीब व न सा उसने देखा था, उसका या
रह य था ।
ये कुछ ऐसे सवाल थे, जो उसे जीने पर मजबरू कर रहे थे । लङने पर मजबरू कर रहे थे

वरना तो ऐसी िजंदगी से, वह अब मर जाना ही चाहता था ।
इस ेतनी का उ े य या था, और ये कौन थी ?
िजसने उसक हसं ते खेलते घर को आग लगाकर रख दी थी ।
आिखर दयाराम ने रात म ही उसका पीछा करने का िन य िकया, और भरी हयी
रवा वर के साथ वह इतं जार करने लगा िक कब वह रात को बाहर जाय ।
लेिकन इतं जार क आव यकता ही न पङी ।
कुसमु लगभग हर रात ही बाहर जाती थी ।
रात के बारह बजते ही कुसमु उठी, और दयाराम पर एक ि डालकर घर से बाहर
िनकल गयी । वह बेहद फ़ुत से उठा ।
उसने रवा वर ख सा, और अहाते म आ गया ।
जहाँ कुसमु बाउं ीबाल के पास खडी सङक क तरफ़ देख रही थी । मान िकसी का
इतं जार कर रही हो, और िफ़र वह बेहद फ़ुत से दीवाल पर चढ़कर लहराई, और
सङक पर कूद गयी ।
दयाराम अपनी पणू शि से उसका पीछा कर रहा था ।
लेिकन वह तो जैसे चलने के थान पर हवा म उङ रही थी ।
और दयाराम के िलये उसका पीछा करना बेहद मिु कल हो रहा था ।
िफ़र कुछ ही देर म उसने ब ती छोङकर पीपराघाट शमशान का रा ता पकङ िलया ।
दयाराम एकदम चकरा गया ।
उस सङक पर जो पीपराघाट से नदी के पार वीरान टेकरी पर ले जाती थी । उसक गित
और भी बढ़ गयी, और िफ़र मान वह उङन-छू ही हो गयी ।
दयाराम को दरू -दरू तक वह नजर नह आयी ।
दाता, या माजरा था ।
उसक अ छी तरह से समझ म आ गया था िक उसक चाल इसं ानी चाल हरिगज नह
थी, और कोई भी इसं ान इसं ानी गित से उसे कभी नह पकङ सकता था ।
इस तरह उसका ये म सबू ा भी फ़े ल हो गया िक आिखर ये कहाँ जाती है, और या
करती है ।
दयाराम का मन हआ िक इन अजीब प रि थितय म अपने बाल नोच ले ।
आिखरकार दयाराम को इस सम या का हल भी िमल गया ।
मंगलवार क शाम, जब वह हनमु ान मि दर पर साद चढ़ाने गया । उसे मि दर के
बाहर दो बजु गु आदमी बात करते हये िमले । वह िकसी िपलआ
ु वाले िस अघोरी
क बात कर रहे थे, जो यमनु ा के खादर म रहता था, और रात के दस बजे के बाद ही
िमलता था ।
दयाराम ने उन आदिमय से िपलआ ु का सही पता पछ ू ा, और उसी रात िपलआ ु पहँचा

यह अ छा था िक खादर होने के बाद भी मोटर साइिकल आराम से वहाँ तक जाती
थी ।
िपलआ ु पहँचकर दयाराम को बेहद आ य हआ ।
य िक पहले वो समझता था िक अके ला वही ेत सम या से जझू रहा है । जबिक
वहाँ इस तरह क सम या और अ य सम याओ ं वाले लगभग चालीस लोग मौजदू थे
। िजनम आठ मिहलाएं भी थी । दयाराम का न बर रात दो बजे सबके बाद आया ।
अघोरी ने बङे शा त होकर उसक बात सनु ी ।
वह थोडा िचंितत भी िदख रहा था ।
िफ़र अघोरी ने अपनी िव ा का उपयोग करते हये बताया िक कुसमु रात को अ सर
तीन थान पर ही जाती है । काली टेकरी, पलेवा मि दर, जो खि डत हो चक ु ा था,
और किलयारी शमशान ।
िजसम किलयारी शमशान, वह अिधक जाती थी ।
अघोरी ने बताया िक कुसमु परू ी तरह ेत त हो चक ु है, और यिद वह यहाँ ग ी पर
आ जाय, तो वह उसक कुछ सहायता कर सकता था । वरना वह घर म नह जा
सकता था ।
दयाराम ने उसके बहत हाथ पैर जोङे , पर अघोरी ने कहा िक वह मजबरू है ।
दसू रे अघोरी ने एक रह यमय बात ये भी कही िक कुसमु के ेतबाधा से मु हो जाने
पर भी कोई लाभ नह होने वाला था, य िक..?
िपलआ ु पहँचने का एक सबसे बङा लाभ दयाराम को ये हआ िक अघोरी के पास
िकसी ालु का िदया हआ मोबायल फ़ोन था । िजसके ज रये वह कभी भी अघोरी
से बात कर सकता था, और इसका खास फ़ायदा उसे ये िमलने वाला था िक अघोरी
बाबा उसे एन टाइम पर बता सकता था िक कुसमु उस व कहाँ है ?
उसने कुसमु का फ़ोटो बाबा के पास जमा कर िदया ।
पर उसे अघोरी क रह यमय बात समझ म नह आ रही थी ।
अघोरी ने उसे ेतबाधा से मु कराने म कुछ खास िच नह िदखाई थी ।
अघोरी को ऐसा या राज पता चला । िजसके बाद वह कुसमु के मामले से उदासीन हो
गया था ।
दयाराम पागल सा होने लगा ।
गु थी सल
ु झने के बजाय िदन पर िदन उलझती ही जा रही थी ।
िफ़र अगले मौके पर दयाराम ने जो देखा, उससे उसका िदमाग ही घमू कर रह गया ।
अघोरी ने फ़ोन पर बताया िक आज रात एक बजे कुसमु काली टेकरी पर जायेगी ।
बाबा क बात आजमाने के उ े य से दयाराम कुसमु का पीछा करने के थान पर
काली टेकरी से पहले ही एक थान पर जाकर छुप गया ।
उस समय रात के बारह बजने वाले थे ।
और दयाराम सशिं कत दय से कुसमु का इतं जार कर रहा था ।
ठीक पौन बजे, कुसमु एक हवा के झ के के समान आयी, वह एकदम नंगी थी ।
िफ़र कुछ देर तक इधर उधर देखने के बाद वह िचता जलने के थान पर लोटने लगी ।
यकायक दयाराम के िदमाग म जैसे भयंकर िव फ़ोट हआ ।
कुसमु गायब हो गयी थी, और अब उसके थान पर एक लोमङी और िसयार के िमले
जलु े प वाला छोटा जानवर नजर आ रहा था ।
दयाराम का िदमाग इस य को देखते ही मान आसमान म च कर काटने लगा ।
अब वह सोचने समझने क ि थित म नह था ।
उसने रवा वर िनकाला, और जानवर को ल य करके फ़ायर कर िदया ।
मगर जानवर अपने थान से गायब हो चक ु ा था ।
उसक आपबीती सनु ता सनू अचानक एक झटके से उठकर खङा हो गया ।
ये आदमी वाकई मसु ीबत म था, बि क उसके अनमु ान से कह यादा मसु ीबत म था ।
अब वह समझ गया िक अघोरी ने उसक सहायता से य इक ं ार कर िदया था ?
िशव के नाम क बात करने वाले बहसं यक अघोरी अ सर वा तव म ‘मसान’ पजू क
होते ह, और ये आसानी से मसान को िस कर छोटे मोटे चम कार िदखाते ह ।
दयाराम ने कुसमु के ारा जो प बदलने क बात कही थी, और िजस तरह प
बदलने क बात कही थी । वह मसान का ही काम था । इस तरह अघोरी मसान से
भािवत उस प रवार को नह छुङा सकता था । य िक वे खदु ही यादातर मसान से
काम लेते ह, और ऐसी ि थित म मामला िबगङ सकता था । अतः यह अघोरी के बस
का मामला था ही नह , और इसीिलये जटाधारी जैसा छोटा साधक कोई भी ‘पगं ा’
िलये िबना ही िनकल गया ।
‘कंकाल कािलनी िव ा’ और ‘हािकनी िव ा’ ये दो िव ा या एक तरह से िसि यां
होती ह । कंकाल कािलनी म अकाल मृ यु को ा लोग क आयु को साधक अपनी
या िकसी क आयु म बदल सकता है ।
इसी क िनकटवत हािकनी िव ा होती है ।
िजसम हजार मील दरू क बात जानी जा सकती है । हजार मील दरू बैठे यि को
बलु ाया जा सकता है । आम आदमी को ये जादू जैसे चम कार करने वाली िव ाएं
बहत आकिषत करती ह, पर इनका मोल बहत चक ु ाना होता है, और इनका अ त तो
िन य ही पतनकारक होता है ।
एक ि कोण से साधारण मि दर म क जाने वाली भि इससे कह यादा अ छी
होती है । तै क सही साधनाओ ं म इन िव ाओ ं का कोई मह व नह होता ।
अब उसे दयाराम क कहानी सनु ने म कोई िच नह थी । परू ा खेल जैसे उसक समझ
म आ चक ु ा था । लेिकन इसके साथ ही कई सवाल भी उठ खङे हये थे । िजनका कोई
उिचत तरीका उसे नह सझू रहा था िक वह दयाराम क सहायता करे , तो कै से करे ।
या कुसमु अभी जीिवत थी ? उसके िवचार से नह ।
कुसमु क लाश, जो अभी चल िफ़र रही थी, उसका या िकया जाय, और सबसे बङी
बात दयाराम को कै से समझाया जाय िक वह इस सम या को इसं ािनयत के नाते हल
करना चाहता है ?
ऐसे और भी अनेक थे । िजनका उस व कोई सही हल उसे नह सझू रहा था ।
सबु ह के चार बजने वाले थे ।
परू ब िदशा म रोशनी धीरे धीरे बढ़ रही थी ।
उसने एक िसगरे ट सल ु गाया, और किलयारी कुटी को देखते हये आगे के कदम के बारे
म सोचने लगा ।
साथ ही ये िवचार भी उसके िदमाग म वतः ही आ रहे थे िक इसी वी पर िकसी
िकसी के िलये जीवन िकतना रह यमय हो जाता है । ऐसे मकङजाल म फ़ंसा आदमी
या कोई प रवार ये तय नह कर पाता िक करे तो आिखर या करे ।
जाये तो िकसके पास जाये ?
अ सर लोग डर क वजह से ऐसी ि थित का िज भी अपने प रचय वाल से नह
करते । य िक दसू रे लोग भयभीत हो जाते ह, और भतू - ेत भािवत प रवार से
स पक ही ख म कर देते ह िक कह ेत उ टा उन पर हावी न हो जाय ।
मु य इसी कारण क वजह से जो भी ेत घटनाय होती ह, वो लोग क िनगाह म नह
आ पाती ।
दयाराम प थर क िशला पर लेटा हआ िनिवकार भाव से आसमान क ओर देख रहा
था ।
उसे थोङी देर इतं जार करने क कह कर सनू किलयारी कुटी क तरफ़ िनगाह बचाकर
चला गया ।
और जब थोङी देर बाद लौटा, तो दयाराम अपने थान पर नह था ।
अभी सनू प े टहिनयां आिद जलाकर चाय बना ही रहा था िक दयाराम अगं ोछे से
हाथ प छता हआ लौट आया । उसने बताया िक िदशा मैदान (शौच िनविृ त) हेतु चला
गया था ।
इस थान पर गम चाय के साथ िब कुट देखकर उसे बेहद आ य हआ ।
चाय क चिु कय के बीच सनू ने उससे पछ ू ा िक उसने कभी हनमु ान बीसा का नाम
सनु ा है ? उसने बेहद आ य से कहा िक - हनमु ान चालीसा तो उसने सनु ा है । हनमु ान
बीसा आज तक नह सनु ा ।
सनू ने कहा - हनमु ान बीसा एक गु िव ा है, गु बीसा है । जो बीस भतू तक को
भगा देता है । और इसके बारे म वह कुछ थोङा बहत जानता है । यिद उसके घर म
भतू क सं या बीस या उससे कम हयी, तो शायद उसका फ़ामला ू काम कर जाय,
अ यथा देख लेने म या हज था ?
वा तव म वह मजाक कर रहा था, पर मजाक के अ दाज म नह ।
वह चाहता था िक दयाराम का काम भी हो जाय, और वह उसक असिलयत भी न
जान सके । उसने सनू क बात पर िव ास तो नह िकया ।
पर उसके ारा उसके घर चलने क बात जाने य उसे वाभािवक प से बेहद
अ छी लगी । दरअसल बीती रात म अपनी आपबीती सनु ाते सनु ाते वह उससे एक
तरह क िनकटता महससू करने लगा था, और अब अपने को बेहद ह का महससू कर
रहा था ।
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सबु ह ठीक दस बजे, वे दोन उसके घर म मौजदू थे ।
वह जब घर म घसु े, कुसमु बाथ म म नहा रही थी ।
दयाराम के ब चे कूल जा चक ु े थे ।
पलाल ने उनके िलये चाय ना ते का ब ध िकया ।
कुसमु जब बाथ म से बाहर आयी तो उसने एक अजनबी क तरह शिं कत ि से
सनू को देखा । सनू ने भी दयाराम क िनगाह बचाते हये जान बझू कर अ ील
भाव से उसे देखा ।
तब कुसमु क भख ू ी आँख म एक अजीब सी चमक उभरी ।
प था, किलयारी शमशान म उसक भट के बाबजदू भी वो उसे पहचान नह सक
थी ।
य िक उस व उसका परू ा यान दयाराम पर ही रहा होगा, और उसे आशा भी नह
होगी िक दयाराम किलयारी भी पहँच सकता है ।
इस तरह वो दयाराम ही था, या नह । ये भी वो पता नह कर पाये ।
य िक आन लगे हये े म न तो उनक कोई िव ा काम कर सकती थी और न ही
वो घसु सकते थे ।
यिद रात म कुसमु और उसके साथी ेत को, सनू और दयाराम के बारे म जानकारी
हो जाती तो शायद कुसमु कई िदन न लौटती, या शायद िफ़र कभी भी न लौटती ।
इस तरह रह य का रह य ही रहता ?
िफ़र उसका उ े य या था ?
वह दयाराम प रवार से या चाहती थी, और कब तक उसके प रवार पर कािबज बना
रहना चाहती थी ?
इन सारे का उ र िमलना सभं व ही नह था ।
अब उसके सामने तीन तरीके थे ।
कुसमु को बांध िदया जाय, और घर का अ थायी क लन कर िदया जाय ।
इससे कुसमु घर से बाहर नह जा पायेगी, और घर म कोई ेत घसु नह पायेगा ।
लेिकन इस ि थित म कुसमु और दयाराम दोन उसक असिलयत जान सकते ह ।
दसू री, कुसमु को पहले क ही तरह खल ु कर खेलने िदया जाय, और उसी ि थित म
उसका िशकार िकया जाय । इसम उसका काम आसान और गु प से हो सकता था
। वह अपना काम भी करता रहता, और िकसी को पता भी नह चलता ।
तीसरा, ि थित को य का य रहने िदया जाय ।
यानी ेत को भी भरपरू प से आने िदया जाय, और खल ु ा खेल खेला जाय ।
ऐसा होता, तो उसे भी मजा आने वाला था ।
इन तीन तरीक को ज रत के अनसु ार अलग अलग प म भी लागू िकया जा
सकता था ।
पर सबसे बङी बात थी िक वह दयाराम क इस खेल म भिू मका कै से शािमल करे ,
और यिद वह अके ला ही काम करता है, तो दयाराम या सोचेगा ?
वो उसे या समझ रहा है, और िकतना िव ास कर रहा है, ये सब सम याएं थी ।
िजनका उसे बङी सावधानी से हल िनकालना था ।
और िजतना हो सके , शा त तरीके से इस खेल को ख म करना था ।
तब उसे एक ही तरीका िफ़लहाल उिचत लगा ।
उसने कुसमु को घर म ही (म से) बाधं िदया, और घर म ेत का वेश रोक िदया ।
तथा खाना खाने के बाद घोङे बेचकर सो गया ।
दयाराम भी सो रहा था ।
वह दोन परू ी रात के जागे हये थे, और शायद आगे भी उ ह जागना था ?
दसू री सबसे बङी बात थी िक बांधे जाने पर, और ेत के न आने पर, कुसमु और ेत
का या रये शन होना था । ये सनू देखना भी चाहता था, और मजा भी लेना चाहता
था ।
उसे के वल एक ही बात का डर था िक कुसमु और ेत पाट म कोई भी ल गङ
(ताकतवर) ेत उसके प रचय का िनकल आया, तो ेत पाट मैदान छोङकर भाग
जायेगी, और िफ़र उसे िमशन कुसमु के िलये खामखाह के अित र यास करने ह गे
। िजनम समय भी अिधक लगेगा, और िफ़र दयाराम उसक वा तिवकता िन य ही
जान जायेगा ।
िजससे यथासंभव वह बचना ही चाहता था ।
िफ़र शाम छह बजे, जब वह उठा तो खदु को एकदम तरोताजा महससू कर रहा था ।
दयाराम उससे पहले ही उठ चक ु ा था और अब उसके जागने का इतं जार कर रहा था ।
शाम क चाय के बीच सनू ने कहा - चरस के सु े ही लगाते हो, या पीना िपलाना भी
होता है । दयाराम उसका आशय समझ गया ।
वह बोला - सब इतं जाम है ।
दरअसल सनू ने एक योजना बना ली थी ।
उस योजना के तहत परू ी रात उसे कुसमु से ही काम लेना था ।
दयाराम क उसम कोई भिू मका नह थी ।
इसिलये वह नशे म उसे इतना ओवर कर देना चाहता था िक वह उसके काम म कोई
दखल दाजी न कर सके , और बेसधु सोता ही रहे ।
पलाल, गली के पार कूल म सोता था, और ब च का अलग पोशन था ।
इसिलये दयाराम के नशे म धु होते ही मैदान साफ़ हो जाना था, और उसे इसी का
इतं जार था ।
उसने कुसमु के मडू का जायजा भी िलया ।
उसक आशा के अनु प ही वह गङबङ महससू कर रही थी और बेहद ही बैचेन थी ।
वह कनिखय से बारबार उसे ही देख रही थी, और सोच रही थी िक इन बदली
प रि थितय म उसका िकतना हाथ हो सकता है, और यह आदमी कौन है ।
कंकाल कािलनी िव ा जानने वाली वह शि शाली ेतनी, उसे हर कोण से तौलने
क कोिशश कर रही थी, और कुछ आ य से अपने को असमथ सा महससू कर रही
थी ।
य िक उस व सनू ‘कवड’ ि थित म था, और साधारण था ।
िफ़र ठीक वैसा ही हआ ।
रात दस बजे तक खाने और पीने के दौर म थोङी और थोङी और.. करते हये सनू ने
दयाराम को न िसफ़ काफ़ शराब िपला दी, बि क नशे के ही ण म दो न द क
गोिलयां भी उसक दा म िमला दी ।
अब उसके गिणत के अनसु ार वह सबु ह ही उठने वाला था, और इस तरह उसके िलये
मैदान एकदम साफ़ था । िफ़र उसे एक िवचार आया, और इसी िवचार के तहत वह
ऊपर जाकर छत पर लेट गया ।
दयाराम नशे म धु नीचे कमरे म ही सो गया था ।
अब उसे िसफ़ ेतनी का इतं जार था ।
कुसमु का इतं जार था । कुसमु कहाँ हो सकती थी ?
ऐसे ही िवचार म खोया हआ वह आसमान के उन असं य तार को देख रहा था ।
िजनके बीच लाख करोङ ेतलोक थे, देवलोक थे, ताि क लोक थे, अधं ेरे लोक थे

अ छे लोक थे, बरु े लोक थे ।
और हर लोक का अपना एक अलग अ दाज था, एक अलग रवैया था ।
एका त होते ही उसे बाबाजी क याद हो आयी, नीलेश क याद हो आयी ।
नीलेश क िकतनी इ छा होती थी िक वो अिधकािधक समय उसके साथ गजु ारे ,
बाबाजी के साथ गजु ारे । पर ऐसा संभव नह हो पाता था ।
बाबाजी इ ह िक ह लोक म हो सकते थे, या इस ांड के पार अ य सिृ म भी हो
सकते थे । चार तरफ़ माया का अदभतु खेल सा फ़ै ला हआ था ।
तभी अचानक उसक िवचार ख ं ला को झटका लगा ।
उसे िकसी के ऊपर आने क आहट हयी, और कुछ ही िमनट बाद कुसमु उसके सामने
थी ।
कै सा अदभतु खेल था ।
दयाराम पहले उसे ेत होने के बावजदू प नी समझते हये यवहार करता रहा, िफ़र वह
जान गया िक प नी के प म कुसमु ेतनी है । िफ़र भी वह कुछ नह कर सका, और
उसे यवहार करना पङा ।
वह पहले से ही जानता था िक उसके पास खङी औरत ेतनी है, िफ़र भी वह उससे
यवहार करे गा । ये अदभतु खेल नह , तो और या था ?
उसके पास आते ही सनू ने बहाना करते हये, च कते हये ‘कौन है, कहकर टाच क
रोशनी उसके ऊपर फ़क । जबिक आसपास जलती हयी ीट लाइट का ह का
उजाला मौजदू था ।
वह अपने परू े बदन पर मा एक झीनी सी साङी पहने हयी थी और उसके शरीर का
येक कटाव प झलक रहा था ।
- आइये कुसमु जी । उसने कोहनी और तिकये के सहारे अधलेटा होकर कहा - न द
नह आ रही थी या ? जवान रात म, अ सर जवान लोग को न द न आना, एक
आम बात है । तब जवान लोग, िकसी जवान लोग के पास, िकसी न िकसी बहाने से
पहँच ही जाते ह ?
कुसमु क आँखे अधं ेरे म िकसी जगं ली िब ली क तरह चमक ।
उसने सनू क ि अथ बात और अ ील संकेत का कोई खास नोिटस नह िलया ।
वह िनसंकोच ही त त पर उसके पास बैठ गयी और कुछ िनणय सा करते हये बोली -
सच सच बताओ, तमु कौन हो ? मने तु ह पहले तो कभी नह देखा ।
- म एक चलता िफ़रता ेत हँ । उसने सीधे सीधे लाइन पर आते हये कहा - और जहाँ
तेरी जैसी ेतनी जवानी क आग म जल रही होती है । उसको खोजकर पहँच ही जाता
हँ ।
- तमु ेत नह हो । वह लगभग गरु ाकर बोली - तमु एक ताि क हो, और म यह भी
जानती हँ िक तमु ने ही मझु े बांधा है, और तमु ने इस घर को भी बांध िदया है ।
- अब तू जान ही गयी है । सनू जैसे बेशम से बोला - तो िफ़र म, अब कर भी या
सकता हँ ।
िफ़र उसक आशा के अनु प ही कुसमु ने साङी उतारकर फ़क दी, और एकदम
िनव हो गयी । उसने अपने ल बे बाल को िहलाते हये प बदलने क असफ़ल
कोिशश क । िजसम वह नाकामयाब रही, और थोङी ही देर म हांफ़ने लगी ।
- जब तू । सनू हँसते हये बोला - ये जानती है िक बंधी हयी है, िफ़र य हाथ पांव
मार रही है ।
वह जलती आँख से उसे घरू ने लगी और हिथयार डालते हये बोली - आिखर तमु
चाहते या हो ?
- मेरी यारी िब लो । उसने िसगरे ट सल ु गाते हये कहा - चल चपु चाप बैठ जा । ेत से
आग बझु ाने का शौक है तझु े । इस ह े क े आदमी म, या तझु े कांटे नजर आ रहे ह ?
कोई आधा घ टे तक वह िनिवकार उससे िबना बोले लेटा रहा ।
इस बीच कुसमु ने उसक कोई परवाह न करते हये अपने तन पर वतः ही हाथ
िफ़राया, और बारबार जीभ से अपने सख ू े ह ठो को चाटने लगी ।
इसक वजह ये थी िक उसक ेतक गितिविधय का य य समय होता जा रहा था
। वह बैचेनी महससू कर रही थी । एक पु ष का सामी य उसे और भी यादा बैचेन कर
रहा था ।
और वा तव म सनू का असली उ े य ही कुसमु के अ दर के ेत व को परू ी तरह
जगाना था ।
उसके पास पहले से तैयार पीपल क प यु टहनी थी । िजससे सनू बीच बीच म
उसके बदन पर बहत ह का हार सा कर देता था ।
आिखरकार वो व आ ही गया । जब वो परू े ेत आवेश म हो गयी ।
ु गायी और भरपरू धआ
उसने बैठते हये एक िसगरे ट सल ंु ं उसके मँहु पर फ़का ।
उसके व पर फ़का और अ य उसके बदन पर फ़का ।
वह एक कामक ु अगं ङाई लेती हयी परू ी बेशम से हसं ने लगी और उसके बदन पर
चढ़ने क कोिशश करने लगी । वह बारबार उसके अगं को छूने क चे ा करती ।
तब अतं म सनू ने उसक गंदले मटमैले रंग क मदु ा आँख म आँख डाल दी ।
वह जोर जोर से झमू ने लगी और अपने गाल छाितय पर हार करने लगी ।
िफ़र उसे ग दी ग दी गािलयां देने लगी और गािलयां देते हये स भोग के िलये उकसाने
लगी ।
पर सनू ने उसक िकसी बात पर यान नह िदया ।
िफ़र जैसे ही वह खङी हयी ।
उसने अिभमंि त पीपल क टहनी के भरपरू वार उसके शरीर पर िकये ।
और बोला - अब बता, असली कहानी या है, और तू है कौन ?
- म शारदा हँ । वह िससिकय के बीच बोली - कुसमु क बङी बहन ?
उसने जो बताया, वह सनू के िलये आ यजनक नह था ।
उसे बहत कुछ पहले से ही मालमू था ।
बस उस पर ेतनी क वीकारोि का ठ पा लगना था, जो वह लगा चक ु थी ।
शारदा यवु ाव था से ही मनचले वभाव क थी और राजेश नाम के एक लङके को
यार करती थी । उन दोन के बीच शारी रक स ब ध भी थे, जो दयाराम से शादी से
पहले, और शादी के बाद भी बद तरू जारी रहे ।
दयाराम के साथ शादी का इतना ल बा व गजु र जाने के बाद, तीन ब चे हो जाने के
बाद भी उसके िदल म राजेश ही बसता था । वह अपने पहले यार को कभी भल ु ान
सक थी ।
िफ़र दोन क अलग अलग जगह शािदयां हो गय ।
इसके बाद भी राजेश गांव के नाम पर शारदा के घर आता रहा और दयाराम के
अिधकतर घर पर न रहने के कारण उनक कामलीला िनिव न चलती रही । लेिकन
यह इ क चौदह साल बाद खल ु ही गया, जब दयाराम ने अचानक उनको स भोगरत
देख िलया ।
इसके बाद भी घर िबगङने का याल करते हये उसने शारदा से त काल कुछ नह
कहा और गमु समु रहने लगा । पित से खदु क बेवफ़ाई और गलती के अपराधबोध से
त होकर शारदा ने िबजली के तार से िचपक कर जान दे दी, िजसे िक दयाराम
दघु टना समझ बैठा ।
इस अकाल मौत के बाद जब वह लोखङा ेत म भटक रही थी ।
दगु ा िसंह नामक एक मसान पजू क ताि क ने उसक शेष आयु कंकाल कािलनी
िव ा का उपयोग करते हये िकसी अपने क खाितर िनकाल ली, और वह ितलिमला
कर रह गयी ।
सू म शरीर म पहँचने पर उसे ात हआ िक अभी वह गलती मान, प ाताप करे , तो
शेष आयु के िलये िफ़र से ज म ले सकती है । पर उसक शेष आयु तो वो कमीना
ताि क ख म कर चक ु ा था । अब ेत होकर भटकने के अलावा और कोई चारा नह
था ।
तभी ेत म ‘लपका’ नाम से िस कामभोग का रिसया मसान उसे पकङ ले गया
और रखैल क तरह रखने लगा । वह उसने जाना िक दबु ारा वह िफ़र से शरीर ा
कर सकती है । पर इसके िलये उसे िकसी जीिवत औरत को उसके शरीर से िनकालना
होगा ।
शारदा ेत के प म अ सर हवेली पर आती रहती थी ।
उसे अपने ब च और घर से भी मोह था, जो उसने मरने के बाद जाना ।
उसने सोचा िक िकसी तरह वह दोबारा ही इस घर म आ सके तो िकतना अ छा हो ।
लेिकन ेत िजंदगी म होने के कारण ेत के गणु भी उसके अ दर तेजी से आ रहे थे ।
तभी उसे पता चला िक दयाराम दबु ारा से कुसमु से शादी कर रहा है । उसके मन म
एक खतरनाक योजना आयी । उसने लपका के सहयोग से कुसमु के शरीर को ा
करने का िन य िकया पर लपका िकसी भी हालत म उसे िबलकुल छोङने को तैयार
नह था ।
तब शारदा ने कहा िक वह दयाराम के घर को कर देगी और इस हालत म ेत
आराम से हवेली म आ जा सकगे, और कुछ समय बाद वह भी रात म शमशान म
आने लगेगी ।
य िक वह भी ेत जीवन क अ य त हो चक ु थी ।
लपका राजी हो गया और उसे कंकाल कािलनी के तरीके बताने लगा ।
आिखरकार वह िदन आ ही गया जब दयाराम कुसमु को िवदा कराकर ला रहा था ।
ेतवासा क अिभश बिगया से पहले ही लपका ने दयाराम का िदमाग फ़े र िदया और
दयाराम मोटर साइिकल बिगया म ले आया, और कुछ ही देर म रह यमय न द म चला
गया ।
तब ेत ने कुसमु के िदमाग पर क जा करना शु िकया और उसे जोहङ के पानी म
डुबोकर मार डाला । शारदा लपका के सहयोग से कुसमु के शरीर म घसु गयी ।
- लेिकन । सनू बोला - िफ़र कुसमु कहाँ गयी ?
- कुसमु काली टेकरी के आसपास ही रहती है, और स चाई जानने के बाद मझु से
स त नफ़रत करती है, लेिकन ेत म नफ़रत महु बत क बात मायने नह रखती ।
यहाँ सब जायज है, वाला खेल चलता है ।
ेत और इसं ानी र त के बीच इसी तरह के स ब ध रहते ह । यह इसं ान को अजीब
लग सकता है पर ेत को नह । इसके बावजदू भी ेत म अ छी आ माएं भी होती
ह, जो िकसी का बरु ा नह करती ।
दरअसल मरने से पहले जो वभाव मनु य का होता है । ेत बनने के बाद उसम और
भी दगु णु समा जाते ह । पेट क भख
ू और योिन क भख ू जब इसं ान से या या नह
कराती, तो ेत के तो साधन िफ़र भी सीिमत होते ह । पेट क भख ू के िलये ेत भोजन
से उङने वाली खश ु बू को आहार के प म हण करते ह, और योिन क भख ू हेतु
अनेक उपाय होते ह ।
- अगर । उसने जानते हये भी बीच म ही उसे टोकते हये कहा - जो खेल तनू े कुसमु के
साथ लपका के सहयोग से िमलकर खेला । वही खेल दबु ारा से कुसमु खेलना चाहे,
तो वापस अपने शरीर को ा कर सकती है ?
- हाँ । वह बोली - पर वह शरीर इसं ानी शरीर नह होगा, बि क एक मदु ा शरीर म
ेता मा ही होगी । इस तरह के शरीर के िनयम कायदे बेहद अलग ह । उसे इसं ान और
ेत दोन से वा ता रखना होगा । शु आती अव था म ऐसे औरत शरीर से स भोग
करने पर उसके ब चे तो हो जाते ह, पर वे जीिवत नह रहते । ये बङी िविच बात है
िक वह शरीर िजदं ा भी होता है, और नह भी होता । जैसे इस व कुसमु का ये शरीर
महज एक लाश है । इसक पहचान ये है िक यिद इसको छे दकर यिद खनू िनकाला
जाय, तो पीले मटमैले रंग का व िनकलेगा ।
- वा तव म । वह िससकती हयी बोली - इसं ानी शरीर क चाहत ने मझु े अ धा कर
िदया था । िजसके चलते मने अपनी िनद ष बहन के साथ ही धोखा िकया । जबिक ये
शरीर मामल ू ी और कामचलाऊ उपयोग का ही होता है । एक ेत को इससे भोजन
और सहवास क पिू त अव य िमलती है । लेिकन इस शरीर के साथ बरताव करने क
परे शािनयां भी कम नह ह ...यह असल िज दगी जैसा नह है । मने अपनी बहन का
घर और िजदं गी भी बरबाद क , और मझु े वो लाभ भी नह िमला, जो पहले म समझ
रही थी ।
- अब, आिखरी सवाल । सनू ने उसके दांय तन म लगभग टहनी गङाते हये से कहा
- इस घर को कै से छोङे गी ?
तब वह अचानक ु होकर उस पर झपटी ।
सनू ने एक झ नाटेदार थ पङ उसके मँहु पर मारा और टहलता हआ छत क बाउं ी
के पास आ गया । उसने सङक के पार कूल के सामने खङे बरगद पर िनगाह डाली,
िजस पर तीन ेत मौजदू थे, और आ य से हवेली क ओर बारबार देखते थे ।
पर हवेली बंधी होने के कारण, वह न तो हवेली के अ दर आ सकते थे, और न ही
देख सकते थे ।
यही हालत हवेली के अ दर कुसमु (शारदा) क थी ।
वह बारबार सनू से खदु को मु करने के िलये िगङिगङा रही थी, और िव ास िदला
रही थी िक वह ज दी ही लौट आयेगी ।
तब सनू रह यमय अ दाज म बोला - कल म हमेशा के िलये तझु े मु कर दगँू ा ।
उसके बाद त त को ‘सीमा रे खा’ म बाधं कर सनू िनि तं होकर सो गया ।
अब शारदा उसे िकसी कार से िड टब नह कर सकती थी, और घर से बाहर भी नह
जा सकती थी ।
वह या सोच रही थी । इससे भी उसे कोई लेना देना नह था ।
उसक परू ी सहानभु िू त कुसमु के साथ थी, जो सू म शरीर के अस क भोग रही थी,
पर इसम थायी प से कोई भी ताि क शि िकसी कार का बदलाव नह कर
सकती थी ।
दसू रे िदन दयाराम के जगाने पर उसक न द खल ु ी।
वह चाय क याली के साथ उसके िसरहाने मौजदू था, और उसके ऊपर छत पर
आकर लेटने पर आ य महससू कर रहा था ।
चाय पीने के बाद सनू ने िसगरे ट सलु गायी और आने वाली रात म उसक ेत
सम या को जङ से ख म करने का िन य कर िलया ।
अब सारा काम आसान ही था ।
आज शाम को सनू शारदा को मु करता और िफ़र िकसी बहाने से रवा वर के
साथ दयाराम को काली टेकरी ले जाता ।
शारदा जो िक उसक कै द म थी । उसको मानिसक आदेश देकर बल ु ाता और उसे प
बदलने पर िववश करता । इसके बाद दयाराम उस अनोखे जानवर को गोली मार देता,
जो िक उस िदन उङन छू नह हो सकता था, और..?
दयाराम उस िदन अपने आपको बेहद स निच महससू कर रहा था । इसका कारण
वह वयं भी नह जानता था, पर सनू जानता था । एक तो वह जब से वह उसके साथ
था, ेत के भाव से भािवत नह हआ था । दसू रे वह साल बाद गहरी न द सोया था
। िजसम शराब और न द क गोली क मह वपणू भिू मका थी ।
एक ण के िलये तो ऐसा लग रहा था । उसे िकसी कार क कोई परे शानी है ही नह

उसको और अिधक टशन करने के िलये सनू घमु ाने के बहाने नदी के िकनारे ले
गया । जहाँ उसे कुछ आव यक काय करने थे । दयाराम अपने वभाव के अनसु ार
अपने बारे म बताता रहा । िजसको सनू नकली हँ हाँ करते हये सनु ने का बहाना
करता रहा और अपने काय म लगा रहा । लेिकन दयाराम इस बात से अनिभ ही रहा
िक सनू या कर रहा है ?
एक तो वह अपनी बात म म त था, दसू रे उसे जमीन आिद पर नक ु ली लकङी ारा
रे खाय ख चते और त आिद बनाते हये देखकर उसने यही सोचा िक वह जीव
ज तओ ु ं क खोज से स बि धत कोई काय कर रहा है ।
वा तव म तो वह अ दाजा भी नह लगा सकता था िक उसका िकतना बङा काम हो
चक ु ा था और िकतना होने वाला था । कोई एक बजे उसका परू ा काय ख म हो गया ।
लपका मसान इस थान पर आज रात के िलये बधं चक ु ा था और काली टेकरी पर वह
उसे या खासतौर पर दयाराम को िड टब नह कर सकता था । ऐसा उसे इसिलये करना
पङा, य िक कल रात कुसमु के बाहर न जाने से लपका को दाल म काला लग
सकता था, और हवेली के बधं े होने पर तो उसका प का यक न ही हो गया होगा ।
इसिलये शाम को जब वह कुसमु पी शारदा को मु करता, तो लपका उस समय
यथ म फ़टे म टागं अङाता, और तब उसे खल ु कर लङाई लङनी पङती, और इस
तरह एक फ़ालतू का बखेङा होता । िजससे सनू बचना चाहता था, और दसू रे इस
रात का परू ा परू ा समय सनू कुसमु क खाितर खच करना चाहता था, िजससे उसे परू ी
सहानभु िू त थी ।
वहाँ से िनपटने के बाद वह दयाराम के साथ बाजार गया और हनमु ान बीसा का
चम कार िदखाने का बहाना करते हये उसने कुछ ज री सामान खरीदा ।
दयाराम उसक बात पर हँस रहा था, पर न जाने िकस भावना से े रत होकर उसका
कहना मान रहा था । उसे दरअसल िदलच पी थी िक वह आिखर या करने वाला है
?
शाम को पांच बजे के लगभग सनू ने शारदा पर से बंध हटा िलया ।
वह नौ बजे तक बैचेन होकर इधर उधर घमू ती रही और िफ़र अहाते म जाकर उसक
बाउं ी कूदकर गायब हो गयी ।
सनू रह यमय अ दाज म मु कराया और वापस कमरे म आकर दयाराम के पास बैठ
गया ।
जो टीवी के सामने दा क बोतल खोले उसका इतं जार करता हआ टीवी देख रहा था

सनू ने मना कर िदया िक पजू ा क वजह से आज न वह िपयेगा, और न ही दयाराम
िपयेगा ।
ठीक यारह बजे सनू दयाराम के साथ काली टेकरी पर मौजदू था ।
कुसमु अपने सू म शरीर के साथ गमु समु सी आम क डाली पर बैठी थी, और न जाने
कब से भख ू ी थी ।
सनू उसको देख सकता था, और वह भी उसे देख सकती थी ।
लेिकन ये नह जान सकती थी िक वह उसको देख रहा है ।
पर दयाराम इस रह य को नह जानता था ।
कुसमु क उस दशा पर सनू क आँख म आंसू आ गये ।
उसने उसी डाली के नीचे देशी घी म चावल आिद खा पदाथ भरपरू मा ा म
िमलाकर आग जलाकर एक कटोरे म रख िदये ।
दयाराम हैरत से उसक कायवाही देख रहा था ।
कुछ ही देर म सगु ि धत धआ ं ु ं खश
ु बू के साथ उङकर कुसमु के पास जाने लगा ।
उसे बेहद आ य हआ पर भख ू से याकुल होने क वजह से वह इस तरफ़ से यान
हटाकर ेत आहार हण करने लगी ।
सनू ने दयाराम क आँख बचाकर अपनी नम आँख को प छा ।
पौने बारह बज चक ु े थे ।
अब उसे शारदा का इतं जार था ।
उसने मानिसक आदेश उसको िदया ।
लगभग दस िमनट बाद ही एक नंगी औरत लगभग उङने के अ दाज म काली टेकरी
पहचं ी ।
उसने अभी अभी दयाराम से िलया हआ रवा वर सावधानी से पकङ िलया और एक
िनगाह भोजन से होकर बैठी हयी कुसमु पर डालकर मन ही मन कहा - कुसमु चार
साल से भटकती और तङपती तेरी आ मा आज िन य ही शाि त को ा होगी, जब
तू अपनी कमीनी बहन का अ जाम अपने आँख से देखेगी ।
हे िनद ष आ मा, तू नह जानती । ये सारा खेल मने तेरी आँख के सामने ही करने के
िलये इतना बङा नाटक रचा । वरना शारदा जैसी कुितया तो किलयारी कुटी से ही दफ़ा
हो जानी थी । म उसी व समझ गया िक दयाराम से यादा तो तू भगु त रही है । म तेरे
िलये, िजतना मझु से बन पङे गा, क ँ गा । शाय़द ऐसा ही होना हो, शायद ऐसा ही
िलखा हो । शायद वो मझु े िनिम बनाकर ऐसा ही चाहता हो..।
अगला य दयाराम के िलये पवू प रिचत था ।
नगं ी मदु ा औरत िचता वाले थान पर लोटने लगी और लोमङी और िसयार क
मख ु ाकृित वाले छोटे जीव म बदलने लगी ।
सनू ने रवा वर वाला हाथ सीधा िकया, उसके मँहु से िनकला - अलिवदा शारदा ।
और उसने घोङा दबा िदया ।
गोली क आवाज स नाटे को चीरती चली गयी ।
मायावी जानवर क कायं कायं मिु कल से आधा िमनट हयी, और िफ़र वहाँ कुसमु
क िन ल लाश नजर आने लगी ।
दयाराम हैरत से मँहु फ़ाङे उसक तरफ़ देखता रह गया ।
उसने आम क डाली पर बैठी कुसमु पर नजर डाली, पर वो वहाँ नह थी ।
सनू ने मढ़ु कर देखा । वह दसू री तरफ़ खङी थी ।
उसके चेहरे पर गहन संतिु के भाव थे, और वह अजीब नजर से उसे देख रही थी ।
खदु दयाराम का यही हाल था ।
वो ह का ब का होकर उसे ही देख रहा था ।
पर उसके पास अब ऐसी बात के िलये व नह था । अभी उसे बहत से काम करने थे

उसने दयाराम के सहयोग से कुसमु क लाश उठाई, और पहले से ही सख ू ी पि य
और टहनी से भरे एक गढ्ढे म प के बीच दबा दी । इसके साथ ही उसने मोटर
साइिकल पर थैले म बधं े सामान से दस िकलो देशी घी गढ्ढे म डाल िदया, और
मािचस से एक पलीता जलाता हआ दयाराम को देकर बोला - अपनी प नी का,
अिं तम सं कार करो, दयाराम ।
दयाराम ने आँसू बहाते हये प को आग लगा दी ।
सनू ने टेकरी के पास पङी दो मोटी िपंिडय को दयाराम के सहयोग से उठाकर गढ्ढे
म डाल िदया ।
लगभग चार साल पहले मृ य को ा हआ मदु ा, धू धू कर जलने लगा ।
---------------
अगली सबु ह किलयारी कुटी जाने के थान पर सनू चे नई के िलये रवाना हो गया ।
अपनी साधना को कुछ िदन हेतु टालना ज री हो गया था ।
दयाराम िनि त ही उसक खोज म दबु ारा वहाँ जाता, जो िक सनू िकसी क मत पर
नह चाहता था ।
कुसमु का सनू प का इतं जाम कर चक ु ा था ।
उससे स पक करके सनू ने उसे अपनी असिलयत बता दी थी और उसके िकसी
शा त ेतलोक म पहँचाने का वादा कर िदया था ।
जहाँ उसे कोई परे शान नह करता । जहाँ उसके भोजन क कोई सम या नह होती ।
लेिकन जब तक ऐसा नह होता । तब तक के िलये उसने उसे कुछ तरीके बताये ।
िजनसे वह आराम से रह सकती थी ।
कुसमु के अचानक गायब होने का उपाय दयाराम को उसने ये बताया था िक उसके घर
फ़ोन कर देना िक घर से लङ कर चली आयी है । िफ़र उसके गायब होने क रपोट
िलखा देना, और उसके बाद अखबार म गमु शदु ा क खोज ।
इसके कुछ ही िदन म मामला समा ।
शारदा से उसे कोई सहानभु िू त नह थी ।
उसने सनू से पछू ा - अब म या क ँ ?
वह बोला - भाङ म जाओ ।
दयाराम उसके न चाहते हये भी बहत कुछ समझ चक ु ा था ।
वह उसका फ़ोन न. और घर का पता आिद जानने क बारबार िजद कर रहा था ।
िजसे सनू ने अगली बार बताने का वादा िकया, और वह अगली बार कभी नह
आनी थी ।
आिखर म बेहद रकवे ट करते हये उसने पछ ू ा - कम से कम इतना बता दो िक
आिखर तमु हो कौन ?
- एक सीधा साधा सरल इसं ान । सनू ने हँसते हये कहा, और गाङी आगे बढ़ा दी ।
-----------
(समा )

(इस कथा के सभी पा , च र , थान आिद का पिनक ह, और इस कहानी का


एकमा उ े य मा मनोरंजन ही है ।)
लेखक क अ य रचनाय

1 नगर कालका 8 अिं गया वेताल


2 काली िवधवा 9 औरत नह चङु ै ल
3 ेतक या 10 ल मण रे खा
4 सनू का इसं ाफ़ 11 अधं ेरा
5 िपशाच का बदला 12 कामवासना
6 ेतनी का मायाजाल 13 ओिमयो तारा (अ कािशत)
7 डायन

copyright@rajeev kulshreshtha

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