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श्रीवैभव लक्ष्मी

व्रत कथा और
नियम
श्रीवैभव लक्ष्मी व्रत करने का ननयम

1. यह व्रत सौभाग्यशाली स्त्रियां करें तो उिका अनत उत्तम फल नमलता है, पर


घर में यदि सौभाग्यशाली स्त्रियां ि हों तो कोई भी िी एवं कुमाररका भी यह
व्रत कर सकती है।

2. िी के बिले पुरुष भी यह व्रत करें तो उसे भी उत्तम फल अवश्य नमलता


है।

3. यह व्रत पूरी श्रद्धा और पनवत्र भाव से करिा चादहए। खिन्न होकर या नबिा
भाव से यह व्रत िहीं करिा चादहए।

4. यह व्रत शुक्रवार को ककया जाता है। व्रत शुरु करते वक्त 11 या 21 शुक्रवार
की मन्नत रििी पड़ती है और बताई गई शािीय नवधि अिुसार ही व्रत करिा
चादहए। मन्नत के शुक्रवार पूरे होिे पर नवधिपूवक
व और बताई गई शािीय रीनत
के अिुसार उद्यापि करिा चादहए। यह नवधि सरल है। ककन्तु शािीय नवधि
अिुसार व्रत ि करिे पर व्रत का जरा भी फल िहीं नमलता है।

5. एक बार व्रत पूरा करिे के पश्चात कफर मन्नत कर सकते हैं और कफर से व्रत
कर सकते हैं।
6. माता लक्ष्मी िेवी के अिेक स्वरूप हैं। उिमें उिका ‘ििलक्ष्मी’ स्वरूप ही
‘वैभवलक्ष्मी’ है और माता लक्ष्मी को श्रीयंत्र अनत किय है। व्रत करते समय माता
लक्ष्मी के नवनवि स्वरूप यथा श्रीगजलक्ष्मी, श्री अधिलक्ष्मी, श्री नवजयलक्ष्मी,
श्री ऐश्वयवलक्ष्मी, श्री वीरलक्ष्मी, श्री िान्यलक्ष्मी एवं श्री संतािलक्ष्मी तथा श्रीयंत्र
को िणाम करिा चादहए।

7. व्रत के दिि सुबह से ही ‘जय माँ लक्ष्मी’, ‘जय माँ लक्ष्मी’ का रटि मि ही मि
करिा चादहए और माँ का पूरे भाव से स्मरण करिा चादहए।

8. शुक्रवार के दिि यदि आप िवास या यात्रा पर गये हों तो वह शुक्रवार


छोड़कर उिके बाि के शुक्रवार को व्रत करिा चादहए अथात् व्रत अपिे ही घर
में करिा चादहए। कुल नमलाकर जजतिे शुक्रवार की मन्नत ली हो, उतिे
शुक्रवार पूरे करिे चादहए।

9. घर में सोिा ि हो तो चाँिी की चीज पूजा में रििी चादहए। अगर वह भी ि


हो तो रोकड़ रुपया रििा चादहए।

10. व्रत पूरा होिे पर कम से कम सात स्त्रियों को या आपकी इच्छा अिुसार


जैसे 11, 21, 51 या 101 स्त्रियों को वैभवलक्ष्मी व्रत की पुस्तक कुमकुम का
नतलक करके भेंट के रूप में िेिी चादहए। जजतिी ज्यािा पुस्तक आप िेंगे उतिी
माँ लक्ष्मी की ज्यािा कृपा होगी और माँ लक्ष्मी जी के इस अद्भत
ु व्रत का ज्यािा
िचार होगा।

11. व्रत के शुक्रवार को िी रजस्वला हो या सूतकी हो तो वह शुक्र वार छोड़


िेिा चादहए और बाि के शुक्रवार से व्रत शुरु करिा चादहए। पर जजतिे
शुक्रवार की मन्नत मािी हो, उतिे शुक्रवार पूरे करिे चादहए।

12. व्रत की नवधि शुरु करते वक्त ‘लक्ष्मी स्तवि’ का एक बार पाठ करिा
चादहए। लक्ष्मी स्तवि इस िकार है -

या रक्ताम्बुजवाजसिी नवलजसिी चण्डांशु तेजस्वस्विीं।

या रक्ता रुधिराम्बरा हररसिी या श्री मिोल्हादििी।।

या रत्नाकरमन्थिात्प्रगकटतां नवष्णोस्वया गेदहिी।

सा मां पातु मिोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती।।

अथात् - जो लाल कमल में रहती है, जो अपूवव कांनतवाली हैं, जो असह्य
तेजवाली हैं, जो पूणवरूप से लाल हैं, जजसिे रक्तरूप वि पहिे हैं, जे भगवाि
नवष्णु को अनतकिय हैं, जो लक्ष्मी मि को आिन्द िेती हैं, जो समुद्रमंथि से
िकट हुई है, जो नवष्णु भगवाि की पत्नी हैं, जो कमल से जन्मी हैं और जो
अनतशय पूज्य है, वैसी हे लक्ष्मी िेवी ! आप मेरी रक्षा करें ।
13. व्रत के दिि हो सके तो उपवास करिा चादहए और शाम को व्रत की नवधि
करके माँ का िसाि लेकर व्रत करिा चादहए। अगर ि हो सके तो फलाहार या
एक बार भोजि कर के शुक्रवार का व्रत रििा चादहए। अगर व्रतिारी का
शरीर बहुत कमजोर हो तो ही िो बार भोजि ले सकते हैं। सबसे महत्व की
बात यही है कक व्रतिारी माँ लक्ष्मी जी पर पूरी-पूरी श्रद्धा और भाविा रिे और
‘मेरी मिोकामिा माँ पूरी करेंगी ही’, ऐसा दृढ़ नवश्वास रिकर व्रत करे ।
श्रीवैभव लक्ष्मी व्रत की कथा

एक बड़ा शहर था। इस शहर में लािों लोग रहते थे। पहले के जमािे के

लोग साथ-साथ रहते थे और एक िस


ू रे के काम आते थे। पर िये जमािे

के लोगों का स्वरूप ही अलग सा है। सब अपिे अपिे काम में रत रहते

हैं। ककसी को ककसी की परवाह िहीं। घर के सिस्यों को भी एक-िस


ू रे

की परवाह िहीं होती। भजि-कीतवि, भक्तक्त -भाव, िया-माया, परोपकार

जैसे संस्कार कम हो गये हैं। शहर में बुराइयाँ बढ़ गई थी। शराब, जुआ,

रे स, व्यधभचार, चोरी-डकैती आदि बहुत से अपराि शहर में होते थे।

कहावत है कक ‘हजारों निराशा में एक अमर आशा छछपी हुई है ’ इसी

तरह इतिी सारी बुराइयों के बावजूि शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते

थे। ऐसे अच्छे लोगों में शीला और उिके पनत की गृहस्थी मािी जाती
थी। शीला िानमवक िकृनत की और संतोषी थी। उिका पनत भी नववेकी

और सुशील था। शीला और उिका पनत ईमाििारी से जीते थे। वे ककसी

की बुराई ि करते थे और िभु भजि में अच्छी तरह समय व्यतीत कर

रहे थे। उिकी गृहस्थी आिशव गृहस्थी थी और शहर के लोग उिकी

गृहस्थी की सराहिा करते थे।

शीला की गृहस्थी इसी तरह िुशी-िुशी चल रही थी। पर कहा जाता है

कक ‘कमव की गनत अकल है ’, नविाता के जलिे लेि कोई िहीं समझ

सकता है। इन्साि का िसीब पल भर में राजा को रंक बिा िेता है और

रंक को राजा। शीला के पनत के अगले जन्म के कमव भोगिे बाकी रह

गये होंगे कक वह बुरे लोगों से िोस्ती कर बैठा। वह जल्द से जल्द

करोड़पनत होिे के ख्वाब िेििे लगा। इसजलए वह गलत रास्ते पर चल


निकला और करोड़पनत के बजाय रोड़पनत बि गया। यािे रास्ते पर

भटकते धभिारी जैसी उसकी स्थस्थनत हो गयी थी।

शहर में शराब, जुआ, रे स, चरस-गांजा आदि बदियां फैली हुई थीं। उसमें

शीला का पनत भी फँस गया। िोस्तों के साथ उसे भी शराब की आित

हो गई। जल्द से जल्द पैसे वाला बििे की लालच में िोस्तों के साथ

रे स जुआ भी िेलिे लगा। इस तरह बचाई हुई ििराजश, पत्नी के गहिे,

सब कुछ रे स-जुए में गँवा दिया था। समय के पररवतवि के साथ घर में

िररद्रता और भुिमरी फैल गई। सुि से िािे के बजाय िो वक्त के

भोजि के लाले पड़ गये और शीला को पनत की गाजलयाँ िािे का वक्त

आ गया था। शीला सुशील और संस्कारी िी थी। उसको पनत के बताव

से बहुत िि
ु हुआ। ककन्तु वह भगवाि पर भरोसा करके बड़ा दिल रि
कर िि
ु सहिे लगी। कहा जाता है कक ‘सुि के पीछे िि
ु और िि
ु के

पीछे सुि आता ही है। इसजलए िि


ु के बाि सुि आयेगा ही, ऐसी श्रद्धा

के साथ शीला िभु भक्तक्त में लीि रहिे लगी। इस तरह शीला असह्य

िि
ु सहते-सहते िभुभक्तक्त में वक्त नबतािे लगी।

अचािक एक दिि िोपहर में उिके द्वार पर ककसी िे िस्तक िी। शीला

सोच में पड़ गयी कक मुझ जैसे गरीब के घर इस वक्त कौि आया होगा?

कफर भी द्वार पर आये हुए अनतधथ का आिर करिा चादहए, ऐसे आयव

िमव के संस्कार वाली शीला िे िड़े होकर द्वार िोला। िेिा तो एक माँ

जी िड़ी थी। वे बड़ी उम्र की लगती थीं। ककन्तु उिके चेहरे पर अलौककक

तेज नििर रहा था। उिकी आँिों में से मािो अमृत बह रहा था। उिका

भव्य चेहरा करुणा और प्यार से छलकता था। उिको िे िते ही शीला


के मि में अपार शांनत छा गई। वैसे शीला इस माँ जी को पहचािती ि

थी, कफर भी उिको िेिकर शीला के रोम-रोम में आिन्द छा गया।

शीला माँ जी को आिर के साथ घर में ले आयी। घर में नबठािे के जलए

कुछ भी िहीं था। अतः शीला िे सकुचा कर एक फटी हुई चािर पर

उिको नबठाया।

माँ जी िे कहा: ‘क्यों शीला ! मुझे पहचािा िहीं?’

शीला िे सकुचा कर कहा: ‘माँ ! आपको िेिते ही बहुत िुशी हो रही

है। बहुत शांनत हो रही है। ऐसा लगता है कक मैं बहुत दििों से जजसे ढू ढ़

रही थी वे आप ही हैं, पर मैं आपको पहचाि िहीं सकती।’


माँ जी िे हँ सकर कहा: ‘क्यों? भूल गई? हर शुक्रवार को लक्ष्मी जी के

मंदिर में भजि-कीतवि होते हैं, तब मैं भी वहाँ आती हूँ। वहाँ हर शुक्रवार

को हम नमलते हैं।’

पनत गलत रास्ते पर चढ़ गया, तब से शीला बहुत िि


ु ी हो गई थी और

िि
ु की मारी वह लक्ष्मीजी के मंदिर में भी िहीं जाती थी। बाहर के लोगों

के साथ िजर नमलाते भी उसे शमव लगती थी। उसिे याििाश्त पर जोर

दिया पर वह माँ जी याि िहीं आ रही थीं।

तभी माँ जी िे कहा: ‘तू लक्ष्मी जी के मंदिर में ककतिे मिुर भजि गाती

थी। अभी-अभी तू दििाई िहीं िेती थी, इसजलए मुझे हुआ कक तू क्यों
िहीं आती है? कहीं बीमार तो िहीं हो गई है ि? ऐसा सोचकर मैं तुझसे

नमलिे चली आई हूँ।’

माँ जी के अनत िेम भरे शब्दों से शीला का हृिय कपघल गया। उसकी

आँिों में आँसू आ गये। माँ जी के सामिे वह नबलि-नबलि कर रोिे

लगी। यह िेि कर माँ जी शीला के िजिीक आयीं और उसकी

जससकती पीठ पर प्यार भरा हाथ फेर कर सांत्विा िेिे लगीं।

माँ जी िे कहा: ‘बेटी ! सुि और िि


ु तो िूप छांव जैसे होते हैं। िैयव रिो

बेटी ! और तुझे परे शािी क्या है ? तेरे िि


ु की बात मुझे सुिा। तेरा मि

हलका हो जायेगा और तेरे िि


ु का कोई उपाय भी नमल जायेगा।’

माँ जी की बात सुिकर शीला के मि को शांनत नमली। उसिे माँ जी से

कहा: ‘माँ ! मेरी गृहस्थी में भरपूर सुि और िुजशयाँ थीं, मेरे पनत भी
सुशील थे। अचािक हमारा भाग्य हमसे रूठ गया। मेरे पनत बुरी संगनत

में फँस गये और बुरी आितों के जशकार हो गये तथा अपिा सब-कुछ

गवाँ बैठे हैं तथा हम रास्ते के धभिारी जैसे बि गये हैं।’

यह सुि कर माँ जी िे कहा: ‘ऐसा कहा जाता है कक , ‘कमव की गनत

न्यारी होती है ’, हर इंसाि को अपिे कमव भुगतिे ही पड़ते हैं। इसजलए तू

छचंता मत कर। अब तू कमव भुगत चुकी है। अब तुम्हारे सुि के दिि

अवश्य आयेंगे। तू तो माँ लक्ष्मी जी की भक्त है। माँ लक्ष्मी जी तो िे म

और करुणा की अवतार हैं। वे अपिे भक्तों पर हमेशा ममता रिती हैं।

इसजलए तू िैयव रि कर माँ लक्ष्मी जी का व्रत कर। इससे सब कुछ

ठीक हो जायेगा।
‘माँ लक्ष्मी जी का व्रत’ करिे की बात सुिकर शीला के चेहरे पर चमक

आ गई। उसिे पूछा: ‘माँ ! लक्ष्मी जी का व्रत कैसे ककया जाता है, वह

मुझे समझाइये। मैं यह व्रत अवश्य करूँगी।’

माँ जी िे कहा: ‘बेटी ! माँ लक्ष्मी जी का व्रत बहुत सरल है। उसे

‘वरिलक्ष्मी व्रत’ या ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ भी कहा जाता है। यह व्रत करिे

वाले की सब मिोकामिा पूणव होती है। वह सुि -सम्पधत्त और यश िाप्त

करता है। ऐसा कहकर माँ जी ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की नवधि कहिे लगी।

‘बेटी ! वैभवलक्ष्मी व्रत वैसे तो सीिा-सािा व्रत है। ककन्तु कई लोग यह

व्रत गलत तरीके से करते हैं, अतः उसका फल िहीं नमलता। कई लोग

कहते हैं कक सोिे के गहिे की हलिी-कुमकुम से पूजा करो बस व्रत हो

गया। पर ऐसा िहीं है। कोई भी व्रत शािीय नवधि से करिा चादहए।
तभी उसका फल नमलता है। सच्ची बात यह है कक सोिे के गहिों का

नवधि से पूजि करिा चादहए। व्रत की उद्यापि नवधि भी शािीय नवधि

से करिा चादहए।

यह व्रत शुक्रवार को करिा चादहए। िातःकाल स्नाि करके स्वच्छ

कपड़े पहिो और सारा दिि ‘जय माँ लक्ष्मी’ का रटि करते रहो। ककसी

की चुगली िहीं करिी चादहए। शाम को पूवव दिशा में मुँह करके आसि

पर बैठ जाओ। सामिे पाटा रिकर उस पर रुमाल रिो। रुमाल पर

चावल का छोटा सा ढेर करो। उस ढेर पर पािी से भरा तांबे का कलश

रि कर, कलश पर एक कटोरी रिो। उस कटोरी में एक सोिे का गहिा

रिो। सोिे का ि हो तो चांिी का भी चलेगा। चांिी का ि हो तो िकि


रुपया भी चलेगा। बाि में घी का िीपक जला कर अगरबत्ती सुलगा कर

रिो।

माँ लक्ष्मी जी के बहुत स्वरूप हैं। और माँ लक्ष्मी जी को ‘श्रीयंत्र’ अनत

किय है। अतः ‘वैभवलक्ष्मी’ में पूजि नवधि करते वक्त सवविथम ‘श्रीयंत्र’

और लक्ष्मी जी के नवनवि स्वरूपों का सच्चे दिल से िशवि करो। उसके

बाि ‘लक्ष्मी स्तवि’ का पाठ करो। बाि में कटोरी में रिे हुए गहिे या

रुपये को हल्दी-कुमकुम और चावल चढ़ाकर पूजा करो और लाल रंग

का फूल चढ़ाओ। शाम को कोई मीठी चीज बिा कर उसका िसाि

रिो। ि हो सके तो शक्कर या गुड़ भी चल सकता है। कफर आरती

करके ग्यारह बार सच्चे हृिय से ‘जय माँ लक्ष्मी’ बोलो। बाि में ग्यारह

या इक्कीस शुक्रवार यह व्रत करिे का दृढ़ संकल्प माँ के सामिे करो

और आपकी जो मिोकामिा हो वह पूरी करिे को माँ लक्ष्मी जी से


नविती करो। कफर माँ का िसाि बाँट िो। और थोड़ा िसाि अपिे जलए

रि लो। अगर आप में शक्तक्त हो तो सारा दिि उपवास रिो और जसफव

िसाि िा कर शुक्रवार का व्रत करो। ि शक्तक्त हो तो एक बार शाम को

िसाि ग्रहण करते समय िािा िा लो। अगर थोड़ी शक्तक्त भी ि हो तो

िो बार भोजि कर सकते हैं। बाि में कटोरी में रिा गहिा या रुपया ले

लो। कलश का पािी तुलसी की क्यारी में डाल िो और चावल पजक्षयों

को डाल िो। इसी तरह शािीय नवधि से व्रत करिे से उसका फल

अवश्य नमलता है। इस व्रत के िभाव से सब िकार की नवपधत्त िरू हो

कर आिमी मालामाल हो जाता हैं संताि ि हो तो संताि िाप्तप्त होती है।

सौभाग्वती िी का सौभाग्य अिण्ड रहता है। कुमारी लड़की को

मिभावि पनत नमलता है।


शीला यह सुिकर आिप्तन्दत हो गई। कफर पूछा: ‘माँ ! आपिे वैभवलक्ष्मी

व्रत की जो शािीय नवधि बताई है , वैसे मैं अवश्य करूंगी। ककन्तु

उसकी उद्यापि नवधि ककस तरह करिी चादहए? यह भी कृपा करके

सुिाइये।’

माँ जी िे कहा: ‘ग्यारह या इक्कीस जो मन्नत मािी हो उतिे शुक्रवार यह

वैभवलक्ष्मी व्रत पूरी श्रद्धा और भाविा से करिा चादहए। व्रत के आखिरी

शुक्रवार को िीर का िैवेद्य रिो। पूजि नवधि हर शुक्रवार को करते हैं

वैसे ही करिी चादहए। पूजि नवधि के बाि श्रीफल फोड़ो और कम से

कम सात कुंवारी या सौभाग्यशाली स्त्रियों को कुमकुम का नतलक

करके ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की एक-एक पुस्तक उपहार में िेिी चादहए और

सब को िीर का िसाि िेिा चादहए। कफर ििलक्ष्मी स्वरूप,


वैभवलक्ष्मी स्वरूप, माँ लक्ष्मी जी की छनव को िणाम करें । माँ लक्ष्मी

जी का यह स्वरूप वैभव िेिे वाला है। िणाम करके मि ही मि भावुकता

से माँ की िाथविा करते वक्त कहें कक , ‘हे माँ ििलक्ष्मी ! हे माँ

वैभवलक्ष्मी ! मैंिे सच्चे हृिय से आपका व्रत पूणव ककया है। तो हे माँ !

हमारी मिोकामिा पूणव कीजजए। हमारा सबका कल्याण कीजजए। जजसे

संताि ि हो उसे संताि िेिा। सौभाग्यशाली िी का सौभाग्य अिण्ड

रििा। कुंवारी लड़की को मिभावि पनत िेिा। आपका यह चमत्कारी

वैभवलक्ष्मी व्रत जो करे उसकी सब नवपधत्त िरू करिा। सब को सुिी

करिा। हे माँ ! आपकी मदहमा अपरम्पार है।’

माँ जी के पास से वैभवलक्ष्मी व्रत की शािीय नवधि सुिकर शीला

भावनवभोर हो उठी। उसे लगा मािो सुि का रास्ता नमल गया। उसिे
आँिें बंि करके मि ही मि उसी क्षण संकल्प जलया कक, ‘हे वैभवलक्ष्मी

माँ ! मैं भी माँ जी के कहे अिुसार श्रद्धापूववक शािीय नवधि से

वैभवलक्ष्मी व्रत इक्कीस शुक्रवार तक करूँगी और व्रत की शािीय

रीनत के अिुसार उद्यापि भी करूँगी।

शीला िे संकल्प करके आँिें िोली तो सामिे कोई ि था। वह नवस्वस्मत

हो गई कक माँ जी कहां गयी? यह माँ जी कोई िस


ू रा िहीं साक्षात लक्ष्मी

जी ही थीं। शीला लक्ष्मी जी की भक्त थी इसजलए अपिे भक्त को रास्ता

दििािे के जलए माँ लक्ष्मी िेवी माँ जी का स्वरूप िारण करके शीला

के पास आई थीं।
िस
ू रे दिि शुक्रवार था। िातःकाल स्नाि करके स्वच्छ कपड़े पहि कर

शीला मि ही मि श्रद्धा और पूरे भाव से ‘जय माँ लक्ष्मी’ का मि ही मि

रटि करिे लगी। सारा दिि ककसी की चुगली िहीं की। शाम हुई तब

हाथ-पांव-मुंह िो कर शीला पूवव दिशा में मुंह करके बैठी। घर में पहले

तो सोिे के बहुत से गहिे थे पर पनत िे गलत रास्ते पर चलकर सब

क्तगरवी रि दिये। पर िाक की कील (पुल्ली) बच गई थी। िाक की कील

निकाल कर, उसे िोकर शीला िे कटोरी में रि िी। सामिे पाटे पर

रुमाल रि कर मुठ्ठी भर चावल का ढेर ककया। उस पर तांबे का कलश

पािी भरकर रिा। उसके ऊपर कील वाली कटोरी रिी। कफर

नवधिपूववक वंिि, स्तवि, पूजि वगैरह ककया और घर में थोड़ी शक्कर

थी, वह िसाि में रि कर वैभवलक्ष्मी व्रत ककया।


यह िसाि पहले पनत को खिलाया। िसाि िाते ही पनत के स्वभाव में

फकव पड़ गया। उस दिि उसिे शीला को मारा िहीं, सताया भी िहीं।

शीला को बहुत आिन्द हुआ। उसके मि में वैभवलक्ष्मी व्रत के जलए श्रद्ध

बढ़ गई।

शीला िे पूणव श्रद्धा-भक्तक्त से इक्कीस शुक्रवार तक व्रत ककया।

इक्कीसवें शुक्रवार को नवधिपूववक उद्यापि नवधि करके सात स्त्रियों को

वैभवलक्ष्मी व्रत की सात पुस्तकें उपहार में िीं। कफर माता जी के

‘ििलक्ष्मी स्वरूप’ की छनव को वंिि करके भाव से मि ही मि िाथविा

करिे लगी: ‘हे माँ ििलक्ष्मी ! मैंिे आपका वैभवलक्ष्मी व्रत करिे की

मन्नत मािी थी वह व्रत आज पूणव ककया है। हे माँ ! मेरी हर नवपधत्त िरू

करो। हमारा सबका कल्याण करो। जजसे संताि ि हो, उसे संताि िेिा।

सौभाग्यवती िी का सौभाग्य अिण्ड रििा। कुंवारी लड़की को


मिभावि पनत िेिा। जो कोई आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत

करे , उसकी सब नवपधत्त िरू करिा। सब को सुिी करिा। हे माँ ! आपकी

मदहमा अपार है।’ ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के ििलक्ष्मी स्वरूप की छनव

को िणाम ककया।

इस तरह शािीय नवधि से शीला िे श्रद्धा से व्रत ककया और तुरन्त ही

उसे फल नमला। उसका पनत सही रास्ते पर चलिे लगा और अच्छा

आिमी बि गया तथा कड़ी मेहित से व्यवसाय करिे लगा। िीरे िीरे

समय पररवनतवत हुआ और उसिे शीला के क्तगरवी रिे गहिे छु ड़ा जलए।

घर में िि की बाढ़ सी आ गई। घर में पहले जैसी सुि -शांनत छा गई।


वैभवलक्ष्मी व्रत का िभाव िे िकर मोहल्ले की िस
ू री स्त्रियाँ भी

शािीय नवधि से वैभवलक्ष्मी का व्रत करिे लगीं। हे माँ ििलक्ष्मी ! आप

जैसे शीला पर िसन्न हुईं, उसी तरह आपका व्रत करिे वाले सब पर

िसन्न होिा। सबको सुि -शांनत िेिा। जय ििलक्ष्मी माँ ! जय

वैभवलक्ष्मी माँ !

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