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Vaibhav Laxmi Katha
Vaibhav Laxmi Katha
व्रत कथा और
नियम
श्रीवैभव लक्ष्मी व्रत करने का ननयम
3. यह व्रत पूरी श्रद्धा और पनवत्र भाव से करिा चादहए। खिन्न होकर या नबिा
भाव से यह व्रत िहीं करिा चादहए।
4. यह व्रत शुक्रवार को ककया जाता है। व्रत शुरु करते वक्त 11 या 21 शुक्रवार
की मन्नत रििी पड़ती है और बताई गई शािीय नवधि अिुसार ही व्रत करिा
चादहए। मन्नत के शुक्रवार पूरे होिे पर नवधिपूवक
व और बताई गई शािीय रीनत
के अिुसार उद्यापि करिा चादहए। यह नवधि सरल है। ककन्तु शािीय नवधि
अिुसार व्रत ि करिे पर व्रत का जरा भी फल िहीं नमलता है।
5. एक बार व्रत पूरा करिे के पश्चात कफर मन्नत कर सकते हैं और कफर से व्रत
कर सकते हैं।
6. माता लक्ष्मी िेवी के अिेक स्वरूप हैं। उिमें उिका ‘ििलक्ष्मी’ स्वरूप ही
‘वैभवलक्ष्मी’ है और माता लक्ष्मी को श्रीयंत्र अनत किय है। व्रत करते समय माता
लक्ष्मी के नवनवि स्वरूप यथा श्रीगजलक्ष्मी, श्री अधिलक्ष्मी, श्री नवजयलक्ष्मी,
श्री ऐश्वयवलक्ष्मी, श्री वीरलक्ष्मी, श्री िान्यलक्ष्मी एवं श्री संतािलक्ष्मी तथा श्रीयंत्र
को िणाम करिा चादहए।
7. व्रत के दिि सुबह से ही ‘जय माँ लक्ष्मी’, ‘जय माँ लक्ष्मी’ का रटि मि ही मि
करिा चादहए और माँ का पूरे भाव से स्मरण करिा चादहए।
12. व्रत की नवधि शुरु करते वक्त ‘लक्ष्मी स्तवि’ का एक बार पाठ करिा
चादहए। लक्ष्मी स्तवि इस िकार है -
अथात् - जो लाल कमल में रहती है, जो अपूवव कांनतवाली हैं, जो असह्य
तेजवाली हैं, जो पूणवरूप से लाल हैं, जजसिे रक्तरूप वि पहिे हैं, जे भगवाि
नवष्णु को अनतकिय हैं, जो लक्ष्मी मि को आिन्द िेती हैं, जो समुद्रमंथि से
िकट हुई है, जो नवष्णु भगवाि की पत्नी हैं, जो कमल से जन्मी हैं और जो
अनतशय पूज्य है, वैसी हे लक्ष्मी िेवी ! आप मेरी रक्षा करें ।
13. व्रत के दिि हो सके तो उपवास करिा चादहए और शाम को व्रत की नवधि
करके माँ का िसाि लेकर व्रत करिा चादहए। अगर ि हो सके तो फलाहार या
एक बार भोजि कर के शुक्रवार का व्रत रििा चादहए। अगर व्रतिारी का
शरीर बहुत कमजोर हो तो ही िो बार भोजि ले सकते हैं। सबसे महत्व की
बात यही है कक व्रतिारी माँ लक्ष्मी जी पर पूरी-पूरी श्रद्धा और भाविा रिे और
‘मेरी मिोकामिा माँ पूरी करेंगी ही’, ऐसा दृढ़ नवश्वास रिकर व्रत करे ।
श्रीवैभव लक्ष्मी व्रत की कथा
एक बड़ा शहर था। इस शहर में लािों लोग रहते थे। पहले के जमािे के
जैसे संस्कार कम हो गये हैं। शहर में बुराइयाँ बढ़ गई थी। शराब, जुआ,
तरह इतिी सारी बुराइयों के बावजूि शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते
थे। ऐसे अच्छे लोगों में शीला और उिके पनत की गृहस्थी मािी जाती
थी। शीला िानमवक िकृनत की और संतोषी थी। उिका पनत भी नववेकी
शहर में शराब, जुआ, रे स, चरस-गांजा आदि बदियां फैली हुई थीं। उसमें
हो गई। जल्द से जल्द पैसे वाला बििे की लालच में िोस्तों के साथ
सब कुछ रे स-जुए में गँवा दिया था। समय के पररवतवि के साथ घर में
से बहुत िि
ु हुआ। ककन्तु वह भगवाि पर भरोसा करके बड़ा दिल रि
कर िि
ु सहिे लगी। कहा जाता है कक ‘सुि के पीछे िि
ु और िि
ु के
के साथ शीला िभु भक्तक्त में लीि रहिे लगी। इस तरह शीला असह्य
िि
ु सहते-सहते िभुभक्तक्त में वक्त नबतािे लगी।
अचािक एक दिि िोपहर में उिके द्वार पर ककसी िे िस्तक िी। शीला
सोच में पड़ गयी कक मुझ जैसे गरीब के घर इस वक्त कौि आया होगा?
कफर भी द्वार पर आये हुए अनतधथ का आिर करिा चादहए, ऐसे आयव
िमव के संस्कार वाली शीला िे िड़े होकर द्वार िोला। िेिा तो एक माँ
जी िड़ी थी। वे बड़ी उम्र की लगती थीं। ककन्तु उिके चेहरे पर अलौककक
तेज नििर रहा था। उिकी आँिों में से मािो अमृत बह रहा था। उिका
उिको नबठाया।
है। बहुत शांनत हो रही है। ऐसा लगता है कक मैं बहुत दििों से जजसे ढू ढ़
मंदिर में भजि-कीतवि होते हैं, तब मैं भी वहाँ आती हूँ। वहाँ हर शुक्रवार
को हम नमलते हैं।’
िि
ु की मारी वह लक्ष्मीजी के मंदिर में भी िहीं जाती थी। बाहर के लोगों
के साथ िजर नमलाते भी उसे शमव लगती थी। उसिे याििाश्त पर जोर
तभी माँ जी िे कहा: ‘तू लक्ष्मी जी के मंदिर में ककतिे मिुर भजि गाती
थी। अभी-अभी तू दििाई िहीं िेती थी, इसजलए मुझे हुआ कक तू क्यों
िहीं आती है? कहीं बीमार तो िहीं हो गई है ि? ऐसा सोचकर मैं तुझसे
माँ जी के अनत िेम भरे शब्दों से शीला का हृिय कपघल गया। उसकी
कहा: ‘माँ ! मेरी गृहस्थी में भरपूर सुि और िुजशयाँ थीं, मेरे पनत भी
सुशील थे। अचािक हमारा भाग्य हमसे रूठ गया। मेरे पनत बुरी संगनत
में फँस गये और बुरी आितों के जशकार हो गये तथा अपिा सब-कुछ
ठीक हो जायेगा।
‘माँ लक्ष्मी जी का व्रत’ करिे की बात सुिकर शीला के चेहरे पर चमक
आ गई। उसिे पूछा: ‘माँ ! लक्ष्मी जी का व्रत कैसे ककया जाता है, वह
माँ जी िे कहा: ‘बेटी ! माँ लक्ष्मी जी का व्रत बहुत सरल है। उसे
करता है। ऐसा कहकर माँ जी ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की नवधि कहिे लगी।
व्रत गलत तरीके से करते हैं, अतः उसका फल िहीं नमलता। कई लोग
गया। पर ऐसा िहीं है। कोई भी व्रत शािीय नवधि से करिा चादहए।
तभी उसका फल नमलता है। सच्ची बात यह है कक सोिे के गहिों का
से करिा चादहए।
कपड़े पहिो और सारा दिि ‘जय माँ लक्ष्मी’ का रटि करते रहो। ककसी
की चुगली िहीं करिी चादहए। शाम को पूवव दिशा में मुँह करके आसि
रिो।
किय है। अतः ‘वैभवलक्ष्मी’ में पूजि नवधि करते वक्त सवविथम ‘श्रीयंत्र’
बाि ‘लक्ष्मी स्तवि’ का पाठ करो। बाि में कटोरी में रिे हुए गहिे या
करके ग्यारह बार सच्चे हृिय से ‘जय माँ लक्ष्मी’ बोलो। बाि में ग्यारह
िो बार भोजि कर सकते हैं। बाि में कटोरी में रिा गहिा या रुपया ले
सुिाइये।’
वैभवलक्ष्मी ! मैंिे सच्चे हृिय से आपका व्रत पूणव ककया है। तो हे माँ !
भावनवभोर हो उठी। उसे लगा मािो सुि का रास्ता नमल गया। उसिे
आँिें बंि करके मि ही मि उसी क्षण संकल्प जलया कक, ‘हे वैभवलक्ष्मी
दििािे के जलए माँ लक्ष्मी िेवी माँ जी का स्वरूप िारण करके शीला
के पास आई थीं।
िस
ू रे दिि शुक्रवार था। िातःकाल स्नाि करके स्वच्छ कपड़े पहि कर
रटि करिे लगी। सारा दिि ककसी की चुगली िहीं की। शाम हुई तब
हाथ-पांव-मुंह िो कर शीला पूवव दिशा में मुंह करके बैठी। घर में पहले
निकाल कर, उसे िोकर शीला िे कटोरी में रि िी। सामिे पाटे पर
पािी भरकर रिा। उसके ऊपर कील वाली कटोरी रिी। कफर
फकव पड़ गया। उस दिि उसिे शीला को मारा िहीं, सताया भी िहीं।
शीला को बहुत आिन्द हुआ। उसके मि में वैभवलक्ष्मी व्रत के जलए श्रद्ध
बढ़ गई।
करिे लगी: ‘हे माँ ििलक्ष्मी ! मैंिे आपका वैभवलक्ष्मी व्रत करिे की
मन्नत मािी थी वह व्रत आज पूणव ककया है। हे माँ ! मेरी हर नवपधत्त िरू
करो। हमारा सबका कल्याण करो। जजसे संताि ि हो, उसे संताि िेिा।
को िणाम ककया।
आिमी बि गया तथा कड़ी मेहित से व्यवसाय करिे लगा। िीरे िीरे
समय पररवनतवत हुआ और उसिे शीला के क्तगरवी रिे गहिे छु ड़ा जलए।
जैसे शीला पर िसन्न हुईं, उसी तरह आपका व्रत करिे वाले सब पर
वैभवलक्ष्मी माँ !