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राहुल कुमार
पा :
पता/ सभ
ु ाष
माँ/ शीला
इंद/ू मौसी
वनोद(बड़ा बेटा)
संजय(छोटा बेटा)
यो त/बहू/ वनोद क प नी
फरोज़/ वनोद का दो त
चायवाला
य एक
मंच पर एक कमरे सेटप लगा हुआ है , दे खने से कमरा एक न न म यम वग का लगता है । कमरे क हालत बहूत
ह खराब है , मंच के एक तरफ कमरे मे वेश करने के लए दरवाज़ा है , िजसपे एक फटा परु ाना पदा बस जैसे तैसे
लटका हुआ है । दरवाजे के ह बगल मे घस
ु लखाना है । मंच के पीछे वाले कोने पे एक खल
ु रसोई है िजसका समान
बखरा पड़ा है । मंच के म य म एक पलंग है , िजस बछे ब तर बगड़े हुये ह, कुछ ब तर पलंग के पास म ऐसे ह
पड़े ह। साथ म एक कुस भी रखी है िजसपे कुछ कपड़े भी पड़े ह। मंच के एक कोने पे एक टे बल है िजसम कुछ
छोट -छोट दराज ह। टे बल पे एक अध पया पानी का गलास है और कुछ परु ाने ह द के अखबार है । मंच पे ह
एक चटाई बछ हुई है ।
परू ा कमरा पहल नज़र म उजड़ा हुआ सा महसस
ू होता है , परू ा कमरे मे धल
ू जमी हुई है । मंच के पीछे एक द वार पे
एक टाइम-टे बल टं गा हुआ है जो थोड़ा सा फटा हुआ है ।
एक आदमी का वेश होता है , उसने एकदम चकाचक कपड़े पहने हुये ह, उसके हाथ मे एक डायर है । जैसे जैसे वो
वेश करता है काश होना शु होता है । वो पहले परू े कमरे म घम
ू ता है , उसको दे खता है (इस दौरान संगीत बज रहा
है ) फर अपनी बात शु करता है .... अपनी बात के अंत तक आते आते कमरा अंधेरे मे डूब जाता है और काश
सफ आदमी पर रहा होता है ।
(संजय का वेश होता है , बाल बखरे हुये है और कपड़े अ त य त है , वो माँ को दे ख के दरवाजे पे ह क जाता है
और माँ उसको दे खते दे खते ह चप
ु हो जाती है । माँ को कुछ दे र दे खने के बाद वो पलंग पे लेट जाता है )
आदमी: यह तो था एक प रवार, वैसा ह जैसा सबका होता है ह का सा फु का सा। हां, मानता हूं कुछ असहम तयां
है घर के लोग के बीच, रसोई म चार बतन ह गे तो खड़कगे ह ।
वैसे भी र त म अगर शकायत नह ं होगी तो र ते ह कैसे। आ खर यह शकायत ह तो है जो हमारे बीच संवाद
का कारण बनती है और जहां शकायत ख म वहां संवाद कैसा। तो च लए आगे बढ़ते ह।
( काश म यम होते होते आदमी नकल जाता है वापस से जब काश होता है तो कमरे म दाद बैठ हुई है और
अपना कुछ काम कर रह है माँ का वेश होता है जो अभी अभी काम पर से वापस लौट है )
दाद : मझ
ु े तो समझ म नह ं आता जाने कौन सा गु सा है जो 24सौ घंटे तक तमतमाया हुआ रहता है ।
इंद:ू तम
ु फकर ना करो ना एक बार जब याह हो जाएगा ना सारा गु सा पानी हो जाएगा।
( वनोद का वेश होता है जो द तर से वापस लौटा है अभी अभी)
इंद:ू द द मझ
ु े तो लगता है वह कराए के पैसे कह ं जीजा ने स टे म तो नह ं लगा दए
माँ: चप
ु कर फर बकवास कर रह है
दाद : नह ं बहू मझ
ु े तो लगता है इंद ू सह कह रह है
इंद:ू अ छा म चलती हूं
(इंद ू जाने को होती है )
माँ: तू कहां चल
इंद:ू यट
ू पर।
दाद : रात को?
इंद:ू हां अ मा, मने रात का टाइम करवा लया है । वैसे भी रात तो घर के बाहर ह गज़
ु ारनी पड़ती है रात। अब रात
को काम कर लया क ं गी और दन म आराम।
दाद : हां, अ छा है
इंद:ू वैसे भी अ मा इस टाइम टे बल क वजह से तो जीना दभ
ू र हो गया है ।
(इंद ू कहते कहते नकल जाती है और कुछ दे र बाद पता वनोद और संजय का वेश होता है । पता का सर झक
ु ा
हुआ है वह आकर अ मा जी के बगल म बैठ जाते ह वनोद चारपाई पर और संजय एक तरफ खड़ा हो जाता है )
संजय: माँ तम
ु पछ
ू रह थी ना क म य पताजी और भैया को य पछ
ू रहा था पछ
ू रहा था। बस इतना कहना था
क नीचे वाला म बक रहा है उसे हम खर द लेते ह। ले लगे तो यह टाइम टे बल का झंझट नह ं रहे गा कसी क
रात बेरात नह ं होगी। यह कुछ पैसे है जो मने काम करते हुये बचाए थे अगर मन हो तो……
वैसे इन हालात से तो मझ
ु े नह ं लगता क इस टाइम टे बल का कुछ हो पाएगा। और हम इस मा चस क ड बी मे
हो रह जाएँगे
( इतना कहकर वो नकल जाता है , फर वनोद भी बाहर चला जाता है , और मौसी का वेश होता है )
दाद : बहू तम
ु भी न बात को खींचती चल जाती हो। कम नह ं हो तम
ु भी।
माँ: अ मा जी आप तो कभी मेर साइड लेना ह मत। जो दे खो मेरे म थे आकार पड़ जाता है ।
पता: और कौन या कह गया तु ह
माँ: वह ं तु हारा लाडला
पता: अब संजय ने या कया?
माँ: उससे ह य नह ं पछ
ू लेत?
े
पता: कर लँ ग
ू ा, मौका लगते ह बात कर लँ ग
ू ा।
माँ: हाय राम ! दोन एक जैसे ह
पता: अ छा वो सब छोड़ो, मेर कसं तो परू करलो।
दाद : कौन सी कसम?
पता: भल
ू गयी अ मा? अरे वह , वनोद का याह। मेर स टे बाजी। तु हार कसम लेनी थी न
माँ: इ द ु से लाइटर मांगा था। सब जानते थे ये इ द ु के बारे म
पता: अरे कुछ दे र छुप भी रहो (लाइटर जलता है , कसम खाता है ) अ मा तु हार कसम वनोद क शाद के बाद
सब बरु आदत छोड़ दं ग
ू ा। (लाइट एक दम से बझ
ु जाती है सफ लाइटर जल रहा है )
माँ: इस लाइट को भी अभी जाना था या
दाद : बहू मेरा च मा दे ख कहा है , कुछ दख नह ं रहा है ।
पता : अब तो आप दोन खश
ु हो
माँ: अरे आप ज़रा मोमब ी ढूँढग। एक तो इस घर मे कोई चीज़ समय पर मलती ह नह ं है ।
दाद : बहू
(लाइटर बझ
ु जाता है और एक काश के पॉट के साथ आदमी का वेश होता है , इस बार उसक वेशबश
ु और
यादा अ त य त हो चक
ु है )
आदमी: बात बड़ी ह अजीब सी है । घर िजतना छोटा हो चीज़े उतनी ह बखरती चल जाती है और व त आने पर
कोई चीज़ मलती ह नह ं और जब मलती है तब तक उसक ज़ रत मट चक
ु होती है । पर इंसान को इसक
समझ न पहले आई थी और शायद ह कभी आएगी ......पर हमारा काम है उ मीद लगाना सो तो हमने लगाई हुई
है
( काश बझ
ु जाता है , वापस जब काश होता है , तब कमरा सह
ु ागरात के लए सजा हुआ है , दरवाज़े क दे हर पे
चावल का लौटा रखा हुआ है । नेप य म मंगलगीत बज रहे ह। बह का गह
ृ वेश होता है , सब नए जोड़े के पीछे पीछे
कमरे म घस
ु ते है सफ संजय नह ं है । द ु हन पलंग पे बैठ है । वनोद कुस पी बैठा है । बाक सब नीचे चटाई पे बैठे
है ।)
बहू: आप? इस व त।
पता: हां बहू। रात बहुत हो गई है , ठं ड भी बहुत है चलो से जाओ।
(सब अंदर घस
ु जाते है और अपनी अपनी जगह सो जाते है । बहू वनोद को दे खती है , वनोद पलंग पे उकड़ून
बनकर बैठ जाता है , अंधेरा होता है , फर काश होता है )
( मंच पर जब फर काश होता है तो पलंग पे बहू बैठ हुई है और मौसी को दे ख रह है जो कुस पे बैठ कर अपने
नाखन
ू काट रह है , दोन के बीच कोई संवाद नह ं हो रहा है कुछ दे र क शां त के बाद कमरे म संजय का वेश होता
है । मौसी उसे दे खती है , वो सीधा रसोई मे जाता है और पानी पीता है )
संजय : तो ठ क है ......
(यह कहकर संजय बाहर नकल जाता है , इ द ु संजय को रोकने क को शश करती है ...)
इ द ु : जीजा ये तम
ु ने ठ क नह ं कया...
पता : तेरा नाम भी हटा दँ ू या॥?
इ द ु : मेरा नाम है भी उसम।
( वनोद का वेश होता है , जो अभी द तर से वापस आता है )
फरोज: और वनोद, आज सब
ु ह ना ता नह ं कया था या ?
वनोद: घम
ू ा फरा के य बात करते हो फरोज भाई? वैसे ह दमाग खराब है ।
फरोज: अरे वो सब
ु ह-सब
ु ह बड़े बाबू क डांट जो खा ल ।
वनोद: अभी मझ
ु े परे शान मत क िजये, वैसे ह कम द कत नह ं है ?
फरोज: अरे , बड़े बाबू क बात का य बरु ा मानते हो। वो तो बस ऐसे ह कहते ह।
वनोद : खैर वो सब छो ड़ए। आप बता रहे थे न के आपके साले के यहाँ एक जगह खाल है । म वह ं चला जाऊंगा।
फरोज: पर... वो तो मब
ंु ई म है ।
वनोद: तो या हुआ ? कम से कम यहाँ क तरह मारा मार तो नह ं होगी।
फरोज: ले कन वनोद, अभी तो नयी नयी शाद हुई है और अभी से घर से दरू जाने क बात करते हो
वनोद: ये आप नह ं समझगे। आप बस बताइये
फरोज: असल बात या है ? बताओगे
वनोद: कुछ नह ं।
फरोज: खैर छोड़ो, तु ह नह ं बताना तो मत बताओ। अ छा ये बताओ क तु हार गह
ृ थी कैसी चल रह है ।
वनोद: पछ
ु ो मत बस
फरोज: अब या हुआ? तम
ु कह ं ........? चलो अभी बाबा के पास चलो। एक चरू न मे सब ठ क हो जाएगा ।
वनोद : या बात करते हो फरोज भाई। कहाँ क बात कहाँ ले जाते हो
फरोज: तो बताओ ना, क कहाँ क बात कहाँ ले जानी है
वनोद : आप तो जानते है न अपने यहाँ कमर क या हालत है । एक कमरे म 6-7 लोग रहते ह
फरोज: हाँ
वनोद: एक 12 बाय 8 के कमरे म ..... कोई कैसे.... पास आए । और तब जब कमरे 8 लोग हो।
फरोज: तम
ु परे शान मत हो, चाय पीते-पीते बात करते है (फेरोज फोन पे चाय के लए बोलता है )। तम
ु अपने
पताजी से बात य नह ं करते
वनोद: आपको या लगता है , मने बात नह ं क होगी।
(चाय आ जाती है , एक लड़का चाय लेकर आता है )
फरोज़: इस लए मब
ंु ई जाना चाहते हो। पर मब
ंु ई तो बहुत महं गा शहर है । यहाँ के 20,000 वहाँ के 40,000 के
बराबर है ।
वनोद: तो आप बताओ म या क ँ ?
फरोज: मेरे याल से तो तू यह ं एक कमरा लेले। और उससे पहले भाभी के साथ थोड़ा व त बता।
वनोद: अरे , 24 घंटे घर पर कोई न कोई होता है , फर कैसे …
फरोज: परे शान य होता है , कभी प चर पे ले जा भाभी को। तम
ु दोन को व त भी मल जाएगा और कोई
ड टब भी नह ं करे गा
वनोद: ये सह रहे गा। वैसे कौन सी लगी है आज कल
फरोज: अरे तु ह प चर से या लेना दे ना.... और हाँ कोने वाले सीट लेना
वनोद: ( वनोद सोचने लगता है ) ...... समझ गया
( अंधेरा हो जाता है )
( काश होता है तो वनोद और यो त का वेश होता है , वनोद ने यो त का हाथ पकड़ा हुआ है , यो त अपना
हाथ छुड़ा लेती है और आगे बढ़ जाती है । मंच के एक कोने पर वनोद क जाता है । यो त आगे जाकर दस
ू रे कोने
पर कती है । दोन के ऊपर काश के दो पॉट पड़ने लगते ह और फर बाक तरफ अंधेरा हो जाता है )
( काश होता है , कमरा अ त य त पड़ा हुआ है । इस समय कमरे म कोई नह ं है । हड़बड़ी मे वनोद का वेश होता
है )
पता: या हुआ ?
वनोद: होगा या? बंद आ रहा है ?
पता : को शश करता रह बेटा य क को शश करने वालो क हार नह ं होती.....
वनोद: ( पता को रोकते हुये ह बोलता है ) आपका लै चर सन
ु ने का व त नह ं है मेरे पास
(दाद का वेश होता है )
दाद : य रे सभ
ु ाष, ये लोग ने बाहर भीड़ य लगा राखी है ?
पता : या आवाज़ बाहर तक जा रह है ?
दाद : हुआ या है बताएगा?
पता : अ मा तम
ु ने बहू को कह ं दे खा है ?
दाद : सब
ु ह दे खा था, तेर माँ उसके साथ कह ं जाने वाल थी
वनोद: पर मान तो काम पे गयी है ना
पता : अपनी माँ को फोन करके दे खा, या पता उसके ह साथ हो
( वनोद माँ को फोन मलाता है )
वनोद: है लो माँ
माँ(नेप य से ): हाँ वनोद, बोल या हुआ?
वनोद: माँ वो यो त तु हारे साथ है या ?
माँ(नेप य से ): नह ं तो, य या हुआ?
वनोद: अभी आप कहाँ है ?
माँ(नेप य से ): म तो बास घर पहुँचने वाल हूँ, बस रा ते ने हूँ। पर हुआ या बताएगा?
( वनोद फोन रख दे ता है )
वनोद : आप दोन चप
ु हो जाइए। जब दे खो तब लड़ते -झगड़ते रहते है । बचपन से बस यह ं एक चीज़ है जो
लगातार दे खता आ रहा हूँ। आप लोग को तो बस बहाना चा हए आपस मे लड़ने का, आस पास दे खा नह ं बस
झगड़ना शु हो जाता है आप लोगो का।
दाद : इन दोन से तो म भी तंग आ गयी हूँ, समझाते समझाते बढ़
ू हो पर इ ह अ ल नह ं आई। रामजाने या
होगा इनका।
(इ द ु का वेश होता है , उसके हाथ म कुछ खाने के चीज़ है वो उसे खाते हुये आ रह है )
(सब अपनी अपनी जगह त ध हो जाते है , काश धीरे धीरे करके बंद हो जाता है )