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Zero Budget Kheti
Zero Budget Kheti
एवं
गौमाता चिचित्सा
शास्त्र
संग्रहिताग –
रोचबन चसराना
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चवषय सूिी पेज नम्बर
चिसानों िी स्थिचत - 9
वनोषचि - 54
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भारतीय िृचष पर राजीव दीचित जी िा
व्याख्यान
आज के इस व्याख्यान में मैं खेती और ककसानोों के बारे में जो स्थिकत है
भारत की, उसके बारे में कुछ कहूँ गा। भारत की खेती, भारत के ककसान
आज कजस स्थिकत में है । आज से 150 साल पहले भारत के ककसान, भारत
की खेती ककस हाल में िी। उन दोनोों का तुलनात्मक किश्लेषण आज के
इस व्याख्यान में मैं करने की कोकिि करूँगा और यह तुलनात्मक
किश्लेषण इस दृष्टी से होगा कक 200 साल पहले खेती और ककसान की
स्थिकत बहुत अच्छी िी तो आज उसकी समस्या क्या हो गइइ और उसको
किर सुधारने के कलए कौन सा रास्ता हो सकता है ।
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जलिायु में, लेककन युरोप में यह बात सच नहीों है । यु रोप में आज सूरज
कनकला है । कल नहीों भी कनकलेगा।
बाररि में क्या करना है । गमी में क्या करना है । सदीयोों में क्या करना है ।
यह सब बातें सामान्य रप से इस दे ि का हर ककसान जानता है और
इसकलए मैं उसको कहता हूँ कक उसको अपने जीिन को चलाए रखने के
कलए जो जररी कारक हैं उनका बहुत अच्छा ज्ञान है ।
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है । ना तो बहुत गमी है ना तो बहुत बाररि है । युरोप के दे िोों में कभी-कभी
तो बहुत सदी पडती है । माइनस 40 कडग्री सेंकिग्रेि तापमान हो जाता है ।
माइनस 20 कडग्री सेंकिग्रेि तापमान हो जाता है । भारत में इस तरह से कभी
तापमान बहुत नीचे भी नहीों जाता और कभी ऊपर भी नहीों जाता। तो
भारत की जलिायु समसीतोष्ण है ।
हमारे यहाूँ एक बहुत बडे इकतहासकार हैं प्रोिेसर धमइपाल उनकी मदद
से हम लोगोों ने कुछ दस्तािे ज दे खें है । िो दस्तािेज यह बताते हैं कक करीब
आज से 300 साल पहले भारत की खेती युरोप के ककसी भी दे ि की खेती
से बहुत अच्छी मानी जाती िी। उदाहरण ले -ले इों ग्लैंड का। आज से 300
साल पहले इों ग्लैंड के एक एकड खेत में कजतना अनाज पैदा होता िा
उसकी तु लना में आज से 300 साल पहले भारत के एक एकड खेत में
उसका तीन गुना ज्यादा अनाज पैदा होता िा।
पूरी दु कनया में कजतना अनाज के साि-साि दु सरे सामान पैदा हो रहे है ।
उद्योगो की मदद से जो सामान पैदा हो रहे है खेती की मदद से जो सामान
पैदा हो रहे हैं । उनका कुल उत्पादन पूरी दु कनया में कजतना िा उसका कुल
सत्तर प्रकतित उत्पादन कसिइ भारत और चीन का होता िा। तो आप
अोंदाजा लगा सकते हैं कक पू री दु कनया के सकल उत्पादन का सत्तर प्रकतित
उत्पादन आज से करीब ढाइइ सौ तीन सौ साल पहले भारत और चीन का
होता िा। तो इन दोनोों की खेती और खेती से जुडे हुए उद्योगो की ककतनी
उन्नती रही होगी।
जब अों ग्रेज भारत में आए है और सरकार बनाकर उन्ोोंने भारत में राज्य
करना िुर ककया है । तब तक इस दे ि में खेती की उन्नकत और खेती की
स्थिकत बहुत अच्छी है । भारत के ककसानोों के और खेती की स्थिकत अच्छी
होने के कुछ प्रमाण हैं दस्तािेज में । जो यह बताते हैं कक हमारे दे ि में
करीब-करीब 1750 के आस-पास मैसूर नाम के राज्य में एक लाख से
ज्यादा तालाब हुआ करते िे ।
कहन्दु स्तान में आजादी के पहले करीब साडे सात लाख गाूँ ि होते िे और
आश्चयइ इस बात का कनकलता है कक दस्तािेजोों के आों कडो के अनुसार कक
इस दे ि का कोइइ भी गाूँ ि ऐसा नहीों कक कजसमें तालाब न बना होता और
आूँ कडेे़ तो यह बताते हैं कक बहुत सारे गाूँ ि इस दे ि में ऐसे रहे है जहाूँ एक
से ज्यादा तालाब एक ही गाूँ ि में रहे हैं । तो साडे सात लाख गाूँ ि का दे ि
िा भारत आजादी के पहले और करीब-करीब हर गाूँ ि में एक तालाब की
व्यिथिा िी तो लगभग साडेे़ सात लाख तालाब पूरे दे ि में रहे होोंगे। इससे
ज्यादा भी हो सकते हैं क्योोंकक कुछ गाूँ ि में एक से ज्यादा तालाब होने की
व्यिथिा िी।
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तो तालाब बहुत बडी सों ख्या में रहे है । कुएों बहुत बडी सोंख्या में रहे हैं ।
बािकडयाों बहुत बडी सोंख्या में रही है । बाररि की होने िाली एक-एक बूूँद
को कहन्दु स्तान में पूूँजी की तरह से बचाने की परों परा रही है । कजस राजथिान
को आज हम जानते हैं और हम राजथिान के बारे में ऐसा मानते हैं कक
बहुत मर भूकम है राजथिान की जहाूँ पानी की बहुत कमी है । जहाूँ पानी
की बहुत ककल्लत है । उस राजथिान में ऐसी परम्परा कपछले हजारोों साल
से है कक बाररि की कगरने िाली एक-एक बूूँद को सोंकचत रखने की सबसे
बडी परम्परा अगर इस दे ि में कहीों है तो राजथिान में।
पिु की सोंख्या भी इस दे ि में बहुत बडी मात्रा में रही है और कृकष कमइ
को किकाए रखने के कलए पिुओों की सोंख्या इस दे ि में बडी जबरदस्त
मात्रा में रही है । करोडोों-करोडोों की सोंख्या में जानिरोों को पालने की
परम्परा इस दे ि के लोगोों में बहुत गहरे से बैठी हुइइ है । तो कृकष है । कृकष
के कलए केन्द्र जो बन सकती है । िो गाय इस दे ि में रही है । बैल रहे है इस
दे ि में, उनका गोबर है । गोबर से होने िाली खाद है । गाय का मूत्र है ।
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उससे बनने िाले जो कीिनािक बन सकते हैं इस दे ि में उनकी परम्परा
रही है ।
आज करीब हमारे दे ि में 300 साल पहले के आूँ कडे है जो बताते हैं कक
कबि्रिे न से तीन गुणा ज्यादा उत्पादन हमारे खेतोों का है । आूँ कडे यह बताते
हैं कक कृकष कमइ इस दे ि का बहुत उन्नत रहा है । पिुओों के पालन के काम
भी बहुत उन्नत रहे है ।
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चिसानो चि स्थिचत अंग्रेजों िे समय और
आज िे समय मे तुलना
इस दे ि में कहों सक व्यिथिाओों के कारण भारत का ककसान बबाइ द हुआ
और भारत की खेती बबाइ द होती चली गइइ और तकलीि हमारी यह है कक
कजस तरह से अोंग्रेजोों की सरकार ने भारत की खेती को बबाइ द ककया िा।
कजन नीकतयोों के कारण भारत के ककसान को बबाइ द ककया गया िा। कजन
नीकतयोों और कजन कानूनोों के चलते भारत के ककसान की बबाइ दी आयी िी।
भारत की खेती बबाइ द हुइइ िी। िो सारी की सारी नीकतयाों िो सारे के सारे
कानून आज भी चल रहे हैं ।
अोंग्रेजोों के जमाने में जमीन कैसे छीनी जाती िी। एक कलेक्टर नाम का
आिीसर अोंग्रेजोों ने बनाया। सन 1860 में एक कानून बनाया अों ग्रेजोों ने
‘इों कडयन कसकिल सकिइसेस एक्ट और इस ‘इों कडयन कसकिल सकिइसेस एक्ट के
नाम पर कलेक्टर नाम की पोस्ट बनिायी और उस कलेक्टर को यह
अकधकार कदया गया कक िो गाूँ ि-गाूँ ि के ककसानोों को मार-पीि कर, उनके
ऊपर अत्याचार करके, रे िे न्यू िसूले, लगान िसू ले गाूँ ि-गाूँ ि में कलेक्टर
क्या करता िा कक जब ककसान लगान नहीों दे पाता िा तो उसकी जमीन
सीज कर लेता िा। उसकी सोंपकत्त सीज कर लेता िा। उसके कलए एक
नोकिस जाता िा ककसान को और उसकी सोंपकत्त जब्त कर ली जाती िी।
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तो कजस तरह से सोंपकत्त जब्त कर ली जाती िी। ककसान की और उनकी
जमीन छीन ली जाती िी। ठीक उसी तरह से आज भी इस दे ि में होता
है । अब क्या होता है । कलेक्टर कभी नोकिस दे ता है । गाूँ ि के ककसान की
जमीन छीन ली जाती है । िो ककसान को यह अकधकार भी नहीों होता है कक
िह अपनी जमीन के बारे में कहीों कोइइ केस लड सके। कजरह कर सके।
क्योोंकक कानून ऐसा है अोंग्रेजोों के जमाने का बनाया हुआ कक सरकार
इमरजेंसी बताकर ककसी भी गाूँ ि के ककसी भी ककसान की कोइइ भी जमीन
छीन सकती है ।
पहले कहन्दु स्तान में ककसानोों की जमीन छीनी जाती िी अोंग्रेजोों के कलए,
अोंग्रेजी ों कम्पकनयोों के कलए। हर साल हजारोों एकड जमीन गाूँ ि के ककसानो
से छीन-छीन कर परदे िी कम्पकनयोों को बेच दी जाती है और उस जमीन
पर परदे िी कम्पकनयोों के बडे -बडे कारखाने लगाये जाते हैं । कजस जमीन
पर धान पैदा होता िा, गेहूँ पैदा होता िा। अब उस जमीन पर कारखाना
चलता है । सरकार क्या बोलती है । िो कहती है – औधोगीकरण हो रहा
है । इण्डस्टर ीयलाइइ जेिन हो रहा है । िो लोग बोलते हैं कक यह िायदे का
काम हो रहा है जो इों डस्टर ीज बन रही है ।
आप जानते हैं दु कनया में और हमारे दे ि में कोइइ भी ऐसी इों डस्टर ीज नहीों
है । कजसमें सौ रपया लागत के रप में अगर लगाया जाए तो सौ ही रपया
का उत्पादन होगा। हर िैक्टरी में लागत ज्यादा होती है उत्पादन कम
होता है । और भारत सरकार और भारत सरकार के नीकत बनाने िाले लोग
ककस तरह की नीकतयाों बनाते है कक िो इों डस्टर ीज को महत्वपूणइ मानते हैं
और खेती को उससे कम मानते हैं ।
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मेरी मान्यता यह है कक खेती से बडी इों डस्टर ीज पूरी दू कनया में कोइइ नहीों
है । खेती से बडा उद्योग पू री दू कनया में कोइइ नहीों। आप पूूँछेगें िो कैसे ?
ककसान एक गेहूँ का बीज डालता है और उस एक गेहूँ के बीज डालने के
बाद कम से कम 50-60 गेहूँ के दाने लगते हैं । तो एक गेहूँ का बीज डाला
और उसमें से 50-60 गेहूँ के बीज पैदा हुए। यह बताइइ ए, ऐसा कारखाना
आपने दु कनया में कहीों दे खा है ।
कजतने भी कारखाने चलते हैं इस दे ि में , कजतने भी उद्योग चलते हैं पूरे
दे ि में हर उद्योग और हर कारखाना चलाने िाला आदमी अपने द्वारा पै दा
की गइइ हर िस्तु का दाम खुद तय करता है । लेककन ककसान ही एक िगइ
है इस दे ि में, कास्तकार ही एक ऐसा िगइ है इस दे ि में जो अपने द्वारा
पैदा ककये गए गेहूँ का दाम तय नहीों कर पाता। अपने द्वारा पैदा ककये गये
बाजरे का दाम तय नहीों कर पाता।
अपने द्वारा पैदा ककये गये धान का दाम तय नहीों कर पाता। अपने द्वारा
पैदा ककये गये मक्के का दाम तय नहीों कर पाता। कुछ भी चीज पैदा करता
है ककसान, उसका दाम िो खुद तय नहीों कर पाता। सरकार तय करती
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है । कजस तरह से अोंग्रेजोों की सरकार करती िी िो काम आज भी हो रहा
है ।
इस दे ि में ऐसे कनयम और ऐसी व्यिथिाएों चलाइइ गयी हैं । कजाइ लेकर
जब ककसान खेती करता है तो उसके क्या नतीजे कनकलते है । कपछले साल
आों ध्रप्रदे ि के 100 ककसानोों ने आत्महत्या की िी िो सबसे बडा उदाहरण
है इस दे ि के सामने। 100 ककसानोों ने बैंक से कजाइ लेकर कपास की
िसल लगायी िी आों ध्रप्रदे ि में। उस कपास की िसल पर कीडा लग गया
और कपास की िसल पर जब कीडा लग गया तो कीडे को मारने के कलए
ककसान दिा लेके आये और दिा अोंग्रेजी कोंपनी की िी। परदे िी कोंपनी
की िी। उस दिा को उन्ोोंने खेत में कछडका। उस दिा पर कजतने कनदे ि
कलखे हुए िे सब अों ग्रेजी में िे। ककसान अोंग्रेजी पढना जानते नहीों तो दिा
उन्ोोंने कछडक दी खेत में। तो जो कपास की िसल बची हुइइ िी िो भी
पूरी तरह से चौपि हो गइइ । तो ककसानोों के पास कुछ नहीों बचा।
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कहन्दु स्तान में पैंतालीस करोड छोिे ककसान हैं कजनके पास दो बीघा की
जमीन है । तीन बीघा की जमीन है । पाच बीघा की जमीन है । एै से पैंतालीस
करोड ककसान हैं । जरा उनकी आप कल्पना तो कररए कक पैतालीस करोड
ककसान आज की पररस्थिकतयोों में ककस तरह से खेती करते होगे और ककस
तरह से कजइ दार बनते होोंगे। और इस दे ि में कभी-कभी क्या होता है ।
गाूँ ि का ककसान कोइइ कजइ ले लेता है । कजइ चूकाने की स्थिकत में नहीों होता
और कभी-कभी िो कजइ माि कर कदया जाए तो पूरे दे ि में हों गामा हो
जाता है । और हर साल हजारोों करोडोों रपये का माि ककया जाता है पैसा
बडे -बडे उद्योगो पर, बडी-बडी इों डस्टर ीज पर, इों डस्टर ीज बैठ जाती हैं ,
उद्योग बैठे जाते हैं और जब ककसान के कजे की मािी की बात आती है
तो हों गामा करते हैं ।
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भारत मे खेती और चिसानों िी बबागदी िे
चवचभन्न िारण-
उसके पीछे एक गोंभीर कारण है । अोंग्रेजोों का भारत में आना और अोंग्रेजोों
द्वारा भारत में अपनी सरकार का चलाना। अों ग्रेजोों की सरकार जब भारत
में चलना िुर हुइइ है तो अों ग्रेजोों की सरकार ने बहुत ही व्यिस्थित तरीके
से भारतीय समाज को तोडने का काम ककया।
सबसे पहला कानून जो अों ग्रेजोों ने भारत की कृकष को बबाइ द करने के कलए
बनाया िो ककसानोों के ऊपर लगान लगाने का कानून िा। ककसानोों के
ऊपर िै क्स लगाने का कानून िा। 1760 के पहले इस दे ि में एक बडे
इलाके में ककसानोों के ऊपर कभी-भी लगान नहीों कलया गया। अोंग्रेजोों के
पहले इस दे ि में कुछ ही राज्योों को छोड कदया जाए तो बाकी ककसी भी
राज्य में ककसानोों पर लगान नहीों कलया जाता िा। जैसे मालाबार का एक
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बहुत बडा इलाका होता िा। कजसको आज हम दकक्षण भारत के रप में
जानते है ।
कजसको लगान के रप में आप जानते हैं िो पचास प्रकतित होता िा। माने
ककसान कजतना कुल उत्पादन करता िा अपनी खेती में , उसका पचास
प्रकतित उत्पादन अोंग्रेजोों की सरकार छीन लेती िी। जो ककसान अोंग्रेजोों
की सरकार को अपने उत्पादन का पचास प्रकतित कहस्सा नहीों दे ता िा।
उस ककसान की हत्या करिा दे ना, उस ककसान की झोपडी जला दे ना। उस
ककसान की सोंपकत्त को नीलाम करिा दे ना, उस ककसान के गाय, बैल खोल
के ले जाना, उस ककसान को कोडे से मारना, उस ककसान को गाूँ ि की
जाकत से कनकलिा दे ना।
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यह सब अोंग्रेजोों की सरकार उनको दों ड के स्वरप में कदया करती िी। तो
ककसान को मजबूरी में अपने उत्पादन का पचास प्रकतित कहस्सा अों ग्रेजोों
की सरकार को दे ना पडता िा। इस तरह के अत्याचार अोंग्रेजोों की सरकार
ककसानोों पर करती िी।
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परम्परा िुर करिा दी और बाद में जब जमीने कबकने लगीों तो अों ग्रेजोों की
सरकार ने ककसानोों से जमीनें जबरदस्ती खरीदना िुर कर कदया।
माने – सीधे जेब नहीों कािें गे। लेककन जेब कािने का कानून बनायेंगे और
किर कहे गें हम कानून का पालन कर रहे हैं । इसमें आपकी जेब किती है
तो कि जाए। तो उन्ोोंने ककसानोों को बबाइ द करने के कलए सीधे कुछ नहीों
कहा। उन्ोोंने यह नहीों कहा कक हम ककसानो को बबाइ द करें गे बकलक
ककसानोों को बबाइ द करने के कलए कानून बना कदया। किर उन कानूनोों का
पालन करिाना िुर ककया उन्ोोंने और ककसान उसमें बबाइ द होना िुर हो
गए।
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डलहौजी ने ककस तरह से इस दे ि के ककसानोों की जमीनें कछनी हैं और
ककस तरह से िो अोंगेि्रजी सम्पकत्त बनायी गयी है !
तो भारत की खेती को बबाइ द करने के कलए अों ग्रेजोों ने पहले सिे कराया
कक भारत की खेती को कैसे बबाइ द ककया जाए। अोंग्रेजोों ने जब सिेक्षण
करा कलया तो उनको एक बात यह पता चली कक भारत का ककसान जो
खेती करता है । उसका केन्द्र कबोंदू है गाय। और उसका केन्द्र कबोंदु है बैल।
बैल गाय के बछडेे़ होते है । बछडे बैल बनते है । बैलोों से खेत जोता जाता
है । किर गाय दू ध दे ती है ।
तो 1760 में इस दे ि में अों ग्रेजोों के आदे ि पर गाय का कत्ल होना िुर हो
गया। कुछ लोगोों को ऐसा लगता है और िो लोग कहते भी हैं कक राजीि
भाइइ अोंग्रेजोों से पहले भी तो जो मुसलमान राजा िे। िो भी तो गाय का कत्ल
करिाते िे। मैं आपको जानकारी दे ना चाहता हूँ कक एक-दो मुसलमान
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राजाओ को छोडकर, भारत में ककसी भी राजा ने गाय का कत्ल नहीों
करिाया।
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जो जोंगल ककसानोों की सोंपकत्त माने जाते िे , जो जोंगल गाूँ ि की
सोंपकत्त माने जाते िे और कजन जों गलोों से ककसानोों को अपनी खेती करने के
कलए मदद में आने िाली तमाम तरह की चीजें कमलती िी। उन जोंगलोों का
अोंग्रेजोों की सरकार ने सत्यानाि करिाया।
नकदयोों में कमट्टी बढे़ती चली जाएगी तो पानी कम आये गा नकदयोों में। और
पानी कम आयेगा तो बाढ आयेगी और बाढ आये गी तो ककसानोों की िसल
चौपि हो जायेगी। अोंग्रेजोों ने इस तरह से कानून बना कदया ‘इों कनडयन
िारे स्ट एक्ट का और किर उसका सत्यानाि ककसानोों को झेलना पडा।
एक तो जोंगलोों से कमलने िाली सोंपकत्त ककसानोों के कलए बोंद हो गइइ । दू सरा
जोंगल जो ककसानोों की सुरक्षा व्यिथिा कर सकते िे िो जोंगल किर धीरे -
धीरे खत्म होते चले गए।
और होगी तो कहीों छु ि-पू ि, िी बडे पै माने पर नहीों िी। लेककन अों ग्रेजोों की
सरकार ने मालिा के ककसानोों को मार-पीि कर जबरदस्ती उनपर
अत्याचार करके अिीम की खेती करिायी , बाद में अोंग्रेजोों की सरकार ने
एक कानून और बनाया। जब यहाूँ अकाल पडना िुर हो गया। तो अनाज
के उत्पादन में और ज्यादा कमी आ गयी तो अों ग्रेजोों की सरकार जो लगान
िसुलती िी िो लगान में भी कमी आने लगी। क्योोंकक अनाज का उत्पादन
कम हुआ तो लगान कमलना कम हो गया तो अोंग्रेजोों की सरकार ने किर
और ज्यादा अत्याचार करना ककसानोों के ऊपर िुर कर कदया और एक
बार तो अों ग्रेजोों की सरकार ने इस कदर अत्याचार ककया भारत के ककसानोों
पर आपको याद होगा 1939 में दु सरा किश्व यु्द जब िुर हुआ और इस
दू सरे किश्व यु्द में जब अों ग्रेजोों की सरकार िोंसी यु्द करने के कलए तो
अोंग्रेजी सेना के कलए भोजन भारत से भेजा जाता िा।
अनाज भारत से भेजा जाता िा। गो-माों स भारत से भेजा जाता िा। दु सरे
किश्व यु्द का कािी खचाइ भारत के ककसानोों को बदाइ श्त करना पडता िा।
दू सरे किश्व यु्द के समय में अोंग्रेजोों की सरकार ने एक तो ककसानोों पर
िै क्स और बढे़ा कदया िा। लगान और ज्यादा बढे़ा कदया िा। भारत के
उद्योगो पर िै क्स बढे़ा कदया िा। भारत के उद्योगो पर ज्यादा से ज्यादा
भारत के उद्योगो से रे िेन्यू कलेक्शन हो सके। यु्द के कलए ऐसी व्यिथिायें
बनायी िी और दू सरी तरि भारत का भोजन। भारत का अनाज। भारत
के गाय का कत्ल करने के बाद माों स अोंग्रेजोों की िौज को कमल सके
लगातार उसकी भी व्यिथिा की िी!
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कदया। और िो कानून है ‘रािन काडइ का कानून जो आज भी इस दे ि में
चल रहा है ।
आप में से बहुत सारे लोग नहीों जानते कक यह रािन काडइ क्यूूँ चलाया गया
इस दे ि में। हम सब के घर में रािन काडइ तो है । लेककन िो रािन काडइ
क्यूूँ चलाया िा। अों ग्रेजोों ने क्यूूँ िुर ककया िा यह कानून यह बहुत कम लोग
जानते हैं । 1939 के साल में अोंग्रेजोों ने रािन काडइ का कानून बनिाया
और भोजन और अनाज पर उन्ोोंने रािकनोंग की व्यिथिा िुर करिायी
क्योोंकक यहाूँ का अनाज यहाूँ का भोजन इों ग्लैंड चला जाता िा। यहाूँ के
लोगोों को भुखमरी की हालत का सामना करना पडता िा।
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िृचष व्यवथिा िा स्वदे शीिरण
भारतीय ग्राम समाज में कमलने िाले गोबर, गौमूत्र और अन्य जैकिक पदािो
से सेंद्रीय खाद बनाना चाकहए, िकिइ लाइजर के कारखानोों को जो सहकलयत
ि सबकसडी कमलती है , िह बोंद होनी चाकहए । कपछ्ले पचास सालोों में
रासाकनक िकिइ लाइजर को प्रोत्साकहत करके सरकार ने भारत की खेती
का भारी नु कसान ककया है । हमें इस बात का पूरा अनुभि कमल चुका है
कक रासायकनक खाद आगे चलकर लोंबे समय के कलए नुकसानदे ह है और
ये जमीन की उिइरता को खत्म कर दे ते है ।
➢ पहाडोों में से कमलने िाले पत्थर तिा अन्य थिानोों से कमलने िाली
प्राकृकतक कमट्टी में जो खकनज तत्व है उनका उपयोग कृकष में होना
चाकहएों
➢ खेती के काम में जररी साधन-उपकरण आकद बनाने के कलए
लोहार, बढाई िगैरह लोगोों को प्रोत्साहन कमले ऐसी नीकत होना
चाकहएों
➢ भारतीय कृकष परों पराओों में उपयोगी हो ऐसे बीज का सों रक्षण और
पुनगइठन होना चाकहएों
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बीज को पकित्र िस्तु मानने की परों परा भारत में िी । उसकी खरीद-कबक्री
नहीों होती िी। कमत्र पररिार और सगे- सोंबोंधी से लेन-दे न करके
आिश्यकताओों की पूकतइ होती िी । अक्सर ककसान अपना बीज स्वयमि्
चुन-चुन कर रखते िे ।
१९६० से हररत क्राों कत के दौर में जहाों पहले भारत में ४० हजार धान की,
चार हजार गेहों की, एक हजार आम की ककस्में िी िे अब बहुराष्टीय
कोंपकनयोों को तरजीह दे ने कारण एक दजइ तक कसमि गई है । इसकलयें हमें
अपने पारम्पररक बीजोों की सुरक्षा और उत्पादन करने ही होगें ।
➢ दे िी बीज कमलें ऐसे 25-50 गाों िोों के समूह में बीज का उत्पादन ि
कितरण की सुकिधा ।
➢ खेती का पारों पररक ज्ञान जो भारतीय ककसानोों को है , उसका
सोंकलन और प्रचार तिा भारतीय भाषाओों में प्रकािन ।
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िृचष भूचम िो सशक्त बनाने िे तरीिे
एक जमाना िा जब आदमी कम िे और तु लना में भूकम अकधक िी। तब
जमीन का कुछ कहस्सा पडती रखकर उसे किश्राम कदया जाता िा और
दू सरे िषइ पडती जमीन की जुताई करते िे। इस अदल – बदल से जमीन
की उिइरा िस्ि का बचाि होता िा। अब यह सोंभि न होने से हर साल
िसल लेते हुए जमीन की उिइरा िस्ि बढाने का पराक्रम करना हैं –
यह कैसे करें गे?
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➢ जीिाणु खाद
➢ अमृत पानी
➢ हड्डी चूणइ
➢ खली
➢ राख
➢ आदमी का मलमूत्र
➢ गोबरगैस प्ाों ि स्लरी
➢ गौबरगैस प्ाों ि स्लरी
➢ समुन्द्र का िेन
➢ नील-हररत िैिाल
➢ तालाबोों की कमट्टी
➢ अकिहोत्र आकद।
हमारा मंत्र
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आिश्यकतानुसार बढायें। ईिोों की जुडाई कमट्टी से की जा सकती हैं ।
मजबूती के कलए कसिइ आस्खरी रद्दा सीमेंि में जोकडए।
हौदी का तल ििइ -ईि पत्थर कबछाकर पक्का करें । हौदी बाों धते समय
चारोों दीिारोों में छे द रखें जाते हैं । ईिोों की हर दो रद्दोों की जुडाई के बाद
तीसरे रद्दे की जुडाई करते समय हर एक ईि की जुडाई के बाद सात
इों च का छे द छोडकर जुडाई करें । इस प्रकार चारोों दीिारोों में छे द के
मध्य में दू सरी लाईन के छे द आयें और दू सरी लाईन के दो छे दोों के मध्य
में तीसरी लाईन के छे द आयें।
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गौशाला और पंिगव्य उत्पादों िे प्रयोग
गाय का किषय राजीि भाई का कप्रय किषय है | क़त्ल खानोों में जाने िाली
गायोों को रोकने के कलए उनके गोबर, गोमूत्र से पोंचगव्य उत्पाद बनाकर
तिा खेती में प्रयोग होने िाली गोबर खाद ि कीि कनयोंत्रक बनाकर गाय
को बचाया जा सकता है और उनकी सेिा की जा सकती है | इस उद्दे श्य
से एक गौिाला और पोंचगव्य उत्पादोों का उत्पादन और प्रकिक्षण करने
की योजना है और गाूँ ि-गाूँ ि में उनकी जानकारी पहुों चे इसकी तैयारी चल
रही है |
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जबकक गाय का बछडा अपनी माों का दू ध पीने के बाद उछल-कूद करता
है ।
गाय न कसिइ अपने जीिन में लोगोों के कलए उपयोगी होती है िरन मरने
के बाद भी उसके िरीर का हर अोंग काम आता है । गाय का चमडा, सीोंग,
खुर से दै कनक जीिनोपयोगी सामान तैयार होता है । गाय की हकडि् डयोों से
तैयार खाद खेती के काम आती है ।
प्राचीन भारत में गाय समृस्द्ध का प्रतीक मानी जाती िी। युद्ध के दौरान
स्वणइ, आभूषणोों के साि गायोों को भी लूि कलया जाता िा। कजस राज्य में
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कजतनी गायें होती िीों उसको उतना ही सम्पन्न माना जाता है । कृष्ण के गाय
प्रेम को भला कौन नहीों जानता। इसी कारण उनका एक नाम गोपाल भी
है ।
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➢ इसी तरह से एक दू सरा पत्ता होता है धतूरे का पत्ता। लगभग ढाइइ
ककलो धतूरे के पत्ते की चिनी कमलाइए उसमें।
➢ एक पेड होता है कजसको आक या आूँ कडा कहते हैं , अकइमदार
कहते हैं आयुिेद में। इसके भी पत्ते लगभग ढाइइ ककलो लेकर
इसकी चिनी बनाकर कमलाए।
➢ कजसको बेलपत्री कहते हैं , कजसके पत्र आप िों कर भगिान के
उपर चढाते हैं । बेलपत्री या किल्वपत्रा के पते की ढाइइ ककलो की
चिनी कमलाए उसमें।
➢ किर सीतािल या िरीिा के ढाइइ ककलो पतो की चिनी कमलाए
उसमें।
➢ आधा ककलो से 750 ग्राम तक तम्बाकू का पाऊडर और डाल
दे ना।
➢ इसमें 1 ककलो लाल कमचइ का पाऊडर भी डाल दें ।
➢ इसमे बेिमइ के पत्ते भी ढाइइ ककलो डाल दें ।
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समाप्त हो जाते हैं । इतना प्रभाििाली ये कीिनािक बनकर तैयार होता
है । ये बडी-बडी किदे िी कम्पकनयोों के कीिनािक से सैकडोों गुणा ज्यादा
ताकतिर है और एकदम िोकि का है , बनाने में कोइइ खचाइ नहीों ।
किर इसको घोल लीकजए। किर इस 2-3 लीिर चूने िाले पानी को गोबर
और गोमूत्र िाले पात्र या बतइन में डाल दीकजए। तो गोबर-गोमूत्र और सौ
ग्राम चूने में कजतना घोल तैयार होगा उसमें अच्छे से बीज को डाल दीकजए।
कोइइ भी बीज एक ककलो इसमें आराम से भीग ों जाता है । बीज को इसमें
2-3 घोंिे डालकर रस्खए। रात में डाल दीकजए, सु बह से कनकाल लीकजए।
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कनकालकर इस बीज को छाूँ ि में सूखा दीकजए और छाूँ ि में सूखाने के बाद
आप इसको खेत की कमट्टी में लगा दीकजए। तो जो ये बीज लगेगा कमट्टी में ,
ये सोंस्काररत हो गया।
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जैचवि खाद चवचि
चिसान स्वंय खाद घर में बना सिता है िम से िम खिग
में –
एक सरल सू त्र बताता हूँ कजसको भारत में कपछले 12-15 िषोों में हजारो
ककसानोों ने अपनाया है और बहुत लाभ उनको हुआ है । एक एकड खेत
के कलए ककसी भी िसल के कलए खाद बानाने कक किकध ।
➢ किर इसमें एक ककलो गुड डाल दीकजए और गुड ऐसा डाल दीकजए
जो गुड हम नहीों खा सकते , जानिरी नहीों खा सकते , जो बेकार हो
गया हो, िो गुड खाद बनाने में सबसे अच्छा काम में आता है । तो
एक ककलो गुड 15 ककलो गोमूत्र, 15 ककलो गोबर इसमें डाकलए ।
िसल अगर खेत में खडी हुई है तो िसल में जब पानी लगाएों गे तो पानी
के साि इसको कमला दे ना है ।
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सबसे अच्छा पररणाम क्या आता है इसिा ?
आपकी कजोंदगी का खाद का जो खचाइ है 60 प्रकतित, िो एक झिके में
खत्म हो गया। किर दू सरा खचाइ क्या खत्म होता हैं जब आप ये गोबर-
गोमूत्र का खाद डालेंगे तो खेत में किष कम हो जाएगा, तो जन्तुनािक
डालना और कम हो जाएगा, कीिनािक डालना ओर कम हो जाएगा।
यूररया, डी.ए.पी. का असर जैसे-जैसे कमट्टी से कम हो जाएगा, बाहर से
आने िाले कीि और जोंतु भी आपके खेत में कम होते जाएों गें , तो जोंतुनािक
और कीिनािक डालने का खचइ भी कम होता जाएगा !
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वनौषचि
नीम की जड, अोंतरसाल, पत्ते, िूल, कनोंबोली, खली, तेल आकद के समुकचत
उपयोग से चार सौ प्रकार के हाकनकारक कीिकोों से रक्षा हो सकती हैं ।
ऐसा िैज्ञाकनकोों का अनुभि हैं । इस कारण नीम को जगत िृक्ष का सम्मान
प्राप्त हुआ हैं । नीम में अिरोधक, कनयोंत्रक गुण हैं । नुकसानदे ह कीिकोों के
प्रजनन कायइ में रूकािि डालना, उन्ें नपुोंसक बनाना, उनका
कायान्तरण न होने दे ना, उनका किच कनमाइ ण न होना, दीमक का कनयोंत्रण
करना, उपयुि कीिकोों का बचाि करके अपनी खली से भूकम को सिि
बनाने के गुण भी हैं ।
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गौमूत्र में रोग अिरोधक-रोग कनिारण और िसलोों की पोषक-
सोंजीिक िस्ि हैं । इन दोनोों को कमलाने पर उनकी िस्ि और बढती हैं ।
केंचुए भी पोषक सू क्ष्म जीिाणुओों की रक्षा करते हैं । भूकम की
िस्ि बढाते हैं । िसल की कीि तिा रोग प्रकतकारक िस्ि बढाते हैं ।
साविानी से बिाव
जमीन के अोंदर से िसलोों की जडोों में रोग िैलाने िाले िोंगस होते हैं । ये
जडोों में सडन पैदा करते हैं पौधे के तने के भी कािते हैं ।
1. बोनी के पूणइ बरसात आने पर एक एकड जमीन पर दस लीिर
गौमूत्र का कछडका करें । या बीस ककलो करों ज, नीम-एरों ड की खली
का जमीन में कमला दें या बीस ककलो करों ज, नीम एरों ड की खली
को जमीन में कमलादें ।
2. बब्दे ररया की 500 ग्राम पािडर – 500 ग्राम गुड के साि दस
लीिर पानी में रात में रखें। किर उसको छानकर 80 लीिर पानी
में कमलाकर िह घोल जमीन में कछडके। नसइरी में पौधे तै यार करते
समय भी यह ककया करें ।
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3. नदी ककनारे के िसलोों पर या गन्ने की गोंडेरी पर हुमणी नामक
बडी इल्ली हमला करती हैं । पाि ककलो रिाों ड दो लीिर पानी में
डे ढ लीिर होने तक उबालें। किर पानी के द्वारा उसे बहा दें ।
4. िसल को पानी दे ते समय पानी के नाली पर बारीक छे द िाले
कडब्बे में नीम का तेल या हीोंग का पानी बूोंद – बूोंद कगरा दें । इसमें
बागिानी में लगे पेड का जमीन के अोंदर से कािने, सडाने िाले
जीिाणु पर कनयोंत्रण आयेगा।
5. पाूँ च ककलो चूना तीस लीिर पानी में रातभर कभगोकर उसे बहा दें
या गीली जमीन पर कछडकाि करें ।
6. धन के खेत में गुडाई करते समय आक के पत्ते कमला दें । रतन
जोत – एरण्ड जैसे पत्ते िाला पौध (भोगल एरण्ड) इसके पिलोों
को पीसकर िह पािड पानी में कमलाकर धन की खेती में
तनाच्छे दक कीडे के कलए कबखेर दें ।
7. तम्बाकू, धतूरा, एरों ड बीज, गेंदा के उों डल इनको कूिकर पानी में
उबालकर खेत में दें । या कसिर ोला ते ल पानी में कमलाकर कछडकाि
करें या लहसुन, तम्बाकू, कमचइ, हीोंग को उबाल कर 10 लीिर पानी
में 50 कमली लीिर घोल कमलाकर िसल पर तनाच्छे दक कीडोों का
उपद्रि रोकने के कलए कछडकें। ध्यान में तनाच्छे दक कीिोों को
खाने का काम मेंढक करते हैं – उन्ें बचायें – बढायें।
गौमूत्र -
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5 प्रकतित गौमूत्र पानी में कमलाकर हर दस कदन बाद िसल पर
कनरों तर कछडकने से रोग आने से प्रकतबोंध और रोग दिा जैसा उपयोग होता
हैं ।
बाजरे िा आटा – दस कदन पुराना बाजरे का आिा पों द्रह लीिर पानी में
हिा बोंद कडब्बे में जमीन में या खाद के गड्ढे में गडाकर बीस कदन रखे।
पोंद्रह लीिर पानी में 45 कमली लीिर कमलाकर पोंप से िसल पर कछडकाि
करने से कीि- पोंतग नष्ट होोंगें।
छांछ – पोंद्रह कदन हिा बोंद मिके में जमीन में गाडने के बाद िह छाों छ
पानी में खिास आये इतना कमलाकर उसका कछडकाि करने से इल्ली-
पतोंग पर कनयोंत्रण पा सकते हैं ।
इससे कमचइ-िमािर-बैगन आकद पर का चुराइ मुराइ या कुकडा दू र होता हैं ।
भूरा रोग – िुलाि के पहले 10 कदन पुराना बाजरे का आिा चौगुना राख
कमलाकर उसे भुरकने से भूरा रोग हिता हैं ।
सफेद माक्खे
पायरोिोराईड जैसी जहरीली मोंहगी दिा ने भी घुिने िे क कदये हैं ।
इन मस्क्खयोों को भगाने के कलए हिा का रख दे खकर िाम को खरपतिार
में नीम की पत्ती डालकर धुआों करें सारा खेत धुएों में डूब जाए। मक्खी
भाग जायेगी। जो कुछ अोंडे आकद बचेंगे तो दू सरे कदन गुड का पानी पत्तोों
पर कचपकने जैसा बनाकर कछडकें। उससे िे कचपक जायेंगे। तीन कदन में
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नष्ट होगी। िसल की श्वसन कक्रया पूिइित जारी रखने के कलए –किर पानी
के िव्वारे से पत्ते स्प्रेपोंप द्वारा धो दें ।
अनुपात -
यह आयुिेकदक पद्धकत के औषकध से बनाई दिा हैं जो पौधोों की बीमारी से
रक्षा और किकास करती हैं । कचपकचपा द्रि – िलदार िृक्ष से यह कनकलता
हैं और पेड सूख जाता हैं ।
पेड के जडोों के पास क्यारी अरों डी का तेल, उबले तम्बाकू का
घोल या पािडर कबखेर दें । तो जडो के द्वारा यह दिा पेड में पहुूँ च कर
कचपकचपा द्रि स्राि रोकेगी।
पेड़ में छे द
िलदार पेडोों में कीि छे द करने से पेड सूख जाते हैं । जहाूँ छे द कदखे िहाूँ
तुरोंत उसमें का बुरा कनकाल कर कपडे या कपास को पे िरोल में कभोंगो कर
उसे छे द में ठूोंस दें । या स्प्रेपोंप से पेिरोल छे द में कछडक कर िह छे द-गोबर-
गौमूत्र कमट्टी में कमला कर बोंद करें ।
राख – कुछ कीि-पतोंग पतोों में छे द करते हैं । राख का कछडकाि करने से
सूक्ष्म जीिाणु िहाूँ पहुूँ च नहीों पाते हैं । िलोों का पोषण भी होता हैं ।
अचिहोत्र
सारा पयाइ िरण ही प्रदू कषत हो गया तो िसल के किकास में रोगोों के कारण
बाध्य पडना अकनिायइ हैं । खे त में अकिहोत्र द्वारा िातािरण िुस्द्ध अकनिायइ
हैं ।
प्रिाशपाश –
लालिे न, पेिरोमॉक्स, या बल्ब को तीन तारोों में लिककर रात में खेत में
रखने पर पतोंग, कीिक आककषइत होोंगे। नीचे चौडे बतइन में केरोसीन
कमकश्रत पानी रखने से िे िकराकर बतइन में कगरें गे।
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कचपकाने िाली कागज रखने पर भी कनयोंत्रण होगा। एक किि बाय
एक िीि िीन के पत्ते को कािकर उसके दोनोों बाजुओों पर पीला रों ग
लगायें। िह सू खने पर अों डी का तेल उसपर दोनोों ओर लगायें। सिेद
मक्खी कीि इसमें कचपक जायेंगे। िह पूरा कीिोों से पि जाने पर उसे
झोकर किि अोंडी का तेल लगाकर पत्ता खडा करें । एक एक़ड में पाूँ च
जगह पत्ते कािी हैं ।
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गौमाता चिचित्सा शास्त्र :
गौमाता एक चलती किरती कचककत्सालय है । गाय के रीढ में सूयइ केतु नाडी
होती है जो सूयइ के गुणोों को धारण करती है । सभी नक्षत्रोों की यह ररसीिर
है । यही कारण है कक गौमूत्र, गोबर, दू ध, दही, घी में औषधीय गुण होते हैं ।
गौमूत्र से ठीक होने िाले कुछ रोगोों के नाम – मोिापा, कैंसर, डायकबिीज,
कब्ज, गैस, भूख की कमी, िातरोग, कि, दमा, ने त्ररोग, धातुक्षीणता,
स्त्रीरोग, बालरोग आकद।
• गौमूत्र अकइ(सादा)
• औषकधयुि गौमूत्र अकइ(किकभन्न रोगोों के कहसाब से)
• गौमूत्र घनबिी
• गौमूत्रासि
• नारी सोंजीिनी
• बालपाल रस
• पमेहारी आकद।
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2. गोबर :-
दस्त या आों ि हो जाने पर ठों डा गौदु ग्ध(1 कगलास) में एक नीोंबू कनचोडक़र
तुरन्त पी जािें। चोि लगने आकद के कारण िरीर में कहीों ददइ हो तो गमइ
दू ध में हल्दी कमलाकर पीिें। िी.बी. के रोगी को गौदु ग्ध पयाइ प्त मात्रा में
दोनोों समय कपलाया जाना चाकहए।
4. दही : – गकभइणी यकद चाूँ दी के किोरी में दही जमाकर कनत्य प्रात: सेिन
करे तो उसका सन्तान स्वथि, सुन्दर ि बुस्द्धिान होता है । गाय का दही
भूख बढाने िाला, मलमूत्र का कन:सरण करने िाला एिों रूकचकर है । केिल
दही बालोों में लगाने से जुएों नष्ट हो जाते हैं । बिासीर में प्रकतकदन छाछ का
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प्रयोग लाभकारी है । कनत्य भोजन में दही का सेिन करने से आयु बढती
है ।
पंिगव्य
पंिगव्य का कनमाइ ण गाय के दू ध (गोदु ग्ध), दही (गोदकध), घी (गोघृ त), मूत्र
(गोमूत्र), एिों गोबर (गोमय) के कििेष अनुपात के सस्म्मश्रण से ककया
जाता है । पोंचगव्य का कनमाइ ण दे सी मुि िन किचरण करने िाली गायोों से
प्राप्त उत्पादोों द्वारा ही करना चाकहए।
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गाय एि पयागवरण शास्त्र :
• गाय के रम्भाने से िातािरण के कीिाणु नष्ट होते हैं । सास्त्वक तरों गोों
का सोंचार होता है ।
• गौघृत का हिन करने से आक्सीजन पैदा होता है । – िैज्ञाकनक
किरोकिचा, रूस
• गोंदगी ि महामारी िैलने पर गोबर गौमूत्र का कछडक़ाि करने से
लाभ होता है ।
• गाय के प्रश्वाों स, गोबर गौमूत्र के गोंध से िातािरण िुद्ध पकित्र होता
है ।
• घिना – िी.बी. का मरीज गौिाला मे केिल गोबर एकत्र करने ि
िहीों कनिास करने पर ठीक हो गया।
चवश्वव्यापी आस्िि एवं अणु रज िे घाति दु ष्पररणाम से बिने िे
चलए रूस िे प्रचसद्ध वैज्ञाचनि चशरोचवि ने सुझाव चदया है –
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गाय एि अिगशास्त्र :
सबसे अकधक लाभप्रद, उत्पादन एिों मौकलक व्यिसाय है ‘गौपालन’। यकद
एक गाय के दू ध, दही, घी, गोबर, गौमूत्र का पूरा-पूरा उपयोग व्यिसाकयक
तरीके से ककया जाए तो उससे प्राप्त आय से एक पररिार का पलन आसानी
से हो सकता है ।
यकद गौिोंि आधाररत कृकष को भी व्यिसाय का माध्यम बना कलया जाए
तब तो औरोों को भी रोजगार कदया जा सकता है ।
गाय एि िृचषशास्त्र :
कमत्रोों! गौिोंि के कबना कृकष असोंभि है । यकद आज के तिककित िैज्ञाकनक
युग में िैि् रक्टर, रासायकनक खाद, कीिनािक आकद के द्वारा कबना गौिोंि
के कृकष ककया भी जा रहा है , तो उसके भयोंकर दु ष्पररणाम से आज कोई
अनजान नहीों है ।
यकद कृकष को, जमीन को, अनाज आकद को बबाइ द होने से बचाना है तो
गौिोंि आधाररत कृकष अिाइ ति् प्राकृकतक कृकष को पुन: अपनाना अकनिायइ
है ।
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आइए चवषय िो आगे बढाने िे पूवग एि गीत गाते हैं -
बोलो गौमाता की – जय
❖ एक पुरानी कहाित है –
मानि जाकत ि पयाइ िरण पर कहर ढाती रासायकनक कृकष की कहानी यहीों
समाप्त नही होती। इस खेती से प्राप्त अनाज, िल, सस्ब्जयाूँ सब जहरीली
होती है कजससे ढे रोों ककस्म की बीमाररयाूँ बच्चे बूढे जिान सभी को लीलती
जा रही है । इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कक रासायकनक और यास्िक
कृकष हर दृकष्ट से हाकनकारक है । कृकष का उद्धार करना है तो गौिोंि
आधाररत प्राकृकतक कृकष को ही अपनाना पडे गा। गौपालन के कबना
प्राकृकतक कृकष और प्राकृकतक कृकष के कबना गौपालन सों भि नहीों है । कमट्टी
में कभी िे सभी तत्व मौजूद है जो पेड पौधोों को चाकहए, लेककन िह जकिल
होते हैं । सूक्ष्म जीि एिों केचए आकद कमट्टी के ककठन घिकोों को सरल
घिकोों में किघकित कर दे ते हैं , कजसे पेड पौधे आसानी से खीोंच सकते हैं ।
गाय के एक ग्राम गोबर में 300 से 500 करोड तक ऐसे ही सूक्ष्म जीिे होते
हैं । ये सूक्ष्म जीि जमीन के केचुओों को सकक्रय करने का भी काम करते
हैं । केंचुए कमट्टी में खूब सारे छे द करके उसे कृकष योग्य पोला बना दे ते हैं ।
केंचुए कमट्टी को खाकर सरल पोषक तत्वोों में बदलते रहते हैं ।
सामग्री :-
चवचि :- सबको एक बडे प्ास्स्टक बाल्टी में कमला दें । लकडी से घोलें। दो
कदन बाद जीिामृत तैयार है । अगले सात कदनोों के अन्दर कछडक़ाि कर दें ।
पंिगव्य िा नुस्खा
5 ककलो गाय का ताजा गोबर, 3 लीिर गाय का मूत्र, 2 लीिर गाय का
दू ध, आधा ककलोग्राम गाय का घी, 2 लीिर गाय के दू ध से बनाया गया
दही, 3 लीिर गन्ने का रस, 3 लीिर ताड या अोंगूर का रस। जब इन
सबको आप कमलाएों गे, तो 20 लीिर पोंचगव्य बनेगा।
स्वाद बेचमसाल
इस किकध से स्वाद भी अच्छा बनता हैं । धान में उपयोग करें तो बाकलयाों
अच्छी बनती हैं और कुिाई के दौरान चािल कम िू िते हैं । पोंचगव्य का
प्रयोग गन्ना, सरसोों मूोंगिली, ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, गेहूँ, सूरजमुखी
और नाररयल आकद की िसलोों में भी ककया गया हैं । इन सभी में पोंचगव्य
ने िसलोों की िृस्द्ध और कीि अिरोधक का काम ककया हैं । आप इसे
अपने बाग-बगीचोों और घर के बाहर लगे पेडोों में भी उपयोग कर सकते
हैं ।
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गौ चिचित्सा
गौ चिचित्सा-घाव-फोड़ा,फुन्सी िे िीड़े
१ – सूजन (Swelling )
================
प्राय: पिु के िरीर के ककसी अोंग मे चोि लग जाने ,गन्दा मादा एककत्रत हो
जाने अििा िोडा- िुन्सी आकद उठने , घाि पक जाने या सदी आकद
कारणोों से प्रभाि से सूजन उत्पन्न हो जाती है ।
कजस थिान पर सूजन होती हैं ,पिु के िरीर का िह थिान उभरा हुआ- सा
कदखाई दे ता हैं । उसमे ददइ होता हैं और दबाने से कडापन महसुस होता
हैं । स्पिइ करने से िह थिान गरम भी प्रतीत होता हैं । पिु सूजन के कारण
बेचैन रहता हैं तिा कभी- कभी उसे बुखार भी हो जाता है ।
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रोग – पशुओ ं िे घाव में िीड़े पड़ जाने पर ।
==============================
1 – औषचि – रोग – ग्रस्त थिान पर, घाि में बारीक कपसा हुआ नमक भर
कदया जाय और पट्टी बाूँ ध दी जाय, कजससे घाि पक जायगा और कीडे भी
मर जायेंगे । घाि पकने पर कीडे नहीों पडते हैं ।
2-औषचि – अजिायन के तैल को रूई से घाि पर लगाकर पट्टी बाूँ ध दे ने
से कीडे एकदम मर जाते है । अजिायन का तैल ककसी और जगह पर लग
जाय तो तुरन्त नाररयल का तैल लगा दे ना चाकहए , अन्यिा चमडी कनकलने
का भय रहता है ।
3-औषचि – मोर पोंख जलाकर राख १२ ग्राम , नाररयल तै ल १२ ग्राम ।
मोरपोंख को जलाकर छान लें किर उसे तेल में कमलाकर घाि पर लगा दें
। और रूई कभगोकर घाि पर रखकर ऊपर से पट्टी बाूँ ध दें । किर कमट्टी
से उस पर लेप कर दें ।
4– औषचि – यकद घाि मे कीडे पड गये हो तो उन्े अच्छी तरह से साफ
करके सरसोों के तैल में – तारपीन का तैल या युककलप्टस का तैल या कपूर
का तै ल कमलाकर लगाना लाभप्रद होता है ।
िारण व लिण – चोि , सदी , गमी , अििा अन्य ककसी ख़राबी के कारण
पीि – मिाद एककत्रत हो जाने से कभी – कभी पिु के िरीर के ककसी
कहस्से में सूजन हो जाती हैं , कजसे िोडा या िुन्सी कहते हैं ।
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सिइप्रिम घाि को हुक्के के पानी से धोकर साफ कर लेना चाकहए तदु परान्त
आगे कलखी दिाओों का प्रयोग करना चाकहए —
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बारीक पीसकर उसे पिु के िरीर आक्रान्त थिान पर भरकर ऊपर से
केले का पत्ता कसकर बाूँ ध दे ने से बहता हुआ रि रूक जाता हैं ।
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2– गाय- भैंस िा गभग िारण न िरना
==========================
िारण व लिण – साधारणत: अकधक कमज़ोर पिु कनकश्चत समय पर गभइ
नहीों धारण करते । मादा पिु सयोोंग करने की इच्छा नहीों प्रकि करती है
और इस ओर से पुणइ उदास रहती है ।
1 – औषचि – मादा पिु जैसै ही गभइधारण करे याने सोंयोग करें िैसे ही
उसे धीरे से ज़मीन पर कगराकर उसे ४-५ पल्टी दी जाय किर उसका मुूँह
ऊपर करके बाूँ ध कदया जाय । और १२ घन्टे तक उस पिु को बैठने नहीों
कदया जाय । केिल उसे पानी ही कपलाया जाये और २४ घन्टे तक घास
कबलकुल खाने न कदया जायें ।
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3 – औषचि – असली कसन्दु र ९ ग्राम , गाय का दू ध २४० ग्राम , कमट्टी ४०
ग्राम , कमट्टी को दू ध में घोलकर कपडछान कर लें । यह दिा केिल एक
कदन ही दोनोों समय दे नी चाकहए ।
4 – औषचि – रोगी पिु के कान कािकर कान मे कगोोंरे बना कदये जायें
कजससे पिु कमज़ोर होकर गभइधारण कर लेगा और खान – पान में पिु
को उत्ते जक पदािइ नहीों स्खलाना चाकहए ।
औषचि – अलसी के बीज १५० ग्राम को कढाई में भूनकर , १५० ग्राम गुड में
कमलाकर गाय को स्खलाने से िह गाय जो अकड गयी िी िह खडी हो जायेगी
तीसरे कदन किर से एक खुराक दे ना चाकहए । बाद उसका कपछला कहस्सा ठण्डे
पानी से धोने के कारण , गाय का िरीर जूड जाने पर ।
उपिार – ज़ख़्म पर सुई – धागा द्वारा िाूँ का लगा दे ना चाकहए तिा गोमूत्र
से धुलाई करके महकिा का रस डालने से ख़ून बन्द हो जायेगा तिा बाद
मे दण्डोत्पलक की जड को कघसकर उसका पेस्ट बनाकर गेन्दें के रस में
कमलाकर मरहम की तरह लगा दे िें ।
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