You are on page 1of 79

जीरो बजट खेती

एवं
गौमाता चिचित्सा
शास्त्र

सं िलन एवं मागगदशगनः -

श्री राजीव दीचित

संग्रहिताग –

रोचबन चसराना

सहयोग राचशः 60 रूपये

0
चवषय सूिी पेज नम्बर

राजीव दीचित व्याख्यान - 2

चिसानों िी स्थिचत - 9

खेती और चिसानों िी बबागदी - 15

िृचष व्यवथिा िा स्वदे शीिरण - 28

भूचम िो सशक्त बनाने िे तरीिे - 31

सम्पूणग सास्िि खाद - 32

गौशाला एवं पिंगव्य उत्पादो िे उपयोग - 44

जैचवि िीटनाशि चवचि - 46

जैचवि खाद चवचि - 50

वनोषचि - 54

गौमाता चिचित्सा शास्त्र - 62

1
भारतीय िृचष पर राजीव दीचित जी िा
व्याख्यान
आज के इस व्याख्यान में मैं खेती और ककसानोों के बारे में जो स्थिकत है
भारत की, उसके बारे में कुछ कहूँ गा। भारत की खेती, भारत के ककसान
आज कजस स्थिकत में है । आज से 150 साल पहले भारत के ककसान, भारत
की खेती ककस हाल में िी। उन दोनोों का तुलनात्मक किश्लेषण आज के
इस व्याख्यान में मैं करने की कोकिि करूँगा और यह तुलनात्मक
किश्लेषण इस दृष्टी से होगा कक 200 साल पहले खेती और ककसान की
स्थिकत बहुत अच्छी िी तो आज उसकी समस्या क्या हो गइइ और उसको
किर सुधारने के कलए कौन सा रास्ता हो सकता है ।

िो रास्ता हम सारे दे ि के लोगोों को ढुों ढना होगा। उस दृष्टी से आज के पूरे


व्याख्यान में खेती और ककसानोों के किषय को मैंने िाकमल करने की
कोकिि की है ।

आप सब जानते हैं कक भारत में खेती और कृकष कमइ को बहुत ही उच्च


दजे का व्यिसाय माना गया है और भारतीय समाज में कृकष कमइ और
ककसानोों के कलए खेती करना केन्द्र कबन्दु रहा है । ऐसा कहा जाए कक
भारतीय समाज कृकष आधाररत अिइव्यिथिा पर किका हुआ है तो यह ठीक
ही है और जो समाज कृकष आधाररत अिइव्यिथिा पर किका हुआ होता है
उस समाज की अपनी कुछ खास तरह की प्रािकमकताएों होती हैं । खास
तरह की जररतें होती हैं ।

हमारे यहाूँ कृकष की जो प्रधानता रही है । उसके पीछे एक तथ्य यह भी है


कक भारतीय मौसम और जलिायु कृकष के कािी अनुकूल है ।यहाूँ जो
मौसम है कनत्य िाला है जैसे उदाहरण के कलए आज सू रज कनकला है तो
कल भी कनकलेगा, परसोों भी कनकलेगा, तीन महीने बाद भी कनकलेगा ।
माने सूरज के कनकलने में कही कोइइ कमी नहीों आने िाली भारतीय

2
जलिायु में, लेककन युरोप में यह बात सच नहीों है । यु रोप में आज सूरज
कनकला है । कल नहीों भी कनकलेगा।

युरोप में कल सूरज कनकला है , हो सकता है कुछ महीने तक लगातार


सूरज नहीों कनकलेगा। क्योोंकक युरोप के दे िोों में सामान्य रप से साल में
कसिइ तीन महीने ही धूप कनकलती है । बाकी नौ महीने तो िहाूँ धूप कनकलती
ही नहीों है । सूयइ के दिइन ही नहीों होते। तो कजतना तारतम्य भारत की
जलिायु में है । भारत के मौसम में है । उतना युरोप में नहीों है । उसी के
साि-साि भारत की जो भूकम है , भारत की जो कमट्टी है खेत की िो बहुत
नरम है ।

युरोप के खेतोों की कमट्टी नरम नहीों है बहुत कठोर है । तो कजन दे िोों के


खेत की कमट्टी बहुत कठोर होती है । िहाूँ कृकष प्रधान व्यिथिा सोंभि नहीों
होती है । और आप जानते हैं कक खेती के कलए कमट्टी का नरम होना बहुत
जररी है । इसकलए भारत में कृकष कमइ बहुत प्रधान रहा। तो भारत का कृकष
कमइ केन्द्र कबन्दू रहा उसका सबसे बडा कारण है कक यहाूँ की जलिायु
बहुत अच्छी है और यहाूँ की खेती की कमट्टी बहुत अच्छी है ।

दू सरा, यहाूँ के लोगोों को मौसम, जलिायु और कमट्टी से जुडेे़ हुए कजतने


कारक हैं । उनका बहुत अच्छा ज्ञान है । अगर यह कहा जाए कक भारत के
ककसान बहुत किद्वान आदमी हैं तो इसमें कोइइ िक नहीों है । िो जानता है
कक बाररि कब आने िाली है । ककसान को मालूम होता है गमी कब पडने
िाली है । ककसान को यह भी मालूम होता है कक सदी का समय जो आने
िाला है िो कब आने िाला है और ककसान उसके कहसाब से अपनी खेती
की चयाइ को बदल लेता है ।

बाररि में क्या करना है । गमी में क्या करना है । सदीयोों में क्या करना है ।
यह सब बातें सामान्य रप से इस दे ि का हर ककसान जानता है और
इसकलए मैं उसको कहता हूँ कक उसको अपने जीिन को चलाए रखने के
कलए जो जररी कारक हैं उनका बहुत अच्छा ज्ञान है ।

तो एक तो जीिन का ज्ञान है । दू सरा, मौसम और जलिायु का ज्ञान है ।


तीसरा, कमट्टी बहुत अच्छी है । चौिा, यहाूँ की जो जलिायु है समसीतोष्ण

3
है । ना तो बहुत गमी है ना तो बहुत बाररि है । युरोप के दे िोों में कभी-कभी
तो बहुत सदी पडती है । माइनस 40 कडग्री सेंकिग्रेि तापमान हो जाता है ।
माइनस 20 कडग्री सेंकिग्रेि तापमान हो जाता है । भारत में इस तरह से कभी
तापमान बहुत नीचे भी नहीों जाता और कभी ऊपर भी नहीों जाता। तो
भारत की जलिायु समसीतोष्ण है ।

जो खेती के कलए बहुत अच्छी मानी जाती है और पानी की व्यिथिा इस


दे ि में बहुत प्रचुरता में है । हजारोों सालोों से इस दे ि में पानी की मात्रा
कािी रही है । बाररि का होने िाला पानी, बाररि से कमलने िाला पानी,
जमीन के अोंदर कमलने िाला पानी और जमीन के ऊपर तालाबोों के माध्यम
से कमलने िाला पानी। इन सभी की प्रचुरता भारतीय समाज में कािी लम्बे
समय से रही है । इसकलए भारत की खेती बहुत उन्नत रही है और भारत
का ककसान बहुत उन्नत रहा।

तो भारत की खेती और भारत के ककसान के उन्नत होने के पीछे जो सबसे


प्रमुख कारणोों में से एक कारण है । एक तो जलिायु का सातत्य। मौसम
का सातत्य। मौसम का लगातार कनरन्तर रप से प्रिाकहत होना, पानी की
उपलब्ध्ता बहुत अच्छी मात्रा में होना और खेती की जमीन बहुत अच्छी
नरम होना, यह तीन बडे कारक हैं । कजसके कलए भारतीय खेती और
भारतीय कृकष कमइ बहुत उन्नत रहा और इतने उन्नत कृकष कमइ के बारे में
अगर कभी अोंदाजा लगाना हो कक ककस तरह की खेती हमारे यहाूँ होती
रही है 200 साल पहले, 300 साल पहले के मेरे पास कुछ दस्तािेज है ।

हमारे यहाूँ एक बहुत बडे इकतहासकार हैं प्रोिेसर धमइपाल उनकी मदद
से हम लोगोों ने कुछ दस्तािे ज दे खें है । िो दस्तािेज यह बताते हैं कक करीब
आज से 300 साल पहले भारत की खेती युरोप के ककसी भी दे ि की खेती
से बहुत अच्छी मानी जाती िी। उदाहरण ले -ले इों ग्लैंड का। आज से 300
साल पहले इों ग्लैंड के एक एकड खेत में कजतना अनाज पैदा होता िा
उसकी तु लना में आज से 300 साल पहले भारत के एक एकड खेत में
उसका तीन गुना ज्यादा अनाज पैदा होता िा।

उदाहरण से अगर समझना चाहें तो ऐसे समझो कक भारत के एक एकड


खेत में अगर 50 ककिन्टल अनाज पैदा होता िा। तो इों ग्लैंड के एक एकड
4
खेत में मुकिकल से 15-16 ककिन्टल अनाज पै दा होता िा। तो इों ग्लैंड से
तीन गुणा ज्यादा उत्पादन भारत के खेतोों का रहा है आज से 300 साल
पहले और भारत की उन्नत कजस तरह से खेती रही है ठीक उसी तरह की
उन्नत खेती चीन की भी रही।

चीन की खे ती का उत्पादन भी लगभग इसी तरह का रहा है । जो भारत


की खेती में रहा है । दु कनया में दो ही ऐसे दे ि माने जाते हैं कजनकी खेती
कपछले हजारोों साल से बहुत उन्नत रही है । कजनके ककसान कपछले हजारोों
साल से उन्नत रहें हैं । चीन और भारत की खेती के उन्नत होने का एक
दस्तािेज है और एक प्रमाण है । जो यह बताता है कक लगभग 1750 ई.
के करीब भारत और चीन का दोनोों दे िोों का कमलाकर कुल उत्पादन सारी
दु कनया के कुल उत्पादन का सत्तर प्रकतित होता िा। माने पूरी दु कनया में
कजतना अनाज पैदा हो रहा हैं ।

पूरी दु कनया में कजतना अनाज के साि-साि दु सरे सामान पैदा हो रहे है ।
उद्योगो की मदद से जो सामान पैदा हो रहे है खेती की मदद से जो सामान
पैदा हो रहे हैं । उनका कुल उत्पादन पूरी दु कनया में कजतना िा उसका कुल
सत्तर प्रकतित उत्पादन कसिइ भारत और चीन का होता िा। तो आप
अोंदाजा लगा सकते हैं कक पू री दु कनया के सकल उत्पादन का सत्तर प्रकतित
उत्पादन आज से करीब ढाइइ सौ तीन सौ साल पहले भारत और चीन का
होता िा। तो इन दोनोों की खेती और खेती से जुडे हुए उद्योगो की ककतनी
उन्नती रही होगी।

1760 से अोंग्रेजोों का िासन भारत में िुर माना जाता है । तो 1760 के


बाद लगातार अोंग्रेजोों ने भारत की खेती पर ऐसे कानून लगाये , ऐसे अों कुि
लगाए कक लगातार भारत की खेती बबाइ द होती चली गइइ । 1760 के बाद
1820 के साल तक अोंग्रेजोों ने भारत की खेती को कािी नुकसान की
स्थिकत में पहुूँ चा कदया अपने कानूनोों की मदद से । तो भी पूरी दु कनया में
भारत और चीन की खेती का कुल उत्पादन और खेती से जुडे हुए उद्योगो
का उत्पादन लगभग 60 प्रकतित के आस-पास रहा।

तो इस बात से अोंदाजा लगता है कक ककतनी उन्नत खेती और खेती से जुडे


हुए उद्योग रहे होोंगे इस दे ि में। इसके अलािा खेती और ककसानोों से जुडे
5
हुए लोगोों की समृ्दकह बहुत रही है इस दे ि में। आज से 200-300 साल
पहले तक सबसे ज्यादा समृ्दकहिाली िगइ इस दे ि का ककसान ही माना
जाता रहा।

आज से 200-300 साल पहले तक की स्थिकत यह है कक समाज का सबसे


ज्यादा पैसे िाला िगइ ककसान ही माना जाता रहा और समाज में सबसे
अच्छा कमइ खेती का माना जाता रहा।

एक कहाित इस दे ि में कही जाती है ‘उत्तम खेती, मध्यम िान करे


चाकरी कुकर कनदान। उत्तम खेती माने खेती सबसे महत्वपूणइ व्यिसाय
है । मध्यम िान माने कबजने स है जो व्यापार है िो दू सरे नम्बर पर है । और
करे चाकरी कुकर कनदान माने नोकरी करना तो कुत्ते के जीिन कबताने
जैसा माना जाता है । भारतीय समाज में तो खेती सबसे उन्नत व्यिसाय
रहा। दू सरे नम्बर पर व्यापार और तीसरे नम्बर पर नौकरी-चाकरी मानी
जाती है । यह स्थिकत इस दे ि में आज से 200, 250, 300 साल पहले तक
की है ।

जब अों ग्रेज भारत में आए है और सरकार बनाकर उन्ोोंने भारत में राज्य
करना िुर ककया है । तब तक इस दे ि में खेती की उन्नकत और खेती की
स्थिकत बहुत अच्छी है । भारत के ककसानोों के और खेती की स्थिकत अच्छी
होने के कुछ प्रमाण हैं दस्तािेज में । जो यह बताते हैं कक हमारे दे ि में
करीब-करीब 1750 के आस-पास मैसूर नाम के राज्य में एक लाख से
ज्यादा तालाब हुआ करते िे ।

कहन्दु स्तान में आजादी के पहले करीब साडे सात लाख गाूँ ि होते िे और
आश्चयइ इस बात का कनकलता है कक दस्तािेजोों के आों कडो के अनुसार कक
इस दे ि का कोइइ भी गाूँ ि ऐसा नहीों कक कजसमें तालाब न बना होता और
आूँ कडेे़ तो यह बताते हैं कक बहुत सारे गाूँ ि इस दे ि में ऐसे रहे है जहाूँ एक
से ज्यादा तालाब एक ही गाूँ ि में रहे हैं । तो साडे सात लाख गाूँ ि का दे ि
िा भारत आजादी के पहले और करीब-करीब हर गाूँ ि में एक तालाब की
व्यिथिा िी तो लगभग साडेे़ सात लाख तालाब पूरे दे ि में रहे होोंगे। इससे
ज्यादा भी हो सकते हैं क्योोंकक कुछ गाूँ ि में एक से ज्यादा तालाब होने की
व्यिथिा िी।
6
तो तालाब बहुत बडी सों ख्या में रहे है । कुएों बहुत बडी सोंख्या में रहे हैं ।
बािकडयाों बहुत बडी सोंख्या में रही है । बाररि की होने िाली एक-एक बूूँद
को कहन्दु स्तान में पूूँजी की तरह से बचाने की परों परा रही है । कजस राजथिान
को आज हम जानते हैं और हम राजथिान के बारे में ऐसा मानते हैं कक
बहुत मर भूकम है राजथिान की जहाूँ पानी की बहुत कमी है । जहाूँ पानी
की बहुत ककल्लत है । उस राजथिान में ऐसी परम्परा कपछले हजारोों साल
से है कक बाररि की कगरने िाली एक-एक बूूँद को सोंकचत रखने की सबसे
बडी परम्परा अगर इस दे ि में कहीों है तो राजथिान में।

आप राजथिान में जाइइ ए जैसलमैर के इलाके में जहाूँ पर यह माना जाता


है कक सबसे ज्यादा सुखा पडता है । उस जैसलमैर के इलाके में आप आजू -
बाजू के गाूँ ि में घूकमए, हर गाूँ ि में आपको तालाब कमल जाये गा और
जैसलमैर िहर के नजदीक ही सबसे बडा तालाब मौजूद है । जो करीब
चार-पाूँ च सौ साल पुराना है और आज भी उसमें पानी है । कभी िहाूँ
लहराते तालाब हुआ करते िे। बडे -बडे तालाब हुआ करते िे। यह तो
अोंग्रेजोों के कुछ कानून िे और अोंग्रेजोों की कुछ व्यिथिायें िी। कजन्ोोंने
भारत के तालाबोों को सुखा कदया और भारत के तालाबोों को बबाइ द कर
कदया।

तालाबोों की बडी गहरी परम्परा रही है इस दे ि में और कृकष का उत्पादन


उसी के आधार पर है । पानी कजतनी प्रचुर मात्रा में है उतना ही उत्पादन
अकधक होता रहा है इस दे ि में इसकलए खेती का उत्पादन इस दे ि में
बहुत रहा है और खेती के उत्पादन में एक महत्वपूणइ कारक और है । भारत
में खेती के साि-साि पिुधन भी बहुत बडी मात्रा में रहा है ।

पिु की सोंख्या भी इस दे ि में बहुत बडी मात्रा में रही है और कृकष कमइ
को किकाए रखने के कलए पिुओों की सोंख्या इस दे ि में बडी जबरदस्त
मात्रा में रही है । करोडोों-करोडोों की सोंख्या में जानिरोों को पालने की
परम्परा इस दे ि के लोगोों में बहुत गहरे से बैठी हुइइ है । तो कृकष है । कृकष
के कलए केन्द्र जो बन सकती है । िो गाय इस दे ि में रही है । बैल रहे है इस
दे ि में, उनका गोबर है । गोबर से होने िाली खाद है । गाय का मूत्र है ।
7
उससे बनने िाले जो कीिनािक बन सकते हैं इस दे ि में उनकी परम्परा
रही है ।

तो भारतीय कृकष इस तरीके से बहुत उन्नकत के रास्ते पर जाती रही है ।


क्योोंकक पिुओों की सोंख्या बहुत, तालाबोों की सोंख्या बहुत, जमीन की
अच्छाइइ बहुत है । कमट्टी बहुत नरम है । ककसानोों को जल िायू का बहुत
अच्छा ज्ञान है । यहाूँ पर बीजोों की सोंख्या भी बहुत अच्छी रही है । हमारे
दे ि में आज से 150-200 साल पहले तक चािल की, धान की, एक लाख
से ज्यादा प्रजाकतयाों होती िी।

जो दस्तािेज उपलब्ध हैं िो बताते है कक भारत के ककसानोों के पास एक


लाख से ज्यादा चािलोों की ककस्में होती िी। इस दे ि में सैकडोों ककस्म के
बाजरे के बीज िे। सै कडोों ककस्म के मक्के के बीज िे। सैकडोों ककस्म के
ज्वारी के बीज िे। सैकडोों ककस्म की प्रजाकतयाूँ इस दे ि में रही हैं अनाजोों
की और यहाूँ की सम्पन्नता बहुत ज्यादा रही है । तो इसकलए कृकष कमइ भी
ऊूँचा रहा है इस दे ि का।

आज करीब हमारे दे ि में 300 साल पहले के आूँ कडे है जो बताते हैं कक
कबि्रिे न से तीन गुणा ज्यादा उत्पादन हमारे खेतोों का है । आूँ कडे यह बताते
हैं कक कृकष कमइ इस दे ि का बहुत उन्नत रहा है । पिुओों के पालन के काम
भी बहुत उन्नत रहे है ।

तो अचानक से क्या हो गया इस दे ि में जो आज इस दे ि का ककसान सब


से गरीब कदखाइइ दे ता है ? अचानक से क्या हो गया इस दे ि में कक आज
इस दे ि की खेती ही सबसे ज्यादा बबाइ दी के रास्ते पे जाती हुइइ कदखाइइ
दे ती है ?अचानक से क्या हो गया इस दे ि में जो आज इस दे ि के खेती
और ककसानोों की बबाइ दी की स्थिकत हमको चारोों तरि कदखाइइ दे ती है ।

8
चिसानो चि स्थिचत अंग्रेजों िे समय और
आज िे समय मे तुलना
इस दे ि में कहों सक व्यिथिाओों के कारण भारत का ककसान बबाइ द हुआ
और भारत की खेती बबाइ द होती चली गइइ और तकलीि हमारी यह है कक
कजस तरह से अोंग्रेजोों की सरकार ने भारत की खेती को बबाइ द ककया िा।
कजन नीकतयोों के कारण भारत के ककसान को बबाइ द ककया गया िा। कजन
नीकतयोों और कजन कानूनोों के चलते भारत के ककसान की बबाइ दी आयी िी।
भारत की खेती बबाइ द हुइइ िी। िो सारी की सारी नीकतयाों िो सारे के सारे
कानून आज भी चल रहे हैं ।

उदाहरण के कलए जो ‘लेण्ड एक्यूजीिनस एक्ट अोंग्रेजोों ने बनाया िो आज


आजादी के पचास साल के बाद भी चलता। जो ‘इों कडयन िारे स्ट एक्ट
अोंग्रेजोों ने बनाया िा िो आज आजादी के पचास साल के बाद भी चलता
है । जो कानून अोंग्रेजोों ने बनाया ककसानोों के पै दा ककये हुए अनाज का दाम
तय करने के कलए िो कानू न इस दे ि में आज भी चलता है । बस िरक
इतना है कक पहले गोरे अोंग्रेज उस कानून को चलाते िे। अब काले अोंग्रेज
उस कानून को चलाते है और आज भी इस दे ि में ठीक उसी तरह से
ककसानोों की जमीनें छीनी जाती हैं । कजस तरीके से अोंग्रेजोों के जमाने में
छीनी जाती िीों।

अोंग्रेजोों के जमाने में जमीन कैसे छीनी जाती िी। एक कलेक्टर नाम का
आिीसर अोंग्रेजोों ने बनाया। सन 1860 में एक कानून बनाया अों ग्रेजोों ने
‘इों कडयन कसकिल सकिइसेस एक्ट और इस ‘इों कडयन कसकिल सकिइसेस एक्ट के
नाम पर कलेक्टर नाम की पोस्ट बनिायी और उस कलेक्टर को यह
अकधकार कदया गया कक िो गाूँ ि-गाूँ ि के ककसानोों को मार-पीि कर, उनके
ऊपर अत्याचार करके, रे िे न्यू िसूले, लगान िसू ले गाूँ ि-गाूँ ि में कलेक्टर
क्या करता िा कक जब ककसान लगान नहीों दे पाता िा तो उसकी जमीन
सीज कर लेता िा। उसकी सोंपकत्त सीज कर लेता िा। उसके कलए एक
नोकिस जाता िा ककसान को और उसकी सोंपकत्त जब्त कर ली जाती िी।

9
तो कजस तरह से सोंपकत्त जब्त कर ली जाती िी। ककसान की और उनकी
जमीन छीन ली जाती िी। ठीक उसी तरह से आज भी इस दे ि में होता
है । अब क्या होता है । कलेक्टर कभी नोकिस दे ता है । गाूँ ि के ककसान की
जमीन छीन ली जाती है । िो ककसान को यह अकधकार भी नहीों होता है कक
िह अपनी जमीन के बारे में कहीों कोइइ केस लड सके। कजरह कर सके।
क्योोंकक कानून ऐसा है अोंग्रेजोों के जमाने का बनाया हुआ कक सरकार
इमरजेंसी बताकर ककसी भी गाूँ ि के ककसी भी ककसान की कोइइ भी जमीन
छीन सकती है ।

मान लीजीए सरकार को ककसी भी जमीन पर कारखाना बनिाना है और


गाूँ ि का ककसान िो जमीन दे ना नहीों चाहता तो सरकार जबरदस्ती नोकिस
इश्यु करिाएगी कलेक्टर के माध्यम से तो गाूँ ि ककसान की िो जमीन छीन
ली जाएगी। किर गाूँ ि के ककसान को मजबूरी में कुछ औना-पौना दाम
दे कर जमीन सरकार के नाम कलखिा ली जायेगी। कजस तरह का अत्याचारी
कानून अोंग्रेज चलाते िे। िो ही आज भी चल रहा है और कहन्दु स्तान के
ककसानोों की हजारोों एकड जमीन हर साल छीनी जाती है ।

पहले कहन्दु स्तान में ककसानोों की जमीन छीनी जाती िी अोंग्रेजोों के कलए,
अोंग्रेजी ों कम्पकनयोों के कलए। हर साल हजारोों एकड जमीन गाूँ ि के ककसानो
से छीन-छीन कर परदे िी कम्पकनयोों को बेच दी जाती है और उस जमीन
पर परदे िी कम्पकनयोों के बडे -बडे कारखाने लगाये जाते हैं । कजस जमीन
पर धान पैदा होता िा, गेहूँ पैदा होता िा। अब उस जमीन पर कारखाना
चलता है । सरकार क्या बोलती है । िो कहती है – औधोगीकरण हो रहा
है । इण्डस्टर ीयलाइइ जेिन हो रहा है । िो लोग बोलते हैं कक यह िायदे का
काम हो रहा है जो इों डस्टर ीज बन रही है ।

आप जानते हैं दु कनया में और हमारे दे ि में कोइइ भी ऐसी इों डस्टर ीज नहीों
है । कजसमें सौ रपया लागत के रप में अगर लगाया जाए तो सौ ही रपया
का उत्पादन होगा। हर िैक्टरी में लागत ज्यादा होती है उत्पादन कम
होता है । और भारत सरकार और भारत सरकार के नीकत बनाने िाले लोग
ककस तरह की नीकतयाों बनाते है कक िो इों डस्टर ीज को महत्वपूणइ मानते हैं
और खेती को उससे कम मानते हैं ।

10
मेरी मान्यता यह है कक खेती से बडी इों डस्टर ीज पूरी दू कनया में कोइइ नहीों
है । खेती से बडा उद्योग पू री दू कनया में कोइइ नहीों। आप पूूँछेगें िो कैसे ?
ककसान एक गेहूँ का बीज डालता है और उस एक गेहूँ के बीज डालने के
बाद कम से कम 50-60 गेहूँ के दाने लगते हैं । तो एक गेहूँ का बीज डाला
और उसमें से 50-60 गेहूँ के बीज पैदा हुए। यह बताइइ ए, ऐसा कारखाना
आपने दु कनया में कहीों दे खा है ।

इतना जबरदस्त पूोंजी का कनमाइ ण कजस कारखाने में हो सके ऐसा


कारखाना कहीों आपने दे खा है । मैंने तो कजतने कारखाने दे खे जीिन में ,
िहाूँ सौ रपया डालते हैं तो सत्तर रपये का उत्पादन कमलता है । सौ रपया
डालते हैं तो अस्सी रपये का उत्पादन कमलता है । सौ रपया डालते हैं तो
पचास रपये का उत्पादन कमलता है । माने कजतनी लागत होती है । उससे
50 िक्का, 60 िक्का ही उत्पादन कमलता है । लेककन खेती ऐसा उत्पादन
है कजसमें आप एक रपये का सामान डाकलए सौ रपये का सामान कमलता
है ।

आज भी इस दे ि मे िैसी ही नीकतयाों चलाइइ जा रही हैं जो अोंगेि्रेजोों के


जमाने में चलाइइ जा रही िी। अोंग्रेजोों के जमाने में ककसान अपने अनाजोों
का दाम तय नहीों कर पाता िा। आज आजादी के पचास साल के बाद भी
ककसान अपने अनाज का दाम तय नहीों कर पाता इस दे ि में। कसिइ
ककसान ही एक ऐसा िगइ है जो अपने द्वारा खेत में पैदा ककए गए ककसी भी
सामान का दाम खुद नहीों तय कर पाता।

कजतने भी कारखाने चलते हैं इस दे ि में , कजतने भी उद्योग चलते हैं पूरे
दे ि में हर उद्योग और हर कारखाना चलाने िाला आदमी अपने द्वारा पै दा
की गइइ हर िस्तु का दाम खुद तय करता है । लेककन ककसान ही एक िगइ
है इस दे ि में, कास्तकार ही एक ऐसा िगइ है इस दे ि में जो अपने द्वारा
पैदा ककये गए गेहूँ का दाम तय नहीों कर पाता। अपने द्वारा पैदा ककये गये
बाजरे का दाम तय नहीों कर पाता।

अपने द्वारा पैदा ककये गये धान का दाम तय नहीों कर पाता। अपने द्वारा
पैदा ककये गये मक्के का दाम तय नहीों कर पाता। कुछ भी चीज पैदा करता
है ककसान, उसका दाम िो खुद तय नहीों कर पाता। सरकार तय करती
11
है । कजस तरह से अोंग्रेजोों की सरकार करती िी िो काम आज भी हो रहा
है ।

इसी तरह से अों ग्रेजोों की सरकार ने भारत के ककसानोों पर पाबोंदी लगा


रखी िी कक ककसान एक कजले का माल दू सरे कजले में नहीों ले जाये गा। िैसी
ही पाबोंदी आज भी है । एक प्रदे ि का पैदा ककया हुआ अनाज दू सरे प्रदे ि
में नहीों जाता। उस पर पाबोंदी लाग रखी है सरकार ने। कजस तरह से अोंग्रेजोों
की सरकार ककसानोों के ऊपर लगान िसूलती िी। िै क्स िसूलती िी। अब
उस तरह की चचाइ इस दे ि में किर िुर हो गइइ है ।

आजादी के पचास साल के बाद खेती पर तो लगान कुछ कम कर कदए


सरकार ने। लेककन अप्रत्यक्ष तरीके से ककसानोों की जे ब कािना िु र कर
कदया सरकार ने। और ककसानो की जेब कैसे कािती है सरकार। अगर
ककसान कपास की खेती करता है और एक ककिन्टल कपास पैदा करने
में उसका दो हजार रपया खचइ होता है तो एक ककिन्टल कपास जब बेचने
जाएगा ककसान तो सरकार कहे गी 1800 रपये दाम ले लो। 1900 रपये
दाम ले लो।

बहुत अकधक आप सरकार के साि झगडा करें गे तो 2000 रपये ककिन्टल


का दाम दे ने को तैयार हो जायेगी। माने कजस कीमत पर आपकी कपास
की िसल लग रही है िो ही कीमत आपको कमलेगी। मुनािा कुछ नहीों
होने दे गी आपको। तो आपकी जेब ही काि रहे हैं ना या तो िै क्स लगाकर
आपकी जेब कािे या तो लगान िसुल कर आपकी जेब कािे या किर
आपके ऊपर पाबोंदी लगाकर आपके दाम तय करने की नीकत सरकार
अपने हाि में ले ले और आपको मुनािा नहीों होने दे । तो यह एक तरह
का िै क्स ही है ।

ककसानोों के कलए और दू सरा तरीका क्या अपनाया हुआ है सरकार ने कक


ककसान जो कुछ पैदा करता है और जब बाजार में बेचने जाता है तो उसकी
कीमत नहीों कमलती, उसका दाम उसको नहीों कमलता और उसके किपरीत
ककसान जो कुछ बाजार से खरीदता है उसकी कीमतें लगातार बढे़ती चली
जाती हैं । अपनी खेती में डालने के कलए ििीलायजर लेता है खाद लेता है ,
अपनी खेती में डालने के कलए कीिनािक लेता है ।
12
अपनी खेती में डालने के कलए बीज लेता है । अपनी खेती में डालने के कलए
और कोइइ चीज इस्तेमाल करनी हो ककसान को जो बाजार से खरीदनी
पडेे़ । तो उन सबके दाम तो बढे़ते चले जाते हैं । सौ प्रकतित दाम बढ
जायेगा। दो सौ प्रकतित दाम बढे़ जायेगा।

तीन सौ प्रकतित दाम बढे़ जायेगा। चार सौ प्रकतित दाम बढ जायेगा।


पाूँ च सौ प्रकतित दाम बढे गा। लेककन जो ककसान बाजार में बेचने के कलए
जायेगा कोइइ चीज तो उसका दाम नहीों बढे़ता। तो हमेिा खेती घािे का
सौदा रहती है । खेती में जो लगाते हैं िो कनकलता नहीों और खेती में कजतना
लगाते है जब कनकलता नहीों है तो ककसान की खेती घािे में आ जाती है
और जब घािे की खेती करना ककसान िुर करता है तो कजइदार होता है ।
कइइ -कइइ से कजइ लेता है या साहकार से या बैंको से ले और कजइदार हो
जाता है । तो उसकी हालत और भी दयनीय हो जाती है ।

इस दे ि में ऐसे कनयम और ऐसी व्यिथिाएों चलाइइ गयी हैं । कजाइ लेकर
जब ककसान खेती करता है तो उसके क्या नतीजे कनकलते है । कपछले साल
आों ध्रप्रदे ि के 100 ककसानोों ने आत्महत्या की िी िो सबसे बडा उदाहरण
है इस दे ि के सामने। 100 ककसानोों ने बैंक से कजाइ लेकर कपास की
िसल लगायी िी आों ध्रप्रदे ि में। उस कपास की िसल पर कीडा लग गया
और कपास की िसल पर जब कीडा लग गया तो कीडे को मारने के कलए
ककसान दिा लेके आये और दिा अोंग्रेजी कोंपनी की िी। परदे िी कोंपनी
की िी। उस दिा को उन्ोोंने खेत में कछडका। उस दिा पर कजतने कनदे ि
कलखे हुए िे सब अों ग्रेजी में िे। ककसान अोंग्रेजी पढना जानते नहीों तो दिा
उन्ोोंने कछडक दी खेत में। तो जो कपास की िसल बची हुइइ िी िो भी
पूरी तरह से चौपि हो गइइ । तो ककसानोों के पास कुछ नहीों बचा।

िो बैंकोों से कजे के रप में कलया िा उसे िापस कर सके। बैंक िाले आए


अपना कजाइ माों गने के कलए। ककसानोों के पास कुछ नहीों िा दे ने के कलए।
तो ककसानोों ने क्या ककया जो कपास की िसल पर कीडा मारने की दिा
लेकर आये िे िहीों दिा उन्ोोंने खुद पी और सब के सब मर गए। ऐसे
ककसान आत्महत्या करते है ।

13
कहन्दु स्तान में पैंतालीस करोड छोिे ककसान हैं कजनके पास दो बीघा की
जमीन है । तीन बीघा की जमीन है । पाच बीघा की जमीन है । एै से पैंतालीस
करोड ककसान हैं । जरा उनकी आप कल्पना तो कररए कक पैतालीस करोड
ककसान आज की पररस्थिकतयोों में ककस तरह से खेती करते होगे और ककस
तरह से कजइ दार बनते होोंगे। और इस दे ि में कभी-कभी क्या होता है ।

गाूँ ि का ककसान कोइइ कजइ ले लेता है । कजइ चूकाने की स्थिकत में नहीों होता
और कभी-कभी िो कजइ माि कर कदया जाए तो पूरे दे ि में हों गामा हो
जाता है । और हर साल हजारोों करोडोों रपये का माि ककया जाता है पैसा
बडे -बडे उद्योगो पर, बडी-बडी इों डस्टर ीज पर, इों डस्टर ीज बैठ जाती हैं ,
उद्योग बैठे जाते हैं और जब ककसान के कजे की मािी की बात आती है
तो हों गामा करते हैं ।

पूरे दे ि में ऐसी व्यिथिा आज भी चल रही है । इस दे ि में ककसानोों की


जमीनें छीनी जा रही हैं । उनकी पैदा की गइइ िसल के दाम तय करने का
अकधकार उनको नहीों कमल पाया है । जो कुछ खेत में लगाने के कलए बाजार
से खरीदते है । उन सबके दाम बढते चले जा रहे हैं । कबजली का दाम बढे़ा
कदया। पानी का दाम बढे़ा कदया। खाद का दाम बढे़ा कदया।

जो सस्िडी कमल सकती िी िोडी बहुत ककसानोों को गैि करार के बाद


िो भी पूरी तरह से खत्म होती चली जा रही है । इस तरह से लगातार बबाइ दी
के रास्ते पर ही है । कजस तरह से बबाइ दी अों ग्रेजोों के जमाने में ककसानोों की
आयी िी। िो ही बबाइ दी आजादी के पचास साल के बाद भी है और इन
बबाइ कदयोों को बढाने के कलए कुछ नये -नये कानून बनाए जा रहे है । जैसे
अोंग्रेजोों की सरकार नये -नये कानून बनाती िी ककसानोों को बबाइ द करने के
कलए। िैसे ही अब नये -नये कानून किर ककसानोों को बबाइ द कराने के कलए
बनाये जा रहे हैं ।

14
भारत मे खेती और चिसानों िी बबागदी िे
चवचभन्न िारण-
उसके पीछे एक गोंभीर कारण है । अोंग्रेजोों का भारत में आना और अोंग्रेजोों
द्वारा भारत में अपनी सरकार का चलाना। अों ग्रेजोों की सरकार जब भारत
में चलना िुर हुइइ है तो अों ग्रेजोों की सरकार ने बहुत ही व्यिस्थित तरीके
से भारतीय समाज को तोडने का काम ककया।

मैंने आपको बताया िा कक अोंग्रेजोों की सरकार ने भारत को व्यिस्थित


तरीके से तोडने का जो काम ककया उसके कलए उन्ोोंने जो नीकतयाों बनायी
िी उसमें सबसे पहली नीकत यह िी कक भारतीय समाज को आकिइक रप
से पूरी तरह से तोड कदया जाए और जब भारतीय समाज आकिइक रप से
बबाइ द हो जाएगा तो किर भारतीय समाज को राजनैकतक रप से तोड कदया
जाए और जब भारतीय समाज राजनैकतक रप से िू ि जायेगा। तो किर
भारतीय समाज को सोंस्कृकतक और सामाकजक रप से तोड कदया जाए।

अब अोंग्रेजोों ने अपनी पहली नीकत का पालन करते हुए भारतीय समाज को


आकिइक रप से जो तोडा। उसमें कल के व्याख्यान में मैंने आपको किस्तार
से बताया िा कक उद्योगो को ककस तरह से तोडा गया। व्यापार को ककस
तरह से तोडा गया और आज के व्याख्यान में मैं बताऊूँगा कक कृकष को
ककस तरह से तोडा गया। ककसानोों को कैसे बबाइ द ककया गया। क्योोंकक
कृकष हमारे समाज का मुख्य केन्द्र िी और कृकष हमारे दे ि के व्यिसाय
का मुख्य आधार होती िी। तो अोंग्रेजोों ने भारतीय कृकष को बबाइ द करने के
कलए तीन-चार तरह के कानून बनाये।

सबसे पहला कानून जो अों ग्रेजोों ने भारत की कृकष को बबाइ द करने के कलए
बनाया िो ककसानोों के ऊपर लगान लगाने का कानून िा। ककसानोों के
ऊपर िै क्स लगाने का कानून िा। 1760 के पहले इस दे ि में एक बडे
इलाके में ककसानोों के ऊपर कभी-भी लगान नहीों कलया गया। अोंग्रेजोों के
पहले इस दे ि में कुछ ही राज्योों को छोड कदया जाए तो बाकी ककसी भी
राज्य में ककसानोों पर लगान नहीों कलया जाता िा। जैसे मालाबार का एक

15
बहुत बडा इलाका होता िा। कजसको आज हम दकक्षण भारत के रप में
जानते है ।

उस मालाबार के इलाके में 1760 के पहले कभी-भी ककसानोों पर लगान


नहीों कलया गया। मैसूर राज्य के इलाके में 1760 के पहले ककसानोों पर
कभी लगान नहीों लगाया गया। इसी तरह से भारत के और दू सरे इलाके
भी िे। कजन इलाकोों में अोंग्रेजोों के आने के पहले तक कभी-भी लगान की
िसूली की बात ही नहीों हुइइ ।

लेककन अोंग्रेजोों की सरकार ने क्या ककया भारत में जब उनका साम्राज्य


थिाकपत हुआ और उनकी सरकार चलना िुर हुइइ उसी समय उन्ोोंने
भारत के ककसानोों पर लगान लगाना िु र ककया और आप कल्पना कर
सकते हैं के ककतना लगान िसुलती िी अोंग्रेजोों की सरकार, ककतना िै क्स
िसूलती िी भारत के ककसानोों से। भारत के ककसानोों पर अों ग्रेजोों की
सरकार ने ककसानोों के कुल उत्पादन का पचास प्रकतित तक िै क्स लगा
कदया िा।

मैंने जैसे कल आपको बताया िा कक भारत के उद्योगो को बबाइ द करने के


कलए अोंग्रेजोों ने भारत के उद्योगो पर 10-12 तरह के िै क्स लगाए िे। इसी
तरह से भारत के ककसानोों को बबाइ द करने के कलए अों ग्रेजोों ने भारत के
ककसानोों पर िै क्स लगाए िे और जो सबसे पहला िै क्स भारत के ककसानोों
पर लगाया गया।

कजसको लगान के रप में आप जानते हैं िो पचास प्रकतित होता िा। माने
ककसान कजतना कुल उत्पादन करता िा अपनी खेती में , उसका पचास
प्रकतित उत्पादन अोंग्रेजोों की सरकार छीन लेती िी। जो ककसान अोंग्रेजोों
की सरकार को अपने उत्पादन का पचास प्रकतित कहस्सा नहीों दे ता िा।
उस ककसान की हत्या करिा दे ना, उस ककसान की झोपडी जला दे ना। उस
ककसान की सोंपकत्त को नीलाम करिा दे ना, उस ककसान के गाय, बैल खोल
के ले जाना, उस ककसान को कोडे से मारना, उस ककसान को गाूँ ि की
जाकत से कनकलिा दे ना।

16
यह सब अोंग्रेजोों की सरकार उनको दों ड के स्वरप में कदया करती िी। तो
ककसान को मजबूरी में अपने उत्पादन का पचास प्रकतित कहस्सा अों ग्रेजोों
की सरकार को दे ना पडता िा। इस तरह के अत्याचार अोंग्रेजोों की सरकार
ककसानोों पर करती िी।

तो, एक तो अोंग्रेजोों की सरकार ने भारत के ककसानोों को जो बबाइ द ककया


उसमें सबसे पहला जो कारण िा िह यह कक उन्ोोंने भारत के ककसानोों
पर िै क्स लगा कदया। लगान िसुलना िुर कर कदया। 1760 से लेकर
लगातार 1890 तक, 1900 तक इस तरह का लगान ककसानोों से िसूला
जाता िा। तो आप सोच सकते हैं कक लगातार 100-150 िषों तक अगर
ककसानोों से पचास प्रकतित उत्पादन छीन कलया जाए हर साल उनकी खेती
का, तो ककसान तो बबाइ द होते ही चले जायेंगे।

दू सरा क्या काम ककया अोंग्रेजोों की सरकार ने – ककसानोों को बबाइ द करने


के कलए कक ककसानोों की जो जमीनें होती िी। खेत होते िे। उनको बेचने
का एक कसलकसला िुर करिा कदया इस दे ि में। आप जानते हैं कक अोंग्रेजोों
के आने के पहले तक भारत में जमीन बेची नहीों जाती िी। खेत इस दे ि
में कभी बेचने की िस्तु नहीों रहा। ककसान की जमीन – उसको अपनी माूँ
की तरह से मानता है ककसान। और ककसान इस दे ि में कहते रहे हैं कक
कजस तरह से माूँ का सौदा नहीों हो सकता। उसी तरह से जमीन कभी
खरीदी-बेची नहीों जाती और भारत का ककसान जो खेती करता रहा है ।
उस खेती को करने के पीछे उसके मन में जो धारणा रही है । िो यह कक
यह खेती तो इइ श्वर की दी हुइइ है । यह जमीन तो इइ श्वर की दी हुइइ है । इइ श्वर
की बनाइइ हुइइ यह जमीन मुझको कमली है । इसकलए इस जमीन को बेचने
का अकधकार मुझको नहीों है । तो ककसान कभी जमीन को बेचता नहीों िा
इस दे ि में। इस दे ि में जमीन नहीों बेची जाती िी।

कभी-भी इस दे ि में दू ध नहीों बेचा जाता िा। कभी-भी इस दे ि में दु ध से


उत्पन्न होने िाली तमाम दू सरी चीजें नहीों बेची जाती िी। उसको पाप माना
जाता िा भारतीय समाज में भारतीय सभ्यता में। तो अों ग्रेजोों ने क्या ककया
कक कानून बनाया एक ऐसा कजससे जमीनोों को खरीदा और बेचा जा सके।
और अोंग्रेजोों ने पहली बार इस दे ि में जमीन को खरीदने और बेचने की

17
परम्परा िुर करिा दी और बाद में जब जमीने कबकने लगीों तो अों ग्रेजोों की
सरकार ने ककसानोों से जमीनें जबरदस्ती खरीदना िुर कर कदया।

हमारे दे ि में अोंग्रेजोों की सरकार ने भारत के ककसानोों की जमीन छीनने


के कलए जो सबसे पहला कानून बनाया उस कानून का नाम है ‘लेण्ड
एक्यूजीिनस एक्ट। उसको अगर कहन्दी में कहा जाए तो ‘जमीन हडपने
का कानून जो आज भी चलता है इस दे ि में। यह कानू न अोंग्रेजोों ने बनाया
िा। करीब 150-200 साल पहले। यह जो लेण्ड एक्यूजीिनस एक्ट िा।
िो अोंग्रेजोों की सरकार ने क्यूूँ बनाया ताकक भारत के ककसानोों से जमीन
छीन ली जाए और भारत के ककसानोों को बबाइ द कर कदया जाए।

अोंग्रेजोों की एक पद्धकत िी काम करने की। िो कजसको भी बबाइ द करते िे


उसके कलए पहले कानून बनाते िे। जैसे मान लीकजए अगर अों ग्रेजोों को
आपकी जेब कािनी है तो िो जेब नहीों कािें गे। पहले जेब कािने का कानून
बनायेंगे और उस कानून के बाद जब आपकी जेब किना िुर हो जाएगी
तो अोंग्रेज कहे गें कक हम तो कानून का पालन कर रहे है । अब आपकी जेब
किती है । तो कि जाये।

माने – सीधे जेब नहीों कािें गे। लेककन जेब कािने का कानून बनायेंगे और
किर कहे गें हम कानून का पालन कर रहे हैं । इसमें आपकी जेब किती है
तो कि जाए। तो उन्ोोंने ककसानोों को बबाइ द करने के कलए सीधे कुछ नहीों
कहा। उन्ोोंने यह नहीों कहा कक हम ककसानो को बबाइ द करें गे बकलक
ककसानोों को बबाइ द करने के कलए कानून बना कदया। किर उन कानूनोों का
पालन करिाना िुर ककया उन्ोोंने और ककसान उसमें बबाइ द होना िुर हो
गए।

अोंग्रेजोों के बडे -बडे बेइइमान और भ्रष्ट अकधकारी इस दे ि में हुए। एक


अोंग्रेज आिीसर िा। कजसका नाम िा डलहौजी। बहुत ही बेइइमान और
भ्रष्टाचारी आिीसर िा उस जमाने का। डलहौजी क्या करता िा कक कजस
गाूँ ि में जाता िा। उस गाूँ ि के ककसानोों की जमीनें छीनता िा। गाूँ ि -गाूँ ि
के ककसानोों की जमीनें छीन-छीन कर उन जमीनोों को ‘लेण्ड एक्यूजीिन
एक्ट के नाम पर अोंग्रेजोों की सम्पकत्त के रप में घोकषत ककया जाता िा।

18
डलहौजी ने ककस तरह से इस दे ि के ककसानोों की जमीनें कछनी हैं और
ककस तरह से िो अोंगेि्रजी सम्पकत्त बनायी गयी है !

इस तरह से भारत के ककसानोों को अोंग्रेजोों ने बबाइ द ककया। जमीन


हडपकर और जमीन हडपने का कानून बनाकर। एक तीसरा तरीका और
अपनाया भारत के ककसानोों को अोंग्रेजोों ने बबाइ द करने के कलए। अों ग्रेजोों ने
भारत के समाज का सिे कराया िा। सिेक्षण कराया िा। और भारतीय
समाज का सिेक्षण कराके अोंग्रेजोों की सरकार ने इस बात का अोंदाजा
लगिाया कक यहाूँ की खेती मूलत: ककस आधार पर किकी हुइइ है । अगर
भारत की आकिइक स्थिकत को पूरी तरह से चौपि करना है , बबाइ द करना
है । तो भारत की खेती को बबाइ द करना ही पडे गा। भारत के उद्योगो को
भी बबाइ द करना पडे गा।

तो भारत की खेती को बबाइ द करने के कलए अों ग्रेजोों ने पहले सिे कराया
कक भारत की खेती को कैसे बबाइ द ककया जाए। अोंग्रेजोों ने जब सिेक्षण
करा कलया तो उनको एक बात यह पता चली कक भारत का ककसान जो
खेती करता है । उसका केन्द्र कबोंदू है गाय। और उसका केन्द्र कबोंदु है बैल।
बैल गाय के बछडेे़ होते है । बछडे बैल बनते है । बैलोों से खेत जोता जाता
है । किर गाय दू ध दे ती है ।

ककसान दू ध पीता है । उसमें से िककत आती है तो खेत में मेहनत करता


है । गाय गोबर दे ती है । उस गोबर का खाद बनाता है । खाद को खेत में
डालता है और खेत की िककत बढाता है । गाय मूत्र दे ती है । मूत्र को ककसान
कीिनािक के रप में प्रयोग में लाता है । तो गाय जो है िो भारतीय क्रकष
व्यिथिा के केन्द्र में है । यह अोंग्रेजोों की सरकार को पता चल गया सिेक्षण
करा के। तो अों ग्रेजोों ने एक कानून और बना कदया कक भारत में गाय का
कत्ल करिाओ।

तो 1760 में इस दे ि में अों ग्रेजोों के आदे ि पर गाय का कत्ल होना िुर हो
गया। कुछ लोगोों को ऐसा लगता है और िो लोग कहते भी हैं कक राजीि
भाइइ अोंग्रेजोों से पहले भी तो जो मुसलमान राजा िे। िो भी तो गाय का कत्ल
करिाते िे। मैं आपको जानकारी दे ना चाहता हूँ कक एक-दो मुसलमान

19
राजाओ को छोडकर, भारत में ककसी भी राजा ने गाय का कत्ल नहीों
करिाया।

मुसलमानोों के राजाओों के जमाने में तो भारत में ऐसा कानून रहा है कक


जो गाय का कत्ल करे उसको िाूँ सी की सजा दी जाए। यह अों ग्रेज िे
कजन्ोने गाय का कत्ल करिाने के कलए व्यिस्थित रप से एक कानून बनिा
कदया और सन 1760 से भारत में गाय का कत्ल करिाना अोंग्रेजोों ने िुर
ककया।

गाय का कत्ल करिाते तो अोंग्रेजोों को दो िायदे होते िे । एक तो भारत के


ककसान का जो सबसे बडा पिुधन िा गाय। िो खत्म होता िा। गाय मरती
िी तो दू ध कम होता िा। गाय मरती िी तो गोबर कम होता िा। गोबर कम
होता िा तो खाद कम होती िी। गाय मरती िी तो मूत्र नहीों कमलता िा।
ककसानोों के कलए जो ककिनािक दिायें बनती िीों उसमें कमी आती िी।
गाय का दू ध नहीों कमलता िा तो ककसानोों की िककत कम होती िी। तो
लगातार गाय के कत्ल होते चले जाने के कारण भारत की खेती का भी
नाि होना िुर हो गया और अोंग्रेजोों ने बहुत ही व्यिस्थित तरीके से इस
दे ि में कत्ल कारखाने खुलिा कदए। अों ग्रेजोों की सरकार ने पूरे दे ि में
लगभग 300 से ज्यादा कत्ल कारखाने खुलिाये। कजनमें गाय और गौिोंि
का कत्ल ककया जाता िा। हजारोों की सोंख्या में लाखोों की सोंख्या में गाय
और गौिोंि का कत्ल होता िा। गाय का माों स यहाूँ से भेज कदया जाता िा,
इों ग्लैंड में जाता िा। अोंग्रेजोों की सरकार के जो कसपाही होते िे िो जो गाय
का माों स खाते िे।

आप जानते हैं युरोप के दे ि की जो प्रजा है यह जो गोरी प्रजा है । यह गाय


का माों स सबसे ज्यादा खाती है । कजतनी गोरी प्रजा है पूरी दु कनया में इसको
गाय का माों स सबसे अच्छा लगता है । तो गाय कत्ल होता िा भारत में।
उसका माों स इों ग्लैंड जाता िा। और गाय का कत्ल कर के अोंग्रेजोों की िौज
जो भारत में रहती िी। उसको माों स बेचा जाता िा। उसको माों स कदया
जाता िा।

तो भारत के ककसानोों को बबाइ द करने के कलए जो तीसरा काम अों ग्रेजोों ने


ककया िो गाय के कत्ल करिाने के बाद में अोंग्रेजोों को ऐसा लगा कक कसिइ
20
गाय के कत्ल करिाने से बात नहीों बनेगी। गाय जहाूँ से पैदा होती है । उस
नोंदी (यानी बैल) का कत्ल पहले करो, तो अोंग्रेजोों ने पहले नोंदी का कत्ल
करिाना िुर ककया और बहुत ही व्यिस्थित पैमाने पर गाय और नोंदी का
कत्ल अोंग्रेजोों ने करिाया।

हम लोगोों ने जो दस्तािेज इकठठे ककये हैं उनसे पता चलता है कक 1760


से लेकर 1947 के साल तक अोंग्रेजोों ने करीब 48 करोड से ज्यादा गाय
और बैल का कत्ल करिाया। और यह जो 48 करोड गाय और नोंकदयो के
कत्ल करिा कदये। किर उसके बाद अोंग्रेजोों ने कहन्दु स्तान के ककसानोों का
सत्यानाि करने के कलए एक चौिा काम ककया और चौिा काम उन्ोोंने
क्या ककया कक इस दे ि के ककसानोों की जो क्रय िककत िी। उसको कम
करिाओ – माने ककसान जो खेती करता है । खेती के साि-साि कुछ और
भी उद्योग कर सकता है । पिुपालन का काम कर सकता है । दू सरे कइइ
काम कर सकता है और उससे जो उसकी क्रय िककत बढे़ती है , उसकी
समृ्दकह बढे़ती है , उसकी सोंपकतत बढे़ती है ।

उसको कम करिाओ। तो अोंग्रेजोों ने कृकष और पिुपालन दोनोों को अलग-


अलग करिा कदया। पहले खेती के साि पिुपालन कबलकुल जुडा हुआ
िा। लेककन किर अोंग्रेजोों ने नीकत ऐसी बनाइइ कक कृकष अलग हो गइइ और
पिुपालन कबलकुल एक अलग तरह के बात हो गइइ । अोंग्रेजो ने किर
भारतीय समाज में एक-एक करके उन जाकतयोों पर अत्याचार करने िुर
ककये जो जाकतयाों सबसे ज्यादा पिु पालन करती िी। हमारे समाज में कजन
जाकतयोों को हम कपछडी जाकतयाों कहते हैं ।

िास्ति में यह भारत के समाज की रीड की हडडी रही है । यहीों जाकतयाों


रही है कजनके पास सबसे ज्यादा हुनर रहा है । सबसे ज्यादा कौिल रहा
है । यही जाकतयाों रही हैं कजनके पास सबसे बडी िे क्नोलाजी रही है । और
यहीों जाकतयाों रही है कजनके पास सबसे ज्यादा हुनर और कौिल इस बात
का रहा है कक पिुओों की समृ्दकह कैसे करायी जाए और पिुओों की
सोंख्या कैसे बढे़ायी जाए।

तो अोंग्रेजोों ने हमारे दे ि की ऐसी जाकतयोों पर अत्याचार करने िुर ककये


जो जाकतयाों हमारे दे ि में पिुपालन के काम में लगी हुइइ िी और धीरे -धीरे
21
पशुओ ं िी संख्या – एक तरि तो गाय का कत्ल करिा के कम कर दी।
दू सरी तरि हमारे दे ि में जो पिुपालन करने िाली जाकतयाों िीों उनको
अोंग्रेजोों ने इतना बुरी तरह से प्रताकडत ककया, अत्याचार ककये उन सबके
ऊपर कानून बनाकर कक धीरे -धीरे पिु पालन का काम िो लोग छोडते
चले गए और किथिाकपत होते चले गए।

इस तरह से अोंग्रेजोों ने भारत के ककसानोों को व्यिस्थित रप से बबाइ द करने


का काम िुर ककया। और यह बबाइ दी ककतनी आयी। 1760 से लेकर 1850
के साल तक या 1860 के साल तक कहन्दु स्तान की खेती बुरी तरह से चौपि
हो गयी। ककसान बुरी तरह से बबाइ द हो गए और मात्र सौ साल के अोंदर में
कहन्दु स्तान के ककसानोों की गरीबी कदखाइइ दे ने लगी।

दररद्र इस दे ि में कदखाइइ दे ने लगा और कजस तरह से ककसानोों की बबाइ दी


की अों ग्रेजोों ने , उसी बबाइ दी के कारण किर इस दे ि में भुखमरी आयी और
अकाल पडना िुर हुए। हमारे दे ि में अोंग्रेजोों के जमाने में कजतने अकाल
पडेे़ हैं उनमें से एक या दो अकाल को छोड कदया जाए तो बाकी सब
अकाल अोंग्रेजोों की नीकतयो के कारण पडे । मौसम के कारण नहीों पडेे़ ।
हम लोगोों को कइइ बार यह गलत िहमी हो जाती है कक बाररि नहीों हुइइ
होगी।

सुखा पड गया होगा इसकलए अकाल पड गया होगा। हम लोगोों को कइइ


बार यह गलत िहमी हो जाती है कक मौसम का दु ष्चक्र होगा। कुछ मौसम
में पररितइन आया होगा भयों कर तरीके से। इसकलए भारत में अकाल पडेे़
होगे। भारत में अकाल मौसम की मार से नहीों पडेे़ । भारत में कजतने भी
अकाल पडे िो अोंग्रेजोों की गलत नीकतयोों के कारण पडे ।

मैंने बताया खेती को बबाइ द करना। ककसानोों को बबाइ द करना। ककसानोों से


लगान िसू लना। पचास प्रकतित ककसानोों से उत्पादन िै क्स के रप में ले
लेना। ककसान जो पिुपालन कर रहे है । उन पिु पालन करने िाले ककसानोों
पर अत्याचार करना। ककसान जो अपने गाूँ ि के बािडी और कुओों की
व्यिथिा बना सकते हैं । उन सब व्यिथिाओों को ककसानोों के हाि से छीन
लेना और अोंग्रेजोों की सरकार के हाि में चला जाना।

22
जो जोंगल ककसानोों की सोंपकत्त माने जाते िे , जो जोंगल गाूँ ि की
सोंपकत्त माने जाते िे और कजन जों गलोों से ककसानोों को अपनी खेती करने के
कलए मदद में आने िाली तमाम तरह की चीजें कमलती िी। उन जोंगलोों का
अोंग्रेजोों की सरकार ने सत्यानाि करिाया।

एक और तरीका अोंग्रेजोों ने अपनाया इस दे ि के ककसानोों को – खेती को


बबाइ द करने के कलए। 1865 के साल में अोंग्रेजोों ने एक कानून बनाया इस
दे ि में। उस कानून का नाम िा ‘इों कनडयन िारे स्ट एक्ट और यह कानून
लागू हुआ 1872 में और आज भी यह कानून सारे दे ि में चलता है ।
इों कनडयन िारे स्ट एक्ट का कानून अोंग्रेजोों की सरकार ने इसकलए बनाया
िा कक इस कानून के बनने से पहले जो जोंगल होते िे िो गाूँ ि की सोंपकत्त
माने जाते िे। तो गाूँ ि के ककसानोों की सामुदाकयक कहस्सेदारी जोंगलो पर
होती िी।

उन जोंगलोों को अोंग्रेजी सरकार की सोंपकत्त घोकषत करिा कदया। कानून


बना के और उसी कानून का नाम है ‘इों कनडयन िारे स्ट अक्ट। किर अोंग्रेजोों
ने उस कानून को ककतनी सख्ती से लागू करिाया कक अोंग्रेजोों की सरकार
के जो ठे केदार होते िे िो जोंगल कििाते िे। जोंगल से लकके़डया लेके जाते
िे। और भारत का कोइइ भी ककसान अगर जोंगल में जाकर लकडी काि
लाए तो उसको सजा दी जाती िी। तो भारत का ककसान, भारत का आदमी
जोंगल से लकडी काि नहीों सकता। अों ग्रेजोों ने कानून बना कदया और अोंग्रेजोों
की सरकार जो िी उनके जो ठे केदार होते िे िो जोंगल से लकडी कििाते
िे। तो जोंगल के जोंगल साि करिाना िुर ककया अों ग्रेजोों की सरकार ने
इस कानून के आधार पर और जोंगल खत्म होते गए तो किर ककसानोों का
क्या नुकसान हुआ। आप जानते है जोंगल खत्म होते चले जाने के कारण
जो कमट्टी का जमाि होता है पेडोों के आस-पास िो कमट्टी का जमाि छूिने
लगता है । अब कमट्टी का जमाि जब छु िने लगता है तो िो कमट्टी बहने
लगती है । और कमट्टी बहने लगती है तो नकदयोों में जाती है । नालोों में जाती
है । लहरो में चली जाती है । और कमट्टी बह-बहकर जब नकदयोों में बढे़ती
चली जाती है तो नकदयोों का स्तर ऊूँचा होता चला जाता है । नकदयोों की
गहराइइ कम होती चली जाती है । लगातार कमट्टी बह-बहकर अगर पानी के
साि आयेगी। पहले जोंगल होते िे। पेड होते िे। तो पेड कमट्टी को बाों ध के
23
रखता तो बारीि के समय कमट्टी बह नहीों सकती जोंगल से। लेककन पेड
काि कलए जायें गे। तो पेडोों के आस-पास जो जमा की गयी जो कमट्टी है । िो
बहना िुर हो जायेगी और िो कमट्टी पानी के साि बहकर नदी में जायेगी।
और नकदयोों में जायेगी तो नकदयो का जो स्तर है । नकदयोों की गहराइइ है िो
कम होती चली जाएगी।

नकदयोों में कमट्टी बढे़ती चली जाएगी तो पानी कम आये गा नकदयोों में। और
पानी कम आयेगा तो बाढ आयेगी और बाढ आये गी तो ककसानोों की िसल
चौपि हो जायेगी। अोंग्रेजोों ने इस तरह से कानून बना कदया ‘इों कनडयन
िारे स्ट एक्ट का और किर उसका सत्यानाि ककसानोों को झेलना पडा।
एक तो जोंगलोों से कमलने िाली सोंपकत्त ककसानोों के कलए बोंद हो गइइ । दू सरा
जोंगल जो ककसानोों की सुरक्षा व्यिथिा कर सकते िे िो जोंगल किर धीरे -
धीरे खत्म होते चले गए।

एक काम और ककया अों ग्रेजोों ने , उनकी सरकार ने कक ककसान जो कुछ


भी अनाज पैदा करता िा अपने खेत में उसका मूल्य अोंग्रेजोों की सरकार
तय करती िी। माने पैदा करता िा ककसान और मूल्य तय करती िी अोंग्रेजोों
की सरकार। तो बडी मोंडीया होती िी, बडे हाि लगते िे , बडी पेठ लगती
िी, कजसमें ककसान अपना अनाज बेचने के कलए इकठठे होते िे तो अोंग्रेजोों
का बडा आिीसर जाता िा !

और उस मोंडी में जाकर अनाज का दाम तय कर आता िा। यह अनाज


इस दाम पर कबकेगा। यह अनाज इस दाम पर कबकेगा। माने मेहनत
ककसान करता िा और अनाज का दाम अोंग्रेज तय करते िे और
जानबुझकर अोंग्रेजोों की सरकार ककसानोों की मेहनत से पैदा ककए गये
अनाज का दाम इस तरीके से तय करती िीों कक ककसानोों को ज्यादा कुछ
कमलने ना पाए। उनको लगातार नुकसान होता चला जाये। उनको लगातार
घािा होता चला जाये। इस तरह का कानून अोंग्रेजोों ने बना रखा िा इस
दे ि में।

बाद में अोंग्रेजोों ने क्या ककया कक ककसान अपने अनाज को एक गाूँ ि से


लेकर दू सरे गाूँ ि में जाये बेचने के कलए तो उसपर भी बोंदी लगा दी। एक
गाूँ ि का ककसान अपने अनाज को लेकर दू सरी जगह जाकर बेच नहीों
24
सकता। एक कजले का ककसान अपने अनाज को लेकर दू सरे कजले में
जाकर बेच नहीों सकता। इस तरह की सख्त पाों बदी अोंग्रेजोों ने , उसकी
सरकार ने लगा दी और इस तरह से ककसानोों को कबलकुल घेर के रख
कदया अोंग्रेजोों की सरकार ने कानून बना-बनाकर, और यह हर तरह का
कानून बनता िा और जो ककसान उनका पालन नहीों करते िे तो उनको
िाूँ सी दी जाती िी। उनको कोडे लगाये जाते िे।

कइइ बार अोंग्रेजोों की सरकार ककसानोों को बबाइ द करने के कलए कुछ इस


तरह के भी काम करती िी। जैसे जबरदस्ती ककसानोों से कुछ खास तरह
की िसल पैदा करिायी जाती िी। आप जानते है कबहार के ककसानोों को
अोंग्रेज जबरदस्ती नील की खेती करिाते िे। कजस जमीन पर सबसे ज्यादा
धान पैदा हो सकता है कबहार में और होता िा। उस जमीन पर अोंग्रेजोों की
सरकार जबरदस्ती नील की खेती करिाती िी और ककसान जब नील की
खेती करने से मना करते िे तो उनके ऊपर अत्याचार ककया जाता िा।

अोंग्रेजोों की सरकार को क्या रस िा नील की खेती करिाने में। अों ग्रेजोों को


नील की जररत िी। युरोप में नील बहुत कबकता िा। अोंग्रेजोों के अपने
बाजार में नील बहुत कबकता िा। और दू सरी मुकिकल यह िी कक नील की
खेती करने से खेती बहुत बबाइ द होती िी। तो अों ग्रेजोों को नील चाकहए युरोप
के बाजारोों में बेचने के कलए और उस नील को पैदा करने के कलए भारत
के ककसान को मजबूर करते िे।

गाों धीजी ने जो सबसे पहला सत्याग्रह ककया िा अपने चोंपारण्य के प्रिास


में, िो सत्याग्रह इसी सिाल को लेकर िा कक अोंग्रेजोों की सरकार जबरदस्ती
ककसानोों से नील की खेती करिाती िी और गाों धीजी कहा करते िे कक यह
सबसे बडी कहों सा है । ककसानोों की मजी के स्खलाि जबरदस्ती उनसे ककसी
िसल का पै दा करिाया जाना गाों धीजी कहा करते िे कक कहों सा है ।

तो इसकलए चोंपारन का सत्याग्रह करना पडा िा महात्मा गाों धी को। ऐसे


ही अोंग्रेजोों की सरकार ने मालिा के इलाके में ककसानोों को मारकर पीिकर
जबरदस्ती उनसे अिीम की खेती करिाना िुर ककया। यह जो आज
हमारे दे ि में बहुत बदनाम है मालिा का क्षेत्र। और हम लोग अकसर यह
कहा करते है कक मालिा के ककसान सबसे ज्यादा अिीम पै दा करते हैं ।
25
यह जो अिीम पै दा करिाने का ककस्सा है यह अोंग्रेजोों का िुर करिाया
हुआ ककस्सा है । हमारे दे ि में अोंग्रेजोों के आने के पहले अिीम की खेती
नहीों िी।

और होगी तो कहीों छु ि-पू ि, िी बडे पै माने पर नहीों िी। लेककन अों ग्रेजोों की
सरकार ने मालिा के ककसानोों को मार-पीि कर जबरदस्ती उनपर
अत्याचार करके अिीम की खेती करिायी , बाद में अोंग्रेजोों की सरकार ने
एक कानून और बनाया। जब यहाूँ अकाल पडना िुर हो गया। तो अनाज
के उत्पादन में और ज्यादा कमी आ गयी तो अों ग्रेजोों की सरकार जो लगान
िसुलती िी िो लगान में भी कमी आने लगी। क्योोंकक अनाज का उत्पादन
कम हुआ तो लगान कमलना कम हो गया तो अोंग्रेजोों की सरकार ने किर
और ज्यादा अत्याचार करना ककसानोों के ऊपर िुर कर कदया और एक
बार तो अों ग्रेजोों की सरकार ने इस कदर अत्याचार ककया भारत के ककसानोों
पर आपको याद होगा 1939 में दु सरा किश्व यु्द जब िुर हुआ और इस
दू सरे किश्व यु्द में जब अों ग्रेजोों की सरकार िोंसी यु्द करने के कलए तो
अोंग्रेजी सेना के कलए भोजन भारत से भेजा जाता िा।

अनाज भारत से भेजा जाता िा। गो-माों स भारत से भेजा जाता िा। दु सरे
किश्व यु्द का कािी खचाइ भारत के ककसानोों को बदाइ श्त करना पडता िा।
दू सरे किश्व यु्द के समय में अोंग्रेजोों की सरकार ने एक तो ककसानोों पर
िै क्स और बढे़ा कदया िा। लगान और ज्यादा बढे़ा कदया िा। भारत के
उद्योगो पर िै क्स बढे़ा कदया िा। भारत के उद्योगो पर ज्यादा से ज्यादा
भारत के उद्योगो से रे िेन्यू कलेक्शन हो सके। यु्द के कलए ऐसी व्यिथिायें
बनायी िी और दू सरी तरि भारत का भोजन। भारत का अनाज। भारत
के गाय का कत्ल करने के बाद माों स अोंग्रेजोों की िौज को कमल सके
लगातार उसकी भी व्यिथिा की िी!

आप जानते है कक जब भारत के अन्न, भारत का अनाज अों ग्रेजोों की िौज


को जाने लगा तो पहले से ही इस दे ि में अन्न उत्पादन में कािी कमी आ
चूकी िी। किर जो कुछ बचा हुआ अन्न िा िो अोंग्रेजोों ने यहाूँ से बाहर
भेजना िुर कर कदया। अपने दे ि में बेचना िुर कर कदया िा। तो किर
अनाज की कमी और ज्यादा हो गइइ तो अों ग्रेजोों ने और एक कानून बना

26
कदया। और िो कानून है ‘रािन काडइ का कानून जो आज भी इस दे ि में
चल रहा है ।

आप में से बहुत सारे लोग नहीों जानते कक यह रािन काडइ क्यूूँ चलाया गया
इस दे ि में। हम सब के घर में रािन काडइ तो है । लेककन िो रािन काडइ
क्यूूँ चलाया िा। अों ग्रेजोों ने क्यूूँ िुर ककया िा यह कानून यह बहुत कम लोग
जानते हैं । 1939 के साल में अोंग्रेजोों ने रािन काडइ का कानून बनिाया
और भोजन और अनाज पर उन्ोोंने रािकनोंग की व्यिथिा िुर करिायी
क्योोंकक यहाूँ का अनाज यहाूँ का भोजन इों ग्लैंड चला जाता िा। यहाूँ के
लोगोों को भुखमरी की हालत का सामना करना पडता िा।

तो भारत के लोगोों को भुखमरी की हालत का सामना करते हुए लोग जब


मरते िे तो अोंग्रेजोों की सरकार ने लोगोों को िोडा तसल्ली दे ने के कलए
कानून बना कदया की रािन काडइ आप ले लो। अोंग्रेजोों की सरकार से और
कजस व्यस्ि के पास रािन काडइ होगा उसको सस्ते दाम पर अनाज कमल
सकेगा। तो कजन लोगोों ने रािन काडइ बनिाये।

अोंग्रेजोों की सरकार के आकिस में जाकर घूस दे कर, ररश्वत दे कर भ्रष्टाचार


करके उन लोगोों को ही कसिइ अनाज कमलता िा। बाकी लोगोों को अनाज
कमल नहीों पाता िा। तो इस तरह के अत्याचारी कानून और इस तरह की
व्यिथिा अोंग्रेजोों ने िुर की िी।

27
िृचष व्यवथिा िा स्वदे शीिरण
भारतीय ग्राम समाज में कमलने िाले गोबर, गौमूत्र और अन्य जैकिक पदािो
से सेंद्रीय खाद बनाना चाकहए, िकिइ लाइजर के कारखानोों को जो सहकलयत
ि सबकसडी कमलती है , िह बोंद होनी चाकहए । कपछ्ले पचास सालोों में
रासाकनक िकिइ लाइजर को प्रोत्साकहत करके सरकार ने भारत की खेती
का भारी नु कसान ककया है । हमें इस बात का पूरा अनुभि कमल चुका है
कक रासायकनक खाद आगे चलकर लोंबे समय के कलए नुकसानदे ह है और
ये जमीन की उिइरता को खत्म कर दे ते है ।

इसकलए ज्यादा खाद डालते हुए भी प्रकत एकड उत्पादन कम हो रहा है ।


इसके बदले हमारा गोबर खाद, सेंद्रीय खाद उत्तम है , यह साकबत हो चुका
है । इसकलए रासायकनक खादोों को ककसी भी प्रकार का प्रोत्साहन नहीों
कमलना चाकहए और सेंद्रीय खाद को तमाम प्रकार के प्रोत्साहन कमलने
चाकहए । ताजातरीन िोधोों के मुताकबक एक ककलो गोबर में से 30 से 35
ककलो कजतना ही गुणकारी सेंद्रीय खाद बन सकता है । इस तरह तमाम
ग्रामिाकसयोों को अिकाि के समय में सेंद्रीय खाद बनाने में लगाया जाए
तो भारत में सें द्रीय खाद से अत्योंत उपयोगी ि समृद्ध हो सकती है ।

साि ही इससे जमीन की उिइरता भी खूब बढ जायेगी और प्रकत एकड


उत्पादन पूरे किश्व में हम उच्चतम ले सकते है । इतनी बडी सोंभािना हमारे
दे ि में है परों तु उसका उपयोग ककया नहीों जाता। ऐसा करने के कलए
रासायकनक खाद के ऊपर प्रकतबोंध होना चाकहए और एक ककलो गोबर से
30 ककलो सेंकद्रय खाद बनाने की पद्धकत का खूब जोर – िोर से गाों ि में
प्रचार करके ऐसी खाद करोडोों और अरबोों िन बनाने की व्यिथिा करना
जररी है ।

भारतीय ग्राम्य समाज में उपलब्ध गौमूत्र, नीम और दू सरी िनस्पकतयोों का


उपयोग करके कुदरती कीिनािक दिाएों बनाना और िही खे त में उपयोग
करना तिा पेस्टीसाइडि् स के कारखाने पर प्रकतबोंध।

आधुकनक खेती में रासायकनक कीिनािक दिा ने खेती का सत्यानाि कर


रखा है । अभी भारत में हर साल २० हजार करोड र. की कीिनािक
28
दिाये ककसान उपयोग करता है । यानी ककसानोों के घरोों में से बेिकीमती
२० हजार करोड र. के कीिनािकोों के रप मे चले जाते है । इसकलए
ककसान बदहाल हो जाता है और बहुत सारे ककसानोों को आत्महत्या करनी
पडती है ।

रासायकनक दिाओों के कारण जमीन का नाि होता है सो अलग और


उत्पादन भी कम होता है । कीिनािक दिाओों से पै दा खाद्य पदािइ खाने
से तमाम लोगोों को कैंसर जैसी बीमारी भी हो जाती है । इसकलए दिाओों
में और डाक्टरोों पर कािी पैसे खचइ हो जाते है । इस प्रकार के दु श्चक्र में
भारत के ककसान और भारत की जनता िोंस गयी है ।

कृकष व्यिथिा के स्वदे िीकरण से इस जहरचक्र को तोड डालना चाकहए


। यह कायइ सचमुच ककठन नहीों है , क्योकक महों गे रासायकनक कीिनािक
दिाओों के बदले थिानीय िनस्पकतयोों से घर में कीिनािक दिाएों कबल्कुल
मुफ्त में बना लेना सरल है और हर ककसान बहुत कम खचइ में यह कर
सकता है । बनस्पकतयोों से घर में बनने िाली कीिनािक दिाएों ककसानोों
द्वारा खुद बनाने के तरीके का प्रचार होना चाकहए ।

यह बहुत जररी है । ऐसा हो तो ककसान ऐसी दिाएों खुद बनाकर लाखोों


करोडोों रपयोों के िोषण से बच सकते है । अपनी खे ती की जमीन को
खराब होने से बचा सकते है और जनता को कीिनािक िाली सब्जी,
भाजी, अनाज, िल, दलहन से जो कैंसर होता है , उससे बचा सकते है ।

➢ पहाडोों में से कमलने िाले पत्थर तिा अन्य थिानोों से कमलने िाली
प्राकृकतक कमट्टी में जो खकनज तत्व है उनका उपयोग कृकष में होना
चाकहएों
➢ खेती के काम में जररी साधन-उपकरण आकद बनाने के कलए
लोहार, बढाई िगैरह लोगोों को प्रोत्साहन कमले ऐसी नीकत होना
चाकहएों
➢ भारतीय कृकष परों पराओों में उपयोगी हो ऐसे बीज का सों रक्षण और
पुनगइठन होना चाकहएों

29
बीज को पकित्र िस्तु मानने की परों परा भारत में िी । उसकी खरीद-कबक्री
नहीों होती िी। कमत्र पररिार और सगे- सोंबोंधी से लेन-दे न करके
आिश्यकताओों की पूकतइ होती िी । अक्सर ककसान अपना बीज स्वयमि्
चुन-चुन कर रखते िे ।

१९६० से हररत क्राों कत के दौर में जहाों पहले भारत में ४० हजार धान की,
चार हजार गेहों की, एक हजार आम की ककस्में िी िे अब बहुराष्टीय
कोंपकनयोों को तरजीह दे ने कारण एक दजइ तक कसमि गई है । इसकलयें हमें
अपने पारम्पररक बीजोों की सुरक्षा और उत्पादन करने ही होगें ।

➢ दे िी बीज कमलें ऐसे 25-50 गाों िोों के समूह में बीज का उत्पादन ि
कितरण की सुकिधा ।
➢ खेती का पारों पररक ज्ञान जो भारतीय ककसानोों को है , उसका
सोंकलन और प्रचार तिा भारतीय भाषाओों में प्रकािन ।

30
िृचष भूचम िो सशक्त बनाने िे तरीिे
एक जमाना िा जब आदमी कम िे और तु लना में भूकम अकधक िी। तब
जमीन का कुछ कहस्सा पडती रखकर उसे किश्राम कदया जाता िा और
दू सरे िषइ पडती जमीन की जुताई करते िे। इस अदल – बदल से जमीन
की उिइरा िस्ि का बचाि होता िा। अब यह सोंभि न होने से हर साल
िसल लेते हुए जमीन की उिइरा िस्ि बढाने का पराक्रम करना हैं –
यह कैसे करें गे?

➢ भूकम का किाि रोककर उिइरा कमट्टी और खाद की रक्षा


➢ जमीन में नमी बनाये रखने से जीिाणुओों की रक्षा और उनमें
बढोत्तरी
➢ िसल चक्र में बदलाि
➢ सकमश्र िसलें बोना
➢ एक साल गहरी जड िाली और दू सरे साल उिली जड िाली
िसलें बोना
➢ हररत खाद
➢ बाडे में मुलायम कचरा कमट्टी हर सप्ताह डालकर गोबर – गौमूत्र
का पूरा लाभ लेना
➢ खेत में से िसल कनकालने पर खाली जगह में हर सप्ताह अदल-
बदल करके पिु रखना।
➢ खर – पतिार आकद से कोंपोस्ट खाद बनाना।
➢ मूत्र में दस गुना पानी कमलाकर उसका कछडकाि िसल पर कम
से कम तीन बार करना।
➢ छाछ, दू ध आकद में पानी कमलाकर िसल पर कछडकाि
➢ तुरत-िुरत खाद हौदी में गौमूत्र गोबर-गुड के पानी से दस कदन
में तैयार करना
➢ अच्छादन
➢ केंचुओों द्वारा खाद
➢ गो-कसोंग खाद
➢ गो-कसोंग कसलीका खाद

31
➢ जीिाणु खाद
➢ अमृत पानी
➢ हड्डी चूणइ
➢ खली
➢ राख
➢ आदमी का मलमूत्र
➢ गोबरगैस प्ाों ि स्लरी
➢ गौबरगैस प्ाों ि स्लरी
➢ समुन्द्र का िेन
➢ नील-हररत िैिाल
➢ तालाबोों की कमट्टी
➢ अकिहोत्र आकद।

ककसान को जहाूँ जो चीज उपलब्ध होगी उसका उपयोग करके जमीन


की िस्ि में कनरों तर बढोत्तरी करते जाने का पुरषािइ करना हैं । अपने
खेत पर उगाई िसल की बीमारी रोकने की दिाई भी िे बनाये।

सम्पूणग सास्िि खाद


पान पत्ती, घास-िूस-कपास, अरहर-ज्वार के डों ठल, भूस, गोबर, गौमूत्र,
हड्डी, खली आकद सेंकद्रय िस्तु से बनाये खाद को सेंस्न्द्रय खाद कहते हैं ।
खकनज-पेिरोल आकद से बनाये गये यूररया – िॉस्फेि-पोिाि आकद खाद
रासायकनक खाद के नाम से जाने जाते हैं ।

सेंकद्रय खाद से िसलोों के कलए आिश्यक नत्र, स्फूरद, पलाि


इन तीन तत्वोों के साि-साि तेरह सूक्ष्म द्रव्य भी प्राप्त होते हैं । जबकक
रासायकनक खादोों में सू क्ष्म द्रव्योों का अभाि होने से उन्ें अलग से डालना
पडता हैं । इसी कारण सेंकद्रय खाद सोंपूणइ खाद हैं और सेंकद्रय खाद
रासायकनक खाद जैसा नुकसानदे ह न होने से सास्त्वक खाद भी उसे कह
सकते हैं ।

अब यह बात साकबत हो चु की हैं कक रासायकनक खाद से भूकम


कदनोोंकदन बोंजर बन रही हैं , िह महों गी भी हैं । निा के आदी व्यस्ि को
32
कजस तरह मात्रा बढानी पडती हैं या अकधक किषैला निा करने की
आिश्यकता होती हैं । िैसे ही रासायकनक खाद की आदी भूकम भी
निाबाज बनती हैं ।

हमारा मंत्र

‘घर-घर में रोटी, खेत-खेत पर खाद’

सेंचिय खाद बनाते समय ध्यान रखने िी बातें –


1. जहाूँ खेत हो िहीों पर खाद बनायें। इससे ढोने के अनािश्यक
श्रम और समय की बचत होगी।
2. बाररि के पानी का बहाि खाद में न आये ऐसी जगह का चुनाि
करें ।
3. यिासोंभि पेड की छाों ि िाली जगह हो।
4. कचरा किकिधप्रजाकत का रहा तो खाद में किकिध उपयोगी तत्व
आयेंगे।
5. कचरा मोिा या अकधक लोंबाई िाला हो तो उसके छोिे िु कडे
करें । उसमें कुछ सूखा, कुछ हरा हो तो खाद जल्दी बनेगी।
6. गेहूँ या सोयाबीन के जैसा बैठने िाला कचरा हो तो उसके साि
दू सरा कचरा कमलायें।
7. खाद बनाते समय कचरा बहुत ढीला या सख्त न रहें । हल्का
दबाि उस पर डालकर से समतल करें ।
8. बबूल के बीज या गाजर-घास के बीज उसमें न होों। कोंकड, िीन,
रबड, प्ास्स्टक के िु कडे अलग ककये जायें।
9. कोंपोस्ट की कक्रया जल्द िु रू होने के कलए पुरानी अधपकी खाद
भी मदद करें गी। जैसे दू ध का दही जमाने में दही जामन काम
करता हैं ।
10. कोंपोस्ट के हौदे के कसर को गोबर-कमट्टी से सील करें । आठ कदन
के बाद इसकी जाों च करें कक उसका तापमान बढा हैं या नहीों।
इसके कलए एक नुकीली लोहे की सलाख उसमें पाों च कमनि गडा
33
कर रखें और बाहर कनकालकर दें खे कक िह गरम हुई या नहीों।
िह ठों डी रही तो समझना चाकहए कक कहीों गलती हुई हैं । किर से
उसे खोलकर नये कसरे से िैज्ञाकनक ढों ग से उसकी भराई करें ।
11. कोंपोस्ट की जमीन के ऊपर बनायी हौदी या िों की या किघरा
बनाते समय उसकी चौडाई की बाजू हिा की कदिा में रखें।
लोंबाई बहने िाली हिा की कदिा में रखेंगे तो गमइ हिा की मार से
नमी जल्दी सूख जायेगी और बीच-बीच में पानी डालने का काम
बढे गा। गमी के कदनोों में दो माह बाद दु बारा पानी का कछडकाि
करें ।
12. खाद बनने में 105 से 120 कदन लगते हैं । खरीि की बुिाई के
समय और रबी की बुिाई के समय ताजी खाद कमले, ऐसा
सालभर में दो बार खाद बनाने की समय साररणी बनायें ।
13. रिानुमा दाना, सुोंगध और सु नहरा रों ग या चाय पाउडर जैसा
खाद उत्तम पकने के ये तीन लक्षण हैं ।
14. बीस पचीस िीसदी खाद अधपकी रहती हैं उसे चलनी से छान
लें। अधपकी खाद का अगले समय के कलए खाद बनाने में
इस्तेमाल करें ।
15. छानकर कनकली खाद छाों ि में रखें। अकधक कदन रखना हो तो
नमी बनी रहने के कलए ऊपर िोडा पानी कछडकते जायें ।
16. खाद बनाते समय उसमें राख िॉस्फेि, कनोंबोली आकद डाले तो
गुणित्ता बढे गी।
17. खाद बनाते समय जीिाणु उसमें डालने से खाद कम समय में
बनेगी।

सेंचिय खाद - पद्धचतयााँ


नॉडे प – इस पद्धकत में जमीन के ऊपर आयताकार 12 िीि लोंबी-पाूँ च
िीि चौडी और तीन िीि ऊोंची नि इों च चौडी जुडाई से हौदी बनाई
जाती हैं । कचरा अकधक मात्रा में उपलब्ध हो तो हौदी की लोंबाई

34
आिश्यकतानुसार बढायें। ईिोों की जुडाई कमट्टी से की जा सकती हैं ।
मजबूती के कलए कसिइ आस्खरी रद्दा सीमेंि में जोकडए।

हौदी का तल ििइ -ईि पत्थर कबछाकर पक्का करें । हौदी बाों धते समय
चारोों दीिारोों में छे द रखें जाते हैं । ईिोों की हर दो रद्दोों की जुडाई के बाद
तीसरे रद्दे की जुडाई करते समय हर एक ईि की जुडाई के बाद सात
इों च का छे द छोडकर जुडाई करें । इस प्रकार चारोों दीिारोों में छे द के
मध्य में दू सरी लाईन के छे द आयें और दू सरी लाईन के दो छे दोों के मध्य
में तीसरी लाईन के छे द आयें।

35
36
37
38
39
40
41
42
43
गौशाला और पंिगव्य उत्पादों िे प्रयोग
गाय का किषय राजीि भाई का कप्रय किषय है | क़त्ल खानोों में जाने िाली
गायोों को रोकने के कलए उनके गोबर, गोमूत्र से पोंचगव्य उत्पाद बनाकर
तिा खेती में प्रयोग होने िाली गोबर खाद ि कीि कनयोंत्रक बनाकर गाय
को बचाया जा सकता है और उनकी सेिा की जा सकती है | इस उद्दे श्य
से एक गौिाला और पोंचगव्य उत्पादोों का उत्पादन और प्रकिक्षण करने
की योजना है और गाूँ ि-गाूँ ि में उनकी जानकारी पहुों चे इसकी तैयारी चल
रही है |

गाय का दू ध बहुत ही पौकष्टक होता है । यह बीमारोों और बच्चोों के कलए बेहद


उपयोगी आहार माना जाता है । इसके अलािा दू ध से कई तरह के पकिान
बनते हैं । दू ध से दही, पनीर, मक्खन और घी भी बनाता है । गाय का घी
और गोमूत्र अनेक आयुिेकदक औषकधयाों बनाने के काम भी काम आता है ।
गाय का गोबर िसलोों के कलए सबसे उत्तम खाद है । गाय के मरने के बाद
उसका चमडा, हकड्डयाों ि सीोंग सकहत सभी अोंग ककसी न ककसी काम आते
हैं ।

अन्य पिुओों की तु लना में गाय का दू ध बहुत उपयोगी होता है । बच्चोों को


कििेष तौर पर गाय का दू ध कपलाने की सलाह दी जाती है क्योोंकक भैंस का
दू ध जहाों सु स्ती लाता है , िहीों गाय का दू ध बच्चोों में चों चलता बनाए रखता
है । माना जाता है कक भैंस का बच्चा (पाडा) दू ध पीने के बाद सो जाता है ,

44
जबकक गाय का बछडा अपनी माों का दू ध पीने के बाद उछल-कूद करता
है ।

गाय न कसिइ अपने जीिन में लोगोों के कलए उपयोगी होती है िरन मरने
के बाद भी उसके िरीर का हर अोंग काम आता है । गाय का चमडा, सीोंग,
खुर से दै कनक जीिनोपयोगी सामान तैयार होता है । गाय की हकडि् डयोों से
तैयार खाद खेती के काम आती है ।

शारीररि संरिना : गाय का एक मुोंह, दो आों खें, दो कान, चार िन,


दो सीोंग, दो निुने तिा चार पाों ि होते हैं । पाों िोों के खुर गाय के कलए जूतोों
का काम करते हैं । गाय की पूोंछ लोंबी होती है तिा उसके ककनारे पर एक
गुच्छा भी होता है , कजसे िह मस्क्खयाों आकद उडाने के काम में लेती है । गाय
की एकाध प्रजाकत में सीोंग नहीों होते।

गायों िी प्रमुख नस्लें : गायोों की यूों तो कई नस्लें होती हैं , लेककन


भारत में मुख्यत: सकहिाल (पोंजाब, हररयाणा, कदल्ली, उत्तरप्रदे ि, कबहार),
गीर (दकक्षण काकठयािाड), िारपारकर (जोधपुर, जैसलमेर, कच्छ), करन
फ्राइ (राजथिान) आकद हैं । किदे िी नस्ल में जसी गाय सिाइ कधक लोककप्रय
है । यह गाय दू ध भी अकधक दे ती है । गाय कई रों गोों जैसे सिेद, काला,
लाल, बादामी तिा कचतकबरी होती है । भारतीय गाय छोिी होती है , जबकक
किदे िी गाय का िरीर िोडा भारी होता है ।

भारत में गाय िा िाचमगि महि : भारत में गाय को दे िी का


दजाइ प्राप्त है । ऐसी मान्यता है कक गाय के िरीर में 33 करोड दे िताओों का
कनिास है । यही कारण है कक कदिाली के दू सरे कदन गोिधइन पूजा के अिसर
पर गायोों की कििेष पू जा की जाती है और उनका मोर पों खोों आकद से श्रृोंगार
ककया जाता है ।

प्राचीन भारत में गाय समृस्द्ध का प्रतीक मानी जाती िी। युद्ध के दौरान
स्वणइ, आभूषणोों के साि गायोों को भी लूि कलया जाता िा। कजस राज्य में
45
कजतनी गायें होती िीों उसको उतना ही सम्पन्न माना जाता है । कृष्ण के गाय
प्रेम को भला कौन नहीों जानता। इसी कारण उनका एक नाम गोपाल भी
है ।

चनष्कषग :- कुल कमलाकर गाय का मनुष्य के जीिन में बहुत महत्व है ।


गाय ग्रामीण अिइव्यिथिा की तो आज भी रीढ है । दु भाइ ग्य से िहरोों में कजस
तरह पॉकलकिन का उपयोग ककया जाता है और उसे िेंक कदया जाता है ,
उसे खाकर गायोों की असमय मौत हो जाती है । इस कदिा में सभी को
गोंभीरता से किचार करना होगा ताकक हमारी ‘आथिा’ और ‘अिइव्यिथिा’
के प्रतीक गोिोंि को बचाया जा सके।

जैचवि िीटनाशि दवाएं –


चिसानों घर में खुद बना सिें वो भी िम से िम खिग में !

चिसी प्रिार से हम िीटनाशि भी खुद तैयार िर सिते क्या हैं ?

बाजार से ककसी किदे िी कम्पनी का 15000 रूपए लीिर का कीिनािक


लाने से अच्छा है इन दे सी गौमाता या दे सी बैले के मूत्र से ही कीिनािक
बना सकते हैं । अगर ककसी िसल में कोइइ कीि या जोंतु लग गया, उसको
खत्म करना है , मारना है तो उसके कलए एक सूत्र आप कलख लीकजए कक
कीिनािक बनाना भी बेहद आसान है , कोइइ भी ककसान भाइइ अपने घर
में बना सकते हैं ।

िीटनाशि बनाने िे चलए क्या िरना पड़ता है ?

एि एिड़ खेत िे चलए अगर िीटनाशि तैयार िरना है तो -

➢ 20 लीिर ककसी भी दे सी गौमाता या दे सी बैले का मूत्र चाकहए।


➢ 20 लीिर मूत्र में लगभग ढाइइ ककलो ( आधा ककलो कम या ज्यादा
हो सकता है ) नीम की पत्ती को पीसकर उसकी चिनी कमलाइए।
नीम के पत्ते से भी अच्छा होता है नीम की कनम्बोली की चिनी ।

46
➢ इसी तरह से एक दू सरा पत्ता होता है धतूरे का पत्ता। लगभग ढाइइ
ककलो धतूरे के पत्ते की चिनी कमलाइए उसमें।
➢ एक पेड होता है कजसको आक या आूँ कडा कहते हैं , अकइमदार
कहते हैं आयुिेद में। इसके भी पत्ते लगभग ढाइइ ककलो लेकर
इसकी चिनी बनाकर कमलाए।
➢ कजसको बेलपत्री कहते हैं , कजसके पत्र आप िों कर भगिान के
उपर चढाते हैं । बेलपत्री या किल्वपत्रा के पते की ढाइइ ककलो की
चिनी कमलाए उसमें।
➢ किर सीतािल या िरीिा के ढाइइ ककलो पतो की चिनी कमलाए
उसमें।
➢ आधा ककलो से 750 ग्राम तक तम्बाकू का पाऊडर और डाल
दे ना।
➢ इसमें 1 ककलो लाल कमचइ का पाऊडर भी डाल दें ।
➢ इसमे बेिमइ के पत्ते भी ढाइइ ककलो डाल दें ।

तो ये पाों च-छह तरह के पे डोों के पत्ते आप ले लो ढाइइ - ढाइइ ककलो। इनको


पीसकर 20 लीिर दे सी गौमाता या दे सी बैले मूत्र में डालकर उबालना हैं ,
और इसमें उबालते समय आधा ककलो से 750 ग्राम तक तम्बाकू का
पाऊडर और डाल दे ना। ये डालकर उबाल लेना हैं उबालकर इसको ठों डा
कर लेना है और ठों डा करके छानकर आप इसको बोतलोों में भर ले रख
लीकजए।

ये कभी भी खराब नहीों होता। ये कीिनािक तैयार हो गया। अब इसको


डालना कैसे है ? कजतना कीिनािक लेंगे उसका 20 गुना पानी कमलाएों ।
अगर एक लीिर कीिनािक कलया तो 20 लीिर पानी, 10 लीिर
कीिनािक कलया तो 200 लीिर पानी, कजतना कीिनािक आपका तैयार
हो, उसका अोंदाजा लगा लीकजए आप, उसका 20 गुना पानी कमला दीकजए।
पानी कमलकर उसको आप खेत में कछडक सकते हैं ककसी भी िसल पर।

इसको कछडकने का पररणाम ये है कक दो से तीन कदन के अोंदर कजस


िसल पर आपने स्प्रै ककया, उस पर कीि और जोंतु आपको कदखाइइ नहीों
दे गें, कीडे और जोंतु सब पूरी तरह से दो-तीन कदन में ही खत्म हो जाते हैं ,

47
समाप्त हो जाते हैं । इतना प्रभाििाली ये कीिनािक बनकर तैयार होता
है । ये बडी-बडी किदे िी कम्पकनयोों के कीिनािक से सैकडोों गुणा ज्यादा
ताकतिर है और एकदम िोकि का है , बनाने में कोइइ खचाइ नहीों ।

दे सी गौमाता या दे सी बैले का मूत्र मुफ्त में कमल जाता है , नीम के पत्ते ,


कनम्बोली, आक के पत्ते , आडू के पत्ते - सब तरह के पत्ते मुफ्त में हर गाूँ ि
में उपलब्ध हैं । तो ये आप कीिनािक के रूप में, जोंतुनािक के रूप में
आप इस्तेमाल करें ।

बीज संस्कार िरने िे चलए छोटा सा सूत्र क्या हैं ?


तीसरी जानकारी आपको दे ना चाहता हूँ कक अच्छी िसल लेने के कलए
जो बीज आप खेत में डालते हैं , उस बीज को आप पहले सोंस्काररत कररए,
किर कमट्टी में डाकलए। बीज सोंस्कार करने के कलए छोिा सा सूत्र बताना
चाहता हूँ ।

मान लीकजए आपको गेहूँ का बीज लगाना हैं । तो बीज ले लीकजए एक


ककलो। एक ककलो बीज के अनुसार में ये सू त्र बता रहा हूँ

एक ककलो ककसी भी दे सी गौमाता या दे सी बैल का गोबर ले लीकजए और


उसी दे सी गौमाता या दे सी बैल का एक ककलो मूत्र ले लीकजए। गोबर और
मूत्र को आपस में कमला दीकजए। किर इसमें 100 ग्राम कलइइ चूना कमलाना
है , कलइइ चूना का पत्थर बाजार में कमल जाता है आसानी से। उस चूने के
पत्थर को एक कदन पहले पानी में डाल दीकजए 2-3 लीिर पानी में। रातभर
में को पानी गरम हो जाएगा, किर िो चूना िाों त हो के नीचे बैठ जाएगा।

किर इसको घोल लीकजए। किर इस 2-3 लीिर चूने िाले पानी को गोबर
और गोमूत्र िाले पात्र या बतइन में डाल दीकजए। तो गोबर-गोमूत्र और सौ
ग्राम चूने में कजतना घोल तैयार होगा उसमें अच्छे से बीज को डाल दीकजए।
कोइइ भी बीज एक ककलो इसमें आराम से भीग ों जाता है । बीज को इसमें
2-3 घोंिे डालकर रस्खए। रात में डाल दीकजए, सु बह से कनकाल लीकजए।
48
कनकालकर इस बीज को छाूँ ि में सूखा दीकजए और छाूँ ि में सूखाने के बाद
आप इसको खेत की कमट्टी में लगा दीकजए। तो जो ये बीज लगेगा कमट्टी में ,
ये सोंस्काररत हो गया।

इस संस्काररत बीज से क्या फायदा होगा ?


इस सोंस्काररत बीज के दो िायदे हैं । एक तो िसल पर जल्दी कोइइ कीि-
कीडा नहीों लगेगा। तो कीिनािक-जोंतुनािक से आपको मुस्ि कमल गइइ ,
दु सरा िसल का उत्पादन भी अच्छा हो गया। तो बीज सोंस्काररत करने
का एक सूत्र है , कीिनािक बनाने का एक सूत्र है और खाद बनाने का
एक सूत्र हैं , इन तीन बताए गए सूत्रोों का भरपूर आप प्रयोग अपने खेत में
कररए और अपने ककसान कमत्रोों को ज्यादा से ज्यादा बताइए।

मेरा आपसे एक छोिा सा कनिेदन है कक इस िषइ अपने खेत के एक एकड


में से करके दे स्खए और एक एकड में आपने अगर ये करके दे खा तो
इसका पररणाम अच्छा आया तो अगले िषइ पूरे खेत में कररए। और ज्यादा
अच्छा आया तो पूरे गाूँ ि के खेत में कराइए, किर पूरे कजले के खेतोों में करा
दीकजए। गाूँ ि-गाूँ ि जाकर आप ये गोबर -गोमूत्र का सूत्र ककसानोों को
कसखाना िु रू कर दीकजए, उसी तरह जैसे योग और प्राणायाम कसखाते हैं
आप गाूँ ि-गाूँ ि जाकर। तो योग और प्राणायाम से िरीर दु रूस्त हो जाएगा
और गोबर-गोमूत्र की खाद से उनका खेत अच्छा हो जाएगा।

उनकी कमट्टी अच्छी हो जाएगी, तो सोने पे सुहागे की कसिकत बन जाएगी।


इधर िरीर स्वथि हुआ, उधर कमट्टी स्वथि हुइइ और उसमें से पैदा हुआ
अनाज स्वथि कमला, उसमें से सकबजयाूँ , घास-चारा स्वथि कमला। घास चारा
जानिर खाएों गें तो दू ध बढे गा और उनकी कबमाररयाूँ कम होगी। हम स्वथि
भोजन खाएों गे तो हमारी कबमाररयाूँ कम होगी और डाक्टर का खचइ बचेगाों
तो सारी जडमूल से व्यिथिा का पररितइन िु रू हो जाएगा, और मेरा ये
मानना है कक एक गाूँ ि में अगर एक ककसान भाइइ ने भी यकद ये कर कलया
तो एक साल के अन्दर पूरा गाूँ ि इसको कर लेगा ।

49
जैचवि खाद चवचि
चिसान स्वंय खाद घर में बना सिता है िम से िम खिग
में –
एक सरल सू त्र बताता हूँ कजसको भारत में कपछले 12-15 िषोों में हजारो
ककसानोों ने अपनाया है और बहुत लाभ उनको हुआ है । एक एकड खेत
के कलए ककसी भी िसल के कलए खाद बानाने कक किकध ।

➢ एक बार में 15 ककलो गोबर लगता है और ये गोबर ककसी भी दे सी


गौमाता या दे सी बैल का ही होना चाकहयें। किदे िी या जसी गायें
का नहीों होना चाकहयें ।

➢ इसमें कमलायें 15 लीिर मूत्र, उसी जानिर का कजसका गोबर कलया


है । दोनोों कमला लीकजए प्ास्स्टक के एक डरम में रख दें ।

➢ किर इसमें एक ककलो गुड डाल दीकजए और गुड ऐसा डाल दीकजए
जो गुड हम नहीों खा सकते , जानिरी नहीों खा सकते , जो बेकार हो
गया हो, िो गुड खाद बनाने में सबसे अच्छा काम में आता है । तो
एक ककलो गुड 15 ककलो गोमूत्र, 15 ककलो गोबर इसमें डाकलए ।

➢ किर एक ककलो ककसी भी दाल का आिा (बेसन)

➢ अोंत में एक ककलो कमट्टी ककसी भी पीपल या बरगद के पेड के नीचे


से उठाकर इसमें डालना ।

ये पाूँ च िस्तुओों को एक प्ास्स्टक के डरम में कमला दे ना, डों डे से या हाि


से कमलाने के बाद इसको 15 कदनोों तक छािों मे रखना । पन्द्रह कदनोों तक
इसका सुबह िाम डों डे से घुमाते रहना। पन्द्रह कदनोों में ये खाद बनकर
तैयार हो जाएगा । किर इस खाद में लगभग 150 से 200 लीिर पानी
50
कमलाना । पानी कमलाकर अब जो घोल तैयार होगा, ये एक एकड के कलए
पयाइ प्त खाद है । अगर दो एकड के कलए पयाइ प्त खाद है तो सभी मात्राओों
को दो गुणा कर दीकजए।

अब इसिो खेत में िैसे डालना है ?


अगर खेत खाली है तो इसको सीधे स्प्रै कर सकते हैं कमट्टी को कभगाने के
कहसाब से। डब्बे में भर-भर के कछडक सकते हैं या स्प्रै पम्प में भरकर
कछडक सकते हैं , स्प्रै पम्प का नोजर कनकाल दें गे तो ये कछडकना आसान
होगा ।

िसल अगर खेत में खडी हुई है तो िसल में जब पानी लगाएों गे तो पानी
के साि इसको कमला दे ना है ।

खेत मे यह खाद िब-िब डालनी है ?


इसका आप हर 21 कदन में दोबारा से डाल सकते हैं आज आपने डाला
तो दोबारा 21 कदन बाद डाल सकते हैं , किर 21 कदन बाद डाल सकते हैं ।
मतलब इसका है कक अगर िसल तीन महीने की है तो कम से कम चार-
पाों च बार डाल दीकजए। चार महीने की है तो पाों च से छह बार डाल दीकजए।

6 महीने की िसल है तो सात-आठ बार डाल दीकजए, साल की िसल है


तो उसमें आप इसको 14-15 बार डाल दीकजए। हर 21 कदन में डालते
जानला है । इस खाद से आप ककसी भी िसल को भरपूर उत्पादन ले सकते
हैं – गेहूँ, धन, चना, गन्ना, मूोंगिली, सब्जी सब तरह की िसलोों में ये
डालकर दे ख गया है । इसके बहुत अच्छे और बहुत अदभुत पररणाम हैं ।

51
सबसे अच्छा पररणाम क्या आता है इसिा ?
आपकी कजोंदगी का खाद का जो खचाइ है 60 प्रकतित, िो एक झिके में
खत्म हो गया। किर दू सरा खचाइ क्या खत्म होता हैं जब आप ये गोबर-
गोमूत्र का खाद डालेंगे तो खेत में किष कम हो जाएगा, तो जन्तुनािक
डालना और कम हो जाएगा, कीिनािक डालना ओर कम हो जाएगा।
यूररया, डी.ए.पी. का असर जैसे-जैसे कमट्टी से कम हो जाएगा, बाहर से
आने िाले कीि और जोंतु भी आपके खेत में कम होते जाएों गें , तो जोंतुनािक
और कीिनािक डालने का खचइ भी कम होता जाएगा !

और लगातार तीन-चार साल ये खाद बनाकर आपने डाल कदया तो लगभग


तय माकनए आपके खेत में कोइइ भी जहरीला कीि और जोंतु आएगा नहीों,
तो उसको मारने के कलए ककसी भी दिा की जरूरत नहीों पडे गी तो 20
प्रकतित जो कीिनािक का खचाइ िा िो भी बच जाएगा। खेती का 80
प्रकतित खचाइ आपका बच जाएगा। दू सरी बात इस खाद के बारे में ये कक
ये सभी िसलोों के कलए है । जानिरोों का गोबर और गोमूत्र गाूँ ि में आसानी
से कमल जाता है । गोबर इकिठा करना तो बहुत आसान है । जानिरोों का
मूत्र इकिठा करना भी आसान है ।

दे सी गौमाता या दे सी बैल िा मूत्र िैसे इिटठा िरें ?


सभी दे सी गौमाता या दे सी बैल का मूत्र दे ते हैं । आप ऐसा कररए कक
उनको बाों धने का जो थिान है िो िोडा पक्का बना दीकजए, सीमेंि या पत्थर
लगा दीकजए और उस थिान को िोडा ढाल दे दीकजए और किर उसमें एक
नाली बना दीकजए और बीच में एक खडडा डाल दीकजए। तो जानिर जो
भी मूत्र करें गे िो सब नाली से आकर खडडे में इकिठा हो जाएगा।

अब दे सी गौमाता या दे सी बैल के मूत्र की एक कििे षता है कक इसकी


कोइइ एक्सपायरी डे ि नहीों है । 3 महीने , एक साल, दो साल, पाों च साल, दस
साल ककतने भी कदन पडा रहे खडडे में , िो खराब कबल्कुल नहीों होता।
इसकलए कबल्कुल कनिकचोंत तरीके से आप इसका इस्ते माल करें , मन में
कहचक मत लायें कक ये पुराना है या नया। हमने तो ये पाया है कक कजतना
52
दे सी गौमाता या दे सी बैल का मूत्र पुराना होता जाता है उसकी गुन्वत्ता
उतनी ही अच्छी होती जाती है ।

ये कजतने भी मल्टीनेिनल कम्पकनयोों के जोंतुनािक हैं उन सबकी


एक्सपायरी डे ि है और उसके बाद भी कीडे मरते नहीों है और ककसान
उसको कइइ बार चख कर दे खते हैं कक कहीों नकली तो नहीों है , तो ककसान
मर जाते हैं , कीडे नहीों मरते हैं तो मल्टीनेिनल कम्पकनयोों के कीिनािक
लेने से अच्छा है दे सी गौमाता या दे सी बैल के मूत्र का उपयोग करना।

तो इसको खाद में इस्तेमाल कररए, ये एक तरीका है । लगातार तीन-साल


इस्तेमाल करने पर आपके खेत की कमट्टी को एकदम पकित्र और िुदध
बना दे गा, कमट्टी में एक कण भी जहर का नहीों बचेगा। और उत्पादन भी
पहले से अकधक होगा । िसल का उत्पादन पहले साल कुछ कम होगा
परन्तु खाद का खचाइ एक झिके मे कम हो जायेंगा और उत्पादन भी हर
साल बढता जायेगा ।

53
वनौषचि

गत पचास सालोों से कीिनािक, ििूोंदनािक, नीोंदानािक के रूप में


रासायकनक दिाओों का इस्ते माल हो रहा हैं । उसकी – जाूँ च पडताल करके
किश्व के आरोग्य सोंगठन और राष्टर सोंघ के खाद्य एिमि् कृकष सोंगठनोों ने सभी
दृकष्ट से इन्ें घातक पाया हैं ।
किर भी अकेले 1998 में, भारत में 4388 करोड रूपयोों की
रासायकनक दिायें इस्तेमाल की गई। जल, जमीन, हिा, अनाज में ही नहीों
माता के दू ध में भी इनके जहरीले अोंि आ गाये । ऐसे किषाि िातािरण
में सौ साल की कमइमय कजोंदगी हमें कैसे कमल सकती हैं ? मृत्युपोंि की ओर
ले जाने िाली इस खतरनाक पररस्थिकत से बचाने के रास्ते हमारे पुरखोों के
पास िे कजन्ें मानि प्रेमी आधुकनक िैज्ञाकनकोों ने और प्रिस्त ककया हैं ।

भूचम माता – बीज चपता

भूकम सिि हो और थिानीय बीज िुद्ध हो तो उसमें उगने िाला पौधा


कनरोगी और पुष्ट होगा कजसे बीमारी लगेगी नहीों, हुई तो अपने आप कनकल
जायेगी। अन्यिा साधरण ईलाज से दु रस्त होगी। रासायकनक खाद के
कारण प्रदू कषत जल – जमीन में िह िस्ि कैसे होगी? इसीकलए बीमारी
की जड रासायकनक खाद का बकहष्कार करना चाकहए।

स्वास्थ्य दाता नीम और गौमूत्र

नीम की जड, अोंतरसाल, पत्ते, िूल, कनोंबोली, खली, तेल आकद के समुकचत
उपयोग से चार सौ प्रकार के हाकनकारक कीिकोों से रक्षा हो सकती हैं ।
ऐसा िैज्ञाकनकोों का अनुभि हैं । इस कारण नीम को जगत िृक्ष का सम्मान
प्राप्त हुआ हैं । नीम में अिरोधक, कनयोंत्रक गुण हैं । नुकसानदे ह कीिकोों के
प्रजनन कायइ में रूकािि डालना, उन्ें नपुोंसक बनाना, उनका
कायान्तरण न होने दे ना, उनका किच कनमाइ ण न होना, दीमक का कनयोंत्रण
करना, उपयुि कीिकोों का बचाि करके अपनी खली से भूकम को सिि
बनाने के गुण भी हैं ।

54
गौमूत्र में रोग अिरोधक-रोग कनिारण और िसलोों की पोषक-
सोंजीिक िस्ि हैं । इन दोनोों को कमलाने पर उनकी िस्ि और बढती हैं ।
केंचुए भी पोषक सू क्ष्म जीिाणुओों की रक्षा करते हैं । भूकम की
िस्ि बढाते हैं । िसल की कीि तिा रोग प्रकतकारक िस्ि बढाते हैं ।

साविानी से बिाव

जमीन की समय पर जुताई, कनरोगी बीजोों का चुनाि, बीजोों पर रोग


प्रकतबोंधक और िस्ििधइक सोंस्कार, समयानुकूल कनोंदाई-गुडाई
िसलचक्र में बदलाि, कमकश्रत िसल लेना, िसल का रोगग्रस्त भाग
हिाना, कीिभक्षी पकक्षयोों के कलए िसल में जगह-जगह ठहराि, मुख्य
िसल से ध्यान हिाकर अपनी ओर आककषइत करने िाले गेंदा, लाल
अोंबाडी जैसे पौधें का बीच-बीच में होना, पकक्षयोों को आिश्यकतानुसार
भगाने के कलए आिश्यक साधन आकद के बारे में हमें जागृत रहना चाकहए।
इतनी सािधानी के बाद भी बीमारी आ सकती हैं तो कीिकोों की
आदत, प्रजनन किकास आकद के अनुसार उपाय हम करें , कुछ कीिक
तीव्र गोंध से भागते हैं । कुछ कीिक तीखापन सहन नहीों कर पाते कोई
कीिक नाजुक होते हैं । जो सामान्य किष के सोंपकइ में आते ही नष्ट होते हैं ।
कुछ खाने पर ही पोि किष से मरते हैं । कुछ केिल छे द करते हैं ।

फंगस रोिि इलाज

जमीन के अोंदर से िसलोों की जडोों में रोग िैलाने िाले िोंगस होते हैं । ये
जडोों में सडन पैदा करते हैं पौधे के तने के भी कािते हैं ।
1. बोनी के पूणइ बरसात आने पर एक एकड जमीन पर दस लीिर
गौमूत्र का कछडका करें । या बीस ककलो करों ज, नीम-एरों ड की खली
का जमीन में कमला दें या बीस ककलो करों ज, नीम एरों ड की खली
को जमीन में कमलादें ।
2. बब्दे ररया की 500 ग्राम पािडर – 500 ग्राम गुड के साि दस
लीिर पानी में रात में रखें। किर उसको छानकर 80 लीिर पानी
में कमलाकर िह घोल जमीन में कछडके। नसइरी में पौधे तै यार करते
समय भी यह ककया करें ।

55
3. नदी ककनारे के िसलोों पर या गन्ने की गोंडेरी पर हुमणी नामक
बडी इल्ली हमला करती हैं । पाि ककलो रिाों ड दो लीिर पानी में
डे ढ लीिर होने तक उबालें। किर पानी के द्वारा उसे बहा दें ।
4. िसल को पानी दे ते समय पानी के नाली पर बारीक छे द िाले
कडब्बे में नीम का तेल या हीोंग का पानी बूोंद – बूोंद कगरा दें । इसमें
बागिानी में लगे पेड का जमीन के अोंदर से कािने, सडाने िाले
जीिाणु पर कनयोंत्रण आयेगा।
5. पाूँ च ककलो चूना तीस लीिर पानी में रातभर कभगोकर उसे बहा दें
या गीली जमीन पर कछडकाि करें ।
6. धन के खेत में गुडाई करते समय आक के पत्ते कमला दें । रतन
जोत – एरण्ड जैसे पत्ते िाला पौध (भोगल एरण्ड) इसके पिलोों
को पीसकर िह पािड पानी में कमलाकर धन की खेती में
तनाच्छे दक कीडे के कलए कबखेर दें ।
7. तम्बाकू, धतूरा, एरों ड बीज, गेंदा के उों डल इनको कूिकर पानी में
उबालकर खेत में दें । या कसिर ोला ते ल पानी में कमलाकर कछडकाि
करें या लहसुन, तम्बाकू, कमचइ, हीोंग को उबाल कर 10 लीिर पानी
में 50 कमली लीिर घोल कमलाकर िसल पर तनाच्छे दक कीडोों का
उपद्रि रोकने के कलए कछडकें। ध्यान में तनाच्छे दक कीिोों को
खाने का काम मेंढक करते हैं – उन्ें बचायें – बढायें।

इस्ियां और अन्य रोग चनवारण दवा


ताों बे के बतइन में दस लीिर गौमू त्र में तीन ककलो नीम की कपसी हुई पत्ती या एक
ककलो कनों बोली चूणइ या खली दस कदन रखने के बाद आधा रहने तक उसे उबालें ।
इस समय उसमें आधा ककलो तम्बाकू के उों डल भी उबलने दें ।
आधा ककलो हरी कमचइ कूिकर एक लीिर केरोकसन में रातभर रखे । पाि
ककलो लहसुन कूिकर उसे आधा लीिर केरोकसन में रातभर रखें । कमचइ और
लहसुन को कनचोडकर िह पानी और केरोकसन गौमू त्र द्रािण ठों डा होने पर उसमें
कमलायें।
बाद में 200 कमली िह द्रािण 15 लीिर पानी में कमलाकर स्प्रेपोंप द्वारा
उसका कछडकाि हर प्रकार के इस्ल्लयोों पर और अन्य कीि-पतोंगोों पर कर सकते
हैं । यह करीब सािइभौम इलाज हैं ।

गौमूत्र -

56
5 प्रकतित गौमूत्र पानी में कमलाकर हर दस कदन बाद िसल पर
कनरों तर कछडकने से रोग आने से प्रकतबोंध और रोग दिा जैसा उपयोग होता
हैं ।

िपास रोग चनयंत्रण

िर ामकोग्रामाम, बॉकान एिमि् क्रायसोप नामक परजीिी कीिकोों का


उपयोग करें । िर यको काडइ -बोने के डे ढ माह बाद एक हे क्टेयर में डे ढ
लाख अोंडे इतने काडइ कपास के पत्तोों पर स्टीच करें । दो बार एक माह के
अोंतराल से यह ककया करें ।
प्रिम उपयोग साठ कदन बाद करें । इसमें से पराजीिी कीिक
कनकलेंगें। मेिॉररझम पािडर डे ढ लीिर पानी में 500 ग्राम गुड और 500
ग्राम मेिॉररझम पािडर बीस लीिर पानी में उसे कमला दें और यह द्रािण
एक एकड िसल पर कछडकें कजससे कीि कनयोंत्रण होगा।

बाजरे िा आटा – दस कदन पुराना बाजरे का आिा पों द्रह लीिर पानी में
हिा बोंद कडब्बे में जमीन में या खाद के गड्ढे में गडाकर बीस कदन रखे।
पोंद्रह लीिर पानी में 45 कमली लीिर कमलाकर पोंप से िसल पर कछडकाि
करने से कीि- पोंतग नष्ट होोंगें।

छांछ – पोंद्रह कदन हिा बोंद मिके में जमीन में गाडने के बाद िह छाों छ
पानी में खिास आये इतना कमलाकर उसका कछडकाि करने से इल्ली-
पतोंग पर कनयोंत्रण पा सकते हैं ।
इससे कमचइ-िमािर-बैगन आकद पर का चुराइ मुराइ या कुकडा दू र होता हैं ।
भूरा रोग – िुलाि के पहले 10 कदन पुराना बाजरे का आिा चौगुना राख
कमलाकर उसे भुरकने से भूरा रोग हिता हैं ।

सफेद माक्खे
पायरोिोराईड जैसी जहरीली मोंहगी दिा ने भी घुिने िे क कदये हैं ।
इन मस्क्खयोों को भगाने के कलए हिा का रख दे खकर िाम को खरपतिार
में नीम की पत्ती डालकर धुआों करें सारा खेत धुएों में डूब जाए। मक्खी
भाग जायेगी। जो कुछ अोंडे आकद बचेंगे तो दू सरे कदन गुड का पानी पत्तोों
पर कचपकने जैसा बनाकर कछडकें। उससे िे कचपक जायेंगे। तीन कदन में
57
नष्ट होगी। िसल की श्वसन कक्रया पूिइित जारी रखने के कलए –किर पानी
के िव्वारे से पत्ते स्प्रेपोंप द्वारा धो दें ।
अनुपात -
यह आयुिेकदक पद्धकत के औषकध से बनाई दिा हैं जो पौधोों की बीमारी से
रक्षा और किकास करती हैं । कचपकचपा द्रि – िलदार िृक्ष से यह कनकलता
हैं और पेड सूख जाता हैं ।
पेड के जडोों के पास क्यारी अरों डी का तेल, उबले तम्बाकू का
घोल या पािडर कबखेर दें । तो जडो के द्वारा यह दिा पेड में पहुूँ च कर
कचपकचपा द्रि स्राि रोकेगी।

पेड़ में छे द
िलदार पेडोों में कीि छे द करने से पेड सूख जाते हैं । जहाूँ छे द कदखे िहाूँ
तुरोंत उसमें का बुरा कनकाल कर कपडे या कपास को पे िरोल में कभोंगो कर
उसे छे द में ठूोंस दें । या स्प्रेपोंप से पेिरोल छे द में कछडक कर िह छे द-गोबर-
गौमूत्र कमट्टी में कमला कर बोंद करें ।

राख – कुछ कीि-पतोंग पतोों में छे द करते हैं । राख का कछडकाि करने से
सूक्ष्म जीिाणु िहाूँ पहुूँ च नहीों पाते हैं । िलोों का पोषण भी होता हैं ।

ज्वार में टर ायगा रोग


ज्वार के बीजोों के साि धकनया बोने से कनयोंत्रण होता हैं । गेहूँ में ताों बेरा –
गेहूँ के बीज दू ध में कभोंगो कर छाों ि में सुखाने के बाद बोने से गेंहुिा रोग
का खतरा कम होता हैं ।

अचिहोत्र
सारा पयाइ िरण ही प्रदू कषत हो गया तो िसल के किकास में रोगोों के कारण
बाध्य पडना अकनिायइ हैं । खे त में अकिहोत्र द्वारा िातािरण िुस्द्ध अकनिायइ
हैं ।

प्रिाशपाश –
लालिे न, पेिरोमॉक्स, या बल्ब को तीन तारोों में लिककर रात में खेत में
रखने पर पतोंग, कीिक आककषइत होोंगे। नीचे चौडे बतइन में केरोसीन
कमकश्रत पानी रखने से िे िकराकर बतइन में कगरें गे।
58
कचपकाने िाली कागज रखने पर भी कनयोंत्रण होगा। एक किि बाय
एक िीि िीन के पत्ते को कािकर उसके दोनोों बाजुओों पर पीला रों ग
लगायें। िह सू खने पर अों डी का तेल उसपर दोनोों ओर लगायें। सिेद
मक्खी कीि इसमें कचपक जायेंगे। िह पूरा कीिोों से पि जाने पर उसे
झोकर किि अोंडी का तेल लगाकर पत्ता खडा करें । एक एक़ड में पाूँ च
जगह पत्ते कािी हैं ।

प्रिृचत चनचमगत चमत्र –


प्रकृकत अपना सोंतुलन बनाये रखती हैं । िसल को नु कसान पहुूँ चाने िाले
कीिक प्राकणयोों का कनयमन करने िाले कीिक-प्राणी भी आगे आते हैं –
जैसे मेंढक, बत्तख-बगुले, साों प अन्य पछी – इनकी हम रक्षा करें ।

चिसान प्रयोगशील बनें –


गौमूत्र में बेल, महाकनम, तु लसी, नीम, सीतािल बेिरम, गाजर गित की
पकत्तयाों पोंद्रह बीस कदन रखने पर उनका दिा जैसा उपयोग होता हैं ।

िक्रव्यूह में फंसा चिसान


रासायकनक खादोों के कारण िसल तुरन्त बढने से पौधे नाजुक कमजोर
होने से बीमारी का तेज हमला होता हैं । उसे हिाने के कलए महों गी-
रासायकनक दिायें कछडकने से अनाज किषाि होता हैं । इन दिाओों के
आकद बन गये रोगाणु को नष्ट करने के कलए और अकधक किषैली और
अकधक महों गी दिाओों का इस्तेमाल करने से मनुष्य में बीमारी और जमीन
का स्तर कगरते जाना ऐसा दु ष्टचक्र िुरू होता हैं । पररिार के कलए दिा और
िसल के कलए दिा और खाद आकद खचे का बोझ असहय होने पर स्वयमि्
ककसान जहरीली दिा पीकर आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं ।

घर में गाय और खेत पर नीम िा पेड़


ककसान के ये दो मुस्िदाता हैं । गाय दू ध दे गी बैल ि खाद दिा दे गा। नीम
का पेड हर तरह की दिा के काम आयेगा। इन दोनोों की मदद से ककसान
पररिार रोगमुि ितायु बनने के रास्ते पर कदम बढा सकता हैं । स्वायत्त
समृद्ध कजोंदगी जी सकता हैं ।

िीटनाशि बनाने िी िुछ अन्य दे शी चवचियााँ


59
िपास िी खेती िे चलए

कपास की खेती में लगने िाले कीडोों के कलए एक ककलोग्राम नीम की


कनम्बोली, सौ ग्राम सोडा (कपडा धोने िाला) और 50 ग्राम लहसुन का रस
तीनोों को आपस में कमलाकर 15 लीिर पानी में कमलाकर िसल पर
कछडकाि करना चाकहए।
कपास की खेती के कलए 150 ककलोग्राम कनोंबोली की खली (कनोंबोली में से
तेल कनकालने के बाद बचा हुआ चूरा) प्रकत एक हे क्टेयर खेत में दस-पन्द्रह
कदन के अन्तर पर कछडकने से ककसी भी तरह का कीडा िसल पर नहीों
लगता।
मूूँगिली की खेती में कीिनािक के रूप में प्रयोग के कलए 1.5 ककलोग्राम
सीतािल के पत्तोों की चिनी बनाकर एक लीिर पानी में डालकर एक रात
तक रख दे ना चाकहए। इसके ही साि 500 ग्राम सूखी(लाल) कमचइ पानी में
रात भर के कलए रखकर तिा 2 लीिर पानी में 1 ककलोग्राम कनोंबोली को
पीसकर ऊपर से दो ककलोग्राम पानी कमलाकर एक रात रखकर, तीनोों द्रिोों
को 10 लीिर पानी में कमलाकर िसल पर कछडकना चाकहए। इससे सभी
हाकनकारक कीि समाप्त हो जाते हैं । यह दिाई बैंगन की िसल के ऊपर
भी डाली जा सकती हों ।
निकतया के 500 ग्राम पत्ते 2.5 लीिर पानी में डालकर इतना गमइ करें कक
पानी आधा रह जाए किर इस दिाई को 25 लीिर पानी में कमलाकर कपास
पर कछडकें।
केतकी के पेड के 500 ग्राम पत्ते दो लीिर पानी में इतना गरम करें कक
पानी आधा रह जाए किर इसे 50 लीिर पानी में कमलाकर कपास की
िसल पर कछडके।

ज्वार िी फसल िे चलए


• तीन ककलोग्राम नीम के पत्ते को पीसकर उसमें 300 ग्राम हल्दी
कमलायें। किर उसमें 5 लीिर गौमूत्र और 5 ककलोग्राम गाय गोबर
को 20 लीिर पानी में डालकर दो कदन तक रखने के बाद उसे
खूब कमलायें और दो सौ लीिर पानी में घोलकर खेती पर कछडकें,
सभी तरह के हाकनकारक कीि मर जायें गे।
• ककसी भी प्रकार की सब्जी के कलए 1 ककलोग्राम तम्बाकू को दो
लीिर खट्टी छाों छ में कमलायें । किर इस कमश्रण को 15 लीिर पानी
60
में कमला कर और हर 19 कदन के अन्तर पर सस्ब्जयोों पर कछडकें।
इससे कीि नहीों लगेंगे।
• 10 ककलोग्राम सूखी कनोंबोली को पीसकर पािडर बनायें किर उसे
एक कपडे में भरकर पोिली बनाकर 500 लीिर पानी में इस
पोिली को हाि से मसलकर रस कनकालें। यह ककसी भी तरह की
िसल के कलए उपयोगी हैं ।
• एक बतइन में 3 लीिर गौमूत्र, 3 ककलो गोबर और 3 लीिर पानी
कमलाकर इसमें 250 ग्राम पुराना गुड कमलायें । इस बतइन को इस
तरह बोंद करें कक हिा न जाये। 8 कदन बाद इस दिा को 200
लीिर पानी में कमलाकर िसल पर कछडके। पूरी िसल के दौरान
3-4 बार कछडक सकते हैं ।
• 100 लीिर गौमूत्र में 7 ककलो नीम के पत्ते, 7 ककलो आकडा के
पत्ते और 7 ककलो सीतािल के पत्ते कमलाकर 15 कदन तक रखें ।
किर 15 कदन बाद इसमें 100 ग्राम लहसुन का अकइ कमलाकर गमइ
करें । अब इसमें से आधा लीिर दिा 100 लीिर पानी के अनुपात
में कमलाकर िसल पर कछडकें। यह सभी िसलोों पर काम आती
हैं ।
• 3 ककलो ग्राम गन्धती के पत्ते 20 लीिर पानी में डालकर गमइ करें ।
इतना गरम करें कक पानी 5 लीिर रह जाए। किर इसमें से 100
ग्राम दिा लेकर 15 लीिर पानी में कमलायें और िसल पर कछडकें।
यह दिा भी सभी िसलोों के कलए उपयोगी हैं ।
• 3 ककलोग्राम रतनजोत के पत्ते 20 लीिर पानी में तब तक उबालें
जब तक पानी एक-चौिाई न रह जाए। किर इसमें 100
कमलीलीिर दिा 15 लीिर पानी में कमलाकर कछडके। यह दिा
सभी िसलोों पर उपोयगी हैं , लेककन आम की िसल पर अत्यन्त
उपयोगी हैं ।

िान िी खेती िे चलए


• 1 ककलोग्राम रामी के पत्तोों का रस कनकालकर 10 लीिर पानी में
डालें और गमइ करें । किर इस दिा को 100 लीिर पानी में
कमलाकर धान की िसल पर कछडके।

61
गौमाता चिचित्सा शास्त्र :
गौमाता एक चलती किरती कचककत्सालय है । गाय के रीढ में सूयइ केतु नाडी
होती है जो सूयइ के गुणोों को धारण करती है । सभी नक्षत्रोों की यह ररसीिर
है । यही कारण है कक गौमूत्र, गोबर, दू ध, दही, घी में औषधीय गुण होते हैं ।

1. गौमूत्र :- आयुिेद में गौमूत्र के ढे रोों प्रयोग कहे गए हैं । गौमूत्र को


किषनािक, रसायन, कत्रदोषनािक माना गया है । गौमूत्र का रासायकनक
किश्लेषण करने पर िैज्ञाकनकोों ने पाया, कक इसमें 24 ऐसे तत्व हैं जो िरीर
के किकभन्न रोगोों को ठीक करने की क्षमता रखते हैं । गौमूत्र से लगभग 108
रोग ठीक होते हैं । गौमूत्र स्वथि दे िी गाय का ही लेना चाकहए। काली
बकछया का हो तो सिोत्तम। बूढी, अस्वथि ि गाकभन गाय का मूत्र नहीों लेना
चाकहए। गौमूत्र को काों च या कमट्टी के बतइन में लेकर साि सूती कपडे के
आठ तहोों से छानकर चौिाई कप खाली पेि पीना चाकहए।

गौमूत्र से ठीक होने िाले कुछ रोगोों के नाम – मोिापा, कैंसर, डायकबिीज,
कब्ज, गैस, भूख की कमी, िातरोग, कि, दमा, ने त्ररोग, धातुक्षीणता,
स्त्रीरोग, बालरोग आकद।

गौमूत्र से चवचभन्न प्रिार िी औषचियााँ भी बनाई जाती है –

• गौमूत्र अकइ(सादा)
• औषकधयुि गौमूत्र अकइ(किकभन्न रोगोों के कहसाब से)
• गौमूत्र घनबिी
• गौमूत्रासि
• नारी सोंजीिनी
• बालपाल रस
• पमेहारी आकद।

62
2. गोबर :-

• गोबर किषनािक है । यकद ककसी को किषधारी जीि ने काि कदया


है तो पूरे िरीर को गोबर गौमूत्र के घोल में डु बा दे ना चाकहए।
• नकसीर आने पर गोबर सुोंघाने से लाभ होता है ।
• प्रसि को सामान्य ि सुखद कराने के समय गोबर गोमूत्र के घोल
को छानकर 1 कगलास कपला दे ना चाकहए(गोबर ि गौमूत्र ताजा
होना चाकहए)। गोबर के कण्डोों को जलाकर कोयला प्राप्त ककया
जाता है कजसके चूणइ से मोंजन बनता है । यह मोंजन दाों त के रोगोों में
लाभकारी है ।

3. दू ि : – गौदु ग्ध को आहार िास्स्त्रयोों ने सम्पूणइ आहार माना है और पाया


है । यकद मनुष्य केिल गाय के दू ध का ही सेिन करता रहे तो उसका िरीर
ि जीिन न केिल सुचारू रूप से चलता रहे गा िरनि् िह अन्य लोगोों की
अपकक्षा सिि और रोग प्रकतरोधक क्षमता से सोंपन्न हो जाएगा। मानि
िरीर के कलए आिश्यक सभी पोषक तत्व इसमें होते हैं । गाय के एक
पौण्ड दू ध से इतनी िस्ि कमलती है , कजतनी की 4 अण्डोों और 250 ग्राम
माों स से भी प्राप्त नहीों होती। दे िी गाय के दू ध में कििाकमल ए-2 होता है
जो कक कैंसरनािक है , जबकक जसी(किदे िी) गाय के दू ध में कििाकमन ए-
1 होता है जो कक कैंसरकारक है । भैंस के दू ध की तु लना में भी गौदु ग्ध
अत्यन्त लाभकारी है ।

दस्त या आों ि हो जाने पर ठों डा गौदु ग्ध(1 कगलास) में एक नीोंबू कनचोडक़र
तुरन्त पी जािें। चोि लगने आकद के कारण िरीर में कहीों ददइ हो तो गमइ
दू ध में हल्दी कमलाकर पीिें। िी.बी. के रोगी को गौदु ग्ध पयाइ प्त मात्रा में
दोनोों समय कपलाया जाना चाकहए।

4. दही : – गकभइणी यकद चाूँ दी के किोरी में दही जमाकर कनत्य प्रात: सेिन
करे तो उसका सन्तान स्वथि, सुन्दर ि बुस्द्धिान होता है । गाय का दही
भूख बढाने िाला, मलमूत्र का कन:सरण करने िाला एिों रूकचकर है । केिल
दही बालोों में लगाने से जुएों नष्ट हो जाते हैं । बिासीर में प्रकतकदन छाछ का

63
प्रयोग लाभकारी है । कनत्य भोजन में दही का सेिन करने से आयु बढती
है ।

पंिगव्य
पंिगव्य का कनमाइ ण गाय के दू ध (गोदु ग्ध), दही (गोदकध), घी (गोघृ त), मूत्र
(गोमूत्र), एिों गोबर (गोमय) के कििेष अनुपात के सस्म्मश्रण से ककया
जाता है । पोंचगव्य का कनमाइ ण दे सी मुि िन किचरण करने िाली गायोों से
प्राप्त उत्पादोों द्वारा ही करना चाकहए।

पं िगव्य िा िाचमगि महि


इसे किकिध रूपोों में प्रयोग ककया जाता है । कहन्दु ओों के कोई भी माों गकलक
कायइ इनके कबना पूरे नहीों होते। भारत के गाों ि-गाों ि और िहर-िहर में
आज भी माों गकलक उत्सिोों, पूजा-पाठ में प्रसाद के रूप में पोंचगव्य
कितरण को ही प्रधानता दी जाती है । गृह िुस्द्ध और िरीर िुस्द्ध के कलए
पोंचगव्योों का प्रयोग ककया जाता है । "धमइिास्त्र" के अनुसार ककसी पाप
के प्रायकश्चत के रूप में पोंचगव्योों को पान करने का किधान है । पोंचगव्य
का पान करने से पहले बोलें - "हे सूयइदेि! हे अकिदे ि! आप तन, मन,
बुस्द्ध और हकड्डयोों तक के रोगोों को नष्ट करने िाले हैं । मैं इसका पान
करता हूँ ।" ऐसा 3 बार बोलें। किर 2-3 घों िे तक कुछ नहीों खाना-पीना
चाकहये।

पं िगव्य िा चिचित्सिीय महि


आयुिेद में इसे औषकध की मान्यता है । पाों चोों का सस्म्मश्रण कर यकद किकध
पूिइक उसका प्रयोग ककया जाए तो यह हमारे आरोग्य और स्वास्थ्य के
कलए रामबाण हो जाता है । पोंचगव्य द्वारा िरीर के रोगकनरोधक क्षमता
को बढाकर रोगोों को दू र ककया जाता है । यह सब अलग-अलग और एक
सस्म्मश्रण के रूप में श्रेष्ठ औषधीय गुण रखते हैं , िह भी कबना ककसी
परािती दु ष्प्रभाि के। इसके अकतररि यकद हम कोई अन्य औषकध ले रहे
हैं तो पोंचगव्य एक रासायकनक उत्प्रेरक (कैिकलस्ट) का काम करता है ।

64
गाय एि पयागवरण शास्त्र :

• गाय के रम्भाने से िातािरण के कीिाणु नष्ट होते हैं । सास्त्वक तरों गोों
का सोंचार होता है ।
• गौघृत का हिन करने से आक्सीजन पैदा होता है । – िैज्ञाकनक
किरोकिचा, रूस
• गोंदगी ि महामारी िैलने पर गोबर गौमूत्र का कछडक़ाि करने से
लाभ होता है ।
• गाय के प्रश्वाों स, गोबर गौमूत्र के गोंध से िातािरण िुद्ध पकित्र होता
है ।
• घिना – िी.बी. का मरीज गौिाला मे केिल गोबर एकत्र करने ि
िहीों कनिास करने पर ठीक हो गया।
चवश्वव्यापी आस्िि एवं अणु रज िे घाति दु ष्पररणाम से बिने िे
चलए रूस िे प्रचसद्ध वैज्ञाचनि चशरोचवि ने सुझाव चदया है –

• प्रत्येक व्यस्ि को गाय का दू ध, दही, छाछ, घी आकद का सेिन


करना चाकहए।
• घरोों के छत, दीिार ि आों गन को गोबर से लीपने पोतने चाकहए।
• खेतोों में गाय के गोबर का खाद प्रयोग करना चाकहए।
• िायुमण्डल को घातक किककरण से बचाने के कलए गाय के िुद्ध घी
से हिन करना चाकहए।
• गाय के गोबर से प्रकतिषइ 4500 लीिर बायोगैस कमल सकता है ।
अगर दे ि के समस्त गौिोंि के गोबर का बायोगैस सोंयोंत्र में
उपयोग ककया जाय तो ितइ मान में ईोंधन के रूप में जलाई जा रही
6 करोड 80 लाख िन लकउे़ी की बचत की जा सकती है । इससे
लगभग 14
• करोड िृक्ष किने से बच सकते हैं ।

65
गाय एि अिगशास्त्र :
सबसे अकधक लाभप्रद, उत्पादन एिों मौकलक व्यिसाय है ‘गौपालन’। यकद
एक गाय के दू ध, दही, घी, गोबर, गौमूत्र का पूरा-पूरा उपयोग व्यिसाकयक
तरीके से ककया जाए तो उससे प्राप्त आय से एक पररिार का पलन आसानी
से हो सकता है ।
यकद गौिोंि आधाररत कृकष को भी व्यिसाय का माध्यम बना कलया जाए
तब तो औरोों को भी रोजगार कदया जा सकता है ।

• गौमूत्र से औषकधयाूँ एपों कीि कनयोंत्रक बनाया जा सकता है ।


• गोबर से गैस उत्पादन हो तो रसोई में ईोंधन का खचइ बचाने के
साि-साि स्लरी खाद का भी लाभ कलया जा सकता है । गोबर से
काला दों त मोंजन भी बनाया जाता है ।
• घी को हिन हे तु किक्रय करने पर अच्छी कीमत कमल सकती है ।
घी से किकभन्न औषकधयाूँ (कसद्ध घृत) बनाकर भी बेची जा सकती
है ।
• दू ध को सीधे बेचने के बजाय उत्पाद बनाकर बेचना ज्यादा
लाभकारी है ।

गाय एि िृचषशास्त्र :
कमत्रोों! गौिोंि के कबना कृकष असोंभि है । यकद आज के तिककित िैज्ञाकनक
युग में िैि् रक्टर, रासायकनक खाद, कीिनािक आकद के द्वारा कबना गौिोंि
के कृकष ककया भी जा रहा है , तो उसके भयोंकर दु ष्पररणाम से आज कोई
अनजान नहीों है ।

यकद कृकष को, जमीन को, अनाज आकद को बबाइ द होने से बचाना है तो
गौिोंि आधाररत कृकष अिाइ ति् प्राकृकतक कृकष को पुन: अपनाना अकनिायइ
है ।

66
आइए चवषय िो आगे बढाने िे पूवग एि गीत गाते हैं -

बोलो गौमाता की – जय

गौमाता तो चलती किरती, अमृत की है खान रे ।

गौमाता को पिु समझने , िाला है नादान रे ।।

गौमाता के आसपास में , रहते सब भगिान रे ।

गौमाता की से िा कर लो, कर लो कर लो गों गा नहानि् रे ।।

गौमाता खुिहाल तो बनता, कबगडा दे ि महान रे ।

गौमाता बदहाल तो होता, सारा दे ि बे हाल रे ।।

गौ के गोबर में रहता है , लक्ष्मी का िरदान रे ।

कौन करे गा पूरा-पूरा, गौ के गुण का गान रे ।।

भू सा खाकर जग को दे ती, माखन सा िरदान रे ।

गौमाता को पिु समझने , िाला है नादान रे ।।

❖ एक पुरानी कहाित है –

उत्तम खेती, मध्यम बाण, िरे िािरी िुिर चनदान।

रासायकनक खेती से जमीन धीरे -धीरे बोंजर हो रही है । पोंजाब, उ.प्र. ि


हररयाणा प्रदे ि के खेत अत्यकधक रासायकनक खाद डालने के कारण बबाइ द
होते जा रहे हैं । पोंजाब के कई गाूँ ि ऐसे हैं जहाूँ के खे त अब पूरी तरह से
67
बोंजर हो चके हैं । बैल के थिान पर िर ै क्टर से जुताई करने से खेत के केंचुए
मर जाते हैं डीजल का धुआों प्रदू षणकारी है ।

मानि जाकत ि पयाइ िरण पर कहर ढाती रासायकनक कृकष की कहानी यहीों
समाप्त नही होती। इस खेती से प्राप्त अनाज, िल, सस्ब्जयाूँ सब जहरीली
होती है कजससे ढे रोों ककस्म की बीमाररयाूँ बच्चे बूढे जिान सभी को लीलती
जा रही है । इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कक रासायकनक और यास्िक
कृकष हर दृकष्ट से हाकनकारक है । कृकष का उद्धार करना है तो गौिोंि
आधाररत प्राकृकतक कृकष को ही अपनाना पडे गा। गौपालन के कबना
प्राकृकतक कृकष और प्राकृकतक कृकष के कबना गौपालन सों भि नहीों है । कमट्टी
में कभी िे सभी तत्व मौजूद है जो पेड पौधोों को चाकहए, लेककन िह जकिल
होते हैं । सूक्ष्म जीि एिों केचए आकद कमट्टी के ककठन घिकोों को सरल
घिकोों में किघकित कर दे ते हैं , कजसे पेड पौधे आसानी से खीोंच सकते हैं ।
गाय के एक ग्राम गोबर में 300 से 500 करोड तक ऐसे ही सूक्ष्म जीिे होते
हैं । ये सूक्ष्म जीि जमीन के केचुओों को सकक्रय करने का भी काम करते
हैं । केंचुए कमट्टी में खूब सारे छे द करके उसे कृकष योग्य पोला बना दे ते हैं ।
केंचुए कमट्टी को खाकर सरल पोषक तत्वोों में बदलते रहते हैं ।

‘गोबर जीिामृत’ सूक्ष्म जीिोों का महासागर है । इसे बनाकर खेत, बागिानी


में हर पन्द्रह कदन में डाला जाए। कजस प्रकार दू ध को जमाने के कलए एक
चम्मच जामन पयाइ प्त है ठीक उसी प्रकार खेत में सू क्ष्म जीिोों ि केंचुओों
का जमािडा करने के कलए एक एकड खेत में 200 लीिर जीिामृत जामन
का काम करती है ।

‘गोबर जीवामृत’ िैसे बनाएं ?

10 कडस्स्मल के कलए 20 लीिर जीिामृत बनाने का तरीका –

सामग्री :-

ताजा गोबर – 1 कक.ग्रा.,


पुराना गौमूत्र – 1 लीिर,
68
पुराना गुड – 250 ग्राम,
बेसन – 250 ग्राम,
बडे पेड के जड की कमट्टी - 1 मुठ्ठी
पानी – 20 लीिर।

चवचि :- सबको एक बडे प्ास्स्टक बाल्टी में कमला दें । लकडी से घोलें। दो
कदन बाद जीिामृत तैयार है । अगले सात कदनोों के अन्दर कछडक़ाि कर दें ।

पंिगव्य िा नुस्खा
5 ककलो गाय का ताजा गोबर, 3 लीिर गाय का मूत्र, 2 लीिर गाय का
दू ध, आधा ककलोग्राम गाय का घी, 2 लीिर गाय के दू ध से बनाया गया
दही, 3 लीिर गन्ने का रस, 3 लीिर ताड या अोंगूर का रस। जब इन
सबको आप कमलाएों गे, तो 20 लीिर पोंचगव्य बनेगा।

इसको बनाने के कलए कमट्टी का बना हुआ बडे मुूँह के आकार


का मिका, कोंक्रीि का बना िैं क या प्ास्स्टक का कैन लें। यह याद रहे
कक आपने जो बतइन कलए हैं , िह ककसी धातु के न होों। अब सबसे पहले
ताजे गोबर और घी को उस बतइन में डालें और लगभग तीन कदनोों तक
कदन में दो बार उन्ें कमलाते रहें । 18 कदन बाद इस कमश्रण को ककसी
अोंधेरी जगह में रखें और ककसी जाली स ढक दें , ताकक उसमें मस्क्खयाों न
जाएों । यकद आपके पास गन्ने का रस नहीों हैं , तब 500 ग्राम गुड को 3
लीिर पानी में कमला लें। यकद ताड का रस नहीों हैं , तब 2 लीिर पानी में
कमला लें। यकद ताड का रस नहीों हैं , तब 2 लीिर ताजे नाररयल का पानी
10 कदनोों के कलए एक बोंद प्ास्स्टक के बतइन में रखे। खराब होने के बाद
यह ताड के रस का रूप ले लेगा। इस पोंचगव्य कमश्रण को छह महीनोों
तक रखा जा सकता हैं और जब यह पतला होने लगे, तब इसमें पानी
69
कमलाकर तरल पदािइ का रूप दे सकते हैं । इस पोंचगव्य कमश्रण में पौधोों
के किकास के कलए जररी पोषक तत्व िाकमल होते हैं और इन तत्वोों को
िैज्ञाकनक प्रयोगिालाओों और दे िभर के ककसानोों द्वारा प्रामाकणत ककया
जा चुका हैं । अब तीन लीिर पोंचगव्य कमश्रण को 100 लीिर पानी में
कमलाएों और इसे छानकर सभी िसलोों पर कछडके। इसका उपयोग कडरप
या प्रिाह कसोंचाई के रूप में भी ककया जा सकता हैं । जब आप
बीजोरोपण कर रहे हैं , तो उससे 20 से 30 कमनि पहले बीजोों को इस
कमश्रण में कभगोों सकते हैं । अब बीजारोपण के 20 कदन बाद इस कमश्रण
को कछडकें और िूल कनकलने से पहले के चरण में 15-15 कदनोों के
अोंतर में भी कछडक सकते हैं । जब िूलोों के कनकलने का समय हो जाए,
तब 10-10 कदनोों के अोंतर में और जब िली का पररपक्व अिथिा आ
जाए, तब एक बार इसे कछडके। इसका उपोयग कुछ िूलोों, िलोों और
सस्ब्जयोों पर भी ककया जा सकता हैं । जैसे कक आम, नीब ों ू, अमरूद, केला
आकद। हल्दी और सस्ब्जयोों में इसके उपयोग से उपज में चमत्काररक
िृस्द्ध दे खने को कमली हैं । साि ही सस्ब्जयाूँ और िल लोंबे समय तक
ताजा बने रहते हैं ।

स्वाद बेचमसाल
इस किकध से स्वाद भी अच्छा बनता हैं । धान में उपयोग करें तो बाकलयाों
अच्छी बनती हैं और कुिाई के दौरान चािल कम िू िते हैं । पोंचगव्य का
प्रयोग गन्ना, सरसोों मूोंगिली, ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, गेहूँ, सूरजमुखी
और नाररयल आकद की िसलोों में भी ककया गया हैं । इन सभी में पोंचगव्य
ने िसलोों की िृस्द्ध और कीि अिरोधक का काम ककया हैं । आप इसे
अपने बाग-बगीचोों और घर के बाहर लगे पेडोों में भी उपयोग कर सकते
हैं ।

70
गौ चिचित्सा

गौ चिचित्सा-घाव-फोड़ा,फुन्सी िे िीड़े
१ – सूजन (Swelling )
================
प्राय: पिु के िरीर के ककसी अोंग मे चोि लग जाने ,गन्दा मादा एककत्रत हो
जाने अििा िोडा- िुन्सी आकद उठने , घाि पक जाने या सदी आकद
कारणोों से प्रभाि से सूजन उत्पन्न हो जाती है ।
कजस थिान पर सूजन होती हैं ,पिु के िरीर का िह थिान उभरा हुआ- सा
कदखाई दे ता हैं । उसमे ददइ होता हैं और दबाने से कडापन महसुस होता
हैं । स्पिइ करने से िह थिान गरम भी प्रतीत होता हैं । पिु सूजन के कारण
बेचैन रहता हैं तिा कभी- कभी उसे बुखार भी हो जाता है ।

यकद सूजन की उत्पकत्त का कारण चोि लगना अििा घाि आकद हो तो –


नीम के उबाले हुए जल से पीकडत थिान को भली-भाूँ कत धोये तिा उसी से
सेंक करे । तदु परान्त कनम्ाों ककत दिा तैयार करके उस थिान पर लगा दे ।

1 – औषचि – तिे को चू ल्हे पर चढाकर उसमे घी और कपसी हुई हल्दी


डालकर अच्छी तरह पका लें और किर रूई के फाहे पर रखकर सूजन
िाले थिान पर रखकर बाूँ ध दे ना चाकहए । इस प्रयोग से १-२ कदन मे ही
सूजन दू र हो जाती है ।
2 – औषचि – भुना हुआ कपूर अििा खील ककया हुआ सुहागा सममात्रा
में कतल के तै ल, गाय का घी अििा िैसलीन या मक्खन मे कमलाकर सूजन
के ऊपर लेप करने से भी , सूजन नष्ट होती हैं ।
3-औषचि – गरम ईोंि , रे त आकद गरम करके कपडे की पोिली बाूँ धकर
उससे सेंक करना भी लाभकारी कसद्ध होता हैं । ककन्तु पोिली की सेंक
करने से पहले सूजन पर िाडा तैल अििा घी चुपड लेना चाकहए ।

4-औषचि – लहसुन १ भाग और २ भाग आिा लेकर कसलबट्टे पर पीसें ।


जब यह मरहम के रूप मे आ जाये तो उसे गरम करके कपडे पर िैलाकर
सूजन पर कचपका दें ।

71
रोग – पशुओ ं िे घाव में िीड़े पड़ जाने पर ।
==============================

िारण व लिण – अक्सर यह रोग घाि पर एक प्रकार की हरी मक्खी के


बैठने से होता है । पहले मक्खी घाि पर अपना सफेद मल ( अघाडी ) छोड
दे ती है । िही मल कदनभर में कीडे के रूप में बदल जाता है । एक कििेष
प्रकार की सफेद मक्खी , जो कक आधा इों च लम्बी होती है , िह मल के
रूप में कीडे ही छोडती है ।

1 – औषचि – रोग – ग्रस्त थिान पर, घाि में बारीक कपसा हुआ नमक भर
कदया जाय और पट्टी बाूँ ध दी जाय, कजससे घाि पक जायगा और कीडे भी
मर जायेंगे । घाि पकने पर कीडे नहीों पडते हैं ।
2-औषचि – अजिायन के तैल को रूई से घाि पर लगाकर पट्टी बाूँ ध दे ने
से कीडे एकदम मर जाते है । अजिायन का तैल ककसी और जगह पर लग
जाय तो तुरन्त नाररयल का तैल लगा दे ना चाकहए , अन्यिा चमडी कनकलने
का भय रहता है ।
3-औषचि – मोर पोंख जलाकर राख १२ ग्राम , नाररयल तै ल १२ ग्राम ।
मोरपोंख को जलाकर छान लें किर उसे तेल में कमलाकर घाि पर लगा दें
। और रूई कभगोकर घाि पर रखकर ऊपर से पट्टी बाूँ ध दें । किर कमट्टी
से उस पर लेप कर दें ।
4– औषचि – यकद घाि मे कीडे पड गये हो तो उन्े अच्छी तरह से साफ
करके सरसोों के तैल में – तारपीन का तैल या युककलप्टस का तैल या कपूर
का तै ल कमलाकर लगाना लाभप्रद होता है ।

फोड़ा – फुन्सी व घाव


====================

िारण व लिण – चोि , सदी , गमी , अििा अन्य ककसी ख़राबी के कारण
पीि – मिाद एककत्रत हो जाने से कभी – कभी पिु के िरीर के ककसी
कहस्से में सूजन हो जाती हैं , कजसे िोडा या िुन्सी कहते हैं ।

1 – औषचि – नीम की छाल , अजिायन , या रूस के पत्ते ( प्रत्येक


72
सममात्रा मे लेकर ) पानी मे कमलाकर पीसकर गरम करके बाूँ धने से
िुस्न्सयाूँ पिक जाती हैं ।

2 – औषचि – सोया का बीज हल्दी ,धकनया , बाबूना के पत्ते , सभी सममात्रा


मे लेकर पानी मे पीसकर गरम करके िोडा पर बाूँ ध दे ना चाकहए ।

यचद इन सभी दवाओं िे प्रयोग से फोड़ा न बैठे तो नीिे चलखी


दवाओं िा प्रयोग िरिे फोड़े िो पिािर उसिा पस ( मवाद )
चनिाल दे ना िाचहए ।

3 – औषचि – चािल को गाय के दू ध से बनी मट्ठा ( छाछ ) के साि


पीसिाने के बाद उसमे नमक कमलाकर आग पर पका लें तदु परान्त इस
पुस्ल्टस को िोडे पर बाूँ धें इस प्रयोग से िोडा पककर िूि जायेगा ।

4– औषचि – गुगल पीसकर उसमे िहद कमलाकर गरम करके इसका


लेप करना कारगर कसद्ध होता हैं ।

5– औषचि – गेह का दकलया और दही पकाकर गुनगुना ही िोडे पर


बाूँ धने से िोडा पककर िूि जाता हैं ।

6-औषचि – घाि की मस्क्खयाूँ आकद से बचाने के कलए – नीम के तैल मे


िोडा – सा कपूर कमलाकर लगाना लाभप्रद होता हैं ।

घाव मे िीड़े हो जाना


======================

िारण व लिण – प्राय: घाि हो जाने पर असािधानीिि तिा उसको


ककसी उकचत ककिाणुनािक घोल से धोकर साफ न करने के कारण पिुओों
के घाि में कीडे हो जाते हैं । कजसके कारण पीकडत पिु को अत्यकधक कष्ट
होता हैं , पिुओों के घाि पर मस्क्कयाूँ बैठकर मल त्याग कर दे ती हैं ।
इसको साफ न करने से भी घाि मे कीडे पड जाते हैं ।

73
सिइप्रिम घाि को हुक्के के पानी से धोकर साफ कर लेना चाकहए तदु परान्त
आगे कलखी दिाओों का प्रयोग करना चाकहए —

1 – औषचि – तम्बाकू के पत्ते और कििकरी पीसकर पिुओ के घाि मे


भर दे ने से कीडे मर जाते हैं ।

2 – औषचि – तारपीन का तैल २५० ग्राम , और कपूर १० ग्राम , आग मे


कुछ गरम करके कपचकारी दे ने से भी कीडे मर जाते हैं ।

3 – औषचि – गाय के गोबर से बने कण्डे या आरने की राख को छानकर


सरसोों के तैल मे कमलाकर पिुओों के कृकमयुि घाि मे लगाने से उनके
घाि के कीडे मर जाते हैं ।

4 – औषचि – सरसोों का तै ल १ ककलो , नीम का तै ल , कनइल ( ककणइकर


) प्याज़ की लूगदी और तुकतया प्रत्येक २५०-२५० ग्राम , लेकर सभी सभी
को महीन पीसकर और एक ही में कमलाकर तिा पकाकर मलहम बनाकर
सुरकक्षत रख लें । इस मलहम को प्रकतकदन पिुओ के ज़ख़्म पर लगाने से
घाि में उत्तपन्न हो जाने िाले कीडे मर जाते हैं ।

यह मरहम प्रत्येि प्रिार िे िीड़ों पर लगाया जाये तो सभी िा


सफाया िरने मे िारगर चसद्ध हुआ हैं ।

िोट लगना या िट जाना


============================

1– औषचि – यकद ककसी ते ज़धार िाले औज़ार से या ककसी कठोर िस्तु से


पिु के ककसी अों ग के कि जाने अििा चोि लग जाने के कारण रि
प्रिाकहत होने लगे तो भूना हुआ सुहागा ( सु हागा खील ) पीसकर किे हुए
थिान पर लगा दे ने से रि कनकलना रूक जाता हैं ।

2 – औषचि – पीने िाले तम्बाकू की जली हुई राख ( तम्बाकू गुल ) को

74
बारीक पीसकर उसे पिु के िरीर आक्रान्त थिान पर भरकर ऊपर से
केले का पत्ता कसकर बाूँ ध दे ने से बहता हुआ रि रूक जाता हैं ।

3 – औषचि – पुराने कम्बल को जलाकर उसकी भस्म घाि मे भर दे ने से


पिु के िरीर से ख़ून का स्राि रूक जाता हैं ।

प्रािकमक उपचार के रूप मे ककसी भी किे थिान को कपडे से कसकर


बाूँ ध दे ना चाकहए तिा ऊपर से बफइ से कसकाई करने से बहता हुआ ख़ून
जमकर रूक जायेगा ।

गौ – चिचित्सा .गभग समस्या ।


गभग सम्बंिी रोग व चनदान
=======================

1– गभग पात रोग


==============
कारण ि लक्षण – यह एक प्रकार का छूत का रोग है । कभी-कभी कोई
गभइिती मादा पिु आपस में लड पडती है , उससे गभइपात हो जाता है ।
गकभइणी को अकधक गरम िस्तु स्खला दे ने से और गमी में रखने से भी यह
रोग हो जाया करता है । उस हालत में कभी कोई साूँ ड या बैल या बछडा
उसके साि सों योग कर लें तो गभइपात हो जाता है ।
रोगी गकभइणी ( गाकभन गाय या भैंस आकद ) के गभाइ िय तिा योकनमागइ पर
सूजन आ जाती है । कनकश्चत समय के पूिइ ही बच्चा कगर जाता है । गभइपात
के पश्चाति् जेर ( झर ) का न कगरना , पेिाब बदबूदार होना आकद इसके
लक्ष्ण है ।
गभइपात के बाद रोगी मादा पिु को दू सरी बार गभइ रहे तो ५ माह बाद
उसे नीचे कलखी दिा दे नी चाकहए , ताकक उि बीमारी की आिोंका न रहे ।

1-औषचि – गाय के दू ध से बनी दही 480 ग्राम , गूँिारपाठा ( घृतकुमारी


) 470 ग्राम , पानी 720 ग्राम , गूँिारपाठा का गूद्दा कनकालकर दही में
कमलाकर पान के साि रोगी पिु को कपलायें ।

75
2– गाय- भैंस िा गभग िारण न िरना
==========================
िारण व लिण – साधारणत: अकधक कमज़ोर पिु कनकश्चत समय पर गभइ
नहीों धारण करते । मादा पिु सयोोंग करने की इच्छा नहीों प्रकि करती है
और इस ओर से पुणइ उदास रहती है ।

1 – औषचि – छु िारे ४नग सेंककर उसका बीज कनकालकर िेंक कदया


जाय । उसके गूदे को रोिी के साि रोगी पिु को ८ कदन तक रोज़ सुबह
स्खलाया जायें ।
2– औषचि – रोगी पिु को मूूँगिली का तै ल ४८० ग्राम , एक कदन छोडकर
४ बार कपलायें ।

3 – गाय, भैंस िा बार – बार गाचभन होना


=============================
कारण ि लक्षण – यकद गाय , भैंस आकद को अकधक मात्रा में गरम चीज़ें
खा लेने के कारण उनके िरीर का ताप बढ जाता है । और उनमे बार –
बार गाकभन होने का रोग पैदा हो जाता है । साूँ ड में कोई दोष होने के
कारण भी ये रोग पै दा होता है । मादा पिु में अकधक चबी होने के कारण
भी यह रोग होता है । ऐसी स्थिकत में पिु बार- बार गाकभन होती रहती है
और गाकभन नहीों रहती है ।

1 – औषचि – मादा पिु जैसै ही गभइधारण करे याने सोंयोग करें िैसे ही
उसे धीरे से ज़मीन पर कगराकर उसे ४-५ पल्टी दी जाय किर उसका मुूँह
ऊपर करके बाूँ ध कदया जाय । और १२ घन्टे तक उस पिु को बैठने नहीों
कदया जाय । केिल उसे पानी ही कपलाया जाये और २४ घन्टे तक घास
कबलकुल खाने न कदया जायें ।

2 – औषचि – गाय का घी २४० ग्राम , कत्था ६० ग्राम , केले की जड का


रस १२० ग्राम , पहले केले की जड को कूि कर उसका रस कनकाल कर ,
घी को गरम करके सभी चीज़ें आपस में कमलाकर रोगी पिु को दोनोों समय
कपलाया जायें ।

76
3 – औषचि – असली कसन्दु र ९ ग्राम , गाय का दू ध २४० ग्राम , कमट्टी ४०
ग्राम , कमट्टी को दू ध में घोलकर कपडछान कर लें । यह दिा केिल एक
कदन ही दोनोों समय दे नी चाकहए ।

4 – औषचि – रोगी पिु के कान कािकर कान मे कगोोंरे बना कदये जायें
कजससे पिु कमज़ोर होकर गभइधारण कर लेगा और खान – पान में पिु
को उत्ते जक पदािइ नहीों स्खलाना चाकहए ।

4 – पशुओ ं में चडचलवरी व हीट समस्या ।


=============================
छु िारे ले कर उनकी गीरी कनकालकर छु िारोों में गुड भरकर और छु िारोों को
गुड में लपे िकर रोिी में दबाकर ७-८ कदन तक गाय को स्खलाने से गाय हीि
पर आती है ।

5– – गभागिान िे बाद गाय अवश्य गाचभन रहे इसिे चलए –


===================================
औषचि – गभाइ धान से पहले गाय की योकन में ककसी पलास्टीक के पतले पाईप
मे ५ ग्राम सुूँ घने िाला तम्बाकू पीसकर भर लें और पाईप को योकन में अन्दर
डालकर ज़ोर से िूूँक मार दें , कजससे िह तम्बाकू योकन में अन्दर चला
जायें ,किर गभाइ धान कराये तो गाय अिश्य ही गाकभन रहे गी ।

6 – गाय – भैंस चडचलवरी िे बाद यचद जेर नही ं डालती तो उसिा


उपिार
========================================
1 – औषचि – कचरकचिा ( अपामागइ ) के पत्ते तोडकर उन्ें रगडकर बत्ती
बनाकर गाय – भैं स के सीोंग ि कानोों के बीच में इस बत्ती को िूँसा कर ,मािे
के ऊपर से ले कर कान ि सीोंगोों के बीच से कपडा लेते हुए कसर के ऊपर गाूँठ
बाूँ ध दे िें , गाय तीन चार घोंिे में ही जेर डाल दे गी ।

7 – जेर ( बे ल ) डालने िे चलए ।


========================
औषचि – कडकलिरी के बाद जब गाय का बच्चा अपने पैरोों पर खडा हो जाये
, तब गाय का दू ध कनकाले और उसमें से एक चौिाई दू ध को गाय को ही पीला
दें ,और बाद मे बाजरा , कच्चा जौों , कच्चा कबनौला , आपस में कमलाकर गाय
77
के सामने रखें इस आनाज को खाने के २-३ घोंिे के अन्दर ही गाय जेर डाल
दे गी और उसका पेि भी साफ हो जायेगा ।

8 – रोग – गाय िे ब्याने िे बाद उसिा चपछला चहस्सा ठण्डे पानी से


िोने िे िारण , गाय िा शरीर जूड़ जाने पर ।

औषचि – अलसी के बीज १५० ग्राम को कढाई में भूनकर , १५० ग्राम गुड में
कमलाकर गाय को स्खलाने से िह गाय जो अकड गयी िी िह खडी हो जायेगी
तीसरे कदन किर से एक खुराक दे ना चाकहए । बाद उसका कपछला कहस्सा ठण्डे
पानी से धोने के कारण , गाय का िरीर जूड जाने पर ।

उपिार – ज़ख़्म पर सुई – धागा द्वारा िाूँ का लगा दे ना चाकहए तिा गोमूत्र
से धुलाई करके महकिा का रस डालने से ख़ून बन्द हो जायेगा तिा बाद
मे दण्डोत्पलक की जड को कघसकर उसका पेस्ट बनाकर गेन्दें के रस में
कमलाकर मरहम की तरह लगा दे िें ।

गौमाता िे चलए होम्योपैिी उपिार


➢ चोि, ददइ , खून आने पर - ARNICA MONT 1M
➢ गोबर पतला होने पर, पतले दस्त के कलए – PHODO PHYLUM
1M
➢ सोंक्रामक रोग, या बीमारी समझ में ना आये तब - NUX
VOMICA 1M
➢ िीिनस के कलए/कुत्ता काि ले तो – HYDRO PHOBINUM
1M
➢ प्रसि के समय/झार न पडे तब – CALCERIA CARD
➢ प्रसि के समय/ ददइ के कलए – MAG PHOS 1M
➢ पेि िूलता हैं तब, गैस हो तब – CARBO VEG 1M
➢ सोंक्राकमक बीमारी, महामारी – BELADONA 1M

10 से 15 बूों द रोिी में रखकर कदन में 2 से 3 बार दें ।।

78

You might also like