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Section B अक्षर g द्वारा व्यक्त किया जाता है । ऊपर कहा जा चुका है कि

इसे किसी स्थान पर गुरूत्व की तीव्रता भी कहते हैं।


Ques no 1 ans:- न्यट
ू न के गति नियम
न्यूटन के गति के प्रथम एवं द्वितीय नियम, सन १६८७ में
लैटिन भाषा में लिखित न्यूटन के प्रिन्सिपिया मैथेमेटिका से
Ques no 4 ans:-घर्षण
न्यूटन के गति नियम तीन भौतिक नियम हैं जो चिरसम्मत
यांत्रिकी के आधार हैं। ये नियम किसी वस्तु पर लगने वाले बल घर्षण (Friction) एक बल है जो दो तलों के बीच सापेक्षिक स्पर्शी

और उससे उत्पन्न उस वस्तु की गति के बीच सम्बन्ध बताते गति का विरोध करता है । यह गति का विरोध करता है । घर्षण

हैं। इन्हें तीन सदियों में अनेक प्रकार से व्यक्त किया गया है ।[1] बल का मान दोनों तलों के बीच अभिलंब बल पर निर्भर करता

न्यट है ।
ू न के गति के तीनों नियम, पारम्परिक रूप से, संक्षेप में
निम्नलिखित हैं-
घर्षण के दो प्रकार हैं: स्थैतिक और गतिज। स्थैतिक घर्षण दो

 प्रथम नियम: प्रत्येक पिंड तब तक अपनी विरामावस्था पिण्डों के संपर्क -पष्ृ ठ की समान्तर दिशा में लगता है , लेकिन

अथवा सरल रे खा में एकसमान गति की अवस्था में रहता है जब गतिज घर्षण गति की दिशा पर निर्भर नही करता।

तक कोई बाह्य बल उसे अन्यथा व्यवहार करने के लिए विवश


जब एक वास्तु को किसी दस
ू री वस्तु की सतह पर रखकर
नहीं करता। इसे जड़त्व का नियम भी कहा जाता है ।[2][3][4]
खिसकाया जाता है तो उनके संपर्क तल में एक बल उत्पन्न हो
 द्वितीय नियम: किसी भी पिंड की संवेग परिवर्तन की
जाता हे जो वस्तु की गति का विरोध करता है ।इस बल को घर्षण
दर लगाये गये बल के समानुपाती होती है और उसकी (संवेग
बल कहते है ।
परिवर्तन की) दिशा वही होती है जो बल की होती है ।
इसके निम्न लाभ हे :-
 तत
ृ ीय नियम: प्रत्येक क्रिया की सदै व बराबर एवं
1.यदि हमारे पैर व ् पथ्
ृ वी के बीच घर्षण न हो तो हम चल नही
विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है ।
सकते ।

Ques no 2 ans:- पथ् 2.मोटर कार व ् साइकल आदि के टायर खुरदरे बनाये जाते है
ृ वी के सतह के निकट किसी पिण्ड के
इकाई द्रव्यमान पर लगने वाला पथ् जिससे घर्षण बढ़ जाये ।
ृ वी का गुरुत्वाकर्षण बल
पथ् 3.थिरनी व ् पट्टे के बीच घर्षण के कारण ही मशीन के विभिन्न
ृ वी का गरु
ु त्व कहलाता है । इसे g के रूप में निरूपित किया
जाता है । यदि कोई पिण्ड धरती के सतह के निकट गुरुत्वाकरण भाग घूम पाते है ।

बल के अतिरिरिक्त किसी अन्य बल की अनुपस्थिति में स्वतंत्र 4.घर्षण की अनप


ु स्थिति में मोटरकार आदि में ब्रेक काम नही

रूप से गति कर रही हो तो उसका त्वरण g के बराबर होगा। करते ।

इसका मान लगभग 9.81 m/s2 होता है । (ध्यान रहे कि G एक 5.यदि घर्षण ना हो तो हम दीवार के सहारे सीढ़ी खड़ी नही क्र

अलग है ; यह गुरूत्वीय नियतांक है ।) g का मान पथ् सकते ,कील नही ठोक सकते,रस्सी नही बना सकते,रस्सी में
ृ वी के
विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होता है । गाँठ नही लगा सकते ।
घर्षण से हानिया:-
g को त्वरण की भातिं भी समझा जा सकता है । यदि कोई पिंड 1 घर्षण के कारण ही मसीनो के पुर्ज़े घिसते है ।
पथ्
ृ वी से ऊपर ले जाकर छोड़ा जाय और उस पर किसी प्रकार का 2.मशीन पर लगायी शक्ति का अधिकांश भाग घर्षण के विरुद्ध
अन्य बल कार्य न करे तो वह सीधा पथ्
ृ वी की ओर गिरता है और कार्य करने में ही व्यय हो जाता हे ।इससे मशीन की दक्षता कम
उसका वेग एक नियत क्रम से बढ़ता जाता है । इस प्रकार पथ्
ृ वी हो जाता है ।
के आकर्षण बल के कारण किसी पिंड में उत्पन्न होने वाली 3 बरसात के दिनों में सड़क के गीला होने पर सड़क व ् मोटर की
वेगवद्धि
ृ या त्वरण को गरू
ु त्वजनित त्वरण कहते हैं। इसे अंग्रेजी पहियो के बीच घर्षण कम हो जाता है । जिस कारण कभी कभी
मोटर ब्रेक लगाने पर तेजी से फिसल जाती है और दर्घ
ु टना हो घर्षण में बदल दे ता है । इसके कुछ स्नेहक भी प्रयोग किए जाते
जाती है । हैं। भारी मशीनों में ग्रैफाइट चूर्ण का प्रयोग स्नेहक के रूप में
किया जाता है ।
घर्षण तीन प्रकार के होते हैं-
घर्षण गुणांक- दो बलों सीमांत घर्षण और अभिलम्ब प्रतिक्रिया,
1. स्थैतिक घर्षण के अनुपात को घर्षण गुणांक कहते हैं।
2. सर्पी घर्षण
3. लोटनिक घर्षण घर्षण गुणांक

स्थैतिक घर्षण जहाँ

यदि लकड़ी का बड़ा गुटका ज़मीन पर रखा हो और उसे = सीमांत घर्षण


खिसकाने के लिए बल लगाया जाए तो वह नहीं खिसकता। अतः
दोनों सतहों के मध्य एक घर्षण बल कार्य करता है । इस घर्षण = अभिलम्ब प्रतिक्रिया

बल को ही स्थैतिक घर्षण बल कहा जाता है । इसका परिमाण


घर्षण गुणांक का कोई मात्रक नहीं होता है , क्योंकि यह दो बलों
लगाए गए बल के बराबर तथा दिशा बल के विपरीत होती है ।
का अनप
ु ात है ।

सर्पी घर्षण
घर्षण कोण- यह वह कोण है , जो सीमांत घर्षण

जब कोई वस्तु किसी धरातल पर सरकती है तो सरकने वाली


तथा अभिलम्ब प्रतिक्रिया
वस्तु तथा धरातल के मध्य लगने वाला घर्षण बल, सर्पी घर्षण
बल कहा जाता है । जैसे—बिना पहिए की किसी गाड़ी को ज़मीन का परिणामी अभिलम्ब के साथ बनाता है ।
पर खींचने पर गाड़ी तथा ज़मीन के बीच लगने वाला बल सर्पी
घर्षण बल होता है ।
Ques no 5 ans:- अभिकेन्द्रीय बल

लोटनिक घर्षण मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से


यह लेख एक आधार है । जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में
जब एक वस्तु दस
ू री वस्तु की सतह पर लुढ़कती है तो दो सतहों विकिपीडिया की मदद करें ।
के बीच लगना वाले घर्षण बल लोटनिक घर्षण बल कहा जाता
हैं। जैसे—सभी वाहनों के पहियों तथा ज़मीन की सतह के बीच किसी पिण्ड के तात्क्षणिक वेग के लम्बवत दिशा में गतिपथ के
लगने वाला घर्षण बल लोटनिक घर्षण बल होता है । केन्द्र की ओर लगने वाला बल अभिकेन्द्रीय बल (Centripetal
force) कहलाता है । अभिकेन्द्र बल के कारण पिण्ड वक्र-पथ पर
घर्षण के कारण ही मनुष्य तथा जानवरों आदि का सतह पर गति करती है (न कि रै खिक पथ पर)। उदाहरण के लिये वत्ृ तीय
चलना सम्भव हो पाता है । कार या बस में ब्रेक लगाने के लिए गति का कारण अभिकेन्द्रीय बल ही है ।
घर्षण उत्तरदायी है । घर्षण बढ़ाने के लिए वाहनों के पहियों के
टायरों में बाहरी सतहें खाँचदार बनी होती हैं। सभी मशीनों में
घर्षण के कारण ऊष्मा उत्पन्न होती है और मशीन के कल–पुर्जे
घिस जाते हैं। घर्षण को कम करने के लिए स्पर्शी सतहों को कुछ जहाँ:
स्नेहकों के उपयोग से चिकना बनाया जाता है । घूमते शाफ्टों के
बीच घर्षण बल को कम करने के लिए बालबेयरिंग या शेलर
अभिकेंद्रीय त्वरन है ,
बेयरिंगों का उपयोग किया जाता है । जो सर्पी घर्षण को लोटनिक
समीकरण (३) और (४) में तुलना करने पर
वेग का परिमाण (magnitude) है ,
g = G M/r2
पथ की वक्रता त्रिज्या है ,
किं तु पथ्
ृ वी की मात्रा (पथ्
ृ वी को पूर्णत: गोल मानने पर)
स्थिति सदिश है ,
M = (4/3) p r3 D
त्रिज्य सदिश है ,
जहाँ D पथ्
ृ वी का माध्य घनत्व (mean density) है ।
कोणीय वेग है ।
g = G (4/3) p r3 D /r2= (4/3) G p r D
न्यूटन के गति के द्वितीय नियम के अनुसार यदि कहीं कोई
त्वरण है तो त्वरण की दिशा में बल अवश्य लग रहा होगा। अतः अर्थात ्‌G. D. = 3 g / (4 p r)
यदि m द्रव्यमान का कण एकसमान वत्ृ तीय गति कर रहा हो तो
उस पर लगने वाले अभिकेन्द्रीय बल का मान निम्नलिखित सूत्र इस सूत्र से यह स्पष्ट है कि G या D में से एक का मान ज्ञात

द्वारा दिया जायेगा: करने के लिये दस


ू रे का मान ज्ञात होना चाहिए। अतएव पथ्
ृ वी
का घनत्व ज्ञात करने से पूर्व G का ठीक मान ज्ञात कर सकने
Ques no 8 ans:- न्यट
ू न का गरु
ु त्वाकर्षण का नियम = की विधियों की ओर वैज्ञानिकों का ध्यान आकृष्ट होना
ब्रह्माण्ड मे किन्ही दो पिंडो के बीच कार्य करने वाला आकर्षण स्वाभाविक ही था।
बल पिंडो के द्रव्यमानो के गुणनफल के समानुपाती तथा उनके
Sec C:=
बीच की दरू ी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है |
माना m1 तथा m2 द्रव्यमान के दो पिण्ड एक-दस
ू रे से r दरू ी पर Ques no 1 ans:- अभिकेन्द्र त्वरण(Centripetal
स्थित है तो न्यूटन के नियमानुसार उनके बीच लगने वाला acceleration):-
आकर्षण बल F होगा
जब कोई कण एकसमान वत्ृ तीय गति करता है तो कण की चाल
F समानुपाती m1.m2
अचर रहते हुए भी उसकी दिशा लगातार बदलती रहती है अर्थात ्
और F व्यत्ु क्रमानप
ु ाती 1/(r)2
कण का वेग लगातार बदलता रहता है ,
or अतः वत्ृ तीय गति में कण पर एक त्वरण कार्य करता है |
F=Gm1.m2/(r)2
जिसकी दिशा सदै व वत्ृ त के केन्द्र की ओर रहती है इस त्वरण
जहाँ G एक नियतांक है जिसे सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक
अभिकेन्द्र अथवा त्रिज्य त्वरण कहते हैं |
कहते है जिसका मान 6.67* (10)-11 N(m)2/(kg)2 होता है

त्रिभुज OP1P2 तथा सदिश-त्रिभुज QAB समरूप हैं |


न्यूटन द्वारा गुरुत्वाकर्षण के नियम का प्रतिपादन होने के बाद
ही गुरुत्व नियतांक G का मान ज्ञात करने की समस्या ने P1P2 AB
वैज्ञानिकों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया। इसका कारण ----- = ----
P1 O AQ
यह था कि यह प्रकृति के मल
ू नियतांको (fundamental
constants) में से एक है और दे श, काल तथा परिस्थिति से अथवा डेल्टा s डेल्टा v
सर्वथा निरपेक्ष है । इसलिए इसे सार्वत्रिक नियतांक (universal ------ = ------
rv
constant) कहते हैं। साथ ही, यह पथ्
ृ वी की संहति से भी संबंधित
किया जा सकता है (दे खें समीकरण २)। अत: पथ्
ृ वी की संहति डेल्टा v = v डेल्टा s
एवं घनत्व ज्ञात करने के लिए भी इसके मान के ज्ञान की --
आवश्यकता पड़ती है । यह निम्नलिखित विवेचन से स्पष्ट हो r दोनों ओर डेल्टा t से भाग दे ने पर
जाएगा : डेल्टा v v डेल्टा s
------- = -- ------ तरल के दो बिन्दओ
ु ं पर स्तर में अंतर ऊपर वेन्च्यरु ी नली में
डेल्टा t r डेल्टा t
हवा के बहाव में अंतर के अनुपात में और उसके कारण है । यही
यदि समयान्तराल डेल्टा t अनन्त सूक्ष्म हो (डेल्टा t--->0)
बर्नौली के सिद्धान्त से भी सिद्ध होता है । तरल गतिकी में ,
Lim डेल्टा t-->0
बर्नूली का सिद्धान्त (Bernoulli's principle) या 'बर्नूली का प्रमेय
delta v/delta t =v/r
[lim delta t --->0 निम्नवत है :
delta s/delta t ] किसी प्रवाह में , तरल का वेग बढ़ने पर पर तरल की स्थितिज
उर्जा में कमी होती है या उस स्थान पर दाब में कमी हो जाती है ।
v (v ) a= --- r v^2
a = ----- r यह सिद्धान्त डच-स्विस गणितज्ञ डैनियल बर्नौली के नाम पर
v=rw(ओमेगा) रखने पर रखा गया है । इस सिद्धान्त की खोज उन्होंने ही की थी और १७३८
में अपनी 'हाइड्रोडाय्नैमिका' नामक पुस्तक में प्रकाशित किया
r^2 w^2 a = --------- r
था।
a = r w^2
बर्नौली समीकरण का विशेष स्थिति में स्वरूप

माना कि:

 तरल असंपीड्य (इन्कम्प्रेसिबल) है ,


 श्यानता शन्
ू य है ,
 स्थाई अवस्था प्राप्त हो गयी है तथा प्रवाह अघूर्णी
िर्रोटे शनल) है , तो

इस स्थिति में बर्नौली का समीकरण निम्नवत है :

जहाँ:

 - तरल के ईकाई द्रव्यमान की ऊर्जा


 - तरल का घनत्व
Ques no 3 ans:-  - संबन्धित स्थान पर तरल का वेग
 - सम्बन्धित स्थान की किसी सन्दर्भ के सापेक्ष ऊँचाई
बर्नूली का प्रमेय  - गुरुत्वजनित त्वरण
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से  - संबन्धित स्थान पर दाब
यह लेख एक आधार है । जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में
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