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Jazbaat Ki Udaan - Final (29-12-2018) Last Updated
Jazbaat Ki Udaan - Final (29-12-2018) Last Updated
INDI A SINGAPORE M A L AY S I A
Notion Press
Old No. 38, New No. 6
McNichols Road, Chetpet
Chennai - 600 031
ISBN 978-1-68466-523-5
This book has been published with all efforts taken to make the
material error-free after the consent of the author. However, the
author and the publisher do not assume and hereby disclaim any
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समाज की संर्कीण
viii
विजय कुमार ‘नाकाम’
ix
सारांश
उपर लिखे शेर ने मुझमें नयी जान डाल दी। सारी हताशा
और निराशा से निकल के फिर से मैंने हालात से लडने का
फैसला किया। मेरा उपनाम भी मुझे इसी शेर में मिल गया।
पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते यह सफर भी रूक रूककर
चलता रहा। अिसलिए ’मुकम्मल शायर’ कभी नही बन सका।
और यह कविता संग्रह अस्तित्व में आया।
सधन्यवाद
x
फोरवर्ड
दस
ू री कविता जो मुझे पसंद आई वो ‘ सूना कपाल‘ है ।
अिसमें कवि ने बडी सक्
ू ष्मता से विधवा जीवन का चित्रण
किया है ।
पज
ु ारीने किया बाहर दे नास्तिक का खिताब
बेजार होकर फिरकापरस्तीसे जमानेकी
हरमन चौहान
साहित्यकार
उदयपुर।
xii
कविता संग्रह
1
”अजन्मी की पीडा” लिखनेकी प्रेरणा मुझे स्थानीय अखबार
में प्रकाशित एक फोटो के साथ खबर जिसमें शहर की मशहूर
सूखी हुई झील में आवारा कुत्तों एवं अन्य जानवरों द्वारा
तीन क्षत विक्षत अविकसित कन्या भ्ण रू के शवों के अंग
बिखरे हुए दिखाए गए थे। खबर ने मेरे अंर्तमन को नफरत
और पीडा से भर दिया। उसकी अभिव्यक्ति अजन्मी की पीडा
में हुई। इस कविता की पहली लाइन जिस किसी शायर ने
लिखी हो अुनसे बिना अनम ु ति प्रयोग करनेके लिए क्षमाप्रार्थी
हूं। कविताके कथावस्तु के बारे मैं स्वंय कुछ नहीं कहूंगा आप
खुद पढकर अच्छे बुरे का फैसला लीजिए।
अजन्मी की पीडा
2
विजय कुमार ‘नाकाम’
3
जज़्बात की उड़ान
4
विजय कुमार ‘नाकाम’
5
जज़्बात की उड़ान
6
विजय कुमार ‘नाकाम’
7
जज़्बात की उड़ान
8
2
कमसिन इरादे
10
3
नाराजगी
12
4
ईन्तजार
सूना कपाल
रूठकर तम
ु चल दिए अंजाने सफर पर
क्या तम
ु ्हें साथ चलना मेरे गवारा न था
यकीन था मझ
ु े तेरे किए हुअे वादो पर
हवाले की थी तझ
ु े पतवार कश्तीकी मेरी
गम
ु हो गए सब रास्ते रहबर जिनके तम
ु थे
जिंदगी थम गई है अंधेरी सर्द सरु ं गमें
मोहलत दे ती अगर मौत रहम करके
फरयाद मैं भी कर लेती तम
ु से जद
ु ाईकी
खश
ु नम
ु ा शामें बदल गई अमावसकी रातोंमें
सलवटे बिस्तरकी गवाह हैं करवटोकी
जज़्बात की उड़ान
18
विजय कुमार ‘नाकाम’
19
जज़्बात की उड़ान
20
7
मुसाफिर
ओ दरू के राही तझ
ु े बहुत दरू है जाना
राह कठिन कांटोसे भरी पसंद है तेरी
नदियां बनेगी रूकावटें राहों की
पर्वत भी मजबूर कर दे गें रूकने को
वनकानन में रास्ता भटकनेका डर है
रूकावटें दशु ्मन बन खडी होगीं कई
बारिशसे लथपथ चिकनी चट्टानी राहों पर
फिसलने गिरनेके मौके आएगें बारबार
कंटीली झाडियां रोक लेगी दामन पकडकर
रूकनेको मजबूर कर दे गी पांवोकी थकन
भूख प्यास भी रोक लेगी कदम राहों में
मायूस कर दे गें फासले मंजिलो के
सरसब्ज बाग पहाडोके ललचाएगें
राह गलत पर ले जाएगें कई राहगीर
रोक लेगें कदम हसीन नजारे राहों के
पुकार कर रोक लेगा कोई अपना पीछे से
महताब भी मुह छुपाएगा बादलोकी ओट में
हिचकिचाऐगें सितारे रात को दिशा दिखानेमें
जज़्बात की उड़ान
गम
ु हो चक
ु े हैं जो राहो के मोडो पर
नाम अुनके दर्ज नहीं हैं चट्टानो पर
चलते रहे जो दर्द भरे पैरो से राहों पर
नाम अुन्हीं का गूंजता है मंजिल पर
जो गिरे मगर डिगे नही अपने मकसद से
उठे बढ चले आगे जोश नया भर मन में
दीवानगी खींच लाई मंजिल को करीब अुनके
जो चाहते थे दीवानावार कामयाबी को
उठो राही राहें नई पुकारती हैं तुझे
मुनासिब नही है थक के बैठना पडाव पे
भुलाना है तुझे बदन की चोटो पांवके छालो को
निशान छोड जाऐगें राहो में टपकता लहू
पैदा होगें नए पेड अिन्ही गिरे कतरोसे
सुस्ताऐगें नए राही छांव में अिन्ही पेडोके
गज
ु रे गें कभी हमजोली कई अिन्ही राहो से
नाम तेरा हर पडाव पर पढते पढते
था दबदबा खिजाका अिस जिंदगी की राहो पर
मधुबन महका दे गी बंजर जमीं पर तू
टूट जाएगा सिलसिला आंसू और आहोका
बनकर आएगी जब तू सिरमौर बनकर
कंु दन बन निकलेगी मुसीबतो में पलकर
चूम लेगी कामयाबियां हर कदम पर तुझे
नाकाम की ईल्तजा है खुदा से बस यही
उठा जागो करो फतह रोज मंजिलें नई।।
22
8
आशियाना
नेटीजन नामा
गस
ु ्सा भी खब
ू आता था पढकर यारब तझ
ु पर
क्या खब
ू लिख दी कहानी बदकिस्मती की एक जैसी
क्यों छीन लिया जामे उल्फत अुनके होठों से
प्यास जिनकी अभी आधी अधरू ी थी
ईन्सानों की गैरत कहां खो गइ है
आदमियत खो गइ वफा हिजरत कर गई
कूच कर गए जमीं से महोब्बत के खद
ु ा
गायब थी दिल से महोब्बत आंखोसे हया
हर लब पर बेवफा सनम की कहानी थी
दौड में शामिल था हर कोई हसीनों को लभ
ु ानें में
गोया कि खेल तमगो का ईश्क हो गया था
हर कोई बेबस नाराज या गमगीन था
खश
ु कोई भी न था अपने हालात से
कोई बदहाली से कोई तन्हाई से सताया था
कोई काटे जा रही थी जिंदगी झठ
ू े दिलासो से
अलग बस्ती दिल की अपनी बसा ली थी किसी ने
सहारा मां बाप का ही था आखिरी कुछ के लिए
कुछ फरे बी भी शामिल थे अिस मजमे में
मख
ु ोटे लगाए अपनी असलियत छुपाए
हवस दिल में दबाए दर्द के परदे चेहरे पे डाले
बनने को तैयार थे हर हसीना के मददगार
माशक
ु ा नजर आती थी हर खत में अुनको
कोई खेल रहा था इश्क से मौज मस्ती के लिए
28
विजय कुमार ‘नाकाम’
कुछ वक्त गज
ु ार रहे थे सनम की तलाश में
शेखी बघारते थे दोस्तो की महफिल में
कितनी हसीनाओं के खत आते हैं अुनके पास
हसीनाऐं भी थी कितनी मजबरू हालात से
अपनाने को तैयार थी किसी भी उम्र का मर्द
परहे ज न था मर्द मिल जाए गर दग
ु न
ु ी उम्र का
तलाश जारी थी मेरी तभी एक दिन
मेल आया एक महोब्बत का पैगाम लेकर
किसी साईट पर मेरी प्रोफाईल पढकर
जिसमें ना छिपायी थी कोई बात मैंने
शादीशद
ु ा बाल बच्चे दार होने की
जिस्मानी रिश्तो में कोई दिलचश्पी न थी
थी तलाश मझ
ु े अदद हमदर्द हमराज की
चाहत थी बस जड
ु े दिल से रिश्ता
तबादला ए जजबात में मतलब की बू न हो
भा गई अुसके दिल को मेरी साफगोई
इमानदारी नेट पर तो नायाब चीज है
बदचलन भी तमन्ना बावफा की करता है
आरजू ए महोब्बत लेकर आई थी बडी दरू से
हसीना ने लिखा था खत बडी तफसील से
हर ऐक बात लिखी थी बडी बेबाकी से
अपनी पंसद नापंसद अच्छी बरु ी आदतें
जानकारियां बेशम
ु ार थी तस्वीर और विडियो में
29
जज़्बात की उड़ान
30
विजय कुमार ‘नाकाम’
गल
ु तो क्या खार भी मदहोश हो जांऐ
चले जब चम
ू के हवाऐं अुसके बदन को
जेठ की दोपहरी में ठं डक शाम की घल
ु जाए
बेमिसाल हुश्न पर मगर संजीदगी की छाया थी
दिल दिन रात दे खता था ख्आब जो
बगलगीर हो जाए हसीना तस्वीर से निकल के
हुश्न अुसका जो दीखता था तस्वीरो में
हकीकत थी या कमाल तस्वीर नवीस का था
खत उसके थे परु असर महोब्बत से लबरे ज
मैं भी दे ता था जवाब फौरन तफसील से
अंगडाई लेने लगी थी इश्क की दबी आरजू
वीरान दिलके किसी कोने में आखिर
आशनाई अुसकी दे रही थी हवा
दबी छुपी दिलवर की चाहत को
वो जवां और मैं पका फल जिंदगी का
फासले उम्र के रूकावट न बने थे
दरम्यान रिश्तों के हम दोनो के
वो अिस कदर हमख्याल हो गई कुछ अरसे में
मिजाज मेरा भांप लेती थी खत के लफजो से
बाखब
ू ी जानती थी वो मर्द की फितरत को
मन में एक टीस उठती थी कभी कभी
काश मझ
ु े मिला होता ऐसा शरीके हयात
वो हमसफर से बढकर हमख्याल होती
31
जज़्बात की उड़ान
32
विजय कुमार ‘नाकाम’
33
जज़्बात की उड़ान
34
विजय कुमार ‘नाकाम’
35
जज़्बात की उड़ान
36
विजय कुमार ‘नाकाम’
37
जज़्बात की उड़ान
38
विजय कुमार ‘नाकाम’
39
जज़्बात की उड़ान
40
विजय कुमार ‘नाकाम’
41
जज़्बात की उड़ान
42
विजय कुमार ‘नाकाम’
मझ
ु े बाजार में नहीं मिली पसंदीदा बोडका
उसी में खश
ु थी जो लाकर दे दी मैंने
गोश्त का नाम लेना घर में गन
ु ाह था
अंडा ही भल
ू े भटके घर में आता था
बीवी से मेरी खब
ू तकरार होती इस मसले पर
वो बदलने को तैयार न थी खद
ु को
दोनो होटल में खा लेती जब भी बाहर जाते
तंदरू ी खाना दोनो को बेहद पसंद आता
अरसा काफी गज
ु र गया दोनो को घर में रहते
मियाद बढवा दी थी वीजा की भागदौड कर
अुनकी भारत में तीन महीने रहने की
गज
ु रने को थे छ महीने बातो बातो में
नजदीक आता जा रहा था वक्त जद
ु ा होने का
मैं भी मसरूफ था खरीदारी में बीवी के साथ
तोहफे जो दे ने थे दोनो के पसंद के
फेरहिस्त लम्बी थी पसंद की अुनकी
नागवार हरकत न की थी जोया ने अब तक
मझ
ु े ईंतजार था पहल अुसकी तरफसे हो
था मझ
ु े यकीन करे गी वो बात कुछ
आरजू लेकर आई थी जो वतन से अपने
पैमाना मेरा सब्र का जब छलक गया
तय किया मैंने खल
ु ासा बात न हुई जब
सब बैठे साथमें खाना खानेके बाद
43
जज़्बात की उड़ान
44
विजय कुमार ‘नाकाम’
45
जज़्बात की उड़ान
46
11
महे च्छा
50
12
शुभकामना
53
14
वादे
अश्क सख
ू चक
ु े हैं बेमियाद ईंतजार में
जान आ जाती है तन में हर दस्तक पर
चमक आ जाती है सन
ू ी आंखोंमें
काबू करते हुए सांसोको
बेतहाशा दौड जाता हूं दर तक
धडकनें क्यों तेज होती हैं हर दस्तक पर
और बढा जाती है दीदारे चौखट दिलमें
नहीं कोई नही खाली चैखट पर
करने लगी है हवा भी मखौल मझ
ु से
मजबरू हों वो शायद हालातसे
खतही भेज दें वो कासिदके हाथ
खतका इंतजार अब भी है हरदम मझ
ु े
मायस
ू हो जाता हूं कासिदके गज
ु रनेके बाद।
55
15
अुसका बुलावा
वो तन्हा बल
ु ा रहा है मझ
ु े
बचाकर नजरें अिस जमानेसे
नजरोंसे ओझल है मगर दिलके करीब है
रग रगमें बसा हुआ है मगर बेरंग है
खबर है अुसको मेरी रफ्ता रफ्ता बिखरनेकी
बुलावा भेजता है वो मुझे उसके करीब आनेकी
वो फिक्रमंद है बहुत मेरी जुदाईकी पीरसे
करता रहता है कोशिश मुझे अपने नजदीक लानेकी
जकडते हो क्यों मुझे जख्मी रिश्तोके धागेसे
बल
ु ा रहा है वो मझ
ु े तोडके सब नाते जमानेसे
राहत मिलेगी कहां मुझे अिन तौर तरीकोसे
मझ
ु े पिलादे वो मय न उतरे खम
ु ार जमानोमें
रोक सकेगें न अब आंसू आहें करीबोके
लौट जाऐगें टकराकर ताने सब जमानेके
गाफिल हुआ कभी मैं अपनोकी मीठी बोलीसे
लगा गिला करने वो मुझसे उसे भूल जानेकी
वाकिफ है वो मेरी आजाद होनेकी जद्दो जहदसे
डाल दे ता है नया जाल रिश्तेका अिस जमानेमें
सरकते आते हैं तफ
ू ान जजबातोके दिलसे
जज़्बात की उड़ान
हिम्मत दे ता है वो मझ
ु े तफ
ू ानसे निकल आनेकी
खडा हूं मायूस मैं रिश्तोके चोराहे पर
सयाना कोई बता दे कौन अपना है अिस जमानेमें
खींच रहा है हर रिश्ता शिद्तसे मुझे अपनी जानिब
थामले मेरा हाथ वो गिरनेसे पहले अिस जमाने में
राहें गुमशुदा हैं मुसीबतोके अंधरोमें
तडपता है दिल मेरा निजात पानेको अिस जमानेमें
मश
ु किलें हयात अब हमराह हो गई हैं
गैरमुमकिन है दर्दसे निजात पाना अिस जमानेमें
सई
ु यां घडीकी सस
ु ्त हो गई हैं मस
ु ीबतके वक्तमें
अश्क गिरना है पैमाना वक्त गुजरनेका अिस जमानेमें
राहें जद
ु ा जद
ु ा हैं मगर दर तो तेरा एक है
चलते नहीं क्यों लोग एक होकर अिस जमानेमें
छबी है दिलमें बसी तेरी नाम सांसोका आनेजानेमें
डूबा है दिल इबादतमें तेरी भूलके जालिम जमानेको
निकल आया हूं मैं अब अपनोकी महफिलसे
बनके दरू जाती सदा गुजरे हुए जमानेकी
गिनती करता रहा मैं उम्रभर
अपने परायोंकी
मिटा दिया जब मैं को
बेगाना न रहा कोई जमानेमें।
तलाश रहा था सकून मैं बेरूखीके सहरामें
छोड आया हूं छांव अपनोकी
तन्हा हूं अिस जमाने में ।
58
16
जुदाई
60
17
यादों का अहसास
दफन कर चुका था
यादों को तेरी दिल की गहराई में
इक दर्द उठा भूला हुआ
आंसू बने जख्मों का मरहम।
तूफान वरपा कर दिया
आज तस्वीर ने तेरी
रखी थी जो अरसा पहले
खत्म हो चुके रिश्तों की किताब में ।
डगमगा गया सब्र
थर्रा गया मेरा वजूद
साफ की वक्त की गर्द तस्वीर से
ले कर अश्कों से भीगे रूमाल से
लिये फिर हाथ में जाम
गुनगुना रहा हूं भूला हुआ गीत
पंसद था जो आपको कभी
नजर किया था मैंने दस
ू री मुलाकात में ।
रोक लेता हूं खुद को घूंट भरने से
जज़्बात की उड़ान
62
18
मेरी कीमत
64
19
कल्पाथेय
66
20
पूजाजंली
70
21
अंतिम मुगल बादशाह और मशहूर शायर बहादरु शाह
जफर जिसे अंग्रेजोने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के
असफल होने से कैद करके सजा दे ते हुऐ बेगम जीनत
महल और बेटीके साथ बर्मा म्यांमार में निर्वासित किया
गया था । भारत में महरोली के पास स्थित जफर महल
में अपने लिए नियतकी गई जगह पर उनका मकबरा बने
यही उनकी अंतिम इच्छा थी । जहां उनके परिवारके अन्य
सदस्यो के मकबरें हैं। जो आजादी के इतने वर्षो बाद
भी पूरी न हो सकी । जफर के साथ साथ उन आजादी
के दीवानों को भी श्रद्धासुमन समर्पित करता हूं जिनकी
स्मृति स्वरूप समाधी मजार और मकबरे आदि नहीं बने।
कई अज्ञात बलिदानियोंकी गाथा भी स्वतंत्रता संग्राम
के ईतिहास में दर्ज नहीं हो पायी उन सब ज्ञात अज्ञात
आजादी के दीवानो को मेरी यह कविता समर्पित है ।
72
विजय कुमार ‘नाकाम’
73
22
अदावत
75
23
भूला हआ नाम
77
24
तलाशे राह
79
25
हमदम
वो रूबरू थे हम मख
ु ातिब थे अुनकी तस्वीर से।
न हुअे वो आजतक आश्ना हम से
रहते हुअे साथ जिनके हमें हो गये जमाने।
अब कोई खता न हो हम से उल्फत में
फासले न पैदा हों अब दरम्यान अुनके।
83
27
तसव्वुर
पंख तो तन
ू े दिए यारब सितम किया आसमान नीचा करके।
नजर आती है मझ
ु े सरू त आपकी हर सरू तमें
बसर होती है तमाम रात सितारों में आपको दे खते।
सितम की अब इन्तहा ना कर यारब
कहीं मेरी आह से तेरा बत
ु खाना न मिट जाए।।
85
28
बदलते मौसम
88
30
बहाना
खद
ु ाने औरतको मर्दसे बेहतर बनाया है
तभी तो इनायत करके एक रूहानी नजर दी है
हो जाता है तभी अच्छे बरु े का इमकान
पयाम मिल जाता है वारदात होनेसे पहले।
93
32
नाजनीन की आरजू
95
33
लता मण्डप
मश्किल
ु ें आसान होंगी करे गें दआ
ु गर मिलकर
वीणा के तार हिलते हैं तभी संगीत पैदा होता है
हालात में तपकर ही आदमी कंु दन बनता है
होंगी परे शान रूकावटें जब यकीन होगा खुदमें
खिलाफत कौन करे गा मिटनेको तैयार ईन्सान से
चटटाने बिखर जायेंगी फौलाद बन जाऐं हम
शीश नत नहीं होगा नभ को नाप लेगें हम
पराजित हुआ है जोश कब जब दआ
ु का साथ हो
क्यों न करें मिलके सामना चाहे केसरिया युद्ध हो
कोई दे वता पंथ संप्रदायकी नहीं हो तम
ु
गीताके निष्काम योग का साकार रूप हो तुम
मूर्ति हो तुम त्यागकी तपस्याकी तस्वीर हो तुम
जीवन संग्राम पर विजयकी शोर्यगाथा हो
महोब्बत का बहता दरिया ममता की रानी हो
दहकती मस
ु ीबतों में तपा तम
ु स्वर्ण हो
दिल कुसुम सा है छाया ममता अशोक सी हो
जवानी जलाकर अपनी सपनों में हमारे रोशनी की है
बन विधाता लिख दी तुमने हमारी तकदीर है
तलु िका हो तम
ु संवारी जिसने घरकी तस्वीर है
स्वास्थ्य रहे सदा उत्तम जीवन शत बंसत हो
रहे संग प्राण सम सदा निष्प्राण न कभी संबंध हो
बन शमादान तुमने परिवार की रहनुमाई की है
रच नाकाम ने बिरदावली बहनको पेश की है ।।
97
34
लुकाछिपी
99
जज़्बात की उड़ान
100
35
महोब्बत के मकाम
104
36
इजहार
106
37
खामोशी
115
जज़्बात की उड़ान
खबरदार दिल को
कब से करता रहा हूं मैं।
कशिश अब भी है
तडप में आप से मिलने की
सदा हमेशा दिल की
दफन करता रहा हूं मैं।
डर नहीं मझ
ु े इल्जाम
लगे बत
ु परस्ती का
बना के बत
ु आपका
पज
ू ा करता रहा हूं मैं।
मझ
ु े मालम
ू है कि
वो अुनके पास होगा
तलाश लापता दिल की
फिर भी करता रहा हूं मैं।
तडपता है दिल पाने को
ऐक पैगाम अुनकी तरफ से
फेंक दिया हो शायद अधरू ा लिख के
तलाश खिडकी के नीचे करता रहा हूं मैं।
लाईलाज हो चक
ु ा है बेवफाई का मर्ज
ईजाद तबीब करे कोइ दवा
अर्ज कब से करता रहा हूं मैं।
तिलस्मी साया है अुनका मेरे
जहन के हर ख्याल में
116
विजय कुमार ‘नाकाम’
इलाज की अरदास
सयाने से करता रहा हूं मैं।
खो गए शायर कई
गम
ु नामी के अंधेरो में
गजल पत्रिका में छपवाने की
नाकाम कोशिश करता रहा हूं मैं।
117
44
फरयाद
119
जज़्बात की उड़ान
120
45
इजहार ए महोब्बत
124
विजय कुमार ‘नाकाम’
125
“सुना था कुशाकी धार बडी तेज होती है
कुशाका अग्रभाग क्या मंद हो गया है
छापकर फोटो प्रथम पेज पर एक आंख वालेकी
मेरी समग्र कविताको नया आयाम दिया है
कि दे खा है मैने जमानेको आंसूभरी
एक आंखकी चिल मनकी उस तरफसे
हकीकत वाली नजर कभी मैने खोली ही नही
उनसे कहना न चलाया करे खंजर अनाडीप नेसे
निशाना लग जाए तो शहीद होता है
गलत लग जाए तो तडपन उम्रभर होती है ”
परिचय
खश
ु नम
ु ा बीत गए चालीस वर्ष काम करते
टाईपराइटर की टिक टिक में पता ही नही चला।
स्वनाम धन्य लेखको की जो कृतियां
पढी थी जो मैंने अपने लडकपन में
अुन्ही से मिली प्रेरणा और उतरने लगी
कागज पर बनके नज्म और कविता ।
हे वन्दनीय पाठक आलोचना का धनष
ु उठाओ
चढाओ बाण शब्दोके निशाना मेरी कृति को बनाओ
मिलती रही गर आपसे एैसी तीरं दाजी
हारता ही रहूंगा मैं सदा ही आपसे बाजी
गज
ु र रही है अब हांफती जिंदगी की शामें
नाकाम सपनों की मैयत पर अफसोस करते करते।।
129