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विजय कुमार ‘नाकाम’

INDI A SINGAPORE M A L AY S I A
Notion Press
Old No. 38, New No. 6
McNichols Road, Chetpet
Chennai - 600 031

First Published by Notion Press 2018


Copyright © Vijay Kumar ‘Nakam 2018
All Rights Reserved.

ISBN 978-1-68466-523-5

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समर्पण

यह कविता संग्रह मैं उन समस्त अजन्मी कन्याओं को

समर्पित करता हूं

जिनका अस्तित्व इस विश्व मे आनेसे पर्व


ू ही

समाज की संर्कीण

लिंगभेद मनोवतृ ि के चलते चिकित्सा विज्ञान

द्वारा मिटा दिया जाता है ।


आभार

यह कविता संग्रह लिखने में मेरी पत्नी

श्रीमति हे मांशु नागर एवं दोनो पुत्रियों

कल्पा और पूजा का बहुमूल्य योगदान है ।

अिन सबके अथक प्रयासोसे ही यह

कविता संग्रह प्रकाशन तक पहुंच पाया है ।

अन्य जो भी महानुभाव परोक्ष या अपरोक्ष

रूपसे इस कविता संग्रह लिखने में मेरे

सहायक बने उनका भी मैं तहे दिलसे शक्र


ु गजु ार हूं।

विजय कुमार ‘नाकाम‘


सारांश

दर्द के साज पर हम मधुरगीत गाते हैं

जिदं गी की भागदौड में रूकावटें पार करते करते अब थकान


महसूस होने लगी थी। जवानी की चुस्ती फुर्ती अब बुढापेकी
ससु ्तीमें ढल रही थी। सोचता था कि अब बची हुइ पारिवारिक
जिम्मेदारियां पूरी करके आराम करूं गा। अब तक की जिंदगी
अच्छे रहन-सहन के साधन जुटाने में गुजरी थी और बाकी
अपनी मर्जी से जीने की हसरत थी। दबी, कुचली, मसली
हसरतें जो रोजीरोटी के नीचे दबकर दम तोड चक ु ी थी, वो
सब अब पूरी करने की इच्छा थी।
मगर तकदीर ने बडी बेशर्मी से मंुह फेर लिया। कई
दशक से चलता टाईपराइटर की सेल्स और सर्विस का
अच्छा भला व्यवसाय कम्प्युटर के आने से बडी तेजी से
खत्म होने लगा। इन हालात का सामना कैसे करे सोचने
में काफी समय लगा दिया मगर कोई हल नहीं सूझ रहा
था। जोखिम उठाने की अब हिम्मत नही बची थी। मरते
हुए व्यवसाय से चिपके रहने के बजाय मैंनें नया काम
करने के लिए सोचा और केलकयुलेटर रिपेरींग के अनुभव
का उपयोग करते हुए मोबाईल रिपेरींग और अेसेसरीज
बेचने का व्यवसाय शुरू किया। मगर छ महीनो में ही मुझे
अंदाजा आ गया कि मेरे बस का काम नही है । मैंने अंतमें
लगाई पूंजी खोकर काम बंद कर दिया, और भी कई छोटे
छोटे काम किए़। एक परिचित की वाटर फिल्टर की दक ु ान
पर कुछ महीने नोकरी भी की मगर यहां भी असफल रहा।
उसी दौरान एक मशहूर कपडा बनाने वाली कंपनी का
ई-कोमर्स फ्रेन्चाईस ले कर बाकी जमा पूंजी जोखिम उठाते
हुए दाव पर लगा दी। मुझे अिस बार अपनी कामयाबी का
पूरा यकीन था। मगर हाय री किस्मत!:
सारांश

तूफानी नहीं था समंदर मल्लाह भी था काबिल

वही साहिल पे डूबी है बैठे थे जिस कश्ती में हम।

कंपनी की दरू ं देशी की कमी की वजह से असफल रही


और कंपनीने अपने आपको दिवालिया घोषित कर दिया।
असफलता के नतीजे अब मेरे सामने खडे थे। पूरे परिवार के
लिए फाका कशी की नोबत आ सकती थी। काम नया था
और कोई अनभ ु व नही था। सही व्यवसाय का चन
ु ाव नही कर
पाने के कारण असफल रहा और भी कई व्यवसाय पर हाथ
आजमाया मगर सफलता हाथ न लगी। अिन सब प्रयत्नो में
सारी जमा पुंजी गंवा बैठा। यह सब असफलताऐं अपने पीछे
गम और मफ ु लिसी छोड गई। रिश्तेदारो और बाजार की ढे र
सारी दे नदारियां सर पर थी। सब तरफ मदद के लिए हाथ
फैलाया मगर निराशा ही हाथ लगी। सब तरफ अंधेरा ही
अंधेरा था। दिल को कहीं भी आराम नहीं मिल रहा था। ऐसेमें
सोचा अब मौत ही आखिरी ईलाज है मेरी नाकामयाबियों का।

‘हमने चाहा कि मर जांए तो हमसे वो भी न हुआ ‘गालिब‘

दिन रात बस इन मुसीबतो में से निकलने के बारे में तरह


तरह के विचार करता रहता था। ओफिस में बैठता तो उधार
वसल ू ने वाले आ जाते। बेंक के कानन ू ी करवाई करने की
धमकी के फोन और नोटिस तो आते ही रहते थे। मेरे पास
उनको दे नेके लिए कोई संतोषजनक जवाब नहीं था। अिस
लिए बाहर ही ज्यादा भटकता रहता था। ऐसे समय में
आदमी गम भल ु ाने के लिए कोई ना कोई लत का शिकार
हो ही जाता है । अंगूरकी बेटी से जवानी में याराना था उम्रके
पांचवे दशक अच्छे संबंध रहे । फिर ना जाने क्या हुआ किसने
बेवफाई की इसका फैसला आज तक नही हो पाया। मैं भी

viii
विजय कुमार ‘नाकाम’

‘साह ि र ’ की तरह हर फिक्र को धुंऐ में उडाता चला गया

धुंऐ के गुबार के साथ साथ सर्द आहें भी निकलती रहती थी।


जिनके पास खोने के लिए कुछ नही बचा था एैसे निराश और
हारे हुए लोग मेरे पास आ बैठे। सबके पास अपनी दख ु भरी
कहानियां सन ु ाने के लिए होती थी। कई एै से भी थे जो शेरो
शायरी में अपनी निराशा व्यक्त करतें थे। कुछ अपने अच्छे
दिन याद करते रहते थे और वर्तमान में आना ही नहीं चाहते
थे। कुछ हर बात काश एैसा होता, यह न हुआ होता तो मैं
वो होता कहते हुए शरू ु और समाप्त करते। कुछ एैसे भी थे
जिनमें अभी आशा पूरी तरह नहीं मरी थी, अच्छे भविष्यकी
कल्पना से दिल बहलाया करते थे। कुछ अपने आपको कोसते
रहते तो कुछ अपनी गलतियों के लिए दस ू रो को जिम्मेदार
ठहराते। कुछ सागर ओ मीनाकी आशिकी में डूब चक ु े थे।
कुछ अलग नशेकी पतली बंद गलियों से होकर चले जा रहे
थे अंजाम की फिक्र किसी को भी नही थी। ऐसी महफिलो में
भी कोई मेरी आपबीती पूछता तो मैं नपातुला जवाब दे ता।
दर्द और गम मेरे लिए किसी दौलत से कम नही थे जिसे मैं
किसी के साथ बांटने के लिए तैयार नहीं था। ऐसी महफिलो
में ही मेरा ज्यादातर वक्त गुजरता था।

एक दिन मैं अपनी ओफिसमें बैठा सोच रहा था। तो ऐसे


गमगीन आलम में एक दर्दभरी आवाज दिल से उठी।

‘तोड दो यह चुप कि दम घुटता है

गुफतगु रहे जारी रूकावट अब और न हो’

मझु े अपने आप पर ताज्जुब हुआ कि मेरा दिल कब से शायर


हो गया। मुझे लगा कि दर्दको दबाने की अब कोई गुंजाईश
नहीं बची है अिसलिए दिल ने अपने आप अब गम बयां

ix
सारांश

करनेका रास्ता तलाश लिया है । कोई हमदर्द नही मिलता तो


कोई बात नही, मगर मेरे दर्दको कागज पर उतारने से मझ ु े
कोई नही रोक सकता। मैने यह शेर आगे बढाने की कोशिश
की और नज्म आगे बढती ही गई। फिर तो दिल से बातचीत
का यह सिलसिला रूकरूक के चलता रहा। नाकामयाबियों के
अंधेरे अब भी नही खत्म हो रहे थे।

मरनेसे पहले आदमी गमसे निजात पाए क्युं ।


एैसेमें ऐक दिन मैंने यह शेर लिखा।
सब्र कर ‘नाकाम‘ गमे शब का है आखिरी पहर
हर दम अश्क बहाने से नहीं तकदीर बदल जाती।
वो तडप पैदा कर मेरी कोशिश में यारब
सूखे होठो पे हं सी कामयाबी की नहीं आ जाती।।

उपर लिखे शेर ने मुझमें नयी जान डाल दी। सारी हताशा
और निराशा से निकल के फिर से मैंने हालात से लडने का
फैसला किया। मेरा उपनाम भी मुझे इसी शेर में मिल गया।
पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते यह सफर भी रूक रूककर
चलता रहा। अिसलिए ’मुकम्मल शायर’ कभी नही बन सका।
और यह कविता संग्रह अस्तित्व में आया।

यह कविताऐं किसी न किसी विशेष अनुभव के आधार


पर ही लिखी गई हैं। मेरा अभिनव प्रयास आप के सामने
पेश करता हूं। अच्छा है या बरु ा फैसला आपके हाथो में है ।

सधन्यवाद

विजय कुमार ‘नाकाम‘

x
फोरवर्ड

मेरे मतानुसार किसी बातको कम शब्दोमें लयात्मक एवं


भावनात्मक ढं गसे पेश करना ही कविता है । कवि ने अिसका
खूब अच्छी तरह से निर्वाह किया है । कविता संग्रह की सबसे
बडी खूबी अिसकी सरल भाषा है । मुझे आशा है कि आम
आदमी भी अिसका रसपान कर सकेगा।

जीवन के रास्तो से गुजरते हुए जो कवि को खट्टे मीठे


अनुभव हुए, अुन्ही को कवि ने कविता में पेश किया है ।
कहीं कहीं पीडा की अधिकता है कि पढते पढते मन उदास
हो उठता है ।

मेरे मित्र विजय कुमार ‘नाकाम‘ की कविता यात्रा काफी


रोचक और गमगीन है । कवि की मुख्य कविता ‘अजन्मी की
पीडा‘ भ्रूणहत्या जैसे सर्वाधिक चर्चित विश्वव्यापी सामाजिक
विषय पर है । समाज में इसके बारे में क्षणिक विरोध और
चर्चा तो खब ू होती है । मगर इस दिशा मैं कोई ठोस कदम
समाज या प्रशासन द्वारा कभी नही उठाए जाते। यह कविता
में हमारे पुरूष सत्तात्मक समाज की असली तस्वीर दिखाई
गई है ।

दस
ू री कविता जो मुझे पसंद आई वो ‘ सूना कपाल‘ है ।
अिसमें कवि ने बडी सक्
ू ष्मता से विधवा जीवन का चित्रण
किया है ।

लंबी कविता ‘ नेटीजन नामा ‘काफी रोचक और थोडी


हल्की फुल्की है । अिसका अंत बडा ही अनोखा है ।
जज़्बात की उड़ान

शेर भी अच्छे लिखे गए हैं कई तो एैसे हैं कि जिन्हें


पढकर लगता है कि कवि की रचनाओ पर मध्यकालीन सफ ू ी
शायरो के कलाम का बहुत ज्यादा प्रभाव है । मिसाल के तौर
पर यह शेर पेश है ।

बदर किया शेखने मस्जिदसे मुझ काफिरको

पज
ु ारीने किया बाहर दे नास्तिक का खिताब
बेजार होकर फिरकापरस्तीसे जमानेकी

तकिया मैंने बना लिया है दिलदारके कूचेमें

विजय कुमार ‘नाकाम‘ को मेरी हार्दिक बधाई। अुनके मंगल


भविष्य की कामना करता हूं।

हरमन चौहान

साहित्यकार

उदयपुर।

xii
कविता संग्रह
1
”अजन्मी की पीडा” लिखनेकी प्रेरणा मुझे स्थानीय अखबार
में प्रकाशित एक फोटो के साथ खबर जिसमें शहर की मशहूर
सूखी हुई झील में आवारा कुत्तों एवं अन्य जानवरों द्वारा
तीन क्षत विक्षत अविकसित कन्या भ्ण रू के शवों के अंग
बिखरे हुए दिखाए गए थे। खबर ने मेरे अंर्तमन को नफरत
और पीडा से भर दिया। उसकी अभिव्यक्ति अजन्मी की पीडा
में हुई। इस कविता की पहली लाइन जिस किसी शायर ने
लिखी हो अुनसे बिना अनम ु ति प्रयोग करनेके लिए क्षमाप्रार्थी
हूं। कविताके कथावस्तु के बारे मैं स्वंय कुछ नहीं कहूंगा आप
खुद पढकर अच्छे बुरे का फैसला लीजिए।

अजन्मी की पीडा

मां मुझे छुपाले अपने आंचल में


नजर बुरी परिवार की मुझे न लग जाए
कुछ ही बीता है समय दे ह में तेरी आए हुए
तुझे मैंने पत्नी से मां बना दिया है
परिणिता बन परिवार को समर्पित थी
अब मैं तेरी समर्पण की परिणिती हूं
स्पदं न अभी प्रारं भ ही हुए हैं हृदय में मेरे
अंगो का विकास अभी परु ा भी नही हुआ था
जज़्बात की उड़ान

फुसफुसाहटें लगी तैरने सारे घर में


स्वर मुखर मेरी दादी का ही था
पंरतु अभी मेरी समझ से दरू था सब
मम्मी पापा के बीच हुई तकरार अेक दिन
मेरा वजूद हिल गया सुनकर बातचीत
कामना थी परिवार को कुलदीपक की
वंश चलता है पुत्र से पित ृ लेते तर्पण अुसका
बेटियां अपनी सदा ही प्रवासी पंछी होती हैं
एक बेटी ही थी मेरी बडी मम्मी को
ताने सुनती थी मैं दादी को दीदी को दे ते हुए
बेटा न हुआ कसूर सारा उसीका ही था
तय हुआ मेरा लिंग परिक्षण करवाने का
बेटा हुआ तो परिवार दनि
ु या दिखाएगा
वरना कत्ल करवा दी जाउं गी नकाबपोशो के हाथ
कैसा क्रू र भविष्य मेरे लिए नियत था
दे दो मां मझ
ु े मौका अिस दनि
ु या में आने का
प्रमाणित करने नारी की सार्थकता को
तु मुझ पर ध्यान न भी दे गी रोता दे खकर
भूख लगने पर या कपडे गीले होने पर
शैशव लूंगी काट बिना तेरे आंचल की छाया के
करें गे इजाफा उम्रमें मेरी परिवारके ताने
मजबूत होगी मेरी जीवन डोर तिरस्कार सहकर
चलने लगूगी जल्दी घुटनों पर चलते

2
विजय कुमार ‘नाकाम’

गिर गिर के उठुंगी आशामें उठा लेगी तू मुझे


तकलीफ तुझे न होगी मेरे लालन पालन में
मां कह कर पुकारूं गी तोतली बोली में
माततृ ्व तेरा धन्य होगा पुकार मेरी सुनकर
काट दं ग
ू ी बचपन बिना गुडिया खिलोनें के
पेट भर लूंगी परिवार का बचा खुचा खाकर
फरियाद न करूं गी लब सिल लूंगी
युं भी कोई ध्यान नहीं दे ता कन्या की जिद पर
दतु ्कार ही मिलता है बेटी को परिवार में सदा ही
मत गाना लोरी आंचल में समेटे सुलाते हुए
सदा खिलखिलाती दौडी चली आउं गी
पुकारे गी जब भी तू मुझे ममता से
गले नहीं लगाएगी क्या अिस जिस्म के टुकडे को
क्यों सजा ए मौत मुझे सुना रही है
रहम कर मां दे मौका अिस दनि
ु या में आने का
हांसिल करने है मझ
ु े कई मकाम जिंदगी के
मैं भी रोशन करूं गी नाम खानदान का
क्या जिम्मे हैं सारे बल
ु ंद काम मर्दो के
मेरी योग्यता की महक फैलेगी सारे जग में
साबित कर दं ग
ू ी अबला नहीं है नारी
फहरा दं ग
ू ी तिरं गा एवरे स्ट की चोटी पर
जीत लूंगी सातों समंदर तैरकर
काल के गाल से नोच लूंगी जिंदगी

3
जज़्बात की उड़ान

नई नई दवा मर्ज की करके ईजाद


तेरी पहचान मैं बनूंगी समाज में
कदमों में ला डाल दं ग
ू ी खेल के सारे तमगे
दरू सितारों में फहराएगा नाम का तेरे परचम
नाम तेरा भी शामिल होगा मेरी कहानियों में
लोग पूछेगें किसकी बेटी है यह मर्दानी
कदम सुनीताके ठहरे गें अनेक सितारों पर
अतःरिक्ष भी नाप लूंगी मैं कल्पनासे परे
हांसिल क्या होगा सपनों को मेरे मिटाकर
लाठी बनूंगी मां तेरे बुढापे की मैं
बेटी ही नही तेरी सहे ली भी बनूंगी
दिल तेरा जब गम से भरा होगा
लिपट कर रो लेगें दोनों साथ साथ
रूखे बिखरे बाल सूखा थका बेनूर चेहरा
चूल्हे चैाके में लगे रहना दे र रात तक तेरा
याद भी न होगा नववधु की हाथों की हीना
काला हुआ लाल रं ग बरतन मलते मलते
चुभते हैं तेरे हाथ जब सहलाते हैं मुझे
आरजू सब खाक हुई रसोई के उठते धुंऐ में
बेनूर हो गयी सब उम्मीदें बदरं ग दीवारों के साथ
मां मत जा नकाबपोश कातिलो के पास
कितनी ही कन्याऐं शहीद हो गई अिस शफाखाने में
जुदा कर दे गें मुझे काट काट कर कोखसे
ना मेरे आंसू ना मेरी चीखें सुनायी दे गीं तुझे

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विजय कुमार ‘नाकाम’

खींचकर टागें मेरी औजारसे कोखमें डालकर


खंजर से छलनी कर दे गें शीश मेरा
अटकेगा जब कोख के द्वार पर
खाली करे गें माथा मेरा कुरे द कुरे द कर
फैला होगा चारों तरफ मेरा नवजात खून
तर्पण कर दे गें सफेद कातिल धोकर हाथ अपने
पडे होगें अधरू े जिस्मके टुकडे किसी कूडाघर में
जला दिए जाऐगें चुपकेसे नाकारा चीजों के साथ
तुझे गवारा होगा तेरे जिस्मके टुकडों को
आवारा कुत्ते सूअर लूट खसोट करे गें आपस में
चील कौऐे दावत उडाऐगें वीरान सूखे गड्डो में
कहां है तहजीब के रहनम
ु ा और घर्मगरू

जिनके ईशारो पर कौमे चलती हैं
प्रदर्शन जुलूस धरना मतलबसे दे ते हैं
जो हमेशा हर ऐक नागवार बात पर
धर्म को तोडते और मरोडते है मतलब के लिए
मोहरे चलाते हैं राजनीति के धर्म के नाम पर
मय पिलाते हैं मजहब की जूनून की हद तक
नया मुद्दा दे तें हैं अवाम को
खुमारी के उतार से पहले
दखल दे ते हैं हर नापसंद बात पर
फिर क्यों चप
ु हैं अिस सामाजिक बरु ाई पर
रहनुमा खामोश हैं नेता बहस में मशगूल
हुल्लड खूब करते हैं ईबादतगाहों के लिए

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जज़्बात की उड़ान

मकबरा अेक भी नहीं बना अजन्मी कन्या का


हुकुमत भी बस कानून बनाकर संसद मे
मुक्त अपनी जिम्मेदारी से हो गई है
जाकर दे खा है कभी किसी जच्चाखानेमें
कितनी कत्ल हुई जचगी दर्द से पहले
खो गईं ताजीराते हिन्द की सब दफाऐं
नोकरशाह बेबस हैं रसूखदार तबीबों के सामने
हिम्मत कर कोई कार गुजारी कर दिखाता है
बेदाग छूट जाते हैं सरपरस्त नेता के ईशारे पर
नेता अफसर रईस सिजदा करतें हैं
इन्हीं तबीबो के सामने पुत्र चाहत में
दरगाह मजार मंदिर ओझा हकीम तांत्रिक
रोजी रोटी खूब चलती है चोहान
पत्र
ु चाहत और नसीब के मारो से
शहीद होती रहें गी कब तक बेटियां बेटे की चाहत में
शमा ए जिंदगी कितनी गुल करदी गई जन्मसे पहले
धर्म खामोश है कानून की आखों पर पर्दा है
आखें उन की सिर्फ अपना मतलब दे खती है
पज
ू ा रोज करती है मां तू दे वी की पहरों
आमादा है आज तू अुसका प्रतिरूप मिटाने को
पारायण रोज करती है जिस किताबका
नारी महिमा से परिपूर्ण एक मर्द रचित
महाकाव्य सिर्फ नारी को समर्पित है
बहुत चरण धो लिए तिलक लगाए नवरात्रि में

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विजय कुमार ‘नाकाम’

अस्तित्व आज बचाना है पूजित कन्या का


रोज गाती है तू नारी शक्ति नारायण की
शक्ति नारायणी आज क्यों सोयी है
तु नारी निष्ठु र नागिन से भी ज्यादा हो गयी है
नागिन भी खाती बच्चों को प्रसव के बाद
मां भी रोती हैं संतान को दं डित कर
मतृ ्युदं ड क्यों मझ
ु े तू दे रही है
हिम्मत कर बगावत कर ले जमानेसे
मां का हक जताने में जीवनदान मुझे दिलाने में
अगर चुप रही आज जमाने के लिहाज में
कन्या एक शहीद हो जाएगी पुत्र चाहत में
दे वता भी धरतीसे पलायन कर गए हैं अब
नारी की दर्दु शा अिस धरा पर दे खकर
हम कब धर्म को व्यवहार में लाएगें
मंदिर के पाषाण कब विरोध करते हैं
सुनाई नही दे ती मेरी आर्तनाद किसी शिवाले को
मझ
ु े भी हक बराबर का है जीने का हसीन दनि
ु या में
एक को बिठाते हो तख्ते हिन्दोस्तान पर
अुसी को कुचलते और मसलते हो परिवार में
सजा कर प्रतिरूप चौक पर पूजा होती है
तिरस्कार अनादर सहती है रोज अुसी घर में
रूकेगा कभी सिलसिला कन्या की हत्या का
याददाश्त की मियाद परिवार की छोटी होती है
करे गें फिर भूल जाएगें मां तेरे महीने चढते

7
जज़्बात की उड़ान

आ गया अब कारवां कत्लखाने की चोखट पर


मैं थक गयी तझ
ु े जगाने में पैर मार मार कर
आंखे सूखी होठ बंद है लरजती कोमल काया है
कर दिया समर्पण मैनें सफेद पोश जल्लादो के सामने
एक नश्तर लगा और आजाद हो गयी
तेरी कोख अनचाहे गर्भसे सदा के लिए
नहीं रूकंु गी मैं मां परलोक में ज्यादा
कोख में तेरी फिर आंउगी कन्या बनकर।।

8
2
कमसिन इरादे

शफाखाने के पीछे की दीवार के पास


तामीर के लिए लगी बल्लियों के बीच
पक्के फर्शकी पतली सी दरार के कोने से
एक पौधे ने आफताब के सामने
सर उं चा कर जीने के ईरादो का इजहार किया है
छुपी है मौत शायद उसकी किसी
गिरते हुए गीले सिमेन्ट के टुकडेसे
हलाक हो जाएगा शायद किसी इमारती
पत्थरके अचानक गिरनेसे
बच्चा कोई तोड दे गा खेल खेलमें
साफ कर जाएगा कोई इसे झाडू लगाते
हवा के रूख पर खूब झूमता हुआ
अपने बुलंद इरादो के गीत गाता है
टहनियां हिलाते हुए अपने नाजुक
वजूद को और पुख्ता बनाता है
प्यास बुझा लेता है प्लास्टर पर छिडकाव से
गिरे हुए पानी के कुछ थोडेसे कतरोसे
जज़्बात की उड़ान

हयातकी बेहिसाब मायसि


ु यों को मात दे ते हुए
जिंदगी पल रहीं थी मौत के साएमें
मैं कोंपले नई गिनते हुए रोज सबेरे
उसकी जिंदादिली की दाद दे ता हूं
जिंदगी पौधे की जड
ु गई है मेरे वजद
ू से
दिल बैठने लगता है नजर जब नहीं आता मझ
ु े
दे खकर जद्दोजहद पौधेकी जीनेकी
दशु ्वारियों से लडनेका मझ
ु े होंसला दे ती है
मैं रोज खिडकी से बारबार दे खता हुआ
उसकी लम्बी उम्र की दआ
ु करता हूं।।

10
3
नाराजगी

तोड दो यह चुप कि दम घुटता है


गुफतगु रहे जारी रूकावट अब और न हो
बात लफ्जो में चले तकसीम हो हर खुशी
गिला शिकवा दरम्यां हमारे अब और न हो
रोक लो हर वो लफ्ज को
राहे मुहब्बत से जो भटक जाए
वो आंए ना आंए दरवाजा हमारा बंद न हो
पुकारने में तेरी गर महोब्बत की कशिश हो
लोटूंगा जरूर बस रास्ते बंद न हो
लो दे ख लो अब हाल अपने आशिक का
पता नहीं आगे मौका मयस्सर हो न हो
इस्तकबाल करू उसका दरे दिलपे जो आ जाए
बशर्ते ख्याल तेरे सिवा कोई और न हो
दिल पे जब बन आए अश्क आंखें बहाती है
लबकी तेरी रं गत कभी गमगीन न हो
जज़्बात की उड़ान

खोल दो मतलबी खिडकियां आने दो वफाओं को


नजरें चरु ाकर निकलने को गली अब और न हो
लिखे कई दीवान मैंने जमाने की बेवफाई पे
नाकाम कोई शायर महोब्बत में अब और न हो।

12
4
ईन्तजार

खूब भरते थे दम वो मुझपर मरने का


निकलते वक्ते दम भी उनसे आया न गया
डरते थे शायद वो जमाने की रूसवाई से
शरीके जनाजे में अुनसे आया न गया
वक्ते रूखसत मुंह फेर लिया तुमने
गली से गुजरते तुझसे चौखट पे आया न गया
लुटा दे ते हम जान अपनी तेरी अेक मुस्कराहट पर
तुम से ताउम्र रूख से पर्दा उठाया न गया
जां निसार करते हैं हम तुम पर अब भी
तमाम उम्र तुम से यह आजमाया न गया
बेवफाई का शुमार है शायद तेरी फितरत में
वफाओं पर तेरी यकीन हम से लाया न गया
रोज करते थे सिजदा हम तेरी चैाखट पर
तुम से अेक रोज भी बाहर आया न गया
मयकदे के साथियों से थी मुझे वफा की उम्मीद
जाम मेरे नाम पर उनसे उठाया न गया।।
5
मिजाजपुर्सी

पुकार लेते गर तुम मुझे जाते जाते


तो किस्मते इश्क मेरी बदल जाती
बैठा रहा मैं दर पर तेरे उम्रभर
हाले दिल पूछ लेते तो तबियत बहल जाती
दिलसे खेलना क्या खूब आता है तुम्हें
दिलमें बिठा लेते तो तकदीर बदल जाती
तुफान बेताब हैं शिकस्ता कश्ती डुबोने को
गर होते माझी तुम कश्ती साहिल पे लग जाती
सब्र कर ‘नाकाम‘ गमे शबका है आखिरी पहर
हरदम अश्क बहानेसे नहीं तकदीर बदल जाती।
वो तडप पैदा कर मेरी कोशिश में यारब
सूखे हुए होठो पर हं सी कामयाबी की नहीं आ जाती।
6
सूना कपाल कविता मेरे एक मित्रके असामायिक निधन
से उपजे हालात का वर्णन हैं। अुनकी पत्नी अकेले किन
किन अनुभवो से गुजरती है वैसे भारत में विधवाओं
त्यकताओं की स्थिति मेरे वर्णन से कहीं अधिक करूण
और दिल दहलाने वाली है । यह कविता उन सब महिलाओं
को समर्पित है जो अकेले जीवन यापन करते हुए विषम
परिस्थितियों में सामाजिक आर्थिक शरारिक और मानसिक
शोषण से लडते हुए संघर्षरत हैं।

सूना कपाल

रूठकर तम
ु चल दिए अंजाने सफर पर
क्या तम
ु ्हें साथ चलना मेरे गवारा न था
यकीन था मझ
ु े तेरे किए हुअे वादो पर
हवाले की थी तझ
ु े पतवार कश्तीकी मेरी
गम
ु हो गए सब रास्ते रहबर जिनके तम
ु थे
जिंदगी थम गई है अंधेरी सर्द सरु ं गमें
मोहलत दे ती अगर मौत रहम करके
फरयाद मैं भी कर लेती तम
ु से जद
ु ाईकी
खश
ु नम
ु ा शामें बदल गई अमावसकी रातोंमें
सलवटे बिस्तरकी गवाह हैं करवटोकी
जज़्बात की उड़ान

सहर आती नही नजर तन्हा उदास रातोंकी


कश्ती होशकी डूब गइ अश्कके समंदरमें
आंखोमें जलन है आहोंकी तपिशकी
दबी दबी सिसकियां रिसती हैं अब सांसोसे
मस
ु ्कराहट याद आती है तो भल
ू ी हुई कहानीसी
मरु झाया फूल नजर आता है बेनरू चेहरा
उम्र बढा गई है सालों आगे जद
ु ाई तेरी
मिजाज गल
ु ोके बदल गए हैं खारोंसे
लब थक चक
ु े हैं बयान करते हादसेका
जख्म क्यूं कुरे दते हैं हमदर्द मेरे बार बार
कूच कर जाते हैं सभी इस फानी दनि
ु यासे
तरीका जानेका जल्दी तम
ु ने अनोखा चन
ु ा है
तलाशता है हर शख्स अब कपाल पर निशान
जैसे दे खते हों मिल्कीयत पर मालिकका नाम
बेकरार हैं जमा सियार हर तरफ अजीजोके
बांटकर खानेको हैं तैयार मेरी जिंदा लाश
चभ
ु ती है हर बदनियत नजर खंजरसी बदनमें
शिकार आसान लगती है जवां बेवा हर मर्दको
नजर लगी है सबकी अपनी मतलबकी चीज पर
सैयाद हैं तैयार फैलाए जाल हसीन वादोंका
करीब और आ गए हैं कुछ खद
ु गर्ज मेरे
नजर रखे हैं कोई बची खच
ु ी दौलत पर मेरी
और कोई मन
ु ्तजिर है मेरे उजडे शबाबका

18
विजय कुमार ‘नाकाम’

बेटा मेरा पेश आने लगा है मेरा आकाकी तरह


बेटी निभा रही है सहे लीका किरदार
वजद
ू उलझा हुआ है मेरा बदनसीबीके जालमें
आस बाकी नहीं है कोई मगर बन
ु ता है तार नए
उम्मीद जगाती रहती है हरवक्त गमगीन दिलको
हो सकेगें न रूबरू ख्आबमें दीदार हो जाए
बदर कर दिया है मझ
ु े अब हर शभ
ु कामसे
हर चीज दरू रखते हैं मेरे मनहूस साएसे
अछूत हूं अब मैं हर मजहबी तमाशोमें
बल
ु ाता नही कोई मझ
ु े अब अगली कतारोमें
बापर्दा रखने लगी हैं औरते अपने मर्दोको
नजर बरु ी न लग जाए अुनके शोहरको
कोसने लगती हैं मझ
ु े सब अब हर बातमें
गाहे बगाहे कोई मर्द पछल
ू े गर हाल मेरा
दे खते हैं मझ
ु े हिकारतसे अब रं गीन लिबास
रची बसी हैं कहानियां कितनी अुनसे जड
ु ी हुई
उदासीकी गर्द गहनो कपडो पर छाई है
बेताब रहते थे कभी हुश्नको मेरे सजानेमें
शोर करते थे पहनाती हार बांहोका सनमको
खामोश है वो पडे दाग कंगनके हाथोमें
गंज
ू ती है कानोमें अबभी खनक चडू ियोंकी
कसक नही जाती पाजेबकी तन्हा पैरोसे
पक
ु ारते थे जो कभी रसभरी जंब
ु ासे बाईजी

19
जज़्बात की उड़ान

नजर बचाकर पंडितजी निकलते हैं रामनाम लेते


निकल जाते हैं राहगीर मंह
ु बिगाडकर
सामने आने पर मेरे राहसे गज
ु रते हुए
आजका दिन अब अच्छा क्या जाएगा
जब दे खा हो सब
ु ह चेहरा एक बेवाका
बेहिसाब दौलते हैं यादें मेरी खश
ु हाल जिंदगीकी
कट जाएगी जिंदगी बाकी अिनको खर्च करते
दिलसे गज
ु रे ख्याल भी अब आहिस्तासे
अभी अभी लगी है आंख दर्दकी रोते रोते
नहीं करूं गी तामीर अब मैं नई इमारत
टूटे हुए ख्आवोके बिस्मार मकबरे पर
बसर करूं गी जिंदगी बाकी सिजदे में उसके
सीने मे दफन नाकाम उम्मीदोकी लाशो पर -

20
7
मुसाफिर

ओ दरू के राही तझ
ु े बहुत दरू है जाना
राह कठिन कांटोसे भरी पसंद है तेरी
नदियां बनेगी रूकावटें राहों की
पर्वत भी मजबूर कर दे गें रूकने को
वनकानन में रास्ता भटकनेका डर है
रूकावटें दशु ्मन बन खडी होगीं कई
बारिशसे लथपथ चिकनी चट्टानी राहों पर
फिसलने गिरनेके मौके आएगें बारबार
कंटीली झाडियां रोक लेगी दामन पकडकर
रूकनेको मजबूर कर दे गी पांवोकी थकन
भूख प्यास भी रोक लेगी कदम राहों में
मायूस कर दे गें फासले मंजिलो के
सरसब्ज बाग पहाडोके ललचाएगें
राह गलत पर ले जाएगें कई राहगीर
रोक लेगें कदम हसीन नजारे राहों के
पुकार कर रोक लेगा कोई अपना पीछे से
महताब भी मुह छुपाएगा बादलोकी ओट में
हिचकिचाऐगें सितारे रात को दिशा दिखानेमें
जज़्बात की उड़ान

गम
ु हो चक
ु े हैं जो राहो के मोडो पर
नाम अुनके दर्ज नहीं हैं चट्टानो पर
चलते रहे जो दर्द भरे पैरो से राहों पर
नाम अुन्हीं का गूंजता है मंजिल पर
जो गिरे मगर डिगे नही अपने मकसद से
उठे बढ चले आगे जोश नया भर मन में
दीवानगी खींच लाई मंजिल को करीब अुनके
जो चाहते थे दीवानावार कामयाबी को
उठो राही राहें नई पुकारती हैं तुझे
मुनासिब नही है थक के बैठना पडाव पे
भुलाना है तुझे बदन की चोटो पांवके छालो को
निशान छोड जाऐगें राहो में टपकता लहू
पैदा होगें नए पेड अिन्ही गिरे कतरोसे
सुस्ताऐगें नए राही छांव में अिन्ही पेडोके
गज
ु रे गें कभी हमजोली कई अिन्ही राहो से
नाम तेरा हर पडाव पर पढते पढते
था दबदबा खिजाका अिस जिंदगी की राहो पर
मधुबन महका दे गी बंजर जमीं पर तू
टूट जाएगा सिलसिला आंसू और आहोका
बनकर आएगी जब तू सिरमौर बनकर
कंु दन बन निकलेगी मुसीबतो में पलकर
चूम लेगी कामयाबियां हर कदम पर तुझे
नाकाम की ईल्तजा है खुदा से बस यही
उठा जागो करो फतह रोज मंजिलें नई।।

22
8
आशियाना

हमने जब भी की आरजू आशियानेकी


चल पडी उलटी हवाऐं नादिर जमानेकी।
दोस्तो ने की बडी कोशिश हमें समझानेकी
क्यों सर लेता है जिल्लत सारे जमाने की।
कट रही है जब अच्छी किरायेके मकान में
क्यों मोल लेता है बला खद
ु के मकान बनाने की।
जब भी भरा दिल छोड दिया बेवफा सनम की तरह
रहे जब तक काबिज समझा तख्त दिल्ली का।
मिला जब भी कोई मालिक जालिम फितरत का
किया खाली इंडिया हमने विक्टोरिया हकुमत की तरह।
कोई हमखयाल न हुआ खयाल ही बदल दिया हमने
सियासत में बदलते हैं जैसे चेहरे आदमी के।
खब
ू चस
ू ा किराया बढाकर जलील किया किसीने बेदखल करके
मस
ु ्करा के हर सितम पर बदलते रहे हम मकान कपडो की तरह।
कहीं मिला कोई ऐसा जो करीब दिल के हो गया
रिश्ता हम तोड चले आए बेगानों की तरह।।
9
तू ही तू है

मैं खिलाफत करू तो किससे


कि दोनो तरफ तू ही तू है
वाद भी करू तो किस अदालत में
वादी प्रतिवादी तू ही तू है
दलील करे गा बेवफाई पर कौन
आशिक और माशूक तू ही तू है
मंझधारमें करू मैं मदद की अरदास किससे
कश्ती तूफान और समंदर तू ही तू है
10
नेटीजन नामा ईन्टरनेटके प्रयोगके दौरानके मेरे सोशल
मिडिया और डेटिग ं साईटोके अनभु वो और अन्य सत्य
घटनाओं पर आधारित है । कहानी के पात्रोके नाम और
जगह बदल दिए गऐ हैं। जिसमें मैंने दो दे शो के वासी कैसे
शादीशुदा जिंदगी के घटनाक्रम से गुजरते हैं। अुसका वर्णन
किया है । उम्मीद है कि आपको पसंद आएगा।

नेटीजन नामा

घूमता फिरता था रोज नेट पर आवारा


तलबगार था मैं एक हमदर्द दोस्त का
भटकता रहता था दरबदर अनेक साईटो पर
जो बांट ले मेरे गम मुस्करा दे मेरे साथ
खतो किताबत होने लगी अनजानी हसीनाओं से
रिश्ते बनाने को बेताब थे अनजाने अनोखे लोग
कुछ चाहती थी अपने लिए अच्छा हमसफर
कुछ खेलना चाहती थी इश्क का खेल
अुनमें कुछ बेवा थी कुछ लडकियां कुमारी थी
तलाक शुदा भी चाहती थी बच्चों के लिए बाप
खत अनोखे दिलचस्प और दर्द भरे होते थे
जज़्बात की उड़ान

गस
ु ्सा भी खब
ू आता था पढकर यारब तझ
ु पर
क्या खब
ू लिख दी कहानी बदकिस्मती की एक जैसी
क्यों छीन लिया जामे उल्फत अुनके होठों से
प्यास जिनकी अभी आधी अधरू ी थी
ईन्सानों की गैरत कहां खो गइ है
आदमियत खो गइ वफा हिजरत कर गई
कूच कर गए जमीं से महोब्बत के खद
ु ा
गायब थी दिल से महोब्बत आंखोसे हया
हर लब पर बेवफा सनम की कहानी थी
दौड में शामिल था हर कोई हसीनों को लभ
ु ानें में
गोया कि खेल तमगो का ईश्क हो गया था
हर कोई बेबस नाराज या गमगीन था
खश
ु कोई भी न था अपने हालात से
कोई बदहाली से कोई तन्हाई से सताया था
कोई काटे जा रही थी जिंदगी झठ
ू े दिलासो से
अलग बस्ती दिल की अपनी बसा ली थी किसी ने
सहारा मां बाप का ही था आखिरी कुछ के लिए
कुछ फरे बी भी शामिल थे अिस मजमे में
मख
ु ोटे लगाए अपनी असलियत छुपाए
हवस दिल में दबाए दर्द के परदे चेहरे पे डाले
बनने को तैयार थे हर हसीना के मददगार
माशक
ु ा नजर आती थी हर खत में अुनको
कोई खेल रहा था इश्क से मौज मस्ती के लिए

28
विजय कुमार ‘नाकाम’

कुछ वक्त गज
ु ार रहे थे सनम की तलाश में
शेखी बघारते थे दोस्तो की महफिल में
कितनी हसीनाओं के खत आते हैं अुनके पास
हसीनाऐं भी थी कितनी मजबरू हालात से
अपनाने को तैयार थी किसी भी उम्र का मर्द
परहे ज न था मर्द मिल जाए गर दग
ु न
ु ी उम्र का
तलाश जारी थी मेरी तभी एक दिन
मेल आया एक महोब्बत का पैगाम लेकर
किसी साईट पर मेरी प्रोफाईल पढकर
जिसमें ना छिपायी थी कोई बात मैंने
शादीशद
ु ा बाल बच्चे दार होने की
जिस्मानी रिश्तो में कोई दिलचश्पी न थी
थी तलाश मझ
ु े अदद हमदर्द हमराज की
चाहत थी बस जड
ु े दिल से रिश्ता
तबादला ए जजबात में मतलब की बू न हो
भा गई अुसके दिल को मेरी साफगोई
इमानदारी नेट पर तो नायाब चीज है
बदचलन भी तमन्ना बावफा की करता है
आरजू ए महोब्बत लेकर आई थी बडी दरू से
हसीना ने लिखा था खत बडी तफसील से
हर ऐक बात लिखी थी बडी बेबाकी से
अपनी पंसद नापंसद अच्छी बरु ी आदतें
जानकारियां बेशम
ु ार थी तस्वीर और विडियो में

29
जज़्बात की उड़ान

खिदमत में थी वो किसी होटल में बांदी की


रहती थी वो लाल परचम के दरू के शहर में
कद लम्बा रं ग बेहद गोरा लबो पे खेलती हं सी
नीला आसमान उतर आया था आंखो में
सर्ख
ु लब थे या दो पत्तियां गल
ु ाबकी
चेहरे को चम
ू ती आवारा सन
ु हरी जल
ु ्फें
रब ने तराशा था नफासत से बदन उसका
लफ्ज नाकाफी थे अुसके हुश्न के बयान में
वो बेहिश्त से उतरी धरती पर लगती थी परी
शबाब दे ता था शब की शबनमी अहसास
उतर आई थी परी कोई सपनोके फलक से
जिस्म उसका गजल सा नपातल
ु ा था
अदाओं में रूबाईयों की नजाकत थी
लब से निकली हरबात में शेर की लचक थी
नज्म की नजाकत थी जिस्म के जर्रे जर्रे में
लब से निकले जो लफ्ज फरमान हो जाए
कलियां चटकती थी अुसके मस
ु ्कराने पर
मिसरी थी बोली या मतला गजल का था
वो इश्क का नग्मा था प्यार का गीत थी
वेा नज्म सा सांसो का उठना गिरना
वो सर की जंबि
ु श से जल
ु ्फोका भटक जाना
खद
ु ा की लिखी धरती पर एक नायाब गजल थी
गज
ु र जाए गर वो चमन से कहीं

30
विजय कुमार ‘नाकाम’

गल
ु तो क्या खार भी मदहोश हो जांऐ
चले जब चम
ू के हवाऐं अुसके बदन को
जेठ की दोपहरी में ठं डक शाम की घल
ु जाए
बेमिसाल हुश्न पर मगर संजीदगी की छाया थी
दिल दिन रात दे खता था ख्आब जो
बगलगीर हो जाए हसीना तस्वीर से निकल के
हुश्न अुसका जो दीखता था तस्वीरो में
हकीकत थी या कमाल तस्वीर नवीस का था
खत उसके थे परु असर महोब्बत से लबरे ज
मैं भी दे ता था जवाब फौरन तफसील से
अंगडाई लेने लगी थी इश्क की दबी आरजू
वीरान दिलके किसी कोने में आखिर
आशनाई अुसकी दे रही थी हवा
दबी छुपी दिलवर की चाहत को
वो जवां और मैं पका फल जिंदगी का
फासले उम्र के रूकावट न बने थे
दरम्यान रिश्तों के हम दोनो के
वो अिस कदर हमख्याल हो गई कुछ अरसे में
मिजाज मेरा भांप लेती थी खत के लफजो से
बाखब
ू ी जानती थी वो मर्द की फितरत को
मन में एक टीस उठती थी कभी कभी
काश मझ
ु े मिला होता ऐसा शरीके हयात
वो हमसफर से बढकर हमख्याल होती

31
जज़्बात की उड़ान

वो बीवी ही नही मेरी महबब


ू ा भी होती
न रहते हम साथ साथ मस
ु ाफिरों की तरह
ता उम्र एक छत के नीचे अिस दनि
ु या में
सिला दे ती कभी मेरी एक तरफा महोब्बत का
सन
ु लेती कभी मेरे सिसकिते दिल की पक
ु ार
फर्ज के साये से परे महोब्बत के दामन तले
धडक लेते दो दिल जिस्मों के तकाजो से दरू
फर्क करती कभी फर्ज और महोब्बत के बीच
मैं शौहर उसका आसरा जीनेका जमाने में
आंचल था मैं बचाने को जमाने की दशु ्वारियों से
सकून दे ता तो था पहलु अुसका बदन की तपिश में
मगर रूह को कोई तस्कीन हांसिल न थी
रिवाजो की मोहर थी बदन के रिश्तो पर
दिल धडकने की धन
ु मगर जद
ु ा जद
ु ा थी
आंखो में चमक लबो पर मस
ु ्कान
नाक नक्श और कद आम सा ही था
कुछ था सीरत में जो अपना बना लेता था
खींच ही लेती थी नजरें बरबस सादगी चेहरे की
मशगल
ू रहना अपने काम में सब से बेखबर
खासियतें सब थी अुसमें घरे लू औरत की
अनजानी प्यास मजबरू करती थी मझ
ु े बेवफाई पर
बहकने को आमादा थे कदम इश्क की गिरफ्त में
खिदमत में लगे रहना हमेशा हम सबकी

32
विजय कुमार ‘नाकाम’

इबादत से कम न था उसके लिए


करती हर ब्रत उपवास बडी पाबंदी से
हर फाका बावस्ता होता था खश
ु हाली से
अुसकी महोब्बत लगी बेजा मझ
ु े
बढती मेरी उम्र के अिस मोड पर
जोया को गलतफहमी में रखना
मझ
ु े शराफत में जरा भी गवारा न हुआ
वो दिलो जान से आशिक थी
बेमानी थे जमीनी फासले अुसके लिये
करती रहती थी फरमाईश सदा
हरदम तस्वीर की हम सबकी
मैंने बयान कर दी हर बात साफगोई से
कोई भी बात छुपाना अपने बारे में
वाजिब न था रिश्तों के अिस मोड पर
डर था दिल के किसी घप
ु कोने में ।
दास्तां कहीं न दम तोड बैठे बीच में इश्क की
जानकर कहीं हकीकत मेरे बारे में
इश्क और भी बल
ु ंद हुआ मेरी बेबाकी से
तेज और हो गया खतो का यह सिलसिला ।
वो खल
ु ती ही जा रही थी खत दर खत
वो थी एक तलाकशद
ु ा और तन्हा
रहती थी वो अपनी कमसिन बेटी के साथ
बेटी सेवा कद और शकल सरू त में

33
जज़्बात की उड़ान

तकरीबन मां की ही परछांई थी ।


मगर रं ग मां से कमतर ही पाया था ।
वो मसरूफ थी स्कूल की पढाई में
तलाश दोनो को ही थी एक हमदर्द की
बेजार दोनो ही थी अपनी तनहाई से
बचपन से महरूम थी बाप की महोब्बत से ।
सेवा को भी थी दरकार एक सरपरस्त की
बेहद मश
ु किल थी तलाश ऐसे मर्द की
जो अपना ले बेवा को कमसिन बेटी के साथ ।
उसे गवारा न था अब दरू रहना
हर खत में लिखती उसे बल
ु ाने को
पता करती रहती थी वो सब तरीके
हिन्द आकर मझ
ु से मिलने के ।
मना करता रहता था मैं सदा हिन्द आनेकी
खौफ कोई था दिल में कहीं किसी कोने में
जो रोकता था मझ
ु े जोया से मिलने से
खत अुसके काफी थे मेरे दिल बहलाने को ।
जायज भी न था ढे र सारी दौलत खर्च कर
बेहद मेहनत और मशक्कत से कमाई हुई
खर्चकर दे चंद दिनो की मल
ु ाकात पर
उसे मंजरू न था अब दरू रहना ।
बना हुआ था पासपोर्ट पहले से ही
दरखास्त लगा ही दी अुसने दत
ू ावासमें

34
विजय कुमार ‘नाकाम’

वीजा के लिए बा हे सियत मस


ु ाफिर
अब दस्तक दे ने लगी महोब्बत अुसकी ।
होने लगा मजबरू मैं भी दिल के हाथो
जवाब दे ने लगा महोब्बत का मैं भी
मझ
ु े मालम
ू न था कहां ले जाएगी ये उल्फत
पहुंचेगी भी किसी अंजाम पर कभी ।
या दम तोड दे गी किसी मकाम पर
बदस्तुर जारी था सिलसिला मिलने का नेट पर
जी धक से रह गया सन
ु कर फोन जोया का
खबर थी दिल्ही पहुंचनेकी एक रात ।
रूसवाई का डर था मख
ु ातिब महबब
ू बनकर
खद
ु को जब्त कर दरकिनार कर सब डर
अगवानी करने पहुंचा दिल्ही ऐरपोर्ट पर
दो हाथ हिलते नजर आ रहे थे शीशे की दीवार से ।
चेहरे दो नमद
ू ार हुए दरवाजे से
पहचानने में दोनो ने न की थी कोई गलती
बिखरी जल
ु ्फें बेनरू चेहरा सलवटे लिबास की
बयां कर रही थी लम्बे सफर की थकान ।
दोनो दौड कर लिपट गयी गले से
मिले हों आशिक जैसे लंबी जद
ु ाई के बाद
आखें नम लब खामोश सांसे तेज चल रही थी
गफ
ु ्तगु जारी थी बजरिये दिलो की धडकन के
दोनो बेतहाशा चम
ू े जा रही थी मझ
ु े ।

35
जज़्बात की उड़ान

मदहोश किए जा रही थी बदन और सेन्ट की खश


ु बू
बेखद
ु ी छा गई थी जवानी की सोहबत में
बोल खशु ्क गले से नही रहे थे निकल
गर्क हो गये सब डर जवां जिस्म की खश
ु बू में ।
मय सिगरे ट और पसीने से महक रही थी दोनो
मस
ु ाफिर गज
ु र रहे थे है रत से दे खते करीब से
लंगरू नजर आ रहा था मैं दो हूरों के बीच
सिलसिला तोडा मिलने का टे क्सी वालेने
सर अब चले बहुत दे र हो चक
ु ी है ।
अब हिचक थी सोचेगी क्या घर मेरा दे खकर
तीन कमरे का मकान वो भी किराये का
सामान भरे हुअे थे आम शहरी की तरह
कायदे का कोई फर्नीचर भी न था घर में ।
दिल में था बस मेहमान नवाजी का जज्बा
चेहरे कई नजर आने लगे खिडकियों से
कुछ तो बाहर आ गए गाडी का होर्न सन
ु कर
खबर आग की मानिंद फैल गइ महोल्ले में ।
घर में मेरे विदे शी मेहमान के आने की
उतावले कुछ दे खने आ पहुंचे विदे शियों को
हर कोइ पछ
ू ता कौन है कहां से आए हैं
रिश्ता अुनसे मेरा पछ
ू ना ना भल
ू ता था ।
अजनबी घरू ती निगाहें हटती ही न थी
फिदा था हर कोई खब
ू सरू ती दे खकर दोनो की

36
विजय कुमार ‘नाकाम’

वाकिफ वो भी हो गए मेरे परिवार से


बात जिन्होनें आज तक न थी की मझ
ु से ।
हो जाते थे अब कइ मक
ु ाम गली से गज
ु रते
पछ
ू ना चाहता था तफसील से रोककर हरकोई
रहमत बरस गई रब की कैसे मेरे घरमें
हूरें दो घर में मेरे कहां से टपक गंई ।
आजिज आने लगा पडोसियों के मशवरे से
अमम
ू न सन
ु ता मैं अुनकी बात खामोशी से
मस
ु ्करा के टाल जाता जवाब दे ने से
पडोसियों में लग गई होड घर अपने बल
ु ाने की ।
तस्दीक करना चाहते थे छूकर हाथ मिलाकर
वाकई हैं भी दोनो हव्वा की संताने ।
बच्चे थे कि भीड लगा रखते थे घर में
दे खने को आ जाते किसी चीज के बहाने
रूतबा बढ गया था मेरे परिवार का गली में
बल
ु ाना ना भल
ू ते मगर एक ताकीद के साथ ।
मेहमान संग आना है खश
ु ी के मौके पर
वहम था अुनका चार चांद लग जाऐगें
गर विदे शी शरीक हुए अुनकी महफिल में
रौनक बढ जाती मोजद
ू गी से अुनकी ।
हम सब होशियार नजदीक अुनके रहते
हरकत गलत न कर बैठे कोई परवाना
शक्र
ु था कि सब तमीज से पेश आते

37
जज़्बात की उड़ान

गनीमत थी कि भाषा की दिक्कत थी ।


वरना मश्किल
ु हो जाता सवालो का जवाब दे ना
जेाया भी हिस्सा लेती अब बढचढ कर
नाच गानेके लिए औरतो में हर मौके पर
जमा करवाने गया सी फार्म जब थाने में
कलम तब चलती दरोगा की कागज पर
हटती निगाह जब जोया के चेहरे से
दागने लगा सवाल उल जल
ु ल
ु हम से
मैंने खींचा जोया को थोडा मेरे पीछे
जबाव हिन्दी में लगा दे ने दरोगा को
चिपचिपी हो गयी पेशानी पसीने से
सख्ती काफूर हुई मट
ु ठी गरम होते ही
मोहर लगा दिया कागज फौरन हाथ में मेरे
दोनो शक्र
ु मनाते थाने से बाहर आए
कुछ अरसा तो गज
ु र गया मेहमान नवाजी में
दोनों को शहर दिखाने और घम
ु ाने में
बातचीत में रहती मगशल
ू दोनो सब के साथ
दभ
ु ाषिये की अदाकारी दिखाता रहता था मैं
टूटी फूटी रशियन ही सीख पाया था मैं
तरजम
ू ा करना होता था आसान भाषा में
हर शख्स घर का ईज्जत से पेश आता
हर पछ
ू े सवाल का उमदा जबाव दे ता
दरू ियां मिटा डाली जोया ने अपने पन से

38
विजय कुमार ‘नाकाम’

लाए हुए तोहफे सब की पंसदके


अुनका बात बात में खिलखिलाना
गले लग जाना बढ कर चम
ू लेना
महक जाती थी फिजां बदन पे लगी खश
ु बू से
दीवारें कब की गिर चक
ु ी थी अजनबीयत की
हर दिल अजीज बन गए परदे शी चंद दिनो में
वो कदम कदम पर चम
ू ना गले लग जाना
बेहद नागवार गज
ु रता था मेरी बीवी को
परे शान हो जाती थी अुनकी हर नई हरकत पर
दे खी न थी अुसने विदे शी तहजीब करीब से
औरत मर्द का रिश्ता अुसकी नजर में
जेहन में बस अेक ही था शौहर ओैर बीवी का
इजहार करना महोब्बत का आपस में
करना सामने सब के बेजा था अुसके लिए
हिम्मत ही नही जट
ु ा पाते हम इजहार करने की
खो जाते हैं रिश्ते जमाने के रिवाजो में
वो अकसर खामोश ही रहती ख्यालो में डूबी
मझ
ु े अंदाजा हो गया था बदले मिजाज का
डर तारी था परिवार के बिखर जाने का
खाविंद को खोने का तन्हा होने का
खश
ु मिजाजी खो गई थी कहीं उसकी
तनाव पैदा हो गया था आपसी रिश्तो में
गफ
ु ्तगु होती भी थी बस मख
ु ्तसर सी

39
जज़्बात की उड़ान

मैं अुसे सब्र से काम लेने को कहता


वो खामोश रहती फीकी मस
ु ्कान के साथ
कलेजा चाक होता था दे खकर हालत उसकी
रास आई सहोबत हमारी दोनो को अिस कदर
फैसला किया दोनोंने कुछ और रूकने का
बच्चो को परवाह न थी अफसानेके अंजाम से
कोई भी मौका न चक
ू ता जताने का प्यार आपस में
नाम सेवा रख दिया था जोया की बेटी का मैंने
दे र न लगी बेटियों को सहे ली बनने में
वक्त था कि उडा जा रहा था पर लगाकर
फर्क तहजीबो के मिट गए थे बच्चो में
गर बेटी मेरी बैठती एक पहलू में
तो सेवा आ बैठती दस
ू रे पहलू में
जाहिर होती थी प्यार की हसरत हरदम
निहाल हो जाती बराबर का प्यार पाकर
महरूम थी बाप के प्यार से बचपनसे ही
तलाक हो चक
ु ा था सयानी होने से पहले
खाने लगी चाव से लजीज भारतीय पकवान
मिर्च मसालो का तीखापन सहते सहते
बीवी ने कम कर दिया था तेज मसाले डालना
करते दे ख सित्कार और आखों से बहते आंसू
कुछ दवाऐं भी लाकर रख दी थी मैंने
बिगडे हुए हाजमे के इलाज के लिए

40
विजय कुमार ‘नाकाम’

वो कहां उबला बेस्वाद मीठा अधपका


रोज मिलता था अब चटपटा मीठा खाना
पहले नाम पछ
ू ती थोडा चख कर दे खती
टूट पडती थी सेवा रोज नई बानगी दे खकर
हिचकती थी लम्हा भर जोया के टोकने पर
वजन बढनेकी चिंता याद दिलाते ही
आफरीन थी यहां के कपडे गहने दे खकर
बीवी बेटी पहना दे ते अुनको अपने गहने कपडे
रोज सजती संवरती थी नए नए वेश में
कहर बरपाती थी दोनो अलग अलग लिबास में
हुश्न और भी निखर आता रं गीन कपडो में
उतर आइ हों दो हूरें फलक से अभी अभी
लबरे ज हो जाते हैं रूमानी ख्यालो से हिन्दके मर्द
हर जवां और खब
ू सरू त सजी औरत को दे खकर
राहगीर भी दे खने से खद
ु को ना रोक पाते
सजधज के जब निकलती थी बाजार में
बैचेन होते रहे कुछ दिन घरू ती आखों से हम
नजर अंदाज करने लगे फिर तकती निगाहों को
फब्तियां भी सन
ु ाई पडती थी सरे राह मनचलो की
हमने मन
ु ासिब न समझा अुनका जबाव दे ना
तकरार करना बीच बाजार में बेजा लगा मझ
ु े
जब्त कर जाता खद
ु को गस
ु ्से को पीते हुए
अंग्रेजी अच्छी न थी दोनो की बोलचाल की

41
जज़्बात की उड़ान

कभी सही लफ्ज न मिलता तो समझाती ईशारो से


फव्वारे हसीं के छूटते अटकने पर उनके
सब मिलकर बात को आसान ढं ग से बताते
आपस में दोनो रशियन में तरजम
ू ा करती
किसी खास शब्द के मतलब न आने पर
वक्त का अंदाजा कब रहता है अपनो की संगत में
पता ही नही चला अरसा कितना गज
ु र गया
रास आ रहा था दे खना टीवी पर दे सी विदे शी फिल्में
सीरियल भी खब
ू दे खती थी खास वजह से
पसंद खब
ू आती थी सजी संवरी अदाकारा
सवाल करती रहती थी हिरोइनों के कपडे गहने दे खकर
औरतो की सजने की ललक एक सी होती है
निवासी हो दनि
ु या के किसी भी कोनेकी
नजर आती चीज जो सिरियल में दे खी
बाजार में पहचान कर नाम बताने लगती
कई सीडी भर चक
ु ी थी खीचें हुए फोटोकी
तकरीबन हर चीज दर्ज थी अुनके कैमरे में
कुछ भी न बच पाता अुनकी निगाहों से
दिलचश्प हो और फोटो न खीचीं हो
शोकीन थी दोनो पीने की तरह तरह की मय
लाकर दे दी मैंने शराब कई किस्म की
मयकशी तो दोनो करती थी बिना नागा
पीती थी मगर बडे अदब कायदे के साथ

42
विजय कुमार ‘नाकाम’

मझ
ु े बाजार में नहीं मिली पसंदीदा बोडका
उसी में खश
ु थी जो लाकर दे दी मैंने
गोश्त का नाम लेना घर में गन
ु ाह था
अंडा ही भल
ू े भटके घर में आता था
बीवी से मेरी खब
ू तकरार होती इस मसले पर
वो बदलने को तैयार न थी खद
ु को
दोनो होटल में खा लेती जब भी बाहर जाते
तंदरू ी खाना दोनो को बेहद पसंद आता
अरसा काफी गज
ु र गया दोनो को घर में रहते
मियाद बढवा दी थी वीजा की भागदौड कर
अुनकी भारत में तीन महीने रहने की
गज
ु रने को थे छ महीने बातो बातो में
नजदीक आता जा रहा था वक्त जद
ु ा होने का
मैं भी मसरूफ था खरीदारी में बीवी के साथ
तोहफे जो दे ने थे दोनो के पसंद के
फेरहिस्त लम्बी थी पसंद की अुनकी
नागवार हरकत न की थी जोया ने अब तक
मझ
ु े ईंतजार था पहल अुसकी तरफसे हो
था मझ
ु े यकीन करे गी वो बात कुछ
आरजू लेकर आई थी जो वतन से अपने
पैमाना मेरा सब्र का जब छलक गया
तय किया मैंने खल
ु ासा बात न हुई जब
सब बैठे साथमें खाना खानेके बाद

43
जज़्बात की उड़ान

मैंने ही मोडा बातचीत को इस तरफ


मकसद पछ
ू ा जोया को दरू तक आनेका
कडी मेहनत से कमाई हुई रकम खर्च करके
जोया आई तो थी तलाशे हमसफर में थी
जो दे सेवा को प्यार अपनी बेटी की तरह
तलाश मक
ु ्कमल हो गइ हम से मिलते ही
सफर का मकसद और प्यार की तलब
मिली बेहिसाब महोब्बत जब मेरे परिवार में
वो भल
ू गई किसलिए आई थी यहां
दफन थी जिसकी आरजू दिल में बरसो से
लगाव दोनो का दिन ब दिन हमसे
महोब्बत थी कि बढती ही जा रही थी
योगासन करने लगी जोया करते दे ख मझ
ु े
मालम
ू करने लगी योग के बारे में मझ
ु से
काफी आसन सीख लिए थोडे दिनो में
प्रभावित बेहद हुई ध्यान के नतीजो से
पढती रहती थी हिन्दु धर्म की किताबें
है रत से भरे होते थे अुसके सवाल
कौशिश मेरी भी होती बेहतरीन जबाव दे ने की
काफी सीख लिया योग उम्मीद से कहीं ज्यादा
जोया दरू जा रही थी जिस्मानी तकाजो से
पाकर महोब्बत अजीजो सी घरवालो से
टूटते जा रहे थे कांच रूमानी ख्यालात के

44
विजय कुमार ‘नाकाम’

निखर रही थी रूह हवस की गिरफ्त से निकलकर


नजरिया दे खनेका जिंदगी के हर पहलू को
तब्दिलियां आती ही जा रही थी ख्यालों में
अब न थी शिकायतें अपनोसे शिकवे जिंदगीसे
दे खी न थी दोनोने आपसी महोब्बत घरमें
वाकिफ न थी दोनो पारिवारिक प्रेमसे
महरूम थी मांबाप के प्यार से बचपन से ही
इरादा गायब हो गया महोब्बत की आंधी में
अेक आशियां तोड कर खद
ु का घर बसाने का
वो रोशन करे गी खन
ू े जिगर से महोब्बत के चिराग
साफ कर दे गी आंचल से धंध
ु लाए शीशे दिल के
वतन जाएगी वो आबाद महोब्बत की याद लेकर
बेहतर है बद्दुआ लेकर घर बसानेसे
उजडने से बचाने के लिए शहादत दे ना
बेहद खश
ु थी जोया सेवा को दे खकर
सदा खिलखिलाती मस्तीमें सब के साथ
नजदीक आता ही जा रहा था दिन जद
ु ाई का
भारी हो जाते दिल आखें नम हो जाती
गलत साबित कर रही थी वो कई बातें
जो मझ
ु े मालम
ू थी विदे शी तहजीब के बारे में
माहोल में गमी थी अजीज की विदाई की
बीवी जो खिंची खिंची रहती थी अब तक
पोंछ लेती थी वो दो आंसू चप
ु के से

45
जज़्बात की उड़ान

छुपा हुआ था दर्द अुसमें गलतफहमी का


दावत दे ती ही रहती थी बार बार रूस आनेकी
मैं भी यकीन दिलाए जा रहा था आनेका
विदा हो रहे थे मेरे परिवार के लोग
सेवा का चम
ू ना गले लगना जारी था
रूखसार से आंसू गले मिल रहे थे
धंध
ु ला गए थे चेहरे अश्को की चिलमन में
सरहदे मल
ु ्को की बह गई अश्को के सैलाब में
रूहें निखर आई थी गस
ु ल अश्को से करके
संभाल लंू जजबात से भीगे रूमालो को
गैर निगाहो से दरू हिफाजत से किसी कोनेमें
कहीं खो न जाए मखमली अहसास की दौलत
आशिक मचलता है हर हाल में चाहत पानेको
रूलाती है पहले महोब्बत और बादमें जद
ु ाई
खामोश थे सब जहाज को उडते दे खते
गम तारी था सब पर जद
ु ा होने का।।

46
11
महे च्छा

तुम ऋचा हो किसी वेदकी


स्तुति हो किसी दे वकी
अखण्ड दीप हो किसी दे वालयका
गिरिजाघर का जगमग सितारा हो
प्राकथन हो मेरी जीवन पुस्तक का
लिखी तुमने ही प्रथम कविता
प्रीत की कलमसे हृदयपटल पर मेरे
तुम आलोचना के क्षितिज के पार
प्रेरणा सिंचनसे पल्लवित किया तुमने
शीतल अनिल हो उषाकालकी
प्रसरती लालिमा हो संध्याकी
मैं पथिक अग्रसर निर्जन पथपर एकाकी
अलंकृत किया तुमने मेरी सहगामिनी बनकर
मैं पाषाण अंश पडा हुआ वनप्रांतर में
स्पर्श पाकर तुम्हारा स्पंदित हुआ मैं
खिल उठे सुमन अनंत मन उपवन में
था जीवन अबतक पतझड में सूखे पादपसा
जज़्बात की उड़ान

वाट जोहता चातकसा प्रीतके श्रावणका


भावविभोर कर गया मद
ृ ु स्पर्श तम
ु ्हारा
गतिशील पथपर मैं पर गंतव्य कहां था
तरं गित कर वीणा हृदयकी दिशा बोध जगा दिया
आतरु था अबतक भीड भरे जगमें
इस मानव सागरमें हृदयाश्रयका
मनमयरु हुआ उल्लसित प्रीतकी वर्षामें
आलाप बनी तम
ु ्ही जीवनरागका
अंतरा लिखा तम
ु ने जीवनगीतका
अव्यक्तमें अबस्थित थी अबतक
पार्दुभाव हुआ तम
ु ्हारा स्तुति का वर बनकर
तम
ु ही बनी राधा रति रमा मेरी
नश्वर कायासे सलग्न संबंध सब तम
ु ्ही हो
रिश्ता तम
ु से जन्म जन्मातंरका
हर जन्ममें मिली वामांग तम
ु ्ही हो
प्राप्त हो यदि ईश्वर प्रदत्त कोई वर
याचना है मेरी मिले अनंत साहचर्य तम
ु ्हारा।।

50
12
शुभकामना

हो जाए बरसात कभी खारोंकी तुझ पर


चादर फूलोकी शामियाना बनकर तनी हो
बन जाए जमाना दशु ्मन तेरा कभी
कनात बनके अपने तेरे आगे खडे हो
गुम हो जांऐ राहें जिंदगीकी मायूसीके अंधेरोमें
लेकर रोशन चिराग फरिश्ते खडे हो
चलना मुश्किल हो तपती जिंदगीकी राहोंपर
चांद सितारोंसे जडी पग तले तेरे जमीं हो
दआ
ु ही बची है हयाते राह में लुटते पिटते
नाकामियां आंसू आहें मेरी खुशियां तेरी हो ।
13
तन्हाईयां

आने लगी है माफिक मुझे अब तन्हाईयां


जुस्तजूके जुगनु दमकते हैं स्याह रातोमें
घबराना जी का मजमेमें जुदा रहना अपनोसे
ये कहीं खो जाना बात करते करते
नागवार गुजरती है अब नसीहत अजीजोकी
दिल मांगता है कर्ज हमदर्दीका अब हर दोस्तसे
खोफजदा रहता है दिल अब हरदम
सरे राह गुजरते हुए हर शख्ससे
रोककर कहीं न पूछ ले हाल मेरे
गमख्वार दिलका साया है चेहरे पर मेरे
होता है अब कमतरीका अहसास
दे खकर मुस्कराते चेहरोंको
आंख चुराता है अुनसे जो दिलके करीब थे
बहलताही नहीं है दिल अब किसी ख्यालसे
सकून नदारद है अब सागर ओ मीनामें
करार अब नही आता दिलको महफिलोमें
नसीब नही है चैन अब घरमें और वीरानेमें
विजय कुमार ‘नाकाम’

बेकाबू दिल हो जाता है उदास बात बातमें


खो जाता है कहीं सन
ु ते सन
ु ते बात किसीकी
मस
ु ्करा दे ता है बेसाख्ता सोचते हुए तन्हाइमें
गिरते हैं कभी अश्क दर्दकी इन्तहा पर
आहें उतर आती है कागज पर गजल बनकर
दीखता है अक्स उसका हर तस्वीरमें
सरू त आती है नजर अुनकी हर सरू तमें
दर्दे जद
ु ाई है कि मिटाए जा रहा है मझ
ु े
निजात तबीब कोई दिला दे अिस जानलेवा दर्दसे
दोरे ताबीज किए खब
ू पीर फकीर सयानोने
सिजदे भी किए झक
ु ाया सर बत
ु खानेमें
बेरंग लौट आई इल्तजा मल
ु ाकातकी
बेअसर है दवा बस आसरा दआ
ु का है
दम नही है बाकी अब अरदासकी बीमारमें
अब आरजू आखिरी है डूबती सांसोकी
वो दीदार दे जांऐ बहाना बनाकर
हो जाएगी रोशन राहे जन्नतकी मेरी
हवा दे जांऐ गर वो दामनसे अपने
टूट जाएगा तार आखिरी सांसोका
गर वो छू ले नाकाम साजको हाथोसे अपने।

53
14
वादे

याद होगी साथ जीने मरनेकी कसमें


जो खाई थी हमने हाथो में हाथ लेकर
निभाएगें अब कसमें सहकर सितम जमानेके
टूटे चाहे रिश्ते छूटे चाहे अब सांसोकी डोर
आपसे मिलनेसे पहले कोई आरजू न थी
आपसे बाबस्ता अब ख्वाईश हर पल नई है
गमजदा क्यों है दिल अब
आपकी बेरूखाईसे
समेटली मैंने सौगातें मानकर
नसीब हुई मुझे जो महोब्बतमें
आस थी दिलको आपके आनेकी सरे शामसे
वो भी नाकाम हुई अिस शबके गुजरनेके बाद
तसल्ली कबतक दें झूठी अिस दिलको
बागी दिलको कैसे दें सब्रकी हिदायतें
शमा है उदास शबका दम घुटता है
आस मेरी भी अब टूटती जाती है
उम्मीद हो चुकी है बेबस
विजय कुमार ‘नाकाम’

अश्क सख
ू चक
ु े हैं बेमियाद ईंतजार में
जान आ जाती है तन में हर दस्तक पर
चमक आ जाती है सन
ू ी आंखोंमें
काबू करते हुए सांसोको
बेतहाशा दौड जाता हूं दर तक
धडकनें क्यों तेज होती हैं हर दस्तक पर
और बढा जाती है दीदारे चौखट दिलमें
नहीं कोई नही खाली चैखट पर
करने लगी है हवा भी मखौल मझ
ु से
मजबरू हों वो शायद हालातसे
खतही भेज दें वो कासिदके हाथ
खतका इंतजार अब भी है हरदम मझ
ु े
मायस
ू हो जाता हूं कासिदके गज
ु रनेके बाद।

55
15
अुसका बुलावा

वो तन्हा बल
ु ा रहा है मझ
ु े
बचाकर नजरें अिस जमानेसे
नजरोंसे ओझल है मगर दिलके करीब है
रग रगमें बसा हुआ है मगर बेरंग है
खबर है अुसको मेरी रफ्ता रफ्ता बिखरनेकी
बुलावा भेजता है वो मुझे उसके करीब आनेकी
वो फिक्रमंद है बहुत मेरी जुदाईकी पीरसे
करता रहता है कोशिश मुझे अपने नजदीक लानेकी
जकडते हो क्यों मुझे जख्मी रिश्तोके धागेसे
बल
ु ा रहा है वो मझ
ु े तोडके सब नाते जमानेसे
राहत मिलेगी कहां मुझे अिन तौर तरीकोसे
मझ
ु े पिलादे वो मय न उतरे खम
ु ार जमानोमें
रोक सकेगें न अब आंसू आहें करीबोके
लौट जाऐगें टकराकर ताने सब जमानेके
गाफिल हुआ कभी मैं अपनोकी मीठी बोलीसे
लगा गिला करने वो मुझसे उसे भूल जानेकी
वाकिफ है वो मेरी आजाद होनेकी जद्दो जहदसे
डाल दे ता है नया जाल रिश्तेका अिस जमानेमें
सरकते आते हैं तफ
ू ान जजबातोके दिलसे
जज़्बात की उड़ान

हिम्मत दे ता है वो मझ
ु े तफ
ू ानसे निकल आनेकी
खडा हूं मायूस मैं रिश्तोके चोराहे पर
सयाना कोई बता दे कौन अपना है अिस जमानेमें
खींच रहा है हर रिश्ता शिद्तसे मुझे अपनी जानिब
थामले मेरा हाथ वो गिरनेसे पहले अिस जमाने में
राहें गुमशुदा हैं मुसीबतोके अंधरोमें
तडपता है दिल मेरा निजात पानेको अिस जमानेमें
मश
ु किलें हयात अब हमराह हो गई हैं
गैरमुमकिन है दर्दसे निजात पाना अिस जमानेमें
सई
ु यां घडीकी सस
ु ्त हो गई हैं मस
ु ीबतके वक्तमें
अश्क गिरना है पैमाना वक्त गुजरनेका अिस जमानेमें
राहें जद
ु ा जद
ु ा हैं मगर दर तो तेरा एक है
चलते नहीं क्यों लोग एक होकर अिस जमानेमें
छबी है दिलमें बसी तेरी नाम सांसोका आनेजानेमें
डूबा है दिल इबादतमें तेरी भूलके जालिम जमानेको
निकल आया हूं मैं अब अपनोकी महफिलसे
बनके दरू जाती सदा गुजरे हुए जमानेकी
गिनती करता रहा मैं उम्रभर
अपने परायोंकी
मिटा दिया जब मैं को
बेगाना न रहा कोई जमानेमें।
तलाश रहा था सकून मैं बेरूखीके सहरामें
छोड आया हूं छांव अपनोकी
तन्हा हूं अिस जमाने में ।

58
16
जुदाई

करो न कैद लफ्जो को लबो की जेल में


दिमाग को करो कैद आजाद करो दिल को जरा।
सरगम लफ्जो की बहने दो दिले दरया से
भीगा गुनगुना रस महोब्बत का बहने दे ा जरा।
बहुत रोका अब छोड दो अपने दिलकी गिरफत को
आ महसूस कर लें गर्माहट महोब्बत के रिश्तो की जरा।
जो रूठे हैं बुला लो अुनको दिले दरया के पास
गुमां को रख दो कुछ दे र अलग खुदसे जरा।
लग जाओ गले अुनके जो रूठे हैं मुद्तो से
रूकावट अब न हो कोई दिली जजबात के बीच
बहती चले दरया अब महोब्बत की बेपनाह
न रहे अब कोई गिले शिकवे शिकायतें ।
हटा दो अब ये सारे अल्फाज दिल की किताबसे
लुटा दो सारी दौलतें महोब्बत की फिराकदिली से
न रहे अब गम कोई दरम्यां हमारे रिश्ते के
जज्बा हो बस एक दस
ू रे पे फना होने का
रूके न अब लफजों का कारवां मेजिल से पहले
जज़्बात की उड़ान

लो करो वादा यही वफा हमेशा निभानेका।


सर कर सकता हूं और भी कई मकाम महोब्बत में
सल
ु ा चक
ु ा हूं सपने मैं तरक्की के बेबसी में ।।

60
17
यादों का अहसास

दफन कर चुका था
यादों को तेरी दिल की गहराई में
इक दर्द उठा भूला हुआ
आंसू बने जख्मों का मरहम।
तूफान वरपा कर दिया
आज तस्वीर ने तेरी
रखी थी जो अरसा पहले
खत्म हो चुके रिश्तों की किताब में ।
डगमगा गया सब्र
थर्रा गया मेरा वजूद
साफ की वक्त की गर्द तस्वीर से
ले कर अश्कों से भीगे रूमाल से
लिये फिर हाथ में जाम
गुनगुना रहा हूं भूला हुआ गीत
पंसद था जो आपको कभी
नजर किया था मैंने दस
ू री मुलाकात में ।
रोक लेता हूं खुद को घूंट भरने से
जज़्बात की उड़ान

हिल न जाए कहीं मय में दीखता आपका अक्स


मय का स्वाद बदल गया
मजबरू अश्कों के गिरने से।
दिल पर मेरा जोर नहीं
यह तो मरु ीद है आपका
धडकता भी है तो रूकरूक कर
ले ले कर आप का नाम।
मौसम बदले हालात बदले
याद न आयेगें क्या भल
ू े से कभी
बांटे थे हमने गम ओ खश
ु ी कभी
झरु मट
ु ो में बैठे जवां होती रात में ।
न कर उं ची निगाहें
लबो को खामोश रहने दो
न उठा अभी चिलमन
दरम्यान तेरे मेरे रिश्तों के।

62
18
मेरी कीमत

लगते थे दाम पहले


सरे राह बिकती चीजों की तरह
आज चस्पा है मुझ पर
उं ची कीमत का लेबल।
बेटियों ने करके उं चे काम
मेरे कुनबे में
मेरी तंगहाली की कश्मकश
को जगमगा दी है ।
जगह मिलती थी पहले हमें
महफिलो की पिछली कतार में
रब की रहमत आज बरसी है
ला बिठाया है आज सदर की गद्दी पर।
मिलती थी पहले साकी की झिडकी
जाम दे ने की मिन्नत पर
आज हर कोइ फिक्रमंद है
कि जाम मेरा खाली न रहे ।
नसीब में कहां थे गुल मेरे
जज़्बात की उड़ान

दरू करने में जट


ु े हैं लोग कांटो को
ताने मारने से न चक
ू ते थे जो अपने
गिरने नहीं दे ते वो आज पलकों से।
लियाकतें बेबस थी
जमाने की गर्दिशो के सामने
सेहतमंद हो चक
ु ा है नसीब भी
हिकमत बता यारब रूठो को मनाने की।
शिकवा है तो बस नाकाम को अितना
कुछ कर तो लेते ईन्तजार वक्त बदलने का।
नहीं गिला अपनों से है
न शिकायत बेगानो से है
दे खद
ु ा अुन सब को नसीहत
दे कुव्वत मझ
ु े बरदाश्त करने की।

64
19
कल्पाथेय

जन कहते रहता खडा सदा पुत्र


तात के पासमें तरूणाई से
कन्या रही पराया धन नहीं लाभ नियोजन में
एक रूप धरा तनया का नवरूप ने कृपा करके
पुंजीभूत हुई सब आकांक्षाऐं रूप तुम्हारा धर कर
तन धरा कन्या का रही खडी सदा पुत्र बनकर
भरा भावुकता का सागर मन में
द्ढता सबला जैसी तन में
लंबा कद मद
ृ भ
ु ाषी धैर्यवान कर्मठ बाला
अध्ययन में रही सदा आगे खेल में भी रही अव्वल
तुम त्रिपुंड तात के भाल का
पल्लू माता के शीश का हो
मूर्त रूप अरमानों का
अभिभावक का तुम हो
सुर और अंत बदल दिया तुम ने
अपनी सफलता से दर्द भरे गीतों का
स्थापित कर के सफलता के
जज़्बात की उड़ान

नये आयाम बनी तम


ु कुनबे की शान
भ्रमण कर कई दे शों का
पताका अपनी प्रतिभा की पहरायी है
परिश्रम कर कठोर सेवारत रहते
स्थान प्रमख
ु सहकर्मियों में बनाया है
बन वैजयन्ती तम
ु हरि के कंठ में हर्षायी हो
सकल कामना है सख
ु द वैवाहिक जीवन की
अग्रसर हो सदा तम
ु सम
ु न परिपर्ण
ू पथ पर
वाधा संकट आपदा रोकें न कभी तम
ु ्हें
सरु भि प्रसरे तम
ु ्हारी सरहदों के पार
रहे तम
ु से सदा दरू दःु ख दर्द की तपती धप

महोब्बत से पेश आऐं सदा कांटे तम
ु से
हरिप्रिया का साथ हो हरि का सर पर हाथ हो
बीते उम्र सारी सफलता की कलियां चन
ु ते चन
ु ते।।

66
20
पूजाजंली

तुम सुधा बरसाती रजनीश सी


या प्रथम किरण हो प्रभात की
पल्लवित परिवार की तुम नवबहार हो
दे वी प्रदत्त अनुकम्पा का दस
ू रा वर हो
द्ढ बदन धीर चेहरा जवाकुसुम सी
तेजस्वी भाल दीर्ध लोचना स्मिता
मुदित किया सबको तुमने अपनी
अंतहीन नवरं गी गाथासे
जो किया प्रण मन ही मन में
तो दम लिया लक्ष्य पाकर
पदचिन्हों का अनुसरण कभी किया नही
अग्रसर हुई तुम सदै व स्वंय निर्मित पथ पर
चुनते सभी सुविधाजनक पथ जीवन में
चलते सभी वनकानन की शीतल छाया में
तुम खडी धूप में दे खती हो
उतरते हुए सपनों को धरती पर
रखती हो कदम सदा गहन विचार कर
जज़्बात की उड़ान

पीछे कभी हटी नहीं धर के पग पथ पर


तम
ु हारी नहीं कभी असफलता से
गिरी उठी फिर जट
ु गयी नये जोश से
तमगे जीते तम
ु ने विभिन्न क्षेत्रों में
अवसर पाकर दे श के कई मंच पर
रूकना कैसा मंजिल पर जब
दीखती हो मंजिल से एक नई राह
मंजिल कब रोक पायी है राही को
प्यास हो जिसको हरदम नई बल
ु ंदियों की
अब नई मंजिल बनी है विदे शी धरती
चल पडी तम
ु तन्हा परचम फहराने को
करते हैं सब प्रार्थना सफलता दिलाने को
वाधाऐं सब दरू हों सफलता चम
ू े तझ
ु े
नाम दर्ज हो तम
ु ्हारा प्रमख
ु ता से
गगनचंब
ु ी इमारतों पर
लिखा जाय नाम तम
ु ्हारा सदै व
कामयाबी के नींव के पत्थर पर।

70
21
अंतिम मुगल बादशाह और मशहूर शायर बहादरु शाह
जफर जिसे अंग्रेजोने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के
असफल होने से कैद करके सजा दे ते हुऐ बेगम जीनत
महल और बेटीके साथ बर्मा म्यांमार में निर्वासित किया
गया था । भारत में महरोली के पास स्थित जफर महल
में अपने लिए नियतकी गई जगह पर उनका मकबरा बने
यही उनकी अंतिम इच्छा थी । जहां उनके परिवारके अन्य
सदस्यो के मकबरें हैं। जो आजादी के इतने वर्षो बाद
भी पूरी न हो सकी । जफर के साथ साथ उन आजादी
के दीवानों को भी श्रद्धासुमन समर्पित करता हूं जिनकी
स्मृति स्वरूप समाधी मजार और मकबरे आदि नहीं बने।
कई अज्ञात बलिदानियोंकी गाथा भी स्वतंत्रता संग्राम
के ईतिहास में दर्ज नहीं हो पायी उन सब ज्ञात अज्ञात
आजादी के दीवानो को मेरी यह कविता समर्पित है ।

कितना है बदनसीब जफर

कहीं महल तामीर हो गए नये जमानेके


मेरे बिछडे हुए वतन के उजडे दयार पर
कुछ जमींदोज हो गए वक्तके थपेडोसे
कुछ सरकारी दफतरो में तब्दिल हो गए
बचे खुचे पर लोगो के कबजे नाजायज हो गए
जज़्बात की उड़ान

तलाशती है बदहवास रूह मेरी अब भी करार


मिल जाए दो गज जमीन कहीं
अिस दरबदरको कूए यारमें ।
जगह दे दो कहीं थोडी दिल्लीगेट के पासमें
वहां भी नहीं तो दे दो कहीं राजघाट पर
पर यहां तो नेहरू गांधी शास्त्री का दबदबा है
वहां कौन दे गा बदनसीब को सक
ु ू न की जगह
सामने वाली सडक पर तो अखबारोका कब्जा है
पर नाम मेरे परू ी सडक लिख दी गई है
वाजिब जगह आज तक नहीं मिली मेरे मजारकी
जगह कहीं भी नही तो खन
ू ी दरवाजा तो खाली है
यादगार बन तो सकती है वहां बाप बेटो की
मेरे सर्ख
ु रू शहजादोके खन
ू से सींची जमीं पर
गंज
ू ती है अब भी सर्द आहें अुनकी गम
ु ्बदमें
दे दो निशां हमें भी हिन्दकी सरजमीं पर
बचाकर रखी थी मैंने जमाने की ठोकरो से
मक
ु र्र र की थी जफर महल में मेरे लिए
रखा था अपनी कब्रका निशां परु खोके पहलु में
मय कुनबेके ईल्तजा है मेरी हिन्दकी हुकुमतसे
दे दो जफर महल में वही मझ
ु बदनसीब को जगह
जिंदा रह न सके साथ तो सोए तो साथ साथ
लोग मांगते है मरु ादें मेरे मजार पर आज

72
विजय कुमार ‘नाकाम’

काश मरु ाद मेरी भी यारब कुबल


ू हो जाए
कुछ एैसा करिश्मा खद
ु ा के करमसे हो जाए
हम लौटा दें बर्मा के राजा की अस्थियां
मेरी मय जीनत के घर वापिस आ जाऐं।।

73
22
अदावत

कलम हाथमें है और दिलने बगावत की है


बहार कुछ लिखनेको मजबूर करती है
खिजां भी खडी है बराबर घूरती मुझको
मगर दिल है कि बात करनेको राजी ही नहीं
न खिजांसे खिलाफत न बहारसे आशनाई है
नाकाम दिलकी बस्ती है खुद मैंने ही बसायी है
बनाया था आशियाना बहारोंके पैगाम पर
मगर खिजां है कि जबरन धुस आयी है
तकाजा है बहारोंका खिजांका भी कुछ हक है
अदावत दोनोंने मुझसे खुब अच्छी निभायी है
भरता हूं दम वफा का बहारों से खिजां से भी याराना है
जानता हूं कि वफा ऐक से ही निभानी है
जिंदगीसे बेपनाह महोब्बत मौतसे भी पहचान है
मौत दे ती है गर मोहलत वफा जिंदगीसे निभानी है
शेरों में मेरे मजनूं का दर्द फरहाद की तरकीब है
हीर की शहादत सोहनी की हिम्मत है
मुक्कमल नहीं हुई अभी मेरी शायरी
विजय कुमार ‘नाकाम’

अभी दर्ज होना बाकी है कई शहादतें महोब्बत की


नाकामयाबियों ने महोब्बत को और भी नायाब बना दिया है
मिलती थी कभी राहे हयात में अब मिलती है अफसानों में
हो गयी ईन्तहा दर्दकी हुआ बेकाबू जिगर
नाकाम ने लिखे शेर अश्कों की रोशनाई से।।

75
23
भूला हआ नाम

हिकमत खूब अपनायी है


दरू करने को महोब्बत से मेरी
मैं ताबूत में हूं बंद और पीछे लश्कर है ।
दो ही पल मांगे थे मैंने
एक प्यारी सी बात कहनेको
चुप करा दिया तुमने बेवक्त की बात कहकर।
तकाजा तो हर कोई करता है महोब्बत का
जवाब कितने दे ते हैं आगे बढ कर
जज्बात फरोशी की बू आती है मुझे
आजकल की महोब्बत को दे खकर।
जुंबा पे आज यह भूला हुआ नाम, क्या हुआ
भुला चुका हूं जिसे मैं जमानेकी गर्दिशों में
जुदा करके हमदम जमाने ने
सितम खूब किया मुझ पर
करते रहे तलाश सकून की तेरी यादो में हम।
यकीन था जिनकी महोब्बत का कयामत के दिन
सजा मेरी बंट जाती गर वो सब साथ खडे होते।
विजय कुमार ‘नाकाम’

मैं शायर कवि या गजलसरा नहीं


अपनी बात कहता हूं जख्मे दिल को कुरे दकर।
छलके नहीं हैं पैमाने अभी सब्रके गर्दिशे हुजम
ु में
तु कुछ और करके दे ख सितम
शायद दिल टूट जाए।
तारिकियां अिस कदर हावी हुई
अिस मजबरू जिंदगी में
बीच रह कर अजीजो के भी
मैं हमेशा तन्हा ही रहा।
तकसीम रिश्तो को
तम
ु ने ही किया कई नाम दे कर
अब मैं आया बेवफाई के हिस्सेमें
यही मेरी किस्मत है ।

77
24
तलाशे राह

इश्क में जां दे नेका मुझे कोई गम नहीं


काश तेरा नाम मकबरे पे मेरे होता।
जिल्द तो सिलदी है मैंने यादों की किताब पर
वसियत में है तेरा नाम आगाजे किताब में ।
मातमजदा होते तो लोग पूछते जन्नतनशीं का नाम
कैसे कहते मेरा प्यारा खुदा को प्यारा हो गया।
वो गैर से पूछते हैं मेरे जान दे नेका सबब
उनपे मरनेवालेां पर कोई मर्सिया नहीं लिखता।
आए भी अब तुम मेरे वक्ते सुपुर्दे खाक पर
पुकार कर दे ख लेते शायद कुछ सांस बाकी हो।
हुजुमे गम खडे हैं मुझे सीख दे ने को
महोब्बत से बढकर जहांमें कोई गम नहीं होता।
जला चुका हूं आखिरी शमा तलाशे राहे मंजिल की
होंसले हैं अभी बाकी और खूने जिगर जलानेको।
मत छे ड वो धुन जो मुझे दौरे मांझी में ले जाये
गलत किये गम कहीं फिर सर न उठा लें।
सांसो के कई डग पडे हुए हैं तेरी राहों में
विजय कुमार ‘नाकाम’

तु चाहे जिसको दे तौफीक खद


ु ा बनादे ।
गमों का बोझ अुठाने में गर मैं नाकाम रहता
तो मंजिल मेरी तेरा दर या मयकदा होता
न रहता होश मझ
ु े शाम ओ शहर का
तलाशता रहता सकुन हर कतरा ए मय में

79
25
हमदम

वो रूसवा हैं मैं हूं अब बेखौफ अुनके मिजाज से


वक्त कम है गुस्ताखियां कर लें खूब अुनकी शानमें
खूब जलील किया तूने बैठकर मजार पर मेरी
अच्छा सिला दिया तूने महोब्बत का जां दे ने के बाद
पुकार लेते गर तुम मुझे जाते जाते
तो किस्मते इश्क मेरी बदल जाती
बैठा रहा मैं दर पर तेरे उम्रभर
हाले दिल पूछ लेते तो तबियत बहल जाती
दिल से खेलना क्या खूब आता है तुम्हे
दिल में बिठा लेते तो तकदीर बदल जाती
तूफान बेताब हैं शिकस्ता कश्ती डुबोने को
गर होते माझी तुम कश्ती साहिल पे लग जाती
26
गर्दिश

आफतो का सैलाब आया हुआ है अिस जिंदगी में


जमाने से कहो न छोडे कोई कसर सितम ढानेमें
सितमगर ढूंढते होंगे मौका एक और सितम ढानेका
अब रहा न खौफ मेरे दिलमें अपनों से जख्म खानेका
वो खफा हैं मैं हूं शर्मसार सितारे गर्दिश में हैं
उपरी हवाऐं आ गयी हैं दरम्यान मेरी महोब्बत के।
यह क्यों थिरका जाम मेरा महका पूरा मयखाना
गुजरे हैं वो शायद अभी अभी मयकदे की राह से
डटा हुआ हूं मैदाने जंग में आफतो से मुखातिब हूं
तरकस में हैं तीर अभी बाकी काफी होंसलो के हैं।
क्या तमाम उम्र तुझे मौका न मिला
यारब मुझे बरबाद करने का
कर रहा है यह काम
आखिरी वक्त में किश्तों में ।
तूफानी नहीं था समंदर मल्लाह भी था काबिल
वही साहिल पे डूबी है बैठे थे जिस कश्ती में हम।
हमें मलाल है मौके के गुजर जानेका
विजय कुमार ‘नाकाम’

वो रूबरू थे हम मख
ु ातिब थे अुनकी तस्वीर से।
न हुअे वो आजतक आश्ना हम से
रहते हुअे साथ जिनके हमें हो गये जमाने।
अब कोई खता न हो हम से उल्फत में
फासले न पैदा हों अब दरम्यान अुनके।

83
27
तसव्वुर

बहारों के रूखसार पर भी अब उदासी उतर आयी है


अश्क सूख चुके हैं राह तुम्हारी तकते तकते
झट अुठती है सवालिया निगाहें बंद दरवाजे पर
कदम हो जाते हैं बोझिल दर से वापिस आते आते।
जब सिर्फ तसव्वुर ने तेरे रूह मेरी को अितना निखार दिया है
वो सब नबी हो गए होंगे जो दिल के तेरे करीब होंगे।
दिलासा भी दे ते नहीं बनता रोके नहीं रूकते आंसू खुदके
कुछ दे र और रूक भी जाओ दर से मेरे जाते जाते।
अपने ही नहीं पराए भी खफा हैं मुझसे
अिस नाकाम दिलको कौन अपना समझे।
खाता हूं गम हालात के पीता हूं अश्क हरदम
गिजा यही खा कर हूं रूबरू बदकिस्मती के।
दमे रूखसत तुम करो वादा फिर मिलने का
हम मुस्करा कर वादे झूठे पर एतबार करें ।
कोशिश तो की थी मुस्करा के चंद गुल जुटानेकी
मुझे गुमां न था कि वक्त के हाथ हालात की शमसीर होगी।
मचलते हैं हजारों तूफान सीने में पांव नीचे जमीं ही नहीं
विजय कुमार ‘नाकाम’

पंख तो तन
ू े दिए यारब सितम किया आसमान नीचा करके।
नजर आती है मझ
ु े सरू त आपकी हर सरू तमें
बसर होती है तमाम रात सितारों में आपको दे खते।
सितम की अब इन्तहा ना कर यारब
कहीं मेरी आह से तेरा बत
ु खाना न मिट जाए।।

85
28
बदलते मौसम

खिजां और बहार सब मौसम बदलते हैं


लगता है कि न बदलेगें मौसम मेरी बदनसीबी के।
गज
ु रते हैं हर राह पर कांरवा बहारो के
मेरी राहे हयात पर बस दबदबा खिजां का है ।
गुलजार होना चाहते हैं शाख पे सूखे हुए गुल
कोई ला दे मेरे गुलशन में रूठी हुई बहारको।
मैयत नाकाम की सुपुर्दे खाक नहीं तबीब को दे ना
चीर कर दे ख लेगें वो कोई पुर्जा शायद काम का हो।
कभी सुनवाई भी होगी मेरी बेवफाई की फरियाद
हर नाकाम इश्क कहता है आ मझ
ु से दिल लगा ले।
हर ऐक खत अुनका दीवाने गजल थी
गन
ु गन
ु ाते हुए थकता रख लेता फिर सहे जकर।
आप जलवा अफरोज हुए
न कीजिए उम्मीद मुझसे अरदासकी
नाकाम ने खाकर महोब्बत में मात
बुतपरस्ती से तौबा करली है ।
कोई वफा पर मेरी यकीन करे भी क्यों
मैं खिदमत में रहता हूं बेवफाकी हरदम।।
29
महारत

दर्द दे नेमें तुझे यकीनन


महारत हांसिल नहीं है अभी
रिसता नही है खूने जिगर
बन के दर्द मेरे शेरो में ।
याद होगी साथ जीने मरने की कसमें
जो खाई थी हमने हाथो में हाथ लेकर
निभाएगें अब कसमें सहकर जमाने के सितम
टूटे रिश्ते छूटे चाहे अब सांसो की डोर।
आप से मिलने पहले कोई आरजू न थी
आपसे बाबस्ता अब ख्वाईश हरपल नई है ।
गमजदा क्यों हैं दिल अब
आपकी बेरूखाईसे
समेट ली मैंने सौगातें मानकर
नसीब हुई मझ
ु े जो महोब्बत में ।
आस थी दिल को आपके आनेकी सरे शाम से
वो भी नाकाम हुई
अिस शब के गुजरने के बाद।
तसल्ली कब तक दें झठ
ू ी अिस दिल को
जज़्बात की उड़ान

बागी दिल को कैसे दें सब्र की हिदायतें ।


शमा है उदास शब का दम घुटता है
आस भी मेरी अब टूटती जाती है
उम्मीद हो चुकी है बेबस
अश्क सख
ू चक
ु े हैं बेमियाद ईतजार में ।
जान आ जाती है तन में हर दस्तक पर
चमक आ जाती है सूनी आंखो में
काबू करते हुअे सांसो को
बेतहाशा दौड जाता हूं दर तक।
धडकनें क्यों तेज होती हैं हर दस्तक पर
और बढा जाती है दीदारे हसरत दिल में
नहीं कोई नहीं खाली चोखट पर
करने लगी है हवा भी मखोल मझ
ु से।
मजबूर हों वो शायद हालात से
खत ही भेज दे वो कासिद के हाथ
खत का इंतजार अब भी है हरदम मुझे
मायस
ू हो जाता हूं
कासिद के गुजरने के बाद।
अुनसे कहिये वो संवर के
मेरे दमे रूखसत पे आ जांऐ
बस एक नजर भर दे ख लंू
अुनको दरम्यान कफन से।।

88
30
बहाना

मयकशी से तौबा कब के कर चुके थे हम


गम गलत करनेका रोज नया बहाना ढूंढते हैं
लगा अुनपर बेवफाई का इल्जाम
हम रोने का रोज बहाना ढूंढते हैं
अश्क आंखों में गर जो आ जाए
किसी अजीज का कंधा ढूंढते हैं
सूरत उनकी नजर आती है कभी कभी
हम उनसे मिलने के रोज बहाने ढूंढते हैं
राहे हयात में जो गुम हो गए मेरे दोस्त
उनके दर पर जानेका बहाना ढूढते हैं।
31
मुलाकात

कामयाबी मेरी किस्मत में


यारब लिखी तो जरूर है
होती है मुलाकात अुनसे
सब्रका दम टूटनेके बाद।
गर खुदा माफ करदे मेरी सारी खताऐं
पूछले मेरी रजा रहम करके
तो मांग लूंगा खुदासे वो सांचा
ढाला था जिसमें अुसने मेरी परीको
कैसे बनाएगा फिर रब दस
ू रा मुजस्मा
जहांमें दस
ू रा फिर न होगा कोई मेरे यार जैसा।
कोपियो में बंद है अभी दीवान मेरे
छपी नही है अभी कोई नज्म किसी अखबारमें
ऐक बहनने शाल दे कर मुझे शायरकी इज्जत दी है ।
कोई और खासियत हो न हो औरतमें
कुछ खुदाकी दे न होती है सबको
पहचान लेती है मर्दकी आखोंमें
हवसके शोले और महोब्बतकी चमक।
विजय कुमार ‘नाकाम’

खद
ु ाने औरतको मर्दसे बेहतर बनाया है
तभी तो इनायत करके एक रूहानी नजर दी है
हो जाता है तभी अच्छे बरु े का इमकान
पयाम मिल जाता है वारदात होनेसे पहले।

93
32
नाजनीन की आरजू

दिल मेरा अितना फर्माबरदार नही है कि


कलम लूं हाथमें और उतरने लगे दीवान सफो पर
हाले दिलको उतार तो दं ू कागज पर
किसी नाजनीनकी तिरछी नजरका इशारा तो हो।
सफरमें जिंदगीके सफरको याद करता हूं
जमा बाकी खोया पाया
अधिशेषका हिसाब करता हूं।
थाम लिया तुमने मुझे गिरनेसे गमकी गर्तमें
अटक जाता है पत्तोमें शाखसे गिरता हुआ गुल।
मैं कबका बेदखल कर चुका हूं आपको
अपने दिलके मकानसे
दिल धडकना अब भी भूल जाता है
सुनकर आप जैसी आवाज किसीकी।
आदमी बेबस है बेहिसाब आरजूओक
ं े सामने
पूरी कब हुई है किसीकी परलोक जानेसे पहले।
किस बलासे दिल्लगी होगी
कौन संगदिल चाहे गा मुझको
विजय कुमार ‘नाकाम’

महोब्बत पानेकी बेताबी मझ


ु े
ये कौनसे जहांमें ले आई।
जबरन बिठा लिया है नाकाम को
अपने दिलके तख्त पर
जांनिसारसे भला
जां पर हुकुमत कैसे होगी।
जद
ु ाईमें यारब मेरी वो तडप पैदा कर
नाम अुनका जद
ु ा ना हो दिल ओ जब
ु ांसे
आंखोसे आमादा हो जब अश्क गिरनेको
समेटले वो आकर महकते रूमालमें अपने।

95
33
लता मण्डप

बेवफा हुआ आंचल बचपन के आगाज पर


छडी भी नजरें अपनी चरु ा कर सरक गई
आस थी रोशनी की जिस चिराग से
नजर आ रही थी जिसमें सबको उम्मीद की किरण
झुका हुआ था आसमान आस का जिसके मस्तक पर
कुलदीपक ने किया मायूस अपनी बेजा हरकत से
सरकते जा रहे थे सहारे गमों के अंधेरों में
गुल होते जा रहे थे चिराग तमाम उम्मीदोके
दहशतजदा था दिल कल के खौफ से
हमदर्दी काफूर हो चुकी थी जमाने की निगाहों से
बेगाने क्या कहें अपनों ने दामन छुडा लिया
लरज रही थी हर शह मुफलिसी के तूफान में
बन वक्ष
ृ तुम लताने अुस वक्त हमें छाया दी
अेक जज्बा हुआ पैदा कुछ कर गुजरनेका
परिवार के साथ जीनेका परिवार के लिये मरनेका
हालात बदतर हुअे पार पाऐंगे हम होंसलों से
करें गे सामना मिलकर मायूसी के तूफान से
विजय कुमार ‘नाकाम’

मश्किल
ु ें आसान होंगी करे गें दआ
ु गर मिलकर
वीणा के तार हिलते हैं तभी संगीत पैदा होता है
हालात में तपकर ही आदमी कंु दन बनता है
होंगी परे शान रूकावटें जब यकीन होगा खुदमें
खिलाफत कौन करे गा मिटनेको तैयार ईन्सान से
चटटाने बिखर जायेंगी फौलाद बन जाऐं हम
शीश नत नहीं होगा नभ को नाप लेगें हम
पराजित हुआ है जोश कब जब दआ
ु का साथ हो
क्यों न करें मिलके सामना चाहे केसरिया युद्ध हो
कोई दे वता पंथ संप्रदायकी नहीं हो तम

गीताके निष्काम योग का साकार रूप हो तुम
मूर्ति हो तुम त्यागकी तपस्याकी तस्वीर हो तुम
जीवन संग्राम पर विजयकी शोर्यगाथा हो
महोब्बत का बहता दरिया ममता की रानी हो
दहकती मस
ु ीबतों में तपा तम
ु स्वर्ण हो
दिल कुसुम सा है छाया ममता अशोक सी हो
जवानी जलाकर अपनी सपनों में हमारे रोशनी की है
बन विधाता लिख दी तुमने हमारी तकदीर है
तलु िका हो तम
ु संवारी जिसने घरकी तस्वीर है
स्वास्थ्य रहे सदा उत्तम जीवन शत बंसत हो
रहे संग प्राण सम सदा निष्प्राण न कभी संबंध हो
बन शमादान तुमने परिवार की रहनुमाई की है
रच नाकाम ने बिरदावली बहनको पेश की है ।।

97
34
लुकाछिपी

श्याम साथ मेरे क्यों लुकाछिपी खेलता है


आती है आवाज कभी छज्जेसे से कभी अंदरसे
घर सारा छान मारा, खिडकी दरवाजोके पीछे दे खा
चक्कर तक लगा आया नटनागर गलीके नुक्कड तक
तुझे खेाजा मैंने माधव अनेक दे वालयो में
जहान सारे में खबर कोई तेरी मिलती नही
पढ डाली धूल चढी सारी घर्मकी किताबोंको
मनमोहन दे ख डाली दीवार पर सजी तस्वीरें तेरी
आले ताक कोने सब घर के छान मारे
नटवर पता तेरे वैकंु ठ का कहीं मिलता नही
खोजा तुझे मैंने गोपाल, गोकुल, द्वारका, वंद
ृ ावनमें
किसी तीर्थमें खबर तेरी कोई मिलती नही
तुझे व्यसन है मंगला, प्रसाद, राजभोग, शयन का
रं क के घर कहां साहे बी अमीरके घर जरूर होगा
तू जीता छलिये, आ मिलनेकी शर्ते तय कर लें
शर्तके साथ मुरारी किसीको आजतक मिला नही
माथा बहुत टे का चरणोमें , ताबीज भगवे भी पहने
विजय कुमार ‘नाकाम’

घर्मके ठे केदार गरू


ु ओंकी बडी बडी दक
ु ानो में
दावा तो करते थे बहुत दामोदर, मल
ु ाकात का
मिलनेका समय आज तक, तन
ू े किसी को दिया नही
भटक रहा हूं केशव खोजते तेरे कदमोके निशान
खबर दनि
ु यामें तेरी कहीं से भी मिलती नहीं
तंग आ चक
ु ा होगा नटवर भेस बदल बदल कर
कहीं तू मेरे साथ भी कर रहा नाटक तो नही
मोहन फंसा हुआ हूं भावनाओं के तफ
ु ानमें
मेरे मोह का हनन तू कब करे गा
कन्हैया हवाले कर दी है मैंने तेरे नैया
जहाजका रूख तेरे घरकी तरफ कब करे गा
संहार दषु ्टो का किया तू ने यग
ु े यग
ु े
मेरे पंच विकारो का सर्वनाश कब करे गा
बहुत करे संग्राम तू ने रणछोड बनकर
मेरे दर्गु
ु णो से समर तू कब करे गा
तल
ु सीदल पंचामत
ृ की ठाकुरजी है तझ
ु े आदत
समस्त व्यसनो का तू अंत मेरे कब करे गा
कालिन्दी में कूद पडा तू कालियादमन के लिए
संसारदह में से मेरा उद्धार कब करे गा
उलझ गया हूं मैं संबंघो के समीकरणमें
साथ मेरे सगाई प्रेमकी पक्की कब करे गा
छूटते नहीं संबंध बंधे हैं जो दे ह के साथ
मझ
ु े तू कब इस मोह माया से मक
ु ्त करे गा

99
जज़्बात की उड़ान

अत्याचार बहुत बढ गए हैं दर्ज


ु नोके धरती पर
अवतार लेकर गीतावचन परू ा तू कब करे गा
आज तो मंदिरमें तेरे छप्पन भोग की झांकी है
मझ
ु े तो किसी भोगमें तू नजर आता नहीं
गोपियो को खब
ू नचाया सांवरे रासलीलामें
मदहोश करे गा कब मझ
ु े तेरी मरु लीकी तान पर
बहुत करे व्रत जप उपवास कीर्तन तेरे नामके
लगन तेरे नामकी मरू ख मनको लगती नहीं
पहन भगवे निकल जांउ दरू कहीं दनि
ु यासे
रं ग भगवे का मन पर उतरता नजर आता नहीं
आंसू बहाए खब
ू सन
ु सन
ु के तेरी भागवत कथा
शांति मनकी फिर भी गिरधर कहीं मिलती नही
राधा तो बैठी मल
ू ाधारमें वाट दे खती तेरी
रास रचाएगा योगेश्वर कब मेरे सहस्त्रारमें भारी
मोहिनी लागी तेरी कितने सरु नरनारी मनिव
ु रको
आशिक हुआ मैं अब दीवाना कब करे गा

100
35
महोब्बत के मकाम

न घटाऐं तंगहाली की छं टती हैं


नहीं सूरत आती नजर गमों से निजात की
घटाऐं तंगहाली की छं ट जाए
आफताब रोशन हो मेरे नसीब का।
सितारें खिलें तकदीर के मेरे
समंदर गमों के सूख जांऐ
चले वादे शबा तो आराम आए
तडपती मुफलिस रूह को चैन आए।
जो छूट गए हैं राहे मुफलिसीमें अजीज
दिखा रास्ता खुदा उनको मनानेकी
मिले थोडी सी सोहबत अजीजो की
बस्ती वीरान दिल की शायद बस जाए।
कर खुदा कुछ और नेक काम
एक पैगाम अुनके दर से भी आ जाए
न हो दरू बेशक गलतफहमी महोब्बत में
बात न करें चाहे मुस्करानेके करीब आ जाए।
जज़्बात की उड़ान

बहुत जब्त किया मैंने खद


ु को बदहाली में
कोइ्र प्यारी सी बात कहकर करीब आ जाए।
समेट लो यह लम्हे दिल की किताब में
क्या पता किताब कहीं गम
ु हो जाए।
गैर के लफज को हटा दो अिस फानी दनि
ु यासे
गले लगा लो जो भी दर पे तेरे आ जाए।
कोई काबे या बत
ु खाने पे सिजदा करता है
नाकाम तो तेरे हर नक्शे कदम को चम
ू ता है ।

104
36
इजहार

मयकदाभी कुछ सूना था किस्मतसे


साकी भी थी थोडी फुरसतमें आज
इजहार करही दे ता महोब्बतका आज
मिन्नतकी किसीने खाली जाम भरनेकी
अर्ज मैं करता ही रहा बार बार
बात मेरी पर गौर फरमानेकी
हिकारत में उसने दिया सरको झटका
नाराजगी से दे खा मुझे आंखे तरे रकर
गला खुश्क हुआ जुंबाने न दिया साथ
तोड दिया दम लफ्जोने दिलमें घुटकर
बस नहीं चलता कोई दिलके तूफान पर
कैद हैं बेसब्र अश्क पलकोकी चिलमन में
जमींदाज होने लगी इमारत मेरी उल्फतकी
कौशिश फिर की बची खुची हिम्मत समेटकर
पतवार फिर उठाई कश्तीको बचानेकी
समझा कर अपने बगावती दिलको
बेखुद कर गए वो मुस्करा के नजदीक आकर
जज़्बात की उड़ान

होशमें लाए वो लहरा कर अपना खश


ु बद
ू ार दामन
आने लगा नजर फिर साहिल अिस दिलको
चम
ू लिया किसीने साकीकी दिलकश अदा पर
एक आवाज आई सीनेके किसी कोने से
जोर से शीशा ऐ दिलके चटकनेकी
मैं उठने लगा नाकाम इश्कको कफनमें लपेट कर
तोहीन नही करनी थी मझ
ु े महफिलके कायदे की
छोड आया हूं महफिलमें दर्दसे लबरे ज जाम सा दिल।

106
37
खामोशी

चाल खामोशी की दरम्यान मुलाकात के चल गई

थरथराते हुए लबोने जहां हरकत करनी थी


38
खता

यारब ऐसी क्या खता मुझसे हो गई है


जिंदगी मेरी अब ऐक सजा हो गई है
ख्वाईशमंद है कोई मरनेको मौतसे पहले
मेरी तो आखिरी ख्वाईश मौत हो गई है ।
39
तकिया

बदर किया शेखने मस्जिदसे मुझ काफिरको


पुजारीने किया बाहर दे नास्तिक का खिताब
बेजार होकर फिरकापरस्तीसे जमानेकी
तकिया मैंने बना लिया है दिलदारके कूचेमें
40
गजल का असर

उतरती है जब कागज पर एक गमगीन पुरअसर गजल


उभर आती है मेरे चेहरे पे कुछ और झुर्रियां
लिखता हूं फिर पढता हूं रोता हूं दीवाना हो गया हूं
गजलको कागजके साथ विदा करनेसे पहले
भावनात्मक जुदाईके डरसे रोता हूं
41
सामान

सजाता रहता है सामान एै्याशीके


ऐक ऐक करके इंसान तमाम उम्र
ले लेकर नाम नाम दाल रोटीका
खूब बदनाम करता है
42
शराब

कुरबान हुऐ मुझ पर अर्दली और अफसर


डूब गए मुझमें कितने शायर हुनरमंद गमजदा होकर
पेश आए जो मुझसे बेअदबीसे महफिलमें
गाफिल हो वो भूल गए होशके मुकाम
तोबा करनेकी मोहलत न मिली अुनको
दे खकर मेरा हुश्न रातके उजालोमें ।
43
तजवीज

तलाश थी जब हमें ऐक गमे गुसार की


तन्हा शामें जाम में डुबाता रहा हूं
पकड सका ना मैं जिंदगी के
खुशगवार लम्हो को
गर्दिश और जिल्लत को
प्यार करता हूं मैं
हर कोशिश नाकाम हुई
जब गर्दिशसे निकलनेकी
शरीके जिंदगी
गर्दिश को बनाता रहा हूं मैं।
भूलने की तुझे कोई
तजवीज करते तो
लगता है कि गुनाह
करने जा रहा हूं मैं।
न मालूम हुआ मुझे
तेरी बेवफाई का सबब
खतावार खुद को ही
विजय कुमार ‘नाकाम’

गिनता रहा हूं मैं।


गज
ु रते हैं कैसे दिन
जद
ु ा होने के बाद
अश्क दर अश्क
गिनती करता रहा हूं।
तझ
ु े भल
ु ाना खद
ु को
ठगना ही तो था
ठग के दिल को अपने
मातम मनाता रहा हूं मैं।
गब
ु ार हैं कई दफन
दिल में तझ
ु से कहने को
दफन कर सीने में अुनको
सिजदा करता रहा हूं मैं।
न जाने कितने मिले
राहे हयात में
फिर क्यों याद
आपको ही करता रहा हूं मैं
बात थी जद
ु ा कोई
आप से मल
ु ाकात में
रिश्ता दिल से जड
ु ता
महसस
ू करता रहा हूं मैं।
खबर ही नहीं हुई आपके
दिल पे मेरे काबिज होने की

115
जज़्बात की उड़ान

खबरदार दिल को
कब से करता रहा हूं मैं।
कशिश अब भी है
तडप में आप से मिलने की
सदा हमेशा दिल की
दफन करता रहा हूं मैं।
डर नहीं मझ
ु े इल्जाम
लगे बत
ु परस्ती का
बना के बत
ु आपका
पज
ू ा करता रहा हूं मैं।
मझ
ु े मालम
ू है कि
वो अुनके पास होगा
तलाश लापता दिल की
फिर भी करता रहा हूं मैं।
तडपता है दिल पाने को
ऐक पैगाम अुनकी तरफ से
फेंक दिया हो शायद अधरू ा लिख के
तलाश खिडकी के नीचे करता रहा हूं मैं।
लाईलाज हो चक
ु ा है बेवफाई का मर्ज
ईजाद तबीब करे कोइ दवा
अर्ज कब से करता रहा हूं मैं।
तिलस्मी साया है अुनका मेरे
जहन के हर ख्याल में

116
विजय कुमार ‘नाकाम’

इलाज की अरदास
सयाने से करता रहा हूं मैं।
खो गए शायर कई
गम
ु नामी के अंधेरो में
गजल पत्रिका में छपवाने की
नाकाम कोशिश करता रहा हूं मैं।

117
44
फरयाद

ना दोस्त ना हमख्याल अब खैर पूछता है


किसको फुरसत है आकर तसल्ली दे ता।
गुम हो चुके हैं दवा ओ दआ
ु दे ने वाले
सब को भुला दिया है मैंने महोब्बत में आपकी।
ईश्क ने आपके दरवेश बना दिया है मुझे
काफिर हूं जो फरयाद करता हूं इंतजार में ।
सितम आपने बहुत किया जुदा रहकर
अब तो आ जाओ तडप मेरी दे खकर
उठे गी एक आवाज मेरे दिल से
सितम आपके सहते सहते
हो जाएगें कलेजे चाक कई
रो दे गें आप सितम करते करते।
आंसू जो चूम लेगें मेरे जमीं को
न कर संकेगें वो बसर अिस जमीं पर।
आह मेरी में गर होगा असर
पिघल कर गिर पडेगा आसमां
टूटी जो गर आज आस मेरी
विजय कुमार ‘नाकाम’

बहक जाऐगें कई सितारे राहों से


कम हो जाएगा चांद का जलवा
छुपा लेगा चेहरा सरू ज बादलों में ।
याद सीने में दफन
उठता है दर्द कभी कभी
बरस जाती हैं बदली अश्कों की
छुपा कर रखी आपकी तस्वीर पर।
सलीका नही है गम उठाने का मझ
ु े
सहे ज लेता हूं डूबे हुए उधार की तरह।
इद्राज कबके कर चक
ु े हैं आप
इकरारे वफा दस
ू रे की किताब में ।
क्यों नाम करू तेरे गम की दौलत को
महोब्बत में जो मिली है मझ
ु ।े
दिल ओ जां पर तेरा हक है
क्या गम भी मेरे न होगें ।
लौटा दं ग
ू ा बगैरत खश
ु ी को दर से अपने
ताउम्र तझ
ु े शर्म आई नजदीक मेरे आने से
न तरस आया तझ
ु े तडप पर मेरी कभी
तू और भी खिलखिलायी मस
ु ्करानेकी कोशिश पर।
रूकता नही लग रहा नाकाम का जनाजा
गली से अुनकी गज
ु रते हुए
यारों को बहुत जल्दी है
कब्र में मझ
ु े लिटाने की।

119
जज़्बात की उड़ान

रोकतें हैं कदम दनि


ु या के रिवाज
फिर भी बेकरार हैं वो मेरे दीदार को
दे ख लें वो शायद दर पर आकर
गज
ु रते हुए आशिक की मैयत को।
अेक आवाज बाहर आई
दर से अुनके निकल कर
सब्र था ही नहीं जब इंतजार में
पहले महोब्बत सब्र से की होती।।

120
45
इजहार ए महोब्बत

वो रूबरू हैं और आज मुझमें हिम्मते मर्दा भी है


मिजाज भी उनके आज अच्छे नजर आते हैं
इजहारे महोब्बत कर ही दं ग
ू ा यकीनन
मददे खुदा जो आज पासवान मेरे हैं
जुंबा और जिस्मकी नाफरमानीने
मगर बहुत शर्मसार किया
होंसला अफजाईमें पकडे हुए
वो मेरे कांपते हुए हाथोका थामे हैं
जुंबा कमबख्तने फिर भी
बतानेमें बडा गुरेज किया
आंखोमें लिए महोब्बतका दरिया
वो हाले दिल बयां करनेको कहते रहे
गला खुश्क कानोमें
रूपहली घंटिया बज रही हैं
दिलकी धडकने दोनोकी
एक धुन में बज रही थी
सांसें उनकी कम और
जज़्बात की उड़ान

मेरी तेज चल रही थी


होश पर काबू कहां
आंखे मदहोश हुए जा रही थी
जब
ु ां को कहां होश था
जो हिलती अपनी जगहसे‎
मसरूफ आखें मदहोश
और बदनको बेबस
किए जा रही थी
खामोश सिहरते बदनमें
तैरती हुई उनकी सांसोकी खश
ु बू
उडाए जा रही थी मेरे होशो हवास
मरमरी गद
ु ाज बदन है
ख्वाबमें दे खी हुई हूर जैसा
मैं जमीं पर था या बेहिश्तमे
फैसला करना मेरे लिए बडा मश्किल
ु था
चिकोटी काटू तो कैसे होश में आनेके लिए
हाथ दोनो तो बंधे हुए थे हाथोमें
आंखो ही आंखोमें प्याम तैरते आ रहे थे
हम कुछ कह रहे थे कुछ सन
ु रहे थे
लब खामोश थे लफ्ज बेमानी थे
बातें होती रही दिलसे दिलकी
ऐक बिजली चमकी उनकी आंखोसे

124
विजय कुमार ‘नाकाम’

आहिस्तासे अुन्होने हाथ मेरे छोड दिए


पत्तियां लबोकी हिली कुछ लफ्ज निकले‎
छोडो अब क्या कहना सन
ु ना है
अब तम
ु ्हे शरीके हयात बनना है ।

125
“सुना था कुशाकी धार बडी तेज होती है
कुशाका अग्रभाग क्या मंद हो गया है
छापकर फोटो प्रथम पेज पर एक आंख वालेकी
मेरी समग्र कविताको नया आयाम दिया है
कि दे खा है मैने जमानेको आंसूभरी
एक आंखकी चिल मनकी उस तरफसे
हकीकत वाली नजर कभी मैने खोली ही नही
उनसे कहना न चलाया करे खंजर अनाडीप नेसे
निशाना लग जाए तो शहीद होता है
गलत लग जाए तो तडपन उम्रभर होती है ”
परिचय

विजय कुमार नाकाम का जन्म आजादी पर्व ू लाहोर शहरमें


एक ब्रामण परिवार में हुआ था । पिताका नाम कंु दनलाल
एवं माताका नाम सीता था। विभाजनकी त्रासदी के कारण
परिवार रोजी रोटी की तलाश में कई जगह भटकता हुआ
गजु रात आकर बस गया।

कवि की शिक्षा उर्दू हिन्दी और गुजरातीमें हुई। उदयपुर


में टाईपराईटर सेल्स सरवीस का व्यवसाय करते थे।जीवन
यात्रा के दौरान जो अनुभव हुए उन्हीका वर्णन कवि ने अपनी
कृतियों में किया है ।

पैदा हुआ मैं गुलाम भारत के लाहोर शहर में


पिताका नाम कंु दन पेशा आजादी की दीवानगी था
औलाद तीसरी मैं माता सीता की था।
हुआ परिवार विस्थापित तो कई जगह भटकता
तलाशे रोजी में गुजरात आकर बस गया
पढी हिन्दी गुजराती उर्दू कई राज्यो में अधूरी
शिक्षा का समापन गुजराती में हुआ।
अर्थोपार्जन के लिए बना मैं मिकेनिक
विजय कुमार ‘नाकाम’

खश
ु नम
ु ा बीत गए चालीस वर्ष काम करते
टाईपराइटर की टिक टिक में पता ही नही चला।
स्वनाम धन्य लेखको की जो कृतियां
पढी थी जो मैंने अपने लडकपन में
अुन्ही से मिली प्रेरणा और उतरने लगी
कागज पर बनके नज्म और कविता ।
हे वन्दनीय पाठक आलोचना का धनष
ु उठाओ
चढाओ बाण शब्दोके निशाना मेरी कृति को बनाओ
मिलती रही गर आपसे एैसी तीरं दाजी
हारता ही रहूंगा मैं सदा ही आपसे बाजी
गज
ु र रही है अब हांफती जिंदगी की शामें
नाकाम सपनों की मैयत पर अफसोस करते करते।।

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