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नवदुगा

मु ानकोश िविकपीिडया से

नवदु गा िह दू धम म माता दु गा अथवा


पावती के नौ पों को एक साथ कहा नवदु गा
जाता है । इन नवों दु गा को पापों के
िवनािशनी कहा जाता है , हर दे वी के
अलग अलग वाहन ह, अ श ह
परं तु यह सब एक ह।

दु गा स शती के अंतगत दे वी
कवच ो म िन ां िकत ोक म
नवदु गा के नाम मश: िदये गए ह--
दु गा- दु गा दे वी: श के नौ प
थमं शैलपु ी च ि तीयं
चा रणी। दे वनागरी दु गा
तृतीयं च घ े ित संबंध िह दू दे वी
कू ा े ित चतुथकम्।।
पंचमं मातेित ष ं अ ि शूल, शंख,तलवार,धनुष-बाण,च , गदा
का ायनीित च। और कमल,अभय
स मं कालरा ीित जीवनसाथी िशव
महागौरीित चा मम्।।
नवमं िस दा ी च सवारी बाघ, नंदी बैल, शेर, िब ी, पु
नवदु गा: कीितता:।
उ ा ेतािन नामािन णैव महा ना:।। [1]

अनु म
नौ प
शैलपु ी
कहानी
चा रणी
कहानी
चं घंटा
कू ा ा
ं दमाता
का ायनी
मा ता
कालराि
महागौरी
मा ता
िस दा ी
मा ता

नव दु गा मह
नवदु गा आयुवद
संदभ
बाहरी किड़याँ

नौ प
माता रानी का प

https://www.satishdaffodil.in/2020/08/navratri-maa-durga-ke-nau-
roop.html के नौ प होते ह। नवरा यह उ व है श की आराधना का श की
उपासना का 9 िदनों तक चलने वाली इस ौहार म मां श के नौ पों की आराधना की
जाती है िज नवदु गा कहा जाता है .दु गाजी पहले प म 'शैलपु ी' के नाम से जानी जाती
ह।

शैलपु ी

दु गाजी पहले प म 'शैलपु ी' के नाम से जानी जाती ह।[१] ये ही
नवदु गाओं म थम दु गा ह। पवतराज िहमालय के घर पु ी प म उ
होने के कारण इनका नाम 'शैलपु ी' पड़ा।[2] नवरा पूजन म थम िदवस
इ ीं की पूजा और उपासना की जाती है । इनका वाहन वृषभ है , इसिलए यह
दे वी वृषा ढ़ा के नाम से भी जानी जाती ह। इस दे वी ने दाएं हाथ म ि शूल
धारण कर रखा है और बाएं हाथ म कमल सुशोिभत है । यही सती के नाम से
भी जानी जाती ह।

मं :

व े वां तलाभाय चं ाधकृतशेखराम्।


वृषा ढ़ां शूलधरां शैलपु ीं यश नीम् ॥

कहानी

एक बार जब सती के िपता जापित द ने य िकया तो इसम सारे दे वताओं को िनमंि त


िकया, पर भगवान शंकर को नहीं। सती अपने िपता के य म जाने के िलए िवकल हो उठीं।
शंकरजी ने कहा िक सारे दे वताओं को िनमंि त िकया गया है , उ नहीं। ऐसे म वहां जाना
उिचत नहीं है । पर ु सती संतु नही ईं।

सती का बल आ ह दे खकर शंकरजी ने उ य म जाने की अनुमित दे दी। सती जब घर


प ं चीं तो िसफ मां ने ही उ ेह िदया। बहनों की बातों म ं और उपहास के भाव थे।
भगवान शंकर के ित भी ितर ार का भाव था। द ने भी उनके ित अपमानजनक वचन
कहे । इससे सती को ेश प ं चा। वे अपने पित का यह अपमान न सह सकीं और योगाि ारा
अपनेआप को जलाकर भ कर िलया।

इस दा ण दु ख से िथत होकर शंकर भगवान ने तां डव करते ये उस य का िव ंस करा


िदया। यही सती अगले ज म शैलराज िहमालय की पु ी के प म ज ी और शैलपु ी
कहलाईं। शैलपु ी का िववाह भी िफर से भगवान शंकर से आ। शैलपु ी िशव की अ ािगनी
बनीं। इनका मह और श अनंत है ।

अ नाम: सती, पावती, वृषा ढ़ा, हे मवती और भवानी भी इ दे वी के अ नाम ह।

चा रणी

े ेि ँ ी ी ी ी ै
नवरा पव के दू सरे िदन माँ चा रणी की पूजा-अचना की जाती है । साधक
इस िदन अपने मन को माँ के चरणों म लगाते ह। का अथ है तप ा और
चा रणी यानी आचरण करने वाली। इस कार चा रणी का अथ आ तप
का आचरण करने वाली।

भगवान शंकर को पित प म ा करने के िलए घोर तप ा की थी। इस


किठन तप ा के कारण इस दे वी को तप ा रणी अथात् चा रणी नाम से
अिभिहत िकया।

कहते है मां चा रणी दे वी की कृपा से सविस ा होती है । दु गा पूजा के दू सरे िदन दे वी


के इसी प की उपासना की जाती है । इस दे वी की कथा का सार यह है िक जीवन के किठन
संघष म भी मन िवचिलत नहीं होना चािहए।

मं :

दधाना करप ा ाम मालाकम लू।


दे वी सीदतु मिय चा र नु मा॥

कहानी

पूवज म इस दे वी ने िहमालय के घर पु ी प म ज िलया था और नारदजी के उपदे श से


भगवान शंकर को पित प म ा करने के िलए घोर तप ा की थी। इस किठन तप ा के
कारण इ तप ा रणी अथात् चा रणी नाम से अिभिहत िकया गया। एक हजार वष तक
इ ोंने केवल फल-फूल खाकर िबताए और सौ वष तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर
िनवाह िकया।

कुछ िदनों तक किठन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वषा और धूप के घोर क सहे ।
तीन हजार वष तक टू टे ए िब प खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं।
इसके बाद तो उ ोंने सूखे िब प खाना भी छोड़ िदए। कई हजार वष तक िनजल और
िनराहार रह कर तप ा करती रहीं। प ों को खाना छोड़ दे ने के कारण ही इनका नाम अपणा
नाम पड़ गया।

किठन तप ा के कारण दे वी का शरीर एकदम ीण हो गया। दे वता, ऋिष, िस गण, मुिन


सभी ने चा रणी की तप ा को अभूतपूव पु कृ बताया, सराहना की और कहा "हे दे वी
आज तक िकसी ने इस तरह की कठोर तप ा नहीं की। यह तु ीं से ही संभव थी। तु ारी
मनोकामना प रपूण होगी और भगवान चं मौिल िशवजी तु पित प म ा होंगे। अब
तप ा छोड़कर घर लौट जाओ। ज ही तु ारे िपता तु बुलाने आ रहे ह।"
चं घंटा

माँ दु गाजी की तीसरी श का नाम चं घंटा है । नवराि उपासना म तीसरे


िदन की पूजा का अ िधक मह है और इस िदन इ ीं के िव ह का पूजन-
आराधन िकया जाता है । इस िदन साधक का मन 'मिणपूर' च म िव
होता है ।

इस दे वी की कृपा से साधक को अलौिकक व ुओं के दशन होते ह। िद


सुगंिधयों का अनुभव होता है और कई तरह की िनयां सुनाई दे ने लगती ह।

दे वी का यह प परम शां ितदायक और क ाणकारी माना गया है । इसीिलए कहा जाता है


िक हम िनरं तर उनके पिव िव ह को ान म रखकर साधना करना चािहए। उनका ान
हमारे इहलोक और परलोक दोनों के िलए क ाणकारी और स ित दे ने वाला है । इस दे वी के
म क पर घंटे के आकार का आधा चं है । इसीिलए इस दे वी को चं घंटा कहा गया है । इनके
शरीर का रं ग सोने के समान ब त चमकीला है । इस दे वी के दस हाथ ह। वे खड् ग और अ
अ -श से िवभूिषत ह।

िसंह पर सवार इस दे वी की मु ा यु के िलए उ त रहने की है । इसके घंटे सी भयानक िन


से अ ाचारी दानव-दै और रा स काँ पते रहते ह। नवराि म तीसरे िदन इसी दे वी की पूजा
का मह है । इस दे वी की कृपा से साधक को अलौिकक व ुओं के दशन होते ह। िद
सुगंिधयों का अनुभव होता है और कई तरह की िनयां सुनाईं दे ने लगती ह। इन णों म
साधक को ब त सावधान रहना चािहए।

इस दे वी की आराधना से साधक म वीरता और िनभयता के साथ ही सौ ता और िवन ता का


िवकास होता है । इसिलए हम चािहए िक मन, वचन और कम के साथ ही काया को िविहत
िविध-िवधान के अनुसार प रशु -पिव करके चं घंटा के शरणागत होकर उनकी उपासना-
आराधना करना चािहए। इससे सारे क ों से मु होकर सहज ही परम पद के अिधकारी बन
सकते ह। यह दे वी क ाणकारी है ।

मं :

िप ज वरा ढ़ा च कोपा केयुता।


सादं तनुते म ं चं घ े ित िव ुता॥

कू ा ा

नवरा -पूजन के चौथे िदन कू ा ा दे वी के प की ही उपासना की जाती है । इस िदन


साधक का मन 'अदाहत' च म अव थत होता है ।
ि ौ ेि े ी ो ं े ै ी ं
नवराि म चौथे िदन दे वी को कु ां डा के प म पूजा जाता है । अपनी मंद,
ह ी हं सी के ारा अ यानी ां ड को उ करने के कारण इस दे वी
को कु ां डा नाम से अिभिहत िकया गया है । जब सृि नहीं थी, चारों तरफ
अंधकार ही अंधकार था, तब इसी दे वी ने अपने ईषत् हा से ां ड की
रचना की थी। इसीिलए इसे सृि की आिद पा या आिदश कहा गया
है ।

इस दे वी की आठ भुजाएं ह, इसिलए अ भुजा कहलाईं। इनके सात हाथों म


मशः कम ल, धनुष, बाण, कमल-पु , अमृतपूण कलश, च तथा गदा ह। आठव हाथ म
सभी िस यों और िनिधयों को दे ने वाली जप माला है । इस दे वी का वाहन िसंह है और इ
कु ड़े की बिल ि य है । सं ृ त म कु ड़े को कु ां ड कहते ह इसिलए इस दे वी को कु ां डा।

इस दे वी का वास सूयमंडल के भीतर लोक म है । सूयलोक म रहने की श मता केवल इ ीं


म है । इसीिलए इनके शरीर की कां ित और भा सूय की भां ित ही दै दी मान है । इनके ही तेज
से दसों िदशाएं आलोिकत ह। ां ड की सभी व ुओं और ािणयों म इ ीं का तेज ा है ।

अचंचल और पिव मन से नवराि के चौथे िदन इस दे वी की पूजा-आराधना करना चािहए।


इससे भ ों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरो ा
होता है । यह दे वी अ सेवा और भ से ही स होकर आशीवाद दे ती ह। स े मन से
पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद ा होता है ।

िविध-िवधान से पूजा करने पर भ को कम समय म ही कृपा का सू भाव अनुभव होने


लगता है । यह दे वी आिधयों- ािधयों से मु करती ह और उसे सुख समृ और उ ित दान
करती ह। अंततः इस दे वी की उपासना म भ ों को सदै व त र रहना चािहए।

मं :

सुरास ूणकलशं िधरा ुतमेव च।


दधाना ह प ा ां कु ां डा शुभदा ु मे॥

ं दमाता

नवराि का पाँ चवाँ िदन ं दमाता की उपासना का िदन होता है । मो के


ार खोलने वाली माता परम सुखदायी ह। माँ अपने भ ों की सम
इ ाओं की पूित करती ह। इस दे वी की चार भुजाएं ह। यह दायीं तरफ की
ऊपर वाली भुजा से ं द को गोद म पकड़े ए ह। नीचे वाली भुजा म कमल
का पु है । बायीं तरफ ऊपर वाली भुजा म वरदमु ा म ह और नीचे वाली
भुजा म कमल पु है ।
ों ं ी ों े ि े ीं
पहाड़ों पर रहकर सां सा रक जीवों म नवचेतना का िनमाण करने वालीं
ं दमाता। नवराि म पाँ चव िदन इस दे वी की पूजा-अचना की जाती है । कहते ह िक इनकी
कृपा से मूढ़ भी ानी हो जाता है । ं द कुमार काितकेय की माता के कारण इ ं दमाता
नाम से अिभिहत िकया गया है । इनके िव ह म भगवान ं द बाल प म इनकी गोद म
िवरािजत ह। इस दे वी की चार भुजाएं ह।

यह दायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा से ं द को गोद म पकड़े ए ह। नीचे वाली भुजा म
कमल का पु है । बायीं तरफ ऊपर वाली भुजा म वरदमु ा म ह और नीचे वाली भुजा म कमल
पु है । इनका वण एकदम शु है । यह कमल के आसन पर िवराजमान रहती ह। इसीिलए इ
प ासना भी कहा जाता है । िसंह इनका वाहन है ।

शा ों म इसका पु ल मह बताया गया है । इनकी उपासना से भ की सारी इ ाएं पूरी हो


जाती ह। भ को मो िमलता है । सूयमंडल की अिध ा ी दे वी होने के कारण इनका उपासक
अलौिकक तेज और कां ितमय हो जाता है । अतः मन को एका रखकर और पिव रखकर इस
दे वी की आराधना करने वाले साधक या भ को भवसागर पार करने म किठनाई नहीं आती
है ।

उनकी पूजा से मो का माग सुलभ होता है । यह दे वी िव ानों और सेवकों को पैदा करने वाली
श है । यानी चेतना का िनमाण करने वालीं। कहते ह कािलदास ारा रिचत रघुवंशम
महाका और मेघदू त रचनाएं ं दमाता की कृपा से ही संभव ईं।

मं :

िसंहसनगता िन ं प ाि तकर या।


शुभदा ु सदा दे वी ं दमाता यश नी॥

का ायनी

माँ दु गा के छठे प का नाम का ायनी है । उस िदन साधक का मन


'आ ा' च म थत होता है । योगसाधना म इस आ ा च का अ ंत
मह पूण थान है ।

नवराि म छठे िदन मां का ायनी की पूजा की जाती है ।[3]

मा ता

ी औ े ों ो ी ी े औ ो ों
इनकी उपासना और आराधना से भ ों को बड़ी आसानी से अथ, धम, काम और मो चारों
फलों की ा होती है । उसके रोग, शोक, संताप और भय न हो जाते ह। ज ों के सम
पाप भी न हो जाते ह।

का गो म िव िस महिष का ायन ने भगवती परा ा की उपासना की। किठन तप ा


की। उनकी इ ा थी िक उ पु ी ा हो। मां भगवती ने उनके घर पु ी के पमज
िलया। इसिलए यह दे वी का ायनी कहलाईं।[4] इनका गुण शोधकाय है । इसीिलए इस
वै ािनक युग म का ायनी का मह सवािधक हो जाता है । इनकी कृपा से ही सारे काय पूरे जो
जाते ह। यह वै नाथ नामक थान पर कट होकर पूजी गईं।

मां का ायनी अमोघ फलदाियनी ह। भगवान कृ को पित प म पाने के िलए ज की


गोिपयों ने इ ीं की पूजा की थी। यह पूजा कािलंदी यमुना के तट पर की गई थी।

इसीिलए यह जमंडल की अिध ा ी दे वी के प म िति त ह। इनका प अ ंत भ


और िद है । यह ण के समान चमकीली ह और भा र ह। इनकी चार भुजाएं ह। दायीं
तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमु ा म है तथा नीचे वाला हाथ वर मु ा म। मां के बाँ यी तरफ
के ऊपर वाले हाथ म तलवार है व नीचे वाले हाथ म कमल का फूल सुशोिभत है । इनका वाहन
भी िसंह है ।

इनकी उपासना और आराधना से भ ों को बड़ी आसानी से अथ, धम, काम और मो चारों


फलों की ा होती है । उसके रोग, शोक, संताप और भय न हो जाते ह। ज ों के सम
पाप भी न हो जाते ह। इसिलए कहा जाता है िक इस दे वी की उपासना करने से परम पद की
ा होती है ।

मं :

चं हासो लकरा शादू लवरवाहना।


का ायनी शुभं द ा े वी दानवघाितनी॥

कालराि

माँ दु गाजी की सातवीं श कालराि के नाम से जानी जाती ह। दु गापूजा के


सातव िदन माँ कालराि की उपासना का िवधान है । इस िदन साधक का मन
'सह ार' च म थत रहता है । इसके िलए ां ड की सम िस यों का
ार खुलने लगता है ।

ैि ि ी े े ं ी ीि ों े े े
कहा जाता है िक कालराि की उपासना करने से ां ड की सारी िस यों के दरवाजे खुलने
लगते ह और तमाम असुरी श यां उनके नाम के उ ारण से ही भयभीत होकर दू र भागने
लगती ह।

नाम से अिभ होता है िक मां दु गा की यह सातवीं श कालराि के नाम से जानी जाती है


अथात िजनके शरीर का रं ग घने अंधकार की तरह एकदम काला है । नाम से ही जािहर है िक
इनका प भयानक है । िसर के बाल िबखरे ए ह और गले म िवद् युत की तरह चमकने वाली
माला है । अंधकारमय थितयों का िवनाश करने वाली श ह कालराि । काल से भी र ा
करने वाली यह श है ।

इस दे वी के तीन ने ह। यह तीनों ही ने ां ड के समान गोल ह। इनकी सां सों से अि


िनकलती रहती है । यह गदभ की सवारी करती ह। ऊपर उठे ए दािहने हाथ की वर मु ा
भ ों को वर दे ती है । दािहनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मु ा म है । यानी भ ों हमेशा
िनडर, िनभय रहो।

बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ म लोहे का कां टा तथा नीचे वाले हाथ म खड् ग है । इनका प
भले ही भयंकर हो लेिकन यह सदै व शुभ फल दे ने वाली मां ह। इसीिलए यह शुभंकरी कहलाईं।
अथात इनसे भ ों को िकसी भी कार से भयभीत या आतंिकत होने की कतई आव कता
नहीं। उनके सा ा ार से भ पु का भागी बनता है ।

कालराि की उपासना करने से ां ड की सारी िस यों के दरवाजे खुलने लगते ह और तमाम


असुरी श यां उनके नाम के उ ारण से ही भयभीत होकर दू र भागने लगती ह। इसिलए
दानव, दै , रा स और भूत- ेत उनके रण से ही भाग जाते ह। यह ह बाधाओं को भी दू र
करती ह और अि , जल, जंतु, श ु और राि भय दू र हो जाते ह। इनकी कृपा से भ हर तरह
के भय से मु हो जाता है ।

मं :

एकवेणी जपाकणपूरा न ा खरा थता।


ल ो ी किणकाकण तैला शरी रणी॥
वामपादो स ोहलताक कभूषणा।
वधनमूध जा कृ ा कालराि भयंकरी॥

महागौरी

माँ दु गाजी की आठवीं श का नाम महागौरी है । दु गापूजा के आठव िदन महागौरी की


उपासना का िवधान है । नवराि म आठव िदन महागौरी श की पूजा की जाती है । नाम से
कट है िक इनका प पूणतः गौर वण है । इनकी उपमा शंख, चं और कुंद के फूल से दी गई
ै े ौ ी ी ी ी ी ई ै े
है । अ वषा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है । इनके
सभी आभूषण और व सफेद ह। इसीिलए उ ेता रधरा कहा गया है ।
इनिक चार भुजाएं ह और वाहन वृषभ है इसीिलए वृषा ढ़ा भी कहा गया है
इनको।

इनके ऊपर वाला दािहना हाथ अभय मु ा है तथा नीचे वाला हाथ ि शूल
धारण िकया आ है । ऊपर वाले बां ए हाथ म डम धारण कर रखा है और
नीचे वाले हाथ म वर मु ा है । इनकी पूरी मु ा ब त शां त है ।

मा ता

पित प म िशव को ा करने के िलए महागौरी ने कठोर तप ा की थी। इसी कारण से


इनका शरीर काला पड़ गया लेिकन तप ा से स होकर भगवान िशव ने इनके शरीर को
गंगा के पिव जल से धोकर कां ितमय बना िदया। उनका प गौर वण का हो गया। इसीिलए
यह महागौरी कहलाईं।[5]

यह अमोघ फलदाियनी ह और इनकी पूजा से भ ों के तमाम क ष धुल जाते ह। पूवसंिचत


पाप भी न हो जाते ह। महागौरी का पूजन-अचन, उपासना-आराधना क ाणकारी है । इनकी
कृपा से अलौिकक िस यां भी ा होती ह।

एक और मा ता के अनुसार एक भूखा िसंह भोजन की तलाश म वहां प ं चा जहां दे वी ऊमा


तप ा कर रही होती है । दे वी को दे खकर िसंह की भूख बढ़ गई, लेिकन वह दे वी के तप ा से
उठने का ती ा करते ए वहीं बैठ गया। इस ती ा म वह काफी कमज़ोर हो गया। दे वी जब
तप से उठी तो िसंह की दशा दे खकर उ उस पर ब त दया आ गई। उ ोने ाभाव और
स ता से उसे भी अपना वाहन बना िलया योंिक वह उनकी तप ा पूरी होने के ती ा म ंय
भी तप कर बैठा।[6]

कहते है जो ी मां की पूजा भ भाव सिहत करती ह उनके सुहाग की र ा दे वी ंय करती


ह।[7]

मं :

ेते वृषे समा ढ़ा ेता रधरा शुिचः।


महागौरी शुभं द ा हादे व मोददा॥

अ नाम: इ अ पूणा, ऐ य दाियनी, चैत मयी भी कहा जाता है ।

ि ी
िस दा ी

माँ दु गा की नौवीं श का नाम िस दा ी ह। ये सभी कार की िस यों


को दे ने वाली ह।[8] नवरा के नौव िदन इनकी उपासना की जाती है ।[9]
मा ता है िक इस िदन शा ीय िविध-िवधान और पूण िन ा के साथ साधना
करने वाले साधक को सभी िस यों की ा हो जाती है । इस दे वी के
दािहनी तरफ नीचे वाले हाथ म च , ऊपर वाले हाथ म गदा तथा बायीं तरफ
के नीचे वाले हाथ म शंख और ऊपर वाले हाथ म कमल का पु है ।[10]
इनका वाहन िसंह है और यह कमल पु पर भी आसीन होती ह।[11] नवरा
म यह अंितम दे वी ह। िहमाचल के नंदापवत पर इनका िस तीथ है ।

मा ता

माना जाता है िक इनकी पूजा करने से बाकी दे वीयों िक उपासना भी ंय हो जाती है ।

यह दे वी सव िस यां दान करने वाली दे वी ह। उपासक या भ पर इनकी कृपा से किठन से


किठन काय भी आसानी से संभव हो जाते ह। अिणमा, मिहमा, ग रमा, लिघमा, ा , ाका ,
ईिश और विश आठ िस यां होती ह। इसिलए इस दे वी की स े मन से िविध िवधान से
उपासना-आराधना करने से यह सभी िस यां ा की जा सकती ह।

कहते ह भगवान िशव ने भी इस दे वी की कृपा से यह तमाम िस यां ा की थीं। इस दे वी की


कृपा से ही िशव जी का आधा शरीर दे वी का आ था।[12] इसी कारण िशव अ नारी र नाम से
िस ए।

इस दे वी के दािहनी तरफ नीचे वाले हाथ म च , ऊपर वाले हाथ म गदा तथा बायीं तरफ के
नीचे वाले हाथ म शंख और ऊपर वाले हाथ म कमल का पु है ।[10]

िविध-िवधान से नौंवे िदन इस दे वी की उपासना करने से िस यां ा होती ह। इनकी साधना


करने से लौिकक और परलौिकक सभी कार की कामनाओं की पूित हो जाती है ।[13] मां के
चरणों म शरणागत होकर हम िनरं तर िनयमिन रहकर उपासना करनी चािहए। इस दे वी का
रण, ान, पूजन हम इस संसार की असारता का बोध कराते ह और अमृत पद की ओर ले
जाते ह।

मं :

िस ग व य ा ैरसुरैरमरै रिप।
से माना सदा भूयाात् िस दा िस दाियनी।।
नव दुगा मह
नवदु गा
दे · वा · सं (https://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A
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शैलपु ी • चा रणी • च घंटा • कु ां डा • ं धमाता • का ाियनी • कालराि • महागौरी •
िस दा ी
नवाण मं :॥ॐ एं ीं ीं चामुडायै िव े॥

1.शैलपु ी- स ूण जड़ पदाथ भगवती का पहला प ह प र िम ी जल वायु अि


आकाश सब शैल पु ी का थम प ह। इस पूजन का अथ है ेक जड़ पदाथ म
परमा ा को अनुभव करना।
2. चा रणी- जड़ म ान का ु रण, चेतना का संचार भगवती के दू सरे प का
ादु भाव है । जड़ चेतन का संयोग है । ेक अंकुरण म इसे दे ख सकते ह।
3.चं घंटा-भगवती का तीसरा प है यहाँ जीव म वाणी कट होती है िजसकी अंितम
प रिणित मनु म बैखरी (वाणी) है ।
4.कु ां डा- अथात अंडे को धारण करने वाली; ी ओर पु ष की गभधारण, गभाधान
श है जो भगवती की ही श है , िजसे सम ाणीमा म दे खा जा सकता है ।
5. माता- पु वती माता-िपता का प है अथवा ेक पु वान माता-िपता
माता के प ह।
6.का ायनी- के प म वही भगवती क ा की माता-िपता ह। यह दे वी का छठा प
है ।
7.कालराि - दे वी भगवती का सातवां प है िजससे सब जड़ चेतन मृ ु को ा होते ह
ओर मृ ु के समय सब ािणयों को इस प का अनुभव होता है ।भगवती के इन सात
पों के दशन सबको सुलभ होते ह पर ु आठवां ओर नौवां प सुलभ नहीं
है ।

भगवती का आठवां प महागौरी गौर वण का है ।


भगवती का नौंवा प िस दा ी है । यह ान अथवा बोध का तीक है , िजसे ज
ज ां तर की साधना से पाया जा सकता है । इसे ा कर साधक परम िस हो जाता है ।
इसिलए इसे िस दा ी कहा है ।
नवदुगा आयुवद
एक मत यह कहता है िक ाजी के दु गा कवच म विणत नवदु गा नौ िविश औषिधयों म
ह।[14]

(1) थम शैलपु ी (हरड़) : कई कार के रोगों म काम आने वाली औषिध हरड़ िहमावती है जो
दे वी शैलपु ी का ही एक प है । यह आयुवद की धान औषिध है । यह पथया, हरीितका,
अमृता, हे मवती, काय थ, चेतकी और ेयसी सात कार की होती है ।

(2) चा रणी ( ा ी) : ा ी आयु व याददा बढ़ाकर, र िवकारों को दू र कर र को


मधुर बनाती है । इसिलए इसे सर ती भी कहा जाता है ।

(3) चं घंटा (चंदुसूर) : यह एक ऎसा पौधा है जो धिनए के समान है । यह औषिध मोटापा दू र


करने म लाभ द है इसिलए इसे चमहं ती भी कहते ह।

(4) कू ां डा (पेठा) : इस औषिध से पेठा िमठाई बनती है । इसिलए इस प को पेठा कहते ह।


इसे कु ड़ा भी कहते ह जो र िवकार दू र कर पेट को साफ करने म सहायक है । मानिसक
रोगों म यह अमृत समान है ।

(5) ं दमाता (अलसी) : दे वी ं दमाता औषिध के प म अलसी म िव मान ह। यह वात,


िप व कफ रोगों की नाशक औषिध है ।

(6) का ायनी (मोइया) : दे वी का ायनी को आयुवद म कई नामों से जाना जाता है जैसे अ ा,


अ ािलका व अ का। इसके अलावा इ मोइया भी कहते ह। यह औषिध कफ, िप व गले
के रोगों का नाश करती है ।

(7) कालराि (नागदौन) : यह दे वी नागदौन औषिध के प म जानी जाती ह। यह सभी कार


के रोगों म लाभकारी और मन एवं म के िवकारों को दू र करने वाली औषिध है ।

(8) महागौरी (तुलसी) : तुलसी सात कार की होती है सफेद तुलसी, काली तुलसी, म ता,
दवना, कुढे रक, अजक और षटप । ये र को साफ कर दय रोगों का नाश करती है ।

(9) िस दा ी (शतावरी) : दु गा का नौवां प िस दा ी है िजसे नारायणी शतावरी कहते ह।


यह बल, बु एवं िववेक के िलए उपयोगी है ।

संदभ
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2019-10-05.

बाहरी किड़याँ
नवदु गा से संबंिधत मीिडया
िविकमीिडया कॉमंस पर
उपल है ।
https://web.archive.org/web/20190927080104/https://www.biharlokgeet.com

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अ म प रवतन 12:41, 17 अ ू बर 2020।

यह साम ी ि येिटव कॉम ऍटी ूशन/शेयर-अलाइक लाइसस के तहत उपल है ; अ शत लागू हो सकती
ह। िव ार से जानकारी हे तु दे ख उपयोग की शत

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