पू जन व ध | स यनारायण त कथा और पू जन व ध का वणन कं द पु राण केरेवाखं ड म है ।सय को नारायण ( व णु ) के प म पू जना ही स यनारायण क पूजा है । इसका सरा अथ यह है क सं सार म एकमा नारायण ही स य ह, बाक सब माया है। स यनारायण त कथा
स यनारायण त क स पू ण कथा पां
च अ याय म। हम अपने पाठक केलए पाँ च अ याय तु त कर रहे है । पहला अ याय ी ास जी नेकहा – एक समय नैमषार य तीथ म शौनक आ द सभी ऋ षय तथा मुनय नेपु राणशा के वेा ीसूत जी महाराज से पूछा – महामु न!ेकस त अथवा तप या से मनोवां छत फल ा त होता है, उसेहम सब सु नना चाहतेह, आप कह। ी सूतजी बोले – इसी कार देव ष नारदजी के ारा भी पू छेजानेपर भगवान कमलाप त ने उनसे जैसा कहा था, उसेकह रहा ,ंआप लोग सावधान होकर सु न। एक समय योगी नारदजी लोग के क याण क कामना से व वध लोक म मण करते ए मृ यु लोक म आये और यहां उ ह ने अपने कमफल के अनुसार नाना यो नय म उ प सभी ा णय को अने क कार केले श ख भोगतेए दे खा तथा ‘ कस उपाय सेइनकेख का सु न त प से नाश हो सकता है ’, ऐसा मन म वचार करके वे व णु लोक गये। वहांचार भु जा वाले शंख, च , गदा, प तथा वनमाला से वभू षत शुलवण भगवान ी नारायण का दशन कर उन दे वा धदे व क वेतु त करने लगे। नारद जी बोले– हेवाणी और मन सेपरेव प वाले , अन तश स प , आ द-म य और अ त से र हत, नगु ण और सकल क याणमय गु णगण से स प , थावर- जंगमा मक न खल सृ पं च केकारणभूत तथा भ क पीड़ा न करने वाले परमा मन! आपको नम कार है । तु त सुनने केअन तर भगवान ी व णु जी नेनारद जी सेकहा- महाभाग! आप कस योजन सेयहां आयेह, आपकेमन म या है ? क हये, वह सब कुछ म आपको बताउं गा। नारद जी बोले – भगवन! मृ यु लोक म अपने पापकम के ारा व भ यो नय म उ प सभी लोग ब त कार केले श सेखी हो रहे ह। हे नाथ! कस लघु उपाय से उनके क का नवारण हो सकेगा, य द आपक मेरेऊपर कृ पा हो तो वह सब म सु नना चाहता ।ंउसे बताय। ी भगवान नेकहा – हे व स! सं सार केऊपर अनुह करने क इ छा से आपनेब त अ छ बात पूछ है । जस त के करने सेाणी मोह से मु हो जाता है , उसे आपको बताता ,ं सुन। हे व स! वग और मृ युलोक म लभ भगवान स यनारायण का एक महान पुय द त है। आपकेने ह केकारण इस समय म उसेकह रहा ।ंअ छ कार व ध- वधान सेभगवान स यनारायण त करकेमनु य शी ही सु ख ा त कर परलोक म मो ा त कर सकता है । भगवान क ऐसी वाणी सनुकर नारद मु न ने कहा - भो इस त को करनेका फल या है ? इसका वधान या है? इस त को कसने कया और इसेकब करना चा हए? यह सब व तारपू वक बतलाइये । ी भगवान ने कहा – यह स यनारायण त ख-शोक आ द का शमन करने वाला, धन-धा य क वृ करने वाला, सौभा य और संतान देनेवाला तथा सव वजय दान करनेवाला है। जस- कसी भी दन भ और ा सेसम वत होकर मनु य ा ण और ब धु बा धव के साथ धम म त पर होकर सायंकाल भगवान स यनारायण क पू जा करे। नै वेके प म उ म को ट के भोजनीय पदाथ को सवाया मा ा म भ पू वक अ पत करना चा हए। के लेकेफल, घी, ध, गें का चू ण अथवा गेंके चू ण के अभाव म साठ चावल का चू ण, श कर या गु ड़ – यह सब भ य साम ी सवाया मा ा म एक कर नवे दत करनी चा हए। ब धु-बा धव के साथ ी स यनारायण भगवान क कथा सु नकर ा ण को द णा दे नी चा हए। तदन तर ब धु -बा धव के साथ ा ण को भोजन कराना चा हए। भ पू वक साद हण करके नृ य-गीत आ द का आयोजन करना चा हए। तदन तर भगवान स यनारायण का मरण करतेए अपने घर जाना चा हए। ऐसा करनेसे मनु य क अ भलाषा अव य पू ण होती है । वशे ष प से क लयु ग म, पृ वीलोक म यह सबसे छोटा सा उपाय है। सरा अ याय ीसूतजी बोले– हे ज ! अब म पुनः पू वकाल म जसने इस स यनारायण त को कया था, उसे भलीभांत व तारपूवक क गंा। रमणीय काशी नामक नगर म कोई अ य त नधन ा ण रहता था। भू ख और यास से ाकु ल होकर वह त दन पृ वी पर भटकता रहता था। ा ण य भगवान ने उस खी ा ण को दे खकर वृ ा ण का प धारण करके उस ज से आदरपू वक पू छा – हे व ! त दन अ य त खी होकर तुम कस लए पृ वीपर मण करते रहते हो। हे ज े! यह सब बतलाओ, म सु नना चाहता ।ं ा ण बोला – भो! म अ य त द र ा ण ं और भ ा केलए ही पृवी पर घू मा करता ।ंय द मे री इस द र ता को र करने का आप कोई उपाय जानते ह तो कृपापू वक बतलाइये । वृ ा ण बोला – हेा णदे व! स यनारायण भगवान् व णुअभी फल को दे ने वालेह। हे व ! तु म उनका उ म त करो, जसे करनेसे मनुय सभी ख से मु हो जाता है । त केवधान को भी ा ण से य नपू वक कहकर वृ ा ण पधारी भगवान् व णु वह पर अ तधान हो गये । ‘वृ ा ण ने जै सा कहा है , उस त को अ छ कार से वै सेही क ं गा’ – यह सोचतेए उस ा ण को रात म न द नह आयी। अगले दन ातःकाल उठकर ‘स यनारायण का त क ं गा’ ऐसा सं क प करके वह ा ण भ ा केलए चल पड़ा। उस दन ा ण को भ ा म ब त सा धन ा त आ। उसी धन से उसने ब धु-बा धव केसाथ भगवान स यनारायण का त कया। इस त के भाव से वह े ा ण सभी ख से मु होकर सम त स प य से स प हो गया। उस दन सेलेकर ये क महीनेउसनेयह त कया। इस कार भगवान्स यनारायण केइस त को करके वह े ा ण सभी पाप से मु हो गया और उसनेलभ मो पद को ा त कया। हे व ! पृ वी पर जब भी कोई मनु य ी स यनारायण का त करे गा, उसी समय उसके सम त ख न हो जायगे । हेा ण ! इस कार भगवान नारायण ने महा मा नारदजी सेजो कुछ कहा, मने वह सब आप लोग से कह दया, आगे अब और या क ?ं हे मु न!ेइस पृवी पर उस ा ण से सु नेए इस त को कसने कया? हम वह सब सु नना चाहते ह, उस त पर हमारी ा हो रही है । ी सूत जी बोले– मु नय ! पृवी पर जसने यह त कया, उसे आप लोग सु न। एक बार वह ज ेअपनी धन-स प के अनुसार ब धु -बा धव तथा प रवारजन के साथ त करने केलए उ त आ। इसी बीच एक लकड़हारा वहां आया और लकड़ी बाहर रखकर उस ा ण के घर गया। यास से ाकुल वह उस ा ण को त करता आ दे ख णाम करके उससे बोला – भो! आप यह या कर रहेह, इसके करने से कस फल क ा त होती है , व तारपू वक मुझसे क हये । व ने कहा – यह स यनारायण का त है, जो सभी मनोरथ को दान करने वाला है । उसी के भाव सेमु झे यह सब महान धन-धा य आ द ा त आ है । जल पीकर तथा साद हण करके वह नगर चला गया। स यनारायण देव केलए मन से ऐसा सोचने लगा क ‘आज लकड़ी बे चनेसेजो धन ा त होगा, उसी धन सेभगवान स यनारायण का े त क ं गा।’ इस कार मन से च तन करता आ लकड़ी को म तक पर रख कर उस सुदर नगर म गया, जहां धन-स प लोग रहते थे। उस दन उसनेलकड़ी का गु ना मूय ा त कया। इसके बाद स दय होकर वह पकेए के ले का फल, शकरा, घी, ध और गेंका चूण सवाया मा ा म ले कर अपने घर आया। त प ात उसनेअपने बा धव को बु लाकर व ध- वधान सेभगवान ी स यनारायण का त कया। उस त के भाव से वह धन- पुसे स प हो गया और इस लोक म अनेक सु ख का उपभोग कर अ त म स यपु र अथात् बै कुठलोक चला गया। तीसरा अ याय ी सू तजी बोले– ेमु नय ! अब म पु नः आगे क कथा क ग ंा, आप लोग सुन। ाचीन काल म उ कामु ख नाम का एक राजा था। वह जते य, स यवाद तथा अ य त बु मान था। वह व ान राजा त दन दे वालय जाता और ा ण को धन दे कर स तुकरता था। कमल के समान मु ख वाली उसक धमप नी शील, वनय एवं सौ दय आ द गु ण सेस प तथा प तपरायणा थी। राजा एक दन अपनी धमप नी के साथ भ शीला नद के तट पर ीस यनारायण का त कर रहा था। उसी समय ापार केलए अने क कार क पु कल धनरा श से स प एक साधु नाम का ब नया वहां आया। भ शीला नद के तट पर नाव को था पत कर वह राजा के समीप गया और राजा को उस त म द त दे खकर वनयपू वक पूछनेलगा। साधुनेकहा – राजन् ! आप भ यु च से यह या कर रहे ह? कृ पया वह सब बताइये , इस समय म सुनना चाहता ।ं राजा बोले – हे साधो! पुआ द क ा त क कामना से अपनेब धु -बा धव के साथ म अतुल ते ज स प भगवान् व णु का त एवं पू जन कर रहा ।ं राजा क बात सु नकर साधु ने आदरपू वक कहा – राजन् ! इस वषय म आप मु झेसब कुछ व तार से बतलाइये, आपके कथनानु सार म त एवं पूजन क ं गा। मु झेभी संत त नह है । ‘इससे अव य ही सं त त ा त होगी।’ ऐसा वचार कर वह ापार से नवृहो आन दपू वक अपने घर आया। उसने अपनी भाया सेसं त त दान करने वाले इस स य त को व तार पू वक बताया तथा – ‘जब मु झेसं त त ा त होगी तब म इस त को क ंगा’ – इस कार उस साधु ने अपनी भाया लीलावती से कहा। एक दन उसक लीलावती नाम क सती-सा वी भाया प त केसाथ आन द च से ऋतुकालीन धमाचरण म वृ ई और भगवान्ीस यनारायण क कृ पा सेउसक वह भाया ग भणी ई। दसव महीने म उससे क यार न क उ प ई और वह शु लप के च म क भांत दन- त दन बढ़नेलगी। उस क या का ‘कलावती’ यह नाम रखा गया। इसके बाद एक दन लीलावती ने अपनेवामी से मधुर वाणी म कहा – आप पू व म सं क पत ी स यनारायण केत को य नह कर रहे ह? साधुबोला – ‘ ये ! इसकेववाह के समय त क ं गा।’ इस कार अपनी प नी को भली-भांत आ त कर वह ापार करने केलए नगर क ओर चला गया। इधर क या कलावती पता के घर म बढ़नेलगी। तदन तर धम साधु ने नगर म स खय के साथ ड़ा करती ई अपनी क या को ववाह यो य देखकर आपस म म णा करके ‘क या ववाह केलए ेवर का अ वे षण करो’ – ऐसा त से कहकर शी ही उसे भे ज दया। उसक आ ा ा त करकेत कां चन नामक नगर म गया और वहां से एक व णक का पुले कर आया। उस साधु नेउस व णक के पुको सु दर और गु ण से स प देखकर अपनी जा त के लोग तथा ब धु-बा धव के साथ सं तुच हो व ध- वधान से व णकपुके हाथ म क या का दान कर दया। उस समय वह साधु ब नया भा यवश भगवान्का वह उ म त भू ल गया। पू व सं क प के अनुसार ववाह के समय म त न करनेके कारण भगवान उस पर हो गये। कुछ समय के प ात अपने ापारकम म कु शल वह साधु ब नया काल क ेरणा से अपने दामाद केसाथ ापार करने केलए समुके समीप थत र नसारपु र नामक सु दर नगर म गया और पअनेीस प दामाद के साथ वहां ापार करने लगा। उसके बाद वेदो राजा च केतु केरमणीय उस नगर म गये। उसी समय भगवान् ीस यनारायण ने उसे त दे खकर ‘इसेदा ण, क ठन और महान्ख ा त होगा’ – यह शाप देदया। एक दन एक चोर राजा च के तुके धन को चुराकर वह आया, जहां दोन व णक थत थे । वह अपनेपीछे दौड़तेए त को दे खकर भयभीत च से धन वह छोड़कर शी ही छप गया। इसके बाद राजा केत वहां आ गये जहां वह साधु व णक था। वहांराजा केधन को देखकर वेत उन दोन व णकपु को बां धकर ले आये और हषपूवक दौड़तेए राजा से बोले – ‘ भो! हम दो चोर पकड़ लाए ह, इ ह दे खकर आप आ ा द’। राजा क आ ा से दोन शी ही ढ़तापू वक बां धकर बना वचार कये महान कारागार म डाल दये गये। भगवान् स यदेव क माया से कसी ने उन दोन क बात नह सु नी और राजा च के तुनेउन दोन का धन भी ले लया। भगवान के शाप से व णक के घर म उसक भाया भी अ य त खत हो गयी और उनके घर म सारा-का-सारा जो धन था, वह चोर ने चु रा लया। लीलावती शारी रक तथा मान सक पीड़ा से यु, भूख और यास सेखी हो अ क च ता से दर-दर भटकने लगी। कलावती क या भी भोजन केलए इधर-उधर त दन घू मनेलगी। एक दन भू ख सेपी ़ डत कलावती एक ा ण के घर गयी। वहां जाकर उसने ीस यनारायण केत-पू जन को देखा। वहां बै ठकर उसने कथा सुनी और वरदान मां गा। उसके बाद साद हण करके वह कु छ रात होने पर घर गयी। माता ने कलावती क या सेे मपू वक पू छा – पुी ! रात म तू कहांक गयी थी? तु हारे मन म या है? कलावती क या ने तुर त माता सेकहा – मां ! मनेएक ा ण के घर म मनोरथ दान करने वाला त दे खा है । क या क उस बात को सु नकर वह व णक क भाया त करने को उ त ई और स मन से उस सा वी ने ब धु-बा धव के साथ भगवान्ीस यनारायण का त कया तथा इस कार ाथना क – ‘भगवन! आप हमारेप त एवंजामाता के अपराध को मा कर। वे दोन अपने घर शी आ जायं ।’ इस त से भगवान स यनारायण पु नः संतुहो गये तथा उ ह ने नृ प ेच के तुको व दखाया और व म कहा – ‘नृ प े! ातः काल दोन व णक को छोड़ दो और वह सारा धन भी देदो, जो तु मनेउनसे इस समय ले लया है, अ यथा रा य, धन एवं पुस हत तु हारा सवनाश कर ं गा।’ राजा सेव म ऐसा कहकर भगवान स यनारायण अ तधान हो गये । इसके बाद ातः काल राजा नेअपनेसभासद के साथ सभा म बै ठकर अपना व लोग को बताया और कहा – ‘दोन बंद व णकपु को शी ही मु कर दो।’ राजा क ऐसी बात सुनकर वेराजपुष दोन महाजन को ब धनमु करके राजा के सामने लाकर वनयपूवक बोले– ‘महाराज! बे ड़ी-ब धन से मु करके दोन व णक पुलाये गयेह। इसके बाद दोन महाजन नृप ेच के तु को णाम करके अपने पू व-वृ ता त का मरण करतेए भय व न हो गये और कुछ बोल न सके । राजा ने व णक पु को दे खकर आदरपू वक कहा -‘आप लोग को ार धवश यह महान ख ा त आ है , इस समय अब कोई भय नह है ।’, ऐसा कहकर उनक बे ड़ी खुलवाकर ौरकम आ द कराया। राजा ने व , अलं कार देकर उन दोन व णकपु को संतु कया तथा सामने बु लाकर वाणी ारा अ य धक आन दत कया। पहले जो धन लया था, उसेना करकेदया, उसके बाद राजा ने पुनः उनसे कहा – ‘साधो! अब आप अपने घर को जायं ।’ राजा को णाम करके ‘आप क कृ पा सेहम जा रहेह।’ – ऐसा कहकर उन दोन महावै य नेअपनेघर क ओर थान कया। चौथा अ याय ीसूत जी बोले– साधु ब नया मंगलाचरण कर और ा ण को धन दे कर अपने नगर केलए चल पड़ा। साधु केकुछ र जाने पर भगवान स यनारायण क उसक स यता क परी ा केवषय म ज ासा ई – ‘साधो! तु हारी नाव म या भरा है ?’ तब धन के मद म चूर दोन महाजन ने अवहे लनापूवक हं सतेए कहा – ‘द डन! य पू छ रहे हो? या कुछ लेने क इ छा है ? हमारी नाव म तो लता और प े आ द भरे ह।’ ऐसी न ुर वाणी सुनकर – ‘तुहारी बात सच हो जाय’ – ऐसा कहकर द डी सं यासी को प धारण कयेए भगवान कु छ र जाकर समुके समीप बै ठ गये । द डी केचले जानेपर न य या करने केप ात उतराई ई अथात जल म उपर क ओर उठ ई नौका को दे खकर साधु अ य त आ य म पड़ गया और नाव म लता और प ेआ द दे खकर मु छत हो पृवी पर गर पड़ा। सचेत होने पर व णकपु च तत हो गया। तब उसके दामाद नेइस कार कहा – ‘आप शोक य करते ह? द डी ने शाप देदया है , इस थ त म वे ही चाह तो सब कुछ कर सकते ह, इसम संशय नह । अतः उ ह क शरण म हम चल, वह मन क इ छा पू ण होगी।’ दामाद क बात सुनकर वह साधुब नया उनके पास गया और वहां द डी को दे खकर उसने भ पू वक उ ह णाम कया तथा आदरपू वक कहने लगा – आपके स मुख मने जो कुछ कहा है, अस यभाषण प अपराध कया है , आप मेरेउस अपराध को मा कर – ऐसा कहकर बार बार णाम करके वह महान शोक से आकुल हो गया। द डी ने उसे रोता आ देखकर कहा – ‘हे मू ख! रोओ मत, मेरी बात सु नो। मे री पू जा से उदासीन होनेकेकारण तथा मे री आ ा से ही तु मनेबार बार ख ा त कया है ।’ भगवान क ऐसी वाणी सुनकर वह उनक तु त करनेलगा। साधु ने कहा – ‘हेभो! यह आ य क बात है क आपक माया से मो हत होने के कारण ा आ द दे वता भी आपके गुण और प को यथावत प से नह जान पाते , फर म मू ख आपक माया से मो हत होने केकारण कै सेजान सकता !ं आप स ह । म अपनी धन-स प के अनु सार आपक पू जा क ंगा। म आपक शरण म आया ।ंमेरा जो नौका म थत पुराा धन था, उसक तथा मे री र ा कर।’ उस ब नया क भ यु वाणी सु नकर भगवान जनादन सं तुहो गये । भगवान ह र उसे अभी वर दान करके वह अ तधान हो गये । उसकेबाद वह साधु अपनी नौका म चढ़ा और उसे धन-धा य सेप रपूण दे खकर ‘भगवान स यदे व क कृ पा सेहमारा मनोरथ सफल हो गया’ – ऐसा कहकर वजन के साथ उसने भगवान क व धवत पूजा क । भगवान ी स यनारायण क कृ पा से वह आन द से प रपूण हो गया और नाव को य नपू वक संभालकर उसने अपने देश केलए थान कया। साधु ब नया नेअपने दामाद से कहा – ‘वह दे खो मे री र नपुरी नगरी दखायी देरही है ’। इसके बाद उसने अपने धन केर क त कोअपने आगमन का समाचार दे ने केलए अपनी नगरी म भेजा। उसके बाद उस त ने नगर म जाकर साधु क भाया को दे ख हाथ जोड़कर णाम कया तथा उसकेलए अभी बात कही -‘से ठ जी अपने दामाद तथा ब धु वग के साथ ब त सारेधन-धा य सेस प होकर नगर केनकट पधार गये ह।’ त केमु ख से यह बात सु नकर वह महान आन द से व ल हो गयी और उस सा वी नेी स यनारायण क पूजा करकेअपनी पुी से कहा -‘म साधुकेदशन केलए जा रही ,ं तु म शी आओ।’ माता का ऐसा वचन सु नकर त को समा त करके साद का प र याग कर वह कलावती भी अपने प त का दशन करने केलए चल पड़ी। इससे भगवान स यनारायण हो गयेऔर उ ह नेउसके प त को तथा नौका को धन केसाथ हरण करके जल म डु बो दया। इसके बाद कलावती क या अपनेप त को न दे ख महान शोक सेदन करती ई पृ वी पर गर पड़ी। नाव का अदशन तथा क या को अ य त खी दे ख भयभीत मन से साधु ब नया सेसोचा – यह या आ य हो गया? नाव का सं चालन करनेवाले भी सभी च तत हो गये । तदन तर वह लीलावती भी क या को दे खकर व ल हो गयी और अ य त ख से वलाप करती ई अपने प त सेइस कार बोली -‘ अभी-अभी नौका केसाथ वह कैसे अल त हो गया, न जाने कस देवता क उपेा सेवह नौका हरण कर ली गयी अथवा ीस यनारायण का माहा य कौन जान सकता है !’ ऐसा कहकर वह वजन के साथ वलाप करने लगी और कलावती क या को गोद म ले कर रोने लगी। कलावती क या भी अपने प त के न हो जाने पर खी हो गयी और प त क पा का ले कर उनका अनुगमन करनेकेलए उसनेमन म न य कया। क या के इस कार के आचरण को दे ख भायास हत वह धम साधु ब नया अ य त शोक-सं त त हो गया और सोचने लगा – या तो भगवान स यनारायण ने यह अपहरण कया है अथवा हम सभी भगवान स यदे व क माया से मो हत हो गयेह। अपनी धन श के अनुसार म भगवान ी स यनारायण क पू जा क ंगा। सभी को बुलाकर इस कार कहकर उसने अपने मन क इ छा कट क और बार बार भगवान स यदे व को द डवत णाम कया। इससे द न के प रपालक भगवान स यदे व स हो गये । भ व सल भगवान ने कृपापूवक कहा – ‘तु हारी क या साद छोड़कर अपने प त को दे खनेचली आयी है, न य ही इसी कारण उसका प त अ य हो गया है । य द घर जाकर साद हण करके वह पुनः आये तो हेसाधुब नया तुहारी पुी प त को ा त करेगी, इसम सं शय नह । क या कलावती भी आकाशम डल से ऐसी वाणी सु नकर शी ही घर गयी और उसने साद हण कया। पु नः आकर वजन तथा अपने प त को दे खा। तब कलावती क या नेअपनेपता सेकहा – ‘अब तो घर चल, वल ब य कर रहे ह?’ क या क वह बात सु नकर व णकपुसं तुहो गया और व ध- वधान सेभगवान स यनारायण का पू जन करके धन तथा ब धु -बा धव के साथ अपनेघर गया। तदन तर पू णमा तथा संा त पव पर भगवान स यनारायण का पू जन करतेए इस लोक म सु ख भोगकर अ त म वह स यपु र बै कुठलोक म चला गया। पां चवा अ याय ीसूत जी बोले– ेमु नय ! अब इसके बाद म सरी कथा क गंा, आप लोग सुन। अपनी जा का पालन करने म त पर तु ं ग वज नामक एक राजा था। उसने स यदेव के साद का प र याग करकेख ा त कया। एक बाद वह वन म जाकर और वहां ब त सेपशु को मारकर वटवृके नीचेआया। वहांउसनेदेखा क गोपगण ब धु- बा धव के साथ संतुहोकर भ पू वक भगवान स यदे व क पू जा कर रहेह। राजा यह दे खकर भी अहं कारवश न तो वहांगया और न उसेभगवान स यनारायण को णाम ही कया। पूजन के बाद सभी गोपगण भगवान का साद राजा के समीप रखकर वहां सेलौट आये और इ छानु सार उन सभी ने भगवान का साद हण कया। इधर राजा को साद का प र याग करने से ब त ख आ। उसका स पू ण धन-धा य एवंसभी सौ पुन हो गये । राजा नेमन म यह न य कया क अव य ही भगवान स यनारायण ने हमारा नाश कर दया है। इस लए मुझेवहां जाना चा हए जहांी स यनारायण का पूजन हो रहा था। ऐसा मन म न य करके वह राजा गोपगण के समीप गया और उसने गोपगण के साथ भ - ा से यु होकर व धपूवक भगवान स यदे व क पू जा क । भगवान स यदे व क कृ पा सेवह पु नः धन और पु से स प हो गया तथा इस लोक म सभी सु ख का उपभोग कर अ त म स यपुर वै कुठलोक को ा त आ। ीसू त जी कहते ह – जो इस परम लभ ी स यनारायण केत को करता है और पु यमयी तथा फल दा यनी भगवान क कथा को भ यु होकर सु नता है , उसे भगवान स यनारायण क कृ पा सेधन-धा य आ द क ा त होती है। द र धनवान हो जाता है , ब धन म पड़ा आ ब धन से मु हो जाता है , डरा आ भय मु हो जाता है– यह स य बात है, इसम संशय नह । इस लोक म वह सभी ई सत फल का भोग ा त करके अ त म स यपु र वै कुठलोक को जाता है। हेा ण ! इस कार मने आप लोग से भगवान स यनारायण केत को कहा, जसे करकेमनु य सभी ख से मु हो जाता है। क लयुग म तो भगवान स यदेव क पू जा वशे ष फल दान करने वाली है । भगवान व णु को ही कु छ लोग काल, कुछ लोग स य, कोई ईश और कोई स यदे व तथा सरे लोग स यनारायण नाम सेकहगे । अनेक प धारण करके भगवान स यनारायण सभी का मनोरथ स करते ह। क लयु ग म सनातन भगवान व णु ही स य त प धारण करके सभी का मनोरथ पू ण करने वाले ह गे । हेेमु नय ! जो न य भगवान स यनारायण क इस त-कथा को पढ़ता है , सुनता है , भगवान स यारायण क कृ पा से उसके सभी पाप न हो जाते ह। हेमुनी र ! पूवकाल म जन लोग ने भगवान स यनारायण का त कया था, उसके अगले ज म का वृ ता त कहता ,ं आप लोग सु न। महान ास प शतान द नाम के ा ण स यनारायण त करने के भाव सेसे ज म म सुदामा नामक ा ण ए और उस ज म म भगवान ीकृण का यान करके उ ह नेमो ा त कया। लकड़हारा भ ल गु ह का राजा आ और अगले ज मम उसने भगवान ीराम क सेवा करके मो ा त कया। महाराज उ कामु ख सरेजम म राजा दशरथ ए, ज ह नेीरंगनाथजी क पू जा करके अ त म वै कुठ ा त कया। इसी कार धा मक और स य ती साधु पछले ज म केस य त के भाव सेसरे ज म म मोर वज नामक राजा आ। उसने आरे से चीरकर अपनेपुक आधी दे ह भगवान व णु को अ पत कर मो ा त कया। महाराजा तु ं ग वज ज मा तर म वाय भुव मनुए और भगव स ब धी स पू ण काय का अनुान करके वैकुठलोक को ा त ए। जो गोपगण थे, वे सब ज मा तर म जम डल म नवास करने वाले गोप ए और सभी रा स का सं ह ार करकेउ ह ने भी भगवान का शा त धाम गोलोक ा त कया। ी स यनारायण त कथा स पू ण स यनारायण पू जन साम ी स यनारायण पूजा म के लेकेप े व फल के अलावा पंचामृ त, पं चग , सु पारी, पान, तल, मोली, रोली, कुमकुम, वा क आव यकता होती जनसे भगवान क पू जा होती है । स यनारायण क पू जा केलए ध, मधु , के ला, गं गाजल, तुलसी प ा, मे वा मलाकर पं चामृत तैयार कया जाता है जो भगवान को काफ पसं द है । इ ह साद के तर पर फल, म ान के अलावा आटे को भू न कर उसम चीनी मलाकर एक साद बनता है , वह भी भोग लगता है। स यनारायण पू जन व ध | Satyanarayan Pujan Vidhi जो स यनारायण क पू जा का संक प लेतेह उ ह दन भर त रखना चा हए। पू जन थल को गाय के गोबर सेप व करके वहांएक अ पना बनाएं और उस पर पू जा क चौक रख। इस चौक के चार पायेकेपास के ले का वृलगाएं । इस चौक पर ठाकुर जी और ी स यनारायण क तमा था पत कर। पू जा करते समय सबसे पहले गणप त क पू जा कर फर इ ा द दश द पाल क और मश: पं च लोकपाल, सीता स हत राम, ल मण क , राधा कृण क । इनक पू जा केप ात ठाकु र जी व स यनारायण क पू जा कर। इसके बाद ल मी माता क और अं त म महादे व और ा जी क पू जा कर। पू जा केबाद सभी देव क आरती कर और चरणामृ त ले कर साद वतरण कर। पु रो हत जी को द णा एवं व दे व भोजन कराएं । पु रा हत जी के भोजन के प ात उनसे आशीवाद ले कर आप वयं भोजन कर।