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* स पू

ण स यनारायण त कथा एवं


पू
जन व ध |
स यनारायण त कथा और पू जन व ध का वणन कं द पु
राण केरेवाखं
ड म है
।सय
को नारायण ( व णु
) के प म पू
जना ही स यनारायण क पूजा है
। इसका सरा अथ
यह है क सं
सार म एकमा नारायण ही स य ह, बाक सब माया है।
स यनारायण त कथा

स यनारायण त क स पू ण कथा पां


च अ याय म। हम अपने
पाठक केलए पाँ

अ याय तु त कर रहे
है

पहला अ याय
ी ास जी नेकहा – एक समय नैमषार य तीथ म शौनक आ द सभी ऋ षय तथा
मुनय नेपु
राणशा के वेा ीसूत जी महाराज से
पूछा – महामु
न!ेकस त अथवा
तप या से
मनोवां
छत फल ा त होता है, उसेहम सब सु
नना चाहतेह, आप कह।
ी सूतजी बोले – इसी कार देव ष नारदजी के ारा भी पू छेजानेपर भगवान
कमलाप त ने उनसे जैसा कहा था, उसेकह रहा ,ंआप लोग सावधान होकर सु न।
एक समय योगी नारदजी लोग के क याण क कामना से व वध लोक म मण करते
ए मृ यु
लोक म आये और यहां उ ह ने अपने कमफल के अनुसार नाना यो नय म
उ प सभी ा णय को अने क कार केले श ख भोगतेए दे खा तथा ‘ कस उपाय
सेइनकेख का सु न त प से नाश हो सकता है
’, ऐसा मन म वचार करके वे
व णु लोक गये। वहांचार भु
जा वाले शंख, च , गदा, प तथा वनमाला से
वभू षत शुलवण भगवान ी नारायण का दशन कर उन दे वा धदे
व क वेतु त करने
लगे।
नारद जी बोले– हेवाणी और मन सेपरेव प वाले
, अन तश स प , आ द-म य
और अ त से र हत, नगु
ण और सकल क याणमय गु णगण से स प , थावर-
जंगमा मक न खल सृ पं च केकारणभूत तथा भ क पीड़ा न करने वाले
परमा मन! आपको नम कार है ।
तु
त सुनने
केअन तर भगवान ी व णु
जी नेनारद जी सेकहा- महाभाग! आप कस
योजन सेयहां
आयेह, आपकेमन म या है
? क हये, वह सब कुछ म आपको
बताउं
गा।
नारद जी बोले
– भगवन! मृ
यु
लोक म अपने पापकम के ारा व भ यो नय म
उ प सभी लोग ब त कार केले श सेखी हो रहे
ह। हे
नाथ! कस लघु उपाय से
उनके क का नवारण हो सकेगा, य द आपक मेरेऊपर कृ
पा हो तो वह सब म
सु
नना चाहता ।ंउसे
बताय।
ी भगवान नेकहा – हे
व स! सं
सार केऊपर अनुह करने
क इ छा से आपनेब त
अ छ बात पूछ है
। जस त के करने सेाणी मोह से
मु हो जाता है
, उसे
आपको
बताता ,ं
सुन। हे
व स! वग और मृ युलोक म लभ भगवान स यनारायण का एक
महान पुय द त है। आपकेने ह केकारण इस समय म उसेकह रहा ।ंअ छ
कार व ध- वधान सेभगवान स यनारायण त करकेमनु य शी ही सु
ख ा त कर
परलोक म मो ा त कर सकता है ।
भगवान क ऐसी वाणी सनुकर नारद मु
न ने
कहा - भो इस त को करनेका फल या
है
? इसका वधान या है? इस त को कसने कया और इसेकब करना चा हए? यह
सब व तारपू
वक बतलाइये ।
ी भगवान ने कहा – यह स यनारायण त ख-शोक आ द का शमन करने वाला,
धन-धा य क वृ करने वाला, सौभा य और संतान देनेवाला तथा सव वजय दान
करनेवाला है। जस- कसी भी दन भ और ा सेसम वत होकर मनु य ा ण
और ब धु बा धव के साथ धम म त पर होकर सायंकाल भगवान स यनारायण क
पू
जा करे। नै
वेके प म उ म को ट के भोजनीय पदाथ को सवाया मा ा म
भ पू वक अ पत करना चा हए। के लेकेफल, घी, ध, गें का चू
ण अथवा गेंके
चू
ण के अभाव म साठ चावल का चू ण, श कर या गु ड़ – यह सब भ य साम ी
सवाया मा ा म एक कर नवे दत करनी चा हए।
ब धु-बा धव के साथ ी स यनारायण भगवान क कथा सु नकर ा ण को द णा
दे
नी चा हए। तदन तर ब धु -बा धव के साथ ा ण को भोजन कराना चा हए।
भ पू वक साद हण करके नृ
य-गीत आ द का आयोजन करना चा हए। तदन तर
भगवान स यनारायण का मरण करतेए अपने घर जाना चा हए। ऐसा करनेसे
मनु य क अ भलाषा अव य पू ण होती है
। वशे
ष प से क लयु ग म, पृ
वीलोक म
यह सबसे छोटा सा उपाय है।
सरा अ याय
ीसूतजी बोले– हे ज ! अब म पुनः पू
वकाल म जसने इस स यनारायण त को
कया था, उसे भलीभांत व तारपूवक क गंा। रमणीय काशी नामक नगर म कोई
अ य त नधन ा ण रहता था। भू ख और यास से ाकु ल होकर वह त दन पृ वी
पर भटकता रहता था। ा ण य भगवान ने उस खी ा ण को दे खकर वृ
ा ण का प धारण करके उस ज से आदरपू वक पू
छा – हे व ! त दन अ य त
खी होकर तुम कस लए पृ वीपर मण करते रहते
हो। हे ज े! यह सब
बतलाओ, म सु नना चाहता ।ं
ा ण बोला – भो! म अ य त द र ा ण ं और भ ा केलए ही पृवी पर घू
मा
करता ।ंय द मे
री इस द र ता को र करने
का आप कोई उपाय जानते
ह तो
कृपापू
वक बतलाइये ।
वृ ा ण बोला – हेा णदे व! स यनारायण भगवान्
व णुअभी फल को दे
ने
वालेह। हे
व ! तु
म उनका उ म त करो, जसे करनेसे
मनुय सभी ख से
मु हो
जाता है

त केवधान को भी ा ण से य नपू
वक कहकर वृ ा ण पधारी भगवान् व णु
वह पर अ तधान हो गये
। ‘वृ ा ण ने
जै
सा कहा है
, उस त को अ छ कार से
वै
सेही क ं
गा’ – यह सोचतेए उस ा ण को रात म न द नह आयी।
अगले दन ातःकाल उठकर ‘स यनारायण का त क ं गा’ ऐसा सं
क प करके
वह
ा ण भ ा केलए चल पड़ा। उस दन ा ण को भ ा म ब त सा धन ा त
आ। उसी धन से उसने
ब धु-बा धव केसाथ भगवान स यनारायण का त कया।
इस त के भाव से वह े ा ण सभी ख से मु होकर सम त स प य से
स प हो गया। उस दन सेलेकर ये क महीनेउसनेयह त कया। इस कार
भगवान्स यनारायण केइस त को करके वह े ा ण सभी पाप से मु हो गया
और उसनेलभ मो पद को ा त कया।
हे व ! पृ
वी पर जब भी कोई मनु य ी स यनारायण का त करे
गा, उसी समय
उसके सम त ख न हो जायगे । हेा ण ! इस कार भगवान नारायण ने महा मा
नारदजी सेजो कुछ कहा, मने
वह सब आप लोग से कह दया, आगे अब और या
क ?ं
हे
मु
न!ेइस पृवी पर उस ा ण से सु
नेए इस त को कसने
कया? हम वह सब
सु
नना चाहते
ह, उस त पर हमारी ा हो रही है

ी सूत जी बोले– मु
नय ! पृवी पर जसने यह त कया, उसे आप लोग सु न। एक
बार वह ज ेअपनी धन-स प के अनुसार ब धु
-बा धव तथा प रवारजन के
साथ त करने केलए उ त आ। इसी बीच एक लकड़हारा वहां आया और लकड़ी
बाहर रखकर उस ा ण के घर गया। यास से ाकुल वह उस ा ण को त करता
आ दे ख णाम करके उससे बोला – भो! आप यह या कर रहेह, इसके करने से
कस फल क ा त होती है , व तारपू
वक मुझसे क हये

व ने कहा – यह स यनारायण का त है, जो सभी मनोरथ को दान करने वाला है

उसी के भाव सेमु
झे यह सब महान धन-धा य आ द ा त आ है । जल पीकर तथा
साद हण करके वह नगर चला गया। स यनारायण देव केलए मन से ऐसा सोचने
लगा क ‘आज लकड़ी बे चनेसेजो धन ा त होगा, उसी धन सेभगवान स यनारायण
का े त क ं गा।’ इस कार मन से च तन करता आ लकड़ी को म तक पर रख
कर उस सुदर नगर म गया, जहां
धन-स प लोग रहते थे। उस दन उसनेलकड़ी का
गु
ना मूय ा त कया।
इसके बाद स दय होकर वह पकेए के ले
का फल, शकरा, घी, ध और गेंका
चूण सवाया मा ा म ले
कर अपने
घर आया। त प ात उसनेअपने बा धव को बु
लाकर
व ध- वधान सेभगवान ी स यनारायण का त कया। उस त के भाव से वह धन-
पुसे स प हो गया और इस लोक म अनेक सु
ख का उपभोग कर अ त म स यपु र
अथात् बै
कुठलोक चला गया।
तीसरा अ याय
ी सू
तजी बोले– ेमु नय ! अब म पु
नः आगे क कथा क ग ंा, आप लोग सुन।
ाचीन काल म उ कामु
ख नाम का एक राजा था। वह जते य, स यवाद तथा
अ य त बु मान था। वह व ान राजा त दन दे वालय जाता और ा ण को धन
दे
कर स तुकरता था। कमल के समान मु
ख वाली उसक धमप नी शील, वनय एवं
सौ दय आ द गु ण सेस प तथा प तपरायणा थी। राजा एक दन अपनी धमप नी के
साथ भ शीला नद के तट पर ीस यनारायण का त कर रहा था। उसी समय ापार
केलए अने क कार क पु कल धनरा श से स प एक साधु नाम का ब नया वहां
आया। भ शीला नद के तट पर नाव को था पत कर वह राजा के समीप गया और
राजा को उस त म द त दे खकर वनयपू वक पूछनेलगा।
साधुनेकहा – राजन्
! आप भ यु च से यह या कर रहे
ह? कृ
पया वह सब
बताइये
, इस समय म सुनना चाहता ।ं
राजा बोले
– हे
साधो! पुआ द क ा त क कामना से
अपनेब धु
-बा धव के
साथ
म अतुल ते
ज स प भगवान् व णु
का त एवं
पू
जन कर रहा ।ं
राजा क बात सु नकर साधु ने
आदरपू वक कहा – राजन् ! इस वषय म आप मु झेसब
कुछ व तार से बतलाइये, आपके कथनानु सार म त एवं पूजन क ं गा। मु
झेभी
संत त नह है
। ‘इससे अव य ही सं
त त ा त होगी।’ ऐसा वचार कर वह ापार से
नवृहो आन दपू वक अपने घर आया। उसने अपनी भाया सेसं
त त दान करने वाले
इस स य त को व तार पू वक बताया तथा – ‘जब मु
झेसं त त ा त होगी तब म इस
त को क ंगा’ – इस कार उस साधु ने
अपनी भाया लीलावती से कहा।
एक दन उसक लीलावती नाम क सती-सा वी भाया प त केसाथ आन द च से
ऋतुकालीन धमाचरण म वृ ई और भगवान्ीस यनारायण क कृ पा सेउसक
वह भाया ग भणी ई। दसव महीने
म उससे क यार न क उ प ई और वह
शु लप के च म क भांत दन- त दन बढ़नेलगी। उस क या का ‘कलावती’ यह
नाम रखा गया। इसके
बाद एक दन लीलावती ने
अपनेवामी से मधुर वाणी म कहा
– आप पू व म सं
क पत ी स यनारायण केत को य नह कर रहे ह?
साधुबोला – ‘ ये
! इसकेववाह के समय त क ं गा।’ इस कार अपनी प नी को
भली-भांत आ त कर वह ापार करने केलए नगर क ओर चला गया। इधर क या
कलावती पता के घर म बढ़नेलगी। तदन तर धम साधु ने
नगर म स खय के साथ
ड़ा करती ई अपनी क या को ववाह यो य देखकर आपस म म णा करके ‘क या
ववाह केलए ेवर का अ वे षण करो’ – ऐसा त से कहकर शी ही उसे भे

दया। उसक आ ा ा त करकेत कां चन नामक नगर म गया और वहां से एक
व णक का पुले कर आया। उस साधु नेउस व णक के पुको सु दर और गु
ण से
स प देखकर अपनी जा त के लोग तथा ब धु-बा धव के साथ सं
तुच हो व ध-
वधान से व णकपुके हाथ म क या का दान कर दया।
उस समय वह साधु ब नया भा यवश भगवान्का वह उ म त भू ल गया। पू

सं
क प के अनुसार ववाह के समय म त न करनेके कारण भगवान उस पर हो
गये। कुछ समय के प ात अपने ापारकम म कु शल वह साधु ब नया काल क ेरणा
से अपने दामाद केसाथ ापार करने केलए समुके समीप थत र नसारपु र
नामक सु दर नगर म गया और पअनेीस प दामाद के साथ वहां ापार करने
लगा। उसके बाद वेदो राजा च केतु
केरमणीय उस नगर म गये। उसी समय भगवान्
ीस यनारायण ने उसे त दे खकर ‘इसेदा ण, क ठन और महान्ख ा त
होगा’ – यह शाप देदया।
एक दन एक चोर राजा च के तुके धन को चुराकर वह आया, जहां दोन व णक
थत थे । वह अपनेपीछे दौड़तेए त को दे खकर भयभीत च से धन वह छोड़कर
शी ही छप गया। इसके बाद राजा केत वहां आ गये जहां
वह साधु व णक था।
वहांराजा केधन को देखकर वेत उन दोन व णकपु को बां धकर ले आये और
हषपूवक दौड़तेए राजा से बोले – ‘ भो! हम दो चोर पकड़ लाए ह, इ ह दे
खकर
आप आ ा द’। राजा क आ ा से दोन शी ही ढ़तापू वक बां
धकर बना वचार कये
महान कारागार म डाल दये गये। भगवान् स यदेव क माया से कसी ने उन दोन क
बात नह सु नी और राजा च के तुनेउन दोन का धन भी ले लया।
भगवान के शाप से व णक के घर म उसक भाया भी अ य त खत हो गयी और
उनके घर म सारा-का-सारा जो धन था, वह चोर ने
चु
रा लया। लीलावती शारी रक तथा
मान सक पीड़ा से यु, भूख और यास सेखी हो अ क च ता से दर-दर
भटकने लगी। कलावती क या भी भोजन केलए इधर-उधर त दन घू मनेलगी। एक
दन भू ख सेपी ़
डत कलावती एक ा ण के घर गयी। वहां
जाकर उसने
ीस यनारायण केत-पू जन को देखा। वहां
बै
ठकर उसने कथा सुनी और वरदान
मां
गा। उसके बाद साद हण करके वह कु
छ रात होने
पर घर गयी।
माता ने
कलावती क या सेे मपू
वक पू छा – पुी ! रात म तू कहांक गयी थी? तु हारे
मन म या है? कलावती क या ने तुर त माता सेकहा – मां ! मनेएक ा ण के घर म
मनोरथ दान करने वाला त दे खा है । क या क उस बात को सु नकर वह व णक क
भाया त करने को उ त ई और स मन से उस सा वी ने ब धु-बा धव के साथ
भगवान्ीस यनारायण का त कया तथा इस कार ाथना क – ‘भगवन! आप
हमारेप त एवंजामाता के अपराध को मा कर। वे दोन अपने घर शी आ जायं ।’
इस त से भगवान स यनारायण पु नः संतुहो गये तथा उ ह ने नृ
प ेच के तुको
व दखाया और व म कहा – ‘नृ प े! ातः काल दोन व णक को छोड़ दो और
वह सारा धन भी देदो, जो तु
मनेउनसे इस समय ले लया है, अ यथा रा य, धन एवं
पुस हत तु हारा सवनाश कर ं गा।’
राजा सेव म ऐसा कहकर भगवान स यनारायण अ तधान हो गये । इसके बाद ातः
काल राजा नेअपनेसभासद के साथ सभा म बै
ठकर अपना व लोग को बताया
और कहा – ‘दोन बंद व णकपु को शी ही मु कर दो।’ राजा क ऐसी बात
सुनकर वेराजपुष दोन महाजन को ब धनमु करके राजा के
सामने लाकर
वनयपूवक बोले– ‘महाराज! बे
ड़ी-ब धन से
मु करके दोन व णक पुलाये गयेह।
इसके बाद दोन महाजन नृप ेच के तु
को णाम करके अपने पू
व-वृ
ता त का
मरण करतेए भय व न हो गये और कुछ बोल न सके

राजा ने
व णक पु को दे खकर आदरपू वक कहा -‘आप लोग को ार धवश यह
महान ख ा त आ है , इस समय अब कोई भय नह है ।’, ऐसा कहकर उनक बे ड़ी
खुलवाकर ौरकम आ द कराया। राजा ने व , अलं कार देकर उन दोन व णकपु
को संतु कया तथा सामने बु
लाकर वाणी ारा अ य धक आन दत कया। पहले जो
धन लया था, उसेना करकेदया, उसके बाद राजा ने
पुनः उनसे कहा – ‘साधो! अब
आप अपने घर को जायं
।’ राजा को णाम करके ‘आप क कृ पा सेहम जा रहेह।’ –
ऐसा कहकर उन दोन महावै य नेअपनेघर क ओर थान कया।
चौथा अ याय
ीसूत जी बोले– साधु ब नया मंगलाचरण कर और ा ण को धन दे कर अपने नगर
केलए चल पड़ा। साधु केकुछ र जाने पर भगवान स यनारायण क उसक स यता
क परी ा केवषय म ज ासा ई – ‘साधो! तु हारी नाव म या भरा है
?’ तब धन के
मद म चूर दोन महाजन ने अवहे लनापूवक हं सतेए कहा – ‘द डन! य पू छ रहे हो?
या कुछ लेने
क इ छा है ? हमारी नाव म तो लता और प े आ द भरे ह।’ ऐसी
न ुर वाणी सुनकर – ‘तुहारी बात सच हो जाय’ – ऐसा कहकर द डी सं यासी को
प धारण कयेए भगवान कु छ र जाकर समुके समीप बै
ठ गये

द डी केचले जानेपर न य या करने केप ात उतराई ई अथात जल म उपर क
ओर उठ ई नौका को दे खकर साधु अ य त आ य म पड़ गया और नाव म लता और
प ेआ द दे खकर मु छत हो पृवी पर गर पड़ा। सचेत होने पर व णकपु च तत हो
गया। तब उसके दामाद नेइस कार कहा – ‘आप शोक य करते ह? द डी ने
शाप
देदया है
, इस थ त म वे ही चाह तो सब कुछ कर सकते ह, इसम संशय नह । अतः
उ ह क शरण म हम चल, वह मन क इ छा पू ण होगी।’ दामाद क बात सुनकर वह
साधुब नया उनके पास गया और वहां द डी को दे
खकर उसने भ पू वक उ ह णाम
कया तथा आदरपू वक कहने लगा – आपके स मुख मने जो कुछ कहा है,
अस यभाषण प अपराध कया है , आप मेरेउस अपराध को मा कर – ऐसा
कहकर बार बार णाम करके वह महान शोक से आकुल हो गया।
द डी ने
उसे रोता आ देखकर कहा – ‘हे
मू
ख! रोओ मत, मेरी बात सु
नो। मे
री पू जा से
उदासीन होनेकेकारण तथा मे
री आ ा से
ही तु
मनेबार बार ख ा त कया है ।’
भगवान क ऐसी वाणी सुनकर वह उनक तु त करनेलगा।
साधु ने कहा – ‘हेभो! यह आ य क बात है क आपक माया से मो हत होने
के
कारण ा आ द दे
वता भी आपके गुण और प को यथावत प से नह जान पाते
,
फर म मू ख आपक माया से मो हत होने केकारण कै
सेजान सकता !ं आप स
ह । म अपनी धन-स प के अनु सार आपक पू जा क ंगा। म आपक शरण म आया
।ंमेरा जो नौका म थत पुराा धन था, उसक तथा मे
री र ा कर।’ उस ब नया क
भ यु वाणी सु नकर भगवान जनादन सं तुहो गये

भगवान ह र उसे अभी वर दान करके वह अ तधान हो गये । उसकेबाद वह साधु
अपनी नौका म चढ़ा और उसे धन-धा य सेप रपूण दे
खकर ‘भगवान स यदे व क कृ पा
सेहमारा मनोरथ सफल हो गया’ – ऐसा कहकर वजन के साथ उसने भगवान क
व धवत पूजा क । भगवान ी स यनारायण क कृ पा से वह आन द से प रपूण हो
गया और नाव को य नपू वक संभालकर उसने अपने देश केलए थान कया। साधु
ब नया नेअपने दामाद से
कहा – ‘वह दे
खो मे
री र नपुरी नगरी दखायी देरही है
’।
इसके बाद उसने अपने धन केर क त कोअपने आगमन का समाचार दे ने केलए
अपनी नगरी म भेजा।
उसके बाद उस त ने नगर म जाकर साधु क भाया को दे
ख हाथ जोड़कर णाम
कया तथा उसकेलए अभी बात कही -‘से ठ जी अपने दामाद तथा ब धु
वग के साथ
ब त सारेधन-धा य सेस प होकर नगर केनकट पधार गये ह।’ त केमु
ख से यह
बात सु
नकर वह महान आन द से व ल हो गयी और उस सा वी नेी स यनारायण
क पूजा करकेअपनी पुी से कहा -‘म साधुकेदशन केलए जा रही ,ं तु
म शी
आओ।’ माता का ऐसा वचन सु नकर त को समा त करके साद का प र याग कर वह
कलावती भी अपने प त का दशन करने केलए चल पड़ी। इससे भगवान स यनारायण
हो गयेऔर उ ह नेउसके प त को तथा नौका को धन केसाथ हरण करके जल म
डु
बो दया।
इसके बाद कलावती क या अपनेप त को न दे
ख महान शोक सेदन करती ई पृ वी
पर गर पड़ी। नाव का अदशन तथा क या को अ य त खी दे ख भयभीत मन से साधु
ब नया सेसोचा – यह या आ य हो गया? नाव का सं चालन करनेवाले भी सभी
च तत हो गये
। तदन तर वह लीलावती भी क या को दे
खकर व ल हो गयी और
अ य त ख से वलाप करती ई अपने प त सेइस कार बोली -‘ अभी-अभी नौका
केसाथ वह कैसे अल त हो गया, न जाने कस देवता क उपेा सेवह नौका हरण
कर ली गयी अथवा ीस यनारायण का माहा य कौन जान सकता है !’ ऐसा कहकर
वह वजन के साथ वलाप करने लगी और कलावती क या को गोद म ले कर रोने
लगी।
कलावती क या भी अपने
प त के
न हो जाने
पर खी हो गयी और प त क पा का
ले
कर उनका अनुगमन करनेकेलए उसनेमन म न य कया। क या के इस कार के
आचरण को दे ख भायास हत वह धम साधु ब नया अ य त शोक-सं त त हो गया और
सोचने लगा – या तो भगवान स यनारायण ने यह अपहरण कया है अथवा हम सभी
भगवान स यदे व क माया से मो हत हो गयेह। अपनी धन श के अनुसार म भगवान
ी स यनारायण क पू जा क ंगा। सभी को बुलाकर इस कार कहकर उसने अपने
मन क इ छा कट क और बार बार भगवान स यदे व को द डवत णाम कया।
इससे द न के प रपालक भगवान स यदे व स हो गये । भ व सल भगवान ने
कृपापूवक कहा – ‘तु हारी क या साद छोड़कर अपने प त को दे
खनेचली आयी है,
न य ही इसी कारण उसका प त अ य हो गया है । य द घर जाकर साद हण
करके वह पुनः आये तो हेसाधुब नया तुहारी पुी प त को ा त करेगी, इसम सं
शय
नह ।
क या कलावती भी आकाशम डल से ऐसी वाणी सु
नकर शी ही घर गयी और उसने
साद हण कया। पु नः आकर वजन तथा अपने प त को दे
खा। तब कलावती
क या नेअपनेपता सेकहा – ‘अब तो घर चल, वल ब य कर रहे ह?’ क या क
वह बात सु
नकर व णकपुसं तुहो गया और व ध- वधान सेभगवान स यनारायण
का पू
जन करके धन तथा ब धु
-बा धव के साथ अपनेघर गया। तदन तर पू
णमा तथा
संा त पव पर भगवान स यनारायण का पू जन करतेए इस लोक म सु ख भोगकर
अ त म वह स यपु
र बै
कुठलोक म चला गया।
पां
चवा अ याय
ीसूत जी बोले– ेमु नय ! अब इसके बाद म सरी कथा क गंा, आप लोग सुन।
अपनी जा का पालन करने म त पर तु

ग वज नामक एक राजा था। उसने स यदेव के
साद का प र याग करकेख ा त कया। एक बाद वह वन म जाकर और वहां ब त
सेपशु को मारकर वटवृके नीचेआया। वहांउसनेदेखा क गोपगण ब धु-
बा धव के साथ संतुहोकर भ पू वक भगवान स यदे व क पू
जा कर रहेह। राजा
यह दे
खकर भी अहं कारवश न तो वहांगया और न उसेभगवान स यनारायण को
णाम ही कया। पूजन के बाद सभी गोपगण भगवान का साद राजा के समीप
रखकर वहां सेलौट आये और इ छानु सार उन सभी ने
भगवान का साद हण कया।
इधर राजा को साद का प र याग करने से ब त ख आ।
उसका स पू ण धन-धा य एवंसभी सौ पुन हो गये । राजा नेमन म यह न य कया
क अव य ही भगवान स यनारायण ने हमारा नाश कर दया है। इस लए मुझेवहां
जाना चा हए जहांी स यनारायण का पूजन हो रहा था। ऐसा मन म न य करके वह
राजा गोपगण के समीप गया और उसने गोपगण के साथ भ - ा से
यु होकर
व धपूवक भगवान स यदे व क पू
जा क । भगवान स यदे व क कृ पा सेवह पु
नः धन
और पु से स प हो गया तथा इस लोक म सभी सु ख का उपभोग कर अ त म
स यपुर वै
कुठलोक को ा त आ।
ीसू
त जी कहते ह – जो इस परम लभ ी स यनारायण केत को करता है
और पु यमयी तथा फल दा यनी भगवान क कथा को भ यु होकर सु नता है
, उसे
भगवान स यनारायण क कृ पा सेधन-धा य आ द क ा त होती है। द र धनवान हो
जाता है
, ब धन म पड़ा आ ब धन से मु हो जाता है
, डरा आ भय मु हो
जाता है– यह स य बात है, इसम संशय नह । इस लोक म वह सभी ई सत फल का
भोग ा त करके अ त म स यपु र वै
कुठलोक को जाता है। हेा ण ! इस कार मने
आप लोग से भगवान स यनारायण केत को कहा, जसे करकेमनु य सभी ख से
मु हो जाता है।
क लयुग म तो भगवान स यदेव क पू जा वशे ष फल दान करने वाली है
। भगवान
व णु को ही कु
छ लोग काल, कुछ लोग स य, कोई ईश और कोई स यदे व तथा सरे
लोग स यनारायण नाम सेकहगे । अनेक प धारण करके भगवान स यनारायण सभी
का मनोरथ स करते ह। क लयु ग म सनातन भगवान व णु ही स य त प धारण
करके सभी का मनोरथ पू
ण करने वाले ह गे
। हेेमु नय ! जो न य भगवान
स यनारायण क इस त-कथा को पढ़ता है , सुनता है
, भगवान स यारायण क कृ पा से
उसके सभी पाप न हो जाते ह। हेमुनी र ! पूवकाल म जन लोग ने भगवान
स यनारायण का त कया था, उसके अगले ज म का वृ ता त कहता ,ं आप लोग
सु
न।
महान ास प शतान द नाम के ा ण स यनारायण त करने के भाव सेसे
ज म म सुदामा नामक ा ण ए और उस ज म म भगवान ीकृण का यान करके
उ ह नेमो ा त कया। लकड़हारा भ ल गु
ह का राजा आ और अगले ज मम
उसने भगवान ीराम क सेवा करके
मो ा त कया। महाराज उ कामु
ख सरेजम
म राजा दशरथ ए, ज ह नेीरंगनाथजी क पू जा करके अ त म वै
कुठ ा त कया।
इसी कार धा मक और स य ती साधु पछले ज म केस य त के भाव सेसरे
ज म म मोर वज नामक राजा आ। उसने आरे से
चीरकर अपनेपुक आधी दे ह
भगवान व णु को अ पत कर मो ा त कया। महाराजा तु ं
ग वज ज मा तर म
वाय भुव मनुए और भगव स ब धी स पू ण काय का अनुान करके वैकुठलोक
को ा त ए। जो गोपगण थे, वे
सब ज मा तर म जम डल म नवास करने वाले
गोप ए और सभी रा स का सं ह ार करकेउ ह ने
भी भगवान का शा त धाम गोलोक
ा त कया।
ी स यनारायण त कथा स पू

स यनारायण पू
जन साम ी
स यनारायण पूजा म के लेकेप े व फल के अलावा पंचामृ
त, पं
चग , सु पारी, पान,
तल, मोली, रोली, कुमकुम, वा क आव यकता होती जनसे भगवान क पू जा होती
है
। स यनारायण क पू जा केलए ध, मधु , के
ला, गं
गाजल, तुलसी प ा, मे
वा
मलाकर पं चामृत तैयार कया जाता है
जो भगवान को काफ पसं द है
। इ ह साद के
तर पर फल, म ान के अलावा आटे को भू
न कर उसम चीनी मलाकर एक साद
बनता है
, वह भी भोग लगता है।
स यनारायण पू
जन व ध | Satyanarayan Pujan Vidhi
जो स यनारायण क पू जा का संक प लेतेह उ ह दन भर त रखना चा हए।
पू
जन थल को गाय के गोबर सेप व करके वहांएक अ पना बनाएं और उस पर
पू
जा क चौक रख। इस चौक के चार पायेकेपास के ले
का वृलगाएं । इस चौक
पर ठाकुर जी और ी स यनारायण क तमा था पत कर। पू जा करते समय सबसे
पहले गणप त क पू जा कर फर इ ा द दश द पाल क और मश: पं च लोकपाल,
सीता स हत राम, ल मण क , राधा कृण क । इनक पू जा केप ात ठाकु र जी व
स यनारायण क पू जा कर। इसके बाद ल मी माता क और अं त म महादे व और ा
जी क पू जा कर। पू
जा केबाद सभी देव क आरती कर और चरणामृ त ले कर साद
वतरण कर। पु रो हत जी को द णा एवं व दे व भोजन कराएं । पु
रा हत जी के
भोजन के प ात उनसे आशीवाद ले कर आप वयं भोजन कर।

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